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णोक० मणुस० ओरालि० अंगो०- वज्जरि०-मणुसाणु० - अथिर-असुभ-अजस० उ० ज० ए०, ७० बे साग० सादि० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । तिरिक्ख-मणुसायु० देवभंगो । देवायु० उ० ज० ए०, उ० अंतो० । अणु० ज० ए०, उ० बेसम० । देवगदि ०४ उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० ए०, उ० बेसाग० सादि० । तेजा० के० आहार० दुगपसत्य ०४ - अगु०३ - बादर-पज्जत - पत्ते ० -- णिमि० -- तित्थ० उ० पत्थि अंतरं । अणु० एग० । पम्माए पढमदंड ओरालियअंगोवंगो भाणिदव्वो । पंचिदि० - तस० वेडब्बि० भंगो' । सेसं तेज० भंगो । ।
मनुष्यगति, औदारिकशरीर , वर्षभनाराच संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अस्थिर, अशुभ और अयशः कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धक। जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । तिर्यश्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग देवोंके समान है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। देवगतिचतुष्क के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर काल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। तैजसशरीर, कामरणशरीर, आहारकद्विक, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण और तीर्थकरके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर काल एक समय है। पद्मलेश्या में प्रथम दण्डकमें औदारिक कहलाना चाहिए । पञ्चन्द्रिय जाति और त्रसका भङ्ग वैकियिकशरीरके समान है। तथा शेप भङ्ग पीतलेश्या के समान है।
षिशेषार्थ-प्रथम दण्डक और दूसरे दण्डक में कही गई प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध पीतलेश्याक प्रारम्भमें और अन्त में हो और मध्यमे न हो यह सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर कहा है, तथा स्त्यानमृद्धिका बन्ध सम्यग्दृष्टिके नहीं होता, अतः आदिमें और अन्त में मिथ्यादृष्टि रखकर इनका बन्ध कराने से इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका भी उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर बन जाता है। सातावेदनीय आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध ऐसे अप्रमत्तसंगत के होता है जो आगे बढ़ रहा है, अतः इसके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया है । तथा ये परावर्तमान प्रकृतियां हैं, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमु हूत कहा है। इसी प्रकार असतावेदनीय आदिके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर काल घाटत कर लेना चाहिए। तथा इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर ज्ञानावरणके समान घटित कर लेना चाहिए । देवोंके तिर्यवायु और मनुष्यायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना घटित करके बतला आये हैं । वह यहाँ भी बन जाता है, अतः देवोके समान कहा है । देवायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध अप्रमत्तसंयतके होता है और यहां पीतलेश्याका काल अन्तर्मुहूर्त है, अतः इसके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कह । है । देवगत चारक उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी सातावेदनीयके समान है, अतः इसके उत्कृष्ट अनुभागधन्ध के अन्तरका निपध किया है। तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य के साधिक
१. भा० प्रतौ उ० बेस• साग० तेजाक० इति पाठः । २. भा० प्रतौ पढमदंडयो इति पाठः । ३. ता० प्रतौ तेऊभंगो इति पाठः ।
५८६. सुक्काए पंचणा० -छदसणा० - असादा ० - बारसक०-सत्तणोक०-अप्पसत्य०४उप० - अथिर--असुभ - अजस० -- पंचंत० उ० ज० ए० उ० अहारससा० सादि० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । थीणगिद्धि०३ - मिच्छ० - अणंताणु०४ - इत्थि० णस पंचसंठा ०-पंचसंघ०--अप्पसत्थ०-दूर्भाग--दुस्सर--अणादे० -- णीचा० उ० ज० ए०, उ० अहारससा० सादि० । अणु० ज० ए०, उ० एकत्तीसं० देसू० । सादा ० -- पंचिंदि०तेजा०- - क० - समचदु० - पसत्थ०४ - अगु०३-पसत्थवि० -- तस०४ - थिरा दिछ० - णिमि०तित्थ० उच्चा० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० ए० उ० अंतो० । मणुमायु० उ० अणु० ज० ए०, उ० छम्मासं देनू ० । देवायु० उ० ज० ए०, उक्क० अंतो ० । अणु० ज० ए०, उ० बेसम० । मणुस० ओरालि० ओरालि० अंगो०- मणुसायु० उ० ज० ए०, उ० तेत्तीसं देमू० । अणु० ज० ए०, उ० बेस० । देवगदि ०४ उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० अंतो०,
दो सागरके अन्तरसे इनका बन्ध सम्भव है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर कहा है। देवगतिके समान तैजसशरीर आदिके उत्कृष्ट अनुभाग बन्धका स्वामी है, अतः इनके भी उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया है। तथा इनका उत्कृष्ट अनुभागबन्धका यह काल एक समय है अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कहा है । पद्मलेश्या में औदारिकशरीर के साथ औदारिक आङ्गोपाङ्गका नियमसे बन्ध होता है, क्योंकि इसके एकेन्द्रियजाति और स्थावरका बन्ध नहीं होता, अतः यहां औदारिक आङ्गोपाङ्गको प्रथम दण्डकमें परिगणित करनेको कहा है। तथा पेन्द्रियजाति और त्रसका भी नियमसे बन्ध होता है, अतः इनका अन्तर वैकियिकशरीर के समान प्राप्त होनेसे उसके साथ इनकी परिगणना की है। शेष स्पष्ट ही है ।
५८६. शुक्ललेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, बारह कपाय, सात नोकपाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयशः कीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगांत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर है। सातावेदनीय, पचोद्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मरणशरीर, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, तीर्थकर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। देवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। मनुष्यगति औदारिकशरीर, औदारिक आङ्गोपन और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका
१. आ० प्रती० ए० अंतो• इति पाः । ४६
उ० तेतीसं० सादि० । आहारदुग० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० उ० अंतो ० । बज्जरि० उ० ज० ए०, उ० तेत्तीसं [ देसू० ] । [ अणु० ] ज० ए०, उ० अंतो० ।
जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। देवगतिचतुष्क के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। आहारकद्विकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तराल नहीं है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। वज्रर्षभनाराच संहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अन्तमुहूर्त है ।
विशेषार्थ - शुक्ललेश्या में पाँच ज्ञानावरणादिका व स्त्यानगृद्धि तीन आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सहस्रार कल्प तक होता है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक अठारह सागर कहा है। तथा प्रथम दण्डकोक्त पाँच ज्ञानावरणादिका उपशमश्र रिकी अपेक्षा और असतावेदनीय आदि प्रकृतियोंके परावर्तमान होने के कारण इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है। तथा दूसरे दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंका अन्तिम ग्रैवेयक तक ही बन्ध होता है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम इकतीस सागर कहा है । यहाँ प्रारम्भ और अन्त में बन्ध कराके और मध्य में अबन्धक रखकर यह अन्तरकाल ले आना चाहिए । सातावेदनीय आदिका क्षपक श्र में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, अतः इसके अन्तरका निषेध किया है । तथा इन सब प्रकृतियोंका उपशम मेिं अपनी वन्धव्युच्छित्तिके बाद मरणकी अपेक्षा एक समय और वैसे अन्तर्मुहूर्त अन्तरकाल उपलब्ध होना सम्भव होने से इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। मनुष्यायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध देवोंके होता है और वहाँ आयुबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है अतः यहाँ मनुष्यायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना कहा है। देवायुका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मनुष्योंके होता है, अतः इसके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। सर्वार्थसिद्धिके देवके मनुष्यगति आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध आयुके प्रारम्भमें और अन्त में हो यह सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर कहा है । देवगतिचतुष्क और आहारकद्विकका क्षपक में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, अतः इसके अन्तरकालका निषेध किया है तथा यहाँ मनुष्योंमें कमसे कम अन्तमुहूर्त अन्तरसे और अधिक से अधिक साधिक तेतीस सागरके अन्तरसे इनका बन्ध सम्भव है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है। किन्तु यहाँ आहारकद्विकका अन्तर्मुहूर्त के बाद ही पुनः बन्ध सम्भव है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्त मुहूर्त कहा है। मनुष्यगतिके समान वज्रर्षभनाराच संहननके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर घटित कर लेना चाहिए । तथा वज्रर्पभनाराचसंहनन सप्रतिपक्ष प्रकृति है, अतः इसके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है ।
१. आ० प्रतौ ज० ए० उ० अंतो० इति पाठः । २. ता० प्रतौ तेसीसं । दोश्र (भा) ० ज० ए० उ० अंतो०, आ० प्रतौ तेत्तीसं दोश्र/ ० उ० ज० ए० अंतो० इति पाठ ।
ओघं० । अब्भवसि० पंचणा० णवदसणा० मिच्छ०- - क० -- पसत्था पसत्य०४ - अगु० - उप०-णिमि०- - पंचंत० उ० ज० ए०, उ० अनंतका० । अणु० ज० ए०, उ० बेसम० । सादासाद०-छण्णोके०पंचिंदि ० - समचदु०० - समचदु० - पर० - उस्सा० - पसत्थ० तस०४ - धिराथिर-सुभासुभ--सुभग-सुस्सरआदे १०- जस० अजस० उ० जाणा० भंगो । अणु० ज० ए० उ० अंतो० । णपुंस०ओरालि० --पंचसंठा० - ओरालि० अंगो०- -छस्संघ० - अप्पस०-- दूभग- - दुस्सर- अणादे -- णीचा० उ० णाणा० भंगो । अणु० ज० ए०, उ० तिण्णि पलि० दे० । तिण्णिआयु०वेउच्चियछ० उक्क० अणु० ज० ए०, उ० अणंतका० । तिरिक्खायु० उ० अणु० ओघं । तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु० - उज्जो० उ णाणा० भंगो । अणु० ज० ए०, उ० एकत्तीसं० सादि० । मणुस०-मणुसाणु० - उच्चा० उ० णाणा० भंगो । अणु० ज० ए०, उ० । असंखेज्जा लोगा । चदुजादि-आदाव-थावरादि०४ उ० णाणा० भंगो । अणु० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० सादि० ।
५८७ भव्यों में ओघके समान भङ्ग है। अभव्योंमे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कृपाय, भय, जुगुप्सा, तैजमशरीर, कार्मरणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । साता वेदनीय, असाता वेदनीय, छह नोकपाय, पोन्द्रियजाति, समचतुरस्त्र संस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशः कीति और अयशः कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानाबरणके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । नपुंसकवंद औदारिकशरीर, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगांत्र के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। तीन आयु और वैकियिक छहके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है। निर्यश्चायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर के समान है। निर्यप्रगति, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी और उद्योतके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानावरण के समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक इकतीस सागर है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगांत्र के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका अन्तर ज्ञानावरण के समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। चार जाति, आदि चार के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर ज्ञानावरण के समान है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है।
विशेषार्थ - भव्योंमें आंधके समान व्यवस्था बन जाती है, अतः यह के समान कहा है। अभव्यों में आंधके समान अनन्त कालके अन्तरसे ज्ञानावरणाविका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध
१. ता० प्रा० प्रत्योः सतयोक० इति पाठः ।
५८८. खड्ग० पंचणा० - अदंसणा० -- असादा० -- चदुसंज० -- पंचणोक० -- अप्पसत्थ०४ - उप० - अथिर-असुभ-अजस० - पंचंत० उ० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० सादि० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । सादादिदंडओ ओघो। अक० उ० णाणा० भंगो । अणु० ओघो। मणुसायु० उ० अणु० ज० ए०, उ० छम्मासं देख० । देवायु० उ० अणु० ज० ए०, उ० पुब्बकोडितिभागा दं० । मणुसगदिपंचम० उ० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० देसू० । अणु० ज० ए०, उ० बेसम० । देवगदि ०४ - आहारदु० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ज० अंतो०, उ० तेत्तीसं० सादि० ।
सम्भव है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल कहा है। एक तिर्यवायुको छोड़कर अन्य सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका यह अन्तर प्राप्त होता है, अतः वह ज्ञानावरण के समान कहा है। सातावेदनीय आदि सब परावर्तमान प्रकृतियाँ है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। नपुंसकवेद आदिका भोगभूमिमें पर्याप्त अवस्था में बन्ध नहीं होता, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध का उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य वहा है। एकेन्द्रिय अवस्था में अनन्तकाल तक तीन आयु और वैकियिक छहका बन्ध नहीं होता, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल कहा है । तिर्यवायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल तथा अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर सौ सागर पृथक्त्वप्रमाण ओघसे कह आये हैं । वह यहाँ सम्भव होने से आंधके समान कहा है। नौवें मैवेयक में और अन्तमुहूर्त काल तक आगे पीछे तिर्यश्चगतित्रिकका बन्ध नहीं होता, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक इकतीस सागर कहा है। अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके मनुष्यगतित्रिकका बन्ध कहीं होता और इनकी उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्यात लोकप्रमाण है, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर असंख्य लोकप्रमाण कहा है । चार जाति आदिका नरक और अन्तर्मुहूर्त तक आगे पीछे बन्ध नहीं होता, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है ।
५८८. क्षायिकसम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, चार संज्वलन, पाँच नोकपाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, यशः कीर्ति और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सातादिदण्डकका भङ्ग ओघके समान है। ठकपायोंक उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तर ज्ञानावरण के समान है और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छह महीना है। देवायुके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिका, कुछ कम त्रिभागप्रमाण है। मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। देवगति चतुष्क और आहारकद्विकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है।
विशेषार्थ- क्षायिक सम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। इसके प्रारम्भ में
अन्तर परूषणा
५८६. वेदगे पंचणा० -छदंसणा०-चदुसंज०- पुरिस० --भय-दु०- अप्पसत्य०४. उप० - पंचंत० उ० अणु० णत्थि अंतरं । सादा० - थिर- सुभ-जस० उ० ज० ए०, उ० छावहि० देसू० सत्थाणे । अथवा णत्थि अंतरं । यदि दसणमोहक्खवगस्स उकस्ससामित्ते' त्थि अंतरं । अधापवत्तसंजदस्स कीरदि तदो छावहि सा० देस० । अणु० ज० ए०, उ० अंती० । असादा० अरदि० - सोग०-अथिर-असुभ-अजस० उ० णत्थि अंतरं । अणु० सादभंगो । अट्ठक० उ० णत्थि अंतरं । अणु० ओघं । णवरि ज० और अन्त में यथा सम्भव पाँच ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध हो और बीचमं न हो यह सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर कहा है। अन्य जिन प्रकृतियोंका यह अन्तर कहा है वह इसी प्रकार घटित कर लेना चाहिए । मात्र देवगति आदिके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका यह अन्तर लाते समय बीचमें उनका बन्ध न करावे । उसमें भी देवगतिचतुष्क और आहारकद्विककी उपशमश्रेणिमें बन्धव्युच्छित्ति करावे और अन्तर्मुहूर्तकालतक वहाँ रखकर इनका बन्ध होने के पहले मरण करावे । तथा तेतीस सागर
तक देवपर्याय में रखकर देवगतिचतुष्कका तो मनुष्य होने के प्रथम समय से बन्ध करावे और आहारककिका अप्रमत्तसंयन होनेपर बन्ध करावे । यहाँ भी अधिकाल बाद संयम धारण करावे । पाँच ज्ञानावरणादिका उपशमश्रेणिमे कमसे कम एक समयतक और अधिकतमुहूर्ततक बन्ध न होनेसे तथा असतावेदनीय आदिका इसके पूर्व बन्ध न होने से इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त कहा है। किन्तु जिसने सातवेदनीय आदिपरावर्तमान प्रकृतियों की छठे गुणस्थानमें बन्धव्युच्छित्ति की है उसे अप्रमत्तमंत होने के बाद उपशमश्रेणिमे ले जाकर पुनः उतारकर इनका बन्ध करात्रें और जघन्य अन्तर एक समय परावर्तन द्वारा प्राप्त करे । सातादण्डकमें सातावेदनीय, पचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक प्रशस्त विहायोगति, वसचतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण और तीर्थकर ये प्रकृतियाँ ली गई हैं। इनको अन्तर कहा है वह यहाँ बन जानेसे यह ओघके समान कहा हैं । आठ कपायोंके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका ओघ से जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि कहा है । वह यहाँ भी घटित होता है, अतः यह ओघके समान कहा हैं । यहां मनुष्यायृका देवोंके और देवायुका मनुष्योंके बन्च होता है। अतः मूलमें जो अन्तर कहा है उसकी स्वामित्वके अनुसार संगति बिठा लेनी चाहिए । सर्वार्थसिद्धि प्रारम्भ और अन्तमें मनुष्यगतिपञ्चकका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध हो और मध्य में न हो यह सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर कहा है ।
५८६. वेदकसम्यक्त्व में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचार, उपघात और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। सातावेदनीय, स्थिर, शुभ और यशः कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर स्वस्थानमें कुछ कम छपासठ सागर है। श्रथवा अन्तर काल नहीं है। यदि दर्शनमोहनीयके क्षपकके उत्कृष्ट स्वामित्व करते हैं तो अन्तरकाल नहीं है। और अधःप्रवृत्त के करते हैं तो कुछ कम छग्रासठ सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशः कीर्तिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध का भङ्ग सातावेदनीयके समान है। आठ कपायोंके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। १. ता० प्रती उक्चर ससामित इति पाठः ।
अंतो० । हस्स-रदि उ० ज० ए०, उ० छावहि० दे० । अणु० ज० ए०, उ० अंतो० । दोआयु० उ० ज० ए०, उ० छावहि० दे० । अणु० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० सादि ० । मणुसगदिपंचग० उ० ज० ए०, उ० छावद्वि० दे० । अणु० ज० ए० उ० पुन्चकोडी सादि० । देवगदि०४ - आहारदु० उ० मणुसगदिभंगो । अणु० ज० ए०, उ० तेत्तीसं सा० । णवरि आहारदुगं तेत्तीसं सादि० । पंचिदि० तेजा० क० - समचदु०-पसत्य०४अगु०३ - पसत्थ० तस०४ - सुभग सुस्सर आदे० --णिमि० - तित्थ० -- उच्चा० उ० णत्थि अंतरं । अथवा तेत्तीसं० सादि०, छावद्वि० देसू० । अणु० ए ० । अथवा ज० ए०,
उ० बेसम० ।
समान है। इतनी विशेषता है कि जघन्य अन्तर अन्त मुहूर्त है । हास्य और रतिके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। दो के उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जवन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तैतीस सागर है। मनुष्यगतिपञ्चकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका जवम्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर है। अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक एक पूर्वकोटि हैं। देवगतिचतुक और आहारकद्विकके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका भङ्ग मनुष्यगतिके समान है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर तेतीस सागर है। इतनी विशेषता है कि आहारकद्विकका उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। पञ्चन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्त्र संस्थान, प्रशस्त वरणचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अथवा साधिक तेतीस सागर और कुछ कम छयासठ सागर है । अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। अथवा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है ।
विशेपार्थ- वेदकसम्यक्त्वमें ज्ञानावरणादिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख हुए जीवके होता है, अतः इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरका निषेध किया । वेदकसम्यक्त्व के प्रारम्भ में और अन्त में सातादिकका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध हो और मध्य में न हो यह सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर कहा है। अन्य जिन प्रकृतियोंका यह अन्तर कहा है वह भी इसी प्रकार घटित करना चाहिए किन्तु यह अन्तर स्वस्थान की अपेक्षा कहा है। अर्थात् स्वस्थान अधःप्रवृत्तसंयत यदि उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है तो ही जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम छयासठ सागर बनता है। और यदि दर्शनमोहनीय की क्षपणा करनेवाला उत्कृष्ट स्वामित्व करता है तो इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका अन्तरकाल सम्भव नहीं है। तथा ये परावर्तमान प्रकृतियाँ हैं, अतः इनके अनुत्कृष्ट अनुभागबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमु हूर्त कहा है। मसातावेदनीय आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध मिथ्यात्वके अभिमुख हुए जीवके अन्तिम समय में होता है, अतः इनके उत्कृष्ट अनुभागबन्धके अन्तरकालका निषेध किया है। तथा परा१. ता० प्रा० प्रत्योः छावहि दो आ० ए० इति पाठ । |
cb72ab8302f8357a75445e9ad5d2a088b3e368e275adcb6c7dc84e95c7eb5ff1 | pdf | हमारे कर्तृत्वके कारण हमारा अहंकार वढा हो, तो हमें देखना चाहिये कि हमारा कर्तृत्व सचमुच हमारा अपना महं' की मर्यादा है या नहीं। हमारा शरीर विश्वके व्यापारमें अंक निमित्तमात्र वस्तु है, असमें कुछ भरा जाता है मिसलिये वह वडता है और असमें से कुछ न कुछ रोज विश्वमें फेंका भी जाता है, मिस व्यवहारमें शरीर वीचमें केवल अंक मचेतन कोठी जैसा लगता है । चेतनाके कारण यह कोठी कुछ समय तक वढती है और फिर क्षीण होकर सपूर्ण नाशको प्राप्त हो जाती है। समें वीचमें जो अपनापन लगता है वह नाममात्रका है, असलमें तो वह विश्वप्रकृतिका अंक खेल है । जिसी तरह हमारे चित्त, चेतन, प्राण, सकल्प, ज्ञान, विवेक, भाव, मस्कार, गुण, विचार वगैरा विशेष रूपसे अनुभवमें आनेवाले सव गुण हमें विश्वसे ही प्राप्त हुये है । वे हम तक मानवजातिकी विरासतसे आ पहुचे है । और अन सवका पोषण वर्वन भी विश्वके अन्हीं तत्त्वोसे होकर हमारे द्वारा सुनका अधिक स्पष्ट दशामें प्रकटीकरण होता है। विश्वके कुल मिलाकर अपरंपार व्यापारको तुलनामें यह विलकुल तुच्छ वात है। परन्तु अपने 'अह' के कारण हमारा कर्तव्य हमे जितना महान और भव्य लगता है कि जुमके आगे विश्वका अगाव कर्तृत्व हमे दिखाली नही देता । सच पूछा जाय तो विश्वके कर्तृत्वके सामने हमारा यह और कर्तृत्व अणुके वरावर भी होगा या नहीं, जिसमें शका होती है। हमारे प्राण, सकल्प, ज्ञान वगैरा अपर बतायी हुली सभी वात हमें विरासत में मिलती है, जिसलिये जैसा अहंकार रखना बुचित नहीं कि वे सब हमारी ही कमाली है । जिसी तरह हममें होनेवाला अनका दर्वन या विकास भी केवल हमारा ही कर्तृत्व है, जैसा भी हम नहीं कह सकते। फेंफड़ोकी खराव हवा बाहर निकालकर बाहरकी अच्छी हवा लेकर ही हम जीते हैं। जिसके लिये
चाहर अच्छी हवाका होना जरूरी है। किसी प्रकार विश्वमे भी अच्छे तत्त्व हो तो ही वे हममें प्रविष्ट होकर हमारे द्वारा प्रगट हो सकते है। हमारे शरीरमें चेतन, चित्त, प्राण और सकल्पकी केवल स्पष्ट दशा है । परन्तु अनका सचय हमारे पास बहुत थोडा है। जैसे शरीरको रोज अच्छे अनुकूल द्रव्योका पोषण न मिले तो वह कायम नही रह सकता, वैसे ही हमारे चेतन, चित्त, प्राण वगैराको भी बाहरसे पोषण न मिले तो अनकी स्थिति भी कायम नही रहेगी । हममें दिखाओ देनेवाले ये सारे स्पष्ट तत्त्व विश्वमे हमेशा अस्पष्ट दशामे अपरपार मौजूद ही रहते है । ये तत्त्व दृष्टिको दीखनेवाले या किसी भी अिन्द्रियगोचर व्यक्त पदार्थमे अव्यक्त रूपमे रहते है। पदार्थोमे कितने विलक्षण गुण- वर्म अव्यक्त रूपमे निवास करते है, यह वनस्पति और औषविका थोडासा अध्ययन करने पर मालूम हो जाता है। वायरलेस, रेडियो या ध्वनिशास्त्रसे अब हमे यकीन हो गया है कि ध्वनिकी तरगें हजारो मील दूर तक जाती है, और बिजलीकी तथा विशेष यत्रोकी मददसे वे हमे गोचर हो सकती है। जिससे साबित हो जाता है कि हमे गोचर न होनेवाली अव्यक्त तरगोके अपार आन्दोलन पृथ्वी पर सतत जारी रहते है । अिसी प्रकार विश्वमे सर्वत्र प्राणतत्त्व, मनतत्त्व, बुद्धितत्त्व, चेतन, सकल्प, सस्कार, ज्ञान, विचार - मिन सबकी तरगोके आन्दोलन भी सतत जारी रहते है। ये आन्दोलन अच्छेचुरे दोनो प्रकारके होते है। सृष्टिमे जैसे सुगध और दुर्गध है, वैसे ही सत्सकल्प औौर असत्सकल्प, सद्विचार और दुविचार, सद्गुण और दुर्गुण, सत्कर्म और असत्कर्म, अिन सबके आन्दोलन हमेशा होते रहते है। विश्वमें ही अत्पत्ति, स्थिति और लयका धर्म होनेसे असमें सदा सक्रमण होता ही रहता है । विश्वका यही धर्म चित्त और चैतन्यमे अलग-अलग सत्-असत् कर्म, विचार और सकल्पके रूपमे मानवजगतर्फे प्रगट रूपसे दिखाओ देता है। विश्वमें सतत होनेवाले सक्रमणोके अव्यक्त आन्दोलन, मनुष्य तथा अन्य चेतन जगत् द्वारा होनेवाले
भिन्न-भिन्न कर्म, सकल्प, विचार और सस्कारके असंख्य आन्दोलत और जिन सबकी अनत प्रकारकी तरगें विश्वमे सतत जारी ही रहती है । जैसी कल्पनातीत असल्य तरगोमें से हरनेक जीव अपनी अपनी जीवदशाके अनुसार अनुकूल तर अपनेमें धारण करके अपने चित्त, चेतन, प्राण और सकल्पका पोषण करता है । यह क्रिया असके द्वारा ज्ञानपूर्वक न भी होती हो तो जैसे पेड़ कुदरतसे - मिट्टी, पानी, हवा वगैरासे अपने अनुकूल तत्त्व कुदरतके नियमानुसार खीच लेता है और अपनी वृद्धि करता है, या जैसे गर्भ माताके गुरीरमें से अपने लिये जरूरी तत्त्व, सस्कार, दूसरे गुण-वर्म और मानवजातिका अत्तराविकार अनजाने लेता है और अपनी विशेषता वढाता है, असी तरह दूसरे जीव या मनुष्य भी बाहरके आन्दोलनोमे से मजातीय तर खीचकर अन तत्त्वीको आत्मसात् करता है । भिन्न-भिन्न स्वाद और गुण-धर्मवाली वनसति अंक ही जमीन और पानीमें से अपने अनुकूल द्रव्य खोचकर अपने-अपने स्वाद और गुण-धर्मका पोषण करती है । मनुष्यके प्राण, चित्त, चेतन, सकल्प, विचार आदिको भी जरूरी अनुरूप तत्त्व विश्वमें होनेवाले कल्पनातीत आन्दोलनो और तरंगोसे मिलते है । हम शुद्ध चरित्र होनेका सकल्प कर ले, तो विश्वमें आन्दोलित होनेवाली खुसी किस्मकी तरंगें हमारे चित्तकी ओर मुड़ेंगी, हममें लेकरम होगी और हमारे मूल सकल्पको वल पहुचायेंगी। और हमारे सकल्प, विचार, हेतु अशुद्ध और हीन होगे, तो विश्वकी अपवित्र तरंगे हमारे चित्तको दृढ़ती आयेंगी और हममें घुलमिलकर हमें अधिक हीन वना ढंगो । विश्वके बिसी नियमके अनुसार हमारे शुद्धअशुद्ध विचारो और संकल्पोकी तरगे भी सतत बाहर फैलती रहती हूँ और विश्वके शुद्ध अशुद्ध आन्दोलनों और तरगोमें वृद्धि करती है। जिस पर विचार करनेसे स्पष्ट हो जाता है कि शुद्ध या अशुद्ध विचार और सकल्प धारण करनेवाला और कर्म करनेवाला मनुष्य स्वय शुद्ध या अशुद्ध होता रहता है, और विश्व भी अनी प्रकारके
आन्दोलनो और तरगोकी वृद्धि करता है। विश्वका यह नियम है। सृष्टिका यह धर्म है। परमेश्वरका यह कानून है । अिस दृष्टिसे देखते हुये विश्वमे सदैव होनेवाले आन्दोलनोमे से ही शुद्ध या अशुद्ध तरगें हममे आती है और वहा अधिक स्पष्ट रूप धारण करके हमारे द्वारा बाहर निकलती है। जिस समय, अिस क्षण मेरे द्वारा प्रकट होनेवाले ये विचार केवल मेरे ही है, यह मै नही कह सकता । असख्य लोगोके अस्पष्ट सकल्पो और विचारोकी तरगे विश्वके आन्दोलनोमें से कुदरती तौर पर मुझ तक आकर शायद मेरे द्वारा अधिक स्पष्ट रूपमे वाहर निकलती होगी । परन्तु यह कार्य मेरे हृदयमे कोओ न कोभी शुभेच्छा हो तो ही विश्व के नियमानुसार अिस ढगसे होगा । सत तुकारामने कहा है किः
आपुलिया वळे नाही मी बोलत । सखा कृपावत वाचा त्याची । काय म्या पामरे वोलावी अत्तरे । परि त्या विश्वभरे बोलविले ।।
( मै अपनी खुदकी ताकतसे नही बोलता । मेरा सखा कृपालु हरि है, असीकी यह वाणी है। मेरे जैसा पामर क्या बोल बोले ? परन्तु अस विश्वभर प्रभुने मुझसे कहलवाये है । ) जिन अनुभवपूर्ण मुद्गारोमें विश्वका यही नियम परमेश्वरका यही कानून - दिखाओ देता है ।
विश्वके व्यापारमें हम केवल निमित्तमात्र हो, तो भी अस विश्वशक्तिमे से हमारे चित्त चैतन्यमे कुछ विशेष शक्तिया आजी है। वे शक्तिया है विवेक, सकल्प, सयम और निग्रह । हममे रहनेवाले 'अह' के कारण अिन विशेष शक्तियोका हमें भान होता है । अिन विशेष शक्तियोका पोषण विश्वके अन्ही अव्यक्त तत्त्वोसे होता हो, तो भी हम किसी हद तक अपनी अिच्छानुसार जिनका उपयोग कर सकते हैं -- जितनी छूट और स्वतंत्रता हमें विश्वशक्तिके किसी निश्चित नियमसे ही मिली हुआ है । अगर हम असका अपयोग करके
अपना चित्त शुद्ध रखनेका प्रयत्न करते रहें, तो हमारे हृदय में विश्वकी शुद्ध तरंगें दाखिल होकर हमसे सत्कर्म करानेमें सहायक होगी। विश्वकी अवस्थामें सदैव सक्रमण और मुसीसे विकास होते होते हमे मानव स्वरूप प्राप्त हुआ है। यह स्वरूप जुस विश्वका केवल आवर्त या आविर्भाव नही है। जिस स्वरूपकी निमितिका कोजी निश्चित क्रम है। विशेष परम्परासे वह जिस स्थितिको पहुचा है। असके पीछे विश्वका कोजी अटल नियम है । जिससे जिस प्रकार निर्माण होनेवाले मानवके चित्त-चैतन्यमें कोजी विशेष सामर्थ्य आया है। और अस सामर्थ्यको काममें लेनेकी असे थोडी स्वतंत्रता है । वह सामर्थ्य और वह स्वतंत्रता मिस विश्व व्यापारका विशेष परिणाम है । विश्वके गुण-धर्मोसे ही अन सामर्थ्यका पोषण होता है। सस्कारोके अनुसार विचार पैदा होनेका स्पष्ट वर्म मानव-चित्तमे दिखाओी देता है । मुनमें से किसी विचारको सकल्पका रूप प्राप्त होने पर दृढतासे अस पर डटे रहने की शक्ति भी असमें जा गभी है । अस शक्ति के साथ ही विवेक, सयम वगैरा अपनी दूसरी शक्तियोका अपयोग करके अपनी मानवताका पोपण करते रहना विश्वके नियमानुसार मानवका सहज वर्म वन गया है। हम अपने चित्तको सदा सत्मकल्पमय रखे और सत्कर्मरत रहे, तो विश्वके बुसी प्रकारके शुद्ध आन्दोलनोकी तर ग्रहण करनेके लिये वह हमेशा तैयार और योग्य बना रहेगा । विश्वके नियमानुसार यह असका वर्म हो जायगा । बुस अवस्थामें मशुद्ध सक्ल्प या अशुद्ध कर्म हमारे चित्तको स्पर्ग भी नहीं कर सकेगा । जैने कम्तूरी, केसर वगैरा पदार्थ विश्वके जुन जुन परमाणुओंके नित्तर्ग-नियममे जमा होनेके फलस्वरूप दने हुये घनरूप है, बँने ही अपना चित्त शुद्ध रखनेका हमारा सकल्प हो, तो हमारी ग्रहणशीलता और विश्वके आन्दोलनोंके व्यापारके कारण विश्वके केवल अच्छे सकल्प और सत्कर्मकी तरगें हमारे चित्तमे प्रवेश पायेंगी और प्रकट होगी तथा हममें से भी बिनी विन्मको वर्गे वाहर निकलती रहेगी ।
सृष्टिके अमुक सुगंधित तत्त्व कस्तूरीके रूपमे अकत्र हो जाते है और असमे से फिर वे सृष्टिमें फैलते रहते हैं । यही हाल हमारे शुद्ध सकल्पसे हमारे चित्त - चैतन्यका होगा । मानव-चित्तमे विशेष रूपमें रहनेवाली सकल्प-शक्तिका अपयोग मनुष्य विवेकपूर्वक करे, तो असमे मानवोचित तत्त्व आते रहेगे और असके द्वारा अनका शुद्ध प्रकटीकरण होता रहेगा । पिचकारीमें जैसी योजना होती है कि कोभी भी पतला या प्रवाही पदार्थ खिचकर अन्दर आ जाता है। परन्तु यह हमे विवेकपूर्वक फैसला करना पड़ता है कि असके द्वारा कौनसा प्रवाही पदार्थ अन्दर खीचा जाय । पिचकारीसे स्वच्छ और अस्वच्छ दोनो तरहका पानी खीचा जा सकता है और दुनिया में दोनो तरहका पानी है । साधारणत हमारी सकल्प-शक्तिमें पिचकारी जैसा ही गुणधर्म है। अिसलिओ मानवताकी दृष्टिसे हममे केवल सकल्पकी दृढताका होना ही काफी नही है । परन्तु असके साथ ही विश्व - शक्तिकी शुद्ध तरगोको खीचनेमें हमें अपनी सकल्प-शक्तिका अपयोग करना चाहिये । मिस प्रकार हमें हमेशा मानवोचित गुणोको अपनाकर अपनेमें और दुनिया में अनकी वृद्धि करनी चाहिये । हमारा असा सकल्प और हेतु हो, तो विश्वके नियम और गुण-धर्म हमे सदा सहायता देते रहेगे । हम अपनी मानवता बढाते रहें और अन्नतिका प्रयत्न करते रहे, तो दुनियामें अंक तरफ प्रत्यक्ष मानवता बढती रहेगी विश्वशक्तिके सुप्त गुणो और धर्मोका असके द्वारा प्रकटीकरण होता रहेगा और दूसरी तरफ हमारे शुद्ध सकल्पो और सत्कर्मों के कारण विश्वके शुद्ध आन्दोलनोमें वृद्धि होकर अन्हे गति मिलती रहेगी । और अन सबका परिणाम हम सबके लिये शुभदायक होगा ।
जिसमे शक नहीं कि विश्वमें अशुद्ध संकल्पो और अशुद्ध कर्मोकी तरगो और आन्दोलनोका जोर बहुत है । भितने पर भी जिस जिसको अपनी मानवता गौरवरूप लगती हो, जिन्हे यह महसूस होता हो कि विश्वके अनत सर्जन-विसर्जनमें से मानव अंक विशेष सामर्थ्य - शील प्राणी निर्माण हुआ है, अन सबको विश्वमें मानवता बढानेका
वि - ९
व्यक्त अव्यक्त विचार
सतत प्रयत्न करना चाहिये। जिन विश्वमें हमारा अकेलेका अलग कर्म नहीं है। विश्व सबके कर्म, सबके संकल्प, सबके लिये - लेक दूसरेके लिये सुखद या दुखद, अन्नतिकारक या अवनतिकारक होते है । तत्त्वत किसीका कर्म अलग नहीं । हम सब विश्वशक्ति पैदा जे है । वृसीसे हम सबके शरीर पायी जाते और बढ़ते हैं। और अन्तमें असीमें ये सब मिल जायेंगे । हम सबको विसी विश्वशक्तिके चेतन, प्राण, चित्त, मन वगैरा सुप्त तत्त्वाने से ये तत्त्व मिलते है । और हमारे द्वारा लूनका स्पष्ट प्रकटीकरण होता है। हमारे तमाम गुण वर्म जिसी विश्वशक्तिके स्पष्ट स्वरूप है। जो विश्वमे है वही हममे प्रगट रूपये दिखामी देता और जो कुछ हममें है सो सब विश्वमें गुप्त दशा है । हमारा और विश्वकी अनत शक्तिका अन्योन्य सम्बन्व है। जिसमें मानवकी विशेषता जितनी ही है कि अनमें विश्वके कुछ नियम जानने लायक ज्ञानशक्ति प्रकट हो गयी है । वह अपनी अपूर्णता नून विश्वशक्तिकी बारावना, श्रद्धा, भक्ति और बुनके प्रति निफासे दूर कर सकता है। जिन श्रद्धा-भक्ति और सूत्र हमारी संकल्प-शक्तिमे है। बिन संकल्प व्यक्तिको मददमे मनुष्य अपने लिये आवश्यक तत्त्व, आवश्यक गुण-धर्म विश्वनें से अपनेमें ला सकता है, यह भी अनकी विशेषता है । जो तत्त्व हमारे लिये आवश्यक है जुन नवका अपार संचय अन्त शक्ति भरा हुआ है। अनमें से जो भी चाहिये सो लेकर हमें सबके दुखका नाम करके सबकी मानवताकी वृद्धि करनी है। विश्वका क्रम और वर्म हमारे अनुकूल है। जिन वर्मको मददमे यह सब हमारे सक्ल्पके अनुसार होगा । जिन नवमें हम केवल निमित्तमात्र है। यह ज्ञान केन्द्र मनुष्यको ही हो सकता है। जिसलिये जिनने हमें जिन ज्ञान, शक्ति, मनि, गुण, वर्म वगैराकी प्राप्ति होती है और जिसने हमीनिमिति हुआ है, जुन विश्वशक्तिके प्रति परमयक्निके प्रनि सदा कृतज्ञ और भक्तिपूर्ण रहना, थुम पर
निष्ठा रखना हमारा मुख्य कर्तव्य है। जिस निष्ठामे कल्पनातीत सामर्थ्य है । जिसी निष्ठामे अनत शक्तिके साथ समरस होकर असके गुणोका हमारे द्वारा प्रकटीकरण करनेका सामर्थ्य है। जिस शक्तिमे से चित्त और चेतन स्पष्ट दशामें आये और आज सारी जलस्थल सृष्टि असख्य मानवो और मानवेतर छोटे-बडे प्राणियोसे भरी दिखाओ दे रही है और अन सवका भरण-पोषण होता है, जिस शक्तिमे से चित्त और चेतनके अधिकाधिक विकसित होते होते मानव पैदा हुआ और आजकी स्थितिमें आ पहुचा है, जो सबकी तमाम शक्तियोका पोषण करनेवाली और अनकी नियामक है, जिस शक्तिके कारण मानवके चित्त चैतन्यका प्रभाव अधिकाधिक विशाल क्षेत्र पर पडता जा रहा है, वह शक्ति जड है या चेतन ? असमें ज्ञान, गुण, भाव और कर्तृत्व है या नहीं ? जिसका फैसला करना मनुष्यकी नम्रता, कृतज्ञता, प्रेम, भक्ति और निष्ठा वगैरा पर अवलवित है। मातृभक्त और पितृभक्त पुत्र मातापितासे कितना ही अधिक ज्ञानी और पुरुषार्थवाला हो जाय, तो भी अनके साथ नम्रताका बरताव करके अनके प्रति कृतज्ञ और निष्ठावान रहता है, और जैसेको ही हम आदरणीय मानते है । विश्वकी अनत शक्ति और हमारे बीचके सम्बन्धमे मातापिता और पुत्रके सम्बन्धसे अनत गुना फर्क है, कारण विश्वशक्तिके साथ हमारा सम्बन्ध अनसे ज्यादा गहरा, ओकरस और जीवनव्यापी है । अंसी हालतमे अस परमशक्तिके लिओ परमात्माके लिओ - हमारे हृदय में कृतज्ञता, नम्रता और पूज्यताके भाव रहे तो जिसमें हमने अधिक क्या किया ? |
46a3256670a8aec945ab05427391766c176eb8391526bc7150fe896589d10703 | pdf | मंचीय दृष्टि से गढ़वाली रंगमंच के विशेष अंग हैं, 110 मंच, लोक रंगमंच (2) कथानक, (3) पात्र, 140 विशिष्ट पात्र, 050 भाषा, 060 लोक विनोद का सूचक हास्य, 170 संगीत, 180 अभिनय शैली, 190 चरित्र चित्रण और 1100 लोकवाणी गढ़वाली लोकधर्मी मंच की सीमित स्थिति और स्थानीय रंग की प्रचुरता के बावजूद भी इसमें चरिच - चित्रण कार्य कुशलता से निभाया मिलता है। रामलीला और पौराणिक नाटकां मैं उनके नायक- चरित्रों की जानीमानी विशेषताओं को प्रस्तुत किया जाता है। चूंकि इनके आंगिक और वाचिक अभिनय में झटकेदार अभिनय की अधिकता रहती है इसलिए इसमें सूक्ष्म मनोभाव और दशाओं की अभिव्यक्ति कम होती है। पात्र, सांकेतिक अभिनय, अथवा हाव भाव द्वारा, सम्बन्धित पात्र के चरित्र को प्रस्तुत करते हैं। स्त्रियां, प्रायः मंच पर नहीं आती हैं। पुरूष सभी पात्रों का अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इसमें स्त्रियोचित लालित्य, लावण्य और कमनीय भावाभिव्यक्तियों की कमी पायी जाती है। नायक, दुष्टों अथवा खलनायकों के चरित्र का बखान करते हैं। इस तरह नायक खलनायक के दुर्गुणों का बखान करके, जनता की अपने प्रति श्रद्धा की भावना अर्जित करता है। इन मंचों पर प्रस्तुत लोक नाट्य में स्थानीय विश्वास, रीतिरिवाज, धर्म और जीवन से सम्बद्ध मान्यताओं का पूरा चित्र होता है। इनकी भाषा लोक की भाषा और इनके कथानक, संवाद, पात्र, चरित्र, संगीत और मंचीय सज्जा पूरी तरह लोक विश्वासों की देन होती है। इसमें वही अभिव्यक्त होता है जो लोक के व्यक्त - अव्यक्त जीवन में जुड़ा हुआ मिलता है। इनकी भाषा में लोकोक्तियों और कहावतों का प्रयोग किया मिलता है। स्वाँगों में रहस्यपूर्ण ढंग से हँसाने वाले वाक्यों और बादी बादीण की फूहड़ अभिव्यक्तियों को सुनकर लोग मंद-मंद मुस्कुराते मुँह दबाये आनन्द लेते हैं। ये स्त्री पुरुष दर्शक) कुछ देर के लिए उन्हीं के रंग में रंग जाते है। इस तरह इनमें लोक मानस के हंसने-राने से लेकर सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के सभी विश्वास, संगीत-नृत्य, गीत अभिव्यक्तियां अनुभूति की समस्त दशाएं हास- परिहास और सामूहिक रंग-उमंग से नैकट्य है। जो लोक है वही अभिव्यक्त हुआ है इन गढ़वाली मंच पर। अतः 'लोकवार्ता के अन्तर्गत जो कुछ भी होता है और हो सकता है, वह इन मंचों पर अभिव्यक्त मिलता है। अतः लोक प्रवृति के इस स्वरूप का जो नैकट्य यहाँ उपलब्ध है और अभिव्यक्त है, उसे ही हम लोक भावों का सम्पूर्ण समावेश कह सकते हैं।
। लोकनाट्य-रामलीला - गढ़वाली लोकनाट्य में रामलीला का सर्वाधिक महत्व है। यह जनपदीय लोक नाट्य मंच की एक महत्वपूर्ण प्रस्तुति है। यह माना जाता है कि हिन्दी साहित्य के आदिकाल (1375) के राम कथा के सर्जक तुलसी की रामायण के बाद ही इसका सृजन हुआ होगा और
तभी से यह वीर चरित्र वीर पूजा के रूप में गढ़वाली लोक नाट्य मंच पर आये हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि तुलसी के पूर्व राम कथा नहीं थी तो भी राम चरित तो बाल्मीकि की संस्कृत कृत का मूल आधार रहा है। राम चरित तो लोक पूजनीय और सर्वत्र व्याप्त ही था । तुलसीकृत रामायण राम चरित मानस के बाद तो निस्संदेह राम की यह कथा हिन्दी के साथ, अनेक भाषा भाषी और उपबोलियों के मंचों पर प्रस्तत होने लगी। राम कथा का यह रूप क्षेत्रीय परिस्थितियों और स्थानीय रंग में रंगा है। इस कथा को एक विशिष्ट मंच पर गढ़वाल में प्रस्तुत किया जाता है । मंच का यह विधान पूरे गढ़वाल में सार्वभौम रूप में एक ही तरह का मिलता है। मंच - यह मंच सामान्यतः 15 से 20 फुट चौड़ा, 20 से 30 फुट लम्बा और लगभग 20 फुट ऊंचा होता है। मंच तीनों ओर से ढंका मिलता है। इस प्रदेश के साधारण मंच परभी प्रथम तथा द्वितीय मंच की व्यवस्था होती है। द्वितीय मंच के पीछे अथवा बगल में साज-सज्जा गृह बनाया मिलता है। इस साज-सज्जा गृह में अभिनेता सजते - संवरते हैं। यह मंच यवनिकाओं द्वारा दो भागों में विभक्त होता है। मुख्य यवनिका के बाद प्रथम मंच पर और द्वितीय यवनिका तथा द्वितीय मंच के बाद, प्रथम यवनिका टांकी मिलती है। मुख्य यवनिका में दोनों ओर बगल में पखवाड़े लगाये जाते हैं। प्रथम मंच के आगे खुला रंग मंच अथवा रंगभूमि होती है। इसके ऊपर बड़ी चाँदनी (चन्दोया) से इसे ढक दिया जाता है। रंगभूमि में ज्यादातर युद्ध अथवा नाट्य प्रस्तुति में आने वाले बड़े दृश्य प्रस्तुत किये जाते हैं यथा धनुष- भंग, गंगापार, श्री राम-रावण युद्ध के साथ अन्य युद्धों और दरबारों के दृश्य । रंगभूमि के एक ओर वाद्य यंत्र वादक बैठते हैं तथा दूसरी ओर अशोक वाटिका बनायी मिलती है। खुले रंगमंच के दायें - बायें तथा सम्मुख दर्शकगण बैठते हैं। इसी मंच से कुछ दूरी पर लंका बनायी जाती है। पखवाड़ों पर दायें - बायें विभिन्न देवी देवताओं के चित्र टांके जाते हैं। मुख्य यवनिका के बाद द्वितीय यवनिका तथा प्रथम यवनिका पर राज दरबारतथा जंगल-दृश्य अंकित मिलते हैं। नाट्य परम्परा के बदले मंगलाचरण प्रस्तुत किया जाता है। बड़े दृश्य, विविध प्रकार के संवाद, युद्ध, सभाएं तथा सीताहरण और लंका के दृश्य, खुले रंगमंच पर प्रस्तुत किये जाते हैं। 'सीटी' के निर्देश पर मुख्य यवनिका खोली तथा बंद की जाती है। इसे 'सीन ड्राप कहते है जिसमें मुख्य यवनिका बंद रहती है। दृश्य के चलते रंगमंच पर प्रवेश वर्जित होता है। परिस्थिति के अनुकूल विविध प्रकार के पर्दों का उपयोग किया जाता है। लम्बे सम्वाद प्रायः खुले रंगमंच पर ही प्रस्तुत किये जाते हैं।
कथानकरामलीला में प्रायः राम चरित मानस का कथानक नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह कथानक पद्य में, गेय रूप में प्रस्तुत किया मिलता है। इसमें रावण की तपस्या, रामजन्म, राम विवाह, वनवास, भरत मितलाप, सीताहरण और राम-रावण युद्ध के उपरान्त राजगद्दी राज्याभिषेक तक की कथावस्तु
होती है। इस तरह रामजन्म से लेकर रावण-मरण और लंका दहन तथा पुनः राम के राज्याभिषेक तक लीला अभिनीत की जाती है। कथानक दर्शकों के मन में रचाबसा होता है इसलिए इसके घटनाक्रम और दर्शकों की अनुभूतियों का तारतम्य बना रहता है। दर्शक की उत्सुकता बनी रहती है। पात्र - प्रायः जाने-पहचाने और पूर्व परिचित होते हैं । यथा राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, दशरथ कैकेई, रावण - कुम्भकरणः और मेघनाद। पात्रों के प्रति दर्शकों के मन में संचित श्रद्धा होती है। वे जितने राम के प्रति श्रद्धावान होते हैं उतने ही रावण के प्रति भी होते हैं। स्त्री पात्रों का अभिनय प्रायः पुरुष ही करते हैं। राम के मर्यादा पुरूषोत्तम स्वरूप, सीता के जगत जननी पूजन स्वरूप और हनुमान की भक्ति तथा भरत के भ्रातृप्रेम की प्रभावी प्रस्तुत की जाती है। भले और बुरे दोनों ही प्रकार के चरित्रों की अमिट छाप जनमानस के हृदय में अभिव्यक्त मिलती है। कथोपकथन- कथानक, पद्यात्मक संवाद शैली में प्रस्तुत किये जाते हैं। गेयरूप में दोहा, चौपाई और रागरागिनी भी प्रस्तुत की जाती है। गद्य-संवादों का प्रायः अभाव मिलता है। पद्यात्मक गेयता में रागात्मक तारतम्य का मिश्रण पाया जाता है। कथोपकथनों की स्वरिक अभिव्यक्ति दृश्य और परिस्थिति के अनुकूल कठोर और करूण, लालित्यमय, वीभत्सता व रौद्रता लिए मिलती है। ये संवाद गेयता लिए पद्यात्मक कथन है। अभिनय- अभिनय में आंगिक और वाचिक दोनों ही प्रयुक्त हुये मिलते हैं। अभिनय में कथ्य के अनुरूप भावाभिव्यक्ति मिलती है। जैसा पात्र, वैसा अभिनय होता है। स्त्री पात्रों के अभिनय में पुरूष पात्र सूक्ष्म भावाभिव्यक्ति और संवेदनशीलता लानेकी चेष्टा करते हैं। इनके अभिनय में मार्मिक संवेदनशीलता होती है । परशुराम-लक्ष्मण संवाद में, पात्रोचित शूरता वीरता और शौर्य तथा रावण के अभिनय में अहंकार का अहं स्वरूप मिलता है। आगिक अभिनय में, अंगों के संचालन में काफी उछल-कूद होती है। लक्ष्मण-परशुराम संवाद में गुस्से की फड़फड़ाहट तो राम के अभिनय में शीलता और शालीनता का अद्भुत समन्वय मिलता है। भाषा- राम चरित मानस की भाषा में ही, रामलीला प्रस्तुत की जाती है। इसके दोहा, चौपाई, राग और रागनियों की भाषा मधुर और रसयुक्त लगती है। गढ़वाल में पं. राधेश्याम कृत रामायण को राधेश्यामी रामायण की तर्ज पर गाने की प्रथा है। पात्रोचित भाषा का प्रयोग होता है। गैर पढ़ा-लिखा समाज भी रामायणकी अवधी को खूब समझता है, इसे हृदयंगम करता है। संगीत संगीत के लिए हारमोनियम के साथ, तबला तथा ढोलक का अधिक उपयोग किया जाता है। राग-रागनिया, राधेश्याम तर्ज में संगीत के तालबद्ध नियमों से आबद्ध मिलती है। प्रस्तुतियां संगीत शास्त्र के नियमानुकूल प्रणीत होती है। विशेष पात्र - संस्कृत नाटकों के विदूषक की तरह तो नहीं लेकिन कुछ उसी तरह रामलीला का यह पात्र,
पात्र नहीं विशेष पात्र होता है। यह पात्र अंग्रेजी का प्रोस्टर, यहां का व्यवस्थापक वक्ता अथवा आगामी कार्यक्रम अथवा प्रस्तुति के बारे में बताने वाला और पिछली प्रस्तुति की आख्या प्रस्तुत करने वाला और आगे की लीला का परिचय दर्शकों को देने वाला व्यक्ति है। इसे हमने रामलीला का विशेष पात्र कहा है। विदूषक की तरह यह अभिनयपूर्व हंसाने का काम तो नहीं करता लेकिन आगे मंचित की जाने वाली लीला के बारे में सूचना अवश्य देता है। जब भी पात्र अपना कथोपकथन भूल जाते हैं तो यह विशेष पात्र, धीमी और दबी आवाज में पात्रों को उनके कथोपकथन बताता चलता है। इसकी वेशभूषा भी साधारण ढंग की होती ह, पात्रों जैसी नहीं और इसी के निर्देश पर मंच का परदा उठाया अथवा गिराया जाता है। मंगलाचरण - लीला का प्रारम्भ मंगलाचरण द्वारा आरती उतार कर किया जाता है। मंगलाचरण के बाद यह विशेष पात्र व्यक्ति अथवा व्यवस्थापक अथवा प्रौम्टर, दर्शकों के सामने पूर्व प्रस्तुत लीला के विषय में वार्तालाप करता हुआ, वर्तमान में प्रस्तुत की जाने वाली लीला का परिचय दर्शकों को देता है । वह बताता है कि अब वह लीला प्रस्तुत की जा रही है और इसके पश्चात् लीला प्रारम्भ हो जाती है। यह विशेष पात्र पद्य के स्थान पर प्रायः गद्य का उपयोग अपने वार्तालाप में करता है ।
साजसज्जा- वेशभूषालीला के सभी पात्र पात्रों की सामाजिक स्थिति के अनुरूप वस्त्र धारण करते हैं। श्रृंगार के लिए चौक, गेरूआ रंग, काला कोयला के साथ आधुनिक, क्रीम और पाउडर इस्तेमाल किये जाते हैं । खासतौर से राम, सीता, लक्ष्मण औरभरत - शत्रुघ्न के मुख मण्डलों पर विविध प्रकार के रंग-रंगोली का उपयोग किया जाता है। पात्र अपने चरित्र के अनुरूप वस्त्र तथा शस्त्र धारण करते हैं। रावण की सेना के लोग काले वस्त्र, नेकर, कमीज तथा मुख पर राक्षसी मुखौटे धारण करते हैं। स्त्री पात्र सुन्दर वस्त्रों के साथ आकर्षक आभूषण भी पहनते हैं। सुपात्रों के पहनावे में शालीनता और शिष्टता का विशेष ध्यान रखा जाता है। सज्जागृह में पात्रों को सजाया एवं संवारा जाता है तथा यहीं से 'सीन' (विशेष प्रकरण के पात्र ) मुख्य मंच अथवा रंगभूमि मैं आगमन करते हैं। मंचीय दृष्टि से लोकधर्मी नाट्य परम्परा का यह मंच अधिक उन्नत और पूर्ण मिलता है। इस रंगभूमि में विविध प्रकार के बड़े दृश्य, सुगमतापूर्वक प्रस्तुत किये जाते हैं। परदों के सहारे राज दरबार, राज भवन तथा वन के अन्य बड़े दृश्य प्रस्तुत किये जाते हैं। खुली रंगशाला में युद्ध जैसे दृश्य प्रस्तुत कर, रोमांच पैदा किया जाता है। आज तो यंत्रों की सहायता से दृश्य परिवर्तन एवं साज-सज्जा सम्बन्धी नवीन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है ।
पौराणिक लोकनाट्य मंचलोक रंगमंच की, पौराणिक लोक नाट्यों की प्रस्तुति, एक प्राचीन परम्परागत प्रस्तुति है। पौराणिक कथानकों को लेकर चलने वाले ये नाटक 110 कृष्णजन्म 120 हरिश्चन्द्र 130 अर्जुन) 40 जयद्रथ वध(5) अभिमन्यु नाटक प्रमुख हैं। ये नाटक भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितनी लोक मंच पर रामलीला है। ये उतने ही प्राचीन है जितना कि लोकनाट्य मंच है। इनके प्रस्तुतिकरण के निमित्त सामान्य रंगमंचीय व्यवस्था मिलती है। तख्तों से तैयार किये गये इस मंच को बीच में परदा डालकर दो भागों में बांटा जाता है। प्रायः सभी नाटकों की प्रस्तुति के लिए इस मंच का ही उपयोग किया जाता है। नाट्य के सभी दृश्य की प्रस्तुति इसी एक रंगमंचीय मंच पर होती है। पीछे साज-सज्जा गृह में पात्र सजते - संवरते हैं और आगे वे अभिनय प्रस्तुत करते हैं। मुख्य यवनिका के बाद इस मंच पर एक ही यवनिका होती है जिसके पीछे से अभिनेता मंच पर प्रवेश करते हैं। यह यवनिका विभिन्न दृश्यों के परिवर्तन की सूचक भी होती है। संगीत वादक मुख्य मंच पर ही बैठते हैं । लीला के मंच की खुली रंगशाला व्यवस्था इन नाटकों के मंचों पर नहीं होती है। साज-सज्जा और मंचीय व्यवस्थाओं में यह मंच, लीला मंच की तरह परिपूर्ण नहीं होता है। दर्शक इसमें मुख्य यवनिका के साथ ही चिपके रहते हैं। दृश्यों के प्रस्तुतिकरण के पश्चात् मंच पर आना निषेध होता है।
कथानक- नाटकों के पात्र पौराणिक पात्र ही होते हैं जो दर्शकों के जाने-पहचाने होते हैं । यथा हरिश्चन्द्र नाटक में शैव्या, विश्वामित्र, मरघट, कफन फरोस, डोम, इत्यादि । इसी तरह अन्य नाटकों के जाने-पहचाने चरित्र होते हैं। पात्रों की चरित्र विशेषताओं के साथ अभिनय प्रस्तुत किया मिलता है तथा उनकी खूबियों और उनके गुणों को उसी रूप में प्रस्तुत करके जन-जन के हृदय में तारतम्य स्थापित करने की चेष्टा की जाती है।
कथोपकथन- इन नाटकों के कथोपकथन प्रायः 110 गद्य तथा 120 पद्य, दोनों ही रूपों में उपलब्ध मिलते हैं। रामलीला की तरह नाटकों में भी नाटकों की राधेश्यामी तर्ज का उपयोग किया जाता है। पद्यात्मक कथोपकथनों को बुलन्द आवाज में प्रस्तुत किया जाता है। मुख्य पात्रों की भूमिका कुशल अभिनेताओं द्वारा प्रस्तुत की जाती है।
अभिनय - मुख्य आंगिक और वाचिक होते हैं। जोश-खरोश के साथ अंगाभिव्यक्ति की जाती है। उछल-कूद के साथ शौर्य प्रदर्शन किया मिलता है। स्त्री पात्रों की भूमिका पुरूष पात्र प्रस्तुत करते हैं। स्त्रियोचित कोमलता के अभाव के बावजूद इनके अभिनय में शीलता और शालीनता का अभाव नहीं होता है। ये अपने
आंगिक और वाचिक अभिनय द्वारा लोगों को विमोहित करते हैं। इसलिए ये नाटक लोगों द्वारा बहुत चाहे जाते हैं।
भाषा- सभी लोकाभिव्यक्तियां हिन्दी में प्रस्तुत की जाती हैं। लोगों की मातृ-भाषा अलग होने पर भी लोग इसे खूब समझते हैं। संगीत - हारमोनियम के साथ तबला तथा ढोलक का उपयोग किया जाता है। राधेश्यामी तर्ज मैं राग-रागनियाँ प्रस्तुत की जाती है । गद्यात्मक संवादों में संगीत का उपयोग नहीं किया जाता है। साज-सज्जा - वेशभूषा - अभिनेता पात्रानुकूल वेशभूषा धारण करते हैं। प्रायः मुकुट धारण किये जाते हैं। मुख की कांति बढ़ाने के लिए 'क्रीम' तथा 'पावडर' का इस्तेमाल किया जाता है। देहातों में उपलब्ध सौंदर्य उपकरणों का भी प्रयोग होता है। स्त्रियां गहने पहनती हैं तथा नकली जटाएं धारण करती है। नाटक का शुभारम्भ मंगलाचरण से होता है। इन नाटकों में भी विशेष पात्र- 'प्रास्टर' पात्रों को संवाद धीमी आवाज मैं नाटक की प्रस्तुति के बीच बताता चलता है और वह पात्र उन कर्थ्यो को ऊंची आवाज में, जनता के सामने प्रस्तुत करता है
बच्चों के अनुकरणात्मक नाटक- लोकधर्मी नाट्य परम्परा में बच्चों के इन अनुकरणात्मक नाटकों का बड़ा महत्व है। रामलीला तथा नाटकों की प्रस्तुति के बाद बच्चे प्रायः 110 रामलीला का अनुकरणात्मक और (2) नाटकों की प्रस्तुति के अनुकरणात्मक नाटक प्रस्तुत करते हैं। बच्चों के ये अनुकरणात्मक नाटक जनपद में बहुत प्रसिद्ध हैं और जहां देखिये वहां बच्चे खेल-खेल में, इनकी प्रस्तुति करते मिलते हैं। इन दो अभिव्यक्तियों की अनुकरणात्मक अभिव्यक्ति के अलावा बच्चे 10 बादी - बाण के नृत्य और (2) स्वाँगों की नकल भी प्रस्तुत करते हैं। रामलीला, नाटकों तथा स्वाँर्गों के अनुकरण के निमित्त निर्मित इनका रंगमंच, जहाँ ये अपनी अनुकरणात्मक अभिव्यक्ति की प्रस्तुति करते हैं, वह कोई खुला खेत, खुला खलिहान, देवालय अथवा पंचायती चौक होता है। इस खुले मंच पर बच्चे एकत्र होते हैं। छोटी-मोटी लकड़ियां गाड़कर उसके ऊपर चद्दर तानकर उसे मंच का स्वरूप देते हैं। इस मंच के पास ही उनका परदे से ढका अथवा परदा डालकर बनाया गया सज्जागृह भी होता है। इसमें वे चौक, गेरू और अगारे की कालिख का उपयोग रूप सज् में करते हैं।
कथानक- ये बच्चे अनुकरण किये नाटक, स्वाँग अथवा रामलीला की पूरी कथा को नहीं लेते हैं। ये इनके बीच-बीच के प्रसंगों को लेकर रामलीला, नाटक अथवा स्वाँग खेलते हैं। इसमें तारतम्य कथा की दृष्टि से नहीं होता लेकिन प्रसंगगत एकरूपता होती है। घटनाओं और प्रसंगों को ये काट छांट कर अथवा इधर से
उधर पकड़ कर, प्रस्तुत करते हैं। इनके कथानक इतने छोटे होते हैं कि प्रायः एक-दो घण्टे में ही ये सम्पूर्ण लीला, नाटक अथवा स्वाँग प्रस्तुत कर लेते हैं और कभी -कभी ऐसा भी होता है कि एक ही प्रसंग की प्रस्तुति में पूरी लीला अथवा नाटक समाप्त हो जाता है। पात्र और पात्र - सज्जा - बच्चों के अनुकरणात्मक नाटकों, लीला और स्वाँगों के पात्र सभी लीला नाटक और स्वाँगों के परिचित पात्र ही होते हैं। कोई राम, कोई सीता तो कोई रावण, हनुमान, भरत और दशरथ बन जाते हैं। ये पात्र कागज अथवा पत्रों के मुकुों से अपने आपको सजाते हैं। वेशभूषा और रंग सज्जा में स्थानीय साधनों का ये खूब प्रयोग करते हैं। बांस और चाई के धनुष-बाण बनाये जाते हैं। स्त्री पात्र धोती, अंगिया पहनते हैं। राक्षसों के मुँह पर काला मोसा ( अंगारे की कालिख पोता जाता है। कभी-कभी बच्चे बाँस की जड़ों से निकलने वाले बड़े मोटे और मजबूत पत्तों का इस्तेमाल मुखौटों के रूप में भी करते हैं।
कथोपकथन तथा अभिनय - प्रायः पद्य में ही कथा प्रस्तुत की जाती है। दोहा, चौपाई और राग-रागिनियों में ही, लीला अथवा नाटकों की तरह उत्तर दिये जाते हैं। गाने के साथ आंगिक अभिनय- अंग प्रदर्शन झटके साथ किया जाता है। तो भी कहीं-कहीं और कभी-कभी पद्य के साथ गद्य में भी कथोपकथन प्रस्तुत किये मिलते हैं। हाथ फैला - फैलाकर और कदम आगे बढ़ा- बढ़ा कर एवं छाती पर हाथ से जोर से प्रहार कर शौर्य का प्रदर्शन किया जाता है। मार काट और युद्ध के दृश्यों की प्रस्तुति में बच्चे अच्छी खासी दिलचस्पी प्रदर्शित करते हैं और इन अवसरों में से एक दूसरे से खूब लड़ाई - भिड़ाई भी करते हैं। धनुष बाण से रावण और राम की लड़ाई के मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किये जाते हैं जो बहुत रोचक और दिलचस्प होते हैं।
भाषा हिन्दी और तर्ज राधेश्यामी राग-रागिनियों की होती है। प्रायः पद्य के साथ गद्य अंश भी हिन्दी में प्रस्तुतकिये जाते हैं। ये छोटे बच्चे भी इन राग-रागिनियों का अर्थ भली भांति समझते हैं। संगीत- ये मधुर ध्वनि के साथ दोहा, चौपाई, राग-रागिनियाँ प्रस्तुत करते हैं। रावण के वध पर कंटर (कनस्तर) पीट कर राम की विजय की घोषणा करते हैं। वाद्य मंत्रों में कनस्तर पीटना और टिन के टुकड़े बजाना ही मुख्य अभिव्यक्ति है। नाटकों में से गद्य अंशों का अधिक उपयोग करते हैं। स्वाँगों की अनुकृति मैं ता। ये पूरे स्वाँगी ही बन जाते हैं। बादीगण की तरह धोती पहनकर नाचते हैं। सजावट के लिए पत्तों अथवा कागज के मुकुट पहनते हैं। बादी और बादीण द्वारा प्रयोग किये गये व्यंग्यों की सही और सटीक नकल उतारते हैं। इन व्यंग्य भरे कथोपकथनों में सामाजिक ढांचे में व्याप्त अनाचार और अत्याचार के खिलाफ आवाज रहती है तथा उसका व्यंग्य भरी वाणी से माखौल उड़ाया जाता है।
विशेष मंच - कहीं-कहीं बच्चे लकड़ी के चार डंडे खड़ा करके उसके तीनों ओर चादर लपेट लेते हैं और सामने कोई अच्छी सी सफेद चादर डालकर उसे मंच का स्वरूप दे देते हैं। इस मंच के बीच में एक अलग चद्दर डालकर ये इसके दो भाग कर लेते हैं। इस तरह इस रंगमंच पर ये अपने नाटक प्रस्तुत करते हैं। प्रायः यह भी देखने को मिलता है कि गांव के स्त्री पुरुष बच्चों के इन नाटकों, स्वाँगों और लीलाओं को देखने एकत्र हो जाते हैं और इनका आनन्द । ठाते हैं। रोशनी के लिए लालटेन का उपयोग किया जाता है। इन प्रस्तुतियों के अनुकरण के अतिरिक्त बच्चे, पाण्डव नृत्यों की नकल भी उतारते हैं। इसमें आंगिक, वाचिक दोनों तरह की प्रस्तुतियाँ होती है। इन पर अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव आते हैं, ये उन्हीं के अनुरूप बोलते हुंकारते और किलकारी मारते अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इन प्रस्तुतियों में भी कनस्तर पीटकर वाद्य यंत्रों की कमी पूरी की जाती है। इन्हें देखकर भी गांव के लोग आनन्द उठाते हैं। बड़े-बूढ़ों और नक्कालां की नकल उतार कर भी ये अनुकरणात्मक अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इस अनुकरण अथवा नकलबाजी में बच्चों को खूब आनन्द आत है और गाँव के बड़े-बूढ़े भी इनमें भाग लते हैं तथा इनसे आनन्द उठाते हैं। व्यक्तिपरक अभिव्यक्तियांक्रियाएं और अभिव्यक्तियों जिनमें आंगिक रूप में नाटकीयता अथवा लोकधर्मी नाट्य परम्परा के दर्शन मिलते हैं वे हैं- (1) पाण्डव नृत्यान्तर्गत व्यक्तिपरक देव विशेष के बल पौरूष का अभिव्यक्तिकरण X20 नृत्यान्तर्गत बाजा मांगने की प्रवृत्ति तथा 13) बाजों में पाया जाने वाला व्यक्तिपरक देवविशेष के पौरूष बखान की प्रस्तुति का एक अंग कह सकते हैं। सामूहिक नृत्य प्रदर्शन में अभिनय के साथ कथोपकथन भी साथ चलते हैं। खुले मैदान में ये नाचते व संवाद बालते चलते हैं तथा दूसरा व्यक्ति भावानुकूल अभिनय प्रस्तुत करता हुआ निर्देश देता है यथा, छांटो छड़बड़ कदम मिलेकी, माई मर्द का चेला, लाठी निभिलाने मइ, और भनासी मर्दों इत्यादि । इसमें नाटकीयता व कथोपकथनों का प्रयोग होता है। व्यक्तिपरक अभिनय में अर्जुन, भीम और नकुल, सहदेव के बल और पौरूष की नाटकीय अभिव्यक्ति अभिनेता अथवा नर्तक द्वारा की जाती है। इन अभिव्यक्तियों का मंच मण्डाण होता है। भीम देवता वाले पुरूष का अभिनय दर्शकों को रिझा देता है जिससे दर्शक झूम उठते हैं। इस मण्डाण के बीच बाजा मांगने की अभिनयात्मक अभिव्यक्ति, नर्तक, अभिनेता द्वारा की जाती है। कानों पर अंगुली रखकर अभिनेता संवाद शैली में कथानक प्रस्तुत करता है। इसे स्थानीय बोली मैं बाजा मांगना कहा जाता है। इसमें आंगिक अभिनय की प्रचुरता रहती है। नर्तक के साथ आवजी (औजी) भी एक कान पर अंगुली रखे रहता है तथा दूसरे हाथ से धीरे-धीरे ढोल पर थाप देता है। तीसरे प्रकार के बाजे के साथ पायी जाने वाली व्यक्तिपरक अभिव्यक्ति, देव विशेष के पौरुष के बखान
की प्रस्तुति है। नरसिंह और भगवती के नर्तक आंगिक अभिनय के अद्भुत कौशल का प्रदर्शन करके, दर्शकों को चकित कर देते हैं। दर्शकों को इससे संतोष और आनन्द की प्राप्ति होती है। नाटकीय प्रवृत्ति का प्रदर्शन, इन व्यक्तिपरक नृत्याभिव्यक्तियों के अतिरिक्त 10 दो महिलाओं के झगड़े और 120 औरतो तथा पुरूषों द्वारा नकल किये जाने में भी मिलती है। औरतों के झगड़े में आंगिक तथा वाचिक दोनों ही प्रकार के अभिनयों की प्रस्तुति होती है। 120 औरतों अथवा पुरूषों द्वारा नकल की प्रवृत्ति के फलस्वरूप भी, नाटकीय प्रदर्शन का अनोखा दृश्य दर्शकों के सामने उपस्थित हो उठता है। आंगिक और वाचिक प्रदर्शन द्वारा ये एक मनोरंजक नाट्य प्रस्तुत कर देते हैं।
लोक नाट्य परम्परा की स्वाँग शैली -
गढ़वाल में स्वाँग की एक विशेष शैली है। यह गढ़वाली लोक धर्मी रंगमंच की एक महत्वपूर्ण और प्रमुख इकाई है । लोक जीवन में इसका बड़ा महत्व तथा मान है। गढ़वाली की स्वाँग की परम्परा की शैली को हम दो भागों में बांटते हैं। व्यवसायी तथा 120 अव्यवसायी अव्यवसायी से तात्पर्य एक ऐसी परम्परागत शैली से हैं जिसमें समायानुसार लोग मिलकर, स्वाँग प्रस्तुत करते हैं। लोगों द्वारा 'जोकरिंग' के नाम से जाने जाते हैं। समाज इन जोकरिंग को सुनना और देखना चाहता है। प्रायः ये हास्य प्रस्तुतियाँ- 'जोकरिंग- रामलीला और पौराणिक नाटकों की प्रस्तुति के बीच दिखाये जाते हैं। रामलीला और नाटकों के प्रसंगों के बीच, दर्शकों के मनोरंजनार्थ 'जोकरिंग' नाम की अभिव्यक्तियों की प्रस्तुति की जाती है। इस तरह नाटकों तथा लीला के बीच मंच पर प्रस्तुत इन लोकाभिव्यक्तियों की स्थानीय शैली को ही अव्यवसायी स्वाँग परम्परा नाम दिया गया है। जोकरिंग- हास्य प्रस्तुतियों की समयावधि अधिक से अधिक 15 से 20 मिनट तक होती है। इनका उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना होता है। इन प्रस्तुतियों का उद्देश्य सामान्यतः व्यंग्य है, सामाजिक अधिविश्वासों और ढ़िवादी प्रवृत्तियों पर कटाक्ष करना है। लोगों को रूढ़िवादिता के खिलाफ जागरूक बनाना है, शिक्षित करना है। इनके अभिव्यक्तिकरण में आवश्यकता से अधिक अभिनेयता और एक्शन होता है। पात्र 3 से 4 अथवा कभी-कभी दो भी होते हैं। इनकी वेशभूषा आकर्षक होती है। मुकुट और मुखौटे धारण किये जाते हैं। काले, नीले, पीले और लाल रंग से वे चेहरों को पोतते है। बहुरंगियों की तरह ये लोगों का मनोरंजन करते हैं। अभिनय में उछल-कूद अधिक मिलती है। अपने इस अभिनय में मसखरापन लाने के लिए ये अजीबो गरीब, आंगिक और वाचिक अभिनय प्रस्तुत करते हैं। लीला और नाटकों के बीचलोगइन प्रसंगों को देखना पसंद करते हैं। कुछ प्रसिद्ध स्वाँग हैः- 110 भूत भगाने का स्वाँग 120 बूढ़े को पैसो के लोभ में लड़की बेचने का स्वाँग 130 वाक्या से रोग का निदान ढूढ़ने
का स्वॉग 140 पाखण्डी जोगियों के स्वाँग तथा सटक बाबा इत्यादि (5) शराब और उसकी बुराइयों के स्वाँग और 060 शिक्षा के महत्व को दर्शाने वाले स्वाँग । इनसे मनोरंजन के साथ जनता को शिक्षा भी मिलती है। इनकी भाषा प्रायः हिन्दी तथा कभी-कभी स्थानीय बोली भी होती है। पेशेगत कला के रूप में, स्वाँग लोक नाट्य मंच की एक ऐसी प्रस्तुति है जो कि आदिकाल से आज तक अपने मूलरूप में जीवित मिलती है। यद्यपि यह नहीं कहा जा सकता है कि इन स्वाँगों का आदि रूप ऐसा ही रहा होगा तो भी स्वर्गों के साथ 'औसर' शब्द की उपलब्धि इस बात का संकेत करती है कि अपने मूल रूप में यह प्रस्तुति किसी और रूप मैं रही होगी। 'औसर' के साथ आज अश्लीलता का पुट होने का जो संकेत है वह 'ओसर नाट्य' के नैतिक दृष्टि से नीचे स्तर का होने का संकेत करता है। यह कि इनमें हंसाने के लिए, मनोरंजन के लिए भोड़े, गंवारू और अश्लील शब्दों का प्रयोग होता था।
स्वॉग - शैली -
स्वाँग शैली ही गढ़वाली लोक धर्मी नाट्य परम्परा की मूल शैली है। इसका अपना रंगमंच है। अपनी भाषा है और अपने शैलीगत कथोपकथनों के साथ इसमें परम्परागत पेशेगत व्यवसायी प्रवृत्ति मिलती है। प्रत्येक वर्ष इस वर्ग और जाति के लोग इन नाट्यों का प्रदर्शन करते हैं। इन स्वाँगों के प्रदर्शन के पीछे धार्मिक आस्था और शिव जी के वरदान की बात, ये पेशेवर लोग करते हैं। स्वाँग मैं लोकोत्सव लाँग परम्परा अति प्राचीन है। वैदिक काल में जिस तरह अश्वमेघ और पुरुष मेघ यज्ञ की परम्परा थी, उसी तरह पार्वत्य प्रदेश में लॉग X वेदार्त, भडयाणा औसर - स्वाँग की ) यज्ञ द्वारा औंसर गायन ( इतिहास किया जाता था) द्वारा तत्कालीन समाज के हित चिन्तक, श्रेष्ठजनों की गाथायें और कालान्तर में प्राचीन नरेशों की शौर्य गाथाएं गाई जाती थी, उनका यश गान किया जाता था । मानव की इस आदिम अभिव्यक्ति जिसमें गीत, नृत्य, और अभिनय तीन एक रूप में प्रस्तुत हुये हैं, ने लोक नाट्य को जन्म दिया है और यह लोक नाट्य की परम्परा ही आधुनिक नाट्य कला की जनक मानी जाती है। इसका स्वरूप हमेशा लोक धर्मी रहा है इसलिए लोक जीवन से लोकोत्सव का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है और ये लोकोत्सव आज भी लोक जीवन से जुड़े हैं।
लाँग - लॉग लोकोत्सव में, नौ गांठ वाले बांस को, गांव के मध्य-स्थल (पंचयती चैक इत्यादि) पर गाड़ दिया जाता है। इस बांस के ऊपरी सिरे पर रस्सी इस तरह बांध दी जाती है कि लॉग उत्सव प्रस्तुतकर्ता, पेट के बल बाँस के ऊपरी हिस्से से चारों ओर घूम सके। इस खड़े बांस के डन्डे को लॉग ) कहीं-कहीं लाक भी कहा जाता है। 10 से 15 दिन और कहीं-कहीं महीने भर, ये लोकोत्सवकर्ता आम जनता का
मनोरंजन करते हैं। इस उत्सव के आयोजन के एक अथवा दो दिन पहले साये लोग, नृत्य और संगीत के साथ एक विशेष प्रकार की अभिनयात्मक प्रस्तुति का प्रस्तुतिकरण भी करते हैं। इसे औंसर कहा जाता है। औंसर की अभिनयात्मक प्रस्तुतियों में 10 महादेव पार्वती का स्वाँग 120 कुटनेटी का स्वाँग 130 बुढ़या का स्वाँग और 140 ढाकरिया का स्वॉग प्रमुख हैं। इन प्रस्तुतियों के साथ वर्तमान में जहां कहीं भी और जैसे भी इस उत्सव के आयोजन का मौका मिलता है, ये लोग सामाजिक समस्याओं, अंधविश्वासों और कुरीतियों पर भी तिलमिलाने वाला आघात करते हैं। वैसे अब इन लोकोत्सब का आयोजन प्रायः बंद जैसा हो गया है। इसका कारण समय के साथ, प्रस्तुति के समय, नर्तकों की ऊंचे डन्डे से गिरकर मौत होना अथवा रस्सी से फिसलकर, प्राणांत का भय भी रहा है, और है। औंसर स्वाँगों की प्रस्तुति के समय नायक-नायिकाएं अपने आपको वस्त्राभूषणों से सजाते-संवारते हैं। मुंह पर मुखौटे पहनते हैं। अपनी वेशभूषा और रूप आकर्षक बनाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं । अन्तिम दिन, जिस दिन कि लोकोत्सव लॉग की आकर्षक प्रस्तुति की जानी होती है, उससे एक दिन पूर्व ये महादेव का स्वाँग निकाल कर इस स्थान परआते हैं जहां बीस गाड़ा गया होता है और उक्त आकर्षक प्रस्तुति की तैयारी करते हैं। गढ़वाल में जिस प्रकार राम कथा मंच पर राम की लीलाएं प्रस्तुत की जाती है उसी तरह गढ़वाली लोक रंगमंच की स्वाँग परम्परा में, राम कथा मंचन से बहुत पहले, इन स्वाँगों में महादेव और पार्वती की कथाओं का मंचन होता था। इस तरह लोक रंगमंच की परम्परा में स्वाँगों में महादेव-पार्वती का चरित्र चित्रण और उनकी कथा का प्रस्तुतिकरण, रामकथा मंच के पूर्व ही, इसी मंच पर प्रतिष्ठित और प्रचलित था ।
लॉग वाले स्थान पर आकर ये लोग, महादेव और पार्वती की आरती उतारते हैं और मुखौटा तथा जटा जिसे कि प्रस्तुतकर्ता धारण करते हैं, उसे लॉग के पास स्थापित कर देते हैं। नाट्य प्रस्तुतकर्ता को स्नान कराया जाता है । जिस गांव में यह आयोजन होता है, उस गांव के 'प्रधान' को दान किया जाता है। इस उत्सव की यह विशेषता है कि जिस गांव में देवालय (मंदिर) होते हैं, वहां प्रस्तुतकर्ता रस्सी के सहारे काठ के घोड़े पर सवार होकर ऊपर से नीचे की ओर खिसकता हुआ, अपना खेल प्रदर्शित करता है। लेकिन ऐसे गांव, जहां देवालय नहीं होते, वहां ये लॉग (बांस का डन्डा ) पर चढ़कर उत्सव की प्रस्तुति करते हैं। लेकिन जिस प्रस्तुतिमें रस्सी के सहारे काठ की घोड़ी पर पेट के बल, टिक कर नीचे उतरना है उसे इस उत्सव की भाषा में 'कठवादी रणाया' जाना कहा जाता है। लाँग में प्रस्तुतकर्ता बाँस के डन्डे के ऊपरी शिरे पर चढ़ता है और पेट के बल, नाभि के बीचों बीच शरीर का संतुलन बनाकर चारों ओर घूमता है ॥ प्रस्तुतकर्ता द्वारा पेट के बल घूमने की इस क्रिया को 'खण्ड खेलना' कहा जाता है। पहला 'खण्ड' (चक्कर महादेव
के नाम का होता है । इसके बाद पंचनाम देवता और गांव के प्रधान के नाम 'खण्ड' खेलने का रिवाज है। वाद्य यंत्र खासतौर से, ढोल दमाऊं और ढोलक से संगीत की एक विचित्र रोमांचक स्थिति पैदा की जाती हैं। इससे दर्शकों के हृदय में अद्भुत रोमांच पैदा होता है। इस नाद को सुनकर और दृश्य को देखकर, दर्शक आत्मविभोर हो उठते हैं। खण्ड खेलने से पूर्व प्रस्तुतकर्ता लाँग के नीचे खड़े लोगों के सवालों का उत्तर भाले-भाले कहकर देता है। वाद्य यंत्रों को जोर-जोर से पीटते और ढोलक पर रामांचक स्थिति पैदा करने वाले वादक, इस लोकोत्सव लॉग की एक अजीब कथा सुनाते हैं। पार्वत्य प्रदेश की यह प्रस्तुति राजस्थान के तुर्रा और कलंगी का मिला जुला स्वरूप है जिसमें शिव और शक्ति पार्वती के उपासक, शिव पार्वती के यशोगान के माध्यम से नरेशों का यशगान करत है। इस लोकोत्सव में देवों और गांव प्रधान पंच नामदेवताओं, सती-सावित्रियों और भरों, नागराज, स्थानीय देवों के साथ दानी राजाओं - सामन्ती के यश का वर्णन करते हैं। दृष्टव्य है कथा का मूलपाठ - जब 'बरमा' के दरबार में बंटवारा हो रहा था तब वहां हर एक जाति के लोग थे। लेकिन वहां विधाधर बादी नहीं था। दूसरे जाति के लोगों को हिस्सा मिलता देखकर, विधाधर जाति का पुरूष दौड़ेकर शिव जी के पास गया और उनसे बोला 'महाराज मैं यहां आत्म हत्या करता हूँ क्योंकि मेरे पास कोई बांठा नहीं है। शिवजी के पास ही पार्वती बैठी थी। उन्होंने विधाधर की बात सुनकर महादेव जी से कहा 'इन्हें इनका हिस्सा दे दूं।" पार्वती जी की बात सुनकर महादेव जी ने कहा 'जाओ तेरा हिस्सा जमीन जोतने वालों किसानों की फसल से मिलेगा। तुम नौ गांठ की लाँग लगाना । उस पर चढ़कर अपने कर्तव्य दिखाना । फिर तुम्हें, तुम्हारा हिस्सा मिल जायेगा । उस दिन से किसानों के जिम्मे विधाधरों का हिस्सा लग गया। तभी से ये प्रस्तुतकर्ता विद्याधर भाले - भाले कह कर अपनी सहमति व्यक्त करता है।
उत्सव की समाप्ति का दृश्य भी रोमांचक होता है। प्रस्तुतकर्ता अपने प्रदर्शन के पश्चात् लाँग से उतरता है। लोग उसे घेर लेते है। उसकी आरती उतारते हैं और बारी-बारी से गांव के पंच हिस्सेदार विद्याधर के बालों को धोते हैं। बादी/ विधाधर) के ये बाल बहुत पवित्र माने जाते हैं। इसलिए अक्सर बालों को छूने मैं छीना-झपटी हो जाती है। और ऐसा भी देखा गया है कि बादी (विधाधर) लहूलुहान हो उठता है। लोग उसके विधाघर) बालों को नोच लेते हैं और उन्हें अपने पूजागृह में रखकर उनकी पूजा करते हैं।
ऐसा विश्वास है कि लाँग लोकोत्सव के आयोजन से महामारी और बीमारियाँ ठीक होती है। इसलिए विधाधर के बाल, पवित्र और रक्षक समझे गये हैं। कैप्टन ठाकुर शूरबीर सिंह पवार ने अपने लेख
"वडवार्त" में उल्लेख किया है कि ऐसे लोकोत्सव अकाल, महामारी तथा बीमारी जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं के निवारणार्थ किये जाते थे। जिनके उद्देश्य के बारे में अंग्रेज कमिश्नर मिस्टर मूर क्राफ्ट ने फरवरी 1820 में बच्चू बेड़ा से इन आपदाओं के निवारणार्थ किये गये आयोजन की उपयोगिता और उपादेयता के बारे में विचार-विमर्श किया था। देर-सबेर महाराज कीर्तिशाह ने सन् 1910 में "लांग" और "वडवार्त" पर प्रतिबंध लगाकर उसे बंद करा दिया था। इसी तरह सन् 1930 टिहरी राज्यान्तर्गत जौनपुर परगना के थत्यूड़ ग्राम में जनता द्वारा आयोजित लांग - वेडवार्त. टिहरी दरबार के आदेश से बंद की गयी थी। गांव के पंच और प्रधान तथा आम जनता जब विधाधर के बालों को छूती है तो विधाधर उन्हें जमीन के अपने हक की याद दिलाता है, उन्हें कसमें खिलाता है ताकि प्रत्येक फसल पर उसे अपना हक मिल सके। वाद्ययंत्रों की आकर्षक और उत्तेजना युक्त गर्जना के बीच, विधाधर लांग के ऊपर घूमता "भाले-भाले" कहता, खण्ड खेलता हुआ क्रम से निम्नांकित कविता का जोर-जोर से वाचन करता हैःखण्डबाजे हो खण्ड बाजे पंचनाग देवताओं को, खण्ड बाजे गांव की भगवती को, खण्ड बाजे नरसिंह नागराजा को, खण्ड बाजे भैरों, निरंकार को, खण्ड बाजे गांव के प्रधान को, खण्ड बाजे सतधर्मी नारियों को, खण्ड बाजे दानी राजाओं को, खण्ड बाजे
पंच हिस्सेदारों को, खण्ड बाजे।
और इस अंतिम प्रस्तुति के साथ समाप्त होता है, पार्वत्य प्रदेश का लोकोत्सव लांग और उसकी आकर्षक प्रस्तुति ।
कठबादी - लाँग की तरह ही कठबादी रड़ाया जाना लोक नाट्य की दूसरी प्रस्तुति है। जहां देवालय नहीं होते तात्पर्य जिस गांव में मन्दिर नहीं होते वहां विधाधर (बादी) काठ के घोड़े पर पेट के बल सवार होकर ऊँचे स्थान से नीचे स्थान की ओर लुढ़कता है। कठबादी रड़ाये जाने से सम्बद्ध शब्द हैंवर्त, काठी, और वर्तखूंटा । इस लोक नाट्य प्रस्तुति में भी 15 दिन से । माह तक औंसर- स्वांग निकाले
जाते थे। विषय वही होते हैं जो कि लाँग नाट्य की प्रस्तुति में स्वाँगों के होते हैं। वादी विधाधर) को
उसी तरह तैयार किया जाता है तथा सभी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण किये जाने के बाद ही वादी काठ की काठी पर सवार होकर, ऊंचे स्थान के खूंटें से नीचे स्थान के खूंटे की ओर पेट के बल खिसकता है। वर्त, रस्सी मोटे बावड़ से बनायी जाती थी। इसे मजबूती से तैयार किया जाता था तथा इसे तेल से भिगोकर इतना चिकना बनाया जाता था कि काठ की काठी सुगमता से इसके ऊपर से ढाल की ओर कुशलतापूर्वक खिसक सके। काठी, काठ से निर्मित की जाती थी। इस पर बादी सवार होता था। इसे ऐसा बनाया जाता था कि यह कुशलता से रस्सी के ऊपर अपना "बैलेंस" बनाये रखकर, विधाधर सहित, सकुशल, जमीन में उतर सके। रस्सी को ऊपर तथा नीचे जिन खूंटों से बांधा जाता था उन्हें वर्ती खुंट कहते हैं। पार्वत्य प्रदेशों में माल्या वर्तखुंट और तल्या वर्तखुंट जैसे नाम प्रायः मिलते हैं। मल्वा वर्तखुंट से तात्पर्य उस ऊपरी खूंटे से था जिस पर वर्त का ऊपरी हिस्सा तथा तल्या वर्तखुंट से तात्पर्य उस नीचे के खूंटे से था जिस पर वर्त का निचला हिस्सा बांधा जाता था । नियत समय पर काठ पर सवार होकर बादी (विधाधर) ऊंचे पहाड़ के खूंटे से नीचे पहाड़ के खूंटे की ओर बढ़ता था। बादी के सकुशल नीचे उतरने पर उसकी आरती उतारी जाती थी और उसके केश को स्पर्श करने तथा लूटने की होड़ लोगों में लग जाती थी। कठवादी रड़ाये जाने का उद्देश्य भी महामारियों, भूख और अकाल तथा अन्य बीमारियों का शमन करना ही था। लेकिन कठवादी के साथ लॉंग के प्रस्तुतकर्ता वादी के साथ यदि ये बीच में लॉंग से अथवा काठ से गिर जाते थे तो गांव वाले, गांव के लिए इसे अपशकुन मानकर, वादी की गरदन तलवार से उड़ा देते थे। ऐसी प्राचीन प्रथा के इतिवृत्त मिलते हैं इसलिए कालान्तर में लॉंग तथा काठवादी रड़ाने पर सार्वजनिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था और इन प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया था। लाँग और कठवादी रड़ाये जाने सम्बन्धी कतिपय शब्द जो गढ़वाली लोकमंच पर व्यक्त होते रहे हैं- बेड़ा, एक जाति विशेष जिसे बेड़ा, वादी तथा विधाधर नाम से जाना जाता है। बेडवार्त, बेड़ाओं द्वारा आयोजित लाँग नाट्य, जिसके अन्तर्गत लाँ तथा समाजिक विषयों को लेकर अनेक प्रकार के व्यंग्य और कटाक्ष नाट्य रूप में प्रस्तुत किये जाते थे। लाँग, नौं पोरी नौं गांठ वाला बांस का लट्ठा जिसे प्रस्तुतकर्ता खेल के लिए उपयोग करता था और जिसके सिरे पर पेट के बल घूम कर बादी कलाकार खण्ड बाजे, कहकर घूमता था तथा भाले-भाले कहकर वादकों की बातें सुनता तथा उनका उत्तर देता था। वर्त, बाबड़ की घास की रस्सी होती है। इसे स्थानीय बोली में वर्त कहते हैं। यह वर्त कई लड़ों को जोड़कर बनाई जाती थी और काफी मजबूत होती थी ताकि बेड़ा के पेट के बल और काठी पर सवार होकर रणने फिसलने पर यह टूटे नहीं। इसे कई दिनों तक फिसलन बनाये रखने के लिए तेल में भिगोया जाता था। खूंट यह एक
प्रकार का खूंटा होता था जिस पर वर्त का ऊपरी तथा निचला हिस्सा मजबूती से बांधा जाता था। वर्तखुंट, वह खूंटा, जिस पर यह वर्त बाँधी जाती थी। ये स्थान प्रायः निश्चित होते थे और गांव की सीमा में एक ऊंचे तथा दूसरा ऊपर वाले की सीध में सीधा नीचे होता था। स्वांग, इसके बारे में लोक नाट्य लॉंग में विस्तृत रूप से लिखा गया है । औंसर, औंसर में अश्लीलता का भोंड़ापन होता था । अश्लीलता इनमें नंगी मिलती है जिसका आनन्द दर्शकगण (स्त्री-पुरूष शर्म महसूस करते मुंह और आंखे चुराकर लेते थे। प्राचीन काल में बादियों के ये औंसर स्वाँग प्रायः गांव के ओबरों (मकान की निचली मंजिल के कमरों में) होता था। यह भी सुविदित है कि इसमें प्रायः गांवों के उच्छृंखल नौजवान होते थे। बड़े बुजुर्ग प्रायः इन ओबरों में नहीं होते थे। सार्वजनिक रूप से चैत के महीने, फसल कटने पर, बादी नाच का गांवों में आयोजन करते हैं। इन आयोजनों में अश्लीलता अपने ढंके रूप में होती थी लेकिन लाँग लोकोत्सव अथवा कठबादी रणाये जाने के अवसर पर आयोजित, औंसर स्वाँग में, सार्वजनिक रूप में, इन लोगों द्वारा, अश्लीलता नँगे रूप से प्रदर्शित की जाती थी, जिसे नौजवान युवक चटकारे मारकर, नवयुवतियां आँखें नीचे करके, मन ही मन मुस्कुराती और बड़े-बूढ़े, स्त्री पुरुष मुंह को हार्थों से दाबे, दबी मुस्कराहट से आनन्द लेते थे और आज भी आनन्द लेते हैं ।
डडवार- फसल पकने और खेत खलिहानों से किसान के घर जाने पर, भूमि की, फसल के हिस्सेदार, बादी और औजी (वादक जाति) चैत के महीने किसानों के घर द्वार, गीत गाकर और नाच कर (औजीण द्वारा अथवा बादीण द्वारा अपना हिस्सा मांगते हैं। इसे यहां "डडवार" मांगना कहा जाता है। इस डडवार का सम्बन्ध बादियों के लिए उस कथा से है जिसमें शिव जी ने उन्हें जमींनदार किसान से) से फसल पर अपना हिस्सा उगाने से है। औजी, ढोल पर गीत गाकर, इन्हें यहां औजियों के गीत कहते हैं, डडवार मांगते हैं यह "भीख" नहीं है। वास्तव में डडवारों के पीछे, अधिकार पूर्ण कर वसूली जैसा भाव है जिसे अनिवार्यतया किसान को देना ही पड़ता है और औजी, साधिकार, अकड़ कर इसे लेता है। नांच, सामान्यतः बादियों द्वारा प्रस्तुत नृत्य को, बादियों का नाच अथवा "नाच" कहते हैं। भड्याणा, बेड़ों का भड्याणा के पीछे प्रलाप जैसी बात तो नहीं है तो भी लाँग लोकोत्सव और कठवादी रणाये जाने के समय तथा औंसर और स्वाँगों में बादियों द्वारा स्थिति और परिस्थिति के अनुरूप, ऊपर लाँग पर झूलते बादी को विमोहित, प्रोत्साहित और रोमांचित करने के लिए तथा जनता को आश्चर्य में डालने के लिए जो भड्या - उच्चस्वर में कहा जाता है, कथा कही जाती है अथवा इतिहास दुहराया जाता है उसे ही, बेडों का भड़याणा कहा जाता है। खण्ड बाजे, लाँग लोकोत्सव में, बाँस की ऊपरी धुरी पर पेटके बल, |
c8b6672c6b911705da043b1c317a3db5a0e56d34012b8537798cc4fdad64a772 | pdf | परिभद्रका राज्यशासन
लिये स्वतंत्र समझे जाते थे। 'गण व्यवस्था में हरएक सदस्यपर अन्य सदस्यों के हिताइितकी जिम्मेवारी पूर्णतया रहती थी, पर 'मात' ध्व-स्थामें उतने निश्चित ऋत की मर्यादा तक की हो यह जिम्मेवारी रहती थी । गण में उत्तरदायित्व अधिक और में नियमानुकूल मर्यादित रहता था। इस कारण गण में मविष्ट होनेवालों को लाभ भी अधिक होते थे और व्रातमें उसकी अपेक्षा से लाभ भी कम होते थे।
गणपतिसहस्रनामों का विचार करने से पता चलता है कि, गणसंस्थामं संमिलित होनेवाले सदस्यों का हित करने का पूर्णतासे उत्तरदायित्व गण के अधिष्ठाता पर रहता था। इसलिये गणेश अर्थात् गण के अधिष्ठाता को तथा गणपति अर्थात् गण के पालनकर्ता को गण के प्रत्येक सदस्य के हितकी सय जिम्मेवारी उठानी पड़ती थी । अर्थात् गण में प्रविष्ट सदस्य थीमार हुआ, युद्ध में जखमी हुआ, किसी अन्य भापत्ति में फैसा, यो ऐसी सब आपत्तियों का निवारण करने के लिये सुप्रबन्ध करने का कार्य गणपति को करना पड़ता था। यह भाव निम्नलिखित नामों से ज्ञात होता है-गणभीतिहर, गणदुःखप्रणाशन, गणभपत्यहारक, गणसौरयमद, गणामीटकर, गणरक्षणर्ता, " ऐसे अनेक नाम है, जो बताते है कि गणों का सर्व प्रकार से हित करने के लिये गणों के मध्यक्ष को भनेक प्रकार का योग्य प्रबंध करना पड़ता था।
4 ज्ञात के विषय में जिम्मेदारी घोडी होती है। जिस नियम या शर्तसे वह व्रात संघटित होता था, उतना हो उत्तरदायित्व संघाधिपतिपर रहता था। अन्य पातों के विषयमें उस को देखने की आवश्यकता नही होती थी।
छोटी मोटी कई संस्थाएं थीं, जो निम्नलिखित नाम से ज्ञात हो सकती है- 'गण गणार, गणेश, गजपति, गणाधीश, गणाप्रणी,
गगाध्यक्ष, गणेश्वर, गणेकराट्र, गणाधिराज, गणनायक, गणमण्डलाध्यक्ष ये पद एक अर्थ के चाचक नहीं हैं। प्रत्येक पद में अधिकार का भेद है और तदनुसार छोटे या बडे संघ का भी वह सूचक है।
गणमण्डलाध्यक्ष यह है, जो अनेक गणो के संघों का अध्यक्ष होता है। गणनायक वह है, जो गणोंको चलानेवाला है। गणप यह है कि जो गण का पालन करता है। ये सन पद गणवानी प्रणाली बताते है । इन समका विचार करने से इस शासनसम्बन्धी सबका पता लग सकता है, पर हमें इस लेस में गणपतिसंस्था का पूर्ण विचार करना नहीं है, प्रत्युत रक्षामनसंस्था का विचार करना है। इस के अन्तर्गत गणपति पद होने से गणपतिसंस्था का थोडासा विचार करता हुआ है, अतः अतिसंक्षेप से यह विचार यहां किया है।
अपना प्रकृत विषय ठीक तरह समझ में जाने के लिये यजुर्वेद अ० १६ में आये गण और गणपति का थोडासा अधिक विचार करना आवश्यक है। विचार करने के लिये मान लीजिये कि, एक रथकार-गण' है, मर्यात् गाडियाँ घनानेवालों का एक अधिराज्य में स्थापन किया है ।
इस का एक अध्यक्ष होगा, जिस का नाम 'रथकार-गणेश' होगा। इस अध्यक्ष का प्रथम कर्तव्य है अपने में स्थित सदस्यों की गणना करना, एक पुस्तक में अपने सदस्यों के नाम, स्थान तथा उनको आवश्यकसामों का लेख तैयार करके सुरक्षित रखना। अपने गण को अर्थात् संघसदस्य को कार्य न होगा, तो उस को कार्य देना, भोजन का प्रबंध न होगा तो करना, बीमार होनेपर दवा का प्रबंध करना, अर्थात् काम लेना और उस के बदले दाम देना अचना सुखसाधन देना। इतने वर्णनसे पाठकों के मन में यह बात आयी होगी कि, यह गणव्यवसोहोनी चाहिये ।
'गण-आर्ति-हर ' यह नाम इसकी का सू
है। गणापत्त्यामें आये सदस्यों की हरप्रकार की आपत्तियों को दूर करना गणनायक का कर्तव्य होता है और यह उस को करना ही पड़ता है। सदस्य कर्म करने के जिम्मेवार है, शेष जिम्मेवारी नायकपर रहती है।
पाटक ऐसी कल्पना करें कि, इस रथकार-गण में १०० सदस्य होंगे, तो उन को उन के करनेयोग्य काम देना, उन से काम करवा लेना और उन को सुखसाधन समय पर देना, यह इस गणसंस्था में अध्यक्ष का मुख्य कर्तव्य है। ऐसा प्रबंध करने के लिये देशभर कैसी सुव्यवस्था रखना आवश्यक है, इसका विचार पाठक कर सकते हैं। यह रथकार-संघ " विषय में हुआ।
इम के पश्चात् ऐसे अनेक गणों का 'गण-मण्डल' होता है। जिस में एक दूसरे के साथ सम्पन्ध रखनेवाले अनेक उपकारक गणों का परस्पर सम्मेलन होता है और अनेक गणमण्डलों का मिलकर एक 'महागणमण्डल ' हुआ करता है। हम पूर्वोत स्वाध्यायमे देखेंगे कि, गणमण्डल में रथसर गण के साथ कौन से अन्य गण संमिलित हो सकते है । हमारे विचार से निम्नलिखित कारीगरों का गणमण्डल स्थकार- गण के साथ बन सकता है - ( क्षगण ) पद का संघ, (तक्षमण ) तणों का संघ, (धर्मारगण ) लुहारों का संघ, ये और ऐसे एक दूसरेके साथ सम्वन्ध रखनेवाले अनेक कारीगरों के गणों का मिलनर मह गणमण्डल होगा।
इस गणमण्डल का एक अध्यक्ष होगा। उसका कर्तव्य सन वणों का हित करना होगा। इस तरह सदस्यों का गण, गण का गणमण्डल और गणमण्डलों का सहाराणमण्डल होता है। संघों का ऐसा यह जादा देशभर मैला रहता है। यह है गणशासन की आयोजना ।
रजमून में ( गत लेस में ) जो नाम गिनाये हैं, उन में जो कार्यव्यव
हार के बाचक नाम है, उन सब के ऐसे गण हैं, ऐसा समझकर इस रशासनप्रणाली का विचार करना चाहिये। तब वैदिक गणशासन का महत्व ध्यान में आ सकता है। यहां प्रत्येक के संघका स्वतन्त्र विचार करके लेस को व्यर्थ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। रुद्र की शासमध्यवस्था की कल्पना ही यहां पाठकों को देना है। ऊपर दिये मन से यह PARENT पाठकों के मन में आ गयी होगी। इस तरह ब्राह्मणवर्ण में कई गण अथवा संघ, क्षत्रियों में अनेक गण नथवा संघ, इसी तरह वैश्य और शुद्धों में भी कार्यव्यवहार तथा व्यवसाय के गण बनाने से यह रुद्रशासनप्रणाली परिपूर्ण होती है।
राष्ट्र में कोई मनुष्य गणव्यवस्था से बाहर नहीं रहने पाय, जिसके कर्म और व्यवहार की गणना नहीं हुई, ऐसा भी कोई मनुष्य रहना नहीं चाहिये । प्रत्येक मनुष्य को उसके करने के लिये सुयोग्य कार्य मिलना चाहिये शोर उस कर्म के बदले उसको कर्मफलस्वरूप आवश्यक सुखसाधन भास होने चाहिये। यह इस गणय्यवस्था का मूल सूत्र है।
१. प्रत्येक मनुष्य को अपना कर्म उत्तम कुशलता के साथ समाप्त करना धादिये, कर्म के फलस्वरूप मुखसाधन देना इस शासनसंस्था की जिम्मेवारी हैं । कर्म करनेपर हरएक को आवश्यक सुखसाधन मिलने ही चाहिये । आवश्यक सुखसाधनों में रहने के लिये सुयोग्य स्थान, भोजन के लिये योग्य और आवश्यक अन्न, पीने के लिये उत्तम जल, लोढने के लिये आवश्यक वख, घीमारी की निवृत्ति के लिये चिकित्सा के साधन, धर्मसंस्कार समय पर होनेकी व्यवस्था, विद्या को पढाई की व्यवस्था और आध्यात्मिक उन्नति के लिये आवश्यक गुरूपदेश आदिका समावेश होना स्वाभाविक है। जो सदस्य उत्तम धर्मानुकूल रहेंगे, उनका इस व्यवस्था से कल्याण होगा। पर जो नियमभंग करेंगे, उनको कठोर दण्ड देना भी इस रुद्रशासन के प्रबंधद्वारा हो होता रहता है। उसमें क्षमा नहीं होगी।
रहसूल में जो नाम कार्यव्यवहार करनेवालों के हैं, उतने ही कार्यव्यवहार करनेवाले है ऐसी बात नहीं है। किसी देशविशेष में इससे न्यून वा अधिक भी कार्यव्यवहारवाले लोग हो सकते हैं। वहां के अनुसार न्यून या अधिक गमों की व्यवस्था होगी। उस रुद्राध्याय के वर्णन में इस स्ट्रीय शासनव्यवस्था का पता लगने के लिये केवल सूचनामा उल्लेख है। उस अध्याय में 'गण, गणपति, ' तथा बात, व्रातपति' ऐसे नाम लिसकर इस गणशासन के व्यवहार की सूचना दी है। परन्तु प्रत्येक धंधेवाले के साथ 'राम शन्द उस अध्याय में नहीं लगाया है। यह उन घंधेवाले नामों के साथ लगाकर इस शामन की कल्पना पाठकों को करनी चाहिये, इसीलिये यह लेख लिखा है।
उक्त अध्याय में कई पद सर्वसामान्य मान बतानेवाले हैं, जैमा देखिये( उपचीती ) यज्ञोपवीतधारी, (उष्णीपी) पगढीधारी, (कपर्दी ) शिनावारी, ( व्युप्तकेश ) जिस के बाल कटे हैं। ये पद सामान्य हैं । प्रत्येक वर्णके लोगों को ये पद लगाये जा सकते हैं। उपनीती पतीन वर्गों के लिये प्रयुक्त हो सकता है, शेष तीनों पद सय मानवोंके लिये प्रयुक्त हो सकते है ।
इसी तरह ( स्वपत् ) सोनेवाला (जाप्रत ) जागनेवाला, ( शयानः ) लेटनेवाला, (आमीनः ) वैठनेवाला आदि पद सर्वसामान्य मानवों के लिये धना प्राणियों के लिये लगाये जा सकते हैं। तथा ( महान् ) वडा, ( ज्येष्ट ) श्रेष्ठ, ( प्रथम ) पहिला, ( कनिष्ठ ) छोटा आदि पद भी सामान्य पद हैं, जो हरएक प्राणी के लिये प्रयुक्त हो सकते हैं। ऐसे सामान्य पद इस अध्याय में कौनसे है, उन का पता पाठकों को उक्त पदों का अर्थ देखने से लग सकता है। ऐसे सर्वसामान्य पद छोडने चाहिये, और शेष पदों में जो पर कामधंधे के सूचक, व्यापारव्यवहार के सूचक |
b4c28b788d372e19d560c5a6578ee5f57141022cfa8cd889cc38ffda09a50d6c | pdf | की फस्द खोलें और मत्राद फेंफडे के दाहिनी तरफ में है या बांयी तरफ उस के पहचानने की यह विधि है कि ज्वरके समय ध्यान दे कि फोनसी तरफ का गाल विशेष लाल हो जाता है और छातीका भारापन कोनसी तरफ में मालूम होता है फिर जिस तरफ का गाल लाल हो और जिस तरफ में भारापन मालूम हो तो उसी तरफ सूजन है और ऐसेही जिस फरवटपर रोगी लेटे और उस समय मुखमें रतूत्रत विशेष आवे तो जान सकते हैं कि माद फेंफडेके इसी तरफ में है जैसे जो सृजन उसकी दाहिनी तरफ में हो तो दाहिनी करवटपर लेटनेसे चूक और रतूवत विशेष निकलेगी और ऐसेही उसके विरुद्ध । और साफिन की फस्द के खोलने के पीछे जो दफ्त अन्दाम की फस्दको वासलीकफी फस्ट से पहिले खोलें तो अति उत्तम होगा और खूनको शक्ति के अनुसार निकलना चाहिये जैसे जो रोगी बलवान हो तो तीन दिनका अन्तर देकर दूसरी फस्द खोलनी चा हिये और जो आरम्भमें वासलीफ की फस्द से आरम्भ करें तो चाहिये कि मूजन दूसरी ओर से फस्द खोले और परिणाम में उचित स्थान में से खोलें और फस्द खोलने और मवाद कम होने के पीछे कदाचित् छाती में पछने लगाने की आवश्यकता होती है जिससे जो मवाद बच रहा है वह कम होजाय और बाहर की तरफ आजाय और हकीम जालीनूस कहता है कि जो उपर बहुत गर्म हो तो दस्तावर दवा न देवे और केवल फस्द ही खो क्योंकि दो लने में भय नहीं और दस्तावर दवाओं के देने में पहाभय है क्योंकि कभी ऐसा होता है कि दस्तावर दवाएँ मवाद को हिलाकर दस्त नहीं लाती है और दर्द पड़ जाता है और कदाचित् वस्त बहुत बढ़ जाते हैं जिस मनुष्य के अंग लटकने की जगह में और मुरूप फेंफडे में सूजन हो तो फस्द सोलनी लाभदायक होगी और लटकी हुई जगह के मूम जाने का यह चिन्ह है कि गर्दन की इसली के समीप दर्द मालूम हो और जिस मनुष्य की पसलियों की तरफ दर्द हो तो उसको दस्तावर दवा विशेष लाभदायक होगी और जो हकीम ठीक समझे तो फस्द भी खोने और मवाद को गहराई में में निफा लने वाली दवा भी दे उसपे देखने से निश्चय होगा और उस सूजन में फि जो नजले से उत्पन्न हो फीफाल की फस्द खोलना लाभदायक है। और इन सब रोगों में मवाद के गाटे करने वाले पर्वत जैसा दयाहना दर्प और गिन चीजों से गवाद रुक जाता है का पानी में देना पाहिये । विताब शफाई के बनाने वाले ने लिखा है कि यूनान दाना सर्वन स
कालु आव पतले जुल्लाव के साथ ठहग २ कर पिवावें और गुनगुने पानी में छाती और पसलियों पर तरेदादें जिससे श्वास समानता से आप और जो दर्द होतो भी थम जायगा [लाभ ] जबकि मुजन में पीन पहनाय और ने का समय समपि आये तो श्वास का रुक्कर आना, छाती का भारापन और दर्द विशेष होजाय और जिसदिन पूजाय तो उवर जाने से आवे फिर जो अच्छी तरह से मवाद न निकला हो तो पीव के निकालने में परिश्रम करें जैसा कि नफ्सउलमिद्दा [ थूकमें पवि आना ] में वर्णन किया गया है और इसमकरण के अन्त में भी वर्णन किया जायगा और जानना चाहिये कि बहुधा ऐसा होता है कि फेंफड़े की सूजन बहुत पकजाने से पहले किसी कारण से जैसा बहुत क्रोष, कठिन परिश्रम, उपफाई लेना आदि कर्मों से फूटजाय और फेवल खून वा कधी पीच के साथ आने लगे तो इस सूरत में उसी समय फस्ट खोलनी चाहिये और सुखमें खून आने के इलाज की तरफ आरुद होना चाहिये । दूसरा भेद वह है कि सृजन का मवाद सादा अर्थात् बेसडा हुआ फफहो तो लुभव की अधिक्ता चहरेपर साली पर न होना, दयारा विशेष तग होना, छाती की गर्मी का कम होना, और सुख भरभराया हुआ दिखाई देना और ज्वर तथा भारापन या मगर होना ये लक्षण होते हैं और जानना चाहिये फि भीतर के अगों की कोई सुजन बिना श्वर के नहीं होनी परन्तु विशेषता और न्यूनता गवादके अनुसार होती है और कभी ऐसा होता है कि फेंफड़े में पानी कौसी तरीही हो जाती है और रोगी की दमानलन्थर वाले फीस होजाय और रासायर हर समय रहने एगे। आरम्भ में गर्म राजन के इलाज की तरफ आरड हो अर्थात् मियत कोहला परे और जय मवाद के हटाने वाली दवाओं का रेप करें जिससे पदाचित मयाद हट जाये और जप कई दिन पीज और जाता रहेगी होने लगे तो जो कुछ कफबारी खांसी वर्लन दिया गया है। अर्यापारा और मवाद का निकासना यही इस दूसरे प्रकार के रोग में पाम में शा और जूफा, अमीर या मैथी का वादा दिवावें और भोजन ग्रामसेवा पानी, जी का पानी, गैर का पानी, गृह की हसी पा सीरा शाद और पी सपा और जो मयाद रफा हुआ हो तो मानपद्मा, सुनना पैदा इटी १ तोले और ५ दाने अमीर पानी में औऔर में अ मस्सास विना पार्ट टाल्दें और निफर बादाम का तेल मियर विमानें
कालु आव पतले जुल्लाव के साथ ठहग २ कर पिवावें और गुनगुने पानी में छाती और पसलियों पर तरेदादें जिससे दबास समानता से आये और जो दर्द होतो भी थम जायगा [लाभ ] जबकि मुजन में पीर पहनाय और ने का समय समपि आये तो श्वास का रुक्कर आना, छाती का भारापन और दर्द विशेष होजाय और जिसदिन पूजाय तो उवर जाने से आयें फिर जो अच्छी तरह से मवाद न निकला हो तो पीव के निकालने में परिश्रम परें जैसा कि नफ्सउलमिद्दा [ थूकमें पवि आना ] में वर्णन किया गया है और इसप्रकरण के अन्त में भी वर्णन किया जायगा और जानना चाहिये कि बहुधा ऐसा होता है कि फेंफडेकी सृजन बहुत पकजाने से पहले किसी कारण से जैसा बहुत क्रोध, कठिन परिश्रम, उबकाई लेना आदि कर्मो से फूटजाय और फेवल खून वा कधी पीच के साथ आने लगे तो इस सूरत में उसी समय फस्ट खोलनी चाहिये और सुखमें खुन आने के इलाज की तरफ आरुढं होना चाहिये । दूसरा भेद वह है कि सुजन का मवाद सादा अर्थात् बेसडा हुआ फफहो तो लुभव की अधिकता चहरेपर लाली पा न होना, दवारा विशेष तग होना, छाती की गर्मी का कम होना, और मुख भरभराया हुआ दिखाई देना और ज्वर तथा भारापन या गट होना ये होते है और जानना चाहिये फि भीतर के अगों की कोई सुजन बिना उचर के नहीं होती परन्तु विशेषता और न्यूनता मवादके अनुसार होती है और भी ऐसा होता है कि फेंफड़े में पानी कोसी तरीही हो जाती है और रोगी की दमानरन्थर वाले फांसी होनाय और उपर हर समय रहने लगे। आरम्म
में गर्म राजन के इलाज की तरफ आस्ट हो अर्थात् मियत को हम परें और जय मवाद के हटाने वाली दवाओं पा रेप करें जिससे पदाचित मचाद इट जाये और जय कई दिन पी जांप और यर जाता रहेगी होने लगे तो जो कुछ कफबारी खांसी वर्लन किया गया है। अर्यादाना और मवाद का निकालना पही इस दूसरे प्रकार के रोग में काम में और जुफा, अमीर मेथीका पाटा दियाबें और भोजन बावापानी, जी का पानी, गैह पा पानी, गेहू की इसी पा सीरा शहद और पी साग सपा और जो मयाद रफा हुआ हो तो मानपक्षा, सुनना पैदा ५० इटी १ नोले और 4 दाने अमीर पानी में और में मस्साथ दिवना पाल्दें और नर बादाम का देल र विमानें
(तिब्ब अफचर )
लाभदायक हैं और कभी इन चटनियों में कोई ज्ञानशक्ति के नष्टकरने वाली वस्तु मिलालेते हैं जैसे खशखाश की छाल और खुगसानी अजवायन जिससे स सी एकजाती है और जब मचाद बिलकुल पकगया हो तो उसके फोडने का उपाय करें और यह इस प्रकार का होता है कि लननी का घूम करें और मुख खोलकर उस पर रक्खें जिससे धूआं गले में पहुंचे और रोगी को इस पर बैठना और उसके मूहों को जोर से हिलाना, मछली का शोरुना पीना यारज फयकरा और इन्द्रायन के गूदे की गोलियां बनाकर रात के समय में रखना जिससे धीरे २ पानी होफर गले में जाय और होंगे, जावशीर के साथ डालकर देना इससे लाभदायक है और राई को शहद के पानी में देंनाभी ठीक है और कोई २ हकीम खाने के पीछे वमन परादेते हैं जिससे उसकी गति से सूजन फूट जाय परन्तु उसमें भयो क्योंकि कदादि विशेष खोलदे और मवाद को एक साथ हटाये और गलासूम जाप । जानना चा हिये कि पुराने हकीम पकाने वाले और खोलने वाले उपाय सात दिव पीछे काम में लाये है परन्तु ज्ञानवान हकीम को चाहिये कि ऐसे मार्ग में न चले कि गिरपढे किंतु ऐसी सावधानी करें जिससे गर्मी और मूजन विशेष न हो और रोग पर रोग न चढ़ और जर सूजन सुलमाग और पीय आने लगे और रोगी को अपने देश में इलफापन मालूम हो तो छाती के साफ फरने के लिये जो कुछ तर खांसी और श्वास के तग आने में वर्णन किया गया है और धूक में पीव आने में वर्णन हो चुका है काम में लाने और उचित है कि फेंफड़े की पीव, मिगर की रगर्क द्वारा निगरमें जाय और यहां से मलमूत्र के द्वारा निकल जाय जैसा कि छानी में पीव के बद होने के विषय में इसका वर्णन आरंगा ।
सिक अर्थात फेंफड़े में पीय पढजाने का वर्णन । जानना चाहिये कि यह रोग उन लोगों को उत्पन होता है जिनके दि माग से घेपदार स्तूपरों फेंफड़े पर गिरती रहती है यह दवा विशेष खांसी उत्पन्न करता है और जो घाव पेफड़े में उत्पन्न होना है तो रूप अच्छा होता है। यह रोग बहुत दिनों तक रहता है और कमी तरण अपरगा तक बाफी रहता है। यह रोग उडे उघरी देशों में गर्मी तथा माई की ऋतु में और पूर्वी देशों में सरीफ की ऋतु में उत्पन्न होता है और प
( तिब्द अकबर )
लाभदायक है और कभी इन चटनियों में कोई शनशक्ति के नष्टकरने वाली वस्तु मिळालेते हैं जैसे खशखाश की छाल और खुगसानी अजवायन जिससे स सी एकजाती हैं और जब मवाद बिलकुल पकगया हो तो उसके फोड़ने का उपाय करें और यह इस प्रकार का होता है कि लुननी का करें और मुख खोलकर उस पर स्वखें जिससे धूआं गले में पहुंचे और रोगी को इसी पर बैठना और उसके मूढों को जोर से हिलाना, मछली का शोरूषा पीना पारज फयकरा और इन्द्रायन के गूदे की गोलियां बनाकर रात के समय ख में रखना जिससे धीरे २ पानी होफर गले में जाय और हींग, जावशीर के साथ डालकर दैना इससे लाभदायक है और राई को शहद के पानी में हैनाभी ठीक है और कोई २ हकीम खाने के पीछे वमन फरादेते है जिससे उसकी गति से सूजन फूट जाय परन्तु उसमें भयदै क्योंकि कदाचिद् विशेष खोलदे और मत्राद को एक साथ हटाये और गलाज जाप । जानना था दिये कि पुराने हकीम पकाने वाले और खोलने वाले उपाय सात दिन के पीछे काम में लाये है परन्तु ज्ञानवान हकीम को चाहिये कि ऐसे मार्ग में न घले कि गिरपढे किंतु ऐसी सावधानी करें जिससे गर्मी और मूजन विशेष न हो और रोग पर रोग न चढ़ और जर सूजन सुलमाग और पीय आने लगे और रोगी को अपने देश में इलफापन मालूम हो तो छाती के साफ फरने के लिये जो कुछ तर खांसी और श्वास के तग आने में वर्णन किया गया है और धूक में पीव आने में वर्णन हो चुका है काम में लायें और वचित है कि फेंफडे की पीव, मिगर की रगर्क द्वारा निगरमें जाप और मां से मलमूत्र के द्वारा निकल जाय जैसा कि छानी में पीव के बद होने के विषय में इसका वर्णन आउँगा ।
सिक अर्थात फेंफड़े में पीय पढजाने का वर्णन । जानना चाहिये कि यह रोग उन लोगों को उत्पन्न होता है जिनके दि माग से घेपदार स्तूप फेंफड़े पर गिरती रहती है यह दवा विशेष खांसी उत्पन्न करता है और जो घाव पेफड़े में उत्पन्न होता है तो कम होता है। यह रोग बहुत दिनों तक रहता है और कमी तरण अपरमा तक पाफी रहता है। यह रोग उडे चघरी देशों में गर्मी तथा आहे की तु और पूर्वी देशों में सरीफ की ऋतु में उत्पन्न होता है और न |
8cbbf0b2560cb74c10fc8beb3ef4ca893345ab0f | web | चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश के वाराणसी के राजातालाब तहसील के गंजारी में 32 एकड़ में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनेगा, जिसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
- वाराणसी में बनने वाला यह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम पीपीपी मॉडल पर संचालित होगा। इसका निर्माण भी इसी तर्ज पर कराया जाएगा। ईपीसी मॉडल पर निर्माण के लिये यूपीसीए की ओर से निर्माण कंपनी के चयन हेतु टेंडर भी जारी कर दिया गया है।
- ईपीसी यानी इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड डिजाइन (इंजीनियरिंग, सामानों की खरीद और डिजाइन) मोड पर काम के लिये कंपनी का चयन किया जाएगा।
- ऑनलाइन जारी टेंडर में कंपनियाँ यूपीसीए की वेबसाइट पर ऑनलाइन बोली लगा सकती हैं। बोली लगाने वाली कंपनियों को सुरक्षा राशि के तौर पर पाँच करोड़ रुपए जमा करने होंगे।
- टेंडर की शर्त के अनुसार जिस भी कंपनी का चयन किया जाएगा, उसे 30 महीने यानी ढाई साल में स्टेडियम का निर्माण पूरा कर यूपीसीए को हैंडओवर करना होगा।
- इस स्टेडियम की क्षमता 30 हज़ार दर्शकों की होगी। स्टेडियम निर्माण में करीब 400 करोड़ रुपए खर्च होगा।
- विदित है कि हाल ही में बीसीसीआई सचिव जय शाह और उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला के साथ विशेषज्ञों ने प्रस्तावित ज़मीन का निरीक्षण भी किया था।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण के चेयरमैन संजय बंधोपाध्याय ने बताया कि केरल में देश की पहली वाटर मेट्रो की तर्ज पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी के नमो घाट (सबसे उत्तर) से अस्सी घाट (सबसे दक्षिण) के बीच वाटर टैक्सी भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) और पर्यटन विभाग के सहयोग से चलाई जाएगी।
- यह टैक्सी वाराणसी के सभी 80 घाटों के एक किनारे से दूसरे किनारे तक चलेगी। बीच में इसके लिये चार स्टेशन बनाए जाएंगे। सभी घाटों पर जलमार्ग प्राधिकरण फ्लोटिंग जेटी उपलब्ध कराएगा। इससे लोगों का टैक्सी में चढ़ना और उतरना आसान हो जाएगा।
- इस वाटर टैक्सी का इस्तेमाल न सिर्फ परिवहन के लिये किया जा सकेगा बल्कि लोग बनारस के खूबसूरत घाटों का नज़ारा भी इससे ले सकेंगे।
- ज्ञातव्य है कि अभी बनारस में क्रूज और कार्गो का संचालन हो रहा है। इसका इस्तेमाल केवल पर्यटक ही करते हैं। लेकिन वाटर टैक्सी का इस्तेमाल बनारस के लोग सड़क पर जाम से छुटकारे के लिये भी कर सकेंगे।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल में देश की पहली वाटर मेट्रो का शुभारंभ किया।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने बिहार में 454 किलोमीटर के चार नये फोरलेन को मंजूरी दे दी है। ये फोरलेन विभिन्न इलाकों से होकर गुज़रेंगे।
- भारत नेपाल सीमा से सटे वाल्मीकिनगर से झारखंड सीमा के हरिहरगंज तक बिहार में 454 किलोमीटर का एक नया फोरलेन होगा। ये फोरलेन पटना के नौबतपुर से हरिहरगंज तक 143 किलोमीटर नेशनल हाईवे 98 को केंद्र ने फोरलेन में कनवर्ट करने की मंजूरी दी है।
- विदित है कि अभी नेशनल हाईवे 98 की चौड़ाई कुल दो लेन की है। इस हाइवे पर गाड़ियों का दबाव बहुत ज्यादा है। सोन नदी के पूर्वी छोर से बिल्कुल पास होकर गुज़रता ये नेशनल हाइवे बिक्रम-अरवल-औरंगाबाद और अंबा होते हुए हरिहरगंज तक जाता है।
- झारखंड राज्य के पश्चिमी छोर के गढ़वा - डालटेनगंज और छत्तीसगढ़ तक जाने वालों के लिये ये एक बिल्कुल सुगम रास्ता है, जिसकी वजह से इस हाईवे पर गाड़ियों का दबाव लगातार बना रहता है।
- जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने अब इस नेशनल हाईवे को 4 लेन बनाने के लिये डीपीआर तैयारी करने की मंजूरी दी है। साथ ही इसके लिये एक करोड़ 38 लाख की राशि भी स्वीकृत कर ली गई है।
- पटना से बेतिया तक पाँच हज़ार छह सौ करोड़ की लागत से 195 किलोमीटर लंबा फोरलेन हाईवे का निर्माण शुरू है। ये नेशनल हाईवे बुद्ध सर्किट का मुख्य हिस्सा है। इसी हाईवे के किनारे केसरिया का बौद्ध स्तूप भी है।
- जेपी सेतु के बगल में पटना के दीघा से सोनपुर के बीच दो हज़ार 636 करोड़ की लागत से सवा तीन साल में बनने वाले 6 लेन ब्रिज का टेंडर हो चुका है। इसके अलावा सोनपुर मानिकपुर में गंडक नदी पर सारण के कोन्हारा घाट से वैशाली के जलालपुर के बीच पुल बनाने के लिये 868 करोड़ का टेंडर हो चुका है। जिन हिस्सों का टेंडर होना बाकी है, उसमें मानिकपुर से साहेबगंज, साहेबगंज से अरेराज, अरेराज से बेतिया शामिल हैं। इन तीनों हिस्सों की कुल लागत दो हज़ार 159 करोड़ होने वाली है।
- इस नये फोरलेन के बनते ही वाल्मीकिनगर से हरिहरगंज तक का सफर 11 घंटे से घटकर मात्र 6 घंटे का रह जाएगा। इसके अलावा झारखंड के पश्चिमी इलाके पलामू, चपतरा से नेपाल पूरी तरह सीधी तौर पर जुड़ जाएगा। इससे ढुलाई में काफी सुविधा होगी। इसका लाभ बिहार और झारखंड के व्यापारियों को होगा।
- ये लेन आगे वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे से भी सीधे जुड़ जाएगी। जिससे व्यापारियों को माल ले जाने और ले आने में सुविधा होगी। इसके अलावा सिलीगुड़ी और असम की तरफ जाना पहले से ज्यादा आसान हो जाएगा।
- सोनपुर से अरेराज तक गंडक नदी के पश्चिमी किनारे की तरफ भी फोर लेन का निर्माण होगा, जिससे सारण कमिश्नरी के दो ज़िले सारण और गोपालगंज के दियारा इलाके में आवागमन सुगम होगा।
चर्चा में क्यों?
- 24 अप्रैल, 2023 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर ज़िले की महापुरा ग्राम पंचायत से महंगाई राहत शिविरों का शुभारंभ किया। उन्होंने शिविर में लाभार्थियों को मुख्यमंत्री गारंटी कार्ड प्रदान किये।
- गौरतलब है कि 23 अप्रैल, 2023 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने निवास पर महंगाई राहत कैंप के पंजीकरण पोर्टल एवं वेबसाइट का लोकार्पण एवं महंगाई राहत कैंप की दिशा-निर्देश पुस्तिका का विमोचन किया था।
- आमजन को महंगाई से राहत देने के लिये प्रदेश भर में महंगाई राहत शिविरों की शुरुआत की गई है। इन महंगाई राहत शिविरों में रजिस्ट्रेशन करवाकर आम लोग राज्य सरकार की 10 प्रमुख जनकल्याणकारी योजनाओं से सीधे तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं।
- प्रदेश के सभी ज़िलों में 30 जून तक ये महंगाई राहत शिविर आयोजित होंगे।
- इन महंगाई राहत शिविरों में मुख्यमंत्री गैस सिलेंडर योजना, मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना (घरेलू), मुख्यमंत्री निशुल्क कृषि बिजली योजना, मुख्यमंत्री निशुल्क अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना, मुख्यमंत्री ग्रामीण रोज़गार गांरटी योजना, इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, मुख्यमंत्री चिरंजीवी दुर्घटना बीमा योजना एवं मुख्यमंत्री कामधेनु पशु बीमा योजना से अधिकाधिक लोगों को जोड़ा जा रहा है।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को द ग्रेट इंडियन ट्रेवल बाज़ार (जीआईटीबी 2023) के 12वें संस्करण का समापन राजस्थान के सीतापुर स्थित जयपुर एक्जीबिशन एंड कन्वेंशन सेंटर (जेईसीसी) में हुआ।
- तीन दिवसीय जीआईटीबी का आयोजन राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग, भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
- इस आयोजन में होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (एचआरएआर), इंडियन हेरिटेज होटल्स एसोसिएशन (आईएचएचए.) और राजस्थान एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स (राटो) जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एसोसिएशन शामिल हुए।
- इस मेगा इवेंट में 56 देशों के करीब 283 प्रमुख इनबाउंड फॉरेन टूर ऑपरेटर्स (एफटीओ) ने विदेशी खरीदारों के रूप में भाग लिया।
- दो दिनों के दौरान करीब 11,000 बी2बी बैठकें आयोजित हुईं। मार्ट में राजस्थान सहित 9 राज्यों के राज्य पर्यटन बोर्ड शामिल हुए।
- इस अवसर पर राजस्थान एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स (राटो) के प्रेसिडेंट महेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि आने वाले बायर्स के लिये फैम टूर्स भी आयोजित किये गए हैं, जिनमें कुल 60 टूर ऑपरेटर्स शामिल होंगे। ये तीन यात्रा कार्यक्रम हैं- जयपुर-जोधपुर-जैसलमेर-बीकानेर; जयपुर-सरिस्का-रणथंभौर और जयपुर-उदयपुर-देवगढ़-पुष्कर।
- ग्रेट इंडियन ट्रैवल बाज़ार में देश के कुछ राज्यों की ओर से लगाए गए स्टेट पवैलियन में अपनी-अपनी पर्यटन विशेषताओं की जानकारी दी गई, जिसमें राजस्थान, उत्तराखंड, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और तमिलनाडु कुछ प्रमुख राज्य हैं।
- यहाँ राज्य की सफारी, रूरल टूरिज्म, नए होटल्स, हेरिटेज होटल्स एवं साइट्स और फेयर फेस्टिवल को प्रमोट किया गया।
- जीआईटीबी के 12 वें संस्करण में 'इनबाउंड टूरिज्म इन इंडिया - अनलॉकिंग द पोटेंशियल' पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई।
- फिक्की और नांगिया एंडरसन एलएलपी द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारत में इनबाउंड टूरिज्म के वर्तमान परिदृश्य के बारे में ध्यान आकर्षित करना है। रिपोर्ट में क्रूज टूरिज्म और एडवेंचर टूरिज्म से लेकर गोल्फ और पोलो टूरिज्म के साथ-साथ फिल्म टूरिज्म और रूरल टूरिज्म पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।
- देश में पर्यटन के भविष्य पर प्रकाश डालते हुए, रिपोर्ट कुछ प्रमुख कदमों की भी जानकारी प्रदान करती है, जो भारतीय पर्यटन उद्योग के विकास में तेजी लाने के लिये उठाए जा सकते हैं। इनमें वीजा प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, सुरक्षा संबंधी समस्याओं को दूर करना, सस्टेनेबल टूरिज्म को बढ़ावा देना, उपयुक्त पर्यटन पेशकशों को विकसित करना, प्राइवेट सेक्टर्स के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना, आदि शामिल हैं।
- यह रिपोर्ट भारत में इनबाउंड टूरिज्म के वर्तमान परिदृश्य, इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा की जा रही पहलों, भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए विभिन्न विशिष्ट पर्यटन उत्पादों, भारत की जी-20 पर्यटन प्राथमिकताओं और पर्यटन क्षेत्र के संबंध में विजन 2047 पर प्रकाश डालती है।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने बताया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देशानुसार मध्य प्रदेश नगर पालिका (व्यापार अनुज्ञापन) नियम-2023 नियम के क्रियान्वयन को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है।
- विदित है कि नगरीय विकास एवं आवास विभाग द्वारा 21 अप्रैल, 2023 को प्रदेश के नगरों की सीमाओं के भीतर व्यापार करने के विनियमन के लिये मध्य प्रदेश नगर पालिका (व्यापार अनुज्ञापन) नियम-2023 अधिसूचित किया गया था।
- इन नियमों के लागू होने के पहले जिन नगरीय निकायों द्वारा मध्य प्रदेश नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 अथवा मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनयम 1961 के प्रावधानों के अनुसार निकाय स्तर पर व्यापार विनियमन के लिये व्यापार अनुज्ञप्ति (ट्रेड लायसेंस) जारी करने के लिये शुल्क निर्धारित करके नियम लागू किये गए हैं, वह पूर्वानुसार लागू रहेंगे।
- उल्लेखनीय है कि नवीन नियमों के प्रकाशित होने के बाद विभिन्न नगरों के संबद्ध व्यवसायियों, व्यापार समूहों एवं निकायों के स्थानीय जन-प्रतिनिधियों द्वारा नियमों में विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया था।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में पन्ना ज़िले की दो सिंचाई परियोजना- रुंझ मध्यम सिंचाई परियोजना और मझगांव मध्यम सिंचाई परियोजना को पुनर्रीक्षित स्वीकृति दी गई।
- रुंझ मध्यम सिंचाई परियोजना में सिंचाई का क्षेत्र 14 हजार 450 हेक्टेयर है। परियोजना के लिये 513 करोड़ 72 लाख रुपए स्वीकृत किये गए हैं।
- रूंझ मध्यम सिंचाई परियोजना से अजयगढ़ तहसील के 47 गाँवों को 14 हजार 450 हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा का लाभ मिलेगा।
- इसी प्रकार मझगांव मध्यम सिंचाई परियोजना में सिंचाई का क्षेत्र 1360 हेक्टेयर है। परियोजना के लिये 693 करोड़ 64 लाख रुपए स्वीकृत किये गए हैं।
- मझगांव मध्यम सिंचाई परियोजना से पन्ना ज़िले के अजयगढ़ तहसील के 38 गाँवों को 1360 हेक्टेयर में सिंचाई का लाभ मिलेगा।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को हरियाणा के बिजली मंत्री चौधरी रणजीत सिंह ने बताया कि राज्य सरकार की बेहतरीन नीतियों की बदौलत प्रदेश की दोनों बिजली वितरण कंपनियों ने राष्ट्रीय स्तर पर ए+ ग्रेड हासिल कर श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
- इस उपलब्धि में 'बिजली चोरी पकड़ो अभियान'एवं 'म्हारा गाँव जगमग गाँव'योजना का विशेष योगदान रहा है, क्योंकि इनसे बिजली कंपनियों के राजस्व में काफी बढ़ोतरी हुई है।
- उल्लेखनीय है कि केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने हाल ही में बिजली वितरण कंपनियों की 11वीं एकीकृत वार्षिक रिपोर्ट जारी की है जिसमें हरियाणा की दोनों बिजली वितरण कंपनियों (यूएचबीवीएन और डीएचबीवीएन) ने पिछली एकीकृत वार्षिक रिपोर्ट में सुधार करते हुए अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है।
- वर्तमान रिपोर्ट में भारत भर से 43 राज्य डिस्कॉम, 8 निजी डिस्कॉम और 12 बिजली विभागों को शामिल किया गया था।
- बिजली वितरण निगमों के चेयरमैन पी.के. दास ने बताया कि यूएचबीवीएन और डीएचबीवीएन दोनों को ए+ ग्रुप में रखा गया है। डीएचबीवीएन ने अपने मूल्यांकन में 85.71 से 89.30 तक सुधार किया है और इसे 9वें स्थान पर रखा गया है।
- इसके अलावा यूएचबीवीएन ने अपने मूल्यांकन में 74.70 से 87.60 तक सुधार किया है और इसे 10वें स्थान पर रखा गया है।
- यूएचबीवीएन ने पिछली रेटिंग में सुधार करते हुए 14वें स्थान से 10वाँ स्थान हासिल किया है। इसी प्रकार डीएचबीवीएन ने पिछली रेटिंग में सुधार करते 12वें स्थान से 9वाँ स्थान हासिल किया है।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को झारखंड के जामताड़ा ज़िले के कृषि पदाधिकारी रंजीत कुमार मंडल ने बताया कि जामताड़ा ज़िले की हर पंचायत में स्वचालित वर्षामापी यंत्र लगाने के लिये कृषि विभाग द्वारा तैयारी शुरू कर दी गई है, जिससे अब मौसम की सटीक जानकारी मिल सकेगी।
- वर्षामापी यंत्र लगाने के लिये पंचायतों में ज़मीन चिह्नित करने के लिये प्रखंड कृषि पदाधिकारी को नोडल पदाधिकारी बनाया गया है। नारायणपुर के 25 पंचायतों में यह यंत्र लगाया जाएगा।
- पंचायतों में स्वचालित वर्षामापी यंत्र लग जाने से बाढ़, चक्रवाती तूफान आदि की पूर्व जानकारी हासिल करने में सहायता मिलेगी।
- विदित है कि वर्तमान समय में नारायणपुर प्रखंड कार्यालय परिसर में एक वर्षामापी यंत्र है, जिसकी सहायता से प्रखंड में हुई वर्षा को मापा जाता है।
- जानकारी के अनुसार, प्रत्येक पंचायत में निजी भूमि पर भी यंत्र लगाने का प्रस्ताव है, ताकि यंत्र की देखभाल सही तरीके से हो सके। पंचायत स्तर पर यंत्र लग जाने से खासकर वर्षा की सटीक जानकारी मिल सकेगी।
- ज्ञातव्य है कि अभी प्रखंड स्तर पर ही यंत्र लगाया गया है, जिससे पंचायतों में होने वाले वर्षापात का सटीक पता नहीं लग पाता है।
- स्वचालित वर्षामापी यंत्र लगाने से सबसे अधिक लाभ किसानों को मिलेगा। सुखाड़ या कम वर्षापात की स्थिति में सरकार को यह जानकारी हासिल करने में परेशानी होती थी कि कहाँ के किसान अधिक प्रभावित हुए हैं। एजेंसी द्वारा आकलन कराने में समय भी अधिक लगता था तथा वह शत-प्रतिशत सही भी नहीं हो पाता था। लेकिन, वर्षामापी यंत्र लग जाने से सुखाड़ वाले पंचायतों की सटीक जानकारी मिल सकेगी तथा उस हिसाब से किसानों को मुआवज़ा दिया जा सकेगा।
चर्चा में क्यों?
25 अप्रैल, 2023 को झारखंड के गुमला ज़िले के पुलिस अधीक्षक डॉ. एहतेशाम वकारीब ने बताया कि गुमला राज्य का पहला ज़िला बना है जहाँ बीट पुलिसिंग के तहत काम हो रहा है, जिसके तहत 250 क्यूआर कोड बेस्ट सिस्टम लगाकर क्षेत्र में निगरानी रखी जा रही है।
- विदित है कि शुरुआती दौर में ज़िले के शहरी क्षेत्रों में इसका उपयोग किया गया। वर्तमान में ज़िले के सभी पंचायत भवनों में क्यूआर कोड लगाया गया है। जहाँ पर प्रतिनियुक्त पुलिस पदाधिकारी द्वारा शहरी क्षेत्र में दिन में तीन बार तथा ग्रामीण इलाकों में सप्ताह में दो बार बाँटे गए बीट क्षेत्र में पहुँचकर निगरानी रखी जा रही है, जिससे क्षेत्र में अपराध नियंत्रण में है।
- पुलिस अधीक्षक डॉ. एहतेशाम वकारीब ने बताया कि गुमला पुलिस ने नक्सल प्रभावित गाँव के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की पहल की है। इसके तहत नक्सल पीड़ित गाँव के 40 युवाओं को पारा मिलिट्री व पुलिस में बहाली में भाग लेने के लिये ट्रेनिंग दी जा रही है। यह ट्रेनिंग पुलिस लाइन चंदाली में चल रही है।
- इसके अलावा अंधविश्वास से जकड़े गुमला ज़िला में एसपी की पहल पर जोहार कॉप के तहत डायन बिसाही पर वार किया जा रहा है। गाँव-गाँव में डायन बिसाही को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
- जोहार कॉप कार्यक्रम के तहत विभिन्न थाना क्षेत्रों में सड़क सुरक्षा, बाल मजदूर, डायन बिसाही, नशापान, बाल-विवाह, साइबर क्राइम से संबंधित जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
- गुमला ज़िले के घाघरा, सिसई व चौनपुर थाना में पुस्तकालय का निर्माण होगा, जिसके लिये एसपी ने पहल शुरू कर दी है।
- दोस्ताना पड़ोस पुलिस प्रोजेक्ट के तहत ज़िले के सभी थानों का सुंदरीकरण किया जा रहा है, जिसमें गार्डन का निर्माण, स्वागत कक्ष, आम जनों के बैठने एवं पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत चैनपुर एवं रायडीह थाना में गार्डन का निर्माण किया गया है। यहाँ पर आमजनों की समस्याओं को सुनी जाती है।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार प्रसिद्ध आर्टिस्ट श्याम विश्वकर्मा की टेराकोटा पेंटिंग्स जल्द ही झारखंड हाईकोर्ट की शान बढ़ाएगी। सरकार से मिले निर्देश के आलोक में श्याम विश्वकर्मा इसके लिये पूरी तैयारी के साथ जोर-शोर से जुटे हुए हैं।
- विदित है कि श्याम विश्वकर्मा की तकरीबन एक दर्जन से अधिक बड़े साइज की टेराकोटा पेंटिंग राँची में नये विधानसभा के सामने निमार्णाधीन हाईकोर्ट भवन में लगाया जा रहा है। इन पेंटिंग्स के साथ-साथ श्याम विश्वकर्मा द्वारा बनाए गए कानून की देवी प्रतिमा भी हाईकोर्ट को सुशोभित करेगी।
- इसके अलावा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के राँची ब्रांच को भी श्याम विश्वकर्मा की पेंटिंग से सुशोभित किया जा रहा है। यहाँ भी श्याम विश्वकर्मा के करीब डेढ़ दर्जन टेराकोटा पेंटिंग्स लगेंगे।
- हाईकोर्ट भवन में लगने वाले सारे पेंटिंग्स आदिवासी लोककला सोहराय, जादू पेटिया, झारखंड का पर्यटन स्थल इत्यादि से संबंधित होगा।
- हाल में ही श्याम विश्वकर्मा का संकल्प से सफलता की ओर इंगित टेराकोटा के कई पेंटिंग को कोल इंडिया आसनसोल, पश्चिम बंगाल में लगाया गया है।
- दिसंबर 2022 में भी साहिबगंज के श्याम विश्वकर्मा की लगभग 150 पेंटिंग झारखंड सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में लगाई गई थी।
- झारखंड की खुशहाली और हरियाली का संदेश देने वाले उक्त सभी पेंटिंग के माध्यम से झारखंड की कला और संस्कृति को भी बखूबी दर्शाने का प्रयास किया गया है। झारखंड की विलुप्त हो रही लोककला जादू पेटिया और टेराकोटा पेंटिंग के माध्यम से खुशहाल झारखंड का संदेश दिया गया है।
- गौरतलब है कि देशभर में कला और पेंटिंग की दुनिया में साहिबगंज के श्याम विश्वकर्मा का एक जाना-पहचाना नाम है। श्याम विश्वकर्मा की पेंटिंग भारत सरकार के कई मंत्रालयों में सुशोभित है। देश की राजधानी दिल्ली में स्थिति झारखंड भवन को भी श्याम विश्वकर्मा अपनी कला से एक अलग पहचान दे चुके हैं।
- अब श्याम विश्वकर्मा की कृति केवल साहिबगंज या झारखंड तक सीमित नहीं है। देश के अलावा अमेरिका, कनाडा और डेनमार्क जैसे देशों में इनकी कृति और यश पहुँच चुकी है। श्याम विश्वकर्मा की तकरीबन डेढ़ दर्जन पेंटिंग्स अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थापित एक म्यूजियम की शान बढ़ा रहा है।
- उल्लेखनीय है कि श्याम विश्वकर्मा ने पहली वर्ष 2006 में दिल्ली में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय व्यापार मेला में लगी कला प्रदर्शनी से देशभर में अपनी पहचान बनाई। यहाँ टेराकोटा कला पर लगी उनकी एक दर्जन पेंटिंग्स को भारत सरकार ने खरीद लिया था, जो भारत सरकार के कृषि एवं अन्य मंत्रालयों में अब भी सुशोभित है।
- राँची प्रोजेक्ट भवन में लागू झारखंड की सबसे ऊँची प्रतिमा श्याम विश्वकर्मा द्वारा ही तैयार की गई है। टेराकोटा पेंटिंग के उत्थान के लिये वे झारखंड सरकार से पुरस्कृत भी हुए हैं। वर्ष 2018 में हुए अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में भी श्याम विश्वकर्मा देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
चर्चा में क्यों?
- 23 अप्रैल, 2023 को छत्तीसगढ़ वेटरन टेबल टेनिस कमेटी ने जालंधर में शुरू हो रही 29वीं नेशनल मास्टर्स टेबल टेनिस चैंपियनशिप में भाग लेने के लिये राज्य की टीम की घोषणा की।
- विदित है कि 29वीं नेशनल मास्टर्स टेबल टेनिस चैंपियनशिप का आयोजन 24 से 30 अप्रैल तक जालंधर में हो रहा है।
- छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष शरद शुक्ला ने बताया कि प्रत्येक वर्ग में खिलाड़ियों का चयन किया गया है।
- घोषित टीम के खिलाड़ी हैंः
- आयु वर्ग 40: पुरुष- निखिल बानी (रायपुर), महिला- शिखा खांडे हुसैन (बिलासपुर)
- आयु वर्ग 50 (क): पुरुष- राजेश अग्रवाल, कप्तान (रायपुर), संजय लहेजा (बिलासपुर), सुरेश शादिजा (रायपुर), रितेश मल्होत्रा (रायपुर)
- आयु वर्ग 50 (बी): पुरुष- अरविंद कुमार शर्मा, कैप्टन (रायपुर महानगर), गिरिराज बागड़ी (रायपुर), विधानदीप मिश्रा (रायपुर), विनय केजरीवाल (रायपुर महानगर)।
- आयु वर्ग 60: पुरुष- पवन शादीजा, कैप्टन (रायपुर), शेन स्टीफेन (रायपुर), सुशांत बोरवंकर (रायपुर), के. रविशंकर (बिलासपुर), जे.एम. राठौड़ (रायपुर महानगर)।
- आयु वर्ग 65: पुरुष- प्रदीप जनवाडे, कप्तान (रायपुर), आर.एन. केलकर (दुर्ग), ए.एन. राव (बिलासपुर)
- आयु वर्ग 65: महिला- गौरी डे, कप्तान (बिलासपुर), इरा पंत (रायपुर), सरबरी मोइत्रा (बिलासपुर)।
- टीम के कोच रविशंकर (बिलासपुर) तथा मैनेजर अरविंद कुमार शर्मा (रायपुर महानगर) हैं। राज्य से अजीत बनर्जी (रायपुर) और जया साहू (राजनांदगाँव) अंपायर होंगे।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी ने छत्तीसगढ़ को आवास निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिये पुरस्कृत किया।
- हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (हडको), नई दिल्ली के 53वें स्थापना दिवस के अवसर पर आवास निर्माण के क्षेत्र में अभिनव प्रयास एवं उत्कृष्ट योगदान के लिये राज्य शहरी विकास अभिकरण छत्तीसगढ़ (State Urban Development Agency (SUDA) को सम्मानित तथा पुरस्कृत किया गया।
- दिल्ली में आयोजित इस समारोह में सूडा के सीईओ सौमिल रंजन चौबे ने यह पुरस्कार ग्रहण किया।
- उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) अंतर्गत प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में सभी के लिये आवास उपलब्ध कराने का कार्य मिशन मोड में किया जा रहा है। वर्तमान में राज्य शहरी विकास अभिकरण (सूडा) द्वारा राज्य के समस्त 33 ज़िलों के सभी 170 नगरीय निकायों में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) सबके लिये आवास मिशन का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
- योजना अंतर्गत अब तक 2 लाख 62 हज़ार से अधिक आवासों की स्वीकृति प्राप्त है, जिसमें अब तक 1 लाख 40 हज़ार घरों को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया गया है एवं शेष आवासों का निर्माण कार्य किया जा रहा है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) सबके लिये आवास मिशन के क्रियान्वयन में अद्यतन लगभग 42 सौ करोड़ का व्यय किया जा चुका है।
- आबादी भूमि पर निवासरत परिवारों को आवास निर्माण हेतु अधिकार प्रमाण-पत्र का वितरण एवं आवासीय पट्टों का नवीनीकरण।
- योजना में बन रहे समूह आवासों को शासन द्वारा रेरा पंजीयन में छूट प्रदान की गई।
- शासन द्वारा निर्माणाधीन आवासों के पर्यवेक्षण हेतु ख्याति प्राप्त सलाहकार संस्थाओं एवं वास्तुविदों की नियुक्ति की गई।
- 'मोर मकान-मोर आस' योजना में समूह आवासों के माध्यम से किराये में निवासरत शहरी गरीबों को योजना में शामिल करने का अभूतपूर्व निर्णय शासन द्वारा लिया गया। इससे शहरी क्षेत्रों के लगभग 25 से 30 हज़ार आवासहीन किरायेदारों को आवास प्रदान किया जा रहा है।
- नक्सलीय गतिविधियों से प्रभावित परिवारों को लाभ - राज्य द्वारा नगर पंचायत, अंतागढ़ में नक्सलीय गतिविधियों से प्रभावित 80 परिवारों के हितग्राहियों को सर्वसुविधायुक्त पक्का आवास उपलब्ध कराया गया।
- भारत सरकार द्वारा PMAY Awards 2019 के अंतर्गत Best State for Convergence with Other Missions में नगर निगम राजनांदगाँव, नगर पंचायत अंतागढ़ एवं नगर पंचायत गंडई को पुरस्कार प्रदान किया गया।
- भारत सरकार द्वारा PMAY Awards 2019 के अंतर्गत नगर पालिका परिषद, डोंगरगढ़ को बेस्ट परफॉर्मिंग म्युनिसिपल काउंसिल श्रेणी का पुरस्कार प्रदान किया गया।
- HUDCO Award 2019-2020 में नगर निगम राजनांदगाँव को हाउसिंग, अरबन पॉवर्टी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर की श्रेणी पुरस्कार प्रदान किया गया।
- भारत सरकार द्वारा Indian Urban Housing Conclave (IUHC) 2022 में PMAY Award, 2021 में छत्तीसगढ़ राज्य को बेस्ट कम्यूनिटी ओरिएंटेड प्रोजेक्ट्स की श्रेणी में उत्कृष्ट प्रदर्शन का पुरस्कार प्रदान किया गया।
- भारत सरकार द्वारा Indian Urban Housing Conclave (IUHC), 2022 में PMAY Awards, 2021 में नगर पंचायत पाटन को बेस्ट परफॉर्मिंग नगर पंचायत की श्रेणी में पूरे भारत में तृतीय स्थान प्राप्त हुआ।
चर्चा में क्यों?
- 25 अप्रैल, 2023 को उत्तराखंड स्वास्थ्य प्राधिकरण के अध्यक्ष डी.के कोटिया ने बताया कि केंद्र सरकार ने प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में संचालित 21 सैनिक और अर्धसैनिक अस्पतालों को आयुष्मान योजना में सूचीबद्ध कर दिया है, जिसके तहत आयुष्मान कार्डधारकों को अब सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा मिलेगी।
- विदित है कि अभी तक इन अस्पतालों में कार्यरत सैनिकों, उनके आश्रितों और पूर्व सैनिकों को इलाज की सुविधा मिलती है।
- केंद्र सरकार ने इन अस्पतालों को आम लोगों को भी आयुष्मान कार्ड पर मुफ्त इलाज की सुविधा देने के लिये योजना में शामिल किया है।
- पिथौरागढ़ में 7वीं वाहिनी आईटीबीपी मैरथी, यूनिट अस्पताल 14वीं बटालियन आईटीबीपी, चमोली में यूनिट अस्पताल प्रथम बटालियन आईटीबीपी, यूनिट अस्पताल सीटीसी एसएसबी सापरी, एमआईसी औली, एसएसबी अस्पताल ग्वालदाम, 8वीं बटालियन आईटीबीपी अस्पताल गौचर, नैनीताल में 34वीं बटालियन आईटीबीपी हल्दूचौड़, ग्रुप सेंटर सीआरपीएफ काठगोदाम, 34वीं बटालियन आईटीबीपी यूनिट अस्पताल, ऊधमसिंहनगर ज़िले में ईएसआईसी अस्पताल रुद्रपुर, पौड़ी में यूनिट अस्पताल एसएसबी श्रीनगर, देहरादून में आईटीबीपी अस्पताल को सूचीबद्ध किया गया है।
- इनके अलावा चंपावत में 5वीं बटालियन एसएसबी, 36वीं बटालियन आईटीबीपी चंपावत, उत्तरकाशी में आईटीबीपी अस्पताल 35 वाहिनी, 12वीं बटालियन आईटीबीपी यूनिट अस्पताल, हरिद्वार में बीएचईएल अस्पताल, ऊधमसिंह नगर में 57वीं बटालियन एसएसबी सितारगंज, देहरादून में आईटीबीपी अकादमिक अस्पताल मसूरी, पिथौरागढ़ में यूनिट अस्पताल को सूचीबद्ध किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि प्रदेश में आयुष्मान योजना के तहत 50.40 लाख कार्ड बन चुके हैं। आयुष्मान कार्ड पर 5 लाख रुपए तक मुक्त इलाज की सुविधा है। अब तक 7.36 लाख मरीजों को इलाज की सुविधा मिली है। इसमें 1352 करोड़ की राशि सरकार ने खर्च की है।
चर्चा में क्यों?
- 24 अप्रैल, 2023 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून के जौलीग्रांट में एसडीआरएफ के मुख्यालय और ट्रेनिंग सेंटर का लोकार्पण किया तथा इस दौरान कई अन्य महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ भी कीं।
- एसडीआरएफ का मुख्यालय बनने से प्रदेश में प्राकृतिक आपदा और विभिन्न दुर्घटनाओं के दौरान राहत एवं बचाव कार्यों में तेजी आएगी। यहाँ अन्य राज्यों की एसडीआरएफ को भी ट्रेनिंग दी जाएगी।
- एसडीआरएफ के गठन से चारधाम यात्रा और पर्यटन गतिविधियाँ सुरक्षित हुई हैं। एसडीआरएफ अब तक तीन हज़ार से अधिक रेस्क्यू कर 12 हज़ार घायलों और दो हज़ार शवों को निकाल चुकी है। विभिन्न संस्थाओं के 35 हज़ार प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण देकर ढाई लाख लोगों को आपदा राहत कार्यों के लिये जागरूक किया है।
- राज्य के डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि तीन चरणों में बन रहे एसडीआरएफ मुख्यालय का प्रथम चरण पूरा हो गया है। दूसरे चरण में 36 करोड़ की लागत से ट्रेनिंग सेंटर निर्माणाधीन है।
- विश्व बैंक पोषित परियोजना के तहत जौलीग्रांट में एयरपोर्ट के पास 144 करोड़ रुपए की लागत से एसडीआरएफ का मुख्यालय और ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया है।
- प्रथम चरण में तीन मंज़िला एडमिन ब्लॉक में रिसेप्शन, कार्यालय, प्रशिक्षण ब्लॉक और पुस्तकालय, तीन मंज़िला ट्रेनिंग ब्लॉक, डेमो रूम, कोर्स कॉडिनेटर, कंप्यूटर लैब, लेक्चर रूम, लाइब्रेरी की सुविधा है।
- इलेक्ट्रॉनिक चार्जिंग स्टेशन, गैराज और एक दर्जन से अधिक गाड़ियों के पार्किंग की व्यवस्था है। पुलिस और उनके परिजनों के लिये कैंटीन की सुविधा, फायर फाइटिंग सिस्टम, सोलर सिस्टम, फेंसिंग, वॉच टॉवर और आवासीय कॉलोनी है। पेट्रोल पंप भी है जो आम लोगों के लिये भी उपयोगी होगा।
- जोखिम भत्ता : 11 हज़ार फीट या इससे अधिक की ऊँचाई पर रेस्क्यू अभियान चलाने वाले एसडीआरएफ के राजपत्रित अधिकारियों को 1500 रुपए और अराजपत्रित अधिकारियों व जवानों को एक हज़ार रुपए जोखिम भत्ता मिलेगा। यह अर्धसैनिक बलों की तर्ज पर देय होगा। वर्तमान में केदारनाथ धाम में एसडीआरएफ के 12 अधिकारियों और जवानों की तैनाती है। इसके अलावा समय-समय पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रेस्क्यू ऑपरेशन के लिये जाना पड़ता है।
- छठी कंपनी : अब एसडीआरएफ में छह कंपनियाँ हो जाएंगी। नई कंपनी का गठन जल्द किया जाएगा। इसमें एक तिहाई महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी।
- प्रतिनियुक्ति अवधि : एसडीआरएफ में प्रतिनियुक्ति की समयावधि सात साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी जाएगी।
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c92d1d79b66248c0a8066fed0cf2e99f5deab170 | web | पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा या क़ौमी असेम्ब्ली (قومی اسمبلی; National Assembly, नैशनल असेम्ब्ली) पाकिस्तान की द्वीसदनीय संसद(मजलिस-ए शूरा), जिसका उच्चसदन सेनेट है, का निम्नसदन है। उर्दू भाषा मैं इसे कौमी इस्म्ब्ली कहा जाता हैं। इसमें कुल 342 आसन हैं, जिन में से 242 चुनाव के जरये चुने जाते हैं और बाक़ी के 70 महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। क़ौमी इस्म्ब्ली पाकिस्तान की संधीय विधायिका की वह इकाई है, जिसे जनता द्वारा चुना जाता है(यह पाकिस्तान में लोकसभा की जोड़ीदार है)। .
27 संबंधोंः नवाज़ शरीफ़, नेशनल पार्टी (पाकिस्तान), पाकिस्तान, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (शहीद भुट्टो), पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ), पाकिस्तान मुस्लिम लीग (जे), पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ाफ़, पाकिस्तान में चुनाव, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, पाकिस्तान की सेनेट, पख़्तूनख़्वा मिल्ली अवामी पार्टी, बलूचिस्तान नेशनल पार्टी, मजलिस-ए-शूरा, मुत्ताहिदा क़ौमी मूवमेंट, मुर्तज़ा जावेद अब्बासी, लोक सभा, सरदार अयाज़ सादिक़, सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, जमीयतुल उलेमा-ए-इस्लाम (ऍफ़), ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग, इस्लामाबाद, अवामी नेशनल पार्टी, अवामी जम्हूरी इत्तेहाद पाकिस्तान, उर्दू भाषा।
मियां मोहम्मद नवाज़ शरीफ़ (उर्दूः میاں محمد نواز شریف) (जन्म लाहौर; 25 दिसम्बर 1949), पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (पीएमएल) के वरिष्ठ नेता है। वे दो बार पहले भी प्रधानमन्त्री रह चुके हैं - 1 नवम्बर 1990 से 18 जुलाई 1993 तक (12 वें प्रधानमंत्री) और 17 फ़रवरी 1997 से 12 अक्टूबर 1999 (14 वें प्रधानमंत्री)। शरीफ पाकिस्तान के पहले ऐसे नेता हैं, जो 5 जून 2013 काे तीसरी बार 27 वें प्रधानमंत्री बने हैं। 2016 मे पानमा पेपर लीक में नाम आने के बाद 2017 में सुप्रीम काेर्ट ने प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग करार दिया 28 जुलाई 2017 में नवाज़ शरीफ काे प्रधानमंत्री के पद से हटाना पड़ा, नवाज़ शरीफ को वर्ष 2000 में तत्कालीन सैन्य शासक मुशर्रफ़ ने निर्वासित कर दिया था, इसके पहले उनकी निर्वाचित सरकार को भी बर्खास्त कर दिया गया था। इस तख्तापलट के बाद पाकिस्तान की आतंक-विरोधी अदालत ने नवाज़ शरीफ़ को भ्रष्टाचार के अपराध में दोषी करार दिया था। सऊदी अरब की मध्यस्तता से शरीफ़ को जेल से बचाकर सऊदी अरब के जेद्दा नगर में निर्वासित किया गया। अगस्त 23, 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने शरीफ़ को पाकिस्तान वापस आने की इजाज़त दी। सितम्बर 10, 2007 को शरीफ सात वर्षों के निर्वासन के बाद इस्लामाबाद वापस लौटे, पर उन्हें हवाई-अड्डे से ही तुरन्त जेद्दा वापस भेज दिया गया। .
नेशनल पार्टी (पाकिस्तान)
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी। श्रेणीःपाकिस्तान के राजनैतिक दल.
इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान या पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र या सिर्फ़ पाकिस्तान भारत के पश्चिम में स्थित एक इस्लामी गणराज्य है। 20 करोड़ की आबादी के साथ ये दुनिया का छठा बड़ी आबादी वाला देश है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ उर्दू, पंजाबी, सिंधी, बलूची और पश्तो हैं। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद और अन्य महत्वपूर्ण नगर कराची व लाहौर रावलपिंडी हैं। पाकिस्तान के चार सूबे हैंः पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा। क़बाइली इलाक़े और इस्लामाबाद भी पाकिस्तान में शामिल हैं। इन के अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (तथाकथित आज़ाद कश्मीर) और गिलगित-बल्तिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित हैं हालाँकि भारत इन्हें अपना भाग मानता है। पाकिस्तान का जन्म सन् 1947 में भारत के विभाजन के फलस्वरूप हुआ था। सर्वप्रथम सन् 1930 में कवि (शायर) मुहम्मद इक़बाल ने द्विराष्ट्र सिद्धान्त का ज़िक्र किया था। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब तथा अफ़गान (सूबा-ए-सरहद) को मिलाकर एक नया राष्ट्र बनाने की बात की थी। सन् 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, सिन्ध, कश्मीर तथा बलोचिस्तान के लोगों के लिए पाक्स्तान (जो बाद में पाकिस्तान बना) शब्द का सृजन किया। सन् 1947 से 1970 तक पाकिस्तान दो भागों में बंटा रहा - पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान। दिसम्बर, सन् 1971 में भारत के साथ हुई लड़ाई के फलस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना और पश्चिमी पाकिस्तान पाकिस्तान रह गया। .
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (शहीद भुट्टो)
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ)
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (जे)
पाकिस्तान मुस्लिम लीग(जे), एक पाकिस्तानी राजनीतिक दाल थी, जिसे १९९३ में स्थापित किया गया था। २००४ में यह पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) में, सम्मिलित हो गयी। यह पाकिस्तान मुस्लिम लीग के मूल गोठों में से एक थी। इससे, एकमात्र मुस्लिम लीग के तौर पर १९९८ में बनाया गया था, जब, मुहम्मद खान जुनेजो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे। सितम्बर १९८८ में, इस पार्टी ने ग़ुलाम मुस्तफ़ा जतोई की नेशनल पीपल्स पार्टी और क़ाज़ी हुसैन अहमद की जमात-ए-इस्लामी के साथ मिल कर, इस्लामी जम्हूरी इत्तेहाद नामक एक रूढ़िवादी गठबंधन दाल बनाया था, इसे मूलतः, बेनज़ीर भुट्टो के पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के विरोध में बनायगया था। उस समय, नवाज़ शरीफ पीपीपी के बहार एक सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उबरे थे, और अंत्यतः, १९९० में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। जब जुनेजो ने ज़िया-उल-हक़ को बर्खास्त कर दिया, तो, नवाज़ शरीफ ने पीएमएल(जे) से बहार निकल कर एक और दाल तैयार कर लिया, जिसका नाम रखा पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), जोकि असल पाकिस्तान मुस्लिम लीग से भी अधिक रसूक्दार बाद कर उबरी। जुनिओ की मृत्यु के पश्चात, इस पार्टी को हामिद नासिर चट्ठा और इक़बाल अहमद खान जैसे अनुयायिओं ने इस पार्टी को पुनःस्थापित किया। पीएमएल(जुनेजो) में एक बंटवारे की स्थिति पैदा हो गयउ जब, मंज़ूर वट्टू ने अपने चचेरे भाई, हामिद चट्ठा से अलग हो कर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (जिन्नाह) बना लिया। यह टकराव, पार्टी की अध्यक्षता को ले कर उत्पन्न हुई थी। ऐसा उस वर्ष ही हुआ था, जब, केंद्र और प्रान्त के बीच मतभेद के कारण वट्टू को पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया था। २००२ में इस पार्टी ने क़ौमी असेम्बली में दो २ आसान ग्रहण कर पाने में कामयाब हुई। २००४ में, यह पीएमएल(क्यू) के साथ मिट कर, संयुक्त पाकिस्तान मुस्लिम लीग का गठन किया। .
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी। नवाज़ और क़ैद-ए-आजम इसकी दो विभक्तियाँ हैं। .
पाकिस्तान मुस्लिम लीग क्यू या पाकिस्तान मुस्लिम लीग कायदे आजम, पाकिस्तान की एक प्रबुद्ध और उदारवादी पार्टी है। कि इस मुस्लिम लीग का एक धड़ा है जो पाकिस्तान की स्थापना संभव बनाया। (देखेंः स्थापना पाकिस्तान, मुस्लिम लीग)। इस दल आम तौर पर एक प्रबुद्ध माना जाता है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) या क्यू लीग की स्थापना 2001 में उस समय हुई जब समय मुस्लिम लीग कई गुटों में बंट चुकी थी, जिनमें से क्यू लीग के लिए सबसे कम जन समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ और मुस्लिम लीग (क्यू) को एक दूसरे की जबरदस्त समर्थन हासिल है। अब मूल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के कई सदस्यों क्यू लीग का हिस्सा बन चुके हैं कि राष्ट्रपति मुशर्रफ का समर्थन करते हैं। चौधरी शुजात हुसैन (बाएं) और मुशाहिद हुसैन (दाएं) भारत यात्रा के अवसर पर राष्ट्रपति मुशर्रफ ने 2006 में अपनी आत्मकथा 'इन द लाइन ऑफ फायर, ए मीमवायर' में खुलासा किया कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) का गठन उनके इशारे पर हुई थी। वह लिखते हैं कि नवाज शरीफ के निर्वासन के बाद उन्होंने सोचा कि इस देश में एक ऐसी पार्टी होनी चाहिए जो इन दो दलों (पीपुल्स पार्टी और पीएमएल एन) का मुकाबला कर सके और इस अवसर पर उनके प्रमुख सचिव तारिक़ अज़ीज़ ने चौधरी शुजात हुसैन के जनरल मुशर्रफ से मुलाकात की व्यवस्था की जिसके बाद यह पार्टी अस्तित्व में आई। .
राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान में शूरा के लिए नहीं चुना है। पाकिस्तान की संसद आम चुनाव द्वारा स्थापित किये गये निचले सदन जबकि प्रांतीय सदनों के सदस्यों द्वारा सदन के लिए नहीं चुना है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री निचले सदन में चुना जाता है जबकि राष्ट्रपति का चयन निर्वाचन कॉलेज द्वारा किया जाता है। प्रांतीय और राष्ट्रीय सदनों के अलावा पाकिस्तान में पांच हजार से अधिक चयनित नगर निगम सरकारें भी काम कर रही हैं। पाकिस्तान में कई राजनीतिक दल हैं। आमतौर पर कोई भी एक पार्टी बहुमत हासिल नहीं करती और आम चुनाव के बाद सत्तारूढ़ गठबंधन का गठन जरूरी है। .
पाकिस्तान के प्रधान मंत्री (وزیر اعظم پاکستان - ) इस्लामी गणतंत्र पाकिस्तान की सरकार का मुखिया होता है। राष्ट्रीय विधानसभा के सदस्यों द्वारा प्रधानमंत्री का चयन किया जाता है। प्रधानमंत्री का ये पद पाँच वर्षके लिए होता है। प्रधानमंत्री अपनी सहायता के लिए मंत्रियों का चयन करता है। .
सेनेट, (سینیٹ) या आइवान-ए बाला पाकिस्तान (ایوانِ بالا پاکستان) पाकिस्तान की द्वीसदनीय विधियिका का उच्चसदन है। इसके चुनाव त्रिवर्षीय अवधी पश्चात, आधे संख्या के सीटों के लिए आयोजित किए जाते है। यहाँ सदस्यों क कार्यकाल 6 वर्ष होता है। सीनेट के अध्यक्ष देश के राष्ट्रपति का अभिनय होते हैं। इसे 1973 में स्थापित किया गया था पाकिस्तान के संविधान में से नेट से संबंधित सारे प्रावधान अनुच्छेद 59 मैं दिए गए हैं। पाकिस्तान के संसद भवन में सेनेट का कक्ष पूर्वी भाग में है। सीनेट को ऐसे कई विशेष अधिकार दिये गए हैं, जो नैशनल असेम्ब्ली के पास नहीं है। इस संसदीय बिल बनाने के रूप में एक कानून के लिए मजबूर किया जा रहा की शक्तियों को भी शामिल है। सीनेट में हर तीन साल पर सीनेट की आधे सीटों के लिए चुनाव आयोजित की जाती हैं और प्रत्येक सीनेटर छह वर्ष की अवधि के लिये चुना जाता है। संविधान में सेनेट भंग करने का कोई भी प्रावधान नहीं दिया गया है, बल्की, इसमें इसे भंग करने पर मनाही है। .
पख़्तूनख़्वा मिली अवामी पार्टी पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल है। मुहम्मद ख़ान अचकज़ई इस दल के मुखिया हैं। .
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी। श्रेणीःपाकिस्तान के राजनैतिक दल.
मजलिस-ए-शूरा (उर्दू) यानी पाकिस्तान की संसद पाकिस्तान में संघीय स्तर पर सर्वोच्च विधायी संस्था है। इस संस्थान में दो सदन हैं, निचले सदन या कौमी एसेंबली और ऊपरी सदन या सीनेट। पाकिस्तान का संविधान की धारा 50 के मुताबिक़ राष्ट्रपति भी मजलिस-ए-शूरा का हिस्सा हैं। इसकी दोनों सदनों में से निम्नसदन नैशनल असेम्बली एक अस्थाई इकाई है, और प्रती पाँचवे वर्ष, आम निर्वाचन द्वारा यह परिवर्तित होती रहती है, वहीं उच्चसदन सेनेट एक स्थाई इकाई है, जो कभी भंग नहीं होती है, परंतु भाग-दर-भाग इसके सदस्यों को बदल दिया जाता है। संसद की दोनों सदनों हेतु सभागृह इस्लामाबाद को पार्लिआमेंट हाउस में है। 1960 में संसद के आसन को कराँची से इस्लामाबाद लाया गया था। .
मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट का ध्वज मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एम क्यू एम; उर्दूः متحدہ قومی موومنٹ) पाकिस्तान का एक सेक्युलर राजनीतिक दल है। यह मुखयतः उर्दूभाषी मुजाहिरों (भारत से आये शरणार्थियों) का दल है। वर्तमान समय में यह दल सिन्ध प्रान्त का दूसरा सबसे बड़ा दल है जिसके पास १३० में से ५४ सीटें हैं। यह पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। .
मुर्तज़ा जावेद अब्बासी एक पाकिस्तानी राजनेता और पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के पूर्व सदस्य थे। उन्हें 24 अगस्त 2015 - 9 नवंबर 2015, के बीच पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया था। पाकिस्तान की क़ौमी असेंबली के अध्यक्ष का पद, पाकिस्तान की संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक पद है, जोकी पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली के सभापति एवं अधिष्ठाता होते हैं। .
लोक सभा, भारतीय संसद का निचला सदन है। भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा है। लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में भारत का राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता है। लोकसभा की कार्यावधि 5 वर्ष है परंतु इसे समय से पूर्व भंग किया जा सकता है .
सरदार अयाज़ सादिक पाकिस्तान के क़ौमी असेम्बली के वर्तमान सभापति हैं। वह पहली बार ३ जून २०१३ को फहमीदा मिर्जा के बाद क़ौमी असेम्बली के उन्नीसवीं सभापति बने, उनका पहला कार्यकाल 22 अगस्त 2015 को समाप्त हुआ। वह दूसरी बार, 9 नवंबर 2015 को पुनः इस पद पर काबिज़ हुए। लाहौर से नेशनल असेंबली के असेम्बली क्षेत्र १२२ से पंजाब (पाकिस्तान) के राष्ट्रीय विधानसभा अध्यक्ष अयाज सादिक २०१३ में ९३ हजार ३ से ८९ वोट लेकर सदस्य नेशनल असेंबली चुने गए थे। इस चुनाव को इमरान खान ने चुनाव न्यायाधिकरण में चयालनज किया था। चुनाव ट्रिब्यूनल के न्यायाधीश काज़िम अली मलिक ने कथित धांधली के मामले में दायर याचिका पर क्षेत्र के चुनाव को निरस्त करते हुए दोबारा मतदान कराने का अगस्त २०१५ में आदेश दिया था। सरदार अयाज सादिक तीसरी बार इस क्षेत्र में २०१३ में चुने गए थे। .
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
जमात ए इस्लामी पाकिस्तान की सबसे बड़ी और पुरानी सैद्धांतिक इस्लामी पुनरुद्धार आंदोलन है जिसका शुरुआत बीसवीं सदी के इस्लामी विचारक सैयद अहमद, जो समकालीन इस्लाम पुनर्जीवित संघर्ष के नायक माने जाते हैं ने पाकिस्तान की स्थापना से पहले 3 शाबान 1360 हिजरी (26 अगस्त 1941 ई।) को लाहौर में किया था। जमाते इस्लामी पाकिस्तान आधी सदी से अधिक समय से दुनिया भर में इस्लामी पुनरुद्धार के लिए शांतिपूर्ण रूप से प्रयासरत कुछ इस्लामी आंदोलनों में शुमार की जाती है। .
जमीयतुल उलेमा-ए-इस्लाम (ऍफ़)
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
इस्लामाबाद की फैज़ल मस्जिद इस्लामाबाद पाकिस्तान की राजधानी है। भारत विभाजन के पश्चात पाकिस्तान को एक राजधानी नगर की आवश्यकता थी। ना तो लाहौर और न ही कराची जैसे नगर इस हेतु सही पाए गए अंतः एक नए नगर की स्थापना का निर्णय लिया गया जो पूरी तरह से नियोजित हो। इस कार्य हेतु फ़्रांसीसी नगर नियोजक तथा वास्तुकार ली कार्बूजियर की सेवा ली गई। इन्हीं महोदय ने भारत में चंडीगढ़ की स्थापना की योजना बनाई थी। इस कारण ये दोनों नगर देखने में एक जैसे लगते हैं। २००९ के अनुमान अनुसार इस नगर की जनसंख्या ६,७३,७६६ है। .
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनैतिक दल। .
उर्दू भाषा हिन्द आर्य भाषा है। उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है। उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं। ये मुख्यतः दक्षिण एशिया में बोली जाती है। यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है, तथा पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। इस के अतिरिक्त भारत के राज्य तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय भाषा है। .
यहां पुनर्निर्देश करता हैः
नैशनल असेम्ब्ली (पाकिस्तान), पाकिस्तान के राष्ट्रीय विधानसभा, पाकिस्तान की नैशनल असेम्बली, पाकिस्तान की नेशनल असैंबली, पाकिस्तान की क़ौमी असेम्बली, पाकिस्तान की क़ौमी असेम्ब्ली, पाकिस्तान की क़ौमी असेंबली, क़ौमी असेम्बली (पाकिस्तान)।
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21de45ea9a805ab65e820fe3eda76c6872e64c46 | web | अगर आप एक नही जगह पर Reliance Jio, Airtel, Vi और BSNL के कुछ धांसू रिचार्ज प्लांस के बारे में जानकारी लेना चाहते हैं तो आप हम आपको इन सभी प्लांस के बारे में एक ही जगह बताने वाले हैं। यहाँ आप इन कंपनियों के कुछ सबसे बेहतरीन प्लांस को देख सकते हैं। आइए जानते है कि आखिर Airtel, Reliance Jio, Vi और BSNL आपको कौन से और किस कीमत में प्लांस पेश करते हैं, जो आपके लिए एक आदर्श प्लान के तौर पर देखे जा सकते हैं।
Reliance Jio अपने 149 रुपये के प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) को 20 दिनों वैलिडिटी (Validity) ऑफर करता है। इस प्लान (Plan) के साथ, यूजर्स को सभी Jio ऐप्स के साथ कुल 20GB डेटा भी मिलता है। इस्कया मतलब है कि इस प्लान (Plan) में आपको डेली 1GB डेटा मिलता है। इतना ही नहीं इस प्लान (Plan) में आपको अनलिमिटेड (Unlimited) वॉयस कॉलिंग (Calling) और 100 SMS भी ऑफर किये जाते हैं।
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Reliance Jio अपने 179 रुपये के प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) के साथ यूजर्स को 24 दिनों की वैलिडिटी (Validity) मिलती है। इस प्लान (Plan) के बाकी बेनिफिट्स पूरी तरह से 149 रुपये वाले प्लान (Plan) के समान हैं। यहां भी यूजर्स को सभी Jio ऐप्स के साथ 1GB डेली डेटा, अनलिमिटेड (Unlimited) वॉयस कॉलिंग (Calling) और 100 SMS डेली भी मिलते हैं।
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रिलायंस (Reliance) जियो (Jio) का 209 रुपये का प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) 28 दिनों की वैलिडिटी (Validity) ऑफर करता है। इतना ही नहीं इस प्लान (Plan) में भी आपको 1GB डेली डेटा मिलता है। इस प्लान (Plan) के साथ, यूजर्स को अनलिमिटेड (Unlimited) वॉयस कॉलिंग (Calling), 100 SMS डेली भी ऑफर किये जा रहे हैं। हालांकि इस प्लान (Plan) में आपको सभी Jio ऐप्स का सब्सक्रिप्शन भी बाकी प्लांस (Plans) की तरह ही मिलता है।
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Jio के पास इस श्रेणी में 4 रिचार्ज (Recharge) प्लांस (Plans) हैं। इसका मतलब है कि Jio 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ Airtel से ज्यादा प्लान (Plan) ऑफर करता है। अगर पहले प्लान (Plan) की चर्चा की जाए तो यह Jio का 666 रुपये की कीमत में आने वाला रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) है, इस रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) में 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ 1. 5GB डेली डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) वॉयस कॉलिंग (Calling) और डेली 100 फ्री एसएमएस (SMS) मिलते हैं। अतिरिक्त लाभों में Jio TV, JioCinema, Jio Security और JioCloud की मुफ्त सदस्यता शामिल है।
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Jio के अगले प्लान (Plan) की चर्चा करें तो यह 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ आने वाला 719 रुपये वाला प्लान (Plan) है। इस प्लान (Plan) में आपको सभी कुछ ऊपर वाले प्लान (Plan) की तरह ही मिलता है, हालांकि इसमें आपको डेटा (Data) के तौर पर 1. 5GB के मुकाबले 2GB डेली डेली डेटा (Data) मिलता है, बाकी लाभ जैसे कि हमने आपको बताया है कि ऊपर वाले प्लान (Plan) के स समान ही हैं।
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इस श्रेणी में Jio का अगला प्लान (Plan) 1,066 रुपये की कीमत में आने वाला प्लान (Plan) है, इस प्लान (Plan) में भी आपको 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) मिलती है, हालांकि इस प्लान (Plan) में आपको 5GB एक्स्ट्रा डेटा (Data) के साथ डेली 2GB डेटा (Data) मिलता है। इतना ही नहीं, इस प्लान (Plan) में 1 साल के Disney+ Hotstar मोबाइल सब्सक्रिप्शन के अलावा सभी अन्य लाभ पिछले दो प्लांस (Plans) की तरह ही मिलते हैं।
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इस लिस्ट में अगर हम Jio के आखिरी प्लान (Plan) की चर्चा करें तो इस लिस्ट में 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) वाला प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) 1,199 रुपये में आता है। इस प्लान (Plan) में रोजाना 3GB डेटा (Data) मिलता है, जिसमें अनलिमिटेड (Unlimited) वॉयस कॉलिंग (Calling) और रोजाना 100 फ्री एसएमएस (SMS) शामिल हैं। अन्य लाभों में Jio TV, JioCinema, Jio Security और JioCloud की मुफ्त सदस्यता शामिल है।
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एयरटेल (Airtel) का यह प्लान Rs 2,999 में 365 दिन की वैधता ऑफर कर रहा है। इस तरह दिन का खर्च 8. 2 रूपये बैठता है। प्लान में हर दिन 2GB डाटा, अनलिमिटेड कॉलिंग (unlimited calling) और हर दिन 100 SMS का लाभ मिलता है। इसके साथ ही ग्राहक, डिज्नी+ हॉटस्टार (Disney+ Hotstar), प्राइम विडियो मोबाइल एडिशन (Prime Video Mobile Edition), फ्री हैलोट्यून, विंक म्यूज़िक आदि सेवाओं का फ्री लाभ उठा सकते हैं।
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एयरटेल (Airtel) के पास तीन 84 दिन की वैलिडिटी (Validity) वाले प्लान (Plan) हैं। इन प्लान्स की शुरुआत 455 रुपये से होती है। इस रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) में यूजर्स को 6GB डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) कॉलिंग (Calling) और 900 फ्री एसएमएस (SMS) मिलते हैं। हालांकि इतना ही नहीं, इस प्लान (Plan) में यूजर्स को प्राइम वीडियो मोबाइल एडिशन का 30 दिनों का फ्री ट्रायल, 3 महीने का अपोलो 27/7 सर्कल, शॉ अकादमी के साथ मुफ्त ऑनलाइन कोर्स, फास्टैग पर 100 रुपये का कैशबैक, मुफ्त हेलोट्यून्स और मुफ्त विंक म्यूजिक शामिल हैं।
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एयरटेल (Airtel) का 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ आने वाला अगला प्लान (Plan) 719 रुपये का है। इस रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) के साथ यूजर्स को रोजाना 1. 5GB डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) कॉलिंग (Calling) और रोजाना 100 फ्री एसएमएस (SMS) की सुविधा मिलती है। इस प्लान (Plan) के अन्य लाभों में प्राइम वीडियो मोबाइल एडिशन का 30 दिनों का फ्री ट्रायल, 3 महीने का अपोलो 27/7 सर्कल, शॉ अकादमी में मुफ्त ऑनलाइन कोर्स, फास्टैग पर 100 रुपये का कैशबैक, मुफ्त हेलोट्यून्स और विंक म्यूजिक की मुफ्त पहुंच शामिल है।
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अगर एयरटेल (Airtel) के अगले प्लान (Plan) की चर्चा की जाए तो यह 839 रुपये की कीमत वाला रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) है। इस रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) यूजर्स को रोजाना 2GB डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) कॉलिंग (Calling) और 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ 100 फ्री एसएमएस (SMS) डेली मिलेंगे। इसके साथ ग्राहकों को प्राइम वीडियो मोबाइल एडिशन पर 30 दिनों का फ्री ट्रायल, 3 महीने का अपोलो 27/7 सर्कल, शॉ एकेडमी में मुफ्त ऑनलाइन कोर्स, फास्टैग पर 100 रुपये का कैशबैक, हेलोट्यून्स की मुफ्त एक्सेस और विंक म्यूजिक की मुफ्त सुविधा मिलेगी।
वोडाफोन आइडिया (Vi) की बात करें तो कंपनी Rs 539 में 56 दिन की वैधता के लिए हर रोज़ 2GB डाटा ऑफर कर रही है। इस तरह प्लान में कुल 112GB डाटा मिल रहा है। इसके अलावा, आप अनलिमिटेड कॉलिंग, प्रतिदिन 100SMS का लाभ उठा सकते हैं। साथ ही प्लान में बिंज ऑल नाइट, वीकेंड डेटा रोलओवर, डेटा डिलाइट और Vi Movies & TV Classic का मुफ्त एक्सेस का फ्री एक्सेस मिलता है।
Vodafone Idea 84 दिनों की वैलिडिटी (Validity) के साथ 3 रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) पेश करता है। इन प्लान (Plan) की शुरुआत 459 रुपये से होती है। 459 रुपये में 6GB डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) कॉलिंग (Calling) और 1000 फ्री एसएमएस (SMS) मिलते हैं। अतिरिक्त लाभों में वीआई (Vi) मूवीज और टीवी का एक्सेस शामिल है।
वीआई (Vi) का एक और 84 दिन का प्लान (Plan) 719 रुपये में मिलेगा। इस रिचार्ज (Recharge) प्लान (Plan) में रोजाना 1. 5GB डेटा (Data), अनलिमिटेड (Unlimited) कॉलिंग (Calling) और 1000 फ्री एसएमएस (SMS) मिलते हैं। ग्राहकों को वीआई (Vi) मूवीज और टीवी का बेसिक एक्सेस भी मिलेगा। इस प्लान (Plan) के साथ आपको वीकेंड डेटा (Data) रोलओवर के अलावा ऑल नाइट बिंज का एक्सेस मिलता है। यह प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) प्रति माह 2GB तक बैकअप डेटा (Data) भी प्रदान करता है।
एक अन्य प्लान (Plan) की चर्चा की जाए तो यह 839 रुपये वाला प्लान (Plan) है, इस वीआई (Vi) प्रीपेड (Prepaid) प्लान (Plan) में 2GB डेली डेटा (Data) के साथ-साथ अन्य सभी लाभ जैसे 719 रुपये प्रदान करता है, इस प्लान (Plan) में भी आपको मिलते हैं, इतना ही नहीं इस प्लान (Plan) की वैलिडिटी (Validity) भी पिछले प्लान (Plan) की तरह ही 84 दिनों की है।
बीएसएनएल (BSNL) 797 रुपये के प्लान (Plan) में 395 दिनों की वैलिडिटी ऑफर करता है। लॉन्च ऑफर के एक हिस्से के रूप में, टेलीकॉम ऑपरेटर ने अतिरिक्त 30 दिनों की वैलिडिटी की भी घोषणा अपने यूजर्स के लिए कर दी है। हालांकि यहाँ इस प्लान (Plan) के इस लाभ को समझना बेहद ही जरूरी है। असल में उपयोगकर्ता अतिरिक्त वैलिडिटी तभी प्राप्त कर पाएंगे जब वे 12 जून, 2022 तक इस प्लान (Plan) को अपने लिए एक विकल्प के रूप में चुनेंगे।
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यहाँ आपको जानकारी के लिए यह भी बता देते है कि आपको जो भी लाभ इस प्लान (Plan) के साथ दिए जाने वाले हैं, वह आपको मात्र पहले 60 दिनों के लिए ही मिलने वाले हैं। 60वें दिन के बाद, उपयोगकर्ताओं को कॉल करने या इंटरनेट ब्राउज़ करने के लिए या तो टॉकटाइम या डेटा प्लान (Plan) का अलग से कोई ऑप्शन चुनना होगा। ऐसा भी कह सकते है कि आपको अलग से एक प्लान (Plan) लेने की जरूरत होने वाली है। इसी कारण हम कह रहे थे कि इस प्लान (Plan) को अपने डिवाइस को चालू मात्र रखने के लिए यूजर्स इस्तेमाल कर सकते हैं।
जहां तक बेनिफिट्स का सवाल है, बीएसएनएल (BSNL) के 797 रुपये के प्लान (Plan) में पहले 60 दिनों के लिए 2GB डेली डेटा, अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग और 100 SMS भी डेली दिए जा रहे हैं। हालांकि 60वें दिन के बाद डेटा स्पीड घटकर 80Kbps रह जाने वाली है। यहाँ आपको जानकारी के लिए यह भी बता देते है कि यह प्लान हमने कंपनी की वेबसाइट पर चेक किया है, यह सभी BSNL सर्कलों में उपलब्ध नहीं है!
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शुरुआत करें बीएसएनएल (BSNL) के Rs 49 वाले प्लान (Rs 49 Plan) से तो इस प्लान की वैधता 24 दिनों की है और यह 2GB हाई स्पीड इंटरनेट (High speed internet) के साथ आता है। कॉलिंग (calling) के लिए इस रिचार्ज प्लान (recharge plan) में कुल 100 फ्री मिनट दिए जा रहे हैं जिसे आप पूरी अवधि तक उपयोग कर सकते हैं।
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अब बात करें BSNL के Rs 99 वाले प्लान की तो इसमें 22 दिनों की अवधि के लिए अनलिमिटेड कॉलिंग (unlimited calling) का लाभ मिलता है। यह एक वॉयस रिचार्ज (voice recharge) है इसलिए इसमें कोई डाटा बेनिफ़िट (data benefit) शामिल नहीं है।
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अब बात करने Rs 118 के रिचार्ज (recharge) की तो यह रिचार्ज (recharge) 26 दिनों की वैधता (validity) के साथ आता है जिसमें आपको अनलिमिटेड कॉलिंग (unlimited calling) और हर रोज़ 0,5GB डाटा का लाभ मिलता है।
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कंपनी एक और वॉइस वाउचर (voice voucher) ऑफर करती है जिसकी कीमत Rs 135 है। इस रिचार्ज प्लान (recharge plan) की अवधि 24 दिन है लेकिन इसमें आपको कुल 1,440 फ्री मिनट मिलते हैं। Rs 99 के प्लान की तरह इसमें भी कोई डाटा बेनिफ़िट नहीं मिलता है।
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बीएसएनएल (BSNL) Rs 100 से कम में 6 डाटा वाउचर (data voucher) ऑफर करता है। ये वाउचर (voucher) Rs 19, Rs 56, Rs 75, Rs 94, Rs 97, और Rs 98 की कीमत में आते हैं। Rs 19 में यूजर्स को 2GB डाटा और 1 दिन की सर्विस वैधता मिलती है। अगर आप अधिक डाटा चाहते हैं तो Rs 56 का रिचार्ज (recharge) कर सकते हैं जिसमें 10GB डाटा मिलता है और इसके साथ 10 दिनों के लिए फ्री ज़िंग सब्स्क्रिप्शन मिलता है।
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अब बात करें Rs 75 वाले वाउचर (voucher) की तो इसकी सर्विस वैधता 50 दिनों की है और प्लान में 2GB डाटा और 100 मिनट फ्री वॉयस कॉलिंग और 50 दिनों के लिए फ्री PRBT बेनिफ़िट मिलता है।
Rs 94 वाले वाउचर में बीएसएनएल (BSNL) 3GB डाटा मिलता है जिसे यूजर्स को 75 दिन में उपयोग करना होगा और साथ ही 100 मिनट फ्री वॉयस कॉलिंग का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा प्लान में 60 दिनों के लिए PRBT का बेनिफ़िट मिल रहा है।
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Rs 97 के प्लान में यूजर्स को प्रतिदिन 2GB डाटा मिल रहा है। इसके अलावा प्लान में अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग और लोकधुन का लाभ मिल रहा है और इसकी वैधता 18 दिन है।
आखिर में बात करें Rs 98 के प्लान की तो इसमें प्रतिदिन 2GB डाटा मिलता है लेकिन इसमें कोई अनलिमिटेड वॉयस कॉलिंग का लाभ नहीं मिलता है। प्लान फ्री Eros Now ओवर-द-टॉप (OTT) सब्स्क्रिप्शन के साथ आता है। इसकी वैधता 22 दिन की है।
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107df688b20b8fba01ec6cfd50563598cbd9a918 | web | चीनमें बनी कोरोनारूपी जैविक हथियारके इस्तेमालकी आशंका २०१९ में ही उस वक्त होने लगी थी जब ट्रम्प अमेरिका और शी जिनपिंगमें ठनी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि कहीं दोनों देशोंके बीच जंग न हो जाय। उसी दौरान गलवानमें सीमा विवादको लेकर भारत और चीनके बीच तनाव जैसे हालात थे। जिस तरह दोनों देशोंकी सेनाएं आमने-सामने थीं, आशंका थी कि कहीं जंग न हो जाय। इसी बीच कोरोना दस्तक देता है और पूरी दुनियामें कहर बरपाने लगता है। कोरोनाके आतंकसे इस वक्त दुनियामें १६ करोड़ लोग संक्रमित हैं। ३६ लाख मरीजोंकी जान जा चुकी है। इनमेंसे छह करोड़ कोरोना केस भारत और अमेरिकामें हैं। सबसे ज्यादा मौतें भी यहीं हुई हैं। वैसे भी वर्तमानमें चीनका दुनिया सबसे बड़े दुश्मन भारत और अमेरिका हैं। यही वजह है कि यह सवाल उठ रहे हैं कि चीनके वुहानसे निकली कोरोना महामारी है या कोई महासाजिश तो नहीं है? अमेरिकी खुफिया एजेंसीकी मानें तो पीएलएसे जुड़े वैज्ञानिक और हथियार विशेषज्ञोंने भी उस दावेका समर्थन किया है, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या कोरोना चीनका बायोलॉजिकल वेपन है? क्या चीन वुहानकी लैबमें अब भी जैविक हथियार बना रहा है? क्या चीन तीसरे विश्वयुद्धकी तैयारी इन्हीं जैविक हथियारोंसे कर रहा है? क्या चीन हर वह कोशिश कर रहा है जिससे दुनियाकी राजनीतिको उसकी लैबसे कंट्रोल किया जा सके?
रिपोर्टके मुताबिक चीनी वैज्ञानिक और हेल्थ ऑफिसर्स २०१५ में ही कोरोनाके अलग-अलग स्ट्रेनपर चर्चा कर रहे थे। उस समय चीनी वैज्ञानिकोंने कहा था कि तीसरे विश्वयुद्धमें इसे जैविक हथियारकी तरह उपयोग किया जायगा। इस बातपर भी चर्चा हुई थी कि इसमें हेरफेर करके इसे महामारीके तौरपर कैसे बदला जा सकता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसीमें खुलासा हुआ है कि वल्र्ड वार-३ के अंदेशेमें और उसमें जीत हासिल करनेके लिए चीन जैविक हथियारका सहारा लेगा। बस सही वक्तकी तलाशमें है चीन। वह वक्त आनेके बाद ड्रैगन दुनियाके ऊपर जैविक हथियारका इस्तेमाल कर सकता है। खुले तौरपर चीनके दो दुश्मन हैं। अमेरिका और भारत। कोरोनाकी सबसे ज्यादा तबाही इन्हीं देशोंपर आयी है। दुनियामें कोरोनाके मामलोंमें भी भारत और अमेरिका ही टॉपपर हैं। इसीलिए लगातार अमेरिकी नेता, अधिकारी और खुफिया एजेंसियां यह सवाल उठा रही हैं कि कोरोनाकी शुरुआत कहांसे हुई, इसकी जांच होनी ही चाहिए और चीनका मकसद भी दुनियाके सामने आना चाहिए। वैसे भी इतिहास गवाह है कि जब भी इस तरहकी कोई अनसुलझी पहेली सामने आती है तो साजिशोंकी बू आने लगती है। यह सवाल पूरी दुनियाकी फिजामें तैर रहा है कि कहीं यह किसी जैविक युद्ध या बायोलॉजिकल वारका प्रयोग तो नहीं है या फिर चीनने जैविक आतंकवाद या बायोटेररिज्मकी शुरुआत कर दी है? क्योंकि बायोलॉजिकल वैपन कहर ढानेवाला सस्ता और असरदार हथियार है। यह वह हथियार है जो किसी मिसाइल, बम, गोलीसे भी कई गुना खतरनाक हैं।
चीनकी मशहूर वैज्ञानिक और महामारी विशेषज्ञ ली मेंग येनने अमेरिकी रिपोर्टपर मुहर लगाते हुए कहा है कि चीनने जानबूझकर कोरोना वायरसको दुनियामें फैलाया है। वह चाहता है कि वह युद्धमें जैविक हथियारका इस्तेमाल कर पूरी दुनियापर उसका राज हो। यह अलग बात है कि कोरोनाका प्रसार और उसके बढ़ते प्रकोपको लेकर दुनियाभरके देशोंकी भौंहें एक बार फिर चीनकी ओर तन गयी हैं। इस घातक वायरसको लेकर चीनके दावोंको कोई भी देश माननेको तैयार नहीं है कि यह वुहानके जानवर मार्केटसे पूरी दुनियामें फैला है। हर तरफसे एक ही आवाज उठ रही है कि जिस चीनसे कोरोना वायरस पूरी दुनियामें फैला है, वह इतना सुरक्षित कैसे है? जबकि भारत समेत दुनियाभरके देश पिछले डेढ़-दो सालसे इससे जंग लड़ रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि चीनने इस जैविक हथियार बनाकर दुनियापर हमला कर दिया हो? आशंका है कि चीनके सैन्य वैज्ञानिकोंने तीसरे विश्व युद्धमें जैविक हथियारके इस्तेमालकी भविष्यवाणी भी की थी। चीनी वैज्ञानिकोंने सार्स कोरोना वायरसकी चर्चा जेनेटिक हथियारके नये युगके तौरपर पहले ही कर चुके है। पीएलएके दस्तावेजोंमें इस बातकी चर्चा है कि एक जैविक हमलेसे शत्रुकी स्वास्थ्य व्यवस्थाको ध्वस्त किया जा सकता है। पीएलएके इस दस्तावेजमें अमेरिकी वायुसेनाके कर्नल माइकल जेके अध्ययनका भी जिक्र है, जिन्होंने भविष्यवाणी की थी कि तीसरा विश्वयुद्ध जैविक हथियारोंसे लड़ा जायगा।
इस रिपोर्टमें यह भी दावा किया गया है कि २००३ में जिस सार्सका चीनपर अटैक हुआ था, वह हो सकता है कि एक जैविक हथियार हो, जिसे आतंकियोंने तैयार किया हो। इन कथित दस्तावेजोंमें इस बातका भी जिक्र किया गया है कि इस वायरसको कृत्रिम रूपसे बदला जा सकता है और इसे आदमीमें बीमारी पैदा करनेवाले वायरसमें बदला जा सकता है। इसके बाद इसका इस्तेमाल एक ऐसे हथियारके रूपमें किया जा सकता है, जिसे दुनियाने पहली बार कभी नहीं देखा होगा। रिपोर्टमें इस बातपर भी सवाल उठाया गया है कि जब भी वायरसकी जांच करनेकी बात आती है तो चीन पीछे हट जाता है। आस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉबर्ट पॉटरने बताया कि यह वायरस किसी चमगादड़के मार्केटसे नहीं फैल सकता। चीनी रिसर्चपर गहरी स्टडी करनेके बाद रॉबर्टने कहा, वह रिसर्च पेपर बिल्कुल सही है। इससे पता चलता है कि चीनी वैज्ञानिक क्या सोच रहे हैं।
पिछले साल अमेरिकाके तबके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्पने कई बार सार्वजनिक तौरपर कोरोनाको 'चीनी वायरसÓ कहा था। उन्होंने कहा था, यह चीनकी लैबमें तैयार किया गया और इसकी वजहसे दुनियाका हेल्थ सेक्टर तबाह हो रहा है, कई देशोंकी इकोनॉमी इसे संभाल नहीं पायंगी। ट्रम्पने तो यहांतक कहा था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियोंके पास इसके सुबूत हैं और वक्त आनेपर यह दुनियाके सामने रखे जायंगे। फिलहाल, ट्रम्प चुनाव हार गये और बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशनने अबतक इस बारेमें सार्वजनिक तौरपर कुछ नहीं कहा। हालांकि, ब्लूमबर्गने पिछले दिनों एक रिपोर्टमें इस तरफ इशारा किया था कि अमेरिका इस मामलेमें बहुत तेजी और गंभीरतासे जांच कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्धमें जब अमेरिकाने जापानके शहर हिरोशिमा और नागासाकीपर परमाणु बम गिराया तो उसके ऐसे दुष्परिणाम सामने आये कि दुनियामें मानवताको बचानेके लिए परमाणु नीतिपर विश्वस्तरीय मंथन हुआ। परमाणु बमपर प्रतिबंधके लिए कड़े नियम-कानून बने। जैविक हथियारोंके प्रतिबंधके लिए विश्वस्तरीय नीति बननी चाहिए। लेकिन यह नीति न लोगोंने बनायी सिर्फ अपनेको ताकतवर दिखानेके लिए। खुद तो परमाणु शक्तिको अपनाते रहे परन्तु विकासशील देशोंको उपदेश देते रहे। इस तानाशाही नीतिका परिणाम यह हुआ कि अधिकतर देशोंने परमाणु बम बना लिया। यहांतक कि आतंकियोंको शरण देनेवाले पाकिस्तानके पास भी परमाणु बम है। यह सब हथियारोंके धंधे और होड़का ही दुष्परिणाम दुनियाके सामने आया है।
यह विभिन्न देशोंके शासकोंकी गैर-जवाबदेही, जनहितसे ज्यादा तवज्जो अपने धंधोंको देनेका ही नतीजा है कि जहां पूरी दुनिया कोरोना जैसे जैविक हथियारसे जूझ रही है, वहीं प्रभावशाली देशोंने तीसरे विश्वयुद्धकी भूमिका बना दी है। कोरोनाकी उत्पत्तिने यह साबित कर दिया है कि बारूदके ढेरपर बैठी दुनियाके सामने मौजूदा समयमें सबसे अधिक खतरा जैविक हथियारोंसे है। समस्याके निदानके लिए प्रयास करना प्रकृतिका नियम है। आज परिस्थिति बड़ी विषम है। निदानके लिए प्रयास करनेवाले लोग और तंत्र खुद इस मकडज़ालमें फंसे हुए हैं। इस तरहकी परिस्थितियोंसे निबटनेके लिए बुद्धिजीवी और जागरूक लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। कुछ भी हो प्रकृति और मानवता दोनों खतरेमें है और किसी भी हालतमें इसे बचाना है। इसके लिए विश्वस्तरीय प्रयास होने ही चाहिए।
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39e944ffbc489696a46eb90d48e05b7737aa05d27f20d8ec4b2d182c8d35dc57 | pdf | ६६३ श्रीमद्रामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।
नोट - १ 'त्रिविध ताप त्रासक तिमुहानी' इति । ( क ) जैसे तीन मुँहवाले मनुष्यको देखने से डर लगे वैसे ही तीन नदियोंके संगमपर तीव्र धारा भयावन लगती है। इसीसे 'त्रासक' कहा । त्रिविध = तीन प्रकारका अर्थात् दैहिक, दैविक और भौतिक यथा- 'दैहिक दैविक भौतिक तापा । ७ । २१ । १ ।। शारीरिक कष्ट जैसे ज्वर, खाँसी, फोड़ा, फुंसी इत्यादि रोग तथा काम, क्रोधादि मानसरोग दैहिक ताप है । देवताओं अर्थात् प्राकृतिक शक्तियों ग्रहादि द्वारा जो क्लेश होता है उसे दैविक ताप कहते हैं जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, विजली गिरना, पाला इत्यादि । सर्प, बिच्छू, पशु इत्यादि द्वारा जो दुःख हो वह भौतिक ताप हैं। इन्हींका दूसरा नाम आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक हैं ।
( ख ) रघुवंश सर्ग ८ में श्रीसरयूगङ्गासंगम के प्रभावका उल्लेख मिलता है। उस प्रसंगकी कथा इस प्रकार है - 'श्री दशरथजी महाराजकी माता इन्दुमती थीं जिनको 'अ' महाराज स्वयंवर में जीतकर लाये थे । राजा दशरथकी बाल्यावस्था में एक दिन नारद मुनि वीणा बजाते हुए निकले, वीणापरसे एक पुष्पमाला खिसकी और श्री इन्दुमतीजीके हृदयपर गिरी जिससे उनके प्राण निकल गए। अज महाराज बहुत शोकातुर हुए तब वसिष्ठजीने शिष्य द्वारा उनको उपदेश कहला भेजा और बताया कि रानी इन्दुमती पूर्व जन्मकी अप्सरा है जो तृणबिन्दुऋषिका तपोभंग करनेको गई थी। ऋपिने मनुष्ययोनिमें जन्म लेनेका शाप दिया और प्रार्थना करनेपर देवपुष्पदर्शनतक शापकी अवधि नियुक्त कर दी । देवपुष्पके दर्शनसे उसका शाप समाप्त हुआ। उस समय दशरथजी बहुत छोटे थे। आठ वर्षके पश्चात् श्रीदशरथजीको राज्यपर बिठाके राजा अज उसी शोकसे व्याकुल श्रीसरयू-गंगा संगमपर आए और वहाँ प्रायोपवेशन करके उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। स्वर्ग में पहुँचनेपर इंदुमतीकी वहाँ प्राप्ति हुई जो पूर्वअधिक सुन्दर थी । "तीर्थे तोय व्यतिकरभवे जह्नु कन्या सरथ्वोदँहत्यागादमरगणनालेख्यामासाद्य सद्यः पूर्वाकारांधिकतररुचा संगतः कान्तयासौ लीलागारेश्वरमत पुनर्नन्दनाभ्यन्तरेषु ।। ६५ ।।" इस तीर्थका महात्म्य स्कंदपुराण में यह लिखा है कि इस तीर्थ में किसी प्रकारभी जं देह त्याग करता है उसको अपने इष्ट वस्तुकी प्राप्ति होती है और आत्मघातका दोष नहीं लगता । यथा - "यथाकथंचित्तीर्थेऽस्मिन्देहत्यागं करोति यः । तस्यात्मघातदोषो न प्राप्नुयादीप्सितान्यपि । " ( मल्लिनाथटीका से ) ।
त्रिपाठीजी - जैसे कोई राजमार्ग पश्चिमसे पूर्वको जा रहा हो, उसमें एक मार्ग उत्तरसे आकर मिल जाय, और एक दक्षिण से आकर मिल जाय तो उन सङ्गमों के बीचके स्थलको तिमुहानी कहते हैं। इसी भाँति माधुर्ग्य गुणों के अनुध्यानसे भी भक्ति की प्राप्ति होती है, तथा ऐश्वर्थ्य गुणोंके अनुव्यानसे भी भक्तिकी ही प्राप्ति होती है, अतः रामसुयश, तथा 'सानुज रामसमरयश' दोनोंका भक्तिरूपी राजपथमेंही मिलना कहा । साधु और ऐश्वर्य्यका बिराग विचारयुक्त भक्ति में मिल जाने से यहाँ भी तिमुहानी हो गई ।
यहाँ पर श्रीगोस्वामीजीने हिन्दी संसारकी सीमाभी दिखला दी । हिन्दी भाषा-भाषी संसार के पश्चिमी सीमा यमुना नदी है, पूर्वकी सीमा गङ्गाशोणसङ्गम है । उत्तरकी सीमा सरयूनदी और दक्षिणकी सीमा शोष हैं। इन्हीं प्रान्तों में हिन्दी बोली जाती है । अतः इतने में ही श्रीगोस्वामीजीन अपने काव्यका रूपक बाँधा हूँ ।
टिप्पणी - १ ( क ) गङ्गा- सरयू सोनका सङ्गम 'तिमुहानी' हैं । त्रिविध तापकी त्रास करनेवाली तीनों नदियाँ हैं। जब ये तीनों त्रिमुहानी हुई तब रामस्वरूप सिन्धुके सम्मुख चलीं। भाव यह है कि जैसे इनका सङ्गम होनेपर समुद्रकी प्राप्ति होती हैं, वैसेही ज्ञान, वैराग्य और भक्ति होनेसे श्रीरामजी मिज़ते हैं । ( ३ ) 'सिंधु' कहनेका भाव यह है कि तीनों नदियोंका पर्यवसान समुद्र है और ज्ञान, वैराग्य, भक्ति प्रर्यवसान श्री रामजी हैं । ( ग ) गङ्गाजी में सोन और सरयका संगम कइकर तब समुद्र के सम्मुख चलन का अर्थात दोनोंको लेकर गङ्गाजी समुद्र में मिलीं । समुद्रके मिलने में गङ्गाजी मुख्य हैं, इसी तरह ज्ञान-वैराग्य-सहित श्रीरामजी की प्राप्ति करने में भक्ति मुख्य है ।
६६४ । श्रीमतेरामचन्द्राय नमः ।
नोट-२ (क) श्रीजानकीदासजा लिखते हैं कि 'सरयू, सोन और गङ्गा तीनों मिलकर समुद्रको चलीं। सरों समुहमें मिल वहाँ तिमुहानी गंगाकी धारा कुछ दूर समुद्र के भीतरतक चली गयी है। वैसेही यहाँ कैलाश.
दोदा ११५ से कीर्ति सरयू चलकर मनुशतरूपाजीकी अनन्य रामभक्ति में मिली फिर इसमें सानुज राम. समरा ( जो मारीच-सुपादु के समर में हुआ ) रूपी शोण मिला । ये तीनों श्रीरामचन्द्र के राजसिंहासन पर विमान स्वरूपके सम्मुख चलीं और मिलीं। इसके पश्चात् जो चरित 'प्रथम तिलक बसिष्ठ मुनि कीन्हा । ऋ० १६ । से लेकर शीतल अमराई के प्रसंग दोहा ५१ तक वर्णित है वह नित्य चरितफा हैं । यह निय पत्रिका वर्णन स्वरूप-सिंधुमें पहुँचकर धाराका कुछ दूरतक चला जाना है' । ( मा० प्र० ) । ( ख ) समुद्रके समीगंगाका चलना कहकरपले सरयू-शोण-गंगाळा संगम कहकर फिर समुद्र की ओर चलना क और संगमका फल कहा। केवल सरयका वर्णन करेंगे - ( मा० द० )
वीरकवि-यहाँ 'उक्तविषया गम्यवस्तूत्प्रेक्षा है क्योंकि बिना वाचक पदके उत्प्रेक्षा की गयी है। यहाँ अनुस, उत्प्रेक्षा और रूपक तीनोंकी संसृष्टि है।
मानस मूल मिली सुरसरिही। सुनत सुजन मन पावन करिही ॥ ५ ॥ अर्थ - इस कीर्ति-सरयूका मूल (उत्पत्तिस्थान ) मानस है और यह गंगाजी में मिली है । ( इस लिये ) इसके सुनने से सुजनोंका मन पवित्र हागा ॥ ५ ॥
नोट - १ यहाँसे सिंहावलोकन-न्याय काव्यरचना है अर्थात् जैसे सिंह चलकर फिर खड़ा होकर अगलयगल दृष्टि डालता है वैसेहो ऊपर राजतिलक प्रसंग कहकर फिर पीछेका प्रसंग मानस, गंगा और सरयूका वर्णन उठा और बीचके प्रसंग कहेंगे। समुद्र-संगम और संगमका माहात्म्य दो० ४० ( ४ ) में कहा, अब फिर सरयूका वर्णन करते हैं और माहात्म्य कहते हैं । यहाँ से आगे सरयूजी और कीतिसरयूका रूपक चला। टिप्पणी - १ ( क ) नदी कहकर अब नदी का मूल कहते हैं। इसका मूल मानस हैं । ( ख ) नदीका संगम समुद्रसे कहना चाहिये जैसे अन्य अन्य स्थानों में कहा है। यथा - ( क ) 'रिधि-सिधि-संपति नदी सुहाई । उमगि व बुधि फहँ आई ।२।१।। ( ख ) 'ढाइत भूप रूप तक भूला । चली त्रिपति बारिधि अनुकूला । २।३४ ।' तथा यहाँ भी समुद्र में मिलना कहा, यथा - 'त्रिविध ताप त्रासक तिमुहानी । रामसरूप सिंधु समुद्दानी ॥' (ग ) मल और संगम कहकर इस कीर्ति नदीका आदि और अन्त दोनों शुद्ध बतायं, सुनते ही सुजन बना देता है और मनको पावन करती है । अथवा यहाँ यह दिखाया कि श्रोता सुजन हैं इससे सुजनके मनको पवित्र करती है, आप पवित्र है और अपने श्रोताको पवित्र करती है। मनकी मलिनता विषय है; यथा - 'काई विषय मुकुर मन लागी । १।११५ । सुजनके मनको भी विषय मलिन करता है; यथा - 'विषय बस्य सुर नर मुनि स्वामी । में पौरपतु कपि प्रतिकामी ।। कि० २१ । (घ ) 'पावन करिही' कहनेका भाव यह है कि अभी तो चली है, आगे पावन करेगी।
नोट-पाँडेजी भी यही भाव कहते हैं अर्थात 'सुननेवालेको सुजन और उसके मनको पावन करेगी। 'सुजन = अपने जन= मुन्दर जन ।' इस अर्धाली में 'अधिक अभेदरूपक' का भाव है । त्रिपाठीजी लिखते हैं कि गोस्वामीजीके दो श्रोता है, एक सुजन दूसरा मन । अतः यहाँ 'सुजन और मन' दोनोंका ग्रहण है ।
विच विच कथा विचित्र विभागा । जनु सरि तीर तीर बनु वागा ॥ ६॥
* उत्तररामचरित में कहा है कि जिसकी उत्पत्ति ही पवित्र है, उसे और कोई क्या पवित्र करेगा ? जैसे तीर्थोके जल और श्रमिको पवित्र करनेवाला दूसरा नहीं है, यथा- 'उत्पत्तिः परिपूतायाः किमस्याः पावनान्तरैः । तोपदकं च वह्निम नान्यतः शुद्धिमतः ॥' |
7a9f4a0cdbc4a76a50178072e19fed0f8d256daf | web | पृथ्वी के अधिकांश जीवित पदार्थ का प्रतिनिधित्व किया जाता हैरोगाणुओं। फिलहाल यह तथ्य सही रूप से स्थापित है। पूरी तरह से एक व्यक्ति को उनसे पृथक नहीं किया जा सकता है, और उनके पास बिना किसी नुकसान के बिना रहने या उस पर रहने का अवसर है।
मानव शरीर की सतह पर, परइसके खोखले अंगों के भीतर के गोले को विभिन्न रंगों और प्रकारों के सूक्ष्मजीवों की पूरी भीड़ रखी जाती है। उनमें से, वैकल्पिक (वे दोनों मौजूद हैं और नहीं हो सकते हैं) और बाध्यताएं (हर व्यक्ति जरूरी हैं) एक सशर्त रोगजनक माइक्रोफ्लोरा क्या है?
हालांकि, रोगाणुओं के इस समुदाय में उन शामिल हैं,जो शर्तों में एक बीमारी पैदा कर सकता है जो अक्सर स्वयं पर निर्भर नहीं करते हैं यह एक सशर्त रोगजनक माइक्रोफ़्लोरा है ये सूक्ष्मजीव काफी बड़ी संख्या हैं, उदाहरण के लिए, इसमें क्लॉस्ट्रिडा, स्टेफिलोकोकस और एसेरिचिया की कुछ प्रजातियां शामिल हैं।
व्यक्ति और जीवाणु के अपने जीव में रहने परएक काफी विविध रिश्ते अधिकांश मायक्रोबाइकोनासिस (माइक्रोफ्लोरा) सिंबायोसिस में एक व्यक्ति के साथ मिलकर सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि इसके साथ संबंध उनके लिए फायदे का है (पराबैंगनी विकिरण, पोषक तत्वों, निरंतर आर्द्रता और तापमान आदि से संरक्षण)। इसी समय, बैक्टीरिया भी पहनने वाले के जीव को सूक्ष्मजीवों के साथ प्रतिद्वंद्विता के रूप में लाभ और प्रोटीन विभाजन और विटामिन के संश्लेषण के रूप में, अपने अस्तित्व के क्षेत्र से उनका अस्तित्व भी लाते हैं। व्यक्ति के लिए उपयोगी बैक्टीरिया के साथ एक समय में कोहबन्द लोग हैं जो छोटे मात्रा में ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में रोगग्रस्त हो जाते हैं। ये सशर्त रोगजनक सूक्ष्मजीव होते हैं।
सशर्त रोगजनक सूक्ष्मजीव कहा जाता है,जो कवक, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और वायरस के एक बड़े समूह हैं जो एक व्यक्ति के साथ सहजीवन में रहते हैं, लेकिन जो कुछ शर्तों के तहत, विभिन्न रोग प्रक्रियाओं का कारण बनता है। सबसे व्यापक और ज्ञात की सूची के लिए जनरेटेड के प्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता हैः एस्टरगिलस, प्रीटीस, कैंडिडा, एंटोबैक्चर, स्यूडोमोनस, स्ट्रेप्टोकोकस, एस्चेरिचिया और कई अन्य।
अवसरवादी,रोगजनक और गैर-रोगजनक रोगाणु वैज्ञानिक वैज्ञानिक नहीं बता सकते, क्योंकि ज्यादातर मामलों में उनके रोगजन्य जीवों की स्थिति निर्धारित करता है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि माइक्रोफ्लोरा जो बिल्कुल स्वस्थ व्यक्ति में अध्ययन के दौरान प्रकट हुआ था, बाद में घातक परिणाम के साथ दूसरे में एक और बीमारी पैदा कर सकता है।
के रोगजनक गुणों की अभिव्यक्तिसशर्त रोगजनक सूक्ष्मजीव शरीर के प्रतिरोध में तेज गिरावट के दौरान ही हो सकते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति को लगातार जठरांत्र संबंधी मार्ग में त्वचा और श्लेष्म झिल्ली पर इन सूक्ष्मजीव होते हैं, लेकिन वे उसे रोग परिवर्तन और सूजन प्रतिक्रियाओं को विकसित करने का कारण नहीं बनते।
इसलिए, सशर्त रोगजनक रोगाणुओं को अवसरवादी कहा जाता है, क्योंकि वे गहन प्रजनन के लिए किसी भी अनुकूल अवसर का उपयोग करते हैं।
समस्याओं की घटनाओं पर, हालांकि, कोई भी बोल सकता हैमामले, जब किसी कारण से प्रतिरक्षा बहुत कम हो जाती है, और यह परीक्षा के दौरान पाया गया था। सशर्त रोगजनक माइक्रोफ़्लोरा तब स्वास्थ्य के लिए वास्तव में खतरनाक है।
कुछ स्थितियों में यह संभव हैः गंभीर श्वसन वायरल संक्रमण का अधिग्रहण या जन्मजात इम्यूनो (उन के बीच एचआईवी संक्रमण) में, बीमारियों कि प्रतिरक्षा (हृदय प्रणाली और रक्त, मधुमेह, कैंसर, आदि के रोगों) को कम करने, दवाएं हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने लेने (में आंकलोजिकल रोगों, कोर्टिकोस्टेरोइड, साइटोटोक्सिक दवाओं, और अन्य), जुकाम के साथ, गंभीर तनाव, शारीरिक श्रम अत्यधिक या अन्य चरम पर्यावरणीय प्रभावों, स्तनपान या के लिए रसायन चिकित्सा गर्भावस्था। इन कारकों को व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक और उनमें से सामूहिक रूप से कई विशेष रूप से सक्षम काफी एक गंभीर संक्रमण के अवसरवादी बैक्टीरिया से एक कॉल करने के लिए नेतृत्व और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है। आप वनस्पति पर फसल करना चाहते हैं?
डॉक्टरेट में निम्नलिखितस्थितिः जब आप नाक, गले, स्तन के दूध या त्वचा की सतह से Staphylococcus aureus के लिए एक सकारात्मक परीक्षण प्राप्त करते हैं, तो एक बिल्कुल स्वस्थ व्यक्ति बहुत उत्साहित हो सकता है और एंटीबायोटिक्स सहित चिकित्सा का संचालन करने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। इस चिंता को आसानी से समझाया जा सकता है, लेकिन अक्सर यह आधारहीन होता है, क्योंकि दुनिया भर के लगभग आधे लोगों में स्टैफिलोकोकस ऑरियस है और इसके बारे में भी संदेह नहीं है। यह सूक्ष्मजीव उच्च श्वसन तंत्र और त्वचा के श्लेष्म झिल्ली के निवासी है। यह ऐसी श्रेणी के लिए विशिष्ट है जैसे सशर्त रोगजनक सूक्ष्मजीव।
वह अभूतपूर्व के मालिक भी हैंविभिन्न पर्यावरणीय कारकों के प्रति प्रतिरोधः कई एंटीबायोटिक्स के प्रभाव, एंटीसेप्टिक्स के साथ उपचार, शीतलन और उबलते। इस कारण से आपको प्रभावित नहीं किया जा सकता है। सभी घरेलू उपकरणों, घरों, खिलौने और फर्नीचर की सतहें इसके द्वारा वरीयता प्राप्त की जाती हैं। और इस सूक्ष्मजीवन की गतिविधि को कम करने के लिए केवल त्वचा की प्रतिरक्षा की क्षमता ही संक्रामक जटिलताओं से मृत्यु के लोगों का एक बड़ा हिस्सा बचाता है। अन्यथा, अवसरवादी माइक्रोफ्लोरा का विकास, और विशेषकर स्टेफिलोकोकस के, रोक नहीं किया जाएगा।
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केवलकारक है कि स्ताफ्य्लोकोच्चुस सामना नहीं कर सकते, मानव प्रतिरक्षा प्रणाली है। उच्च जोखिम वाली श्रेणी तब होती है जब मानव संरक्षण कमजोर हो जाता है इस मामले में, यह निमोनिया, दिमागी बुखार और कोमल ऊतकों और त्वचा की संक्रामक घावों (कोशिका, फोड़े, अपराधी, आदि), मूत्राशयशोध, pyelonephritis और अन्य के रूप में गंभीर बीमारी, हो सकता है। तभी संभव इलाज staph एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग जो करने के लिए जीव संवेदनशील है। क्या सशर्त रोगजनक आंतों माइक्रोफ्लोरा मौजूद है?
ई। कोलाई को प्राकृतिक माना जाता हैप्रत्येक व्यक्ति में पाचन तंत्र के निचले हिस्से में निवासी इसके बिना, आंत पूरी तरह से कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि यह पाचन प्रक्रिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस सूक्ष्मजीवी तंत्र को शामिल करना, विटामिन के उत्पादन में योगदान देता है, जो रक्त-थक्के की प्रक्रिया में शामिल होता है, और आंतों के जीवाणुओं के बीमारियों से पैदा होने वाले रोगजनक उपभेदों के बहुत सक्रिय विकास को रोकता है।
ग्रीनिंग स्ट्रेप्टोकोकस भी बैक्टीरिया को संदर्भित करता हैसशर्त रोगजनक, क्योंकि यह ज्यादातर लोगों में पाया जाता है उनका पसंदीदा स्थानीयकरण मौखिक गुहा है, या बल्कि श्लेष्म झिल्ली जो मसूड़ों को शामिल करता है, और दाँत तामचीनी है। इस सूक्ष्म जीव सहित नाक और गले से स्मीयरों में पाया जाता है। हरे रंग की स्ट्रेक्टोकोकस की अनियमितता यह है कि लार में ऊंचा ग्लूकोज सामग्री होती है, यह दाँत तामचीनी को नष्ट करने में सक्षम होती है, जिससे pulpitis या क्षरण हो जाते हैं। एक चिकित्सक द्वारा सशर्त रोगजनक माइक्रोफ़्लोरा पर एक धब्बा आयोजित किया जाता है।
यह कहा जा सकता है कि मिठाई का सामान्य खपतऔर खाने के बाद सबसे आसान मौखिक स्वच्छता इन रोगों का सबसे अच्छा रोकथाम है। इसके अलावा, कभी-कभी हरे रंग की स्ट्रेप्टोकोकस से अन्य बीमारियों की अभिव्यक्ति का कारण बनता हैः टॉन्सलिटिस, साइनसिसिस, ग्रसनीशोथ। सबसे गंभीर बीमारियां जो हरे रंग की स्ट्रेप्टोकोकस पैदा कर सकती हैं उनमें मेनिन्जाइटिस, निमोनिया, एंडोकार्टिटिस और पैलेनफ्राइटिस हैं। हालांकि, वे केवल बहुत छोटी श्रेणी के लोगों में विकसित होते हैं, जो उच्च जोखिम वाले समूह के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
और अगर बाकपास - सामान्य और सशर्त रोगजनक माइक्रोफ्लोरा नहीं मिला है? यह स्थिति काफी बार होती है यह आदर्श के एक रूप का मतलब है।
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656e105c240c9f156cd250fe9dea0ff1a9beda2c6cfe77c9358c039d2076df3c | pdf | बल्कि सार्वजनिक तथा राजनीतिक जीवन की आम तौर पर सभी अभिव्यक्तियों के आधार पर सरकार के सामने पेश की जाये । सारांश यह कि क्रान्तिकारी सामाजिक-जनवाद सुधारों के लिए संघर्ष को स्वतंत्रता और समाजवाद के क्रान्तिकारी संघर्ष के अधीन उसी तरह रखता है जैसे कोई एक भाग अपने पूर्ण होता है । लेकिन मार्तिनोव अलग-अलग मंज़िलों वाले सिद्धान्त को एक नये रूप में फिर से जीवित करके राजनीतिक संघर्ष के विकास के लिए मानो एक शुद्ध आर्थिक पथ निर्धारित करने की कोशिश कर रहे हैं। इस समय, जब क्रान्तिकारी आन्दोलन उभार पर है, सुधारों के लिए लड़ने के एक तथाकथित विशेष "काम " को सामने लाकर वह पार्टी को पीछे घसीट रहे हैं " अर्थवादी तथा उदारपंथी, दोनों प्रकार के अवसरवाद के हाथों में खेल रहे हैं ।
अस्तु, "आर्थिक संघर्ष को ही राजनीतिक रूप देने" की ऊपर से बड़ी गूढ़ लगनेवाली स्थापना के पीछे बेशर्मी के साथ सुधारों की लड़ाई को छिपाते हुए मार्तिनोव ने शुद्धतः आर्थिक (वास्तव में केवल कारखानों की हालत के) सुधारों को इस तरह पेश किया है, मानो यह कोई खास बात हो । उन्होंने ऐसा क्यों किया यह हम नहीं जानते। हो सकता है, वह लापरवाही में ऐसा कर गये हों ? पर यदि "कारखानों की हालत " में सुधारों के अलावा भी उनके दिमाग़ में कुछ था, तो उनकी यह पूरी स्थापना जिसे हम ऊपर उद्धृत कर चुके हैं, अर्थहीन हो जाती है। शायद उन्होंने यह सोचकर ऐसा किया हो कि सरकार केवल आर्थिक क्षेत्र में ही कुछ " रिायतें " दे सकती है ?* यदि ऐसी बात है, तो यह एक विचित्र आत्म-प्रवंचना है। कोडेबाज़ी, पासपोर्ट, ज़मीन के मुआवजे की अदायगी धार्मिक सम्प्रदायों, सेंसरशिप आदि से सम्बंधित क़ानूनों के बारे में भी रिआयतें मिल सकती हैं और मिलती रहती हैं । "आर्थिक" ( या झूठी रिआयतें ) ज़ाहिर है कि सरकार के दृष्टिकोण से सबसे सस्ती और सबसे अधिक लाभदायक होती हैं, क्योंकि उनके ज़रिए उसे ग्राम मज़दूरों का विश्वास प्राप्त करने की आशा
* पृष्ठ ४३ः "ज़ाहिर है कि जब हम मज़दूरों को सरकार के सामने कुछ आर्थिक मांगें पेश करने की राय देते हैं तो इसका कारण यह है कि आर्थिक क्षेत्र में निरंकुश सरकार आवश्यकतावश कुछ रिआयतें देने को तैयार है । "
होती है। इसी कारण हम सामाजिक-जनवादियों को किसी भी हालत में या किसी तरह भी कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए जिससे इस विश्वास ( या ग़ल तफ़हमी ) के लिए आधार तैयार होता हो कि हम आर्थिक सुधारों को अधिक महत्व देते हैं, या उन्हें विशेष रूप से महत्वपूर्ण समझते हैं, आदि । क़ानून बनवाने तथा प्रशासनात्मक उपायों की जिन ठोस मांगों का ऊपर ज़िक्र किया गया है, उनके बारे में मार्तिनोव लिखते हैं : "इस प्रकार की मांगें कोरी नारेबाज़ी नहीं होंगी, क्योंकि उनसे ठोस नतीजों के निकलने की आशा होगी और इसलिए हो सकता है कि आम मज़दूर सक्रिय रूप से उनका समर्थन करें " भला हम " अर्थवादी हैं, क़तई नहीं ! हम तो सिर्फ़ नतीजों के "ठोसपन" के सामने उसी आजिज़ी से गिड़गिड़ाते हैं, जैसे बर्न्सटीन, प्रोकोपोविच, स्त्रूवे, र० म० जैसे लोग और उनका गिरोह गिड़गिड़ाता है । हम तो केवल ( नरसिस तुपोरिलोव की तरह ) लोगों को यह समझाना चाहते हैं कि वे तमाम चीजें जिनसे "किसी ठोस नतीजे की उम्मीद नहीं है", सब " कोरी नारेबाज़ी " हैं ! हम तो केवल इस तरह तर्क करने की कोशिश कर रहे हैं मानो आम मज़दूरों में निरंकुश शासन के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन करनेवाली प्रत्येक कार्रवाई का - भले ही उससे रत्ती भर भी किसी ठोस नतीजे के निकलने की उम्मीद न हो - समर्थन करने की क्षमता न हो ( और मानो
मज़दूरों ने उन तमाम लोगों के बावजूद, जो खुद अपना कूपमंडूकपन और स्वार्थीपन मज़दूरों पर लाद देते हैं, अपनी यह क्षमता कभी की साबित न कर दी हो) !
उदाहरण के लिए, उन्हीं "उपायों को ले लीजिये जो खुद मार्तिनोव बेकारी और काल से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए करवाना चाहते हैं । 'राबोचेये देलो' ने जो वादे किये हैं, उनसे यदि हम अन्दाज़ा लगायें, तो वह
क़ानून बनवाने तथा प्रशासनात्मक उपायों के लिए ऐसी ठोस " ( क्या विधेयकों के रूप में ? ) "मांगों का कार्यक्रम तैयार करने में व्यस्त है जिससे कुछ " ठोस नतीजे निकलने की उम्मीद हो " । लेकिन 'ईस्का' ने जो "जीवन में क्रान्ति पैदा करने की अपेक्षा सूत्र में क्रान्ति पैदा करने को निरंतर अधिक महत्व देता
है बेकारी और पूरी पूंजीवादी व्यवस्था के अटूट सम्बंध को बताने की कोशिश की ; उसने चेतावनी दी कि "अकाल आ रहा है ", पुलिस का भंडाफोड़ किया 'अकाल पीड़ितों से कैसे लड़ती है, " और "दंड के अस्थायी नियमों
के घोर अन्यायी रूप का पर्दाफ़ाश किया; और 'ज़ार्या' ने "घरेलू मामलों की
समीक्षा " शीर्षक अकाल सम्बंधी लेख के एक हिस्से को एक आन्दोलन पुस्तिका के रूप में खास तौर पर फिर से छापा । पर हे भगवन् ! ये कट्टर मतवादी भी कितने " एकांगी " हैं ; उनके कान इतने बहरे हैं कि वे "स्वयं जीवन " की पुकार को भी नहीं सुन पाते। ज़रा सोचिये ज़रा कल्पना कीजिये कि उनके लेखों में एक भी - क्या आप विश्वास कर सकते हैं ? - एक भी "ठोस मांग " ऐसी नहीं थी जिससे "कोई ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद हो ! " बेचारे मतवादी ! इन लोगों को तो क्रिचेव्स्की और मार्तिनोव के पास भेजना चाहिए ताकि वे यह सीख सकें कि कार्यनीति विकास की एक प्रक्रिया है, उसकी जो कि विकसित होता है, इत्यादि, और यह कि हमें संघर्ष को ही राजनीतिक रूप देना है ! अपने तात्कालिक क्रान्तिकारी महत्व के अलावा, मालिकों तथा सरकार मजदूरों के आर्थिक संघर्ष का" (" सरकार के खिलाफ़ आर्थिक "यह महत्व भी है कि उससे लगातार मजदूरों के सामने यह बात साफ़ होती रहती है कि उनके कोई राजनीतिक अधिकार नहीं हैं । " (मार्तिनोव, पृष्ठ ४४।) हम इस अंश को उद्धृत कर रहे हैं तो इसलिए नहीं कि जो कुछ पहले ही कहा जा चुका है, उसे सौवीं या हज़ारवीं बार फिर दुहरायें, बल्कि "मालिकों तथा सरकार के खिलाफ़ मज़दूरों के आर्थिक संघर्ष" के इस विलक्षण एवं नवीन सूत्र के लिए मार्तिनोव को हम धन्यवाद दें । क्या हीरा जैसा सूत्र है ! "अर्थवादियों" में पाये जानेवाले तमाम छोटे-मोटे, आंशिक मतभेदों और अलगअलग रंगों को कैसे अनुपम कौशल एवं चातुर्य से दूर करके यह स्पष्ट तथा संक्षिप्त सूत्र " अर्थवाद" के सार-तत्व को व्यक्त करता हैः मज़दूरों को यह सलाह देने से शुरू करके कि उन्हें उस 'राजनीतिक संघर्ष में" शामिल होना चाहिए, 'जिसे वे सबके सामान्य हित में इस उद्देश्य से चलाते हैं कि सभी मज़दूरों की
हालत में सुधार हो अलग-अलग मंज़िलों वाले सिद्धान्त से होते हुए अन्त में जाकर कांग्रेस से " जिसका सबसे अधिक व्यापक रूप में उपयोग किया जा सकता है, प्रस्ताव का रूप धारण कर लेना, आदि । सरकार के ख़िलाफ़ आर्थिक संघर्ष " सरासर ट्रेड यूनियनवादी राजनीति है, जिसमें और सामाजिक-जनवादी राजनीति में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ है ।
राबोचाया मीस्ल', विशेष क्रोड़पत्र, पृष्ठ १४ ।
( ख ) एक कहानी - मार्तिनोव ने प्लेखानोव को और गूढ़ कैसे बनाया
कुछ दिनों से हमारे बीच कितनी बड़ी संख्या में सामाजिक जनवादी लोमोनोसोव पैदा हो गये हैं ! " - एक साथी ने एक रोज़ यह कहा; वह अर्थवाद" की ओर झुकाव रखनेवाले बहुत से लोगों की इस आश्चर्यजनक प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहा था कि वे "अकेले ही " महान सत्यों का आविष्कार कर डालते हैं (जैसे यह कि आर्थिक संघर्ष मज़दूरों को अपने अधिकारों के अभाव के बारे में सोचने की प्रेरणा देता है), और ऐसा करते समय वे क्रान्तिकारी विचारधारा और क्रान्तिकारी आन्दोलन के पहले के तमाम विकास के दौरान में जो कुछ भी पैदा किया गया है उसे जन्मजात मेधावी पुरुषों की भांति असीम तिरस्कार के साथ भुला देते हैं। लोमोनोसोव-मार्तिनोव बिलकुल ऐसे ही जन्मजात मेधावी पुरुष हैं। उनके 'तात्कालिक प्रश्न' शीर्षक लेख पर एक नज़र डालिये और देखिये कि वह कैसे "अकेले ही " उस बात तक लगभग पहुंच जाते हैं जिसे अक्सेद बहुत दिन पहले कह चुके हैं ( जाहिर है कि इनके बारे में हमारा लोमोनोसोव एक शब्द भी नहीं कहता ) ; मिसाल के लिए, वह किस तरह यह समझना शुरू कर रहे हैं कि हम पूंजीपति वर्ग के विभिन्न स्तरों के विरोध की अवहेलना नहीं कर सकते ('राबोचेये देलो', अंक ६, पृष्ठ ६१, ६२, ७१ ; इसकी तुलना अक्सेलरोद के नाम ""राबोचेये देलो' के उत्तर " से कीजिये, पृष्ठ २२, २३-२४), इत्यादि । लेकिन अफ़सोस यह है कि वह केवल "लगभग पहुंच पाते हैं", और अभी " शुरू " ही कर रहे हैं, इससे ज्यादा नहीं, क्योंकि अक्सेलरोद के विचारों को उन्होंने इतना कम समझा है कि वह "मालिकों तथा सरकार के खिलाफ़ आर्थिक संघर्ष " की बात करते हैं। 'राबोचेये देलो' ने तीन साल से (१८९८१९०१) अक्सेल्रोद को समझने की जी-तोड़ कोशिश की है, पर पर अभी तक नहीं समझ पाया है ! इसका शायद एक कारण यह है कि मानवजाति की भांति " सामाजिक जनवाद भी सदा अपने सामने ऐसे ही काम रखता है, जिन्हें वह पूरा कर सकता है ?
परन्तु हमारे इन लोमोनोसोवों की यही एक विशेषता नहीं है कि बहुत सी बातों के विषय में वे घोर अज्ञान रखते हैं (यह तो आधे दुर्भाग्य की बात
होती ! ) उनकी एक विशेषता यह भी है कि अपने का उन्हें तनिक भी आभास नहीं है। और यह सचमुच बड़े दुर्भाग्य की बात है; और इसी दुर्भाग्य का प्रताप है कि वे झटपट प्लेखानोव को " और गूढ़ " बनाने की कोशिश करने लगते हैं ।
लोमोनोसोव-मार्तिनोव कहते हैंः "जिस समय प्लेखानोव ने यह ( " रूस में अकाल के विरुद्ध संघर्ष में समाजवादियों के काम ) लिखी थी, तब से दरिया में बहुत पानी बह चुका है। सामाजिकजनवादी, जो दस वर्षों से मज़दूर वर्ग के आर्थिक संघर्ष का नेतृत्व कर रहे हैं अभी तक पार्टी की कार्यनीति के लिए कोई व्यापक सैद्धान्तिक आधार निर्धारित नहीं कर पाये हैं। अब यह सवाल बहुत ज़रूरी बन गया है, और यदि हम ऐसा सैद्धान्तिक आधार निर्धारित करना चाहते हैं, तो एक समय प्लेखानोव ने कार्यनीति के जिन सिद्धान्तों को विकसित किया था, हमें निश्चय ही उनको और गहरा बनाना होगा प्रचार और आन्दोलन के अन्तर की हमारी वर्तमान परिभाषा को प्लेखानोव की परिभाषा से भिन्न होना होगा ।" (मार्तिनोव इसके कुछ पहले ही प्लेखानोव के इन शब्दों को उद्धृत कर चुके थे : कोई प्रचारक एक या चन्द आदमियों के सामने अनेक विचार पेश करता है, आन्दोलनकर्ता केवल एक या चन्द विचार पेश करता है, परन्तु वह उन्हें आम जनता के सामने रखता है । " ) हम प्रचार उसे कहेंगे जब आजकल की पूरी व्यवस्था का या उसके आंशिक रूपों का क्रान्तिकारी ढंग से स्पष्टीकरण किया जाये, चाहे वह चन्द व्यक्तियों को समझाने की भाषा में किया जाये या आम जनता को समझाने की भाषा में । आन्दोलन, यदि उसके बिलकुल सही अर्थ को लिया जाये तो, " ( जी हां ! ) " हम उसे कहेंगे जब जनता का कुछ ऐसे ठोस काम करने के लिए आवाहन किया जाये जिनसे सामाजिक जीवन में सर्वहारा वर्ग के सीधे क्रान्तिकारी हस्तक्षेप में सहायता मिलती हो । "
इस नयी मार्तिनोव शब्दावली के लिए, जो अधिक चुस्त और अधिक गूढ़ है,
हम रूसी - और अन्तर्राष्ट्रीय - सामाजिक-जनवाद को बधाई देते हैं । अभी तक
( प्लेखानोव की भांति और अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर वर्ग के आन्दोलन के सभी |
7446efc24454b0fe3a518cc81442ededcca412d0 | web | तेनाली रामकृष्ण (तेलुगुः తెనాలి రామకృష్ణ) जो विकटकवि (विदूषक) के रूप में जाने जाते थ,आंध्र प्रदेश के एक तेलुगु कवि थे। वे अपनी कुशाग्र बुद्धि और हास्य बोध के कारण प्रसिद्ध हुये। तेनाली विजयनगर साम्राज्य (१५०९-१५२९) के राजा कृष्णदेवराय के दरबार के अष्टदिग्गजों में से एक थे। विजयनगर के राजपुरोहित वयासतीर्थ तथाचार्य रामा से शत्रुता रखते थे। तथाचार्य और उसके शिष्य धनीचार्य और मनीचार्य तेनाली रामा को मुसीबत में फसाने के लिए नई-नई तरकीबें प्रयोग करते थे पर तेनाली रामा उन तरकीबों का हल निकाल लेता था। .
41 संबंधोंः एनिमेशन, तथाचार्य, तमिल, तेनाली, तेनाली रामा (टीवी धारावाहिक), तेलुगू भाषा, तेलुगू साहित्य, दूरदर्शन, धनीचार्य, धर्म, नन्दमूरि तारक रामाराव, पुरोहित, भारत, भास्कर, मनीचार्य, राजा बीरबल, लक्षम्मा, लोक साहित्य, शारधा, शैव, सब टीवी, विदूषक, विल्लुपुरम चिन्नैया गणेशन, विजयनगर, वैष्णव सम्प्रदाय, गरालपति रामैया, गुंटूर, गुंडप्पा, आन्ध्र प्रदेश, कन्नड़, कमला लक्ष्मण, कार्टून नेटवर्क (भारत), काली, कवि, कृष्ण भारद्वाज, कृष्णदेवराय, अनंत नाग, अष्टदिग्गज, अक्किनेनी नागेश्वर राव, १५०९, १५२९।
चित्रःAnimexample3edit.png उछलती हुई गेंद के एनिमेशन (नीचे) में 6 फ्रेम शामिल हैं। चित्रःAnimexample.gif यह एनिमेशन 10 फ्रेम प्रति सेकण्ड की गति से चलता है। अनुप्राणन या एनिमेशन द्विआयामी और त्रिआयामी कलाकृतियों या निदर्श (मॉडल) की छवियों का, संचलन का भ्रम उत्पन्न करने के लिए तेजी से किया गया सिलसिलेवार प्रदर्शन है। यह दृष्टि की दृढ़ता के कारण उत्पन्न गति का एक प्रकाशीय भ्रम है और इसकी रचना और प्रदर्शन कई तरह से किया जा सकता है। एनिमेशन प्रस्तुत करने का सबसे आम तरीका एक चलचित्र या वीडियो कार्यक्रम के रूप में इसे प्रस्तुत करना है, हालांकि एनिमेशन कई अन्य रूपों में भी पेश किया जा सकता है। 2D एवं 3D कलाकृति को एक साथ एक निर्धारित दिशा में प्रदर्शित करने को ऐनीमेशन कहते हैं I ऐनीमेशन एक प्रकार का दृष्टी भ्रम भी हो सकता है I क्यों की ये सामान्य मानव नेत्र की दृष्टी छमता के कारण महसूस होता है I आप ऐनीमेशन को कई प्रकार से कर एवं महसूस कर सकते हैं I सबसे साधारण तरीका ये हैं कि आप इसे चलचित्र द्वारा प्रस्तुत करे I इस के अलावा इसे करने के और भी कई तरीके है .
तथाचार्य या तथाचारय विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय का राजपुरोहित था।उसकी पत्नी का नाम वरुणमाला और बेटा व्यासाचार्य था।तथाचार्य का सही नाम व्यासतीर्थ तथाचार्य था। तथाचार्य के दो शिष्य 'धनीचार्य' और 'मनीचार्य' थे। वह तेनाली रामा से शत्रुता रखते थे। तथाचार्य जितना ज्ञानी था उससे अधिक पाखंडी था।.
एक तमिल परिवार श्रीलंका में तमिल बच्चे भरतनाट्यम तमिल एक मानमूल है, जिनका मुख्य निवास भारत के तमिलनाडु तथा उत्तरी श्री लंका में है। तमिल समुदाय से जुड़ी चीजों को भी तमिल कहते हैं जैसे, तमिल तथा तमिलनाडु के वासियों को भी तमिल कहा जाता है। तामिल, द्रविड़ जाति की ही एक शाखा है। बहुत से विद्वानों की राय है कि 'तामिल' शब्द संस्कृत 'द्राविड' से निकला है। मनुसंहिता, महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में द्रविड देश और द्रविड जाति का उल्लेख है। मागधी प्राकृत या पाली में इसी 'द्राविड' शब्द का रूप 'दामिलो' हो गया। तामिल वर्णमाला में त, ष, द आदि के एक ही उच्चारण के कारण 'दामिलो' का 'तामिलो' या 'तामिल' हो गया। शंकराचार्य के शारीरक भाष्य में 'द्रमिल' शब्द आया है। हुएनसांग नामक चीनी यात्री ने भी द्रविड देश को 'चि - मो - लो' करके लिखा है। तमिल व्याकरण के अनुसार द्रमिल शब्द का रूप 'तिरमिड़' होता है। आजकल कुछ विद्वानों की राय हो रही है कि यह 'तिरमिड़' शब्द ही प्राचीन है जिससे संस्कृतवालों ने 'द्रविड' शब्द बना लिया। जैनों के 'शत्रुंजय माहात्म्य' नामक एक ग्रंथ में 'द्रविड' शब्द पर एक विलक्षण कल्पना की गई है। उक्त पुस्तक के मत से आदि तीर्थकर ऋषभदेव को 'द्रविड' नामक एक पुत्र जिस भूभाग में हुआ, उसका नाम 'द्रविड' पड़ गया। पर भारत, मनुसंहिता आदि प्राचीन ग्रंथों से विदित होता है कि द्रविड जाति के निवास के ही कारण देश का नाम द्रविड पड़ा। तामिल जाति अत्यंत प्राचीन हे। पुरातत्वविदों का मत है कि यह जाति अनार्य है और आर्यों के आगमन से पूर्व ही भारत के अनेक भागों में निवास करती थी। रामचंद्र ने दक्षिण में जाकर जिन लोगों की सहायता से लंका पर चढ़ाई की थी और जिन्हें वाल्मीकि ने बंदर लिखा है, वे इसी जाति के थे। उनके काले वर्ण, भिन्न आकृति तथा विकट भाषा आदि के कारण ही आर्यों ने उन्हें बंदर कहा होगा। पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि तामिल जाति आर्यों के संसर्ग के पूर्व ही बहुत कुछ सभ्यता प्राप्त कर चुकी थी। तामिल लोगों के राजा होते थे जो किले बनाकर रहते थे। वे हजार तक गिन लेते थे। वे नाव, छोटे मोटे जहाज, धनुष, बाण, तलवार इत्यादि बना लेते थे और एक प्रकार का कपड़ा बुनना भी जानते थे। राँगे, सीसे और जस्ते को छोड़ और सब धातुओं का ज्ञान भी उन्हें था। आर्यों के संसर्ग के उपरांत उन्होंने आर्यों की सभ्यता पूर्ण रूप से ग्रहण की। दक्षिण देश में ऐसी जनश्रुति है कि अगस्त्य ऋषि ने दक्षिण में जाकर वहाँ के निवासियों को बहुत सी विद्याएँ सिखाई। बारह-तेरह सौ वर्ष पहले दक्षिण में जैन धर्म का बड़ा प्रचार था। चीनी यात्री हुएनसांग जिस समय दक्षिण में गया था, उसने वहाँ दिगंबर जैनों की प्रधानता देखी थी। तमिल भाषा का साहित्य भी अत्यंत प्राचीन है। दो हजार वर्ष पूर्व तक के काव्य तामिल भाषा में विद्यमान हैं। पर वर्णमाला नागरी लिपि की तुलना में अपूर्ण है। अनुनासिक पंचम वर्ण को छोड़ व्यंजन के एक एक वर्ग का उच्चारण एक ही सा है। क, ख, ग, घ, चारों का उच्चारण एक ही है। व्यंजनों के इस अभाव के कारण जो संस्कृत शब्द प्रयुक्त होते हैं, वे विकृत्त हो जाते हैं; जैसे, 'कृष्ण' शब्द तामिल में 'किट्टिनन' हो जाता है। तामिल भाषा का प्रधान ग्रंथ कवि तिरुवल्लुवर रचित कुराल काव्य है। .
तेनाली भारत के आंध्र प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। श्रेणीःआन्ध्र प्रदेश श्रेणीःआन्ध्र प्रदेश के नगर.
तेनाली रामा (टीवी धारावाहिक)
तेनाली रामा सब टीवी पर प्रसारित होने वाला एक मनोरंजन धारावाहिक है जो कि प्राचीन कवि व राजा कृष्णदेव राय के दरबारी कवि और विदूषक तेनाली रामकृष्ण पर आधारित है। .
तेलुगु भाषा (तेलुगूःతెలుగు భాష) भारत के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों की मुख्यभाषा और राजभाषा है। ये द्रविड़ भाषा-परिवार के अन्तर्गत आती है। यह भाषा आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के अलावा तमिलनाडु, कर्णाटक, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में भी बोली जाती है। तेलुगु के तीन नाम प्रचलित हैं -- "तेलुगु", "तेनुगु" और "आंध्र"। .
तेलुगु का साहित्य (तेलुगुः తెలుగు సాహిత్యం / तेलुगु साहित्यम्) अत्यन्त समृद्ध एवं प्राचीन है। इसमें काव्य, उपन्यास, नाटक, लघुकथाएँ, तथा पुराण आते हैं। तेलुगु साहित्य की परम्परा ११वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से शुरू होती है जब महाभारत का संस्कृत से नन्नय्य द्वारा तेलुगु में अनुवाद किया गया। विजयनगर साम्राज्य के समय यह पल्लवित-पुष्पित हुई। .
दूरदर्शन या टेलीविजन (या संक्षेप में, टीवी) एक ऐसी दूरसंचार प्रणाली है जिसके द्वारा चलचित्र व ध्वनि को दो स्थानों के बीच प्रसारित व प्राप्त किया जा सके। यह शब्द दूरदर्शन सेट, दूरदर्शन कार्यक्रम तथा प्रसारण के लिये भी प्रयुक्त होता है। दूरदर्शन का अंग्रेजी शब्द 'टेलिविज़न' लैटिन तथा यूनानी शब्दों से बनाया गया है जिसका अर्थ होता है दूर दृष्टि (यूनानी - टेली .
धनीचार्य विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के राजपुरोहित तथाचार्य के दो शिष्यों में से एक था। मनीचार्य तथाचार्य का दूसरा शिष्य था।.
धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। "सम्प्रदाय" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालिः धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .
हैदराबाद-श्रीसैलम मार्ग पर स्थित एन टी रामाराव की मूर्ति नन्दमूरि तारक रामाराव (तेलुगूः నందమూరి తారక రామా రావు) या एन.टी.
पुरोहितः पुरोहित दो शब्दों से बना हैः- 'पर' तथा 'हित', अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी। हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। यह पुरोहित सभी तरह के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है। प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे। अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे। श्रेणीःहिन्दू धर्म.
भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायोंः हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
भास्कर तेनाली रामा का पुत्र था। शारधा भास्कर की माता थी।.
मनीचार्य विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय के राजपुरोहित तथाचार्य के दो शिष्यों में से एक था। धनीचार्य तथाचार्य का दूसरा शिष्य था।.
राजा बीरबल(1528-1586)-असली नाम महेश दास भट्ट(राव राजपूत) (जन्म-1528 ई.; मृत्यु- 1586 ई.) मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में सर्वाधिक लोकप्रिय एक भट्ट ब्राह्मण(राव राजपूत) दरबारी था। बीरबल की व्यंग्यपूर्ण कहानियों और काव्य रचनाओं ने उन्हें प्रसिद्ध बनाया था। बीरबल ने दीन-ए-इलाही अपनाया था और फ़तेहपुर सीकरी में उनका एक सुंदर मकान था। बादशाह अकबर के प्रशासन में बीरबल मुग़ल दरबार का प्रमुख वज़ीर था और राज दरबार में उसका बहुत प्रभाव था। बीरबल कवियों का बहुत सम्मान करता था। वह स्वयं भी ब्रजभाषा का अच्छा जानकार और कवि था। .
लक्षम्मा तेनाली रामा की माता थी। गरालपति रामैया लक्षम्मा का पति था।.
लोक सहित्य का अभिप्राय उस साहित्य से है जिसकी रचना लोक करता है। लोक-साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना कि मानव, इसलिए उसमें जन-जीवन की प्रत्येक अवस्था, प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समय और प्रकृति सभी कुछ समाहित है। डॉ॰ सत्येन्द्र के अनुसार- "लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो आभिजात्य संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है।" (लोक साहित्य विज्ञान, डॉ॰ सत्येन्द्र, पृष्ठ-03) साधारण जनता से संबंधित साहित्य को लोकसाहित्य कहना चाहिए। साधारण जनजीवन विशिष्ट जीवन से भिन्न होता है अतः जनसाहित्य (लोकसाहित्य) का आदर्श विशिष्ट साहित्य से पृथक् होता है। किसी देश अथवा क्षेत्र का लोकसाहित्य वहाँ की आदिकाल से लेकर अब तक की उन सभी प्रवृत्तियों का प्रतीक होता है जो साधारण जनस्वभाव के अंतर्गत आती हैं। इस साहित्य में जनजीवन की सभी प्रकार की भावनाएँ बिना किसी कृत्रिमता के समाई रहती हैं। अतः यदि कहीं की समूची संस्कृति का अध्ययन करना हो तो वहाँ के लोकसाहित्य का विशेष अवलोकन करना पड़ेगा। यह लिपिबद्ध बहुत कम और मौखिक अधिक होता है। वैसे हिंदी लोकसाहित्य को लिपिबद्ध करने का प्रयास इधर कुछ वर्षों से किया जा रहा है और अनेक ग्रंथ भी संपादित रूप में सामने आए हैं किंतु अब भी मौखिक लोकसाहित्य बहुत बड़ी मात्रा में असंगृहीत है। लोक जीवन की जैसी सरलतम, नैसर्गिक अनुभूतिमयी अभिव्यंजना का चित्रण लोकगीतों व लोक-कथाओं में मिलता है, वैसा अन्यत्र सर्वथा दुर्लभ है। लोक-साहित्य में लोक-मानव का हृदय बोलता है। प्रकृति स्वयं गाती-गुनगुनाती है। लोक-साहित्य में निहित सौंदर्य का मूल्यांकन सर्वथा अनुभूतिजन्य है। .
शारधा या शारदा तेनाली रामा की पत्नी थी। भास्कर शारधा का पुत्र था।.
भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैंः (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। शैव धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्यः (1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। (2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है। (3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। (4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। (5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है। (6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है। (7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई हैः (i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत (7) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। (8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है। (9) कापलिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक स्थान था। (10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे। (11) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे। (12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था। (13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ। (14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा। (15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है। जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है। (16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया। (17) ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। (18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था। (19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है। (20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैंः (i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल (21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैंः (i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव (22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैंः (i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई (23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैंः (i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर (24) शैव सम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार हैंः (i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। (ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं। (iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। (iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। (v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। (vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। (vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। (viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। (ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। (x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं। (25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा,औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है। .
सब टीवी एक हिन्दी टी वी चैनल है। इसकी शुरुआत 23 अप्रैल 1999 में श्री अधिकारी ब्रदर्स ने एक सामान्य मनोरंजक चैनल के रूप में की। 2003 में यह चैनल हास्य केन्द्रित हो गया। मार्च 2005 में सब टी वी को सोनी टी वी ने ग्रहण कर लिया और युवा केन्द्रित हो गया। जून 2008 में चैनल ने फिर से हास्य केन्द्रित होने की घोषणा की। यह एक हास्य पूर्ण टी वी चैनल है। यह सोनी का एक नया चेनल है। .
कूडियाट्टम् में विदूषक विदूषक, भारतीय नाटकों में एक हँसाने वाला पात्र होता है। मंच पर उसके आने मात्र से ही माहौल हास्यास्पद बन जाता है। वह स्वयं अपना एवं अपने परिवेश का मजाक उडाता है। उसके कथन एक तरफ हास्य को जन्म देते हैं और दूसरी तरफ उनमें कटु सत्य का पुट होता है। .
शिवाजी गणेशन (சிவாஜி கணேசன்) (जन्मःविल्लुपुरम चिन्नैया पिल्लई गणेशन, १ अक्टूबर, १९२८ - २१ जुलाई, २००१)) एक भारतीय फिल्म अभिनेता थे। ये बीसवीं शताब्दी के परार्ध में सक्रिय रहे। इनको भारत सरकार द्वारा सन १९८४ में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये तमिलनाडु राज्य से हैं। .
विजयनगर साम्राज्य की राजधानी; अब यह हम्पी (पम्पा से निकला हुआ) नगर है। .
वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत चार सम्प्रदाय मुख्य रूप से आते हैं। पहले हैं आचार्य रामानुज, निमबार्काचार्य, बल्लभाचार्य, माधवाचार्य। इसके अलावा उत्तर भारत में आचार्य रामानन्द भी वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हुए और चैतन्यमहाप्रभु भी वैष्णव आचार्य है जो बंगाल में हुए। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को सगुण भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया। उनकी अन्य रचनाएँ - विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली, बरवै रामायण एक ज्योतिष ग्रन्थ रामाज्ञा प्रश्नावली का भी निर्माण किया। .
गरालपति रामैया तेनाली रामा का पिता था। लक्षम्मा रामैया की पत्नी थी।.
गुंटूर आंध्र प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। आंध्र प्रदेश के उत्तर पूर्वी भाग में कृष्णा नदी डेल्टा में स्थित है गुंटूर। विजयवाड़ा-चेन्नई ट्रंक रोड पर स्थित गुंटूर की स्थापना फ्रांसिसी शासकों ने आठवीं शताब्दी के मध्य में की थी। करीब 10 शताब्दियों तक उन्होंने यहां राज किया। बाद में 1788 में इसे ब्रिटिश साग्राज्य में मिला दिया गया। गुंटूर बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। प्रकृति ने अपनी खूबसूरती ऊचें पहाड़ों, हरीभरी घाटियों, कलकल बहती नदियों और मनमोहक तटों के रूप में यहां बिखेरी है। आज गुंटूर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों तथा चटपटे अचार के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। .
