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Sloka,Class
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यस्मात् त्रस्यन्ति भूतानि मृगव्याधान्मृगा इव। सागरान्तामपि महीं लब्ध्वा स परिहीयते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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3 |
+
एतान्यनिगृहीतानि व्यापादयितुमप्यलम्। अविधेया इवादान्ता हयाः पथि कुसारथिम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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4 |
+
यावत्स्वस्थो ह्यय देहः तावन्मृत्युश्च दूरतः। तावदात्महितं कुर्यात् प्रणान्ते किं करिष्यति॥,Chanakya Slokas
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5 |
+
ईश्वरस्य स्मरणं प्रभाते उत्थाय अवश्यं कर्तंव्यम् ॥ ,sanskrit-slogan
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6 |
+
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥,Chanakya Slokas
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7 |
+
सा भार्या या सुचिदक्षा सा भार्या या पतिव्रता। सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी ॥,Chanakya Slokas
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8 |
+
सहायबन्धना ह्यर्थाः सहायाश्चर्थबन्धनाः। अन्योऽन्यबन्धनावेतौ विनान्योऽन्यं न सिध्यतः॥ ,Vidur Niti Slokas
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9 |
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एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता। वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥,Chanakya Slokas
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10 |
+
उपदेशो हि मूर्खणां प्रकोपाय न शान्तये ॥ ,sanskrit-slogan
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11 |
+
मित्रं भुड्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो मितं स्वपित्यमितं कर्म कृत्वा । ददात्यमित्रेष्वपि याचितः संस्तमात्मवन्तं प्रजहत्यनर्थाः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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12 |
+
आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ ॥ ,sanskrit-slogan
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13 |
+
विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः। भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधयेत॥,Chanakya Slokas
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14 |
+
सर्वो हि मन्यते लोक आत्मानं निरूपद्रवम् ॥ ,sanskrit-slogan
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15 |
+
न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये। भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावो हि कारणम्॥,Chanakya Slokas
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16 |
+
अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः। अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्॥,Chanakya Slokas
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+
यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ॥ ,sanskrit-slogan
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ज्ञात्वापि दोषमेव करोति लोकः ॥ ,sanskrit-slogan
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+
हस्ती त्वंकुशमात्रेण बाजो हस्तेन तापते। शृङ्गीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥,Chanakya Slokas
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20 |
+
शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्। न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दयापरः॥,Chanakya Slokas
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21 |
+
अनुसूयुः कृतप्रज्ञः शोभनान्याचरन् सदा। नकृच्छं महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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22 |
+
उद्यमे नावसीदति ॥ ,sanskrit-slogan
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23 |
+
संसारयति कृत्यानि सर्वत्र विचिकित्सते। चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ ॥ ,Vidur Niti Slokas
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24 |
+
हस्तस्य भूषणं दानम् ॥ ,sanskrit-slogan
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25 |
+
मौनं सर्वार्थसाधनम् ॥ ,sanskrit-slogan
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26 |
+
त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् । कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः॥,Chanakya Slokas
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27 |
+
मृदुर्हि परिभूयते ॥ ,sanskrit-slogan
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28 |
+
अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च । कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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29 |
+
जन्ममृत्युर्नियत्येको भुनक्तयेकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येकः एको याति परां गतिम्॥,Chanakya Slokas
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30 |
+
यद् दूरं यद् दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् । तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥,Chanakya Slokas
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31 |
+
अर्थेषणा न व्यसनेषु गण्यते ॥ ,sanskrit-slogan
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32 |
+
विनयाद् याति पात्रताम् ॥ ,sanskrit-slogan
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33 |
+
यज्ञो दानमध्ययनं तपश्च चत्वार्येतान्यन्वेतानि सणि। दमः सत्यमार्जवमानृशंस्यं चत्वार्येतान्यनुयान्ति सन्तः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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34 |
+
भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ॥ ,sanskrit-slogan
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35 |
+
वरयेत्कुलजां प्राज्ञो निरूपामपि कन्यकाम्। रूपवतीं न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥,Chanakya Slokas
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36 |
+
अनुशासनेन एव मनुष्यः महान् भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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37 |
+
ययोश्चित्तेन वा चित्तं निभृतं निभृतेन वा। समेति प्रज्ञया प्रज्ञा तयोमैत्री न जीवर्यति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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38 |
+
न नित्यं लभते दुःखं न नित्यं लभते सुखम् ॥ ,sanskrit-slogan
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39 |
+
अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः। मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥,Chanakya Slokas
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40 |
+
आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् । दारिद्रयरोग दुःखानि बन्धनव्यसनानि च॥,Chanakya Slokas
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41 |
+
प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागश्च बन्धुषु। स्वयमाक्रम्य भोक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्॥,Chanakya Slokas
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42 |
+
बुद्धयो भयं प्रणुदति तपसा विन्दते महत्। गुरुशुश्रूषया ज्ञानं शान्तिं योगेन विन्दति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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43 |
+
महते योऽपकाराय नरस्य प्रभवेत्ररः। तेन वैरं समासज्य दूरस्थोऽमीति नाश्चसेत् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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44 |
+
समवेक्ष्येह धर्माथौं सम्भारान् योऽधिगच्छति। स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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45 |
+
गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्। सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्॥,Chanakya Slokas
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46 |
+
वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम् ॥ ,sanskrit-slogan
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47 |
+
को हि भारः समर्थानां किं दूर व्यवसायिनाम्। को विदेश सुविद्यानां को परः प्रियवादिनम्॥,Chanakya Slokas
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48 |
+
एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः। चतुर्भिगमन क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभि रणम्॥,Chanakya Slokas
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49 |
+
ईर्ष्यी घृणी न संतुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कितः। परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुःखिताः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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50 |
+
सत्यभाषणं पुण्यं वर्तते ॥ ,sanskrit-slogan
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51 |
+
दुरनुबध्नं कार्य साधयेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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52 |
+
पंच त्वाऽनुगमिष्यन्ति यत्र यत्र गमिष्यसि । मित्राण्यमित्रा मध्यस्था उपजीव्योपजीविनः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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53 |
+
दरिद्रता धीरयता विराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते। कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते॥,Chanakya Slokas
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54 |
+
उद्योगसम्पन्नं समुपैति लक्ष्मीः ॥ ,sanskrit-slogan
|
55 |
+
यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते। ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत् ॥,Chanakya Slokas
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56 |
+
आक्रु श्मानो नाक्रोशेन्मन्युरेव तितिक्षतः। आक्रोष्टारं निर्दहति सुकृतं चास्य विन्दति॥ ,Vidur Niti Slokas
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57 |
+
निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते । अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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58 |
+
जरा रुपं हरति हि धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया। क्रोधः श्रियं शिलमनार्यसेवा हृियं कामः सर्वमेवाभिमानः॥ ,Vidur Niti Slokas
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59 |
+
स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे। दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च॥,Chanakya Slokas
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60 |
+
बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः । वर्षान्धाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते॥,Chanakya Slokas
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61 |
