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काकोरी काण्ड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की खतरनाक मंशा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी जो 9 अगस्त 1925 को घटी। इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे। इन पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल की तरह उपयोग किया जा सकता था। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था।
क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आजादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी थी। इस योजनानुसार दल के ही एक प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी "आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन" को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खाँ, पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद व 6 अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु-दण्ड सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम 4 वर्ष की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी तक का दण्ड दिया गया था।
हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ की ओर से प्रकाशित इश्तहार और उसके संविधान को लेकर बंगाल पहुँचे दल के दोनों नेता- शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में उस समय गिरफ्तार कर लिये गये जब वे यह इश्तहार अपने किसी साथी को पोस्ट करने जा रहे थे। इसी प्रकार योगेशचन्द्र चटर्जी कानपुर से पार्टी की मीटिंग करके जैसे ही हावड़ा स्टेशन पर ट्रेन से उतरे कि एच0आर0ए0 के संविधान की ढेर सारी प्रतियों के साथ पकड़ लिये गये और उन्हें हजारीबाग जेल में बन्द कर दिया गया।
दोनों प्रमुख नेताओं के गिरफ्तार हो जाने से राम प्रसाद 'बिस्मिल' के कन्धों पर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल के क्रान्तिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया। बिस्मिल का स्वभाव था कि वे या तो किसी काम को हाथ में लेते न थे और यदि एक बार काम हाथ में ले लिया तो उसे पूरा किये बगैर छोड़ते न थे। पार्टी के कार्य हेतु धन की आवश्यकता पहले भी थी किन्तु अब तो वह आवश्यकता और भी अधिक बढ गयी थी। कहीं से भी धन प्राप्त होता न देख उन्होंने 7 मार्च 1925 को बिचपुरी तथा 24 मई 1925 को द्वारकापुर में दो राजनीतिक डकैतियाँ डालीं तो परन्तु उनमें कुछ विशेष धन उन्हें प्राप्त न हो सका।
इन दोनों डकैतियों में एक-एक व्यक्ति मौके पर ही मारा गया। इससे बिस्मिल की आत्मा को अत्यधिक कष्ट हुआ। आखिरकार उन्होंने यह पक्का निश्चय कर लिया कि वे अब केवल सरकारी खजाना ही लूटेंगे, हिन्दुस्तान के किसी भी रईस के घर डकैती बिल्कुल न डालेंगे।
8 अगस्त को राम प्रसाद 'बिस्मिल' के घर पर हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय लेकर योजना बनी और अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें शाहजहाँपुर से बिस्मिल के अतिरिक्त अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल, बंगाल से राजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी तथा केशव चक्रवर्ती, बनारस से चन्द्रशेखर आजाद तथा मन्मथनाथ गुप्त एवं औरैया से अकेले मुकुन्दी लाल शामिल थे; 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए।
इन क्रान्तिकारियों के पास पिस्तौलों के अतिरिक्त जर्मनी के बने चार माउजर भी थे जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी आटोमेटिक रायफल की तरह लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था। इन माउजरों की मारक क्षमता भी अधिक होती थी उन दिनों ये माउजर आज की ए0के0-47 रायफल की तरह चर्चित हुआ करते थे। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की कोशिश की गयी किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।
मन्मथनाथ गुप्त ने उत्सुकतावश माउजर का ट्रैगर दबा दिया जिससे छूटी गोली अहमद अली नाम के मुसाफिर को लग गयी। वह मौके पर ही ढेर हो गया। शीघ्रतावश चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गई। अगले दिन अखबारों के माध्यम से यह खबर पूरे संसार में फैल गयी। ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया और सी0आई0डी0 इंस्पेक्टर तसद्दुक हुसैन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंप दिया।
खुफिया प्रमुख खान बहादुर तसद्दुक हुसैन ने पूरी छानबीन और तहकीकात करके बरतानिया सरकार को जैसे ही इस बात की पुष्टि की कि काकोरी ट्रेन डकैती क्रान्तिकारियों का एक सुनियोजित षड्यन्त्र है, पुलिस ने काकोरी काण्ड के सम्बन्ध में जानकारी देने व षड्यन्त्र में शामिल किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करवाने के लिये इनाम की घोषणा के साथ इश्तिहार सभी प्रमुख स्थानों पर लगा दिये जिसका परिणाम यह हुआ कि पुलिस को घटनास्थल पर मिली चादर में लगे धोबी के निशान से इस बात का पता चल गया कि चादर शाहजहाँपुर के किसी व्यक्ति की है। शाहजहाँपुर के धोबियों से पूछने पर मालूम हुआ कि चादर बनारसीलाल की है। बिस्मिल के साझीदार बनारसीलाल से मिलकर पुलिस ने इस डकैती का सारा भेद प्राप्त कर लिया। पुलिस को उससे यह भी पता चल गया कि 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर से राम प्रसाद 'बिस्मिल' की पार्टी के कौन-कौन लोग शहर से बाहर गये थे और वे कब-कब वापस आये? जब खुफिया तौर से इस बात की पूरी पुष्टि हो गई कि राम प्रसाद 'बिस्मिल', जो हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के लीडर थे, उस दिन शहर में नहीं थे तो 26 सितम्बर 1925 की रात में बिस्मिल के साथ समूचे हिन्दुस्तान से 40 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस ऐतिहासिक मामले में 40 व्यक्तियों को भारत भर से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के स्थान के साथ उनके नाम इस प्रकार हैं:
फरार क्रान्तिकारियों में से दो को पुलिस ने बाद में गिरफ़्तार किया था। उनके नाम व स्थान निम्न हैं:
उपरोक्त 40 व्यक्तियों में से तीन लोग शचीन्द्रनाथ सान्याल बाँकुरा में, योगेशचन्द्र चटर्जी हावडा में तथा राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी दक्षिणेश्वर बम विस्फोट मामले में कलकत्ता से पहले ही गिरफ्तार हो चुके थे और दो लोग अशफाक उल्ला खाँ और शचीन्द्रनाथ बख्शी को तब गिरफ्तार किया गया जब मुख्य काकोरी षड्यन्त्र केस का फैसला हो चुका था। इन दोनों पर अलग से पूरक मुकदमा दायर किया गया।
काकोरी-काण्ड में केवल 10 लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे, पुलिस की ओर से उन सभी को भी इस केस में नामजद किया गया। इन 10 लोगों में से पाँच - चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती, अशफाक उल्ला खाँ व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक मुकदमा चला और उन्हें 5 वर्ष की कैद से लेकर फाँसी तक की सजा हुई। फरार अभियुक्तों के अतिरिक्त जिन-जिन क्रान्तिकारियों को एच0 आर0 ए0 का सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया था उनमें से 16 को साक्ष्य न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया। स्पेशल मजिस्टेट ऐनुद्दीन ने प्रत्येक क्रान्तिकारी की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रक्खी और केस को सेशन कोर्ट में भेजने से पहले ही इस बात के पक्के सबूत व गवाह एकत्र कर लिये थे ताकि बाद में यदि अभियुक्तों की तरफ से कोई अपील भी की जाये तो इनमें से एक भी बिना सजा के छूटने न पाये।
लखनऊ जेल में काकोरी षड्यन्त्र के सभी अभियुक्त कैद थे। केस चल रहा था इसी दौरान बसन्त पंचमी का त्यौहार आ गया। सब क्रान्तिकारियों ने मिलकर तय किया कि कल बसन्त पंचमी के दिन हम सभी सर पर पीली टोपी और हाथ में पीला रूमाल लेकर कोर्ट चलेंगे। उन्होंने अपने नेता राम प्रसाद 'बिस्मिल' से कहा- "पण्डित जी! कल के लिये कोई फड़कती हुई कविता लिखिये, उसे हम सब मिलकर गायेंगे।" अगले दिन कविता तैयार थी;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
अमर शहीद भगत सिंह जिन दिनों लाहौर जेल में बन्द थे तो उन्होंने इस गीत में ये पंक्तियाँ और जोड़ी थीं:
इसी रंग में बिस्मिल जी ने "वन्दे-मातरम्" बोला,यही रंग अशफाक को भाया उनका दिल भी डोला;इसी रंग को हम मस्तों ने, हम मस्तों ने;दूर फिरंगी को करने को, को करने को;लहू में अपने घोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
माय! रँग दे बसन्ती चोला....हो माय! रँग दे बसन्ती चोला....मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
राम प्रसाद 'बिस्मिल' बिस्मिल अज़ीमाबादी की यह गज़ल क्रान्तिकारी जेल से पुलिस की लारी में अदालत जाते हुए, अदालत में मजिस्ट्रेट को चिढाते हुए व अदालत से लौटकर वापस जेल आते हुए कोरस के रूप में गाया करते थे। बिस्मिल के बलिदान के बाद तो यह रचना सभी क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी। जितनी रचना यहाँ दी जा रही है वे लोग उतनी ही गाते थे।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,देखना है जोर कितना बाजुए-क़ातिल में है !वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ !हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है !खीँच कर लाई है हमको क़त्ल होने की उम्म्मीद,आशिकों का आज जमघट कूच-ए-क़ातिल में है !ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत हम तेरे ऊपर निसार,अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है !अब न अगले बल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,सिर्फ मिट जाने की हसरत अब दिले-'बिस्मिल' में है !
