|
1 |
|
00:00:05,080 --> 00:00:10,340 |
|
الحمد لله فاطر السماوات والأرض، المسبغ نعمه على |
|
|
|
2 |
|
00:00:10,340 --> 00:00:16,200 |
|
خلقه ظاهرة وباطنة، لا تحيط بشكرها لسنة الشاكرين |
|
|
|
3 |
|
00:00:16,200 --> 00:00:20,720 |
|
والمسبحين والذاكرين، والحمد لله الذي اصطفى من |
|
|
|
4 |
|
00:00:20,720 --> 00:00:25,680 |
|
عباده النبي الأمي رسولا إلى العالمين، وأوحى إليه |
|
|
|
5 |
|
00:00:25,680 --> 00:00:31,660 |
|
هذا القرآن بلسان عربي مبين ليكون ذكرا له ولقومه |
|
|
|
6 |
|
00:00:31,660 --> 00:00:36,820 |
|
دهر الداهرين، الحمد لله وحده لا شريك له، وصلى الله |
|
|
|
7 |
|
00:00:36,820 --> 00:00:42,540 |
|
على رسوله وسلم تسليما كثيرا طيبا مباركا فيه، وصلى |
|
|
|
8 |
|
00:00:42,540 --> 00:00:46,820 |
|
الله على أبويه الرسولين الكريمين إبراهيم وإسماعيل |
|
|
|
9 |
|
00:00:46,820 --> 00:00:51,620 |
|
وعلى المبلغين رسالات ربهم من الأنبياء والمرسلين |
|
|
|
10 |
|
00:00:52,140 --> 00:00:57,680 |
|
أما بعد، فإن علم الأدب من أجل العلوم وأعظمها، فبه |
|
|
|
11 |
|
00:00:57,680 --> 00:01:03,360 |
|
تنحل عقدة اللسان، وتزاح عن المرء روءة الجنان، وهو |
|
|
|
12 |
|
00:01:03,360 --> 00:01:09,480 |
|
أنيس في السفر، وزين في الحضر، وبه تزاد المروءة، |
|
|
|
13 |
|
00:01:09,480 --> 00:01:14,500 |
|
وتزكو القلوب، وتنجلي غشاوتها، وعلم الأدب يمنح |
|
|
|
14 |
|
00:01:14,500 --> 00:01:20,230 |
|
الإنسان القدرة على البيان عما في نفسه، وفهم ما |
|
|
|
15 |
|
00:01:20,230 --> 00:01:24,850 |
|
يُلقى إليه من كلام، ولا يقتصر علم الأدب على ذلك |
|
|
|
16 |
|
00:01:24,850 --> 00:01:29,370 |
|
فحسب، بل يتعداه إلى تبصير الإنسان بجميع مناحي |
|
|
|
17 |
|
00:01:29,370 --> 00:01:34,070 |
|
الحياة، وقد نقل الإمام أبو إسحاق الحصري عن بعض |
|
|
|
18 |
|
00:01:34,070 --> 00:01:40,170 |
|
العلماء قولهم: العقول لها صور مثل صور الأجسام، فإذا |
|
|
|
19 |
|
00:01:40,170 --> 00:01:45,490 |
|
أنت لم تسلك بها سبيل الأدب حارت وضلت، وإن استها في |
|
|
|
20 |
|
00:01:45,490 --> 00:01:50,890 |
|
أوديتها كلت وملت، فاسلك بعقلك شعاب المعاني والفهم |
|
|
|
21 |
|
00:01:50,890 --> 00:01:57,130 |
|
واستبقه بالجمام للعلم، وارتد لعقلك أفضل طبقات الأدب |
|
|
|
22 |
|
00:01:57,130 --> 00:02:02,610 |
|
وتوقع عليه آفة العطب، فإن العقل شاهدك على الفضل |
|
|
|
23 |
|
00:02:02,610 --> 00:02:08,250 |
|
وحارسك من الجهل، وقد أدرك علماؤنا رحمهم الله أهمية |
|
|
|
24 |
|
00:02:08,250 --> 00:02:13,510 |
|
الأدب وفضله، ولذلك تضافرت جهودهم في الكتابة عنه |
|
|
|
25 |
|
00:02:13,510 --> 00:02:17,650 |
|
والتأليف فيه، ومن العلماء الذين كتبوا في الأدب |
|
|
|
26 |
|
00:02:17,650 --> 00:02:23,350 |
|
و ألفوا فيه الإمام أبو إسحاق الحصري، وكتابه زهر |
|
|
|
27 |
|
00:02:23,350 --> 00:02:28,980 |
|
الأداب يتربع على قبة كتب الأدب، لأهمية هذا الكتاب |
|
|
|
28 |
|
00:02:28,980 --> 00:02:34,480 |
|
وفضله، فقد وقع اختياري عليه ليكون محور حديثي في هذه |
|
|
|
29 |
|
00:02:34,480 --> 00:02:39,440 |
|
المحاضرة من مساق مصادر الأدب العربي بإشراف الأستاذ |
|
|
|
30 |
|
00:02:39,440 --> 00:02:43,580 |
|
الدكتور وليد أبو ندا الذي لا يسعني في هذا المقام |
|
|
|
31 |
|
00:02:43,580 --> 00:02:48,780 |
|
إلا أن أشكره على إتاحة الفرصة لي و لزملائي لتقديم |
|
|
|
32 |
|
00:02:48,780 --> 00:02:54,320 |
|
هذا العمل، فجزاه الله عنا خير الجزاء، وأستهل حديثي عن |
|
|
|
33 |
|
00:02:54,320 --> 00:02:59,100 |
|
هذا الكتاب بالتعريف بمؤلفه وجامعه، فهو الإمام أبو |
|
|
|
34 |
|
00:02:59,100 --> 00:03:03,760 |
|
إسحاق إبراهيم بن علي بن تميم القيرواني الحصري |
|
|
|
35 |
|
00:03:03,760 --> 00:03:09,640 |
|
نسبة إلى عمل الحصر أو بيعها، وقيل نسبة إلى قرية |
|
|
|
36 |
|
00:03:09,640 --> 00:03:15,600 |
|
بجوار القيروان اسمها حصرو، والحصري لقب لقب به غير |
|
|
|
37 |
|
00:03:15,600 --> 00:03:21,460 |
|
واحد من أهل الأدب، فهناك الشاعر أبو الحسن الحصري |
|
|
|
38 |
|
00:03:21,460 --> 00:03:26,380 |
|
الدرير صاحب قصيدة يا ليل الصب، وهذا الشاعر ابن |
|
|
|
39 |
|
00:03:26,380 --> 00:03:30,700 |
|
خالة أبي إسحاق، قال ابن الرشيق في كتاب العمدة |
|
|
|
40 |
|
00:03:30,700 --> 00:03:35,780 |
|
في شعراء القيروان: نشأ أبو إسحاق على الوراقة |
|
|
|
41 |
|
00:03:35,780 --> 00:03:41,820 |
|
والنسخ لجودة خطه، وكان منزله لزق جامع القيروان |
|
|
|
42 |
|
00:03:41,820 --> 00:03:47,940 |
|
فكان الجامع بيته وخزانته، وفيه اجتماع الناس إليه |
|
|
|
43 |
|
00:03:47,940 --> 00:03:53,840 |
|
ومعه، ولزمه شبان القيروان، وأخذ في تأليف الأخبار |
|
|
|
44 |
|
00:03:53,840 --> 00:04:00,780 |
|
وصناعة الأشعار مما قربه إلى قلوبهم، فراز عندهم وشرف |
|
|
|
45 |
|
00:04:00,780 --> 00:04:08,060 |
|
لديهم، ووصلت تأليفاته صقلية، وانتشرت الصلاة عليه، وكان |
|
|
|
46 |
|
00:04:08,060 --> 00:04:14,390 |
|
شاعرا ناقدا عالما بتنزيل الكلام وتفصيل النظام، يحب |
|
|
|
47 |
|
00:04:14,390 --> 00:04:19,530 |
|
المجانسة والمطابقة، ويرغب في الاستعارة، وعنده من |
|
|
|
48 |
|
00:04:19,530 --> 00:04:24,990 |
|
الطبع ما لو أرسله على سبيته لجرى جرى الماء، ورق رقة |
|
|
|
49 |
|
00:04:24,990 --> 00:04:30,110 |
|
الهواء، قال ابن بسام: كان أبو إسحاق هذا صدّ الندي |
|
|
|
50 |
|
00:04:30,110 --> 00:04:35,770 |
|
ونقطة الخبير الجلي، وديوان اللسان العربي، راض صعابه |
|
|
|
51 |
|
00:04:35,770 --> 00:04:42,160 |
|
وسلك أوديته وشعابه، وجمع أشتاته، وأحيا مواته حتى صار |
|
|
|
52 |
|
00:04:42,160 --> 00:04:47,520 |
|
لأهله إمامة، وعلى جده وهزله زمامة، وطنت به |
|
|
|
53 |
|
00:04:47,520 --> 00:04:52,240 |
|
الأقدار، وطنت به الأقدار، وشدت إليه الأقطاب |
|
|
|
54 |
|
00:04:52,240 --> 00:04:57,740 |
|
والأكوار، وأنفق في ما لديه الأموال والأعمار، ولأبي |
|
|
|
55 |
|
00:04:57,740 --> 00:05:03,260 |
|
إسحاق من المصنفات كتاب زهر الآداب وثمر الألباب |
|
|
|
56 |
|
00:05:03,260 --> 00:05:08,800 |
|
وكتاب نور الظرف ونور الطرف، وكتاب المصون في سر |
|
|
|
57 |
|
00:05:08,800 --> 00:05:13,580 |
|
الهوى المكنون، وكتاب جمع الجواهر في الملح والنوادر |
|
|
|
58 |
|
00:05:13,580 --> 00:05:20,280 |
|
وله شعر فيه رقة، قال الذهبي: أبو إسحاق شاعر المغربي |
|
|
|
59 |
|
00:05:20,280 --> 00:05:26,700 |
|
وشعره سائر مدون، ولم يصل إلينا من شعره إلا القليل، |
|
|
|
60 |
|
00:05:26,700 --> 00:05:31,460 |
|
توفي الإمام أبو إسحاق سنة ثلاث وخمسين وأربع مائة، |
|
|
|
61 |
|
00:05:31,460 --> 00:05:36,180 |
|
وهذا ما ذكره ابن بسام، وقال ابن رشيق: مات |
|
|
|
62 |
|
00:05:36,180 --> 00:05:41,760 |
|
بالمنصورة من القيروان سنة ثلاث عشرة وأربع مائة، وهذا |
|
|
|
63 |
|
00:05:41,760 --> 00:05:46,900 |
