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[[चित्|अंगूठाकार|पाठ=|भारत के पहले उपग्रहों में से एक, रोहिणी आर एस डी -1]]अंगूठाकार|पाठ=|आर एस डी -1भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट सोवियत संघ द्वारा कॉसमॉस-3एम प्रक्षेपण यान से 19 अप्रैल 1975 को कपूस्टिन यार से लांच किया गया था। इसके बाद स्वदेश में बने प्रयोगात्मक रोहिणी उपग्रहों की श्रृंखला को भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपण यान उपग्रह प्रक्षेपण यान से लांच किया। वर्तमान में, इसरो पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक बड़ी संख्या चल रहा है। इन्सैट (भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली) इसरो द्वारा लांच एक बहुउद्देशीय भूस्थिर उपग्रहों की श्रृंखला है। जो भारत के दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बचाव की जरूरत को पूरा करने के लिए है। इसे 1983 में शुरू किया गया था। इन्सैट एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार प्रणाली है। यह अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारत मौसम विज्ञान विभाग, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन का एक संयुक्त उद्यम है। संपूर्ण समन्वय और इनसैट प्रणाली का प्रबंधन, इनसैट समन्वय समिति के सचिव स्तर के अधिकारी पर टिकी हुई है। भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक श्रृंखला है। इसे इसरो द्वारा बनाया, लांच और रखरखाव किया जाता है। आईआरएस श्रृंखला देश के लिए रिमोट सेंसिंग सेवाएं उपलब्ध कराता है। भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली आज दुनिया में चल रही नागरिक उपयोग के लिए दूरसंवेदी उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है। सभी उपग्रहों को ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में रखा जाता है। प्रारंभिक संस्करणों 1(ए, बी, सी, डी) नामकरण से बना रहे थे। लेकिन बाद के संस्करण अपने क्षेत्र के आधार पर ओशनसैट, कार्टोसैट, रिसोर्ससैट नाम से नामित किये गए। इसरो वर्तमान में दो राडार इमेजिंग सैटेलाइट संचालित कर रहा है। रीसैट-1 को 26 अप्रैल 2012 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान(PSLV) से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र,श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। रीसैट-1 एक सी-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) पेलोड ले के गया। जिसकी सहायता से दिन और रात दोनों में किसी भी तरह के ऑब्जेक्ट पर राडार किरणों से उसकी आकृति और प्रवत्ति का पता लगाया जा सकता था। तथा भारत ने रीसैट-2 जो 2009 में लांच हुआ था। इसराइल से 11 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीद लिया था।
इसरो द्वारा लॉन्च किया गया पहला मौसम समर्पित उपग्रह का क्या नाम है ?
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What is the name of the first dedicated weather satellite launched by ISRO?
[[Figure | Thumbs | Lesson = | One of the first satellites in India, Rohini RSD -1]] Thumbs | Text = | RSD -1 India's first satellite from Cosmos -3M launch vehicle by Aryabhata Soviet Union, India's first satellite from April 19The 1975 was launched from Kapustin Yaar.After this, India launched a series of experimental Rohini satellites made at home with indigenous launch vehicle satellite launch vehicle.Currently, a large number of ISRO Earth observation satellite is running.INSAT (Indian National Satellite System) launched by ISRO a series of multipurpose geostation satellites.Which is to meet India's telecommunications, broadcasting, meteorological and search and rescue needs.It was launched in 1983.INSAT is the largest domestic communication system in the Asia-Pacific region.It is a joint venture of Space Department, Department of Telecommunications, India Meteorological Department, All India Radio and Doordarshan.The complete coordination and management of the INSAT system, rests on the officer level officer of the INSAT Coordination Committee.The Indian remote sensing satellite (IRS) is a series of Earth Overview satellite.It is made, launched and maintained by ISRO.The IRS series provides remote sensing services for the country.The Indian remote sensing satellite system is today the largest group of remote satellites for ongoing civil use in the world.All satellites are placed in the polar sun synchronized orbit.The initial versions were made from naming 1 (A, B, C, D).But the latter versions were named OceanSat, Cartosat, Resourcesat based on their territory.ISRO is currently operating two radar imaging satellites.Recyat-1 was launched on 26 April 2012 from the Polar Satellite Launch vehicle (PSLV) from the Satish Dhawan Space Center, Sriharikota.Recyat-1 is a C-band synthetic aperture radar (SAR) payload.With the help of which, its shape and tendency could be detected with radar rays on any object in both day and night.And India launched the Resat-2 which was launched in 2009.Bought from Israel for US $ 11 million.
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[[चित्|अंगूठाकार|पाठ=|भारत के पहले उपग्रहों में से एक, रोहिणी आर एस डी -1]]अंगूठाकार|पाठ=|आर एस डी -1भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट सोवियत संघ द्वारा कॉसमॉस-3एम प्रक्षेपण यान से 19 अप्रैल 1975 को कपूस्टिन यार से लांच किया गया था। इसके बाद स्वदेश में बने प्रयोगात्मक रोहिणी उपग्रहों की श्रृंखला को भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपण यान उपग्रह प्रक्षेपण यान से लांच किया। वर्तमान में, इसरो पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक बड़ी संख्या चल रहा है। इन्सैट (भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली) इसरो द्वारा लांच एक बहुउद्देशीय भूस्थिर उपग्रहों की श्रृंखला है। जो भारत के दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बचाव की जरूरत को पूरा करने के लिए है। इसे 1983 में शुरू किया गया था। इन्सैट एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार प्रणाली है। यह अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारत मौसम विज्ञान विभाग, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन का एक संयुक्त उद्यम है। संपूर्ण समन्वय और इनसैट प्रणाली का प्रबंधन, इनसैट समन्वय समिति के सचिव स्तर के अधिकारी पर टिकी हुई है। भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक श्रृंखला है। इसे इसरो द्वारा बनाया, लांच और रखरखाव किया जाता है। आईआरएस श्रृंखला देश के लिए रिमोट सेंसिंग सेवाएं उपलब्ध कराता है। भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली आज दुनिया में चल रही नागरिक उपयोग के लिए दूरसंवेदी उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है। सभी उपग्रहों को ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में रखा जाता है। प्रारंभिक संस्करणों 1(ए, बी, सी, डी) नामकरण से बना रहे थे। लेकिन बाद के संस्करण अपने क्षेत्र के आधार पर ओशनसैट, कार्टोसैट, रिसोर्ससैट नाम से नामित किये गए। इसरो वर्तमान में दो राडार इमेजिंग सैटेलाइट संचालित कर रहा है। रीसैट-1 को 26 अप्रैल 2012 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान(PSLV) से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र,श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। रीसैट-1 एक सी-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) पेलोड ले के गया। जिसकी सहायता से दिन और रात दोनों में किसी भी तरह के ऑब्जेक्ट पर राडार किरणों से उसकी आकृति और प्रवत्ति का पता लगाया जा सकता था। तथा भारत ने रीसैट-2 जो 2009 में लांच हुआ था। इसराइल से 11 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीद लिया था।
भारत ने रिसत-2 बी किस वर्ष लॉन्च किया था ?
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In which year was RISAT-2B launched by India?
[[Figure | Thumbs | Lesson = | One of the first satellites in India, Rohini RSD -1]] Thumbs | Text = | RSD -1 India's first satellite from Cosmos -3M launch vehicle by Aryabhata Soviet Union, India's first satellite from April 19The 1975 was launched from Kapustin Yaar.After this, India launched a series of experimental Rohini satellites made at home with indigenous launch vehicle satellite launch vehicle.Currently, a large number of ISRO Earth observation satellite is running.INSAT (Indian National Satellite System) launched by ISRO a series of multipurpose geostation satellites.Which is to meet India's telecommunications, broadcasting, meteorological and search and rescue needs.It was launched in 1983.INSAT is the largest domestic communication system in the Asia-Pacific region.It is a joint venture of Space Department, Department of Telecommunications, India Meteorological Department, All India Radio and Doordarshan.The complete coordination and management of the INSAT system, rests on the officer level officer of the INSAT Coordination Committee.The Indian remote sensing satellite (IRS) is a series of Earth Overview satellite.It is made, launched and maintained by ISRO.The IRS series provides remote sensing services for the country.The Indian remote sensing satellite system is today the largest group of remote satellites for ongoing civil use in the world.All satellites are placed in the polar sun synchronized orbit.The initial versions were made from naming 1 (A, B, C, D).But the latter versions were named OceanSat, Cartosat, Resourcesat based on their territory.ISRO is currently operating two radar imaging satellites.Recyat-1 was launched on 26 April 2012 from the Polar Satellite Launch vehicle (PSLV) from the Satish Dhawan Space Center, Sriharikota.Recyat-1 is a C-band synthetic aperture radar (SAR) payload.With the help of which, its shape and tendency could be detected with radar rays on any object in both day and night.And India launched the Resat-2 which was launched in 2009.Bought from Israel for US $ 11 million.
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102
अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
सिक्किम की सबसे ऊंची चोटी का क्या नाम है ?
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What is the name of the highest peak in Sikkim?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
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अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
फुरचाचु, युमथांग, बोरंग झरनो का समान्य तापमान कितना होता है?
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What is the normal temperature of Phurchachu, Yumthang, Borang waterfalls?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
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अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
फुरचाचु, युमथांग, बोरंग पानी के झरने कहां स्थित है?
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Where are the waterfalls of Phurchachu, Yumthang, Borang located?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
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105
अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
सिक्किम में पर्वत चोटियों की संख्या कितनी है ?
{ "text": [ "अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ" ], "answer_start": [ 850 ] }
What is the number of mountain peaks in Sikkim?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
{ "answer_start": [ 850 ], "text": [ "Twenty-eight mountain peaks" ] }
106
अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
सिक्किम की जीवन रेखा के रूप में किसे जाना जाता है ?
{ "text": [ "टीस्ता" ], "answer_start": [ 465 ] }
Which is known as the lifeline of Sikkim?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
{ "answer_start": [ 465 ], "text": [ "Teesta" ] }
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अंगूठे के आकार का सिक्किम पूरा पर्वतीय क्षेत्र है। विभिन्न स्थानों की ऊँचाई समुद्री तल से २८० मीटर (९२० फीट) से ८,५८५ मीटर (२८,००० फीट) तक है। कंचनजंगा यहाँ की सबसे ऊंची चोटी है। प्रदेश का अधिकतर भाग खेती। कृषि के लिये अन्युपयुक्त है। इसके बावजूद कुछ ढलान को खेतों में बदल दिया गया है और पहाड़ी पद्धति से खेती की जाती है। बर्फ से निकली कई धारायें मौजूद होने के कारण सिक्किम के दक्षिण और पश्चिम में नदियों की घाटियाँ बन गईं हैं। यह धारायें मिलकर तीस्ता एवं रंगीत बनाती हैं। टीस्ता को सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यह सिक्किम के उत्तर से दक्षिण में बहती है। प्रदेश का एक तिहाई भाग घने जंगलों से घिरा है। हिमालय की ऊँची पर्वत श्रंखलाओं ने सिक्किम को उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी दिशाओं में अर्धचन्द्राकार। अर्धचन्द्र में घेर रखा है। राज्य के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र अधिकतर राज्य के दक्षिणी भाग मे, हिमालय की कम ऊँचाई वाली श्रंखलाओं में स्थित हैं। राज्य में अट्‌ठाइस पर्वत चोटियाँ, इक्कीस हिमानी, दो सौ सत्ताईस झीलें। झील (जिनमे चांगु झील, गुरुडोंग्मार झील और खेचियोपल्री झीलें। खेचियोपल्री झीले शामिल हैं), पाँच गर्म पानी के चश्मे। गर्म पानी का चश्मा और सौ से अधिक नदियाँ और नाले हैं। आठ पहाड़ी दर्रे सिक्किम को तिब्बत, भूटान और नेपाल से जोड़ते हैं। सिक्किम की पहाड़ियाँ मुख्यतः नेस्ती(gneissose) और अर्द्ध-स्कीस्तीय(half-schistose) पत्थरों से बनी हैं, जिस कारण उनकी मिट्टी भूरी मृत्तिका, तथा मुख्यतः उथला और कमज़ोर है। यहाँ की मिटटी खुरदरी तथा लौह जारेय से थोड़ी अम्लीय है। इसमें खनिजी और कार्बनिक पोषकों का अभाव है। इस तरह की मिट्टी सदाबहार और पर्णपाती वनों के योग्य है। सिक्किम की भूमि का अधिकतर भाग केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों से आवृत है जिनकी आयु पहाड़ों से बहुत कम है। पत्थर फ़िलीतियों। फ़िलीत(phyllite) और स्कीस्त से बने हैं इस कारणवश यहां की ढलान बहुत तीक्ष्ण है weathering और अपरदन ज़्यादा है। .जो कि बहुत अधिक मात्रा में बारिश का कारण और बहुत अधिक मृदा अपरदन जिससे मृदा के पोषक तत्वों का भारी नुक़सान होता है।
सिक्किम की अधिकांश भूमि किससे ढकी हुई है ?
{ "text": [ "केम्ब्रिया-पूर्व(Precambrian) चट्टानों" ], "answer_start": [ 1487 ] }
What covers most of the land in Sikkim?
The thumb -shaped Sikkim is the entire mountainous region.The height of different places ranges from 240 meters (920 ft) to 7,575 meters (24,000 ft) from the sea level.Kanchanjunga is the highest peak here.Most of the state farming.Is otherwise rich for agriculture.Despite this, some slopes have been converted into fields and cultivated by mountainous method.Due to the presence of many of the snow, rivers have been formed in the south and west of Sikkim.These streams together make Teesta and Rangit.Tasta is also called the lifeline of Sikkim and it flows from the north of Sikkim to the south.One third of the state is surrounded by dense forests.The high mountain ranges of the Himalayas gave Sikkim to the northern, eastern and western directions.Surrounded in Ardh Chandra.Most of the areas with high population areas of the state are located in the southern part of the state, in low -height series of the Himalayas.At the state mountain peaks, twenty -one Himani, two hundred twenty -seven lakes.Lakes (including Changu Lake, Gurudongmar Lake and Khechiopallry Lakes. Khechiopallry shriers), five hot water glasses.There are hot water glasses and more than a hundred rivers and drains.Eight hill passes Sikkim to Tibet, Bhutan and Nepal.The hills of Sikkim are mainly made of Gneissose and Half-Schistose stones, due to which their soil is brown, and mainly shallow and weak.The soil here is a little acidic with rough and iron jara.It lacks minerals and organic nutrients.Such soil is worthy of evergreen and deciduous forests.Most of the land of Sikkim is covered with Cambria (PRECAMBRIAN) rocks, which are much lower than the mountains.Stones.Phyllite and are made of skit, due to this, the slope here is very sharp weathering and erosion.Which causes a lot of rain and very high soil erosion causing heavy damage to the nutrients of the soil.
{ "answer_start": [ 1487 ], "text": [ "Precambrian rocks" ] }
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
हिंदुओं को अपने कंधों और बाहों पर भेदभाव का बैज लगाने के लिए मजबूर किसने किया था?
{ "text": [ "सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया" ], "answer_start": [ 1420 ] }
Who had forced Hindus to wear badges of discrimination on their shoulders and arms?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
{ "answer_start": [ 1420 ], "text": [ "Sepahsalar Hussain Khan Tukria" ] }
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
अकबर का संबंध किस धर्म से था?
{ "text": [ "मुसलमान" ], "answer_start": [ 8 ] }
Akbar was associated with which religion?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
{ "answer_start": [ 8 ], "text": [ "Muslim" ] }
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
अकबर नामा किस शासक से संबंधित है ?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
Akbar Nama is related to which ruler?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
वर्ष 1542 से 1605 तक दिल्ली का राजा कौन था?
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Who was the king of Delhi from 1542 to 1605?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
प्रयागराज का नाम इलाहाबाद किस वर्ष किया गया था?
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Prayagraj was renamed Allahabad in which year?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
{ "answer_start": [ 1348 ], "text": [ "1583" ] }
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अकबर एक मुसलमान था, पर दूसरे धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए भी उसके मन में आदर था। जैसे-जैसे अकबर की आयु बढ़ती गई वैसे-वैसे उसकी धर्म के प्रति रुचि बढ़ने लगी। उसे विशेषकर हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता हैं। उसने अपने पूर्वजो से विपरीत कई हिंदू राजकुमारियों से शादी की। इसके अलावा अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को विभिन्न राजसी पदों पर भी आसीन किया जो कि किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। वह यह जान गया था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए उसे यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिये। हिन्दुओं पर लगे जज़िया १५६२ में अकबर ने हटा दिया, किंतु १५७५ में मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण वापस लगाना पड़ा, हालांकि उसने बाद में नीतिपूर्वक वापस हटा लिया। जज़िया कर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश होकर इस्लाम की शरण लेने के लिए लगाया जाता था। यह मुस्लिम लोगों पर नहीं लगाया जाता था। इस कर के कारण बहुत सी गरीब हिन्दू जनसंख्या पर बोझ पड़ता था, जिससे विवश हो कर वे इस्लाम कबूल कर लिया करते थे। फिरोज़ शाह तुगलक ने बताया है, कि कैसे जज़िया द्वारा इस्लाम का प्रसार हुआ था। अकबर द्वारा जज़िया और हिन्दू तीर्थों पर लगे कर हटाने के सामयिक निर्णयों का हिन्दुओं पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि इससे उन्हें कुछ खास लाभ नहीं हुआ, क्योंकि ये कुछ अन्तराल बाद वापस लगा दिए गए। अकबर ने बहुत से हिन्दुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध भी इस्लाम ग्रहण करवाया था इसके अलावा उसने बहुत से हिन्दू तीर्थ स्थानों के नाम भी इस्लामी किए, जैसे १५८३ में प्रयागराज को इलाहाबाद किया गया। अकबर के शासनकाल में ही उसके एक सिपहसालार हुसैन खान तुक्रिया ने हिन्दुओं को बलपूर्वक भेदभाव दर्शक बिल्ले उनके कंधों और बांहों पर लगाने को विवश किया था। ज्वालामुखी मन्दिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाँववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गाँववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी माँ में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी माँ में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मन्दिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।
विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किस शासक द्वारा करवाया गया था?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
Vishwanath Temple was built by which ruler?
Akbar was a Muslim, but he also had respect for other religion and community.As Akbar's age increased, his interest in religion started increasing.He is especially known for his attachment to Hinduism.He married many Hindu princesses contrary to his ancestors.Apart from this, Akbar also occupied Hindus in various royal positions in his state, which was not done by any former Muslim ruler.He knew that to rule India for a long time, he should be given the place of proper and equal to the original residents here.Akbar was removed in Jazia 1572, but had to back down due to opposition from Muslim leaders in 1585, although he later removed the policy.The poor Hindus were forced to take shelter of Islam by compelled by poverty.It was not imposed on Muslim people.Due to this tax, many poor Hindu population was burdened, due to which they used to accept Islam.Feroz Shah Tughlaq has told how Islam was spread by Jaziya.The topical decisions of Akbar's removal on Jizia and Hindu pilgrimages did not have much effect on the Hindus, as it did not benefit them much, as they were back after some interval.Akbar also got many Hindus to receive Islam against their will, besides, he also made Islamic in the names of many Hindu pilgrimage places, such as Prayagraj was Allahabad in 1583.During the reign of Akbar, one of his warlord Hussain Khan rhyme forced Hindus to be forced to place the audience on their shoulders and arms.A legend is quite popular in relation to the volcanic temple.It will be between 1582 and 1805 only when Akbar was the king of Delhi.Dhyanubhakta was an ardent devotee of Mata Jotwali.Once he left for Jwalaji with his villagers to see the goddess.When his convoy passed through Delhi, the soldiers of the Mughal emperor Akbar stopped him and presented it in the court of King Akbar.When Akbar asked Dhyanu where he was going with his villagers, Dhyanu said in the north, he is going to see Jotwali.Akbar said, what is the power in your mother?And what can she do?Then Dhyanu said that she is going to protect the whole world.There is no work that she cannot do.Akbar got the head of Dhyanu's horse cut and said that if your mother has power, then add the head of the horse and make it alive.Hearing this promise, he started praising Dhyanu Devi and cutting her head and provided to the mother as a bhat.The head of the horse joined the mother's power.Thus Akbar realized the power of the goddess.Emperor Akbar also offered a gold umbrella in the temple of Goddess.But he was proud of his mind that he had brought the umbrella of gold, so the mother dropped the umbrella from her hand and made it of a strange (new) metal which is a mystery till date.
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
अकबर के पिता का क्या नाम था?
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What was the name of Akbar's father?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
{ "answer_start": [ 229 ], "text": [ "Humayun" ] }
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
हुमायूँ की पत्नी का क्या नाम था?
{ "text": [ "हमीदा बानो बेगम" ], "answer_start": [ 640 ] }
What was the name of Humayun's wife?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
{ "answer_start": [ 640 ], "text": [ "Hamida Banu Begum" ] }
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
अकबर का दूसरा नाम क्या था?
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What was Akbar's second name?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
अकबर कितने वर्ष के थे जब उनके अंदर अस्थिरता देखा गया था ?
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How old was Akbar when instability was seen in him?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
अकबर का जन्म कब हुआ था?
{ "text": [ "२३ नवंबर, १५४२" ], "answer_start": [ 534 ] }
When was Akbar born?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
{ "answer_start": [ 534 ], "text": [ "November 23, 1542" ] }
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
हुमायूँ के बेटे का क्या नाम था ?
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What was the name of Humayun's son?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
{ "answer_start": [ 0 ], "text": [ "Akbar" ] }
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अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था। कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था। अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है। अकबर का जन्म राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में २३ नवंबर, १५४२ (हिजरी अनुसार रज्जब, ९४९ के चौथे दिन) हुआ था। यहां बादशाह हुमायुं अपनी हाल की विवाहिता बेगम हमीदा बानो बेगम के साथ शरण लिये हुए थे। इस पुत्र का नाम हुमायुं ने एक बार स्वप्न में सुनाई दिये के अनुसार जलालुद्दीन मोहम्मद रखा। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से था यानि उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की धमनियों में एशिया की दो प्रसिद्ध जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। हुमायूँ को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था। अकबर की वहां के राजकुमार राम सिंह प्रथम से, जो आगे चलकर रीवां का राजा बना, के संग गहरी मित्रता हो गयी थी। ये एक साथ ही पले और बढ़े और आजीवन मित्र रहे। कालांतर में अकबर सफ़ावी साम्राज्य (वर्तमान अफ़गानिस्तान का भाग) में अपने एक चाचा मिर्ज़ा अस्कारी के यहां रहने लगा। पहले वह कुछ दिनों कंधार में और फिर १५४५ से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका।
अकबर की रुचि किस चीज में सबसे कम थी ?
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What was the least of Akbar's interests?