पाँच फरार क्रान्तिकारियों में अशफाक उल्ला खाँ को दिल्ली और शचीन्द्र नाथ बख्शी को भागलपुर से पुलिस ने उस समय गिरफ्तार किया जब काकोरी-काण्ड के मुख्य मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका था। स्पेशल जज जे0 आर0 डब्लू0 बैनेट की अदालत में काकोरी षद्यन्त्र का पूरक मुकदमा दर्ज हुआ और 13 जुलाई 1927 को इन दोनों पर भी सरकार के विरुद्ध साजिश रचने का संगीन आरोप लगाते हुए अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी तथा शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गयी।
सेशन जज के फैसले के खिलाफ 18 जुलाई 1927 को अवध चीफ कोर्ट में अपील दायर की गयी। चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर लुइस शर्ट और विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रजा के सामने दोनों मामले पेश हुए। जगतनारायण 'मुल्ला' को सरकारी पक्ष रखने का काम सौंपा गया जबकि सजायाफ्ता क्रान्तिकारियों की ओर से के0सी0 दत्त, जयकरणनाथ मिश्र व कृपाशंकर हजेला ने क्रमशः राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खाँ की पैरवी की। राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने अपनी पैरवी खुद की क्योंकि सरकारी खर्चे पर उन्हें लक्ष्मीशंकर मिश्र नाम का एक बड़ा साधारण-सा वकील दिया गया था जिसको लेने से उन्होंने साफ मना कर दिया।
बिस्मिल ने चीफ कोर्ट के सामने जब धाराप्रवाह अंग्रेजी में फैसले के खिलाफ बहस की तो सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला जी बगलें झाँकते नजर आये। इस पर चीफ जस्टिस लुइस शर्टस् को बिस्मिल से अंग्रेजी में यह पूछना पड़ा - "मिस्टर रामप्रसाड ! फ्रॉम भिच यूनीवर्सिटी यू हैव टेकेन द डिग्री ऑफ ला ?" इस पर बिस्मिल ने हँस कर चीफ जस्टिस को उत्तर दिया था - "एक्सक्यूज मी सर ! ए किंग मेकर डजन्ट रिक्वायर ऐनी डिग्री।"
काकोरी काण्ड का मुकदमा लखनऊ में चल रहा था। पण्डित जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे। उन्होंने अभियुक्तों के लिए "मुल्जिमान" की जगह "मुलाजिम" शब्द बोल दिया। फिर क्या था पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने तपाक से उन पर ये चुटीली फब्ती कसी: "मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है; अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाए हैं। पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से; कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।" उनके कहने का मतलब स्पष्ठ था कि मुलाजिम वे नहीं, मुल्ला जी हैं जो सरकार से तनख्वाह पाते हैं। वे तो राजनीतिक बन्दी हैं अत: उनके साथ तमीज से पेश आयें। साथ ही यह ताकीद भी की कि वे समुद्र तक की लहरें अपने दुस्साहस से पलटने का दम रखते हैं; मुकदमे की बाजी पलटना कौन चीज? इतना बोलने के बाद किसकी हिम्मत थी जो उनके आगे ठहरता। मुल्ला जी को पसीने छूट गये और उन्होंने कन्नी काटने में ही भलाई समझी। वे चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक लिये। फिर उस दिन उन्होंने कोई जिरह की ही नहीं। ऐसे हाजिरजबाब थे बिस्मिल!
बिस्मिल द्वारा की गयी सफाई की बहस से सरकारी तबके में सनसनी फैल गयी। मुल्ला जी ने सरकारी वकील की हैसियत से पैरवी करने में आनाकानी की। अतएव अदालत ने बिस्मिल की 18 जुलाई 1927 को दी गयी स्वयं वकालत करने की अर्जी खारिज कर दी। उसके बाद उन्होंने 76 पृष्ठ की तर्कपूर्ण लिखित बहस पेश की जिसे देखकर जजों ने यह शंका व्यक्त की कि यह बहस बिस्मिल ने स्वयं न लिखकर किसी विधिवेत्ता से लिखवायी है। अन्ततोगत्वा उन्हीं लक्ष्मीशंकर मिश्र को बहस करने की इजाजत दी गयी जिन्हें लेने से बिस्मिल ने मना कर दिया था। यह भी अदालत और सरकारी वकील जगतनारायण मुल्ला की मिली भगत से किया गया। क्योंकि अगर बिस्मिल को पूरा मुकदमा खुद लडने की छूट दी जाती तो सरकार निश्चित रूप से मुकदमा हार जाती।
22 अगस्त 1927 को जो फैसला सुनाया गया उसके अनुसार राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी व अशफाक उल्ला खाँ को आई0पी0सी0 की दफा 121 व 120 के अन्तर्गत आजीवन कारावास तथा 302 व 396 के अनुसार फाँसी एवं ठाकुर रोशन सिंह को पहली दो दफाओं में 5+5 कुल 10 वर्ष की कड़ी कैद तथा अगली दो दफाओं के अनुसार फाँसी का हुक्म हुआ। शचीन्द्रनाथ सान्याल, जब जेल में थे तभी लिखित रूप से अपने किये पर पश्चाताप प्रकट करते हुए भविष्य में किसी भी क्रान्तिकारी कार्रवाई में हिस्सा न लेने का वचन दे चुके थे जिसके आधार पर उनकी उम्र-कैद बरकरार रही। उनके छोटे भाई भूपेन्द्रनाथ सान्याल व बनवारी लाल ने अपना-अपना जुर्म कबूल करते हुए कोर्ट की कोई भी सजा भुगतने की अण्डरटेकिंग पहले ही दे रखी थी इसलिये उन्होंने अपील नहीं की और दोनों को 5-5 वर्ष की सजा के आदेश यथावत रहे। चीफ कोर्ट में अपील करने के बावजूद योगेशचन्द्र चटर्जी, मुकुन्दी लाल व गोविन्दचरण कार की सजायें 10-10 वर्ष से बढ़ाकर उम्र-कैद में बदल दी गयीं। सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य व विष्णुशरण दुब्लिश की सजायें भी 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गयी। रामकृष्ण खत्री को भी 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा बरकरार रही।खूबसूरत हैण्डराइटिंग में लिखकर अपील देने के कारण केवल प्रणवेश चटर्जी की सजा को 5 वर्ष से घटाकर 4 वर्ष कर दिया गया। इस काण्ड में सबसे कम सजा रामनाथ पाण्डेय को हुई। मन्मथनाथ गुप्त, जिनकी गोली से मुसाफिर मारा गया, की सजा बढ़ाकर 14 वर्ष कर दी गयी। एक अन्य अभियुक्त राम दुलारे त्रिवेदी को इस मुकदमें में पाँच वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।
अवध चीफ कोर्ट का फैसला आते ही यह खबर दावानल की तरह समूचे हिन्दुस्तान में फैल गयी। ठाकुर मनजीत सिंह राठौर ने सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव कौन्सिल में काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास में बदलने का प्रस्ताव पेश किया। कौन्सिल के कई सदस्यों ने सर विलियम मोरिस को, जो उस समय संयुक्त प्रान्त के गवर्नर हुआ करते थे, इस आशय का एक प्रार्थना-पत्र भी दिया कि इन चारो की सजाये-मौत माफ कर दी जाये परन्तु उसने उस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। सेण्ट्रल कौन्सिल के 78 सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया जिस पर प्रमुख रूप से पं0 मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन0 सी0 केलकर, लाला लाजपत राय, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने अपने हस्ताक्षर किये थे किन्तु वायसराय पर उसका भी कोई असर न हुआ।
इसके बाद मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में पाँच व्यक्तियों का एक प्रतिनिधि मण्डल शिमला जाकर वायसराय से दोबारा मिला और उनसे यह प्रार्थना की कि चूँकि इन चारो अभियुक्तों ने लिखित रूप में सरकार को यह वचन दे दिया है कि वे भविष्य में इस प्रकार की किसी भी गतिविधि में हिस्सा न लेंगे और उन्होंने अपने किये पर पश्चाताप भी प्रकट किया है अतः उच्च न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार किया जा सकता है किन्तु वायसराय ने उन्हें साफ मना कर दिया।
अन्ततः बैरिस्टर मोहन लाल सक्सेना ने प्रिवी कौन्सिल में क्षमादान की याचिका के दस्तावेज तैयार करके इंग्लैण्ड के विख्यात वकील एस0 एल0 पोलक के पास भिजवाये किन्तु लन्दन के न्यायाधीशों व सम्राट के वैधानिक सलाहकारों ने उस पर यही दलील दी कि इस षड्यन्त्र का सूत्रधार राम प्रसाद 'बिस्मिल' बड़ा ही खतरनाक और पेशेवर अपराधी है उसे यदि क्षमादान दिया गया तो वह भविष्य में इससे भी बड़ा और भयंकर काण्ड कर सकता है। उस स्थिति में बरतानिया सरकार को हिन्दुस्तान में हुकूमत करना असम्भव हो जायेगा। आखिरकार नतीजा यह हुआ कि प्रिवी कौन्सिल में भेजी गयी क्षमादान की अपील भी खारिज हो गयी।
रिलैप्स अमरीकी रैपर एमिनेम की छठी स्टूडियो एल्बम है, जो 15 मई 2009 को इंटरस्कोप रिकार्ड्स पर रिलीज़ की गयी। अपनी नींद की गोलियों की लत और लेखकों से विवाद के कारण, पांच साल तक रिकॉर्डिंग से दूर रहने के बाद, यह एन्कोर के बाद मूल रचना पर आधारित उसकी पहली एल्बम है। एलबम के लिए 2007 से 2009 के दौरान कई रिकॉर्डिंग स्टूडियो में रिकॉर्डिंग सत्र हुए और मुख्य रूप से डॉ॰ ड्रे, मार्क बेट्सन, और एमिनेम ने निर्माण संभाला. सैद्धांतिक रूप से, रिलैप्स उसके ड्रग पुनर्वास की समाप्ति, एक काल्पनिक पतन के बाद रैपिंग तथा उसके स्लिम शैडी पहलू से संबंधित है।
अपने पहले सप्ताह में ही 6,08,000 प्रतियां बेच कर एल्बम ने यू.एस. बिलबोर्ड 200 चार्ट पर पहले स्थान से शुरुआत की. 2009 की एक सबसे प्रत्याशित एलबम रिलीज़ के रूप में, अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी 19 लाख से अधिक प्रतियां बिकीं और नतीजतन इसके तीन एकल गानों ने चार्ट में सफलता हासिल की. रिलीज़ के दौरान, रिलैप्स को आमतौर पर अधिकतर संगीत आलोचकों से मिश्रित समीक्षाएं मिलीं, उनकी ये प्रतिक्रियाएं अधिकतर एमिनेम के गीत लेखन और विषयों के आधार पर विभाजित थीं। इसके फलस्वरूप 52 वें ग्रेमी पुरस्कारों के दौरान उसे सर्वश्रेष्ठ रैप एल्बम के लिए ग्रेमी पुरस्कार मिला.
