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Sloka,Class
यस्मात् त्रस्यन्ति भूतानि मृगव्याधान्मृगा इव।                            सागरान्तामपि महीं लब्ध्वा स परिहीयते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
एतान्यनिगृहीतानि  व्यापादयितुमप्यलम्।                            अविधेया इवादान्ता हयाः पथि कुसारथिम् ॥    ,Vidur Niti Slokas
 यावत्स्वस्थो ह्यय देहः तावन्मृत्युश्च दूरतः।                                   तावदात्महितं कुर्यात् प्रणान्ते किं करिष्यति॥,Chanakya Slokas
 ईश्वरस्य  स्मरणं प्रभाते उत्थाय अवश्यं  कर्तंव्यम् ॥  ,sanskrit-slogan
 लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।                                   पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥,Chanakya Slokas
 सा भार्या या सुचिदक्षा सा भार्या या पतिव्रता।                                  सा भार्या या पतिप्रीता सा भार्या सत्यवादिनी ॥,Chanakya Slokas
सहायबन्धना ह्यर्थाः सहायाश्चर्थबन्धनाः।                            अन्योऽन्यबन्धनावेतौ विनान्योऽन्यं न सिध्यतः॥    ,Vidur Niti Slokas
  एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता।                                    वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥,Chanakya Slokas
 उपदेशो हि मूर्खणां प्रकोपाय न शान्तये ॥  ,sanskrit-slogan
मित्रं भुड्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो मितं स्वपित्यमितं  कर्म कृत्वा ।                            ददात्यमित्रेष्वपि याचितः संस्तमात्मवन्तं प्रजहत्यनर्थाः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ ॥   ,sanskrit-slogan
  विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः।                                    भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधयेत॥,Chanakya Slokas
 सर्वो हि मन्यते लोक आत्मानं निरूपद्रवम् ॥  ,sanskrit-slogan
  न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये।                                     भावे हि विद्यते देवस्तस्माद् भावो हि कारणम्॥,Chanakya Slokas
 अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः।                                    अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्॥,Chanakya Slokas
यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ॥   ,sanskrit-slogan
 ज्ञात्वापि दोषमेव करोति लोकः ॥  ,sanskrit-slogan
 हस्ती त्वंकुशमात्रेण बाजो हस्तेन तापते।                                  शृङ्गीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥,Chanakya Slokas
 शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।                                    न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दयापरः॥,Chanakya Slokas
अनुसूयुः कृतप्रज्ञः शोभनान्याचरन्  सदा।                            नकृच्छं महदाप्नोति सर्वत्र च विरोचते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 उद्यमे नावसीदति ॥  ,sanskrit-slogan
संसारयति  कृत्यानि सर्वत्र विचिकित्सते।                            चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ ॥                               ,Vidur Niti Slokas
हस्तस्य भूषणं दानम् ॥   ,sanskrit-slogan
मौनं सर्वार्थसाधनम् ॥   ,sanskrit-slogan
   त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् ।                                     कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः॥,Chanakya Slokas
 मृदुर्हि परिभूयते ॥    ,sanskrit-slogan
अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च ।                             कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्  ॥                               ,Vidur Niti Slokas
जन्ममृत्युर्नियत्येको भुनक्तयेकः शुभाशुभम्।                                  नरकेषु पतत्येकः एको याति परां गतिम्॥,Chanakya Slokas
  यद् दूरं यद् दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम् ।                                    तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम् ॥,Chanakya Slokas
अर्थेषणा न व्यसनेषु गण्यते ॥   ,sanskrit-slogan
 विनयाद् याति पात्रताम् ॥  ,sanskrit-slogan
यज्ञो दानमध्ययनं तपश्च चत्वार्येतान्यन्वेतानि सणि।                            दमः सत्यमार्जवमानृशंस्यं चत्वार्येतान्यनुयान्ति सन्तः ॥    ,Vidur Niti Slokas
 भाग्यं फ़लति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ॥  ,sanskrit-slogan
