audio
audioduration (s) 1.03
23.8
| id
int64 0
18.8k
| text
stringlengths 5
391
| speaker_id
int64 1
311
| gender
stringclasses 2
values |
---|---|---|---|---|
4,766 | त्यांना एक सुंदर स्त्री राजवाड्यातून बाहेर पडतांना दिसली. | 1 | male |
|
4,767 | राजाने आश्चर्यचकित होऊन त्या स्त्रीला हात जोडून नम्रपणे विचारले, आपण कोण आहात. | 1 | male |
|
4,768 | त्यावर त्या स्त्रीने सांगितले, मी लक्ष्मी आहे, आता या राजवाड्यातून मी जात आहे. | 1 | male |
|
4,769 | तेव्हा राजाने तिला सांगितले, तू जाऊ शकतेस. | 1 | male |
|
4,770 | लक्ष्मी बाहेर पडली, नंतर लक्ष्मीच्या पाठोपाठ एका सुंदर पुरुषाला राजवाड्याबाहेर पडतांना पाहून राजाने त्यालाही विचारले. | 1 | male |
|
4,771 | त्याने उत्तर दिले, माझे नाव दान आहे. | 1 | male |
|
4,772 | लक्ष्मी बाहेर गेल्यानंतर आपण दान करू शकणार नाही; म्हणून मीही तिच्यासह जात आहे. | 1 | male |
|
4,773 | राजाने सांगितले आपणसुद्धा राजवाडा सोडून जाऊ शकता. | 1 | male |
|
4,774 | त्यानंतर त्याच्या पाठोपाठ तिसरा पुरुष यश निघून गेला. | 1 | male |
|
4,775 | त्यानंतर चौथा पुरुष प्रकट झाला अन् बाहेर पडू लागला. | 1 | male |
|
4,776 | तेव्हा राजाने त्यालाही हात जोडून नम्रपणे त्याचे नाव विचारले. | 1 | male |
|
4,777 | तो पुरुष म्हणाला, माझे नाव सदाचार. | 1 | male |
|
4,778 | राजाने त्याला म्हटले, मी तर तुझा कधीच त्याग केला नाही, तू मला सोडून का जात आहेस. | 1 | male |
|
4,779 | तुझ्यासाठीच मी लक्ष्मी, दान आदींचा त्याग केला आहे, मी तुला जाऊ देणार नाही. | 1 | male |
|
4,780 | तू मला सोडून गेलास, तर माझे सर्वस्व जाईल. | 1 | male |
|
4,781 | राजाचे हे बोल ऐकून सदाचार राजवाड्यातच थांबला. | 1 | male |
|
4,782 | सदाचार बाहेर पडला नाही, हे पाहून बाहेर गेलेली लक्ष्मी, दान आणि यशही परत आले. | 1 | male |
|
4,783 | मुलांनो, सदाचाराने वागणे हेच आयुष्याचे सर्वस्व आहे. | 1 | male |
|
4,784 | जीवनात सदाचार, नीतीमत्ता, धर्माचरण, आदी नसेल, तर दान, लक्ष्मी, श्रीमंती, आदींचा काहीच उपयोग नाही. | 1 | male |
|
4,785 | एक राजा खूप मोठा देवभक्त होता. | 1 | male |
|
4,786 | गावात एक शंकराची पिंडी होती, त्याचा एक पुजारी होता. | 1 | male |
|
4,787 | तोही श्रद्धेने, मनोभावे देवाची पूजा आणि सेवा करायचा. | 1 | male |
|
4,788 | त्याला मधून मधून देवदर्शन होत असे. | 1 | male |
|
4,789 | राजा रोज देवळात जायचा, देवासाठी सोन्याच्या ताटातून जेवण पाठवायचा, देवासाठी दानधर्म करायचा. | 1 | male |
|
4,790 | राजाला वाटायचे, मी देवासाठी इतके करतो, तरी मला देवदर्शन का होत नाही. | 1 | male |
|