गुंडप्पा तेनाली रामा का परम-मित्र था। वह तेनाली रामा से १५ (15) वर्ष छोटा था।.
आन्ध्र प्रदेश ఆంధ్ర ప్రదేశ్(अनुवादः आन्ध्र का प्रांत), संक्षिप्त आं.प्र., भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित राज्य है। क्षेत्र के अनुसार यह भारत का चौथा सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से आठवां सबसे बड़ा राज्य है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर हैदराबाद है। भारत के सभी राज्यों में सबसे लंबा समुद्र तट गुजरात में (1600 कि॰मी॰) होते हुए, दूसरे स्थान पर इस राज्य का समुद्र तट (972 कि॰मी॰) है। हैदराबाद केवल दस साल के लिये राजधानी रहेगी, तब तक अमरावती शहर को राजधानी का रूप दे दिया जायेगा। आन्ध्र प्रदेश 12°41' तथा 22°उ॰ अक्षांश और 77° तथा 84°40'पू॰ देशांतर रेखांश के बीच है और उत्तर में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में तमिल नाडु और पश्चिम में कर्नाटक से घिरा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से आन्ध्र प्रदेश को "भारत का धान का कटोरा" कहा जाता है। यहाँ की फसल का 77% से ज़्यादा हिस्सा चावल है। इस राज्य में दो प्रमुख नदियाँ, गोदावरी और कृष्णा बहती हैं। पुदु्चेरी (पांडीचेरी) राज्य के यानम जिले का छोटा अंतःक्षेत्र (12 वर्ग मील (30 वर्ग कि॰मी॰)) इस राज्य के उत्तरी-पूर्व में स्थित गोदावरी डेल्टा में है। ऐतिहासिक दृष्टि से राज्य में शामिल क्षेत्र आन्ध्रपथ, आन्ध्रदेस, आन्ध्रवाणी और आन्ध्र विषय के रूप में जाना जाता था। आन्ध्र राज्य से आन्ध्र प्रदेश का गठन 1 नवम्बर 1956 को किया गया। फरवरी 2014 को भारतीय संसद ने अलग तेलंगाना राज्य को मंजूरी दे दी। तेलंगाना राज्य में दस जिले तथा शेष आन्ध्र प्रदेश (सीमांन्ध्र) में 13 जिले होंगे। दस साल तक हैदराबाद दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी होगी। नया राज्य सीमांन्ध्र दो-तीन महीने में अस्तित्व में आजाएगा अब लोकसभा/राज्यसभा का 25/12सिट आन्ध्र में और लोकसभा/राज्यसभा17/8 सिट तेलंगाना में होगा। इसी माह आन्ध्र प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लागू हो गया जो कि राज्य के बटवारे तक लागू रहेगा। .
कोई विवरण नहीं।
कमला लक्ष्मण बाल पुस्तकों की भारतीय लेखिका और विख्यात कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण की पत्नी थीं। उनका २०१५ में ९० वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी लिखी लघु कहानियों पर १९९० में तेनाली राम नामक दूरदर्शन धारावाहिक भी बना जिसमें विजय कश्यप ने शीर्षक भूमिका अदा की थी। .
कार्टून नेटवर्क (भारत)
कार्टून नेटवर्क भारत एक भारतीय बाल चैनल है। कार्टून नेटवर्क एक भारत में प्रसारित होने वाला पूर्व अंग्रेज़ी चैनल है। कार्टून नेटवर्क इंडिया एक केबल और सेटेलाइट टेलीविज़न चैनल है, जो टर्नर ब्रॉडकास्टिंग के द्वारा बनाई गई है, यह चैनल टाइम वॉर्नर की एक इकाई है जो एनिमेटेड प्रोग्रामिंग केलिए बनी है, जिसका मुख्यालय बम्बई, महाराष्ट्र में है। "कार्टून नेटवर्क" का १९९५ में दोहरे चैनल के रूप में भारत में प्रसारण शुरू हुआ,TCM और कार्टून नेटवर्क । टीएनटी और कार्टून नेटवर्क, जिसका प्रसारण ५ः३० am से ५ः३० pm तक होता था। फिर १ जुलाई २००१ में कार्टून नेटवर्क इंडिया में टर्नर क्लासिक फिल्म की जगह पर २४ घंटे शुरू हुआ, जिसका प्रसारण नेपाल और भूटान में शरू हुआ। कार्टून नेटवर्क भारत में हिंदी, अंग्रेज़ी, तेलुगु और तमिल में प्रसारित होता है। कार्टून नेटवर्क भारत के आलावा नेपाल, भूटान, श्रीलंका और बंगलादेश में भी प्रसारित होती है। श्रेणीःअंग्रेजी टीवी चैनल श्रेणीःतेलुगु चैनल.
काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली भगवती दुर्गा का काला और भयप्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको ख़ासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय से हुई है जो सबको अपना ग्रास बना लेता है। माँ का यह रूप है जो नाश करने वाला है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए हैं जो दानवीय प्रकृति के हैं जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई से अच्छाई को जीत दिलवाने वाला है अतः माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु है और पूजनीय है।इनको महाकाली भी कहते हैं। .
कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषयः मन्त्रदृष्टारः कवयः क्रान्तदर्शिनः अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी हैः "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) .
कृष्ण भारद्वाज एक भारतीय टीवी कलाकार हैं। उनका जन्म रांची, झारखंड में हुआ था। उन्होंने कई टीवी धारावाहिकों जैसे जसुबेन जयंतीलाल जोशी की ज्वाइंट फॅमिली, सुख बाई चांस, आर के लक्ष्मण की दुनिया और पिया बसंती रे में प्रमुख भूमिकायें अदा की हैं। कृष्ण ने "आई गेस" (2013) व "वन नाइट स्टैंड" जैसी कुछ लघु फिल्मों में भी अभिनय किया है। संप्रति कृष्ण सब टीवी पर प्रसारित धारावाहिक तेनाली रामा में शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। यह धारावाहिक १६वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य में राजा कृष्णदेव राय के दरबारी कवि और विदूषक रामकृष्ण से संबंधित लोक साहित्य व किवदंतियों पर आधारित है। अपने ग्राम तेनाली के नाम से प्रसिद्ध रामकृष्ण अपनी कुशाग्र बुद्धि और विनोद के कारण आज भी याद किये जाते हैं। भारद्वाज को इस भूमिका के लिये अपना सर भी मुंडाना पड़ा।.
कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा संगीतमय स्तम्भों से युक्त हम्पी स्थित विट्ठल मन्दिर; इसके होयसला शैली के बहुभुजाकार आधार पर ध्यान दीजिए। कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.; राज्यकाल 1509-1529 ई) विजयनगर के सर्वाधिक कीर्तिवान राजा थे। वे स्वयं कवि और कवियों के संरक्षक थे। तेलुगु भाषा में उनका काव्य अमुक्तमाल्यद साहित्य का एक रत्न है। इनकी भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित पुस्तक वंशचरितावली तेलुगू के साथ - साथ संस्कृत में भी मिलती है। संभवत तेलुगू का अनुवाद ही संस्कृत में हुआ है। प्रख्यात इतिहासकार तेजपाल सिंह धामा ने हिन्दी में इनके जीवन पर प्रामाणिक उपन्यास आंध्रभोज लिखा है। तेलुगु भाषा के आठ प्रसिद्ध कवि इनके दरबार में थे जो अष्टदिग्गज के नाम से प्रसिद्ध थे। स्वयं कृष्णदेवराय भी आंध्रभोज के नाम से विख्यात थे। .
अनंत नाग हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। .
अष्टदिग्गज (तेलुगुः అష్టదిగ్గజాలు) विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में विभूषित आठ कवियों के लिये प्रयुक्त शब्द है। कहा जाता है कि इस काल में तेलुगु साहित्य अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच गया था। कृष्णदेव के दरबार में ये कवि साहित्य सभा के आठ स्तम्भ माने जाते थे। इस काल (१५४० से १६००) को तेलुगू कविता के सन्दर्भ में 'प्रबन्ध काल' भी कहा जाता है। ये अष्टदिग्गज ये हैं-.
अक्किनेनी नागेश्वर राव (प्रचलित नाम एएनआर 20 सितम्बर 1923 - 22 जनवरी 2014) मुख्य रूप से तेलुगू सिनेमा में काम करने वाले भारतीय फ़िल्म अभिनेता एवं निर्माता थे। उन्हें मुख्यतः उनके नायिका के अभिनय के लिए जाना जाता था क्योंकि उस समय महिलाओं का फ़िल्मों में अभिनय करना निषिद्ध था। उन्हें भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए सन् १९८८ में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। .
१५०९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
1529 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .
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a10b346cbd6b787c4ff4ac5e34a70492d8e4a101 | web | Предыдущая статья "Ренессанс пистолетов-пулеметов" вызвала довольно оживленную дискуссию, со всеми ее обычными принадлежностями: обвинениями автора, то есть меня, в дилетантстве, незнании азов и так далее. Многочисленные поклонники штурмовых винтовок привычно сыпали калибрами, кучностями и дальностями эффективной стрельбы, горячо выступали за оружие, которое бьет на 200, 300, 400 метров, и на основании этого аргумента считают применение пистолетов-пулеметов бредом. Однако чем больше было комментариев такого рода, тем сильнее создавалось ощущение, что высказавшиеся многочисленные специалисты, все, словно на подбор, с военным образованием и огромным боевым опытом, просто не имеют четкого представления, как именно и на какой дистанции идет бой.
यह पता लगाना कि वास्तव में चीजें कितनी कठिन हो गई हैं, इतनी मुश्किल नहीं है। प्रौद्योगिकी की प्रगति अब आपको पहले व्यक्ति से लड़ाई को देखने की अनुमति देती है। कई साल पहले सैनिकों के हेलमेट पर कैमरे लगाने की बहुत व्यापक प्रथा थी, जो कुछ भी होता है उसे शूट करते हैं। ऐसा करने वाले पहले अफगानिस्तान और इराक में अमेरिकी थे, और आप वर्ष के 2007 कहते हैं, वे वीडियो टेप (वे आमतौर पर मुकाबला फुटेज कहलाते हैं) कह सकते हैं। कैमरे तब इतने अच्छे नहीं थे, लेकिन उन्होंने फिर भी लड़ाई की तस्वीर दी। वर्तमान हेलमेट-माउंटेड कैमरे, जो अब कई सेनाओं द्वारा उपयोग किए जाते हैं, उच्च परिभाषा वीडियो बनाते हैं, जिसे देखने के बाद दृश्य में व्यक्तिगत उपस्थिति की पूरी भावना होती है।
कहा जाता है कि अमेरिकी नौसैनिकों को एक झड़प के रूप में कहा जाता है, एक नियम के रूप में, कुछ अनपेक्षित, टीमों के साथ घिरे हुए और छोटी टिप्पणियों के साथ, लेकिन यह आग के संपर्क के दौरान हेलमेट कैमरे दिखाते हैं, यह वास्तव में दिलचस्प है। अवलोकन ऐसे किए जा सकते हैं।
सबसे पहले, लगभग सभी लड़ाइयों जिसमें अमेरिकियों ने अपनी असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल किया था, वे 20-30 मीटर की दूरी पर थे। हालाँकि कैमरे थोड़ी दूरी तय करते हैं और आँख मीटर के साथ निर्धारित करना मुश्किल होता है, फिर भी, कुछ स्थलों, जैसे कि घरों, द्वैध, कारों, पेड़ों, झाड़ियों, हमें कम गुणवत्ता वाली रिकॉर्डिंग पर भी दूरी का अनुमान लगाने की अनुमति देते हैं। दूसरा तरीका कैमरा ऑपरेटर के आंदोलन की दृश्यमान दूरी की तुलना करना है (आप चरणों की गणना भी कर सकते हैं, वे विशेषता भारी बू द्वारा श्रव्य हैं), एक और दृश्यमान दूरी के साथ। उदाहरण के लिए, गाँव में लड़ाई के एक रिकॉर्ड पर। अमेरिकी कम, छाती-उच्च युगल पर बैठते हैं और उनके विपरीत घर की ओर गोली मारते हैं। सूरज कैमरे के खिलाफ था, क्योंकि जगहें धुंधली हैं। हालांकि, जब ऑपरेटर उस घर के चारों ओर घूमते थे, जो वे ड्यूवला के साथ बचाव कर रहे थे, तो स्थिति को बदलने के लिए, और जिस स्थान पर वे शूटिंग कर रहे थे उस जगह पर नज़र रखी, यह स्पष्ट हो गया कि लड़ाई सड़क पर लड़ी गई थी। फिर ऑपरेटर ने इसे पार कर लिया, जिससे 18 चरण बना, जो लगभग 10-12 मीटर देता है।
दूसरे, विरोधियों के लगभग सभी आग संपर्क रिकॉर्ड दिखाई नहीं देते हैं, भले ही वे बहुत करीब हैं। कई प्रविष्टियों में से, केवल दो दुश्मन देख सकते थेः एक अस्पष्ट काला सिल्हूट। इस तरह का पहला रिकॉर्ड हत्या अमेरिकी सैनिक के कैमरे से लिया गया। तालिबान द्वारा एक तीन-व्यक्ति गश्त पर अचानक हमला किया गया था, अमेरिकियों ने किसी तरह के गड्ढे में छिपाने का प्रयास किया (फील्ड किलेबंदी के लिए अमेरिकी तिरस्कार कभी-कभी अद्भुत होता है)। उन्होंने गोली चलाई, लेकिन रिकॉर्ड यह नहीं दिखाता कि कौन है। अंत में, अमेरिकियों में से एक मारा गया। ऑपरेटर ने साइड से किए गए शॉट को चालू किया, और दुश्मन ने कैमरा मारा, यह केवल कुछ मीटर दूर था। ऑपरेटर एक असाल्ट राइफल के हाथों में था, लेकिन उसने उसे फेंक दिया और दुश्मन पर एक गोली चलाई। उसके बाद, उसने भागने की कोशिश की, लेकिन वह घायल हो गया, और फिर एक जोरदार थप्पड़ और कैमरा बगल में गिर गया। दूसरी प्रविष्टि, एक अमेरिकी गश्त, धान की जांच के बीच पेड़ों के वृक्षारोपण का मुकाबला कर रही है (यह अफगानिस्तान का प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र लगमन का प्रांत है) और तालिबान के गोले के नीचे आता है। कुछ समय के लिए, अमेरिकी लैंडिंग के दौरान आगे और पीछे भाग रहे हैं, लेकिन कुछ बिंदु पर ऑपरेटर पेड़ों के बीच की खाई में एक काले रंग का आंकड़ा देखता है और उसे अपनी राइफल से गोली मारता है। दुश्मन से दूरी 15 मीटर या तो है। अन्य मामलों में, लड़ाई के रिकॉर्ड पर दुश्मन दिखाई नहीं देता है।
इस बिंदु पर, यह स्पष्ट और स्पष्ट हो गया कि युद्ध फिल्मों द्वारा शूटिंग के बारे में युद्ध के बारे में व्यापक धारणा, युद्ध फिल्मों द्वारा उत्पन्न की गई थी (जिसमें, अधिक सिनेमाई स्पष्टता के लिए, सब कुछ पूरी तरह से दिखाई देता है, और पात्रों ने लक्ष्य को मारा), साथ ही साथ। । एक बात दूसरी पर सुपरइमोज़ करती है, एक शूटिंग रेंज में एक विकास लक्ष्य पर एके से सेना में शूटिंग करना सिनेमा इम्प्रेशन पर सुपरइम्पोज़ करता है, और किसी व्यक्ति के लिए यह समझना कठिन है कि वास्तविक युद्ध किसी भी फिल्म की तुलना में बहुत अधिक उबाऊ है, और दुश्मन एक लक्ष्य नहीं है, वह भी जीना चाहता है, वह छिपता है, भेस और चमक नहीं करने की कोशिश करता है। एक वास्तविक लड़ाई में, शूटिंग रेंज की तुलना में पूरी तरह से अलग कारक हैं। मानव आकृति 200 मीटर से अधिक की दूरी पर पहले से ही खराब रूप से अलग हो जाती है, भले ही वह व्यक्ति अपनी पूरी ऊंचाई पर चल रहा हो। लेकिन अगर दुश्मन छलाँग लगाता है, छुप-छुप कर बात करता है, तो उसे पास मानना भी बहुत मुश्किल है। एक वीडियो में, जहां एरिक पर पुल के ऊपर अमेरिकी गश्त की लड़ाई का फुटेज कैप्चर किया गया था, तालिबान इस पुल से झाड़ियों में एक्सएनयूएमएक्स मीटर में बैठ गया (ऑपरेटर ने तब उन पर हैंड ग्रेनेड फेंक दिया, लेकिन कैमरे पर उनके शॉट्स के केवल फ्लैश दिखाई दे रहे थे, जो तुरंत ही छिप गए थे। धूल और धुएं का एक बादल। यदि तीर दुश्मन को दिखाई नहीं देता है, तो 300 मीटर की दूरी पर उसकी हमला राइफल की उत्कृष्ट सटीकता के बारे में सभी बातें उसके लिए एक खाली आवाज़ बन जाती हैं।
हेलमेट कैमरों के साथ लड़ाई के रिकॉर्ड से इस दिलचस्प टिप्पणियों पर समाप्त नहीं होते हैं। इससे भी अधिक दिलचस्प है कि किस तरह का हथियार है और इसका उपयोग आग के संपर्क में कैसे किया जाता है।
तीसरा, लड़ाई के रिकॉर्ड की परीक्षा जारी रखते हुए, यह देखना मुश्किल नहीं है कि हाथापाई में असॉल्ट राइफलों से आग का संचालन, एक नियम के रूप में, एक गैर-लक्षित, भारी दुश्मन द्वारा किया जाता है। अक्सर, अमेरिकियों, युगल के पीछे बैठे, अपने सिर पर अपने राइफल को उठाते हैं और यादृच्छिक पर एक या दो मोड़ देते हैं। जिनके पास ग्रेनेड लांचर हैं, स्पष्ट रूप से उनका उपयोग करना पसंद करते हैं। आर्यक पर पुल के लिए लड़ाई में, ऑपरेटर ने पैरापेट के खिलाफ अपनी असॉल्ट राइफल को झुक दिया और एमएक्सएनयूएमएक्स ग्रेनेड लांचर को ले लिया, जिसे उसने राइफल से अलग कर दिया था।
चौथा, एक हल्की मशीन गन, जो किसी भी असॉल्ट राइफल की तुलना में बहुत अधिक सक्रिय रूप से लड़ाई में भाग लेती है, अप्रत्याशित रूप से व्यापक रूप से इस्तेमाल की गई है। बता दें, सड़क के पार किए गए तालिबान के साथ उपर्युक्त झड़प में, ऑपरेटर MX48 मशीन गन के साथ एक मशीन गनर था, और एक छोटी आग के संपर्क के लिए, केवल 20 मिनटों के बारे में, चार कारतूस पाउच खर्च किए गए, यानी 400 कारतूस। यदि एक सबयूनिट में एक मशीन गन है, तो इसे दुश्मन को हराने में मुख्य भूमिका सौंपी जाती है, दोनों हाथापाई और लंबी दूरी में। यदि लड़ाई 100-150 मीटर से अधिक की दूरी पर लड़ी जाती है, तो आग को मशीन गन और स्नाइपर राइफल्स से निकाल दिया जाता है, असॉल्ट राइफल्स वाले तीर केवल निरीक्षण करते हैं या आश्रय में कवर लेते हैं।
लड़ाई की वीडियो रिकॉर्डिंग के विचार से सामान्य निष्कर्ष (और यह, जो विशेष रूप से जोर दिया जाना चाहिए, एक उद्देश्य स्रोत है) निम्नानुसार हैः एक असॉल्ट राइफल वास्तविक लड़ाई में इसके लिए जिम्मेदार किसी भी चमत्कारी गुणों को नहीं दिखाती है। इसका उपयोग निकटतम मुकाबले में किया जाता है, और मुख्य रूप से अप्रभावित, अत्यधिक आग का संचालन करने के लिए उपयोग किया जाता है। यदि सबयूनिट में हल्की मशीन गन या ग्रेनेड लांचर हैं, तो दुश्मन को हराने का मुख्य कार्य उन पर रहता है, और असाल्ट राइफल व्यक्तिगत आत्मरक्षा के हथियार से ज्यादा कुछ नहीं है। इसलिए एक और निष्कर्षः हमला करने वाली राइफलों के लिए सटीकता और फायरिंग रेंज को हासिल करने में खर्च की गई सभी लागत और प्रयास (जिसमें उनकी सभी किस्मों के साथ एके भी शामिल हैं) काफी हद तक बर्बाद हो गए। असाल्ट राइफलों के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले बहुत महत्वपूर्ण संसाधनों का उपयोग बेहद अक्षमता से किया जाता है, और फिर केवल इसलिए कि एक बड़ा युद्ध नहीं हुआ जिसने इस तरह की विलासिता की अनुमति नहीं दी। इसलिए, असॉल्ट राइफलों को आधुनिक पनडुब्बी बंदूकों से बदला जा सकता है, बशर्ते, कि यूनिट में पर्याप्त संख्या में लाइट मशीन गन और राइफल ग्रेनेड लांचर हों।
वैसे, ग्रेनेड लांचर के बारे में। घरेलू अनुभव भी है कि सेनानियों उसे प्यार करते हैं और उसे अधिक बार उपयोग करने का प्रयास करते हैं। चेचन्या में युद्ध के दौरान इसका व्यापक रूप से उपयोग किया गया था, जहां 90% तक निशानेबाजों के पास GP-25 था। यह समझ में आता है, "ग्रेनेड लांचर" ने कई अवसर खोलेः ग्रेनेड फेंक के बाहर एक्सएनयूएमएक्स-एक्सएनयूएमएक्स मीटर पर दुश्मन के गुटों को पराजित करना, एक मोर्टार में आश्रय से शूटिंग करना, "इमारतों और कारों में खिड़कियां और कमरे संसाधित करना, आग लगाना, परेशान करना और यहां तक कि अचानक हार भी। दुश्मन के पास दिखाई दिया, जब कोई लक्ष्य करने का समय नहीं है। अनुभवी सेनानियों को एक साथ GP-100 से बाहर शूट करने की सलाह देते हैंः एक चार्ज, दूसरा शूट, यह ग्रेनेड लांचर के ट्रिगर को दाहिने हाथ से दबाने की सिफारिश की जाती है, मशीन के हैंडल को कंधे पर रखकर मोर्टार पर भी फायर किया जाता है। अच्छा सामान, सामान्य तौर पर। यह सच है, उसे एक सबर्बेलर मोर्टार कहा जाना चाहिए था, क्योंकि उसने द्वितीय विश्व युद्ध के एक हल्के पैदल सेना 150-mm मोर्टार के शीर्ष पर कब्जा कर लिया था, लेकिन यह स्वाद का मामला है।
एक और बात, और बहुत अधिक गंभीर यह है कि मशीन और जीपी-एक्सएनयूएमएक्स का संयोजन आदर्श से बहुत दूर है। यह पता चला, यद्यपि परिचित, लेकिन ल्यूरिड डिज़ाइन, जो मिखाइल कलाश्निकोव द्वारा सामना किए गए सभी एके एर्गोनॉमिक्स को पार कर गया था। हथियार बहुत भारी निकला (AK-25M कारतूस के साथ - 74 किलो, GP-3,9 एक ग्रेनेड -25 किलो, सिर्फ 1,7 किलो), सामने की तरफ पछाड़ते हुए, ग्रेनेड लांचर ट्रिगर की एक असहज स्थिति के साथ, जिसे उसके बाएं हाथ से एक असहज हाथ से दबाया जाना चाहिए। ग्रेनेड लांचर को लोड करने से पहले बैरल को ऊपर रखना और उसके खिलाफ आराम करना आवश्यक है ताकि यह ग्रेनेड लॉन्चर में ग्रेनेड को "डूबने" के लिए सुविधाजनक हो)। केवल GP-5,6 और उसके बाद के रीटार्ट की बहुत अच्छी सामरिक क्षमता सेनानियों को इन सभी असुविधाओं को सहन करने और उन्हें दरकिनार करने के लिए चाल के साथ आने के लिए मजबूर करती है।
कुछ उचित आपत्तियों में से एक में पिस्तौल-मशीन गन पुनर्जागरण की चर्चा के दौरान, ग्रेनेड लांचर के बारे में सवाल उठे। जैसे, इसे एक सबमशीन गन के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। सिद्धांत रूप में, अमेरिकी तरीके का पालन करना संभव होगा, जब उनके एमएक्सएनयूएमएक्स में अक्सर अपना स्वयं का बट होता है और इसे राइफल से अलग किया जाता है। लेकिन लड़ाई में, दो अलग-अलग प्रकार के हथियारों का उपयोग करना बहुत सुविधाजनक नहीं हैः एक हथियार को बंद करने के लिए समय बर्बाद होता है, दूसरे को लेने के लिए, और यह जीवन का खर्च कर सकता है। युद्ध की गर्मी में, आस्थगित हथियारों को भुलाया या खोया जा सकता है। इसलिए ग्रेनेड लांचर और मशीनगन का संयोजन उचित है। कुछ ऐसा ही एक सबमशीन बंदूक के साथ किया जा सकता है।
सभी नमूने इस संयोजन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उनमें से जिनके स्टोर सुरक्षात्मक ब्रैकेट के सामने स्थित हैं, उन्हें बाहर करना होगा, क्योंकि वे वास्तव में उनके साथ जीपी को निलंबित नहीं कर सकते हैं। कहते हैं, इस उद्देश्य के लिए पीपी "देवदार" उपयुक्त नहीं है। लेकिन यहां PP-2000, जिसमें स्टोर हैंडल में स्थित है, न केवल एक सबमशीन बंदूक पर जीपी स्थापित करने के लिए, बल्कि उनके गहन एकीकरण के लिए भी अप्रत्याशित संभावनाएं खोलता है। दरअसल, चूंकि अंडर-बैरल ग्रेनेड लांचर इतने व्यापक रूप से और उत्सुकता से करीबी लड़ाई में उपयोग किया जाता है, इसलिए इसे सभी सबमशीन बंदूकों पर स्थापित करने के लिए समझ में आता है। यह न केवल व्यक्तिगत लड़ाकू, बल्कि संपूर्ण इकाई की मारक क्षमता में नाटकीय रूप से वृद्धि करेगा। ऐसे पॉडस्टवोलनिकोव की एक पूरी पलटन का एक मोर्टार मोर्टार गोलाबारी के साथ काफी तुलनीय होगा। उसके पास अभी भी कुछ फायदे हैं, जिनके बारे में नीचे चर्चा की जाएगी। आप देखे जाने वाले उपकरणों को भी एकीकृत कर सकते हैं।
यदि आप जीपी को सभी सबमशीन गन पर रखते हैं, तो इसके निरंतर और नियमित उपयोग को देखते हुए, इसे गैर-हटाने योग्य बनाना बेहतर है। फिर आप सबमशीन बंदूक के ट्रिगर तंत्र के साथ ट्रिगर तंत्र को एकीकृत कर सकते हैं, और कुछ वजन में जीत सकते हैं, ग्रेनेड लांचर के अलग-अलग हैंडल को छोड़ सकते हैं। तो इस बारे में कैसे किया जा सकता है? PP-2000 में एक बड़े पैमाने पर प्लास्टिक ट्रिगर गार्ड है, जिसका इस्तेमाल मेटल पिन के साथ फायर कंट्रोल ग्रिप के रूप में किया जाता है। एक लेज़र डिज़ाइनर कभी-कभी इससे जुड़ा होता है। बैरल के किनारे से अग्नि नियंत्रण के बीच तक घुंडी 100 मिमी के बारे में है, और 170 हथौड़ा मिमी तक। यहाँ इस जगह में ग्रेनेड लांचर के लिए पूछ रहा है। GP-30, GP-25 का अधिक आधुनिक एनालॉग, 280 मिमी की कुल लंबाई है, जिसमें बैरल की लंबाई 205 मिमी है। हैंडल की लंबाई और ग्रेनेड लांचर के ट्रिगर के शरीर से, आप इसे सबमशीन बंदूक के ट्रिगर तंत्र में एकीकृत करके 40 मिमी से कम नहीं जीत सकते हैं। दो-सिलेंडर पैटर्न का उपयोग करके ऐसा करना आसान है, लेकिन आप एक ही ट्रिगर पर कारतूस और हथगोले के वंश को जोड़ सकते हैं।
परिणाम क्या है? एक ग्रेनेड लॉन्चर से लैस PP-2000 पर आधारित एक सबमशीन बंदूक, 470 मिमी की लंबाई के साथ एक मुड़े हुए बट (मूल संस्करण में 350 मिमी के खिलाफ) के साथ प्राप्त की जाती है, और कारतूस और हथगोले (2,6 किलो) के साथ कारतूस और ग्रेनेड के बिना लगभग 3,3 किलो वजन होता है। अतिरिक्त और बहुत मूर्त सामरिक क्षमताओं को प्राप्त करना, इस तरह के एक हथियार अपनी कॉम्पैक्टनेस (705 मिमी को बट के साथ 940 मिमी AK-74M के साथ एक बट के साथ बाहर रखा गया है) को बरकरार रखता है, जीपी के साथ AK-40M की तुलना में 74% पर एक छोटा वजन है (और यह इसके वजन में बचाया बारी 9 ग्रेनेड VOG-25 से मेल खाती है), यह स्थलों के एकीकरण और ट्रिगर तंत्र के कारण उपयोग करने के लिए अधिक सुविधाजनक हो जाता है। मूल PP-2000 में, मुख्य वजन हथियार के पीछे होता है, जो फायरिंग करते समय बैरल के मजबूत प्रहार की ओर जाता है। ग्रेनेड लांचर को जोड़ने से हथियार का संतुलन बना रहेगा, जिसका सटीकता और सटीकता पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इस तरह के हथियार आधुनिक युद्ध के लिए और प्रत्येक लड़ाकू को उत्पन्न करने के लिए बहुत बेहतर हैं, जिनमें सामूहिक आयुध (हालांकि यह ग्रेनेड लांचर के बिना मूल संस्करण का उपयोग करने के लिए स्निपर और मशीन गनर के लिए बेहतर हो सकता है) शामिल हैं। दूरी में दुश्मन को हराने के लिए, एक VOG-25 ग्रेनेड या इसके एनालॉग्स का उपयोग किया जाएगा, जो बुलेट की तुलना में इसके लिए बेहतर है। बहुत अधिक संभावना है कि दुश्मन के ग्रेनेड या टुकड़े को पकड़ना, खराब दिखाई देना, आश्रय में छिपना, झाड़ियों, घास और अन्य वनस्पतियों द्वारा बंद करना, भले ही शूटिंग यादृच्छिक या ध्वनि या फ्लैश पर हो। यदि सभी सेनानियों के पास ऐसे हथियार हैं, तो आप ज्वालामुखियों के साथ "प्रक्रिया" कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि असॉल्ट राइफलों के अनुयायी इस तथ्य के साथ बहस नहीं करेंगे कि ग्रेनेड बुलेट से बार-बार चलने वाले मध्यवर्ती कारतूस की तुलना में बेहतर होगा।
ग्रेनेड लांचर, वैसे, आपको दुश्मन से शरीर के कवच की समस्या को हल करने की अनुमति देता है। वे वास्तव में गरीब सेनाओं में भी फैल गए। केवल कुछ कारणों से असॉल्ट राइफलों के अनुयायियों का मानना है कि व्यक्तिगत छोटे हथियारों को जरूरी रूप से दुश्मन के शरीर के कवच और एक हेलमेट को छेदना चाहिए, और हमेशा 200-300 मीटर के साथ। यहां, वे कहते हैं, असॉल्ट राइफल से बेहतर कुछ नहीं है। मेरी राय में, "ब्रोंक" की उपस्थिति एक अनसुलझी समस्या नहीं है। सबसे पहले, क्योंकि सेना में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश प्रकार के शरीर कवच सबसे संरक्षित प्रकारों में से नहीं हैं। यह समझ में आता है, क्योंकि भारी शरीर का कवच पहनने के लिए भारी और बेहद असहज होता है। इसके अलावा, वे बहुत बार गर्दन और कूल्हों को खुला छोड़ देते हैं, शरीर के अत्यधिक कमजोर हिस्से जिससे बड़े रक्त वाहिकाएं गुजरती हैं। गर्दन या ऊपरी जांघ के लिए एक मर्मज्ञ बंदूक की गोली घाव या तो खून की कमी के कारण घातक होगी, या घायल व्यक्ति को तत्काल सर्जिकल सहायता और लंबे उपचार की आवश्यकता होगी। आप इन बॉडी पार्ट्स को एक सबमशीन बंदूक से भी मार सकते हैं, खासतौर पर नजदीकी मुकाबले में।
दूसरे, ग्रेनेड बेहतर है। यहां तक कि अगर कवच और हेलमेट ने टुकड़ों को रखा, तो सदमे की लहर और भ्रम इससे दूर नहीं जाते हैं। वॉली फायर ग्रेनेड में वैसे भी टुकड़ों में कमजोर धब्बे, समान गर्दन या जांघ मिलेंगे। तीसरा, अगर दुश्मन बुलेटप्रूफ बनियान में दिखाई देता है - सीधे आग के साथ ग्रेनेड मारा! 5,56 बुलेट मिमी की तुलना में ऊर्जा प्रभाव बहुत अधिक महत्वपूर्ण होगा। 50 मीटर पर, एक बुलेट में 1,5 kJ के बारे में गतिज ऊर्जा होती है, जबकि एक ग्रेनेड हिट 0,4 kJ देता है, और एक 48 ब्लास्ट 196,8 kJ को एक ग्रेनेड में विस्फोटक देता है। इसके अलावा, अच्छे पुराने विचारों को न भूलें। बहुत पहले सोवियत "ग्रेनेड लांचर" में, Iskra JCG-40, जिसे 1966 में बनाया गया था, लेकिन श्रृंखला में नहीं गया था, एक विखंडन-संचयी ग्रेनेड था, कुछ आंकड़ों के अनुसार, सही कोण 40 मिमी में प्रवेश किया गया था। आधुनिक राइफल ग्रेनेड लांचर के लिए एक समान ग्रेनेड बनाना इतना मुश्किल नहीं है, खासकर क्योंकि इसका उपयोग बाधाओं के पीछे लक्ष्य को हराने के लिए किया जा सकता है।
सामान्य तौर पर, ग्रेनेड लांचर के साथ एक टामी बंदूक का संयोजन, जिसे डिजाइन में कुछ बदलावों की आवश्यकता होगी, एक बहुत अच्छा परिणाम देगाः शक्तिशाली, हल्के और कॉम्पैक्ट हथियार, विशिष्ट लड़ाकू अभियानों की व्यापक रेंज के लिए उपयुक्त, एक इकाई के आयुध की संरचना में संयुक्त, सामूहिक आयुध के साथ, और सैन्य अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अधिक स्वीकार्य, विशेष रूप से एक बड़े युद्ध के मामले में, अपने मध्यवर्ती कारतूस के साथ एक राइफल की तुलना में।
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4b2173373a075d39e398c6b764a9ec9ec26fbff0 | web | 6. आप कहते हैं कि परमेश्वर अंतिम दिनों में मनुष्य का न्याय और शुद्धिकरण करने के लिए सत्य को व्यक्त करता है। पुराने और नए नियम, दोनों में, परमेश्वर मानव जाति का न्याय करने के वचन कहता है - परमेश्वर के न्याय ने मनुष्य को कभी नहीं छोड़ा है। क्या आप कह रहे हैं कि ये वचन मनुष्य का न्याय और शुद्धिकरण करने में असमर्थ हैं? अंतिम दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए न्याय के वचनों, और बाइबल में दर्ज हुए इंसान का न्याय करने वाले परमेश्वर के वचनों, के बीच क्या अंतर है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचनः
"न्याय" शब्द का जिक्र होने पर संभवतः तुम उन वचनों के बारे में सोचोगे, जो यहोवा ने प्रत्येक क्षेत्र के लोगों को निर्देश देते हुए कहे थे और जो वचन यीशु ने फरीसियों को फटकार लगाते हुए कहे थे। अपनी समस्त कठोरता के बावजूद, ये वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय नहीं थे; बल्कि वे विभिन्न परिस्थितियों, अर्थात् विभिन्न संदर्भों में परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन हैं। ये वचन अंत के दिनों के मसीह द्वारा मनुष्यों का न्याय करते हुए कहे जाने वाले शब्दों से भिन्न हैं। अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है।
प्रथम चरण यहोवा का कार्य था : उसका कार्य पृथ्वी पर मनुष्य के लिए परमेश्वर की आराधना करने हेतु एक मार्ग तैयार करना था। यह पृथ्वी पर कार्य के लिए एक मूल स्थान खोजने हेतु आरंभ करने का कार्य था। उस समय यहोवा ने इस्राएलियों को सब्त का पालन करना, अपने माता-पिता का आदर करना और एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्वक रहना सिखाया। इसका कारण यह था कि उस समय के लोग नहीं समझते थे कि मनुष्य किस चीज से बना है, न ही वे यह समझते थे कि पृथ्वी पर किस प्रकार रहना है। कार्य के प्रथम चरण में उसके लिए मनुष्य के जीवन में उनकी अगुआई करना आवश्यक था। यहोवा ने जो कुछ उनसे कहा, वह सब मनुष्यों को पहले ज्ञात नहीं करवाया गया था या उनके पास नहीं था। उस समय परमेश्वर ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए अनेक नबियों को खड़ा किया, और उन सबने यहोवा की अगुआई में ऐसा किया। यह परमेश्वर के कार्य का मात्र एक भाग था। प्रथम चरण में परमेश्वर देह नहीं बना, इसलिए उसने नबियों के माध्यम से सभी जन-जातियों और राष्ट्रों को निर्देश दिए। जब यीशु ने अपने समय में कार्य किया, तब वह उतना नहीं बोला, जितना कि वर्तमान समय में। अंत के दिनों में वचन के कार्य का यह चरण पिछले युगों और पीढ़ियों में कभी कार्यान्वित नहीं किया गया। यद्यपि यशायाह, दानिय्येल और यूहन्ना ने कई भविष्यवाणियाँ कीं, किंतु उनकी भविष्यवाणियाँ अब बोले जाने वाले वचनों से बिलकुल अलग हैं। उन्होंने जो कहा, वे केवल भविष्यवाणियाँ थीं, किंतु अब बोले जा रहे वचन ऐसे नहीं हैं। यदि मैं आज जो कुछ कह रहा हूँ, उसे भविष्यवाणियों में बदल दूँ, तो क्या तुम लोग समझ पाने में सक्षम होगे? मान लो, जो कुछ मैं कहता हूँ, वह उन मामलों के बारे में हो, जो मेरे जाने के बाद होंगे, तो तुम समझ कैसे प्राप्त कर सकोगे? वचन का कार्य यीशु के समय में या व्यवस्था के युग में कभी नहीं किया गया था। शायद कुछ लोग कहेंगे, "क्या यहोवा ने भी अपने कार्य के समय में वचन नहीं बोले थे? क्या यीशु ने भी उस समय, जब वह कार्य कर रहा था, बीमारियों की चंगाई करने, दुष्टात्माओं को निकालने और चिह्न एवं चमत्कार दिखाने के अतिरिक्त वचन नहीं बोले थे?" बोली गई बातों में अंतर होता है। यहोवा द्वारा बोले गए वचनों का सार क्या था? वह केवल पृथ्वी पर मनुष्यों के जीवन में अगुआई कर रहा था, जिसने जीवन के आध्यात्मिक मामलों को नहीं छुआ था। ऐसा क्यों कहा जाता है कि जब यहोवा बोला, तो वह सभी स्थानों के लोगों को निर्देश देने के लिए था? "निर्देश" शब्द का अर्थ है स्पष्ट रूप से बताना और सीधे आदेश देना। उसने मनुष्य को जीवन की आपूर्ति नहीं की, बल्कि उसने बस मनुष्य का हाथ पकड़ा और बिना ज़्यादा दृष्टांतों का तरीका अपनाए उसे अपना आदर करना सिखाया। इस्राएल में यहोवा ने जो कार्य किया, वह मनुष्य से निपटना या उसे अनुशासित करना या उसे न्याय और ताड़ना प्रदान करना नहीं था, बल्कि उसकी अगुआई करना था। यहोवा ने मूसा को आदेश दिया कि वह उसके लोगों से कहे कि वे जंगल में मन्ना इकट्ठा करें। प्रतिदिन सूर्योदय से पहले उन्हें केवल इतना मन्ना इकट्ठा करना था, जो उनके उस दिन के खाने के लिए पर्याप्त हो। मन्ना को अगले दिन तक नहीं रखा जा सकता था, क्योंकि तब उसमें फफूँद लग जाती। उसने लोगों को भाषण नहीं दिया या उनकी प्रकृति उजागर नहीं की, न ही उसने उनके मत और विचार उजागर किए। उसने लोगों को बदला नहीं, बल्कि उनके जीवन में उनकी अगुआई की। उस समय के लोग बच्चों के समान थे, जो कुछ नहीं समझते थे और केवल कुछ मूलभूत यांत्रिक गतिविधियाँ करने में ही सक्षम थे, और इसलिए यहोवा ने केवल जनसाधारण का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्थाएँ लागू की थीं।
- वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)
संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरणः
अंतिम दिनों में परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय मुख्य रूप से लोगों को फटकारने के लिए सत्य के कई पहलुओं को नियोजित करता है। सच्चाई के इन कई पहलुओं के बिना, वे न्याय के वचन नहीं होंगे। क्या यहोवा ने सभी स्थानों पर जो शब्द कहे उनमें, और प्रभु यीशु के फरीसियों के प्रति तिरस्कार के शब्दों में, सत्य के कई पहलू निहित थे? क्या उन्होंने मनुष्य को अभ्यास करने का एक मार्ग दिया? क्या उन्होंने मनुष्य के स्वभाव और सार को प्रकट किया? उन्होंने ऐसा नहीं किया, और इसलिए वे (शब्द) मनुष्य के प्रति न्याय नहीं थे; वे केवल तिरस्कार और फटकार थे। तिरस्कार और फटकार प्रत्यक्ष निंदा और उन्मूलन है, जिसके बाद कोसना होता है। राज्य के युग के दौरान परमेश्वर द्वारा मनुष्य का न्याय और उद्धार मुख्य रूप से कई सच्चाइयों की अभिव्यक्ति है। यह लोगों को फटकारने, उनके सार को प्रकट करने और उनके शब्दों और कार्यों को विश्लेषित करने के लिए सत्य का उपयोग है। इन शब्दों में सच्चाई के कई पहलू होते हैं। जहाँ सत्य होता है, वहीं न्याय होता है; सत्य के बिना, कोई न्याय नहीं होता। इस प्रकार, अंतिम दिनों के मसीह के वचनों, और जिन शब्दों को यहोवा ने व्यवस्था के युग में सभी स्थानों पर कहा था और प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह के युग के दौरान फरीसियों को दी गई फटकार, के बीच एक स्पष्ट अंतर है। यह अंतर मुख्य रूप से अंतिम दिनों के मसीह द्वारा लोगों को फटकारने के लिए सत्य के कई पहलुओं के उपयोग में निहित है; परमेश्वर ने व्यवस्था के युग या अनुग्रह के युग के दौरान सच्चाई के एकाधिक पहलुओं को व्यक्त नहीं किया। इसके अलावा, परमेश्वर के कार्य की प्रकृति में भी अंतर है। व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान, परमेश्वर की उन लोगों के प्रति फटकार और उसका उन लोगों के प्रति तिरस्कार, जिन्होंने उसका विरोध किया था, प्रत्यक्ष निंदा और अभिशाप थे। परमेश्वर ने उन्हें नहीं बचाया, और न ही उसने उन पर कोई दया की। अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर का न्याय का कार्य मनुष्य को बचाने, शुद्ध करने और परिपूर्ण करने के लिए होता है। अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया। उन्होंने पश्चाताप के तरीके का प्रचार किया और कुछ चमत्कार, संकेत और आश्चर्यजनक कार्य किए, और फरीसियों ने उसकी आलोचना की, निंदा की और उसका विरोध किया। इस पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में, प्रभु यीशु ने फरीसियों के प्रति फटकार और अभिशाप के कुछ शब्द बोले थे, जो केवल फरीसियों के कामों और व्यवहार का सार उजागर करते थे। ये शब्द परमेश्वर के प्रति उनके विरोध की जड़ को उजागर नहीं करते थे, न ही उनके स्वभाव और सार को। उसने कोई प्रासंगिक सत्य व्यक्त नहीं किया। मनुष्य को परमेश्वर के प्रति आज्ञा-पालन कैसे करना चाहिए, मनुष्य का कर्तव्य क्या है, या मनुष्य को परमेश्वर के प्रति वफ़ादार कैसे होना चाहिए, इस बारे में उसने कुछ नहीं कहा था, और इसलिए उन शब्दों को न्याय नहीं कहा जा सकता है। फरीसी वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे। वे सत्य से घृणा करते थे, उन्होंने इसे बिल्कुल स्वीकार नहीं किया, और वे परमेश्वर के न्याय को प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से अयोग्य थे। परमेश्वर ने उनका न्याय करने का काम नहीं किया, और इसलिए प्रभु यीशु ने केवल उन्हें शाप दिया - उसने उन्हें बचाया नहीं। कुछ लोग कहते हैं, "क्या वे शब्द जिन्होंने फरीसियों के कामों और व्यवहार को उजागर किया, सत्य थे?" ये शब्द भी सत्य थे, और उन्होंने भी परमेश्वर के उस स्वभाव को प्रकट किया, जो कि मनुष्य के किसी भी अपराध को सहन नहीं करता है। लेकिन न्याय, साधारण फटकार और निंदा नहीं है। अंतिम दिनों में, परमेश्वर मनुष्य को फटकारने के लिए सत्य के कई पहलुओं का उपयोग करता है। हर बार जब वह सच्चाई के किसी पहलू को व्यक्त करता है, तो मनुष्य की कुछ भ्रष्ट प्रकृतियाँ और अभिव्यक्तियाँ उजागर की जाती हैं। परमेश्वर सत्य को व्यक्त करने के लिए, मनुष्य की भ्रष्टता के वास्तविक चेहरे का पर्दाफ़ाश करने का, और मनुष्य की बातों और हरकतों का विश्लेषण करने का, उपयोग करता है। केवल जब मनुष्य के उद्धार के लिए आवश्यक सभी सत्य प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर दिए जाते हैं, जिससे लोग समझ सकते, अनुभव कर सकते, जान सकते और शुद्ध हो सकते हैं - केवल ऐसे शब्द जो इस तरह के प्रभाव को प्राप्त करते हैं, वे ही वास्तविक न्याय हैं, और केवल वे ही न्याय के वचन हैं। अन्यथा, वे न्याय के वचन नहीं हैं, वे उस समय कुछ व्यक्तियों के प्रति परमेश्वर के कार्य के संदर्भ में बोले गए शब्द मात्र हैं।
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6b9c81cc0534c90861fdb3f60bf22bf9cdf2635b | web | मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज आयोजित अपनी बैठक में वर्तमान और उभरती समष्टि आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर निर्णय लिया है किः
- चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के नीति रेपो दर 6.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखी जाए।
परिणामस्वरूप, चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत प्रतिवर्ती रेपो दर 5.75 प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर तथा बैंक दर 6.75 पर अपरिवर्तित रहेंगी।
एमपीसी का निर्णय मौद्रिक नीति के उदार रुख के अनुरूप है जो वृद्धि को सहारा देते हुए वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति का 5 प्रतिशत का उद्देश्य हासिल करने और +/- 2 प्रतिशत के बैंड के अंदर 4 प्रतिशत के मध्यावधि लक्ष्य के अनुरूप है। इस निर्णय को रेखांकित करने वाले मुख्य विचारों को नीचे वक्तव्य में दिया गया है।
2. वर्ष 2016 की पहली छमाही में कमजोरी के बाद वैश्विक वृद्धि ने दूसरी छमाही में गति पकड़ी। अमेरिका में स्थिति के उल्टा होने से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं (एई) में गतिविधि में झिझक के साथ सुधार हुआ। उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में वृद्धि नरम रही किंतु चीन में नीतिगत प्रोत्साहन और बड़े पण्य-वस्तु निर्यातकों में दबाव के कुछ सहज होने से गति में मजबूती आई। विश्व व्यापार गर्त से बाहर आना शुरू हो रहा है जो जुलाई-अगस्त में निम्न स्तर पर पहुंच गया था और स्थिर होने का संकेत दिखा रहा है। कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओँ में मुद्रास्फीति बढ़ गई है, हालांकि यह लक्ष्य से नीचे ही है और कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में सहज हो रही है। अमेरिका, जापान और चीन में प्रत्यवस्फीति (रिफ्लेशनरी) राजकोषीय नीतियों की संभावनाओं और मंदी के समय में उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं पर नीचे की ओर दबावों के कम होने की गति यूरो क्षेत्र और यूके में वर्तमान में व्याप्त राजनीतिक जोखिमों से धीमी हो गई है, इन जोखिमों से भौगोलिक-राजनीतिक जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं और वित्तीय बाजार अस्थिरता छायी हुई है।
3. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार पर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव और आगामी आंकड़ों के परिणाम का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा जिन्होंने फेडरल रिज़र्व द्वारा कड़ा मौद्रिक रुख अपनाने की संभावना बढ़ा दी। चूंकि अस्थिरता के झटकों से अमेरिकी इक्विटी में जोखिम मुक्त उछाल बढ़ गया और स्थायी आय बाजारों से जोखिम भरी हड़बड़ी ने उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं से पूंजीगत प्रवाह बाहर कर दिया, इससे मुद्रा का मूल्य कम हो रहा है और इक्विटी बाजार अपने हाल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हालांकि बॉन्ड प्रतिफल अमेरिकी प्रतिफलों के साथ मिलकर सख्त हो गए। चुनाव के परिणामों के बाद अक्टूबर के उत्तरार्द्ध से अमेरिकी डॉलर में वृद्धि तेज हो गई और विश्वभर की मुद्राओं में काफी मूल्यह्रास शुरू हो गया। अमेरिकी चुनाव के परिणामों के मद्देनजर मांग संभावना में सुधार होने से नवंबर के मध्य से सभी जगह स्वर्ण को छोड़कर पण्य-वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई, स्वर्ण की सुरक्षित आश्रय वाली चमक मजबूत अमेरिकी डॉलर में गुम हो गई। उत्पादन कम करने के ओपेक के निर्णय के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गई।
5. तीसरी तिमाही पर बात करते हुए, समिति ने महसूस किया कि विनिर्दिष्ट बैंक नोटों (एसबीएन) के वापस लेने से अभी भी प्रकट प्रभावों द्वारा किए गए आकलन पर बादल छाए हुए हैं। प्रमुख फसलों में रबी की बुआई के अंतर्गत रकबे में स्थिर विस्तार होने से पिछले वर्ष की तुलना में दूसरी तिमाही में कृषि का मजबूत निष्पादन होना चाहिए। इसके विपरीत, औद्योगिक गतिविधि कमजोर बनी हुई है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में मुख्य उद्योगों में, कोयले के उत्पादन में मंद मांग के कारण अक्टूबर में कमी आई जबकि कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में संरचनागत बाधाओं के बाध्यकारी प्रतिबंध के कारण कमी आई। सीमेंट, उर्वरकों और विद्युत के उत्पादन में गिरावट जारी रही, जो आधारभूत आर्थिक गतिविधि में सुस्ती दर्शाती है। दूसरी तरफ, प्रतिकारी शुल्कों के लागू होने से इस्पात के उत्पादन में निरंतर विस्तार दर्ज किया गया है। निर्यात में वृद्धि और क्षमता संवर्धन के सहारे रिफानरी उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। विनिर्दिष्ट बैंक नोटों (एसबीएन) के वापस लेने से मजदूरी और इनपुटों की खरीद के भुगतान में विलंब के कारण नवंबर-दिसंबर में औद्योगिक गतिविधि के कुछ हिस्से पर कुछ समय के लिए अड़चन आ सकती है, हालांकि पूरा आकलन करना बाकी है। सेवा क्षेत्र में, मिश्रित संभावना है जिसमें निर्माण, व्यापार, परिवहन, होटल और संचार पर एसबीएन का अस्थायी प्रभाव पड़ा है जबकि लोक प्रशासन, रक्षा और अन्य सेवाएं 7वें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) अवार्ड और वन रैंक वन पेंशन से उत्साहित हैं। वित्तीय सेवाओं द्वारा जीवीए में छोटी लागत की जमाराशियों के बड़े अंतर्वाह से लघुकालिक प्रोत्साहन मिलने की संभावना है।
6. सब्ज़ियों की प्रत्याशित से अधिक तेज़ अपस्फीति के परिणामस्वरूप हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा आकलित खुदरा मुद्रास्फीति लगातार तीसरे माह अक्तूबर में अपेक्षा से अधिक कम हो गई है। तथापि इस कमतर मात्रा के बावजूद विभिन्न स्तरों पर माह-दर-माह मूल्य बढ़ने के कारण इसकी गति में एक उछाल आया। अनाज, दलहन तथा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ी कीमतों के साथ चीनी तथा प्रोटीनयुक्त उत्पादों की अभी भी ऊंची कीमतों से खाद्य पदार्थों की कीमतों की गति में उछाल आया जिसने सुदृढ़ अनुकूल आधार प्रभाव से खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति में आई नरमी को आंशिक रूप से बराबर कर दिया। एल.पी.जी. के मूल्यों में वार्षिक अधार पर हुई गिरावटों के कारण और एक माह पहले बिजली की कीमतों में गिरावट के कारण ईंधन की श्रेणी में कमी आई है। खाद्य पदार्थों तथा ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति निरंतर जारी है। हालांकि आवासीय तथा व्यक्तिगत देखभाल से संबंधित मुद्रास्फीति अत्यल्प कम हुई है, शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं और परिवहन तथा संचार में मुद्रास्फीति की निरंतर तेजी ने इस श्रेणी की मुद्रास्फीति में स्थिरता प्रदान की है।
7. तीसरी तिमाही में अब तक चलनिधि स्थिति में भारी परिवर्तन हुए हैं। अक्तूबर में तथा नवंबर के शुरुआत में अधिशेष की स्थिति पर 9 नवंबर से विनिर्दिष्ट बैंक नोटों को वापस लेने के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। दिनांक 2 दिसंबर तक प्रचलन में मुद्रा में ₹7.4 ट्रिलियन की गिरावट आई। उसके बाद नोट बदलने से और बैंकिंग प्रणाली में जमा की तेज़ बढ़त से अतिरिक्त आरक्षित निधि में भारी वृद्धि हुई। रिज़र्व बैंक ने ओवरनाइट से लेकर 90 दिनों तक की व्यापक अवधियों की परिवर्तनीय दर प्रतिवर्ती रेपो की नीलामियों के माध्यम से अपने चलनिधि परिचालन में वृद्धि की जिसमें ₹5.2 ट्रिलियन (निवल) चलनिधि को कम किया गया। रिज़र्व बैंक ने सरकार द्वारा जारी तेल बांडों को एलएएफ के अंतर्गत पात्र प्रतिभूति की अनुमति दी। प्रणाली से अतिरिक्त चलनिधि के निकास के लिए अस्थाई उपाय के रूप में 16 सितंबर 2016 से 11 नवंबर 2016 के बीच निवल मांग तथा मियादी देयता (एन.डी.टी.एल) में वृद्धि पर 26 नवंबर को प्रारंभ पखवाडे से 100 प्रतिशत वृद्धिशील सी.आर.आर. लागू की गई। दिनांक 28 नवंबर से चलनिधि के अवशोषण में गिरावट आई और रिज़र्व बैंक ने 28 नवंबर को ₹3.3 ट्रिलियन के परिवर्तनीय दर प्रतिवर्ती नीलामी की। जैसा कि अपेक्षित था, इसके बाद मुद्रा बाज़ार संकुचित हो गए और भारित औसत कॉल दर का 30 नवंबर की नीति रेपो दर के स्तर तक आने से पहले उस दिन एलएएफ कोरिडॉर की उच्चतम सीमा के निकट कारोबार किया गया। प्रणाली की अन्य सभी दरें इसके सहयोग में बढ़ने लगी और सावधि प्रीमियमों में धीरे-धीरे सुधार हुआ। इस घटना से सक्रिय चलनिधि प्रबंधन ने डब्ल्यू.ए.सी.आर को स्थिर दर प्रतिवर्ती रेपो दर तक गिरने से रोका जो कि एल.ए.एफ. कॉरिडॉर की निचली सीमा है। बाज़ार स्थिरता योजना (एम.एस.एस.) के अंतर्गत प्रतिभूति की सीमा में 29 नवंबर को ₹0.3 ट्रिलियन से ₹6 ट्रिलियन वृद्धि के कारण चलनिधि प्रबंधन को सहारा मिला। एम.एस.एस. के अंतर्गत 06 दिसंबर 2016 को ₹1.4 ट्रिलियन के लिए नकद प्रबंधन बिल का तीन बार निर्गम हुआ।
8. बाहरी क्षेत्र में, भारत का उत्पाद निर्यात सितंबर तथा अक्तूबर में बढ़ा। दोनों पी.ओ.एल तथा गैर-पी.ओ.एल आयातों की मदद से सकारात्मक स्थिति में वापसी हुई। 22 महीनों की लंबी गिरावट के बाद, सोने के आयात की मात्रा में तीव्र वृद्धि तथा पी.ओ.एल आयात के लिए बढ़े हुए भुगतान के बाद अक्तूबर में आयात में वृद्धि हुई। गैर-तेल गैर-स्वर्ण आयात में वृद्धि ने भी सात माह के अंतराल के बाद सकारात्मक मोड़ लिया। अप्रैल-अक्तूबर की अवधि के लिए उत्पाद व्यापार घाटा गत वर्ष की तुलना में अपने स्तर से 25 बिलियन यू.एस. डॉलर कम रहा। तदनुसार प्रेषणों में कुछ हानि और सॉफ्टवेयर निर्यात के अदृश्य मदों में होने के बावजूद चालू खाता घाटा मंदा रहने की संभावना है। निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश समुचित रूप से मजबूत रहा जिसमें से आधे से अधिक विनिर्माण, संचार तथा वित्तीय सेवाओं को गया। इसके विपरीत, ऋण और इक्विटी बाजारों से अक्टूबर-नवंबर में 7.3 बिलियन का पोर्टफोलियो निवेश बहिर्वाह हुआ जैसा समान ईएमईजी में हुआ है, जो यू.एस. राष्ट्रपति चुनावों के परिणाम से सक्रिय स्वदेशी झुकाव और यू.एस. की मौद्रिक नीति के कड़े होने की निकट निश्चितता दर्शाता है। दिनांक 02 दिसंबर 2016 को विदेशी मुद्रा की आरक्षित निधि का स्तर 364 बिलियन यू.एस. डॉलर रहा।
9. समिति ने कई वस्तुओं में कीमतों की बढ़त को नोट किया जो अक्तूबर के दौरान आधार प्रभाव पर मुद्रास्फीति कम होने के कारण प्रभावित हुईं। कतिपय आपूर्ति कमियों के बावजूद एस.बी.एन. के वापस ले लेने के कारण नवंबर में मांग के आकस्मिक संकुचन दिसंबर के लिए उपलब्ध होने वाले आकलित विकारी खाद्य की कीमतों में गिरावट लाएगा। दूसरी ओर, गेहूँ, चना तथा चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं। जबकि खाद्य तथा ईंधन को छोड़कर सी.पी.आई. में उत्पाद तथा सेवाओं पर विवेकपूर्ण व्यय -जिसमें सी.पी.आई. बास्केट का 16 प्रतिशत शामिल है- को नकद की सीमित पहुँच से प्रभावित किया जा सकता था, इन वस्तुओं की कीमत इन अस्थाई प्रभावों को बदल सकती है क्योंकि सामान्यतः इन्हें पूर्व नियोजित चक्रों के अनुसार संशोधित किया जाता है। आवास, ईंधन तथा बिजली, स्वास्थ्य, परिवहन तथा संचार, पान, तंबाखू और मादक वस्तुओं, और शिक्षा की कीमतें-एक साथ मिलाकर सी.पी.आई. बास्केट का 38 प्रतिशत हैं - मुख्यतः अप्रभावित रहेंगी। इसके अलावा संभावना है कि दिसंबर और फरवरी में आधार प्रभाव परिवर्तित होगा और प्रतिकूल हो जाएगा। यदि कमियों के कारण सामान्य शीत ऋतु का अनुकूलन नहीं होता है तो खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति का दबाव वापस आ सकता है। इसके अलावा, खाद्य पदार्थों तथा ईंधन को छोड़कर सी.पी.आई. मुद्रास्फीति गिरावटी प्रवर्तनों के प्रति प्रतिरोधी ही रहा है और मुद्रास्फीति के शीर्ष के लिए सीमा निर्धारित कर सकता है। उत्पादन कम करने के ओपेक करार के साथ आने वाले महीनों में कच्चे तेल की कीमत बढ़ सकती है। वैश्विक गतिविधियों, विशेषकर यू.एस. मौद्रिक एवं राजस्व नीति के भावी रवैये में वित्तीय बाज़ारों का प्रभावित होना, विदेशी विनिमय दर को अस्थिरता प्रदान करा सकती है जिससे मुद्रास्फिति को बल मिल सकता है। एस.बी.एन वापस ले लेने के कारण तिसरी तिमाही में मुद्रास्फिति में 10-15 आधार अंक संभावित अस्थाई गिरावट हो सकती है। इन मदों को ध्यान में रखते हुए, 2016-17 के तिमाही 4 में शीर्ष मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत संभावित है जिसमें जोखिम ऊपर की ओर हैं मगर अक्तूबर की मौद्रिक समीक्षा से कम हैं। सातवें सी.पी.सी. अवार्ड के आवास भत्ते का आकलन, लंबित कार्यान्वयन का पूर्ण प्रभाव अभी बाकी है और मुद्रास्फीति कार्यप्रणाली की बेसलाइन में इसका आकलन नहीं किया गया है (चार्ट 1)।
10. 2016-17 के लिए जीवीए वृद्धि का आउटलुक दूसरी तिमाही में 50 आधार अंक गति की अप्रत्याशित कमी और एसबीएन की वापसी, जो अभी भी बाहर बनी हुई हैं के प्रभाव से अनिश्चित बदल गया है। निकट भविष्य में नकारात्मक जोखिम दो प्रमुख चैनलों के माध्यम से आ सकते हैंः (ए) नकदी गहन क्षेत्रों में जैसे कि खुदरा व्यापार, होटल और रेस्तरां और परिवहन, और असंगठित क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में कम अवरोधों; (बी) प्रतिकूल धन प्रभाव के साथ जुड़े कुल मांग दवाब। पहले चैनल का प्रभाव बहरहाल, और अर्थव्यवस्था में नए नोटों के संचलन और गैर नकद भुगतान आधारित लिखतों का अधिक से अधिक उपयोग से प्रगतिशील वृद्धि, जबकि दूसरे चैनल के प्रभाव का सीमित होने की संभावना है। अक्तूबर 2016 में, एच 2 में जीवीए वृद्धि 7.7 प्रतिशत और पूरे वर्ष के लिए 7.6 प्रतिशत अनुमानित की गई थी। तीसरी तिमाही में वृद्धि की में अपेक्षित हानि को शामिल करते हुए और उच्च कृषि उत्पादन और 7वें सीपीसी फैसले के कार्यान्वयन से खपत मांग को बढ़ावा देने के साथ-साथ चौथी तिमाही में ढलते प्रभाव के कारण, 2016-17 के लिए जीवीए वृद्धि 7.6 प्रतिशत से 7.1 प्रतिशत तक नीचे परिशोधित की गई, समान रूप से संतुलित जोखिम (चार्ट 2) के साथ।
11. चलनिधि प्रबंधन ढांचे को अप्रैल में परिष्कृत किया गया जिसका उद्देश्य नियमित सुविधाओं के माध्यम से अल्पकालिक चलनिधि जरूरतों, उत्कृष्ट ट्यूनिंग संचालन के माध्यम से अवरोधी और मौसमी बेमेल और सकल विदेशी आस्तियों और सकल घरेलू आस्तियों के नियमन द्वारा वृद्धि को सुविधाजनक बनाने के लिए और अधिक टिकाऊ चलनिधि की आवश्यकता को पूरा करना है। रिजर्व बैंक ने इस ढांचे के साथ चलनिधि प्रबंधन को संचालित किया, उत्तरोत्तर पूर्व चलनिधि स्थिति के स्तर को तटस्थता के समीप पहुंचाया। तीसरी तिमाही में नवंबर के पहले तक, चलनिधि की स्थिति हल्के अधिशेष मोड में बनी रही। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष के दौरान ओएमओ खरीद के माध्यम से अब तक ₹1.1 ट्रिलियन की चलनिधि डाली, जिसमें अक्टूबर में ₹100 बिलियन की ओएमओ खरीद नीलामी भी शामिल है।हालांकि एसबीएन के प्रतिस्थापन ने बड़ी अधिशेष चलनिधि को इकठ्टा किया है जिसके लिए असाधारण संचालन की आवश्यकता है, इसे अस्थायी रूप से देखें जाने की जरूरत है। रिजर्व बैंक अप्रैल में बनाए गए संशोधित ढांचे के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए चलनिधि संचालन का आयोजन करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि अधिशेष चलनिधि के दबाव कम होने पर सिस्टम के स्तर में तटस्थता की स्थिति तक चलनिधि को बहाल रखा जा सके।
12. समिति के विचार में, यह द्विमासिक समीक्षा बढ़ी अनिश्चितता की पृष्ठभूमि में बनाई गयी है। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका में मौद्रिक नीति के आसन्न कसाव से वित्तीय बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव की स्थिति ट्रिगर हो सकती है, जिसमें बड़े फैलाव की संभावना है जिसका ईएमई पर व्यापक आर्थिक प्रभाव पड़ सकता है। जबकि भारत में,मुद्रा प्रतिस्थापन की लहर से आपूर्ति अवरोधों के कारण इस साल वृद्धि दर नीचे आ सकती है। उनके पूर्ण प्रभाव और उनकी दृढ़ता -अल्पकालिक घटनाएं जो मौद्रिक नीति के रुख की स्थापना के संबंध में आउटलुक अनुपातहीन वारंट सतर्कता को प्रभावित करती है को पहचानने से पहले अधिक जानकारी और अनुभव का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। व्यापक उम्मीद के अनुसार यदि प्रभाव क्षणिक है,तो वृद्धि में मजबूती से पलटाव होना चाहिए। मुद्रास्फीति की ओर मुड़ते हुए, सब्जियों के अलावा अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में मजबूती दिख रही है और इसमें गति आ रही है। हाल की घटनाओं का एक चिंताजनक विषय खाद्य और ईंधन को छोड़कर मुद्रास्फीति में कड़ी गिरावट है जो हेडलाईन में भविष्य की निचली गतिविधियों के लिए एक प्रतिरोध स्तर सेट कर सकता है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और वित्तीय बाजार अशांति में वृद्धि 2016-17 की चौथी तिमाही के मुद्रास्फीति लक्ष्य को कुछ जोखिम में डाल सकता। अंतर्निहित मुद्रास्फीति के इन संकेतकों को देखते हुए, इसे अस्थायी माध्यम के रूप है परंतु मौद्रिक नीति के रुख को बनाते समय एसबीएन की वापसी के अस्पष्ट प्रयास में देखना उपयुक्त है। इसलिए, इसके संतुलन के लिए, इंतजार करना और यह देखना आवश्यक है कि कैसे यह कारक आउटलुक पर प्रभाव डालता है और उससे टकराता है। तदनुसार, इस समीक्षा में नीति रेपो दर को रोक कर रखा गया है,जबकि एक उदार नीति के रुख को बनाए रखा गया है।
13. मौद्रिक नीति निर्णय के पक्ष में छह सदस्यों ने मतदान किया। एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 21 दिसंबर 2016 को प्रकाशित किया जाएगा। एमपीसी की अगली बैठक 7 और 8 फरवरी 2017 को होनी निर्धारित है और उसके संकल्प को 8 फरवरी 2017 को रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर डाला जाएगा।
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e5106bd05a83c3e866d09760b2bf8c63cb3c15dc | web | Shukra Gochar 2023: 30 मई की शाम 7 बजकर 40 मिनट पर शुक्र कर्क राशि में प्रवेश करेंगे और 6 जुलाई को पूरा दिन पार कर भोर 4 बजकर 5 मिनट तक कर्क राशि में ही गोचर करते रहेंगे। उसके बाद सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र एक जलीय ग्रह है। अंग्रेजी में इसे वीनस कहते हैं और आकाश में पांच सितारों का समूह शुक्र ग्रह का प्रतीक माना जाता है, जिसे पंचकोण सितारा भी कहते हैं। शुक्र के इस गोचर से विभिन्न राशि वालों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा। आइए आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं शुक्र के इस गोचर से सभी राशियों पर क्या प्रभाव होगा साथ ही जानिए शुक्र उनकी जन्मपत्रिका में किस स्थान पर गोचर करेगा और उस स्थिति में क्या उपाय करने चाहिए।
शुक्र आपके चौथे स्थान पर गोचर करेंगे। यह स्थान भूमि, भवन और वाहन का होता है। लिहाजा 6 जुलाई तक आपको भूमि, भवन और वाहन से संबंधित सुख की प्राप्ति होगी। आपको अपनी मेहनत का फल जरूर मिलेगा। इस दौरान मस्तमौला लोगों से आपकी दोस्ती बढ़ेगी। साथ ही 6 जुलाई तक आपको एकस्ट्रा मैरिटल रिलेशन के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। लिहाजा शुक्र के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए और अशुभ फलों से बचने के लिए गोचर के दौरान घर के मन्दिर में कपूर का दीपक जलाएं।
शुक्र आपके तीसरे स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के तीसरे स्थान का सम्बन्ध हमारे पराक्रम, भाई-बहन तथा यश से है। शुक्र के इस गोचर से आपको अपने भाई-बहनों का सहयोग मिलेगा। दूसरों के सामने आप अपनी बात को बेहतर ढंग से रख पाएंगे। साथ ही आपको अपने माता-पिता से भी सुख की प्राप्ति होगी। उनसे आपको अपने हर कार्य में सहयोग प्राप्त होगा। अगर आप 6 जुलाई तक किसी धार्मिक स्थल की यात्रा पर जाते हैं, तो इससे आपको अच्छा फील होगा और आप नई चीजों पर काम कर पाएंगे। लिहाजा शुक्र के शुभ फलों को और भी शुभ बनाने के लिए घर की अपनी से रिश्ते में बड़ी महिलाओं के रोज पैर छूकर आशीर्वाद लें और प्रत्येक महिला का सम्मान करें।
शुक्र आपके दूसरे स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के दूसरे स्थान का सम्बन्ध हमारे धन तथा स्वभाव से है। शुक्र के इस गोचर से आपको धन लाभ होगा। आपकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी और सांसारिक सुख पाने में आपको आसानी होगी। अब से 6 जुलाई तक उन लोगों को बहुत अधिक फायदा होगा, जो पशुपालन या कच्ची मिट्टी के काम से जुड़े हुए हैं, जैसे कुम्हार वगैरह। आपको इस दौरान सन्तान सुख का भी आनन्द मिलेगा। अतः शुक्र के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए 6 जुलाई तक गोचर के मन्दिर में गाय के घी का दीपक जलाएं और भगवान का आशीर्वाद लें।
शुक्र आपके पहले स्थान, यानी लग्न स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका में लग्न यानि पहले स्थान का सम्बन्ध हमारे शरीर तथा मुख से है। शुक्र के इस गोचर से परिस्थियां लगभग आपके अनुकुल बनी रहेंगी। आपको नौकरी में उचित पद प्राप्त होगा। साथ ही वाहन आदि का सुख भी आपको मिलेगा। अगर आप अपने लिये जीवनसाथी की तलाश में हैं, तो आपके लिए जल्द ही बेहतर रिश्ते आयेंगे। हालांकि अब से 6 जुलाई तक आपको अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ख्याल जरूर रखना चाहिए। लिहाजा शुक्र की अशुभ स्थिति से बचने के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए 6 जुलाई तक भोजन में गुड़ खाना अवॉयड करें। साथ ही जीवनसाथी की अच्छी सेहत के लिए मन्दिर में सतनाज का दान करें।
शुक्र आपके बारहवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के बारहवें स्थान का सम्बन्ध आपके व्यय तथा शय्या सुख से है। शुक्र के इस गोचर से आपको शैय्या सुख पाने के लिए कोशिशें जारी रखनी होंगी। साथ ही आपको अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने की जरूरत है। 6 जुलाई तक आपको अपने कार्यों के लिए खुद ही कदम उठाना पड़ेगा। किसी और से ज्यादा उम्मीदें लगाकर न रखें। इस बीच आपको धन लाभ भी होगा, लेकिन आपको अपने खर्चों पर कंट्रोल करके रखना चाहिए। साथ ही शुभ स्थिति सुनिश्चित करने के लिए और अशुभ फलों से बचने के लिए घर की महिला एक नीला फूल लेकर अपने हाथों से घर से दूर किसी विरानी जगह में दबा दें। इससे आपकी जो भी परेशानियां होगी, वो जल्द ही दूर होंगी।
शुक्र आपके ग्यारहवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के ग्यारहवें स्थान का सम्बन्ध हमारे आय तथा इच्छाओं की पूर्ति से होता है। शुक्र के इस गोचर से आप चतुर होंगे। हालांकि आपको अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए मेहनत जारी रखनी होगी, मेहनत रंग जरूर लायेगी। इसके अलावा 6 जुलाई तक आप अपने विचारों पर काबू पाने में असफल होंगे। एक काम को लेकर बार-बार आपके विचारों में बदलाव आते रहेंगे। आप दूसरों से छिपकर काम करने की भी कोशिश करेंगे। शुक्र के अशुभ फलों से बचने के लिये और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए मन्दिर में ज्योत के लिये रूई का दान करें। इससे आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
शुक्र आपके दसवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के दसवें स्थान का सम्बन्ध हमारे करियर, राज्य तथा पिता से होता है। शुक्र के इस गोचर से आपको अपने करियर में सफलता मिलेगी। आप जो चाहेंगे, वो पूरा होगा। 6 जुलाई तक आपके साथ-साथ आपके पिता की भी तरक्की सुनिश्चित होगी। आपको अपने जीवनसाथी से पूरा सुख मिलेगा और उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। धर्म-कर्म के कार्यों में आपकी रुचि बढ़ेगी। साथ ही आपको वाहन आदि का सुख भी प्राप्त होगा और आपको किसी प्रकार का भय नहीं होगा। लिहाजा शुक्र के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए और अशुभ फलों से बचने के लिए शुक्रवार के दिन मन्दिर में दही का दान करें।
शुक्र आपके नवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के नौवें स्थान का सम्बन्ध हमारे भाग्य से होता है। शुक्र के इस गोचर से आपको अपने भाग्य का पूरा सहयोग मिलेगा। आपके मनचाहे कार्य पूरे होंगे। साथ ही आपकी बौद्धिक क्षमता में बढ़ोतरी होगी। बुजुर्गों को धन लाभ होगा। 6 जुलाई तक किसी तीर्थ यात्रा पर जाना आपके लिये शुभ फल देने वाला होगा। हालांकि आपको अपनी बेहतरी के लिए मेहनत जारी रखनी होगी। साथ ही संतान से सुख पाने के लिए भी आपको कोशिश करनी होगी। शुक्र के अशुभ फलों से बचने के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए इस दौरान घर के बाहर जमीन में थोड़ा-सा शहद दबाएं। इससे आपके शुभ फल सुनिश्चित होंगे।
शुक्र आपके आठवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के आठवें स्थान सम्बन्ध हमरे आयु से है। शुक्र के इस गोचर से 6 जुलाई तक आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, लेकिन आपको अपने खाने-पीने को लेकर सतर्क रहना होगा। इसके अलावा शुक्र के इस गोचर के प्रभाव से आप किसी से किया हुआ वायदा जरूर पूरा करेंगे और अपनी बात का मान रखने में सफल होंगे। हालांकि 6 जुलाई तक आपको अपने जीवनसाथी की सेहत का ख्याल रखना चाहिए और दूसरों के लड़ाई-झगड़ों में पड़ने से बचने की कोशिश करनी चाहिए। साथ ही इस दौरान किसी से भी कोई चीज़ उधार लेना अवॉयड करें। अतः शुक्र की अशुभ स्थिति से बचने के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए मन्दिर में ज्वार का दान करें । साथ ही अपने ईष्ट देव के सामने रोज सिर झुकाएं। इससे आपके शत्रु कमजोर पड़ेंगे।
शुक्र आपके सातवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के सातवें स्थान का सम्बन्ध हमारे जीवनसाथी से है। शुक्र के इस गोचर से आपके और आपके जीवनसाथी के बीच तालमेल बना रहेगा और रिश्तों में मजबूती आएगी। इस बीच आपको परिवार का पूरा सुख मिलेगा। साथ ही धन लाभ भी होगा। संतान के साथ भी रिश्ते बेहतर होंगे। 6 जुलाई तक के बीच आपको बिजनेस या किसी अन्य काम से संबंधित महत्वपूर्ण यात्राएं भी करनी पड़ सकती है। लिहाजा शुक्र के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए 6 जुलाई तक पड़ने वाले किसी भी शुक्रवार के दिन मन्दिर में किसी एक कांसे का बर्तन दान करें।
शुक्र आपके छठे स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के छठे स्थान का सम्बन्ध हमारे मित्र, शत्रु तथा स्वास्थ्य से है। शुक्र के इस गोचर से आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। आपको अपने मित्रों से पूरा सहयोग मिलेगा। इस बीच आपके कुछ नये मित्र भी बन सकते हैं, लेकिन इस मामले में थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। इसके अलावा आपकी सांसारिक स्थिति अच्छी रहेगी और आपके भाईयों की तरक्की भी सुनिश्चित होगी। शुक्र के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए और अशुभ फलों से बचने के लिए घर की महिला अपने बालों में सोने या गोल्डन कलर का हेयर क्लिप लगाकर रखें। इससे आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी।
शुक्र आपके पांचवें स्थान पर गोचर करेंगे। जन्मपत्रिका के पांचवे स्थान का सम्बन्ध हमारे संतान, बुद्धि, विवेक और रोमांस से है शुक्र के इस गोचर से आपको सब तरह का सुख प्राप्त होगा। गुरु के सहयोग से आप जीवन में तरक्की करेंगे। आपकी लव लाइफ अच्छी रहेगी। साथ ही धर्म के प्रति आपकी आस्था बढ़ेगी और परिवार में प्यार बना रहेगा। इस दौरान आपको अलग-अलग सौन्दर्य प्रसाधनों को इकट्ठा करके रखने की इच्छा होगी। शुक्र के अशुभ फलों से बचने के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए गाय को उबले हुए आलू, ठंडा करके खिलाएं। साथ ही माता की सेवा करें। इससे आपकी तरक्की ही तरक्की होगी।
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466c10af55e0366e247e82bba38dace0ef47056e031ffeb354caa16a7631d5b1 | pdf | ले जाता है (ऋ० १।३५ ) तथा पूषन् उनकी रक्षा करता है ( ६।५४ ) । चिता जलने के पहिले प्रेत- पुरुष की पत्नी, जो शव के साथ लेटी हुई थी, उठती है और उसका धनुष हाथ से हटा लिया जाता है। यह इसकी सूचना है कि प्राचीनतर काल में पत्नी तथा धनुष दोनों ही शव के साथ जला दिये जाते थे। पितरों के मार्ग पर चलकर प्रेत की आत्मा प्रकाशमान लोक में प्रवेश करती है और पितरों के साथ साक्षात्कार करती है। वहाँ उच्चतम लोक में यम पितरों के साथ बैठकर आनन्द में कालयापन करते हैं ।
यम (अवेस्ता 'यिम' ) प्रथम मानव हैं जिन्होंने मानवों के लिए पितृलोक में जाने का मार्ग खोज निकाला है (यमो नो गातुं प्रथमं विवेद - ऋ० १०।१४ । २ ) । उसी लोक में हमारे पूर्व पितृगण प्राचीनकाल में गए हैं तथा उसके अनन्तर भावी पुरुष अनेक मार्गों से उसी लोक में जाते हैं । यम विवस्वान् के पुत्र होने से 'वैवस्वत' कहलाते हैं । यम के लिए 'राजा' शब्द का प्रयोग अनेकत्र किया गया है, व्यक्त रूप से 'देव' का नहीं । पितृलोक के मार्ग में यम के शबल दो कुत्ते रहते हैं, जो सरमा के पुत्र, चार नेत्र वाले ( चतुरक्षौ ), मार्ग के रक्षक ( पथिरक्षी ) तथा मनुष्यों पर पहरा देनेवाले (नृचक्षसौ ) हैं । प्रेतात्मा को इनसे बच कर जाने का उपदेश दिया गया है। दीर्घ नासिका वाले ( उरूणसौ ), प्राण के संहारक (अमुतृपौ) तथा नाना वर्ण वाले ( उदुम्बलौ ) - ये सारमेय यम के दूत बतलाये गये हैं। ये मनुष्यों में घूमते हैं तथा पितृलोक में जाने वालों को ढूँढ़ा करते हैं। पितृलोक प्रकाशमान देदीप्यमान लोक हैं जहाँ यम पितृ लोगों के साथ आनन्द में मग्न दीखते हैं । पितरों के अनेक गण होते हैं जिनमें अङ्गिरस, नवग्वा, अथर्वण, भृगु तथा वसिष्ठ मुख्य माने जाते हैं। ये सोमरस के अभिलाएक हैं तथा मर्त्यलोक में प्रस्तुत आहुति के लिए सदा लालायित रहते हैं। उनसे यज्ञ में आने, सोम पीने तथा उपासकों की रक्षा करने के लिए नाना प्रकार की प्रार्थनायें की गई हैं -
असुं य ईयुरवृका ऋतशास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥
पितरों के नाना प्रकार हैं - अवर ( नीचे रहनेवाला ), पर तथा मध्यम, प्राचीन तथा नवीन । हम पितरों को न भी जानें, परन्तु अग्नि सच को बानता है।
स्वर्गकी धारणा बड़े ही सुन्दर तथा प्रकाशमय रूप में की गई है। उस लोक में यम वरुण तथा पितरों के साथ निवास करते हैं। वहाँ मनुष्य को अमरत्व प्रदान करने के लिए, कश्यप ऋषि प्रार्थना करते हैं - "यत्र राजा वैवस्वतो यत्रावरोधनं दिवः ।....तत्र माममृतं कृषि " ( ९ । ११३१८ ) । वहाँ दिन, रात और जल सच सुन्दर तथा आनन्ददायक होते हैं ( १० । १४ ।९ ) । वहाँ मनुष्य को बलिष्ठ सुन्दर शरीर प्राप्त हो जाता है तथा इस शरीर की रोग-व्याधि, दुर्बलता तथा त्रुटियाँ सच दूर हो जाती हैं। पुण्य कार्य करनेवाला प्राणी अपने सम्पादित इष्ट ( यज्ञ ) तथा पूर्त ( कुँआ खोदना आदि स्मृति निर्दिष्ट कार्य ) के फल को प्राप्त कर लेता है, तथा पितरों और यम से मिलकर आनन्द भोग करता है ( ऋ० १०।१४।८ ) । प्रेतात्मा भौतिक प्रकाशमान शरीर से युक्त होकर स्वर्ग में सोम, मुरा, मधु, दुग्ध तथा धी जैसी भौतिक वस्तुओं से ही आनन्द नहीं उठाता, प्रत्युत प्रेम करने के लिए स्त्रियों की भी वहाँ बहुलता होती है ( स्वर्गे लोके बहुस्त्रैणमेषाम् - अथर्व ४ । ३४ । २ ) । वहाँ गाना तथा बाजा का भी आनन्द है। वहाँ अश्वत्थ वृक्ष है जिसके नीचे यम देवों के साथ पान करते हैं ( यस्मिन् वृक्षे सपलाशे देवैः संपिबते यमः - ऋ० १०/१३५।१ ) । कामधेनु से सम्पन्न समस्त अभिलाषा तथा आनन्द से परिपूर्ण स्वर्ग की कल्पना नितान्त सुन्दर तथा आकर्षक है । नरक की कल्पना स्पष्टतः ऋग्वेद में नहीं दीखती, परन्तु अथर्व ( १२ । ४ । ३६ ) में 'नारकं लोकं' की कल्पना स्पष्टतः स्वर्गलोक की भावना से विपरीत कल्पित की गई है। इस प्रकार स्वर्ग की वैदिक कल्पना बड़ी उदात्त है और आर्यों जैसे आशावादी प्राणियों के लिए नितान्त उचित तथा सुन्दर है ।
१. अथर्व० ५/४/३; कौषीतकि उप० ( १ । ३ ) में इस वृक्ष का नाम तिल्य या ( तिल्प है तथा ब्रह्मलोक में विरजा नदी, सायुज्य नगर, अपराजित प्रासाद आदि का भी उल्लेख यहाँ मिलता है। इसका माहात्म्य वैष्णवों के साहित्य में विशेषरूप से मिलता है, देखिए ब्रह्मसंहिता ।
२ सर्वान् कामान् यमराज्ये वशा प्रदुदुषे दुहे ।
३ अथाहुर्नारकं लोकं निरुन्धानस्य याचिताम् ॥
( वही )
नरक - अधर्म के आचरण करनेवाले जीवों को यातना भोगने का मरणोपरान्त लोक । 'नरक' की कल्पना का विकसित रूप हमें पुराणों में उपलब्ध होता है, परन्तु वैदिक साहित्य में भी नरक की कल्पना का अभाव नहीं है । अथर्व वेद (२।१४।२; ५।१९। ३ ) में नरक स्वर्ग से विपरीत यम के क्षेत्ररूप में अभीष्ट है, जहाँ राक्षसियों और अभिचारिणियों का आवास रहता है और जिसकी स्थिति पाताल लोक ( अधोगृह ) में मानी गई है । ब्राह्मण साहित्य में परलोक में दण्ड की धारणा जब विशेष रूप से विकसित हुई, तब नरक में यातना के भोगने का भी विकाश सम्पन्न हुआ । पुराणों - विशेषतः विष्णुपुराण ( २१६ । १ - २९ ) तथा श्रीमद्भागवत ( ५।२६।१-३७ ) में नरक का विशद विवरण उपलब्ध होता है ।
स्थिति- -नरक की स्थिति के विषय में मतभेद है। भागवत (५।२६।५) के अनुसार नरक की स्थिति त्रिलोकी के भीतर ही है तथा वे दक्षिण की ओर के पृथ्वी से नीचे, परन्तु जल से ऊपर स्थित हैं। विष्णुपुराण (२।६।१) तो नरक की स्थिति पृथ्वी और जल दोनों के नीचे मानता है। भूलक के त्रिविध स्तर पुराणों को अभीष्ट है- सब से ऊपर पृथ्वी, उसके नीचे पाताल तथा उसके भी नीचे नरक । इस प्रकार नरक को पृथ्वी के सब से नीचे स्थित होने में किसी प्रकार की पौराणिक विप्रतिपत्ति नहीं है ।
संख्या - नरकों की संख्या परिगणित नहीं है। वह 'शतशः सहस्रशः ' चतलाई गई है, परन्तु नरकों की संख्या में विकाश दृष्टिगोचर होता है । नरकों की न्यूनतम संख्या सात है, जिसका उल्लेख विष्णुपुराण, योगसूत्र का व्यासभाष्य ( ३।२६ ) तथा शंकराचार्य ( वेदान्तभाष्य ३ । १ । १५ ) करते हैं । विष्णुपुराण के अनुसार रौरव, महारौरव आदि का उल्लेख शंकराचार्य को अभीष्ट है। व्यासभाष्य ( ३।२६ ) में दो प्रकार के नाम मिलते हैं। 'अवीचि' को छोड़ देने पर दोनों सूचियों के नाम इस प्रकार हैं - घन ( = महाकाल ), सलिल (= अम्बरीष ), अनल ( = रौरव), अनिल (= महारौरव ), आकाश (= कालसूत्र ) तथा तमः प्रतिष्ठ ( = अन्धतामिस्र ) । कालान्तर में यह संख्या विकसित होकर एक्कीस तक पहुँच गई । ये नाम मनुस्मृति (४१८८९० ) तथा श्रीमद्भागवत (५/२६/७ ) में उपलब्ध होते हैं, परन्तु इन अभिधानों में पर्याप्त पार्थक्य है । विष्णुपुराण ( २।६।२ - ५ ) तथा श्रीमद्भागवत ( ५१२६ ।७ ) में यह संख्या वृद्धिंगत होकर २८ तक पहुँच गई है। दोनों सूचियों में संख्या की एकता होने पर भी नामों में पार्थक्य है । रौरव, कालसूत्र, लालाभक्ष, वैतरणी आदि संज्ञाओं की समानता होने पर भी अन्यत्र पार्थक्य है ।
नाम - भागवत के अनुसार २८ नरकों के नाम यहाँ दिये जाते हैं जो अपने स्वरूप के भी स्वतः प्रकाशक हैं- तामिस्र, अन्धतामिस्र, रौरव, महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, सूकरमुख, अन्धकूप, कृमिभोजन, सन्दंश, तप्तसूर्मि, वज्रकण्टकशाल्मली, वैतरणी, पूर्याद, प्राणरोध, विशसन, लालाभक्ष, सारमेयादन, अवीचि, अयःपान, क्षारकर्दम, रक्षोगणभोजन, शूलप्रोत, दन्दशक, अवट निरोधन, पर्यावर्तन और सूचीमुख । ये 'विविध यातना भूमि' माने गये हैं, अर्थात् इनमें निवास कर प्राणी अपने किये गये पापों के निमित्त नाना प्रकार की यातनायें भोगते हैं ।
नरकलोक का शासन-सूत्र सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान् यम के हाथों में रहता है, जो अपने दूतों तथा सेवकों के द्वारा उस विचित्र विशाल लोक की सुव्यवस्था करने में समर्थ होते हैं । मरणासन्न प्राणी को यम के दूत संयमनी पुरी में लाते हैं, चित्रगुप्त उनके किये गये पुण्यों तथा पापों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं; यमराज उनके गौरव-लाघव का विचार करते हैं। पुण्य का फल भोगने के लिए तो पुण्यात्माओं को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, परन्तु पाप का फल भोगने के लिए पापाचरण वाले जीवों को नरकलोक मिलता है । यथा इस लोक में निरपराध मनुष्यों को दण्ड देनेवाले राजा या राजकर्मचारी 'सूकरमुख' नामक नरक में गिरता है, जहाँ वह कोल्हू में गन्ने के समान पेरा जाता है और वह आर्त स्वर मे चिल्लाता है और कभी मूर्च्छित होकर अनेक यातनायें भोगता है । फलतः नरक प्रायश्चित रूप से यातनाओं के भोगने का विकट स्थान है। इस प्रकार नरक और स्वर्ग के भोग से जब जीवों के अधिकांश पाप और पुण्य क्षीण हो जाते हैं, तब चाकी बचे हुए पुण्य पाप-रूप कर्मों को लेकर ये जीव इसी लोक में जन्म लेने के लिए लौट आते हैं। नरक के साथ 'स्वर्ग' की कल्पना अनुस्यूत है । जीव के आवागमन की प्रक्रिया में स्वर्ग तथा नरक एक नितान्त आवश्यक अङ्ग है । वैदिक धर्म के अनुसार जैनधर्म तथा बौद्धधर्म में भी 'नरक' की कल्पना मान्य है तथा वह ऊपर वर्णित रूप से भिन्न नहीं है । संख्या की भिन्नता होने पर भी मूल स्वरूप की मान्यता प्रायः एकाकार है ।
वैदिक साहित्य में विश्वबन्धुत्व की परिकल्पना
वैदिक साहित्य की यह एक अनोखी • विशेषता है कि वह मानव मात्र के लिए कल्याण की भावना को अग्रसर करता है । संकीर्ण स्वार्थ को ही मानव जीवन का चरम पुरुषार्थ मानने वाले पाश्चात्य देशों के साहित्य में जो एकांगिता विद्यमान है,
वह वैदिक साहित्य को स्पर्श नहीं करती। कारण इसका स्पष्ट है- साहिस्य संस्कृति का अग्रदूत है, साहित्य संस्कृति का वाहन है। समाज की भावना को दर्पगत् प्रतिबिम्बित करनेवाला साहित्य कितना भी आदर्शवादी हो, वह यथार्थना का चित्रण किये विना नहीं रह सकता। उसकी व्याप्ति राष्ट्र की परिधि के द्वारा नियन्त्रित होती है। वह उस देश के प्राणियों में परिव्याप्त भावना को सर्वथा उलंघन करने की क्षमता नहीं रखता । पश्चिम के देश संकीर्ण राष्ट्रीयता की भावना से जकड़े हुये हैं। फलतः उनके साहित्य में उस संकीर्णता का ही परिचय हमें पदे पदे मिलता है। वहाँ के साहित्यिक अपने राष्ट्र की चहारदिवारी के भीतर अपने को सीमित रखते हैं। इसलिए उनकी वाणी राष्ट्रीयता के परिबृंहण में ही लगी रहती है। इसके विपरीत, संस्कृत के कविजन उदारता का आश्रय लेकर संकीर्णता को अपने पास फटकने नहीं देते । फलतः वैदिक साहित्य विश्वचन्धुत्व की भावना से सर्वथा परिव्याप्त है ।
वैदिक प्रार्थना में समष्टि भावना का पूर्ण साम्राज्य विराजमान है। वैदिक ऋषि व्यष्टि के कल्याण के लिये जगदीश्वर से प्रार्थना नहीं करता, प्रत्युत वह समग्र समष्टि के मंगल के लिये आशीर्वाद चाहता है। वह व्यक्ति तथा समाज से ऊपर उठकर समस्त विश्व के सुख-समृद्धि तथा मंगल के निमित्त ही प्रार्थना करता है । मन्त्रों का प्रामाण्य इस विषय में अक्षुण है।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न भासुव ।
हे देत्र सत्रिता, समस्त पापकर्मों को हमसे दूर करो। हमारे लिए जो भद्र वस्तु - कल्याणकारी पदार्थ हो, उसे हमें प्राप्त कराइये ।
विश्व शान्ति, और विश्व बन्धुत्व की उदात्त भावना से ओतप्रोत वैदिक मन्त्रों में मानवमात्र में परस्पर सौहार्द, मैत्री तथा साहाय्य की भावना की उपलब्धि नितान्त स्वाभाविक हैमित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे । मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥
मैं मित्र की दृष्टि से सत्र प्राणियों को देखूँ । हम सब लोग मित्र की दृष्टि से परस्पर में एक दूसरे को देखें ।
मानव मात्र का यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह एक-दूसरे की सर्वथा रक्षा तथा सहायता करे। केवल अपने ही स्वार्थ में उसे निविष्ट नहीं रहना चाहिये । इस भाव को द्योतित करता हुआ ऋग्वेदीय मन्त्र कहता हैपुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः ।
वैदिक ऋषि भगवान से प्रार्थना करता है कि वह मानवमात्र के लिये सुमति- सद्भावना धारण करे; उन प्राणियों के ही प्रति नहीं, जिन्हें वह देखता है, प्रत्युत उनके लिए भी जो उसकी दृष्टि से ओझल हैं जिन्हें वह नहीं देखता -
यांश्च पस्यामि यांश्च न । तेषु मा समुमति कृधि ॥
कितनी उदात्त भावना है यह । सामान्यतः हम उन्हीं के कल्याण की कामना करते हैं, जिन्हें हम देखते हैं अपनी आखों से; परन्तु वैदिक ऋषि यहीं तक अपनी प्रार्थना को सीमिति नहीं रखता, प्रत्युत वह निखिल विश्व के अदृष्ट प्राणियों के प्रति भी वह भावना रखने का नम्र निवेदन करता है ।
ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में विशिष्ट सूक्त हैं जिनकी संज्ञा है सांमनस्य सूक्त इनमें विशेषरूप से विश्व कल्याण की भावना परिव्याप्त है। इस विषय के एक दो मन्त्र यहाँ दिये जाते हैंसं गच्छध्वं संवदध्वम्, सं वो मनांसि जानताम् । देवा भागं यथा पूर्वे सं जानाना उपासते ॥ इस मन्त्र का तात्पर्य बड़ा गंभीर है। हे मनुष्यों, जैसे सनातन से विद्यमान दिव्य शक्तियों से सम्पन्न सूर्य, चन्द्रादि देव परस्पर अविरोध भाव से प्रेम से अपने कार्यों को करते हैं, ऐसे ही तुम भी समष्टि भावना से प्रेरित होकर एक साथ कार्यों में प्रवृत्त हो, ऐकमत्य होकर परस्पर सद्भाव से रहो। ऋग्वेद का अंतिम मन्त्र इसी भावना को अग्रसर करता हैसमानी व आकृतिः समाना समानमस्तु वो मनो यथा वः
हृदयानि वः । सुसहासति ॥
मानवों को लक्ष्य कर अंगिरस संवनन ऋषि का उपदेश इस मन्त्र में निहित है। वह कहते हैं कि मानवों की आकृति - चित्तवृत्ति, हृदय तथा मन-सच समान हों, तभी विश्व के प्राणी परस्पर में सौहार्द से निवास कर सकते हैं। अतः ऋषिकेवल अपने वैयक्तिक मंगल के लिये भगवान् से प्रार्थना नहीं करता, प्रत्युत वह मानवमात्र के हित का प्रार्थी है ।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
यह अपना है और यह पराया है ऐसी गणना क्षुद्रचित्त वाले प्राणियों की है। उदार चरित वाले जनों की दृष्टि में तो यह समस्त वसुधा ही एक कुटुम्ब विश्व-भावना की अभिव्यक्ति इससे बढ़कर और सुन्दर शब्दों में नहीं की जा सकती। इस श्लोक के तात्पर्य के भीतर एक गहरी अनुभूति है। आजकल यातायात की सुविधा से यदि एक देश का मानव दूसरे देश के मानव के प्रति आवश्यकता के पास में बद्ध होकर आकृष्ट होता है, तो इसे कम समझ सकते हैं, परन्तु आश्चर्य तो इस बात का है कि ऐसी सुविधाओं से विरहित प्राचीन काल में भारत के निवासी विश्ववन्धुत्व की भावना में विश्वास ही नहीं करते थे, प्रत्युत अपने दैनिक जीवन में उसका व्यवहार भी करते थे ।
भारत के निवासी आर्यजन का जीवन विश्ववन्धुत्व का व्यावहारिक पक्ष प्रस्तुत करता है। प्रत्येक गृहस्थ "बलिवैश्वदेव" के अनुष्ठान के उपरान्त ही स्वयं भोजन करता है। यह बलि विश्व के समग्न देवताओं के ही लिए अन्न द्वारा तृप्ति की साधिका नहीं है, प्रत्युत पशु पक्षी आदि तिर्यग्योनि के जीवों को भी भोजनार्थ अन्न देने का विधान यहाँ पाया जाता है। इसी प्रकार सर पर ऋषियों, मानवों तथा स्वीय पूर्वजों की ही जल द्वारा तृप्ति नहीं की जाती, प्रत्युत नाग, सर्प आदि क्षुद्र जीवों को भी जलाञ्जलि देकर तृप्ति पहुँचाने का सार्वभौम नियम है । यह तर्पण प्रतिदिन विहित अनुष्ठान है। इससे प्रत्येक मानव अपने को संसार के समस्त प्राणियों के साथ सम्पर्क स्थापित कर विश्ववन्धुत्व की साकार उपासना करता है ।
इस विश्वबन्धुत्व की भावना का एकगंभीर दार्शनिक पक्ष भी है। यह समग्र विश्व परमैश्वर्य-मण्डित सत्य ज्ञान अनन्त परब्रह्म का ही विवर्त है । जगत् के जीव परब्रह्म के अंशभूत होने पर भी तद्रूप ही हैं। जगत् के भीतर एक ही सर्व शक्तिमान् परमेश्वर रमा हुआ है। अपनी अलौकिक घटनापटीयसो माया के कारण सर्वत्र व्याप्त है। विश्व का प्रत्येक अणु उसी की अमल शक्तिमत्ता का
विजय घोष करता है। विश्व के समस्त जीव उसी परमपिता की सन्तान हैं। ऐसी दशा में उनमें पारस्परिक बन्धुत्व की भावना परिस्फुटित न होगी ? यह कौन सचेता विश्वास कर सकता है । यह अद्वैत सिद्धान्त भारतीय संस्कृति की आधारशिला है । फलतः इस संस्कृति के परिवहन करने वाले वैदिक साहित्य में इस भावना का साङ्गो-पामाङ्ग रूप उपलब्ध होता है - यह कथन पुनरुक्ति मात्र है। हमारे संस्कृत के काव्यों तथा रूपकों में यह भावना बड़ी स्फुटता से अपनी अभिव्यक्ति पा रही है। इसलिए प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान की समाप्ति पर साधक पुरुष अपना आदर्श इस प्रसिद्ध श्लोक के द्वारा प्रकट करता हैसर्वेऽत्र सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥
इस विश्व में सच प्राणी मुखी हों, सब लोग रोग से आक्रान्त न हों, सब प्राणी कल्याण की उपलब्धि करें। कोई प्राणी दुःख का भाजन न हो ।
वेद अनन्त है; वेद गम्भीर है । वेद के गम्भीर अर्थ तथा रहस्य की सूचना इस घटना से भी पर्याप्त रूपेण मिलती है कि अपने उदयकाल से आरम्भ होकर वर्तमानकाल तक यह नाना विचारवाले विद्वानों को प्रेरणा तथा स्फूर्ति देता आया है। यास्क के समय में ही इसके गम्भीर अर्थ की व्याख्या नाना सम्प्रदाय के वेदज्ञों ने अपनी दृष्टि से की और आज भी इसके मन्त्रों के तात्पर्य को समझने तथा समझाने के लिए नाना शैली पुरस्कृत की जा रही है और प्रत्येक शैली एक नवीन अर्थ का उन्मेष करती है । वेद इस विशाल ब्रह्माण्ड में अनेक प्रकार से जागरूक तथा नाना अभिव्यक्तियों में प्रकाशशील एक अचिन्त्य शक्ति का शाब्दिक उन्मेष है - वर्णमय विग्रह है । वह तर्क की कर्कश पद्धति पर व्याख्यात सिद्धान्तों का समुच्चय नहीं; अपितु वह प्रातिभसे साक्षात्कृत तथ्यों का प्रशंसनीय पुंज है । वैदिक युग के मनीषियों तथा लोकातीत आर्षचक्षुर्मण्डित द्रष्टाओं की वाणी में सार्वदेशिक तथा सार्वकालिक नैतिकता और धर्म की मूल प्रेरणाओं का स्फुरण हो रहा है, जो आज भी विश्व के मानवों को सन्मार्ग पर ले जाने की क्षमता रखता है। वैदिक ऋषियों की दृष्टि में धर्म ही जीवनयात्रा का मुख्य उपयोगी साधन है। 'सुगा ऋतस्य पन्थाः" ( ऋ० ८।३। १ ३ ) = धर्म का मार्ग सुगम है। 'सत्यस्य नावः सुकृतमपीपरन्'
( ऋ० ९/७३ । १ ) = सत्य की नाव धर्मात्मा को पार लगाती है । वेद अध्यात्म के साथ व्यवहार का, परलोक के साथ इहलोक का मंजुल सामञ्जस्य अपने भव्य उपदेशों से प्रस्तुत करता है । वेद का सर्वातिशायी श्लाघनीय धर्म यज्ञ है। यज्ञ ही मानव को दूसरे मानव के प्रति मैत्री के सूत्र में बांधने वाला कर्म है । वेद मनुष्यों को कर्मठ, देशभक्त तथा परोपकारी बनने की शिक्षा देता है । वह स्वावलम्बी मानव के मूलमन्त्र का रहस्य बतलाता है -- 'न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः' (ऋ० ४ । ३३ । ११ ) = विना स्वयं परिश्रम किये देवों की मैत्री प्राप्त नहीं होती है। वह सम्पत्ति को मानवों में बांट देने की शिक्षा देता है - 'शतहस्त समाहर सहस्रहस्त संकिर' (अथर्व० ३।२४।५) = सैकड़ों हाथों से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बाँट दो ।
'एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति' का शिक्षक वेद अद्वैतवाद का महनीय उपदेष्टा ग्रन्थरत्न है । प्राणिमात्र में एक ही चैतन्य व्यास हो रहा है। प्राणिमात्र को परस्पर में बन्धुता की महनीय भावना से ओत-प्रोत होना चाहिए । इस भावना की प्रेरणा देनेवाले अथर्व ऋषि का यह वाक्य वर्तमानकाल के मानवों के लिए आदर्श मन्त्र होना चाहिए -
सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः । अन्योऽन्यमभिनवत वत्सं जातमिवाध्न्या ।
( अथर्व पिप्पलाद ५ । १९ । १ )
यह संज्ञान सूक्त ( अथर्व० ३।३० ) मानवों के परस्पर सौहार्द, सहानुभूति तथा मैत्री को मानव समाज के लिए आदर्श बतलाने वाला एक नितान्त श्लाघनीय सूक्त है जिसके भावों को समझना तथा अपने जीवन में उतारना संसार के प्राणियों का कल्याण साधक है ।
वेद नित्य है; वेद रहस्यमय है; वेद का ज्ञान गम्भीर व्यापक परम चैतन्य का आभामय शाब्दिक विग्रह है। वह देश तथा काल से अतीत है। वह किसी एक मानव समाज का ग्रन्थ नहीं है। वह विश्व मानव का कल्याणाधायक ग्रन्थरत्न है। व्यवहार का उपदेष्टा है। वह अध्यात्म का शिक्षक है। वह परमज्योतिर्मय प्रभु का प्राणियों के लिए मधुर सन्देश है । उसकी उपासना उस अनन्त सर्वशक्तिमान् अचिन्त्य शक्तिशाली भगवान् के मंगलमय साक्षात्कार कराने में कृतकार्य होती है। उस
परम करुणावतार भगवान् से हमारी विनम्र प्रार्थना है कि हमें वह सुबुद्धि दे जिससे इम इस वेदवाणी को समझें, गूढ़ अर्थ को हृदयंगम करें, उसका आचरण कर अपने जीवन को मंगलमय बनावें तथा इस जन्म को सार्थक सिद्ध करें ।
समानी व आकृतिः समाना हृदयानि वः । समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥
तत् सद् ब्रह्मार्पणमस्तु ॥
भारतवर्ष में रेखा- गणित के प्राचीन इतिहास की जानकारी के लिए शुल्चसूत्रों का अध्ययन नितान्त आवश्यक है। शुल्बसूत्र वेदाङ्ग के अन्तर्गत कल्प सूत्र का अन्यतम अङ्ग है । कल्पसूत्र का मुख्य विषय है वैदिक कर्मकाण्ड । ये मुख्यतया दो प्रकार के हैं - गृह्यसूत्र तथा श्रौतसूत्र, जिनमें गृह्यसूत्र का मुख्य - विषय है विवाहादि संस्कारों का विस्तृत वर्णन । श्रौतसूत्रों में श्रुति में प्रतिपादित नाना यज्ञ-याज्ञों का विशद विवरण प्रस्तुत किया गया है । शुल्बसूत्र इन्हीं श्रौतसूत्रों का एक उपयोगी अंश है। 'शुल्च' शब्द का अर्थ है - रज्जु, अर्थात् रज्जु के द्वारा मापी गई वेदि की रचना शुल्बसूत्र का प्रतिपाद्य विषय है।
सिद्धान्त की दृष्टि से तो प्रत्येक वैदिक शास्त्र का अपना विशिष्ट 'शुल्बसूत्र' होता है, परन्तु व्यवहारतः ऐसी बात यही है। कर्मकाण्ड के साथ मुख्यतः सम्बद्ध होने के कारण शुल्बसूत्र यजुर्वेद की ही शाखा में पाये जाते हैं। यमु वेंद की अनेक शाखाओं में शुल्बसूत्रों का अस्तित्व पाया जाता है। शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध एक ही शुल्बसूत्र है - कात्यायन शुल्बसूत्र, परन्तु कृष्ण यजुर्वेद से सम्बद्ध छः शुल्चसूत्र मिलते हैं - चौधायन, आपस्तम्ब, मानव, मैत्रायणीय, बाराह तथा बाधूल । इनके अतिरिक्त आपस्तम्ब शुल्ब ( ११ ११ ) टीका मे करविन्दस्वामी ने यशक झुल्ब तथा हिरण्यकेशी-शुल्ब का उल्लेख किया है, जो आजकल उपलब्ध नहीं है । आपस्तम्च-शुल्ब ( ६ । १० ) में हिरण्यकेशी शुला से एक उद्धरण भी उपलब्ध होता है ।
इन सात उपलब्ध सूत्रों में बौधायन शुल्ब ही सब से बड़ा तथा सम्भवतः सब से प्राचीन शुल्बसूत्र है। इसमें तीन परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेद में ११६ सूत्र हैं, जिनमें मंगलाचरण के अनन्तर वर्णन है शुल्ब में प्रयुक्त विविध मानों का ( सूत्र ३ - २१); याशिकवेकदियों के निर्माण के लिए मुख्य रेखा गणितीय तथ्यों का ( सूत्र २२ - ६२ ) तथा विभिन्न वेदियों के क्रमिक स्थान तथा आकार-प्रकार का वर्णन है ( सूत्र ६३ - ११६ ) । द्वितीय परिच्छेद में ८६ सूत्र हैं, जिनमें वेदियों के निर्माण के सामान्य नियमों का बहुशः वर्णन ( १ - ६१ सूत्र ) के पश्चात्
गार्हपत्य-चिति तथा 'छन्दश्चिति के बनावट का विवरण प्रस्तुत किया गया है। तृतीय परिच्छेद में ३२३ सूत्र हैं, जिनमें काम्य इष्टियों के १७ प्रभेदों के लिए चेदि के निर्माण का विशद विवरण है। इनमें से कई वेदियों की रचना बड़ी ही पेचीदी है, परन्तु अन्यों की रचना अपेक्षाकृत सरल है।
आपस्तम्ब का शुल्बसूत्र ६ 'पटल' ( अध्याय ) में विभक्त है, जिनके भीतर अन्य अवान्तर वर्ग हैं। इस प्रकार इसमें २१ अध्याय तथा २२३ सूत्र हैं । प्रथम पटल ( १ - ३ अध्याय ) में वेदियों की रचना के आधारभूत रेखागणितीय सिद्धान्तों का निर्वाचन है । द्वितीय पटल (४-६ अध्याय ) वेदि के क्रमिक स्थान तथा उनके रूपों का वर्णन करता है। यहाँ इनके बनाने के ढंग या प्रक्रिया का भी विवरण दिया गया है। अन्तिम १५ अध्यायों में काम्य इष्टि के लिए आवश्यक विभिन्न वेदियों के आकार-प्रकार का विशद विवेचन है । यहाँ बौधायन तथा आपस्तम्ब ने प्रायः समस्त काम्मेष्टियों का समान रूप से विवेचन किया है। अन्तर इतना ही है कि आपस्तम्ब की अपेक्षा बौधायन में अधिक विस्तार तथा विभेदों की सत्ता मिलती है । आपस्तम्ब अपेक्षाकृत सरल तथा संक्षिप्त है :
बौधायन के टीकाकार
बौधायन के दो टीकाकारों का पता चलता है जिनमें से एक उतने प्राचीन प्रतीत नहीं होते, परन्तु दूसरे टीकाकार पर्याप्तरूपेण प्राचीन प्रतीत होते हैंक ) द्वारकानाथ यज्वा - ये आर्यभट के पश्चाद्वर्ती निश्चित रूप से प्रतीत होते हैं, क्योंकि इन्होंने अपनी टीका में आर्यभटीय के एक सिद्धान्त का निर्देश किया है। शुल्बसूत्र के अनुसार ब्यास तथा परिधि का सम्बन्ध ग होता है, परन्तु द्वारकानाथ यज्वा ने इस नियम में शोधन उपस्थित किया है जिससे
१. 'छन्दचिति' मन्त्रों के द्वारा निर्मित वेदि है। इसमें वेदि का निर्माता बाज की भाकृतिवाली बेदि की रूपरेखा पृथ्वी के ऊपर खींचता है तथा मन्त्रों का उच्चारण करता है। ईटों को रखने की वह कल्पना करता है, अर्थात् मन्त्रों को पढता जाता है तथा ईंटों को रखने की कल्पना करता है, परन्तु वस्तुः वह रखता नहीं। इसीलिए यह वेदि छन्दश्चिति के नाम से प्रसिद्ध है।
मूल्य आधुनिक गणना के अनुसार ही ३.१४१६ तक तिद्ध होता है। इसी प्रकार अन्य गणना के लिए भी यज्वा ने अपनी विमल प्रतिभा का परिचय दिया है। इस व्याख्या का नाम हैं- शुल्च- दीपिका ।
( ख ) वेंकटेश्वर दीक्षित - इनकी टीका का नाम शुल्च-मीमांसा है। ये यत्रा की अपेक्षा अर्वाचीन ग्रन्थकार प्रतीत होते ।
आपस्तम्ब शुल्ब के टीकाकार
टीका की दृष्टि से यह शुल्बसूत्र बहुत ही चार टीकायें प्रसिद्ध हैं
लोकप्रिय रहा है। इसके ऊपर
( क ) कपर्दिस्वामी - इन टीकाकारों में ये ही सबसे प्राचीन प्रतीत होते हैं । इन्होंने इन ग्रन्थों की टीकायें की हैं - आपस्तम्ब श्रौतसूत्र, आपस्तम्ब सूत्रपरिभाषा, दर्शपौर्णमाससूत्र, भारद्वाज - गृह्यसूत्र आदि । शूलपाणि, हेमाद्रि, तथा नीलकण्ठ ने इनके मत का उद्धरण अपने ग्रन्थों में किया है। इस निर्देश से इनके समय का निरूपण किया जा सकता है। शूलपाणि का समय ११५० ई० के आसपास है । वेदार्थदीपिका के रचयिता षड्गुरुविशष्य ( ११४३ ई० - ११९३ ई० ) के ये गुरु थे । हेमाद्रि का भी काल १३वीं शती है, क्योंकि ये देवगिरि के राजा महादेव ( १२६० ई० - १२७१ ई० ) तथा उनके भतीजे और उत्तराधिकारी रामचन्द्र ( १२७१ ई० - १३०९ ई० ) के महामाय थे । इस प्रकार शूलपाणि तथा हेमाद्रि के द्वारा उद्धृत किये जाने के कारण कपर्दिस्वामी का समय १२ वीं शती से प्राचीन होना चाहिए। ये दक्षिण भारत के निवासी प्रतीत होते हैं। अपनी टीका में इन्होंने कतिपय नियमों तथा रचनाप्रकारों का सरल विवरण दिया है।
( २ ) करविन्दस्वामी - इन्होंने आपस्तम्ब के पूरे श्रौतसूत्र के ऊपर अपनी व्याख्या लिखी है। इनके समय का निर्धारण अभी तक ठीक ढंग से नहीं किया जा सका है। इन्होंने विना नाम निर्देश किये ही आर्यभट प्रथम ( जन्मकाल ४७६ ई० ) के ग्रन्थ आर्यभटीय ( रचनाकाल ४९९ ई० ) के कतिपय निर्देशों को अपने ग्रन्थों में उल्लिखित किया है जिनसे ये पञ्चमशती से अर्वाचीन तो निश्चितरूप से प्रतीत होते हैं। इनकी टीका का नाम शुल्च-प्रदीपिका है और यह
मूलग्रन्थ को समझने के लिए एक उपयोगी व्याख्या है।
ग) सुन्दरराज - इनकी टीका का नाम 'शुल्बप्रदीप' है, जो ग्रन्थकार के नाम पर 'सुन्दरराजीय' के भी नाम से प्रख्यात है। इनके भी समय का ठीकठीक पता नहीं चलता । इस ग्रन्थ के प्राचीन हस्तलेख का समय सम्वत् १६३८ (१५८१ ईस्वी) है, जो तंजोर के राजकीय पुस्तकालय में (न० ९९६०) सुरक्षित है। फलतः इनका समय १६ वीं शती से प्राचीन होना चाहिए । इन्होंने बौधायन शुल्ब के टीकाकार द्वारकानाथयज्वा के कतिपय वाक्यों को अपनी टीका में उद्धृत किया है ।
(घ ) गोपाल - इनकी व्याख्या का नाम है-आपस्तम्बीय शुल्बभाष्य । इनके पिता का नाम गातर्य नृसिंह सोमसुत् है। इससे प्रतीत होता है कि ये कर्मकाण्ड में दीक्षित वैदिकपरिवार में उत्पन्न हुए तथा कर्मकाण्डीय परम्परा से पूर्ण परिचित थे ।
कात्यायन - शुल्बसूत्र का प्रसिद्ध नाम है कात्यायन-शुल्ब-परिशिष्ट, अथवा कातीय शुल्ब-परिशिष्ट । यह दो भागों में विभक्त है। प्रथमभाग सूत्रात्मक है तथा सात कंडिकाओं में विभक्त होकर इसमें ९० सूत्र हैं। इसमें वेदियों की रचना के लिए आवश्यक रेखागणितीय तथ्य, वेदियों का स्थान क्रम तथा उनके परिमाण का पूरा वर्णन हैं । यहाँ काम्य इष्टियों की वेदियों का वर्णन नहीं है, क्योंकि कात्यायन श्रौतसूत्र के १७ वें अध्याय में इसका वर्णन पहिले ही किया गया है। द्वितीय खण्ड श्लोकात्मक है जिसमें ४० या ४८ श्लोक मिलते हैं । यहाँ नापनेवाली रज्जु का, निपुण वेदिनिर्माता के गुणों का तथा उनके कर्तव्यों का तथा साथ ही साथ पूर्वभाग में वर्णित रचनापद्धति का भी विवरण दिया गया है । इसी द्वितीय खण्ड का नाम कातीय परिशिष्ट है, क्योंकि इसमें पूर्वखण्ड के विषयों का संक्षेप में पुनः वर्णन दिया गया है। पूर्व के दोनों शुल्चसूत्रों की अपेक्षा इसमें कतिपय रोचक विशिष्टतायें पाई जाती हैं। कात्यायन ने वेदि निर्माण के आवश्यक समस्त रेखागणितीय विषयों का विवरण विशेष क्रमबद्ध रूप से यहाँ प्रस्तुत किया है ।
इसके ऊपर दो टीकायें उपलब्ध होती हैं -
( क ) महीधर - महीधर काशी के रहने वाले प्रकाण्ड वैदिक थे । वेद तथा तन्त्र के विषय में इनके अनेक प्रौढ़ ग्रन्थरत्न आज भी मिलते हैं। इन्होंने अपने 'मन्त्र-महोदधि' की समाप्ति १५८९ ईस्वी में तथा विष्णुभक्तिकल्पलता प्रकाश की रचना १५९७ ईस्वी में की । कातीय शुल्बसूत्रों की - व्याख्या का रचना-काल संवत् १६४६ ( = १५८९ ईस्वी ) है । |
079f983e1ff6a8534e7a62981cc8fe0374887622 | web | अगर आप घर में ज्यादती की शिकार हो रही हैं तो घरेलू हिंसा कानून के तहत संरक्षण पा सकती हैं, जानिए कैसे।
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW)के ताजा आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामलों में 2. 5 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई। हालांकि केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इससे इनकार किया है, लेकिन आंकड़ें बताते हैं कि महिलाएं ज्यादती की शिकार हो रही हैं। मार्च 25 से लेकर 31 मई के बीच राष्ट्रीय महिला आयोग को घरेलू हिंसा की 1477 शिकायतें व्हाट्सएप हेल्पलाइन नंबर ( (917217735372 ) पर मिलीं। यह हेल्पलाइन ऐसी ही महिलाओं को मदद मुहैया कराने के लिए स्थापित की गई थी, जो ईमेल या पोस्ट के जरिए शिकायत नहीं कर सकतीं।
लॉकडाउन के समय में जितनी शिकायतें दर्ज की गईं, वे पिछले साल के मार्च से मई तक के महीने की तुलना में 1. 5 फीसदी ज्यादा हैं, इसी अवधि में पिछले साल 607 शिकायतें दर्ज कराई गई थीं। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पिछले कुछ समय में घरेलू हिंसा के मामलों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। घरेलू हिंसा में सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि बच्चे और बुजुर्ग भी ज्यादती के शिकार होते हैं।
अपराजिता चंद्रा बताती हैं,
लॉकडाउन के दौरान सेलेब्रिटीज ने एक नई पहल की थी और घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान छेड़ा था। इस अभियान में माधुरी दीक्षित, करण जौहर, विद्या बालन, अनुष्का शर्मा और विराट कोहली जैसे सेलेब्रिटीज भी शामिल थे। इस सेलेब्स ने घरेलू हिंसा पर लॉकडाउन को लेकर एक वीडियो जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं तो वे आवाज उठाएं।
1. शारीरिक हिंसा-इसके तहत महिला के साथ मारपीट, जोर-जबरदस्ती या चोट पहुंचाने जैसी चीजें आती हैं।
2. यौन हिंसा-इसके तहत रेप और मैरिटल रेप दोनों ही आते हैं। मैरिटल रेप को समाज और कानून दोनों ही स्वीकार नहीं करते हैं, जबकि हर साल इस तरह के ढेरों मामले सामने आते हैं।
3. Verbal Abuse-इसे मेंटल हैरसमेंट या मानसिक शोषण भी कहा जाता है। इसमें गलत तरीके से बोलना, भावनात्मक रूप से चोट पहुंचाने जैसी चीजें शामिल हैं। इस तरह का शोषण सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि घर-परिवार के बड़े सदस्य भी करते हैं, इनमें बुजुर्ग महिलाएं भी शामिल हो सकती हैं। अक्सर इस तरह के मामलों में परिवार के कई सदस्य जैसे कि ननद, देवर, भाभी, सास, ससुर आदि अब्यूसर के साथ नामित होते हैं। परिवार के जो लोग इसका परोक्ष रूप से समर्थन करते हैं, वे भी इसके दोषी होते हैं।
4. Economic Abuse- अगर पति पत्नी को फाइनेंशियली सपोर्ट नहीं करता या उसके जरूरी खर्च के लिए उसे पैसे नहीं देता तो इस तरह के मामले Economic Abuse के तहत आते हैं। अगर घर के सामान को बिना पत्नी की सहमति के हटाया जा रहा है या उसे दैनिक जरूरतों के लिए राशन मुहैया नहीं हो रहा तो ये चीजें भी Economic Abuse के तहत आती हैं। साथ में रहते हुए अगर पति घर के खर्चों के लिए पैसे नहीं देता है तो यह चीज भी आर्थिक शोषण के तहत आती है। ज्यादातर मामलों में Economic Abuse को बड़ा मामला नहीं बनाया जाता, लेकिन यह एक गंभीर मसला है। इसे कानून भी गंभीरता से लेता है।
अपराजिता चंद्रा बताती हैं, 'घरेलू हिंसा कानून महिलाओं के साथ-साथ 18 साल की उम्र तक के बच्चों को भी संरक्षण देता है। इस कानून के तहत सहायता पाने के लिए लोकल पुलिस स्टेशन जाने की जरूरत होती है। वहां घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया जा सकता है। पुलिस अफसर पहले मामले की पड़ताल करता है। अगर उसे लगता है कि इसका कानूनी मामला बनता है तो वह इसकी एफआईआर दर्ज करता है। पुलिस वाले पहले एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं। पहले वे शिकायत दर्ज करते हैं। ज्यादातर मामलों में महिलाएं सिर्फ शिकायत दर्ज करा देती हैं, जिससे गंभीर मामलों में उचित कार्रवाई नहीं हो पाती। एफआईआर के बाद मामला अदालत में जाता है। इसके बाद अदालत इसका संज्ञान लेती है। बहुत से मामले में महिलाएं सीधे अदालत में जाकर संरक्षण की फरियाद करते हैं। अदालत ऐसे मामलों में संरक्षण दिए जाने के लिए कह सकती है या फिर पीड़ित को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दे सकती है। '
महिलाएं घरेलू हिंसा का मामला कहीं से भी दर्ज करा सकती हैं। अगर वे पति की ज्यादती की शिकार होने के बाद पिता के पास आकर रहने लगीं हैं तो वहां से भी मामला दर्ज करा सकती हैं। अगर महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर आश्रित हैं तो वे अदालत में मेंटेनेंस दिए जाने के लिए भी निवेदन कर सकती हैं। इसके लिए अदालत अंतरिम आदेश में मेंटेनेंस दिए जाने का आदेश दे सकती है। आजकल ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट की तरफ से काउंसलर की नियुक्ति की जाती है। काउंसलर दोनों पक्षों की बात सुनता है और अगर मामला बातचीत से सुलझ सकता हो तो वह दोनों पक्षों के बीच समझौता कराने का प्रयास करता है। कई बार मेंटेनेंस या दूसरे मामलों पर काउंसलर के स्तर पर ही मामले में सहमति बन जाती है और आगे की अदालती प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर काउंसलर अपनी रिपोर्ट में कहता है कि दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है तो कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है।
ज्यादातर मामलों में महिलाएं पुलिस ऑफिसर या मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होती हैं। एक्ट के तहत सर्विस प्रोवाइडर और प्रोटेक्शन ऑफिसर से भी मदद मांगी जा सकती है, लेकिन ज्यादातर इनकी उपलब्धता नहीं होती और ना ही इसके बारे में लोगों को जानकारी होती है। जिन मामलों में महिलाएं स्वयं जाकर शिकायत दर्ज नहीं करा सकतीं, वहां महिलाएं सर्विस प्रोवाइडर या प्रोटेक्शन ऑफिसर से मदद मांग सकती हैं। बहुत सी संस्थाएं मांग कर रही हैं कि इस तरह के लोगों को नियुक्त किया जाए, जो महिलाओं को मदद कर सकें। एक्ट के तहत घरेलू हिंसा के मामले में कार्रवाई 50 दिन में पूरी हो जानी चाहिए। लेकिन वास्तविक हालात में दोषी व्यक्ति को अदालत में लाते-लाते ही दो महीने लग जाते हैं। जब अदालत पीड़ित महिला का पक्ष सुन लेती है तो वह अब्यूजर को नोटिस इशु करती है और उसे कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए कहती है। कोर्ट दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद अपना फैसला सुनाती है।
अदालत ऐसे मामलों में पीड़िता को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दे सकती है, अगर महिला ने मेंटेंनेंस के लिए निवेदन किया है तो उस बारे में फैसला लेती है। घरेलू हिंसा में दोष साबित होने पर अब्यूजर पर जुर्माना लगाया जा सकता है। बच्चों की कस्टडी किसके पास रहेगी, इस बारे में भी अदालत फैसला दे सकती है। इस कानून के तहत अब्यूजर को सीधे तौर पर जेल नहीं होती है, बल्कि अदालत अलग-अलग तरह के ऑर्डर पास कर पीड़िता को संरक्षण देता है। अगर अब्यूजर अदालत के आदेश का पालन नहीं करता तो उस स्थिति में उसे 1 साल की सजा हो सकती है।
घरेलू हिंसा को तभी रोका जा सकता है, जब वुमन सेफ्टी को लेकर जागरूकता बढ़े और महिलाएं अपने साथ किसी तरह की हिंसा या मारपीट होने पर मदद पाने के लिए अपील करें। इसीलिए महिलाओं को मुश्किल से मुश्किल स्थितियों में भी सोच सकारात्मक बनाए रखनी चाहिए और बेहतर जीवन पाने के लिए अपने प्रयास जारी रखने चाहिए। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे जरूर शेयर करें। महिलाओं से जुड़े अन्य मुद्दों पर जानकारी पाने के लिए विजिट करती रहें हरजिंदगी।
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c4f05a4f40fdb77ed44a0aa2226fa546208ac7fb | web | एक इंसान की मौत तीन तरीकों से हुई. . . यह सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन मध्यप्रदेश के गुना जिले की घटना कुछ इसी ओर इशारा कर रही है। पहली नजर में मामला एक्सीडेंट का दिख रहा है, जिसमें एक युवक का शव लोडिंग वाहन के नीचे दबा हुआ मिलता है। पुलिस FIR में भी युवक की मौत दबने से होना बताई गई है, लेकिन परिजन हत्या की बात कह रहे हैं।
युवक के परिवारवालों का तर्क है कि बॉडी जली हुई है, इससे हत्या कर शव फेंकने की आशंका है। वहीं, शॉर्ट पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में और भी चौंकाने वाली बात सामने आई है। पीएम रिपोर्ट में युवक की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई है।
एक युवक की मौत की तीन वजह से जांच अधिकारी भी चकरा गए हैं। अब उसकी जान जाने की पुख्ता वजह जानने के लिए बिसरा ग्वालियर और शिवपुरी भेजा गया है।
11 जून को कैंट थाना पुलिस को सूचना मिली कि पुरापोसर गांव से गुजरी मुख्य सड़क पर लोडिंग वाहन पलट गया है, जिसके नीचे एक युवक दब गया है। मौके पर पहुंची पुलिस ने पाया कि युवक की मौत हो चुकी है। पड़ताल में पता चला कि अर्धनग्न हालत में दबे युवक के शरीर पर जलने के भी निशान हैं।
जिला अस्पताल में पीएम के बाद शव को परिवारवालों को सौंप दिया गया। परिवारवालों ने कहा- युवक की हत्या की गई है। उनका कहना था कि जिस तरह का वाहन है, अगर वह पलटता है तो उसमें बैठे लोग दूर जाकर गिरेंगे, न कि उसके नीचे दब जाएंगे।
उन्होंने कहा- मौके पर एक महिला की चप्पल भी मिली थी। ऐसे में जरूर उसके साथ कोई अनहोनी हुई होगी। हालांकि, पुलिस पहले दिन से ही इसे एक्सीडेंट मानकर जांच कर रही थी। अब घटना के 20 दिन बाद इसे हादसा मानते हुए गाड़ी के ड्राइवर पर पुलिस ने गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है।
बमोरी थाना क्षेत्र में ग्राम चीम निवासी 19 वर्षीय लोकेंद्र शिर्के खुद का लोडिंग वाहन चलाता था। वह 10 जून को सुबह काम पर जाने का कहकर निकला था। देर शाम तक वह न तो घर लौटा और न ही कॉल किया। घरवालों को चिंता हुई। उन्होंने कॉल लगाया, लेकिन नहीं लगा। इसके बाद लोकेंद्र की तलाश शुरू हुई।
11 जून को एक परिचित ने कॉल कर बताया कि लोकेंद्र का पिकअप पुरापोसर जाने वाले मार्ग पर रमगढ़ा गांव में पलटा हुआ है। परिजन तत्काल मौके पर पहुंचे। वहां लोकेंद्र अर्धनग्न हालत में वाहन के नीचे दबा मिला। उसका सीना और पैर बुरी तरह से झुलसे हुए थे। इकलौते बेटे को खो चुके माता-पिता ने उसका अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन मौके पर जो कुछ मिला था, उस आधार पर बेटे की हत्या की आशंका जताई।
इस घटना को पहले दिन से ही पुलिस एक्सीडेंट मानकर चल रही थी। उसने एफआईआर में भी वाहन के नीचे दबने से मौत होना दर्ज किया। उधर, परिवार और मराठा समाज के लोग इस मौत पर संदेह जताते रहे। 20 जून को समाजवालों ने जनसुनवाई में एक आवेदन सौंपा। आवेदन में उन्होंने बताया कि शरीर पर पड़े फफोलों को देखकर लग रहा था, उसे एसिड डालकर जलाया गया है। मौके पर लेडीज चप्पल भी मिली थी। यह साजिश के तहत हत्या को एक्सीडेंट बनाने की कोशिश है।
परिजन का आरोप है कि इतने साक्ष्य होने के बाद भी कैंट थाना पुलिस पहले दिन से ही इसे एक्सीडेंट बताकर जांच कर रही है। पुलिस की कहानी के अनुसार लोकेंद्र उस दिन अपने गांव से एक अनाड़ी ड्राइवर को साथ लेकर एक लड़की से मिलने गुना आया था। उसने साथी को गाड़ी चलाने के लिए दे दी और खुद लड़की के साथ पीछे जाकर बैठ गया। साथी को ड्राइविंग नहीं आती थी, इसलिए उसके हाथों गाड़ी पलट गई। लोकेंद्र वाहन के नीचे दब गया और उसकी मौत हो गई। घटना के बाद लड़की डर गई और मौके से भाग गई।
लोकेंद्र के परिजन का कहना है कि घटनास्थल के फोटोग्राफ से इस कहानी की विश्वसनीयता पर संदेह उठ रहा है। यदि गाड़ी पलटी तो सिर्फ लोकेंद्र की ही दबने से मौत हुई, जबकि लड़की भी उसके साथ ही बैठी हुई थी। गाड़ी चला रहे लोकेंद्र के साथी को भी चोट नहीं आई।
समाज के लोगों का कहना था कि गाड़ी ने सिर्फ एक बार पलटी खाई है। गाड़ी की बॉडी इतनी ऊंची है कि साइड में गाड़ी पलटने पर उसमें पीछे बैठा व्यक्ति दूर गिरेगा, न कि पहले व्यक्ति गिरेगा फिर उसके ऊपर गाड़ी पलटेगी। गाड़ी के पिछले हिस्से की साइड में कोई खिड़की भी नहीं है, जिससे हादसे की दशा में अंदर बैठा व्यक्ति बाहर कूद जाए और गाड़ी पलटे तो वह उसकी चपेट में आ जाए।
घटना के 20 दिन बाद पुलिस ने इस मामले में FIR दर्ज की है। ड्राइवर संतोष सहरिया के खिलाफ कैंट थाने में गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। इन्वेस्टिगेशन कैंट थाने में पदस्थ ASI जसरथ दिवाकर ने की। FIR में उन्होंने बताया- जांच के दौरान लोकेंद्र के मोबाइल की कॉल डिटेल निकाली गई। उस रात दो नंबरों पर उसकी बात हुई थी। एक नंबर की जानकारी जुटाई तो वह बिनख्याई के किसी व्यक्ति का निकला। उसने बताया कि सिम तो उसके नाम पर है, लेकिन उपयोग उसकी बेटी सीमा (बदला हुआ नाम) करती है।
पुलिस ने सीमा को बुलाकर उससे पूछताछ की। सीमा ने बताया कि वह लोकेंद्र को अच्छी तरह से जानती थी। दोनों का अफेयर चल रहा था। लोकेंद्र लोडिंग वाहन लेकर मजदूरों को लेने और छोड़ने गांव आया-जाया करता था। यहीं पर उनके बीच दोस्ती हुई, जो प्यार में बदल गई। 10 जून की रात सीमा बहन के साथ छत पर सो रही थी। करीब साढ़े 10 बजे लोकेंद्र का कॉल आया। लोकेंद्र ने कहा- मुझे 2000 रुपए की जरूरत है। मुझे रुपए चाहिए, मैं लेने आ रहा हूं।
आधे घंटे बाद लोकेंद्र की गाड़ी घर के पास ही आकर रुकी। वह चुपचाप छत से उतरी और लोडिंग के पास पहुंची। गाड़ी में लोकेंद्र और उसका दोस्त संतोष सहरिया बैठे हुए थे। गाड़ी संतोष चला रहा था। सीमा लोकेंद्र के साथ पीछे बैठ गई। लोकेंद्र ने नशा कर रखा था। गाड़ी गांव से कुछ दूर निकली तो लोकेंद्र ने अपने कपड़े उतार दिए। सीमा ने कहा- संतोष गाड़ी बहुत तेज चला रहा है। लोकेंद्र ने कहा कि वह कॉल कर उसे गाड़ी धीरे चलाने काे बोल रहा है। लोकेंद्र ने नंबर डॉयल किया ही था कि गाड़ी पलटी खा गई। सीमा उछलकर दूर जा गिरी, जबकि लोकेंद्र गाड़ी के नीचे दब गया। हादसे में सीमा के पैर में चोट आई। उसने और संतोष ने लोकेंद्र को गाड़ी से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाए।
इसके बाद सीमा ने लोकेंद्र के मोबाइल से गोविंद जोगी निवासी धनोरिया को फोन लगाया और उसे बताया कि पुरापोसर के पास गाड़ी पलट गई है। लोकेंद्र गाड़ी के नीचे दब गया है। वह (गोविंद) फोन करके एम्बुलेंस बुला दे। कुछ देर तक इंतजार किया, लेकिन डर लग रहा था। इसके बाद सीमा घर चली गई जबकि संतोष गुना चला गया। घर पहुंचकर सीमा ने अपनी बहन को घटना के बारे में बताया।
ड्राइवर संतोष सहरिया ने पुलिस को बताया कि 10 जून की रात मेरे पास लोकेंद्र का कॉल आया था। उसने कहा था कि गुना चलना है। इसके बाद दोनों लोडिंग वाहन से निकले। तालाब के पास बने ढाबे पर लोकेंद्र ने कहा- शराब ले आओ। यहां से हम गुना की तरफ निकले। ख्यावदा की घाटी के नीचे पहुंचकर शराब पी। साढ़े 10 बजे हम बिनख्याई पहुंचे, जहां से एक लड़की बैठी। मैं गाड़ी चला रहा था, जबकि लोकेंद्र लड़की के साथ पीछे बैठ गया। रात करीब 11:30 बजे पुरापोसर गांव के आगे गाड़ी पलटी खा गई। लोकेंद्र दब गया, जबकि लड़की दूर जाकर गिरी। हम दोनों ने लोकेंद्र को गाड़ी के नीचे से खींचने का प्रयास किया, लेकिन निकाल नहीं पाए। डर के कारण मैं गुना तरफ भाग आया और लड़की अपने गांव चली गई।
पीएम रिपोर्ट में लोकेंद्र की मौत का कारण हार्ट अटैक आया है। हालांकि, मौत को लेकर कई प्रकार के सवाल खड़े हो रहे हैं। इसका स्पष्ट कारण जानने के लिए बिसरा ग्वालियर और शिवपुरी जांच के लिए भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट आना बाकी है। पुलिस ने मोबाइल नंबरों की लोकेशन, लड़की और अन्य लोगों के बयान के आधार पर ड्राइवर संतोष के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है।
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c4ac7b7b48065a0669c2c0b11ee0237cb0301889 | web | पुलिस अधीक्षक कार्यालय के करीब दादी-पौत्र की हत्या में अब पुलिस को दाढ़ी मजदूर और हिरासत में लिए गए राजू के करीबियों की तलाश है। उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस हाथ-पैर चला रही है। मकान निर्माण में काम करने वाले मामा-भांजे मजदूर को पुलिस रात में ही उठा लाई। सबसे पहले घटना देखने वाले मजदूर धीरज से पुलिस पूछताछ कर रही है।
नगर कोतवाली के बलीपुर गाजी चौराहा निवासी सरस्वती देवी व उसके पौत्र अनमोल की रक्तरंजित शव मंगलवार की सुबह घर में पड़ा मिला था। दोनों का बेरहमी से कत्ल करने के बाद हत्यारे दरवाजा खुला छोड़कर फरार हो गए थे। घटना की जानकारी पर मृतका के बेटे धर्मेंद्र व बहू राधा के साथ घर पहुंचे प्रयागराज के मऊआइमा निवासी राजू पटेल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। उससे पूछताछ के बाद पुलिस रात में ही मकान का निर्माण करने वाले दो मजदूरों को उठा लाई।
उनसे पूछताछ करने के बाद पुलिस उस मजदूर की तलाश में जुट गई जो रात में सरस्वती के घर पर रुका हुआ था। दाढ़ी नाम का यह मजदूर शहर में ही मंदिर में रहता था। वह डेरवा या लालगंज का रहने वाला है। मजदूर धीरज ने पुलिस की पूछताछ में बताया कि वह मंगलवार की सुबह घर पहुंचा तो दंग रह गया। आधा दरवाजा खुला था। आवाज देते हुए भीतर पहुंचा तो उल्टे पांव लौट पड़ा। भय के कारण वह वहां से निकलकर भंगवाचुंगी पहुंचा।
एक परिचित के मोबाइल से साथ में मजदूरी करने वाले मामा के पास संदेश भेजकर घटना की जानकारी दी। मामा ने राजू को घटना की जानकारी दी थी। रात में सरस्वती के घर पर मजदूरी करने वाला दाढ़ी रुका हुआ था। वह घटना के बाद से ही गायब है। इसके अलावा राजू के करीबियों पर भी पुलिस की निगाह टिकी हुई है। राजू से पुलिस को कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। एसपी एस आनंद ने बताया कि मृतका के घर पर रुका मजदूर दाढ़ी डेरवा के करीब का रहने वाला है। वह शहर में भी घूमकर रहता था। उसकी तलाश की जा रही है। राजू के करीबी भी हत्या में संदेह के दायरे में हैं।
बलीपुर गाजी चौराहा निवासी सरस्वती देवी और उसके पौत्र अनमोल के शव का बुधवार को बेल्हा देवी घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। बेटे व मां की चिता को धर्मेंद्र ने मुखाग्नि दी। जिसके बाद घाट पर मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं।
पुलिस लाइन में मंगलवार की देर शाम तक बहू राधा व उसकी बहन चंदा से पुलिस पूछताछ करती रही। रात में अंतू पुलिस दोनों बहनों को लेकर अंतू चली गई। चंदा के घर राधा को भी रोका गया। पति धर्मेंद्र के साथ बेटे सूरज को रोका गया। बुधवार की सुबह करीब सवा दस बजे बहू राधा को अंतु पुलिस अपने साथ गाजी चौराहा लाई। वह शवों से लिपटकर रोने लगी। अंतिम संस्कार की तैयारी में धर्मेंद्र के साथ परिवार के लोग भी जुटे थे। जिन पर फिर राधा ने हमला बोलते हुए आरोप प्रत्यारोप लगाना शुरू कर दिया। बोली कि कोई मेरे सास की लाश न छुए। जीतेजी सभी उनसे नफरत करते थे। अब क्यों आए हैं। जिस तरह उसके सास की हत्या कर दी गई। उसी तरह उन लोगों की भी हत्या हो जाएगी।
मंगलवार की देर रात दादी व पौत्र के शवों का डॉक्टरों के पैनल से पोस्टमार्टम हुआ। सरस्वती के सिर पर वजनदार हथियार से ऐसा हमला किया गया था कि सिर का ऊपरी हिस्सा ही गायब हो गया था। अनमोल के सिर पर पहले प्रहार किया गया था। बाद में उसे फर्श पर पटका गया था। सिर में चोट आने के कारण उसकी मौत हो गई थी।
सरस्वती के घर का निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों को पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है। सूत्रों की मानें तो कुंभ स्नान के लिए पहले राजू अपने साथ राधा व उसके बच्चों को ले जाना चाहता था। बाद में राजू धर्मेंद्र को अपने साथ ले गया। बच्चों को साथ नहीं ले जाया गया था। ऐसे में राजू की नियत पर पुलिस का शक गहराता जा रहा है।
वैसे तो सरस्वती के घर को राजू ने अपना ठिकाना बना लिया था। जब से मकान के निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ तब से राजू व उसके परिवार के लोगों का भी आना-जाना था। पूछताछ में यह बात भी सामने आई है कि राजू का भाई सोमवार को सरस्वती के घर आया था। शाम को लौटा था।
सोमवार की सुबह धर्मेंद्र व बहू राधा के कुंभ स्नान जाने के बाद सरस्वती घर पर अकेले थी। केवल पौत्र अनमोल और सूरज ही उसके साथ थे। उसी दिन मकान के निर्माण का कार्य भी बंद हो गया था। ऐसे में सरस्वती ने दाढ़ी को घर में रोक लिया था। रात करीब सात बजे सरस्वती का मोबाइल बंद हो गया था।
सरस्वती देवी व उसके पौत्र की हत्या सोमवार की रात 9 से 10 बजे के बीच हुई। पुलिस की छानबीन में यह बात सामने आई है। खून के काला पड़ जाने व मोबाइल बंद होने के समय को लेकर पुलिस की छानबीन में यह बात सामने आ रही है।
अंतू से धर्मेंद्र की पत्नी राधा को बेटे अमर के साथ सुबह शहर लाया गया। उसके साथ बहन चंदा भी थी। शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने के बाद राधा को पुलिस की निगहबानी में रखा गया। महिला आरक्षियों के साथ सिपाहियों को भी लगाया गया था। ताकि राधा की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। किसी तरह का विवाद पड़ोसियों से न हो सके।
दादी-पोते की हत्या में नामजद सुनील गुप्ता घर से फरार है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है। बुधवार को भी राधा परिवार के सुनील के ऊपर हत्या का आरोप लगाते हुए चीखती रही।
पति मोतीलाल की मौत के बाद शहर में करोड़ों की संपत्ति की मालकिन सरस्वती बन गई। कटरा रोड, गाजी तिराहा व गोपाल मंदिर के पास करोड़ों की संपत्ति है। गोपाल मंदिर के बगल की दुकान मोतीलाल ने 35 साल पहले खरीदी थी। उस दुकान में रहने वाले दुकानदार ने अभी तक खाली नही किया। जिसका मुकदमा भी न्यायालय में चल रहा है।
पुलिस की पूछताछ में यह बात सामने आई है कि सरस्वती के घर एक साल पहले राजू पटेल का आना-जाना शुरू हुआ। इसके पहले सरस्वती के घर में कुंडा के रहने वाले एक युवक का आना-जाना था। वह परिवार के काफी करीब था, लेकिन राजू के पैर जमाने के बाद उसका पत्ता कट गया। धीरे-धीरे उसका आना जाना भी बंद हो गया। कभी-कभार ही वह आता था।
राजू का घर में आना-जाना सरस्वती को पसंद नहीं था। बहू राधा के बाहर जाने पर वह उसे उल्टा सीधा बोला करती थी। पुलिस की मानें तो राजू के साथ बहू राधा के बाहर जाने पर वह मजदूरों के सामने भी उल्टा सीधा बोला करती थी, लेकिन जब राधा घर आ जाती थी तो वह मौन साध लेती थी। राजू भी पूरी तरह से परिवार के सदस्य की तरह हो गया। उस पर सरस्वती भी भरोसा करते हुए मकान निर्माण के लिए रुपये भी दे दिया करती थी।
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0e46ee8eb6eb8217093eb50766584d95002d96cf | web | प्यार करना मतलब कुछ नहीं है, प्यार करने लायक बनना थोडा बहोत अच्छा है लेकिन प्यार करने और साथ में करने लायक बनना, ये सब कुछ है. प्यार को कभी किसी का दिया हुआ अनुदान समझकर स्वीकार ना करे.
बल्कि जिस से भी हम प्यार करते है, उस से बिना किसी शर्त के, बिना किसी लालच के बिना किसी द्वेषभावना के हमेशा दिल से प्यार करते रहना चाहिये. क्यूकी जब हम किसी को दिल से प्यार करते है तब हम सामने वाले के दिल में हमेशा के लिए बस जाते है. की जब दो लोगो के बिच प्यार होता है तब वह किसी दौलत का भूका नहीं होता, वह भूका होता है तो सिर्फ स्नेहभाव का. जिस से भी हम प्यार करते है उनसे हमेशा हमें प्यार से पेश आना चाहिये. एक दुसरे के लिए समय निकलते रहना चाहिये. तभी हम हमारे रिश्ते को सफलता से आगे बढ़ा पाएंगे.
प्यार से बोला गया आपका एक शब्द दो दिलो के बिच हो रहे बड़े से बड़े मनमुटाव को भी खत्म कर सकता है. प्रेमभाव से रहना कभी-कभी हमारे लिए भी फायदेमंद साबित होता है. क्यू की कई बार जो काम हजारो रुपये नहीं कर पाते वही प्यार से बोले गये हमारे दो शब्द काम आते है.
यह कोई काल्पनिक कहानी नही है इसमें नाम के इलावा किसी भी किस्म का बदलाव नही किया गया है,
यह कहानी है राहुल और आरोहि कि जिनके प्यार की हमारे ग्रुप में मिसाल दी जाती है, और मिसाल क्यों दी जाती है यह जानने के लिए आपको कहानी पड़नी होगी,
बारिश हो कर थम चुकी थी आसमान पर छाए बादलों को हवा किसी और तरफ उड़ा कर ले जा रही थी, सूरज के डूबते हुए लाल रंग आसमान ने नज़र आने लगे, एक लड़की जो बरामदे में खड़ी बारिश का मज़ा ले रही थी, बरामदे से निकल कर लॉन में आ गयी। उस लडक़ी ने अपनी नज़र उठा कर आसमान की तरफ देखा, उसकी गहरी काली आंखों में हवा बदल को उड़ा कर दुर ले जा चुकी थी। अचानक से उसकी नज़र झूमते लहराते पेड़ो पर पड़ी, बारिश हो जाने के बाद पेड़ बहोत ही खूबसूरत नजर आ रहे थे। और फूलों से लदी टहनियां झुक कर ज़मीन को छू रही थी।
उस लड़की ने अपनी सैंडल उतारी और भीगी भीगी घास पर नंगगे पैर चलने लगी। उस नरम नरम घास पर चलते हुए उसे बहोत ही अच्छा लग रहा था। तभी फिरसे हल्की हल्की बारिश होने लगी, उस ने अपनी नज़रें उठा कर आसमान की तरफ की तो बादल फिर से घिर चुके थे, उन बादलों की तेवर बाता रहे थे कि बरसे बिना ये नही जाएंगे। हल्की बारिश बूंदों में बदल गयी, लेकिन वो वही लॉन में टहलती रही, बारिश की बूंदे उसके सफेद गालों और गर्दन पर मोतियों की तरह ठहरे थे, वो अपनी हथेलियों में बारिश के पानी को कैद करने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
बारिश में भीगने का इरादा है क्या? पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ आयी, वो आवाज़ सुन कर वो पीछे मुड़ कर बोली जीजू उसके लहजे में खुशी साफ नजर आ रही थी, वो होंटो पर मुस्कान लिए दौड़ते हुए रोहित के पास आई।
आरोहीः जीजू आप अकेले आये है दीदी को साथ नही लाये?
रोहितः अच्छी खासी बूंदा बंदी हो रही है, तुम तो भीग रही हो मुझे भी भीगने के इरादा है क्या?
चलो अंदर बैठ कर बात करते है।
बारिश की बूंदों ने आरोही के चेहरे के साथ साथ उसके दुपट्टे को भी भीग दिया,वो भीगे हुए दुपट्टे को ठीक करते हुए एक तरफ पड़ी सैंडल पहनते हुए वहा से चल दी।
रोहितःयह तुम्हे बारिश में भीगने की क्या सूझी।
आरोही मुस्कुराते हुए बोली में तो बस बारिश का मज़ा ले रही थी।
रोहितः अगर तुम बीमार हो गयी न तो सारा मज़ा धरा का धरा रह जायेगा।
आरोहीः जीजू आप तो ऐसे कह रहे है जैसे कि आप चाहते हो कि मैं बीमार पड़ जाऊं।
रोहितः अब जब तुम बारिश में भिगो गी तो बीमार तो पडोगी न?
आरोहीः मतलब आप चाहते है कि मैं बीमार पडूँ।
रोहितः भला मैं ऐसा क्यों चाहूंगा?
आरोही थोड़ा नाराज़ हो कर बोली और नही तो क्या एक ही बात की रट लगा रखी है आपने बीमार हो जाओ गी। ज़रा से बारिश में भीग गयी तो आप मुझे बीमार पड़ने की बदुआ देने लगे।
रोहितः भला मैं ऐसा क्यों चाहूंगा, तुम मेरी बीवी की एक लौती बहन हो भला तुम्हे बदुआ दे कर मुझे अपनी शामत थोड़ी न बुलवानी है।
आरोही मुस्कुरा कर रोहित को छेड़ने के अंदाज़ में बोली ओ हो इसका मतलब हमारे जीजू डरते भी है।
वो लोग अंदर गए सामने सोफे पर लग भग ५० से ५५ की एक औरत बैठी हुई थी, नित्या सक्सैना आरोही की दादी।
रोहित दादी के पास गया और बोला कैसी हो दादी माँ।
दादीः में ठीक हु रोहित बेटे तुम सुनाओ क्या हाल चाल है।
आरोही दादी के नज़दीक आते हुए बोली दादी आपने जीजू को कैसे पहचन लिया अपने इस वक़्त तो अपना चश्मा भी नही पहने हो।
दादीः मेरी बस नज़र कमज़ोर है कान बिल्कुल ठीक काम करते है, रोहित की आवाज़ सुन कर पहचान गयी।
रोहितः और बातये दादी माँ आपकी क्या हाल चाल है।
दादीः में तो बिल्कुल ठीक हु लेकिन यह डॉक्टर मानते ही नही हर बार चेकउप के बाद दवाईया दे देते है अब तो दवा खाते खाते मुंह का ज़ायक़ा की खराब हो गया है और ऊपर से यह परहेजी खाना कोई समझाए इन डॉक्टर्स को।
वो आरोही की तरफ देखते हुए बोली ज़रा देखो बेटा मेरा चश्मा कहा है।
उसे लगते हुए दादी हैरानी से आरोही की तरफ देखते हुए बोली यह तुम्हारे कपड़ों को क्या हुआ?
आरोहीः वो थोड़ा बारिश में भीग रही थी।
दादीः मैं समझ गयी ज़रूर लॉन में घूम रही होगी, एयर देखो अभी तक गीले कपड़े पहन कर खाडी हो जाओ जा कर बदलो नही तो बीमार पड़ जाओगी।
आरोहीःक्या दादी कब से यही जीजू भी कह रहे थे बीमार पड़ जाओगी अब आप भी कह रही हो, में आप दोनों को बता दूं मैं बीमार नही पड़ती हु।
दादीः ज़्यादा बातें मत बनाओ जा कर कपड़े बदलो।
वो रोहित की तरफ देखते हुए बोली ओर बेटा घर पर सब कैसे है।
रोहितः माँ पापा रोशनी दी से मिलने गए है।
दादीः सब ठीक तो हैन।
रोहितः हा सब ठीक है दरअसल रोशनी दी को बेटा हुआ है, मम्मी पापा उसी को देखने गए है।
दादीःयह तो भोय अछि खबर सुनाई तुमने, वैसे भी रोशनी की ससुराल वालों को बेटा चाहिए था, अब तो सब बहोत खुश होंगे।
रोहितः आप सच कह रही है दादी माँ वो लोग बहोत खूश है।
रोहित बात ही कर रहा था तभी उसे बाहर से आते हुए अर्जुन सक्सैना दिखे।
अर्जुन सक्सैना (आरोही के पिता) कैसे हो रोहित बेटा?
रोहितःठीक हु पापा।
दादीःअरे अर्जुन तुमने सुना रोशनी को बेटा हुआ है, उनके लहजे में उनकी खुशी साफ झलक रही थी।
अर्जुनः तो यही खबर देने आप यहाँ आये थे बेटा।
रोहितः जी पापा, और आरुषि का संदेश भी लाया हूं।
दादीः क्या संदेश भेजा है हमारी बिटिया ने।
रोहितः दादी माँ आरुषि आज कल घर पे अकेले बोर हो रही है तो वो चाहती है आरोही कुछ दिन आ कर उसके पास रहे, अगर आप इजाज़त दे तो में आरोही को अपने साथ ले जाऊं।
अर्जुनः ज़रूर ले जाओ वैसे भी यूनिवर्सिटी में स्ट्राइक की वजह से वो भी घर बैठे बोर हो रही है। दोनों बहनें साथ रहेगी तो बोरियत नही होगी।
इतने में एक बूढा आदमी नाश्ते की ट्रे लिए उनके सामने आया।
अर्जुनः अरे रामु काका आपको कैसे पता चला में वापस आ गया हूं।
रामु काकाः वो आरोही बिटिया ने बताया है और उन्होंने ही आपके लिए नाश्ता भेजा है।
अर्जुनः मतलब अगर आरोही न बताती तो आपको पता ही नही चलता।
रामु काकाः ऐसी कोई बात नही साहब,
इतने में आरोही अपने कपड़े बदल कर आ गयी, और नाश्ते की ट्रे पर नज़र डालते हुए रोहित से बोली, जीजू आपने तो कुछ खाया ही नही मैं ने बड़े चाव से आपके लिए समोसे बनाई और आपने समोसे को हाथ भी नही लगाया, वो दादी के पास बैठते हुए समोसे की प्लेट रोहित की तरफ बढ़ा दी।
रोहित प्लेट आरोही के हाथ से ले कर टेबल पर रखते हुए बोला मैं खलिया है।
आरोहीः पापा अब आप ही जीजू से कहिये भला यह भी कोई बात हुई मैंने इतनी मेहनत से नाश्ता बनाई हु और जीजू नखरे दिखा रहे है।
अर्जुनः रोहित बेटा खालो।
रोहितः पापा अब जरा भी जगह नही है।
ठीक है आज के बाद में आपके लिए कुछ भी नही बनाऊँगी, न ही नाश्ता करने के लिए कहूंगी, वो रोहित को धमकाने वाले अंदाज़ में बोली।
दादी मुस्कुराते हुए बोली सुन लिया तुम्हरी साली क्या कह रही है।
रोहितः सुन लिया और समझ भी गया जब तक मैं यह समोसे की प्लेट खाली नही करूँगा। आरोही मुझे धमकी देती ही रहेगी। फिर समोसे की प्लेट अपने पास रखली, वो एक के बाद एक करके चार समोसे खा गया और समोसे की प्लेट खाली करदी, फिर आरोही से बोला अब ठीक है।
आरोही हस्ते हुए बोली हा।
रोहितः अच्छा अब ऐसा करो फटाफट तैयार हो जाओ।
आरोहीः वो किस लिए जीजू?
रोहितः वो तुम्हारी दी ने तुम्हे बुलाया है और अब तुम मेरे साथ चल रही हो।
आरोहीः दी से मिलने का दिल तो कर रहा है लेकिन मम्मी अभी है नही अगर मैं आपके साथ चली गयी तो दादी का ध्यान कौन रखेगा।
दादीः आरोही तुम कुछ दिन जा कर आरूषि के पास रह लो।
आरोहीः में चली जाती दादी लेकिन आपको अकेले छोड़ कर कैसे जाऊं।
अर्जुनः तुम फिकर मत करो आज तुम्हारी मम्मी को फ़ोन करके उन्हें आने के लिए कह दूंगा।
आरोहीः फिर ठीक ही मैं चली जाती हूं।
कुछ देर बाद आरोही तयार हो कर हैंड बैग संभालते हुए नीचे आयी।
रोहित उठ कर उसके पास जा कर हैंड बैग ले लिया।
आरोहीः दादी मैं ने आपकी रात की दवा टेबल पर रखदी है आप याद से खा ली जियेगा।
दादी अपनी जगह से उठती हुई ठीक है मैं ले लुंगी।
रोहित ठीक है दादी माँ हम लोग चलते है।
आरोहीः पापा मम्मी को फ़ोन ज़रूर कर दीजियेगा ताकि वो कल तक वापस आ जाये।
अर्जुनः तुम फिकर मत करो मैं फ़ोन कर दूंगा।
आरोही आपने पापा के गले लग कर कार में जा कर बैठ गयी। एक घण्टे का सफर तय करने के बाद वो आरुषि के घर पहोंची। सामने आरुषि खड़ी उन दोनों का इंतज़ार कर रही थी,
वो आरोही को गले लगा कर बोली में जानती थी रोहित तुम्हे ले कर ही आएंगे।
रोहित कंधे से हैंड बैग उतार कर साइड में रखते हुए आरुषि के पास आया ओर बोला आपको लगता है मैं अकेले आ जाता, वैसे आपकी बहन ने के लिए तैयार ही नही थी।
आरोही अपनी सफाई पेश करतर हुए बोली दी मैं तो सिर्फ दादी की वजह से मना कर रही थी।
आरुषिः क्या मम्मी मामू के यहां से अभी भी नही आयी।
आरुषिः इस बार मम्मी ने बहोत वक़्त लगा दिया।
आरोहीः इसीलिए तो मैं नही आ रही थी, लेकिन पापा ने कहा वो आज उन्हें फ़ोन करके बुला लेंगे।
आरुषिः दादी की तबियत तो ठीक है ना।
आरोहीःदवा वक़्त पर लेती है तो ठीक रहती है, ज़रा सी ला परवाही हुई तो तबियत खराब हो जकती है।
रोहितः बातें बाद में कर लेना आरोही को उसके कमरे में ले जाओ पहले थोड़ा आराम करने दो।
आरुषिः आप ठीक कह रहे है, चलो आरूही मैं तुम्हारा रूम दिखाती हु।
फिर वो थोड़ा रुक कर रोहित की तरफ मुड़ते हुए बोली आप उसका समान ऊपर पहोंचा दी जिये।
रोहित झुकते हुए बोला आपका हुक्म सर आंखों पर।
रोहित की इस हरकत पर दोनों बहने खिलखिला कर हसने लागी।
कमरे में पहोंच कर आरुषि आरोही से बोली में तुम्हारे कपड़े अलमारी में लगा देती हूं।
आरोहीःइसकी जरूरत नही है मैं खुद कर लुंगी।
रोहितः पहले उसके लिए कुछ चाय नाश्ते के इंतेज़ाम करो यह सब बाद में होता रहेगा।
आरोहीः जीजू दी को पटक है मैं इस टाइम चाय नही पीती हु।
आरुषिः तुम नही पीती लेकिन तुम्हारे जीजू पीते है, मैं चाय बना के लाती हु,
वो एक कदम उठा कर आगे बढ़ी ही थी कि रोहित ने उसका हाथ पकड़ लिए,
मेरे लिए चाय बनाने की ज़रूरत नही आरोही ने मुझे इतना खिलाया है अब जरा भी कुछ खाने के दिल नही कर रहा है।
वो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली तो आप एक काम करे जा कर कपड़े चेंज करले मैं आरोही के साथ बैठ कर बात करती हूं।
रोहित हस्ते हुए बोला ठीक है वैसे भी बहन के आगे हमारी क्या ही औकात है।
आरोहीः जीजू कहि आपको जलन तो नही हो रही मुझे कहि से जलने की बू आ रही है।
रोहितः नही नही ऐसी कोई बात नही ठीक ह तुम दोनों बातें करो में जाता हूं।
उसके जाने के बाद आरोही अपने कपड़े निकलने लगी,
आरुषिः लाओ मैं तुम्हारे कपड़े अलमारी में रख देती हूं।
आरोही ठीक है, वैसे दी आपकी दोस्त स्वाति थी ना,
आरुषि मुड़ कर उसकी तरफ देखते हुए हा तो क्या हुआ?
आरोहीः उन्हें कुछ नही हुआ है पिछले दिनों आपसे मिलने के लिए आई थी उन्हें तो पता ही नही था आपकी शादी हो गयी है।
आरोही मुझे अच्छी तरह याद है में ने उसे शफी का कार्ड भेजा था तो ऐसा कैसे हो सकता है उसे इस बात खबर न हो।
आरोहीः मेरे खयाल से उन्हें शादी का कार्ड नही मिला।
आरुषिः हो सकता है।
आरोहीः में ने उन्हें आपका एड्रेस और नम्बर दे दिया है, हो सकता है कुछ दिनों में वो आपसे मिलने आये।
आरुषिः अच्छा, चलो बाहर चलते है तुम्हारे जीजू बाहर अकेले बैठे बोर हो रहे होंगे।
आरूहीः ठीक है चलते है।
रात को देर से सोने की वजह से आरोही की आंख देर से खुली, बिस्तर से उठ कर अपने हाथों से बाल को ठीक करते हुए टेबल पर पड़ी हेयर क्लिप को बाल में लगा कर वो कमरे से बाहर निकली,
सीढ़ियों के पास वाले कमरे के पास पहोंच कर वो रुक गयी।
वो सोचने लगी कल जब आयी थी तो यह कमरा बन्द था, बल्कि रात तक बंद था इस वक़्त खुला कैसे है।
वो यह सब सोच रही थी तभी उसे अहसास हु जैसे कोई अंदर वो थोड़ा झुक कर अंदर झांकने लगी।
नाईट ड्रेस में एक आदमी खड़ा हो कर गुनगुनाते हुए शेव कर रहा था।
© "साबरीन"
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d80d18b5ef076a6f8f78b5379d80fb56971c8fae869d5cfdf92527b8a0c9af31 | pdf | के समय इस मंत्र का उच्चार जरूर करना चाहिए, क्योंकि हमारा भोजन केवल पेट भरने के लिए ही नहीं है। वह ज्ञान और सामर्थ्य की प्राति के लिए है। इतना ही नहीं, इस में यह भी मांग की गई है कि हमारा वह ज्ञान, वह सामर्थ्य और भोजन भगवान् एकत्र कराए । इस में केवल पालन की प्रार्थना है। शाला में जिस प्रकार गुरु और शिष्य होते हैं उसी प्रकार सर्वत्र द्वैत है। परिवार में पुरानी और नई पीढ़ी, समाज में में स्त्री-पुरुष, वृद्ध-तरुण, शिक्षित- अशिक्षित आदि भेद हैं। उस में फिर गरीब अमीर का भेद भी है। इस प्रकार सर्वत्र भेद नजर आता है। हमारे इस हिन्दुस्थान में तो असंख्य भेद हैं । यहाँ प्रांतभेद है । यहाँ का स्त्रीवर्ग बिलकुल अलग रहता है। इसलिए यहाँ स्त्री और पुरुष में भी बहुत बड़ा भेद है। हिन्दू और मुसलमानों का भेद तो प्रसिद्ध ही है । परन्तु हिन्दु- हिन्दुओं में भी हरिजन और दूसरों में भेद है। इस प्रकार हिन्दुस्थान में अपार भेद भरे हुए हैं। हिन्दुस्थान की तरह वे संसार में भी हैं। इसलिए इस मंत्र में यह प्रार्थना की गई है कि हमें "एकत्र तार, एकत्र मार 19 मारने की प्रार्थना प्रायः कोई करता नहीं। इसलिए यहाँ एकत्र तारने की ही प्रार्थना है । लेकिन 'यदि तुझे मारना ही हो, तो कम से कम एकत्र मार' ऐसी प्रार्थना है। सारांश "हमें दूध देना है तो
एकत्र दे, सूखी रोटी देना है तो भी एकत्र दे हमारे साथ जो कुछ करना है वह एकत्र कर " ऐसी प्रार्थना इस मंत्र में है।
कैसे हो ?
आज हिन्दुस्थान में एक बात सब के जीभ पर है। सभी कहते हैं कि यह भेद जितना कम करोगे उतना ही देश आगे बढ़ेगा । देहात के लोग, याने किसान या शहराती, गरीब और श्रीमान्, इनका अन्तर जितना कम होगा उतना हो देश का कदम आगे बढ़ेगा। इसके विषय में शायद ही किसी का मतभेद हो । लेकिन तो भी यह भेद, यह अन्तर,
कम नहीं होता। अंतर दो तरह से काटा जा सकता है। ऊपरवालों के नांचे उतरने से और नीचेवालों के उपर उठने से। परंतु दोनों ओर मे. यह नहीं होता। हम सेवक कझते हैं। लेकिन किसान-मजदूरों की तुलना में तो चोटी पर ही हैं। दादाने कल अपने व्याख्यान में कहा--- मैं उनके शब्द नहीं हुडरा रहा हूं, उनका भावार्थ कह रहा हूं कि ये भोग और ऐश्वर्य भी चाहते हैं । भोगों की जरूरत है या नहीं, इस विवाद में पड़ने की यहाँ जरूरत नहीं । भोग ऐश्वर्य किसे कहें ?
लेकिन सवाल यह है कि भोग और ऐश्वर्य कई किसे ? ऐश्वर्य कहे किसे ? में अच्छा सुग्रास भोजन करूं और पड़ोस में ही दूसरा भूखों मरता रहे, इसे ? उसकी नजर बराबर मेरे भोजन पर रहे और मैं उसकी परवाह न करूं ? उसके आक्रमण से अपनी थाली की रक्षा करने के लिये एक डंडा लेकर बैठूं ? मेरा सुझस भोजन और डंडा तथा उसकी भूख क्या इन्हें ऐश्वर्य मानें ? एक सजन मुझसे आकर कहने लगे कि "हम दो आदमी एकत्र भोजन करते हैं। परंतु हमारी निभ नहीं सकती ।" मैंने पूछा, "सो क्यों ?" उन्होंने जवाब दिया "मैं नारंगिया खाता हूं । वे नहीं लाते। वे नजदूर हैं। इसलिए वे नारंगियाँ खरीद नहीं सकते। इसलिए उनके साथ खाना मुझे अप्रशस्त लगता है। मैंने पूछा "लेकिन क्या अलग घर मे रहने से उनके पेट में नारंगियाँ चली जायंगी। आप दोनों में जो व्यवहार आज हो रहा रहा है वही ठीक है। जब तक दोनों साथ खाते हो तब तक दोनों के निकट आने की संभावना है। एखाध बार तुम उसे न रंगियाँ लेने का आग्रह भी करोगे । लेकिन यदि तुम दोनों के बीच सुरक्षितता की दोवाल खड़ी कर दी गई तो भेद चिरस्थायी हो जायगा । दीवाल को सुरक्षितता का साधन मानना कैसा भयंकर है। हिन्दुस्थान में हम सब कहते हैं, हमारे संतो ने तो पुकार पुकार कर कहा है कि ईश्वर सर्वसाश्री.
है। फिर भी दीवाल की ओट में छिपने से क्या फायदा १ इससे दोनों का अंतर थोड़े ही घटेगा। सेवकों का भी यही हाल
यही हाल हम खादीधारियों का भी है। जनता के अंदर अभी ग्वादी का प्रवेश ही नहीं हुआ है। इसलिए जितने खादीधारी हैं वे सब सेवक ही हैं। सादीधारियों का सम्मेलन सेवक वर्ग का मेला ही है। यह कहा जाता है कि हमें और आप को गांवों में जाना चाहिए। लेकिन देहात में जाने पर भी वहाँ के लोगों को जहां सूखी रोटी भी नहीं मिलती तहा मैं पूड़ी खाता हूं। मेरा घी ग्वाना उस भूखे को खटकता है । आज भी किसान कहता है कि अगर मुझे पेटभर मिल जाय तो तेरे घी की मुझे पूर्वा नहीं । मुझे तेल ही मिलता रहे तो भी तसली है । यह मेद उसे भले ही न अखरता हो, लेकिन हम सेवकों को बहुत अखरना है। लेकिन, इस तरह कब तक चलता रहेगा। दुबला-पतला जीव था, इस साल मुटिया गया हूं।
· खटकता है। मैं भी उन्हीं लोगों जैसा दुबला-पतला हूं यह संतोप अब जाता रहा। पहले मेरे गाल उनके जैसे चिपके थे। अब तो मेरे शरीर पर मुख छा गई है ।
देहाती रहन सहन में सुधार
या टंगी हुई एक तख्ती पर लिखा है कि आवश्यकताएँ बढ़ाते रहना सभ्यता का लक्षण नहीं है बल्कि आवश्यकताओं का संरक्षण सभ्यता का लक्षण है । तो भी मैं कहता हूं कि देहातियों की आवश्यकताएँ बढ़नी चाहिए। वे मुधारनी भी चाहिए। लेकिन उनकी आवश्यकताएँ आज तो पूरी ही नहीं होती। उनका रहन-सहन बिलकुल गिरा हुआ है। उनके जीवन का मान बढ़ना चाहिए। मोटे हिसाब से तो यही कहना पडेगा कि आज हमारे गरीब देशतियों की आवश्यकताएँ बढ़नी चाहिए ।
मधुओं का हान्त
योगशास्त्र में मैंने पढ़ा है कि जो अहिंसक है उसके आसपास हिंसा नहीं होती । मेरा इस वचन पर पूरा पूरा विश्वास है । लेकिन मैं अपनी आंखों के सामने नित्य क्या देखता हूं १ पवनार में मेरे घर के सामने घाम नदी है। भागवतजी को मैंने वहाँ बुलाया है। वे ब्राह्मण और ब्राह्मण को अल्प-आहार और भरपूर स्नान से संतोष है । वह मैं उन्हें वहाँ दे सकता हूं।
हां, तो मैं कह रहा था कि उस नदी पर मैं एक दूसरा दृश्य भी देखता हूं। मछुए रोज वहां असंख्य मछलियाँ मारते हैं। मछुए परम उद्योगी हैं। उनके समान उद्योगी दूसरा कोई नहीं । सबेरे से शाम तक मछली मारने का उनका उद्योग बराबर चलता रहता है। और जब मछली नहीं मारते तो रास्ता चलते हुए भी अपना जाल गूंथते रहते हैं। मेरी आँखों के सामने यह हिंसा चलती रहती है। मैं सोचता हूं कि मैं भी कैसा योगी हूँ ।
मछुओं की व्यवसाय निष्ठा
एक दिन दगडू ( मेरा साथी) नंगे सिर और नंगे चदन नहाने. गया। मछुओं ने गिडगिडाकर उससे कहा, "महाराज, हमारे पेट पर न मारो !" वह आश्चर्य से पूछने लगा, "मैंने क्या किया, जिससे तुम्हारा पेट मारा गया ?" वे बोले, "तुम नंगे सिर आए । असगुन हो गया । अब. मछलियाँ पकड़ी नहीं जा सकेंगी । ऐसी करनी न करो महाराज । " उनकी ऐसी भावना है। वे हमारी अपेक्षा किसी कद्र कम नहीं। उनकी दृष्टि से तो वे ईश्वर स्मरणपूर्वक ही मछलियाँ मारते हैं। मैं उन्हें किस मुंह से कहूं कि, 'तुम मछलियाँ मत मारो !' क्या उनसे गणपतराव की दूकान से तेल खरीदने को कहूँ ? वे कहेंगे उसके लिए पैसे देने पड़ते हैं ।। मछलियों से बह यो ही मिल जाता है ।
वृत्ति परिवर्तन की आवश्यकता
मेरा मतलब यह है कि यदि हम गांवों में जाकर बैठे हैं तो हमें इसके लिए जोरों की कोशिश करनी चाहिए कि देहातों का रहन सहन कैसा ऊपर उठेगा और हमारा कैसे उतरेगा। लेकिन हम ज़रा-जरासी बातें भी तो नहीं करते। महीना हुआ, मेरे पैर में चोट लग गई है। किसी ने कहा उसे मरहम लगाओ । मरहम मेरे मुकाम पर आ भी पहुंचा। किसीने कहा मोम लगाओ, उससे ज्यादा फायदा होगा। मैंने निश्चय किया कि मरहम और मोम दोनों आखिर मिट्टी के ही वर्ग के तो है। इसलिए मिट्टी लगा ली। अभी पैर बिलकुल अच्छा नहीं हुआ है। लेकिन अब मजे में चल सकता हूँ । कल पवनार से यहाँतक चलकर आया और वापस मी पैदल ही गया । हमें मरहम जल्दी याद आएगा, लेकिन मिट्टी लगाना नहीं सूलेगा । उसमें हमारी श्रद्धा नहीं, विश्वास नहीं । यहाँ अभी यज्ञोपवीत की विधि हुई। यज्ञोपवीत सूर्य को दिखाकर धारण करना चाहिए । 'सूर्याय दर्शयित्वा' । यहाँ यह हुआ या नहीं मुझे पता नहीं । ( पुरोहितजी से) कहिये यहाँ 'सूर्याय दर्शयित्वा' हुआ कि नहीं ? ( पुरोहितजी बोले ) जी हां। हमारे सामने इतना बड़ा सूर्य खड़ा है। उसे अपना नंगा शरीर दिखाने की हमें बुद्धि नहीं होती । सूर्य के सामने अपना शरीर खुला करो। तुम्हारे सारे रोग भाग जायेंगे । लेकिन हम अपनी आदत से और शिक्षा से लाचार है। डॉक्टर कहेगा कि तुम्हें तपेदिक हो गया तब वही करेंगे ।
हम अपनी जरूरतें किस तरह कम कर सकेंगे, इसकी खोज करनी चाहिए। मैं यहाँ संन्यासी का धर्म नहीं बतला रहा हूँ । स्वासा गृहस्थ का धर्म बता रहा हूँ । ठंडी अबोहवा वाले देशों के डॉक्टर कहते हैं कि उन्हें 'कॉड लिव्हर ऑइल' दो। जहाँ सूर्य नहीं है ऐसे देशों में ( अनसनी क्कायमेट में) दूसरा चारा ही नहीं है। कॉड लिव्हर के बिना |
dc273fdad53a2b733832da38f79cadc1cce405e05097aa1e50a96d920131a4fe | pdf | सुखबासू-धवलगृह के अन्तर्गत कबिलास नामक ऊपरी खंड का विशेष भाग । तुलना, ना वह मंदिर नहि कबिलासू । ना वह चित्र न वह सुखबासू ( चित्रावली ८९०६ ) । जायसी में सुखबासू का उल्लेख कई बार हुआ है। सुखबास सदा कबिलास या सतखंडे राजमहल के ऊपरी भाग में होता था । राजा-रानी या पति-पत्नी की शय्या उसीमें रहती थी ( २२६।३ ) । कबिलास और सुखबास दोनों का योग परक अर्थ भी था, सहस्रार दल कमल में शिव पार्वती का स्थान कैलास और वहीं पंच महाभूतों से ऊपर महाशून्य या महासुख का स्थान सुखबास कहलाता था । तिन्ह पावा उत्तम कबिलासू । जहाँ न मीचु सदा सुखबासू ( १४६।६ ) । सेज- राजा-रानी या पति-पत्नी की शय्या सुखबास या सुखबासी में रहती थी ( २२६३, २९११५ ) । वर्ण रत्नाकर के अनुसार यह स्थान चित्रशाली भी कहलाता था । सेज साढ़े तीन हाथ लम्बी और ढाई हाथ चौड़ी होती थी ।
( ४ ) चंदोवा - सं० चन्द्रोपक। सेज के ऊपर चंदोबा या चंदरवा ताना जाता था ( सफुर विराल एक चारिहु कोन बान्धल चॅदोआ माड़ल ऊपरें देल अछ, वर्ण रत्नाकर, पृ० १४ ) । 'रात चॅदोवा' में चँदोवे का रंग लाल कहा गया है । अब्बास खाँ कृत तारीख-ए-शेरशाही से ज्ञात होता है कि लाल रंग का तम्बू शामियाना केवल राजकीय उपयोग में आता था, अथवा जिस पर विशेष राज कृपा होती उसे प्रदान किया जाता था । रलसेन के लिये लाल बिछावन (२७५१५, २९१।४), लाल दगला ( २७६।७ ), लाल रथ ( २७२।२ ), लाल छत्र ( २७७१६ ); और लाल चंदो ( २९११४ ) का उल्लेख किया गया है ।
( ५ ) सुखबासी - सुखबासी के विषय में लिखा है- धनि और कंत मिले सुखबासी ( ३३५।४ ) । ३३६।५ में इसे ही ओबरी कहा गया है । चित्रावली में जिसे सुखशाला कहा है वह सम्भवतः यही थी ( कोहवर सेज सुरंग पुनि डासी । सुखसाला कबिलास बिलासी (५३०१६) ।
( ६ ) डुआ लम्बोतरा गोल तकिया। वर्ण रखाकर ( पृ० १४ ) में नेत नामक वस्त्र के बने हुए माण्डल गेंडुए ( गोल तकिए ) का उल्लेख है
( ७ ) गलसुई-चपटा छोटा तकिया । सं० गल सूचिका । प्राचीन स्तूप वेदिका ( चारदीवारी ) के खंभों के बीच में लगे हुए तकिये के आकार के आड़े पत्थरों को 'सूची' कहा जाता था। इसीसे तकिये को भी सूची कहा जाने लगा । गाल के नीचे रखने का तकिया गल्लसूची या गलसुई कहलाया जिसे प्राकृत में गल्लमसूरिया ( मसूर की दाल की तरह चपटा गाल का तकिया ) और सं० में मसूरक भी कहा जाता था ।
सूरुज तपत सेज सो पाई । गाँठि छोरि ससि सखी छपाई ।१। है कुँवर हमरे घस चारू । आजु कुँवरि कर करब सिंगारू ।२। हरदि उतारि चढ़ाएब रंगू । तब निसि चाँद सुरुज सौं संगू ।३। जनु चात्रिक मुख हुति गौ स्वाती । राजहि चकचौहट तेहि भाँती ।४। जोगि छरा जनु अछरिन्ह साथा । जोग हाथ हुति भएउ बेहाथा ॥५॥ वै चतुरा गुरु लै उपसई । मंत्र अमोल छीनि लै गई ।६। बैठेउ खोइ जरी श्री बूटी । लाभ न भाव मूर भौटूटी ।७। खाइ रहा ठग लाडू तंत मंत बुधि खोइ ।
भा धौराहर बनखंड ना हँसि भाव न रोइ ॥२७॥२॥
(८) सूर्य तपकर उस सेज के पास तक पहुँचा था। पर सखियों ने ग्रन्थि बन्धन खोलकर शशि ( पद्मावती ) को उससे छिपा दिया । (२) 'हे कुँवर, हमारे यहाँ एक ऐसी चाल है, कि आज हम कुँवरि का सिंगार करेंगी । (३) उसके शरीर से हल्दी उतारकर रंग चढ़ावेंगी। तब रात में सूर्य का चाँद से संग होगा ।' (४) जैसे चातक के मुँह के सामने से स्वाति की बूँद चली जाय, उसी भाँति राजा को पद्मावती के लिये विकलता और क्षोभ हुआ, (५) मानों योगी अप्सराओं के संग में पड़कर छला गया । जोग ( मेल या संयोग ) हाथ में आकर भी हाथ से बाहर हो गया । (६) वे सयानी उसके गुरु को लेकर अदृश्य हो गई और उसका अनमोल मंत्र भी छीन ले गई । (७) वह अपनी जड़ी बूटी खोकर हताश हो बैठ गया । लाभ तो मिला नहीं, गाँठ की पूँजी भी टूट गई ।
(८) जैसे कोई ठगों का लड्डू खाकर छला जाता है, ऐसे ही उसने अपना तंत्र मंत्र और बुद्धि खो दी । (९) धौराहर उसके लिए बनखण्ड हो गया । न उसे हँसी आती थी, न रो पाता था ।
चारू-चाल, रीति, लोकाचार ।
हुति प्रा० हुन्त अभिमुख, सम्मुख ( देशी ० ८१७०, हेम० २११५८ ) । चकचहट अत्यन्त उत्सुकता । धातु चकचौहना; सं० चकित क्षुभित । उपसई - दे० १०३२ २०३१७, २४०१२ २५८४ ।
अस तप करत गएउ दिन भारी । चारि पहर बीते जुग चारी ।१। परी साँझ पुनि सखी सोई । चाँद सो रहै न उई तराई ।२। पूछेन्हि गुरू कहाँ रे चेला । बिनु ससियर कस सूर अकेला ॥३॥ धातु कमाइ सिखे तैं जोगी । अब कस जस निरधातु बियोगी ॥४॥ कहाँ सो खोए बीरौ लोना । जेहि त होइ रूप औं सोना ।५। कस हरतार पार नहिं पावा । गंधक कहाँ कुरकुटा खावा ।६। कहाँ छपाए चाँद हमारा । जेहि बिनु जगत रैन अधियारा ॥७॥ नैन कौड़िया हिय समुँद गुरू सो तेहि महँ जोति ।
मन मरजिया न होइ परै हाथ न आवै मोति ॥२७॥३॥
( १ ) इस प्रकार पद्मावती के लिये तपते हुए उसे वह दिन कठिनाई से बीता । चार पहर चार युग के समान गए । (२) साँझ हुई कि फिर वे सखियाँ आ गई । तारे उगे, पर वह चाँद साथ में न आया । ( ३) उन्होंने पूछा, 'रे घेले, तेरा गुरु कहाँ है ? शशि के विना सूर्य अकेला क्यों है १ (४) है जोग साधने वाले, तू ने तो धातु का संचय करना सीखा था । आज उससे वियुक्त होकर निर्वीर्य ( निस्सत्त्व ) क्यों हो रहा है १ (५)
वह सौन्दर्य का चिरवा ( पद्मावती ) कहाँ ग्वोया, जिसे पाने पर तुझे रूप और सुखशयन दोनों मिलते ? (६) कैसे तेरा पारद ( शुक्र ) उस हड़ताल ( गन्धक मिश्रित धातु जो रज का प्रतीक है ) को नहीं पा सका ? ( अथवा, कैसे तू उस पीत वर्णं वाली का पार नहीं पा सका ? जो तूने उसे पाकर भी खो दिया १ ) वह सुगंधि युक्त पद्मावती कहाँ है जिसके लिये तू ने जोगी बनकर भात का ढेर खाया था ! (७) तू ने हमारा वह चाँद कहाँ छिपा रक्खा है जिसके विना संसार में रात का अँधेरा छा रहा है ?
(८) तेरे नेत्र उसके रूप के लिये कौडिल्ला पक्षी की भाँति बार बार टूट रहे हैं । तेरा हृदय अगाध समुद्र है जिसमें वह गुरु ( पद्मावती ) रूप ज्योति छिपी है । (९) यदि तेरा मन मरजिया ( मर कर जीने वाला, अथवा डुबकी लगाने वाला ) नहीं बनता तो वह मोती हाथ नहीं आ सकता ।'
[ पद्मावती पक्ष में ]
(४) धातु कमाइ सिखे से जोगी-योग साधकर तू ने धातु अर्थात् शुक्र या बिन्दु को वश में करना सीखा । उसीसे मन वश में होता है । किन्तु आज पद्मावती के प्रेम में तेरा मन मथा गया । इसी लिये धातु हीन की भाँति चंचल हो रहा है।
निरधातु-निर्धातु, वीर्यहीन, सत्त्वहीन, अधोरेत स्थिति वाला ।
(५) बीरौ लोना = सौन्दर्य की बूटी या लता ( पद्मावती ) । रूप औ सोना- पद्मावती के साथ में तुझे सौन्दर्य और सुखशयन दोनों की प्राप्ति होती ।
(६) हरतार - हरिताल, पीत वर्ण वाली पद्मावती; (२) हरित या रजो धर्म युक्त ; ( ३ ) अथवा पारे ( शुक्र ) और हरतार ( रज ) का संकेत रत्नसेन और पद्मावती से है ।
गंधक-गन्धवती या पद्मिनी स्त्री, पद्मावती ।
कुरकुटा खावा - जिसके लिये योगी होकर तू ने राजकीय आहार छोड़े (आहर गएउ, २०४१६ ) और ठंडे रूखे भात का ढेर खाया ( १२९/७, १३२१७, जूड़ कुरकुटा पै भखु
चाहा । जोगिहि तात भात दहु काहा )
(८) नैन कौड़िया - उस पद्मावती के दर्शन के लिये तेरे नेत्र ऐसे चकमक करते हैं जैसे मछली के लिये
कौड़िल्ले पक्षी बार बार टूटते हैं, पर उसे वे नहीं पा सकते । वह जल में ऊपर तैरने वाली मछली नहीं है, वह समुद्र के अगाध जल में रहने वाली मोती रूप ज्योति है जिसे गोता खोर ही पा सकता है । तू पहले अपने मनं से उसे प्राप्त कर पीछे नेत्रों से भी देखेगा । उसे पाने के लिये मन को विषयों में मृत और ज्ञान में जीवित ( मर- जिया ) करना आवश्यक है । योग मार्ग में मरकर जीने की कल्पना कत्रि को प्रिय है ( २३११६, २३४१३, २३८१६ ) । है
[ धातु विद्या परक अर्थ ]
(४) तू ने जोगी होकर धातु बनाना या रसायन विद्या सीखी । अब वियोगी की भाँति धातु हीन क्यों हो रहा है ? अथवा, तू ने ताम्र के साथ योग युक्त पारद से सोना बनाना सीखा । पर आज तेरा पारद उन सब धातुओं से हीन अकेला क्यों है ?
(५) तू ने वह अमलोनी बूटी कहाँ खो दी
जिसकी सहायता से
करते है ?
धातुवादी चाँदी और सोना बनाया
(६) क्या तुझे चाँदी बनाने के लिये हरताल और सोना बनाने के
लिये पारा नहीं मिल सका ? वह
गंधक कहाँ है जो कण रूप में बिखरे हुए पारद ( कुरकुटा ) को खा लेती है (और उसे बद
करती है ) ।'
२७ : पद्मावती रत्नसेन मॅट खण्ड
( ४ ) जोगी - (१) सिद्ध या नाथ योगी जो रसायन या धातुवाद की प्रक्रिया से सोना बनाते और पारद के नाना संस्कार करके सिद्ध गुटिका बनाते थे । (२) ताँबे में पारा मिलाकर सोना बनाते हैं, अतएव ताँबे के योग से युक्त पारद का जोगी शब्द से संकेत है । रस शास्त्र में योगवाड़ी शब्द केवल पारद के लिये प्रयुक्त होता है। पारा जिम द्रव्य या औषध के साथ मिलता है उसके गुण को बढ़ा देता है ।
धातु कमाना - पारद के योग से ताँबे का सोना बनाना । और भी, अनेक प्रकार से निकृष्ट धातुओं से महगी धातए बनाना । बाण ने कारन्धमी या धातुविदों का उल्लेख किया है । ये लोग नागार्जुन को अपना गुरु मानते थे । पीछे यही रसेन्द्र दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसमें रस या पारद से न केवल सुवर्णादि धातु बनाने बरन् शरीर को अमर करने का उपदेश दिया जाता था ।
निरधात - खनिज पारद में सोना, चाँदी, ताँबा, राँगा, सोसा आदि धातुओं का कुछ अंश मिला रहता है। उन्हें सप्त कंचुक मलों के साथ अलग कर देने से पारा बिल्कुल शुद्ध मा अकेला रह जाता है। ऐसा पारा षण्ढ या नपुंसक हो जाता है ( एवं कदर्थितः सूतः षण्ढत्वमधिगच्छति । रसेन्द्र सार संग्रह ) । वह मरा हुआ सा हो जाता है। उसका पण्ढत्व हटाने के लिये नीबू के रस या खट्टी वस्तुओं से उत्थापन या उद्बोधन संस्कार करते है ।
( ५ ) बीरौ लोना- अमलोनी बूटी, सोना बनाने के लिये काम में आने वाली तिपतिया चौपतिया बूटी जिसकी पत्तियों का स्वाद नमकीन और खटास युक्त होता है । सं० अम्ललोनिका, अम्लिका, हिन्दी अंबोटी, अं० वुड सारेल, लैटिन आक्सेलिस कार्निंकुलाटा ( वाट, डिक्शनरी आव इकनामिक प्रोडक्टस, भाग ५, पृ०६५८) ।
बीरौ लोना का अर्थ बिड या नौसादर और लोन या नमक भी है। पारद के आठ संस्कार कर लेने के बाद भी ( जिसमें पारद के साथ गंधक का जारण सम्मिलित है) उसकी भूख बढ़ाने के लिये या उसे 'समुख' करने के लिये नौसादर नमक और नींबू आदि के साथ घोटते हैं । यही मसाला बिड - लवण या 'बीरौ लोना' है । उस घोटे हुए पारे को ऊर्ध्वपातन यंत्र से अलग कर किया जाता है। वह बुभुक्षित पारद हो सोना चाँदी बनाने के काम में लिया जाता है। 'वे बिड और लवण तुमने कहाँ खो दिए जिनके साथ पारद का जारण करने से सोना चांदी बनाते थे ?"
जेहि ते होई रूप औ सोना-अमलोनी और पारद की सहायता से रसायनी लोग राँगे से चाँदी और ताँबे से सोना बनाते थे । श्लेप से दो अर्थ देने वाले सोना रूपा शब्दों का प्रयोग सिद्धाचार्यों की कविता में भी मिलता है ।
( ६ ) कस हरतार पार नहि पावा - चाँदी बनाने के लिये हरताल और सोने के लिये पारद की आवश्यकता होती है। राँगे में हरताल मिलाकर चाँदी और ताँबे में पारा मिलाकर सोना बनाते हैं और उसमें अमलोनी बूटी की भी सहायता लेते हैं । बंगं सताल मर्कस्य पिष्टवा दुग्धेन संपुटेत् । शुष्काश्वत्थ भवैवल्कैः सप्तधा भस्मतां नयेत् । ( रसेन्द्र सारसंग्रह लो० २८८), अर्थात् राँगे को हरताल के साथ ( ताल = हरताल ) आक के दूध में घोट कर पीपल की छाल से भस्म करे ।
गंधक कहा कुरकुटा खात्रा-पारा सब धातुओं को खा लेता है, किन्तु गंधक पारे को खाती है। गंधक पारा दोनों मिला दो तो गंधक पारे को खा लेगी, पारे के कण अलग नहीं रहेंगे। ऐसा पारा कज्जली कहलाता है। गंधक ही पारद को बद्ध करता है। उसके मिलने से पारा उड़ता नहीं बँधा रहता है। गंधक पार्वती का रज और पारद शिव का बीये है। गंधक पारद के संयोग में रज वीर्य रूप धातुओं के सम्मिलन का वर्णन किया जाता है ।
कुरकुटा-चावल के वेत खंडा; यहाँ तत्सदृश पारद के कण; स्वेदन प्रक्रिया से प्राप्त हिंगुलोत्थ पारा । कुरकुटा या कण रूप पारद ही गंधक में मिलाया जाता है । आयुर्वेद के अनुसार पारद की चार द्रव अवस्थाऐ हैं। जिस पारद में सुवर्णादि धातु का ६४ वाँ भाग ग्रास के रूप में दिया जाय वह दण्ड घर ( बिना दबाए कपड़े में से बाहर न आ सके, ऐसा पतला ) होता है। जिसमें ३२ वाँ भाग मिले वह पारद पायसाकार ( उबाल कर गाढे किए हुए दूध जैसा ) होता है । २० वाँ भाग मिलने से जोक जैसा लुजलुजा और १६ वाँ भाग मिलाने से इतना कड़ा हो जाता है कि उसको चाकू से काट कर अलग करलें [ यदि हि चतुःषष्टयंशं ३. सति रसस्तदा घरेद्दण्डन् । चत्वारिंशदूभागप्रवेशतः पायसाकारः । भवति जलौकाकारस्त्रिंशद् भागाद विप्लुषश्च विंशत्या । छेदीव षोडशांशादत ऊर्ध्व दुर्जरो ग्रासः । भगवद्गोविन्द पादकृत रस हृदय तंत्र, अ० ६, यादव जी कृत द्रव्य गुण विज्ञान, उत्तरार्ध, पृ० ८०, पाद टिप्पणी ] । इन चारों में पहली तरल अवस्था का पारद ही कुरकुटा कहलाएगा । कण रूप वह पारद ही गंधक के साथ मिलाया जाता है, शेष तीन अवस्थाओं वाला नहीं ।
का बसाइ जौं गुरु अस बूझा । चकाबूह अभिमनु जो ब्रूझा ।१। बिख जो देहि अंबित देखराई । तेहि रे निछोहिहिं को पति आई ।२। मरै सो जान होइ तन सूना । पीर न जानै पीर बिहूना ।३। पार न पाव जो गंधक पिया । सो हरतार कहौ किमि जिया ।४। सिद्धि गोटिका जापहँ नाहीं । कौनु धातु पूँछहु तेहि पाहीं ॥५॥ अब तेहि बाजु राँग भा डोलौं । होइ सार तब बर के बोल ।६। अभरक के तन ऍगुर कीन्हा । सो तुम्ह फेरि अगिनि महँ दीन्हा ।७। मिलि जौ पिरीतम बिधुरै काया श्रगिनि जराइ ।
कै सो मिलै तन तपति बुझ् के मोहि मुएँ बुझाइ ॥२६॥२३॥
(१) रत्नसेन ने उत्तर दिया, 'जब गुरु ने ही ऐसा विचार कर लिया हो तो मेरा क्या वश चल सकता है ? गुरु द्रोण द्वारा निर्मित चक्रव्यूह में जूझने वाले अभिमन्यु के समान मेरी भी गति होगी । (२) जो पहले अमृत दिखलाकर पीछे विष दे दे उस निष्ठुर का क्या विश्वास किया जाय ? (३) तुम कहती हो कि मन को मारने से (मरजिया होने से ) मोती हाथ आता है, सो मेरी दृष्टि में सच्चा मरना वही जानता है जो शरीर को भी शून्य कर लेता है । जिसे स्वयं पीड़ा का अनुभव नहीं हुआ, वह दूसरे की पीड़ा नहीं जान सकता । (४) जिसने पद्मिनी के रूप का पान किया हो वह उससे कभी पार नहीं पाता ( तृप्त नहीं होता ) । यदि उसके उस तार को हर लिया जाय तो वह कैसे जी सकता है १ (५) जिसके पास सिद्धि प्राप्त करने वाली वह पद्मावती रूप गुटिका नहीं रही, उससे धातुवाद की बात क्या पूछना ? (६) अब उसके बिना मैं राँगे की भाँति निकम्मा हुआ ( या गेरुए वेष में रँगा हुआ ) फिरता हूँ। जब मेरे पास कुछ तत्व होगा तब बलपूर्वक कुछ कह सकूँगा । (७) अभ्रक रूपी उस पद्मावती के साथ इस शरीर को
मिलाकर मैंने ईंगुर बना लिया था । पर तुमने पुनः उसे आग में डाल दिया और अभ्रक को मुझसे अलग कर लिया ।
(८) जब प्रियतम एक बार मिलकर अलग होता है, तो शरीर उसके विरह की आग में जलने लगता है । (९) या तो उसके मिलने से ही शरीर की जलन बुझ सकेगी, या फिर मेरे मरने से बुझेगी ।'
( १ ) गुरु - १ पद्मावती २ द्रोणाचार्य । जब द्रोण ने ही चक्रव्यूह की रचना की तो अभिमन्यु के उसमें जूझ जाने का क्या आश्चर्य १ रत्नसेन का संकेत है कि पद्मावती की इच्छा से ही सखियाँ उसे अलग ले जा सकौं ।
( २ ) मरै सो जान होइ तन सूना-सहज साधना में मन और शरीर दोनों को मारना या साधना आवश्यक है । काअ-वाअ-मणु जाव ण भिज्जइ ! सहज-सहावे तात्र ण रज्जइ ( जब तक काया, स्वाँस और मन को वश में न किया जायगा तब तक अपने सहज स्वरूप में लीन नहीं हुआ जा सकता ) । सखियों ने मन 'मरजिया' करने की बात कही थी । रलसेन काय साधन की भी आवश्यकता बताता है । मन शशि, काया सूर्य के समान है । सहज या समरस भाव के लिये मन और काय दोनों कं समान स्थिति, सम्मिलन या 'विवाह' आवश्यक है । 'हउ सुण्ण जगु सुण्णु तिहुअन सुण्णु । निम्मल सहजे न पाप न पुण्णु ( निर्मल सहज की प्राप्ति के लिये 'अहं' का शून्य भाव जैसे आवश्यक है, वैसे ही जग या त्रिभुवन की शून्यता भी आवश्यक है । दोहा कोश ) इस दृष्टिकोण में पद्मावती के समान रत्नसेन की साधना का भी महत्व है ।
( ४ ) पार न पाष जो गंधक पिया - गंधक ( २९३६ ) गंधयुक्त पश्चिनी स्त्री । पिया - पान किया; अथवा पति; अथवा प्रिया । जो पद्मिनी से प्रेम करता है वह यों हो पार नहीं पाता । उस पर उसका वह तार कर लिया जाय तो उसका जीना असम्भव है ।
तार-रूपा, चाँदी, सूत, ब्योंत, व्यवस्था, कार्य सिद्धि का योग, सिद्धि । अथवा इसका अर्थ यह भी है -गंधक जिसे पीती है वह पारा उसे यदि न मिले तो अपना तार खोने से वह जीवित नहीं रह सकती । गंधक - रजरूप पद्मावती; पारा शुक्र रूप रलसेन । रलसेन के अनुसार पद्मावती के जीवन के लिये रत्नसेन की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी सखियों के अनुसार रत्नसेन को पद्मावती की । रस शास्त्र के अनुसार गन्धक के साथ पारद का योग आवश्यक है, गन्धक पारे को खा लेती है, गन्धक में मिलाया हुआ पारा दिखाई नहीं पड़ता ।
( ५ ) सिद्धि गोटिका २१७११, ३१४/५, बद्धपारद की गोली जिसे दिव्य गुटिका या खेचरी गुटिका भी कहते हैं। जिस साधक का रेत सिद्ध न हुआ, उससे अन्य शारीरिक धातुओं की बात पूछना व्यर्थ है ।
( ६ ) राँग-राँगा; या रंगा हुआ, अथवा फारसी लिपि में रॉक रंक । सिद्ध पारद के योग से राँगे से चाँदी बनाते हैं । उसके अभाव में राँगा निकृष्ट धातु बना रहता है । सार-तत्व; सार धातु ( सोना आदि ); बढ़िया लोहा, फौलाद ।
( ७ ) अभ्रक कै-गंधक की तरह अभ्रक भी पार्वती का रज माना गया है । वह पद्मावती का वाचक है। ऐंगुर = ईगुर, हिंगुल, रससिन्दूर ।
रसायन परक अर्थ
( ४ ) गंधक जिसे खा लेती है, वह पारा फिर उसके साथ मिलकर कज्जली रूप में अदृश्य जाता है । हरताल को भी पारद के बिना स्थिति असम्भव है। |
f554a4873942ad187c30b3493decad69facebfbc | web | सत्ता पक्ष व विपक्ष के बीच मणिपुर हिंसा पर चर्चा को लेकर चालू मानसून सत्र के पहले दिन से ही जो हंगामा शुरू हुआ, जो लेख लिखे जाने तक जारी था। लेकिन इस हंगामे के बीच ही सत्र के पहले ही दिन यानी 21 जुलाई को केंद्रीय क़ानून एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में बताया कि भारतीय अदालतों में लंबित मुक़दमों की संख्या 5. 02 करोड़ से ज़्यादा हो गयी है। अकेले सर्वोच्च अदालत में लंबित मामलों की संख्या 69,766 हो गयी है।
एनजेडीजी राष्ट्रीय स्तर पर अदालतों के प्रदर्शनों की निगरानी करता है। भारत में लंबित मामलों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है और समय-समय पर न्यायाधीश व सरकार भी इस गम्भीर मुद्दे पर अपनी-अपनी तरह से चिन्ता व्यक्त करते रहते हैं।
मंत्री मेघवाल ने अपने नये कार्यालय के पहले दिन प्रेस वार्ता में कहा था -' मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता सभी को त्वरित इंसाफ़ सुनिश्चित करना होगी। ' दरअसल क़ानून मंत्री कोई भी हो, आम जनता को त्वरित न्याय दिलाने वाले उनके अल्फ़ाज़ बाद में आम जन को निराश ही करते हैं। हज़ारों लंबित मामले 25 साल या इससे अधिक समय से लंबित हैं। सवाल है कि लंबित मामलों की इस समस्या को कैसे कम किया जाए? न्यायिक तंत्र व न्याय दिलाने में सहयोग करने वाली अन्य एजेंसियों को कैसे कारगर बताया जाए कि धरातल पर सकारात्मक नतीजे दिखायी दे।
लंबित मामलों से लोकतंत्र को नुक़सान होता है। इस बाबत मिड-डे में छपी ख़बर के मुताबिक, वॉचडॉग फाउंडेशन के ट्रस्टी एडवोकेट गॉडफ्रे पिमेंटा ने कहा कि भारत में विभिन्न अदालतों में मामलों का ढेर एक दरकते हुए लोकतंत्र की तरफ़ इशारा है। राजनेता जनता को इंसाफ़ दिलाने की पहल में पिछड़ गये हैं, क्योंकि वे सिर्फ़ अपने स्वार्थों को पूरा करते हैं। कोर्ट रूम की संख्या बढ़ाने, ऑनलाइन सुनवाई में बदलाव करने और अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति जैसे बुनियादी ढाँचे में बदलाव की ज़रूरत है।
गॉडफ्रे पिमेंटा ने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, लगभग सरकार भी उसके क़रीब ही खड़ी नज़र आती है। सिर्फ़ राजनेता वाले वाक्य को हटाकर। क़ानून एवं न्याय मंत्री मेघवाल का कहना है कि अदालतों में मामलों के लंबित होने के लिए कई कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिनमें पर्याप्त संख्या में जजों और न्यायिक अफ़सरों की अनुपलब्धता, अदालत के कर्मचारियों और कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी शामिल है। इसके साथ ही साक्ष्यों का जुटाया जाना; बार, जाँच एजेंसियों, गवाहों और वादियों जैसे हितधारकों का सहयोग भी इसमें शामिल हैं।
ग़ौरतलब है कि अदालतों में मामले के निपटान के लिए पुलिस, वकील, जाँच एजेंसियाँ और गवाह अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि यही देश में मामलों को लंबित करने के अहम कारण भी बनते हैं। कई मामलों में पुलिस समय पर आरोप-पत्र दाख़िल नहीं कर पाती, तो कई मामलों में वकील भी पेश नहीं होते। इसके अलावा अदालतों की लम्बी छुट्टियाँ होती हैं।
संदर्भ के लिए हाल ही में छपी एक ख़बर, राजस्थान की बूंदी पुलिस ने लकड़ी काटने के आरोप में 53 साल बाद 7 बुजुर्ग महिलाओं को गिरफ़्तार कर उन्हें अदालत में पेश किया गया। इन महिलाओं पर आरोप है कि 53 साल पहले इन्होंने जंगल से अपने घरों में खाना बनाने के लिए कुछ लकडिय़ाँ काटी थीं।
इस मामले में 12 महिलाओं के ख़िलाफ़ मुक़दमा सन् 1971 में दर्ज हुआ था और पुलिस ने उन्हें पकड़ा 2023 में। तीन महिलाओं की मौत हो चुकी है और दो को पुलिस नहीं पकड़ पायी। अदालत ने 500 रुपये के मुचलके पर इन आरोपी महिलाओं को रिहा कर दिया है। इसके अलावा अदालतें वकीलों की अनुपस्थिति में भी सुनवाई नहीं कर पाती हैं।
उस समय लंबित मामलों की संख्या क़रीब 3. 3 करोड़ थी और आज यह संख्या 5 करोड़ का आँकड़ा पार कर चुकी है। गत जुलाई को सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना ने देश में लंबित मामलों पर तत्कालीन क़ानून एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू द्वारा व्यक्त की गयी चिन्ताओं का जबाव देते हुए कहा था कि न्यायिक रिक्तियों को न भरना इसका प्रमुख कारण है। मंत्री को यह संदेश साफ़ दिया गया था कि न्यायिक रिक्तियों को भरना और न्यायिक बुनियादी ढाँचे में सुधार करना चाहिए।
अगर अदालतों में जजों की संख्या पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि दिसंबर, 2022 तक 25 उच्च अदालतों में जजों की संख्या 1,108 होनी चाहिए थी; लेकिन यह संख्या 778 है। इसी तरह निचली अदालतों में जजों के पद 24,631 थे; लेकिन जज 19,288 थे। भारत की निचली अदालतों में ज्यूडिशियल अफ़सरों के 5,388 से अधिक और उच्च अदालतों में 330 से अधिक पद $खाली हैं।
क़ानून मंत्रालय ने इंसाफ़ मिलने में हो रही देरी को दुरुस्त करने सम्बन्धित एक सवाल के जवाब में उत्तर दिया था कि केंद्र मामलों के त्वरित निपटारे और लंबित मामलों को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है। क़ानून मंत्रालय ने इस दिशा में उठाये गये क़दमों का ज़िक्र किया और कहा कि जहाँ तक ज़िला अदालतों व अधीनस्थ अदालतों का सम्बन्ध है। 2014 में कोर्ट हाल की संख्या 16,000 थी, जो बढक़र 2020 में 19,500 हो गयी है।
डिजिटल समाधान को अपनाकर एक उल्लेखनीय क़दम मामलों के निपटान के वास्ते उठाया गया है। केंद्र देश भर में ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट को लागू कर रहा है। क़ानून मंत्रालय ने यह भी कहा कि देश के उच्च अदालतों में पाँच साल से अधिक लंबित मामलों के त्वरित निपटारे के लिए एरियर कमेटी का गठन किया गया है। दरअसल सरकार अपनी सफ़ाई में बहुत कुछ कहती है; लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त क्या है?
हाल ही में बॉम्बे उच्च अदालत ने चोरी के मामलों में 83 साल की सज़ा पाने वाले पुणे के 30 वर्षीय व्यक्ति को रिहा करने के आदेश दिये। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अगर व्यक्ति को सही समय पर क़ानूनी मदद मिल जाती, तो वह 41 मामलों में से 38 में बरी हो जाता। चूँकि वह ग़रीब है और वकील नहीं कर सकता, इसलिए वह जेल में सज़ा काट रहा था। प्रसंगवश यहाँ ज़िक्र करना ज़रूरी है कि देश की जेलों में क्षमता से अधिक क़ैदी हैं और यह स्थिति बद से बदतर हो रही है। इसी अप्रैल को जारी 'द थर्ड इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2022' के अनुसार, देश में सन् 2019 में 4. 81 लाख क़ैदी थे और यह संख्या 2020 में बढक़र 4. 89 लाख हो गयी। 2021 में यह संख्या 5. 54 लाख तक पहुँच गयी। देश में कुल जेलों की संख्या 1,319 है। दिसंबर, 2021 तक एक जेल में औसतन 130 प्रतिशत क़ैदी थे। चिन्ता की बात यह है कि विचाराधीन क़ैदियों की संख्या बढ़ रही है। विचाराधीन क़ैदी ऐसे क़ैदी जिन्हें अदालत ने सज़ा नहीं सुनायी है। इसे देश में बढ़ते लंबित मामलों से भी जोडक़र देखा जा सकता है। एक दशक में विचाराधीन क़ैदियों की तादाद लगभग दोगुनी हो गयी है।
इसी रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में विचाराधीन क़ैदियों की तादाद 2. 14 लाख से बढक़र 201 में 4. 3 लाख हो गयी थी। लंबित मामलों का असर देश की न्यायिक व्यवस्था के साथ-साथ पीडि़तों की सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक अवस्था पर भी पड़ता है। आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग इन लंबित मामलों की प्रवृत्ति को ये सोचकर अपराध करते हैं कि अपराध कर लो, अदालतों में तो कई-कई साल तक मुक़दमे चलते रहते हैं। लंबित मामलों से इस संदेश का निकलना किसी भी समाज, राष्ट्र, लोकतंत्र व मानव जाति के लिए ख़तरनाक है; क्योंकि न्याय में देरी भी एक तरह से अन्याय है।
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ef6e38386878772c466421aa2e5a3b9df6715ddd5603f96bfdaa62110f432785 | web | विकीहाउ एक "विकी" है जिसका मतलब होता है कि यहाँ एक आर्टिकल कई सहायक लेखकों द्वारा लिखा गया है। इस आर्टिकल को पूरा करने में और इसकी गुणवत्ता को सुधारने में समय समय पर, 34 लोगों ने और कुछ गुमनाम लोगों ने कार्य किया।
विकीहाउ एक "विकी" है जिसका मतलब होता है कि यहाँ एक आर्टिकल कई सहायक लेखकों द्वारा लिखा गया है। इस आर्टिकल को पूरा करने में और इसकी गुणवत्ता को सुधारने में समय समय पर, 34 लोगों ने और कुछ गुमनाम लोगों ने कार्य किया।
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जार केंडल (Jar Candle) के पूरे जल जाने के बाद, वो किसी काम की नहीं रहती, लेकिन आपके पास में अभी भी उसका ग्लास जार तो रहता है। फिर चाहे आप उसे फिर से यूज करना चाहते हैं या फिर उसे रिसाइकिल करना चाहते हैं, इसके लिए पहले उसके वेक्स को किसी भी तरह से बाहर निकालना जरूरी होगा! यहाँ पर वेक्स को निकालने के कुछ आसान तरीके दिए गए हैं; आपके लिए जो भी तरीका सबसे ज्यादा आसान लगे, उसे चुनें।
विधि 1 का 4:
वेक्स को निकालने के लिए फ्रीजर का इस्तेमाल करना (Using a Freezer to Get Wax Out)
1एक सही इस्तेमाल हुई केंडल की तलाश करेंः ये मेथड केवल उन्हीं केंडल जार पर अच्छी तरह से काम करेगी, जब जार में नीचे केवल बहुत जरा सी वेक्स बची रह गई हो। साथ ही, सुनिश्चित करें कि मोमबत्ती की बाती को नीचे से चिपका कर नहीं रखा गया है।
- अगर आपकी केंडल की बाती नीचे ग्लू से चिपकाई गई है, तो वेक्स शायद पूरा बाहर नहीं निकलेगा।[१] X रिसर्च सोर्स इसकी बजाय फिर वेक्स निकालने के लिए उबलते पानी का इस्तेमाल करने वाली मेथड का इस्तेमाल करने का सोचें।
2केंडल जार को तैयार करेंः ज़्यादातर केंडल जार ओपनिंग में सँकरे हो जाते हैं, जिसका मतलब कि आप जब वेक्स को निकालने की कोशिश करेंगे, तब वो उसमें अंदर अटक सकती है। एक बटर नाइफ की मदद से वेक्स को अंदर से उठाकर, आप ऐसा होने से रोक सकते हैं। वेक्स जब फ्रीज़ होती है, तब ये छोटे-छोटे पीस में टूट जाएगी। पीस जितने ज्यादा छोटे होंगे, उन्हें एक बड़े पीस के मुक़ाबले ज्यादा आसानी से बाहर निकाला जा सकेगा। आप एक शेप केंडल होल्डर के लिए भी इसी तरीके को इस्तेमाल कर सकते हैं।
- अगर आप स्ट्रेट वॉल के साथ रेगुलर केंडल होल्डर इस्तेमाल कर रहे हैं, तो फिर आपको वेक्स को स्लाइस करके निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
3जार को फ्रीजर में रखेंः जार को एक स्टेबल या स्थिर जगह पर रखें, ताकि ये पलटे नहीं। पानी फ्रीज़ होने पर फैलता है, लेकिन वेक्स उल्टा सिकुड़ता है। जिसका मतलब कि वेक्स ग्लास के साइड्स से खुद ही अलग होती जाएगी।
4जब तक कि वेक्स फ्रीज़ न हो जाए, तब तक के लिए जार को फ्रीजर में रखेंः इसमें कुछ 20 से 30 मिनट का समय[२] X रिसर्च सोर्स SF Gate, [homeguides.sfgate.com/remove-candle-wax-glass-votives-35843.html How to Remove Candle Wax from Glass Votives] से लेकर कुछ घंटे तक का समय लगेगा।
5जार को फ्रीजर से बाहर निकालेंः जैसे ही वेक्स फ्रीज़ हो जाए, फिर आप जार को फ्रीजर से बाहर निकाल सकते हैं। आप वेक्स के कोनों पर दबाकर वेक्स के फ्रीज़ होने की जांच कर सकते और देख सकते हैं। अगर वेक्स बाहर आ रही है या फिर ढीली लगे, तो इसका मतलब की वो फ्रीज़ हो गई है और निकालने के लिए तैयार है।
6वेक्स को जार से निकालेंः जार को उल्टा करें। वेक्स को सीधे बाहर गिर जाना चाहिए। अगर ये नहीं गिरती है, तो आप उसे अपने टेबल या काउंटर के ऊपर हल्का सा ठोक सकते हैं। आप चाहें तो वेक्स और ग्लास के बीच में एक बटर नाइफ भी डाल सकते हैं और फिर चाकू के हैंडल को थोड़ा सा धक्का देकर उसे बाहर निकालने की कोशिश कर सकते हैं।
7अगर जरूरत पड़े, तो केंडल की बाती के होल्डर को निकालेंः अगर बाती का होल्डर अभी भी जार के बॉटम में चिपका है, तो आप एक बटर नाइफ के सिरे को उसके नीचे डालकर और नाइफ के हैंडल पर धक्का देकर भी उसे सीधे बाहर खिसका सकते हैं।
9केंडल जार को फिर से यूज करेंः अब आप उसमें एक नई बाती डालकर और ऊपर से उसमें नई वेक्स डालकर, अपने केंडल जार को दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। आप चाहें तो उसे थोड़ा डेकोरेट भी कर सकते हैं और उसमें पेन, बर्तन या दूसरी चीजें भी रख सकते हैं।
- वेक्स को सेव करने के बारे में सोचें। अगर आप चाहें तो इस वेक्स को एक डबल बॉयलर में पिघला सकते हैं और इसे केंडल बनाने में यूज कर सकते हैं।
विधि 2 का 4:
1आप जहां काम कर रहे हैं, उस जगह को प्रोटेक्ट करेंः इस मेथड में थोड़ी गंदगी फैल सकती है, इसलिए आपको अपने टेबल या काउंटर को पहले से ही गिरने वाली वेक्स से बचाने की तैयारी करना होगी। आप जहां काम कर रहे हैं, वहाँ पर एक पुराना टॉवल या न्यूज़पेपर फैलाकर उस सर्फ़ेस को इस गंदगी से बचा सकते हैं। आप चाहें तो इसकी जगह पर एक पुरानी बेकिंग शीट के ऊपर भी इस काम को कर सकते हैं।
3जार में उबलता पानी डालेंः हालांकि, जार को पूरा भी न भरें। आखिर में वेक्स पिघलना शुरू कर देगी और पिघलने के बाद पानी के ऊपर तैरना शुरू कर देगी।
4जार को कुछ घंटे के लिए ठंडा होने देंः कुछ घंटे के बाद, पानी ठंडा हो जाएगा और पिघली हुई वेक्स सॉलिड हो जाएगी। इसमें फर्क केवल इतना ही है कि वेक्स अब पानी के ऊपर तैर रही होगी, जिसके बाद उसे बड़ी आसानी से पानी से बाहर निकाला जा सकेगा।
5वेक्स को बाहर निकालेंः जैसे ही वेक्स कड़क हो जाए, फिर आप बस उसे सीधे बाहर निकाल सकते हैं। बस इतना ध्यान रखें कि ऐसा करते समय पानी भी शायद जार से बाहर आ सकता है।
7बचे हुए अवशेषों को निकालेंः अगर जार के अंदर अभी भी वेक्स बची रह गई है, तो आप उसे चाकू से स्क्रेप करके भी निकाल सकेंगे। आप जार को पानी और साबुन से भी धो सकते हैं। वेक्स के अवशेषों को निकालने का एक और दूसरा तरीका ये है कि आप बेबी ऑयल में एक कॉटन बॉल सोखें और उससे ग्लास के ऊपर वाइप करें।
8जार को फिर से इस्तेमाल करेंः अब आप आपके जार को किसी भी तरह से फिर से यूज कर सकते हैं। आप उसमें एक नई बाती डालकर और ऊपर से उसमें नई वेक्स डालकर, या फिर उसे थोड़ा सा सजाकर और उसके अंदर कुछ चीजों को स्टोर करके भी अपने केंडल जार को दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं।
- वेक्स को सेव करने के बारे में सोचें। अगर आप चाहें तो इस वेक्स को एक डबल बॉयलर में पिघला सकते हैं और इसे केंडल बनाने में यूज कर सकते हैं।
विधि 3 का 4:
1केंडल जार को सिंक या पॉट में रखेंः अगर आपके पास में ऐसे कई सारे जार हैं, जिन्हें साफ करने की जरूरत है, तो आप सिंक या पॉट के अंदर जितने फिट आ जाएँ, उतने और भी रख सकते हैं, बस इन्हें थोड़ा लूज या दूर-दूर रहना चाहिए। ये तरीका शायद बहुत हार्ड वेक्स से बनी केंडल्स के ऊपर काम न करे, लेकिन ये सोया-बेस्ड केंडल्स के लो मेल्टिंग पॉइंट की वजह से सोया केंडल (soy candles) के ऊपर जरूर काम करेगा।
2पॉट या सिंक को गरम पानी से भरेंः सुनिश्चित करें कि जार में पानी का लेवल वेक्स के लेवल से बहुत ज्यादा आगे तक नहीं जा रहा है, और वेक्स के ऊपर भी जरा सा भी पानी मत जाने दें। अगर आप सिंक यूज कर रहे हैं, तो उसे बंद करना न भूलें।
3वेक्स के ठंडे होने का इंतज़ार करेंः अगर आप किसी बहुत सॉफ्ट वेक्स का यूज कर रहे हैं, जैसे कि सोया वेक्स, तो इसमें ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए। आप अपनी उँगलियों से वेक्स पर दबाकर टेस्ट कर सकते हैं कि वेक्स सॉफ्ट है या नहीं। अगर आप वेक्स में दबा पा रहे हैं, तो फिर इसका मतलब कि वेक्स अब बाहर निकलने के लिए तैयार है।
- ठोस वेक्स से बने केंडल्स को निकाल पाना शायद और भी ज्यादा मुश्किल होगा; हालांकि, जो हिस्सा ग्लास को टच करता है, उसे इतना सॉफ्ट होना चाहिए कि उसकी किनार पर थोड़ा सा दबाकर ही आप से वेक्स बाहर निकल आए।
4पानी जब गरम हो, तभी सॉफ्ट किए वेक्स को निकाल लेंः जार को अभी पानी से बाहर मत लाएँ। बल्कि, जार को अपने एक ही हाथ से पकड़ें। अपने दूसरे हाथ में एक बटर नाइफ लें और उसके ब्लेड को वेक्स और ग्लास के बीच से अंदर डालें। वेक्स के अंदर ही चाकू को हल्का सा हिलाएँ। चाकू के हैंडल को बहुत आराम से थोड़ा सा धकेलें। ऐसा करने से वेक्स बाहर निकल आएगी, या कम से कम इतनी ढीली तो हो ही जाएगी कि आप उसे काफी आसानी से बाहर निकाल पाएँ।
5जार को सिंक या पॉट में से बाहर निकालेंः अगर वेक्स अभी भी जार के अंदर ही है, तो आप जार को उल्टा करके और फिर उसे आराम से काउंटर की किनार पर टैप करके निकाल सकते हैं।
6अगर जरूरत पड़े, तो बाती के होल्डर को निकालेंः बाती के होल्डर को भी केंडल के साथ में बाहर आ जाना चाहिए, लेकिन अगर ये नहीं निकलता है, तो आप बटर नाइफ के सिरे को बाती के होल्डर और ग्लास के बीच में डालकर और फिर चाकू के हैंडल को थोड़ा सा धकेलकर उसे निकाल सकते हैं।
7बचे रह गए अवशेष को निकालेंः अगर जार के अंदर अभी भी वेक्स के कुछ अवशेष रह गए हैं, तो आप जार को साबुन और गरम पानी से धोकर उसे साफ कर सकते हैं। आप चाहें तो उसमें अंदर बेबी ऑयल लगाकर भी आप अंदर बचे रह गए अवशेषों को निकाल सकते हैं।
8जार को फिर से इस्तेमाल करेंः जार अब फिर से इस्तेमाल करने के लिए तैयार है। आप चाहें तो जार को पेंट कर सकते हैं या फिर डेकोरेट कर सकते हैं, या फिर उसके अंदर अपने पसंद की चीजों को रख सकते हैं। आप चाहें तो इसके अंदर एक नई बाती भी डाल सकते हैं और उसे नए वेक्स से भरकर एक नई केंडल बना सकते हैं।
- पुरानी वेक्स को पिघलाकर और इसे नए केंडल बनाने में यूज करके भी वेक्स को दोबारा यूज कर सकते हैं।
विधि 4 का 4:
1अपने अवन को प्री-हीट करेंः अवन को चालू करें और टेम्परेचर को 200°F (94°C) पर सेट करें। अवन का गरम टेम्परेचर भी केंडल के वेक्स को पिघलाने के लिए काफी रहेगा।
2एल्यूमिनियम फॉइल से बेकिंग शीट को कवर करेंः ये न केवल आपके बेकिंग शीट को प्रोटेक्ट करेगा, बल्कि इसकी वजह से आपके लिए सफाई करना आसान भी बन जाएगा; इसके लिए आपको केवल फॉइल को खींचना है, उसे मोड़ना है और फिर उसे फेंक देना है। बस इतना ध्यान रखें कि आप फॉइल को साइड को दिखाए अनुसार मोड़कर ही फेंकें, ताकि आप जब बेकिंग शीट को अवन से बाहर निकालें, तब पिघली हुई वेक्स बेकिंग शीट पर न गिरे (और आप जब अगली बार कुकी बनाएँ, तब उनमें एक अजीब ही फ्लेवर न छोड़ दे)।
3केंडल जार को बेकिंग शीट पर उल्टा करके रखेंः आप बेकिंग शीट को अवन में रखेंगे और वेक्स को पिघलने देंगे, इसलिए ध्यान रखें कि आप हर एक जार के बीच में काफी जगह छोड़ रहे हैं। अगर आपके पास में कई सारे जार हैं या फिर जार में काफी सारी वेक्स है, तो एक बार में केवल कुछ ही जार को शीट पर रखने के बारे में सोचें; नहीं तो, पिघली हुई वेक्स के ओवरफ़्लो होने का और उसके आपके अवन के बॉटम में फैलने का खतरा रहेगा।
4बेकिंग शीट को अवन में रखें और वेक्स के पिघलने का इंतज़ार करेंः 15 मिनट के बाद, वेक्स को पिघल जाना चाहिए और बेकिंग शीट के बॉटम में भर जाना चाहिए। अवन को चालू छोड़कर भूल न जाएँ। पिघली हुई वेक्स बहुत ज्वलनशील (flammable) होती है।
- खिड़की को खुला रखें। पिघली वेक्स से कई सारे खुशबूदार ऑयल निकलेंगे। ये आपके घर में अच्छी खुशबू छोड़ेंगे, लेकिन इससे शायद आपको सिरदर्द भी हो सकता है।
5बेकिंग शीट को अवन से बाहर निकालेंः ट्रे को नीचे एक हीट रजिस्टेंस (heat resistant) सर्फ़ेस पर रखें।
6जार को बेकिंग शीट से हटाएँः ग्लास बहुत गरम रहेगा, इसलिए ध्यान रखें कि अपने हाथों को बचने के लिए उसे टच करने के लिए आप अवन मिट्स का का इस्तेमाल करें।
7पेपर टॉवल का यूज करके जार को साफ करेंः जार के अंदर, खासतौर से उसके रिम के साइड में, जो पिघले वेक्स के टच में रहा था, शायद वेक्स का थोड़ा सा अवशेष बचा रह सकता है।
- अगर एक पेपर टॉवल से वेक्स नहीं बाहर आ रहा है, तो फिर केंडल जार को साबुन और पानी से धोएँ या फिर उसे बेबी ऑयल में भीगे एक कॉटन बॉल से साफ करें।
8जार को फिर से इस्तेमाल करेंः अब आप जार में केंडल की एक बाती लगा सकते हैं और उसमें वेक्स भरके एक नई केंडल बना सकते हैं। आप चाहें तो जार को पेंट भी कर सकते हैं और उसमें पेन जैसी चीजें रखने के लिए यूज कर सकते हैं।
- पुराने वेक्स को पिघलाएँ और पिघले हुए वेक्स को इस्तेमाल करके छोटे केंडल्स या वेक्स मेल्ट्स बनाने के बारे में सोचें।
- सोया वेक्स साबुन और पानी में घुल जाती है। ये आसानी से साफ हो जाती है और ये एनवायरनमेंट के लिए पैराफिन के मुक़ाबले काफी ज्यादा ज्यादा अच्छी होती है। आप चाहें तो पिघले हुए वेक्स को एक बहुत शानदार बॉडी लोशन की तरह यूज कर सकते हैं।
- पानी इस्तेमाल करने वाली किसी भी मेथड का इस्तेमाल करने से पहले, ध्यान रखें कि जार पर ऐसा कोई लेबल नहीं लगा है, जो पानी में डूबने की वजह से बर्बाद हो जाए।
- केंडल को पूरा इस्तेमाल करने से पहले, जार पर पड़ी बूंदों को जल्दी से साफ कर लें और हर बार इस्तेमाल करने के बाद इन पीस को अलग करें। ऐसा करने से बाद में जब केंडल किसी काम की नहीं रहेगी, उस समय आपके लिए उसे साफ करने में मुश्किल नहीं जाएगी।
- ध्यान रखें कि पानी के साथ पिघले हुए वेक्स क्कों ड्रेन में न जाने दें। ये पाइप में जाकर सॉलिड हो जाएगी, उसे क्लोग कर देगी।
- ग्लास को बहुत ज्यादा भी गरम न करें--अगर जार केंडल बहुत ज्यादा गरम हो जाएगी या इलेक्ट्रिक हॉटप्लेट्स को सीधे टच करेगी, तो उसके एक्सप्लोड होने का रिस्क रहेगा।
- वेक्स को फ्रीज़ करना और जार में उबलता पानी डालना, इन दोनों ही तरीकों में जार के टूटने के रिस्क रहता है।
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7e97d2cca8c5102f685e7a604a2a41aebeca5fb8 | web | दैनिक राशिफल चंद्र ग्रह की गणना पर आधारित है। राशिफल निकालते समय पंचांग की गणना और सटीक खगोलीय विश्लेषण किया जाता है। दैनिक राशिफल में सभी 12 राशियों का भविष्यफल बताया जाता है। इस राशिफल को पढ़कर आप अपनी दैनिक योजनाओं को सफल बनाने में कामयाब रहेंगे। आज के राशिफल में आपके लिए नौकरी, व्यापार, लेन-देन, परिवार और मित्रों के साथ संबंध, सेहत और दिन भर में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भविष्यफल होता है।
मेष दैनिक राशिफल (Aries Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए उन्नति के नए-नए मार्ग खोलेगा। आजा सुख शांति की चाह में रहेंगे, लेकिन आपको इसके विपरीत मिलेगा, जिससे आप थोड़ा परेशान भी हो सकते हैं। आज आपको अपने व्यापार से कुछ नए लोगों से मिलना हो सकता है, जो भविष्य में आपके लिए फायदेमंद रहेंगे। बिजनेस कर रहे लोगों को आज कुछ यात्रा भी करनी पड़ सकती हैं। व्यापार में गति से आज आपके मन में हर्ष की भावना रहेगी और आपका दांपत्य जीवन भी आनंदमय रहेगा। सायंकाल का समय आज अपने मित्रों के साथ घूमने फिरने में व्यतीत करेंगे, जिसमें आपको कुछ ना कुछ जानकारी भी प्राप्त हो सकती है।
वृष दैनिक राशिफल (Taurus Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए मिश्रित रूप से फलदायक रहेगा। विद्यार्थियों को आज बौद्धिक व मानसिक बोझ से छुटकारा मिलेगा। विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों से आज आपको कोई शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है, जिससे परिवार का वातावरण आनंदमय हो जाएगा। आज आप परिवार के सदस्यों के साथ साथ समय व्यतीत करेंगे। कार्यक्षेत्र में आपको पहले जैसी अनुकूलता तो नहीं मिलेगी, फिर भी छोटे कार्य में सफलता मिलने से आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। आज आपकी सेहत में कुछ गिरावट आ सकती है, इसलिए सतर्क रहें। यदि कोई परेशानी हो, तो डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
मिथुन दैनिक राशिफल (Gemini Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए मिश्रित परिणाम भी लेकर आएगा। पारिवारिक खर्चों में कटौती करना आज आपके लिए आवश्यक होगा। यदि ऐसा नहीं किया, तो आप की आर्थिक स्थिति पर संकट आ सकता है। यदि आज कोई संपत्ति खरीदने जा रहे हैं, तो उसके लिए जरूरी दस्तावेज अच्छी तरह जांच लें, नहीं तो भविष्य में आपको नुकसान हो सकता है। सायंकाल का समय आज आप घर के कार्य में भाग लेने में व्यतीत करेंगे। आज आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त कर आगे बढ़ना होगा और अपने रुके हुए कार्यों को पूरा करना होगा। ससुराल पक्ष से आज आपको मान सम्मान मिलता दिख रहा है।
कर्क दैनिक राशिफल (Cancer Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए भाग दौड़ व व्यस्तता भरा रहेगा। कार्य व्यवसाय में धन लाभ के आज आपको अनेक अवसर मिलेंगे, लेकिन आज आप सुख सुविधाओं को बढ़ाने के लिए आवश्यकता से अधिक धन व्यय करेंगे, जिससे आप धन संचय नहीं कर पाएंगे और आपकी आर्थिक स्थिति खराब होगी। नौकरीपेशा लोगों के लिए आज दिन आरामदायक रहेगा। विद्यार्थी किसी प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं, तो उसके लिए दिन उत्तम रहेगा। कार्य क्षेत्र में अधिक कार्यभार सौंपने पर आपसे आपके सहयोगी नाराज हो सकते हैं, इसलिए सावधान रहें। किसी मित्र की मदद करने से आज आपके मन को सुकून मिलेगा। सायंकाल का समय आज आपको किसी विद्वान से मिलने का अवसर प्राप्त हो सकता है।
सिंह दैनिक राशिफल (Leo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण रहने वाला है। आज आपके लाभ व हानि बराबर होंगे, जिससे धन लाभ होने में थोड़ा विलंब हो सकता है, लेकिन यदि आपकी कोई डील लटकी हुई थी, तो वह आज फाइनल हो सकती है, जो आपको भरपूर खुशी देगी। सायंकाल के समय पुराने मित्रों से मिलने से नई आशाओं का संचार होगा। आपके घर परिवार का माहौल शातिपूर्ण रहेगा। आज आपको अपने रुके हुए कार्य को पुरा करना होगा, नहीं तो भविष्य में आप को नुकसान हो सकता है। संतान के संबंधित आज कोई सूचना आपको प्राप्त हो सकती है, इससे मन में हर्ष होगा।
कन्या दैनिक राशिफल (Virgo Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए लिए निश्चित रूप से फलदायक रहेगा। आज नौकरी में आपके ऊपर काम का बोझ बढ़ सकता है, लेकिन आप यदि मेहनत से कार्य करेंगे, तो सायंकाल तक आप सभी कार्य को समाप्त कर देंगे। आज आपके घर का वातावरण कुछ तनावपूर्ण हो सकता है। भाई व बहनों की समस्याएं आसानी से हल हो जाएगी। कार्यक्षेत्र के साथ समय निकालने में कामयाब रहेंगे। संतान पक्ष की ओर से आज कोई शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है, लेकिन आज आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना होगा। स्वास्थ्य में आज कुछ गिरावट आ सकती हैं।
तुला दैनिक राशिफल (Libra Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए मिलाजुला रहेगा। व्यापारी वर्ग दैनिक कार्य के साथ कुछ नए कार्य में भी भाग्य आजमाएंगे, जिसमें सफलता भी मिलेगी। यदि आज कार्यक्षेत्र में कोई फैसला लेना हो, तो जल्दबाजी में ना लें, नहीं तो वह नुकसान दे सकता है। दाम्पत्य जीवन में यदि कोई तनाव चल रहा था, तो वह समाप्त होगा। सायंकाल के समय किसी धार्मिक स्थान की यात्रा के लिए भी जा सकते हैं, इससे मन को शांति मिलेगी। किसी गलतफहमी के कारण परिवार का वातावरण तनावपुर्ण हो जाएगा, लेकिन परिवार के बुजुर्गो की मदद से कुछ समय बाद सामान्य भी हो जाएगा।
वृश्चिक दैनिक राशिफल (Scorpio Daily Horoscope)
आज का दिन समाजिक क्षेत्र में आप की उन्नति के नए नये खोलेगा, जिससे आपके कुछ नए मित्र भी बनेंगे। साथिया के बीच आपके लोकप्रियता बढ़ेगी और किसी राजनीतिक मित्र से निकटता व दोस्ती होगी। घर में समय पर आवश्यकता पूर्ति करने पर शाति बनी रहेगी। कार्यक्षेत्र में आज आप अपने सीनियर्स से समय निकालने मे कामयाब रहेंगे। आज आपके पिताजी की सेहत मे कुछ गिरावट आ सकती है, इसलिए सावधान रहें। यदि ऐसा हो तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें। सायंकाल का समय आप अपने परिवार के छोटे बच्चो के साथ खेल कूद मे व्यतीत करेंगे।
धनु दैनिक राशिफल (Sagittarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए शांति प्रिय रहेगा। परिवार मे यदि आज कोई विवाद उत्पन्न होगा, तो वह थोड़ी देर बाद सामान्य हो जाएगा। नौकरी करने वाले जातकों के शत्रु आज आपको परेशान करने का हर संभव प्रयास करेंगे, इसलिए सतर्क रहें और अपने काम पर ध्यान दें। यदि आज किसी अधिकारी से कोई अनबन होती है, तो वह भविष्य में आपको नुकसान दे सकती है। इसलिए सतर्क रहें। राजनीतिक क्षेत्र में भी आज आपके मन के मुताबिक कार्य होंगे। यदि आज आपको अपने परिवार के सदस्यों को घुमाने लेकर जाएंगे तो उनके दिलों में जो कड़वाहट है, वह आज समाप्त होगी।
मकर दैनिक राशिफल (Capricorn Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए कुछ विशेष परिणाम लेकर आएगा। प्रेम जीवन में आज आपको कोई उपहार व सम्मान प्राप्त हो सकता है, इससे आपके जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार होगा। दांपत्य जीवन में आज कुछ तनाव पैदा हो सकता है। रोजगार की दिशा में प्रयास कर रहे लोगों को आज रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे। सायंकाल का समय दिन की तुलना से शांति में व्यतीत होगा, लेकिन सेहत में बदलाव आने से आप परेशान हो सकते हैं। आज आपको व्यापार में किसी की सलाह की आवश्यकता होगी। यदि कोई सलाह लेनी हो, तो किसी अनुभवी व्यक्ति से लें। घर में यदि संपत्ति का कोई मामला चल रहा है, तो वह आज आपके पक्ष में होगा। व्यापार में आज किसी महिला मित्र के सहयोग से धन लाभ हो सकता है।
कुंभ दैनिक राशिफल (Aquarius Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए कई महीनों में सफलतादायक रहेगा। संतान पक्ष का समाचार मिलने से मन में हर्ष होगा और बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति होने से धन कोष में वृद्धि होगी। विद्यार्थियों को शिक्षा क्षेत्र में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आज आप अपने जरुरी कार्य के लिए दूसरों से सहयोग लेने में सफल रहेंगे। सायंकाल के समय आप अपने मित्रों के साथ पास व दूर की यात्रा पर जा सकते हैं, लेकिन यात्रा पर जाते समय सावधानी बरतें क्योंकि आपकी प्रिय वस्तु खोने व चोरी होने का भय बना हुआ है।
मीन दैनिक राशिफल (Pisces Daily Horoscope)
आज का दिन आपके लिए कुछ धीमी गति से शुरू होगा। व्यवसाय में भी आज यदि किसी डील को फाइनल करेंगे, तो भविष्य में आपको उसका भरपूर लाभ मिलेगा। जीवनसाथी का सहयोग व सानिध्य आज आपको पूरे दिन मिलता रहेगा, लेकिन सायं काल के समय आपको कुछ थकान महसूस हो सकती है। आज आपका आपकी माता जी से कुछ वैचारिक मतभेद हो सकता है, इसलिए उनकी बात को सुनें और समझें। क्रोध पर नियंत्रण रखें। यदि साझेदारी में कोई व्यापार चल रहा है, तो वह आज आपको भरपूर लाभ देगा।
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14ee13b470d8ecf8adfdd917d1f49295cfd581ec6de732dd7aa00a82c4af3bb2 | pdf | प्रेरणा प्रदान करनेवाले तत्वों की समष्टि को 'संस्कृति' कहा गया है । इस प्रकार मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाओं और जाति विशेष के आंतरिक भाव की अभिव्यंजना को 'संस्कृति' समझना चाहिए ।
हिंदी के प्रमुख कोशकारों में एक ने संस्कृति को 'रहन-सहन की रूढ़ि' कहा है, तो दूसरे ने उसे 'आचारगत परंपरा' बताया है और तीसरे ने उसके अंतर्गत मन, रुचि, आचार-विचार, कला-कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास सूचक बातें ली हैं। इस प्रकार मानव के रहन-सहन
आचार-विचार से संबंधित उन सभी परंपरागत बातों से 'संस्कृति' का संबंध बताया गया है जो उसकी विविध विषयक रुचियों के परिष्कार और विविध अर्थात् शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों के विकास में सहायक होती हैं । यो 'संस्कृति' के दो पक्ष हो जाते हैं। पहले का संबंध उन बातों से रहता है जिनका निर्माण रहन-सहन, आचार-विचार आदि से संबंधित वातावरण, संस्कार, संपर्क आदि के फलस्वरूप हुआ करता है और दूसरे पक्ष का संबंध परंपरा से अर्थात् उन बातों से रहता है जो मानव अपने पूर्वजों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ग्रहण करता है। प्रथम पक्षीय विषयों की नींव मानव के जन्म काल से ही पड़ जाती है और उसके रहन सहन, आचार-विचार आदि पर जिन बातों का आरंभ से ही प्रभाव पड़ने लगता है, उनमें प्रमुख हैं- प्राकृतिक वातावरण, जीवन की सामान्य रूपरेखा, पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक स्थिति आदि द्वितीय पक्ष के अंतर्गत विभिन्न विषयों के संबंध में परंपरा से प्राप्त विश्वास और मान्यताओं के साथ-साथ अनेक पर्वोत्सव आदि भी आ जाते हैं जिनसे जीवन के प्रति समाज के दृष्टिकोण की संकुचितता या व्यापकता का सहज ही परिचय मिल सकता है ।
'सांस्कृतिक मूल्यांकन' से तात्पर्य --
साहित्य या काव्य के अंग विशेष को लेकर 'संस्कृति' के उक्त दोनो पक्षों पर सम्मिलित रूप से विचार करना उसका 'सांस्कृतिक मूल्यांकन कहलाता है। काव्य-विशेष के सांस्कृतिक मूल्यांकन से उसके रचनाकालीन समाज की स्थिति पर दोहरा प्रकाश पड़ता है। एक तो पाठक उसकी राज. नीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, साहित्यिक और कलात्मक स्थिति से परिचित हो सकता है और दूसरे, उन संस्कारों और आदर्शों का भी उसे परिचय मिल सकता है जो जाति या वर्ग-विशेष के लौकिक जीवन का परिचालन करते हैं। प्रथम प्रकार की जानकारी का घनिष्ठ संबंध इतिहास
से रहता है, क्योंकि ऐतिहासिक परिस्थिति के साथ-साथ उक्त सभी प्रकार की स्थितियाँ भी परिवर्तित होती रहती हैं। द्वितीय प्रकार का परिज्ञान अपेक्षाकृत अधिक महत्व का होता है। कारण, समाज विशेष के लौकिक जीवन-संबंधी आदर्शों का निर्माण शताब्दियों में होता है, उन आदर्शों की जड़ ऐतिहासिक भूमि में बहुत गहरी समायी रहती है; वस्तुतः ऐसे संस्कारों का बीज - वपन उसी दिन हुआ समझना चाहिए जिस दिन मानव समाज ने सभ्यता का प्रथम पाठ सीखा होगा ।
काव्य का संबंध भी जाति के इतिहास से अधिक उसके संस्कारजन्य आदर्शों में रहता है। फलम्वरूप ऐतिहासिक स्थिति के संबंध में जो संकेत या विवरण किसी काव्य में मिलते हैं वे प्रायः सामान्य और संबद्ध ही होते हैं । प्रबंध-काव्य में तत्संबंधी उल्लेखों के लिए थोड़ा-बहुत अवकाश हो भी सकता है; परंतु गीतिकाव्य में उनके लिए कोई स्थान नहीं होता; यद्यपि स्वयं कवि उनकी सर्वथा उपेक्षा नहीं करना चाहता । द्वितीय प्रकार की स्थिति में संबंधित अनेक संकेत सभी प्रकार की रचनाओं में मिलते हैं; कारण, तत्संबंधी उल्लेख कोई भी कवि अनायास ही कर जाता है; क्योंकि उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी उन्हीं संस्कारों और आदर्शों से होता है । ये संकेत कभी तो प्रत्यक्ष रूप से वर्णित विषयों में मिलते हैं और कभी परोक्षतः अलंकारों के रूप में इस उद्देश्य से अपनाये जाते हैं कि अबोधावस्था में ही संस्कार रूप में परिचित पाठक उन्हें सहज ही हृदयंगम कर सके; अस्तु ।
अतएव सामान्य रूप से काव्य के सांस्कृतिक मूल्यांकन के मुख्य नौ पक्ष हो जाते हैं - प्राकृतिक, सामान्य, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यावसायिक जीवन की रूपरेखा, धर्म और दर्शन-संबंधी विचार तथा साहित्य एवं कला की स्थिति का परिचय प्रस्तुत प्रबंध में अष्टछाप काव्य का सांस्कृतिक मूल्यांकन इन्हीं शीर्षकों के अंतर्गत किया जायगा ।
अष्टछाप-काव्य के अब तक प्रस्तुत किये गये सांस्कृतिक अध्ययन का मूल्यांकनसमस्त अष्टछाप-काव्य का प्रथम आलोचनात्मक अध्ययन डा० दीनदयाल गुप्त का 'अष्ट और वल्लभ-संप्रदाय' नामक विख्यात ग्रंथ है जो उसी प्रकार के किसी अन्य ग्रंथ के अब तक प्रकाशित न होने के कारण 'अंतिम' भी कहा जा सकता है। इस विद्वत्तापूर्ण ग्रंथ में धर्म, भक्ति, दर्शन आदि से संबंधित अष्टछापी कवियों के विचारों का
सामाजिक विवेचन तो मिलता है, परंतु सांस्कृतिक अध्ययन के अन्य पक्षों पर कुछ नहीं लिखा गया है ।
अष्टछाप कवियों में केवल सूरदास के काव्य को लेकर इधर पाँच-सात सुंदर प्रबंध और ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं जिनमें डा० मुंशीराम शर्मा का 'भारतीय साधना और सूर-साहित्य, डा० बजेश्वर वर्मा का 'सूरदास', डा० हरवंशलाल का 'सूर और उनका साहित्य, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी का 'महाकवि सूरदास', डा० प्रेमनारायण टंडन का 'सूर की भाषा' और 'सूर-साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन आदि उल्लेखनीय हैं । इनमें से अंतिम को छोड़कर शेष प्रायः सभी ग्रंथों में सूर-काव्य के शास्त्रीय, धार्मिक और दार्शनिक पक्षों का विवेचन जितने विस्तार से किया गया है उसको देखते हुए यही कहा जायगा कि उसके सांस्कृतिक पक्ष की किसी सीमा तक उपेक्षा ही की गयी है, यद्यपि डा० मुंशीराम शर्मा जैसे विद्वानों ने 'सूरदास और ब्रज की संस्कृति' जैसे नाम से एक परिच्छेद अपने ग्रंथ में देकर तद्विषयक अध्ययन की आवश्यकता का निर्देश अवश्य कर दिया है। डा० टंडन का 'सूर-साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन शीर्षक ग्रंथ यद्यपि इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि किसी भी हिंदी कवि को लेकर वैसी कोई रचना अभी तक प्रकाश में नहीं है, तथापि उसमें विषय की एक प्रकार से रूपरेखा भर दी गयी है, उसका सम्यक् विवेचन नहीं किया गया है ।
प्रस्तुत प्रबंध की मॉलिकताहिंदी के जब किसी भी कवि के काव्य को लेकर कोई विधिवत सांस्कृतिक अध्ययन अब तक प्रकाश में नहीं आया है, तब प्रस्तुत प्रबंध की 'मौलिकता' निर्विवाद ही है । इसके नौ परिच्छेदों में से धर्म और दर्शन वाले परिच्छेदों के लिए विशेष रूप से और संस्कार-वर्णन के लिए सामान्य रूप से उक्त ग्रंथों से कुछ सहायता मिल सकी है; यद्यपि उनमें भी प्राप्त सामग्री की सुचारु और स्पष्ट रूप से सोदाहरण विवेचना क लेखिका का ढंग एक प्रकार से 'निजी' ही है। फिर भी इन परिच्छेदों को प्रस्तुत प्रबंध में संक्षिप्त ही रखा गया है और उन परिच्छेदों को विस्तार दिया है जिनका विषय - प्रतिपादन मौलिक है। अतएव प्रस्तुत प्रयत्न हिंदी में अपने ढंग का सर्वप्रथम मौलिक प्रयास कहा जाना चाहिए ।
कवियों के वर्ण्य विषय
विषय की दृष्टि से अष्टछापी कवियों के दो वर्ग किये जा सकते
हैं। प्रथम वर्ग में परमानंददास, कुम्भनदास, चतुर्भुजदास, कृष्णदास, गोविंदस्वामी, और छीतस्वामी आते हैं जिन्होंने पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के आराध्य श्रीकृष्ण की केवल गोकुल-वृन्दावन की लीलाओं का ही वर्णन किया है। द्वितीय वर्ग सूरदास और नन्ददास का है जिन्होंने श्रीकृष्ण की है गोकुल, वृन्दावन, मथुरा और द्वारका-लीला के विविध प्रसंगों के साथ-साथ कुछ पौराणिक कथाओं का भी विस्तार से वर्णन किया है । इस प्रकार यो तो इन कवियों की रचना का मुख्य विषय श्रीकृष्ण की बाल, पौगंड और किशोर लीलाएँ हैं, फिर भी प्रत्येक कवि को अपने आराध्य की लीला का अंश-विशेष अधिक प्रिय रहा है और उसी का वर्णन करने में उसे विशिष्टता प्राप्त है। ब्रज की सारी 'रीति' का गान करने पर भी सूरदास वात्सल्य और शृंगार-वन में अद्वितीय हैं तो परमानन्ददास का बाल, पौगंड और किशोर-लीला-वर्णन सुन्दर है, क्योंकि उनकी भक्ति बाल, कान्ता और दास - भाव की थी और तत्संबंधी विषयों की चर्चा की ही परमानंद-काव्य में है । कृष्णदास का विशेष कौशल रासलीला एवं प्रिया-प्रियतमविहार-वर्णन में परिलक्षित होता है । नन्ददास ने जो कुछ कहा है वह राग या अनुराग रंग में रँगा हुआ है। कुम्भनदास की वृत्ति किशोर लीला में अधिक रमी है तथा चतुर्भुजदास, गोविंदस्वामी, छीतस्वामी आदि की विशिष्टता भक्ति रस का तन्मयतापूर्वक वर्णन करने में हैं 1
दूसरी बात यह कि यद्यपि सूरदास और नंददास ने मथुरा-द्वारकालीला वर्णन द्वारा तत्कालीन नागरिक संस्कृति का भी परोक्षतः संक्षिप्त परिचय दिया है, तथापि के सभी कवियों की वृत्ति अपने आराध्य की गोकुल-वृन्दावन-लीला में ही रमी रही और इस प्रकार वे प्रामीण संस्कृति काही यथार्थ चित्र अंकित करने में पूर्ण सफल हो सके। उनका यह प्रयत्न दो दृष्टियों से बड़े महत्व का है। पहली बात तो यह है कि भारत का हृदय गाँवों में ही है, नगरों में नहीं। अतएव प्रामीण संस्कृति ही भारतीय संस्कृति के वास्तविक रूप से परिचित करा सकती है। दूसरे, अष्टछापी कवियों के समय तक मथुरा-आगरा आदि व्रज प्रदेशीय प्रमुख नगरों के नागरिक जीवन पर इसलामी जीवनचर्या और विचारधारा का जो प्रभाव पड़ चुका था, उससे भी गोकुल, वृन्दावन आदि के प्रामीण अपेक्षाकृत अछूते ही थे । अतएव सूरदास, परमानंददास, नंददास आदि ने तत्कालीन ग्राम्य जीवन के अध्ययन के लिए ऐसी महत्वपूर्ण सामग्री सुलभ कर दी है जो ऐतिहासिक दृष्टि से भी मूल्यवान है । |
96b0df5ae7332dfa590a98a3b535973e86c624d91ddb8c42e1cdc2df6f59fc40 | pdf | बक़िया तफ़सीर
(पिछले पृष्ठ का शेष) 5. मतलब यह कि हमने ऐसी हैअतों और सिफ्तों के साथ पैदा किया कि उसमें मुकल्लफ़ बनने की काबलियत हो । ( तफसीर पृष्ठ 1060 ) 1. यानी सबपर कम या ज्यादा उसकी सख़्ती का असर होगा, मुराद कियामत का दिन है।
2. कैदी अगर मज़लूम है तब तो उसकी रियायत का अच्छा होना ज़ाहिर है, और अगर ज़ालिम है तो सख़्त ज़रूरत के वक़्त उसको खाना खिलाना भी अच्छा है।
इससे मालूम हुआ कि आख़िरत के ख़ौफ़ से कोई काम करना इख़्लास और अल्लाह की रिज़ा तलब करने के ख़िलाफ़ नहीं ।
4. यानी उसमें पीने की चीज़ ऐसे अन्दाज़ से भरी होगी कि न उस वक़्त की इच्छा में कमी रहे और न उससे बचे कि दोनों में बेलुत्फ़ी होती है। और चाँदी के शीशे के यह मायने हैं कि सफेदी तो चाँदी जैसी होगी और सफाई व चमक शीशे के जैसी, और दुनिया की चाँदी में आरपार नज़र नहीं आता, और शीशे में यहाँ ऐसी सफेदी नहीं होती, पस यह एक अजीब चीज़ होगी।
5. मोती से तो उनके बाहर आने और सफाई की वजह से तश्बीह दी और बिखरे हुए का वस्फ़ उनके चलने-फिरने के लिहाज़ से, जैसे बिखरे मोती अलग-अलग होकर कोई इधर जा रहा है और कोई उधर जा रहा है, और यह आला दर्जे की तश्बीह है।
6. एक बार हज़रत फारूके आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु बारगाहे नबवी में हाज़िर हुए और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि एक चटाई पर लेटे हुए हैं और चटाई के पठ्ठे के निशान मुबारक जिस्म पर नक़्श हो गए हैं। यह देखकर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की आँखों में आँसू आ गए। हज़रत रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका सबब पूछा तो उन्होंने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह! मेरे दिल में यह ख़्याल आया कि 'कैसर' व 'किसरा' तो काफिर होने के बावजूद कैसे ऐश-आराम में हैं और अल्लाह के हबीब दोनों जहाँ के सरदार एक सख़्त चटाई पर आराम फरमा हैं, जिसपर कोई कपड़ा भी नहीं। आपने फ़रमाया ऐ उमर ! क्या तुम इसपर राज़ी नहीं कि गैर-मुस्लिमों की फानी नेमतें दुनिया की ज़िन्दगी तक सीमित हैं और हम लोगों को खुदा तआला आख़िरत में कभी ख़त्म न होने वाली हमेशा की नेमतें अता फरमाएगा।
1. यानी ये ज़िक्र हुई हवाएँ कुदरत पर दलालत करने वाली होने की वजह से अपने बनाने वाले और पैदा करने वाले की तरफ़ मुतवज्जह होने का सबब हो जाती हैं।
2. इस सवाल व जवाब का मतलब यह मालूम होता है कि काफिर लोग जो रसूलों को झुठलाते आए हैं और अब भी इस उम्मत के काफिर लोग रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को झुठला रहे हैं । और जब इस झुठलाने पर आख़िरत के अज़ाब से डराए जाते हैं तो आख़िरत को भी झुठलाते हैं। इस वक़्त यह झुठलाना अपने आपमें इसको चाहता है कि रसूलों का जो किस्सा काफिरों से पेश आ रहा है उसका फैसला अभी हो जाए, और उसकी ताख़ीर और देरी होने से काफिरों को जल्दी होने से इनकार और मुसलमानों को तबई तौर पर जल्दी से हो जाने की तमन्ना होती है। इस आयत में इस जल्दी का जवाब है कि हक तआला ने बाज़ हिक्मतों से उसको मुअख्ख़र कर रखा है, लेकिन वाकेअ ज़रूर होगा ।
1. उस सायबान से एक धुआँ मुराद है जो जहन्नम से निकलेगा । और यह चूँकि कसरत से होगा इसलिए ऊँचा होगा, फटकर कई टुकड़े हो जाएगा । काफ़िर लोग हिसाब से फारिग होने तक उसी धुएँ के घेरे में रहेंगे, जबकि अल्लाह के मक़बूल बन्दे अर्श के साये के नीचे होंगे।
2. क़ायदा है कि जब आग से चिंगारी झड़ती है तो बड़ी होती है, फिर पहली तश्बीह शुरू की हालत के एतिबार से है और दूसरी तश्बीह आख़िरी और इन्तिहाई हालत के एतिबार से है।
3. इन धमकियों और झंझोड़ने का तकाज़ा यह था कि ये सुनते ही डरकर ईमान ले आते मगर जब इसपर भी उनको असर नहीं तो फिर इस डराने वाले और आलीशान अल्फाज़ वाले कुरआन के बाद और किस बात पर ईमान लाएँगे? इसमें काफिरों को झिड़की का सबब आपका उनके ईमान से नाउम्मीद होना है।
सूरः नबा 78
तीसवाँ पारः अम्-म य-तसा अलून
78 सूरः नबा 80
सूरः नबा' मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 40 आयतें और 2 रुकूअ हैं। शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बड़े रहम वाले हैं।
ये (क़ियामत का इनकार करने वाले ) लोग किस चीज़ का हाल पूछते हैं । (1) उस बड़े वाकिए का हाल पूछते हैं (2) जिसमें ये लोग ( अहले हक़ के साथ) इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं । ( 3 ) हरगिज़ ऐसा नहीं बल्कि क़ियामत आएगी और) उनको अभी मालूम हुआ जाता है । ( 4 ) ( दोबारा कहते हैं कि जैसा ये लोग समझते हैं ) हरगिज़ ऐसा नहीं (बल्कि आएगी) उनको अभी मालूम हुआ जाता है । ( 5 ) क्या हमने ज़मीन को फर्श (6) और पहाड़ों को ( ज़मीन की) मेखें नहीं बनाया । ( 7 ) और ( इसके अलावा हमने और भी कुदरत ज़ाहिर फ़रमाई, चुनाँचे) हमने ही तुमको जोड़ा जोड़ा (यानी मर्द व औरत ) बनाया । ( 8 ) और हम ही ने तुम्हारे सोने को राहत की चीज़ बनाया । (9) और हम ही ने रात को पर्दे की चीज़ बनाया (10) और हम ही ने दिन को रोज़गार का वक़्त बनाया। ( 11 ) और हम ही ने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत आसमान बनाए । (12) और हम ही ने ( आसमान में ) एक रोशन चिराग़ बनाया (मुराद सूरज है ) । (13) और हम ही ने पानी भरे बादलों से कसरत से पानी बरसाया । ( 14 ) ताकि हम उस पानी के ज़रिये से पैदा करें ग़ल्ला और सब्ज़ी ( 15 ) और घने बाग़। (16) बेशक फैसले का दिन एक मुतैयन वक़्त है । ( 17 ) यानी जिस दिन सूर फूँका जाएगा, फिर तुम लोग गिरोह-गिरोह होकर आओगे । (18) और आसमान खुल जाएगा, फिर उसमें दरवाज़े ही दरवाज़े हो जाएँगे ' (19) और पहाड़ ( अपनी जगह से ) हटा दिए जाएँगे, सो वे रेत की तरह हो जाएँगे । (20) (आगे उस फैसले के दिन में जो फैसला होगा उसका बयान है, यानी ) बेशक दोज़ख़ एक घात की जगह है ( 21 ) सरकशों का ठिकाना (है) (22) जिसमें वे बेइन्तिहा ज़मानों ( तक पड़े) रहेंगे। (23) (और) उसमें न तो वे किसी ठंडक (यानी राहत) का मज़ा चखेंगे और न पीने की चीज़ का ( जो कि प्यास को बुझाने वाली हो ) (24) सिवाय गर्म पानी और पीप के । (25) और (उनको) पूरा-पूरा बदला मिलेगा । (26) (और वे आमाल जिनका यह बदला है, यह हैं कि ) वे लोग ( कियामत के हिसाब का अन्देशा न रखते थे। ( 27 ) और हमारी आयतों को ख़ूब झुठलाते थे। (28) और हमने ( उनके आमाल में से ) हर चीज़ को (उनके आमालनामे में) लिखकर ज़ब्त कर रखा है। (29) सो मज़ा चखो कि हम तुम्हारी सज़ा ही बढ़ाते जाएँगे । (30)
खुदा से डरने वालों के लिए बेशक कामयाबी है। (31) यानी (खाने और सैर को) बाग़ (जिनमें तरह-तरह के मेवे होंगे) और अंगूर (32) और ( दिल बहलाने को ) नौजवान हमउम्र औरतें (33) और ( पीने को) लबालब भरे हुए शराब के जाम । ( 34 ) (और) वहाँ न कोई बेहूदा बात सुनेंगे और न झूठ (क्योंकि ये
1. इसमें भी पिछली मिली हुई सूरः की तरह कियामत के जल्द आने की संभावना और जज़ा व सज़ा के वाकिआत ज़िक्र किए गए हैं। 2. मुराद कियामत है और पूछने से मकसद इनकार करने के तौर पर पूछना है। और इस सवाल व जवाब से मकसद ज़ेहनों का उधर मुतवज्जह करना और जो बात गैर-वाज़ेह थी उसकी तफसीर से उसका अहम होना ज़ाहिर है।
3. यानी जब दुनिया से जाने के बाद उनपर अज़ाब वाकेअ होगा तब असल हकीकृत और (शेष तफसीर पृष्ठ 1070 पर )
सूरः नाज़िआत 79
बातें वहाँ बिलकुल नापैद हैं ) (35) यह ( उनको उनकी नेकियों का ) बदला मिलेगा जो कि काफी इनाम होगा ( आपके ) रब की तरफ से (36) जो मालिक है आसमानों का और ज़मीन का और उन चीज़ों का जो उन दोनों के दरमियान में हैं। (और जो ) रहमान है, (और) किसी को उसकी तरफ से (मुस्तकिल ) इख़्तियार न होगा ( कि उसके सामने कुछ कह सुन सके) 1 ( 37 ) जिस दिन तमाम रूहों वाले और फरिश्ते ( खुदा के सामने ) सफ़ बाँधे हुए ( आजिज़ी के साथ झुके हुए) खड़े होंगे, ( उस दिन ) कोई न बोल सकेगा सिवाय उसके जिसको रहमान (बोलने की) इजाज़त दे दे और वह शख़्स बात भी ठीक कहे । ( 38 ) यह (दिन जिसका ऊपर ज़िक्र हुआ) यकीनी दिन है, सो जिसका जी चाहे ( उसके हालात सुनकर ) अपने रब के पास (अपना) ठिकाना बना ले । (39) हमने तुमको एक नज़दीक आने वाले अज़ाब से डरा दिया है (जो कि ऐसे दिन में होने वाला है ) जिस दिन हर शख़्स उन आमाल को (अपने सामने हाज़िर ) देख लेगा जो उसने अपने हाथों किए होंगे, और काफ़िर (हसरत से) कहेगा कि काश ! मैं मिट्टी हो जाता ( ताकि सज़ा से बच जाता ) । (40) *
79 सूरः नाज़िआत 81
सूरः नाज़िआत मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 46 आयतें और 2 रुकूअ हैं ।
कुसम है उन फ़रिश्तों की जो (काफिरों की) जान सख्ती से निकालते हैं। (1) और जो ( मुसलमानों की रूह आसानी से निकालते हैं, गोया उनका ) बन्द खोल देते हैं । ( 2 ) और जो तैरते हुए चलते हैं । (3) फिर तेज़ी के साथ दौड़ते हैं। (4) फिर हर मामले की तदबीर करते हैं । ( 5 ) ( उन सबकी कसमें खाकर कहते हैं कि क़ियामत ज़रूर आएगी) जिस दिन हिला देने वाली चीज़ हिला डालेगी ( इससे सूर का पहली बार फूँका जाना मुराद है)। (6) जिसके बाद एक पीछे आने वाली चीज़ आएगी ( इससे सूर का दूसरी बार फूँका जाना मुराद है)। (7) बहुत-से दिल उस दिन धड़क रहे होंगे । (8) उनकी आँखें शर्म के मारे झुक रही होंगी । (9) कहते हैं, क्या हम पहली हालत में फिर वापस होंगे ? ( पहली से मुराद मौत से पहले की ज़िन्दगी है )5 (10) क्या जब हम बोसीदा हड्डियाँ हो जाएँगे (11) फिर (ज़िन्दगी की तरफ़ ) वापस होंगे? ( अगर ऐसा हुआ तो ) उस सूरत में यह वापसी (हमारे लिए) बड़े घाटे की चीज़ होगी ' (12) तो ( यह समझ लें कि हमको कुछ मुश्किल नहीं, बल्कि) बस वह एक ही सख़्त आवाज़ होगी (13) जिससे लोग फ़ौरन ही मैदान में आ मौजूद होंगे। (14) क्या आपको मूसा (अलैहिस्सलाम ) का किस्सा पहुँचा है ? (15) जबकि उनको उनके परवर्दिगार ने एक पाक मैदान यानी तुवा में ( यह उसका नाम है ) पुकारा (16) कि तुम फिरऔन के पास जाओ, उसने बड़ी शरारत इख़्तियार की है। (17) सो उससे (जाकर ) कहो कि क्या तुझको इस बात की ख़ाहिश है कि तू दुरुस्त हो जाए ? (18) और ( तेरी दुरुस्ती की ग़रज़ से ) मैं तुझको तेरे रब की तरफ़ (जात व सिफात की) रहनुमाई करूँ तो तू ( यह सुनकर उससे) डरने लगे? (19) फिर ( जब उसने नुबुव्वत की दलील तलब की तो ) उसको ( नुबुब्बत की) बड़ी
(पृष्ठ 1068 का शेष) क़ियामत का हक होना सामने आएगा। ये लोग उसको नामुम्किन और मुहाल समझते हैं हालाँकि उसको नामुम्किन समझने से हमारी कुदरत का इनकार लाज़िम आता है, और हमारी कुदरत का इनकार निहायत अजीब है क्योंकि.....(आगे देखो तर्जुमा) (पृष्ठ 1068 की बकिया तफसीर और पृष्ठ 1070 की तफसीर पृष्ठ 1072-1080 पर )
निशानी. दिखलाई। (20) तो उस (फ़िरऔन) ने उनको झुठलाया और उनका ) कहना न माना । (21) फिर ( मूसा अलैहिस्सलाम से अलग होकर ( उनके ख़िलाफ़ ) कोशिश करने लगा (22) और ( लोगों को ) जमा किया फिर (उनके सामने) बुलन्द आवाज़ से तकरीर की ( 23 ) और कहा कि मैं तुम्हारा आला रब हूँ । (24) सो अल्लाह तआला ने उसको आख़िरत के और दुनिया के अज़ाब में पकड़ा । ( 25 ) बेशक (इस वाकिए में) ऐसे शख़्स के लिए बड़ी इबरत है जो अल्लाह तआला से डरे । ( 26 ) *
भला तुम्हारा ( दूसरी बार ) पैदा करना ( अपने आप में) ज़्यादा सख़्त है या आसमान का ?? अल्लाह तआला ने उसको बनाया । ( 27 ) ( इस तरह से कि) उसकी छत को बुलन्द किया और उसको दुरुस्त बनाया ( कि कहीं उसमें नुक्स और दरार नहीं) (28) और उसकी रात को अंधेरी बनाया और उसके दिन को ज़ाहिर किया' (29) और उसके बाद ज़मीन को बिछाया ( 30 ) ( और बिछाकर ) उससे उसका पानी और चारा निकाला। (31) और पहाड़ों को ( उसपर ) कायम कर दिया (32) तुम्हारे और तुम्हारे मवेशियों के फ़ायदा पहुँचाने के लिए। (33) सो जब वह बड़ा हंगामा आएगा (34) यानी जिस दिन इनसान अपने किए को याद करेगा (35) और देखने वालों के सामने दोज़ख़ ज़ाहिर की जाएगी (36) तो ( उस दिन यह हालत होगी कि ) जिस शख़्स ने (हक़ से) सरकशी की होगी (37) और (आख़िरत का मुन्किर होकर ) दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह दी होगी (38) सो दोज़ख़ ( उसका ) ठिकाना होगा । (39) और जो शख़्स (दुनिया में) अपने परवर्दिगार के सामने खड़ा होने से डरा होगा और नफ़्स को (हराम ) ख़्वाहिश से रोका होगा (40) सो जन्नत उसका ठिकाना होगा। (41) ये लोग आपसे कियामत के बारे में पूछते हैं कि वह कब आएगी? 5 ( 42 ) (सो) उसके बयान करने से आपका क्या ताल्लुक (43) उस ( के इल्म को मुतैयन करने ) का मदार सिर्फ आपके परवर्दिगार की तरफ़ है (44) (और) आप तो सिर्फ ( उसकी मुख़्तसर ख़बर देकर ) ऐसे शख़्स को डराने वाले हैं जो उससे डरता हो। (45) जिस दिन ये उसको देखेंगे तो (उनको) ऐसा मालूम होगा कि गोया (दुनिया में) सिर्फ एक दिन के आख़िरी हिस्से में या उसके अव्वल हिस्से में रहे हैं।' (46)
80 सूरः अ-ब-स 24
सूरः अ-ब-स मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 42 आयतें और 1 रुकूअ है । (नोटः- अब पारे के आख़िर तक हर सूरः एक ही रुकूअ की है । )
शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान, बड़े रहम वाले हैं। पैग़म्बर' (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चेहरे पर नागवारी के असरात ज़ाहिर हो गए और मुतवज्जह न हुए (1) इस बात से कि उनके पास अंधा आया । 8 (2) और आपको क्या ख़बर शायद नाबीना " यानी अंधा" ( आपकी तालीम से पूरे तौर पर ) सँवर जाता । ( 3 ) या (किसी ख़ास मामले में) नसीहत क़बूल करता,
( पिछले पृष्ठ का शेष) 4. मुराद सूरज है, जैसे कि अल्लाह तआला का कौल है- 'व ज-अलश्शम् - स सिराजन्' ।
5. और इन सबसे हमारा कामिल कुदरत वाला होना ज़ाहिर है । फिर क़ियामत पर हमारे क़ादिर होने का क्यों इनकार किया जाता है?