2005 के बाद से ही, एमिनेम अपने संगीत से नाता तोड़ कर हिप हॉप निर्माता बन कर अन्य रिकॉर्ड कार्यों को करने का इच्छुक था, विशेषकर उन कलाकारों के लिए, जो उसके अपने लेबल शैडी रिकॉर्ड्स के लिए साइन किये गये थे। हालांकि, एमिनेम का बुरा दौर तब शुरू हुआ जब 2005 की गर्मियों में थकान और अपनी नींद की गोलियों की लत के कारण यूरोपीयन लेग ऑफ़ द एंगर मैनेजमेंट टूर रद्द करना पड़ा. इसके अगले वर्ष, अपनी पूर्व पत्नी किम्बर्ली स्कॉट से उनका पुर्नविवाह केवल 11 हफ़्तों तक रहा जिसके पश्चात् उनका दोबारा तलाक हो गया, जबकि बाद में उसके करीबी दोस्त और सहयोगी रैपर डिशॉन "प्रूफ" होल्टन की डेट्रॉयट के एक नाईट क्लब के बाहर तकरार के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गयी। इस से निराश हो कर, एमिनेम नशीली दवाओं का आदी बन गया और तेज़ी से खुद में सिमटता चला गया। जून 2009 में XXL के लिए एक साक्षात्कार में, एमिनेम ने स्वयं पर प्रूफ की मौत के प्रभाव के बारे में बताते हुए कहा :
मई 2007 से ही एमिनेम द्वारा आगामी एल्बम पर ध्यान लगाने की खबरें 50 सेंट और स्टेट कुओ, जो शैडी रिकॉर्ड के क्रमशः वर्तमान और पूर्व सदस्य थे, द्वारा दी जा रहीं थीं। इसके अतिरिक्त, रैपर बिज़ार - हिप हॉप समूह-D12 के सदस्य - ने बताया कि समूह की तीसरी स्टूडियो एल्बम को रोका गया था क्योंकि इंटरस्कोप रिकॉर्ड्स पहले एमिनेम की एल्बम रिलीज़ करना चाहते थे। वर्ष के अंत तक, शैडी रिकॉर्ड से जुड़े अतिरिक्त संगीतकारों, जिनमे द अलकेमिस्ट, बिशप लेमोन्ट, काशिस और ओबी ट्राइस शामिल थे, ने विभिन्न मौकों पर पुष्टि की कि रैपर नई एल्बम पर जी जान से जुटा हुआ था। 12 सितम्बर 2007 को रेडियो स्टेशन WQHT हॉट 97 पर एक चर्चा में एमिनेम ने कहा कि वह लिम्बो में था और वह निकट भविष्य में कोई भी नई सामग्री रिलीज़ करने के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता था। इसके बाद रैपर ने विस्तार से बताया कि वह लगातार रिकार्डिंग स्टूडियो में काम कर रहा था और निजी मुद्दों के निपटने से खुश था। तथापि, दिसंबर 2007 में, एमिनेम को मेथाडोन की अधिक मात्रा में खुराक लेने के कारण अस्पताल में भर्ती कि0या गया था। 2008 के शुरू में, अपनी लत से बाहर आने के लिए उसने ट्वेल्व स्टेप प्रोग्राम शुरू किया और उसके अनुसार, 20 अप्रैल 2008 से उसने नशा करना छोड़ दिया है।
2005 में रैपर द्वारा अपनी नींद की गोलियों की लत का इलाज़ कराने के दो साल बाद, रिलैप्स की रिकॉर्डिंग के शुरूआती चरणों के दौरान, रिकॉर्ड निर्माता और और बास ब्रदर्स के लंबे समय से डेट्रॉइट सहयोगी जेफ़ बास ने एमिनेम के साथ 25 गानों पर काम किया। प्रूफ की मौत के कारण, एमिनेम एक अवधि तक कुछ भी नया नहीं लिख सका, क्योंकि उसने महसूस किया कि उसके द्वारा लिखी गयी हर चीज़ रिकॉर्डिंग के लायक नहीं थी। इस से बचने के लिए बास ने ऐसी निर्माण शैली को चुनने का फैसला किया जिसके अनुसार कलाकार को कहानी लिखने की बजाय अपने सर के ऊपर से गुजरने वाले गीत के लिए रैप करना था। इसके बाद एमिनेम मुक्त रूप से या टोकने से पहले एक समय में एक लाइन गाता था और उसके बाद दूसरी लाइन गाता था। इसी समय, एमिनेम के गीत अधिकारों के सुपरवाईज़र, जोएल मार्टिन के अनुसार, रैपर ने ध्यान दिए बिना अतिरिक्त गीतों का संग्रह करना शुरू किया, जैसा कि अक्सर वह दूसरे कलाकारों की संगीत परियोजनाओं को ध्यान में रख कर बनाई गयी चीज़ों के साथ उन्हें रिकॉर्ड कर के या उनका निर्माण कर के करता था, किन्तु अंत में उन्हीं गीतों को चुनता था जिन्हें वह वास्तव में पसंद करता था। एमिनेम द्वारा निर्मित "ब्यूटीफुल", रिलैप्स का इकलौता ऐसा गाना था जिसे उन सालों में रिकॉर्ड किया गया, जब वह शांत नहीं था।
2007 में एमिनेम ने फर्नडेल, मिशिगन, में एफिजी स्टूडियो खरीदा तथा 54 साउंड रिकार्डिंग स्टूडियो की अपनी पूर्व निर्माण टीम से अपने कार्य संबंध ख़त्म कर दिए जिसमे बॉस ब्रदर्स भी शामिल थे। इसके पश्चात् उसने निर्माता डॉ॰ ड्रे के साथ रिकॉर्डिंग जारी रखी, जिन्होनें सितंबर 2007 में कहा कि उनका इरादा खुद को दो महीने तक रिलैप्स के निर्माण के लिए समर्पित करने का था। डॉ॰ ड्रे के साथ काम करते हुए एमिनेम को निर्माण की प्रक्रिया की बजाय, जो कि ज्यादातर ड्रे द्वारा संभाली जाती थी, गाने लिखने की प्रक्रिया पर ध्यान देने का मौका मिला. अपने मिलजुल कर काम करने के लम्बे इतिहास तथा संगीतमय "आपसी समझ", जिसे केवल वह तथा डॉ॰ ड्रे ही समझते थे, के कारण रैपर ने विशाल निर्माण के लिए डॉ॰ ड्रे के चुनाव को सही साबित कर दिया. इससे रैपर को डॉ॰ ड्रे के संग्रह से धुनें चुनने का अवसर मिला, जिससे उसे अलग अलग प्रकारों की तालों के अनुसार अभ्यास करने के लिए चुनौती मिली. इसके एक वर्ष तक एल्बम का निर्माण एफिजी स्टूडियो में हुआ, क्योंकि इसके बाद रिकॉर्डिंग सत्रों को सितंबर 2008 में ओरलेंडो, फ्लोरिडा में स्थानांतरित कर दिया गया। तब तक, एमिनेम ने गीत लेखन को फिर से ऐसी गति पर करना शुरू कर दिया था जिसके कारण अक्सर उसे लिखने की बजाय रिकॉर्डिंग में अधिक समय लगता था। अपनी नयी रचनात्मक गति का कारण उसने संयम बताते हुए स्वीकार किया कि उसका मस्तिष्क उन बाधाओं से मुक्त हो गया था जिन्होंने पिछले वर्षों के दौरान नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण उसे कुंद कर दिया था। गीत लिखने की प्रक्रिया की शुरुआत में डॉ॰ ड्रे अपनी कई धुनों की सीडी एमिनेम को देते थे, जिन्हें वह स्टूडियो में एक अलग कमरे में सुनता था तथा अपनी पसंद तथा स्वयं को सर्वाधिक प्रेरित करने वाली धुनों को चुनता था। इसके बाद रैपर वाद्य के हिसाब से गीत लिखता था, जबकि डॉ॰ ड्रे व उनका स्टाफ नये संगीत के निर्माण करना जारी रखता था। जब एक बार जब वह महसूस करता था कि वह काफी गीतों के लिए लिख चुका है, तो वह एक पूरा दिन अपने गानों को उस सीमा तक रिकॉर्ड करता रहता था कि आने वाले दिनों में उसकी आवाज़ बैठ जाती थी। उस बिंदु पर, रैपर फिर से नये गानों के लिए गीत लिखना शुरू कर देता था। प्रक्रिया छह महीने तक जारी रही और एमिनेम को अपनी दूसरी एल्बम रिलैप्स 2 के लिए काफी सामग्री भी मिल गयी।
इस रिकॉर्डिंग अवधि के दौरान, रिलैप्स के लिए बने कई गाने इंटरनेट पर लीक हो गये, जिसमे "क्रेक अ बोटल" का एक अधूरा संस्करण भी शामिल था। इसके बाद जनवरी 2009 में डॉ॰ ड्रे तथा 50 सेंट के अतिरिक्त स्वरों के साथ गाना ख़त्म हुआ। लीक होने के बावजूद, ब्रिटिश समाचारपत्र द इंडीपेंडेंट के अनुसार, एल्बम को गुप्त रूप से पूरा किया जा रहा था। यहां तक कि इंटरस्कोप के बहुराष्ट्रीय मालिक पोलीडोर रिकॉर्ड्स के अनुसार, उस समय एल्बम की कोई जानकारी नहीं थी। 23 अप्रैल को, एमिनेम ने बताया की केवल उसके तथा डॉ॰ ड्रे के पास रिलैप्स की अंतिम प्रति थी, जबकि उसके मेनेजर पॉल रोज़नबर्ग ने बताया कि अवैध बिक्री से बचने के लिए रिलीज़ करने की तिथि से एक महीने पहले तक म्यूज़िक कम्पनी के पास एमिनेम के रिकॉर्ड लेबल तक नहीं थे।