4,791 | पुजारी तर देवाला काहीच देत नाही, तरी त्याला देव कसा दर्शन देतो. | 1 | male |
|
4,792 | एके दिवशी राजा देवळात गेला असतांना पुजारी पूजा करत होता, तेवढ्यात थोडा भूकंप झाला. | 1 | male |
|
4,793 | देवळाच्या भिंती आणि छप्पर हलू लागले. | 1 | male |
|
4,794 | पुजारी पिंडीवर ओणवा झाला; कारण छप्पर पडले, तर देवाला लागू नये. | 1 | male |
|
4,795 | राजा लगेच पळून गेला, त्या वेळी पुजार्याला देवदर्शन का होते, हे राजाला समजले. | 1 | male |
|
4,796 | एक गृहस्थ म्हातारपणामुळे बराच थकला होता. | 1 | male |
|
4,797 | आयुष्यात चांगली कमाई करून आणि स्वत: चांगले जीवन जगूनसुद्धा त्याच्या पाच मुलांमध्ये सदान्-कदा चालणाऱ्या भांडणांमुळे तो दु:खी होई. | 1 | male |
|
4,798 | त्याने आपल्या मुलांना बराच उपदेश केला; पण उपड्या घड्यावर पाणी. | 1 | male |
|
4,799 | एके दिवशी त्याने आपल्या पाचही मुलांना प्रत्येकी हातभर लांबीची एक-एक काठी घेऊन यायला सांगितले. | 1 | male |
|
4,800 | त्याप्रमाणे ती मुले एक-एक काठी घेऊन आली. | 1 | male |
|
4,801 | त्या गृहस्थाने त्यांच्यापैकी प्रत्येकाला आपापली काठी मोडण्यास सांगितले. | 1 | male |
|
4,802 | वडिलांनी सांगितलेली ती गोष्ट प्रत्येक मुलाने लगेचच करून दाखवली. | 1 | male |
|
4,803 | पुन्हा त्या गृहस्थाने त्या मुलांना तशाच प्रकारची एकेक काठी घेऊन यायला सांगितले. | 1 | male |
|
4,804 | पाच जणांनी पाच काठ्या आणून वडिलांपुढे ठेवल्या. | 1 | male |
|
4,805 | वडिलांनी त्या पाच काठ्यांची एका दोरीने मोळी बांधली, आणि प्रत्येकाला ती मोडायला सांगितली. | 1 | male |
|
4,806 | पाच काठ्या एकत्र असलेली ती मोळी होती. | 1 | male |
|
4,807 | आपल्या पाच मुलांपैकी कुणालाच मोडता येत नसल्याचे पाहून तो गृहस्थ त्यांना म्हणाला, बघितलंत ना, एकीचे बळ किती असते ते ? | 1 | male |
|
4,808 | वडील एवढेच बोलले; पण ते सूज्ञ मुलगे समजायचे ते समजले. | 1 | male |
|
4,809 | तेव्हापासून ते एकजुटीने वागू लागले. | 1 | male |
|
4,810 | एका गावात रथोत्सव चालू असतो. | 1 | male |
|
4,811 | भाविक तो रथ एका गावातून दुसऱ्या गावात वाजत-गाजत नेत असतात. | 1 | male |
|
4,812 | मध्येच रथाचे एक चाक तुटून जाते, त्यामुळे भाविक चिंतित होतात. | 1 | male |
|
4,813 | त्यांना प्रश्न पडतो, रथातील देवाला दुसऱ्या गावाला कसे पोहोचवायचे ? | 1 | male |
|
4,814 | भाविक पर्यायी म्हणून बैलगाडी, घोडागाडी शोधतात; पण काहीही उपलब्ध होत नाही. | 1 | male |
|
4,815 | मार्गात मध्येच भाविकांना कचरा खाणारे एक गाढव दिसते. | 1 | male |
|
4,816 | सर्व जण त्याला चंदनतैलादी लावून आंघोळ घालतात. | 1 | male |
|