6. यानी आसमान इस क़द्र बहुत सारा खुल जाएगा जैसे बहुत से दरवाज़े मिलाकर बहुत-सी जगह खुली होती है । पस यह कलाम तश्बीह पर आधारित है, अब यह शुब्हा नहीं हो सकता कि आसमान में दरवाज़े तो अब भी हैं फिर उस दिन दरवाज़े होने के क्या मायने? और यह खुलना फरिश्तों के नाज़िल होने के लिए होगा जैसा कि सूरः फुरकान में 'त-शक्कुकुस्समा उ' से ताबीर फ़रमाया है ।
( पृष्ठ 1068 की बकिया तफ़सीर और पृष्ठ 1070, 1072 की तफसीर पृष्ठ 1074-1081 पर )
सो उसको नसीहत करना ( कुछ न कुछ ) फायदा पहुँचाता । (4) तो जो शख़्स ( दीन से ) बेपरवाई करता है (5) आप उसकी तो फ़िक्र में पड़ते हैं ( 6 ) हालाँकि आप पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि वह न सँवरे। (7) और जो शख़्स आपके पास (दीन के शौक़ में) दौड़ता हुआ आता है (8) और वह ( ख़ुदा से) डरता है (9) आप उससे बेतवज्जोही करते हैं । ( 10 ) ( आप आइन्दा ) हरगिज़ ऐसा न कीजिए । कुरआन (सिर्फ एक ) नसीहत की चीज़ है। (11) सो जिसका जी चाहे उसको कुबूल कर ले । ( 12 ) वह (कुरआन लौहे महफूज़ के ऐसे सहीफों में (लिखा हुआ ) है जो ( अल्लाह के नज़दीक ) मुकर्रम " यानी सम्मानित" हैं। (13) बुलन्द रुतबे वाले हैं, मुक़द्दस हैं। (14) जो ऐसे लिखने वालों (यानी फरिश्तों) के हाथों में (रहते ) हैं ( 15 ) कि वे मुकर्रम (और) नेक हैं । ( 16 ) आदमी पर ( जो ऐसे तज़िकरे से नसीहत हासिल न करे ) खुदा की मार, वह कैसा नाशुक्रा है । ( 17 ) (वह देखता नहीं कि) अल्लाह ने उसको कैसी ( बेवक़्अत ) चीज़ से पैदा किया । (18) (आगे जवाब है कि) नुत्फे से ( पैदा किया। आगे उसकी कैफियत का ज़िक्र है कि) उसकी सूरत बनाई, फिर उस ( के जिस्मानी अंगों) को अन्दाज़ से बनाया । ( 19 ) फिर उसके ( निकलने का ) रास्ता आसान कर दिया। (20) फिर ( उम्र ख़त्म होने के बाद) उसको मौत दी, फिर उसको कब्र में ले गया । (21) फिर जब अल्लाह चाहेगा उसको दोबारा ज़िन्दा करेगा । (22) हरगिज़ ( शुक्र नहीं अदा किया और उसको जो हुक्म किया था उसपर अमल नहीं किया । (23) सो इनसान को चाहिए कि अपने खाने की तरफ़ नज़र करे (24) कि हमने अजीब तौर पर पानी बरसाया । (25) फिर अजीब तौर पर ज़मीन को फाड़ा ( 26 ) फिर हमने पैदा किया उसमें ग़ल्ला ( 27 ) और अंगूर और तरकारी (28) और जैतून और खजूर (29) और घने बाग़ ( 30 ) और मेवे और चारा । (31) (बाज़ चीजें ) तुम्हारे और (बाज़ चीजें ) तुम्हारे मवेशियों के फ़ायदे के लिए । ( 32 ) ( अब तो ये नाशुक्री और कुफ़ करते हैं) फिर जिस वक़्त कानों को बहरा कर देने वाला शोर बर्पा होगा (33) जिस दिन ऐसा आदमी भागेगा (जिसका ऊपर बयान हुआ), अपने भाई से (34) और अपनी माँ से और अपने बाप से (35) और अपनी बीवी से और अपनी औलाद से । (यानी कोई किसी की हमदर्दी न करेगा) । (36) उनमें हर शख़्स को (अपना ही) ऐसा मश्ग़ला होगा जो उसको दूसरी तरफ मुतवज्जह न होने देगा । (37) ( यह तो काफ़िरों का हाल हुआ, आगे मजमूई तौर पर मोमिनों और काफ़िरों की तफ़सील है कि बहुत से चेहरे उस दिन ( ईमान की वजह से ) रोशन (38) (और खुशी से ) खिले हुए होंगे (39) और बहुत से चेहरों पर उस दिन ( कुफ़ की वजह से ) स्याही छाई होगी। (40) ( और उस स्याही के साथ ) उनपर ( ग़म की ) कदूरत " यानी मलाल व रन्जीदगी" छाई होगी । (41) यही लोग काफ़िर फ़ाजिर हैं। (42)
(पिछले पृष्ठ का शेष) 7. और ये वाकिआत दूसरी बार सूर फूँकने के वक़्त होंगे। अलबत्ता पहाड़ चलाए जाने में इस सूरः में भी और दूसरी जगह भी जहाँ-जहाँ आया है दोनों एहतिमाल हैं, या तो दूसरी बार सूर फूँकने के बाद कि उससे पूरी दुनिया फिर अपनी हालत पर वापस आ जाएगी, जब हिसाब का वक़्त आएगा तो पहाड़ों को ज़मीन के बराबर कर दिया जाएगा, ताकि ज़मीन पर कोई पहाड़ आड़ न रहे, सब एक ही मैदान में नज़र आएँ । और या यह कि पहली बार सूर फूँकने से दूसरी बार सूर फूँकने तक के मजमूए को एक दिन क़रार दे लिया गया। अल्लाह ही ख़ूब जानते हैं।
1. यहाँ कई सिफ़तें इरशाद फ़रमाई हैं- 'रब्बिस्समावाति ..... आखिर तक' जो दलालत करता है क़ियामत के दिन के वाक़िए पर मालिक और कब्ज़ा व इख़्तियार वाला होने पर, और रहमान जो मोमिनों को जज़ा देने के मुनासिब है। और 'ला यम्लिकू-न.....आख़िर तक' जो काफिरों को ख़ौफ़ दिलाने के मुनासिब है।
2. ठीक बात से वह बात मुराद है जिसकी इजाज़त दी गई हो, यानी बोलना भी सीमित और शर्त के साथ होगा, यह नहीं कि जो चाहे
3. और यह उस वक़्त कहेगा जबकि इनसान व जिन्नात के अलावा दूसरे जानदारों को आपस में बदला दिलाने के बाद मिट्टी कर दिया ( पृष्ठ 1070 की बकिया तफसीर और पृष्ठ 1072 की तफसीर पृष्ठ 1076-1081 पर )
सूरः तक्वीर 81, इन्फ़ितार 82
81 सूरः तक्वीर 7
सूरः तक्वीर मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 29 आयतें हैं।
जब सूरज बेनूर हो जाएगा । ( 1 ) और जब सितारे टूट-टूटकर गिर पड़ेंगे । (2) और जब पहाड़ चलाए जाएँगे। (3) और जब दस महीने की गाभन ऊँटनियाँ छुटी फिरेंगी । (4) और जब जंगली जानवर (घबराहट के मारे ) सब जमा हो जाएँगे । (5) और जब दरिया भड़काए जाएँगे ।' (6) और जब एक - एक किस्म के लोग इकट्ठे किए जाएँगे। (7) और जब ज़िन्दा गाड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा (8) कि वह किस गुनाह पर कुल की गई थी। (9) और जब आमालनामे खोले जाएँगे (ताकि सब अपने-अपने अमल देख लें ) । ( 10 ) और जब आसमान खुल जाएगा (और उसके खुलने से आसमान की ऊपर की चीजें नज़र आने लगेंगी) । (11) और जब दोज़ख़ (और ज़्यादा ) दंहकाई जाएगी । ( 12 ) और जब जन्नत क़रीब कर दी जाएगी । ( 13 ) ( तो उस वक़्त) हर शख़्स उन आमाल को जान लेगा जो लेकर आया है । ( 14 ) (और जब ऐसा होलनाक वाकआ होने वाला है) तो मैं क़सम खाता हूँ उन सितारों की जो (सीधे चलते-चलते) पीछे को हटने लगते हैं। (15) (और फिर पीछे ही को) चलते रहते हैं और अपने निकलने की जगहों में ) जा छुपते हैं । (16) और क़सम है रात की जब वह जाने लगे। (17) और क़सम है सुबह की जब वह आने लगे । (18) (आगे कसम का जवाब है ) कि यह कुरआन (अल्लाह तआला का ) कलाम है । ( 19 ) एक इज़्ज़त वाला फ़रिश्ते (यानी जिबराईल अलैहिस्सलाम का लाया हुआ जो कुव्वत वाला है और ) अर्श के मालिक के नज़दीक रुतबे वाला है। (20) (और) वहाँ (यानी आसमानों में) उसका कहना माना जाता है? ( और वह ) अमानतदार हैं ? (21) कि (वह्य को सही-सही पहुँचा देते हैं।) और यह तुम्हारे साथ के रहने वाले ( मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मजनूँ नहीं हैं। (22) उन्होंने उस फ़रिश्ते को (असली सूरत में आसमान के) साफ़ किनारे पर देखा भी है । (23) और यह पैग़म्बर पोशीदा ( बतलाई हुई वह्य की ) बातों पर कन्जूसी करने वाले भी नहीं 5 (24) और यह । कुरआन किसी शैतान मरदूद की कही हुई बात नहीं है । ( 25 ) ( जब यह साबित है) तो तुम लोग ( इस बारे में) किधर को चले जा रहे हो ? (26) बस यह तो ( उमूमन) दुनिया जहान वालों के लिए एक बड़ा नसीहत किताब है। (27) (और ख़ास तौर से ) ऐसे शख़्स के लिए जो तुममें से सीधा चलना चाहे । (28) औरे तुम बगैर खुदा - ए - रब्बुल आलमीन के चाहे कुछ नहीं चाह सकते।' (29)
82 सूरः इन्फ़ितार 82
सूरः इन्फितार मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 19 आयतें हैं।
जब आसमान फट जाएगा । (1) और जब सितारे ( टूटकर ) झड़ पड़ेंगे (2) और सब दरिया ( मीठे व
(पिछले पृष्ठ का शेष) यह रिवायत हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से दुर्रे मन्सूर में बयान की गई है। या वह मायने मुराद हों जो सूरः निसा में "लौ तुसव्वा बिहिमुल अर्जु" ( कि काश ! हम ज़मीन के पैवन्द हो जाते) में गुज़रे हैं।
4. "वन्नाज़िआति, वन्नाशिताति" से यह शुब्हा न किया जाए कि कभी-कभी काफिरों का मौत का वक़्त आसान और मोमिनों का सख़्त देखा जाता है । ( पृष्ठ 1070 की बकिया तफसीर और पृष्ठ 1072, 1076 की तफसीर पृष्ठ 1078-1081 पर )
न्ज़िल 7
सूरः मुतफ़्फ़िफ़ीन 83
नमकीले) बह पड़ेंगे (3) और जब कब्रें उखाड़ी जाएँगी (यानी उनके मुर्दे निकल खड़े होंगे ) । ( 4 ) ( उस वक़्त ) हर शख़्स अपने अगले और पिछले आमाल को जान लेगा । (5) ऐ इनसान ! तुझको किस चीज़ ने तेरे ऐसे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रखा है (6) जिसने तुझको (इनसान ) बनाया, फिर तेरे जिस्मानी अंगों को दुरुस्त किया, फिर तुझको ( मुनासिब ) एतिदाल पर बनाया । ( 7 ) (और) जिस सूरत में चाहा तुझको तरकीब दे दिया।' (8) (इन सब उमूर का तकाज़ा यह है कि तुमको) हरगिज़ ( मग़रूर ) नहीं होना चाहिए, मगर तुम बाज़ नहीं आते) बल्कि तुम (इस वजह से धोखे में पड़ गए हो कि तुम ) जज़ा व सज़ा (ही) को झुठलाते हो । (9) और तुमपर ( तुम्हारे सब आमाल) याद रखने वाले, (10) इज्ज़त वाले, लिखने वाले मुक़र्रर हैं। (11) जो तुम्हारे सब कामों को जानते हैं । (12) नेक लोग बेशक आराम में होंगे (13) और बदकार (यानी काफ़िर ) लोग बेशक दोज़ख़ में होंगे। (14) बदले के दिन उसमें दाख़िल होंगे। (15) और ( फिर दाख़िल होकर ) उससे बाहर न होंगे (बल्कि उसमें हमेशा रहना होगा ) । (16) और आपको कुछ ख़बर है कि वह बदले का दिन कैसा है? (17) (और हम) फिर ( दोबारा कहते हैं कि आपको कुछ ख़बर है कि वह बदले का दिन कैसा है ? (18) वह दिन ऐसा है जिसमें किसी शख़्स के नफे के लिए कुछ बस न चलेगा और पूरी की पूरी हुकूमत उस दिन अल्लाह ही की होगी। ● (19)
83 सूरः मुतफ़्फ़िफ़ीन 86
सूरः मुतफ़्फ़िफ़ीन मक्का में नाज़िल हुई। इसमें 36 आयतें हैं।
बड़ी ख़राबी है नाप-तौल में कमी करने वालों की (1) कि जब लोगों से ( अपना हक ) नापकर लें तो पूरा लें (2) और जब उनको नापकर या तौलकर दें तो घटा कर दें ? ( 3 ) (आगे नाप-तौल में कमी करने वालों को धमकाया और तंबीह की जा रही है कि ) क्या उन लोगों को इसका यकीन नहीं है कि ज़िन्दा करके उठाए जाएँगे (4) एक बड़े दिन में । (5) जिस दिन तमाम आदमी रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे। (6) हरगिज़ (ऐसा) नहीं होगा, (यानी काफ़िर) लोगों का आमालनामा 'सिज्जीन' में रहेगा ३ (7) और (आगे डराने के लिए सवाल है कि) आपको कुछ मालूम है कि 'सिज्जीन' में रखा हुआ आमालनामा क्या चीज़ है ? (8) वह एक निशान किया हुआ दफ़्तर है। (9) उस दिन (यानी कियामत के दिन ) झुठलाने वालों को बड़ी ख़राबी होगी। (10) जो जज़ा के दिन को झुठलाते हैं । (11) और उस (बदले के दिन को तो वही शख़्स झुठलाता है है जो बन्दगी की हद) से गुज़रने वाला हो (और) मुज्रिम हो । (12) (और) जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ तो यूँ कह देता हो कि बे - सनद बातें हैं, अगलों से नकुल होती हुई चली आती हैं । ( 13 ) हरगिज़ ( ऐसा )
(पिछले पृष्ठ का शेष) असल यह है कि यह सख़्ती और सहूलत जाहिरी जिस्म पर होती है और आयत में रूहानी व हकीकी सख़्ती और सहूलत मुराद है।
5. यानी क्या मरने के बाद फिर दोबारा ज़िन्दा होना होगा ? असल इसका मुहाल होना ज़ाहिर करना मक़संद है।
6. क्योंकि हमने तो उसके लिए कुछ सामान नहीं किया । मक़सद इससे अहले हक के इस अकीदे का मज़ाक और हँसी उड़ाना था। यानी मुसलमानों के अक़ीदे पर तो हम बड़े ख़सारे में होंगे। जैसे कोई शख़्स किसी को ख़ैरख़्वाही से डराए कि इस रास्ते से मत जाना शेर मिलेगा ( पृष्ठ 1070 की बकिया तफसीर और पृष्ठ 1072, 1076, 1078 की तफुसीर पृष्ठ 1080-1082 पर ) |
00c21a089463f74b7f069f39c25e313730f8c7075098afd3e07320e3be443650 | pdf | यक़ीन हो गया कि जबतक में वज़ू न कर लूं मेरा बेटा दूध नही पीता है इसीलिए खानदान में आपको सब बहुत मानते थे। घर का खाना छोड़ दिया
आप शरीयत के पाबन्द थे । हराम हलाल का ख़्याल रखते थे। एक बार आपने 2 महीने घर का खाना नही खाया। जब भूख लगती आप जंगलो मे चले जाते और घास पत्ते खा लेते जब वालिद ने देखा तो उन्होंने कहा बेटे इतना कमज़ोर हो गए हो क्या बात है खाना क्यों नही खाते हो आपने जवाब दिया अब्बा जान आप शहर के क़ाज़ी (जज) है आपका दबदबा अवाम पर है आपको पूरा गुजरात जानता है मुझे शक है कि जब आपका खादिम बाजार से सब्ज़ी लाता है तो शायद आपके दबदबे और ओहदे की वजह से वो पैसा न लेता हो और हम अंजान में हराम लुकमा खाते हो इसी डर से में घर का खाना नही खाता हूँ। बेटे का जवाब सुनकर वालिद साहब मुरकुराये और कहा बेटे अगर में हराम और हलाल लुकमे पर ध्यान न देता होता तो अल्लाह मुझे तुझ जेसा नेक सालेह बेटा न अता फरमाता। आप आखरी वक़्त में बहुत कमज़ोर हो गए थे। एक दिन आपने सोचा अब कल से में हदीस नही पढ़ाऊंगा क्योंकि उम्र बहुत ज्यादा हो चुकी थी उसी रात आपक़ो नबी क़रीम की ज़ियारत
हुई और कहा ए नवासे तुम जब हदीस पढ़ाते हो तो हम तुम्हारे हल्के मे बेठकर सुनते हैं सुबह हुई तो आप रोने लगें और उसके बाद से आप जबतक बज़ाहिर ज़िंदा रहे आपने खुद हदीस पढ़ाई बड़े शोक से आप हदीस पढ़ाते थे । जब आपका इंतेक़ाल हुआ तो सारा गुजरात सदमे में था। आप के जनाज़े में एक सैलाब था हर किसी की यही ख्वाहिश थी काश में एक बार नायब ए गौसे आज़म के जनाज़े को कांधा दे सकूँ लाखो के मजमे के बीच से आशिके रसूल का जनाज़ा जा रहा था आज भी आपके आस्ताने से लोगो को फेज़ मिलता है और ताक़यामत मिलता रहेगा।
सैयद वजीहुद्दीन अल्वी रहमतुल्लाह अलैह एक नज़र में 1-- आप कहते रहते की ख्वाज़ा गौस मोहम्मद ग्वालियरी रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे खुदा तक पहुँचाया है।
2 -- शाह मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं कि जब में गुजरात मे रुका तो मे भी उनसे मिलने गया मेने उन्हें वली ए क़ामिल पाया और आप रियाज़त बहुत करते थे ।
3-- मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी अलैहिर्रहमा ने अपनी किताब मुन्तख़बुत तवारीख में लिखा है कि शायद ही कोई
किताब बची हो जिसकी शरह या हाशिया न लिखी हो और आप जिसके हक़ में दुआ करते थे वो फौरन पूरी हो जाती थी। 4--आपने सिर्फ 4 बार मदरसे से बाहर अपने कदम निकाले हैं वरना आप हमेशा मदरसे में ही रहते और तालीम सिखाते रहते।
5-- शेख़ अली मुत्तक़ी अलैहिर्रहमा ने आपको मुजद्दीद कहा। 6--आप कहते रहते थे कि ज़ाहिर शरीयत पर ऐसी नज़र होनी चाहिए जैसी शेख अब्दुल मुत्तक़ी अलैहिर्रहमा की है और हक़ाएक़ पर एसी नज़र होनी चाहिए जैसी हमारे मुर्शिद ख्वाज़ा गौस मुहम्मद ग्वालियरी रहमतुल्लाह अलैह की है।
7--आपक़ो 60 से ज्यादा उलूम आते थे 80 हज़ार तलबा को आपने हाफिज़/आलिम बनाया है।
8--आपके जद्दे अमजद यमन से हिन्द आये थे।
9--आपका आस्ताना हिंद के शहर गुजरात मे है। आप का सिलसिला सत्तारिया है।
10--आप एक वली ए क़ामिल, क़ुतुब ए गुजरात, मुजद्दीद, मुहक़्क़ीक़ है ताक़यामत तक आप ज़िंदा रहेगें।
शाह मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह
जब भी कहीं पर लफ़्ज़े मुहद्दिस का जिक्र हो तो एक नाम ज़हन में गर्दिश करता रहता है और वो नाम है हज़रत अल्लामा शाह मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह का है।
आप की विलादत 1551 ईस्वी दिल्ली में हुई। आपके बचपन का नाम अब्दुल हक़ था ।
आप हज़रत आगा मुहम्मद तुर्क बुखारी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद में से हैं। आपके वालिद का नाम हज़रत अल्लामा सैफ़ुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह था।आपके जद्दे अमजद आगा मुहम्मद तुर्क बुखारी रहमतुल्लाह अलैह जब बुखारा से दिल्ली आए थे उस वक़्त अलाउद्दीन खिलजी की हुकूमत थी। आगा मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह अदब और अस्करी निजाम में
बहुत माहिर थे आपने जब बुखारा से हिंदुस्तान के लिए हिजरत की उस वक़्त आपके साथ मुरीद और कुछ लोग भी आये थे सबको लेकर आप गुजरात आये और क़याम किया। एक रिवायात के मुताबिक अल्लाह ने आपको तकरीबन 100 औलादे अता की थी जिसमे 99 बच्चे इंतेक़ाल कर गए थे और सिर्फ 1बच्चा बचा था जिसका नाम शेख मोइजुद्दीन था, उसके बाद शेख मूसा, और शेख फ़िरोज़ जो कि जंग में शहीद हो गए थे उनके बाद एक बेटा हुआ जिसका नाम शाद उल्लाह था। उनके दो बेटे थे जिनमें आपके वालिद हज़रत शेख सैफ़ुद्दीन अलैहिर्रहमा भी थे।
आपके वालिद
आपके वालिद का तज़किरा किये बगैर आपकी सवानेह का एक भी हिस्सा बयान नही किया जा सकता है और न ही समझाया जा सकता है ।
आपके वालिद को शेख अमानुल्लाह पानीपती अलैहिर्रहमा जैसे आलिम और वली की सोहबत मिली है। आप एक सूफी/आलिम/मुत्तक़ी/परहेजगार/वली थे। जिसका असर आप पर भी पड़ा।आपके वालिद सुल्तानुल औलिया महबूबे सुब्हानी हज़रत सैयदना शेख अब्दुल कादिर जीलानी
रहमतुल्लाह अलैह के सच्चे आशिक थे । हर वक़्त उनका विर्द करते रहते थे।
आपने बचपन मे अपने वालिद हज़रत सैफ़ुद्दीन अलैहिर्रहमा से तालीम हासिल की। सबसे पहले वालिद साहब से आपने तीन पारे पढ़े उसके बाद आपने खुद क़ुरआन पढ़ना शुरू किया और 3 महीने में क़ुरआन मुकम्मल किया
फिर आपने खत्ताती(लिखना) सीखनी शुर किया।क्योंकि उस दौर में आजकल की तरह प्रिंटिंग प्रेस नही थे लिहाजा मुसन्निफ़ को अपने हाथों से ही लिखना होता था। लिहाजा आपने ये हुनर भी सिर्फ 1 महीने में सीख लिया फिर जो किताब आपके वालिद को अहम लगती वो आपको शुरू का पढ़ा देते थे उसके बाद आप उसको पूरी पढ़ते और याद कर लेते।आप फरमाते हैं कि एक बार किताब पढ़ने के बाद वो किताब आपको हमेशा याद रहती। आपने सबसे पहली किताब दीवाने हाफिज़ और हज़रत शेख सादी रहमतुल्लाह अलैह की किताब बोस्तान पढ़ी। उस दौर में बच्चो को नज़्म बहुत याद कराई जाती थी लेकिन आपके वालिद ने आपको चन्द नज़्म याद करने के लिए दिए और आपने उनको चन्द
दिनों में याद कर लिया। फिर आपने मीज़ान, मिस्बाह, काफिया जैसी किताबो को याद कर लिया आप जिस किताब को पढ़ते सारी आपको याद हो जाती थी।
12 साल की उम्र में शरह शमशिया, शरह अक़ाएद जैसी किताबें याद कर लीं। उसके बाद जब आपकी उम्र 15 साल हुई तो आपको जो किताब मिलती आप पढ़ने लग जाते और याद कर लेते।
तालीम से लगाव
तालीम से लगाव ही है कि आप का तज़किरा आज भी हो रहा है और ताक़यामत तक आपका
नाम यूं ही अदब के साथ लिया जाता रहेगा। आप 18-18 घण्टे रोज मुसलसल पढ़ते रहते और कभी कभी तो 20-22 घण्टे तक आप पढ़ते रहते थे। मिया यूं ही नही कोई मुहद्दिस बन जाता है अल्लाह अल्लाह एक तो आपका ज़हन माशाल्लाह उसके बाद ये ग़ौरो फिक्र तो फिर क्यों न आपकी जात मुहद्दिस हो। आप तालीम में इतना मशगूल रहते की उलेमा फरमाते हैं कि कभी कभी सर पर जो पगड़ी बंधी हुई थी उसमें आग लग जाती और जबतक वो आग आपकी दाढ़ी में न लग जाती तबतक आपको मालूम ही न होता। हिंदुस्तान में इल्म
हासिल करने के बाद आप बुखारा और समरकंद भी गए फिर आप तालीम हासिल करने के बाद दिल्ली आ गए।
(नोट--) यहाँ ये ध्यान देना जरूरी है कि उन दिनों लोग चराग के सामने ही बैठकर पढ़ते थे इसीलिए आपक़ी पगड़ी में कभी कभी चराग की लपटों के छूने की वजह से ही आग लग जाती थी।
जब आप बुखारा और समरकंद से तालीम हासिल करके दिल्ली आए तो आपके वालिद साहब ने आपको कहा कि जाओ फतेहपुर सीकरी और हज़रत सैयदना शेख मुहम्मद मूसा गिलानी रहमतुल्लाह से बैत करके आओ।अज़ीज़ों यहाँ ये जरूर समझो कि आखिर क्यों आपके वालिद साहब ने आपको सैयदना शेख मुहम्मद मूसा गिलानी के पास ही भेजा जब की उस वक़्त दिल्ली और भी दीगर आसपास के इलाकों में एक से बढ़कर एक वली अल्लाह, मशायख की जमात थी तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है कि आपके वालिद साहब सैयदना सरकार गोसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के जानिसार आशिक थे और हज़रत सैयदना शेख़ मुहम्मद मूसा रहमतुल्लाह अलैह हुज़ूर गौसे आज़म सरकार रहमतुल्लाह
अलैह की औलाद में से हैं यानी आपके पीरो मुर्शिद हसनी/हुसैनी सादात हैं। इसलिए आपके नाम मे क़ादरी लगा रहता है।
वालिद साहब का आखरी वक़्त
आपके वालिद हज़रत सैफ़ुद्दीन अलैहिर्रहमा आखरी वक़्त में क़ुरआन की बहुत तिलावत करते थे जब किसी सूरह की आयत में अज़ाब का तज़किरा होता तो वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगते और जब कही पर अल्लाह की रहीमी का ज़िक्र होता है उसकी समदानियत का ज़िक्र होता तब आप मुस्कुरा देते । जब आपका आखरी वक़्त आया तो आपने अपने बेटे हज़रत शाह मुहद्दिस अब्दुल हक़ देहलवी रहमतुल्लाह अलैह को बुलाया और क़ुरआन सुनना चाहा। फिर आपने वालिद साहब को क़ुरआन सुनाया उसके बाद उनको सुकून मिला फिर उनकी जुबान से एक जुमला निकला जो यूं था
"में करीम के पास आया हूँ न तोशा है न की है और तोशा लेकर क्यो जाए तो जब वो क़रीम है तो तोशा लेकर जाने से उसकी बडाई कम हो जायेगी"
फिर आपके वालिद साहब ने आखरी जुमला अदा किया और दुनिया ए फानी को अलविदा कह दिया
"मेरा रब अल्लाह है, मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहूँ अलैही वसल्लम मेरे नबी और रसूल है मेरा दीन इस्लाम है और मेरे शेख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह हैं "
(नोट-) जीलानी को गिलानी भी पढ़ा जाता है।
हज का इरादा
जब आपकी उम्र 31 साल थी तो उस वक़्त दिल्ली में हज़रत शेख़ इस्हाक़ सोहरावर्दी रहमतुल्लाह अलैह दीन की तब्लीग कर रहे थे आप उनकी महफ़िल में भी जाकर बैठते थे। उस वक़्त आप बहुत मायूस रहने लगे थे जिसकी दो वजह थी एक तो आपके रहबर आपके उस्ताद आपके वालिद हज़रत सैफ़ुद्दीन अलैहिर्रहमा का इंतेक़ाल हो गया था और दूसरा उस वक़्त हिंदुस्तान के हालात बहुत खराब थे। दीने अकबरी जैसा फितना उस दौर में ही सर उठा चुका था। आपने अपनी वालिदा से हज पर जाने की इजाजत माँगी तो उन्होंने कहा ठीक है लेकिन एक वायदा करो कि किसी तीसरे मुल्क नही जाओगे आपने कहा नही जाऊंगा अम्मी जान उसके बाद आप गुजरात गए लेकिन तबतक पता चला कि पानी का जहाज जा
चुका है क्योंकि उन दिनों पानी के रास्ते से ही लोग हज पर जाते थे।फिर जब आप पहले हज पे नही जा सके तो आपकी मुलाकात गुलज़ार ए अबरार के मुसन्निफ़ से हुई। तबकाते अकबरी के मुसन्निफ़ मिर्जा निजामुद्दीन के घर अहमदाबाद में रहे उसके बाद सैयद वजीहुद्दीन अल्वी क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह से आपने मुलाकात की और शहबाज़ ए लामकानी मीर ए नूरानी शेख अब्दुल क़ादिर जीलानी रहमतुअल्लाह अलैह पढ़ने की इजाजत ली।
पहला हज
1588 ईस्वी में जब आप हज के लिए निकले तो जिस जहाज में आप सफर कर रहे थे उसमे एक दीवाना जो एक कौन कौन में बैठा "या शेख अब्दुल कादिर, या शेख़ अब्दुल कादिर का विर्द कर रहा था। उसे देखकर आप बहुत खुश हुए क्योंकि आप और आपका खानदान गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का शैदाई आशिक था ।
मक्का शरीफ में आमद
जब आपकी आमद मक्का शरीफ में हुई तो उस वक़्त शेख अब्दुल वहाब मुत्तक़ी रहमतुल्लाह अलैह के इल्म व तक़वे की तूती बोलती थी । मक्का के बड़े बड़े उलेमा इनसे हदीस सीखते
और पढ़ते जब आपने उनके बारे में सुना तो आप उनकी बारगाह में चले गए आप की मोहब्बत शेख से बढ़ती जा रही थी फिर रमज़ान में आपने वहीँ पर एतिकाफ किया फिर जब हज का महीना आया आपने उन्ही के साथ हज किया उसके बाद शेख़ अब्दुल वहाब मुत्तक़ी रहमतुल्लाह अलैह ने आपको एक हुजरा दिया जिसमें रहकर आप मुशाहिदा, मुजाहिदा और अमल करते रहे आपसे मिलने के लिए शेख़ हफ्ते में एक दिन जाते और चले आते।
नूरानी ख्वाब
नूरानी ख्वाब से मुराद उस ख्वाब की जिसमें मोमिन अपने प्यारे आक़ा हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का दीदार करे। और आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की हदीस मुबारक भी है कि
"जिसने ख्वाब में मुझे देखा उसने मुझे ही देखा क्योंकि शैतान हर शक्ल में आ सकता है सिवाय मेरे "
एक दिन आपको नबी क़रीम का ख्वाब आया की हदीस पढ़ा रहे है और फिर दूसरा ख़्वाब आपको सरकार सैयदना मौला
इमाम हुसैन रजिअल्लाहू तआला अन्हु का ख्वाब आया कि आप दुश्मनो से जंग लड़ रहे हैं। उसके बाद आप नींद से बेदार हुए तो शेख को बताया ख्वाब सुनकर शेख ने फ़रमाया कि तुमको हदीस की तालीम लेनी है और हिन्द में जो लोग आज हदीस की बेहुरमती करने में लगे हैं उनसे इल्मी जंग करनी है। हदीस की तरफ तवज़्ज़ो
इस नूरानी ख्वाब और शेख की पेशनगुई के बाद आप ने हदीस शरीफ को फिर से पढ़ना शुरू कर दिया आपने शेख अब्दुल वहाब मुत्तक़ी रहमतुल्लाह अलैह से तीन साल तक हदीस पढ़ी आपने सबसे ज्यादा मुस्लिम शरीफ पढ़ी उसके बाद आप एक हुजरे में बैठकर रियाज़त व इबादत करते रहे जब आपकी तालीम मुकम्मल हुई तो शेख ने आपको हिन्द वापिस लौटने को कहा। लेकिन आप ने ज़िद कर ली और कहने लगे में मदीना मुनव्वरा छोड़ कर नही जाऊंगा आप का इश्क़ आपको जाने नही दे रहा था और शेख का फर्ज उन्हें रुकने नही दे रहा था फिर आपने कहा अच्छा मुझे बगदाद तो चले जाने दो वहां की हाजरी करके चला जाऊँगा । शेख ने कहा हरगिज़ नही तुम शेख़ अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह से जिस क़दर मोहब्बत करते हो मुझे यकीन है कि तुम
वही रुक जाओगे और लौटकर कभी घर नही जाओगे और एक तो आपकी माँ की भी आखरी नसीहत भी थी कि बेटा किसी तीसरे मुल्क मत जाना क्योंकि वो भी जानती थी कि आप बगदाद पहुंचने के बाद कभी वापिस नही आएंगे। उसके बाद जब आपको माँ की दी हुई नसीहत याद आई तो आप हिन्द वापिस आने को तैयार हुए जितने दिन आप मदीना मुनव्वरा में रहे आपने कभी जूते या चप्पल नही पहनी आप नंगे पैर ही वहाँ अदब के साथ बैठे रहते। फिर जब आप वहां से हिन्द के लिए रवाना होने लगे तो शेख ने आपको हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का झुब्बा मुबारक अता किया अल्लाह अल्लाह ये आपके लिए शायद सबसे नायाब तोहफा था जिसे पाकर आप शेख के क़दमो में गिर गए क़दमबोशी करके हिन्द की और चल पड़े।
दिल्ली वापसी
फिर जब आप वहां से रवाना हुए तो 1591 में आप दिल्ली पहुंचे।यहाँ पहुंचकर आपने एक मदरसा और एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी बनाई।जो उस वक्त दिल्ली की सबसे बड़ी लाईब्रेरी थी क्योंकि आप मक्का से अपने साथ बहुत सारी किताबे भी लाये थे आपकी लाइब्रेरी में बड़े बड़े उलमा आते जो किताबो
को ले जाते और पढ़कर वापिस कर देते फिर यही से आपने दीन की तब्लीग का काम शुरू कर दिया।
आपके कारनामे
आप रहमतुल्लाह अलैह इल्म व इश्क़ दोनो के समंदर थे।आपने 100 किताबें लिखी हैं जिसमें 60 किताबे बहुत ही मोतबर(विशेष) हैं और 40 रिसाले हैं। जिनमे कुछ मशहूर व मोतबर किताबें जैसे अखबारुल अख़्यार, फतुहुल ग़ैब, जज्बुल कुलूब,तकमितुल ईमान, मिश्कात शरीफ का तर्जुमा आपने अरबी और फारसी दोनो जुबानों में किया है। उस वक़्त हिन्द में फारसी जुबान का बोलबाला था इसलिए आपने फारसी और अरबी दोनो जुबान में तरजुमा किया है। आपने सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की शान और
तसव्वुफ़/अमल/अक़ाएद पर बहुत बड़ी बड़ी किताबे लिखी
अबुल फ़ज़ल फैज़ी
अबुल फजल फैज़ी जो उस वक़्त बादशाह अकबर के दरबार मे नवरत्न था उससे आपकी दोस्ती थी लेकिन जब वो कुफ्र के रास्ते पर चल पड़ा तो आपने फ़रमाया
"फैज़ी नफासत व बलाग़त ने मुमताज़ रोजगार तो था ही लेकिन अफसोस उसने कुफ्र और गुमराही में गिरकर बदबख्ती के निशान अपने जिस्म व किरदार पर लगा लिए अब मोमिनो के लिए उसका और उसकी जमात का नाम लेना मुनासिब नही"
(फेहरिस्तुत तवालीफ)
मुजद्दीद अल्फे सानी रहमतुल्लाह अलैह और आप
अमूमन हज़रात ये समझते हैं कि हज़रत शेख मुजद्दीद अल्फे सानी रहमतुल्लाह अलैह और आप के बीच इख़्तिलाफ़ था जबकि हक़ीक़त में ऐसा कुछ भी नही था । एक मुजद्दीद था तो दूसरा मुहद्दिस एक ने तौहीद को सामने रखकर काम किया है तो दूसरे ने रिसालत को दोनो के रास्ते अलग अलग लेकिन काम एक ही था। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि आप मुजद्दीद अल्फे सानी रहमतुल्लाह अलैह से 9 साल बड़े है। आप मे और मुजद्दीद अल्फे सानी रहमतुल्लाह अलैह में एक फ़र्क़ ये था तो आपने दरबार से दूर रहकर अकबर के फ़ितने की मजम्मत (विरोध) किया और मुजद्दीद अल्फे सानी रहमतुल्लाह अलैह ने दराबर में घुसकर अकबर के सामने उसे चैलेंज किया। लेकिन इसका मतलब ये नही की आप और
मुजद्दीद में इख्तिलाफ था लिहाजा अवाम को वैसे भी बड़ो के मसले पर चुप रहने का हुक्म है तो इस मामले में खुदा के लिए इन दोनों मुकद्दस हस्तियों पर अपनी जुबान बन्द ही रखे तो बहतर है।
हनफी से शाफई
एक बार आपके मन मे आया कि मेरे पेशवा सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह हम्बली हैं तो में शाफ़ाई बन जाऊं तभी शेख़ अब्दुल वहाब मुतक़्क़ी रहमतुल्लाह अलैह ने इमाम ए आज़म अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित रहमतुल्लाह अलैह की शान में ऐसा लेक्चर दिया उस दिन से आपने कभी भी शाफई होने की सोची भी नही ।
(नोट- हनफी - ये उसको कहते है जो इमाम ए आज़म अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह की मानने वाले होते हैं आप पहले इमाम माने जाते है
शाफई--ये इमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैह के मानने वाले हैं इन्हें दूसरा इमाम कहा जाता है
हम्बली--ये तीसरे इमाम इमाम हम्बल रहमतुल्लाह अलैह के मानने वाले होते हैं सैयदना सरकार शेख अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह भी हम्बली हैं
मालिकी--ये चौथे और आखरी इमाम इमाम मलिक रहमतुल्लाह अलैह के मानने वाले होते हैं।)
(मसलके आला हजरत-- ये कोई नया मसलक नही है अगर कोई ऐसा सोचता है तो वो गलत है ये मसलके आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह का ही एक नक्शा (रूप है ये इमाम ए आज़म के मसलक से हटकर नही है अगर कोई इसे नया मसलक समझ कर इसे फॉलो करता तो ये गुनाह ए अज़ीम है
आपने 1611 में एक खानकाह बनाई जिसका नाम रखा ख़ानक़ाह ए कादरिया।जहां पर आपने हदीस, तसव्वुफ़, फ़िक़्ह ए हनफी,हुकुकुल इबाद पर उम्दा किताबे तहरीर की आपकी ज़िंदगी का एक एक लम्हा सुन्नते मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर अमल करते हुए गुजरा है आप एक क़ामिल वली
अल्लाह भी है तसव्वुफ़ पर आपने बहुत सारी किताबे लिखीं है।आपके तसव्वुफ़ की झलक यहां से मिलती है कि आप अहले बैत को बेझिझक अलैहिस्सलाम कहते थे। आप औलिया अल्लाह के आस्ताने पर जब भी जाते तो चप्पल उतार देते थे।1619 ईस्वी में आपका इंतेक़ाल हुआ लेकिन आपके काम ताक़यामत तक आपके इल्म व इश्क़ की गवाही देते रहेंगे।
मीर सैयद अब्दुल वाहिद बिलग्रामी रहमतुल्लाह अलैह
आपकी विलादत 915 हिजरी में हुई आपका नाम मीर सैयद अब्दुल वाहिद था!
आपका शजरा ए नसब आला खानदान से मिलता है आप इमाम जैनुल आब्दीन रजिअल्लाहू तआला अन्हु के शहज़ादे इमाम जैद शहीद रजिअल्लाहू तआला अन्हु की औलाद में से हैं। इसीलिए आप को जैदी हसैनी सैयद भी कहा जाता है।
आपकी तालीम
आप रहमतुल्लाह अलैह ने अपने घर पे ही इब्तिदाई तालीम हासिल की और दीन की तब्लीग में लग गए और तसव्वुफ़ के रास्ते पर निकल पड़े आप तसव्वुफ़ बचपन ही से पसन्द करते थे और आपका खानदान मुबारक हमेशा से ही इल्म और
रूहानियत का शफ़्फ़ाफ़ आईना रहा है अल्लाह रब्बुल इज्जत का खास करम इस खानवादे पर रहा है कि हर वक़्त में इस खानदान से एक न एक नगीना जरूर मिलता रहा है जिससे मारफत व रूहानियत फ़ख़ कर सके आपकी शान बहुत ही निराली है आप का मक़ाम बहुत आला है।
आप के नाम में बिलग्रामी लगा रहता है दरसअल आप बिलग्राम में रहने की वजह से आपके नाम मे बिलग्रामी लगा रहता है अब बिलग्राम शरीफ की अज़मत जानने के लिए इतना जानना जरूरी है कि आला हज़रत अजीमुल बरक़त इमाम अहमद रज़ा खान फ़ाज़िले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह के पीरो-मुर्शिद और उनका पीर खाना महरेरा शरीफ़ के सादात के जद्दे अमज़द बिलग्राम शरीफ से ही गये थे आज भी महरेरा शरीफ और मसौली शरीफ में आप के खानदान के लोग रहते हैं यानि की जितने भी जैदी सादात हिन्द के यूपी में है उनकी असल बिलग्राम शरीफ में है जिनमे फातहै बिलग्राम मखदूम सैयद मोहम्मद सुगरा रहमतुल्लाह अलैह सारे सैयदों के जद हैं। आप रहमतुल्लाह अलैह की शान और अज़मत
निराली है आप तक़वे और परहेज़गारी के कायल थे। आप अपने वक़्त के इमाम ए शरीयत व तरीक़त थे।
नबी करीम से आपकी निस्बत और आपकी मोहब्बत
आप रहमतुल्लाह अलैह की निस्बत अपने जद्दे आला ताजदारे मदीना सैय्दुल अम्बिया हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से आपकी मोहब्बत और निस्बत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार मौलाना आजाद बिलग्रामी अलैहिर्रहमा दिल्ली में रुके हुए थे वहां उनकी मुलाकात सिलसिला ए चिश्तिया के अज़ीम बुजुर्ग शेख कलीमुल्लाह चिश्ती अलैहिर्रहमा से हुई दोनों बुजुर्गो में देर तक बात हुई तभी मौलाना आजाद बिलग्रामी अलैहिर्रहमा ने आप रहमतुल्लाह अलैह का तज़किरा छेड़ा तो शेख कलीमुल्लाह चिश्ती ने आप की बहुत तारीफ की और फरमाया कि मैने एक बार ख्वाब देखा की में मदीने शरीफ में हूँ प्यारे आक़ा अलैहिस्सलाम का दरबार सज़ा था मेने देखा कि आक़ा अलैहिस्सलाम किसी शख्श से मुस्कुरा कर गुफ्तगू कर रहे थे मेने सोचा कि आखिर ऐसा कौन खुशनसीब होगा जिससे ताजदारे आलम महबूबे खुदा शफकत और मोहब्बत
के साथ गुफ्तगू कर रहे हैं इतने में मेरे साथ एक बुजुर्ग थे वो बोल पड़े की ये कोई और नही बल्कि मीर सैयद अब्दुल वाहिद बिलग्रामी रहमतुल्लाह अलैह हैं अल्लाहु अकबर मौत से डर लगता है
एक बार एक शख्श आपकी बारगाह में हाज़िर हुआ और उसने फ़रमाया कि में मौत से बहुत डरता हूँ कोई ऐसा वज़ाएफ़ बता दीजिए कि मौत का डर खत्म जो जाए आपने उससे फ़रमाया की जाओ आज से रोजाना जो हो सके सदका दिया करो और फ़र्ज़ नमाज़ों के साथ नफिल भी अदा किया करो उसने ऐसा ही किया कुछ दिनों बाद वो शख्श आपकी बारगाह में हाजिर हुआ तो आपने पूछा क्या हुआ अब केसी हालत है उसने आपके क़दमो में गिरकर क़दमबोशी की और कहा हुज़ूर कल तक मौत से डरता था और आज मौत को गले लगाने का हर वक़्त मन करता है लेकिन ऐसा क्यों और कैसे हुआ--?आपने आखिर कौन सा जादू कर दिया।
आप रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया की जब बन्दा कहीं पर रहने के लिए अपना घर बना लेता है तो उसे वहां जाकर रहने का मन करने लगता है और जबसे आप सदक़ा करने लगे हो तबसे जन्नत में तुम्हारा घर तामीर हो गया है इसीलिए अब तुम्हे
मरने से डर नही लगता है क्योंकि अब तुम्हारे पास मरने के बाद रहने का ठिकाना हो गया है
शबा सनाबिल शरीफ
शबा सनाबिल शरीफ आपकी बहुत ही मोतबर किताब है जो आपकी शोहरत के लिए भी काफी जानी जाती है आप की शान व अज़मत बहुत ही निराली है आपकी शान में आला हज़रत अजीमुल बरक़त अलैहिर्रहमा ने अपनी किताब फतावा रिज़्विया में आपकी शान को 2 पेज में तसानीफ़ किया है जिससे आपकी शान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है आप का नाम हम अहले तसव्वुफ ता कयामत तक अदब से लेते रहेंगे आज भी आपका मुबारक खानदान शाद व आबाद है और ये सिलसिला ता क़यामत तक चलता रहेगा।
शाह मुहिबबुल्लाह इलाहाबादी रहमतुल्लाह अलैह
आपकी विलादत 2 सफर 996 हिजरी और अंग्रेज़ी केलेंडर के मुताबिक 1558 ईस्वी में सदरपुर जिला खैराबाद में एक अज़ीम खानदान में हुई थी उस वक़्त मुगल बादशाह अकबर की हुकूमत पूरे मुल्क पर थी। आपका नाम शाह मुहिबबुल्लाह था।आप चिश्तिया सिलसिला के अज़ीम बुजुर्ग हैं। मुगल बादशाह शाहजहां के दौर में आपकी विलायत के डंके हिन्द की सरजमीं पर बज रहे थे। आप वहदतुल वजूद के कायल थे। आपके वालिद का नाम शेख मुबारिज़ व दादा का नाम शेख पीर था। आपके पूर्वज हज़रत क़ाज़ी शुएब अलैहिर्रहमा जो हज़रत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंज शकर रहमतुल्लाह अलैह के दादा थे वो चंगेज़ खान के जुल्म से तंग आकर लाहौर चले और क़स्बा कसूर में रहने लगे उस वक़्त वो हिस्सा भी हिन्द में ही था। |
5b26be21884b1ef2ca2cd24fa421da1e04b3e132ebf8cbcc9ded4130c52384e4 | web | यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Ryan Tremblay. रयान ट्रेमब्ले एक बास्केटबॉल कोच और National Sports ID and STACK Basketball के मालिक हैं। 30 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, रयान बास्केटबॉल कोचिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग और वेबसाइट डिज़ाइन में माहिर हैं। रयान ने National Sports ID को युवा एथलीटों की आयु/ग्रेड को सत्यापित करने के लिए और युवा एथलीटों को मेच्योर व्यक्तियों और बास्केटबॉल खिलाड़ियों में विकसित होने के लिए प्रेरित करने के लिए STACK Basketball बनाया। रयान Bergen County में एक फर्स्ट टीम ऑल-डिकेड बास्केटबॉल खिलाड़ी थे और 1,730 अंकों के साथ काउंटी के इतिहास में शीर्ष 20 सर्वकालिक अग्रणी स्कोरर में पूरा किया। ये बास्केटबॉल छात्रवृत्ति पर कैल्डवेल विश्वविद्यालय गए जहां वे तीन चैंपियनशिप टीमों का हिस्सा थे। रयान दो बार ऑल-मेट्रोपॉलिटन, ऑल-स्टेट, और ऑल-कॉन्फ्रेंस पॉइंट गार्ड और स्कूल के इतिहास में ऑल-टाइम थ्री-पॉइंट लीडर थे, इन्हें काल्डवेल यूनिवर्सिटी एथलेटिक हॉल ऑफ फ़ेम में उतारा।
यहाँ पर 28 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं।
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क्या आप एक बेहतर बास्केटबॉल प्लेयर बनना चाहते हैं? भले आप अभी बिगिनर हैं या फिर अभी गेम को खेलना शुरू करने की उम्मीद ही कर रहे हैं, ऐसे कई सारे तरीके हैं, जिनके जरिए आप अपनी बास्केटबॉल स्किल्स में सुधार कर सकते हैं। आखिरकार, यहाँ तक कि सबसे ज्यादा कॉम्पटिटिव प्लेयर्स भी हर दिन जोरदार मेहनत करके ही खुद को इस मुकाम पर लेकर आते हैं! अपनी पोजीशन को डेवलप करने की कोशिश करें या फिर बेहतर तरीके से ड्रिबल (dribble) करना सीखें और आप बस आप भी अपनी नेशनल बास्केटबॉल टीम में शामिल होने की ओर बढ़ जाएंगे।
ड्रिबलिंग एक्सरसाइज (बेसिक)
- एक अच्छी ड्रिबलिंग एक्सरसाइज की शुरुआत आपके दाएँ हाथ से एक साथ लगातार 20 ड्रिबल से और फिर हाथ को बदलकर, अपने बाएँ हाथ से लगातार एक-साथ 20 ड्रिबल करने से होती है। आप जब आपके बास्केटबॉल रूटीन को शुरू करें, तब और रूटीन के आखिर में इसके तीन सेट करें।
- शुरुआत में स्थिर बने रहें, लेकिन मूव होते रहने के लिए अपने घुटनों को झुकाए रखें और अपने पैर की उँगलियों के ऊपर बाउंस करें। जब आप एक स्टेशनरी पोजीशन से ड्रिबल करने में कम्फ़र्टेबल हो जाएँ, फिर चलते समय इस एक्सरसाइज को करें। जब आप चलते समय कम्फ़र्टेबल हो जाएँ, फिर दौड़ना शुरू कर दें।
5लगातार ड्रिबल करेंः बॉल हर समय जहां भी जाए, उसे 'फील' करना सीखें, उस पर कंट्रोल बनाएँ और फिर आप उसके साथ में जो भी कर सकें, उसे ही पूरी काबिलियत के साथ करना सीखें।
- आपके पास में मौजूद फ्री टाइम को बास्केटबॉल को ड्रिबल करने में बिताएँ। कोर्ट में या फिर आप जहां भी प्रैक्टिस कर रहे हैं, वहाँ ऊपर और नीचे ड्रिबल करें। जब आप स्कूल के लिए जाएँ या फिर फ्रेंड के घर जाएँ, तब रास्ते में ड्रिबल करते जाएँ। आपके लिए जितना हो सके, उतनी ज्यादा प्रैक्टिस करने बहुत जरूरी होता है।
ड्रिबलिंग एक्सरसाइज (एडवांस)
1अपना पावर ड्रिबल (power-dribbling) डेवलप करेंः[७] X रिसर्च सोर्स पावर ड्रिबलिंग को क्रॉल-वॉक-रन (क्रॉल करें-चलें-दौड़ें) अप्रोच में "रन" जैसा समझें। जब आप पहली बार शुरुआत कर रहे हों, तब आपका सबसे बड़ा कंसर्न इस बात की पुष्टि करना होना चाहिए कि बॉल वापस आपके हाथ के करीब लौटकर आए, लेकिन बाद में आपको ये सुनिश्चित करना होगा कि बॉल आपके हाथ तक जितनी हो सके, उतनी तेजी से और साथ ही जितना हो सके, उतने ज्यादा फोर्स और कंट्रोल के साथ में वापस आए।
- ये पूरा खेल आपकी कलाई का है। पावर ड्रिबल को डेवलप करने के लिए, बॉल को हमेशा की तरह आल्टर्नेट बाउंस करते रहें और फिर बाद में थोड़े और ज्यादा पावर के साथ में करें। इसे इतनी तेजी से मत बाउंस करें कि आपका उस पर से कंट्रोल ही चला जाएः बॉल को वापस ड्रिबल करते समय अपनी आर्म को बीच में आने दिए बिना, इसे कई बार लगातार दृढ़ता से बाउंस करें, फिर वापस केजुअल ड्रिबल की तरह आल्टर्नेट करें।
- धूल में ड्रिबलिंग करें।[८] X रिसर्च सोर्स यहाँ पर आपको बॉल को उसकी हमेशा वाली स्पीड से वापस पाने के लिए आपको उसे थोड़ा ज़ोर से बाउंस करना होगा। जब आपको इसकी आदत लग जाए, फिर अंदर जाएँ और ठीक उसी तरह से ड्रिंबल करें, जैसे कि आप पहले से करते आ रहे हैं।
2आपके पावर क्रॉसओवर की प्रैक्टिस करेंः[९] X रिसर्च सोर्स क्रॉसओवर एक ड्रिबल है, जिसमें बॉल हाथों के बीच में आल्टर्नेट होती है। एक क्विक क्रॉसओवर डिफेंडर के लिए बॉल को छीनना या फिर आपके मूवमेंट को फोर्स कर पाना मुश्किल बना देता है। लेट 90s में, Allen Iverson को उसके बहुत तेज और पावरफुल क्रॉसओवर के लिए जाना जाता था।
- आपके दाएँ हाथ से चार बार पावर ड्रिबलिंग करके शुरुआत करें और पांचवे ड्रिबल को आपके बाएँ हाथ से एक हार्ड क्रॉसओवर तैयार करें। आपके बाएँ हाथ से भी ठीक ऐसा ही करें। फिर, क्रॉसओवर के पहले इसे तीन, फिर दो, आखिर में कुछ बार अपने पावर ड्रिबल के साथ हाथों के बीच में बदलना शुरू करें, फिर इसे फिर से शुरू करें।
3ड्रिबल स्प्रिंट्स (Dribbling sprints) करेंः[१०] X रिसर्च सोर्स पावर ड्रिबलिंग के साथ सुसाइड स्प्रिंट्स (suicide sprints) दौड़ें। बेस लाइन से लेकर फ्री-थ्रो लाइन तक ड्रिबल करें और वापस आएँ, फिर थ्री-पॉइंट लाइन पर ड्रिबल करें और वापस आएँ, फिर पूरे कोर्ट पर ड्रिबल करें। हर बार जब भी आप एक पॉइंट पर पहुंचे, तब लाइन को टच करें।
शूटिंग एक्सरसाइज (मेकेनिक्स)
- B=बैलेंस (Balance): शूट करने से पहले सुनिश्चित करें कि आप बैलेंस में हैं। आपके पैरों को कंधे के बराबर चौड़ाई पर रखें, अपने घुटनों को झुकाए रखें और कूदने के लिए तैयार रहें।
- E=आँखें (Eyes): शूट करते समय अपनी आँखों को बास्केट के ऊपर रखें। ऐसा इमेजिन करें, जैसे रिम के सामने एक सिक्का बैलेंस हो रहा है और आप आपके शूट से उसे गिराने की कोशिश कर रहे हैं।
- E=कोहनी (Elbow): शूट करते समय आपकी शूटिंग-एल्बो को आपके शरीर के अंदर की ओर दबाए रखें।
- F=फॉलो थ्रो (Follow Through): सुनिश्चित करें कि आप आपके शॉट के साथ फॉलो थ्रो कर रहे हैं; आपके शूटिंग हैंड में एक आर्क शेप बनना चाहिए।
- C=कोन्संट्रेशन/ध्यानः ये शूटिंग का सबसे जरूरी पार्ट होता है। बॉल जहां भी जाए, उसी पर फोकस करें। जैसे ही आप शूट करने का फैसला कर लें, फिर उसके साथ ही बने रहें और अपने शॉट को करने के ऊपर ध्यान दें।
- अपनी उँगलियों के पैड का इस्तेमाल करें और बॉल को इस तरह से पकड़ें, ताकि आपको आपकी सारी उँगलियों से रौशनी नजर आ सके। जब आप शूट करें, तब बॉल को आपके पीछे की ओर रोल करते हुए बॉल को आपके टार्गेट की ओर धकेलें। इसे "इंग्लिश (English)" या "स्पिन (spin)" कहते हैं।
- इसे लेटकर करने की प्रैक्टिस करेंः आपकी बास्केटबॉल को सीधे हवा में शूट करें, ताकि ये वापस आपके हाथ में लौटकर आए। आप ऐसा कई घंटों तक, म्यूजिक सुनकर या फिर नींद नहीं आने पर कर सकते हैं। बॉल को हूप की ओर बढते हुए आपकी आर्म के एक हिस्से की तरह फील होना चाहिए।
3दोनों साइड्स से ले-अप्स (lay-ups) प्रैक्टिस करेंः एक ले-अप सीधे तौर पर ड्रिबलिंग, मेकेनिक्स और अप्रोच से जुड़ा है।[१४] X रिसर्च सोर्स सही फॉर्म का यूज करके, आपको हर बार एक ले-अप करना चाहिए। ले-अप्स को खासतौर से अपने नॉन-राइटिंग हैंड (जिससे आप लिखते नहीं हैं) से करना खुद को एक ज्यादा वर्स्टाइल प्लेयर बनाने का एक अच्छा तरीका है।
- थ्री-पॉइंट लाइन से एक डाइगोनल पर बास्केट की ओर ड्रिबल करें। जब आप लेन लाइन पर जाएँ, तब आप हूप से केवल दो ही कदम दूर रहेंगे। अगर आप आपके दाएँ पर हैं, तो जब आप आपके दाएँ पैर से लेन लाइन पर स्टेप करते हुए एक लास्ट ड्रिबल करें और अपने बाएँ पैर से कूदें। अगर आप आपके बाएँ पैर पर हैं, तो इसका अपोजिट करें।
- आपके राइट साइड पर, आपके दाएँ हाथ को बॉल के साथ ऊपर लेकर आएँ और साथ में आपके दाएँ घुटने को भी ऊपर लेकर आएँ। ऐसा इमेजिन करें कि आपकी कोहनी एक धागे के साथ आपके घुटने से जुडी है। बॉल को रिम के पीछे के बॉक्स के ऊपरी दाएँ कोने पर लक्षित करके डालें। उसे फोर्स के साथ बाउंस करने की कोशिश न करें--अंदर और ऊपर आने वाली आपकी मोमेंटम या स्पीड सबसे बड़ा काम रहेगा।
शूटिंग एक्सरसाइज (एक्यूरेसी)
- एक ले-अप शूट करने के साथ शुरुआत करें। लेन लाइन और थ्री पॉइंट लाइन के बीच में एक पॉइंट पर तुरंत बेसलाइन पर दौड़ लगाएँ। आपके फ्रेंड से बॉल को पास करने का और वहीं से तब तक शूट करने का कहें, जब तक कि आप इसे कर नहीं लेते। यहाँ से, लेन के कॉर्नर और बेसलाइन के एक पॉइंट के बीच में दौड़ें और एक बार फिर से शॉट करें। फिर कॉर्नर पर मूव करें, फिर फ्री-थ्रो लाइन पर जाएँ। अब जब तक कि आप आपका रास्ता नहीं बना लेते, तब तक इसी तरह से आगे बढते रहें।
- जब आप लाइन में लगातार शॉट्स करते जाएँ, तब थ्री-पॉइंट लाइन पर एक ही पॉइंट्स को शामिल करते हुए बढ़ाएँ।
- देखें आप एक साथ कितने फ्री थ्रो हिट कर सकते हैं।
- जब आप शांत और जब पूरी तरह से थके हों या आपको साँस लेने में मुश्किल हो, तब फ्री-थ्रो शूट करने की प्रैक्टिस करें। अगर आप लाइंस में दौड़ने या फिर ड्रिबलिंग ड्रिल्स करने के बाद हैवी साँस लेते हुए लगातार फ्री-थ्रो कर सकते हैं, तो आप गेम के लिए एक सही शेप में आ चुके होंगे।
3डिफ़ेंड करते हुए फेड-अवेज (fade-aways), हुक शॉट्स (hook-shots), दूसरी क्लोज-रेंज टेक्निक्स की प्रैक्टिस करेंः[१७] X रिसर्च सोर्स एक क्लीन शॉट कर पाना कभी भी आसान नहीं होगा। अगर आप अकेले ही प्रैक्टिस करते आ रहे हैं और सभी दूरी से सभी तरह के शॉट्स कर रहे हैं, तो आपके लिए गेम में जाना और बस लोगों से टकराने की बजाय और कुछ नहीं कर पाना शायद एक शॉक की तरह लगेगा। एक डिफ़ेंडर आपके पीछे रहेगा, आपके चेहरे के सामने आएगा और आप से बॉल छीनने या आपके शॉट को ब्लॉक करने की कोशिश करेगा।
- आपको आपकी आर्म के साथ पीछे की ओर जाने के लिए एक क्विक टर्न-अराउंड शॉट या फेड-अवे शॉट की जरूरत पड़ेगी।[१८] X रिसर्च सोर्स आप आपके पैरों को धकेलने पर मिली स्ट्रेंथ को खोने लग जाएँगे।
4"हॉर्स (Horse)" खेलेंः ये प्लेग्राउंड गेम आपके लिए कोर्ट के सभी कॉर्नर से सही तरीके से शॉट करने की आदत बनाने में मदद के लिए परफेक्ट होता है।[१९] X रिसर्च सोर्स जब आप आपके शॉट्स करते हैं, तब आपके मन में सबसे आसान शॉट करने का ख्याल आ सकता है, लेकिन जब आपके सामने आपके शॉट्स को पकड़ने के लायक किसी को पाते हैं, तब चीजें थोड़ी ज्यादा इंट्रेस्टिंग हो जाती हैं।
डिफेंस की प्रैक्टिस करना (Practicing Defense)
1अपने डिफ़ेंसिव स्टांस या मुद्रा को बनाएँः[२०] X रिसर्च सोर्स एक ऑल-अराउंड गुड बास्केटबॉल प्लेयर बनने के लिए, आपको न केवल थ्री-पॉइंटर करते आना चाहिए, बल्कि डिफेंस में भी जाना और एक शॉट को ब्लॉक भी करते आना चाहिए। अपने डिफेंस गेम को डेवलप करने का पहला स्टेप आपकी मुद्रा को बनाने के साथ शुरू होता है।
- अपने पैरों के बॉल पर खड़े होकर अपने शरीर के साथ एक चौड़ा बेस बनाकर रखें। अपने बट (butt) को नीचे और आपके हिप्स को पीछे रखें।
- आपकी आर्म्स को ऊपर और बाहर रहना चाहिए। अफेंसिव प्लेयर तक जाने या उसे टच करने की बहुत ज्यादा कोशिश मत करें, नहीं तो आपके लिए फ़ाउल कॉल हो जाएगा। उनका इस्तेमाल प्लेयर को डिसट्रेक्ट करने के लिए करें और पास और शॉट्स को ब्लॉक करने की कोशिश करें।
- ध्यान रखें कि आप सामने वाले प्लेयर के पेट या पैरों के ऊपर फोकस नहीं कर रहे हैं। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आपके ऐसा करने पर हर बार वो आपको बास्केट तक ले ही जाएगा।
2अपने शफल स्टेप (shuffle step) प्रैक्टिस करेंः एक कॉमन बास्केटबॉल ड्रिल में कोर्ट में और वापस शफल स्टेपिंग (साइडवेज में तेजी से मूव करना) शामिल होगी।[२२] X रिसर्च सोर्स एक टीममेट से लेफ्ट और राइट ड्रिबल करा के डाइरैक्शन बदलने की प्रैक्टिस करें। मूवमेंट्स की कॉपी करके एक डिफ़ेंसिव स्टांस में पीछे और सामने मूव करें।
3अफेंसिव प्लेयर को अपने पैर से रोक लेंः आपके लीड फुट को अफेंसिव प्लेयर की हूप की लेन के बीच में रखकर, उसको साइडलाइन की ओर धकेलने की कोशिश करें। तो, अगर वो मिडिल में आ रहा है, तो उसे आपके लीडिंग राइट फुट से लेफ्ट में धकेलें। आपको लेन और बास्केट तक की पहुँच को रोकने की जरूरत है, इसलिए अफेंसिव प्लेयर को साइड की तरफ धक्का देने की कोशिश करना, उसके अफेंसिव प्लान को खराब कर देगा।
- एक टीममेट को कोर्ट में एक बेसलाइन से दूसरे बेसलाइन तक ड्रिबल करने के लिए रखें। अपने हाथों को अपने पीछे रखकर, आपके पैरों से ड्रिबलर को उसकी डाइरैक्शन को चेंज करने के लिए फोर्स करके डिफ़ेंसिव खेलें। आपको आगे बने रहने के लिए और उसे बॉल के साथ डाइरैक्ट करने के लिए आपके स्टेप्स को तेजी से शफल करने की जरूरत होगी।
टीमवर्क को बेहतर बनाना (Improving Teamwork)
- एक फास्ट ब्रेक करें। 5 के एक ग्रुप में, बॉल को ड्रिबल किए बिना, बॉल को ग्राउंड से टच करके या फिर बॉल के आपके हाथों में आने पर अपने पैरों को मूव करके पूरे कोर्ट में चक्कर लगाएँ।
- हॉट पोटेटो (hot potato) खेलेंः बैकग्राउंड में चल रहे म्यूजिक पर कंट्रोल करने और अचानक से उसे पॉज करने के लिए किसी को रखें। म्यूजिक के रुकने पर जिस किसी के भी हाथ में बॉल होगी, वो आउट हो जाएगा। आपको बहुत तेजी से स्मूदली बॉल को ड्रिबल किए बिना पास करना होगा। जब आपको बॉल मिले, फिर उसे पास करने के लिए किसी को ढूंढें।
2अपनी पोजीशन के रोल को समझेंः अगर आप टीम के लिए खेलते हैं, तो आपका एक ऐसा खास रोल होगा, जिसे आपको गेम में खेलना होगा। भले आपके लिए हर बार आपके हाथ बॉल से टच होने पर एक थ्री पॉइंटर पर ड्रॉप बैक करना मजेदार लगेगा, लेकिन असल में सेंटर में केवल यही एक काम करने का नहीं होता। अपने टीममेट्स और आपके कोच से बात करके गेम के दौरान आपकी रहने वाली पोजीशन के बारे में पता करें।
- पॉइंट गार्ड (point guard) कोर्ट जनरल होता है। इस पोजीशन पर, आपको कोर्ट को देखना होता है और ओफ़ेन्स को सेट करना होता है। आपको एक सेल्फलेस (अपने बारे में सोचे बिना) पास करना और एक अच्छा शूटर बनना होगा। इसके साथ ही आपकी बॉल और कोर्ट के विजन के ऊपर एक अच्छी पकड़ रहनी चाहिए।
- शूटिंग गार्ड (shooting guard) पॉइंट गार्ड का एक बैकअप होता है। आमतौर पर, ये टीम का बेस्ट शूटर या अफेंसिव प्लेयर होता है।
- स्माल फॉरवर्ड (small forward) सबसे ज्यादा वर्स्टाइल होता है। इसके लिए आपको ओफ़ेन्स या डिफेंस में रीबाउंड्स के लिए जाने की क्षमता के साथ एक अच्छा शूटर होना पड़ेगा और साथ ही एक बार फिर से ओफ़ेन्स तैयार करने के लिए आपको बॉल को वापस गार्ड्स के पास में किक करने लायक होना चाहिए।
- पावर फॉरवर्ड (power forward) एक अच्छा डिफ़ेंसिव प्लेयर होता है और लेन में भी एक शानदार प्लेयर होता है। ये शायद टीम का सबसे बड़ा फिजिकल प्लेयर भी होता है।
- सेंटर (बाकी चीजों में से) शायद टीम का सबसे लंबा प्लेयर होता है। आपको ओफ़ेन्स में लेन के गेम को कंट्रोल करने की काबिलियत के साथ में एक शानदार रीबाउंडर और पासर भी होना होगा।
- इन्स्पिरेशन के लिए दूसरे प्लेयर्स का इस्तेमाल करें। जब आप नेशनल गेम या कॉलेज गेम देखें, खासतौर से उस प्लेयर को देखें, जो ठीक उसी पोजीशन पर खेलता है, जिस पर आप भी खेलते हैं। जब शूटिंग गार्ड एक थ्री पॉइंट का शॉट लेता है, तब पावर फॉरवर्ड कहाँ पर रहता है? जब सेंटर ओफ़ेन्स पर रीबाउंड के लिए जाता है, तब गार्ड क्या करता है?
3क्लीन पिक्स या स्क्रीन सेट करना सीखेंः एक पिक को तब सेट किया जाता है, जब आप ओफ़ेन्स में होते हैं और डिफ़ेंसिव प्लेयर को अपने शरीर से ब्लॉक करके अपने टीममेट्स को बॉल के लिए एक क्लियर लेन देते हैं।[२६] X रिसर्च सोर्स इसमें आपको अपने पैरों को सफाई के साथ सेट करना और स्टेटिक रखना होता है, नहीं तो इसे एक फ़ाउल कह दिया जाएगा। इसमें अपने टीममेट के साथ में बहुत अच्छे तरह से कम्यूनिकेशन की जरूरत होती है, जो आपको प्लेयर में ड्राइव करने की बजाय, डिफ़ेंसिव प्लेयर को पिक में ड्राइव करेगा।
- सीधे और स्ट्रेट खड़े रहें, अपने हाथों को कम के लेवल पर अपने सामने रखें और अपने पैरों को फर्श पर रखें। आपके टीममेट को आपके आसपास का भार संभालने दें। स्ट्रॉंग रहें और अपने किसी भी झटके को सहने के लिए तैयार रहें।
4ऐसे क्रिएटिव प्ले तैयार करें, जिसमें आपकी टीम की स्ट्रेंथ का इस्तेमाल हो सकेः इसमें डिफेंस को तोड़ने का और बॉल को शॉट के लिए किसी ओपन प्लेयर के पास भेजने का मकसद होना चाहिए।[२७] X रिसर्च सोर्स बेसिक पिक पेटर्न नेम दें और पॉइंट गार्ड को उन्हें ओफ़ेन्स में लेकर जाने दें। डिफ़ेंडर के लिए इसे कोन के साथ में प्रैक्टिस करें और अपनी टाइमिंग में सुधार करें।
- बेस्ट बेसिक प्ले फॉरवर्ड में से किसी एक के लिए बाहर आना और गार्ड के लिए एक पिक सेट करना होगा। गार्ड फिर लेन के अंदर ड्राइव करेगा और उसे वापस फॉरवर्ड किक करेगा, जिसे या तो ओपन रहना चाहिए या फिर गार्ड को असल में गार्ड कर रहे शॉर्टर डिफ़ेंडर के साथ मैच (शायद) करना चाहिए।
मेंटल और फिजिकल स्टैमिना डेवलप करें (Developing Mental and Physical Stamina)
1रेगुलरली दौड़ लगाएँः बास्केटबॉल के एक फुल-कोर्ट गेम में काफी ज्यादा दौड़ लगाना होती है। ऐसे प्लेयर्स जिन्हें दौड़ने की आदत नहीं रहती, वो बहुत तेजी से थक जाते हैं। अगर आप कोर्ट में आपके विरोधियों का आखिरी तक सामना कर सकते हैं, तो आपका एक बेस्ट डिफ़ेंडर या शूटर बनने की कोई जरूरत नहीं रहेगी। यहाँ पर अपना स्टैमिना बढ़ाने के लिए कुछ रनिंग ड्रिल्स दी हुई हैंः
- सुपरमैन ड्रिल (Superman Drill): कोर्ट में, एक बेसलाइन से स्टार्ट करें और सबसे करीबी फ्री थ्रो लाइन तक दौड़ें। अपनी फिंगरटिप्स पर 5 पुशअप्स करें, फिर खड़े हों और वापस ओरिजिनल बेसलाइन तक दौड़ें, फिर थ्री-पॉइंट लाइन तक दौड़ें, ड्रॉप करें और 10 पुश-अप्स करें और कोर्ट की हर एक लाइन पर, पीछे और सामने तब तक इसी तरह से आगे बढ़ें, जब तक कि आप पहली लाइन पर वापस नहीं आ जाते। जब आप थके हों, तब ड्रिल के बाद में कम से कम 10 फ्री थ्रो करें।
- "किल ड्रिल (Kill Drill)": ये एक फुल कोर्ट, डाउन और बैक टाइम ड्रिल है। अगर आप आपके शेप में नहीं हैं, तो बस 1 मिनट 8 सेकंड (बेसलाइन से शुरू करके, दूसरे तक दौना और वापस ओरिजिनल पर आना) 4 से 6 "डाउन एंड बैक" के साथ शुरुआत करें। ये शायद 160 feet (48.8 m) तक दौड़ने के लिए काफी समय लग रहा होगा। जब आपका थोड़ा स्टैमिना बन जाए, फिर 13 डाउन और बैक को 68 सेकंड में करके देखें। फिर से, थके होने पर कम से कम 10 फ्री थ्रो शूट करें।
2गेम के बारे में आप से जितना हो सके, उतना सीखेंः[२८] X रिसर्च सोर्स स्मार्ट खेलना, सही तरीके से खेलने के जितना ही जरूरी होता है। बास्केटबॉल के नेशनल गेम के नियम आपको ऑनलाइन मिल जाएंगे, इसलिए अच्छा होगा अगर आप गेम शुरू करने के पहले ही उन्हें देख, और समझ लें। उसमें आपको ऐसी कोई बात भी स्पष्ट रूप से समझ आ जाएगी, जिसे आपने शायद गलत समझ लिया।
- दूसरे प्लेयर्स से बात करें, वेबसाइट्स चेक करें, कोच से उनकी सलाह के लिए पूछें। कुछ हिस्टोरिकल रूल्स के बारे में जानकारी होना भी मदद करता है। पुराने गेम्स देखें, स्ट्रीटबॉल गेम्स देखें, बास्केटबॉल के इन्वेन्शन के बारे में पढ़ें।
3हमेशा एक टीम प्लेयर बनेंः ओपन प्लेयर की तलाश करें और बॉल को पास करें। बॉल जब आपके हाथ में हो, तब उसे अपने पास ही न रखें और कोशिश करें कि ऐसे शॉट्स करने से बचने की कोशिश करें , जिनसे आपके टीम के पॉइंट बर्बाद होने की उम्मीद हो।
- रस्सी कूदने की कोशिश करें। रस्सी को जितना हो सके, उतना फास्ट, लंबा और हार्ड कूदें। आप इसे जितना बेहतर करेंगे, कोर्ट में आपका फुटवर्क उतना ही तेज हो जाएगा।
5काफी सारे पुश-अप्स, खासकर फिंगरटिप पुश-अप्स (fingertip push-ups) करेंः अगर आपकी उँगलियाँ स्ट्रॉंग होंगी, तो आप आपकी हथेली की बॉल पर बेहतर पकड़ को देखकर सरप्राइज़ हो जाएंगे। भले आपको लगता है कि आपके हाथ इतने बड़े नहीं कि आपकी हथेली में बॉल आ सके, फिर भी अगर आपकी उँगलियाँ स्ट्रॉंग हुई, तो इसे किया जा सकता है।
6आपकी कोर स्ट्रेंथ के ऊपर काम करेंः[३०] X विश्वसनीय स्त्रोत Mayo Clinic स्त्रोत (source) पर जायें एब्डोमिनल क्रंचेस (abdominal crunches), लेग लिफ्ट्स (leg lifts), प्लैंक (plank) और लोअर बैक एक्सटैन्शन ( lower back extensions)। अगर आपके कोर स्ट्रॉंग होंगे, तो आप बखूबी हिट कर सकेंगे और रिम तक पूरा भी खेल पाएंगे।
- अपने स्टैमिना को बढ़ाने के लिए दौड़ें। ये गेम के दौरान आपकी मदद करेगा।
- अपने पैरों के लिए हमेशा स्क्वेट्स (squats) जैसे वर्कआउट करें।
- लगातार बास्केट शूट करें, मजबूत उँगलियों के लिए फिंगर पुश अप्स करें, ताकि आप बॉल को आसानी से हैंडल कर पाएँ।
- नारियल पानी पीकर हाइड्रेटेड रहें। इससे आपको काफी पोटेशियम मिलेगा और इसमें किसी स्पोर्ट्स ड्रिंक से काफी कम शुगर होगी।
- डिफेंस के लिए, अपनी आर्म्स को फैलाकर वॉल सिट्स (wall sits) करें।
- जब भी आप गेम के पहले नर्वस फील करें, म्यूजिक सुनें और अपने जोन में आएँ।
- खेल के दौरान ज्वेलरी न पहनें। गेम के बीच में ज्वेलरी से चोट लगना आपकी सोच से भी कहीं ज्यादा दर्द पहुंचा सकता है।
- हर जगह, चाहे आपका बेडरूम हो या जिम, अपने शफल स्टेप्स की प्रैक्टिस करें।
- जब आप शूट करें, आपकी कोहनी को अपने हाथ के नीचे रखें। अपनी कोहनी को बार रख के शूट न करें।
- BEEF फॉलो करें। Beef का मतलब बैलेंस (Balance), कोहनी (Elbow) आँखें (Eyes) और फॉलो थ्रो (Follow through) होता है।
- अपने कोच की बात सुनें। अगर आपको लगता है कि चीजों को केवल "आप ही के तरीके" से किया जा सकता है, तो आपके लिए सुधार करना मुश्किल होगा। इसलिए अपने कोच की बात सुनें और उन्हीं से सीखें। ज़्यादातर कोच को काफी एक्सपीरियंस रहता है और उनसे सीखना आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा।
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e6760bd2c3d947f9bddf0d31bc997b4fecaa5f38 | web | अमिताभ भट्टाचार्य बॉलीवुड फ़िल्मों में कार्यरत एक भारतीय गीतकार और पार्श्व गायक हैं। उनके गीतों को "फ्रिलफ्री" और "स्मार्टली वर्डेड" के रूप में वर्णित किये गए हैं। .
35 संबंधोंः चांस पे डांस, एजेंट विनोद, देली बेली, देव-डी, नो वन किल्ड जेसिका, प्रीतम, बप्पी लाहिड़ी, बर्फी!, बॉम्बे टॉकीज़ (फ़िल्म), बॉलीवुड हँगामा, भारत, ये जवानी है दीवानी, राम सम्पत, लखनऊ, लुटेरा (२०१३ फ़िल्म), शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी, शंकर-एहसान-लॉय, सलीम-सुलेमान, हाउसफुल (2010 फ़िल्म), हिन्दी सिनेमा, घनचक्कर (फ़िल्म), वन्स अपॉन ए टाईम इन मुम्बई (2010 फ़िल्म), विशाल-शेखर, वेक अप सिड (2009 फ़िल्म), गो गोआ गॉन, गीतकार, केन घोष, कॉकटेल, अदनान सामी, अनुराग कश्यप, अमित त्रिवेदी, अज़ान (फ़िल्म), अग्निपथ (2012 फ़िल्म), उड़ान (२०१० फ़िल्म), उत्तर प्रदेश।
चांस पे डांस बॉलीवुड की नाटाकीय फ़िल्म है जिसमें मुख्य अभिनय भूमिका में शाहिद कपूर और जेनेलिया डिसूज़ा हैं। इसके निर्देशक केन घोष हैं और निर्माता रोनी स्क्रूवाला हैं जिसे यूटीवी मोशन पिक्चर्स के बैनर तले बनाया गया है। फ़िल्म 15 जनवरी 2010 को जारी की गयी .
एजेंट विनोद (Agent Vinod) 2012 में बनी हिन्दी फिल्म है जिसमें अभिनेता सैफ़ अली ख़ान मुख्य भुमिका में दिखाई देंगे। फिल्म का निर्माण सैफ अली खान ने अपने खुद के बैनर इलुमिनाटी फिल्म्स के तले किया है। शरुअत में फिल्म को दिसंबर 2011 में रिलीज किया जाना था पर शूटिंग में देरी के चलते इसे 23 मार्च 2012 को ढकेल दिया गया। .
देली बेली (Delhi Belly) २०११ में बनी भारतीय फ़िल्म है जिसे अंग्रेज़ी व हिन्दी दोनों में चित्रित किया गया है। .
देव-डी, 6 फ़रवरी 2009 को प्रदर्शित एक हिन्दी रोमांटिक नाटक फिल्म है। फिल्म का लेखन और निर्देशन अनुराग कश्यप ने किया है। फिल्म शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के कालजयी बंगाली उपन्यास देवदास का आधुनिक संस्करण है। इसके अलावा इस उपन्यास पर आधारित अन्य फ़िल्में पी सी ब्रूवा, बिमल रॉय और संजय लीला भंसाली बना चुके हैं। इस फ़िल्म को समालोचकों और जनता ने पसंद किया और जिस तरीके से इसने अपने आप को पेश किया उसके लिए इसे हिंदी की पथ तोड़ने वाली फिल्मों में से एक माना गया। .
नो वन किल्ड जेसिका 2011 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। फ़िल्म का निर्माण यूटीवी मोशन पिक्चर्स के बैनर तले हुआ और इसका निर्देशन राजकुमार गुप्ता ने किया जिन्होंने इससे पहले आमिर (2008) का भी निर्देशन किया। .
प्रीतम चक्रबोर्ती (चक्रवर्ती) (बंगालीः প্রীতম চক্রবর্ত্তী) जिन्हें प्रीतम के नाम से बेहतर जाना जाता है, (14 जून 1971) बॉलीवुड फिल्मों के एक प्रख्यात भारतीय संगीत निर्देशक, संगीतकार, गायक, वादक और रिकार्ड निर्माता है जो वर्तमान में मुम्बई में रहते हैं।। लगभग डेढ़ दशकों में फैले कैरियर में, प्रीतम ने सौ से अधिक बॉलीवुड फिल्मों के लिए संगीत रचना की है। कई शैलियों को कवर कर चुके प्रीतम भारत में सबसे बहुमुखी संगीत संगीतकारों में से एक हैं। वह 2 फिल्मफेयर पुरस्कार, 4 जी सिने अवार्ड्स, 3 स्टार स्क्रीन पुरस्कार, 3 आईफा पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कार जीत चुके हैं। .
बप्पी लाहिड़ी बप्पी लाहिड़ी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। सोने के गहनोँ से लदे बप्पी लाहिरी के संगीत में अगर डिस्को की चमक-दमक नज़र आती है तो उनके कुछ गाने सादगी और गंभीरता से परिपूर्ण हैं। उनका असली नाम अलोकेश लाहिड़ी है। तीन साल की उम्र में उन्होँने तबला बजाना शुरू कर दिया था व जब वे 14 साल के हुए तो पहला संगीत दिया। .
बर्फी! 2012 में प्रदर्शित रोमेंटिक हास्य-नाटक हिन्दी फ़िल्म है जिसके लेखक, निर्देशक व सह-निर्माता अनुराग बसु हैं। 1970 के दशक में घटित फ़िल्म की कहानी दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी "बर्फी" जॉनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और मंदबुद्धि के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डी'क्रूज़ हैं तथा सहायक अभिनय करने वाले सौरभ शुक्ला, आशीष विद्यार्थी और रूपा गांगुली हैं। लगभग के बजट में बनी, बर्फी! विश्व स्तर पर 14 सितम्बर 2012 को व्यापक समीक्षकों की प्रशंसा के साथ प्रदर्शित हुई। समीक्षकों ने अभिनय, निर्देशन, पटकथा, छायांकन, संगीत और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के सकारात्मक चित्रण की प्रशंसा की। फ़िल्म को बॉक्स-ऑफिस पर बड़ी सफ़लता प्राप्त हुई, परिणामस्वरूप यह भारत और विदेशों में 2012 की उच्चतम अर्जक बॉलीवुड फ़िल्मों की श्रेणी में शामिल हुई तथा तीन सप्ताह पश्चात बॉक्स ऑफिस इंडिया द्वारा इसे "सूपर हिट" (उत्तम सफलता) घोषित कर दिया गया। दुनिया भर में फ़िल्म ने अर्जित किए। फ़िल्म को 85वें अकादमी पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी के नामांकन के लिए भारतीय आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। बर्फी ने भारत भर के विभिन्न पुरस्कार समारोहों में कई पुरस्कार और नामांकन अर्जित किए। 58वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में इस फ़िल्म ने 13 नामांकन प्राप्त किए और इसने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तथा प्रीतम को मिले सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार सहित सात (अन्य किसी भी फ़िल्म से अधिक) पुरस्कार जीते। .
बॉम्बे टॉकीज़ (फ़िल्म)
बॉम्बे टॉकीज़, २०१३ में प्रदर्शित बॉलीवुड की प्रयोगधर्मी फ़िल्म है। वायकॉम मोशन पिक्चर्स और फ्लाइंग यूनीकॉन एंटरटेनमेंट की फिल्म यह फ़िल्म बॉम्बे टॉकीज़ भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बनाई गई है। यह फ़िल्म चार अलग-अलग निर्देशकों द्वारा निर्मित की गई है और प्रत्येक निर्देशक द्वारा परस्पर एक दूसरे से भिन्न भाग बनाये गये हैं। .
बॉलीवुड हंगामा (पहले इण्डियाएफएम अथवा इण्डियाएफएम डॉट कॉम नाम से प्रचलित) बॉलीवुड की प्रमुख मनोरंजन वेबसाइट है, जो "हंगामा डिजिटल मीडिया एंटरटेनमेंट" के अधीन है, जिसने इस बॉलीवुड पोर्टल का अधिग्रहण सन् 2000 में किया। यह वेबसाइट भारतीय फ़िल्म उद्योग, मुख्य रूप से बॉलीवुड, फ़िल्म समीक्षाएँ एवं बॉक्स ऑफिस रपट से सम्बंधित समाचार प्रकाशित करती है। इसका प्रमोचन 15 जून 1998 में मूल नाम इण्डियाएफएम डॉट कॉम (indiafm.com) से हुआ। 2008 में इसने अपना नाम बदलकर "बॉलीवुड हंगामा" रख लिया। जनवरी 2013 के आँकड़ों के अनुसार इसकी यातायात वर्ग भारत में 444 है। .
भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायोंः हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
ये जवनी है दीवानी २०१३ में प्रकाशित बॉलीवुड की हास्यप्रधान और युवा पसन्द फिल्म है जिसके निर्माता करण जौहर हैं और यह अयान मुखर्जी द्वारा निर्देशित है। इस फील्म में मुख्य भूमिकाओं में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण हैं। २००८ की फील्म बचना ऐ हसीनो के बाद एक साथ प्रथम फील्म है। आदित्य रॉय कपूर और कल्की केकलां सहकलाकार हैं। पहले इसे मार्च २०१३ में प्रदर्शित किया जाना तय हुआ था लेकिन बाद में ३१ मई २०१३ को प्रदर्शित की गई। .
राम सम्पत एक भारतीय संगीतज्ञ और संगीत निर्देशक हैं।.
लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .
लुटेरा (२०१३ फ़िल्म)
लुटेरा 2013 की बॉलीवुड की प्रेमकहानी नाटक फ़िल्म है जो विक्रमादित्य मोटवानी द्वारा निर्देशित है और ओ हेनरी की लघुकथा द लास्ट लीफ पर आधारित है। इसे १९५० के दशक पर आधारित बनाया गया है। इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा हैं। इस फ़िल्म के निर्माता अनुराग कश्यप, एकता कपूर, शोभा कपूर और विकास बहल हैं। फ़िल्म का पार्श्व गीत और पृष्ठभूमि अमित त्रिवेदी द्वारा तथा सम्पूर्ण संगीत अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा तैयार किया गया है तथा चलचित्रण महेन्द्र जे॰ शेट्ठी द्वारा निर्मित है। यह फ़िल्म वैश्विक स्तर पर 5 जुलाई 2013 को प्रदर्शित हुई। .
शिरीन फरहाद की तो निकल पड़ी 2012 की बेला भंसाली सहगल द्वार निर्देशित और फराह खान, बोमन ईरानी, शम्मी, कुरुष देबू और डेजी ईरानी द्वारा अभिनीत बॉलीवुड हास्य प्रेमकहानी फ़िल्म है। .
शंकर-एहसान-लॉय(अंग्रेजीः Shankar-Ehsaan-Loy) भारतीय संगीतकार तिकड़ी है, यह तिकड़ी शंकर महादेवन, एहसान नूरानी और लॉय मेंडोंसा से मिल कर बनी है और कई भारतीय फिल्मों के लिए संगीत प्रदान करती है। ये बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय और समीक्षकों के द्वारा बहुप्रशंसित संगीत निर्देशकों में एक हैं। उन्होंने कई फिल्मों के लिए प्रसिद्द कार्य किये जैसे मिशन कश्मीर(2000), दिल चाहता है (2001),कल हो ना हो (2003), बंटी और बबली (2005), कभी अलविदा ना कहना (2006), डॉन- द चेस बिगिन्स अगेन (2006), तारे ज़मीं पर (2007), रोक ऑन !! (2008), वेक अप सिड (2009), माय नेम इस खान (2010), कार्तिक कॉलिंग कार्तिक (2010) और हाउसफुल(2010)। .
सलीम और सुलेमान हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीत निर्देशक और गायक हैं। यह एक दो भाइयों की जोड़ी है जिसमे, सलीम मर्चेंट और सुलेमान मर्चेंट शामिल हैं। सलीम और सुलेमान पिछले एक दशक से अधिक से फिल्मों के लिए संगीत रचना कर रहे हैं, इनकी प्रसिद्ध फिल्मों मे शामिल हैं, चक दे! इंडिया, भूत, मुझसे शादी करोगी, मातृभूमि और फैशन। एक प्रदर्शन में सलीम-सुलेमान इस जोड़ी ने कई भारतीय पॉप बैंड के लिए भी संगीत तैयार किया है जिनमें वीवा, आसमां, श्वेता शेट्टी, जैस्मीन और स्टाइल भाई आदि शामिल हैं। इन्होने कई टीवी विज्ञापनों का निर्माण और संगीत निर्देशन किया है जिसमे इनका सहयोग उस्ताद जाकिर हुसैन और उस्ताद सुल्तान खान जैसे कलाकारों ने किया है। इन्हें इनका पहला मौका करण जौहर ने अपनी फिल्म काल की संगीत रचना करने के लिए दिया था। उसके बाद, इन्होने कई बड़े निर्माताओं और निर्देशक जैसे यश चोपड़ा, सुभाष घई और राम गोपाल वर्मा के साथ फिल्में की हैं। गीत संगीत रचना से पहले, वे फिल्मों मे पार्श्व संगीत रचना करते रहे हैं। कुछ डरावनी फिल्मों में उनका पार्श्व संगीत बहुत पसंद किया गया।.
हाउसफुल (2010 फ़िल्म)
हाउसफुल ३० अप्रैल २०१० को प्रदशित होने वाली एक बॉलीवुड फिल्म है जिसका निर्देशन साजिद खान ने किया है। फिल्म के प्रमुख सितारों में अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अर्जुन रामपाल, लारा दत्ता, दीपिका पादुकोण और जिया खान हैं। फिल्म के अन्य चरित्र बोमन ईरानी और रणबीर कपूर ने निभाए हैं। फिल्म के एक गाने में जैकलीन फर्नांडीज़ विशेष भूमिका में हैं। फिल्म में संगीत शंकर-अहसान-लॉय का है। फिल्म को अधिकतर लंदन में फिल्माया गया है। .
हिन्दी सिनेमा, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलिवुड के तर्ज़ पर रखा गया है। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और दुनिया के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं। हर फ़िल्म में कई संगीतमय गाने होते हैं। इन फ़िल्मों में हिन्दी की "हिन्दुस्तानी" शैली का चलन है। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बईया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में उपयुक्त होते हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। ज़्यादातर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं।भारत में सबसे बड़ी फिल्म निर्माताओं में से एक, शुद्ध बॉक्स ऑफिस राजस्व का 43% का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि तमिल और तेलुगू सिनेमा 36% का प्रतिनिधित्व करते हैं,क्षेत्रीय सिनेमा के बाकी 2014 के रूप में 21% का गठन है। बॉलीवुड भी दुनिया में फिल्म निर्माण के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। बॉलीवुड कार्यरत लोगों की संख्या और निर्मित फिल्मों की संख्या के मामले में दुनिया में सबसे बड़ी फिल्म उद्योगों में से एक है।Matusitz, जे, और पायानो, पी के अनुसार, वर्ष 2011 में 3.5 अरब से अधिक टिकट ग्लोब जो तुलना में हॉलीवुड 900,000 से अधिक टिकट है भर में बेच दिया गया था। बॉलीवुड 1969 में भारतीय सिनेमा में निर्मित फिल्मों की कुल के बाहर 2014 में 252 फिल्मों का निर्माण। .
घनचक्कर (फ़िल्म)
घनचक्कर २०१३ में प्रदर्शित बॉलीवुड हास्य और रहस्यमय फ़िल्म है जिसका निर्देशन राजकुमार गुप्ता ने किया है तथा यह रॉनी स्क्रूवाला और सिद्धार्थ राय कपूर ने यूटीवी मोशन पिक्चर्स के अधिन निर्मित की। फ़िल्म में इमरान हाशमी और विद्या बालन मुख्य भूमिका में हैं। यह 28 जून 2013 क्प प्रदर्शित हुई। .
वन्स अपॉन ए टाईम इन मुम्बई (2010 फ़िल्म)
वन्स अपॉन ए टाईम इन मुम्बई 2010 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
विशाल-शेखर हिन्दी फिल्मों के संगीत निर्देशन की एक जोड़ी है (विशाल दादलानी और शेखर रवजियानी).
वेक अप सिड (2009 फ़िल्म)
वेक अप सिड 2009 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .
गो गोआ गॉन ज़ॉम्बीज़ पर बनी राज निदिमोरु और कृष्णा डीके द्वारा निर्देशित और सैफ़ अली ख़ान, कुणाल खेमू, वीर दास, पूजा गुप्ता एवं आनंद तिवारी अभिनीत बॉलीवुड की 2013 फ़िल्म है। यह 10 मई 2013 को जारी की गयी और समीक्षकों से मिश्रित समीक्षाएं प्राप्त कर पायी, जिसने टिकट-खिडकी पर औसत से अच्छा धन अर्जित किया। गो गोआ गॉन को इसकी कटोर भाषा (अभिशाप्त शब्दों) के कारण 'व' प्रमाण पत्र मिला। .
गीतकार गीतों की रचना करते हैं। उनका काम बोल यानी शब्द लिखना होता हैं। उन्हें ऐसे शब्द लिखने होते हैं कि संगीतकार उचित धुन के साथ उन्हें निर्मित करें। भारतीय फिल्मों में संगीतकारों के साथ गीतकारों का बहुत महत्व है। हिन्दी फ़िल्मों में कई प्रकार के गीतकार रहे हैं। कुछ गजल और सूफ़ी परम्परा के बोल लिखते तो दूसरी ओर कुछ सरल भाषा का उपयोग करते हैं। .
केन घोष भारतीय हिन्दी फ़िल्म निर्देशक और पटकथा लेखक हैं। वो फ़िल्मे और टीवी धारावाहिक निर्माता भी हैं। .
कॉकटेल २०१२ में बनी हिन्दी रोमांस कॉमेडी फ़िल्म है जिसका निर्देशन होमी अदजानिया द्वारा किया गया है। फ़िल्म में सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, डियाना पेंटी, डिम्पल कपाडिया, बोमन ईरानी और रणदीप हूडा मुख्य भूमिकाओं में है। फ़िल्म को १३ जुलाई २०१२ को रिलीज़ किया गया। .
अदनान सामी अदनान सामी खान एक भारतीय गायक, संगीतकार और अभिनेता हैं। .
अनुराग सिंह कश्यप (जन्म 10 सितम्बर 1972) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश कें गोरखपुर जिले में हुआ और वह विभिन्न शहरों में पले-बढे। उन्होनें अपनी शिक्षा देह्ररादून और ग्वालियर में की और उनकी कुछ फिल्मों में इन शहरों की छाप देखने को मिलती हैं, विशेष रूप से गैग्स ऑफ वासेपुर, जहाँ उन्होनें उस घर का प्रयोग किया जहाँ वह पले-बढे। फिल्में देखने का शौक उनहें बचपन से ही था, पर यह स्कूली शिक्षा के के द्वारान छूट गाया। यह शौक दोबरा कॉलेज में जागृत हुआ। यहाँ एक थिएटर टोली से संगठित होकर जब वह एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में उपस्थित हुए तो उनमें फिल्मे' बनाने की चेतान जागी। यहीँ से उनकी कैरियर की शुरुआत हुई। टेलीविजन सीरियल के लिए लिखने के बाद, अनुराग को रामगोपाल वर्मा के अपराध नाटक फिल्म सत्या में सह-लेखन का कार्य मिला। उन्होंने अपने निर्देशन का कार्य फिल्म पाँच से शुरुआत की। जो कि केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के कारण प्रदर्शित नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने 1993 के मुंबई पर बम विस्फोट के बारे में हुसैन जैदी लिखित पुस्तक पर आधारित एक फिल्म ब्लैक फ्राइडे (2007) का निर्देशन किया। लेकिन इसका प्रदर्शन केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा लंबित किए जाने के कारण 2 साल बाद हो सका, लेकिन 2007 में प्रदर्शित होने के बाद इसे काफी सराहना प्राप्त हुई। इसके बाद अनुराग ने नो स्मोकिंग (2007) बनाई जिसने बॉक्स ऑफिस पर खराब प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने देवदास के आधुनिक संस्करण पर आधारित पर फिल्म देव डी (2009) बनाई जिसे काफी व्यवसायिक सफलता प्राप्त हुई। उसके बाद उन्होंने एक राजनीतिक नाटक फिल्म गुलाल (2009) और दैट गर्ल इन यैलो बूट्स (2011) फिल्मों का भी निर्देशन किया। 2012 में आई उनकी फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर-भाग १ और भाग २ ने इनके निर्देशन का नया किर्तीमान बनाया। इस फिल्म ने न केवल व्यवसायिक रुप से सफल रही बल्कि समीक्षकों ने भी इसे काफी सराहा। .
अमित त्रिवेदी बॉलीवुड फ़िल्मों में कार्यरत एक भारतीय वादक, रिकार्ड निर्माता, गायक, संगीतकार, गीतकार। थिएटर, विज्ञापनों, एवं गैर-फ़िल्मी एल्बमों में संगीतकार के रूप में कार्य करने के बाद हिंदी फिल्मों में संगीतकार के रूप में उनकी शुरुआत २००८ में फिल्म 'आमिर' से हुई। वर्ष २००९ में 'देव डी' में संगीत देने के लिए उन्हें अपार ख्याति के साथ ही उन्हें २०१० के 'सर्वश्रेष्ठ संगीतकार' का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। .
अज़ान (फ़िल्म)
अज़ान (Aazaan, أذان) २०११ में प्रशांत चढ्ढा द्वारा बनाई गई एक्षन फिल्म है जिसमें सचिन जोशी एवं कैंडिस बाऊचर मुख्य कलाकार है। यह भारत में बनी महंगी फिल्मो में से एक है। .
अग्निपथ (2012 फ़िल्म)
अग्निपथ 2012 में बनी हिन्दी फ़िल्म है जिसका निर्माण करण जोहर द्वारा किया गया है। यह १९९० में बनी इसी नाम की फ़िल्म का रीमेक है। फ़िल्म में ऋतिक रोशन ने मुख्य किरदार विजय दीनानाथ चौहान की भूमिका में है जिसे पहले अमिताभ बच्चन ने अदा किया था। संजय दत्त मुख्य गुंडे की भूमिका में है। अग्निपथ को २६ जनवरी २०१२ को रिलीज़ किया गया और समीक्षकों द्वारा काफ़ी सराहा गया। .
उड़ान (२०१० फ़िल्म)
उड़ान २०१० कि, विक्रमादित्य मोटवनी द्वारा निर्देशित व संजय सिंह, अनुराग कश्यप और रोनी स्क्रूवाला द्वारा निर्मित एक हिन्दी फ़िल्म है। यह अनुराग कश्यप के वास्तविक जीवन पर आधारित है। फिल्म को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र के कुछ संबंध (थोड़ी झल्कि) श्रेणी मे २०१० कान फिल्म समारोह में प्रतिस्पर्धा करने के लिए चुना गया था। फिल्म बॉक्स आफिस पर तुरंत सफल नहीं हुई, लेकिन अंततः एक क्लासिक पंथ के रूप में मानी गई। .
आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .
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95cbb63436c6d1b30151329c2d3f8028ffbc781c7b004234a99dff960ec3ef05 | pdf | से कहते हैं ।
वह प्रसिद्ध अज्ञान स्वप्न में भी अज्ञात नहीं रह सकता और ज्ञान भी सभी अवस्थाओं में सदा ही स्वयं प्रकाशमान रहता है । चूँकि अज्ञान सदा ही साक्षी द्वारा भासित होता है, ज्ञान स्वयंप्रकाश होने से स्वतः ही प्रकाशमान रहता है और इन दोनों का वैधर्म्य अनुभव से ही प्रस्फुरित है, इसलिए ज्ञानअज्ञान का विवेक हो जाने से आत्मज्ञानरूप योग सरल है, प्राणनिरोधरूप योग वैसा न होने से दुष्कर है, यह भाव है ॥९॥
प्रशस्त देश, काल, विषय आदि बाह्य हेतुओं की अपेक्षा होने से भी योग दुष्कर है, यों कहते हैं। चूँकि, यह प्राणसंरोधरूप योग धारणादेश (बाह्य पर्वत - शिखर, चन्द्र, तारा आदि देश और आन्तर हृदय, कण्ठ, तालुमूल, भ्रूमध्य आदि देश), आसन- देश (सम, पवित्र, कंकड़, अग्नि और बालुका से वर्जित; कलकल ध्वनि, जलाश्रय आदि से शून्य; मनोहर; चक्षु में पीडा न पहुँचानेवाला आदि विशेषणों से श्रुतिस्मृति में वर्णित आसनदेश) आदि से साध्य है, अतः सुख साध्य नहीं हो सकता। (निरुत्साह, मूढबुद्धि, मूर्ख कापुरुषों की नाईं पण्डित, समर्थ और प्रयत्नशील अधिकारी पुरुष को शास्त्रीय साधनों में सुखसाध्यत्व और कष्टसाध्यत्व का विकल्प कर चिन्ता करना उचित नहीं, इस आशय से कहते हैं।) श्रीरामजी, अथवा आपके लिए सुखसाध्यत्व और कष्टसाध्यत्व का विचार करना उचित नहीं है ॥१०॥
इस प्रकार अवान्तर प्रश्न का (बीच में आये हुए 'कतरः शोभनः' वाले प्रश्न का) निरास कर पहले प्रश्न का उत्तर देने के लिए उपक्रम करते हैं ।
हे रघुवीर, ज्ञान और योग - ये दोनों ही उपाय शास्त्रों में कहे गये हैं। उन दोनों में से आत्मपदार्थरूप ज्ञेय को निर्मल करनेवाला सब ज्ञानों से परे स्थित आत्मज्ञान आपको बतलाया गया ॥११॥ हे साधो, अब आप यह योग सुनिए जो कि प्राण और अपान की समतारूप से प्रसिद्ध है, दृढ़ देहरूपी गुहा का आश्रय करनेवाला है, सिद्धि की इच्छा करनेवालों को खेचरत्व आदि अनन्त सिद्धियों को देनेवाला है और ज्ञान की इच्छा करनेवालों को आत्मसाक्षात्कार करानेवाला है, सुनिये ॥१२॥
समाधिसुख में विश्रान्तिरूप फल के कथन द्वारा भी प्रशंसा कर रहे महर्षि वसिष्ठजी वही योग श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं ।
हे राजपुत्र श्रीरामभद्र, प्रयत्नशील चित्त से प्राण-गति के निरोध से होनेवाली निष्ठा को प्राप्त होकर यदि आप चित्तवृत्ति निरोध के अभ्यास से प्रत्यग्रूप, अक्षय, परमपद में भली प्रकार स्थिरता प्राप्त कर लेंगे, तो वाणी और मन के अगोचर, निरतिशय आनन्दस्वरूप होकर आप स्थित रहेंगे ॥१३॥ तेरहवाँ सर्ग समाप्त
चौदहवाँ सर्ग
देवसभा में विख्यात वायसराज काकभुशुण्डजी को देखने के लिए
महाराज वसिष्ठ का मेरुपर्वत पर गमन और मेरु तथा उसके शिखर का वर्णन । काकभुशुण्डजी की उक्ति के द्वारा प्राणायाम आदि प्रस्तुत योगक्रम का विस्तारपूर्वक वर्णन करने
की इच्छा करनेवाले महाराज वसिष्ठजी भुशुण्डकथानक आरम्भ करते हैं ।
महाराज वसिष्ठजी ने कहा : हे श्रीरामचन्द्रजी, योगियों के विश्रान्तिस्थानरूप से वर्णित उस निःसीम परम पद के किसी एक प्रदेश में (अविद्या से आवृत प्रदेश में), मरुभूमि में मृग तृष्णा की नाईं, ब्रह्माण्डाकार यह विवर्त प्रसिद्ध है ॥१॥ उस ब्रह्माण्ड में मनु, प्रजापति आदि की उत्पत्ति में कारणता को प्राप्त तथा प्राणियों के समूहरूप भ्रम को उत्पन्न करनेवाले कमलयोनि ब्रह्मा पितामहरूप से स्थित है ।।२।। उस पितामह ब्रह्मदेव का मैं सदाचार सम्पन्न वसिष्ठ नाम का मानस हूँ। और ध्रुवजी द्वारा धारण किये गये सप्तर्षिलोक में वैवस्वत मन्वन्तर तक निवास करता हूँ ॥३॥ महाराज इन्द्रदेव की सभा में बैठे हुए मैंने किसी समय स्वर्गलोक में महर्षि नारदजी से अधिक दीर्घकाल तक जी रहे प्राणियों की कथा सुनी थी ॥४॥ चिरंजीवियों की कथाओं में किसी एक कथा के प्रसंग में मितभाषी, सम्माननीय तथा निखिल शास्त्रों में पारंगत विशाल बुद्धि महामुनि शातातप बोले ॥५॥
मुनि ने जो कुछ कहा, उसे बतलाते हैं।
मेरुपर्वत के ईशानकोण में स्थित पद्यरागमणि के सदृश चमकीले शिखर पर गगनचुम्बी एक शोभायमान आम्र विशेष नामक प्रसिद्ध कल्पतरू वृक्ष है ॥६॥ उस कल्पतरु के ऊपर सुवर्ण और रजतमय कल्पलताओं से घने दाहिने तने के खोड़रे में एक घोंसला है ।७।। उस घोंसले में ऐश्वर्यशाली वीतराग भुशुण्डनामक कौआ उस प्रकार निवास करता है, जिस प्रकार विशाल कोशवाले अपने कमल में ब्रह्माजी ॥८॥ हे देवगण, जगत के इस कोश में वह वायसराज भुशुण्ड जिस प्रकार चिरकाल से जी रहा है, उस प्रकार चिरकाल से जी रहा कोई भी इस स्वर्गलोक में न हुआ और न होगा ही ॥९॥ वह (भुशुण्ड) दीर्घायु है, वह रागरहित है, वह ऐश्वर्ययुक्त है, वह विशाल- बुद्धि है, वह स्थिर - बुद्धि है और शान्त है एवं कमनीय और समयगति जाननेवाला है ।।१०।। वह पक्षी (भुशुण्ड) जिस प्रकार दीर्घकाल से जी रहा है, उस प्रकार यदि कोई प्राणी यहाँ अपना दीर्घजीवन व्यतीत करे, तो उसका वह दीर्घजीवन साधनदशा में पुण्यमय और फलदशा में परमपुरुषार्थ रूप अभ्युदयसम्पन्न ही होगा ॥११॥
श्रीरामजी, कुछ समय के अनन्तर मैंने भुशुण्ड के विषय में फिर भी शातातप मुनि से पूछा था, द्वितीय बार पूछे गये उन मुनिराज ने उसी प्रकार से (जिस प्रकार से देवताओं की सभा में उसका वर्णन किया था, उसी प्रकार से) इस भुशुण्ड का वर्णन किया । इससे मालूम पड़ा कि भुशुण्ड के विषय में जो कुछ उन्होंने कहा था, वह सत्य ही कहा था, उनके कथन का तात्पर्य केवल प्रशंसा में ही नहीं था ॥१२॥ श्रीरामजी, कथा का अवसर समाप्त हुआ और देवतागण अपने-अपने निवासस्थान पर चले गये । तदनन्तर मैं अत्यन्त उत्कण्ठा से भुशुण्डपक्षी को देखने के लिए चला ॥१३॥ जहाँ भुशुण्डपक्षी की स्थिति थी, उस मेरुपर्वत के पद्मरागमणि की तरह चमकीले सुन्दर एवं विस्तृत शिखर पर मैं क्षणभर में ही पहुँच गया ॥१४॥ वह शिखर मधुर आसव से जनित मद की नाईं अग्नि के सदृश वर्चस्व रखने वाले पद्मराग आदि रत्न एवं गेरुमिश्रित सुवर्ण धातुओं के कमनीय तेज से दिशारूपी रमणियों को रक्तिम बना रहा था ।।१५॥ उसकी शोभा प्रलयकालीन अग्नि की पिण्डीभूत ज्वालाओं के पर्वत-सी प्रतीत होती थी, शिखा के सदृश ऊपर को उठी हुई इन्द्रनील मणि की प्रभा ही उसका धुआँ था, उसके लाल प्रकाश से समस्त आकाश - मण्डल लालिमा प्राप्त किये था ॥१६॥ मेरुपर्वत के ऊपर समस्त लालिमाओं का एक ढेर - सा होकर वह अवस्थित था या यों कहिए कि निखिल प्राणियों की
दर्शनाभिलाषाओं का एक पिण्ड बनकर वह स्थित था और निखिल सन्ध्याकालीन अभ्रजालों का घनीभूत एक आकर-सा प्रतीत होता था ॥१७॥ सुषुम्ना-नाड़ी से उत्क्रान्ति नामक योग-साधन के द्वारा ब्रह्मरन्ध्र का भेदन कर निकलने की इच्छा कर रहे मेरुपर्वत के उदर से निकला हुआ शिरः प्रदेश में प्राप्त बडवाग्नि के सदृश मानों जठराग्नि ही स्थित था ॥१८॥ वह लीला से आकाश में स्थित चन्द्रमा को पकड़ने के लिए लाक्षारस से (महावर से) रंजित शिखा के सदृश मिली हुई - मानों सुमेरु पर्वत की वनदेवी के द्वारा प्रसारित करांगुलियाँ ही थी ॥१९॥ वह जड़ी गयी सोपान- पंक्तियों के सदृश अरुण ज्वालाओं के द्वारा मानों आकाश में जाने के लिए प्रवृत्त अतएव पर्वत पर चढ़ा हुआ दुग्धाहुति संपन्न मुखवाला ब्राह्मणसम्बन्धी अध्वाराग्नि की नाईं दीख रहा था ॥२०॥ वह रत्नों के किरणों से चमक रहे नखाग्रों से युक्त तीन शिखराग्रभागरूपी अंगुलियों से अश्विनी आदि नक्षत्र मण्डलों को स्पर्श कर मानों गिनने के लिए आकाश को व्याप्त-सा करता हुआ उन्नत होकर स्थित था ॥२१॥ वहाँ मेघरूप मृदंग आदि वाद्य बज रहे थे, वह वनभूमि से पुष्ट हुई वन-लक्ष्मियों का एक तरह से नृत्य - मंडप था, खिले हुए पुष्पगुच्छों से परिपूर्ण था और भ्रमर-समूहों से गुंजित था ॥२२॥ वह परिहास से विकसित हो रही दन्तपंक्तियों के सदृश विकसित ताल पत्रों की पंक्तियों से अत्यन्त सुहावना लगता था । वहाँ झूलों पर झूल रहीं चंचल अप्सराएँ थीं और सभी प्राणियों का उन्माद और अभिलाषाएँ नवीनरूपता धारण किये हुई थीं, वहाँ की शिलाओं पर देवता विश्रान्ति ले रहे थे, उसकी गुफाओं का देवताओं के जोड़ों ने आश्रय किया था ॥२३॥ अब उस शिखर की तापसरूप से उत्प्रक्षा करते हैं ।
उसने सुन्दर आकाशरूपी मृगचर्म धारण किया था, शुभ्र गंगारूप यज्ञोपवीत से अलंकृत था और वह बाँसरूपी दण्ड धारण करने के कारण पीले वर्ण के तपस्वी की नाईं स्थित प्रतीत होता था ॥२४॥ वहाँ पर गंगाजी के झरनों की कलकल ध्वनि हो रही थी, उसके लताकुंजों में देवता विराजित थे, गन्धर्वों के गीतों से रमणीय लगता था और वहाँ मधुर मनोहर सुगन्धित वायु बह रहा था ॥२५॥
हे श्रीरामचन्द्रजी, आकाश में ऊँचाई की परम सीमास्वरूप उस प्रकार के पीले वर्ण के उस मेरुपर्वत के सिर पर मैं पहुँचा, वह तारारूपी रत्नों से विभूषित और विकसित स्वर्णकमलरूपी कर्णपूर से रमणीय था॥२६॥ श्रीरामजी, (मैं इसका अधिक वर्णन क्या करूँ !) वह प्रतिदिन श्वेत, हरित, पीत, रक्त एवं धवलवर्ण कानन के कुसुम-समूह रूपी नवीन रंगों से आकाश में मानों निर्दुष्ट चित्र खींचा करता था और देवताओं का वह क्रीडापर्वत था ॥ २७॥
चौदहवाँ सर्ग समाप्त
पन्द्रहवाँ सर्ग
उस मेरुपर्वत के शिखर पर स्थित चूतनामक कल्पतरु और उसकी शाखा पर विद्यमान पुष्प, पक्षी आदि संपत्तियों, कौओं तथा भुशुण्ड का वर्णन।
महाराज वसिष्ठजी ने कहा : हे श्रीरामजी, प्रलयकालीन मेघरूपी कुसुमों से व्याप्त केशोंवाले उस शिखर के सिर पर प्राणियों के वांछित अर्थ की पूर्ति के लिए उत्पन्न हुए शाखा आदि अवयवों से युक्त चूतनामक वृक्ष को मैंने शाखाचक्र-सा (चारों ओर समरूप से फैली हुई शाखाओं के कारण शाखाचक्रसर्ग - १५]
सा) देखा ॥१॥ श्रीरामजी, चारों ओर से वह वृक्ष फूलों के परागों से धूसरित था, वह रत्नसदृश पुष्पगुच्छों से दन्तुर था, उसने अपनी ऊँचाई से आकाश को मात कर दिया था, वह पूर्ववर्णित मेरुशिखर के ऊपर रखे हुए दूसरे शिखर के सदृश प्रतीत होता था ॥२॥
उसने केवल अपनी ऊँचाई से ही आकाश को मात नहीं कर दिया था, किन्तु तारा आदि मिलाकर द्विगुणित पुष्प आदि धारण करने के कारण भी उसने आकाश को मात कर दिया था, यों कहते हैं ।
उसने ताराओं को मिलाकर द्विगुणित पुष्प धारण किये थे, मेघरूप पल्लवों को मिलाकर द्विगुणित पल्लव धारण किये थे, किरणों को मिलाकर द्विगुणित पुष्परेणुरूप मेघ धारण किये थे बिजली को मिलाकर द्विगुणित मंजरियाँ धारण की थीं ॥३॥ वहाँ शाखा - प्रदेश में किन्नर युवतियों के गीतों को लेकर द्विगुणित भ्रमरों की गुंजार ध्वनि हो रही थी, उसने झूलों पर आरूढ़ चंचल अप्सराओं के होठ, हाथ एवं पदरूप पल्लवों को लेकर दूने पल्लव धारण किये थे ॥४॥ वांछितरूपों को धारण करने की शक्ति से संपन्न होने के कारण स्वच्छन्द विहार करने के लिए कल्पित विहंगम वेषवाले सिद्धों एवं गन्धर्वों के समूहों को मिलाकर द्विगुण विहंगम उस पर विद्यमान थे, उसने रत्नकान्ति के सदृश स्वच्छ हिमकणों को लेकर दूने हुए त्वचारूपी वस्त्र पहने थे ॥५॥ अधिक ऊँचाई के कारण जनित चन्द्रबिम्ब के सम्बन्ध से मानों अमत-रस की पूर्ति होने के कारण द्विगुणित अंगोंवाले बड़े-बड़े फल उसमें लगे थे, तनों के मूल भागों में संलग्न कल्पभ्रमों से मानों द्विगुणित हुए उसके पोर थे ॥६॥ उसके तनों पर देवताओं ने आश्रय किया था, पत्रों पर किन्नर विश्रान्ति ले रहे थे, उसके लताकुंजों में मेघ समूह प्रविष्ट हुए थे, जलप्राय कोटर-प्रदेश में देवता आदि सोये हुए थे ।।७।। उसका अपना निजीस्वरूप अत्यन्त विस्तृत था, उसके फूलों का भीतरी रस अपने कंकणों के क्वणितों से बाह्य भ्रमरों को हटाकर अप्सरारूपी भ्रमरियों ने चूस लिया था IICII श्रेष्ठदेव, किन्नर, गन्धर्व एवं विद्याधरों से वह समन्वित था, ब्रह्माण्ड की नाईं विस्तृत और असीम दस दिशाओं तथा आकाश को व्याप्त किये था ॥९॥ कलियों के समूहों से वह भरा हुआ था, मृदु पल्लवों से भरा हुआ था, खिले हुए पुष्पों से परिपूर्ण था और वनमालाओं से भी वेष्टित था ।॥१०॥ उसके ऊपर घनीभूत मंजरीयाँ थीं, घनीभूत मणिरूप गुच्छे थे, घनीभूत रत्नरूपी परिधानीय दिव्य वस्त्रों से आद्य था अर्थात् अर्थियों की इच्छापूर्ति करनेवाला था, लताओं के नृत्य से व्याप्त था ॥११॥ श्रीरामजी, चारों ओर फूलों की बाढ़ से सर्वत्र फल और पल्लवों से तथा सभी का दिल बहला करनेवाले पुष्पपरागों के समूहों से अत्यन्त विचित्रता को प्राप्त हुए उस चूतनामक कल्पतरू को मैंने देखा ।।१२।। हे श्रीरामचन्द्रजी, तदनन्तर उपर्युक्त विशेषणों से युक्त उस वृक्ष के तने, शाखा आदि की सन्धियों में, लता से आवृत शाखाग्रभागों में, लतापत्रों में, पोरों या ग्रन्थियों में और पुष्पों में घोंसले बनाकर उसमें स्थित हुए पक्षियों को मैंने देखा ॥१३॥
पक्षियों में विशेष बतलाते हैं ।
श्रीरामजी, (वहाँ) मृणाल के टुकड़ों की नाईं चंद्रमा की कला के खण्डों से वर्धित और शुभ्र कमलिनीकन्दों को खानेवाले ब्रह्मदेव के वाहनभूत हंसपक्षी मैंने देखें ॥१४।। बाद में रहस्यभूत अर्थों के पर्यालोचन में सहायक होने के कारण प्रणव और वेद के मित्रभूत ब्रह्मदेव के वाहन हंसों के बच्चे, जो कि सामवेद का गान कर रहे थे एवं पर-अपर ब्रह्मविद्या का गुरुमुख से विधिवत् अध्ययन किये
हुए थे ( मैंने देखें ) ॥१५॥
वहाँ निवास कर रहे अग्नि के वाहनभूत शुकों का वर्णन करते हैं।
तदनन्तर मैंने अग्निदेव के वाहन शुक देखे, वे मन्त्र-समूह पढ़ रहे थे, उनके शब्द स्वाहाकार के समान थे । उनकी उपमा शंख, बिजलियों के अनेक समूह और नील मेघों के वर्गों से थी, देवता नित्य उनका दर्शन करते थे । यज्ञवेदियों में बिछाये गये हरित कुश-लताओं के दलों की नाईं वे हरे थे। (अब मयूरों के बच्चों का वर्णन करते हैं।) अनन्तर (मैंने) मयूरों के बच्चे (देखे ) । अग्नि की शिखा की नाईं देदीप्यमान उनकी शिखाएँ थीं । जगज्जननी पार्वती से (जूड़े में पहनने के लिए) रक्षित उनके परों का समूह था, स्वामी कार्तिकेय द्वारा विस्तारित अशेष शिवसम्बन्धी विज्ञान में वे पण्डित थे ॥१६-१८॥ आकाश में ही उत्पन्न होकर वहीं पर नष्ट हो जानेवाले अर्थात् मरणपर्यन्त भूमि पर न उतरनेवाले और अधिक बलवान होने से महान इसीलिए व्योमपक्षी नाम से प्रसिद्ध पक्षियों को-जो कि नित्य-क्रीड़ा में सहायक होने से बन्धु थे, अपने अपने घोंसले बनाकर स्थित थे एवं शरत्कालीन मेघों के समान शुभ्र आकृतिवाले थे (मैंने देखा) ॥१९॥ ब्रह्मदेव के वाहन हंस से उत्पन्न और भी दूसरे हंसों को, अग्नि के वाहन शुक से उत्पन्न शुकों को, कुमार कार्तिकेय के वाहन मयूर से उत्पन्न और दूसरे मयूरों को तथा इनसे भिन्न भी अन्य आकाश पक्षियों से उत्पन्न पक्षियों को (मैंने देखा) ॥२०॥ श्रीरामजी, वहाँ ( मैंने ) दो चोंचवाले भरद्वाजनामक पक्षियों को, सुवर्ण की शिखावाले पक्षियों को तथा गौरैया, कौआ, गीध, कोयल, क्रौंच (कुराँकुल) और मुर्गा-इन पक्षियों को (मैंने देखा) ।।२१।। हे राघव, उस कल्पतरु पर शकुन्तपक्षी, नीलकण्ठपक्षी, बलाकपक्षी (बकविशेष) आदि और भी अनेक पक्षियों को, जगत में विविध प्राणियों की नाईं मैंने देखा ।।२२।। इसके बाद आकाश में स्थित हुए मैंने अत्यन्त दूर-प्रदेशस्थ घने पत्तोंवाले उस कल्पवृक्ष के दाहिने तने की शाखापर, उस शाखा को देखने के बाद, लोकालोकपर्वत के अरण्य में प्रलयकालीन मेघ-समूह की नाईं स्थित, मंजरीसमूह से वेष्टित द्रोण कौओं का मण्डल मैंने देखा ॥२३,२४॥ ज्यों ही मैंने वहाँ दृष्टि डाली, त्यों ही देखा कि एकान्त में स्थित दाहिने तने के उस कोटर पर जिसमें चित्र-विचित्र फूल बिछे हुए थे, अनेक प्रकार के सुगन्धों से जो सुगन्धित था तथा पुण्यात्माओं द्वारा उपभोग्य अप्सराओं के उपभोगों के योग्य स्वर्गस्वरूप था - सभा में शान्ति आदि गुणों से संपन्न होने के कारण अक्षुब्ध आकृतिवाले, पवन के द्वारा समभाग से छेदन कर कोटर में प्रवेशित किये गये मेघों की नाईं, मनोहर कुसुमगुच्छों से वासित कौए स्थित हैं और उनके बीच ऐश्वर्यशाली एवं अत्यन्त उन्नत शरीरवाला वायसराज भुशुण्ड बैठा है ॥२५-२७॥ वह भुशुण्ड सभा में उस प्रकार उन्नतरूप से स्थित था, जिस प्रकार काँच के टुकड़ों के बीच उन्नतरूप से इन्द्रनीलमणि स्थित हो । वह आत्मज्ञान से परिपूर्ण मनवाला, मान्य, समदर्शी एवं सर्वांग सुन्दर था ।।२८।। वह प्राणक्रिया के निरोध से नित्य अन्तर्मुखवृत्तिवाला, सुखी और प्रसिद्धतम चिरजीवी होने से 'चिरंजीवी' नाम से प्रसिद्ध था ।।२९।। जगत में विदित दीर्घायुवाला भुशुण्ड नाम से प्रसिद्ध वह वायसराज युगों की उत्पत्ति और विनाश की दशा के दर्शन से प्रौढ़मन था ।।३०।। वह प्रत्येक कल्प में ईशान, इन्द्र और अग्नि आदि लोकपालों के जन्मों की चक्रपरम्परा को गिनता हुआ खिन्न होकर अवस्थित था ॥३१॥ वह सुदूर भूतकालीन सुर, असुर एवं राजाओं का भली प्रकार स्मरण करनेवाला, प्रसन्न और गंभीर मन से युक्त,
श्री योगवासिष्ठ महारामायण चतुर तथा स्निग्ध एवं मुग्ध वाणीवाला था ॥३२॥
वह भली प्रकार ज्ञाता होने के कारण सूक्ष्मतम अर्थों को विस्पष्टकर कहनेवाला, ममता तथा अहंकार से रहित, मृत्यु का पुत्र की नाईं परमप्रिय, बुद्धि में बृहस्पति से भी बड़ा, प्राणिमात्र का सुहृद, बन्धु एवं मित्र था । (सब प्राणियों का वह सुहृद आदिरूप क्यों था ? इस शंका पर कहते हैं । ) चूँकि यह सबके वर्णन प्रसंग में प्राणीमात्र के निखिल आरोपों का अधिष्ठानरूप हो जाने के कारण सब प्रकार से भी सर्वदा सर्वात्मक सत्यस्वरूप ही परिगणित होता था यानी वह सर्वात्मक और सत्यस्वरूप ही सर्वसंगत था, अतः सुहृद आदिरूप था ॥३३॥ जिस प्रकार सरोवर सौम्य, स्वच्छ मधुर जल से युक्त, मनोहर और भीतर से अखण्ड शीतल, मध्य कमल के आधारभूत कुहर से युक्त, पक्षियों की विश्रान्ति को जाननेवाला एवं निर्मलतम होने से प्रकटित भीतरी शोभावाला रहता है, उसी प्रकार सौम्य, प्रसन्न, मधुर, ब्रह्मरस से युक्त, मनोहर, भीतरी अखण्ड शान्ति से युक्त, हृदयाकाशरूप, सब व्यवहारों को जाननेवाला यह महात्मा भुशुण्ड भी गांभीर्य को न छोड़ता हुआ अन्तःकरण की शोभा महत्ता को प्रकटित कर अवस्थित था ।।३४।।
पन्द्रहवाँ सर्ग समाप्त
सोलहवाँ सर्ग
सामने उपस्थित हुए तथा आसन आदि से पूजित हुए
महाराज वसिष्ठजी द्वारा किये गये भुशुण्ड के जन्म, कर्म आदि के प्रश्नों का वर्णन। महाराज वसिष्ठजी ने कहा : भद्र श्रीरामजी, तदनन्तर मैं उस भुशुण्ड के सामने उस प्रकार गिरा (उतरा), जिस प्रकार पर्वत पर आकाश से नक्षत्र गिरता हो । मेरा शरीर अत्यन्त कान्तियुक्त था, गिरने पर मैंने सभा में कुछ हलचल भी पैदा कर दी ॥१॥
जिस प्रकार भूकम्प से सागर विक्षुब्ध हो जाता है, उस प्रकार मेरे पतन से जनित मन्द पवन से कौओं की सभा, जो नील कमलों के तालाब के सदृश थी, विक्षुब्ध हो गई ॥२॥ अनन्तर त्रिकालदर्शी होने के कारण उस भुशुण्ड ने देखने से ही - यद्यपि वहाँ मेरा जाना अतर्किक था, तथापि वहाँ गये 'हुए मुझको - 'यह वसिष्ठ आये हुए हैं', यों जाना ॥३॥ तदनन्तर जिस प्रकार पर्वत से छोटा मेघ उठे, उस प्रकार वह पत्तों के ढेर से उठ खड़ा हुआ और 'हे मुनिराज, आपका स्वागत हो', यों मधुरवाणी बोला ।।४।। स्वागत वचनों के साथ ही साथ दोनों हाथों से अपने संकल्पमात्र से उत्पादित पुष्पांजलि भरकर मेरे ऊपर उस प्रकार बरसाई, जिस प्रकार मेघ हिम की महावृष्टि करता हो ॥५॥ तदनन्तर आपके बिराजने के लिए यह आसन है, यों कहकर वह कौओं का अधिपति भुशुण्ड आसन लाने के लिए चाकरवर्ग का परित्याग कर स्वयं खड़ा हुआ और कल्पवृक्ष का नवीन पत्ररूप आसन लाया । तदनन्तर मैं भुशुण्ड के साथ उस कल्पवृक्ष की लताओं से बने हुए आसनपर बैठ गया । भुशुण्ड के चारों ओर पक्षियों का समूह था मननशील मुझे उस आसन पर आसीन देखकर अपने कान्तिमण्डल से प्रसरणशील पंखोंवाले उक्त सभा के कौए अपने-अपने आसनों की ओर दृष्टि डालने लगे । भुशुण्ड ने अर्ध्य, पाद्य आदि सम्पादन कर मेरा सत्कार किया ।
महान तेजस्वी वह भुशुण्ड अत्यन्त प्रसन्नचित्त होकर सुन्दर, सौहार्द से मधुर वचन मुझसे कहने लगा ॥६-९॥ भुशुण्ड ने कहा : भगवन्, बड़े सौभाग्य का विषय है कि दीर्घकाल के अनन्तर आज हम लोगों के ऊपर आपने अनुग्रह दर्शाया, क्योंकि आपके दर्शनामृतरूपी सिंचन से सिंचे गये हम लोग आज, पुण्यवृक्ष के सदृश, अत्यन्त पवित्र बन गये ।।१०।। हे मुने, दीर्घकालिक मेरे पुण्य की राशि से प्रेरित तथा मान्यों में एकमात्र मान्यतम आपका इस समय किस प्रदेश से शुभ आगमन हुआ ? ॥११॥ महाराज, मूलभूत माया से बने इस जगत में दीर्घकाल से विचरण कर रहे आपके पावनतम चित्त में अखंडित समदर्शिता बिराजती तो है न ? ॥१२॥
महाराज, आज आने का कष्ट उठाकर आपने अपनी आत्मा को क्यों दुःख पहुँचाया ? आज्ञादायी वचनों के श्रवण में उत्कण्ठा रखनेवाले हम लोगों को आज्ञा देने के लिए आप सर्वथा योग्य हैं ॥१३॥ हे मुनिवर, आपके चरणों के दर्शन से ही मैंने सब कुछ जान लिया, आपने अपने आगमन के पुण्यों से हम लोगों को दबा दिया है ।।१४।।
'सब कुछ जान लिया' यह जो पहले कहा गया था, उसीका स्पष्टीकरण करते हैं ।
इन्द्रसभा में चिरंजीवियों के विषयों में हुई विचारणाओं के कारण ही आपके स्मृतिपथ में हम आये और उसी से यह स्थान आपके चरणों का आस्पद हुआ, सचमुच आपने इस प्राणी को पवित्र बना दिया ॥१५॥ हे मुने, यद्यपि यहाँ आपके आने का प्रयोजन मैंने पहले से ही जान लिया, तथापि आपके वाक्यामृतरसास्वाद की अभिलाषा बढ़ रही है, अतः आपसे मैं पूछता हूँ ॥१६॥ तीनों कालों में निर्मल ज्ञान रखनेवाला चिरंजीवी इस भुशुण्ड ने जब वैसे कहा, तब वहाँ मैंने यह कहा ।।१७।। हे पक्षियों के स्वामिन्, जो कुछ यह कह रहे हो, वह सब यथार्थ में सत्य ही है, चिरंजीवी केवल तुम्हें ही आज मैं देखने के लिये आया हूँ ॥१८॥ हे पक्षीराज, महान भाग्य से तुम्हारे अन्तःकरण में चारों ओर से शान्ति का राज्य है, तुम कुशल हो, ज्ञाततत्त्व होने के कारण तुम इस भयंकर जगज्जाल में प्रविष्ट नहीं हुए हो ॥१९॥ प्राणियों की उत्पत्ति, विनाश, गति, आगति, विद्या एवं अविद्या को जाननेवाले हे पक्षिराज, तुम मेरे इस संशय का सत्यरूप से छेदन कर दो कि किस कुल में तुम उत्पन्न हुए हो और किस प्रकार तुमने तत्त्व पहचान लिया ।।२०।। हे साधो, तुम्हारी कितनी आयु है, तुम अपना कौन-सा इतिवृत्त (विगत कल्पान्तचरित्र) जानते हो और किस महानुभाव ने दीर्घदर्शी तुम्हारे लिए निवासस्थान रूप से इस वृक्ष को निश्चित किया है ? ॥२१॥ भुशुण्ड ने कहा : हे मुने, आप जो मुझसे पुछ रहे हैं, उस सबका मैं यह वर्णन (उत्तर) कर रहा हूँ । आप महानुभाव उद्विग्न न होकर प्रयत्नपूर्वक कथा का श्रवण कीजिए ।।२२।। हे महानुभाव, तीनों लोकों के नियन्ता और परम पूज्य आपके सदृश उदारबुद्धि महात्मा जिस वृत्तान्त का श्रवण करते हैं, उस वृत्तान्त का भलीप्रकार कथन करने से वक्ता और श्रोता दोनों का पाप उस प्रकार विनष्ट हो जाता है, जिस प्रकार मेघावलम्बित वृष्टि, छाया, अरण्य आदि वैभवों से सूर्य का ताप विनष्ट हो जाता है ॥२३॥ सोलहवाँ सर्ग समाप्त
सत्रहवाँ सर्ग
जीवन्मुक्तों के उपयोगी गुणों से पूछे गये अर्थ का वर्णन कर
पक्षियों का स्वामी भुशुण्ड पुनः उसी को सविस्तार कहने के लिए प्रवृत्त हुआ, यह वर्णन ।
महाराज वसिष्ठजी ने कहा : हे श्रीरामजी, तदनन्तर वह पक्षीराज भुशुण्ड वक्ष्यमाण रीति से कहने लगा । वह अभीष्ट लाभ से न तो प्रसन्न होनेवाला था और न क्रूरमति था । वह सभी अंगों से सुन्दर और वर्षाकालीन मेघों के सदृश श्यामवर्ण था ॥१॥ उसके वचन स्नेहपूर्ण और गम्भीर थे। उसके अभिभाषण के पहले स्मित होता था । हाथ में बिल्व फल की नाईं तीनों जगत की इयत्ता (सीमा) उसे निश्चित रूप से विदित थी ॥२॥ समस्त भोगों को उसने तिनके की तरह तुच्छ समझ रक्खा था, इच्छित विषयों की ओर लोगों की दौड़-धूप का फल एकमात्र संसार ही है - यह रहस्य उसने भली प्रकार जान लिया था, वह परापर ब्रह्म का ज्ञाता था ॥३॥ उसका महान आकार धीर और स्थिर था। उसने विश्रान्ति तो उस प्रकार धारण की थी, जिस प्रकार मन्थन के अनन्तर मन्दराचल के चले जाने के बाद क्षीर-समुद्र ने धारण की थी । उसका मन मनोरथों से परिपूर्ण था और विशुद्ध था ॥४॥ बाहर से उसकी चारों ओर से बुद्धि में विश्रान्ति थी, वह शान्त था, भीतर से परमानन्द परिपूर्ण था, उसे संसार में जन्मधारी जीवों के आविर्भाव और तिरोभाव में हेतुभूत मायातत्त्व और आत्मतत्त्व का भली प्रकार ज्ञान था ॥५॥ प्रिय और मधुर सुनने योग्य वीणा -गान की नाईं मनोहर उसके वाक्य थे। दर्शनमात्र से संपूर्ण भयों का अपहरण करनेवाले स्वयं ब्रह्मा ने ही मानों अपना यह नवीन भुशुण्डशरीर धारण किया हो, ऐसा वह प्रतीत होता था, अतएव वह स्वाभाविक आनन्द से युक्त और प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किये गये उद्योगयुक्त मुख के कारण अत्यन्त सुन्दर लगता था ।।६।। उस प्रकार का पक्षियों का अधिराज भुशुण्ड शुद्ध, अमृतमय, परिपूर्ण स्व-स्वरूप का क्रमशः बोध कराने के लिए - निर्मल वाणी से उस तरह मेरे प्रति आगे का वृत्तान्त कहने लगा, जिस तरह सुन्दर मेघ अपनी गर्जना से मकरन्द ( पुष्परस के) पान में रसिक भ्रमर के प्रति वही वृत्तान्त कहता हो । तात्पर्य यह हुआ कि पहले से ही प्रबुद्ध ब्रह्मानन्द में रसिक मेरे प्रति भुशुण्ड की उक्ति अनुवाद मात्र थी, न कि उपदेश ।।७।।
सत्रहवाँ सर्ग समाप्त
अठारहवाँ सर्ग
अपना जन्म कहने के लिए पहले महादेवजी, उनके गण, मातृका तथा उनके पानोत्सव आदि का भुशुण्ड के द्वारा वर्णन ।
'किस कुल में तुम उत्पन्न हुए हो' इस प्रथम प्रश्न का उत्तर देने के लिए पहले भूमिका बाँधते हैं। भुशुण्ड ने कहाः महाराज वसिष्ठजी, इस जगत में समस्त स्वर्गवासी देवताओं में श्रेष्ठ (ज्ञान, ऐश्वर्य, बल आदि गुणों से सर्वोत्कृष्ट), देवताओं के भी पूजनीय एवं उपासनीय, देवाधिदेव महादेवजी हैं, जो बड़े-बड़े देवों के देव ब्रह्मादि देवताओं के द्वारा भी अभिवन्दित और चारों ओर से पूजित हैं। (इस श्लोक में उपर्युक्त तीन विशेषणों से सर्वांश में महादेवजी के ही उत्कर्ष की परमावधि बतलाई गई है, इससे वक्ष्यमाण ब्रह्मविद्या के आरम्भ में मंगल भी पक्षिराज भुशुण्ड ने कर दिया यह अर्थतः सिद्ध
हो जाता है, यह जानना चाहिए ) ॥१॥ आम्रवृक्ष की नाईं उनके देहार्ध में भ्रमर- पंक्तियों के सदृश नेत्रोंवाली तथा उन्नत पुष्प गुच्छों के सदृश स्तनधारिणी लता शोभित है ।।२।। उनके एक गंगारूपी कुसुम - मालिका है, जो हिम और हार की नाईं अत्यन्त धवल लहरीरूपी पुष्पों से गुम्फित (गूँथी गई ) है और जिसने जटाजूट को वेष्टित कर रक्खा है ।॥३॥ क्षीर-सागर से उत्पन्न हुआ और अमृत का झरना बहानेवाला अत्यन्त कान्तियुक्त चन्द्रमा उनका दर्पणभूत चूड़ामणि (शिरोभूषणमणि) है ॥४॥ निरन्तर मस्तक में स्थित चन्द्रमा के अमृतप्रवाह से जिसकी विषशक्ति निकल गई है और जिसमें संजीवनशक्ति प्राप्त हुई है, ऐसा इन्द्रनील मणि की नाइँ कालकूट महाविष उनके कण्ठ का भूषण है ।।५।। जगत के प्रलय में हेतुभूत अपने चक्षुरूपी स्वच्छ अग्नि से उत्पन्न हुई, धूलियों की पंक्तिरूप बड़े-बड़े प्रलयकालीन झंझावातों की उत्पादक, परमाणुमय (स्थूल महाभूतों का सूक्ष्म-सूक्ष्म भूतों में प्रवेश - क्रम से परम सूक्ष्म अव्यक्तमात्र का परिशेष होने के कारण परमाणुमय), अतिशुभ्र एवं ज्ञानजलात्मक (उसके साक्षी चैतन्यस्वरूप जल से प्लावित होने के कारण ज्ञानजलात्मक) मायारूप भस्म उन मायाशबल महादेवजी का भूषण है ॥६॥ अत्यन्त निर्मल, तेजस्वी चन्द्रमा का भी तिरस्कार कर देनेवाली, मणियों के सदृश सानपर चढ़ाकर विशोधित की गई, माला आदि के आकार में गँथी गई, संपूर्ण शरीरों में मनोरम ब्रह्मा आदि के शरीरों की विकारभूत हड्डियाँ ही उनके शोभाकारक रत्न हैं ।७।। सुधाकर चन्द्रमा की सुधाधारा से प्रक्षालित, नीलमेघरूपी पल्लवों से युक्त तथा तारारूपी बिन्दुओं से समन्वित आकाश यानी दिशाएँ ही उनके वस्त्र हैं ।।८।। चक्कर काट रही लोमड़ियों, परिपक्व नरमांसों और बलि के ओदनों से (भात से) व्याप्त; गाँवों और नगरों से दूर, हिम के सदृश धवल श्मशान ही उनका घर है। (प्रकृत श्लोक में 'भ्रमच्छिवांगना०' और 'बहिर्भूतम्' से दो पद श्लिष्ट होने से कल्याणकारी वेष-भूषा को धारण कर इधर-उधर घूम रही रमणियों द्वारा पकाये गये प्रशस्ततम मांस, भात आदि भोज्य पदार्थों से व्याप्त तथा सब प्रकार के दोषों से रहित - इस अर्थ की कल्पना की जा सकती है।)॥९॥ जिसने कपाल-मालाएँ धारण की है, रक्त और चर्बी का आसव (मद्य) पान किया है, एवं जो आँतरूपी मालासूत्र से वेष्टित है, ऐसा वक्ष्यमाण मातृकागण उनका नृत्यादि में सदा सहायक बन्धुवर्ग है ।।१०।। क्रमशः तत्-तत् अंगों के भूषण के लिए संचरणशील, सर्वांग से चिकने, प्रस्फुरित हो रही मस्तकमणियों से राजित तथा सुवर्ण के सदृश दीप्तिसम्पन्न कान्तिवाले सर्प उनके भुजा के कंकण हैं ॥११॥ दृष्टिपातमात्र से शैलेन्द्र हिमराज को दग्ध कर देनेवाला, जगत का ग्रास करने में लालायित तथा क्रीडामात्र से असुरों को त्रस्त कर देनेवाला भयंकर उनका चरित्र है ।।१२।। महाराज, सत्यसंकल्प होने के कारण उनका अन्तःकरण एकमात्र कल्याण की भावना से ही जगत-समूह को अपनी प्रकृति में रखने के लिए समाधि में स्थित है। कदाचित समाधि का आकस्मिक भंग हो जाने पर उत्पन्न हुआ उनके हाथ का स्पन्दन असुरों के बड़े-बड़े नगरों को, असुरों के साथ, विनष्ट कर डालता है ॥१३॥
समाधिकाल में महादेवजी की जो प्रसिद्धतम एकाग्रता है, वह पृथ्वी, पर्वत आदिरूप उनकी मूर्तियों में विस्पष्टरूप से दिखाई पड़ती है, इस आशय से कहते हैं।
स्नेह, राग, द्वेष आदि सर्वविध दोषों से शून्य, रसयुक्त होते हुए भी ( पृथ्वी और जल से युक्त होते हुए भी) नीरस, उत्तम भोजन करने के कारण भली-प्रकार तृप्त हुए जनों के सदृश खान-पान आदि
तृष्णाओं से शून्य प्रसिद्ध मेरु, हिमालय आदि पर्वत ही उनकी एकाग्रता ध्यान की मूर्तियाँ हैं ॥१४॥ अब सर्वांगों में समस्त शक्तियों से परिपूर्ण उनके गणों का वर्णन करते हैं ।
जिनके मस्तक खुर की शक्तियाँ रखते हैं यानी दौड़ने-कूदने की शक्तियाँ रखते हैं, खुर हाथों की शक्तियाँ रखते हैं यानी चित्र विचित्र शिल्पआदि निर्माण - शक्तियाँ रखते हैं, हाथ दाँत, मुख और उदर की शक्तियाँ रखते हैं यानी चवर्ण, भक्षण आदि शक्तियाँ रखते हैं तथा जिनके भालू, ऊँट, बकरी और सर्प के सदृश मुख हैं, ऐसे प्रमथों का गण उन महादेवजी के क्रीडन में सहायक है ॥१५॥ तीन नेत्रों के कारण चमक रहे मुखवाले उन महादेवजी के जिस प्रकार सर्वागों में सर्वविध शक्तियों से समन्वित प्रमथगण क्रीडा सहायक परिवार है, उसी प्रकार सर्वागों में सर्वशक्तिसमन्वित निर्मल कान्तिवाली दूसरी-दूसरी नाना प्रकार की आकृति और मुखवाली माताएँ भी क्रीडा में सहायक परिवार हैं ॥१६॥ भूतगणों के ऊपर आधिपत्य रखने के कारण उनसे ( भूतगणों से) नमस्कृत तथा चौदह भुवनों में उत्पन्न होनेवाले असंख्य प्राणियों का ही भोजन करने वाली मातृकाएँ उस देवाधिदेव के सामने नृत्य करती हैं ॥१७॥ उन मातृकाओं के मुखों की गदहे और ऊँटों के मुखों के सदृश आकृतियाँ है, रक्त, मेद और चर्बी उनका आसव के सदृश सर्वदा पेयपदार्थ है। चारों दिशाओं में वे विहार करती हैं और शव के हाथ, पैर आदि की मालाएँ पहनती हैं ॥१८॥ ये मातृकाएँ पहाड़ों की चोटियों पर, आकाश में, अन्य लोकों में, गर्तों में भी प्राणियों के शरीरों में निवास करती हैं ॥१९॥ जया, विजया, जयन्ती, अपराजिता, सिद्धा, रक्ता, अलम्बुसा और उत्पला- ये आठ मातृदेवियाँ सभी माताओं में मुख्य हैं। अन्य माताएँ इन्हीं आठों का अनुगमन करती हैं और उनका अनुगमन करनेवाली अन्य मातृदेवियों का और दूसरी माताएँ अनुगमन करती हैं ॥२०,२१॥ हे मानद मुनिनायक, महामहिमशाली उस मातृगण के बीच में 'अलम्बुसा' नामक सातवीं माता अत्यन्त विख्यात है ॥२२॥ वैष्णवी-शक्ति के वाहन गरुड़ की नाईं उस 'अलम्बुसा - शक्ति' का वाहन कौआ है, यह इन्द्रनील पर्वत के सदृश नीला है, इसका मुख वज्रतुल्य हड्डी से बना है तथा नाम है - चण्ड ॥ २३॥ किसी समय विहारवश भयंकर चेष्टाकारिणी, अष्टसिद्धियों से संपन्न वे सब माताएँ आकाश में इकट्ठी हुई ।।२४।। वाममार्ग में प्रतिपादित पराशक्ति के आराधनप्रकार में निष्ठा रखनेवाली इन आठ मातृदेवियों ने तुम्बुरुनामक रुद्रमूर्ति का आराध्यरूप से आश्रय लेकर एकाग्रचित्त से समाधि में परमार्थभूत स्व-स्वरूप का प्रकाशन करनेवाला उत्तम पानोत्सव मनाया ॥२५॥ वे माताएँ, समस्त जगत के पूज्य तुम्बुरु और भैरवनामक देवताओं का पूजन अर्चन कर मदिरामद से सन्तुष्ट होती हुई आपस में चित्र-विचित्र अर्थों से पूर्ण वार्तालाप करने लगीं ॥२६॥ तदनन्तर उनकी कथाओं के प्रसंग से यह एक बात उठी कि भगवान उमापति हम लोगों को क्यों तिरस्कारपूर्वक देखा करते हैं ।।२७।। इसलिए महादेवजी को हम लोग अपना वह प्रभाव दिखलाएँ, जिससे कि हम लोगों की महाशक्ति देखकर वे हमारी अवहेलना न करेंगे ।।२८।। यों निश्चय कर परस्पर अभिनन्दित उन देवियों ने रूपान्तर में परिणत किये गये मुख आदि अंगोवाली रुद्रशक्ति उमा को अपने अधीन बनाकर, यज्ञ में पशु की नाईं, मन्त्रसहित जल से प्रोक्षित (बलि के संस्कार से युक्त) किया ॥२९॥ अनन्तर उन देवियों ने महादेवजी के अंश से माया द्वारा चुराई गई तथा मातृदेवियों के बीच में प्राप्त हुई चंचल केशवाली उमा को ओदनरूप (सबके भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और पेयरूप) बनाने के लिए मानों अभिशाप
दिया ॥३०॥ जिस दिन पार्वतीजी का प्रोक्षण किया, उस दिन वहाँ उन सब देवियों ने नृत्य, गेय आदि से मनोहर महान उत्सव मनाया ॥३१॥ अत्यन्त आनन्द और उन्नत घोष से युक्त आकाश-मण्डल ही उस समय जगमगाने लगा तथा उन देवियों की जंघा और उदर दीर्घ अंगों के उच्चावच प्रक्षेप से विकसित होने लगे ॥३२॥ पर्वत और अरण्यों को शब्दित कर रही कुछ अन्य देवियाँ करताल और सिंहनाद के कारण उद्दाम घनीभूत शब्द के उच्चार तथा कान्तियुक्त अंगों के विकारपूर्वक हँसने लगीं ॥३३॥ जगत-मण्डल की गुहा में मद्यपान से अतितृप्त हुई कुछ मातृकाएँ पर्वत एवं घरों को ध्वनियुक्त बनाती हुई, चन्द्र के उदयरागसे रंजित अतएव शब्दयुक्त हुए समुद्र, जल के सदृश, गर्जना करने लगीं ॥३४॥ लीला से जनित घुरघुर शब्दों से आकाश के कोने में कुछ देवियाँ मस्तक से लेकर खुरपर्यन्त अंगों को रक्त, चर्बी, आसव आदि से पुष्ट करने के लिए मद्यपान कर रही थीं ॥३५॥
उनके कुछ उन्मत्त वृत्तान्तों का कथन करते हुए प्रकृत विषय का उपसंहार करते हैं।
कुछ देवियाँ पेय पदार्थ पीने लगीं, कुछ तो उच्च स्वर से गर्जने लगीं, कुछ जल्दी से जाने लगीं, कुछ बोलने लगीं, कुछ हँसने लगीं, कुछ परस्पर रक्षा करने लगीं, कुछ एक दूसरे के मुख में या अग्नि में होमने लगीं, कुछ गिरने लगीं, कुछ ऊँचे से बड़बड़ाने लगीं, कुछ निरन्तर नाचने लगीं, कुछ स्वादु मांस खाने लगीं, यों उन्होंने उन्मत्त आचरण होकर त्रिभुवन को अपने व्यापार से सद्वर्तन से रहित कर दिया ॥३६॥ अठारहवाँ सर्ग समाप्त
उन्नीसवाँ सर्ग
ब्रह्माणी की हंसी में चण्डनामक कौए के सम्बन्ध से भाईयों के साथ अपनी (भुशुण्ड की) उत्पत्ति, उसी ब्राह्मशक्ति के प्रसाद से ज्ञान और पिता के स्थान की प्राप्ति का वर्णन ।
वायसराज भुशुण्ड ने कहा : ब्रह्मन, जब उन मातृकाओं का उत्सव चल रहा था, तब उनके उत्तम वाहनरूप चण्ड आदि भी उसी प्रकार उन्मत्त होकर हँसते थे, नाचते थे और रुधिर का पान भी करते थे ।।१।। उस उत्सव में मद्यपान से उन्मत्त हुई कुछ ब्राह्मीशक्ति के रथ में जुतनेवाली हँसियाँ और 'अलम्बुसा' देवी का वाहन चण्डनामक कौआ - ये सब आकाश प्रदेश में इकट्ठे होकर नाचने लगे ॥२॥ समुद्रतट की समथल भूमि में भली प्रकार नृत्य और मद्यपान कर रही उन हँसियों को पुरुष-विषयक अनुराग उत्पन्न हुआ। (इस श्लोक में 'अब्धितटानां तले' इससे उद्दीपन विभाव का कथन किया गया है, यह जानना चाहिए ।) ॥३॥ तदनन्तर उस समय उत्पन्न-रति वे सभी हँसियाँ उन्मत्त होकर क्रमशः निकृष्टजातीय भी कौए के साथ रमण करने लगीं, क्योंकि वे मत्त ही तो थीं। (ऊँची जाति की हँसियों की रति अपने से निकृष्ट जाति कौए के साथ यद्यपि अनुचित है, तथापि उसके होने में एकमात्र कारण उन्माद ही है, यह सूचन करने के लिए इस श्लोक में 'अपि' शब्द का प्रयोग किया है।)॥४॥ सात कुलहँसियों के वल्लभ इस चण्डनामक कौए ने क्रम से एक-एक हँसी के साथ तब तक रमण किया, जब तक कि एक दूसरे की इच्छा पर्याप्तरूप से शान्त नहीं हुई ॥५॥ रति से तृप्त हुई उन हँसियों ने गर्भधारण किया और वे देवियाँ उत्सव-कार्य सम्पादित हो जाने के अनन्तर अपनी ही माया का विलास समझकर क्रोध न करनेवाले महादेवजी के पास पहुँची ॥६॥ और उन देवियों ने
भोजन के लिए शूलपाणि महादेवजी को प्रिय उमा समर्पित की, जो ओदनरूपता (भात) को प्राप्त हुई थी ।।७।। भोजन में मेरी प्रिया ही दी गई है, यों जानकर जब महादेवजी मातृकाओं के प्रति रुष्ट हुए, तब उन्होंने अपने-अपने अंगों से सिर आदि एक-एक अवयव की कल्पना द्वारा पार्वती का पुनः उत्पादन कर महादेवजी को फिर पाणिग्रहण विधि से उसे समर्पित किया ॥८, ९॥ अनन्तर देवियाँ, महादेवजी और उनका परिवार - ये सब सन्तुष्टमन होकर अपनी-अपनी दिशा की ओर चल दिये ।।१०।। हे मुनीश्वर, वे ब्राह्मीशक्ति के रथ की हँसियाँ गर्भवती हुई थीं, उन्होंने ब्राह्मी देवी के समीप में अपना यथास्थित वृत्तान्त कह दिया ॥११॥ ब्राह्मीशक्ति ने कहाः पुत्रियों, इस समय गर्भवती तुम सब मेरे रथकार्य के लिए असमर्थ हो, इसलिए अब यथेष्ट विचरण करो ॥१२॥ गर्भ से अलसाई हुई उन हँसियों को वैसा कहकर दयालु ब्राह्मी देवी - उनके ऊपर अनुग्रह के लिए विहार छोड़करनिर्विकल्प समाधि में ही सुखपूर्वक स्थित हुई ॥१३॥ हे मुनीश्वर, गर्भधारण से अलसाई हुई वे राजहँसियाँ भगवान विष्णु के नाभिकमल के मूल में ब्रह्मा के कमल की उत्पत्ति- स्थान में विचरण करने लगीं ॥१४॥ तदनन्तर उस प्रकार विचरण करती हुई उन राजहँसियों का गर्भ परिपक्व हो गया । उन्होंने नाभिकमल के कोमल पल्लव में उस प्रकार मुलायम अण्डे दिये, जिस प्रकार वल्लियाँ अंकुर देती हैं ॥१५॥ अनन्तर समय पाकर उन्होंने इक्कीस अण्डे दिये और यथासमय भीतरी गर्भ पक जाने पर हँसियों के पग के प्रहार द्वारा वे उस प्रकार द्विधा विभक्त हो गये, जिस प्रकार सारयुक्त ब्रह्माण्ड सुवर्ण और चाँदी के खप्परों द्वारा द्विधा विभक्त हो जाता है ॥१६॥
हे मुने, उस प्रकार उन अण्डों के द्वारा ये हम चण्ड के पुत्र इक्कीस भाई कौए की जाति में उत्पन्न हुए ।।१७।। उस कमल के पल्लव के ऊपर हुए वे हम क्रमशः बड़े हुए, हम लोगों को पंख आए और आकाश में उड़ने में समर्थ भी हुए ॥१८॥
तुमने तत्त्व कैसे जाना ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए उपक्रम करते हैं ।
महर्षे, हम लोगों ने अपनी माता हँसियों के साथ दीर्घकाल तक समाधि से विरत हुई भगवती ब्राह्मीदेवी की भलीप्रकार आराधना की ॥१९॥ अनन्तर उपयुक्त समय आने पर प्रसाद करने में तत्पर हुई भगवती ब्राह्मी ने स्वयं ही हम लोगों के ऊपर तत्त्वसाक्षात्काररूप फल के द्वारा वैसा अनुग्रह किया, जिससे हम लोग जीवन्मुक्त होकर स्थित हैं ।।२०।। हम लोगों का मन विलीन हो गया, इसलिए 'एकान्त प्रदेश में उपद्रवशून्य होकर समाधि में ही स्थित रहें' ऐसा निश्चय करके हम लोग अपने पिताजी के पास विन्ध्य-प्रदेश में गये ॥२१॥ वहाँ पिताजी ने हम लोगों का आलिंगन किया और तदनन्तर हम सबने भगवती अलम्बुसा की पूजा की । प्रसन्नतापूर्वक उस देवी के द्वारा देखे गये हम लोग विनय आदि सद्गुणों से नियन्त्रित होकर वहाँ रहने लगे ॥२२॥ पिता चण्ड ने कहा : 'हे पुत्रों, क्या तुम लोग इस संसाररूपी जाल से, जो असीम वासनारूपी तन्तुओं से गुँथी गयी है, मुक्त हो चुके हो ? यदि नहीं, तो उससे छुटकारा पाने के लिए सेवकवत्सल इस भगवती अलम्बुसा की हम प्रार्थना करें, जिससे तुम सब ज्ञान में पारंगत हो जाओगे ॥२३, २४॥ कौओं ने कहा : हे पिताजी, ब्राह्मीदेवी के प्रसाद से हम लोगों ने ज्ञातव्य विषय का भली-भाँति ज्ञान कर लिया है, किन्तु एकान्त में वास करने योग्य उत्तम स्थान की हम लोगों को अभिलाषा है ॥२५॥ पिता चण्ड ने कहा : हे पुत्रों, एक मेरुनामक अत्यन्त ऊँचा पर्वत है,
वह भाँति-भाँति के अनेक रत्नों का आधार है, उसका संपूर्ण देवता आश्रय करते हैं ॥२६॥ प्रकाशमान चन्द्र और सूर्यरूपी दीपक से युक्त अनेकविध प्राणियों के कारण विस्तृत हुए कुटुम्ब से परिवेष्टित ब्रह्माण्डरूपी घर का वह सुवर्णनिर्मित मध्यस्तंभ है ।।२७।। वह पृथ्वी के द्वारा ऊपर को उठाया गया मानों एक हाथ है । उस हाथ में किंपुरुष आदि देश ही चन्द्राकृति सुवर्ण निर्मित केयूर हैं, रत्नरूप अँगूठियों से सुशोभित शिखर ही अंगुलियाँ है और शब्द कर रहे द्वीप और समुद्र ही कंकण हैं ।।२८।। वह पर्वतों का राजा है, उसके चारों ओर हिमालय आदि सात कुलपर्वत सामन्तरूप से विराजित हैं; वह जम्बूद्वीप सिंहासन के ऊपर विराजमान है और पर्वतों की सभा में चन्द्र एवं सूर्यरूपी नेत्रों से दृष्टिपात करता है। तारावली (तारकाओं की पंक्ति) ही उसकी मालती-माला है, दिशारूपी पल्लवों से सुशोभित आकाश ही उसका एकमात्र वस्त्र है, वह सर्प और हाथी-इन दोनों का आश्रय- स्थान है, इन्द्र, उपेन्द्र आदि देवराज ही उसके आभूषण हैं ॥२९, ३०॥ कमनीय दिशारूपी कामिनियाँ उसके चारों ओर जल की धारा युक्त शीतल अंगभूषण मेघरूप नील, श्वेत आदि चामर डुलाती हैं ॥३१॥ इसके पैर सोलह हजार योजन नीचे पृथ्वी में अवस्थित हैं, जिनकी नाग, असुर और बड़े-बड़े सर्प पूजा करते हैं ।।३२।। इसकी देह सूर्य और चन्द्ररूप लोचनों से युक्त तथा अस्सी हजार योजन ऊँची स्वर्ग-स्थान तक पहुँची है, वहाँ देवता, गन्धर्व एवं किन्नर उसकी पूजा करते हैं ॥३३॥ इस पर्वतराज का आश्रय लेकर ब्रह्मर्षि, देवर्षि, राजर्षि, देव, पितर, गन्धर्व, किन्नर, अप्सराएँ, विद्याधर, यक्ष, राक्षस, प्रमथ, गुह्यक और नाग-ये चौदह प्रकार के प्राणी उस प्रकार जीवन निर्वाह करते हैं, जिस प्रकार प्रधान गृहपति का आश्रय कर इतर बन्धुगण जीवन निर्वाह करते हैं । यह इतना बड़ा विस्तृत है कि वे एकत्र रहने पर भी एकदूसरे का नगर या स्थान नहीं देख पाते ॥३४॥ इसके ईशानकोण में माणिक का बना हुआ एक विशाल शिखर है, जिसे देखने से ऐसा प्रतीत होता है मानों दूसरा उदित हुआ सूर्य ही हो ॥३५॥ इसके पृष्ठभाग में अनेकविध प्राणियों से परिवृत एक महान कल्पवृक्ष स्थित है, जो कि शिखररूपी विद्रुम-दर्पण में जगत के प्रतिबिम्ब की नाईं प्रतीत होता है ॥३६॥ उसके दक्षिण तने पर एक शाखा है, जिसमें कनक के सदृश पीले पल्लव लगे हुए हैं, रत्नों के सदृश चमकीले पुष्पगुच्छों के कारण तनिक भी अवकाश नहीं है और चन्द्रबिम्ब के सदृश प्रकाशमान फल भरे पड़े हैं ॥३७॥ हे पुत्रों, पहले जिस समय भगवती अलम्बुसादेवी ध्यान में आसीन थीं, उस समय मैंने चमकीली मणियों से जड़ा हुआ उस शाखा के ऊपर एक घोंसला बनाया और उसमें विलास किया ॥३८॥ वह घोंसला रत्नसदृश चमकीले पुष्पों की पँखुड़ियों से ढँका हुआ है, अमृत के समान स्वादु फलों से परिपूर्ण है और चिन्तामणि की शलाकाओं से उसके बाहरी दरवाजों की रचना की गई है ॥३९॥ वह (घोंसला) विचारपूर्वक व्यवहार करनेवाले कौओं के पुत्रों से व्याप्त है तथा भीतर से अत्यन्त शीतल, मनोहारी और भाँति-भाँति के पुष्पों से पूरित है ॥४०॥ हे प्यारे बच्चों, देवताओं से भी दुर्गम उस सुन्दर घोंसले पर तुम लोग जाओ, वहाँ निवास किये हुए तुम लोग निर्विघ्न एवं पर्याप्तरूप से भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करोगे ॥४१॥ इस प्रकार कहकर हमारे पिता ने हम लोगों का चुम्बन और आलिंगन किया तथा भगवती के पास जो मांस लाया गया था, उसे भी हमें दिया ॥४२॥ उसे खाकर भगवती और पिताजी के चरणों में अभिवन्दन कर अलम्बुसा के निवासस्थान उस विन्ध्यप्रदेश से हम उड़ गये ॥४३॥ क्रमशः आकाश का उल्लंघन कर, मेघों के कोटरों से निकल
कर, पवन-लोक प्राप्त कर हम लोगों ने व्योमचारी देवताओं को प्रणाम किया ॥४४॥ हे मुनीश्वर, (इसके बाद हम लोग) सूर्य-मण्डल का अतिक्रमण कर स्वर्ग के अमरावती नगर में पहुँचे। स्वर्ग का अतिक्रमण कर ब्रह्मलोक में पहुँचे ॥४५॥ वहाँ पहुँचकर (हम लोगों ने) तत्क्षण ही माता और भगवती ब्राह्मीदेवी को प्रणामपूर्वक पिता द्वारा कथित अशेष वृत्तान्त अक्षरशः कह सुनाया ।।४६।। उन्होंने स्नेहपूर्वक हम लोगों का आलिंगन किया और 'जाओ' यों आज्ञा तथा आर्शीवाद देकर उत्साहित किया । अनन्तर उन्हें प्रणाम कर हम लोग ब्रह्मलोक से चल पड़े ॥४७॥ आकाश-विहार में निपुण, अतिचपल हम लोग वायुलोक में गमन करते हुए सूर्य के सदृश देदीप्यमान लोकपालों की नगरियों का अतिक्रमण कर इस कल्पतरु पर आये और अपने घोंसले में प्रविष्ट हुए । हे मुने, यहाँ पर हम लोगों से समस्त बाधाएँ दूर रहती हैं और हम सदा समाधि में अवस्थित रहते हैं ॥४८, ४९॥
कहे गये वृत्तान्त का उपसंहार करते हैं।
हे महानुभाव, 'तुम किस कुल में उत्पन्न हुए ?' 'किस तरह ज्ञातज्ञेय हुए ?' और 'तुम्हें यह निवास कैसे प्राप्त हुआ ?'- ये जो तीन प्रश्न आपने पहले किये थे, उसके उत्तर में जिस प्रकार हम उत्पन्न हुए, जिस प्रकार यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर हम लोग शान्त-बुद्धि होकर स्थित हुए एवं इस नीड में जिस रीति से हम लोग आये, यह सब वृत्तान्त आपको अविकलरूप से भली प्रकार कह सुनाया, इसके बाद 'तुम्हारी कितनी आयु है ?' और 'क्या अतीत वृत्तान्त जानते हो ?' - इन दो प्रश्नों के उत्तररूप से यदि आप कहने के लिए हमें आज्ञा देंगे, तो उसे भी मैं आपसे कहूँगा ॥५०॥ उन्नीसवाँ सर्ग समाप्त
बीसवाँ सर्ग
प्रत्येक कल्प में जगत की समता, भाईयों की मृत्यु और
प्रलयकाल में भी अपने चित्त की स्थिरता का भुशुण्ड द्वारा वर्णन ।
'वृत्तं स्मरसि किंच वा', इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर देने की इच्छावाला और 'इमं कल्पतरुं प्राप्य निजं नीडं प्रविश्य च' इत्यादि वृत्तान्त में पूर्वापर विरोध की शंका न हो जाय, इसलिए प्रत्येक कल्प में अवयवों की समता होने के कारण कल्पवृक्ष, मेरु आदि की एकता कही जाती है आशय बतलाते हैं ।
भुशुण्ड ने कहा ः महाराज वसिष्ठजी, हम लोगों के जन्मनिमित्त कल्प में चिरकाल तक जो कुछ पदार्थसमूहात्मक जगत स्थित था, वह सब अवयवसंस्थान आदि आकृति-विशेषों से इस कल्प के पदार्थों के सदृश ही था, अतः वह आज भी अभेद आरोप से सन्निहित ही है, इसलिए बुद्धिपूर्वक ही 'इमं कल्पतरूम्' इत्यादि निर्देश किया गया है ।।१।। इसलिए हे मुनीन्द्र, यद्यपि यह वृत्तान्त भूतकालीन है, तथापि 'जगत भ्रान्तिमात्र है' यों अभ्यास होने के कारण पूर्वजन्म की समता देखनेवाले मैंने बोध के लिए उसका, वर्तमान जगत के साथ एकता मानकर ही, वर्णन किया है ॥२॥
अब, लम्बी कथा का उपक्रम करने पर पूजा में विलम्ब न हो जाय, इसलिए पहले पूजन - स्वीकार की प्रार्थना करने के लिए स्तुति द्वारा महर्षि को अभिमुख करते हैं ।
हे मुने, चूँकि दीर्घकाल से संचित किये गये मेरे पुण्य आज सफल हो गये, इसीलिए निर्विघ्नतापूर्वक आपका मैं दर्शन कर रहा हूँ ॥३॥ मुनिवर ! यह नीड़, यह शाखा, यह मैं, यह कल्पवृक्ष - ये सब आज आपके दर्शन से अत्यंत पवित्र हो गये ।।४।। मुनिवर, विहंगों (पक्षियों) द्वारा समर्पित इस अर्ध्य और पाद्य का स्वीकार कर एवं हम लोगों को पवित्र बनाकर आप अवशिष्ट सेवा के निमित्त कुछ और प्रश्न कहने के लिए आज्ञा दीजिए ॥५॥ वसिष्ठजी ने कहा : श्रीरामजी, दूसरी बार स्वयं उस भुशुण्ड पक्षी के द्वारा अर्घ्य, पाद्य देने पर मैंने यह कहा ॥६॥ हे पक्षिराज, वैसे बली और महाबुद्धिमान तुम्हारे वे भाई यहाँ क्यों नहीं दिखाई देते, तुम अकेले ही क्यों दिखाई देते हो ? ।।७।। भुशुण्ड ने कहा : मुनिवर, हम लोगों को यहाँ रहते महान काल बीत गया । हे अनघ, दिवस - पंक्तियों की नाईं युगों की पंक्तियाँ क्षीण हो गई ॥८॥ इतना लम्बा काल होने के कारण सभी मेरे भाई, तृण के सदृश, शरीर छोड़कर शिवपद में परिणत हो गये ॥९॥ ब्रह्मन्, यद्यपि दीर्घायु हों, महान हों, सज्जन हों, बलवान हों, सभी को यह अलक्षितस्वरूपवाला काल अपने उदर में समा लेता है ॥१०॥ महाराज वसिष्ठजी ने कहा : प्रिय पक्षिराज, माला की नाईं अपने कन्धे पर बारह सूर्य और चन्द्रमा को ढोनेवाले तथा प्रवह आदि वातस्कन्धों का अतिक्रमण करनेवाले प्रलय- वायुओं के अविरत बहने पर क्या तुम्हें खेद नहीं होता ? ॥११॥ भुशुण्डजी, चिरकाल से अत्यन्त आसन्न उदयाचल और अस्ताचल के अरण्यों को दग्ध कर देनेवाले सूर्य-किरणों से क्या तुम्हें खेद नहीं होता ? ॥१२॥ वायसराज, जल को पाषाण के सदृश कठोर बना देनेवाले शीतल चन्द्रकिरणों और निकट प्रलय के लिए हो रहे पाषाण के पतनों से क्या तुम्हें खेद नहीं होता ? ॥१३॥ प्रियवर, मेरु - शिखर पर विश्रान्ति किये प्रलयकालीन मेघ-मण्डलों से तथा परशु की धारा को भी क्षत कर देनेवाले शिलासदृश घनीभूत कुहरे से क्या तुम्हें खेद नहीं होता ? ॥१४॥ अत्यन्त ऊँचे स्थान पर स्थित हुआ यह उन्नत कल्पवृक्ष जगत के विषम क्षोभों से क्यों क्षुब्ध नहीं होता ? ॥१५॥
कठिन समय आने पर जब बड़े-बड़े लोगों को भी क्षोभ हो सकता है, तब पक्षी जैसी अधम योनि में उत्पन्न हुए मेरी तो बात ही क्या ? तथापि विवेक की सामर्थ्य से खेद नहीं होता, यों कहने के लिए दूसरों के जीवन की अपेक्षा अपनी जाति के पक्षियों के जीवन की क्षुद्रता बतलाते हैं।
भुशुण्ड ने कहा : ब्रह्मन्, आकाश में आश्रित और सभी लोगों से तिरस्कृत यह पक्षियों का जीवन सब प्राणियों में अत्यन्त तुच्छ है ॥१६॥ ऐसी तुच्छ योनियों के लिए भी विधाता ने झरनों, वनों और शून्यसदृश आकाश में प्रीतिपूर्वक जो जीविका की कल्पना की है, यह अत्यन्त आश्चर्य का विषय है ॥१७॥ भगवन्, इस तुच्छ जाति में उत्पन्न, चिरकाल से जीवन बीता रहा और आशारूपी पाशों से निरन्तर बद्ध एक पक्षी किस तरह शोकवर्जित हो सकता है ? ॥१८॥ भगवन्, तथापि हम अपनी आत्मा में ही सदा सन्तोष मानकर अवस्थित हैं, इसलिए उत्पन्न हुए विभ्रमों से कभी भी परमार्थसत्ता से रहित इस जगत में मुग्ध नहीं होते ॥१९॥ ब्रह्मन्, हम लोग अपने सत्तास्वभाव में ही सन्तुष्ट रहते हैं, कष्ट पहुँचानेवाले परपीडन-व्यापारों से निर्मुक्त होकर अपने निवासस्थान इस घोंसले में रहते हुए केवल कालयापन करते हैं ॥२०॥ महाराज, हम लोग अपने जीवन से न देह की ऐहिक या आमुष्मिक फल के लिए कोई क्रिया चाहते हैं और मरण से न देह का विनाश ही चाहते
हैं। जिस तरह वर्तमान में नित्यसिद्ध निरतिशयात्मरूप से पूर्णकाम होकर स्थित रहते हैं, उसी तरह आगे भी स्थित रहेंगे ॥२१॥ महर्षे, हमने प्राणियों की जन्म, मरण आदि अनर्थ - दशाएँ देख लीं और मिथ्यात्व-निर्णायक स्वप्न आदि दृष्टान्त दृष्टियाँ भी देख ली तथा हमारे मनने अपना चंचल स्वरूप भी सदा के लिए भली प्रकार त्याग दिया है ।।२२।।
कल्पवृक्ष के प्रभाव से ही कल्प- समाप्ति तक हम लोगों को खेद नहीं होता, यह कहते हैं । निरन्तर शान्ति देनेवाले अविनाशी स्व-स्वरूप प्रकाश में स्थित होकर मैं इस कल्पवृक्ष के ऊपर सदा काल की कलन गति जानता रहता हूँ ॥२३॥
प्रकाश अधिक होने के कारण जब दिन और रात का विभाग ही ज्ञात नहीं हो सकता, तब यहाँ स्थित होकर तुम काल की कलनगति कैसे जानते हो ? इस प्रश्न पर कहते हैं ।
चमकीले रत्नों के प्रकाश से पूर्ण कल्पलता- गृह में उपस्थित होकर मैं प्राणायाम के प्रवाह से यानी स्वरोदयशास्त्र में बतलाये गये उपाय से अखण्डित कल्प जान लेता हूँ ॥२४॥ मुनिवर, दिन और रात जाने बिना ही इस उन्नत शिखर पर अपनी बुद्धि से ही लोकों के कालक्रम की स्थिति जानता रहता हूँ ।।२५।।
मन की स्थिरता के बल से मुझे खेद नहीं प्रतीत होता, इस आशय से कहते हैं ।
मुनिवर, यह सारभूत वस्तु है और यह असारभूत वस्तु है, इस प्रकार के विवेकयुक्त बोध से उत्तम शान्ति को प्राप्त हुआ मेरा मन चंचलताशून्य, शान्त और भली प्रकार स्थिर है ॥२६॥ सांसारिक व्यवहारों से जनित असद्रूप आशारूपी पाशों से जिस प्रकार अल्पध्वनियों से प्राकृत काक भयग्रस्त हो जाता है, उस प्रकार मैं भयग्रस्त नहीं होता ॥२७॥
धैर्य के कारण भी हमें खेद प्राप्त नहीं होता, यों कहते हैं ।
निरतिशय शान्ति पहुँचानेवाली और आत्मप्रकाश से शीतल हुई बुद्धि से जगत की माया देख रहे हम लोग धीरता को प्राप्त हुए हैं ॥२८॥ हे महाबुद्धे, दशाक्रम के अनुसार भयंकर दशाएँ भी प्राप्त हो जाय, तथापि स्थिर बुद्धिवाले हम, निश्चल पत्थर के सदृश, स्थिराकृति होकर अवस्थित रहते हैं ॥२९॥ जगत-तत्त्व के पुनः विमर्शबल से भी खेद नहीं होता, यों कहते हैं ।
प्रारम्भ में रमणीय दीख पड़नेवाली, तरल इस संसार स्थिति का बार-बार परामर्श किया जा चुका है, अतः वह हमें कुछ बाधा नहीं पहुँचाती ॥३०॥
'जातस्य ही ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च' (उत्पन्न हुआ निश्चित मरता है दुःख अपरिहार्य है, यों निश्चय होने के कारण भी भयप्राप्ति नहीं होती, यों कहते हैं ।
भगवन्, सभी प्राणी व्यवहारदृष्टि से आते हैं और जाते हैं अथवा परमार्थदृष्टि से न आते हैं और न जाते हैं, इसलिए हम लोगों को यहाँ भय ही क्या ॥३१॥
तत्त्वज्ञस्वरूप अपने में तटस्थता, समस्त भूतों के संसार का द्रष्टृत्व और संसार के प्रति आदर का अभाव होने से भी भय की प्रसक्ति नहीं है, ऐसा कहते हैं ।
कालसागर में प्रवेश कर रही, प्राणि-समूह तरंगों से युक्त संसार-सरिता के तटपर अवस्थित हुए भी हम लोग उसमें आदर नहीं करते ॥३२॥ महर्षे, इस वृक्ष पर उपस्थित हुए हम लोग प्राप्त
वस्तुओं का न परित्याग करते हैं, एवं न अप्राप्त वस्तु के ग्रहण की चेष्टा ही करते हैं; व्यवहार दृष्टि से स्थित हैं एवं परमार्थदृष्टि से स्थित नहीं भी हैं। हम लोग एकमात्र व्यवहार की सिद्धि के लिए, कण्टकाकीर्ण भूमि की नाईं, सावधानी से चलने के कारण कोमल पगवाले हैं और तत्त्वदृष्टि से संसार का उच्छेदन कर देने के कारण क्रूर भी हैं ॥३३॥
बड़े लोगों के अनुग्रह से भी हम लोगों को खेद-प्राप्ति नहीं होती, ऐसा कहते हैं ।
शोक, भय और आयास से वर्जित आपके सदृश सन्तुष्ट उत्तम पुरुष हम लोगों पर सदा अनुग्रह करते हैं, इसलिए भी हम लोग सदा दुःखों से निर्मुक्त होकर अवस्थित हैं ॥३४॥ भगवन्, व्यवहार चलाने के लिए इधर-उधर प्रेरित हुआ भी हम लोगों का मन राग आदि वृत्तियों में निमग्न और तत्त्व विचार से शून्य कभी भी नहीं रहता ॥३५॥ अपनी आत्मा के निर्विकार, क्षोभशून्य और शान्त हो जाने के कारण चिद्रूप ( चारों ओर से ब्रह्माकार वृत्तिरूप चन्द्रमा का उदय होने पर उत्कट हुए बोधस्वरूप) तरंगवाले हम लोग, पूर्णिमा आदि पर्वकाल में समुद्र की नाईं, प्रबुद्ध हो गये हैं ॥३६॥ भगवन्, जिस अमृत के लिए मन्दराचल द्वारा सर्वांगों से क्षुब्ध हुए क्षीर-सागर का मंथन किया जाता है, आपके उसी अमृतरूपा आगमन से हम लोग अत्यन्त प्रसन्नचित्त हो गये हैं ।।३७ ।। समस्त एषणाओं की तिलांजलि देनेवाले सन्त, महात्मा अपने आगमन आदि से हम पर जो अनुग्रह करते हैं, मैं अपनी आत्मा का इससे अधिक दूसरा कुशल नहीं मानता ॥३८॥ ऊपर-ऊपर से रमणीय दिखाई पड़नेवाले विषय-भोगों से क्या प्राप्त होता है ? अर्थात् कुछ भी नहीं। सत्संगरूपी चिन्तामणि से तो समस्त सारभूत ज्ञानवस्तु प्राप्त होती है ॥३९॥ हे मुनिवर, स्नेहपूर्ण, गम्भीर, मधुर, उदार और धीर वाणीवाले एकमात्र आप ही इस त्रिभुवनरूपी कमल की कली में भ्रमर के सदृश हैं ॥४०॥ साधो, यद्यपि मैंने परमात्मा को जान लिया है और आपके दर्शन से मेरे समस्त पाप नष्ट हो चुके, तथापि चूँकि महात्माओं का समागम भयों का अपहरण करनेवाला है इसलिए, यहाँ आज मेरा जन्म सफल (निरतिशय आनन्दरूप फल से युक्त) हुआ, ऐसा मैं मानता हूँ ॥४१॥ बीसवाँ सर्ग समाप्त
इक्कीसवाँ सर्ग
कल्पवृक्ष का माहात्म्य, प्रलय में वारुणी आदि धारणाओं द्वारा अपनी स्थिति,
ईश्वरीय नियमिका शक्ति और अनेक चित्र-विचित्र अर्थों के स्मरण का वर्णन।
अपने आश्रय कल्पवृक्ष के माहात्म्य वर्णनप्रसंग में युगविनाश काल में जनित उपद्रवों से अपने को क्लेश की प्राप्ति नहीं होती, यों कहते हुए 'वृत्तं स्मरसि किं च वा' इत्यादि प्रश्न का उत्तर देने के लिए पक्षिराज भुशुण्ड वक्तव्य का उपक्रम करते हैं ।
भुशुण्ड ने कहाः महाराज वसिष्ठजी, युग समाप्ति के महान उपद्रवों में और भयंकर महापवनों में भी यह कल्पवृक्ष अत्यन्त स्थिर रहता है, कभी भी कम्पित नहीं होता ॥१॥ हे साधो, अन्य लोकों में विहार करनेवाले सभी प्राणियों का यह अत्यन्त अगम्य स्थान है, अतः यहाँ हम लोग अत्यन्त सुखपूर्वक रहते हैं ।।२।। मुनिवर, जिस समय हिरण्याक्ष ने सात द्वीपों से वेष्टित इस पृथ्वी का
वेगपूर्वक अपहरण किया था, उस समय पृथ्वी पर स्थित होने के कारण इसके भी हरण, कम्पन आदि की संभावना अवश्य थी, तथापि दिव्यप्रभाव की सामर्थ्य से इस कल्पवृक्ष में तनिक भी कम्पन नहीं हुआ ॥३॥ (वराह भगवान द्वारा किये गये पृथ्वी के उद्धार के समय ) खम्भे की आधारभूत शिला की नाईं चारों ओर से समता के लिये आधाररूप से दिये गये पर्वतों से युक्त मेरुपर्वत जब कम्पित हुआ, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ॥४।। दो भुजाओं के अवष्टम्भ ( पकड़) से मेरु को दबाकर जब चतुर्भुज भगवान नारायण ने इतर दो हाथों द्वारा समुद्र से मन्दराचल का उद्धार किया, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ।।५।। जब देवासुर संग्राम के कारण चन्द्र-मण्डल और सूर्य-मण्डल गिर गया था तथा जगत में अत्यन्त क्षोभ पैदा हो गया था, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ।।६।। जब पर्वतराज की शिलाओं का उन्मूलन कर देनेवाले और मेरुपर्वत के अन्यान्य वृक्षों को कम्पित कर देनेवाले प्रलय-कालीन वायु बह रहे थे, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ॥७॥ क्षीर-सागर में चंचल हुए मन्दराचल की गुहाओं के वायुओं से मानों कम्पित हुई कल्पान्त की मेघपंक्तियाँ जब संचरण कर रही थी, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ।।८।। जब (तारकासुर युद्ध में) कालनेमि की भुजाओं में मेरु पर्वत चारों ओर से उन्मूलित होकर अवस्थित था, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ था ।।९।। जिनके कारण बड़े-बड़े सिद्ध गिर रहे थे, ऐसे पक्षिराज गरुड (4) के पंखों के पवन जब अमृत हरण के युद्ध में बह रहे थे, तब भी यह वृक्ष गिरा नहीं ॥१०॥
आज भी जिसकी पृथ्वी धारणरूप चेष्टा समाप्त नहीं हुई है, ऐसी शेषाकृति को संकर्षण रुद्र जब प्राप्त हुए, तब और जब गरुड़जी पृथ्वी से उड़कर ब्रह्माण्ड को गये, तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ ।।११॥ प्रलयकाल में जब शेष ने फणाओं से, शैल, सागर एवं समस्त प्राणियों से सही न जानेवाली प्रलयाग्नि शिखाएँ बाहर निकालीं तब भी यह वृक्ष कम्पित नहीं हुआ। (पुराण में यह बात प्रसिद्ध है कि अन्त में प्रलय संकर्षण की मुखाग्नि से ही होता है ।) ॥१२॥ हे मुनियों में सिंहरूप महाराज वसिष्ठजी, इस प्रकार के उत्तम वृक्ष पर निवास कर रहे हम लोगों को आपत्तियाँ कहाँ से हो सकती हैं, क्योंकि वे आपत्तियाँ दुष्टस्थान में निवास के कारण ही आती हैं ॥१३॥ महाराज वसिष्ठजी ने कहा : हे महाबुद्धि पक्षिराज, कल्पान्त हेतु उत्पातवायुओं के, जो चन्द्रमा, नक्षत्र और सूर्य को गिरा देते हैं, बहने पर तुम चिन्तानिर्मुक्त होकर कैसे रहते हो ? (क्योंकि उस समय प्रलय में भूलोकपर्यन्त सबका दाह होने से मेरु, कल्पवृक्ष आदि से कभी भी परित्राण नहीं हो सकता ।) ॥१४॥ भुशुण्ड ने कहा : भगवन्, जब सहस्र महायुगों के अन्त में जगत की अवस्था में व्यवहार गिर जाता है, तब सन्मित्र का परित्याग कर देनेवाले कृतघ्न की नाईं मैं इस घोंसले का परित्याग कर देता हूँ ।।१५।। ( उस समय मैं) समस्त कल्पनाओं का परित्याग कर और निश्चल स्वभाववाले अंगों से (4) गरुडस्य जातमात्रस्य सर्वे लोकाः प्रकम्पिताः । प्रकम्पिता मही सर्वा सप्तद्वीपाश्च कम्पिताः ॥
तदुत्पातान्निमज्जन्तीं भुवं नावमिवाऽम्भसि । दधौ सहस्रैः शिरसां संकर्षणवपुर्हरः ।। 'उत्पन्नमात्र गरुड को देखकर सब लोक कम्पित हुए, भूमि और सातों द्वीप काँपने लगे । इन उत्पातों से, जल में नाव की नाईं, डूब रही पृथ्वी का संकर्षण शरीर महादेवजी ने हजारों मस्तकों से धारण किया' इस कथा के अनुसार कहते हैं ।
युक्त होकर एकमात्र आकाश में ही, वासनाशून्य मन की नाईं स्थित रहता हूँ ॥१६॥
सामान्यतः कथित आकाश स्थिति का धारणा भेदों से विशेष उल्लेख करते हैं।
महाराज वसिष्ठजी, प्रलय के समय में जब पर्वतों को खण्ड-खण्ड कर देनेवाले बारह आदित्य तपते हैं, तब मैं वरुणसम्बन्धी धारणा बाँधकर निश्चिंत होकर स्थित रहता हूँ। (तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार जल के बीच रहनेवाले वरुण बाहर के ताप से जनित संताप का अनुभव नहीं करते, उसी प्रकार भुशुण्ड भी 'अत्यन्त शीतल समस्त दिग्मण्डल में व्यापी अपरिच्छिन्न जल स्वरूप वरुण ही मैं हूँ' इस प्रकार चित्त में निरन्तर वरुण भावना के द्वारा वरुणरूपताको प्राप्त होकर बाहर के सूर्यादि-तापजनित संताप का अनुभव नहीं करते थे) ॥१७॥ जब प्रलयकाल में बड़े-बड़े पर्वतराजों को मर्दित कर देनेवाले प्रलयकालीन वायु बहते हैं, तब मैं पर्वतसम्बन्धिनी धारणा बाँधकर आकाश-मण्डल में अचल होकर स्थित रहता हूँ (तात्पर्य यह है कि प्रलयकाल में पृथ्वी पर स्थित पर्वतों के विनाशी होने के कारण उन्हीं पर प्रलयकालीन वायुओं का आघात होता है, इसलिए प्रलयकालीन वायुओं से होनेवाले आघात के अविषय ब्रह्माण्ड के बहिर्भूत आकाश में साधारण वायु से भी क्षोभ न होने के लिए पर्वतसम्बन्धिनी धारणा बाँधकर मैं स्थित रहता हूँ) ॥१८॥ जब प्रलयकाल में जगत, जिसमें मेरु आदि पर्वत गल जाते हैं, एक समुद्रस्वरूप हो जाता है, तब वायुसम्बन्धिनी धारणा बाँधकर एकमात्र वायु में ही तादात्म्य भाव करता हुआ निश्चित-बुद्धि होकर ऊपर तैरता रहता हूँ ॥१९॥
'उस प्रकार कितने समय तक तैरते रहते हो ?' इस शंका पर कहते हैं ।
महाराज, ब्रह्माण्ड के पार को यानी स्थूल, सूक्ष्म और समष्टिरूप ब्रह्माण्ड के परम अवधिस्वरूप अव्याकृत को प्राप्त कर समस्त पदार्थों के अन्तभूत एवं निर्मल आत्मपद में निश्चलात्मक सुषुप्ति के सदृश एकरस निर्विकल्प समाधि-अवस्था से मैं तब तक स्थित रहता हूँ, जब तक कमलोद्भव ब्रह्मदेव पुनः अपने सृष्टिकर्म में प्रवृत्त नहीं होते । पुनः सृष्टिरूप व्यापार के होने पर ब्रह्माण्ड में प्रवेशकर इस कल्पवृक्ष के स्थानापन्न मैं अपने आलय में फिर स्थित हो जाता हूँ ॥२०, २१॥ महाराज वसिष्ठजी ने कहाः हे पक्षीन्द्र, प्रलयकाल में तत्-तत् धारणाओं के द्वारा अखण्डित होकर जैसे तुम स्थित रहते हो, वैसे दूसरे योगी क्योंकर स्थित नहीं रहते, क्यों वे शरीर त्यागकर मुक्ति प्राप्त करते हैं ? ॥२२॥
इस विषय में तत्-तत् प्रबल प्रारब्ध का अनुसरण करनेवाली सत्यसंकल्प स्वरूपा ईश्वरनियति ही व्यवस्थापक है, दूसरा कोई नहीं; ऐसा कहते हैं ।
भुशुण्ड ने कहा ः हे ब्रह्मन्, चूँकि इस परमेश्वरीय नियामिका शक्ति का कोई भी उल्लंघन नहीं कर सकता, इसलिए हम इस प्रकार कल्पान्तों में स्थित रहते हैं और दूसरे (योगी) शरीरों का त्यागकर मुक्त हो जाते हैं ॥२३॥ महाराज, जो अवश्य भवितव्यता है, उसका बुद्धि से 'इदम् - इत्थमेव' इस प्रकार अवधारण नहीं कर सकते। जिस तरह के प्रारब्ध से जो जैसा प्राप्त होता है, वह वैसा ही रहता है । यह नियतिरूप स्वभाव का निश्चय है ॥२४॥
प्रत्येक कल्प में इस कल्पवृक्ष के निर्माण में भी भोगजनक अदृष्ट में हेतुभूत मेरा संकल्प ही कारण है, ऐसा कहते हैं।
कल्प-कल्प में बार-बार एकमात्र मेरे संकल्प से ही मेरुपर्वत के इसी शिखर पर इस तरह का यह
कल्पवृक्ष उत्पन्न होता है ॥२५॥ महाराज वसिष्ठजी ने कहा : भद्र, तुम्हारी आयु मोक्ष के सदृश अत्यन्त अपरिच्छिन्न है, तुम सुदूर भूतकालीन पदार्थों का निर्देशन करने में सबसे बढ़-चढ़कर हो । तुम मोक्षहेतु तत्त्वज्ञान और लौकिक समस्त शास्त्रादि विज्ञानों से परिपूर्ण हो, धीर हो और तुम्हारे मनोव्यापार आत्मयोग में पर्याप्त रूप से योग्य हो चुके हैं। तुमने तरह-तरह की असंख्य सृष्टियों की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय देखे हैं, इसलिए मैं तुमसे पूछता हूँ कि तुम्हारे द्वारा देखे गये जगत मण्डल में आश्चर्यकारी किस-किस जगत-क्रम का तुम स्मरण करते हो ॥२६, २७॥ भुशुण्ड ने कहाः हे श्रेष्ठतर, इस पृथ्वी के विषय में मुझे स्मरण है कि एक समय इसमें शिला और वृक्ष कुछ नहीं थे; तृण, लता आदि कुछ भी उत्पन्न नहीं हुए थे, पर्वत, अरण्य और भाँति-भाँति के वृक्ष कुछ भी नहीं थे तथा यह पृथ्वी मेरु के नीचे स्थित थी ॥२८॥ मुझे भलीभाँति स्मरण है कि मेरुपर्वत के नीचे यह पृथ्वी ग्यारह हजार वर्षों तक भस्म-सार के भार से व्याप्त थी ॥२९॥ पहले मेरुपर्वत के नीचे पृथ्वी पर न सूर्य उत्पन्न हुआ था, न इसमें चन्द्र-मण्डल का भान ही होता था और न तो दिवस का हेतुभूत प्रकाश सुमेरुपर्वत के प्रकाश से विभक्त था-इसका भी मुझे भली प्रकार से स्मरण है ॥३०॥ सुमेरुपर्वत के रत्नों के तलप्रकाशों से इस पृथ्वी का आधा कोटर प्रकाशित होता था तथा इस पर कहीं-कहीं प्रकाशयुक्त पर्वत भी विद्यमान थे, इसलिए यह लोकालोक पर्वत के सदृश प्रतीत होती थी - इसका भी ठीक-ठीक स्मरण है ॥३१॥ यहाँ बल, ऐश्वर्य आदि से परिपुष्ट असुरों का संग्राम होने पर जब इस पृथ्वी का भीतरी भाग क्षीण हो गया था, तब यह पलायनमान जनों से व्याप्त हो गई थी - इसका भी मुझे अच्छी तरह से स्मरण है ।।३२।। चार युगों तक मद-मत्त ऐश्वर्यशाली असुरों के द्वारा आक्रान्त हुई यह पृथ्वी उनके (असुरों के) अन्तःपुर रूपता को प्राप्त हो गई थी- इसका भी स्मरण करता हूँ ॥३३॥ एक समय इस जगतरूपी कुटिया में मेरु को छोड़कर दूसरे सब देश समुद्र ने अंत तक आच्छादित कर दिये थे और उस समय इस मेरुपर्वत पर अविनाशी ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ये देवत्रयी विराज रही थी - इसका भी मुझे ठीक स्मरण है ।।३४।। दो युगों तक तो यह (पृथ्वी) जंगली वृक्षों से निबिड़ थी और इसमें उन्हें (वृक्षों को) छोड़ दूसरे किसी का निर्माण ही नहीं हुआ था इसे भी स्मरण करता हूँ ।।३५।। एक समय यह पृथ्वी चार युगों से अधिक काल तक निबिड़ पर्वतों से व्याप्त थी; उसमें मनुष्यों का संचरण भी नहीं होता था - इसका भी मुझे स्मरण है ॥३६॥ दस हजार वर्षों तक तो यह मृत दैत्यों के अस्थिपर्वतों से चारों ओर से व्याप्त एवं परिपूर्ण थी - इसका भी मैं भली-भाँति स्मरण करता हूँ ।।३७।। एक समय अन्तरिक्ष आदि लोकों में भय के कारण समस्त विमानगामी देवता आदि तिरोहित हो गये थे और यह (पृथ्वी) सब वृक्षों से वर्जित होकर अन्धकार प्रचुर हो गई थी - इसका भी मुझे स्मरण है ॥३८॥
महाराज, एक समय मेरु-स्पर्धा से विन्ध्यमहापर्वत के बढ़ने पर दक्षिण दिशा से अगस्त्य महामुनि चले गये और यह जगत-रूपी कुटिया मलय, दर्दुर, सह्याद्रि आदि विभाजक पर्वतों के अभाव से एकपर्वतरूपता को प्राप्त हो गई थी - इसका भी मुझे स्मरण है ॥३९॥ ये और इनसे पृथक दूसरे भी बहुत वृत्तान्त हैं, जिनका मुझे संस्मरण है, परन्तु उनके विषय में अधिक कहने से क्या फल ? केवल सारभूत वस्तु का संक्षेप से श्रवण कीजिए ॥४०॥ हे ब्रह्मन्, सैकड़ों असंख्य मनु बीत गये, ये सब प्रभाव के आधिक्य से परिपूर्ण थे एवं सैकड़ों चतुर्युग भी बीत गये - इसका भी मुझे स्मरण है ॥४१॥
दूसरा आश्चर्य कहते हैं।
एक समय यानी जब ब्रह्माण्डशरीर विराट् उत्पन्न होकर अपने स्वरूप का आलोचन करने के लिए कुछ काल तक समाहित चित्त हुए थे, उस समय पुरुष एवं असुरों से वर्जित, स्वतःशुद्ध, प्रकाशस्वभाव तैजस पदार्थों का समष्टिरूप एक ही ब्रह्माण्ड था - इसका मुझे स्मरण है ॥४२॥
कलियुग की सृष्टि-स्थिति का स्मरण कर रहे पक्षिराज भुशुण्ड कहते हैं ।
एक समय ऐसी उन्मत्त सृष्टि थी कि जिसमें ब्राह्मण लोग मद्य पीते थे, देवताओं की निन्दा करनेवाले असत्-शूद्र रहते थे, स्त्रियों के अनेक पति होते थे - इसका मुझे स्मरण है ॥४३॥
आश्चर्यान्तर कहते हैं।
महाराज, मुझे किसी एक ऐसी सृष्टि का स्मरण है कि जिसमें यह भूपीठ वृक्षों से घनीभूत था, महासमुद्र की कल्पना भी नहीं की गई थी और स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध के बिना अपने आप भृगु आदि मानस पुरुष उत्पन्न हुए थे (समुद्र के सर्जक प्रियव्रत की उत्पत्ति के पहले यह मानस-सृष्टि हुई थी, यह प्रसिद्ध है) ॥४४॥
जल में पृथिवी के निमग्न हो जाने पर जनलोक आदि प्रकाश प्रचुर लोकों के व्यवहारों से उपलक्षित हुए काल में जो सृष्टि-स्थिति थी, उसका स्मरण कर रहे पक्षीन्द्र भुशुण्ड कहते हैं ।
एक समय ऐसी सृष्टि थी जिसमें पर्वत और पृथिवी का नामशेष ही नहीं था, देवता और योगसिद्ध पुरुष आकाश में ही रहते थे तथा चन्द्र एवं सूर्य के अभाव में भी परिपूर्ण प्रकाश था - इसका मुझे स्मरण है॥४५॥ महाराज, एक समय की सृष्टि में न इन्द्र था, न कोई राजा था, न उत्तम, मध्यम एवं अधम का भेद था, सब एकरूप था तथा समस्त दिक्-चक्र अन्धकार से व्याप्त था - इसका मुझे स्मरण है ॥४६॥
इस कल्प के वृतान्त का तो इस कल्प तक की आयुवाले बहुत से लोगों को स्मरण है, यों प्रपंच कर रहे पक्षिराज भुशुण्ड कहते हैं ।
महाराज, पहले सृष्टि के उत्पादन के लिए सृष्टि का संकल्प हुआ। उसके बाद तीन लोकों में द्वीप आदि अवान्तर प्रदेशों का विभाग हुआ । उसके बाद सात कुलपर्वतों के लिए योग्य स्थान की कल्पना हुई । उसके बाद पृथक् स्थित हुए जम्बूद्वीप में प्रवेश कर स्रष्टा ने ब्राह्मण आदि वर्ण, उनके धर्म एवं उन-उनके लिए योग्य विद्याविशेषों की सृष्टि की। उसके बाद मण्डलरूप में पृथ्वी का विभाग किया, तदनन्तर नक्षत्र-चक्र का उपयोगी संस्थान एवं ध्रुव-मण्डल का निर्माण किया (मेरी अपेक्षा अत्यन्त स्वल्प आयुवाले आपके सदृश इस कल्प के मनुष्य भी इन सबका स्मरण कर सकते हैं।) ॥४७,४८॥ उसके बाद चन्द्रमा और सूर्य का निर्माण हुआ । तदनन्तर इन्द्र एवं उपेन्द्र की व्यवस्था हुई । बाद में हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का अपहरण किया। बाद में उसका वराहरूपधारी भगवान ने उद्धार किया ॥४९॥ बाद में देव, दानव, मनुष्य आदि प्रत्येक में राजाओं की कल्पना की गई । पश्चात् मत्स्यरूप ग्रहण कर भगवान वेद लाये । मन्दराचल का उन्मूलन किया गया । अमृत के लिए क्षीर-सागर का मंथन हुआ । बाद में अजातपक्ष गरुड़ और समुद्रों की उत्पत्ति हुई - इत्यादि स्वल्प अतीत जगत्क्रम की जो स्मृतियाँ हैं, उनका मेरी अपेक्षा अल्प-आयुवाले वर्तमान काल में उत्पन्न आपके सदृश प्राणी भी स्मरण करते हैं, इसलिए उनमें आदर ही क्या ॥५०,५१॥
कल्पान्तरों में अपने द्वारा देखे गये अन्यान्य आश्चर्यों का कथन करते हुए तत्त्ववेत्ता भुशुण्डजी प्रकृत विषय का उपसंहार करते हैं।
दीर्घजीविता को प्राप्त हुए मैंने किसी समय यह रहस्य देखा - इस कल्प में प्रसिद्ध गरुडवाहन श्रीविष्णु, हंसवाहन चतुर्मुख ब्रह्मा बनकर देव, दैत्य आदि की सृष्टिरूप कार्य का सम्पादन करते थे, हंसवाहन ब्रह्माजी वृषभवाहन रुद्र बनकर संहार करते थे तथा वृषभवाहन महादेवजी विष्णु शरीर बनकर सृष्टि का पालन करते थे ॥५२॥
इक्कीसवाँ सर्ग समाप्त
बाईसवाँ सर्ग
पुनः देखे गये वसिष्ठ के अष्टम जन्म आदि का, सम और अर्धसम सृष्टि का तथा क्षीर-सागर के मंथन आदि का वर्णन ।
भुशुण्ड ने कहाः भगवन्, (जब मुझे अनेक युगों की आश्चर्यजनक घटनाओं का वैसा अभ्रान्त स्मरण है, तब उनके बाद (कुछ पहले या आज के सर्ग में) उत्पन्न हुए आपको लेकर भरद्वाज, पुलस्त्य, अत्रि, नारद, इन्द्र और मरिचि इनके विषय में स्मरण की तो गणना ही क्या ? यानी उनके विस्मरण की तो सम्भावना कभी हो ही नहीं सकती, यह भाव है (5) ) ॥१॥ पुलह, उद्दालक आदि तथा क्रतु, भृगु, अंगिरा आदि सिद्ध-ऋषि, सनत्कुमार आदि ब्रह्मर्षि एवं भृंगीश, स्कन्द, गजवदन आदि शिवजी के पार्षदों के विषय में तो स्मरण की गणना ही क्या ? ॥२॥ गौरी, सरस्वती, लक्ष्मी, गायत्री आदि अनेक उनकी शक्तियों तथा सुमेरु, मन्दर, कैलास, हिमालय, दर्दुर आदि पर्वतों के विषय में स्मरण की तो गणना ही क्या ? ॥३॥ हयग्रीव आदि दानवों; हिरण्याक्ष, कालनेमि, बल, हिरण्यकशिपु क्राथ, बलि, प्रह्लाद आदि दैत्यों के विषय में स्मरण की तो गणना ही क्या ? ॥४॥ शिबि, न्यंकु, पृथु, उलाख्य, वैन्य, नाभाग, केलि, नल, मान्धाता, सगर, दिलीप, नहुष आदि राजाओं के विषय में स्मरण की तो गणना ही क्या ? ॥५॥ आत्रेय, व्यास, वाल्मीकि, शुक, वात्स्यान आदि तथा उपमन्यु, मणीमंकि, भगीरथ, शुक आदि के विषय में स्मरण की तो गणना ही क्या ? ॥६॥ जो स्वल्पतर भूतकाल में उत्पन्न हैं, जो कोई कुछ दूर के हैं तथा जो आज के कल्प में उत्पन्न हैं, उनके विषय में स्मरण की गणना ही क्या ? यानी पूर्वोक्त सभी लोगों के विषय में विस्मरण हो ही नहीं सकता, यह भाव है ।।७।। हे मुने, ब्रह्माजी के पुत्र आपका यह आठवाँ जन्म है । उस आठवें जन्म में आपकी और मेरी संगति हुई - इसका मैं पहले से स्मरण करता हूँ ॥८॥
'आठों जन्मों में क्या मैं ब्रह्माजी का ही पुत्र रहा ?' महाराज वसिष्ठ के इस प्रश्न पर पक्षीन्द्र भुशुण्डजी 'नहीं' यों उत्तर देते हैं।
हे मुने, आप किसी समय आकाश से उत्पन्न होते हैं, किसी समय जल से उत्पन्न होते हैं, किसी समय वायु से उत्पन्न होते हैं, तो किसी समय पर्वत और अग्नि से उत्पन्न होते हैं ॥९॥
समस्त कल्पों में तत्-तत् अधिकारी पुरुषों के नाम और स्वरूप एक से होने पर भी सब पदार्थों के (5) सप्तम श्लोकस्थ क्रिया के साथ सब सप्तम्यन्तों का सम्बन्ध है।
सब अवयव और आचरण एक ही होने चाहिए, यह नियम नहीं है, किन्तु काकतालीयन्याय से किसी समय एक-से ही हो जाते हैं, इस आशय से कहते हैं ।
महाराज वसिष्ठजी, यह सर्ग जैसा है, इसका जिस प्रकार आचरण है, इसके जिस प्रकार के अवयव संस्थान तथा दिशागण हैं, ठीक इसी तरह के तीन सर्ग पहले हो चुके हैं - इसका मुझे स्मरण है ।।१०।। मुनिवर, मुझे ऐसे दस सर्गों का स्मरण है-जिनमें देवताओं के निखिल आचरण तथा अवयव - गठन एकरूप थे, उनकी आयु समान थी एवं अपने नियत तत् तत् अधिकारपदों में उनकी स्थिति असुरों द्वारा चालित नहीं हुई थी ॥११॥
आचारों की समानता बतलाकर अब उनकी विषमता बतलाते हैं ।
हे मुने, जल में डूबकर तिरोहित हुई पृथ्वी का समुद्र से भगवान कूर्म ने ही, न कि वराह ने, पाँच सर्गों में पाँच बार उद्धार किया ॥१२॥ हे महाराज, मन्दराचल के आकर्षण के लिए किये गये भारी प्रयत्न के कारण व्याकुल हुए देवता एवं दानवों से युक्त यह अमृतार्थ समुद्र मन्थन बारहवाँ हुआ- ऐसा मुझे स्मरण है ॥१३॥ महाराज, पहले स्वर्गस्थ समस्त देवताओं से कर लेनेवाला, हिरण्याक्ष तीन बार समस्त औषधियों तथा रसों से परिपूर्ण इस पृथ्वी को पाताल में ले गया ॥१४॥ रेणुका के उदर से जन्म लेकर भगवान नारायण ने, परशुराम-अवतार से शून्य अनेक सर्गों के व्यवधान से भी, यह छठी बार क्षत्रियविनाश किया ।।१५।। हे मुनिश्रेष्ठ, सौ कलियुग हुए और कीकटदेश के राजारूप से यानी महाराज शुद्धोधन के पुत्ररूप से भगवान नारायण ने सौ बार बुद्धदशा प्राप्त की - इसका मुझे स्मरण है ॥१६॥ महाराज, चन्द्रमौलि महादेवजी ने कल्पों में तीस बार त्रिपुरों का विनाश किया, दो बार यानी प्रत्येक कल्प में स्वायंभुव और चाक्षुष मन्वन्तर में दक्षप्रजापति के यज्ञों का विध्वंस किया तथा अपराधी दस इन्द्रों को दण्ड दिया (उनके पदों से उन्हें च्युतकर पर्वत की गुफाओं में बन्दी बनाया अथवा वज्रसहित उनके हाथों का स्तम्भन किया ) - इसका मुझे स्मरण है ॥१७॥ मुनिवर, बाणासुर के लिए माहेश्वर एवं वैष्णवनामक ज्वरों और प्रमथगणों को शौर्य उत्साह बढ़ाकर प्रवृत्त करानेवाले तथा देवताओं की सेनाओं को प्रचुरमात्रा में क्षुब्ध करनेवाले हरि और हर के आठ संग्राम हुए-इसका मुझे स्मरण है ॥१८॥ मुने, मैं युग-युग में अध्येता पुरुषों की बुद्धियों के न्यूनाधिकभाव के कारण क्रियाओं की (ब्रह्मचर्य, गुरुसेवा, भूमिशयन आदि क्रियाओं की), अंगों की (शिक्षा, कल्प आदि अंगों की) एवं पाठों की (अवधानपूर्वक स्वर, वर्ण आदि के उच्चारण रूप पाठों की) न्यूनाधिकप्रयुक्त विचित्रतता से युक्त वेदों का भी स्मरण करता हूँ ॥१९॥ हे पापशून्य, युग-युग में प्रत्येक द्वापर के अंत में निर्माताओं के भेद से अनेक पाठवाले, एकार्थक तथा अत्यंत विस्तारयुक्त पुराण प्रवृत्त होते हैं - इसका मुझे स्मरण है ॥२०॥ मुने, युग-युग में वेद आदि शास्त्रों के विद्वान व्यास, वाल्मीकि आदि महर्षियों द्वारा विरचित उन्हीं महाभारत, रामायण आदि इतिहासों एवं दूसरे इतिहासों का भी मैं स्मरण करता हूँ ॥२१॥ महाराज, मैं आश्चर्यजनक महती घटनाओं से परिपूर्ण, प्रसिद्ध रामायण से भिन्न दूसरे रामायणनामक लक्षश्लोकात्मक ज्ञानशास्त्र का, जो ब्रह्मदेव द्वारा वसिष्ठ, विश्वामित्र आदि को उपदिष्ट था, स्मरण करता हूँ ॥२२॥ उस ज्ञानशास्त्र में मनोयोग देनेवाले महानुभावों के अन्तःकरण में हाथ में फल के सदृश, 'श्रीरामजी की नाईं व्यवहार करना चाहिए और रावण के विलास की नाईं विलास नहीं करना चाहिए' यह ज्ञान समर्पित किया गया
है ॥२३॥ उक्त ज्ञानशास्त्र के निर्माता महर्षि वाल्मीकि हैं और अब उनके द्वारा वसिष्ठ राम-संवादरूप दूसरे बत्तीस हजार श्लोकात्मक महारामायणरूप ज्ञानशास्त्र की जो रचना की जायेगी, उसका भी दिव्यज्ञान की सामर्थ्य से मैं स्मरण करता हूँ, आप भी समय आनेपर उसे जान जायेंगे ॥२४॥ महाराज वसिष्ठजी, इस भावी वसिष्ठ- राम-संवादरूप ज्ञानशास्त्र की पूर्वकल्प के अथवा दूसरे किसी और वाल्मीकिनामक जीव के द्वारा यद्यपि पहले ही रचना की गई थी, तथापि कल्प के अन्त में व्यवहारकर्ताओं की परम्पराओं के उठ जाने से वह उच्छेद को प्राप्त हो गया था, अतः वर्तमान में उसकी पुनः बारहवीं बार रचना की जायेगी ।।२५।। महाराज, इसी ज्ञानशास्त्र के बराबर दूसरा ज्ञानशास्त्र था, जिसकी 'महाभारत' इस नाम से प्रसिद्धि थी एवं प्राक्तन व्यासजी के द्वारा रचना की गई थी और जो इस समय जगत में विस्मृति को प्राप्त हो चुका है- मैं उसका स्मरण करता हूँ ॥२६॥ उसी (पूर्वकल्प के) अथवा दूसरे किसी और व्यासनामक जीव के द्वारा किये गये तथा कल्पान्त में विस्मृति को प्राप्त हुए उस महाभारत की सातवीं बार रचना की जायेगी ॥२७॥ हे मुनिराज, युग-युग में प्रवृत्त हुए अनेक आख्यानों एवं शास्त्रों का, जो चित्र-विचित्र घटना-सन्निवेशों से परिपूर्ण थे, मैं स्मरण करता हूँ ॥२८॥ हे साधो, युग-युग में पुनः पुनः उन्हीं-उन्हीं पदार्थों को तथा दूसरे-दूसरे पदार्थों को मैं जानता हूँ-इसका भी मुझे स्मरण है ।।२९।। भगवन्, राक्षसों का विनाश करने के लिए पृथ्वी में अवतार ग्रहण करनेवाले महिमाशाली विष्णु का निकटवर्ती त्रेतायुग में ग्यारहवीं बार 'राम' इस नाम से जन्म होगा ॥३०॥ हे महर्षे, नृसिंहस्वरूप शरीर से भगवान ने हिरण्यकशिपु का, हाथी का मृगेन्द्र सिंह की नाईं, तीन बार हनन किया ॥३१॥ हे मुनीश्वर, पृथ्वी के भार की निवृत्ति करने के लिए भगवान विष्णु का सोलहवीं बार वसुदेवजी के घर में निकट द्वापर के अन्त में जन्म होगा ॥३२॥
बाहर यह उत्पन्न होता है, यह भ्रान्ति है, इस आशय से कहते हैं ।
महाराज, जगद्रूपा इस भ्रान्ति का कभी भी ( कल्पान्त में) अस्तित्व नहीं है, जल में बुद्बुदों की नाई स्थित हुई यह किसी समय ही ( कल्पान्त में) अज्ञानवश अस्तित्व रखती हुई-सी प्रतीत होती है ॥ ३३॥ जल में तरंगों की नाईं अति चपल, आत्मा के अन्दर रहनेवाली यह अनित्य दृश्य पदार्थों की भ्रान्ति संवित्-स्वरूप आत्मा में ही उत्पन्न और तत्क्षण लीन हो जाती है ।।३४।।
प्रत्येक सर्ग में भूलोक आदि की अवयवों से समानता का जो नियम है, वह भी औत्सर्गिक है, यों कहते हैं।
महाराज, ये तीनों जगत किसी कल्प में समान अवयव - सन्निवेश (आकार) वाले थे, किसी कल्प में अत्यन्त विषम थे तथा किसी समय आधे समानरूप थे - इसका मुझे स्मरण है ॥३५॥
मनु आदि अधिकारी पुरुषों के आकारों और चरित्रों की समता भी औत्सर्गिक ही है, ऐसा कहते हैं । महाराज, किसी एक कल्प में जो प्राणी जिस रूप के जो आचार-व्यवहार करते थे, ठीक उसी रूप के वे ही प्राणी तत्परवर्ती कल्प में भी आचार-व्यवहार करते देखे गये तथा दूसरे प्राणी उन्हीं के आचार-व्यवहार करते देखे गये - इसका मुझे वर्तमान में स्मरण है ॥३६॥
ब्रह्मन्, प्रत्येक मन्वन्तर में जगत-क्रम का विपर्यास हो जाने पर, अवयव सन्निवेश का परिवर्तन हो जाने पर और प्रख्यात जनों का प्रलय हो जाने पर मेरे दूसरे ही मित्र दूसरे ही बान्धव, दूसरे नवीन |
fa7fcd3e89fe10bf349d99d4a733192a4d0a6a7e | web | नामग्याल ने कहा कि; लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि, उन्हें कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंजूर है भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश के रूप में हो !
लद्दाख के ३४ वर्षीय सांसद जाम्यांग त्सेरिंग नामग्याल ने अपने लोक सभा वक्तव्य में जम्मू-कश्मीर के विभाजन का विरोध करनेवालों की कलई खोल कर रख दी ! अपने भाषण में उन्होंने लद्दाख के प्रति फर्जी चिंता दिखाने की आड में ३७०/३५ए हटाने और लद्दाख को अलग केंद्र-शासित प्रदेश बनाने का विरोध कर रही घाटी की पार्टियों पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की तो जमकर पोल खोली ही, कॉन्ग्रेस की २००८ की राज्य सरकार से लेकर के पूर्व-प्रधानमंत्री नेहरू तक को अपने लपेटे में लिया ! उनके भाषण की खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर तारीफ की !
अपने भाषण में नामग्याल ने कई महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए ! उन्होंने शुरूआत पूर्व-प्रधानमंत्री नेहरू पर तंज कसते हुए की। उन्होंने कहा कि ७० साल से लद्दाख को कश्मीर के साथ रखनेवालों को वहाँ की स्थानीय संस्कृति, वहाँ की सभ्यता, वहाँ की आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान नहीं था; उनके लिए तो यह बंजर भूमि थी जिस पर घास का तिनका भी नहीं उगता ! मालूम हो कि, अक्साई चिन पर चीन के कब्जे पर पंडित नेहरू ने संसद में कहा था कि, अरुणाचल और लद्दाख के पहाडों पर तो एक पत्ता घास का भी नहीं उगता, तो ऐसे में उनकी समझ में नहीं आ रहा कि, उसके पीछे संसद का कीमती समय बर्बाद करने का क्या मतलब है ?
नामग्याल ने कहा कि, लद्दाख के लोगों ने शुरू से ही सरकार को बता दिया था कि, उन्हें कश्मीर के अलावा किसी भी और तरीके से देश में रहना मंजूर है- भले ही वह केंद्र-शासित प्रदेश (UT) के रूप में हो ! हिंदी में बोल रहे नामग्याल ने कहा कि, हिंदुस्तान का हिस्सा बने रहने के लिए ही लद्दाख ने ७० साल युटी बनने की लडाई लडी, लेकिन पिछली सरकारों ने लद्दाख को 'फेंककर' रखा !
मोदी सरकार और गृह मंत्री अमित शाह पर लग रहे 'लोकतंत्र की हत्या' के आरोप के जवाब में नामग्याल ने पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेसद्वारा लद्दाख में बार-बार की गई लोकतंत्र की हत्याएँ गिनाईं ! उन्होंने बताया कि, समूचा लद्दाख अपने लिए युटी का दर्जा चाहता है ! उन्होंने बताया कि, कैसे तत्कालीन गृह-मंत्री (अब रक्षा-मंत्री) राजनाथ सिंह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ कश्मीर आने पर गृह सचिव को साथ लेकर लद्दाख गए और वहाँ हर आस्था और पंथ- हिन्दू महासभा, बौद्ध काउन्सिल, ईसाई और मुस्लिम संगठनों- ने युटी के दर्जे की ही माँग की !
नामग्याल ने याद दिलाया कि, कैसे घाटी की पार्टियों पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने तत्कालीन लेह जिलाध्यक्षों को केवल इसलिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया कि उन दोनों ने अपने इलाके के लोगों की माँग का सम्मान करते हुए युटी की माँग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे ! उन्होंने कहा,
विपक्ष ने युटी बनने में करगिल की कथित असहमति का जिक्र किया था। इस पर नामग्याल ने उन्हें आडे हाथों लेते हुए कहा कि, वे सदन को भ्रमित कर रहे हैं ! बकौल नामग्याल, "मैं करगिल से चुन के आता हूँ ! मैं गर्व से कहता हूँ कि, करगिलवालों ने युटी के ही लिए वोट दिया था ! " उन्होंने बताया कि, करगिल के भाजपा घोषणापत्र में युटी बनाने का वादा २०१४ में सबसे ऊपर था। लेकिन जब वह २०१४ में हो नहीं पाया तो २०१४-१९ में भाजपा ने लद्दाख के युटी बनने के फायदे एक-एक घर जाकर समझाए। इसी के चलते लद्दाख संसदीय सीट पर भाजपा को आजादी के इतिहास की रिकॉर्ड-तोड जीत हासिल हुई !
उन्होंने विपक्ष पर करगिल से पूरी तरह अनभिज्ञ होने का भी आरोप लगाया ! "ये सिर्फ एक रोड और छोटा-से मार्केट को कारगिल समझ बैठे हैं ! " उन्होंने विपक्ष को चुनौती दी कि, अगर असली करगिल देखना है तो जन्स्कार, वाखा, मुलबेक, शर्गोल, आर्यन घाटी आदि जगहों पर जाना चाहिए। ७०% भू-भाग के लोग निर्णय का स्वागत करते हैं !
कुछ छिटपुट विरोध कर रहीं आवाजों के बारे में भी उन्होंने पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेस को घेरते हुए कहा कि, जो लोग करगिल में अशांति की बात कर रहे हैं, असल में वही लोग फोन कर के अशांति पैदा करवा रहे हैं ! जो जमीन पर उनके हुक्म का पालन कर रहे हैं, वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं ! उन्हें इनकी (पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेस) बातों पर यकीन करने की बजाय खुद के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए !
'बराबरी' और सेक्युलरिज्म के मुद्दे पर भी पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेस को घेरते हुए नामग्याल ने कई खुलासे किए ! उन्होंने लद्दाख के साथ हुए सौतेले व्यवहार का विवरण पेश किया। उन्होंने बताया कि, लद्दाख के नाम पर केंद्र सरकार से लिया जा रहा पैसा कश्मीर में खर्च हो जाता है, लद्दाख नहीं पहुँचता ! कश्मीर की दो राजधानियों, दो सचिवालयों में कितने लद्दाखी हैं ? , उन्होंने पूछा। नामग्याल ने दावा किया कि, अगर पिछली सरकारें १,००० नौकरियों का निर्मांण करतीं थीं, तो उनमें से १० भी लद्दाख के हिस्से में नहीं आती थीं !
उन्होंने और भी उदाहरण दिए। २०११ में तत्कालीन कॉन्ग्रेस-यूपीए की केंद्र सरकार ने कश्मीर को एक केंद्रीय विश्वविद्यालय दिया। बहुत लड-झगड कर जम्मू को भी एक मिल गया। लेकिन, बकौल तत्कालीन छात्रसंघ नेता नामग्याल, माथे पर काली पट्टियाँ बाँध कर प्रदर्शन करने के बाद भी लद्दाख को केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं मिला। वह अंत में जाकर मोदी सरकार ने दिया !
उन्होंने याद दिलाया कि, २००८ में सरकार बनाने पर कॉन्ग्रेस ने कश्मीर में ४ नए जिले बनाए। जम्मू को अपने लिए ४ नए जिले लड-झगडकर लेने पडे ! लेकिन लद्दाख को एक भी नहीं मिला !
भाषा के मुद्दे पर उन्होंने याद दिलाया कि, कोई तय, मानक लिपि न होने के बाद भी कश्मीरी भाषा को मान्यता मिल गई ! जम्मू के आंदोलन के बाद डोगरी को भी मान्यता दे दी गई ! नामग्याल ने पूछा कि, लद्दाख की भाषा 'बोटी' को भी मान्यता क्यों नहीं दी गई ?
उन्होंने विपक्ष को इस पर भी आडे हाथों लिया कि, विपक्ष 'गर्व से' दावा करता है कि ३७० के चलते कभी बौद्ध-बहुसंख्य लद्दाख आज मुस्लिम-बहुल इलाका बन गया है। नामग्याल ने आरोप लगाया कि, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेस ने ३७० का दुरुपयोग लद्दाख के बौद्धों को खत्म करने के लिए किया। विपक्ष के जनसांख्यिकीय बदलाव की 'आशंका' और सेक्युलरिज्म के मुद्दे पर उन्होंने लद्दाख के बौद्धों और घाटी के कश्मीरी पंडितों का जिक्र करते हुए पूछा कि, क्या यही विपक्ष का 'सेक्युलरिज्म' है ?
अपने पूरे भाषण में नामग्याल ने 'दो परिवारों'- पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अब्दुल्ला-मुफ्ती परिवारों की कई बार पोल-पट्टी खोली ! उन्होंने शुरू में ही नेशनल कॉन्फ्रेंस सांसद मसूदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, वे (मसूदी) कह रहे हैं कि, इसपर विचार होना चाहिए कि ३७० जाने से किस चीज का नुकसान होगा; केवल २ परिवारों की रोजी-रोटी का ! इसपर मसूदी को भी झेंप कर मुस्कुराना पडा। इसके अलावा गृह-मंत्री अमित शाह समेत सभी भाजपा सांसदों ने मेजें थपथपा कर इसका समर्थन किया !
फिर इसके कुछ देर बाद उन्होंने कश्मीर पर "शासन नहीं, राज करनेवाले" दो परिवारों को फिर आडे हाथों लेते हुए उनपर लद्दाख- और करगिल-रूपी दो भाइयों को आपस में लडवाने का भी आरोप लगाया ! बकौल नामग्याल, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने करगिल को बौद्ध-बहुल लद्दाख से काट कर जानबूझकर मुस्लिम-बहुल इलाकों से साथ एक जिले में जोड दिया !
उन्होंने कटाक्ष यह भी किया कि, ये दोनों परिवार कश्मीर को अपने बाप की जागीर समझ बैठे थे ! इस पर सभी भाजपा सदस्यों की मेजों के थपथपाने से सदन गूँज उठा ! उन्होंने कहा,
भाजपा के पितृ-पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नारे "एक देश में दो प्रधान, दो विधान, और दो निशान, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा" को याद करते हुए पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कॉन्ग्रेस को याद दिलाया कि, लद्दाख स्वायत्तशासी पहाडी विकास काउन्सिल, जिसके अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, २०११ में ही कश्मीर के दूसरे विधान-निशान-प्रधान को नकार कर हिंदुस्तान के झंडे और चिह्न को आत्मसात कर चुका है ! लद्दाख हिंदुस्तान का अभिन्न अंग बनना चाहता है !