वरयेत्कुलजां प्राज्ञो निरूपामपि कन्यकाम्।                                  रूपवतीं न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥,Chanakya Slokas
 अनुशासनेन एव मनुष्यः महान् भवति ॥  ,sanskrit-slogan
ययोश्चित्तेन वा चित्तं निभृतं निभृतेन वा।                           समेति प्रज्ञया प्रज्ञा तयोमैत्री न जीवर्यति ॥    ,Vidur Niti Slokas
 न नित्यं लभते दुःखं न नित्यं लभते सुखम् ॥  ,sanskrit-slogan
 अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः।                                    मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥,Chanakya Slokas
 आत्मापराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम् ।                                   दारिद्रयरोग दुःखानि बन्धनव्यसनानि च॥,Chanakya Slokas
  प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागश्च बन्धुषु।                                    स्वयमाक्रम्य भोक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्॥,Chanakya Slokas
बुद्धयो भयं प्रणुदति तपसा विन्दते महत्।                            गुरुशुश्रूषया  ज्ञानं शान्तिं योगेन विन्दति ॥                               ,Vidur Niti Slokas
महते   योऽपकाराय नरस्य प्रभवेत्ररः।                           तेन वैरं समासज्य दूरस्थोऽमीति नाश्चसेत्  ॥    ,Vidur Niti Slokas
समवेक्ष्येह धर्माथौं सम्भारान् योऽधिगच्छति।                            स वै सम्भृतसम्भारः सततं सुखमेधते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्।                                    सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्॥,Chanakya Slokas
 वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतम्  ॥  ,sanskrit-slogan
 को हि भारः समर्थानां किं दूर व्यवसायिनाम्।                                  को विदेश सुविद्यानां को परः प्रियवादिनम्॥,Chanakya Slokas
  एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः।                                    चतुर्भिगमन क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभि रणम्॥,Chanakya Slokas
ईर्ष्यी घृणी न संतुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कितः।                                              परभाग्योपजीवी च षडेते नित्यदुःखिताः ॥    ,Vidur Niti Slokas
सत्यभाषणं पुण्यं वर्तते ॥   ,sanskrit-slogan
  दुरनुबध्नं कार्य साधयेत् ॥  ,sanskrit-slogan
पंच त्वाऽनुगमिष्यन्ति यत्र यत्र गमिष्यसि ।                            मित्राण्यमित्रा मध्यस्था उपजीव्योपजीविनः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 दरिद्रता धीरयता विराजते कुवस्त्रता स्वच्छतया विराजते।                                    कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते॥,Chanakya Slokas
उद्योगसम्पन्नं समुपैति लक्ष्मीः ॥   ,sanskrit-slogan
यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते।                                 ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत् ॥,Chanakya Slokas
आक्रु श्मानो नाक्रोशेन्मन्युरेव तितिक्षतः।                             आक्रोष्टारं निर्दहति सुकृतं चास्य विन्दति॥                               ,Vidur Niti Slokas
निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते ।                            अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
जरा रुपं हरति हि धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान्  धर्मचर्यामसूया।                            क्रोधः श्रियं शिलमनार्यसेवा हृियं कामः सर्वमेवाभिमानः॥ ,Vidur Niti Slokas
  स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे।                                  दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च॥,Chanakya Slokas
   बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः ।                                     वर्षान्धाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते॥,Chanakya Slokas
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्ट च खलु यौवनम्।                                  कष्टात्कष्टतरं चैव परगृहेनिवासनम् ॥,Chanakya Slokas
एकमेवाद्वितीयम तद् यद् राजन्नावबुध्यसे।                             सत्यम स्वर्गस्य सोपानम् पारवारस्य नैरिव ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 सहायः समसुखदुःखः ॥    ,sanskrit-slogan
विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् सर्वत्र गौरवम्।                                  विद्वया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते॥,Chanakya Slokas
  जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः।                                     स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च॥,Chanakya Slokas
उपसर्गेऽन्यच्रके च दुर्भिक्षे च भयावहे।                                 असाधुजनसम्पर्के पलायति स जीवति॥,Chanakya Slokas
 नैव पश्यति जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति।                                   मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दोषं न पश्यति॥,Chanakya Slokas
 यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।                        न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥,Chanakya Slokas
चिकीर्षितं विप्रकृतं च यस्य नान्ये जनाः कर्म जानन्ति किञ्चित् ।                            मन्त्रे गुप्ते सम्यगनुष्ठिते च नाल्पोऽप्यस्य  च्यवते कश्चिदर्थः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये ।                                विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥,Chanakya Slokas
  प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम् ।                                   आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः॥,Chanakya Slokas
 मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥    ,sanskrit-slogan
न सुखाल्लभ्यते सुखम् ॥    ,sanskrit-slogan
 एतदर्थ कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम्।                                   आदिमध्यावसानेषु न त्यजन्ति च ते नृपम् ॥,Chanakya Slokas
 वृध्दा न ते ये न वदन्ति धर्मम् ॥  ,sanskrit-slogan
यदतप्तं प्रणमति न तत् सन्तापयन्त्यपि।                            यश्च स्वयं नतं दारुं न तत् सत्रमयन्त्यपि ॥  ,Vidur Niti Slokas
यः कार्यं न पश्यति सोऽन्धः ॥   ,sanskrit-slogan
चत्वारि राज्ञा तु महाबलेना वर्ज्यान्याहु: पण्डितस्तानि विद्यात् ।                            अल्पप्रज्ञै: सह मन्त्रं न कुर्यात दीर्घसुत्रै रभसैश्चारणैश्च ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  सुखस्य मूलं धर्मः ॥  ,sanskrit-slogan
अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।                             पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 आलस्योपहता विद्या परहस्तं गतं धनम्।                                   अल्पबीजहतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम्॥,Chanakya Slokas
जिता सभा वस्त्रवता मिष्टाशा गोमता जिता।                            अध्वा जितो यानवता सर्वं शीलवता जितम् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः ॥   ,sanskrit-slogan
 दूरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः ।                                   यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः॥,Chanakya Slokas
षडेव तु गुणाः पुंसा न हातव्याः कदाचन।                            सत्यं दानमनालस्यमनसूया क्षमा धृतिः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
बलवान हीनेन विग्रहणीयात् ॥  ,sanskrit-slogan
सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।                            मृजया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे तद् बलप्रदम्।                                    भोजने चामृतं वारि भोजनान्तें विषप्रदम्॥,Chanakya Slokas
 सदाचारः सर्वेषां धर्माणां श्रेष्ठः अस्ति ॥  ,sanskrit-slogan
विद्वान सर्वत्र पूज्यते ॥   ,sanskrit-slogan
दुःखादुद्विजते जन्तुः सुखं सर्वाय रुच्यते ॥   ,sanskrit-slogan
प्रसादो निष्फलो यस्य क्रोधश्चापि निरर्थकः।                            न तं भर्तारमिच्छनित षण्ढं पतिमिव स्त्रियः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
समाने शोभते प्रीती राज्ञि सेवा च शोभते।                                  वाणिज्यं व्यवहारेषु स्त्री दिव्या शोभते गृहे ॥,Chanakya Slokas
हेतुरत्र भविष्यति ॥   ,sanskrit-slogan
पर्जन्यनाथाः पशवो राजानो मन्त्रिबान्धवाः ।                            पतयो बान्धवाः स्त्रीणां ब्राह्मणा वेदबान्धवाः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
यस्मै देवाः प्रयच्छन्ति पुरुषाय प्रराभवम्।                            बुद्धिं तस्यापकर्षन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति  ॥                               ,Vidur Niti Slokas
दानं होमं दैवतं मङ्गलानि प्रायश्चित्तान् विविधान् लोकवादान् ।                            एतानि यः कुरुत नैत्यकानि तस्योत्थानं देवता राधयन्ति ॥    ,Vidur Niti Slokas