|
التاريخ فيه نظر، لأن الحصري ذكر في كتابه أبا منصور |
|
|
|
64 |
|
00:05:46,900 --> 00:05:51,800 |
|
السعالبي فقال: وأبو منصور يعيش إلى وقتنا هذا، |
|
|
|
65 |
|
00:05:51,800 --> 00:05:57,840 |
|
والسعالبي توفي سنة تسع وعشرين وأربعمائة، ومما يدل |
|
|
|
66 |
|
00:05:57,840 --> 00:06:02,900 |
|
على صحة ما قاله ابن بسام ما ذكره الرشيد ابن الزبير |
|
|
|
67 |
|
00:06:02,900 --> 00:06:10,290 |
|
من أنه ألف كتابه سنة خمسين وأربعمائة، كانت هذه أهم |
|
|
|
68 |
|
00:06:10,290 --> 00:06:15,150 |
|
المحطات في حياة هذا الأديب، والآن ننتقل للتعريف |
|
|
|
69 |
|
00:06:15,150 --> 00:06:21,890 |
|
بالكتاب: زهر الأداب وثمر الألباب، كتاب من أمهات كتب |
|
|
|
70 |
|
00:06:21,890 --> 00:06:27,110 |
|
الأدب، جمع فيه أبو إسحاق روائع ما ورد من كتب الأدب |
|
|
|
71 |
|
00:06:27,110 --> 00:06:33,510 |
|
التي ألفت قبله، فتراه يتبع الملحة بالطرفة، والقصيدة |
|
|
|
72 |
|
00:06:33,510 --> 00:06:40,380 |
|
بالرسالة، وينتقل من جد إلى فكاهة، ويستدرج قارئه من |
|
|
|
73 |
|
00:06:40,380 --> 00:06:48,040 |
|
حديث إلى حديث، ويتخلل كل ذلك وقفات نقدية تدل على |
|
|
|
74 |
|
00:06:48,040 --> 00:06:54,720 |
|
ذوق رفيع، وأدب أصيل، واسم كتابه ينبئ عن ذلك، فهو |
|
|
|
75 |
|
00:06:54,720 --> 00:07:00,950 |
|
زهر الأداب، أي أحسنها وأفضلها وأبهجها، وزهرة كل شيء |
|
|
|
76 |
|
00:07:00,950 --> 00:07:07,070 |
|
أحسنه وأبهجه، وثمر الألباب أي خلاصة نتاج العقول |
|
|
|
77 |
|
00:07:07,070 --> 00:07:12,710 |
|
وهذا العنوان غير مبالغ فيه، فالكتاب جمع من كتب |
|
|
|
78 |
|
00:07:12,710 --> 00:07:18,210 |
|
الأدب أطيب ما فيها، وجمع خلاصة أقوال العلماء |
|
|
|
79 |
|
00:07:18,210 --> 00:07:23,700 |
|
والأدباء والحكماء، فهو الزهر والثمر بحق، فحسنه له |
|
|
|
80 |
|
00:07:23,700 --> 00:07:29,480 |
|
بريق ونور يزهر كما يزهر النجم المضيء في كبد السماء |
|
|
|
81 |
|
00:07:29,480 --> 00:07:34,020 |
|
وقد بيّن الإمام أبو إسحاق السبب الذي دعاه إلى |
|
|
|
82 |
|
00:07:34,020 --> 00:07:39,080 |
|
تأليف الكتاب، وهو رغبة أبي الفضل العباس بن سليمان |
|
|
|
83 |
|
00:07:39,080 --> 00:07:44,400 |
|
ابن سليمان في الأدب، حيث حمله اجتهاده في طلبه على |
|
|
|
84 |
|
00:07:44,400 --> 00:07:52,720 |
|
الارتحال للمشرق، مبذلا في ذلك ماله، مستعجبا فيه تعبه، |
|
|
|
85 |
|
00:07:52,720 --> 00:07:58,320 |
|
إلى أن أورد من كلام بلغاء عصره وفصحاء دهره طرائف |
|
|
|
86 |
|
00:07:58,320 --> 00:08:04,440 |
|
طريفة وغرائب غريبة، وطلب من الحصري أن يجمع له من |
|
|
|
87 |
|
00:08:04,440 --> 00:08:12,890 |
|
مختارها كتابا يكتفي به عن جملتها، ويضيف إلى ذلك من |
|
|
|
88 |
|
00:08:12,890 --> 00:08:18,670 |
|
كلام المتقدمين ما قاربه وقارنه، وشابهه ومثله، |
|
|
|
89 |
|
00:08:18,670 --> 00:08:25,990 |
|
فسارع الحصري إلى مراده، وأعانه على اجتهاده، وألف |
|
|
|
90 |
|
00:08:25,990 --> 00:08:31,900 |
|
له هذا الكتاب، ليستغني به عن جميع كتب الأدب، ومضمون |
|
|
|
91 |
|
00:08:31,900 --> 00:08:38,340 |
|
كتاب زهر الأداب هو الأدب وفنونه النثرية والشعرية |
|
|
|
92 |
|
00:08:38,340 --> 00:08:45,140 |
|
وموضوعاته متداخلة فيما بينها، وقد قدم الحصري لكتابه |
|
|
|
93 |
|
00:08:45,140 --> 00:08:51,380 |
|
مقدمة وجيزة بيّن فيها دافعه لتأليف الكتاب ومنهجه |
|
|
|
94 |
|
00:08:51,380 --> 00:08:58,040 |
|
ومصادره، ثم بدأ يسرد الكلام في الأدب وموضوعاته، وأسهل |
|
|
|
95 |
|
00:08:58,040 --> 00:09:03,360 |
|
كتابه بالكلام على فضل البيان، ثم فضل الشعر وأثره، |
|
|
|
96 |
|
00:09:03,360 --> 00:09:08,460 |
|
ثم تحدث عن البلاغة وذكر أقوال الأدباء في وصفها، |
|
|
|
97 |
|
00:09:08,460 --> 00:09:13,160 |
|
وذكر فقرات من ألفاظ أهل العصر في صفة الكتب وما |
|
|
|
98 |
|
00:09:13,160 --> 00:09:18,950 |
|
يتعلق بها، ثم انتقل إلى وصف الماء والدور والقصور |
|
|
|
99 |
|
00:09:18,950 --> 00:09:24,090 |
|
وغيرها، ثم ذكر أخلاق الملوك والغزل ووصف الثغور |
|
|
|
100 |
|
00:09:24,090 --> 00:09:31,230 |
|
وصفات الطعام، وفقرات في ذكر العلماء، وفقرات في مدح |
|
|
|
101 |
|
00:09:31,230 --> 00:09:36,730 |
|
السفر، ثم ذكر السمر والمنادمة والطير والزجر، ووصف |
|
|
|
102 |
|
00:09:36,730 --> 00:09:41,390 |
|
المحابر والأقلام، وذكر من فرائد المدح والرثاء |
|
|
|
103 |
|
00:09:41,390 --> 00:09:46,490 |
|
والحنين إلى الأوطان، وذكر ألفاظ أهل العصر في وصف |
|
|
|
104 |
|
00:09:46,490 --> 00:09:51,990 |
|
الأمكنة، وفضل الشعر، وألفاظ أهل العصر في طول الليل |
|
|
|
105 |
|
00:09:51,990 --> 00:09:58,650 |
|
والسهر، ويستمر المؤلف على هذا النهج ينتقل من موضوع |
|
|
|
106 |
|
00:09:58,650 --> 00:10:05,070 |
|
إلى آخر، ومن شاعر إلى آخر، وختم كتابه بذكر ألفاظ أهل |
|
|
|
107 |
|
00:10:05,070 --> 00:10:10,520 |
|
العصر في مدح النبي صلى الله عليه وسلم، ويتضح لنا مما |
|
|
|
108 |
|
00:10:10,520 --> 00:10:16,460 |
|
سبق ذكره من موضوعات، أنه لا يمكن تقديم تسلسل واضح |
|
|
|
109 |
|
00:10:16,460 --> 00:10:23,520 |
|
لمخطط الكتاب، لتعذر التبويب فيه، فالموضوعات متداخلة |
|
|
|
110 |
|
00:10:23,520 --> 00:10:29,100 |
|
فيما بينها، وخصوصا في الخلط بين الفنون الشعرية |
|
|
|
111 |
|
00:10:29,100 --> 00:10:33,500 |
|
والنثرية، وخصوصا في الخلط بين الفنون الشعرية |
|
|
|
112 |
|
00:10:33,500 --> 00:10:39,880 |
|
والنثرية، وبين عصر النقاد والشعراء والنظمين الزمرين |
|
|
|
113 |
|
00:10:40,520 --> 00:10:45,720 |
|
ويمكن إجماله، موضوعات الكتاب التي تحدث عنها المؤلف |
|
|
|
114 |
|
00:10:45,720 --> 00:10:53,000 |
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في الفنون الشعرية والنثرية، فمن فنون الشعر فن الوصف |
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115 |
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00:10:53,000 --> 00:10:59,500 |
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وفن المدح، وفن الرسائل، وفن الهجاء، وفن الغزل، وتحدث |
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116 |
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00:10:59,500 --> 00:11:04,160 |
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عن الحنين إلى الوطن، ومن فنون النثر فن الأمثال |
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117 |
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00:11:04,160 --> 00:11:09,780 |
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والحكم، وفن الخطابة، وفن الرسائل، وفن اللهو والخمريات |
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118 |
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00:11:10,220 --> 00:11:14,960 |
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ويتوسع بإسهاب في ذكر الشعراء والنقاد والنظار |