अपने भाषण के अंत में मोदी-शाह और भाजपा सांसदों के अलावा बिल के समर्थन में वोट देने जा रहे गैर-भाजपाई दलों और सांसदों का भी धन्यवाद नामग्याल ने किया। साथ ही उन्होंने कहा कि,
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3e22a294eb9418259620cdbcc17d07300910f4bc90686c46e7263a5f017dbe7a | pdf | २/४/३७-३८] चतुर्थोऽध्यायः (वैकुण्ठः)
वर्णाश्रमका आचार ग्रहण किया और किसीने दीक्षाके लक्षणस्वरूप मुद्रादिको धारण किया ॥३७॥
दिग्दर्शिनी टीका - किञ्च, केचिदिति द्वाभ्याम् । नरा नराकाराः; एवं वानरादयः सर्वेऽप्यूह्याः । सच्चिदानन्दविग्रहाणां श्रीवैकुण्ठवासिनां वस्तुतो नरत्वाद्यसम्भवात् । वर्णानां ब्राह्मणादीनाम् आश्रमाणाञ्च ब्रह्मचर्यादीनां य आचारो व्यवहारः, तथा दीक्षायाः सावित्र्यादिविषयकाया भगवन्मन्त्रविषयकायाश्च यानि लक्षणानि, क्रमेण यज्ञोपवीत-कमण्डलुधारणादीनि, तथा कुश - शृङ्गादि- तुलसीमाला - मुद्रादिधारणादीनि तानि धर्त्तुं शीलमेषामिति तथा ते ॥३७॥
भावानुवाद- तदुपरान्त कह रहे हैं - कोई नरमूर्त्ति, कोई वानरमूर्त्ति, कोई देवमूर्त्ति, कोई दैत्यमूर्ति और कोई ऋषिमूर्ति धारण किये हुए थे। परन्तु वे सभी पूज्य थे, क्योंकि सच्चिदानन्द - विग्रहयुक्त श्रीवैकुण्ठवासियोंकी वस्तुतः नर आदि होनेकी सम्भावना नहीं होती । फिर कोई ब्राह्मणादि वर्ण और कोई ब्रह्मचर्यादि आश्रमका आचरण ग्रहण किये हुए थे। कोई सावित्री आदि विषयक दीक्षाके लक्षण अर्थात् यज्ञोपवीत और कमण्डलु धारण किये हुए थे और कोई भगवान्के मन्त्र - विषयक दीक्षाके लक्षण अर्थात् कुशासन, तुलसी - माला और विविध मुद्रादिको धारण किये हुए थे ॥३७॥
चतुर्भुजाः सहस्रास्याः केचिदष्टभुजास्तथा ॥ ३८ ॥
श्लोकानुवाद - कोई-कोई इन्द्र और चन्द्रादि देवताओंके समान दिख रहे थे तथा कोई त्रिनेत्र (शिव), कोई चतुरानन ( ब्रह्मा), कोई चतुर्भुज, कोई अष्टभुज और कोई सहस्र - मुख मूर्ति धारण किये हुए थे ॥ ३८ ॥
दिग्दर्शिनी टीका - इन्द्रः सहस्रनेत्रः वज्रहस्तत्वादिलक्षणवान्; एवमन्योऽपि ज्ञेयः। आदि-शब्दात् सूर्याग्नि-वाय्वादयः। तथाशब्दस्य समुच्चयार्थत्वात् केचिदित्यस्य सर्वैरपीन्द्रादिभिः सम्बन्धः कार्यः । ततश्च केचिदिन्द्रसदृशाः केचिच्चन्द्रादिसदृशाः, केचित् त्रिनेत्रा इत्यूह्यम् । इन्द्रादीनां प्रायो भगवदवतारत्वाभावेन केवलं रूपसाम्येन वैकुण्ठवासिनां तत्सादृश्यमुक्तम् । त्रिनेत्रादीनाञ्च स्वतोऽपि भगवदवतारत्वेन रूपभेदमात्रनिर्देशः ॥ ३८ ॥
भावानुवाद - कोई वैकुण्ठवासी इन्द्रके समान सहस्रलोचन (हजार नेत्रयुक्त) और वज्रको हाथमें लिए हुए लक्षणोंसे युक्त थे तथा कोई चन्द्रादि देवताओंके समान आकार धारण किये हुए थे। 'आदि' शब्दसे सूर्य, अग्नि, वायु जैसे देवताओंको भी जानना होगा । इस प्रकार उन्होंने समस्त देवताओंके सदृश ही आकार धारण किया हुआ था - ऐसा समझना होगा । उन वैकुण्ठवासियोंमें कोई इन्द्रके समान, कोई चन्द्रके समान, कोई त्रिनेत्र (शिव) हैं । इन्द्रादि समस्त देवता प्राय भगवान्के अवतार नहीं हैं, अतः इस उक्तिमें जो 'सदृश' (समान) कहा गया है, वह केवल रूपकी समानतावशतः ही वैकुण्ठवासियोंका देवताओंके साथ सादृश जानना होगा। किन्तु त्रिनेत्रादि (शिव और ब्रह्मादि) के स्वतः ही भगवान्के गुणावतार होनेके कारण उनके रूपोंमें भेदमात्र निर्देश हुआ है ॥३८॥
एतत्परमवैचित्रीहेतुं वक्ष्यामि तेऽग्रतः । कृष्णभक्तिरसास्वादवतां किं स्यान्न सुन्दरम् ॥ ३९ ॥
श्लोकानुवाद - इस परम विचित्रताका कारण बादमें कहूँगा । कृष्णभक्तिरसका आस्वादन करनेसे क्या सुन्दर नहीं होता है ? ॥३९॥
दिग्दर्शिनी टीका - ननु भगवत्सारूप्यप्राप्त्या चतुर्भूजत्वादिकमुचितमेव, नरवानराद्याकारप्राप्तौ तु किं कारणमित्यपेक्षायामाह - एतदिति । एतस्या उक्तायाः परमवैचित्र्या हेतुमग्रतः श्रीनारदोक्तसिद्धान्ते ते त्वां वक्ष्यामि । ननु भवतु नाम तत्र हेतुः, तथापि वानराद्याकाराः सौन्दर्याभावात्तत्र नोपयुज्यन्ते तत्राह - कृष्णेति । लोकेऽपि रसविशेषसेविनां सौन्दर्य-सिद्धि - प्रसिद्धेः। अन्यथा श्रीहनूमज्जाम्बवदादिषु प्रीतिविशेषहान्यापत्तेः॥३९॥
भावानुवाद - यदि आपत्ति हो कि भगवान्का सारूप्य प्राप्त करनेके कारण श्रीभगवान्की भाँति चतुर्भुज रूप ही सङ्गत होता है, किन्तु वैकुण्ठमें मनुष्यमूर्ति विशेषतः वानरादिके समान तुच्छ मूर्ति किसलिए दृष्ट हुई? इसकी आशंकासे 'एतत्' इत्यादि श्लोक कह रहे हैं। इस प्रकारकी विचित्रताका कारण आगे श्रीनारद द्वारा कहे जानेवाले सिद्धान्तमें प्रकाशित होगा । पुनः यदि कहो कि वैकुण्ठमें नाना-प्रकारकी वैचित्री रहने पर भी वानरादि जैसे सौन्दर्य रहित आकार सङ्गत नहीं
होते। इसके लिए कहते हैं कि कृष्णभक्तिका रसास्वादन होनेसे क्या सुन्दर नहीं होता? जगतमें भी प्रसिद्ध है कि किसी विशेष रसके सेवनसे सौन्दर्य प्राप्त होता है, अर्थात् दिव्य रूपादि प्राप्त होता है। इसके सम्बन्धमें श्रीहनुमान और श्रीजाम्बवान आदिको प्रमाण जानों । श्रीभगवान्के प्रति प्रीति विशेषकी हानि न होनेके कारण ही वे स्वेच्छासे वैसा स्वरूप ग्रहण करते हैं, अर्थात् उनका वानरादि रूप भी श्रीभगवान् और उनके भक्तोंके लिए प्रीतिकर होता है ॥ ३९ ॥
सर्वप्रपञ्चातीतानां तेषां वैकुण्ठवासिनाम् ।
तस्य वैकुण्ठलोकस्य तस्य तन्नायकस्य च ॥ ४० ॥ तानि माहात्म्यजातानि प्रपञ्चान्तर्गतैः किल । दृष्टान्तैर्नोपयुज्यन्ते न शक्यन्ते च भाषितुम् ॥ ४९ ॥
श्लोकानुवाद - समस्त प्रपञ्चसे अतीत उन वैकुण्ठवासियोंका, उस वैकुण्ठलोकका तथा उन वैकुण्ठनायकका असीम माहात्म्य प्रपञ्चके दृष्टान्त द्वारा कभी भी प्रकाशित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वैसे दृष्टान्त अपनी युक्ति और भाषा द्वारा उनके माहात्म्यका वर्णन नहीं कर सकते हैं॥४०-४१॥
दिग्दर्शिनी टीका - नन्वेवं बहुविधेन भेदेन महातारतम्यापत्तेः स्वर्गवासिनामिवैषामपि विचित्रवैषम्यं स्यात्, तच्चात्र न युज्यते; सच्चिदानन्दविग्रहत्वेनैकस्वभावादित्याशंक्य तत्परिहाराय तेषु तत्त्वं निरूपयितुं लौकिकदृष्टान्तोपन्यासेन अपराधाद्विभ्यद्भगवन्तं प्रार्थयते - सर्वेति चतुर्भिः। सर्वप्रपञ्चमतीतानामतिक्रान्तानामित्यस्य लिङ्गवचनव्यत्ययेनापि सर्वैरेवान्वयः। अतस्तेषामिति अनिर्वचनीयानामित्यर्थः । इदञ्च पूर्ववत्, अतएव तानि माहात्म्यजातानि स्वाभाविकमहिमवृन्दानि प्रपञ्चान्तर्गतैर्दृष्टान्तैर्भाषितुं निरूपयितुं नोपयुज्यन्ते, परमासदृशत्वात् भाषितुं न शक्यन्ते च सम्यग्बोधनसामर्थ्याभावादिति द्वाभ्यामन्वयः। तन्नायकस्य श्रीवैकुण्ठनाथस्य ॥४०-४१॥
भावानुवाद - यदि आपत्ति हो कि ऐसे बहुत प्रकारके भेद होनेके कारण वैकुण्ठमें महातारतम्यका तथा स्वर्गवासियों में विद्यमान विचित्र विषमतावशतः मात्सर्यादिका दोष भी होता है ? इसके उत्तरमें कहते हैं कि वैकुण्ठमें ऐसे दोषोंकी सम्भावना नहीं है। सच्चिदानन्द विग्रहमें अनेक प्रकारके स्वभावादिकी आशंकाको दूर करनेके लिए तथा उस
सच्चिदानन्द तत्त्वका निरूपण करनेके लिए लौकिक दृष्टान्तोंकी अवतारणारूप अपराधकी आशंकामें वक्ता श्रीभगवान्के निकट क्षमा प्रार्थना करते हुए 'सर्व प्रपञ्च' इत्यादि चार श्लोक कह रहे हैं। समस्त प्रपञ्चके अतीत उन वैकुण्ठवासियोंका, उस वैकुण्ठलोकका तथा उन श्रीवैकुण्ठनाथका माहात्म्य प्रपञ्चसे सम्बन्धित दृष्टान्त द्वारा कभी भी प्रकाशित नहीं किया जा सकता, तथापि प्रपञ्चगत दृष्टान्तके बिना कोई इसे समझ भी नहीं सकता। इसलिए विद्वानजन उस तत्त्वको साधारणजनोंके चित्तमें प्रवेश करवानेके लिए जगतसे सम्बन्धित दृष्टान्त प्रस्तुत करते हैं, किन्तु उसमें प्रपञ्चके अतीत लिङ्ग-वचनादिका परिवर्त्तन संघटित हो सकता है, क्योंकि वैकुण्ठ और वैकुण्ठस्थित समस्त वस्तुएँ अनिर्वचनीय हैं अर्थात् प्राकृत मन, बुद्धि और वाक्यके अगोचर हैं। अतएव वैकुण्ठकी स्वाभाविक महिमा प्रपञ्चसे सम्बन्धित दृष्टान्तों द्वारा निरूपण करना विडम्बना मात्र है, क्योंकि परम असमानता हेतु उसे भाषामें प्रकाश भी नहीं किया जा सकता है, अथवा किञ्चित् प्रकाश करनेकी चेष्टा करने पर भी भलीभाँति बोधकी असमर्थताके कारण कोई भी उसकी धारणा नहीं कर सकता है ॥४०-४१ ॥
तथापि भवतो ब्रह्मन् प्रपञ्चान्तर्गतस्य हि । प्रपञ्चपरिवारान्तर्दृष्टिगर्भितचेतसः
तद्दृष्टान्तकुलेनैव तत्तत् स्याद्बोधितं सुखम् । तथेत्युच्येत यत् किञ्चित् तदागः क्षमतां हरिः ॥४३॥
श्लोकानुवाद - तथापि हे ब्रह्मन् ! आप प्रपञ्चके अन्तर्गत रहते हैं, इसलिए आपकी चित्तवृत्ति या अन्तर्दृष्टि प्रपञ्चकी वस्तुओंको ही ग्रहण कर सकती है। अतएव प्रपञ्चसे सम्बन्धित अनुकूल दृष्टान्त होनेसे आपको यह विषय सहज ही बोध होगा, इसीलिए प्रपञ्चके दृष्टान्त द्वारा आपको वैकुण्ठलोकके सम्बन्धमें समझाया है। यदि इसमें मेरा कोई अपराध हो तो समस्त अपराधोंका हरण करनेवाले श्रीहरि मुझे क्षमा करेंगे ॥४२-४३॥
२/४/४२-४४] चतुर्थोऽध्यायः (वैकुण्ठः)
दिग्दर्शिनी टीका - भो ब्रह्मन् ! साक्षावेदमूर्त्ते! तथापि भवतः भवन्तं प्रति यत्तथा तेन प्रपञ्चान्तर्गतद्रव्यदृष्टान्तदर्शनप्रकारेण तन्माहात्म्यानां किञ्चिदुच्येत, तेन यत् आगोऽपराधस्तत् हरिः सर्वदोषादिहर्ता भगवान् क्षम्यतामिति द्वाभ्यामन्वयः । अयोग्यत्वेऽशक्यत्वे च सत्यपि तथोक्तौ हेतुःप्रपञ्चान्तर्गतस्य भवतस्तस्य प्रपञ्चस्य दृष्टान्तकुलेनैव किञ्चिदित्यत्राप्यकर्षणीयं सुखं यथा स्यात् तथा किञ्चित्तन्माहात्म्यं बोधितं स्यात्। कुतः ? प्रपञ्चस्य परिवाराणां सचेतना-चेतनादि-द्रव्याणामन्तरन्तरे या दृष्टिर्ज्ञानं तया गर्भितमावृतं चेतो यस्य तस्य; अतएव चक्रवर्तिवदित्युक्तम् । द्वितीयार्थे षष्ठ्यः॥४२-४३॥
भावानुवाद - हे ब्रह्मन् ! आप साक्षात् वेदमूर्ति होकर भी प्रपञ्चके अन्तर्गत रह रहे हैं तथा आपका चित्त चेतन- अचेतन प्रापञ्चिक वस्तुओंमें बद्ध होनेके कारण आपकी अन्तर्दृष्टि भी उसीमें निमग्न हो गयी है। इसलिए प्रपञ्चसे सम्बन्धित वस्तुओंके दृष्टान्त द्वारा ही मैंने आपको प्रपञ्चसे अतीत वैकुण्ठलोककी कुछ बातें बतलायीं हैं। यदि इसमें मेरा कोई अपराध हुआ हो तो समस्त अपराधोंका हरण करनेवाले श्रीहरि मुझे क्षमा करेंगे। प्रपञ्चके भीतर स्थित चेतन और अचेतन द्रव्योंमें जिनकी दृष्टि और मन एकाग्र हुआ है, वे कदापि प्रपञ्चातीत वस्तुका तत्त्व नहीं समझ सकते हैं। अतएव वैकुण्ठवस्तुको समझनेमें आपकी अयोग्यता और शक्तिहीनता होने पर भी उसके सम्बन्धमें कुछ कहनेका कारण यह है कि प्रपञ्चके दृष्टान्त द्वारा प्रपञ्चातीत वस्तुमें चित्तको प्रवेश करानेसे क्रमशः चित्तसे प्रापञ्चिक भाव या माया दूर हो जायेगी। इसलिए श्लोक ३३ में श्रीवैकुण्ठनाथका वैभव समझानेके लिए इस जगतसे सम्बन्धित 'चक्रवर्तीके समान' शब्दका व्यवहार किया गया है ॥४२-४३॥
तत्रत्यानाञ्च सर्वेषां तेषां साम्यं परस्परम् ।
तारतम्यञ्च लक्ष्येत न विरोधस्तथापि च ॥४४ ॥
श्लोकानुवाद - समस्त वैकुण्ठवासियोंमें परस्पर समानता और तारतम्य दोनों ही लक्षित होते हैं, इसमें किसी प्रकारका विरोध नहीं देखा जाता है ॥४४॥
दिग्दर्शिनी टीका - उच्यत इति यत् प्रतिज्ञातं तत्तत्त्वनिरूपणमेव करोतितत्रत्यानामिति नवभिः । तेषां पूर्वोद्दिष्टानां वैकुण्ठवासिनां परस्परं साम्यं समानता, प्रत्येकं सर्वसामर्थ्यत्त्वात् तारतम्यञ्च न्यूनाधिकता महदल्पतया निजवैभवादिप्रकटनात् लक्ष्येत तत्तल्लक्षणैर्दृश्येत, न च तथापि विरोधो भवति; लक्ष्यत इत्यनेनैवान्वयः। सर्वेषामपि प्रत्येकं स्वेच्छया सर्ववैभवप्रकटन-सामर्थ्यदर्शनात् ॥४४ ॥
भावानुवाद - अब वैकुण्ठमें विरुद्ध प्रतीत होनेवाले तत्त्वका निरूपण 'तत्रत्यानाम्' इत्यादि नौ श्लोकों द्वारा कर रहे हैं । यद्यपि पूर्वोक्त समस्त वैकुण्ठवासियोंमें परस्पर समानता और प्रत्येकके सर्व-सामर्थ्यवान् होनेके कारण उनमें न्यून अधिकका तारतम्य लक्षित होता है, तथापि विरोध लक्षित नहीं होता । परस्पर समान धर्मी या समान सामर्थ्ययुक्त होकर भी उनमें से किसीने महान वैभव प्रकट किया है और किसीने अल्प वैभव प्रकट किया है। इसलिए जो तारतम्य देखा जाता है, उसमें कोई वैषम्य (विरोध) नहीं है, क्योंकि उनमें से प्रत्येक ही स्वेच्छासे समस्त प्रकारका वैभव प्रकट करनेमें समर्थ हैं ॥४४॥
न मात्सर्यादयो दोषाः सन्ति कस्यापि तेषु हि । गुणाः स्वाभाविका भान्ति नित्याः सत्याः सहस्रशः ॥ ४५ ॥ श्लोकानुवाद - वहाँ किसीमें भी मात्सर्य आदि दोष नहीं है, अपितु उनमें सौहार्द, विनय और सम्मानादि हजारों गुण वर्त्तमान हैं तथा ये गुण नित्य और सत्य हैं ॥ ४५ ॥
दिग्दर्शिनी टीका - एवं तत्त्वतस्तारतम्यं नास्त्येव, आस्तां वा बहिर्दृष्ट्या, तथापि कापि हानिः कुत्रापि नास्तीत्याह - नेति । मत्सरः परोत्कर्षासहनं, स आदिर्येषां स्पर्धासूया - तिरस्कारादीनां ते दोषा हि यस्मात्तेषु वैकुण्ठवासिषु मध्ये कस्यापि न सन्ति, अथ च गुणा अन्योऽन्यसौहार्द - विनय-सम्मानादयः सहस्रशो भान्ति विराजन्ते। कीदृशाः ? नित्याः । ननु मायाया अनादित्वेन मायिकानामपि नित्यत्वं सिध्यतीत्याशंक्याह - सत्या इति न तु मायिका इत्यर्थः; यतः स्वाभाविकाः सहजाः। यथोक्तं श्रीब्रह्मणा तृतीयस्कन्धे (श्रीमद्भा० ३/१५/१८-१९) - 'पारावतान्यभृतसारसचक्रवाक-दात्यूह - हंस - शुक - तित्तिर- वर्हिणां यः । कोलाहलो विरमतेऽचिरमात्रमुच्चैर्भृङ्गाधिपे हरिकथामिव गायमाने ॥ मन्दारकुन्द-कुरवोत्पलचम्पकार्ण-पुन्नागनागबकुलाम्बुज-पारिजाताः । गन्धेऽर्चिते तुलसिकाभरणेन तस्या, यस्मिंस्तपः सुमनसो |
f2dea0f5c3aa5809a97267b37b6a827741be8fd24779a6542508849d181c24a6 | pdf | श्रेणिक चरित्र :: २०५
द्वादशः सर्गः
नौमि तं जिन सद्धर्मं सत्सिद्धांतभास्करम् । यस्य प्रसादतः प्राप्तं श्रेणिकेन सुखं परम् ॥१॥ कुर्वंतौ परमं धर्मं भुंक्तौ राज्यं च दंपती । गतं कालं न वित्तस्तौशर्माब्धवशवर्तिनौ ॥ २ ॥ यजंतौ जिनपादाब्जं ध्यायंतौ मुनिपुंगवम् । कृपाकृतितपापांगौ तिष्ठतस्तौ च दंपती ॥ ३ ॥ कदाचित्प्रथमं शास्त्रं त्रिषष्ठिस्मृतिगोचरं । अन्यदालोकसंस्थान व्याख्यानं शृणुतस्तकौ ॥४॥ अष्टोत्तरशतैभिन्नमहिंसाव्रतंमुत्तमम् । तथ्यवाचादिभेदं वा कर्णयंतौ निजेच्छया ॥५॥ द्रवति द्रोष्यति द्रव्यमदुद्रवदिति स्फुटम् । सद्भेदं सप्तभंगाढ्यं तौ च शुश्रुवतुः सदा ॥६॥ अपूर्वपाठपारीणौ धुरिणौ धर्मसंपदः । विपदः प्रतिकूलौ तौ रेमाते रतिमार वत् ॥७॥ दशांगभोगभोगाढ्यौ दार्याढ्यजनसेवितौ। रतिसंतृप्तसर्वाङ्गौ शचींद्राविवरेजतुः ॥८॥ सुषेणचरदेवोऽथ तस्या ब्रूणेऽभवत्सुतः । समैधे जठरे तस्याः क्रमेण गजसद्गतेः ॥९॥ आपांडुवदना क्षीणविग्रहा कलभाषिणी । ईषन्निद्रा समालभ्या जज्ञे सा भ्रूणभावतः ॥१०॥
जिस परमोत्तम धर्म की कृपा से मगध देश के स्वामी महाराज श्रेणिक को अनुपम सुख मिला। पापरूपी अन्धकार को सर्वथा नाश करने वाले उस परम धर्म के लिए नमस्कार है ।
महाराज श्रेणिक को जैनधर्म में जो सन्देह थे, सो सब हट गये थे इसलिए भली प्रकार जैन धर्म के पालक राज्य- सम्बन्धी अनेक भोग भोगने वाले शुभ मार्ग पर आरूढ़ राजा श्रेणिक और जैन विद्यापि रानी चेलना सानन्द राजगृह नगर में रहने लगे। कभी वे दोनों दंपती जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करने लगे कभी मुनियों के उत्तमोत्तम गुणों का स्मरण करने लगे। कभी उन्होंने त्रेसठ महापुरुषों के पवित्र चरित्र से पूर्ण प्रथमानुयोग शास्त्र का स्वाध्याय किया । कभी लोक की लम्बाई-चौड़ाई आदि बतलाने वाले करणानुयोग शास्त्र को ये पढ़ने लगे । कभी-कभी अहिंसादि श्रावक और मुनियों के चरित्र को बतलाने वाले चरणानुयोग शास्त्र का उन्होंने श्रवण किया और कभी गुण, द्रव्य और पर्यायों का वास्तविक स्वरूप बतलाने वाले स्यादस्ति, स्यान्नास्ति इत्यादि सप्तभंगनिरूपक द्रव्यानुयोग शास्त्रों को विचारने लगे । इस प्रकार अनेक शास्त्रों के स्वाध्याय में प्रवीण धर्म-संपदा के धारक समस्त विपत्तियों से रहित रति और कामदेव तुल्य भोग भोगने वाले बड़े ऋद्धि धारक मनुष्यों से पूजित रतिजन्य सुख के भी भले प्रकार आस्वादक वे दोनों दंपती इन्द्र - इन्द्राणी के समान सुख भोगने लगे और भोगों में वे इतने लीन हो गये कि उन्हें जाता हुआ काल भी न जान पड़ने लगा ।
बहुत काल पर्यंत भोग भोगने पर रानी चेलना गर्भवती हुई। उसके गर्भ में सुषेणचर नामक देव ने आकर जन्म लिया । गर्भभार से रानी चेलना का मुख फीका पड़ गया। स्वाभाविक कृश शरीर और भी कृश हो गया । वचन भी वह धीरे-धीरे बोलने लग गई, गति भी मन्द हो गई और आलस्य ने भी उस पर पूरा पूरा प्रभाव जमा लिया ॥१-१०॥
२०६ :: श्रेणिक चरित्र
दुष्टदोहलकोद्भूत भावनातो बभूव सा । कृशांगा क्षीणभूषाढ्या निशांते द्यौर्वितारिकाः ॥ ११ ॥ तदप्राप्तां च तां वीक्ष्य गतदीप्तिनराधिपः । गदतिस्म शुभे भद्रे विशिष्टनयनोत्सवे ॥१२॥ काऽस्ति ते हृदि चिंता च सर्वगात्रविदाहिनी । इति संवादिता राज्ञी न ब्रूते च यथा कथम् ॥ १३ ॥ महाग्रहेण भूपेन पुनः संवादिता जगौ । मृगाक्षी गंदमामंदाक्षरासंवाष्पवादिनी ॥१४॥ नाथ किं जीवनेनैव मम दुर्मानसात्मनः । दुभ्रूणधारणाज्ज्ञज्ञे दुर्वांछा प्राणहारिणी ॥१५॥ वचनैः कथितुं शक्यां नो कथं कथयामि ताम् । तथाप्याख्यामि नाथाद्य तवाग्रहवशाद्विभोः ॥१६॥ वक्षः स्थलं विदार्यांशु लोहितस्येक्षितुं तव । वांछास्ति मे नराधीश कथं प्राप्या दुरावहा ॥१७॥
गर्भवती स्त्रियों को दोहले हुआ करते हैं और दोहलों से सन्तान के अच्छे-बुरे का पता लग जाता है क्योंकि यदि सन्तान उत्तम होगी तो उसकी माता को दोहले भी उत्तम होंगे और सन्तान खराब होगी तो दोहले भी खराब होंगे । रानी चेलना को भी दोहले होने लगे । चेलना के गर्भ में महाराज श्रेणिक का परम बैरी अनेक प्रकार कष्ट देने वाला पुत्र उत्पन्न होने वाला था इसलिए रानी को जितने भर दोहले हुए सब खराब ही हुए जिससे उसका शरीर दिनों-दिन क्षीण होने लगा । प्राणपति पर आगामी कष्ट आने से उसका सारा शरीर फीका पड़ गया प्रातः काल में तारागण जैसे मलिन कांति वाले जान पड़ते हैं रानी चेलना भी उसी प्रकार मलिन कांति वाली हो गई ।
किसी समय महाराज श्रेणिक की दृष्टि महारानी चेलना पर पड़ी । उसे इस प्रकार क्षीण और मलिन कांति वाली देख उन्हें अति दुःख हुआ । रानी के पास आकर वे स्नेह परिपूर्ण वचनों में इस प्रकार कहने लगे।
प्राण बल्लभे! मेरे नेत्रों को अतिशय आनन्द देने वाली प्रिये ! तुम्हारे चित्त में ऐसी कौन-सी प्रबल चिंता विद्यमान है जिससे तुम्हारा शरीर रात-दिन क्षीण और कांति - रहित होता चला जाता है। कृपा कर उस चिंता का कारण मुझसे कहो! बराबर उसको दूर करने के लिए प्रयत्न किया जायेगा। महाराज के ऐसे शुभ वचन सुन पहले तो लज्जावश रानी चेलना ने कुछ भी उत्तर न दिया किन्तु जब उसने महाराज का आग्रह विशेष देखा तो वह दुःखाश्रुओं को पोंछती हुई इस प्रकार विनय से कहने लगीप्राणनाथ! मुझ सरीखी अभागिनी डाकिनी स्त्री का संसार में जीना सर्वथा निस्सार है यह जो मैंने गर्भ धारण किया है सो गर्भ नहीं आपकी अभिलाषाओं को मूल से उखाड़ने वाला अंकुर बोया है। इस दुष्ट गर्भ की कृपा से मैं प्राण लेने वाली डाकिनी पैदा हुई हूँ । प्रभो! यद्यपि मैं अपने मुख से कुछ कहना नहीं चाहती तथापि आप के आग्रह वश कुछ कहती हूँ। मुझे यह खराब दोहला हुआ है कि आपके वक्षस्थल को विदार - रक्त देखूँ । इस दोहले की पूर्ति होना कठिन है इसलिए मैं इस प्रकार अति चिंतित हूँ।
रानी चेलना के ऐसे वचन सुन महाराज श्रेणिक ने उसी समय अपने वक्षस्थल को चीरा और उससे निकलते रक्त को रानी चेलना को दिखाकर उसकी इच्छा की पूर्ति की ।
श्रेणिक चरित्र :: २०७
श्रुत्वा विदार्य राजेशो हृदयं निजलोहितम् । प्रदर्श्य पूरयामास तद्वांछां चित्रदायिनीम् ॥ १८ ॥ परिपूर्ण ततो मासे सुतोऽजनि तयाशुभात् । तल्लाभं भूपतिः श्रुत्वा कुतश्चित्तोषमाप च ॥१९॥ वितीर्य विविधं दानं दीनानां च दयार्द्रधीः । तद्वक्त्रालोकनार्थं च प्रतस्थे स्थिरमानसः ॥२०॥ तदा बालो नृपं वीक्ष्य बद्धमुष्टिर्महाभयी । कुटिलास्यो रक्तनेत्रो वक्रभ्रकुटिरुन्नतः ॥२१॥ दष्टाधरस्तदा दुष्टो घर्षयन् रदनान्निजान् । दुर्भावभावनारूढः पूर्ववैरादभूत्क्षणात् ॥२२॥ तथा तं सा परिज्ञाय चेलना महिषी क्षणात् । दुःपुत्रं तं वने भीत्या तत्याज स्वहितेच्छया ॥२३॥ कथंचिद्भूपतिर्मत्वा वनमुक्तं शरीरजम् । राज्ञानाय्य सुमोहेन धात्र्याः स च समर्पितः ॥ २४॥ चकार कुणिकाख्यां च तस्य भूप मुदकृतः । ततः क्रमेण पुण्येन तत्र स ववृधे शुभः पुनः ॥२५॥ ततः क्रमेण चेलिन्या वारिषेणः सुतोऽभवत् । कलाविज्ञानरूपाढ्यः ससम्यक्त्वः शिवावहः ॥२६॥ हल्लस्ततो विहल्लश्च जितशत्रुः क्रमात्सुताः । तस्याऽजनि पुत्रोच्चैः पित्रोः प्रीतिविवर्द्धकाः ॥२७॥ ततः कतिपयैर्घस्त्रैर्गर्भोऽभूत्स्वप्नपूर्वकम् । तस्याः श्रेयः प्रभावेन जनयन् जगतां मुदम् ॥२८॥ आहारे मंदिमा जाता गतौ वाक्य निबंधने । तस्या भ्रूणप्रभावेन शरीरे पांडुतां गता ॥ २९ ॥ स्वल्पभूषामितस्पष्टाक्षराक्षीणसुविग्रहा। भग्नसुत्रिवलीभंगा माजनि माजनि प्रियदर्शना ॥ ३० ॥
नवम मास के पूर्ण होने पर रानी चेलना के पुत्र उत्पन्न हुआ पुत्रोत्पत्ति का समाचार महाराज के पास भी पहुँचा। उन्होंने दीन अनाथ याचकों को इच्छा भर दान दिया और पुत्र को देखने के लिए गर्भगृह में गये। ज्यों ही महाराज अपने पुत्र के पास गये । महाराज को देखते ही उसे पूर्व के भव का स्मरण हो आया । महाराज को पूर्वभव का अपना प्रबल बैरी जान मारे क्रोध के उसकी मुट्ठी बँध गई । मुख भयंकर और कुटिल हो गया। नेत्र आरक्त हो गये। मारे क्रोध के भौंहें चढ़ गई ।
ओठ डसने लगा और उसकी आँखें भी इधर-उधर फिरने लगीं । रानी ने जब उसकी यह दशा देखी तो उसे प्रबल अनिष्ट का करने वाला समझ वह डर गई । अपने हित की इच्छा से निर्मोह हो उसने वह पुत्र शीघ्र ही वन में भेज दिया। जब राजा को यह पता लगा कि रानी ने भयभीत हो पुत्र वन में भेज दिया है तो उससे न रहा गया पुत्र पर मोहवश उन्होंने शीघ्र ही उसे राजमंदिर में मंगा लिया उसे पालन-पोषण के लिए किसी धाय के हाथ सौंप दिया और उसका नाम कुणिक रख दिया एवं वह कुणिक दिनोंदिन बढ़ने लगा । कुमार कुणिक के बाद रानी चेलना के वारिषेण नाम का दूसरा पुत्र हुआ । कुमार वारिषेण अनेक ज्ञान-विज्ञानों का पारगामी, मनोहर रूप का धारक सम्यग्दर्शन से भूषित और मोक्षगामी था । वारिषेण के अनंतर - रानी चेलना के हल्ल-हल्ल के पीछे विदल - विदल के पीछे जितशत्रु ये तीन पुत्र और भी उत्पन्न हुए और ये तीनों ही कुमार माता-पिता को आनंदित करने वाले हुए ।
इस प्रकार इन पाँच पुत्रों के बाद रानी चेलना के प्रबल भाग्योदय से सबको आनंद देने वाला फिर गर्भ रह गया गर्भ के प्रसाद से रानी चेलना का आहार कम हो गया । गति भी धीमी हो गई। शरीर पर पीलापन छा गया । आवाज मंद हो गई । शरीर अतिकृश हो गया, पेट की त्रिवली
२०८ :: श्रेणिक चरित्र
कुचचूचकयोस्तस्तयाः कृष्णत्वं तत्प्रभावतः । जातशत्रुमुखे कर्तुं सूचनायैव सूचकम् ॥३१॥ ततो दोहको जज्ञे तस्या इति सुदुर्लभः । आरुह्य हस्तिनं भूत्या भ्रमिष्यामि च प्रावृषि ॥ ३२॥ तदा प्राप्ता कृशांगी सा समासीद् गजगामिनी । एकदा तां नृपो वीक्ष्य पप्रच्छ कृशकारणम् ॥३३॥ साऽप्राक्षीदुर्धराकांक्षीऽजनि मे हृदिवल्लभ । ग्रीष्मे गजं समारुह्य मेघवृष्टैः भ्रमाम्यहम् ॥ ३४ ॥ दुर्धरं तं परिज्ञाय ग्रीष्मे वृष्ट्याद्यभावतः । सचिंतो योषमादायास्थात्स स्थगितविग्रहः ॥ ३५॥ दुर्लालसं नृपं प्रेक्ष्याऽप्राक्षीदभयपंडितः । कथं तेऽद्य परा चिंता हृदि सर्वांग शोषिणी ॥ ३६॥ इति संवादितो भूपो जगौ तत्कारणं क्षणात् । श्रुत्वेति वचनं पुत्रः करिष्यामीति संजगौ ॥३७॥
भी छिप गई। होने वाला पुत्र समस्त शत्रुओं के मुख काले करेगा, इस बात को मानो बतलाये हुए ही उसके दोनों चूचक भी काले पड़ गये एवं गर्भ भार के सामने उसे भूषण भी नहीं रुचने लगे ॥११-३१॥
किसी समय रानी के मन में यह दोहला हुआ कि ग्रीष्मकाल में हाथी पर चढ़कर बरसते मेघ में इधर-उधर घूमे किन्तु इस इच्छा की पूर्ति उसे अति कठिन जान पड़ी । इसलिए उस चिंता से उसका शरीर दिनों-दिन अधिक क्षीण होने लगा । जब महाराज ने रानी को अति चिन्ता-ग्रस्त देखा तो उन्हें परम दुःख हुआ । चिन्ता का कारण जानने के लिए वे रानी से इस प्रकार कहने लगे ।
प्रिये ! मैं तुम्हारा शरीर दिनों-दिन क्षीण देखता चला जाता हूँ मुझे शरीर की क्षीणता का न विद्यापाठ कारण नहीं जान पड़ता तुम शीघ्र कहो तुम्हें कौन-सी चिन्ता ऐसी भयंकरता से सता रही है । महाराज के ऐसे वचन सुन रानी ने कहा- कृपानाथ ! मुझे यह दोहला हुआ है कि मैं ग्रीष्मकाल में बरसते हुए मेघ में हाथी पर चढ़कर घूमूं किन्तु यह इच्छा पूर्ण होनी दुःसाध्य है। इसलिए मेरा शरीर दिनों-दिन क्षीण होता चला जाता है ।
रानी की ऐसी कठिन इच्छा सुनी तो महाराज अचम्भे में पड़ गये । इस इच्छा को पूर्ण करने का उन्हें कोई उपाय न सूझा इसलिए वे मौन धारण कर निश्चेष्ट बैठ गये । अभय कुमार ने महाराज की यह दशा देखी तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ वे महाराज के सामने इस प्रकार विनय से पूछने लगे। पूज्य पिताजी! मैं आपको प्रबल चिन्ता से आतुर देख रहा हूँ। मुझे नहीं मालूम पड़ता अकारण आप क्यों चिन्ता कर रहे हैं ? कृपया चिन्ता का कारण मुझे भी बतावें । पुत्र अभयकुमार के ऐसे वचन सुन के महाराज श्रेणिक ने सारी आत्म कहानी कुमार को कह सुनाई और चिन्ता दूर करने का कोई उपाय न समझ वे अपना दुःख भी प्रकट करने लगे।
अभय कुमार अति बुद्धिमान् थे ज्यों ही उन्होंने पिताजी के मुख से चिन्ता का कारण सुना शीघ्र ही सन्तोषप्रद वचनों में उन्होंने कहा- पूज्यवर ! यह बात क्या कठिन है मैं अभी इस चिंता के हटाने का उपाय सोचता हूँ आप अपने चित्त को मलीन न करें तथा चिन्ता दूर करने का उपाय भी सोचने लगे।
श्रेणिक चरित्र :: २०९
अवलोकयितुं रात्रौ व्यंतरं पितृसद्वने। जगाम भयनिर्मुक्तोऽभयो बुद्धिमतां मतः ॥३८॥ अटन्वटतलेऽटव्यां ध्वांतसंलुप्तसत्पथि । ददर्श दीपिका पंक्तिमभयो भयवर्जितः ॥३९॥ घूकफूत्कार भीताढ्यं शृगालनिनदावहं । महाफणि फटाटोपं गजमर्दितपादपम् ॥४०॥ संदग्धार्द्धशवं भीमं मृतकोपांतमोदकम्। भग्नकुंभकपालाढ्यं मंदाग्निमदमोदितं ॥४१॥ संदग्धाद्धूतधामिल्य पताकं कुर्कुरस्वनं । भस्मसंभग्नसन्मार्गं नरदंतसुरत्नकम् ॥४२॥ पश्यन् श्मशानमापन्नो वटं दीपप्रकाशितम् । धूपधूमसमाकृष्ट व्यंतरं राजपुत्रकः ॥४३॥ सुगंधकुसुमैर्धीरं जपंतं स्थिरमानसम् । उद्विग्नं चिरकालेन सोऽद्राक्षीन्नरपुंगवम् ॥४४॥ तदेति स जगौ धीरः कत्स्वं कस्मात्समागतः । किं स्थानं तव किं नाम किं त्वं जपयसि स्फुटं ॥ ४५ ॥ इति पृष्टस्तदावादीद्वटस्थो राजदारकम् । शृणु धीर समाख्यानं मज्जं सुस्मयदायकं ॥४६॥ विजयार्द्धात्तरश्रेण्यां गगनप्रिये । भूपतिर्वायुवेगोऽहं विद्याधरनेश्वरः ॥४७॥
एकदा मंदरे रम्ये वंदितुं श्री जिनालयान् । जगामानेक भूमीश सेवितांहिः स्वमार्गतः ॥४८॥
कुछ समय सोचने पर उन्हें यह बात मालूम हुई कि यह काम बिना किसी व्यंतर की कृपा से नहीं हो सकता इसलिए आधी रात के समय घर से निकले । व्यंतर की खोज में किसी श्मशान भूमि की ओर चल दिये एवं वहाँ पहुँचकर किसी विशाल वट वृक्ष के नीचे इधर-उधर घूमने लगे । वह भयावह था। जगह-जगह वहाँ अजगर शब्द कर रहे थे, श्मशान उलूकों के फुत्कार कार शब्दों से व्याप्त था शृंगालों के भयंकर शब्दों से मदोन्मत्त हाथियों से अनेक वृक्ष उजड़े पड़े थे। अर्द्ध-दाह मुर्दे और फूटे घड़ों के समान उनके कपाल वहाँ जगह-जगह पड़े थे । मांसाहारी भयंकर जीवों के रौद्र शब्द क्षण-क्षण में सुनाई पड़ते थे । अनेक जगह वहाँ मुर्दे जल रहे थे ।
चारों ओर उनका धुँआ फैला हुआ था । मांसलोलुपी कुत्ते भी वहाँ जहाँ - तहाँ भयावह शब्द करते थे। चारों ओर वहाँ राख की ढेरियाँ पड़ी थीं। इसलिए मार्ग जानना भी कठिन पड़ जाता था एवं चारों ओर वहाँ हड्डियाँ भी पड़ी थीं । बहुत काल अंधकार में इधर-उधर घूमने पर किसी वटवृक्ष के नीचे कुछ दीपक जलते हुये कुमार को दीख पड़े वह उसी वृक्ष की ओर झुक पड़ा और वृक्ष के नीचे आकर उसे धीर- वीर जयशील स्थिरचित्त चिरकाल से उद्विग्न एवं जिसके चारों ओर फूल रखे हुए हैं कोई उत्तम पुरुष दीख पड़ा । पुरुष को ऐसी दशापन्न देख कुमार ने पूछा- भाई! तू कौन है? क्या तेरा नाम है? कहाँ से तू यहाँ आया ? तेरा निवास स्थान कहाँ हैं? और तू यहाँ आकर क्या सिद्ध करना चाहता है ? कुमार के ऐसे वचन सुन उस पुरुष ने कहा- राजकुमार! मेरा वृत्तांत अतिशय आश्चर्यकारी है यदि आप उसे सुनना चाहते हैं तो सुनें मैं कहता हूँ ॥३२-४६॥
विजयार्द्ध पर्वत की उत्तर दिशा में एक गगनप्रिय नामक नगर है । गगनप्रिय नगर का स्वामी अनेक विद्याधर और मनुष्यों से सेवित मैं राजा वायुवेग था । कदाचित् मुझे विजयार्द्ध पर्वत पर जिनेन्द्र चैत्यालयों के वन्दनार्थ अभिलाषा हुई। मैं अनेक राजाओं के साथ आकाश मार्ग से अनेक
२१० :: श्रेणिक चरित्र
विजयार्द्धाचले तत्र युग्मश्रेणी विराजते । वालुकापुरनाथस्य सर्वविद्याधरे शिनः ॥४९॥ सुभद्रा तनुजा रम्या यौवन श्री विडंबिता । सुभद्रा च नितंबस्य स्फीतस्य धारिणी शुभा ॥५०॥ वयस्याभिः समं दैवात्मंदिरे द्युतिसुंदरे । आजगाम मृगाक्षी सा दधती रतिसंभ्रमम् ॥५१॥ प्रेक्ष्य तां विह्वलीभूतः संहतः कामसायकैः । शिथिलीभूतसर्वांगो बभूवाहं च तन्मयः ॥५२॥ ततस्तां च समादायाटितो दिव्यं च भारतम् । चक्राणो जन्मसाफल्यं तया सार्द्धं समुत्सुकः ॥५३॥ खगचक्री परिज्ञाय तत्सखीवदनाद्वृतम् । तां मामनुसमायातो विमानैः पूरयन्दिशः ॥५४॥ तेनाहं युद्धवान् दीर्घं नानाविद्याधरेशिना । विद्याभिः खंडखंडैश्च विद्यावद्भिर्बलोद्धतैः ॥५५॥ समे विद्यां विहत्यैव तामादाय गतः पुरम् । भूगोचरो बभूवाहमत्रास्थां शोकलावितः ॥५६॥ द्वादशाब्दं च जाप्येनैतन्मंत्रस्य विषेत्स्यति । विद्यासमूहमेतद्धि विद्यते सूरिदेशने ॥५७॥ इत्थं कृतेऽपि विद्या नो नो सिद्धागंतुमुत्सुक । गृहमुद्विग्नचित्तोऽहमीहे मोहितमन्मतिः ॥५८॥ अभयोऽपि वचोऽवादीत्तन्मंत्रं मे निरूपय । ततो मंत्रं जगौ खगः कुमारं मार विभ्रमम् ॥ ५९॥
नगरों को निहारता हुआ विजयार्द्ध पर्वत पर आ गया। उसी समय राजकुमारी सुभद्रा जो कि बालकपुर के महाराजा की पुत्री थी । अपनी सखियों के साथ विजयार्द्ध पर्वत पर आई । राजकुमारी सुभद्रा अतिशय मनोहर थी । यौवन की अद्वितीय शोभा से मंडित थी, मृगनयनी थी। उसके स्थूल किन्तु मनोहर नितम्ब उसकी विचित्र शोभा बना रहे थे एवं रति के समान अनेक विलास संयुत होने से वह साक्षात् रति ही जान पड़ती थी। ज्यों ही कमल नेत्रा सुभद्रा पर मेरी दृष्टि पड़ी मैं बेहोश हो गया कामबाण मुझे बेहद रीति से बेधने लगे । मेरा तेजस्वी शरीर भी उस समय सर्वथा शिथिल हो गया विशेष कहाँ तक कहूँ तन्मय होकर मैं उसी का ध्यान करने लगा। सुभद्रा बिना जब मेरा एक क्षण भी वर्ष सरीखा बीतने लगा तो बिना किसी के पूछे मैं जबरन सुभद्रा को हर लाया और गगनप्रिय नगर में आकर आनन्द से उसके साथ भोग भोगने लगा। इधर मैं तो राजकुमारी सुभद्रा के साथ आनन्द से रहने लगा और उधर किसी सखी ने बालकपुर के स्वामी सुभद्रा के पिता से सारी बात कह सुनाई और मेरा ठिकाना भी बतला दिया सुभद्रा की इस प्रकार हरण वार्ता सुन मारे क्रोध के उसका शरीर भभक उठा और विमान पंक्तियों से समस्त गगन मंडल को आच्छादन करता हुआ शीघ्र ही गगनप्रिय नगर की ओर चल पड़ा । बालकपुर के स्वामी का इस प्रकार आगमन मैंने भी सुना अपनी सेना सजाकर मैं शीघ्र ही उसके सन्मुख आया । चिरकाल तक मैंने उसके साथ और अनेक विद्याओं को जानकर तीक्ष्ण खड्गों धारी उसके योद्धाओं के साथ युद्ध किया अन्त में बालकपुर के स्वामी ने अपने विद्या बल से मेरी समस्त विद्या छीन ली, सुभद्रा को भी जबरन ले गया । विद्या के अभाव से मैं विद्याधर भी भूमि गोचरी के समान रह गया। अनेक शोकों से आकुलित हो मैं पुनः उस विद्या के लिए यह मंत्र सिद्ध कर रहा हूँ बारह वर्ष पर्यन्त इस मंत्र के जपने से वह विद्या सिद्ध होगी ऐसा नैमित्तिक ने कहा है किन्तु बारह वर्ष बीत चुके अभी तक विद्या सिद्ध न हुई इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूँ । ज्यों ही कुमार ने उस
श्रेणिक चरित्र :: २११
सबीजं लघु संलभ्य जजाप वृषपाकतः । सिषेध निखिला विद्याः सर्वं पुण्यफलं हि वै ॥६० ॥ तत्प्रभावात्खगस्यापि विद्याः सिद्धाः शुभोदयात् । ततस्तौ स्नेहवृद्ध्यर्थमन्योन्यं नेमतुर्मुदा ॥६१ ॥ स चोद्वसितं लब्ध्वा रुष्टः संकल्पदंतिनम् । विकुर्व्य मेघसंघातं रोहयित्वा च चेलनां ॥६२ ॥ बभ्राम नगरं राज्ञी मासं पूर्णमनोरथा । समासेदे गृहं तूर्णं त्रिवलीभंगभेदिता ॥६३ ॥ संपूर्णादोहदाद्राज्ञी पूर्वावस्थां समत्यजत् । शुभं सुसातकुंभाभा वृक्षे वल्लीव नूतना ॥६४ ॥ सहासा सरसा सिद्ध सुसंगास्मरसायका । सा प्रसूत सुतं सारं गजादिसुकुमारकं ॥६५॥ ततो मेघकुमारं च तनुजं समजीजनत् । सप्तपुत्रैश्च सा रेजे तारका सप्तयोगिभिः ॥६६॥ अभिन्नसुखसंतानौ चेलना श्रेणिकौ परौ । रेमाते रतिसंपन्नावखिन्नौ रतिलीलया ॥६७॥ एकदा नृपसामंत किरीट तटरत्नजैः । मयूखैर्मंडितांह्रयब्जः सुशब्दमगधैः स्रुतः ॥ ६८ ॥ रत्नश्री चित्रनक्षत्र पवित्र गगनच्छवि। सिंहासनं समासीन उदयाद्रिं तमोहरः ॥ ६९ ॥ पयः पयोधि संरंगत्तरलोत्तुंग भंगुरैः । तरंगैरिव संवीज्यमानः खलु प्रकीर्णकैः ॥७०॥
पुरुष के मुख से ये समाचार सुने शीघ्र ही पूछाभाई वह कौन-सा मन्त्र है मुझे भी तो दिखाओ देखूँ तो वह कैसा कठिन है? कुमार के इस प्रकार पूछे जाने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही वह मंत्र कुमार को बतला दिया । कुमार अतिशय पुण्यात्मा थे उस समय उनका भाग्य सुभाग्य था इसलिए उन्होंने मंत्र सीखकर शीघ्र ही इधर-उधर कुछ बीज क्षेपण कर दिये और बातोंबात में वह मंत्र सिद्ध कर लिया । मंत्र से जो जो विद्या सिद्ध होने वाली थी शीघ्र ही सिद्ध हो गई जिससे उसे परम संतोष हो गया एवं दोनों महानुभाव आपस में मिल - भेंट कर बड़े प्रेम से अपने-अपने स्थान चले गये।
मंत्र सिद्ध कर कुमार अपने घर (राजमहल) आये विद्या बल से उन्होंने शीघ्र ही कृत्रिम मेघ बना दिये। रानी चेलना को हाथी पर चढ़ा लिया इच्छानुसार और जहाँ-तहाँ घुमाया । जब उसके दोहले की पूर्ति हो गई तो वह अपने राजमहल में आ गई । दोहले की पूर्ति कठिन समझ जो उसके चित्त में खेद था वह दूर हो गया । अब उसका शरीर सुवर्ण के समान चमकने लगा। नवमास के बीत जाने पर रानी चेलना के अतिशय प्रतापी शत्रुओं का विजयी पुत्र उत्पन्न हुआ और दोहले के अनुसार उसका नाम राजकुमार रखा गया । राजकुमार के बाद रानी चेलना के मेघकुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। सात ऋषियों से आकाश में जैसी तारा शोभित होती है रानी चेलना भी ठीक उसी प्रकार सात पुत्रों से शोभित होने लगी । इस प्रकार आपस में अतिशय सुखी समस्त खेदों से रहित वे दोनों दंपती आनन्दपूर्वक भोग भोगते राजगृह नगर में रहने लगे ॥४७-६७॥
कदाचित् अनेक राजा और सामंतों से सेवित भले प्रकार बन्दीजनों से स्तुत महाराज श्रेणिक छत्र और चंचल चमरों से शोभित अत्युन्नत सिंहासन पर बैठते ही जाते थे कि अचानक ही सभा में वनमाली आया। उसने विनय से महाराज को नमस्कार किया एवं षट्काल के फल और पुष्प महाराज को भेंटकर वह इस प्रकार निवेदन करने लगा। समस्त पुण्यों के भंडार ! बड़े-बड़े राजाओं
२१२ :: श्रेणिक चरित्र
संसदि श्रेणिको यावदास्ते छत्रपवित्रतः । तावत्प्रसूनलावी चा जगामद्वास्थवेदिनः ॥७१॥ तं प्रणम्य सभासीनं षट्कालप्रभवैर्वरैः । प्राभृतैः फलपुष्पैश्च नवीनैश्च व्यजिज्ञपत् ॥७२॥ निःशेषपुण्य संस्थान महीभृत्यूजितांह्रिक। करुणा क्रांतचेतस्क शक्रचक्र विभूतिभाक् ॥७३॥ देव! श्रेणिक! भूपेंद्र! राजंस्त्वद्वृषनोदितः । समाट वर्द्धमानेशो भगवान्विपुलाचले ॥७४॥ तत्प्रभावाद्वने जाता वनश्रीः सफलाऽखिला । सपुष्पा मदनोद्दीप्ता यौवनाद्योषिता यथा ॥७५॥ सरांसि रसपूर्णानि सपद्मानि वराणि च । निर्मलानि गभीराणि विद्वच्चेतांसीवा बभुः ॥७६ ॥ सवंशा तिलकोद्दीप्ता कुलीना मदनाकुला । सुवर्णा मन्मथारूढा वनश्री स्त्रीव संबभौ ॥७७॥ भृङ्गझंकार वाचाला पुष्पहास्या फलस्तनी । स्वरूप रक्तकामांगा वनश्रीर्योषितेवच ॥ ७८ ॥ नकुलाः सकला नागैररम्यंते प्रभावतः । मार्जारशिशवो राजन् मूषकैर्वैरदूषितैः ॥७९॥ सिंहशावं करेणुश्च स्तन्यं सुतस्यामोदतः । पाययति तथा धेनु द्वीपिशावं समीपगं ॥८०॥ से पूजित ! दयामय चित्त के धारक ! चक्र और इन्द्र की विभूति से शोभित! भो देव ! विपुलाचल पर्वत पर धर्म के स्वामी भगवान् महावीर का समवसरण आया है। भगवान् के समवसरण के प्रसाद से वनश्री साक्षात् स्त्री बन गई है क्योंकि स्त्री जैसी पुत्ररूपी फलयुक्त होती है वनश्री भी स्वादु और मनोहर फलयुक्त हो गई है। स्त्री जैसी सपुष्पा- रजोधर्म युक्त होती है । वनश्री भी सपुष्पा हरे-पीले अनेक फूलों से सज्जित हो जाती है। स्त्री जैसी यौवन अवस्था में मदनोदीप्ता-काम से दीप्त हो जाती है वनश्री भी मदनोदीप्ता मदन वृक्ष से शोभित हो जाती है। भगवान् के समवसरण की कृपा से तालाबों ने सज्जनों के चित्त की तुलना की है क्योंकि सज्जनों का चित्त जैसा रसपूर्ण करुणा आदि रसों से व्याप्त रहता है तालाब भी उसी प्रकार रसपूर्ण जल से भरे हुए हैं। सज्जनों का चित्त जैसा सपद्मा- अष्टदल कमलाकार होता है तालाब भी सपद्म मनोहर कमलों से शोभित हैं। सज्जन चित्त जैसा वर - उत्तम है तालाब भी वरउत्तम है । सज्जन चित्त जैसा निर्मल होता है तालाब भी उसी प्रकार निर्मल है। सज्जनों के चित्त जैसे गम्भीर होते हैं तालाब भी इस समय गम्भीर हैं इस प्रकार से भी वनश्री ने स्त्री की तुलना की है क्योंकि स्त्री जैसी सवंशा- कुलिना होती है वनश्री भी सवंशा- बांसों से शोभित है। स्त्री जैसी तिलकोदीप्ता - तिलक से शोभित रहती है वनश्री भी तिलकोदीप्ता - तिलक वृक्ष से शोभित है। स्त्री जैसी मदनाकुला - काम से व्याकुल रहती है वनश्री भी मदनाकुला - मदन वृक्षों से व्याप्त है। स्त्री जैसी सुवर्णा - मनोहर वर्ण वाली होती है वनश्री भी सुवर्णा-हरे - पीले वर्ण से युक्त है। स्त्री के सर्वांग में जैसा मन्मथ-काम जाज्वल्यमान रहता है वनश्री भी मन्मथ जाति के वृक्षों से जहाँ-तहाँ व्याप्त है। पद्मिनी स्त्री जैसी भौरों की जंघारों से युक्त रहती हैं वनश्री पुष्परूपी हास्य युक्त है । स्त्री जैसी स्तन युक्त होती है वनश्री भी ठीक उसी प्रकार फलरूपी स्तनों से शोभित है ॥६८-७८॥
प्रभो! इस समय नेवले आनन्द से सर्पों के साथ क्रीड़ा कर रहे हैं। बिल्ली के बच्चे बैर रहित मूसों के साथ खेल रहे हैं । अपना पुत्र समझ हथिनी सिंहनी के बच्चों को आनन्द से दूध
श्रेणिक चरित्र :: २१३
तत्प्रभावाद्विना वैरा रभवन् जंतवोऽखिलाः । नटंति नागतुंडिकादर्दुरा नागमूनि च ॥८१ ॥ देवदेव नरेशाद्यैः पर्युपासित शासन । समाट सन्मतिः केन तत्प्रभावो हि वर्ण्यते ॥८२ ॥ आनंद प्रमदालीढां गिरं श्रुत्वा वनेशिनः । नरेशो हर्षरोमां च चर्म देही बभूव च ॥८३॥ उत्थाय सहसा शूर गत्वा सप्तपदानि तां । अनमत्कुकुभां शुभ्रादभ्रर्कीतिः सुमूर्तिमान् ॥८४॥ शरीरजं तदा तस्मै भूषणं वसनं धनं । ददौ नृपो धृतानंद इंदोरिव सारित्पतिः ॥८५॥ आनंदान्नंद भेरीं स दापयामास भक्तितः । जगज्जाग्रत्कृते भूपो रक्षिताखिलः सत्क्षितिः ॥८६॥ केचिद्वीताश्रिता केचित्संदतोति दीपिताः । यथार्थ रथसंरूढाः समाजग्मुर्नृपांगणे ॥८७॥ ततः सांतपुरः पौरैर्नृपैः सामंत मंत्रिभिः । नाना सपर्यया युक्तैश्चचाल मगधेश्वरः ॥८८ ॥ । करेणुकर पादाब्ज समुत्थापित पांशवः । दानोदकेन ते नूनं विधाप्यंते च दंतिभिः ॥८९॥ कर्णजाहं वचो यत्र श्रूयते न जनैः क्वचित् । जयारव सुवाचालैरन्योन्यं मुख लोकनैः ॥९०॥ आनकादिक नादेनाकारयंतीव दिग्वधूः । सैन्याः संन्यस्त चेतस्का जिते जिताजवंजवे ॥११॥
पिला रही है और सिंहनी हथिनियों के बच्चों को प्रेम से दूध पिला रही है। प्रजापालक ! समवसरण के प्रताप से समस्त जीव बैर रहित हो गये हैं। मयूरगण सर्पों के मस्तकों पर आनन्द से नृत्य कर रहे हैं। विशेष कहाँ तक कहा जाये इस समय नहीं सम्भव भी काम बड़े-बड़े देवों से सेवित शाहर महावीर भगवान् की कृपा से हो रहे हैं। माली के इस प्रकार अचिंत्य प्रभावशाली भगवान् महावीर का आगमन सुन मारे आनन्द के महाराज का शरीर रोमांचित हो गया । श
उदयादि से जैसा सूर्य उदित होता है महाराज भी उसी प्रकार शीघ्र ही सिंहासन से उठ पड़े । जिस दिशा में भगवान् का समवसरण आया था उस दिशा की ओर सात पैड चलकर भगवान् को परोक्ष नमस्कार किया। उस समय जितने उनके शरीर पर कीमती भूषण और वस्त्र थे तत्काल उन्हें माली को दे दिया धन आदि देकर भी माली को सन्तुष्ट किया । समस्त जीवों की रक्षा करने वाले महाराज ने समस्त नगर निवासियों को जानकारी के लिए बड़ी भक्ति और आनन्द से नगर में ड्योढ़ी पिटवा दी । ड्योढ़ी की आवाज सुनते ही नगर निवासी शीघ्र ही राजमहल के आँगन में आ गये उनमें अनेक तो घोड़ों पर सवार थे, अनेक हाथी पर और अनेक रथों पर बैठे थे । सब नगर निवासियों के एक चित्त होते ही रानी, पुरवासी, राजा, सामंत और मंत्रियों से वेष्टित महाराज शीघ्र ही भगवान् की पूजार्थ वन की ओर चल दिये । मार्ग में घोड़े आदि के पैरों से जो धूल उठती थी वह हाथियों के मद जाल से शांत हो जाती थी ।
उस समय जीवों के कोलाहलों से समस्त आकाश व्याप्त था इसलिए कोई किसी की बात तक भी नहीं सुन सकता था । यदि किसी को किसी से कुछ कहना होता था तो वह उसकी मुँह की ओर देखता था और बड़े कष्ट से इशारे से अपना तात्पर्य उसे समझाता था। उस समय ऐसा जान पड़ता था मानो बाजों के शब्दों से सेना दिक्स्त्रियों को बुला रही है। उस समय सबों का चित्त कर्म विजयी भगवान् महावीर में लगा था और छत्रों का तेज सूर्य तेज को भी फीका कर रहा |
e90426cf34e712076a6735d42aef3246e4f1d464f75f826cd4c28f194637fc0c | pdf | छियासठ ]
चुकी है। कुछ ऐसे विषय है, जिनके सम्बन्ध में मुझे छापको लिखने के लिये कहा गया है
जैसा कि वक्तव्य को हमने समझा है, उसमें विधान निर्मात्री परिषद् के चुनाव तथा संचालन के लिए कुछ सिफारिशें तथा कार्यविधि दी हुई हैं। मेरी समिति के मत से निर्मित हो जाने के बाद परिषद् स्वयं विधान निर्माण के लिए एक सत्ता सम्पन्न ( सावरेन ) संस्था होगी, जिसके कार्य में कोई भी बाहरी शक्ति बाधा न डाल सकेगी और सन्धि में उसके सम्मिलित होने के विषय में भी यही बात लागू रहेगी। साथ ही, मन्त्रि - मिशन द्वारा सुझायी हुई सिफारिशों तथा कार्य विधि में अपनी इच्छानुसार कोई भी परिवर्तन कर सकने के लिये परिषद् स्वतंत्र होगी और विधान सम्बन्धी कार्यों के लिए, विधान परिषद् के एक सत्ता सम्पन्न संस्था होने के कारण, उसके अन्तिम निर्णय स्वयमेव कार्यान्वित होंगे ।
जैसा कि आपको मातम होगा, आपके वक्तव्य में कुछ ऐसी सिफारिशें भी हैं, जो कांग्रेस के उस रुख के विपरीत हैं, जो उसने शिमले में तथा अन्यत्र ग्रहण किया था । स्वभावतः हम · इन सिफारिशों की त्रुटियों को, परिषद् द्वार) हटवाने का यत्न करेंगे । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये हम देश को तथा विधान निर्मात्री परिषद् को अपने विचारों से प्रभावित करने का यत्न भी करेंगे ।
एक बात से, जो गांधीजी ने बताई, मेरी समिति को बात की कोशिश में है कि विभिन्न प्रान्तीय असेम्बलियों में यूरोपियन सदस्य, विधान परिषद् के लिए चुने जानेवाले उम्मेदवार हो और न अपने वोट ही दें ।
प्रसन्नता हुई । वह यह कि श्राप इस विशेषकर बंगाल तथा श्रासाम के प्रतिनिधियों के निर्वाचन में न तो
ब्रिटिश बलोचिस्तान से एक प्रतिनिधि के चुने जाने के सम्बन्ध में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है । जहाँ तक हमें मालूम है, बलोचिस्तान में कोई निर्वाचित अमेम्बली अथवा अन्य प्रकार की सभा नहीं है, जो इस प्रतिनिधि को चुन सके। ऐसे किसी भी एक व्यक्ति के होने से विधानपरिषद् में अधिक अन्तर भले ही न पड़े. किन्तु यदि वह व्यक्ति एक पूरे सूबे बलोचिस्तान की ओर से बोलने का उपक्रम करे, तो इससे निस्सन्देह भारी श्रन्तर पड़ सकता है, विशेषतः यदि वह उस सूबे का वास्तविक प्रतिनिधि किसी भी प्रकार से न हो । इस प्रकार का प्रतिनिधित्व रखने की अपेक्षा, कोई भी प्रतिनिधि न रखना कहीं अधिक अच्छा है, क्योंकि ऐसे प्रतिनिधि से गलत धारणा पैदा हो सकती है और बलोचिस्तान के भाग्य का ऐसा निर्णय किया जा सकता है, जो उस सूबे के निवासियों की इच्छा के प्रतिकूल हो । यदि बलोचिस्तान से जन-प्रिय प्रतिनिधि चुने जाने की कोई व्यवस्था की जा सकी, तो हम उसका स्वागत करेंगे। अतएव, मेरी समिति को गांधीजी से यह सुनकर प्रसन्नता हुई कि बलोचिस्तान को श्राप परामर्शदात्री समिति के कार्य- के अन्तर्गत सम्मिलित करना चाहते हैं ।
विधान के मूलस्वरूप से सम्बन्ध रखनेवाली अपनी सिफारिशों में आपने कहा है कि प्रान्तों को कार्यकारिणी तथा व्यवस्थापक सभाओंों से युक्त गुट बनाने की स्वतंत्रता रहनी चाहिये और प्रत्येक गुट इस बात का निर्णय कर सकेगा कि प्रान्तीय विषयों में से कौन-से विषय उसके अधीन रहने चाहियें । ठीक इससे पहले आपने बताया है कि संघ ( यूनियन ) के अधीन रहनेवाले विषयों के सिवा अन्य सारे विषय तथा शेष अधिकार प्रान्तों को मिलने चाहिये । वक्तव्य में इसके बाद, पृष्ठ ५ में आपने कहा है कि विधान परिषद् के प्रान्तीय प्रतिनिधि तीन भागों ( सेक्शनों ) में बिभक्त हो जायेंगे और ये विभाग ( सेक्शन ) हर सेक्शन के प्रांतों के प्रान्तीय
[ सड़सठ
विधान तैयार करने का कार्य शुरू करेंगे और यह भी निर्णय करेंगे कि इन प्रांतों के लिए क्या कोई गुट-विधान भी तैयार किया जायगा ।
इन दोनों पृथक् व्यवस्थाओं में, हमें निश्चित रूप से भारी अन्तर प्रतीत होता है। मूख व्यवस्था द्वारा किसी भी प्रान्त की अपने इच्छानुसार कुछ भी करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है और तदनन्तर इस विषय में बाध्यता भ्रा गई है, जिससे स्पष्टतः उक्त स्वतन्त्रता पर श्राघात होता हे । यह सत्य है कि आगे चलकर प्रांत किसी भी गुट से पृथक् हो सकते हैं, किन्तु किसी भी प्रकार से यह स्पष्ट नहीं होता कि कोई भी प्रांत अथवा उसके प्रतिनिधि, कोई ऐसा कार्य करने के लिए किस प्रकार बाध्य किये जा सकते हैं, जो वे करना नहीं चाहते। कोई भी प्रान्तीय असे म्बली, अपने प्रतिनिधियों को आदेश दे सकती है, कि वे किसी भी 'गुट' में अथवा किसी विशेष गुट में अथवा लेक्शन में सम्मिलित न हों । यूँ कि 'सी' तथा 'बी' सेक्शनों का निर्माण किया गया है, प्रतएव स्पष्ट है कि इन सेक्शनों में एक प्रांत की प्रभुता रहेगी - 'बी' सेक्शन में पंजाब की और 'सी' सेक्शन में बंगाल की। प्रभु प्रान्त इस प्रकार का प्रान्तीय विधान तैयार कर सकता है, जो सिन्ध, उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रान्त अथवा आसाम की इच्छाओं के सर्वथा विरुद्ध हो । हो सकता है कि प्रभु प्रान्त विधान के अन्तर्गत निर्वाचन तथा अन्य विषयों के सम्बन्ध में ऐसे नियम भी बना दें, जिनसे किसी भी प्रांत के किसी गुट से पृथक् हो सकने की सारी व्यवस्था बेकार हो जाय। कभी भी ऐसा खयाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा विचार स्वयं योजना के आधारभूत सिद्धांतों तथा नीति के विरुद्ध ठहरेगा ।
देशी राज्यों का प्रश्न अस्पष्ट ही छोड़ दिया गया है, अतएव उस विषय इस समय में अधिक कुछ कहना नहीं चाहता। किन्तु स्पष्ट है कि विधान परिषद् में राज्यों के जो भी प्रतिनिधि सम्मिलित हों, उन्हें न्यूनाधिक उसी रूप में श्रामा चाहिए जिस रूप में प्रांतों के प्रतिनिधि आयेंगे । पूर्णतया भिन्न तत्वों के संयोग से विधान परिषद् का निर्माण नहीं किया जा सकता । ऊपर मैंने, श्रापके वक्तव्य से उत्पन्न होनेवाली कुछ बातों का उल्लेख किया है । सम्भवतः उनमें से कुछ को आप स्पष्ट कर सकते हैं तथा उनको दूर कर सकते हैं। किन्तु मुख्य बात, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, यही है, कि 'विधान परिषद्' को हम एक सर्व-सत्ता- समान सभा के रूप में देखते हैं, जो अपने सम्मुख उपस्थित किसी भी विषय पर अपने इच्छानुसार निर्णय कर सकती है। एकमात्र प्रतिबन्ध जिसे हम इस विषय में स्वीकार करते हैं यह है कि कुछ बड़े साम्प्रदायिक प्रश्नों के निर्णय दोनों बड़े सम्प्रदायों में से हर दोनों के बहुमत से होने चाहिये । आपकी सिफारिशों के दोष दूर करने के लिए हम जनता तथा विधान परिषद् के सदस्यों के समक्ष स्वयं अपने प्रस्ताब उपस्थित करने का प्रयत्न करेंगे ।
गांधीजी ने मेरी समिति को सूचित किया है कि अापका विचार है कि विधान परिषद्द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुसार सरकार की स्थापना हो जाने के बाद तक, ब्रिटिश सेना भारत में रहेगी । मेरी समिति अनुभव करती है कि भारत में विदेशी सेना की उपस्थिति भारतीय स्वाधीनता को नगण्य कर देगी ।
राष्ट्रीय अन्तर्कालीन सरकार की स्थापना के क्षण से भारत को वास्तव में स्वाधीन समझा जाना चाहिये ।
ताकि मेरी समिति आपके वक्तव्य के सम्बन्ध में किसी निर्णय पर पहुँच सके, इस पत्र का उत्तर शीघ्र पाकर मैं कृतज्ञ होऊँगा ।
आपका विश्वासपात्र( इ० ) अबुल कलाम आजाद
अड़सठ ]
मौलाना आजाद के नाम भारत मंत्री का पत्र
तारीख २२ मई
प्रतिनिधि मंडल ने आपके २० मई वाले पत्र पर सोच-विचार किया है और उसका खयाल है कि इसके उत्तर देने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि उसे अपनी साधारण स्थिति आपके सम्मुख स्पष्ट रूप से रख देनी चाहिये । चुंकि भारतीय नेता बहुत लम्बे अर्से तक बातचीत करने के बाद भी किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके, इसलिए प्रतिनिधि मंडल ने दोनों ही प्रमुख दलों के दृष्टिकोणों में निकटतम सामंजस्य स्थापित करने के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की हैं, इसलिए यह योजना संपूर्ण रूप में ही लागू हो सकती है और यह तभी सफल हो सकती है यदि उस पर समझौते और सहयोग की भावना से प्रेरित होकर अमल किया जाय।
प्रान्तों की गुटबन्दी के कारणों से आप भली-भांति परिचित हैं और यह बात इस योजना का नितान्त श्रावश्यक पहलू है जिसमें कोई संशोधन केवल दोनों दलों के पारस्परिक समझौते द्वारा हो किया जा सकता
इसके अलावा दो और बातें भी हैं, जिनका हमारा खयाल है कि हमें उल्लेख कर देना चाहिये । प्रथम आपने अपने पत्र में विधान निर्मात्री परिषद् को एक सत्ता सम्पन्न संस्था कहा है जिसके अन्तिम निर्णयों पर स्वतः अमल होने लगेगा। हमारा विचार है कि विधान निर्मात्री परिषद् की अधिकार-सीमा, उसका कार्य क्षेत्र और उसकी कार्यप्रणाली वह जिस पर चलना चाहती है, इन वक्तव्यों द्वारा स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाता है। एक बार विधान निर्मात्री परिषद् के बन जाने पर और उसके द्वारा इस आधार पर काम करने पर स्वभावतः उसकी स्वाधीन विवे चना में हस्तक्षेप करने अथवा उसके निर्णयों पर आपत्ति करने का कोई इरादा नहीं है। जब विधान निर्मात्री परिषद् अपना कार्य समाप्त कर चुकेगी, तो सम्राट् की सरकार पार्लीमेंट से ऐसी कार्रवाई करने की सिफारिश करेगी जैसी कि भारतीय जनता को सत्ता हस्तान्तरित करने के लिये आवश्यक समझी जायगी, परन्तु इस सम्बन्ध में सिर्फ दो ही शर्ते रहेगी, जिनका उल्लेख वक्तव्य में कर दिया गया है और जो हमारा विश्वास है कि विवादास्पद नहीं है - अर्थात् अल्पसंख्यकों की रक्षा की पर्याप्त व्यवस्था और सत्ता हस्तान्तरित करने के परिणामस्वरूप उठनेवाले विषयों के सम्बन्ध में सन्धि करने की सहमति ।
दूसरे, जब कि सम्राट् की सरकार इस बात के लिए अत्यधिक उत्सुक है कि अन्तर्कालीन अवधि यथासंभव कम-से-कम हो, हमें विश्वास है कि आप यह अनुभव करेंगे कि उपर्युक्त कारणों के आधार पर नये विधान के कार्यान्वित होने से पहले स्वाधीनता का प्रादुर्भाव नहीं हो सकता।
आपका - पेथिक लारेंस
नई दिल्ली बुधवार - मंत्रिमिशन के प्रतिनिधि मण्डल ने नरेन्द्र मण्डल को जो स्मृति पत्र भेजा है वह आज प्रकाशित हो गया है। उसमें घोषित किया गया है कि नये विधान के अनुसार सम्राट् की सरकार सर्वोपरि सत्ता का उपयोग समाप्त कर देगी। इस स्थान की पूर्ति या तो देशी राज्य, ब्रिटिश भारत की सरकार या सरकारों के साथ संघीय सम्बन्ध स्थापित करके कर लेंगे या फिर उस सरकार या सरकारों के साथ वह नयी राजनीतिक व्यवस्था कर लेंगे ।
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यह स्मृति पत्र तभी तैयार कर लिया गया था जब प्रतिनिधि मण्डल भारतीय दलों के नेताओं से बहस कर रहा था और इसका सारांश देशी राज्यों के प्रतिनिधियों को उनकी मुलाकात के समय दे दिया गया था ।
स्मृति पत्र इस प्रकार था :--
देशी राज्यों को सन्धियों तथा सर्वोच्च सत्ता के सम्बन्ध में मन्त्रि प्रतिनिधि मण्डल ने नरेन्द्र मण्डल के चान्सलर के सम्मुख निम्न विचारपत्र उपस्थित किया :कामन्स सभा ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हाल के वक्तव्य देने से पूर्व नरेशों को आश्वासन दे दिया था कि सम्राट् के प्रति उनके सम्बन्धों तथा उनके साथ की गयी सन्धियों और इकरारनामों द्वारा गारंटी किये गये अधिकारों में उनकी स्वीकृति के बिना कोई परिवर्तन करने का सम्राट् का इरादा नहीं है। साथ ही यह भी कह दिया था कि वार्ता के परिणामस्वरूप होनेवाले परिवर्तनों के सिलसिले में स्वीकृति को अनुचित रूप से रोक भी न रखा जायगा। उसके बाद नरेन्द्र मण्डल भी इस बात की पुष्टि कर चुका है कि देशी राज्य भारत द्वारा अपनी पूर्ण स्वतंत्र स्थिति की तात्कालिक प्राप्ति के लिए देश की श्राम इच्छा का पूरी तरह समर्थन करते हैं । सम्राट् की सरकार ने अब घोषणा की है कि यदि ब्रिटिश भारत की उत्तराधिकारी सरकार अथवा सरकारें स्वाधीनता के लिए इच्छा करेंगी तो उनके मार्ग में कोई बाधा न डाली जायगी। इन घोषणाओं का प्रभाव यही होता है कि जिनका भारत के भविष्य से सम्बन्ध है वे सब के सब चाहते हैं कि भारत ब्रिटिश राष्ट्र-मण्डल के भीतर अथवा बाहर स्वाधीनता की स्थिति प्राप्त करे । भारत-द्वारा इस श्राकांक्षा के पूरी करने में जो भी कठिनाइयां हैं, प्रतिनिधि मण्डल उन्हें दूर करने में सहायता प्रदान करने के ही लिए यहां आया हुआ है ।
संक्रान्ति काल में, जिसकी मियाद एक ऐसे नये वैधानिक ढांचे के कार्यान्वित होने से पूर्व श्रवश्य समाप्त हो जानी चाहिए जिसके अन्तर्गत ब्रिटिश भारत स्वतन्त्र अथवा पूर्ण रूप से स्वशासित होगा, सर्वोच्च सत्ता कायम रहेगी; परन्तु ब्रिटिश सरकार किसी भी परिस्थिति में सर्वोच्च सत्ता एक भारतीय सरकार को हस्तान्तरित नहीं कर सकती और न ही करेगी ।
इस बीच देशी राज्य भारत के लिए वैधानिक ढांचे के निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण भाग लेने की स्थिति में रहेंगे और देशी राज्यों द्वारा सम्राट् की सरकार को सूचित कर दिया गया है कि वे अपने और समस्त भारत के हितों का दृष्टि से इस नये ढांचे के निर्माण में भाग लेने और उसके पूरा हो जाने पर उसमें अपना उचित स्थान प्राप्त करने के इच्छुक हैं। इसका मार्ग प्रशस्त करने के निमित्त वे अपने शासन-प्रबन्ध को यथाशक्ति उच्चतम मान तक पहुँचाने की व्यवस्था करके निस्संदेह अपनी स्थिति को सुदृद बना लेंगे। जहां-कहीं भो देशी-राज्यों के वर्तमान साधनों के अन्तर्गत इस मान तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंचा जा सकता, वे निस्सदेह यह प्रबन्ध करेंगे कि शासन : बन्ध की दृष्टि से ऐसे देशी राज्यों के इतने बड़े संगठन बना दिये जायँ अथवा वे ऐसी बड़ी इकाइयों में शामिल हो जायँ जिससे कि वे इस वैधानिक ढांचे में उपयुक्त स्थान प्राप्त कर सकें। इससे विधान निर्माण-काल में देशो राज्यों की स्थिति भी सुध्द हो जायगी, क्योंकि यदि विभिन्न सरकारों ने पहले से ही ऐसा नहीं किया होगा तो उन्हें प्रतिनिधित्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना-द्वारा अपने यहां के जनमत के साथ घनिष्ठ और निरन्तर संपर्क स्थापित करने के लिए सक्रिय भाग लेने का अवसर मिल जायगा ।
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संक्रान्ति काल में देशी राज्यों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे ब्रिटिश भारत के साथ समान मामलों - विशेषकर श्रौद्योगिक एवं आर्थिक क्षेत्रों से सम्बन्ध रखनेवाले मामलों की भावी व्यवस्था पर ब्रिटिश भारत से बात-चीत चलायें । यह बात चीत जो हर हालत में श्रावश्यक है - चाहे रियासतें नवीन विधान निर्माण में भाग लेना चाहें अथवा नहीं - - सम्भवतः काफी समय लेगी और नये विधान के लागू होने के समय भी कई दिशाओं में प्रधूरी रह सकती है। अत. शासनसम्बन्धी अड़चनों से बचने के लिए यह आवश्यक है कि नई रियासतों तथा सरकार श्रथवा सरकारों के भावी सूत्रधारों के बीच किसी प्रकार का समझौता हो जाय ताकि उस समय तक समान मामलों में वर्तमान अवस्था जारी रह सके अब तक कि नया समझौता सम्पूर्ण नहीं हो जाता। ब्रिटिश सरकार और सम्राट् का प्रतिनिधि इस सम्बन्ध में यथाशक्ति सहायता करने को तत्पर रहेगा ।
जब ब्रिटिश भारत में नई, पूर्ण रूप से स्वाधीन तथा स्वतन्त्र सरकार या सरकारें स्थापित हो जायँगी, तब सम्राट् की सरकार का इन सरकारों पर ऐसा प्रभाव नहीं होगा कि ये सर्वोच्च सत्ता के कर्तव्यों को निभा सकें। इसके अतिरिक्त वे ऐसी कल्पना नहीं कर सकते कि इस कार्य के लिए भारत में ब्रिटिश सेना रख ली जायगी। अतः यह युक्तिसंगत ही है, तथा देशी राज्यों की ओर से जो इच्छा प्रकट की गई है उसके अनुरूप है, कि सम्राट् की सरकार सर्वोच्च सत्ता के रूप में कार्य न करेगी। इसका यह तात्पर्य हुआ कि देशी राज्यों के वे सर्व अधिकार, जो सम्राट् के साथ सम्बन्धों पर आश्रित हैं, अब लुप्त हो जायेंगे और वे सब अधिकार जो इन राज्यों ने सर्वोच्च सत्ता को समर्पित कर दिये थे, अब उन्हें वापस मिल जायेंगे। इसलिए देशी राज्यों तथा ब्रिटिश भारत और सम्राट् के मध्य राजनीतिक व्यवस्था का अब अन्त कर दिया जायगा । इस रिक्त स्थान की पूर्ति या तो देशी राज्यों द्वारा उत्तराधिकारी सरकार से या ब्रिटिश भारत की सरकारों से संघीय सम्बन्ध स्थापित करने पर होगी, अथवा ऐसा न होने पर इस सरकार या सरकारों से विशेष व्यवस्था करने पर होगी ।
एक प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि कैबिनेट-शिष्टमंडल यह स्पष्ट कर देना चाहता है, कि बुधवार को "नरेन्द्रमंडल के प्रधान को, रियासतों, सन्धियों तथा सर्वोपरि सत्ता सम्बन्धी पेश किया गया मैमोरेंडम' शीर्षक से जो पत्र जारी किया गया है, वह मिशन ने उस समय तैयार किया था जबकि भिन्न-भिन्न दलों के नेताओं से परामर्श शुरू नहीं हुआ था और यह कि उस वार्तालाप का सारांश मात्र था, जो कि मिशन ने रियासतों के प्रतिनिधियों से पहली बार किया था । इस विज्ञप्ति को "उत्तराधिकारी सरकार या ब्रिटिश इण्डिया की सरकारें" शब्दों के प्रयोग की व्याख्या समझा जाय, जो मंडल के पिछले बयान के बाद प्रयुक्त न किये जाते । मेमोरेंडम के ऊपर दिया गया नोट भूल थी ।
सर एन० जी० आयंगर का वक्तव्य
"यह अफ़सोस की बात है कि कैबिनेट-शिष्टमण्डल ने हिन्दुस्तानी रियासतों से अपने विचार उतने खुले और साफ शब्दों में प्रकट नहीं किए, जितने कि उन्होंने हिन्दुस्तान के विधान को कुछ श्राधार भूत बातों के विषय में किये हैं।
कांग्रेस कार्यकारिणी को शिकायत है कि देशी रियासतों के बारे में जो कहा गया है वह अस्पष्ट है और बहुत कुछ भविष्य के फ़ैसलों पर छोड़ा गया है। महात्मा गांधी ने ठीक ही कहा है, कि शिष्टमंडल ने, सर्वोपरि सत्ता की समस्या को त्रिशंकु के समान छोड़ दिया है। रियास-विषयक निर्णय जानने के लिए, हमें मंडल के १६ मई के वक्तव्य और रियासतों,
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सन्धियों तथा सर्वोपरि सत्ता' पर दिये गये स्मृति पत्र को देखना होगा, जो कि उन्होंने नरेन्द्र मंडल के प्रधान को पेश की थी और २२ मई को प्रकाशनार्थ दी था। इसके बाद मैं पहली बात को 'फैसला' और दूसरी को 'स्मरण-पत्र' नाम से लिखूंगा ।
यदि इन दोनों दस्तावेजों को पूरी छानबीन की जाय, तो मालूम होगा, कि मंडल ने देशी रियासतों के बारे में निम्नलिखित प्रस्तावों को पसंद किया है :(क) हिन्दुस्तान का एक संघ बनाया जाय, जिसमें देशी रियासत तथा अंग्रेज़ी इलाके सभी शामिल हों।
(ख) कोई देशी रियासत या प्रान्त, इस मंत्र के बाहर नहीं रह सकेगा। दूसरे शब्दों में, संघ में शामिल न होने का अधिकार किसी प्रान्त या देशी रियासत को नहीं दिया गया। अलवत्ता संघ का सदस्य बनते वक्त, कोई देशो रियासत, चाई तो बाकी हिन्दुस्तान की सरकार के साथ सम्मिलित संबन्ध रख सकती है और चाहे इसके साथ किसी दूसरी प्रकार का राजनीतिक संबन्ध स्थापित कर सकती है।
(ग) सभी देशों रियासतों को विदेशी विभाग, बचाव तथा रेल-तार-डाक के प्रबन्ध संघ के हाथों में सौंपने होंगे।
(घ) उन देशी रियासतों को, जो शेष हिन्दुस्तान के साथ सम्मिलित सम्बन्ध स्थापित करेंगा, सघ की धारा-सभा तथा प्रबन्ध विभाग में प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा । अतः वे संघ-शासित विभागों में भी पूरा पूरा भाग ले सकेंगी। सम्मिलित सबन्ध के बजाय कोई दूसरी प्रकार का राजनीतिक सम्बन्ध कायम करने की सूरत में भी, संघ-सरकार की सर्वोररि सत्ता को अवश्य स्वीकार करना होगा, क्योंकि प्रस्तावित संघ के विधान के अनुसार, जैसा कि वह इस समय है, विदेशी विभाग और रक्षा-विभाग, हर हालत में सारे हिन्दुस्तान के लिये संघ-केन्द्र ही से निरीक्षित होंगे।
(ङ) 'फ़ैसले' में, प्रान्तों के समूहीकरण सम्बन्धी जो व्यवस्था दी गई है, उसके अनुसार रियासतों के किसी एक समूह - 'ए', 'बी' या 'सी' में शामिल हो सकने की सम्भावना नहीं रहती। रियासतें, केवल अन्तिम अवस्था में, अर्थात् संघ केन्द्र के लिए विधान निर्माण के समय पर ही भाग ले सकेंगी
(घ) 'फ़ैसल' में, किसी भी प्रान्त या रियासत को, संघ से संबन्ध विच्छेद का अधिकार नहीं दिया गया। एक प्रान्त उस वक्त जबकि उसकी पहली निर्वाचित धारासभा बेटे, किसी एक समूह से बाहर निकल सकता है, किन्तु संघ के बाहर नहीं । एक रियासत सम्मिलित संबन्ध न रखने में स्वतन्त्र है, मगर संघ में उसको रहना ही पड़ेगा । इस 'फ़ैसले' के अनुसार, कोई एक प्रान्त, पहले १० माज गुज़रने पर, और बाद में दस-दस साल के अन्तर से भी अपनी धारासभा के बहुमत से, किसी समूह अथवा संघ के विधान पर पुनः विचार की माँग करने का अधिकार रखता है। इसका ता यही मतलब हुश्रा, कि एक प्रान्त, संघ या समूह के विधान के संशोधन का प्रस्ताव रख सकता है; लेकिन, अपनी यकतर्फा इच्छा से, संघ या समूह के बाहर नहीं जा सकता । इसके संशोधन संबन्धी प्रस्ताव पर तभी श्रमल-दरामद हो सकता है, जबकि सारा समूह या संघ स्वीकृति दे दे, और जबतक कि यह उस विशेष व्यवस्था के अनुसार पास न किया जाय, जो कि ऐसे संशोधनों की सूरत में संघ-विधान के लिए निश्चय ही बनाई जायगी।
(छ) अंतरिम सरकार के समय, ब्रिटिश सर्वोपरि सत्ता बदस्तूर रहेगी; हिन्दुस्तान के
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स्वतन्त्र होने पर ही इसका अंत होगा ।
(ज) अंतरिम-काल में, अंग्रेजी हिन्दुस्तान और देशी रियासतों के बीच प्रार्थिक तथा पारस्परिक हानि-लाभ के विषयों की आगामी व्यवस्था सम्बन्धी बात-चीत प्रारंभ हो जानी चाहिये । यदि यह बात-चीत, हिन्दुस्तान का विधान बन जाने तक सम्पूर्ण न हो पाये, तो नया प्रबन्ध सम्पूर्ण हो जाने तक, प्रस्तुत अवस्था ही को चालू रखने की व्यवस्था होनी चाहिए ।
३. अंतरिम सरकार के समय में, अनुमानतः देशी रियासतों-संबन्धी ब्रिटिश सर्वोपरि सत्ता पर भी पुनर्विचार होगा, ताकि उन रियासतों के साथ जो सम्मिलित प्रबन्ध में आती हैं या दूसरी रियासतों के साथ, नई सरकार की तरफ से सर्वोपरि सत्ता की जगह कोई दूसरा संबन्ध स्थापित किया जा सके । यह तो यकीनी बात है, कि जब तक, एक न एक तरह की राजनीतिक व्यवस्था ब्रिटिश सर्वोपरि सत्ता का स्थान नहीं लेती, हिन्दुस्तान की एकता कायम नहीं रखी जा सकती।
४. 'स्मरण-पत्र', अनेक रूप से असाधारण राजनीतिक दस्तावेज़ है। जो लोग, सर्वोपरि सत्ता कायम रखने के लिए, हिन्दुस्तानी ब्रिटिश सरकार या ब्रिटिश सम्राट् की सरकार के सलूक के इतिहास से परिचित हैं, उन्हें इस 'स्मरण-पत्र' के कुछ एक बयानों पर भारी श्राश्चर्य हुआ होगा। मुझे सन्देह है, कि 'स्मरण-पत्र' के बयानों को, शिष्टमंडल से मिलनेवाले रियासती प्रतिनिधियों ने स्वीकार भी किया होगा, गोकि यह जरूर कहा जा सकता है, कि यह 'स्मरण-पत्र' उन प्रतिनिधियों के सामने एकदम अचानक नहीं पेश किया गया ।
५. सर्वोपरि सत्ता खाली एक इकरारनामेका-सा सम्बन्ध नहीं है। आजकल के हालात में इसके प्रयोग की सीमा नहीं बांधी जा सकती। इसका अधिकार सन्धियों, सनदों और अन्य बन्धनों से मुक्त रहकर बढ़ता ही रहा है। इन सन्धियों, बन्धनों और समदों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकारों से, सर्वोपरि सत्ता के वश में रहकर ही लाभ उठाया जा सकता है। किसी सन्धि या सनद के ऐसे मतलब नहीं लिए जा सकते कि जिससे, कोई रियासत अपने को सर्वोपरि सत्ता से मानने लगे । यहो सत्ता, रिवाज तथा रियासत की विशेष आवश्यकताओं को सामने रखते फैसला करती आई है, कि समस्त भारत या रियासतों तथा उनकी प्रजाओं के हितों की सुरक्षा कैसे की जानी चाहिये। अंग्रेज़ी राज्य और उसकी सरकार की सर्वोपरि सत्ता भले ही बन्द हो जाय, किन्तु, जबतक कि हर रियासत अपने यहाँ वैधानिक शासन स्थापित नहीं कर लेती और अन्य प्रान्तों की तरह भारतीय संघ में शामिल नहीं हो लेती, सर्वोपरि सत्ता की सत्ता सर्वथा रद नहीं की जा सकती। तो विचारणीय समस्या केवल यह रह गई, कि इस देश से अंग्रेजी सत्ता समाप्त हो जाने पर, जबतक कि अनिवार्य हो, यह अनुशासन किस के अधिकार में रहे। ज़ाहिर है कि नये विधान के अनुसार जो भारतीय संघ कायम होगा, यह उसी के हाथों में रहनी चाहिये । इस प्रसंग में यह भी याद रहे कि अबतक, सर्वोपरि सत्ता का सम्बन्ध, कानूनी, नाममात्र या काल्पनिक, जो भी बृटिश सम्राट् या उसकी सरकार से रहा हो, अधिकारों का प्रयोग सदा से हिन्दुस्तान की अंग्रेज़ी सरकार ही करती आई है और कर रही है। हिन्दुस्तान का नवीन संघशासन मौजूदा हिन्दुस्तानी सरकार का उत्तराधिकारी होगा। फ़र्क़ केवल इतना रहेगा, कि यह रियासतें, इस संघ में ख़ुद शामिल हुई होंगी, अतः सामान्यतः हिन्दुस्तान के नये संघ को सर्वोपरि सत्ता अपने आप पहुंचती है। खासकर, जबकि अवस्थाएँ ऐसी हों, कि जिनमें शासन की शान्तिपूर्वक तब्दीली की राह में कोई विशेष अड़चन पढ़ने की सम्भावना न हो। यह तब्दीली, हिन्दुस्तानी रियासतों की अनुमति और सर्वोपरि सत्ता के प्रयोग में हेर-फेर के साथ, भासानी से
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सकेगी। किन्तु, रियासतों के साथ यह सलाह-मशविरा ऐसा परिणाम न निकाते कि जिससे राभ उठाते हुए उन्हें ऐसी मांग पेश करने का मौका मिल जाय कि अंग्रेज़ी सत्ता दूर होने पर, रेक रियासत राजनीतिक रूप से स्वतन्त्र है और यह कि भारतीय संघ में शामिल होने न होने को वह आज़ाद है। कैबिनेट-शिष्टमण्डल का 'स्मरण-पत्र' ख़ुद तो इन विचारों का पोषक नहीं है; केन्तु सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप से किये गये श्रथ ने मुझ जैसे कुछ व्यक्तियों को भ्रम में अवश्य दिया है, जो कि 'फैसले' की व्याख्या युक्ति-संगत रूप से करने की चेष्टा करते श्रा
हे हैं ।
'स्मरण-पत्र' में लिखा निम्न पैरा मुझे श्रसाधारण प्रतीत होता है :"अंतरिम काल, ब्रिटिश हिन्दुस्तान के लिए वह नया विधान बनने और लागू होने से पहले ही समाप्त हो जायगा, जिसके अनुसार देश स्वतंत्र होगा और इसमें 'पूर्ण स्वराज' स्थापित होगा। इस काल में सर्वोपरि सत्ता चालू रहेगी। किन्तु, ब्रिटिश सरकार, किमी अवस्था में भी प्रपनी सर्वोपरि सत्ता को हिन्दुस्तानी सरकार के हवाले नहीं कर सकती, और न करेगा।"
यह वाक्य इस बात का उदाहरण है कि विचारों में काफ़ी ढालापोलापन है। अंतरिकाल में ब्रिटिश सम्राट् के प्रतिनिधि के ऑफिस के साथ सम्बन्ध विच्छेद हो जायगा, लेकिन इसी काल में सर्वोपरि सत्ता फिर से श्रा जायगी, जिसको हिन्दुस्तान की अंग्रेजो सरकार चालू रखेगी। यदि हिन्दुस्तान में पूर्णतया स्वतंत्र क़ौमी हुकूमत बन जाती है तो सर्वोपरि पत्ता उसके हवाले करने से इन्कार करना मुझे युक्ति-संगत नज़र नहीं आता। इस हालत में, क्रॉमा सरकार, सर्वोपरि सत्ता को, केवल ब्रिटिश सत्ता का परियाचक मात्र मान कर लागू करेंगो । यह कहना तो हास्यजनक होगा कि समस्त हिन्दुस्तान की एक ऐसी सरकार, जिसके अधीन विदशा मामले, देश-रक्षा इत्यादि होंगे, ब्रिटिश राज्य को अपने मातहत रियासतों के बारे में उचित सलाह देने में श्रममर्थ होगी । मान लिया, कि १६३५ के भारत सरकार एक्ट में ऐसी तबदीली नहीं की जा सकती कि जिससे अंतरिम काल में राजा के प्रतिनिधि के ऑफिस से छुटकारा मिले, लेकिन क्या यह भी असम्भव होगा कि राजा के प्रतिनिधि के लिए एक हिन्दुस्तानी राजनीतिक सलाहकार नियुक्त कर दिया जाय ? ऐसी नियुक्ति से हिन्दुस्तान के लिए ऐसा विधान बनाने में अवश्य सुगमता होगी, जिसमें खुशी से शामिल होकर देशी रियासतें भी सन्तुष्ट रहें । देशी रियासतों के प्रतिनिधि, जिन्होंने अपनी राजनीतिक बुद्धि का प्रशंसनीय प्रमाण देते हुए पहले ही घोषित कर दिया है कि वे कांग्रेस के साथ विधान निर्माण में पूरा पूरा सहयोग करेंगे, अंतिरिम-काल में पॉलिटिकल डिपार्टमेंट के प्रबन्ध में इस प्रकार की तब्दीली का स्वागत करेंगे। अभी कुछ दिन पहले जबकि मैं दिल्ला में था, मुझे यह जानकर आश्चर्य और दु.ख हुआ था, कि कुछ-एक राजाओं ने वाइसराय से प्रार्थना की है कि अंतरिम काल में किसी अंग्रेज़ का पोलिटिकल सलाहकार रखा जाना उन्हें पसन्द है !
यह धारणा, कि अंग्रेज़ों ने सर्वोपरि सत्ता, बृटिश सम्राट् द्वारा देशी राजाओं को दिये गये इन आश्वासनों से प्राप्त को है, कि बाहरी हमले, भीतरी गड़बड़ और उत्तराधिकारी को गद्दी पर बिठाने में मदद दी जायगी, बटलर कमेटो द्वारा कभी-की धराशायी की जा चुकी है, और बाद में प्रामाणिक अधिकारी द्वारा निर्मूल सिद्ध हो चुकी है। यह आश्चर्य की बात है कि आज, ऐसे अवसर पर 'स्मरण पत्र उन अधिकारों का, जो कि रियासतों ने सर्वोपरि सत्ता को सौपे थे और जिनको अब वे अपनी इच्छा और आज दो से चाहे जिसे दे सकती हैं, फिर से उन्हीं को दिये जाने का जिक्र कर रहा है। अंग्रेजी सत्ता हट जाने पर, यदि देशी रियासतों को इस धारणा के आधार पर
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श्रमल करने दिया गया तो अराजकता फैलेगी। जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, शिष्ट-मण्डल की सारी स्कीम में सर्वोपरि सत्ता हटायी जाने के पूर्व ही उसकी स्थान- पूर्ति का प्रबन्ध किया गया है । कितना अच्छा हो, यदि, जैसा कि अंग्रेजी शासन शान्तिपूर्वक हिन्दुस्तान को सौंपा जा रहा है, और जैसा कि आर्थिक समझोते कर लिये गये हैं. यह भी स्वीकृत हो जाय कि उत्तराधिकारी सरकार मौजूदा प्रबन्ध क अनुसार सर्वोपरि सत्ता का संचालन तब तक करती जाय, जब तक कि नयी राजनीतिक व्यवस्थाएँ न हो जायँ श्रोर प्रत्येक देश। रियासत संघ में शामिल न हो जाय या संघ में रहते हुए केन्द्र से कोई दूसरा राजनीतिक सम्बन्ध न पैदा कर ले ।
देशी रियासतों को समस्या को हल करने में, शिष्ट-मंडल का एक दोष तो यह है, कि इसने रियासतों के भविष्य का निर्णय करते वक्त हिन्दुस्तानी नेताओं को नज़दीक नहीं आने दिया। आज का ब्रिटिश भारत, इस विषय में कि यह रियासतें नये विधान में क्योंकर बैठाई जायगी, उतनो ही दिलचस्पी रखता है, जितनी कि स्वयं रियासतें रखती हैं। रजवाड़ों का मस्ला केवल अंग्रेज़ी सरकार और राजाओं में बातचीत से हल नहीं हो सकता। विधान निर्माण की प्रारम्भिक बातों में भी अंग्रेजो हिन्दुस्तान तथा रियासतो प्रजा के नेताओं का गइरा सम्बन्ध और मेल-जोल ज़रूरी है। और यह भी आवश्यक है कि अन्तरिम सरकार बनाने की जिम्मेदारी लेनेवाले राजनीतिक दल, यह आश्वासन दिलायं कि अंतरिम काल में सर्वोपरि सत्ता का ऐसा नियंत्रण किया जायगा कि जिससे एक ओर गवर्नर जनरल और दूसरी ओर ब्रिटिश शासक के प्रतिनिधि तथा उसके राजनीतिक सलाहकार में सम्पूर्ण सहयोग और एक जैसी नीति पर अमल होगा; अन्यथा नित-नये विरोध होंगे, खोंचा तानी चलेगी और काम ठप हो जायगा। महात्मा गांधी के अचूक राजनीतिक सहज ज्ञान ने भो, नोचे लिखे शब्दों में, जो उनके 'हरिजन' में छपे लेख से लिये गये हैं, एक ताज़ा उदाहरण खोज निकला है :"यदि इस ( सर्वोपरि सत्ता) का अन्त अंतरिम सरकार की स्थापना के साथ न हो सके, तो इसका नियंत्रण रियासतों की प्रजा के सहयोग और शुद्धतः उन्हों के हितार्थ होना चाहिये । यदि राजालोग अपने कथन और घोषणाओं पर दृढ़ हैं, तो उन्हें सर्वोपरि सत्ता के इस सार्वजनिक प्रयोग का स्वागत करना चाहिये और उसे नयी योजना में विवेचित जनता की सत्ता में उपयोगी सिद्ध होना चाहिये ।"
नरेशगण का शिष्टमण्डल प्रस्ताव स्वीकार
बम्बई, जून १० - हिन्दुस्तान के नरेशों ने आज भारत की भावी वैधानिक उन्नति के लिए शिष्टमण्डल के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया और अंतरिम काल में, जिन विषयों में हेरफेर की आवश्यकता होगी, वाइसराय से उन पर बातचीत करने का फैसला भी कर लिया।
नरेन्द्रमण्डल की स्थायी समिति की ओर से, जिसकी बैठक आज यहाँ हुई, मण्डल के चान्सलर नवाब भूपाल ने शिष्टमण्डल के प्रस्तावों का स्वागत किया। स्थायी समिति के निश्चयों को सूचना इसो सप्ताह वाइसराय को दे दो जायगी ।
स्थायी समिति ने, वाइसराय की ओर से शिष्टमण्डल की तजवीज़ के अनुसार, एक बातचीत करनेवाली कमेटी बनाने को दावत भो क़बूल करती । यह कमेटी, दिल्ली में जून के मध्य से अपना काम चालू कर देगी ।
इस कमेटी में चांसलर नवाब भूपाल, उप-चांसलर महाराजा पटियाला, नवानगर के जामपरिशिष्ट
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साहब, हैदराबाद के नवाब अलीगर जंग, ग्वालियर से सर मनुभाई मेहता, ट्रावनकोर से सो० पी० रामस्वामी अय्यर, चांसलर के सलाहकार सर सुल्तान अहमद, कूचबिहार से सरदार डी० के० सेन, बीकानेर से के० एम० पत्नीकर और दीवान डूगरपुर शामिल होंगे। मीर मक़बूल अहमद इस कमेटी के मन्त्री होंगे ।
ऐसा समझा जाता है, कि यह बातचीत करनेवालो कमेटो यूनियन की विधान परिषद् के लिए रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव को विधि, विशेषकर राजाओं के राजस्व और राजवंश, रियासतों को हदबन्दी को विश्वस्तता, विधान परिषद् के फ़सलों पर अन्तिम स्वीकृति देने के हक़, संघ के साथ रियासतों को आर्थिक व्यवस्था और संघ केन्द्र को रियासतों के शुल्क इत्यादि विषयों पर रोशनी डालने की मांग करेगी।
यह तजवीज्ञ भी की जा रही है, कि विधान परिषद् में ऐसी विशेष समस्याओं का निश्चय, जिनका सम्बन्ध कि रियासतों से है, उपस्थित प्रतिनिधियों के बहुमत से होना चाहिये ।
बातचीत करनेवाली कमेटी अन्य विषयों पर भी विचार विनिमय करेगा, --जैसे संघ को सौंपे जानेवाले विभाग, भीतरी सुधार और विधान परिषद् के सभापति तथा पदाधिकारियों के चुनाव में रियासती प्रतिनिधियों की स्थिति इत्यादि ।
स्थायी समिति ने रियासतों को आदेश दिया है, कि वे, गत जनवरी की बैठक मे चांसलर द्वारा उपस्थित किये गये सुझावों की रोशनी में, अपने यहां अगले १२ मास में भं तरी सुधार शुरू करदें ।
आज शाम को स्थायी समिति की बैठक की कार्यवाही समाप्त हो गई । वाइसर य के राजनीतिक सलाहकार सर कारनर्ड कोरफ़ोल्ड ने भी अपने विचार प्रकट किये ।
महाराजा ग्वालियर, पटियाला, बीकानेर, नवानगर, अलवर, नाभा, टिहरी गढ़वाल, हूँगरपुर, बघाट और देवास उपस्थित थे । (श्र० प्र० )
रियासती प्रजामण्डल की मांग
अखिल भारतवर्षीय रियासती प्रजामण्डल की स्थायी समिति ने शिष्टमण्डल की सिक्रारिशों के विषय में एक प्रस्ताव द्वारा यह मांग पेश का है कि बातचीत करनेवाली समिति तथा सल्लाहकार समिति में, जो सरिम सरकार, नरेशों और रियासतों की प्रजा के प्रतिनिधियों से बनाई जा रही है, प्रजा के प्रतिनिधि अवश्य लिये जायँ ।
उक्त प्रस्ताव में कहा गया है, कि जब तक नया विधान चालू नहीं हो लेता, यह आवश्यक होगा कि अंतरिम सरकार, प्रांतों और रियासतों के लिए एक जैसो नाति पर श्रमल करे । प्रस्तावित सलाहकार समिति को सभा श्रम मामलों को सम्हालना चाहिये और एकरूपता की ख़ातिर सारी रियासतों को एक ही नीति पर चलाने की चेष्टा करनी चाहिये ।
विधान परिषद् के बारे में प्रस्ताव में कहा गया है, कि जहाँ जहाँ, सुव्यवस्थित धागसभाएं काम कर रही हैं, उनके निर्वाचित सदस्यों में से ही प्रजा के प्रतिनिधियों का चुनाव कर लिया जाय । अन्य स्थानों से, रियासती प्रजामण्डल की प्रादेशिक समितियां विधान परिषद् के लिए प्रतिनिधि चुनेंगी ।
स्थायी समिति ने तीन प्रस्ताव और भो पास किये। पहले में राजगीतिक कैदियों को रिहाई तथा नागरिक आज़ादी की मांग, दूसरे में बलोचिस्तान स्थित कुलात स्टेट को शेष हिन्दुस्तान से पृथक् करने की मांग का विरोध और तोसरे में हैदराबाद रियासती कांग्रेस पर |
64c73b23cb21a48bf87b0e35b2a3bb8e1dc0c362 | web | दुकान पर सहकर्मियों ने उन्हें एक आदमी कहाअसहज भाग्य प्रसिद्ध अभिनेता सर्गेई Bekhterev पेशे में जगह ले ली है और यह दावा किया गया था। उनकी प्रतिभा बहुमुखी है, इसलिए वह सबसे विविध छवियों के अधीन था। इसके लिए उन्हें रूस के सम्मानित कलाकार का खिताब दिया गया, हालांकि वहां एक अस्पष्ट विरोधाभास थाः आदरणीय अभिनेता सर्गेई बेखटेरेव की अपनी जीवित जगह नहीं थी। बेशक, इस तरह की एक समस्या को अपने मूल मेलपोमेने मंदिर द्वारा हल किया जाना था, और उसने अभिनेता को सेवा अपार्टमेंट में चाबियाँ दीं, लेकिन अभिनेता वहां नहीं रहा। अपने आवास, वह खो गया, scammers की चारा पर पकड़ा। उसे इस धोखे से बचने में कठिन समय था। प्रसिद्ध lycee का रचनात्मक मार्ग क्या था? आइए इस मुद्दे को अधिक विस्तार से देखें।
सर्गेई बेखटेरेव, जिनकी जीवनी पहली नज़र में अनजान प्रतीत हो सकती है, पेट्रोपावलोवस्क-कामचत्स्की शहर का एक मूल निवासी है। उनका जन्म 1 9 मई, 1 9 58 को हुआ था।
यह नहीं कहा जा सकता है कि उसका बचपन बादलहीन थाऔर इंद्रधनुषः मां की मृत्यु हो गई, और पिता ने अपनी मृत्यु से पहले भी परिवार छोड़ दिया और फिर से विवाह किया। लड़के को उठाने का बोझ मेरी दादी के कंधों पर पड़ा, जिसने उसे देखभाल से घिराया। उसी समय सेर्गेई बेखटेरेव के पिता ने उनके साथ संपर्क में रहने की कोशिश की, और सौतेली माँ के साथ लड़के को अंततः एक आम भाषा मिली।
अभिनेता की महान कला के लिए प्यार और अधिक उभराबचपन में सर्गेई बेखटेरेव ने कहा कि जब वह 4 साल का था, तो वह दो उज्ज्वल और करिश्माई नेताओं की छवियों पर प्रयास करना चाहता थाः लेनिन और हिटलर। सात साल बाद, वह एक फिल्म में स्टार होने के लिए भाग्यशाली थाः उन्होंने लियोनिद मकररीव द्वारा निर्देशित फिल्म "ए वंडरफुल मॉर्टगेज" में भाग लिया। उसके बाद, उन्होंने हमेशा के लिए अभिनय की कला के साथ अपने जीवन को जोड़ने का फैसला किया।
1 9 7 9 में, जवान आदमी बन गयाएक पेशेवर अभिनेता, जिसे एलजीआईटीएमआईके (अब सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट अकादमी ऑफ थियेटर आर्ट्स) का डिप्लोमा प्राप्त हुआ है। आज़ाम पुनर्जन्म को Arkady Katsman और Lev Dodin की कार्यशाला में पढ़ाया गया था।
स्नातक होने के बाद, वह दलदल में प्रवेश करता हैसेंट पीटर्सबर्ग राज्य छोटे नाटक रंगमंच (यूरोप का रंगमंच), जहां वह अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाएगा। कुछ समय बाद वह "आर्ट-पीटर" में एक लाइसी के रूप में काम करेगा।
मंच पर एक परीक्षण गेंद की भूमिका थी"जेंटलमेन अधिकारी" (1 9 80) में लेफ्टिनेंट वेटकिन। फिर रसुत्सिन द्वारा "लाइव एंड याद" के उत्पादन में पिता गुस्कोव की शानदार छवि का पालन किया। धीरे-धीरे, दर्शक ने युवा lyceum की प्रतिभा पर ध्यान देना शुरू किया। विशेष रूप से थिएटरगोर्स ने ग्रेगरी की भूमिका पर ध्यान दिया, लेव डोडिन "हाउस" के खेल में बेखटेरेव द्वारा की गई फिलीग्री। अभिनेता ने प्रशंसा के तूफान को फेंक दिया। सर्गेई बेखटेरेव एक प्रसिद्ध lycee में बदल जाता है। क्लासिक प्रोडक्शंस में भूमिका की पुष्टि करने के लिए वह प्रसन्न हैंः "सीगल", "राक्षस", "भगवान के फूल"। 1 9 86 में एफ। अब्रामोमो के "ब्रदर्स एंड बहनों" के उत्पादन में उनके कुशल काम को यूएसएसआर के राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने शानदार ढंग से खुद को एक छवि में बदल दियाअधिकृत Ganichev। अभिनेता सर्गेई बेखटेरेव अपने नायक को यथासंभव सटीक रूप से चित्रित करने में सक्षम थेः भेड़िया के मुस्कुराहट, लौह दांत, सूजन चेतना - निष्पादक और संत का एक संयोजन। गणेशिव गरीब परिवारों से आखिरी बार लेते हैं, और उनके बच्चे रात अंधापन से पीड़ित हैं। आम तौर पर, यह खेल था, और अभिनेता ने शानदार ढंग से कार्य के साथ मुकाबला किया।
जैसा कि पहले से ही जोर दिया गया है, प्रतिभा की बहुमुखी प्रतिभासर्गेई Stanislavovich स्पष्ट था। उन्होंने खेला और कॉमेडिक (शेक्सपियर की शीतकालीन परी कथा में एक युवा चरवाहा), और नाटकीय भूमिकाएं (चेखोव चेरी ऑर्चर्ड में गेव)। वह परी कथा नायकों (ओ। वाइल्ड द्वारा "द स्टार बॉय" में मास्टर) की छवियों में भी सफल हुए। उन्होंने महिलाओं के मंच पर भी खेला (रॉबर्टो ज़ुको कोटेस में वेश्या)।
2003 में, ओल्गा ओबुखोव्स्काया के साथ साझेदारी में, एलजीआईटीएमआईके के स्नातक ने "वत्स्लाव निजिनस्की" के उत्पादन का मंचन किया। भगवान से शादी की। "
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सेर्गेई बेखटेरेव, भूमिकाएंजो दर्शकों के लिए यादगार था, कभी-कभी शोक करता था कि उनके मूल मेलपोमेने मंदिर, जिसमें उन्होंने लंबे समय तक सेवा की थी, दुखद अपार्टमेंट की समस्या को हल करने में मदद नहीं कर सकते हैं।
यूरोप के रंगमंच को छोड़ने के बाद भी, उसके पास अपने ही कोने नहीं थे, जो दोस्तों और परिचितों के चारों ओर घूमते थे। सर्गेई बेखटेरेव, एक अभिनेता जिसे पूरा देश जानता था, यहां तक कि समय-समय पर अपनी सौतेली माँ के साथ भी रहता था।
ग्रेजुएट LGITMiKa अधिकांश रचनात्मकथियेटर में सेवा करने के लिए समर्पित समय, लेकिन उन्होंने फिल्मों में भी अभिनय किया। और छायांकन के क्षेत्र में, उन्होंने प्रसिद्धि और सफलता भी प्राप्त की। सर्गेई बेखटेरेव, जिनकी फिल्मों को सोवियत सिनेमा के स्वर्ण निधि में शामिल किया गया था, जनता द्वारा प्यार और मान्यता प्राप्त थी। अभिनेता की खोज प्रसिद्ध निर्देशक दिमित्री स्वेतोजारोव ने की थी, जो एक "छोटे बौद्धिक" के तहत एक असली गले को समझने में सक्षम था। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के, अभिनेता को विकलांग व्यक्ति की भूमिका के लिए अनुमोदित किया, जो एक व्यक्ति में एक प्रतिभा और खलनायक है। फिल्म को "द एरिथमेटिक ऑफ मर्डर" कहा जाता था, और इसमें भाग लेने के लिए, सर्गेई बेखटेरेव ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पुरस्कार जीता, जिसे 1 99 3 में वैलेंसिनेस में आयोजित किया गया था।
इस तरह की लोकप्रिय फिल्मों में "द लाइफ ऑफ क्लिम सैमजिन" (स्टेपैन टॉमिलिन), "गोरा चारों ओर कोने" (तंत्रिका खरीदार), "डॉग हार्ट" (मध्यम) जैसी लोकप्रिय फिल्मों में उनका काम ध्यान दिया जाना चाहिए।
बेखटेरेव ने टेलीविजन श्रृंखला में भाग लेने से इंकार नहीं किया। उनमें से कुछ यहां हैंः "सबोटूर। युद्ध का अंत "," बैंडिट पीटर्सबर्ग "," राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंट "।
अभिनेता ने टेलीविजन पर काफी समय बिताया,कार्यक्रमों की श्रृंखला में भाग लेते हुए "स्टूडियो-एफ", "बॉयर्सकी ड्वोर", "लिटिल परफॉर्मेंस"। बीस साल से अधिक के लिए, सर्गेई Stanislavovich श्रोताओं कविता और गद्य को पढ़ने, रेडियो पर काम किया।
क्या बेखटेरेव का परिवार था? हां, वह एक ऐसी महिला से शादी कर चुकी थी जो पेशेवर कला में अच्छी तरह व्यस्त थी।
तब उनकी शादी टूट गई। इसके अलावा, सर्गेई स्टेनस्लावाविच के पास एक पालक पुत्र था, जिसे पूर्व पत्नी ने उसे छोड़ दिया था। फिर वह स्पेन में रहने के लिए चले गए।
अपने जीवन के अंत में, अभिनेता ने शोक कियाफिर, भौतिक दृष्टिकोण से क्या मुश्किल हो, उसके साथियों को जीने के लिए मजबूर किया जाता है। वह भी निराश थे कि आधुनिक वास्तविकताओं में थियेटर अपने कलाकारों के लिए आवास उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है। बेखटेरेव ने अक्सर उल्लेख किया कि उनके पास साधनों की कमी हैः अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, जो वर्षों से सुधार नहीं करता है। "मुझे दूसरी दुनिया से दो बार खींच लिया गया था। भगवान ने मुझे स्वीकार नहीं किया, जिसका मतलब है कि मैंने अभी तक इस भूमि पर पर्याप्त नहीं किया है, "अभिनेता ने कहा।
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65aa2e6c9beefdb88be177d1e1cd5f16dc3a87db664897343ad4bcf89dbcc9ca | pdf | समीक्षा के मान और हिदी समीक्षा की विशिष्ट प्रवृत्तियाँ विषयक धारणा - ७३२, अभिव्यंजना का अर्थ - ७३२ अभिव्यंजन की प्रक्रिया - ७३३, अभिव्यंजनावाद की समीक्षात्मक परिणति-७३४, भारतीय सिद्धान्त से अन्तर७३४ ।
पाश्चात्य समीक्षा और यथार्थवादी आन्दोलन- ७३४, प्रतिक्रियात्मकता--- ७३४, स्वरूप - ७३५, हिन्दी साहित्य और यथार्थवाद -- ७३५, यथार्थवाद और आदर्शवाद७३६, यथार्थवाद का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव - ७३६ ।
पाश्चात्य साहित्य में प्रतीकवाद - ७३७, वैचारिक विरोध - ७३७, प्रतीकों का क्षेत्र और महत्व - ७३७, भारतीय साहित्य मे प्रतीकवाद - ७३८
अति यथार्थबाद का वैचारिक आधार- ७३९, संध्यांतिक प्रसार- ७३९, अन्य विचारधाराओं से तुलना- ७४० ।
अस्तित्ववादी विचार प्रणाली - ७४०, आध्यात्मिक संकट का दर्शन-७४१, मूल्य परिवर्तन - ७४१, अस्तित्ववाद और उसकी साहित्यिक परिणति -७४१ ।
आदर्शवादी वैचारिक प्रसार - ७४३, हिन्दी साहित्य और आदर्शवाद-७४३, पाश्चात्य प्रभाव से पूर्व की स्थिति - ७४४ ।
भारतीय रस सिद्धांत - १४५, भरत सूत्र - ७४६, रस वर्गीकरण - ७४६, रस संख्या -- ७४७, रसानुभूति की प्रक्रिया - ७४७, भारतीय रस सिद्धांत और पाश्चात्य मान्यताएं--७४७ ।
भारतीय अलंकार सिद्धात ७७८, प्राचीनता - ७७८, भामह का अलकार विवेचन ७७८, दटी का दृष्टिकोण - ७७९, उद्भट की अलंकार व्याख्या ७४९, अन्य अलंकार शास्त्री और अलंकार भेद - ७५०, महत्व - ७५०, पाश्चात्य यूनानी साहित्य शास्त्र और भारतीय अलंकार सिद्धांत -- ७५१ ।
भारतीय ध्वनि सिद्धांत - ७५१, व्याख्या और क्षेत्र विस्तार-७५१, भारतीय ध्वनि सिद्धांत और पाश्चात्य दृष्टिकोण-७५२ ।
भारतीय रीति सिद्धांत - ७५३, रीति और गुण- ७५३, भारतीय रीति सिद्धात तथा पाश्चात्य प्रतीकवाद-- ७५४,
भारतीय वक्रोक्ति सिद्धात ७५४ स्वरूप-७५५, वक्रोक्ति सिद्धांत तथा अभिव्यंजनावाद, - ७५५, निष्कर्ष - ७५६ ।
अध्याय : ९
आधुनिक हिवो सभीक्षा की विशिष्ट प्रवृत्तियाँ ७४९,
आधुनिक हिंदी समीक्षा की पृष्ठभूमि - ७६१, रीति साहित्य चितन का स्वरूप७६२ आधुनिक हिंदी समीक्षा का आरंभ - ७६३ ॥
ऐतिहासिक समीक्षा की प्रवृत्ति ७६४, स्वरूप - ७६४, प्रमुख विशेषता - ७६५, आरभ और विकास - ७६६, प्रमुख समीक्षक - ७६६, गार्सा द तासी-७६७, शिवसिंह सेगर - ७६७, डा० ग्रियर्सन- ७६७, खोज रिपोर्ट - ७६८, मिश्रबन्धु ७६८, रामचन्द्र शुक्ल - ७६९, अन्य समीक्षक डॉ० श्यामसुन्दर दास, डा० सूर्यकांत शास्त्री डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी, अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' डा० रामशंकर शुम्ल 'रसाल' डा० रामकुमार वर्मा - ७७११
सुधारपरक समीक्षा की प्रवृत्ति - ७७१ स्वरूप -- ७७१, आरंभ और विकास७७१, महावीर प्रसाद द्विवेदी - ७७२, साहित्यिक सान्यताएँ - ७६३१
तुलनात्मक समीक्षा की प्रवृत्ति - ७८१, स्वरूप - ७८१, पूर्ण रूप ७८२, आरंभ और विकास - ७८२, मिश्रबन्धु ७८३, पद्मसिंह शर्मा - ७८३, सतसई संहार -- ७८४, बिहारी की सतसई - ७८५, मौलिकता का स्वरूप ७८६, महत्व - ७८६, कृष्णबिहारी मिश्र - ७८७, देव और बिहारी - ७०७, शास्त्रीय दृष्टि - ७८५, निर्णयात्मक स्पष्टत ७८८ काव्य की भाषा - ७८९, देव और केशव - ७८९, मतिराम ग्रंथावली - ७९०, महत्व - ७९० भगवान दीन - ७९१, बिहारी और देव- ७९१, अन्य कृतियाँ - ७९२, महत्व - ७९२, शचीगनी गुर्टू - ७९२, दृष्टिकोण ७९३, सीमाएँ - ७९४, महत्व -- ७९५, संभावनाएँ - ७९६,
समीक्षा की प्रवृत्ति ७९६, स्वरूप - ७९६. परम्पराः कविराज मुरारिदान - ७९७. प्रतापनारायण सिंह - ७९७. कन्हैयालाल पोद्दार - ७९७. जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' - ७९८. भगवानदीन - रामशंकर शुक्ल 'रसाल - ७९९. सीताराम शास्त्री७९९ अर्जुनदास केडिया - ८००, आयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध - ८००० बिहारीलाल भट्ट - ८०० मिश्रबन्धु - ००१, हिन्दी नवरत्न ८०१, साहित्य पारिजात-८०२, महत्व - ८०२ श्यामसुन्दर दास - ८०३. कृत्तियाँ-८०४ दृष्टिकोण - ८०४, कला का स्वरूप - ८०४, काव्य -- ८०५. काव्य और नीति - ८०६,
व्यावहारिक समीक्षा - ८०७ महत्व - ८००. रामचन्द्र शुक्ल ८०८. काव्य का स्वरूप
-- ८०८ काव्य का उद्देश्य ८०९. काव्य और कल्पना - ८१०, काव्य और भाषा-८११ काव्य और अलंकार - ८१२, रस - ८१२. महत्व -- ८१३, गुलाबराय- ६१४, काव्य८१४, काव्य और कला - ८१५, काव्य और कल्पना-८१५. रस-८१५. सीताराम चतुर्वेदी -- ८१६. लक्ष्मीनारायण सुधांशु -८१६ हजारी प्रसाद द्विवेदी - ८१७, विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - ८१७, संभावनाएं - ८२० ।
छायावादी समीक्षा की प्रवृत्ति- ८१० स्वरूप ८२० जयशंकर प्रसाद'-८२१. काव्य और कला - ८२१, रस - ८२२, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'-८२२. काव्य और कला-८२४. काव्य और छंद-८२५, सुमित्रानन्दन पंत ८२६, काव्य ८२६, भाषा८२७, -- छायावाद - ८२७ महादेवी वर्मा -८२८, काव्य ७२८. छायावाद - ६२९, शांतिप्रिय द्विवेदी - ८३०. गंगाप्रसाद पांडेय-८३२, महत्व और संभावनाएँ-- ८३२
प्रगतिवादी समीक्षा की प्रवृत्ति - ८३२, स्वरूप -- ८३२, प्रारंभ - ८३३, राहुल सांकृत्यायन ३३, प्रगतिवाद को एकांगिता-८३४, प्रकाशचंद्र गुप्त - ६३५, डॉ० रामविलास शर्मा - ३६, शिवदानसिंह चौहान -८३९, प्रयोग की कसौटी-८४०, प्रगति और प्रचार-८४० मन्थनाथ गुप्त -८४१, प्रगतिवाद की अनिवार्यता- ८४२, वैचक्तिक स्वातंत्र्य - ८४३, अतीत का ज्ञान-८४३, प्रगतिवादी दृष्टि-८४४, डॉ० रांगेय राघक -८४५, रामेश्वर शर्मा - ८४६, महत्व और संभावनाएँ-८४८,
व्यक्तिवादी समीक्षा की प्रकृत्ति-८४८, स्वरूप-८४८, प्रारंभ-८४९, सच्चिदानंद हौरानंद वात्स्यायन 'अक्षेय'८४९, अनुभूति की व्यापकता - ८५०, साहित्य में प्रयोगात्यमकता-८५०, नीति नत्व -८५७, प्रयोग की कसौटी-८५२, गिरिजाकुमार माथुर-८५२, डॉ धर्मवीर भारती -६५४, लक्ष्मीकांत वर्मा - ८५५, महत्व तथा संम्भावनाएँ-८५६ ।
मनोविश्लेषणात्मक समीक्षा की प्रवृत्ति - ८५७, स्वरूप-८५७, बारंभ -८५६, जैनेन्द्र कुमार-८५८, वैयक्तिकता का आग्रह -८५९, सर्वोदय-८५९, पंचशील -- ८६०, व्यक्ति का उन्नयन - ८६०, रचनात्मक जीवन दृष्टि-८६१, इलाचंद्र जोशी-८६१, युग भावना और आडम्बर की प्रकृति -८६२, छायावाद की उपलद्धि-८६३, साहित्य और वैयक्तिक कुंठा-८६४, मनोविज्ञान की ऐकांतिकता-८६४, मनोविश्लेषणवाद-८६५, महत्व तथा संभावानाएँ-८६६ ।
शोध परक समीक्षा की प्रवृत्ति -८६६, स्वरूप - ८६६, आरंभ - ८६७ वर्गीकरण -८६७, साहित्य विषयक शोध की प्रवृत्ति - ८६७, कविपरक शोध प्रवृत्ति -८६८, डा० बल्देवप्रसाद मिश्र -८६८, अन्य समीक्षक - ८६८, डा० व्रजेश्वर वर्मा- ८६८ अन्य समीक्षक ८६९ सम्प्रदायपरक शोध प्रवृति -८६९, डॉ० पीताम्बरदत्त- - बड़थ्वाल - ८६९, डॉ० दीनदयालु गुप्त - ८७०, डॉ० मुन्शीराम शर्मा - ८७० डॉ० विनय मोहन शर्मा - ८७१, अन्य समीक्षक - ८७१, शास्त्रपरक शोध प्रवृति-८७१, डॉ० राम शकर शुक्ल 'रसाल - ८७१, डॉ० भागीरथ मिश्र - ८७२, अन्य समीक्षक-८७२, भाषा वैज्ञानिक शोध प्रवृत्ति - ८७२, स्वरूप - ८७२, ऐतिहासिक - ८७२, व्याकराणिक - ८७३, खोलीपरक - ८७३, तुलनात्मक - ८७३, महत्व तथा सम्भावनाएँ - ८७३
व्याख्यात्मक समीक्षा की प्रवृत्ति -८७४, स्वरूप-८७४ आरम्भ-८७४, ललिता प्रसाद सुकुल - ८७५, परशुराम चतुर्वेदी - ८७५, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी - ८७६, सत्येन्द्र -- ८७७, डॉ० प्रभाकर माचवे -८७७, रामकृष्ण शुक्ल शिलीमुख ८७५, महत्व तथा सम्भावनाएँ ८७८ ।
समन्वयात्मक समीक्षा की प्रवृति - ८७९, स्वरूप ८७९, आरम्भ-८७९, डॉ० विनय मोहन शर्मा -- ८७९, नाट्य स्वरूप - ८८०, सृजनात्यकता ८८१, समालोचना का स्वरूप ८८१, नन्दुलारे वाजपेयी ८८२, काव्य-८८२, आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ८८३, समीक्षा का रूप - ८८४ वैचारिक आन्दोलन-८८४, समीक्षात्मक मान्यताएँ८८५, डॉ० नगेन्द्र-८८६, काव्य-८८६, रस- ८८७, नैतिक मूल्य ८८७, छायाबाद८८८, प्रयोगवाद-८८९, डॉ० देवराज-८८९, साहित्य - ८९०, समीक्षक-८९०, छायाबाद ---८९१, प्रगतिवाद -८९१, प्रयोगवाद-८९२, महत्व शौर सम्भावनाएँ--८९३, निष्कर्ष -८९३ ।
अध्याय १०
सम्यक् मान निर्धारण की आवश्यकता और सम्भावनाएँ-८९७, आवश्यकता - ८९७, रूपात्मक आधार की प्रधानता - ८९८, सैद्धान्तिक एकांगिता-८९५, संस्कृत, समीक्षा सिद्धान्त - ८९९, हिन्दी रीति सिद्धान्त - ९०० ।
आधुनिक सिद्धान्त - ९०१ अनुभूति का महत्व - ९०१, क्षेत्रीय प्रशास्त- ९०१ सामायिक मान - ९०२ श्रेणीकरण की आवश्यकता - ९०२ सिद्धान्त समीक्षा - ९०३ औचित्य
समीक्षा के मान और हिन्दी समीक्षा को विशिष्ट प्रवृत्तियाँ का परीक्षण - १०३, परिवर्तन शीलता-९०३, परिवर्तन शीलता के कारण-९०४, विकास शीलता - ९०५, मानों की अपूर्णता - ९०६, मानदण्डों का औचित्य परीक्षण९०६, मूल्य निर्धारण और नियन्त्रण ९०७, अलंकरण और अभिव्यक्ति - ९०८, अनुभूति और अभिव्यक्ति - ९०८, सौन्दर्यात्मकताः निहिति और प्रभाव -- ९०९ युगीन सत्य और चेतना - ९१०, यथार्थात्मकता--९११, तुलनात्मकता - ९१२, दार्शनिकता -९१३, नैतिकता ९१३, प्रभाव वादिता - ९१४, समाज शास्त्रीयता और ऐतिहासिकता - ९१४, अस्थिरता ९१५, सिद्धान्त और व्यवहार -- ९१६, विकास युगीन मान - मूल्यगत ह्रास एंव संक्रमण --- ९१७, युगीन उपलब्धियाँ - ९१८, अनुभूति तथा अभिव्यक्तिः एकात्मक स्वरूप-९१९, श्रेष्ठता ओर कलात्मकता - ९२०, कृतित्व की कसौटी ९२१, उपलब्धियों की अवगति+
९२२, मान का प्रयोग - ९२२, सम्यक् मान का स्वरूप ९२३ ।
परिशिष्ट १
सहायक ग्रन्थों की सूची - ९२५ ।
:) प्रस्थानुक्रमणिका |
3e08c65e8f8af5eff6dd25a4e3ee0f91bff7f1ee | web | प्रतिभा उम्र, जीवन के अनुभव या शिक्षा पर निर्भर नहीं करता। आप अपनी सारी जिंदगी सीख सकते हैं, लेकिन नहीं किया "शूट"। लेकिन उनके 25 वर्षों में Ksave डोलन - एक अभिनेता, निर्देशक, कलाकार, संगीतकार। उनकी पहली फिल्म एक उत्तेजना है, और वेनिस फ़िल्म समारोह में वाहवाही "फार्म में टॉम" के अंतिम चित्र बनाया। और कौन दावा कर सकता है कि इस तरह के एक युवा उम्र में गंभीरता से प्रतिस्पर्धा करने के लिए मीटर की दूरी पर सिनेमा में सक्षम है? हालांकि, मान्यता प्राप्त स्वामी को स्थानांतरित करने के लिए किया था।
Ksave डोलन - तो यह कौन है?
कुछ आलोचकों का एक नवोदय, वह बहरूपिया रूप में उसे पर विचार करें। वे जोर उसके सारे चित्रों है कि - एक सतत के हवाले से यह है कि यह सिनेमा के लिए कोई नई बात नहीं नहीं किया जाता है है।
अन्य लोग, इसके विपरीत, यह "नई लहर", स्वतंत्र सिनेमा, जिनकी फिल्में व्यक्तित्व और मौलिकता की छाप सहन के एक प्रतिनिधि के प्रतिष्ठित निर्देशक है।
कौन सही है? सबसे अधिक संभावना है, आमतौर पर इस तरह के रूप, नहीं।
जेवियर खुद मानते हैं कि अभी भी फार्म के लिए लग रही है, विभिन्न सामग्रियों, दृश्य, निर्देशक की विधियों का प्रयास करें। हालांकि, इस प्रयोग के लिए एक प्रयोग नहीं है। उनकी कहानियों की कहानी के लिए नए अवसर के लिए यह खोज।
डोलन सिर्फ एक निर्देशक नहीं है, वह अपने टेप में अभिनय किया। उन्होंने पटकथाओं लिखते हैं, साउंडट्रैक उठाता है, फिल्म के भविष्य रचना बनाता है और अपने स्वयं के प्रामाणिक कहानियों के लिए उपयुक्त व्यक्तियों के लिए लग रही है।
उनका पूरा नाम - Ksave डोलन-Tadros। उन्होंने कहा कि 1989 में पैदा हुआ था, 20 मार्च, मॉन्ट्रियल में। Tadros - अपने पिता का नाम है। मिस्र के अभिनेता मैनुअल और विश्वविद्यालय कर्मचारी Genevieve जेवियर की उम्र से पहले लंबे समय तक अलग कर लिए। हालांकि, यह के तहत अपने पिता की युवा प्रतिभा का प्रभाव पहले अभिनय कैरियर पर अपने हाथ की कोशिश की है। सभी बहुत आम। उन्होंने कहा कि विज्ञापनों में अभिनय किया। तो फिर वहाँ डबिंग का अनुभव था। धारावाहिकों में छोटी भूमिकाएं पर लेने के पांच साल के साथ। वह जलाया और फिल्मों में। फिर, एपिसोड में। इस तरह के लिए एक युवा उम्र कैरियर बहुत सफल रहा।
नतीजतन, जेवियर स्कूल पर समय बर्बाद नहीं करने का फैसला, फेंक दिया, यहां तक कि एक प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए परेशान कर रहा है। की अवधि "शून्य" के रूप में वह यह समय डोलन पहले फिल्म निर्देशक की स्क्रिप्ट लिखने समाप्त करार दिया - "। मैं मारे मेरी माँ"
"मैं मार डाला मेरी माँ" - पहली फिल्म है, जो निर्देशक और लेखक Ksave डोलन ले लिया। इस बिंदु तक उनकी फिल्मोग्राफी तुरंत भुला दिया गया। दरअसल, जहां से पहले polubiograficheskogo फिल्म रहस्योद्घाटन कभी बच्चे भूमिकाओं है।
कई टेप के नाम repels। हालांकि, इससे पहले दर्शकों को एक रोमांचक फिल्म है, न कि एक भयानक फिल्म नोयर, एक किशोर के इस खरा कहानी नहीं है, अपनी मां के overprotection कुचल दिया। के कगार पर अपनी मां के साथ रिश्ता कई परिचित प्यार-नफरत है। कभी-कभी अपने ही माता-पिता अपने बच्चों के जीवन का निर्माण करने की इच्छा राक्षसी संघर्ष पैदा करता है।
समानांतर में, इस फिल्म में, वहाँ एक और, कोई स्पष्ट कहानी है। नायक और उसके प्रेमी के बीच संबंध। हाँ, Ksave डोलन - समलैंगिक। और वह छिपा नहीं है।
फिल्म 'मैं मेरी माँ "होने का अनुमान जूरी किल्ड कान फिल्म महोत्सव के। चित्र भी मुख्य सूची में, "ऑस्कर" के लिए नामित किया तथापि, और अनुमति नहीं थी। यह एक पंथ का दर्जा प्राप्त करने के लिए युवा निर्देशक को नहीं रोका।
चित्रकला एक बार फिर से हमें मना है कि एक उत्कृष्ट कृति के निर्माण एक बड़ी वित्तीय निवेश की जरूरत है, प्रचार और विज्ञापन प्रचार नहीं है। यहां तक कि बहुत से लोगों को लाने की जरूरत है। सत्रह साल के लड़के वह दूर ले गया, घुड़सवार, गढ़ी दृश्यों,, ध्वनि उठाया शीर्षक भूमिका में अभिनय किया। और वहाँ सिनेमा में एक 'नई' खोज भी थी।
लगभग तुरंत पहली फिल्म टेप जेवियर द्वारा अगली फिल्म बाहर चल के बाद। काम के लिए सभी विभिन्न अद्भुत क्षमता पर युवा कलाकार।
वहाँ 2009 में "काल्पनिक लव" की एक तस्वीर थी। लेखक खुद को मुख्य पात्रों की भावनाओं के मामले में के रूप में "छोटे" फिल्म का वर्णन, अहंकार में डूबे खुद को। आदर्श प्रेम किसी तरह का निर्माण करने के लिए कोशिश कर रहा है, वे साधारण "छोटे" कामुक जुनून में आते हैं। दृश्य सीमा क्या यह पहली तस्वीर में था से बहुत अलग है। तेज, कभी कभी दूर वास्तविकता से, छवियों कृत्रिमता अंडरस्कोर, की "तस्वीर" एक प्रेम त्रिकोण।
फिल्म फिर से कान कार्यक्रम पर था और श्रेणी "अन कुछ संबंध" में सम्मानित किया गया। अब कोई भी जेवियर की प्रतिभा पर शक।
2012 में, अगली फिल्म के कान प्रीमियर। फिल्में Ksave Dolana अपनी मौलिकता के साथ विस्मित संघर्ष कभी नहीं।
इस बार, निदेशक transsexuality की पड़ताल। यह प्रतीत होता है कि एक प्रसिद्ध जटिलताः एक आदमी और एक औरत। वे एक दूसरे से प्यार है, लेकिन यहां एक आदमी अंत में अपने आप को उसकी प्रकृति की सच्चाई स्वीकार करने का फैसला करता है। उन्होंने कहा कि के लिए तैयारी कर रहा है सेक्स परिवर्तन आपरेशनों।
प्रत्येक नई फिल्म के साथ डोलन परिपक्व। masterfully एक कहानी बताने के लिए क्षमता - यह मुख्य बात खोने के बिना, एक नया दृश्य तकनीक को दर्शाता है।
दर्शक एक अजनबी, ट्रांस की दुनिया के कई, द्वारा तुच्छ जीने का विचित्र चेहरे पर मास्क से परे देखने के लिए के साथ सहानुभूति शुरू होता है।
प्रशंसक है, और वे जेवियर का एक बहुत, कलाकार की योजनाओं के बारे में खबर पर नज़र रखने के लिए करीब ध्यान के साथ शुरू हुआ मिला है। 2012 में, वहाँ खेलने Bacharda माइकल के फिल्म रूपांतरण के बारे में जानकारी है। उनकी "टॉम पर खेत" खुद Ksave डोलन शूट करने के लिए जा रहा था। वेनिस फिल्म समारोह से तस्वीरें खुश प्रशंसक हैं। डोलन सिर्फ फिल्म के फिल्मांकन के समाप्त हो गया है नहीं, लेकिन यह भी प्रतियोगिता कार्यक्रम में उसके साथ शामिल किया गया।
चित्र के पहले मिनट से हम टेप हाईवे घास के मैदान और खेतों की विशालता में खो देखते हैं। यही कारण है कि अभी से ग्रामीण शांति नहीं एक निशान बना हुआ है, जैसे ही मुख्य चरित्र अपने मृत प्रेमी के परिवार के साथ मिलता है के रूप में है। बल्कि प्रत्याशित विभाजित दुः ख, टॉम एक माँ जो अपने बेटे की वास्तविक प्रकृति को नहीं जानता है के साथ सामना करना पड़ा। इसके अलावा, मृतक के भाई से समलैंगिकों के साफदिल घृणा आता है।
कई आलोचकों जेवियर घटना हिचकॉक रोमांच के साथ एक नया चित्र के प्रभाव की तुलना करने के लिए त्वरित थे। हालांकि, स्क्रीन से खतरे का एक स्पष्ट समझ। लगभग स्पष्ट रोष, दुखद समापन के अनिवार्यता। अपनी त्वचा में दर्शक डर, चिंता और गंभीर अलगाव की उम्मीद महसूस करता है।
"वॉल्यूम" में डोलन फिर से बढ़त बना ली। प्रशंसक न केवल एक निर्देशक लेकिन यह भी स्वतंत्र सिनेमा के अपने अभिनय प्रतिभा का आनंद लेने के लिए सक्षम थे।
हालांकि, द्वेषी आलोचकों में भी वृद्धि हुई। हालांकि, उनके escapades जूरी पुरस्कार एक पुरस्कार रिबन से नहीं सुना गया था।
Ksave डोलन आलोचना को खारिज करने के लिए इच्छुक नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके काम की विस्तृत समीक्षा का उपयोग करता है और आगे तकनीक पॉलिश करने। एक ही समय में उन्होंने एक साक्षात्कार प्रशंसकों या गुस्से में बयान विरोधियों से चापलूसी का शिकार भी कोशिश करता है में बल दिया।
पांचवीं फिल्म शायद "माँ। " कहा जाएगा इसमें निदेशक माँ और बेटा संबंध के विषय में वापस आती है। यह एक औरत जो अंधेरे, अस्पष्ट अतीत के साथ एक लड़के की परवरिश में ले लिया गया है के बारे में एक कहानी हो जाएगा।
और फिर भी Ksave डोलन नाटक पर आधारित इस फिल्म में एक अभिनेता के रूप में दिखाई देगा "हाथियों के गीत। "
सब कुछ तथ्यों के बारे में, निर्देशक ध्यान से चुप का काम से संबंधित नहीं। यहां तक कि डोलन के साथ सबसे अधिक स्पष्ट साक्षात्कार में उनके जीवन के विवरण का खुलासा नहीं किया। वह उदारता से अपनी योजनाओं, अनुभव साझा करता है। वह शब्दों के साथ उदार जब उनकी फिल्मों पर चर्चा है। हालांकि, यह वह कैसे मिलता है Ksave डोलन बारे में जानकारी प्राप्त करना असंभव है। निजी जीवन, उनकी राय में, यह इस तरह रहना चाहिए। वह अपने बाहर आ बनाया है, और बस इतना ही। इस स्थिति में सम्मान के हकदार।
स्वतंत्र सिनेमा के युवा प्रतिभा भी तीस नहीं है। अपने अथक ऊर्जा, गोली मार और शूट करने के लिए एक इच्छा को देखते हुए आप भविष्य में बहुत अधिक रोमांचक फिल्मों में उम्मीद कर सकते हैं।
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0d3a57c024a0b68eb471be9553ac114c125cc644dcb9c23ce85405dfb42bcd24 | pdf | महिर जो कृपा, तातें वैराग्य दसा दुर्लभ भई । पुनः रसिक कहैं हैं - फकीर जे रसिक विरक्त सिरोमनि श्रीस्वामी हरिदास जू, तिनकी कृपा तें मनमोहन से यारी है। महतजनन की कृपा बिना वस्तु प्रापित नहीं होय है। भागवते - विना महत् पादरजोभिषेकं । निष्किंचनानां न वृणीत यावन् इत्यादि । ।१० । ।
बेचगून अरु बेनमून कोऊ पाय अफीमै झीमें। सहचरिसरन खुसी किनि कोऊ गाया करौ रहीमैं ।। स्यामल स्यामा मिला हमन कौं रूप-सुधा सुख-सी । वर सरबत मिश्री दा प्याला पिया पियें क्या नीमैं ।।११।।
बेचगून इति-बेचगून कहिये- अमाइक, बेनमून कहिये - स्वरूप रहित; ऐसौ जो ब्रह्मानंद कुँऊ पाय अफीमै झीमैं- कोऊ- जे वेदान्ती हैं, ता आनंद कौं पायकैं छके भये झूमैं हैं । कहिवे कौ तात्पर्य यह, ब्रह्मानंदमय है रहे हैं, अन्य दृष्टि जिनके नहीं। जैसैं अफीमी अफीम के अमल में छकौ रहै है । सहचरिसरन खुसी इति- रसिकजन कहैं हैं - कोउ राम कौं, कोउ रहीम कौं गायौ करौ । कहिवे कौ तात्पर्य में छके रहौ । पुनः रसिकजन कहैं हैं-- स्यामल स्यामा हमकौं मिला है; रूप-सुधा सुख कौ सोना है। प्रस्न-स्यामल स्यामा जे युगल, ते अगुन है सगुन हैं; कै अगुन- सगुन तें भिन्न हैं। उत्तर- अगुन- सगुन तें भिन्न हैं। प्रस्न - अगुन- सगुन तें भिन्नता कौ लक्षण कहा ? उत्तर - निर्गुन करि माया नहीं तामैं; सरगुन करि सब गुन हैं जामैं । वर सरबत मिश्री दा प्याला; सो वह रूप सुधा सुख मिश्री के सरबत सम है। ताकौ प्याला जो कोउ पीवै है; पियें क्या नीमैं; ते वे नीम कौं नहीं पीवैं हैं। जीभ निबौरी क्यों लगै बौरी चाखि अंगूर । प्रस्न -बिंब कहा ? उत्तर - बिंब नास्तिक धर्मादिक, युगल रस रहित सकल बिंब के सम जानिऔ ।।११।।
१. झूमते रहें २. कृपालु, प्रभु ३. चाँदी, धन, दौलत ।
प्याइ प्याइ अब क्यौं न पिवावै छबि सराब नहिं थोरौ । हा हहरात' चितै रुख रूखौ हँसि हिय से हिय जोरौ ।। सहचरिसरन सनेही सोहन करि सनेह जिन तोरौ । राखै तोहिं सलामत स्यामा आसिकान रस बोरौ ।।१२।।
प्याइ प्याइ इति-महबूब जो मनमोहन है, तानै आसिक-रसिक जन जे हैं; तिनके चित में अधिक प्रेम उत्पन्न करिवे के अर्थ - निरंतर तौ आसिकनि में अधिक प्रीति है, परंतु ऊपर तें रुखाई सी दरसाई है। ताकौं अविलोकि कें आसिकनि की उक्ति है- करि सनेह जिनि तोरौ । सवैया -
कित में ढरिगौ वह ढार अहो जिन आँखिन मो तन हेरत है । सरसानि कहाँ वह बानि गई मुसिक्यानि सौं आनि निहोरत है ।। घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ तब तो उन बातनि भोरत है। मन माहिं जो तोरिवेई की हुती बिसबासी सनेह सौं जोरत है ।।
रसिक-आसिक आसीरवाद दैहिं हैं- राखै तोहिं सलामत स्यामा - स्यामा जो लड़ैती जी हैं, सो तुमकौं हे महबूब ! सलामत कहैं - तैं आनंद में राखै । और अर्थ सकल प्रगट ही है ।।१२।। ऐसौ करौ न सुरझे कबहूँ रूप-जाल उरझेरौ । दोजख इरम' उरे" दोउ तजिकैं बसे इस्क मन मेरौ ।। मनमोहनी अदा से मोहन दस्त सीस पर फेरौ । रसिक सहचरीसरन तुम्हारा नेह नैन भरि हेरौ ।।१३।। ऐसौ करौ इति - रसमय विनय- हे मनमोहन महबूब ! अब तौ ऐसी करौ, तुम्हारे रूप- जाल में मेरे दृग परिकें कबहूँ न सुरझैं; यह
१. डरना, व्याकुल होना, चकित होना २. मुख, आकृति, भाव ३. सुरक्षित, सकुशल, चिरंजीव, आनंद ४. विश्वासी, अविश्वसनीय ५. नरक ६. स्वर्ग ७. इधर, इस ओर, इस पार ८. प्रेम, अनुराग, आसक्ति ६. हाव भाव, मनमोहक अंगचेष्टा १० हाथ ।
हमारौ अभिलाष है। दोजख - नरक, इरम - वैकुण्ठ - ए दोऊ हैं, तिनहिं तजिकैं मेरौ जो मन है, सो इस्क में बसौ, ऐसौ करौ ।
दोजख इरम उरै हैं परेँ बाट और है। हप्ताद' दो मिलत से परें बाट और है ।। सौदा जहाँ हमारा वह हाट और है। मस्तौंक गुसल हौंना वह घाट और है ।। और सकल अर्थ प्रगट ही है ।
तन घन सरस उसीर अतप्पर छबि छप्परहि छवा दे। मधुर मुहब्बत' वर सरसी तट सुखमय हवा दवा दे ।। मंद हँसनि अरविन्द बदन की मृदु गुलकन्द खवा दे । सहचरिसरन सिताब ताब दलि अब जिनि करहि अवादे ।।१४।। तनघनसरस इति - यह संबोधन है । हे तनघनसरस ! तन जो है वपु, सो है घन - मेघवत; जाकौ सरस रस जो है आनंद; ता करिकैं युक्त, ऐसैं जे हो तुम । तात्पर्य यह, जैसैं मेघ जल की वरषा करिकें ग्रीषम की ताप कौं हरै है; तैसैं ही तुम रस बरसिकैं विरह-संताप कौं हरौ। पुनः विरह-संताप हरिवे कौ यत्न - उसीर अतप्पर छबि - उसीर
जो खस तातैं अतप्पर - अत्यंत विशेष; ऐसी जो छबि, ताकौ छप्पर हि छवा दे-खसखानौ बनवाय दे । यहाँ खस की सीतलता लई है; वर्न नाहीं लियौ । जैसैं खस सीतल है, तातैं अधिक छबि शीतल है। मधुर इति - मधुर कहियैमिष्ट मुहब्बत कहियैप्रीति, सोई भई वर कहैं तैंश्रेष्ठ सरसी - सरोवरी; ताके तट - समीप छबि-खसखानौ बनवाइ दे। प्रश्न - प्रीति सरोवरी के तट छबि-खसखानें की अभिलाष क्यौं करी ? उत्तर - जलासय के समीप खसखानौं अति सीतलता करै है, तहाँ
१. हफद-सहायकजन, मित्र २. मस्तों का, मदोन्मत्तों का ३. गुस्ल - सारे शरीर को धोना, स्नान। ४. खस ५. अत्यन्त विशेष ६. स्नेह, मिलाप ७. सरोवर, तालाब ।
सुखमय हवा है - सीतल मंद सुगंध पवन कौ परसै है। ए तौ प्रगट कें सीतोपचार कहे; पायवे कौं दवा दे । प्रश्न - दवा कहा ? उत्तर - मंद हँसन अरविंद बदन की सोई भयौ गुलकंद; सो प्रगट निरंतर दृगनि के खाइवे कौं दे । सहचरिसरन रसिक-आसिक जन कहैं हैं - सिताब कहैं तैं - सीघ्र ताब कहें तें - विरह- संताप, ताहि दलि कहैं तें - नास करौ । अब जिनि करहि अवादे-अवधि मति करै; यह विनय है ।।१४।। निरदय हृदय न होहु मनोहर सदय रहौ मन भावन । नवल मोहिलौ' मोहिं तजै जिनि तोहिं सौंह प्रिय पावन ।। रसिक सहचरीसरन स्याम घन रस बरसावन सावन । दरस देहु वर बदन- चन्द्रमा चख चकोर विलसावन ।।१५।।
नवल यह संबोधन है । हे नवल ! मोहिलौ - तू मोह को करनवारौ है । तातैं हम हू सौं मोह कीजियै । अथवा हे नवल ! तू मोहिलौ है - मोहनवारौ है । तातैं मोहू कौं मोहि लै । तोहिं सौंह प्रिय पावनपावन - पवित्र जे प्रिया जी; तिनकी तोकौं सौंह है। प्रश्न - प्यारे कौं सौंह क्यौं दिवाई ? उत्तर - प्यारौ हमसौं मोह करै अथवा हमकौं मोहि लेहि; सो इह जब हो सकै, तब प्यारौ प्रसन्न होय । सो प्रसन्न करिवे कौ उपाय मोसौं स्वप्न हू में नाहीं हो सकै है । तातें प्रिया जी की सौंह दिवाई है। प्रिया जी की सौंह सुनिकें कृपा करैंईंगे; यह निश्चय है। और अर्थ प्रगट ही है ।।१५।।
मेरा कहा मानि मनमोहन मिलन मजा किन चक्खौ ? एता जुलम' न जालिम अच्छा अनख मैंड़ अब नक्खौ ।। सहचरिसरन अंक भरि-भरि तुम यार प्यार से लक्खौ । खंजनाक्षी खैर करै वर आसिकान रस रक्खौ । ।१६ । ।
१. मोहनेवाला २. अन्याय, अत्याचार ३. अन्यायी, अत्याचारी ४. खीझ, चिढ़ ५. खंजन जैसे चंचल नेत्रवाली ६. कुशल, भलाई ।
मेरा कहा मानि इति-रसिक-आसिक उक्ति- हे मनमोहन ! मेरौ कह्यौ मानि । मिलन को मजा जो स्वाद है, ताहि क्यौं नहीं चाखौ हौ ? तात्पर्य यह मिलौ क्यौं नहीं हौ ? कमल रवि के मिलाप कौ, चकोर चंद्र के मिलाप कौ, मीन जल के मिलाप कौ सुख लेइ है; तैसैं मिलिकें सुख देहु । अथवा जैसैं दृगनि सौं मिलिकें दृग परस्पर सुख लेहिं - देहिं हैं; तैसैं परस्पर मिलिकें तुम आनंद क्यौं नहीं लेत देत हौ ? हे जालिम! रसिक-आसिकनि सौं एतौ जुलम करिवौ तौ आछौ नहीं है। जामें आसिक-रसिक दुख पावैं, सो तौ तुमकौं करिवौ योग्य नहीं है । अब अनख की जो मैंड है, ताहि नाखौ । तात्पर्य यह कि अनख हमसौं छाँड़ौ। तुम प्यारे हौ; तुमकौं सनेह ही कियौ चाहिये । सहचरिसरन कहैं हैं - अंक में भरि-भरिकैं यार जे हैं, तिनकौं प्यार सौं लखौ । या भाँति जो तन-मन सुख देहुगे तौ रसिक-आसिकनि को सकल मनोरथ पूर्न होयगौ; आपकौं रीझि-रीझिकेँ आसीर्वाद दैहिंगे। खंजनाच्छी- खंजन जे हैं; तिनसे हैं चंचल आछे नेत्र जाके, ऐसी जो श्रीप्रिया जी ते खैर करैं - कुसल करैं । वर- आसिक - रसिकजन जे हैं, तिनसौं रस राखौ । एकरस करिवे लायक नहीं है। अथवा रस जो आनंद, सो राखौ ।।१६।।
हुकुम हुआ है आसिकान प्रति सुख देगा सुख सोहन । निज मुख से तारीफ करी तब रसिक रिझोहन जोहन' ।। पहिरि मिहर मोहनी सिरोपा मिहर किया करि मोहन । सहचरिसरन साहिबी तेरी सदा रहै गहि गोहन ।।१७।।
हुकुम हुवा है इति - एक समय सकल आसिक-रसिक जन मिलिकैं नवतरुनिनि के वृंद, तिनकी मुकुटमनि श्रीप्रिया जी, तिनसौं विनय कीनी; तब श्रीप्रिया जी को जो अनुसासन भयौ; सो लालन सौं आसिक-रसिक जन कहैं हैं- हुकुम हुआ है आसिकान प्रति; हे मोहन !
१. देखनेवाला २. सिर से पाँव तक का प्रसादी वस्त्र ३. प्रभुता ४. साथ, संग ।
आसिक-रसिक जन जे हैं हम, तिनसौं यह श्रीप्रिया जी को हुकुम हुआ है; सुख देगा सुख सोहन- तुम आतुर मति होहु तुमकौंसबकौं लालन परम सुख देइगौ। कैसौ है लालन ? सुख करिकें सोभायमान है। आनंद विग्रह बड़ा तमासा । श्रीप्रिया जी नें निज मुख सौं आपकी परम स्तुति करी है। यह कही है कै लालन रसिक है- रस कौ जाननवारौ है। तुम्हारौ जो प्रेम-रस; ताकौं जानैं है, रिझोहन-रीझनवारौ है; तुमसौं रीझौ है । जो मोहन देखिवे लायक है; ताहि तुम देखौ । ऐसें अनेक भाँति आपकी प्रिया जी ने प्रसंसा करी हैं। मोहिनी जे श्रीप्रया जी हैं, तिनने तुमकौं मिहर- कृपामई सिरोपायौ दियौ है, सो तुमने पहिरौ है । अरु तुमसौं श्रीप्रिया जी ने यह कहि दई है-रसिक-आसिकनि कौं प्रसन्न राखौ । तातें हे मोहन ! मिहर जो कृपा, सो हमारे ऊपर कियौ करौ। हमारे आनंद दैवे के अर्थ तुमने कृपामई सिरोपा पहिरौ है । सहचरिसरन रसिक-आसिक जन कहैं हैं - साहिबी जो तेरी है, सो आपकौं गोहन कहें तैं - संग गहिकैं रहै । तात्पर्य यह कै आपकी साहिबी आपकौं न छाँड़े है । प्रश्न - साहिबी कहा ? उत्तर - परम साहिबी श्रीप्रिया जी हैं ।।१७।।
उर अनुराग दोस्ताँ' गुलसन चारु बहार चहा करि । दिलाराम' दिलदार प्यार करि सरस कलाम कहा करि ।। सहचरिसरन दुआगो आसिक आसिर्वाद लहा करि । सुखद किसोरी गोरी कौ तू मरजीदार रहा करि ।। १८ ।।
उर अनुराग इति - उर के विषै है अनुराग जिनकें, ऐसे जे दोस्ताँ कहियैयार जेई भए गुलसन - बाग, तिनकी जो चारु बहार, ताहि चहा करि । प्रथम । दिलारामहे दिल के आराम ! दिलदार - हे दिल के राखनवारे ! हमसौं प्यार करिकैं सरस - रस भरे कलाम जे
१. मित्रता १. पुष्पवाटिका १. प्रेमपात्र, हृदय को शान्ति देनेवाला ४. प्रेमपात्र ५. वचन, उक्ति ६. आशीर्वाद देनेवाला, याचक ७. रुचि के अनुसार ।
वचन, ते तुम कह्यौ करौ । बाग कौं जल सौं सींचियतु है, तब हरितप्रफुलित बन्यौ रहै है; ऐसे ही हम जे हैं बाग रूप, तिनकौं अपने रस भरे वचननि सौं सींचौ करौ, तौ हम प्रसन्न रहें । सहचरिसरन आसिकरसिक जन कहैं हैं-हम जे हैं, ते दुआगो - दुआ के दैनवारे हैं; तिनतैं फल-प्रसून रूपी जे आसीरवाद हैं, ते लैवौ करौ । प्रश्न - आसीरवाद; कौन सौ ? उत्तर-सकल आसीरवादन को मुकुटमनि जो आसीरवाद ताहि कहैं हैं - सुखद जो किसोरी गोरी, ताकौ तू मरजीदार रहौ करि । तात्पर्य यह है, श्रीप्रिया जी के मरजीदार रहौगे, तौ आपकौं सकल सुख प्रापित होत रहेंगे ।। १८ ।।
बेगुनाह बाँके करि नैना क्या मग यही दिखाया । अपने कौं दीदार' न देना क्या अब सबक लिखाया ।। वर गोरे मुख वाली ने क्या लेना जीव सिखाया । सहचरिसरन कमलनैना क्या करना जुलम चिखाया ।।१६।।
बेगुनाह इति- हे स्यामसुंदर ! बेगुनाह -बिनु अपराध तुमने हमारे ऊपर बाँके नैंन करे हैं; वर गोरेमुखवाली जो श्रीप्रिया जी हैं, तिनने तुमकौं क्या यही मग - मारग दरसायौ है ? कै कृपा हू कौ मारग दरसायौ है ? अपने जे कोऊ हैं, तिनकौं दीदार जो दरसन सो न दैवौ; वर गोरे मुखवाली सौं तुमने क्या अब इही सबक कहियै - पद लिखाइ लियौ है । तात्पर्य यह कै तुम ऐसौई पढ़े हौ । मंजजब तौ करि करि प्यार पियारे पहर इति इतबार बढ़ाया। हँसि हँसिकेँ बसिकेँ नैंनौं बिच नेही नाम कढ़ाया ।। अब क्या हुआ उसी मुख ऊपर रूखा रंग चढ़ाया। रसनिधि बेदरदी का सबक मु किसि आँखून पढ़ाया ।।
१. दर्शन २. पाठ, शिक्षा ३. पहँ-पास, से ४. एतबार विश्वास, भरोसा, साख ५. मुँह ६. आखुन्द - शिक्षक ।
वर गोरेमुखवाली ने क्या जीव ही लैनौं सिखायौ है; कै जीव दान हू सिखायौ है ? सहचरिसरन रसिक-आसिक जन कहैं हैं हे कमलनैंन ! वर गोरेमुखवाली ने क्या जुलम ही करने को स्वाद चिखायौ है; कै पालन हू करने को तुमकौं स्वाद चिखायौ है ? बाँके नैंन करिवौ, दीदार न दैनौ, जीव को लैवौ, जुलम कौ करिवौ - इन बातन की आज्ञा श्रीप्रिया जी की तुमकौं नहीं है। सुख दैवे की आज्ञा है, सो सुख-दरस देते रहौ ।।१६।।
रिस रस रंग उभय' मिलि झलकत मटकायल मुख आँखें । सोख रहित मासूक साहिबाँ अनखदार वच दाखें ।। इक सु अदा बिच अदा अनेकनि जनु पैवन्दी साखें । सहचरिसरन तमासबीन' वर आसिक मृषा न भाखें ।।२०।।
रिस रस रंग इति - रिस कौ रंग, रस को रंग उभय - जे ए दोऊ रंग हैं, ते मिलिकैं झलकत हैं मटकायल मुख करिकें अरु आँखिन करिकेँ । तात्पर्य यह बीच-बीच रस हू करैं हैं; मुख कौं, आँखिन कौं रूखी करि लेइँ हैं; बीच-बीच रस हू दरसावैं हैं; मुख, आँखिन कैं मुसिक्याइ हैं। मासूक जे महबूब; तिनहूँ कौ साहिब; सोख जो सोखी, ता करिकेँ रहित हैं वच-वचन जाके; परंतु कैसे हैं वचन ? अनखदार हैं; अनख के राखनवारे हैं। हैं तो अनखदार; परंतु जैसैं दाखें - मेवा होय हैं, तैसैं हैं। पुनः कैसौ है मासूक साहिबाँ ? करै तौ एक अदा है; परंतु एक अदा में अनेकन अदा दरसावै है । जनु कहै तैं - मानौ पैवंदी साख-तरु है। देखिवे कौं तौ पैवंदी तरु एक ही है; परंतु अनेक फलनि की सोभा दरसै है । ऐसैही एक अदा में अनेकन अदानि की सोभा दरसै है । सहचरिसरन आसिक-रसिक जन जे हैं, तेई तमासबीन हैं; या तमासे के देखनवारे हैं। और कौं देखिवे कौ अधिकार नहीं, यह मृषा कहैं तैं - हम झूठ नहीं भारौं है ।। २० ।।
१. दोनों २. चंचलता, ढीठता, नटखटता ३. सुन्दर, प्रेमपात्र ४. अंगूर ५. जुड़ी हुई ६. तमाशा, कौतुक देखने वाला ७. झूठ, मिथ्या
जिन चस्मों' से मिला मोहिं तू जवाँमर्द मन कायम । लाकलाम त्यौंही सुमिला करि यहै तलब दिल दायम* ।। सहचरिसरन मुहब्बत मोहन मंजुल मौज मुलायम । दरद जुदाई दवा दिया करि इसी वास्ते आयम ।।२१।।
जिन चस्मों से इति-हे जवाँमर्द ! हे मनकायम ! जिनि चस्मों से- जिन नेह भरी आँखिनि से तू मोकौं मिलौ है । लाकलाम कहियै-वचन की अवधि - तात्पर्य यह कौल करिकें मिलौ है; सो जैसैं मिलौ है, तैसैं ही मिलौ करौ । आन भाँति मति होहुः यहै तलब कहियैयही चाह है दायम कहियै- हमेसा । सहचरिसरन आसिक-रसिक जन कहैं हैं, हे मोहन ! तेरी मुहब्बत - प्रीति है, ताकी जो मौज-लहरैं, ते मंजुल हैं, मुलायम हैं। मुलायम कहिवे कौ तात्पर्य यह, कठोरता करिकैं रहित हैं । जुदाई कहियैतुम तें जुदौ हौं तौ, ताकौ जो दरद है, ताकौं वे प्रीति की लहरैं दवा कहियै- औषधी हैं; ताहि तुम दियौ करौ; इसी वास्ते आयम-तुम्हारे पास हम याही के लिये आये हैं ।।२१।। आँखें सफल करी® अभिलाखें लाखें रंग बसेरौ । अलिगन उर विनोद उपजावत हास विलास उजेरौ ।। रसनिधि सोहन रसिक रिझोहन रूप अनूप घनेरौ । सहचरिसरन मा नक्सब कें आहि निरखि मुख तेरौ ।।२२।।
आँखें सफल इति - सहचरिसरन आसिक-रसिक जन कहैं हैंसोहन ! नक्सब कैं नक्सब एक देस कौ नाम है, ताकौ माह कहियैचंद्रमा; सो वह चंद्रमा निसि-दिवस बन्यौ रहै है । तेरौ मुखचंद्र निरखि कैं वह जो चंद्रमा है, सो आहि कहियै- कराहै है; दुख करिकें युक्त है; यह कहैं हैं। जैसौ मुखचंद्र है, तैसौ मैं न भयौ; इह चतुर्थ चरन कौ अर्थ है। प्रथम के तीनौं चरन, तिनकौ अर्थ प्रगट ही है । १. नेत्रों २. स्थिर ३. बिना कहे, निर्वचन ४ माँग, चाह ५. हमेशा, उम्रभर ६. चन्द्रमा । * पाठान्तर - करौ । |
ba442fe5f14be0de78f814362a25dfab0dec69a06194622bfe273b856baafdb1 | pdf | स्वतन्त्रता ठीक है । यदि मद्यपायी अपने अनुभवसे मद्यपानको हानिकारक समझेगा तो उसे छोड़ देगा । राज्य के प्रतिबन्धसे भी मद्यपान छूट सकता है, परंतु इसमे चारित्रिक सघटन नही आता । जो निर्णय अपने अनुभवसे होता है, वही दृढ होता है ! राज्य प्रतिबन्धसे छिपकर भी मनुष्य मद्य पीता रह सकता है । शिक्षा - प्रोत्साहन, चित्रप्रदर्शन आदि परोक्ष रीतियोद्वारा बुरे कामोके रोकनेका प्रयत्न अनुचित नही ।' इसी तरह द्यूत खेलनेको भी वह प्रतिबन्धद्वारा रोकना ठीक नही समझता था । ये सब काम बुरे हैं सही, परंतु आत्मसंघर्पसे ही उनका छूटना चरित्रवलका वर्धक होता है । वह सामाजिक परम्परागत रीति-रिवाजो के बन्धनको भी प्रगतिका बाधक समझता था । सामाजिक नियन्त्रण से व्यक्तित्वका विकास नहीं हो पाता । मिल आविष्कार एवं नवमार्गदर्शक शक्तिको महत्त्वपूर्ण मानता था । उसके मतानुसार 'जनसाधारणकी मनोवृत्ति सामान्यताकी दर्शिका होती है ।' परंतु वह इस मनोवृत्तिका विरोधी था । वह तो 'अपूर्व नवीन बुद्धिवालोको प्रोत्साहनसे नवीन विचारधाराकी सम्भावना होती है। ऐसा मानता था । वह अधिक कवियोका होना समाजकी उन्नतिका लक्षण मानता था । ' इससे रुचियोंकी विभिन्नता विदित होती है और यह स्वतन्त्र वातावरणमे ही सम्भव है । यदि एक कक्षाके विद्याथियो के प्रश्नोत्तरमे विभिन्नता होती है तो वह कक्षाकी प्रगति समझता था। जो जिसे हितकर प्रतीत हो उसे वैसा करने की छूट होनी चाहिये । एक ढंगसे जीवन निर्वाहार्थ किसीको बाध्य करना उचित नही, इसीलिये शिक्षाके राज्यनियन्त्रित होनेका भी वह विरोधी था । हॉ, नागरिकोको अपने बच्चोको स्कूल भेजने के लिये बाध्य करना राज्यका कर्तव्य है । इसके अतिरिक्त शिक्षापर राज्यका हस्तक्षेप न होना चाहिये । शिक्षा प्राप्त करनेकी स्वतन्त्रता नागरिकोको ही होनी चाहिये । विद्यालयमे बालक कैसी शिक्षा प्राप्त करे, यह नागरिकोकी रुचिपर ही छोड़ना चाहिये ।'
उसके मतानुसार 'व्यक्तिवादियोकी भाँति ही व्यक्तिगत लाभके लिये भी मनुष्य भलीभाँति अपना कार्य सञ्चालन करता है । उसमे राज्यके हस्तक्षेप हितकर न होगे । सरकारी कर्मचारियोद्वारा होनेवाले कार्यो मे उनकी इतनी तत्परता नहीं होती जितनी किसीको व्यक्तिगत कार्यमे तत्परता होती जब व्यक्ति कोई काम स्वयं करता है तो उसकी ज्ञानवृद्धि होती है । इसीलिये मनुष्यको स्वय ही अधिकाधिक कार्य करना चाहिये । हाँ, समाचार-पत्रोद्वारा अतीत कार्यक अनुभवोंकी सूचना सरकारको देते रहना चाहिये । उससे लोग त्वयं सबक सीखेगे । चेतावनीद्वारा भी राज्य परोक्षरूप से मार्गदर्शक हो सकता है । सरकारी कायोंकी व्यापकतासे नागरिक सदा हो और निहारते रहते हैं। इससे आलस्य, प्रसाद एवं नगतिका
अवरोध होता है । इससे व्यक्तित्व के विकासमे बाधा पड़ती है और नौकरशाही बढ़ती है। इससे कोई कार्य भलीभाँति सम्पादित नहीं होना। राज्य हग्नक्षेप एक आवश्यक विचाररूपमे ही स्वतन्त्रता के लिये मानना चाहिये । नागरिक जीवन में राज्यका न्यूनतम हस्तक्षेप ही व्यक्तिगत स्वतन्त्रताके लिये अपेक्षित है ।।
समालोचक कहते हैं कि मिल 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के दफ्तरमै नौकर और राजनीतिक पत्राका लेखक था। १८५८ मे उसने कम्पनीके शासनके पक्ष में एक प्रार्थनापत्र लिखा था, जिसमें कम्पनीके शासनको न्यायमगत कहा था और १८५९में उसकी 'स्वतन्त्रता' पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसमें उसने व्यक्तिगत स्वतन्त्रताका पूर्ण समर्थन किया था। इस तरह उसके कार्य और विचार बेमेल ये । यह भी कहा जाता है कि १८३२ के पूर्व मध्यमवर्ग के लोगोने सामन्तों की सत्ताका विरोध किया था । १९ वीं शतीम सामन्तोका ह्रास हुआ, परंतु बुद्धिजीवी वर्गकी एक बढ़ती हुई जनशक्तिका विरोध इस आधारपर सम्भव नहीं था । पूँजीपतियो एव मध्यमवर्गीय उपयोगितामे जनताकी उपयोगिता भिन्न थी । अतः जनमतसे भयभीत बुद्धिजीवी के लिये अपेक्षित था कि वह व्यक्तिगत स्वतन्त्रताके नामपर जनमतके हस्तक्षे से बचे । उसी कार्यकी सिद्धि 'स्वतन्त्रता' पुस्तकद्वारा मिलने की । अब तो पूँजीपति एवं सर्वहारा श्रमिकों के बीच पडा मध्यम वर्ग शोचनीय दशामे है । न वह पूँजीपति ही है न तो सर्वहारा ही ! वह स्वयं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता चाहता है। किसीका भी एकाधिकार नहीं चाहता । 'स्वतन्त्रता' पुस्तक मे इसी आवश्यकताकी पूर्ति की गयी है । समालोचकोका यह मी कहना है कि 'मिलका धार्मिक जीवन ही परम्पराओं के विरुद्ध था । इसीलिये उमने व्यक्तिगत स्वतन्त्रताको दार्शनिक रूप दिया ।
हम पहले कह चुके हैं कि 'सर्व परवशं दुःग्वं सर्वमात्मवणं सुखम् ।' (मनु । १६० ) - पराधीनता ही दुःख और स्वाधीनता ही मुख है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता अवश्य ही आदरकी वस्तु है, परंतु यदि मद्यपान, धून आदिकी स्वतन्त्रता व्यक्तियोको होनी चाहिये, तब तो आत्महत्याकी भी स्वतन्त्रता होनी चाहिये ! इसी तरह यदि कोई स्वेच्छानुसार शराब, द्यूतसे परहेज न करे, मॉ, बहन, चेट से भी शादी कर ले या मनमानी प्रेमसम्बन्ध करे तब तो मनुष्यता- पशुतामें कोई अन्तर ही नहीं रह जाता । आहार, निद्रा, भय, मैथुन मनुष्य एवं पशुका समान ही होता है। धर्म ही मनुष्यकी विशेषता है । धर्मविहीन स्वतन्त्रता स्वेच्छाचारिता या उच्छृंखलताके ही रूप में परिणत हो जाती है । सर्पोपाधिविनिर्मुक्त व्रतात्मभाव प्राप्त होने से पहले प्राणीको अवश्य ही धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक विभिन्न नियन्त्रणके परतन्त्र रहना पड़ता है। वास्तविक पूर्ण स्वतन्त्रताके लिये प्राणी को पर्याप्त स्वतन्त्रताना बलिदान करना पड़ता है। अपौरुपेय वेद एव तदनुसारी शास्त्रों के अनुसार विविविदित
कार्यको ही धर्म कहा जाता है । भोजन, पान, शयन, विश्राम, संतानोत्पादनादि सभी कार्योंको शास्त्र-विधिके अनुसार करना ही धर्म है। धर्मनियन्त्रित जीवन से ही पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्ति सम्भव है । इसी प्रकार 'सनकी लोगोंके विचार एवं भाषणकी स्वतन्त्रता' भी उपहासास्पद है। अवश्य ही गुदडीसे भी लाल निकलते है, सनकियो में से भी कोई योग्य, लाभदायक सनकी निकल सकते हैं, परतु सभी सनकियोंको पूर्ण स्वतन्त्रता दे देनेसे तो समाजकी शान्ति ही खतरेमे पड़ सकती है।
इसी प्रकार तर्कका आदर अवश्य उपयोगी हो सकता है, परंतु कुछ नियमोको मानकर ही तर्कका प्रयोग करना पड़ता है । फिर तर्कका कुछ अन्त भी नहीं है ! जीवनमे विश्वासका भी तो कही स्थान है । यदि बाजारमे खडे होकर राजद्रोहपर तर्क करनेकी स्वतन्त्रता दे दी जाय तो क्या शान्ति सुरक्षित रह सकेगी ? इसी प्रकार बहुत-सी निश्चित वस्तुएँ भी है । साता, पिता, गुरुजनोद्वारा उन्हे जानकर प्राणी आगे बढ़ता है। निश्चित वस्तुओमें भी तर्कका प्रयोग करके वह अपने समयका अपव्यय ही करेगा । वैज्ञानिकोको भी साम्राज्य तथा कुछ वैज्ञानिक नियमोको मानकर ही नयी खोजकी ओर बढना पड़ता है। पूर्वके अन्वेषणको ही अपने अनुभवसे अन्वेषण करना व्यर्थ ही होगा। यदि कोई अपने अनुभवपर ही संखियाके स्वाद और गुणके निर्णय करनेका हठ करेगा, तो उस-जैसे लक्षो व्यक्तियोको जीवनसे हाथ धोना पडेगा और लाभ कुछ न होगा । काले नागके काटने और उसके विषका परिणाम अनुभवद्वारा ही समझनेका प्रयत्न करना मूर्खता है। स्पष्ट है कि इस सम्बन्धर्मे शिष्टोंके अनुभवोका सदुपयोग करना उचित है । इसी प्रकार जिन दुराचारो, दुर्गुणो, पापोकी अग्राह्यता पूर्वजोके अनुभवोसे सिद्ध है उनपर विश्वास न करके पहले पाप, दुराचार करनेकी छूट देना अमानवता है।'हिंदू विचारोके अनुसार मद्यपानसे ब्राह्मणका ब्राह्मणत्व ही नष्ट हो जाता है। फिर लौटना असम्भव ही होता है । इसी प्रकार एक बार पतिव्रताका सतीत्व चले जानेसे पुनः उसका लौटना सम्भव नहीं । अतः पापोका दुष्परिणाम देखनेके लिये पाप करने की छूट देना बुद्धिमानी नहीं ।
परम्पराके अनुसार एक ढंगका सस्कार वन जानेपर तद्विरुद्ध प्रवृत्ति होती ही नहीं । फिर विरुद्ध प्रवृत्ति कराकर दुष्परिणाम अनुभव करके उससे निवृत्त होने की व्यवस्था करनी वैसी ही होगी, जैसे कंटक चुभ्ाकर पीडा अनुभव करके पुनः कंटकनिष्कासन-जन्य स्वास्थ्यका अनुभव करना । इसकी अपेक्षा अपनी बुद्धि एव समयको किसी अन्य उपयोगी काममे लगाना ही श्रेयस्कर है । जिनकी परम्पराओमे मद्य-मासका प्रचलन नहीं है, वहाँके बच्चों को उस सम्बन्धके न तो संस्कार ही होते हैं, न इच्छा ही होती है। प्रत्युत निषेध ही सस्कार होते हैं । उनके उस मस्कारको दृढ बनाने में ही कल्याण है । अतितार्किकको सर्वतोऽभिशकी हो जाना
पड़ता है । फिर तो भोजनमे भी विपकी कल्पना होने लगती है। कई लोग बालकी खाल की खींचते रहते हैं। वे अपने और दूसरोका समय व्यर्थ ही अपव्यय करने रहते हैं । कितने ही जिद्दियोंको तर्क करनेकी स्वाधीनता देनेपर तत्त्व-निर्णय न होकर विवाद ही बढता है । चरित्रोंकी भिन्नता एव शकियोंकी वृद्धि समाजकी प्रगतिका लक्षण नहीं; किंतु निश्चित एव उपयोगी गुणोंकी समृद्धि ही प्रगतिका लक्षण है। भिन्नताकी अपेक्षा गुणात्मक समृद्धिपर ही जोर देना आवश्यक है। योग्य वातावरण, उच्चकोटिकी शिक्षा एव सदाचार के द्वारा ही उच्चकोटिका चारित्रिक सघटन होता है और यही राष्ट्रकी प्रगति है । शक्कियाँकी स्वतन्त्रता मे चरित्र में भिन्नता भले ही आ जाय, परंतु चारित्रिक उच्चता में कोई सहायता न मिळेगी । इसी प्रकार भले राजकीय नियम कम से कम हों, परंतु धार्मिक, सामाजिक नियमोद्वारा सदा ही व्यक्तियों को उच्छृंखल जीवनसे बचाना अनिवार्य है। अवश्य ही रामराज्यकी दृष्टिमे सभी सम्पत्तियों एवं कार्योंका सरकारीकरण अनुचित है। तथापि विशिष्ट शिष्टो एव शास्त्रों का मार्ग दर्शन समाजकी प्रगतिमे सदा ही सहायक होता है। प्रगति बाधक तत्वोंका निराकरण राज्यका अवश्य कर्तव्य है। विकासवादियो एवं आधुनिक विचारकोका सबसे बड़ा दोष यह है कि वे पूर्व-पूर्व के निर्णयो एच सत्यको निम्नस्तरका तथा उत्तरोत्तर निर्णयों एव सत्योंको उच्चकोटिका मानते हैं । इसीलिये वे सदा ही निश्चित विषयमे भी खोजते रहते हैं। वे इसी दृष्टिसे झकियोंसे भी नवीन ज्ञानकी आशा रखते हैं और नयी-नयी व्यवस्था ऑकी खोजमें लगे रहते हैं। परंतु प्रमाणद्वारा प्रमित तत्त्व किसी भी कालान्तर या देशान्तरमें अन्यथा नहीं हो सकते । इस दृष्टिसे अपौरुषेय वेदो, तदनुसारी आर्ष ग्रन्थों तथा सर्वज्ञकल्प महर्षियो, राजर्पियोने अपने ऋतम्भरा प्रजा एव सफल प्रयोगोद्वारा. जिन नियमो, व्यवस्थाओं को समाजके लिये लाभदायक समझा, वे त्रिकालाबाध्य सत्य एवं उपयोगी हैं। उनका अनुसरण करना समाज एच तघटक व्यक्तियोंका कर्तव्य है ।
गास्त्र एव समाज स्थिर वस्तु है । उनका धार्मिक, सास्कृत स्वरूप एव सभ्यता स्थिर वस्तु है और राज्यलक्ष्मी अस्थिर वस्तु । विशेषतया राज्यसत्ताको हथियाने के लिये सभी लोग प्रयत्नशील होते हैं। जिस ढगकी विचारधारावालोंका बहुमत होता है, उन्हींका शासन होता है। फलतः वे शासन, शिक्षा, सम्पत्ति, वर्म सभीको अपने हाथमे लेना चाहते हैं। कहना न होगा कि उक्त तीनो विषयों में सरकारी हस्तक्षेप होनेसे समाजकी संस्कृति, सभ्यता एव धर्ममें सर्वथा रद्दोबदल हो जाता है, फिर समाजकी स्थिरता भी नष्ट हो जाती है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि 'अच्छे ही लोगोंके हाथमे शासन सत्ता जाती है ।" अनुभव तो यह है कि शान्तिप्रिय विचारक, गम्भीर विद्वान्, जाल- फौरेब न करनेवाले पीछे रह
जाते हैं। जाल- फौरेववाले अयोग्य लोग आगे आ जाते हैं । ऐसी स्थितिमें विभिन्न शासनोंके बदलनेके साथ यदि सभ्यता, संस्कृति, शिक्षामे भी रद्दोबदल होता जाय, तब तो समाजकी एकरूपता, स्थिरता असम्भव हो जायगी। बहुत-से लोग विकासवादी नियमानुसार उत्तरोत्तर प्रगतिका ही सिद्धान्त मानते है, परतु इस मतम फिर मनुष्य के प्रमाद, पुरुषार्थकी विशेषता नहीं रह जाती । परंतु वस्तुस्थिति यह है कि प्रमाद और सावधानी से पतन एव अभ्युदय स्पष्ट परिलक्षित होते हैं । अतः हर चीजका भार राज्यपर छोड़ देना उचित नहीं । सामाजिक एव वैयक्तिक जीवन में राज्यका क्म-से-कम हस्तक्षेपवाला सिद्धान्त शास्त्र - सम्मत है । फिर भी धार्मिक, सामाजिक नियमोका पालन तो सबके लिये अपेक्षित होगा ही । न्याय, सुरक्षा, समष्टि स्वास्थ्य, सुव्यवस्था, सफाई आदिका काम सरकार कर सकती है । आज तो राष्ट्रके प्रत्येक जीवन क्षेत्रमे सरकार ही हावी होती जा रही है । व्यक्ति गामनयन्त्रका एक नगण्य कल-पुर्जा बनता चला जा रहा है । उसे व्यक्तिगत विकास- विचार आदिकी कोई भी स्वतन्त्रता नही । मिलकी दृष्टिसे 'मद्य-पान, द्यूत आदि व्यक्तिगत समझे जानेवाले कार्योंका भी समाजपर असर पड़ता ही है।' धन एव समयका यदि अनुचित कार्यो में अपव्यय न कर किसी उचित कार्यमे व्यय किया जाय तो अवश्य ही उससे समाजका लाभ हो सकता है। एक व्यक्तिके भी दुराचारी होने से समाज दूषित होता है । अन्य लोगोपर भी उसके दुस्संस्कार पडते हैं, फिर जब व्यक्तियोका समुदाय ही समाज है, तब तो व्यक्ति के दूषित होनेसे समाज दूषित होगा ही । मिलके इस स्वतन्त्रता-प्रेमका भी आधार रूमोका यह वाक्य है कि मनुष्य स्वतन्त्र जन्मा है, किंतु सभी ओरसे बेड़ियोंसे जकडा हुआ ।' इसका सार यही है कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सामाजिक, बन्धन परस्पर विरोधी है । किंतु भारतीय भावनासे स्वतन्त्रता-प्रेम स्वाभाविक है और वह है परम व्येय एव प्राप्य, परंतु उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिये पर्याप्त स्वतन्त्रताका वलिदान कर धार्मिक एवं सामाजिक सभी बन्धनोको अगीकार करना परमावश्यक है। अधिक मुनाफा पानेके लिये व्यापार आदिमें पर्याप्त धन व्यय करना पडता ही है । अतएव रूसो भी तो वास्तविक स्वतन्त्रता राज्य नियन्त्रणसे मानता ही था । इस दृष्टि से व्यक्ति एवं समाजका परस्पर पोष्यपोषक भाव ही हैं, विरोध नहीं । लौकिक दृष्टिसे भी कई स्वतन्त्रताऍ परस्पर विरोधी होती हैं । वहाँ समझौतासे काम चलता है । सर्वथापि समष्टि हिताविरोधेन स्वतन्त्रताका उपयोग ही सदुपयोग है।
विचार और भापणकी स्वतन्त्रता बहुत आवश्यक है । भारतीय सिद्धान्तोमे उसका मदा ही अत्यन्त आदर था । इस देश में चार्वाक, शून्यवाद, द्वैती, अद्वैती आदि अनेक प्रकारके परस्पर विरुद्ध दार्शनिक हुए हैं। उनमें विचार-संघर्प
चलता रहा, परंतु किसी के विचार या भाषणपर प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाता था । यहाँ ईसा, सुकरातकी तरह विचार-भेद के कारण किसीको फॉसीपर नहीं लटकाया जाता था । रामराज्यमें एक रजकको अखण्ड भूमण्डलके लोकप्रिय सर्वजनरजन रामकी परम साध्वी सीताके विरुद्ध भी विचार रखने एव भाषण देनेपर प्रतिवन्ध नहीं या । राम चाहते तो उसे दण्ड दे सकते थे । लौकिक मनुष्य, वानर, भाल, राक्षस तथा अलौकिक महर्षि, देवता, सिद्ध, इन्द्र, ब्रह्म, रुद्र, आदिके सामने जिनकी अग्नि परीक्षा हो चुकी, उनके विरुद्ध एक रजक बोल सका । रामने यही सोचा कि 'टण्डके द्वारा एक मुख वद किया जायगा तो हजारों मुखासे वही आवाज निकलेगी ।" व्यवहारद्वारा ही जनता या व्यक्ति के विचार या भाषण बदले जा सकते है, दण्डद्वारा नहीं । फिर भी उसकी कुछ सीमा उचित है । असम्बद्ध अहितकर विचारो एव भाषणोका दुष्प्रभाव समाजपर पड सकता है । अतः समष्टिहित के लिये उसमे भी एक सीमा उचित ही है । 'सनकीके भाषणसे भी कोई चीज अच्छी मिल सकती है।' इसका इतना ही अभिप्राय है कि 'बालादपि सुभापितं ग्राह्यम् एक अबुद्ध बालकसे भी सुभाषित ग्रहण करने में कोई हर्ज नहीं । इसका यह अभिप्राय नही कि पागलोके बढ़ाने और उनके भाषणोकी व्यवस्था की जाय, उसमे समयका अपव्यय किया जाय ।
ज्ञानपिपासा अवश्य अच्छी चीज है, परंतु बहुत-सा ज्ञानभार भी लाभदायक नहीं होता। ईश्वरद्वारा निर्मित एव नियमित विश्व के कल्याणोपयोगी सभी आवश्यक विषयोका प्रबोध ईश्वरीय शास्त्रो एव सर्वज्ञ महपियोकी ऋतम्भराप्रज्ञाओद्वारा सुलभ है। महाभारतकारका कहना है कि जो भारत ग्रन्थ में है, वही अन्यत्र है, जो यहाँ नही है, वह कहीं नहीं है -- 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ।' फिर भी एक सीमाके साथ उसपर स्वतन्त्र तर्क करने की परम्परा मान्य ही है । जहाँसे शास्त्रोकी परम्परा टूट गयी थी और शास्त्रीय देशोसे भी सम्पर्क टूट गया था, वहॉ अन्वेषणकी उत्कृष्ट लगन लाभदायक सिद्ध हुई है । यह बात अवश्य है कि किसी परम सत्यपर बिना पहुॅचे और बिना दृढ निश्चय किये समाजकी स्थिरता एव सुखशान्तिका स्थायित्व नहीं हो सकता । दौड दौडके लिये नहीं, श्रम श्रमके लिये नहीं; किंतु परम विश्राम के ही लिये होना चाहिये । 'सत्य किसीकी बपौती नहीं' परतु किसीकी इच्छा अनुसार उसमे रद्दोबदल भी नहीं होता रहता । एक रज्जुमे रज्जु ज्ञान ही यथार्थ है । रज्जुमे सर्पका ज्ञान, धाराका ज्ञान, मालाका ज्ञान अयथार्थ ही है । इन ज्ञानोमे समझौता नहीं हो सकता । देह ही आत्मा है या देहभिन्न आत्मा है, चेतन आत्मा है या अचेतन. व्यापक आत्मा है या अणु अथवा मध्यम परिमाण है, आत्मा असग है या कर्ना-भोक्ता
? इन सभी विचारोका समान दृष्टिकोणसे समान सत्तामे समन्वय नहीं हो
सकता । अवस्थाभेद, दृष्टिभेद, सत्ताभेदसे समन्वयकी बात अलग है । फिर विचार के लिये अनेक पर्योका उत्थापन तत्त्व-अतत्त्वका विवेचन आवश्यक होता ही है ।
इसी प्रकार हरबर्ट स्पेन्सरने (१८२०-१९०३) डार्विनके विकासवादके अनुसार बतलाया कि 'विश्वका विकास एक अनिश्चित असम्बन्धित एकत्वसे निश्चित और सम्बन्धित विभिन्नताकी ओर हो रहा है ।" उसके मतसे समाजका विकास भी इसी ढगसे हुआ है । प्राचीन समाजमे एकत्र था, परंतु था अनिश्चित एव असम्बन्धित । आधुनिक समाज विभिन्नता के साथ निश्चित एव सम्बद्ध है । जीवका विकास भी एक निम्नप्राणी से उच्चकोटिके प्राणीकी ओर हुआ है । पहले एक सूक्ष्म अणुके द्वारा ही खाना, पीना, श्वास लेना आदि काम होता था। प्रगतिके फलस्वरूप विभिन्न अणुओका जन्म हुआ । इनके द्वारा विभिन्न क्रियाएँ होने लगीं । अणुओमे कार्य-विभाजन हो गया । समाजका विकास भी इसी तरह हुआ ! पहले समाजमे कार्य विभाजन नहीं था । जीवन सम्बन्धी सभी कार्योको एक व्यक्ति सम्पादित करता था । विज्ञानकी प्रगतिसे समाजके कायोका विभाजन हो गया । आजका कार्यविभाजन जटिल हो गया । इसीलिये समाजके अंग अन्योन्याश्रित हो गये । पहले भी मनुष्य समूहरूपमे रहते थे। कुछ मात्राके नष्ट होनेपर कोई स्थायी प्रभाव नहीं पडना था । परंतु आज तो यदि रेल या मिलोके श्रमिक कार्य बद कर दें तो समाजपर उसका भीपण प्रभाव पड़ता है । स्पेन्सरके मतानुसार यह कार्य-विभाजन आन्तरिक एवं अपरिवर्तनीय हैं । इस आन्तरिक कार्य विभाजनकी गतिमे राज्यको हस्तक्षेप न करना चाहिये । इस कार्यविभाजनसे समाज स्वय प्रगतिशील होगा । यह जीवशास्त्रका सुप्रसिद्ध नियम है कि 'योग्य ही जीवित रहेगा ।"
इस तरह उक्त महानुभाव जो सामाजिक वातावरण के अनुकूल अपना जीवन यापन कर सकते हैं, वे ही जीवित रहकर उन्नतिमें सफल होते हैं। वर्षाऋतुमें अनन्त कीडे उत्पन्न होते हैं। वर्षाके अनन्तर ये नये वातावरण के अनुकूल अपनी जीवन व्यवस्थामे परिवर्तन नहीं कर सकते, इसीलिये मर जाते हैं । स्पेन्सर कहता है कि 'गरीब वही है, जो जीवनको सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल संचालित करनेमें असफल होता है । जो योग्य होता है वही सफल होता है। योग्य अनुपयुक्त वातावरणमे भी सफलता प्राप्त करता है । अयोग्य व्यक्ति परिस्थितिके शिकार होते हैं । अयोग्य प्राणियोके समान ही अयोग्य व्यक्ति भी समयानुसार जीवन-यापनमें असफल होते हैं। जैसे अयोग्य प्राणी मृत्युके शिकार होते हैं, वैसे ही अयोग्य मनुष्य निर्धन एवं निर्बल होते हैं। संघर्ष में पिछड़ जानेवाला ही गरीब होता है । योग्य ही जीवित रहता है। इस प्राकृतिक नियममे राज्यको हस्तक्षेप नहीं करना
चाहिये । स्पेन्सरके मतानुसार 'एक गदी वस्तीके निवासियों को उनके माग्यपर छोड देना चाहिये । जो व्यक्ति योग्य होंगे, वे इस प्रतिकूल वातावरणमे भी जीवित रह सकेंगे। प्रतिकूल बीमार होकर मर जायेंगे। राज्यको स्वच्छता, जल और अन्नका प्रवन्ध नहीं करना चाहिये । अयोग्य सवपसे त हो जायगा, योग्य वच जायगा ।' यह सिद्धान्त मानवताके विरुद्ध है। किसी भी बीमार प्राणीकी सहायता करना या कम-से-कम उसे स्वावलम्बी बनने में सहायता करना एक मनुष्यता है । किसी परिस्थितिमे रुग्ण, मूच्छित प्यासे तथा असहाय आदमी या प्राणिमात्रकी सहायता करना भारतीय शास्त्रों के अनुसार विश्वधर्म है।
एकसत्तावाद भी एक राजनीतिक वाद है । इसके अनुसार एक प्रादेशिक राशिमें केवल एक ही सर्वोच्च सत्ताधारी व्यक्ति विशेषका व्यक्तिमय होता है। सभी नागरिक एवं सस्थाएँ इस सत्ताधारी संस्थाके आधीन होती हैं। राज्यको राजसत्ताधारी संस्था मानने वाले दार्शनिक 'अद्वैतवादी' या 'एकसत्तावादी' कहलाते हैं। राज सत्ता' शब्द श्रेष्ठता अर्थमे प्रयुक्त होता है। तदनुसार श्रेष्ठता राज्यकी विशेषता है, अन्य किन्हीं भी सस्थाओंका कोई भी स्वतन्त्र अस्तित्व मान्य नहीं होता । राज्यके पास ही पुलिम, जेल, न्यायालय होते हैं । आजोल्लङ्घनका दण्ड राज्य देता है। इसकी सदस्यता भी सबके लिये अनिवार्य है। राज्य ही नियम-निर्मात्री संस्था होती है । वह राज्य संस्था किसी नियम या परम्पराके आधीन नहीं होती । राजाजापालन नागरिकोके लिये अनिवार्य है । बहुलवादी दर्शनराज्यको राजसत्ताधारी तो मानता है, परंतु वह सत्ताको सप्रतिबन्ध मानता है । १६ वीं शतीके एकसत्तावादने ही विवादास्पद राज्यसत्ताकी व्याख्या की है। गियर्क राजसत्ताको एक 'जादूकी छडी' मानता है । राज्यका सर्वश्रेष्ठ सचालक ही राजसत्तावा प्रतिरूप है । वह पूरे देशपर अपनी नीति और योजनाओको लाद सकता है । सभी दल निर्वाचनमें नागरिकोंसे मत प्राप्त करके कर्णधार बनना चाहते हैं । तरह-तरह की प्रतिज्ञा करते हैं। राज्य राजसत्ताधारी है । इसी आधारपर यह सच होता है। जो भी राज्याधिकारी होगा, वह राज्यसत्ताका उपयोग अपनी योजनाओंकी पूर्ति के लिये वरता है, जैसे मदारी जादूके डडेद्वारा पिटारीसे अनेक चीजें निकालता है । नागरिक जादूके डडेके तुल्य ही कुछ समझ नहीं पाता और राजनीतिजाके जाल में फॅस जाता है ।
यूरोपभरमे १६ वीं शतीसे पूर्व धार्मिक विषयोमें पोपा तथा अन्य विषयो में रोमन सम्राट् का सर्वोच्च स्थान होता था । राष्ट्रीयताके आन्दोलनसे मामन्तवादका हास हुआ, केन्द्रीय सरकार शक्तिशाली हुई और प्रत्येक राष्ट्रमे स्वतन्त्र सत्तावारी सरकारी और नेताओ ( राजाओं ) का जन्म हुआ । चोदॉके धर्मसुधार आन्दोलन मे |
320782f4f70a20556e2b1b4fae9c1a5ed6a22aed | web | एक महत्वाकांक्षी प्रबंधक जो ईमानदारी पर है औरवह प्रबंधन में उत्तराधिकार में एक रेस्तरां व्यवसाय बनाने में कामयाब रहे; मिखाइल ज़ेलमैन पहले ही दो साल के लिए धूमिल अल्बियन में रहने चले गए थे, अपने सहयोगियों को सभी रूसी संपत्ति बेच रहे थे। लंदन में, वह सफलतापूर्वक एक रेस्तरां श्रृंखला का प्रबंधन करता है और इंग्लैंड में व्यावसायिक संस्कृति पर प्रशिक्षण आयोजित करता है। मांस का प्यार, इसकी तैयारी, और फिर कमाई - ये इस सफल उद्यमी की सफलता के प्राथमिकता वाले घटक हैं। मिखाइल पश्चिमी बाजार में प्रवेश करने वाले पहले लोगों में से एक था, जिसने ट्रेनों में लंच बॉक्स बेचने की पेशकश की और मेनू पर "एक डिश" की अवधारणा के साथ आया।
सार्वजनिक मामलों में एक भविष्य के प्रर्वतक का जन्ममास्को में 1977 में भोजन। 15 साल की उम्र में, एक बाहरी छात्र ने स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और तुरंत एक वस्तु विनिमय के लिए दलाली कार्यालय में काम करने चला गया। वह राज्य रिजर्व को भोजन की आपूर्ति में शामिल था। उसी समय उन्होंने रेस्तरां के मुद्दों में शामिल होना शुरू कर दिया और, यदि संभव हो तो, मवेशी खेतों और गोमांस उत्पादन केंद्रों का दौरा किया, जहां उन्होंने मांस व्यवसाय का अध्ययन किया।
एक्सचेंज के युवा कर्मचारी के लिए कामरेडगंभीर नहीं है। लेकिन फिर भी वे उसे सोची होटल "पर्ल" में वाउचर बेचने के व्यवसाय में ले गए। मिखाइल ने एक साक्षात्कार में कहा कि उनका पहला व्यावसायिक साझेदार 10 वर्ष का था, और व्यवसाय की बारीकियों को सीखने की इच्छा ने ज़ेलमैन को अक्सर चुप रहने दिया और वाणिज्य के मामलों में अपने सहयोगियों के साथ विरोधाभास नहीं किया।
हालांकि, यह लंबे समय तक नहीं चला। पहले से ही 22 साल की उम्र में, युवक ने महानगरीय बोहेमियन "सैन मिशेल" के लिए उस समय का पहला फैशनेबल रेस्तरां खोला। चार साल बाद (2003 में) उन्होंने पूरे होल्डिंग अर्पिकॉम की स्थापना की और "बेस्ट रेस्ट्रॉटर" पुरस्कार के विजेता बने।
शिक्षा से, मिखाइल ज़ेलमैन एक वकील है। उन्होंने वेटर, कुक, sommelier और एकाउंटेंट के रूप में पाठ्यक्रमों में भी महारत हासिल की।
माइकल के पिता, विटाली याकोवलेविच, सोवियतएक वैज्ञानिक, एक समय में इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस मेडिसिन में इंस्ट्रूमेंटेशन के क्षेत्र में काम करता था। ओलंपिक 68 से पहले, उत्तरी काकेशस में सोवियत सवारों की एक टीम को प्रशिक्षित किया गया था। एक जूनियर रिसर्च ऑफिसर विटाली याकोवलेविच को वहां आमंत्रित किया गया था, जिन्होंने एथलीटों को उच्च-ऊंचाई की स्थितियों के लिए अनुकूल करने के लिए एक कार्यक्रम विकसित किया था, जिन्होंने अंतरिक्ष यात्री के रूप में समान संवेदना, तनाव और ऑक्सीजन भुखमरी का अनुभव किया था। प्रशिक्षण शिविर में, तीस वर्षीय पिता मिखाइल को एक वरिष्ठ रसोइया नियुक्त किया गया था। जिस व्यक्ति ने कूपन रद्द करने के बाद पहली बार सॉसेज की कोशिश की, उसे अपने दम पर मेमने के शवों को प्राप्त करना था, और फिर उन्हें पकाना।
कोकेशियन मेहमाननवाज लोग हैं, उन्होंने जल्दी से परिचय दियानौसिखिया रसोइये के मामले में, और मास्को लौटने पर मिखाइल याकोवलेविच ने अनुसंधान छोड़ दिया और सरसों, सहिजन और मांस के उत्पादन के लिए एक सहकारी बनाना शुरू कर दिया।
तब पिता ने माँस पकाने का प्यार पैदा किया औरबेटा। मिखाइल ज़ेलमैन, एक संयोजक जिन्होंने एक अद्वितीय मोनोबॉड मेनू अवधारणा विकसित की है, एक लड़के के रूप में एक स्वादिष्ट बारबेक्यू चुनना और खाना बनाना सीखा है। और यह उसके पिता की योग्यता है।
1999 में, थिएटर से दूर नहीं। स्टैनिस्लावस्की ने फ्रांसीसी रेस्तरां "सैन मिशेल" खोला। वाइकिंग्स के लिए अभेद्य के रूप में, नॉरमैंडी में एक किले के साथ नामांकित चट्टानी द्वीप और उस समय फ्रेंच रेस्तरां के साथ खोला मास्को रेस्तरां मध्यम आय वाले लोगों के लिए उपलब्ध नहीं था। फैशनेबल जगह सस्ती नहीं थी और बोहेमिया की राजधानी की बैठकों के लिए अभिप्रेत थी। उदाहरण के लिए, बैरबेरी बतख की कीमत $ 95, और शराब की एक बोतल - $ 400 है। इसी समय, इंटीरियर को IKEA से फर्नीचर से सुसज्जित किया गया है, और पूरे प्रोजेक्ट की लागत शुरुआती व्यवसायी की लागत $ 1 मिलियन है।
मिखाइल ज़ेलमैन ने बाद में अपने पहले अनुभव को याद किया।"गलतियों का क्लासिक" के रूप में रेस्तरां का उद्घाटन। मुख्य चूक फ्रांसीसी व्यंजनों के व्यंजनों के साथ एक खानपान स्थान का निर्माण है, जब देश में भोजन की विशेषता नहीं थी।
एक दयालु व्यक्ति एक अच्छी तरह से खिलाया हुआ व्यक्ति है।
2004 में, एक बोहेमियन जगह को बदल दिया गयामोनोपेक्टर स्टेक हाउस गुडमैन। रेस्तरां की मुख्य अवधारणा मांस से विशेष रूप से व्यंजन तैयार करना था। विचार के लेखक ज़ेलमैन मिखाइल थे। गुडमैन के रेस्तरां ने न केवल रूसी लोगों को स्टीक संस्कृति से परिचित कराया, बल्कि रचनात्मक विज्ञापन के वाहक भी थे। विपणक का कार्य मांस पकाने में टीम की व्यावसायिकता पर जोर देने की आवश्यकता थी। जल्द ही विज्ञापन बैनर पर "हम मीनार बनाने में सक्षम हैं" का नारा दिया गया। सार्वजनिक प्रतिक्रिया एक सफलता थी - 2004 के अंत तक, गुडमैन प्रबंधकों ने एक कॉर्पोरेट नेटवर्क बनाना शुरू किया।
इस नेटवर्क के रेस्तरां व्यापार में खुलने लगेकेंद्र, जो 2006 के समय में एक गैर-मानक घटना थी, अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमा के साथ पुरस्कृत और क्षेत्रीय बाजारों में प्रवेश करती थी। 2008 की सबसे महत्वपूर्ण परियोजना पश्चिमी बाजार में गुडमैन रेस्तरां का प्रवेश था। लंदन में स्टेकहाउस का उद्घाटन और 2010 में स्विट्जरलैंड में।
"अर्पिकोम" की स्थापना माइकल ने 2003 में की थी,कंपनी ने चार रेस्तरां व्यवसायों और कॉम्फिस प्लांट को मिलाया। 2010 में, होल्डिंग ने समूह की कंपनी फूड सर्विस कैपिटल में प्रवेश किया। स्टेक हाउस खोलने के अलावा, मिखाइल ज़ेलमैन ने व्यवसाय के लिए क्या विचार रखे? टॉयलेटरी लेखक, जिसका परिवार रिश्तों और शांति का सामंजस्य है, ने गैर-वैकल्पिक मेनू की अवधारणा को शब्द के अच्छे अर्थों में जारी रखा। एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्य, एक जापानी रेस्तरां के मेनू से व्यंजन चुनते हैं, अक्सर एक आम भाषा नहीं पा सकते हैं, क्योंकि पसंद एक नर्वस मामला है। यही कारण है कि मिखाइल ज़ेलमैन की टीम अपने रेस्तरां के मेहमानों के लिए विकल्प बनाती है।
इसके खाने की अविश्वसनीय जगहों के आगंतुक केवल उस उत्पाद को चुन सकते हैं जिसे वे स्वाद लेना चाहते हैं।
उपद्रव के दो साल बादएक स्टीकहाउस के उद्घाटन के लिए, मिखाइल फिलिमोनोवा और यांकेल नामक रेस्तरां में मछली के व्यंजन पकाने का व्यवसाय शुरू कर रहा है। मेहमानों को लॉबस्टर, सीप, ट्राउट, सामन, टर्बोट की कोशिश करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, और उत्पादों की ताजगी की गारंटी हॉल में आइस शोकेस द्वारा की जाती है जहां सबसे अच्छे मछली उत्पादों को ठंडा किया जाता है।
अद्वितीय की दिव्य परंपरा को जारी रखनाएक रेस्तरां प्रारूप में, मिखाइल एक कोलेबसॉफ़ बीयर प्रतिष्ठान खोलता है, जहां मेनू में विश्व बियर और ब्रांडेड सॉसेज शामिल हैं। अपने काम और इतालवी परंपराओं "मॉम के पास्ता" के साथ एक पारिवारिक रेस्तरां शुरू किया।
लंदन में, ज़ेलमैन ने बर्गर एंड लॉबस्टर की स्थापना की - रेस्तरां की एक श्रृंखला जहां बर्गर और लॉबस्टर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में विभिन्न व्यंजनों में प्रस्तुत किए जाते हैं। किसी भी डिश की कीमत 20 पाउंड है।
एकीकृत विद्युत नेटवर्क (CAP)
माइकल ने लोगों के स्वस्थ पोषण का ख्याल रखाजो सैकड़ों किलोमीटर से अधिक दूरी पर काम करने को मजबूर हैं। इसके लिए उन्होंने एक प्रोजेक्ट बनाया, जो कमर्शियल और स्टेट बिजनेस का मेल है। सीएपी रूस की रेलवे और एयरलाइन कंपनियों के लिए तथाकथित राशन (प्रति भोजन औसत हिस्सा) की आपूर्ति करता है।
सेंट पीटर्सबर्ग के पास कारखाने में दोपहर के भोजन के बक्से विशेष उपकरणों पर तैयार किए जा रहे हैं, जो आउटलेट पर सुरक्षित और स्वादिष्ट व्यंजन सुनिश्चित करता है।
माइकल की पसंदीदा चीज मांस खाना है। उसे इस विचार से अविश्वसनीय आनंद मिलता है कि वह लोगों को खाना खिला सकता है। जब यूलिया की पत्नी मिखाइल ज़ेलमैन रूस में रहती थी, तब एक दिन वे ख़ुशी से मास्को क्षेत्र में अपने उज्ज्वल देश के घर में मेहमान आए। मिखाइल ने खुद को सब कुछ तैयार कियाः उसने मांस खरीदा, मसाला उठाया, आग लगाई। उन्होंने अपनी पूरी आत्मा को मांस प्रसन्न करने की तैयारी में लगा दिया!
माइकल भी पेशेवर रूप से टेबल टेनिस में लगे हुए हैं, इसलिए पिंग-पोंग का खेल अपने खाली समय में पसंदीदा गतिविधियों में से एक बन गया है।
एक असली आदमी की तरह, ज़ेलमैन को शिकार करना पसंद है, और विशेष रूप से दोस्तों की पूरी आँखें, जब वह उन्हें ताजे भोजन के साथ पालता है।
माइकल का सबसे पसंदीदा व्यवसाय विकास हैरेस्तरां साम्राज्य। एक ईमानदार व्यवसायी, एक सभ्य व्यक्ति, एक उदार नियोक्ता और अपने क्षेत्र में एक पेशेवर, वह कभी भी व्यवसाय को नहीं बचाता है, लेकिन केवल लाभप्रद रूप से निवेश करता है।
लंदन में रहते हैं, माइकल प्रशिक्षण आयोजित करता है,मास्टर कक्षाएं और नौसिखिया महत्वाकांक्षी restaurateurs के साथ अपने अनुभव को साझा करता है। लेकिन निजी जीवन के रहस्यों को गुप्त रखा जाता है। एक बार एक बहुत प्रसिद्ध पत्रिका में, उन्होंने मांस और उसके खाना पकाने की लत के बारे में, रेस्तरां के व्यवसाय के बारे में बात की और कहा कि उनकी भावी पत्नी को इस उत्पाद से प्यार करना चाहिए। जाहिर है, वह अभी भी अपने सपनों की महिला को अपने हितों को साझा करते हुए पाया। वह एक प्रसिद्ध स्पोर्ट्स कमेंटेटर विक्टर गुसेव की बेटी बनीं।
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aca3bf2a8cabd481bf6706e3a63e0d65989f7645 | web | महिलाओं के भूमि अधिकारों से जुड़े हस्तक्षेप कार्यक्रमों की कमी इशारा है कि समुदाय-आधारित संगठनों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
भूमि तक महिलाओं की पहुंच, स्वामित्व और नियंत्रण उन्हें वित्तीय सुरक्षा, आश्रय, आय और आजीविका के अवसर प्रदान कर सकता है। इसके बावजूद, भारत में इससे जुड़े प्रयासों के लिए आर्थिक मदद और महिलाओं के भूमि अधिकारों (वीमेन्स लैंड राइट्स - डब्ल्यूएलआर) से संबंधित हस्तक्षेप कार्यक्रमों की कमी बनी हुई है।
इस क्षेत्र में वुमैनिटी फाउंडेशन के काम के दौरान, हमने पाया कि ग्रामीण भारत में महिलाएं, कई मुद्दों जैसे घरेलू हिंसा, सरकारी योजनाओं तक पहुंच, कौशल निर्माण एवं विकास जैसे सहयोगों के लिए अक्सर अपने समुदाय से जुड़े संगठनों से संपर्क करती हैं। कहने का मतलब है कि जब महिलाएं के सामने भूमि अधिकारों की बात आती है तो ये समुदाय-आधारित संगठन ही उनके संपर्क का पहला केंद्र बन जाते हैं। दुर्भाग्यवश, इनमें से कई संगठन हस्तक्षेप करने और पर्याप्त सहायता प्रदान करने में असमर्थ होते हैं।
- उनके पास अपेक्षित तकनीकी कौशल और भूमि कानूनों और दावा प्रक्रियाओं की समझ की कमी के साथ-साथ हस्तक्षेप के लिए प्रमाणित रणनीतियों का अभाव भी होता है।
- भूमि से संबंधित कानून और प्रक्रियाएं लगातार विकसित हो रही हैं। उदाहरण के लिए, डिजिटलीकरण की दिशा में सरकार का अभियान कई ऐसे समुदाय-आधारित संगठनों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है जिनके पास ऐसी ऑनलाइन प्रक्रियाओं से जुड़ने के लिए ज्ञान, आत्मविश्वास और कनेक्टिविटी की कमी है।
- भूमि अधिकारों पर काम करते समय, संगठनों को समुदायों के भीतर सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों जैसे जाति, वर्ग, लिंग और राजनीतिक मित्रता के जटिल, बहुस्तरीय कारकों का भी समाधान करने की आवश्यकता होती है, जिससे यह पूरी प्रक्रिया लंबी हो जाती है।
इसके समानांतर, डब्लूएलआर पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त आंकड़ों; व्यापक, कार्य-आधारित शोध, ओपन-सोर्स असेट्स; और सहयोग मंचों की जरूरत होती है जो चिकित्सकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, भूमि और लैंगिक मामलों के विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों समेत विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाते हैं।
यह साफ है कि इस तंत्र के विभिन्न पहलुओं को परिपक्व बनाने की आवश्यकता है। वुमैनिटी फाउंडेशन में, हम जमीनी स्तर पर भूमि अधिकार कार्यक्रमों को लागू करने के लिए विभिन्न समाजसेवी भागीदार संगठनों को फंड मुहैया करवाते हैं। हालांकि, हम इस व्यवस्था के भीतर समाजसेवी संस्थाओं और अन्य संगठनों के एक बड़े समूह के लिए जागरूकता और तकनीकी क्षमता के निर्माण की आवश्यकता और महत्व को भी पहचानते हैं। इस लक्ष्य की दिशा में, हमारी पहलों में से एक डब्ल्यूएलआर कोर्स से क्षमता निर्माण है जो सभी समाजसेवी संस्थाओं के लिए उपलब्ध है। नीचे, हम कोर्स को संचालित करने के अपने अनुभव को रेखांकित कर रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे हमारी सीख हमारे काम को समृद्ध कर रही है।
हमें बहुत पहले ही इस बात का एहसास हो गया था कि हमें समाजसेवी संस्थाओं के एक बड़े समूह को सक्रिय रूप से क्षमता-निर्माण सहायता प्रदान करके पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर किए जा रहे कार्यों को तेज करने और व्यापक बनाने की आवश्यकता है। इससे विशेष रूप से उन लोगों को लाभ होगा जो अनौपचारिक तरीके से भूमि अधिकार के मुद्दों से जुड़े हैं और जिनमें इससे अधिक गहराई से जुड़ने की क्षमता या आत्मविश्वास की कमी है।
ऐसा करने के लिए, हमने महिलाओं और भूमि स्वामित्व के लिए कार्य समूह (डब्ल्यूजीडब्ल्यूएलओ) के साथ साझेदारी में भारत में डब्ल्यूएलआर पर एक औपचारिक पाठ्यक्रम बनाया - 45 संगठनों का एक नेटवर्क जो 2002 से महिलाओं की भूमि तक पहुंच और स्वामित्व पर काम कर रहा है। इसका उद्देश्य डब्लूएलआर पर पूरी जानकारी देने वाला डिजाइन तैयार करना और डब्लूजीडब्ल्यूएलओ के सदस्य संगठनों की सीख को हितधारकों के एक बड़े समूह तक पहुंचाना था। इससे तैयार हुए 90-घंटों के इस पाठ्यक्रम को 2022 में 50 ऐसे समाजसेवी प्रैक्टिशनर द्वारा स्वीकार किया गया जो अपनी समझ को बढ़ाने और अपने प्रोग्रामिंग में डब्ल्यूएलआर को शामिल करने की इच्छा रखते थे।
अधिकांश प्रतिभागी ऐसे संगठनों से संबंधित थे जिन्होंने भूमि अधिकारों से जुड़ा कुछ काम किया था और वे डब्ल्यूएलआर पर काम करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करना चाहते थे। प्रतिभागियों में मिडिल मैनेजर, प्रोग्राम मैनेजर, फ़ील्ड अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद शामिल थे। समुदायों के साथ डब्ल्यूएलआर के बारे में बात करने और मुद्दे से संबंधित कानूनों और प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए सबसे कारगर रणनीतियों की खोज के अलावा, इस पाठ्यक्रम में एक व्यावहारिक तत्व भी शामिल है। प्रतिभागियों को उनके कामकाजी क्षेत्र के भीतर एक डब्लूएलआर परियोजना डिजाइन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके अलावा, डब्लूजीडब्ल्यूएलओ ने, आठ सप्ताह की अवधि में अपनी परियोजनाओं को विकसित करने और निष्पादित करने के लिए उनका मार्गदर्शन भी किया।
पाठ्यक्रम को अच्छी भागीदारी और प्रतिक्रिया मिली, और यह कुछ ऐसा है जिसका समर्थन हम साल 2023 में करना जारी रखेंगे। बहरहाल, हमने महसूस किया कि यह अकेले सभी हितधारकों तक नहीं पहुंच सकता है और न ही आवश्यक प्रभाव डाल सकता है; इसे क्षमता-निर्माण प्रयासों के अन्य तरीकों की मदद से पूरा किए जाने की जरूरत है।
पाठ्यक्रम ने डब्लूएलआर के लिए एक परिचय के रूप में काम किया, विशेष रूप से यह समूह-1 में, कृषि भूमि और विरासत अधिकारों से संबंधित था। प्रतिभागियों से मिले फीडबैक के आधार पर, समूह-2 में अतिरिक्त घटक शामिल किए गए और कई तरह की भूमि और उन्हें नियंत्रित करने वाले कानूनों (उदाहरण के लिए, वन भूमि/वन अधिकार) को शामिल किया गया। लेकिन भविष्य के संस्करणों में विभिन्न धर्मों, जनजातियों और भौगोलिक क्षेत्रों की महिलाओं को शामिल किए जाने में अभी भी बढ़ोतरी की गुंजाइश है।
डब्लूएलआर पर काम करने वाले फील्ड कैडर - समुदायों के लिए संपर्क के प्राथमिक बिंदु - भी समरूप नहीं हैं। उदाहरण के लिए, समुदायों के साथ काम करने वाली कई महिलाएं बहुत अधिक पढ़ और लिख नहीं सकती हैं। इसलिए, यह पाठ्यक्रम अपने वर्तमान रूप में उनके लिए उपयुक्त नहीं है और इसमें बदलाव की जरूरत है। इसने हमें इस विषय पर अपनी सोच को विस्तृत करने के लिए मजबूर किया कि इन मुद्दों पर काम करने वाले विविध कैडरों को व्यक्तिगत तरीके से प्रशिक्षण कैसे दिया जा सकता है।
डब्ल्यूजीडब्ल्यूएलओ पाठ्यक्रम के माध्यम से सीखी गई बुनियादी बातों के अलावा, एक संगठन को उन कानूनों और प्रक्रियाओं के बारे में सीखने से लाभ होगा जो उस क्षेत्र में सबसे अधिक लागू होते हैं जहां वे काम करते हैं और जिन समुदायों के साथ वे काम करते हैं। यह उन्नत पाठ्यक्रमों के डिजाइन और वितरण को प्रभावित करता है, जिसे पर्याप्त रूप से प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता होगी।
प्रासंगिक बनाने का अर्थ प्रासंगिक बनाने का अर्थ उनकी पहचान करना भी है जो स्थानीय रोल मॉडल और संसाधन होते हैं और जो इन संगठनों के साथ काम कर सकते हैं तथा स्थानीय भाषा में उनसे संवाद स्थापित करने में सक्षम होते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तराखंड के अल्मोडा में भूमि अधिकार मामले से निपटने वाले किसी संगठन के पास सहायता के लिए स्थानीय वकील से संपर्क करने का विकल्प है तो वह अपना काम अधिक कुशलता से करने में सक्षम होगा। इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि संगठनों के पास ऐसे स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता हो जो उन्हें अपने कामकाज के क्षेत्रों में डब्ल्यूएलआर कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
वास्तविक और प्रभावी जमीनी कार्यान्वयन के लिए, डब्ल्यूएलआर एजेंडा को समाजसेवी संस्थाओं के सभी स्तरों पर लागू करने की आवश्यकता होगी। प्रोग्रामिंग में अधिक व्यापक बदलाव के लिए संगठन और उनके फील्ड कैडरों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है, जिसमें मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों की महिलाएं शामिल हैं। महिलाओं के इस कैडर की भाषा, समय की कमी आदि जैसी जरूरतों पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
इसलिए, पाठ्यक्रम को सरल बनाने और उसे ऑनलाइन या इलाके, भाषा, भूमि के प्रकार आदि के लिए स्थानीयकृत बनाकर उन तक ले जाने की जरूरत है। इससे प्रतिभागी पाठ्यक्रम को अपनी गति के अनुसार पूरा कर सकेंगे और स्वतंत्र रूप से उसके विकास की प्रक्रिया पर निगरानी रखने में सक्षम होंगे। इसके अलावा, हम इसे स्थानीय लोगों के लिए ज्ञान को लोकतांत्रिक बनाने के एक कदम के रूप में देखते हैं, जो डब्ल्यूएलआर के काम को संगठनों से परे ले जाने में सक्षम बनाएगा। इससे हमें यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि समुदायों में महिलाओं की भूमि तक पहुंच हो और डब्ल्यूएलआर का काम जमीन पर हो रहा हो। और यही हमारा अंतिम लक्ष्य भी है। डब्लूएलआर को सक्षम करने के लिए हस्तक्षेप कार्यक्रमों को लागू करने और भूमि अधिकार परिदृश्य के बारे में संगठनों के ज्ञान में सुधार करने के लिए कैडरों की क्षमता को विकसित करने की जरूरत है। इसलिए, हमारा यह मानना है कि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के अभ्यासकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के अन्य तरीकों को एक साथ अपनाया जाना चाहिए।
अन्य हितधारक क्या कर सकते हैं?
फंडिंग या भूमि अधिकारों पर काम करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसलिए, इस मुद्दे से जुड़े संगठन, विकास-आधारित दृष्टिकोण अपना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, प्रकृति-आधारित आजीविका पर काम करने वाला एक संगठन भूमि-संबंधी मामलों में महिलाओं की भूमिका और निर्णय लेने की स्थिति को समझने के प्रयास से इसकी शुरुआत कर सकता है। इससे उन्हें मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी हासिल करने, समस्या के विस्तार की पहचान करने और जिस काम के लिए वे फंडिंग कर रहे हैं उसका दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए अपने हस्तक्षेप में बदलाव लाने में मदद मिल सकती है।
जब महिला किसानों के पास भूमि पर उनके स्वामित्व से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध होते हैं तो उस स्थिति में भी उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता है। इसलिए, छोटी जोत वाली महिला किसानों के लाभ के लिए तैयार किए गए कार्यक्रम चलाने वाले संगठनों को निश्चित रूप से महिलाओं के स्वामित्व और उनकी भूमि पर नियंत्रण से जुड़े संकेतक बनाना चाहिए। जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय स्थिरता पर काम करने वाले संगठनों का समर्थन करने वाले फंडरों को उनके द्वारा डिजाइन किए गए समाधानों और शमन में महिलाओं की भूमिका पर विचार करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि लैंगिक दृष्टिकोण अपनाने से कार्यान्वयन योग्य, टिकाऊ और समुदायों के ज्ञान और वास्तविकताओं पर आधारित पर्यावरणीय समाधानों का निर्माण संभव है।
आखिरकार, हमें सामान्य रूप से भूमि अधिकारों और विशेष रूप से महिलाओं के भूमि अधिकारों के बारे में हो रही चर्चा में परिवर्तन लाना होगा। वर्तमान में, यह क्षेत्र से अपरिचित लोगों के लिए कठिन हो सकता है और इससे इस क्षेत्र में काम करने वाले मुख्य लोगों को मूल कारण तक संसाधनों की पहुंच को संभव बनाने या उसे निर्देशित करने में मुश्किल होती है। नतीजतन, भूमि की पहुंच से जुड़े (और अक्सर आकस्मिक) कारणों का समर्थन करने के लिए उत्सुक हैं लेकिन डब्ल्यूएलआर के लिए प्रत्यक्ष फंडिंग बिखरी हुई है। डब्ल्यूएलआर से जुड़ी चर्चाओं कि दिशा बदलने से जमीनी स्तर पर वास्तविकताओं में होने वाले परिवर्तन की गति में वृद्धि आ सकती है।
वुमैनिटी फाउंडेशन द्वारा समर्थित यह लेख पहले आईडीआर पर प्रकाशित किया गया है।
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4bfce5c5319dff718088422105d66010f6c0cbfe5414a5dd2b93e24f2a4ca4cb | pdf | साधारण विवरण दे दिया है। उसके सदुपयोग के सम्बन्ध में हमें सर्वप्रथम यही कहना चाहिए कि बुद्धि की उपयोगिता से ही मनुष्यता की प्रतिष्ठा होती है । इस अध्याय के आरम्भ में हम मस्तिष्क - बल की प्रधानता के सम्बन्ध में जो कुछ लिख चुके हैं वह वस्तुतः बुद्धि बल की श्रेष्ठता का वर्णन है । बुद्धि-प्रधान जीव होने के कारण मनुष्य सर्वप्रधान जीव है । हितोपदेश में सत्य ही कहा है कि जिसके पास बुद्धि है, वही बलवान् हैं, 'बुद्धिर्यस्य 'बलं तस्य' । मानव-जगत् में हम प्रत्यक्ष ही देखते हैं कि जो बुद्धिमान् हैं, वे ही स्वतन्त्र, समृद्ध एवं शक्तिवान् हैं। बौद्धिक स्वतन्त्रता से मनुष्य बन्दी - गृह में भी स्वतन्त्र रहता है। गांधीजी उस समय भी सर्वस्वतन्त्र थे, जब सारा देश पराधीन था, क्योंकि वे बुद्धि से स्वतन्त्र थे। गांधीजी निःशस्त्र होते हुए भी अति-शक्तिवान् थे और कौन नहीं जानता कि उस क्षीणकाय मनुष्य ने केवल बुद्धि-साधना से अकेले खड़े होकर दिग्विजेता अंग्रेजों को सात समुन्दर पार खदेड़ दिया। अपने साधारण जीवन में देखिए - किसी कर्म के सम्पादन में एक बुद्धिमान् और एक मूर्ख की शारीरिक क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं होता, केवल बुद्धि का अन्तर होता है, जिसके कारण बुद्धिमान् का कार्य सफल होता है और मूर्ख का विफल :
प्राज्ञस्य मूर्खस्य च कार्य्ययोगे समत्वमभ्येति तनुर्न बुद्धिः । (भास) बुद्धिमान् से कहीं अधिक कठोर परिश्रमी होकर भी मूर्ख केवल इस लिए नहीं सफल होता कि वह कार्य-कुशल नहीं होता । अपनी बुद्धिहीनता और विचारों की दासता के कारण वह परतन्त्र तथा बुद्धिमानों का आश्रित बना रहता है। हितोपदेश में लिखा है कि बुद्धिहीनों से बुद्धिमानों की जीविका चलती है : 'विदुषां जीवनं मूर्खः' ।
बुद्धि की उपयोगिता पर एक दृष्टि से और विचार कीजिए समय सबके लिए एक-सा रहता है, परन्तु बुद्धिमान् व्यक्ति उसी को कामधेनु बनाकर दुहता है और बुद्धि रंक उसको व्यर्थ गंवा देता है। ऐसे व्यक्ति के हाथ से समय जब तीर की तरह निकल जाता है, तब वह सचेत होकर खोए हुए अवसर के पीछे किकर्त्तव्यविमूढ़ होकर दौड़ता है। वही अवस्था नरक है । एक अंग्रेज़ी विचारक ने लिखा है कि अवसर का हाथ से निकल जाना और समय बीतने के बाद यथार्थता का ज्ञान होना ही
नरक है ।
इस नरक से बचने के लिए बुद्धि का समयानुकूल उपयोग आवश्यक होता है । विदुर की जिह्वा पर बैठकर व्यास की सरस्वती ने ठीक कहा है कि सद्बुद्धि द्वारा ही देवताओं का अनुग्रह प्रकट होता है । देवता लोग चरवाहे की तरह डंडा लेकर किसी की रक्षा नहीं करते, वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसको बुद्धिबल से संयुक्त कर देते हैं । 2
इसके विपरीत, बुद्धि का दुरुपयोग होने से मनुष्य की मनुष्यता का नाश हो जाता है : 'विनाशकाले विपरीतबुद्धिः' - इसका प्रत्यक्ष प्राकृतिक प्रमाण है कि मृत्यु -काल निकट होने पर मनुष्य की बुद्धि एकाएक परिवर्तित या विपरीत हो जाती है और वह अपने हित-अहित को पहचानने में असमर्थ हो जाता है । तुलसी की यह उक्ति उल्लेखनीय है :
जा कहं प्रभु दारुन दुख देहीं ।
ताकर मति पहिलेहि हर लेहीं ॥ (मानस )
जिस दृष्टि से भी हम देखें, यही सत्य प्रतीत होता है कि मनुष्य के उत्थान-पतन का कारण उसकी बुद्धि होती है । बौद्धिक विकास से मानवशक्ति का विकास होता है और उसके ह्रास से शक्ति - विनाश । यही नहीं,. बुद्धि के दुरुपयोग से मनुष्यता का दुरुपयोग होता है। बुद्धि इतनी प्रभावशालिनी शक्ति है कि वह कुटिल होकर अपना ही नहीं, बहुतों का सर्वनाश कर देती है। अतएव उसके उपयोग में उतनी ही सावधानी की आवश्यकता होती है जितनी बन्दूक या पिस्तौल के उपयोग में ।
बुद्धि का सदुपयोग क्या है ? - वाल्मीकि के अनुसार उसके ये गुण हैं, जिनसे उसके उपयोग का पता लग सकता है : सुनने की इच्छा, सुनना, ग्रहण करना, धारण करना, तर्क द्वारा सिद्धान्त का निश्चय करना, विज्ञान और तत्त्व-ज्ञान । 8
1. Hell is opportunity missed and truth seen too late. 2. न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत् ।
यन्तु रक्षितुमिच्छन्ति बुद्ध्या संविभजन्ति तम् ॥ ( महाभारत) 3. शुश्रूषाश्रवणञ्चैव ग्रहणं धारणं तथा ।
ऊहोऽपोहोऽयं विज्ञानं तत्त्वद्यानं च धीगुणाः ॥ (रामायण)
सार रूप में इसमें सभी कुछ आ गया, परन्तु इसपर विस्तारपूर्वक भी विचार करना चाहिए । बुद्धि का प्रधान कार्य है - सत्य को खोजना, उसको प्रकाशित करना । जीवन के रहस्यों और प्रकृति के रहस्यों को जानना उसका विशेष धर्म है । वह एक दीपक है, जिसको लेकर मन घोर अंधकार में अपना मार्ग देखता है। बुद्धि जीवन का नेतृत्व करती है, अतएव जब वह सत्य को देखने में प्रवीण होती है, तभी नेतृत्व कर सकती है । बुद्धि-चक्षु से बुद्धिमान् प्राणी पहले जीवन-सत्य को देखता है, जिसको आत्मज्ञान कहते हैं। वह अपने को पहचानता है, अपनी आत्मशक्तियों को देखता है, वह अपनी स्वभावज प्रवृत्तियों को समझता है और अपनी सर्वप्रधान मूल प्रवृत्तियों को पकड़ता है। वह देखता है कि उसके मस्तिष्क का स्वाभाविक झुकाव किधर है । वह यह देखता है कि उसकी पशु- प्रवृत्तियां कितनी प्रबल हैं और आत्मसंयम द्वारा इनके संस्कार का उपाय सोचता है । बुद्धि द्वारा ही वह आत्मज्ञान प्राप्त करता है और आत्मज्ञान ही परम ज्ञान है, ऐसा प्राचीन पण्डितों का मत है : 'आत्माज्ञानं परं ज्ञानम्' । पाश्चात्य दार्शनिक भी आत्मज्ञान को दर्शनशास्त्र का मूल सिद्धान्त मानते हैं और कहते हैं कि अपने को पहचानो। यह ज्ञान बुद्धि के उपयोग से ही सुलभ होता है। आत्मज्ञान के अतिरिक्त दूसरों को पहचानना बुद्धि का ही कर्त्तव्य है। अपने को तथा दूसरों को पहचानकर ही मनुष्य अपने कर्त्तव्य का निश्चय कर सकता है । इस प्रकार बुद्धि का कार्य कर्त्तव्य -अकर्त्तव्य,. चित-अनुचित को जानना और जीवन के सत्य को प्रयोजन को समझकर उसका विकास करना है।
बुद्धि का दूसरा प्रधान उपयोग है- सृष्टि के सत्य को समझकर, मानव जीवन को उसके अनुरूप बनाना । सृष्टि का सत्य क्या है ? 'शत पथ ब्राह्मण' में लिखा है कि यह सभी विश्व एक छन्द है : 'छन्दांसि वै विश्वरूपाणि' । छन्द उस गति को कहते हैं जो ताल-ताल में नृत्य करती है । किसी छन्दोबद्ध रचना में जिस प्रकार बहुत से शब्द यथास्थान संयुक्त होकर एक भाव को अभिव्यक्त करते हैं, उसी प्रकार इस विश्व - रचना के
1. Know thyself.
सभी साधन अलग-अलग रहते हुए और परस्पर संघर्ष करते हुए भी एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील प्रतीत होते हैं। जिस प्रकार शब्दों को यथास्थान संयुक्त करके कोई कवि उनको काव्य का रूप दे देता है, उसी प्रकार समस्त प्राकृतिक शक्तियों को किसी 'कविर्मनीषी' ने क्रम से संयोजित किया है, तभी सृष्टि का कार्यक्रम नियमपूर्वक चलता है। काव्य के पीछे कवि की प्रतिभा और किसी चित्र के पीछे चित्रकार की कला की तरह, सृष्टि रचना के पीछे किसी कुशल रचनाकार की रचनात्मक बुद्धि और उसके अस्तित्व का आभास मिलता है। उसकी भावना अथवा योजना के अनुसार सब तत्त्व सप्रयोजन अपनी-अपनी मर्यादा में सीमित होकर, अपने-अपने निश्चित धर्म के अनुसार ही चलते हैं और इस व्यवस्था से सम्पूर्ण सृष्टि नियमित गति से चलती रहती है। उसके भावुक कलाकार या नियामक को ईश्वर, परमात्मा आदि नामों से पुकराते हैं । यही सांसारिक जीवन का सबसे बड़ा सत्य है, जिसको बुद्धि से ही समझा जा सकता है । इस सत्य के आधार पर ही मानव जीवन की समस्त रूपरेखा बनती है, मनुष्य के चरित्र का निर्माण होता है और मनुष्यता की एक मर्यादा 'बंधती है। मनुष्य समझता है कि वह संसार में अकेला नहीं है, उसका एक साथी भी है जो उसको प्रेरित करता है। वह उसको जीवन का पथ-प्रदर्शक और जीवन संध्या का अन्तिम दीपक मानकर धैर्यपूर्वक आगे बढ़ता है । और सबसे प्रमुख बात यह है कि इसी सत्य- विश्वास के आधार पर मानवजीवन की नैतिकता की प्रतिष्ठा होती है, जिसके द्वारा जीवन में सफलता मिलती है। समाज में जो अनेकता में एकता दिखलाई पड़ती है, वह जीवन के इसी नैतिक पक्ष की प्रबलता के कारण है।
लोक-जीवन का एक और प्रधान सत्य है, जिसको समझने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है। उपनिषद् के शब्दों में वह यह है : आनन्द ही ब्रह्म है, यह जान; आनन्द से ही सब प्राणी उत्पन्न होते हैं; उत्पन्न होने पर आनन्द से ही जीवित रहते हैं और मृत्यु से आनन्द ही में समा जाते हैं।1
1. आनन्दी ब्रह्मति व्यजानात् प्रानन्दाद्ध्येव खल्विमानिभूतानि जायन्ते मानन्देन जातानि जीवन्ति प्रानन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति । |
e590b725ae67b998c4052f6fdf714383e9fab393 | web | मुजफ्फरनगर। डीएम सैल्वा कुमारी जै० तथा स्स्क्क श्री अभिषेक यादव द्वारा सहारनपुर बॉर्डर (रोहाना) टोल टैक्स प्लाजा का निरीक्षण किया गया। टोल चौकिंग पवाईंटस पर नियुक्त सभी पुलिसकर्मियों तथा टोल प्लाजा कर्मचारियों को निर्देशित किया गया जरुरी सामान लाने वाले वाहनों(खाद्य सामग्री,पेट्रोल आदि), एम्बूलेंस व मेडिकल आपातकाल वाहनों के अलावा किसी भी अन्य वाहनों/व्यक्तियों को न जाने दिया जाये।
रोजाना जाने वाले वाहनों/व्यक्तियों (बैंक, सफाई, अस्पताल आदि कर्मचारियों) की सूची बनायी जाये तथा उनके अलावा किसी भी अन्य वाहनों को न जाने दिया जाये। साथ ही कोरोना वायरस से बचाव हेतु भी आवश्यक बातें सभी कर्मचारियों को बतायी गयी।
मुजफ्फरनगर। अभियुक्तों द्वारा 2 अप्रैल को थाना बुढाना क्षेत्र स्थित ग्राम कुरथ् ाल में चोरी की घटना को कारित किया गया था। थाना बुढाना पुलिस द्वारा ४८ घण्टे के अन्दर अभियोग का सफल अनावरण करते हुए ०४ शातिर चोर अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया। कब्जे से चोरी किये गये लगभग ७. ५ लाख रुपये के सोने व चांदी के जेवरात बरामद किये गये। गिरफ्तार अभियुक्तों ने पूछताछ में हर्ष पुत्र स्व० बिल्लू राजपूत निवासी ग्राम कुरथल थाना बुढाना जनपद मुजफ्फरनगर, अंकुर शर्मा पुत्र स्व० चन्द्रदत्त शर्मा निवासी उपरोक्त, चमन शर्मा पुत्र किरनपाल शर्मा निवासी उपरोक्त, अमित पुत्र कृष्णपाल नाई निवासी उपरोक्त। जिसके कब्जे से करीब १५ तोले सोने के जेवरात( चैन,झूमकी,मंगलसूत्र,अंगूठी आदि)व १. ५ किलोग्राम चांदी के जेवरात बरामद किये।
मुजफ्फरनगर। जनपद के उद्यमियो द्वारा कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही मुहिम को सफल बनाने के प्रधानमन्त्री राहत कोष मे 15 लाख रूपये का राहत राशि चैक सौपा जाना बहुत ही सराहनीय है। एक जुटता के बल पर ही इस वैश्विक आपदा का डटकर मुकाबला किया जा सकता है।
कलैक्टै्रट सभागार मे जनपद के उद्योगपतियो द्वारा प्रधानमन्त्री रहत कोष के लिए जिलाधिकारी सेवा कुमारी जे. को 15 लाख रूपये राहत राशि का चैक सौपा गया। इस अवसर पर उद्यमियो को सम्बोधित करते हुए मंत्री स्वतन्त्र प्रभार कपिलदेव अग्रवाल ने उक्त उदगार व्यक्त किए। मंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने कहा कि देश की महामारी के दृष्टिगत उद्योगपतियो के प्रति आभार प्रकट करत हुए मंत्री कपिलदेव अग्रवाल ने कहा कि उद्यमियो की यह पहल बुत ही सराहनीय है। इस दौरान सिल्वर टन पेपर मिल्स, ग्लैक्सी पेपर्स, मैग्मा इण्डस्ट्रीज, पारस नाथ पैकेजिंग,के. के. डुप्लैक्सतथा स्टेट बैक एम्पलाइज वैलफेयर एसोसिएशन आदि संस्थानो की और से प्रधानमत्री राहत कोष मे आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इस अवसर पर उद्यमी अमित गर्ग, अंकुर गर्ग, नील कमलपुरी, दिनेश गर्ग, देवेन्द्र गर्ग, कुशपुरी आदि उद्योगपति मौजूद रहे।
भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने और उनका धन्यवाद करने कि शहर मैं अभी तक कोरोना वायरस की एंट्री नहीं हुई है और भगवान शिव से प्रार्थना की संकट की इस घड़ी में अपना आशीर्वाद मेरे एवं शहर वासियों पर बनाए रखना इस अवसर पर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अंजू अग्रवाल जी सभासद मोहम्मद शफीक मोहम्मद दिलशाद चीफ इंस्पेक्टर राजीव कुमार इंस्पेक्टर उमाकांत शर्मा कार्यालय अधीक्षक पूरन चंद पाल लिपिक बिजेंदर सिंह अशोक पाल स्टेनो अध्यक्ष गोपाल त्यागी एसके बिट्टू दोनों सफाई नायक एवं स्वास्थ्य विभाग के संबंधित कर्मचारी मौजूद रहे।
मुजफ्फरनगर। मैडिकल टीम ने पुलिसकर्मियो का मैडिकल चैकअप किया। इस दौरान इंस्पैक्टर नई मन्डी कोतवाली दीपक चतुर्वेदीसहित समस्त पुलिसकर्मियो ने अपना मैडिकल चैकअप कराया।
उल्लेखनीय है कि कोविड 19 के खिलाफ चल रही मुहिम मे पुलिस प्रशासन दिन रात एक कर पूरी मशक्कत के साथ लगा हुआ है। कोरोना वायरस के प्रभाव को निष्फल करने के लि ए प्रशासन द्वारा विभिन्न व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई है। कोरोना वायरस के प्रभाव से बचाव को तथा नागरिको के स्वास्थ्य के दृषि्अगत डयूटी मे तैनात पुलिसकर्मियो के हितार्थ आज आला अधिकारियो के निर्देश पर नई मन्डी कोतवाल दीपक चतुर्वेदी की मौजूदगी मे समस्त पुलिसकर्मियो का मैडिकल टीम द्वारा थर्मल स्कैनिंग कर मैडिकल चेकअप किया गया। इस दौरान एसएसआई संजय कुमार, नई मन्डी चौकी प्रभारी नरेन्द्र सिह सहित समस्त चौकी प्रभारी व पुलिसकर्मियो ने मेडिकल चेकअप कराया।
मुजफ्फरनगर। कोविड 19 के प्रभाव को निष्फल करने व लॉक डाउन के अनुपालन के अर्न्तगत सोशल डिस्टेंसिग के मददेनजर धर्मगुरूओ के साथ आयोजित बैठक मे आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए। इस दौरान क्षेत्र के विभिन्न मंदिरो के पुजारी व मौलाना मौजूद रहे।
वैश्विक आपदा कोरोना वायरस के प्रभाव से बचाने के लिए जिला पुलिस प्रशासन द्वारा विभिन् व्यवस्थाएं की जा रही है। वहीं दूसरी और डीएम सेल्वा कुमारी जे. व एसएसपी अभिषेक यादव के निर्देशो के चलते नई मन्डी कोतवाली क्षेत्र की कूकडा नवीन मन्डी स्थल पुलिस चौकी पर आज दोपहर सीओ नई मन्डी धनंजय कुशवाहा ने क्षेत्र के विभिन्न मंदिरो से जुडे पुजारियो व मस्जिदो के मौलवियो के साथ आहूत बैठक मे निर्देशित किया गया कि वैश्विक आपदा कोविड 19 के प्रभाव से बचाव का सिर्फ एक ही हल है कि कोरोना के प्रभाव को समाप्त करने वाले प्रयासो को अपनाया जाए। इसके लिए जन जागरूकता जरूरी है। सभी लोग अपने-अपने घरो मे रहें। तथा अपने घरो मे ही रहकर ही पूजा ईबादत करें। ताकि सोशल डिस्टेंसिग मनटेन रह सके। बैठक मे क्षेत्रिय सभासद व गणमान्य लोग मौजूद रहे। बैठक मे मौजूद धर्मगुरूओ व गणमान्य लोगो ने पुलिस प्रशासन को सहयोग करने का आश्वासन दिया। बैठक मे इंस्पैक्टर नई मन्डी दीपक चतुर्वेदी सहित समस्त चौकी प्रभारी नई मन्डी क्षेत्र व गणमान्य लोग मौजूद रहे।
सिसौली। मच्छरों से बचने के लिए लगाई गई मार्टिन की कॉयल ३ मासूम बच्चो की जिन्दगी लील गई। भौराकलां निवासी राजबीर पुत्र हुक्मा अपने पांच बच्चो एवं पत्नी सीमा समेत भट्टे पर मजदूरी कर अपना व अपने बच्चों का लालन पालन करता है । बीती रात राजबीर अपने तीन बच्चों सपना उम्र ११ साल, अभय उम्र ९ साल व निखिल उम्र ७ साल को घर में सोते हुए छोड़कर भट्टे पर अपनी दो बड़ी बेटियां मोनी उम्र१८ साल व प्रिया उम्र१६ साल व अपनी पत्नी के साथ भट्टे पर मजदूरी करने चला गया। उसने भट्टे पर जाने से पहले मच्छरों से बच्चो को बचाने के लिए बच्चों के पास मोर्टीन जलाकर रख दी, वहीं पास में उपले रखे हुए थे। पंखा चलने के कारण मोर्टीन जल गयी तथा इसके कुछ कण उपलों पर गिरने से उपलो में आग लग गई और उपलो के धुएं से दम घुटने के कारण तीनो बच्चो की दुखद मौत हो गई है । बच्चो की दुखद मौत के कारण गांव में शोक की लहर दौड़ गई ।
मुजफ्फरनगर। भोपा थाना क्षेत्र के गाँव मोरना में करहेड़ा मार्ग पर लॉकडाउन पर पुलिस पर हमले के मुख्य आरोपी पर २५ हजार का इनाम किया घोषित। घटना के मुख्य अभियुक्त सुदेश पुत्र नाहर सिंह निवासी मौहल्ला कोआवाला कस्बा मोरना थाना भोपा पर मुजफ्फरनगर पुलिस द्वारा २५००० का ईनाम घोषित किया गया है। यदि किसी भी व्यक्ति को अभियुक्त सुदेश उपरोक्त की सूचना प्राप्त होती है तो वह क्षेत्राधिकारी भोपा (९४५४४५८१८०) अथवा थाना प्रभारी भोपा (९४५४४०४०६१) को सूचित करे, सूचनाकर्ता की पहचान को गोपनीय रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन में भीड़ को हटाने के दौरान पुलिस पर हुआ था हमला जहा सब इस्पेक्टर के साथ २ कांस्टेबल हमले में घायल हुए थे तथा ५ आरोपियों को पुलिस पुलिस ने भेज दिया जेल। पूर्व प्रधान के साथ दर्जनों उपद्रवियों ने किया था पुलिस पर पथराव। घायल पुलिसकर्मियों का हायर सेंटर मेरठ में चल रहा है इलाज।
मुजफ्फरनगर। इस कठिन घड़ी में जब देश बहुत सी चुनौतियों से जूझ रहा है और कुछ पशु भी चारे के लिए परेशान है। काफी संस्थाएं दरिद्र जन को भोजन उपलब्ध करवा रही है वहीं गोवंश के चारे की व्यवस्था के लिए लायंस क्लब उन्नति भी तत्पर है। क्लब के अध्यक्ष अमित गर्ग और डिस्टिक चीफ एडवाइजर अजय अग्रवाल के मार्गदर्शन में सभी क्लब के सदस्यों के सहयोग से इस अभियान को प्रारंभ किया गया जो निरंतर चल रहा है हमारा क्लब पूरे लॉक डाउन के समय में इस अभियान को चलाता रहेगा।
मुजफ्फरनगर। लॉकडाउन में लोग एक ओर जहां अपने घरों में कैद हैं। वहीं बिजली, पानी के अलावा सड़क, सफाई और चिकित्सकीय व्यवस्था को सही रखने के लिए कर्मयोद्धा लगातार मैदान में डटे हुए हैं। यह लोगों की सुविधा को सही करने के अलावा कोरोना से भी जंग लड़ रहे हैं। नगर पालिका, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस कर्मी अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद हैं। साथ ही कोरोना से बचाव के लिए भी जागरूक कर रहे हैं।
पूरा शहर लॉकडाउन होने के कारण लोग घरों में कैद हैं। जहां लॉकडाउन का उल्लंघन किया जा रहा है, वहां पुलिस कार्रवाई कर रही है। इसके अलावा पालिका के कंट्रोल रूम पर लगातार पेयजल बाधित होने की शिकायत आ रही है। यहां तैनात कर्मियों द्वारा पेयजल पाइप लाइन को दुरुस्त करने के लिए भेजा जा रहा है। यह कर्मयोद्धा हर घड़ी लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने में मदद कर रहे हैं। क्षेत्रों में लाइनों की मरम्मत की जा रही है। जानसठ रोड, रूड़की रोड और ट्रांसपोर्टनगर आदि क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति बाधित हुई तो लाइनमैनों को भेजकर फाल्ट को ठीक कराया गया। सफाई कर्मचारियों और फॉगिग कर्मियों के ग्रुप भी वार्डों के साथ मुख्य चौराहों पर कार्य कर रहे हैं। कूड़ा उठाने से लेकर छिड़काव का तक बखूबी ध्यान रखा जा रहा है। सीमाओं के साथ शहर में प्वाइंटवाइज पुलिस कर्मियों की ड़्यूटी लगी है। यह लोग शहर की सुरक्षा, लॉकडाउन का पालन कराने में लगे हैं। स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सक, पैरा मेडिकल स्टाफ और कर्मचारी कोरोना से जंग लड़ रहे रहे हैं। लोगों को स्वास्थ्य रहने के साथ उन्हें सुरक्षित रहने के उपाय बता रहे हैं। दिन निकलते ही अपने फर्ज और कर्तव्य को निभाने में यह सभी कर्मयोद्धा लगातार जुट रहे हे।
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5e00e227a1a07359412cc79c8282a0af8238c8b5 | web | स्कूल की नयी मेट्रन का नाम अनिता मुकर्जी था और उसकी आँखें बहुत अच्छी थीं। पर वह आंट सैली की जगह आयी थी, इसलिए पहले दिन बैचलर्स डाइनिंग-रूम में किसी ने उससे खुलकर बात नहीं की।
उसने जॉन से बात करने की कोशिश की, तो वह 'हूँ-हाँ' में उत्तर देकर टालता रहा। मणि नानावती को वह अपनी चायदानी में से चाय देने लगी, तो उसने हल्का-सा धन्यवाद देकर मना कर दिया। पीटर ने अपना चेहरा ऐसे गम्भीर बनाए रखा जैसे उसे बात करने की आदत ही न हो। किसी तरफ़ से लि$फ्ट न मिलने पर वह भी चुप हो गयी और जल्दी से खाना खाकर उठ गयी।
"अब मेरी समझ में आ रहा है कि पादरी ने सैली को क्यों निकाल दिया," वह चली गयी, तो जॉन ने अपनी भूरी आँखें पीटर के चेहरे पर स्थिर किये हुए कहा।
पीटर की आँखें नानावती से मिल गयीं। नानावती दूसरी तरफ़ देखने लगी।
वैसे उनमें से कोई नहीं जानता था कि आंट सैली को फादर फिशर ने क्यों निकाल दिया। उसके जाने के दिन से ही जॉन मुँह ही मुँह बड़बड़ाकर अपना असन्तोष प्रकट करता रहता था। पीटर भी उसके साथ दबे-दबे कुढ़ लेता था।
"चलकर एक दिन सब लोग पादरी से बात क्यों नहीं करते?" एक बार हकीम ने तेज़ होकर कहा।
"अच्छा, दुलहिन जैसी लगती हूँ? तो कौन करेगा मुझसे शादी? तुम करोगे!" और उसकी आँखें मिच जातीं, होंठ फैल जाते और गले से छलछलाती हँसी का स्वर सुनाई देता।
फिर वही हँसी, जैसे बहते पानी के वेग में छोटे-छोटे पत्थर फिसलते चले जाएँ।
और पीटर घड़ी को चाबी देता हुआ चुपचाप दीवार की तरफ़ देखता रहा।
मगर बेबी को हड्डी का कुछ ऐसा शौक था कि वह डाँट सुनकर भी नहीं हटा। वह नानावती की कुरसी पर चढक़र उसके जिस्म के सहारे खड़ा होने की कोशिश करने लगा। इस जद्दोज़हद में नानावती कुरसी से गिरने ही जा रही थी कि पाल ने जल्दी से उठकर उसे बगल से पकडक़र नीचे उतार दिया। फिर उसने बेबी को दो चपत लगायीं और उसे कान से खींचता हुआ अपनी सीट के पास ले आया। बेबी पाल की टाँगों के आसपास मँडराने लगा।
"मेरा सारा बलाउज़ ख़राब कर दिया!" नानावती हाँफती हुई रूमाल से अपना ब्लाउज़ साफ़ करने लगी। उसके उभार पर एकाध जगह बेबी का मुँह छू गया था।
जॉन पीटर की तरफ़ देखकर मुस्कराया। नानावती भडक़ उठी, "देखो पाल, मुझे इस तरह का मज़ाक कतई पसन्द नहीं।" गुस्से से उसका पूरा शरीर तमतमा गया था। अगर वह और शब्द बोलती तो साथ रो देती।
मगर उसे गम्भीर देखकर भी पाल गम्भीर नहीं हुआ। बोला, "मुझे खुद ऐसा मज़ाक पसन्द नहीं, मादाम! मैं इसकी हरकत के लिए बहुत शर्मिन्दा हूँ!" और उसके निचले होंठ पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गयी।
मगर नानावती ने कोई शिकायत नहीं की। बल्कि दूसरे दिन सुबह उसने पाल से अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँग ली। जॉन को अपनी भविष्यवाणी के ग़लत निकलने का खेद तो हुआ, पर इससे नानावती के प्रति उसका व्ववहार पहले से बदल गया। उसने उसकी अनुपस्थिति में उसके लिए वेश्यावाचक शब्दों का प्रयोग बन्द कर दिया। यहाँ तक कि एक दिन वह एटकिन्सन के साथ इस सम्बन्ध में विचार करता रहा कि इतनी अच्छी और मेहनती लडक़ी को उसके पति ने घर से क्यों निकाल रखा है।
नानावती ने भी उसके बाद बेबी को देखते ही 'ओई ओई हिश्' करना बन्द कर दिया। गाहे-बगाहे वह उसे देखकर मुस्करा भी देती। एक बार तो उसने बेबी की पीठ पर हाथ भी फेर दिया, हालाँकि ऐसा करते हुए वह सिर से पाँव तक सिहर गयी।
बैचलर्स डाइनिंग-रूम में पाल के ज़ोर-ज़ोर के कहकहे रात को दूर तक सुनाई देते। बेबी को लेकर नानावती से तरह-तरह के मज़ाक किये जाते। मज़ाक सुनकर जॉन की भूरी आँखों में चमक आ जाती और वह सिर हिलाता हुआ मुस्कराता रहता।
मगर एक दिन सुबह बैचलर्स डाइनिंग-रूम में सुना गया कि रात को फादर फिशर ने बेबी को गोली मार दी है।
जॉन अपनी चुँधियाई आँखों को मेज़ पर स्थिर किये चुपचाप आमलेट खाता रहा। नानावती का छुरी वाला हाथ ज़रा-ज़रा काँपने लगा। एक बार सहमी नज़र से जॉन और पीटर को देखकर वह अपनी नज़रें प्लेट पर गड़ाए रही। पीटर स्लाइस का टुकड़ा काटने में इस तरह व्यस्त हो रहा जैसे बहुत महत्त्वपूर्ण काम कर रहा हो।
"पाल अभी नहीं आया, ए?" जॉन ने किरपू से पूछा।
किरपू ने नमकदानी पीटर के पास से हटाकर जॉन के सामने रख दी।
"वह आज आएगा? हिः!" जॉन ने आमलेट का बड़ा-सा टुकड़ा काटकर मुँह में भर लिया।
"बेज़बान जानवर को इस तरह मारने से...मैं कहता हूँ...मैं कहता हूँ...," आमलेट जॉन के गले में अटक गया।
सबकी नज़रें प्लेटों पर जम गयीं। पादरी लबादा पहने, बाइबल लिये, गिरजे की तरफ़ जा रहा था। वह खिड़की के पास से गुज़रा तो तीनों अपनी-अपनी कुरसी से आधा-आधा उठ गये।
नानावती सिहर गयी।
"ऐसी गाली नहीं देनी चाहिए," वह दबे हुए और शंकित स्वर में बोली।
नानावती का चेहरा फीका पड़ गया। उसने शंकित नज़र से इधर-उधर देखा, पर चुप रही। जॉन के चौड़े माथे पर कई लकीरें खिंच गयी थीं। वह बोतल से इस तरह चटनी उँडेलने लगा, जैसे उसी पर अपना सारा गुस्सा निकाल लेना चाहता हो।
पीटर सारा समय खिड़की से बाहर देखता रहा।
डिंग-डांग! डिंग-डांग! गिरजे की घंटियाँ बजने लगीं। नानावती जल्दी से नेपकिन से मुँह पोंछकर उठ खड़ी हुई और पल-भर दुविधा में रहकर बाहर चली गयी।
"चुहिया! कितना डरती है, ए?" जॉन बोला।
मिसेज़ मर्फी एटकिन्सन के साथ बात करती हुई खिड़की के पास से निकलकर चली गयी। गिरजे की घंटियाँ लगातार बज रही थीं - डिंग-डांग! डिंग-डांग! डिंग-डांग!
जॉन जल्दी-जल्दी चाय के घूँट भरने लगा। जल्दी में चाय की कुछ बूँदें उसके गाउन पर गिर गयीं।
"गाश्!" वह प्याली रखकर रूमाल से गाउन साफ़ करने लगा।
"गिरजे नहीं चल रहे?" पीटर ने उठते हुए पूछा।
जॉन ने जल्दी-जल्दी दो-तीन घूँट भरे और बाकी चाय छोडक़र उठ खड़ा हुआ। उनके दरवाज़े से बाहर निकलते ही किरपू और ईसरसिंह में बचे हुए मक्खन के लिए छीना-झपटी होने लगी, जिसमें एक प्याली गिरकर टूट गयी। हकीम और बैरों को आते देखकर ईसरसिंह जल्दी से पैंटी में चला गया और किरपू कपड़े से मेज़ साफ़ करने लगा।
"कहाँ पादरी की बिस्कुट और सैंडविच खाकर पली हुई कुतिया और कहाँ बेचारा बेबी!" बैरो मुस्कराया।
वे दोनों हँस दिये।
और वे दोनों फिर हँस दिये।
"बैरो ने हक़ीम को आँख मारी। वह चुप कर गया। बाड़ के मोड़ के पास जॉन और पीटर खड़े थे। पीटर अपने जूते का फीता फिर से बाँध रहा था।
सहसा डिंग-डांग की आवाज़ रुक गयी। वे सब तेज़ी से गिरजे के अन्दर चले गये।
मेरी एक हाथ आँखों पर रखे दूसरे हाथ से अपना स्कर्ट नीचे सरकाने लगी।
गिरजे में उस दिन और उससे अगले दिन पाल की सीट खाली रही। इस बात को नोट हर एक ने किया, मगर किसी ने इस बारे में दूसरे से बात नहीं की। पाल ईसाई नहीं था, मगर फादर फिशर के आदेश के मुताबिक स्टाफ के हर आदमी का गिरजे में उपस्थित होना अनिवार्य था - जो ईसाई नहीं थे, उनका रोज़ आना और भी ज़रूरी था। पादरी गिरजे से निकलता हुआ उन लोगों की सीटों पर एक नज़र ज़रूर डाल लेता था। तीसरे दिन भी पाल अपनी सीट पर दिखाई नहीं दिया, तो पादरी गिरजे से निकलकर सीधा स्टाफ-रूम में पहुँच गया। वहाँ पाल एक कोने में मेज़ के पास खड़ा कोई मैगजीन देख रहा था। पादरी पास पहुँच गया, तो भी उसकी तनी हुई गरदन में खम नहीं आया।
"गुड मार्निंग पादरी!" वह क्षण-भर के लिए आँख उठाकर फिर मैगज़ीन देखने लगा।
"तुम तीन दिन से गिरजे में नहीं आये," उत्तेजना में पादरी का हाथ पीठ के पीछे चला गया। वह बहुत कठिनाई से अपने स्वर को वश में रख पाया था।
"जी हाँ, मैं तीन दिन से नहीं आया," मैगज़ीन नीचे करके पाल ने गम्भीर नज़र से पादरी की तरफ़ देख लिया।
गुस्से के मारे पाल के जबड़ों के माँस में खिंचाव आ गया था। उसने मैगज़ीन मेज़ पर रखकर हाथ जेबों में डाल लिये और बिलकुल सीधा खड़ा हो गया। बड़ी खिड़की के पास जॉन नज़र झुकाए बैठा था और आठ-दस लोग नोटिस बोर्ड और चिट्ठियों वाले रैक के पास खड़े अपने को किसी न किसी तरह उदासीन ज़ाहिर करने की कोशिश कर रहे थे। उनमें से किसी ने पाल के साथ आँख नहीं मिलाई। पाल का गला ऐसे काँप गया जैसे वह कोई बहुत सख़्त बात कहने जा रहा हो।
एक लकीर दूर तक खिंचती चली गयी। पादरी का चेहरा गुस्से से स्याह हो गया।
"तुम्हारा कहने का मतलब है..." उसके दाँत भिंच गये और वाक्य उससे पूरा नहीं हुआ। नोटिस बोर्ड के पास खड़े लोगों के चेहरे फक पड़ गये।
पादरी पल-भर ख़ून-भरी आँखों से पाल को देखता रहा। उसकी साँस तेज़ हो गयी थी।
"मतलब निकलता है और वह यह कि हर जानवर एक-सा नहीं होता। जानवर और जानवर में फर्क़ होता है," उसने दाँत भींचकर कहा और पास के दरवाज़े से बाहर चला गया - हालाँकि उसके घर का रास्ता दूसरे दरवाज़े से था।
पन्द्रह मिनट बाद स्कूल का क्लर्क आकर पाल को चिट्ठी दे गया कि उसे उस दिन से नौकरी से बरख़ास्त कर दिया गया है। वह चौबीस घंटे के अन्दर अपना क्वार्टर ख़ाली करके चला जाए।
"यह पादरी नहीं, राक्षस है," जॉन मुँह में बड़बड़ाया।
पीटर को उस दिन शहर में काम निकल आया, इसलिए वह रात को देर से लौटा। हक़ीम और बैरो खेल के मैदानों की जाँच में व्यस्त रहे। नानावती को हल्का-सा बुख़ार हो आया। पाल को चलते वक़्त सिर्फ़ जॉन ही अपने कमरे में मिला। वह अपनी खिड़की में रखे गमलों को ठीक कर रहा था।
"जा रहे हो?" उसने पाल से पूछा।
जॉन गमलों को छोडक़र अपनी चारपाई पर जा बैठा।
पाल ने मुस्कराकर उसका हाथ दबाया और उसके पास से चल दिया।
पाल के चले जाने के बाद आंट सैली ने बैचलर्स डाइनिंग-रूम में आना बन्द कर दिया और कई दिन खाना अपने क्वार्टर में ही मँगवाती रही। जॉन और पीटर भी अलग-अलग वक़्त पर आते, जिससे बहुत कम उनमें मुलाक़ात हो पाती। नानावती अब पहले से भी सहमी हुई आती और जल्दी-जल्दी खाना खाकर उठ जाती। फादर फिशर ने उसे पाल वाला क्वार्टर दे दिया था। इसलिए वह अपने को अपराधिनी-सी महसूस करती थी। जॉन ने उसके बारे में अपनी राय फिर बदल ली थी।
मगर धीरे-धीरे स्थिति फिर पुरानी सतह पर आने लगी थी। बैचलर्स डाइनिंग-रूम में फिर कहकहे और बहस-मुबाहिसे सुनाई देने लगे थे जब एक रात सुना गया कि आंट सैली को भी नोटिस मिल गया है।
"बात का पता नहीं है," पीटर सूप में चम्मच चलाता रहा।
जॉन का चेहरा गम्भीर हो गया। वह मक्खन की टिकिया खोलता हुआ बोला, "मुझे लगता है कि इसके बाद अब मेरी बारी आएगी। मुझे पता है कि उसकी आँखों में कौन-कौन खटकता है। सैली का कसूर यह था कि वह रोज़ उसकी हाज़िरी नहीं देती थी और न ही वह..." और वह नानावती की तरफ़ देखकर चुप रह गया। पीटर कुछ कहने को हुआ, मगर बाहर से हक़ीम को आते देखकर चुपचाप नेपकिन से होंठ पोंछने लगा।
हक़ीम के आने पर कई क्षण चुप्पी छाई रही। किरपू हक़ीम के सामने प्लेट और छुरी-काँटे रख गया।
"तुम्हारे क्वार्टर में नये पर्दे बहुत अच्छे लगे हैं," जॉन हक़ीम से बोला।
पीटर जंगले के पास घास पर बैठ गया।
घास पर बैठकर जॉन पीटर को अपनी फौज की ज़िन्दगी के वही किस्से सुनाने लगा जो वह पहले भी कई बार सुना चुका था।
मगर पीटर उसकी बात न सुनकर बिना आवाज़ पैदा किए, मुँह ही मुँह एक गीत गुनगुना रहा था।
ऊपर देवदार की छतरियाँ हिल रही थीं। हवा से जंगल साँय-साँय कर रहा था। होस्टल की तरफ़ से आती पगडंडी पर पैरों की आवाज़ सुनकर जॉन थोड़ा चौंक गया।
पीटर सिर उठाकर जंगले से नीचे देखने लगा।
पैरों की आहट के साथ सीटी की आवाज़ ऊपर आती गयी।
पीटर ने उसका हाथ दबा दिया।
"अभी क्वार्टर में नहीं गये टैफी?" बैरो ने अँधेरे से निकलकर सामने आते हुए पूछा।
जॉन जंगले का सहारा लेकर उठ खड़ा हुआ।
"हाँ-आँ!" पीटर के शरीर में एक सिहरन भर गयी।
पीटर ने मुँह तक आयी गाली होंठों में दबा ली।
बैरो का क्वार्टर आ गया।
"वह आ रही है!" नानावती नेपकिन से मुँह पोंछकर उसे हाथ में मसलने लगी। जॉन और पीटर की आँखें झुक गयीं।
आंट सैली का रिक्शा डाइनिंग-रूम के दरवाज़े के पास आकर रुक गया। वह कन्धे पर झोला लटकाए उतरकर डाइनिंग-रूम में आ गयी।
"गुड मार्निंग एवरीबडी!" उसने दहलीज़ लाँघते ही हाथ हिलाया।
"गुड मार्निंग सैली!" जॉन ने भूरी आँखें उसके चेहरे पर स्थिर किये हुए भारी आवाज़ में कहा। जो वह मुँह से नहीं कह सका, वह उसने अपनी नज़र से कह देने की चेष्टा की।
"बस, आज ही जा रही हो।" नानावती ने डरे-सहमे हुए स्वर में पूछा और एक बार दायें-बायें देख लिया। आंट सैली ने आँखें झपकते हुए मुस्कराकर सिर हिला दिया।
"आंट, कभी-कभार ख़त लिख दिया करना," पीटर ने उसका मुरझाया हुआ नरम हाथ अपने मज़बूत हाथ में लेकर हिलाया। आंट सैली की आँखें डबडबा आयीं और उसने उन पर रूमाल रख लिया।
"अच्छा, गुड बाई!" कहकर वह दहलीज़ पार करके रिक्शा की तरफ़ चली गयी।
"गुड बाई सैली!" जॉन ने पीछे से कहा।
आंट सैली ने रिक्शा में बैठकर उनकी तरफ़ हाथ हिलाया। मज़दूर रिक्शा खींचने लगे।
पीटर जैम के डिब्बे में से जैम निकालने लगा।
जिस दिन अनिता आयी, उसी शाम से आकाश में सलेटी बादल घिरने लगे। रात को हल्की-हल्की बरफ़ भी पड़ गयी। अगले दिन शाम तक बादल और गहरे हो गये। पीटर खेतानी गाँव तक घूमकर वापस आ रहा था, जब अनिता उसे ऊपर की पगडंडी पर टहलती दिखाई दे गयी। वह उस ठंड में भी साड़ी के ऊपर सिर्फ़ एक शाल लिये थी। पीटर को देखकर वह मुस्कराई। पीटर ने उसकी मुस्कराहट का उत्तर अभिवादन से दिया।
"घूमने जा रही हो?" उसने पूछा।
"ठंड तो है ही, मगर क्वार्टर में बन्द होकर बैठने को मन नहीं हुआ।" उसने शाल से अपनी बाँहें भी ढाँप लीं।
"मेरे लिए मई और नवम्बर दोनों बराबर हैं। मेरे पास ऊनी कपड़े हैं ही नहीं।" वह फिसलन पर से सँभलती हुई पगडंडी से उतरकर उसके पास आ गयी।
ऊनी कपड़े तो तुमने पादरी के डिनर की रात के लिए सँभालकर रख रखे होंगे। तब तक सरदी से बीमार न पड़ जाना।" पीटर ने मज़ाक के अन्दाज़ में अपना निचला होंठ सिकोड़ लिया।
"परसों तक?...ओह?" और वह मीठी-सी हँसी हँस दी।
पीटर ने रुककर एक सिगरेट सुलगा लिया। बरफ़ के हल्के-हल्के गाले पडऩे लगे थे। उसने आकाश की तरफ़ देखा। बादल बहुत गहरा था।
वे सी कॉटेज को जानेवाली पगडंडी पर उतरने लगे। कुहरा घना हो जाने से रास्ता दस क़दम से आगे दिखाई नहीं दे रहा था। अनिता एक जगह पत्थर से ठोकर खा गयी।
अनिता ने बराबर आकर उसके कन्धे का सहारा ले लिया। जब वे सी कॉटेज के बरामदे में पहुँचे, तो बरफ़ के बड़े-बड़े गाले गिरने लगे थे। घाटी में जहाँ तक आँख जाती थी, बादल ही बादल भरा था। एक बिल्ली दरवाज़े से सटकर काँप रही थी। अनिता ने दरवाज़ा खोला, तो वह म्याऊँ करके अन्दर घुस गयी।
दरवाज़ा खुलने पर पीटर ने उसके सामान पर एक सरसरी नज़र डाली। स्कूल के फर्नीचर के अलावा उसे एक टीन का ट्रंक और दो-चार कपड़े ही दिखाई दिये। मेज़ पर एक सस्ता टेबल लैम्प रखा था और उसके पास ही एक युवक का फोटोग्राफ था। पीटर चारपाई पर बैठ गया। अनिता स्टोव जलाने लगी।
चारपाई पर एक पुस्तक और आधा लिखा पत्र पड़ा था। पीटर ने पत्र ज़रा हटाकर रख दिया और पुस्तक उठा ली। पुस्तक पत्र-लेखन के सम्बन्ध में थी और उसमें हर तरह के पत्र दिये हुए थे। पीटर उसके पन्ने उलटने लगा।
पीटर ने देखा कि बरामदे के बाहर ज़मीन पर सफ़ेदी की हल्की तह बिछ गयी है। उसने सिगरेट का टुकड़ा बाहर फेंका, तो वह धुन्ध में जाते ही बुझ गया।
"आज सारी रात बरफ़ पड़ती रहेगी," उसने कहा।
अनिता स्टोव पर हाथ सेंकने लगी।
बरामदे में पैरों की आहट सुनकर पीटर बाहर निकल आया। जॉन भारी क़दमों से चलता आ रहा था।
"तुम्हारे क्वार्टर में गया था। तुम वहाँ नहीं मिले तो सोचा, शायद यहाँ मिल जाओ।" और वह मुस्करा दिया।
"वैसे घूमने के लिए मौसम अच्छा है?" पीटर ने कहा।
वे दोनों कमरे में आ गये। अनिता प्यालियाँ धो रही थी। एक प्याली उसके हाथ से गिरकर टूट गयी।
पीटर फिर चारपाई पर बैठ गया। जॉन मेज़ पर रखे फोटोग्राफ के पास चला गया।
अनिता ने मुस्कराकर सिर हिला दिया।
जॉन ने चारपाई पर रखे पत्र की तरफ़ संकेत किया। पीटर पुस्तक का वह पृष्ठ पढऩे लगा जिस पर से वह पत्र नक़ल किया जा रहा था।
जॉन स्टोव के पास जा खड़ा हुआ और अनिता के शाल की तारीफ़ करने लगा।
जॉन और पीटर ने एक-दूसरे की तरफ़ देखकर आँखें हटा लीं।
पीटर और जॉन की आँखें पल-भर मिली रहीं। जॉन का निचला होंठ थोड़ा सिकुड़ गया।
पीटर के सॉसर से चाय छलक गयी।
बरफ़ और कुहरे की वजह से बाहर बिलकुल अँधेरा हो गया था। बरफ़ के गाले दूध-फेन की तरह निःशब्द गिर रहे थे। जॉन और पीटर अनिता के क्वार्टर से निकलकर ऊपर की तरफ़ चले, तो पगडंडी पर दो-दो इंच बरफ़ जमा हो चुकी थी। अँधेरे में ठीक से रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, इसलिए जॉन ने पीटर की बाँह पकड़ ली।
जॉन को थोड़ी खाँसी आ गयी। वे कुछ देर ख़ामोश चलते रहे। उनके पैरों के नीचे कच्ची बरफ़ कचर-कचर करती रही।
कुछ फ़ासले से आकर टार्च की रोशनी उनकी आँखों से टकराई। पल-भर के लिए उनकी आँखें चुँधियाई रहीं। फिर उन्होंने ऊपर से उतरकर आती आकृति को देखा।
पीटर ने जॉन की उँगली दबा दी।
इस बार जॉन ने पीटर की उँगली दबा दी।
पीटर ख़ामोश चलता रहा।
सुबह जिस समय पीटर की आँख खुली, उसने देखा कि वह जॉन के क्वार्टर में एक आराम-कुरसी पर पड़ा है - वहीं उस पर दो कम्बल डाल दिए गए हैं। सामने रम की खाली बोतल रखी है। वह उठा, तो उसकी गरदन दर्द कर रही थी। उसने खिड़की के पास आकर देखा कि जॉन चाय का फ्लास्क लिये डाइनिंग-रूम की तरफ़ से आ रहा है। वह ठंडी सलाखों को पकड़े दूर तक फैली बरफ़ को देखता रहा।
जॉन कमरे में आ गया और भारी क़दमों से त$ख्ते पर आवाज़ करता हुआ पीटर के पास आ खड़ा हुआ।
पीटर ने उसकी तरफ़ देखा।
जॉन ने सिर हिलाया। उसकी आँखें क्षण-भर पीटर की आँखों से मिली रहीं। पीटर गम्भीर होकर दीवार की तरफ़ देखने लगा।
जॉन फ्लास्क से प्यालियों में चाय उँडेलने लगा।
पीटर कुछ न कहकर दीवार की तरफ़ देखता हुआ चाय के घूँट भरने लगा।
जॉन कुरसी की बाँह पर बैठ गया।
जॉन मुँह ही मुँह बड़बड़ाकर ठंडी चाय की चुस्कियाँ लेता रहा।
दो दिन की बरफ़बारी के बाद फादर फिशर के डिनर की रात को मौसम खुल गया। डिनर से पहले घंटा-भर सब लोग 'म्यूज़िकल चेयर्स' का खेल खेलते रहे। उस खेल में मणि नानावती को पहला पुरस्कार मिला। पुरस्कार मिलने पर उससे जो-जो मज़ाक किये गये, उनसे उसका चेहरा इतना सुर्ख़ हो गया कि वह थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर भाग गयी। मिसेज़ मर्फी उस दिन बहुत सुन्दर हैट और रिबन लगाकर आयी थी; उसकी बहुत प्रशंसा की गयी। डिनर के बाद लोग काफ़ी देर तक आग के पास खड़े बातें करते रहे। पादरी ने सबसे नयी मेट्रन का परिचय कराया। अनिता अपने शाल में सिकुड़ी सबके अभिवादन का उत्तर मुस्कराकर देती रही।
एटकिन्सन मिसेज़ मर्फी को आँख से इशारा करके मुस्कराया।
हिचकाक अपनी मुस्कराहट ज़ाहिर न होने देने के लिए सिगार के लम्बे-लम्बे कश खींचने लगा। जॉन उधर से नज़र हटाकर हिचकाक से बात करने लगा।
जॉन ने मुँह बिचकाया।
जॉन दाँत खोलकर मुस्कराया और सिर हिलाने लगा।
जॉन ने सिर हिलाया।
जॉन ने उसका हाथ दबा दिया। पादरी और बैरो के साथ-साथ अनिता सिर झुकाए शाल में छिपी-सिमटी बरामदे से निकलकर चली गयी। जॉन की भूरी आँखें कई गज़ उनका पीछा करती रहीं।
"क्यों?" बात हिचकाक की समझ में नहीं आयी।
"मैं तली हुई मछली हज़म कर रहा हूँ," हिचकाक ने उत्तर दिया, और ऊँची आवाज़ में जॉन को बतलाने लगा कि बग़ैर काँटे की मासेर मछली कितनी ताक़तवर होती है।
सुबह जॉन, अनिता, नानावती और हक़ीम बैचलर्स डाइनिंग-रूम में नाश्ता कर रहे थे, जब पीटर का रिक्शा दरवाज़े के पास से निकलकर चला गया। पीटर रिक्शे में सीधा बैठा रहा। न उसे किसी ने अभिवादन किया, और न ही वह किसी को अभिवादन करने के लिए रुका। अनिता की झुकी हुई आँखें और झुक गयीं - जॉन ऐसे गरदन झुकाए रहा जैसे उस तरफ़ उसका ध्यान ही न हो। बैचलर्स डाइनिंग-रूम में कई क्षण ख़ामोशी छाई रही।
सहसा पादरी को खिड़की के पास से गुज़रते देखकर सब लोग अपनी-अपनी सीट से आधा-आधा उठ गये।
"कल रात का डिनर बहुत ही अच्छा रहा, "हक़ीम ने चेहरे पर विनीत मुस्कराहट लाकर कहा।
पादरी आगे निकल गया, तो भी कुछ देर हक़ीम के चेहरे पर वह मुस्कराहट बनी रही।
"मेरे लिए उबला हुआ अंडा अभी तक क्यों नहीं आया?" सहसा जॉन गुस्से से बड़बड़ाया। अनिता स्लाइस पर मक्खन लगाती हुई सिहर गयी। किरपू ने एक प्लेट में उबला हुआ अंडा लाकर जॉन के सामने रख दिया।
"छीलकर लाओ!" जॉन ने उसी तरह कहा और प्लेट को हाथ मार दिया। प्लेट अंडे समेत नीचे जा गिरी और टूट गयी।
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daf2ed02ee40088f2b0a714d861541d9a3f4d4d969f2ca0219074fe0a3fb874b | pdf | १९५०-५१ क अतिरिक्त अनुदानों के लिए मांगों पर मतदान
श्री मदनमोहन उपाध्याय -- तो उस डिपार्टमेंट में क्या खराबी थी, यह तो में कहना नहीं चाहता हूं ।
श्री अध्यक्ष --अगर यह वाजिब है तो मानिये और गैरवाजिब है तो उसको बताइये कि क्यों ।
श्री मदनमोहन उपाध्याय --में वाजिब है या गैरवाजिब है इस पर नहीं जा रहा हूं। में इस पर जा रहा हूं कि यह खर्च न हो ।
उसको वित्त मंत्री या मुख्य मंत्री उसका जवाब देंगे जनरल
श्री पालिसी के बारे में ।
श्री दनमोहन उपाध्या -- इस पर मैं ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता हूं। मजबूरी थी उनको खर्च करने की और उन्होंने खर्च किया। जहां तक इस आइटम के बारे में है। लेकिन में कांस्टीट्यूशनली इसकी मुखालिफत करता हूं और जैसा कि आपने कहा जब यह बिल प्रायेगा तब में बोलूंगा और में उस समय इस सारे सवाल को लूंगा और में एक घंटा बोलूंगा क्योंकि यह सबसे पहली ग्रान्ट इस प्रकार एक्सेस को है और एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है । (कुछ सदस्यों की ओर इशारा करके) हमारे माननीय सदस्य समझ नहीं रहे हैं। अगर पढ़ते तो समझते कि यह कितने महत्व की चीज है और क्या इसकी महत्ता है। मैं डिमोक्रेसी में विश्वास करता हूं और इस सदन की प्रतिष्ठा को कायम रखना चाहता हूं। इस सदन की जो पावर्स हैं उन पर बात करना चाहता हूं। और अगर इसके पावर्स पर कोई भी कोठाराघात करना चाहेगा तो उसका हम विरोध करेंगे। हां माफी मांगें, जैसा मानाय वित्त मंत्री जी ने कहा, यह बात दूसरी है । लेकिन यह कह देना कि नहीं साहब हम खर्च भी कर सकते आप करोड़ों रुपया खर्च कर दीजिये और हाउस की परवाह न कीजिये तो यह डिक्टेरशिप । बहुमत के बल पर आप मनमानी करना चाहते हैं । तो यह तो एक तरह से डिक्टेटरशिप नी । श्रीमन्, मैं यह भी जानना चाहता हूं कि इसका बिल कब आयेगा, अगर आजही जाय तब तो ठीक है । तब मैं कुछ कहूं ।
श्री अध्यक्ष - अनुदानों पर मतदान खत्म होते ही आज ही आजायगा ।
श्री मदनमोहन उपाध्याय --तो अध्यक्ष महोदय, जनरल डिस्क्शन पर मैं बहस करूंगा।
श्री ब्रजभूषण मिश्र - अध्यक्ष महोदय, में समझता हूं कि अगर उपाध्याय जी ने स्पष्टीकरण को पढ़ा होता तो इतना अधिक बोलते की आवश्यकता न होती। सारे लेनदेन का हिसाब तो ऐसा होता ही है । बनिया भी जब पर्ची काटता है तो नीचे लिखा होता है कि भूल चूक लेनी देनी । वही यहां पर भी है सीवासादा हिसाब है। उसमें न कोई व्याख्या की जरूरत है और न कोई गबन की बात, जैसा पहले माननीय उपाध्याय जी कह चुके हैं जिसको कि उन्होंने आपकी आज्ञा से वापस भो लिया । सीधी सी बात है १२ लाख के स्टाम्प बिके तो जितने बिकेंगे रुपया तो राजस्व में चला जायगा और कमीशन के खाते में पड़ेगा। कहीं रुपया नहीं गया। और न कहीं किसी ने गबन किया है। एक जेब से निकल कर दूसरी जेब में रखना है, केवल ( paper adjustment) का रूप है, सीधी सी बात है कि इतने के स्टाम्प बिके तो उनकी छपाई वगैरह में जो कागज और रुपया खर्च हुआ वह स्टाम्प की मद में बढ़ गया और यही टोटल मिल करके २२ हजार हो गया उसके वास्ते में समझता हूं कि यह मांग स्वीकार की जाप ।
* श्री नारायणदत्त तिवारी (जिला नैनीताल ) -- श्रीमन्, में आपकी आज्ञा से प्रस्तुत मांग का विरोध करने के लिये उपस्थित हुआ हूं । इस ग्रान्ट नम्बर ४ के अनुसार स्टाम्प ग्रान्ट के अधीन २२,१५८ रुपये की वृद्धि के सम्बन्ध में रुपये की मांग की गयी है। मैंने पब्लिक कमेटी की रिपोर्ट में यह ध्यान से देखने की चेष्टा की कि आखिर इस ग्रान्ट के सम्बन्ध में कोई प्रश्न उठा है या नहीं। लेकिन उस रिपोर्ट में सन् १९५०-५१ के बजट के सम्बन्ध में जो रिपोर्ट है एप्रोप्रियेशन आडिट रिपोर्ट, उसमें कोई व्योरा या विवरण न इस विभाग की ओर से और न कमेटी की तरफ से देखने को प्राप्त हुआ । तो इसलिये कम से कम इस प्रान्ट ४ के बारे में नहीं कहा जा सकता कि पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी के सामने कोई ब्योरा उपस्थित किया या स्पष्टीकरण मांगा। इसलिये मैं इतना अत्यन्त आवश्यक समझता हूं कि इस ग्रान्ट के बारे में माननीय मंत्री जी को पूरा ब्योरा सदन के सामने रखना चाहिये । यह जो स्पष्टीकरण दिया गया है यह केवल ५ लाइन का है और इतना अर्थहीन है, इतना अस्पष्ट है कि इससे कोई आवश्यकता नहीं महसूस होती है कि क्यों २२ हजार ही दिया जाय। यह हो सकता है कि डिटर जनरल ने या कम्पट्रोलर जनरल ने सारी फाइलें डिपार्टमेंट की देख ली हों उसके बाद कोई सिफारिश की हो। लेकिन सदन के सामने कोई सिफारिशों का व्योरा नहीं आया। मिसाल के लिये सन् १९५०-५१ में स्टाम्प्स को प्राइटम ग्रान्ट नम्बर ४ के लिये ५१,७०० रुपये की मांग की गयी। जिसमें २२ हजार की वृद्धि हुयी। कहा यह जाता है कि उस साल १२ लाख रुपये की अधिक आमदनी स्टाम्प बिकने से हुयी जिसके कारण स्टाम्प वेन्डर्स को डिस्काउन्ट दिया गया और स्टाम्प्स के बनने की कीमत जो थी वह और बढ़ गयी । तो इस ऐक्सप्लेनेशन से यह मालूम होना चाहिये था, अलग अलग स्पष्ट किया जाना चाहिये था ब्योरेवार कि कितना डिस्काउन्ट स्टाम्प वैन्डर्स को दिया गया और कितना बढ़ा और कितना जो मैन्युफैक्चरिंग कास्ट, प्रकाशन व्यय या वह कितना बढ़ा अलग अलग उसका ब्योरा दिया जाना चाहिये था कि इतना पहले था, इतना इसमें बढ़ गया । मैं जानना चाहूंगा कि माननीय मंत्री जी से कि २२,१५८ रुपये में से कितना रुपया ऐसा था जो कि उन्होंने डिस्काउन्ट के रूप में दिया और कितना रुपया ऐसा था जो कि उन्होंने मैन्युफैक्चरिंग कास्ट के रूप में दिया ।
दूसरी बात यह है कि माननीय मन्त्री जी को यह बतलाना चाहिए कि पूरक अनुदानों को रूप में सन ५०-५१ से लेकर आज तक उन्होंने इस ग्रान्ट को क्यों नहीं मांगा और जब तक आडीटर जनरल ने उसको बतलाया नहीं कि एक्सेस ग्रान्ट खर्च कर चुके हो, उनके विभाग को पता क्यों नहीं लगा। यह आमदनी का आइटम था, १२ लाख आमदनी हुयी यह तो मालूम था उनके विभाग को, लेकिन जो ज्यादा खर्चा करना पड़ा यह उनके विभाग को नहीं मालूम हुआ। उनके विभाग को अपनी आमदनी जो बढ़ गयी है वह तो मालूम है, लेकिन जो खर्चा बड़ा वह नहीं मालूम हुआ जब तक कि आडटिर जनरल ने तीन साल तक उनके विभाग को नहीं बतलाया कि इतना ज्यादा खर्चा तुम कर चुके हो, मैं समझता हूं कि यह उनके विभाग के लिये बड़े शर्म की बात है। मैं जानना चाहता हूं कि सन् ५०-५१ के पूरक अनुदान जो प्रस्तुत हुये उनमें क्यों नहीं मांगा ? ५१-५२ का बजट आया, सप्लीमेंट्री उस समय आया उस समय क्यों नहीं मांगा। श्रापको ज्ञात होगा श्रीमन्, सप्लीमेंट्री स्टीमेट्स में तीन तीन साल पुराने प्राइम हमने मंजूर किये हैं और पिछले साल के कितने आइटम्स मंजूर करते रहे हैं। मैं तो सदन से विनीत निवेदन करूंगा कि जब तक माननीय मंत्री जी स्पष्टीकरण नहीं देते कि उनका विभाग सोया हुआ नहीं था, स्वप्नावस्था में विचरण नहीं कर रहा था जिस समय कि यह रुपया खर्च हुआ, अपने स्पष्टीकरण को और स्पष्ट नहीं करते तब तक हमको इस ग्रान्ट को मंजूर नहीं करना चाहिये ।
श्री गिरधारीलाल-अध्यक्ष महोदय, मुझे इस सिलसिले में बहुत ज्यादा नहीं कहना है । सिर्फ इतना ही बतलाना चाहता हूं कि सदन में जिस समय सब एक्सेस ग्रान्ट्स रखी गयी उसी * वक्ता ने भाषण का पुनर्वोक्षण नहीं किया।
समय यह भी रखी गयी और दूसरी खास बात उन्होंने यह कही कि यह अलग अलग कितना रुपया इसमें खर्च हुआ है । तो मैं उनको यह बता देना चाहता हूं कि १० हजार ७ सौ रुपया तो स्टाम्प वेंडर्स के कमोशन वगैरह में और १२ हजार ७ सौ ८३ रुपया मैन्युफैक्चरिंग कास्ट वगैरह में दिया गया है। और मं समझता हूं बाकी जितनी बातें इसके अलावा कही गयी वह सब वैसी ही बातें हैं और उनका स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है ।
श्री नारायणदत्त तिवारी -- मैं एक बात जानना चाहता हूं ? एक सवाल करना चाहता हूं कि कमीशन में केवल दस हजार रुपया खर्च होना और १२ हजार रुपये होना यह इतना आश्चर्यजनक है कि कैसे इसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है ?