 न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।                                    कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥,Chanakya Slokas
 दुःखेनासाद्यते पात्रम् ॥  ,sanskrit-slogan
 अलब्धलाभो नालसस्य ॥  ,sanskrit-slogan
अस्माभिः सदा चरित्रं रक्षणीयम् ॥   ,sanskrit-slogan
परं क्षिपति दोषेण वर्त्तमानः स्वयं तथा ।                            यश्च क्रुध्यत्यनीशानः स च मूढतमो नरः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।                                   तडागोदरसंस्थानां परिदाह इदाम्मससाम्॥,Chanakya Slokas
    पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु च यद्धनम् ।                                     उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम् ॥,Chanakya Slokas
 अनर्थाः संघचारिणः ॥  ,sanskrit-slogan
असन्त्यागात्  पापकृतामपापांस्तुल्यो दण्डः स्पृशते मिश्रभावात्।                             शुष्केणार्दंदह्यते मिश्रभावात्तस्मात् पापैः सह सन्धि नकुर्य्यात् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
" श्रध्दा ज्ञानं ददाति, नम्रता मानं ददाति, योग्यता स्थानं ददाति ॥  ",sanskrit-slogan
  विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥ ,sanskrit-slogan
लोभमूलानि पापानि ॥   ,sanskrit-slogan
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थ भते न कामात्।                            नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥                               ,Vidur Niti Slokas
इन्द्रियैरिन्द्रियार्थेषु वर्तमानैरनिग्रहैः।                            तैरयं ताप्यते लोको नक्षत्राणि ग्रहैरिव ॥ ,Vidur Niti Slokas
स्वभावो दुरतिक्रमः ॥   ,sanskrit-slogan
 आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्।                                     सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥,Chanakya Slokas
अप्रयत्नात् कार्यविपत्तिभर्वती ॥   ,sanskrit-slogan
रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः।                                  विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥,Chanakya Slokas
  वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्।                                     वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च॥,Chanakya Slokas
स्त्रीषु राजसु सर्पेषु स्वाध्यायप्रभुशत्रुषु।                            भोगेष्वायुषि विश्चासं कः प्राज्ञः कर्तुर्महति ॥  ,Vidur Niti Slokas
 अपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥  ,sanskrit-slogan
  क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी।                                   विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम्॥,Chanakya Slokas
"मर्माण्यस्थीनि  ह्रदयं तथासून् ,रुक्षा वाचो निर्दहन्तीह पुंसाम्।                            तस्माद् वाचुमुषतीमुग्ररुपां धर्मारामो नित्यशो वर्जयीत॥ ",Vidur Niti Slokas
 पृथिव्यां त्रीणी रत्नानि अन्नमापः सुभाषितम् ।                                    मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥,Chanakya Slokas
कांश्चिदर्थात्ररः प्राज्ञो लघुमूलान्महाफलान्।                            क्षिप्रमारभते कर्तुं न विघ्नयति तादृशान् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
रथः शरीरं पुरुषस्य राजत्रात्मा नियन्तेन्द्रियाण्यस्य चाश्चाः।                            तैरप्रमत्तः कुशली सदश्वैर्दान्तैः सुखं याति रथीव धीरः ॥    ,Vidur Niti Slokas
 अन्तर्गतमलो दुष्टस्तीर्थस्नानशतैरपि।                                   न शुद्धयतियथाभाण्डं सुरया दाहितं च तत्॥,Chanakya Slokas
 अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ॥  ,sanskrit-slogan
एको धर्म: परम श्रेय: क्षमैका शान्तिरुक्तमा।                            विद्वैका परमा तृप्तिरहिंसैका सुखावहा ॥                               ,Vidur Niti Slokas
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति ॥   ,sanskrit-slogan
 बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः ॥  ,sanskrit-slogan
विद्या परमं बलम ॥  ,sanskrit-slogan
पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्या: प्रयत्नत:।                           पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ॥ ,Vidur Niti Slokas
कुलं शीलेन रक्ष्यते ॥   ,sanskrit-slogan
"अतितृष्णा न कर्तव्या, तृष्णां नैव परित्यजेत् ॥   ",sanskrit-slogan
द्वाविमौ पुरुषौ राजन स्वर्गस्योपरि तिष्ठत: ।                             प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ॥  ,Vidur Niti Slokas
पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः ॥   ,sanskrit-slogan
न वै भित्रा जातु चरन्ति धर्मं न वै सुखं प्राप्नुवन्तीह भित्राः।                              न वै सुखंभित्रा गौरवंप्राप्नुवन्ति न वै भित्राप्रशमंरोचयन्ति ॥                               ,Vidur Niti Slokas
    कामं क्रोधं तथा लोभं स्वाद शृङ्गारकौतुकम्।                                     अतिनिद्राऽतिसेवा च विद्यार्थी ह्याष्ट वर्जयेत्॥,Chanakya Slokas
  गतं शोको न कर्तव्यं भविष्यं नैव चिन्तयेत्।                                     वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः॥,Chanakya Slokas
 यशोधनानां हि यशो गरीयः ॥  ,sanskrit-slogan
  नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्।                                    नास्ति चक्षुसमं तेजो नास्ति चान्नसमं प्रियम्॥,Chanakya Slokas
  ईप्सितं मनसः सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम्।                                     दैवायत्तं यतः सर्वं तस्मात् सन्तोषमाश्रयेत्॥,Chanakya Slokas
षडिमान् पुरुषो जह्यात् भिन्नं नावमिवार्णवे                            अप्रवक्तारं आचार्यं अनध्यायिनम् ऋत्विजम् ।                            आरक्षितारं राजानं भार्यां चाऽप्रियवादिनीं                            ग्रामकामं च गोपालं वनकामं च नापितम्॥                               ,Vidur Niti Slokas
 उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥ ,sanskrit-slogan
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।                            अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 अपुत्रता मनुष्याणां श्रेयसे न कुपुत्रता ॥  ,sanskrit-slogan
  धर्मस्य मूलमर्थः ॥   ,sanskrit-slogan
नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥  ,sanskrit-slogan
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः ॥   ,sanskrit-slogan
 चराति चरतो भगः ॥  ,sanskrit-slogan
   अहिं नृपं च शार्दूलं वराटं बालकं तथा।                                     परश्वानं च मूर्खं च सप्तसुप्तान् बोधयेत्॥,Chanakya Slokas
मानेन रक्ष्यते धान्यमश्चान् रक्षत्यनुक्रमः ।                            अभीक्ष्णदर्शनं ग्राश्च स्त्रियो रक्ष्याः कुचैलतः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना।                                      न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे॥,Chanakya Slokas
कोकिलानां स्वरो रूपं नारी रूपं पतिव्रतम्।                                  विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्॥,Chanakya Slokas
वनस्पतेरपक्वानि फलानि प्रचिनोति यः ।                           स नाप्नोति रसं तेभ्यो बीजं चास्य विनश्यति ॥ ,Vidur Niti Slokas
 संहतिः कार्यसाधिका ॥  ,sanskrit-slogan
निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः ।                            अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्।                                    असिद्धस्य हता विद्या अभोगस्य हतं धनम्॥,Chanakya Slokas
न ह्राविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः  ॥    ,sanskrit-slogan
एकः सम्पत्रमश्नाति वस्त्रे वासश्च शोभनम् ।                            योऽसंविभज्य भृत्येभ्यः को नृशंसतरस्ततः ॥    ,Vidur Niti Slokas
   चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमन्दिरे।                                      चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥,Chanakya Slokas
प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापरः।                            मन्त्रमूलबलेनान्यो  यः प्रियः प्रिय एव सः ॥ ,Vidur Niti Slokas
षण्णामात्मनि नित्यानामैश्वर्यं योऽधिगच्छति।                                              न स पापैः कुतोऽनथैर्युज्यते विजितेन्द्रियः ॥    ,Vidur Niti Slokas
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः।                                तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या या निवृतिः ॥,Chanakya Slokas
यत् सुखं सेवमानोपि धर्मार्थाभ्यां न हीयते।                            कामं तदुपसेवेत न मूढव्रतमाचरेत्। ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 विद्या धनेषु उत्तमा वर्त्तते ॥  ,sanskrit-slogan
 सत्यमेव जयते ॥  ,sanskrit-slogan
विद्यामदो धनमदस्तृतीयोऽभिजनो  मदः ।                            मदा एतेऽवलिप्तानामेत एव सतां दमाः ॥  ,Vidur Niti Slokas
अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता।                             सैव दुर्भाषिता राजनर्थायोपपद्यते ॥    ,Vidur Niti Slokas
सन्तापाद् भ्रश्यते रुपं सन्तापाद् भ्रश्यते बलम्।                            सन्तापाद् भ्रश्यते ज्ञानं सन्तापाद् व्याधिमृच्छति ॥    ,Vidur Niti Slokas
उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथा पायं च चिन्तयेत् ॥   ,sanskrit-slogan
यादृशैः सत्रिविशते यादृशांश्चोपसेवते।                            यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग् भवति पूरुषः  ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 ये शोकमनुवर्त्तन्ते  न तेषां विद्यते सुखम् ॥  ,sanskrit-slogan
दश धर्मं न जानन्ति धृतराष्ट्र निबोध तान्।                              मत्तः प्रमत्तः उन्मत्तः श्रान्तः क्रुद्धो बुभुक्षितः ॥                              त्वरमाणश्च लुब्धश्च भीतः कामी च ते दश।                              तस्मादेतेषु सर्वेषु न प्रसज्जेत पण्डितः  ॥    ,Vidur Niti Slokas
न योऽभ्यसुयत्यनुकम्पते च न दुर्बलः प्रातिभाव्यं करोति ।                            नात्याह किञ्चित् क्षमते विवादं सर्वत्र तादृग् लभते प्रशांसाम्  ॥                               ,Vidur Niti Slokas
आलस्यं मदमोहौ  चापलं गोष्टिरेव च।                            स्तब्धता चाभिमानित्वं तथा त्यागित्वमेव च।                            एते वै सप्त दोषाः स्युः सदा विद्यार्थिनां मताः ॥ ,Vidur Niti Slokas
अप्युन्मत्तात् प्रलपतो बालाच्च परिजल्पतः।                            सर्वतः सारमादद्यात् अश्मभ्य इव काञ्जनम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
येऽर्थाः  स्त्रीषु समायुक्ताः प्रमत्तपतितेषु च।                            ये चानार्ये समासक्ताः सर्वे ते संशयं गताः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 बलवन्तं रिपु दृष्ट् वा न वामान प्रकोपयेत् ॥  ,sanskrit-slogan
 त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।                                  ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥,Chanakya Slokas
 यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।                                    स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥,Chanakya Slokas
 अग्निदाहादपि  विशिष्टं वाक्पारुष्यम् ॥     ,sanskrit-slogan
  नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः।                                  नास्ति कोप समो वह्नि र्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥,Chanakya Slokas
  पूर्वं निश्चित्य पश्चात् कार्यभारभेत् ॥   ,sanskrit-slogan
श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम् ॥   ,sanskrit-slogan
विद्वानेव विजानाति विद्वज्जन परिश्रमम् ॥   ,sanskrit-slogan
सत्यमेव जयते न अनृतम् ॥   ,sanskrit-slogan
 एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्ते च साधुना।                                  आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी॥,Chanakya Slokas
 कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम् ।                                    तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत्॥,Chanakya Slokas
दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ॥   ,sanskrit-slogan
समैर्विवाहः कुरुते न हीनैः समैः सख्यं व्यवहारं कथां च ।                            गुणैर्विशिष्टांश्च पुरो दधाति विपश्चितस्तस्य नयाः सुनीताः॥  ,Vidur Niti Slokas
धनधान्य प्रयोगेषु विद्या सङ्ग्रहेषु च।                                आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥,Chanakya Slokas
जरा रुपं हरति धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया।                             कामो ह्रियं वृत्तमनार्यसेवा क्रोधः श्रियं सर्वमेवाभिमानः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
गतिरात्मवतां सन्तः सन्त एव सतां गतिः।                            असतां च गतिः सन्तो न त्वसन्तः सतां गतिः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
नास्ति भीरोः कार्यचिन्ता  ॥   ,sanskrit-slogan
द्वाविमौ कण्टकौ तीक्ष्णौ शरीरपरिशोषिणौ।                             यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्चरः ॥    ,Vidur Niti Slokas
 तावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलश्चैव वासराः ।                                  यावत्सर्वं जनानन्ददायिनी वाङ्न प्रवर्तते॥,Chanakya Slokas
श्रुतं प्रज्ञानुगं यस्य प्रज्ञा चैव श्रुतानुगा।                           असम्भित्रायेमर्यादः पण्डिताख्यां लभेत सः ॥ ,Vidur Niti Slokas