+
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम्। कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम् ॥,Chanakya Slokas
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62 |
+
एकमेवाद्वितीयम तद् यद् राजन्नावबुध्यसे। सत्यम स्वर्गस्य सोपानम् पारवारस्य नैरिव ॥ ,Vidur Niti Slokas
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63 |
+
सहायः समसुखदुःखः ॥ ,sanskrit-slogan
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64 |
+
विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् सर्वत्र गौरवम्। विद्वया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते॥,Chanakya Slokas
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65 |
+
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः। स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥,Chanakya Slokas
|
66 |
+
उपसर्गेऽन्यच्रके च दुर्भिक्षे च भयावहे। असाधुजनसम्पर्के पलायति स जीवति॥,Chanakya Slokas
|
67 |
+
नैव पश्यति जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति। मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति॥,Chanakya Slokas
|
68 |
+
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥,Chanakya Slokas
|
69 |
+
चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किञ्चित् । मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्पोऽप्यस्य च्यवते कश्चिदर्थः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
70 |
+
दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये । विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥,Chanakya Slokas
|
71 |
+
प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम् । आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः॥,Chanakya Slokas
|
72 |
+
मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
73 |
+
न सुखाल्लभ्यते सुखम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
74 |
+
एतदर्थ कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम्। आदिमध्यावसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम् ॥,Chanakya Slokas
|
75 |
+
वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
76 |
+
यदतप्तं प्रणमति न तत् सन्तापयन्त्यपि। यश्च स्वयं नतं दारुं न तत् सत्रमयन्त्यपि ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
77 |
+
यः कार्यं न पश्यति सोऽन्धः ॥ ,sanskrit-slogan
|
78 |
+
चत्वारि राज्ञा तु महाबलेना वर्ज्यान्याहु: पण्डितस्तानि विद्यात् । अल्पप्रज्ञै: सह मन्त्रं न कुर्यात दीर्घसुत्रै रभसैश्चारणैश्च ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
79 |
+
सुखस्य मूलं धर्मः ॥ ,sanskrit-slogan
|
80 |
+
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च। पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
81 |
+
आलस्योपहता विद्या परहस्तं गतं धनम्। अल्पबीजहतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम्॥,Chanakya Slokas
|
82 |
+
जिता सभा वस्त्रवता मिष्टाशा गोमता जिता। अध्वा जितो यानवता सर्वं शीलवता जितम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
83 |
+
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः ॥ ,sanskrit-slogan
|
84 |
+
दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः । यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः॥,Chanakya Slokas
|
85 |
+
षडेव तु गुणाः पुंसा न हातव्याः कदाचन। सत्यं दानमनालस्यमनसूया क्षमा धृतिः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
86 |
+
बलवान हीनेन विग्रहणीयात् ॥ ,sanskrit-slogan
|
87 |
+
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते । मृजया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
88 |
+
अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे तद् बलप्रदम्। भोजने चा��ृतं वारि भोजनान्तें विषप्रदम्॥,Chanakya Slokas
|
89 |
+
सदाचारः सर्वेषां धर्माणां श्रेष्ठः अस्ति ॥ ,sanskrit-slogan
|
90 |
+
विद्वान सर्वत्र पूज्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
91 |
+
दुःखादुद्विजते जन्तुः सुखं सर्वाय रुच्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
92 |
+
प्रसादो निष्फलो यस्य क्रोधश्चापि निरर्थकः। न तं भर्तारमिच्छनित षण्ढं पतिमिव स्त्रियः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
93 |
+
समाने शोभते प्रीती राज्ञि सेवा च शोभते। वाणिज्यं व्यवहारेषु स्त्री दिव्या शोभते गृहे ॥,Chanakya Slokas
|
94 |
+
हेतुरत्र भविष्यति ॥ ,sanskrit-slogan
|
95 |
+
पर्जन्यनाथाः पशवो राजानो मन्त्रिबान्धवाः । पतयो बान्धवाः स्त्रीणां ब्राह्मणा वेदबान्धवाः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
96 |
+
यस्मै देवाः प्रयच्छन्ति पुरुषाय प्रराभवम्। बुद्धिं तस्यापकर्षन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
97 |
+
दानं होमं दैवतं मङ्गलानि प्रायश्चित्तान् विविधान् लोकवादान् । एतानि यः कुरुत नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
98 |
+
न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्। कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥,Chanakya Slokas
|
99 |
+
दुःखेनासाद्यते पात्रम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
100 |
+
अलब्धलाभो नालसस्य ॥ ,sanskrit-slogan
|
101 |
+
अस्माभिः सदा चरित्रं रक्षणीयम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
102 |
+
परं क्षिपति दोषेण वर्त्तमानः स्वयं तथा । यश्च क्रुध्यत्यनीशानः स च मूढतमो नरः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
103 |
+
उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्। तडागोदरसंस्थानां परिदाह इदाम्मससाम्॥,Chanakya Slokas
|
104 |
+
पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम् । उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम् ॥,Chanakya Slokas
|
105 |
+
अनर्थाः संघचारिणः ॥ ,sanskrit-slogan
|
106 |
+
असन्त्यागात् पापकृतामपापांस्तुल्यो दण्डः स्पृशते मिश्रभावात्। शुष्केणार्दंदह्यते मिश्रभावात्तस्मात् पापैः सह सन्धि नकुर्य्यात् ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
107 |
+
" श्रध्दा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति ॥ ",sanskrit-slogan
|
108 |
+
विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥ ,sanskrit-slogan
|
109 |
+
लोभमूलानि पापानि ॥ ,sanskrit-slogan
|
110 |
+
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थ भते न कामात्। नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥ ,Vidur Niti Slokas
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111 |
+
इन्द्रियैरिन्द्रियार्थेषु वर्तमानैरनिग्रहैः। तैरयं ताप्यते लोको नक��षत्राणि ग्रहैरिव ॥ ,Vidur Niti Slokas
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112 |
+
स्वभावो दुरतिक्रमः ॥ ,sanskrit-slogan
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113 |
+
आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्। सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥,Chanakya Slokas
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114 |
+
अप्रयत्नात् कार्यविपत्तिभर्वती ॥ ,sanskrit-slogan
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115 |
+
रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः। विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥,Chanakya Slokas
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116 |
+
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्। वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च॥,Chanakya Slokas
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117 |
+
स्त्रीषु राजसु सर्पेषु स्वाध्यायप्रभुशत्रुषु। भोगेष्वायुषि विश्चासं कः प्राज्ञः कर्तुर्महति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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118 |
+
अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥ ,sanskrit-slogan
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119 |
+
क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी। विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम्॥,Chanakya Slokas
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120 |
+
"मर्माण्यस्थीनि ह्रदयं तथासून् ,रुक्षा वाचो निर्दहन्तीह पुंसाम्। तस्माद् वाचुमुषतीमुग्ररुपां धर्मारामो नित्यशो वर्जयीत॥ ",Vidur Niti Slokas
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121 |
+
पृथिव्यां त्रीणी रत्नानि अन्नमापः सुभाषितम् । मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥,Chanakya Slokas
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122 |
+
कांश्चिदर्थात्ररः प्राज्ञो लघुमूलान्महाफलान्। क्षिप्रमारभते कर्तुं न विघ्नयति तादृशान् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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123 |
+
रथः शरीरं पुरुषस्य राजत्रात्मा नियन्तेन्द्रियाण्यस्य चाश्चाः। तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वैर्दान्तैः सुखं याति रथीव धीरः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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124 |
+
अन्तर्गतमलो दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि। न शुद्धयतियथाभाण्डं सुरया दाहितं च तत्॥,Chanakya Slokas
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125 |
+
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ॥ ,sanskrit-slogan
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126 |
+
एको धर्म: परम श्रेय: क्षमैका शान्तिरुक्तमा। विद्वैका परमा तृप्तिरहिंसैका सुखावहा ॥ ,Vidur Niti Slokas
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127 |
+
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति ॥ ,sanskrit-slogan
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128 |
+
बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः ॥ ,sanskrit-slogan
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129 |
+
विद्या परमं बलम ॥ ,sanskrit-slogan
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130 |
+
पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत:। पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ॥ ,Vidur Niti Slokas
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131 |
+
कुलं शीलेन रक्ष्यते ॥ ,sanskrit-slogan
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132 |
+
"अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् ॥ ",sanskrit-slogan
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133 |
+
द्वाविमौ पुरुषौ राजन स्वर्गस्योपरि तिष्ठत: । प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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134 |
+
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः ॥ ,sanskrit-slogan
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135 |
+