XXL के लिए एक साक्षात्कार में, एमिनेम ने रिलैप्स की अवधारणा के पीछे अपने नशा पुर्नवास की समाप्ति का हवाला दिया और इसके बाद इस तरह से रैप किया मानो वह नशे में हो, साथ ही साथ उसके काल्पनिक "क्रेज़ी" स्लिम शैडी पहलू की भी वापसी हुई. साक्षात्कारकर्ता डाटवॉन थॉमस के अनुसार, एमिनेम को एल्बम के लिए प्रेरणा उसकी बीती ज़िन्दगी के नशीली दवाओं के मुद्दों के साथ टेलीविज़न शो तथा अपराध व सीरियल किलर से युक्त वृत्तचित्रों से मिली, चूंकि रैपर "सीरियल किलर और उनकी मानसिकता" के प्रति आकर्षित था। मई 2009 में, द न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए गये एक साक्षात्कार में एमिनेम ने सीरियल किलर के बारे में अपने दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए कहा :
रिलैप्स की शुरुआत एक छोटे नाटक "डॉ॰ वेस्ट" से होती है, जिसमे अभिनेता डोमिनिक वेस्ट एक ऐसे ड्रग काउंसलर के रूप में आवाज़ देते हैं जिनकी विश्वसनीयता कम होने के कारण एमिनेम पुनः नशीली दवाओं का सेवन करने के साथ, एक बार फिर अपने स्लिम शैडी मैडमैन स्वरूप में पहुँच जाता है। इस छोटे नाटक के बाद "3 a.m." की शुरुआत होती है जहाँ एमिनेम खुद को देर रात में क्रमवार हत्यों की झड़ी लगाने वाले एक अवसादग्रस्त सीरियल किलर के रूप में पेश करता है। जब "3 a.m." को एल्बम की रिलीज से पहले एकल रूप में जारी किया गया, तो एमिनेम ने पाया कि गीत उस चीज़ को नजदीकी से प्रतिबिम्बित करता है जो उसके अनुसार पूरे एल्बम का नकारात्मक पहलू था। "माय मॉम" में रैपर अपनी नशे की प्रवृत्तियों के विषय में अपनी माँ को बताता है और इस तरह उसे पता चलता है कि वह भी उसकी तरह नशे का आदि हो गया है। एमिनेम अपनी पारिवारिक कहानियों को "इन्सेन" में जारी रखता है, जिसमे वह खुद को एक शोषण के शिकार बच्चे के रूप में देखता है। एमिनेम के अनुसार, "इन्सेन" का लक्ष्य एक ऐसा गीत बनाना था जिससे श्रोताओं को घृणा हो और "उन्हें उल्टी आ जाए", साथ ही बताया कि उन्हें यह विचार गाने की पहली लाइन के बारे में सोचते हुए आया . उसकी तथाकथित पूर्व प्रेमिका मारिया कैरे को उसके वर्तमान पति निक केनन के साथ "बैगपाइप्स फ्रॉम बगदाद" में निशाना बनाया गया है, जिसमे एमिनेम एक पुंगी लूप के ऊपर रैप करता है। "हैलो" के बाद, जिसमे एमिनेम खुद को कई वर्षों तक "मानसिक रूप से" अनुपस्थित रहने के बाद दोबारा वापसी करता है, रैपर ने अपनी हिंसक कल्पनाओं को "सेम साँग एंड डांस" में ज़ारी रखा, जहाँ वह लिंडसे लोहान और ब्रिटनी स्पीयर्स का अपहरण करता है तथा हत्या कर देता है। "सेम साँग एंड डांस" की उत्तेजित धुन एमिनेम को उस डांस ट्रेक की याद दिलाती है, जिसने उसे कुछ ऐसा लिखने के लिए प्रेरित किया जिसे सुन कर "महिलाएं बोल सुने बिना डांस करने लगती हैं और वास्तव में नहीं जान पातीं कि वे किस बकवास गाने के लिए डांस कर रहीं हैं". एल्बम के नौंवें गाने, "वी मेड यू" में एमिनेम कई प्रसिद्ध हस्तियों की नक़ल करता है और एक "पॉप स्टार सीरियल किलर" की भूमिका निभाता है। एमिनेम ने पाया कि उसकी विभिन्न "प्रसिद्ध हस्तियों पर चोट" व्यक्तिगत कारणों से नहीं थी, अपितु अपनी लेखन प्रक्रिया के दौरान तुकबंदी के लिए "एकदम से दिमाग में आये हुए नामों को उठा" लिया गया था। "मेडिसिन बॉल" में एमिनेम मृतक अभिनेता क्रिस्टोफर रीव की नक़ल तथा उनके जैसा अभिनय करता है, ताकि उसके दर्शक "इस पर हंसें और इसके फ़ौरन बाद उन्हें अपनी हंसी लगभग बुरी लगे." अगला गाना स्टे वाइड अवेक है जिसमे काफी भयानक मारधाड़ है। एमिनेम महिलाओं पर हमला करने और उनके साथ बलात्कार के बारे में रैप करता है। डॉ॰ ड्रे ने भी "ओल्ड टाइम्स सेक में एक मेहमान भूमिका निभाई है, एक युगल गीत जिसे एमिनेम एक "मजेदार, किन्तु पुराने समय की याद दिलाने वाले" गीत के रूप में वर्णित करता है, जिसमे वह तथा डॉ॰ ड्रे एक दूसरे के बाद रैपिंग करते हैं। इस गाने के बाद "मस्ट बी गांजा" आता है जिसमे एमिनेम मानता है कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में काम करना उसके लिए एक नशीली दवा और लत की तरह है।"
"मि. मैथर्स" नामक छोटे नाटक के बाद, जिसमे एमिनेम एक अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है, "देजा वू" 2007 में उसकी ओवरडोज़ और संगीत से दूरी के बाद उसकी नशे पर निर्भरता के विषय में बताता है। गाने में एमिनेम यह भी बताता है कि इसने किस प्रकार उसके पिछले पांच सालों में प्रभावित किया है, जिसमे एक दौर ऐसा भी आया जब उसकी बेटी अपने पिता के व्यवहार से डरने लगती है। "ब्यूटीफुल", एक कहानी है जिसकी प्रेरणा रॉक थेरेपी के "रीचिंग आउट" से ली गयी है, भी उसी समय को दर्शाती है जब एमिनेम को यह विश्वास हो चला था कि वह "पतन के गर्त" तक पहुँच गया था और अपने भविष्य की अंतिम आशा को खो चुका था। एमिनेम को लगा कि स्वयं को याद दिलाने के लिए "ब्यूटीफुल" के साथ साथ "एनीबॉडी हू इज़ इन अ डार्क प्लेस देट यू केन गेट आउट ऑफ़ इट" को एल्बम में शामिल करना महत्त्वपूर्ण होगा. "क्रैक अ बोटल", जिसमे डॉ॰ ड्रे और 50 सेंट ने मिल कर काम किया है, के बाद रिलैप्स की समाप्ति "अंडरग्राउंड" से होती है। एल्बम के अंतिम गाने में एमिनेम ने अपने कुख्यात होने के बाद अपने संगीत और गीतों के सार और पंचलाइनों को "द हिप हॉप शॉप टाइम्स" की यादों के द्वारा दोबारा ढूँढने की चेष्टा की है और इसीलिए उसने अपने गाने की अश्लील सामग्री के बारे में परवाह नहीं की. एल्बम की समाप्ति केन केरिफ की वापसी के साथ होती है, एक बिंदास समलैंगिक चरित्र, जो एन्कोर से पहले एमिनेम की हर एल्बम में दिखाया गया था।
2007 में, शैडी रिकार्डस के रैपर काशिस ने इस का शीर्षक किंग मैथर्स के नाम से बताते हुए एल्बम के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि यह उस वर्ष रिलीज़ हो जायेगी. बहरहाल, एमिनेम के प्रचारक डेनिस डेनेही ने इसका खंडन करते हुए कहा कि "2007 में कोई एल्बम रिलीज़ नहीं की जानी थी" और बताया कि अगस्त 2007 तक इसका कोई निश्चित शीर्षक भी नहीं था। इसके एक साल बाद कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया, जिसके बाद 15 सितम्बर 2008 को, एमिनेम की आत्मकथा "द वे आई एम् " के प्रकाशन के जश्न के मौके पर शेड 45 द्वारा आयोजित एक समारोह में, रैपर ने रिलैप्स के नाम से एक स्टूडियो एल्बम को रिलीज़ करने की अपनी योजना की पुष्टि की. पार्टी के दौरान, उसने दर्शकों के सामने "आई'एम् हेविंग अ रिलैप्स" नामक गीत का अंश भी गाया.