4,817 | रेशमी वस्त्र घालून सजवतात आणि त्यावर देवाला बसवतात. | 1 | male |
|
4,818 | उत्सव पुन्हा चालू होतो अन् सर्वजणदुसऱ्या गावाकडे प्रयाण करतात. | 1 | male |
|
4,819 | काही भाविक गाढवावरील देवाला हार घालू लागतात. | 1 | male |
|
4,820 | काही वेळाने देवाला हार घालायला जागा राहात नाही. | 1 | male |
|
4,821 | म्हणून लोक गाढवालाच भक्ती-भावाने हार घालू लागतात. | 1 | male |
|
4,822 | मार्गाने जातांना गाढव विचार करते, आत्तापर्यंत कधी मिळाले नाही, ते राजवैभव मला आज कसे काय मिळत आहे. | 1 | male |
|
4,823 | देवाला ओवाळत असलेली आरती आपल्यासाठी आहे, असे गाढव मानू लागले आणि त्यामुळे ते अधिकच आनंदी झाले. | 1 | male |
|
4,824 | काही क्षणांनंतर त्याच्या मनात विचार आला. | 1 | male |
|
4,825 | मला हे राजवैभव मान्य आहे; पण माझ्या पाठीवर काहीतरी ओझे आहे. | 1 | male |
|
4,826 | हा विचार आल्यावर ते स्वतःचे अंग झाडते, त्यामुळे त्याच्या पाठीवरील देव खाली पडतो. | 1 | male |
|
4,827 | हे पाहून भाविक भडकतात आणि गाढवाला धोपटतात. | 1 | male |
|
4,828 | जोपर्यंत आपल्यावर देवाची कृपा आहे, आपल्याजवळ त्याचा वास आहे, तोपर्यंतच आपल्याला मानसन्मान आणि समाजाकडून लाभणारे प्रेम मिळणार आहे. | 1 | male |
|
4,829 | ज्या क्षणी अहंकार बळावतो, त्या वेळी आपली स्थिती गाढवापेक्षा वेगळी राहत नाही. | 1 | male |
|
4,830 | म्हणून देवाला विसरू नये, अहंरहित रहावे, सर्व मानसन्मान देवाचरणी अर्पण करावेत. | 1 | male |
|
4,831 | एक माणूस परीस शोधायला निघाला. | 1 | male |
|
4,832 | त्यासाठी रस्त्यात जो दगड येईल तो घ्यायचा, गळ्यातल्या साखळीला लावायचा आणि फेकून द्यायचा. | 1 | male |
|
4,833 | असा त्याचा दिनक्रम सुरू झाला. | 1 | male |
|
4,834 | दिवस गेले, महिने लोटले, वर्षे सरली, पण त्याच्या दिनक्रमात बदल झाला नाही. | 1 | male |
|
4,835 | शेवटी तो माणूस म्हातारा झाला. | 1 | male |
|
4,836 | ज्या क्षणि तो आपले शेवटचे श्वास मोजत होता, त्यावेळी अचानक त्याचे लक्ष त्याच्या गळ्यातील साखळीकडे गेले. | 1 | male |
|
4,837 | ती साखळी सोन्याची झाली होती. | 1 | male |
|
4,838 | दगड घ्यायचा, साखळीला लावायचा आणि फेकून द्यायचा या नादात त्याचे साखळीकडे लक्षच गेले नाही. | 1 | male |
|
4,839 | प्रत्येकाच्या जीवनात एकदा तरी परीस येत असतो. | 1 | male |
|
4,840 | कधी आई- वडिलांच्या रूपाने, तर कधी भाऊ-बहिणींच्या नात्याने, कधी मित्राच्या मैत्रिणीच्या नात्याने, तर कधी प्रेयसीच्या नात्याने. | 1 | male |
|
4,841 | कोणत्या ना कोणत्या रूपात तो आपल्याला भेटत असतो, आणि आपल्यातल्या लोखंडाचे सोने करीत असतो. | 1 | male |
|