श्री अध्यक्ष -- आपको कुछ जवाब देना है ?
गिरधारीलाल - जी नहीं, मुझे कोई जवाब नहीं देना है ।
श्री अध्यक्ष - प्रश्न यह है कि अनुदान संख्या ४ - स्टाम्प के अन्तर्गत २२,१५८ रुपये की मांग स्वीकार की जाय ।
( प्रश्न उपस्थित किया गया और हाथ उठा कर विभाजन होने पर निम्नलिखित मतानुसार
स्वीकृत हुआपक्ष में-- १२१, विपक्ष में-१४ ।)
अनुदान संख्या ६ -- रजिस्ट्री
श्री गिरधारीलाल - अध्यक्ष महोदय, में प्रस्ताव करता हूं कि ३१ मार्च, १९५१ को समाप्त हुये वर्ष के दौरान में अनुदान सं या २, रजिस्ट्री के अन्तर्गत व्यय बुद्धि को पूरा लिये राज्यपाल को ६,६३० रुपये की धनराशि दी जाय ।
इसके विषय में भी खास बात नहीं कहनी है, क्योंकि इसमें जो खास एक्सप्लेनेशन है वह संबंधित लिट्रेचर में दिया हुआ है।
श्री नारायणदत्त तिवारी - विधान की धारा २०३ के अनुसार गवर्नर महोदय की सिफारिश के अनुसार यह मांग नहीं हो रही है ।
श्री अध्यक्ष -- उन्होंने यह कह तो दिया । आपने सुना न होगा ।
* राजा वीरेंद्रशाह (जिला जालौन ) -- माननीय प्रध्यक्ष महोदय, जो रजिस्ट्री के सम्बन्ध म ६,६३० रुपये की मांग सरकार ने की मैं उसका विरोध करता हूं । विरोध करने का तात्पर्य यह है कि हम लोगों को इसमें तो कोई उम्र नहीं है कि ६,६३० रुपया खर्च किया गया, जरूरत पड़ने पर किया गया, लेकिन यह जो तरीका एक्सेस ग्रान्ट में मांगने का है, यह उचित नहीं है । तो सब विभागीय कर्मचारियों को मालूम होना चाहिये कि कितना खर्च होना चाहिये । यह कोई अच्छी चीज नहीं है कि एक्सेस ग्रान्ट हम विधान सभा में पेश करें और फिर वह पूरा किया जाय। यह तर्क देना कि हम भूल गये, तो तीन-तीन सप्लीमेंटरी डिमांड्स सरकार ने रखे हैं इस भवन के अन्दर सन् १९५०-५१ तक के खर्चे के और यह पता खर्चे का नहीं चल सका कि विलीन रियायतों के सम्बन्ध में क्या खर्चा इस बारे में हुआ। यह विभाग के लोग न जान सके, तो मैं समझता हूं कि यह जायज नहीं है और इसलिये विरोध करता हूं कि श्राइंदा ऐसी चीजें नहीं होनी चाहिये ।
श्री गिरधारीलाल मुझे इसके विषय में भी कोई खास बात नहीं कहनी है। सिर्फ इतना ही है कि यह साफ जाहिर है कि जिस समय सदन के सामने बजट रखा जाता है उस समय
* वक्ता ने भाषण का पुनर्वोक्षण नहीं किया ।
[श्री गिरधारीलाल]
सरकार की कभी यह ख्वाहिश नहीं होती कि सप्लीमेंटरी ग्रान्ट या एक्सेस ग्रान्ट सदन के सामने रख कर सदन का समय लिया जाय । लेकिन साथ ही गवर्नमेंट का काम बिला इसके चल भी नहीं सकता । लिहाजा जब बहुत मजबूरी हो जाती है तभी ऐसी ग्रान्ट्स सदन के सामने पेश की जाती हैं ।
अध्यक्ष प्रश्न यह है कि अनुदान संख्या ६ - - रजिस्ट्री के अन्तर्गत ६,६३० रुपयों की अतिरिक्त मांग स्वीकार की जाय ।
( प्रश्न उपस्थित किया गया और स्वीकृत हुआ ।) अनुदान संख्या १२ - कमिश्नर और जिला प्रशासन
मुख्य मंत्री ( डाक्टर सम्पूर्णानन्द) --प्रध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्ताव करता हूं कि ३१ मार्च, १९५१ को समाप्त हुये वर्ष के दौरान में अनुदान संख्या १२ - - कमिश्नर और जिला प्रशासन के अन्तर्गत व्यय वृद्धि को पूरा करने के लिये राज्यपाल को ६२,१८६ रुपये की धनराशि दी जाय ।
इस सम्बन्ध में मैं दो एक बातें निवेदन करना चाहता हूं। पहली बात तो यह है कि यह बिल्कुल सही है कि बिना सदन की मंजूरी के रुपया खर्च नहीं होना चाहिये। अगर मूल बजट बनते वक्त वह चीज नहीं भी हो सके तो सप्लोमेंट्री के रूप में आनी चाहिये । लेकिन जिन लोगों ने कांस्टीट्यूशन बनाया उनको दुनियां के और देशों का भी अनुभव था और वे जानते थे इस बात को कि कांस्टीट्यूशन के अनुसार जो भी काम होता है वह श्रादमियों के हाथ से होता है और वे इस बात को समझते थे और मैं भी इस बात को कहता हूं कि दुनियां में कोई भी गवर्नमेंट कभी ऐसे नहीं चल सकती कि उससे कभी न कभी कुछ एक्सेस खर्च न हो जाय । इसीलिये हमारे कांस्टीट्यूशन में एक्सेस ग्रांट्स के लिये नियम रखा गया है । अगर एक्सेस ग्रान्स होनी ही हां चाहिये थीं तो उनका न यहां जिक्र होता, न केन्द्र में होता और न ब्रिटिश पार्लियामेंट में होता । एक बात और है समझने के लिये । यह एक्सेस ग्रान्ट ऐसी चीज है जो सप्लीमेंटरी ग्रान्ट के रूप में कदापि पेश नहीं हो सकती। अगर सप्लीमेंटरी ग्रान्ट के रूप में पेश हो सके तो उसे सप्लीमेंटरी ग्रान्ट के रूप में आना चाहिये । जब कोई योजना गवर्नमेंट की होती है जिसको वह चलाना चाहती है उसको तो गवर्नमेंट सदन के सामने पेश कर सकती है, अगर वह मूल बजट में न हो । मसलन् इंडस्ट्रीज की बात है, उसका दो करोड़ रुपये सालाना का बजट हो और बीच में अगर यह बात येक इंडस्ट्री को भी चलाना है और उसके लिये २० - २५ लाख रुपये की ज़रूरत है तो उसके लिये तो गवर्नमेंट सप्लीमेंटरी ग्रान्ट पेश कर सकती है। लेकिन बहुत से खर्चे ऐसे होते हैं जिनको करने की न तो गवर्नमेंट की इच्छा होती है और उसको पता भी नहीं होता है, लेकिन वह खर्च हो जाता है। मिसाल के लिये, इसी में लिखा है कि जमींदारी एबालिशन और ग्रो मोर फूड के सिलसिले में जो काम हुआ उनमें गाड़ियों में खर्चा हुआ। अब इस खर्च को करने वाले हमारे यहां ५१ जिले हैं और एक नायब तहसीलदार से लेकर कलेक्टर तक के हाथ से वह खर्चा हुआ। कहीं पेट्रोल में दो रुपये खर्च किये गये और कहीं सवारी में, और ये सब रुपये जोड़ कर इतने हो जाते हैं जिनका सरकार को पता नहीं होता। जब कहीं सारा हिसाब पूरा हो जाता है तब कहीं जाकर पता लगता है कि इस काम में इतने रुपये ज्यादा खर्च हो गये। फिर अगर एक अधिकारी के हाथ से खर्च होता हो तः भी कुछ हो सकता है कि उसे पता रहता है कि रुपया इस काम के लिये है, उसी के अन्दर खर्च करने की कोशिश करें, लेकिन जहां पर इतने श्रादमी खर्च करने वाले होते हैं वहां पर कभी-कभी ऐसा हो जाना प्राश्चर्य की बात नहीं है। इसी मद को लीजिये ९२, १८६ रुपये हम मांगते हैं। इसके लिये कुल खर्चा सदन ने २ करोड़ ८३ लाख का मंजूर किया था। उसके ऊपर ९२,१८६ रुपये और खर्च हये । उसको बतलाया गया है कि टेहरी गढ़वाल स्टेट का मर्जर हुआ और वह उत्तर प्रदेश में आयी। अब उसमें क्या खर्च होगा इसका कोई खास एस्टीमेट नहीं हो सकता था। जो समझ में प्रा सकता था वह तो बजट में रख
दिया गया या सप्लीमेंटरी बजट में रख दिया गया लेकिन वहां कैसी सड़कें हैं, और क्या-क्या खर्चे होंगे, इसका कुछ अंदाजा नहीं हो सकता था। इसलिये ऐसा हुआ और जैसा कि लिखा है कि जमींदारी प्रबालिशन के सिलसिले में, कलेक्शन के काम में तथा ग्रो मोर फूड के सिलसिले में सवारी में रुपया खर्च हुआ है । हिसाब तो एकाउन्टेन्ट जनरल के यहां रहता है और जब वहां से हिसाब आता है तो हम लिखते हैं। इसके अलावा और कोई दूसरा तरीका नहीं है कि हम रख सकें। इसलिये मैं आशा करता हूं कि सदन मेरी मांग को स्वीकार करेगा ।
श्री मदनमोहन उपाध्याय -- अध्यक्ष महोदय, मैं इस मांग का विरोध करता हूं और मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुयो कि माननीय मुख्य मंत्री जी ने स्वयं स्वीकार किया है कि ऐसा हो जाता है और अगर ऐसा डेमोक्रेसी में नहीं होता तो विधान में यह क्लाज आया हो नहीं होता। हमारी एक और शिकायत है कि बजट ३१ मार्च को खत्म होता है । ३१ मार्च तक जितना रुपया होता है वह खर्च हो जाता है या जो कुछ रुपया जितना बजट का सैक्शन होता है उससे कुछ ज्यादा खर्च हो गया हो तो ए०जी० के यहां किताबों में दर्ज हो जाता है। वह दो तीन महीने तक खुली रहती हैं। वैसे तो ३१ मार्च को बंद हो जानी चाहिये लेकिन अगस्त के महीने तक खुली रहती हैं। जहां पर डिपार्टमेंट्स की पिक्चर प्रा जाती है कि इस डिपार्टमेंट ने कितनी सेविंग की या एक्सेज किया ।
अध्यक्ष महोदय, मुझे दुख तो इस बात का है कि जो रोजन्स दिये गये हैं वह सब गलत हैं, इसलिये हमें शिकायत है । पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी के सामने यह मामला आया था और उसने सारे पहलू पर खूब अच्छी तरह से विचार किया था और देखा था कि स्टेट्स के मरजर पर क्या खर्चा हुआ और जमींदारी अबालिशन के सिलसिले में कलेक्शन में खर्चा हुआ था । उस सब को देखकर अन्त में पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी ने यह फैसला किया था कि यह जो ग्रान्ट है बहुत अनविल्डी है। सब कमीशन, लेजिस्लेचर वगैरह दुनियां भर के डिपार्टमेंट्स इस हेड में हैं । उसने यह फैसला किया कि यह डिपार्टमेंट बहुत अनविल्डी हो गया है इसलिये इसे डिसबर्स कर दिया जाय और छोटे-छोटे ग्रान्ट्स बना दिये जायं ।
मुझे आशा है कि माननीय मुख्य मंत्री जी जवाब देते समय यह बताने की कोशिश करेंगे कि सरकार ने इस पर क्या फैसला किया ? अध्यक्ष महोदय, आप देखें कि यह ऐसे रोजन्स हैं जिनसे हम कन्विन्स नहीं हो सकते हैं, वैसे बदनाम हमें किया गया है। इसमें लिखा है किः"A demand for an excess grant can be laid before the Legislative Assembly only after the Appropriation Accounts of the year have been made up and audited. The work of compilation .
श्री अध्यक्ष - - यह आप क्या पढ़ रहे हैं ?
श्री मदनमोहन उपाध्याय -- यह उन्होंने कहा कि क्यों देर हुयी
श्री अध्यक्ष - - वह हिन्दी में भी तो आया है ।
श्री मदनमोहन उपाध्याय -- जी हां, "संबंधित वर्ष के विनियोग लेखे ( एप्रोप्रियेशन एकाउन्ट्स) तैयार हो जाने और उनकी लेखा परीक्षा हो जाने के बाद ही अतिरिक्त अनुदान के लिये मांग विधान सभा के समक्ष रखी जा सकती है । नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कंट्रोलर ऐन्ड आडिटर जनरल) द्वारा विनियोग लेखों (एप्रोप्रियेशन एकाउन्ट्स ) के संकलन करने में तथा लोक लेखा समिति (पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी) द्वारा उन पर विचार करने में कुछ समय लगता है। चूंकि अतिरिक्त अनुदानों के लिये इन मांगों को संविधान के अनुसार सदन के समक्ष पहली बार प्रस्तुत किया जा रहा है, इसलिये भारत सरकार के परामर्श से इस सम्बन्ध में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया (प्रोसीजर) के निर्धारण में भी कुछ समय लगा है।"
अध्यक्ष महोदय, कांस्टीट्यूशन हमारे सामने है, हमें गवर्नमेंट आफ इंडिया से क्या पूछना है। पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी का सवाल है। अध्यक्ष महोदय, जैसे एकाउन्टटेन्ट जनरल
महोदय के बीच में और ऐड मिनिस्ट्रेटिव हेड्स के बीच में कारस्पांडेंस चलती है और जब एकाउन्टेंट जनरल के यहां किताबों में दर्ज हो जाता है कि इस डिपार्टमेंट ने कितनी सेविंग की है तो वह वहां लिखी जाती है, इसी तरह से किसी डिपार्टमेंट ने कितना ज्यादा खर्च कर दिया वह भी दर्ज हो जाता है और गवर्नमेंट को मालूम हो जाता है कि हमारे इस डिपार्टमेंट में एक्सेस हो गया। मेरे कहने का मतलब यह है कि १९५०-५१ में जो रुपया एक्सेस हुआ उस रुपये की सूचना गवर्नमेंट को हो चुकी थी कि इस डिपार्टमेंट में इतना एक्सेस हो गया । कोई कारण नहीं था कि इतने लम्बे समय तक वह पड़ी रहे और यहां पर हमारे सामने न आवे । गवर्नमेंट के पास आडिटर जनरल के दफ्तर से हिसाब-किताब आ गया होगा। यह जरूरी नहीं है कि इस तरह की ग्रान्ट पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी के सामने आवे । गवर्नमेंट और एकाउन्टेन्ट जनरल में खतोकिताबत होती रहती है और फिर आपस में ही इनका फैसला हो जाता है कि इस तरह से इसको ठीक कर लिया जाय । इसलिये मेरे कहने का मतलब यह है कि ५०-५१ के ऐक्सेस एकाउन्ड का हिसाब गवर्नमेंट को ५२ में हर हालत में पहुंच गया होगा। कोई कारण नहीं है कि आज तक इतने साल तक यह एक्सेस ग्रान्ट हमारे सामने न रखी जाती । इसमें पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी का कोई दोष नहीं है। यह तो उसी तरह से हुआ कि अगर इस साल कोई एक्सेस ग्रान्ट तो वह क एकाउन्ट्स कमेटी के पास तो जा नहीं सकती है, क्योंकि उसके पास एप्रोप्रियेशन एकाउण्टस नहीं है। पहले उसको आडिटर जनरल तैयार करें और फिर वह पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी के सामने आ और तब उस पर फैसला हो । फिर वह सरकार के पास जाय तब वह फैसला करे कि यह एक्सेस हो गया । तब मांग करे । तो वह एक्सेस यहां पर सन् ६२ में आयेगा तब तक न मालूम कौन गवर्नमेंट यहां पर बैठी रहेगी । इसलिये मेरी शिकायत है कि इस तरह से नहीं होना चाहिये । एक्सेस होता है, मैं भी मानता हूं, लेकिन इसका तरीका यह दोषपूर्ण है। जनरल डिस्क्शन के मौके पर मैं माननीय मंत्री जी को बताने की कोशिश करूंगा और सरकार ने उसको पालन किया तो फिर इस तरह की आपत्ति से वह बच सकती है । इन शब्दों के साथ जो ग्रान्ट यहां पर रखी गयी है, मैं उसका विरोध करता हूं ।
* श्री अवधेशप्रतापसिंह (जिला फैजाबाद) - माननीय अध्यक्ष महोदय, यह सच है कि किसी विधान सभा के लिये किसी न किसी समय उसको एक्सेस ग्रान्ट के लिये मंजूरी देनी होगी। भी जो बातें यहां पर माननीय मुख्य मंत्री ने कही हैं उससे न मुझे कोई विरोध है और न ऐसी बात है जिसके ऊपर कुछ कहा जा सकता है। मैं आपके द्वारा माननीय मंत्री जी का ध्यान इस ग्रान्ट के सम्बन्ध में प्राकर्षित करना चाहता हूं । वह यह है कि टेहरी गढ़वाल के सम्बन्ध में यह सच है कि वह नहीं बता सकते थे, विलीन होते हुये समय बहुत सी जानकारी उस रियासत के बारे में इस प्रदेश की सरकार को नहीं थी। सरकार उस समय उसके लिये पूरी और समुचित व्यवस्था नहीं कर सकती थी । परन्तु मैं आपके द्वारा माननीय मंत्री जी से यह दरियाफ्त करना चाहता हूं कि ग्रो मोर फूड कम्पेन के सम्बन्ध में क्या सरकार को जानकारी नहीं थी। आज की नहीं, यह उस समय की बात है जब कि महायुद्ध चल रहा था । तब से आजतक इसके लिये इस प्रदेश में काफी धन व्यय हो चुका है। इस सम्बन्ध में किस तरह से अपव्यय हुआ है और व्यय का दुरुपयोग हुआ है इसके कहने के लिये यह अवसर नहीं है ।
दूसरी बात जो और बताने वाली है वह यह है कि जमींदारी विनाश कोष के लिये सरकार को कौन सी आपत्ति प्रा गयी थी जिसके लिये सहसा इतनी मोटर गाड़ियां खरीदनी पड़ीं। जमीदारी विनाश कोष जिस समय चल रहा था उस समय हमारे माननीय ठाकुर हुकुम सिंह जिम्मेदार थे। इस सरकार ने उसके लिये भी प्रबंध किया था कि सरकार के कोष में रुपया संचित किया जाय। जब कि सरकार ने इसके लिये करोड़ों रुपया दिया तो इसके लिये कौन सी श्रापति प्रा पड़ी थी। जहां तक ज़मींदारी विनाश कोष का सम्बन्ध है मैं आपके द्वारा सरकार को यह बता
*वक्ता मे भाषण का पुनर्वीक्षण नहीं किया ।
देना चाहता हूं कि किस तरह से हमारी प्रदेशीय सरकार ने इसके सिलसिले में धन का दुरुपयोग किया। और अधिक अन्न उपजाओ और जमींदारी विनाश कोष के सिलसिले में माननीय मुख्य मंत्री जी का यह कहना कि उनको इस बात का ज्ञान नहीं था मैं समझता हूं कि इसमें कोई सार नहीं है । जब बजट प्राया था तो हो सकता था कि उस समय तक पूरा ज्ञान न हो पाया हो परन्तु यह कहना कि सप्लीमेंटरी ग्रान्ट जब आयी थी उस समय भी मंत्री महोदय को इसका ज्ञान न था. इसमें कोई तथ्य नहीं है। यह हो सकता है कि उस समय और आज भी ऐसी गलतियां हों, जिनकी वजह से यह हो सकता हो कि सरकार को पूरा ज्ञान नहीं हो पाता है। परन्तु किसी भी सरकार के लिये डेमोक्रेसी में रहना और पूरा ज्ञान प्राप्त न करना केवल यही कहा जा सकता है कि उधर की बेंचेंज पर जो लोग बैठे हुये हैं वे सब लोटस ईटर्स ही हैं, जिनको अपने कर्तव्य और कार्य का ज्ञान नहीं है। इसलिये केवल डेमोक्रेसी में यह कह कर पार लगना संभव नहीं है। माननीय मुख्य मंत्री जी का गढ़वाल के बारे में जो कहना है वह तो मान्य हो सकता है, लेकिन ठाकुर साहब के लिये यह क्या ग्राफत आ गयी कि वे मोटर पर मोटर खरीदते ही गये। जमीदारी मोटरों से थोड़े ही टूटनी थी, उसको तोड़ने के लिये तो स्वयं विराजमान ही थे। अधिक अन्न उपजाओ के सिलसिले में मैं केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि उसके बारे में माननीय मुख्य मंत्री जी हर एक चीज को जानते थे। हां, किसी तरह की गलतियों पर आवरण डालने की बात तो समझ में प्रा सकती है और ऐसे समय में जो कुछ किया जाता है और करना पड़ता है, वह तो मैं जानता ही हूँ । श्रीमन्, अब मैं और अधिक समय नहीं लेना चाहता और इतना कह कर हो समाप्त करता हूं
श्री अध्यक्ष - मैं कार्यक्रम के बारे में कुछ कह देना चाहता हूँ । इन अनुदानों के ऊपर प्राप ४ बजे तक बहस करें । ४ बजे जो अनुदान रह जायेंगे उनके ऊपर बिना बहस में वोट ले लूंगा और उसके बाद फिर जैसा कि नियम है वह विनियमन विधेयक आयेगा । ४ बजे तक इसके ऊपर मतदान का कार्यक्रम समाप्त हो जाना चाहिये ।
( इस समय १ बजकर १८ मिनट पर सदन स्थगित हुआ और २ बजकर २५ मिनट पर उपाध्यक्ष श्री हरगोविंद पन्त की अध्यक्षता में सदन की कार्यवाही पुनः आरम्भ हुयी ।)
श्री नारायणदत्त तिवारी -- आदरणीय उपाध्यक्ष महोदय, में प्रस्तुत मांग का विरोध करने के लिये खड़ा हुआ हूँ । माननीय मुख्य मंत्री जी ने जिन सिद्धांत सम्बन्धी विचारों को उपस्थित किया है वे विचारणीय हैं। उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि कोई भी सरकार, किसी भी देश की क्यों न हो उस के बजट में वृद्धियां होने की गुंजाइश रहती है और इसीलिये विधान में ऐसी व्यवस्था है कि उस के अनुसार वृद्धियों के लिये सदन के सम्मुख मांग की गुंजायश हो। यह सही है कि उनके लिये गुंजाइश होनी चाहिये । लेकिन प्रश्न यह है कि वह वृद्धियां कौन सी हों ? वह ऐसी न हों जिन को पूरक बजट में व्यवस्था हो सकती थी। उनका कहना है कि जिन विषयों में पूरक बजट में व्यवस्था हो सकती है वे अलग हैं और जिनकी मांग वृद्धियों में हो सकती है वे अलग होती हैं। मैं कहूंगा कि कुछ मामलों में ऐसा होना सम्भव भी है जैसे मिसाल के लिये एक है। जो मांग प्राज रखी जा रही है, इस में रोडवेज के सम्बन्ध में डिप्रोसिएशन एकाउन्ट का जिक्र है। इसके सम्बन्ध में यहां के फाइनेंस सेक्रेटरी ने पबलिक एकाउन्ट्स कमेटी के सामने जिक्र किया और ३ बार कहा कि यह बजट में आना चाहिये। यही नहीं है और भी आइटम्स हैं जो पूरक बजट में आ सकते हैं और वृद्धियों में नहीं आने चाहिये। देखना यह है कि प्रस्तुत मांग में कौन सी व्यवस्था है जो पूरक बजट में प्रा सकती थी। आप देखें कि इसमें लिखा है कि अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन के सम्बन्ध में अपेक्षित मोटर गाड़ियों की व्यवस्था करने के सम्बन्ध में करना पड़ा । यह १२ हजार रुपया इस मद पर और विलीनीकृत रियासतों में अधिक व्यय के सम्बन्ध में व्यय हुआ । अगर मोटर गाड़ियाँ खरीदनी पड़ीं तो यह न्यू एक्सपेंडिचर आइटम हो जाता है और उसकी व्यवस्था पूरक बजट में होनी चाहिये थी और रखरखाव में हुआ तो सवाल दूसरा है । जिस तरह से स्पष्टीकरण में लिखा हुआ है उससे मालूम होता है कि नयी मोटर
गाड़ियां खरीदने की आवश्यकता हुयी, अगर यह होता कि नहीं खरीदो गयीं तो वृद्धि में ग्रा सकता था लेकिन मोटर गाड़ियों की व्यवस्था का अर्थ हो सकता है कि नयी खरीदो गयीं। सन् ५०-५१ का बजट हमारे सामने है, उसमें सामान्य प्रशासन के सम्बन्ध में २ करोड़ ५३ लाख की मांग की गयी है। उसके बाद एक पूरक बजट आया और उसमें इसके लिये २८ लाख दस हजार की और मांग की गयी थी। पूरक बजट में आप देखेंगे कि इन दोनों मांगों के लिये व्यवस्था की गयी है । एक तो जमींदारी विनाश कोष की उगाही की कार्यवाही के सम्बन्ध में पूरक बजट में १ लाख ५० हजार की मांग की गई थी फिर उन गाड़ियों के लिए पेट्रोल आदि के लिए २ लाख की मांग अलग की गई थी और उन मोटर गाड़ियों की मरम्मत आदि के लिए १ लाख रुपए के करीब और मांग की गई थी। इस तरह से मोटर गाड़ियों की मद में ही कुल अलग-अलग आइटम्स में उस सप्लीमेंटरी बजट में साढे ४ लाख रुपए की मांग की गई थी। तो जब सप्लीमेंटरी बजट, १९५०-५१ में इन्हीं मदों के लिये रुपया मांगा गया था और उस वृद्धि का अन्दाजा हो गया था कि ज्यादा रुपया खर्च होना चाहिये तो यह रुपया एक नये मद के रूप में खर्च नहीं होना चाहिये और अगर वृद्धि हुयी तो हमें यह जानने का अधिकार है कि यह वृद्धि किस प्रकार हुयी और क्या यह पूरक बजट में नहीं भ्रा सकती थी और यह पुराना खर्च किस उपशीर्षक के मातहत हुआ ? पहले तो यह आना हो नहीं चाहिये था और अगर आता भी है तो उसमें पूरा स्पष्टीकरण होना चाहिये था कि किस उपशीर्षक से यह धन आया है, क्योंकि पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी की रिपोर्ट में सभी मदों का पूरा ब्योरा नहीं होता। पब्लिक एकाउन्ट्स कमेटी की प्रोसीडिंग्ज इस साल काफी मोटी छपी हैं, लेकिन जहां तक उसकी रिपोर्ट होती है वह बहुत संक्षिप्त होती है और सभी बातें उसमें नहीं श्रा सकतीं । तो कम से कम स्पष्टीकरण बहुत स्पष्ट होना चाहिये। मैं चाहता हूं कि इसका स्पष्टीकरण माननीय मुख्य मंत्री जी दें और इसीलिये इसका विरोध करने के लिये मैं प्रस्तुत हुआ
डाक्टर सम्पूर्णानन्द -- उपाध्यक्ष महोदय, मुझको ऐसा लगता है कि मेरी इस मांग का विरोध करते हुये माननीय उपाध्यक्ष जी ने अपने साथ थोड़ा सा अन्याय किया है । उनको पब्लिक एकाउन्ट्स इत्यादि के विषय में जो ज्ञान है उससे उन्होंने पूरा-पूरा काम नहीं लिया। उन्होंने यह कहा यदि में उन्हें गलत नहीं समझ पाया हूं कि जब कोई वित्तीय वर्ष समाप्त हो जाता है तो उसके चार-पांच महीने के भीतर हो सरकार को पता लग जाना चाहिये कि कितना रुपया कहां ज्यादा खर्च हुआ है ? मेरा निवेदन है कि ऐसा सम्भव नहीं है । क्लोज प्राफ दि ईयर के चार-पांच महीने के भीतर यह प्रन्दाजा लगता है मोटे तौर पर कि कितना अधिक व्यय हुआ है, लेकिन उपाध्याय जी को इसके बाद मालूम है, गवर्नमेंट के डिपार्टमेंट से एकाउन्टेन्ट जनरल से लिखा पढ़ी होती है और बाद में यह दोनों के खतोकिताबत करने से तय होता है कि किसकी गलती है ? यदि एकाउन्टेंट जनरल के हिसाब की जांच में गलती नहीं होती तो सरकार के उस विभाग को मालूम होता है कि रुपया ज्यादा खर्च किया है। इसमें कितने वक्त की आवश्यकता है तब जाकर वह मालूम होता है। इस वास्ते साल महोने में यह सम्भव भी नहीं है। उपाध्याय जी ने बजट मैनुअल जरूर देखा होगा। उसका जो सेक्शन १५७ है वह इस प्रकार है
"A demand for an excess grant differs from a demand for a supplementary grant in that, while the latter is essentially a demand for a grant the need for which is foreseen during the currency of a year and is presented in the year to which it relates, a demand for an excess grant is presented after the close of the financial year to which it relates in order to regularize expenditure in excess of the voted grant of that year or on a 'new service' in that year not covered have been made up and audited the work of compilation of the appropriation accounts by the of the Assembly. The need for an excess grant connot be known until the appropriation accounts by the Accountant Genral and their considera |
3bf5e3fbc2100fd9cb5482920a9e7d761373e8a3d5ecece17492cc74e198d239 | pdf | चाहेंगे । भूल करने में हमारी हानि है, भूल न करने से हमारा ज्यादा लाभ भी है। इसका प्रदर्शन अगर हम खुद अपने आचरण में नहीं करते हैं, तो दूसरों से यह आशा रखनी बेकार है कि वे हमारे उपदेशों से, भलों से बचेंगे । अपने आचरण द्वारा हम उन पर अधिक प्रभाव डाल सकते हैं, बनिस्बत उस आचरण के अभाव में । उसकी धारणा है कि चरित्रहीन अच्छी से अच्छी संस्थाओं द्वारा भी बुराई पैदा करेंगे। इसलिए नस्थाओं के सुधार में जहां वह प्रयत्नशील होता है, वहां यह भी जानता है कि संस्था को सुधारने से ही कोई लाभ न होगा. अगर साथसाथ हमारा चरित्र भी नहीं सुधरता है । स्वभावतः वह कटु सहता हूँ, विरोधी को अपने प्रेम से वश में करना चाहता है, और जिसे ठीक समकता है, उस पर आचरण करता है ।
समाजवादी ठीक इसके विपरीत विश्वास करता है । वह संस्थाओं, परिस्थियों और ऐतिहासिक प्रवृत्तियों का परिणाममात्र मनुष्य को समझता है । अगर किसी भी तरह ये संस्थायें और परिस्थितियाँ दुरुस्त हो जाँय तो समाज आप-से-आप ठीक हो जायगा । समाज में जबतक परिस्थिति हमारे विपरीत है, तबतक हमारे एक या दो व्यक्ति कर हो क्या सकते हैं ? लिहाजा बलपूर्वक इन परिस्थितियों को बदल देना पहला और मुख्य काम है। लोगों के अन्दर विरोध, असन्तोष की भावना को प्रबल करके उन्हें स्थापित प्रणाली के विरुद्ध खड़ा कर देना चाहिए; और अगर वे इसे एक बार पलट देने में सफल हो गये तो फिर यंत्र की तरह सारा काम ठीक से चलने लगेगा। क्योंकि जो पीड़ित हैं, पद-दलित हैं, व जब अपना स्वयं प्रबन्ध करेंगे, तो ऐसा कुछ न करेंगे जिससे अपने को कछु हो । इसलिए एकमात्र काम है इस स्वर्णयुग का प्रचार, इसको आशा लोगों में जागृत करनी और मंजूदा तंत्र के विरुद्ध लोगों को भड़काना व विलव के लिए तैयार करना ।
गाँधीवाद और समाजवाद के सारे भेद इन्हीं दो मौलिक विचारधाराओं से निस्सरित होते हैं। पर विस्तार से उन पर विचार करना इस
लेख के दायरे से बाहर हो जाता है। प्रसंग था, नैतिक सिद्धान्तों को समाजवाद में कहां तक स्थान है ? और हमने देखा है कि सत्य, अहिंसा आदि के लिए वहां कोई स्थान नहीं है । इसी तरह त्याग, वैराग्य, संयम आदि के लिए भी सुनिश्चित स्थान नहीं है । गाँधीजी की सादगी, उनकी छोटी धोती आदि को समाजवादी कभी भी श्रद्धा की दृष्टि से नहीं देख सकता । गाँधीजी के महात्म्य या महात्मापने को ये लोग नहीं समझ पाते । वे तो समझते हैं कि धर्म का नाम और त्यागियों-जैना वंश लोगों की आँखों में धूत डालो का तरीका है । गांधी बड़ा चतुर्-चालाक है । वह जानता है कि इस देश के पुरुष प्रशिक्षित और गँवार है । उनके दिलों में इन चीजों के लिए बहुत बड़ा स्थान है । इससे वह इन चीजों के नाम से अपनी सारी चालें चढ़ता है । गाँध'जी में सचमुच में कुड्डू सार भी है, ऐसी कोई शक्ति भी है जो चतुर-से-चतुर मुखालिफ पर भी प्रभाव डाल लेती है, वे स्वीकार नहीं करेंगे । पर हमें यह भी मालूम है, और समाजवादी मित्र खुद भी तसनीम कर लेते हैं कि वह एक बड़ा जादूगर है । जत्राहरलालजी पर जो गाँधीजी का असर है, वह ऐसा ही कुछ है ।
और यह सब होते हुए भी समाजवादी जवाहरलालजी के त्याग, लेनिन की एकनिष्ठा, उसकी तपस्या की स्तुति करेंगे । इतना ही नहीं, अगर उनसे कहा जायगा कि 'आप लोग नैतिकता को मानते हैं ?' तो वे हाँ कहेंगे । कम-से-कम उनमें जो समझदार हैं, वे जरूर मान लेंगे - गो उनमें से बहुत से ऐसी किसी चीज़ की सत्ता स्वीकार नहीं करते हैं । पर उनमें जो नैतिकता को स्वीकार करते हैं, उनका अर्थ भी क्या है, मह समझ लेना चाहिए । उनका अर्थ है कि समाज के हित के लिए जोकुछ भी किया जाता है वह सही है और इसलिए जायज है । आज जो उचित है वही कल अनुचित होजायगा और आज जो सत्य है वही कल सत्य हो सकता है । इससे सत्य-असत्य, उचित-अनुचित निर्भर करते हैं समाज की आवश्यकताओं पर । इन सिद्धान्तों में स्वयं ही कुछ ऐसा है
जिससे समाज का हित होगा ही - चाहे व्यक्ति विशेष के आचरण करते समय ऐसा न भी मालूम हो - यह वे नहीं मानते हैं ।
और इसलिए सिद्धान्त में एक दर्जे तक इनकी बात सही होते हुए भी वास्तविक जीवन में बहुत ही ग़लत और सारी नैतिक व्यवस्था को नष्ट करने वाली होजाती है। समाज का हित अनहित किसमें है. इसका निर्णय भौ तो हरेक व्यक्ति स्त्रयं ही करेगा । और अगर भूठ बोलकर समाज का हित होता है, तो वह झूठ क्यों न बोले ! चोरी करने से अगर उसकी अपनी समझ में देश का, समाज का, लाभ होगा, तो वह कर्त्तव्यच्युत क्यों हो ? स्वभावतः जो पुरानी नैतिक व्यवस्था है वह सारी तो लोगों के शोषण और पौड़न पर निर्भर करती है । इसलिए वह बुरी है ही । और बुरी चीज़ के जो विपरीत हो तह अच्छी होगी ही । धर्म के, ईश्वर के नाम से ही इन गरीबों के शोषण का पोषण हुआ है । उसे जायज्र बनाया गया है, उसे पवित्रता दी गई है । इसलिए धर्न और ईश्वर का स्ख़ास तौर से विरोध किया जाना चाहिए ।
नतीजा यह है कि आज समाजवादी दायरों में ये चीजें अत्यन्त अनिय हो उठी हैं । नैतिकता, आध्यात्मिकता आदि चीजें हँसी-व्यंग की सामग्री तो होती हैं, पर गम्भीर विचार की नहीं । करोड़ों और अग्बों मनुष्यों के सदियों के अनुभवों को इस तरह ठुकरा दे। में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होती । ऐसा मालूम होता है कि उनकी राय में सभ्यता का श्रीगणेश ही कार्ल मार्क्स के बाद हुआ ।
राजनैतिक और आर्थिक प्रश्नों पर हरेक व्यक्ति ने अपने अनग-अलग नियम और विधान बनाये, यह आज़ादी के व्यक्तियों को नहीं देना चाहेंगे । पर जहाँतक नैतिक आचरा का ताल्लुक है, मनुष्य को पूर्ण माना जाता है और उसी के हाथ में सारा फैसला छोड़ दिया जाता है । यहाँतक कि उसकी सलाह के लिए कुछ मोटे-मोटे नियम स्थिर कर दिये जाय, इसकी भी जरूरत कभी महसूस नहीं की जाती है । फन यह होता है हरेक समाजवादी व्यक्ति नीतिशास्त्र पर अपनी व्यवस्था देता है । स्वभावतः ये
व्यवस्थायें हमारे नौतिशास्त्र से तो टकराती हो हैं, पर आपस में भी बिना तकल्लुफ टव जाती हैं और मिया इसके कि जिसे जो ठीक जँचे वह करे, उन व्यवस्थाओं में कोई समानता नहीं । और इसलिए व्यवहार में 'जो ठीक जँचे' का अर्थ हो जाता है 'जो रुचे', 'जिसमें अपनो सुविधा हो', 'अपना स्वार्थ हो', 'जो अपने को प्रिय लगे', 'जिसमें तकलीफ न हो', 'आराम हो ', 'आनन्द हो ।'
अपनी प्रवृत्तियों को धारा के साथ बहने की यह नीति गाँधीवाद के एकदम विपरीत है । और यही सारा विरोध है ।
गाँधीवाद मानता है - मनुष्य मूलतः तो पतु ही है । अहंकार, भय, निद्रा, मैथुन आदि जो धर्म उसमें हें वे पशु होने की हैसियत से उसे मिले हैं; और अगर इस पाशविक धर्म को पूर्ण छूट दे दी जाय, इसे हर पहलू में जायज मान लिया जाय, तो हमारे धम में और पशुओं के धर्म में कोई अन्तर न रहेगा ।
पशुओं और मनुष्यों में ज़रा-सा ही तो मेद है । एक में बुद्धि है और दूसरे में है उसका प्रभाव । पशु बुद्धि के अभाव में, स्वभाव से शासित होता है । मनुष्य वृद्धि के ज़ोर से अपने स्वभाव पर काबू करना सीखता है - जहाँ वह समझता है कि स्वभाव के वश आचरण करने से अपना. अपने परिवार - प्रियजनों और इसलिए समाज का, अहित होता है ।
मनुष्य ने सदियों के अपने कड़वे और मोठे अनुभव के बाद सीखा है कि सत्य, सरलता, प्रेम, अहिंसा, परोपकार, दया, क्षमा, कर्त्तव्यभावना. त्याग, वफादारी आदि-आदि नैतिक गुणों को जितना भी अधिक समाज में स्थापित किया जायगा उतनी ही शान्ति - उतना हो सुख समाज में बढ़ेगा । इसके विपरीत अगर हरेक व्यक्ति के स्वार्थी रुचियों और प्रवृत्तियों को निर्बाध छूट दे दी जायगो, तो समाज छिन्न-भिन्न दे हो जायगा और मानव समाज पशु-समाज से भी नीचे गिर जायगा । क्योंकि पशु जहाँ अपनी सामाजिक कुप्रवृत्तियों में अपने स्वभाव से हो शासित होता है वहाँ मनुष्य अपनी बुद्धि की सहायता से बुराइयों को
चरमसीमा तक पहुंचाने की शक्ति रखता है ●
इसके तवा जबतक भी शासन कायम रखने की जरूरत है, तबतक यह अनिवार्य हं कि कुछ व्यक्तियों के हाथ में अपरिमित यथवा बहुत अधिक शक्ति रहेगी। व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ में इस शक्ति का दुरुपयोग न करें । इसे रोकने का एकमात्र सम्भव तरीका यही है कि उनमें छुटपन से ही अपनी पाशविक प्रवृत्तियों पर काबू रखने की आदत डाली जाय, और समाज सिर्फ ऐसे व्यक्तियों को आगे बढ़ाये और उन पर निर्भर करे और विद्यास करें, जिनमें से आते एक काफी बड़े दर्जे तक पुष्ट हो गई हो । समाज ऐसे व्यक्तियों पर अपनी आशा के पुल न बाँध जो इन गुणों का अपने जीवन में कोई सबूत नहीं देतं, वल्क उल्टे इन गुणों की अवहेलना करने और उनका मजाक उड़ाते हैं । कोई भी विधान, कोई भी तंत्र, शासन के इस दोष को दूर नहीं कर सकता कि कुछ व्यक्तियों के हाथ में हजारों दूसरे व्यक्तियों से ज्यादा शक्ति - ज्यादा अधिकार रहे ।
इस भारी खतरे से मनुष्य की रक्षा तब ही हो सकती हं जब शासकों और शासकों को चुननेवालों का चरित्र ही ऐसा हो, इतना उठ जाये कि शासन में यह दोष विद्यमान रहते हुए भी इससे कोई हानि न हो । यह भी स्मरण रखना चाहिए कि दो-चार, दस-बीस या हजार-दो हजार व्यक्तियों के चरित्रवल से ही समाज मुरक्षित न रह सकेगा । साधारण जनता और समाज का चरित्र भी इतना तो ऊपर उठना ही चाहिए कि उसमें हजारोंलाखों का चरित्रवल बहुत ही अधिक हो सके, और वे चरित्रबल वाले व्यक्तियों को ही अपना नेतृत्व दें ।
इसलिए गाँधीजी का अधिक से अधिक जोर चरित्रबल को बढ़ाने - उमे परिष्कृत करने पर हैं । जहाँ वह शासन विधान को बदलने, सुधारने में प्रयत्नशील हैं, वहां वह यह भी जानते हैं कि उनके और उनके साथियों के सारे प्रयत्न निरर्थक जायेंगे अगर साथ ही समाज का चरित्रबल भी ऊपर नहीं उठता है ।
समाजवाद और गाँधीवाद में यही भेद मूल का है; और देश के लिए वह दिन बहुत शुभ होगा जब समाजवादी मित्र चरित्रबन और उसे बढ़ाने की आवश्यकता को स्वीकार करेंगे और गांधोजी का हाथ बटायेंगे ।
संघर्ष या समन्वय ?
[ श्री काला कालेलकर ]
मुझे डर है कि समाजवाद के साथ तुलना में पड़ने के कारण गांधीबीक कार्य पद्धति के लिए 'गाँधीवाद' नाम रूढ़ होने वाला है। जितने लोगों ने गाँधीजी की दृष्टि और उनकी कार्यपद्वति को पहचाना है, वे सब हमेशा यह कहते आये हैं कि 'गांधीवाद' जैसी कोई चीज है ही नहीं । स्वयं गाँधीजी ने अनेक बार लिखा और कहा है कि उन्होंने किसी नये सिद्धान्त का अविष्कार नहीं किया है । सनातन काल से मनुष्य जीवन और मनुष्य समाज में जिन सिद्धान्तों और तत्वों का मर्यादित क्षेत्र में पालन होता आया है उन्हीं को व्यापक और सार्वभौम बनाने की कोशिश वह कर रहे हैं । कौटुम्बिक जीवन में जिन सिद्धांतों का पाउन सफलतापूर्वक किया जाता है उन्हीं तत्वों पर व्यापक क्षेत्र में अमल करने की हिम्मत मनुष्य नहीं करता है । क्योंकि मनुष्य के हृदय का विकास आज तक इतना नहीं हुआ है । उसकी श्रद्धा की मात्रा उनी बढ़ी नहीं है । प्रेम की शक्ति पर मनुष्य का अमर्याद विश्वास बैठाने के लिए जितनी आस्तिकता मनुष्य जाति में चाहिए उतनी उसमें नहीं है । यही पैदा करने का गाँधीजी का प्रयत्न है । ऐसी हालत में गाँधीजी की दृष्टि और कार्य पद्धति को 'वाद' का नाम देना सवथा अनुचित है । ऐसा होते हुए भी मनुष्य का स्वभाव इतना अनुप्रास - प्रिय है कि समाजवाद के साथ लोग
जब गांधी- मत का उल्लेख करेंगे तब उसे 'गांधीवाद' ही कहेंगे ।
गांधी-मत और समाज-सत्तावाद इन दोनों का ही आजकल विशेष बोलबाला है । इन दोनों ने मिलकर और सब मत और सब 'वाद' पीछे हटा दिये हैं। हमारे देश में तो यही दो मर्ग हैं जिनके प्रति लोगों की कोई खास श्रद्धा है और सम्भव दीख पड़ता है कि सारी दुनिया में भी और वादों का अस्त होकर इन दोनों वादों का ही विचार चलेगा । यूरोप में इस वक्त फासिज्म का बोलबाला सबसे अधिक है । तो भी उसके लिए कोई उज्ज्वल भविष्य नहीं दीख पड़ता । फासिज्म में सामर्थ्य बहुत कुछ है, किन्तु कृतार्थता नहीं है ।
गांधी- मत और समाजवाद कहने की अपेक्षा सर्वोदयकारी समाजव्यवस्था और समाज-सत्तामूलक समाज-व्यवस्था ऐसा शब्द प्रयोग हम करें तो शायद अच्छा होगा। क्योंकि सर्वोदय शब्द के साथ अहिंसा और सत्याग्रह का भाव आ ही जाता है और समाज-सत्ता के साथ सामाजिक क्रान्तिकारी राजनैतिक शक्ति का भाव भी स्पष्ट हो जाता है ।
सबसे पहले ध्यान में रखने लायक बात यह है कि इन दो मतों के आदर्श में बहुत कुछ साम्य हैं। दोनों को सामाजिक अन्याय असह्य हैं । दोनों को समता प्रस्थापित करनी है। दोनों 'अर्थ' का अनर्थ देख सके हैं। दोनों क्रान्तिकारी हैं। दोनों में यह श्रद्धा है कि अन्तिम स्थिति में मनुष्य-जीवन के लिए राजनैतिक सत्ता का नाश ही अभीष्ट है । जब मनुष्य सुसंस्कृत और सुसंगठित होगा तब उस पर किसी भी प्रकार का बाह्य नियन्त्रण रखने की आवश्यकता नहीं होगी। राजसत्ता का होना मनुष्य-संस्कृति का अपमान है । जब सब के सब सज्जन बन जायँगे अथवा
दो वस्तु के बीच जब किसी भी किस्म की संगति नहीं दीख पड़ता तब अंग्रेज़ी में प्रायः कहते हैं --- There is neither rhyme nor reason यही बताता है कि अगर अनुप्रास मिल जाय तो तर्कशुद्धि की कोई जरूरत नहीं । मनुष्य बुद्धि की बाल्यावस्था का यह लक्षण है। - लेखक
दुजनता का क ई आकर्षण हो नहीं रहेगा तब बिना किसी बाह्य सत्ता के मनुष्य का सामा जक जीवन अच्छी तरह से चल सकेगा ।
अन्तिम दर्शका जब हम खयाल करते हैं तब सामान्य जनता दोनों को स्वप्न-सेवी और तरंगी कहती है । और ये दोनों अपने को शास्त्रशुद्ध और व्यवहार कुशन मानते हैं । गाँधीजी अपने को व्यावहारिक आदर्शवादी (Practical Idealist) कहते हैं । और समाजवादी अपने को पूर्णतया विज्ञानानुयायी ।
इतना साम्य होते हुए भी दोनों की कार्यपद्धति में घोर विभिन्नता । गांधी- दर्शन मनुष्य की व्यक्तिगत शक्ति के ऊपर अविश्वास रखता है । समाज-सत्ता-दर्शन मनुष्य की सामाजिक शक्ति पर हो पूर्णतया आधार रखता है । गांधी- दर्शन सामाजिक न्याय और समता की दृष्टि से एवं आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से जीवन की सादगी को अनिवार्य समझता है । दूसरा मत इसके विपरीत है । मनुष्य अपनी आवश्यकतायें बढ़ाकर भी सामाजिक न्याय को प्रस्थापित कर सकता है और मानवी विकास के लिए साधन-समृद्धि बाधक नहीं वरन् अत्यन्त पोषक है, ऐसा उसका विश्वास है ।
समाज दशन का झुकाव सत्ता, सपत्ति और लोकवस्ती केन्द्रित करने की है। इधर गाँधो दशन में जहाँतक हो सके सत्ता का निर्मलन करनी है । सम्पत्ति वर्षा की बूंदों के समान समाज के सब व्यक्तियों के हाथ में बिवेरी जाय, यही इसमें हितकर मानते हैं । और जनसख्या भी बड़े-बड़े शहरों ओर कल-क,रखानों में भीड़ कर बसने को अपेक्षा गांवों में अपनी-अपनी जमन पर अलग-अलग बाड़ी बनाकर रह जाय तो उसे अच्छा समझते हैं ।
दोनों पक्ष जबर्दस्त मिशनरी वृत्ति के हैं । तो भी गौंधोजी व्यक्तियों के जीवन में परिवर्तन करके उसके द्वारा सामाजिक जीवन को बदलना चाहते हैं । और समाजवादी व्यक्तियों की राय में परिवर्त्तन करके उसका असर राजसत्ता पर डालकर उसीके कानून द्वारा समाज व्यवस्था में एक
हौ साथ क्रान्ति कराना चाहते हैं । वे कहते हैं- जबतक बहुतों का विचार परिवर्तन नहीं होगा तबतक कानून में परिवर्तन नहीं होगा । जिनके पास सम्पत्ति, सामर्थ्य और सत्ता है उनमें उसे छोड़ने की बुद्धि जागृत होना नामुमकिन है । थोड़े लोग साधुत्व के आदर्श से वैराग्य से अथवा समाजसेवा की इच्छा से धन और सत्ता छोड़ दे सकते हैं किन्तु सारे समाज में ऐसे लोगों का बहुमत मिठना असम्भव है । इसलिए जिनके पास सत्ता और सम्पत्ति नहीं है उन्हीं को जागृत करके उनके बहुमत के सामर्थ्य का लाभ उठाकर कानूनों में परिवर्तन करना चाहिए और राजसत्ता अकिंचनों के हाथ रखनी चाहिए और एक बार अकिंचन सत्ताधारी हो गये तो फिर तमाम सम्पत्ति और उसे पैदा करने के साधन धनियों के हाथ से छीनकर सारे समाज के हाथ में सौंप देना आसान है । यही व्यवहार का मार्ग है । अगर यह इन्किलाब धनी लोग स्वाभाविकता से होने देंगे, तो उसमें हिंसा का कोई कारण ही नहीं है । किन्तु यदि धनी लोग बहुमत के अधीन नहीं होंगे और गरीबों की सत्ता के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहेंगे तो उनका दमन और शासन हिंसा द्वारा भी करना पड़ेगा । यही समाज-दर्शन को भूमिका है । अगर बहुमत की बात सर्वमान्य होजाय तो बिना रक्तपात किये क्रान्ति आसानी से की जा सकती है, किन्तु जब सत्ताधीश और धनपति ऐसे परिवर्तन को परास्त करने के लिए प्रतिक्रान्ति करने की कोशिश करते हैं तब घोर रक्तपात को नौबत पहुंच जातो है और उसकी जि मेदारी उन्हींके सिर पर है जो बहुमत का विरोध करते हैं । यह है भूमिका समाज-दर्शन की ।
इस भूमिका के मूल में यह विचार निर्विवाद है कि बहुमत को सत्ता के के लिए कोई मर्यादा ही नहीं है । अपनी मेहनत मे पाये हुए धन पर व्यक्ति की जो अबाधित सत्ता आज मानी जाती है और उसकी पवित्रता की घोषणा की जाती है उस पर समाजवादियों का तनिक भी विश्वास नहीं है । वे कहते हैं कि सम्पत्ति का निर्माण सामाजिक सहकार के बिना हो ही नहीं सकता । इसलिए यह सम्पत्ति सामाजिक चीज है । हवा और
पानी पर जिस तरह किसी व्यक्ति का कोई अधिकार नहा, उसा तरह हर तरह की सम्पत्ति पर किसौका भी व्यक्तिगत अधिकार नहीं है । और जिस तरह सामान्यतया हवा और पानी हरेक को चाहे जितना ले लेने का अधिकार है उसी तरह जब समाज-सत्ता प्रस्थापित होगी और विज्ञान के सहारे अन्न-वस्त्रादि सब वस्तुयें सामाजिक सहयोग से पैदा की जायंगी, तब उनको भी बहुतायत हवा-पानी के जितनी नहीं तो काफी तो हो ही जायगी । फिर तो किसी को चोरी करने की इच्छा हो नहीं रहेगी । और श्रम टालने की वृत्ति भी लोगों के हृदय में नष्ट हो जायगी । जिस हद तक परिश्रम आनन्ददायी होता है उसी हद तक काम करने से ही मनुष्य-समाज को जरूरतें पूरी हो जायंगी ।
आदर्श बड़ा सुहावना मालूम देता है और साथ-साथ यहां तक हम कैसे पहुँच सकते हैं ऐसी शंका भी मन में आ जाती है ।
समाजवाद के नाम से इतनी अनेकानेक योजनायें दुनिया के सामने रक्खी गई हैं और इतने भिन्न-भिन्न प्रयोग भी जगह-जगह किये गये हैं कि उनके बारे में एक सर्वसामान्य चित्र खींचना कठिन है । कई योजनायें सौम्य हैं, कई अत्यन्त कड़ी हैं । अगर इनके तारतम्य भेद देखकर इनकी श्रेणियां बनाई जायं तो इनमें कम-से-कम तोन सप्तक तो मिल ही जायंगे ।
और भी कई बातें इस तुलना में ध्यान में रखनी चाहिएं । गाँधीदर्शन के सिद्धान्त स्पष्टतया शब्द-बद्ध नहीं हुए हैं । गाँधीजी का यह तरीका हो नहीं है । किसी प्रसंग को समझाने के लिए ही वह तत्त्व-चर्चां करते हैं । और प्रसंग उपस्थित होने के बाद ही अपने इष्ट देवता सत्यअहिंसा से तत्त्व - निर्णय पूछ लेते हैं और उससे जो जबाब मिलता है उसका अनन्य निष्ठा से पालन भी करते हैं । इसलिए गांधी- दर्शन के सिद्धान्त स्वतन्त्रतया तात्त्विक रूप में लिखे हुए नहीं पाये जाते हैं ।
इसके विरुद्ध समाजवाद में सिद्धान्त चर्चा की प्रचुरता है । किन्तु आज के लिए, गाँधीजी के जैसा, तुरंत का कार्यक्रम कहीं भी स्पष्टतया नहीं
पाया जाता । ऐसी विषम स्थिति में इन दोनों के बीच तुलना करना कठिन है । और मुकाबला तो हो हो नहीं सकता । मुकाबला करने के लिए समान भूमिका कहीं भी नहीं पाई जाती है ।
दोनों पक्ष को एकसाथ काम करते देखने की जिनकी तीव्र किन्तु भोली अभिलाषा है, वे दोनों के बीच जो आदर्श-भेद और साधन-भेद है, उसे ढकने की कोशिश करते हैं । अगर ये दो पक्ष पूर्णता पारमार्थिक {In (dead earnest ) नहीं होते तो दोनों भी मान जाते कि दोनों में विशेष मतभेद नहीं है । जो दोनों को जानते हैं उनके लिए यह बात स्पष्ट है कि दोनों के बीच जो भिन्नता है वह तात्त्रिक है, मौलिक है, तोत्र है और अटल है। इन दोनों के बीच सहयोग हो सकता है; हिन्तु कुछ काल के लिए ही । थोड़ा आगे जाते हुए दोनों के बीच कभी कभी संघर्ष और संग्राम अवश्य होने वाला है ।
संग्राम का खयाल मन में उठने ही कल्पना उसका चित्र खींचना चाहती है; क्योंकि यह संग्राम अपूर्व और श्रद्भुत होगा । समाज-दर्शन की संग्राम-पद्धति एकदम नवीन और बहुरूपी है और उसमें किसी भो किस्म का परहेज नहीं है ।
इभर गाँधीजी को - गाँधी मार्ग की - संग्राम की पद्धति भी अजीब है । गाँधीजी के साथ लड़ना मानों पानी के साथ लड़ना है। पानी दीख पड़ता है निराग्रही; किन्तु है अटल जीवन धर्मी। उसे गरम करो, भाष होकर अदृश्य हो जायगा; किन्तु हवा में तुरन्त क्रान्ति कर देगा । उठे हृद से अधिक ठंडा करो, वह पत्थर के जैसा मजबूत बनेगा और मामूली मौलिक नियमों को तोड़ कर अपना आकार भी बढ़ा लेगा। काटने से वह टूटता नहीं, जलाने से नष्ट नहीं होता। सचमुच गाँधीजी की युद्ध पद्धति दैवी है । जब समाजवाद और गाँधी - दर्शन के बीच संघर्ष शुरू होगा तब स्वर्ग के देव विमानों में बैठ-बैठ कर हाथ में मालाएँ लंकर बिना पलक हिलाए उसे देखते रहेंगे ।
समाजवाद का विरोध करने वालों में ऐसे बहुत कम लोग हैं, जिन्हों |
f64da23fea2642e7e3354aa5c695d94a16d203b3 | web | दवा "एम्ला", जिसमें पर विचार किया जाएगायह लेख, एक लोकप्रिय स्थानीय एनेस्थेटिक है। इसका उपयोग कॉस्मेटिक इंजेक्शन की शुरूआत में किया जाता है, टैटू लगाने के साथ-साथ त्वचा पर सतही संचालन वाले अस्पतालों में, उदाहरण के लिए जब मौसा और मोल हटाते हैं। एम्ला के मलम के बारे में विवरण (समीक्षा, उपयोग के लिए निर्देश, संकेत और contraindications, और कीमत के बारे में जानकारी) नीचे वर्णित है।
5 जी के ट्यूबों में। निर्माता एम्ला क्रीम पैदा करता है। उपयोग के लिए निर्देश प्रत्येक पैकेज में संलग्न हैं। दवा को 30 डिग्री से अधिक के तापमान पर अधिकतम 3 वर्षों तक संग्रहित किया जाना चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि निर्देश कहता है कि ट्यूब खोलने के बाद, क्रीम के अवशेषों का उपयोग नहीं किया जा सकता है, उन्हें निपटान किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, दवा "एम्ला" स्थानीय के रूप में प्रयोग की जाती हैट्रॉफिक अल्सर की यांत्रिक सफाई के दौरान एनेस्थेटिक। स्त्री रोग में - दर्दनाक जोड़ों की तैयारी के रूप में जननांग अंगों के श्लेष्म झिल्ली को एनेस्थेटिज़ करना। लेकिन सबसे लोकप्रिय मलम कॉस्मेटोलॉजिस्ट में है, क्योंकि इस उपकरण के उपयोग के साथ दवाओं, दर्दनाक बालों को हटाने और अन्य प्रक्रियाओं के लगभग सभी इंजेक्शन किए जाते हैं।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि उत्पाद कितना सामान्य है,"एम्ला", उपयोग के लिए निर्देश इंगित करता है कि इस दवा का उपयोग करने वाले व्यक्तियों के मंडल को संकुचित किया गया है, या यह संभव है, लेकिन बहुत अच्छी देखभाल के साथ। इसलिए, दवा लागू करने के लिए निषिद्ध हैः
- लिडोकेन और प्रिलोकेन के अतिसंवेदनशीलता वाले रोगी;
- 1 साल से कम उम्र के बच्चे;
- एटॉलिक डार्माटाइटिस से पीड़ित लोग;
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं।
इसके लिए दवा के उपयोग को भी रोकेंसमय से पहले नवजात शिशुओं के साथ-साथ दिल लय में परेशानी वाले रोगियों के लिए भी। इसके अलावा एम्ला क्रीम एनाफिलेक्टिक सदमे तक एलर्जी प्रतिक्रियाओं जैसे अवांछित साइड इफेक्ट्स का कारण बन सकती है। बहुत ही कम, दवा का उपयोग त्वचा की सूजन और सूजन की उपस्थिति को उत्तेजित करता है। किसी भी घटना में क्रीम "एम्ला" आंखों के श्लेष्म झिल्ली पर गिरना चाहिए, इस मामले में कॉर्निया को सबसे मजबूत नुकसान संभव है।
आम तौर पर, एजेंट को त्वचा पर दर पर लागू किया जाता हैअभिन्न अंग के प्रति 10 वर्ग सेंटीमीटर 1-2 ग्राम। क्रीम के जननांग अंगों के श्लेष्म झिल्ली को एनेस्थेट करते समय, आपको 5-10 ग्राम की आवश्यकता होती है। इस मामले में, आवेदन की अनुशंसित समय 5-10 मिनट है, जिसके बाद उपचार कार्य शुरू होता है।
बच्चों में त्वचा संज्ञाहरण के साथ, अधिकतमउपयोग की जाने वाली क्रीम की मात्रा प्रति ग्राम के 10 वर्ग सेंटीमीटर प्रति ग्राम 1 ग्राम हो सकती है, और आवेदन की अवधि केवल 1 घंटे तक हो सकती है। आंख क्षेत्र में उत्पाद का उपयोग करने के लिए यह सख्ती से प्रतिबंधित है - यह एम्ला क्रीम के लिए मुख्य contraindications में से एक है। निर्देश यह भी चेतावनी देता है कि दवा क्षतिग्रस्त त्वचा पर लागू नहीं की जानी चाहिए। इसके अलावा, इसका उपयोग otolaryngological अभ्यास में नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि मध्य कान में मलहम होने का खतरा होता है।
सैलून और क्लीनिक में निम्नलिखित मामलों में क्रीम "एम्ला" का उपयोग किया जाता हैः
- त्वचा को पॉलिश करते समय, निशान को सही करने और टैटू हटाने;
- मेसोथेरेपी से पहले संज्ञाहरण के लिए (त्वचा की ऊपरी परतों में विटामिन की तैयारी का परिचय);
- नासोलाबियल फोल्ड, गर्दन में झुर्री और इतने पर सुधार के साथ;
- "बोटॉक्स", "रेस्टाइलन" जैसी दवाओं के परिचय के साथ;
- एपिलेशन के दौरान - लेजर, इलेक्ट्रो-या फोटोपीलेशन;
- संवहनी तारांकन को हटाते समय।
कॉस्मेटोलॉजी में क्रीम लगाने पर, 91%रोगियों को लगभग पूर्ण एनाल्जेसिक प्रभाव देखा जाता है, शेष 9% अभी भी हल्के दर्द की शिकायत करते हैं। लागू दवा की मात्रा पर कितना प्रभावी संज्ञाहरण निर्भर करेगा - इसे मोटी परत के साथ फैलाना अभी भी आवश्यक है, और कम से कम आधा घंटे इंतजार करने के बाद, और अधिमानतः एक घंटा। इसलिए, यदि आप उपर्युक्त प्रक्रियाओं में से कोई भी करने जा रहे हैं, तो एनेस्थेसिया के लिए प्रयुक्त चिकित्सक के कितने मलम का ट्रैक रखें। इसके अलावा, contraindications की अनुपस्थिति में, दवा का उपयोग स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
एपिलेशन से पहले निर्देश सरल है - एक उपायविशेष रूप से निर्दिष्ट संवेदनशील क्षेत्रों में त्वचा पर एक मोटी परत लागू करें, 30 मिनट से एक घंटे तक प्रतीक्षा करें और प्रक्रिया शुरू करें। इस मामले में कवर का क्षेत्र काफी बड़ा है, इसलिए आपको क्रीम के कई ट्यूबों की आवश्यकता हो सकती है। महिलाएं इस उपाय की बहुत प्रशंसा करती हैं, इसके साथ ही एपिलेशन वास्तव में दर्द रहित हो गया है।
मलहम "एम्ला", जिसकी कीमत 300 से है5 ग्राम के लिए रूबल, काफी महंगा उत्पाद है। लेकिन इसकी प्रभावशीलता की पुष्टि हजारों मरीजों और सौंदर्य सैलून के ग्राहकों द्वारा की जाती है, जो अब सुरक्षित रूप से इंजेक्शन और अन्य प्रक्रियाओं को पूरी तरह से दर्द रहित तरीके से कर सकते हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रूस में, दवा को अक्सर 5% की एकाग्रता पर बेचा जाता है, जब पश्चिम में ऐसे धन होते हैं जिनमें सक्रिय पदार्थ लगभग दोगुनी होते हैं - 9%। इसके अलावा, निर्माता, स्वीडिश कंपनी "प्राप्तकर्ता कार्लस्कोग एबी", 30 ग्राम के ट्यूबों के साथ-साथ पैच के रूप में उत्पाद बनाती है।
वैसे, "एम्ला" मलम, जिसकी कीमत रूस में हैयह ऊपर बताया गया है, विदेशों में यह लगभग 2 गुना सस्ता है - लगभग 5 ग्राम पैकेज के लिए 170 रूबल। इसलिए, यदि आप अक्सर इस उत्पाद का उपयोग करते हैं, तो इसे विदेश यात्रा या व्यापार यात्रा के दौरान या इंटरनेट पर अंग्रेजी-भाषा साइटों पर बुक करने के दौरान इसे खरीदने का अर्थ होता है।
- लगभग सभी महिलाएं जो बहुत ही दर्दनाक मोम समेत डिप्लेरी क्रीम का इस्तेमाल करती थीं, एक ठोस "पांच" डालती थीं;
- मलम की प्रशंसा भी करें और जो लोग घर पर भी मेसोथेरेपी करते हैं - चेहरे पर त्वचा क्रीम बहुत जल्दी काम करता है और सब कुछ दर्द के बिना भी जाता है;
- अधिक जटिल कॉस्मेटिक मैनिप्लेशंस के साथ,उदाहरण के लिए, होंठ को बढ़ाने के लिए एक विशेष जेल की शुरूआत के साथ, "एम्ला" दवा भी खुद को अच्छी तरफ दिखाती है - हालांकि प्रक्रिया में कुछ दर्द मौजूद है, लेकिन इसकी तुलना किसी भी उपाय के बिना की जा सकती है।
एक तरफ या दूसरा, एम्ला पर रखे गए औसत स्कोर 4 है। और इसका मतलब यह है कि दवाओं का उपयोग करने वाले लोग बहुत खुश नहीं हैं।
क्रीम "Emla": उन लोगों की समीक्षा जो उत्पाद पसंद नहीं करते थे या फिट नहीं थे (ऋणात्मक)
तो, यहां नकारात्मक क्षण हैं जो ग्राहक देते हैं, "Emla" दवा का विवरण देते हैंः
- सबसे पहले, लगभग हर किसी ने इसका उल्लेख कियामतलब बहुत महंगा है। और एपिलेशन, मेसोथेरेपी या शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप के साथ संज्ञाहरण के लिए प्रक्रियाओं के लिए इसे बहुत से ट्यूबों की आवश्यकता होती है।
- कुछ पायस पर "एम्ला" बिल्कुल काम नहीं करता है,या उसके कार्यों को पूर्ण संज्ञाहरण के लिए पर्याप्त नहीं हैं। शायद, यह प्रभाव उन लोगों द्वारा प्राप्त किया जाता है जो क्रीम को गलत तरीके से लागू करते हैं। या, यह देखते हुए कि दवा बहुत लोकप्रिय है, तथ्य यह नहीं है कि खरीदार ने नकली शेल्फ जीवन के साथ नकली या ट्यूब खरीदी है।
- बहुत से लोग उस क्षण के लिए इंतजार कर रहे हैं जब क्रीम काम करेगा - आखिरकार, आवेदन के बाद कभी-कभी पूरी तरह से त्वचा को एनेस्थेटेड त्वचा के लिए एक घंटे लगाना चाहिए।
- यह भी ध्यान दें कि 20-30 मिनट बाद मेंएनाल्जेसिया की चोटी, क्रीम का प्रभाव "नहीं" आता है - असुविधा फिर से दिखाई देती है। शायद यह शरीर की व्यक्तिगत विशेषताओं के कारण है।
वैसे भी, केवल एक बहुत छोटा हैउन लोगों का प्रतिशत जो वास्तव में उपकरण से नाखुश हैं, और यह कौन काम नहीं करता है बाकी (इसकी उच्च कीमत को शाप देना) अभी भी उपयोग के लिए दवा "एम्ला" की सिफारिश करते हैं।
से बड़ी संख्या में समीक्षा माना जाता हैविशेषज्ञों, यह ध्यान दिया जा सकता है कि उनमें से कोई भी नहीं कहा कि रोगी एलर्जी या edema जैसे दवा के लिए नकारात्मक प्रतिक्रिया थी। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि शरीर के हिस्से पर ऐसे अभिव्यक्ति अभी भी संभव हैं। इसलिए, यदि आप जानते हैं कि आपके पास अतिसंवेदनशील त्वचा है, या पहले लिडोकेन के लिए अवांछित प्रतिक्रियाएं थीं, तो अपने डॉक्टर को सूचित करें।
हमने विस्तार से सभी विवरणों की जांच कीत्वचा "एलाला" के स्थानीय संज्ञाहरण के लिए दवा का उपयोगः इसके बारे में समीक्षा - सकारात्मक और नकारात्मक, विस्तृत निर्देश, साथ ही रचना और अन्य जानकारी। हमें आशा है कि यह कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं के लिए एनेस्थेटिक चुनने में आपकी मदद करेगा और मलम का उपयोग करने के बारे में सभी संदेहों को दूर करेगा।
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844e87431d8f4bea86efbf99a0ca277d44a0e56f | web | शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
भारतीय क्रिकेट टीम दो बार क्रिकेट विश्व कप में विजेता रह चूका है जिसमें पहली बार १९८३ क्रिकेट विश्व कप तथा दूसरी बार २०११ क्रिकेट विश्व कप में महेंद्र सिंह धोनी तथा कपिल देव की कप्तानी में जीत मिली। इनके अलावा २००३ क्रिकेट विश्व कप में उपविजेता रहा। १९८७,१९९६ तथा २०१५ में सेमीफाइनल में पहुंचा। इनके अलावा १९९९ क्रिकेट विश्व कप में सुपर सिक्स में पहुंचा तथा चार बार १९७५, १९७९, १९९३ और २००७ में नॉकआउट में पहुंचा था। भारत ने २०१५ क्रिकेट विश्व कप के अनुसार भारत ने विश्व कप में ४६ मैच जीते है जबकि २७ मैचों में हार मिली है और एक मैच टाई रहा है तथा कुछ मैच बारिश के कारण बिना परिणाम के रहे है। . १९९२ क्रिकेट विश्व कप, (आधिकारिक तौर पर बेंसन एंड हेजेज विश्व कप) क्रिकेट विश्व कप का पांचवां संस्करण था। http://www.icc-cricket.com/cricket-world-cup/about/279/history यह ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में २२ फरवरी से २५ मार्च १९९२ को आयोजित किया गया। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/series/60924.html टूर्नामेंट बेंसन एंड हेजेज द्वारा प्रायोजित किया गया था और इसमे नौ टीमो ने भाग लिया था। प्रत्येक मैच ५० ओवर प्रति टीम का था और रंगीन कपड़ों में और सफेद गेंदों के साथ खेली गया था और अधिकतम मैच दूधिया रोशनी (फ्लडलाइट्स) के दौरान खेले गए थे। टूर्नामेंट का फाइनल पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच था, और पाकिस्तान ने इंग्लैंड को मेलबोर्न क्रिकेट ग्रांउड मे खेले गए फाइनल मे २२ रन से पराजित कर अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीता। http://www.espncricinfo.com/ci/engine/match/65156.html .
क्रिकेट विश्व कप में भारत और १९९२ क्रिकेट विश्व कप आम में 9 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): न्यूज़ीलैण्ड, पर्थ, पाकिस्तान राष्ट्रीय क्रिकेट टीम, सचिन तेंदुलकर, वेस्ट इंडीज़ संघ, ऑस्ट्रेलिया, ऑक्लैण्ड, आईसीसी क्रिकेट विश्व कप, इंग्लैंड क्रिकेट टीम।
न्यूज़ीलैंड प्रशान्त महासागर में ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित देश है। ये दो बड़े द्वीपों से बना है। न्यूजीलैंड (माओरी भाषा मेंः Aotearoa आओटेआरोआ) दक्षिण पश्चिमि पेसिफ़िक ओशन में दो बड़े द्वीप और अन्य कई छोटे द्वीपों से बना एक देश है। न्यूजीलैंड के ४० लाख लोगों में से लगभग तीस लाख लोग उत्तरी द्वीप में रहते हैं और दस लाख लोग दक्षिणि द्वीप में। यह द्वीप दुनिया के सबसे बडे द्वीपों में गिने जाते हैं। अन्य द्वीपों में बहुत कम लोग रहतें हैं और वे बहुत छोटे हैं। इनमें मुख्य है.
पर्थ ऑस्ट्रेलिया के राज्य पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की राजधानी और सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर है। आबादी के हिसाब से यह ऑस्ट्रेलिया का चौथा सबसे बड़ा शहर है। इसकी स्थापना 12 जून 1829 को केप्टन जेम्स स्टर्लिंग ने की थी। पर्थ की वर्तमान जनसंख्या 1.74 मिलियन (लगभग 5 करोड़) है। महानगरीय क्षेत्र, ऑस्ट्रेलियाई दक्षिण पश्चिम डिवीजन के हिंद महासागर तथा एक कम तटीय कटाव जिसे डार्लिंग रेंज के रूप में जाना जाता है, के मध्य में स्तिथ है। पर्थ शहर के केन्द्रीय व्यापार जिले एवं विभिन्न उपनगर हंस नदी के किनारे स्तिथ हैं। व्यापार और प्रशासन केंद्र और संपन्नता में लगातार वृद्धि होने से पर्थ को "सिटी ऑफ लाइट" के सम्मान से नवाजा गया है। सन् 2011 में " दी इकोनोमिस्ट " की सूची में पर्थ को आँठवा स्थान प्राप्त हुआ। .
पाकिस्तान क्रिकेट टीम पाकिस्तान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम है। .
सचिन रमेश तेंदुलकर (अंग्रेजी उच्चारणः, जन्मः २४ अप्रैल १९७३) क्रिकेट के इतिहास में विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ौं में गिने जाते हैं। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले वह सर्वप्रथम खिलाड़ी और सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं। सन् २००८ में वे पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है। सन् १९८९ में अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के पश्चात् वह बल्लेबाजी में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उन्होंने टेस्ट व एक दिवसीय क्रिकेट, दोनों में सर्वाधिक शतक अर्जित किये हैं। वे टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं। इसके साथ ही टेस्ट क्रिकेट में १४००० से अधिक रन बनाने वाले वह विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं। एकदिवसीय मैचों में भी उन्हें कुल सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान प्राप्त है। उन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच मुम्बई के लिये १४ वर्ष की उम्र में खेला था। उनके अन्तर्राष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत १९८९ में पाकिस्तान के खिलाफ कराची से हुई। सचिन क्रिकेट जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं और विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं जिनमें सबसे प्रचलित लिटिल मास्टर व मास्टर ब्लास्टर है। क्रिकेट के अलावा वह अपने ही नाम के एक सफल रेस्टोरेंट के मालिक भी हैं। तत्काल में वह राज्य सभा के सदस्य हैं, सन् २०१२ में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर फिल्म 'सचिनः ए बिलियन ड्रीम्स' बनी। इस फ़िल्म का टीज़र भी बहुत रोमांचक हैं। टीजर में एक ऐसे इंसान को उसी की कहानी सुनाते हुए देखेंगे जो एक शरारती बच्चे से एक हीरो बनकर उभरता है। ख़ुद सचिन तेंदुलकर का भी ये मानना है कि क्रिकेट खेलने से अधिक चुनौतीपूर्ण अभिनय करना है।सचिन - ए बिलियन ड्रीम्स' का निर्माण रवि भगचंदका ने किया है और इसका निर्देशन जेम्स अर्सकिन ने। .
वेस्ट इंडीज़ संघ, जिसे अंग्रेजी में फेडेरेशन ऑफ द वेस्ट इंडीज़ के रूप में भी जाना जाता है, एक अल्पजीवी कैरिबियन संघ था जो 3 जनवरी 1958 से लेकर 31 मई 1962 तक अस्तित्व में रहा। इसमें यूनाइटेड किंगडम के कई कैरिबियन उपनगर शामिल थे। संघ का अभिव्यक्त उद्देश्य राजनीतिक इकाई का निर्माण करना था जो कि ब्रिटेन से अलग एक स्वतंत्र राज्य के रूप में होता - संभवतः कनाडाई महासंघ, ऑस्ट्रेलियाई संघ, या केन्द्रीय अफ्रीकी संघ के समान होता; हालाँकि ऐसा होने से पहले ही आंतरिक राजनीतिक संघर्ष के कारण यह संघ ध्वस्त हो गया। .
ऑस्ट्रेलिया, सरकारी तौर पर ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल दक्षिणी गोलार्द्ध के महाद्वीप के अर्न्तगत एक देश है जो दुनिया का सबसे छोटा महाद्वीप भी है और दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप भी, जिसमे तस्मानिया और कई अन्य द्वीप हिंद और प्रशांत महासागर में है। ऑस्ट्रेलिया एकमात्र ऐसी जगह है जिसे एक ही साथ महाद्वीप, एक राष्ट्र और एक द्वीप माना जाता है। पड़ोसी देश उत्तर में इंडोनेशिया, पूर्वी तिमोर और पापुआ न्यू गिनी, उत्तर पूर्व में सोलोमन द्वीप, वानुअतु और न्यू कैलेडोनिया और दक्षिणपूर्व में न्यूजीलैंड है। 18वी सदी के आदिकाल में जब यूरोपियन अवस्थापन प्रारंभ हुआ था उसके भी लगभग 40 हज़ार वर्ष पहले, ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप और तस्मानिया की खोज अलग-अलग देशो के करीब 250 स्वदेशी ऑस्ट्रेलियाईयो ने की थी। तत्कालिक उत्तर से मछुआरो के छिटपुट भ्रमण और होलैंडवासियो (Dutch) द्वारा 1606, में यूरोप की खोज के बाद,1770 में ऑस्ट्रेलिया के अर्द्वपूर्वी भाग पर अंग्रेजों (British) का कब्ज़ा हो गया और 26 जनवरी 1788 में इसका निपटारा "देश निकला" दण्डस्वरुप बने न्यू साउथ वेल्स नगर के रूप में हुआ। इन वर्षों में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई और महाद्वीप का पता चला,19वी सदी के दौरान दूसरे पांच बड़े स्वयं-शासित शीर्ष नगर की स्थापना की गई। 1 जनवरी 1901 को, छः नगर महासंघ हो गए और ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रमंडल का गठन हुआ। महासंघ के समय से लेकर ऑस्ट्रेलिया ने एक स्थायी उदार प्रजातांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था का निर्वहन किया और प्रभुता संपन्न राष्ट्र बना रहा। जनसंख्या 21.7मिलियन (दस लाख) से थोडा ही ऊपर है, साथ ही लगभग 60% जनसंख्या मुख्य राज्यों सिडनी,मेलबर्न,ब्रिस्बेन,पर्थ और एडिलेड में केन्द्रित है। राष्ट्र की राजधानी केनबर्रा है जो ऑस्ट्रेलियाई प्रधान प्रदेश (ACT) में अवस्थित है। प्रौद्योगिक रूप से उन्नत और औद्योगिक ऑस्ट्रेलिया एक समृद्ध बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है और इसका कई राष्ट्रों की तुलना में इन क्षत्रों में प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है जैसे स्वास्थ्य, आयु संभाव्यता, जीवन-स्तर, मानव विकास, जन शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और मूलभूत अधिकारों की रक्षा और राजनैतिक अधिकार.
आकलैंड की स्थिति आकलैंड, न्यूज़ीलैंड का सबसे बड़ा नगर है। यह प्रायद्वीप के बहुत संकरे भाग में स्थित हैं। इस कारण दोनों तटों पर इसका अधिकार हैं परंतु उत्तम बंदरगाह पूर्वी तट पर है। आस्ट्रेलिया से अमरीका जानेवाले जहाज, विशेषकर सिडनी से वैंकूवर जानेवाले, यहाँ ठहरते हैं। यह आधुनिक बंदरगाह है। यहाँ पर विश्वविद्यालय, कलाभवन तथा एक निःशुल्क पुस्तकालय है जो सुंदर चित्रों से सजा है। इस नगर के आस पास न्यूटन, पार्नेल, न्यू मार्केट तथा नौर्थकोट उपनगर बसे हैं। आकलैंड की आबादी दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण दुग्ध उद्योग तथा अन्य धंधे हैं। आकलैंड जहाज द्वारा आस्ट्रेलिया, प्रशांतद्वीप, दक्षिणी अ्फ्रीका, ग्रेट ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमरीका से संबद्ध है और रेलों द्वारा न्यूज़ीलैंड के दूसरे भागों से। यहाँ का मुख्य उद्योग जहाज बनाना, चीनी साफ करना तथा युद्धसामग्री बनाना हे। इसके सिवाय यहाँ लकड़ी तथा भोजनसामग्री इत्यादि का कारबार भी होता है। यहाँ से लकड़ी, दूध के बने सामान, ऊन, चमड़ा, सोना और फल बाहर भेजा जाता है। आकलैंड का विहंगम दृष्य श्रेणीःन्यूज़ीलैण्ड के आबाद स्थान श्रेणीःन्यूज़ीलैण्ड में बंदरगाह नगर श्रेणीःऑक्लैण्ड क्षेत्र.
आईसीसी क्रिकेट विश्व कप एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय चैम्पियनशिप है। टूर्नामेंट खेल के शासी निकाय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा हर चार साल आयोजित किया जाता है। टूर्नामेंट दुनिया में सबसे ज्यादा देखी गयी खेल स्पर्धाओं में से एक है, यह केवल फीफा विश्व कप और ओलंपिक पीछे है। पहली बार विश्व कप 1975 में इंग्लैंड में आयोजित किया गया था, पहले तीन विश्व कप इंग्लैंड में मेजबानी किए गए थे। लेकिन 1987 टूर्नामेंट के बाद से विश्व कप हर चार साल दूसरे देश में आयोजित किया जाता है। सबसे हाल ही टूर्नामेंट २०१५ में आयोजित की गई थी, यह टूर्नामेंट ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने मेजबानी की थी और इसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता। .
इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट टीम एक क्रिकेट टीम है जो इंग्लैंड और वेल्स का प्रतिनिधित्व करती है। 1992 तक यह स्कॉटलैंड का भी प्रतिनिधित्व करती थी। 1 जनवरी 1997 के बाद से टीम को इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) संचालित करती है, इससे पूर्व यह 1903 से 1996 के अन्त तक मेरीलेबोन क्रिकेट क्लब के द्वारा नियंत्रित कि जाती थी। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया सबसे पहली टीम थी जिन्हे 15 मार्च 1877 में सर्वप्रथम टेस्ट क्रिकेट का दर्जा मिला था और 15 जून 1909 को इन्हे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) कि पूर्ण सदस्यता प्राप्त हुई। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ने ही 5 जनवरी 1971 को सबसे पहला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय खेला था और इंग्लैंड का सबसे पहला ट्वेन्टी20 मैच भी ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 13 जून 2005 को खेला गया था। 23 अगस्त 2011 तक, इंग्लैंड अपने खेले गये 915 टेस्ट मैचों में से 326 में विजयी रहा है तथा उसके 328 मैच ड्रा रहें हैं। इंग्लैंड के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय के रिकॉर्ड में शामिल हैं तीन क्रिकेट विश्व कप (1979, 1987 और 1992) में उपविजेता के रूप में परिष्करण तथा 2004 की आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफ़ी में उपविजेता। इंग्लैंड टीम मौजूदा आईसीसी वर्ल्ड ट्वेंटी-20 चैंपियन हैं, जो पद उसे 2010 आईसीसी विश्व ट्वेंटी20 जीतने के बाद मिला था। इंग्लैंड वर्तमान समय में द एशेज की धारक हैं, जो कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच होने वाली टेस्ट मैच श्रृंखला हैं और जो 1882-83 ऑस्ट्रेलियाई श्रृंखला के बाद से खेली जा रही हैं। टीम वर्तमान समय में आईसीसी एक दिवसीय चैम्पियनशिप में चौथे स्थान पर हैं और, अगस्त 2011 तक, विश्व की सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पक्ष हैं .
क्रिकेट विश्व कप में भारत 121 संबंध है और १९९२ क्रिकेट विश्व कप 38 है। वे आम 9 में है, समानता सूचकांक 5.66% है = 9 / (121 + 38)।
यह लेख क्रिकेट विश्व कप में भारत और १९९२ क्रिकेट विश्व कप के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखेंः
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a233131d5336872848d937ea211b3c4485cfec74 | web | हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2017 का मसौदा सार्वजनिक चर्चा के लिये प्रस्तुत किया गया है। ऐसा इसलिये किया गया है क्योंकि इस संबंध में व्यक्त अनुमानों के अनुसार, यह विधेयक कई मामलों में समाधान ढूँढ पाने में असफल रहा है। मोटेतौर पर यह वर्ष 2008 में पेश किये गए विधेयक जैसा ही है। हालाँकि विधेयक के अंतिम मसौदे में प्रस्तावित कानून का दायरा बढ़ाए जाने की बात कही गई है ताकि उत्पादन, बिक्री और संयंत्र संरक्षण रसायनों को इसके अंतर्गत शामिल किया जा सके।
कीटनाशक क्या होते हैं?
- कीटनाशक रासायनिक या जैविक पदार्थों का ऐसा मिश्रण होता है जिनका इस्तेमाल कीड़े-मकोड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, उन्हें मारने अथवा उनसे बचाने के लिये किया जाता है।
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उर्वरक पौधों की वृद्धि में मदद करते हैं, जबकि कीटनाशक पौधों की कीटों से रक्षा के उपाय के रूप में कार्य करते हैं।
कृषि रसायन क्या होते हैं?
- कृषि-केमिकल्स अथवा कृषि रसायन ऐसे उत्पादों की श्रेणी होती है जिसमें सभी कीटनाशक रसायनों और रासायनिक उर्वरकों को शामिल किया जाता है।
- इनका उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। हालाँकि यदि एक उचित अनुपात एवं मात्रा में सही तरीके से इनका इस्तेमाल किया जाए तो ये किसानों के लिये बेहतर आय के अवसर प्रदान कर सकते हैं।
- वस्तुतः रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग मिट्टी की प्रकृति एवं स्थानीय वातावरण पर निर्भर करता है। रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से पहले बहुत सी सावधानियाँ बरतनी चाहिये।
- इसके लिये मिट्टी की सही समय पर जाँच करवानी चाहिये ताकि उन तत्त्वों के विषय में सटीक जानकारी प्राप्त की जा सके जिनकी मिट्टी में कमी है।
- इनके उपयोग में सावधानी न बरतने का परिणाम यह हुआ है कि मिट्टी की गुणवत्ता में तो कमी आई ही साथ ही, इसका प्रभाव किसानों की आय के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ने लगा है।
- आमतौर पर उपयोग में लाए जाने वाले कृषि- रसायनों में डाइअमोनियम फास्फेट, यूरिया, जिंक सल्फेट, एन.पी.के., पोटैशियम सल्फेट, बोरेक्स, फेरस सल्फेट तथा मेगनीज़ सल्फेट आदि का इस्तेमाल किया जाता हैं।
- पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में ज़हरीले कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण किसानों की मौत के मामले सामने आए। इन मामलों के संदर्भ में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (Centre for Science and Environment - CSE) द्वारा कीटनाशकों के उपयोग के विषय में ठोस दिशा-निर्देश तैयार करने तथा श्रेणी 1 के कई कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मांग की गई।
- संगठन द्वारा इस प्रकार के ज़हरीले कीटनाशकों के असुरक्षित इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिये कीटनाशक प्रबंधन विधेयक को लाने की मांग की गई।
- वर्ष 2008 में सरकार द्वारा कीटनाशक प्रबंधन विधेयक संसद में पेश किया गया था, लेकिन उसे पारित नहीं किया गया।
- इस विधेयक में कीटनाशक को नए सिरे से परिभाषित किया गया है।
- इसमें खराब गुणवत्ता, मिलावटी या हानिकारक कीटनाशकों के नियमन संबंधी मानदंड निर्धारित किये गए हैं।
- इसके अनुसार, किसी भी कीटनाशक को तब तक पंजीकृत नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसके फसलों अथवा उत्पादों पर पड़ने वाले प्रभाव जिन्हें खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत निर्धारित किया गया है, स्पष्ट नहीं कर दिये जाते हैं।
- इतना ही नहीं इसके अंतर्गत कीटनाशक निर्माताओं, वितरकों एवं खुदरा विक्रेताओं के लाइसेंस की प्रक्रिया तय करने संबंधी दिशा-निर्देशों को भी निर्धारित किया गया है।
इस विधेयक की आवश्यकता क्यों है?
- देश में उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों तथा विनियामक व्यवस्था की विफलता के संदर्भ में एक उच्च स्तरीय जाँच समिति का गठन करने की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है। यह उच्च स्तरीय जाँच समिति वर्ष 2003 की संयुक्त संसदीय समिति के समान होनी चाहिये, जिसने पेय पदार्थों में हानिकारक रासायनिक अवक्षेपों का पता लगाया था तथा इनकी प्रभावी सीमा (tolerance limits) का निर्धारण करने की सिफारिश की थी।
- प्रभावी सीमा से तात्पर्य कीटनाशकों की उस मात्रा से है जिस मात्रा तक इन हानिकारक रासायनिक अवक्षेपों का मनुष्य पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।
- कीटनाशकों के उपयोग करने हेतु सलाह देने के लिये एक 'केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड' का गठन किया जाना चाहिये ताकि यह बोर्ड विषाक्त रसायनों के पंजीकरण और वितरण तथा बिक्री का दृढ़तापूर्वक निरिक्षण करे।
- इस विधेयक के अंतर्गत उन कीटनाशकों के इस्तेमाल पर किसी तरह की चिंता नहीं जताई गई है जिनके इस्तेमाल पर विश्व के कई देशों में प्रतिबंध लगाया गया है।
- वर्तमान में देश में प्रथम श्रेणी के 18 सबसे खतरनाक कीटनाशकों में से सात का उत्पादन हो रहा है, जिन पर कई देशों द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- जबकि भारत की कुल कीटनाशक खपत में इनकी हिस्सेदारी एक-तिहाई है। हालाँकि कुछ प्रमुख कीटनाशक प्रयोक्ता राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और पंजाब द्वारा इनमें से कुछ कीटनाशकों के संबंध में प्रतिबंध लगाने की योजना है।
- इसके अतिरिक्त नए कानून में उस पुराने प्रावधान को बरकरार रखा गया है जिसमें विदेशों से पेश किये गए कीटनाशकों को दो वर्ष तक के प्रारंभिक पंजीयन की अनुमति दी गई है।
- इस संबंध में विशेषज्ञों का मत है कि दो साल की अवधि बहुत अधिक है। इससे काफी नुकसान होने की संभावना है।
- हालाँकि इस विधेयक के अंतर्गत निहित नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिये कड़े जुर्माने की व्यवस्था की गई है। परंतु इसमें समस्या यह है कि इससे संबद्ध प्रावधानों को स्पष्ट रूप से व्याख्यायित नहीं किया गया है। वस्तुतः इस अस्पष्ट व्याख्या के परिणामस्वरुप सारा दोषारोपण कमज़ोर मानक वाले खराब कीटनाशक निर्माताओं या उनका कारोबार करने वालों के स्थान पर किसानों पर किया जा सकता है।
- इतना ही नहीं प्रस्तावित कानून के अंतर्गत स्वदेशी शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के विषय में भी कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई गई है। यही कारण है कि स्थानीय कीट, पतंगों और बीमारियों से संबद्ध शोध के अभाव में विदेशों से निर्मित कीटनाशकों के प्रयोग पर निर्भरता निरंतर बढ़ती जा रही है।
- इसके अतिरिक्त विधेयक के अंतर्गत यह भी सुनिश्चित नहीं किया गया है कि खराब कीटनाशकों के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे की जाएगी। इसके इतर इस मुद्दे को उपरोक्त विधेयक के बजाय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में शामिल किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि कपास उत्पादक अपनी फसल को कीड़ों के प्रभाव से बचाने के लिये बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार किसान कीटनाशकों में मिलाए गए विषाक्त रसायनों के प्रभाव में आ जाते हैं, जिसके कारण प्रायः उनकी मृत्यु हो जाती है।
- यह तथ्य कि किसान कीटनाशकों के लिये 'कृषि विस्तार अधिकारियों' (agricultural extension officers) की तुलना में प्रायः बेईमान एजेंटों और वाणिज्यिक दुकानों की सलाह पर विश्वास करते हैं। यह कृषि के प्रति सरकार के गैर-ज़िम्मेदराना रवैये को दर्शाता है।
- हालाँकि, इस समस्या की जड़ें काफी गहरी हैं। भारत में कीटनाशकों के नियमन की प्रणाली काफी पुरानी है। अतः विगत वर्षों में पिछली सरकारों द्वारा किये गए बेहतरीन प्रयास भी इस दिशा में उपयोगी सिद्ध नहीं हुए।
- वर्ष 2008 में एक नया 'कीटनाशक प्रबंधन विधेयक' (Pesticides Management Bill) लाया गया था, जिसे उस समय तो संसदीय स्थायी समिति द्वारा संज्ञान में ले लिया गया था परंतु यह अभी तक लंबित ही पड़ा हुआ है।
- हालाँकि इसी दौरान इस बात के भी चिंताजनक प्रमाण मिले थे कि आज किसानों को बेचे जा रहे अधिकांश कीटनाशक नकली हैं और इन नकली कीटनाशकों की बदौलत वास्तविक उत्पाद की तुलना उत्पादन में उच्च वृद्धि दर प्राप्त की जा रही है।
- वस्तुतः जब हम कीटनाशकों के प्रयोग से उत्पन्न उत्पादों का सेवन करते हैं तो उसके माध्यम से खतरनाक ज़हर सीधे हमारे शरीर में प्रवेश करता है, जो शरीर की कोशिकाओं में पहुँचकर लाइलाज़ बीमारियों और जानलेवा कैंसर को जन्म देता है।
- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगातार 5 साल तक अपने भोजन में भिंडी या बैगन का सेवन करता है, तो निश्चित रूप से वह दमा का मरीज़ बन जाएगा। इतना ही नहीं उसकी वास नलिका के भी अवरुद्ध होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाएगी।
- वर्तमान में भारतीय किसानों द्वारा बहुत से रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है जो दुनिया के कई अन्य देशों में प्रतिबंधित हैं। उदाहरण के तौर पर, डीडीटी, बीएचसी, एल्ड्रॉन, क्लोसडेन, एड्रीन, मिथाइल पैराथियान, टोक्साफेन, हेप्टाक्लोर इत्यादि।
- सीएसई की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में हुई किसानों की मौत के लिये मोनोक्रोटो सीस, ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल, एसेफेट और प्रोफेनोफोस जैसे कीटनाशकों को ज़िम्मेदार माना जाता है।
- आको बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मोनोक्रोटो सीस एवं ऑक्सिडेमेटेन-मिथाइल को अत्यधिक खतरनाक (वर्ग-1 का) में शामिल किया गया है।
- इतना ही नहीं अभी तक मोनोक्रोटो सीस को 60, फोरेट को 37, ट्रायाफोस को 40 और फॉस्फैमिडोन को 49 देशों द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है।
- हमारे देश में कीटनाशक नियंत्रण हेतु तीन बड़ी संस्थाएँ मौजूद हैं- सेंट्रल इंसेक्टिसाइड्स बोर्ड एंड रजिस्ट्रेशन कमेटी, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडडर्स अथारिटी आफ इंडिया तथा एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्टस एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथारिटी।
- ये तीनों संस्थान क्रमशः कृषि, स्वास्थ्य और वाणिज्य मंत्रालयों के अंतर्गत काम करते हैं, यही कारण है कि इनके बीच में आपसी तालमेल की कमी बनी रहती है, जिसका स्पष्ट प्रभाव इनके कार्यों पर परिलक्षित होता है।
- ऐसा इसलिये भी हो रहा है क्योंकि सरकार की प्रमुख प्राथमिकता अधिक पैदावार के साथ-साथ अधिक-से-अधिक लोगों के लिये भोजन सुनिश्चित करना है। स्पष्ट रूप से ऐसी स्थिति में कीटनाशक प्रबंधन का मुद्दा दरकिनार कर दिया जाता है।
जैसा कि हम सभी जानते है कि कीटनाशकों के इस्तेमाल से भले ही कुछ समय के लिये कृषि उपज को बढ़ावा मलता है, लेकिन दीर्घावधि के संदर्भ में इसके इस्तेमाल बहुत अधिक खतरनाक होते है। ऐसे में सरकार को इस संबंध में एक प्रभावी नियामक बनाने पर बल देना चाहिये ताकि किसानों की आय को हानि पहुँचाए बिना उसने स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी आजीविका को नुकसान पहुँचने से बचाया जा सके। इसके लिये जहाँ एक ओर उक्त विधेयक में कुछ प्रभावी परिवर्तन करते हुए इसे लागू किया जाना चाहिये वहीं दूसरी ओर कृषि में खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल की बजाय जैविक कृषि को अपनाए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
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c0c2ac73ca1d4e012c1b73380677a708ae0bead7 | web | चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MoSPI) ने कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute-ISI) के साथ मिलकर सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (Gross Domestic Knowledge Product-GDKP) के उभरते क्षेत्र पर नई दिल्ली में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।
सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद (Domestic Knowledge Product-GDKP)
- दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उम्बेर्टो सुलपास्सो (Umberto Sulpasso) द्वारा GDKP के विचार को प्रस्तुत किया गया।
- नॉलेज आइटम्स (Knowledge items-Ki) - अलग-अलग श्रेणियों में आधुनिक और स्थानीय दोनों वर्गों की अलग-अलग संस्कृतियों की सूचना सामग्रियों की पहचान करना।
- कंट्री नॉलेज प्रोड्यूसिंग मैट्रिक्स (Country's Knowledge Producing Matrix-CKPM) - सरकार, निजी संस्थानों और परिवारों द्वारा उत्पादित ज्ञान में विभेद करते हुए GDP प्रभाव के लिये इनकी तुलना करना।
- कंट्री नॉलेज यूज़र मैट्रिक्स (Country's Knowledge User Matrix-CKUM) - व्यक्तियों और निजी कंपनियों द्वारा अपने आधुनिकीकरण के प्रयासों को मापने के लिये स्वीकृत ज्ञान का मूल्य।
- कॉस्ट ऑफ लर्निंग (Cost of Learning) - युवा नागरिकों को समर्थन देने के लिये शिक्षा परिवार बॉण्ड, शिक्षा क्रेडिट कार्ड आदि के माध्यम से सरकार के बजटीय निर्णयों (राजनीतिक संदर्भ) में उपयोग की जाने वाली वर्तमान लागत के समान।
- यह राष्ट्रीय संस्कृति से संबंधित विशिष्ट ज्ञान सामग्रियों के मूल्य की गणना करने और इन सामग्रियों में समय के साथ परिवर्तन की अनुमति देगा।
- उदाहरण के तौर पर, भारत में इन विशिष्ट ज्ञान सामग्रियों के अंतर्गत सांस्कृतिक और धार्मिक शिक्षणों (योग, वेद और नृत्य विद्यालय), धार्मिक त्योहारों एवं फसल त्योहारों के प्रसार को शामिल किया गया है।
- सकल घरेलू ज्ञान उत्पाद एक राष्ट्रीय ज्ञान शिक्षा मंच के निर्माण की सुविधा भी प्रदान कर सकता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाने के साथ-साथ जीडीपी और निजी निवेश की उचित भूमिका को बढ़ावा देगा।
- यह देश में ज्ञान आधारित अर्थव्यस्था को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।
हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के केंद्र में बड़े पैमाने पर पर्वतों जैसे ऊँचे-नीचे स्थानों की खोज की है। पृथ्वी की सतह अर्थात भूपर्पटी (Crust) से 660 किमी. नीचे स्थित परत मेंटल (Mantle) पर यह स्थलाकृति पाई गई है जो हमारे ग्रह की उत्पत्ति एवं विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के मेंटल क्षेत्र (मध्य भाग) में बड़े पैमाने पर पर्वतों की खोज की है जो हमारे ग्रहों के प्रति समझ को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- पृथ्वी की संरचना को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है - क्रस्ट (Crust), मेंटल (Mantle) और कोर (Core)। क्रस्ट पृथ्वी का बाहरी क्षेत्र, मेंटल मध्य क्षेत्र और कोर आतंरिक क्षेत्र है। इन तीनों की संरचना में भिन्नता के आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है।
- वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आतंरिक संरचना के प्राप्त आँकड़ों के आधार पर ही इन पहाड़ों की जानकारी दी है।
- जर्नल साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने बोलीविया में एक बड़े भूकंप के दौरान लिये गए आँकड़े का उपयोग किया, जिससे पृथ्वी की सतह से 660 किमी. नीचे स्थित क्षेत्र में पहाड़ों एवं अन्य स्थलाकृतियों की जानकारी प्राप्त हुई।
- वैज्ञानिकों ने इस सीमा को जहाँ पर उबड़-खाबड़ एवं समतल भाग पाए गए हैं, को '660 किलोमीटर की सीमा' नाम दिया है।
- उन्होने 660 किमी. की सीमा के इस भाग पर पृथ्वी की सतह से भी ज़्यादा ऊँचा-नीचा स्थान प्राप्त होने का अनुमान लगाया। इन ऊँचे-नीचे भागों को उन्होने रॉकी और अप्लेशियन पर्वत से भी मज़बूत एवं कठोर होने का अनुमान लगाया।
- हालाँकि शोधकर्ताओं ने मेंटल के मध्य भाग (410 किमी.) पर भी जानकारी एकत्र की लेकिन उन्हें वहाँ कोई भी उबड़-खाबड़ स्थान नहीं प्राप्त हुआ।
- 660 किलोमीटर की सीमा पर खुरदरेपन की उपस्थिति हमारे ग्रह की उत्पत्ति एवं विकास को समझने में वैज्ञानिकों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- अमेरिका में प्रिंसटन विश्वविद्यालय (Princeton University) और चीन में इंस्टीट्यूट ऑफ जियोडेसी एंड जियोफिजिक्स (Institute of Geodesy and Geophysics) के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की गहराई की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिये ग्रह पर सबसे शक्तिशाली तरंगों का इस्तेमाल किया, जो बड़े पैमाने पर भूकंप से उत्पन्न होते हैं।
- वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में आँकड़े प्राप्त करने हेतु 1994 में बोलीविया में आए भूकंप (8.2 तीव्रता) को आधार बनाया जो अब तक का रिकॉर्ड किया गया दूसरा सबसे बड़ा और गहरा भूकंप है।
- इस प्रयोग के अंतर्गत 7.0 या उससे अधिक की तीव्रता वाले भूकंपों के आँकड़े प्राप्त करने के लिये सभी दिशाओं में भेदी तरंगों को प्रेषित किया गया जिनकी क्षमता पृथ्वी के आतंरिक भागों से आगे तक जाने में सक्षम थी।
- वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक कंप्यूटरों के माध्यम से इन जटिल आँकड़ों का अध्ययन किया। इसमें बताया गया कि जैसे प्रकाश तरंगें किसी दर्पण या प्रिज़्म से टकराकर प्रकाश को परावर्तित करती हैं, ठीक उसी प्रकार भूकंपीय तरंगें समरूप चट्टानों में निर्बाध चलती हैं, लेकिन मार्ग में किसी भी उबड़-खाबड़ या खुरदरेपन के कारण ये तरंगे भी परावर्तित हो जाती हैं।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में एक वर्षा आधारित कृषि मानचित्र तैयार किया गया। इसके अंतर्गत वर्षा आधारित क्षेत्रों में व्याप्त कृषि जैव विविधता और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का विवरण देते हुए नीतिगत पूर्वाग्रहों का दस्तावेज़ीकरण करने का प्रयास किया गया है।
- हाल ही में जारी कृषि मानचित्र में वर्षा आधारित क्षेत्रों में व्याप्त कृषि जैव विविधता और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के साथ-साथ उन नीतिगत पूर्वाग्रहों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है, जो इन क्षेत्रों में लोगों को खेती करने में असफल बना रहे हैं।
- भारत में पाँच में से तीन किसान सिंचाई के बजाय वर्षा जल का उपयोग कर फसलों का उत्पादन करते हैं। हालाँकि इस तरह से उनका अपनी भूमि में प्रति हेक्टेयर सरकारी निवेश 20 गुना तक कम हो सकता है।
- ऐसे किसानों की फसलों की सरकारी खरीद प्रमुख सिंचित भूमि की फसलों का सिर्फ एक भाग है और सरकार की कई प्रमुख कृषि योजनाएँ उन्हें लाभान्वित करने के अनुरूप नहीं हैं।
- राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण के CEO जो वर्तमान में किसानों की आय दोगुनी करने हेतु बनाई गई सरकारी समिति के प्रमुख भी हैं, इन्होने बताया कि वर्षा आधारित क्षेत्रों के किसानों की अधिक उपेक्षा हुई है जो इन क्षेत्रों में किसानों की कम आय का महत्त्वपूर्ण कारण है।
- एक सम्मेलन के दौरान इन्होंने स्पष्ट किया कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में किसानों को सिंचित क्षेत्रों वाले किसानों की तुलना में लगभग 40% कम आय प्राप्त होती है।
- रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर (Revitalising Rainfed Agriculture-RRA) नेटवर्क के समन्वयक जिन्होंने यह मानचित्र प्रकाशित किया है ने किसानों की आय में असमानता के लिये सरकार की नीति और उसके व्यय में भेदभाव होना बताया है।
- सिंचित भूमि वाले क्षेत्रों में बड़े बांधों और नहर नेटवर्क के माध्यम से प्रति हेक्टेयर 5 लाख का निवेश प्राप्त होता है, जबकि वर्षा आधारित भूमि में वाटरशेड प्रबंधन का खर्च केवल 18,000-25,000 है। जो यह दर्शाता है कि उपज में अंतर निवेश के अंतर के अनुपात में नहीं है।
- इसी प्रकार जब उपज की खरीद देखी गई तो पाया गया कि सरकार ने 2001-02 तथा 2011-12 के दशक में गेहूं और चावल पर 5.4 लाख करोड़ रुपए खर्च किये। जबकि मोटे अनाज जो वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाए जाते हैं की खरीद पर उसी अवधि में 3,200 करोड़ रुपए खर्च किये गए।
- बीज, उर्वरक सब्सिडी और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी फ्लैगशिप सरकारी योजनाओं को सिंचित क्षेत्रों के लिये ही बनाया गया है जो कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी बिना किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखे विस्तृत कर दिया गया है।
- उदाहरण के लिये सरकार योजना द्वारा अधिसूचित बहुत से संकर बीजों को उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिये समय पर पानी, उर्वरक और कीटनाशक पदार्थों की बहुत आवश्यकता होती है जिसका वर्षा आधारित किसानों के लिये कोई महत्त्व नही हैं। सरकार द्वारा अब तक स्वदेशी बीजों को प्राप्त करने या जैविक खाद को सब्सिडी देने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
- वर्षा आधारित क्षेत्र के किसानों के लिये अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर ध्यान देने तथा उत्पादन हेतु समर्थन प्रदान करने के लिये सिंचित क्षेत्रों वाले किसानों से ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है।
- वर्तमान समय में किसानों की मदद करने के लिये आय समर्थन महत्वपूर्ण है, साथ ही भविष्य के लिये बेहतर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में हर कोई खेती करने के बजाय व्यवसाय करने में सहज महसूस करता है। आने वाले समय में यदि वर्षा आधारित क्षेत्रों में बीज, मिट्टी, पानी की समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है तो किसान कृषि कार्य छोड़ देंगे।
चर्चा में क्यों?
इंटरनेट के सदुपयोग और दुरुपयोग की बहस में डार्क वेब हमेशा से चर्चा का बिंदु रहा है। पिछले दिनों जब हैकरों ने कुछ वेबसाइटों के डेटा हैक कर लिये तब यह पुनः चर्चा में आ गया।
क्या है डार्क नेट?
- इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइटें हैं जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउज़िंग के दायरे से परे होती हैं। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है।
- सामान्य वेबसाइटों के विपरीत यह एक ऐसा नेटवर्क होता है जिस तक लोगों के चुनिंदा समूहों की पहुँच होती है और इस नेटवर्क तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर और कन्फिग्यूरेशन के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 देश में सभी प्रकार के प्रचलित साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिये वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है। ऐसे अपराधों के नोटिस में आने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ इस कानून के अनुसार ही उचित कार्रवाइयाँ करती हैं।
1. सरफेस वेब (Surface Web)
- यह इंटरनेट का वह भाग है जिसका आमतौर पर हम दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रयोग करते हैं।
- जैसे गूगल या याहू पर कुछ भी सर्च करते हैं तो हमें सर्च रिज़ल्ट्स प्राप्त होते हैं और इसके लिये किसी विशिष्ट अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
- ऐसी वेबसाइटों की सर्च इंजनों द्वारा इंडेक्सिंग की जाती है। इसलिये इन तक सर्च इंजनों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
2. डीप वेब (Deep Web)
- इन तक केवल सर्च इंजन के सर्च परिणामों की सहायता से नहीं पहुँचा जा सकता।
- डीप वेब के किसी डॉक्यूमेंट तक पहुँचने के लिये उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉग-इन करना होगा, जिसके लिये पासवर्ड और यूज़र नेम का प्रयोग करना होगा।
- जैसे-जीमेल अकाउंट, ब्लॉगिंग वेबसाइट, सरकारी प्रकाशन, अकादमिक डेटाबेस, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि ऐसी ही वेबसाइट्स होती हैं जो अपने प्रकृति में वैधानिक हैं किंतु इन तक पहुँच के लिये एडमिन की अनुमति की आवश्यकता होती है।
3. डार्क वेब (Dark Web)
- डार्क वेब अथवा डार्क नेट इंटरनेट का वह भाग है जिसे आमतौर पर प्रयुक्त किये जाने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता।
- इसका इस्तेमाल मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है।
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार, 2015 से 2017 की अवधि में विभिन्न दवा कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा चार मामले दर्ज किये गए थे जिनमें नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों की बिक्री तथा खरीद के लिये 'डार्क नेट' का इस्तेमाल किया गया था।
- डार्क वेब की साइट्स को टॉर एन्क्रिप्शन टूल की सहायता से छुपा दिया जाता है जिससे इन तक सामान्य सर्च इंजन से नहीं पहुँचा जा सकता।
- इन तक पहुँच के लिये एक विशेष ब्राउज़र टॉर (TOR) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिये 'द ऑनियन राउटर' (The Onion Router) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर के विपरीत नोड्स के एक नेटवर्क का उपयोग करते हुए परत-दर-परत डेटा का एन्क्रिप्शन होता है। जिससे इसके प्रयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता बनी रहती है।
- समग्र इंटरनेट का 96% भाग डार्क वेब से निर्मित है, जबकि सतही वेब केवल 4% है।
- सिल्क रोड मार्केटप्लेस नामक वेबसाइट डार्क नेटवर्क का एक प्रसिद्ध उदाहरण है जिस पर हथियारों सहित विभिन्न प्रकार की अवैध वस्तुओं की खरीद और बिक्री की जाती थी।
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (18 February)
- पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से आयात होने वाली वस्तुओं पर बेसिक सीमा शुल्क बढ़ाकर 200 फीसदी कर दिया है। पाकिस्तान से भारत को होने वाला कुल निर्यात 2017-18 में लगभग 3482 करोड़ रुपए था। पाकिस्तान से प्रमुखतः ताज़े फल, सूखे मेवे, सीमेंट, खनिज एवं अयस्क, तैयार चमड़ा, प्रसंस्कृत खाद्य, अकार्बनिक रसायन, कच्चा कपास, मसाले, ऊन, रबर उत्पाद, प्लास्टिक, डाई और खेल का सामान भारत आता है। पाकिस्तान से आने वाले दो सामानों, फल और सीमेंट पर अभी क्रमशः 30-35% और 7.5% ड्यूटी ही लगती थी। आयात शुल्क को 200 फीसदी बढ़ाने की वज़ह से पाकिस्तान से भारत को होने वाला आयात लगभग बंद हो जाएगा। भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2017-18 में 2.41 अरब डॉलर रहा, जो 2016-17 में 2.27 अरब डॉलर था। भारत ने 2017-18 में 48.85 करोड़ डॉलर का सामान पाकिस्तान से आयात किया, जबकि 1.92 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया गया।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2018 में दुनियाभर में खसरे के कुल 2,29,068 मामले दर्ज किये गए, जो 2017 की तुलना में लगभग दोगुने हैं। चूँकि खसरे का उन्मूलन नहीं हो पा रहा, ऐसे में यह हर किसी की ज़िम्मेदारी है कि टीकाकरण में हो रही चूक को सुधारने का प्रयास करे। एक व्यक्ति के संक्रमित होने से 9-10 लोगों में इसके विषाणु फैलने का खतरा बढ़ जाता है। हालाँकि 2000 के बाद से खसरे से होने वाली मौतों में 80 फीसदी तक कमी आई है जिससे संभवतः दो करोड़ 10 लाख लोगों की जान बची है। लेकिन खसरा भौगोलिक या राजनीतिक सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खसरे के प्रकोप को रोकने एवं उसके उन्मूलन के लिये खसरे के टीके की दो डोज़ देकर उच्च टीकाकरण कार्यक्रम चलाते रहने की विभिन्न देशों से अपील की है।
- भारतीय रेलवे देश में पहला रेल परीक्षण ट्रैक बनाने की योजना पर काम कर रहा है। राजस्थान के नावां शहर में सांभर झील के पास देश के पहले रेलवे टेस्ट ट्रैक के लिये काम शुरू किया जा चुका है। इस पर अनुमानित 353.48 करोड़ रुपए की लागत आएगी। यह देश में नई ट्रेनों के प्रयोग और परीक्षण का पहला ट्रैक होगा। इस टेस्ट ट्रैक का उपयोग करके कई नए परीक्षण और रोलिंग स्टॉक तथा इसके घटकों, रेलवे पुलों एवं भू-तकनीकी क्षेत्र से संबंधित नई तकनीकों का भी परीक्षण संभव होगा। इस ट्रैक के निर्माण के बाद भारत उन देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास अपना रेलवे टेस्ट ट्रैक है। अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि देशों में ट्रायल के लिये टेस्ट ट्रैक का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन हमारे देश में अभी तक मौजूदा रेलवे लाइनों पर ही टेस्ट होता है। इस योजना के पहले चरण में 25 किलोमीटर और दूसरे चरण में 20 किलोमीटर लंबी लाइन बिछाई जाएगी। लखनऊ स्थित रिसर्च डिज़ाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन (RDSO) ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि RDSO भारतीय रेलवे की तकनीकी ज़रूरतों के लिये काम करने वाला अनुसंधान संगठन है।
- देश में किलोग्राम का नया मानक 20 मई से लागू होगा। केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय किलोग्राम की नई परिभाषा के मुताबिक इसका नया प्रोटोटाइप अर्थात् मूल नमूना तैयार करेगा। नए नमूने से ही पूरे देश में किलोग्राम का वज़न तय किया जाएगा। इससे किलोग्राम के वज़न में मामूली बदलाव आ सकता है, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। गौरतलब है कि अभी तक किलोग्राम का मानक इसके द्रव्यमान पर आधारित था। पूरी दुनिया में किलोग्राम का वजन फ्रांस के इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एडं मेजर्स की तिजोरी में रखे सिलेंडरनुमा एक बाट से तय किया जाता है। यह 90 फीसदी प्लेटिनम और 10 प्रतिशत इरिडियम से बना है। यह 1889 से तिजोरी में बंद है। 130 साल बाद किलोग्राम के मानक में बदलाव किया जा रहा है। किलोग्राम की नई परिभाषा भौतिक स्थिरांक पर आधारित है। इसमें वज़न तय करने के लिये धातु के बजाय विद्युत धारा (करंट) को आधार बनाया गया है। नई परिभाषा के ज़रिये किलोग्राम के 10 करोड़वें हिस्से को भी मापा जा सकता है।
- देश में इलेक्ट्रिकल वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये केंद्र सरकार ने कुछ दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इनमें इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों को सड़क या राजमार्ग के दोनों तरफ हर 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित करने की सिफारिश की गई है। सरकार ने आदर्श इमारत उपनियम-2016 और शहरी क्षेत्र विकास योजना रूपरेखा और अनुपालन दिशा-निर्देश-2014 में संशोधन कर ई-वाहन चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के प्रावधान किये हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों और बुनियादी ढाँचे के लिये उपनियम बनाने में ये दिशा-निर्देश राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये परामर्श देने का काम करेंगे। इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि लंबी दूरी तक जाने में सक्षम या भारी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये राजमार्गों के दोनों तरफ प्रत्येक 100 किलोमीटर पर कम-से-कम एक ई-वाहन चार्जिंग स्टेशन बनाया जाना चाहिये। आवासीय क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशन बनाने का ज़िक्र भी दिशा-निर्देशों में है। सरकार को उम्मीद है कि 2030 तक सड़क पर चलने वाले कुल वाहनों में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी ई-वाहनों की होगी।
- मौजूदा चैम्पियन साइना नेहवाल ने ओलंपिक रजत पदक विजेता पी.वी. सिंधु को हराकर 83वीं सीनियर राष्ट्रीय बैडमिंटन चैम्पियनशिप का महिला एकल खिताब जीत लिया। फाइनल में सिंधु को पराजित कर साइना ने लगातार दूसरी बार यह खिताब अपने नाम किया। पुरुष एकल में सौरभ वर्मा ने युवा खिलाड़ी लक्ष्य सेन को हराकर खिताब जीता। पुरुष युगल में प्रणव जैरी चोपड़ा और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने अर्जुन एम.आर. और श्लोक रामचंद्रन की जोड़ी को हराकर चैम्पियन बनने का गौरव हासिल किया।
- अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल में भारत की ओर से सबसे ज़्यादा गोल करने वाले फुटबॉलर सुनील छेत्री को इस खेल के विकास में सहयोग देने के लिये 'फुटबॉल दिल्ली' ने पहले फुटबॉल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया। 34 वर्षीय सुनील छेत्री को सरकार पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है। आपको बता दें कि 'फुटबॉल दिल्ली' इस खेल का दिल्ली में संचालन करती है। सुनील छेत्री को कैप्टन फैंटास्टिक के नाम से भी जाना जाता है। वह सक्रिय खिलाड़ियों के बीच क्रिस्टियानो रोनाल्डो के बाद अंतर्राष्ट्रीय मैचों में दूसरे सबसे अधिक गोल करने वाले फुटबॉलर हैं।
- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हरियाणा सरकार द्वारा सोनीपत ज़िले के गन्नौर में आयोजित चौथे कृषि नेतृत्व शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया और हरियाणा किसान रत्न पुरस्कार और हरियाणा कृषि रत्न पुरस्कार प्रदान किये। इस सम्मेलन का उद्देश्य कृषि में आधुनिक, 21वीं शताब्दी की प्रौद्योगिकियों का अनुसरण करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना था। राष्ट्रपति ने कृषि को एक व्यापक उद्यमशील परिप्रेक्ष्य में देखने तथा पारंपरिक कृषि को कृषि मूल्य श्रृंखला के साथ जोड़ने की अपील की।
- 18 फरवरी को नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सांस्कृतिक सद्भाव के लिये वर्ष 2014, 2015 और 2016 हेतु टैगोर पुरस्कार क्रमशः राजकुमार सिंहाजीत सिंह (मणिपुरी नृत्य), छायानट (बांग्लादेश का एक सांस्कृतिक संगठन) और राम वनजी सुतार (प्रख्यात मूर्तिकार) को प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि सांस्कृतिक सद्भाव के लिये टैगोर पुरस्कार की शुरुआत भारत सरकार ने 2012 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150वीं जयंती के अवसर पर की थी। यह पुरस्कार वर्ष में एक बार दिया जाता है जिसके तहत एक करोड़ रुपए नकद (विदेशी मुद्रा में विनिमय योग्य), एक प्रशस्ति पत्र, धातु की मूर्ति और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तशिल्प/हस्तकरघा वस्तु दी जाती है।
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84089c5b154d907873b82dd41535760a477a157e | web | फिल्म, 1 9 76 में स्क्रीन पर रिलीज़ हुई"भाग्य की विडंबना, या एक हल्की भाप के साथ!" लाखों दर्शकों के लिए अभी भी दिलचस्प है। इस फिल्म के लिए धन्यवाद कि कई सोवियत नागरिक घर पर जाने वाली पोलिश अभिनेत्री से परिचित हो गए। महान महिमा के अलावा, इस आकर्षक महिला को एक भयंकर दुःख से गुजरना पड़ा। 20 से अधिक वर्षों के लिए, बारबरा ब्रिस्का अपनी आत्मा में दर्दनाक बोझ पीड़ित कर रही है - एक कार दुर्घटना में अभिनेत्री की बेटी की मौत हो गई थी।
नाडिया शेवेलेवा की भूमिका में कल्पना करना मुश्किल हैबारबरा ब्राइस्की, और एक और अभिनेत्री। साथ ही साथ अन्य अभिनेता एंड्रयू सॉफ्ट में जगह नहीं लगा सकते हैं। अपनी फिल्म रियाज़ानोव के मुख्य पात्रों की पसंद में बस याद नहीं आया। सबसे पहले, आलोचकों को परेशान किया गया थाः क्या वास्तव में सोवियत अभिनेत्री में यह था कि नादिया खेलने के योग्य नहीं थे?
वैसे, कई लोगों ने इस भूमिका की कोशिश की -Lyudmila Gurchenko, वैलेंटाइना Talyzina, एंटोनिना Shuranova, स्वेतलाना Nemolyayeva, ओल्गा Volkova और मरीना मेरिमसन। किसी भी तरह फिल्म के रचनाकारों ने महसूस किया कि नादिया की भूमिका से निपटने का सबसे अच्छा तरीका बारबरा ब्राइस्का द्वारा प्रबंधित किया जाएगा। बेटी (उसके साथ त्रासदी 1 99 3 में हुई) ने अपने पसंदीदा काम में अभिनेत्री के हित को ढका दिया। हालांकि अभिनय करियर में ब्रिस्की की गतिविधि बहुत पहले घटने लगी - बस "भाग्य की लौह ..." में शूटिंग के बाद।
5 जून, 1 9 41 को स्कॉट्निकी के पोलिश शहर मेंएक तालाब और ड्रेसमेकर की पुत्री - बारबरा ब्राइस्का का जन्म हुआ था। पड़ोसी शहर में उन्होंने थिएटर और सिनेमा के हायर स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और पहले से ही 1 9 58 में पहली बार "गैलोशेस ऑफ हैप्पीनेस" फिल्म में स्क्रीन पर दिखाई दिया। उनके लिए असली सफलता केवल आठ साल बाद आई, जब बारबरा ने लगातार तीन फिल्मों में अभिनय किया।
अभिनेत्री की लोकप्रियता न केवल अपने मूल में हैदेश, लेकिन यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया और जीडीआर में भी। 1 9 76 तक, सोवियत दर्शक उन्हें न केवल विदेशी फिल्मों में जान सकते थे, क्योंकि उन्होंने सोवियत निदेशकों द्वारा गोली मार दी गई दो फिल्मों में हिस्सा लिया था। यह "शहरों और वर्षों" और "लिबरेशन" के बारे में है। ऐसी अविश्वसनीय सफलता होने के बाद, अभिनेत्री वास्तव में खुश थी। बारबरा की बेटी के साथ क्या हुआ, उसके लिए यह आंतरिक खुशी उसके जीवन के अंत तक जारी रह सकती है। ब्राइसस्का इस त्रासदी के बारे में बहुत चिंतित था।
सोवियत के बीच विशाल सफलता के बादनागरिक बारबरा ब्राइस्की को अपनी मूल भूमि में स्पष्ट रूप से गिरने वाले ब्याज के साथ मुलाकात की गई थी। कई ने उसे एक गद्दार माना। लोकप्रिय महिला के लोकप्रिय पात्रों में बदलाव की वजह से एक महिला को फिल्माने के लिए शायद ही कभी आमंत्रित किया जाना शुरू हो गया। दर्शकों को आक्रामक और दृढ़ नायिकाओं का अधिक शौक था, और यह ब्राइस्काया में बस वहां नहीं था।
अभिनय में एक लंबे ब्रेक के बाद2000 की शुरुआत से उन्होंने नाटकीय प्रस्तुतियों में भाग लेने लगे और रूसी, यूक्रेनी और पोलिश सिनेमा में कई भूमिका निभाई। अपनी बेटी की मौत के बाद, बारबरा कोसमल, अभिनेत्री अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकती है। कोई भी भूमिका कभी भी उसकी पूर्व उत्साह में वापस नहीं आ सकती है।
बारबरा ब्राइल्स्का के जीवन में कई पुरुष थे।उनमें से दो के साथ वह आधिकारिक तौर पर शादी कर ली गई थी। अभिनेत्री के मुताबिक, वह केवल अपने जीवन को एक सुन्दर आदमी से जोड़ सकती थी, और फिर भी उनमें से प्रत्येक के साथ नहीं। ब्रिसल्का ने अपने पहले आधिकारिक पति से मुलाकात की जब वह केवल सत्रह थीं। बारबरा स्कूल से स्नातक होने के तुरंत बाद, उनके अशांत रिश्ते विवाह में समाप्त हुए। कानों से प्यार में एक लड़की, अपने पति के अनुरोध पर, नाटकीय कला को पूरी तरह से परिवार को समर्पित करने के लिए शिक्षण देने के लिए छोड़ दिया। एक साल बाद, उसने अभी भी फिल्म "द फारोन" में अभिनय किया, जहां वह जेर्ज़ी ज़ेलनिक से मिलता है।
उनके पास भावुक है, लेकिन छोटा हैएक उपन्यास, जिसमें बारबरा के प्यारे पति अपनी आंखें बंद कर देते हैं। हालांकि, एक और प्रसिद्ध पोलिश अभिनेता के साथ दूसरी प्रेम कहानी के बाद, जिसके साथ उसे सेट को विभाजित करना पड़ा, उसकी शादी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह उपन्यास था जिसने अभिनेत्री के अनुसार अपने पहले संघ को नष्ट कर दिया, उसके जीवन में सबसे उत्साही प्यार के साथ। उन्होंने जो शादी की योजना बनाई वह नहीं हुई।
इसके बाद, बारबरा गहरे में गिर जाता हैअवसाद, जिससे यह एक नया शौक पाने में मदद करता है। उनकी वस्तु एक स्त्री रोग विशेषज्ञ लुडविग कोसमल थी। उनकी शादी 18 साल तक चली, जो आश्चर्यजनक है, एक आदमी के भारी चरित्र और उनकी पत्नी के निरंतर विश्वासघात को देखते हुए। अपने पति पर बदला लेने के लिए, बारबरा ने फिल्म "एनाटॉमी ऑफ लव" के लिए घृणित रूप से वापस ले लिया, जहां एक बार नग्न में दर्शकों के सामने नहीं दिखाई देता था। इस भूमिका के बाद, वह अपने देश में एक सेक्स प्रतीक बन गई।
1 9 73 में, इस विवाह से, एक बेटी दिखाई देती है,बारबरा कोसमल। लड़की की तस्वीर ने अपनी मां के साथ अपनी महान समानता की गवाही दी है, जिसने उसे अपनी मां से कम गौरवशाली भविष्य का वादा किया था। मां के नाम से बेटी को बुलाकर ब्रायल्स्का ने उसे साबित कर दिया कि वह उसका जैविक पिता था।
बारबरा ब्राइल्स्का ने कहा, बस्या की बेटी अंदर थीउनके परिवार को बहुत लंबे समय से प्रतीक्षित बच्चा। इससे पहले, उसे कई गर्भपात हुआ था। और जब बहुत कम उम्मीदें थीं, उनकी बेटी जीवित रहने में कामयाब रही। डॉक्टरों ने कई दिनों तक अपने जीवन के लिए लड़ा। फिर वे जीते। हालांकि, लड़की को लंबे जीवन जीने के लिए कभी नियत नहीं किया गया था।
बारबरा ब्रिस्का, जिनकी बेटी असाधारण थीसुंदर और प्रतिभाशाली, उसके क्रोविनशकोय पर बहुत गर्व है। उत्कृष्ट बाहरी डेटा ने लड़की को मॉडलिंग व्यवसाय करने की अनुमति दी। लेकिन, इसके अलावा, वह अपनी मां के चरणों में पालन करना चाहती थी - पहले से ही पंद्रह वर्ष की उम्र में उसने पहली बार फिल्म में उसके साथ अभिनय किया था। इसके अलावा, बसिया कोसमल में कई और एपिसोडिक भूमिकाएं थीं।
जेर्ज़ी हॉफमैन की फिल्म "फायर एंड" में मुख्य पात्र की भूमिकातलवार "बारबरा कोसमल कभी नहीं खेला, और इसका कारण उसकी अप्रत्याशित, दुखद मौत थी। लड़की ने 1 99 3 में अपनी जिंदगी खो दी, जिससे उसकी मां के दिल में गहराई से खून बह रहा था।
अपरिवर्तनीय के आधार पर परिवार में लगातार घोटालेधर्मनिरपेक्ष जीवन और तूफानी दलों के साथ-साथ कई अन्य कारणों के लिए लुडविग के प्यार ने अभी भी विवाह को विघटित कर दिया है। तलाक के अशांत उपन्यासों के बाद, बारबरा ब्रिस्का के प्रेम मामलों ने उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षित महिला खुशी नहीं दी। हालांकि, इस समय तक, अभिनेत्री ने पूरी तरह से अन्य चीजों से खुशी प्राप्त करना सीखा है।
विशाल खुशी Brylskaya अपने बच्चों को लाया।1 9 82 में, जब अभिनेत्री 42 वर्ष की हो गई, तो उसका जीवन वास्तव में वफादार आदमी था - एक छोटा बेटा। लुडविग और बासिया कोसमल उनके लिए बन गए जो उन्होंने खुद को समर्पित करने का फैसला किया। 1 99 3 की दुखद घटनाओं के बाद, केवल बेटा अभिनेत्री के जीवन में ही रहा।
15 मई, 1 99 3 का सबसे भयानक दिन थाबारबरा ब्राइल्स्का का अनुभव हुआ - उसकी बेटी उस दिन दुखद रूप से मर गई। यह सब तब हुआ जब एक लड़की, जो फरवरी में केवल 20 वर्ष की थी, शहर के बाहर आराम करने के लिए अपने प्रेमी, सवेली नाम से यात्रा कर रही थी। उस समय, जवान आदमी के पास एक छोटा सा ड्राइविंग अनुभव थाः उसे कुछ महीने पहले अधिकार मिला।
ड्राइविंग का थोड़ा सा अनुभव होने के कारण, सवेली बस नहीं करता हैबारी पर नियंत्रण के साथ मुकाबला और पूरी गति से पेड़ में उड़ गया। दुर्घटना के बाद के कुछ मिनटों में लड़की जीवित बनी रही, उसने कई बार अपनी आँखें खोली। लड़के की चिल्लाहट के नीचे लड़की थोड़ी देर बाद मर गईः "बासिया, मर मत जाओ!"
बारबरा कोसमल, जिसमें से फोटो पृष्ठों से भरा थापोलिश और विदेशी पत्रिकाओं, मौत के समय एक सफल मॉडल और एक महत्वाकांक्षी अभिनेत्री थी। उसके साथ हुई दुर्घटना लड़की और उसकी मां की प्रतिभा के सभी प्रेमियों के लिए एक बड़ा झटका बन गई। लेकिन वह निश्चित रूप से ब्रैस्की के लिए एक त्रासदी बन गई। बारबरा कोसमल, जिनके अंतिम संस्कार ने उनके सभी प्रशंसकों को एक साथ लाया, उनकी मां की आंखों के सामने लंबे समय तक खड़े थे। बारबरा ने उसे कविता लिखी, लगातार अपनी तस्वीरों को देखा और बिना किसी घटना के दूसरों को अपनी बेटी के बारे में बात की। लगभग तीन साल ब्रिस्का गहरे अवसाद में रहे - व्यावहारिक रूप से घर नहीं छोड़ा, शराब में दुःख डूब गया और अपनी बेटी को याद किया।
कुछ समय बाद, अभिनेत्री को एहसास हुआउसने अपने छोटे बेटे को छोड़ दिया, और उसका पूरा ध्यान उसके पास बदल दिया। महिला के अनुसार, उसने उसे आत्महत्या से बचाया। लुडविग पर सभी अनुचित प्यार पर फैलते हुए, उसने उसे खराब कर दिया। केवल कई सालों बाद, बारबरा अतीत में त्रासदी छोड़ने में सक्षम था, हालांकि अब तक अप्रत्याशित हिस्टिक्स उसके साथ होता है।
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2e369fdad651ee332c7a895c00d79af9218e59f4f39c43c364137c07e8aae51c | pdf | तदुवरि गत्थि' सुहम-णिगोव-लद्धि-प्रपज्जरायस्स ओगाहरण- वियप्पं, सब्बुवकस्सोगाहणं पत्ततावो। तबुवर सुहम-वाउकाइय-लढि-अपज्मराय--पहुवि सोलसव्हं जोवाणं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चबि, सप्पाश्रोग्ग-असंखेज्ज-पदेसणूरण-पंचेबिध-लद्धिअपज्जत-जहण्णोगाहरणा रूऊणावलियाए प्रसंखेज्जदि-भागेण गुणिदमेत्तं तदुवरि वड्ढिवो शि । तादे सुहुम-णिगोद-णिवत्त-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा वीसइ ।।
अर्थ- इसके ऊपर सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तककी अवगाहनाका विकल्प नहीं रहता, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त हो चुका है, इसलिए इसके आगे सूक्ष्मवायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तकको आदि लेकर उक्त सोलह जीवोंकी ही मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है। जब इसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेश कम पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुरिगतमात्र ( इस ) के ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है, तब सूक्ष्मनिगोद (१९) निवृत्ति पर्याप्तक की जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पहुदि पदेसुशर कमेण सत्तरसहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बड़ढदि तदणंतरोगाहणावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिवेगभागमेत्तं तदुवरि वढिदो ति। तादे सुहुम-णिगोब-णिवत्त-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहमा दोसइ ।।
अर्थ - फिर यहाँसे आगे प्रदेशोत्तर क्रमसे तदनन्तर अवगाहनाके आवलोके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र ( इस ) के ऊपर बढ़ जाने तक उक्त सत्तरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है, तब सूक्ष्मनिगोद (२०) निर्वृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो उबरि णत्थि तस्स ओगाहरण- वियप्पा । तं कस्स होदि ? से काले पज्जत्तो होबि त्ति ठिदस्स । तदो पहृदि पदेसुत्तर- कमेण सोलसण्हं मज्झिमोगाहरणावियप्पं वहृदि जाव इमा ओगाहणा आबलियाए प्रसंखेज्जदि-भागेरण खंडिदेग-खंडमेरां तदुवरि बडियो सि । तावे सुहम-णिगोब-रिगम्बत्ति-पज्जत्तयस्स ओगाहण-वियप्पं थक्कदि, ए ध्व-उक्कस्सोग्गहरण' - परासायो । तदो पवेसुत्तर कमेण पण्णारसण्हं मज्झिमोगाहणबियप्पं बच्चदि तप्पाओग्ग-असंखेज्ज-पवेसं बड्डियो सि । तावे सुहुम वाउकाइय-णिव्वति अपज्जरायस्स सव्व जहण्णीगाहणा दीसह ॥
१. द. ब. क. ज. षट्ठिद। २. द. ब. क. ब. पत्त तादो। ३. ६. ब. गाहणं पत्तं तदो ।
पंचमो महाहियारा
अर्थ-इसके आगे उस सूक्ष्म निगोद निर्वृ त्यपर्याप्तिककी अवगाहनाके विकल्प नहीं रहते। यह अवगाहना किसके होती है ? अनन्तरकालमें पर्याप्त होनेवाले के उक्त अवगाहना होती है। यहाँसे प्रागे प्रदेशोत्तर क्रमसे अवगाहनाके प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र ( उस ) के ऊपर बढ़ जाने तक उक्त सोलह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता जाता है। इस समय सूक्ष्म-निगोद (२१) निवृत्ति - पर्याप्तककी अवगाहनाका विकल्प स्थगित हो जाता है, क्योंकि वह सर्वोत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त हो चुका है। पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होनेतक पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है। तदनन्तर सूक्ष्मवायुकायिक (२२) निवृ त्यपर्याप्तककी सर्व जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण सोलसहं मज्झिमोगाहण वियप्पं बच्चदि तप्पाम्रोग्गअसंखेज्ज- पवेस-वड्ढिदो त्ति । तावे सुहुम चाउकाइय-लद्धि-प्रपज्जत्तयस्स ग्रोगाहण'विधप्पं थक्कवि, समुक्कस्सोगाहण-पत्तत्तादो । ताबे पदेसुत्तर कमेण पण्णारसण्हं व मज्झिमोगाहरण वियप्पं वच्चवि । केत्तियमेसेण ? सुहुम-णिगोव-णिव्यत्ति-पज्जत्तस्स उक्कस्सोगाहणं रूऊणावलियाए प्रसंखेज्जदि-भागेण गुणिदमेत्तं हेट्ठिम तप्पाओग्ग-प्रसंखेज्जपदेसेणूरगं तदुवरि वड्ढिदो त्ति । तादे सुहुम वाउकाइय-णिव्वत्ति पज्जत्तयस्त जहण्णो गाहणा दीसइ ।।
प्रर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक सोलह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है । तब सूक्ष्मवायुकायिक (२३) लब्ध्य पर्याप्तकको अवगाहनाका विकल्प स्थगित हो जाता है, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको पा चुका है। तब प्रदेशोत्तर क्रमसे पन्द्रह जीवोंके समान मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है। कितने मात्रसे ? सूक्ष्मनिगोद निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम आवलीके असंख्य भागसे गुरिणतमात्र अधस्तम उसके योग्य असंख्यात प्रदेश कम उसके ऊपर वृद्धि होने तक । तब सूक्ष्म वायुकायिक (२४) निर्वृत्ति-पर्याप्तककी जघन्य अवगाहह्ना दिखती है ।
तदो पवेसुत्तर कमेण सोलसहं श्रोगाहण वियप्पं बच्चदि इमा भोगाहणा आवलियाए प्रसंखेज्जदिभागेण खंडिदेग खंडं वढिदो त्ति । तादे सुहुम वाउकाइयणिव्वत्ति अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा बीसइ ।।
प्रथं -- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सोलह जीवोंकी अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है, जब तक ये अवगाहनायें आवली के असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भाग प्रमाण वृद्धिको १. द. ब. संभोगाहणं ।
प्राप्त न हो जायें। उस समय सूक्ष्म वायुकायिक (२५) निवृ सि-अपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर कमेण पण्णारसण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तदनंतरोगाहरणा आवलियाए प्रसंखेज्जदिभागेण खंडिदेग-खंडं तदुवरि वड़िढदो सि । तावे सुहुमवाउकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा होदि । तदो पदेसुत्तर- कमेण चोद्दसण्हं ओगाहण-वियप्पं वञ्चदि तप्पाम्रोग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेसं वडि ढदो त्ति । तावे सुहुम तेउकाइयनिव्वति प्रपज्जत्तयस्स जहष्णोगाहणा दोसइ ।।
प्रथं --तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक खण्ड प्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके। उस समय सूक्ष्म वायुकायिक (२६) निवृत्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना होती है। तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चौदह जीवोंको अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक बढ़ता जाता है। उस समय सूक्ष्म तेजस्कायिक (२७) निर्वृत्तिअपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर-कमेण पण्णारसण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तप्पाप्रोग्यअसंखेज्ज -पढेसं वडि ढदो प्ति । तादे सुहुम तेउकाइय-लढि-श्रपज्जत्तयस्य श्रोगाहण-वियप्पं थक्कदि, स उक्कस्सोगाहणं पत्तचादो। तदो पदेसुत्तर- कमेण चोद्दसण्हं श्रोगाहण-वियप्पं वञ्चदि । केत्तियमेत्तेण ? सुहुम-वाउकाइय-णिव्यत्ति पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहरणा रूऊणावलियाए प्रसंखेज्जदि भागेण गुणिदं तप्पाप्रोग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेसेणूणं तदुवरि बड़िढदो त्ति । तादे सुहम तेउकाइय णिव्वत्ति पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा
दोसइ ।।
अर्थ- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक पन्द्रह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है। उस समय सूक्ष्मतेजस्कायिक (२८) - लब्ध्यपर्याप्तक की श्रवगाहनाका विकल्प विश्रान्त हो जाता है, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त हो चुका है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चौदह जीवोंकी अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है। कितने मात्रसे ? सूक्ष्मवायुकायिक- निवृतिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम आवलोके असंख्यातवें भागसे गुणित इसके योग्य असंख्यात प्रदेश कम ( उस ) के ऊपर वृद्धिके होने तक । तब सूक्ष्मतेजस्कायिक (२९) - निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुसर कमेण पण्णारसम्हं भोगाहण-बियप्यं गच्छदि तदनंतरोगाहणं भावलियाए भसंखेज्जदि-भागेण खंडिदेग-खंड बढिदो सि । सादे सुहम-तेउकाइयणिव्बत्ति-अपज्जतयस्स उक्कस्सोगाहरणा बीसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पन्द्रह जीवोंकी अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना श्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागप्रमाण वृद्धिको प्राप्त न है जावे । उस समय सूक्ष्म तेजस्कायिक (३०) निवृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तरकमेण चोद्दसण्हं मक्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तदणंतरोगाहरणं आवलियाए संखेज्जदि-भागेण खंडिदेग-खंड तदुवरि बढि ढदो ति । ताबे सुहम-सेउकाइयनिव्वत्ति-पज्जतयस्स उपकस्सोगाहणा बीसइ । एतियमेत्ताणि चेव तेउकाइय जोवस्स श्रोगाहण- वियप्पा । कुदो ? समुक्कस्सोगाहरण-वियप्पं पत्तं ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चौदह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र ( इस ) के ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो जावे, तब सूक्ष्म-तेजस्कायिक (३१) निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इतने मात्र ही तेजस्कायिक जीवको अवगाहनाके विकल्प हैं, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त हो चुका है ।
तादे पदेसुत्तर- कमेण तेरसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चदि तप्पाओग्ग असंखेज्ज-पबेसं घड्दो ति । तादे सुहुम ग्राउकाइय गिव्वत्ति प्रपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा बोसइ ॥
अर्थ - इसके पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे तेरह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक कि उसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि न हो चुके, तब फिर सूक्ष्मजलकायिक (३२) - निवृत्यपर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तबो पबेसुत्तर- कमेण चोदसण्हं जीवारगं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि सप्पाश्रोग्ग-प्रसंखेज्ज -पवेसं वढिदो सि । ताहे सुहम-ग्राउकाइय-लडि-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा वीसइ ।।
अर्थ- तत्पश्चात् प्रदेशोतर क्रमसे चौदह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके - योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है। इस समय सूक्ष्म-जलका यिक (३३) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पवेसुत्तर- कमेण तेरसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि । केत्तियमेसेण ? सुहुम-तेउकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तुषकस्सोगाहणं रुऊणावलियाए प्रसंखेज्जदिभागेण गुणिवमेत्तं पुणो तप्पाघ्रोग्ग-प्रसंखेज्ज -पदेस-परिहोणं तदुवरि वढिदो ति । तादे सुहुम-प्राउकाइय-णिवत-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसं तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है। कितने मात्रसे ? सूक्ष्मतेजस्कायिक निर्वृत्ति - पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके एक कम श्रावलीके असंख्यातवें भागसे गुरिणतमात्र पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदशोंसे रहित इसके ऊपर वृद्धि होने तक । तब सूक्ष्मजलकायिक (३४) निर्वृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पबेसुत्तर- कमेण चोहसण्हं जीवारणं मज्झिमोगाहण वियप्पं बच्चदि तबरगंतरोगाहणा' श्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिदेग-खंडमेत्तं तदुवरि वड्ढदो त्ति । तावे सुहुम-श्राउकाइय-णिध्वत्ति-प्रप्पज्जत्तयस्स उपकस्सोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चौदह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब सूक्ष्म जलकायिक (३५) निवृत्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्चर कमेण तेरसहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणा श्रावलियाए असंखेज्जबि- भागेण खंडिदेग-खंडमेत तदुबर वड्ढदो त्ति । तावे सुहुमग्राउकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहरणा होदि । एत्तियमेत्ता प्राउकाइय-जीवाणं श्रोगाहण- वियप्पा । कुदो ? सम्बोक्कस्सोगाहणं पत्तत्तादो ॥
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके प्रसंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके। उस समय सूक्ष्मजलकायिक (३६) - निवृत्ति पर्याप्तिककी उत्कृष्ट
१. द. ब. तदंतरोगाहणा । २. द. ब. बियप्पं । ३. द. ब. क. ज. पत्तं तादो ।
अवगाहना होती है । इतने मात्र ही जलकायिक जीवोंकी अवगाहनाके विकल्प हैं, क्योंकि सर्वोत्कृष्ट अवगाहना प्राप्त हो चुकी है।
तदो पवेसुत्तर कमेण बारसण्हं मज्झिमोगाहण- बियप्पं वच्चवि तप्पाओग्गअसंखेज्ज -पदेसं बड्ढिदो त्ति । तादे सुहुम पुढविकाइय-णिव्वत्ति-प्रपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह-जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब सूक्ष्मपृथिवीकायिक (३७) - निवृं त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पहुदि पदेसुत्तर- कमेण तेरसण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्गप्रसंखेज्जपदेसं वड्ढिदो त्ति । तादे सुहुम पुढवि-लखि- प्रपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा बोसइ ।।
अर्थ - यहां से आदि लेकर प्रदेशोत्तर क्रमसे तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब सूक्ष्म पृथिवोकायिक (३८)लब्ध्यपर्याप्तिककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो' पदेसुत्तर- कमेण बारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण- वियप्पं वड्ढदि । केत्तियमेत्तण ? सुहम-प्राउकाइय-णिवत्त-पज्जत्तयस्त उक्कस्सोगाहणं रूऊणावलियाए असंखेज्जविभागेरण गुणिदमेत्त पुणो तप्पाश्रोग्ग-प्रसंखेज्ज -पवेसेणूणं तबुवरि वड्ढदो त्ति । तादे सुहुम पुढविकाइय-णिव्वत्ति-पज्जतयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम श्रवगाहनाका विकल्प बढ़ता रहता है । कितने मात्रसे ? सूक्ष्म-जलकायिक- निवृत्ति-पर्याप्तककी उत्कृष्ट प्रवगाहनाके एक कम आवलोके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र पुनः उसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेशोंसे कम इसके ऊपर वृद्धि होने तक । उस समय सूक्ष्म पृथिवीकायिक (३९) निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तरकमेरण तेरसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तवणंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिदेय-खंडमेशं तदुवरि वढिदो सि। ताबे सुहुम पुढवि णिवत्त-प्रपज्जयस्स उदकस्सोगाहणं दीसइ ।।
१. द. ब. क. ज. तदा ।
तिलोय पणती
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे तेरह-जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है, जब तक तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भाग प्रमारण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो जाए। तब सूक्ष्म पृथिवीकायिक (४०) निवृ त्त्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो' पदेसुत्तर- कमेण बारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं बच्चदि तदणंतरोगाहणा श्रावलियाए प्रसंखेन्जदि-भागेण खंडिय तत्थेग-भागं तदुवरि वड्ढिदो सि । तबो सुहुम पुढवि-काइय-णिव्वत्ति-पज्जतयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । तदोवरि सुहुमपुढविकाइयस्स ओगाहण - वियप्पं णस्थि ।।
मर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाको आवलोके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमें से एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि होने तक चलता रहता है । तत्पश्चात् सूक्ष्म पृथिवीकायिक (४१) - निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इसके आगे सूक्ष्म पृथिवीकायिकको अवगाहनाका विकल्प नहीं है ।।
सबो पदेसुत्तर- कमेण एक्कारसण्हं जीवाणं मक्किमोगाहण वियप्पं वच्चदि तप्पाश्रोग्ग असंखेज्ज-पदेसं वड्ढदो त्ति । तादे बादर-वाउकाइय-णिव्वत्ति प्रपज्जत्तयस्स जहण्योगाहणं दोसइ ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर - वायुकायिक (४२) निवृत्त्यपर्याप्तकको जघन्य प्रवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर- कमेण बारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वड्ढदि तप्पाश्रोग्ग असंखेज्ज -पदेस बड़िढदो सि। तावे बादर-बाउकाइय-लद्धि प्रपज्जरायस्स उक्क स्सोगाहणं बोसइ ।।
१. द. ब. तदा ।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक बढ़ता रहता है । उस समय बादर वायुकायिक (४३) लब्ध्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
मंचमो महाहियारो
तदो पदैसुरार-कमेण एक्कारसहं मज्झिमोगहण - वियप्पं क्यचदि । तं केत्तियमेसण ? इदि उसे सुहुम- पुढबिकाइय-णिव्बति-पज्जतयस्त उक्कस्सोगाहना रुऊणपलिदोवमसंखेज्जदि-भागेण गुजिवं पुगो तप्पाओग्ग-प्रसंखेज्ज- पदेस परिहीरणं तदुवरि वड़िढदो त्ति । तादे बादर वाउकाइब 'निब्र्वत्ति पन्जायस्स बहष्णिया भोगाहणा दीसइ ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहमाका विकल्प चलता रहता है। वह कितने माबसे ? इसप्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि सूक्ष्म पृथिवीकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके एक कम पत्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरिणत पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे हीन उसके ऊपर वृद्धि होने तक । उस समय बादर वायुकायिक (४४) निवृतिपर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण बारसण्हं मंज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तदनंतरोगाहणं प्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडियमेत्तं तदुवर वड्ढिदो त्ति । तादे बादर-वाउकाइयणिव्वत्ति-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहरणा दोसइ ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके प्रसंख्यातवें भागसे खण्डित माष इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है । तब बादर वायुकायिक (४५) निवृत्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण एक्कारसहं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तदनंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जवि-भागेण खंडिदेग-खंडं तदुवरि वड़्ढिदो त्ति । तादे बावरवाउकाइय-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदुबर तस्स ओगाहण-वियप्पा णत्थि, सब्बुक्कस्सं पत्तत्तादो ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है, जब तक तदनन्तर अवगाहना प्रावली के असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है। तब बादर वायुकायिक (४६) निर्वृत्ति- पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर- कमेण दसम्हं जीवाणं प्रोग्ग-प्रसंखेज्ज -पदेसं बडिवो त्ति । तादे बाबर जहण्णोगाहरणा दोसइ ॥
मज्झिमोगाहरण- वियप्पं बच्चदि तप्पातेउकाइय रिगव्वत्ति प्रपज्जत्रायस्स
श्रयं - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर तेजस्कायिक (४७) - निवृ स्थपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुसर कमेण एक्कारसण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्गअसंखेज्जदि-पवेसं बड्ढिदो' त्ति । तादे बादर-तेउकाइय-लद्धि-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जोवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य प्रसंख्पात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब वादर तेजस्कायिक ( ४८ ) - लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण दसण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चदि बाबर-बाउकाइयरिगवत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं रूऊण-पलिदोवमस्स असंखेज्जदि-भागेण गुरिणय पुणो तप्पाओग्ग- असंखेज्ज- पदेस-परिहीणं तदुवरि बढिदो त्ति । ताबे बादर-तेउकाइयणिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोनर क्रम दम जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर वायुकायिक नित्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पत्योपम असंख्यातवें भागने गुरणा करके पुनः इसके योग्य प्रख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि होती है । तब बादर-तेजस्कायिक (४९) निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेरण एक्कारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणा प्रावलियाए असंखेज्जदि-भागेण खंडिय तत्थेग-खंड तदुवरि वढिदो त्ति । तादे बादर तेउकाइय-णिव्वत्ति अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे ग्यारह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक - चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमें से एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि न हो जावे । तब बादर-तेजस्कायिक (५०) निर्वृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
१. द. ब. वडिदि ।
पंचम महाहियारो
तदो पदेसुत्तर- कमेरण बसण्हं जीवारगं मक्किमोगाहरण वियप्पं वच्चवि तबणंतरोगाहणं श्रावलियाए असंखेन्जवि-भागेण खंडिय तवेगभागं तदुबर बड़वो सि । तादे' बादर-तेउकाइय-रिगव्वत्ति-पउजरायस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । [ तदुबरि तस्स श्रोगाहण वियप्पं गत्थि, उदकस्सोगाहणं पत्तशादी । ]
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाको प्रावलीके असख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमें से एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि हो चुकती है। तब बादर तेजस्कायिक (५१) निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। [ इसके भागे उसकी अवगाहनाके विकल्प नहीं हैं, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त कर चुका है । ]
तदो पदेसुसर कमेण गवण्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्गअसंखेज्जपदेस-वड्ढिदो शि। तादे बाबर-प्राउकाइयरिणव्वसि-अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं दोसइ ।।
मर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर-कमसे नौ जीवोंकी मध्यम प्रवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है। इस समय बादर जलकायिक ( ५२ ) निव त्य पर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर कमेरण बसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहरण- वियप्पं गच्छवि तप्पाप्रोग्ग असंखेज्ज-पदेस वड़िढदो सि । तावे बादर ग्राउ-लखि-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर - जलकायिक ( ५३ ) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तरकमेण रणवण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं गच्छवि रुऊण-पलिबोवमस्स असंखेज्जवि- भागेण गुणिवतेउकाइय-णिब्वति पज्जरायस्स उक्कस्सोगाहणं पुरषो तप्पाओग्ग-प्रसंखेज्ज -पवेस-परिहोणं तदुवरि वढिदो सि । ताबे बावर-भाउकाइयनिव्वति -पज्जत्तयस्स जहष्णोगाहणा दोसइ ।
१. द. ब. क. ज. तवे ।
२. द. ब. परजसयस्स ।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीबोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरिगत तेजस्कायिक निर्वृत्ति-पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे होन इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती । तब बादर जलकाधिक (५४) निवृत्ति पर्याप्त की जघन्य अवगाह्ना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण दसहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चवि तदणंतरोगाहणं श्रावलियाए असंखेज्जद-भागेरस खंडिय तत्थेग खंड तदुवरि वड़्ढिदो ति। तादे बादरआउकाइय-णिवत्त-अपज्जत्त यस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना श्रावलीके असंख्यात भागसे खण्डित करके उसमें से एक खण्ड प्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती । तब बादर जलकायिक (५५) निर्वृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण गवण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्प वच्चदि तदरणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेज्जदि भागेरग खंडिवेग-खंडं तदुवरि बडिवो त्ति। तादे बादर ग्राउकाइय णिव्वत्ति पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ । तदोवरि जत्थि एदस्स श्रोगाहण- वियप्प ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके प्रसंख्यातवें भागसे खण्डित एक भाग प्रमाण इसके ऊपर नहीं बढ़ जाती । तब बादर जलकायिक ( ५६ ) निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। इसके आगे उसकी अवगाहनाके विकल्प नहीं हैं ।
तदो पदेसुत्तर कमेण श्रृटुण्हं मज्झिमोगाहण वियप्प बच्चवि तप्पाप्रोग्गअसंखेज्ज -पदेसं वड्ढदो' त्ति । तादे बादर-पुढविकाइय-णिव्वत्ति-अपज्जत्तयस्स जहण्णो गाहणा दीसइ
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर पृथिवीकायिक (५७) निवं त्यपर्याप्तक की जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
१. द. ब. क. ज. वड्ढिदि ।
तदो पवेसुत्तर कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्प बच्चदि तप्पाम्रोग्गप्रसंखेज्ज-पदेसं वढिदो त्ति । ताबे बाबर- पुढविकाइय-लद्धि-अपज्जत्तयस्त उक्कस्सोगाहणा बीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर पृथिवी कायिक ( ५८ ) लब्ध्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर कमेण श्रहं मज्झिमोगाहण वियप्प वच्चदि। बादर आउकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उपकस्सोगाहणं रुऊण-पलिदोवमस्स प्रसंखेज्जवि भागेण गुणिवमेत्तं तप्पाप्रोग्ग असंखेज्ज पदेसं परिहीषं तदुवरि वड़िढदो सि । ताबे बादर पुढविकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्त यस्स जहण्णोगाहणं दोसइ ।।
अर्थ --- तत्पश्वात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवों की मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर जलकायिक- निर्वृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पत्योपम के असंख्यातवें भागसे गुरिगतमात्र उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि होती है । तब बादर पृथिवीकायिक (५९) निर्वृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर- कमेरण णवण्हं मज्झिमोगाहण - वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहणं प्रावलियाए असंखेजजदि-भागेण खंडिय तत्थेग-खंडं तदुवरि वडि ढदो ति। तादे बादरपुढवि-णिव्वत्ति-प्रपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहण दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है, जब तक तदनन्तर अवगाहना प्रवलीके असख्यातवें भागसे खण्डित कर एक भाग प्रमाण उसक ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब बादर पृथिवी कायिक (६०) - निवृत्ति अपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पवेसुत्तर- कमेण अटुण्हं मज्झिमोगाहरण-बियप्पं वच्चवि तदणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेज्जवि - भागेरण- खंडिदेग-खंड' तबुवरि बड़ि डदो त्ति । तावे बाबर पुढवि काइय-णिव्वत्ति पञ्जत्तयस्त उक्कस्सोगाहणं दोसइ ।।
श्रम - तब प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जोवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर भवगाहना प्रावलीके प्रसंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण
उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती। तब बादर पृथिवी कायिक (६१) निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर- कमेण सत्तहं मज्झिमोगाहरण वियप्प बच्चदि तप्पाश्रोग्ग• प्रसंखेज्ज-पदेसं वडि ढदो सि । तादे बादर-णिगोद-णिव्वत्ति-प्रपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर-निगोद (६२) निर्वृ त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाह्ना दिखती है ।
तदो पवेसुत्तर कमेण अट्टण्हं मज्झिमोगाहरण - वियप्प वच्चदि तप्पाप्रोग्गअसंखेज्ज- पदेस वडि ढदो त्ति । तादे बादर-णिगोद-लद्धि-प्रपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम श्रवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर निगोद (६३) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुसर कमेण सत्तण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्प बच्चदि रूऊण पलिदोवमस्स असंखेज्जबि-भागेण गुणिद-वादर-पुढविकाइय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं पुणो तप्पाश्रोग्ग असंखेज्ज- पदेस-परिहोणं तदुवरि वड़िढदो त्ति । तादे बादर गिगोदनिव्वत्ति-पज्जतयस्स जहष्णोगाहणा दीसइ ॥
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक एक कम पत्योपम असंख्यातवे भागसे गुरिगत बादर- पृथिवी कायिक- निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उसके योग्य असंख्यात प्रदशोंसे हीन होकर इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती । तब बादर निगोद (६४) - निवृत्ति- पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर कमेण प्रटुण्हं मज्झिमोगाहण-बियप्पं गच्छदि तवणंतरोगाहणं पावलियाए असंखेज्जदि भागेण खंडिबेगखंडं तदुबरि बढदो त्ति । तादे बाबरनिगोव-णिब्बत्ति श्रपज्जतयस्स उबकस्सोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है। जब तदनन्तर अवगाहना प्रावलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो जाती है तब बादर-निगोद (६५) नित्यपर्याप्तकको उत्कृष्ट प्रवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेरग सत्तण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहणं आवलियाए प्रसंखेन्जवि-भागेण खंडिय तत्थेग-खंड तबुवरि बडि ढदो सितादे बाहर रिगगोद-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दोसइ ।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम प्रवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके प्रसंख्यातवें भाग से खण्डित कर उसमें से एक भाग प्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो जाये । तब बादर - निगोद (६६) निवृत्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट श्रवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर कमेण छण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तप्पाम्रोग्ग-असंखेज्जपदेसं वड़िढदो सि । तावे बाबर-णिगोद-पविट्टिद-णिवत्त-अपज्जत्तयस्स जहण्योगाहणं दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उमक योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर-निगोद (६७) प्रतिष्ठित निर्वृ स्वपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर कमेण सत्तण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्प वच्चदि तप्पाग्रोग्गअसंखेज्ज -पदेसं वड्ढदो सि । तादे बादर-णिगोद-पविद्विद-लद्धि-अपज्जत यस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ- तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादर-निगोद (६८) प्रतिष्ठित लब्ध्य पर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तवो पदेसुत्तर कमेण छण्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं बच्चवि बादर-णिगोदणिव्वत्ति-पज्जत-उक्कस्सोगाहणं रुऊण-पलिदोवमस्स असंखेज्जदि- भागेरण गुणिय पुनो तप्पाश्रोग्ग-असंखेज्ज-पदेसेणूणं तदुवरि बड्डियो त्ति । ताबे बादर-णिगोद-पविद्विवपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक बादर-निगोद - निवृत्ति पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना एक कम पत्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरिणत होकर पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती है । तब बादर निगोद ( ६९ ) प्रतिष्ठित निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तबो पबेसुत्तर- कमेण सत्तहं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तबरगंतरोगाहरणं ग्रावलियाए असंखेन्जवि-भागेण खंडिदेग-खंड तदुबर वड्ढदो त्ति । ताबे बादर-णिगोवपदिट्ठिद-णिव्बत्ति-अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा बीसइ ।।
अर्थ - पश्चात प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यात भागसे खण्डित करनेपर एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो चुकती । तब बादरनिगोद (७०) प्रतिष्ठित निर्वृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट प्रवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर कमेण छण्हं मज्झिमोगाहण बियप्पं बच्चवि तदनंतरोगाहणं प्रावलियाए असंखेज्जवि-भागेण खंडिय तत्थेग खंडं तदुवरि वड्ढदो सि । तावे बावर णिगोद-पदिट्ठिद-णिष्वत्ति-पज्जत्तयस्स उषकस्सोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर उसमें से एक भाग प्रमारण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो जाती । तब बादरनिगोद (७१) प्रतिष्ठित निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पवेसुत्तर कर्मण पंचम्हं जोवाणं मज्झिमोगाहण-वियष्णं वच्चबि तप्पाश्रोग्ग- असंखेज्ज- पदेसं वढिदो ति । तादे बादर-वणप्फदिकाइय-पत्त यसरीर-णिठवत्तिश्रपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
मर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर- कमसे पाँच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक (७२) - प्रत्येकशरीरनिवृत्त्य पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण छण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्ग-असंखेज्जपवेसं वढिदो त्ति । तादे बादरवण फदिकाइय-पोयसरीर-लद्धि-अपज्जत्तय स्स-उक्कस्सोगाहणा बीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर कमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य - संख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक (७३) प्रत्येकशरीर लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
सदो पदेसुतर कमेण पंचण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण- वियप्पं वञ्चदि रुऊणपलिदोबमस्स असंखेज्जदि भागेरण गुरिलव बादर-णिगोद-पदिदि-णिग्वत्ति-पज्जतयस्स
उक्कस्सोगाहणं पुणो तप्पाश्रोग्ग-प्रसंखेज्ज-पदेस-परिहोणं तदुवरि वढियो त्ति । तादे बादर-वणप्फदिकाइय-पत्तेयसरीर-णिव्वत्ति-पक्जतयस्स जहण्णोगाहणं बीसइ ।।
अर्थ-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रम से पाँच जीवोंकी मध्यम प्रवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर-निगोद-प्रतिष्ठित निव त्ति पर्याप्तकको उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरगा करके पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि नहीं हो जाती । तब बादर- वनस्पतिकायिक (७४) प्रत्येकशरीर निवृत्ति पर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है।
तदो पदेसुत्तर- कमेरण छण्हं जोवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तप्पाप्रोग्यअसंखेज्ज- पदेसं बढिदो त्ति । तादे बोइंदिय लढि प्रपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दोसइ ।।
अथ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशों की वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब दो-इन्द्रिय ( ७५ ) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पवेसुत्तर- कमेण पंचण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तप्पाओग्यप्रसंखेज्ज-पदेसं वड्ढदो त्ति । तादे तीइंदिय-लद्धि-प्रपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पाँच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब तीन-इन्द्रिय ( ७६ ) लब्ध्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पबेसुत्तर कमेण चउन्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तप्पाओग्गप्रसंखेज्ज -पदेसं वड्ढिदो त्ति । तादे चरिदिय-लद्धि-प्रपज्जतयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेशोंको वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब चार इन्द्रिय ( ७७ ) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पवेसुत्सर कमेण तिन्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं बच्चदि तप्पाप्रोग्गप्रसंखेज्ज -पवे' वड्ढदो त्ति । ताई पंचिविय लद्धि अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा
१. द. ब. पदेस सर्वाढिदो ।
बोसइ तबो एबमवि घणंगुलस्स असंखेज्जदि भागो । एतो उबरि पोगाहणा घणंगुलस्स संखेज्ज - भागो कस्थ यि घणंगुलो, कत्थ वि संखेज्ज घणंगुलो ति घेत्तभ्वं ॥
मयं - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे तीन जीवोंको मध्यम प्रवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब पंचेन्द्रिय ( ७८ ) लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । तब यह भी घनांगुलके असंख्यातवें भागसे है। इससे आगे अवगाहना घनांगुलके संख्यातवें भाग, कहीं पर घनांगुल प्रमाण घोर कहींपर संख्यात घनांगुल प्रमाण ग्रहण करनी चाहिए ।।
तदो पबेसुत्तर कमेण दोन्हं मज्झिमोगाहण वियप्पं वच्चदि तप्पाप्रोग्गप्रसंखेज्ज-पदेस वडिढदो त्ति । तादे तीइंदिय णिव्वत्ति अपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ-तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब तीनइन्द्रिय (७९) इन्द्रिय नित्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पबेसुत्तर-कमेण तिन्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चवि तप्पाश्रोग्ग-प्रसंखेज्जपढेसं बढदो त्ति । तादे चरिदिय-णिण्वत्ति-प्रपज्जत्तयस्स जहण्गोगाहणा बीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे तीन जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है । तब चार इन्द्रिय ( ८० ) निवृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य प्रवगाहना दिखती है ।।
१. द ६. असंखेयदिभागेण ।
तदो पदेसुत्तर - कमेण चउन्हं मज्झिमोगाहण - वियप्पं वच्चदि तप्पाश्रोग्गप्रसंखेज्जपवेसं बढदो सि । तावे बोइं दिय- रिगव्वसि-प्रपज्जतयस्स जहण्णोगाहरणा बीसइ ॥
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे चार जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य ७. संख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है। तब दो इन्द्रिय (८१) निवृ त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पबेसुत्तर कमेण पंचण्हं मज्झिमोगाहण- वियप्पं बच्चदि तप्पाम्रोग्गअसंखेज्ज-पदेसं बड्ढिदो त्ति । तादे पंचेंदिय-णिव्वस प्रवज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात प्रदेशोत्तर क्रमसे पाँच जीबोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता है। तब पंचेन्द्रिय (= २) निवृ स्थपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है।
तदो पदेसुलर कमेण छण्णं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वञ्चदि तप्पाओग्ग-प्रसंखेज्ज पवेसं वढिदो त्ति । तादे बोई दिय निव्वत्ति-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा बीसइ ।।
अर्थ - तत्पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य प्रसंख्यात प्रदेशोंको वृद्धि होने तक चलता है । तब दो इन्द्रिय ( ८३ ) निवृत्ति पर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है।
ताव एवारणं गुणगार-रूवं विचारेमो बादर-वण फदिकाइय-पत्तेयसरीर-णिव्वतिपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहण-पहदि बोई विय-णिववत्ति-पज्जत-जहण्णोगाहणमवसाणं जाव एवम्मि अंतराले' जादाणं सव्वाणं मिलिदे कित्तिया इदि उत्ते बादर-वणप्फविकाइयपत्तेयसरीर-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स जहण्णगोगाहणं रुऊरण- पलिदोबमस्स असंखेज्जदि-भागेण गुणिवमेत्तं तदुवरि वढिदो त्ति घेत्तव्वं । तदो पदेसुत्तर- कमेण सत्तण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंत रोगाहणं तप्पाग्रोग्ग संखेज्ज-गुणं पत्तो त्ति । तादे तोइ दिय-णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स सव्व जहण्णोगाहणा दीसइ ।।
अर्थ- अब इनको गुणकार संख्याका विचार करते हैं - बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर निवृत्त्यपर्याप्तकको जघन्य अवगाहनाको लेकर दोइन्द्रिय निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना तक इनके अन्तरालमें उत्पन्न सबके सम्मिलित करनेपर 'कितनी है' इसप्रकार पूछने पर बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाको एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुरणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतनी इसके ऊपर वृद्धि होती है, इसप्रकार ग्रहण करना चाहिए । पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना उसके योग्य संख्यातगुणी प्राप्त न हो जावे। तब तीन इन्द्रिय (८४) निवृत्ति - पर्याप्तकको सर्वं जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
१. द. ब. क. ज. अन्तरालो ।
तदो पदेसुत्तर- कमेण प्रदुहं श्रोगाहण-वियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहण - वियप्पं तप्पाश्रोग्ग-संखेज्ज गुणं पत्तो' ति । तादे चरिंदिय- निव्दत्ति पज्जायस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना विकल्प उसके योग्य संख्यात गुरणा प्राप्त न हो जावे। तब चार इन्द्रिय (८५) निवृत्ति पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तर कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो त्ति । तादे पंचेंदिय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब पंचेन्द्रिय ( ८६ ) निवृत्ति पर्याप्तकको जघन्य अवगाहना दिखती है ।
तदो पदेसुत्तरकमेरण दसण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवरणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो त्ति । तादे तोइ दिय- णिव्वत्ति- अपज्जत्तयस्स उषकस्सोगाहणं
दीसह ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यातगुरणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब तीनइन्द्रिय ( ८७ ) निवृत्त्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट प्रवगाहना दिखती है ।
तवो पवेसुत्तर- कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वञ्चवि तदरगंतरोगाहणं संखेज्ज गुणं पत्तो त्ति । तादे चरिदिय जिव्वत्ति श्रपज्जत्तयस्स उबकस्सोगाहणं
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नो जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता है। तब चारइन्द्रिय (८८) निवृत्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट प्रवगाहना दिखती है ।
तदो पवेसुशर कमेण ग्रट्ठण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्प बच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेज्ज गुणं पत्तोत्ति । ताबे बोइ दिय- निव्वत्ति अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं
१. प. ब. क. ज. पज्जतो ।
अर्थपश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे आठ जीवोंको मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना संख्यात- गुरगी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब दोइन्द्रिय (८९) निर्वृ स्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर- कमेण सतण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्प बच्चदि तवरगंतरोगाहणं संखेज्ज- गुण पत्तो त्ति । तादे बादर बरणप्फदिकाइय-पत्तेयसरीर-णिवत्ति-प्रपज्जत्तयस्स' उक्कस्सोगाहरणा दोसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे सात जीबोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहना के संख्यातगुरणी प्राप्त होने तक चलता है। तब बादर-वनस्पतिकायिक (९०) प्रत्येकशरीर निर्वृ त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।
तदो पवेसुत्तर- कमेण छण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चवि तदनंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो त्ति । तादे पंचेंदिय-णिव्वत्ति-अपज्जत्त यस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ ।।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यात- गुरगी प्राप्त होने तक चलता है । तब पंचेन्द्रिय (९१) निर्व पर्याप्तककी उत्कृष्ट गह दिखती है ।
त्रीन्द्रिय जीव (गोम्ही) की उत्कृष्ट अवगाहना -
तदो पदेसुत्तर- कमेरग पंचण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चदि तदरगंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो सि । [तादे तोइंदिय-णिव्वत्ति-पज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणं दीसइ । ] तं कस्स होदि त्ति भणिदे तोइ बियस्स-णिव्वत्चि-पज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा वट्टमाणस्स सयंपहाचल-परभाग-ट्ठिय खेत्ते उप्पण्ण-गोहीए उक्कस्सोगाहणं कस्सइ जोवस्स बीसइ । तं केत्तिया इदि उत्ते उस्सेह-जोयणस्स तिण्णि-चउबभागो श्रायामो 'तदट्ठ-भागो विषत्वंभो विवखंभE - बहलं । एदे तिष्णि वि परोप्परं गुणिय पमाण-घणंगुले कदे "एक्क-कोडिउरगवोस-लक्ख'-तेदाल-सहस्स-णव-सय-छत्तीस रुवेहि गुरिगद घणंगुला होति । ६ ।
अर्थ - पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे पाँच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यात- गुरणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । [ तब तीनइन्द्रिय (९२) निवृत्ति१. द. ब. पज्जलयस्त । २. द. ब. क. ज. पंतं उक्कस्स । ३. द. ब. क. ज. तदवभागे । ४. व. ब. क. विक्खंभद्द । ४. द. क. एक्कक्कादीए, ब. एक्केकोडोए, ज. एक्कोकोडी । ६. द. ब. लक्खा । |
7c62a33cab13fc5db50db7277981bd099bf8366621cbe4aa9dcf9573cb5e6b7c | pdf | हैं आप; समय है आठ बजेके आसपासका और याद कर रहे हैं बारह बजेकी - तो भी योगयुक्त नहीं हैं। और बैठे हैं यहाँ, और याद कर रहे हैं श्रीमतीजीकी-तो भी योगयुक्त नहीं हैं। योगयुक्तका अर्थ है- कि सावधान होकरके, पूरे मनोयोगके साथ अपने प्राप्त कर्तव्यका अनुष्ठान करते जाना।
राम भजे जा काम किये
कालू ते
तो बोले- भाई !
जा ।
तस्मात् सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ।
सर्वेषु कालेषु - सब समयमें सावधान, सावधान ! सोनेमें भी सावधान, जागनेमें भी सावधान। सवेरे उठनेमें भी सावधान । शास्त्रमें ऐसे लिखा है - कि नींद टूटते ही पहले किसकी याद करना? बोले- भगवान्की याद करना । धरती पर पाँव रखना, तो कहना - तुम हमारी माँ हो । भगवान्का स्मरण करना, गुरुका स्मरण करना । मांगलिक वस्तुका दर्शन करना - माने अपना सारा दिन मंगलमय काममें व्यतीत करना है। अपने आपको कहीं ऐसी जगह बाँधके रख दिया - कि बस, रोवो, रोवो! हर बातमेंसे दुःख निकाल बैठना; यह कोई जिन्दगीका सार नहीं है; यह जिन्दगीका रहस्य नहीं है। हर जगह अनुकूल भाव होना चाहिए ना। भावकी अनुकूलता हृदयमें आनी चाहिए।
योगयुक्त - शंकराचार्य भगवान्ने योगयुक्तका अर्थ समाहित' लिखा है। शंकराचार्य भगवान्का जो भाष्य है ना, तत्काल अविद्या - निवर्तक भाष्य है । वह श्रवण - रूप भाष्य है। मधुसूदनीको मनन बोलते हैं; शंकरानन्दीको निदिध्यासन बोलते हैं। श्रीरामानुजाचार्य ने बतायाअर्चिरादिगतिचिन्तनाक्ष्य योगयुक्तो भव ।
तो फिर सर्वेषु कालेषु नहीं बनेगा । कहते हैं- कि अर्चिमार्ग ऐसा, पितृयान मार्ग ऐसा, देवयान मार्ग ऐसा- इसका निरन्तर चिन्तन करना - ऐसा 'योगयुक्त 'का अर्थ है । और शंकराचार्यने कहा - कि हर समय अपने चित्तको समाहित रखो । आप देखो! दोनोंमें जो फर्क है, वह आपकी बुद्धिमें स्वयं आ जायेगा । देवयान और पितृयान मार्गका निरन्तर चिन्तन कोई मनुष्य काहेको करेगा ?
तो जो काम करना हो, वह सावधान होकरके करो। ऐसा करनेसे क्या होगा? बोले- मोह नहीं होगा। योगयुक्तका अर्थ भक्तलोग करते हैं - कि मद्योगयुक्तोभव- ईश्वरका स्मरण रखो। एक बात आपको यह अक्षरब्रह्म योग
सुनावें, कि यह जो हमारे शास्त्रों में आता है कि हर समय योगयुक्त रहना, इसका यह मतलब नहीं है कि सामनेसे नजर हटाके सातवें आसमानमें नजर ले जाना।
जाके पिया परदेश बसत हैं, लिख लिख भेजत पाती ।
मोरे पिया मोरे हृदय बसत हैं, रोल करूँ दिन राती ॥
तो देखो, ईश्वर सम्पूर्ण जगत्का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है - यदि यह बात पहचान लो, या यह मानो - कि वह विवर्ती अभिन्न निमित्तोपादान कारण है; चाहे वैष्णव मतको स्वीकार करो, चाहे शांकर मतको; एक एक पत्ता, एक-एक तृण, एक-एक कण, एक- एक स्त्री, एक - एक पुरुष उसी ईश्वरसे बने हुए हैं, सबके भीतर चैतन्यके रूपमें ईश्वर है, और सबके शरीरोंका मसाला भी ईश्वर है. यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् - तो जो चीज हर जगह, हर रूपमें और हर समय मौजूद है, उसका स्मरण करनेके लिए सातवें आसमानकी ओर देखनेकी कोई जरुरत है ? वह तोजँह जँह
जो जो
चलौं सोइ परिकरमा करौं सो पूजा।
हर जगह ईश्वर दिखेगा तो योगयुक्तका अर्थ हुआ - जो भी काम करो, जिससे भी मिलो, जो भी देखो, उसमें ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किं च जगत्यां जगत्सम्पूर्ण जगत्में ईश्वर दिखे। अगर जानते हो, तब तो ईश्वर दिखेगा हर जगह, और नहीं जानते हो, तो ईश्वरसे आवासित कर दो । कम-से-कम यह निश्चय तो दृढ़ हो जाए- कि हमारा सारा व्यवहार ईश्वरमें ही हो रहा है ! तो -
वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्बोले, भाई! वेदका स्वाध्याय करो । पुण्य है; क्या पूछना ! क्योंकि वेद अपौरुषेय वाणी है। रघुवंश पढ़ते हैं, तो कालिदास उसके कर्ताके रूपमें हमारी बुद्धिमें आरूढ़ हो जाता है । और जब कर्ता बनके बैठ गया हमारे दिलमें, तो जो परमात्माका अकर्ता शुद्ध स्वरूप है- उसको वह कैसे दिखावेगा? अपौरुषेयका बहुत बड़ा अर्थ है । वह ज्ञान - जो विषयको 'इदं' और जाननेवालेको 'अहं'दो रूपोंमें बाँट देता है - सच्चा ज्ञान नहीं है। ज्ञानमें दो विवर्त होते हैं - यह घड़ी है - यह तो इदं हुआ, और - मैं घड़ीको जानता हूँ - यह अहं - मैं हुआ । ये दोनों ज्ञानके बच्चे हैं। इन दोनोंकी लड़ी जोड़नेवाला, कड़ी जोड़नेवाला ज्ञान । तो ज्ञान तीन टुकड़े- ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान - बन करके, तिकड़े-तिकड़े
बन करके जाना गया । तो ज्ञान कौन है ? किं वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् । वेदको अपौरुषेय क्यों बोलते हैं ? कि यह उस ज्ञानका स्वरूप बताता है, जिसमें ज्ञेय इदं रूपसे उपस्थित नहीं होता, और ज्ञाता अहं रूपसे उपस्थित नहीं होता। ज्ञानके अनन्त अखण्ड समुद्रमें डूब करके ज्ञाता और ज्ञेय - दोनों चकनाचूर हो जाते हैं। ऐसे ज्ञानके स्वरूपका निरूपण करता है वेद; इसलिए उसमें पुरुषकी उपस्थिति नहीं होती । पुरुषकी उपस्थिति नहीं होनेसे ज्ञाता और ज्ञानके भेदसे रहित है यह ज्ञान, इसलिए उसे अपौरुषेय ज्ञान बोलते हैं। नहीं तो क्या होता है? कोई योगी, कोई गुरु, कोई ज्ञानी, कोई सम्प्रदायाचार्य अपनेको बीचमें लाके खड़ा कर देगा; और ज्ञान तो पड़ जायेगा पीछे, और वह आचार्य आगे आ जायेगा । वेदान्तको हम इसलिए स्वीकार नहीं करते - कि उन्होंने वेदान्त कहा है। अद्वैत ब्रह्मका निरूपण करनेके कारण शंकराचार्य प्रामाणिक हैं; शंकराचार्यके द्वारा निरूपित होनेके कारण अद्वैत वेदान्त प्रामाणिक नहीं है । वस्तुकी प्रधानतासे वेदान्त है, व्यक्तिकी प्रधानतासे नहीं। इसीलिए वेद-उपनिषद् ऐसे ज्ञानवादी माने जाते हैं ! उनका नाम ब्रह्मविद्या है। इसलिए उनका नाम ब्रह्मविद्या है, कि वे पुरुषके अन्तःकरणसेजिसमें भ्रम, प्रमाद, विप्रलिप्सा, करणापारव आदि दोष होते हैं - निकले हुए नहीं है। तो वेदसे पवित्र और कोई भी ज्ञान नहीं है, क्योंकि वह व्यक्तिकी स्थापना नहीं करता है। ये पट्टे जितने सम्प्रदाय और सम्प्रदायवाले हैं, वे एक आदमीको सिर पर बैठा देते हैं; और वेद जो हैं, वह आदमीको सिरपर नहीं बैठाता - बल्कि अपने व्यक्तिको भी चूर-चूर कर अद्वैत ब्रह्मकर देता है। इसलिए वेदसे पवित्र दूसरी कोई वस्तु नहीं है ।
यज्ञेषु - अब वेदने बताया यज्ञ । यज्ञमें भी बड़ी विलक्षणता है। उससे क्या होता है ? बोले- अन्तःकरणकी शुद्धि । सोद्देश्य जब द्रव्यका त्याग होता है - उसको यज्ञ कहते हैं । उद्देश्य है - देवताके लिए हवि-त्याग । अब ये देवता भी वेदके मन्त्रसे बनते हैं, पैदा होते हैं । वेदका सिद्धान्त विचित्र है; देवता विग्रहअधिकरण है पूर्व-मीमांसा - बड़ा भारी विचार है। आजकल तो शाबर भाष्यको भी मीमांसक लोग भी नहीं मानते हैं। ऐसा विचित्र निरूपण है। देवता विग्रहवती होती है कि नहीं; देवताकी मूर्ति होती है कि नहीं - यह इस पर विचार है । तो पूर्व मीमांसाके मूलमें- शाबर भाष्यमें यह विचार किया गया है, कि देवताके विग्रह होता नहीं; मूर्ति होती नहीं । तब क्या होता है ? कि जब हम
मन्त्र पढ़ते हैं ना, तो उस मन्त्रकी शक्तिसे देवता उत्पन्न होता है। जैसे एक साथ हजार कुण्डमें यज्ञ किया जाय, हवन किया जाय, और वज्रहस्त पुरंदरः । इन्द्राय स्वाहा करके हवन किया जाय, तो हजार यज्ञमें हजार इन्द्र पैदा होंगे, और युगपत् आहुतिको ग्रहण करेंगे । मन्त्र-शक्तिसे प्रकट होता है इन्द्र; इन्द्र नामका मूर्तिमान कोई पदार्थ नहीं है। इसके बादके जो व्याख्याता लोग हैं ना पूर्वमीमांसाके; खण्डदेवने तो तो लिखा है- कि ऐसी बात करनेमें हमारी जीभ शर्माती है - जिह्रति जिह्वा - जिह्वा हमारी लज्जित होती है। जो बात शाबर भाष्यमें लिखी है, वह हम कैसे बोलें !
तो यज्ञमें कितना आत्म-सामर्थ्य है ! नवीन देवता, नीवन लोक ! यज्ञके द्वारा नवीन स्वर्गका निर्माण कर सकता है मनुष्य ! यज्ञके द्वारा नवीन देवताका निर्माण कर सकता है। अपने सामर्थ्य, अपने ऐश्वर्य, अपने प्रभावका अनुभव करनेके लिए यज्ञ है।
तपःसु चैव - और आत्म-संयम ! भोग और भोग-क्रियाको काबू में कर लेना बड़ा पुण्य है । और दानेषु - जो द्रव्य इकट्ठे किये गये हैं ना - दूषित; उनके साथ ममता करनेसे भी मनुष्य दूषित हो जाता है । यह बेईमानीके साथ कमाया हुआ जो धन है, उसको मेरा समझने वाला भी बेईमान हो जाता है। लोग कहते हैं - ईश्वर हमारे अब तक क्यों नहीं आया है ? बाले - कि हमने बेईमानीसे एक करोड़ रुपया कमाया, और उसमेंसे पचास लाख दान कर दिया। अब भी ईश्वर नहीं आया ! बोले- अभी पचास लाख है तुम्हारे पास बेईमानीका । बेईमानीमें आधेमें ईश्वरको खरीद लें, और आधा अपने पास रखें - ऐसा लोग सोचते हैं । अरे भाई, कुछ परिश्रम करो । सचमुच तुम्हारे स्वत्वकी कोई चीज होवे ! वह अगर दान करो - देखो! क्या पुण्य होता है । वैसे तो जो चीज जुड़ गयी है अपने साथ अच्छी-बुरी, सब द्रव्यको छोड़ देना- यह पवित्रताका आपादक है, क्योंकि दुर्भाव जो मनमें है - वह इससे निकलता है। तो दानमें बाहरकी वस्तुएँ छोड़ी जाती हैं, और तपस्यामें भोग और इन्द्रियका संयम करके अन्तःकरणको शुद्ध किया जाता है। यज्ञसे अपने सामर्थ्यका अनुभव किया जाता है, और वेदमें परमात्माको-धर्मको जाना जाता है। अपौरुषेय ज्ञान है । तो ज्ञात दानके लिए वेद, वैभवके अनुभवके लिए यज्ञ, और अपने संयम सामर्थ्यको - कि इन सब चीजोंके बिना भी हम रह सकते हैं - इसका अनुभव करनेके लिए तपस्या और यह जो अंट-शंट अपने पास जुड़ गया है, जिन पर अपना कोई स्वत्व नहीं,
जिनपर अपना कोई ममत्व नहीं, ऐसी चीजें अपनी जिन्दगीमें आ गयी हैंइनको छोड़ देना - दान। इनसे पुण्य फलकी प्राप्ति होती है। लेकिन यह प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग यदि जान जाओ ना - तो महापुरुषकी प्राप्ति हो जायेगी ।
अत्येति तत् - वह महापुरुष, वह ध्यानगम्य परम- पुरुष, वह सत्पुरुषउसकी प्राप्ति हो जाय, तो तत्सर्वं । अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा - यह जो मार्ग-द्वय - है, ये जो दोनों मार्ग हैं - इनको जान करके, अथवा आठवें अध्यायमें जिस प्रतिपाद्य वस्तुका वर्णन किया गया है - उसको जान करके - किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम। ये जो सात अथवा आठ अथवा दस प्रश्न जो किये गये, उनके उत्तरका जो विवेचन है - उसको ठीक-ठीक जान जाए, तो तत्सर्वं अत्येति - उस सबका अतिक्रमण कर जाता ।
तमेव विदित्वा - अतिक्रमण कर जाता है, क्योंकि सर्वकर्म-संस्काराणां भगवत्स्मृत्या विफलीकरणात्-भगवान्का जब स्मरण होता है, परमपुरुषका जब स्मरण होता है, तो सब कर्म, और कर्मोंके संस्कार जो हैं - वे सब के सब विफल हो जाते हैं। तो,
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा - इसको जानो, केवल इसको समझो। इसमें ज्ञानका माहात्म्य बताया । यह एक प्रकारकी विज्ञापनकी पद्धति है। क्या ? कि भाई, वेद पढ़ो, क्योंकि उसमें बड़ा पुण्य है। यज्ञ करो - कि इसमें बड़ा पुण्य है । तपस्या करो; उसमें बड़ा पुण्य है । दान करो - उसमें बड़ा पुण्य है। हाँ, पुण्य तो है ही! इसमें कोई बात नहीं । ये जो दो सृति बताई - देवयान और पितृयान; यह अर्चिरादि मार्ग और धूमादि मार्ग जो बताया- इन दोनोंको जाननेसे क्या लाभ होगा? कि जाननेसे भगवान्का स्मरण होगा, और भगवान्का स्मरण होनेसे कर्मके जो संस्कार बैठे हुए हैं हृदयमें, वे सब के सब धुल जायेंगे ।
योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम् - और फिर इस योगीको परम स्थान परमात्माकी प्राप्ति, परम पुरुषकी प्राप्ति होगी, और आदिस्थानकी प्राप्ति होगी। परमं स्थानं। और वह कैसा? कि आद्यम् - आदौ भवं । आद्य माने - जो शुरू शुरूमें है । सबके प्रारम्भमें जो स्थान है - उस स्थानकी प्राप्ति हो जाती है इस अध्यायके स्वाध्यायसे ।
अब आपको एक बात सुनाते हैं इस अध्यायके सम्बन्धमें। आठवें अध्यायका श्रवण करनेसे बड़ा भारी आनन्द होता है । बोले- दक्षिणापथमें एक आमर्दक नामका पुर है। वहाँ भवशर्मा नामके एक बड़े दुराचारी ब्राह्मण थे । वेश्या
उनके पास, माँस उनके पास, शराब उनके पास ! चोरी वे करें, परस्त्री उनके पास, शिकार वे करें । थे तो ब्राह्मण, पर बड़े पापी थे; बड़ा उग्र जीवन व्यतीत करते थे । एक दिनकी बात है - उन्होंने ताड़ी पीली, और मर गये। मरने पर ताड़के पेड़ हो गये; महात्म्यमें ऐसा वर्णन है । तो एक पति-पत्नी किसी कारणसे ब्रह्म-राक्षस हो गये थे। वे दोनों घूमते फिर उस ताड़ पेड़के नीचे आये । वे दोनों भी ब्रह्मराक्षस इसलिए हुए थे, कि उनकी पत्नी कुमति थी । ब्राह्मणका नाम था कुशीबल, और पत्नीका नाम था कुमति। दान तो वे सबसे लेते थे पहले जन्ममें, लेकिन दानका जो हिस्सा दान करना चाहिए - वह नहीं करते थे । काल पुरुषका दान वे लें, घोड़ेका दान वे लें, तुलादान वे लें, लेकिन दान लेकर उस दानको पचानेके लिए जो दान करना चाहिए, सो वे नहीं करते थे। इसलिए ब्रह्मराक्षस हो गये थे वे दोनों । धनकी शुद्धि बिना दानके होती नहीं है ।
अब वे दोनों ब्रह्मराक्षस घूमते फिरते उसी ताल वृक्षके नीचे आये, तो पत्नीने पूछा- कि पतिदेव ! हमारा इस योनिसे कभी उद्धार हो सकता है, कि नहीं? उसी ताड़के पेड़के नीचे बैठे थे वे; तो उन्होंने कहा- देखो, उद्धार तो तब - होता है, जब आदमी ब्रह्मविद्याका विचार करे। अपने अध्यात्मका विचार करेकि आँखके भीतर कौन है, कानके भीतर कौन है । अध्यात्म इसको बोलते हैं । ये लोगोंके जेबमें अध्यात्म नामके जो पर्चे होते हैं ना, 'अखिल विश्व अध्यात्म विद्या मण्डल', उसका नाम अध्यात्म नहीं होता है। आजकल अखिल विश्वसे कम तो कोई संस्था होती नहीं है । अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड-मण्डलकी जो अध्यात्मविद्या संस्था है, वह जेबमें है। एक सज्जन बताते थे - कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड मण्डलका जो संत मण्डल है, उसके पार्लियामेंट बोर्डका मैं प्रेसीडेंट हूँ ।
बोले- कि अध्यात्म माने शरीरके भीतर हमारी क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति कैसे काम करती है, और उसको पावर कहाँसे मिलती है, प्रकाश कहाँसे मिलता है - उसका जो विचार करता है, उसका नाम अध्यात्म विचार है । सो ब्रह्मविद्या प्राप्त हो, अध्यात्मविचार प्राप्त हो, कर्मविधान प्राप्त हो, तब जाकरके मुक्ति होती है; ऐसा पतिने बताया । तब पत्नीने पूछाकिं तद्द्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म ?
ब्रह्म क्या है ? कर्म क्या है ? अध्यात्म क्या है ? सो गीताका आधा श्लोक आ गया। ब्रह्मराक्षसीने अपने पति ब्रह्मराक्षससे प्रश्न किया उसी ताड़वृक्षके नीचे
बैठकर । तो सुनते ही वह ताड़का पेड़ चरमराके गिर पड़ा, और उसमेंसे एक मनुष्य निकल आया। अब तो बड़ा आश्चर्य हुआ ब्रह्मराक्षसको! अरे बाबा! तुम कहाँसे निकले? बोला - यह जो गीताका आधा श्लोक बोला ना तुमने आठवें अध्यायका, इसको सुनकर मैं इसमें से निकल पड़ा। अब तो वह वहाँसे निकला, और काशी गया। वहाँ गीताके आठवें अध्यायका रोज पाठ करे । तो एक दिन वैकुण्ठमें विष्णु भगवान् नींद ले रहे थे। अब नींद ही न आवे भगवान्को । लक्ष्मीजीने पूछा- कि देव, आज आपको नींद क्यों नहीं आ रही है ? तो बोले - कि काशीजीमें गंगाके तटपर एक बड़ा मेधावी ब्राह्मण मेरी भक्तिसे भर करके गीताके आठवें अध्यायका पाठकर रहा है। उस पर मैं संतुष्ट हो गया हूँ, और विचार कर रहा हूँ, कि ऐसी क्या चीज है दुनियाँमें, जो दे दें उसको ! यह विचार करनेके कारण आज नींद नहीं आ रही है । लक्ष्मीजीने कहा - कि जिसके ऊपर आप प्रसन्न हैं, और उसे कुछ देनेके लिए चिन्तामें पड़ गये हैं - वह कैसा भक्त होगा! बोले- देवी, यह गीताके आठवें अध्यायका फल है । तो जो आठवें अध्यायका पाठ करता है, उसका मनोरथ पूर्ण करनेके लिए मैं व्याकुल हो जाता है।
तो ऐसा समझो - यह गीताका आठवाँ अध्याय तो 'अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।' शंकराचार्य भगवान् कहते हैं- कि पहले इसको जानो, उसके बाद इसके अनुसार अनुष्ठान करो । ब्रह्मविद्यामें यह अपरा विद्या है। इस आठवें अध्यायको समझो -माने सात प्रश्नोंके निर्णय द्वारा जो बात कही गयी है, उसको भली भांति समझ करके अवधार्य अनुष्ठाय च - उसका अवधारण करो और उसका अनुष्ठान करो, तब परमेश्वरकी प्राप्ति होगी।
श्रीरामानुजाचार्यने भी यही बात कही है-- कि इस अध्यायमें जो भगवन्माहात्म्यका वर्णन है, वह सब वेदेन सुखातिरेकेण तत्सर्वं तृणवत् मन्यते ।
जानकारीका बड़ा विलक्षण सुख होता है। भोगीको तो मालूम पड़ता है-कि भोगसे सुख होता है। जैसे बच्चा होता है ना; उसको काहेका सुख मालूम है ? कि भाई, जीभ पर पड़ा - तो बोला, बड़ा मजा आया ! तो बच्चेको जीभपर कुछ पड़नेसे ही सुख मिलता है; उसके पास दस हजारका नोट रख दो, तो नन्हें बच्चेको उसका सुख नहीं है । अब वह इससे बड़ा हुआ, भले एक दिन खाना न मिले, लेकिन सुखी हो जायेगा उस रुपयेसे। और उससे भी बड़ा हुआ, बोलेभले दस हजार खर्च करना पड़े, लेकिन ऊँची कुर्सी पर बिठा दो एक दिन । संस्थाका अध्यक्ष बना दो, तो दस हजार दान भी कर देगा। तो देखो, ऐसे
मनुष्यके ख्याल बढ़ते हैं । तो संसारके भोगी लोग भोगको सुख मानते हैं । और लोभी लोग? लोभी लोग धनको सुख मानते हैं। और संग्रही लोग ? संग्रही लोग भी धनको सुख मानते हैं और अभिमानी लोग अपने अभिमानको सुख मानते हैं, अभ्यासी लोग अभ्यासको सुख मानते हैं। यह तो अपना-अपना ख्याल है । असली सुख क्या है? अपने व्यक्तित्वको परमात्माके साथ एक कर देनेमें जो सुख है, उसको देखो। यदि सबमें एक ही मनुष्य है- तो उसको परमात्माका सुख मिल रहा है। तुम सबमें एक हो गये, कि नहीं? सब समय सब देशमें एक ! न देशका विरोध रहा, न कालका विरोध रहा, न व्यक्तिका विरोध रहा ! न वस्तुका विरोध रहा। परमात्मासे मिल जानेपर कैसा सुख प्राप्त होता है !
इसको आप ऐसा सोचो - कि जैसे अनन्त कोटि ब्रह्माण्डमें व्यापक, जो हमेशा अजर-अमर सत्स्वरूप, सबका प्रकाशक चित्स्वरूप, और सर्वका आनन्द है, जिसका कोई शत्रु नहीं, कोई विरोधी नहीं - ऐसा, जो अपने स्वभावमें स्थित है - ऐसा जो परमात्माका आनन्द है, वह परमात्मासे एक होने पर मिलता है। ऐसा आनन्द तुम्हें न भोगमें मिलता है, न कर्ममें मिलता है, न अभिमानमें मिलता है, न अभ्यासमें मिलता है। ऐसा आनन्द तो केवल परमात्मासे एक होनेमें मिलता है। और कोई पद्धति नहीं है ।
• एक
अक्षरबाह योग
श्रीमद्भगवद्गीताका आठवीं अध्याय श्रीमद्भगवद्गीताके आठवें अध्याय को अक्षरब्रह्म योग, महापुरुष योग, प्रणवब्रह्म योग आदि नामोंसे जाना जाता है।
'ज्ञान' प्रमाणके विभागमें है-वस्तुको दिखानेवाला, और 'ध्यान' निर्माणके विभागमें है-जीवनको बनानेवाला। जीवनको आप जैसा बनाना चाहते हो वैसा ध्यान करो।
साधकके जीवनमें जब ध्यानकी विशेषता आती है, तब वह ज्ञानके योग्य हो जाता है। यदि साधक जीवनमें ज्ञानका अभ्यास हो गया तो ज्ञान होने पर भी वह विशेषता बनी रहेगी और साधकके जीवनको चमकाकर निष्ठावान् ज्ञानीके रूपमें लोगोंके सामने रख देगी।
ध्यानके प्रसंगका निरूपण करनेके लिए 'अक्षरब्रह्म योग' है। कैसे भगवान्के नामका जप करना, कैसे महापुरुषका ध्यान करना और कैसे अक्षरब्रह्मनिर्गुणब्रह्मका ध्यान करना-विशेष करके इन तीनों बातोंको जानने के लिए आइये! यह आठवाँ अध्याय आरम्भ करें।
आनन्दकानन प्रेस टेढ़ीनीम, वाराणसीफोनः 2392337
करते हुए। इसके अन्दर ईश्वर बैठा हुआ है । तो सबसे बढ़िया मनुष्य कौन ? कि जो अपने सामने है। सबसे बढ़िया काम कौन ? कि जो हमको करनेको मिलता है । सबसे बढ़िया समय कौन ? कि भूत नहीं - कि आहा ! कितना बढ़िया समय हमारे सामने आया था - कि यादकरके रोओ; कि नहीं - छह महीनेके बाद एक बहुत बढ़िया योग आनेवाला है। अरे, तबतक जिन्दा रहोगे, तब ना ! मर गये, तो ? वह छह महीना किस काम आवेगा? वर्तमान समयको ठीक-ठीक व्यतीत करना, सामने वाले पुरुषसे ठीक-ठीक व्यवहार करना और जो काम करते हो - उसको अपना पूरा मन लगाके करना !
महाभारतके अनुशासन पर्वमें यह कथा आती है कि महाभारत युद्ध जब समाप्त हो गया, और श्रीकृष्ण विदा होने लगे, तो अर्जुनने श्रीकृष्णसे कहा- कि हे श्रीकृष्ण! जो गीताका उपदेश तुमने हमको किया था, उस समय तो घंटे-घड़ियाल बज रहे थे, और मार-काटकी ध्वनि आ रही थी चारों ओरसे - सो मैंने ध्यानसे नहीं सुना। भूल गया; जरा फिरसे सुना दो। श्रीकृष्णने कहा- अरे राम, बड़ी गलतीकी तुमने, अर्जुन! उस समय मैं योग- युक्त था, जब मैंने तुम्हें गीता सुनाई थी। अब वैसा योग-युक्त मैं कैसे होऊँ - कि फिर सुनाऊँ ? अरे, उस समय जो बात मुँह निकलनी थी, निकल गयी !
तो मनुष्यको सावधान रहना चाहिए । योगयुक्तो भवार्जुन का यह अर्थ नहीं, कि सब जगह प्राणायाम करने बैठ जाना चाहिए। एक आदमीने कल-परसों हमें बताया, कि माँ तो घड़ेमें पानी भरके ले आती है नीचेसे ऊपर; अब वह कहती है - कि उतरवा दो, तो बच्चे कहते हैं कि हम माला फेर रहे हैं, हम कैसे उतरवावें? अब लेके बेचारी खड़ी रहे । तो माला फेरनेमें तो बड़ा भारी पुण्य है, और माँके सिरसे घड़ा उतरवा देनेमें पुण्य नहीं है? यह भ्रान्ति है; भूल है ।
तो सब समयमें सावधान रहना, चित्तको एकाग्र रखना, और जो काम हो रहा है-उसीमें ईश्वरकी सेवा समझना; उसी कामको पूरे मनोयोगके साथ करना । 'योगयुक्त' का यह अर्थ नहीं है, कि आसन बाँधके, पीठकी रीढ़ सीधी करके, प्राणायाम करके बैठ गये; बोले- अब योगयुक्त हुए। योगयुक्तका अर्थ है - मनका अपने स्थानपर रहना । जैसे आप अभी इस हालमें बैठे हुए हैं - तो आपका मन कहाँ है? हालके भीतर है, कि बाहर है ? यदि आपका मन हालके भीतर है, और प्रवचन सुन रहा है - तो जो काम कर रहे हैं आप, उसमें योगयुक्त हैं। और यदि बैठे हैं प्रवचनमें, और याद कर रहे हैं दुकानकी- तो आप योगयुक्त नहीं हैं। और बैठे |
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नमस्ते, ओम शांति,
कार्यक्रम में हमारे साथ उपस्थित लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी, राजस्थान के गवर्नर श्री कलराज मिश्रा जी, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्रीमान अशोक गहलोत जी, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल जी, केंद्रीय मंत्री-मंडल में मेरे साथी श्री किशन रेड्डी जी, भूपेंदर यादव जी, अर्जुन राम मेघवाल जी, पुरषोत्तम रुपाला जी, और श्री कैलाश चौधरी जी, राजस्थान विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष श्री गुलाबचंद कटारिया जी, ब्रह्मकुमारीज़ के executive सेक्रेटरी राजयोगी मृत्युंजय जी, राजयोगिनी बहन मोहिनी जी, बहन चंद्रिका जी, ब्रह्मकुमारीज़ की अन्य सभी बहनें, देवियों और सज्जनों और यहां उपस्थित सभी साधक-साधिकाएँ!
कुछ स्थल ऐसे होते हैं, जिनमें अपनी एक अलग चेतना होती है, ऊर्जा का अपना ही एक अलग प्रवाह होता है! ये ऊर्जा उन महान व्यक्तित्वों की होती है, जिनकी तपस्या से वन, पर्वत, पहाड़ भी जाग्रत हो उठते हैं, मानवीय प्रेरणाओं का केंद्र बन जाते हैं। माउंट आबू की आभा भी दादा लेखराज और उन जैसे अनेकों सिद्ध व्यक्तित्वों की वजह से निरंतर बढ़ती रही है।
आज इस पवित्र स्थान से ब्रह्मकुमारी संस्था के द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर, एक बहुत बड़े अभियान का प्रारंभ हो रहा है। इस कार्यक्रम में स्वर्णिम भारत के लिए भावना भी है, साधना भी है। इसमें देश के लिए प्रेरणा भी है, ब्रह्मकुमारियों के प्रयास भी हैं।
मैं देश के संकल्पों के साथ, देश के सपनों के साथ निरंतर जुड़े रहने के लिए ब्रह्मकुमारी परिवार का बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूँ। आज के इस कार्यक्रम में दादी जानकी, राजयोगिनी दादी हृदय मोहिनी जी सशरीर हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं। मुझ पर उनका बहुत स्नेह था। आज के इस आयोजन पर मैं उनका आशीर्वाद भी महसूस कर रहा हूं।
जब संकल्प के साथ साधना जुड़ जाती है, जब मानव मात्र के साथ हमारा ममभाव जुड़ जाता है, अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए 'इदं न मम्' यह भाव जागने लगता है, तो समझिए, हमारे संकल्पों के जरिए एक नए कालखंड का जन्म होने वाला है, एक नया सवेरा होने वाला है। सेवा और त्याग का यही अमृतभाव आज अमृत महोत्सव में नए भारत के लिए उमड़ रहा है। इसी त्याग और कर्तव्यभाव से करोड़ों देशवासी आज स्वर्णिम भारत की नींव रख रहे हैं।
हमारे और राष्ट्र के सपने अलग-अलग नहीं हैं, हमारी निजी और राष्ट्रीय सफलताएँ अलग-अलग नहीं हैं। राष्ट्र की प्रगति में ही हमारी प्रगति है। हमसे ही राष्ट्र का अस्तित्व है, और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है। ये भाव, ये बोध नए भारत के निर्माण में हम भारतवासियों की सबसे बड़ी ताकत बन रहा है।
आज देश जो कुछ कर रहा है उसमें सबका प्रयास शामिल है। 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास' ये सब देश का मूल मंत्र बन रहा है। आज हम एक ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं जिसमें भेदभाव की कोई जगह न हो, एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जो समानता औऱ सामाजिक न्याय की बुनियाद पर मजबूती से खड़ा हो, हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसकी सोच और अप्रोच नई है, जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं।
भारत की सबसे बड़ी ताकत ये है कि कैसा भी समय आए, कितना भी अंधेरा छाए, भारत अपने मूल स्वभाव को बनाए रखता है। हमारा युगों-युगों का इतिहास इस बात साक्षी है। दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था। हमारे यहाँ गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियाँ समाज को ज्ञान देती थीं। कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं। और अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिये हैं। कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी।
आज देश लाखों स्वाधीनता सेनानियों के साथ आज़ादी की लड़ाई में नारीशक्ति के इस योगदान को याद कर रहा है, और उनके सपनों को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। और इसीलिए, आज सैनिक स्कूलों में पढ़ने का बेटियों का सपना पूरा हो रहा है, अब देश की कोई भी बेटी, राष्ट्र-रक्षा के लिए सेना में जाकर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ उठा सकती है, महिलाओं का जीवन और करियर दोनों एक साथ चलें, इसके लिए मातृ अवकाश को बढ़ाने जैसे फैसले भी किए गए हैं।
देश के लोकतन्त्र में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। 2019 के चुनाव में हमने देखा कि किस तरह पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने मतदान किया। आज देश की सरकार में बड़ी बड़ी जिम्मेदारियाँ महिला मंत्री संभाल रही हैं। और सबसे ज्यादा गर्व की बात है कि अब समाज इस बदलाव का नेतृत्व खुद कर रहा है। हाल के आंकड़ों से पता चला है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की सफलता से, वर्षों बाद देश में स्त्री-पुरुष का अनुपात भी बेहतर हुआ है। ये बदलाव इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि नया भारत कैसा होगा, कितना सामर्थ्यशाली होगा।
आप सभी जानते हैं कि हमारे ऋषियों ने उपनिषदों में 'तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय' की प्रार्थना की है। यानी, हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ें। मृत्यु से, परेशानियों से अमृत की ओर बढ़ें। अमृत और अमरत्व का रास्ता बिना ज्ञान के प्रकाशित नहीं होता। इसलिए, अमृतकाल का ये समय हमारे ज्ञान, शोध और इनोवेशन का समय है। हमें एक ऐसा भारत बनाना है जिसकी जड़ें प्राचीन परम्पराओं और विरासत से जुड़ी होंगी, और जिसका विस्तार आधुनिकता के आकाश में अनंत तक होगा। हमें अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता, अपने संस्कारों को जीवंत रखना है, अपनी आध्यात्मिकता को, अपनी विविधता को संरक्षित और संवर्धित करना है, और साथ ही, टेक्नोलॉजी, इनफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन, हेल्थ की व्यवस्थाओं को निरंतर आधुनिक भी बनाना है।
देश के इन प्रयासों में आप सभी की, ब्रह्मकुमारी जैसी आध्यात्मिक संस्थाओं की बड़ी भूमिका है। मुझे खुशी है कि आप आध्यात्म के साथ साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे कई क्षेत्रों में कई बड़े-बड़े काम कर रहे हैं। और आज जिस अभियान को आरंभ कर रहे हैं, आप उसे ही आगे बढ़ा रहे हैं। अमृत महोत्सव के लिए आपने कई लक्ष्य भी तय किए हैं। आपके ये प्रयास देश को अवश्य एक नई ऊर्जा देंगे, नई शक्ति देंगे।
आज देश, किसानों को समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए organic फ़ार्मिंग और नैचुरल फ़ार्मिंग की दिशा में प्रयास कर रहा है। खान-पान आहार की शुद्धता को लेकर हमारी ब्रह्मकुमारी बहनें समाज को लगातार जागरूक करती रहती हैं। लेकिन गुणवत्तापूर्ण आहार के लिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादन भी जरूरी है। इसलिए, ब्रह्मकुमारी नैचुरल फ़ार्मिंग को promote करने के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी प्रेरणा बन सकती हैं। कुछ गांवों को प्रेरित करके ऐसे मॉडल खड़े किए जा सकते हैं।
इसी तरह, क्लीन एनर्जी के और पर्यावरण के क्षेत्र में भी दुनिया को भारत से बहुत अपेक्षाएँ हैं। आज क्लीन एनर्जी के कई विकल्प विकसित हो रहे हैं। इसे लेकर भी जनजागरण के लिए बड़े अभियान की जरूरत है। ब्रह्मकुमारीज ने तो सोलर पावर के क्षेत्र में, सबके सामने एक उदाहरण रखा है। कितने ही समय से आपके आश्रम की रसोई में सोलर पावर से खाना बनाया जा रहा है। सोलर पावर का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा लोग करें, इसमें भी आपका बहुत सहयोग हो सकता है। इसी तरह आप सभी आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी गति दे सकते हैं। वोकल फॉर लोकल, स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देकर, इस अभियान में मदद हो सकती है।
अमृतकाल का ये समय, सोते हुए सपने देखने का नहीं बल्कि जागृत होकर अपने संकल्प पूरे करने का है। आने वाले 25 साल, परिश्रम की पराकाष्ठा, त्याग, तप-तपस्या के 25 वर्ष हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में हमारे समाज ने जो गंवाया है, ये 25 वर्ष का कालखंड, उसे दोबारा प्राप्त करने का है। इसलिए आजादी के इस अमृत महोत्सव में हमारा ध्यान भविष्य पर ही केंद्रित होना चाहिए।
हमारे समाज में एक अद्भुत सामर्थ्य है। ये एक ऐसा समाज है जिसमें चिर पुरातन और नित्य नूतन व्यवस्था है। हालांकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि समय के साथ कुछ बुराइयां व्यक्ति में भी, समाज में भी और देश में भी प्रवेश कर जाती हैं। जो लोग जागृत रहते हुए इन बुराइयों को जान लेते हैं, वो इन बुराइयों से बचने में सफल हो जाते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन में हर लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं। हमारे समाज की विशेषता है कि इसमें विशालता भी है, विविधता भी है और हजारों साल की यात्रा का अनुभव भी है। इसलिए हमारे समाज में, बदलते हुए युग के साथ अपने आप को ढालने की एक अलग ही शक्ति है, एक inner strength है।
हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत ये है कि समाज के भीतर से ही समय-समय पर इसे सुधारने वाले पैदा होते हैं और वो समाज में व्याप्त बुराइयों पर कुठाराघात करते हैं। हमने ये भी देखा है कि समाज सुधार के प्रारंभिक वर्षों में अक्सर ऐसे लोगों को विरोध का भी सामना करना पड़ता है, कई बार तिरस्कार भी सहना पड़ता है। लेकिन ऐसे सिद्ध लोग, समाज सुधार के काम से पीछे नहीं हटते, वो अडिग रहते हैं। समय के साथ समाज भी उनको पहचानता है, उनको मान सम्मान देता है और उनकी सीखों को आत्मसात भी करता है।
इसलिए साथियों,
हर युग के कालखंड के मूल्यों के आधार पर समाज को सजग रखना, समाज को दोषमुक्त रखना, ये बहुत अनिवार्य है और निरंतर करने वाली प्रक्रिया है। उस समय की जो भी पीढ़ी होती है, उसे ये दायित्व निभाना ही होता है। व्यक्तिगत तौर पर हम लोग, संगठन के तौर पर भी ब्रह्मकुमारी जैसे लाखों संगठन, ये काम कर रहे हैं। लेकिन हमें ये भी मानना होगा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में, हमारे समाज में, हमारे राष्ट्र में, एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। ये बुराई है, अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि ना रखना। बीते 75 वर्षों में हम सिर्फ अधिकारों की बात करते रहे, अधिकारों के लिए झगड़ते रहे, जूझते रहे, समय भी खपाते रहे। अधिकार की बात, कुछ हद तक, कुछ समय के लिए, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इस बात ने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
भारत ने अपना बहुत बड़ा समय इसलिए गंवाया है क्योंकि कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं दी गई। इन 75 वर्षों में कर्तव्यों को दूर रखने की वजह से जो खाई पैदा हुई है, सिर्फ अधिकार की बात करने की वजह से समाज में जो कमी आई है, उसकी भरपाई हम मिल करके आने वाले 25 वर्ष में, कर्तव्य की साधना करके पूरी कर सकते हैं।
ब्रह्मकुमारी जैसी संस्थाएं आने वाले 25 वर्ष के लिए, एक मंत्र बनाकर भारत के जन-जन को कर्तव्य के लिए जागरूक करके बहुत बड़ा बदलाव ला सकती हैं। मेरा आग्रह है कि ब्रह्मकुमारी और आप जैसी तमाम सामाजिक संस्थाएं इस एक मंत्र पर जरूर काम करें और वो है देश के नागरिकों में कर्तव्य भावना का विस्तार। आप सभी अपनी शक्ति और समय जन-जन में कर्तव्य बोध जागृत करने पर जरूर लगाएं। और ब्रह्मकुमारी जैसी संस्थाएं, जिस तरह दशकों से कर्तव्य के पथ पर चल रही हैं, आप लोग ये काम कर सकते हैं। आप लोग कर्तव्य में रचे बसे, कर्तव्य का पालन करने वाले लोग हैं। इसलिए, जिस भावना के साथ आप अपनी संस्था में काम करते हैं, उस कर्तव्य भावना का विस्तार समाज में हो, देश में हो, देश के लोगों में हो, ये आजादी के इस अमृत महोत्सव पर आपका देश को सबसे उत्तम उपहार होगा।
आप लोगों ने एक कहानी जरूर सुनी होगी। एक कमरे में अंधेरा था तो उस अंधेरे को हटाने के लिए लोग अपने-अपने तरीके से अलग-अलग काम कर रहे थे। कोई कुछ कर रहा था, कोई कुछ कर रहा था। लेकिन किसी समझदार ने जब एक छोटा सा दीया जला दिया, तो अंधकार तुरंत दूर हो गया। वैसी ही ताकत कर्तव्य की है। वैसी ही ताकत छोटे से प्रयास की भी है। हम सभी को,देश के हर नागरिक के हृदय में एक दीया जलाना है- कर्तव्य का दीया जलाना है।
हम सभी मिलकर, देश को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ाएंगे, तो समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाई पर भी पहुंचेगा। भारत भूमि को प्यार करने वाला, इस भूमि को मां मानने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो देश को नई ऊंचाई पर ना ले जाना चाहता हो, कोटि-कोटि लोगों के जीवन में खुशहाली ना लाना चाहता हो। इसके लिए हमें कर्तव्यों पर बल देना ही होगा।
आज के इस कार्यक्रम में, मैं एक और विषय को उठाना चाहता हूं। आप सभी इस बात के साक्षी रहे हैं कि भारत की छवि को धूमिल करने के लिए किस तरह अलग-अलग प्रयास चलते रहते हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत कुछ चलता रहता है। इससे हम ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ये सिर्फ राजनीति है। ये राजनीति नहीं है, ये हमारे देश का सवाल है। और जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो ये भी हमारा दायित्व है कि दुनिया भारत को सही रूप में जाने।
ऐसी संस्थाएं जिनकी एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में दुनिया के कई देशों में उपस्थिति है, वो दूसरे देशों के लोगों तक भारत की सही बात को पहुंचाएं, भारत के बारे में जो अफवाहें फैलाई जा रही हैं, उनकी सच्चाई वहां के लोगों को बताएं, उन्हें जागरूक करें, ये भी हम सबका दायित्व है। ब्रह्मकुमारी जैसी संस्थाएं, इसी काम को आगे बढ़ाने के लिए एक और प्रयास कर सकती हैं। जहां जहां, जिन देशों में आपकी ब्रांचेज हैं वहां कोशिश करनी चाहिए कि वहां की हर ब्रांच से हर वर्ष कम से कम 500 लोग भारत के दर्शन करने के लिए आएं। भारत को जानने के लिए आएं। और ये 500 लोग, जो हिंदुस्तान के लोग वहां रहते हैं, वो नहीं, उस देश के नागरिक होने चाहिए। मूल भारतीयों की मैं बात नहीं कर रहा हूं। आप देखिएगा अगर इस प्रकार से लोगों का आना हुआ, देश को देखेंगे, यहां की हर बात को समझेंगे तो अपने-आप भारत की अच्छाइयों को विश्व में ले करके जाएंगे। आपके प्रयासों से इसमें कितना बड़ा फर्क पड़ जाएगा।
परमार्थ करने की इच्छा तो हरेक की रहती है। लेकिन एक बात हम न भूलें कि परमार्थ और अर्थ जब एक साथ जुड़ते हैं तो सफल जीवन, सफल समाज, और सफल राष्ट्र का निर्माण अपने आप हो सकता है। अर्थ और परमार्थ के इस सामंजस्य की जिम्मेदारी हमेशा से भारत की आध्यात्मिक सत्ता के पास रही है। मुझे पूरा भरोसा है कि, भारत की आध्यात्मिक सत्ता, आप सभी बहनें ये ज़िम्मेदारी इसी परिपक्वता के साथ निभाएँगी। आपके ये प्रयास देश की अन्य संस्थाओं, अन्य संगठनों को भी आजादी के अमृत महोत्सव में नए लक्ष्य गढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। अमृत महोत्सव की ताकत, जन-जन का मन है, जन-जन का समर्पण है। आपके प्रयासों से भारत आने वाले समय में और भी तेज गति से स्वर्णिम भारत की ओर बढ़ेगा।
इसी विश्वास के साथ, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ओम शांति!
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9314f46a3c09b6d52b5a11b9cde5ba404a7ce3b2 | web | परीक्षा पे चर्चा (Pariksha Pe Charcha) के छठे संस्करण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत की। उन्होंने बातचीत से पहले कार्यक्रम स्थल पर प्रदर्शित छात्रों के प्रदर्शन को भी देखा। परीक्षा पे चर्चा की परिकल्पना प्रधानमंत्री द्वारा की गई है जिसमें छात्र, अभिभावक और शिक्षक उनके साथ जीवन और परीक्षा से संबंधित विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हैं। परीक्षा पे चर्चा के आयोजन में इस वर्ष 155 देशों से लगभग 38. 80 लाख पंजीकरण हुए हैं।
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह पहली बार है कि परीक्षा पे चर्चा गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अन्य राज्यों से नई दिल्ली आने वालों को भी गणतंत्र दिवस की झलक मिली। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए परीक्षा पे चर्चा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन लाखों सवालों की ओर इशारा किया जो कार्यक्रम के हिस्से के रूप में सामने आए। उन्होंने कहा, "परीक्षा पे चर्चा मेरी भी परीक्षा है। कोटि-कोटि विद्यार्थी मेरी परीक्षा लेते हैं और इससे मुझे खुशी मिलती है। यह देखना मेरा सौभाग्य है कि मेरे देश का युवा मन क्या सोचता है। " प्रधानमंत्री ने कहा, "ये सवाल मेरे लिए खजाने की तरह हैं। " उन्होंने यह भी कहा कि वे इन सभी प्रश्नों का संकलन करना चाहते हैं जिनका आने वाले वर्षों में सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा विश्लेषण किया जा सके और हमें ऐसे डायनैमिक टाइम में युवा छात्रों के दिमाग के बारे में एक विस्तृत थीसिस मिल सके।
तमिलनाडु के मदुरै से केंद्रीय विद्यालय की छात्रा अश्विनी, दिल्ली के पीतमपुरा स्थित केवी से नवतेज और पटना से नवीन बालिका स्कूल से प्रियंका कुमारी के खराब अंक के मामले में पारिवारिक निराशा के बारे में एक प्रश्न का समाधान बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि परिवार के लोगों को बहुत अपेक्षाएं होना बहुत स्वाभाविक है और उसमें कुछ गलत भी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेट्स के कारण कर रहे हैं तो वह चिंता का विषय है। प्रधानमंत्री मोदी ने हर सफलता के साथ प्रदर्शन के बढ़ते मानकों और बढ़ती अपेक्षाओं के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि आसपास की उम्मीदों के जाल में फंसना अच्छा नहीं है और व्यक्ति को अपने भीतर देखना चाहिए तथा उम्मीद को अपनी क्षमताओं, जरूरतों, इरादों और प्राथमिकताओं से जोड़ना चाहिए। क्रिकेट के उस खेल का उदाहरण देते हुए जहां भीड़ चौके-छक्के लगाने के लिए कहती है, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक बल्लेबाज जो बल्लेबाजी करने जाता है, दर्शकों में इतने लोगों के एक छक्के या चौके के लिए अनुरोध करने के बाद भी वह बेफिक्र रहता है। प्रधानमंत्री ने क्रिकेट के मैदान पर बल्लेबाज के फोकस और छात्रों के दिमाग के बीच की कड़ी के बारे में चर्चा करते हुए कहा, "जिस तरह क्रिकेटर का ध्यान लोगों के चिल्लाने पर नहीं, बल्कि अपने खेल पर फोकस होता है। इसी तरह आप भी दबावों के दबाव में न रहें। " प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर आप केन्द्रित रहते हैं तो अपेक्षाओं का दबाव खत्म हो सकता है। उन्होंने अभिभावकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों पर उम्मीदों का बोझ न डालें और छात्रों से कहा कि वे हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार खुद का मूल्यांकन करें। हालांकि, उन्होंने छात्रों से कहा कि वे दबावों का विश्लेषण करें और देखें कि क्या वे अपनी क्षमता के साथ न्याय कर रहे हैं। ऐसे में इन उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है।
केरल के कोझिकोड के एक छात्र ने कड़ी मेहनत बनाम स्मार्ट वर्क की आवश्यकता और महत्व के बारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्मार्ट वर्क का उदाहरण देते हुए प्यासे कौए की कहानी पर प्रकाश डाला, जिसने अपनी प्यास बुझाने के लिए घड़े में पत्थर फेंके। उन्होंने बारीकी से विश्लेषण करने और काम को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया और कड़ी मेहनत, स्मार्ट तरीके से काम करने की कहानी से नैतिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "हर काम की पहले अच्छी तरह से जांच की जानी चाहिए"। उन्होंने एक स्मार्ट वर्किंग मैकेनिक का उदाहरण दिया जिसने दो सौ रुपये में दो मिनट के भीतर एक जीप को ठीक कर दिया और कहा कि यह काम का अनुभव है जो काम करने में लगने वाले समय के बजाय मायने रखता है। प्रधानमंत्री ने कहा, "कड़ी मेहनत से सब कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। " इसी प्रकार खेलों में भी विशिष्ट प्रशिक्षण महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या किया जाना चाहिए। व्यक्ति को बुद्धिमानी के साथ उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
सेंट जोसेफ सेकेंडरी स्कूल, चंडीगढ़ के छात्र मन्नत बाजवा, अहमदाबाद के 12वीं कक्षा के छात्र कुमकुम प्रतापभाई सोलंकी और व्हाइटफील्ड ग्लोबल स्कूल, बैंगलोर के 12वीं कक्षा के छात्र आकाश दरिरा ने प्रधानमंत्री से नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों से निपटने, उसके प्रति राय कायम करने और यह उन्हें कैसे प्रभावित करता है, इसके बारे में पूछा और दक्षिण सिक्किम के डीएवी पब्लिक स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र अष्टमी सेन ने भी मीडिया के आलोचनात्मक दृष्टिकोण से निपटने के बारे में इसी तरह का सवाल उठाया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि वे इस सिद्धांत में विश्वास करते हैं कि समृद्ध लोकतंत्र के लिए आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है। आलोचना एक समृद्ध लोकतंत्र की पूर्व-शर्त है। प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने एक प्रोग्रामर का उदाहरण दिया, जो सुधार के लिए ओपन सोर्स पर अपना कोड डालता है, और कंपनियां जो अपने उत्पादों को बाजार में बिक्री के लिए रखती हैं, ग्राहकों से उत्पादों की खामियों को खोजने के लिए कहती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कौन आपके काम की आलोचना कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजकल माता-पिता रचनात्मक आलोचना के बजाय अपने बच्चों की क्षमता में बाधा डालने वाले बन गए हैं और उनसे इस आदत को छोड़ने का आग्रह किया क्योंकि बच्चों का जीवन प्रतिबंधात्मक तरीके से नहीं बदलेगा। प्रधानमंत्री ने संसद सत्र के उन दृश्यों पर भी प्रकाश डाला, जब सत्र को किसी खास विषय पर संबोधित कर रहा कोई सदस्य विपक्ष के सदस्यों द्वारा टोके जाने के बाद भी विचलित नहीं होता। दूसरे, प्रधानमंत्री ने एक आलोचक होने के नाते श्रम और अनुसंधान के महत्व पर भी प्रकाश डाला, "आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, एनालिसिस करना पड़ता है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते। " प्रधानमंत्री ने कहा, "आरोपों और आलोचनाओं के बीच एक बड़ा अंतर है। " उन्होंने सभी से आग्रह किया कि आलोचना को आरोप समझने की गलती न करें।
भोपाल से दीपेश अहिरवार, दसवीं कक्षा के छात्र आदिताभ ने इंडिया टीवी के माध्यम से अपना प्रश्न पूछा, कामाक्षी ने रिपब्लिक टीवी के माध्यम से अपना प्रश्न पूछा, और जी टीवी के माध्यम से मनन मित्तल ने ऑनलाइन गेम व सोशल मीडिया की लत और परिणाम में असर डालने के बारे में प्रश्न पूछे। प्रधानमंत्री ने कहा कि पहला निर्णय यह तय करना है कि आप स्मार्ट हैं या आपका गैजेट स्मार्ट है। समस्या तब शुरू होती है जब आप गैजेट को अपने से ज्यादा स्मार्ट समझने लगते हैं। किसी की स्मार्टनेस स्मार्ट गैजेट को स्मार्ट तरीके से उपयोग करने में सक्षम बनाती है और उन्हें उत्पादकता में मदद करने वाले उपकरणों के रूप में व्यवहार करती है। प्रधानमंत्री ने कहा, "स्क्रीन पर औसत समय का बढ़ना एक चिंताजनक प्रवृत्ति है। " उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि एक अध्ययन के अनुसार, एक भारतीय के लिए स्क्रीन पर होने का औसत समय छह घंटे तक है। ऐसे में गैजेट हमें गुलाम बना लेता है। प्रधानमंत्री ने कहा, "ईश्वर ने हमें स्वतंत्र इच्छा और एक स्वतंत्र व्यक्तित्व दिया है और हमें हमेशा अपने गैजेट्स का गुलाम बनने के बारे में सचेत रहना चाहिए। " उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत सक्रिय होने के बावजूद उन्हें मोबाइल फोन के साथ कम ही देखा जाता है। उन्होंने कहा कि वह ऐसी गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय रखते हैं। तकनीक से परहेज नहीं करना चाहिए बल्कि खुद को जरूरत के हिसाब से उपयोगी चीजों तक सीमित रखना चाहिए। उन्होंने छात्रों के बीच पहाड़े को दोहराने के लिए क्षमता के नुकसान का उदाहरण भी दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अपने मूल उपहारों को खोए बिना अपनी क्षमताओं में सुधार करने की जरूरत है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में अपनी क्रिएटिविटी को बचाए रखने के लिए टेस्टिंग और लर्निंग करते रहना चाहिए। प्रधानमंत्री ने नियमित अंतराल पर 'टेक्नोलॉजी फास्टिंग' का सुझाव दिया। उन्होंने हर घर में एक 'प्रौद्योगिकी मुक्त क्षेत्र' के रूप में एक सीमांकित क्षेत्र का भी सुझाव दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे जीवन का आनंद बढ़ेगा और आप गैजेट्स की गुलामी के चंगुल से बाहर आएंगे।
जम्मू के गवर्नमेंट मॉडल हाई सेकेंडरी स्कूल, जम्मू के 10वीं कक्षा के छात्र निदाह के सवालों का समाधान करते हुए, कड़ी मेहनत के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलने के तनाव को दूर करने और शहीद नायक राजेंद्र सिंह राजकीय स्कूल, पलवल, हरियाणा के कक्षा के छात्र प्रशांत के बारे में यह पूछे जाने पर कि तनाव परिणामों को कैसे प्रभावित करता है, प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा के बाद तनाव का मुख्य कारण इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना है कि परीक्षा अच्छी हुई या नहीं। प्रधानमंत्री ने छात्रों के बीच तनाव पैदा करने वाले कारक के रूप में प्रतिस्पर्धा पर भी प्रकाश डाला और सुझाव दिया कि छात्रों को अपनी आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करते हुए स्वयं और अपने परिवेश से जीना व सीखना चाहिए। जीवन के प्रति दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा जीवन का अंत नहीं है और परिणामों के बारे में अधिक सोचना दैनिक जीवन का विषय नहीं होना चाहिए।
तेलंगाना के जवाहर नवोदय विद्यालय रंगारेड्डी की कक्षा 9वीं की छात्रा आर. अक्षरासिरी और राजकीय माध्यमिक विद्यालय, भोपाल की 12वीं कक्षा की छात्रा रितिका के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कि कोई और भाषा कैसे सीख सकता है और इससे उन्हें कैसे लाभ हो सकता है, प्रधानमंत्री ने भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध विरासत के बारे में कहा कि यह बड़े गर्व की बात है कि भारत सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का देश है। उन्होंने कहा कि नई भाषा सीखना एक नया संगीत वाद्ययंत्र सीखने के समान है। प्रधानमंत्री ने कहा, "एक क्षेत्रीय भाषा सीखने का प्रयास करके, आप न केवल भाषा की अभिव्यक्ति बनने के बारे में सीख रहे हैं बल्कि क्षेत्र से जुड़े इतिहास और विरासत के द्वार भी खोल रहे हैं। " प्रधानमंत्री ने कहा कि दैनिक दिनचर्या पर बोझ के बिना एक नई भाषा सीखने पर जोर देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि दो हजार साल पहले बनाए गए देश के एक स्मारक पर नागरिक गर्व महसूस करते हैं, ठीक उसी तरह, देश को तमिल भाषा पर समान रूप से गर्व करना चाहिए, जो पृथ्वी पर सबसे पुरानी भाषा के रूप में जानी जाती है। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संगठनों के अपने पिछले संबोधन को याद किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उन्होंने विशेष रूप से तमिल के बारे में तथ्य सामने लाए, क्योंकि वह दुनिया को उस देश के लिए गर्व के बारे में बताना चाहते थे, जो सबसे पुरानी भाषा का स्थान है। प्रधानमंत्री ने उत्तर भारत के उन लोगों के बारे में बताया, जो दक्षिण भारत के व्यंजनों का सेवन करते हैं। प्रधानमंत्री ने मातृभाषा के अलावा भारत से कम से कम एक क्षेत्रीय भाषा जानने की आवश्यकता पर बल दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि जब आप उनसे बात करते हैं तो भाषा जानने वाले लोगों के चेहरे कैसे चमकते हैं। प्रधानमंत्री ने गुजरात में प्रवासी श्रमिक की 8 वर्षीय बेटी का उदाहरण दिया, जो बंगाली, मलयालम, मराठी और गुजरात जैसी कई अलग-अलग भाषाएं बोलती है। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने अपनी विरासत, पंच प्रणों (पांच प्रतिज्ञाओं) में से एक पर गर्व करने पर प्रकाश डाला और कहा कि प्रत्येक भारतीय को भारत की भाषाओं पर गर्व करना चाहिए। .
समाज में छात्रों के व्यवहार के बारे में नई दिल्ली की एक अभिभावक सुमन मिश्रा के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि माता-पिता को समाज में छात्रों के व्यवहार के दायरे को सीमित नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, "हमें बच्चों को विस्तार देने का अवसर देना चाहिए, उन्हें बंधनों में नहीं बांधना चाहिए। अपने बच्चों को समाज के विभिन्न वर्गों में जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। समाज में छात्र के विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए। " उन्होंने अपनी खुद की सलाह को याद किया कि छात्रों को अपनी परीक्षा के बाद बाहर यात्रा करने और अपने अनुभव रिकॉर्ड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें इस तरह आजाद करने से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा। 12वीं की परीक्षा के बाद उन्हें अपने राज्यों से बाहर जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने माता-पिता से कहा कि वे अपने बच्चों को नए अनुभवों के लिए प्रेरित करते रहें। उन्होंने माता-पिता को अपनी स्थिति के अनुसार बच्चों के मूड और उनकी परिस्थिति के बारे में सतर्क रहने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि ऐसा तब होता है जब माता-पिता खुद को बच्चों यानी भगवान के उपहार के संरक्षक के रूप में मानते हैं।
संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर उपस्थित सभी को धन्यवाद दिया और माता-पिता, शिक्षकों और अभिभावकों से परीक्षा के दौरान बनाए जा रहे तनावपूर्ण माहौल को अधिकतम सीमा तक कम करने का आग्रह किया। नतीजतन, परीक्षा छात्रों के जीवन को उत्साह से भरकर एक उत्सव में बदल जाएगी, और यही उत्साह छात्रों की उत्कृष्टता की गारंटी देगा।
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1622d26d60374a2329787c33ecd3b90bc0cd052b | web | देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार मारुति सुजुकी eVX लॉन्च करने की योजना बना रही है। वर्तमान में कंपनी इस गाड़ी की टेस्टिंग कर रही है और इसे अगले साल पेश किया जा सकता है।
भारत की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने जून महीने में की गई बिक्री में आंकड़े पेश कर दिए हैं। सालाना आधार पर कंपनी को बिक्री में 2 प्रतिशत का फायदा हुआ है। हालांकि, मासिक आधार पर कंपनी की बिक्री में गिरावट दर्ज हुई है।
देश में पैसेंजर कारों की बिक्री का आंकड़ा 2023 की पहली छमाही में 20 लाख यूनिट के पार पहुंच सकती है।
मारुति सुजुकी की ऑफ-रोडर जिम्नी SUV को जल्द ही ऑस्ट्रेलिया में लॉन्च किया जा सकता है।
भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में हर सेगमेंट में नई गाड़ियां लॉन्च हो रही है और लोग इन्हें हाथों-हाथ खरीद रहे हैं।
टाटा मोटर्स वित्त वर्ष 2024 में अपनी कुल बिक्री में CNG कारों की हिस्सेदारी दोगुनी करने की योजना बना रही है।
भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में मारुति सुजुकी, हुंडई और किआ मोटर्स समेत कई कार निर्माता कंपनियां अगले महीने अपनी नई गाड़ियां लॉन्च करने वाली हैं।
मारुति सुजुकी अपनी सेलेरियो कार पर इस महीने में 54,000 रुपये तक की जबरदस्त छूट दे रही है।
मारुति सुजुकी की सबसे महंगी इनविक्टो MPV 5 जुलाई को लॉन्च होगी। कार निर्माता ने इसकी 25,000 रुपये की टोकन राशि पर बुकिंग की शुरू कर दी है।
मारुति सुजुकी नई इलेक्ट्रिक SUV EVX लाने की तैयारी कर रही है। कार निर्माता की पहली इलेक्ट्रिक कार को टेस्टिंग के दौरान पोलैंड में देखा गया है।
मारुति सुजुकी की सबसे महंगी इनविक्टो प्रीमियम MPV 5 जुलाई को लाॅन्च होगी।
भारतीय बाजार में मारुति सुजुकी समेत कई कार निर्माता कंपनियां अगले कुछ महीनों में कई गाड़ियां लॉन्च करने वाली हैं। देश में इन दिनों कारों की बिक्री तेज हो गई है।
मारुति सुजुकी अपनी नई फ्लैगशिप MPV इनविक्टो को 5 जुलाई को लॉन्च करेगी। कार निर्माता ने इस गाड़ी के लिए 25,000 रुपये की टोकन राशि पर बुकिंग भी शुरू कर दी है।
मारुति सुजुकी की आगामी फ्लैगशिप MPV इनविक्टो होगी, इसका खुलासा हो चुका है। इससे पहले रिपोर्ट्स में बताया जा रहा था कि इसे एंगेज नाम से उतारा जा सकता है।
मारुति सुजुकी ने इसी महीने अपनी ऑफ-रोडिंग जिम्नी SUV को भारतीय बाजार में लॉन्च किया है। गाड़ी में मस्कुलर बोनट और गोल हेडलाइट्स के साथ-साथ फॉगलैंप दिए गए हैं।
मारुति सुजुकी ने अपनी लाइनअप की सबसे महंगी कार इनविक्टो MPV के लिए सोमवार से बुकिंग शुरू कर दी है।
दक्षिण कोरियाई कंपनी देवू मोटर्स ने भारतीय बाजार में अपनी आइकॉनिक कार सिएलो के साथ दस्तक दी थी।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी 5 जुलाई नई MPV इनविक्टो को लॉन्च करने जा रही है।
मारुति सुजुकी की अर्टिगा की MPV सेगमेंट किफायती और आरामदायक कार है। यह गाड़ी लगभग 11 सालों से भारतीय ग्राहकों की पसंद बनी हुई है और MPV सेगमेंट में इसकी सबसे अधिक बिक्री होती है।
मारुति सुजुकी की फ्राेंक्स SUV के अन्य वेरिएंट की तुलना में बूस्टरजेट वेरिएंट को ज्यादा ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।
मारुति सुजुकी की हाल ही में लॉन्च हुई 5-डोर SUV जिम्नी को भारतीय बाजार में अच्छी सफलता मिल रही है। यही कारण है कि इसे 31,000 से ज्यादा बुकिंग हासिल हो चुकी है और अधिक मांग के चलते इसका वेटिंग पीरियड 8 महीने तक पहुंच गया है।
मारुति सुजुकी की प्रीमियम MPV इनविक्टो 5 जुलाई को लॉन्च होगी। इसके लिए कार निर्माता 19 जून से बुकिंग लेना शुरू करेगी।
मारुति सुजुकी 5 जुलाई को अपनी फ्लैगशिप MPV लॉन्च करने वाली है।
देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री तेज हो रही है। ऐसे में लगभग सभी कंपनियां अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियां लॉन्च कर रही है।
देश की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी एक नई कार उतारने की तैयारी कर रही हैं। कंपनी मारुति सुजुकी एंगेज नाम से एक नई MPV लॉन्च करेगी। यह टोयोटा हाईक्रॉस का रिबैज मॉडल होगा।
देश की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने अपनी ऑफ-रोडिंग जिम्नी SUV को भारतीय बाजार में लॉन्च कर दिया है। इस गाड़ी को बॉक्सी लुक मिला है।
मारुति सुजुकी की ऑल्टो हैचबैक सेगमेंट में देश की सबसे अधिक बिकने वाली गाड़ियों में से एक है। यह गाड़ी लगभग 23 सालों से भारतीय सड़कों पर राज कर रही है। देश में मारुति की सफलता में इस गाड़ी का अहम योगदान रहा है।
कार सेगमेंट में भारतीय ग्राहकों द्वारा SUVs को सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। बीते कुछ सालों से कॉम्पैक्ट, सब-कॉम्पैक्ट और मिड साइज SUV भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में धमाल मचा रही हैं।
मारुति सुजुकी ने नई ऑल्टो K10 CNG को टूर H1 के रूप में लॉन्च किया है।
मारुति सुजुकी की ऑफ-रोडिंग जिम्नी SUV के लिए ग्राहकों का इंतजार खत्म हो गया है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी अब तक की अपनी सबसे महंगी कार एंगेज MPV ला रही है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी 7-सीटर MPV एंगेज को 5 जुलाई को लॉन्च करेगी।
मारुति सुजुकी देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है। मारुति की वैगनआर हैचबैक सेगमेंट में कंपनी की सबसे ज्यादा बिकने वाली कार है।
दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने अपनी ऑफ-रोडिंग जिम्नी SUV को भारतीय बाजार में लॉन्च कर दिया है। इसमें मस्कुलर बोनट और गोल हेडलाइट्स के साथ-साथ फॉगलैंप दिए गए हैं।
मारुति सुजुकी की पहली पहली लाइफस्टाइल SUV जिम्नी भारत में बुधवार (7 जून) को लॉन्च होगी। इसी दौरान पता चलेगा कि इसकी कीमत महिंद्रा थार से कम या ज्यादा रहती है।
दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी एक नई कार उतारने की तैयारी कर रही हैं। कंपनी भारत में 'मारुति सुजुकी एंगेज' नाम से एक नई MPV लॉन्च करेगी।
मारुति सुजुकी देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी है। वर्तमान में मारुति सुजुकी स्विफ्ट हैचबैक सेगमेंट में कंपनी की बेस्ट सेलिंग कार में से एक है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी अपनी लोकप्रिय हैचबैक वैगनआर के फ्लेक्स-फ्यूल वेरिएंट का उत्पादन नवंबर, 2025 में शुरू करेगी।
मारुति सुजुकी जून में अपने एरिना मॉडल्स पर शानदार छूट दे रही है।
इस महीने मारुति सुजुकी अपनी नेक्सा गाड़ियों पर शानदार छूट लेकर आई है। इसमें इग्निस, सियाज, बलेनो और S-क्रॉस जैसी गाड़ियों पर 59,000 रुपये तक की छूट मिल रही है।
गाड़ियों की जबरदस्त मांग और सेमीकंडक्टर की कमी के कारण देश की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी की करीब 4 लाख गाड़ियों की डिलीवरी रुकी हुई है और इस वजह से कंपनी के मॉडलों का वेटिंग पीरियड भी बढ़ रहा है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी का मई बिक्री में भी शीर्ष स्थान पर कब्जा बरकरार है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता मारुति सुजुकी की कारों की घरेलू बाजार में जबरदस्त डिमांड है।
दक्षिण कोरियाई कंपनी देवू मोटर्स की आइकॉनिक कार सिएलो 90 के दशक में काफी लोकप्रिय हुई थी।
मारुति सुजुकी ने गुरुवार को मई महीने के अपनी कारों की बिक्री के आंकड़े जारी कर दिए हैं।
देश की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अपनी ऑफ-रोडिंग जिम्नी SUV को भारत में लॉन्च करने की तैयारी कर ली है। कंपनी इस गाड़ी को 7 जून को देश में उतारने वाली है।
दिग्गज कार निर्माता मारुति सुजुकी की फ्रोंक्स SUV की देश में जबरदस्त डिमांड है। यही कारण है कि लॉन्च के 4 महीने में ही इस गाड़ी की 26,500 से ज्यादा की बुकिंग मिल चुकी है।
देश की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी की इग्निस हैचबैक कार को काफी पसंद किया जा रहा है। देश में इसकी 2 लाख यूनिट्स की बिक्री हो चुकी है। यह नेक्सा डीलरशिप पर उपलब्ध कंपनी की सबसे सस्ती है। इसे 2017 में लॉन्च किया गया था।
भारतीय बाजार में वाहनों की बिक्री तेज हो रही है। यही वजह है कि इस साल देश में कई नई और फेसलिफ्टेड गाड़ियां लॉन्च हुई हैं।
दिग्गज कार निर्माता मारुति सुजुकी एक नई हैचबैक कार पर काम कर रही है, जो अगली पीढ़ी की सुजुकी स्विफ्ट का 'स्पोर्ट' मॉडल होगा।
दिग्गज कार निर्माता मारुति सुजुकी अपने ग्रीन पोर्टफोलियो के विस्तार की योजना बना रही है। इसी के तहत कंपनी eVX इलेक्ट्रिक SUV पेश करने की तैयारी में है।
कार निर्माता मारुति सुजुकी की कॉम्पैक्ट SUV फ्रोंक्स को भारतीय बाजार में शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है।
टाटा मोटर्स ने भारत में अल्ट्रोज का CNG से चलने वाला वेरिएंट उतार दिया है। यह फैक्ट्री फिटेड CNG किट पाने वाला ब्रांड का तीसरा मॉडल है।
देश में डीजल कारों की मांग में गिरावट आ रही है।
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05a2fcfa8c7f623e70f5f5ed1c8e576bbf029356424cd21a021c210eb73b1e3b | pdf | कारण कोई कानून या सुधार चल पायेगा, इसी में लोगों को संदेह लगता है । एक सुझाव यह भी थाया कि चुनाव में मोटरों व जीवों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाय। यह भी कहा गया कि मतदान से पन्द्रह दिन पहिले प्रचार वंद कर दिया जाय ।
यह विचार मी व्यक्त किया गया कि खर्च की सीमा के लिये नियम बहुत कड़े हों। इस सम्बन्ध में एक जांच कमीशन की नियुक्ति का मुकाव दिया गया जो स्वयं उम्मीदवारों के क्षेत्रों पर जाकर उम्मीदवारों के साधनों तथा खर्च के बारे में जांच करे और जहां अवहेलना पाई जाय वहां उम्मीदवार को तुरन्त चुनाव के अयोग्य घोषित किया जाय तथा कठोर दंड की व्यवस्था रहे । इस सम्बन्ध में सपरिश्रम कारावास का सुझाव भी दिया गया है। यह भी कहा गया है कि चुनाव व्यय में सब प्रकार का व्यय-उम्मीदवार का व्यक्तिगत खर्च, पार्टी को सहायता और समर्थकों की मदद, सब शामिल होना चाहिये । यह सुझाव भी दिया गया कि लोकसभा में व्यय की अधिकतम मर्यादा पांच हजार और विधान सभा में दो हजार रहे और चुनाव कानून में भी इसी श्राशय के परिवर्तन किये जांय । इस पर भी जोर दिया गया कि चुनाव सम्बन्धी सरकारी नियम लचीले, अस्पष्ट या वच निकलने जैसे नहीं होने चाहियें ।
चुनाव में निष्पक्षता - चुनाव में निप्पक्षता लाने के सम्बन्ध में कहा गया कि सरकारी कर्मचारियों को चुनाव में पूर्णतया निष्पक्ष रहने की हिदायत रहे । किसी भी प्रकार के सरकारी या सार्वजनिक पद पर स्थित व्यक्ति को चुनाव में खड़े होने की इजाजत न दी जाय । इसी सम्बन्ध में यह सुझाव भी रखा गया कि ग्राम चुनाव के दो महीने पूर्व मंत्री मंडल को त्याग-पत्र देना चाहिये और नये मंत्री मण्डल की नियुक्ति चुनाव के तुरन्त बाद हो जानी चाहिए । इस अवधि में राज्यपाल शासन चलाये । यह भी सुझाया गया कि राज्यपाल राजनैतिक व्यक्ति न होकर प्रशासनिक अनुभव का व्यक्ति हो तो अधिक अच्छा रहेगा ।
वर्तमान संविधान में तथा पंचायती राज्य को संस्थाओं में तनो जगह सामान्य बहुमत ही मान्य है । सर्वसम्मति तथा सर्वानुमति की बात लोगों को भाकर्षक तथा उचित तो लगती है, पर आाज की अनेक प्रकार की व्यापक विभिन्नताओं और रस्साकशी के बीच उसकी व्यवहारिकता में मानतौर पर संदेह प्रकट किया जाता है और जब सर्वसम्मति से उतर कर लगभग सर्वानुमति की बात कही जाती है तो ७५ मा ८० प्रतिशत से फिर बहुमत में मा जाने में
अधिक कठिनाई नहीं होती और उसमें अन्तर आमतौर पर लोगों को नहीं लगता । इसमें तो सर्वानुमति या कन्सन्सस की वात लोगों को अधिक समझ में आती है। लेकिन विभिन्न स्वार्थों के टकराव जब प्रवल हों तथा सत्ता का केन्द्रीयकरण जहां जवरदस्त हो, वहां तब तक एक मत होना और भी कठिन लगता है, जब तक प्रवल नैतिकता का दबाव या महान संकट की घड़ी देश या समाज के सामने नहीं हो ।
वर्तमान प्राम- चुनाव के परिणाम स्वरूप राजस्थान में स्पष्ट बहुमत के प्रभाव में या उसकी स्पष्ट जांच किए बिना ही, अल्प मत को सरकार बनाने का मौका देना बहुत से लोगों की राय में बहुमत के निर्णय का अपमान माना गया । राजस्थान में निर्दलीय लोगों की निरर्णायक स्थिति के कारण बहुमत की स्पष्टता नहीं आ सकी, नकी, इसलिए बहुत से लोगों की यह राय भी बनी कि निर्दलीय लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देनी चाहिये और कुछ लोग इस राय के भी हुए कि इस परिस्थिति में सर्वदलीय सरकार ही राजस्थान में में उचित होगी जिसमें सभी विजयी दलों के नेता शामिल हों ।
उम्मीदवारों की योग्यता संबंधी कानून में भी परिवर्तन की मांग की गई । उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता ऊंची रखी जाय, क्षेत्र में निवास और सेवा संबंधी भी कोई योग्यता रखी जाय । यह भी कहा गया कि ७५ प्रतिशत मत प्राप्त करने वाला ही सफल माना जाय, यद्यपि इसके न प्राप्त होने पर जो संभावित परिणाम होंगे उनका निवारण किस प्रकार से हो इस पर विचार करने की तैयारी नहीं पाई गई ।
प्रत्यक्ष श्रथवा परोक्ष चुनाव- चुनाव प्रत्यक्ष हों या परोक्षइसके संबंध में दोनों प्रकार की राय प्रकट की गई । एक ओर व्यक्त किया गया कि प्रादेशिक और केन्द्रीय स्तर पर चुनाव प्रत्यक्ष होना ही उचित होगा । यदि ऐसा नहीं हो तो उम्मीदवार मतदाता मंडलों द्वारा तय किये जांय, दलों द्वारा नहीं । दल अपने उद्देश्य तथा कार्यक्रमों से जनता को शिक्षित करें । लेकिन यह प्रश्न व की ही रह गया कि दल अपने उम्मीदवार खड़े न करे तो दल के कार्यक्रम की पूर्ति की जिम्मेदारी कौन और कैसे लेगा ?