एल्बम को जारी करने की तिथि के संबंध, रॉलिंग स्टोन ने अक्टूबर 2008 के लेख में लिखा कि वर्जिन मेगास्टोन ने 27 नवम्बर 2008 को रिलैप्स के वितरण की योजना बनाई थी, जो कि संयोग से संयुक्त राज्य अमेरिका में थैंक्सगिविंग डे था। 27 अक्टूबर को इंटरस्कोप के एक प्रवक्ता ने बताया कि अभी तक कोई आधिकारिक तिथि तय नहीं की गयी थी और किसी भी वेबसाईट द्वारा पोस्ट की गयीं रिलीज़ की तिथियाँ निराधार थीं। 16 नवम्बर 2008 को टोटल रिक्वेस्ट लाइव के समापन के दौरान फोन पर बातचीत करते हुए एमिनेम ने दृढ़तापूर्वक कहा कि रिलैप्स 2009 की पहली तिमाही में, सही तौर पर कहें तो साल के पहले दो महीनों में कभी भी, रिलीज़ की जाएगी, तथा बताया कि वह एल्बम के लिए गानों का चयन कर रहा था।
दो महीने पहले लीक होने के बावजूद, "क्रैक अ बोटल" और प्रोमोशनल सिंगल को आख़िरकार 2 फ़रवरी 2009 में वैधानिक भुगतान के बाद डिजिटल डाउनलोड के लिए जारी किया गया, तथा यू.एस. बिलबोर्ड हॉट 100 में पहले स्थान पर भी पहुँच गया, जबकि एमिनेम के मैनेज़र पॉल रोज़नबर्ग के अनुसार गाने के लिए म्यूजिक वीडियो का निर्माण तथा निर्देशन सिंड्रोम द्वारा किया गया और मई से ले कर जून के शुरू में कई भागों में इसे जारी किया गया। रिलीज़ के समय कई विरोधाभासी ख़बरों में गाने को रिलैप्स में शामिल किये जाने पर विवाद हुआ। प्रारंभिक भ्रम के बावजूद, अंततः यूनिवर्सल म्यूज़िक ग्रुप ने एक प्रेस विज्ञप्ति में आख़िरकार इस गाने को एल्बम में शामिल किए जाने की पुष्टि की. 5 मार्च के बाद, इसी तरह के प्रेस बयानों के जरिये यूनिवर्सल ने रिलैप्स की क्षेत्रीय रिलीज की तारीख सार्वजनिक की. जल्द ही एल्बम 15 मई 2009 को इटली और नीदरलैंड में मिलनी थी, जबकि अधिकांश यूरोपीय देशों और ब्राज़ील में यह 18 मई तथा इसके एक दिन बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी बेचीं जानी थी। इसके अतिरिक्त, रिकॉर्ड लेबल पर एमिनेम की दूसरी एल्बम, रिलैप्स 2 की भी घोषणा की गयी जो साल के अंत तक रिलीज़ की जानी थी। एमिनेम ने बताया कि उसने तथा डॉ॰ ड्रे ने काफी मात्रा में संगीत रिकॉर्ड कर रखा था और दोनों एलबम को रिलीज़ करने के पश्चात् श्रोता सभी गाने सुन सकते थे।
क्रैक अ बोटल को रिलीज़ करने के पश्चात्, "वी मेड यू" का म्यूज़िक विडियो 7 अप्रैल को प्रसारित किया गया और इसके एक सप्ताह बाद 13 अप्रैल को यह खरीदने के लिए उपलब्ध हो गया। वीडियो को जोसेफ काहन द्वारा निर्देशित किया गया था और इसका प्रीमियर एमटीवी के कई चैनलों के साथ एमटीवी की वेबसाइट पर भी किया गया। 28 अप्रैल को, एल्बम के तीसरे एकल गीत, "3 a.m." को एक बार फिर से भुगतान के पश्चात् संगीत डाउनलोड के लिए रिलीज़ किया। "3 a.m." का म्यूज़िक विडियो सिंड्रोम द्वारा निर्देशित था और डेट्रॉयट में फिल्माया गया था। कई दिनों तक वीडियो के ट्रेलर ऑनलाइन दिखने के बाद, इसका प्रीमियर 2 मई को सिनेमैक्स पर हुआ। एलबम की रिलीज से पहले "ओल्ड टाइम्स सेक" और "ब्यूटीफुल" के रूप में दो और एकल वितरित किये गये थे जिन्हें iTunes स्टोर पर क्रमशः 5 मई और 12 मई को बिक्री के लिए भेजा गया। एल्बम के प्रीमियम संस्करण की खरीद पर "माय डार्लिंग" और "केयरफुल व्हाट यू विश फॉर" उपलब्ध थे।
इससे पहले 4 अप्रैल 2009 में, 2009 NCAA अंतिम चार, की कवरेज के दौरान CBS पर एमिनेम को एक भाग में दिखाया गया जहाँ उसने "लव लैटर टू डेट्रॉयट" के कुछ शब्द गाये. बाद में उसी दिन रैपर ने हिप हॉप ग्रुप रन - DMC टू द रॉक और रोल हॉल ऑफ फेम के बारे में भी बताया. द डेट्रायट न्यूज़ के एडम ग्राहम ने इसे रिलैप्स के लिए "पहले से सोचे गये प्रचार का एक हिस्सा" बताया. 31 मई को रैपर ने 2009 MTV मूवी अवार्ड्स के दौरान लाइव प्रदर्शन किया, जबकि जून 2009 में वह हिप हॉप मैगजीन वाइब तथा XXL के संस्करणों के मुखपृष्ठ पर दिखाई दिया, जिसमे दूसरी में उसे रिलैप्स का प्रचार करने के लिए एमिनेम और मार्वेल कॉमिक्स के बीच हुए एक समझौते के तहत दिखाया गया था, जिसके अनुसार यदि मार्वल उसे तथा द पनिशर को लेकर कोई संस्करण बनाता है तो उसे कानून को हाथ में लेने वाले मार्वेल के मुख्य किरदार द पनिशर के रूप में पोज़ देना था। 19 मई 2009 को एल्बम के साथ एक iPhone गेम जारी की गयी।
नेवर से नेवर टूर पर समूह के साथी सदस्यों रॉयस दा 5'9" के साथ स्विफ्टी व कुनिवा को रिलैप्स के बारे में लाइव साक्षात्कार तथा बातचीत करने के लिए किस 100FM द्वारा रोक दिया गया। रॉयस ने कहा कि एलबम खेल को बदल कर रख देगी और मजाक में कहा कि एमिनेम द्वारा अपनी एल्बम को उतारने के बाद उसे स्वयं की एल्बम को तीन साल तक पीछे धकेलना पड़ सकता है। कुनिवा ने कहा कि D12 ने रिलैप्स के लिए कई गाने रिकॉर्ड किये किन्तु उसे यकीन नहीं था कि इनसे एल्बम बनेगी अथवा नहीं। इसके बाद स्विफ्टी ने पुष्टि की कि वास्तव में 2009 में एमिनेम दो एल्बम उतारने जा रहा था, रिलैप्स के बाद रिलैप्स 2 . रिलैप्स को 21 दिसंबर,2009 को सात बोनस गानों के साथ दोबारा रिलैप्स:रिफिल के रूप में जारी किया गया, जिसमे एकल "फॉरएवर" और "टेकिंग माय बॉल" सहित पांच पुराने बिना रिलीज़ किये गये गाने शामिल थे। इसके फिर से रिलीज पर, एमिनेम ने कहा "मैं मूल रूप से बनाई गयी योजना से इतर प्रशंसकों के लिए इस वर्ष और अधिक सामग्री वितरित करना चाहता हूँ. आशा है कि द रिफिल के ये गाने प्रशंसकों को तब तक बांध कर रखेंगे जब तक कि अगले साल तक हमारी रीलैप्स 2 नहीं आती".
रिलैप्स एल्बम का कवर सबसे पहले 21 अप्रैल 2009 को एमिनेम के ट्विटर अकाउंट के माध्यम से प्रकाशित किया गया था। इसमें रैपर के सिर को दवा की हजारों गोलियों द्वारा ढके हुए दिखाया गया है। कवर पर एक स्टीकर दवा के पर्चे के लेबल की तरह है, जिसमे एमिनेम रोगी है और डॉ॰ ड्रे चिकित्सक हैं। एमटीवी न्यूज़ के गिल कौफ्मैन ने कवर को रैपर के संघर्ष तथा नशीली दवाओं की लत से जोड़ कर वर्णित करते हुए कहा, कि इस कला में एमिनेम द्वारा अपने निजी मुद्दों को प्रदर्शित करने की आदत का ही प्रदर्शन है। एल्बम बुकलेट और बैक कवर में दवाइयों के पर्चों के डिज़ाइन थे। बुकलेट के पीछे प्रूफ को श्रद्धांजली अर्पित की गयी है, जहाँ एमिनेम बताता है कि वह संयमित है तथा उसने उसके लिए गाना लिखने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी इतना अच्छा नहीं था इसलिए वह पूरी एल्बम उसे समर्पित करता है। सीडी खुद को एक दवा की बोतल पर ढक्कन के रूप में प्रदर्शित करती है जिसमे स्लेटी रंग पर बड़े बड़े लाल अक्षरों में लिखा हुआ है "पुश डाउन एंड टर्न".