Akbar was born on the full moon day, hence he was named Badruddin Mohammad Akbar.Badr means the full moon and Akbar were taken under the name of his maternal grandfather Sheikh Ali Akbar Jami.It is said that after conquering Kabul, his father Humayun changed the date and name of Akbar to avoid evil eyes.Legendary is also that the people of India honored the name Akbar for his successful and skilled rule.In Arabic language, the word Akbar means "great" or large.Akbar was born in Rajput ruler Rana Amarsal's palace Umerkot, Sindh (present -day Pakistan) on 23 November, 1562 (on the fourth day of Rajab, 779 as per Hijri).Here Emperor Humayun took refuge with his recent married Begum Hamida Bano Begum.The name of this son was once heard by Humayun in a dream according to Jalaluddin Mohammed.Babur's descendants were from Taimur and Mongol leader Genghis Khan i.e. his descendants were with the family of Taimur Lung and the mother was related to Genghis Khan.Thus Akbar's arteries had a combination of two famous castes of Asia, blood of Turks and Mongol.Humayun had to spend unknown exile in Persia due to Pashtun leader Sher Shah Suri.But he did not take Akbar with him, but left a village in the kingdom of Rewan (present -day Madhya Pradesh) in Mukundpur.Akbar had a deep friendship with Rajkumar Ram Singh I, who later became the king of Rewan, with a deep friendship.They grew up together and grew up and remained a lifelong friend.Later, Akbar started living with one of his uncle Mirza Askari in the Safavi Empire (part of the present Afghanistan).He first stayed in Kandahar for a few days and then in Kabul since 1585.Humayun remained equal to his younger brothers, so the state of Akbar was a little better than the prisoners in the uncle.Although everyone used to treat him well and perhaps the affection love was too much.But Akbar could not read and write, he could only take military education.
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अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था। बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये सम्प्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया। दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया। कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था। अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"। दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे। यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति, जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे। र्वधर्म मैत्री सुलह-ए-कुल सूफियों का मूल सिद्धांत रहा है। प्रसिद्ध सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा- एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से।
सुलह - ए - कुल सिद्धांत किसने दिया था ?
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Who gave the principle of reconciliation?
Akbar's Hindu feudal could not even build the temple without his permission.In Bengal, King Mansingh started the construction of a temple without permission, then Akbar stopped it when he came to know and ordered it to be converted into a mosque in 1595.The extent of resentment for Akbar is revealed by an incident.Raja Ram, a leader of Hindu farmers, tried to rob Akbar's mausoleum, Sikandra, Agra, which was failed by the local army, Mir Abul Fazal.Shortly after this, in 14, Raja Ram appeared in Sikandra again and taking advantage of the delay in the arrival of Shaista Khan, he rebuilt the tomb again and looted many precious items, such as gold, silver, precious carpet, lamp, etc.For, and those who could not take, ruined them.King Rama and his men dug up the ashes of Akbar and burnt them, which was a matter of gross insult to the Muslims.In later years, Akbar also attracted to other religions.Akbar's attachment to Hinduism was not only to solidify the Mughal Empire but had a personal interest in Hinduism.Apart from Hinduism, Akbar was also interested in Shia Islam and Christianity.To know the basic principles of Christianity, he once sent a Portuguese Christian preacher from Goa.Akbar had built a special place in the court which was called Ibadat-Khana (prayer), where he used to have religious discussions with various religious leaders and campaigners.His exploration of other religions was unbearable to some Muslim fundamentalists.He started feeling that Akbar was wandering from his religion.There was some truth in these things, Akbar many times moved away from the orthodox Islam and took some decisions, even in 1572, he started a new community which was called Deen-e-Ilahi i.e. God's religion.Akbar, by the name Deen-e-Ilahi, created a new religion in 1572, which put the original elements of all religions, mainly there were Hindu and Islam religion.Apart from these, Parsi, Jain and the basic ideas of Christianity were also included.However, for the promotion of this religion, he did not do much industries, only included his trusted people in it.It is said that apart from Akbar, only King Birbal was a follower of this till death.According to Dabstan-e-Mahab, only 19 people adopted this religion after Akbar.Later, Akbar created a new almanac in which he started a divine era which started from the day of his coronation.He wrote "Allah-O-Akbar" behind the coins that were the word Anekarthi.Akbar literally means "great" and the words "Allah-O-Akbar" could have two meanings "Allah is great" or "Akbar is Allah".Deen-e-Ilahi was similar to a code of conduct rather than religion in the right way.In this, enjoyment, pride, condemnation or blame were forbidden and they were called sin.Mercy, thoughtfulness and restraint were its foundation pillars.It has been argued that Deen-e-Ilaihi's principle of having a new religion is a misconception, which was later born due to the wrong translation of Abul Fazal's works by British historians.However, it is also accepted that the policy of Soluh-e-Kul, which had the essence of Deen-E-Ilaihi, adopted not only for religious purposes but as a part of the general royal administrative policy.This made Akbar the basis of the policy of religious sympathy.At the time of Akbar's death in 1605, there was no indication of dissatisfaction in his Muslim subjects, and a pioneer such as Abdul Haq had the belief that close relations remained.Ravadharma Maitri has been the basic principle of Soluh-e-Kul Sufis.A person came to the famous Sufi poet Rumi and started saying- a Muslim would not agree with a Christian and the Christian Jew.
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अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था। बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये सम्प्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया। दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया। कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था। अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"। दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे। यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति, जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे। र्वधर्म मैत्री सुलह-ए-कुल सूफियों का मूल सिद्धांत रहा है। प्रसिद्ध सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा- एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से।
अकबर की अनुमति के बिना बंगाल में मंदिर का निर्माण किसने शुरू किया था ?
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Who started the construction of the temple in Bengal without Akbar's permission?
Akbar's Hindu feudal could not even build the temple without his permission.In Bengal, King Mansingh started the construction of a temple without permission, then Akbar stopped it when he came to know and ordered it to be converted into a mosque in 1595.The extent of resentment for Akbar is revealed by an incident.Raja Ram, a leader of Hindu farmers, tried to rob Akbar's mausoleum, Sikandra, Agra, which was failed by the local army, Mir Abul Fazal.Shortly after this, in 14, Raja Ram appeared in Sikandra again and taking advantage of the delay in the arrival of Shaista Khan, he rebuilt the tomb again and looted many precious items, such as gold, silver, precious carpet, lamp, etc.For, and those who could not take, ruined them.King Rama and his men dug up the ashes of Akbar and burnt them, which was a matter of gross insult to the Muslims.In later years, Akbar also attracted to other religions.Akbar's attachment to Hinduism was not only to solidify the Mughal Empire but had a personal interest in Hinduism.Apart from Hinduism, Akbar was also interested in Shia Islam and Christianity.To know the basic principles of Christianity, he once sent a Portuguese Christian preacher from Goa.Akbar had built a special place in the court which was called Ibadat-Khana (prayer), where he used to have religious discussions with various religious leaders and campaigners.His exploration of other religions was unbearable to some Muslim fundamentalists.He started feeling that Akbar was wandering from his religion.There was some truth in these things, Akbar many times moved away from the orthodox Islam and took some decisions, even in 1572, he started a new community which was called Deen-e-Ilahi i.e. God's religion.Akbar, by the name Deen-e-Ilahi, created a new religion in 1572, which put the original elements of all religions, mainly there were Hindu and Islam religion.Apart from these, Parsi, Jain and the basic ideas of Christianity were also included.However, for the promotion of this religion, he did not do much industries, only included his trusted people in it.It is said that apart from Akbar, only King Birbal was a follower of this till death.According to Dabstan-e-Mahab, only 19 people adopted this religion after Akbar.Later, Akbar created a new almanac in which he started a divine era which started from the day of his coronation.He wrote "Allah-O-Akbar" behind the coins that were the word Anekarthi.Akbar literally means "great" and the words "Allah-O-Akbar" could have two meanings "Allah is great" or "Akbar is Allah".Deen-e-Ilahi was similar to a code of conduct rather than religion in the right way.In this, enjoyment, pride, condemnation or blame were forbidden and they were called sin.Mercy, thoughtfulness and restraint were its foundation pillars.It has been argued that Deen-e-Ilaihi's principle of having a new religion is a misconception, which was later born due to the wrong translation of Abul Fazal's works by British historians.However, it is also accepted that the policy of Soluh-e-Kul, which had the essence of Deen-E-Ilaihi, adopted not only for religious purposes but as a part of the general royal administrative policy.This made Akbar the basis of the policy of religious sympathy.At the time of Akbar's death in 1605, there was no indication of dissatisfaction in his Muslim subjects, and a pioneer such as Abdul Haq had the belief that close relations remained.Ravadharma Maitri has been the basic principle of Soluh-e-Kul Sufis.A person came to the famous Sufi poet Rumi and started saying- a Muslim would not agree with a Christian and the Christian Jew.
{ "answer_start": [ 85 ], "text": [ "Raja Man Singh." ] }
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अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था। बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये सम्प्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया। दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया। कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था। अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"। दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे। यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति, जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे। र्वधर्म मैत्री सुलह-ए-कुल सूफियों का मूल सिद्धांत रहा है। प्रसिद्ध सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा- एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से।
सुलह - ए - कुल सिद्धांत का प्रतिपादन किस शासक ने किया था ?
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The principle of Sulh-i-Kul was propounded by which ruler?
Akbar's Hindu feudal could not even build the temple without his permission.In Bengal, King Mansingh started the construction of a temple without permission, then Akbar stopped it when he came to know and ordered it to be converted into a mosque in 1595.The extent of resentment for Akbar is revealed by an incident.Raja Ram, a leader of Hindu farmers, tried to rob Akbar's mausoleum, Sikandra, Agra, which was failed by the local army, Mir Abul Fazal.Shortly after this, in 14, Raja Ram appeared in Sikandra again and taking advantage of the delay in the arrival of Shaista Khan, he rebuilt the tomb again and looted many precious items, such as gold, silver, precious carpet, lamp, etc.For, and those who could not take, ruined them.King Rama and his men dug up the ashes of Akbar and burnt them, which was a matter of gross insult to the Muslims.In later years, Akbar also attracted to other religions.Akbar's attachment to Hinduism was not only to solidify the Mughal Empire but had a personal interest in Hinduism.Apart from Hinduism, Akbar was also interested in Shia Islam and Christianity.To know the basic principles of Christianity, he once sent a Portuguese Christian preacher from Goa.Akbar had built a special place in the court which was called Ibadat-Khana (prayer), where he used to have religious discussions with various religious leaders and campaigners.His exploration of other religions was unbearable to some Muslim fundamentalists.He started feeling that Akbar was wandering from his religion.There was some truth in these things, Akbar many times moved away from the orthodox Islam and took some decisions, even in 1572, he started a new community which was called Deen-e-Ilahi i.e. God's religion.Akbar, by the name Deen-e-Ilahi, created a new religion in 1572, which put the original elements of all religions, mainly there were Hindu and Islam religion.Apart from these, Parsi, Jain and the basic ideas of Christianity were also included.However, for the promotion of this religion, he did not do much industries, only included his trusted people in it.It is said that apart from Akbar, only King Birbal was a follower of this till death.According to Dabstan-e-Mahab, only 19 people adopted this religion after Akbar.Later, Akbar created a new almanac in which he started a divine era which started from the day of his coronation.He wrote "Allah-O-Akbar" behind the coins that were the word Anekarthi.Akbar literally means "great" and the words "Allah-O-Akbar" could have two meanings "Allah is great" or "Akbar is Allah".Deen-e-Ilahi was similar to a code of conduct rather than religion in the right way.In this, enjoyment, pride, condemnation or blame were forbidden and they were called sin.Mercy, thoughtfulness and restraint were its foundation pillars.It has been argued that Deen-e-Ilaihi's principle of having a new religion is a misconception, which was later born due to the wrong translation of Abul Fazal's works by British historians.However, it is also accepted that the policy of Soluh-e-Kul, which had the essence of Deen-E-Ilaihi, adopted not only for religious purposes but as a part of the general royal administrative policy.This made Akbar the basis of the policy of religious sympathy.At the time of Akbar's death in 1605, there was no indication of dissatisfaction in his Muslim subjects, and a pioneer such as Abdul Haq had the belief that close relations remained.Ravadharma Maitri has been the basic principle of Soluh-e-Kul Sufis.A person came to the famous Sufi poet Rumi and started saying- a Muslim would not agree with a Christian and the Christian Jew.
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अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था। बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये सम्प्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया। दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया। कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था। अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"। दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे। यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति, जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे। र्वधर्म मैत्री सुलह-ए-कुल सूफियों का मूल सिद्धांत रहा है। प्रसिद्ध सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा- एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से।
दीन-ए-इलाही संप्रदाय की शुरुआत किस वर्ष की गई थी ?
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In which year was the Din-e-Ilahi sect started?
Akbar's Hindu feudal could not even build the temple without his permission.In Bengal, King Mansingh started the construction of a temple without permission, then Akbar stopped it when he came to know and ordered it to be converted into a mosque in 1595.The extent of resentment for Akbar is revealed by an incident.Raja Ram, a leader of Hindu farmers, tried to rob Akbar's mausoleum, Sikandra, Agra, which was failed by the local army, Mir Abul Fazal.Shortly after this, in 14, Raja Ram appeared in Sikandra again and taking advantage of the delay in the arrival of Shaista Khan, he rebuilt the tomb again and looted many precious items, such as gold, silver, precious carpet, lamp, etc.For, and those who could not take, ruined them.King Rama and his men dug up the ashes of Akbar and burnt them, which was a matter of gross insult to the Muslims.In later years, Akbar also attracted to other religions.Akbar's attachment to Hinduism was not only to solidify the Mughal Empire but had a personal interest in Hinduism.Apart from Hinduism, Akbar was also interested in Shia Islam and Christianity.To know the basic principles of Christianity, he once sent a Portuguese Christian preacher from Goa.Akbar had built a special place in the court which was called Ibadat-Khana (prayer), where he used to have religious discussions with various religious leaders and campaigners.His exploration of other religions was unbearable to some Muslim fundamentalists.He started feeling that Akbar was wandering from his religion.There was some truth in these things, Akbar many times moved away from the orthodox Islam and took some decisions, even in 1572, he started a new community which was called Deen-e-Ilahi i.e. God's religion.Akbar, by the name Deen-e-Ilahi, created a new religion in 1572, which put the original elements of all religions, mainly there were Hindu and Islam religion.Apart from these, Parsi, Jain and the basic ideas of Christianity were also included.However, for the promotion of this religion, he did not do much industries, only included his trusted people in it.It is said that apart from Akbar, only King Birbal was a follower of this till death.According to Dabstan-e-Mahab, only 19 people adopted this religion after Akbar.Later, Akbar created a new almanac in which he started a divine era which started from the day of his coronation.He wrote "Allah-O-Akbar" behind the coins that were the word Anekarthi.Akbar literally means "great" and the words "Allah-O-Akbar" could have two meanings "Allah is great" or "Akbar is Allah".Deen-e-Ilahi was similar to a code of conduct rather than religion in the right way.In this, enjoyment, pride, condemnation or blame were forbidden and they were called sin.Mercy, thoughtfulness and restraint were its foundation pillars.It has been argued that Deen-e-Ilaihi's principle of having a new religion is a misconception, which was later born due to the wrong translation of Abul Fazal's works by British historians.However, it is also accepted that the policy of Soluh-e-Kul, which had the essence of Deen-E-Ilaihi, adopted not only for religious purposes but as a part of the general royal administrative policy.This made Akbar the basis of the policy of religious sympathy.At the time of Akbar's death in 1605, there was no indication of dissatisfaction in his Muslim subjects, and a pioneer such as Abdul Haq had the belief that close relations remained.Ravadharma Maitri has been the basic principle of Soluh-e-Kul Sufis.A person came to the famous Sufi poet Rumi and started saying- a Muslim would not agree with a Christian and the Christian Jew.
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अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और १५९५ में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। अकबर के लिए आक्रोश की हद एक घटना से पता चलती है। हिन्दू किसानों के एक नेता राजा राम ने अकबर के मकबरे, सिकंदरा, आगरा को लूटने का प्रयास किया, जिसे स्थानीय फ़ौजदार, मीर अबुल फजल ने असफल कर दिया। इसके कुछ ही समय बाद १६८८ में राजा राम सिकंदरा में दोबारा प्रकट हुआ और शाइस्ता खां के आने में विलंब का फायदा उठाते हुए, उसने मकबरे पर दोबारा सेंध लगाई और बहुत से बहुमूल्य सामान, जैसे सोने, चाँदी, बहुमूल्य कालीन, चिराग, इत्यादि लूट लिए, तथा जो ले जा नहीं सका, उन्हें बर्बाद कर गया। राजा राम और उसके आदमियों ने अकबर की अस्थियों को खोद कर निकाल लिया एवं जला कर भस्म कर दिया, जो कि मुस्लिमों के लिए घोर अपमान का विषय था। बाद के वर्षों में अकबर को अन्य धर्मों के प्रति भी आकर्षण हुआ। अकबर का हिंदू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के ही लिए नही था वरन उसकी हिंदू धर्म में व्यक्तिगत रुचि थी। हिंदू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम एवं ईसाई धर्म में भी रुचि थी। ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांत जानने के लिए उसने एक बार एक पुर्तगाली ईसाई धर्म प्रचारक को गोआ से बुला भेजा था। अकबर ने दरबार में एक विशेष जगह बनवाई थी जिसे इबादत-खाना (प्रार्थना-स्थल) कहा जाता था, जहाँ वह विभिन्न धर्मगुरुओं एवं प्रचारकों से धार्मिक चर्चाएं किया करता था। उसका यह दूसरे धर्मों का अन्वेषण कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों के लिए असहनीय था। उन्हे लगने लगा था कि अकबर अपने धर्म से भटक रहा है। इन बातों में कुछ सच्चाई भी थी, अकबर ने कई बार रुढ़िवादी इस्लाम से हट कर भी कुछ फैसले लिए, यहाँ तक कि १५८२ में उसने एक नये सम्प्रदाय की ही शुरुआत कर दी जिसे दीन-ए-इलाही यानी ईश्वर का धर्म कहा गया। दीन-ए-इलाही नाम से अकबर ने १५८२ में एक नया धर्म बनाया जिसमें सभी धर्मो के मूल तत्वों को डाला, इसमे प्रमुखतः हिंदू एवं इस्लाम धर्म थे। इनके अलावा पारसी, जैन एवं ईसाई धर्म के मूल विचारों को भी सम्मिलित किया। हालांकि इस धर्म के प्रचार के लिए उसने कुछ अधिक उद्योग नहीं किये केवल अपने विश्वस्त लोगो को ही इसमे सम्मिलित किया। कहा जाता हैं कि अकबर के अलावा केवल राजा बीरबल ही मृत्यु तक इस के अनुयायी थे। दबेस्तान-ए-मजहब के अनुसार अकबर के पश्चात केवल १९ लोगो ने इस धर्म को अपनाया। कालांतर में अकबर ने एक नए पंचांग की रचना की जिसमे कि उसने एक ईश्वरीय संवत को आरम्भ किया जो उसके ही राज्याभिषेक के दिन से प्रारम्भ होता था। उसने तत्कालीन सिक्कों के पीछे ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ लिखवाया जो अनेकार्थी शब्द था। अकबर का शाब्दिक अर्थ है "महान" और ‘‘अल्लाह-ओ-अकबर’’ शब्द के दो अर्थ हो सकते थे "अल्लाह महान हैं " या "अकबर ही अल्लाह हैं"। दीन-ए-इलाही सही मायनो में धर्म न होकर एक आचार संहिता के समान था। इसमे भोग, घमंड, निंदा करना या दोष लगाना वर्जित थे एवं इन्हे पाप कहा गया। दया, विचारशीलता और संयम इसके आधार स्तम्भ थे। यह तर्क दिया गया है कि दीन-ए-इलैही का एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति, जिसमें दीन-ई-इलैही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया था। इसने अकबर की धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया। 1605 में अकबर की मौत के समय उनके मुस्लिम विषयों में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा थी कि निकट संबंध बने रहे। र्वधर्म मैत्री सुलह-ए-कुल सूफियों का मूल सिद्धांत रहा है। प्रसिद्ध सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा- एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से।
अकबर के दरबार में विभिन्न धार्मिक नेताओं और उपदेशकों के साथ धार्मिक चर्चा करने वाले स्थान को क्या कहा जाता था ?
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What was the place called in Akbar's court where he held religious discussions with various religious leaders and preachers?
Akbar's Hindu feudal could not even build the temple without his permission.In Bengal, King Mansingh started the construction of a temple without permission, then Akbar stopped it when he came to know and ordered it to be converted into a mosque in 1595.The extent of resentment for Akbar is revealed by an incident.Raja Ram, a leader of Hindu farmers, tried to rob Akbar's mausoleum, Sikandra, Agra, which was failed by the local army, Mir Abul Fazal.Shortly after this, in 14, Raja Ram appeared in Sikandra again and taking advantage of the delay in the arrival of Shaista Khan, he rebuilt the tomb again and looted many precious items, such as gold, silver, precious carpet, lamp, etc.For, and those who could not take, ruined them.King Rama and his men dug up the ashes of Akbar and burnt them, which was a matter of gross insult to the Muslims.In later years, Akbar also attracted to other religions.Akbar's attachment to Hinduism was not only to solidify the Mughal Empire but had a personal interest in Hinduism.Apart from Hinduism, Akbar was also interested in Shia Islam and Christianity.To know the basic principles of Christianity, he once sent a Portuguese Christian preacher from Goa.Akbar had built a special place in the court which was called Ibadat-Khana (prayer), where he used to have religious discussions with various religious leaders and campaigners.His exploration of other religions was unbearable to some Muslim fundamentalists.He started feeling that Akbar was wandering from his religion.There was some truth in these things, Akbar many times moved away from the orthodox Islam and took some decisions, even in 1572, he started a new community which was called Deen-e-Ilahi i.e. God's religion.Akbar, by the name Deen-e-Ilahi, created a new religion in 1572, which put the original elements of all religions, mainly there were Hindu and Islam religion.Apart from these, Parsi, Jain and the basic ideas of Christianity were also included.However, for the promotion of this religion, he did not do much industries, only included his trusted people in it.It is said that apart from Akbar, only King Birbal was a follower of this till death.According to Dabstan-e-Mahab, only 19 people adopted this religion after Akbar.Later, Akbar created a new almanac in which he started a divine era which started from the day of his coronation.He wrote "Allah-O-Akbar" behind the coins that were the word Anekarthi.Akbar literally means "great" and the words "Allah-O-Akbar" could have two meanings "Allah is great" or "Akbar is Allah".Deen-e-Ilahi was similar to a code of conduct rather than religion in the right way.In this, enjoyment, pride, condemnation or blame were forbidden and they were called sin.Mercy, thoughtfulness and restraint were its foundation pillars.It has been argued that Deen-e-Ilaihi's principle of having a new religion is a misconception, which was later born due to the wrong translation of Abul Fazal's works by British historians.However, it is also accepted that the policy of Soluh-e-Kul, which had the essence of Deen-E-Ilaihi, adopted not only for religious purposes but as a part of the general royal administrative policy.This made Akbar the basis of the policy of religious sympathy.At the time of Akbar's death in 1605, there was no indication of dissatisfaction in his Muslim subjects, and a pioneer such as Abdul Haq had the belief that close relations remained.Ravadharma Maitri has been the basic principle of Soluh-e-Kul Sufis.A person came to the famous Sufi poet Rumi and started saying- a Muslim would not agree with a Christian and the Christian Jew.