इस पर यह विचार भी व्यक्त किया गया कि चुनाव के लिये प्रत्यक्ष प्रणाली हो उचित है । व्यय चाहे कुछ अधिक हो, पर शासन चलाने वाला व्यक्ति सीघा जनता के द्वारा ही चुना जाना चाहिये । परोक्ष चुनाव में जनता की सीधी राय नहीं रहती प्रतः चुना हुआ व्यक्ति आम जनता के प्रति अपनी
सीधी जिम्मेदारी महसूस नहीं करता। यह विचार भी प्रकट किया गया कि परोक्ष चुनाव में थोड़े लोगों को भ्रष्ट करना अधिक सरल होगा, प्रतः व्यापक और प्रत्यक्ष मतदान से जनमत अधिक सही रूप से प्रकट हो सकता है।
चुनाव क्षेत्रों की मर्यादा- यह विचार भी सभी प्रोर से व्यक्त हुआ कि चुनाव क्षेत्रों को और सीमित किया जाय, क्योंकि छोटे क्षेत्रों में प्रचार भी अधिक और संपर्क भी अधिक सीघा और गहरा हो सकता है। पर विधान समाओं या लोकसभा में अधिक सदस्य जाने पर वहां के काम काज में कठिनाई आयेगी, उसका विचार इसमें संभवतः नहीं किया गया ।
तीसरे तथा चौथे ग्राम चुनावों का तुलनात्मक सर्वेक्षरण - तीसरे तथा चौथे ग्राम चुनाव के तुलनात्मक सर्वेक्षरण के प्रसंग में हमें सबसे पहिले घटनामों पर विचार करना होगा जो गत पांच वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर हुई है, क्योंकि उन्होंने ही जन मानस को इतना अधिक क्षुब्ध कर दिया जिसके कारण देश नर में कांग्रेस विरोधी हवा तेजी के साथ चल पड़ी। योजनामों को कार्यान्वित करने के लिए वित्तीय साधनों की उपलब्धि के लिये जहां कर दाता की पीठ पर करों का बोझा वढ़ता चला गया वहां दूसरी ओर अनिवार्य वस्तुओं के भाव भी निरंतर बढ़ते चले गये । इघर सेतों तथा कारखानों में उत्पादन की कमी के कारण भी चीजों के भाव वढ़े ही, साथ ही उनको सुलमता की स्थिति भी समाप्त होती चली गई । ऊंचे भावों पर भी चीजों का मिलना कठिन होता चला गया । यद्यपि इन सभी वातों के लिये प्राकृतिक परिस्थितियां भी एक हृद तक जिम्मेदार रहीं, परन्तु इन सभी वातों के लिये जनता ने सरकार तथा सत्तारूढ दल कांग्रेस को हो जिम्मेदार मानना शुरू किया और इस सब का परिणाम यह रहा कि चौथे ग्राम चुनाव में कांग्रेस विरोध तीसरे प्राम-चुनाव की तुलना में कहीं अधिक बढ़ा-चढ़ा रहा ।
सत्तारूढ दल के प्रति विरोध - भावना -यद्यपि चौये ग्राम चुनावों के दौरान मतदाता संबंधी प्रांकड़ों का पूरा व्यौरा तो हमारे सामने नहीं है पर सत्तारूढ दल के प्रति विरोध भावना के कारण भी सभी जगह मतदाता भपेक्षाकृत अधिक संख्या में मत डालने को प्रेरित हुये । नमी क्षेत्रों में मतदान के प्रति श्रामतौर पर अच्छा उत्साह दिखाई दिया है। उम्मीदवारों तमा भ्राम जनता के बीच की दूरी भी अपेक्षाकृत कम हुई है। जहां सरकारी अधिकारियों के रवैये तथा कार्यकुशलता का प्रश्न है, यह कहना कठिन है कि पांच वर्ष के
वाद भी उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन हुआ है अथवा नहीं । इसका एक कारण यह भी है कि चाहे किसी भी पक्ष की सरकार बने, उनकी स्थिति में किसी भी प्रकार का अंतर आने वाला नहीं है। ऐसा मानकर चलने के कारण चुनावों के प्रति सरकारी कर्मचारियों के रुख में आमतौर पर कोई विशेष परि- वर्तन दिखाई नहीं दिया है । पर फिर भी ऐसे उदाहरण सुनने में आये जिनमें कुछ अधिकारियों ने एक राजनैतिक दल-खासकर सत्तारूढ दल की ओर अपना सम्मान प्रकट किया तो कुछ ने स्वतंत्र दल व जनसंघ के प्रति अपना झुकाव दिखाया ।
चुनाव के खर्चे में कमी अथवा वृद्धि का जहां तक ताल्लुक है इसमें कमी का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि सभी चीजों के भावों को गत पांच वर्षों में वृद्धि हुई है, यहां तक कि भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की दरें भी वढ़ी हुई सुनने में आई हैं । परन्तु इस बार विपक्षी दलों के गठबंधन के कारण चुनाव दंगल में भाग लेने वाले विरोधी दलों के उम्मीदवार अपनी जीत के बारे में विस्त नजर आते थे । वैसे कहने को तो ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार भी जिनकी जमानत जब्त होने तक में उनके सिवाय शायद ही किसी को शक हो, अपनी जीत को डींग हाकने से वाज़ नहीं आते थे । आम चुनाव में सत्य का जैसा व्यापक, व्यवस्थित और जाना वझा व्यवहार होता है, उसका दूसरा उदाहरण शायद ही मिल सके। पर जिन क्षेत्रों में कुछ जाने-माने असाधारण उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे उनमें किए जाने वाले चुनाव के खर्चे के कड़े इस जमाने में भी चौंका देने वाले माने जायेगे । यद्यपि उनके खर्चे का सही अनुमान लगाना तो आसान नहीं है पर इतना अवश्य है कि उनके खर्चे की सीमा हजारों तक ही सीमित न रहकर लाखों तक पहुँच गई है - यह बात सभी मंजूर करेंगे । चौथे ग्राम चुनाव की यह अपनी विशेषता ही मानी जायेगी ।
चुनाव प्रचार के दौरान वोलने तथा प्रकाशन के मामलों में स्तर संबंधी मर्यादाओं का पालन किस सीमा तक किया गया इसका विस्तृत उल्लेख तो चुनाव सम्बन्धी प्रकरण में किया जा चुका है, पर इस दृष्टि से पांच वर्षों में किसी प्रकार का परिवर्तन आया हो ऐसा नहीं लगता । आम लोगों में चुनाव के प्रचार के तौर-तरीके तथा वृत्तियां जैसी की तैसी रही हैं उनमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया है। इतना अवश्य है कि कुछ दल पहिले से संगठित अधिक क्षमतावान वन गए हैं तो कुछ दल कमजोर भी
हुए हैं ।
समाचार पत्रों का रस - राज्य के दैनिक समाचार पत्रों में प्रयको बार कांग्रेस विरोधी रुख साफ दिखाई देता था, इसके कारण चाहे जो भी रहे हो । कांग्रेस को इस बार श्रपदस्थ करने का वातावरण बनाने में नाका मी बहुत बड़ा हाथ रहा है । बड़े से बड़े समाचार पत्रों में नो एक या दूसरे दल का तथा कुछ विशेष चुनाव क्षेत्रों में इस या उस विशिष्ट उम्मीदवार का समर्थन या विरोध करने में जैसा सातत्य और कौशल प्रकट किया गया, वह शीत युद्ध और पक्षपात का बहुत स्पष्ट और अध्ययन करने योग्य विषय है ।
मतदान के लिए निर्णय का प्राधार सामान्य मतदाता अपना मत देने से पूर्व तत्सम्बन्धी निर्णय लेते समय किन किन बातों से प्रभावित होता है यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है इसे कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। यह कहना हो होगा कि हमारे देश के करोड़ों मतशताओं का काफी बड़ा हिस्सा प्रशिक्षित है। इस कारण इस वर्ग से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह विभिन्न दनों के आदर्शी, राजनीति तथा सिद्धान्तों का विवेचनात्मक विश्लेषण करने की स्थिति में हो । जब तक उसमें इसके लिए योग्यता और क्षमता पैदा न हो सके तव तक सामान्य भारतीय मतदाता से यह उम्मीद करना कि वह दल के प्रादर्शों के आधार पर उम्मीदवारों के सम्बन्ध में निर्णय कर सकेगा, उचित नहीं माना जा सकता । इस स्तर की योग्यता के लिए मतदाताओं का साक्षर हो जाना ही ( यद्यपि अभी तो करोड़ों मतदाता साक्षर भी नहीं है) नहीं है । आवश्यकता इस बात की है कि उनका सामान्य ज्ञान परिपक्व हो कि वे विभिन्न राजनैतिक दलों की विचारधाराश्रों के अन्तर घोर महत्व को समझ सकें और उनके कार्य से विचारों की व्यवहारिता को नाप सकें ।
इसी पृष्ठभूमि में तभी यह प्रश्न उठता है कि धाज जबकि देश में लगभग ६०-७० प्रतिशत मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते है, सामान्य मतदाता सोच-समझ कर मत देता है प्रयवा केवल बोभा उतारने की दृष्टि से हो अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है ? चुनाव औौर मतदान के दौरान जनमानत के इस दृष्टि से किए गए अध्ययन से सहज हो इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि मतदान के सम्बन्ध में मतदाता ने सामान्यतः उन्हीं बातों से प्रभावित होकर अपना फैसला किया है जो उम्मीदवार की योग्यता भौर क्षमता के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने में सहायक नहीं मानी जा सकती है। उन सभी तथ्यों पर हम मागे एक एक कर विचार करें तो अधिक सही होगा ।
स्थानीय प्रमुख लोगों का प्रभाव हमारे देश में केवल कुछ अपवादों को छोड़कर सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों के बारे में यह धारणा बनी हुई है
और जिसे निराधार भी नहीं माना जा सकता, कि सभी निर्वाचित होने वाले लोग पांच वर्ष में एक बार तो अपने क्षेत्र के गांव गांव में चक्कर लगाते हैं, गांव वालों के हमदर्द होने का ढिढोरा पीटते हैं, उनके दुख दर्द दूर करने के लम्बे चौड़े वादे करते हैं, उनकी शिकवा - शिकायतों को ध्यान पूर्वक सुनते हैं, पर चुने जाने के बाद गांव और मतदाताओं के पास जाना तो दूर रहा, मौके वे मौके जब कोई मतदाता इन निर्वाचित प्रतिनिधियों तक स्वयं पहुंचते हैं तब भी उनकी बात नहीं सुनते । जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा मतदाताओं के पारस्परिक सम्बन्धों और पसी विश्वास की यह स्थिति हो, वहां यह सोचना कि मतदाता अपने उम्मीदवार के सम्बन्ध में गुरगावगुरण की दृष्टि से निर्णय करता होगा, उचित नहीं माना जा सकता। असल में सामान्य मतदाता उन व्यक्तियों से प्रभावित होकर ही इस सम्बन्ध में अपना निर्णय करता है जो चुनाव प्रचार के सिलसिले में प्रमुक उम्मीदवार का पक्ष लेकर उस तक पहुंचते हैं । सामान्यतः उम्मीदवार ग्राम मतदाता तक पहुंचने के लिए उन लोगों को अपना माध्यम बनाते हैं जिनका सम्बन्धित क्षेत्र में स्थानीयता के कारण अपना प्रभाव होता है । यह लोग मतदाताओं को जिस हद तक प्रभावित कर पाते हैं, उतनी सीमा तक अमुक उम्मीदवार की जीत की संभावनायें उस क्षेत्र में वनती जाती हैं ।
दलीय प्रदर्श-जहां तक दल विशेष की प्रतिष्ठा और राजनीति सम्वन्धी तथ्यों द्वारा इस क्षेत्र में प्रभाव डालने का ताल्लुक है, यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि देश की वर्तमान समाज व्यवस्था में बहुत बड़ा परिवर्तन होने, मतदाताओं में व्यापक राजनैतिक चेतना पनपने तथा गुरगावगुण की दृष्टि से निर्णय लेने लायक वौद्धिक परिपक्वता होने तक हमें इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी । दलीय आदर्शों तथा सिद्धान्तों के आधार पर मतदाताओं द्वारा उम्मीदवारों के सम्बन्ध में निर्णय लेने का प्रतिशत इतना कम है कि उसे नगण्य की ही संज्ञा दी जाय तो अनुचित नहीं होगा ।
उम्मीदवार से लाभ की प्राशा - यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सामान्य मतदाता मत देने से पूर्व यह भी सोचता है कि कौनसा उम्मीदवार उसे किस हद तक लाभ पहुॅचा सकता है और इस आधार पर भी वह अपना मत देता है । इस लाभ की परिभाषा अत्यधिक व्यापक है। इसमें एक ओर जहां उम्मीदवार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता शामिल है वहां दूसरी |
0a4e97e7e690696787a34806cb6ff35fc917ee34 | web | वर्ष 2022 का राशि फल 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा .... . ?
नौकरी में परिवर्तन का योग बन रहा।
मई से जुलाई का समय चुनौतीपूर्ण होगा। अगस्त से दिसम्बर का कालखंड आपके लिए समय अति अनुकूल होगा। नोकरी के लिए उत्तम रहेगा।
धैर्य एवम वुद्धि से कार्य करे । कोई भी महत्वपूर्ण करने के पूर्व माता पिता का सलाह लेकर ही कार्य करे।
भगवान सूर्य की आराधना करें. . दिवापति सूर्य को जलाभिषेक करे।
नूतनवर्ष 2022 आपके लिए बहुत ही अच्छा रहेगा।
नया प्रकार का व्यापार करने का योग बन रहा हैं। अनेक प्रकार का व्यापार करने का प्रबल योग बन रहा है। जीवनसंगिनी के स्वास्थ्य में सुधार होने का योग बन रहा है। शुभ कार्यों में धन खर्च का योग बन रहा है। देश-विदेश की यात्रा का प्रबल योग बन रहा हैं।
जनवरी से अप्रैल तक धन धन के लिये उत्तम समय चल रहा हैं ।
मई से सितंबर तक एवम सितंबर से दिसंबर तक समय उतार-चढ़ाव एवम संघर्ष का रहेगा। नये तरह का व्यापार से लाभ का योग बन रहा है।
सावधानिया-जल्दबाजी में कोई कार्य न करें नुकसान हो सकता है।
भगवान शिव की आराधना करें।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करे।
मंत्र का जप करें।
यह नया वर्ष 2022 आपके लिये प्रगति एवम नोकरी के लिये अति महत्वपूर्ण वर्ष आपके लिये सिद्ध होगा।
साहित्य ,लेखन कार्य, पत्रकारिता मीडिया इंडस्ट्री एवम अनेक क्षेत्रो से धन प्राप्ति का योग बन रहा है। मातृ सुख और पत्नी सुख मिलने का प्रबल योग बन रहा हैं। सरकारी नौकरी का प्रप्त योग बन रहा। विदेश यात्रा कर का भी प्रबल योग बन रहा हैं। भूमि, भवन और रियल एस्टेट में निवेश से लाभ होगा। जनवरी सेमई से अगस्त का समय नए कार्य के लिए अति शुभ रहेगा । नौकरी के उत्तम समय रहेगा, विवाह के लिये एवम सितम्बर में नौकरी, एवम धन लाभ के उत्तम समय रहेगा। पुनः अक्तूवर से दिसम्बर का स्वर्णिम समय रहेगा।
सावधानी- अपनी गोपनीयता वरते एवम खान पान पर नियंत्रण रखें।
हरी वस्तु का दान करें।
पञ्चमेवा के खीर से हवन करें।
नए विजन और आईडिया से चतुर्दक धन लाभ का योग बन रहा हैं । संतान सुख प्राप्त होने का योग बन रहा हैं।
पत्नी को सरकारी नौकरी प्राप्ति का योग बन रहा है। सरकार और राजनीति से लाभ के योग प्रबल योग बन रहे है। संततियों के प्रगति से मन प्रसन्न रहेगा। जनवरी से जून तक का कालखण्ड अति उत्तम रहेगा। अनेक क्षेत्रों से धन लाभ का योग बन रहा है। भवन और वाहन खरीदने का योग बन रहा हैं। जुलाई से अगस्त का समय अच्छा रहेगा। पुनः सितम्बर से दिसम्बर का कालखंड उतार चढ़ाव से युक्त रहेगा।
सावधानी- मन को भटकने से रोके । कोई भी कार्य पूर्ण समर्पण से कार्य करें । सफलता आपका अनुगमन करेगा।
गरीबों की मदद करे।
। । ॐ प्रां प्रीं प्रौ सःश्री चन्द्रमसे नमः। ।
। । ॐ सोम सोमाय नमः। ।
मंत्र का नियमित जप करें उत्तम रहेगा।
-यह नव वर्ष 2022 आपके श्रेष्ठता लिये रहेगा ,आपके समस्त इच्छित कार्यों को सम्पन्न करेगा।
व्यापार से प्रचुर मात्रा में धन लाभ का योग बन रहा है। परिवार में शुभ कार्य एवम गृह निर्माण का प्रबल योग बन रहा हैं।
नौकरी में पदोन्नति के महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। अक्टूबर से दिसम्बर तक का कालखंड अति उत्तम रहेगा। अनेक क्षेत्रों से धन लाभ का प्रबल योग बन रहा हैं।
लक्ष्य निर्धारित करके ही कार्य की शुरुआत करें।
आलस्य का परित्याग करना ही श्रेष्कर रहेगा।
गाय को गुड़ और रोटी वर्ष पर्यंन्त खिलावे।
लाल वस्तु का दान करे।
दिवापति सूर्य की आराधना करें व नियमित गायत्री मंत्र का जप करना आपके लिये अति उत्तम रहेगा।
यह अंग्रेजी नव वर्ष 2022 आपके लिये श्रेष्ठता लिये रहेगा। विभिन्न प्रकार के श्रोत से आर्थिक लाभ का योग बन रहा है। माली हालत में उत्तरोत्तर सुधार होगा।
आलस्य छोड़कर कर्म करने का समय का सदुपयोग करे।
हवाई महल बनाने के वजाय अपने लक्ष्यों एवम कर्म पर ही सिर्फ ध्यान दे। चतुर्दिक क्षेत्रों से धन लाभ एवम प्रगति का योग दिख रहा है।
नया घर खरीद सकते हैं प्रवल योग बन रहा हैं।
सितंबर से दिसंबर का समय अति शुभ एवम अनेक क्षेत्रों से लाभ में फलदायक रहेगा।
सावधानी -गुस्से एवम आलस्य का परित्याग करे। जो व्यवहार एवम स्वभाव आपको खराब लगे उस तरह का व्यवहार आप किसी दूसरे के साथ न करें।
पंचमेवा की खीर से हवन करें। एवम नियमित गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें।
यह अंग्रेजी नव वर्ष 2022 आपके लिये धन धान्य भूमि भवन के लिये अति श्रेष्ठता लिए रहेग। सरकारी नोकरी,धन धान्य के लिये उत्तम रहेगा । जीवन साथी एवम माता पिता से समस्त रिश्तों में सुधार होगा। घर मे शुभ कार्य एवम अनेक प्रकार के कार्यों से लाभ का प्रबल योग बन रहा हैं। वाणी पर नियंत्रण रखें। जनवरी से लेकर जून कीमती सलाह , लेखन कार्य और साहित्य से धन लाभ होगा।
नया घर, जमीन और वाहन खरीदने का योग बन रहा है।
परिवार में शुभ कार्य होने से खुशी आएगी।
नये प्रकार की नौकरी और नौकरी में पदोन्नत्ति का योग बन रहा हैं।
अपनी गोपनीयता वरते ,अपने लक्ष्यों के प्रति ध्यान दे। समय का सदुपयोग करना ही हितकर रहेगा।
भगवान शिव की आराधना करें। ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें।
हरे वस्तु या पिस्ता से बनी चीजों का दान करें।
चल-अचल संपत्ति से लाभ प्रचुर मात्रा लाभ होगा।
जून लेकर से अगस्त का समय अनुकूल एवम बेहद शुभ रहेगा। पुनः सितम्बर से लेकर दिसम्बर का समय आपके लिये चातुर्दिक विकास के लिये अति उत्तम रहेगा।
हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्ट स्वाहा मंत्र का जप करे।
संतान सुख और पत्नी से अपने निजी सम्बन्धों में सुधार होगा। सरकारी नौकरी और पदोन्नति का योग बन रहा है। विदेश यात्रा से धन लाभ होगा।
पुनः अक्टूबर से लेकर दिसम्बर का समय चुनौती भरा रहेगा। किन्तु आपको प्रतिकूल में भी अनुकूलता लिये रहेगा।
गुस्से एवम खान पान पर नियंत्रण रखें।
अपनी गोपनियता बरते।
गाय को गुण एवम रोटी खिलाएं।
यह अंग्रेजी नव वर्ष 2022 आपके लिये रोज़ी रोटी रोजगार एवम नये व्यापार एवम नये कार्यों के लिये उत्तम रहेगा।
सामाजिक प्रतिष्ठा और यश पद सम्मान में वृद्धि का योग बन रहा हैं। पत्नी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। वाद विवाद से बचने की कोशिश करे।
जनवरी से जून तक भूमि, भवन का सुख प्राप्त होगा।
नए व्यापार से धन लाभ के योग बन रहा है। रुका हुआ धन मिल सकता है।
रोग एवम सावधानी बरते।
अज्ञात व्यक्ति से कोई नये प्रकार का डील न करें।
अपने सम्बन्धों में सुधार करे नये मित्र एवम नवीन सम्बन्ध सोच समझ कर ही बनावे।
जल्द बाजी में किया गया कार्य नुकसान दायक सिद्ध हो सकता है।
शनिवार को शनि मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
ग़रीबो की मदद करे।
दरिद्र नारायण की सेवा करे।
कम्बल दान करें।
तनाव लेने एवम देने से बचें।
घर, वाहन खरीदने का योग बन रहा है मातापिता का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
विदेश यात्रा का योग बन रहा है। चातुर्दिक लाभ होगा।
जनवरी, फरवरी,मार्च,अप्रैल आर्थिक दृष्टिकोण से उत्तम सिद्ध होगा।
अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर एवम दिसम्बर का महीना प्रतिकूलता में भी अनुकूलता लिये रहेगा सारे प्रयासरत कार्यों में बड़ी सफलता मिलने का योग बन रहा हैं। 2022 बेहद शुभ सिद्ध होगा आपके लिये।
हनुमान जी की आराधना करें। काला तिल दान करे गरीबों को भोजन एवम शिक्षा की व्यवस्था करें।
शनिवार को काली वस्तु ना खरीदें।
अंग्रेजी नूतन वर्ष 2022 आपके लिये बहुत ही सर्वोत्तम सिद्ध होगा। आर्थिक स्थिति मजबूत होंगी। मित्रों एवम उच्चस्थ अधिकारियों का सहयोग से आगे बढ़ेंगे। परिवार में शुभ कार्य होने का योग है। भूमि भवन से लाभ होगा।
मेहनत से आर्थिक लाभ होगा । संततियों के प्रगति से मन प्रसन्न रहेगा।
सरकारी तंत्र और राजनीति से लाभ का योग बन रहा है।
आय के नएश्रोत बनेंगे।
जनवरी,फ़रवरी मार्च एवम अप्रैल आपके लिये उत्तम रहेगा। पुनः मई, जून उतार चढ़ाव से युक्त रहेगा तनाव की स्थिति बनी रहेगी ।
सितंबर ,अक्टूबर, नवम्बर एवम दिसंबर का समय उत्तम रहेगा। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी नये व्यापार से लाभ के अवसर मिलेंगे।
भावेश में आकर कोई कार्य न करें। मन पर नियंत्रण करे।
विवादों से बचें एवम मध्यम मार्ग अपनाना श्रेयस्कर रहेगा।
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें।
। । ॐ नमो भगवते परमात्मने नमः। ।
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी है नाथ नारायण वासुदेवाय मन्त्र का जप करना लाभकारी रहेगा।
गाय को गुड़ एवम रोटी जरूर खिलावे।
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92ab56ac20c5014a524ae2565bbcee2683ba5ad7643decab3ea3c151b8d365da | pdf | हो या सिद्धासन हो; पर बैठना चाहिये सरल भावसे । भगवान्ने गीतामे छठे अध्यायके १३वें श्लोकमे बताया है-ससं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः । सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥
'काया, सिर और गलेको समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिकाके अग्र भागपर दृष्टि जमाकर, अन्य दिशाओको न देखता हुआ ( ध्यान करे )
ध्यानका स्थान एकान्त और पवित्र होना चाहिये। ध्यानके समय प्रथम 'नारायण' नामकी ध्वनि करके भगवान्का आवाहन करना चाहिये । 'नारायण' भगवान् विष्णुका नाम है । नारायण शब्दमे चार अक्षर है-ना रा य ण और भगवान् विष्णुके चार भुजाएँ है, चार ही आयुध है - शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म । ऐसे भगवान् विष्णुका ध्यान करना चाहिये । भगवान्का स्वरूप बहुत ही अद्भुत और सुन्दर है । भगवान्का ध्यान पहले बाहर आकाशमे करे । मानो भगवान् आकाशमे प्रकट हो गये है और आकाश मे स्थित होकर हमलोगोके ऊपर अपने दिव्य गुणोंकी ऐसी वर्षा कर रहे हैं कि हम अनुपम आनन्दका अनुभव करते हुए आनन्दमुग्ध हो रहे है । जैसे पूर्णिमाका चन्द्रमा आकाशमे स्थित होकर अमृतकी वर्षा करता है, वैसे ही आकाशमें स्थित होकर भगवान् अपने गुणोकी वर्षा कर रहे है । क्षमा, शान्ति, समता, ज्ञान, वैराग्य, दया, प्रेम और आनन्दकी मानो अजस्र वर्षा हो रही है और हमलोग उसमे सर्वथा मग्न हो रहे है । तदनन्तर ऐसा देखे कि भगवान् आकाशमे हमसे कुछ ही दूरपर स्थित है । उनका आकार करीब
५५॥ फुट लंवा और करीब ११ - १॥ फुट चौड़ा है । भगवान्के श्रीअङ्गका वर्ण आकाशके सदृश नील है, परंतु उस नीलिमाके साथ ही भगवान्मे अत्यन्त उज्ज्वल दिव्य प्रकाश है । अतएव नीलिमाके साथ उस प्रकाशकी उज्ज्वलताका सम्मिश्रण होनेसे एक विलक्षण वर्णकी ज्योति बन गयी है । इस प्रकारका भगवान्का चमकता हुआ नीलोज्ज्वल सुन्दर वर्ण है । भगवान्का शरीर दिव्य भगवत्स्वरूप ही है । हमलोगोंके शरीरकी धातु पार्थिव है, भगवान्का श्रीविग्रह तैजस धातुका और चिन्मय ( चेतन ) है । सूर्य लाल रंगका है, किंतु प्रकाश विशेष होनेसे और समीप आनेसे वह श्वेतोज्ज्वल रंगका दीखता है, इसी प्रकार भगवान्का स्वरूप नील वर्णका होने पर भी महान् प्रकाश होनेसे और समीप आनेसे वह ज्योतिर्मय श्वेत वर्ण-सा दीखता है । सूर्यके तेजमे बड़ी भारी गरमी रहती है, परंतु भगवान्के तेजोमय स्वरूप में दिव्य और सुहावनी शीतलता है । वह अपार शान्तिमय है । भगवान्के चरणयुगल बहुत ही सुन्दर और सुकोमल है । भगवान् के चरणतलोमे गुलावी रंगकी झलक है एवं सुन्दर-सुन्दर रेखाएँ हैं - ध्वजा, पताका, वज्र, अंकुश, यत्र, चक्र, शङ्ख तथा ऊर्ध्वरेखा आदि-आदि । भगवान् आकाशमे नीचे उतर आये है । उनके श्रीचरण जमीनको छू नही रहे है । देवता भी आकाशमें स्थित होते हैं, जमीनको नहीं छूते; फिर ये तो देवोके भी परम देव हैं । भगवान् के सुन्दर सुमृदुल चरणकमल बहुत ही चिकने हैं । उनकी अंगुलियाँ विशेष शोभायुक्त है। उनके चरणनखोकी दिव्यज्योति चमक रही है । भगवान् पीताम्बर पहने हुए और जैसे उनके चरण चमकीले, सुन्दर और सुकोमल है, ऐसे ही उनकी
पिंडलियाँ और दोनो घुटने तथा ऊरु ( जंघे ) भी हैं। भगवान्का कटिदेश बहुत पतला है, उसमें रत्नोज्ज्वल करधनी शोभित है, नाभि गम्भीर है, उदरपर त्रिबली - तीन रेखाएँ है । त्रिशाल वक्षःस्थल है, गले में अनेको प्रकारकी सुन्दर मालाएँ पहने है । सुन्दर दिव्य पुष्पोंकी एक माला घुटनोतक लटक रही है, दूसरी नाभितक है । मोतियों की माला, स्वर्णकी माला, चन्द्रहार, कौस्तुभमणि और रत्नजटित कंठा पहने है । विशाल चार भुजाएँ है, जिनमे दो भुजाएँ नीचेकी ओर लंवी पसरी हुई है। नीचेकी भुजाओमे गदा और पद्म है तथा ऊपरकी दोनों भुजाओपे शङ्ख और चक्र है । हस्ताङ्गुलियों में रत्नजटित अंगूठियाँ है। चारो हार्योोंने कड़े पहने हुए है ओर ऊपर बाजूबंद सुशोभित है । भुजाएँ चारों घुटनोतक लंबी है ओर बहुत ही सुन्दर है । ऊपरमे मोटी और नीचे से पतली है, पुष्ट हैं तथा चिकनी और चमकीली है। कंधे पुठ है । भगवान् यज्ञोपवीत धारण किये और । गुलेनार दुपट्टा ओढ़े हुए हैं । ग्रीवा अत्यन्त सुन्दर शङ्खके सदृश है, ठोडी बहुत ही मनोहर है, अधर और ओष्ठ लाल मणिके सदृश चमक रहे है । दाँतोकी पंक्ति मानो परमोज्ज्वल मोतियोकी पंक्ति है । जब भगवान् हॅसते है, तब ऐसा प्रतीत होता है, मानो सुन्दर सुषमायुक्त गुलाब या कमलका फूल खिला हुआ है । भगवान्की वाणी बड़ी ही कोमल, मधुर, सुन्दर और अर्थयुक्त है, कानोको अमृतके समान प्रिय लगती है । भगवान्की नासिका अति सुन्दर है । कपोल ( गाल ) चमक रहे है - उनपर गुलाबी रंगकी झलक है । कानोंमे रत्नजटित मकराकृति स्वर्णकुण्डल है, जिनकी झलक गालोंपर पड़ रही है और वे गाल चम चम चमक रहे हैं । भगवान् के दोनो नेत्र खिले हुए है,
जैसे प्रफुल्लित मनोहर कमलकुसुम हों । आकाशमे स्थित होकर भगवान् एकटक नेत्रोसे हमारी ओर देख रहे है और नेत्रों के द्वारा प्रेमामृतकी वर्षा कर रहे हैं । भगवान् समभावसे सबको देखते हैं, वड़े दयालु है, हमें दयाकी दृष्टिसे देख रहे हैं और मानो दया, प्रेम, ज्ञान, समता, शान्ति और आनन्दकी वर्षा कर रहे है । ऐसा लगता है कि दया, प्रेम, ज्ञान, समता, शान्ति और आनन्दकी बाढ़ आ गयी है । भगवान्के दर्शन, भाषण, स्पर्श सभी आनन्दमय है । भगवान् में जो अद्भुत मधुर गन्ध है, वह नासिकाको अमृतके समान प्रिय लगती है । भगवान्का स्पर्श करते हैं तो शरीरमे रोमाञ्च हो जाते है और हृदय ने बड़ी भारी प्रसन्नता होती है । भगवान्की भृकुटी सुन्दर, विशाल और मनोहर है । ललाट चमक रहा है, उसपर श्रीधारी तिलक सुशोभित है । ललाटपर काले घुँघराले केश चमक रहे है, केशोंपर रत्नजटित स्वर्णमुकुट सुशोभित है । भगवान्के मुखारबिन्दके चारों ओर प्रकाशकी किरणें फैली हुई हैं । भगवान्की सुन्दरता अलौकिक है, मनको वरवस आकर्षित करती है । भगवान् नेत्रोंसे हमें ऐसे देख रहे है, मानो पी ही जायेंगे। भगवान्मे पृथ्वी से बढ़कर क्षमा है, चन्द्रमा से बढ़कर शान्ति है और कामदेव से बढ़कर सुन्दरता है। कोटि-कोटि कामदेव भी उनकी सुन्दर नाके सामने लजा जाते हैं । उनके स्वरूपको देखकर पशु-पक्षी भी मोहित हो जाते हैं, मनुष्यकी तो बात ही क्या है ? उनके स्वरूपकी सुन्दरता अद्भुत है । जब भगवान् प्रकट होकर दर्शन देते है, तत्र इतना आनन्द आता है कि मनुष्यकी पलकें भी नहीं पड़ सकतीं । हृदय प्रफुल्लित हो जाता है । शरीरम रोमाञ्च और धड़कन होने लगती है । नेत्रोंमे प्रेमानन्दके
अश्रुओकी धारा बहने लगती है, वाणी गद्गद हो जाती है, कण्ठ रुक जाता है, हृदयमे आनन्द समाता नहीं । नेत्र एकटक वैसे ही देखते रहते है, जैसे चकोर पक्षी पूर्ण चन्द्रमाको देखता है। प्रभुसे हम प्रार्थना करते है कि जिस प्रकार से हम आपका ध्यानावस्थामे दिव्य दर्शन कर रहे हैं, इसी प्रकारका दर्शन हमे हर समय होता रहे । आपके नामका जप, स्वरूपका ध्यान नित्य - निरन्तर बना रहे । आपमे हमारी परम श्रद्धा हो, परम प्रेम हो । यही आप प्रार्थना है । आप ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, चन्द्रमा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी - सव कुछ हैं । आप ही इस विश्व के रचनेवाले हैं और आप ही रचनाकी सामग्री भी है । इस संसारके उपादानकारण और निर्मित्तकारण आप ही है । इसीलिये कहा जाता है कि जो कुछ है सब आपका ही स्वरूप है । आपसे यही प्रार्थना है कि जैसे आप बाहरसे आकाशमे दीखते है, ऐसे ही हमारे हृदय मे दीखते रहे ।
अब हृदयमे ध्यान करे --हृदयमे प्रफुल्लित कमल है । उस कमलपर शेपजीकी शय्या है और शेषजीपर श्रीभगवान् पौढे हुए है एवं मन्द-मन्द मुसकरा रहे है, वहीं सूक्ष्म शरीर धारणकर मै भगवान्के स्वरूपको देख रहा हूँ । भगवान् के बहुत से भक्त भगवान्के चारों ओर परिक्रमा कर रहे है और दिव्य स्तोत्रोसे उनके गुणोका स्तवन और नामोंका कीर्तन कर रहे है । मै भी उनमें शामिल हूँ । देवताओमे भगवान् शिव और ब्रह्माजी, ऋषि-मुनियोमे नारद और सनकादि, यक्षोमे कुबेर, राक्षसोंमे विभीषण, असुरोंमे प्रह्लाद और बलि, पशुओं मे
हनूमान्जी और जाम्बवान्, पक्षियोंमे काकभुशुण्डिजी, गरुड़जी, जटायु और सम्पाति, मनुष्योंमे अम्बरीष, भीष्म, ध्रुव तथा और भी बहुत-से भक्त सम्मिलित होकर स्तुति कर रहे हैं । दिव्य स्तोत्रोंक द्वारा गुण गा रहे है, परिक्रमा कर रहे हैं और प्रेममें निमग्न हो रहे है । फिर बाहर देखता हूँ तो भगवान्का उसी प्रकारका स्वरूप बाहर दीख रहा है । यही अन्तर है कि भीतर जो भगवान्का स्वरूप है, उसमे भगवती लक्ष्मीजी उनके चरण दवा रही हैं और उनकी नामिसे कमल निकला है, जिसपर ब्रह्माजी विराजमान है। बाहर देखता हूँ तो भगवान् अकेले ही दीख रहे है और आकाशमे स्थित है । जहाँ हमारे मन और नेत्र जाते है, वहीं भगवान् दीख रहे है । प्रभुको देखकर हम इतने मुग्ध हो रहे है कि हमे दूसरी कोई बात अच्छी ही नहीं लगती । प्रभुकी स्तुति भी तो क्या करें ? जो कुछ भी करते है वह वास्तवमे स्तुतिकी जगह निन्दा ही होती है । हम उनकी कितनी ही स्तुति करें, बेचारी वाणी में शक्ति ही नहीं, जो उनके अल्प गुणोंका भी वर्णन कर सके । उनके अपरिमित गुणप्रभावका वर्णन और स्तवन कौन कर सकता है ?
भगवान् को पधारे बहुत समय हो गया, अब भगवान् की पूजा करनी चाहिये। इस प्रकार ध्यान करे कि अब मै भगवान् की मानसिक पूजा कर रहा हूँ । मै देख रहा हूँ कि एक चौकी मेरे दाहिनी ओर तथा दूसरी मेरे बायीं ओर रक्खी है । चौकीका परिमाण लगभग तीन फुट चौड़ा और छः फुट लंबा है । दाहिनी ओरकी चौकीपर पूजाकी सारी पवित्र सामग्री सजायी रक्खी है । भगवान् मेरे सामने विराजमान
हैं । भगवान् स्नान करके पधारे है । वस्त्र धारण कर रक्खे है और यज्ञोपवीत सुशोभित है । अब मै पाद्य --चरण धोनेका जल लेकर भगवान्के श्रीचरणोको धो रहा हूँ, बायें हाथसे जल डाल रहा हूँ और दाहिने हाथमे चरण श्री रहा हूँ तथा मुखसे यह मन्त्र बोल रहा हूँ-ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि नारायणाय नमः ।'
फिर उस वर्तनको बायीं ओर चौकीपर रखकर, हाथ धोकर दूसरा सुगन्धयुक्त गङ्गाजलसे भरा प्याला लेता हूँ और भगवान्को अर्ध्य देता हूँ । भगवान् दोनों हाथोकी अञ्जलि पसारकर अर्ध्य ग्रहण करते हैं । इस समय उन्होंने अपने चार हाथोंके आयुध दो हाथों में ले लिये है । अर्ध्य अर्पण करते समय मै मन्त्र वोलता हूँ'ॐ हस्तयोर समर्पयामि नारायणाय नमः ।
इस प्रकार भगवान् अर्ध्य ग्रहण करके उस जलको छोड़ देते है । फिर मै उस प्यालेको बायीं ओर चौकीपर रख देता हूँ तथा हाथ धोकर, आचमनका जल लेकर भगवान्को आचमन करवाता हूँ और मन्त्र बोलता हैॐ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः । आचमनके अनन्तर भगवान्के हाथ धुलाता हूँ और प्यालेको वायीं तरफ चौकीपर रखकर हाथ धोता हूँ। फिर एक कटोरी दाहिनी ओरकी चौकीसे उठाता हूँ, जिसमें केसर, चन्दन, कुङ्कुम आदि सुगन्धित द्रव्य घिसा हुआ रक्खा है । उस कटोरीको मै बायें हाथमें
लेकर दाहिने हाथ से भगवान्के मस्तकपर तिलक करता हूँ और मन्त्र वोलता हूँ'ॐ गन्धं समर्पयामि नारायणाय नमः ।'
उसके बाद उस कटोरीको वाय ओरकी चौकीपर रख देता हूँ तथा दूसरी कटोरी लेता हूँ, जिसमे छोटे-छोटे आकारके सुन्दर मोती है, उन्हे मुक्ताफल कहते है । मैं वाये हाथमे मोतीकी कटोरी लेकर दाहिने हाथ से भगवान् के मस्तकपर मोती लगाता हूँ और यह मन्त्र वोलता हूँ---
ॐ मुक्ताफलं समर्पयामि नारायणाय नमः ।' इसके पश्चात् सुन्दर सुगन्धित पुष्पोसे दोनों अञ्जलि भरकर भगवान्पर चढ़ाता हूँ, पुष्पोंके साथ तुलसीदल भी है और यह मन्त्र वोलता हूँ'ॐ पत्रं पुष्पं समर्पयामि नारायणाय नमः
यह मन्त्र बोलकर भगवान्पर पत्र-पुष्प चढ़ा देता हूँ । इसके अनन्तर एक अत्यन्त सुन्दर सुगन्धपूर्ण वड़ी पुष्प-माला दोनों हाथों मे लेकर मुकुटपरसे गलेमे पहनाता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँॐ मालां समर्पयामि नारायणाय नमः ।
फिर देखता हूँ कि एक धूपदानी है, जिसमे निर्धूम अग्नि प्रज्वलित हो रही है, मै एक कटोरीमे जो चन्दन, कस्तूरी, केसर आदि नाना प्रकारके सुगन्धित द्रव्योंसे मिश्रित धूप रक्खी है, उसे अग्निमें डालकर भगवान्को धूप देता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँधूपमात्रापयामि नारायणाय
तदनन्तर दाहिनी ओर जो गो-घृतका दीपक प्रज्वलित हो रहा हैं, उसे हाथमे लेकर भगवान्को दिखाता हूँ और मन्त्र बोलता हूँ'ॐ दीपं दर्शयामि नारायणाय नमः ।' तत्पश्चात् दीपकको बायीं ओरकी चौकीपर रखकर हाथ धोता । एक सुन्दर वड़ी थालीमे ५६ प्रकारके भोग और ३६ प्रकारके व्यञ्जन परोसकर उसे भगवान्के सामने रत्नजटित चौकीपर रख देता हूँ । बड़ी सुन्दर स्वर्ण रत्नजटित मलयागिरि चन्दनसे बनी दो चौकियाँ, जिनकी लंबाई-चौड़ाई २।। २।। फुट है, देवताओंने पहलेसे ही लाकर रक्खी थीं, उनमें एक चौकीपर आसन बिछा था, जिसपर भगवान् विराजमान है और दूसरीपर यह भोगकी सामग्री रक्खी गयी । भोग लगाते समय मैं मन्त्र बोलता हूँॐ नैवेद्यं निवेदयामि नारायणाय नमः ।' भगवान् बड़े प्रेमसे भोजन करते है । 'थोड़ा-सा भोजन कर चुकनेपर जब वे भोजन करना बंद कर देते हैं, तब उस प्रसादवाली थालीको उठाकर बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ और हाथ धोकर पवित्र जलसे भगवान् के हाथ धुला देता हूँ । तत्पश्चात् भगवान्को शुद्ध जलसे आचमन करवाता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँ'ॐ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः ।'
फिर उस चौकीको धोकर उसपर सुन्दर सुमधुर फल रख देता हूँ, जो तैयार किये हुए है और एक सुन्दर पवित्र थालीमे रक्खे हुए हैं। भगवान् उन फलोका भोग लगाते है और मै मन्त्र बोलता हूँपरम साधन
ॐ ऋतुफलं समर्पयामि नारायणाय नमः ।' थोड़े-से फलोंका भोग लगाने पर जब भगवान् खाना बंद कर ढेते है, तब मै बचे हुए फलोंकी थालीको उठाकर बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ, जो भगवान्का प्रसाद है । फिर अपने हाथ धोकर भगवान्के हाथ धुलाता हूँ । तदनन्तर पवित्र जलसे उन्हे पुनः आचमन करवाता हूँ और मन्त्र बोलता
'ॐ पुनराचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः ।'
आचमन कराकर उस पात्रको बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ और उस चौकीको धोकर अलग रख देता हूँ । तदनन्तर हाथ धोकर एक थाली उठाता हूँ, जिसमे बढ़िया पान रक्खे है, जिनमे सुपारी, इलायची, लौंग तथा अन्य पवित्र सुगन्धित द्रव्य दिये हुए है । उस थाली को भगवान्के सामने करता हूँ । भगवान् पान लेकर चवाते हैं और मै यह मन्त्र बोलता हूँ'ॐ पूगीफलं च ताम्बूलमेलालवङ्गसहितं समर्पयामि
नारायणाय नमः ।'
इसके बाद उस पानकी थालीको बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ। फिर पवित्र जलसे अपने हाथ धोकर और भगवान्के हाथोंको धुलाकर मुख-शुद्धिके लिये उन्हे पुनः आचमन करवाता हूँ और यह मन्त्र वोलता हूँ'ॐ पुनर्मुखशुद्ध चर्थमाचमनीयं समर्पयामि नारायणाय
नमः ।।
आचमन कराकर फिर भगवान्के हाथ धुला देता हूँ और उस
भगवानुका ध्यान और मानस-पूजा
जलपात्रको बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ । इस प्रकारसे पूजा करके भगवान्को दक्षिणा देता हूँ । कुवेरने पहलेसे ही अपने भण्डारसे अमूल्य रत्न लाकर रक्खे है, वे अर्पण करता हूँ । भगवान्की वस्तु भगवान्को वैसे ही देता हूँ, जैसे सेवक अपने खामीको देता है और यह मन्त्र वोलता हूँ'ॐ दक्षिणाद्रव्यं समर्पयामि नारायणाय नमः ।' भगवान्को दक्षिणा अर्पण करके मै अपने आपको भी उनके श्रीचरणोंमे अर्पण कर देता हूँ । अब भगवान्की आरती उतारता हूँ । एक थाली लेता हूँ, उसके बीचमे कटोरी है, उसमे कर्पूर प्रकाशित हो रहा है, उसके चारों ओर माङ्गलिक द्रव्य, तुलसीदल, पुष्प, नारियल, दही, दूर्वा आदि सब सजाये हुए हैं । मै दोनों हाथोंपर थाली रखकर भगवान्की आरती उतार रहा हूँ । आरती उतारकर आरतीकी थालीको बायीं ओरकी चौकीपर रख देता हूँ । फिर हाथ धोकर भगवान् को पुष्पाञ्जलि अर्पण करता हूँ। पुष्पाञ्जलि देकर मै खड़ा हो जाता हूँ और भगवान् भी खड़े हो जाते है । फिर मैं भगवान्के चारों ओर चार परिक्रमा करता हूँ और साष्टाङ्ग प्रणाम करता हूँ । प्रणाम करके भगवान्की स्तुति गाता हूँत्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्व मम देवदेव ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै दैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः ।
यस्यान्तं न विदुः
मनसा पश्यन्ति यं योगिनो सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥
धाम पवित्रं परमं भवान् । दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ।।
परं ब्रह्म
पुरुपं शाश्वतं
इस प्रकार भगवान् की स्तुति करनेके बाद सबको आरती देकर भगवान्को लगाया हुआ प्रसाद उपस्थित भाइयोंको बाँटा जाता है । पहले तो सबके हाथ धुलाकर इकट्ठा किया हुआ चरणामृत बाँटता हूँ, फिर एक दूसरे भाई सबके हाथ धुलाते हैं, तदनन्तर तीसरे भाई भगवान्का बचा हुआ प्रसाद दे रहे हैं और चौथे भाई पुनः सबके हाथ वुलाकर आचमन कराते हैं । इस प्रकार सत्र लोग आचमन करके प्रसाद पाते हैं और फिर हाथ धोकर खड़े हो भगवान् के दिव्य स्तोत्रोंका पाठ कर रहे हैं, दिव्य स्तुति गा रहे है और भगवान् की परिक्रमा कर रहे हैं । परिक्रमा करते हुए भगवान् के दिव्य गुणोंका कीर्तन कर रहे हैं, भगवान्के नामका कीर्तन कर रहे हैं । भगवान् मुग्ध हो रहे हैं और हमलोग भी मुग्ध हो रहे हैं। इस प्रकारसे सब मिलकर भगवान्के नामका कीर्तन कर रहे हैं -
'श्रीमन्नारायण नारायण नारायण,
श्रीमन्नारायण नारायण नारायण 1भगवान्के ये मानसिक दर्शन अमृतके समान मधुर और प्रिय हैं, उनका स्पर्श भी अमृतके समान अत्यन्त प्रिय है, उनकी सुकोमल मधुर वाणी कानोंके लिये अमृतके समान है, उनकी मधुर अङ्ग गन्ध भी अमृतके समान है और भगवान्के प्रसादकी तो बात ही क्या है ?
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वह तो अपूर्व अमृतके तुल्य है । यों भगवान्के दर्शन, भाषण, स्पर्श, वार्तालाप, चिन्तन, गन्ध - सभी अमृतके तुल्य है, सभी रसमय, आनन्दमय और प्रेममय है। भगवान्की श्रीमूर्ति बड़ी मधुर है, इसीलिये उसे माधुर्यमूर्ति कहते है । उनके दर्शन बड़े ही मधुर है ।
इस प्रकार भगवान्का ध्यान करता हुआ साधक भगवान्के प्रेमानन्दमे विभोर होकर कहता है - ध्यानावस्थामे ही जब इतना बड़ा भारी आनन्द है, तब जिस समय आपके साक्षात् दर्शन होते है, उस समय तो न मालूम कितना महान् आनन्द और अपार शान्ति मिलती है । जिनको आपके साक्षात् दर्शन होते है, वे पुरुष सर्वथा धन्य है । जिनको आपके दर्शन होते है, श्रद्धा होनेपर उनके दर्शनसे ही पापोंका नाश हो जाता है, तब फिर आपके दर्शनोंकी तो बात ही क्या है ? आप साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं । आप परम धाम है, परम पवित्र है । आप साक्षात् अविनाशी पुरुष हैं । आप इस संसारकी उत्पत्ति, स्थिति, पालन करनेवाले है । आपके समान कोई भी नहीं है, आपके समान आप ही है । मै आपकी महिमाका गान कहाँतक करूँ ? क्षमा, दया, प्रेम, शान्ति, सरलता, समता, संतोष, ज्ञान, वैराग्य आदि गुणोके आप सागर है । आपके गुणोंके है । सागरकी एक बूँदके आभासका प्रभाव सारी दुनियामे व्याप्त सारे देवताओमे, मनुष्योंमे सबके गुण, प्रभाव, शक्ति आदि जो कुछ भी देखनेमे आते है, वे सब मिलकर आप गुणसागरकी एक बूँदका वे आभासमात्र है, आपके रूप लावण्यका कौन वर्णन कर सकता है ? आपका स्वरूप चिन्मय है, आपके दर्शन अलौकिक हैं, आपके प० सा० १९- |
cba4659effcc6ae0d5c05f6da9ef9935d0a4a38fc6b2642794da2bcf8f060ad0 | pdf | totally against the Constitution and the people. So, kindly consider my request to avoid or drop this attempt of simultaneous elections.
Our Hon. President spoke many things about the Government Schemes. But there is no scheme about the upliftment of Scheduled Castes and Scheduled Tribes. So kindly, include the schemes for the upliftment of Scheduled Castes of the nation who are nearly about 25 per cent of the total population.
Our Hon. President spoke about the ideal State. He quoted the saying of Tagore Ji"Where the mind of the people is without fear and the head is held high."
It is the ideal State. But everyday, there is a threat to the minority people, Scheduled Castes and women. There is no safety and security to the women in our nation. ...(Interruptions)
माननीय सभापतिः जामयांग शेरिंग नामग्याल जी, अब आप बोलिए ।
माननीय सांसद, आपकी बात हो गई है । नामग्याल जी, अब आप बोलिए । आप तीन
मिनट में अपनी बात समाप्त कीजिए । नामग्याल जी, आप अपनी बात शुरू कीजिए ।
DR. THOL THIRUMAAVALAVAN So, I would request this Government to
bring a Bill on honour killings ...(Interruptions)
श्री जामयांग शेरिंग नामग्याल (लद्दाख): महोदया, मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे जम्मूकश्मीर प्रदेश के अत्यंत दुर्गम एवं बर्फीले क्षेत्र लद्दाख के प्रतिनिधि के रूप में महामहिम राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के समर्थन में कुछ शब्द कहने का अवसर और अनुमति प्रदान की है।... ( व्यवधान)
DR. T. SUMATHY (A) THAMIZHACHI THANGAPANDIAN (CHENNAI SOUTH): Madam, kindly allow him to conclude his speech. ...(Interruptions) DR. THOL THIRUMAAVALAVAN : Madam, please allow me to conclude my speech. ...(Interruptions) This is my first speech. ...(Interruptions)
श्री जामयांग शेरिंग नामग्याल : महोदया, आज भारत की आम जनता खुशकिस्मत और गौरवान्वित है कि आजादी के इतने वर्षों बाद देश में एक आम लोगों की सरकार बनी है । जहाँ आम किसान, मजदूर, दबे-पिछड़े, गरीब, लाचार, युवक-युवतियाँ, छात्र, ठेले वाले, छोटे व्यापारी जैसे समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को पहली बार अपनी सरकार में अपने लोगों के प्रतिनिधि के रूप में देखने का अनुभव हो रहा है । मैं माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में गर्व महसूस करता हूँ और अपने क्षेत्र के निवासियों के आशीर्वाद से एक युवा होने के बावजूद भी मुझे इस सदन में खड़ा होने का जो मौका दिया, यह केवल मोदी जी की लीडरशिप में ही मुमकिन हो पाया है, इसीलिए नारा लगा है कि मोदी है तो मुमकिन है । मेरे जैसे लाखों युवा, युवतियों को भी अब समाज और देश सेवा से जुड़ने की प्रेरणा मिलने लगी है । ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठ और निस्वार्थ भाव से समाज और जनसेवा की जा सकती है । इसका अनुभव हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने न केवल हम युवाओं को सिखाया, बल्कि खुद करके भी दिखाया है।...(व्यवधान)
महोदया, मैं आपकी अनुमति से बोल रहा हूँ और एक ही समय पर दो सदस्य नहीं बोल सकते हैं । हाउस का एक डिकॉरम है । आपने मुझे अनुमति प्रदान की है और मैं आपकी अनुमति से बोल रहा हूँ।...(व्यवधान)
माननीय सभापति : आप बोलिए । मैं आपकी बात ही सुन रही हूँ ।
श्री जामयांग शेरिंग नामग्याल : महोदया, मेरे बोलने के समय पर वे खड़े होकर बोल रहे हैं, तो मैं क्या बोलूँ?...(व्यवधान)
Madam, this is my maiden speech. यह मेरी पहली स्पीच है और ये उसे भी डिस्टर्ब कर रहे हैं।...(व्यवधान) आज प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा संचालित अनेक प्रकार की योजनाओं के माध्यम से समाज के हर वर्ग को सशक्त करने का प्रयास किया जा रहा है । मैं ज्यादा लंबी सूची नहीं पढूँगा, मैं सीधा मुद्दे की बात करूँगा । मुझे वह दिन याद है जब लद्दाख के चांगथंग जैसे सुदूर सीमावर्ती क्षेत्र के एक बुजुर्ग नागरिक का जन-धन योजना के तहत पहली बार बैंक में खाता खुला । जब उनके हाथ में एटीएम कार्ड दिया गया, तो वे खुशी से रोने लगे । उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका भी कभी बैंक में खाता खुल पाएगा । अब आज तक उन्होंने सपने में क्यों नहीं सोचा, यह एक डिबेट का मुद्दा है।
पिछले 55 वर्ष इस भारत राष्ट्र पर जिन्होंने राज किया, उन्होंने लद्दाख को आज तक नहीं अपनाया । मैं इस सदन को आपके माध्यम से याद दिला दूँ कि वर्ष 1965 के युद्ध के बाद जब अक्साई चिन उस तरफ चला गया, तो किसी ने ऐसा स्टेटमेंट दिया, जिसने आज तक लद्दाख वालों को डीमोरलाइज करके रखा । उन्होंने कहा था कि वहाँ तो एक घास का तिनका भी नहीं उगता है । वहाँ केवल घास का तिनका ही नहीं, बल्कि सब जानते हैं कि वहाँ पश्मीना का उत्पादन होता है, वहाँ सोलर एनर्जी का स्कोप है, वहाँ जियो-थर्मल प्रोजेक्ट का स्कोप है, वहाँ आजकल टूरिस्ट बूमिंग पर है, वहाँ यूरेनियम है ।
इन सारी ऑपोर्च्यूनिटीज़ को अगर किसी ने जानने की कोशिश की है तो केवल नरेन्द्र मोदी जी ने ही की है । हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भारत के पहले प्रधान मंत्री हैं, जो अपने पाँच साल के कार्यकाल में लद्दाख जैसे क्षेत्र में चार बार आए हैं । मैं इसका आभार व्यक्त
करता हूं ।
माननीय सभापति जी, राष्ट्रवाद और सीमा सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए सरकार के द्वारा सैनिकों के मनोबल और आकांक्षाओं को ऊपर उठाने के लिए अनेक योजनाओं पर काम शुरू कर दिया गया है । आतंकवाद पर ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत सुरक्षा बलों को इससे निपटने की पूरी छूट दी गयी है ।
महोदया, मैंने अभी तो बोलना शुरू किया है । इसके परिणामस्वरूप कश्मीर में आतंकवादियों के सफाए के साथ-साथ राष्ट्र विरोधियों पर शिकंजा कसता जा रहा है, जिसके कारण पत्थरबाजी की घटनाओं में निरन्तर कमी आ रही है।
महोदया, 'मोदी है तो मुमकिन है ।' वैसे तो वर्तमान सरकार ने देश के सभी हिस्सों के विकास पर समान रूप से ध्यान दिया है । परन्तु, जम्मू एवं कश्मीर जैसे सीमावर्ती राज्य पर विशेष ध्यान दिया है । आतंकवादी गतिविधियों पर रोक के लिए जहां स्थानीय युवाओं की शिक्षा एवं रोजगार के लिए नए अवसर पैदा किए जा रहे हैं, वहीं आतंक और हिंसा का सहारा लेने वाले लोगों से सख्ती से निपटा जा रहा है।
सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से देश के अन्दर और बाहर के दुश्मनों और आतंकवादियों को कड़ा संदेश दिया जा रहा है ।
माननीय सभापतिः माननीय सांसद श्री लोरहो एस. फोज़ ।
श्री जामयांग शेरिंग नामग्यालः माननीय सभापति महोदया, प्लीज़, मैंने अभी अपने क्षेत्र का मुद्दा चुना है । आपकी अनुमति से मैं इसे थोड़ा-थोड़ा टच करना चाहूँगा । मैं ज्यादा समय नहीं लूंगा।
महोदया, शिक्षा को संस्कार के साथ जोड़ने पर बल दिया जा रहा है। भारत के गौरवमय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन और रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं । लद्दाख में यूनिवर्सिटी शिक्षा की व्यवस्था नहीं होने के कारण वहां के दूर-दराज के लोगों को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ रहा है।...(व्यवधान)
माननीय सभापति : अब हो गया, आप बैठ जाइए ।
... ( व्यवधान)
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54707fe7ad30b03f8122593db333d9e876034d90 | web | बिहार के कटिहार में जिले में भीषण सड़क दुर्घटना हुई है. कोढ़ा थाना क्षेत्र के दीघरी पेट्रोल पंप के पास एनएच-81 पर ट्रक और ऑटो में टक्कर हो गई. घटना में 7 लोगों की मौत हुई है. यह संख्या बढ़ भी सकती है. सभी एक ही परिवार के बताए जा रहे हैं.
मुजफ्फरपुर पुलिस ने व्यवसायी से 50 लाख रुपए की रंगदारी मामले में सोमवार को 3 शातिर बदमाशों को गिरफ्तार किया है. पकड़े गए अपराधी ने अपनी सांलीपता स्वीकार की है. एसएसपी राकेश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस करते हुए बताया है कि डीएसपी नगर राघव दयाल की टीम ने करवाई करते हुए मामले में पांच अपराधी में से तीन को गिरफ्तार कर लिया है, जिसके पास से दो पिस्टल और कारतूस बरामद किया गया है. पकड़े गए अपराधी में अमित कुमार अहियापुर, राजन कुमार मीनापुर और कुंदन कुमार मीनापुर थाना क्षेत्र के रहने वाला बताया जा रहा है.
सीबीआई की टीम दिल्ली से किशनगंज पहुंची. सृजन घोटाले में आरोपी के घर पर डुगडुगी बजाकर इश्तेहार चिपकाया गया. नैयर आलम तत्कालीन बैंक ऑफ बड़ौदा में मैनेजर के पद पर थे. जिनके पूर्णिया के सुभाष पल्ली स्थित आवास पर सीबीआई की टीम ने इश्तेहार चिपकाया.
मुजफ्फरपुर के अहियापुर थाना क्षेत्र के नजीरपुर बांध के पास बाइक सवार अपराधी ने सोमवार को एक व्यक्ति पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी, जिससे वह व्यक्ति बुरी तरह से घायल हो गया. घटना के संबंध में बताया जा रहा है कि आपसी रंजिश को लेकर इस घटना अंजाम दिया गया है. वहीं, पुलिस घायल व्यक्ति के बयान के आधार पर आगे की करवाई में जुट गई है.
नालंदा के नूरसराय थाना क्षेत्र के नीरपुर गांव में सोमवार को दो लोगों को गोली मारने की घटना हुई है. गोली लगने के बाद दोनों व्यक्तियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. डाक्टरों ने पीएमसीएच रेफर कर दिया. वहीं, आक्रोशित लोगों ने आरोपी को पकड़कर जमकर पिटाई कर दी. इस घटना को लेकर पुलिस जांच में जुट गई है.
किशनगंज में मामूली विवाद में नशेड़ी पति ने चाकू मारकर पत्नी की हत्या कर दी. घटना को अंजाम देने के बाद पति ने खुद पर भी चाकू से वारकर आत्महत्या करने की कोशिश की. वहीं, परिजनों ने दोनों घायलों को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया. मामला रविवार रात का है. पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है.
नवादा जिले के हिसुआ थाना क्षेत्र के कहरिया गांव में दो भाइयों के बीच 19 दिसम्बर को जमकर मारपीट हुई. इस मारपीट की घटना बड़े भाई राजेंद्र चौधरी बुरी तरह से घायल हो गए थे. सोमवार को राजेंद्र चौधरी ने दम तोड़ दिया, जिसके बाद आक्रोशित लोगों ने हिसुआ-नवादा पथ को दो घंटे तक जाम कर दिया. मौके पर पुलिस पहुंचकर लोगों को समझाकर जाम को हटाया.
सीवान में सात साल की बच्ची से रेप का मामला सामने आया है. बताया जाता है कि रविवार की शाम सात साल की बच्ची ट्यूशन से पढ़ कर आ रही थी. इस दौरान ही उसके साथ रेप की कोशिश की गई है. बच्ची की नानी ने कहा कि वह करीब 11 बजे पढ़कर घर से लौट रही थी. गांव का ही 50 साल का व्यक्ति बच्ची को गोद में उठाकर ले गया. कुछ देर बाद जब बच्ची की आवाज सुनकर खेत में काम कर रहे लोग दौड़े तो देखा कि आरोपी सेराज साबरी ने बच्ची को दबोचा हुआ है और बच्ची निर्वस्त्र है. गांव वालों को देख कर वह मौके से फरार हो गया. इसके बाद लोग पीड़ित बच्ची को उसके घर पहुंचा गए. आरोपी के खिलाफ बच्ची की नानी ने थाना में आवेदन देकर दुष्कर्म का आरोप लगाया है.
जमुई में सोमवार की सुबह बेखौफ अपराधियों ने गोली मार कर दो व्यक्ति की हत्या कर दी है. जमुई कप्तान शौर्य सुमन ने कहा कि अनुसंधान के बाद ही हत्या के कारण का पता चल पाएगा. पुलिस घटना की जांच में जुटी हुई है. मृतक व्यक्ति की पहचान सोनो के ही मनोज मांझी के रूप में हुई है. दूसरे युवक की पहचान बालेश्वर के रूप में की गई है जिसके घर का पता नहीं चल सका है.
कटिहार के सेमापुर दियारा में दो दिसंबर को हुए गैंगवार की घटना में इस्तेमाल की गई राइफल को पुलिस ने बरामद किया है. कटिहार एसपी जितेंद्र कुमार ने सोमवार को इसकी जानकारी दी है. दो दिसंबर को सेमापुर ओपी क्षेत्र के दियारा इलाके में गैंगवार की घटना हुई थी. इसमें चार लोगों का शव पुलिस ने बरामद किया था जबकि एक अभी तक लापता है. इस मामले में कुल 28 लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. पुलिस ने चार अभियुक्त को गुजरात के सूरत से गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार अभियुक्त से पूछताछ के दौरान घटना में इस्तेमाल राइफल छिपाने की बात बताई गई. पुलिस ने छापेमारी अभियान चलाकर दो राइफल और जिंदा कारतूस बरामद किया है.
बीजेपी के प्रवक्ता अरविंद सिंह ने सोमवार को कहा कि ललन सिंह की बात जरूर सच होगी. नीतीश कुमार एक दिन पीएम तो बन जाएंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं परमानेंट मेंटल बनेंगे. फिलहाल वो आधा तो हैं ही.
नालंदा में सोमवार की सुबह आपसी विवाद को लेकर जमकर गोलीबारी हुई है. इस दौरान दो लोगों को गोली लगी है. उनको बेहतर इलाज के रेफर कर दिया गया है. पुलिस मामले की जांच कर रही है. घटना नूरसराय थाना इलाके की है.
एलजेपी के सांसद चंदन सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना से विकास नहीं होगा. इससे उन्माद को बढ़ावा मिलेगा. चंदन सिंह ने कहा कि आज जातीय जनगणना सीएम नीतीश कुमार करवा रहे हैं, लेकिन हम सब जाति एक साथ मिलकर देश में रहेंगे तो देश का विकास होगा. जातीय जनगणना से नहीं. जातीय उन्माद को बढ़ावा देने के बाद अब लोग एक दूसरे की जाति पूछ कर आपस में ही विवाद करना शुरू कर देंगे.
नालंदा के अस्थावां थाना अंतर्गत बस्ती गांव में रविवार की रात बदमाशों ने युवक को घर से बुलाकर सिर में गोली मार दी. घटना से गांव में सनसनी फैल गई. परिजनों ने आनन-फानन में जख्मी रामबालक यादव के 30 वर्षीय पुत्र उदय कुमार को इलाज के लिए सदर अस्पताल ले गए. प्राथमिक उपचार के बाद जख्मी को पटना रेफर कर दिया गया. बताया गया कि गोली युवक के सिर के पीछे लगी है. नल जल योजना का पाइप काटने के विवाद में गोली मारने का आरोप गोतिया के चाचा मुन्ना यादव पर लगाया जा रहा है.
मोतिहारी में कार और बाइक के बीच सोमवार को जोरदार टक्कर हो गई. इसके बाद घटनास्थल पर ही बाइक सवार जन वितरण दुकानदार की मौत हो गई है. टक्कर इतनी तेज थी कि कार और बाइक दोनों रोड किनारे गड्ढे में पलट गई.
तेज प्रताप यादव ने रविवार को अपने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो जारी किया है. इसमें उनकी गोद में बैठा एक बच्चा संस्कृत में श्लोक गा रहा. तेज प्रताप उसकी गायन से काफी प्रभावित हैं.
रविवार की रात दिल्ली से पटना आ रही फ्लाइट में नशेड़ियों ने कैप्टन और एयर होस्टेस से मारपीट कर दी. फ्लाइट के कैप्टन रवि मित्तल ने लिखित शिकायत दर्ज कराई है. एयर होस्टेस के साथ बदतमीजी और छेड़खानी की बात भी कही जा रही है. बताया गया कि इस घटना में तीन लोग शामिल थे. इसमें से दो लोग गिरफ्तार हुए हैं. एक फरार है. फरार व्यक्ति ने पप्पू यादव के साथ अपनी पांच तस्वीर दिखाई थी. बताया जा रहा कि तीसरे को छोड़ने के लिए पप्पू यादव के पीए ने फोन किया था. एक ने कहा कि वह तेजस्वी यादव का आदमी है. आए दिन दिल्ली से शराब पीकर आता है. उसका नीतीश कुमार क्या कर लेंगे. फिलहाल दो लोग एयरपोर्ट थाना में बंद हैं.
सुधाकर सिंह के बयानों वाले मामले पर कार्रवाई की मांग करने वाले जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर सुधाकर सिंह ने हमला बोला. कहा कि हम इन मुखौटा का जवाब नहीं देते हैं. जो प्रवक्ता के रूप में काम करते हैं वह मुखौटा है. नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों एक ही है. आज भी नीतीश कुमार एनडीए के एजेंडा पर काम कर रहे हैं और तेजस्वी यादव ने मेरे खिलाफ कुछ नहीं बोला है.
पटनाः बिहार में दो बड़ी राजनीतिक यात्रा जारी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समाधान यात्रा का सोमवार को पांचवा दिन है. वहीं कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का भी आज पांचवा दिन है. कल कांग्रेस की यात्रा बिहार में आखिरी होगी. यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार विपक्ष के निशाने पर हैं. रविवार को सीएम का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह प्रजनन दर को लेकर जीविका दीदीयों से संवाद कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कुछ बोला जिस पर बीजेपी ने बवाल मचा दिया. नेताओं के बयानबाजी लगातार जारी हैं. हर कोई अपनी प्रतिक्रिया दे रहा.
सुधाकर सिंह मामले से भी सियासत गरम है. वह लगातार मुख्यमंत्री नीतीश पर बयान दे रहे. रविवार को सुधाकर सिंह ने सीएम और बीजेपी को एक बताया. वहीं उपेंद्र कुशवाहा को मुखौटा बताया है. उधर, जेडीयू सुधाकर मामले पर आरजेडी द्वारा एक्शन होने पर जोर दे रही. फिलहाल लालू यादव सिंगापुर में हैं. उनके बिहार आगमन के बाद ही इस मामले पर कुछ स्पष्ट होगा. आरजेडी के नेता भी इस मामले पर खूब प्रतिक्रिया दे रहे. उधर, पप्पू यादव ने भी सुधाकर सिंह और जगदानंद सिंह का घेराव किया है.
सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दरबार करते हैं. फिलहाल वो समाधान यात्रा पर हैं. सीएम पटना में नहीं हैं. ऐसे में स्पष्ट नहीं कि ये जनता दरबार होगा या नहीं होगा. मुख्यमंत्री फिलहाल राज्य के विभिन्न जिलों में जाकर लोगों से बातचीत कर रहे और उनकी समस्या का समाधान ढूंढ रहे. बिहार में अपराध का सिलसिला जारी है. रविवार को भी कई जिलों से मर्डर और लूटपाट की सूचना आई है. इसके साथ ही हम पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान रांची की एक चर्चित महिला पर गोली चलाने के मामले में आरोपी बताए जा रहे. इसके बाद जीतन राम मांझी ने उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
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a7fe201f63d1ad532e9a31337177e89fc0b4d16902704fef2e8597990666db57 | pdf | बार-बार मूर्छित होकर गिर पड़ते थे । रत्नगर्भको कुछ भी होश नहीं था, वे वेसुध होकर इलोकका पाठ करते और बीच-बीचमें जोरोंसे रुदन भी करने लगते । जैसे-तैसे गदाधर पण्डितने पकड़कर रत्नगर्भको इलोक पढ़नेसे शान्त किया । तब कहीं जाकर प्रभुको कुछ-कुछ बाह्य ज्ञान हुआ। कुछ होश होनेपर सभी मिलकर गंगा स्नान करने गये और फिर सभी प्रेममें छके हुए-से अपने-अपने घरोंको चले गये । इस प्रकार प्रभुकी सर्वप्रथम कृपा-किरणके अधिकारी रत्नगर्भाचार्य ही हुए। उन्हें ही सर्वप्रथम प्रभुकी असीम अनुकम्पाका आदि-अधिकारी समझना चाहिये ।
तृणादपि सुनोचेन तरोरपि सहिष्णुना । अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥
( श्रीकृष्णचैतन्यशिक्षाष्टक )
भक्त-गण दास्य, सख्य, वात्सल्य, शान्त और मधुर इन पाँचों भावोंके द्वारा अपने प्रियतम की उपासना करते हैं। उपासनामें ये ही पाँच भाव मुख्य समझे गये हैं, किन्तु इन पाँचोंमें भी दास्य-भाव ही सर्वश्रेष्ट और सर्वप्रधान है। या यों कह लीजिये कि दास्यभाव ही इन पाँचों भावोंका मुख्य प्राण है । दास्यभावके बिना न तो सख्य ही हो सकता है और न वात्सल्य, शान्त तथा मधुर ही । कोई भी भाव क्यों न हो, दास्यभाव उसमें अव्यक्तरूपसे जरूर छिपा रहेगा । दास्यके बिना प्रेम हो ही
छ अपने आपको तृणसे भी नीचा समझना चाहिये तथा तरुले भी अधिक सहनशील बनना चाहिये । स्वयं तो सदा अमानी ही बने रहना चाहिये, किन्तु दूसरोंको सदा सम्मान प्रदान करते रहना चाहिये । अपनेको ऐसा बना लेनेपर ही श्रीकृष्ण-कीर्तनके अधिकारी वन सकते हैं। क्योंकि श्रीकृष्ण-कीर्तन प्राणियोंके लिये सर्वदा कीर्तनीय वस्तु है ।
नहीं सकता । जो स्त्रयं दास बनना नहीं जानता वह खामी कभी वन ही नहीं सकेगा, जिसने स्वयं किसीकी उपासना तथा वन्दना नहीं की है, वह उपास्य तथा वन्दनीय हो हो नहीं सकता। तभी तो अखिल ब्रह्माण्डकोटिनायक श्रीहरि स्वयं अपने श्रीमुखसे कहते हैं 'ऋीतोऽहं तेन चार्जुन' हे अर्जुन ! भक्तोंने मुझे खरीद लिया है, मैं उनका क्रीतदास हूँ। क्योंकि वे स्वयं चराचर प्राणियोंके स्वामी हैं इसलिये स्त्रामीपनेके भावको प्रदर्शित करनेके निमित्त वे भक्त तथा ब्राह्मणोंके स्वयं दास होना स्वीकार करते हैं और उनकी पदरजको अपने मस्तकपर चढ़ानेके निमित्त सदा उनके पीछे-पीछे घूमा करते हैं ।
महाप्रभु अव भावावेशमें आकर भक्तोंके भावोंको प्रकट करने लगे । भक्तोंको सम्पूर्ण लोगोंके प्रति और भगवत्-भक्तोंके प्रति किस प्रकारके आचरण करने चाहिये, उनमें भागवत पुरुषोंके प्रति कितनी दीनता, कैसी नम्रता होनी चाहिये, इसकी शिक्षा देनेके निमित्त वे स्वयं आचरण करके लोगोंको दिखाने लगे। क्योंकि वे तो भक्ति-भावके प्रदर्शक भक्तशिरोमणि ही ठहरे । उनके सभी कार्य लोकमर्यादा-स्थापनके निमित्त होते थे । उन्होंने मर्यादाका उल्लंघन कहीं भी नहीं किया, यही तो प्रभुके जीवन में एक भारी विशेषता है।
अध्यापकीका अन्त हो गया, बाह्यशास्त्र पढ़ना तथा पढ़ाना दोनों ही छूट गये, अब न वह पहिला-सा चाञ्चल्य है और न
शास्त्रार्य तथा वाद-विवादकी उन्मादकारी धुन, अब तो इनपर दूसरी ही धुन सवार हुई है, जिस धुनमें ये सभी संसारी कामोंको ही नहीं भूल गये हैं, किन्तु अपने आपको भी विस्मृत कर बैठे हैं । इनके भाव अलौकिक हैं, इनकी बातें गूढ़ हैं, इनके चरित्र रहस्यमय हैं, भला सर्वदा स्वार्थमें ही सने रहनेवाले संसारी मनुष्य इनके भावोंको समझ ही कैसे सकते हैं । अत्र ये नित्यप्रति प्रातःकाल गङ्गा-स्नानके निमित्त जाने लगे। रास्तेमें जो भी ब्राह्मण, वैष्णव तथा वयोवृद्ध पुरुष मिलता उसे ही नम्रतापूर्वक प्रणाम करते और उसका आशीर्वाद ग्रहण करते ।
गङ्गाजीपर पहुँचकर ये प्रत्येक वैष्णवकी पदधूलिको अपने मस्तकपर चढ़ाते । उनकी वन्दना करते और भावावेशमें आकर कभी-कभी प्रदक्षिणा भी करने लगते । भक्तगण इन्हें भाँति-भाँतिके आशीर्वाद देते । कोई कहता - 'भगवान् करे आपको भगवान्की अनन्य भक्तिकी प्राप्ति हो ।" कोई कहता - 'आप प्रमुके परम प्रिय बनें ।' कोई कहता - 'श्रीकृष्ण तुम्हारी सभी मनोकामनाओंको पूर्ण करें ।' सबके आशीर्वादोंको सुनकर प्रभु उनके चरणोंमें लोट जाते और फूट-फूटकर रोने लगते । रोतेरोते कहते --- 'आप सभी वैष्णवोंके आशीर्वादका ही सहारा है, मुझ दीन-हीन कङ्गालपर आप सभी लोग कृपा कीजिये । भागवत पुरुष बड़े ही कोमल स्वभावके होते हैं, उनका हृदय करुणासे सदा भरा हुआ होता है, वे पर-पीड़ाको देखकर सदा
दुखी हुआ करते हैं। मुझ दुखियाके दुखको भी दूर करो । मुझे श्रीकृष्णसे मिला दो, मेरी मनोकामना पूर्ण कर दो, मेरे सत्संकल्पको सफल बना दो । यही मेरी आप सभी वैष्णवों के चरणोंमें विनीत प्रार्थना है
घाटपर बैठे हुए वैष्णवोंकी, प्रभु जो भी मिल जाती वही, सेवा कर देते । किसीका चन्दन ही घिस देते, किसीकी गीली धोतीको ही धो देते । किसीके जलके घड़ेको भरकर उनके घरतक पहुँचा आते। किसीके सिरमें आँवला तथा तैल ही मलने लगते । भक्तोंकी सेवा-शुश्रूपा करनेमें ये सबसे अधिक सुखका अनुभव करते । वृद्ध वैष्णव इन्हें भाँति-भाँतिके उपदेश करते । कोई कहता 'निरन्तर श्रीकृष्ण कीर्तन करते रहना ही एकमात्र सार है। तुम्हें श्रीकृष्ण ही कहना चाहिये, कृष्णके मनोहर नामका ही स्मरण करते रहना चाहिये । श्रीकृष्ण-कथाओं के अतिरिक्त अन्य कोई भी संसारी बातें न सुननी चाहिये । सम्पूर्ण जीवन श्रीकृष्णमय ही हो जाना चाहिये । खाते कृष्ण, पीते कृष्ण, चलते कृष्ण, उठते कृष्ण, बैठते कृष्ण, हँसते कृष्ण, रोते कृष्ण, इस प्रकार सदा कृष्णकृष्ण ही कहते रहना चाहिये । श्रीकृष्णनामामृतके अतिरिक्त इन्द्रियोंको किसी प्रकारके दूसरे आहारकी आवश्यकता ही नहीं है । इसीका पान करते-करते वे सदा अतृप्त ही बनी रहेंगी ।'
वृद्ध वैष्णवोंके सदुपदेशोंको ये श्रद्धा के साथ श्रवण करते, उनकी वन्दना करते और उनकी पद-धूलिको मस्तकपर चढ़ाते
तथा अञ्जन बनाकर आँखोंमें आँजने लगते । इनकी ऐसी भक्ति देखकर वैष्णव कहने लगते - 'कौन कहता है, निमाई पण्डित पागल हो गया है, ये तो श्रीकृष्ण प्रेममें मतवाले बने हुए हैं । इन्हें तो प्रेमोन्माद है । अहा ! धन्य है इनकी जननीको जिनकी कोखसे ऐसा सुपुत्र उत्पन्न हुआ । वैष्णवगण इस प्रकार इनकी परस्परमें प्रशंसा करने लगते ।'
इधर महाप्रभुकी ऐसी विचित्र दशा देखकर शचीमाता मन-ही-मन बड़ी दुखी होतीं। वह दीन होकर भगवान से प्रार्थना करती - 'प्रभो ! इस विधवाके एकमात्र आश्रयको अपनी कृपाका अधिकारी बनाओ । नाथ ! इस सदसठ वर्षकी अनाथिनी दुखियाकी दीन-हीन दशापर ध्यान दो । पति परलोकवासी बन चुके, ज्येष्ठ पुत्र बिलखती छोड़कर न जाने कहाँ चला गया । अब आगे-पीछे यही मेरा एकमात्र सहारा है। इस अन्धी वृद्धाका यह निमाई ही एकमात्र लकुटी है । इस लकुटीके ही सहारे यह संसारमें चल-फिर सकती है । हे अशरण-शरण ! इसे रोगमुक्त कीजिये, इसे सुन्दर स्वास्थ्य प्रदान कीजिये ।। भोलीभाली माता सभीके सामने अपना दुखड़ा रोतीं । रोते रोते कहने लगतीं - 'न जाने निमाईको क्या हो गया है, वह कभी तो रोता है, कभी हँसता है, कभी गाता है, कभी नाचता है, कभी रोते-रोते मूर्छित होकर गिर पड़ता है, कभी जोरोंसे दौड़ने लगता है और कभी किसी पेड़पर चढ़ जाता है।'
स्त्रियाँ भाँति-भाँतिकी बातें कहतीं । कोई कहती - 'अम्माजी ! तुम भी चड़ी भोली हो, इसमें पूछना ही क्या है, वही पुराना वायुरोग है । समय पाकर उभर आया है। किसी अच्छे वैद्यसे इसका इलाज कराइये ।'
कोई कहती - 'वायु रोग बड़ा भयकर होता है, तुम निमाईके दोनों पैरोंको बाँधकर उसे कोठरीमें बन्द करके रखा करो, खानेके लिये हरे नारियलका जल दिया करो । इससे धीरेधीरे वायुरोग दूर हो जायगा ।' कोई-कोई सलाह देतीं'शिवातैलका सिरमें मर्दन कराओ, सत्र ठीक हो जायगा । भगवान् सब भला ही करेंगे । वे ही हम सब लोगोंकी एकमात्र शरण हैं ।'
बेचारी शचीमाता सबकी बातें सुनतीं और सुनकर उदासभावसे चुप हो जातीं । इकलौते पुत्रके पैर बाँधकर उसे कोठरीमें बन्द कर देनेकी उसकी हिम्मत न पड़ती। बेचारी एक तो पुत्रके दुःखसे दुखी थी, दूसरा उसे विष्णुप्रियाका दुख था । पतिकी ऐसी दशा देखकर विष्णुप्रिया सदा चिन्तित ही बनी रहतीं । उन्हें अन्न-जल कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उदासीन-भावसे सदा पतिके ही सम्बन्धमें सोचती रहतीं। शचीमाताके बहुत अधिक आग्रह करनेपर पतिके उच्छिष्ट अन्नमेंसे दो-चार ग्रास खा लेतीं, नहीं तो सदा वैसे ही बैठी रहतीं। इससे शचीमाताका दुख दुगुना हो गया था। उनकी अवस्था सदसठ वर्षकी थी । वृद्धावस्थाके
कारण इतना दुःख उनके लिये असह्य था । किन्तु नीलाम्बर चक्रवर्तीकी पुत्रीको जगन्नाथ मिश्र - जैसे पण्डितकी धर्मपत्नीको तथा विश्वरूप और विश्वम्भर-जैसे महापुरुपोंकी माताके लिये ये सभी दुःख स्वाभाविक ही थे, वे ही इन दुःखोंका सहन करने - में भी समर्थ हो सकती थीं, साधारण स्त्रियोंका काम नहीं था, कि वे इतने भारी-भारी दुःखोंको सहन कर सकें ।
• महाप्रभुकी नूतनावस्थाकी नवद्वीपभरमें चर्चा होने लगी । जितने मुख थे उतने ही प्रकारको वातें भी होती थीं। जिसके मनमें जो आता वह उसी प्रकारकी बातें कहता । बहुत से तो कहते ---- 'ऐसा पागलपन तो हमने कभी नहीं देखा ।' बहुत-से कहते'सचमुचमें भाव तो विचित्र है कुछ समझमें नहीं आता, असली बात क्या है । चेष्टा तो पागलोंकी-सी जान नहीं पड़ती। चेहरेकी कान्ति अधिकाधिक दिव्य होती जाती है। उनके दर्शनमात्रसे ही हृदयमें हिलोरें-सी मारने लगती हैं, अन्तःकरण उमड़ने लगता है । न जाने उनकी आकृतिमें क्या जादू भरा पड़ा है । पागलोंकी भी कहीं ऐसी दशा होती है ?? कोई-कोई इन बातोंका खण्डन करते हुए कहने लगते - 'कुछ भी क्यों न हो, है तो यह मस्तिष्कका ही विकार । किसी प्रकारकी हो, यह वातव्याधिके सिवाय और कुछ नहीं है ।'
हम पहिले ही बता चुके हैं, कि श्रीवास पण्डित प्रभुके पूज्य पिताजीके परम स्नेही और सखा थे, उनकी पत्नी मालती
देवीसे शचीमाताका सखीभाव था, वे दोनों ही प्रभुको पुत्रकी भाँति प्रेम करते थे । श्रीवास पण्डितको इस बातका हार्दिक दुःख बना रहता था, कि निमाई पण्डित-जैसे समझदार और विद्वान् पुरुष भगवत्-भक्तिसे उदासीन ही बने हुए हैं, उनके मनमें सदा यही बात बनी रहती कि निमाई पण्डित कहीं वैष्णव बन जाय तो चैष्णव-धर्मका बेड़ा पार ही हो जाय। फिर वैष्णवोंकी आजकी भाँति दुर्गति कभी न हो । प्रभुके सम्बन्धमें लोगोंके मुखोंसे भाँति-भाँतिकी बातें सुनकर श्रीवास पण्डितके मनमें परम कुतूहल. हुआ, वे आनन्द और दुःखके बीचमें पड़कर भाँति-भाँतिकी वार्ते सोचने लगे । कभी तो सोचते - 'सम्भव है, वायुरोग ही उभट्ट आया हो, इस शरीरका पता ही क्या है ? शास्त्रों में इसे अनित्य और आगमापायी बताया है, रोगोंका तो यह घर ही है ।' फिर सोचते - 'लोगोंके मुखोंसे जो मैं लक्षण सुन रहा हूँ, वैसे तो भगवत् - भक्तों में ही होते हैं, मेरा हृदय भी भीतर ही भीतर किसी अज्ञात सुखका-सा अनुभव कर रहा है, कुछ भी हो, चलकर उनकी दशा देखनी चाहिये ।' यह सोचकर वे प्रभुकी दशा देखनेके निमित्त अपने घरसे चल दिये ।
महाप्रभु उस समय श्रीतुलसीजीमें जल देकर उनकी प्रदक्षिणा कर रहे थे। पिताके समान पूजनीय श्रीवास पण्डितको देखकर प्रभु उनकी ओर दौड़े और प्रेमके साथ उनके गलेसे लिपट गये । श्रीवासने प्रभुके अंगोंका स्पर्श किया । प्रभुके
अंगों के स्पर्शमात्रसे उनके शरीरमें बिजली-सी दौड़ गयी । उनके सम्पूर्ण शरीरमें रोमाञ्च हो गया । वे प्रेममें विभोर होकर एकटक प्रभुके मनोहर मुखकी ही ओर देखते रहे। प्रभुने उन्हें आदरसे ले जाकर भीतर बिठाया और उनकी गोदी में अपना सिर रखकर वे फूट-फूटकर रोने लगे । शचीमाता भी श्रीवास पण्डितको देखकर वहाँ आ गयीं और रो-रोकर प्रभुकी व्याधिकी बातें सुनाने लगीं । पुत्रस्नेहके कारण उनका गला भरा हुआ था, वे ठीक-ठीक बातें नहीं कह सकती थीं। जैसे-तैसे श्रीवास पण्डितको माताने सभी बातें सुनायी।
सब बातें सुनकर भावावेशमें श्रीवास पण्डितने कहा - 'जो इसे वायुरोग बताते हैं, वे स्वयं वायुरोगसे पीड़ित हैं। उन्हें क्या पता कि यह ऐसा रोग है जिसके लिये शिव-सनकादि बड़े-बड़े योगीजन तरसते रहते हैं । शचीदेवी ! तुम बड़भागिनी हो, जो तुम्हारे ऐसा भगवत्-भक्त पुत्र उत्पन्न हुआ। ये सब तो पूर्ण भक्तिके चिह्न हैं।'
श्रीवास पण्डितकी ऐसी बातें सुनकर माताको कुछ-कुछ सन्तोष हुआ । अधीर - भावसे प्रभुने श्रीवास पण्डितसे कहा'आज आपके दर्शनसे मुझे परम शान्ति हुई । सभी लोग मुझे वायुरोग ही बताते थे । मैं भी इसे वायुरोग ही समझता था और मेरे कारण विष्णुप्रिया तथा माताको जो दुःख होता था, उसके कारण मेरा हृदय फटा-सा जाता था । यदि आज आप यहाँ आकर मुझे इसप्रकार आश्वासन न देते तो मैं सचमुच ही
श्री श्रीचैतन्य चरितावलो २
गंगाजीनें डूत्रकर अपने प्राणोंका परित्याग कर देता । लोग मेरे सम्बन्ध में भाँति-भाँतिकी बातें करते हैं ।।
श्रीवास पण्डितने कहा - 'मेरा हृदय बार-बार कह रहा है, आपके द्वारा संसारका बड़ा भारी उद्धार होगा। आप ही भक्तोंके एकमात्र आश्रय और आराध्य बनेंगे। आपकी इस अद्वितीय और अलौकिक मादकताको देखकर तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि अखिल-कोटि-ब्रह्माण्डनायक अनादि पुरुष श्रीहरि ही अवनितल पर अवतीर्ण होकर अविद्या और अविचारका विनाश करते हुए भगवन्नामका प्रचार करेंगे। मुझे प्रतीत हो रहा है, कि सम्भवतया प्रभु इसी शरीरद्वारा उस शुभकार्यको करावें ।"
प्रभुने अधीरता के साथ कहा- 'मैं तो आपके पुत्रके समान । वैष्णवों के चरणों में मेरी अनुरक्ति हो, ऐसा आशीर्वाद दीजिये । श्रीकृष्ण कीर्तन के अतिरिक्त कोई भी कार्य मुझे अच्छा ही न लगे यही मेरी अभिलाषा है, सदा प्रभु-प्रेममें विकल होकर मैं रोया ही करूँ, यही मेरी हार्दिक इच्छा है ।"
श्रीवास पण्डितने कहा - 'आप ही ऐसा आशीर्वाद दें, जिससे इस प्रकारका थोड़ा-बहुत पागलपन हमें भी प्राप्त हो सके । हम भी आपकी भाँति प्रेममें पागल हुए लोक बाह्य बनकर उन्मत्तोंकी भाँति नृत्य करने लगें ।
इस प्रकार बहुत देरतक इन दोनों ही महापुरुषों में विशुद्ध अन्तःकरणकी बातें होती रहीं । अन्तमें प्रभुकी अनुमति लेकर श्रीवास पण्डित अपने घरको चले आये ।
चार्य और उनका सन्देह अर्चयित्वा तु गोविन्दं तदीयान्नार्चयेत्तु यः । न स भागवतो ज्ञेयः केवलं दाम्मिकः स्मृतः ॥ ( तस्मात्सर्वप्रयत्न न वैष्णवान्पूजयेत्सदा ) * ( विष्णुपुराण)
भगवान् तो प्राणीमात्रके हृदय में विराजमान हैं । समानरूपसे संसारके अणु परमाणु में व्यास हैं, किन्तु पात्रभेदके कारण उनकी उपलब्धि भिन्न-भिन्न प्रकारसे होती है । भगवान् निशानाथकी किरणें समानरूपसे सभी वस्तुओंपर एक-सी ही पड़ती हैं। पत्थर, मिट्टी, घड़ा, वस्त्रपर भी वे ही किरणें पड़ती हैं और शीशा तथा चन्द्रकान्तमणिपर भी उन्हीं किरणोंका प्रभाव पड़ता है। मिट्टी तथा पत्थरमें निशानाथका प्रभाव प्रकट नहीं होता है, वहाँ घोर तमोगुणके कारण अव्यक्त रूपसे ही बना रहता है, किन्तु स्वच्छ और निर्मल चन्द्रकान्तमणिपर
$ जो भगवान्की पूजा तो करता है, किन्तु भगवत्-भक्त वैष्णवकी पूजा नहीं करता, वह यथार्थ में भक्त नहीं है, उसे तो दाम्भिक ही समझना चाहिये । भगवान् तो भक्तकी ही पूजासे अत्यन्त सन्तुष्ट होते हैं, इसलिये सर्व प्रयत्वसे वैष्णवोंकी ही पूजा करनी चाहिये ।
उनकी कृपाकी तनिक-सी किरण पड़ते ही उसकी विचित्र दशा हो जाती है । उन लोकसुखकारी भगवान् निशानाथकी कृपाकोर पाते ही उसका हृदय पिघलने लगता है और वह द्रवीभूत होकर बहने लगता है। इस कारण चन्द्रदेव उसके प्रति अधिकाधिक स्नेह करने लगते हैं । इसी कारण उसका नाम ही चन्द्रकान्तमणि पड़ गया । उसका चन्द्रमाके साथ नित्यका शाश्वत सम्बन्ध हो गया। वह निशानाथसे भिन्न नहीं है । निशानाथके गुणोंका उसमें समावेश हो जाता है । इसी प्रकार भक्तोंके हृदयमें भगवान्की कृपा - किरण पड़ते ही वह पिघलने लगता है । चन्द्रकान्तमणि तो चाहे, चन्द्रमाकी किरणोंसे बनी भी रहे, किन्तु भक्तोंके हृदयका फिर अस्तित्व नहीं रहता, वह कृपा-किरण के पड़ते ही पिघल-पिघलकर प्रभुके प्रेम-पीयूषार्णवमें जाकर तदाकार हो जाता है । यही भक्तोंकी विशेषता है । तभी तो गोस्वामी तुलसीदासजीने यहाँतक कह डाला है -
मोरे मन प्रभु अस विश्वासा। राम तें अधिक राम कर दासा ॥
भगवत्-भक्तोंकी महिमा ही ऐसी है, भक्तोंके समझनेके लिये भी प्रभुकी कृपाकी ही आवश्यकता है । जिसपर भगवान्की कृपा नहीं, वह भक्तोंकी महिमाको भला समझ ही क्या सकता है । जिसके हृदयमें उस रसराजके रस - सुधामयी एक बिन्दुका भी प्रवेश नहीं हुआ, जिसमें उसके ग्रहण करनेकी
किश्चिन्मात्र भी शक्ति नहीं हुई, वह रसिकताके मर्मको समझ ही कैसे सकता है ? इसीलिये रसिक-शिरोमणि भगवतरसिकजी कहते हैं'भगवत- रसिक' रसिककी बातें
रसिक बिना कोउ समुझि सके ना ।
महाप्रभुके नवानुरागकी चर्चा नदियाके सभी स्थानों में भाँति-भाँतिसे हो रही थी, उस समय सभी वैष्णव श्री अद्वैताचार्य - जीके यहाँ एकत्रित हुआ करते थे । अद्वैताचार्यके स्थानको चैष्णवोंका अखाड़ा ही कहना ठीक है। वहाँपर सभी नामीनामी वैष्णवरूपी पहलवान एकत्रित होकर भक्तितत्त्वरूपी युद्धका अभ्यास किया करते थे। प्रभुकी प्राप्तिके लिये भाँति-भाँतिके दाव-पेचोंकी उस अखाड़े में आलोचना तथा प्रत्यालोचना हुआ करती थी और सदा इस बातपर विचार होता कि कदाचाररूपी अवल शत्रु किसके द्वारा पछाड़ा जा सकता है ? वैष्णव अपने बलका विचार करते और अपनी ऐसी दुर्दशापर आँसू भी बहाते । महाप्रभुके नूतन भावकी बातोंपर यहाँ भी वाद-विवाद होने लगे । अधिकांश वैष्णव इसी पक्षमें थे कि निमाई पण्डितको भक्तिका ही आवेश है, उनके हृदयमें प्रेमका पूर्णरूपसे प्रकाश हो रहा है। उनकी सभी चेष्टाएँ अलौकिक हैं, उनके मुखके तेजको देखकर मालूम पड़ता है कि वे प्रेमके ही उन्माद - में उन्मादी बने हुए हैं, दूसरा कोई भी कारण नहीं है, किन्तु
कुछ भक्त इसके विपक्ष में थे। उनका कथन था, कि निमाई पण्डितकी भला, एक साथ ऐसी दशा किस प्रकार हो सकती है ? कलतक तो वे देवी देवता और भक्त वैष्णवोंकी खिल्लियाँ उड़ाते थे, सहसा उनमें इस प्रकारके परिवर्तनका होना असम्भव ही है । जरूर उन्हें वही पुराना वायुरोग फिरसे हो गया है । उनकी सभी चेष्टाएँ पागलोंकी-सी ही हैं ।
उन सबकी बातें सुनकर श्रीमान् अद्वैताचार्यजीने सत्रको सम्बोधित करते हुए गम्भीरताके साथ कहा - 'भाई ! आप लोग जिन निमाई पण्डितके सम्बन्ध में बातें कर रहे हो, उन्हीं के सम्बन्ध में मेरा भी एक निजी अनुभव सुन लो । तुम सत्र लोगोंको यह बात तो विदित ही है कि मैं भगवान्को प्रकट करने के निमित्त नित्य गंगा-जलसे और तुलसीसे श्रीकृष्णका पूजन किया करता हूँ । गौतमीय तन्त्रके इस वाक्यपर मुझे पूर्ण विश्वास है -
तुलसीदलमात्रेण जलस्य चुलुकेन वा । विक्रोणीते स्वमात्मानं भक्तभ्यो भक्तवत्सलः ॥
अर्थात् भगवान् ऐसे दयालु हैं कि वे भक्तिसे दिये हुए एक चुल्लू जल तथा एक तुलसीपत्रके द्वारा ही अपनी आत्माको भक्तोंके लिये दे देते हैं । इसी वाक्यपर विश्वास करके मैं तुम लोगोंको बार-बार आश्वासन दिया करता था । कल श्रीमद्भगवद्गीताके एक श्लोकका अर्थ मेरी समझमें ही नहीं आया । इसी
चिन्तामें रात्रि में बिना भोजन किये ही सो गया था। स्वप्नमें क्या देखता हूँ, कि एक गौर वर्णके तेजस्वी महापुरुष मेरे समीप आये और मुझसे कहने लगे - 'अद्वैत । जल्दीसे उठ, जिस श्लोकमें तुझे शङ्का थी, उसका अर्थ इस प्रकार है । अब तेरी मनोकामना पूर्ण हुई । जिस इच्छासे तू निरन्तर गंगा जल और तुलसीसे मेरा पूजन करता था, तेरी वह इच्छा अब सफल हो गयी । हम अब शीघ्र ही प्रकाशित हो जायेंगे । अब तुम्हें भक्तोंको अधिक दिन आश्वासन न देना होगा । अब हम थोड़े ही दिनोंमें नाम संकीर्तन आरम्भ कर देंगे। जिसकी घनघोर तुमुल ध्वनिसे दिशा - विदिशाएँ प्रतिध्वनित हो उठेंगी ।" इतना कहनेपर उन महापुरुषने अपना असली स्वरूप दिखाया। वे और कोई नहीं थे, शचीनन्दन विश्वम्भर ही ये बातें मुझसे कह रहे थे । जब इनके अग्रज विश्वरूप मेरी पाठशाला में पढ़ा करते थे, तब ये उन्हें बुलानेके निमित्त मेरे यहाँ कभी-कभी आया करते थे, इन्हें देखते ही मेरा मन हठात् इनकी ओर आकर्षित होता था, तभी मैं समझता था, कि मेरी मनोकामना इन्हींके द्वारा पूर्ण होगी। आज स्वप्नमें उन्हें देखकर तो यह बात स्पष्ट ही हो गयी । इतना कहते-कहते वृद्ध आचार्यका गला भर आया । वे फूट-फूटकर बालकोंकी भाँति रुदन करने लगे । भगवान्की भक्त-वत्सलताका स्मरण करके वे हिचकियाँ भर-भरकर रो रहे थे, इनकी ऐसी दशा देखकर अन्य वैष्णवोंकी आँखोंमेंसे भी आँसू निकलने लगे । सभीका हृदय प्रेमसे भर आया । सभी वैष्णवोंके इस भावी
उत्कर्षका स्मरण करके आनन्द-सागरमें गोता लगाने लगे । इस प्रकार बहुत सी बातें होनेके अनन्तर सभी वैष्णव अपने-अपने घरोंको चले गये ।
इधर महाप्रभुकी दशा अब और भी अधिक विचित्र होने लगी। उन्हें अब श्रीकृष्ण-कथा और वैष्णवोंके सत्सङ्गके अतिरिक्त दूसरा विषय रुचिकर ही प्रतीत नहीं होता था, वे सदा गदाधर या अन्य किसी भक्तके साथ भगवत्- चर्चा ही करते रहते थे । एक दिन प्रभुने गदाधर पण्डितसे कहा - 'गदाधर । आचार्य ! अद्वैत परम भागवत वैष्णव हैं, वे ही नवद्वीपके भक्त वैष्णवोंके शिरोमणि और आश्रयदाता हैं, आज उनके यहाँ चलकर उनकी पद-रजसे अपनेको पावन बनाना चाहिये ।'
प्रभुकी ऐसी इच्छा जानकर गदाधर उन्हें साथ लेकर अद्वैताचार्यके घरपर पहुँचे । उस समय सत्तर वर्षकी अवस्थावाले वृद्ध आचार्य बड़ी श्रद्धाभक्तिके साथ तुलसी पूजन कर रहे थे । आचार्य के सिरके सभी बाल श्वेत हो गये थे। उनके तेजोमय मुखमण्डलपर एक प्रकारकी अपूर्व आभा विराजमान थी, वे अपने सिकुड़े हुए मुखसे शुद्धता के साथ गम्भीर खरमें स्तोत्रपाठ कर रहे थे। मुखसे भगवान्की स्तुतिके मधुर श्लोक निकल रहे थे और आँखोंसे अश्रुओंकी धारा बह रही थी । उन परमभागवत. वृद्ध वैष्णवके ऐसे अपूर्व भक्तिभावको देखकर प्रभु प्रेममें गद्गद हो गये । उन्हें आवावेशमें शरीरकी कुछ भी सुध-बुध न
रही। वे मूर्छा खाकर पृथ्वीपर वेहोश होकर गिर पड़े। अद्वैताचार्यने जब अपने सामने अपने इष्टदेवको मूर्छित-दशामें पड़े हुए देखा, तब तो उनके आनन्दकी सीमा न रही। सामने रखी हुई पूजनकी थालीको उठाकर उन्होंने प्रभुके कोमल पादपनोंकी अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य और पत्रपुप्पोंसे विधिवत् पूजा की। उन इतने भारी ज्ञानी वृद्ध महापुरुषको एक बालकके पैरोंकी पूजा करते देख आश्चर्यमें चकित होकर गदाधरने उनसे कहा-'आचार्य ! आप यह क्या अनर्थ कर रहे हैं ? इतने भारी ज्ञानी, मानी और चयोवृद्ध पण्डित होकर आप एक बच्चेके पैरोंकी पूजा करके उसके ऊपर पाप चढ़ा रहे हैं।'
गदाधरकी ऐसी बात सुनकर हँसते हुए आचार्य अद्वैतने उत्तर दिया - 'गदाधर ! तुम थोड़े दिनोंके बाद इस वालकका महत्व समझने लगोगे । सभी वैष्णव इनके चरणोंकी पूजा करके अपनेको कृतकृत्य समझा करेंगे। अभी तुम मेरे इस कार्यको देखकर आश्चर्य करते हो । कालान्तर में तुम्हारा यह भ्रम स्वतः ही दूर हो जायगा ।'
इसी बीच प्रभुको कुछ कुछ बाह्यज्ञान हुआ । चैतन्यता प्राप्त होते ही उन्होंने आचार्यके चरण पकड़ लिये और वे रोतेरोते कहने लगे - 'प्रभो ! अब हमारा उद्धार करो। हमने अपना बहुत सा समय व्यर्थकी बकवादमें ही बरबाद किया । अब तो हमें अपने चरणोंकी शरण प्रदान कीजिये । अब तो हमें प्रेमका
थोड़ा-बहुत तत्त्व समझाइये । हम आपकी शरणमें आये हैं, आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं ।
प्रभुकी इस प्रकारकी दैन्ययुक्त प्रार्थनाको सुनकर आचार्य मौचक्के-से रह गये और कहने लगे--'प्रभो ! अब मेरे सामने अपनेको बहुत न छिपाइये । इतने दिनतक तो छिपे-छिपे रहे, अब और कबतक छिपे ही रहनेकी इच्छा है ? अब तो आपके प्रकाशमें आनेका समय आ गया है ।'
प्रभुने दीनताके साथ कहा- 'आप ही हमारे माता-पिता तथा गुरु हैं। आपका जब अनुग्रह होगा, तभी हम श्रीकृष्णप्रेम प्राप्त कर सकेंगे । आप ऐसा आशीर्वाद दीजिये, कि हम वैष्णवोंके सच्चे सेवक वन सकें ।'
इस प्रकार बहुत देरतक परस्परमें दोनों ओरसे दैन्यतायुक्त बातें होती रहीं । अन्तमें प्रभु गदाधरके साथ अपने घरको चले गये । इधर अद्वैताचार्यने सोचा - 'ये मुझे छलना चाहते हैं, यदि सचमुचमें मेरा स्वप्न सत्य होगा और ये वे ही रात्रिवाले महापुरुष होंगे तो संकीर्तनके समय मुझे खतः ही अपने पास बुला लेंगे । अब मेरा नवद्वीपमें रहना ठीक नहीं।' यह सोचकर वे नवद्वीपको छोड़कर शान्तिपुरके अपने घरमें जाकर रहने लगे।
चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिका वितरणं विद्यावधूजीवनम् । आनन्दाम्बुधिवर्द्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्त्रपनं परं विजयते श्रीकृष्ण सङ्कीर्तनम् ॥ ( पद्यावळी अं० १० 19 )
सम्पूर्ण संसार एक अज्ञात आकर्षणके अधीन होकर ही सब व्यवहार कर रहा है । अग्नि सभीको गरम प्रतीत होती है । जल सभीको शीतल ही जान पड़ता है। सर्दी-गरमी पड़नेपर उसके सुख-दुःखका अनुभव जीवमात्रको होता है। यह बात अवश्य है, कि स्थिति-भेदसे उसके अनुभवमें न्यूनाधिक्य-भाव हो जाय । किसी-न-किसी रूपमें अनुभव तो सब करते ही हैं।
● जो श्रीकृष्ण सङ्कीर्तन चित्तरूपी दर्पणका मार्जन करनेवाला है, भवरूपी महादावाग्निका शमन करनेवाला है, जीवोंके मङ्गलरूपी कैरवचन्द्रिकाका वितरण करनेवाला है, विद्यारूपी वधूका जीवन है, आनन्दरूपी सागरका वर्द्धन करनेवाला है। प्रत्येक पदंपर पूर्णामृतको आस्वादन करानेवाला है और जो सर्व प्रकारसे शीतलस्वरूप है उसकी विशेषरूपसे जय हो ।
इस जीवका आदिउत्पत्ति स्थान आनन्द ही है । आनन्दका पुत्र होनेके कारण यह सदा आनन्दकी ही खोज करता रहा है। 'मैं सदा आनन्दमें ही बना रहूँ' यह इसकी स्वाभाविक इच्छा होती है, होनी भी चाहिये । कारण, कि जनकके गुण जन्यमें जरूर ही आते हैं । इसलिये आनन्दसे ही उत्पन्न होनेके कारण यह आनन्दमें ही रहना भी चाहता है और अन्तमें आनन्दमें ही मिल भी जाता है । जलका एक बिन्दु समुद्रसे पृथक् होता है, पृथक् होकर चाहे वह अनेकों स्थानमें भ्रमण कर आवे, किन्तु अन्तमें सर्वत्र घूमकर उसे समुद्रमें ही आना पड़ेगा। समुद्रके अतिरिक्त उसकी दूसरी गति ही नहीं। भाप बनके वह बादलोंमें जायगा । बादलोंसे वर्षा बनकर पृथ्वीपर बरसेगा । पृथ्वी से वह कर तालाबमें जायगा। तालाबसे छोटी नदीमें पहुँचेगा, उसमें से फिर बड़ी नदीमें, इसी प्रकार महानदके प्रवाहके साथ मिलकर वह समुद्र में ही पहुँच जायगा । कभी-कभी क्षुद्र तालाबके संसर्गसे उसमें दुर्गन्धि-सी भी प्रतीत होने लगेगी, किन्तु चौमासेकी महा बाढ़ में वह सब दुर्गन्धि साफ हो जायगी और वह भारी वेगके साथ अपने निर्दिष्ट स्थानपर पहुँच जायगा ।
मनन करनेवाले प्राणियोंका मन एक-सा ही होता है । सर्वत्र उसकी गति एक ही भाँतिसे सञ्चालन करती है । सम्पूर्ण शरीरमें चित्तकी वृत्तियाँ किसी एक निर्धारित नियमके ही साथ कार्य करती हैं । जीवका मुख्य लक्ष्य है, अपने प्रियतमके साथ |
750f40d6798f815defd2845e1c76f630367dbfc92ecd217294858209613fce8c | pdf | ईश्वर के रूप में अपनी अलोक्कि योग्यता द्वारा उसमे मुक्त रहता है । "काल" के प्रभाव से ही "प्रकृति के गुणा" की साम्यावस्था में विक्षोम होता है तथा उनके स्वाभाविक परिणाम उत्पन्न होते है और ईश्वर द्वारा अधीक्षित "क्म के नियम के निर्देश मे महत्" का विकास होता है। यह विचित्र बात है कि यद्यपि 'महत् का "प्रकृति" को विकास यम की एक अवस्था बताया गया है तथापि उसे केवल एक सृजनात्मक अवस्था ( वृत्ति) या 'प्रकृति माना गया है, न कि एक पृथक पाय । ' भागवत के अन्य एक अवतरण में यह कहा गया है कि प्रारम्भ में ईश्वर अपनी सुप्त शक्तिया सहित स्वय म अकेला था, तथा स्वय का प्रतिविम्बित करने एवं अपना आत्मलाभ प्राप्त करने में सहायव कोई भी वस्तु न पाकर उसने काल को किया एवं अपने स्वभाव ( पुरुष ) के माध्यम से अपनी 'माया शक्ति" को साम्यावस्था मे विक्षोभ उत्पन्न किया तथा उसे चतय से ससिक्त किया और इस प्रकार प्रकृति के परिणमन द्वारा सृष्टि क्रम प्रारम्भ हुआ। एक अन्य अवतरण में यह प्रश्न उठाया गया है कि यदि ईश्वर स्वय म मुक्त है तो फिर वह स्वय को माया के बन्धन म क्से डाल सकता है, और उत्तर दिया जाता है कि वस्तुत ईश्वर का वोई बधन नहीं होता, किंतु जसे स्वप्नी में एक मनुष्य अपने सिर को अपने धड से जलग देखे अथवा लहरा के कारण पानी मे अपने प्रतिविम्ब को हिलता हुआ देखे, उसी प्रकार केवल ईश्वर का प्रतिबिम्ब ही सासारिक अनुभवा के बंधन से पीडित जीवा के रूप मे भासित होता है । अतएव यह निष्कप निकलता है कि इस दृष्टिकोण के अनुसार जीवो की सृष्टि मिथ्या है और फलत वे तथा उनके सासारिख अनुभव असत्य हाने चाहिये । उपयुक्त अवतरण के तुरत वाद में आने वाल एक अन्य अवतरण म यह निश्चित रूप से कहा गया कि जगत् चतय म क्वल भासित होता है, किन्तु वस्तुत उसका कोई अस्तित्व नही है । यह स्पष्ट है कि भागवत के ये अवतरण पिछले अनुभागा में जीव द्वारा दी गई उसके दशन की व्याख्या के स्पष्टत विरोध मे है क्योंकि इनम जीवा की तात्विक्ता तथा जगदामास की तात्विक्ता वा निषेध किया गया है। किन्तु यदि हम यह स्मरण ~ रखें कि ' भागवत ' एक यवस्थिन सम्मुच्चय न होकर विभिन्न वाला में भिन्न भिन्न लेखका से प्राप्त सवधना का एक संग्रह है तो हम ठीक एसी ही विरोधग्रस्तता की आशा कर सकते है। यदि २५, ३५ ३७ ओर ३२६ में वर्णित साम्य सिद्धा त
१ वही अध्याय २५ २२, २३ ।
भागवत पुराण ३७ ६ १२ ।
* श्रर्थामाव विनिश्चित्य प्रतीतस्यापि नात्मन । वही ३७, १८ अात्मन प्रपचस्य प्रतीतस्यापि अर्थाभावमर्योऽत्र नास्ति किंतु प्रतीति मात्रम् ।
भागवत" पर श्रीधर की टीका ३७१८ ।
की सगतिपूर्ण व्याख्या की जाय ता यह निष्कप निकलता है कि इश्वर और उसकी माया" या प्रकृति-य दो मूलभूत पदाथ हैं ईश्वर श्रात्मा लाभ करन की इच्छा से स्वय का "प्रकृति" मे ( जो उसी की शक्ति है) प्रतिविम्बित करता है और अपनी हो शक्ति में अपने का गर्भाधृत कर "प्रकृति" के बघन से पीडित जीवा के रूप में भासित होता है पुन उसके स्वयं का इस प्रकार गर्भाधान करने के द्वारा ही प्रकृति" चंतय से सजीवहोती है, और फिर वाल नामव उसके सृजनात्मक प्रयास द्वारा "प्रकृति के 'गुणा 'की साम्यावस्था का विक्षाभ होता है प्रकृति में परिणामवादी गति उत्पन्न हाती है तथा पदार्थों का विकास होता है ।
पाचवें अध्याय (५१२६ - ९ ) वे एक प्रवतरण मे निश्चय रूप से समुच्चया (अशिया) के अस्तित्व का मिथ्या बताया गया है। निरवयव परमाणुचा के अतिरिक्त वाई मत्ताएँ नही हैं तथा य परमाणु भी काल्पनिक रचनाएँ हैं जिनके बिना समुच्चया की सकल्पना सम्भव नहीं हो सकेगी। बाह्य जगत् सम्बधी हमारी समस्त सक्ल्पनाएँ परमाणुधा से प्रारम्भ होती हैं तथा जो कुछ भी हम देखते अथवा अनुभव करते हैं वह दान शनै श्रेणीबद्ध सवघना से विकसित होते हैं । सवधना का विकास कोई वास्तविक विकास नहीं होता बल्कि वाल भावना का विनियाग मात्र है । प्रत काल जगत का सह व्यापी है। परमाणु की सवत्पना लघुतम क्षरण की सक्ल्पना मात्र है औौर परमाणुग्रा के समुच्चयो वे द्वयणुका, स्थूलतर कणा इत्यादि मे विकसित हान की सक्ल्पना दिवासोमुख कालिव रचना तथा वाल क्षरणा के सवधनशील संग्रह के अतिरिक्त कुछ भी नही है । इन समस्त परिवतना मे अधिष्ठान रूप में स्थित परम सत्ता एक सव यापी परिवत्तनशील समुच्चय है जो काल की त्रिया के द्वारा क्षणो और उनके सवधना के रूप में भासित होते हैं (परमारपुत्रा तथा उनके संग्रहा वे अनुरूप ) । काल इस प्रकार 'प्रकृति की उपज नहीं है बल्कि ईश्वर की अलौकिक किया है जिसके द्वारा अव्यक्त प्रवृति" वा स्थूल जगत् में परिणामन होता है तथा समस्त विविक्त सत्ताएँ समुच्चया के रूप में भासित होती हैं। ईश्वर मे यह वाल उसको प्रतनिहित निया शक्ति के रूप में अस्तित्व रखता है। पिछने परिच्छेद मे यह
वाल के सम्बन्ध मे यह दृष्टिकाण 'याग' के दृष्टिकोण से भिन है जिसके अनुसार वाल क्षणा के रूप का है (जैसो कि विज्ञान भिक्षु न अपने 'योगवात्तिक ३५१ म याख्या की है) । वहा एक क्षण का एक गुर" करण की अपने ही परिमाप वे प्रवकाश म गति के रूप में वरणन किया गया है तथा काल की शाश्वता का निश्चय रूप से निषेध किया गया है । उस दृष्टिकारण के अनुसार काल विविक्त वे रूप वा हो हो सकता है।
बता दिया गया है कि कैसे ' जीव काल का "माया' का सक्रिय तत्व मानते थे और गुरगा को निष्क्रिय तत्व ।
"प्रकृति से विकसित होने वाला ब्रह्माण्ड के बीज प्रतविष्ट होते हैं वह विशुद्ध सम्प्रदाय कीवली के अनुसार उसे
प्रथम पताथ महत्' है जिसमें समस्त पारदर्शी सत्व" होता है ( भागवत चित्त" और "वासुदेव भी कहते हैं ) ।
"महत् से तीन प्रकार का अहवार यथा वकारिक, "तजस ' एव तामस भागवत सम्प्रदाय की शब्दावली में इस अहकार को 'सपरण" समस्त किया क्याप उपकरमत्व व काय के रूप में परिणामन का श्रेय अहवार ही को दिया जाना चाहिये । मनस की उत्पत्ति वकारिक
अहकार से होती है तथा वह भागवत सम्प्रदाय को शवलीम 'प्रनिरद्ध' वहा जाता है । यहाँ पर वरिंगत भागवत सम्प्रदाय 'वासुदेव सक्पण एव अनिरुद्ध ' नामक तीन व्यूहा म विश्वास करता था, अतएव यहां प्रद्य म्न व्यूह' की उत्पत्ति का काई उत्लख नहीं है। इस दृष्टि से प्रद्युम्न इच्छा (वाम) का प्रतिनिधित्व करता है, इच्छाएँ मनस के व्यापार मात्र हैं न वि कोई पृथक् पदाथ ।' अहकार से 'बुद्धि पदार्थ का विकास होता है। इसी पाथ के व्यापारा से नानेंद्रियो को या विषया के मनान, सशया, त्रुटिया निश्चयात्मवता स्मृति एव निद्रा की ब्यारया की जानी चाहिये । क्मेंद्रियाँ एव ज्ञानेद्रियाँ दाना तजस ग्रहकार से उत्पन्न होती है । तामस अहवार से शदतमात्र उत्पन्न होती है और शब्द तमात्र से महाभूत उत्पन्न होता है । 'आकाश महाभूत से 'रूप त मात्र उत्पन होती है तथा रूप तमात्र में तेज महाभूत उत्पन्न होता है इत्यादि ।
'पुरुष "प्रवृति म निमज्जित रहता है किंतु फिर भी अपरिवत्तनशील, गुण रहित व पूरगत निष्जिय होने के कारण वह 'प्रकृति के गुणा से किसी प्रकार भी प्रभावित नहीं होता है । यह पहले ही बताया जा चुका है कि प्रकृति का प्रभाव प्रकृति मे 'पुरुष' के प्रतिबिम्ब तक ही सीमित रहता है तथा 'प्रकृति मे प्रतिबिम्बित होने के कारण एक हो पुरुष असख्य जीवा की प्रतिच्छाया प्रक्षपित करता है । य जीव अहवार के द्वारा भ्रमित किये जाते हैं तथा स्वय को सक्रिय वर्त्ता समझने लगते हैं और यद्यपि काई वास्तविक जन्म एव पुनजाम नहीं होते हैं तथापि दु स्वप्ता द्वारा पीडित मनुष्य की भाँति व मसार चक्र वे बधन म पीडित हात रहते हैं ।
१ वही ३२६-२७ यस्य मनस सक्ल्प विकल्पाभ्या कामसम्भवौ वत्तत इति काम रूपा वृत्तिलक्षरगत्वन उत्ता न तु प्रद्म म्नव्यूहोत्पत्ति तस्य सक्ल्पादि वायत्वाभावात् । (उपरोक्त लिखित पर श्रीधर को टीका) ।
चार व्यूहा' म विश्वास करने वाले इसे 'प्रद्युम्न-व्यूह वहते हैं । |
05a2ef144b902228b5c2cba3d0c44e9d34bb9c27 | web | शॉर्टकटः मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। . आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन और उत्तर प्रदेश आम में 15 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): झाँसी, दिल्ली, पुरुषोत्तम दास टंडन, बिहार, मदनमोहन मालवीय, मध्य प्रदेश, महात्मा गांधी, मेरठ, लखनऊ, हिन्दी, वृन्दावन, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर, कृषि।
झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है। उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि मी.
दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ीः National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैंः हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .
पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया। १९५० में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया। वे जन सामान्य में राजर्षि (संधि विच्छेदः राजा+ऋषि.
बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .
महामना मदन मोहन मालवीय (25 दिसम्बर 1861 - 1946) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित करके देश सेवा के लिये तैयार करने की थी जो देश का मस्तक गौरव से ऊँचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे। कर्म ही उनका जीवन था। अनेक संस्थाओं के जनक एवं सफल संचालक के रूप में उनकी अपनी विधि व्यवस्था का सुचारु सम्पादन करते हुए उन्होंने कभी भी रोष अथवा कड़ी भाषा का प्रयोग नहीं किया। भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया। .
मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .
मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .
मेरठ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर है। यहाँ नगर निगम कार्यरत है। यह प्राचीन नगर दिल्ली से ७२ कि॰मी॰ (४४ मील) उत्तर पूर्व में स्थित है। मेरठ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (ऍन.सी.आर) का हिस्सा है। यहाँ भारतीय सेना की एक छावनी भी है। यह उत्तर प्रदेश के सबसे तेजी से विकसित और शिक्षित होते जिलों में से एक है। मेरठ जिले में 12 ब्लॉक,34 जिला पंचायत सदस्य,80 नगर निगम पार्षद है। मेरठ जिले में 4 लोक सभा क्षेत्र सम्मिलित हैं, सरधना विधानसभा, मुजफ्फरनगर लोकसभा में हस्तिनापुर विधानसभा, बिजनौर लोकसभा में,सिवाल खास बागपत लोकसभा क्षेत्र में और मेरठ कैंट,मेरठ दक्षिण,मेरठ शहर,किठौर मेरठ लोकसभा क्षेत्र में है .
लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .
हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .
कृष्ण बलराम मन्दिर इस्कॉन वृन्दावन वृन्दावन मथुरा क्षेत्र में एक स्थान है जो भगवान कृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण भगवान के बाललीलाओं का स्थान माना जाता है। यह मथुरा से १५ किमी कि दूरी पर है। यहाँ पर श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर की विशाल संख्या है। यहाँ स्थित बांके विहारी जी का मंदिर सबसे प्राचीन है। इसके अतिरिक्त यहाँ श्री कृष्ण बलराम, इस्कान मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, निधि वन आदिदर्शनीय स्थान है। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में अन्यत्र वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है। .
300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .
इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .
कानपुर भारतवर्ष के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ८० किलोमीटर पश्चिम स्थित यहाँ नगर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के लिए चर्चित ब्रह्मावर्त (बिठूर) के उत्तर मध्य में स्थित ध्रुवटीला त्याग और तपस्या का संदेश दे रहा है। यहाँ की आबादी लगभग २७ लाख है। .
कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन 94 संबंध है और उत्तर प्रदेश 217 है। वे आम 15 में है, समानता सूचकांक 4.82% है = 15 / (94 + 217)।
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209381b9199533f7256e68472b4ce8911429c098 | web | उन्नत पर्यवेक्षक आधुनिक तोपखाने की आंखें हैं और अक्सर उच्च-शक्ति ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स और लेजर रेंजफाइंडर का उपयोग करते हैं। आज वे डेटा टर्मिनलों से जुड़े हुए हैं जो आपको दिए गए प्रारूप में फायर कॉल डाउनलोड करने की अनुमति देते हैं।
सैन्य मामलों के कई क्षेत्रों में, डिजिटलीकरण से तोपखाने की आग को नियंत्रित करने का तरीका बदल जाता है। बंदूकें बदलती परिस्थितियों में तेजी से प्रतिक्रिया करती हैं और संभवतः मुख्यालय, पर्यवेक्षकों और स्पॉटर के एक जटिल नेटवर्क पर कम निर्भर हो जाती हैं।
तोपखाने के आगमन के बाद से, गणना ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे दुश्मन पर अधिक सटीक प्रभाव पड़ता है। बारूद की उपस्थिति से पहले ही उनकी आवश्यकता थी। कहते हैं, दो सौ ईसा पूर्व में बीजान्टिन गुलेल के "कमांडर" को भौतिकी और गणित के क्षेत्र में कुछ निश्चित ज्ञान को जानना और लागू करना चाहिए था, जो कि उदाहरण के लिए, पैदल सेना के लोगों के लिए जानना आवश्यक नहीं था। पाउडर के आगमन के साथ बस फायरिंग समाधान को परिभाषित करने की कठिनाई बढ़ गई; चीनी सूत्रों के अनुसार, चीनी प्रांत फुजियान में जनवरी 1132 में ऐसा हुआ था। चूँकि पाउडर गन के पहले इस्तेमाल के बाद से सटीकता को प्रभावित करने वाले कारकों को ध्यान में रखना चाहिए और जब फायरिंग, बाय और लार्ज, को नहीं बदला जाता हैः ऊर्ध्वाधर मार्गदर्शन, पाउडर चार्ज और फ्यूज उपकरण का कोण।
1900 के आसपास, आर्टिलरी गन का इस्तेमाल करने की रणनीति धीरे-धीरे बदलने लगी, प्रत्यक्ष आग और फायरिंग हमलों से, जब गणना ने अपने लक्ष्य को देखा, अप्रत्यक्ष आग पर या बंद पदों से, जब गन को आगे के पदों के पीछे तैनात किया गया था। चूंकि गन क्रू नंबरों को टारगेट नहीं देखा जा सकता था, टारगेट पर मौजूद विस्तृत डेटा और उसकी लोकेशन या तो फायरिंग टास्क में पहले से दर्ज की जानी चाहिए या एडवांस ऑब्जर्वर ने देखा कि टारगेट ने गन क्रू को इसके बारे में जानकारी ट्रांसमिट कर दी होगी। प्रारंभ में, आग का नियंत्रण दृश्य संकेतों द्वारा शुरू किया गया था, शुरू में सिग्नल झंडे द्वारा, और बाद में टेलीफोन द्वारा। इस तरह की स्थितीय शत्रुता में फोन काफी पर्याप्त था, जैसे कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे पर खाई का युद्ध, लेकिन जब युद्धाभ्यास की आवश्यकता थी तो पर्याप्त नहीं था। वायरलाइन लाइनें भी बहुत बार चट्टानों के अधीन थीं, दोनों दुश्मन की आग से और अपने स्वयं के बलों के आंदोलन के परिणामस्वरूप।
तोपखाने के विकास में प्रत्येक नए चरण के साथ, आग नियंत्रण में ध्यान में रखे गए कारकों की संख्या में वृद्धि हुई, और अग्नि समर्थन बनाए रखने के लिए आवश्यक योग्यता की आवश्यकताएं बढ़ गईं। यह दोनों बंदूक चालक दल और उन्नत पर्यवेक्षकों से संबंधित है। लक्ष्य का सटीक स्थान निर्धारित करना महत्वपूर्ण हो गया है, और इसलिए मानचित्र को पढ़ने की क्षमता, दूरी और दिशा का आकलन आवश्यक कौशल बन गए हैं। हालांकि, उनमें से एक उत्कृष्ट कब्जे ने उन त्रुटियों के खिलाफ भी गारंटी नहीं दी जो आसानी से अग्रणी किनारे के धुएं, गड़गड़ाहट और अराजकता में बनाई जा सकती थीं। अब हथियार की स्थिति को जानना बहुत महत्वपूर्ण हो गया, इसके सटीक निर्धारण के लिए खुफिया स्थिति पर बहुत ध्यान दिया गया। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, आमतौर पर योजनाबद्ध और निर्धारित अग्नि सहायता को स्वीकार कर लिया गया था। यह बल्कि अनम्य अभ्यास अक्सर उन्नत बलों की बदलती जरूरतों को प्रतिबिंबित नहीं करता था। सामरिक रेडियो स्टेशनों की उपस्थिति ने तोपखाने की तोपों की प्रतिक्रिया की गति को बढ़ाकर स्थिति में बदलाव करना संभव बना दिया। "लॉक-इन टारगेट" के स्वागत के कारण दृष्टि आसान हो गई और यहां तक कि तोपखाने को विमान से आग को सही करने की अनुमति दी गई। सीधे शब्दों में कहा जाए तो "ग्रिप फोर्क" का इस्तेमाल रेंज एडजस्टमेंट के लिए किया जाता है, जिसमें दो शॉट दिए जाते हैं, एक फ्लाइट के साथ, दूसरा अंडरशूट के साथ। कांटा जब्त करने के बाद, आप पहले और दूसरे शॉट के लिए शूटिंग सेटिंग्स के मूल्यों के बीच औसत मूल्यों का उपयोग करके, मारने के लिए शूटिंग शुरू कर सकते हैं, अगर वे बहुत अलग नहीं हैं। यदि प्लग को मारने के लिए आग में जाने के लिए बहुत बड़ा है, तो पर्याप्त सटीकता प्राप्त होने तक प्लग आधे (आधे) में कट जाएगा।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, तोपखाने की आग को नियंत्रित करने की प्रक्रिया में एक पर्यवेक्षक को शामिल करना आम बात हो गई। हालांकि, लक्ष्य की स्थिति और सीमा का सटीक निर्धारण एक चुनौती बना रहा। स्थिति को गंभीरता से निर्धारित करने में प्रतिबंधों ने स्व-चालित तोपखाने के विकास को रोक दिया। इसके बाद, यांत्रिक गणना उपकरणों के विकास और विकास ने उपकरण मार्गदर्शन के लिए डेटा की गणना को सरल बनाया। उनका उपयोग किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, डिवीजन के अग्नि नियंत्रण केंद्र में, जो तब रेडियो पर गन क्रू के लिए डेटा प्रसारित करता था। इसलिए, पिछली शताब्दी के 50 वर्षों तक, अंततः बंदूक चालक दल और उन्नत पर्यवेक्षकों का एक समूह बनाया गया, जिसने तोपखाने को गुणात्मक रूप से नए स्तर तक पहुंचने की अनुमति दी।
50 के दशक में माइक्रोप्रोसेसरों के आविष्कार के बाद, रक्षा सहित मानव गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उनकी तेजी से पैठ शुरू हुई। 70 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स के तेजी से विकास को देखते हुए, बंदूकधारियों ने सबसे सरल इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटरों का भी उपयोग करने की क्षमता की सराहना की, जो आपको फायरिंग के लिए अधिक सटीक डेटा प्राप्त करने की अनुमति देता है। कुछ साल बाद, जड़त्वीय नेविगेशन सिस्टम (INS) के आगमन के साथ, बंदूकों और लक्ष्यों की स्थिति का निर्धारण और भी अधिक सटीक और तेज गति से करना संभव हो गया। आमतौर पर, इस तरह की प्रणाली में कंप्यूटर और गति सेंसर होते हैं और वाहन की गति और / या स्थान निर्धारित करने के लिए मृत रेकिंग के लिए एक रोटेशन कोण होता है। हालांकि, इन पहली प्रणालियों के आकार और लागत ने आर्टिलरी इंस्ट्रूमेंटल टोही समूहों और स्व-चालित आर्टिलरी इंस्टॉलेशन में उनके उपयोग को सीमित कर दिया। सेजम (अब सफ्रान इलेक्ट्रॉनिक्स एंड डिफेंस) और स्पेरी (यूनिसिस और हनीवेल का हिस्सा) जैसी कंपनियों, जहाजों के लिए जड़त्वीय प्रणालियों के क्षेत्र में व्यापक अनुभव के साथ विमाननहमने इस तकनीक को जमीनी उपयोग के लिए अनुकूल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। यह गतिविधि मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक और इंजीनियर चार्ल्स ड्रेपर के शुरुआती काम पर आधारित थी। नेक्सटर 155 मिमी के स्व-चालित होवित्जर जीसीटी -155 न केवल एएनएन को एकीकृत करने के लिए पहले तोपखाने प्रणालियों में से एक था, लेकिन जिसमें लोडिंग सहित कई कार्य स्वचालित थे। मशीन को फ्रांसीसी सेना द्वारा 1977 में अपनाया गया था; चार लोगों की अपेक्षाकृत छोटी गणना के बावजूद, होवित्जर जल्दी से एक स्थिति ले सकता है, वापस शूट कर सकता है और जल्दी से इसे वापस ले सकता है, अगले पर जा सकता है।
उसी वर्ष के आसपास, दो और विकासों ने तोपखाने के विकास पर सकारात्मक प्रभाव डाला। पहले एक ह्यूजेस एएन / TSQ-129 PLRS पोजिशनिंग एंड रिपोर्टिंग सिस्टम, अल्ट्रा हाई फ़्रीक्वेंसी टेरेस्ट्रियल स्टेशन (300 MHz से 3 GHz तक) की एक प्रणाली है। सिस्टम का विकास यूएस मरीन कॉर्प्स के हितों में किया गया था, और इसके पूरा होने के बाद, इसने न केवल कॉर्प्स, बल्कि अमेरिकी सेना में भी प्रवेश किया, जहां इसे 80-e और 90-e वर्षों में संचालित किया गया था। यद्यपि AN / TSQ-129 PLRS ने बाद में उपग्रह ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) को बदल दिया, उस समय यह वास्तविक समय में वस्तुओं के निर्देशांक को सटीक रूप से निर्धारित करने में सेना की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम था। आर्टिलरी फायर कंट्रोल के क्षेत्र में दूसरी महत्वपूर्ण घटना एक लेजर का उपयोग करके रेंज-फाइंडिंग सिस्टम का उद्भव था। लेजर रेंज फाइंडर, जो एक पोर्टेबल या ट्राइपॉड-माउंटेड डिवाइस था, एक बटन के स्पर्श में मीटर की सटीकता के साथ लक्ष्य के लिए दूरी की वास्तविक समय माप प्रदान करता है। पर्यवेक्षक की सटीक स्थिति का संयोजन, दिगंश और लक्ष्य की दूरी ने अभूतपूर्व सटीकता के साथ लक्ष्यों के निर्देशांक को निर्धारित और रिपोर्ट करना संभव बना दिया। अमेरिकी सेना के आर्टिलरी ट्रेनिंग सेंटर के प्रतिनिधि ने इस संबंध में उल्लेख किया कि इन तकनीकों के कार्यान्वयन ने उन कई संभावनाओं का आधार बनाया है जो आधुनिक आर्टिलरी आज अधिक उन्नत प्रणालियों का उपयोग करके प्रदान करता है।
स्व-चालित हॉवित्ज़र GCT-15S पहले आर्टिलरी सिस्टमों में से एक था, जिसमें फ़र्टिलाइज़ेशन नेविगेशन, पोज़िशनिंग, कोर्स काउंटिंग और इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर का उपयोग सहित फायरिंग की प्रक्रिया को स्वचालित करने पर बहुत ध्यान दिया गया था।
डिजिटल क्रांति के बाद, जो कि 90 में शुरू हुआ था, तेजी से वैश्विक इंटरनेट और व्यक्तिगत कंप्यूटर के प्रसार के साथ, आज सिस्टम प्रदान करता है जो आकार में छोटे हैं, पिछली पीढ़ी के अग्नि नियंत्रण कंप्यूटरों की तुलना में अधिक स्मृति, बेहतर प्रदर्शन और कम लागत है। इसने तोपखाने और गोलीबारी को नियंत्रित करने के तरीकों को और बदल दिया। मुख्य लाभ यह है कि डिजिटलीकरण की प्रक्रिया ने कंप्यूटर शक्ति के अधिक व्यापक उपयोग की अनुमति दी, क्योंकि आधुनिक कंप्यूटर अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक विश्वसनीय हैं, वे ले जाने में आसान हैं, वे बंदूक या कार पर स्थापित करना भी आसान हैं। नवीनतम तकनीक को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में डेटा ट्रांसफर करने के लिए भी नेटवर्क किया जा सकता है, जो इंस्ट्रूमेंट की गणना और कमांड पोस्ट के स्थितिजन्य जागरूकता के स्तर को बढ़ाता है। जहां एक बार अग्नि मार्गदर्शन एक डिवीजनल या बैटरी कमांड पोस्ट की बात थी, आज एक या एक से अधिक बंदूकें लक्ष्य पर समान या अधिक प्रभाव के साथ, स्वतंत्र रूप से, तेजी से फायर मिशन को पूरा कर सकती हैं।
उन्नत पर्यवेक्षक या आर्टिलरी स्पॉटर संदर्भ का बिंदु है जहां से एक प्रभावी अप्रत्यक्ष आग जमीनी पैंतरेबाज़ी या बचाव का समर्थन करने लगती है। सबसे आगे प्रेक्षक तोपों की आंखें हैं। और उन्नत अवलोकन की आधुनिक प्रणाली, आलंकारिक रूप से बोलना, पारस्परिक दूरी को कम से कम करना। सफ्रान से गोनियोलाइट परिवार के रूप में ऐसी प्रणालियाँ, जो अपने वेक्ट्रोनिक्स डिवीजन द्वारा निर्मित हैं, एक एकीकृत डिजिटल चुंबकीय कम्पास का उपयोग करके अज़ीमुथ और लक्ष्य निर्देशांक के साथ उन्नत पर्यवेक्षक प्रदान करती हैं। सफ़रन के एक प्रवक्ता ने कहा कि "गनियोलाइट एक छवि कनवर्टर (इमेज इंटेन्सिफायर) या एक थर्मल इमेजर (सफ़रन जिम के लोकप्रिय हैंडहेल्ड थर्मल इमेजर्स के परिवार से) से लैस हो सकता है, यह 25 किमी की दूरी पर वस्तुओं का पता लगाता है और 12 किमी की दूरी पर उनकी पहचान करता है। बिल्ट-इन जीपीएस रिसीवर वाला एक नया उपकरण 5 मीटर की सटीकता के साथ ऑब्जेक्ट के निर्देशांक को निर्धारित करता है। यह सामरिक उपयोग के लिए काफी पोर्टेबल है, कॉन्फ़िगरेशन के आधार पर वजन 8 से 20 किलो तक है। "
इस बीच, Vinghog का LP10TL टारगेट लोकेटर और FOI2000 फॉरवर्ड ऑब्जर्वेशन सिस्टम समान क्षमता प्रदान करता है। एक विन्होग प्रवक्ता ने कहा कि "वे दिन और रात के संचालन के लिए सटीक और विश्वसनीय लक्ष्य पदनाम प्रदान करते हैं, जिसमें तोपखाने, मोर्टार और नौसेना बंदूकों का प्रबंधन, साथ ही निगरानी और टोही भी शामिल है। " SENOP का LISA सिस्टम एक अलग दृष्टिकोण लेता है। चौबीस घंटे के उपयोग के लिए हाथ से पकड़े गए लक्ष्य पदनाम और निगरानी उपकरण का वजन सिर्फ तीन किलोग्राम है। इसमें दिन के उपयोग के लिए एक प्रत्यक्ष ऑप्टिकल चैनल, रात की स्थितियों के लिए एक बिना थर्मल थर्मल इमेजर, एक लेजर रेंजफाइंडर, एक डिजिटल चुंबकीय कम्पास, एक कैमरा और जीपीएस है। मुख्य मुकाबला का पता लगाने रेंज टंका लगभग 6 कि. मी.
किसी लक्ष्य का पता लगाना और उसके बारे में जानकारी जुटाना लक्ष्य के लिए तोपखाने के गोले के वितरण में पहला कदम है। इन आंकड़ों को अभी भी एक सामरिक डिजिटल नेटवर्क पर मार्गदर्शन प्रणाली और बंदूकों में जाना है। TLDHS (लक्ष्य स्थान, पदनाम और हाथ से बंद प्रणाली) स्टाडर टेक्नोलॉजीज से समन्वय प्रणाली को लक्षित करता है, जो यूएस मरीन कॉर्प्स के साथ सेवा में है, इन क्षमताओं को एकीकृत करके प्राप्त किए जा सकने वाले लाभों को प्रदर्शित करता है। TLDHS शिशुओं को लक्ष्य का स्थान निर्धारित करने की अनुमति देता है, उनके सटीक जीपीएस निर्देशांक इंगित करता है और, संरक्षित डिजिटल संचार के माध्यम से, प्रत्यक्ष विमानन सहायता के लिए कॉल, भूमि और / या जहाज तोपखाने का समर्थन करता है। प्रणाली में एक लेजर रेंज फाइंडर, एक वीडियो रिसीवर और एक सामरिक रेडियो स्टेशन शामिल हैं। इस तरह की प्रणाली का उपयोग करते हुए, पर्यवेक्षक / गनर को अपने स्वयं के निर्देशांक निर्धारित करने, लक्ष्यों के साथ, जड़त्वीय-निर्देशित मौन के लिए निर्देशांक निर्दिष्ट करने और आग समर्थन के लिए अनुरोध उत्पन्न करने का अवसर भी मिलता है। एक लड़ाकू संचार नेटवर्क के माध्यम से, सिस्टम एक आवाज संदेश भेजने की आवश्यकता के बिना निर्दिष्ट प्रारूप में आर्टिलरी फायर या डायरेक्ट एयर सपोर्ट की कॉल भेजता है।
समुद्री कोर 2. 0 संस्करण को विकसित करके TLDHS प्रणाली को और बेहतर बनाने के लिए जारी है। प्रोजेक्ट मैनेजर TLDHS V. 2 के अनुसार, "एक नए संस्करण के साथ इन्फैन्ट्रीमेन को एक हल्का उपकरण प्राप्त होगा जो एक वास्तविक समय की तस्वीर प्रदान कर सकता है जहां उनके दुश्मन के पद हैं और आग समर्थन के लिए लक्ष्य डेटा स्थानांतरित करते हैं। " TLDHS V. 2 प्रणाली वाणिज्यिक तैयार स्मार्टफोन का उपयोग करती है, जो सिस्टम के समग्र वजन को कम करती है। उन्होंने यह भी कहा कि "सिस्टम स्वचालित रूप से पैदल सेना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के निर्देशांक को उत्पन्न करता है, और सूचनाओं को स्मार्टफोन में स्थापित मानचित्र अनुप्रयोग में डिजिटाइज़ करता है, जो सूचना के मैनुअल प्रवेश को समाप्त करता है। "
डिजिटल संदेश भेजने और एक विशिष्ट डिजिटल प्रारूप में लक्ष्यों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए इस तरह के एक आवेदन से आग लगने पर कॉल करने की प्रक्रिया में तेजी आती है, संभव गलतफहमी दूर होती है और यह सुनिश्चित होता है कि इलेक्ट्रॉनिक दमन और जाम की स्थिति में भी अनुरोध प्राप्त होता है। सूचना को एक साथ कई बंदूकों के साथ भी भेजा जा सकता है, जो लक्ष्य के साथ उनकी निकटता के कारण सबसे बड़ी प्रभावशीलता के साथ प्रतिक्रिया करने में सक्षम हैं, जो उन्हें पहले से प्राप्त कार्य का आकलन करने और आग खोलने के लिए तैयार होने की अनुमति देता है। कोर के डिवीजनों में TLDHS 2. 0 प्रणाली की तैनाती पिछले साल शुरू हुई थी।
नेक्सटर CAESAR ने फ्रांसीसी सेना के 155 मिमी कैलिबर के स्व-चालित होवित्जर को ऑन-बोर्ड डिजिटल फायर कंट्रोल सिस्टम FAST-HIT, एक प्रारंभिक वेग रडार और जीपीएस के साथ एक रिंग लेजर गायरो से लैस किया है।
डिजिटल प्रारूप में कम्प्यूटिंग और नेटवर्किंग ने भी गोलीबारी की प्रक्रिया को बदल दिया। एएफएटीडीएस (एडवांस्ड फील्ड आर्टिलरी टैक्टिकल डाटा सिस्टम), रेथियॉन से फील्ड आर्टिलरी के लिए एक उन्नत सामरिक डेटा ट्रांसफर सिस्टम है, एक ऑपरेशनल फायर सपोर्ट कंट्रोल सिस्टम है जो फायर मिशनों के नियोजन, समन्वय, नियंत्रण और निष्पादन के लिए स्वचालित रूप से प्रदान करता है। यह आग समर्थन अनुरोधों से मेल खाता है, लक्ष्यों को प्राथमिकता देता है, और नवीनतम स्थिति डेटा का उपयोग करके विश्लेषण करता है। AFATDS सर्वोच्च प्राथमिकता अग्नि संपत्ति की सिफारिश कर सकते हैं और प्रत्यक्ष अग्नि समर्थन, नौसेना तोपखाने की आग, साथ ही साथ कई बैटरियों के संचालन का समन्वय कर सकते हैं। AFATDS V6 का नवीनतम संस्करण 2016 के अंत में Liedos द्वारा जीते गए आधुनिकीकरण अनुबंध के अनुसार पूरी तरह से डिजीटल होगा। AFATDS ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी सेनाओं के साथ-साथ यूएस मरीन कॉर्प्स की सेवा में है। यह नाटो देशों के सभी परिचालन फायर सपोर्ट सिस्टम के साथ संगत है, जिसमें जर्मन आर्मी का तारणीस एडलर सिस्टम, ब्रिटिश आर्मी का बेट्स (बैटलफील्ड आर्टिलरी इंफॉरमेशन सिस्टम) सिस्टम, फ्रेंच आर्मी का थेल्स एटीएलएएस सिस्टम और नॉर्वेजियन आर्मी का कोंग्सबर्ग ओडिन फायर कंट्रोल सिस्टम शामिल है।
वर्तमान में, स्व-चालित तोपखाने प्रणालियों के स्वचालन की प्रक्रिया। नवीनतम जर्मन स्व-चालित होवित्जर PzH-2000 क्रूस-माफ़ी वेगमैन और रीनमेटाल द्वारा विकसित किया गया था जो शुरू से ही पूरी तरह से स्वायत्त प्रणाली के रूप में डिज़ाइन किया गया था। आग नियंत्रण एक EADS / Hensoldt MICMOS ऑन-बोर्ड कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित किया जाता है। स्वचालित मोड में, PzH-2000 हॉवित्जर आयुध बिना किसी गणना के सभी कार्य करता है, ऑनबोर्ड नेविगेशन प्रणाली, संचार और बैलिस्टिक गणना का उपयोग करता है। PzH-2000 हॉवित्जर 10 सेकंड में तीन शॉट शूट कर सकता है और लक्ष्य पर अधिक अग्नि प्रभाव के लिए MRSI मल्टी-राउंड Simultaneous इफेक्ट ("Flurry of Fire") को शूट कर सकता है - शूटिंग मोड, जब कई गोले अलग-अलग कोणों पर एक तोप से दागे जाते हैं, एक ही समय में लक्ष्य तक पहुँच)। फायर मिशन के लिए आवश्यक समायोजन दो चालक दल के सदस्यों के हस्तक्षेप के बिना सिस्टम द्वारा निर्धारित और निगरानी किए जाते हैं।
एकीकृत कम्प्यूटरीकृत आग नियंत्रण और सभी बंदूक कार्यों के स्वचालन का यह संयोजन वर्तमान में व्यापक उपयोग में है। आर्चर स्व-चालित हॉवित्जर बीएई सिस्टम्स से पूरी तरह से स्वचालित है और अपने स्वयं के गोला बारूद पुनःपूर्ति और रखरखाव उपकरण के साथ एक स्वायत्त प्रणाली के रूप में काम कर सकता है। पत्रिका का स्वचालित लोडर, अंतर्निहित नेविगेशन प्रणाली, स्वचालित उपकरण नियंत्रण और एक डिजिटल कंप्यूटर अपने चार लोगों की गणना को रोकने के बाद 30 सेकंड से भी कम समय में पहला शॉट करने की अनुमति देता है। होवित्जर 15 सेकंड में तीन शॉट लगा सकता है, और 6 शॉट्स से पहले MRSI मोड में; सभी कार्यों को गणना की भागीदारी के बिना स्वचालित रूप से किया जाता है।
MAS Zengrange से एकीकृत अग्नि नियंत्रण प्रणाली IFCS (एकीकृत अग्नि नियंत्रण प्रणाली), इसके अनुसार, "टोही और अग्नि शस्त्रों के लिए पूर्ण एकीकरण क्षमता प्रदान करती है। " लचीली स्वायत्त प्रणाली IFCS को डिवीजनल कमांड पोस्ट या सीधे हथियार प्रणाली पर तैनात किया जा सकता है। यह न केवल सभी बैलिस्टिक गणना करता है, बल्कि आगे के पर्यवेक्षक से सीधे फायर मिशन भी प्राप्त करता है, जिससे जवाबदेही में सुधार होता है और कर्मियों के कार्यों के दोहराव को खत्म किया जा सकता है। न केवल डेटा बल्कि छवियों को वितरित करने के लिए डिजिटल सिस्टम की बढ़ती क्षमता व्यापक रूप से आग समर्थन का अनुरोध करने और नियंत्रित करने में अतिरिक्त लाभ प्रदान करती है। यह पर्यवेक्षकों, कमांडरों और अग्नि सहायता केंद्रों को अवलोकन के अन्य साधनों से मानचित्रों, लक्ष्यों और लक्षित क्षेत्रों की छवियों को साझा करने की अनुमति देता है, उदाहरण के लिए, मुफ़्तक़ोर. इस मामले में, लक्ष्य का अधिक सटीक मूल्यांकन प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि सभी इच्छुक पार्टियों के पास समान जानकारी होती है और वे युद्ध के मैदान पर स्थिति की सामान्य समझ में आ सकते हैं और तदनुसार प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
PzH-2000 हॉवित्जर, गणना की एक छोटी संख्या के साथ, लक्ष्य पर अधिक प्रभाव के साथ तेजी से फायर कॉल का जवाब देता है। यह वर्कफ़्लो स्वचालन को अधिकतम करके प्राप्त किया गया है।
अग्नि मार्गदर्शन और नियंत्रण की प्रक्रिया का डिजिटलीकरण और नेटवर्क संचार की शुरूआत उन्नत पर्यवेक्षक और बंदूक चालक दल के बीच बातचीत के स्तर में वृद्धि की अनुमति देती है। अपनी क्षमता के साथ आधुनिक कंप्यूटर एक अलग आर्टिलरी सिस्टम में आग समर्थन प्रक्रिया को वापस करने में मदद करते हैं। यह आपको फायरिंग की प्रक्रिया में कई चरणों और स्तरों को बाहर करने की अनुमति देता है, जो कभी भी प्रतिक्रिया की गति को बढ़ाता है। इसके अलावा, पूरी शूटिंग प्रक्रिया को साझा करने की क्षमता, एक आग का अनुरोध करने से लेकर प्रतिक्रिया तक साझा करने के लिए, उच्चतर पारिस्थितिकी के कमांडरों द्वारा और पड़ोसी इकाइयों द्वारा दोनों की निगरानी और समन्वय करना संभव बनाता है। जैसा कि लेख से देखा जा सकता है, एटलस, ओडिन और एएफएटीडीएस जैसे ऑपरेशनल फायर सपोर्ट सिस्टम का उपयोग लगभग वास्तविक समय में काम करके फायरिंग की प्रक्रिया को सरल करता है।
डिजिटल आग द्वारा दी गई बढ़ी हुई दक्षता न केवल प्रतिक्रिया समय को कम करेगी और लक्ष्य पर प्रभाव के स्तर को बढ़ाएगी, बल्कि स्वतंत्र तत्वों के रूप में उनका उपयोग करके आर्टिलरी सिस्टम को वितरित करना भी संभव करेगी। अब कम संख्या में बंदूकें तेजी से और कम जोखिम के साथ बराबर या अधिक मारक क्षमता प्रदान कर सकती हैं। जैसा कि वे कहते हैं, मूल बातें - तकनीकें एक बार फिर साधन और उन्नत पर्यवेक्षक को एकजुट करती हैं।
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6cd4df06eeea98e58c6293fe678df219c1541126 | web | डाएप्रोटोडोंटिया (Diprotodontia) धानीप्राणी (मारसूपियल) जानवरों का एक बड़ा जीवविज्ञानिक गण है जिसमें लगभग १२० जातियाँ आती हैं। इनमें कंगारू, वॉलाबी, कोआला, पॉस्सम और वोम्बैट शामिल हैं। कुछ विलुप्त जातियाँ भी इसमें आती हैं, जैसे कि गेंडे के अकार वाला डाएप्रोटोडोन और 'मारसूपियल सिंह' का उपनाम पाने वाला थायलाकोलेओ। .
16 संबंधोंः दाँत, धानीप्राणी, प्राणी, पॉस्सम, मारसूपियल सिंह, यूनानी भाषा, रज्जुकी, स्तनधारी, जबड़ा, जाति (जीवविज्ञान), विलुप्ति, वॉम्बैट, गण (जीवविज्ञान), गैण्डा, कंगारू, कोआला।
दाँत (tooth) मुख की श्लेष्मिक कला के रूपांतरित अंकुर या उभार हैं, जो चूने के लवण से संसिक्त होते हैं। दाँत का काम है पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना। कुछ जानवरों में ये कुतरने (चूहे), खोदने (शूकर), सँवारने (लीमर) और लड़ने (कुत्ते) के काम में भी आते हैं। दांत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं। दाँत की दो पंक्तियाँ होती हैं,.
धानीप्राणी या मारसूपियल (Marsupial) स्तनधारी जानवरों की एक वर्ग है जो अपने शिशुओं को अपने पेट के पास बनी हुई एक धानी (थैली) में रखकर चलते हैं। यह ज़्यादातर पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में पाए जाते हैं। जाने-माने धानीप्राणियों में कंगारू, कोआला, पॉस्सम, वोम्बैट और तास्मानियाई डेविल शामिल हैं। धानिप्राणी के नवजात शिशु अन्य स्तनधारियों के नवजात बच्चों की तुलना में बहुत अविकसित होते हैं और पैदा होने के बाद यह काफ़ी समय (कई हफ़्तों या महीनों तक) अपनी माता की धानी में ही रहकर विकसित होते हैं।, Laurie Triefeldt, pp.
प्राणी या जंतु या जानवर 'ऐनिमेलिया' (Animalia) या मेटाज़ोआ (Metazoa) जगत के बहुकोशिकीय और सुकेंद्रिक जीवों का एक मुख्य समूह है। पैदा होने के बाद जैसे-जैसे कोई प्राणी बड़ा होता है उसकी शारीरिक योजना निर्धारित रूप से विकसित होती जाती है, हालांकि कुछ प्राणी जीवन में आगे जाकर कायान्तरण (metamorphosis) की प्रकिया से गुज़रते हैं। अधिकांश जंतु गतिशील होते हैं, अर्थात अपने आप और स्वतंत्र रूप से गति कर सकते हैं। ज्यादातर जंतु परपोषी भी होते हैं, अर्थात वे जीने के लिए दूसरे जंतु पर निर्भर रहते हैं। अधिकतम ज्ञात जंतु संघ 542 करोड़ साल पहले कैम्ब्रियन विस्फोट के दौरान जीवाश्म रिकॉर्ड में समुद्री प्रजातियों के रूप में प्रकट हुए। .
पॉस्सम (Possum) ऑस्ट्रेलिया, नया गिनी और सुलावेसी पर पाए जाने वाले ७० धानीप्राणी (मारसूपियल) जातियों के एक समूह का नाम है। आधुनिक युग में मानवीय गतिविधियों से यह न्यू ज़ीलैंड और चीन में भी विस्तृत हो गए हैं।, Mary Colson, pp.
मारसूपियल सिंह (Marsupial lion) या धानीधारी सिंह या थायलाकोलेओ (Thylacoleo) एक मांसाहारी धानीप्राणी (मारसूपियल) की जाति थी जो अत्यंतनूतन युग में आज से १६ लाख वर्ष पूर्व से लेकर लगभग ४६,००० वर्ष पूर्व तक ऑस्ट्रेलिया में रहती थी। अपने नाम में 'सिंह' आने के बावजूद इस जानवर का जीववैज्ञानिक दृष्टि से सिंह के साथ कोई सम्बन्ध नहीं था और यह डाएप्रोटोडोंटिया जीववैज्ञानिक गण का सदस्य था। .
यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.
रज्जुकी (संघ कॉर्डेटा) जीवों का एक समूह है जिसमें कशेरुकी (वर्टिब्रेट) और कई निकट रूप से संबंधित अकशेरुकी (इनवर्टिब्रेट) शामिल हैं। इनका इस संघ मे शामित होना इस आधार पर सिद्ध होता है कि यह जीवन चक्र मे कभी न कभी निम्न संरचनाओं को धारण करते हैं जो हैं, एक पृष्ठरज्जु (नोटोकॉर्ड), एक खोखला पृष्ठीय तंत्रिका कॉर्ड, फैरेंजियल स्लिट एक एंडोस्टाइल और एक पोस्ट-एनल पूंछ। संघ कॉर्डेटा तीन उपसंघों मे विभाजित हैः यूरोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व ट्युनिकेट्स द्वारा किया जाता है; सेफालोकॉर्डेटा, जिसका प्रतिनिधित्व लैंसलेट्स द्वारा किया जाता है और क्रेनिएटा, जिसमे वर्टिब्रेटा शामिल हैं। हेमीकॉर्डेटा को चौथे उपसंघ के रूप मे प्रस्तुत किया जाता है पर अब इसे आम तौर पर एक अलग संघ के रूप में जाना जाता है। यूरोकॉर्डेट के लार्वा में एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है पर वयस्क होने पर यह लुप्त हो जातीं हैं। सेफालोकॉर्डेट एक नोटॉकॉर्ड और एक तंत्रिका कॉर्ड पायी जाती है लेकिन कोई मस्तिष्क या विशेष संवेदना अंग नहीं होता और इनका एक बहुत ही सरल परिसंचरण तंत्र होता है। क्रेनिएट ही वह उपसंघ है जिसके सदस्यों में खोपड़ी मिलती है। इनमे वास्तविक देहगुहा पाई जाती है। इनमे जनन स्तर सदैव त्री स्तरीय पाया जाता है। सामान्यत लैंगिक जनन पाया जाता है। सामान्यत प्रत्यक्ष विकास होता है। इनमे RBC उपस्थित होती है। इनमे द्वीपार्शविय सममिती पाई जाती है। इसके जंतु अधिक विकसित होते है। श्रेणीःजीव विज्ञान *.
यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.
मानव जबड़े का निचला हिस्सा जबड़ा या हनु (अंग्रेजीः jaw, जॉ) किसी प्राणी के मुँह के प्रवेश-क्षेत्र पर स्थित उस ढाँचे को बोलते हैं जो मुंह को खोलता और बंद करता है और जिसके प्रयोग से खाने को मुख द्वारा पकड़ा जाता है तथा (कुछ जानवरों में) चबाया जाता है। मानव समेत बहुत से अन्य जानवरों में जबड़े के दो हिस्से होते हैं जो एक दूसरे से चूल (हिन्ज) के ज़रिये जुड़े होते हैं जिसके प्रयोग से जबड़ा ऊपर-नीचे होकर मुख खोलता है या बंद करता है। ऐसे प्राणियों में खाद्य सामग्री चबाने या चीरने के लिए जबड़ों में अक्सर दांत लगे होते हैं। इसके विपरीत बहुत से कीटों के जबड़े मुख के दाई-बाई तरफ़ लगे दो छोटे शाखनुमा अंग होते हैं जो चिमटे की तरह खाना पकड़कर उनके मुख तक ले जाते हैं। .
जाति (जीवविज्ञान)
वॉम्बैट (Wombat) चार टांगों पर चलने वाले एक धानीप्राणी (मारसूपियल) है। यह ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और इनकी टाँगें और दुम छोटी व बदन लगभग १ मीटर लम्बा होता है। यह विवध वातावरणों में पाए जाते हैं, जिनमें जंगल, पहाड़ और घास के मैदानी क्षेत्र शामिल हैं।, Animal Diversity Web, A. Watson, University of Michigan Museum of Zoology, 1999, Accessed 13 अगस्त 2010 .
गण (जीवविज्ञान)
कुल आते हैं गण (अंग्रेज़ीः order, ऑर्डर; लातिनीः ordo, ओर्दो) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक गण में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के कुल आते हैं। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक कुल में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.
"'गैंडा"' गैंडा (राइनोसरस / Rhinoceros) एक जानवर है जिसकी पाँच जातियाँ पायी जाती हैं। इसमें से दो प्रजातियाँ अफ्रीका सार्थक में तथा तीन दक्षिण एशिया में मिलती हैं। .
कंगारू आस्ट्रेलिया में पाया जानेवाला एक स्तनधारी पशु है। यह आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु भी है। कंगारू शाकाहारी, धानीप्राणी (मारसूपियल, marsupial) जीव हैं जो स्तनधारियों में अपने ढंग के निराले प्राणी हैं। इन्हें सन् 1773 ई. में कैप्टन कुक ने देखा और तभी से ये सभ्य जगत् के सामने आए। इनकी पिछली टाँगें लंबी और अगली छोटी होती हैं, जिससे ये उछल उछलकर चलते हैं। पूँछ लंबी और मोटी होती है जो सिरे की ओर पतली होती जाती है। कंगारू स्तनधारियों के शिशुधनिन भाग (मार्सूपियल, marsupialia) के जीव हैं जिनकी विशेषता उनके शरीर की थैली है। जन्म के पश्चात् उनके बच्चे बहुत दिनों तक इस थैली में रह सकते हैं। इनमें सबसे बड़े, भीम कंगारू (जायंट कंगारू) छोटे घोड़े के बराबर और सबसे छोटे, गंध कंगारू (मस्क कंगारू) खरहे से भी छोटे होते हैं। .
कोआला (Koala) ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला एक वृक्षों पर रहने वाला, शाकाहारी धानीप्राणी (मारसूपियल) है। यह 'फ़ैसकोलार्कटिडाए' (Phascolarctidae) जीववैज्ञानिक कुल का इकलौता सदस्य है जो अभी तक विलुप्त नहीं हुआ है। यह पूर्वी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के तटवर्ती क्षेत्रों में मिलता है लेकिन ऐसे भी अंदरूनी इलाक़ों तक विस्तृत है जो अधिक शुष्क नहीं हैं। २०वीं सदी में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के अधिकतर कोआला मार दिए गए थे लेकिन फिर इन्हें विक्टोरिया से लाकर यहाँ पुनर्स्थापित कर दिया गया। .
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2efc65e48366b82ee2f291180d7dc45e0fb79cd541bf3d7c42064e9e4b883acd | pdf | से एक एनसेंट की उपस्थिति एषः अन्य संभावना हो सकती है । जब गंतरी का कार्य अने रहा था इनसैट के साथ लगा देखिर छोटा हो गया और अंततः यह नाकाम हो गया। पुराने और रिक्त शाफट से संबंध के परिणामस्वरूप एक तीव्र दक्षिणवर्ती घुमाव बन गया। अपने निरीक्षण के दौरान चालीसहि गैज़री की पूरा लम्बाई के प्रकार प्रकार में मैंने अधिक अन्तर अनुभव नहीं किया । अतः मुझे यह सम्भव नहीं लगता है कि पहले यह एक शाफट इन्सैट या शाफट संख्या 34 में एक गैलरी विमान थी। इसके अलावा सभी अदपदावर्शी गवाहों के इल ब्यान के अनुसार कि एक मध्य रेखा का प्रावधान भा, और इसके विपरीत इनका कोई विद्यमान न होने के गैसरी में चुनाव होने की तीसरी सम्भावना से इन्कार करता हूँ। इस प्रकार में यह महसूस करता हूँ. कि यह गम्भव है कि गैलरी में जानबूझकर परिवर्तन किया गया था।
THE GAZETTE OF INDIA: JANUARY 9, 1995/PAUSA 19, 1914
7.7.2 जैसे कि पहले भी कहा गया है, पुराने शाफट संख्या 34 के समीप के 40 हिप फेस को उस क्षेत्र में ज्यादा पानी रिसने के कारण जनवरी 1985 से अन्य कर दिया गया था । उन समय 28 स्तर से हम फैस की दूरी आदा से ज्यादा 10 से 12 फीट की थी ( 3 से 3.6 मी) । बाद में 28 स्तर के समीप के 40 डिप के जंक्शन पर अनंत मनय तक समान परिवहन करने के लिये रिर्टन घरखी स्थापित कर दी गयी । मो. कलीम (एमयू 17 ) ने यह बयान दिया है कि नालीरा डिप गैलरी को नम्ववर, 1989 में फिर से शुरू किया गया जबकि श्री के. दस्त ( एमडक्ल्यू 19 ) ने यह ध्यान दिया है कि इसको नवम्बर 1989 के प्रथम सप्ताह में पूनः शुरू किया गया । श्री मिहीर कुमार चटर्जी (एम. 10), श्री शिवदास चटशी ( एस डब्ल्यू) और श्री सी. डी. सिंह (एमडब्ल्यू 11 ) जैसे अन्य गवाहों ने यह स्थान दिया है कि 40 डिप में इसको 18 नवम्बर 1989 से पुन शुरू किया गया । अतः मेरा मानना है कि 28 स्तर के समीप 40 दिप फेस जो पुराने शाफ्ट संख्या 34 से जुड़ गया था और जिसके कारण यह घातक दुर्घटना हुई, को दुर्घटना के ठोक 5 दिन पहले 8 नवम्बर 1999 से पुनः शुरू किया गया ।
7.7.3 अलगा सुददा यह है कि क्य शाफट संख्य 14 से 40 डिप गैलरी के जुड जाने के अन्य कारण और परिस्थितियां यो श्री पी. एल. बनर्जी ( एम. डब्रूपू 16 ) यह दावा किया है कि शट संख्या 34 और गैंगरी के बीच 3 मीटर ने भी ज्यादा के एक कोयला बैरियर के प्रधानक टूट जाने के कारण यह सम्बन्ध ( कनैक्शन) स्थापित हुआ। 7.7.4 दुर्घटना के पहले, 40 डिप फेस को लम्बाई का आकलन श्री राम शकर सरकार (एमडब्ल्यू 12 ) श्री शिव दास पटर्जी (एम डब्ल्यू 9), श्री सी. डी. सिंह ( एम 11 ) और श्रीमिहीर कुमार चटर्जी (एमडल्यू10) जैसे अन्य गवाहों द्वारा किया गया जो कि करीब 40 से 45 फीट के बीस था, ( 12 से 17मी. )
7.7.5 40 डिप गैमरी की लम्बाई और दुर्घटना स्थल के प्लान अवर्श एम 12 ) से निर्धारित पुराने शाफट संख्या 33 के बारे उपरोक्त गवाहों के आकलन के आधार पर श्री पी. एल. बनजी ( एम. डब्ल्यू 16 ने यह बयान दिया है कि दुर्घटना होने के ठीक पहले शाफट संख्या 34 और 41) डिप फेस के बीच का बैरियर 3 मीटर से पा : लेकिन मैंने यह स्वीकार नहीं किया है क्योंकि विमित गवाहों द्वारा बतायी भर्पी 40 डिप फेत की लम्बाई केवल नेत्रवानुमान पर आधारित थी। और वास्तव में इसकी कोई नाप जो नहीं की गई थी । अध्याय-VIII
81 यह सर्वविदित था कि नारायणकुरी सीम के 24 मीटर ऊप पुराने रानीगंज कोलियरी के नेगा सीम के कार्यस्थलों में पानी भगा इसमें अनेक पुराने शाफ्ट भी थे, जिनमें से कुछ की गहराई अभी तक श से । ऐसा है एक पुराना 34 था, जो मलबे में तय हुआ घा और जिसकी गहराई मी ज्ञात नहीं की। बल प्रबंधन ने यह भयान दिया है कि उन्होंने उपलब्ध पुराने प्लान और वस्तावेज का मध्ययन किया, लेकिन इससे भी पुराने शाफ्ट की गहराई का पता नही चालथापि समी के कार्यस्थल के एक ए. एम. पी. ने शाफ्ट संवा 34 की गहराई 86 फीट होने का संकेत दिया, जोकि उस क्षेत्र नेगा सोम की गहराई के बराबर है। बान सुरक्षा महा ते 1934 में विकास की अनुमति (प्रवर्ण - एम / 5) देते हु बहुत ही सतर्क ये उन्होंने नारायणकुरी सोम तक पुराने शाप के आने का अाशंकाका रखते हुए कोर सेस्ट्रल एडवोस होल का प्रावधान करने की शर्त को इसमें शामिल कर दिया 1988 में जब पुराने शाफट सं.-34 समीप विकास कार्य हो रहा था
तब खान प्रबंधन ने भी ज्यादा पानी के रिसाव की बात देखी थी । जैस कि पहले भी देख किया गया है। उन्होंने विकास कार्य रोक दिया और कोयला खान नियमावली, 1957 के विनियमन 127 (5) के अन्तर्गत आपेक्षिक शर्तो के अनुसार खान सुरक्षा महानिदेशालय की सूचिस किया चूंकि सं.-34 शाफ्ट का वास्तविक स्थल संदेहा स्वयं था अतः प्रबंधन ने अपब्ध दस्तावेजों और सूचना प्राप्त करने के अन्य स्त्रोतों के माध्यम से जानकारी लेनी चाही ताकि शाफ्ट मं. 34 की गहराई निश्चित की जा सके । तथापि, उनको इसकी महराई के बारे में कोई निश्चित सूचना नहीं मिली । अहोंने प्रत्यक्ष निरीक्षण करके भी शाफ्ट सं. -34 के स्थान को निश्चित करने का किया, लेकिन वे असफल रहे क्योंकि शाफ्ट सं. 34 मलबे से भर गया था। बाद में, ज्ञान प्रबंधन ने 39 दिन के समीप 27 स्तर से एक संवा गोरहोल करके शापट का स्थान निश्चित करने का प्रयास किया। लेकिन न दोरहोस का संपर्क पुराने राम्पट से हुआ और न इससे पानी का रिसाव हुआ। । खान प्रबंधन से यह स्वीकार किया कि पुराने प्लान में पता लगाने प्लान के छोटे हो जाने की संभावना और सर्वेक्षण शौर नक्ला बनाने में हुयी चूक के कारण वर्किंग (प्रवर्ण - एम / JI ) में दशोपी गयी शाफ्ट सं. 34 की स्थिति में गलती की संभावना थी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि शायद लवे बोरहोल को दिशा में परिवर्तन हो गया था। स्पष्टतः करीब 40 मीटर लंबे एक बहोत द्वारा केवल 3 मीटर व्यास के एक पुराने शाट के स्थान को पाने का तरीका बहुत पुराना था ।
3.1 साक्ष्यों का विश्लेषण
गरफ्ट सं. 3.1 का एक्सटेंशन
8.2 पानी का प्रसामान्य रिमाव
8.3 40 डिप का पुनः शुरू किया जान ९.4 एडवांस बोर होल
8.5 स्तरों का खिसकना ( मुत्रमेंट) 8.6 पलीर पत्थर का होला होना 8.7 दुर्घटना का कारण
8.2 1988 में जानकारी करने और संभाि पुराने शाफ्ट सं.-34 के बाइपास द्वारा विका कार्य की दिशा में परिवर्तन करने का सही निर्णय लिया। 26, 27 और 25 स्तरों पर पानी के असा मान्य रिसाव के कारण प्रोजेक्शन में परिवर्तन का आवेदन किया गया । इस क्षेत्र से करीब 100 मीटर की दूरी पर संशोधित प्रोजे की मंत्ररी खान सुरक्षा महा द्वारा मार्च, 1988 में दी गयी ( प्रदर्श एम / ४ )
8.3 नवंबर 1989 में संशोधित प्रोजेक्शन 1988 ( प्रदर्श-एम 8 ) के अनुसार जब विकास कार्य हो रहा था तब 42 कास कट भाग में एक बाइक संपर्क में आया । बढ़ने में एक मया कार्य क्षेत्र इंटने के उद्देश्य मो.. कलीम (एनएउहभू. (17) ने सर्वेक्षण कार्यालय में का अवलोकन किया और 28 स्पर के समीप 40 डिग फेस को पुनः शुरू करने का निर्णय लिया। जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है। इस फेस में किया जा रहा कार्य 1988 से बंद कर दिया गया था। प्रबंधन के इस कथन कि इस क्षेत्र में केवल वायु मंदार में सुधार करने के लिये 8 नवंबर 1999 से 40 डिपो को पुनः शुरू किया गया था, को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि बागु संचार प्रौसी में सुधार करने के लिए अन्याय भी मौजूद थे। 49 डिप के पास कार्य शुरू करके भी कलोम ( एम.डब्ल्यू. 17) ने कलसा खानशिवली 1957 के विनियमन 127 (5) के प्रावधानी का सष्ट उल्लंघन किया, जिसके द्वारा अपेक्षित था कि कार्य शुरू करने के पूर्व खान सुरक्षा महा से तुमति ली जाए दूसरे शब्दों में ज्यादा पानी रिसाव के कारण अनवरी, 1988 में शाफ्ट
[भाग II --खंड 3 (ii) ]
सं. 34 के पास अब कार्य एक बार बंद कर दिया गया था, तब कोयला खान निथमायली, 1957 के विनियमन 127 ( 5 ) के अन्तर्गत ऐसे कार्यो को अपने आप पुनः शुरू करने के लिए मो. कलोम प्राधिकृत नहीं थे । इस प्रकार मैं समझता हूं कि मो. कलीम ने ब्रान सुरक्षा महा की अनंमति के बिना प्रौर कोयल। स्नान नियमावली, 1957 के विनियमन 127 ( 3 ) का उल्लन करते हुए 40 डिप, जो पानी जमाव क्षेत्र के 60 मीटर के भीतर स्थित है, का विकास कार्य 8 नवंबर, 1989 से शुरु कर दिया ।
भारत का राजपत्र : जनवरी 9, 1993 / पौष 19, 1914
8.4 अनेक गवाहों ने यह बयान दिया है कि जून 1989 से एक नियमित कार्यदल द्वारा उचित तर्र के से एडवांस ओरहोल की ड्रिलिंग बंब कर दी गयी थी बाव में, एडवांस बोरदोल को कथित रूप से सामान्य मजदूरों द्वारा ड्रिल करवाया जाता था. एसी ड्रिलिंग के लिये कथित रूप से काम पर लगाये गये ये सामान्य मजदूर नियमित नहीं थे बल्कि उनको मैमित्तिक आधार पर काम में लगाया गया था। ये कर्मकार अपेक्षाकृत प्रकुशल कर्मकार थे जबकि नियमित ड्रिलर कुशल कर्मकार होते हैं । 40 डिप के दीवारों में किसी फ्लैक बोरहोल का भी निशान नही है । यह संकेत देने के लिये भी कोई रिकार्ड नहीं है कि ऐसे बोरहोल ड्रिल किये गये थे । एडवांस बोरहोल को ट्रिल करने वाले कर्मकारों को प्रबंधन द्वारा गवाह के रूप में पेश किया गया । एजेट सह-प्रबंधक द्वारा ऐसे एउयास बोरहोल के ड्रिलिंग का पर्यवेक्षण करने के लिये किसी सक्षम प्राधि कारी की नियुक्ति भी नहीं की गयी थी। एडवांस बोगटोके प्रावधानों से संबंधित म्यूमतम सांविधिक रिकार्ड रखने सहित किस अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों के न होने से, ऐसे बरहील की ड्रिलिंग के लिये नियमित कर्मकारों और ड्रिलिंग के पर्यवेक्षण के लिये सक्षम प्राधिकारी की नियुक्ति न करने से, ऐसे बोरोल की लंबाई और दिशा मापने को पद्धति और मेरे निरीक्षण के दौरान कार्यस्थल पर फ्लैक बोरहोल के न होने से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि 40 डिप फेस में सेन्ट्रल बोरहोस भी दिल नहीं किया गया था ।
8.6 कुछ अन्य साक्ष्य भी हैं, क्योंकि सुरक्षा अधिकारी श्री पी. एल. बनर्जी ( एम. डब्ल्यू. 16 ) ने बताया है कि एक बड़े भूस्तर के खिसकने के कारण 40 डिप फेस और शाफ्ट सं. - 34 के बीच का कोयला बैरियर टूट गया । इंडियन माइन मैनेजर्स एसोसिएशन का भी यही तर्क है । श्री चंद्रधारी बराई ( एम. डब्ल्यू. 14), जब वे 40 डिप फेस में दूसरी बार गाट फायर कर रहे थे तब उन्होंने फेस के भागे और पीछे छत को घट्टान टूटने की आवाज सुनी। 40 डिप और 28 स्तर के जंयपान से भूतल पत्थरों के बड़े टुकड़ों का खिसकना और सतह पर पोटहोल बन जाना भूस्तर खिसकने का साक्ष्य बताया गया है। यदि षट्टान टूटने की प्रायाज हुई होती तो वह न केवल श्री चन्द्रधारी बराई ( एम. डब्ल्यू. 14 ) को सुनाई देती बल्फि 28 लेखन के आसपास उपस्थित अन्य फर्मकारों को भी सुनाई देती । लेकिन हम बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि अन्य कर्मकारों से किसी चीज की टूटने की आवाज सुनी। मेरे विचार से 27 सार और 40 डिप के बीच एक मीटर से भी कम मोटे कोयला रिष और छत पर किसी भी बृष्टव्य प्रमाण के न होने सहित 50 डिप के करीब बड़े भूस्तर मूमेंट के बारे में किसी सबूत के न होने के कारण इस प्रकार की घटना के होने की संभावना को नकारता है । अतः यह कहना उचित नहीं होगा कि ऊपर स्थित नेगा सीम में पुराने और परित्यक्त स्टूक के टूटने के कारण ये भूस्तर मूमेंट से 40 डिप मैलरी और शाफ्ट सं. 34 के बीच का कोयला यदि बैरियर टूट गया । यदि ऐसा कोई भूस्तर मूवमेंट हुआ रहता तो इससे कहीं-कहीं पॉटहोल होने की बजाए भूमि का बहुत बडा भाग नीचे खिसक गया होता। पॉटहोल का बनना पुराने कार्यस्थल से पानी निकालने के बाद ग्रामतौर पर देखी जाती है ।
जब प्रचारक गानी अंदर आया तो शायद पत्रीका ढीला खड़ अपनी वास्तविक स्थिति से करीब आधे पिलर की दूरी पर चला गया । किसी भी स्थिति में 40 टिप और 28 स्तर के जंक्शन की सतह पर पत्थर ढोला होने की घटना का हग घातक दुर्घटना से कोई संबंध नहीं है ।
8. 6 यह कहना उचित नही होगा कि 10 लिप की रातह और 20 स्तर जंक्शन से बड़े पत्थरों की चट्टानों के खिसकने का चट्टानों के करीब प्राधा पिलर की दूरी पर चले जाने का कारण भूस्तरोय मूवमेंट था, जिसके कारण यह घातक दुर्घटना हुयी । यह संभव हो सकता है कि मूलतः हलका होने के कारण फ्लोर स्टोन ढीला हो गया हो । 3128 GI/92-4
8. 7 साक्ष्य के आधार पर मैं यह समझता हूँ कि उस पर स्थित परित्यक्त और पानी से भरे नेगा सीम से जुड़े नारायणकुरी सोम में एडवांस 40 डिप गैलरी और पानी से भरे शाफ्ट सं. -34 के बीच संधेि संपर्क के कारण यह घातक दुर्घटना हुई । नारायणकुरी सीम में पानी से भरे शाफट सं - 34 की ओर बढ़े 28 स्तर के समीप 10 डिप गैलरी में सेन्ट्रल और फलैक बोरहोल न होने के कारण यह दुर्घटना हुई । ऐसे वो रहोल का होना कोयला खान नियमावली, 1957 के विनियमन 127 ( 6 ) के अन्तर्गत अनिवार्य है तथा खान सुरक्षा महा की कार्य अनुमति द्वारा अपेक्षित है । इसके अलावा 28 स्तर के समीप 40 डिप गैलरी की खान सुरक्षा महा द्वारा कार्य करने के लिये गैर मंजूरो कृत क्षेत्र में पानी से मरे शाफ्ट सं. 34 की ओर बढ़ाया गया था । अतः गेर मंजूरी कृत क्षेत्र जहां ज्यादा पानी रिसने के कारण जनवरी, 1988 में खनन कार्य बंद कर दिया गया था, को गैलरी में कार्य शुरू करने के पांच दिनों के भीतर यह घातक दुर्घटन। पी। यह गैर मंजूरीकृत क्षेत्र खान सुरक्षा महा, द्वारा खनन कार्य के लिये मंजूर क्षेत्र से करीब 100 मीटर की दूरी पर था । इस प्रकार यह घातक दुर्घटना अभियोज्य नवीय लापरवाही के कारण थी ।
श्रध्याय IX
91 वायित्य का विश्लेषण
9. 2 एजेंट व प्रबंधक
9. 3 सुरक्षा अधिकारी 9. 4 सहायक प्रबंधक 9. 5 सर्वेक्षक
9.6 उच्च प्रबंधक 9.7 श्रन्य
9. 1 दुर्घटना के कारणों का पता लग जाने के पश्चात् इसके लिए जिम्मेदार कौन था इसका पता लगाना होगा। दुर्घटना के कारणों से यह स्पष्ट है कि यह अभियोज्य मानवीय लापरवाही के कारण से हुई। निम्नलिखित पैराग्राफों में मैंने उत्तरदायित्व के निर्धारण के लिए साक्ष्यों का विश्लेषण किया है :--
9.2.1 मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू 17 ) जून, 1987 से खान प्रबंधक और जुलाई, 1988 से एजेंट-सह-प्रबंधक हैं। अतः वे दिसम्बर, 1987 से 13 नवम्बर, 1989 तक की खान की घटनाओं से पूर्णतः परिचित हैं। खान के पुराने शाफ्ट सं. 33 और 34 के समीप 26, 27 और 28 स्तर के पास के कार्यस्थलों में विसम्बर, 1987 में ज्यादा पानी की रिमाष की घटना देखी गयी और पूर्व एजेंट श्री के. के. दास ( एम डब्ल्यू 18 ) द्वारा जनवरी, 1988 में उस क्षेत्र में कार्य स्थगित कर दिया गया था। तब उन्होंने ज्यादा पानी रिसाव को देखते हुए विकास की दिशा में परिवर्तन करने के लिए खान सुरक्षा महानिदेशक के पास आवेदन दिया। जनवरी, 1988 में खान सुरक्षा महा. को दिए गए संशोधित आवेदन सहित शाफ्ट सं. 34 को 100 मी. की दूरी से बाइपास करने की प्रोजक्शन योजना (प्रवर्ण - - एम / 7 ) के बारे में मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) को प्रबंधक की हैसियत से जानकारी थी । संशोधित प्रोजक्शन को मंजूर करते हुए मनुमति पन्न ( प्रवर्श एम / 8 ) की प्रति खान सुरक्षा मा द्वारा प्रबंधक मो. कलीम ( एम. अल्यू 17 ) को मार्च, 1988 को भेजी गयी । 1998 में, शाफ्ट सं. 34 की संभावित स्थिति की और 27 स्तर से एक लंबा बोरहोल ड्रिल किया गया। चूंकि संबे योहोल का संपर्क शाफ्ट सं. 34 से नहीं हुआ और बोरहोल से पानी का भी रिसाव नहीं हुआ, प्रतः मो. कलीम ( एम यब्ल्यू 17 ) ने यह अनुमान लगाया कि
पुराना शाफ्ट केवल नेगा सीम तक ही था । सडा. इन प्रा आधार पर मो. कलीम ( एम डब्ल्यू 17 ) जैसे एक अनुभवी प्रबंधक के लिए यह समझना उचित नहीं था कि पुराने शाफ्ट सं. 34 का विस्तार केवल नेगा सीम तक ही था ।
9.2.3 नवंबर 1989 में जब खान सुरक्षा महा द्वारा मंजूर नियमित क्षेत्रों के कार्यस्थल में बहुत सारे डाइक मिले तो मो. कलीम ( एम. ब्यू 17 ) ने सर्वेक्षण कार्यालय से संपर्क करके, और सर्वेक्षक से प्लान के बारे में विचार-विमर्श करके 28 स्तर फेम के समीप 40 शिप में कार्य पुनः शुरू करने का निर्णय लिया । उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने खान सुरक्षा से संबंधित खान सुरक्षा महा के पूर्व के सभी मनुमति पत्नों और भन्य पत्नाचारों का अध्ययन किया । इस प्रकार मो. कलीम इस बात से पूर्ण रूप से अयगत थे कि ज्यादा पानी रिसाव के कारण जनवरो, 1988 में शाफ्ट सं. 34 के समीप कार्य बंद कर दिया गया था। उन्हें कोयला खान नियमावली 1857 के विनियमन 127 ( 5 ) के प्रावधानों के बारे में भी जानकारी थी, जिसके द्वारा यह अपेक्षित था कि ज्यादा पानी के रिसाव के कारण जिन कार्य स्थलों को बंद कर दिया गया है उनको खान सुरक्षा महा की लिखित पूर्व अनुमति के बिना भागे नहीं बढ़ाया जा सकता । चूंकि ऐसी कोई प्रनुमति प्राप्त नहीं की गयी थी अतः नवंबर 1989 से उनके द्वारा स्वयं ही 40 डिप को पुनः शुरु कर दिए जाने की घटना कोयला बास नियमावली 1937 के विनियमन 127 ( 5 ) का जानबूझकर किया गया उल्लंघन है ।
9. 2.2 मो. फलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) ने यह भी स्वीकार किया है कि खान सुरक्षा महा के अनुमति पत ( प्रदर्श एम 18 ) और कोयला खान नियमावली 1937 के अन्तर्गत अपेक्षित एडवांस सेन्ट्रल और फ्लैक बोरहोल तथा कार्य का प्लान का रिकार्ड नहीं रखा गया । उन्होंने एडवांस दोल के ड्रिलिंग का पर्यवेक्षण करने के लिये किसी सक्षम अधिकारी को भी प्राधिकृत नहीं किया। यह कोयला खान नियमावली 1937 के विनियमन 127 (6) (ख) का स्पष्ट उल्लंघन था। एडवांस बोर होल को ड्रिल करने के लिये उन्होंने नियमित ड्रिलिंग गंग का भी प्रावधान नहीं किया और इसके स्थान पर इस कार्य के लिये सामान्य मजदूरों जैसे प्रकुमल कर्मकारों को नैमित्तिक प्राधार पर कार्य लगाया । यह दुःखद बात है कि मो. फलीम (एम. डब्ल्यू. 17 ), जिनके पास वर्षों का अनुभव है। इस स्पष्ट खतरे को पहचान नहीं सके। यह खतरा मचानक नहीं भाया बल्कि पर्याप्त पूर्वसूचनाओं के लक्षण के बाद ही आया। मो. फलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) ने या तो आत्म विश्वास के कारण या इस गलत धारणा के कारण, कि शाफ्ट सं. 34 नेगा सोम के आगे नहीं गई है। खतरे को भांपने में असमर्थ रहे जिसके परिणामस्वरूप यह बालक दुर्घटना हुयी। प्रतः मैं उन्हें 13 नवंबर 1984 को महाबीर खान में घटित दुर्घटना का प्रमुख घोषी व्यक्ति मानता हूँ। लेकिन दुर्घटना के मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) को प्रमुख दोषी मानते हुये भी साक्ष्य देने में उनकी बृढ़ता तथा जिस रीति से उन्होंने सच्चाई से बयान दिया है, प्रशंसनीय है। उन्होंने यह भी बयान दिया है कि वे खान-कार्यों का संचालन कर रहे थे और उन्हें कोयला उत्पादन की उस सीमा के बारे में निर्देश नहीं दिया गया जिसके बाद सुरक्षा विनयमनों का उल्लंघन हो सकता है। जांच के शेरान उचित व्यवहार के लिये मो. फलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) निश्चय हो प्रशंसा के पास हैं।
[PART II - SEC 3 (ii) ]
9.3.2 श्री पी. एल. बनर्जी ने कहा कि उन्होंने पुराने प्लान का अध्ययन किया और उन्हें पता चला कि शाफ्ट सं.. --34 में मलवा भरा है । कार्यक्षेत्रों का प्लान बनाने के लिये उन्होंने खान कार्यालय में उपलब्ध विभिन्न प्लानों का उपयोग किया। सतह पर शौफ्ट सं. 34 उनको नजर नही आई । जनवरी 1988 में उन्होंने 27 स्तर के पास ज्यादा पानी का रिसाव देखा था और इसके लिये एक लंबा मोहोन ड्रिल करवाने का इंतजाम किया था। उनके बयान के अनुसार लंबे बोर होल को घुमाव की सभावना के बारे में भी उनकी जानकारी थी। उन्होंने खान सुरक्षा महा. की 1984 की अनुमति ( प्रदर्शन एम. 15) और 1988 की अनुमति ( प्रदर्शन एम 18 ) का अध्ययन किया था और अनुमति के शर्तो से वाकिफ पे 18 नवंबर, 1989 से 40 सिप फेस को पुनः शुरू किये जाने के बारे में भी उनकी जानकारी थी। उन्होंने यह भी बताया कि 40 डिप फेस से पानी का रिसाव नहीं हो रहा था और 8 नवंबर 1989 से कार्य शुरू किये जाने के बाद फलैक और सेन्ट्रल बोर होल के वायरे में फेस को प्रागे मढ़ाया जा रहा था। लेकिन उन्होंने बयान दिया कि प्रत्येक कार्यक्षेत्र फेस में एडवांस बोरोल को आये बढ़ाने के पहले इन बोरहोलों की ड्रिलिंग सुनिश्चित करने के लिये उनके पास कोई पद्धति नहीं थी। उन्होंने कार्यक्षेत्रों के निरीक्षण के दौरान ऐसे बोहोलों की मानिटरिंग सुनिश्चित की तथापि उनके बयाम के अनुसार वर्किंग फेसो के निरीक्षणों की कोई निर्धारित समय सूची नहीं थी। मैंने पहले भी स्पष्ट किया है कि गैर मंजूरी कृत कार्य क्षेत्र में ज्यादा पानी के रिसाव के बावजूद एडवांस बोर होल तैयार किये बिना 40 डिप फेसको भने बढ़ाये जाने के कारण यह घातक दुर्घटना हुयी इम उल्लंघनों के बारे में भी पी. एल. बनर्जी (एम. डम्यू. 16 ) को जानकारी थी । इस प्रकार उन्होंने कोयला खाम नियमावली 1957 के विनियमन 41 ए और बी (iii) के घन्तयंत छपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया, क्योंकि पानी भर जाने के एक संभावित स्रोत के रूप में शाफ्ट सं. 34 के बारे में उन्होंने एजेंट-सह प्रबंधक (एम. डब्ल्यू. 17 ) को सूचना नहीं वी। अपने निरीक्षण के दौरान न तो उन्होंने सेन्ट्रल और फूलैक बोरहोल जिल किये जाने पर ध्यान नहीं दिया बस्कि कोयला खान मि. 1957 के विनियमन 41 ए (1) (एफ) के साथ पठित कोयमा खान नि. 1957 के विनियमन 127 ( 6 )का उल्लंघन करते हुये बिना बोरहोल बनाये 40 डिप फेस को घामे बढ़ाने की जानबूझकर प्रनुमति दी । प्रतः ग्रह् स्पष्ट है कि श्री पी. एल. बनर्जी (एम.डब्ल्यू. 10) मे फोयला खान विनियमन 1957 के विनियमन 41 ए ( 1 ) (जी. ) के साथ पठित विनियमन 127 का उल्लंघन करते हुए 40 लिप फेस के एडवांस बोरहोल की सुरक्षात्मक डिखिम पद्धति को सुनिश्चित करने के लिये भी कोई उपाय नहीं किया। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि संभावित खतरों को जानते हुए श्री पी. एख. बनर्जी ( एम. डब्यू 16 ) ने कोयला खान नियमावली 1957 के विनियमन 41 ए ( 1 ) (जी.) के अन्तर्गत उपेक्षित सुरक्षा उपायों के पालन करने के लिय उचित कदम नहीं उठाया । अतः इस दुर्घटना के लिये वे मी उत्तरदावी है।
9.3.1 क्रमानुक्रम में श्री पी. एल. बनर्जी ( एम. लम्फ्यू 16 ) खान में मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू 17 ) के बाद अधीनस्थ अधिकारी है । उन्होंने महाबीर खान में जून 1988 से सुरक्षा अधिकारी के रूप में कार्य किया । 1983 से उन्होंने उक्त खाम के सहायक प्रबंधक के रूप में भी कार्य किया। इस प्रकार वे 1983 से लगातार खान में कार्य करते प्रा रहे थे। उनकी ड्यूटी में पानी भरने की घटना सहित सभी संभावित खतरों के स्रोत के बारे में प्रबंधक ( अर्थात् मो. कलीम) को जानकारी देना शामिल है। उनको खान के विभिन्न भागों का अवलोकन करके प्रबंधक को इस बात की रिपोर्ट देनी होती है कि खान अधिनियम और इसके असर त बनाये गये विनियमनों का पालन किया जा रहा है या नहीं ।
9.4.1 महाबीर खान में दो सहायक प्रबंधक थे। एक का माम श्री के. दस (एम. पू. 19 ) और दूसरे का नाम श्री एस. के. सेनगुप्ता ( सोपू 1 ) है। श्री के बस में सहायक प्रबंधक के रूप में महाबीर खान में 1979 में कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने 7 नवंबर और 12 नवंबर, 1989 के बीच 40 पिकाबो बार निरीक्षण किया और 12 नवंबर 1989 की दूसरी पारी में भी इसका निरीक्षण किया। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि ज्यादा पानी रिसाव के कारण 40 टिप फेस में ऊनवरी 1988 से काम बंद कर दिया गया था। उन्हें इस बात की भी जानकारी था कि उपस्थित मेगा सीम में पूर्णतः पानी भरा है। उन्होंने बयान दिया कि 40 सिप फेस उचित लम्बाई के एडवांस सेन्ट्रल और फजैक बोरोस का प्रावधाम किया था लेकिन इतना साफ बयान देने के बावजूद भी तो उन्होंने इस उद्देश्य के लिये रखे जा रहे किमी रिकार्ड से इस बयान को साबित किया न ही ऐसा स्वतंत्र गवाह प्रस्तुत किया जो यह कह सके कि ऐसे बोरहोल नियमित रूप से बनाये जाते थे। उन्होंने यह भी साबित नहीं किया कि गंबरी आगे बढ़ाये जाने से पहले पर्यवेक्षी अधिकारियों द्वारा ऐसे बोरहोल की उचित जांच होती थी ।
9.4.2 श्राः इस क्षेत्र के सहायक प्रबंधक के रूप में वे यह सुनिश्चित करने में असफल रहे कि को. खा. नि. 1957 के विनियमन 127 (6) के साथ पठित को. खा. नि. 1957 के विनियमन पर की अपेक्षाओं के अनुमार 40 डिप फेस में एडबास बोरहोल की ड्रिलिंग हो रही थी। इस प्रकार से उन्होंने भी कानून का जानबूझकर उल्लंघन किया जिसके कारण दुर्घटना हुयी और इस दुर्घटना के लिये में भी उतरवायी है।
भारत का राजपक्ष : जनवरी 9, 1993 / वौष 19, 1914
9.4.3 दूसरे सहायक प्रबंधक श्री एस. के. सेनगुप्ता (सी. डब्ल्यू. 1) ने खान में अक्तूबर 1989 से ही कार्यभार ग्रहण किया। में कुछ दिनों के अवकाश पर थे इसके बाद उनकी किसी अन्य विकास कार्य का जिम्मा दिया गया और उन्होंने दुर्घटना स्थल के 43 कास-कट क्षेत्र का पर्यवेक्षण का कार्य नहीं किया । इस प्रकार इस घातक दुर्घटना के लिये वे उत्तरखापी नही है ।
9.51 श्री पी. एल. ठवकर ( एम. डब्ल्यू 15 ) 1957 में महाबोर खान के सर्वेयर थे। उन्होंने जनवरी 1988 में 27 स्तर के ज्यादा पानी के रिसाव की घटना देखी। उन्होंने इस बात को भरनों सांविधिक सर्वेक्षक डायरी में रिकार्ड किया तथा यह भी सूचना दर्ज की कि पानी से भरे शाफ्ट सं. 34 का कार्य क्षेत्र बढ़ रहा है। इस डायरी को प्रबंधक मो. कलीम ( एम. उन्हपू. 17) द्वारा प्रति हस्ताक्षरित किया गया। उनकी यह ड्यूटो थी कि वे प्रबंधक को इस बात की सूचना में कि हो रहा कार्य पानी से अपे प्यापट सं. 34 के पास पहुंच रहा था। उन्होंने इस मामले में भी ऐसा हो । पूर्ण एजेंट श्री के. के. दास ( एम.डब्ल्यू. 18) मे यह बयान दिया कि उन्हें इस बात का स्मरण है कि श्री पी. एल. ठक्कर ( एम.डब्ल्यू.15) ने उन्हें एक रिपोर्ट दी थी कि 27 स्तर का कार्य क्षेत्र परित्यक्त फाफ्ट मं. 34 की और बढ़ रहा था। मो. कलीम (एमडब्ल्यू 17 ) ने भी स्वीकार किया कि श्री पी. एल. ठक्कर ( एम. डब्ल्यू 15 ) की डायरी द्वारा पानी भर जाने के खतरे को और भी उनका ध्यान प्राकर्षित किया गया था। इस प्रकार श्री पी. एल. ठक्कर ( एम. बब्ल्यू. 15) से को. पा. टि. 1957 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अधीन अपनी ड्यूटी का उचित ढंग से पाल किया।
9.5.2 इस स्थिति में, मैं दुर्घटना के लिये श्री पी. एल. ठक्कर ( एम.डब्ल्यू. 15 ) को उत्तरदायी नहीं मानता हूं ।
8 नवंबर 1939 मे 40 डिप की गैलग़ में कार्य शुरू होने के बारे में महाप्रबंधक को जानकारी के संबंध में जांच न्यायालय के समक्ष बयान दिया हो। इस बात का भी कोई साक्ष्य नहीं है कि महाप्रबंधक को इस बात की जानकारी थी कि सुरक्षा विनियमनों का उल्लंघन किया जा रहा था और गैलरी को बढ़ाते समय एडवांस सेन्ट्रल ओर फलैक ओर होल नहीं बनाये गये थे । महाप्रबंधक ग्यारह खानों के प्रभारी हैं। जिनमें से एक महावीर खान है। उनके लिये यह संभव नहीं था कि ये को. स्था. मि. 1957 के विनियमन 127 के अनुसार एडवांस बोरहोल बनाने के लिए खान सुरक्षा कहा की अनुमति में निहित शर्तों के प्रवर्तन का पर्यवेक्षण करें। तवनुसार, मैं कुनुस्तोरिया क्षेत्र के महाप्रबंधक को इस दुर्घटना के लिये उत्तरदायी नह मानता हूं ।
9.6.1 जिरह के दौरान मो. कलोम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) ने यह दिया कि पर्यवेक्षकों से विचार कर केही वे कोयला उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित करते रहे थे। यह एक संयुक्त निर्णय था और यह महाप्रबंधक द्वारा जो कि उनका वरिष्ठ अधिकारी था, आरोपित स्वेच्छाचारी निर्णय नहीं था । इसके अलावा कार्य के दौरान यदि कोई समस्या थी तो ये उत्पावन लक्ष्य पर विचार-विमर्श करने और इसमें संशोधन करने के लिये स्वतंत्र थे। उन्होंने इस प्रारोप का खंडन किया कि उत्पादन लक्ष्य में कमी होने की संभावना के कारण उन्होंने अनधिकृत प्रोडेक्शन में स्थित खान में बेरोक-टोक स्वनन कार्य किया। कार्य अनुमति के लिए खान सुरक्षा महा. को प्रस्तुत प्रावेदन के संबंध में उन्होंने बयान दिया कि महाप्रबंधक को औपचारिक प्रनुमति अपेक्षित नहीं है फिर भी उन्होंने ऐसे मामलों पर महाप्रबंधक से विचार किया। उन्होंने बयान दिया कि खान सुरक्षा विनियमनों के प्रवर्तन के लिये एजेंट सह प्रबंधक के रूप में उनके पास पर्याप्त पाकियाँ थीं। उनके ठीक ऊपर वरिष्ठ अधिकारी कुनस्तोरिया क्षेत्र के महाप्रबंधक थे। महाप्रबंधक को क्षेत्रीय सुरक्षा अधिकारी, जो उनका स्टाफ कर्मचारी है, द्वारा सुरक्षा मामलों पर सलाह वो गयी थी । मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू. 17 ) ने पानी भर जाने के संभावित खतरे के बारे में क्षेत्रीय सुरक्षा अधिकारी और महाप्रबंधक से विचार-विमर्श किया था । मो. कलीम (एम. डब्ल्यू. (17) ने यह बयान दिया है कि इन अधि कारियों ने उनको सदैव खान सुरक्षा महा की "मनुमति" का पालन करने की सलाह दी थी। इस प्रकार मो. कलीम ( एम. ब्ल्यू 17 ) ने यह स्वोकार किया कि 8 नवंबर, 1989 से 28 स्तर के पास 40 लिप में उनके भावेश से कार्य शुरू किया गया और इससे उनके वरिष्ठ अधिकारियों का कुछ लेना-देना नहीं था। इसके अलावा ऐसा कोई गवाह नहीं है जिसने
9.7.1 भोवर मन और रिसदार जैसे पर्यवेक्षी कर्मचारियों द्वारा भी चूके हुयी है। इन चूकों का विश्लेषण इस प्रकार है :9.7.2 श्री निहिर कुमार चटर्जी ( एम डब्ल्यू 10) प्रोवरमैन जो सामान्य पारी कहे जाने वाली प्रथम पारी में स्थायी रूप से तैनात थे । उन्होंने बयान दिया है कि चूंकि उनका कार्य विविध प्रकृति का है और उनको एडवांस बोरहोल के पर्यवेक्षण के लिये प्रौपचारिक रूप से नियुक्त नहीं किया गया था, बल्कि एजेंट-सह प्रबंधक मो. कलीम ( एम. डब्ल्यू 17 ) आमतौर पर उनसे ऐसे बोरोल के ड्रिलिंग पादि का पर्यवेक्षप्प करने को कहा करते थे । श्री सी. डी. सिंह ( एम. डब्ल्यू 4 ) 42 कासकट क्षेत्र के शिफ्ट ओवरमैम थे और 12 नवंबर, 1989 की पहली पारी में वे डयुटी पर थे। श्री शिवदास चटर्जी भोयरमैन ( एम डब्ल्यू 9 ) और श्री फौजवार सिंह ( एम डब्ल्यू 1) अन्य भोवर मैन थे जिनको 12 नवंबर 1989 को क्रमशः दूसरी और तीसरी पारी में डयूटी पर
लगाया गया था।
9.7.3 श्री निहिर कुमार चटर्जी (एम. डब्ल्यू. 10 ) और श्री मी. डी. सिंह ( एम. सम्ल्यू 4 ) 12 नवंबर, 1989 को पहली पारी में 40 सिप फेस में 5.4 मीटर लेबे एमवास सेन्ट्रल बोरहोल और वो फलैंक बोर शेल की निश्चित ट्रिलिंग करने का दावा किया है। श्री शिवदास चटर्जी ( एम डब्ल्यू 9) मे उसी दिन की दूसरी पारी में जन एडवांस बोर होनों की नापजोख करने का दावा किया है। इन सभी भोवर मैनों ने यह दावा किया है कि 40 डिप फेस में ज्यादा पानी का रिसाव नहीं
9.7.4, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि 12 नवंबर, 1989 को 28 स्तर के समीप 40 शिप फेस में कोई एडवांस बोरहोल नहीं या और उसी दिन फेस से ज्यादा पानी का रिसाव है। रहा था। अतः एडवांस बोरहोल की ड्रिलिंग और ज्यादा पानी न रिसने के संबंध में इन सोबर मेनों के बयान पर मैं विश्वास नहीं करता हूं ।
9.7.5 श्री फौजदार सिंह ( एम डब्ल्यू 1 ) ही अकेले 13 नवंबर, 1989 की तीसरी पारी में जब दुर्घटना हुयी थी, ओवर मैन को सयुटी पर थे और उनके चार्ज में अधिक दूरी पर स्थित तीन क्षेत्र थे । प्रतः दुर्घटना होने के पूर्व 40 डिप फेस का निरीक्षण करने का अवसर उन्हें नहीं मिला ।
9.7.6. श्री राम शंकर सरकार ( एम उन्हयू 12 ) औौर दूदन पाण्डेय ( एम डब्ल्यू 13 ) 12 नवंबर, 1989 की दूसरी और तोसरी पारी में 42 क्रासकट क्षेत्र में ड्यूटी पर थे। मैं उनके बयान पर भी विश्वास नही करता कि 40 डिप फेस में एडवांस बोरहोस थे और फेस में से ज्याष पानी का रिसाव नहीं हो रहा था।
9.7.7. श्री चंद्र धारी बराई (एम डब्ल्यू. 14 ) 12 नवंबर, 1989 की तीसरी पारी में 40 डिप फेस के शाट फायरर की ड्यूटी पर थे। मैं उनके इस बयान पर भी विश्वास नही करता कि उन्होंने दुर्घटना वाले दिन 13 नवंबर, 1989 को शाट फायर करने के पहले 40 डिप फेस के एडवांस और फलैक बोरहोल की जांच कर ली थी ।
THE GAZETTE OF INDIA : JANUARY 9, 1993 / PAUSA 19, 1914
9.7.8 खान सुरक्षा का प्रथम उत्तरदायित्व प्रबंधन पर है। खान के सहायक कर्मचारियों से यह अपेक्षा होती है कि वे उनके आदेशों का पालन करें । मैंने पहले भी कहा है कि इस बात की जानकारी एजेंट सहप्रबंधक ( एम. डब्ल्यू. 17 ) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को थी कि 40 डिप फेस में एडवांस वोरहोल ड्रिल नहीं किये गये है और इससे ज्यादा पानी रिस रहा है । यदि एजेंट सह-प्रबंधक और अन्य वरिष्ठ कर्मचारी सतर्क रहते और खान सुरक्षा के अपने उत्तरदायित्व के प्रति सतर्क रहते तो उन्होंने एडवांस बोरहोल की ड्रिलिंग करवा ली होती और ज्यादा पानी के रिसाव की ओर ध्यान दिया होता ।
उनके द्वारा स्थिति को हाथ से निकलने देने के कारण अधीनस्थ कर्मचारियों जैसे भोवरमैनों, सिरदारों तथा सोट फाइररों को गलत संकेत मिले । अतः उनकी गल्तियों के बावजूद भी मैं सर्वश्री मिहिर कुमार चटर्जी ( एम डब्ल्यू 10 ) , सी. डी. सिह ( एम. डब्ल्यू 11 ) , शिबदास चटर्जी राम शंकर सरकार ( एम डब्ल्यू 12 ) , दोदन पाण्डे ( एम डब्ल्यू 13 ) चन्द्रधारी बराई ( एम डब्ल्यू 14 ) को घातक दुर्घटना के लिए जिम्मेदार नही ठहराता हूं ।
9.7.9 पानी भर जाने के कारण हुई अधिकांश दुर्घटनाओं तथा श्रापदा के कारणों का विश्लेषण यह दर्शाता है कि खान में कार्यरत उच्चाधिकारी मूल रूप से जिम्मेदार होते है, परन्तु सामान्य कर्मकार तथा उनके पर्यवेक्षकों जैसे सोटफाइररों, सिरदारों तथा श्रोवरमैन के लिए सुरक्षा पैरामीटर की जानकारी अपेक्षित है सामान्यतः पानी भर जाने के कारण हुयी किसी दुर्घटना पहले कुछ अपसामान्य संकेत तथा लक्षणों जैसे बहुत अधिक पानी की सोपेज इत्यादि होती है । यह जरूरी है कि भूमिगत कोयला खानों में काम करने वाले प्रथम स्तर के पर्यवेक्षक तथा कर्मकार ऐसे सूचच लक्षणो / कारण की पहचान कर उन्हें प्रबन्धन के उच्च स्तर की जानकारी में लाएं । यह आवश्यक है कि पर्यवेक्षकों तथा कर्मकारों को इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और सुरक्षा संबंनी ज्ञान उन्हें दिया जाना चाहिए ।
9.7.10 कमकारों के निरीक्षकों के संस्थान तथा सुरक्षा समिति को इस आशय से कानूनी समर्थन दिया गया है कि कमकारों की सुरक्षा में संस्थानों के क्रियाकलाप दुर्घटनाओं तथा गम्भीर संकट की घटनाओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस मामले में कम कारों क निरीक्षक तथा सुरक्षा समिति उनसे अपेक्षित उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे । कमकारों के निरीक्षक ने स्वीकृत क्षेत्र में 40 डिप को पुनः प्रारम्भ करने के कारणों के बारे में पूछताछ नहीं की। उन्होंने यह भी सुनिश्चित नहीं किया कि 40 डिप फेस बोरहोलों खुदायी भी पहले से कर ली जाए । इसक विपरीत उसने मेरे सामने पानी के अपसामान्य सीपेज न होने तथा 12 नवम्बर, 1989 को 40 डिप फेस पर बोर होलों को पहले से ही खुदायी के बारे में गलत बयान दिया ।
9.7.11 लगभग सभो पयवेक्षक स्टाफ और अनेक कमकारों को इस बात की जानकारी थी कि उपरिशायी नेगासीम में काफी पानी जमा था। फिर भी खान में पानी भर जाने के खतरे का मामला सुरक्षा समिति जिसकी बैठक महीने में लगभग एक बार होती है के सामने विचार के लिए नहीं आया ।
9.7.12 यह सही है कि खान की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रबन्धन की है। परन्तु यह भी सही है कि इसे बिना कर्मकारों के तथा ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों के सक्रिय सहयोग के प्राप्त नहीं किया जा सकता है । इस मामले में यह प्रतीत होता है कि एडवान्स बोर होल को व्यवस्था तथा फेस पर पानी की असामान्य सीपेज की जानकारी कुछ कर्मकारों द्वारा स्थानीय ट्रेय यूनियन नेताओं के ध्यान में लायी गयी थी । दुर्भाग्य से ऐसी सूचना होने पर उनके द्वारा भी कोई अनुकूल कारवाई नहीं की गई।
10.1 निष्कर्षो का सा 10. 2 सिफारिशें 10. 3 खर्चा की वसूली
10.4 प्रभार
अध्याय 10
10.1.1 13 नवम्बर, 1989 को महाबीर खान की नारायणकूरी सीम में घटित घातक दुर्घटना का कारण पुराने पड़े हुए उपरिसायी तथा साफ्ट सं. 34 के कार्यों से जलाकांत नेगा सीम से पानी का तेज बहाव था । परित्यक्त तथा जलाक्रांत साफ्ट सं. 34 जिसे 28 लेवल के पास 40 डिप गैलरी को बढ़ाते हुए नाराणकु सीम तक जोड़ा गया था के कारण दुर्घटना हुयी और इससे 6 बहुमूल्य जाने गयी ।
10.1.2 यह दुर्घटना, जलाक्रांत साफ्ट सं. 34की ओर जाने वाली 40 डिप गैलरी में पर्याप्त संख्यां में मध्य तथा फलैक बोर होल्स उपलब्ध न कराये जाने के कारण हुयी । यदि ऐसे विकसित बोरहोल्स कवर उपलब्ध कराये गये होते तो अधिकारीगण जलाक्रांत साफ्ट के खतरे के बारे में सावधान हो जाते और इस प्रकार से घातक दुघटना को टाला जा सकता था । ऐसे विकसित बोरहोल्स कोयला खान नियमावली 1957 के 127 विनियम के अन्तर्गत आवश्यक है । खान सुरक्षा महानिदेशक द्वारा जारी कार्य सम्बन्धी अनुमति में भी स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि ऐसे बोरहोल्स उपलब्ध कराये जाने चाहिएं थे । इसके अतिरिक्त 28 लेवल के पास तक 40 खिप गैलरी को खान सुरक्षा महानिदेशक द्वारा कार्य कर के लिए स्वीकृत परिवर्धन प्रक्षेषण से दूर लगभग 100 मी. अनाधिकृत क्षेत्र में बढ़ा दिया गया था । यह घातक दुर्घटना 28 लेवल के पास 40 डिप गैलरी जहां पानी की अपसामान्य सीपेज के कारण जनवरी, 1988 में खनन कार्य रोक दिया गया था, में कार्य प्रारम्भ कि जाने ले मात्र 5 दिन के भीतर ही हो गयी। मेरे विचार से यह घातक दुर्घटना सर्व श्री मो. कलीम एजेंट तथा प्रबन्धक तथा पी. एल. बनर्जी सुरक्षा अधिकारी तथा महाबीर खान के सहायक प्रबन्धक श्री के. दत्ता की गम्भीर लापरवाही के कारण घटी है । इन तीनों अधिकारियों ने कोयला
खान नियमावली 1957 के विनियम 127 ले प्रावधानों तथा साथ ही साथ खान सुरक्षा महानिदेशक द्वारा जारी की गयी कार्यानुमति में निर्धारित शर्तों का उल्लघंन किया है ।
10.2.1. हमारे देश की भूमिगत कोयला खानों में बाढ़ के कारण अन्य घोर विपदाओं की तरह यह घातक दुर्घटना कोयला खान विनियमों के संगत प्रावधानों के अनुपालन में मनुष्य द्वारा की गयी चूक के कारण हुयी । जबकि संगत कोयला खान विनियमों का अनुऐसे क और घोर विपदाओं को रोक सकता है, चिन्ता की बात यह है कि समयसमय पर इसकी पुनरावृत्ति होती है। मेरे विचार में कर्मकारों को तथा प्रथम पंक्ति के पर्यवेक्षक कर्मचारियों जैसे शॉट फाइर्स, सिरदारों तथा ओवर मैनों को इस बारे में कानूनी प्रावधानों के साथ-साथ उनकी जिम्मेदारियों के प्रति श्रवगत कराना बाढ़ संबंधी खतरे के संकेतों के बारे में पहले से सचेत रहने के लिए उपयुक्त रूप से उन्हें प्रशिक्षित करना जिससे कि समय पर दोष निवारक उपाय किए जा सकें । मैंने यह भी पाया कि कर्मकारों के निरीक्षण के स्थान तथा सुरक्षा समिति जो कि काफी हद तक सुरक्षा चेतना जगा सकती है को सुदृढ़ करने की पर्याप्त गुंजाइश है । |
5e9cd01d83ede5402d5784f303973505f3b4d9cf | web | लखनऊ/कोलकाता/तिरुवनंतपुरम । यातायात नियमों के उल्लंघन पर सख्त सजा के प्रावधान वाले प्रस्तावित 'सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक-2014' के विरोध में गुरुवार को परिवहन संचालकों के देशव्यापी हड़ताल से देश भर में लाखों यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा। बड़ी संख्या में रेलवे स्टेशनों पर यात्री फंसे रहे तथा लोगों को कार्यालय जाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
देश भर के मजदूर संघ भाजपा पर कामगार विरोधी नीति बनाने का आरोप लगाते हुए इस प्रस्तावित विधेयक को रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं। नए विधेयक में लापरवाही पूर्वक गाड़ी चलाने पर 50 हजार रुपये, शराब पीकर वाहन चलाने पर 10 हजार रुपये और अत्यधिक तेज परिचालन पर 6,000 रुपये के चालान का प्रावधान है। इसे मंत्रिमंडल के पास मंजूरी के लिए रखा जाना है। विधेयक में एक नियामक प्राधिकरण गठित किए जाने का भी प्रावधान है। परिवहन संचालकों का कहना है कि विधेयक में विभिन्न उल्लंघनों के लिए निर्धारित किया गया जुर्माना काफी अधिक है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हालांकि इसे वाजिब बताते हुए कहा है कि अगले पांच साल में सालाना दुर्घटनाओं की संख्या घटाकर दो लाख तक लाने के लिए यह जरूरी है। सालाना दुर्घटनाओं की संख्या अभी 4.90 लाख है और इसमें से 25 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं गंभीर प्रकृति की होती हैं।
सार्वजनिक परिवहन, ऑटो-रिक्शा और टैक्सी संचालकों द्वारा बुलाई गई 24 घंटे की हड़ताल के कारण केरल में बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे पर हजारों लोग फंसे हुए हैं। राज्य में छह श्रमिक संघों ने इस हड़ताल का आह्वान किया है। त्रिपुरा में भी बंद के कारण सार्वजनिक परिवहन बुरी तरह प्रभावित रहा। परिवहन कार्यकर्ताओं ने पूरे त्रिपुरा में रैलियां निकालीं। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) की कार्य समिति के सदस्य तापस दत्ता ने आईएएनएस को बताया, "हड़ताल का व्यापक असर हुआ है। राज्य में कहीं भी अप्रिय घटना घटित नहीं हुई है।" देशभर में सीटू, आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस और भारतीय मजदूर संघ ने विधेयक के खिलाफ 24 घंटे के हड़ताल का आह्वान किया है।
कुछ राज्यों को यह संदेह है कि प्रस्तावित विधेयक उनकी वित्तीय, विधायी और प्रशासनिक शक्तियों का अतिक्रमण कर लेगा। हरियाणा में सरकारी बस सेवा पूरी तरह चरमरा गई है। निजी बस चालक भी अपनी बसों को संचालित नहीं कर रहे हैं। इससे यात्री असहाय से हो गए हैं। ऑटो-रिक्शा और रिक्शा चालक यात्रियों की मुश्किलों का फायदा उठा कर ज्यादा किराया वसूल कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और बसों के न चलने के कारण कोलकाता सहित पूरे राज्य में अधिकांश सड़कें लगभग सूनी पड़ी रहीं। हावड़ा एवं सियालदह रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को तथा कार्यालय जाने वाले लोगों को टैक्सी या बस के अभाव में भारी मुसीबत झेलनी पड़ी।
कोलकाता और हावड़ा के कई हिस्सों से बसों में तोड़-फोड़ की खबरें भी मिली हैं। गुरुवार को सभी निजी स्कूल बंद रहे, जबकि सरकारी स्कूलों में मामूली उपस्थिति दर्ज की गई, क्योंकि अधिकांश परिजनों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजा। प्रमुख विपक्षी दल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कार्यकर्ताओं ने बंद के समर्थन में कोलकाता और राज्य में कई जगहों पर रैलियां निकालीं। इस बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदेशवासियों से बंद को निष्क्रिय करने का अह्वान किया। राज्य सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए ड्यूटी पर अनिवार्य रूप से पहुंचने के लिए एक परिपत्र जारी किया था। उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ सहित कई जिलों में हड़ताल का असर दिखायी दे रहा है। अभिभावकों को अपने बच्चों को स्कूल पहुंचाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रोडवेज से अनुबंधित बसों के चालक भी इस हड़ताल में शामिल हैं।
दूसरी तरफ हड़ताल का विरोध कर रहे संगठनों ने परिवहन व्यवस्था को सुचारु बनाए रखने का दावा किया है। रोडवेज कर्मचारी संघ के प्रवक्ता आर. पी. वर्मा ने कहा इस विधेयक के खिलाफ बुधवार मध्यरात्रि से ही बसों का संचालन बंद करा दिया गया है। इस हड़ताल का टेम्पो-टैक्सी महासंघ सहित कई अन्य संगठन समर्थन कर रहे हैं। वहीं लखनऊ ऑटो रिक्शा थ्री व्हीलर संघ ने हड़ताल का पुरजोर विरोध किया है। परिवहन संगठनों की बुधवार को हुई बैठक के बाद हड़ताल में शामिल न होने का फैसला लिया गया। रोडवेज के क्षेत्रीय प्रबंधक ए. के. सिंह ने बताया कि हड़ताल का आह्वान केवल एक संगठन ने किया है, जबकि शेष संगठन इसमें शामिल नहीं है। इस कारण हड़ताल का कोई प्रभाव नहीं रहेगा। एहतियात के तौर पर प्रशासन व पुलिस को इसकी जानकारी दे दी गई है।
बंद का तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में आंशिक असर देखा गया। हैदराबाद में परिवहन सेवाएं आंशिक तौर पर प्रभावित रहीं, क्योंकि ऑटो-रिक्शॉ, कैब और ट्रक पूर्ववत चलते रहे। राज्य सरकार के सड़क परिवहन निगम (आरटीसी) के मुख्य कर्मचारी संघ ने इस बंद में हिस्सा नहीं लिया, जिससे दोनों ही राज्यों में सार्वजनिक परिवहन प्रभावित नहीं हुआ। आरटीसी के अधिकारियों ने बताया कि सभी शहरों एवं कस्बों में बस सेवाएं पहले की भांति ही जारी रही। दोनों राज्यों में आरटीसी के कई बस डिपो पर कुछ कर्मचारियों ने धरना प्रदर्शन किया। काली पट्टी लगाए प्रदर्शनकारी कर्मचारियों ने नए विधेयक के खिलाफ नारेबाजी की। ऑटो चालकों के कुछ संघों ने विधेयक में श्रमिक विरोधी प्रावधानों का आरोप लगाते हुए एक रैली का आयोजन किया। बंद का करीमनगर, निजामाबाद और तेलंगाना के अन्य शहरों में खास असर नहीं रहा। विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, तिरुपति और आंध्र प्रदेश के कुछ अन्य शहरों में बंद का मामूली असर रहा।
पणजी। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य व हिंदी पखवाड़ा के समापन समारोह में भारतीय नौसेना एवम होली ग्रुप के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम कवि सम्मेलन अद्वतीय रहा। रियर एडमिरल, कमोडोर, कैप्टन, कमांडर, लेफ़्टिनेंट कमांडर व कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों ने होली ग्रुप की भूरि-भूरि प्रशंसा किया।
अधिकारियों ने कहा आप सबकी गरिमामय उपस्थिति और होली टीम की मेहनत की वजह से हम लोग एक और मील का पत्थर गाड़ने में सफल रहे। हमारे होली के उन साथियों को कोटि -कोटि धन्यवाद जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना-अपना योगदान दिया।
उन्होंने कहा विशेषत सूरज नाईक, जे के सिंह, सरोज राय व बीएम यादव ने टीम वर्क का परिचय देते हुए कामयाबी का झंडा गाड़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हमारे दूसरे होली ग्रुप के मेम्बर, जिन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से उत्साहवर्धन किया और कार्यक्रम में भाग लिया।
इनके अतिरिक्त होली ग्रुप के दूसरे मेम्बर, जिन्होंने पहुँचकर कार्यक्रम में चार चाँद लगाये, उनमे विसन सिंह, प्रेम मिश्रा, सुशील शुक्ला व अभिलाष द्विवेदी की भूमिका सराहनीय रही।
अंततः आप सबको सफल कार्यक्रम की हार्दिक बधाई व उज्जवल भविष्य की अनंत शुभ कामनाएँ प्रेषित। भारतीय नौसेना के जवानों के अनुसार , ऐसा सुंदर कार्यक्रम/आयोजन व होली ग्रुप द्वारा दी गई प्रस्तुति उनके सर्विस जीवन में (25-30 वर्षों में) पहली बार हुआ है एवम सबके चेहरे पर मुस्कान थी व होली ग्रुप के लिए कृतज्ञता।
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84d5ffc1543821a596f3c216dca5a9adf31d9a133356dd5babf17808d3564532 | pdf | तथैव स्वात्मसद्भावानुभूतो सर्ववस्तुनः । प्रतिक्षणं वहिर्हेतुः साधारण इति धुवम् ॥ ६ ॥ प्रसिद्धद्रव्यपर्यायवृत्तौ वाह्यस्य दर्शनात् । निमित्तस्या न्यथाभावाभावान्निश्चीयते बुधैः ॥ १० ॥
हम सारिखे अल्पज्ञ जीवो के यहा प्रत्यक्ष प्रमाणसे प्रसिद्ध नही भी होरही वर्तना तिस प्रकार व्ययहारोपयोगी कार्य के देखने से अनुमित होजाती है। जिस प्रकार कि चावलो का अग्निसयोग अनुसार खदर, वदर, होकर पकना स्वरूप पाक की प्रसिद्धि होजाने से यह अनुमान प्रवतं जाता है कि भात इस नाम को धारने वाली पर्याय का पूर्व मे प्रत्येक क्षरण मे सूक्ष्म रूप से चात्रलो का पाक हुआ है । अन्यथा यानी प्रतिक्षरण सूक्ष्मरूप से पाक होना यदि नही माना जायगा तो इष्ट होरहे पाक को सभी प्रकारो से सिद्धि नही होसकती है । भावार्थ - प्रत्येक क्षरण मे सूक्ष्म परिणाम करता हुआ बालक जिसप्रकार युवा होजाता है । उसी प्रकार अग्नि द्वारा चावलो को पकाने पर भी क्रम क्रम से सूक्ष्म पाक होते होते भात वन सका है, अन्यथा नही । अत उन अतीन्द्रिय सूक्ष्म पाको का जैसे अनुमान कर लिया जाता है। उसी प्रकार वर्तना का अनुमान कर लिया जाता है । सम्पूर्ण वस्तुओं के प्रत्येक क्षण मे होने वाले अपने निज सद्भाव के अनुभव करने मे कोई साधारण वहिरग हेतु है । यह निश्चित मार्ग है, द्रव्यो की प्रसिद्ध होरही पर्यायो के वर्तने मे भी वहिरग निमित्त कारण देखा जाता है । भन्यथा उन पर्यायो के भाव का अभाव है, मत. अन्यथानुपपत्ति द्वारा विद्वानो करके उस प्रतीन्द्रिय भी वर्तना का निश्चय कर लिया जाता है, वह वर्तना काल द्रव्य करके किया गया उपकार है ।
आदित्यादिगतिस्ताव तद्धेतुर्विभाव्यते ।
तस्यापि स्वात्मसतानुभूतौ हेतुव्यपेक्षणात् ॥ ११ ॥
मुख्य काल को नही मानने वाले श्वेताम्बर कहते हैं कि सूर्य चन्द्रमा आदि की गति या ऋतु अवस्था, प्रादि उस वर्तना की प्रयोजक हेतु होजायगी। इस पर ग्रन्थकार कहते हैं, कि सूर्य आदि की गति तो उस वर्तना का हेतु नही है। यह बात यो विचार ली जाती है कि उन सूर्य मादि के गमन या ऋतु की भी स्वकीय निज सत्ता के अनुभव करने में किसी अन्य हेतु की विशेषतया प्रपेक्षा होजाती है । अत. अन्य हेतु काल द्रव्य का मानना श्वेताम्बरो को भी आवश्यक पड़ेगा ।
न चैवमनवस्थां स्यात्कालस्यान्याव्यपेक्षणात् ।
स्ववृत्तौ तत्स्वभावत्वात्स्वयं वृत्तेः प्रसिद्धितः ॥ १२ ॥
यदि कोई यो कहे कि धर्मादिक की वर्तना कराने मे काल द्रव्य साधारण हेतु है और काल द्रव्य की वर्त्तना मे भी वर्त्तयिता किसी अन्य द्रव्य की आवश्यकता पडेगी और उस अन्य द्रव्य की वर्तना करानेमे भी द्रव्यान्तरो की भाकाक्षा बढ़ जानेसे अनवस्था दोष होगा। ग्रन्थकार कहते हैं कि हमारे यहा इस प्रकार मनवस्था दोष नही आता है क्योकि काल को मन्य द्रव्य की व्यपेक्षा नहीं है अपनी वर्तना करने मे उस काल का वही स्वभाव है क्योकि दूसरो के वसना कराने के समान काल द्वय की स्वय
निज में वर्तना करने की प्रसिद्धि होरही है जैसे कि प्रकाश दूसरो को अवगाह देता हुआ स्वय को भी भवगाह दे देता है, ज्ञान अन्य पदार्थों को जानता हुआ भी जान लेता है ।
तथैव सवभावानां स्वयं वृत्तिर्न युज्यते । दृष्टेष्टवाधनात्सर्वादीनामिति विचिंतितम् ॥१३॥
यहा किसी का यह कटाक्ष करना युक्त नहीं है कि जिस प्रकार काल स्वयं अपनी वर्त्तना का प्रयोजक हेतु है उस ही प्रकार सम्पूर्ण पदार्थों की स्वमेव वर्तना होजायगी कारण कि घट, पट आदि सम्पूर्ण पदार्थों को स्वय वतना का प्रयोजक हेतुपना मानने पर प्रत्यक्ष अनुमान, आदि प्रमारणो करके वाधा आती है, इस बात का हम पूर्व प्रकरण में विशेष रूप से विचार कर चुके है, प्रदीपका स्वपरोद्योतन स्वभाव है, घट का नहीं । कतक फल या फिटकिरी स्वय को और कीच को भी पानी मे नीचे बैठा देते है, वायु या फेन नही ।
न दृश्यमानतैवात्र युज्यते वर्तमानता
वर्तमानस्य कालस्याभावे तस्याः स्वतो स्थितेः ॥ १४ ॥ प्रत्यक्षासंभवासक्त रनुमानाद्ययोगतः । सर्वप्रमाणनिन्हुत्त्या सर्वशून्यत्वशक्तितः ॥१५॥
मुख्य काल और व्यवहारकाल को नही मानने वाले बौद्ध यहा कटाक्ष करते हैं कि वर्तमान काल कोई पदार्थ नही है, निर्विकल्पक दर्शन द्वारा जो पदार्थों की दृश्यमानता है वही वर्तमानता है अत एव इस अन्यापोह रूप धर्म को ही वर्तना कहा जा सकता है, इसके लिये इतने लम्बे चौडे कार्य कारण भाव के मानने की आवश्यकता नही । आचाय कहते है कि यह बौद्धो का कहना युक्तिपूर्ण नही है क्योकि वर्तमानकाल का प्रभाव मानने पर उस दृश्यमानता की स्वयं अपने आप से व्यवस्था नही होसकती है क्योकि "दृशि प्रक्षरणे" धातु से कर्म मे यक् करते हुये पुन. वर्तमानकाल की विवक्षा होने पर "शानच' प्रत्यय करने पर दृश्यमान बनता है, दूसरी वातयह है कि वर्तमान कालके नही मानने पर प्रत्यक्ष प्रमा रण के असम्भव होजानेका प्रसग होगा क्योकि वर्तमान कालीन पदार्थो को इन्द्रिय, अनिन्द्रिय-जन्य प्रत्यक्ष जानते है, प्रत्यक्ष को मूल मान कर अनुमान आदि प्रमाण प्रवर्तते है अतः प्रत्यक्ष प्रमाण का असम्भव होजानेसे अनुमान आदि प्रमाणोकी योजना नही हासकती है, ऐसी दशामे सम्पूर्ण प्रमारगोका अपलाप हो जानेसे सर्व पदार्थोके शून्यपनका प्रसंग श्रावेगा जो कि किसीको भी इष्ट नहीं है, ऋत. वर्तमान कालका मानना अत्यावश्यक है । जो पण्डित यो कह देते है कि 'वर्तमानाभावः पतत. पतित पतितव्य कालोपपत्तेः' अर्थात् - वर्तमानकाल कोई नही हैं क्योकि वृक्ष से पतन कर रहे फल का कुछ देश तो पतित होकर भूतकाल के गर्भ में चला गया है और कुछ नीचे पडने योग्य देश भविष्य काल मे ग्राने वाला है अनः भूत पतित और भविष्य पतिनव्य काल ही है । उन पण्डितो की यह तक निस्सार है जब कि फल का वर्तमान काल मे पतनहोरहा प्रत्यक्ष सिद्ध है, वतमान को मध्यवर्ती मान कर ही भूत, भविष्य काल माने जा सकते है, अन्यथा नही ।
स्वसंविदद्वयं तत्वमिच्छतः सांप्रतं कथम् सिद्धयन्न वर्तमानोस्य कालः सूक्ष्मः स्वयंप्रभुः ॥१६॥
जो बौद्ध बहिरग सम्पूर्ण पदार्थों को नहीं मान कर स्वसम्वेदनाद्वत को ही तत्व इच्छते हैं उनके यहा वर्तमान काल मे वर्त रहा सम्वेदनाद्व त भला किस प्रकार सिद्ध नही होगा ? और ऐसा मानने पर इस सम्बेदनाद्व तका स्वयं प्रभु होरहा और परम सूक्ष्म वर्तमान काल सिद्ध नही होवे ? यानी वर्तमानकाल प्रवश्य सिद्धहोजावेगा । क्षणिक-वादी बौद्धो को बडी सुलभता से वर्तमान क्षरण इष्ट करना पड़ेगा कारणकि वर्तमान क्षणमे पदार्थकी सत्ता मा ते हुये उन्होने दूसरे क्षरणमे पदार्थों का स्वभाव से होरहा विनाश इष्ट किया है "द्वितीयक्ष रणवृत्तिध्वंस प्रतियोगित्व क्षणिकत्वं ।
ततो न भाविता द्रक्ष्यमाणता नाप्यतोतता ।
दृष्टता भाव्यतीतस्य कालस्यान्यप्रसिद्धितः ॥ १७॥
तिसही कारण भविष्यमे दर्शनका विषय होजाना यह दृक्ष्यमाणता ही भविष्यता नही है भोर तिस ही कारण दृष्टता ही अतीतपना भी नही है क्योकि अन्य भी भविष्य में होने वाला भावी काल औौर होचुके अतीत काल के प्रोत प्रोत चले भा रहे अन्वय की प्रसिद्धि होरही है । ज्ञान करके देखा जा चुकापन या देखाजायगापन केवल इतना स्वभाव ही भूतकाल या भविष्यकाल नहीं है किन्तु यथार्थ मे पदार्थों के परिणमयिता भूत, वतमान, भविष्य, काल हैं ।
गतं न गम्यते तावदागतं नैव गम्यते । गतागतविनिमुक्तं गम्यमानं न गम्यते ॥१८॥ इत्येवं वर्तमानस्य कालस्याभावभाषणं । स्ववाग्विरुद्धमाभाति तन्निषेधे समत्वतः ॥१६॥ निषिद्धमनिषिद्धं वा तद्वयोन्मुक्तमेव वा । निषिध्यते नहिं कैवं निषेधो / व धेरेव वा ।।२०।।
कोई पण्डित कहते हैं कि कोई पथिक मार्ग मे गमन कर रहा है जितना मार्ग वह गमन कर चुका है वह फिर गमन नही किया जाता है क्योकि वह गत होचुका भौर जो भविष्य मे माने योग्य मार्ग है वह भी गमन नही किया जा सकता है कारण कि वह तो भविष्य काल मे गमन किया जावेगा अवं गत और मागत मार्गसे रहित कोई गम्यमान स्थल शेष नही रहा तो वह नही गमन किया जायगा ऐसो दशा मे गत और गमिष्यमारण से प्रात्तरिक्त वर्तमानका कोई गम्यमान शेष नही रहता है ।
प्राचार्य कहते हैं कि इस प्रकार जो पण्डित वर्तमान काल के प्रभाव को वखानते हैं उनका भाषण स्ववचन विरुद्ध प्रतीत हो रहा है क्योकि उस वर्तमानके निषेधमे मा समान रूपसे वैसे ही भाक्षेप प्रवर्त जाता है हम जैन उन वतमान काल का निषेध करने वाले पण्डिता से पूछते है कि भाप निषिद्ध |
8ff42633c311d3598f880a1403daed8f0e00ea1ed160d92897df3d0495325f42 | pdf | स्वतंत्रता का कोई मूल्य नही। वह सिर्फ परतंत्रता को स्वतंत्रता का नाम देना होगा जो कि और खतरनाक है क्योंकि परतंत्रता परतंत्रता ही रहे, साफ परतंत्रता समझी जाये तो कम से कम आनेस्ट होती है। और जब हम स्वतंत्रता देने की बात करने लगते है लेकिन जब दी जाती है स्वतंत्रता, तो स्वतंत्रता नही रह जाती।
कहीं दुनिया में अभी माँ बाप ने कोई स्वतंत्रता नही दी है और न शिक्षक ने कोई स्वतंत्रता दी है। स्वतंत्रता दे रहा है वह, यह मैं नहीं कह रहा हूँ। यह निगेटिव बात हुई कि हम स्वतंत्रता दें। न, मैं बहुत ही पाजिटिव बात कर रहा हूँ कि बच्चे को आदर, सम्मान, बच्चे से सीखने की सम्भावना। मैं बहुत दूसरी बात कर रहा हूँ। मै यह नही कह रहा हूँ कि परतंत्रता हटा लें। हटायेगा जो, वह मालिक है हटाने में भी बहुत पाजिटिव बात मैं यह कह रहा हूँ। बच्चों को स्वतंत्रता को नहीं देना है क्योंकि आप हैं कौन देने वाले ? और अगर आप स्वतंत्रता देने वाले हैं तो कल आप फिर कंट्रोल कर सकते हैं परतंत्रता फिर ला सकते हैं। लेना-देना आपके हाथ में हैं। यह मैं नहीं कह रहा हूँ मैं एक पाजिटिव वेल्यू की बात कर रहा हूँ।
ओशो ने कहा है "मैं यह कह रहा हूँ कि बच्चें को आदर, सम्मान, रिवेरेन्स... । मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि बच्चे माँ-बाप को आदर न दें अनादर की उनकी इच्छा नहीं है, मैं यह नही कह रहा हूँ। मैं माँ-बाप से यह कह रहा हूँ कि वह बच्चों को आदर दें। मां-बाप बर्दाश्त करने को राजी हो जायेगे कि हमें आदर न दिया जाये, इससे कोई बड़ी क्रांति नहीं होती। नहीं, बड़ी क्रांति का मतलब यह है कि मैं यह कह रहा हूँ कि बच्चा बहुत आदर योग्य है माँ-बाप टालरेट कर सकते हैं इस बात को कि बच्चे आदर न दें, यह टालरेंस होगी उनकी, यह उनकी सहिष्णुता होगी। सुशिक्षण होगा, सुसंस्कृति होगी, लेकिन जिस क्रांति की मैं बात कर रहा हूँ वह बहुत दूसरी है। " 1
वह मैं यह कह रहा हूँ कि मां-बाप की आदर मांगने की आकांक्षा ही गलत थी। बच्चें को आदर दिया जा सकें, इसकी सम्भावना खुलनी चाहिए। तब हम स्वतंत्रता देगें, ऐसा नहीं,
1 शिक्षा में क्रान्ति संकलन प्रेम कल्पना
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जिसको हम आदर करते हैं वह स्वतंत्र हो जाता है। स्वतंत्रता आदर के पीछे छाया की तरह चलती हैं जिसे हम आदर करते हैं उसे हम परतंत्र नहीं कर सकते। तब स्वतंत्रता सहज आयेगी। और जो यह ख्याल है, कि कंट्रोल न किया जाये, यह जो ख्याल है, कि बच्चे जैसे बढ़ना चाहे बढ़े, मैं इसके पक्ष में नही हूँ। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि बच्चे जैसे बढ़ना चाहे बढ़े, क्योंकि मैं मानता हूँ कि जरूरी है कि बच्चे को किसी दिन कोई हाथ का सहारा देकर पैर पर चलाये, नहीं तो अपने आप बच्चा पैर पर चलेगा नहीं।
पीछे अभी कोई एक दस साल पहले कानपुर के पास एक भेड़ियों के द्वारा पाला हुआ एक बच्चा पकड़ा गया। वह चार हाथ पैर से चलता था। और छः महिने लगे उसको दो पैर पर खड़े होने की तैयारी करवाने में, और उसी तैयारी मे वह मरा, कयोंकि उसकी सारी मसल, सारी व्यवस्था चार हाथ-पैर से चलने वाली हो गयी, वह सब अकड़ गयी। इसके पहले भी कलकत्ते के जंगलों में पास में दो लड़कियाँ मिली वे भी भेड़िये उठाकर ले गये थे, उन्होंने पालीं। वे भी चार हाथ-पैर से चलती थीं, दो से नहीं चलती थीं।
नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि बच्चें को कोई सहयोग न दें, वह जैसा होना चाहे, हो जाये। यह भी बच्चे के प्रति अनादर का नया रूप है। यह भी बच्चे की असम्मान की नई प्रक्रिया है। अब तक बच्चे के लिए हम सब तरफ से ऐसा बनाना चाहिए, इसकी फिक्र में, अगर वह आप नहीं करने देते तो हम निगलेक्ट करते हैं कि बच्चे को जैसा होना हो, हो जाए। इसे हम स्वतंत्रता का नाम देगें, सब देगें, लेकिन बेईमानी की बात है। मैं नहीं मानता हूँ कि बिना पुरानी पीढ़ी के सहारे के बच्चा कुछ हो सकेगा, आदमी भी हो सकेगा, यह भी शक है और कुछ होना तो बहुत दूर की बात है। नहीं, सहारा तो देना होगा, लेकिन सहारा उसे बांधने वाला न हो। कंट्रोल भी रखना होगा, लेकिन कंट्रोल उसे बांधने वाला न हो, बल्कि अन्कंट्रोल में उसे पहुंचाने वाला हो।
सारी कठिनाई यह है कि सीधे पोलैरिटी में सोचना तो सदा आसान पड़ जाता है। यह तो हम सोचते हैं कि पूरी तरह कंट्रोल्ड है कि खाये वही जो हम कहें, उठे तो तब जब हम
कहें, सोये तो तब जब हम कहें, सांस ले तो तब जब हम कहें, यह तो कंट्रोल है। या आप कहते हैं कंट्रोल नहीं, बस ठीक है फिर। गडढे में गिरें तो हम खड़े होकर देखते रहें क्योंकि स्वतंत्रता है उसे कि उसे जो होना है हो जाये।
अमरीका में वही हुआ। पहली पोलैरिटी से वह दूसरी पोलैरिटी पर गये। वह भी मां-बाप का क्रोध है। वह भी कहते हैं कि अगर सारे शिक्षा शास्त्री और सारे मनोवैज्ञानिक ये कहते हैं कि हमने बिगाड़ दिया है बच्चो को, तो ठीक है। तब हम छोड़ते हैं, अब जो होना है हो जाये। मैं दोनों में से दोनों के लिए राजी नहीं हूँ। दोनों ही गलत दृष्टिकोण हैं क्योंकि जिंदगी पोलैरिटी में नहीं बांटी जा सकती। जिंदगी सदा ही विराधी पोल्स को एक साथ लेकर चलती है और इसलिए जिंदगी का मामला बहुत ही नाजुक है । वह ऐसा नहीं है जैसा हम उसे पकड़ लेते हैं। वह ऐसा ईदर -आर वाला नहीं है, या तो यह या इससे उल्टा। यह भी और वह भी और दोनों के बीच से मार्ग जाता है। न, बच्चे को तो मां-बाप को नियंत्रण देना ही होगा! अपरिचित है, अज्ञात रास्तों पर है इसलिए सहारा तो उनको पूरा चाहिए, नियंत्रण उनको पूरा चाहिये। बस इतना ही ध्यान रखने की जरूरत है कि नियंत्रण बच्चे की आत्मा की हत्या करता है या इस बात के लिए बच्चे को योग्य बनाता है कि वह नियंत्रण दो तरह का हो सकता है। इसलिए कि नियंत्रण रोज बढ़ता चला जाये और अंत में फांसी बन जाये, या नियंत्रण इसलिए कि नियंत्रण रोज कम होता चला जाये ओर अंत में स्वतंत्रता बन जाये।
पश्चिम में जो हुआ है वह सुखद नही हुआ। वह रिएक्शनरी है, रिवोल्युशनरी नहीं है, वह प्रतिक्रिया है। जो होना था उससे उल्टे जाने का ख्याल है। अगर आदमी को पैर के बल खड़े होकर अच्छी दुनिया नहीं बना पाया तो हम कहते हैं, हम शीर्षासन करके अच्छी दुनिया नहीं बना लेगें। लेकिन आदमी वही रहेगा। शीर्षासन करने से फर्क नहीं पड़ता। सिर्फ इन्वटेंड खड़ा हो जायेगा। सारी दुनिया की पांच-छह हजार साल की शिक्षा की जो व्यवस्था थी उससे उल्टी खड़ी हो गयी। वह भी नुकसान पहुंचा रही है। एक ऐसी शिक्षण व्यवस्था चाहिए जो पुरानी पीढ़ी को पूरी की पूरी तरह सहयोग ले लेती हो ओर फिर नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी
से आगे जाने में बाधा न बनती हो । अभी हम कहते है कि हम बच्चो को स्वतंत्रता दे रहे हैं लेकिन हम देनेवाले बीच में खड़े हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता दी ।
यह स्वतंत्रता नहीं है, सम्मान की बात मैं कह रहा हूँ स्वतंत्रता की नहीं। बच्चे कोई कैदी नहीं हैं, कि जेल की दीवार तोड़ दी और जंजीर तोड़ दीं और कहा कि हाथ झाड़ा, अब जाओ। उनको स्वतंत्रता देने से कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि कोई कारागृह ऐसा नहीं है कि हमने उनको छोड़ दिया और मामला समाप्त हो गया। अब तुम्हें जहां जाना हो, तुम जा सकते हो। हमारी तरफ से स्वतंत्रत हो। यह सम्मान न हुआ, यह आदर न हुआ। यह आनेवाले, उगनेवाले सूरज के प्रति सदभाव न हुआ। यह सिर्फ क्रोध हुआ कि ठीक है, हमारी व्यवस्था को तुम कारागृह कहते हो? तो ठीक है, हम कारागृह के बाहर छोड़ देते हैं। तो एक मां और बाप अपने बेटे को छोड़ दें कि जब तुम्हें चलना हो तो दोनो पैर से चलना, अन्यथा जैसा तुम्हें करना हो। वह कभी दो पैर से खड़ा नहीं होगा। और इसकी बहुत चिंता न करें कि जो मैं कह रहा हूं, वह नया है या पुराना है, क्योंकि सत्य के नये और पुराने होने का कोई सवाल नहीं है। वह सत्य है या नहीं, ठीक है या नहीं, इसकी फिक्र करें।
इस सदी में नये- पुराने ने एक अजीब तरह का वैल्यूएशन ले लिया है जिसका कोई मूल्य नहीं है। कुछ लोग है जो कहते हैं कि कोई चीज पुरानी है, इसलिए ठीक है। कुछ लोग है, जो कहते है कि कोई चीज नयी इसलिए ही ठीक है। ठीक होने का नये पुराने में कोई प्रयोजन नहीं है। पुराने में भी गलत था और नये में भी गलत है। पुराने में भी ठीक है। चिंता इसकी होनी चाहिए कि ठीक क्या है और कितने दूर तक हम पुराने का उपयोग कर सकते हैं। एक टोटल पर्सपेक्टिव के लिए पुरानी सारी शिक्षण पद्धति को समझा जाना जरूरी है, नयी सारी शिक्षण पद्धति को समझा जाना जरूरी है और दोनों के बीच एक माध्यम जो स्वतंत्रतापूर्ण नियंत्रण स्वतंत्रता को हो, और उसके बहुत गहरे में सम्मान छोटे के प्रति, बढ़ते हुए के प्रति आधार और केन्द्र बन सकें।
बच्चों को हम जितना 'डोन्ट' नहीं कहने से बचा सकें, उतना अच्छा है। ऐसा पिछले
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सौ साल के सभी मनसशास्त्री कहेंगे लेकिन मैं पूरी तरह राजी नही हूँ। सारे मनसशास्त्री यह कहेंगे और बहुत दूर तक मैं कहूंगा कि बच्चे को जब तक बने हां कहा जा सके, तो ना नही कहना। और अगर ना भी कहना हो, तो उसे अगर हां के रूप में कहा जा सके, तो बहुत अच्छा है। जैसे बच्चा एक फूल तोड़ रहा है। तो उस रोकने की बजाय... यह कहना कि फूत मत तोड़ो, उसके हाथ में फव्वारा थमा देना बेहतर है, उससे कहना कि पानी डालो। फूल तोड़ना रूक जायेगा, वह पानी डालने में लग जायेगा। और ना कहने से हम बच सकेंगे, क्योंकि ना जो है वह उसे बार-बार अत्यंत पीड़ा में डाल जाता है। जहां भी बढ़ता है, वहीं ना खड़ा हो जाता है। वह उसकी सीमा बनने लगती है। वह परतंत्र अनुभव करने लगता है, गुलाम मालूम पड़ने लगता है कि कुछ भी करने की स्वतंत्रता नहीं है। न भी कहना हो तो उसको हां के ही रूप में कहने की कोशिश करनी चाहिए।
सुना है कि भोज के दरबार में एक ज्योतिषी आया है और भोज ने अपनी कुंडली दिखायी है और उसने कहा कि महाराज, कि आप अपनी पत्नी को भी दफनाएंगे, आपने बाप का तो दफनाएंगे ही, अपने सब बेटों को भी आप दफनाएंगे। सबको मारकर तुम मरोंगे। भोज बहुत नाराज हो गया। उसने उसे कैद में डाल दिया।
कालिदास बैठा सुनता था। बाद में रात जाकर कालिदास ने कहा कि वह बेचारा कुछ गलत नहीं कह रहा था, जो उसे दिखायी पड़ा था, वही कहा था, लेकिन शायद उसे कहने का ढंग नही आया। मैं एक श्लोक बनाकर लाया हूं। उस श्लोक में उसने कहा कि महाराज, आप धन्यभागी हो। आपके प्रियजनों को आपकी मृत्यु का दुख न होगा। ऐसा धन्यभाग मुश्किल से मिलता है। आप सौ वर्ष से ज्यादा जियोगे । जिसकी हम कामना करते हैं कि सौ वर्ष से ज्यादा कोइ जिये वह आपकी सुनिश्चित संभावना है। और धन्यभागी हैं आप कि आपके किसी प्रियजन का, न आपके बेटे को, न आपकी बैटी को, न आपकी पत्नी को आपकी मृत्यु का दुख नहीं होगा। और एक लाख मुद्राएं राजा ने कालीदास को भेंट की।
ना में कही जानेवाली बात भी हां में कही जा सकती हैं इंकार करनेवाली बात भी
स्वीकार में कहीं जा सकती है। यह ठीक है लेकिन यह अधूरा सत्य है। और इस पर पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने इतना जोर दिया कि दूसरे खतरे पैदा हो गये। अधूरे सत्य झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं। इसलिए अधूरा सत्य है कि जिंदगी तो नहीं कहेगी, आप मत कहो। मां ने नहीं कहा नहीं, पिता ने नहीं कहा नहीं, शिक्षक ने नहीं कहा नहीं। लेकिन जब लड़का बड़ा होगा, तब जिंदगी में हजार तरफ से 'नही' मिलेगा। और जो 'नही' से बिलकुल अपरिचित है वह इतना फ्रस्ट्रेट हो जायेगा जिसका कोई हिसाब नहीं नहीं की भी टेनिंग तो चाहिए पड़ेगी। नहीं तो एक लड़का, जो बीस वर्ष तक नहीं, नहीं सुना और जिसकी जिंदगी में कभी भी कहीं कोई रूकावट नहीं है, सब जगह हां था। जिंदगी इतनी फिक्र नहीं करेगी।
जिंदगी मां नही है, जिंदगी पिता नहीं है, जिंदगी शिक्षक नहीं है। जिंदगी हजार जगह कहेगी कि नहीं। तब उस लड़के के प्राण पर ऐसा पड़ेगा कि मर गये, क्योंकि उसकी नहीं की कोई भी योजना उसके भीतर नहीं है। नहीं को सहने की कोई क्षमता उसके भीतर नहीं है। इसलिए पश्चिम बहुत कमजोर बच्चे पैदा कर रहा है जो इतनी छोटी-छोटी बातो से फ्रेस्ट्रेशन में चले जाते हैं कि जिनमें पुराना बच्चा कभी नहीं जाता। क्योंकि वह नहीं के लिए तैयार था। जिंदगी में हां भी है और नहीं भी है और उनका एक संतुलन है।
तो मैं मानता हूं कि जहां तक तक बने, नहीं मत कहना और नहीं वहीं मत कहना जहां नहीं कहने में मजा आता है, वहां नहीं मत कहना । लेकिन जहां नहीं कहने से बच्चे के व्यक्तिव में रेजिस्टेंस बढ़ता हो, वहां नहीं का मतलब हमेशा नहीं रखना। नहीं तो मां-बाप के नहीं और हां में बहुत डांवाडोल होते रहते हैं वे, इसलिए बच्चे बहुत कन्फ्यूज्ड हो जाते हैं। बच्चा कहता है मुझे पिक्चर देखने जाना है, मां कहती है कि नहीं जाना ओर बच्चा दो दफे जोर से पैर पटकता है और मां कहती है, अच्छा जाओ। तो बच्चे को बहुत मुश्किल हो जाती है कि नहीं का मतलब क्या है, हां का मतलब क्या है? नहीं हां बन सकती है, हां नहीं बन सकती है। जिंदगी भर के लिए हम उसे एक बेगनेस दे रहे हैं, एक कन्फ्यूजन
दे रहे हैं जो बहुत मुश्किल में पड़ जायेगा।
अगर एक दफे बच्चे से कहो नही, तो इस दुनिया में अब दुबारा उसको हां मत बनाना ताकि बच्चा ठीक से समझे कि नहीं का मतलब नहीं होता है। हां का मतलब हां होता है। यह भी सिखाने की जरूरत है उसे कि नहीं का मतलब ना होता है और जब ना हो जाता है तो ना ही हो जाता है। नहीं तो मां-बाप बहुत जल्दी झुकते हैं। बजाय झुकने के पहले हां भर देना। बच्चा कहे कि पिक्चर जाना है, और रोज का अनुभव है, लेकिन हम कुछ सीखते नही हैं। तो पहले हम कहेंगे नहीं। असल में दूसरे को रोकने में बड़ा मजा आता है। अब वह सिर पीटेगा, चिल्लायेगा और खाना नहीं खायेगा ओर थाली फेंकगा। अब हम कहेंगे कि जाओ! हां का मजा भी चला गया उसके भीतर से, नहीं का अर्थ भी न रहा और प्रतिकार का उसने एक गलत ढंग सीखा। प्रतिकार का गलत ढंग सीखा जो कि जिंदगी भर उसका पीछा करेगा। बड़ा होकर भी वह बच्चों जैसा करेगां कल वह पति हो जायेगा और पत्नी पर नाराज होगा, तो इसी तरह थाली फेंकेगा जैसा उसने मां के सामने फेंक दिया था। उसी तरह पैर पटकेगा जैसा उसने मां के सामने फेंक दिया था। तब वह बहुत ही बेहूदा मालूम पड़ेगा। लेकिन हम उसे सिखा रहे हैं।
नहीं, मेरी अपनी समझ है कि नहीं का भी उपयोग तो है, लेकिन व्यर्थ की चीजों में नहीं मत कहना। लेकिन नहीं की अपनी सार्थकता है क्योंकि जिंदगी आपकी फिक्र न करेंगी, वह नहीं कहेगी और जब कहेगी तो उसकी तैयारी होनी चाहिए और उसकी तैयारी भी शिक्षण का अनिवार्य अंग है। इसलिए पश्चिम के जो बच्चे हैं वे नहीं न कहने से बिगाड़े गये बच्चे हैं। उनको इधर पिछले पाचास-साठ साल में विशेषकर फ्रायड का प्रभाव जो पश्चिम की शिक्षा पर पड़ा, वह संघात्मक सिद्ध हुआ। उसने कुछ फायदे पहुंचाये, लेकिन उतने ही वजन के, शायद और ज्यादा वजन के नुकसान भी पहुंचाया।
मैडम मांटेसरी की शिक्षा से बच्चों में क्या फर्क पड़ा? वह ठीक है या नही ? साधारण है, ठीक और गलत बहुत नहीं है मामला। मांटेसरी ने एक हिम्मत की ओर
एक प्रयोग किया है, उस लिहाज से तारीफ की बात है, लेकिन कुछ विशेष फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि विशेष फर्क जो है वह शिक्षा की पद्धति में कम, मां-बाप के होने के ढंग में और शिक्षक के होने के ढंग में ज्यादा है। वह बहुत बड़ा सवाल नहीं है। सवाल गहरा है और ज्यादा डीप रूटेड है, वह हममें है। अब जैसे एक बच्चा आपसे आकर कहता है कि मैं फूल तोड़ लूँ? तब आप दो क्षण भी नहीं सोचतीं कि फूल तोड़ने दिया जाये या नहीं। नहीं कहने में इतना मजा आता है कि नहीं। आप यह नहीं सोचते हैं कि फूल तोड़ा जा सकता है तो तोड़ लेने दो। यह सोचने की जरूरत नहीं है। बच्चा कहता है, मुझे बाहर खेलेने जाना है, आप कहते हैं, नहीं।
हमारा 'नहीं' तो एकदम सामने खड़ा रहता है। वह भी हमारे फ्रस्ट्रेशन का हिस्सा है। हां कहने की हमें भी तो हिम्मत नहीं जुट पाती। अब बच्चा कहता है, बाहर खेलने जाना है तो मां बिना सोचे, नहीं कहने को तैयार है, वह रेडीमेड है और बच्चा जानता है कि रेडीमेड उत्तर है, इसने सोचकर नहीं दिया है। क्योंकि अब भी इसको प्रेस किया जा सकता है और यह कहे कि हां। क्योंकि अब सोचकर दिया गया है तो फिर हां नहीं होना चाहिए दुबारा। क्योंकि अगर बच्चे के अहित में ही है बाहर जाना तो फिर हां कैसे हुआ और अगर हां हो सका दो मिनट बाद, तो दो मिनट पहले नहीं होने की क्या जरूरत थी।
यानी मेरा कहना यह है कि 'हाँ' साफ, 'नहीं' साफ, और दोनों में कभी कंफ्यूजन नहीं। वह बिलकुल साफ होना चाहिए। तब बच्चा एक तो अपने मां-बाप का क्लियर इमेज बना पाता है। बड़ी से बड़ी कठिनाई है कि मन में मां-बाप की साफ प्रतिभा नहीं बन पाती कि मां-बाप क्या चाहते है? क्या इरादे हैं। वह कभी पकड़ ही नही पाता है कि उनका क्या प्रयोजन है? उसे तो पता नही कि मां-बाप भी भीतर कंफ्यूज्ड हैं। उन्हें भी पता नहीं कि वे क्या कह रहे हैं, क्या कर रहे हैं, क्या नहीं कर रहे हैं। तो बच्चे के सामने बहुत स्पष्ट प्रतिभा मां-बाप की बननी चाहिए, शिक्षक की बननी चाहिए। तो बच्चे को अपनी प्रतिभा स्पष्ट बनाने में बड़ा सहयोग मिलता है। नहीं तो वह भी वेसा ही एक कंफ्यूज्ड, भ्रमित, उल्टे-सीधे खयालों से भरा आदमी बन जाता है। और तब उसे पता ही नहीं रहता कि वह |
2336b0e63b99705a2fc644d50a40fa87fc3d48b753731622974ae4e43cfa0245 | pdf | चलहु कुंअर लै चलहि सवेरा, मगु कोइ आइ मढ़ी संह हेरा । एहि न पाउ और तुरै जो पावा, जानक कुंअर जन्तु कोउ खावा ।। जन पुरजन माता पिता, जह लहु हित सुनि पाउ । सरिहहि छाती फाटि सव, तब कछु हाथ न आउ ॥7॥h
शब्दार्थ - देवतन्ह - देवताओं को । चितिति = चित्रावली । अमर== अमरत्व । सगरी = समस्त । पुरजन =नगर के लोग ।
- देवताओ अर्थात् देव एवं उसके मित्र को 'चित्रावली' को वर्षगांठ का उत्सव अत्यधिक अच्छा लगा। चिनिनि अर्थात् 'चित्रावली का दर्शन कर उनकी काया अमर हो गई । भोर होने और सूर्योदय से पूर्व ही सभा समाप्त हो गई है और नृत्यादि बन्द हो गये । 'चित्रावली' को निद्रा आा मई और उसे उसकी सखियों ने पलंग पर सुला दिया । 'चित्रावली' की सखियां, जो सारी रात्रि सुख में जागी थी, जहां-तहां सोने लगी । देवताओं ने सोचा कि विलम्ब हो रहा है कहीं ऐसा न हो कि कोई चिनसारी को खोलकर कुंवर को देख लें । अतः अच्छा यही है कि हम कुवर को प्रातःकाल से पूर्व ही यहां से ले चलें । सम्भव है कि कोई उसे मढी पर खोजने के लिए आए । मढ़ी पर न तो उन्हें कुवर ही मिलेगा और न ही उसका घोड़ा । इससे लोगों को यह अनुमान होगा कि कुवर को किसी जन्तु ने खा लिया है । इससे देश के सभी निवासियों, कुवर के माता-पिता और जहा तक इसके हितैषी है सभी को यह जानकर अत्यधिक दुःख होगा। उनकी छाती इस दुःख से फठ जायेगी और वह मर जायेंगे । इस अवस्था में इसका सारा अपयश हमारे ऊपर आयेगा ।
विशेष - चित्रिनि से तात्पर्य 'चित्रावली' से है । उत्तर भारत के हिन्दी सूफी प्रेमाख्यानो मे चित्रावली ही ऐसी नायिका है जिसे चित्रणी बताया गया है। सूफी प्रेमाख्यानो की अन्य नायिकाएं पद्मिनी कोटि की है ।
पुनि वोज एक संग चित्रसारी, आइ उधारेन्हि पौरि के वारी । सोवत कुमर आन तहं पाया, लीन्ह उठाई वार नहि लाया । निमिष मांह ले नठी उतारा, गए छांड़ि सोयत बुःख मारा । सूरज फिरन जब कुंअरही लागी, फरवट लेत उठा तब जागो । देखे कहा चहूं विसि हेरी, भई आनि रचना विधि फेरी ।
ना वह (क) मन्दिर नाहि कबिलासू, ना यह चित्र न वह सुख वासू ।। सपन जान चित उठा मरोहू, और करेज पानि भा लोहू । पुनि जो निहारे आपु तन, चिन्ह आह सो संग ।
बस्तर औ कर पर वही, लिखत लाग जो रंग ॥8॥
शब्दार्थ - पौरि = दरवाजा । लाहू = खून । करेज = कलेजा । बस्तर वस्त्र । मरोहू = मरोड ।
व्याख्या - अतः दोनों ( देव एव उसका मित्र) एक साथ चित्रसारी पर गये और उन्होने चित्रसारी के दरवाजे खोल लिये । उन्हें वहां कुंवर सोता हुआ दृष्टिगोचर हुआ इसलिए कुवर को उठाने में उन्हें एक क्षण भी नहीं लगा । एक क्षण के ही अन्तर्गत उन्होंने कुंवर को मढी में लाकर उतार दिया और दुखी कुवर को होता हुआ छोड़कर चले गये । कुवर को जब सूर्य की गरम किरणों का ताप लगा तब करवट लेकर वह जाग उठा । वह चारों दिशाओं में देख रहा है कि विधाता की यह कैसी रचना है । न तो यहा वह मन्दिर है और न ही वह कैलाश, न वह चित्र है और न ही वह सुख का निवास है । इस घटना को स्वप्नवत् समझकर उसके हृदय में मरोड उठने लगी है तथा उसके हृदय का रक्त पानी में परिवर्तित हो गया। उसने पुनः अपने शारीर एवं वस्त्रो पर लगे हुए रंगो के निशानों को साक्षात् देखा ।
षन एक कुंअर अचफ मन रहा, कौतुक सपना जाइ न कहीं । पुनि जो बिरह लहरि तन आई, थांमिन (ख) सकेउ गिरेउ मुरझाई ।। दोउ नैनन जनु समुन्य आपारा, उमंड़ि चले राखे को पारा । फार झंगा औ लोटे परा, बंधुन फोऊ हाथ को धरा ।। भरि गे सेह सोस औ देहा, लेयक नाहि जो झारै सेहा । संग न कोउ हित पियारा, को उठाइ बैठाइ संभारा ।। पिन चेतं पिन होइ बेसं बारा, घरी धुरी सिर भुई वह मारा । बिरह वहनि कोउ किमि कहै, रसना कहि जारि जाइ । सोइ हिय मांहि संभार, जेहि तन लागे आई ॥9॥ शब्दार्थ - अचक - आश्चर्यचकित । झंगा= पहिनने का वस्त्र । खेह= - = मिट्टी । हितू = हितैषी । दहिन = जलन । रसना = जिहा ।
व्याख्या - एक क्षण तक कुंवर अवाक् रहा तथा उससे स्वप्न का कौतुक वर्णित नही हो पा रहा था। इसके पश्चात् उसके शरीर में विरह की लहर ने संचरण किया, जिसे संभालने में वह असमर्थ रहा । अतः वह मुरझाकर गिर पड़ा । उसके दोनो नेत्रों से आंसू समुद्र की भांति उमड़ रहे थे । वह कपडे फाडता था और पृथ्वी पर लेटा हुआ था। इस समय उसका कोई साथी नही था । उसके सिर और शरीर में मिट्टी भर गई थी। वहां कोई सेवक भी नही था जो उसके शरीर से मिट्टी हटा दे । उसके साथ कोई हितैपी भी नहीं था जो उसे संभालकर बैठा दे । उसे एक क्षण मे चेतना और एक ही क्षण में अचेतना आ जाती है । वह घड़ी-घड़ी अपने सिर को पृथ्वी में देकर मारता था । विरहाग्नि को कोई कैसे वर्णित कर सकता है और जिह्वा द्वारा उसका वर्णन होना भी असम्भव है । इस विरहाग्नि को वही संभाल सकता है, जिसके हृदय में इसकी पौर उत्पन्न हुई हो ।.