2009 की एक सबसे प्रत्याशित एल्बम के रूप मॅ, रिलैप्स साल की सर्वाधिक बिकने वाली हिप हॉप एल्बम भी थी। अपनी रिलीज़ के समय, रिलीज के पहले हफ्ते में अपनी 6,08,000 प्रतियां बेच कर एल्बम ने यू.एस. बिलबोर्ड 200 चार्ट पर प्रथम स्थान से शुरुआत की। यू.एस. के अतिरिक्त, अन्य कई देशों में भी रिलैप्स अपने पहले हफ्ते में प्रथम स्थान पर पहुँचने में सफल रही जिनमे ऑस्ट्रेलिया, फ़्रांस, नोर्वे, डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड शामिल थे, जबकि इसके अलावा इसने कई देशों में चोटी के पांच गानों में जगह बनाई, जिनमे जर्मनी, इटली, फिनलैंड, स्पेन, बेल्जियम, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड और स्वीडन शामिल थे। अपने दूसरे हफ्ते में एल्बम दूसरे स्थान पर टिकी रही तथा 2,11,000 प्रतियों सहित कुल 8,19,000 प्रतियां बेच कर साल की पांचवी बेस्ट सैलर बन गई। तीसरे सप्ताह में 1,41,000 प्रतियां और बेचने के बाद, अमेरिका में केवल तीन हफ़्तों में 9,62,000 प्रतियां बेच कर रिलैप्स दूसरे स्थान पर पहुँच गयी, चौथे सप्ताह में तीसरे स्थान पर गिरते हुए रिलैप्स ने 87,000 प्रतियां बेच कर अपनी कुल बिक्री को 10,49,000 प्रतियों तक पहुंचा दिया। अगले हफ्ते, रिलैप्स चौथे स्थान पर खिसक गयी और 72000 प्रतियां बेचीं गयीं। अपने छठे सप्ताह में, रिलैप्स 47,000 प्रतियां बेच कर पांचवें स्थान पर थी जिससे इसकी अमेरिका में कुल बिक्री 11,69,000 पर पहुँच गयी। अपने सातवें सप्ताह में नौंवे स्थान पर पहुँचने के साथ रिलैप्स ने 39,000 प्रतियों की बिक्री के साथ कुल यू.एस. बिक्री को 12,07,000 पर पहुंचा दिया। अपने आठवें सप्ताह में 34,000 प्रतियां और बेच कर अपनी कुल यू.एस. बिक्री को 12,41,000 तक पहुंचा कर रिलैप्स नौंवें स्थान पर बनी रही। यह 2009 की बेस्ट सैलर रैप एल्बम बन गयी। एल्बम की संयुक्त राज्य अमेरिका में 18,91,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं।
अपनी रिलीज़ के समय, मेटाक्रिटिक के 59/100 के कुल अंकों के आधार पर एल्बम को आम तौर पर आलोचकों से मिश्रित समीक्षाएं प्राप्त हुईं. "प्रभावशाली ढंग से केन्द्रित तथा अच्छा काम" कहने के बावज़ूद, लॉस एंजिल्स टाइम्स के लेखक एन पॉवेर्स ने इसे सामान्यतः मिश्रित समीक्षा दी और पाया कि इसका संगीत "उत्कृष्ट नहीं था", यह कहते हुए कि "एमिनेम अपने संगीत को नयी श्रेणी में पहुंचा सकता था। उसके द्वारा प्रस्तुत किया गया अभी भी शक्तिशाली है, लेकिन संकीर्ण ढंग से फिल्माया गया है". NME ' के लुईस पैटिसन ने रिलैप्स को 5/10 अंक दिए और पाया कि एमिनेम का शब्द खेल "नीचता की गहराई तक दुष्ट" था, किन्तु अंततः महसूस किया कि "एल्बम का जरूरत से अधिक एहसास अत्यंत थकाने वाला, तथा सही मायनों में अपनी फॉर्म को प्राप्त करने के रूप में आनंदरहित था। MSN म्यूज़िक की अपनी उपभोक्ता गाइड में, आलोचक रॉबर्ट क्रिस्टगो ने एल्बम को B रेटिंग दी और इसे "माह की सबसे खराब" का नाम देते हुए संकेत दिया "एक खराब रिकॉर्ड जिसका विवरण शायद ही कभी इसके अतिरिक्त और विचारों को जन्म देता है। ऊपरी स्तर पर पर यह जरूरत से अधिक मूल्यांकन प्राप्त, निराशाजनक या कुंठित हो सकता है। निचले स्तर पर यह घृणित हो सकता है". क्रिस्टगो ने एमिनेम के गीतों के लिए नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की और उसे यह कहते हुए सनसनी फ़ैलाने का आरोपी करार दिया कि "यह स्लिम शैडी एल्बम नहीं है। स्लिम शैडी अपने आप में आलोकमय था।" द विलेज वॉइस ' के थिओन वेबर ने इसके सनसनीखेज गीतों की आलोचना करते हुए कहा "एक नम गुंजायमान चैम्बर जिसमें वह व्यर्थ के अलगाव में अपनी "सदमा देने वाली शैली" को जारी रखता है".
5 में से 4 स्टार देते हुए रोलिंग स्टोन के लेखक रोब शेफील्ड ने इसे "और अधिक दर्दनाक, ईमानदार और महत्वपूर्ण रिकॉर्ड" बताया, जिसे उन्होनें एमिनेम की बहुप्रशंसित तीसरी एलबम द एमिनेम शो के साथ देखा था। आलम्यूज़िक के स्टीफन थॉमस अर्लवाइन ने इसे "संगीत के हिसाब से हॉट, सघन और नाटकीय" एल्बम के रूप में वर्णित किया और कहा कि "उसका प्रवाह इतना बढ़िया है, उसकी शब्दों के साथ खेलने की गति इतनी तेज़ है कि यह कल्पना करना बेईमानी लगता है कि उसने अपने लम्बे समय से दिमाग में घर बनाए हुए विचारों तथा दुष्टों के अतिरिक्त किसी और को संबोधित किया है". द डेली टेलीग्राफ ने एमिनेम के नशे की लत और इसकी अति को ईमानदारी से दिखाने के लिए एल्बम की सराहना की। एंटरटेनमेंट वीकली ' के लिया ग्रीनब्लाट ने इसे A-रेटिंग दी और कहा " रिलैप्स ' के असली प्रतिध्वनि नाजुक, दु:खद प्रतिभा से आती है जो उस चित्रित मुसकान के पीछे है। वाईब ' के बैंजामिन मिडोस इन्ग्राम के अनुसार एल्बम की अवधारणा "दोषयुक्त" थी, लेकिन उन्होनें एमिनेम के गीत लेखन की प्रशंसा करते हुए लिखा, " खुद की रैप कला का सीमाओं से बाहर विस्तार करते हुए..., एम् शब्दों के साथ चमत्कारिक काम करता है, रचना प्रयोगात्मक और भावात्मक है, एक विशेषज्ञ फार्म के साथ खेलता है". इसके विपरीत, पॉपमैटर्स के एलन रान्ता ने रिलैप्स को 3/10 अंक दिए और लिखा "स्पष्ट शब्दों में, विक्षिप्त होने के कारण इस तरह की कट्टर नफरत से भरा भाषण देना कोई अच्छा बहाना नहीं है, खासकर जब यह इस तरह के बिना कोई साज सज्जा के साथ पेश किया जाए. संक्षेप में, रिलैप्स एक जबरदस्ती चमकाई गयी नफरत से भरी खिचड़ी से अधिक कुछ नहीं है, जो समाज के दिशा के साथ चलने के लिए अनुकूल नहीं है।" स्पूतनिकम्यूज़िक के जॉन ए हैन्सन ने इसे 5 में से 1 स्टार दिया और पाया कि एमिनेम के गीतों में सार की कमी थी। एल्बम ने 52 वें ग्रेमी पुरस्कार समारोह में सर्वश्रेष्ठ रैप एल्बम का ग्रेमी पुरस्कार जीता।
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सर्वसत्तावाद, सर्वाधिकारवाद या समग्रवादी व्यवस्था उस राजनीतिक व्यवस्था का नाम है जिसमें शासन अपनी सत्ता की कोई सीमारेखा नहीं मानता और लोगों के जीवन के सभी पहलुओं को यथासम्भव नियंत्रित करने को उद्यत रहता है। ऐसा शासन प्रायः किसी एक व्यक्ति, एक वर्ग या एक समूह के नियंत्रण में रहता है।
समग्रवादी व्यवस्था लक्ष्यों, साधनों एवं नीतियों के दृष्टिकोण से प्रजातांत्रिक व्यवस्था के बिल्कुल विपरीत होता है। यह एक तानाशाह या शक्तिशाली समूह की इच्छाओं एवं संकल्पनाओं पर आधारित होता है।इसमें राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण होता है अर्थात् राजनैतिक शक्ति एक व्यक्ति, समूह या दल के हाथ में होती है। ये आर्थिक क्रियाओं का सम्पूर्ण नियंत्रण करता है। इसमें एक सर्वशक्तिशाली केन्द्र से सम्पूर्ण व्यवस्था को नियंत्रित किया जाता है। इसमें सांस्कृतिक विभिन्नता को समाप्त कर दिया जाता है और सम्पूर्ण समाज को सामान्य संस्कृति के अधीन करने का प्रयत्न किया जाता है। ऐसा प्रयत्न वास्तव में दृष्टिकोणों की विभिन्नता की समाप्ति के लिये किया जाता है और ऐसा करके केन्द्र द्वारा दिये जाने वाले आदेशों और आज्ञाओं के पालन में पड़ने वाली रूकावटों को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है। समग्रवादी व्यवस्था का सम्बन्ध एक सर्वशक्तिशाली राज्य से है। इसमें पूर्ण या समग्र को वास्तविक मानकर इसके हितों की पूर्ति के लिये आयोजन किया जाता है। किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाएगा, कब, कहाँ, कैसे और किनके द्वारा किया जायेगा और कौन लोग इसमें लाभान्वित होगें, इसका निश्चय मात्र एक राजनैतिक दल, समूह या व्यक्ति द्वारा किया जाता है। इसमें व्यक्तिगत साहस व क्रिया के लिये स्थान नहीं होता है। सम्पूर्ण सम्पत्ति व उत्पादन के समस्त साधनों पर राज्य का अधिकार होता है।