न वै भित्रा जातु चरन्ति धर्मं न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भित्राः। न वै सुखंभित्रा गौरवंप्राप्नुवन्ति न वै भित्राप्रशमंरोचयन्ति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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136 |
+
कामं क्रोधं तथा लोभं स्वाद शृङ्गारकौतुकम्। अतिनिद्राऽतिसेवा च विद्यार्थी ह्याष्ट वर्जयेत्॥,Chanakya Slokas
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137 |
+
गतं शोको न कर्तव्यं भविष्यं नैव चिन्तयेत्। वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः॥,Chanakya Slokas
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138 |
+
यशोधनानां हि यशो गरीयः ॥ ,sanskrit-slogan
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139 |
+
नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्। नास्ति चक्षुसमं तेजो नास्ति चान्नसमं प्रियम्॥,Chanakya Slokas
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140 |
+
ईप्सितं मनसः सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम्। दैवायत्तं यतः सर्वं तस्मात् सन्तोषमाश्रयेत्॥,Chanakya Slokas
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141 |
+
षडिमान् पुरुषो जह्यात् भिन्नं नावमिवार्णवे अप्रवक्तारं आचार्यं अनध्यायिनम् ऋत्विजम् । आरक्षितारं राजानं भार्यां चाऽप्रियवादिनीं ग्रामकामं च गोपालं वनकामं च नापितम्॥ ,Vidur Niti Slokas
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142 |
+
उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥ ,sanskrit-slogan
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143 |
+
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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144 |
+
अपुत्रता मनुष्याणां श्रेयसे न कुपुत्रता ॥ ,sanskrit-slogan
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145 |
+
धर्मस्य मूलमर्थः ॥ ,sanskrit-slogan
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146 |
+
नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥ ,sanskrit-slogan
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147 |
+
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः ॥ ,sanskrit-slogan
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148 |
+
चराति चरतो भगः ॥ ,sanskrit-slogan
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149 |
+
अहिं नृपं च शार्दूलं वराटं बालकं तथा। परश्वानं च मूर्खं च सप्तसुप्तान् बोधयेत्॥,Chanakya Slokas
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150 |
+
मानेन रक्ष्यते धान्यमश्चान् रक्षत्यनुक्रमः । अभीक्ष्णदर्शनं ग्राश्च स्त्रियो रक्ष्याः कुचैलतः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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151 |
+
शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना। न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे॥,Chanakya Slokas
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152 |
+
कोकिलानां स्वरो रूपं नारी रूपं पतिव्रतम्। विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्॥,Chanakya Slokas
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153 |
+
वनस्पतेरपक्वानि फलानि प्रचिनोति यः । स नाप्नोति रसं तेभ्यो बीजं चास्य विनश्यति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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154 |
+
संहतिः कार्यसाधिका ॥ ,sanskrit-slogan
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155 |
+
निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः । अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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156 |
+
निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्। असिद्धस्य हता वि��्या अभोगस्य हतं धनम्॥,Chanakya Slokas
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157 |
+
न ह्राविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः ॥ ,sanskrit-slogan
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158 |
+
एकः सम्पत्रमश्नाति वस्त्रे वासश्च शोभनम् । योऽसंविभज्य भृत्येभ्यः को नृशंसतरस्ततः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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159 |
+
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥,Chanakya Slokas
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160 |
+
प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापरः। मन्त्रमूलबलेनान्यो यः प्रियः प्रिय एव सः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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161 |
+
षण्णामात्मनि नित्यानामैश्वर्यं योऽधिगच्छति। न स पापैः कुतोऽनथैर्युज्यते विजितेन्द्रियः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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162 |
+
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः। तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृतिः ॥,Chanakya Slokas
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163 |
+
यत् सुखं सेवमानोपि धर्मार्थाभ्यां न हीयते। कामं तदुपसेवेत न मूढव्रतमाचरेत्। ॥ ,Vidur Niti Slokas
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164 |
+
विद्या धनेषु उत्तमा वर्त्तते ॥ ,sanskrit-slogan
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165 |
+
सत्यमेव जयते ॥ ,sanskrit-slogan
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166 |
+
विद्यामदो धनमदस्तृतीयोऽभिजनो मदः । मदा एतेऽवलिप्तानामेत एव सतां दमाः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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167 |
+
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता। सैव दुर्भाषिता राजनर्थायोपपद्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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168 |
+
सन्तापाद् भ्रश्यते रुपं सन्तापाद् भ्रश्यते बलम्। सन्तापाद् भ्रश्यते ज्ञानं सन्तापाद् व्याधिमृच्छति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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169 |
+
उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथा पायं च चिन्तयेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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170 |
+
यादृशैः सत्रिविशते यादृशांश्चोपसेवते। यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग् भवति पूरुषः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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171 |
+
ये शोकमनुवर्त्तन्ते न तेषां विद्यते सुखम् ॥ ,sanskrit-slogan
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172 |
+
दश धर्मं न जानन्ति धृतराष्ट्र निबोध तान्। मत्तः प्रमत्तः उन्मत्तः श्रान्तः क्रुद्धो बुभुक्षितः ॥ त्वरमाणश्च लुब्धश्च भीतः कामी च ते दश। तस्मादेतेषु सर्वेषु न प्रसज्जेत पण्डितः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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173 |
+
न योऽभ्यसुयत्यनुकम्पते च न दुर्बलः प्रातिभाव्यं करोति । नात्याह किञ्चित् क्षमते विवादं सर्वत्र तादृग् लभते प्रशांसाम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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174 |
+
आलस्यं मदमोहौ चापलं गोष्टिरेव च। स्तब्धता चाभिमानित्वं तथा त्यागित्वमेव च। एते वै सप्त दोषाः स्युः सदा विद्यार्थिनां मताः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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175 |
+
अप्युन्मत्तात् प्रलपतो बालाच्च परिजल्पतः। सर्वतः सारमादद्यात् अश्मभ्य इव काञ्जनम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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176 |
+
येऽर्थाः स्त्रीषु समायुक्ताः प्रमत्तपतितेषु च। ये चानार्ये समासक्ताः सर्वे ते संशयं गताः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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177 |
+
बलवन्तं रिपु दृष्ट् वा न वामान प्रकोपयेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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178 |
+
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥,Chanakya Slokas
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179 |
+
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्। स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥,Chanakya Slokas
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180 |
+
अग्निदाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम् ॥ ,sanskrit-slogan
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181 |
+
नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः। नास्ति कोप समो वह्नि र्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥,Chanakya Slokas
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182 |
+
पूर्वं निश्चित्य पश्चात् कार्यभारभेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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183 |
+
श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ॥ ,sanskrit-slogan
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184 |
+
विद्वानेव विजानाति विद्वज्जन परिश्रमम् ॥ ,sanskrit-slogan
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185 |
+
सत्यमेव जयते न अनृतम् ॥ ,sanskrit-slogan
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186 |
+
एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्ते च साधुना। आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी॥,Chanakya Slokas
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187 |
+
कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम् । तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत्॥,Chanakya Slokas
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188 |
+
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ॥ ,sanskrit-slogan
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189 |
+
समैर्विवाहः कुरुते न हीनैः समैः सख्यं व्यवहारं कथां च । गुणैर्विशिष्टांश्च पुरो दधाति विपश्चितस्तस्य नयाः सुनीताः॥ ,Vidur Niti Slokas
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190 |
+
धनधान्य प्रयोगेषु विद्या सङ्ग्रहेषु च। आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥,Chanakya Slokas
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191 |
+
जरा रुपं हरति धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया। कामो ह्रियं वृत्तमनार्यसेवा क्रोधः श्रियं सर्वमेवाभिमानः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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192 |
+
गतिरात्मवतां सन्तः सन्त एव सतां गतिः। असतां च गतिः सन्तो न त्वसन्तः सतां गतिः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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193 |
+
नास्ति भीरोः कार्यचिन्ता ॥ ,sanskrit-slogan