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119 |
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00:11:14,960 --> 00:11:21,460 |
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والنظمين، وفي بسط ألفاظهم وعرض أقوالهم أو أشعارهم، |
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120 |
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00:11:21,460 --> 00:11:26,740 |
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وله إشارات نقدية وتعليقات مفيدة على كثير من |
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121 |
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00:11:26,740 --> 00:11:32,750 |
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الأشعار والأقوال، ومنهج المؤلف في الكتاب منهج أدبي |
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122 |
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00:11:32,750 --> 00:11:38,510 |
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بليغ، وقد أشار المؤلف إليه في مقدمة كتابه وبيّنه |
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123 |
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00:11:38,510 --> 00:11:44,450 |
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حيث ذكر أنه ليس له في تصنيفه إلا الاختيار، واختيار |
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124 |
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00:11:44,450 --> 00:11:49,690 |
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المرء قطعة من عقله، فقد اختار في الكتاب قطعة كاملة |
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125 |
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00:11:49,690 --> 00:11:55,610 |
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من البلاغات في الشعر والخبر والفصول والفقر، مما |
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126 |
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00:11:55,610 --> 00:12:01,410 |
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حسن لفظه ومعناه، واستدل بفحواه على مغزاه، ولم يكن |
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127 |
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00:12:01,410 --> 00:12:07,210 |
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شاردا حوشيا ولا ساقطا سوقيا، ولم يذهب في هذا |
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128 |
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00:12:07,210 --> 00:12:12,150 |
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الاختيار إلى مطولات الأخبار، فهو كتاب يتصرف الناظر |
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129 |
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00:12:12,150 --> 00:12:17,770 |
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فيه من نسره إلى شعره، ومطبوعه إلى مصنوعه، ومحاورته |
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130 |
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00:12:17,770 --> 00:12:23,390 |
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إلى مفاقرته، ومناقلته إلى مساجلته، وتشبيهاته |
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131 |
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00:12:23,390 --> 00:12:28,590 |
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المصيبة إلى اختراعاته الغريبة، وأوصافه الباهرة إلى |
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132 |
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00:12:28,590 --> 00:12:34,930 |
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أمثاله السائرة، وجده المعجب إلى هزله المطرَب، وقد نزع |
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133 |
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00:12:34,930 --> 00:12:39,510 |
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الحصري فيما جمع عن ترتيب البيوت، وعن إبعاد الشكل |
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134 |
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00:12:39,510 --> 00:12:44,810 |
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عن شكله، وإفراد الشيء من مثله، فجعل بعضه مسلسلا، |
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135 |
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00:12:44,810 --> 00:12:51,580 |
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وترك بعضه مرسلا، وقد يلحق الشكل بنظائره، ويعلق الأول |
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136 |
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00:12:51,580 --> 00:12:58,120 |
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بآخره، وتبقى منه بقية يفرقها في سائره، ليسلم من |
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137 |
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00:12:58,120 --> 00:13:03,060 |
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التطويل الممل، والتقصير المخل، وتظهر في التجميع |
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138 |
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00:13:03,060 --> 00:13:08,720 |
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إفادة الاجتماع، وفي التفريق لذة الامتاع، فيكمل |
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139 |
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00:13:08,720 --> 00:13:14,480 |
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منه ما يُونّق القلوب والأسماع، إذ كان الخروج من جد إلى |
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140 |
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00:13:14,480 --> 00:13:21,200 |
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هزل ومن حزن إلى سهل ينفي للكلل ويُبعد من الملل، وقد |
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141 |
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00:13:21,200 --> 00:13:25,700 |
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قال إسماعيل بن القاسم وهو أبو العتاهية: لا يصلح |
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142 |
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00:13:25,700 --> 00:13:31,180 |
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النفس إذا كانت مدابرة إلا التنقل من حال إلى |
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143 |
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00:13:31,180 --> 00:13:35,920 |