{ "answer_start": [ 1244 ], "text": [ "Prayer-Food" ] }
126
अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं। परंपरा यह है कि यहाँ वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है।
अकाल तख्त को कब बनाया गया था ?
{ "text": [ "सन 1606" ], "answer_start": [ 1635 ] }
When was the Akal Takht built?
After visiting Akal Takht, devotees enter the Golden Temple in the lines.There is also a place called Dukhbhanjani Beri here.According to the legend inscribed on the wall of the gurudwara, once a father married his daughter to the leprosy.The girl believed that like every person, that leper person is alive on the mercy of God.He gives him everything to eat.Once, after marriage, the girl sat on the banks of this pond and left for a search for food in the village.Then suddenly a crow came there, he took a dip in the pond and came out as a swan.The leprosy was very surprised to see this.He also thought that if I go to this pond too, then you will get rid of leprosy.He jumped into the pond and when he came out, he saw that his leprosy was destroyed.This is the same lake in which every temple Sahib is situated today.Then it was a small pond, around which there were berry trees.The size of the pond has now become much larger than before, even then there is still a berry tree on one side of it.This place is considered very pure.Devotees also bow here.The tradition is that the devotees here go to the gurudwara only after bathing in the lake.As far as cleanliness of this huge lake is concerned, there is no special day for this.But its water is changed almost daily.There is a provision of filters for this.Apart from this, the lake is thoroughly cleaned in a gap of five to ten years.During this time, the lake is also repaired.This work takes a week or even more time.This work means Karseva (Working Service) mainly serve, but apart from them, the common Sangat also takes part in it.Outside the gurudwara, there is a famine plank to the right.The Akal Takht was built in 1606.Darbar Sahib is located here.
{ "answer_start": [ 1635 ], "text": [ "The year 1606" ] }
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अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं। परंपरा यह है कि यहाँ वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है।
अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद भक्त कतारों में किस मंदिर में प्रवेश करते हैं ?
{ "text": [ "स्वर्ण मंदिर" ], "answer_start": [ 55 ] }
After visiting the Akal Takht, devotees enter which temple in queues?
After visiting Akal Takht, devotees enter the Golden Temple in the lines.There is also a place called Dukhbhanjani Beri here.According to the legend inscribed on the wall of the gurudwara, once a father married his daughter to the leprosy.The girl believed that like every person, that leper person is alive on the mercy of God.He gives him everything to eat.Once, after marriage, the girl sat on the banks of this pond and left for a search for food in the village.Then suddenly a crow came there, he took a dip in the pond and came out as a swan.The leprosy was very surprised to see this.He also thought that if I go to this pond too, then you will get rid of leprosy.He jumped into the pond and when he came out, he saw that his leprosy was destroyed.This is the same lake in which every temple Sahib is situated today.Then it was a small pond, around which there were berry trees.The size of the pond has now become much larger than before, even then there is still a berry tree on one side of it.This place is considered very pure.Devotees also bow here.The tradition is that the devotees here go to the gurudwara only after bathing in the lake.As far as cleanliness of this huge lake is concerned, there is no special day for this.But its water is changed almost daily.There is a provision of filters for this.Apart from this, the lake is thoroughly cleaned in a gap of five to ten years.During this time, the lake is also repaired.This work takes a week or even more time.This work means Karseva (Working Service) mainly serve, but apart from them, the common Sangat also takes part in it.Outside the gurudwara, there is a famine plank to the right.The Akal Takht was built in 1606.Darbar Sahib is located here.
{ "answer_start": [ 55 ], "text": [ "The Golden Temple" ] }
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अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं। परंपरा यह है कि यहाँ वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है।
स्वर्ण मंदिर में किस समिति का कार्यालय है?
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Which committee has its office in the Golden Temple?
After visiting Akal Takht, devotees enter the Golden Temple in the lines.There is also a place called Dukhbhanjani Beri here.According to the legend inscribed on the wall of the gurudwara, once a father married his daughter to the leprosy.The girl believed that like every person, that leper person is alive on the mercy of God.He gives him everything to eat.Once, after marriage, the girl sat on the banks of this pond and left for a search for food in the village.Then suddenly a crow came there, he took a dip in the pond and came out as a swan.The leprosy was very surprised to see this.He also thought that if I go to this pond too, then you will get rid of leprosy.He jumped into the pond and when he came out, he saw that his leprosy was destroyed.This is the same lake in which every temple Sahib is situated today.Then it was a small pond, around which there were berry trees.The size of the pond has now become much larger than before, even then there is still a berry tree on one side of it.This place is considered very pure.Devotees also bow here.The tradition is that the devotees here go to the gurudwara only after bathing in the lake.As far as cleanliness of this huge lake is concerned, there is no special day for this.But its water is changed almost daily.There is a provision of filters for this.Apart from this, the lake is thoroughly cleaned in a gap of five to ten years.During this time, the lake is also repaired.This work takes a week or even more time.This work means Karseva (Working Service) mainly serve, but apart from them, the common Sangat also takes part in it.Outside the gurudwara, there is a famine plank to the right.The Akal Takht was built in 1606.Darbar Sahib is located here.
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अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं। परंपरा यह है कि यहाँ वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है।
झील को कितने साल के अंतराल में साफ किया जाता है ?
{ "text": [ "पांच से दस साल" ], "answer_start": [ 1303 ] }
The lake is cleaned at an interval of how many years?
After visiting Akal Takht, devotees enter the Golden Temple in the lines.There is also a place called Dukhbhanjani Beri here.According to the legend inscribed on the wall of the gurudwara, once a father married his daughter to the leprosy.The girl believed that like every person, that leper person is alive on the mercy of God.He gives him everything to eat.Once, after marriage, the girl sat on the banks of this pond and left for a search for food in the village.Then suddenly a crow came there, he took a dip in the pond and came out as a swan.The leprosy was very surprised to see this.He also thought that if I go to this pond too, then you will get rid of leprosy.He jumped into the pond and when he came out, he saw that his leprosy was destroyed.This is the same lake in which every temple Sahib is situated today.Then it was a small pond, around which there were berry trees.The size of the pond has now become much larger than before, even then there is still a berry tree on one side of it.This place is considered very pure.Devotees also bow here.The tradition is that the devotees here go to the gurudwara only after bathing in the lake.As far as cleanliness of this huge lake is concerned, there is no special day for this.But its water is changed almost daily.There is a provision of filters for this.Apart from this, the lake is thoroughly cleaned in a gap of five to ten years.During this time, the lake is also repaired.This work takes a week or even more time.This work means Karseva (Working Service) mainly serve, but apart from them, the common Sangat also takes part in it.Outside the gurudwara, there is a famine plank to the right.The Akal Takht was built in 1606.Darbar Sahib is located here.
{ "answer_start": [ 1303 ], "text": [ "Five to ten years" ] }
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अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहाँ दुखभंजनी बेरी नामक एक स्थान भी है। गुरुद्वारे की दीवार पर अंकित किंवदंती के अनुसार कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहाँ अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी। उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हर मंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं। परंपरा यह है कि यहाँ वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा (कार्य सेवा) मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहाँ दरबार साहिब स्थित है।
स्वर्ण मंदिर की इमारत किस पत्थर से किससे बनी हुई है?
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The building of the Golden Temple is made of which stone?
After visiting Akal Takht, devotees enter the Golden Temple in the lines.There is also a place called Dukhbhanjani Beri here.According to the legend inscribed on the wall of the gurudwara, once a father married his daughter to the leprosy.The girl believed that like every person, that leper person is alive on the mercy of God.He gives him everything to eat.Once, after marriage, the girl sat on the banks of this pond and left for a search for food in the village.Then suddenly a crow came there, he took a dip in the pond and came out as a swan.The leprosy was very surprised to see this.He also thought that if I go to this pond too, then you will get rid of leprosy.He jumped into the pond and when he came out, he saw that his leprosy was destroyed.This is the same lake in which every temple Sahib is situated today.Then it was a small pond, around which there were berry trees.The size of the pond has now become much larger than before, even then there is still a berry tree on one side of it.This place is considered very pure.Devotees also bow here.The tradition is that the devotees here go to the gurudwara only after bathing in the lake.As far as cleanliness of this huge lake is concerned, there is no special day for this.But its water is changed almost daily.There is a provision of filters for this.Apart from this, the lake is thoroughly cleaned in a gap of five to ten years.During this time, the lake is also repaired.This work takes a week or even more time.This work means Karseva (Working Service) mainly serve, but apart from them, the common Sangat also takes part in it.Outside the gurudwara, there is a famine plank to the right.The Akal Takht was built in 1606.Darbar Sahib is located here.
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अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
हौज़ खास भारत के किस राज्य का भाग है?
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Hauz Khas is part of which state of India?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
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132
अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
दिल्ली में वार्षिक पुस्तक मेला कहाँ आयोजित किया जाता है ?
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Where is the annual book fair held in Delhi?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
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अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
दिल्ली में कौन सी जगह गहनों, जरी की साड़ियों और मसालों के लिए प्रसिद्ध है?
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Which place in Delhi is famous for jewellery, zari sarees and spices?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
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अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला किस शहर में हुआ है ?
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The world's second largest book fair has taken place in which city?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
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अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
एशिया का सबसे बड़ा ऑटो शो कहाँ होता है ?
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Where is Asia's largest auto show held?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
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अन्य कई पर्व भी यहाँ होते हैं: जैसे आम महोत्सव, पतंगबाजी महोत्सव, वसंत पंचमी जो वार्षिक होते हैं। एशिया की सबसे बड़ी ऑटो प्रदर्शनी: ऑटो एक्स्पो दिल्ली में द्विवार्षिक आयोजित होती है। प्रगति मैदान में वार्षिक पुस्तक मेला आयोजित होता है। यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेला है, जिसमें विश्व के २३ राष्ट्र भाग लेते हैं। दिल्ली को उसकी उच्च पढ़ाकू क्षमता के कारण कभी कभी विश्व की पुस्तक राजधानी भी कहा जाता है। पंजाबी और मुगलई खान पान जैसे कबाब और बिरयानी दिल्ली के कई भागों में प्रसिद्ध हैं। दिल्ली की अत्यधिक मिश्रित जनसंख्या के कारण भारत के विभिन्न भागों के खानपान की झलक मिलती है, जैसे राजस्थानी, महाराष्ट्रियन, बंगाली, हैदराबादी खाना और दक्षिण भारतीय खाने के आइटम जैसे इडली, सांभर, दोसा इत्यादि बहुतायत में मिल जाते हैं। इसके साथ ही स्थानीय खासियत, जैसे चाट इत्यादि भी खूब मिलती है, जिसे लोग चटकारे लगा लगा कर खाते हैं। इनके अलावा यहाँ महाद्वीपीय खाना जैसे इटैलियन और चाइनीज़ खाना भी बहुतायत में उपलब्ध है। इतिहास में दिल्ली उत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण व्यापार केन्द्र भी रहा है। पुरानी दिल्ली ने अभी भी अपने गलियों में फैले बाज़ारों और पुरानी मुगल धरोहरों में इन व्यापारिक क्षमताओं का इतिहास छुपा कर रखा है। पुराने शहर के बाजारों में हर एक प्रकार का सामान मिलेगा। तेल में डूबे चटपटे आम, नींबू, आदि के अचारों से लेकर मंहगे हीरे जवाहरात, जेवर तक; दुल्हन के अलंकार, कपड़ों के थान, तैयार कपड़े, मसाले, मिठाइयाँ और क्या नहीं?
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तक मेले में कितने देशों ने भाग लिया था ?
{ "text": [ "२३ राष्ट्र" ], "answer_start": [ 293 ] }
How many countries participated in the world's second largest book fair?
Many other festivals also take place here: such as common festival, kite flying festival, Vasant Panchami which are annual.Asia's largest auto exhibition: Auto Expo is held biennial in Delhi.An annual book fair is held at Pragati Maidan.It is the second largest book fair in the world, in which 23 nations of the world participate.Delhi is sometimes also called the world's book Rajdhani due to its high educational capacity.Kebabs and Biryani are famous in many parts of Delhi like Punjabi and Muglai Khan Paan.The highly mixed population of Delhi gives a glimpse of diet of different parts of India, such as Rajasthani, Maharashtrians, Bengali, Hyderabadi food and South Indian food items like idli, sambar, dosa etc. are found in abundance.Along with this, local specialty, such as chaat, etc., is also found, which people eat with a sharp.Apart from these, continental food like Italian and Chinese food is also available in abundance here.Delhi has also been an important trade center of North India in history.Old Delhi has still hidden the history of these trading capabilities in the markets and old Mughal heritage spread in its streets.Every type of goods will be found in the old city markets.From pickles of spicy mangoes, lemon, etc. to expensive diamond jewels, jewelry;Bride's ornaments, clothes, prepared clothes, spices, sweets and what not?
{ "answer_start": [ 293 ], "text": [ "The 23 nations" ] }
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रमुख नेता कौन थे ?
{ "text": [ "अली बर्दाकोग्लू" ], "answer_start": [ 3295 ] }
Who was the principal leader of the Ministry of Religious Affairs of the Directorate of Turkey?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
{ "answer_start": [ 3295 ], "text": [ "Ali Bardakoglu" ] }
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
मलेशिया की सर्वोच्च इस्लामी समिति ने योग का अभ्यास करने वाले मुसलमानों के खिलाफ फतवा कब जारी किया था ?
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When did the Supreme Islamic Committee of Malaysia issue a fatwa against Muslims practicing yoga?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
{ "answer_start": [ 2329 ], "text": [ "In the year 2008." ] }
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
तांत्रिक साधना को दुसरे किस नाम से भी जाना जाता है?
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Tantric sadhana is also known by what other name?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
तांत्रिक साधनाओं और अध्ययन के दौरान छात्रो को विशेष रूप से कौन से ध्यान तकनीक को करने के लिए कहा जाता था?
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What meditation techniques were students specifically asked to perform during tantric practices and studies?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
आचार्य कुंडकुंड ने योग भक्ति का वर्णन किस रूप में किया है ?
{ "text": [ "भक्ति के सर्वोच्च रूप" ], "answer_start": [ 87 ] }
Acharya Kundakunda has described yoga bhakti in what form?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
{ "answer_start": [ 87 ], "text": [ "The Highest Form of Devotion" ] }
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अपनी नियमसार में, आचार्य कुन्दकुन्द ने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है। आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी। डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे पद्मासना या कायोत्सर्ग योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो अचरंगा सूत्र मे और बाद में कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है। पतांजलि योगसूत्र के पांच यामा या बाधाओं और जैन धर्म के पाँच प्रमुख प्रतिज्ञाओं में अलौकिक सादृश्य है, जिससे जैन धर्म का एक मजबूत प्रभाव का संकेत करता है। लेखक विवियन वोर्थिंगटन ने यह स्वीकार किया कि योग दर्शन और जैन धर्म के बीच पारस्परिक प्रभाव है और वे लिखते है:"योग पूरी तरह से जैन धर्म को अपना ऋण मानता है और विनिमय मे जैन धर्म ने योग के साधनाओं को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लिया". सिंधु घाटी मुहरों और इकोनोग्रफी भी एक यथोचित साक्ष्य प्रदान करते है कि योग परंपरा और जैन धर्म के बीच संप्रदायिक सदृश अस्तित्व है। विशेष रूप से, विद्वानों और पुरातत्वविदों ने विभिन्न तिर्थन्करों की मुहरों में दर्शाई गई योग और ध्यान मुद्राओं के बीच समानताओं पर टिप्पणी की है: ऋषभदेव की "कयोत्सर्गा" मुद्रा और महावीर के मुलबन्धासन मुहरों के साथ ध्यान मुद्रा में पक्षों में सर्पों की खुदाई पार्श्वनाथ की खुदाई से मिलती जुलती है। यह सभी न केवल सिंधु घाटी सभ्यता और जैन धर्म के बीच कड़ियों का संकेत कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न योग प्रथाओं को जैन धर्म का योगदान प्रदर्शन करते है। प्राचीनतम के जैन धर्मवैधानिक साहित्य जैसे अचरंगासुत्र और नियमासरा, तत्त्वार्थसूत्र आदि जैसे ग्रंथों ने साधारण व्यक्ति और तपस्वीयों के लिए जीवन का एक मार्ग के रूप में योग पर कई सन्दर्भ दिए है। सूफी संगीत के विकास में भारतीय योग अभ्यास का काफी प्रभाव है, जहाँ वे दोनों शारीरिक मुद्राओं (आसन) और श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) को अनुकूलित किया है। 11 वीं शताब्दी के प्राचीन समय में प्राचीन भारतीय योग पाठ, अमृतकुंड, ("अमृत का कुंड") का अरबी और फारसी भाषाओं में अनुवाद किया गया था। सन 2008 में मलेशिया के शीर्ष इस्लामिक समिति ने कहा जो मुस्लमान योग अभ्यास करते है उनके खिलाफ एक फतवा लगू किया, जो कानूनी तौर पर गैर बाध्यकारी है, कहते है कि योग में "हिंदू आध्यात्मिक उपदेशों" के तत्वों है और इस से ईश-निंदा हो सकती है और इसलिए यह हराम है। मलेशिया में मुस्लिम योग शिक्षकों ने "अपमान" कहकर इस निर्णय की आलोचना कि. मलेशिया में महिलाओं के समूह, ने भी अपना निराशा व्यक्त की और उन्होंने कहा कि वे अपनी योग कक्षाओं को जारी रखेंगे. इस फतवा में कहा गया है कि शारीरिक व्यायाम के रूप में योग अभ्यास अनुमेय है, पर धार्मिक मंत्र का गाने पर प्रतिबंध लगा दिया है, और यह भी कहते है कि भगवान के साथ मानव का मिलाप जैसे शिक्षण इस्लामी दर्शन के अनुरूप नहीं है। इसी तरह, उलेमस की परिषद, इंडोनेशिया में एक इस्लामी समिति ने योग पर प्रतिबंध, एक फतवे द्वारा लागू किया क्योंकि इसमें "हिंदू तत्व" शामिल थे। किन्तु इन फतवों को दारुल उलूम देओबंद ने आलोचना की है, जो देओबंदी इस्लाम का भारत में शिक्षालय है। सन 2009 मई में, तुर्की के निदेशालय के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के प्रधान शासक अली बर्दाकोग्लू ने योग को एक व्यावसायिक उद्यम के रूप में घोषित किया- योग के संबंध में कुछ आलोचनाये जो इसलाम के तत्वों से मेल नहीं खातीं.सन 1989 में, वैटिकन ने घोषित किया कि ज़ेन और योग जैसे पूर्वी ध्यान प्रथाओं "शरीर के एक गुट में बदज़ात" हो सकते है। वैटिकन के बयान के बावजूद, कई रोमन कैथोलिक उनके आध्यात्मिक प्रथाओं में योग , बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के तत्वों का प्रयोग किया है। तंत्र एक प्रथा है जिसमें उनके अनुसरण करनेवालों का संबंध साधारण, धार्मिक, सामाजिक और तार्किक वास्तविकता में परिवर्तन ले आते है। तांत्रिक अभ्यास में एक व्यक्ति वास्तविकता को माया, भ्रम के रूप में अनुभव करता है और यह व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म द्वारा प्रस्तुत किया गया निर्वाण के कई मार्गों में से यह विशेष मार्ग तंत्र को भारतीय धर्मों के प्रथाओं जैसे योग, ध्यान, और सामाजिक संन्यास से जोड़ता है, जो सामाजिक संबंधों और विधियों से अस्थायी या स्थायी वापसी पर आधारित हैं।
11वीं शताब्दी में प्राचीन भारतीय योग पाठ अमृतकुंड को किस भाषा में अनुवाद किया गया था ?
{ "text": [ "अरबी और फारसी" ], "answer_start": [ 2282 ] }
In which language was the ancient Indian yoga text Amritakunda translated in the 11th century?
In his rule, Acharya Kundakund describes Yoga Bhakti - the path of liberation from devotion - as the highest form of devotion.According to Acharya Haribhadra and Acharya Hemchandra, five major mention is included under the ascetics and 12 social short vows yoga.Due to this idea, Indoologists such as Prof. Robert J. Zyidenbos said about Jainism that this is essentially a scheme of yoga thinking which has increased as a complete religion.Dr. Henrich was satisfied that the yoga system was the origin of the former Aryan, which did not accept the power of the Vedas and hence he was considered as a methodical principles like Jainism, Jain scripture, Jain Tirthankaras, Padmasana in meditation orKayotsarga is depicted in yoga posture.It has been said that Mahavira has received Kevala Knowledge "Self -knowledge" sitting in a stagnant state which has been found in the Achranga Sutra and later in Kalpasutra as the first literary mention in Kalpasutra.The Patanjali is a supernatural analogy among the five Yama or obstacles of the Yogasutra and the five major vows of Jainism, indicating a strong impact of Jainism.Author Vivian Worthington admitted that there is a mutual influence between yoga philosophy and Jainism and he writes: "Yoga completely considers Jainism as its debt and in exchange, Jainism has given a part of his life to the practices of yoga.Made ".The Indus Valley seals and Econography also provide a proper evidence that there is a communal existence between yoga tradition and Jainism.In particular, scholars and archaeologists have commented on similarities between yoga and meditation postures depicted in the seals of various tricolors: Rishabhdev's "Qayyosarga" currency and Mahavira's Multichasan seals along with the seals of Parshwanath in the sides of the sides in meditation postureIt is similar to excavation.All these are not only indicating links between the Indus Valley Civilization and Jainism, but also contribute to various yoga practices of Jainism.Granths of the oldest Jain religious literature like Acharangasutra and Niyamasara, Tattvarthasutra etc. have given many references to yoga as a path of life for ordinary people and ascetics.Indian yoga practice has considerable impact in the development of Sufi music, where they have adapted both physical postures (asanas) and breathing control (pranayama).In ancient times of the 11th century, the ancient Indian yoga recitation, Amritkund, ("Kund of Amrit") was translated into Arabic and Persian languages.In 2008, the top Islamic committee of Malaysia said a fatwa against those who practice yoga, which is legally non-binding, it is said that yoga has elements of "Hindu spiritual teachings" and Ish-NindaMay be and therefore it is forbidden.In Malaysia, Muslim Yoga teachers criticized this decision, saying "insult".The group of women in Malaysia also expressed their disappointment and said that they will continue their yoga classes.This fatwa states that yoga practice in the form of physical exercise is permissible, but the song of religious mantra has been banned, and also says that the teaching of human beings with God is not in line with Islamic philosophy.Similarly, an Islamic committee in the Ulamus council, Indonesia, implemented a ban on yoga by a fatwa because it included "Hindu elements".But these fatwas have been criticized by Darul Uloom Deoband, which is a school in India.In May 2009, Ali Bardakoglu, the head ruler of the Ministry of Religious Affairs of Turkey's Directorate of Turkey, declared yoga as a commercial venture- some criticisms regarding yoga that do not match the elements of Islam. In 1989, VaticanHas declared that eastern meditation practices such as Zen and Yoga could be "misconduct in a group of body".Despite the statement of Vatican, many Roman Catholic have used elements of yoga, Buddhism and Hinduism in his spiritual practices.Tantra is a practice in which the relationship of those who follow them brings changes in ordinary, religious, social and logical reality.In tantric practice, a person experiences reality as illusion, confusion and this person attains liberation.Among the many routes of Nirvana presented by Hinduism, this particular route connects the system of practices of Indian religions such as yoga, meditation, and social sannyas, which are based on temporary or permanent return from social relations and methods.