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194 |
+
द्वाविमौ कण्टकौ तीक्ष्णौ शरीरपरिशोषिणौ। यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्चरः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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195 |
+
तावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलश्चैव वासराः । यावत्सर्वं जनानन्ददायिनी वाङ्न प्रवर्तते॥,Chanakya Slokas
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196 |
+
श्रुतं प्रज्ञानुगं यस्य प्रज्ञा चैव श्रुतानुगा। असम्भित्रायेमर्यादः पण्डिताख्यां लभेत सः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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197 |
+
शीलं प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्र��श्यति। न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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198 |
+
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्। वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥,Chanakya Slokas
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199 |
+
जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥ ,sanskrit-slogan
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200 |
+
सोऽस्य दोषो न मन्तव्यः क्षमा हि परमं बलम्। क्षमा गुणों ह्यशक्तानां शक्तानां भूषणं क्षमा ॥ ,Vidur Niti Slokas
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201 |
+
य ईर्षुः परवित्तेषु रुपे वीर्ये कुलान्वये । सुखसौभाग्यसत्कारे तस्य व्याधिरनन्तकः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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202 |
+
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन । मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन॥,Chanakya Slokas
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203 |
+
यो नोद्धतं कुरुते जातु वेषं न पौरुषेणापि विकत्थतेऽन्त्यान्। न मूर्च्छितः कटुकान्याह किञ्चित् प्रियंसदा तं कुरुते जनो हि ॥ ,Vidur Niti Slokas
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204 |
+
लालयेत् पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्। प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्॥,Chanakya Slokas
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205 |
+
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी। अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥,Chanakya Slokas
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206 |
+
तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः। सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता॥,Chanakya Slokas
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207 |
+
कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
208 |
+
सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च। न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावाताम्॥,Chanakya Slokas
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209 |
+
स्वजनं तर्पयित्वा यः शेषभोजी सोऽमृतभोजी ॥ ,sanskrit-slogan
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210 |
+
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः । समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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211 |
+
गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः । प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥,Chanakya Slokas
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212 |
+
रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च। धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः॥,Chanakya Slokas
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213 |
+
उपायेन हि यच्छक्यं तन्न शक्यं पराक्रमैः ॥ ,sanskrit-slogan
|
214 |
+
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥,Chanakya Slokas
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215 |
+
नैनं छन्दांसि वृजनात् तारयन्ति मायाविंन मायया वर्तमानम्। नीडं शकुन्ता इव जातपक्षाश्छन्दांस्येनं प्रजहत्यन्तकाले ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
216 |
+
नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा । न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ॥,Chanakya Slokas
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217 |
+
नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम् ॥ ,sanskrit-slogan
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218 |
+
बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ॥ ,sanskrit-slogan
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219 |
+
कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ॥ ,sanskrit-slogan
|
220 |
+
चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रियाभिजुष्टस्य गृहस्थधर्मे । वृद्धो ज्ञातिरवसत्रः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
221 |
+
द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं। राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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222 |
+
काष्ठपाषाण धातुनां कृत्वा भावेन सेवनम्। श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः॥,Chanakya Slokas
|
223 |
+
दर्शनध्यानसंस्पर्शैर्मत्स्यी कूर्मी च पक्षिणि। शिशु पालयते नित्यं तथा सज्जनसंगतिः॥,Chanakya Slokas
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224 |
+
लुब्धमर्थेन गृह्णीयात्स्तब्धमञ्जलिकर्मणा। मूर्खश्छन्दानुरोधेन यथार्थवादेन पण्डितम्॥,Chanakya Slokas
|
225 |
+
पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम् । ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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226 |
+
कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः। व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥,Chanakya Slokas
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227 |
+
कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी। प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥,Chanakya Slokas
|
228 |
+
बन्धन्य विषयासङ्गः मुक्त्यै निर्विषयं मनः। मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः॥,Chanakya Slokas
|
229 |
+
जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम्। मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः॥,Chanakya Slokas
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230 |
+
मनः शीघ्रतरं बातात् ॥ ,sanskrit-slogan
|
231 |
+
शब्दमात्रात् न भीतव्यम् ॥ ,sanskrit-slogan
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232 |
+
शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
233 |
+
छात्रैः परिश्रमेण पठितव्यम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
234 |
+
प्राप्नोति वै वित्तमसद्बलेन नित्योत्त्थानात् प्रज्ञया पौरुषेण। न त्वेव सम्यग् लभते प्रशंसां न वृत्तमाप्नोति महाकुलानाम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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235 |
+
मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्। मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत् ॥,Chanakya Slokas
|
236 |
+
आक्रोशपरिवादाभ्यां विहिंसन्त्यबुधा बुधान्। वक्ता पापमुपादत्ते क्षममाणो विमुच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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237 |
+
गतानुगतिको लोकः न लोक़ः पारमार्थिकः ॥ ,sanskrit-slogan
|
238 |
+
मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्। आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः॥,Chanakya Slokas
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239 |
+
असमाहितस्य वृतिनर विद्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
240 |
+
नव्यसनपरस्य कार्यावाप्तिः ॥ ,sanskrit-slogan
|
241 |
+
अस्तयभाषणं पापं वर्तते ॥ ,sanskrit-slogan
|
242 |
+
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः । तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥,Chanakya Slokas
|
243 |
+
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ॥ ,sanskrit-slogan
|
244 |
+
अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च। महान् भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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245 |
+
अकार्यकरणाद् भीतः कार्याणान्च विवर्जनात् । अकाले मन्त्रभेदाच्च येन माद्देन्न तत् पिबेत् ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
246 |
+
मूर्खाः यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम् । दाम्पत्योः कलहो नास्ति तत्र श्री स्वयमागता॥,Chanakya Slokas
|
247 |
+
यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु । तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटा भसमलेपनैः॥,Chanakya Slokas
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248 |
+
कुराजराज्येन कृतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्तिः। कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कृशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः॥,Chanakya Slokas
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249 |
+
न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥ ,sanskrit-slogan
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250 |
+
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥ ,sanskrit-slogan
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251 |
+
सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्। सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥ ,Vidur Niti Slokas
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252 |
+
गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः। पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यगतो गुरुः॥,Chanakya Slokas
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253 |
+
न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी । तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः॥,Chanakya Slokas
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254 |
+
यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ॥ ,sanskrit-slogan
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255 |
+
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः। भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्य पाप गुरुस्तथा॥,Chanakya Slokas
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256 |
+
आत्मज्ञानं समारम्भः तितिक्षा धर्मनित्यता । यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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257 |
+
सर्वे चण्डस्य विभ्यति ॥ ,sanskrit-slogan
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258 |
+
आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते। हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिता भरतर्षभ ॥ ,Vidur Niti Slokas
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259 |
+
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते। गाङ्गो ह्रद ईवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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260 |
+
बह्वाश्र्चर्या हि मेदनी ॥ ,sanskrit-slogan
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261 |
+
तावद् भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम्। आगतं तु भयं दृष्टवा प्रहर्तव्यमशङ्कया॥,Chanakya Slokas
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262 |
+
दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जनः। सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे-पदे ॥,Chanakya Slokas
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263 |
+
नाक्रोशी स्यात्रावमानी परस्य मित्रद्रोही नोत निचोपसेवी। न चाभिमानी न च हीनवृत्तों रुक्षां वाचं रुषतीं वर्जयीत॥ ,Vidur Niti Slokas
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264 |
+
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति। मिथ्या चरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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265 |
+
रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम्। वाचा दुरुक्तं बीभत्सं न संरोहति वाक्क्षतम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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266 |
+
लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः। तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् ॥,Chanakya Slokas
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267 |
+
एक: पापानि कुरुते फलं भुङ्क्ते महाजन:। भोक्तारो विप्रमुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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268 |
+
देहाभिमानगलिते ज्ञानेन परमात्मनः। यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः॥,Chanakya Slokas
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269 |
+
सिंहादेकं बकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्। वायसात्पञ्च शिक्षेच्च षट् शुनस्त्रीणि गर्दभात्॥,Chanakya Slokas
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270 |
+
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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271 |
+
किन्नु मे स्यादिदं कृत्वा किन्नु मे स्यादकुर्वतः । इति कर्माणि सञ्चिन्त्य कुरयड् कुर्याद् वा पुरुषो न वा॥ ,Vidur Niti Slokas
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272 |
+
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते। जीर्यन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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273 |
+
अनागतं यः कुरुते स शोभते ॥ ,sanskrit-slogan
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274 |
+
सेवाधर्मः परमगहनो ॥ ,sanskrit-slogan
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275 |
+
एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् । पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद् दत्त्वा चाऽनृणी भवेत् ॥,Chanakya Slokas
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276 |
+
किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् ॥ ,sanskrit-slogan
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277 |
+
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥ ,sanskrit-slogan
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278 |
+
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः। पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥,Chanakya Slokas
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279 |
+
स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिताः। ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः॥,Chanakya Slokas
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280 |
+
किं कुलेन विशालेन विद्याहीने च देहिनाम्। दुष्कुलं चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते॥,Chanakya Slokas
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281 |
+
पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा। वायुरभ्रमिवा���ाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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282 |
+
एकोऽपि गुणवान् पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वरः। एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः॥,Chanakya Slokas
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283 |
+
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति। अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥,Chanakya Slokas
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284 |
+
प्रवृत्तवाक् विचित्रकथ ऊहवान् प्रतिभानवान्। आशु ग्रन्थस्य वक्ता च यः स पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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285 |
+
तृणं ब्रह्मविद स्वर्गं तृणं शूरस्य जीवनम्। जिमाक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत्॥,Chanakya Slokas
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286 |
+
अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्या अल्पं च कालो बहुविघ्नता च । आसारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥,Chanakya Slokas
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287 |
+
दुर्बलाश्रयो दुःखमावहति ॥ ,sanskrit-slogan
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288 |
+
न विश्चसेदविश्चस्ते विश्चस्ते नातिविश्चसेत्। विश्चासाद् भयमुत्पन्न मुलान्यपि निकृन्तति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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289 |
+
अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामनाः। अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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290 |
+
न मातुः परदैवतम् ॥ ,sanskrit-slogan
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291 |
+
किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्रो न गर्भिणी। कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न भक्तिमान्॥,Chanakya Slokas
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292 |
+
धनात् धर्मः भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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293 |
+
लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ॥ ,sanskrit-slogan
|
294 |
+
अनारभ्या भवन्त्यर्थाः केचित्रित्यं तथाऽगताः । कृतः पुरुषकारो हि भवेद् येषु निरर्थकः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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295 |
+
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्। वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः॥,Chanakya Slokas
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296 |
+
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्। दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्॥,Chanakya Slokas
|
297 |
+
प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः। सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः॥,Chanakya Slokas
|
298 |
+
न चातिगुणवत्स्वेषा नान्यन्तं निर्गुणेषु च। नेषा गुणान् कामयते नैर्गुण्यात्रानुरज़्यते। उन्मत्ता गौरिवान्धा श्री क्वचिदेवावतिष्ठते॥ ,Vidur Niti Slokas
|
299 |
+
कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
300 |
+
कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या। पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥,Chanakya Slokas
|
301 |
+
वृत्ततस्त्वाहीनानि कुलान्यल्पधनान्यपि। कुलसंख्��ां च गच्छन्ति कर्षन्ति च महद् यशः॥ ,Vidur Niti Slokas
|
302 |
+
न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाणमिति में मतिः । अन्तेष्वपि हि जातानां वृतमेव विशिष्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
303 |
+
परिश्रमस्य फलं मधुरं भवति ॥ ,sanskrit-slogan
|
304 |
+
नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
305 |
+
परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः। ते एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्॥,Chanakya Slokas
|
306 |
+
श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्। श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्॥,Chanakya Slokas
|
307 |
+
सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ॥ ,sanskrit-slogan
|
308 |
+
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे। राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥,Chanakya Slokas
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309 |
+
भावमिच्छति सर्वस्य नाभावे कुरुते मनः। सत्यवादी मृदृर्दान्तो यः स उत्तमपूरुषः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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310 |
+
सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत् त्यजेत्सुखम्। सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्॥,Chanakya Slokas
|
311 |
+
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा। शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः॥,Chanakya Slokas
|
312 |
+
सुख-दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
313 |
+
दुराचारी च दुर्दृष्टिर्दुराऽऽवासी च दुर्जनः। यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्र विनश्यति ॥,Chanakya Slokas
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314 |
+
को लोकमाराधयितुं समर्थः ॥ ,sanskrit-slogan
|
315 |
+
अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नगतिस्तथा। द्वावातौ सुखमेवेते यद्भविष्यो विनश्यति॥,Chanakya Slokas
|
316 |
+
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः। ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः॥,Chanakya Slokas
|
317 |
+
विद्या योगेन रक्ष्यते ॥ ,sanskrit-slogan
|
318 |
+
वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते। मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्॥,Chanakya Slokas
|
319 |
+
सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं शीतोष्णं न पश्यति। सन्तुष्टश्चरतो नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात्॥,Chanakya Slokas
|
320 |
+
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्। जनो दहति संसर्गाद् वनं सगविवर्जनात॥,Chanakya Slokas
|
321 |
+
अनर्थंमर्थंतः पश्यत्रर्थं चैवाप्यनर्थतः। इन्द्रियैरजितैर्बालः सुदुःखं मन्यते सुखम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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322 |
+
कृतज्ञः सर्वलोकेषु पूज्यो भवति सर्वदा ॥ ,sanskrit-slogan