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حال، وقد رغب الحصري في التجافي عن المشهور في جميع |
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144 |
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00:13:35,920 --> 00:13:40,460 |
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المذكور، لأن أول ما يقرأ الآذان أدعى إلى |
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145 |
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00:13:40,460 --> 00:13:45,780 |
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الاستحسان، مما مجته النفوس لطول تكراره، ولفظه |
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146 |
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00:13:45,780 --> 00:13:51,100 |
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العقول لكثرة استمراره، ولم يُعرض إلا عن ما أهانه |
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147 |
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00:13:51,100 --> 00:13:56,430 |
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الاستعمال وأزاله الابتذال، وقد استدرك الحُصري على |
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148 |
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00:13:56,430 --> 00:14:02,110 |
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كثير ممن سبقه إلى مثل ما جرى إليه، واقتصر في هذا |
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149 |
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00:14:02,110 --> 00:14:09,950 |
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الكتاب عليه لملح أوردها كَنَواوِفِ السحر، وفَقَرَ نظمها |
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150 |
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00:14:09,950 --> 00:14:15,130 |
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كَالغِنى بعد الفقر من ألفاظ أهل العصر في محلول النسر |
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151 |
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00:14:15,130 --> 00:14:20,870 |
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ومعقود الشعر، وفيهم من أدركهم بعمره أو لحقهم أهل |
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152 |
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00:14:20,870 --> 00:14:25,930 |
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دهره، ولهم من لطائف الابتداء وتوليدات الاختراع |
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153 |
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00:14:25,930 --> 00:14:31,130 |
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أبكار لم تفترعها الأسماء، يصبوا إليها القلب والطرف |
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154 |
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00:14:31,130 --> 00:14:37,830 |
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ويقطروا منها ماء الملاحة والظرف، وقال في خاتمة كتابه |
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155 |
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00:14:37,830 --> 00:14:43,310 |
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إلى هذا المكان أمسكت العنان والاطناب في هذا الكتاب |
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156 |
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00:14:43,310 --> 00:14:48,950 |
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يعظم ويتسع، بل يتصل ولا ينقطع، إذ كان غرضي فيه أن |
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157 |
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00:14:48,950 --> 00:14:54,590 |
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ألمح المعنى من معانيه، ثم أنجر معه حيث انجر، وأمر |
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158 |
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00:14:54,590 --> 00:15:01,090 |
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فيه كيف مر، وآخذ فيه معنى آخر غير موصول بشكله ولا |
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159 |
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00:15:01,090 --> 00:15:06,940 |
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مقرون بمثله، نشرًا لبساط الانبساط، ورغبة في استدعاء |
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160 |
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00:15:06,940 --> 00:15:13,140 |
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النشاط، وهذا التصنيف لا تدرك غايته ولا تبلغ نهايته |
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161 |
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00:15:13,140 --> 00:15:19,160 |
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إذ المعاني غير محصورة بعدد ولا مقصورة إلى أمد |
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162 |
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00:15:19,160 --> 00:15:26,500 |
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ويمكن تلخيص ما سبق ذكره في النقاط الآتية: أولًا، لم |
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163 |
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00:15:26,500 --> 00:15:31,020 |
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يُحفظ الحصري بترتيب المسائل ولا بتبويب الموضوعات، |
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164 |
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00:15:31,020 --> 00:15:35,500 |
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وإنما يتصرف من الجد إلى الهزل، ومن الأوصاف إلى |
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165 |
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00:15:35,500 --> 00:15:40,180 |
|
التشبيهات، ومن الشعر إلى النثر، وهذه الطريقة من |
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166 |
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00:15:40,180 --> 00:15:44,560 |
|
أهم الطرق في التأليف، وإن عابها من لا يُفرّق بين |
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167 |
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00:15:44,560 --> 00:15:49,810 |
|
الموضوعات العلمية والموضوعات الأدبية، فطريقته في |
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168 |
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00:15:49,810 --> 00:15:56,190 |
|