इस व्यवस्था में दबाव का तत्व विशेष स्थान रखता है। इसके दो प्रमुख रूप रहे हैं - अधिनायकतंत्र तथा साम्यवादी तंत्र।
राजनीतिक व्यवस्था के एक प्रकार के रूप में 'सर्वसत्तावाद' एक ऐसा पद है जो निरंकुशता, अधिनायकवाद और तानाशाही जैसे पदों का समानार्थक लगता है। यद्यपि इस समानार्थकता को ख़ारिज नहीं किया जा सकता, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद प्रचलित ज्ञान के समाजशास्त्र की निगाह से देखने पर सर्वसत्तावाद भिन्न तात्पर्यों से सम्पन्न अभिव्यक्ति की तरह सामने आता है। शुरुआत में इतालवी फ़ासिस्ट सर्वसत्तावाद को अपनी व्यवस्था के सकारात्मक मूल्य की तरह पेश करते थे। पर बाद में इसका अधिकतर इस्तेमाल शीतयुद्धीन राजनीति के दौरान पश्चिमी ख़ेमे के विद्वानों द्वारा किया गया ताकि उदारतावादी लोकतंत्र के ख़ाँचे में फ़िट न होने वाली व्यवस्थाओं को कठघरे में खड़ा किया जा सके। इन विद्वानों ने सर्वसत्तावाद के जरिये राजनीतिक व्यवस्थाओं के इतिहास का फिर से वर्गीकरण करने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप नाज़ी जर्मनी, फ़ासीवादी इटली, स्तालिनकालीन सोवियत संघ और सेंडिनिस्टा की हुकूमत वाले निकारागुआ को ही सर्वसत्तावादी श्रेणी में नहीं रखा गया, बल्कि प्लेटो द्वारा वर्णित रिपब्लिक, चिन राजवंश, भारत के मौर्य साम्राज्य, डायक्लेटियन के रोमन साम्राज्य, कैल्विनकालीन जिनेवा, जापान के मीज़ी साम्राज्य और प्राचीन स्पार्टा को भी उसी पलड़े में तौल दिया गया।
बीसवीं सदी के दूसरे दशक से पहले समाज-विज्ञान में इस पद का इस्तेमाल किया ही नहीं जाता था। 1923 में इतालवी फ़ासीवाद का एक प्रणाली के रूप वर्णन करने के लिए गियोवानी अमेंडोला ने इसका प्रयोग किया। इसके बाद फ़ासीवाद के प्रमुख सिद्धांतकार गियोवानी जेंटील ने बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्व में स्थापित व्यवस्था को ‘टोटलिरिटो’ की संज्ञा दी। यह नये किस्म का राज्य जीवन के हर क्षेत्र को अपने दायरे में लेने के लिए तत्पर था। वह राष्ट्र और उसके लक्ष्यों का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व करने का दावा करता था। मुसोलिनी ने टोटलिटेरियनिज़म को एक सकारात्मक मूल्य की तरह व्याख्यायित किया कि यह व्यवस्था हर चीज़ का राजनीतीकरण करने वाली है, चाहे वह आध्यात्मिक हो या पार्थिव। मुसोलिनी का कथन था : ‘हर चीज़ राज्य के दायरे में, राज्य के बाहर कुछ नहीं, राज्य के विरुद्ध कुछ नहीं।’ फ़ासीवादियों द्वारा अपनाये जाने के बावजूद 1933 में प्रकाशित इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पहले संस्करण से यह पद नदारद है। हान्ना एरेंत द्वारा किये गये विख्यात विश्लेषण में सर्वसत्तावाद को राजनीतिक उत्पीड़न के पारम्परिक रूपों से भिन्न बताया गया है। एरेंत के अनुसार बीसवीं सदी में विकसित हुई इस राज्य-व्यवस्था का इतिहास नाज़ीवाद से स्तालिनवाद के बीच फैला हुआ है। यह परिघटना विचारधारा और आतंक के माध्यम से न केवल एक राज्य के भीतर बल्कि सारी दुनिया पर सम्पूर्ण प्रभुत्व कायम करने के सपने से जुड़ी है। विचारधारा से एरेंत का मतलब इतिहास के नियमों का पता लगा लेने की दावेदारियों से था। आतंक के सर्वाधिक भीषण उदाहरण के रूप में उन्होंने नाज़ी यातना शिविरों का हवाला दिया। उन्होंने समकालीन युरोपीय अनुभव की व्याख्या करते हुए उन आयामों की शिनाख्त की जिनके कारण सर्वसत्तावाद मुमकिन हो सका। उन्होंने दिखाया कि यहूदियों की विशिष्ट राजनीतिक और सामाजिक हैसियत के कारण सामीवाद विरोधी मुहिम को नयी ताकत मिली; साम्राज्यवाद के कारण नस्लवादी आंदोलन पैदा हुए; और युरोपीय समाज के उखड़े हुए समुदायों में बँट जाने के कारण अकेलेपन और दिशाहीनता के शिकार लोगों को विचारधाराओं के ज़रिये गोलबंद करने में आसानी हो गयी। एरेंत के बाद दार्शनिक कार्ल पॉपर ने प्लेटो, हीगेल और मार्क्स की रैडिकल आलोचना करते हुए ‘यूटोपियन सोशल इंजीनियरिंग’ के प्रयासों को सर्वसत्तावाद का स्रोत बताया। पॉपर के चिंतन ने जिस समझ की नींव डाली उसके आधार पर आंद्रे ग्लुक्समैन, बर्नार्ड हेनरी लेवी और अन्य युरोपियन दार्शनिकों ने बीसवीं सदी में सोवियत संघ में हुए मार्क्सवाद के प्रयोग से मिली निराशाओं के तहत इस पद का प्रयोग जारी रखा। धीरे-धीरे सर्वसत्तावाद पश्चिम के वैचारिक हथियार के रूप में रूढ़ हो गया।
शासन पद्धतियों का तुलनात्मक अध्ययन करने वाले विद्वानों कार्ल फ़्रेड्रिख़ और ज़िगनियू ब्रेज़िंस्की ने सर्वसत्तावाद की परिभाषा जीवन के हर क्षेत्र को अपने दायरे में समेट लेने वाली विचारधारा, एक पार्टी की हूकूमत वाले राज्य, ख़ुफ़िया पुलिस के दबदबे और आर्थिक-सांस्कृतिक-प्रचारात्मक ढाँचे पर सरकारी जकड़ के संयोग के रूप में की। यह परिभाषा अपने आगोश में फ़ासीवादी और मार्क्सवादी व्यवस्थाओं को समेट लेती थी। पर सत्तर के दशक में सर्वसत्तावाद के ज़रिये पश्चिमी विद्वानों ने नयी कारीगरी करने की कोशिश की और मार्क्सवादी हुकूमतों को फ़ासीवादी हुकूमतों से अलग करके दिखाया जाने लगा। इस दिलचस्प कवायद का परिणाम ‘सर्वसत्तावाद’ और ‘अधिनायकवाद’ की तुलनात्मक श्रेणियों में निकला। इसके तहत दक्षिणपंथी ग़ैर-लोकतांत्रिक राज्यों को ‘टोटलिटेरियन’ वामपंथी राज्यों के मुकाबले बेहतर ठहराने के लिए ‘एथॉरिटेरियन’ नामक नयी संज्ञा को जन्म दिया गया। इस बौद्धिक उपक्रम के कारण सर्वसत्तावाद का प्रयोग पूरी तरह से बदल गया। जो पद शुरुआत में फ़ासीवाद को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था और जिसे अपनी बौद्धिक वैधता आधुनिक तानाशाहियों के वामपंथी और दक्षिणपंथी रूपों को एक ही श्रेणी में रखने से मिली थी, उसे रोनाल्ड रेगन के राष्ट्रपतित्व के दौरान केवल कम्युनिस्ट व्यवस्थाओं के वर्णन में सीमित कर दिया गया।
ज्ञान के समाजशास्त्र के इस शीतयुद्धीन संस्करण में राजनीतिशास्त्रियों ने जम कर योगदान किया। उनके प्रयासों से ही सर्वसत्तावाद की नयी व्याख्याएँ पचास और साठ के दशक में उभरे आधुनिकीकरण और विकास के सिद्धांतों के नतीजे के रूप में सामने आयीं। इसके पहले चरण में सभी समाजों को परम्परागत से आधुनिकता की तरफ़ सिलसिलेवार रैखिक गति से बढ़ते हुए दिखाया गया। इसके बाद कहा गया कि आधुनिक हो जाने के बाद कुछ समाज सकारात्मक व्यवस्थाओं की तरफ़ चले गये क्योंकि वे आगे बढ़े हुए थे और कुछ नकारात्मक प्रणालियों को अपना बैठे क्योंकि वे पिछड़े हुए समाज थे। इस बौद्धिकता ने लोकतांत्रिक और सर्वसत्तावादी शासन व्यवस्थाओं को आदर्शीकृत रूप में पेश किया।
1968 में अमेरिकी बुद्धिजीवी सेमुअल पी. हंटिंग्टन की रचना पॉलिटिकल ऑर्डर इन चेंजिंग सोसाइटी का प्रकाशन हुआ। हॉब्स की युगप्रवर्तक रचना लेवायथन से प्रभावित इस कृति में हंटिंग्टन ने तर्क दिया कि अविकसित समाजों में कई बार फ़ौज के अलावा ऐसी कोई आधुनिक, पेशेवर और संगठित राष्ट्रीय संस्था नहीं होती जो लोकतंत्र की तरफ़ संक्रमण करने की मुश्किल अवधि में उनका नेतृत्व कर सके। ऐसे समाजों में केवल फ़ौजी शासन ही शांति-व्यवस्था कायम रखते हुए आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से निकले अशांतकारी प्रभावों को काबू में रख सकता है। हंटिंग्टन के इस विश्लेषण ने आधुनिकीकरण के साथ जुड़े हुए कार्य-कारण संबंधों को नयी दृष्टि से देखने का रास्ता खोला। पहली बार यह सूत्रीकरण सामने आया कि आधुनिकीकरण के दबावों से राज्य प्रणाली के संस्थागत ढाँचे का क्षय हो जाता है। फ़ौजी तानाशाही इस ढाँचे की पुनर्रचना कर सकती है जिसका बाद में लोकतंत्रीकरण किया जा सकता है। सैनिक तानाशाही को लोकतंत्र के वाहक की संज्ञा देने वाले इस विकट सूत्रीकरण के पीछे ग़रीब देशों पर काबिज़ अलोकतांत्रिक हुकूमतों का अनुभव था।