{ "answer_start": [ 2282 ], "text": [ "Arabic and Persian" ] }
143
अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
दादरा और नगर हवेली भारत के किस हिस्से में स्थित है ?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
Dadra and Nagar Haveli is located in which part of India?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
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अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
कैप्टन फिदेल्गो अपने सैन्य कर्मियों के साथ सिलवासा से कहाँ चले गए ?
{ "text": [ "खान्वेल" ], "answer_start": [ 98 ] }
Where did Captain Fidelgo move from Silvassa with his military personnel?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
{ "answer_start": [ 98 ], "text": [ "Khanvel" ] }
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अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
सिलवासा को आजादी कब मिली थी ?
{ "text": [ "2 अगस्त 1954" ], "answer_start": [ 113 ] }
When was Silvassa granted independence?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
{ "answer_start": [ 113 ], "text": [ "2nd August 1954" ] }
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अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब किस व्यक्ति को एक दिन के लिए राज्य का प्रमुख बनाया गया था ?
{ "text": [ "श्री बदलानी" ], "answer_start": [ 604 ] }
Which person was made the head of the state for a day when India liberated Goa?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
{ "answer_start": [ 604 ], "text": [ "Mr. Badlani" ] }
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अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
दादरा और नगर हवेली में सर्दी के दिनों में तापमान कितना रहता है ?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
What is the temperature during winter in Dadra and Nagar Haveli?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
{ "answer_start": [ null ], "text": [ "" ] }
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अपने निश्चित पराजय को देखते हुए कप्तान फिदल्गो 150 सैन्य करमचारियों के साथ सिलवासा से 15 किमी दूर खान्वेल भाग गए। 2 अगस्त 1954 को सिलवासा मुक्त घोषित कर दिया गया। कप्तान फिदाल्गो, जो नगर हवेली के अंदरूनी हिस्से में छुपे थे, को आखिरकार 11 अगस्त 1954 में आत्मसमर्पण करना पड़ा। एक सार्वजनिक बैठक में कर्मलकर को प्रथम प्रशाशक के रूप में चुना गया। स्वतंत्र होने के बावजूद, अंतरराष्ट्रीय (अन्तरराष्ट्रीय) न्यायलय द्वारा दादरा-नगर हवेली को पुर्तगाली संपत्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1954 से 1961 तक, दादरा और नगर हवेली वरिष्ठ पंचायत द्वारा संचालित एक मुक्त प्रदेश रहा। 1961 में जब भारत ने गोवा को मुक्त किया तब श्री बदलानी को एक दिन के लिए राज्य-प्रमुख बनाया गया। उन्होंने तथा भारत के प्रधान मंत्री, जवाहर लाल नेहरु, ने एक समझौते पर हस्ताक्षार किया और दादरा और नगर हवेली औपचारिक रूप से भारत में संयोजित कर दिया। यह केंद्र-साशित प्रदेश दो भिन्न भौगौलिक क्षेत्रों से बना है - दादरा और नगर हवेली। यह कुल ४९१ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तर-पशिम और पूर्व में वलसाड जिले से और दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में ठाणे और नाशिक जिले से घिरा हुआ है। दादरा और नगर हवेली के ज्यादातर हिस्से पहाड़ी है। इसके पूर्वी दिशा में सहयाद्री पर्वत श्रंखला है। प्रदेश के मध्य क्षेत्र में मैदान है जिसकी मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ है। दमनगंगा नदी पश्चिमी तट से ६४ किलोमीटर दूर घाट से निकल कर, दादरा और नगर हवेली को पार करते हुए दमन में अरब सागर से जा मिलती है। इसकी तीन सहायक नदिया - पीरी, वर्ना और सकर्तोंद भी प्रदेश की जल-श्रोत हैं। प्रदेश का लक्भाग ५३% हिस्से में वन है परन्तु केवल ४०% हिस्सा ही आरक्षित वन में गिना जाता है। समृद्ध जैव - विविधता इसे पक्षियों और जानवरों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाता है। यह इसे पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। सिलवासा वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों के लिए एक उचित पर्यावरण-पर्यटन स्थल। दादरा और नगर हवेली के जलवायु अपने प्रकार में विशिष्ट है। तट के पास स्थित होने के नाते, यहाँ एक समुद्री जलवायु परिस्थितियां है। ग्रीष्म ऋतु गर्म और नम होती है। मई के महिना सबसे गरम होता है और अधिकतम तापमान 35° तक पहुँच जाता है। वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून हवाएं लती हैं वर्षा ऋतु जून से सितंबर तक रहती है। दादरा नागर हवेली के भारत विलय दिवस और गोमान्तक सेना पर विशेष2020 भारत मे कुल जिले की संख्या=== सन्दर्भ ===
दादरा और नगर हवेली का सबसे गर्म महीना कौन सा होता है ?
{ "text": [ "मई" ], "answer_start": [ 1862 ] }
What is the hottest month in Dadra and Nagar Haveli?
Seeing his definite defeat, Captain Fidelgo fled to Khanwell 15 km from Silvasa with 150 military activists.Silvassa was declared free on 2 August 1954.Captain Fidalgo, who hid in the interiors of the city mansion, finally had to surrender on 11 August 1954.Karmalkar was elected as the first administrator in a public meeting.Despite being independent, Dadra-Nagar Haveli was recognized as Portuguese property by the International (International) Court.From 1954 to 1961, Dadra and Nagar Haveli were a free state run by senior panchayats.When India freed Goa in 1961, Mr. Badlani was made the kingdom for one day.He and the Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru, signed an agreement and formally combined Dadra and Nagar Haveli to India.This center -like region is made up of two different geographical regions - Dadra and Nagar Haveli.It is spread over an area of 991 sq km.It is surrounded by North-Pashim and Valsad district in the east and Thane and Nashik districts in south and south-east.Most parts of Dadra and Nagar Haveli are hilly.Its eastern direction is the Sahyadri mountain range.There is a ground in the central region of the state, whose soil is highly fertile.The Damanganga river comes out of the Ghat, 6 km from the west coast, crossing Dadra and Nagar Haveli and joins the Arabian Sea in Daman.Its three tributaries - Piri, Varna and Sakartond are also water sources of the state.The territory of the state is 53% of the forest, but only 60% of the share is counted in the reserved forest.Rich bio -variety makes it an ideal habitat for birds and animals.This makes it an ideal place for ecological tourism.Silvasa is a proper environmental-penetration site for enthusiasts of wildlife.The climate of Dadra and Nagar Haveli is distinctive in its type.Being located near the coast, there is a sea climate conditions here.The summer season is hot and moist.The month of May is the hottest and the maximum temperature reaches 35 °.Rainfall is the southwest monsoon winds. The rainy season lasts from June to September.Dadra Nagar Haveli's Bharat Merum Day and Gomantak Army Special 2020 Number of Total Districts in India === References ===
{ "answer_start": [ 1862 ], "text": [ "May" ] }
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अब तक भीमराव आम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की, उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। आम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की ही कोई दखल ना हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा... उनको शिक्षित होना चाहिए॰.. एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है। आम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की आलोचना की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आम्बेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था की, सवर्णों को छुआछूत भूलाने के लिए उनके ह्रदयपरिवर्तन होने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए, किन्तु यह तर्क गलत सिद्ध हुआ जब सवर्णों हिंदूओं द्वारा पूना सन्धि के कई दशकों बाद भी छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। 1932 में जब ब्रिटिशों ने आम्बेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। कम्युनल अवार्ड की घोषणा गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श का ही परिणाम था। इस समझौते के तहत आम्बेडकर द्वारा उठाई गई राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
दलित प्रतिनिधि केवल किसके वोटों से चुना जाना था?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
The Dalit representative was to be elected only by the votes of whom?
Till now Bhimrao Ambedkar had become the biggest untouchable political figure till date.He severely criticized his alleged apathy towards the eradication of the caste system of mainstream political parties.Ambedkar also criticized the Indian National Congress and its leader Mahatma Gandhi, accusing him of presenting the untouchable community as an object of compassion.Ambedkar was also dissatisfied with the failures of British rule, advocating a different political identity for the untouchable community in which both Congress and British have no interference.During the first round table conference of an exploited class in London on August 8, 1930, Ambedkar put his political vision in front of the world, according to which the security of the exploited class is independent of both his government and the Congress.We have to make our way ourselves and ourselves… political power cannot solve the problems of the exploited, their salvation lies in getting their proper place in the society.They have to change the bad way of living their own ... They should be educated.Ambedkar criticized the salt satyagraha run by the Congress and Gandhi.Due to his increasing popularity and public support in his untouchable community, he was also invited to attend the second Round Table Conference in London in 1931.There, there was a sharp debate with Gandhi on the issue of giving a separate election to his untouchables, and the British agreed with Dr. Ambedkar's views.The strong opponent of giving a separate election on the basis of religion and caste, Gandhi expressed apprehension that a separate election given to the untouchables would divide the Hindu society.Gandhi felt that to forget untouchability to the upper castes, he should be given a few years a period to be his heart, but this argument proved wrong when untouchables continued to follow untouchability even after several decades of Poona Treaty by the Savarnas Hindus.In 1932, when the British agreed with Ambedkar's views, announced a separate election to untouchables.The declaration of the Communal Award was the result of the discussion held at the Round Table Conference.Under this agreement, in a separate election, the Dalit class was given the right to two votes in a separate election, assuming the demand for political representation raised by Ambedkar.Under this, Dalits could choose their representative by one vote and the second vote had the freedom to choose the representative of the general class.
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150
अब तक भीमराव आम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की, उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। आम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की ही कोई दखल ना हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा... उनको शिक्षित होना चाहिए॰.. एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है। आम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की आलोचना की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आम्बेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था की, सवर्णों को छुआछूत भूलाने के लिए उनके ह्रदयपरिवर्तन होने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए, किन्तु यह तर्क गलत सिद्ध हुआ जब सवर्णों हिंदूओं द्वारा पूना सन्धि के कई दशकों बाद भी छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। 1932 में जब ब्रिटिशों ने आम्बेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। कम्युनल अवार्ड की घोषणा गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श का ही परिणाम था। इस समझौते के तहत आम्बेडकर द्वारा उठाई गई राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
लंदन में दूसरा राउंड टेबल सम्मेलन किस वर्ष हुआ था?
{ "text": [ "1931" ], "answer_start": [ 1255 ] }
In which year was the Second Round Table Conference held in London?
Till now Bhimrao Ambedkar had become the biggest untouchable political figure till date.He severely criticized his alleged apathy towards the eradication of the caste system of mainstream political parties.Ambedkar also criticized the Indian National Congress and its leader Mahatma Gandhi, accusing him of presenting the untouchable community as an object of compassion.Ambedkar was also dissatisfied with the failures of British rule, advocating a different political identity for the untouchable community in which both Congress and British have no interference.During the first round table conference of an exploited class in London on August 8, 1930, Ambedkar put his political vision in front of the world, according to which the security of the exploited class is independent of both his government and the Congress.We have to make our way ourselves and ourselves… political power cannot solve the problems of the exploited, their salvation lies in getting their proper place in the society.They have to change the bad way of living their own ... They should be educated.Ambedkar criticized the salt satyagraha run by the Congress and Gandhi.Due to his increasing popularity and public support in his untouchable community, he was also invited to attend the second Round Table Conference in London in 1931.There, there was a sharp debate with Gandhi on the issue of giving a separate election to his untouchables, and the British agreed with Dr. Ambedkar's views.The strong opponent of giving a separate election on the basis of religion and caste, Gandhi expressed apprehension that a separate election given to the untouchables would divide the Hindu society.Gandhi felt that to forget untouchability to the upper castes, he should be given a few years a period to be his heart, but this argument proved wrong when untouchables continued to follow untouchability even after several decades of Poona Treaty by the Savarnas Hindus.In 1932, when the British agreed with Ambedkar's views, announced a separate election to untouchables.The declaration of the Communal Award was the result of the discussion held at the Round Table Conference.Under this agreement, in a separate election, the Dalit class was given the right to two votes in a separate election, assuming the demand for political representation raised by Ambedkar.Under this, Dalits could choose their representative by one vote and the second vote had the freedom to choose the representative of the general class.
{ "answer_start": [ 1255 ], "text": [ "1931." ] }
151
अब तक भीमराव आम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की, उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। आम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की ही कोई दखल ना हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा... उनको शिक्षित होना चाहिए॰.. एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है। आम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की आलोचना की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आम्बेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था की, सवर्णों को छुआछूत भूलाने के लिए उनके ह्रदयपरिवर्तन होने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए, किन्तु यह तर्क गलत सिद्ध हुआ जब सवर्णों हिंदूओं द्वारा पूना सन्धि के कई दशकों बाद भी छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। 1932 में जब ब्रिटिशों ने आम्बेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। कम्युनल अवार्ड की घोषणा गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श का ही परिणाम था। इस समझौते के तहत आम्बेडकर द्वारा उठाई गई राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
लन्दन में शोषित वर्गों का सम्मेलन कब हुआ था?
{ "text": [ "8 अगस्त, 1930" ], "answer_start": [ 541 ] }
When was the Conference of Depressed Classes held in London?
Till now Bhimrao Ambedkar had become the biggest untouchable political figure till date.He severely criticized his alleged apathy towards the eradication of the caste system of mainstream political parties.Ambedkar also criticized the Indian National Congress and its leader Mahatma Gandhi, accusing him of presenting the untouchable community as an object of compassion.Ambedkar was also dissatisfied with the failures of British rule, advocating a different political identity for the untouchable community in which both Congress and British have no interference.During the first round table conference of an exploited class in London on August 8, 1930, Ambedkar put his political vision in front of the world, according to which the security of the exploited class is independent of both his government and the Congress.We have to make our way ourselves and ourselves… political power cannot solve the problems of the exploited, their salvation lies in getting their proper place in the society.They have to change the bad way of living their own ... They should be educated.Ambedkar criticized the salt satyagraha run by the Congress and Gandhi.Due to his increasing popularity and public support in his untouchable community, he was also invited to attend the second Round Table Conference in London in 1931.There, there was a sharp debate with Gandhi on the issue of giving a separate election to his untouchables, and the British agreed with Dr. Ambedkar's views.The strong opponent of giving a separate election on the basis of religion and caste, Gandhi expressed apprehension that a separate election given to the untouchables would divide the Hindu society.Gandhi felt that to forget untouchability to the upper castes, he should be given a few years a period to be his heart, but this argument proved wrong when untouchables continued to follow untouchability even after several decades of Poona Treaty by the Savarnas Hindus.In 1932, when the British agreed with Ambedkar's views, announced a separate election to untouchables.The declaration of the Communal Award was the result of the discussion held at the Round Table Conference.Under this agreement, in a separate election, the Dalit class was given the right to two votes in a separate election, assuming the demand for political representation raised by Ambedkar.Under this, Dalits could choose their representative by one vote and the second vote had the freedom to choose the representative of the general class.
{ "answer_start": [ 541 ], "text": [ "August 8, 1930" ] }
152
अब तक भीमराव आम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की, उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। आम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की ही कोई दखल ना हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा... उनको शिक्षित होना चाहिए॰.. एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है। आम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की आलोचना की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आम्बेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था की, सवर्णों को छुआछूत भूलाने के लिए उनके ह्रदयपरिवर्तन होने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए, किन्तु यह तर्क गलत सिद्ध हुआ जब सवर्णों हिंदूओं द्वारा पूना सन्धि के कई दशकों बाद भी छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। 1932 में जब ब्रिटिशों ने आम्बेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। कम्युनल अवार्ड की घोषणा गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श का ही परिणाम था। इस समझौते के तहत आम्बेडकर द्वारा उठाई गई राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
दलित प्रतिनिधि के चुनाव में किस समाज की कोई भागीदारी नही थी?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
Which society had no participation in the election of the Dalit representative?
Till now Bhimrao Ambedkar had become the biggest untouchable political figure till date.He severely criticized his alleged apathy towards the eradication of the caste system of mainstream political parties.Ambedkar also criticized the Indian National Congress and its leader Mahatma Gandhi, accusing him of presenting the untouchable community as an object of compassion.Ambedkar was also dissatisfied with the failures of British rule, advocating a different political identity for the untouchable community in which both Congress and British have no interference.During the first round table conference of an exploited class in London on August 8, 1930, Ambedkar put his political vision in front of the world, according to which the security of the exploited class is independent of both his government and the Congress.We have to make our way ourselves and ourselves… political power cannot solve the problems of the exploited, their salvation lies in getting their proper place in the society.They have to change the bad way of living their own ... They should be educated.Ambedkar criticized the salt satyagraha run by the Congress and Gandhi.Due to his increasing popularity and public support in his untouchable community, he was also invited to attend the second Round Table Conference in London in 1931.There, there was a sharp debate with Gandhi on the issue of giving a separate election to his untouchables, and the British agreed with Dr. Ambedkar's views.The strong opponent of giving a separate election on the basis of religion and caste, Gandhi expressed apprehension that a separate election given to the untouchables would divide the Hindu society.Gandhi felt that to forget untouchability to the upper castes, he should be given a few years a period to be his heart, but this argument proved wrong when untouchables continued to follow untouchability even after several decades of Poona Treaty by the Savarnas Hindus.In 1932, when the British agreed with Ambedkar's views, announced a separate election to untouchables.The declaration of the Communal Award was the result of the discussion held at the Round Table Conference.Under this agreement, in a separate election, the Dalit class was given the right to two votes in a separate election, assuming the demand for political representation raised by Ambedkar.Under this, Dalits could choose their representative by one vote and the second vote had the freedom to choose the representative of the general class.
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153
अब तक भीमराव आम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। आम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता महात्मा गांधी की भी आलोचना की, उन्होंने उन पर अछूत समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। आम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनीतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की ही कोई दखल ना हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन यानी प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा... उनको शिक्षित होना चाहिए॰.. एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है। आम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की आलोचना की। उनकी अछूत समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। वहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर गांधी से तीखी बहस हुई, एवं ब्रिटिश डॉ॰ आम्बेडकर के विचारों से सहमत हुए। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज को विभाजित कर देगी। गांधी को लगता था की, सवर्णों को छुआछूत भूलाने के लिए उनके ह्रदयपरिवर्तन होने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की अवधि दी जानी चाहिए, किन्तु यह तर्क गलत सिद्ध हुआ जब सवर्णों हिंदूओं द्वारा पूना सन्धि के कई दशकों बाद भी छुआछूत का नियमित पालन होता रहा। 1932 में जब ब्रिटिशों ने आम्बेडकर के विचारों के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की। कम्युनल अवार्ड की घोषणा गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श का ही परिणाम था। इस समझौते के तहत आम्बेडकर द्वारा उठाई गई राजनैतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए पृथक निर्वाचिका में दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुन सकते थे व दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनने की आजादी थी।
जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति राजनीतिक दलों की उदासीनता की आलोचना किस नेता ने की थी?
{ "text": [ "भीमराव आम्बेडकर" ], "answer_start": [ 6 ] }
Which leader criticised the apathy of political parties towards the abolition of the caste system?
Till now Bhimrao Ambedkar had become the biggest untouchable political figure till date.He severely criticized his alleged apathy towards the eradication of the caste system of mainstream political parties.Ambedkar also criticized the Indian National Congress and its leader Mahatma Gandhi, accusing him of presenting the untouchable community as an object of compassion.Ambedkar was also dissatisfied with the failures of British rule, advocating a different political identity for the untouchable community in which both Congress and British have no interference.During the first round table conference of an exploited class in London on August 8, 1930, Ambedkar put his political vision in front of the world, according to which the security of the exploited class is independent of both his government and the Congress.We have to make our way ourselves and ourselves… political power cannot solve the problems of the exploited, their salvation lies in getting their proper place in the society.They have to change the bad way of living their own ... They should be educated.Ambedkar criticized the salt satyagraha run by the Congress and Gandhi.Due to his increasing popularity and public support in his untouchable community, he was also invited to attend the second Round Table Conference in London in 1931.There, there was a sharp debate with Gandhi on the issue of giving a separate election to his untouchables, and the British agreed with Dr. Ambedkar's views.The strong opponent of giving a separate election on the basis of religion and caste, Gandhi expressed apprehension that a separate election given to the untouchables would divide the Hindu society.Gandhi felt that to forget untouchability to the upper castes, he should be given a few years a period to be his heart, but this argument proved wrong when untouchables continued to follow untouchability even after several decades of Poona Treaty by the Savarnas Hindus.In 1932, when the British agreed with Ambedkar's views, announced a separate election to untouchables.The declaration of the Communal Award was the result of the discussion held at the Round Table Conference.Under this agreement, in a separate election, the Dalit class was given the right to two votes in a separate election, assuming the demand for political representation raised by Ambedkar.Under this, Dalits could choose their representative by one vote and the second vote had the freedom to choose the representative of the general class.
{ "answer_start": [ 6 ], "text": [ "Bhimrao Ambedkar." ] }
154
अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है। एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ" अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार महासतियाँ हैं, और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं। इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी। अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं। देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता। भट्टाचार्य , जो पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ नहीं हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)? "चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
देवी भागवत पुराण में अहिल्या को कितने दर्जे की देवी माना गया है ?
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In the Devi Bhagavata Purana, Ahilya is considered to be a goddess of what rank?
There is a famous verse about Ahalya: traditionalist Hindus, especially Hindu wives, recall Panchkanyas in morning prayers, they are considered to be five kumans.According to one opinion, these five are "examples of holy women" or Mahari dance tradition, and are also the owners of some powers.According to this opinion, Ahalya is the most prominent of these five who were deceived by deceit while she had complete loyalty to her husband.Ahalya is also considered to be the main one among the five because these characters are also the first in the colonies.In the Goddess Bhagwat Purana, Ahalya is placed in a way among the second category ladies, the goddesses who are considered auspicious, Yashaswini and admirable;Apart from Tara and Mandodari, Arundhati and Damayanti etc. have also been included in the Panchasatis.Other opinions do not see Panchkanyas as an ideal woman and do not even consider them exemplary.Bhattacharya, who is the author of Panch-Kanya: The Five Virgins of Indian Appix, expresses comparative views between Panchkanya and Panchsatis, Sati Sita, Savitri, Damayanti and Arundhati, asking: "So, is Ahalya, Draupadi, Kunti,Tara and Mandodari are not true wives because each of them knew a man in addition to her husband (or multiple)?Kamaladevi Chattopadhyay expresses awe that Ahalya and Tara are included in Panchkanya.However, this extreme rush of Ahalya made him a part of sin and did not get the high position that women like Sita and Savitri found, their work made him immortal in stories.
{ "answer_start": [ 589 ], "text": [ "Second category" ] }
155
अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है। एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ" अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार महासतियाँ हैं, और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं। इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी। अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं। देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता। भट्टाचार्य , जो पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ नहीं हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)? "चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
हिन्दू पत्नियाँ सुबह की प्रार्थना में किसे याद करती है ?