التأليف طريقة أدبية لا تنحصر بموضوع معين، لأن الأدب |
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169 |
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00:15:56,190 --> 00:16:02,830 |
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كما يقول الشيخ سيد المرصفي: لا موضوع له. ثانيًا، يعني |
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170 |
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00:16:02,830 --> 00:16:08,070 |
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عناية خاصة بالكلام عن الصحابة والتابعين، فينقل |
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171 |
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00:16:08,070 --> 00:16:13,780 |
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أخبارهم ويدون آثارهم. ثالثًا، يكثر من الكلام عن |
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172 |
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00:16:13,780 --> 00:16:18,860 |
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البلاغة والبلغاء والشعر والشعراء والإنشاء وال |
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173 |
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00:16:18,860 --> 00:16:23,880 |
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منشئين. رابعًا، ذكر الحصري في كتابه الكثير من |
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174 |
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00:16:23,880 --> 00:16:28,760 |
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آداب اجتماعية التي كان يحمدها الناس لأهلها، فذكر |
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175 |
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00:16:28,760 --> 00:16:34,450 |
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ما يجمل في معاملة الملوك، وتحدث عن ألفاظ أهل العصر |
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176 |
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00:16:34,450 --> 00:16:39,890 |
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في ضروب التهاني وما يتعلق بها، وذكر ألفاظا لأهل |
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177 |
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00:16:39,890 --> 00:16:44,470 |
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العصر في التهنئة بالحد، وتفخيم أمر الحرم وتعظيم أمر |
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178 |
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00:16:44,470 --> 00:16:50,940 |
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المناسك والمشاعر وما يتصل بها من الأدعية. خامسًا، أقفل |
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179 |
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00:16:50,940 --> 00:16:56,040 |
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الحصري في كتابه ما يتصل بالمجون، فنجله يقول عن |
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180 |
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00:16:56,040 --> 00:17:02,520 |
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غاشد بن أرشد، وله مذهب استفرغ فيه أكثر شعره، وصنت |
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181 |
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00:17:02,520 --> 00:17:08,310 |
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الكتاب عن ذكره، فالغالب على موضوعات الكتاب الجد، فهي |
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182 |
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00:17:08,310 --> 00:17:12,630 |
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محصورة في دائرة الخلق والدين بعيدا عن العبث |
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183 |
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00:17:12,630 --> 00:17:16,470 |
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والمجون، ففيه أخبار النبي صلى الله عليه وسلم |
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184 |
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00:17:16,470 --> 00:17:21,830 |
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والصحابة والتابعين وأقوالهم، فكأن المؤلف أراد |
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185 |
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00:17:21,830 --> 00:17:29,110 |
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تنزيه الكتاب عما يشينه لما كان مشتملا على هذه |
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186 |
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00:17:29,110 --> 00:17:34,470 |
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الأخبار. سادسًا، عَنِيَ الحُصري بموضوع الوصف عناية |
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187 |
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00:17:34,470 --> 00:17:39,530 |
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خاصة، فأكثر من إيراد النصوص في وصف الليل والبلاغة |
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188 |
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00:17:39,530 --> 00:17:45,450 |
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والماء والرعد والبرق وغيرها. سابعًا، أسلوب المؤلف |
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189 |
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00:17:45,450 --> 00:17:51,470 |
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مستملح ويغلب فيه السجع المقبول الخالص من شوائب |
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190 |
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00:17:51,470 --> 00:17:57,490 |
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الصنعة والتكلف، والسجع في الأصل حلية وزينة، وفصول |
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191 |
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00:17:57,490 --> 00:18:02,810 |
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كتابه مليئة بالاستعارات والتشبيهات وألوان من |
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192 |
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00:18:02,810 --> 00:18:08,750 |
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البديع. ثامنًا، يميل الحصري إلى الشمولية، فنجده يشير |
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193 |
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00:18:08,750 --> 00:18:13,830 |