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323 |
+
दीयमानं हि नापैति भूय एवाभिवर्तते ॥ ,sanskrit-slogan
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324 |
+
द्वे कर्��णी नरः कुर्वन्नस्मिंल्लोके विरोचते। अब्रुवं परुषं कश्चित् असतोऽनर्चयंस्तथा ॥ ,Vidur Niti Slokas
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325 |
+
आत्मनाऽऽत्मानमन्विच्छेन्मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतैः। आत्मा ह्वोवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
326 |
+
वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः पत्रफलाम्बु सेवनम्। तृणेशु शय्या शतजीर्णवल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्॥,Chanakya Slokas
|
327 |
+
दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता। अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः॥,Chanakya Slokas
|
328 |
+
दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोत्युपायज्ञः ॥ ,sanskrit-slogan
|
329 |
+
सामुद्रिकं वणिजं चोरपूर्व शलाकधूर्त्त च चिकित्सकं च। अरिं च मित्रं च कुशीलवं च नैतान्साक्ष्ये त्वधिकुर्वीतसप्त॥ ,Vidur Niti Slokas
|
330 |
+
यत्नवान् सुखमेधते ॥ ,sanskrit-slogan
|
331 |
+
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥,Chanakya Slokas
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332 |
+
विद्यया लभते ज्ञानम् ॥ ,sanskrit-slogan
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333 |
+
अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति॥,Chanakya Slokas
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334 |
+
न वैरमुद्दीपयति प्रशान्तं न दर्पमारोहति नास्तमेति । न दुर्गतोऽस्मीति करोत्यकार्यं तमार्यशीलं परमाहुरार्याः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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335 |
+
धर्मार्थकाममोश्रेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते। जन्म जन्मानि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्॥,Chanakya Slokas
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336 |
+
आयुः कर्म वित्तञ्च विद्या निधनमेव च। पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः॥,Chanakya Slokas
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337 |
+
सुव्याहृतानि सुक्तानि सुकृतानि ततस्ततः। सञ्चिन्वन् धीर आसीत् शिलाहरी शिलं यथा ॥ ,Vidur Niti Slokas
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338 |
+
गृहीतेवाक्यो नयविद् वदान्यः शेषात्रभोक्ता ह्यविहिंसकश्च। नानार्थकृत्याकुलितः कृतज्ञः सत्यो मृदुः स्वर्गमुपैति विद्वान् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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339 |
+
अर्चयेदेव मित्राणि सति वाऽसति वा धने। नानर्थयन् प्रजानति मित्राणं सारफल्गुताम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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340 |
+
यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते। न किञ्चिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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341 |
+
सुदुर्बलं नावजानाति कञ्चित् युक्तो रिपुं सेवते बुद्धिपूर्वम् । न विग्रहं रोचयते बलस्थैः काले च यो विक्रमते स धीरः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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342 |
+
वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥ ,sanskrit-slogan
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343 |
+
पितृदोषेण मूर्खता ॥ ,sanskrit-slogan
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344 |
+
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च। व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥,Chanakya Slokas
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345 |
+
सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥ ,sanskrit-slogan
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346 |
+
चिरनिरूपणीयो हि व्यक्तिस्वभावः ॥ ,sanskrit-slogan
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347 |
+
दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्। शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनः पूतं समाचरेत्॥,Chanakya Slokas
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348 |
+
येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं च गुणो न धर्मः। ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरुपेण मृगाश्चरन्ति॥,Chanakya Slokas
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349 |
+
अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषेते । अविश्चस्ते विश्चसिति मूढचेता नराधम: ॥ ,Vidur Niti Slokas
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350 |
+
यः सर्वभूतप्रशमे निविष्टः सत्यो मृदुर्मानकृच्छुद्धभावः । अतीव स ज्ञायते ज्ञातिमध्ये महामणिर्जात्य इव प्रसन्नः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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351 |
+
अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्य प्रियवादिनी च । वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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352 |
+
पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च। नैव गावं कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा॥,Chanakya Slokas
|
353 |
+
अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्। नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम्॥,Chanakya Slokas
|
354 |
+
सर्वथा सुकरं मित्रं दुष्करं प्रतिपालनम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
355 |
+
गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ॥ ,sanskrit-slogan
|
356 |
+
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
357 |
+
यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्यस्तस्मिंस्तथा वर्तितव्यं स धर्मः। मायाचारो मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः॥ ,Vidur Niti Slokas
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358 |
+
भाग्यवन्तमपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥ ,sanskrit-slogan
|
359 |
+
उत्साहवन्तः पुरुषाः नावसीदन्ति कर्मसु ॥ ,sanskrit-slogan
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360 |
+
यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्। तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति॥,Chanakya Slokas
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361 |
+
उपायेन जयो यदृग्रिपोस्तादृड्डं न हेतिभिः ॥ ,sanskrit-slogan
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362 |
+
उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्। मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥,Chanakya Slokas
|
363 |
+
दारिद्रयनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्। अज्ञानतानाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी॥,Chanakya Slokas
|
364 |
+
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥ ,sanskrit-slogan
|
365 |
+
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मन: । काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
366 |
+
कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमोः। कस्याहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः॥,Chanakya Slokas
|
367 |
+
उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी । तादृशी यदि पूर्वा स्यात्कस्य स्यान्न महोदयः ॥,Chanakya Slokas
|
368 |
+
हिंसाबबलमसाधूनां राज्ञा दण्डविधिर्बलम्। शुश्रुषा तु बलं स्त्रीणां क्षमा गुणवतां बलम्॥ ,Vidur Niti Slokas
|
369 |
+
मूर्खस्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः। भिनत्ति वाक्यशूलेन अदृश्ययं कण्टकं यथा ॥,Chanakya Slokas
|
370 |
+
कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्षणं निषेवते। तदेवापहरत्येनं तस्मात् कल्याणमाचरेत् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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371 |
+
संस्कृतं भाषाणां जननी अस्ति ॥ ,sanskrit-slogan
|
372 |
+
देशाचारान् समयाञ्चातिधर्मान् बुभूषते यः स परावरज्ञः । स यत्र तत्राभिगतः सदैव महाजनस्याधिपत्यं करोति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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373 |
+
गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः ॥ ,sanskrit-slogan
|
374 |
+
अतिवादं न प्रवदेत्र वादयेद् यो नाहतः प्रतिहन्यात्र घातयेत्। हन्तुं च यो नेच्छति पातकं वै तस्मै देवाः स्पृहयन्त्यागताय ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
375 |
+
जानन्नपि नरो दैवात्प्रकरोति विगर्हितम् ॥ ,sanskrit-slogan
|
376 |
+
शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम्। हस्तिनं शतहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनम्॥,Chanakya Slokas
|
377 |
+
छात्राणां धर्मः अध्ययनम् अस्ति ॥ ,sanskrit-slogan
|
378 |
+
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता। यमर्थान् नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
379 |
+
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च। दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥,Chanakya Slokas
|
380 |
+
सुखं च दुःखं च भवाभवौ च लाभालाभौ मरणं जीवितं च। पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति तस्माद् धीरो न हृष्येत्र शोचेत् ॥ ,Vidur Niti Slokas
|
381 |
+
नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्। छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥,Chanakya Slokas
|
382 |
+
ब्राह्मणं ब्राह्मणो वेद भर्ता वेद स्त्रियं तथा। अमात्यं नृपतिर्वेद राजा राजानमेव च॥ ,Vidur Niti Slokas
|
383 |
+
जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि । प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः॥,Chanakya Slokas
|
384 |
+
शोकः शौर्यपकर्षणः ॥ ,sanskrit-slogan
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1 |
+
Sloka,Class
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2 |
+
यो यस्मिन् कर्माणि कुशलस्तं तस्मित्रैव योजयेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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3 |
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अध्ययनेन/अध्ययनं वीना ज्ञानं न भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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4 |
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पुष्पं पुष्पं विचिन्वीत मूलच्छेदं न कारयेत् । मालाकार इवारामे न यथाङ्गरकारकः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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5 |
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मृजया रक्ष्यते रूपम् ॥ ,sanskrit-slogan
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6 |