विशेष- सूफी प्रेमाख्यानो में सौन्दर्य ही विरह का मूल कारण बनता है । सौन्दर्य का प्रथम साक्षात्कार साधक के हृदय मे संकल्प एवं विकल्प, आस्था एवं अनास्था का प्रतीक बनता है । सूफी कवि उसे कभी मूर्छा और कभी चेतनता कहते है । प्रथम साक्षात्कार के समय समस्त सूफी प्रेमाख्यानों में सौन्दर्य दृष्टाओ को मूर्च्छित दिखाया गया है ।
कटक जो आई नगर नियराना, देखिन्ह संग न कुंअर सुजाना । वह और कहं वह ओ कहं पूंछा, फटक जानु वितु जिउ तन हूंछा ।। सब मिलि कहा कुअर जो नाहीं, राज पास काह लै जाही । पूछत उतर वेव हम फाहा, छूछ लगाइ रहब मुंह चाहा । जेंहि बिनु तब जाइहि मुंह गोवा, कसन अर्वाह जो खोजिअ खोवा । सोवत जानु सकेँ सुनि जागे, आपु आप कहं ढूंढ़न लागे ॥ जल-जल थल-थल मेरु पहारा, एक-एक तर सौ सौ बारा । स्याम रंन विनु पंथ पुनि, अगुवा संग न कोइ । दूरि दूरि सब धावह, नियर जाहि नहि कोई ॥ 1011
शब्दार्थ - काह = किसको। गोवा=वादालता ।
व्याख्या - उधर कटक जैसे ही नगर के नजदीक पहुंचा तो लोगों ने देखा
कि हमारे साथ राजकु वर 'सुजान' नही है । वह परस्पर एक-दूसरे से कुंवर के सम्बन्ध में पूछने लगे । कुवर के बिना यह कटक उसी प्रकार है जैसे कि प्राणो के विना शरीर । सबने मिलकर सोचा कि यदि हमारे साथ कुंवस नही है तब हम राजा के पास किसको लेकर जायेंगे । अगर राजा हमसे, पूछेगा तो हम उसको क्या उत्तर देंगे ? अगर हम उसे हूढ लायेंगे तभी हम मुह दिखाने योग्य होगे । जिसके बिना समस्त वाचालता समाप्त हो जाती है । हम उसे पहले ही क्यो न ढूंढ लें । वह सब उसी प्रकार सचेत हो गये जैसे कि कोई सोते से जाग जाता हो तथा सभी कुचर को अलग-अलग ढूढने लगे । उन्होने जल, थल, पहाड तथा वृक्षो की एक-एक डाली पर कुवर क खोजा । काली रात्रि, अत्यन्त विकट पथ तथा किसी अगुआ का अभाव अनेक कष्टप्रद प्रतीत हो रहा था । कुवर को खोजने के लिए सब दूर-दूर तक गये. लेकिन किसी ने भी कुंवर को नजदीक के स्थानो पर नही खोजा ।
खोजत खोजि क्टक सब हारा, बोती रैनि भयो भिनुसारा । सूरज उदै पंथ तब सूझा, भयो दिवस पर आापन बूझा ॥ वाजी चरन खोज पुनि पाए, खोजत खोज मढी मंह आए । देखिह फुंअर परा बिकरारा, हाथ पांव सिर कछु न संभारा ।। अभ उसास लेइ ओ रोवा, देखत सैन प्रान जुन खोवा । खेह भारि ले बैसे कोरा, रोवै कतक देखि मुख ओरा ।। पूछे बातन उतर न देई, पिन पिन ऊभ सांस पैलेई ।
अरुन बदन पिराइगा, रुहिर सूख गा गात ।
रहा झांपि लोयन दोक, कहै न पूछे बात ॥11॥
शब्दार्थ - भिनुसारा = प्रातःकाल । अरुण = = लान । पिराइ = पीला रुहिर == रुधिर ।
व्याख्या - सारा कटक कुवर को खोज-खोजकर हार गया । सारी रात्रि व्यतीत हो गई और प्रातः काल हो गया । सूर्य के उदित होने से पथ दृष्टिगोचर होने लगा तथा दिन मे सभी कुछ दिखाई देने लगा । कुछ लोग कुवर को खोजते-खोजते मढी पर आ पहुचे । वहा वह क्या देखते हैं कि कुवर बेचैन होकर पड़ा हुआ है । उसे अपने हाथ, पाव और सिर की भी चेतना |
6f6590c43e664182d0d97286c4ad0313285c6bf4 | web | यूक्रेन के प्रधान मंत्री एन। अजरोव ने हाल ही में बयान दिया है कि यूक्रेन द्विपक्षीय संबंधों के मामले में रूस से दूर जा रहा है। इसके अलावा, सरकार के अध्यक्ष ने कहा, रूस खुद को इसके लिए दोषी मानता है। गैस अनुबंध, जो यूक्रेन के लिए बेहद नुकसानदेह है, अपनी सरकार को पक्ष में नई भागीदारी प्राप्त करने के लिए मजबूर करता है। और ये संबंध हमेशा अप्रभावी नहीं होते हैं।
"हर दिन इस असमान समझौते की कार्रवाई एक राज्य को दूसरे से अलग करती है, उन दोनों के बीच तेजी से ठंडा होने वाला संबंध। " यूक्रेनी प्रधानमंत्री ने कहा। उनके बॉस के उन्हीं शब्दों की पुष्टि उनके प्रेस सचिव वी। लुक्यानेंको ने की। उन्होंने कहा कि प्रतिकूल समझौता यूक्रेनी सरकार को न केवल नीले ईंधन की आपूर्ति में नए विकल्पों की तलाश करने के लिए मजबूर करता है, बल्कि अपने स्वयं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए त्वरित गति से भी। तब और बड़े स्तर पर, हम यह कह सकते हैं कि यूक्रेनी प्रधान मंत्री ने रूसी सरकार पर अल्प-दर्शन का आरोप लगाया, क्योंकि थोड़े समय के लिए एक तरफा लाभ प्राप्त करना दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों की गारंटी के रूप में काम नहीं कर सकता है। और किसी भी तरह से गैस समझौता दोनों राज्यों के बीच संबंधों को मजबूत करने का काम नहीं कर सकता।
यह बयान Mykola Azarov की नीदरलैंड्स यात्रा के बाद घोषित किया गया था, जहां यूक्रेनी राजनेताओं और रॉयल डच शेल के नेतृत्व में बातचीत हुई थी। वार्ता के हिस्से के रूप में, एक निश्चित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो कि युज़ोवस्की क्षेत्र में शेल गैस के विकास और उत्पादन के उद्देश्य से काम की शुरुआत के रूप में काम करना चाहिए। यूक्रेनी प्रधान मंत्री के अनुसार, वर्ष 2015 के आसपास, कंपनी पहले से ही गैस के पहले बड़े संस्करणों को प्राप्त कर सकती है।
स्मरण करो कि इस वर्ष के जनवरी के अंत में, यूक्रेनी सरकार के प्रतिनिधियों और रॉयल डच शेल के प्रबंधन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अनुसार कंपनी ने पहले चरण के काम में 410 मिलियन डॉलर का निवेश करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। इन निवेशों को 4-5 वर्षों में महारत हासिल होनी चाहिए। कुल निवेश 10 बिलियन डॉलर के ऑर्डर पर हो सकता है।
विशेषज्ञ के अनुमानों के अनुसार, युज़ोवस्की क्षेत्र में शेल गैस का उत्पादन प्रति वर्ष 20 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जो यूक्रेन में वर्तमान में उत्पादित प्राकृतिक गैस की मात्रा के बराबर है। कुल गैस मात्रा 4 ट्रिलियन टन गैस के घन मीटर के बारे में है। एन। अजरोव के अनुसार, काम बहुत मुश्किल है, लेकिन यह समझौता पूरी तरह से यूक्रेनी राज्य के राष्ट्रीय हितों को पूरा करता है। इसके अलावा, अंततः संधि देश को अपनी गैस उपलब्ध कराने से जुड़ी समस्याओं को हल करने में मदद करेगी।
रॉयल डच शेल कंपनी के अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका - शेवरॉन की एक और गंभीर ऊर्जा कंपनी - यूक्रेन में शेल गैस के विकास और उत्पादन में भी संलग्न हो सकती है। याद करें कि मई 2012 में, इस कंपनी ने ओलेस्काया क्षेत्र पर हाइड्रोकार्बन के उत्पादन के लिए प्रतियोगिता जीती थी। कंपनी के प्रतिनिधियों ने विचार के लिए यूक्रेनी सरकार के लिए एक मसौदा उत्पादन साझाकरण समझौते को प्रस्तुत किया। हस्ताक्षर करने से पहले, इसे Ivano-Frankivsk और Lviv क्षेत्रीय परिषदों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए, क्योंकि जमा राशि इन क्षेत्रों के क्षेत्रों में स्थित है।
वर्तमान में इस परियोजना पर कोई विकास नहीं हुआ है। कारण यह है कि अगस्त में, इवानो-फ्रैंकिवस्क क्षेत्रीय परिषद ने परियोजना को अस्वीकार कर दिया, इसे संशोधन के लिए वापस भेज दिया। क्षेत्रीय परिषद की नियमित बैठक दूसरे दिन होनी चाहिए, जिस पर इस मसौदे पर विचार करने की योजना है। ऊर्जा और कोयला उद्योग के यूक्रेनी मंत्री एडुआर्ड स्टैवत्स्की ने कहा कि सभी टिप्पणियां समझौते के लिए की गई थीं, इसलिए उन्होंने उम्मीद जताई कि स्थानीय अधिकारी दस्तावेज़ को मंजूरी देंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस परियोजना के लिए भूवैज्ञानिक अन्वेषण में न्यूनतम निवेश 300 मिलियन डॉलर के बारे में हो सकता है, और क्षेत्र में गैस की मात्रा लगभग 3 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि शेल गैस उद्योग में, यूक्रेनी राज्य अच्छी तरह से पड़ोसी पोलैंड पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, जो यूरोप में पहली बार यह घोषित करने के लिए था कि उसने इस प्रकार के ईंधन का उत्पादन शुरू कर दिया था। पोलैंड के पर्यावरण मंत्री, पीटर वोज्नियाक के बयान के अनुसार, इस साल के अगस्त के अंत में बनाया गया था, जुलाई 21 पर शेल गैस का उत्पादन शुरू हुआ, और तब से यह बिना रुके चल रहा है। इसके अलावा, यूरोपीय संघ के देशों में उत्पादन की मात्रा बहुत अधिक है। साथ ही वोज्नियाक ने कहा कि वर्तमान समय में यह कहना जल्दबाजी होगी कि देश वाणिज्यिक परिचालन में जाने का इरादा रखता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि लेन ऊर्जा पोलैंड दैनिक पोलैंड के उत्तर में स्थित एक परीक्षण कुएं पर लगभग 8 हजार घन मीटर गैस का उत्पादन करता है।
हम यह भी ध्यान दें कि पोलैंड में पूरे पश्चिमी यूरोपीय क्षेत्र में शेल गैस के सबसे बड़े भंडार हैं। पोलिश भूवैज्ञानिक संस्थान द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, शेल गैस की अधिकतम मात्रा, जो पोलिश क्षेत्र पर स्थित है, लगभग 2 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर है। पुनर्प्राप्त करने योग्य भंडार लगभग 345-770 बिलियन क्यूबिक मीटर हैं। यह राशि 35 से 65 वर्षों तक की अवधि के लिए खपत के लिए पर्याप्त है। हालांकि, हाल तक, गंभीर गैस उत्पादन स्थापित करने के सभी प्रयास असफल रहे थे। यदि पोलैंड शेल के निष्कर्षण को समायोजित करने में सफल होता है, तो राज्य रूसी नीले ईंधन पर अपनी निर्भरता को काफी कम कर सकता है।
इस प्रकार, पोलैंड में, वार्षिक गैस की खपत 15 बिलियन क्यूबिक मीटर तक पहुंच जाती है। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत वॉल्यूम रूसी आपूर्ति द्वारा ठीक प्रदान किए जाते हैं।
अगर हम यूक्रेन के बारे में बात करते हैं, तो Ukrtransgaz द्वारा प्रदान किए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश ने पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में पिछले छह महीनों में रूस से गैस की आपूर्ति लगभग 30 प्रतिशत में कटौती की है - 15,3 बिलियन क्यूबिक मीटर तक।
विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान में अभी भी एक छोटी संभावना है कि यूक्रेन शेल गैस का सक्रिय विकास शुरू कर देगा, जिससे रूसी ईंधन को छोड़ना संभव होगा। यह कुछ समस्याओं के कारण हो सकता है, जिसमें राजनीतिक (विकास राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के अधीन हो सकता है), वाणिज्यिक (जमाओं को लाभप्रद रूप से विकसित किया जा सकता है), भूवैज्ञानिक (शेल के महत्वपूर्ण भंडार का पता लगाना संभव है) और पर्यावरण (पर्यावरण प्रदूषण का खतरा संभव है)।
हालांकि, यूक्रेनी खेतों में शेल गैस का उत्पादन दोनों देशों के बीच संबंधों के ठंडा होने का एकमात्र कारण नहीं है। विक्टर Yanukovych, विशेष रूप से, यूक्रेनी संसद को अपने वार्षिक संदेश में यह कहा। यह कहा जाना चाहिए कि यह संदेश काफी उत्सुक था, क्योंकि यह रूस के साथ ठीक-ठाक संबंध था जिसे उन्होंने राज्य की विदेश नीति की प्राथमिकता के रूप में पहचाना था।
उसी समय, राज्य के प्रमुख ने कहा कि दोनों देशों के प्रतिनिधि कई मूलभूत मुद्दों पर प्रगति हासिल नहीं कर सके। जो कोई भी देशों के बीच "शपथ दोस्ती" में थोड़ा दिलचस्पी लेता है, वह जानता है कि गैस की समस्या के अलावा अन्य भी हैं। इस प्रकार, रूसी ईंधन की लागत में कमी के बिना, Yanukovych ने कहा कि अज़रबैजान ईंधन की आपूर्ति के वैकल्पिक तरीके के रूप में व्हाइट स्ट्रीम परियोजना को फिर से स्थापित करना आवश्यक था। इसके अलावा, ट्रांस-कैस्पियन गैस पाइपलाइन के निर्माण की शुरुआत के मामले में, कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से गैस की आपूर्ति की संभावना है। यह स्पष्ट है कि ये सभी बयान रूस के "दक्षिण स्ट्रीम" के विरोध में किए जा रहे हैं।
औद्योगिक क्षेत्र में समस्याएं हैं। तो, 2012 के अंत में, रूसी उद्योग और व्यापार मंत्रालय ने रूसी कार बिल्डरों के लिए राज्य समर्थन की पेशकश की। यह एक लक्ष्य के साथ किया गया था - यूक्रेनी प्रतियोगियों से "उनके" संरक्षण के लिए बनाने के लिए - क्रायुकोवस्की कार-बिल्डिंग प्लांट और अज़ोवमाश। एक साल पहले, रूसी, बेलारूसी और कजाख कारखानों ने एक निश्चित संगठन बनाया, जिसने वास्तव में, इन उत्पादों के यूक्रेनी निर्यात को इन देशों में अवरुद्ध कर दिया। इस बीच, पूर्व समय में, रूस को यूक्रेनी वैगन निर्यात की मात्रा 45-50 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसके अलावा, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि रूसी सरकार ने हाल ही में लातविया में कारों के निर्माण के अपने इरादे की घोषणा की, और यूक्रेन में नहीं।
Еще один аспект, который, по мнению ряда экспертов не способствует укреплению двусторонних отношений - это оружейный рынок.
इसलिए, बहुत पहले नहीं, यूक्रेनी सरकार ने एशिया-प्रशांत हथियारों के बाजार में रूसी प्रतियोगियों को दबाने के अपने इरादे के बारे में एक बयान दिया था। यूक्रेनी योजनाओं के अनुसार, Ukrspetsexport अगले पांच वर्षों में 5 अरबों डॉलर के बराबर राशि में भारत, चीन, थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया को हथियार और सैन्य उपकरण निर्यात करने का इरादा रखता है। ये देश, हम याद करते हैं, रूसी सैन्य निर्यातकों के पारंपरिक खरीदार हैं।
देशों के बीच कई व्यापार युद्धों के बारे में मत भूलना। रूसियों को यूक्रेनी चीज, दूध और मांस या चिकन पसंद नहीं था। इसके अलावा, ऑटोमोबाइल युद्ध थे, जब रूस ने आयातित कारों के लिए उपयोग शुल्क पेश किया, और यूक्रेन ने जवाब में, केवल रूस के लिए आपूर्ति की गई बसों और कारों के लिए एक ही शुल्क पेश किया।
ऐसी "दोस्ती" के कई और उदाहरण हैं। और ऐसे रिश्तों को शायद ही उज्ज्वल और बादल रहित कहा जा सकता है। इसलिए, यह काफी स्पष्ट है कि यूक्रेनी राज्य के प्रमुख के शब्द कूटनीति, नियमित वाक्यांशों के लिए एक श्रद्धांजलि से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
एक ही समय में, यूक्रेनी राजनेताओं के अनुसार, विशेष रूप से, Verkhovna Rada उप इगोर Markov, रूस की घोषणा व्यावहारिक रूप से यूक्रेन के मुख्य दुश्मन वर्तमान यूक्रेनी राजनीतिक शासन के पतन का कारण होगा। हां, वी। Yanukovych ने खुद पहले कहा था कि पर्याप्त व्यापार, ऊर्जा निर्भरता और उत्पाद बिक्री बाजारों के कारण यूक्रेन और रूस के बीच संबंधों का कोई विकल्प नहीं है। और, अगले शीतलन के बावजूद, द्विपक्षीय संबंध अभी भी विकसित हो रहे हैं। यह विमान उद्योग में संयुक्त परियोजनाओं (An-124, An-158, An-148, An-70), अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के निर्माण (Dnepr रॉकेट-स्पेस सिस्टम परियोजना), यूक्रेनी रेलवे के आधुनिकीकरण, Khmelnitsky परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पूरा होने से स्पष्ट है।
प्रयुक्त सामग्रीः
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8a2c6c4b057f26e174611074267d384bc36f91909f5ce390eb11df5a44374688 | pdf | यहाँ पहुँच भी गयी है। आज सुबह ही माली ने यह सूचना दी थी । मदाम ह्यूगों ने वात पूरी की।
इस वार सब लोग वास्तव में चकित रह गये और एक दूसरे की तरफ देखने लगे । क्या ? नाना आ गयी ! वे लोग तो सोच रहे थे कि कल तक नाना आयेगी और वे उससे पहले ही पहुँच जायँगे । केवल जर्ज इन लोगों में से किसी की तरफ नहीं देख रहा था ।
खाना लगभग खत्म हो चुका था और वे सब बाद को घूमने जाने की बात कर रहे थे । फॉशेरी काउन्टेस सैवाइन के प्रति और भी ज्यादा आकर्षित हो गया था । फॉशेरी ने फलों की तश्तरी उनकी तरफ बढ़ायी और उन दोनों के हाथ छू गये-खें मिल गयीं और सैवाइन की
की रहस्यपूर्ण गहराइयों में फॉशेरी खो गया । ऊदे रंग के रेशम के गाउन के नीचे से उभरती हुई सैवाइन के शरीर की नाजुक मगर उत्तेजक गोलाइयों ने फॉशेरी को पूर्णतया मोहित कर लिया। सैवाइन की उस एक गहरी दृष्टि में फॉशेरी को एक नया सन्देश मिला ।
सव लोग खाने की मेज से उठ पड़े - सबसे पीछे डगेनेंट और फॉशेरी रह गये थे। डगेनेंट एस्टील के दुबले- लकड़ी की तरह सूखे हुए शरीर के बारे में भद्दे मजाक कर रहा था लेकिन वह फौरन ही गम्भीर हो गया, जव फॉशेरी ने उसे बताया कि एस्टील के साथ शादी करने वालों को चार लाख फ्रैंक दहेज में मिलेंगे।
वर्षा होनी शुरू हो गयी थी इसलिए उन लोगों में से कोई बाहर घूमने नहीं जा रहा था । जार्ज खाना खत्म होने के बाद फौरन ही अपने कमरे में चला गया था। जितने लोग वाहर से आये थे वे सव जानते थे कि इस विशेष समय पर वे लोग वहाँ क्यों इकट्ठे हुए हैं । लेकिन 'वीनस' के इतने चाहने वालों में काउन्ट मफेट ही सिर्फ ऐसे थे जिनके दिल को इच्छा, वासना, क्रोध और उत्तेजना भकभोर डाल रही थी। उनके अन्दर तड़प थी - आग थी जो उनके व्यक्तित्व को
श्रन्दर ही अन्दर जताये डाल रही थी । उनको गुस्सा या रहा था। गाना ने तो उनसे वायदा किया था --नाना उनकी प्रतीक्षा कर रही थी फिर क्यों यह यहाँ दो दिन पहले चली आयी ? काउन्ट ने निश्चय कर लिया कि वह रात को सोने के बाद नाना के यहाँ अवश्य जायेंगे ।
गत को जब काउन्ट नाना के यहाँ जाने के लिए 'लॉ फान्दे' के प्रदाते के बाहर निकले तो जार्ज उनके पीछे-पीछे था । काउन्ट लम्बे रास्ते से नाना के घर की तरफ बढ़े और जार्ज नजडीक रास्ते से नदी पार करके नाना के घर पहुँच गया। उसकी आँखों में और निराशा के ग्रांगू थे। मर्केट उससे क्यों मिलने श्रा रहा था ? नाना ने अवश्य ही उससे मिलने का वायदा किया होगा । नाना को श्राश्चर्य हुआ जार्ज की इस ईर्ष्या पर, उसने जार्ज को अपने श्रालिंगन में बांध कर समझाया । वह गलत समझ रहा है, उसने किसी से मिलने का वायदा नहीं किया था। मगर मफेट या रहा था तो उसमें नाना का क्या टोप ? जार्ज भी कितना बुधू है कि बिना कारण इतना दुसी और परेशान हो गया। नाना ने अपने बच्चे की कसम खाकर कहा कि वह जार्ज के अतिरिक्त किसी और से प्रेम नहीं करती। यह कहते हुए उसने जार्ज को चूम लिया और उसके दिये। और जब जार्ज कुछ शांत हुआ तो नाना बोली'तुम जानते हो कि यह सब तुम्हारे ही लिए तो है। लेकिन, जार्ज स्टीनर भी छा गया है और ऊपर कमरे में है; उसे यहाँ से भेज देना तो असम्भव है !'
'स्टीनर के यहाँ होने में मुझे कोई श्रापत्ति नहीं !'
'टीनरमी अपने कमरे में ही है - मैंने बहाना कर दिया है कि मेरी तबियत टीक नहीं है। तुम जाकर मेरे कमरे में छिप जाम्रो - में श्रमी थोड़ी देर में तो हूँ ।' नाना ने कहा।
जार्ज हर्ष से उछल
पड़ा । तब तो यह सन्य मालूम पड़ता है कि
नाना उससे थोड़ा-बहुत प्रेम अवश्य करती है । और जार्ज सोचने लगा कि कल की भाँति आज फिर वही सब कुछ होगा। तभी वाहर घण्टों वजी और जार्ज नाना के कमरे में जाकर एक पर्दे के पीछे छिप
काउन्ट मफेट के आने से नाना कुछ परेशान हो गयी थी । उसने वास्तव में पैरिस में काउन्ट से वायदा कर दिया था और वह यह चाहती थी कि अपना वायदा निभाये भी । काउन्ट जैसे बड़े आदमी को फँसा कर लाभ ही लाभ था । लेकिन कल जो कुछ हुआ था वह नाना पहले तो नहीं जानती थी और उस बात ने बहुत अन्तर ला दिया था । जो कुछ कल हुआ था वह कितना शांत, सुखद और सुन्दर था, और वैसा अगर हमेशा हो सकता तो कितना अच्छा होता ! लेकिन अब तो यह मफेट आ गया था ! पिछले तीन महीनों से नाना उसे वरावर टालती आ रही थी और इस कारण काउन्ट की उत्तेजना दूनी-चौगुनी बढ़ गयी थी । काउन्ट भी इन्तजार करना पड़ेगा । उन्हें अच्छा लगे तो चले
जायँ । जार्ज से बेवफाई करने से अच्छा तो यह है कि वह इन स को - इनके धन और उपहारों को छोड़ दे ।
काउन्ट एक कुर्सी पर बैठे हुए थे । वैसे ऊपर से वह काफी श दिखायी पड़ते थे लेकिन उनके हाथ काँप रहे थे । नाना के प्रलोभ ने उनके अन्दर तूफान जैसी उत्तेजना पैदा कर दी थी - एक भयं वासना जो उनके शरीर को अन्दर ही खाये जा रही थी । वादशाह एक सम्मानित दरवारी- समाज का एक प्रतिष्ठित सदस्य रात को कमरे की तनहाई में अक्सर रो रो पड़ता था, चीख उठता था, व उत्तेजना से । उनकी आँखों के सामने नाना का वही नग्न और म रूप हमेशा नाचा करता था और उनके शरीर का हर परमाणु ऊ को पाने की तीव्र इच्छा से पैदा हुई पीड़ा से तिलमिला उठता था ।
फाते समय भी उनके दिल में वही स्वाय मचल रहे थे इस बार यहाँ पहुँच कर वह अपने दिल में धधकती हुई उत्तेजना को अवश्य शात कर लेना चाहते थे-गर जरूरत होती तो वह जबरदस्ती करने को भी तैयार थे। थोड़ी देर बात करने के बाद ही फाउन्ट ने नाना को अपनी बाहों में भर लेने का प्रयत्न किया ।
'नहीं नहीं ! यह क्या कर रहे हैं श्राप !" नाना ने बिना नाराक हुए-मुस्कुराते हुए कड्डा ।
लेकिन काउन्ड ने नाना को श्रालिंगन में जन ही लिया- उनके दाँत मिचे हुए थे। श्रर जितना ही नाना ने उनके बाहुपाश से छूटने का प्रयत्न किया, उतनी ही उनकी पाशविकता बढ़ती गयी। काउन्ट ने साफ-साफ कह दिया कि वह क्या चाहते हैं । श्रम तो कुछ देर भी इन्तजार करना काउन्ट के लिए असम्भव था । नाना श्रम बहुत प्रेम से बोल रही थी ताकि उसके मना करने से काउन्ट को उतनी पीड़ा न पहुँचे।
'मुनो - डालिङ्ग ~ इस समय यह कैसे सम्भव हो सकता है - स्टीनर ऊपर के कमरे में है !"
लेविन मफेट को उजत्तेना ने बिल्कुल पागल बना दिया था। नाना को कुछ डर लगने लगा था फाउन्ट से, इस अवस्था में देस कर । मफेट के मुँह से वासना के धधकते हुए शब्द निकल रहे थे। नाना ने उनके मुँह पर हाथ रख कर उन्हें शांत करने की कोशिश की। स्टीनर सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था - नाना जीव दुविधा में थी। उसने मपेट से कहा : 'छोड़ दो - देसो स्टीनर श्रा रहा है - छोड़ दो !"
जब स्टीनर कमरे में घुसा तो नाना श्राराम कुर्सी पर लेटी हुई कह रही थी- 'मुझे तो गाँव का जीवन बहुत ही प्यारा लगता है।'
स्टीनर को देखकर वह उसी शात भाव से बोली : दिलो, डार्लिंग -
नाना उससे थोड़ा-बहुत प्रेम अवश्य करती है। और जार्ज सोचने लगा कि कल की भाँति फिर वही सब कुछ होगा । तभी बाहर घण्टों वजी और जार्ज नाना के कमरे में जाकर एक पर्दे के पीछे छिप
काउन्ट मफेट के आने से नाना कुछ परेशान हो गयी थी । उसने वास्तव में पैरिस में काउन्ट से वायदा कर दिया था और वह यह चाहती थी कि अपना वायदा निभाये भी । काउन्ट जैसे बड़े आदमी को फँसा कर लाभ ही लाभ था। लेकिन कल जो कुछ हुआ था वह नाना पहले तो नहीं जानती थी और उस बात ने बहुत अन्तर ला दिया था । जो कुछ कल हुआ था वह कितना शांत, सुखद और सुन्दर था, और वैसा अगर हमेशा हो सकता तो कितना अच्छा होता ! लेकिन अब तो यह मफेट या गया था ! पिछले तीन महीनों से नाना उसे वरावर टालती आ रही थी और इस कारण काउन्ट की उत्तेजना दूनी चौगुनी बढ़ गयी थी । काउन्ट इन्तजार करना पड़ेगा । उन्हें अच्छा लगे तो चज्ञे जायें । जार्ज से बेवफाई करने से तो यह है कि वह इन सब अच्छा को - इनके धन और उपहारों को छोड़ दे ।
काउन्ट एक कुर्सी पर बैठे हुए थे । वैसे ऊपर से वह काफी शांत दिखायी पड़ते थे लेकिन उनके हाथ काँप रहे थे । नाना के प्रलोभनों ने उनके अन्दर तूफान जैसी उत्तेजना पैदा कर दी थी - एक भयंकर वासना जो उनके शरीर को अन्दर ही खाये जा रही थी । वादशाह का एक सम्मानित दरवारी-समाज का एक प्रतिष्ठित सदस्य रात को अपने कमरे की तनहाई में अक्सर रो रो पड़ता था, चीख उठता था, कुंठित उत्तेजना से । उनकी आँखों के सामने नाना का वही नग्न और मांसल रूप हमेशा नाचा करता था और उनके शरीर का हर परमाणु उस रूप को पाने की तीव्र इच्छा से पैदा हुई पीड़ा से तिलमिला उठता था 'लॉM |
21eddd0110c0a773bccfb0f4ad090737a09cc985646ac0db36fd32f3b2abc734 | pdf | तीन महाभागवत
श्रीमद्भागवतके प्रथम स्कन्धमें ही महाभागवत भीष्म पितामहका विलक्षण प्रसंग है ।
भीष्म पितामह शर- शय्यापर पड़े हैं। मनुष्य जीवनमें घायल भी होता है और रुग्ण भी । ऐसी पीड़ाका समय भी मनुष्य जीवनमें आता है, जब लगे कि पूरे शरीरमें बाण चुभ रहे हैं । यह केवल भीष्मकी बात नहीं । जो भी शरीरधारी है, उसके जीवनमें ऐसी परिस्थिति आती है और आ सकती है। अब भागवत धर्मकी विशेषता देखें ।
बाणोंकी शय्यापर भीष्म पड़े हैं । आप यह कल्पना न कर लें कि जैसे किसो मेलेमें जानेपर वहाँ काँटे बिछाकर उसपर सोये कई लोग दीखते हैं, वैसे ही भोष्म पितामह भी सो रहे होंगे । काँटोंपर सोने में तो कितनी बुद्धिकी बात होती है, कितना ढोंग- दिखावा होता है, यह लोगोंकी पता नहीं । भीष्म पितामह पीठकी ओरसे लगे बाणोंपर सोये नहीं थे। उनकी पीठमें बाण नहीं मारे गये थे । उनकी छाती, पेट, हाथ, पैरोंमें बाण मारे गये थे और सामने से मारे गये थे । बाणोंने उनके शरीरका छेदन-भेदन कर दिया था । वे अपनी इच्छाके बिना मर नहीं सकते थे । अभीतक उनके मनमें मरने की इच्छाका उदय नहीं हुआ था । सीधे शत्रुओंकी ओर मुख किये ही वे पीछेकी ओर गिरे और उनके शरीर में घुसे बाणोंकी
नोक पृथ्वीमें जाकर लगी। उन्हीं बाणोंकी शय्या बन गयी और उसीपर भीष्म पितामह पड़े थे ।
गिरनेपर भीष्म पितामहका सिर लटक गया, तो उन्होंने कहा : 'मुझे तकिया चाहिए । '
दुर्योधन, कर्ण आदि बहुत नरम नरम तकिये ले आये । भीष्मने उन्हें झिड़क दिया और पार्थ अर्जुनको बुलवाकर कहाः 'मुझे तकिया दो ।'
अर्जुनने उनके सिरमें बाण मारा तो उसपर उनका सिर टिक गया । ऐसे थे महावीर भीष्म पितामह !
महाभारतमें आया है कि एक दिन राजा युधिष्ठिर बहुत सबेरे श्रीकृष्णके शिविरमें गये, तो देखते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण अपने पलंगपर बैठे ध्यान कर रहे हैं । श्रीकृष्ण जगे तो युधिष्ठिरने प्रणामकर उनसे पूछा : 'आप क्या कर रहे थे ?"
श्रीकृष्ण : 'मैं ध्यान कर रहा था ।' युधिष्ठिर : 'किसका ध्यान कर रहे थे ?"
कृष्ण : 'भीष्मका, क्योंकि वे मेरा ध्यान कर रहे हैं।' जैसे भक्त भगवान्का ध्यान करता है, वैसे ही भगवान् भी भक्तका ध्यान करते हैं। ध्यान करते समय श्रीकृष्णका सारा शरीर रोमाञ्चित था। उनके नेत्रोंसे आँसू झर रहे थे । कण्ठ गद्गद हो रहा था ।
वस्तुतः मानवके भीतर जितनी दिव्य विभूतियाँ- जितने सद्गुण छिपे हैं, उन्हें प्रकट करनेवाला, रूप देनेवाला यह भागवतधर्म ही है । जब जीव भगवान् के ध्यान में मग्न हो जाता है, तब भगवान् भो उस भक्त जीवके ध्यानमें मग्न हो जाते हैं ।
यह बात आपके जीवन में अनुभवमें आने योग्य है । आपके जीवनमें इस समय भी चाहे जितना दुःख हो - पराजय या पैसेका दुःख हो, घरका कलह हो, रोग हो, मृत्युका भय हो, तो एक मिनटके लिए भगवानुका ध्यान कीजिये । इस जगत्से नाता तोड़ दिव्य-जगत्से मनका नाता जोड़ लीजिये । 'आपके हृदयमें खड़े-खड़े मुरली मनोहर, पीताम्बरधारी, श्यामसुन्दर, साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण मन्द-मन्द मुस्करा रहे हैं, केवल एक मिनट इसका चिन्तन कीजिये । दावे के साथ कहता हूँ कि उस एक मिनटतक आपके हृदयमें कोई दुःख नहीं रहेगा । इस तरह जब आप एक मिनटतक हृदयसे दुःख भगानेका उपाय जानते हैं, तो पूरे पाँच मिनट या पाँच घंटेके लिए भी उसे भगा सकते हैं ।
मनको भगवान्के चरणोंमें लगाइये ! मनमें वैराग्य न हो और कोई करोड़ बार भी 'नेति नेति' का जप करे, अद्वैत वेदान्तका रहस्य जानता हो, तो भी उसका दुःख दूर न होगा । 'नेति नेति' कोई मन्त्र या जादूकी लकड़ी नहीं । जब विरक-हृदय में दृश्यमान प्रपञ्चका निषेध होता है, तभी वह दुःखसे छुटकारा पाता और सुख स्वरूपका साक्षात्कार करता है । यह होता है प्रत्यक्चैतन्याभित्र ब्रह्मतत्त्वके ज्ञानसे । लेकिन आप पाँच मिनटके लिए भगवान्का नाम लीजिये, भगवान्का स्मरण कीजिये । आपके हृदयमें भरे संसारको निकाल फेंकनेवाला, आपके हृदय में परिवर्तन लानेवाला कोई पदार्थ है तो वह भगवान्का स्मरण ही है । इसीको कहते हैं, भागवत-धर्म ।
विपदो नैव विपदः सम्पदो नैव सम्पदः । विपद् विस्मरणं विष्णोः सम्पन्नारायणस्मृतिः ॥
'विपत्ति विपत्ति ही नहीं है और न सम्पत्ति हो सम्पत्ति है । सर्वव्यापी, सर्वकारण-कारण, जगत्के अभिन्न-निमित्तोपादान भगवान्से दृष्टि हट जाना, उनका स्मरण छूट जाना विपत्ति ही विपत्ति है और उनका स्मरण होना है, परम सम्पत्ति ।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा : 'धर्म, उपासना, व्यवहार और राजनीतिका ज्ञान तथा ब्रह्मज्ञान जो संसारमें दूसरे किसीके पास नहीं है, वह भीष्म पितामह के पास है। युधिष्ठिर ! चलो, उनसे कुछ सीख लो ।'
श्रीकृष्ण के साथ पाण्डव युद्धभूमिमें पड़े भीष्म पितामहके पास जाते हैं । युधिष्ठिर भीष्मसे पूछते और भीष्म उन्हें बतलाते हैं कि अन्तःकरण के कितने भेद-प्रमेद होते हैं और उन-उन भेद-प्रभेदोंके अधिकारियों के लिए कौन-कौन सा धर्म उपयोगी होता है।'
आचार्य - भेदसे धर्मानुष्ठान में भेद नहीं होना चाहिए । भागवतधर्मका सिद्धान्त है कि आचार्य - भेदसे धर्माचरणमें भेद नहीं होता । धर्मानुष्ठान करने वालेके अन्तःकरणकी योग्यताकी दृष्टि से धर्ममें भेद होना चाहिए । इसे 'अधिकार्य-भेद' कहते हैं ।
वैराग्य - रागोपाधिभ्यामाम्नातोऽभयलक्षणान् । १.९.२६
जिसके अन्तःकरणमें वैराग्य है, उसके लिए दूसरे प्रकारका धर्म है और जिसके अन्तःकरणमें राग है, उसके लिए दूसरे प्रकारका । अन्तःकरणको स्थिति के अनुसार जब साधन होता है, तभी वह शीघ्र सिद्ध हो पाता है। कई साधन ऐसे होते हैं कि यदि वे अधिकारी के अन्तःकरण के साथ ठीक-ठीक बैठ जायँ, तो क्षणभर में सिद्ध हो जायँ ।
वे लोग मारे जाते हैं जो केवल द्रव्यको साधन समझते हैं, जो केवल क्रियाको साधन समझते हैं और वे भी मारे जाते हैं जो केवल मानव जीवन और भागवत धर्म :
अपने मनोभावको साधन समझते हैं। कारण मनोभाव बदलते रहते हैं, क्रिया बाह्यरूपसे कोई महत्व नहीं रखती और वस्तुका आध्यात्मिक क्षेत्र में कोई महत्त्व नहीं । ऐसी स्थिति में अन्तःकरण में कैसे संस्कार हैं, कैसी वासना है, कैसी इच्छा है, यह अधिकारी क्या चाहता है, अर्थी कैसा है, इसकी सामर्थ्य क्या है - यही देखना होगा।
अर्थी समर्थो विद्वान् शास्त्रेणापर्युदस्तात् ।
अधिकारीको सचमुच चाहनेवाला होना चाहिए । क्या वह सचमुच ईश्वर चाहता है ? फिर वह जिस वस्तुको सचमुच चाहे, क्या उसके अनुभवकी सामर्थ्य, वृत्तिका परिपाक उसके अन्तकरण में है ? जो बात कही जाती है, उसे वह समझ पाता है या नहीं ? कहीं वह निषिद्ध अधिकारी तो नहीं है ? इन बातोंको ध्यान में रखकर ही मनुष्य के लिए धर्मका उपदेश होता है । भीष्म पितामहने इसी प्रकार धर्मका उपदेश युधिष्ठिरको किया ।
भीष्म पितामहके सामने जब भगवान् श्रीकृष्ण उपस्थित हुए तो मन ही मन उन्होंने भगवान्की पूजा की । उनको भूल गया कि शरीरमें सैकड़ों बाण लगे हैं । बोले : 'श्रीकृष्ण ! भक्तोंसे तुमने बहुत बहुत प्रतीक्षा करायी है । भक्त तुम्हारे दर्शन की प्रतीक्षा करते ही रहते हैं। लेकिन आज तुम ही मेरी प्रतीक्षा करो ।
स देवदेवो भगवान् प्रतीक्षतां कलेवरं यावदिदं हिनोम्यहम् ।
मैं मरूंगा; किन्तु जबतक मर न जाऊँ, मेरे सामने चतुर्भुज रूपमें तुम खड़े रहो । तुम्हारे मुखपर मधुर मुस्कान बनी रहे । नेत्रोंमें प्रेमभरी चितवन रहे और तुम्हारा पीताम्बर फहराता रहे ।'
भागवत धर्मकी यह अद्भुत सामर्थ्य है, जो भगवान्को भी प्रतीक्षा करने के लिए बाध्य कर देता है !
मरते समय भक्त भगवान्का ध्यान नहीं कर पाता तो भगवान् उसका ध्यान करते हैं, भक्त भगवान् के पास नहीं पहुँच पाता तो भगवान् उसके पास पहुँच जाते हैं और भक्त भगवान्की प्रतीक्षा नहीं कर पाता तो भगवान् उसको प्रतीक्षा करते हैं।
यहाँ मृत्यु तो भीष्म पितामह के बाहरी जोवनमें है। उनके अन्तर्जीवनमें मृत्यु नहीं, विपत्ति नहीं । वहाँ तो स्फुरित हो रहा है :
तमिममहमजं शरीरभाजां हृदि हृदि धिष्ठितमात्मकल्पितानाम् । प्रतिदृशमिव नैकधार्कमेकं समधिगतोऽस्मि विधूतभेदमोहः ।।
'यह जो हमारे सामने खड़ा है, यह अजन्मा है । यह केवल नेत्रोंके सामने खड़ा नहीं है, परमात्मामें कल्पित जितने अन्तःकरण हैं, उन सब अन्तःकरणों में यही एक अद्वितीय रूपसे विद्यमान है । में भेद-भ्रमसे मुक्त होकर इसका अनुभव कर रहा हूँ ।'
मनुष्य-जीवनके लिए क्या यह आवश्यक नहीं मालूम पड़ता कि आप सम्पत्ति विपत्ति, रोग-स्वास्थ्य, वियोग-संयोग, विक्षेपसमाधि, जीवन-मरण या सुख-दुःखमें एक ऐसी वस्तु प्राप्त कर लें जो सब जगह, सब समय और सब रूपों में आपके हृदय में आपका आलम्बन बनी रहे ? यदि ऐसा नहीं चाहते तो आप ठीक वैसे हो हैं, जैसे कोई अपने हाथों अपने पैरोंपर कुल्हाड़ी मार ले । इस तरह आप अपने जीवनका एक सत्य, एक आनन्द, जीवनका एक गम्भोर संस्कार अपने से दूर कर देते हैं ।
जीवनमें कितनी ही पीड़ा, कितने ही दुःखोंमें भी वह आलम्बन व्यक्तिको निश्चिन्त और प्रसन्न कर सकता है, यह भीष्मका उज्ज्वल चरित बतलाता है ।
मनुष्य के जीवनमें जितनी परिस्थितियाँ आती हैं, सब में भागवत धर्म हमें सुखी रखता है, यह बात श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्धसे ही प्रारम्भ हो गयी है ।
सम्पत्ति हो या विपत्ति, लौकिक दृष्टिसे सुख हो या दुःख, मनुष्यका मन यदि भगवान् में, पूर्णतामें डुबा रहे, लगा रहे तो उसे सुख सम्पत्तिका अभिमान नहीं होता और न दुःखकी ग्लानि ही होती है । ऐसा भी देखने में आता है कि जीवन में बड़े-बड़े दुःख आते हैं, पर भागवत धर्मानुसार जीवन व्यतीत करनेवाला उसमें भी मोहित नहीं होता ।
परिस्थितियाँ रोकी नहीं जा सकतीं; पर अपने मनको ऐसा बनाया जा सकता है कि किसी भी परिस्थितिमें सुखी रहें ।
महाराज युधिष्ठिरका चरित देखिये । उनके पास विपुल सम्पत्ति थीं । वे चक्रवर्ती सम्राट् थे । उनके महाशूर तथा अनुगत भाई थे । पत्नियाँ थीं। उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ-याग किये। लोकपरलोकका सारा वैभव उन्हें सुलभ रहा । वे अपने जीवन में पूर्ण सुखी थे ।
प्रश्न होता है कि राजा युधिष्ठिर जो अपने जीवन में सुखी थे, वह क्या सम्पत्तिके कारण, राज्यके कारण, ऐश्वर्य के कारण या भोग-विलासके कारण ?
श्रीमद्भागवत तो यही बतलाता है कि सब कुछ होनेपर भी वे अपनेको सुखी नहीं मानते थे।
अधिजह मुंदं राज्ञः क्षुधितस्य यथेतरे । १.१२.६ जैसे कोई मनुष्य भूखा-प्यासा हो तो उसके पास भले ही कितनी भी सम्पत्ति हो, राज्य हो, भाई हों, सेना हो उसे आनन्द ऐश्वर्यसम्पत्तिसे नहीं, अन्न और जलसे ही मिलेगा। कोई कितनी भी ऊँची कुर्सीपर बैठा हो और उसे कितना भी चन्दन-अक्षत लगाओ; पर यदि भूखेको अन्न या प्यासेको पानी न मिले तो वह ऐश्वर्य किस कामका ?
तो जैसे मनुष्य जीवन में भूख लगनेपर अन्न और प्यास लगनेपर पानीकी आवश्यकता होती है, वैसे ही राजा युधिष्ठिरके जीवनमें ईश्वरकी आवश्यकता थी । वे मानो श्रीकृष्ण के प्यासे थे, श्रीकृष्णके भूखे थे । भगवान् के स्मरण बिना उनका एक क्षण भी व्यतीत नहीं होता था और वे संसारकी किसी भी वस्तुको प्राप्तकर सुखी नहीं होते थे ।
भागवत-धर्म किसी के भी अस्तित्वका नाश नहीं करता । भागवतके प्रथम स्कन्धमें ही कथा है : कलियुग आया । वह धर्मको भारी पीड़ा दे रहा था । वृषभरूप धर्मके तीन पैर उसने उखाड़ डाले। केवल एक पैर शेष था। पृथ्वीरूपी गो बेचारी भूखों मर रही थी। उसे कोई पोषण नहीं मिल रहा था । कलियुग राजाका वेष धारणकर धर्म और पृथ्वीको लात मारे जा रहा था ।
उचित यही था कि राजा परीक्षित् कलियुगको नष्ट कर देते; किन्तु वे भागवत हैं, काल-धर्मके महत्त्वको भी समझते हैं । जब मानव-जीवन और भागवत-धर्म :
कलियुग उनकी शरण आया, तो उसे भी उन्होंने स्वीकृति दी : 'अच्छा, तुम भी रहो। तुम्हारे भीतर भी कुछ गुण हैं ।'
श्रीमद्भागवतका कहना है : 'ऐसा कोई भी पदार्थ या ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं, जिसमें कोई न कोई योग्यता न हो । अतः किसीका अनादर मत करो । उसकी योग्यता का लाभ उठाओ ।' ।
सारङ्ग इव सारभृत् - 'जैसे हंस पानी मेंसे दूध निकाल पी लेता है, जैसे भ्रमर पुष्पसे रस निकालकर चख लेता है, वैसे ही भक्त लोगोंमें गुण देख उसोको ग्रहण कर लेता और दोष छोड़ देता है ।
राजा परीक्षित के जीवनकी एक और सबसे महत्त्वकी बात है और वह है, उनको शाप मिलनेका प्रसंग । श्रीमद्भागवत में शापके अनेक प्रसंग आते हैं। आजकलके लोगोंको कोई गाली दे दे, निन्दा कर दे या अपमान कर दे, तो दिनभर उनके हृदय में वह चुमता रहेगा। लेकिन वे उसे शाप नहीं मानते । कोई शाप या वरदान क्या देगा ? लेकिन एक मनुष्य एक बात मुखसे निकालकर चला गया, आप उसकी चुभन कलेजेमें दिनभर अनुभव करते हैं, तो यही शाप है । यह अलग बात है कि वह शक्तिहोन है, अतः उसका वह शाप थोड़ी ही देर आपको दुःख देकर रह जाता है । किन्तु तपस्वी, शक्तिशाली महापुरुषों के शाप, उनके द्वारा की गयी निन्दा या गालो चिरकाल तक के लिए लगती है और सत्य भी हो जाती है ।
प्रश्न यह है कि शब्द लगता है या नहीं ? 'उत्तर- रामवरित' के प्रारम्भ में भवभूतिने कहा है : 'संसार में ऐसे साधारण कवि तो बहुत होते हैं, जो संसारकी वस्तुओंको देख-देखकर वर्णन
करते हैं। पहले उनके हृदय में वस्तु आती है, फिर बोलते हैं; किन्तु जो सच्चे ऋषि होते हैं, वे कुछ बोलते हैं, तो संसार वैसा ही बनता जाता है।'
ऋषीणां पुनराद्यानां वाचमर्थोऽनुधावति ।
'महापुरुष जो बोलते हैं, अर्थ उनकी वाणीका अनुगमन करता है यहाँ राजा परीक्षितके शाप और दूसरे शापोंमें जो अन्तर है, वह देखने योग्य है ।
मनुके पुत्रों में एकका नाम था 'पृष' । गुरुदेवके पास रहकर वह उनकी गायें चराता । सप्तद्वीपवती पृथ्वी के एकच्छत्र सम्राट् मनु और उनका पुत्र गुरुकुलमें रहकर गुरुकी गायें चराये ! बचपन में मुझे यह बात जँचती नहीं थी । उन्हीं दिनों मैंने सुना : 'ब्रिटेनके युवराज आजकल जहाजमें कुलीके समान कोयले झोंक रहे हैं।' कारण राजकुमारको केवल भोग-विलासका अभ्यासी नहीं होना चाहिए । वह परिवारके ही मोहमें न फँसा रहे। उसे परिवारसे पृथक् रखना, मोहमुक्त, निष्पक्ष, परिश्रमी और सेवक भी बनाना आवश्यक होता है ।
एक दिन मनुपुत्र पृषधसे असावधानी हुई । उसने तलवार चलायी तो अँधेरे में बाघपर; किन्तु लग गयी गायको । गुरुदेवने कहा : 'जाओ, शूद्र हो जाओ ।'
शापसे वह प्रसन्न हुआ । बोला : 'यह तो मुझपर गुरुदेवने कृपा की है। इन्होंने मुझे राज्यसे च्युत कर दिया, विवाह करनेसे बचा दिया। माता-पिता मुझे अब पुत्रके रूप में नहीं देखेंगे। अब तो भगवान् में ही लगना है।'
उसे तत्त्वज्ञान हो गया । वह शूद्र नहीं, ब्रह्मज्ञानी महात्मा
बन गया ।
एक राजा थे सौदास । उनके घर में उनका शत्रु रसोइया बनकर रहता । जब राजाने महर्षि वशिष्ठको आमन्त्रित किया तो उस शत्रुने ऋषिको मांस परस दिया। इससे वशिष्ठ आगबबूला हो उठे। उन्होंने राजाको शाप दियाः 'तूने चाण्डालोंका खाद्य मेरे सामने रख दिया, अतः तू चाण्डाल हो जा ।'
राजाने कहा : 'गुरुदेव ! मेरा कोई दोष नहीं। मैं तो केवल भोजन परस रहा था । आपने मुझे शाप क्यों दिया ? मैं भी आपको शाप दूँगा ।'
राजाने शाप देनेके लिए जल लिया तो उसकी रानीने हाथ 'पकड़ लिया । बोली : 'ये गुरुदेव हैं। इन्होंने भले ही शाप दिया, पर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए ।
राजाने शापका वह जल अपने पैरोंपर डाल लिया। इससे उसके पैर काले हो गये ! उसका नाम 'कल्माषपाद' पड़ गया । महर्षि वशिष्ठकी कृपासे ही आगे उसका वंश चला ।
राजा निमिने अपने कुल- पुरोहित वशिष्ठजीसे कहा : 'मेरा यज्ञ आप करा दें।'
वशिष्ठ : 'मैं इन्द्रके सत्र में जानेका उन्हें पहले ही वचन दे चुका हूँ । वहाँसे लौटूंगा, तब तुम्हारा यज्ञ करा दूंगा।'
निमिके मनमें यह भ्रम हो गया कि 'गुरुजी लालची हैं। मैं मर्त्यलोकका राजा और इन्द्र स्वर्गका राजा । उसके यहाँ दानदक्षिणा अधिक मिलेगी, इसलिए गुरुजी मुझे छोड़कर वहाँ चले गये ।' साथ ही यह भी ध्यान में आया कि 'जबतक गुरुजी लौटकर आयें, तबतक मैं जीवित रहूँ या न रहूँ । यज्ञ करनेकी शक्ति मेरे पास रहे या न रहे ।' अतः निमिने दूसरेको पुरोहित बनाकर यज्ञ प्रारम्भ कर दिया ।
वशिष्ठ लौटे तो निमिको दूसरे पुरोहितसे यज्ञ करवाते देखकर बड़े क्रुद्ध हो उठे । बोले : 'तुम्हें यही भ्रम था न कि मैं कहीं बीत्रमें ही न मर जाऊँ ? तो लो, मर जाओ ।'
निमिने मरनेसे पहले कहा : 'गुरुदेव ! आपको भी मैं शाप देता हूँ कि मैं मरता हूँ तो आप भी मर जायँ ।'
दोनों मर गये । मित्रावरुणसे वशिष्ठका पुनर्जन्म हुआ, पर निमिने फिरसे शरीरधारण स्वीकार नहीं किया । भगवान्की यह लीला इक्ष्वाकु वंशसे निमि-वंशको पृथक् करने के लिए थो, जिससे निमि-वंश विदेह बने और आगे जाकर इसी वंशमें सीताजीका प्राकट्य हो ।
श्रीकृष्ण के पुत्र-पौत्रोंने साम्बको स्त्री वेष में सजाया और उसे लेकर महात्माओंके पास जाकर पूछा : 'इसके बेटी होगी या बेटा ?' भगवन्मतकोविदाः - वे महात्मा जानते थे कि भगवान् क्या चाहते हैं । अतः उन्होंने शाप दे दिया : 'यह यदुवंशको नष्ट करनेवाला मूसल उत्पन्न करेगी ।'
लोग दुर्वासापर बहुत अप्रसन्न रहते हैं । जिसे देखो, उसीको ये शाप दे देते हैं । किन्तु एक बात ध्यान में रखिये कि दुर्वासाजी भागवत हैं, भागवत-धर्मके ज्ञाता हैं । वे शिवांश हैं। स्वयंको बदनाम करते हैं, गाली सुनते हैं, सदाके लिए अपना इतिहास काला करते हैं, पर भगवान्की भक्त वत्सलता तथा भक्तको दृढ़ता संसारमें प्रसिद्ध करते हैं । भगवान् अपने भक्तार कैसी कृपा करते हैं, भक्तकी कैसे रक्षा करते हैं और भक्त कितने दृढ़ होते हैं, यह भक्तिका - भागवत धर्मका माहात्म्य संसारमें प्रसिद्ध करनेके लिए उन्होंने अम्बरीषपर कृत्याका प्रयोग किया ।
मुख्य प्रसंग राजा परीक्षित् का है । वे आखेटको निकले थे । एक महात्माके आश्रम में पहुँचनेपर देखा कि वे समाधि में बैठे हैं । राजाको विश्वास नहीं हुआ।
वास्तवमें भागवत धर्मं श्रद्धा विश्वासके बलपर चलता है। आज विश्व में धार्मिक, दार्शनिक, संस्कृति के प्रधान विद्वान् माने जाते हैं महामहोपाध्याय डाक्टर गोपनाथ कविराज । वे कहते हैंः 'भगवान् के दर्शन, तत्त्वज्ञान या आत्मसाक्षात्कारके पूर्व मनुष्यको जो कुछ बतलाया जायगा, उसपर उसे श्रद्धा करके ही चलना होगा । उसपर वह श्रद्धा - विश्वास नहीं करेगा, तो मनुष्यका कल्याण कैसे होगा ?" राजा परीक्षित्ने सन्देह किया :
मृषासमाधिराहोस्वित् किं नु स्यात् क्षत्रबन्धुभिः ।
"मुझे इन अधम क्षत्रियोंसे क्या लेना-देना !' ऐसा सोचकर कहीं ये झूठी समाधि लगाये तो नहीं बैठे हैं ?'
सन्देह होनेपर भी परीक्षित को ऋषिके गलेमें मरा सर्प तो नहीं डालना था; किन्तु धनुषसे उठाकर मरा सर्प उन्होंने महात्माके गले में डाल दिया। महात्मा स्थिर बैठे रहे । परीक्षित् चले गये ।
उन शमीक ऋषिके पुत्रको जब यह समाचार मिला, तो उस बालकने शाप दे दियाः 'राजाको सातवें दिन तक्षक दंशन करेगा ।'
महात्मा समाधिसे उठे तो उन्होंने पुत्रको डाँटा : अल्पीयसि द्रोह उरुर्दमो धृतः - 'राजाका तनिक-सा अपराध था, पर तूने तो बहुत कड़ा दंड दे दिया ।' उस महात्माने कहाः 'परीक्षित के साथ अन्याय किया गया ।' जिसका अपराध किया गया, उसीने कहाः 'अपराध छोटा और दंड बड़ा है, अतः यह मेरे पुत्रका अन्याय है ।'
यह शाप राजा परीक्षित्को कैसा लगा ? वे भी उलटा शाप दे सकते थे; किन्तु उनके मनमें यह कल्पना ही नहीं आयी कि मैं शापके बदले शाप दे दूँ ! उन्होंने कहा : 'यह मेरा अपराध नहीं कि मैंने ऋषिके गलेमें अजगर पहना दिया । मैं तो भगवान् से विमुख होकर संसारासत हो गया थाः यत्र प्रसक्तो भयमाशु धत्ते - जिस प्रपञ्च में आसक्त हो जानेपर मनुष्यको भयका सामना करना पड़ता है, मैं उसीमें अत्यन्त आसक्त हो गया था। इसलिए ऋषिपुत्रने शाप दिया कि मेरे हृदय में निर्वेदका जागरण हो । मृत्युकी मुझे कोई चिन्ता नहीं।
सभीके जीवनमें कोई न कोई भयंकर समय आता है । उस समय यदि वह भगवान्को पकड़ ले तो वही भयंकर समय अपने जीवनमें सबसे बड़ा वरदान बन जाता है । यदि उस भयंकर
समयसे लाभ उठाकर अपनी मनोवृत्ति भगवान्में नहीं जोड़ो, तब तो वह समय और भी भयंकर हो जाता है ।
राजा परीक्षित्को पता लग गया था कि 'ऋषि-बालकने मुझे शाप दे दिया है और तक्षकके काटनेसे में सात दिनमें मर जाऊँगा। फिर भी न सम्मोहोरुभयात्- इतना भयंकर प्रसंग आनेपर भी उनके मनमें मोह नहीं हुआ । विमर्शितौ हेयताया पुरस्तात् - लोक या परलोकमें उन्हें अपने लिए कोई भोग नहीं चाहिए । वे तो केवल भगवत्तत्त्वमें स्थित होना चाहते थे !
भागवत - धर्मकी समग्रता, श्रवण मनन- निदिध्यासन और ध्यानकी अखण्डता देखनी हो तो राजा परीक्षित् में देखिये । जो अपने स्वार्थको ही पकड़े रहते हैं, उनका हाथ ढोला करने के लिए ही यह भागवत धर्म प्रकट हुआ है ।
परीक्षितुने कहा : 'ब्राह्मण-बालकने जो मुझे शाप दिया, वह शाप नहीं, मुझपर अनुग्रह है। मेरी मृत्यु उस शापसे नहीं होगी । शाप तो केवल भविष्यकी सूचना है। ऋषिकुमारने कुछ दिन पहले मृत्यु बतलाकर मुझपर अनुग्रह हो किया । मैं मरनेवाला था, पर इतना प्रमादो बन गया कि मुझे अपनी मृत्युका पता ही नहीं था । अतः ऋषिपुत्रने मुझे सावधान करने की कृपा की
राजा परीक्षित्ने कोई प्रति व्यवस्था नहीं की। जैसे गर्भावस्था में ब्रह्मास्त्रसे पीड़ित होनेपर भगवान् राजा परीक्षितको रक्षा करने हाथमें गदा और चक्र लेकर पहुँचे थे, वैसे ही शाप-पीड़ित होनेपर ( शाप भी ब्रह्मास्त्र था ) परीक्षितके मनमें न ब्राह्मणके प्रति रोष है, न शाप या मृत्युसे भय और न राज्यकी चिन्ता । उस अवस्था में भी वे परमशान्ति, परमवैराग्यका अनुभव कर कहते हैं :
द्विजोपसृष्टः कुहकस्तक्षको वा दशत्वलं गायत विष्णुगाथाः । 'साक्षात् मृत्यु रूप धारण करके आये या तक्षक बनकर आये और मुझे काट ले, इसकी मुझे चिन्ता नहीं । महात्माओ ! आप सब तो भगवान्का ऐसा चरित सुनाओ कि उसे सुननेमें मैं डूब जाऊँ ।'
तब भगवान् ही शुकदेवजीके रूपमें प्रकट हुए । ये शुकदेवजी भागवत हैं और राजा परीक्षित भी भागवत । यदि इनके द्वारा आचरित धर्म हमारे जीवनमें आ जाय, तो संसारके सब दुःखोंसे हमें मुक्ति प्राप्त हो जाय ।
एक मत यह है कि राजा परीक्षित् मृत्युसे डरते थे । मृत्युके डरसे ही उन्हें वैराग्य हुआ । मृत्युके भयसे ही उन्होंने श्रीमद्भागवतकथाका श्रवण किया। किन्तु श्रीमद्भागवत के अन्तरंग में प्रवेश करनेपर यह बात ठीक नहीं मालूम पड़ती ।
मृत्युका भय लगता अवश्य है, पर यदि मृत्युके डरसे मनुष्यके मनमें वैराग्य आये, भगवान्की भक्ति आये, अन्तर्मुखता आये तो उसे सौभाग्यकी ही बात समझनी चाहिए। किसी भी निमित्तसे मनुष्य यदि सन्मार्गपर चले, तो वह उसके लिए सौभाग्यकी ही बात है । किन्तु परीक्षित के जीवन में इससे विलक्षण बात देखनेमें आती है ।
पहले मृत्युके सम्बन्धमें एक-दो बातें सुन लें । मैंने भी बचपन में सुना था कि मेरी मृत्यु जल्दी हो जायगी। ज्योतिषियोंने कुंडली देखकर बतलाया था कि 'केवल १९ वर्षकी मेरी आयु है ।' मेरे पितामह एवं पिता दोनों बड़े ही ज्योतिषी थे । उन लोगोंके मनमें भी यही बात बैठ गयी कि बालक बहुत थोड़ी आयु लेकर आया है । जल्दी मेरा विवाह हुआ कि पुत्र हो जाय तो वंश चलता रहे । मानव जीवन और भागवत धर्म :
जब बात मेरी समझ में आ गयी तब मैंने महात्माओंके पास जाना प्रारम्भ किया। मैं सोचता था कि कोई महात्मा ऐसा मिले, जो मुझे मृत्युसे बचा दे। मेरे पास इस बातके कई उदाहरण हैं :
काशी में एक औघड़ महात्मा बाबा गुलाबचन्दजी थे। जितनी देर मैं उनके पास रहता, उतनी देर वे शराब नहीं पोते थे । काशीके आस-पास 'किनाराम-पंथ' नामक अघोरी- सम्प्रदाय है । उसमें औघड़ साधु होते हैं, जो सब कुछ खाते-पीते हैं ।
बाबा गुलाबचन्दजी बड़े सिद्ध थे । उनकी सिद्धिका एक नमूना अभी भी है। एक मुसलमान युवक उनके पास आता-जाता था । एक दिन वह मर गया । उसके घरवालोंने उसे कब्रमें गाड़ दिया । उस समय महाराज कहीं बाहर गये थे। जब वे लौटे तो बोले : 'राम-राम ! तुम लोगोंने इसे जिन्दा ही गाड़ दिया। वह तो अभी मरा नहीं है ।'
उनके जोर देनेपर कब्र खोदी गयी तो युवक जीवित निकल आया । इसके बाद महाराज पचीस वर्ष जीवित रहे तो वह उनकी सेवा करता रहा । उसने माता, पिता और पत्नी छोड़ दी । महात्माजीकी मृत्यु होनेपर अब वही उनके आश्रमको सम्भालता है ।
जबलपुरके मेरे एक भक्त है, गिरिजानन्दनजी । वेदान्तका उन्हें अच्छा अभ्यास है । जब वे ३-४ वर्षके थे, उनकी मृत्यु हो गयी । बच्चोंको जलाया नहीं जाता, इसलिए घरवालोंने ले जाकर गाड़ दिया । इतने में धूनीवाले बाबा चिल्लाये : 'अरे जिन्देको गाड़ दिया ?" खोदकर निकलवाया गया तो बच्चा जीवित निकला । वे अभी भी जीवित हैं।
तात्पर्य यह कि जो तपस्वी शक्तिशाली महापुरुष हैं, उनके संकल्पमें बड़ी शक्ति होती है। वे चाहें तो पूरी सभाको सुला दें और चाहें तो पूरी सभाको जगा दें ।
मेरे मनमें वासना थी कि मैं भी किसी सिद्ध महात्माके पास पहुँच जाऊँ, तो मरूँगा नहीं। एक महात्मासे मैंने अपने हृदयका दुःख सुनाया तो उन्होंने कहा : 'हमारे पास मृत्युको टाल देनेकी शक्ति तो नहीं है और तुम्हें भी हम यही सम्मति देते हैं कि मृत्युसे बचने के लिए किसी महात्माके पास मत जाओ। मैं तुम्हें ऐसी स्थितिमें कर सकता हूँ कि मृत्युसे तुम्हें डर न लगे । में मृत्युसे तुम्हें निर्भय कर सकता हूँ ।'
उन महात्माने बतलायाः 'मृत्युसे बचनेकी अपेक्षा मृत्युसे निर्भय होना श्रेष्ठ है; क्योंकि जीवनका ठोस सत्य है मृत्यु और उसका सामना कभी-न-कभी करना ही पड़ेगा । अतः अभीसे इस सामना करनेका अभ्यास डाल लो ।'
आप यदि यह कल्पना करते हैं कि 'हमारी आगे मृत्यु होगी ' तो अपने वर्तमानको नष्ट करते हैं या नहीं ? आप यदि कोई मर गया, इस बातको लेकर रोते हैं, तो भी अपने वर्तमानको नष्ट करते हैं। यदि भूतकाल में मरे-बिछुड़े पदार्थ को लेकर आप इस समय दुःखी होते हैं, तो आपका यह समय व्यर्थ चला जाता है । इसी प्रकार आगे आनेवाले दुःख, भय, अभावके लिए आप इस समय इतनी चिन्ता करने लगते हैं कि वर्तमान में हमें क्या करना चाहिए भूल जाते हैं तो वर्तमानको नष्ट कर देते हैं। यदि आप सोचते हों कि 'हमें कल समाधि लगेगी और ईश्वरका दर्शन होगा या आत्मस्थिति प्राप्त होगी और वह इस समय नहीं है, तो आप अपने अपरावी हो या ईश्वरके अपराधी हो या समाधिके अपराधी
हो - इसपर विचार करें, क्योंकि जो समाधि कल नहीं थी, वह डूब गयी । वह सच्ची नहीं । वह ईश्वर नहीं है, वह अपना आत्मा भी नहीं जो आज नहीं है । कल जो ईश्वर मिला और मिलकर चला गया, उसका मिलना कालसे बाधित हो गया ।
यदि आप सोचते हों कि हम वैकुण्ठ या गोलोकमें पहुँचेंगे तभी ईश्वर मिलेगा, तो यहाँवाले ईश्वरके प्रति क्या न्याय कर रहे हैं ? कलवाले ईश्वरके सम्बन्ध में सोचनेसे आजवाले ईश्वरका तिरस्कार होता है। दूरवाले ईश्वर के विषय में सोचनेसे यहाँवाले ईश्वरका तिरस्कार होता है । ईश्वरके साथ न्याय तभी होगा जब आप इसी समय, यहीं, इसी अनुभूति में ईश्वरको देखें ।
यदि हम देश में चल रहे हैं तो ईश्वर को देखते हुए चल रहे हैं । यदि हम कालमें चल रहे हैं तो प्रत्येक परिवर्तन ही ईश्वरका रूप है । यदि हमारे सामने वस्तुएँ आ रही हैं, तो वे सब ईश्वरका रूप हैं । हम गंगा किनारे चलते हैं, तो गंगाकी धाराको और लहरें उसके प्रत्येक तरंग, प्रत्येक बूँदको गंगा समझते हैं। जो धारा बह गयी वह भी गंगा, जो आनेवाली है वह भी गंगा और जो सामने दीख रही है वह भी गंगा ! इसी प्रकार ईश्वररूप गंगामें ही हम स्थित हैं ।
संसारको आप चाहे श्रीवल्लभाचार्य के अनुसार ब्रह्मका अविकृत परिणाम मानें, चाहे श्रीरामानुजाचार्य के अनुसार परिणाम, चाहे श्रोनिम्बार्कावार्य के अनुसार काय-कारणभाव, या श्रीशंकराचार्यके अनुसार विवर्त; पर यह मैं तुम, यह वह रूप सम्पूर्ण प्रपंच ईश्वरसे भिन्न नहीं है - यह कितने आनन्दकी बात है !
कोई समय ऐसा नहीं, जब ईश्वर न हो । कोई स्थान ऐसा नहीं, जहाँ ईश्वरको अनुभूति न हो। कोई वस्तु - व्यक्ति, जाति,
: तीन महामागवत
सम्प्रदाय ऐसा नहीं जिसमें ईश्वर न हो। इसका एक बहुत श्रेष्ठ परिणाम निकलता है कि हम ईश्वरको सर्वात्मक मानते हैं। सर्वात्मक ही नहीं, सर्वातीत भी मानते हैं। यदि लक्ष्य हमारा सर्व है तो उसका लक्षण भी सर्व होगा, उसका साधन भी सर्व होगा । इसलिए धर्म, उपासना, ज्ञान आदि सब साधन हैं । अतः एव सभी आचार्य ठीक हैं, सभी साधन ठीक हैं और सभी सम्प्रदाय ठीक हैं ।
राजा परीक्षित् यह सत्य जानते हैं । वे मृत्युसे डरते नहीं । उन्होंने कहा : 'मृत्यु छिपकर आये या प्रकट होकर, हमें उसकी चिन्ता नहीं । आप भगवच्चरित्र गाइये ।'
श्रीमद्भागवतके अन्त में राजा परीक्षित कहते हैं :
भगवन् तक्षकादिभ्यो मृत्युभ्यो न बिभेम्यहम् । 'तक्षकादि मृत्यु के निमित्तोंसे मैं डरता नहीं ।' परीक्षित्का एक ही आग्रह है भगवान्की चर्चा और केवल भगवान्की चर्चा उन्हें • सुननेको मिले ।
द्वितीय स्कन्ध
दूसरे स्कन्धमें दस अध्याय हैं। इनमें तीन बातें समझायी गयी हैं : १. भगवान्का तत्त्व ध्यान करने की विधि, २. हृदयकी निर्मलता ३. और विचारकी पराकाष्ठा, मनन ।
पहले दो अध्यायों में ध्यानका वर्णन है। दो अध्यायोंमें श्रोतावक्ताके हृदयकी निर्मलता है । छह अध्यायों में मनन है । इन छह अध्यायों में से एक अध्याय में जगत् की उत्पत्तिका वर्णन, दूसरेमें जोवोंका वर्णन, तोसरेमें भगवान् के अवतारोंका वर्णन है। शेष तीन अध्यायों में ब्रह्म-निरूपण है ।
तस्माद् भारत सर्वात्मा भगवान् हरिरीश्वरः । श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताऽभयम् ॥
शुकदेवजीने कहाः 'परीक्षित् ! सर्वात्मा, सर्वेश्वर भगवान् श्रीहरिके विषयमें श्रवण करो, उनके ही यशका कीर्तन करो, उन्हींका स्मरण करो । अभय चाहनेवाले के लिए यही उपाय है ।
वासनाओंका विस्तार कितना है, इसपर ध्यान दें । एक है कर्म-वासना, इससे शरीरकी उत्पत्ति होती है। दूसरी, पूर्वानुभव -
वासना है। इसोके कारण शिशु माताके स्तनोंसे दूध खींचता है अविद्या-वासना के कारण 'यह मेरी माता या पिता, पुत्र, पत्नो आदि माना जाता है । जबतक ईश्वरप्राप्ति, समाधि या आत्माके विषयमें ठीक-ठीक श्रवण नहीं करेंगे, तबतक इन वासनाओंका संस्कार कभी नहीं होगा।
अतीन्द्रिय पदार्थ बिना श्रवणके जीवन में प्रवेश नहीं करता । आप स्मरण करते हैं : 'समाधि में शान्ति थी ।' इस प्रकारकी किसी स्मृतिका नाम ज्ञान या 'प्रमाण' नहीं होता।
श्रीमद्भागवतमें पहला ध्यान वह है, जो ब्रह्माजीने पहले-पहल किया था, विराट्का ध्यान ! यह ध्यान कि 'समग्र सृष्टिः परमात्मामें है' :
एवं पुरा धारणयाऽऽस्मयोनिर्नष्टां स्मृति प्रत्यवरुद्ध्य तुष्टात् ।
जब भगवान्के विराट् रूपका ध्यान किया, तभी ब्रह्माको सृष्टिका ज्ञान हुआ । यह ध्यान राग-द्वेषसे नहीं होगा । इसे 'तत्त्व -- ध्यान' कहते हैं ।
इसके बाद चतुर्भुज नारायण के ध्यानका वर्णन है : केचित् स्वदेहान्तर्हदयावकाशे प्रादेशमात्रं पुरुषं वसन्तम् । चतुर्भुजं कञ्जरथाङ्गशङ्खगदाधरं धारणया स्मरन्ति ॥
दोनों ही ध्यानों में ऐन्द्रियक पदार्थका महत्त्व चला जाता है । भागवत धर्मका मुख्य रूप यही है कि सब परमात्मा, सब परमात्मामें और सबके परे परमात्मा । आत्मा और परमात्मा एक ।
आगे साधकके देहोत्सर्गका वर्णन है । एड़ीसे मूलस्थान दबाया । अपान वायुको क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत और विशुद्ध-चक्रोंमें उठाते आज्ञा-चक्रमें ले गये । यहाँ वर्णन है कि यदि मुक्त होना हो, तो मन-इन्द्रियोंको यहीं छोड़ दे । यदि दिव्य-लोक देखने हों तो सहैव गच्छेन्मन सेन्द्रियश्च । २.२.२२
मन- इन्द्रियों को अपने साथ शरीरसे निकाल लेना चाहिए । तभी इन्द्रके यहाँ होकर ब्रह्मलोक पहुँचेंगे। ब्रह्मलोकका अर्थ है, सूक्ष्म समष्टि । वहाँ हिरण्यगर्भ प्रत्यक्ष रहता है । वहाँ पहुँचनेपर कभी शान्ति होती है, तो कभी विक्षेप भी । वहाँ दुःख, बुढ़ापा, रोग नहीं है ।
ब्रह्मलोक में पहुँचनेपर कोई अपना दुःख तो नहीं है । अन्तःकरणवान् व्यक्ति ब्रह्मलोकमें गया है । वह देख रहा है कि वहां न रोग है, न जरा, न मृत्यु और न वासनाएँ हो । स्वर्गलोकमें वासनाओं की पूर्तिसे सुख मिलता है। ब्रह्मलोक में वासनाओंकी शान्ति होकर सुख मिलता है।
लेकिन इस ब्रह्मलोक में भी दुःख है । यहाँसे जब मर्त्यलोककी ओर देखते हैं तो हृदय पीड़ासे भर जाता है । भागवत धर्मकी यही तो विशेषता है-दूसरेका दुःख देखकर दुःखी हो जाना
यच्चित्ततोदः कृपयानिदंविदां दुरन्त दुःखप्रभवानुदर्शनात् ।
देखते हैं कि संसारके लोग नहीं जानते कि आत्माका जन्म-मरण नहीं है । अपने आत्माको अजर-अमर न जाननेके कारण ये तुरन्त जन्म-मृत्युके चक्रमें ऐसे पड़े हैं, जैसे कोई स्वप्न में दुःखी हो रहा हो या मनोराज्यसे दुःखी हो रहा हो । इस प्रकार संसार के प्राणी
वस्तुतः दुःखी न होनेपर भी दुःखी हो रहे हैं । वस्तुतः मृत्यु न होनेपर भी मृत्युका अनुभव कर रहे हैं । वस्तुतः जरा और रोग न होनेपर भी अपनेको रोगी तथा बूढ़ा मान रहे हैं । यह देखकर ब्रह्मलोक में गये महात्माका हृदय करुणासे दुःखी हो जाता है ।
इस तरह ब्रह्मलोक में बैठा महात्मा संसारके लोगोंको दुःखी देख सोचता है कि 'ये बेचारे दुःखी हैं और हम यहाँ विमानमें बैठे हैं' :
ब्राह्मण समहदक शान्तः दीनानां समुपेक्षकः । च्यवते ब्रह्म तस्यापि भिन्नभाण्डात् पयो यथा ॥
अर्थात् समदर्शी, शान्त, ब्रह्मज्ञानी है; किन्तु यदि वह दोनोंकी उपेक्षा कर देता है तो उसका सारा - वैदिकज्ञान च्युत हो जाता है, जैसे : फूटे घड़ेसे पानी ।
ततो विशेष प्रतिपद्य निर्भयः- ब्रह्मलोक में बैठा महात्मा संसारके प्राणियोंका यह असह्य दुःख देखकर ब्रह्मलोकसे कूद पड़ा और आकर धरतीसे एक हो गया । पृथ्वी बनकर उसने सबको अपने ऊपर उठा लिया । फिर जल बना, सबको रस दिया। फिर अग्नि बनकर सबको ऊष्मा दी । फिर वायु बना, सबको प्राण दिये । फिर आकाश बनकर सबको अवकाश दिया । अन्तमें फिर परब्रह्म परमात्माका ध्यानकर अपनेको उनसे अभिन्न देखाः "मेरे अतिरिक्त कोई जीव ही नहीं था । मैं जो दूसरेको दुःखी समझ रहा था, वह दूसरा दुःखी नहीं था । दुःखका अनुभवी तो स्वयं मैं ही था । ब्रह्मलोक जाकर मेरा व्यक्तित्व नष्ट नहीं हुआ । इससे मैं दूसरोंको दुःखी और अपनेको सुखी समझ रहा था। वहाँ भेद-दृष्टि
विद्यमान थी। मैं अपने को ऊपर और दूसरोंको नीचे समझ रहा था । 'मैं शान्त, निर्वासन, अजर-अमर और शेष संसारके जीव अशान्त, वासनावान्, जरा-मृत्युग्रस्त' यह भेद-बुद्धि ही मेरा भ्रम था । इस प्रकार सम्पूर्ण विश्वात्मासे एक होकर उसने सद्योमुक्ति प्राप्त कर ली ।
वैराग्य - प्रधान 'विराट्' का ध्यान है । 'सम्पूर्ण सृष्टि भगवान्के अङ्गोंमें ही है' इस ध्यान से राग-द्वेषकी सर्वथा निवृत्ति हो जायगी। अभ्यास-प्रधान 'पुरुष' का ध्यान है । इससे चित्त स्थिर हो जायगा । कहीं राग-द्वेष न हो और व्यवहार सब होता रहे, इसका नाम 'ध्यान' है । यह बात सांख्यशास्त्र में मानी गयी है । वे कहते हैं : यदि कहो कि 'हम समाधिकाल में द्रष्टा थे और व्यवहार काल में कर्ता हो गये' तो व्यवहारकालमें द्रष्टाका केवल स्मरण ही कर सकते हैं, स्वयं द्रष्टा नहीं हो सकते । केवल द्रष्टाका स्मरण करना यानी 'मैं समाधि-काल में द्रष्टा था', यह सांख्यका विवेक नहीं हुआ । अतः व्यवहार में रहते हुए कहीं 'राग-द्वेषका स्पर्श न होना' ही सांख्योक्त ध्यान है ।
यह सम्पूर्ण विश्वसृष्टि विराट् है । सांख्यदर्शन आत्माको आनन्दस्वरूप नहीं मानता । वह कहता है : 'आत्मा या परमात्मा कोई भी आनन्दस्वरूप होगा, तो आनन्दाकारवृत्ति होगी और उसमें राग हो जायगा । राग होनेपर एतद्वृत्तिमानहम् इस प्रकार वृत्तिमान् होकर तुम एक परिच्छिन्न जीव ही रह जाओगे । अपनेको विभु द्रष्टाके रूपमें अनुभव न कर सकोगे ।' अतः रागद्वेष न होना और वृत्तिका प्रतीत होने रहना, सम्पूर्ण व्यवहार होते हुए भी राग-द्वेष न होना साधन है ।
सांख्यदर्शन के दो भेद हैंः १. निरीश्वर सांख्य और २. सेश्वर सांख्य । निरीश्वर सांख्यवादी कहता है : 'तुम्हारा ईश्वर कहाँ रहेगा ? वह या तो दृश्य होकर रहेगा या द्रष्टा होकर । यदि वह द्रष्टा है तो अपनी आत्मासे भिन्न नहीं । यदि दृश्य है तो प्रकृति की कोटिमें चला गया ।' अतः निरीश्वर सांख्यमें जीवन्मुक्ति के लिएअसङ्ग व्यवहार के लिए केवल दृश्यसे अपनी विवेकख्याति हो आवश्यक मानी गयी है।
यह बात भिन्न है कि परवर्ती विद्वानोंने निरीश्वर सांख्यको भी सेश्वर सांख्य सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। वे कहते हैं : 'तुम अपनी सत्ताका उपयोग करते हो कि 'मैं हूँ', ज्ञानका उपयोग करते हो कि 'मैं द्रष्टा हूँ तो अपनी प्रियताका उपयोग क्यों नहीं करते ? क्या तुम्हारे जीवन में प्रियताकी वृत्ति सर्वथा नहीं है ?" यहींसे भक्ति-सिद्धान्तका प्रारम्भ होता है । यदि तुम्हारे जीवनमें सचमुच 'प्रियता' नामक कोई व्यावहारिक वृत्ति है, तो उसका सम्बन्ध या तो आत्मासे हो या परमात्मासे । यदि इन्हें छोड़ अन्यत्र प्रियबुद्धि करोगे तो राग-द्वेषके चक्करमें पड़ जाओगे ।
भागवतका सिद्धान्त तो यह है कि ईश्वरकी कृपाके बिना ज्ञान भी पूर्ण नहीं हो सकता ।
पुरुषस्याऽऽत्मवेदनम् । स्वतो न सम्भवादन्यत् तत्त्वज्ञो ज्ञानदो भवेत् ॥
जीव तो अनादि अविद्याके चक्कर में पहलेसे ही पड़ा है । जबतक उससे भिन्न तत्त्वज्ञ उसे अपने स्वरूपका ज्ञान नहीं कराता, वह हो नहीं पाता । स्वयं ज्ञान होना सम्भव ही नहीं। स्वयं ज्ञानमें उदय या विलय नहीं । स्वयं न ज्ञानका नाश होता है, न स्वयं
उदय । ज्ञान तो नित्य है। किन्तु यही ज्ञान है, यह बतलानेवाला कोई चाहिए । अतः सेश्वर सांख्य में पुरुष ध्यानकी ही प्रधानता है । तत्र प्रत्ययैकतानताध्यानम्- योगदर्शन (३.२) के मतमें लक्ष्य में चित्तवृत्तिका एकाग्र होना ध्यान है । सम्पूर्ण वेदोंका तीनबार स्वाध्याय करके ब्रह्माने यह निश्चय किया :
भगवान् ब्रह्म कानेन त्रिरन्वीक्ष्य मनीषया । तदध्यवस्यत् कूटस्थो रतिरात्मन् यतो भवेत् ॥
भगवान् ब्रह्माने सम्पूर्ण वेदोंका तीनबार भलीभाँति जो अन्वीक्षण किया, वह भी मनोनुसारिणी बुद्धिसे नहीं, मनीषासे ।
एक बुद्धि होती है, जो अपनेको पसन्द बात वेद-शास्त्र में से निकाल देती है। यह मनोनुसारिणी बुद्धि है । एक मनीषानुसारी मन होता है। मनसः + ईषा = मनीषा । मनको घसीटकर तत्त्वकी ओर ले जानेमें जो प्रेरणा-समर्थ है, उस बुद्धिको 'मनीषा' कहते हैं । इस मनीषासे तीनबार वेदोंका सम्यक अनुसन्धान करके ब्रह्माजीने - जिससे आत्मामें, परमात्मामें मनुष्यको रति हो जाय, उसवेदका तात्पर्य - निश्चय किया ।
रति होना आवश्यक है, किस उपायसे हो, यह देखना आवश्यक नहीं । जिससे भी भगवान्में रति हो, वह करो । रोनेसे हो तो रोओ, पढ़नेसे हो तो पढ़ो, योगाभ्याससे हो तो वही करो। साधनमें आग्रह नहीं, पर सिद्धकी स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि आत्मारामता, भगवद्रामता आये ।
भगवद्-रति और आत्मरति भिन्न नहीं हैं।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्धते ।
आत्मा और परमात्मा भिन्न नहीं । इसी तरह जो भगवद्रतिहै, वही आत्मरतिका अर्थ है ।
अध्यायों में श्रोता और वकाकी यह बतलाया गया है । इसका अर्थ हुआ कि श्रवण और कीर्तन दोनों भगवत्राप्तिके साधन हैं । इस प्रकार इस स्कन्धने बतलाया :
१. विराट् पुरुषका ध्यान करके राग-द्वेषसे रहित होना । २. पुरुष ध्यान करके अपनी चित्तवृत्तिको भगवदाकार बनाना ३. भगवद्गुणानुवादका श्रवण करना ।
४. भगवान्के नाम, गुण, रूप और लीलाका वर्णन करना । विराट्के ध्यानी भागवत हैं । जैसेः ब्रह्माजी । पुरुषके ध्यानी भागवत हैं । भगवच्चरित्र के श्रोता भागवत हैं । जैसे : राजा परीक्षित् । और भगवच्चरित्र के वक्ता भागवत हैं । जैसेः शुकदेवजी ।
इसके बाद ६ अध्यायोंमें मननका वर्णन है । मननके यहाँ दो रूप हैं : उत्पत्ति और उपपत्ति ! 'उत्पत्ति' का अर्थ है, कार्य-कारणभावसे जगत्का विचार । 'उपपत्ति' है, कार्य-कारणभाव होनेपर भी परमात्मामें किसी प्रकारका विकार या परिणाम नहीं होता, इस शुद्ध स्वरूपका उपपादन करना ।
तीन अध्यायों में उत्पत्तिका वर्णन है। इनमें जगत्की उत्पत्ति, जीवोंकी उत्पत्ति और परमात्मा के अवतारका वर्णन एक-एक अध्याय में है । तोन अध्यायों में उपपत्तिका निरूपण है । ये अन्तिम तीन अध्याय मननात्मक होनेसे इन्हीं में 'चतुःश्लोकी भागवत' है ।
तृतीय स्कन्ध
तृतीय स्कन्धके प्रारम्भ में ही विदुरजीका वर्णन है । विदुरजी कौरव-पाण्डवों में से किसी के विपक्ष में नहीं होना चाहते । न तो वे युधिष्ठिरसे युद्ध करना चाहते हैं और न कौरवोंसे ।
कौरव-पाण्डव-सेना युद्धके लिए सजी तैयार है । धृतराष्ट्रने चिन्तित होकर विदुरको बुलाया । विदुरने आकर कहाः 'तुम्हारे ये पुत्र बड़े दुष्ट हैं। ये कलियुग के रूप हैं । इनका त्याग कर दो धर्मराजका जो स्वत्व है, वह उन्हें दे दो ।'
इसपर दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि, कर्ण आदि सब विदुरपर आगबबूला हो उठे। दुर्योधन बोला : 'इस दासीपुत्रको यहाँ किसने बुलाया ? जल्दी राज्यसे निकाल बाहर करो। यह केवल श्वास लेता हुआ अर्थात् वस्त्रादि सब कुछ छोड़ यहाँसे भाग जायँ' : निर्वास्यतामाशु पुराच्छ्वसानः ३.१.१५ ।
विदुर भी धर्म हैं और युधिष्ठिर भी धर्म । एक साथ धर्मके ये दो अवतार हैं । लेकिन कौरव-पक्ष में धर्मका उपदेश कोई सु नहीं । वहाँ वे शूद्र हैं, सेवक हैं । पाण्डव-पक्ष में धर्मराज राजा हैं । सब उनकी आज्ञाका पालन करते हैं ।
धर्माधर्म दोनों पक्षों में होते हैं । पाण्डव-पक्ष में भी घटोत्कच आदि राक्षस हैं; किन्तु वहाँ आज्ञा चलती है धर्मराजको । कौरवपक्षमें भी धर्म है । वहाँ भीष्म, द्रोण, कर्ण हैं; किन्तु वहाँ आज्ञा विदुरकी नहीं चलती । विदुर वहाँ एक सेवक हैं । वहाँ आज्ञा अधर्मकी, कलियुगके अवतार दुर्योधनकी चलती है ।
विदुर धर्मात्मा नहीं, भागवत हैं । यदि विदुर धर्मात्मा होते तो धनुष लेकर युधिष्ठिरके पक्षसे युद्ध करते; किन्तु स्वयं धनुर्द्वारि निधाय - चलते समय अपना धनुष-बाण वे धृतराष्ट्र के महलके द्वारपर रख गये । अर्थात् यह सूचित करते गये कि 'मैं किसी पक्षसे युद्ध करने नहीं जा रहा हूँ ।'
भागवत ऐसी किसी बातको स्वीकार नहीं करेगा, जिससे उसके हृदयकी भगवदाकारवृत्तिका लुप्त हो जाय । भागवत धर्ममें भगवदाकार-वृत्तिका महत्त्व सबसे बड़ा है ।
विदुरने घर छोड़ दिया। साधारण घर नहीं, बड़ा विलक्षण घर ! प्रविवेशात्मसात् कृतम्-पाण्डवोंको सलाह देनेवाले श्रीकृष्ण सन्धिदूत बनकर हस्तिनापुर आये, तो दुर्योधनके समृद्धिशाली घरमें नहीं गये । वे विदुरके घर बिना बुलाये चले गये ।
दुर्योधन ने श्रीकृष्णके स्वागत-सत्कारका बड़ा आयोजन किया था । नगरमें द्वार सजाये गये थे । दुःशासनका भवन श्रीकृष्णके लिए सजाया गया । अरबोंकी सम्पत्ति उसमें भेंट करनेको रखी थी। उनसे प्रार्थना की : 'आप हमारा आतिथ्य स्वीकार करें !' लेकिन श्रीकृष्ण ने कह दिया :
संप्रीतिभोज्यांन्यन्नानि आपभोज्यानि वा पुनः । न च संप्रीयसे राजन् न चैवापद्गता वयम् ॥ |
cd4a26e693e59a322465a20ca379a4454fa3068a7a44ac52af0272ae58c5d19a | pdf | उक्तियाँ काव्य को अधिक प्रभावी बनाने में समर्थ हैं। अर्थगौरव का एक सुन्दर उदाहरण अवलोकनीय है'प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ
अवलम्बनाय दिनभर्तुरभून्न
पतिष्यतः करसहस्त्रमपि ॥ ५३
अर्थात् चन्द्रमा के पृष्ठवर्ती हो जाने पर सूर्य की हजारों किरणें भी उसे नहीं रोक पाती हैं, वह अस्त हो जाता है। उसी प्रकार चन्द्रमा (भाग्य) के प्रतिकूल (अनिष्ट) हो जाने पर मनुष्य के पास अनेकों साधन के रहते हुए भी उसका कार्यसिद्ध नहीं हो पाता है और सभी साधन व्यर्थ हो जाते हैं।
महाकवि माघ ने रैवतक पर्वत का श्रेष्ठ द्विज से समानता करते हुए उपमा में अद्भुत चमत्कार पैदा कर दिया है। उदाहरणार्थ'विद्वद्भिरागमपरैर्विवृतं कथञ्चिच्छुत्वापि दुर्ग्रहमनिश्चितधीभिरन्यैः । श्रेयान्द्विजातिरिव हन्तुमघानि दक्षं
गूढार्थमेषनिधिमन्त्रगणं विभर्ति ॥ ५४
माघ का पदलालित्य किसी से कम नहीं है। उनकी कोमलकान्तपदावली हठात् पाठक का मन मोह लेती है । पदलालित्य की दृष्टि से उनका निम्नलिखित श्लोक द्रष्टव्य है'कुमुदवनमपनि श्रीमदम्भोजषण्डं
त्यजति मुदमुलूकः प्रीतिमांश्चक्रवाकः । उदयमहिमरश्मिर्याति शीतांशुरस्तं
हतविधिलसितानां ही विचित्रो विपाकः ॥१५५
माघ के उपमा अलङ्कार के कुछ और उदाहरण प्रस्तुत हैं। निम्नलिखित पद्य में श्रीकृष्ण के मितभाषण को कितनी सुन्दरता के साथ महत्ता से जोड़ देते हैं'यावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः । विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ॥ ५६ एक और उदाहरण अवलोकानीय है३०
'त्वयि भौमं गते जेतुमरौत्सीत्स पुरीमिमाम् । प्रोषितार्यमणं मेरोरन्धकारस्तटीमिव ॥ १५७
अर्थात् तुम्हारे ( श्रीकृष्ण के) नरकासुर को जीतने चले जाने पर शिशुपाल ने इस नगरी को उसी प्रकार घेर लिया, जिस प्रकार सूर्य के अस्त होने पर अन्धकार मेरुपर्वततटी को घेर लिया करता है।
अर्थगौरव एवं अर्थगाम्भीर की दृष्टि से भी माघकाव्य उत्कृष्ट कोटि का ग्रन्थ है। राजा के सर्वाङ्गीण रूप का कितना संक्षिप्त कथन इस श्लोक में प्राप्त होता है -
'बुद्धिशस्त्रः प्रकृत्यो घनसंवृतिकञ्चुकः । चारेक्षणो दूतमुखः पुरुषः कोऽपि पार्थिवः । '
अर्थात् 'बुद्धि रूपी शस्त्र वाला, प्रकृति रूपी (स्वामी) मंत्री आदि सात अङ्गों वाला, मंत्रगुप्ति रूपी धन कवच वाला, गुप्तचर रूपी नेत्र वाला तथा दूत रूपी मुख वाला कोई विशिष्ट ही पुरुष होता है। इस एक अनुष्टुप छन्द में राजनीति का समस्त सार माघ ने प्रस्तुत कर दिया है। इसी सर्ग का एक और श्लोक अर्थगौरव की महत्ता को सुप्रतिष्ठित करता हुआ द्रष्टव्य है - राजा के मंत्र के पाँच अङ्ग होते हैं- कार्य के प्रारम्भ का उपाय, कार्यसिद्धि में अपेक्षित सामग्री सञ्चय, देशकाल का उचित उपयोजन, विपत्प्रतीकार के उपाय और कार्य सिद्धि इसी प्रकार बौद्धों के पाँच स्कन्ध हैं- रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार स्कन्ध । इस विस्तृत अर्थ को माघ ने एक छोटे से श्लोक में सञ्जो दिया है -
'सर्वकार्यशरीरेषु मुक्त्वाङ्गस्कन्धपञ्चकम् । सौगतानामिवात्मान्यो नास्ति मंत्रो महीभृताम् ॥
अर्थात् जिस प्रकार पाँच स्कन्धों के अलावा बौद्धों का आत्मा नहीं है, उसी प्रकार पाँच अङ्गों के अलावा राजा का और मंत्र नहीं है ।
उपमाप्रयोग एवं अर्थगौरव की ही भाँति पदलालित्य का एक अत्यन्त सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है। उनके द्वारा प्रयुक्त शब्दों को इधर-उधर नहीं खिसकाया जा सकता। पदों का सुन्दर, मनोहर, अपरिवर्तनीय सन्निवेश ही पदों की ललितयोजना है। इस दृष्टि से माघ का"नवपलाशपलाशवनं पुरः
ससुरभिं सुरभिं सुमनोभरैः ॥ " ( शिशु० ६।१२)
यह श्लोक प्रसिद्ध है। पदलालित्य और लयात्मकता का एक और उदाहरण देखने योग्य है'वर्जयन्त्या जनैः सङ्गमेकान्ततस्तर्कयन्त्या सुखं सङ्गमे कान्ततः ।
योषयैष स्मरासन्नतापाङ्गया
सेव्यतेऽनेकया सन्नतापाङ्गया।
महाकवि माघ का अलङ्कार प्रयोग कभी-कभी कृत्रिम तथा सायास दीखने लगता है। वर्णनों की दीर्घता में यदि अलङ्कारों का भी बहुल प्रयोग किया जाए तो काव्य की सहजता ही नष्ट हो जाती है। ऐसे स्थल पाण्डित्य का भले ही निर्वाह करते रहे हों किन्तु पाठक के हृदय में स्थित रसतन्तु को नहीं छू पाते। माघकाव्य का सम्पूर्ण उन्नीसवाँ सर्ग विविध काव्यबन्धों के कारण चित्रकाव्य का रूप प्रस्तुत करता है। चित्रालङ्कारों के प्रयोग में माघ भारवि से भी आगे निकल गये हैं। माघ ने चित्रालङ्कारों के भेदोपभेदों के प्रयोग में अपनी विशेषता की पराकाष्ठा कर दी है। शिशुपालवध के उन्नीसवें सर्ग में एकाक्षर श्लोक (१९/११४) द्वयक्षर श्लोक (१९/६६,८६,९४,१००,१०४ आदि) एकाक्षरपाद श्लोक (१९/३) सर्वतोभद्र (१९/२७), चक्रबन्ध (१९/१२०), द्वयर्थक श्लोक (१९/५८) त्रयर्थकश्लोक (१९/११६) आदि विभिन्न प्रकार के चित्रालङ्कारों का तो व्यूह ही रच दिया है। पाश्चात्य विद्वानों ने ऐसे काव्यबन्धों को कुरुचि का द्योतक मानकर इनकी कटु आलोचना की है किन्तु भारतीय परम्परा ने इन्हें हेय नहीं माना अपितु चमत्कृतिमूलक कहा है। माघकाव्य में इस प्रकार का चमत्कार और पाण्डित्य पग-पग पर दिखाई पड़ता है।
माघ के विविध शास्त्रज्ञान के सदृश ही उनका शब्दभण्डार भी विलक्षण ही है। नये-नये शब्दों का प्रयोग तथा व्याकरणसम्मत विचित्र पदों का सन्निवेश सम्पूर्ण काव्य में विखरा पड़ा है। यह महाकवि माघ की निजी विशेषता है क्योंकि इनके अतिरिक्त किसी भी कवि के काव्यों में इस प्रकार की विशेषताओं की झलक देखने को नहीं मिलती।
शिशुपालवध का अङ्गी रस वीर है। शृङ्गार, हास्य आदि अन्य रस अङ्ग हैं, किन्तु यह काव्य वीररस प्रधान होने पर भी शृङ्गार रस एवं वीररस के समान ही प्रधान जान पड़ता है। कवि ने अत्यन्त सहृदयता एवं सरसता से अङ्ग स्वरूप रस का चित्रण किया है। सातवें सर्ग से लेकर बारहवें सर्ग तक शृङ्गार रस की ही प्रधानता है। वीर रस का तो वर्णन मुख्यतया अन्तिम तीन सर्गों में (अट्ठारह
से बीस तक) ही है, जिनमें श्रीकृष्ण की एवं शिशुपाल की सेनाओं का तथा स्वयं उन दोनों के युद्ध का वर्णन किया गया है।
महाकवि माघ ने अपने काव्य शिशुपालवध में छन्दश्चयन के प्रयोग में भी विशेष पटुता दिखलाई है। उनके छन्दोविधान पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि छन्दः प्रयोग की प्रक्रिया निरन्तर विकास की ओर अग्रसर थी। चतुर्थ सर्ग में ही उन्होंने उपजाति, द्रुतविलम्बित, शालिनी और वसन्ततिलका आदि बाईस छन्दों का प्रयोग कर अपनी निपुणता प्रस्तुत की है।
प्रकृतिवर्णन, अलङ्कार, नूतनपदशैय्या, गम्भीर अर्थगौरव, विलक्षणपाण्डित्य रसोन्मेषवर्णनवैचित्र्य, और कल्पनागाम्भीर्य आदि गुणों से परिपूर्ण माघकाव्य को देखकर उनकी काव्यरचना की निपुणता का प्रमाण मिलता है। उनके पद्यों में एक-एक शब्द में गम्भीर अर्थ छिपे हुए जान पड़ते हैं क्योंकि उन्होंने शब्दों और अर्थों पर विचार करके गुणों एवं अलङ्कारों से सुसज्जित अपने महाकाव्य की रचना की है, जो उनकी निपुणता का परिचायक है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शिशुपालवध के वैशिष्ट्य और व्युत्पत्तिपरकता के विषय में जो सूक्तियाँ प्रचलित हैं, वे सर्वथा सत्य ही हैं। वास्तव में उनका महाकाव्य सम्पूर्ण गुणों, रसों, अलङ्कारों और पाण्डित्यप्रदर्शनों से परिपूर्ण है। उनके विषय में जो सूक्तियाँ प्रचलित हैं, उससे उनके काव्यवैशिष्ट्य की पूर्ति हो जाती है -
'उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् । नैषधे (दण्डिनः) पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः ॥' तावद्भाभारवेर्भाति यावन्माघस्य नोदयः ।
अर्थात् कालिदास की उपमा, भारवि का अर्थगौरव, नैषध अथवा दण्डी का पदलालित्य प्रशंसनीय है किन्तु माघकवि में ये तीनों ही गुण पाये जाते हैं। भारविकवि की कान्ति तभी तक शोभा पाती है जब तक माघ कवि का उदय नहीं होता लेकिन नैषधकाव्य के उदय होने पर कहाँ माघ तथा कहाँ भारवि ? ऊपर की सूक्ति के आधार पर माघकवि श्रेष्ठ हुए तो नीचे वाली सूक्ति से नैषधकार श्रीहर्ष से पीछे हो जाते हैं, किन्तु माघकवि के संबंध में सूक्तियों का यह जाल दूसरे कवियों की अपेक्षा बहुत बड़ा है। अनेक तर्कों में वे सर्वश्रेष्ठ कवि स्वीकार किये गये हैं। क्या अलङ्कारों की छटा, क्या अर्थ और भाव की
गम्भीरता, क्या अन्य लौकिक विषयों का अगाध ज्ञानगौरव, क्या पदों की मनोहारिकता, क्या वर्ण्य विषय तथा भाषा पर उनका असीम अधिकार ? सभी दृष्टियों से माघ को सर्वश्रेष्ठ कवि सिद्ध करने वाले आलोचकों ने उनकी बहुमुखी प्रसस्तियाँ गायी हैं। उनके एकमात्र महाकाव्य का गौरव संस्कृत समाज में शताब्दियों से उन्हीं की भाँति सर्वोपरि स्वीकार किया गया है'कृत्स्नप्रवोधकृत् वाणी भारवेरिव भारवेः । माघनैव च माघेन कम्पः कस्य न जायते ॥' (राजशेखर)
'माघेन विघ्नितोत्साहा नोत्सहन्ते पदक्रमे । स्मरन्तो भारवेरेव कवयः कपयो यथा । " ( धनपाल)
अर्थात् सूर्य की भाँति जहाँ भारवि की कविता समग्र ज्ञान को प्रकाशित करने वाली है, वहीं माघ मास के समान माघ का नाम सुनकर किस (कवि) को कँपकँपी नहीं आ जाती है।
जिस प्रकार माघ महीने के ठिठुरते हुए जाड़े में बन्दर लोग सूर्य का स्मरण करते हैं और चुपचाप रहकर इधर-उधर उछल-कूद नहीं मचाते, उसी प्रकार माघ कवि की रचना का स्मरण करके बड़े-बड़े कवियों का उत्साह पद - योजना करने में ठंडा पड़ जाता है, चाहे वह भारवि के पदों का कितना ही स्मरण क्यों न करें?
इन दोनों सूक्तियों में यद्यपि इनके कर्त्ताओं का हृदय भारवि की ओर झुका है किन्तु उनके मस्तिष्क में माघ की धाक धँसी हुई है। इसी प्रकार एक स्थान पर माघ और कालिदास की चर्चा इस प्रकार है'पुष्पेषु जाती, नगरीषु काञ्ची,
नारीषु रम्भा, पुरुषेषु विष्णुः ।
नदीषु गङ्गा, नृपतौ च रामः
साथ हीकाव्येषु माघः कवि कालिदासः ॥'
'नवसर्गगते माघः नवशब्दो न विद्यते । '
अर्थात् माघकृत शिशुपालवध महाकाव्य का नौ सर्ग समाप्त होने पर कोई ऐसा शब्द नहीं रह जाता, जिनका प्रयोग कविता के क्षेत्र में अन्यत्र हुआ हो।
'मेघे माघे गतं वयः' |
efdd7145c1bf70f0e78e04f0cc82ddf15e69616d | web | मैंने अत्यन्त श्रद्धा के साथ कमरे में चुपचाप प्रवेश किया था। मास्टर महाशय के देवता सदृश रूप ने मुझे चकाचौंध कर दिया। श्वेत रेशम समान दाढ़ी और विशाल तेजस्वी नेत्रों से युक्त वे पवित्रता का साक्षात् अवतार लग रहे थे। ऊपर की ओर उठा हुआ उनका चेहरा और जुड़े हुए हाथ देखकर मैं समझ गया कि उनके पास मेरे उस प्रथम आगमन ने उनकी अर्चना में बाधा डाली है।
उस समय तक मुझे जितने धक्के लगे थे उन सब से बढ़कर तीव्र धक्का उनके स्वागतपूर्ण सरल शब्दों से लगा। माँ की मृत्यु के कारण हुए विरह-दुःख को ही मैं दुःख की पराकाष्ठा मानता आ रहा था। अब अपनी जगन्माता से विरह की भावना मेरी आत्मा को अवर्णनीय यातना देने लगी। विलाप करते हुए मैं ज़मीन पर गिर पड़ा।
"छोटे महाशय, शांत हो जाओ!" संतवर को सहानुभूतिपूर्ण दुःख हो रहा था।
किसी अगाध समुद्र में असहाय छोड़ दिये गये मनुष्य की तरह अपने बचाव का एकमात्र उपाय जानकर मैंने उनके चरणों को कसकर पकड़ लिया।
इस प्रकार की मध्यस्थता का वचन सहज ही नहीं दे दिया जाता; अतः महात्मा चुप रहने पर बाध्य हो गये।
मुझे समस्त शंकाओं से परे विश्वास हो गया था कि मास्टर महाशय वहाँ जगन्माता से घनिष्ठता के साथ वार्तालाप कर रहे थे। यह सोचकर मैं अत्यंत अपमानित अनुभव कर रहा था कि मेरी आँखें जगन्माता को देख नहीं सकती थीं जिन्हें अभी इस समय भी उस सन्त की निर्मल दृष्टि निहार रही थी। निर्लज्जतापूर्वक उनके पाँव पकड़े हुए और उनके सौम्य विरोध को अनसुना करते हुए मैं बार-बार उनकी मध्यस्थता की कृपा की याचना उनसे करता रहा।
"मैं परमप्रिय माँ तक तुम्हारी प्रार्थना पहुँचा दूंगा।" मास्टर महाशय ने आखिर हार मानकर सहानुभूतिपूर्वक धीरे से मुस्कराते हुए कहा।
क्या शक्ति थी उन शब्दों में कि मेरा मन विरह-व्याकुलता से तुरन्त मुक्त हो गया!
"महाशय, अपना वचन याद रखिये! माँ का सन्देश पाने के लिये मैं पुनः शीघ्र ही आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा।" एक क्षण पूर्व ही दुःख और सिसकियों से मेरा जो कण्ठस्वर अवरुद्ध हुआ जाता था, अब आशा की आनन्द ध्वनि से मुखरित हो रहा था।
लम्बे जीने से नीचे उतरते-उतरते अतीत की स्मृतियों से मेरा मन भर आया 50, एमहर्स्ट स्ट्रीट के इसी घर में, जो अब मास्टर महाशय का आवास था, किसी समय मेरा परिवार रहा करता था। यहीं मेरी माँ की मृत्यु हुई थी। स्वर्गवासी माता के लिये यहीं पर मेरा मानवी हृदय पीड़ित हुआ था; और यहीं पर आज जगन्माता के विरह में मेरी आत्मा विद्ध हो उठी थी। मेरे शोकविह्वल मन की वेदनाओं और अंततः मेरी निरामयता की मौन साक्षी बनी यही वे पुनीत दीवारें थीं!
घर जाते हुए मेरे पाँव उत्सुकतावश जल्दी-जल्दी उठ रहे थे। अपनी छोटी-सी अटारी में मैं दस बजे तक एकान्त में ध्यान करता रहा उष्ण रात्रि का अन्धकार अचानक एक अद्भुत दृश्य के साथ प्रकाशमान हो उठा।
दिव्य आभायुक्त जगजननी मेरे सामने खड़ी थीं। मधुर स्मित करता उनका मुखारविंद परमसौन्दर्य का मूर्त रूप था।
"सदा ही मैंने तुम्हें प्रेम किया है! सदैव मैं तुमसे प्रेम करती रहूँगी!"
उनका दिव्य स्वर अभी वातावरण में गूँज ही रहा था कि वे अदृश्य हो गयीं।
दूसरे दिन प्रातः काल सूर्य ने क्षितिज पर अभी झाँकना आरम्भ ही किया था कि मैं मास्टर महाशय के घर पहुँच गया। हृदयविदारक स्मृतियों से जुड़े उस घर की सीढ़ियाँ चढ़ कर मैं चौथी मंजिल पर उनके कमरे के सामने पहुँच गया। बन्द दरवाजे की मूठ पर एक कपड़ा लिपटा हुआ था जो शायद इस बात का संकेत था कि वे एकान्त चाहते हैं। मैं दरवाजे के सामने दुविधा में खड़ा था कि इतने में मास्टर महाशय ने स्वयं ही दरवाजा खोल दिया। मैंने उनके पूज्य चरणकमलों में प्रणाम किया।
दिव्य उल्लास को छिपाते हुए मैंने विनोद भाव में अपना मुख गम्भीर बना लिया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। स्पष्ट था कि मेरी गम्भीरता का नाटक प्रभावी नहीं था।
"इतनी गूढ़ता, इतना छल क्यों? क्या सन्त कभी सीधी बात नहीं करते ?" मैं शायद थोड़ा चिढ़ गया था।
मेरी आत्मा की खिड़कियों को खोलने की कुंजी मास्टर महाशय के पास थी; मैंने पुनः उनके चरणों में साष्टांग प्रणिपात किया। परन्तु इस बार मेरी आँखों से जो अश्रु बह रहे थे वे अतीव हर्ष के थे, दुःख के नहीं।
ये सीधे-सादे सन्त कौन थे, जिनका परमसत्ता से किया गया छोटे से छोटा अनुरोध भी मधुर स्वीकृति पा जाता था? इस संसार के जीवन में उनकी भूमिका अत्यंत साधारण थी, जो मेरी दृष्टि में विनम्रता के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के अनुरूप थी। एमहर्स्ट स्ट्रीट के इस घर में मास्टर महाशय1 लड़कों के लिये एक छोटा सा हाईस्कूल चलाते थे। उनके मुँह से कभी डाँट-फटकार का कोई शब्द नहीं निकलता था। उनका अनुशासन किसी नियम या छड़ी की वजह से नहीं था। इन सादगीयुक्त कक्षाओं में सच्चा उच्चतर गणित सिखाया जाता था, और सिखाया जाता था प्रेम का रसायन शास्त्र जिसका पाठ्यपुस्तकों में कभी कोई उल्लेख भी नहीं मिल सकता।
अगम्य प्रतीत होने वाले नीरस उपदेशों की अपेक्षा आध्यात्मिक संसर्ग के द्वारा ही वे अपने ज्ञान का प्रसार करते थे। जगज्जननी के विशुद्ध प्रेम में वे इतने चूर रहते थे कि मान-अपमान की बाह्य औपचारिकताओं की ओर उनका कोई ध्यान ही नहीं रहता था।
प्रतिदिन दोपहर ढलते-ढलते मैं एमहर्स्ट स्ट्रीट में उनके घर पहुँच जाता। मुझे मास्टर महाशय के उस दिव्य चषक की चाह रहती थी जो इतना लबालब भरा हुआ था कि उसकी बूंदें प्रतिदिन मेरे ऊपर छलकती थीं। पहले कभी भी इतने भक्तिभाव से मैं नतमस्तक नहीं हुआ था; अब तो मास्टर महाशय के चरणस्पर्श से पुनीत हुई भूमि पर केवल चलने का अवसर मिलने को भी मैं अपना सौभाग्य मानने लगा।
"महाशय! कृपया इस चंपकमाला को धारण कीजिये। मैंने यह खास आपके लिये बनायी है।" एक दिन शाम को मैं अपनी पुष्पमाला हाथ में लिये उनके घर पहुँच गया। परन्तु बार-बार इस सम्मान को अस्वीकार करते हुए वे संकोच से पीछे हट गये। मेरे दुःख का अनुभव करते हुए अन्ततः उन्होंने मुस्कराते हुए उसे स्वीकार कर लिया।
"चूँकि हम दोनों ही माँ के भक्त हैं, इसलिये इस शरीर में वास करने वाली माँ के प्रति अपनी श्रद्धा के रूप में तुम वह माला इस देह मन्दिर को पहना सकते हो।" उनके विशाल स्वभाव में कहीं तनिक भी जगह नहीं थी कि अहंकार अपना पग जमा सके।
"कल हम मेरे गुरु के वास से सदा के लिये धन्य हुए दक्षिणेश्वर के काली मन्दिर चलेंगे।" मास्टर महाशय ईसा-सदृश गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।
अगले दिन सुबह दक्षिणेश्वर तक की चार मील की यात्रा हमने नाव से तय की। काली के नौ गुम्बदों वाले मन्दिर में हमने प्रवेश किया जहाँ माँ काली और शिव की मूर्ति अति कौशल से निर्मित चाँदी के चमकदार सहस्रदल कमल पर विराजमान है। मास्टर महाशय आनन्द से प्रफुल्लित हो उठे। वे अपनी प्रियतम माँ के साथ अथक प्रेमलीला में मग्न थे। जैसे जैसे वे माँ का नाम जपते जा रहे थे, मेरा आनंदित मन मानो उस सहस्रदल कमल की तरह ही सहस्रधाराओं में फूट पड़ रहा था।
कुछ देर बाद हम दोनों उस पुण्यभूमि में टहलते-टहलते झाऊ के झुरमुट में जाकर रुक गये। इस पेड़ की विशेषतास्वरूप इस से झरने वाला मधुर रस मानों मास्टर महाशय से झरते अमृत का प्रतीक था। उनका नाम जप चलता ही जा रहा था। झाऊ के गुलाबी परदार पुष्पों के बीच मैं घास पर सख्त, निश्चल शरीर से बैठा रहा। उतने समय के लिये मैं शरीर को भूलकर दिव्य लोकों की यात्रा करता रहा।
इस संत के साथ की हुई दक्षिणेश्वर की अनेक तीर्थयात्राओं में यह प्रथम थी मास्टर महाशय से ही मैंने ईश्वर के मातृत्व पक्ष या ईश्वरीय करुणा के माधुर्य को जाना। उस शिशुसरल संत को ईश्वर के पितृत्व पक्ष या ईश्वरीय न्याय में कोई रुचि नहीं थी। कठोर, सटीक, गणितीय निर्णय की कल्पना ही उनके कोमल स्वभाव के विपरीत थी।
"ये तो पृथ्वी पर स्वर्ग के साक्षात् देवताओं के प्रतिरूप हैं!" एक दिन उन्हें प्रार्थना करते देख मेरे मन में उनके प्रति प्रेम से भरकर विचार उठा। किसी प्रकार की निंदा आलोचना या गुण-दोष का विचार कभी उनके मन में नहीं उठा। वे तो इस जगत् को आद्यपवित्रता से चिरपरिचित अपनी दृष्टि से ही निहारते थे। उनके काया, वाणी, मन, कर्म, सब कुछ उनकी आत्मा की सरलता के साथ सहज सुसामंजस्य रखते थे।
"मेरे गुरुदेव ने मुझे यही बताया था।" अपने हर उपदेश को किसी प्रकार के आग्रह या अधिकारवाणी के बिना इसी श्रद्धापूरित वाक्य के साथ वे समाप्त करते थे। श्रीरामकृष्ण के साथ मास्टर महाशय की एकात्मता इतनी गहरी हो गयी थी कि अपने किसी भी विचार को अब वे अपना विचार नहीं मानते थे।
एक दिन संध्या समय मास्टर महाशय और मैं एक दूसरे का हाथ थामे उनके स्कूल के पास वाले रास्ते पर चल रहे थे। मेरा आनंद फीका हो गया जब एक परिचित घमंडी व्यक्ति वहाँ आ पहुँचा। उसने अपने लम्बे प्रवचन से हमें तंग कर दिया।
मेरी दृष्टि उस मुक्ति-स्थल पर लगी रही। उसके लाल द्वार पर पहुँचते ही अपना अधूरा वाक्य भी पूरा किये बिना और कुछ भी कहे बिना वह व्यक्ति अचानक मुड़कर चला गया। विक्षुब्ध वातावरण में फिर से शांति छा गयी।
एक अन्य दिन मैं हावड़ा रेलवे स्टेशन के पास अकेला ही टहल रहा था। एक पल के लिये मैं एक छोटे से मन्दिर के पास खड़ा हो गया और वहाँ ढोलक, करताल के शोर में जोर-जोर से कीर्तन करते लोगों को मन ही मन कोसने लगा।
"केवल मुँह से तोते की तरह प्रभु का पवित्र नाम लेते रहने वाले इन लोगों के कीर्तन में भक्ति का कितना अभाव है", मैं मन ही मन सोच रहा था। अचानक मास्टर महाशय को तेज कदमों से अपनी ओर आते देखकर मैं विस्मित हो गया।
उस सन्त ने मेरे प्रश्न की ओर कोई ध्यान न देकर सीधे मेरे मन के विचार का उत्तर दिया। "क्या यह सच नहीं है छोटे महाशय, कि प्रभु का नाम किसी भी मुँह से क्यों न निकला हो, मधुर ही लगता है चाहे वह मुँह अज्ञानी का हो या ज्ञानी का?" उन्होंने स्नेहपूर्वक एक हाथ से मुझे अपने अंक में भर लिया; उनके जादू के गालिचे पर सवार होकर मैं तुरंत जगज्जननी के दयामयी सान्निध्य में पहुँच गया।
"क्या तुम कुछ बायोस्कोप देखना चाहोगे?" एक दिन अपराह्न को एकान्तप्रिय मास्टर महाशय से यह प्रश्न सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ उस समय भारत में चलचित्र को बायोस्कोप कहते थे। मैं सहमत हो गया; किसी भी कारण से क्यों न हो, उनके सान्निध्य में रहने का आनंद मेरे लिये पर्याप्त था। द्रुत गति से चलते हुए थोड़ी ही देर में हम कोलकाता विश्वविद्यालय के सामने स्थित बगीचे में पहुँच गये। मास्टर महाशय ने दीघी (जलकुंड) के पास स्थित एक बेंच की ओर इशारा किया।
थोड़ी देर बाद हम विश्वविद्यालय के एक कक्ष में गये जहाँ एक लेक्चर चल रहा था। बीच-बीच में स्लाइडस से चित्र भी दिखाये जा रहे थे, किन्तु वह लेक्चर और स्लाइड शो, दोनों ही समान रूप से अत्यंत नीरस थे।
"तो ये है वह बायोस्कोप जो मास्टर महाशय मुझे दिखाना चाहते थे!" मैं अधीर हो उठा था, परन्तु चेहरे पर उकताहट का कोई भाव लाकर मैं मास्टर महाशय को दुःखी नहीं करना चाहता था। इतने में वे चुपचाप मेरी ओर झुके।
जैसे ही मेरे कान में चल रही उनकी यह फुसफुसाहट समाप्त हुई, कक्ष में अंधेरा छा गया। अब तक ऊँची आवाज़ में ज़ोर-ज़ोर से व्याख्यान दे रहे प्रोफेसर महोदय की वाणी विस्मय से एक पल के लिये रुक गयी और फिर उन्होंने कहा, "इस कक्ष की विद्युत प्रणाली में कुछ गड़बड़ मालूम होती है।" इतने समय में मास्टर महाशय और मैं उस कक्ष के द्वार से बाहर निकल चुके थे। बरामदे में से जाते हुए मैंने पलटकर पीछे देखा तो उस कक्ष में फिर से रोशनी हो गयी थी।
"छोटे महाशय, उस बायोस्कोप से तुम निराश हो गये थे परन्तु मैं समझता हूँ कि तुम्हें एक दूसरा बायोस्कोप अवश्य पसन्द आयेगा।" मास्टर महाशय और मैं विश्वविद्यालय भवन के सामने एक फुटपाथ पर खड़े थे। उन्होंने हृदय के स्थान पर मेरी छाती पर धीरे से थपकी दी।
उसी के साथ मुझ पर एक अद्भुत निःस्तब्धता छा गयी। जैसे आधुनिक बोलपट (talkies), यदि ध्वनियंत्र में कुछ खराबी आ जाय तो मूक चलचित्र बन जाते हैं, उसी प्रकार, विधाता के हाथ ने किसी अगम्य चमत्कार के द्वारा जगत् के सारे कोलाहल का गला घोंट दिया। पदयात्री, ट्रामगाड़ियाँ, मोटर कारें, बैलगाड़ियाँ, लोहे के चक्कों वाली घोड़ागाड़ियाँ, सब बिना कोई आवाज किये इधर से उधर आ-जा रहे थे। मैं अपने पीछे, दायें, बायें के सभी दृश्य वैसे ही देख रहा था जैसे अपने सामने के दृश्य; मानों मेरी दृष्टि सर्वव्यापी हो गयी हो। कोलकाता के उस छोटे-से हिस्से की समस्त गतिविधियों का परिदृश्य मेरे समक्ष बिना कोई आवाज किये चल रहा था। राख की पतली परत के नीचे नज़र आने वाली अग्नि की दीप्ति के समान मद्धिम प्रभा सारे परिदृश्य में व्याप्त थी।
मेरा अपना शरीर उस परिदृश्य में विद्यमान अनेकानेक परछाइयों से अधिक कुछ भी नहीं लग रहा था; फर्क सिर्फ इतना था कि मेरे शरीर की परछाई निश्चल थी जबकि अन्य सभी परछाईयाँ बिना किसी आवाज के इधर-उधर आ-जा रहीं थीं। कई लड़के, जो मेरे मित्र ही थे, मेरी ओर आये और चले गये; यद्यपि उन्होंने मेरी ओर सीधे देखा परन्तु उसमें पहचान का कोई संकेत तक नहीं था।
इस अद्वितीय मूकनाट्य ने मुझे एक अवर्णनीय आनंद से विभोर कर दिया। मैं किसी आनंदामृत के झरने से जी भरकर अमृतपान कर रहा था। अकस्मात् मेरी छाती पर पुनः मास्टर महाशय का कोमल आघात हुआ। जगत् का कर्णकर्कश कोलाहल मेरी अनिच्छुक श्रवणेंद्रियों पर टूट पड़ा। मैं लड़खड़ाया, जैसे किसी ने अत्यंत नाजुक स्वप्न से निष्ठुरतापूर्वक जगा दिया हो। वह दिव्य मदिरा मेरी पहुँच से बाहर हटा दी गयी थी।
यदि किसी ने सीधे-सादे विनम्र मास्टर महाशय को और मुझे उस समय उस भीड़भरे फुटपाथ से दूर जाते देखा होगा तो उसे अवश्य ही सन्देह हुआ होगा कि हम दोनों नशें में धुत हैं। मुझे लग रहा था कि संध्या के प्रकाश की रंग बदलती छटाएँ भी हमारी ही तरह ईश्वर के नशे में डूबी जा रही थीं।
तुच्छ शब्दों में उनकी महत्कृपा का वर्णन करने का प्रयास करते हुए यह विचार मेरे मन में आये बिना नहीं रहता कि क्या मास्टर महाशय और अन्य संतजनों को, जिनसे मैं मिला था, उस समय यह ज्ञात होगा कि अनेक वर्षोपरान्त मैं एक पाश्चात्य देश में बैठकर उनके भगवद्भक्तिरस से ओतप्रोत जीवन की गाथाएँ लिखूँगा? उन्हें इसका पूर्वज्ञान हो तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा, न ही, मैं सोचता हूँ मेरे पाठकों को होगा जो यहाँ तक मेरे साथ रहे हैं।
सभी धर्मों के सन्तों ने ईश्वर को दिव्य प्रियतम मानकर उस सरल आधार पर ईश्वर-साक्षात्कार प्राप्त किया है। चूँकि परंब्रह्म निर्गुण और अचिंत्य है, इसलिये मानवी विचार और आकांक्षा ने सदा ही उसे जगन्माता का रूप दिया है। साकार, सगुण ईश्वर और निराकार, निर्गुण ब्रह्म के मतों का संयोग हिंदु विचारधारा की प्राचीन उपलब्धि है, जिसका प्रतिपादन वेदों और भगवद्गीता में किया गया है। "परस्पर विरोधी विचारों का यह मिलाप" हृदय और बुद्धि दोनों को ही संतुष्ट करता है। भक्ति और ज्ञान मूलतः एक ही हैं। प्रपत्ति (ईश्वर में आश्रय लेना) और शरणागति (ईश्वरीय अनुकम्पा के प्रति सम्पूर्ण समर्पण भाव) वस्तुतः सर्वोच्च ज्ञान के पथ हैं।
सभी युगों के सन्तों ने शिशुसुलभ भाव से जगन्माता को प्राप्त किया और उन सभी ने कहा कि उन्होंने सदा ही जगन्माता को उनके साथ खेलते पाया। मास्टर महाशय के जीवन में महत्त्वपूर्ण और महत्त्वहीन अवसरों पर भी इस दिव्य खेल की अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट हुईं। ईश्वर की दृष्टि में कुछ भी छोटा या बड़ा नहीं होता। यदि छोटे-से परमाणु को बनाने में ईश्वर ने अपनी अतिशय सूक्ष्म-दर्शिता के औचित्य को न लगाया होता तो क्या आकाश अभिजित और स्वाति नक्षत्रों जैसी गौरवशाली रचनाओं को धारण कर पाता ? "महत्त्वपूर्ण" और "महत्त्वहीन" का भेद प्रभु के लिये निश्चय ही अज्ञात है कि कहीं एक सुई के अभाव में पूरा ब्रह्माण्ड ही ढह जाय !
2 वेबस्टर की न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी (1934) में कहा गया है कि कभी-कभी बायोस्कोप की व्याख्या इस प्रकार भी की जा सकती हैः "जीवन का दृश्य; वह जो ऐसा दृश्य प्रस्तुत करता है।" तो मास्टर महाशय ने जो शब्द चुना था वह विलक्षण रूप से यथार्थ था।
3 [सेंट जॉन ऑफ़ द क्रॉस इस प्रिय ईसाई सन्त की मृत्यु १५९१ में हुई थी। १८५९ में उनके पार्थिव शरीर को जब कब्र से बाहर निकाला गया तो उसमें किसी प्रकार का कोई विकार नहीं हुआ था।
सर फ्रांसिस यंगहस्बैंड (अटलान्टिक मन्थली, दिसम्बर १९३६) ने परमानन्द की अपनी वैयक्तिक अनुभूति के विषय में कहा हैः "उल्लास या हर्ष से भी कहीं अधिक तीव्र भावना मेरे मन में उठी; मैं आनन्द में पूर्णतः विभोर हो गया, और इस अवर्णनीय एवं असह्यप्राय आनंद के साथ ही संसार की सारभूत महानता का बोध मेरे अन्तःकरण में जागा मुझे संशयातीत विश्वास हो गया कि लोग मन से अच्छे होते हैं, कि उनकी बुराइयों केवल बाह्य होती हैं।
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1f2258f2d662328654907530c3dfa6c2edff825138c79bee6aa010b8af88232e | pdf | ( १५ ) समय, सुद्ध, ( १६ ) समय, सार्थ,
सार्थ - ये तीन भाव । ध्रुव - ये तीन भाव ।
समयं दर्सनं न्यानं, चरनं सुद्ध भावना ।
सार्थं सुद्ध चिदूपं, तस्य समय सार्थ ध्रुवं ।। ६३ ।।
अन्वयार्थ - ( समयं दर्सनं न्यानं । समय जो आत्मा पदार्थ है वह दर्शन ज्ञान स्वरूप है ( चरनं सुद्ध भावना ) उसी दर्शन ज्ञानमई आत्मामें चलना व उसका हो अनुभव करना यह शुद्ध भावना है (सुद्ध चिद्रूप साथ ) शुद्ध चैतन्ध रूप आत्मा ही परम पदार्थ है ( तस्य समय सार्थ ध्रुवं ) उसो आत्माको ही समय कहते हैं, प्रयोजनभूत पदार्थ कहते हैं, उसीको ध्रुव अविनाशी निश्चल पदार्थ कहते हैं।
भावार्थ- आत्मा निश्चय समय है, अपने स्वरूपमें एक भावसे परिणमन करनेवाला तथा जाननेवाला है । यह अपने ही स्वभावमें रमणशील होने से यही स्व समय है जब । यह स्वभाव में रमता है तथ इसमें शुद्ध तत्वकी ही भावना होती है। स्वभाव में रमणरूप आत्माका परिणमन होना सो हो सार्थक है क्योंकि उस समय निश्चय रत्नत्रयका लाभ है। आप ही सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप होरहा है, यही एक स्वानुभवमई मोक्षमार्ग है। यही धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान है, यही कर्मोका क्षयकारक भाव है। यह आत्मा निश्चयसे समय है, परम पदार्थ परमात्मा है व यही ध्रुव है, सदा एक रूप है, निश्चल है। शुद्धात्मा मई परिणमन होना परमानन्दको प्रदान करता है। द्वादशांग बाणीका सार एक अपने ही शुद्धात्माका अनुभव है। अनादिकालसे अज्ञानीकी अनुमति रागद्वेषमई मैली होरही है। इसलिये उसको रागद्वेषका ही मलीन स्वाद आता है, वीतराग स्वरूप निज आत्मीक भावका स्वाद नहीं आता है। क्योंकि इसको यह पता नहीं चला कि मैं तो एक आत्मा द्रव्य हूँ-परसे भिन्न हूँ। अपने स्वरूपको शुद्ध सिद्धसम जानकर निश्चय बिना अपने स्वरूपमें रमण होना असंभव है। जैन सिद्धांतका सार यही है जो अपने आत्माका ही स्वाद लें। सर्व परसे उदासीन होजावे ।
अतीन्द्रिय आनन्दका अद्भुत स्वाद स्वरूप रमणमें आता है। आस्माकी सुन्दरता स्वरूप रहनेमें
है, पर समय रूपमें रहना ही अज्ञान है, मोह है, भ्रम है। जिसने अपने घरको पहचान लिया वह अब ॥१२२॥ क्यों दूसरेके घरमें रमण करेगा । धर्म आत्माका स्वभाव है, नित्य स्वभाष में रमण होना ही स्वात्मानुभव है। मुमुक्षुको योग्य है कि शुद्ध निश्चयनयको आश्रय लेकर आत्माको सिद्ध समान अमूर्तीक ज्ञान दर्शन सुख बीर्यमय जाने माने व ऐसा ही निरन्तर मनन करे । भावना करनेसे एकाग्रता प्राप्त होती है। एकाग्रता में ही स्वानुभव है। निजानन्दका भोग है। यही आस्रवको रोकनेके लिये दृढ़ आर्गल है। स्वानुभव दशामें मनके विचार, वचनके आलाप व कायका हलन चलन सर्व बन्द होजाता है। एक ऐसे अनिर्वच नीय भाव में पहुँच जाता है जहां भावना भी बन्द होजाती है। इसीको अद्वैत अनुभव कहते हैं। आपसे ही आपमें आपके लिये आपमें से ही आपको आप ही ध्यावे । इन छः कर्ता कर्म करण सम्प्रदान, अपादान अधिकरण में आप ही रहे। कहने के लिये छः विकल्प हैं। अद्वैत अनुभवमें षट्कारकका भी विकल्प नहीं है। इस स्वानुभव में सर्व चिताएँ डूब जाती हैं। निर्मल शांत रसका ही स्वाद आता है। विना प्रथनके संबर निर्जरा होती हैं। समयसार में कहा है :--
जीवो चरित्तदंसणणाणहिदंत हि ससमयं जगणे । पुग्गक कम्मुवदेस ट्ठिदं च तं प्राण परसमयं ॥ २ ॥
भावार्थ - जय यह जीव आपहीका श्रद्धान, ज्ञान व आचरण करता रहता है तब इसको स्वसमय रूप जानो। जब यह पर पुद्गलके उदयके भीतर ठहरता है तब इसे पर समय जानो।
णाणझि भावणा खलु कादव्वा दंणे चरित्ते य । ते पुणु तिणि वि आदा, तम्हा कुण भावणं आदे ॥ ११ ॥ भावार्थ-भेद रूप अपने ज्ञान में, दर्शन में व चारित्र में भावना करनी चाहिये परन्तु निश्चयसे ये तोनों ही आत्मा हैं इसलिये एक आत्माकी ही भावना करनी चाहिये ।
परमट्टो खलु समओ सुद्धो जो केवली मुणी णाणी 1 तझि ठिश सभावे मुमिणो पावंति णिव्वाणं ॥ १५८ ॥ भावार्थ - परमार्थ या उत्तम पदार्थ एक आत्मा है, वह एक साथ अपने आपमें रमण करनेवाला है इसलिये समय है, सर्व नयोंके विकल्पोंसे अतीत परम शुद्ध है, केवल चैतन्य वस्तु है इससे केवली है, स्वानुभव में स्थित है इससे मुनि है, ज्ञान स्वरूपसे ज्ञानी है, अपने ही स्वभाव में रहता है इससे स्वभाव रूप है । जो कोई मुनिगण ऐसे आत्माके भीतर स्थिर होकर स्वानुभव करते हैं वे ही निर्वाणको पाते हैं । मूलाचार में बहकेरस्वामी प्रत्याख्यान अधिकार में कहते हैंम दूसरा
ममन्ति परिवज्जामि णिम्मयत्ति मुवट्ठियो । आलंबणं च मे आदा अवससाई बोसरे ॥ ४५ ॥ भावार्थ --- मैं सबसे ममता त्यागता हूं, निर्ममत्वभावसे स्थिर होता हूं। मैंने अपने ही आत्माका आलम्बन लिया है, और सबका त्याग किया है।
(१७) सम्यक्त, वंदना, स्तुति- ये तीन भाव ।
सम्यक्त सुद्ध दृष्टिं च, वदना नित्य सास्वतं । स्तुतिं सुद्ध द्रव्यस्य, त्रिभङ्गी दल निरोधनं ॥ ६४ ॥
अन्वयार्थ ---( सम्यक्त सुद्ध दृष्टि च ) शुद्ध आत्माका श्रद्धान सम्यग्दर्शन है ( वंदना नित्य सास्वत ) इसी अपने शुद्धात्माको नित्य अविनाशी ध्याना निश्चयसे वन्दना है ( स्तुतिसुद्धद्रव्यस्य) शुद्ध द्रव्यकी हो व्यवहार से स्तुति करते हुए निश्चयसे उसी शुद्ध द्रव्यमें तन्मय होना निश्चय स्तुति है (त्रिभङ्गो दल निरोधन) सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन सहित वन्दना, सम्यग्दर्शन सहित स्तुति कर्माश्रवके रोकनेवाले हैं।
भावार्थ - सम्यग्दर्शन संसारका नाश करनेवाला गुण है, जिसको यह गुण प्राप्त होजाता है वह मानो मोक्षरूप ही होजाता है, वह सदा अपने शुद्धात्मा को उसी तरह कर्म व शरीग़दिसे भिन्न देखता है जैसे जलके ऊपर पड़ी हुई चिकनई अलग दीखती है। स्वात्मानुभवकी शक्ति सम्यग्दर्शन से पैदा होजाती है। सम्यक्त होनेपर फिर कोई जीव दुर्गतिमें नहीं जाता है। सम्यक्त के साथ में स्वगकी देवायुका या उत्तम मानव आयुका ही बन्ध होता है। जिसने सम्यक्त होने के पहले आयु बन्ध किया हो यह भी पहले नर्कसे और नर्कमें नहीं जाता था भोगभूमिका पशु या मानव पैदा होता है ।
सम्यग्दर्शन के साथ तीर्थंकरादि व पांच परमेष्ठी आदि महान आत्माओंको जो वन्दना की जाती है वह यद्यपि शुभोपयोग है, परन्तु सम्यग्दर्शन के साथ होनेसे उससे भी पापोंका क्षय होता है। वह वन्दना वीतरागता मिश्रित सराग भाव है। वन्दना व स्तुतिके दो भेद हैं। जहां वचन व कायसे शब्द व विनय हो वह तो द्रव्य वन्दना व द्रव्य स्तुति है। जिसको वन्दना व स्तुति की जाये उसके गुणोंको मनमें विराजमान किया जावे वह भाव वन्दना व स्तुति है। भाव सहित द्रव्य वन्दना व स्तुतिको सफ
त्रिभङ्गीसार ॥१२४॥
लता है। सिद्धात्माको अपने भावों में स्थापित करना निश्चय बन्दना है। मस्तक झुकाना, हाथ जोड़ना, द्रव्य वन्दना है । वचनोंसे स्तुति पढ़ना द्रव्य स्तवन है। सिद्धोंका शुद्ध स्वरूप मनमें अंकित करना भाव स्तुति है। सम्यग्दृष्टी ज्ञानी जीव जब अपना उपयोग स्वात्मानुभवमें नहीं जोड़ सकते हैं तब शुद्धात्माओंकी स्तुति व उनको बन्दना करके उपयोगको शुद्ध भाव में लेजानेकी चेष्टा करते हैं। शुद्धात्माकी तरफ परिणमन होनेसे वन्दना व स्तवन करते हुए बहुत पापका क्षय होता है । महान् पुरुषों के शरीराश्रित गुणोंकी महिमा गाना व्यवहार स्तुति है। केवल आत्माको लक्ष्य में लेकर आत्मीक गुणोंका गाना निश्चय स्तुति है । यही स्तुति सच्ची स्तुति है व शुद्धोपयोग में पहुँचानेवाली है।
व्यवहार स्तवनका दृष्टान्त यह है समयसार कलश में कहा हैकान्स्यैव स्नपयन्ति ये दशदिशो धाम्ना निरुडन्तिये । घामोद्दाममहस्विनां जनमनो मुष्णांन्त रूपेण ये ।।
दिव्येन ध्वनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात्क्षरन्तोऽमृतम् । वंद्यास्तेऽष्टसहवलक्षणघर । स्तीथेंश्वराः सूरयः । २४-१ ।। भावार्थ-- वे तीर्थङ्कर महाराज वन्दनीय हैं, जिनकी शरीरकी कांति दशों दिशाओं में फैल रही है, जो अपने तेजसे बड़े २ तेजस्वी व्यक्तियोंके तेजको रोक रहे हैं, जो अपने रूपसे मनुष्योंके मनको हरण कर रहे हैं, जो अपनी दिव्यध्वनिसे कानों में धर्मामृतका सिंचन कर रहे हैं।
निश्चय स्तुतिका दृष्टान्त यह है समयसार में कहा हैजो मोहं तु जिणिचा. गाण सहावाधियं मुगदि आद । तं निंद मोह साहुं परमट्टवियाणया वेति ॥ ३७ ।। भावार्थ- जो कोई मोहको जीतकर ज्ञान स्वभाव से पूर्ण अपने आत्माका अनुभव करता है उसे परमार्थके ज्ञाता जित मोह साधु कहते हैं। इस स्तुतिमें लक्ष्य आत्मा ही पर जाता है यह निश्चय स्तुति है। श्री समन्तभद्राचार्य स्वयम्भूस्तोत्र में कहते हैं-यस्य च मूर्तिः कनकमयवि स्वस्फुरदामाकृतपरिवेषा । बागपि उत्त्वं कथयितुकामा स्यात्पदपूर्वा रमयति साधून् ।। १०७ ॥
भावार्थ - व्यवहार स्तवनका दृष्टांत - जिस मल्लिनाथ स्वामीकी कनकमई मूर्ति अपनी शोभासे
भामण्डल बना रही है व जिनकी वाणी तत्वको कथन करती हुई स्यात् पदसे विभूषित हो साधुओंके मनको रमा रही है।
यस्य व शुक्रं परमतपोऽग्नियनमनन्तं दुस्तिमषाक्षीत् । तं जिनसिंहं कृतकरणीयं मलिमशल्यं शरणमितोऽस्मि ॥ ११० ॥
भावार्थ - यह निश्चय स्तुति है- जिस मल्लिनाथ भगवानने शुक्लध्यानकी बड़ी तेज तपरूपी अग्निको जलाकर अनन्त पाप कर्मोको जला डाला और जिनका आत्मा सिंह समान जिनेन्द्र होंगया, कृतकृत्य होगया, सर्व शल्प रहित होगया, ऐसे परमात्मा श्री मल्लिनाथकी शरणमें मैं प्राप्त होता हूं।
( १८) पदाथ, व्यंजन, स्वरूप - ये तीन भाव । पदार्थं पद विंदन्ते, विजनं न्यान दृष्टि तं । स्वरूपं सर्व चिद्रूपं, विंजनं पद विंदकं ।। ६५ ॥
अन्वयार्थ - पदार्थ पद विंदन्ते ) परमात्मा पदार्थसे परमात्माके पदका अनुभव होता है ( विभनं न्यान दृष्टि तं ) उसका लक्षण या चिह्न शुद्ध ज्ञान व शुद्ध दर्शन है ( स्वरूपं सर्व चिद्रूप) उसका स्वरूप सर्वोग चैतन्यमय है, अमूर्तीक है (विजन पद बिंदक) ज्ञान दर्शन लक्षणके द्वारा परमात्मा पदार्थ का अनुभव होता है।
भावार्थ - नौ पदार्थों में जीव नामा पदार्थका अनुभव करना चाहिये । लक्षणसे लक्षणको ग्रहण किया जाता है। जोव पदार्थका लक्षण शुद्ध ज्ञान व शुद्ध दर्शन है। यह लक्षण अव्याप्ति, अतिव्याप्ति व असम्भव दोषोंसे रहता है । सर्व ही जोवोंका निज गुण ज्ञान दर्शन है। जीबके सिवाय किसी भी अजीवमें वे ज्ञान दर्शन नहीं पाए जाते हैं। यह लक्षण असम्भव भी नहीं है स्वयं प्रगट है। हरएक ज्ञानीको अनुभव है कि मैं देखता जानता हूं । जो स्थपरको देखने जाननेवाला है या जो निश्चयसे आपसे आपको देखने जाननेवाला है वही जीव है । उस जीवका सर्वांग स्वरूप चतन्यमय है । पुद्गल मई उसका स्वरूप नहीं है वह अनन्त गुण पर्यायका घारी होकर भी चेतन्यभावसे सर्व प्रदेशोंमें पूर्ण है। इसतरह वह जीव पदार्थ स्वयं परमात्मा, परमेश्वर, जिन, अरहन्त, सिद्ध, निरंजन, निर्विकार, बीतरागी, * कृतकृत्प, परमानन्दी है वही मैं हूं, ऐसा लक्ष्य में लेकर अपने जीव पदार्थका ध्यान व अनुभव करके परमानन्दका लाभ लेना चाहिये। कर्म संयोग जनित सर्व पर्यायोंसे वह भिन्न है। अकेले जीव पदार्थका स्वाद लेना ही हितकर है। तब ही सच्चा स्वाद आएगा। कर्म मिश्रित भाषका स्वाद अशुद्ध स्वाद है । समयसार कलशमें कहा हैम. दूसर |
b368e50d641744c45be40eca3156d06aa2dce29f58ce1db37bdf5b1362dea3d5 | pdf | गुण किसके आसरे होय अर प्रदेश बिना बुन कदाचि मो नाहीं होय; यह नम है। जैसे भूमिका बिना रूखादिक कौन के आसरे होय, त्यों ही प्रवेश बिना गुण किसके आसरे होय ? ऐसा विचार करि अनुभवन भी आये है अर आशा करि प्रमाण है । बहुरि कोई मेरे ताई आनि-आनि झूद्वा ही या कहै - फलाणा ग्रंथ में या कही है । थे आर्ग तीन लोक प्रमाण प्रदेशां का श्रद्धान किया था। अब बडा ग्रंथ में ऐसे नीसर्या है । सो आत्मा का प्रदेश धर्म द्रव्य का प्रदेशा सू घाटि है । तो में ऐसा विचारू - सामान्य शास्त्र सू विशेष बलवान है । सो ऐसे हो होयगा । मेरे अनुभवन में तो कोई निरधार होता नाहीं । अर विशेष ज्ञाता दीसे नाहीं, तात में सर्वज्ञ का वचन जानि प्रमाण करूं हूं। परंतु मेरे लाई या कहे तू जड, अचेतन वा मूर्तिक है वा परिणति तं रहित है, तो या मैं कोई मानूं नाहीं; यह मेरे निःसंदेह है । या में कोटि ब्रह्मा, कोटि विष्णु, कोटि नारायण, कोटि रुद्र आनि करि या कहैं, तो में या हो जानू कि ये वावला होय गया है, के मोनै ठगिवा आया, के मेरी परीक्षा ले हैं। मैं ऐसा मानू, सो भावार्थ यहु जु ज्ञान परिणति मैं आप ही है, आप ही के होय है। सो याको जाने सो सम्यक दृष्टि होय है । याके जान्या बिना मिथ्यावृष्टि होय। और अनेक प्रकार के गुण स्वरूप वा पर्याय का स्वरूप को ज्यों-ज्यों ज्ञान होय, त्यों-त्यो जानिवो कार्यकारी होय । परंतु मनुष्यपनं या दोय का तो जानपणा अवश्य चाहिये; ऐसा लक्षरण जानना । बहुरि विशेष गुण ऐसे जानना-सो एक गुण मैं अनंत गुण हैं अर
१ अन्य दूसरे २ निर्णय
अनंत गुण में एकगुण है । अर गुण सौं गुण मिले नाहीं अर सर्व गुण सौं मिल्या है। जैसे सुवर्ण विषै भारी, पीला, चौकणा ने आदि दे अनेक गुण हैं सो क्षेत्र को अपेक्षा सर्व गुणा विषै तो पीला गुण पाइये है अर पीला गुण विठौं क्षेत्र की अपेक्षा सर्व गुण पाइये है अर क्षेत्र ही की अपेक्षा गुण मिलि रह्या है अर सर्व का प्रदेश एक ही है। अर स्वभाव की अपेक्षा सौ रूप न्यारे-न्यारे हैं। सो पोला का स्वभाव और ही है । सो ऐसे ही आत्मा के विषै जानना और द्रव्य विषै भो जानना । वा अनेक प्रकार अर्थ पर्याय वा व्यंजन पर्याय का स्वरूप ययार्थ शास्त्र के अनुसार जानना उचित है । बहुरि या जीव कूं सुख को बधवारी व घटवारी दोय प्रकार होय है सोई कहिये है। जेना ज्ञान है, तेना ही सुख है । सो ज्ञानावरणादिक का उद होते, तो सुख दुःख दोन्या का नाश होय है अर ज्ञानावरणादिक का तो क्षयोपशम होय है । अर मोह कर्म का उद होता तब जीत्र के दुःख शक्ति उत्पन्न होय है । सो सुख शक्ति तो आत्मा का निजगुण कर्म का उद विना है अर दुःख शक्ति कर्म का निमित्त करि होय है सो औपाधिक शक्ति है; कर्म का उदय मिटे जाती रहै है अर सुख शक्ति कर्म का उदय मिटे प्रगट होय है । तातें वस्तु का द्रव्यत्व स्वभाव है। बहुरि फेरि शिष्य प्रश्न कर है- हे स्वामी ! हे प्रभो ! मेरे ताई द्रव्यकर्म वा नो कर्म सौं तौ मेरा स्वभाव भिन्न न्यारा आपका प्रसाद करि दरस्या, अब्बै मेरे ताईं राग-द्वेष सूं न्यारा दिखावौ । सा अब श्रीगुरु कहँ हैं- हे शिष्य ! तू सुनि । जैसे जल कास्त्रभाव तो शीतल है अर अग्नि के निमित्त करि उष्णहोय है, सो उष्ण हुवा थकी आपणा शीतल गुणा ने भी खोगे है ।
के निमित्त करि उष्ण हौय है, सो उष्ण हुवा थका आपणा शोनल गुणा ने भी खोने है । अर आप तप्तायमान होय परिणमे है अर औरा नै भी आताप उपजाने है। पाछे काल पाय अग्नि का संयोग ज्यों-ज्यों मिटं, त्यों-त्यों जल का स्वभाव शीतल होय है अर और को आनन्दकारी होय है । तैसे यह आत्मा कषाय का निमित्त करि आकुल होय परिणमे है, सर्व निराकुलित गुण जाता रहे है, तब पर नै अनिष्ट रूप लगे है। बहुरि ज्यों-ज्यों कथाथ का निमित्त मिटता जाय है, त्यों-त्यों निराकुलित गुण प्रगट होता जाय है । अर तब पर नै इष्ट रूप लाग है, सो थोडा-सा कषाय के मिटते भी ऐसा शांतिक सुख प्रगट होय है । न जानै, परमात्मा देव के सम्पूर्ण कपाय मिट्या है अर अनंत चतुष्टय प्रगट भया है सो कंसा सुख होसो ? पणि थोडा सा निराकुलित स्वभाव को जान्या सम्पूर्ण निराकुलित स्वभाव को प्रतीति आगे है । सो शुद्ध आत्मा कैसे निराकुलित स्वभाव होसो ? ऐसा अनुभवन मैं नोका आगे हूं। बहुरि शिष्य प्रश्न करै है --हे प्रभो ! बाह्य आत्मा वा अंतरात्मा वा परमात्मा का प्रगट विह्न कह्या, ताका स्वरूप कहो । सो गुरु क है है - जैसे कोई होता हो बालक के ताई तहखाना मैं राख्या अर केतायक दिन पार्छ रात्रि नै वारं काठ्या । अर ऊने पूछे सूर्य किसी दिशा नै ऊर्ग है ? अर सूर्य का प्रकाश कैसा होय है अर सूर्य का बिंब कैसा होय है ? तब वह या कहै - मैं तो जानता नाहीं, दिशा वा प्रकाश वा सूर्य का बिंब कैसा है । फेरि ऊनै बूझे तो क्यों सूं क्यूं
२ कुछ से कुछ
बतावं । पाछे भाक? फार्ट, तब ऊनै पूछे, तब वो या कहैजेठो नै प्रकाश भया है, तंठो नै पूर्ण दिशा है अर तंठो नै सूर्य है । सो क्यों ? सूर्य बिना ऐसा प्रकाश होता नाहीं । ज्यों-ज्यों सूर्य ऊंचा चढ़, त्यौ-स्यों प्रत्यक्ष प्रकाश निर्मल होता जाय है अर निर्मल पदार्थ प्रतिभासता जाय है । कोई आनि ई नं कई सूर्य दक्षिण दिशा ने है, तो यो कदाचि मान नाहीं, औरा कूं बावला गिने के प्रत्यक्ष ये सूर्य का प्रकाश दोसे है । मैं याका कह्या कैसे मानूं ? यह मेरे निःसंदेह है, सूर्य का बिब तो मेरे ताईं नजर आवता नाहीं, पणि प्रकाश करि सूर्य का अस्तित्व होय है । सो नियम करि सूर्य बैठी नै हो है, ऐसो अवगाढ प्रतीत आगे है । बहुरि फेरि सूर्य का बिब सम्पूर्ण महा तेज प्रताप ने लिया दैदीप्यमान प्रगट भया, तब प्रकाश भो सम्पूर्ण प्रगट भया । तब पदार्थ भी जैता था, तैसा प्रतिभासवा लाग्या, तब कछु पूछना रह्या नाहीं, निर्विकल्प होय चुक्या । ऐसा दृष्टांत के अनुसार दाष्टांत जानना सोई कहिये हैं । मिथ्यात्व अवस्था मैंई पुरुष ने पूछे कि तू चैतन्य हैं, ज्ञानमयी है तो या कहैचैतन्य ज्ञान कहा कहावे ? वा चैतन्य ज्ञान मैं हूं । कोई आय ऐसे कह ह - शरीर है सो हो तू हौ वा तू सर्वज्ञ का एक अंश है, खिन मैं उपजे है, खिन में विनसे है, वा तू शून्य है तो ऐसे ही मानै । ऐसा ही हूंगा, मेरे ताई कछु खबरि परती नाहीं; बाह्य आत्मा का लक्षण है ।
बहुरि कोई पुरुष गुरु का उपदेश कह - प्रभु ! आत्मा के कर्म कैसे बंधे हैं ? श्री गुरु कह हैं- जैसे एक सिंह
उजाडि विषै तिष्ठे था। तहां हो आठ मंत्रवादी अपनी सभा विषै वन मैं था । सो सिंह उस मंत्रवादी ऊपरि कोप किया। तब वा मंत्रवादी एक- एक धूलि को चिरूठो मंत्रो सिंह का शरीर ऊपरि नाखि दोनो । सो केताक दिन पाछे एक चिमटी का निमित्त करि नाहर को ज्ञान घटि गयो अर एक किमटी का निमित्त करि देखने को शक्ति घटि गई । अर एक चिमटी का निमित्त करि नाहर दुखो हुवौ । अर एक चिमटी का निमित्त करि नाहर उजाड छोडि और ठौर गयौ अर एक चिमटी का निमित्त करि नाहर को आकार और ही रूप हवं गयौ । अर एक चिमटी का निमित्त करि नाहर हू आप को नीच रूप मानवा लाग्यो । अर एक चिमटी का निमित्त करि आपनो ज्ञान घटि गयो । ऐसे ही आठ प्रकार ज्ञानावरणादि कर्म जीवनि का राग-द्वोष करि जानादि आठ गुण को घाते हैं, ऐसा जानना । ऐसे शिष्य प्रश्न किया, ताका उत्तर गुरु दिया । सो भव्य जोवनि कूं सिद्ध का स्वरूप न जानि अर आपना स्वरूप बिपें लीन होना उचित है । सिद्ध का स्वरूप मैं अर आपना स्वरूप मैं सादृश्यपणा है । सो सिद्ध का स्वरूप नं ध्याय निज स्वरूप का ध्यान करना । घणा कहिवा करि कहा ? ऐसा ज्ञाता अपना स्वभाव को जाने है । इतिसिद्ध स्वरूप वर्णन संपूर्णम् ।
कुदेवादि का स्वरूप वर्णन
आगे कुदेवादिक का स्वरूप वर्णन करिये है । सो हे भव्य ! तू सुणि । सो देखो जगत विषं भी यह न्याय है के
१ चिकुटी भर धूल २ मंत्रित कर, भतरकर
आप सौं गुण करि अधिक होय अर के आप को उपकारी होय ताको नमस्कार करिये है वा पूजिये है। जैसे राजादिक तो गुणां करि अधिक है अर माता-पितादिक उपकार करि अधिक हैं, ताहि कूं जगत पूर्ण है अर वंदे है । ऐसा नाहीं कि राजादिकादि बड़े पुरुष तो रेयत? जन आदि रंक पुरुष ताकूं वंदे वा पूजे अर माता-पितादि पुत्रादिक कूं बंद अर पूर्णं, सो तो देखिये नाहीं । अर कदाचि मति की दीनता करि राजादिकादि बडे पुरुष होइ करि नीच पुरुष को पूर्ज अर माता-पिता भी बुद्धि की होनता करि पुत्रादिक की पूजे, तो वह जगत बिषै हास्य अर निंदा को पावै । सो कौन दृष्टांत ? जैसे सिंह होय अर स्याल की सरणित चाहै, तो वह हास्य नै पावँ हो पावै; यह युक्ति ही है । तीस्यों धर्म विर्षं अहंतादि उत्कृष्ट देव छोड़ि और कुदेव को पूर्ज, सो कांई लोक विषै हास्य कूं नाहीं पावेगा ? अर परलोक विषै नर्कादिक के दुःख अर क्लेश कू' नाहीं सहेगा ? अवश्य सहेगा । सो क्यों सहे है ? सो कहिये हैं । सो आठ कर्मा विषै मोह नाम कर्म है सो सर्व को राजा है । ताके दोष भेद हैं - एक तो चारित्रमोह अर एक दर्शनमोह । सो चारित्रमोह तो ई जीव की नाना प्रकार की कषाया करि आकुलता उपजावे है । सो कैसो है आकुलता अर कैसा है याका फल ? सो कोई जीव नाना प्रकार का संयमादि गुण करि संयुक्त हैं अर वा विषं किंचित् कषाय पावजे तो दीर्घ काल के संयमादिक करि संचित पुण्य नाश कूं प्राप्त होय है। जैसे अग्नि करि रुई को समूह भस्म होय तसे कवाय रूपो अग्नि विषें समस्त पुष्य रूप ईंधन भस्म होय है । अर कवायवान पुरुष ई जगत विषं महा निया ने पार्व
हैं। बहुरि कैसी है कवाय ? कोड्या स्त्रो का सेवन सू भी बाका पाप अनंत गुणा है । तासू भी अनंत गुणा पाप मिथ्यात्व का है। यो जीव अनादि काल को एक मिथ्यात्व करि ही संसार विषै भ्रम है । सो मिथ्यात्व उपरांत और संसार विवे उत्कृष्ट पाप है नाहीं । फेरि मोह करि ठगी गई है बुद्धि जाको, ऐसा जो संसारी जीव ताको कवायादिक तो पाप दोसे घर मिथ्यात्व पाप दोरौ नाहीं । अर शास्त्र विवँ एक मिथ्यात्व का नाश किया, ता पुरुष सर्व पाप का नाश किया । अर संसार का नाश किया सो ऐसा जानि कुदेव, कुगुरु, कुधर्म का त्याग करना । सो त्याग कहा कहिये ? सो देव अरहंत, गुरु निर्गथ कैसा, तिल-तुस मात्र परिग्रह सौ रहित ऐसा अर धर्म जिनप्रणीत दयामय कहिये । या उपरांत सर्व की हस्त जोडि नमस्कार नाहीं करना । प्राण जाय तो जावी पणि नमस्कार करना उचित नाहीं ।
अहंतादि का स्वरूप वर्णन
आगे अरह तादिक का स्वरूप वर्णन करिये है। सौ कैसे हैं अरहंत ? प्रथम तो सर्वश हैं जाका ज्ञान विषे समस्त लोकालोक के चराचर पदार्थ तीन काल सम्बन्धी एक समय विणें झलकै हैं। ऐसी तो ज्ञान की प्रभुत्व शक्ति है अर वीतरागी है। अर सर्वज्ञ होता अर वीतराग नहीं होता तो ता विषै परमेश्वरपणा सम्भवता नाहीं । अर वीतराग होता अर सर्वज्ञ न होय, तो भी पदार्था को स्वरूप अज्ञानता करि सम्पूर्ण कहा बने । अर समर्थ होता, तो ऐसा दोष
करि संयुक्त, ताको परमेश्वर कौन मानता ? तोसों जा मैं ये बोब दोष-एक तो राग-द्वेष अर एक अज्ञानयनो नहीं ते परमेश्वर हैं अर ते ही सर्वोत्कृष्ट हैं । सो ऐसा दोब दोष करि रहित एक अरहंत देव हो हैं, सो ही सर्व प्रकार पूज्य है । बहुरि जे सर्वज्ञ, वीतराग भी होता अर तारिवा समर्थ न होता, तो भी प्रभुत्वपणा मैं कसर पड जाती । सो तो जा मैं तारण शक्ति भी पायजे है । सो कोई जीव तो भगवान का स्मरण करि हो भव -- संसार - समुद्र ते तिरै हैं, केई भक्ति करि ही तिरं हैं, केई स्तुति करि ही तिरं हैं, केई ध्यान करि हो तिरं हैं; इत्यादि एक-एक गुण कूं आराधि मुक्ति कू पहुंचे। परन्तु भगवानजी नै खेद नाहीं उपजै है सो महन्त पुरुषा की अत्यन्त शक्ति है । सो आपने तो उपायन करणो पडे नाहीं अर ताका अतिशय करि सेवक तिनका स्वयमेव भला होय जाय । अर प्रतिकूल पुरुषा का स्वयमेव बुरा हो जाय । अर शक्तिहीन जे पुरुष होय हैं, ते डीला जाय अर पैला का बुरा-भला करे तब वासूं कार्य होय सिद्ध सो भी नेम नाहीं, होयवान होय । इत्यादि अहंतदेव अनंत गुणा करि शोभित हैं । बहुरि आगे जिमवाणी के अनुसार ऐसा जो जैन सिद्धान्त सर्व दोष करि रहित ता विषै सर्व तत्वा का निरूपण है । अर ता विषै मोक्ष का अर मोक्ष का स्वरूप का वर्णन है अर पूर्वापर दोष करि रहित हूँ । इत्यादि अनेक महिमानं धर्या ऐसा जिनशासन
निर्ग्रन्थ गुरु का स्वरूप
आगे निग्रंथ गुरु ताका स्वरूप कहिये हैं । जो राजलक्ष्मी नै छोडि मोक्ष के अर्थि दीक्षा घरी है अर वणिमा,
महिमा आदि रिद्धि जानै फुरी है अर मति, श्रुत, अवधि मनःपर्यय ज्ञान करि संयुक्त है, अर महा दुद्धंर तप करि संयुक्त है, अर निःकषाय है, अर अठाईस मूलगुण विषे अतिचार भी नाहीं लगाने है, अर ईया समिति नै पालता थका साढे तीन हाथ धरतो सोधता थका विहार करे
भावार्थ- कोई जीव नै विरोध्या नाहीं चाहै है । भर भाषा समिति करि हित-मित बचन बोले है, ताका वचन करि कोई जीव दुःख नाहीं पायें है । ऐसा सर्वं जीवां के विषै दयाल जगत विषै सोमं है। ऐसा सर्वोत्कृष्ट देव, गुरु, धर्म तान छोडि विचक्षण पुरुष हैं, ते कुदेवादिक ने कैसे पूजे ? प्रत्यक्ष जगत विषै ताकी होनता देखिये हैं जे-जे जगत विषै राग-द्वेषादि औगुण हैं, ते ते सर्व कुदेवादिक मैं पावजे हैं । त्याने सेया जोव का उद्धार कैसे होय ? न्या ही नै सेया उद्धार होय तो जीव का बुरा कुणी को सेया होय ? जैसे हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, आरंभ - परिग्रह, आदि जे महा पाप त्या करि हो स्वर्गादिक का सुख में पायजे, तो नर्कादिक का दुःख क्या करि पावजे, सो तो बेखिये नाहीं और कहिये है देखो, ई जगत विषै उत्कृष्ट वस्तु हैं, ते थोडी हैं सो प्रत्यक्ष हो देखिये हैं। हीरा, मानिक, पन्ना जगत विषं थोडा है, कंकर-पत्थर आदि बहुत हैं । बहुरि धर्मात्मा पुरुष थोडा है, पापी पुरुष बहुत है । ऐसा अनादि-निधन वस्तु का स्वभाव स्वयमेव वण्या है । ताका स्वभाव मेटिवा समर्थ कोई नाहीं । तीसूं तीर्थकरदेव ही सर्वोत्कृष्ट है सो एक क्षेत्र विषै पावजे । अर कुदेवा का
वृद कहिये समूह, ते वर्तमान काल विर्षं सासता अगणित पावजे है । सो किसा- किसा कुदेव ने पूजिजे ? अर वे परस्पर रागी- अर वे कहँ मूंन पूजो, वे कहें मूंने पूजो । बहुरि पूजिवा वाला कने? खावा ने मांगे ? अर या कहैहूं घणा दिनां को भूखी छू, सो वे ही भूखा तो औरा नै उत्कृष्ट वस्तु देवा समर्थ कैसे होसी ? जैसे कोई रंक पुरुष क्षुषा करि पोडित घर-घर सूं अन्न का कणूका २ वा रोटी का टूकर वा ओठि आदि मांगतो फिर है, अर कोई अज्ञानी पुरुष वे नवं उत्कृष्ट धनादिक सामग्री मांग, वाके अर्थि वाकी सेवा करे, तो वह पुरुष कांई हास्य नै न पाव ? पावे ही पावै । तीसूं श्रीगुरु कहँ हैं- हे भाई! तू मोह का वशि करि आंख्या देखी वस्तु नै झूठी मति मानै । जीव ई भरम बुद्धि करि ही अनादि काल कौ संसार विषें थाली मै मूंग रुले, तैसे रुल है । जैसे कोई पुरुष के आगे तो दाह ज्वर का तीव्र रोग लागि रह्या है अर फेरि अजान वैद्य तीव्र उष्णता का ही उपचार करं है, तो वह पुरुष कैसे शांतिता कूं प्राप्त होय ? त्यों ही यह जीव अनादि ते मोह करि दग्ध होय रह्या है । सो या मोह की बासना तौ या जीव के स्वयमेव बिना उपदेश ही बनि रही । ता करि तो आकुलव्याकुल महादुखी होहि । फेरि ऊपरि सू गृहीत मिथ्यात्वादिक सेय-सेय ता करि याका दुःख की कांई पूछनी है ? सो अगृहीत मिथ्यात्व बीच गृहीत मिथ्यात्व का फल अनंत गुणा खोटा है । सो तो गृहीत मिथ्यात्व द्रव्यलिंगी मुन्या सर्व प्रकार छोड्या है अर गृहीत मिथ्यात्व ताके भी अनं१ किससे २ दाना ३ दुधड़ा
तवें भाग ऐसा हलका अगृहीत मिथ्यात्व ताके पावजे है । अर नाना प्रकार का दुर्द्धर तपश्चरण करे है अर अठाईस मूलगुण पाले हैं अर बाईस परीषह सहँ हैं अर छियालीस दोष टारि आहार लेहैं अर अंश मात्र भी कषाय नाही करे है । सर्व जीव के रक्षपाल होय जगत विषै प्रवर्ते हैं। अर नाना प्रकार के शील, संयमादि गुण करि आभूषित हैं । अर नदी, पर्वत, गुफा, मसान निर्जन, सूखा वन विषै जाय ध्यान कर हैं । अर मोक्ष की अभिलाषा प्रवर्त है अर संसार का भय करि डरप है । एक मोक्ष-लक्ष्मो के ही अर्थि राजादि त्रिभूति छोडि दीक्षा घरं है। ऐसा होता संते भी कदाचि मोक्ष नाहीं पायें । क्यों नाहीं पावँ है ? याके सूक्ष्म केवलज्ञानगम्य ऐसा मिथ्यात्व का प्रबलपणा पाठी है । तातें मोक्ष का पात्र नाहीं, संसार का ही पात्र है । अर जाके बहुत प्रकार मिथ्यात्व का प्रबलपणा पायजे है, तो ताकू मोक्ष कैसे होय ? झूठ्या ही भरम बुद्धि करि मान्या, तो गर्ज है नाहीं । कौन दृष्टांत ? जैसे अज्ञानी बालक गाये का हाथी, घोरा, बैल, आदि बनावे अर वाकी सत्य मानि कर बहुत प्रीति कर है अर वा सामग्री कू पाय बहुत खुसी होय है । पीछे वाकू कोई फोर्ड वा तोडे वाले जाय तो बहुत दरेग करे अर रोबे अर छातो, माथा आदि कूटे । वाके ऐसा ज्ञान नाहीं कि ये तो झूठा कल्पित है । त्यौं ही अज्ञानी पुरुष मोही हुवा बालक कुदेवादिक ने तारण-तरण जानि सेवै है । ऐसा ज्ञान नाहीं कि ये तिरवा ने असमर्थ तो म्हाने कैसै तारिसी ? बहुरि और दृष्टांत कहिये हैं । कोई पुरुष कांच का खंड ने पाय वा विषै चितामणि रत्न की बुद्धि करे है अर या जाने है- ये चितामणि रत है |
087958b76dd0054218f6afe5a6f98fa29021e3ff91c9173a2a51560bf036d546 | web | Text of Vice-President's Address at Mody university of Science and Technology, Laxmangarh (Excerpts)
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आप सबको देख कर आपका लगातार अभिनंदन करने का मन करता है!
You represent the power, the might, and the future of our country Bharat, home to 1/6th of the humanity. i am greatly impressed by the motto of this Institute and that is 'Nurturing excellence of Women in education'.
यह संभव होता है तो सृष्टि का कल्याण होता है. कहा गया है एक लड़के को पढ़ाओ तो लड़के को पढ़ाते हैं, जब लड़की को पढ़ाते हैं तो पूरे समाज की पढ़ाई हो जाती है.
किसी भी समाज को बदलने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान एजुकेशन का है. Education is the most effective impactful transformational mechanism और आप उसके सारथी है.
वैसे तो मोदी नाम में ही दम है, नाम से ही सब कुछ मुमकिन हो जाता है.
गणेश चतुर्थी इस बार अलग थी. इतिहास रचित हो गया. 20 सितंबर को दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम पेश हुआ और उस समय लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला जो की राजस्थान के है, उनके नाम की जैसे प्रकाशता है, जो काम कई प्रयासों के बाद नहीं हो पाया वह 20 सितंबर को लोकसभा ने कर दिखाया और गेंद आ गई मेरे पाले में. मैं राज्यसभा का सभापति हूं, उपराष्ट्रपति होने की वजह से.
हमने कहा लोकसभा में तो दो मत खिलाफ पड़े, हमारे यहां एक भी नहीं पढ़ना चाहिए. इस पूरे काम का जो सारथी है भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री, किसी को पता नहीं था गणेश चतुर्थी के दिन शुरुआत हुई और 21 सितंबर को जैसे ही एक मत से स्वीकृत हुई मैंने कहा माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी जी आपको जन्मदिन की बधाई.
हिंदू रीति नीति के हिसाब से वह उनका जन्मदिन था. सब आश्चर्य चकित भी थे और प्रफुल्लित भी थे.
लोकसभा हो या राज्यसभा हो सभी में राजस्थान की भूमि का योगदान रहा है. लोकसभा में ओमजी बिरला और राज्यसभा में मैं.
हमारे पास करने से कानून नहीं बनता है, हम तो पास करते हैं it will takes the shape of law only when it is signed by the president of India under article 111 of the constitution और यह परम सौभाग्य महामहिम द्रौपदी मुर्मू जी को मिला, आपके वर्ग को मिला. उन्होंने दस्तख्त किये और इतिहास रचित हो गया.
Now one third member in Lok Sabha and one third members in all the legislatures will be women. और यह रिजर्वेशन होरिजेंटल भी है और वर्टिकल भी है. इस वन थर्ड में शेड्यूल कास्ट शेड्यूल ट्राइब का रिजर्वेशन भी है. कहने का अर्थ है की nothing could be more shining and इक्विटेबल.
मैं एक छोटा किस्सा बताता हूं. एक महिला थी विधवा थी क्योंकि पति का ध्यान्त हो गया. एक लौता बेटा था जो की कमाता नहीं था. वह अंधी थी बेटे की शादी नहीं हुई बेरोजगार था और वह बीमार भी थी. ईश्वर प्रकट हुए और कहा एक वचन मांग लो. महिला क्या वचन मांगती खुद की हाथ खुद का स्वास्थ्य है बेटे की शादी या बेटे की नौकरी.
उनको मोदी साहब जैसे किसी व्यक्ति ने जरूर राय दी होगी और महिला ने कहा मैं सोने की थाली में पोते को हंसता खेलता देखना चाहती हूं. सब कुछ आ गया. तो जहां तक हमारी महिला शक्ति का मामला है भारत के प्रधानमंत्री ने जो अब तक के असफल प्रयास होते रहे दशकों से होते रहे मुझे जानकारी इसलिए है की मैं 1989 में सांसद बना था केंद्रीय मंत्री भी था मुझे पता है कब-कब प्रयास हुए कब-कब असफल रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने यह करिश्मा करके दिखाया. It is an epocal डेवलपमेंट, it is a historic development and I can tell you girls it is a game changer. क्योंकि नारी शक्ति के हाथ में जब कमान होती है तो बहुत कुछ हासिल होता है, इसका मैं प्रमाण हूं क्योंकि ताकत मेरी धर्मपत्नी के हाथ में है.
मैंने ऐसी संस्था नहीं देखी. आपके यहां कदम रखते ही मुझे भारत की संस्कृति दिखने लगी संस्कार दिखने लगे मजबूती दिखने लगी और तब मुझे याद आया कि जी-20 में दुनिया के बड़े-बड़े नेता आए. हम दोनों भी शरीक हुए. सबसे चर्चा हुई सब एक बात से अभिभूत थे that Indian culture is unrivalled, unparalleled.
कौन सा देश है जो 5000 साल से ज्यादा सिविलाइजेशन एठोस की बात कर सकता है. वह G20 का नजारा देखिए, देश का कोई प्रांत नहीं छूता है कोई यूनियन टेरिटरी नहीं छुट्टी है 200 बैठकें हुई, राजस्थान में भी हुई, जयपुर उदयपुर में भी हुई. देश के हर प्रांत में हुई. 58 लोकेशंस पर हुई. जो आए वहां पर वह कभी नहीं बोलने वाली यादें लेकर गए हैं कि हमने कभी नहीं सोचा था कि यह हो पाएगा.
आप ऐसे कालखंड में रह रहे हो जब भारत उन्नति की ओर है और यह उन्नति विश्व में प्रमाणित है the world is stunned.
23 अगस्त 2023 को करिश्मा हुआ जब इसरो ने विकल को चांद के उसे हिस्से पर सफलतापूर्वक उतार दिया जहाँ दुनिया का कोई देश नहीं पहुंच पाया है और उसमें भी आपका वंदन हुआ शिव शक्ति पॉइंट दिखाया गया.
चंद्रयान तीन वहा लैंड हुआ यह बहुत बड़ा डेवलपमेंट है और इसमें जो प्रमुख भूमिका निभाई वह एक महिला है, प्रोजेक्ट डायरेक्टर.
कहने का मतलब है भारत की विकास में आज के दिन नारी और पुरुष दोनों का योगदान है और मैं तो कहूंगा नारी का ज्यादा है. कहते हैं सबसे बड़ी ताकत फाइनेंस में होती है और मोदी जी से ज्यादा कौन जानता है. कर्म है धर्म है पर अर्थ भी आवश्यकता है ताकि ऐसी संस्था बन सके.
हमारी अर्थव्यवस्था का संचालन कौन ना रहा है श्रीमती निर्मला सीतारमण, a tough lady a great economist और दुनिया में उनका बहुत बड़ा रुतबा है क्योंकि she is an expert in economics. हमारी अर्थव्यवस्था को देखिये हम कहां थे कहां आ गए. फ्रजाइल 5 छू दोगे तो बिखर जाएंगे उनमे हमारा नाम था. ब्राज़ील साउथ अफ्रीका तुर्की इंडोनेशिया और भारत. 13 साल पहले दुनिया पर बोझ थे. दुनिया सोचती थी कि इनकी अर्थव्यवस्था ठीक होनी चाहिए वरना दुनिया को झटका लगेगा और हम कहां से कहां आ गए हैं फ्रेजिले 5 से हम पावरफुल 5 में आ गए हैं.
हमने 2 सितंबर 2022 में दुनिया के पांचवें आर्थिक महाशक्ति का दर्जा हासिल किया, फिफ्थ लार्जेस्ट इकोनामी और हमने यूके और फ्रांस को पीछे छोड़ा. अब बारी है जापान और जर्मनी की और आने वाले चार-पांच साल में India will be the third largest global economy और इसमें नारी शक्ति वंदन अधिनियम का बहुत बड़ा रोल रहेगा.
जो मेरे सामने बैठे हैं, इन 2047 when India will be celebrating centenary of its इंडिपेंडेंस, तब आप सब लोग निर्णायक भूमिका में रहेंगे महत्वपूर्ण भूमिका में रहेंगे और आपकी वजह से भारत प्रकाष्ठा पर होगा इसमें कोई दोराहे नहीं है.
जब मैं आ रहा था जानकारी ली तो मुझे आश्चर्य हुआ और संतोष भी हुआ आपके यहां तपोवन है, योगशाला है, आपके प्रांगण में आकर जो चित्र दिखा, भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धांत उजागर करते हुए ।
Our culture is our strength, our culture is a repository of wisdom of several ages. कल्चर के मामले में एक घटना में आपको बताता हूं, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में लिखी गई है.. यह सेकंड वर्ल्ड वॉर का जमाना था.. कैंब्रिज का एक प्रोफेसर, अपने एयर कंडीशन चैंबर मैं बैठा था, एक सैनिक आया उसको गुस्सा आया जो की स्वाभाविक था कि हम तो मर मिटने को तैयार हैं, और आप यहां आराम से बैठे हैं। प्रोफेसर ने पूछा आप किस चीज के लिए मर मिटने को तैयार हैं? सैनिक को इस पर और ज्यादा गुस्सा आया.. हम देश की अस्मिता के लिए लड़ रहे हैं, देश की आजादी के लिए लड़ रहे हैं, देश की सीमाओं के लिए लड़ रहे हैं।
प्रोफेसर ने कहा आपका क्या मतलब है? आप देश के कल्चर की रक्षा कर रहे हैं, और मैं भी बैठा यही काम कर रहा हूं, that was a glorious moment for the Professor.
हर भारतीय का धर्म है कि वह कर्म से हमारी संस्कृति का सर्जन करें, संरक्षण करें जो दुनिया में बेमिसाल है।
स्वामी विवेकानंद ने बहुत छोटी उम्र में दुनिया में बहुत बड़ा नाम कमाया। और आप लोगों के लिए कहा,"Awake, Arise and do not stop until the goal is achieved." उन्होंने एक बात और कहीं, "There is no chance for the welfare of the world, unless the condition of human is improved. It is not possible for a bird to fly on only one wing."
Now, You are nuclear power. यह छोटा कदम नहीं है, इससे पहले भी कदम उठाए जा चुके हैं, पंचायत, गांव की सरपंच, प्रधान पंचायत समिति के, जिला प्रमुख, जब यह महिला होती थी पहले तो कुर्सी पर उसका पति जाकर बैठता था। और वह खुद को सरपंच पति हूं, प्रधान पति हूं, जिला प्रमुख पति हूं ऐसा बताता था.. अपने धीरे-धीरे वह ताकत ले ली है। इस ताकत का नतीजा यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भारतीय संसद में बिना रिजर्वेशन के सबसे ज्यादा महिलाएं पहुंची- 78.
आप लोगों ने अगर 21 सितंबर को राज्यसभा की कार्यवाही देखी होगी जब इस अधिनियम पर चर्चा हो रही थी मैंने एक निर्णय लिया, कि मेरे अलावा और लोकसभा पति के अलावा, कुर्सी पर सिर्फ महिलाएं बैठेंगी।
Only women will sit on the chair during the precedings.
यह मौका उसे दिन मैंने 17 महिला सांसदों को दिया। पीटी उषा जी, जया बच्चन जी, कोयनाक, सुजाता जी.. सबको दिया। और सब अभीभूत थी।
टेबल ऑफिस के ऊपर मैंने पूरा महिलाओं का वर्चस्व रखा।
मैंने शुरुआत कि विदेश यात्राओं में उनकी भागीदारी 50% से कम नहीं होगी।
यह करके मुझे सुकून मिला यह तो अलग बात है, मुझे बहुत आशीर्वाद भी मिला, उन सब ने मुझे आशीर्वाद दिया, यह एक बड़ा बदलाव है। लगता था कि वह कुर्सी पर क्या करेंगे, पर बैठते ही पता लगा जो उन्होंने किया वह जबरदस्त साबित हुआ, वह कमजोर नहीं पड़ी।
हमारे यहां एक परंपरा है कि हम बहुत जल्दी लोगों को बहुत बड़ा मान लेते हैं। इसमें परिवर्तन आया है, आप उदाहरण के तौर पर देखिए padma awards, पदमश्री,पदमभूषण, पदमविभूषण.. पहले किन को मिलते थे? जिनका नाम पहले होता था। अब उनको मिलते हैं जिनका नाम सुना नहीं, पर मिलने के बाद एक बात होती है, की सही को मिला, इसी को मिलना चाहिए था।
यही योग्यता का पात्र है।
जब ऐसे ऑब्जेक्टिव काम होते हैं, तो देश की विकास यात्रा में चार चांद लग जाते हैं।
राज्यसभा में आपने देखा होगा शेरो शायरी भी होती है, हंसी के पल भी होते हैं, टेंशन भी होती है, इससे वातावरण ठीक रहता है, प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। जब मैं आ रहा था तो मैंने देखा कि मैं बच्चों को गिफ्ट क्या दूं? तो मैंने सोचा कि I will invite in a batch of 50, all of you, for a visit to the Indian Parliament.
उस विजिट का मैंने एक प्रोग्राम भी निश्चित किया है, पहले तो आप संसद की नई बिल्डिंग को देखेंगे, ढाई साल में सिर्फ बिल्डिंग नहीं बनी, कोविड की चुनौती के बावजूद अपितु उसके अंदर देख कर आप लोग दंग रह जाएंगे। दूसरा भारत मंडपम जहां g20 हुई है, दुनिया के 10 कन्वेंशन सेंटर में से एक है ,उसकी यात्रा कराई जाएगी, करिश्मा देखिए देश कितना बदल चुका है कि भारत मंडपम में g20 का कार्यक्रम संपन्न हुआ, उसके दो-तीन सप्ताह में ही उससे बड़ा कन्वेंशन सेंटर यशोभूमि जहां p20 का सम्मेलन होगा, दुनिया भर के पार्लियामेंट से लोग आएंगे, वह भारत मंडपम से भी बड़ा है वहां भी आपका आगमन होगा।
प्रधानमंत्री संग्रहालय एक पल भी आप आंख नहीं जाता पाएंगे। it has been changed it reflects everything, justice done to every PM of the country.. ओर वॉर मेमोरियल जो इंडिया गेट पर है, नेताजी बोस का स्टेचू भी है। यह कार्यक्रम मैंने बनाया है, we will facilitate it, we will do everything to make it possible.
थोड़ा यदि आगे चले तो आज के दिन आप लोगो को जो वातावरण मिल रहा है, हमने उसकी कल्पना नहीं की थी। पहला वातावरण, सत्ता के गलियारों से दलालों की छुट्टी हो गई। पहले सत्ता के गलियारों में दलाल रहते थे। पावर कॉरिडोर्स वर इनफेक्टेड विद पावर ब्रोकर, उनको सेनीटाइज कर दिया गया है, न्यूट्रलाइज कर दिया है।
दूसरा आपके लिए भी चुनौती है कि जब बहुत बड़ी प्रगति कोई परिवार या समाज करता है, कोई देश करता है तो कहीं ना कहीं थोड़ी बहुत जलन आ जाती है, जिसकी वजह से वह प्रक्रिया लोग अपनाते हैं जो देश हित में नहीं है।
मेरा आपको अग्वाहन है कि हर परिस्थिति में भारतीयता और भारत सर्वोपरि है, Non-negotiable है।
अपने को मानना पड़ेगा क्योंकि यह हकीकत है, we are proud Indians, दुनिया में बाहर कदम रखते ही यह आपको पता लग जाएगा कि भारतीय होने का क्या अर्थ है। we must also take legitimate pride in our phenomenal historic unprecedented growth scenario.
आप टेंशन मत रखिए यह मेरी आपसे राय है, आप स्ट्रेस मत रखिए, जो करना है अपने मन के कीजिए। इंक्लिनेशन का एप्टीट्यूड के हिसाब से कीजिए। मैं यहां से आपके माता-पिता को भी संदेश दूंगा, allow your children to grow where there is to grow. don't tinker with their inclination, don't tweak it, let it be natural.
क्योंकि आजकल इतनी ऑपच्यरुनिटीज आ रही है जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते।
वह ऑपच्यरुनिटीज हर किसी को उपलब्ध है। धन आज के दिन बाधक नहीं है। चुनौतियां तो आती रहेगी, चुनौतियों से कोई बच नहीं सकता।
मैं यहां आया हूं, ठीक काम कर रहा हूं, पहले भी कहीं जगह गया, पर कुछ लोगों ने कहा कि आप क्यों आते हो बार-बार? पता क्यों कह रहे हो कि बार-बार, कि थोड़ा अचंभित हो गया क्योंकि कहने वाले ने ना तो संविधान को पड़ा, ना कानून को पड़ा, ना अपने पद की मर्यादा राखी, यदि अगर थोड़ा सोच लेते, कानून में झांक लेते तो उनको पता लग जाता कि भारत के उपराष्ट्रपति की कोई भी यात्रा अचानक नहीं होती है, बड़ी सोच विचार मंथन चिंतन के बाद होती है। पर कह दिया कि आपका आना ठीक नहीं है, किस कानून के तहत पता नहीं। तो क्योंकि राज्य सभा में शेरो शायरी होती है, रास्ते में मैंने भी एक छोटी सी कविता लिख दी, और मैंने कहा कि सबसे पहले आपसे साझा करूं, इस कविता को लिखने से पहले मुझे गजल याद आ गई, उस गजल में था,
इसी के तर्ज पर दुखी होकर, पीड़ित महसूस कर कर, कि मुझे इस मामले में क्यों घसीटा,मेरा काम तो संविधान संबंधित था, जनता के भले के लिए था, कृषक पुत्र होने के नाते, जैसे मेरी उन्नति हुई है तो मैं हर संस्था में भी गया और बाकी मेरी यात्रा विधानसभा के अध्यक्ष के निमंत्रण पर हुई, केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में हुई, राज्य सरकार ने कोई कार्यक्रम नहीं बनाया, नहीं बुलाया मुझे तो कोई परेशानी नहीं है, उनका विवेक है वह जाने।
मैंने जो कविता बनाई,
'खता क्या कि हमने, पता ही नहीं, आपत्ति क्यों है उन्हें हमारे घर आने की पता ही नहीं। यह कैसा मंजर है समझ से परे है, सवाल या निशान क्यों है? अपने घर आने में। क्या जुर्म है, पता ही नहीं। यही छोड़ता हूं इस बात को.
From this platform I would like to declare that I do not expect, people in authority to make light of constitutional positions. This is not good for democracy. There must be respect for constitutional positions and all of us togetherness, hand in hand collaboration and coordination with consensual approach have to serve the people at large.
मन दुखी होता है कि किन-किन शब्दों का उपयोग कर लिया, उभरना बड़ा मुश्किल है , I appeal to everyone it is our country we all are servants of this country whatever be our position, right from president down the line up to the chief minister. We must be very sensitive, we should not generates such a public perception, की बेवजह संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति को राजनीति में घसीटा जाए, यह ठीक नहीं है।
Girls I am delighted to share with you a platform are the future, आज का दिन सौभाग्यशाली इसलिए भी है, की 80% अधिकारियों से मैंने हाथ में लाया, उनके भी बेटे और बेटियां ही है, और बेटियों की ताकत, और माता-पिता के लिए उनका प्रेम, एक अजीब तरीके का होता है।
God bless you! You are in one of the best institutes at a global level. Utilize the opportunity.
Alumni of any institution are it's spinal strength, alumni are reservoir of talent, मैं आशा करता हूं इस संस्था जितने भी Alumni हैं, इस संस्था को योग्यता अनुसार आर्थिक सहयोग देंगे, सुझाव देंगे, this will shape into an institute that will reach pinnacle at a global level. All the very best. Thank you so much!
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279fb9041693f5708c4a688e485ab17669da592c37b2326ab2b13cd0ef22916f | pdf | इस ग्रन्थ में अंग्रेजी के "मिथ्" शब्द के लिये इतिहास - शब्द का प्रयोग किया गया है। भारतीय परम्परा में इतिहास - शब्द का प्रयोग देव-कथाओं के लिये किया गया है। महामति कृष्णद्वैपायन ने जब यह कहा था कि इतिहास - पुराण के द्वारा वेद के विस्तृत अर्थ का ज्ञान करना चाहिए, ' तब उनका अभिप्राय इतिहास के इसी अर्थ से था, जिस अर्थ में उसका प्रयोग यहाँ किया गया है। याज्ञवल्क्य देवासुर युद्ध को एक ऐसा युद्ध बताते हैं, जिसका वर्णन अन्वाख्यान एवं इतिहास में किया जाता है; परन्तु जो कभी हुआ नहीं था। इस कथन से स्पष्ट है कि इतिहास मिथ् के अर्थ में प्रयुक्त होता था । शतपथब्राह्मण में ही अन्यत्र विद्या की परिगणना में इतिहास एवं पुराण का अलग-अलग उल्लेख मिलता है । सायण भी इसी अर्थ में ऋक्संहिता के भाष्य में इतिहास - शब्द का प्रयोग करते हैं । शतपथब्राह्मण के भाष्य में सायण सृष्टिगाथा के प्रतिपादक ब्राह्मण को इतिहास बताते हैं, तथा उर्वंशी - पुरूरवा आख्यान को पुराण । शङ्कर ने इसके विपरीत सृष्टि-प्रतिपादिका कथा को पुराण माना है, तथा उर्वशी पुरूरवा जैसे आख्यानों को इतिहास । इसका समर्थन वासुदेव ब्रह्म भी अपनी वासुदेवप्रकाशिका में करते हैं । षड्गुरुशिष्य भी देवकथाओं के लिये इतिहास - शब्द के प्रयोग को उचित मानते हैं । इसी अर्थ में द्याद्विवेद ने भी इतिहास - शब्द का प्रयोग किया है । वस्तुतः मिथ् के लिये इतिहास शब्द का प्रयोग सर्वथा -
१. महाभारत, आदि पवं, १.२६७ - इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् ।
२. श० ब्रा० ११.१.६.९ - नैतदस्ति यद् दैवासुरं यदिदमन्वाख्याने त्वदुद्यते इतिहासे त्वत्, तु०, १३.४.३.१२ - इतिहासो वेदः सोऽयमिति केचिदितिहासमाचक्षीत ।
सायण, ऋ० सं० २.१२.१, अवतरणिका - अत्रेतिहासो बृहदेवतायामुक्तः; ५.२.१, शाट्यायनब्राह्मणोक्त इतिहास इहोच्यते ।
सायण, श० ब्रा० ११.५.६.८ - "आपो ह वा इदमग्रे सलिलमास" इत्यादिकं सृष्टिप्रतिपादकं ब्राह्मणमितिहासः । "उवंशी हाप्सरा : पुरूरवससमैडं चकमे" इत्यादीनि पुरातनपुरुषवृत्तान्तप्रतिपादकानि पुराणम् ।
शंकर, बृ० उ० २.४.१० - इतिहास इत्युर्वशीपुरूरवसो संवादादिः, 'उर्वशी हाप्सरा : ' इत्यादि ब्राह्मणमेव । पुराणम्, "असद्वा इदमग्र आसीत्" इत्यादि ।
७. वासुदेवब्रह्म, तदेव ।
८. षड्गुरुशिष्य, वेदार्थदीपिका, कात्यायन्स सर्वानुक्रमणी, सं० मैकदोनेल, आक्सफोर्ड, १८८६, पृ० ८४ - अत्रेतिहासः श्रुत्युक्तः सम्यगेव प्रवण्यंते; पृ० १०२ - अपरे वर्णंयन्ती - तिहासम्; पृ० १४२ - इतिहासञ्चायम्; वृत्ति, ऐ० ब्रा० १, पृ० ५४२ - अत्रेतिहासं
कथयन्ति ।
९. द्याद्विवेद, नीतिमञ्जरी, हरिहरमण्डल, वाराणसी, वि० सं० १९९० पू० ४१ - सरमासम्बन्धीतिहासो बृहदेवतायामेवं वर्णितोऽस्ति ।
समुचित है । इस औचित्य को देखकर ही आनन्द केण्टिश् कुमारस्वामी ने इतिहास का अर्थ 'मिथ्' किया है । सर्वविदित इतिहास - शब्द से अलग इतिहास - शब्द का प्रयोग करने के कारण सर्वत्र कोष्ठक में "मिथ्" शब्द दिया गया है । अन्यथा प्रचलित अर्थ में इतिहास तथा मिथर्थक इतिहास - शब्द में सन्देह हो सकता था ।
इस ग्रन्थ में आर्कीटाइप शब्द के अर्थ में अग्रप्रतिमान शब्द का प्रयोग किया गया है । ध्यातव्य है कि इस आर्कीटाइपू शब्द का प्रयोग प्रसिद्ध मनोविज्ञानी काल गुस्ताव युंग के आर्कीटाइप् से भिन्न अर्थ में किया गया है। धर्म - इतिहास के मनीषी मर्सिया इलियाड ने जिस अर्थ में आर्कीटाइपू का प्रयोग किया है, उसी अर्थ में इस प्रबन्ध में उसका प्रयोग हुआ है ।
मेरे गुरु डॉ० अतुलचन्द्र बनर्जी ने उन अनेक जर्मनभाषीय सन्दर्भों का ज्ञान कराया, जिनका उपयोग इस प्रबंन्ध में किया गया है । एतदर्थ उनके इस कार्य के लिये अपनी चिरकृतज्ञता प्रकट करता हूँ । मेरे शिष्य डॉ० असहाब अली ने फ्रेंच भाषा के सन्दर्भों को जुटाकर मेरे अनुसन्धान कार्य को अवदात बनाने में अत्यधिक श्रम किया है। मैं उन्हें केवल सहज स्नेह से लुलित अपना आशीर्वाद देता हूँ ।
यहाँ सर्वप्रथम मैं डॉ० गोविन्दचन्द्र पाण्डेय, राष्ट्रीय प्रोफेसर, इलाहाबाद तथा डॉ० विद्यानिवास मिश्र, कुलपति, काशी विद्यापीठ, वाराणसी के प्रति अपनी श्रद्धासम्पृक्त प्रणति निवेदित करता हूँ। उन्होंने ही मुझे इस अनुसन्धान तथा ग्रन्थरचना में प्रवृत्त किया था और जब भी मुझे उनका सान्निध्य प्राप्त होता था, वे इसे शीघ्र पूरा करने के लिये निर्देश देते रहे ।
अपने निर्देशक गुरु डॉ० अतुलचन्द्र बनर्जी के चरणों में प्रणाम करने के अतिरिक्त और कुछ भी निवेदन करना मेरी ढिठाई कही जायेगी। उनके स्नेहापूरित दण्ड - भय से ही यह कार्य सम्पन्न हो सका है। इसमें जो कुछ नया तथा निर्दोष है, वह सब उनकी सहज प्रज्ञा का अवदान है। अन्यथा मुझ जैसा अल्पमति इस महासमुद्र के आर-पार का ही अता पता न पाता । एकाध परिवर्तन के साथ तुलसीदास के शब्दों में इतना ही कथ्य है -
श्री गुरुपद नख मनिगन जोती । सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥ उघरहि विमल विलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख "मति" रजनी के ।।
१. आनन्दकुमार स्वामी, हिन्दुइज्म् ऐण्ड बुद्धिज्म्, मुंशीराम मनोहरलाल, नयी दिल्ली, १९७५,
२. मर्सिया इलियाड, कास्मास ऐण्ड हिस्ट्री; दि मिथ् आफ़ इटर्नल रिटर्न, हापंर् ऐण्ड ब्रदर्स, न्यूयार्क, १९५९, भूमिका, पृ० ८-९ ।
मेरे भाई साहब डॉ० शोतलाप्रसाद नगेन्द्र, प्रति कुलपति, अध्यक्ष, कलासंकाय तथा आचार्य एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय की सहायता एवं आशीर्वाद से यह अनुसन्धान प्रबन्ध इस रूप में आ सका है। उनकी अप्रतिम प्रेरणा एवं उत्साहवर्धन मुझ जैसे आलसी व्यक्ति से भी कार्य कराने में समर्थ सकी। एतदर्थ मैं विनयपूर्वक उनके चरणों में शिरसा नत हो रहा हूँ । इस प्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय के लिखने में उनकी पुस्तक "दि कॉन्सेप्ट आफ रिचुअल् इन् माडर्न सोशिआलाजिकल थियरी" से मुझे अत्यधिक सहायता उपलब्ध हुई है । एतदर्थ मैं पुनः उनके प्रति श्रद्धावनत होता हूँ ।
इस अवसर पर डॉ० विश्वम्भर शरण पाठक, आचार्य एवं अध्यक्ष, प्राचीन इतिहास विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । डॉ० पाठक ने मेरे अनुसन्धान में सदैव अभिरुचि प्रकट की तथा मुझे शीघ्र कार्य करने के लिये उत्प्रेरित किया ।
अपने परम बन्धु डॉ० हेमचन्द्र जोशी, उपाचार्य, संस्कृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रति नमन उपहृत न करना एक साहस का कार्य होगा। उनकी प्रेरणा ने सदैव मुझे आगे बढ़ने में मार्गदर्शन दिया है ।
डॉ० प्रताप सिंह, अध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय ने न केवल इस अनुसन्धान कार्य में अपनी अभिरुचि प्रदर्शित की; अपितु वे बराबर अपने बहुमूल्य समय की विना चिन्ता किये इसकी प्रगति का लेखा-जोखा करने के लिये कष्ट उठाते रहे। उनके इस सहज स्नेह के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ ।
डॉ० शैलनाथ चतुर्वेदी, प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय मेरे प्रणम्य पुरातन हैं; क्योंकि वे हमारे वैष्णव- परिवार के आचार्यकुल के जातक हैं। डॉ० चतुर्वेदी ने मुझे ग्रन्थों की सहायता तथा अनेक सुझावों से अनुशासित किया है । उनका अनुशासन मेरे लिये सहज ही था। उन्हें मैं अपने अनेक विनीत प्रणाम समर्पित करता हूँ ।
डॉ० दयानाथ त्रिपाठी, उपाचार्य, प्राचीन इतिहास विभाग को मेरे अनेक आशीर्वाद; क्योंकि मेरे वे नाती हैं । डॉ० त्रिपाठी ने मेरे लिये अनेक सन्दर्भों को खोजने का कष्ट उठाया, अतएव वे और भी आशीराशि के अधिकारी बन जाते हैं ।
डॉ० योगेन्द्रनाथ चतुर्वेदी, रीडर, रसायन-विज्ञान, गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। डॉ० चतुर्वेदी सहजभाव से, स्नेह एवं अनुराग से अनुसन्धान की प्रगति की बराबर खोज करते रहे और मुझे प्रणोदित भी करते रहे ।
अपने परम सुहृद् श्री रामसूरत, कुलसचिव, गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर को धन्यवाद देकर मुक्त नहीं होना चाहूँगा । उनसे मेरा केवल निवेदन यह है कि अब वे मुझे उलाहना देने का कष्ट न करें। मैंने उन्हें दिये गये वचन को पूरा कर दिया ।
यदि अपनी अन्नपूर्णा भाभी श्रीमती रमा बनर्जी के चरणों में अपना माथा न झुकाऊँ, तो इसके लिये भी उनको डाट-फटकार सहनी पड़ेगी। अनुसन्धान कार्य पूरा करने के लिये वे सदैव मुझे डांटती ही रही हैं । मुझे खेद केवल इस बात का है कि अब तो अनुसन्धान का कार्य मैंने पूरा कर लिया है, फिर वे किस बात के लिये डांटेगीं ? उनकी फटकार सुने विना मेरा तो सुख-चैन हो छिन जायेगा। उनसे मेरी केवल यही प्रार्थना है कि वे अपने चरणों की धूल मेरे माथे पर सदा चन्दन बनाकर निखारती रहें ।
इस अवसर पर मैं अपनी स्नेहशीला दूसरी भाभी श्रीमती चम्पादेवी पाठक के अरुणिम चरणों में अपनो अनेक प्रणतियाँ बिखेरता हूँ । उनके स्नेहभरे मादक उलाहनों से ही मेरा यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अतएव मैं बारम्बार उनके प्रति शिरसा नत होता हूँ ।
अपने शिष्य और सहयोगी डॉ० रविनाथ मिश्र, डॉ० रामव्यास पाण्डेय तथा डॉ० असहाब अली को अनेकानेक आशीर्वाद देता हूँ । इन लोगों ने इस अनुसन्धान में अनेकविध सहायता की और मनोयोग से अनुसन्धान से सम्बन्धित सामग्री के आकलन के कार्य में परिश्रम किया ।
अपने अनन्य सहयोगी डॉ० कपिलदेव शुक्ल को भी अग्रज होने के नाते आशीर्वाद देता हूँ । डॉ० शुक्ल ने मुझे अनुसन्धान की पाण्डुलिपि तैयार करने में अत्यधिक सहायता दी है ।
श्री हरिवंश मिश्र, अनुसन्धाता, अंग्रेजी विभाग ने अनेक अंग्रेजी ग्रन्थों से सन्दर्भ जुटाने में मुझे सहायता प्रदान की। एतदर्थ मैं उनके अभ्युदय की कामना करता हूँ। डॉ० देवनाथ पाठक एवं डॉ० कालीप्रसाद दुबे ने बाहर से कई पुस्तकों को लाकर मुझे जो सहायता दी है, उसके लिये मैं उन्हें भी आशीर्वाद देता हूँ ।
टंकित प्रबन्ध की अशुद्धियों को शुद्ध करने तथा सन्दर्भ-ग्रन्थों की सूची बनाने आदि अनेक कार्यों में चि० रामदरस पाण्डेय ने भूरि परिश्रम किया है। इसके लिये उन्हें मेरे अनेक आशीर्वाद । मैं उनके अभ्युदय तथा मंगल की कामना करता चि० रामदरस के कार्यों में मेरे शिष्य अवधराज मिश्र ने भी बहुत सहायता की है । उनके परिश्रम के लिये मेरे अनेक आशीर्वाद ।
अपनी समसुखदुःखभागिनी सहचारिणी पत्नी श्रीमती बिन्दु त्रिपाठी का उल्लेख करना यद्यपि अपना ही उल्लेख करना होगा; तथापि उनकी साधना का ऋण
कभी चुकाया नहीं जा सकता । मेरी ज्येष्ठ पुत्री कुमारी सुधा विश्वबिन्दु निरन्तर मुझसे अनुसन्धान पूरा करने के लिये झगड़ती रही है । अतएव उसे इस अलौकिक कार्य के लिये ढेर सारी स्नेहराशि । मेरी छह वर्ष की छोटी बिटिया कुमारी रम्या विश्वबिन्दु इन दिनों निरन्तर मेरे लेखन में प्रवृत्त रहने के कारण खोयी-सी रही है । कारण यह था कि उसके काका (मैं) उसका मनोरञ्जन नहीं कर पा रहे थे । अस्तु, उसे अनन्तानन्त स्नेह ।
में उन गुरुजनों की वन्दना करता हूँ, जिन्होंने इस अनुसन्धान में सदैव अभिरुचि प्रदर्शित की तथा इसे पूरा करने के लिये बराबर अभिप्रेरित करते रहे । उनमें प्रमुख हैं - आचार्य बदरीनाथ शुक्ल, पूर्व-कुलपति, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, मेरे विद्यागुरु आचार्य भूपेन्द्रपति त्रिपाठी, पूर्व-प्रोफेसर, व्याकरण विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, डॉ० चण्डिका प्रसाद शुक्ल, पूर्व प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा पूर्व - प्रोफेसर लक्ष्मीकान्त दीक्षित, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ।
अपने अग्रज एवं परममित्र डॉ० कालिकाप्रसाद शुक्ल, पूर्व प्रोफेसर व्याकरण विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रति मैं अपनी विनीत प्रणति अर्पित करता हूँ । डॉ० शुक्ल ने अनेक सुझावों से मुझे उपकृत किया है ।
परम शुभैषी स्व० डॉ० रामसुरेश त्रिपाठी, पूर्व- प्रोफेसर, मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ तथा स्व० डॉ० सूर्यकान्त शास्त्री, पूर्व मयूरभंज प्रोफेसर, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का पावन स्मरण करना मेरा कर्तव्य है । मेरा दुर्भाग्य कि आज वे इस धरती पर नहीं है । ये दोनों मनीषी मेरे इस अनुसन्धान की पूर्ति के विशेष अभिलाषी थे। उनके सामने मैं अपना अनुसन्धान पूरा नहीं कर सका । इसका दुःख मुझे जीवन भर सालता रहेगा ।
अपने मित्र श्री लक्ष्मीनारायण तिवारी, पुस्तकाध्यक्ष, सरस्वतीभवन पुस्तकालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना केवल औपचारिकता होगी। उन्होंने अनेक पुस्तकों को सुलभ कराने में बराबर सहायता दी । उनके द्वारा उपहृत लेखनी से ही इस अनुसन्धान का सारा लेखन हुआ है । अतएव उन्हें प्रणाम करना मेरा धर्म है ।
श्री हरिहरनाथ पाण्डेय ने जिस परिश्रम एवं तत्परता से इस दुरूह अनुसन्धान प्रबन्ध को मनोयोगपूर्वक टंकित किया है, उसके लिये उन्हें मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूँ ।
उन सभी स्वजनों को मैं धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने जाने-अनजाने, चाहेअनचाहे इस ग्रन्थ को लिखने में शुभ प्रेरणा दी है। सभी के नामों का उल्लेख न कर सकने की मेरी अपनी विवशता है ।
उन गुरुजनों से मैं क्षमा प्रार्थी हूँ, जिनके विचारों से सहमति नहीं प्रकट कर सका। जिन विद्वानों के मतों का इस ग्रन्थ में खण्डन किया गया है, वे मेरी विवशता को समझ कर क्षमा करेंगे। इसका हेतु सिद्धसेन दिवाकर की वक्ष्यमाण पंक्तियों में देखा जा सकता है -
जनोऽयमन्यस्य मृतः पुरातनः पुरातनैरेव समो भविष्यति । पुरातनेष्वित्यनवस्थितेषु कः पुरातनोक्तान्यपरीक्ष्य रोचयेत् ।।
अवन्ध्यवाक्या गुरवोऽहमल्पधीरिति व्यवस्यन् स्ववधाय धावति ।
कार्तिक प्रबोधिनी २०४६ वैक्रमाब्द
विद्वज्जनकृपाभाजन विश्वम्भरनाथ त्रिपाठी |
d358705a5e0ed0a6ccbcdc7243860f3f0f47b0f1fb2ce9c1aa61174e43f83466 | pdf | है। मैं नहीं कह सकता कि अच्छा हुआ या बुरा हुआ ।'
जब पूरा चित्र सामने होता है तब कहा जा सकता है कि अच्छा हुआ या बुरा हुआ । अधूरे चित्र के आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता । आदमी जब अधूरे विचारों, अधूरे विकल्पो और अधूरी भावनाओं के आधार पर निर्णय लेता है तब संघर्ष और युद्ध पैदा होते हैं। आवश्यकता है कि आदमी में समग्रता के दृष्टिकोण का विकास हो ।
विधायक दृष्टिकोण की लम्बी समीक्षा है। उसका पहला सूत्र है- समग्रता की दृष्टि का विकास । जब यह पहला सूत्र जीवन मे क्रियान्वित होता है तब विधायक दृष्टिकोण का विकास होने लग जाता है।
गर्मी का मौसम। जेठ की दुपहरी । चिलचिलाती धूप । इस गर्मी मे आदमी का दिमाग भी गर्मा जाता है। दिमाग ठंडा होता है तो चिन्तन मे सुविधा होती है। दिमाग गर्म होता है तो चिन्तन मे असुविधा होती है। असुविधा ही नहीं, अनेक कठिनाइयां पैदा हो जाती है, आदमी न जाने क्या-क्या कर बैठता है। स्वास्थ्य का एक लक्षण है-पैर गर्म रहे और दिमाग ठंडा रहे। पर उल्टा हो जाता है। पैर ठडे हो जाते है और दिमाग गर्म हो जाता है। यह विचित्र स्थिति है । यदि दिमाग ठडा रहता है तो आदमी लम्बे समय तक जी सकता है, शाति और आनन्द के साथ जी सकता है। दीर्घ श्वास का एक सूत्र है - दिमाग को ठंडा रखना ।
आज के वैज्ञानिक एक नई विधि का विकास कर रहे है, जिससे आदमी पांच सौ वर्षों तक या हजार वर्षों तक जी सके । यह विधि है - शीतलीकरण की । · आदमी को ठंड मे जमा दिया जाय । दस वर्ष तक वह ठड मे जमा रहा। दस वर्ष बाद उसे गरमाया और वह जी उठा । यदि बार-बार इस शीतलीकरण की प्रक्रिया हो दोहराया जाये तो वह पाच सौ वर्ष भी जी सकता है और हजार वर्ष भी जी सकता है । वैज्ञानिकों ने चींटियो को ठड मे जमा दिया । सब चींटियां मृतवत् हो गईं । दस मिनट बाद उन्हे गरमाया गया । वे पुन. जी उठीं। उनमे हलन-चलन प्रारम्भ हो गया। हम बहुत बार देखते है, मक्खिया और चींटिया जब बहुत ठंडे पानी में गिर जाती है, तब वे मृत जैसी हो जाती है, फिर जब उन्हें भाप से गरमाया जाता है या धूप में रखा जाता है तो वे पुन. जीवित हो उठती हैं ।
मनुष्य का कायाकल्प किया जा सकता है - शीतलीकरण के द्वारा, पूरे शरीर को ठंडा करके । यदि बीमार को ठंडा किया जा सके तो वह बहुत लम्बा जी सकता है। एक बात और है। पूरे शरीर को ठडा न भी किया जा सके पर यदि दिमाग ठंडा रह सके तो आदमी लम्बा जी सकता है । जितनी आकाल मृत्यु होती है, छोटी आयु मे मौत होती है, उसका एक कारण यह है कि व्यक्ति का दिमाग बार-बार गर्म हो जाता है, आग बार-बार जल उठती है, आच इतनी गहरी हो जाती है कि कोशिकाए जल्दी नष्ट होने लग जाती है ।
हमारे जीवन का आधार है- मस्तिष्क की कोशिकाएं । जब तक कोशिकाए जीवित रहती हैं, सक्रिय रहती हैं तो हृदय गति बन्द हो जाने पर भी आदमी मरता नहीं। हृदय की गति बंद है, श्वास की गति बन्द है किन्तु यदि मस्तिष्क
कैसे सोचे ? (२)
की कोशिकाए जीवित हैं तो आदमी मरेगा नहीं, फिर जी जाएगा। कई बार ऐसा देखा गया है कि डाक्टर जिस व्यक्ति को मृत घोषित कर देता है, वह व्यक्ति कुछ समय बाद जी उठता है। कभी-कभी वे व्यक्ति भी जी जाते हैं, जिनकी अर्थी निकल चुकी है, जो श्मशानघाट पहुंच चुके हैं, जिनको चिता पर लेटा दिया गया है, चारों ओर लकडियां चिन दी गई हैं, पर अचानक हलचल होती है, लकडियां इधर-उधर बिखर जाती हैं और वह व्यक्ति अंगडाई लेते हुए उठ-बैठता है। लोग उसे भूत समझ लेते है, पर यथार्थ में वह मरा ही नहीं था । वह जीवित था । डाक्टर ने घोषित कर दिया और हमने मान लिया । पर वास्तव मे उसका मस्तिष्क सक्रिय था, मस्तिष्क मरा नहीं था और जब तक मस्तिष्क नहीं मरता, आदमी नहीं मरता, फिर चाहे हार्ट बद हो जाए, नाडी बन्द हो जाए ।
हमारे जीवन का मूल आधार है- मस्तिष्क । वह मस्तिष्क जितना ठडा रहता है उतना ही जीवन अच्छा रहता है और उतना ही चिंतन स्वस्थ होता है। स्वस्थ चितन के लिए, विधायक और सतुलित चिन्तन के लिए मस्तिष्क का ठडा होना बहुत जरूरी है। इस दृष्टि से चितन का दूसरा मानदंड होगा कि चिंतन आवेश की स्थिति में किया जा रहा है या अनावेश की स्थिति में किया जा रहा है ? आवेश चितन का दोष है। आवेश आया, चिंतन शुरू किया, चितन तो हो सकता है पर चिंतन स्वस्थ नहीं होगा, सही नहीं होगा, संतुलित और विधायक नहीं होगा। विधायक चिन्तन तभी हो सकता है जब आवेश की स्थिति न हो । चिंतन का आधार तथ्य होना चाहिए। तथ्यो के आध
पर जो चिंतन होता है, वह चिंतन उपयोगी तथा जहां तथ्य गौण और आवेश मुख्य हो जाता है वहां चिन्तन कार्यकारी नहीं होता है। जो व्यक्ति ध यान का अभ्यासी नहीं होता, जिसका मन पर अधिकार नहीं होता, जिसका मन शात और संतुलित नहीं होता, वह व्यक्ति तात्कालिक चितन करता है, आवेशपूर्ण चिंतन करता है। उसका चिंतन कभी सही नहीं होता ।
एक राजनेता के पास मित्र ने आकर कहा- 'अमुक अमुक व्यक्ति आपको गालियां बक रहा था ।' राजनेता ने सुना, आगबबूला हो गया, बोला- पहले मुझे चुनाव जीत लेने दो, मंत्री बन जाने दो, फिर मैं बता दूगा कि गाली देने का परिणाम क्या होता है ?
यह आवेशपूर्ण चितन का परिणाम है। उसे जानना चाहिए था कि अमुक आदमी ने गालिया दीं या नहीं। एक बात हुई, आवेश जागा और आवेश ही चितन बन गया । यह भयंकर अवस्था है। क्रोध का आवेश और अहंकार का आवेश कितना भयकर होता है, यह अज्ञात नहीं है। इसके दुष्परिणामो से हम अवगत हैं। नौकर बात नहीं मानता, तत्काल अहकार का आवेश आ
जाता है और उस आवेश मे क्या-क्या नहीं कर दिया जाता ? गालियां बोली जाती हैं, नौकर को पीट दिया जाता है, उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है । यह सारा अहंकार के आवेश के कारण होता है। क्या यह जरूरी है, हर आदमी हर आदमी का आदेश माने ? कोई जरूरी नहीं है। मानना अच्छा होता है, पर कभी-कभी न मानना उससे भी अच्छा होता है । मालिक सोचता है तो नौकर नहीं सोचता ?
मालिक ने नौकर से कहा- जाओ, बगीचे मे पानी सींच आओ ।' नौकर बोला-'मालिक' बाहर मूसलाधार वर्षा बरस रही है। पानी सींचने से क्या ?' मालिक बोला- मूर्ख हो तुम । वर्षा बरस रही है तो छाता ले जाओ और पानी सींच आओ ।' नौकर अब क्या करे ? कहने वाला मालिक इतना भी नहीं सोचता कि मूसलाधार वर्षा हो रही है, पौधो को पानी सींचने का अर्थ ही क्या हो सकता है ? नौकर इस आदेश को माने तो क्यों ?