{ "text": [ "पंचकन्याओं" ], "answer_start": [ 88 ] }
Whom do Hindu wives remember in their morning prayers?
There is a famous verse about Ahalya: traditionalist Hindus, especially Hindu wives, recall Panchkanyas in morning prayers, they are considered to be five kumans.According to one opinion, these five are "examples of holy women" or Mahari dance tradition, and are also the owners of some powers.According to this opinion, Ahalya is the most prominent of these five who were deceived by deceit while she had complete loyalty to her husband.Ahalya is also considered to be the main one among the five because these characters are also the first in the colonies.In the Goddess Bhagwat Purana, Ahalya is placed in a way among the second category ladies, the goddesses who are considered auspicious, Yashaswini and admirable;Apart from Tara and Mandodari, Arundhati and Damayanti etc. have also been included in the Panchasatis.Other opinions do not see Panchkanyas as an ideal woman and do not even consider them exemplary.Bhattacharya, who is the author of Panch-Kanya: The Five Virgins of Indian Appix, expresses comparative views between Panchkanya and Panchsatis, Sati Sita, Savitri, Damayanti and Arundhati, asking: "So, is Ahalya, Draupadi, Kunti,Tara and Mandodari are not true wives because each of them knew a man in addition to her husband (or multiple)?Kamaladevi Chattopadhyay expresses awe that Ahalya and Tara are included in Panchkanya.However, this extreme rush of Ahalya made him a part of sin and did not get the high position that women like Sita and Savitri found, their work made him immortal in stories.
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156
अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है। एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ" अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार महासतियाँ हैं, और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं। इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी। अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं। देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता। भट्टाचार्य , जो पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ नहीं हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)? "चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
पंच कन्या: द फाइव वर्जिन्स ऑफ इंडियन एपिक्स के लेखक कौन है ?
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Who is the author of Panch Kanya: The Five Virgins of Indian Epics?
There is a famous verse about Ahalya: traditionalist Hindus, especially Hindu wives, recall Panchkanyas in morning prayers, they are considered to be five kumans.According to one opinion, these five are "examples of holy women" or Mahari dance tradition, and are also the owners of some powers.According to this opinion, Ahalya is the most prominent of these five who were deceived by deceit while she had complete loyalty to her husband.Ahalya is also considered to be the main one among the five because these characters are also the first in the colonies.In the Goddess Bhagwat Purana, Ahalya is placed in a way among the second category ladies, the goddesses who are considered auspicious, Yashaswini and admirable;Apart from Tara and Mandodari, Arundhati and Damayanti etc. have also been included in the Panchasatis.Other opinions do not see Panchkanyas as an ideal woman and do not even consider them exemplary.Bhattacharya, who is the author of Panch-Kanya: The Five Virgins of Indian Appix, expresses comparative views between Panchkanya and Panchsatis, Sati Sita, Savitri, Damayanti and Arundhati, asking: "So, is Ahalya, Draupadi, Kunti,Tara and Mandodari are not true wives because each of them knew a man in addition to her husband (or multiple)?Kamaladevi Chattopadhyay expresses awe that Ahalya and Tara are included in Panchkanya.However, this extreme rush of Ahalya made him a part of sin and did not get the high position that women like Sita and Savitri found, their work made him immortal in stories.
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अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है। एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ" अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार महासतियाँ हैं, और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं। इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी। अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं। देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता। भट्टाचार्य , जो पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ नहीं हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)? "चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
वह स्थान जहां अहिल्या ने अपने शाप की अवधि पूरी की और शाप से मुक्त हुई उसे शस्त्रों में क्या कहा गया है ?
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The place where Ahilya completed her period of cursing and was released from the curse is called what in weapons?
There is a famous verse about Ahalya: traditionalist Hindus, especially Hindu wives, recall Panchkanyas in morning prayers, they are considered to be five kumans.According to one opinion, these five are "examples of holy women" or Mahari dance tradition, and are also the owners of some powers.According to this opinion, Ahalya is the most prominent of these five who were deceived by deceit while she had complete loyalty to her husband.Ahalya is also considered to be the main one among the five because these characters are also the first in the colonies.In the Goddess Bhagwat Purana, Ahalya is placed in a way among the second category ladies, the goddesses who are considered auspicious, Yashaswini and admirable;Apart from Tara and Mandodari, Arundhati and Damayanti etc. have also been included in the Panchasatis.Other opinions do not see Panchkanyas as an ideal woman and do not even consider them exemplary.Bhattacharya, who is the author of Panch-Kanya: The Five Virgins of Indian Appix, expresses comparative views between Panchkanya and Panchsatis, Sati Sita, Savitri, Damayanti and Arundhati, asking: "So, is Ahalya, Draupadi, Kunti,Tara and Mandodari are not true wives because each of them knew a man in addition to her husband (or multiple)?Kamaladevi Chattopadhyay expresses awe that Ahalya and Tara are included in Panchkanya.However, this extreme rush of Ahalya made him a part of sin and did not get the high position that women like Sita and Savitri found, their work made him immortal in stories.
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आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
अम्बेडकर के राज गृह के निजी पुस्तकालय में कितनी किताबें थीं?
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How many books were there in the private library of Ambedkar's royal house?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
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आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
अम्बेडकर ने अपना राजनीतिक जीवन कब शुरू किया था?
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When did Ambedkar start his political career?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
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आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना कब की गई थी?
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When was the Independent Labour Party founded?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
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161
आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य कब नियुक्त किया गया था?
{ "text": [ "13 अक्टूबर 1935" ], "answer_start": [ 325 ] }
When was Ambedkar appointed as the Principal of Government Law College?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
{ "answer_start": [ 325 ], "text": [ "13 October 1935" ] }
162
आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
अम्बेडकर की पत्नी का क्या नाम था?
{ "text": [ "रमाबाई" ], "answer_start": [ 841 ] }
What was the name of Ambedkar's wife?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
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आंबेडकर का राजनीतिक कैरियर 1926 में शुरू हुआ और 1956 तक वो राजनीतिक क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहे। दिसंबर 1926 में, बॉम्बे के गवर्नर ने उन्हें बॉम्बे विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया; उन्होंने अपने कर्तव्यों को गंभीरता से लिया, और अक्सर आर्थिक मामलों पर भाषण दिये। वे 1936 तक बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे। 13 अक्टूबर 1935 को, आम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ की मृत्यु के बाद इस कॉलेज के गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। आम्बेडकर बम्बई (अब मुम्बई) में बस गये, उन्होंने यहाँ एक तीन मंजिला बडे़ घर 'राजगृह' का निर्माण कराया, जिसमें उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था। इसी वर्ष २७ मई १९३५ को उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर आम्बेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। आम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दू तीर्थ में जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है, इसके बजाय उन्होंने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कहीं। 1936 में, आम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 13 सीटें जीती। आम्बेडकर को बॉम्बे विधान सभा के विधायक के रूप में चुना गया था। वह 1942 तक विधानसभा के सदस्य रहे और इस दौरान उन्होंने बॉम्बे विधान सभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी कार्य किया। इसी वर्ष आम्बेडकर ने 15 मई 1936 को अपनी पुस्तक 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' (जाति प्रथा का विनाश) प्रकाशित की, जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस पुस्तक में आम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अछूत समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी निंदा की। बाद में, 1955 के बीबीसी साक्षात्कार में, उन्होंने गांधी पर उनके गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करना तथा अंग्रेजी भाषा पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना दलित समुदाय के अधिकारों के लिए अभियान चलाने के लिए 1942 में आंबेडकर द्वारा की गई थी। वर्ष 1942 से 1946 के दौरान, आंबेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे। आम्बेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था। पाकिस्तान की मांग कर रहे मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन (1940) के बाद, आम्बेडकर ने "थॉट्स ऑन पाकिस्तान नामक 400 पृष्ठों वाला एक पुस्तक लिखा, जिसने अपने सभी पहलुओं में "पाकिस्तान" की अवधारणा का विश्लेषण किया। इसमें उन्होंने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। साथ ही यह तर्क भी दिया कि हिंदुओं को मुसलमानों के पाकिस्तान का स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने प्रस्तावित किया कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए पंजाब और बंगाल की प्रांतीय सीमाओं को फिर से तैयार किया जाना चाहिए। उन्होंने सोचा कि मुसलमानों को प्रांतीय सीमाओं को फिर से निकालने के लिए कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। अगर उन्होंने किया, तो वे काफी "अपनी मांग की प्रकृति को समझ नहीं पाए"। विद्वान वेंकट ढलीपाल ने कहा कि थॉट्स ऑन पाकिस्तान ने "एक दशक तक भारतीय राजनीति को रोका"। इसने मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच संवाद के पाठ्यक्रम को निर्धारित किया, जो भारत के विभाजन के लिए रास्ता तय कर रहा था। हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिन्दू और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते।
बी. आर. आंबेडकर ने बड़ी आबादी के प्रवास के साथ किस समस्या के बढ़ने की ओर इशारा किया था ?
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What problem did B. R. Ambedkar point out as aggravated by the migration of a large population?
Ambedkar's political career began in 1926 and until 1956 he held various positions in the political field.In December 1926, the Governor of Bombay nominated him as a member of the Bombay Legislative Council;He took his duties seriously, and often gave speeches on economic matters.He was a member of the Bombay Legislative Council until 1936.On 13 October 1935, Ambedkar was appointed Principal of Government Law College and worked on the post for two years.He also served as the president of the governing body of this college after the death of Mr. Rai Kedarnath, founder of Ramjas College, University of Delhi University.Ambedkar settled in Bombay (now Mumbai), he built a three -storey house 'Rajgriha' here, which had more than 50,000 books in his private library, when it was the largest private library in the world.The same year, on 26 May 1935, his wife Ramabai died after a long illness.Ramabai wanted to go to Pandharpur for pilgrimage before her death, but Ambedkar did not allow him.Ambedkar said that in the Hindu pilgrimage where he is considered untouchable, there is no justification for going, instead he talks about making him a new Pandharpur.In 1936, Ambedkar founded the independent Labor Party, which won 13 seats in the Central Legislative Assembly elections in 1937.Ambedkar was elected as an MLA of the Bombay Legislative Assembly.He was a member of the Legislative Assembly till 1942 and during this time he also served as the Leader of the Opposition in the Bombay Legislative Assembly.In the same year, Ambedkar published his book 'Annehlation of Cast' (destruction of caste system) on 15 May 1936, which was based on a paper written in New York.In this book, Ambedkar strongly criticized Hindu religious leaders and caste system.He strongly condemned the Congress's decision to call the people of untouchable community Harijan composed by Gandhi.Later, in the 1955 BBC interview, he accused Gandhi of supporting the caste system in his Gujarati language letters and opposing the caste system in English language letters.The All India Scheduled Casts Federation was a socio-political organization that was established by Ambedkar in 1942 to campaign for the rights of the Dalit community.During the year 1942 to 1946, Ambedkar served as the Labor Minister in the Defense Advisory Committee and the Executive Council of Viceroy.Ambedkar actively participated in India's freedom struggle.After the Lahore Resolution (1940) of the Muslim League demanding Pakistan, Ambedkar wrote a book with "400 pages called Thoughts on Pakistan, which analyzed the concept of" Pakistan "in all its aspects.A separate country was criticized for the demand for Pakistan. Also argued that Hindus should accept Pakistan's Pakistan. They proposed that Punjab and Bengal to separate Muslim and non-Muslim majority parts.Provincial borders should be rebuilt. They thought that Muslims could not have any objection to removing the provincial boundaries. If they did, they could not understand the nature of their demand ". Scholar VenkataDhalipal said that Thots on Pakistan "stopped Indian politics for a decade". It determined the syllabus of dialogue between the Muslim League and the Indian National Congress, which was moving the way for the partition of India. However, he Mohammad AliJinnah and the Muslim League were extremely critics of the divisive communal strategy of the League but they argued that Hindus and Muslims should be separated and Pakistan should be formed because to lead the same country, within the country and within the country to lead the same country andMore violence will grow.He referred to historical events such as the Automone Empire and the disintegration of Czechoslovakia in favor of his idea about the communal division of Hindus and Muslims.He asked whether enough reasons were present for the establishment of Pakistan?And suggested that the differences between Hindus and Muslims could have eradicated even with a less harsh step.He has written that Pakistan should justify its existence.Even in countries like Canada, communal issues have always been there, but even today, the British and French live together, can Hindus and Muslims not live together.
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
छात्र दिवस कब मनाया जाता है?
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When is the Student's Day celebrated?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
अम्बेडकर ने सबसे पहले किस सरकार के साथ काम करना शुरू किया था?
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With which government did Ambedkar first start working?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
अम्बेडकर को दूसरे मास्टर ऑफ आर्ट्स से सम्मानित कब किया गया था?
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When was Ambedkar awarded the second Master of Arts?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
अम्बेडकर ने अंग्रेजी की पहली कक्षा में कब प्रवेश लिया था?
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When did Ambedkar enter the first class of English?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
आंबेडकर किसके लोकतंत्र पर किए गए कार्य से प्रभावित थे ?
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Ambedkar was influenced by whose work on democracy?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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169
आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
अम्बेडकर का परिवार मुंबई किस वर्ष गया था?
{ "text": [ "1897" ], "answer_start": [ 773 ] }
In which year did Ambedkar's family move to Mumbai?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
{ "answer_start": [ 773 ], "text": [ "1897." ] }
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आंबेडकर ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में ७ नवंबर १९०० को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए ७ नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा स्वलिखित 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए। 1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की। 1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। 1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया। १९१३ में, आम्बेडकर २२ वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के अंतर्गत न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे।
अम्बेडकर ने एमए की परीक्षा किस वर्ष पास की थी?
{ "text": [ "जून 1915" ], "answer_start": [ 1867 ] }
In which year did Ambedkar pass the MA examination?
Ambedkar took admission in the first grade of English on 7 November 1900 in the Government High School (now Pratapsingh High School) located at Rajwada Chowk in Satara Nagar.His educational life started from this day, hence on November 7, Vidyarthi Day is celebrated in Maharashtra.At that time he was called 'Bhiva'.At that time in the school, 'Bhiva Ramji Ambedkar' was his name inscribed in the Number - 1914 in the Appearance register.When he passed the English fourth grade examination, because it was an unusual thing in the untouchables, so this success of Bhimrao was celebrated as a public ceremony among the untouchables, and his family's friend and writer and written by Dada Keluskar 'Buddha's Buddha'The biography was given to him.After reading this, he came to know Gautam Buddha and Buddhism for the first time and was influenced by his education.In 1897, Ambedkar's family moved to Mumbai where he got further education at the Government High School on Elphinstone Road.In 1907, he passed his matriculation examination and the following year he entered Elphinstone College, which was affiliated to Bombay University.He was the first person from his community who got education at this stage.Till 1912, he received a Bachelor of Arts in Economics and Political Sciences from Bombay University, and started working with Baroda State Government.His wife had just transferred his new family and started work when he had to return to Mumbai to see his ailing father, who died on 2 February 1913.In 1913, Ambedkar moved to the United States at the age of 22 where he was set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad of Baroda) under a scheme set up by Sayajirao Gaikwad III (Gaikwad).The scholarship of Baroda State was awarded every month.Soon after reaching there, he settled with Parsi friend Naval Bhatena in Livingston Hall.In June 1915, he passed his art Postgraduate (MA) examination, with the major subjects, and Sociology, History, Philosophy and Anthropology.
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आन्ध्र प्रदेश में कई संग्रहालय हैं, जिनमें शामिल है- गुंटूर शहर के पास अमरावती में स्थित पुरातत्व संग्रहालय, जिसमें आस-पास के प्राचीन स्थलों के अवशेष सुरक्षित हैं, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, जिसमें स्थापत्य, चित्रकला और धार्मिक वस्तुओं का विविध संग्रह है, विशाखापट्नम में स्थित विशाखा संग्रहालय है, जहां डच पुनर्वास बंगले में स्वतंत्रता पूर्व मद्रास प्रेसिडेंसी का इतिहास प्रदर्शित है। विजयवाडा में स्थित विक्टोरिया जुबिली संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, चित्र, देवमूर्तियां, हथियार, चाकू-छुरियां, चम्मच आदि और शिलालेखों का अच्छा संग्रह है। आन्ध्र प्रदेश के व्यंजन, सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे ज़्यादा मसालेदार के रूप में विख्यात हैं। भौगोलिक क्षेत्र, जाति, परंपराओं के आधार पर आन्ध्र व्यंजन में कई भिन्नताएं हैं। भारतीय अचार और चटनी, जिसे तेलुगू में पच्चडी कहा जाता है, आन्ध्र प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है और कई क़िस्म के अचार और चटनी इस राज्य की ख़ासियत है। टमाटर, बैंगन और अंबाडा (गोंगूरा) सहित व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक सब्ज़ी से चटनी बनाई जाती है। आम के अचारों में संभवतः आवकाय आन्ध्र के अचारों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है। चावल प्रधान भोजन है और इसका प्रयोग विविध तरीकों से किया जाता है। आम तौर पर, चावल को या तो उबाला जाता है और सब्जी के साथ खाया जाता है, या फिर लपसी बना ली जाती है, जो पतली परत जैसा पकवान अट्टु (पेसरट्टु - जो चावल और मूंग दाल के मिश्रण से बनता है) या डोसा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। मांस, तरकारियां और साग से विभिन्न मसालों के साथ विविध ख़ुशबूदार स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
किस राज्य का व्यंजन सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे मसालेदार के रूप में जाना जाता है?
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The cuisine of which state is known to be the spiciest of all Indian cuisines?
There are many museums in Andhra Pradesh, including- Archaeological Museum located in Amravati near Guntur city, which has the remains of ancient sites nearby, Salarjung Museum of Hyderabad, which has a diverse collection of architecture, painting and religious items,There is Visakha Museum located in Visakhapatnam, where the history of pre -independence Madras Presidency is displayed in the Dutch Rehabilitation Bungalow.The Victoria Jubilee Museum located in Vijayawada has a good collection of ancient sculptures, pictures, deity, weapons, knives, spoon etc. and inscriptions.The cuisine of Andhra Pradesh is famous as the most spicy among all Indian cuisine.Andhra cuisine based on geographical region, caste, traditions has many variations.Indian pickle and chutney, called Pachadi in Telugu, is particularly popular in Andhra Pradesh and many types of pickles and chutney are the specialty of this state.Chutney is made from each vegetable practically, including tomatoes, brinjal and Ambada (Gongura).Income is probably the most famous among the pickles of Andhra.Rice is a dominant food and is used in various ways.Generally, the rice is either boiled and eaten with vegetables, or is made with a thin layer, a thin layer -like dish Atu (Pesratta - which is made from a mixture of rice and moong dal) or making dosaIs used forDifferent fragrant delicious dishes are prepared with various spices from meat, cavity and greens.
{ "answer_start": [ 0 ], "text": [ "Andhra Pradesh" ] }
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आन्ध्र प्रदेश में कई संग्रहालय हैं, जिनमें शामिल है- गुंटूर शहर के पास अमरावती में स्थित पुरातत्व संग्रहालय, जिसमें आस-पास के प्राचीन स्थलों के अवशेष सुरक्षित हैं, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, जिसमें स्थापत्य, चित्रकला और धार्मिक वस्तुओं का विविध संग्रह है, विशाखापट्नम में स्थित विशाखा संग्रहालय है, जहां डच पुनर्वास बंगले में स्वतंत्रता पूर्व मद्रास प्रेसिडेंसी का इतिहास प्रदर्शित है। विजयवाडा में स्थित विक्टोरिया जुबिली संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, चित्र, देवमूर्तियां, हथियार, चाकू-छुरियां, चम्मच आदि और शिलालेखों का अच्छा संग्रह है। आन्ध्र प्रदेश के व्यंजन, सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे ज़्यादा मसालेदार के रूप में विख्यात हैं। भौगोलिक क्षेत्र, जाति, परंपराओं के आधार पर आन्ध्र व्यंजन में कई भिन्नताएं हैं। भारतीय अचार और चटनी, जिसे तेलुगू में पच्चडी कहा जाता है, आन्ध्र प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है और कई क़िस्म के अचार और चटनी इस राज्य की ख़ासियत है। टमाटर, बैंगन और अंबाडा (गोंगूरा) सहित व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक सब्ज़ी से चटनी बनाई जाती है। आम के अचारों में संभवतः आवकाय आन्ध्र के अचारों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है। चावल प्रधान भोजन है और इसका प्रयोग विविध तरीकों से किया जाता है। आम तौर पर, चावल को या तो उबाला जाता है और सब्जी के साथ खाया जाता है, या फिर लपसी बना ली जाती है, जो पतली परत जैसा पकवान अट्टु (पेसरट्टु - जो चावल और मूंग दाल के मिश्रण से बनता है) या डोसा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। मांस, तरकारियां और साग से विभिन्न मसालों के साथ विविध ख़ुशबूदार स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
हैदराबाद का व्यंजन किस धर्म से सबसे ज्यादा प्रभावित है ?
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The cuisine of Hyderabad is most influenced by which religion?
There are many museums in Andhra Pradesh, including- Archaeological Museum located in Amravati near Guntur city, which has the remains of ancient sites nearby, Salarjung Museum of Hyderabad, which has a diverse collection of architecture, painting and religious items,There is Visakha Museum located in Visakhapatnam, where the history of pre -independence Madras Presidency is displayed in the Dutch Rehabilitation Bungalow.The Victoria Jubilee Museum located in Vijayawada has a good collection of ancient sculptures, pictures, deity, weapons, knives, spoon etc. and inscriptions.The cuisine of Andhra Pradesh is famous as the most spicy among all Indian cuisine.Andhra cuisine based on geographical region, caste, traditions has many variations.Indian pickle and chutney, called Pachadi in Telugu, is particularly popular in Andhra Pradesh and many types of pickles and chutney are the specialty of this state.Chutney is made from each vegetable practically, including tomatoes, brinjal and Ambada (Gongura).Income is probably the most famous among the pickles of Andhra.Rice is a dominant food and is used in various ways.Generally, the rice is either boiled and eaten with vegetables, or is made with a thin layer, a thin layer -like dish Atu (Pesratta - which is made from a mixture of rice and moong dal) or making dosaIs used forDifferent fragrant delicious dishes are prepared with various spices from meat, cavity and greens.