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मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः। मृतः स चाल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत्॥,Chanakya Slokas
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7 |
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न संरम्भेणारभते त्रिवर्गमाकारितः शंसति तत्त्वमेव । न मित्रार्थरोचयते विवादं नापुजितः कुप्यति चाप्यमूढः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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8 |
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कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः। कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः॥,Chanakya Slokas
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9 |
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गोभिः पशुभिरश्वैश्च कृष्या च सुसमृद्धया। कुलानि न प्ररोहन्ति यानि हिनानि वृत्ततः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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10 |
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कार्यान्तरे दीघर्सूत्रता न कर्तव्या ॥ ,sanskrit-slogan
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11 |
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आचारात् एव बुद्धिः भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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12 |
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शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने ॥,Chanakya Slokas
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13 |
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आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम् ॥ ,sanskrit-slogan
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14 |
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विनयस्य मूलं विनयः ॥ ,sanskrit-slogan
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15 |
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बलं विद्या च विप्राणां राज्ञः सैन्यं बलं तथा। बलं वित्तं च वैश्यानां शूद्राणां च कनिष्ठता ॥,Chanakya Slokas
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16 |
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अर्थम् महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव वा। विचरत्यसमुन्नद्धो य: स पंडित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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17 |
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अप्रशस्तानि कार्याणि यो मोहादनुतिष्ठति। स तेषां विपरिभ्रंशाद् भ्रंश्यते जीवितादपि ॥ ,Vidur Niti Slokas
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18 |
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प्रभूतं कार्यमपि वा तत्परः प्रकर्तुमिच्छति। सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते॥,Chanakya Slokas
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19 |
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दम्भं मोहं मात्सर्यं पापकृत्यं राजद्धिष्टं पैशुनं पूगवैरम् । मत्तोन्मत्तैदुर्जनैश्चापि वादं यः प्रज्ञावान् वर्जयेत् स प्रानः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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20 |
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माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः। बान्धवा विष्णुभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥,Chanakya Slokas
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21 |
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दह्यमानां सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना। अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते॥,Chanakya Slokas
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22 |
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कालवित् कार्यं साधयेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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23 |
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माता शत्रुः पिता वैरी येनवालो न पाठितः। न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये वको यथा ॥,Chanakya Slokas
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24 |
+
यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनैः। तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा॥,Chanakya Slokas
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25 |
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उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने ॥ ,sanskrit-slogan
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26 |
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अनर्थकं विप्रवासं गृहेभ्यः पापैः सन्धि परदाराभिमर्शम् । दम्भं स्तैन्य पैशुन्यं मद्यपानं न सेवते यश्च सुखी सदैव ॥ ,Vidur Niti Slokas
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27 |
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य आत्मनाऽपत्रपते भृशं नरः स सर्वलोकस्य गुरुभर्वत्युत । अनन्ततेजाः सुमनाः समाहितः स तेजसा सूर्य इवावभासते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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28 |
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कुर्वाणो नावसीदति ॥ ,sanskrit-slogan
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29 |
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सा विद्या या विमुक्तये ॥ ,sanskrit-slogan
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30 |
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एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना। दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥,Chanakya Slokas
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31 |
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भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना । विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम् ॥,Chanakya Slokas
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32 |
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तद् रूपं यत्र गुणाः ॥ ,sanskrit-slogan
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33 |
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असूयको दन्दशूको निष्ठुरो वैरकृच्छठः। स कृच्छं महदाप्नोति नचिरात् पापमाचरन् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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34 |
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असम्यगुपयुक्तं हि ज्ञानं सुकुशलैरपि। उपलभ्यं चाविदितं विदितं चाननुष्ठितम्॥ ,Vidur Niti Slokas
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35 |
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ईश्वरस्य पूजा वृथा न भवति ॥ ,sanskrit-slogan
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36 |
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यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी। विभवे यस्य सन्तुष्टिस्तस्य स्वर्ग इहैव हि ॥,Chanakya Slokas
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37 |
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अर्थमूलं धरकामौ ॥ ,sanskrit-slogan
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38 |
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न्यायार्जितस्य द्रव्यस्य बोद्धव्यौ द्वावतिक्रमौ । अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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39 |
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धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते। अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्॥,Chanakya Slokas
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40 |
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बुद्धो कलूषभूतायां विनाशे प्रत्युपस्थिते। अनयो नयसङ्कशो हृदयात्रावसर्पति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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41 |
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कवयः किं न पश्यन्ति किं न कुर्वन्ति योषितः। मद्यपा किं न जल्पन्ति किं न खादन्ति वायसाः॥,Chanakya Slokas
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42 |
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गन्धेन गावः पश्यन्ति वेदैः पश्यन्ति ब्राह्मणाः। चारैः पश्यन्ति राजानश्चक्षुर्भ्यामितरे जनाः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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43 |
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त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्। त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥,Chanakya Slokas
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44 |
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प्राप्यापदं न व्यथते कदाचि- दुद्योगमन्विच्छति चाप्रमत्तः। दुःखं च काले सहते महात्मा धुरन्धरस्तस्य जिताः सप्तनाः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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45 |
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षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छिता । निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥ ,Vidur Niti Slokas
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46 |
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इन्द्रियाणि च संयम्य बकवत्पण्डितो नरः। देशकालः बलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्॥,Chanakya Slokas
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47 |
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ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी। भार्या रुपवती शत्रुः पुत्र शत्रु र्न पण्डितः॥,Chanakya Slokas
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48 |
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न दैवप्रमाणानां कार्यसिद्धिः ॥ ,sanskrit-slogan
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यथा खनित्वा खनित्रेण भूतले वारि विन्दति। तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रुषुरधिगच्छति॥,Chanakya Slokas
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50 |
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असंहताः विंनश्यन्ति ॥ ,sanskrit-slogan
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51 |
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न जीयते चानुजिगीषतेऽन्यान् न वैरकृच्चाप्रतिघातकश्च। निन्दाप्रशंसासु तमस्वभावो न शोचते ह्रष्यति नैव चायम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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52 |
