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दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था|
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आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे।
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बुखार नहीं था।
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मेरे दादाजी चाहते हैँ की मै एक पेड़ लगाऊ.
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शरीर का चमड़ा झूलने लगा था,
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आज छुट्टी है!
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सड़क की रोशनी से नारंगी सी चमक आ रही थी।
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गांधी ने इन मुसलमानों के हक़
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आश्रम के कई लोग गाँधी जी से बात कर रहे थे।
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जगदीश प्रसाद बच्चों को पढ़ाने के लिए शहर में रहने लगे थे ।
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चट्टानों के मध्य सागर का उथला भाग है
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कहीं भाग जाने की जरुरत न होती थी !
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वकीलों और मुख्तारों की पलटन भी जमा थी।
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ललचाई आँखों से सबकी और देखता है.
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एक गुब्बारा
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इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं,
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देखकर उसकी वो मुस्कान गायब ही हो गयी।
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इसके चिकित्सकीय लाभ हैं.
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क्योंकि वे असली मोती नहीं, नकली कॉँच के दाने थे,
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आखिर जो लोग चोरियॉँ करते हैं,
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की लड़ाई लड़ी और
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मानव-पतन का ऐसा करुण,
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अल्लाह के बन्दे हंस दे
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दिन की रोशनी धुँधला चली थी।
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अब रश्मि का बुरा दौर शुरू हो गया था।
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साथ ही गांधी ने लंकाशायर स्थित
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सारे कांटा निकाल दूंगी इस बच्ची के जीवन से।
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'भगवान, मेरे दादाजी को बचा लो।'
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सायरन की आवाज़ सुन लोग अपने घरों से दौड़े आए।
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दादाजी और मैने जमीन मे एक गड्ढा खोदा और एक पेड़ लगाया.
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यह तो अमुल्य है.
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यूसीएलए सोशल साइंस विभाग के डीन डर्नेल हंट ने कहते हैं
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बरक्कत अपनी कमाई में होती है;
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मैंने सीढ़ी खड़े करने में डॉक्टर की मदद की।
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'पागल नहीं हैं, बड़ा होशियार है।
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काले रंग की वजह से मीनू को हमेशा शर्मिंदा होना पड़ा
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वर्ष भर समताप रहता है और
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स्वाभाविक प्रवृत्ति पाप की ओर होती है,
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जिस मित्र को यह बर्फ़ वाला कागज़ मिलता है, वह आपको खाने पर घर बुलाता है!
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हाँ यह सुन्दर और चमकदार दिखता है,
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मैंने सारा समान एक प्लास्टिक की बाल्टी में रखा और उनसे कहा कि बाल्टी खींचो।
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अगर कल तक में उनके पास चला गया होता,
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सिमा उसके ज़िन्दगी की सबसे जरूरी हिस्सा है उसीने इस उड़ान के लिए मयूरी को पर दिए
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क्या लोग थे वो अभिमानी
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उसका निर्णय करना जरूरी था।
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उनकी नज़र अनायास ही स्कूल की खिड़की पर टिक गई।
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कन्याकुमारी में केवल एक तीर्थस्थान है बल्कि
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सिद्धेश्वरी से जैसे नहीं रहा गया। बोली,
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बही-खाते पटक दिये,
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थोड़ी देर बाद एक कुबड़ा धोबी उधर से गुजरा| तेनालीराम को देखकर वह कुबड़ा बोला:-
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बुधगुप्त, वह दिन कितना सुंदर होता,
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मुझे लगा कि मैं भी ऊपर जाकर उनके पास बैठूँ।
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'क्या तुम इन्हें बाहर निकालने में मेरी मदद करोगे?' शिक्षक ने पूछा।
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कर हर मैदान फ़तेह
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थी धन्य वो उनकी जवानी
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बहुत सारे प्रश्न थे।
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उससे तो वह भी छीन लिया था।
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न ही कोई उसे अपने मन का काम करने से रोक सकता था।
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इस अजीब स्थिति से मुझे खुद ही निबटना था।
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सत्यनाराण को अब अपनी जीत में कोई सन्देह न था।
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और गांधी को जेल से रिहा करने
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मेरा पेड़ कभी भी बर्फ़ से नहीं ढकेगा।
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देवी चमत्कारों के कारण श्रद्धा का केन्द्र है।
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में पण्य लाद कर हम लोग सुखी जीवन बिताते थे -
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अदालत का फैसला मुझे लोक-निन्दा से न बचा सकेगा।
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और ज़िद पर उतर आते हैं,
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फट! दोनों की बंसीे टूट गयीं।
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उसे गिरा दिया।
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पर काम करती रहती है।
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साथ ही गांधी ने लंकाशायर स्थित
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देख लेना और किसी चीज की जरूरत होगी तो फ़ोन कर लेना।
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वह क्रोध से उछल पड़ा।
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मैं स्कूल जाते हुए रास्ते में अपने हाथों को आपस में रगड़ती रहती हूँ।
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वह सब आगे बढ़ जाते हैं.
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नहीं तो पहले मुझी को विष खिला दो।
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फिर उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले
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जो भी हो कल फिर आएगा
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बहार खड़े सभी मेंढक लगातार कह रहे थे कि
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रोटियों की थाली को भी उसने पास खींच लिया।
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मानो बंदूक है और
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उसका मुँह लाल तथा चढ़ा हुआ था,
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किसी ने रस्सी पकड़ी, कोई पाल खोल रहा था।
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मैं जीते-जी आपकी सेवा से मुँह न मोडूँगा।
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एक पैसा देकर बैठ जाओ और
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'बड़का का दिमाग तो खैर काफी तेज है,
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उन्हें खूब स्वादिष्ट पदार्थ खिलाये गये।
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सबसे कम उम्र का यात्री 16 वर्ष का था।
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मैंने उसे गालियाँ सुनाई। उसी दिन से बंदी बना दी गई।'
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मुझ पर कुछ उपकार करें'.
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मेरे घर के पास वाले पेड़ पर बहुत सारी चिड़ियाँ बैठी हैँ.
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अलगू-मुझे बुला कर क्या करोगी ?
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वर्गीज कुरियन दूध की कमी से परेशान भारत को
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'तब मैं अवश्य चला जाऊँगा, चंपा!
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राजा भक्त अम्बरीश के नाम से जोड़ते हैं।
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तो उतनी ही रफ्तार से सिकुड़ती है।
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उस पर अनगिनत मक्खियाँ उड़ रही थीं।
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कंजूसी के मारे दालमोट, समोसे कभी बाजार से न मँगातीं।
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जब वह समझदार हुई तो समझने लगी थी कि मेरी माँ ने मेरे लिए इतना त्याग किया है ।
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पर इसी बीच में बग्घी निकल गयी और मुंशी जी की जान में जान आयी।
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जब गोदामों में आई माल की कमी का ब्यौरा अंकित
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