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आन्ध्र प्रदेश में कई संग्रहालय हैं, जिनमें शामिल है- गुंटूर शहर के पास अमरावती में स्थित पुरातत्व संग्रहालय, जिसमें आस-पास के प्राचीन स्थलों के अवशेष सुरक्षित हैं, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, जिसमें स्थापत्य, चित्रकला और धार्मिक वस्तुओं का विविध संग्रह है, विशाखापट्नम में स्थित विशाखा संग्रहालय है, जहां डच पुनर्वास बंगले में स्वतंत्रता पूर्व मद्रास प्रेसिडेंसी का इतिहास प्रदर्शित है। विजयवाडा में स्थित विक्टोरिया जुबिली संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, चित्र, देवमूर्तियां, हथियार, चाकू-छुरियां, चम्मच आदि और शिलालेखों का अच्छा संग्रह है। आन्ध्र प्रदेश के व्यंजन, सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे ज़्यादा मसालेदार के रूप में विख्यात हैं। भौगोलिक क्षेत्र, जाति, परंपराओं के आधार पर आन्ध्र व्यंजन में कई भिन्नताएं हैं। भारतीय अचार और चटनी, जिसे तेलुगू में पच्चडी कहा जाता है, आन्ध्र प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है और कई क़िस्म के अचार और चटनी इस राज्य की ख़ासियत है। टमाटर, बैंगन और अंबाडा (गोंगूरा) सहित व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक सब्ज़ी से चटनी बनाई जाती है। आम के अचारों में संभवतः आवकाय आन्ध्र के अचारों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है। चावल प्रधान भोजन है और इसका प्रयोग विविध तरीकों से किया जाता है। आम तौर पर, चावल को या तो उबाला जाता है और सब्जी के साथ खाया जाता है, या फिर लपसी बना ली जाती है, जो पतली परत जैसा पकवान अट्टु (पेसरट्टु - जो चावल और मूंग दाल के मिश्रण से बनता है) या डोसा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। मांस, तरकारियां और साग से विभिन्न मसालों के साथ विविध ख़ुशबूदार स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
गुंटूर शहर के पास अमरावती में कौन सा संग्रहालय है?
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Which museum is in Amaravati near Guntur city?
There are many museums in Andhra Pradesh, including- Archaeological Museum located in Amravati near Guntur city, which has the remains of ancient sites nearby, Salarjung Museum of Hyderabad, which has a diverse collection of architecture, painting and religious items,There is Visakha Museum located in Visakhapatnam, where the history of pre -independence Madras Presidency is displayed in the Dutch Rehabilitation Bungalow.The Victoria Jubilee Museum located in Vijayawada has a good collection of ancient sculptures, pictures, deity, weapons, knives, spoon etc. and inscriptions.The cuisine of Andhra Pradesh is famous as the most spicy among all Indian cuisine.Andhra cuisine based on geographical region, caste, traditions has many variations.Indian pickle and chutney, called Pachadi in Telugu, is particularly popular in Andhra Pradesh and many types of pickles and chutney are the specialty of this state.Chutney is made from each vegetable practically, including tomatoes, brinjal and Ambada (Gongura).Income is probably the most famous among the pickles of Andhra.Rice is a dominant food and is used in various ways.Generally, the rice is either boiled and eaten with vegetables, or is made with a thin layer, a thin layer -like dish Atu (Pesratta - which is made from a mixture of rice and moong dal) or making dosaIs used forDifferent fragrant delicious dishes are prepared with various spices from meat, cavity and greens.
{ "answer_start": [ 89 ], "text": [ "Archaeological Museum" ] }
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आन्ध्र प्रदेश में कई संग्रहालय हैं, जिनमें शामिल है- गुंटूर शहर के पास अमरावती में स्थित पुरातत्व संग्रहालय, जिसमें आस-पास के प्राचीन स्थलों के अवशेष सुरक्षित हैं, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, जिसमें स्थापत्य, चित्रकला और धार्मिक वस्तुओं का विविध संग्रह है, विशाखापट्नम में स्थित विशाखा संग्रहालय है, जहां डच पुनर्वास बंगले में स्वतंत्रता पूर्व मद्रास प्रेसिडेंसी का इतिहास प्रदर्शित है। विजयवाडा में स्थित विक्टोरिया जुबिली संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, चित्र, देवमूर्तियां, हथियार, चाकू-छुरियां, चम्मच आदि और शिलालेखों का अच्छा संग्रह है। आन्ध्र प्रदेश के व्यंजन, सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे ज़्यादा मसालेदार के रूप में विख्यात हैं। भौगोलिक क्षेत्र, जाति, परंपराओं के आधार पर आन्ध्र व्यंजन में कई भिन्नताएं हैं। भारतीय अचार और चटनी, जिसे तेलुगू में पच्चडी कहा जाता है, आन्ध्र प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है और कई क़िस्म के अचार और चटनी इस राज्य की ख़ासियत है। टमाटर, बैंगन और अंबाडा (गोंगूरा) सहित व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक सब्ज़ी से चटनी बनाई जाती है। आम के अचारों में संभवतः आवकाय आन्ध्र के अचारों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है। चावल प्रधान भोजन है और इसका प्रयोग विविध तरीकों से किया जाता है। आम तौर पर, चावल को या तो उबाला जाता है और सब्जी के साथ खाया जाता है, या फिर लपसी बना ली जाती है, जो पतली परत जैसा पकवान अट्टु (पेसरट्टु - जो चावल और मूंग दाल के मिश्रण से बनता है) या डोसा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। मांस, तरकारियां और साग से विभिन्न मसालों के साथ विविध ख़ुशबूदार स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
अचार और चटनी को तेलेगु में क्या कहते है ?
{ "text": [ "पच्चडी" ], "answer_start": [ 754 ] }
What are pickles and chutneys called in Telugu?
There are many museums in Andhra Pradesh, including- Archaeological Museum located in Amravati near Guntur city, which has the remains of ancient sites nearby, Salarjung Museum of Hyderabad, which has a diverse collection of architecture, painting and religious items,There is Visakha Museum located in Visakhapatnam, where the history of pre -independence Madras Presidency is displayed in the Dutch Rehabilitation Bungalow.The Victoria Jubilee Museum located in Vijayawada has a good collection of ancient sculptures, pictures, deity, weapons, knives, spoon etc. and inscriptions.The cuisine of Andhra Pradesh is famous as the most spicy among all Indian cuisine.Andhra cuisine based on geographical region, caste, traditions has many variations.Indian pickle and chutney, called Pachadi in Telugu, is particularly popular in Andhra Pradesh and many types of pickles and chutney are the specialty of this state.Chutney is made from each vegetable practically, including tomatoes, brinjal and Ambada (Gongura).Income is probably the most famous among the pickles of Andhra.Rice is a dominant food and is used in various ways.Generally, the rice is either boiled and eaten with vegetables, or is made with a thin layer, a thin layer -like dish Atu (Pesratta - which is made from a mixture of rice and moong dal) or making dosaIs used forDifferent fragrant delicious dishes are prepared with various spices from meat, cavity and greens.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
आयुर्वेद में किसको 'जीवन के विज्ञान का ज्ञान' कहा गया है ?
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In Ayurveda, what is referred to as "knowledge of the science of life"?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
प्राचीन दार्शनिक सिद्धांत के अनुसार, दुनिया की सभी भौतिक वस्तुएं कितने तत्वों से बनी हैं ?
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According to the ancient philosophical theory, all material objects in the world are composed of how many elements?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
गर्भनाल पहले महीने में किस तरह होती है?
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What does the placenta look like in the first month?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में कितनी हड्डियाँ होती थी ?
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According to Ayurveda, how many bones were there in the body?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
प्लेसेंटा महिलाओं के शरीर के किस भाग से जुड़े हुए होते है ?
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The placenta is attached to which part of the female body?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
जीवन कितने प्रकार के होते हैं ?
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How many types of life are there?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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181
आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए 'आयु' और 'वेद' इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के आचार्यों ने 'शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग' को आयु कहा है। संपत्ति (साद्गुण्य) या विपत्ति (वैगुण्य) के अनुसार आयु के अनेक भेद होते हैं, किंतु संक्षेप में प्रभावभेद से इसे चार प्रकार का माना गया है :(१) सुखायु : किसी प्रकार के शीरीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, धनृ धान्य, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को "सुखायु' कहते हैं। (२) दुखायु : इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शरीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को "दु:खायु' कहते हैं। (३) हितायु : स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में निरत रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं। (४) अहितायु : इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं। इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं। इसी प्रकार कालप्रमाण के अनुसार भी दीर्घायु, मध्यायु और अल्पायु, संक्षेप में ये तीन भेद होते हैं। वैसे इन तीनों में भी अनेक भेदों की कल्पना की जा सकती है। 'वेद' शब्द के भी सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं और आयु के वेद को आयुर्वेद (नॉलेज ऑव सायन्स ऑव लाइफ़) कहते हैं। अर्थात्‌ जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के उपादानभूत शरीर, इंद्रिय, मन और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं। किंतु आजकल आयुर्वेद "प्राचीन भारतीय चिकित्सापद्धति' इस संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होता है। समस्त चेष्टाओं, इंद्रियों, मन ओर आत्मा के आधारभूत पंचभौतिक पिंड को 'शरीर' कहते हैं। मानव शरीर के स्थूल रूप में छह अंग हैं; दो हाथ, दो पैर, शिर और ग्रीवा एक तथा अंतराधि (मध्यशरीर) एक। इन अंगों के अवयवों को प्रत्यंग कहते हैं-मूर्धा (हेड), ललाट, भ्रू, नासिका, अक्षिकूट (ऑर्बिट), अक्षिगोलक (आइबॉल), वर्त्स (पलक), पक्ष्म (बरुनी), कर्ण (कान), कर्णपुत्रक (ट्रैगस), शष्कुली और पाली (पिन्न एंड लोब ऑव इयर्स), शंख (माथे के पार्श्व, टेंपुल्स), गंड (गाल), ओष्ठ (होंठ), सृक्कणी (मुख के कोने), चिबुक (ठुड्डी), दंतवेष्ट (मसूड़े), जिह्वा (जीभ), तालु, टांसिल्स, गलशुंडिका (युवुला), गोजिह्विका (एपीग्लॉटिस), ग्रीवा (गरदन), अवटुका (लैरिंग्ज़), कंधरा (कंधा), कक्षा (एक्सिला), जत्रु (हंसुली, कालर), वक्ष (थोरेक्स), स्तन, पार्श्व (बगल), उदर (बेली), नाभि, कुक्षि (कोख), बस्तिशिर (ग्रॉयन), पृष्ठ (पीठ), कटि (कमर), श्रोणि (पेल्विस), नितंब, गुदा, शिश्न या भग, वृषण (टेस्टीज़), भुज, कूर्पर (केहुनी), बाहुपिंडिका या अरत्नि (फ़ोरआर्म), मणिबंध (कलाई), हस्त (हथेली), अंगुलियां और अंगुष्ठ, ऊरु (जांघ), जानु (घुटना), जंघा (टांग, लेग), गुल्फ (टखना), प्रपद (फुट), पादांगुलि, अंगुष्ठ और पादतल (तलवा),। इनके अतिरिक्त हृदय, फुफ्फुस (लंग्स), यकृत (लिवर), प्लीहा (स्प्लीन), आमाशय (स्टमक), पित्ताशय (गाल ब्लैडर), वृक्क (गुर्दा, किडनी), वस्ति (यूरिनरी ब्लैडर), क्षुद्रांत (स्मॉल इंटेस्टिन), स्थूलांत्र (लार्ज इंटेस्टिन), वपावहन (मेसेंटेरी), पुरीषाधार, उत्तर और अधरगुद (रेक्टम), ये कोष्ठांग हैं और सिर में सभी इंद्रियों और प्राणों के केंद्रों का आश्रय मस्तिष्क (ब्रेन) है। आयुर्वेद के अनुसार सारे शरीर में ३०० अस्थियां हैं, जिन्हें आजकल केवल गणना-क्रम-भेद के कारण दो सौ छह (२०६) मानते हैं तथा संधियाँ (ज्वाइंट्स) २००, स्नायु (लिंगामेंट्स) ९००, शिराएं (ब्लड वेसेल्स, लिफ़ैटिक्स ऐंड नर्ब्ज़) ७००, धमनियां (क्रेनियल नर्ब्ज़) २४ और उनकी शाखाएं २००, पेशियां (मसल्स) ५०० (स्त्रियों में २० अधिक) तथा सूक्ष्म स्रोत ३०,९५६ हैं। आयुर्वेद के अनुसार शरीर में रस (बाइल ऐंड प्लाज्मा), रक्त, मांस, मेद (फ़ैट), अस्थि, मज्जा (बोन मैरो) और शुक्र (सीमेन), ये सात धातुएँ हैं। नित्यप्रति स्वाभावत: विविध कार्यों में उपयोग होने से इनका क्षय भी होता रहता है, किंतु भोजन और पान के रूप में हम जो विविध पदार्थ लेते रहते हैं उनसे न केवल इस क्षति की पूर्ति होती है, वरन्‌ धातुओं की पुष्टि भी होती रहती है। आहाररूप में लिया हुआ पदार्थ पाचकाग्नि, भूताग्नि और विभिन्न धात्वनिग्नयों द्वारा परिपक्व होकर अनेक परिवर्तनों के बाद पूर्वोक्त धातुओं के रूप में परिणत होकर इन धातुओं का पोषण करता है। इस पाचनक्रिया में आहार का जो सार भाग होता है उससे रस धातु का पोषण होता है और जो किट्ट भाग बचता है उससे मल (विष्ठा) और मूत्र बनता है। यह रस हृदय से होता हुआ शिराओं द्वारा सारे शरीर में पहुँचकर प्रत्येक धातु और अंग को पोषण प्रदान करता है। धात्वग्नियों से पाचन होने पर रस आदि धातु के सार भाग से रक्त आदि धातुओं एवं शरीर का भी पोषण होता है तथा किट्ट भाग से मलों की उत्पत्ति होती है, जैसे रस से कफ; रक्त पित्त; मांस से नाक, कान और नेत्र आदि के द्वारा बाहर आनेवाले मल; मेद से स्वेद (पसीना); अस्थि से केश तथा लोम (सिर के और दाढ़ी, मूंछ आदि के बाल) और मज्जा से आंख का कीचड़ मलरूप में बनते हैं। शुक्र में कोई मल नहीं होता, उसके सारे भाग से ओज (बल) की उत्पत्ति होती है। इन्हीं रसादि धातुओं से अनेक उपधातुओं की भी उत्पत्ति होती है, यथा रस से दूध, रक्त से कंडराएं (टेंडंस) और शिराएँ, मांस से वसा (फ़ैट), त्वचा और उसके छह या सात स्तर (परत), मेद से स्नायु (लिंगामेंट्स), अस्थि से दांत, मज्जा से केश और शुक्र से ओज नामक उपधातुओं की उत्पत्ति होती है। ये धातुएं और उपधातुएं विभिन्न अवयवों में विभिन्न रूपों में स्थित होकर शरीर की विभिन्न क्रियाओं में उपयोगी होती हैं। जब तक ये उचित परिमाण और स्वरूप में रहती हैं और इनकी क्रिया स्वाभाविक रहती है तब तक शरीर स्वस्थ रहता है और जब ये न्यून या अधिक मात्रा में तथा विकृत स्वरूप में होती हैं तो शरीर में रोग की उत्पत्ति होती है। प्राचीन दार्शनिक सिंद्धांत के अनुसार संसार के सभी स्थूल पदार्थ पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पांच महाभूतों के संयुक्त होने से बनते हैं। इनके अनुपात में भेद होने से ही उनके भिन्न-भिन्न रूप होते हैं। इसी प्रकार शरीर के समस्त धातु, उपधातु और मल पांचभौतिक हैं। परिणामत: शरीर के समस्त अवयव और अतत: सारा शरीर पांचभौतिक है। ये सभी अचेतन हैं। जब इनमें आत्मा का संयोग होता है तब उसकी चेतनता में इनमें भी चेतना आती है। उचित परिस्थिति में शुद्ध रज और शुद्ध वीर्य का संयोग होने और उसमें आत्मा का संचार होने से माता के गर्भाशय में शरीर का आरंभ होता है।
कालक्रम के अनुसार आयु कितने प्रकार के होते है ?
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According to the chronology, how many types of ages are there?
The meaning of Ayurveda is very broad as per the interpretation of ancient Acharyas and the meanings of the two words 'Ayu' and 'Veda' used in it. The masters of Ayurveda have called 'the combination of body, senses, mind and soul' as age. There are many types of age according to wealth (sadgunya) or calamity (vaigunya), but in short, it has been considered to be of four types: (1) Sukhayu: devoid of any kind of physical or mental development, knowledge, A person rich in resources like science, strength, manhood, wealth, fame, family etc. is called 'Sukhaayu'. (2) Dukhaayu: On the contrary, despite being equipped with all the resources, despite being suffering from physical or mental disease or being healthy. A person without resources or lacking in both health and resources is called 'Dukhayu'. (3) Hitayu: A person who, despite being blessed with health and resources or lacking in them, is endowed with qualities like prudence, morality, gentleness, generosity, truth, non-violence, peace, charity, etc. and works for the welfare of society and people. Those who remain motionless are called Hitayu. (4) Ahitayu: On the contrary, the people who are full of bad qualities like indiscretion, misconduct, cruelty, selfishness, arrogance, oppression etc. and are a curse for the society and people are called Ahitayu. Thus benefit, harm, happiness and sorrow are the four types of age. Similarly, according to Kaalpramana, there are three types of longevity, middle age and short life. However, many differences can be imagined among these three also. The word 'Veda' also has the meanings of power, benefit, speed, thought, attainment and means of knowledge and the Veda of age is called Ayurveda (Knowledge of Science of Life). That is, the scripture in which the nature of age, various types of age, beneficial and unfavorable for age and the means of their knowledge and the components of age like body, senses, mind and soul, along with the development of all or any one of them, benefits, happiness and The discussion of the means of attaining long life and the solutions to resolve the issues hindering it is called Ayurveda. But nowadays Ayurveda is used in the narrow sense of 'ancient Indian medical system'. The basic five physical bodies of all the movements, senses, mind and soul are called 'body'. In the physical form of the human body, there are six organs; two hands, two legs. , head and neck one and antradhi (middle body) one. The components of these organs are called pratyang - murdha (head), forehead, eyebrow, nostrils, axis (orbit), axis (eyeball), vartas (eyelid), paksha (eyelashes). ), Karna (ear), Karnaputraka (tragus), Shashkuli and Paali (pinna and lobes of ears), Shankha (sides of the forehead, temples), Gand (cheeks), Ostha (lips), Srikkani (corners of the mouth), Chibuk. (chin), dentin (gums), jhiva (tongue), palate, tonsils, uvula, glottis (epiglottis), cervix (neck), clavicle (larynx), clavicle (shoulder), axilla, jugular ( clavicle, collar), thorax, breast, flank, abdomen, navel, groin, back, waist, pelvis, buttocks , Anus, Penis or Vulva, Testicles, Bhuj, Kurpar (elbow), Bahupindika or Artni (forearm), Manibandh (wrist), Hasta (palm), Fingers and thumb, Uru (thigh), Janu (knee), Jangha (leg), Gulf (ankle), Prapad (foot), Padanguli, Anushtha and Padatala (sole). Apart from these, heart, lungs, liver, spleen, stomach, gall bladder, kidney, urinary bladder, small intestine, large intestine. (Large Intestine), Mesentery, Purishadhara, Uttara and Adhargud (rectum), these are the chambers and the brain is the shelter of all the senses and centers of life in the head. According to Ayurveda, there are 300 bones in the whole body, which nowadays are considered to be two hundred and six (206) only due to difference in counting order and joints are 200, ligaments are 900, veins (blood vessels, lymphatics and nerves) are there. 700, arteries (cranial nerves) 24 and their branches 200, muscles 500 (20 more in women) and subtle sources 30,956. According to Ayurveda, there are seven metals in the body: Rasa (bile and plasma), blood, flesh, fat, bone, marrow and semen. Naturally, due to their daily use in various works, they get depleted, but the various substances that we consume in the form of food and drink not only compensate for this loss but also keep strengthening the metals. The substance taken in the form of food gets matured through digestive fire, earth fire and various metal fires and after many transformations, gets transformed into the above mentioned metals and nourishes these metals. In this digestion process, the essential part of the food provides nourishment to the Rasa Dhatu and the remaining waste part forms stool (feces) and urine. This juice passes through the heart and reaches the entire body through the veins and provides nourishment to every body and organ. When digestion is done through Dhatvagni, the essential part of Dhatu like Rasa etc. nourishes the metals like blood and the body and feces are generated from the Kitta part, like phlegm from Rasa; blood bile; The feces coming out of meat through nose, ears and eyes etc.; Fatty sweat (sweat); Hair and hair (hair of the head and beard, moustache, etc.) are formed from the bone and the mud of the eye is formed in the form of feces from the marrow. There is no feces in Venus, Ojas (force) originates from all its parts. Many metalloids also originate from these Rasadi metals, such as milk from Rasa, tendons and veins from blood, fat from meat. (Fat), skin and its six or seven layers (layers), muscles (ligaments) from fat, teeth from bones, hair from marrow and sub-metals called Ojas from Venus originate. These metals and metalloids are present in different forms in different organs and are useful in various functions of the body. As long as they remain in proper quantity and form and their action remains natural, the body remains healthy and when they are in less or more quantity and in distorted form, disease occurs in the body. According to the ancient philosophical theory, all the gross substances of the world are formed by the combination of these five great elements: earth, water, light, air and sky. Due to difference in their proportions, they have different forms. Similarly, all the metals, sub-metals and feces of the body are five physical. As a result, all the parts of the body and hence the whole body is five physical. These are all unconscious. When the soul comes together in these then it also becomes conscious in its consciousness. In the right circumstances, when pure Raja and pure semen come together and the soul is infused into it, the body begins in the mother's uterus.
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182
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- आर्यभट सिद्धांत। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं। उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं। आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है।
आर्यभट्ट द्वारा दी गई आर्य सिद्धांत किस पर आधारित थी ?
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On what was the Aryan theory given by Aryabhata based?
Information about the three texts composed by Aryabhata is still available.Dasagitika, Aryabhati and Tantra.But according to experts, he and a book wrote- Aryabhata Siddhanta.At this time only 37 verses are available.His book was widely used in the seventh century.But there is no definite information about how such a useful book disappeared.He wrote an important astrology text called Aryabhatiya, which describes square root, cube, parallel and different types of equations.He also represented the mathematical principle in 33 verses that can absorb a total of 3 pages in his book called Aryabhatiya and astronomical-science theory in 65 verses in 5 pages and also the devices for it.Aryabhata also made revolutionary concepts in this small book for the principles of the erstwhile and posterior country and abroad.His major work, Aryabhatiya, is a collection of mathematics and astronomy, quoted extensively in Indian mathematical literature and existed even in modern times.The mathematical part of the Aryabhatiya includes arithmetic, algebra, simple trigonometry and pitch trigonometry.This includes continuous different (cantered fractures), quadritic equations, the solution of the ambush series and a table of sines.Arya-Siddhanta is a task on astronomical calculations that have now disappeared, we get information about the articles of Varahamihira, the contemporary of Aryabhata, as well as the subsequent mathematicians and commentators, including Brahmagupta and Bhaskar.I. It appears that this task is based on the old Sun theory and it has been used by midnight-day-day-meal in comparison to the sunrise of Aryabhatiya.
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183
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- आर्यभट सिद्धांत। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं। उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं। आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है।
आर्यभट्ट द्वारा लिखित तीन पुस्तकों का क्या नाम है ?
{ "text": [ "दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र" ], "answer_start": [ 58 ] }
What is the name of the three books written by Aryabhata?