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वाक्सायका वदनात्रिष्पतन्ति यैराहतः शोचति रात्र्यहानि। परस्य नामर्मसु ते पतन्ति तान् पण्डितो नावसृजेत् परेभ्यः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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53 |
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किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः। वरमेकः कुलावल्भबो यत्र विश्राम्यते कुलम्॥,Chanakya Slokas
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54 |
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एकोदरसमुद्भूता एक नक्षत्र जातका। न भवन्ति समा शीले यथा बदरिकण्टकाः॥,Chanakya Slokas
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55 |
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अन्तो नास्ति पिपासायाः ॥ ,sanskrit-slogan
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56 |
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सत्यं रुपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्। शौर्यं य च चित्रभाष्यं च दशेमे स्वर्गयोनयः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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57 |
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गूढ मैथुनकारित्वं काले काले च संग्रहम्। अप्रमत्तवचनमविश्वासं पञ्च शिक्षेच्च वायसात्॥,Chanakya Slokas
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58 |
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सर्वौषधीनामममृतं प्रधानं सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम्। सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम्॥,Chanakya Slokas
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59 |
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सोत्साहानां नास्त्यसाध्यं नराणाम् ॥ ,sanskrit-slogan
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संसारातपदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः। अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च॥,Chanakya Slokas
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61 |
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एकः क्षमावतां दोषो द्वतीयो नोपपद्यते। यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जनः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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62 |
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मौंन सर्व थेसाधकम् ॥ ,sanskrit-slogan
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63 |
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आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि। आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥,Chanakya Slokas
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64 |
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सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने। त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयोः॥,Chanakya Slokas
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65 |
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अकामान् कामयति यः कामयानान् परित्यजेत्। बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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66 |
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हेतुतः शत्रुमित्रे भ���िष्यतः ॥ ,sanskrit-slogan
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67 |
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संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति ॥ ,sanskrit-slogan
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68 |
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नाप्राप्यमभिवाञ्छन्ति नष्टं नेच्छन्ति शोचितुम् । आपत्सु च न मुह्यन्ति नराः पण्डितबुद्धयः ॥ ,Vidur Niti Slokas
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69 |
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मित्रता-उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम् ॥ ,sanskrit-slogan
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70 |
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संस्कृतं देवानं भाषा अस्ति ॥ ,sanskrit-slogan
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71 |
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" कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥",Chanakya Slokas
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72 |
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सकुले योजयेत्कन्या पुत्रं पुत्रं विद्यासु योजयेत्। व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ॥,Chanakya Slokas
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73 |
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आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते ॥ ,sanskrit-slogan
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74 |
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पंचैव पूजयन् लोके यश: प्राप्नोति केवलं । देवान् पितॄन् मनुष्यांश्च भिक्षून् अतिथि पंचमान् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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75 |
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धनहीनो न च हीनश्च धनिक स सुनिश्चयः। विद्या रत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु॥,Chanakya Slokas
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76 |
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यदि सन्तं सेवति यद्यसन्तं तपस्विनं यदि वा स्तेनमेव। वासो यथा रङ्गवशं प्रयाति तथा स तेषां वशमभ्युपैति ॥ ,Vidur Niti Slokas
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77 |
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अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः। मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता॥,Chanakya Slokas
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78 |
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राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च। पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातर स्मृताः॥,Chanakya Slokas
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79 |
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आरोग्यमानृण्यमविप्रवासः सद्भिर्मनुष्यैस्सह संप्रयोगः। स्वप्रत्यया वृत्तिरभीतवासः षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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80 |
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सदा सत्यं वदेत् ॥ ,sanskrit-slogan
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81 |
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एकं हन्यान्न वा हन्यादिषुर्मुक्तो धनुष्मता। बुद्धिर्बुद्धिमतोत्सृष्टा हन्याद् राष्ट्रम सराजकम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
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82 |
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स्वयं कर्म कोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते। स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते॥,Chanakya Slokas
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83 |
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स्वभावो दुरतिक्रमः ॥ ,sanskrit-slogan
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84 |
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अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते। गुणेन ज्ञायते त्वार्य कोपो नेत्रेण गम्यते॥,Chanakya Slokas
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85 |
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इज्याध्ययनदानानि तपः सत्यं क्षमा घृणा। अलोभ इति मार्गोऽयं धर्मस्याष्टविधः स्मृत ॥ ,Vidur Niti Slokas
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86 |
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वाचा च मनसः शौचं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया शौचमेतचछौचं परमार्थिनाम्॥,Chanakya Slokas
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87 |
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साधुम्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रः मित्राणि बान्धवाः। ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं क��लम्॥,Chanakya Slokas
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88 |
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वह्वशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रो लघुचेतनः। स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणाः॥,Chanakya Slokas
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89 |
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अर्थनाश मनस्तापं गृहिण्याश्चरितानि च। नीचं वाक्यं चापमानं मतिमान्न प्रकाशयेत॥,Chanakya Slokas
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90 |
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यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे। कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
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91 |
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निस्पृहो नाधिकारी स्यान्न कामी भण्डनप्रिया। नो विदग्धः प्रियं ब्रूयात् स्पष्ट वक्ता न वञ्चकः॥,Chanakya Slokas
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92 |
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एतयोपमया धीरः सत्रमेत बलीयसे । इन्द्राय स प्रणमते नमते यो बलीयसे ॥ ,Vidur Niti Slokas
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93 |
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छात्राः अनुशासिताः भवेयुः ॥ ,sanskrit-slogan
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94 |
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स्वजातिः दुरतिक्रमा ॥ ,sanskrit-slogan
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95 |
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यद् भविष्यो विनश्यति ॥ ,sanskrit-slogan
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96 |
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यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः। यस्यार्थाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः॥,Chanakya Slokas
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97 |
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अधमा धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः। उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्॥,Chanakya Slokas
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