4,842 | आपण जे काही असतो, किंवा बनतो, त्यात त्यांचा बराच हातभार असतो. | 1 | male |
|
4,843 | पण फार कमी लोक या परीसाला ओळखू शकतात. | 1 | male |
|
4,844 | मुंबई कधीही न झोपणार शहर, पण इथे सुद्धा मनमोहक सकाळ रोज होते बर का! | 1 | male |
|
4,845 | अशीच सकाळची वेळ होती, सुर्यदेवांची कोवळी किरणे अलगद शरीरास स्पर्श करून जात होती. | 1 | male |
|
4,846 | काल रात्री एका मित्राने सकाळी भेटण्याचं वचन माझ्याकडून घेतल होत, त्यालाच भेटण्यासाठी म्हणून मी घराबाहेर पडलो. | 1 | male |
|
4,847 | ठरल्या ठिकाणी अगदी वेळेच्या आधीच पोचायची माझी सवयच होती. | 1 | male |
|
4,848 | साधारण साडे नऊ ची वेळ असावी. | 1 | male |
|
4,849 | ह्या अनोळखींच्या जगात तिथे मी एकटाच होतो जो प्रत्येक येणाऱ्या, जाणाऱ्यांकडे टक लाऊन पाहत होतो. | 1 | male |
|
4,850 | मिनिटाला शंभर पावल, असा इथे नियम असतो, हे वाक्य खरच आहे, हे त्या दिवशी मी प्रत्यक्ष अनुभवलं. | 1 | male |
|
4,851 | तितक्यात काही पावलं, माझ्या दिशेने दबकत येताना जाणवली. | 1 | male |
|
4,852 | पण मागे वळून पाहण्याच्या अगोदरच, कोणीतरी माघून डोळे गच्च पकडले. | 1 | male |
|
4,853 | अनेकांची नावं घेतली, पण नकारार्थी हुंकार कानावर पडले. | 1 | male |
|
4,854 | डोळ्यांवरचा हाथ अलगद सरकला, ती व्यक्ती दृष्टीक्षेपात आली. | 1 | male |
|
4,855 | ती होती सतरा ते अठरा दरम्यान रेंगाळत असलेली एक तरुणी, जीला मी पहिल्यांदाच पाहत होतो. | 1 | male |
|
4,856 | मी काही बोलण्याचा अगोदरच ती उत्साहाने बोलली. | 1 | male |
|
4,857 | पण तिच्या चाललेल्या बऱ्याच वेळेच्या बडबडीत एक गोष्ट उमजली. | 1 | male |
|
4,858 | अगदी योगायोगाने मी त्या दिवशी त्याच पोशाखात तिथे पोहोचलो होतो. | 1 | male |
|
4,859 | तिला बऱ्याचदा सांगण्याचा प्रयत्न केला पण ती काही बोलू देईनाच. | 1 | male |
|
4,860 | ती काय बोलत होती ह्याकडे माझ पूर्ण लक्ष होत. | 1 | male |
|
4,861 | शेवटी मला कॉलेज ला उशीर होतोय, आपण उद्या पुन्हा इथेच भेटू अस बोलून ती निघून गेली. | 1 | male |
|
4,862 | प्रत्यक्ष दहा मिनिटं माझ्या पुढे उभी राहून मला एकही शब्द बोलू न देणाऱ्या त्या अनोळखी मुलीला. | 1 | male |
|
4,863 | तिच्या होणाऱ्या गैरसमजाबद्दल उद्या नक्की सांगू असा निश्चय करून, मी त्या विचारांना स्वल्पविराम दिला. | 1 | male |
|
4,864 | ज्याला भेटायला आलो तो अजून आला नाही म्हणून मी त्याला फोन लावला. | 1 | male |
|
4,865 | त्याचाशी बोलत असतानाच अचानक खांद्यावर भक्कम अशी थाप पडली. | 1 | male |
End of preview. Expand
in Dataset Viewer.
README.md exists but content is empty.
Use the Edit dataset card button to edit it.
- Downloads last month
- 56