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إلى التاريخ والأدب والشعر والنقد، ويستطرد المؤلف في |
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194 |
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00:18:13,830 --> 00:18:20,070 |
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ذلك، إذ الاستطراد سمة ظاهرة في الكتاب. تاسعًا، يمتاز |
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195 |
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00:18:20,070 --> 00:18:25,330 |
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الكتاب بالاختصار، فالمؤلف لم يطل الكتاب ولم يطل |
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196 |
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00:18:25,330 --> 00:18:31,560 |
|
أيضًا ما ذكره من الأخبار والأشعار. عاشرًا، أهمل الحصري |
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197 |
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00:18:31,560 --> 00:18:36,520 |
|
توثيق النصوص التي نقلها، وفي بعض الأحيان يوثقها |
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198 |
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00:18:36,520 --> 00:18:42,830 |
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ويذكر المصادر. الحادي عشر، اهتم بذكر النوادر الأدبية |
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199 |
|
00:18:42,830 --> 00:18:47,970 |
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نحو ذكر الأوائل في الأشياء وما اختص به بعض الأقوام |
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|
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200 |
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00:18:47,970 --> 00:18:53,370 |
|
واشتهر فيهم وما شبه ذلك. الثاني عشر، أكثر من نقض |
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|
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201 |
|
00:18:53,370 --> 00:18:58,490 |
|
النصوص والتعليق عليها، فيبدي رأيه في النص ويفصل |
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|
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202 |
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00:18:58,490 --> 00:19:03,270 |
|
القول فيه بأسلوب عذب رشيق. وأما منهجه في اختيار |
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203 |
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00:19:03,270 --> 00:19:08,680 |
|
المقطوعات الشعرية والنسرية فيتلخص فيما يأتي: أولًا، |
|
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204 |
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00:19:08,680 --> 00:19:14,140 |
|
يختار منها ما حسن لفظه ومعناه، ولم يكن حوشيا ولا |
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205 |
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00:19:14,140 --> 00:19:21,030 |
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ساقطا. ثانيًا، اختار الأخبار القصيرة والمتوسطة، وترك |
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|
206 |
|
00:19:21,030 --> 00:19:27,190 |
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مطولات الأخبار. ثالثًا، تجنب المشهور من الأخبار. رابعًا، |
|
|
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207 |
|
00:19:27,190 --> 00:19:32,470 |
|
أورد روائع العباسيين من الشعراء والكتاب حتى عصره |
|
|
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208 |
|
00:19:32,470 --> 00:19:37,910 |
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وكاد لا يترك لهم مقطوعة شعرية بديعة ولا رسالة |
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|
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209 |
|
00:19:37,910 --> 00:19:45,010 |
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أدبية رائعة إلا دونها. يساعده في ذلك ذوق مصفى وحس |
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|
|
210 |
|
00:19:45,010 --> 00:19:51,250 |
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دقيق وشعور دقيق، وأكثر من الاختيار لبديع الزمان. |
|
|
|
211 |
|
00:19:52,570 --> 00:19:59,050 |
|
ومصادر الكتاب كثيرة ومتنوعة، وغالبها كتابية وبعضها |
|
|
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212 |
|
00:19:59,050 --> 00:20:04,890 |
|
سماعية، فهذا الكتاب محصلة حافظة قوية ووسعة اطلاع |
|
|
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213 |
|
00:20:04,890 --> 00:20:10,470 |
|
وحسن اختيار وجودة نظم وسبك. وقد ذكر الحصري في مقدمة |
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|
|
214 |
|
00:20:10,470 --> 00:20:16,610 |
|
كتابه أهم المصادر التي اعتمد عليها، فقال: وجعلته |
|
|
|
215 |
|
00:20:16,610 --> 00:20:22,070 |
|
موشحا من بدائع البديع ولآلئ الميكالي وشهية |
|
|
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216 |
|
00:20:22,070 --> 00:20:28,530 |
|
الخوارزمي وغرائب الصاحب ونفيس قبوس وشذور أبي |
|
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217 |
|
00:20:28,530 --> 00:20:34,910 |
|
منصور بكلام يمتزج بأجزاء النفس لطافة وبالهواء رقة |
|
|
|
218 |
|
00:20:34,910 --> 00:20:41,130 |
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وبالماء عزوبة. كانت هذه أهم المصادر التي ذكرها، وله |
|
|
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219 |
|
00:20:41,130 --> 00:20:48,240 |
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مصادر أخرى لم يذكرها. وتكمن قيمة الكتاب في أنه أغزر |
|
|
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220 |
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00:20:48,240 --> 00:20:53,700 |
|
مادة من المصنفات الأدبية التي سبقته، لأن ذوق الحصري |
|
|
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221 |
|
00:20:53,700 --> 00:21:01,340 |
|
ذوق أدبي صرف بخلاف غيره، فقد كانت أهوائهم وزعة بين |
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222 |
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00:21:01,340 --> 00:21:06,740 |
|
البلاغة والرواية والنحو والتصريف، فهو موسوعة أدبية |
|
|
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223 |
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00:21:06,740 --> 00:21:13,160 |
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جمع فيها الحصري أداب عصره والعصر الذي سبقه. وكتاب |
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224 |
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00:21:13,160 --> 00:21:19,380 |
|