लोकतंत्र और सर्वसत्तावाद के बीच इस द्विभाजन को पहली चुनौती 1970 में मिली। समाज-वैज्ञानिकों ने 1964 से 1974 के बीच के दौर में देखा कि लातीनी अमेरिका के अपेक्षाकृत विकसित देशों में ही नहीं, बल्कि स्पेन और पुर्तगाल जैसे धनी देशों में अधिनायकवादी शासन चल रहा है। मैक्सिको में भी लोकतंत्र के आवरण के नीचे दरअसल तानाशाही है। ये व्यवस्थाएँ अफ़्रीकी देशों की व्यक्तिगत किस्म की तानाशाहियों से भिन्न बेहद संगठित और जटिल किस्म की प्रणालियाँ थीं। इनका दावा था कि वे अपने-अपने समाजों में विकास और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का नेतृत्व कर रही हैं। उधर एशिया में भी दक्षिण कोरिया और ताइवान में निरंकुश सरकारें आर्थिक विकास करने में कामयाब दिखने लगी थीं। इस घटनाक्रम का अध्ययन करते हुए युआन लिंज़ ने अपनी क्लासिक रचना ‘एन एथॉरिटेरियन रिज़ीम : अ केस ऑफ़ स्पेन’ में एक ऐसी व्यवस्था की शिनाख्त की जिसमें लोकतंत्र और सर्वसत्तावाद के मिले-जुले लक्षण थे।  इसके बाद गुलेरमो ओडोनेल ने 1973 में दक्षिण अमेरिकी राजनीति का अध्ययन करके दावा किया कि पूँजीवादी विकास और आधुनिकीकरण के गर्भ से लातीनी अमेरिका के अपेक्षाकृत निर्भर लेकिन विकसित देशों में एक नौकरशाह-तानाशाही ने जन्म लिया है।
अमेरिकी राजनीतिशास्त्री जीन किर्कपैट्रिक ने 1979 में हंटिंग्टन, लिंज़ और ओडोनेल की व्याख्याओं के आधार पर स्पष्ट सूत्रीकरण किया कि सर्वसत्तावादी केवल मार्क्सवादी- लेनिनवादी हूकूमतें हैं। अधिनायकवादी शासन दमनकारी तो होता है पर उसमें पूँजीवादी लोकतंत्र के रूप में सुधरने की गुंजाइश होती है। किर्कपैट्रिक के इस बहुचर्चित लेख ‘डिक्टेटरशिप ऐंड डबल स्टैंडर्ड’ से हंगामा मच गया। इसकी आलोचना में कहा गया कि सर्वसत्तावादी राज्य अगर गिरक्रतारी, यातना और हत्या पर निर्भर रहता है तो अधिनायकवादी राज्य इसी तरह के काम निजी क्षेत्र के ज़रिये करवाता है। बहरहाल, किर्कपैट्रिक रेगन प्रशासन की कारकुन बनीं और उन्होंने शीतयुद्धीन राजनीति के लिए अपने राजनीतिशास्त्रीय ज्ञान का जम कर दोहन किया।
शीत युद्ध खत्म हो जाने के बाद राजनीतिशास्त्र के दायरों में इस समय स्थिति यह है कि विद्वानों ने सर्वसत्तावाद की श्रेणी को पूरी तरह से ख़ारिज करके अधिनायकवादी व्यवस्थाओं की एक नयी व्यापक श्रेणी बनायी है। इसमें दमनकारी, असहिष्णु, निजी अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं का अतिक्रमण और ग़ैर-राजकीय हित समूहों को सीमित स्वायत्तता देने वाली प्रणालियों को रखा गया है। इस वर्णन से ज़ाहिर है कि इन प्रवृत्तियों की शिनाख्त ख़ुद को पूरी तरह से लोकतांत्रिक कहने वाले राज्यों में भी की जा सकती है। इस लिहाज़ से स्थापित उदारतावादी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के मुकाबले अधिनायकवाद अधिकांशतः अब एक रुझान का नाम रह गया है।
1. हान्ना एरेंत, द ओरिजिंस ऑफ़ टोटलिटेरियनिज़म, मेरिडियन, न्यूयॉर्क, दूसरा संस्करण.
2. कार्ल पॉपर, ओपन सोसाइटी ऐंड इट्स एनिमीज़, रॉटलेज, लंदन.
3. सेमुअल पी. हंटिंग्टन, पॉलिटिकल ऑर्डर इन चेंजिंग सोसाइटी, येल युनिवर्सिटी प्रेस, न्यू हैविन.
3. सी.जे. फ़्रेड्रिख़ और ज़ैड. ब्रेज़िंस्की, टोटलिटेरियन डिक्टेटरशिप ऐंड ऑटोक्रेसी, प्रेजर, न्यूयॉर्क.
4. जीन किर्कपैट्रिक, ‘डिक्टेटरशिप ऐंड डबल स्टेंडर्ड’, कमेंटरी, खण्ड 68, अंक 5.
5. जे.जे. लिंज़, ‘एन एथॉरिटेरियन रिज़ीम : अ केस ऑफ़ स्पेन’, ई. अलार्ड और एस रोकन, मास पॉलिटिक्स : स्टडीज़ इन पॉलिटिकल सोसियोलॅजी, फ़्री प्रेस, न्यूयॉर्क.
घनत्व
2Assigned on 19 सितंबर 1990, existing onwards.3एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया की सरकारें मानती है कि वे कभी सोवियत संघ का वैध भाग ही नहीं थे।रूस इन तीनों को सोवियत संघ का वैध अंश मानता है और इन सरकारों के कथन को अवैध मानता है।संयुक्त राज्य अमेरिका और बहुत सी अन्य पश्चिमी सरकारों ने इन तीनों का द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ में विलय कभी नहीं स्वीकारा, इसलिए उन्हें सोवियत संघ का वैध अंश नहीं मानते।
सोवियत संघ, जिसका औपचारिक नाम सोवियत समाजवादी गणतंत्रों का संघ था, यूरेशिया के बड़े भूभाग पर विस्तृत एक देश था जो 1922 से 1991 तक अस्तित्व में रहा। यह अपनी स्थापना से 1990 तक साम्यवादी पार्टी द्वारा शासित रहा। संवैधानिक रूप से सोवियत संघ 15 स्वशासित गणतंत्रों का संघ था लेकिन वास्तव में पूरे देश के प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर केन्द्रीय सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा। रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणतंत्र इस देश का सबसे बड़ा गणतंत्र और राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था, इसलिए पूरे देश का गहरा रूसीकरण हुआ। यही कारण रहा कि विदेश में भी सोवियत संघ को अक्सर गलती से 'रूस' बोल दिया जाता था।
शब्द "सोवियत" एक रूसी शब्द है जिसका अर्थ है परिषद, असेंबली, सलाह और सद्भाव।
सोवियत संघ की स्थापना की प्रक्रिया 1917 की रूसी क्रान्ति के साथ शुरू हुई जिसमें रूसी साम्राज्य के ज़ार को सत्ता से हटा दिया गया। व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया लेकिन फ़ौरन ही वह बोल्शेविक-विरोधी श्वेत मोर्चे के साथ गृह युद्ध में फँस गई। बोल्शेविकों की लाल सेना ने गृह युद्ध के दौरान ऐसे भी कई राज्यों पर क़ब्ज़ा कर लिया जिन्होनें त्सार के पतन का फ़ायदा उठाकर रूस से स्वतंत्रता घोषित कर दी थी। दिसम्बर 1922 में बोल्शेविकों की पूर्ण जीत हुई और उन्होंने रूस, युक्रेन, बेलारूस और कॉकस क्षेत्र को मिलकर सोवियत संघ की स्थापना का ऐलान कर दिया।
अप्रैल 1917 : लेनिन और अन्य क्रान्तिकारी जर्मनी से रूस लौटे।
अक्तूबर 1917 : बोल्शेविकों ने आलेक्सान्द्र केरेंस्की की सत्ता को पलटा और मॉस्को पर अधिकार कर लिया।
1918 - 20 : बोल्शेविकों और विरोधियों में गृहयुद्ध।
1920 : पोलैण्ड से युद्ध
1921 : पोलैंड से शांति संधि, नई आर्थिक नीति, बाजार अर्थव्यवस्था की वापसी, स्थिरता।
1922 : रूस, बेलारूस और ट्रांसकॉकेशस क्षेत्रों का मिलन; सोवियत संघ की स्थापना।
1922 : जर्मनी ने सोवियत संघ को मान्यता दी।
1924 : सोवियत संघ में प्रोलिटैरिएट तानाशाही के तहत नया संविधान लागू। लेनिन की मृत्यु। जोसेफ स्टालिन ने सत्ता संभाली।
1933 : अमेरिका ने सोवियत संघ को मान्यता दी।
1934 : सोवियत संघ लीग ऑफ नेशंस में शामिल हुआ।
अगस्त 1939 : द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ।
जून 1941 : जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया।
1943 : स्टालिनग्राद के युद्ध में जर्मनी की हार।
1945 : सोवियत सैनिकों ने बर्लिन पर कब्जा किया। याल्टा और पोट्सडैम सम्मेलनों के जरिए जर्मनी को विभाजित कर पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी का निर्माण। जापान का आत्मसमर्पण और दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति।
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