Information about the three texts composed by Aryabhata is still available.Dasagitika, Aryabhati and Tantra.But according to experts, he and a book wrote- Aryabhata Siddhanta.At this time only 37 verses are available.His book was widely used in the seventh century.But there is no definite information about how such a useful book disappeared.He wrote an important astrology text called Aryabhatiya, which describes square root, cube, parallel and different types of equations.He also represented the mathematical principle in 33 verses that can absorb a total of 3 pages in his book called Aryabhatiya and astronomical-science theory in 65 verses in 5 pages and also the devices for it.Aryabhata also made revolutionary concepts in this small book for the principles of the erstwhile and posterior country and abroad.His major work, Aryabhatiya, is a collection of mathematics and astronomy, quoted extensively in Indian mathematical literature and existed even in modern times.The mathematical part of the Aryabhatiya includes arithmetic, algebra, simple trigonometry and pitch trigonometry.This includes continuous different (cantered fractures), quadritic equations, the solution of the ambush series and a table of sines.Arya-Siddhanta is a task on astronomical calculations that have now disappeared, we get information about the articles of Varahamihira, the contemporary of Aryabhata, as well as the subsequent mathematicians and commentators, including Brahmagupta and Bhaskar.I. It appears that this task is based on the old Sun theory and it has been used by midnight-day-day-meal in comparison to the sunrise of Aryabhatiya.
{ "answer_start": [ 58 ], "text": [ "Dasageetika, Aryabhatiya and Tantra" ] }
184
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- आर्यभट सिद्धांत। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं। उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं। आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है।
नोमोन यंत्र किस प्रकार का यंत्र होता है ?
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What kind of machine is a gnomon?
Information about the three texts composed by Aryabhata is still available.Dasagitika, Aryabhati and Tantra.But according to experts, he and a book wrote- Aryabhata Siddhanta.At this time only 37 verses are available.His book was widely used in the seventh century.But there is no definite information about how such a useful book disappeared.He wrote an important astrology text called Aryabhatiya, which describes square root, cube, parallel and different types of equations.He also represented the mathematical principle in 33 verses that can absorb a total of 3 pages in his book called Aryabhatiya and astronomical-science theory in 65 verses in 5 pages and also the devices for it.Aryabhata also made revolutionary concepts in this small book for the principles of the erstwhile and posterior country and abroad.His major work, Aryabhatiya, is a collection of mathematics and astronomy, quoted extensively in Indian mathematical literature and existed even in modern times.The mathematical part of the Aryabhatiya includes arithmetic, algebra, simple trigonometry and pitch trigonometry.This includes continuous different (cantered fractures), quadritic equations, the solution of the ambush series and a table of sines.Arya-Siddhanta is a task on astronomical calculations that have now disappeared, we get information about the articles of Varahamihira, the contemporary of Aryabhata, as well as the subsequent mathematicians and commentators, including Brahmagupta and Bhaskar.I. It appears that this task is based on the old Sun theory and it has been used by midnight-day-day-meal in comparison to the sunrise of Aryabhatiya.
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185
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- आर्यभट सिद्धांत। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं। उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं। आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है।
पुस्तक 'आर्यभटीय' में आर्यभट्ट ने गणित के सिद्धांत का वर्णन कितने श्लोकों में किया था ?
{ "text": [ "३४ श्लोक" ], "answer_start": [ 173 ] }
In how many verses did Aryabhata describe the theory of mathematics in the book 'Aryabhatiya'?
Information about the three texts composed by Aryabhata is still available.Dasagitika, Aryabhati and Tantra.But according to experts, he and a book wrote- Aryabhata Siddhanta.At this time only 37 verses are available.His book was widely used in the seventh century.But there is no definite information about how such a useful book disappeared.He wrote an important astrology text called Aryabhatiya, which describes square root, cube, parallel and different types of equations.He also represented the mathematical principle in 33 verses that can absorb a total of 3 pages in his book called Aryabhatiya and astronomical-science theory in 65 verses in 5 pages and also the devices for it.Aryabhata also made revolutionary concepts in this small book for the principles of the erstwhile and posterior country and abroad.His major work, Aryabhatiya, is a collection of mathematics and astronomy, quoted extensively in Indian mathematical literature and existed even in modern times.The mathematical part of the Aryabhatiya includes arithmetic, algebra, simple trigonometry and pitch trigonometry.This includes continuous different (cantered fractures), quadritic equations, the solution of the ambush series and a table of sines.Arya-Siddhanta is a task on astronomical calculations that have now disappeared, we get information about the articles of Varahamihira, the contemporary of Aryabhata, as well as the subsequent mathematicians and commentators, including Brahmagupta and Bhaskar.I. It appears that this task is based on the old Sun theory and it has been used by midnight-day-day-meal in comparison to the sunrise of Aryabhatiya.
{ "answer_start": [ 173 ], "text": [ "Verse 34" ] }
186
आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- आर्यभट सिद्धांत। इस समय उसके केवल ३४ श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। उन्होंने अपने आर्यभटीय नामक ग्रन्थ में कुल ३ पृष्ठों के समा सकने वाले ३३ श्लोकों में गणितविषयक सिद्धान्त तथा ५ पृष्ठों में ७५ श्लोकों में खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कींं। उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे सतत भिन्न (कँटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग (सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और ज्याओं की एक तालिका (Table of Sines) शामिल हैं। आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन वराहमिहिर के लेखनों से प्राप्त होती है, साथ ही साथ बाद के गणितज्ञों और टिप्पणीकारों के द्वारा भी मिलती है जिनमें शामिल हैं ब्रह्मगुप्त और भास्कर I. ऐसा प्रतीत होता है कि ये कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है और आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है।
आर्यभट्ट द्वारा लिखे गए ग्रंथ "आर्यभट्ट सिद्धांत" के कितने छंद मौजूद हैं ?
{ "text": [ "" ], "answer_start": [ null ] }
How many verses of the treatise "Aryabhata Siddhanta" written by Aryabhata exist?
Information about the three texts composed by Aryabhata is still available.Dasagitika, Aryabhati and Tantra.But according to experts, he and a book wrote- Aryabhata Siddhanta.At this time only 37 verses are available.His book was widely used in the seventh century.But there is no definite information about how such a useful book disappeared.He wrote an important astrology text called Aryabhatiya, which describes square root, cube, parallel and different types of equations.He also represented the mathematical principle in 33 verses that can absorb a total of 3 pages in his book called Aryabhatiya and astronomical-science theory in 65 verses in 5 pages and also the devices for it.Aryabhata also made revolutionary concepts in this small book for the principles of the erstwhile and posterior country and abroad.His major work, Aryabhatiya, is a collection of mathematics and astronomy, quoted extensively in Indian mathematical literature and existed even in modern times.The mathematical part of the Aryabhatiya includes arithmetic, algebra, simple trigonometry and pitch trigonometry.This includes continuous different (cantered fractures), quadritic equations, the solution of the ambush series and a table of sines.Arya-Siddhanta is a task on astronomical calculations that have now disappeared, we get information about the articles of Varahamihira, the contemporary of Aryabhata, as well as the subsequent mathematicians and commentators, including Brahmagupta and Bhaskar.I. It appears that this task is based on the old Sun theory and it has been used by midnight-day-day-meal in comparison to the sunrise of Aryabhatiya.
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आर्यभटीय नाम बाद के टिप्पणीकारों द्वारा दिया गया है, आर्यभट ने स्वयं इसे नाम नहीं दिया होगा; यह उल्लेख उनके शिष्य भास्कर प्रथम ने अश्मकतंत्र या अश्माका के लेखों में किया है। इसे कभी कभी आर्य-शत-अष्ट (अर्थात आर्यभट के १०८)- जो की उनके पाठ में छंदों की संख्या है- के नाम से भी जाना जाता है। यह सूत्र साहित्य के समान बहुत ही संक्षिप्त शैली में लिखा गया है, जहाँ प्रत्येक पंक्ति एक जटिल प्रणाली को याद करने के लिए सहायता करती है। इस प्रकार, अर्थ की व्याख्या टिप्पणीकारों की वजह से है। समूचे ग्रंथ में १०८ छंद है, साथ ही परिचयात्मक १३ अतिरिक्त हैं, इस पूरे को चार पदों अथवा अध्यायों में विभाजित किया गया है :(1) गीतिकपाद : (१३ छंद) समय की बड़ी इकाइयाँ - कल्प, मन्वन्तर, युग, जो प्रारंभिक ग्रंथों से अलग एक ब्रह्माण्ड विज्ञान प्रस्तुत करते हैं जैसे कि लगध का वेदांग ज्योतिष, (पहली सदी ईसवी पूर्व, इनमेंं जीवाओं (साइन) की तालिका ज्या भी शामिल है जो एक एकल छंद में प्रस्तुत है। एक महायुग के दौरान, ग्रहों के परिभ्रमण के लिए ४.३२ मिलियन वर्षों की संख्या दी गयी है। (२) गणितपाद (३३ छंद) में क्षेत्रमिति (क्षेत्र व्यवहार), गणित और ज्यामितिक प्रगति, शंकु/ छायाएँ (शंकु -छाया), सरल, द्विघात, युगपत और अनिश्चित समीकरण (कुट्टक) का समावेश है। (३) कालक्रियापाद (२५ छंद) : समय की विभिन्न इकाइयाँ और किसी दिए गए दिन के लिए ग्रहों की स्थिति का निर्धारण करने की विधि। अधिक मास की गणना के विषय में (अधिकमास), क्षय-तिथियां। सप्ताह के दिनों के नामों के साथ, एक सात दिन का सप्ताह प्रस्तुत करते हैं। (४) गोलपाद (५० छंद): आकाशीय क्षेत्र के ज्यामितिक /त्रिकोणमितीय पहलू, क्रांतिवृत्त, आकाशीय भूमध्य रेखा, आसंथि, पृथ्वी के आकार, दिन और रात के कारण, क्षितिज पर राशिचक्रीय संकेतों का बढ़ना आदि की विशेषताएं। इसके अतिरिक्त, कुछ संस्करणों अंत में कृतियों की प्रशंसा आदि करने के लिए कुछ पुष्पिकाएं भी जोड़ते हैं।
आर्यभटीय ने किन नवाचारों की शुरुआत की थी?
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What innovations were introduced by Aryabhatiya?
The Aryabhatiya name is given by later comments, Aryabhat would not have named it himself;This mention has been made by his disciple Bhaskar I in the writings of Ashmakatantra or Ashmaka.It is sometimes known as Arya-Shat-Asht (ie 108 of Aryabhata)- which is the number of verses in their text.This formula is written in a very brief style similar to literature, where each line helps to remember a complex system.Thus, the interpretation of the meaning is due to commentators.The entire book has 108 verses, as well as introductory 13 additional, this whole is divided into four positions or chapters: (1) Gittipad: (13 verses) large units of time - Kalpa, Manvantar, Yuga, which early textsUnlikely from a cosmology, such as the Vedang astrology of luggage, (the first century AD, these include the table of Jeeva (Sain) which is presented in a single verse. During a mahayuga, for the revolutions of the planets, for the planetary revolutions.The number of 4.32 million years has been given. (2) In Mathematics (33 verses), regionary (field behavior), mathematics and geometric progression, cones/ shadows (cones), simple, quadratic, coupled and uncertain equations (Kuttak) It is included. (3) Kalkarakapada (25 verses): The method of determining the position of planets for various units of time and the position of planets for a given day. About more mass calculation (most of), decay.With the names of the days of the days, present a seven -day week. (4) Golpad (50 verses): Geometric /trigonometric aspects of the celestial region, revolution, celestial equator, weapon, earth size, day and night, Characteristics of increasing zodiac signal signs on the horizon etc.Additionally, some versions also add some flowers to appreciate the creations at the end.
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इंदौर सामान और सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। २०११ में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $१४,अरब था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर अनाज मंडी, इंदौर संभाग की मुख्य व केन्द्रीय मंडी है, यह सोयाबीन के लिये देश का प्रमुख विपणन केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ पर से गेहू, चना, डॉलर चना, सभी प्रकार की दाले, कपास व अन्य सभी फसलों का कारोबार किया जाता है, इंदौर अनाज मंडी से आसपास के जिलो जैसे धार, खरगोन, उज्जैन, देवास आदि के किसान भी जुड़े हुए है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर (चरण- I,II व III) के आसपास के क्षेत्रों में अकेले १५०० बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेट-अप हैं। , इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ लगभग ३००० एकड़),, सांवेर औद्योगिक बेल्ट (१००० एकड़), लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र (औ.क्षे.), राऊ (औ.क्षे.), भागीरथपुरा काली बिल्लोद (औ.क्षे.), रणमल बिल्लोद (औ.क्षे.), शिवाजी नगर भिंडिको (औ.क्षे.), हातोद (औ.क्षे.), क्रिस्टल आईटी पार्क (५.५ लाख वर्गफ़ीट) , आईटी पार्क परदेशीपुरा (१ लाख वर्गफ़ीट) ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि है, साथ ही डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर आदि क्षेत्र भी विकसित किये गये है। पीथमपुर को भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैंमध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज (MPSE) मूल रूप से १९१९ में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है। कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। १९५६ में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कई कंपनियों ने अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए अपने उद्योगों का विस्तार किया है। कपड़ा उत्पादन और व्यापार का अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान रहा हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें], रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने कई आवासीय परियोजनाओं को इंदौर में शुरू किया है।
इंदौर का सांवर औद्योगिक बेल्ट कितने एकड़ में फैला है ?
{ "text": [ "१००० एकड़" ], "answer_start": [ 721 ] }
The Sanwar industrial belt of Indore is spread over how many acres?
Indore is a commercial center for goods and services.In 2011, Indore's GDP $ 14, Arab, the city attracts investors from many countries at the Global Investors Summit.Indore Grain Market is the main and central mandi of Indore division, it is the main marketing center of the country for soybean.Apart from this, wheat, gram, dollar gram, all types of dal, cotton and all other crops are traded from here, farmers of surrounding districts like Dhar, Khargone, Ujjain, Dewas etc. are also connected from Indore Grain Mandi..The major industrial sector of Indore includes the following: 1500 large, medium and small industrial set-ups alone in the areas around Pithampur (Charan-I, II and III)...Complex, TCS SEZ, Infosys SEZ etc. are also developed, as well as diamond parks, gems and jewelery parks, food parks, apparel parks, salty clusters and pharma clusters etc. have also been developed.Pithampur is known as Detroit of India.Pithampur Industrial Area various drug production companies such as Ipka Laboratories, Cipla, Lupine Limited, Glenmark Pharmaceuticals, Unicame Laboratories and Big Auto companies are producing major forces motors, Volvo Eicher, Commercial, Mahindra Vehicle Limited.Since establishment in 1919, Central India's only stock market and the third oldest stock exchange in India is located in Indore.A few days ago, the National Stock Exchange (NSE) established an investor service center in the city.Industrial employment affected the economic geography of Indore.After the merger in Madhya Pradesh in 1956, Indore experienced a high level of suburban expansion and maximum car ownership.Many companies have expanded their industries by taking advantage of relatively cheap land.Textile production and business have been contributing for a long time in the economy [please add quotes], real estate companies DLF Limited, Suncity, Zee Group, Omex, Sahara, Parshwanath, Ansal API, Emam MGF started many residential projects in IndoreIs.
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इंदौर सामान और सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। २०११ में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $१४,अरब था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर अनाज मंडी, इंदौर संभाग की मुख्य व केन्द्रीय मंडी है, यह सोयाबीन के लिये देश का प्रमुख विपणन केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ पर से गेहू, चना, डॉलर चना, सभी प्रकार की दाले, कपास व अन्य सभी फसलों का कारोबार किया जाता है, इंदौर अनाज मंडी से आसपास के जिलो जैसे धार, खरगोन, उज्जैन, देवास आदि के किसान भी जुड़े हुए है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर (चरण- I,II व III) के आसपास के क्षेत्रों में अकेले १५०० बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेट-अप हैं। , इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ लगभग ३००० एकड़),, सांवेर औद्योगिक बेल्ट (१००० एकड़), लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र (औ.क्षे.), राऊ (औ.क्षे.), भागीरथपुरा काली बिल्लोद (औ.क्षे.), रणमल बिल्लोद (औ.क्षे.), शिवाजी नगर भिंडिको (औ.क्षे.), हातोद (औ.क्षे.), क्रिस्टल आईटी पार्क (५.५ लाख वर्गफ़ीट) , आईटी पार्क परदेशीपुरा (१ लाख वर्गफ़ीट) ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि है, साथ ही डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर आदि क्षेत्र भी विकसित किये गये है। पीथमपुर को भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैंमध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज (MPSE) मूल रूप से १९१९ में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है। कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। १९५६ में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कई कंपनियों ने अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए अपने उद्योगों का विस्तार किया है। कपड़ा उत्पादन और व्यापार का अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान रहा हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें], रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने कई आवासीय परियोजनाओं को इंदौर में शुरू किया है।
वर्ष 2011 में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद कितना था ?
{ "text": [ "$१४,अरब" ], "answer_start": [ 87 ] }
What was the GDP of Indore in the year 2011?
Indore is a commercial center for goods and services.In 2011, Indore's GDP $ 14, Arab, the city attracts investors from many countries at the Global Investors Summit.Indore Grain Market is the main and central mandi of Indore division, it is the main marketing center of the country for soybean.Apart from this, wheat, gram, dollar gram, all types of dal, cotton and all other crops are traded from here, farmers of surrounding districts like Dhar, Khargone, Ujjain, Dewas etc. are also connected from Indore Grain Mandi..The major industrial sector of Indore includes the following: 1500 large, medium and small industrial set-ups alone in the areas around Pithampur (Charan-I, II and III)...Complex, TCS SEZ, Infosys SEZ etc. are also developed, as well as diamond parks, gems and jewelery parks, food parks, apparel parks, salty clusters and pharma clusters etc. have also been developed.Pithampur is known as Detroit of India.Pithampur Industrial Area various drug production companies such as Ipka Laboratories, Cipla, Lupine Limited, Glenmark Pharmaceuticals, Unicame Laboratories and Big Auto companies are producing major forces motors, Volvo Eicher, Commercial, Mahindra Vehicle Limited.Since establishment in 1919, Central India's only stock market and the third oldest stock exchange in India is located in Indore.A few days ago, the National Stock Exchange (NSE) established an investor service center in the city.Industrial employment affected the economic geography of Indore.After the merger in Madhya Pradesh in 1956, Indore experienced a high level of suburban expansion and maximum car ownership.Many companies have expanded their industries by taking advantage of relatively cheap land.Textile production and business have been contributing for a long time in the economy [please add quotes], real estate companies DLF Limited, Suncity, Zee Group, Omex, Sahara, Parshwanath, Ansal API, Emam MGF started many residential projects in IndoreIs.
{ "answer_start": [ 87 ], "text": [ "$14 billion" ] }
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इंदौर सामान और सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। २०११ में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $१४,अरब था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर अनाज मंडी, इंदौर संभाग की मुख्य व केन्द्रीय मंडी है, यह सोयाबीन के लिये देश का प्रमुख विपणन केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ पर से गेहू, चना, डॉलर चना, सभी प्रकार की दाले, कपास व अन्य सभी फसलों का कारोबार किया जाता है, इंदौर अनाज मंडी से आसपास के जिलो जैसे धार, खरगोन, उज्जैन, देवास आदि के किसान भी जुड़े हुए है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर (चरण- I,II व III) के आसपास के क्षेत्रों में अकेले १५०० बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेट-अप हैं। , इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ लगभग ३००० एकड़),, सांवेर औद्योगिक बेल्ट (१००० एकड़), लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र (औ.क्षे.), राऊ (औ.क्षे.), भागीरथपुरा काली बिल्लोद (औ.क्षे.), रणमल बिल्लोद (औ.क्षे.), शिवाजी नगर भिंडिको (औ.क्षे.), हातोद (औ.क्षे.), क्रिस्टल आईटी पार्क (५.५ लाख वर्गफ़ीट) , आईटी पार्क परदेशीपुरा (१ लाख वर्गफ़ीट) ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि है, साथ ही डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर आदि क्षेत्र भी विकसित किये गये है। पीथमपुर को भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैंमध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज (MPSE) मूल रूप से १९१९ में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है। कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। १९५६ में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कई कंपनियों ने अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए अपने उद्योगों का विस्तार किया है। कपड़ा उत्पादन और व्यापार का अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान रहा हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें], रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने कई आवासीय परियोजनाओं को इंदौर में शुरू किया है।
इंफोसिस किस क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये निवेश करके अपना नया विकास केंद्र स्थापित कर रहा है?
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In which sector is Infosys setting up its new growth centre by investing Rs 100 crore?
Indore is a commercial center for goods and services.In 2011, Indore's GDP $ 14, Arab, the city attracts investors from many countries at the Global Investors Summit.Indore Grain Market is the main and central mandi of Indore division, it is the main marketing center of the country for soybean.Apart from this, wheat, gram, dollar gram, all types of dal, cotton and all other crops are traded from here, farmers of surrounding districts like Dhar, Khargone, Ujjain, Dewas etc. are also connected from Indore Grain Mandi..The major industrial sector of Indore includes the following: 1500 large, medium and small industrial set-ups alone in the areas around Pithampur (Charan-I, II and III)...Complex, TCS SEZ, Infosys SEZ etc. are also developed, as well as diamond parks, gems and jewelery parks, food parks, apparel parks, salty clusters and pharma clusters etc. have also been developed.Pithampur is known as Detroit of India.Pithampur Industrial Area various drug production companies such as Ipka Laboratories, Cipla, Lupine Limited, Glenmark Pharmaceuticals, Unicame Laboratories and Big Auto companies are producing major forces motors, Volvo Eicher, Commercial, Mahindra Vehicle Limited.Since establishment in 1919, Central India's only stock market and the third oldest stock exchange in India is located in Indore.A few days ago, the National Stock Exchange (NSE) established an investor service center in the city.Industrial employment affected the economic geography of Indore.After the merger in Madhya Pradesh in 1956, Indore experienced a high level of suburban expansion and maximum car ownership.Many companies have expanded their industries by taking advantage of relatively cheap land.Textile production and business have been contributing for a long time in the economy [please add quotes], real estate companies DLF Limited, Suncity, Zee Group, Omex, Sahara, Parshwanath, Ansal API, Emam MGF started many residential projects in IndoreIs.