زهر الأداب مهم في تخريج النصوص الأدبية لأنه يشتمل |
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225 |
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00:21:19,380 --> 00:21:24,920 |
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على شعر أناس لا توجد دواوينهم كأبي العباس الناشئي |
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226 |
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00:21:24,920 --> 00:21:29,580 |
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وعلي بن محمد الإيادي وعبد الكريم بن إبراهيم |
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227 |
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00:21:29,580 --> 00:21:35,080 |
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النهشلي، كما أنه يشتمل على زيادات لا توجد في |
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228 |
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00:21:35,080 --> 00:21:40,000 |
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الدواوين والمطبوعات الأخرى. وقال ابن بسام في بيان |
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229 |
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00:21:40,000 --> 00:21:46,020 |
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قيمة الكتاب: عارض أبي بحر جاحظ بكتابه الذي وسمه |
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230 |
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00:21:46,020 --> 00:21:52,480 |
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بزهر الآداب وثمر الألباب، فلا عمري ما قصر مداه ولا |
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231 |
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00:21:52,480 --> 00:21:58,580 |
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قصرت خطاه، ولولا أنه شغل أكثر أجزائه وأنحائه بكلام |
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232 |
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00:21:58,580 --> 00:22:04,720 |
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أهل العصر دون كلام العرب، لكان كتاب الأدب لا ينازعه |
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233 |
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00:22:04,720 --> 00:22:09,920 |
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في ذلك إلا من ضاق عنه الأمد، وأعمى بصيرته الحسد |
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234 |
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00:22:10,930 --> 00:22:16,710 |
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وأعمى بصيرته الحسد. ويقول ابن سعيد عن أستاذه |
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235 |
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00:22:16,710 --> 00:22:23,270 |
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البطليوسي: كان بإشبيلية علما في إقراء فنون الأدب |
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236 |
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00:22:23,270 --> 00:22:29,910 |
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وطلبت منه أن أقرأ عليه الكامل للمبرد، فقال: أنصحك أم |
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237 |
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00:22:29,910 --> 00:22:35,800 |
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أدعك لهواك؟ فقلت: بالنصح أن تفعل. فقال: إن كان غرضك |
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238 |
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00:22:35,800 --> 00:22:41,300 |
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إقراء الأدب والاشتهار بكتبه فعليك بأركان الأدب |
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239 |
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00:22:41,300 --> 00:22:46,660 |
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الأربعة: البيان للجاهظ، والكامل للمبرد، والأمال |
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240 |
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00:22:46,660 --> 00:22:55,730 |
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للقالي، والزهرة للحصري. وقد أخذ على الكتاب عدم... عدم |
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241 |
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00:22:55,730 --> 00:23:01,010 |
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ترتيبه للأبواب، وقد ذكرت من قبل الرد على ذلك، وأن |
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242 |
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00:23:01,010 --> 00:23:07,370 |
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هذه الطريقة طريقة أدبية اتبعها غير واحد من أهل |
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243 |
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00:23:07,370 --> 00:23:13,660 |
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العلم. وأما بالنسبة لطبعات الكتاب فقد طبع زهر الأداب |
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244 |
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00:23:13,660 --> 00:23:18,240 |
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في البداية على هامش العقد الفريد من غير ضبط ولا |
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245 |
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00:23:18,240 --> 00:23:23,900 |
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شرح، ثم طبع منفصلا على يد الدكتور ذكي مبارك، وقد |
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246 |
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00:23:23,900 --> 00:23:29,820 |
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أضاف له عنوانًا من عنده، ثم طبعه وضبطه الأستاذ علي |
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247 |
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00:23:29,820 --> 00:23:35,550 |
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البيجاوي، فكانت طبعته أفضل طبعة للكتاب. وقد اعتمد في |
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248 |
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00:23:35,550 --> 00:23:40,190 |
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ضبط هذه الطبعة على مراجعة الأصول التي أخذ منها |
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249 |
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00:23:40,190 --> 00:23:44,810 |