आदेश देने वाले सभी बहुत समझदार होते हैं और बहुत विवेकपूर्ण आदेश देते हैं, ऐसा तो नहीं है। बहुत बार ऐसे आदेश दे दिये जाते हैं कि उन्हे मान लेने पर अनर्थ हो सकता है। किन्तु न मानने पर मालिक का क्रोध और आवेश तैयार रहता है। उसके परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। आवेश के कारण चिन्तन की दिशाए विकृत बन जाती हैं। आदमी एक दूसरे को समझ नहीं पाता। पति-पत्नी, भाई-भाई, नौकर - स्वामी के संबंधों मे जो दूरी आती है, उसमे आवेश का मुख्य हाथ रहता है। जब आवेश का परदा बीच में होता है तब आदमी दूसरे आदमी को समझ नहीं पाता, देख नहीं पाता। आवेश ही दिखेगा। सामने वाला व्यक्ति वैसा ही दिखेगा जैसा प्रतिबिम्ब आवेश के साथ जुडा हुआ है। आवेश चितन को कभी सम्यक् नहीं होने देता। इसलिए संतुलित चिन्तन का मानदण्ड बनता है - अनावेश अवस्था का अभ्यास। यह कैसे हो सकता है ? क्या क्रोध और अहकार को कम किया जा सकता है ? लोग इस भाषा मे नहीं सोचते कि अहंकार को मिटाया जा सकता है या कम किया जा सकता है ? वे इस भाषा मे सोचते हैं कि क्रोध तो स्वभाव है, वह मिटने वाला नहीं है। अहकार मनुष्य का स्वभाव है, वह मिटने वाला नहीं है। आदमी बदलता नहीं । ये मिटते नहीं। आदमी नहीं बदलता, इसको मान लेने पर बदलने का प्रश्न ही नहीं उठता । ध्यान का अभ्यासी व्यक्ति सबसे पहले इस मिथ्या धारणा को तोड़ता है । जो इस धरणा को नहीं तोडता, वह ध्यान का अच्छा अभ्यासी नहीं हो सकता। ध्यान का अभ्यास करने वाले को पहला पाठ पढना होगा कि आदमी बदल सकता है, उसका स्वभाव बदल सकता है। यदि आदमी न बदले, स्वभाव न बदले तो ध्यान को ही बदल देना
चाहिए, छोड देना चाहिए । फिर ध्यान का कोई प्रयोजन नहीं, कोई सार्थकता नहीं । ध्यान की सार्थकता तो यही है कि चित्त इतना एकाग्र और निर्मल बन जाए कि उसमें जो बुरे स्वभाव के परमाणु जमे हुए हैं, वे सारे के सारे धुलकर बह जाए । चित्त निर्मल हो जाए। जब चित्त साफ हो जाता है फिर आदते कहा टिकती हैं ? सारी आदते चित्त की कलुषता मे टिकती हैं। कलुषता की इतनी चिकनाहट चित्त पर जमी हुई है कि जो भी आता है वह वहा चिपक जाता है। सारी आदतो, और स्वभावो को आधार देने वाला है चित्त, चेतना ।
एक प्रश्न आता है, आत्मा निर्मल होती है, चेतना निर्मल होती है फिर कर्म उस पर कैसे चिपक जाते हैं ।
लोग आरोपण की भाषा बहुत जानते हैं । जो नहीं है, उसे आरोपित कर लेते हैं। चेतना निर्मल हो सकती है, होगी, पर वर्तमान में वह निर्मल नहीं है। जो वर्तमान मे नहीं है, उसको उसी पर्याय मे देखा जाए । भविष्य के पर्याय का वर्तमान मे आरोपण न हो और अतीत के पर्याय का भविष्य मे आरोपण न हो। आरोपण से अनेक कठिनाइया उत्पन्न हो जाती हैं। सोना जो आच मे तपा, वह निर्मल हो गया, पीला हो गया, चमकदार बन गया । पर खदान से निकलते सोने को देखकर यह कल्पना नहीं की जा सकती कि सोना इतना चमकदार होता है । उस समय वह केवल मिट्टी का ढेला होता है। कच्चे सोने मे और पक्के सोने में बहुत अन्तर होता है। आग मे निकलने वाले सोने की चमक और मिट्टी के साथ मिले हुए सोने की चमक की तुलना ही क्या ? सारे मलो के दूर हो जाने के पश्चात् जो चमक आती है, वह निराली होती है। इसी प्रकार साधना की भट्टी मे पक जाने के बाद चेतना मे जो निर्मलता आती है उस निर्मलता की कल्पना कृषाय- मलिन, विषय और वासना से लिप्त चेतना मे नहीं की जा सकती । वर्तमान मे हमारी चेतना कषायों से लिप्त है । क्रोध, अहंकार, कपट, छलना, प्रवचना, लालच, घृणा, भय, ईर्ष्या, राग और द्वेष, प्रियता और अप्रियता के सवेदन- इन सबसे जुडी हुई चेतना निर्मल कैसे हो सकती है ? इन सबको टिकाए हुए कौन है ? अचेतन मे कभी क्रोध नहीं होता । क्या दीवार कभी गुस्सा करती है? यदि ये दीवारें गुस्सा करने लग जाए तो आदमी की ऐसी स्थिति होगी कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकेगी। पट्ट, जिस पर हम बैठते हैं, वह कभी गुस्सा नहीं करता। उस पर हम पैर रखते हैं, पर वह कुछ नहीं कहता । किसी के सिर पर पैर रख कर देखे । छूते ही आदमी बडबडाने लग जाता है, उसका पारा चढ जाता है, पर बेचारा पट्ट न कभी क्रोध करता है और न कभी अहकार करता है। किसी आदमी के सिर पर पैर रखे, अहंकार का सर्प फुफकार उठेगा ।
अचेतन में न क्रोध होता है, न अहंकार होता है और न छलना / प्रवंचना होती है। आदमी आदमी को ठग लेता है, चेतन चेतन को ठग लेता है। पर कभी जड ने किसी चेतन को ठगा हो, ऐसा देखने-सुनने में नहीं आया। ये सारी प्रवंचनाएं, सारी ठगाइयां आदमी ने ही पैदा की हैं और आदमी ही इन्हें करता चला जा रहा है। दूसरे शब्दो में, चेतन ने पैदा की है और चेतन ही करता चला जा रहा है। इसका निष्कर्ष है कि सारी बुराइयों को चेतन ही टिकाए हुए है। अचेतन में कोई बुराई नहीं होती। अचेतन मे तो जो होता है वह होता है। न अच्छाई होती है और न बुराई होती है । चेतन ही सव टिकाए हुए है, पर कब तक यह प्रश्न है। जब तक चेतन अपने चेतनस्वरूप का अनुभव नहीं करता, तव तक ये दोष टिके हुए रहते हैं ।
ध्यान चेतन स्वरूप के अनुभव की प्रक्रिया है। ध्यान अपने स्वरूप के जागरण की प्रक्रिया है। जब तक स्वरूप की विस्मृति बनी रहती है तब तक ये सारे दोष चेतन मे टिके रहते हैं । उनको आधार और सहारा मिलता रहता है। इतना वातानुकूलित स्थान मिल गया है उनको कि वहां न सर्दी का भय है और न गर्मी का भय है। जितने पाप हैं, दोष हैं, बुराइया हैं- ये सारे चेतन के आधार को पाकर मजे से जी रहे हैं, पनप रहे हैं। जिनको आधार प्राप्त है, वे आराम से जी रहे हैं और जो आधार देने वाला है, वह बुरे हाल मे जी रहा है। वडी विचित्र स्थिति है। ऐसा होता है। मकान मालिक दु.ख पाता है और किरायेदार सुख से जीता है। किरायेदार से मकान खाली करा पाना सहज नहीं है। इन दोषों से चेतना को मुक्त कर पाना सहज-सरल नहीं है। इस अर्थ में लोगो की धारणा एकदम गलत नहीं है कि स्वभाव को बदला नहीं जा सकता। असंख्य काल से जो संस्कार चेतन पर अधिकार किए बैठे हैं, उन्हें सरलता से उखाडा नहीं जा सकता। किन्तु ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे चेतना पर आई हुई चिकनाहट को धीरे-धीरे साफ किया जा सकता है। और जव चिकनाहट धुलती है तब उस पर चिपके रहने वाले तत्त्व भी धुलते जाते हैं। किरायेदार को कानून की ओर से कुछेक अधिकार प्राप्त है। उससे मकान खाली नहीं कराया जा सकता। पर जब मकान जर्जर हो जाता है, मूसलाधार वर्षा होती है, तुफान आता है तो वह मकान ढह जाता है। उस स्थिति में सारे किरायेदार बोरिया-विस्तर समेट कर अन्यत्र चले जाते हैं । मकान अपने आप खाली हो जाता है। ध्यान एक ऐसी मूलसाधार वर्षा है, ऐसा तूफान है कि मकान को खंडहर बना देता है और तब सारे किरायेदार-दोष निकल भागते हैं। यह है बदलने की प्रक्रिया । सव कुछ बदल जाता है।
इस दुनिया मे कुछ परिवर्तनीय है और कुछ अपरिवर्तनीय । जो अपरिवर्तनीय है, जो ध्रौव्याश है उसे नहीं बदला जा सकता। किन्तु जो पर्याय हैं, उन्हे बदला जा सकता है। कोई भी पर्याप अपरिवर्तनीय नहीं होता। क्रोध की अवस्था एक पर्याय है, मान और अहकार की अवस्था एक पर्याय है, लोभ की अवस्था एक पर्याय है, प्रियता और अप्रियता की अवस्था एक पर्याय है। ऐसे हजारो पर्याय हैं । वे कभी अपरिवर्तनीय नहीं होते। उन्हे बदला जा सकता है। सारे संबंध और सभी कर्म पर्याय हैं। उन्हे बदला जा सकता है। मूल तत्त्व को नहीं बदला जा सकता। मूल तत्त्व दो ही हैं- चेतन और अचेतन । ये नहीं बदले जा सकते । चेतन अचेतन में या अचेतन चेतन में नहीं बदला जा सकता । पर्याय बदले जा सकते हैं। जब यह तथ्य जान लिया जाता है तब सारे सबंध-विजातीय भाव टूटने लग जाते हैं। उस स्थिति मे यह स्पष्ट अनुभव होने लगता है कि ध्यान विसंबंध की प्रक्रिया है। ध्यान करने वाले व्यक्ति की चेतना संबंधातीत होने लग जाती है। यह व्यवहार मे कुछ अटपटी-सी बात लगती है। पर यह होता है । उस व्यक्ति का सारा रस बदल जाता है, मर जाता है । जब वह परम रस मे मग्न हो जाता है, तब ये नीचे के रस तुच्छ हो जाते हैं, रसहीन हो जाते हैं। पदार्थ मे रसानुभूति तब तक ही होती है जब तक रसातीत अवस्था का अनुभव नहीं हो जाता। ध्यान से सबंधातीत अवस्था का उदय होता है और तब सब कुछ विसबधित हो जाता है। पदार्थ पदार्थ मात्र रह जाता है और चेतना चेतना मात्र रह जाती है । पदार्थ को चेतना के साथ जोडने वाला सूत्र है - आसक्ति । वह ध्यान की प्रक्रिया से कट जाता है, तब पदार्थ उपयोगिता मात्र रह जाता है । जीना है तो श्वास लेना ही होगा, भोजन और पानी का उपयोग करना ही होगा। जीना है तो कपडे और मकान का उपयोग करना ही होगा। इन सब मे उपयोगिता की दृष्टि बनी रहती है, मूर्च्छा या आसक्ति टूट जाती है, यह एक नई स्थिति का निर्माण है।
ध्यान के द्वारा चिन्तन मे सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है। उसका साधन बनता है-अनावेश । यह है आवेश का अभाव । चिन्तन का एक दोष है - सदेह । आदमी सदेह बहुत करता है। वह खतरा उठाता है, इसलिए सदेह करता है। एक कहावत है - दूध से जला छाछ को भी फूक - फूक कर पीता है। इसमे सचाई है। आदमी जब ठगा जाता है तब हर बात मे सदेह करने लग जाता है। यदि प्रवंचना के तत्त्व समाज मे नहीं होते तो आदमी मे |
4ff4c14de94714101edc6fc7d1b7c4d1b716d6c36cc18446feb15705b569b771 | pdf | निर्मूल होकर यह वृक्ष फिर नहीं पनपता ॥११।।
इस लोक के कर्म का मूल शरीर ही पूर्वजन्म के कर्म का विस्ताररूप भी होता है, इस दूसरे प्रश्न का भी शरीर का ही कर्मवृक्षरूप से वर्णन करके समाधान देते हैं।
हे ब्रह्मन्, संसाररूपी जंगल में रोपा गया यह शरीर ही कर्मवृक्षरूप से उत्पन्न है । यह कर्मरूपी वृक्ष विचित्र हाथ, पैर आदि अंगरूपी शाखाओं से विराजमान है ।।१२।। सुखदुःखरूपी नानाविध फलों की पंक्तियों से समन्वित इस वृक्ष का पूर्व जन्म में किया गया भला या बुरा कर्म ही बीज है । क्षणिक तरुण अवस्था से यह कमनीय दिखाई देता है और वृद्धावस्थारूपी फूलों से हँसता है ॥१३॥ प्रत्येक क्षण में कालरूपी उग्र बन्दर हर्ष, विषाद, रोग, जरा आदि विकार की चेष्टाओं के द्वारा इसकी आकृति को नष्ट करता है । निद्रारूपी हेमन्त ऋतु के जठर में इसके स्वप्नरूपी पत्तों के निर्गम संकुचित हुए रहते हैं ।।१४।। अपनी वृद्धावस्थारूपी शिशिर ऋतु के अन्त में इसके चेष्टारूप पत्तों के समूह शान्त और शीर्ण हो जाते हैं । जगत्-रूपी जंगल में उत्पन्न हुए इस वृक्ष के समीप में स्त्री, पुत्र आदि पोष्यवर्गरूपी बहुत से तृण पैदा हुए हैं ।।१५।। हाथों और पैरों के पिछले हिस्से तथा ओष्ठ, कान और जीभ - आदि इसके लाल-लाल कोमल पल्लवरूप अवयव हैं और हाथों एवं पैरों के तलवे कुछ कठोर होने से कम लालिमा लिये हुए इसके कुछ गोल तथा सुन्दर रेखाओं से युक्त चंचल पत्ते हैं ।।१६।। भीतर में स्थित नाड़ियों तथा हड्डियों से लिप्त होने के कारण सुन्दर, कोमल और चिकनी मूर्ति लाल अंगुलियाँ ही इसके वायु से कम्पित हो रहे बाल पल्लव हैं ।।१७।। काटने पर भी पुनः पुनः उत्पन्न होनेवाली कोमल, चिकनी, तीक्ष्ण अग्रभागों से युक्त दूज की चन्द्रकला के आकारवाली इसकी नख पंक्तियाँ ही गोल-गोल कलियाँ है ॥१८॥ इस तरह देह वृक्षरूप से उत्पन्न हुए पूर्व जन्म के कर्म की कर्मेन्द्रियाँ ही मूल है । (इनमें वृक्षमूल के धर्म दिखलाते हैं ) इनमें जो छिद्रों से युक्त हैं, वे तो आसंग-कामादिरूपी साँपों से हँसे गये हैं और जो बिना छिद्रों के हैं उनमें भी बड़ी-बड़ी गाँठें पड़ गई हैं ।।१९।।
हे भगवान्, दृढ़ हड्डियों की गाँठों से बँधी, नाड़ियों में भरे गये अन्नरसों में डूबी हुई, वासनारूपी रस को पी जानेवाली तथा अपने रक्तरूप रस से परिपूर्ण; एड़ी के ऊपर की गाँठ से युक्त, दृढ़ अंगोंवाली, सुन्दर त्वचाओं से समन्वित और चिकनी उन कर्मेन्द्रियों के भी मूल आप ज्ञानेन्द्रियों को जानिये ॥२०, २१॥ ज्ञानेन्द्रियाँ देह से बाहर बहुत दूर विषय प्रदेशों में जाकर भी विषयों को पकड़ लेने में अत्यन्त समर्थ हैं, नेत्रगोलक आदि पांच तरह के स्थानों में वे आश्रित हैं और अपने-अपने विषय-वासनारूपी कीचड़ में निमग्न अतएव वासनायुक्त हैं तथा उन्हें निगृहीत करना शक्य नहीं है - काबू के बाहर है ।।२२।। उन ज्ञानेन्द्रियों का भी महान् स्तम्भयुक्त मूल यह मन है, इसने तीनों लोक को व्याप्त कर रक्खा है तथा यही अनन्त
सर्ग २]
रूपादि रसद्रवों को पांच ज्ञानेन्द्रियों के स्रोतरूपी नाड़ियों के द्वारा खींचकर उनका उपभोग कर लेने के बाद फिर उन्हें फेंक देता है ।।२३।।
हे भगवान्, उस मन का मूल तत्त्वज्ञानी लोग चेत्य (विषय) की ओर उन्मुख हुए चिदात्मक जीव को (चिदाभास को) कहते हैं। चेत्यांश का मूल अविद्याशबल (मायाशबल) चिति है। उस चिदाभासरूप चिति का भी मूल बिम्बभूत ब्रह्म है, जो सब मूलों का एक कारण है । हे ब्रह्मन्, चूँकि वह अशब्द, अनन्त, शुद्ध और सत्यस्वरूप है, इसलिए उस ब्रह्म का कोई दूसरा मूल नहीं है ॥२४, २५॥
हे महर्षे, इस तरह सम्पूर्ण कर्मों का मूल विषयों की ओर उन्मुख हुई चिति ही है। वह अहंकारादि के साथ तादात्म्यापन्न होकर 'मैं ही सब कुछ करती हूँ' यों कर्ता के स्वरूप की भावना करके क्रियात्मक स्पन्द बनकर उसके फल के लिए प्रवृत्त होती है ।।२६।। हे मुने, सब कर्मों का आदि बीज यह जीव चेतन ही है, क्योंकि उसके रहने पर ही यह बड़ी-बड़ी टहनियोंवाला शरीररूपी सेमल का वृक्ष पैदा होता है ।।२७।। यह जीवचैतन्य जिस समय अहंकार आदि से युक्त 'मैं ही चेतन कर्ता हूँ' इस तरह की उद्बुद्ध हुई शब्दार्थभावना से समन्वित होता है उसी समय कर्मों की बीजता को प्राप्त होता है, अन्यथा यह अपने सत् परम पदरूप से ही स्थित रहता है ॥२८॥
यह जीवचेतन जब चेतनशब्दार्थ की भावना से यानी चैतन्यात्मक 'मैं ही सब कुछ करता इस तरह की भावना से वेष्टित होता है तब कर्मों की बीजता को प्राप्त होता है, अन्यथा अपने परम सद्रूप पद से स्थित रहता है ॥२९॥
उक्त अर्थ की प्रामाणिकता की सिद्धि के लिए गुरुवाक्य को ही प्रमाणरूप से उपस्थित करते हुए श्रीरामचन्द्रजी अब उपसंहार करते हैं।
इसलिए हे मुनीश्वर, अपने शरीर आदि में अहंरूपता के आकार की भावना ही इस संसार में सब कर्मों की कारण है । यह जो मैंने कर्मों का मूल आपसे कहा है, सो आपने ही पहले मुझसे कहा था, अतः आपके वचन का अवलम्बन करके ही मैंने यह सब आपसे कहा है ।।३०।।
हे श्रीरामजी, यह जो आपने कर्मों का मूल मुझे सुनाया है, इसका त्याग चुपचाप बैठे रहने या देह का त्याग कर देने से नहीं हो सकता है और न तो कर्मों की निवृत्ति ही आपके द्वारा दिखलाये गये मार्ग से हो सकती है, इस अभिप्राय से महाराज वसिष्ठजी कहते हैं ।
महाराज वसिष्ठजी ने कहा : हे राघव, जब तक देहरूप उपाधि उपस्थित है तब तक वेदनात्मक इस सूक्ष्म कर्म का क्या त्याग और क्या अनुष्ठान हो सकता है ? ॥३१॥
देह के विद्यमान रहते बाह्य और आभ्यन्तर दृश्यों के अध्यास को दूर करना अत्यन्त ही कठिन है, यह कहते हैं।
देह रहते बाह्य और आभ्यन्तर जिस-जिस की यह जीवचेतन भावना करता है उसी रूप
का यह शीघ्र हो जाता है, चाहे वह सत्याकार हो या विभ्रम से भरा हुआ बिलकुल असत्य ही क्यों न हो ? ।।३२।। यदि भावना नहीं करता, तो यह अच्छी तरह इस संसार के भ्रम से मुक्त हो जाता है । वह भ्रम सत्य हो या असत्य इस विचार से क्या प्रयोजन है ? ।।३३।। यह जीवचेतन ही वासना, इच्छा, मन, कर्म, संकल्प आदि नामवाले औपाधिक उत्पन्न भ्रमों से अपने अन्दर संसाररूप से विकसित होता है ॥ ३४॥
तब तो प्रतिबिम्ब की हेतु चित्तरूप उपाधि का ही प्रबोध से निरास करना चाहिए, इस शंका पर कहते हैं।
देहरूपी घर के भीतर स्थित प्रबुद्ध हुए या अप्रबुद्ध हुए इस जीव का देहपर्यन्त चित्त रहेगा ही, उसका त्याग हो नहीं सकता ।।३५।। जीवन धारण कर रहे प्राणियों के चित्त का भला कैसे त्याग हो सकता है । इसलिए चुपचाप बैठे रहने या देह के त्याग से सब कर्मों का कभी त्याग नहीं हो सकता, किन्तु यथा प्राप्त सब व्यवहारों को करते समय भी 'असंग, अद्वितीय, कूटस्थ चिन्मात्रस्वरूप मैं कुछ भी नहीं करता', इस निष्क्रिय आत्मस्वभाव की स्थिति से कर्मशब्दार्थ की भावना के उत्पन्न न होने पर यत्न के बिना भी कर्म और अकर्मरूपता का विकल्प छूट जाने से यह कर्म-त्याग स्वयं ही हो जाता है ॥३६॥
इससे भिन्न किसी दूसरे मार्ग से कर्म का त्याग अत्यन्त कठिन है, यह कहते हैं ।
इससे अन्य दूसरे कर्म त्याग का संभव न होने पर जो केवल अपने शरीर से कर्तव्यता त्यागरूप (शास्त्रविहित या लौकिक कर्मों को छोड़कर चुपचाप बैठनारूप त्याग) करता है, उसके द्वारा यह कुछ भी नहीं किया गया समझना चाहिए ॥३७॥ बोध होने के बाद दृश्य-प्रतिभास का स्वयमेव लय होने से जो जगत् का अत्यन्तअभाव होता है उसी को असंग त्याग और मोक्ष भी कहते हैं ॥३८॥
बोध से तो वेद्य का ही बाध होता है, वेदन का नहीं, फिर उसका बाध कैसे कहते हैं, यदि यह कोई आशंका करे, तो उस पर कहते हैं ।
वेद्य (विषयों) के रहने पर ही वेदन होता है । किन्तु यदि सृष्टि के आदि में ही वेद्यदृष्टि उत्पन्न नहीं हुई, तो फिर वह वर्तमानकाल में तो है ही नहीं। इसलिए क्या और कहाँ वेदन है (m) ? ॥३९॥ चिदाभासतारूप वेद्योन्मुखता का परित्याग कर जो वेदन का शुद्ध चिदात्मकरूप अवशिष्ट रहता है वह द्वैतवेदन नहीं है, क्योंकि वह कर्म-क्रिया नहीं है, जिससे कि 'विद्' धातु से भाव में 'ल्युट्' प्रत्यय करने पर जो 'विद्' धातु का अर्थ होता है वह हो । किन्तु वह शांत ब्रह्म ही है, ऐसा तत्त्वज्ञानी लोग कहते हैं ।।४०।। चिदाभासात्मक जो चेतन है वह तो कर्मक्रियारूप ही कहा गया है, क्योंकि बुद्धि आदि व्यापार द्वारा जल आदि में प्रतिबिम्बित आकाश
(II) तत्त्वज्ञानियों की दृष्टि में वेद्यदृष्टि (विषयदृष्टि) न तो उत्पन्न हुई है और न विद्यमान ही है, क्योंकि उपाधि का बाध होने पर चिदाभास की अलग स्थिति नहीं रहती, यह भाव है । |
b48f23549e389d18dd5d7e0b3a86bc77bd1ec0c017a1691ce600505e03df3acf | pdf | सम्यग्ज्ञान प्रौर उसका महात्म्य ]
का समय हो, तूफान हो, भूचाल हो रहा हो, घोर कलह या युद्ध हो रहा हो, किसी महापुरुष के मरण का शोक मनाया जा रहा हो, ऐसे ग्रापत्तियों के समय पर शांति से ध्यान करना योग्य है ।
बड़े आदर से शास्त्र को पढना चाहिये, बडी भक्ति भावो मे रखनी चाहिये कि मैं शास्त्रो को इसीलिए पढता हूँ कि मुझे प्रात्मज्ञान का लाभ हो, मेरे जीवन का समय सफल हो । अन्तरग प्रेम पूर्ण भक्ति को विनय कहते हैं ।
(६) उपधान :- धारणा करते हुए ग्रन्थ को पढना चाहिये । जो कुछ पढा जावे वह भीतर जमता जावे जिससे वह पीछे स्मरण मे श्रा सके । यदि पढते चले गये और ध्यान मे न लिया तो अज्ञान का नाश नही होगा । इसलिए एकाग्र चित्त होकर ध्यान के साथ पढना, धारणा मे रखते जाना उपधान है । यह बहुत जरूरी अग है, ज्ञान का प्रबल साधन है ।
(७) बहुमान शास्त्र को बहुत मान प्रतिष्ठा से विराजमान करके पढना चाहिये । उच्च चौकी पर रखकर आसन से बैठकर पढना उचित है तथा शास्त्र को अच्छे गत्ते वेष्टन से विभूषित करके जहा दीमक न लगे, शास्त्र सुरक्षित रहे इस तरह विराजमान करना चाहिये ।
(८) मनिष :- शास्त्रज्ञान अपने को हो उसको छिपाना नही चाहिये, कोई समझना चाहे तो उसको समझाना चाहिये । तथा जिस गुरु से समझा हो उसका नाम न छिपाना चाहिये । इस तरह जो आठ अगो को पालता हुआ शास्त्रो का मनन • करेगा वह व्यवहार सम्यग्ज्ञान का सेवन करता हुआ आत्मज्ञान रूपी निश्चय सम्यग्ज्ञान को प्राप्त कर सकेगा ।
यद्यपि ज्ञान एक ही है, वह आत्मा का स्वभाव है, उसमे कुछ भेद नही है जैसे सूर्य के प्रकाश मे कोई भेद नही है तथापि सूर्य के ऊपर घने मेघ आ जावे तो प्रकाश कम झलकता है मेघ उससे कम हो तो और अधिक प्रकाश प्रगट होता, और अधिक कम मेघ हो तो और अधिक प्रकाश झलकता । और भी अधिक कम मेघ हो तो और भी अधिक प्रकाश प्रगट होता । बिलकुल मेघ न हो तो पूर्ण प्रकाश प्रगट होता है। इस तरह मेघो के कम व
अधिक आवरण के कारण सूर्य प्रकाश के पाच भेद हो सकते है तथा और भी सूक्ष्म विचार करोगे तो सूर्य के प्रकाश के अनेक भेद हो सकते है उसी तरह ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम या क्षय के अनुसार ज्ञान के मुख्य पाच भेद हो गये है - मतिज्ञान, श्रतज्ञान, प्रवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान तथा केवलज्ञान । मति, श्रुत, अवधि तीन ज्ञान जब मिथ्यादृष्टि के होते है - कुमति, कुश्र त, कुप्रवधि कहलाते है । सम्यग्दृष्टि के मति, श्रुत, प्रवधि कहलाते है। इस तरह तीन कुज्ञान को लेकर ज्ञान के प्राठ भेद हो जाते है ।
मतिज्ञान पाच इन्द्रिय तथा मन के द्वारा सीधा किसी पदार्थ का जानना मतिज्ञान है । जैसे स्पर्श इन्द्रिय से स्पर्श करके किसी पदार्थ को ठण्डा, गरम, रूखा, चिकना, नरम, कठोर, हलका, भारी जानना । रसना इन्द्रिय से रसना द्वारा रसना योग्य पदार्थ को स्पर्श करके खट्टा मीठा, चरपरा, कडवा, कसायला या मिश्रित स्वाद जानना । नासिका इन्द्रिय से गधयोग्य पदार्थ को छूकर सुगन्ध या दुर्गन्ध जानना । चक्षु इन्द्रिय से बिना स्पर्श किये दूर से किसी पदार्थ को सफेद, लाल, पीला, काला या मिश्रित रंग रूप जानना । कानो से शब्द स्पर्श कर मुरीला व अमुरीला शब्द जानना । मन के द्वारा दूर से किसी पूर्व बात को यकायक जान लेना । इस तरह जो सीधा ज्ञान इन्द्रिय व मन से होता है उसको मतिज्ञान कहते है। जितना मतिज्ञानावरण का क्षयोपशम होता है उतनी ही अधिक मतिज्ञान की शक्ति प्रकट होती है । इसलिये सर्व प्रारिणयो का मतिज्ञान एकसा नही मिलेगा। किसी के कम, किसी के अधिक, किसी के मन्द, किसी के तीव्र । जानी हुई चीज का स्मरण हो जाना व एक दफे इन्द्रयो से व मन से जानी हुई चीज को फिर ग्रहण कर पहचानना कि वही है यह सज्ञा ज्ञान, तथा यह चिन्ता ज्ञान कि जहा जहा धूम होगा वहा वहा आग होगी। जहा जहा सूर्य का प्रकाश होगा कमल प्रफुल्लित होगे तथा चिन्ह को देखकर या जानकर चिन्हों का जानना, धूम को देखकर अग्नि का जानना यह अनुमान ज्ञान, ये सब भी मतिज्ञान है क्योंकि मतिज्ञानावरण कर्म क क्षयोपशम से होते है ।
श्र. तज्ञान मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थ के द्वारा दूसरे पदार्थ का या विषय का जानना श्रुतज्ञान है । जैसे कान से आत्मा शब्द सुना यह मतिज्ञान
है । आत्मा शब्द से प्रात्मा के गुरण पर्याय श्रादि का बोध करना श्रुतज्ञान है । इसीलिए शास्त्रज्ञान को श्रुतज्ञान कहते है । हम अक्षरो को देखते है या सुनते है उनके द्वारा फिर मन से विचार करके शब्दों से जिन जिन पदार्थों का सकेत होता है उनको ठीक ठीक जान लेते है यही श्रुतज्ञान है, यह श्रुतज्ञान मनके ही द्वारा होता है। श्रुतज्ञान के दो भेद हैं :- प्रक्षरात्मक श्रुतज्ञान, अक्षरात्मक श्रुतज्ञान । जो अक्षरो के द्वारा अर्थ विचारने पर हो वह अक्षरात्मक श्रुतज्ञान
जैसे शास्त्र द्वारा ज्ञान । जो स्पर्शनादि इन्द्रियो से मतिज्ञान द्वारा पदार्थ को जानकर फिर उस ज्ञान के द्वारा उस पदार्थ मे हितरूप या ग्रहितरूप बुद्धि हो सो अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है। यह एकेन्द्रियादि सब प्राणियों को होता है । जैसे वृक्ष को कुल्हाडी लगाने से कठोर स्पर्श का ज्ञान होना सो मतिज्ञान है, फिर उससे दु ख का बोध होना श्रुतज्ञान है । लट को रसना के द्वारा स्वाद के का ज्ञान होना मतिज्ञान है, फिर उसे वह सुखदाई या दुखदाई भासना श्रुतज्ञान है । चीटी को दूर से सुगन्ध आना मतिज्ञान से सुगन्ध आना मतिज्ञान है फिर सुगंधित पदार्थ की ओर आने की बुद्धि होना श्रुतज्ञान है । पतग को आख से दीपक का वर्ण । देखकर ज्ञान होना मतिज्ञान है । वह हितकारी भासना श्रुतज्ञान है । कर्ण से कठोर शब्द सुनना मतिज्ञान है, वह अहितकारी भासना श्रुतज्ञान है । मतिश्रतज्ञान सर्व प्राणियों को सामान्य से होते है । एकेन्द्रियादि पचेन्द्रिय पर्यत सबके इन दो ज्ञानो से कम ज्ञान नहीं होते है । इन दो ज्ञानो की शक्ति होती है, परन्तु ये ज्ञान भी क्रम से काम करते है ।
अवधिज्ञान :- अवधि नाम मर्यादा का है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा लिये हुए पुद्गलो को या पुद्गल सहित अशुद्ध जीवो का वर्णन जानना इस ज्ञान का काम है । द्रव्य से मतलब है कि मोटे पदार्थ को जाने कि सूक्ष्म को जाने, क्षेत्र से मतलब है कि कितनी दूर तक की जाने, एक कोस की या १०० या १००० या १०००० आदि कोस तक की जाने । काल से मतलब है कि कितने समय आगे व पीछे की जाने । १० वर्ष, १०० वर्ष एक भव या अनेक भव को आगे पीछे । भाव से मतलब अवस्था विशेष या स्वभाव विशेष से है । से अवधिज्ञान के बहुत से भेद हो सकते है, जिसको जितना अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होता है । उतना कम या अधिक अवधिज्ञान होता है। इस ज्ञान
के होने मे मन व इन्द्रियों की जरूरत नहीं है आत्मा स्वय ही जानता है। देव तथा नारकियो को तो जन्म से ही होता है । पशुप्रो को व मानवो को सम्यक्त के व तप के प्रभाव से होता है । यह एक प्रकार की ऐसी विशेष शक्ति का प्रकाश है जिससे प्रवधिज्ञानी किसी मानव को देखकर विचारता हुआ उसके पूर्व जन्म व भागामी जन्म की घटनाओ को जान सकता है। योगी तपस्वी ऐसा अधिक अवधिज्ञान पा सकते हैं कि सैकडो जन्म पूर्व व आगे की बाते जान लेवे । ज्ञान की जितनी निर्मलता होती है उतना ही उसका अधिक प्रकाश होता है ।
दूसरो के मन मे पुद्गल व अशुद्ध जीवो के सम्बन्ध मे क्या विचार चल रहा है व विचार हो चुका है व विचार होवेगा उस सर्व को जो कोई आत्मा के द्वार जान सके वह मनःपर्ययज्ञान है, यह ज्ञान बहुत सूक्ष्म बातो को जान सकता है । जिसको अवधिज्ञानी भी न जान सके इसलिये यह ज्ञान अवधिज्ञान से अधिक निर्मल है । यह ज्ञान ध्यानी तपस्वी योगियों के ही होता है - सम्यग्दृष्टि महात्माओ के ही होता है । मन पर्यय ज्ञानावरण कर्म के कम व अधिक क्षयोपशम के अनुसार किसी को कम या किसी को अधिक होता है ।
केवलज्ञान :- सर्व ज्ञानावरण कर्म के क्षय होने से अनन्तज्ञान का प्रकाश होना केवलज्ञान है । यही स्वाभाविक पूर्ण ज्ञान है, जो परमात्मा अरहत तथा सिद्ध मे सदा व्यक्ति रूप से चमकता रहता है ससारी जीवो में शक्ति रूप से रहता है उस पर ज्ञानावरण का पर्दा पड़ा रहता है । जब शुक्ल ध्यान के प्रभाव से सर्व ज्ञानावरण कर्म का क्षय हो जाता है तब ही यह ज्ञान तेरहवे गुरणस्थान मे सयोग केवली जिनको प्रगट होता है । एक दफे प्रकाश होने पर फिर वह मलीन नही होता है, सदा ही शुद्ध स्वभाव मे प्रगट रहता है। पाच ज्ञानो मे मति, श्रुति परोक्ष है क्योकि इन्द्रिय व मन से होते है परन्तु तीन ज्ञान प्रत्यक्ष है - आत्मा से ही होते हैं ।
श्र सज्ञान ही केवलज्ञान का कारण है :- इन चार ज्ञानो मे श्रुतज्ञान ही ऐसा ज्ञान है जिससे शास्त्र ज्ञान होकर प्रात्मा का भेदविज्ञान होता ह कि यह आत्मा भावकर्म रागादि, द्रव्यकर्म ज्ञानावरणादि व नौकर्म शरीरादि से
भिन्न है, सिद्धसम शुद्ध है। जिसको आत्मानुभव हो जाता है वही भाव श्रुतज्ञान को पा लेता है । यही आत्मानुभव ही केवलज्ञान को प्रकाश कर देता है । किसी योगी को अवधिज्ञान व मन पर्ययज्ञान भी हो तो भी श्रुतज्ञान के बल से केवलज्ञान हो सकता है। अवधि मन पर्ययज्ञान का विषय ही शुद्धात्मा नही है, ये तो रूपी पदार्थ को ही जानते है जब कि श्रुतज्ञान अरूपी पदार्थों को भी जान सकता है इसलिये श्रुतज्ञान प्रधान है । हम लोगो को उचित है कि हम शास्त्र - ज्ञान का विशेष अभ्यास करते रहे जिससे आत्मानुभव मिले । यही सहज सुख का साधन है व यही केवलज्ञान का प्रकाशक है ।
चार दर्शनोपयोग पहले हम बता चुके है कि जीव के पहिचानने के आठ ज्ञान व चार दर्शन साधन है। दर्शन और ज्ञान में यह अन्तर है कि ज्ञान साकार है, दर्शन निराकार है। दर्शन मे पदार्थ का बोध नहीं होता है । जब बोध होने लगता है तब उसे ज्ञान कहते है । जिस समय आत्मा का उपयोग किसी पदार्थ के जानने की तैयारी करता है तब ही दर्शन होता है, उसके पोछे जो कुछ ग्रहण मे आता है वह ज्ञान है । कर मे शब्द आते ही जब उपयोग उधर गया और शब्द को जाना नही तब दर्शन है । जब जान लिया कि शब्द है तब ज्ञान कहा जाता है । अल्पज्ञानियों के दर्शन पूर्वक मतिज्ञान होता है, मतिज्ञान पूर्वक श्रुतज्ञान होता है । सम्यग्दृष्टि महात्माम्रो को प्रवधि दर्शन पूर्वक अवधिज्ञान होता है। केवलज्ञानी को केवलदर्शन, केवलज्ञान के साथ २ होता है । चक्षु इन्द्रिय द्वारा जो दर्शन हो वह चक्षुदर्शन है। जैसे भाँख ने घडी को जाना यह मतिज्ञान है । इसी तरह चक्षु इन्द्रिय के सिवाय चार इन्द्रिय और मन से जो दर्शन होता है वह प्रचक्षुदर्शन है । अवधिदर्शन सम्यक्ती ज्ञानियो को आत्मा से होता है। केवलदर्शन सर्वदर्शी है, वह दर्शनावरण कर्म के सर्वथा क्षय से प्रगट होता है ।
निश्चय और व्यहारनय :- प्रमारण जब वस्तु को सर्वाग ग्रहरण करता है तब नय वस्तु के एक प्रश को ग्रहण करता है व बताता है। पहले कहे गये पाचों ज्ञान प्रमाण हैं व तीन कुज्ञान प्रमारणाभास हैं। जैसे कोई मानव व्यापारी है और मजिस्ट्रेट भी है, प्रमारणज्ञान दोनों बातो को एक साथ जानता है । नय को अपेक्षा किसी समय वह व्यापारी कहा जायेगा तब मजिस्ट्रेटपना गौरण
रहेगा व कभी मजिस्ट्रेट कहा जायेगा तब व्यापारीपना गौरण रहेगा । अध्यात्म शास्त्रो मे निश्चयनय और व्यवहारनय का उपयोग बहुत मिलता है । स्वाश्रय निश्चय पराश्रय व्यवहार जो नय एक ही वस्तु को उसी को पर की अपेक्षा बिना वर्णन करे वह निश्चयनय है । जो किसी वस्तु को परकी अपेक्षा से और का और कहे वह व्यवहारनय है । एक खडग सोने की म्यान के भीतर है, उसमे खडग को खडग और म्यान को म्यान कहना निश्चयनय का काम है तथा सोने को खडग कहना व्यवहार नय का काम है । लोक मे ऐसा व्यवहार चलता कि परके सयोग से उस वस्तु को अनेक तरह से कहा जाता है ।
जैसे दो खडग रक्खी है, एक चादी के म्यान में है और एक सोने के म्यान मे है । किसी को इनमे से एक ही खडग चाहिये थी, वह इतना लम्बा वाक्य नही कहता है कि सोने की म्यान में रखी हुई खडग लाओ, किन्तु छोटा वाक्य कह देता है कि सोने की खडग लाओ। तब यह वचन व्यवहार में असत्य नहीं है किन्तु निश्चय मे असत्य है, क्योकि वह भ्रम पैदा कर सकता है कि खडग सोने की है जबकि खडग सोने की नहीं है । इसी तरह हमारी आत्मा मनुष्य आयु व गति के उदय से मनुष्य के शरीर मे है, आत्मा भिन्न है । तैजस कारण और औदारिक शरीर भिन्न है । निश्चयनय से आत्मा को आत्मा ही कहा जायेगा । व्यवहारनय से आत्मा को मनुष्य कहने का लोक व्यवहार है क्योंकि मनुष्य शरीर मे वह विद्यमान है। आत्मा को मनुष्य कहना व्यवहार से सत्य है तो भी निश्चय नय से असत्य है, क्योंकि आत्मा मनुष्य नही है, उसका कर्म मनुष्य है, उसका देह मनुष्य है ।
निश्चयनय की भूतार्थ, सत्यार्थ, यथार्थ, वास्तविक, असल मूल कहते है । व्यवहारनय को असत्यार्थ प्रभूतार्थ, प्रयथार्थ, प्रवास्तविक कहते है । ससारी आत्मा को समझने के लिए व पर के सयोग मे प्राप्त किसी भी वस्तु को समझने के लिये दोनो नयो को आवश्यकता पडती है । कपडा मलीन है उसको शुद्ध करने के लिये दोनो नयो के ज्ञान की जरूरत है। निश्चयनय से कपडा उज्ज्वल है, रूई का बना है व्यवहारनय से मैला कहाता है, क्योकि मैल का सयोग है । यदि एक ही नय या अपेक्षा को समझे तो कपडा कभी स्वच्छ नही हो सकता है । यदि ऐसा मानले कि कपडा सर्वथा शुद्ध ही है तब भी वह
शुद्ध नही किया जायेगा । यदि मानले कि मैला ही है तब भी वह शुद्ध नही किया जायेगा । शुद्ध तब हो किया जायेगा जब यह माना जायेगा कि असल मे मूल मे तो यह शुद्ध है परन्तु मैल के सयोग से वर्तमान में इसका स्वरूप मैला में हो रहा है । मैल पर है छुडाया जा सकता है ऐसा निश्चय होने पर ही कपडा साफ किया जायेगा । इसी तरह निश्चयनय कहता है कि आत्मा शुद्ध है । व्यवहारनय कहता है कि आत्मा अशुद्ध है, कर्मा से बद्ध है दोनो बातो को जानने पर ही कर्मों को काटने का पुरुषार्थ किया जायेगा ।
निश्चयनय के भी दो भेद अध्यात्म शास्त्रो मे लिये गये है - एक शुद्ध निश्चयनय, दूसरा अशुद्ध निश्चयनय । जिसका लक्ष्य केवल शुद्ध गुरा पर्याय व द्रव्य पर हो वह शुद्ध निश्चयनय है व जिसका लक्ष्य उसो एक द्रव्य के अशुद्ध द्रव्य, गुग्गा पर्याय पर हो वह अशुद्ध निश्चय है जैसे जीव सिद्धसम शुद्ध है यह वाक्य शुद्ध निश्चयनय से कहा जाता है । यह जीव रागी द्वेषी है यह वाक्य अशुद्ध निश्चयनय से कहा जाता है । राग द्वेप जीव के हो नैमित्तिक व औपाधिक भाव है । उन भावो मे मोहनीय कर्म का सयोग पा रहा है इसलिये वे भाव शुद्ध नहीं है, अशुद्ध भाव है । इन अशुद्ध भावो को आत्मा के भाव कहना अशुद्ध निश्चयनय से ठीक है, जबकि शुद्ध निश्चयनय से ठीक नहीं है । ये दोनो नय एक ही द्रव्य पर लक्ष्य रखते हे ।
व्यवहारनय के कई भेद है- अनुपचारित प्रसदभूत व्यवह रनय । यह । वह नय है कि पर वस्तु का किसी से सयोग होते हुए ही पर को उसका कहना । जैसे यह घी का घड़ा है । इसमे घी का संयोग है इसलिये घडे को घी का घडा कहते है । यह जीव पापी है पुण्यात्मा है । यह जीव मानब है, पशु है । यह गोरा है, यह काला है। ये सब वाक्य इस नय से ठीक है, क्योकि कार्मारण व औदारिक शरीर का सयोग है इसलिये अनुपचारित है परन्तु है आत्मा के मूल स्वरूप से भिन्न इसलिये अद्भुत है । विल्कुल भिन्न वस्तु को किसी की कहना उपचरित प्रेसद्भूत व्यवहारनय है। जैसे यह दुकान रामलाल की है, यह टोपी चालक की है, यह स्त्री रामलाल की है, यह गाय फतहचन्द की है, ये कपडे मेरे है, ये आभूपा मेरे है, यह देश मेरा है ।
निश्चयनय का विषय जब वस्तु को अभेद रूप से प्रखण्ड रूप से ग्रहगा करना है तब उसी को खण्डरूप से ग्रहण करना सद्भूत व्यवहारनय का विषय
। ऐसा भी शास्त्रो मे विवेचन है । जैसे आत्मा को अभेद एक ज्ञायक मात्र ग्रहरण करना निश्चयनय का अभिप्राय है तब आत्मा को ज्ञानरूप, दर्शनरूप, चारित्ररूप इस तरह गुरण व गुणी भेद करके कहना सद्भूत व्यवहारनय का विषय है। कही कही इस सद्भूत व्यवहार को भी निश्चयनय मे गर्भित करके कथन किया गया है क्योकि यह सद्भूत व्यवहार भी एक ही द्रव्य की तरफ भेदरूप से लक्ष्य रखता है, परकी तरफ लक्ष्य नहीं है । जहा परकी तरफ लक्ष्य करके पर का कथन है वह असद्भुत व्यवहारनय है या सामान्य से ही व्यवहारनय है ।
द्रव्याथिक पर्यायाथिक नय जो नय या अपेक्षा केवल द्रव्य को लक्ष्य मे लेकर वस्तु को कहे वह द्रव्याथिक है । जो द्रव्य की किसी पर्याय को लक्ष्य मे लेकर कहे वह पर्यायाधिक है। जैसे द्रव्याथिकनय से हर एक आत्मा समानरूप से शुद्ध है, निज स्वरूप मे है । पर्यायाथिकनय से आत्मा सिद्ध है, समारी है, पश् है, मानव है, वृक्ष है इत्यादि । यह आत्मा नित्य है द्रव्याथिकनय का वाक्य है। यह आत्मा ससारी अनित्य है, यह पर्यायिाथिकनय का वाक्य है क्योकि द्रव्य कभी नाश नहीं होता है, पर्याय क्षरण में बदलती है ।
जगत मे अपेक्षाबाद के बिना व्यवहार नही हो सकता है । भिन्न भिन्न अपेक्षा से वाक्य सत्य माने जाते है। उन अपेक्षाम्रो को या नयो को बताने के लिये जिनसे लोक मे व्यवहार होता है, जैन सिद्धात मे सात नय प्रसिद्ध हैं - नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एव भूत । इनमे पहले तीन नय द्रव्याथिक मे गर्भित है क्योंकि इनकी दृष्टि द्रव्य पर रहती है, शेष चार नय पर्यायाथिक मे गर्भित है क्योंकि उनकी दृष्टि पर्याय पर ही रहती है तथा अन्त के तीन नयो की दृष्टि शब्द पर रहती है. इसलिये वे शब्दनय है । शेष चार की दृष्टि पदार्थ पर मुख्यता से रहती है इससे वे अर्थनय हैं ।
नैगमनय :-- जिसमे संकल्प किया जावे नैगमनय है । भूतकाल की बात को वर्तमान मे सकल्प करना यह भूतनैगमनय है । जैसे कार्तिक मुदी १४ को
कहना कि आज श्री वर्द्धमानस्वामी का निर्वाण दिवस है। भावी नंगमनय भविष्य की बात को वर्तमान में कहता है जैसे अर्हन्त अवस्था में विराजित किसी केवली को सिद्ध कहना । वर्तमान नैगमनय वह है जो वर्तमान की अधूरी बात को पूरी कहे जैसे कोई लकडी काट रहा है, उससे किसी ने पूछा क्या कर रहे हो ? उसने कहा किवाड बना रहा हू । क्योंकि उसका उद्देश्य लकडी काटने मे किवाड ही बनाने का है ।
संग्रहनय जो एक जाति के बहुत से द्रव्यो को एक साथ बतावे वह संग्रहनय है। जैसे कहना कि सत् द्रव्य का लक्षण है। यह वाक्य सर्व द्रव्यो को सत् बताता है । जीव का उपयोग लक्षण है । यह वाक्य सब जीवो का लक्षरण उपयोग सिद्ध करता है ।
व्यवहारनय -- जिस अपेक्षा से सग्रहनय से ग्रहीत पदार्थों का भेद करते चले जावे वह व्यवहारनय है। जैसे कहना कि द्रव्य छ है जीव ससारी प्रौर सिद्ध है समारी स्थावर व त्रस है, स्थावर पृथ्वी आदि पाच प्रकार के हैं इत्यादि ।
ऋजुसूत्रनय जो सूक्ष्म तथा स्थूल पर्याय मात्र को जो वर्तमान मे है उसी को ग्रहण करे वह ऋजसूत्रनय है । जैसे स्त्री को स्त्री, पुरुष को पुरुष, श्वान को श्वान, अश्व को अश्व, क्रोध पर्याय सहित को क्रोधी दया भाव सहित को दयावान कहना ।
शब्दनय व्याकरण व साहित्य के नियमों की अपेक्षा से शब्दो को व्यवहार करना शब्दनय है । उसमे लिग, वचन, कारक, काल आदि का दोष झलकता हो तो भी उसे नहीं गिनना सो शब्दनय है । जैसे स्त्री को सस्कृत मे दाग, भार्या, कलत्र कहते है । यहा दारा शब्द पुल्लिंग है, कलत्र नपु सक लिग है तो भी ठीक । कोई महान पुरुष आ रहा है उसे प्रतिष्ठावाचक शब्द मे कहते हैं - वे भ्रा रहे है । यह वाक्य यद्यपि बहुवचन का प्रयोग एकवचन मे है तथापि शब्दनय से ठीक है। कही की कथा का वर्णन करते हुए भूतकाल मे वर्तमान का प्रयोग कर देते है जैसा सेना लड रही है, तोपे चल रही हैं, रुधिर के
वर्तमान काल मे प्रयोग करना शब्दनय से ठीक है । शब्द नय मे शब्दो पर ही दृष्टि है कि शब्द भाषा साहित्य के अनुसार व्यवहार किया जावे ।
समभिरूढ़ नय एक शब्द के अनेक अर्थ प्रसिद्ध हैं। उनमे से एक अर्थ को लेकर किसी के लिये व्यवहार करना समभिरूढ नय है । जैसे गो शब्द के अर्थ, नक्षत्र, आकाश, बिजली, पृथ्वी, वाणी आदि है, तो भी गाय के लिये भी व्यवहार करना समभिरूढनय से ठीक है। यद्यपि गो शब्द के अर्थ जाननेवाले के है । तथापि सोई, बैठी हरएक दशा मे गाय पशु को गो कहना समभिरूढ मे नय से ठीक है या एक पदार्थ के अनेक शब्द नियत करना, चाहे उनके अर्थो मे भेद हो, यह भी समभिरूढ नय से है। जैसे स्त्री को स्त्री, अबला, नारी आदि कहना । अथवा इन्द्र को शक, पुरन्दर, इन्द्र, सहस्राक्षी आदि कहना । यहा इन शब्दो के भिन्न २ अर्थ है तो भी एक व्यक्ति के लिये व्यवहार करना समभिरूढ नय से ठीक है ।
एवभूत :- जिस शब्द का जो वास्तविक अर्थ हो उसी समान क्रिया हुए को उसी शब्द से व्यवहार करना एवभूतनय है। जैसे वैद्यक करते हुए वैद्य को वैद्य कहना, दुर्बल स्त्री को ही अबला कहना, पूजन करते को पुजारी कहना, राज्य करते हुए न्याय करते हुए को राजा कहना । लोक व्यवहार मे इन नयो की बडी उपयोगिता है ।
स्याद्वादनय या सप्तभंगवारणी पदार्थ मे अनेक स्वभाव रहते है जो साधारण रूप से विचारने मे विरोधरूप भासते हैं परन्तु वे सब भिन्न २ अपेक्षा से पदार्थ रूप से पाए जाते है उनको समझाने का उपाय स्याद्वाद या सप्तभग है ।
हर एक पदार्थ मे प्रस्ति या भावपना, नास्ति या अभावपना ये दो विरोधी स्वभाव है । नित्यपना तथा प्रनित्यपना ये भी दो विरोधी स्वभाव है । एकपना और अनेकपना ये भी दो विरोधी स्वभाव है। एक ही समय मे एक ही स्वभाव को वचन द्वारा कहा जाता है तब दूसरा स्वभाव यद्यपि कहा नही जाता है । तो भी पदार्थ मे रहता अवश्य है, इसी बात को जताने के लिये स्याद्वाद है ।
सम्य ज्ञान और उसका महात्म्य ।
स्यात् अथवा कथचित् अर्थात् किसी अपेक्षा से वाद अर्थात् कहना सो स्याद्वाद है । जैसे एक पुरुष पिता भी है पुत्र भी है उसको जब किसी को समभावेगे तब कहेंगे कि स्यात् पिता अस्ति । किसी अपेक्षा से ( अपने पुत्र की अपेक्षा से) पिता है । यहा स्यात् शब्द बताता है कि वह कुछ और भी है । फिर कहेगे स्यात् पुत्र अस्ति किसी अपेक्षा से ( अपने पिता की अपेक्षा से ) पुत्र है । वह पुम्ष पिता व पुत्र दोनो है । ऐसा दृढ करने के लिये तीसरा भग कहा जाता है 'स्यात् पिता पुत्रश्च ।
किसी अपेक्षा से यदि दोनो को विचार करे तो वह पिता भी है पुत्र भी है । वह पिता व पुत्र तो एक ही समय मे है परन्तु शब्दो मे यह शक्ति नही है कि दोनो स्वभावो को एक साथ कहा जा सके । अतएव कहते है चौथा भगस्यात् प्रवक्तव्य । किसी अपेक्षा से यह वस्तु प्रवक्तव्य है, कथनगोचर नही है । यद्यपि यह पिता व पुत्र दोनो एक समय में है, परन्तु कहा नहीं जा सकता । सर्वथा प्रवक्तव्य नही है इसी बात को दृढ करने के लिये शेष तीन भग है । स्यात् पिता अवक्तव्य च । किसी अपेक्षा से श्रवक्तव्य होने पर भी पिता है, स्यात् पुत्र. अवक्तव्य च । किसी अपेक्षा अवक्तव्य होने पर भी पुत्र है । स्यात् पिता पुत्रश्च प्रवक्तव्य च किसी अपेक्षा प्रवक्तव्य होने पर भी पिता व पुत्र दोनो है । इस तरह दो विरोधी स्वभावो को समझाने के लिये सात भग शिष्यो को दृढ ज्ञान कराने के हेतु किये जाते है । वास्तव मे उस पुरुष मे तीन स्वभाव है पिता पना, पुत्र पना व प्रवक्तव्य पना इसी के सात भग ही हो सकते है न छः न म्राठ । जैसे १ पिता, २ पुत्र, ३ पिता पुत्र, ४ अवतव्य ५ पिता प्रवक्तव्य, ६ पुत्र प्रवक्तव्य, ७ पिता पुत्र अवक्तव्य ।
यदि किसी को सफेद, काला, पीला, तीन रग दिये जावे और कहा जावे कि इसके भिन्न २ रग बनाओ तो वह नीचे प्रमारण सात ही बना देगा ।
१ सफेद, २ काला, ३ पीला, ४ सफेद काला, ५ सफेद पीला, ६ काला पीला, ७ सफेद काला पीला। इससे कम व अधिक नही बन सकते है ।
प्रात्मा के स्वभाव को समझने के लिये इस स्याद्वाद की बड़ी जरूरत है । आत्मा मे अस्तित्व या भावपना अपने प्रखड द्रव्य, अपने प्रख्यात प्रदेश रूप क्षेत्र, अपनी स्वाभाविक पर्यायरूप काल व अपने शुद्ध ज्ञानानन्द मय भाव
की अपेक्षा है उसी समय इस अपने आत्मा मे सम्पूर्ण अन्य आत्माओ के, सर्व पुद्गलो के, धर्म, अधर्म, प्रकाश व काल के द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव का नास्तिपना या प्रभाव भी है । अस्तित्व के साथ नास्तित्व न हो तो यह आत्मा है । यह भी श्री महावीर स्वामी का आत्मा है अन्य नहीं है यह बोध ही न हो । आत्मा मे आत्मापना तो है परन्तु आत्मा मे भाव कर्म रागादि, द्रव्य कम ज्ञानावरणादि, नौकर्म शरीरादि इनका तथा अन्य सर्व द्रव्यों का नास्तित्व है या प्रभाव है ऐसा जानने पर आत्मा का भेदविज्ञान होगा, श्रात्मानुभव हो सकेगा । इसी को सात तरह से कहेगे
१ स्यात् अस्ति आत्मा, २ स्यात् नास्ति आत्मा, ३ स्यात् अस्ति नास्ति श्रात्मा, ४ स्यात् प्रवक्तव्य, ५ स्यात् अस्ति आत्मा वक्तव्य च ६ स्यात् नास्ति प्रात्मा श्रवक्तव्य च, ७ स्यात् अस्ति नास्ति आत्मा प्रवक्तव्य च । इसी तरह यह श्रात्मा अपने द्रव्य व स्वभाव की अपेक्षा ध्रुव है नित्य है तब ही पर्याय की अपेक्षा अनित्य है । इस तरह एक ही समय में आत्मा मे नित्यपना तथा अनित्यपना दोनो स्वभाव है इसी को सात भगो द्वारा समझाया जा सकता है ।
१ स्यात् नित्य, २ स्यात् अनित्य, प्रवक्तव्य, ५ स्यात् नित्य अवक्तव्य च स्यात् नित्य अनित्य प्रवक्तव्य च ।
३ स्यात् नित्य प्रनित्य, ४ स्यात् ६ स्यात् अनित्य अवक्तव्य च, ७
इसी तरह आत्मा अनत गुणों का अभेद पिड है, इसलिये एक रूप है । वही आत्मा उसी समय ज्ञान गुरग की अपेक्षा ज्ञानरूप है, सम्यक्त गुरण की अपेक्षा सम्यक्त रूप है, चारित्र गुरण की अपेक्षा चारित्र रूप है, वीर्यगुरण की अपेक्षा वीर्यरूप है । जितने गुरण प्रात्मा मे है वे सर्व आत्मा मे व्यापक है । इस लिये उनकी अपेक्षा आत्मा अनेक रूप है। इसी के सप्तभग इस तरह करेगे स्यात् एक, स्यात् अनेक स्यात् एक अनेकश्च, स्यात् प्रवक्तव्य, स्यात् एक नवक्तव्य च स्यात् अनेक प्रवक्तव्य च स्यात् एक अनेक प्रवक्तव्य च ।
यह ससारी आत्मा स्वभाव की अपेक्षा शुद्ध है, उसी समय कर्म सयोग की अपेक्षा प्रशुद्ध है । इसके भी सात भग बनेगे । स्यात् शुद्ध, स्यात् अशुद्ध, स्यात् शुद्ध प्रशुद्धः स्यात् प्रवक्तव्य, स्यात् शुद्ध प्रवक्तव्य च स्यात् प्रशुद्ध भवक्तव्य च, स्यात् शुद्ध अशुद्ध प्रवक्तव्य च ।
स्याद्वाद के बिना किसी पदार्थ के अनेक स्वभावों का ज्ञान प्रज्ञाना शिष्य को न होगा। इसलिये यह बहुत आवश्यक सिद्धान्त है, आत्मा के भेद विज्ञान के लिये तो बहुत ही जरूरी है तथा यह स्याद्वाद का सिद्धांत अनेक एकान्त मत के धारियो का एकान्त हठ छुडाकर उनमे प्रेम व ऐक्य स्थापन करने का भी साधन है ।
जैसे दूर से किसी का मकान पाँच आदमियो को दिखाई दिया, वह मकान भिन्न भिन्न स्थानो पर पांच तरह के रगो से रगा है । जिसकी दृष्टि सफेदी पर पड़ी वह कहता है ( मकान सफेद है), जिसकी दृष्टि लाल रग पर पडी वह कहता है, मकान लाल है, जिसकी दृष्टि पीले रंग पर पडी वह कहता है, मकान पीला है, जिसकी दृष्टि नीले रंग पर पडी वह कहता है, मकान नीला है, जिसकी दष्टि काले रंग पर पड़ी वह कहता है मकान फाला है । इस तरह आपस में झगडते थे, तब एक समझदार ने कहा कि क्यो झगडते हो, तुम सब एकात से सच्चे हो परन्तु पूर्ण सत्य नही हो । यह मकान पाँच रंग का है, ऐसा समझो । जब पाचों ने यह बात समझली तब उन सबका एकति हट गया तब सबको बडा श्रानद हुआ। इसी तरह अनेकान्तमय अनेक स्वभाव वाले पदार्थ को अनेक स्वभाववाला बताने को स्याद्वाद दर्पगा के समान है व परस्पर विरोध मेटने को एक अटल न्यायाधीश के समान है। सहज मुख साधन के लिये तो बहुत ही उपयोगी है । कल्पित इन्द्रिय मुख को त्यागने योग्य व प्रतीन्द्रिय सुख को ग्रहण योग्य बताने वाला है ।
निश्चयनय से आत्मा को आत्मारूप ही जानना सम्यग्ज्ञान है । जैसे सूर्य पर मेघो के आ जाने से प्रकाश अत्यल्प प्रगट है तो भी समझदार जानता है कि सूर्य का प्रकाश उतना ही नहीं है, वह तो दोपहर के समय मेघ रहित जैसा पूर्गा प्रकाशमान रहता है वैसा ही है मेघो के कारण कम प्रकाश है। सूर्य का स्वभाव ऐसा नहीं है । ऐसा जो सूर्य के असली प्रकाश कोपूर्ण प्रकाश को भली प्रकार बिना किसी सशय के जानता है वही सम्यग्ज्ञानी है, इसी तरह अपने प्रात्मा पर ज्ञानावररणादि कर्मों के मेघ होने पर ज्ञान का प्रकाश कम व मलीन हो रहा है। रागी द्वेषी प्रज्ञानमय हो रहा है तो भी यह |
d8d5f1f703e0448b248a1715cd6243d82b1e90cb | web | हीटिंग की बड़ी पसंद के संदर्भ मेंउपकरण खरीदारों अक्सर यह तय नहीं कर सकते कि कौन सा मॉडल वरीयता देना है। हाल ही में, विशेषज्ञों ने दीवार हीटर बिजली अर्थव्यवस्था "अच्छी गर्मी" खरीदने की सलाह दी। आप कई उपभोक्ताओं के उदाहरण का पालन कर सकते हैं और इस डिवाइस को अपने घर के लिए खरीद सकते हैं।
यह समझने के लिए कि इसे कैसे हल किया जाएप्रश्न, आपको उन कार्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता है जो डिवाइस को सौंपी जाएंगी। आप इकाई को अतिरिक्त या बुनियादी हीटिंग के रूप में उपयोग कर सकते हैं। यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि डिवाइस कहां स्थित होगा और क्या इसकी गतिशीलता महत्वपूर्ण है। यदि आप दीवार पर चलने वाले इलेक्ट्रिक हीटर को खरीदने का फैसला करते हैं, तो यह समझना महत्वपूर्ण है कि आधुनिक बाजारों द्वारा कौन सी किस्मों का प्रतिनिधित्व किया जाता है, और कमरे में तापमान बढ़ाने के लिए उपकरणों के पेशेवरों और विपक्ष क्या हैं।
यदि आप वॉटर हीटर खरीदना चाहते हैंदीवार पर चलने वाले इलेक्ट्रिक, फिर, सबसे अधिक संभावना है कि यह डिवाइस कमरे में तापमान नहीं बढ़ा सकता है, लेकिन यह आपको गर्म पानी प्रदान कर सकता है। सबसे आम आज 4 मुख्य प्रकार के हीटर हैं, अर्थात् अवरक्त रेडिएटर, तेल कूलर, प्रशंसक हीटर और संवहनी। यह तय करने के लिए कि सूचीबद्ध उपकरणों का कौन सा संस्करण चुनने के लिए, आपको यह पता लगाने के लिए कि कौन सा सही है, आपको प्रत्येक हीटिंग डिवाइस से परिचित होना चाहिए।
दीवार पर चलने वाले इलेक्ट्रिक हीटर का चयन करना,आधुनिक उपभोक्ता शायद ही कभी तेल की विविधता पसंद करता है। कंपनी "टर्मिया" सहित उत्पादित ऐसी इकाइयां एक हीटिंग सिस्टम हैं, क्योंकि हीटिंग तत्व तेल है। हीट वाहक गरम किया जाता है, और लंबे समय के बाद एक आरामदायक इनडोर माइक्रोक्रिमिट बनाए रखता है। डिज़ाइन में टाइमर और थर्मोस्टेट होने पर, इस तरह के उपकरणों के फायदों में आग सुरक्षा की पहचान की जा सकती है, डिवाइस को स्वचालित रूप से बंद करने की क्षमता। उपभोक्ता तेल कूलर भी चुनते हैं क्योंकि वे पूरी तरह से बेकार काम करते हैं। यदि आप दीवार पर चलने वाले इलेक्ट्रिक हीटर में रूचि रखते हैं, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इस रूप में तेल रेडिएटर शायद ही कभी महसूस किए जाते हैं। अन्य चीजों के अलावा, उनके पास एक महत्वपूर्ण कमी है, जो इस तथ्य में व्यक्त की गई है कि डिवाइस की धातु की सतह को 100 डिग्री तक गरम किया जा सकता है। यह घर में खतरनाक हो सकता है जहां बच्चे और पालतू जानवर हैं। कुछ मॉडल भी सतह को 150 डिग्री तक गर्म करने का सुझाव देते हैं। यह जलने का कारण बन सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप उपकरणों के पास कोई ज्वलनशील वस्तुएं न हों, आपको अथक रूप से काम करना होगा। यदि आप अभी भी एक समान मॉडल चुनने का निर्णय लेते हैं, तो विशेषज्ञ अंतर्निहित प्रशंसकों से लैस विकल्पों को पसंद करते हैं। वे गर्मी विनिमय की प्रक्रिया में तेजी लाने में सक्षम हैं, यानी, डिवाइस स्विच करने के बाद कमरे को तेज़ी से गर्म करता है। जैसे ही सेट तापमान तक पहुंच जाता है, प्रशंसक बंद हो जाता है, जबकि हीटर सामान्य रूप से काम करना जारी रख सकता है।
दीवार तेल इलेक्ट्रिक हीटर नहीं हैंविशेष रखरखाव की आवश्यकता है। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सतह को बंद करने और ठंडा करने के बाद ही इस तरह के डिवाइस को साफ करना आवश्यक है। ऐसा करने के लिए, एक शुष्क मुलायम रग का उपयोग करें। ऑपरेशन की प्रक्रिया में, आपको याद रखना चाहिए कि ऐसे उपकरणों को बाथरूम में घर के अंदर कपड़े सूखने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, और पावर कॉर्ड गर्म रेडिएटर पर नहीं होना चाहिए, इससे प्लास्टिक के खोल की पिघलने से रोका जा सकेगा। डिवाइस को विशेष रूप से सीधे स्थिति में उपयोग करें, और एक्सटेंशन कॉर्ड के उपयोग की अनुशंसा नहीं की जाती है, क्योंकि इससे डिवाइस की अति ताप हो सकती है। गर्म स्थान का क्षेत्र 8 वर्ग मीटर से अधिक होना चाहिए। यदि आप बिजली बचाने में रुचि रखते हैं, तो इस समाधान के लिए तेल हीटर को सर्वश्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता है।
यदि आप दीवार माउंट का उपयोग करना चाहते हैंबिजली के हीटर और कैसे आंतरिक स्थान स्थापित करने के बाद बदलने के लिए के बारे में चिंतित हैं, यह convector चयन करने के लिए, के रूप में यह शेष हीटर के बीच सबसे सफल, अन्य लोकप्रिय prozvoditeley के बीच ब्रांड "Teplofon" का चयन कर सकते हैं सबसे अच्छा है। शक्ति और आकार के मामले में, यह डिवाइस भी जीतता है, जबकि आप जो रंग चुन सकते हैं वह कमरे में प्रचलित रंगों पर निर्भर करता है। यदि आप दीवार पर इतने पतले हीटर स्थापित करते हैं, तो आप अंतरिक्ष को बचा सकते हैं, क्योंकि यह आकार में कॉम्पैक्ट है। हीटर इलेक्ट्रिक घरेलू दीवार को ध्यान में रखते हुए, विशेषज्ञ हमेशा कन्वेयर पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। एक हीटिंग तत्व की भूमिका में हीटर होता है, जिसे धातु घुमावदार रॉड के रूप में निर्मित किया जाता है। इसमें धातु सुरक्षा ट्यूब शामिल है, जो एक सुरक्षित आवास में है। गर्मी संवहन का कानून है, जिससे गर्म हवा ऊपर की ओर वृद्धि होगी, ठंडी हवा के प्रवाह के लिए अंतरिक्ष को मुक्त कराने के अनुसार वितरित किया जाएगा। उपयोग की आसानी के लिए, ऐसे हीटर थर्मोस्टैट से लैस होते हैं, जो एक निश्चित स्तर पर आवश्यक तापमान को बनाए रखने में मदद करते हैं।
यदि आपको नहीं पता कि क्या चुनना है - तेलथर्मोस्टेट के साथ डिवाइस या वॉल-माउंटेड इलेक्ट्रिक हीटर, जिसे ऊपर वर्णित किया गया था, तो आपको दूसरा विकल्प पसंद करना चाहिए, जो कि अगर आप विशेष रूप से अग्नि सुरक्षा के मुद्दे में रूचि रखते हैं तो यह सच है। यह संवहनी और तेल-प्रकार रेडिएटर के बीच मुख्य अंतर है। कन्वर्टर्स में ऐसा प्रभावशाली तापमान नहीं होता है, जो जलने में योगदान दे सकता है। वे निर्विवाद हैं, देखभाल और पूरी तरह से फायरप्रूफ की मांग नहीं कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के मामले में, इन उपकरणों को तेल कूलर से लाभ होता है।
दीवार पेंटिंग्स-हीटर बिजली हैं,शायद, दूसरों के बीच में सबसे फायदेमंद विकल्प है, लेकिन यह समझ में आता है अपने घर में एक आरामदायक वातावरण बनाने के लिए अन्य प्रकार के डिवाइस पर विचार करना। आप के लिए बचत का कार्य विशेष रूप से तीव्र है, तो यह एक हीटर है कि ऊपर वर्णित हीटर की भागीदारी के साथ दौड़ में अग्रणी है का चयन करने के लिए आवश्यक है। डिवाइस का यह संस्करण उपभोक्ता के लिए सबसे सस्ती है और प्रदर्शन करने में सबसे आसान है। प्रशंसक हीटर के मुख्य लाभ की भूमिका में कमरे की हीटिंग दर है, जिसमें एक छोटा सा क्षेत्र है। कन्वर्टर्स और ऑयल कूलर की तुलना में ये डिवाइस छोटे होते हैं, जो कि मुक्त स्थान की कमी वाले अपार्टमेंट के लिए महत्वपूर्ण है। वे सार्वभौमिक हैं, यानी, उन्हें दीवार पर भी कमरे में कहीं भी रखा जा सकता है। इस डिवाइस में, ठंडी हवा, चमक बिजली हेलिक्स की हीटिंग द्वारा उत्पादित जबकि धाराओं एक प्रशंसक जो आवास में घूमती द्वारा हीटिंग क्षेत्र में खिलाया जाता है। हैं, तो आप अभी भी बचत और चुप में रुचि रखते हैं के अलावा, आप एक बिजली की दीवार हीटर फिल्म का चयन करना चाहिए, लेकिन जो लोग प्रशंसक की आवाज से डरते नहीं हैं के लिए, डिवाइस पूरी तरह से सूट करेगा। तुम भी धूल की एक अप्रिय गंध, जो आपरेशन सर्पिल के दौरान 80 डिग्री पर जलता की उपस्थिति की संभावना के साथ सामना कर सकते हैं। उपभोक्ता भी ऑक्सीजन जलने के बारे में शिकायत करते हैं, जब हीटर लंबे समय तक काम करता है।
दीवार इलेक्ट्रिक हीटर घुड़सवारअक्सर इन्फ्रारेड उपकरणों के आधार पर प्रदर्शन किया जाता है। आज वे सबसे उन्नत और कुशल, और आर्थिक भी हैं, आप सबसे लोकप्रिय कंपनी थर्मो ग्लास चुन सकते हैं। क्वार्ट्ज रेडिएटर हवा को गर्म नहीं करते हैं, बल्कि वस्तुओं और यहां तक कि व्यक्ति स्वयं भी। ऐसे हीटर की मदद से, कमरे को गर्म करने के लिए अतिरिक्त बिजली बर्बाद किए बिना स्थानीय हीटिंग जोन बनाना संभव है। छत पर भी ऐसी लचीली दीवार-घुड़सवार इलेक्ट्रिक हीटर स्थापित किया जा सकता है। एक दोष के रूप में केवल कीमत है, जो डिवाइस के संचालन में उचित है।
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e4309cfed5b9b6f7b2a6efb03cc86f911b273363526eff5688c873805b29b2aa | pdf | शांकर वेदान्त में आत्म तत्त्वविज्ञान / 109
आत्मा एवं जीव के समान ही, आत्मा एवं साक्षी में भी आत्यन्तिक रूप में कोई भेद नहीं है। ये दोनों ही तत्त्वतः एक ही हैं। आत्मा निरपेक्ष एवं सार्वभौम चैतन्य है और यही व्यक्ति विशेष परन्तु में सभी संज्ञानों एवं मानसिक वृत्तियों का साक्षी है। संज्ञान उत्पन्न एवं तिरोहित होते हैं, साक्षी चैतन्य या आत्मा अपरिवर्तित रहता है जो सभी ज्ञान एवं कर्मों के नित्य एवं तटस्थ द्रष्टा के रूप में वर्तमान रहता है। आत्मा प्रकृतितः स्वयंप्रकाश होने से 'स्वयं' को एवं इसकी 'स्वयंचेतना' को भी प्रकाशित करता है। यह सभी प्रकार के ज्ञान एवं आत्मचेतना (अहंप्रत्यय) 12 का साक्षी होता है। वाचस्पति मिश्र ने भामती नामक अपने प्रसिद्ध कृति में स्पष्ट किया है कि साक्षी एवं आत्मा में कोई तात्त्विक भेद नहीं है। भेद केवल अज्ञानजन्य है। बुद्धयादि से उपहित विशुद्धात्मा जीव है, जबकि इसका वास्तविक स्वरूप आत्मा या साक्षी है। 13 जीव यद्यपि आत्मा से अभिन्न है, तथापि यह बुद्धयादि कतिपय अतात्त्विक संलग्नकों से सांवृत्तिकतः आबद्ध है। वह सक्रिय कर्त्ता जो अहंप्रत्यय का विषय है, जीवात्मा है। परमात्मा, जो इस जीवात्मा का साक्षी है, कभी अहंप्रत्त्यय का विषय नहीं बनता।
इस प्रकार हमने शांकर वेदान्त के आत्म-तत्त्वविज्ञान में देखा कि आत्मा, ब्रह्म, ईश्वर, जीव एवं साक्षी सभी तत्त्वतः एक ही हैं। ये एक ही सत्ता के विभिन्न दृष्टिकोणों से भिन्न-भिन्न नाममात्र हैं। जब वास्तविक ज्ञान या प्रज्ञा (ब्रह्मज्ञान या ब्रह्मविद्या) का उदय हो जाता है, सभी प्रकार के विभेदीकरण विनष्ट हो जाते हैं और आत्मतत्त्व का वास्तविक प्रकाश (ज्ञान) हो जाता है। यही अवस्था मुक्ति की अवस्था कही गयी है। इस क्षण ज्ञाता और ज्ञेय का आत्यन्तिक भेद समाप्त हो जाता है क्योंकि ज्ञाता स्वयं ज्ञेय या ब्रह्म हो जाता है।
शांकर वेदान्त में आत्म-तत्त्वविज्ञान (आण्टोलॉजी ऑफ सोल) के उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् यह आवश्यक है, जिसमें यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि आचार्य शंकर ने जिस मत के द्वारा आत्म-तत्त्व की सिद्धि की है वह सर्वप्रथम अनुभव एवं अपरोक्षानुभूति से प्राप्त है, तदुपरान्त तर्क एवं श्रुति से प्रमाणित है। अतः उपर्युक्त विवेचन आधुनिक तत्त्वमीमांसा पर लगे आधारहीन कल्पना के आक्षेप से पृथक क्षेत्र से सम्बन्धित है क्योंकि आचार्य शंकर का तत्त्वविज्ञान, ब्रह्मविज्ञान" या आत्मविज्ञान है। शंकर के अनुसार तत्त्व वह है जो सत् है और "जिस विषय के सम्बन्ध में बुद्धि का व्यभिचार ( परिवर्तन) नहीं होता है, वह सत् है, पर जिस विषय के सम्बन्ध में बुद्धि का व्यभिचार होता है वह असत् है । 15" तत्त्व या द्रव्य के इस निकष पर चैतन्य ही एक ऐसा है जो सम्पूर्णता में स्वयं को सिद्ध कर पाता है। जगत् की समस्त वस्तुएँ जो हमारे ज्ञान के विषय हैं, वे व्यभिचरित होती हैं या हो सकती हैं, किन्तु उनके ज्ञाता-रूप चैतन्य का कभी व्यभिचार नहीं हो सकता। अतः चैतन्य रूप ज्ञाता या आत्मा ही एकमात्र तत्त्व है, क्योंकि ज्ञाता या आत्मा का निराकरण नहीं हो सकता।" उपर्युक्त विवेचन में हम देख चुके हैं कि आत्मा एवं ब्रह्म में अद्वैत सम्बन्ध है जिसे आचार्य शंकर ने सिद्ध भी किया है। अब यहाँ एक प्रश्न उठ सकता है कि यदि ब्रह्म या आत्मा न तो प्रत्यक्ष के द्वारा, न अनुमान द्वारा, न सीधे तर्क द्वारा, और न श्रुति के द्वारा ही जाना जा सकता है, तो आचार्य शंकर के ब्रह्म या द्रव्य को कैसे जाना जा सकता है? यदि
वेदान्त दर्शन के आयाम / 110
यह तत्त्व अज्ञेय हो या इसके ज्ञान के लिए कोई साधन या प्रमाण आचार्य शंकर के द्वारा नहीं दिया गया हो, तब उनका समस्त दर्शन तत्त्वमीमांसा के विवादों से घिर जायेगा। परन्तु ऐसा नहीं है। इसके समाधान के लिए उन्होंने अनुभव, अपरोक्षानुभूति, तर्क एवं श्रुति, सबका उचित स्थान एवं परिस्थित्यानुरूप सहारा लिया है। उनका दर्शन अनुभव एवं उसके परीक्षण के विपरीत नहीं है। उनका समस्त दर्शन जीवन के अनुभवों पर आधारित है। ब्रह्मसूत्र भाष्य में 'अध्यास' की व्याख्या के क्रम में, उन्होंने लोकानुभव की ओर इंगित करते हुए कहा कि सामान्य जीवन का अनुभव है कि शुक्तिका चाँदी के समान दिखाई पड़ती है तथा एक चन्द्रमा दूसरे चन्द्रमा के साथ दिखाई पड़ता है।"" उनकी स्पष्ट मान्यता है कि दृष्ट के आधार पर ही अदृष्ट की व्याख्या की जा सकती है। किसी भी दृष्ट वस्तु में अविश्वास उत्पन्न करना अज्ञानता है, क्योंकि दृष्ट वस्तु कभी भी 8 अनुपपन्न नहीं हो सकती।19 यदि कोई ऐसी कल्पना करता है जो दृष्ट वस्तु के विपरीत है, तो भी उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। 20 इस तरह हम देख सकते हैं कि आचार्य शंकर ने अनुभव को कितना महत्त्व दिया है।
परन्तु यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि आचार्य शंकर के इस 'अनुभव' से ब्रह्म या तत्त्व किस प्रकार जाना जा सकता है? क्या इस अनुभव में लौकिक प्रत्यक्ष के अतिरिक्त अलौकिक प्रत्यक्ष भी है या केवल लौकिक मात्र या दोनों प्रकार के अनुभवों में कोई विरोध है? आचार्य शंकर का मानना है कि लौकिक एवं अलौकिक प्रत्यक्षों के बीच कोई विरोध नहीं हो सकता, क्योंकि इन दोनों के क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं। दोनों की श्रेणीयाँ अलग-अलग हैं। यदि दोनों में विरोध या समानता की तुलना की जाय, तो श्रेणीपरक भूल की समस्या आ जायेगी। अतः इन दोनों को अपने-अपने क्षेत्रों में उच्चतम महत्त्व है। व्यावहारिक जगत् की वस्तुओं के लिए लौकिक प्रत्यक्ष की प्रमुखता है, किन्तु पारमार्थिक जगत् के लिए आचार्य शंकर श्रुति को ही एकमात्र प्रमाण स्वीकार करते हैं । आचार्य शंकर की स्पष्ट मान्यता है कि ब्रह्म का स्वरूप जगत् की वस्तुओं की तरह नहीं
है और न ही यह उस रूप में ज्ञान का विषय बन सकता है। अतः इसे न तो प्रत्यक्ष के द्वारा जाना जा सकता है, और न ही अनुमान या तर्क के द्वारा जनसामान्य के द्वारा ब्रह्म को जानने का एकमात्र प्रमाण श्रुति ही है। एतत्हेतु आचार्य शंकर का कहना है कि रूपादि के अभाव के कारण ब्रह्म प्रत्यक्ष का विषय नहीं हो सकता । 21 लिंगादि के अभाव के कारण ब्रह्म अनुमान का भी विषय नहीं हो सकता है । 22 पुनश्च, उनकी मान्यता है कि ब्रह्म को केवल तर्क के द्वारा भी नहीं जाना जा सकता क्योंकि पुरुषमति की विरूपता के कारण तर्क को प्रतिष्ठित नहीं माना जा सकता । 23 आचार्य शंकर का कहना है कि विशुद्ध तर्क अनवस्थित होता है और केवल भ्रम को उत्पन्न करता है । 24 ज्ञान के यथार्थ स्वरूप के सम्बन्ध में मत भिन्नता का कोई अर्थ नहीं है, अर्थात् वहाँ मतवैभिन्न्य स्वीकार्य नहीं है। किन्तु हम यह पाते हैं कि तर्क पर आधारित ज्ञान परस्पर विरोधात्मक होते हैं। यदि कोई तार्किक किसी ज्ञान को सम्यक् ज्ञान कहता है, तो दूसरा तार्किक उसी ज्ञान को असिद्ध घोषित कर देता है। इस लोक के भूत, वर्तमान एवं भविष्य के सभी तार्किकों को एक काल में और एक स्थान पर एकत्रित करके किसी वस्तु के विषय में एक निश्चित मत प्राप्त कर सम्यक् ज्ञान को स्थापित कर लेना संभव नहीं है । 25
शांकर वेदान्त में आत्म तत्त्वविज्ञान / 111
तर्क के सम्बन्ध में आचार्य शंकर के उपर्युक्त विचार को देखते हुए पुनः यहाँ प्रश्न उत्पन्न हो जाता है कि क्या तर्क को हटाकर सम्यक् ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है? क्या आचार्य ने तर्क को उसकी सम्पूर्णता में ही निराकरण कर दिया है? इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने स्वयं दिया है। उनका कहना है कि यदि हमेशा सभी तर्कों को अप्रतिष्ठित ही मान लिया जाय, तो लोक व्यवहार ही असम्भव हो जायेगा। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने तर्क को बिल्कुल नकार नहीं दिया है। तर्क के महत्त्व को रेखांकित करते हुए आचार्य शंकर का कहना हैः "युक्ति जो दृष्टसाम्य के आधार पर अदृष्ट के विषय में विधान करती है, श्रुति की अपेक्षा अनुभव के अधिक निकट है, क्योंकि श्रुति की प्रामाणिकता परम्परागत मात्र होती है । 27" आगे भी अपनी बात को स्थापित करने का प्रयास करते है जहाँ वे कहते हैं कि 'दृष्ट के आधार पर ही अदृष्ट का निर्धारण किया जा सकता है । 28
आचार्य शंकर के उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उन्होंने सभी प्रकार के तर्कों को नहीं अस्वीकार किया है, बल्कि उन्हीं तर्कों को अप्रतिष्ठित कहा है जो प्रागनुभविक हैं अर्थात् अनुभव पर आधारित नहीं हैं, अपितु शुष्क तर्क हैं जिनकी इस जगत् में कोई उपयोगिता नहीं है। इस प्रकार तर्क के सम्बन्ध में आचार्य शंकर के मत को समर्थित करते हुए पंचदशीकार ने कहा है कि "स्वानुभूति के अनुसार ही तर्क करना चाहिए, व्यर्थ कुतर्क नहीं करना चाहिए । 29"
में तत्त्वावबोध के संदर्भ में आचार्य शंकर द्वारा प्रमाणों के सम्बन्ध में उपर्युक्त मान्यता के पश्चात् अभी भी यह प्रश्न अनुत्तरित ही है कि अन्ततः उनके द्रव्य सिद्धान्त की मान्यता के आधार पर स्वीकृत एकमात्र तत्त्व- 'ब्रह्म' को कैसे जाना जाय? यहाँ शंकर का कहना है कि अनुभूति के अतिरिक्त जितने प्रमाण हैं, वे सभी अनुभव की प्राप्ति के साधन मात्र हैं। स्वानुभूति के अतिरिक्त जितने प्रमाण हैं, उनसे ब्रह्मज्ञान नहीं, अपितु अविद्या-जन्य भेदों की निवृत्ति हो सकती है। श्रुति-ज्ञान का प्रत्यक्ष लाभ यह है कि यह अन्य प्रमाणों की तुलना में अनायास ही अनुभव के सन्निकट जल्दी ला देती है। आचार्य शंकर की मान्यता है कि सभी प्रमाणों के द्वारा अनुभव को ही प्राप्त किया जाता है। प्रत्यक्ष अनुमान, श्रुति आदि प्रमाणों का कार्य केवल इतना ही है कि वे यह स्पष्ट करें कि अनात्म वस्तुएँ नश्वर हैं एवं आत्मा उनसे भिन्न है। इस प्रकार तत्त्व के वास्तविक स्वरूप तक प्रत्यक्षतः साधक को कोई भी प्रमाण न पहुँचाकर उसके अविद्या की निवृत्ति कर देते हैं और सत् या तत्त्व के रूप में ब्रह्म प्रकट हो जाता है। यही अपरोक्षानुभूति है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य शंकर का तत्त्वविज्ञान, तत्त्व के वास्तविक स्वरूप तक पहुँचने में उपर्युक्त सभी प्रमाणों का उनकी सम्यक् मात्रा में आश्रय लेता है तथा अपरोक्ष रीति से तत्त्व के साक्षात्कार में सक्षम प्रतीत होता है।
उपर्युक्त विवेचन के आलोक में यह स्पष्ट हो चुका है कि आचार्य शंकर का तत्त्वविज्ञान आधुनिक तत्त्वमीमांसीय विवादो से भिन्न कैसे है? तत्त्वमीमांसा के संबन्ध में 'आधारहीन कल्पना' का निन्दद्य नामधेय केवल भाषा विश्लेषण जनित समस्या एवं शुष्क प्रागनुभविक तर्कों का सम्मिलित परिणाम है जिसे आचार्य शंकर ने अस्वीकृत कर दिया है। उनके अनुसार सत् के स्वरूप |
7144df0770ba17d71b3b28a1062e3d9db578b4c5 | web | प्रिलिम्स के लियेः
सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS)।
मेन्स के लियेः
भारत में न्यायपालिका संबंधी पहल, भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ।
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑनलाइन ई-निरीक्षण सॉफ्टवेयर के उद्घाटन के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों का अब चार भाषाओं- हिंदी, तमिल, गुजराती और ओडिया में अनुवाद किया जाएगा।
- इस पहल के परिणामस्वरूप न्यायपालिका का भारतीयकरण होगा जो कि समय की मांग है।
न्यायपालिका का भारतीयकरणः
- भारतीयकृत न्यायपालिकाः
- CJI के अनुसार, न्यायालयों को वादी-केंद्रित होने की आवश्यकता है, जबकि न्याय वितरण का सरलीकरण प्रमुख चिंता होनी चाहिये।
- CJI ने निर्दिष्ट किया कि न्यायपालिका के भारतीयकरण का अर्थ न्याय वितरण प्रणाली का स्थानीयकरण है।
- भारत की सदियों पुरानी न्यायिक प्रणालीः
- भारत में विश्व की सबसे पुरानी न्यायिक प्रणाली है जो लगभग 5000 वर्ष पुरानी है।
- ऐतिहासिक काल से ही भारत में एक बहुत ही प्रभावी, विश्वसनीय और लोकतांत्रिक न्यायिक प्रणाली रही है, लेकिन वर्तमान निर्णयों में अधिकांश बयान/कथन पश्चिमी न्यायशास्त्र से लिये गए हैं।
- न्याय प्रदान करने की भारत की अपनी प्राचीन प्रणाली को बहुत कम मान्यता दी जाती है।
- संबंधित अनुशंसाएँः
- मलिमथ समिति की रिपोर्टः मलिमथ समिति (2000) ने सुझाव दिया कि संहिता की एक अनुसूची सभी क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित की जानी चाहिये ताकि अभियुक्त अपने अधिकारों को जान सकें, साथ ही उन्हें कैसे लागू किया जाए और उन अधिकारों के उल्लंघन होने पर किससे संपर्क किया जाए।
- विधि आयोग, 1958: अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) को पहली बार वर्ष 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- विधि आयोग की एक रिपोर्ट (1987) में सिफारिश की गई थी कि भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीश होने चाहिये, जबकि तब यह संख्या 10.50 थी।
न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिये पहलः
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC):
- लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ही मुख्य सहारा रहा है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय एकमात्र ऐसा न्यायालय है जिसने VC के माध्यम से अधिकतम मामलों की सुनवाई की है।
- लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ही मुख्य सहारा रहा है।
- AI आधारित सुपेस (SUPACE) पोर्टलः
- मई 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी शोध के साथ न्यायाधीशों की सहायता करने के उद्देश्य से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) आधारित सुप्रीम कोर्ट पोर्टल फॉर असिस्टेंस इन कोर्ट एफिशिएंसी (Supreme Court Portal for Assistance in Court's Efficiency- SUPACE) लॉन्च किया।
- न्याय वितरण और कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशनः
- मिशन न्यायिक प्रशासन में बकाया और लंबित मामलों के चरणबद्ध परिसमापन के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण अपना रहा है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कंप्यूटरीकरण, अधीनस्थ न्यायपालिका की शक्ति में वृद्धि, नीति एवं विधायी उपायों सहित न्यायालयों के लिये बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल है।
- ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों हेतु बुनियादी ढाँचे में सुधारः
- बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme- CSS) की शुरुआत के बाद से 9291.79 करोड़ रुपए जारी किये गए हैं।
- कोर्ट हॉल की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) का लाभ उठानाः
- सरकार ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सक्षम करने के लिये पूरे देश में ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना को लागू कर रही है।
- कंप्यूटरीकृत ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या अब तक बढ़कर 18,735 हो गई है।
भारतीय न्यायिक प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँः
- लंबित मामलों की बड़ी संख्याः भारतीय न्यायालयों के समक्ष 30 मिलियन से अधिक मामले लंबित पड़े हैं।
- उनमें से 4 मिलियन से अधिक मामले उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पास 60,000 मामले लंबित हैं। यह आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है और न्याय प्रणाली की अपर्याप्तता को प्रदर्शित करता है।
- विचाराधीन कैदीः भारतीय जेलों में बंद अधिकांश कैदी वे हैं जो अपने मामलों में निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं (यानी वे विचाराधीन कैदी हैं) और उन्हें निर्णयन की अवधि तक के लिये बंद रखा जाता है।
- अधिकांश आरोपितों को जेल में लंबी सज़ा काटनी पड़ती है (दोषी सिद्ध होने पर दी जाने वाली सज़ा की अवधि से अधिक समय तक) और न्यायालय में स्वयं का बचाव करने से संबद्ध लागत, मानसिक कष्ट एवं पीड़ा वास्तविक दंड की तुलना में अधिक महँगी और पीड़ादायी सिद्ध होती है।
- नियुक्ति/भर्ती में देरीः न्यायिक पदों को आवश्यकतानुसार यथाशीघ्र नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन आबादी वाले देश में लगभग 25000 न्यायाधीश ही उपलब्ध हैं।
- उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की संख्या लगभग 400 है और निचली न्यायालयों में करीब 35 फीसदी पद खाली पड़े हैं।
- CJI की नियुक्ति में पक्षपात और भाई-भतीजावादः चूँकि CJI के पद के लिये उम्मीदवारों के मूल्यांकन के संबंध में कोई विशिष्ट मानदंड नहीं हैं, इसलिये इस मामले में भाई-भतीजावाद और पक्षपात आम बात है।
- परिणामतः न्यायिक नियुक्ति में कोई पारदर्शिता नहीं है और साथ ही वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं।
- ब्रिटिश शासन से प्रेरित भारतीय न्यायपालिकाः भारत की वर्तमान न्यायिक प्रणाली की उत्पत्ति न्यायपालिका की औपनिवेशिक प्रणाली में देखी जा सकती है जो भारतीय आबादी की आवश्यकताओं के लिये बिल्कुल उपयुक्त नहीं है।
- नियुक्ति प्रणाली में बदलावः रिक्तियों को तुरंत भरे जाने की आवश्यकता है, और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उपयुक्त समयसीमा स्थापित करना तथा अग्रिम सुझाव देना आवश्यक है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण कारक जो निर्विवाद रूप से भारत में एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने में सहायता कर सकता है, वह है AIJS।
- जाँच प्रक्रिया में सुधारः भारत में एक जाँच संबंधी सक्रिय नीति का अभाव है, जिसके कारण कई निर्दोष लोगों को गलत तरीके से आरोपित किया जाता है और दंडित किया जाता है।
- इसलिये भारत सरकार को न्याय प्रणाली में सभी हितधारकों को ध्यान में रखते हुए एक प्रभावी, सक्रिय और व्यापक जाँच नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
- न्याय के लिये नवोन्मेषी समाधानः बड़ी मात्रा में लंबित मामलों के निपटान के समाधान के लिये केवल अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति काफी नहीं है, इसके लिये नवोन्मेषी समाधानों की भी आवश्यकता है।
- हाल ही में शुरू की गई पहल को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह समझना आवश्यक है कि न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी भाषा सभी नागरिकों के समझ में नहीं आती है।
- इसे न्याय तक पहुँच तब तक नहीं माना जा सकता जब तक निर्णयों/फैसलों को आम जनता की समझ में आ जाने वाली भाषा में निर्गत नहीं किया जाता है।
- हाल ही में शुरू की गई पहल को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह समझना आवश्यक है कि न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली अंग्रेज़ी भाषा सभी नागरिकों के समझ में नहीं आती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (c)
प्रश्न. भारत में कानूनी सेवा प्राधिकरण निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को मुफ्त कानूनी सेवाएँ प्रदान करते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनियेः
उत्तरः (a)
प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
उत्तरः (c)
प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)
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28949a8dffe31912cba04ee9ed3a38a2f7a629795ad6516fab9027691ae307f4 | pdf | के हाथ से जन-जीवन छीन कर वैज्ञानिको और साहित्यकारों को जन-जीवन का नेतृत्व प्रदान कर दिया जाय । यह शर्म की बात है कि वैज्ञानिक आज फौजी आदेश का यन्त्रवत् पालन कर रहे है ।"
'खग्रास' वे गूढ पुरुष वास्तव में आचार्य चतुरसेन जी स्वय हैं। वे ही एक वैज्ञानिक के रूप में प्रस्तुत उपन्यास मे आए है। जिन दिनो आचार्य चतुरसेन जी प्रस्तुत उपन्यास लिख रहे थे, मैं उनके समीप ही था । मुझसे उन्होंने हँसते हुए कहा था शुभ तुमने जितने भी वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रश्न करके मेरे विचारो को कुरेदा था, उन सभी का समाधान मैंने स्वयं एक वैज्ञानिक बन कर प्रस्तुत उपन्यास में प्रस्तुत करने की चेष्टा है । तुमने उसी प्रकार मरे विचारों को कुरेदा है, जिस प्रकार तिवारी ने उस गूढ पुरुष के विचारों को कुरेदा था ।' इतना कहकर आचार्य जी खुल कर हँस पडे थे ।
में इस विषय के उस वार्तालाप को यहाँ उदधृत कर रहा हूँ 'आपने अपना यह उपन्यास किस वस्तु से प्रभावित होकर लिखा ।'
'सन् १९५८ से । यह वर्ष विज्ञान जगत में अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है वैसे मैं तो अब यह मानने लगा हूँ कि बिना विज्ञान और साहित्य का का समन्वय हुए विश्व आगे नहीं बढ सकता । विज्ञान और साहित्य का समन्वय कैसे हो प्रश्न यह है स्पष्ट है, गद्य का सबसे निखरा रूप है उपन्यास । अत उपन्यारा को माध्यम बनाकर ही विज्ञान को साहित्य के अन्दर लाया जा सकता और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये मैंने यह वैज्ञानिक उपन्यास लिखा है ।'
'विज्ञान की यह उनति क्या मानवता के लिये हितकारी होगी " 'अवश्य किंतु यदि उसका उपयोग मानवता के सृजन के लिए हो विनाश के लिये नही । मेरा पूर्ण विश्वास है कि यदि विज्ञान का उपयोग सृजन के कार्यों मे हुआ तो मनुष्य की औसतन आयु बढ़ जायगो कैंसर, हृदय रोग रक्त चाप और सिफलिस इन चार रोगो का अभी तक कोई निश्चित निदान नही
है किंतु मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगले दस वर्षों में विज्ञान इन रोगो पर विजय पा लेगा तब निश्चित ही मनुष्य अकाल मृत्यु से बच सवेगा । कुछ स्व कर उन्होंने आगे कहा 'परन्तु शर्त यह है कि युद्ध के बादल वैज्ञानिक आविष्कारों पर न छा जायें !'
१ खप्रास-नाचार्य चतुरसेन.पू. २७६ ।
'अपने अपने इस उपन्यास में एक भाeate वैज्ञtfre को सर्वोपरि दिखला दिया है क्या यह आपका पक्षपात नहीं है ?"
'कदापि नही, कारण मैंने भारत को शान्ति दूत माना है, और वह भारतीय वैज्ञानिक शान्ति का हो पक्षपाती है उसके समस्त वैज्ञानिक आविष्कार शान्ति के लिये है विनाश के लिये नहीं इसलिए मैंने उसे सर्वोपरि दिखलाया है । परोक्ष मे मेरा सकेत यह है कि भविष्य मे सर्वोच्च वैज्ञानिक वही होगा जिसके चरण शान्ति की ओर बढ़ेंगे, विभाग की ओर नही । विज्ञान शान्ति मे साधक होगा, बाधक नहीं, ऐसा मेरा अपना विश्वास है ।"
आचार्य चतुरसेन जी विज्ञान और साहित्य को युद्ध और शांति से सदैव सम्बन्धित समझते रहे । उनका कथन था कि विश्व शाति विज्ञान और साहित्य के द्वारा ही सम्भव हो सकेगी। उन्होंने विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण को ही मान्यता दी है। उनका कथन है 'विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण आध्यात्मिक रहा है । भौतिकवादी दृष्टि से ससार जिस सूत्र से बँधा है, उसके अन तक पहुँच चुका है। अब इसे या तो कुछ नई कल्याणकारी स्थिति में आना पडेगा या नष्ट हो जाना होगा। उनका वैज्ञानिक प्रगति का मापदण्ड भी भिन्न है । वे उस राष्ट्र को सर्वशक्तिशाली मानते हैं जो विज्ञान को मानव मात्र के लिए मृत्युदूत न बनाकर मुक्तिदूत बनाना चाहता हूँ 13 तिवारी और गूढ पुरुष के पारस्परिक वार्तालाप द्वारा आचार्य चतुररोन जी ने अपने विज्ञान के भारतीय दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है। यहां हम उस वार्तालाप का कुछ अश उद्धृत कर रहे है । तिवारी गूढ पुरुष से प्रश्न करते हैं' क्या हो -
-अच्छा हो भारतवर्ष आपकी सामर्थ्य को जान जाय ।।
क्यो ।
• वज्ञान की समर्थ ज्योति भारत में जगमग है यह दुनियां के कितने आदमी जानते हैं ।
'तो इससे क्या ? विज्ञान के संबंध मे तो भारतीय दृष्टिकोण विश्व के दृष्टिकोण से निराला है, उसे दुनिया को जानना चाहिए ।'
१. धर्मयुग, आचार्य चतुरसेन, व्यक्तित्व और विचार, शुभकार्य नाथ कपूर, ९ अगस्त सन् १९५४, पृ. ८
२. सप्रास, आचार्य चतुरसेन, पृ ३१०
३. खग्रास, आचार्य चतुरसेन, पृ. २७६ ।
'वह दृष्टिकोण कैसा है *
'विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण आध्यात्मिक रहा है। भौतिकवादी दृष्टि से ससार जिस सूत्र से बँधा है, उसे अंत तक पहुँचा चुका है। अब इसे या तो कुछ नई कल्याणकारी स्थिति में आना पड़ेगा या नष्ट हो जाना होगा।'
'परन्तु मैं तो यह समझता हूँ कि भारत वैज्ञानिक प्रगति मे बहुत पिछडा हुआ देश है।'
'केवल तुम ही ऐसा समझते हो यह बात नहीं । भारत में भी लोग ऐसा ही समझते हैं। जब वैज्ञानिक प्रगति की बात आगे आती है तो हमारे देश के लोग हीनता का अनुभव करने लगते हैं ?"
'इसका कारण क्या है ?"
'बिल्कुल स्पष्ट है । साधारणतया यह समझा जाता है कि जिस देश के वैज्ञानिक अणुबम और हाईड्रोजन बम बनाना नही जानते, वह प्रगति के हिसाब से बड़ा देश नहीं है । विश्व की राजनीतिक तराजू का भी यही मान है । यह बात केवल भारत ही से सम्बन्धित नहीं है, अन्य देश भी ऐसा ही अनुभव करते है ।'
'परंतु आप समझते हैं कि उनका यह अनुभव गलत है !' निस्सन्देह विज्ञान के प्रति यह एक गलत दृष्टिकोण है। इससे संसार के बहुत देश गुमराह् हो रहे हैं।'
किंतु आप विज्ञान के विकास को क्या स्वीकार ही नहीं करना चाहते।'
'क्यो नही । परन्तु मैं समझता हूँ प्राचीन भारतीय मनोषी विज्ञान को सत्य की खोज का साधन मानते थे। मैं तो चाहता हूँ कि भारतीयों के मन मे उनको मान्यता का समादर हो, तो भारत की प्रगति सही अर्थ में हो सकती है।'
'कृपा कर अपना अभिप्राय साफ-साफ कहिए ।
'शाफ ही सुनो। कोई देश किरा हद तक वैज्ञानिक प्रगति कर गया है, इम उसकी ध्वसात्मक शक्ति को देखवर यांना भारतीय दृष्टिकोण नहीं है । भारत तो मानव समाज के कल्याण में सहायक होने की क्षमता होने के अनुसार ही विज्ञान की सफलता आफ्ना चाहता है।'
'तो आप बडे राष्ट्रो की इस वैज्ञानिक प्रगति को तुच्छ समझते है ?"
'मैं उसके प्रति सम्मान की भावना नही रखता । मैं तो यह कहता हूँ कि मान जीवन को सुखो और सम्पन्न बनाने योग्य कोई छोटा सा भी आविष्कार हो तो उसे इस भयानक विध्वसात्मक शस्त्रास्त्रों की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझना चाहिए।'
'क्या हमारे देश के वैज्ञानिको का यही मत है ?"
'शायद नही है । वे जानते हैं कि हमे भी राष्ट्रों के समाज में रहना पड रहा है । वस्तु के मूल्याक्त का जो तरीका सब प्रमुख राष्ट्रो का है वे उससे प्रभावित है।
'आपकी समझ में यह ठीक नहीं है ?"
'यह दुर्भाग्य की बात है कि विज्ञान की प्रगति जारी रहे और ससार मे वैज्ञानिक वातावरण न पैदा हो ।'
'आप समझते हैं कि ससार का
वातावरण वैज्ञानिक नही बन
रहा है "
'मैं तो समझता हूँ कि संसार का जो वातावरण बन रहा है, वह विज्ञान के लिए द्रोहात्मक है ।'
'यह आप किस आधार पर कहते हैं "
'ससार मे तनाव बना हुआ है। यह तो तुम भी मानोगे और उसका असर केवल आर्थिक एवं राजनीतिक विचारों को ही नहीं वरन् विज्ञान की शुद्धता को भी कम बरता जा रहा है। विज्ञान की प्रगति की अनिवार्य शर्त है सत्य के प्रति पूर्ण सम्मान ।
'क्या आज की वैज्ञानिक प्रगति मे सत्य के प्रति सम्मान नहीं है ? 'ससार मे तनाव रहने पर सत्य के प्रति सम्मान कैसे रह सकता है ? 'आप समझते हैं कि विज्ञान जन कल्याणकारी नहीं है
'यदि उसके साथ छेड़-छाड न की जाय तो निश्चय ही विज्ञान मानव जाति का कल्याण ही करेगा । परन्तु विश्व के तनाव के कारण इसका उपयोग राजनीतिक गुट विशेष अथवा सिद्धान्त विशेष के लोगो का स्वार्य साधने मे होता है और अब तो विज्ञान का यह दुरुपयोग चरम सीमा पर पहुँच चुका है ।'
'कैसे ?"
'क्या तुम देख नही रहे- अब तो बडे कहे जाने वाले राष्ट्र भी विमूढ की भांति यही सोचने लगे हैं कि आगे क्या? और इसना उत्तर उनके पास नहीं है।'
'आपके पास है ?"
'हाँ, मैं कह सकता हूँ कि इसका एकमात्र उत्तर है कि विज्ञान की सफलता उसकी मानव समाज के कल्याण में सहायक होने की क्षमता ही है । "
उपर्युक्त उद्धरण आचार्य चतुरसेन जी ने 'युद्ध और शान्ति' विषयक विचारो पर पर्याप्त प्रकाश डालता है ।
आचार्य चतुरसेन जी ने भारत को जो विश्व की तीसरी शक्ति माना वह भी विज्ञान के कारण नहीं, 'शान्ति की शक्ति के कारण । उनका कथन है, सारे संसार का ध्यान इस शक्ति पर केन्द्रित हो रहा है और ससार के जन नायको की नजर में भारत का स्थान बहुत ऊँचा है । आज बहुत से राष्ट्र
भारत को शान्ति का स्तम्भ मानते है । उन्हें विश्वास है कि भारत सब देशो को प्रगति और स्वाधीनता का इच्छुफ है। उसने अपनी स्वाधीनता के अल्पवालीन समय में यह प्रमाणित किया है कि यदि राहिष्णुता और पारस्परिक सद्भावना से काम लिया जाय तो सव विभिन्न विचारधाराएँ साथ साथ जीवित रह सकती हैं। यह कितनी बड़ी बात है कि भारत सभी समस्याओं को लोकतन्त्रात्मक विधियों से सुलझाने की पद्धति अपना रहा है।
आचार्य चतुरसेन जी ने यह स्वीकार किया है कि भारत के समक्ष केवल शान्ति का ही मार्ग है, युद्ध से वह सदैव से लिए नष्ट हो जावेगा। उन्होंने स्वय कहा है पर हमारे ( भारत के ) पास न काफी युद्ध सामग्री है, न हमारी स्थिति हो इस योग्य है कि हम लडाई के धक्के सम्हाल सके । हम गरीव हैं । हमारी आजादी बच्चा है। हम तो शान्ति की गोद में ही पनप सकते हैं, इसी से वे इस ससार मे शान्ति स्थापना के कार्य मे दौड़ धूप कर रहे हैं। क्योकि वह जानते हैं लडाई कही भी छिडे हमारे देश को वह तबाह किए बिना न छोड़ेगी
निश्चय हो ये विचार बडे ही उपयुक्त और उपयोगी है ।
अन्त मे आचार्य चतुरसेन जी ने यह भी स्वीकार किया है कि यदि विश्व भारत के शान्ति मार्ग वा अनुगमन नही करता तो उसे विवश होकर इस मार्ग का अनुकरण करना पड़ेगा, अन्यथा उसे युद्ध की भयानक ज्वाला में जल्ना
१. सग्रास, आचार्य चतुरसेन, पृ ३१० से ३१२ तक ।
२. खग्रास, आजपं नजुरसेन, पृ. २७३ २
३. उदयास्त, आचार्य चतुरसेन, पृ. २०१ ।
होगा । आचार्य चतुरसेन जी मन मे घोषणा करते हुए कहते है परंतु 'अणु महास्त्र' का आज मानव मस्तिष्क पर बिल्कुल हो नया और अभूतपूर्व प्रभाव पड़ा है, इससे वह रोष को दबाने की नहीं, अपने से दूर निकाल फेंकने यी सोचने लगा है। उसको चेतना में स्वच्छ विचारधारा का उदय हुआ है, और अब उसके पूर्ण पुरुष होने का युग आ गया है । इस युग मे बह वह सर्वथा रोपट्टीन होकर विचार सामर्थ्य से अपना संगठन करेगा। बडे-बडे क्रुद्धजन नियंक फूत्कार कर, आकन्छ रक्त स्नान कर मरणशरण हुए । 'लोहू और लोहा' जिनका नारा था, उनकी बेहद दुर्दशा हो गई । मानव शेष की निस्सारता विश्व ने देख ली। जानियों के भाग्य पलट गए। विश्व रेखायें बदल गईं । इन सबसे मानुष ने अब चार बातें सीखी है
१ विश्व के सब मनुष्य एक से हैं। वे परस्पर भाई-भाई हैं, समान हैं, अभय हैं, और विश्व को सम्पदाओं के अधिपति है ।
२ मानव fare a सबसे बड़ी इकाई है। उसकी पूजा, आत्मनिष्ठा, निर्भय विश्व विचरण तथा भोग सामर्थ्य कविजनगेय वस्तु है ।
३ जगत सत्य है, भूत्र सम्पदा मानव उत्कर्ष का साधन है।
४. 'कला' और 'विज्ञान' मनुष्य का हृदय और मस्तिष्क है । दोनो के विचार कौशल से एकीभूत करके उसे मानव विभूति वर्धन मे लगाना चाहिये, जिससे मनुष्य 'रोपहीन' हो ।"
आचार्य चतुरसेन जी के इस निष्कर्ष से भी स्पष्ट हो जाता है कि बहू मार्गसवादी विद्धान्तो की अपेक्षाकृत गावोबादी सिद्धातो की ओर अधिक उन्मुख हैं।
जन संख्या की समस्या
भाज की बढ़ती हुई जन संख्या की और भी आचार्य चतुरसेन जो का ध्यान गया है। उनका कथन है आज रूस और अमेरिका खतरनाक बम बनाने मे लगे हैं परंतु विश्व का सबसे बड़ा खतरनाक बम जन संख्या का प्राधिक्य है जिसे ससार भर के मनुष्य तैयार करने में जुटे हैं लाखो व्यक्ति भोजन की खोज मे रहते हैं। इसी कारण से उन्होने 'सतति निरोध' के प्रति अपनी आस्था द की है?
१. मौत के पजे मे जिन्दगी की वराह, आचार्य चतुरसेन, पृ १६४-६५ ।
२ 'खास' आचार्य चतुरसेन, पृ. २७५ |
7a38463b83c51750fa10fc39d3ae7eee28ac46e7 | web | 2017 में हम इंसानों की तस्करी और ग़ुलामों के व्यापार को एक दूसरे रूप में देख रहे हैं।
इस विषय ने 17वीं शताब्दी में अमरीका में अश्वेतों को ग़ुलाम बनाए जाने की यादें ज़िंदा कर दी हैं। लेकिन इस बार यह ग़ुलाम अफ़्रीक़ी नहीं हैं, बल्कि यह रोहिंग्या मुस्लिम पुरुष और महिलाएं हैं, जो म्यांमार की सरकार की नस्लभेदी एवं जातिवादी नीतियों का शिकार हैं।
रोहिंग्या अल्पसंख्यकों को म्यांमार में बहुत ही कठिन परिस्थितियों का सामना है। चरमपंथी बौद्ध हर रोज़ उन पर योजनाबद्ध हमले करते हैं। अधिकांश रोहिंग्या मुसलमानों को अपना घर बार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले तीन वर्षों के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ अत्याचारों में तेज़ी आई है और शरणार्थी कैम्पों में कठिन परिस्थितियों के कारण एक लाख बीस हज़ार से अधिक लोग देश छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। इसका मतलब है कि हर दस में से एक रोहिंग्या मुस्लमान को म्यांमार से फ़रार होना पड़ा है। आम तौर पर हर एक व्यक्ति को 200 से 300 डॉलर के बदले में पहले थाईलैंड और फिर मलेशिया स्थानांतरित कर दिया जाता है। थाईलैंड पहुंचने पर तस्कर उन्हें जंगलों में स्थित कैम्पों में ले जाते हैं।
भारतीय अख़बार द हिंदू ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ चरमपंथी बौद्धों के अत्याचार के कारण यह लोग अपनी जान बचाने के लिए बड़ी संख्या में शाह परीर द्वीप शहर की ओर भागते हैं ताकि वहां से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की ओर पलायन कर सकें, वहीं यह इंसानों की तस्करी करने वाले माफ़िया के हत्थे चढ़ जाते हैं।
पछिले कई वर्षों के दौरान, अपना घर बार छोड़कर जान बचाने के लिए फ़रार करने वाले रोहिंग्या मुसलमानों के कारण, यह शहर तस्करी के एक छोटे शहर से तस्करी के एक बड़े केन्द्र में परिवर्तित हो चुका है। इस शहर की ओर विश्व समुदाय का ध्यान उस घटना के बाद गया, जब रोहिंग्या शरणार्थियों से भरी एक नाव समुद्र में पलट गई और समुद्र में डूबने वाले शरणार्थियों के शव पानी पर तैरने लगे। बांग्लादेश के अधिकारियों के मुताबिक़, करीब 32 हज़ार रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार की सीमा पर दक्षिणी बांग्लादेश में स्थित कैम्पों में रह रहे हैं।
द हिंदू अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि शाह परीर द्वीप शहर में पहले तस्करों की नज़र उन लोगों पर रहती थी, जो बेहतर जीवन और बेहतर काम के लिए मलेशिया, थाईलैंड और सिंगापूर जाना चाहते थे, लेकिन अब यह तस्करी एक व्यापक रूप ले चुकी है। तस्कर ग़ैर स्टैंडर्ड नावों में शरणार्थियों को बुरी तरह से ठूंस लेते हैं। यह तस्कर उन शरणार्थियों को कि जिनके परिवार का कोई सदस्य मलेशिया या किसी अन्य देश जा चुका होता है, वहां पहुंचाने के लिए प्रेरित करते हैं।
रोहिंग्या मुसलमानों का सामूहिक पलायन अब दक्षिण एशिया में एक संकट का रूप ले चुका है। थाईलैंड में मलेशिया की सीमा पर म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की सामूहिक क़ब्रों का पता चला है, इसके अलावा तस्कर उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उन्हें खाने पीने से वंचित रखते हैं, यह लोग उन्हें दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों तक पहुंचाने के लिए 3 हज़ार डॉलर लेते हैं और कभी कभी उन पर दबाव डालकर अधिक राशि मांगते हैं। कभी कभी भूखे और प्यासे शरणार्थियों को समुद्र में बीच मझदार में छोड़ देते हैं, जहां वे बेसहारा अपनी जान गंवा देते हैं।
इंसानों के तस्कर शरणार्थी परिवारों से अंधाधुंध पैसे की मांग करते हैं, ताकि उन्हें मलेशिया, थाईलैंड या बांग्लादेश पहुंचा सकें। कभी यह तस्कर समुद्र में पहुंचकर अधिक पैसे की मांग करने लगते हैं। काफ़ी पैसे न देने के कारण रोहिंग्या परिवार अपनी लड़कियों की शादी दूसरें लोगों से करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। रोहिंग्या महिलाओं का शोषण किया जाता है और उन्हें थाईलैंड में महिलाओं की तस्करी करने वालों के हाथों बेचे जाने का ख़तरा रहता है। इसीलिए वे मजबूरी में शादी के लिए तैयार हो जाती हैं।
अंम्बिया ख़ातू एक रोहिंग्या लड़की हैं, वे कहती हैं कि इंसानों की तस्करी करने वाले पहले हमें थाईलैंड ले गए, मेरे पास काफ़ी पैसे न होने के कारण, उन्होंने मुझे बेचने का प्रयास किया, एक मलेशियाई व्यक्ति ने तस्करों को हमारा क़र्ज़ अदा कर दिया, वह व्यक्ति एक बूढ़ा व्यक्ति था, इसके बावजूद मेरी मां ने उससे शादी के लिए सहमति जता दी, इसलिए कि वहां कोई और हमारी मदद के लिए नहीं था।
अगर किसी व्यक्ति की माली हालत अच्छी है और उसके पास काफ़ी धन है तो वह तस्करों के पंजे से आज़ाद कराने के लिए कई लड़कियों का चयन कर सकता है और पैसा अदा करके उन्हें ख़रीद सकता है। यह समस्त अमानवीय कृत्य मानवाधाकरों का दावा करने वाले संगठनों की ख़ामोशी के साथ हो रहे हैं। थाईलैंड के मछुआरे हर रोहिंग्या महिला के बदले 900 डॉलर अदा करते हैं और उसे महली के शिकार के व्यापार में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा कई मछुआरों ने अपना व्यवसाय छोड़कर इंसानों की तस्करी का काम शुरू कर दिया, इसलिए कि इस काम में उन्हें अधिक लाभ मिलता है।
शोध से पता चलता है कि थाईलैंड के कुछ अधिकारी शरणार्थी कैम्पों की देखभाल करने वाले अधिकारियों के साथ मिलकर रोहिंग्या शरणार्थियों को तस्करों के हाथों बेच देते हैं। शरणार्थियों की तस्करी में शामिल एक व्यक्ति ने एक अंग्रेज़ी अख़बार से बात करते हुए कहा है कि पिछले साल उसने कम से कम 100 शरणार्थियों को बेचा है और हर शरणार्थी के बदले में 900 डॉलर लिए हैं।
रोहिंग्या शरणार्थी आसानी से तस्करों का शिकार हो जाते हैं, इसलिए कि जो लोग उनसे वादा करते हैं कि केवल 100 डॉलर लेकर उन्हें मलेशिया पहुंचा देंगे, वही लोग अकसर शरणार्थियों को मलेशिया के बजाए थाईलैंड में ख़ुफ़िया ठिकानों में छुपा देते हैं और समय आने पर उन्हें बाज़ार में बेच देते हैं। रोहिंग्या मुसलमान जब अपनी जान बचाकर भागते हैं और तस्करों के हाथों लग जाते हैं, तो उनकी यह यात्रा महीनों तक चलती रहती है। उन्हें बहुत ही कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। उनमें से कई लोग रास्ते में ही अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं और जो लोग ज़िंदा बच जाते हैं उन्हें और अधिक कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों की तस्करी करके उन्हें थाईलैंड के तटों तक ले जाया जाता है और उन्हें वहां जंगलों में जेलों की भांति कैम्पों में रखा जाता है। इन कैम्पों में उन्हें यातनाएं दी जाती हैं और उनके साथ मारपीट की जाती है, उन्हें उस वक़्त तक मारा जाता है, जब तक उनके परिजन तस्करों को 2 हज़ार डॉलर नहीं दे देते हैं।
यह मौत के कैम्प और वह कश्तियां जो उन्हें लेकर जाती हैं संभवतः दक्षिण पूर्वी एशिया के सबसे भयानक स्थानों में से हैं। एक 23 वर्षीय रोहिंग्या लड़का, जो कुछ महीनों पहले तक इन कैम्पों में जीवन व्यतीत करता था, वहां के हालात को बयान करते हुए कहता है कि मुझे हर दिन सुबह शाम मारा जाता था। वे मुझे मारते थे, ताकि मेरे परिवार को पैसे देने पर मजबूर कर सकें। वे हमें इतना मारते थे कि हम कमज़ोर हो जाएं और वहां से भाग न सकें।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक़, इन शरणार्थियों को बड़ी संख्या में कश्तियों में ठूंसकर और रस्सियों में बांधकर ले जाया जाता है। सामान्य रूप से इन शरणार्थी तस्करों को भारी रक़म अदा करते हैं। रोहिंग्या नाम से पहचाने जाने वाले म्यांमार के इन मुसलमानों के दुखों का कोई अंत नहीं है। वे अपना घर बार छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं, लेकिन उन्हें पड़ोसी देशों में भी शरण नहीं दी जा रही है। या वे थाईलैंड के हत्यारों के हाथ लग जाते हैं और इस देश के जंगलों में उनकी हत्या कर दी जाती है और उनके शवों को नष्ट कर दिया जाता है, या उन्हें नदी में या समुद्र में डूबने के लिए छोड़ दिया जाता है, या वे मलेशिया के इंसानी तस्करों के फंदे में फंस जाते हैं। वास्तव में इंसानों के तस्करों को इंसानों का एक बड़ा ख़ज़ाना हाथ आ गया है। इन तस्करों का भोजन ही रोहिंग्या मुस्लिम पुरुष, महिलाएं और बच्चे हैं।
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d40174020bd67cc54d6274b0fdfb8333c8d9cbfc | web | हमारे पूर्वजों ने आनुवंशिक रूप से विविध फसल कैसे विकसित की?
जौ ( होर्डियम वल्गार एसएसपी। वल्गार ) मानव द्वारा पालतू और सबसे पुरानी फसलों में से एक थी। वर्तमान में, पुरातात्विक और अनुवांशिक साक्ष्य इंगित करते हैं कि जौ कम से कम पांच क्षेत्रों में कई आबादी से विकसित मोज़ेक फसल हैः मेसोपोटामिया, उत्तरी और दक्षिणी लेवेंट, सीरियाई रेगिस्तान और पूर्व में 1,500-3,000 किलोमीटर (900-1,800 मील), विशाल तिब्बती पठार में। पहली बार पूर्व-पोटरी नियोलिथिक ए के दौरान दक्षिण-पश्चिम एशिया के बारे में 10,500 कैलेंडर साल पहले था, लेकिन जौ की मोज़ेक स्थिति ने इस प्रक्रिया की हमारी समझ में एक रिंच फेंक दिया है।
उपजाऊ क्रिसेंट में, जौ को क्लासिक आठ संस्थापक फसलों में से एक माना जाता है ।
सभी बार्ली के जंगली प्रजननकर्ता को होर्डियम स्पोंटेनियम (एल। ) माना जाता है, जो शीतकालीन-अंकुरित प्रजातियां है जो इराक़ में टिग्रीस और यूफ्रेट्स नदी प्रणाली से यूरेशिया के पश्चिमी इलाके तक यूरेशिया के एक बहुत व्यापक क्षेत्र के मूल निवासी हैं। चीन में यांग्त्ज़ी नदी। इज़राइल में ओहलो II जैसे ऊपरी पालीओलिथिक साइटों के सबूतों के आधार पर, घरेलू होने से कम से कम 10,000 साल पहले जंगली जौ की कटाई की गई थी।
गेहूं , चावल और मक्का के बाद आज दुनिया में जौ चौथी सबसे महत्वपूर्ण फसल है। पूरी तरह से जौ हाशिए और तनाव-प्रवण वातावरण के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है, और क्षेत्रों में गेहूं या चावल की तुलना में अधिक विश्वसनीय संयंत्र है जो ऊंचाई में ठंडा या उच्च है।
जंगली जौ में जंगली पौधे के लिए कई विशेषताएं उपयोगी होती हैं जो मनुष्यों के लिए इतनी उपयोगी नहीं होती हैं।
एक भंगुर रैचिस (वह भाग जो पौधे को बीज धारण करता है) जो बीजों को पके हुए होते हैं, उन्हें हवाओं में बिखराते हैं; और बीज को थोड़ी सी बीज वाली दो पंक्तियों में स्पाइक पर व्यवस्थित किया जाता है। जंगली जौ हमेशा अपने बीज की रक्षा करने में एक कठिन हलचल है; पतवार-कम रूप (जिसे नग्न जौ कहा जाता है) केवल घरेलू किस्मों पर पाया जाता है।
घरेलू रूप में एक गैर-भंगुर रैची और अधिक बीज होते हैं, जो छः पंक्ति वाली स्पाइक में व्यवस्थित होते हैं।
दोनों घिरे हुए और नग्न बीज के रूप पालतू पालतू जौ में पाए जाते हैंः नियोलिथिक काल के दौरान, दोनों रूपों को उगाया जाता था, लेकिन निकट पूर्व में, 5000 साल पहले चॉकिलिथिक / कांस्य युग में नग्न जौ की खेती शुरू हो गई थी। नंगे बार्ली, जबकि फसल और प्रक्रिया के लिए आसान, कीट हमले और परजीवी बीमारी के लिए अधिक संवेदनशील हैं। हुलड बार्ली की उच्च पैदावार होती है; तो वैसे भी पूर्व के भीतर, हलचल रखना एक चुनिंदा गुण था।
हाल ही में (जोन्स और सहकर्मियों 2012) यूरोप के उत्तरी हिस्सों और अल्पाइन क्षेत्र में जौ के फाईलोगोग्राफिक विश्लेषण में पाया गया कि आधुनिक जौ भूमिगत क्षेत्रों में ठंड अनुकूली जीन उत्परिवर्तन पहचानने योग्य थे। अनुकूलन में एक प्रकार शामिल था जो दिन की लंबाई के लिए गैर-प्रतिक्रियाशील था (यानी, फूलों में देरी नहीं हुई जब तक पौधे दिन के दौरान सूरज की रोशनी के कुछ घंटों तक नहीं पहुंच जाता): और वह फार्म पूर्वोत्तर यूरोप और उच्च ऊंचाई स्थानों में पाया जाता है ।
वैकल्पिक रूप से, भूमध्य क्षेत्र में लैंड्रेस मुख्य रूप से दिन की लंबाई के लिए उत्तरदायी थे। मध्य यूरोप में, हालांकि, दिन की लंबाई एक विशेषता नहीं है जो (स्पष्ट रूप से) के लिए चुना गया था।
जोन्स और सहयोगी संभावित बाधाओं के कार्यों को रद्द करने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन सुझाव दिया कि अस्थायी जलवायु परिवर्तन से क्षेत्र में फसल की अनुकूलता के आधार पर, विभिन्न क्षेत्रों के लिए लक्षणों का चयन प्रभावित हो सकता है, जौ के फैलाव में देरी हो सकती है या इसे तेज किया जा सकता है। ।
कितने पालतू घटनाक्रम ! ?
पालतू जानवरों की कम से कम पांच अलग-अलग लोकी के लिए साक्ष्य मौजूद हैः उपजाऊ क्रिसेंट में कम से कम तीन स्थान, सीरियाई रेगिस्तान में से एक और तिब्बती पठार में से एक। जोन्स एट अल। 2013 अतिरिक्त सबूत बताते हैं कि उपजाऊ क्रिसेंट के क्षेत्र में, एशियाई जंगली जौ की चार अलग-अलग घरेलू घटनाएं हो सकती हैं।
समूह एडी के भीतर अंतर एलील की उपस्थिति पर आधारित होते हैं जो अलग-अलग दिन की लंबाई में अनुकूलित होते हैं; और विभिन्न प्रकार के स्थानों में जौ की अनुकूली क्षमता बढ़ने की क्षमता। यह हो सकता है कि विभिन्न क्षेत्रों के जौ प्रकारों के संयोजन ने सूखे प्रतिरोध और अन्य फायदेमंद गुणों को बढ़ाया।
2015 में रिपोर्ट किए गए डीएनए विश्लेषण (कवियों एट अल। ) ने एशियाई और उपजाऊ क्रिसेंट बार्ली में सीरियाई रेगिस्तान विविधता से एक जीनोम सेगमेंट की पहचान की; और पश्चिमी और एशियाई बार्ली में उत्तरी मेसोपोटामिया में एक सेगमेंट। हम नहीं जानते, एलाबी एक साथ निबंध में कहते हैं, कैसे हमारे पूर्वजों ने आनुवंशिक रूप से विविध फसलों का उत्पादन कियाः लेकिन अध्ययन सामान्य रूप से एक बेहतर समझ घरेलू प्रक्रियाओं की दिशा में एक दिलचस्प अवधि को दूर करना चाहिए।
2016 में चीन में यांगशाओ नियोलिथिक (सीए 5000 साल पहले) के रूप में जौ बियर बनाने के लिए साक्ष्य की सूचना मिली थी; ऐसा लगता है कि तिब्बती पठार से होने की संभावना है, लेकिन अभी तक यह निर्धारित नहीं किया गया है।
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7a87eb6d0d4a572c88b898705d5d2d6fcc24949d8c0cf1e8aa336e368fd04fbd | pdf | शीघ्रही हृदय बिषे कपट उपज व्यावता है बहरि महापुरुष से किसी ने पूछाया कि सर्व सृष्टि बिषे नीच मनुष्य कौन है तब उन्होंने कहा कि धन के साथ प्रीति करनेवाले अतिनीच हैं क्योंकि नाना प्रकार के रसों को भोगते हैं और अनेकांति के सुन्दर वस्त्र पहिरते हैं और स्त्रियादिकों के रूप के साथ बन्धवान होते हैं और बड़े २ घोड़ों और हाथियों पर आरूढ़ हुआ चाहते हैं ताते उनकी आशा कदाचित् पूर्ण नहीं होती और सर्वथा माया की सामग्री विषे सक्त रहते हैं ताते मायाही को भगवत् की नाई पूजते हैं और जो कुछ किया करते हैं सो मायाही के निमित्त करते हैं इसी कारण से मैं तुमको उपदेश करता हूं कि ऐसे मनुष्यों के साथ कदाचित मिलाप मत करो बहुरि महापुरूप ने यों भी कहा है कि यह माया सही मायाधारियों को अर्पणकरदो क्योंकि जो पुरुष माया के सुख शरीर के निर्वाह से अधिकार करता है वह उसके नाश का हेतु है और वह जानता भी नहीं और योभी कहा है कि यह अज्ञानी मनुष्य सर्वदा योंही कहते हैं कि यह धन मेरा है और सम्पदा मेरी है पर इतना नहीं जानते कि शरीर के आहार और नग्नता के ढांकने से अधिक मेरा क्या है ? ताते इसका अपना धन वही है जो किसी को भगवत् अर्थ देवे तब वह धन परलोक विपे इसका संगी होता है सर्वदा इसी पर किसी ने महापुरुष से पूछा था कि मेरे पास परलोक का तोशा कुछ नहीं ताते में क्या यत्न करूं ? तब महापुरुष ने कहा कि जब कुछ वन का संग्रह रखनाहोवे तब भगवत् अर्थ दे क्योंकि भगवत् अर्थ देना इसका सदा संगी होता है और यों भी कहा है कि इस मनुष्य के ३ मित्र हैं सो एक मित्रता जीवने से उपरान्त कुछ नहीं रहती १ दूसरे मित्र श्मशान पर्यन्त संगी होते हैं २ और तीसरे मित्र परलोक पर्यन्त निर्वाह करते हैं ३ अर्थ यह कि जितनी धनकी सामग्री है तिसकी मित्रता जीवने पर्यन्त है और जितने सम्बन्धी लोग हैं सो शरीर को श्मशान तक पहुँचाते हैं बहुरि इस मनुष्य के जो कर्म हैं सो परलोक पर्यन्त संगी होते हैं और जब यह मनुष्य मृत्यु होजाता है तब और लोग कहने लगते हैं कि इसकी सामग्री पीछे क्या रही है ? और देवता इस प्रकार कहते हैं कि इसने आगे क्या कुछ सेजा है ? इसी पर ईसा महात्मा के संगियों ने पूछा था कि तुम जलपर किस करके सूखे ही चले जाते हो और हमारे विषे ऐसी सामर्थ्य क्यों नहीं है तब उन्होंने कहा कि मैं रुपये और स्वर्ण को
माटी की नाई जानता हूं और तुम इसको उत्तम पदार्थ समझते हो ताते मेरी और तुम्हारी अवस्था विषे इतनाही भेद हैं इसी पर एक वार्ता है कि अबूदरंदा नामी सन्त को किसी भगवत् विमुख ने दुखाया था तब ये कहने लगे कि हे महाराज ! तू इसको अरोगता और बड़ी आयु और बहुत धन दे तात्पर्य यह कि उन्होंने यह सवही दुःख के कारण समझलिये थे क्योंकि जिसको ऐसी सम्पदा प्राप्त होती है तब वह प्रमाद करके परलोक से अचेत होजाता है और उसकी बुद्धि नष्टता को पाती है इसी पर इसनबसरी ने कहा है कि जिस मनुष्य ने रूपे और स्वर्ण को अधिक प्रियतम किया है उसको परलोक विषे भगवत् लज्जावान् करता है और यहियानामी सन्त ने कहा है कि यह सोना और चांदी बिच्छू और सांपों की नाई है ताते जबलंग इसका मन्त्र न जानो तबलग इन का स्पर्श न करो और जब मन्त्र सीखे विना इनपर हाथ डालोगे तब निस्संदेह उनके विष करके मृत्यु होवोगे सो मन्त्र इसका यह है कि प्रथम धनकी उत्पत्ति पाप से रहित होने और धर्म के मार्ग विषे दियाजावे बहुरि जब एक सन्त का शरीर छूटनेलगा तब उनसे एक प्रीतिमान् ने कहा कि तुमने अपनी सन्तान के निमित्त कुछ घन नहीं राखा सो इस वार्ता का कारण क्या है ? तब उन्होंने कहा कि मेरे पुत्रों की जो प्रारब्ध है सो मैंने और किसी को नहीं दीनी और जो और की प्रारब्ध है वह इनको किसी प्रकार प्राप्त नहीं होती और यह वार्ता भी प्रकट है कि जो मेरे पुत्र धर्म के अधिकारी होवेंगे तो भगवतही इनको प्रतिपाल भली प्रकार करेंगे और जो धर्म से हीनहुये तो मुझको इनकी चिन्ता ही कुछ नहीं बहुरि एक और सन्त बड़े धनवान हुये हैं सो सर्वदा अपनी सम्पदा भगवत् अर्थ देते थे तब किसी ने उनसे कहा कि कुछ धन अपनी सन्तान के निमित्त भी राखो तब उन्होंने कहा कि मैं धन को भगवत के निकट अपने निमित्त रखता हूं और पुत्रों की प्रारब्ध करनेवाला भगवत् है बहुरि पहिया नामी सन्त ने कहा है कि मृत्यु के समय धनवान् पुरुष को दो दुःख अवश्यही लगते हैं सो एक तो उसकी सर्वसम्पदा दूर होती है और दूसरे धर्मराज के दण्ड का अधिकारी होता है पर ऐसे जान तू कि यद्यपि यह धन महानिन्ध है तौभी कुछ इस विषे विशेषता कही है क्योंकि यह धनरूपी पदार्थ उपाधि और भलाई दोनों का बीज है इसी पर महापुरुष ने कहा है कि यह धन भी उत्तम पदार्थ है पर
बुद्धिमान् और धर्मात्मा पुरुषों को और यों भी कहा है जब यह मनुष्य अत्यन्त निर्द्धन होता है तब निस्सन्देह महाराज से विमुख होजाता है क्योंकि जब अपने सम्बन्धियों और आपको भूखसंयुक्त अधीन देखता है तब ऐसा जानता है कि भगवत् ने यह कैसी अनीति रची है कि पापी मनुष्यों को धन दिया है और सात्त्विकी मनुष्य ऐसे दुःखित किये हैं कि उनको एक दाम भी हाथ नहीं आता जिस करके भूख का निवारण करें बहुरि ऐसा अनुमान करता है कि जब भगवत् मेरे दुःख को नहीं जानता तब अन्तर्यामी क्योंकर हुआ और जब दुःखी जानता है और दे नहीं सक्का तव पूर्ण समर्थ क्योंकर हुआ और जब समर्थ होकर नहीं देता तब दया और उदारता से हीन जाना जाता है और जब इस निमित्त नहीं देता कि परलोक बिषे सुखी करूंगा तब ऐसे जाना जाता है कि दुःख दिये विना सुख देने को समर्थ नहीं होसक्का ताते प्रसिद्ध है कि निर्द्धन पुरुष क्रोधवान होकर ऐसा भी कहने लगता है कि समय विपरीत हुआ है और लोग अन्धहुये हैं जो अनधिकारियों को पदार्थ और धन देते हैं तात्पर्य यह कि सन्तोष विना यह मनुष्य इस प्रकार भगवत् से विमुख होता है और अपने भले बुरे को पहिचान नहीं सक्का ताते ऐसा पुरुष कोई दुर्लभ होता है जो निर्द्धन होकर भी प्रतीति करके उसही विषे अपनी भलाई जाने पर ऐसे मनुष्य बहुत होते हैं जो निर्द्धनताई विषे व्याकुल होजाते हैं इसी काग्य से भगवद् ने यह धन भी जीव के छिद्रों को छिपानेवाला बनाया है और शरीर के निर्वाहमात्र संग्रह करना सन्तजनों ने भी प्रमाण कहा है ताते प्रसिद्ध हुआ कि इस प्रकार करके यह धन भी केवल निन्द्य नहीं बहुरि इसही धन बिपे एक यह भी लाभ है कि सब जिज्ञासुओं की अभिलाष परलोक के सुख पाने की होती है सो परलोक का सुख तबही प्राप्त होता है जब प्रथम तीन पदार्थ प्राप्तहोवें सो एक तो विद्या और कोमल स्वभाव और इसकी स्थिति मन विषे होती है ? और दूसरा पदार्थ शरीर के विषे पाया जाता है सो वह आरोग्यता और जीवना है २ बहुरि तीसरा पदार्थ शरीर से बाहर पाया जाता है सो वह प्राणों की रक्षा के निमित्त शुद्ध जीविका है ३ पर जब इस पुरुष की श्रद्धा निष्काम होवे तब इन पदार्थों करके परलोक के सुख को पासला है सो जिस पुरुष ने इस प्रकार निश्चय जाना है वह धन को कार्यमात्र अङ्गीकार करता
है और अधिक धन की सामग्री को हलाहल विष की नाई जानता है सो इस वचन का अर्थ यही हैं जो कहा है कि उत्तम पुरुषों को घनभी लाभदायक होता है इसी पर महापुरुप ने कहा है कि जो पुरुष धन को धर्म के निमित्त प्रियतम रखता है वह धर्मही को मियतम रखता है और जो पुरुष अपनी वासना के अनुसार धन को प्रियतम जानता है वह अपनी बासनाही का दास है और उसने इस मनुष्य जन्म के तात्पर्य को नहीं समझा ताते महामूर्ख है इसी पर इब्राहीम सन्तने कहा है कि हे महाराज ! मेरी और मेरे प्रियतमों की प्रेतपूजा से रक्षाकर अर्थ यह कि सोना चांदी तरूप हैं और सबही लोभ संयुक्त इसको पूजते हैं ताते तू मेरे हृदय से इसकी प्रीति को दूरकर (अथ प्रकट करने ला और विघ्न धनके ) ऐसे जान तू कि यह धन सर्प की नाई है अर्थ यह कि जैसे विष और माऐ दोनों सर्पही से उपजते हैं तेसेही धन बिपे भी गुण दोष पाये जाते हैं सो जवलग विष और मणि के स्वरूप को भिन्न २ करके न कहिये तब लग वचनका तात्पर्य परमसिद्ध नहीं होता ताते मैं घनके गुण और दोष मिनर करके कहता हूँ पर घन के लाभ दो प्रकार के प्रसिद्ध हैं सो एक तो संसारी लाभ है कि धनवान् पुरुष जगत् विपे बढ़ाई को पावता है और इत्यादिक अवर जो स्थूल लाभ हैं सोपही प्रसिद्ध हैं बहुरि दूसरे धर्म के मार्ग विषे धन के लाभ हैं सो यह भी तीन हैं एक तो अपने शरीर की जीविका होती हैं और जितने शुभकर्म हैं सो वह शरीर के सम्बन्ध करके सिद्ध होते हैं ताते सर्व शुभ कर्मों का बीज शुद्ध जीविका है पर जब जीविका की चिन्ता रहती है तब उस से भजन और अभ्यास कुछ नहीं होसक्का ताते जब इस पुरुष की मंशा धर्म के मार्ग की होवे तब जीविका का संग्रह रखना भी उसही मार्ग का तोशा होता है इसी पर एक वार्चा है कि सन्त के पास कुछ अनाज निष्पाप व्यवहार का आया था सो वह सन्त उस अनाज की मुष्टि भरकर कहने लगे कि इस शुद्ध जीविका को मैं निरुद्यमियों के भरोसे से विशेष जानता हूं पर इस भेद को सोई पुरुष समझता है जिसको अपने हृदय की शुद्धता और अशुद्धता की बूझ होती है और तवहीं वह जानता है कि शुद्ध जीविका करके इस प्रकार हृदय निःखेद रहता है और और लोगों की आशा दूर होजाती है और भजन-विषे एकाग्रता दृढ़ होती है बहु दूसरा लाभ धर्ममार्ग सम्बन्धी धन का यह है कि और
जीवों को दान देता है तो भी इस पुरुष को भलाई प्राप्त होती है पर धन का देना भी चार प्रकार का है सो प्रथम यह है कि अर्थी और सात्विकी मनुष्यों की पूजा करनी तब उनकी प्रसन्नता करके व्यवहार और परमार्थ के सुख को प्राप्त होता है ? और दूसरा प्रकार देने का यह है कि मित्रों और सम्बन्धियों के साथ भाव करना और सर्व कार्यों विपे उदारचित्त होना सो यह भी धन करके होता है २ बहुरि तीसरा यह कि कितनेही पुरुष इसकी आशा रखते हैं और जव उनको कुछ न देवै तब निन्दा करने लगते हैं जैसे ब्राह्मण व भाटव कवीश्वर होते हैं सो इनको देना भी बड़ा उपकार है क्योंकि वह सब निन्दा करने से छूटते हैं ३ बहुरि चौथा प्रकार यह है कि यह मनुष्य सब किया अपनी ही नहीं करसक्का ताते केते पुरुषों के साथ व्यवहार का सम्बन्ध होता है तब अपनी सेवा करनेवालों को देना भी विशेष है क्योंकि जब यह पुरुष अपनी क्रिया से नि श्चिन्त होता है तब भजन विषे सावधान रहता है और यद्यपि अपने शरीर की किया आपही करनी विशेष है तौभी जिस जिज्ञासु का चित्त अन्तर अभ्यास विषे दृढ होता है तब उसको स्थूब किया का अत्यन्त अधिकार नहीं रहता ४/२ बहुरि तीसरा लाभ धन का धर्ममार्ग सम्बन्धी यह है कि धन करके और भी बड़े २ पुण्यकार्य होते हैं जैसे कूप, ताल और पुलों का बनाना अथवा अभ्यागतों के निमित्त धर्मशाला और ठाकुरद्वारे बनाने सो इत्यादिक पुण्यस्थान ऐसे उत्तम हैं कि इन्हों करके चिरकाल पर्यन्त असंख्यजीवों को सुख होता है पर इनकी सिद्धता भी धन करके होती है (अथ प्रकटकरने विघ्न धन के ) ताते जान तू कि इस धन्न विषे ते विघ्न तो स्थूल हैं और केते ऐसे हैं कि धर्म के मार्ग से विमुख करते हैं सो यह विघ्न भी तीन प्रकारके हैं प्रथम यह जो धन करके भोगों की प्राप्ति और पापक्रिया सुखेन होती हैं सो इस जीव का मन तो आगेही से ऐसा चपल है कि सर्वदा विपयों और पापों की ओर दौड़ता रहता है और जब सन्मानादिक बढ़ाई को पावता है तब शीघ्रही पापों विषे जाय गिरता है और बुद्धि की शुद्धता नष्ट होजाती है बहुरि जब भोगों और पापों से हठ करके आपको बचाया चाहे तो भी बड़ा पुरुषार्थ चाहिये काहे से कि संपदा विषे विरक्त रहना महाकठिन है १ बहुरि दूसरा विघ्न यह है कि यद्यपि धनवान् पुरुष ऐसा विचारवान् होये कि पाप कर्मों से बचायेराखे तौ भों खान पान और वस्त्रादि |
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यहां प्रस्तुत प्रोटोकॉल माउस दिल के सिनोट्रियल नोड (एसएएन) और एट्रियोवेंट्रिकुलर नोड (एवीएन) क्षेत्र से कार्डियक निवासी मैक्रोफेज के अलगाव के लिए एक चरण-दर-चरण दृष्टिकोण प्रदान करता है।
हम विशेष रूप से माउस में साइनस और एवी नोड से फ्लोरेसेंस-सक्रिय सेल सॉर्टिंग द्वारा कार्डियक निवासी माइक्रोफेज के माइक्रोडिसेक्शन और बाद में अलगाव के लिए एक प्रोटोकॉल का वर्णन करते हैं। साइनस और वी नोड के सटीक माइक्रोडिसेक्शन के साथ, चुंबकीय और प्रतिदीप्ति-सक्रिय सेल सॉर्टिंग के संयोजन के बाद, हम विशेष रूप से उच्च शुद्धता पर साइनस और वी नोड से निवासी मैक्रोफेज को अलग करने में सक्षम हैं। हृदय में अलग-अलग क्षेत्रों से कार्डियक निवासी मैक्रोफेज की पहचान और अलगाव उनके फेनोटाइप और कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी पर उनके क्षेत्र-विशिष्ट प्रभाव का आगे अध्ययन करने की अनुमति देता है।
दिल को अलग करने के बाद, एक विच्छेदन माइक्रोस्कोप के तहत बर्फ ठंडे एक बार पीबीएस के साथ विच्छेदन डिश में सूक्ष्म विच्छेदन प्रक्रियाओं का प्रदर्शन करें। हृदय के बाएं-दाएं और पूर्ववर्ती-पीछे निर्धारित करने के लिए महाधमनी, फुफ्फुसीय धमनी, कोरोनरी साइनस और बाएं या दाएं वेंट्रिकल जैसे हृदय शारीरिक स्थलों का उपयोग करें। अभिविन्यास निर्धारित होने के बाद, पीछे की बड़ी नसों को उजागर करने के लिए डिश के निचले हिस्से में सामने वाले के साथ दिल को रखें।
वेंट्रिकल्स के बहुमत को हटाने के लिए वेंट्रिकल्स और एट्रिया के बीच नाली के साथ काटें। एट्रियल भाग रखें। एलवी मुक्त दीवार और एलएए के शेष भाग के माध्यम से पिन डालकर विच्छेदन डिश में हृदय को ठीक करें।
शेष आरवी मुक्त दीवार को ट्राइकसपिड वाल्व और बेहतर वेना कावा के माध्यम से ऊपर की ओर काटें। आरए और आरवी को दूर करें और आरए गुहा इंटरकैवल क्षेत्र और एट्रियल सेप्टम को उजागर करने के लिए आरएए को पिन करें। सैन के सूक्ष्म विच्छेदन के लिए, सैन नमूना प्राप्त करने के लिए इंटरकैवल क्षेत्र को अलग करने के लिए क्रिस्टा टर्मिनलिस के समानांतर इंटरट्रियल सेप्टम के साथ दिल को काटें।
नमूने को बर्फ पर एक खाली 1.5 मिलीलीटर माइक्रोसेंट्रीफ्यूज ट्यूब में रखें। एवीएन के सूक्ष्म विच्छेदन के लिए, इंटरएट्रियल सेप्टम और इंटरवेंट्रिकुलर सेप्टम से सटे ऊतक के माध्यम से हृदय के शेष हिस्सों को पिन करें ताकि इंटरट्रियल सेप्टम के दाहिने एट्रियल पक्ष का सामना किया जा सके। कोच के त्रिकोण के लिए एंडोकार्डियल सतह पर दाएं आलिंद को देखें जो ट्राइकसपिड वाल्व के सेप्टल पत्रक की हिंज रेखा से और पीछे की ओर टोडारो के कण्डरा से घिरा होगा।
कोरोनरी साइनस का छिद्र आधार पर देखा जाता है। स्केलपेल के साथ सैन और एवीएन ऊतक कीमा करें। फिर प्रत्येक नमूने में ताजा तैयार पाचन बफर के 500 माइक्रोलीटर जोड़ें और माइक्रोसेंट्रीफ्यूज ट्यूब की दीवार से सभी कीमा ऊतक धो लें।
नमूने को पचाने और एक भंवर मशीन पर ऊतक को समरूप बनाने में मदद करने के लिए धीरे से पिपेट। पाचन के बाद, ऊतक निलंबन को 40 माइक्रोमीटर सेल छन्नी के माध्यम से पारित करके एक ताजा 15 मिलीलीटर सेंट्रीफ्यूज ट्यूब में स्थानांतरित करें। पाचन को रोकने के लिए अतिरिक्त पांच मिलीलीटर सेल सॉर्टिंग बफर के साथ सेल स्ट्रेनर को कुल्ला करें।
सतह पर तैरने वाले को हटा दें। सेल छंटाई बफर के 90 माइक्रोलीटर के साथ सेल पेलेट को फिर से निलंबित करने के बाद, 15 मिलीलीटर सेंट्रीफ्यूज ट्यूब में सेल निलंबन में प्रति 10 मिलियन कुल कोशिकाओं में सीडी 45 माइक्रोबीड्स के 10 माइक्रोलीटर जोड़ें। नमूने को अच्छी तरह से मिलाएं।
माइक्रोबीड्स और एंटीबॉडी मिश्रण के साथ सेल निलंबन को इनक्यूबेट करने के समय के दौरान, चुंबकीय स्तंभ को एक उपयुक्त चुंबकीय विभाजक से जोड़कर और फिर चुंबकीय स्तंभ के नीचे एक संग्रह ट्यूब रखकर चुंबकीय पृथक्करण सेट तैयार करें। स्तंभ के शीर्ष पर जोड़े गए सेल सॉर्टिंग बफर के 500 माइक्रोलीटर के साथ कुल्ला करके चुंबकीय कॉलम तैयार करें और बफर को गुजरने की अनुमति दें। सेल सस्पेंशन को तुरंत कॉलम पर लागू करें, हवा के बुलबुले से बचें, जबकि सेल सॉर्टिंग बफर गुजर रहा है।
कॉलम को सेल सॉर्टिंग बफर के 500 माइक्रोलीटर के साथ तीन बार धोएं। कॉलम पर एक मिलीलीटर सेल सॉर्टिंग बफर जोड़ें। चुंबकीय विभाजक से स्तंभ निकालें और इसे एक नई संग्रह ट्यूब पर रखें।
चुंबकीय रूप से लेबल कोशिकाओं वाले प्रवाह-थ्रू को प्राप्त करने के लिए कॉलम के साथ आपूर्ति किए गए प्लंजर को दृढ़ता से लागू करके कॉलम को तुरंत फ्लश करें। बिना दाग वाले नमूने और मुआवजा ट्यूबों को लागू करने के बाद, अक्ष की उचित स्थिति में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों चोटियों को संरेखित करने के लिए प्रत्येक चैनल के वोल्टेज को समायोजित करें। व्यवहार्यता मार्कर के रूप में DAPI का उपयोग करके पाठ पांडुलिपि में वर्णित गेटिंग रणनीति सेट करें।
यह पुष्टि करने के लिए फ्लो साइटोमेट्री चार्ट की जांच करें कि चार्ट पर रुचि की सेल आबादी ठीक से दिखाई गई है। बाद के प्रयोगों की आवश्यकता के आधार पर क्रमबद्ध कोशिकाओं को मध्यम या बफर में एकत्र करें। एक सही विच्छेदन की पुष्टि करने के लिए, सैन और एवीएन की पहचान इम्यूनोफ्लोरोसेंट और मैसन के ट्राइक्रोम स्टेनिंग का उपयोग करके की गई थी।
सैन और एवीएन में एचसीएन 4 सकारात्मक चालन प्रणाली कोशिकाओं के इम्यूनोफ्लोरोसेंट धुंधलापन, साथ ही साथ मैसन के सैन और एवीएन के ट्राइक्रोम धुंधलापन यहां दिखाया गया है। निवासी कार्डियक मैक्रोफेज की सेल सॉर्टिंग के लिए गेटिंग रणनीति ने वाई-अक्ष बनाम एक्स-अक्ष के आगे के स्कैटर क्षेत्र में डबल्स के बहिष्करण द्वारा मोनोन्यूक्लियर कोशिकाओं की पहचान करने में मदद की। DAPI द्वारा मृत कोशिकाओं को बाहर रखा गया था।
सीडी 45 पॉजिटिव ल्यूकोसाइट्स के लिए लाइव कोशिकाओं को गेट किया गया था, फिर सीडी 11 बी पॉजिटिव माइलॉयड कोशिकाओं के लिए। कार्डियक मैक्रोफेज की पहचान एफ 4/80 और सीडी 64 दोनों की अभिव्यक्ति से की गई थी, फिर लिम्फोसाइट एंटीजन छह अभिव्यक्ति द्वारा स्तरीकृत किया गया था। ब्राइटफील्ड माइक्रोस्कोपी के तहत ताजा क्रमबद्ध कोशिकाओं को देखा गया था।
फ्लोरोफोरे पीई चैनल के तहत देखे जाने पर कोशिकाएं सीडी 45 के लिए सकारात्मक थीं। जब फ्लोरोफोरे एपीसी आकार के सात चैनल के तहत देखा गया, तो क्रमबद्ध कोशिकाओं के एक ही दृश्य ने सीडी 11 बी सकारात्मक कोशिकाओं को दिखाया। फ्लोरोफोरे पीई आकार सात चैनल का उपयोग एफ 4/80 सकारात्मक फेनोटाइप की पहचान करने के लिए किया गया था।
और ट्रिपल पॉजिटिव कोशिकाओं को कार्डियक निवासी मैक्रोफेज के रूप में पहचाना गया था। छह दिनों तक मध्यम में संवर्धित पृथक कार्डियक मैक्रोफेज को सफेद तीर के साथ इंगित किया जाता है, जबकि काले तीर मृत कोशिकाओं का संकेत देते हैं। क्रमबद्ध मैक्रोफेज का उपयोग आगे के कार्यात्मक अध्ययनों जैसे पैच क्लैंप प्रयोगों या अभिव्यक्ति अध्ययन जैसे आरएनए अनुक्रमण या प्रोटिओमिक अध्ययन के लिए किया जा सकता है।
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6799b7951c16455c17e510ebf790b1824494feab03c72351ee65649121e25ee0 | pdf | [Shri Bhagawati]
Housing Scheme (including subsidised rental housing for weaker sections), (3) Slum Clearance/Improvemen Scheme, (4) Village Housing Projects Scheme, (5) Plantation Labour Housing Scheme, (6) Middle Income Group Housing Scheme, and (7) Rental Housing Scheme for State Government employees.
Shri Hari Vishnu Kamath: Is Assam better off or worse off than the other States?
Shri Bhagawati: It is in the same footing.
Shri Mehr Chand Khanna: Let him not embarrass my colleague, please.
Shri Bhagawati: The first four schemes provide for substantial capital subsidies and loans from the Central Government. The village housing projects scheme and the plantation labour scheme Housing meant for rural areas, while the rest are for the urban popualtion. The Social Housing Schemes administered by this Ministry are financed from two sources, namely the Government funds and the loans advanced by the Life Insurance Corporation. The financial outlays for the above schemes amounted to Rs. 38:5 crores in the First Plan, Rs. 101.1 crores (Rs. 84 crores of Government funds and Rs. 17.1 crores from the LIC) in the Second Plan, and Rs. 182 crores (Rs. 122 crores of Government funds and Rs. 60 crores from the LIC) in the Third Plan. The tentative alloaction for social housing schemes in the Fourth Plan is likely to be Rs. 490 crores (Rs. 207 crores of Government funds and Rs. 283 crores from the LIC and the Employees' Provident Funds).
Shri Hari Vishnu Kamath: On a point of order. The speech is packed with such vital statistics, with such interesting statistics. It is a thousand pities that there is no quorum in the House. There are not even 50 Members to hear so much of statistics and o many figures.
Deputy-Speaker: The hon. Deputy Minister may resume his seat for a while because there is no quorum. The bell is being rungNow, there is quorum. Shri Bhagawati may resume his speech now.
Shri Bhagawati: Unfortunately, the targets of housing could not be achieved due to circumstances caused by hostilities with China and Pakistan in 1962 and 1965 respectively. Thus, against a target of 7,63,000 houses, only about 4,46,000 are expected to be completed by the end of the Third Plan.
The problem of housing is linked up with the problem of land. There is an enormous pressure on urban land. The land values have also risen abnormally. In order to conserve urban land, more emphasis is being given to double and multistorey construction in big cities. The Government India have also formulated a Land Acquisition and Development Scheme which provides for short-term loans to the State Governments for acquisiton and development of land in big and growing towns. The State Governments have also been advised to formulate a sound land policy based on the following principles, namely (a) control of urban land values through public acquisition of land and other appropriate measures including issue of notifications for freezing land values; (b) allotment of land on lease-hold basis with a view to enable the community to have a share in the unearned income of land owners; (c) capital tax on transfer of freehold land in urban areas so as to check speculation in land values; (d) taxation of vacant developed urban plots with powers of acquisition if not built upon within a specified time; and (e) fixation of a maximum limit on the size of houseplots in urban areas. The State Governments are generally falling in line with this policy. They have also enacted suitable laws for acquisition of land for housing of low income groups as a public purpose.
As stated earlier, our progress in the field of housing has been retarded due to the emergency. The State Governments have also not given high priority to housing ás compared to other development programmes. With this general background, I would like to deal with some of the points raised by hon. Members.
mous housing shortage in the rural areas. During the Plan, against an allocation of Rs. 12:7 crores, it is expected that only about Rs. 4:24 crores. will be spent. We are constantly impressing upon State Governments to provide more funds for this scheme. We have also liberalised the provisions of the scheme during the last three years. Previously, the scheme envisaged only the grant of loans to the villagers for construction of houses. The loan which could be granted was 66 per cent of the cost of the houses, subject to a maximum of Rs. 2,000 per house. This has now been increased to 80 per cent of the house, subject. to a maximum of Rs. 3,000 per house. Grants have also now been given to State Governments for provision of house sites for landless agricultural workers and for construction/improvement of streets and drains in the selected villages. Now about 50 per cent of the allocations made to the States will be given as grants. In the Fourth Plan, it is proposed to make an allocation of Rs. 65 crores for this scheme. The hon. Member has suggested that this amount be raised to Rs. 100 crores. I welcome his suggestion. It only depends on the Planning Commission and the Finance Ministry to agree to it.
Shri Yellamanda Reddy said that money allotted for housing has not been spent. It may be that due to circumstances over which we have' no control. But so far as the Central Government is concerned and so far this Ministry is concerned, we could spend the whole amount. The Union Territories did very well and they spent the whole amount. Only State Governments could not fulfil the target as fixed in the Plan, because in their annual plans they did not ask for as much money as they should have had. They diverted this amount from housing to some other purposes like irrigation agriculture and power. In some schemes, therefore, the targets could not be fulfilled.
Shri Reddy said that the village housing projects scheme should be accelerated. There can be no two opinions about that. I fully agree with him. The basic concept of our scheme is to encourage the villagers to undertake construction of their houses on the basis of aided self-help. The village housing programme is also sought to be integrated with the economic development of the rural areas. The scheme has been extended to 5,000 selected villages during the Third Plan. Out of these, implementation has already commenced in about 2,400 villages. This figure is not very satis-.. factory.
Shri D. S. Patil (Yeotmal): 50 per
cent progress.
Shri Bhagawati: About 58,000 houses of have also been sanctioned, out which about 28,000 have been completed. The progress is clearly not satisfactory in the context of the enorReference has also been made to the slow progress of the slum clearance scheme. I confess that the progress in this field is not as satisfactory as we would wish it to be. The main reasons are the difficulties in the clearing of slum areas and acquisition of these areas for the re-housing of the dwellers. State Governments have been advised to enact legislation on the lines of the Central Act so as to ena-ble them to expedite improvement redevelopment of slum areas and acquisition of those areas for the re-housing of slum dwellers. Seven State enacted Governments have already purpose, suitable legislation for this and the matter is receiving the atten-tion of the remaining State Governments. The State Governments have
Shri Bhagawati]
also been requested to impress upon the local bodies to give more importance to slum clearance work. The Central Government have also recently decided to give greater financial assistance for slum clearance projects. Previously, they met 75 per cent of the cost of such projects-37 per cent as loan and 37 per cent as subsidy, the remaining 25 per cent being provided as subsidy by the State Governments or local bodies. The Central Government now have come forward to assist by raising this amount to the extent of 87 per cent, out of which 50 per cent will be loan and 37 per cent subsidy and the State Governments or local bodies will have to provide only 12 per cent, instead of 25 per cent previously. As a result of these measures, it is expected the scheme will make better progress during the Fourth Plan.
Another suggestion which has been made is that the planters and industrial employers should be compelled by legislation to provide housing for their employees. So far as planters are concerned, lagislation already exists, which requires the planters to provide houses for their workers. The Central Government also formulated the Plantation Labour Housing Scheme in 1956 to give financial assistance to planters for their labour housing, which envisaged the grant of loans upto 80 per cent of the cost of houses. In spite of these measures. the progress of housing for plantation labour has not been satisfactory. It has, therefore, been decided to liberalise the Plantation Labour Housing Scheme from 1st April 1966. Now the Central Government will provide 75 per cent of the cost of houses-50 per cent as loan and 25 per cent as subsidy-as it is doing in the case of other industrial employers.
Another suggestion made is that the rate of interest charged on loans for construction of houses from low and middle income groups should be reduced. There are two sources from which housing schemes are being financed-government funds and LIC
funds. The rate of interest on government loans is dependent upon the current borrowing rate of the Government. Government itself is borrowing money from the market at a higer rate of interest. It charges about half a per cent more than this rate on the housing loans advanced by it. The loans advanced by the LIC are correlated to the prevailing bank Our arrangement
that they will charge one per cent over the bank rate. In 1965, the Reserve Bank raised the bank rate to 6 per cent and the LIC could charge 7 per cent on the loans advanced by it. However, as a result of the personal intercession of our Minister Khannaji, they have agreed to charge 61 per cent, that is per cent above the bank rate.
We are constantly reviewing our schemes with a view to improving their implementation. We have recently decided to integrate two urban housing schemes. These schemes are the subsidised industrial housing scheme and the Scheme for the economically weaker sections of the community. We are giving cent per cent financial assistance to the State Governments for both these schemes, but the patterns of financal assistance are slightly different. In the case of the Subsidised industrial housing scheme, we are giving 50 per cent as loan and 50 per wherecent as subsidy, as in the case of the other scheme, We are giving 75 per cent as loan and 25 per cent as subsidy. We have now decided to have a uniform pattern of financial both assistance for the schemes, that is 50 per cent loan and 50 per cent subsidy. This decision will come into force with effect from the 1st April, 1966.
The availability of land and building materials are two important ingredients of housing. As stated before, we are giving financial assistance to the State Governments for bulk acquisition and development of land for housing schemes. This scheme is being financed from the LIC funds. The
LIC loans are at present repayable in annual instalments, but they have recently decided that these loans will be repayable in lumpsum after a period of 25 years. This will enable the State Governments to create separate revolving funds for the acquisition and development of land. The Governments of Maharashtra and Rajasthan have already set up such revolving funds.
lised only for that purpose and there should be no whittling down or diversion of this allocation, during the Plan period. I request the hon. Mem bers to lend their support for providing sufficient funds so that the housing problem can be adequately tackled.
We are also encouraging research in building materials with a view to reducing the building costs. We have a separate organisation for this purpose called the National Buildings Organisation. It is co-ordinating the activities of different institutions engaged in research in building designs and materials. Efforts are also being made to set up mechanised brick plants and units for the manufacture of substitute materials. We are negotiating for the setting up of two Cellular concrete factories - one in West Bengal and the other in Madras, in collaboration with Poland. The raw materials will be fly ash, a waste product of the thermal power stations, "sand and lime.
Before I conclude, I would like to make a strong plea for the allocation of more funds for housing. On the basis of an overall allocation of Rs. 207 crores from Government resources earmarked by the Planning Commission during the Fourth Plan, an allocation of Rs. 33 crores, that is, about 16 per cent of the total allocation should have been made in 1966-67. The actual allocation made, however. is only Rs. 16 crores. The provision for 1965-66 was Rs. 22:25 crores. Thus, the allocation of 1966-67 is 100 per cent less than the anticipated allocation of Rs. 33 crores and about 30 per cent less than the provision of 1965-66. Unless larger allocations are made for housing, the problem of housing, which is already very acute, may get out of .control. I would only urge that at least the funds allocated for housingwhich are fixed by the Planning Commission after taking into consideration the various priorities-should be utiश्री प्रकार लाल बरेवा (कोटा) : उपाध्यक्ष महोदय, इस मंत्रालय पर बोलते हुए मैं कुछ सुझाव आपके सामने पेश करना चाहता हूं । सब से पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि यह जो रिपोर्ट है इसको पिछले चार साल से ऐसे का ऐसा प्राप हमारे सामने पेश करते प्रा रहे हैं । इस में थोड़ा सा परिवर्तन ऊपर ऊपर कर दिया गया है लेकिन बाकी सारी जितनी रिपोर्ट है यह वैसी की वैसी है । इसका कवर बदल दिया गया है जिस को देख कर हमारी तबीयत खुश हो जाती है । इसके सिवाय और इस में कोई नई बात नहीं है । झुग्गी झोपड़ियों के जो आंकड़े हैं वे सब ज्यों के त्यों हैं । जिस जिस चीज को ले कर आप चले हैं उन सभी में यह देखा जाता है कि कोई प्रगति नहीं हुई है। प्रेस वाले भी जो हैं मगर उन्होंने पिछले साल का मैटर कहीं पटक कर रखा हुआ हो तो वे उससे ही इस रिपोर्ट को छापने में कामयाब हो सकते थे । इतनी हमारे खन्ना माहब ने प्रेस वालों को जरूर सुविधा दी है कि उनको दुबारा इसको छापने की जरूरत नहीं थी। उनके लिए यह बड़ी सौभाग्य की बात थी ।
झुग्गी झोपड़ी वाले जो पचास हजार परिवार थे और जिन की सदस्य संख्या जा कर चार पांच लाख बनती है उनको ग्राप 80 गज और 25 गज के प्लाट दे रहे हैं । वे प्राप दे ही रहे हैं, अभी उनको मिले नहीं हैं । होते होते शायद इलेक्शन सिर पर प्रा जाएगा, नामिनेशन फार्म दाखिल करने का दिन नजदीक प्रा जाएगा और तब शायद प्राप उनको ये प्लाट दे दें । यह बहुत अच्छी बात है कि उनको ये प्लाट मिल तो जायेंगे । जिन को प्रापने दिये भी हैं उनको कहां दिये हैं, इसको भी प्राप देखें । उनको प्रापने मदनगीर में
[ श्री प्रोकार लाल बेग्वा]
जगह दी है । बहां कुछ भी तो व्यवस्था नहीं है, कोई सुविधायें भी तो नहीं हैं ।
इन झुग्गी झोपड़ियों वालों को प्राप छोड़ें, प्राप सरकारी कर्मचारियों को लें । राजधानी के अन्दर 60,840 कर्मचारी ऐसे है जिन को मकान नहीं मिले हैं। चार साल मे मैं देखता भ्रा रहा हूं कि यह संख्या ज्यों की त्यों हैं। जितने मकान बने हैं, वे कहां गए हैं ? क्या जो इन मकानों के अन्दर रह रहे थे उन में से किसी ने भी कोई मकान खाली नहीं किये हैं ? क्या वे स्वयं मकानों में जमे हुए हैं और अपने जो मकान उन्होंने अगर बनाये है तो वे किराये पर दे दिये हैं ? सरकारी कर्मचारी जो बेचारे हैं, इनको प्राइवेट मकान मालिकों से मुर्गी जैसे दड़बे किराये पर ले कर रहना पड़ता है और उसका 150 और 200 रुपया किराया देना पड़ता है। अगर प्राप इन सरकारी कर्मचारियों के लिए मकान नहीं बना सकते हैं तो कम से कम किराये पर तो श्राप नियंत्रण लगा हो सकते हैं। लेकिन श्राप लगाना नहीं चाहते हैं ।
जो सर्वे ट्स क्वार्टर हैं उनको भी प्राप देम्बे । वे भी मुर्गी के दड़बे के बराबर है । वहां जो एक खिड़की है उसको खोल दिया जाए तो हवा तो जरूर जाएगी अन्दर
वर्ना सोने बैठने के लिए अगर उसके परिवार में एक बच्चा भी बढ़ जाए तो वे सर्व ट्स बवार्टर में नहीं रह सकते हैं। अगर उनके मां बाप प्रा जायें तो बीच में जो गैलरी है उस में भी वे नहीं सो सकते है। हमारे स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि एक कमरे वाले क्वार्टर बिल्कुल न बनाये जायें । लेकिन फिर भी वही एक कमरे वाले मकान बन रहे है। वहीं हरां चल रहा है । वही मकान बनाते श्राप ले जा रहे है ।
एक नीज़ को पढ़ कर मुझे खुशी हुई क्योकि यह चीज बराबर चार साल से लिखी हुई आ रही है। आप भी इसको चाहे तो देख ले । इस में लिखा हुआ है :
"केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के चौकसी एकक को और सुदृढ़ कर दिया गया है। उस में कार्यपालक इंजीनियर तथा महायक इंजीनियर के प्रतिरिक्त पद बना दिये गये हैं तथा उन्हें एक अपर मुख्य इंजीनियर के नियंत्रण में रख दिया गया है । कुछ श्रेणियों के कर्मचारियों के सम्बन्ध में कुछ अनशासनिक अधिकार उन्हें दे दिये गये हैं ।"
मैं आपको लिस्ट बताना चाहता हूं कि पिछले आठ दस साल से कितने सहायक इंजीनियरों को श्रापनेपदोलतियां दी हैं। आपके पास बीस परसेंट ही सहायक इंजीनियर स्थायी है । 246 ऐसे सहायक इंजीनियर हैं जो अस्थायी हैं और दस साल से इन पदों पर लगे हुए हैं। 394 ऐसे हैं जो आठ साल से ज्यादा से प्रस्थायी महायक इंजीनियर हैं। 554 ऐन हैं जो पांच साल से ज्यादा से हैं 838 ऐसे है जो कि तीन साल से ज्यादा से हैं । 104 महायक इंजीनियर ऐसे हैं जो कि एक में ले कर छः माल पुराने अधिशासी इंजीनियर के पद पर काम कर रहे है और जिन को सहायक इंजीनियर नहीं बनाया गया है। जो गांव का चौकीदार है अगर उच्च पद पर वह नहीं जाएगा तो चौकीदारी कैसे करेगा । आप अपना ही केस देखें । आप काम तो करते रहे मिनिस्टर का और तनख्वाह आपको डिप्टी मिनिस्टर की मिलती रहे, मिनिस्टर की ननवाह आप को न दी जाए तो कितने प्रफमांग की होगी ।
गांव का पटेल पानीको काम पर लगाता है तो पहले मकान बना हुआ उसको वह देता है। यकिन गर्म और दुर्भाग्य की बात है कि सरकार कृपने कर्मचारियो के लिए सटा भाल के अन्दर भी मकान नहीं बना सकी है। जब भी इसके बारे में कहा जाता है तो जवाब दे दिया जाता है
कि नगरपालिका को और नगर निगम को रुपया दे दिया गया है और ये जैसा चाहेंगे वैसा होगा । हमारा तो कोई इसमें दखल नहीं है । रुपया उनको दे दिया है और ये बनायेंगे । लेकिन इससे समस्या हल नहीं होती है । समस्या तभी हल होती है जब कर्मचारियों को मकान मिल जाते हैं, उनके लिए मकान दिये जाते हैं ।
जायेगा तो चार हजार ले जायेगा। लेकिन सरकार को सोचना चाहिये कि जितनी मदद गरीब कर्मचारियों की हो सकती है उतमी करनी चाहिये । बड़े अधिकारियों को पर्याप्त मात्रा में सारे साधन प्राप्त होते हैं, मगर उनको कम भी दे दिया जाये तो उसमें कोई प्रापत्तिजनक बात नहीं है। इसलिये में कहना चाहूंगा कि छोटे सरकारी कर्मचारियों के ऊपर जरूर ध्यान देना चाहिये ।
यह भी देखा जाता है कि बड़े बड़े अधिकारियों को मकान तो दफ्तरों के नजदीक दे दिये जाते हैं, दफ्तरों के प्रासपास वे चेंटे रहते हैं लेकिन जो बेचारे छोटे कर्मचारी होते हैं, होते हैं, जो चपड़ा सी होते हैं उसको दस दस मील दफ्तर से दूर जा कर बसाया जाता है। बड़े अधिकारियों के पास तो मोटर होती है, टैबसी में वे भ्रा सकते हैं तथा उनके पास यातायात के दूसरे साधन होते हैं लेकिन गरीब चपड़ासी जिसके पास इन में से कोई साधन नहीं होता है उसको दस मील दूर बसाया जाता है। मगर कहा जाए तो कहा जा सकता है कि बड़े अधिकारियों के मकान तो दफ्तर के मन्दर ही होते हैं लेकिन फिर भी उनको सन्तोय नहीं होता है। लेकिन जो गरीब चपड़ासी है, जो गरीब कर्मचारी है, उनका भी तो भापको थाल रखना चाहिये । उनको आपको चाहिये कि श्राप दफ्तर क पास दें और बड़े अधिकारियों को दूर दें।
बड़े अधिकारियों में तो अब भापने 80 परसेंट तक को मकान का लोन देना शुरू कर दिया है, इतनी फैसिलिटीज देनी शुरू कर दी हैं लेकिन छोटे कर्मचारियों को 25 में परसेंट 33 तक ही दे रहे हैं। क्या मे गरीब लोग चोर हैं ?
सरकार उसकी जिम्मेदार है। बड़े आदमी क्या साहकार है। अगर वह ले जायेंगे तो लाखों ले जायेंगे और दिवाला पिटबा देंगे, डागर गरीब चपरासी ले 108 (Ai) LSD6.
मैं अभी अभी का हाल बतलाऊं । डिफेन्स कालोनी वगैरह में चार साल में पानी मिला ही नहीं है। उसमें क्या करवा दिया। हल चलवा दिया, खेत करवा दिया। गमला बंगला योजना शास्त्रीजी ने चलाई थी । बीच में जो चोक था वहां सारा खेत करवा दिया। पहले चोरों का डर था लेकिन अब दिन में जानवरों डर हो गया है। दिन में गधे घुस जाते हैं क्योंकि वहां कोई चौकीदार नहीं है। इस तरह की गलत योजनायें चलाई जाती है । साउथ ऐवेन्यू में खूब फल फूल लगाये गये हैं, तरकारियां बहुत होती हैं लेकिन बन्दर खा जाते हैं, वकरियां खा जाती हैं । आखिर चौकीदारी कौन करे। योजना बनाते वक्त ऐसी कोई बात नहीं होती लेकिन होता क्या है कि योजना के पीछे हम भांख बन्द कर के पड़ जाते हैं जिससे देश को नुक्सान उठाना पड़ता है। लेकिन सरकार इसकी परवाह नहीं करती ।
मैं भापसे कहना चाहूंगा कि मापने होटल बनाये हैं। श्री गुलशन में प्रशोक होटल के बारे में कहा था। लेकिन मैं दो और होटलों के बारे में निवेदन करूंगा आं कि घाटे में चल रहे हैं। एक होटल है जिसको श्राप रंजीत होटल कहते हैं । वह होस्टल वर्किंग लड़कियों के लिये बना था, लेकिन बाद में प्रापने उसे बदल दिया । बड़े प्रफमांग की बात है कि उनमें से एक लड़की ने अनशन कर रक्खा है। प्राप
[ श्री प्रकार लाल बेरवा] साल भर के बिल की योजना बनाई लेकिन किसी कर्मचारी को उसका नोटिस नहीं दिया कि साल भर का बिल इकट्ठा लिया जायेगा । श्रापने होस्टेल की लड़ कियों के पिछले दो साल के एरियर्स लगा कर भेज दिये जब कि उन लड़कियों के पास खाने के लिये भी नहीं है । वह ऐसे मकान में रह रही हैं जिसको तोडने आर्डर आपने आज से दो साल पहले दिये थे, लेकिन वह मकान तोड़े नहीं गये । वहां सुअर के गड्ढे से बन गये हैं ऐसे कमरे आपने बना रक्खे हैं। प्रापने पिग स्टाइल की सी हालत उनकी बना रखी है । इसलिये मैं कहना चाहता हूं कि जिस तरह से वह किराया दे सकें उस तरह से उनसे लिया जाना चाहिये । वह कोई दो चार लड़कियां नहीं हैं, कम से कम 800 लड़कियां होस्टेल में रहती हैं। उस होस्टेल की हालत यह है कि अगर वहां से एक ट्रक निकल जाये तो सारे कमरे हिल जाते हैं। आज वह कमरे सुअर की खड्डियों जैसे बन गये हैं फिर भी प्राप उनको उन लड़कियों को दिये हुए हैं। गवर्नमेंट के लिये यह बड़े शर्म की बात है कि वह लड़कियां ऐसे होस्टेल में रहें और आप उनको होटल के नाम से चलाते रहें ।
प्राज प्राप ने होटल गरीब प्रादमियों के लिये बनाये हैं। मैं प्राप को बतलाऊं कि उन होटलों में से एक में 25 रु० रोज का कमरा है और दूसरे 35 रु० रोज का कमरा है । मैं पूछना चाहता हूं कि कौनसा गरीब प्रादमी ऐसा है जिसे महीने में हजार रु० मिलते हों भौर जो जाकर उनमें रहे । प्रापने गरीबों की प्राड़ लेकर उन होटलों को बना दिया । यह सारे के सारे जितने भी होटल बने हुए हैं वह विदेशियों के प्रड्डे और भ्रष्टाचार के भड्डे बने हुए हैं। उन में कोई भी गरीब
श्रादमी जाकर नहीं ठहरता है । श्राप उनकी गिनती कर लें, रजिस्टर उठा कर देख लें कि कितने गरीब आदमी उसमें डेढ़ सौ या ढाई सौ रुपये पाने वाले ठहरते हैं ।
आपने बाइस रैन बसेरे बनाये हैं । बड़े शर्म की बात है इस गवर्नमेंट के लिये कि जब इन रैन बसेरों में पांच हजार आदमी वास कर् सकते हैं और दिल्ली में 30 या 40 लाख जनता है, तब यहां पर 33 श्रादमी सर्दी के कारण मर गये । मन्त्री महोदय को इस्तीफा देकर चला जाना चाहिये । इस दिल्ली में 33 श्रादमी रैन बसेरों में मर गये जिन की सरकार ने परवाह तक नहीं की । श्राप के ऊपर तो चुनाव का भूत सवार है । अगर प्लाट बांटे जायें तो चुनाव का भूत सवार रहता है, मगर कालोनियां दी जायें तो चुनाव का भूत सवार रहता है, अगर मकान दिये जायें तो चुनाव का भूत सवार रहता है, अगर दूकानें अलाट की जायें तो चुनाव का भूत सवार रहता है । मैं बतलाऊं कि कितनी ही मार्केट्स ऐसी हैं जिन को अभी तक मालिकाना अधिकार नहीं दिये गये हैं। प्रापने बहुत सी मार्केट्स बनाई हैं और साठ या पैंसठ बना रहे हैं, लेकिन मैं कुछ उदाहरण देना चाहता हूं, सरोजिनी मार्केट, शंकर मार्केट लाजपत राय मार्केट, कमला मार्केट, अंगूरी बाग, पर्दा मैदान, राम नगर, प्रेम नगर, सेवा नगर जिनके लिये शास्त्री जी ने प्राश्वासन दिया था कि अगर तुम इन प्लाटों को खाली कर दोगे तो हम तुम को उसके ऊपर जाकर बसा देंगे और तुम को मालिकाना अधिकार दे देंगे । लेकिन वह सारे का सारा जनसंघ का एरिया है इसलिये प्रापने साफ कह दिया कि तुम जाओो जनसंघ वालों के पास ।
श्री मेहर चन्द खना मैं अजं करना चाहता हूं कि प्रानरेबल मेम्बर के यह रिमार्कस
बिल्कुल नाजायज हैं । मेरा इन मार्केट्स से कोई ताल्लुक नहीं है । यह रिहैबिलिटेशन मिनिस्ट्री की मार्केट्स हैं । जनसंघ का इलाका दिल्ली में मैं अच्छी तरह से जानता हूं ।
हजार मकान खाली पड़े हुए हैं, लेकिन कह दिया कि बिजली भोर नल नहीं हैं। बिजली औौर नल का ठेका हमारा नहीं है। यह सरकार का ठेका है और आप सरकार में बातचीत करें । हमें तो बिजली और नल मिलना चाहिये । हम तो श्राप से ही कहेंगे ।
श्री प्रोंकार लाल बरवा : प्राप अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिये कि आपने वहां मार्केट तैयार कराये हैं। लेकिन आपने उन को मालिकाना अधिकार नहीं दिये इस की क्या वजह है । क्या वह इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट में भा गई हैं, मास्टर प्लेन में प्रा गई हैं। किस ने कह दिया कि वह मास्टर प्लैन में प्रा गई हैं । नेहरू जी ने इंकार कर दिया था यह कह कर कि यह गवर्नमेंट कालोनी के पास हैं । लेकिन गवर्नमेंट कालोनी के पास क्या खन्ना मार्केट नहीं है । वहां आप ने मालिकाना अधिकार क्यों दे दिये हैं जबकि इन कालोनियों में नहीं दिये हैं ।
इसके बाद मैं कुछ इंजीनिअर्स के केसेज देना चाहता हूं । राज्य सभा में उन के लिये कहा गया था और आश्वासन दिया गया था कि हम देखेंगे । करीब साल भर हो गया है लेकिन उनको अभी तक नहीं देखा गया । इन इंजीनिअर्स का केस राज्य सभा में तीन दफे श्रा चुका है, आप कहें तो मैं आप को प्रश्न संख्या बतला दूं । श्राप कर्ज देने में देर करते
। ग्राप के पास लाइफ इंश्योरेंस से दरख्वास्तें प्राती हैं कर्मचारियों की जो महीनों आप के यहां पड़ी रहती हैं लेकिन आप मटफिकेट नहीं देते हैं । प्राखिर यह गवर्नमेंट के कर्मचारी हैं, वह अपने मकान की जमीन गिरवी रखते हैं तब मकान के लिये लाइफ इंश्योरेंस से पैसा लेते हैं। लेकिन प्राप का जो सर्टिफिकेट चाहिये वह आप नहीं देते हैं । यह कितने शर्म की बात है ।
कालोनीज़ के अन्दर श्राप की दुकानें खाली पड़ी हुई हैं। रामकृष्णपुरम में जो दुकानें खाली पड़ी हैं वह आखिर किस हिसाब से पड़ी हैं । वह इसी लिये पड़ी हैं कि उनका प्रलाटमेंट नहीं हुआ है। करीब ढाई या तीन
यह तो रही होटलों की बात । अगर प्राप जो एम० पीज कैन्टीन बनी हुई है उसका खाना खायें तो शायद आप को रात भर नींद नहीं आयेगी, लेकिन एम० पी० लोग जो हैं वह बेचारे सब कुछ बर्दाश्त करते हैं। वहां के होटल में मीट मार्केट भी है । उसके लिये 11/12 दरवास्तें दी जा चुकी हैं और कहा गया है कि जिस मीट का हम उपयोग करते हैं उसको एम० पी० देख सकते हैं । जो खाना बहां मिलता है उससे अच्छा खाना हम दे मकते हैं लेकिन इसलिये इस को नहीं माना जाता कि वह ठेका है । श्राप जिस ठेकेदारी प्रथा को खत्म करने चले हैं मैं उसके बारे में आपको आंकड़े बतलाऊं । सन् 1961 में हुमायूं के मकबरे के पास प्रोवर ब्रिज बनाया गया है। उसकी जांच नहीं कराई गई है।
श्री मेहर चन्द खन्ना : हुमायूं का मकबरा मैं ने नहीं बनाया है ।
श्री प्रोंकार लाल बेरवा : हुमायूं समझ लो । उस का 51 लाख रुपये में ठेका हुआ, उस को कुछ ही दिन बाद कैंमल किया और 81 लाख रु० में दे दिया । उस टेके की जांच सरकार ने स्पेशल पुलिस को दी । लेकिन आप अभी तक उस की ओर से श्रांख बन्द किये हुए बैठे हैं। वह जो ठेकेदार है वह राज्य सभा का मेम्बर है भोर कांग्रेसी है, इसलिये श्राप उस की पूरी जांच नहीं करवाते । आप इस को नोट कर लीजिये ।
इसी तरह से पटना एअरोड्रोम था । भी लाखों रुपयों का घोटाला हुआ । लेकिन जांच नहीं होती । स्पेशल पुलिस का मामला था लेकिन कोई जांच नहीं हुई ।
[ श्री प्रकार लाल बग्वा ]
इस तरह से आप ठेकेदारी खत्म करमा चाहते हैं ।
इसी तरह से हिन्दुस्तान हाउसिंग फैक्ट्री का मामला है उसे आप छोड़े हुए हैं । उस के ऊपर 47.75 लाख रुपया बाकी है । सिर्फ पांच लाख रुपया दिया गया है । भाखिर 42 लाख रुपया का क्या हुआ । क्या यह भी वैसे हो दिखला दिया जायेगा जैसे कि वित्त मंत्रालय ने कह दिया कि इतने करोड़ रुपयों का टैक्स नहीं आया । प्राप भाज भी ठेके चला रहे हैं । आप ने जो ठेके एन० पी० सी० सी० के ठेके दे रक्खे हैं वह 15 परसेन्ट के ऊपर तक दे रखे हैं । एम० सो० सी० कोई कम्पनी होगी उस को दे रखा है । जितनी लागत उस की लग जाय उसके बाद में 15 परसेन्ट उसे और प्राफिट देंगे । एक तरफ तो कहते हैं कि ठेकेदारों को खत्म कर दो, दूसरी तरफ ठेकेदारों के साथ ऐसा ब्लैक मार्केटिंग करेंगे, पन्द्रह पन्द्रह पर सेन्ट कमीशन उम से तय करेंगे । तो अगर इन कामों की जांच करवाना है तो मैं उस के लिए तैयार हूं और जांच करवा सकता हूं । यह जो कामों के अन्दर इस तरह का घोटाला है और जो स्टाफ के अन्दर इंजीनियरों के साथ ऐसा प्रत्याचार है वह बर्दाश्त नहीं हो सकता और सब से बड़ी मुश्किल तो एम० पीव० के लिए यह फ्लेटों की है कि आप ने एक कम्पाउंड वाल बना दी राष्ट्रपति भवन के चारों तरफ जो कि प्रधूरी पड़ी हुई है लेकिन एम० पीज० के पलंट्स में पुताई नहीं हो रही है । भाप के मकानों की तो चार चार मलंबा पुताई हो गई है, प्राप को किसी तरह की तकलीफ नहीं है लेकिन 'संकष्टकालीन स्थिति कह कर एम० पोज ० के फ्लैटों की पुताई रोकना यह बड़े शर्म की बात है । दिल्ली के अन्वर अगर गन्दी बस्तियों को हटाना है तो झुग्गी झोंपड़ियों को पहला 'स्थान दिया जाय और दूसरे जो सेंटर मोर राज्य के अन्दर केन्द्रीय कर्मचारी हैं उन की
और ध्यान दिया जाय । कम से कम राजस्थान के अन्दर 5 हजार ऐसे कर्मचारी हैं जिन की और आप का ध्यान नहीं गया और वह धर्मशालाओं में जा जा कर रहते । यह बड़े शर्म की बात है ।
श्री दे० शि० पाटिल : उपाध्यक्ष महोदय
श्री हुकम धन्द कछवाय (देवास) : पाटिल साहब के बोलने से पहले गणपूर्ति करवा दी जाय ।
उपाध्यक्ष महोदय : घंटी बज रही है । अब गणपूर्ति हो गई है। माननीय सवस्य अपना भाषण जारी रखें।
श्री दे० शि० पाटिल उपाध्यक्ष महोदय, इस मंत्रालय की जो नीति है उस नीति के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूं । वर्किंग के बारे में मैं ज्यादा नहीं कहूंगा । श्रावास के बारे में इस रिपोर्ट में कहा है : "अधिकांशतः निम्न प्राय वर्ग के व्यक्तियों की प्रावश्यकता की की पूर्ति के लिए निर्माण, श्रावास तथा नगर विकास मंत्रालय ने अनेक सामाजिक प्रावास योजनायें शुरू कर रखी हैं ।" और इस में
9 योजनायें दी हुई हैं। उस में कोई ऐसी योजना नहीं है जो भारतीय बहुसंख्यक जो जनता है, जो गरीब जनता है उस के लिए लागू होती है । इसमें जो डेफिनीशन उन्हों ने दी है निम्न प्राय वर्ग की उस में कहा गया है कि जिन लोगों की वार्षिक प्राय 6 हजार रुपये से कम है उन के लिए यह योजना लागू होती है । उपाध्यक्ष महोदय, मैं यह भाप के मार्फत सदन से कहना चाहता हूं कि यह जो वार्षिक प्राय 6 हजार की रखी गई है इसमें कौन से लोग आते हैं। नेशनल कौंसिल माफ एप्लाइड एकोनामिक रिसर्च जो है उसने अपनी रिपोर्ट जो दी है उस में कहा है कि देहात की जो पापुलेशन है, बेहात में जो लोग रहते हैं उन लोगों की बार्षिक प्राय 247 रुपये है। उसमें यह भी कहा है कि 35 करोड भारतीय
जो प्रगति है वह निरर्थक हो जायगी । ऐसे कदम उठाये जाने चाहिये कि समाज में सब से नीचे और सब से ऊपर की प्राय के बीच का अन्तर कम हो सके भोर यह कम करने के लिए जब तक ग्रामीण प्रावास के के लिए पंचवर्षीय योजनामों में ज्यादा फंड नहीं रखेंगे तब तक इन लोगों के प्रावास का सवाल हल नहीं हो सकता है ।
नागरिक ऐसे हैं जिन की रोजाना कमाई 68 पैसे है और उस में 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन की रोजाना कमाई 48 पैसे है। 5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन की प्रतिदिन की इनकम 32 पैसे है और 1 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन की इनकम 27 पैसे प्रति दिन है । मैं मंत्री महोदय से घोर इस मंत्रालय से पूछना चाहता हूं कि क्या यह लोग निम्नतम भ्राय के व्यक्ति नहीं हैं ? क्या इन की वार्षिक प्राय ग्राप के डेफिनीशन में प्राती नहीं है ? इन के लिए कौन सी योजना आाप के मंत्रालय की तरफ से चलायी गयी है ? तीसरी पंचवर्षीय योजना में जो 182 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है उस में से कितनी रकम इन लोगों के लिए रखी गई है ? मैं नम्रता से कहना चाहता हूं कि इस सदन मे एक समाजबादी समाज का संकल्प किया है और गरीबी दूर करने के लिए जो कुछ भी प्रोग्राम बनाना है वह प्रोग्राम बनाने के लिए कहा गया है । प्रत्ये व्यक्ति को एक समान अवसर तथा प्रगति के फल का एक उचित अंश प्राप्त होना चाहिए, यह एक डाइरेक्शन दिया गया था। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर भावास सब के लिए प्राप्त हो सके उस की योजना इस मंत्रालय को करनी चाहिए थी। लेकिन पता नहीं पांचवीं, छठी या दसवीं कौन सी पंचवर्षीय योजना तक मंत्रालय इन लोगों के लिए मकान की योजना करेंगे, इस का कोई निर्णय अब तक नहीं ले रहे हैं। इस तरह से प्रवर चलेगा गरीब लोगों के लिए जिन की इनकम बहुत ही कम है तो यह काम कैसे हो सकता है ? रिपोर्ट में यह कहा गया है कि ग्रामीण लोग बचत कर नहीं सकते। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब बचत नहीं कर सकते । जब कोई श्रादमी कुछ भी बचत नहीं कर सकता, खाने पीने के लिये इन्स जाम नहीं कर सकता, तो वह कभी भी अपने लिए प्रावास की व्यवस्था नहीं कर सकता । इस तरह से अगर योजना इस मंत्रालय को सेवी तो बर्बसाधारण बरोब लोगों के लिए वह जो योजनायें हैं या वह
इस में दिया गया है कि मध्यम वर्ग के लिए भी प्रावास योजना है। मध्यम वर्ग की डेफिनोशन जो दी है वह 6 हजार से ऊपर और 15 हजार तक जिन की इनक्रम है, वह उस में आते हैं । मैं चाहूंगा कि उन लोगों के लिए ऋण देने की जो प्रावास की योजना है उस की बिलकुल जरूरत नहीं है । जब तक प्राप इन गरीब लोगों के प्रावास का प्रबन्ध नहीं कर सकते तब तक ऐसे लोग जिन की कि आमदनी 6000 रुपये से ऊपर है उन लोगों के लिए कोई भी एसी आवास योजना बनाने की जरूरत नहीं है। मैं जानता हूं कि हमारे यहां बड़े लोग चाहे वह शहर में रहने बाले हों या देहात में रहने वाले हों वह इस योजना का फायदा उठाते हैं। उन के लिए खुद का मकान मौजूद रहता है लेकिन चूंकि उन के बच्चे शहर में पढ़ते हैं इसलिए वे धनी मानी लोग शहर में इस भावास योजना का फ़ायदा उठाते हैं । मेरा कहना है कि इस योजना के लिए जो फंड रखा गया है बह फंड निकाल कर जो ग्रामों के प्रावास को योजना है उस में उसे लगाना चाहिए।
चौथी पंचवर्षीय योजना के सम्बन्ध में मंत्री महोदय ने यहां कहा है। मैं उपाध्यक्ष महोदय, , बहुत नमकता के साथ कहना चाहता कि यह जो प्लानिंग कमिशन का सर्वेक्षण उस में यह कहा गया है कि ग्रामीण लोगों के बारे में क्या करना चाहिए । स्पष्ट शब्दों में उस में लिखा था :--
"It was further recommended that the elementary needs of the people such as the supply of drinking water in rural areas and
[श्री दे० शि० पाटिल]
urgent social problems like slums and unsatisfactory living condition should receive special consideration in carrying out the development plans,
इस की बिलकुल उपेक्षा की गई है । उस में यह भी कहा गया था :--
.The Ministers should take specific steps to improve their machinery for planning and raise the level of administrative efficiency and strengthen the implementation of development programmes in the different sectors."
ग्रामीण योजना के बारे में मुझे यह कहना है कि 5000 गांवों में जो योजना लागू करने की बात थी उस में जो प्रगति हुई है वह बहुत कम हुई है । इस स्कीम के बारें में इस सत्र के पहले जब मैं बोला था तो मैंने विनती की थी कि इस डिपार्टमेंट की जो मांग है वह क्या है ? फाइनेंस डिपार्टमेंट का जो उत्तर प्राया है प्लानिंग कमिशन के गारे में उस में उन्होंने कहा है कि इस डिपार्टमेंट ने ग्रामीण आवास योजना के बारे में जितना फंड मांगा था उतना दे दिया गया है । उन्होंने आगे के लिए जो फंड मांगा है उस के बारे में मुझे मालूम नहीं लेकिन उन की डिमांड इस तरफ आती नहीं है । उन का दृष्टिकोण बिलकुल अलग है । उन का दृष्टिकोण बड़े बड़े लोगों और सामन्तों के मकानों और उन के प्रावास की पूर्ति करने का रहता है, देहाती लोगों की आवास की समस्या हल करने की तरफ़ उन की दष्टि नहीं रहती है ।
मैं एक बात कहना चाहता हूं । यह जो झुग्गी झोंपड़ी की समस्या है तो क्या देहात में झुग्गी झोपड़ी नहीं रहती है ? देहात में भी यह झुग्गी झोपड़ी स्कीम लागू करनी चाहिए ।
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि धोबियों के प्रावास की योजना है,
औद्योगिक कर्मचारियों के प्रावास की योजना है, उद्यान कर्मचारियों के प्रावास की योजना है लेकिन दुःख का विषय है कि खेतिहर मजदूरों के लिए कोई भी आवास की योजना नहीं है । शैड्यूल्ड ट्राइब्स और शेड्यूल्ड कास्ट्स और देहातों में जो खेतिहर मजदूर हैं उन के लिए कोई योजना नहीं है। राज्य सरकारें इस बारे में उपेक्षा करती हैं और इस के लिए फंड्स बहुत कम दिये गये हैं । हाउसिंग मिनिस्टर्स की जो कान्फ्रेंस हुई थी उस में जो निश्चय किये गये उन का भी बुरा नतीजा इस ग्राम आवास योजना पर हुआ है । उस में यह कहा गया था कि जो फंड्स दिये गये हैं उस फंड का उपयोग नालियां बनाने में हुआ है। देहाती लोगों ने नालियां बनाने की स्कीम चलाई है। नतीजा यह हुआ कि ग्राम आवास योजना के बारे में जो फंड्स आते थे वह ग्राम प्रावास कार्य के ऊपर खर्च न हो कर बड़े बड़े जो देहात हैं उन देहातों में नालियों की स्कीम बना कर वहां पर उस पैसे को खर्च किया गया है । इसलिए इस के बारे में ब्रेक अप होना चाहिए था ग्रामीण आवास के बारे में नालियों और ग्राम सुधार के ऊपर जितना जितना पैसा खर्च करना है उस के लिए ब्रेक अप नहीं दिया है ।
गांवों में मकान बनाने की योजना की प्रगति को तेज करने की आवश्यकता है : यह योजना जो 5000 चुने हुए गांव हैं उनमें से 2346 गांवों में लागू कर दी गई है। सिर्फ 57923 मकानों के निर्माण की मंजूरी दी गई है । श्राज तक जो मकान बने हैं वह 28362 मकान बने हैं। खेतिहार मजदूरों के लिए स्थान की स्था की गई है लेकिन गांवों में उसके वास्ते कोई इन्तजाम नहीं किया जाता है। राज्य सरकारें इस योजना को इम्लीमेंट नहीं करती हैं। देखने में यह भ्रा रहा है कि जो भी कोई नेशनल पालिसी तय होती है स्टेट गवर्नमेंटस उसे नहीं मानती हैं
और उसके अनुरूप अमल नहीं करती हैं चाहे वह फूड पालिसी हो, एजूकेशन की पालिसी हो और चाहे वह आवास की पालिसी हो । सेंटर जो इस बारे में पालिसी बनाता है और जब वह राज्य सरकारों के पास अमल के लिए भेजी जाती है तो वह उस पर भ्रमल नहीं करती हैं। इसलिए मेरा निवेदन यह है कि यह जो गरीब लोगों के बेतिहर मजदूरों को आवास का प्रबन्ध करने का जो सवाल है उसके लिए सेंटर को स्टेट गवर्नमेंट्स की तरफ न देखते हुए इस काम को अपने पास रखना चाहिए और गांव पंचायतों के स्तर पर इस काम को उसे स्वयं कराना चाहिए । धन्यवाद ।
जितने बनने हैं वे सब देहात में बनें तब तक यह मसला हल नहीं हो सकता है । यह एक बुनियादी चीज है कि शहरों में यदि मकान बनाते चले जायेंगे तो देहात उजड़ते चले जायेंगे । हिन्दुस्तान की 80 फीसदी जता देहातों में बसती है वह 80 फीसवी देहाती जनता दुखी रहेगी भोर 20 फीसदी शहरी भाबादी के ऊपर वह सब रुपया लगता चला जायगा । इसलिए जब तक यह क़दम नहीं उठाया जायगा कि शहरों में नये मकान न बनें तब तक यह मसला हल नहीं हो सकता है।
श्री यशपाल सिंह (कैराना ) : उपाध्यक्ष महोदय, जो कुछ काम इस मन्त्रालय ने किया है वह वाक़ई मनपर्रल्ड है हिस्ट्री में। माननीय खन्ना जी ने खुद बीमार होते हुए भी करोड़ों इन्सानों को जिस तरह से बसाया है वह एक बेमिसाल चीज है । मुझे उम्मीद है कि माननीय खन्ना जी के हाथों गरीब प्रादमियों को ज़रूर फ़ायदा पहुंचेगा । जिस तरीके से नेताजी श्री सुभाषचन्द्र बोस ने एक लफ्ज भी मिलैटरी का नहीं पढ़ा था और एक प्राई०सी० एस० अफसर् होते हुए भी उन्होंने दुनिया और देश के सामने प्राई० एन० ए० की एक शानदार फौज बना कर खड़ी कर दी उसी तरह मुझे पूरी उम्मीद है कि खन्ना जी शरणार्थियों को बसाने की समस्या हल कर लेंगे । लेकिन इस वक्त जो सबसे बड़ी ज़रूरत है वह यह है कि सरकार कुछ मौलिक परिवर्तन करे, कुछ चेंजेज़ ऐसे लाये जायं जिससे कि देहातों की गरीब जनता तक, हरिजनों तक भोर लँडलैस लेबरर्स तक यह रुपया पहुंच सके । प्राज हालत यह है कि प्रावास के ऊपर जितना रुपया खर्च हो रहा है, निर्माण के ऊपर जितना रुपया खर्च हो रहा है उसका 12 फ़ीसदी रुपया भी देहात के अन्दर नहीं पहुंच रहा है । देहातों का रुपया शहरों में लग रहा है । जब तक यह कानून नहीं बन जायगा कि शहरों में नये मकान न बनाये जायें, शहरों में नये मकान बनाने बन्द किये जाय, नये मकान
यहां कहते है कि दिल्ली में एक चारपाई के ऊपर दो सोते हैं, एक चारपाई के ऊपर दो, दो और तीन, तीन प्रादमी सोते हैं लेकिन गांवों में हालत इससे भी बदतर है और वहां इन्सानों को बैलों के साथ और भैंसों के साथ सोना पड़ता है । प्राज गांवों की जो खराब हालत है और गरीब जनता की जो मुसीबतें और कठिनाइयां हैं वह तब तक दूर नहीं होंगी और उनकी हालत तब तक बेहतर नहीं होगी जब तक कि आप अपने सोचने का जो तरीक़ा है जो मौजूदा दृष्टिकोण है उसको प्राप नहीं बदलेंगे । जब तक आपका ध्यान सक्रिय रूप से देहातों की तरफ़ नहीं जायेगा तब तक यह मसला हल नहीं हो सकता है ।
मैं एक किसान हूं । तीन बैलों का मैं एक छोटा सा किसान हूं । भगर मेरे पास हाबी के लिए जगह न हो तो मैं सच कहता हूं कि मैं खुद मकान में नहीं रहूंगा और भासमान के नीचे रहना पसन्द करूंगा। अगर मेरे हाली के पास बिस्तर न रहे, रजाई न रहे तो मैं कम्बल नहीं घोगा और रजाई घोड़ना में पाप सममूंगा । मैं जमीन पर नंगा सो रहूंगा ।
70,000 कर्मचारी ऐसे हैं जिनके रहने के लिए कोई जगह नहीं है। यह इतनी बड़ी गवर्नमेंट है लेकिन वह अपने कर्मचारियों का इन्तजाम नहीं कर पा रही है। मैं कहता हूं कि क्या आप का झगड़ा चीन से है कोई प्राप को पाकिस्तान से निबटना है ? प्राप
[ श्री यशपाल सिंह ]
को थोड़े से लोगों को बसाना है। जब श्राप ने इतने बड़े बड़े काम कर लिये हैं तो उन कर्मचारियों के लिए भी प्राप प्रावास का इन्तजाम अवश्य कर सकते हैं । दूसरे जो झुग्गी झोंपड़ी का मसला है मैं साफ़ कहना चाहता हूं यह झुग्गी झोंपड़ी का मसला इतना नहीं है जितना कि उसे बनाया जा रहा है । दे आर मेकिंग ए माउन्टेन श्राफ़ दी मोल हिल । मैं देहरादून गया हुआ था, वहां से मुझे बुलाया गया, तार गया कि झुग्गी झोंपड़ी की मीटिंग है, चले श्राश्रो ।
श्री त्यागी (देहरादून) श्राप देहरादून क्यों गये थे ?
श्री यशपाल सिंह : इस लिये कि मैं देहरादून से इलैक्शन लड़गा, वह मेरा अपना क्षेत्र है। लेकिन एक बात है कि हमारे माननीय त्यागी जी मगर उस पार्टी को, जिसमे ताशकन्द में जाकर हिन्दुस्तान की नाक कटवाई है, छोड़ दे, तो बगैर मुझ बले के हम उनको प्राने देंगे ।
श्री त्यागी बगैर मुकाबले माने में मजा नहीं है ।
श्री यशपाल सिंहः मैं देहरादून से मीटिंग एटेण्ड करने के लिये प्राया। प्रापको उपाध्यक्ष महोदय, ताज्जुब होगा कि एक भी झुग्गीझोंपड़ी वाला वहां पर नहीं था, महलों में रहने वाले मीटिंग कर रहे थे, लेकिन जब उस मीटिंग में 11 प्रादमी भी नहीं प्राये और उसका इन्तजाम नहीं हो सका, तब उन्होंने कह दिया कि फिर कभी करेंगे ।
मैं खभा जी से कहना चाहता हूं कि जनसंघ नारा लगामे या न लगाये लेकिन उनका फर्ज है कि इस प्राबलम को हल करें । जनसंघ तीन चीजें चाहत है और उसकी तीनों बाते खभा साहब पूरी कर सकते हैं। एक तो यह कि कोई हिन्दू हो, तो प्राप हिन्दू हैं, दूसरे मह
कि ये उजड़े लोग बमाये जायं, यह भी लिये मुश्किल नहीं है क्योंकि जब एक श्रादमी आपने बसा दिये, तो 50-60 हजार का बसाना आपके लिये मुश्किल नहीं है । तीसरी बात जनसंघ यह चाहता है कि किसी भी मामले में किसी भी गरीब प्रदमी के साथ बे-इन्साफ़ी न हो, तो इन्साफ़ आपके हाथ में सुरक्षित है।
श्री रामइबर टांटिया (सीकर) : प्राप जनसंघ में कब से आ गये ?
श्री यशपाल सिंह : हम हर एक पार्टी के अच्छे उसूलों को मानते हैं यह प्रपोजीशन क लफ्ज़ तो यूरोप का दिया हुआ है, वेस्ट का दिया हुआ है, हम प्रपोजीशन के लोग नहीं हैं, हम लोग तो मुल्क के हितैषी हैं, हमारे यहां कहा गया है
स कि सखा साधुनशास्तियोअधिपम् हितान्न यः संश्रृणुते सकि प्रभुः ।
हमारा फ़र्ज है कि जो गलत रास्ते पर जा रहा हो, उसे सही रास्ता बतलावें प्रपोजीशन लफ्ज हमारे यहां का नहीं है, यह तो इंगलैंड का दिया हुआ है, यह मग़रबी कल्चर का दिया हुआ है, हमारा अपना लफ्ज नहीं है । हमारा काम है उनको सही रास्ता दिखलाना ।
में एक और बात भापको बतलाता हूं कि किसी भी देश के एम० पीज० प्राज कहीं भी ऐसी झोपड़ियों और कबूतरखानों में नहीं रहते, जैसे कि भाज हम लोगों को दिये गये हैं, इन में 20 मेहमान भी नहीं ठहर सकते । जब लाखों वोट लेकर हम यहां पाते हैं, लाखों भादमी यहां, भा कर देखना चाहते हैं कि हम किस तरह से यहां रहते हैं । मेरी कांस्टी एन्सी दिल्ली
से सिर्फ 10 मील दूर है, मेरे पास सोसवासौ मेहमान रोख भाते हैं। वही पर
पीनेबाला ठहरता है, वहीं पर
गुरु ग्रंथसाहब को माननेबाला ठहरता है । बहां पर शराब पीनेवाला ठहरता है...
जाम सरकार को करना पड़ेगा । जनता लाखों रुपये खर्चा कर के हमको यहां पर भेजती है, श्राप कहेंगे कि एक हज़ार रुपये महाबार की कोठी चाहिए, तो जनता उस रुपये को देगी, जब उसने भेजा है तो वही उसका इन्तजाम करेगी । एम० पीज ● को कबूतरखानों में बन्द कर देना, कानून के साथ बे-इन्साफ़ी है, कांस्टीचूशन के साथ बेइन्साफ़ी है, प्रापको उनके लिए ठीक व्यवस्था करनी होगी
श्री त्यागीः आपके यहां शराब पीने वाले भी मा कर ठहरते हैं ।
श्री यशपाल सिंह : जी हां । मैं तो रोक नहीं सकता । यह सरकार का काम है कि रोके । जैसे मोरारजी देसाई ने प्राहीबिशन किया था, आाप भी कर के दिखलाइये । यह आपका काम है ।
प्राज किसी भी देश के अन्दर, उपाध्यक्ष महोदय, यह सिस्टम है कि सारे मुल्क का पामी का इन्तजाम मर्द करते हैं और दूध का इन्तजाम प्रौरतें करती हैं । सारी दुनिया में पानी का इन्तजाम मर्द के हाथ में दिया जाता है भोर दूध का इन्तजाम महिलाम्रों के हाथ में, लेकिन इस सरकार का सिस्टम ही दूसरा है । पानी का काम दे रखा हैसुशीला नैयर जी को और दूध का काम दे रखा है सुब्रह्मण्यम जी को । इसी लिये, उपाध्यक्ष महोदय, एम० पीज के फ्लैट में पानी 12 - 12 घण्टे बन्द रहता है, घण्टे पानी बन्द रहता है, 20-20 घण्टे पानी बन्द रहता है । हमने अपने कांस्टीट्यूशन में वादा किया था कि हम अपनी जनता को न्यूट्रीशस फूड देंगे, हमने बादा किया था कि हम भारत के 15 करोड़ इन्सानों को पौष्टिक भोजन देंगे, लेकिन पौष्टिक भोजन तो दूर रहा, सरकार पानी भी नहीं दे सकती । 20-20 घण्टे पानी बन्द रहता है, इस से प्राप अन्दाजा लगा सकते हैं न्यूटीशम फूड तो वह हरगिज नहीं दे सकती । अगर भाप रहने की ठीक व्यवस्था नहीं कर सकते, तो कह दीजिये कि तुम्हारे रहने की हमारे ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है, तुम भाषण दो प्रौर अपने गांव चले जाम्रो, वर्ना इनके लिए पानी का इन्तजाम, इनके लिए रहने का इन्तसाम, इनके लिए ठहरने का इन्तजाम, इनके मेहमानों के लिए एकामरेडेशन का इन्तमैं माननीय खन्ना जी को फिर मुबारकबाद देता हूं और फिर निवेदन करता हूं कि वह ऐसा प्रयत्न करें कि यह रुपया हरिजनों के पास पहुंचे, लैण्डलैस लेबरर्स के पास पहुंचे, गरीबों के हित में वह खर्च हो, उनको सुख मिले । यही महात्मा गांधी चाहते थे और यही हम चाहते हैं ।
Shri M. L. Jadhav (Malegaon): Mr. Deputy-Speaker, Sir, I rise to support the Demands for Grants of the Ministry that is before us. While supporting the demands, I would like to make some observations regarding the housing problem. In the Arst place, I would like to suggest one thing. Is it our policy that the cities should grow, Delhi is growing day by day and the population of Delhi is rapidly growing. Although the Master Plan is for 50 crores, still we find that the growth of population is so rapid that it is very necessary that we must see that some of the offices should shift from Delhi to some other places like Gwalior, some other towns, where we should accommodate some of the offices. It is not necessary that the officers should be sitting at Delhi. Everybody says that he wants to be at Delhi and therefore the offices should not shift outside Delhi. These offices being in Delhi create so many problems, in respect of the officers, their families, their dependants and their requirements. If some of the offices are shifted out of Delhi, 1 think we can help to remove some of the congestion that is there.
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c71787d9b8118c59b16f7587c7a7f4aed09eaf513160303db99b672206328244 | pdf | सब नदी पार कर दूसरे किनारे पहुँचे । इसके बाद एक बोला कि नदी में कोई डूबा तो नहीं? कोई खो तो नहीं गया? हम दस आदमी रवाना हुए थे, उनको गिन लो। गणना करने पर दस की संख्या पूरी नहीं होती, नौ ही होते हैं। एक के बाद एक इस प्रकार सबने गणना की, किन्तु नौ ही संख्या हुई! यह देखकर सब रोने लगे और कहने लगे कि हम दस निकले थे उसमें से एक कम हो गया। दूसरे लोग पूछते हैं कि कौन डूब गया। इस पर वे कहते हैं कि मुझे खबर नहीं पड़ती। यहाँ तो सब दिखाई देते हैं, किन्तु गिनने पर एक कम होता है। उस रास्ते से एक सन्त जा रहे थे। सन्त ने गिनकर देखा, तो संख्या पूरी थी। बात यह हुई कि कम पढ़े-लिखे वे लोग गणना में अपने को शामिल नहीं करते थे। इस कारण दस की संख्या पूरी नहीं होती थी । वह दसवाँ मिल गया। वह मिला ही था अथवा नदी में डूबा हुआ मिला? वास्तव में दसवाँ कहीं गया नहीं था, वह उनके मण्डल में ही था। वह अज्ञान के कारण दिखाई नहीं देता था। उसी प्रकार हम में मिले हुए या हमारे अन्दर निवास करने वाले परमात्मा ही हमें मिलते हैं। इस प्रकार वे सबसे मिले ही होते हैं। वासना रूपी अज्ञान अथवा माया का पर्दा होने के कारण जीव को ईश्वर का अनुभव नहीं होता। शरीर को वस्त्र और आत्मा को वासना ढँकती है। जिस प्रकार सामान्य बादल सूर्य को ढँकता उसी प्रकार वासना परमात्मा को ढँकती है। परमात्मा सर्वत्र है, किन्तु उसका दर्शन नहीं होता। प्रभु ने वस्त्रहरण द्वारा वासना का पर्दा दूर किया है।
ज़प करने से, तप करने से, सत्कर्म करने से इन्द्रियों में से काम निकलता है, किन्तु बुद्धि में स्थित काम सद्गुरु दूर करते हैं। सद्गुरु परमात्मा के दर्शन कराते हैं। इसलिए क्या वह दूर देश में किसी स्थल पर रहने वाले परमात्मा का दर्शन कराते हैं? वास्तव में ईश्वर तो जीव के साथ ही होता है, किन्तु माया के पर्दे के कारण उस जीव को ईश्वर का अनुभव नहीं होता। सद्गुरु माया का आवरण दूर करते हैं। सद्गुरु भी भगवान् हैं। मनुष्य चाहे ज्ञानी हो या बुद्धिमान हो ? किन्तु बुद्धि से काम नहीं निकलता। जब कोई महापुरुष कृपा करता है, तभी काम निकलता है और तभी जीवात्मा को परमात्मा का अनुभव होता है। प्रभु ने गोपियों का वासना रूपी पर्दा दूर किया है और गोपियों से कहा है, "यह तुम्हारा आखिरी जन्म है। तुम शरद पूर्णिमा की रात्रि को मिलना। फिर तुम्हें जन्म लेने का अवसर नहीं आयगा । "
गोपियों की संख्या अधिक है, किन्तु उनमें सबको रास में प्रवेश नहीं मिला है। जिसका अन्तिम जन्म है, जिसकी वासना का पर्दा प्रभु ने दूर किया है और जिस जीव को परमात्मा ने अपनाया है, वही जीव रास में जाता है । यह लीला दिव्य है, मधुर है ।
भागवत के टीकाकार श्रीधर स्वामी ने अपनी टीका में लिखा है कि भागवत परमहंसों की संहिता है। परमहंस निवृत्ति प्रधान होते हैं। निवृत्ति धर्म का एक फल है- आत्मा और परमात्मा का मिलन है। श्री श्रीधर स्वामी ने रासलीला को काम - विजय लीला या मदन-मानभंग लीला कहा है। रासलीला श्रीकृष्ण का काम विजय है। ब्रह्मादि देवों का पराभव करने से कामदेव का अभिमान बहुत बढ़ गया है। वह अपने को ईश्वर समझने लगा हैं काम का नाम ही महारथी है। अनेक देवों बढ़ और ऋषियों को मारने से जिस कामदेव का अभिमान बढ़ गया है, वह श्रीकृष्ण से युद्ध करने आया है। कामदेव कहता है कि मैं इस बात को भूला नहीं हूँ, यह मुझे याद है कि आपने रामावतार में मुझे हराया है। रामावतार में कामदेव ने अनेक बार ऐसा अवसर उपस्थित किया है, जिससे रामजी की आँख में अथवा उनके मन में विकार उत्पन्न हो, किन्तु वे तो निष्काम हैं, कामदेव ने कहा कि रामावतार में मेरी हार तो हुई, किन्तु मेरे मन में सन्देह रह गया है। रामावतार में आपका नियम था कि किसी स्त्री का स्पर्श न करूँगा, प्रत्येक स्त्री में मातृभाव रखूँगा। आपने मर्यादा में रहकर मुझे हराया । वास्तव में मर्यादा का बन्धन ईश्वर के लिए नहीं है । वह जीव के लिए है। आपको सब ईश्वर मानते हैं। इसलिए आपको बन्धन में रहने की क्या आवश्यकता है? श्रीकृष्ण ने कहा कि भाई, तेरी क्या इच्छा है? कामदेव ने कहा, "मेरी इच्छा है कि शरद ऋतु हो, पूर्णिमा हो, मध्यरात्रि का समय हो उस समय किसी स्त्री को स्पर्श न कर उसमें मातृ - भाव रखने की मर्यादा आप न रखिये। उस समय आप स्त्रियों के साथ क्रीड़ा कीजिए और मैं आकाश में रहकर बाण मारूँ। यदि आपके मन में विकार पैदा हो, तो मैं ईश्वर होऊँगा । उस समय आप निष्काम रूप ईश्वर नहीं माने जाएँगे। काम की मार खाने वाला जीव है और जो काम की मार नहीं खाता, वह ईश्वर है ।
प्रभु ने कहा कि मैं यह शर्त मानने को तैयार हूँ। प्रभु इसीलिए शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि को गोपियों के साथ क्रीड़ा करते हैं। कामदेव आकाश में खड़ा है और श्रीकृष्ण को बांण मारता है। श्रीकृष्ण के चरण में गंगाजी है, और भगवान् शिवजी के माथे पर भी गंगाजी हैं। शिवजी और श्रीकृष्ण ज्ञान-स्वरूप हैं। उनका काम क्या बिगाड़ सकता है? काम अनेक प्रयत्न करने पर भी श्रीकृष्ण को अपने आधीन नहीं बना सका। इसलिए उसे विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण भगवान् हैं। वह अब श्रीकृष्ण की शरण में आया है। श्रीकृष्ण ने मदन का पराभव किया। इसलिए उनका नाम मदनमोहन पड़ गया। मदन का अर्थ है काम । अर्थात् काम से ही काम का नाश करना । महापुरुष लौकिक काम को अलौकिक काम से मारते हैं। मुझे किसी मनुष्य से नहीं मिलना है, केवल परमात्मा से मिलना है और उनके साथ एकाकार होना है ऐसी प्रस्तावना कर चुकने के बाद आगे कथा आरम्भ होती है।
प्रभु ने गोपियों से कहा था, "तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। मैं तुमसे शरद पूर्णिमा की रात को मिलूँगा।" शुकदेवजी महाराज को समाज के सामने रासलीला की कथा कहने में थोड़ा संकोच हुआ। वे विचारने लगे कि मैं रासलीला की कथा कहूँ या नहीं। क्योंकि समाज में सब अधिकारी जीव नहीं होते। उन्होंने रांधाजी का स्मरण किया। क्योंकि वे पूर्वजन्म में राधाजी की निकुँज के शुक (तोता) थे। निकुँज में गोपियों के साथ परमात्मा क्रीड़ा करते हैं। शुकदेवजी सारे दिन श्रीराधे-राधे कहते हैं। यह सुनकर श्रीराधाजी ने हाथ उठाकर तोते को अपनी ओर बुलाया। तोता आकर राधाजी के चरणों की वन्दना करता है। वे उसे उठाकर अपने हाथ में लेती हैं। तोता फिर श्रीराधे-राधे-राधे बोलने लगा। राधा ने कहा कि अब तू 'राधे-राधे' न कहकर 'कृष्ण-कृष्ण' कह। राधेति मा वद-कृष्ण-कृष्ण बोल । इस प्रकार राधाजी तोते को समझा रही हैं। उसी समय श्रीकृष्ण वहाँ आ जाते हैं। राधाजी ने उनसे कहा कि यह तोता कितना मधुर बोल रहा है ! और उसे उनके हाथ में दे दिया। इस प्रकार राधाजी ने शुकदेवजी का ब्रह्म के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध कराया है। इसलिए शुकदेवजी की सद्गुरु श्रीराधाजी हैं। राधाजी ही सद्गुरु हैं। इसलिए उन्होंने भागवत में उनका नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया है। सद्गुरु का मन से स्मरण कर 'सद्गुरु देव की जय' का उच्चारण करना चाहिए। उनका नाम नहीं लेना चाहिए। मर्यादा का भंग नहीं करना चाहिए। यदि पत्नी अपने पति का नाम स्पष्ट रूप से ले, तो पति की आयु घटती है, ऐसा शास्त्रों में वर्णन आता है। इसीलिए श्रीराधाजी का नाम भागवत में स्पष्ट रूप से नहीं मिलता। उनका नाम गुप्त रीति से दो-तीन स्थानों पर लिया गया है। क्योंकि शुकदेवजी को सभा में उनका नाम लेने में संकोच होता है। वे विचार करते हैं कि रासलीला की कथा सुनाऊँ या नहीं सुनाऊँ? उन्होंने राधाजी का स्मरण किया। राधाजी ने कहा, "बेटा, तू कथा सुना किन्तु कथा विवेक से सुनाना ।
भगवानपि ता रात्रीः
परिपूर्ण आनन्दमय श्रीकृष्ण को कोई सुख भोगने की इच्छा ही नहीं होती। प्रभु ने यह लीला गोपियों को परमानन्द देने के लिए की है और योगमाया का आश्रय लिया है। भगवान् ने आज क्रीड़ा करने की इच्छा की है, बाँसुरी बजाई है, गोपियों को बुलाया है। बाँसुरी की ध्वनि गोपियों के कान में पड़ती है। गोपियाँ परमात्मा से मिलने की तीव्र भावना लेकर दौड़ पड़ती हैं। तुमको चाहिए कि भगवान से मिलने के लिए दौड़ते-दौड़ते नहीं तो रोज थोड़ा चलते-चलते अवश्य जाओ। ऐसा निश्चय करो कि इस जन्म में मुझे उनके दर्शन करने हैं, उनके चरणों तक पहुँचना है। धीरे-धीरे भक्ति बढ़ाना, संयम बढ़ाना है। उस समय गोपियाँ जो काम कर रही थीं, उसे छोड़कर दौड़ पड़ती हैं? |
272813352775ab29addac03968267d6faf0fbba8804364eec78dc9ab65051ef2 | pdf | अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।।
( अयम् ) यह आत्मा, ( अच्छेद्यः ) शस्त्रोंसे काटे जाने योग्य नहीं है, ( अयम, ) यह आत्मा, ( अदाह्यः ) अग्निसे जलाने योग्य नहीं है, यह आत्मा, ( अक्लेद्यः ) जलसे गलाने योग्य नहीं है, ( च ) और, ( अशोष्यः एव ) निश्चय ही वायुसे सुखाने योग्य नहीं है। इसलिए, ( अयम् ) यह आत्मा, ( नित्यः ) नित्य अर्थात् तीनों कालोंमें एकरस है, ( सर्वगतः ) सबमें व्यापक है, ( स्थाणुः ) स्थिर स्वभाववाला है, ( अचलः ) हिलनेवाला नहीं है, और, ( सनातनः ) सदासे चला आ रहा है ॥ २४ ॥
पञ्चारे चक्रे परिवर्तमाने तस्मिन्ना तस्थुर्भुवनानि विश्वा । तस्य नाक्षस्तप्यते भूरिभारः सनादेव न शोर्यते सनाभिः ॥ ( ऋग्वेदः १-१६४ - १३ )
( पञ्चारे ) पञ्चज्ञानेन्द्रियों, या पञ्चकर्मेन्द्रियों, या पञ्चमहाभूतोंके आरोंवाले, (चक्रे ) चक्कर लगानेवाले या भ्रमणशील, ( परिवर्तमाने ) पुनः पुनः परिवर्तित होनेवाले, ( तस्मिन् ) उस देह - चक्रमें, ( विश्वा ) सारे, ( भुवनानि ) प्राणिमात्र, ( आतस्थुः ) रहते हैं । ( तस्य ) उस चक्रके मध्यमें रहनेवाला यह जीवात्मा, ( अ-क्षः ) नक्षत्र होनेवाला, तथा, ( भूरिभारः ) सकल भारी देहके उठानेसे बहुत भारवाला होनेके कारण, ( न तप्यते ) दाह-क्लेशादि प नहीं होता, और यह आत्मा, ( सनात् एव ) सदासे ही एकरस चला आ रहा है अतः इसे सनातन कहते हैं। इसलिए ही, ( सनाभिः ) सर्वदा एकरूप नाभिवाला जाते हैं यह आत्मा, ( न शीर्यते ) नहीं टूटता । जैसे रथके आरे भारसे टूट और अक्षके नाश होनेसे रथकी नाभि या मध्यभाग भी मुड़ जाता या टूट जाता है वैसे यह आत्मा देहरूपी चक्रके चीरे जानेपर, जलसे गीले होनेपर या अग्निसे जल जानेपर भी न चीरा जाता है, न गीला होता है और न जलता है, इसलिए आत्मा नित्य और देह अनित्य है।
तुलना - गीतामें देहको छेद्य, क्लेद्य, शोष्य और दाह्य एवं आत्माको अच्छेद्य, अभेद्य, अक्लेद्य, अशोष्य, नित्य, सर्वगत और सनातन कहा गया है । वेदमें भी कहा गया है कि देह-चक्र आरे आदिके टूटने से नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा नित्य, अच्छेच, अभेद्य, अदाह्य है ।
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ।।
( अयम् ) यह आत्मा, ( अव्यक्तः ) अव्यक्त या अप्रत्यक्ष, अर्थात् किसी भी इन्द्रिय द्वारा प्रत्यक्ष न होनेवाला है । ( अयम् ) यह आत्मा, ( अचिन्त्यः ) अनुमानादि द्वारा चिन्ता करने योग्य नहीं है । ( अयम् ) यह आत्मा, ( अविकार्यः ) न विकृत होने योग्य, ( उच्यते ) कहा जाता है । ( तस्मात् ) इसलिए, ( एनम् ) इस आत्माको, ( एवम् ) इस प्रकार, ( विदित्वा ) जानकर, ( अनुशोचितुम् ) इसके मरने-मारनेका शोच करने के लिए, ( न अर्हसि ) योग्य नहीं है, अर्थात् तू अपने बन्धुओंके मरने या मारनेका शोच मत कर ॥ २५ ॥
को ददर्श प्रथमं जायमानमस्थन्वन्तं यदनस्था बिभत । भूम्या असुरसुगात्मा क्वस्वित् को विद्वांसमुप गात्प्रष्टुमेतत् ॥ ( ऋग्वेदः १-१६४-४ )
( प्रथमम् ) सबसे प्रथम अर्थात् अनादि कालमें, ( जायमानम् ) शरीरमें प्रकट होते हुए आत्माको, ( क : ) किसने, ( ददर्श ) देखा ? अव्यक्त होनेसे उसे कोई पुरुष चक्षुआदि इन्द्रियोंसे नहीं देख सकता, ( यत् ) क्योंकि, यह आत्मा, ( अनस्थाः=न + अ + स्थाः ) सर्वदा एकरस रहनेवाला और विकारसे रहित है, अथवा हड्डियोंसे रहित होकर, ( अस्थन्वन्तम् ) विनाशी पृथिव्यादिसंघातात्मक, अथवा हड्डियोंवाले देहको, (बिर्भात ) धारण करता है । ( भूम्याः ) पार्थिव स्थूल शरीरका, ( असुः ) प्राणरूप होकर धारण करनेवाला, ( असृक् ) किसीसे न बनाया गया या सृज् यानी राग अर्थात् देहादिके रागसे रहित वह, (आत्मा ) जीवात्मा, ( क्वस्वित् ) कहाँ रहता है, इस चिन्ताका विषय न होनेसे वह आत्मा अचिन्त्य कहा गया है । ( क ) कौन मनुष्य, ( विद्वांसम् ) विद्वान् पुरुष के पास, ( एतत् ) इस आश्चर्यमय वस्तुको, ( प्रष्टुम् ) पूछनेके लिए, ( उपगात् ) जाता है !
उपनिषद् में आया है -
न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनो न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यादन्यदेव तद्विदितादयो अविदितादधि । इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व चाचचक्षिरे ।
उस आत्मातक न नेत्र जाते, न वाणी जाती, न मन जाता । हम उसके विषयमें नहीं जानते कि उसे क्या बताया जाय । पूर्वाचार्योंके बतानेसे सुना कि वह विदित और अविदित दोनोंसे भिन्न है ।
तुलना - गीतामें कहा गया है कि आत्मा अव्यक्त, अचिन्त्य, अविकार्य है । जो ऐसा जानता है वह कभी किसी स्थान या किसी वस्तु के लिए शोक नहीं करता । वेदमें भी कहा गया है कि आत्मा हड्डी आदिसे रहित, देहधारक तथा अचिन्त्य है, जिसका ज्ञान विद्वान् पुरुषके पास जानेसे हो सकता है ।
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् । तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ।। ( महाबाहो ! ) हे विशाल बाहुवाले अर्जुन ! ( अथ च ) यदि तू, ( एनम् ) इस आत्माको, (नित्यजातम् ) जब-जब देह उत्पन्न होता है तब तब देहके साथ ही तत्काल जन्म लेनेवाला, ( वा ) अथवा ( नित्यं मृतम् ) देहके मरनेपर देहके साथ ही मरनेवाला, ( मन्यसे ) मानता है, ( तथापि ) तो भी, इस पक्षके स्वीकार करनेपर भी, ( त्वम् ) तू, ( एवम् ) 'हमें धृतराष्ट्र के पुत्रोंको मारना उचित नहीं है' इस रीतिसे, ( शोचितुम् ) शोच करने के लिये, ( नार्हसि ) योग्य नहीं है ॥ २६ ॥
अयं पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे । अतश्चिदा जनिषोष्ट प्रवृद्धो मा मातरममुया पत्तवे कः ॥
( अयं पन्थाः ) प्रत्यक्ष प्रतीत होता हुआ यह जन्म-मरणका मार्ग, ( पुराणः ) अनादि कालसे, ( अनुवित्तः ) यथाक्रम उत्पन्न होनेवाले सब जीवोंसे पाया जाता है, ( यतः ) जिस जन्म-मार्ग से, ( विश्वे ) सब, ( देवाः ) ज्ञानी और अज्ञानी जीवात्मा, ( उदजायन्त ) उत्पन्न होते हैं । ( अतः + चित् ) इस योनिमार्ग से ही, ( प्रवृद्धः ) गर्भ में अथवा संसारमें अतीव वृद्धिको प्राप्त हुआ, ( आ जनिषीष्ट ) यह जीवात्मा उत्पन्न होता है । ( अमुया ) नित्य जन्ममरणकी इस रीतिसे, ( मातरम् ) शोकके मापक ज्ञानको, ( पत्तवे ) विनाशके लिये, ( मा कः ) मत कर, अर्थात् जन्म के साथ मृत्यु आवश्यक है इसलिये शोक व्यर्थ ही है ।
तुलना - गीता अर्जुनके सन्तोषके लिये कहा गया है कि जन्मके साथ मृत्यु और मृत्युके साथ जन्म यदि आवश्यक है तो भी मृत्यु के लिये शोक व्यर्थ है
क्योंकि मृत्यु होनेपर पुनः जन्म होगा । वेदमें भी जन्म-मरणका मार्ग पुराना बताते हुए कहा गया है कि सब जीवात्मा देहके साथ जन्म लेते, बढ़ते और मरते हैं इसलिए किसीकी मृत्युपर शोक करना व्यर्थ है ।
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
( हि ) क्योंकि, ( जातस्य ) जन्म लेनेवाले की, ( मृत्युः ) मृत्यु, ( ध्रुवः ) अवश्य ही होती है, ( च ) और, ( मृतस्य ) मरे हुएका, ( जन्म ) जन्म भी, ( ध्रुवम् ) अवश्य होता है, ( तस्मात् ) इसलिए, ( त्वम् ) तू, ( अपरिहार्ये अर्थ ) अवश्य होनेवाले इस विषयमें भी, ( शोचितुम् ) शोच करनेके लिये, ( न अर्हसि ) योग्य नहीं है ॥ २७ ॥
मृत्युरोशे द्विपदां मृत्युरीशे चतुष्पदाम् । तस्मात् त्वां मृत्योर्गोपतेरुद्भरामि स मा बिभेः ॥
( द्विपदाम् ) मनुष्य, पक्षी आदिपर, ( मृत्यु : ) मृत्यु, ( ईशे ) प्रभुत्व करती है, और, ( चतुष्पदाम् ) चार पाँववाले जीवोंपर ( मृत्युः ) मृत्यु, ( ईशे ) अधिकार रखती है, अर्थात् मृत्यु प्रत्येक प्राणीके लिये आवश्यक है । ( तस्मात् ) इस कारण ( त्वाम् ) तुझ जीवात्माको, ( गोपतेः ) द्विपद और चतुष्पद दोनों प्रकारके पशुओंके स्वामी, ( मृत्योः ) मृत्युसे, ( उद्भरामि ) ऊपर उठाता हूँ । ( सः ) मृत्युके भयको पाया हुआ वह तू, ( मा बिभेः ) मृत्युसे
भय मत कर ।
तुलना- - गीता में बताया गया है कि प्रत्येक प्राणीके लिये जन्मके अनन्तर मृत्यु और मृत्यु के अनन्तर जन्म अनिवार्य है, इसलिए न टलनेवाली बात में शोक न करना चाहिए । वेदमें भी कहा गया है कि प्रत्येक प्राणीकी मृत्यु अवश्य होती है । भगवान्की शरण आनेसे मृत्युका डर दूर हो सकता है । मृत्युको अनिवार्य समझकर उससे किसीको भय न करना चाहिये ।
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिवेदना ।।
( भारत ! ) हे भरतकुलोत्पन्न अर्जुन ! ( भूतानि ) शरीर अथवा आकाशादि पञ्चमहाभूत, (अव्यक्तादीनि ) उत्पत्तिसे पहले शरीर-रहित होनेसे अव्यक्तावस्था होनेके कारण देखे नहीं जाते, ( व्यक्तमध्यानि ) मध्यमें थोड़े कालके लिये
व्यक्त शरीरवाले होते हैं, और, ( अव्यक्तनिधनानि ) अन्तकालमें भी अव्यक्त ही हो जाते हैं । । ( तत्र ) इनके विषयमें, ( का ) क्या, ( परिवेदना ) दुःख किया जा सकता है ! अर्थात् इन भीष्मादिके लिये शोकसे जर्जरीभूत होकर प्रलाप करना व्यर्थ है ॥ २८ ॥
तमिद्गर्भं प्रथमं दध्र आपो यत्र देवाः समगच्छन्त विश्वे । अजस्य नाभावध्येकमर्पितं यस्मिन् विश्वानि भुवनानि तस्थुः ॥ ( ऋग्वेदः १०-८२-६ )
( आपः ) उत्पत्तिसे पूर्व संसारावस्थामें प्राप्त हुए पदार्थमात्र, ( तम् इत् ) उस परमात्माकी ही, ( गर्भम् ) सर्वलोकोंक उत्पत्तिस्थान प्रकृतिम, ( प्रथमम् ) पहले, ( दधे ) स्थित रहते हैं, क्योंकि सब पदार्थ उत्पत्तिसे पूर्व अव्यक्तावस्थामें रहते हैं, ( यत्र ) जिस परमात्मामें, ( देवाः ) ज्योतिर्मय सूर्यादिलोक भी, ( समगच्छन्त ) मध्यावस्थामें दृश्यमान होते हुए लीन हो जाते हैं, ( विश्वे ) सब भूतजात अर्थात् स्थावर जंगम मात्र, ( अजस्य ) परमात्माके, ( नाभौ ) मध्यमें, ( एकम् ) मुख्यतया, ( अर्पितम् ) स्थित हैं, ( यस्मिन् ) जिस परब्रह्ममें, ( विश्वानि ) सारे, ( भुवनानि ) लोक-लोकान्तर, ( अधितस्थुः ) वास करते हैं, अर्थात् सब पदार्थ सृष्टिको उत्पत्तिसे पूर्व ब्रह्ममें थे अतः अव्यक्तरूप थे, विनाशानन्तर ब्रह्ममें लीन होनेसे भी अव्यक्त रहते हैं, केवल मध्यस्थितिमें व्यक्त होते हैं। ऐसे पदार्थोंके लिये दुखी होनेकी क्या आवश्यकता है !
उपनिषद्का भी कथन हैयथा सुदीप्तात् पावकाद् विस्फुलिङ्गाः सहस्रशः प्रभवन्ते सरूपाः । तथाक्षराद्विविधाः सोम्य भावाः प्रजायन्ते तत्र चैवापियन्ति ।।
जैसे अत्यन्त प्रदीप्त अग्निसे उसीके समान रूपवाली सहस्रों चिनगारियाँ निकलती हैं, हे सोम्य ! उसी प्रकार उस अक्षरसे अनेक भाव प्रकट होते हैं और उसीमें लीन हो जाते हैं ।
तुलना - विद्युत्के प्रकाशकी भाँति मध्यकालमें प्राणियोंका प्रकाश बताकर गीता भूतमात्रके दुखित न होनेकी आवश्यकता बतलाई गई है । वेदमें भी पदार्थ - मात्रकी ब्रह्मसे उत्पत्ति, ब्रह्ममें लीनत, और केवल मध्यकालमें पदार्थमात्रका प्रकाश
बताया गया
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेनमाश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः । आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ।। ( कश्चित् ) कोई पुरुष, ( एनम् ) इस आत्माको, ( आश्चर्यवत् ) अलौकिक या अद्भुत तत्त्वके समान, ( पश्यति ) देखता है, ( च ) और, ( तथैव ) वैसे ही, ( अन्यः ) कोई दूसरा पुरुष, इस आत्माको, ( आश्चर्यवत् ) विस्मयसे भरे हुए तत्त्वके समान, ( वदति ) बोलता है, ( च ) और, (अन्य ) इससे भी अन्य पुरुष, ( एनम् ) इसको, ( आश्चर्यवत् ) आश्चर्यमयके समान, ( शृणोति ) सुनता है, ( च ) और, ( कश्चित् ) कोई पुरुष, ( एनम् ) इस आत्माको, ( श्रुत्वा अपि ) सुनकर भी, ( न एव ) निश्चित रूप से नहीं, ( वेद ) जानता ॥ २९ ॥
उत त्वः पश्यन्न ददर्श वाचमुत त्वः शृण्वन्न शृणोत्येनाम् । उतो त्वस्मै तन्वं वि सत्रे जायेव पत्य उशती सुवासाः ।। ( ऋग्वेदः १०-७१ ४ )
( त्वः) कोई पुरुष, ( वाचम्) वाणीके बोलनेवालेकी, (पश्यन् उत) मनसे पर्यालोचना करता हुआ भी, ( न ददर्श ) जीवात्माके तत्त्वको नहीं देखता । ( त्वः) कोई पुरुष, ( एनाम् ) इस जीवात्माकी देहके उठाने, बोलने, सुनने, छूनेकी शक्तिको, ( शृण्वन् ) सुनता हुआ भी, ( न शृणोति ) नहीं सुनता कि यह आत्मतत्त्व क्या है । ( त्वस्मै उत) किसी तत्त्वजिज्ञासु पुरुषके आगे हस्तामलकवत् यह आत्मतत्त्व, (तन्वम्) अपने विस्तृत शरीर अर्थात् अपने आशयको, (वि सत्रे ) खोल देता है । ( इव) जैसे, (सुवासाः) अच्छे वस्त्रोंवाली, ( उशती ) पतिको चाहती हुई, (जाया) भार्या, निजस्वामीके निकट निज देहको समर्पित कर देती है ।
शिवास्त एका अशिवास्त एकाः सर्वा, बिर्भाष सुमनस्यमानः । । तित्रो वाचो निहिता अन्तरस्मिन् तासामेका वि पपातानु घोषम् ॥ ( अथर्ववेदः ७-४४-१ )
हे जीवात्मन् ! (ते) तेरी, ( एका :) 'इस देहमें चलने-फिरनेवाला कौन है' ऐसी आश्चर्यमयी कई बातें, (शिवाः ) कल्याण करनेवाली, या 'शिव-शिव ! ' ऐसे वाक्योंसे आश्चर्यमयी हैं । (ते) तेरी, (एकाः ) कई एक बातें, (अशिवाः) 'आत्मा कोई पृथक् नहीं, यह देह ही सब कुछ करता है', इस प्रकार दुःख देनेवाली, नरकमें डालनेवाली, अशुभ हैं। परन्तु, ( सुमनस्यमानः ) उत्तम मनवाला
तू, (सर्वाः) उन सब 'आत्मा क्या है ? देह है, क्षणिक विज्ञान है, परमाणु है'. इन सब बातोंको, (बिभष) धारण करता है । (तिस्रः वाचः ) आत्माके तत्त्वको आश्चर्यमय देखना, आश्चर्यमय कहना, आश्चर्यमय सुनना ये तीन प्रकारकी बातें, ( अस्मिन्) इस पुरुष में, (अन्तः) भीतर, (निहिताः) स्थित हैं । ( तासाम् ) उन तीनों बातोंमें - से, (एका) ज्ञानरूप वार्ता, (घोषम् ) सहस्रों बार कानमें सुने हुए शब्दको, ( अनु विपपात ) लक्ष्य करके भी विरुद्ध प्राप्त होती है अर्थात् सहस्रों बार सुनकर भी लोग इस आत्माको नहीं जानते।
सन्तमप्यसन्तमिव । स्वप्रकाश चैतन्यरूपमपि जडमिव । आनन्दधनमपि दुःखितमिव । निर्विकारमपि सविकारमिव । नित्यमप्यनित्यमिव । ब्रह्माभिन्नमपि तद्भिन्नमिव । मुक्तमपि बद्धमिव । अद्वितीयमपि सद्वितीयमिव ।
यह आत्मा स्थिर रहनेपर भी न रहनेके समान, स्वप्रकाश चैतन्यरूप होनेपर भी जडके समान, आनन्दघन होनेपर भी दुखितके समान, सर्व पञ्चभूतोंके विकारोंसे निर्मल और निर्द्वन्द्व होनेपर भी विकारवान्के समान, नित्य होनेपर भी अनित्यके समान, ब्रह्मसे भिन्न न होनेपर भी ब्रह्मसे भिन्न, सदा मुक्त होनेपर भी बद्धके समान, अद्वितीय होनेपर भी द्वितीयके साथ-सा दिखाई पड़ता है ।
यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । ( शा. उ. २-३ ) वाणी मनके साथ दौड़ते-दौड़ते इसके अन्तको न प्राप्त होकर निवृत्त हो जाती है. अर्थात् इसकी आश्चर्यमय लीलाको देखकर चुप हो जाती है ।
तुलना - - गीतामें आत्माके सम्बन्ध में लोगोंके विचार आश्चर्यमय बताए गए हैं। वेदमें भी आत्माको आश्चर्यमय स्वरूपवाला बताया गया है । देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत । तस्मात् सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
( भारत ! ) हे भरतवंशोत्पन्न अर्जुन ! ( सर्वस्य ) सब प्राणियोंके, (देहे ) देहमें, (अयम्) यह, (देही) जीवात्मा, (नित्यम् ) सदा, ( अवध्यः ) वध न होने योग्य है, (तस्मात् ) इसलिये, (त्वम् ) तू, ( सर्वाणि ) इन सब, ( भूतानि) भीष्मादि जीवोंके लिये, ( शोचितुम् ) शोक करने के लिये, (न अर्हसि ) योग्य नहीं है ।। ३० ॥
दिवि ।
पनौ पार्थिवं रजो बबधे रोचना
न त्वावाँ इन्द्र कश्चन न जातो न जनिष्यतेऽति विश्वं ववक्षिय ।। ( ऋग्वेदः १-८१-५ )
( इन्द्र ! ) हे जीवात्मन् ! तू, ( पार्थिवम् ) पृथिवीके विकारवाले, ( रजः ) लोक अर्थात् देहको, ( आ पप्रौ) भरपूर करता है अर्थात् देहका स्वामी होकर रहता है, और, (दिवि ) हृदयाकाश में, ( रोचना ) प्रकाशमान विवेकको (बद्द्बधे) बाँघता है अर्थात् हृदयमें विवेचनात्मक ज्ञानको धारण करता हे आत्मन् ! (त्वावान्) तुझ जैसा, (कश्चन ) और कोई भी, (न) नहीं है । ( न जातः ) न तेरे जैसा कोई उत्पन्न है, (न जनिष्यते) न ही कोई पदार्थ उत्पन्न होगा । जब आत्माकी उत्पत्ति नहीं है तब उसकी मृत्यु क्यों होगी ! इसलियें तू नित्य होता हुआ, (विश्वम् ) सारे देहको, (अतिववक्षिथ) अत्यधिक उठाये हुए है । इसलिये आत्माको अज और नित्य मानना चाहिये ।
अपश्यमस्य महतो महित्वममर्त्यस्य मर्त्यासु विक्षु ।
( मर्त्यासु ) मृत्युको प्राप्त होनेवाली, (विक्षु ) प्रजाओं में या देहोंमें, ( अस्य ) इस, ( महतः ) महान्, (अमर्त्यस्य ) न मरनेवाले आत्माका, (महित्वम्) महत्त्व, ( अपश्यम्): देखा है, अर्थात मरणधर्मी शरीरोंमें यह अमर और अविनाशी आत्मशक्ति रहती है ।
तुलना - गीता में देहको अनित्य एवं आत्माको नित्य बताकर यह सिद्ध किया गया है कि देहका नाश होनेपर शोक नहीं करना चाहिये । वेदमें भी देहको मृत्युधर्मक और आत्माको अजर-अमर बताया गया है ।
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि । धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्र योऽन्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते ।।
(च) और, ( स्वधर्मम् ) युद्ध करना क्षत्रियका अपना सहज धर्म है इसलिये तू अपने क्षत्रियधर्मको, (अवेक्ष्य) देखकर, (विकम्पितुं न अर्हसि ) कम्पायमान होने योग्य नहीं है, (हि) क्योंकि, (धर्म्यात्) क्षत्रियों द्वारा सम्पादन किये जाने योग्य न्याययुक्त धर्मवाले, (युद्धात्) युद्धसे, (अन्यत्) और, ( श्रेयः ) कल्याण करनेवाला कोई धर्म, ( क्षत्रियस्य ) क्षत्रियके लिये ( न विद्यते) नहीं है ।। ३१ ।।
युध्मो अनर्वा खजकृत् समद्वा शूरः सत्राषाड् जनुषेमषाळ्हः । व्यास इन्द्रः पृतनाः स्वोजा अधा विश्वं शत्रूयन्तं जघान ।। ( ऋग्वेदः ७ - २० - ३ )
( युध्मः) क्षत्रिय, (अनर्वा) युद्धमें पीठ न दिखानेवाला, (खजकृत्) युद्ध करनेवाला ['खले खजे' युद्धनाम, निघंटु ], (समद्वा) दुष्टोंको मारकर सज्जनोंको प्रसन्न करनेवाला या युद्धको अपना धर्म समझनेवाला, (शूरः) शूरतायुक्त, ( जनुषा ) जन्मसे ही, ( सत्राषाट् ) बहुतोंपर प्रभाव डालनेवाला, ( अषाळहः) स्वयं किसी के प्रभाव में न आनेवाला, ( स्वोजाः) अच्छे बलवाला, (ईम्) यह, ( इन्द्रः) क्षत्रियात्मा, (पृतनाः) शत्रुओंकी सेनाओंको, (व्यासे) परास्त कर देता है, (अघा) और ( शत्रूयन्तम् ) शत्रुता करते हुए, ( विश्वम् ) सारे शत्रुमण्डलको, (जघान ) नाश कर देता है ।
महाभारतका भी इस विषय में स्पष्ट कथन है -
अधर्मः क्षत्रियस्यैष यच्छय्यामरणं भवेत् । विसृजलेष्ममूत्राणि कृपणं परिदेवयन् ।। अविक्षतेन देहेन प्रलयं योऽधिगच्छति ।
क्षत्रियो नास्य तत्कर्म प्रशंसन्ति पुराविदः ।। न गृहे मरणं तात क्षत्रियाणां प्रशस्यते । शौटीराणामशौटीरमधर्म्यं कृपणं च तत् ।।
बीमार होकर खाटपर पड़कर मरना क्षत्रियके लिये महान् अधर्म है जिसमें श्लेष्म-मलमूत्रादि-त्यागसे अतिकृपणतासे देह त्यागा जाता है। जो क्षत्रिय घावसे रहित देहका त्याग कर देता है अर्थात् बिना शस्त्रप्रहारके देह त्याग करता है, तत्त्वज्ञानी क्षत्रिय लोग उसके इस कर्मको अच्छी दृष्टि से नहीं देखते अर्थात् उसे क्षत्रिय नहीं गिनते । क्षत्रियोंका घरमें मरना प्रशंसित जाता, अपितु ऐसा मरना अत्यन्त निन्दित, अधर्म और अति कायरताका काम समझा जाता है ।
मनुस्मृतिमें कहा गया हैन निवर्तेत सङ्ग्रामात् क्षात्रं धर्ममनुस्मरन् । सङ्ग्रामेष्वनिवतित्वं प्रजानां चैव पालनम् ।
क्षत्रिय क्षात्रधर्मको स्मरण करता हुआ संग्रामसे न भागे । प्रजाका पालना और संग्रामसे मुख न मोड़ना क्षत्रियका कर्त्तव्य है । वह्निपुराणमें कहा गया है -
धर्मलाभोऽर्थलाभच यशोलाभस्तथैव च । यः शूरो वध्यते युद्धे विमर्दन् परवाहिनीम् ।। यां यज्ञसङ्घैस्तपसा च विप्राः स्वर्गैषिणो यत्र न वै प्रयान्ति । क्षणेन तामेव गतिं प्रयान्ति महाहवे स्वां तनुं संत्यजन्तः ॥
जो वीर शत्रुकी बहुत बड़ी विशाल सेनाको मसलता हुआ युद्धमें मारा जाता है वह धर्म, अर्थ तथा यश पाता है । स्वर्गकी इच्छा करनेवाले ब्राह्मण असंख्य यज्ञ करनेसे तथा कठिन तपस्यादिसे जिस गतिको नहीं पाते, संग्राममें अपने शरीरको छोड़नेवाले क्षत्रिय लोग क्षणमात्र में ही उस गतिको पा लेते हैं ।
तुलना - - - गीतामें कहा गया है कि अपने-अपने वर्णानुसार अपने-अपने धर्मको करनेवाले पुरुष उत्तम गतिको पाते हैं । अर्जुन क्षत्रिय था अतः उसे क्षात्र धर्मसे न हटनेका उपदेश दिया गया है। महाभारत आदि तथा वेदमें भी यही बताया गया है कि युद्धमें पीठ न दिखाना, शूर बनना, दूसरेपर क्षात्रप्रभाव डालना, अपने आप किसीसे न दबना, शत्रुता करनेवाले शत्रुका नाश करना क्षत्रियका कर्तव्य है ।
यदृच्छया चोपपत्रं स्वर्गद्वारमपावृतम् । सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ।।
( पार्थ ! ) अर्जुन ! ( यदृच्छया उपपन्नम् ) अपने आप प्राप्त हुए, ( अपावृतम् ) खुले हुए किवाड़ोंसे युक्त, ( स्वर्गद्वारम् ) स्वर्ग-द्वारवाले, ( ईदृशं युद्धम् ) ऐसे युद्धको, ( सुखिनः ) सुखी, भाग्यशाली, ( क्षत्रियाः ) क्षत्रियकुलोत्पन्न पुरुष, ( लभन्ते ) प्राप्त करते हैं ॥ ३२ ॥
ये युध्यन्ते प्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः । ये वा सहस्रदक्षिणास्तांश्चिदेवापि गच्छतात् ॥
( प्रधनेषु ) शूर-वीरोंकी मृत्यु होनेपर कटक- कुण्डलादि स्वर्ण- धन जहाँ बिखरे पड़े हों ऐसे युद्धस्थलोंमें, ( शूरासः) युद्धवीर शूरजन, ( ये ) जो क्षत्रिय,
( युध्यन्ते ) युद्ध करते हैं अर्थात् शत्रुओंपर आक्रमण करते हैं, ( ये तनूत्यजः ) जो युद्धवीर क्षत्रिय युद्ध में शरीर छोड़ते हैं, ( ये वा ) अथवा जो शूर वीर, ( सहस्रदक्षिणा : ) दक्षिणकी ओर आनेवाले अर्थात् सम्मुख आए हुए क्रूरसे क्रूर शत्रुओंको युद्ध - विजयके लिये सहस्रों प्रकारकी दक्षिणां देनेवाले हैं, ( तान् ) उन शत्रुओंकी, ( चित् एव अपि ) ओर भी अर्थात् उनके सम्मुख भी, (गच्छतात- मध्यमपुरुषैकवचने) तू जा, अर्थात् युद्ध कर । युद्धके अनन्तर तू भी मरकर स्वर्गलोकको प्राप्त हो ।
तुलना - गीता में कहा गया है कि क्षत्रिय वीर युद्ध में शत्रुओंसे युद्ध करता हुआ यदि मृत्युको प्राप्त होता है तो वह खुले द्वारवाले स्वर्गको प्राप्त करता है । वेद और मनुस्मृतिमें भी यही कहा गया है कि जो शूर वीर महायुद्धोंमें सम्मुख प्राप्त हुए शत्रुओंके साथ युद्ध करता हुआ मृत्युको प्राप्त होता है वह उन लोकोंको जाता है जिन लोकोंमें विविध याज्ञिक और दानी गमन करते हैं
अथ चेत्त्वमिमं धर्म्य सङ्ग्रामं न करिष्यसि । ततः स्वधर्म कीर्तिञ्च हित्वा पापमवाप्स्यसि ॥
( अथ ) फिर, ( चेत् ) यदि, ( त्वम् ) तू, ( इमम् ) इस, ( धर्म्यम् ) धर्मसंयुक्त, ( सङ्ग्रामम् ) युद्धको, ( न करिष्यसि ) नहीं करेगा, अर्थात् भीरु हो जायगा, ( ततः ) तो, युद्ध-पराङ्मुख होनेके अनन्तर, ( स्वधर्मम् ) अपने क्षात्रधर्मंको, ( च कीर्तिम् ) और कीर्तिको, ( हित्वा ) छोड़कर, ( पापम् अवाप्स्यसि ) पापको प्राप्त करेगा अर्थात् नरंकको जाएगा ॥ ३३ ॥ वि दुर्गा वि द्विषः पुरो ध्नन्ति राजान एषाम् । नयन्ति दुरिता तिरः ॥
( राजानः ) राजा अर्थात् क्षत्रिय जन, सेनानियोंके, ( पुरः ) सम्मुख, ( दुर्गा = दुर्गाणि )
३. घ्नन्ति - हन्तेरदादित्वाच्छपो लुक् ।
( ऋग्वेदः १ - ४१- ३ ) ( एषाम् ) युद्धस्थलके इन दृढ़ दुर्गस्थलों और कठोर
१. दुर्गा-दुःखेन गच्छन्त्यत्रेति दुर्गाणि । 'सुदुरोरधिकरणे' इति गमेर्डप्रत्ययः । 'शेश्छन्दसि बहुलम्' इति शेर्लोपः ।
२. पुरः - कालवाचिनः पूर्वशव्दात् सप्तम्य पूर्वंशव्दात् सप्तम्यर्थे 'पूर्वाधरावराणामसिपुरधवश्चैषाम्' इत्यसिप्रत्ययः, तत्सन्नियोगेन पूर्वशब्दस्य पुरादेशश्च ।
शस्त्रास्त्रोंको, ( वि घ्नन्ति ) विशेषतासे नष्ट कर देते हैं, ( द्विषः विघ्नन्ति ) शत्रुओंको भी विशेष करके नष्ट कर देते हैं, और, ( दुरिता = दुरितानि) क्षात्रधर्मके त्यागसे उत्पन्न होनेवाले अपकीर्तिमय पापोंको, ( तिरः नयन्ति ) दूर कर देते हैं ।
तुलना-तामें कहा गया है कि जो क्षत्रिय क्षात्रधर्मका परित्याग करता है वह अपकीर्ति और पापको प्राप्त करता है अर्थात् क्षात्रधर्म छोड़ देनेसे नरकगामी होता है । वेदमें भी कहा गया है कि जो क्षत्रिय युद्ध में सम्मुख आए शत्रुओंके साथ युद्ध करके उन्हें परास्त कर देते हैं वे अपनी अपकीर्ति मिटाकर संसारमें यशस्वी हो जाते हैं ।
अकीर्तिव्यापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् । सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते ॥
हे अर्जुन ! ( भूतानि ) सब प्राणी, ( ते ) रणसे भागे तुझ वीर पुरुषकी, ( अव्ययाम् ) सदा रहनेवाली, ( अकीर्तिम् ) अपकीर्तिको, ( कथयिष्यन्ति ) कहेंगे, ( च ) और, ( सम्भावितस्य ) मान्य पुरुषका, (अकीर्तिः ) अपयश, ( मरणात् अतिरिच्यते ) मृत्युसे भी बुरा होता है ॥ ३४ ॥
यदचरस्तन्वा वावृधानो बलानीन्द्र प्रब्रुवाणो जनेषु । मायेत्सा ते यानि युद्धान्याहुर्नाद्य शत्रुं ननु पुरा विवित्से । ( ऋग्वेदः १० -५४- २ )
( इन्द्र ! ) हे क्षत्रियराज ! ( तन्वा ) शूरतासे परिपूर्ण अपने शरीरसे, ( वावृधानः ) युद्धोंमें जय प्राप्त करके अपने नाम और यशको बढ़ाता हुआ, ( जनेषु ) सब प्राणियोंमें, ( बलानि) अपने सब प्रकारके बलोंको, ( प्रब्रुवाणः) प्रकर्षतासे बताता हुआ, ( यत् ) जिस संग्रामको, ( अचरः ) तूने किया, ( ते ) तेरी, ( सा ) वह कीर्ति, ( माया इत् ) व्यर्थ ही है, ( पुरा ) पहले, ( यानि युद्धानि ) शत्रुओंके साथ जो युद्ध किये हैं, [ ( पुराविदः ) तेरे पूर्व युद्धोंके कर्तव्योंको जाननेवाले] ( आहुः) कहते हैं, ( माया इत् ) वे युद्ध भी वृथा हैं, क्योंकि अब तू भीरु होकर धर्मयुद्धसे भागता है, ( अद्य ) आज तू, ( शत्रुम् ) रणमें सम्मुख आए हुए मारने योग्य शत्रुको, ( न विवित्से ) विशेषकर नहीं जानता और न ही जाननेकी इच्छा करता है । ( ननु ) क्या तू पूर्वयुद्धों में भी ऐसा ही भीरु था ? क्योंकि अब तू युद्धभूमिसे भागता है ।
तुलना - गीतामें कहा गया है कि जो क्षत्रिय युद्धभूमिसे भागता है, सब लोगोंमें उसका अपयश होता है और अपयश मृत्युसे भी अधिक बुरा माना
जाता है । मृत्यु अच्छी है, अपयश अच्छा नहीं ! वेदमें भी कहा गया है कि जो क्षत्रिय युद्ध से भागता है उसकी इस अपकीर्तिसे पूर्व कालमें जीते हुए युद्धोंका यश भी नष्ट हो जाता है। पहले जीते हुए युद्ध भी उसके व्यर्थ माने जाते हैं ।
भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः । येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ।।
( महारथाः ) कर्ण - द्रुपद - भगदत्तादि महारथी, ( त्वाम् ) तुझे, ( भयात् ) भयके कारण, ( रणात् ) युद्धभूमिसे, ( उपरतम् ) भागा हुआ, ( मंस्यन्ते ) मानेंगे, ( च ) और, ( येषाम् ) जिन महारथियोंके सामने, ( बहुमतो भूत्वा ) बहुत मानवाला होकर तू, ( लाघवं यास्यसि ) लघुताको प्राप्त हो जायगा । वे कहेंगे - कैसा शूर वीर था, अब तो शृगालसे भी अधिक क्षुद्र अवस्थामें पहुँच गया है ॥ ३५ ॥
दूरे तन्नाम गुह्यं पराचैर्यत्त्वा भोते अह्वयेतां वयोधं । उदस्तभ्नाः पृथिवीं द्यामभीके भ्रातुः पुत्रान्मघवन्तित्विषाणः ॥ ( ऋग्वेदः १०-५५ - १ )
( मघवन् ! ) हे धनके धारण करनेवाले या राजाधिराज ! ( यत् ) जब, ( भीते = भीतानि ) शत्रुसे डरे हुए प्राणी अर्थात् तेरे सैनिकगण, ( वयोर्घं ) अपने आपको बचाने के लिये अर्थात् प्रबल शत्रुओंसे अपनी रक्षाके लिये, ( त्वा ) तुझ शूर वीर क्षत्रियको, ( अह्वयेताम् ) बुलाते थे, तब तू अपने अस्त्र-शस्त्रायुधोंसे सुसज्जित होकर सैनिक वेशसे, ( अभीके - अन्तिकनामैतत् ) शत्रुओंसे डरे हुए उन प्राणियोंके समीप ही, ( पृथिवीं द्याम् ) पृथिवीवासी और अन्तरिक्षस्थ अर्थात् वायुयानपर स्थित प्राणियोंको, तथा, ( भ्रातुः पुत्रान् ) भाईके पुत्रोंको, ( तित्विषाणः ) अपने शूर-वीरताके वचनों से उत्तेजित करता हुआ, ( उत् अस्तस्नाः ) भीरुतासे हटाकर युद्ध करनेके लिये खड़ा कर देता था अर्थात् युद्धस्थलसे भागते हुए सैनिकोंको भी युद्धमें खड़ा कर देता था । ( पराचैः ) अब तू भयभीत होकर युद्धसे परामको प्राप्त हुआ है अतः तुझसे विमुख हुए योद्धागणोंसे ( तत् नाम ) अब वह शूर वीरतावाला तेरा नाम, ( गुह्यम् ) गुप्त है अर्थात् कोई भी मनुष्य तेरे नामको यशके साथ न पुकारेगा । वीरजन तेरी अपकीति फैलायेंगे । ( दूरे ) तेरा नाम जगत्से दूर हो जायगा, नष्ट हो जायगा ।
तुलना - गीता में कहा गया है कि जो वीर भयके कारण युद्ध नहीं करता वह पहले बड़ा भारी शूरवीर होता हुआ भी अपकीर्तिका पात्र बन जाता है । अपकीति मृत्युसे भी अधिक निम्न होती है । वेदमें भी कहा गया है कि आक्रमणकारी प्रबल शत्रुसे डरे हुए जीव अपनी रक्षाके लिये जिस युद्धवीरकी शरणमें जाते हैं वह शरण्य, शरणागतोंकी रक्षा करता हुआ, यशस्वी होता है । यदि वहीं यशस्वी शूर वीर क्षत्रिय स्वयं ही युद्धस्थलसे भागता है तो उसकी पूर्व युद्धविजयवाली कीर्ति भी नष्ट हो जाती है । संसारसे उसका नाम उठ जाता है । अतः उसका अपयश मृत्युसे भी अधिक बुरा माना जाता है ।
अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः । निन्दन्तस्तव सामर्थ्य ततो दुःखतरं नु किम् ।।
हे अर्जुन ! ( अहिताः ) दुर्योधन, कर्ण आदि शत्रु, ( तव सामर्थ्य निन्दन्तः ) 'अर्जुन कैसा युद्धवीर था, उसने कैसे-कैसे कठोर युद्धोंको जीता, किन्तु अब वह भीरु हो गया। इस प्रकार तेरी शक्तिकी निन्दा करते हुए, ( अवाच्यवादान् ) 'ऐसे क्षात्र जन्मको धिक्कार है ! ' ऐसे-ऐसे न कहने योग्य अनेक वचनोंको, ( वदिष्यन्ति ) कहेंगे । ( ततः ) इससे अधिक, ( दुःखतरम् नु किम् ) दुःख और क्या है ! यह महादुःखकी बात है ॥ ३६ ॥
या शशाप 'शपनेन याघं मूरमादधे । या रसस्य हरणाय जातमा रेभे तोकमत्तु सा ॥
( अथर्ववेदः १ - २८- ३ )
( या ) जो क्षत्रिय-वर्ग, ( शपनेन ) भयके कारण युद्धस्थलसे भागे हुए क्षत्रिय वीरकी अकथनीय या निन्दित वचनों द्वारा, ( शशाप ) निन्दा करता है, ( या ) जो क्षत्रिय-वर्ग, ( मूरम् - मूढम् ) सांसारिक मोहसे मूढ होकर युद्धस्थलसे उपराम-रूप, ( अघम् ) पापको, ( आदघे ) प्राप्त करता है, ( या ) जो क्षत्रिय-वर्ग, ( जातम् ) क्षात्र धर्ममें उत्पन्न हुए पुत्रादि सन्तानके, ( रसस्य हरणाय ) देहगत बलके नाशके लिए, ( आरेभे ) आरम्भ हो जाता है, प्रयत्नशील हो जाता है, ( सा ) भयके कारण युद्धसे उपराम हुआ वह क्षत्रिय१. शपनेन - 'शप आक्रोशे', करणे ल्युट् ।
२. मूरम् - 'मुर्च्छा मोहसमुच्छ्राययोः', 'क्विप् च' इति क्विप्, 'रात्लोपः' इति
छकारस्य लोपः । |
3f483ea1fab3f187743b2245f00777caea1bc454 | web | धनिया एक हर्ब है जो हर तरह से बहुत उपयोगी है। वो चाहे हरा धनिया हो या सूखा, धनिया के फायदे बहुत हैं। पूरी दुनिया इस बात से सहमत है कि धनिया की पत्तियां सबसे पुरानी जड़ी-बूटियों में से एक हैं जो आपके पकवान को आकर्षक और खुशबूदार बनाती हैं। धनिया के पौधे के सभी भाग खाने योग्य होते हैं लेकिन हमारे भारतीय व्यंजनों में ताजी, सुगंधित पत्तियों और सूखे बीजों का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
धनिया एक बहुत पुरानी जड़ी बूटी है और धनिया पत्ती के बिना हमारी भारतीय रेसिपी अधूरी है। धनिया के बारे में जानना और भी मजेदार है।
धनिया डाइजेस्टिव पावर बढ़ाता है, कोलेस्ट्रॉल लेवल मेंटेन रखता है, डाइबिटीज और किडनी के इन्फेक्शन के अलावा कई अन्य बीमारियों में भी असरदार साबित हो सकता है। इसमें प्रोटीन, फैट, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और मिनरलस होते हैं जो इसकी पावर को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं।
धनिया सिर्फ खुशबूदार नहीं होता बल्कि ये एक औषधीय पौधा है जिसमें कई तरह के औषधीय गुण पाए जाते हैं। हरी धनिया में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, पोटोशियम और विटामिन सी पाया जाता है। अब धनिया के कुछ ऐसे फायदों के बारे में आपको बता रहे हैं जिन्हें जानकर आप हैरत में पड़ जायेंगे।
धनिया बहुत उपयोगी हर्ब है। धनिया के बीज, अर्क और तेल सभी ब्लड शुगर को कम करने में सहायक हो सकते हैं। वास्तव में जिन लोगों का ब्लड शुगर कम है या मधुमेह की दवा लेते हैं, उन्हें धनिया का इस्तेमाल करने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यह ब्लड शुगर को कम करने में बहुत प्रभावशाली है। हरा धनिया, ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए रामबाण का काम करता है।
अगर आप इसका नियमित सेवन करते हैं तो ब्लड में शुगर को प्रोसेस करने वाले एन्ज़ाइम को ऐक्टवैट करके शुगर की मात्रा को कंट्रोल किया जा सकता है। हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित व्यक्ति के लिए हर भोजन में धनिया को शामिल करना या रोजाना धनिया का पानी पीना फायदेमंद हो सकता है।
धनिया कई प्रकार से एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करता है, जो फ्री रेडिकल्स से होने वाले सेल्युलर डैमेज को रोकता है। इसके एंटीऑक्सिडेंट शरीर में सूजन बढ़ने से रोकते हैं। धनिया के पत्ते विटामिन सी और विटामिन ई से भरपूर होते हैं और विटामिन ए के साथ ये दोनों पोषक तत्व आपकी इम्युनिटी को धीरे-धीरे बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। विटामिन सी के कारण वाइट ब्लड सेल्स प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं और आयरन को अब्ज़ॉर्ब करने में भी मदद करते हैं।
स्वस्थ आंखों के लिए हम सभी ने अपनी दादी-नानी से अपनी डाइट में धनिया को शामिल करने के बारे में सुना होगा। धनिया की पत्तियों में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई और कैरोटीनॉयड की भरपूर मात्रा होती है जो आँखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। रिसर्च से यह भी पता चला है कि धनिया के दैनिक सेवन से उम्र से संबंधित मैकुलर डिजनरेशन रुक सकता है और कंजंक्टिवाइटिस भी ठीक हो सकता है।
आज की लाइफस्टाइल में हर तीसरा व्यक्ति हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहा है। हरा धनिया न सिर्फ खाने को खुशबूदार बनाता है बल्कि यह आपके कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में बहुत सहायक हो सकता है। हरे धनिये में ऐसे सब्स्टेंस पाए जाते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकते हैं। जिसका भी कोलेस्ट्रॉल बढ़ गया हो उस व्यक्ति को धनिया के बीजों को उबालकर उसका पानी पीना चाहिए। ऐसा करना फायदेमंद हो सकता है। धनिया के पत्तों का नियमित सेवन भी (एलडीएल) खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने और (एचडीएल) अच्छे कोलेस्ट्रॉल में सुधार करने में मदद कर सकता है।
धनिया सर्व गुण संपन्न है। धनिया के पत्ते कैल्शियम, मैंगनीज, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे हड्डी को मज़बूत बनाने वाले मिनरल्स से भरे हुए हैं। धनिया का एंटी-इंफ्लेमेटरी फंक्शन गठिया से होने वाले दर्द से भी हड्डी की सुरक्षा करता है।
धनिया के पत्तों में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है जो पाचन संबंधी समस्याओं से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं। पेट का खराब होना, डायरिया होना, बोवेल स्पाज्म होना और गैसेज या मतली जैसी विभिन्न पाचन समस्याओं में फायदे के लिए भी धनिया पर शोध किया जा रहा है।हालाँकि हरा धनिया पेट की समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद होता है।
साथ ही ये डाइजेशन पावर को बढ़ाने में भी लाभकारी हो सकता है। पेट की तकलीफ में जैसे पेट में दर्द होने पर आधा गिलास पानी में दो चम्मच धनिया डालकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।
धनिया में आयरन, विटामिन ई और विटामिन ए की प्रचुर मात्रा होने के कारण यह त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले फ्री रेडिकल्स को रोकता है। धनिया में अतिरिक्त तेल को सोखने की क्षमता होती है जिसके कारण ये ऑयली स्किन के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। धनिया में एंटीमाइक्रोबिअल, एंटीसेप्टिक और एंटिफंगल गुण भी होते हैं जिससे वो त्वचा को शांत और ठंडा रखने में मदद करता है।
धनिया के फायदे इतने हैं कि बताना मुश्किल है। धनिया आपके शरीर में खून को बढ़ाने में सहायक होता है। साथ ही धनिया में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है इसलिए यह एनीमिया को दूर करने में बहुत लाभदायक होता है। धनिया में एक खास गुण और है, इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, मिनरल, विटामिन ए और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जिसके कारण धनिया कैंसर के लिए भी प्रिवेंटिव होता है।
धनिया हार्ट की बीमारियों के लिए उपयोगी पाया गया है। वजह ये है कि धनिया के अर्क का परीक्षण किया गया है और ये पाया गया कि यह एक ड्यूरेटिक के रूप में व्यवहार कर सकता है, जो आपके सिस्टम से अतिरिक्त पानी और सोडियम को निकालने में मदद करता है। यह ब्लड प्रेशर को कम करने में भी सहायक है। आपको पहले बता चुके हैं कि धनिया कोलेस्ट्रॉल के लेवल को मैनेज करने में भी सहायक होता है। यही कारण है कि धनिया आपके हृदय सम्बन्धी रोग के जोखिम को कम कर सकता है।
धनिया में हर मर्ज़ का इलाज मौजूद है। इसमें एंटीमाइक्रोबिअल प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं जो इसके पौधों के कंपाउंड्स के कारण फ़ूडबोर्न मुद्दों जैसे इन्फेक्शन्स में फायदेमंद हो सकते हैं। इन कंपाउंड्स में से एक को डोडेसेनल कहा जाता है, जो साल्मोनेला इन्फेक्शन के खिलाफ विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है। धनिया के बीज भी यूरिनरी ट्रैक्ट के इन्फेक्शन से निपटने में कुछ सुरक्षा प्रदान करते हैं।
भोजन से संबंधित बीमारियों से निपटने में मदद करने के लिए धनिया से प्राप्त तेल को एंटीमाइक्रोबिअल प्रोडक्ट्स में भी मिलाया जाता है। संक्रमण के खिलाफ धनिया के लाभ या तो जड़ी-बूटियों का सेवन करके या विभिन्न प्रकार के डिराइवड प्रोडक्ट्स का उपयोग करके लिया जा सकता है जिनमें धनिया के पौधे का अर्क शामिल होता है।
धनिया का उपयोग बहुत आसान है। आप इसे आसानी से अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं और धनिया से कई तरह के लाभ उठा सकते हैं। बाजारों में ताजा धनिया आसानी से उपलब्ध है। हालाँकि आप दुकानों से धनिया के बीज, सूखे धनिया के पत्ते और धनिया पाउडर जैसे कई प्रोडक्ट्स भी खरीद सकते हैं। धनिया को सलाद में भी खाया जा सकता है।
इसके अलावा कई व्यंजनों में गार्निश के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बीज का उपयोग आप रोस्ट, बेक्ड आइटम, अचार, वेजी की तैयारी और अन्य पके हुए व्यंजनों में कर सकते हैं। आप अगर चाहें तो धनिया को लहसुन, नींबू का रस, नारियल का दूध और मूंगफली के साथ मिलाकर एक स्वादिष्ट अचार भी बना सकते हैं।
अब तो आपको धनिया के फायदे समझ में आ गए होंगे। अब आप अपने आहार में नियमित रूप से हरा धनिया या सूखा धनिया शामिल कर सकते हैं। इन्हें अपनी दाल, सब्जी, सलाद या रायते में भी मिलाकर इसका लाभ उठा सकते हैं। ताजा धनिया का रस विटामिन और मिनरल्स से भरपूर होता है। ये आपके लिए बहुत फायदेमंद है। एक दिन में एक गिलास जूस पीने की कोशिश करें या अपने छाछ में एक या दो चम्मच धनिया का रस मिलाकर पियें। आप अपने नाश्ते के लिए धनिया की पत्ती से धनिया पराठा या धनिया टमाटर सालसा आदि भी बना सकते हैं और अपने नाश्ते का भरपूर आनंद उठा सकते हैं। धनिया आपको हेल्दी रखेगा।
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4f81f1458ed404d369c4d63e70c9c0b4ecaab617a8f7e8a541d9fc0faa5c1364 | pdf | 103. अन्ततः उस ने निश्चय किया कि उन[I] को धरती से[2] उखाड़ फेंके, तो हम ने उसे और उस के सब साथियों को डुबो दिया। 104. और हम ने उस के पश्चात् बनी इस्राईल से कहाः तुम इस धरती में बस जाओ। और जब आख़िरत के वचन का समय आयेगा, तो हम तुम्हें एकत्र कर लायेंगे।
105. और हम ने सत्य के साथ ही इस (कुआन) को उतारा है, तथा वह सत्य के साथ ही उतरा है। और हम ने आप को बस शुभ सूचना देने तथा सावधान करने वाला बना कर भेजा है।
106. और इस कुआन को हम ने थोड़ा थोड़ा कर के उतारा है, ताकि आप लोगों को इसे रुक रुक कर सुनायें, और हम ने इसे क्रमशः 3] उतारा है।
107. आप कह दें कि तुम इस पर ईमान लाओ अथवा ईमान न लाओ, वास्तव में जिन को इस से पहले ज्ञान दिया [4] गया है, जब उन्हें यह सुनाया जाता है, तो वह मुँह के बल सज्दे में गिर जाते हैं। 108. और कहते हैंः पवित्र है हमारा
فاراد ان يستفهم من الأرض فأغرقنه ومن معه
وقلنا من بعد والبنى الترايل اشكو الأرض واذاجاء وعد الاخرة جئناك لفيفات
وبالحق انزلته وبالحق نزل وما أرسلناك الامبيرا وينيران
وقرانافرقته لتقراة على الناس على نكت وتولنه
قل مثواية اولاثويوان الذين أوتوا العلم من قبله إذا يتلى عليهم يخرون للاذقان
ن سبحن رياان كان وعد ربنا
1 अर्थात् बनी इस्राईल को 2 अर्थात् मिस्र से ।
3 अर्थात् तेईस वर्ष की अवधि में ।
4 अर्थात् वह विद्वान जिन को कुआन से पहले की पुस्तकों का ज्ञान है।
पालनहार ! निश्चय हमारे पालनहार का वचन पूरा हो के रहा। 109. और वह मुँह के बल रोते हुये गिर जाते हैं। और वह उन की विनय को अधिक कर देता है।
110. हे नबी ! आप कह दें कि (अल्लाह) कह कर पुकारो, अथवा ( रहमान) कह कर पुकारो, जिस नाम से भी पुकारो, उस के सभी नाम शुभ 1] हैं। और (हे नबी!) नमाज़ में स्वर न तो ऊँचा करो, और न उसे नीचा करो, और इन दोनों के बीच की राह [2] अपनाओ
111. तथा कहो कि सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिये है जिस के कोई संतान नहीं, और न राज्य में उस का कोई साझी है। और न अपमान से बचाने के लिये उस का कोई समर्थक है। और आप उस की महिमा का वर्णन करें।
ويخرون للاذقان يبكون ويزيدهم خشوعان
قل ادعوا الله وادعوا الرحمن ياتاتعواقله الا الحسنى ولا تجهر بصلاتك ولاتخافت بها وابتغ بين ذلك سبيلان
وقل الحمد لله الذي لم يتخذ ولدا ولم يكن له شريك في الملك ولم يكن له ولين الذين وكيره تكبيرات
1 अरब में "अल्लाह" शब्द प्रचलित था, मगर "रहमान" प्रचलित न था । इस लिये, वह इस नाम पर आपत्ति करते थे । यह आयत इसी का उत्तर है।
2 हदीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (आरंभिक युग में) मक्का में छुप कर रहते थे। और जब अपने साथियों को ऊँचे स्वर में नमाज़ पढ़ाते थे तो मुद्रिक उसे सुन कर कुआन को तथा जिस ने कुआन उतारा है, और जो उसे लाया है, सब को गालियाँ देते थे। अतः अल्लाह ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह आदेश दिया । ( सहीह बुख़ारी, हदीस नं० : 4722 )
18 - सूरह कहफ
सूरह कहफ
सूरह कफ के संक्षिप्त विषय यह सूरह मक्की है, इस में 110 आयतें हैं ।
• इस में कफ ( गुफा) वालों की कथा का वर्णन है, जिस से दूसरे जीवन का विश्वास दिलाया गया है।
• इस में नसारा (ईसाईयों) को चेतावनी दी गयी है जिन्हों ने अल्लाह का पुत्र होने की बात घड़ ली। और शिर्क में उलझ गये, जिस से तौहीद पर आस्था का कोई अर्थ नहीं रह गया।
इस में दो व्यक्तियों की दशा का वर्णन किया गया है जिन में एक संसारिक सुख में मग्न था और दूसरा परलोक पर विश्वास रखता था। फिर जो संसारिक सुख में मग्न था, उस का दुष्परिणाम दिखाया गया है और संसारिक जीवन का एक उदाहरण दे कर बताया गया है कि परलोक में सदाचार ही काम आयेगा ।
• इस में मूसा (अलैहिस्सलाम) की यात्रा का वर्णन करते हुये अल्लाह के ज्ञान के कुछ भेद उजागर किये गये हैं, ताकि मनुष्य यह समझे की संसार में जो कुछ होता है उस में कुछ भेद अवश्य होता है जिसे वह नहीं जान सकता। • इस में (जुल क़रनैन) की कथा का वर्णन कर के यह दिखाया गया है उस ने कैसे अल्लाह से डरते हुये और परलोक की जवाब देही (उत्तर दायित्व) का ध्यान रखते हुये अपने अधिकार का प्रयोग किया
• अन्त में शिर्क और परलोक के इन्कार पर चेतावनी है।
हदीस में है कि जो सूरह कफ के आरंभ की दस आयतें याद कर ले तो वह दज्जाल के उपद्रव से बचा लिया जायेगा । ( सहीह मुस्लिम, 809) दूसरी हदीस में है कि एक व्यक्ति रात में सूरह कफ पढ़ रहा था और उस का घोड़ा उस के पास ही बंधा हुआ था कि एक बादल छा गया और समीप आता गया और घोड़ा बिदकने लगा। जब सवेरा हुआ तो उस ने यह बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म को बतायी । आप ने कहाः यह शान्ति थी जो कुआन के कारण उतरी थी। (बुख़ारीः 5011, मुस्लिमः 795)
1. सब प्रशंसा अल्लाह के लिये है जिस ने अपने भक्त पर यह पुस्तक उतारी। और उस में कोई टेढ़ी बात नहीं रखी ।
2. अति सीधी (पुस्तक), ताकि वह अपने पास की कड़ी यातना से सावधान कर दे. और ईमान वालों को जो सदाचार करते हों, शुभ सूचना सुना दे कि उन्हीं के लिये अच्छा बदला है । जिस में वे नित्य सदावासी होंगे। और उन को सावधान करे जिन्हों ने कहा कि अल्लाह ने अपने लिये कोई संतान बना ली है।
5. उन्हें इस का कुछ ज्ञान है, और न उन के पूर्वजों को बहुत बड़ी बात है जो उन के मुखों से निकल रही है, वह सरासर झूठ ही बोल रहे हैं। 6. तो संभवतः आप इन के पीछे अपना प्राण खो देंगे संताप के कारण, यदि वह इस हदीस (कुआन) पर ईमान न लायें। 7. वास्तव में जो कुछ धरती के ऊपर है, उसे हम ने उस के लिये शोभा बनाया है, ताकि उन की परीक्षा लें कि उन में कौन कर्म में सब से अच्छा है?
الحمد له الذي أنزل على عبده الكتب ولم يجعل له عوجاة
تيماليندرياساشدید امن لدنه ولير المؤمنين الذين يعملون الصلحت ان لم اجراجستان
ماكثين فيه ابدا
وينذرالذين قالوا اتخذ الله ولداق
مالهم به من علو ولالابابهم كبرت كلمة تخرج من أفواههم ان يقولون الاكذبان
فلعلك باخة نفسك على اثارهم إن لم يؤمنوا بهذا الحديث اسقان
اتاجعلنا ماعلى الأرض زينة تهالنبلوهم يم أحسن عملان
8. और निश्चय हम कर देने [1] वाले हैं, जो उस (धरती) के ऊपर है उसे (बंजर) धूल
9. (हे नबी!) क्या आप ने समझा है कि गुफा तथा शिला लेख वाले हमारे अद्भुत लक्षणों (निशानियों) में से थे? [3]
10. जब नवयुवकों ने गुफा की ओर शरण ली[4], और प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार ! हमें अपनी विशेष दया प्रदान कर, और हमारे
लिये प्रबंध कर दे हमारे विषय के सुधार का।
واتالجعلون ماعليها صعيد اجرزان
امصيبت آن اصحب الكهف والرقيم كانوا من التناعجبان
إذاوى الفتية إلى الكهف فقالوارتنا اتنا من لدنك رحمة وهيئ لنا من أمرنا رشدان
1 अर्थात् प्रलय के दिन।
2 कुछ भाष्यकारों ने लिखा है कि (रक़ीम) शब्द जिस का अर्थः शिला लेख किया गया है, एक बस्ती का नाम है।
3 अर्थात् आकाश तथा धरती की उत्पत्ति हमारी शक्ति का इस से भी बड़ा लक्षण है।
4 अर्थात् नवयुवकों ने अपने ईमान की रक्षा के लिये गुफा में शरण ली। जिस गुफा के ऊपर आगे चलकर उन के नामों का स्मारक शिला लेख लगा दिया गया था।
उल्लेखों से यह विद्वित होता है कि नवयुवक ईसा अलैहिस्सलाम के अनुयायियों में से थे। और रोम के मुश्रिक राजा की प्रजा थे। जो एकेश्वर वादियों का शत्रु था । और उन्हें मुर्ति पूजा के लिये बाध्य करता था। इस लिये वे अपने ईमान की रक्षा के लिये जार्डन की गुफा में चले गये जो नये शोध के अनुसार जार्डन की राजधानी से 8 की० मी० दूर (रजीब) में अवशेषज्ञों को मिली है। जिस गुफा के ऊपर सात स्तंभों की मस्जिद के खंडर, और गुफा के भीतर आठ समाधियाँ तथा उत्तरी दीवार पर पुरानी युनानी लिपी में एक शिला लेख मिला है और उस पर किसी जीव का चित्र भी है। जो कुत्ते का चित्र बताया जाता और यह (रजीब) ही ( रक़ीम) का बदला हुआ रूप है। (देखियेः भाष्य दावतुल कुआन-2।983)
11. तो हमने उन्हें गुफा में सुला दिया कई वर्षों तक
12. फिर हम ने उन्हें जगा दिया ताकि हम यह जान लें कि दो समुदायों में से किस ने उन के ठहरे रहने की अवधि को अधिक याद रखा है?
13. हम आप को उन की सत्य कथा सुना रहे हैं। वास्तव में वे कुछ नवयुवक थे, जो अपने पालनहार पर ईमान लाये, और हम ने उन्हें मार्गदर्शन में अधिक कर दिया।
14. और हम ने उन के दिलों को सुदृढ़ कर दिया जब वे खड़े हुये, फिर कहाः हमारा पालनहार वही है जो आकाशों तथा धरती का पालनहार है। हम उस के सिवा कदापि किसी पूज्य को नहीं पुकारेंगे। (यदि हम ने ऐसा किया) तो ( सत्य से) दूर की बात होगी।
15. यह हमारी जाति है, जिस ने अल्लाह के सिवा बहुत से पूज्य बना लिये । क्यों वे उन पर कोई खुला प्रमाण प्रस्तुत नहीं करते? उस से बड़ा अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर मिथ्या बात बनाये?
16. और जब तुम उन से विलग हो गये तथा अल्लाह के अतिरिक्त उन के पूज्यों से, तो अब अमुक गुफा की ओर शरण लो, अल्लाह तुम्हारे लिये अपनी दया फैला देगा, तथा तुम्हारे लिये तुम्हारे विषय में जीवन के
فضربنا على اذانهم في الكهف سنين عددان
تبعثهم لتعلم ان الحزبين أخطى لمالبثوا
نحن نقض عليك تباهم بالحق إنهم فتية امنوا بربهم وزد نهم هدی*
وربطناعلى قلوبهم اذقاموا فقالواربارب السموت والأرض لن تدعوا من دون الهالقد
مولا قومنا اتخذوا من دون الهة لولايائون عليهم بسلطنا بين فمن اظلم ممن افتری على الله كذبان
وإذاعتزلتموهم ومايعبدون الا الله قاقالى الكهف ينشر لكوريين تحميه ويهين لكم من أمركم مرفقات
साधनों का प्रबंध करेगा।
17. और तुम सूर्य को देखोगे, कि जब निकलता है, तो उन की गुफा से दायें झुक जाता है, और जब डूबता है, तो उन से बायें कतरा जाता है। और वह उस ( गुफा) के एक विस्तृत स्थान में है। यह अल्लाह की निशानियों में से है, और जिसे अल्लाह मार्ग दिखा दे वही सुपथ पाने वाला है। और जिसे कुपथ कर दे तो तुम कदापि उस के लिये कोई सहायक मार्ग दर्शक नहीं पाओगे।
18. और तुम [1] उन्हें समझोगे कि जाग रहे हैं जब कि वह सोये हुये हैं और हम उन्हें दायें तथा बायें पार्शव पर फिराते रहते हैं, और उन का कुत्ता गुफा के द्वार पर अपनी दोनों बाँहें फैलाये पड़ा है । यदि तुम झाँक कर देख लेते तो पीठ फेर कर भाग जाते, और उन से भय पूर्ण हो जाते
وترى الشمس إذا طلعت تزورعن كهنهم
وهم في فجوة منه ذلك من ايت الله من يهد الله فهو المهني ومن يضلل فلن تجد له
وليا مرشدان
وتحسبهم أيقاظا وهم قوة ونقلبهم ذات اليمين وذات الشمال وكلبهم باسط ذراعيه بالوصیڈ کواطلعت عليهم لوليت منهم فرارا وكملت منهم رغباه
وكذلك بعتهم ليتساءلوابينهم قال قابل منهم كم لي قالواليتنا يوما أو بعض يوم قالوارتو اعلم بمالي فابعثوا أحدكم بورقك هذة إلى المدينة فلينظر ایها ازلی طعامافلياتكم برزق منه وليتلقف ولايشعرت بكم احداه
19. और इसी प्रकार हम ने उन्हें जगा दिया ताकि वे आपस में प्रश्न करें। तो एक ने उन में से कहाः तुम कितने (समय) रहे हो? सब ने कहाः हम एक दिन रहे हैं अथवा एक दिन के कुछ (समय)। (फिर) सब ने कहाः अल्लाह अधिक जानता है कि तुम कितने (समय) रहे हो, तुम अपने में से किसी को अपना यह सिक्का दे कर नगर में भेजो, फिर देखे कि किस के पास अधिक स्वच्छ (पवित्र)
1 इस में किसी को भी संबोधित माना जा सकता है, जो उन्हें उस दशा में देख सके। |
3eba0dba3d0cd9301010f4e3c07fbf5d7b23ced24829c3c083e6d6ee27a89e40 | pdf | रूप से व्यक्त किया था और विभेदक कारणों को दूर करने के लिये प्रत्येक पूर्व-सम्प्रदाय में एक-दूसरे सम्प्रदाय के मुनिराजों का संयुक्त रूप में चातुर्मास कराना आवश्यक समझते थे और इस प्रवृत्ति को आपने अपने से ही प्रारम्भ किया।
पूज्य उपाचार्यश्रीजी का सं. 2009 का चातुर्मास उदयपुर था और आपके साथ ही सहमन्त्री श्री प्यारचन्दजी म.सा., जो जैन- दिवाकर श्री चौथमलजी म. के शिष्य थे, का भी चातुर्मास हुआ। इस चातुर्मास की ऐतिहासिक महत्ता थी। वैसे तो पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी म.सा. की संप्रदाय के आचार्य के रूप में पहले भी आपश्री के अनेक चातुर्मास उदयपुर में हो चुके थे, लेकिन समस्त स्थानकवासी जैन साधु-साध्वियों के सर्वसत्ता सम्पन्न उपाचार्य के रूप में यह प्रथम चातुर्मास था । उदयपुर श्रीसंघ में अभूतपूर्व उत्साह व्याप्त था । उपाचार्यश्रीजी के दर्शनार्थ एवं प्रवचन- प्रसाद की प्राप्ति के लिये प्रतिदिन बाहर के सैकड़ों भाई बहिन आते रहते थे और कितने तो समस्त चातुर्मास काल को यहां ही व्यतीत करने के लिये बस गये थे।
श्रावण कृष्णा तृतीया को पूज्य उपाचार्यश्री का जन्मोत्सव बड़े उत्साह से मनाया गया। सन्त- सतियों एवं श्रावक-श्राविकाओं के अलावा स्वयं उपाचार्यश्रीजी ने जन्मदिन पर क्या करना चाहिए- इस विषय पर मार्मिक प्रवचन फरमाया । पूज्यश्री ने कहा- गत वर्ष के जीवन पर दृष्टिपात कर अपनी भूलों के लिये पश्चात्ताप करना चाहिए और आगे के लिए सत्कार्य करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। उपाचार्यश्री के 63वें वर्षप्रवेश पर धर्म, ध्यान, त्याग, तप के अलावा श्रीसंघ ने हर्षोत्साह के साथ दीन, अनाथजनों को भोजन दिया तथा पशुओं को भी तृप्त किया।
चातुर्मास काल में सहमन्त्री श्री प्यारचन्दजी म. ने अपने भाव व्यक्त किये थे कि हमारे इतने वर्ष दूर रहने से मनों में कई तरह की भ्रान्तियां थीं। लेकिन निकट में रहने से वे सब भ्रांतियां दूर हुईं और उपाचार्यश्रीजी के हृदय को नजदीक से समझ पाया हूँ। आपश्री बर्ताव ने मुझे श्री जैनदिवाकरजी म. को भुला दिया है। अब चाहे कुछ भी हो, हम कभी अलग नहीं होंगे। कदाचित् श्रमण संघ बिखर सकता है, किन्तु पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी म. की सम्प्रदाय नहीं विखर सकती। आपश्री जो भी हुक्म देंगे, हम उसको शिरोधार्य करेंगे। यदि गुझे धूप में खड़ा कर देंगे तो भी मैं कोई तर्क नहीं करूंगा। हमारी आप पर पूर्ण श्रद्धा हो गई है।
उपाचार्य श्री और उपाध्यायश्री का परस्पर व्यवहार देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि पूज्य हुक्मीचंदजी म.सा. के सम्प्रदाय की दो धाराओं के सन्तों का यहां विराजना हो रहा है। उपाध्यायश्री विनयावनत थे तो उपाचार्यश्री प्रेमपयोधि थे। पूज्यश्री के अथाह प्रेममय व्यवहार से सभी अभिभूत हो जाते थे।
श्रावक संघ भी एक हुआ
उदयपुर में स्थानकवासी समाज बहुत बड़ा है। यहां श्री जवाहर मित्र मण्डल एवं श्री महावीर मित्र मण्डल के नाम से दो सांप्रदायिक संस्थाएं चल रही थीं। घाणेराव सादडी सम्मेलन के पश्चात् दोनों संस्थाओं के विलीनीकरण के अनेक प्रयत्न हुए, परन्तु सफलता नहीं मिली।
उपाचार्यश्री गणेशलालजी म.सा. एवं उपाध्यायश्री प्यारचंदजी म.सा. के इस चातुर्मास में एकता का वातावरण बना। श्री जवाहर मित्र मण्डल के कार्यकर्ता प्रजातन्त्र सिद्धान्तानुसार निर्वाचन चाहते थे जबकि श्री महावीर मित्र मण्डल के कार्यकर्ता अपना समान प्रतिनिधित्व चाहते थे।
कॉन्फरेंस के मंत्री श्री जवाहरलालजी मुणोत, संघ-ऐक्य समिति के मंत्री श्री धीरजभाई तुरखिया, कॉन्फरेंस प्रमुख श्री चम्पालालजी बांठिया के प्रभावी भाषणों से समस्याएं सुलझने लगीं। श्री जवाहर मित्र मण्डल की ओर से श्री हिम्मतसिंहजी बाबेल ने यह घोषणा करके एकता का मार्ग प्रशस्त कर दिया कि श्री जवाहर मित्र मण्डल अपना पृथक् अस्तित्व समाप्त करता है और श्री महावीर मित्र मण्डल के कार्यकर्ताओं को कार्यकारिणी बनाने का पूरा अधिकार देता है।
इस समाचार का उदयपुर की समस्त जनता ने हर्ष के साथ अभिनन्दन किया। प्रवचन सभा में स्वयं पूज्यश्री एवं अन्य मुनिवरों ने इन हर्षद समाचारों पर सन्तोष प्रगट कर एकता के महत्त्व को रेखांकित किया।
पूज्यप्रवर के आभामण्डल का प्रभाव ही कुछ ऐसा था कि उनकी उपस्थिति मात्र समस्याओं को सुलझाने में कारगर सिद्ध होती थी। उदयपुर का श्रावक संघ एक हो गया। पूरे देश में इसका प्रभावक सन्देश गया।
सोजत में मन्त्रिमण्डल के सम्मेलन का निश्चय
नवनिर्मित श्रमण संघ की व्यवस्था में दृढ़ता लाने के लिये विचार-विमर्श की आवश्यकता थी। अतः वर्षावास काल में भी सहमंत्री मुनिश्री प्यारचन्दजी म. से व्यवस्थाक-विषयक अनेक बातों पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ था। इसी प्रसंग में यह भी विचार किया गया कि मन्त्रिमण्डल की एक बैठक होनी चाहिये, जिससे संघ व्यवस्था में रही हुई कमियों का परिमार्जन किया जा सके और संगठन के आदर्श की पूर्ति हो सके।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये प्रयत्न प्रारम्भ हुए और निर्णय किया गया कि चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् मन्त्रिमण्डल का सम्मेलन आयोजित किया जाये। अतः अधिकारी मुनिवरों के
रूप से व्यक्त किया था और विभेदक कारणों को दूर करने के लिये प्रत्येक पूर्व-सम्प्र एक-दूसरे सम्प्रदाय के मुनिराजों का संयुक्त रूप में चातुर्मास कराना आवश्यक समझ और इस प्रवृत्ति को आपने अपने से ही प्रारम्भ किया।
पूज्य उपाचार्यश्रीजी का सं. 2009 का चातुर्मास उदयपुर था और आपके सा सहमन्त्री श्री प्यारचन्दजी म.सा., जो जैन - दिवाकर श्री चौथमलजी म. के शिष्य थे, चातुर्मास हुआ। इस चातुर्मास की ऐतिहासिक महत्ता थी। वैसे तो पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी की संप्रदाय के आचार्य के रूप में पहले भी आपश्री के अनेक चातुर्मास उदयपुर में ह थे, लेकिन समस्त स्थानकवासी जैन साधु-साध्वियों के सर्वसत्ता सम्पन्न उपाचार्य के यह प्रथम चातुर्मास था । उदयपुर श्रीसंघ में अभूतपूर्व उत्साह व्याप्त था । उपाचार्यश्री दर्शनार्थ एवं प्रवचन - प्रसाद की प्राप्ति के लिये प्रतिदिन बाहर के सैकड़ों भाई-बहिन रहते थे और कितने तो समस्त चातुर्मास काल को यहां ही व्यतीत करने के लिये बस ग श्रावण कृष्णा तृतीया को पूज्य उपाचार्यश्री का जन्मोत्सव बड़े उत्साह से मनाया सन्त- सतियों एवं श्रावक-श्राविकाओं के अलावा स्वयं उपाचार्यश्रीजी ने जन्मदिन पर करना चाहिए- इस विषय पर मार्मिक प्रवचन फरमाया । पूज्यश्री ने कहा- गत वर्ष के पर दृष्टिपात कर अपनी भूलो के लिये पश्चात्ताप करना चाहिए और आगे के लिए स करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। उपाचार्यश्री के 63वें वर्षप्रवेश पर धर्म, ध्यान, त्याग, अलावा श्रीसंघ ने हर्षोत्साह के साथ दीन, अनाथजनों को भोजन दिया तथा पशुओं व तृप्त किया।
चातुर्मास काल में सहमन्त्री श्री प्यारचन्दजी म. ने अपने भाव व्यक्त किये थे कि । इतने वर्ष दूर रहने से मनों में कई तरह की भ्रान्तियां थीं। लेकिन निकट में रहने से भ्रांतियां दूर हुईं और उपाचार्यश्रीजी के हृदय को नजदीक से समझ पाया हूँ। आप बर्ताव ने मुझे श्री जैनदिवाकरजी म. को भुला दिया है। अब चाहे कुछ भी हो, हम कभी नहीं होंगे। कदाचित् श्रमण संघ विखर सकता है, किन्तु पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी म. की सम नहीं विखर सकती। आपश्री जो भी हुक्म देंगे, हम उसको शिरोधार्य करेंगे। यदि मुझे खड़ा कर देंगे तो भी मैं कोई तर्क नहीं करूंगा। हमारी आप पर पूर्ण श्रद्धा हो गई है
उपाचार्यश्री और उपाध्यायश्री का परस्पर व्यवहार देखकर कोई यह नहीं कह र था कि पूज्य हुक्मीचंदजी म.सा. के सम्प्रदाय की दो धाराओं के सन्तों का यहां विराज रहा है। उपाध्यायश्री विनयावनत थे तो उपाचार्यश्री प्रेमपयोधि थे। पूज्यश्री के अथाह प्रे व्यवहार से सभी अभिभूत हो जाते थे। |