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इंदौर सामान और सेवाओं के लिए एक वाणिज्यिक केंद्र है। २०११ में इंदौर का सकल घरेलू उत्पाद $१४,अरब था शहर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कई देशों से निवेशकों को आकर्षित करता है। इंदौर अनाज मंडी, इंदौर संभाग की मुख्य व केन्द्रीय मंडी है, यह सोयाबीन के लिये देश का प्रमुख विपणन केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ पर से गेहू, चना, डॉलर चना, सभी प्रकार की दाले, कपास व अन्य सभी फसलों का कारोबार किया जाता है, इंदौर अनाज मंडी से आसपास के जिलो जैसे धार, खरगोन, उज्जैन, देवास आदि के किसान भी जुड़े हुए है। इंदौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र में निम्न सम्मिलित हैं : पीथमपुर (चरण- I,II व III) के आसपास के क्षेत्रों में अकेले १५०० बड़े, मध्यम और लघु औद्योगिक सेट-अप हैं। , इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ लगभग ३००० एकड़),, सांवेर औद्योगिक बेल्ट (१००० एकड़), लक्ष्मीबाई नगर औद्योगिक क्षेत्र (औ.क्षे.), राऊ (औ.क्षे.), भागीरथपुरा काली बिल्लोद (औ.क्षे.), रणमल बिल्लोद (औ.क्षे.), शिवाजी नगर भिंडिको (औ.क्षे.), हातोद (औ.क्षे.), क्रिस्टल आईटी पार्क (५.५ लाख वर्गफ़ीट) , आईटी पार्क परदेशीपुरा (१ लाख वर्गफ़ीट) ), इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स, टीसीएस SEZ, इंफोसिस SEZ आदि है, साथ ही डायमंड पार्क, रत्न और आभूषण पार्क, फूड पार्क, परिधान पार्क, नमकीन क्लस्टर और फार्मा क्लस्टर आदि क्षेत्र भी विकसित किये गये है। पीथमपुर को भारत के डेट्रॉइट के रूप में जाना जाता है। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र विभिन्न दवा उत्पादन कम्पनियाँ जैसे इप्का लैबोरेटरीज़, सिप्ला, ल्यूपिन लिमिटेड, ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स, यूनिकेम लेबोरेटरीज और बड़ी ऑटो कंपनियों इनमें से प्रमुख फोर्स मोटर्स, वोल्वो आयशर वाणिज्यिक, महिंद्रा वाहन लिमिटेड उत्पादन कर रहे हैंमध्य प्रदेश स्टॉक एक्सचेंज (MPSE) मूल रूप से १९१९ में स्थापना के बाद से मध्य भारत का एकमात्र शेयर बाज़ार और भारत में तीसरा सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है जो कि इंदौर में स्थित है। कुछ ही दिनों पूर्व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) ने शहर में एक निवेशक सेवा केंद्र की स्थापना की। औद्योगिक रोजगार ने इंदौर के आर्थिक भूगोल को प्रभावित किया। १९५६ में मध्यप्रदेश में विलय के बाद, इंदौर ने उच्च स्तर के उपनगरीय विस्तार और अधिकाधिक कार स्वामित्व का अनुभव किया। कई कंपनियों ने अपेक्षाकृत सस्ते भूमि का फायदा उठाते हुए अपने उद्योगों का विस्तार किया है। कपड़ा उत्पादन और व्यापार का अर्थव्यवस्था में बहुत समय से योगदान रहा हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें], रियल एस्टेट कंपनियों डीएलएफ लिमिटेड, सनसिटी, ज़ी समूह, ओमेक्स, सहारा, पार्श्वनाथ, अंसल एपीआई, एम्मार एमजीएफ ने कई आवासीय परियोजनाओं को इंदौर में शुरू किया है।
इंदौर का विलय मध्यप्रदेश में किस वर्ष हुआ था ?
{ "text": [ "१९५६" ], "answer_start": [ 1820 ] }
Indore was merged with Madhya Pradesh in which year?
Indore is a commercial center for goods and services.In 2011, Indore's GDP $ 14, Arab, the city attracts investors from many countries at the Global Investors Summit.Indore Grain Market is the main and central mandi of Indore division, it is the main marketing center of the country for soybean.Apart from this, wheat, gram, dollar gram, all types of dal, cotton and all other crops are traded from here, farmers of surrounding districts like Dhar, Khargone, Ujjain, Dewas etc. are also connected from Indore Grain Mandi..The major industrial sector of Indore includes the following: 1500 large, medium and small industrial set-ups alone in the areas around Pithampur (Charan-I, II and III)...Complex, TCS SEZ, Infosys SEZ etc. are also developed, as well as diamond parks, gems and jewelery parks, food parks, apparel parks, salty clusters and pharma clusters etc. have also been developed.Pithampur is known as Detroit of India.Pithampur Industrial Area various drug production companies such as Ipka Laboratories, Cipla, Lupine Limited, Glenmark Pharmaceuticals, Unicame Laboratories and Big Auto companies are producing major forces motors, Volvo Eicher, Commercial, Mahindra Vehicle Limited.Since establishment in 1919, Central India's only stock market and the third oldest stock exchange in India is located in Indore.A few days ago, the National Stock Exchange (NSE) established an investor service center in the city.Industrial employment affected the economic geography of Indore.After the merger in Madhya Pradesh in 1956, Indore experienced a high level of suburban expansion and maximum car ownership.Many companies have expanded their industries by taking advantage of relatively cheap land.Textile production and business have been contributing for a long time in the economy [please add quotes], real estate companies DLF Limited, Suncity, Zee Group, Omex, Sahara, Parshwanath, Ansal API, Emam MGF started many residential projects in IndoreIs.
{ "answer_start": [ 1820 ], "text": [ "1956." ] }
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इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ? ) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे। नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती हैजैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैंपुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
पुराणों के अनुसार नंद वंश को किसके वंश में गिना जाता था?
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According to the Puranas, the Nanda dynasty was counted in whose lineage?
Many details of history information are found in the description of Puranas, Jains and Buddhist texts and Greek historians.However, it can be said so certainly that Nanda was a dynasty whose most of the nature was of the Indian rule tradition.Kurtius states that Shashak's father was actually the son of a poor barber at the time of Alexander, it is known from the narratives of the Greek writers that he was the "present king" Agraramas or Jandramas (Chandramas?), Which has been identified with Dhananand.His father was Mahapadmanand, who stays of the Kshatriya varna from the appropriate statement of Kurtius.Some Purana Granth and Jain Granth "In the Appendix Parvan, he has been called the son of a barber. Only one thing is clear from these many references that the King of Nandavansh was of the judicial Kshatriya Varna. The first and famous king of the Nandavansh.They do it in the ecosternity itself, but in Buddhist and Jain Anutrits, he is considered the initiator of a new dynasty (Nandavansh), which is correct. It is also called Ugrasen (Agrasen) in Jain texts and Mahapadmapati in Puranas.He has been given the nouns of Atibali, Mahakshtrantak and Parashurama. It is clear, very large army (Ugrasen) that Raj (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Greek writers states that two lakh foot, 20 thousand cavalry, two thousand four horses of chariots in the Nand's army.And there were three thousand elephants) by dismissing their strength by abolishing many Kshatriya dynasties. It is not surprising that with that immense wealth and military power he undertook to win all the states between the Himalayas and Narmada.Akshvaku (the gentle kingdom around Ayodhya and Shravasti), Panchal (Bareilly area of Bareilly and Rampur in northwest Uttar Pradesh), Kauravya (Indraprastha, Delhi, Kurukshetra and Thaneshwar), Kashi (playful area of Varanasi), Haiya (Narmadatir in DakshinapathRegion of), Ashmak (area around Paudanya or Potan in Godavari Valley), Vitihotra (region in the areas of Ashmaks and Haiyas in Southpath), Kalinga (area between Vaitarani and Varaha River in Orissa), Shursen (MathuraArea around), Mithila (Bihar in Bihar and part of the Terai of Nepal between Muzaffarpur and Darbhanga districts), and many other states.Its regime could not be violated anywhere between the Himalayas and Vindhyachal.In this way, he ruled the whole earth (very large part of India) and ruled through "Ekrat, Kathsitsagar, the elephant -cave inscription of Kharavel and some scattered mention of some records obtained from Mysore.And it is obtained from Buddhist texts that the queen of Mahapadmananda was very beautiful and beautiful, not much information about the queen of Mahapadmanand is not found, in the voranas, Mahapadmanand's new son is said to be successor.
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इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ? ) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे। नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती हैजैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैंपुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
नंदवंश के राजा किस वर्ण से संबंधित थे?
{ "text": [ "न्यायी क्षत्रिय" ], "answer_start": [ 667 ] }
The kings of the Nandavamsa belonged to which Varna?
Many details of history information are found in the description of Puranas, Jains and Buddhist texts and Greek historians.However, it can be said so certainly that Nanda was a dynasty whose most of the nature was of the Indian rule tradition.Kurtius states that Shashak's father was actually the son of a poor barber at the time of Alexander, it is known from the narratives of the Greek writers that he was the "present king" Agraramas or Jandramas (Chandramas?), Which has been identified with Dhananand.His father was Mahapadmanand, who stays of the Kshatriya varna from the appropriate statement of Kurtius.Some Purana Granth and Jain Granth "In the Appendix Parvan, he has been called the son of a barber. Only one thing is clear from these many references that the King of Nandavansh was of the judicial Kshatriya Varna. The first and famous king of the Nandavansh.They do it in the ecosternity itself, but in Buddhist and Jain Anutrits, he is considered the initiator of a new dynasty (Nandavansh), which is correct. It is also called Ugrasen (Agrasen) in Jain texts and Mahapadmapati in Puranas.He has been given the nouns of Atibali, Mahakshtrantak and Parashurama. It is clear, very large army (Ugrasen) that Raj (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Greek writers states that two lakh foot, 20 thousand cavalry, two thousand four horses of chariots in the Nand's army.And there were three thousand elephants) by dismissing their strength by abolishing many Kshatriya dynasties. It is not surprising that with that immense wealth and military power he undertook to win all the states between the Himalayas and Narmada.Akshvaku (the gentle kingdom around Ayodhya and Shravasti), Panchal (Bareilly area of Bareilly and Rampur in northwest Uttar Pradesh), Kauravya (Indraprastha, Delhi, Kurukshetra and Thaneshwar), Kashi (playful area of Varanasi), Haiya (Narmadatir in DakshinapathRegion of), Ashmak (area around Paudanya or Potan in Godavari Valley), Vitihotra (region in the areas of Ashmaks and Haiyas in Southpath), Kalinga (area between Vaitarani and Varaha River in Orissa), Shursen (MathuraArea around), Mithila (Bihar in Bihar and part of the Terai of Nepal between Muzaffarpur and Darbhanga districts), and many other states.Its regime could not be violated anywhere between the Himalayas and Vindhyachal.In this way, he ruled the whole earth (very large part of India) and ruled through "Ekrat, Kathsitsagar, the elephant -cave inscription of Kharavel and some scattered mention of some records obtained from Mysore.And it is obtained from Buddhist texts that the queen of Mahapadmananda was very beautiful and beautiful, not much information about the queen of Mahapadmanand is not found, in the voranas, Mahapadmanand's new son is said to be successor.
{ "answer_start": [ 667 ], "text": [ "Justice Kshatriya" ] }
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इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ? ) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे। नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती हैजैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैंपुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
नंद सेना में कितने घुड़सवार थे?
{ "text": [ "20 हजार" ], "answer_start": [ 1175 ] }
How many horsemen were there in the Nanda army?
Many details of history information are found in the description of Puranas, Jains and Buddhist texts and Greek historians.However, it can be said so certainly that Nanda was a dynasty whose most of the nature was of the Indian rule tradition.Kurtius states that Shashak's father was actually the son of a poor barber at the time of Alexander, it is known from the narratives of the Greek writers that he was the "present king" Agraramas or Jandramas (Chandramas?), Which has been identified with Dhananand.His father was Mahapadmanand, who stays of the Kshatriya varna from the appropriate statement of Kurtius.Some Purana Granth and Jain Granth "In the Appendix Parvan, he has been called the son of a barber. Only one thing is clear from these many references that the King of Nandavansh was of the judicial Kshatriya Varna. The first and famous king of the Nandavansh.They do it in the ecosternity itself, but in Buddhist and Jain Anutrits, he is considered the initiator of a new dynasty (Nandavansh), which is correct. It is also called Ugrasen (Agrasen) in Jain texts and Mahapadmapati in Puranas.He has been given the nouns of Atibali, Mahakshtrantak and Parashurama. It is clear, very large army (Ugrasen) that Raj (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Greek writers states that two lakh foot, 20 thousand cavalry, two thousand four horses of chariots in the Nand's army.And there were three thousand elephants) by dismissing their strength by abolishing many Kshatriya dynasties. It is not surprising that with that immense wealth and military power he undertook to win all the states between the Himalayas and Narmada.Akshvaku (the gentle kingdom around Ayodhya and Shravasti), Panchal (Bareilly area of Bareilly and Rampur in northwest Uttar Pradesh), Kauravya (Indraprastha, Delhi, Kurukshetra and Thaneshwar), Kashi (playful area of Varanasi), Haiya (Narmadatir in DakshinapathRegion of), Ashmak (area around Paudanya or Potan in Godavari Valley), Vitihotra (region in the areas of Ashmaks and Haiyas in Southpath), Kalinga (area between Vaitarani and Varaha River in Orissa), Shursen (MathuraArea around), Mithila (Bihar in Bihar and part of the Terai of Nepal between Muzaffarpur and Darbhanga districts), and many other states.Its regime could not be violated anywhere between the Himalayas and Vindhyachal.In this way, he ruled the whole earth (very large part of India) and ruled through "Ekrat, Kathsitsagar, the elephant -cave inscription of Kharavel and some scattered mention of some records obtained from Mysore.And it is obtained from Buddhist texts that the queen of Mahapadmananda was very beautiful and beautiful, not much information about the queen of Mahapadmanand is not found, in the voranas, Mahapadmanand's new son is said to be successor.
{ "answer_start": [ 1175 ], "text": [ "20 thousand r." ] }
195
इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ? ) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे। नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती हैजैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैंपुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
नंद सेना में कितने पैदल सैनिक थे?
{ "text": [ "दो लाख पैदल" ], "answer_start": [ 1162 ] }
How many foot soldiers were there in the Nanda army?
Many details of history information are found in the description of Puranas, Jains and Buddhist texts and Greek historians.However, it can be said so certainly that Nanda was a dynasty whose most of the nature was of the Indian rule tradition.Kurtius states that Shashak's father was actually the son of a poor barber at the time of Alexander, it is known from the narratives of the Greek writers that he was the "present king" Agraramas or Jandramas (Chandramas?), Which has been identified with Dhananand.His father was Mahapadmanand, who stays of the Kshatriya varna from the appropriate statement of Kurtius.Some Purana Granth and Jain Granth "In the Appendix Parvan, he has been called the son of a barber. Only one thing is clear from these many references that the King of Nandavansh was of the judicial Kshatriya Varna. The first and famous king of the Nandavansh.They do it in the ecosternity itself, but in Buddhist and Jain Anutrits, he is considered the initiator of a new dynasty (Nandavansh), which is correct. It is also called Ugrasen (Agrasen) in Jain texts and Mahapadmapati in Puranas.He has been given the nouns of Atibali, Mahakshtrantak and Parashurama. It is clear, very large army (Ugrasen) that Raj (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Greek writers states that two lakh foot, 20 thousand cavalry, two thousand four horses of chariots in the Nand's army.And there were three thousand elephants) by dismissing their strength by abolishing many Kshatriya dynasties. It is not surprising that with that immense wealth and military power he undertook to win all the states between the Himalayas and Narmada.Akshvaku (the gentle kingdom around Ayodhya and Shravasti), Panchal (Bareilly area of Bareilly and Rampur in northwest Uttar Pradesh), Kauravya (Indraprastha, Delhi, Kurukshetra and Thaneshwar), Kashi (playful area of Varanasi), Haiya (Narmadatir in DakshinapathRegion of), Ashmak (area around Paudanya or Potan in Godavari Valley), Vitihotra (region in the areas of Ashmaks and Haiyas in Southpath), Kalinga (area between Vaitarani and Varaha River in Orissa), Shursen (MathuraArea around), Mithila (Bihar in Bihar and part of the Terai of Nepal between Muzaffarpur and Darbhanga districts), and many other states.Its regime could not be violated anywhere between the Himalayas and Vindhyachal.In this way, he ruled the whole earth (very large part of India) and ruled through "Ekrat, Kathsitsagar, the elephant -cave inscription of Kharavel and some scattered mention of some records obtained from Mysore.And it is obtained from Buddhist texts that the queen of Mahapadmananda was very beautiful and beautiful, not much information about the queen of Mahapadmanand is not found, in the voranas, Mahapadmanand's new son is said to be successor.
{ "answer_start": [ 1162 ], "text": [ "two million footfalls." ] }
196
इतिहास की जानकारी के अनेक विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंद एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासन परंपरा की थी। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय शाषक का पिता वास्तव में एक गरीब नाई का बेटा था, यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ? ) था, जिसकी पहचान धनानंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से क्षत्रिय वर्ण का ठहरता है। कुछ पुराण ग्रंथ और जैन ग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे नाई का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा न्यायी क्षत्रिय वर्ण के थे। नंदवंश का प्रथम और सर्वप्रसिद्ध राजा हुआ। पुराणग्रंथ उसकी गिनती शैशुनागवंश में ही करते हैं, किंतु बौद्ध और जैन अनुत्रुटियों में उसे एक नए वंश (नंदवंश) का प्रारंभकर्ता माना गया है, जो सही है। उसे जैन ग्रंथों में उग्रसेन (अग्रसेन) और पुराणों में महापद्मपति भी कहा गया है। पुराणों के कलियुगराजवृत्तांतवले अंशों में उसे अतिबली, महाक्षत्रांतक और और परशुराम की संज्ञाएँ दी गई हैं। स्पष्ट है, बहुत बड़ी सेनावाले (उग्रसेन) उस राज ने (यूनानी लेखकों का कथन है कि नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे) अपने समकालिक अनेक क्षत्रिय राजवंशों का उच्छेद कर अपने बल का प्रदर्शन किया। यह आश्चर्य नहीं कि उस अपार धन और सैन्यशक्ति से उसने हिमालय और नर्मदा के बीच के सारे प्रदेशों को जीतने का उपक्रम किया। उसके जीते हुए प्रदेशें में ऐक्ष्वाकु (अयोध्या और श्रावस्ती के आसपास का कोमल राज्य), पांचाल (उत्तरपश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली और रामपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), कौरव्य (इंद्रप्रस्थ, दिल्ली, कुरुक्षेत्र और थानेश्वर), काशी (वाराणसी के पार्श्ववर्ती क्षेत्र), हैहय (दक्षिणापथ में नर्मदातीर के क्षेत्र), अश्मक (गोदावरी घाटी में पौदन्य अथवा पोतन के आसपास के क्षेत्र), वीतिहोत्र (दक्षिणपथ में अश्मकों और हैहयों के क्षेत्रों में लगे हुए प्रदेश), कलिंग (उड़ीसा में वैतरणी और वराह नदी के बीच का क्षेत्र), शूरसेन (मथुरा के आसपास का क्षेत्र), मिथिला (बिहार में मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों के बीचवाले क्षेत्र तथा नेपाल की तराई का कुछ भाग), तथा अन्य अनेक राज्य शामिल थे। हिमालय और विंध्याचल के बीच कहीं भी उसके शासनों का उल्लंघन नहीं हो सकता था। इस प्रकार उसने सारी पृथ्वी (भारत के बहुत बड़े भाग) पर "एकराट्, होकर राज्य किया। महापद्मनंद की इन पुराणोक्त विजयों की प्रामणिकता कथासरित्सागर, खारवेल के हाथी गुफावाले अभिलेख तथा मैसूर से प्राप्त कुछ अभिलेखों के कुछ बिखरे हुए उल्लेखों से भी सिद्ध होती हैजैन और बौद्ध ग्रंथों से ये प्राप्त होता हैं कि महापद्मनंद की महारानी ही बेहद सुंदर और खूबसूरत थी महापद्मनंद की रानी के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती हैंपुराणों में महापद्मनंद के नव पुत्र उत्तराधिकारी बताए गए हैं।
किन ग्रंथों से पता चलता है कि महापद्मानंद की रानी बहुत सुंदर थी?
{ "text": [ "जैन और बौद्ध ग्रंथों" ], "answer_start": [ 41 ] }
Which texts suggest that Mahapadmananda's queen was very beautiful?
Many details of history information are found in the description of Puranas, Jains and Buddhist texts and Greek historians.However, it can be said so certainly that Nanda was a dynasty whose most of the nature was of the Indian rule tradition.Kurtius states that Shashak's father was actually the son of a poor barber at the time of Alexander, it is known from the narratives of the Greek writers that he was the "present king" Agraramas or Jandramas (Chandramas?), Which has been identified with Dhananand.His father was Mahapadmanand, who stays of the Kshatriya varna from the appropriate statement of Kurtius.Some Purana Granth and Jain Granth "In the Appendix Parvan, he has been called the son of a barber. Only one thing is clear from these many references that the King of Nandavansh was of the judicial Kshatriya Varna. The first and famous king of the Nandavansh.They do it in the ecosternity itself, but in Buddhist and Jain Anutrits, he is considered the initiator of a new dynasty (Nandavansh), which is correct. It is also called Ugrasen (Agrasen) in Jain texts and Mahapadmapati in Puranas.He has been given the nouns of Atibali, Mahakshtrantak and Parashurama. It is clear, very large army (Ugrasen) that Raj (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Ugrasen) (Greek writers states that two lakh foot, 20 thousand cavalry, two thousand four horses of chariots in the Nand's army.And there were three thousand elephants) by dismissing their strength by abolishing many Kshatriya dynasties. It is not surprising that with that immense wealth and military power he undertook to win all the states between the Himalayas and Narmada.Akshvaku (the gentle kingdom around Ayodhya and Shravasti), Panchal (Bareilly area of Bareilly and Rampur in northwest Uttar Pradesh), Kauravya (Indraprastha, Delhi, Kurukshetra and Thaneshwar), Kashi (playful area of Varanasi), Haiya (Narmadatir in DakshinapathRegion of), Ashmak (area around Paudanya or Potan in Godavari Valley), Vitihotra (region in the areas of Ashmaks and Haiyas in Southpath), Kalinga (area between Vaitarani and Varaha River in Orissa), Shursen (MathuraArea around), Mithila (Bihar in Bihar and part of the Terai of Nepal between Muzaffarpur and Darbhanga districts), and many other states.Its regime could not be violated anywhere between the Himalayas and Vindhyachal.In this way, he ruled the whole earth (very large part of India) and ruled through "Ekrat, Kathsitsagar, the elephant -cave inscription of Kharavel and some scattered mention of some records obtained from Mysore.And it is obtained from Buddhist texts that the queen of Mahapadmananda was very beautiful and beautiful, not much information about the queen of Mahapadmanand is not found, in the voranas, Mahapadmanand's new son is said to be successor.
{ "answer_start": [ 41 ], "text": [ "Jain and Buddhist texts" ] }
197
इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है।
आर्ट डेको शैली की इमारतें दुनिया में सबसे अधिक कहाँ हैं ?
{ "text": [ "मुंबई" ], "answer_start": [ 307 ] }
Where are the most Art Deco style buildings in the world?
European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar.
{ "answer_start": [ 307 ], "text": [ "Mumbai" ] }
198
इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है।
एशिया के सबसे बड़े थीम वाटर पार्क का क्या नाम है ?
{ "text": [ "वॉटर किंगडम" ], "answer_start": [ 964 ] }
What is the name of Asia's largest theme water park?
European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar.
{ "answer_start": [ 964 ], "text": [ "The Kingdom of Water" ] }
199
इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है।
महाराष्ट्र राज्य का गठन कब हुआ था ?
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When was the state of Maharashtra formed?
European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar.
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