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الكتاب، وعلى مختلف المعاجم والقواميس وكتب اللغة |
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250 |
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00:23:44,810 --> 00:23:51,450 |
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ودواوين الأشعار وغيرها. وقد اختصر الكتاب أبو الحسن |
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251 |
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00:23:51,450 --> 00:23:58,010 |
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علي بن محمد بن برّ في اقتطاف الزهر واجتناء الشعر |
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252 |
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00:23:58,960 --> 00:24:03,220 |
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وأختم حديثي عن الكتاب بذكر نموذج منه فقد قال |
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253 |
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00:24:03,220 --> 00:24:08,460 |
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الحصري في باب فضل الشعر ولما امتدح نصيب عبد الله |
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254 |
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00:24:08,460 --> 00:24:13,880 |
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بن جعفر رضي الله عنه أمر له بإبل وخيل وسياب |
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255 |
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00:24:13,880 --> 00:24:19,320 |
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ودنانير ودراهم فقال له رجل أتعطي لمثل هذا الأبد |
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256 |
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00:24:19,320 --> 00:24:25,000 |
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الأسود هذا العطاء فقال إن كان أسود فإن شعره أبيض |
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257 |
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00:24:25,490 --> 00:24:30,810 |
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وإن كان عبدًا فإن سناءه لحر ولقد استحق بما قال |
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258 |
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00:24:30,810 --> 00:24:36,590 |
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أكثر مما أعطى وهل أعطيناه إلا سيابًا تبلى ومالًا |
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259 |
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00:24:36,590 --> 00:24:42,410 |
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يفنى ومطايا تنضى وأعطانا مديحًا يروى وسناء يبقى |
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260 |
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00:24:42,410 --> 00:24:47,250 |
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وقد قيل إن عمر بن الخطاب رضي الله عنه قال لابنة |
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261 |
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00:24:47,250 --> 00:24:52,740 |
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هلم بن سنان ما وهب أبوك لزهير قالت أعطيناه مالًا |
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262 |
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00:24:52,740 --> 00:24:57,880 |
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وأساسا أثناه الدهر قال لكن ما أعطاكموه لا تفنيه |
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263 |
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00:24:57,880 --> 00:25:04,100 |
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الدهور وقد علق الحصري على هذا فقال وقد صدق عمرو رضي |
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264 |
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00:25:04,100 --> 00:25:08,960 |
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الله عنه لقد أبقى زهير لهم ما لا تفنيه الدهور ولا |
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265 |
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00:25:08,960 --> 00:25:14,520 |
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تخلقه العصور ولا يزال به ذكر الممدوح سامية وشرفه |
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266 |
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00:25:14,520 --> 00:25:20,670 |
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باقية فقد صار ذكرهم علما منصوبة ومثلا مضروبة كانت |
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267 |
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00:25:20,670 --> 00:25:25,530 |
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هذه أهم الوقفات التي أحببت أن أذكرها .. أن أذكرها |
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268 |
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00:25:25,530 --> 00:25:30,390 |
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في التعريف بكتاب زهر الأدب وسمر الألباب لأبي |
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269 |
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00:25:30,390 --> 00:25:35,470 |
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إسحاق الحصري القيرواني يا طالب الأدب والحكم دونك |
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270 |
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00:25:35,470 --> 00:25:41,150 |
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الكتاب فاقرأه قراءة المتيقظ المتدبر حتى تستفيد من |
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271 |
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00:25:41,150 --> 00:25:46,340 |
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أدبه وحكمته وفي الختام أرجو أن أكون قد وفقت في ما |
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272 |
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00:25:46,340 --> 00:25:51,600 |
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أردت قوله، وأسأل الله أن ينفعنا بما علمنا ويزيدنا |
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273 |
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00:25:51,600 --> 00:25:54,500 |
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علما، والسلام عليكم ورحمة الله |
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