शीलं प्रधानं पुरुषे तद् यस्येह प्रणश्यति।                            न तस्य जीवितेनार्थो न धनेन न बन्धुभिः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।                                    वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥,Chanakya Slokas
जननी जन्मभूमुश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥   ,sanskrit-slogan
सोऽस्य दोषो न मन्तव्यः क्षमा हि परमं बलम्।                             क्षमा गुणों ह्यशक्तानां  शक्तानां  भूषणं क्षमा ॥                               ,Vidur Niti Slokas
य ईर्षुः परवित्तेषु रुपे वीर्ये कुलान्वये ।                            सुखसौभाग्यसत्कारे तस्य व्याधिरनन्तकः  ॥    ,Vidur Niti Slokas
  दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन ।                                    मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन॥,Chanakya Slokas
यो नोद्धतं कुरुते जातु वेषं न पौरुषेणापि विकत्थतेऽन्त्यान्।                            न मूर्च्छितः कटुकान्याह किञ्चित् प्रियंसदा तं कुरुते जनो हि ॥                               ,Vidur Niti Slokas
लालयेत् पंचवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।                                  प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्॥,Chanakya Slokas
 माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी।                            अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥,Chanakya Slokas
तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः।                                  सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता॥,Chanakya Slokas
कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ॥   ,sanskrit-slogan
सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।                                न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावाताम्॥,Chanakya Slokas
स्वजनं तर्पयित्वा यः शेषभोजी सोऽमृतभोजी ॥   ,sanskrit-slogan
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः ।                            समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः ।                                   प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥,Chanakya Slokas
 रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च।                                  धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः॥,Chanakya Slokas
 उपायेन हि यच्छक्यं तन्न शक्यं पराक्रमैः ॥  ,sanskrit-slogan
 सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।                                  सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥,Chanakya Slokas
नैनं छन्दांसि वृजनात् तारयन्ति मायाविंन मायया वर्तमानम्।                            नीडं शकुन्ता इव जातपक्षाश्छन्दांस्येनं प्रजहत्यन्तकाले ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  नान्नोदकसमं दानं न तिथिर्द्वादशी समा ।                                 न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातुर्दैवतं परम् ॥,Chanakya Slokas
नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम् ॥   ,sanskrit-slogan
बलवन्तो हि अनियमाः नियमा दुर्बलीयसाम् ॥   ,sanskrit-slogan
 कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ॥  ,sanskrit-slogan
चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रियाभिजुष्टस्य  गृहस्थधर्मे ।                            वृद्धो ज्ञातिरवसत्रः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या ॥                               ,Vidur Niti Slokas
द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं।                            राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ॥ ,Vidur Niti Slokas
 काष्ठपाषाण धातुनां कृत्वा भावेन सेवनम्।                                   श्रद्धया च तथा सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः॥,Chanakya Slokas
  दर्शनध्यानसंस्पर्शैर्मत्स्यी कूर्मी च पक्षिणि।                                    शिशु पालयते नित्यं तथा सज्जनसंगतिः॥,Chanakya Slokas
लुब्धमर्थेन गृह्णीयात्स्तब्धमञ्जलिकर्मणा।                                   मूर्खश्छन्दानुरोधेन यथार्थवादेन पण्डितम्॥,Chanakya Slokas
पंचेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रियम् ।                            ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम् ॥    ,Vidur Niti Slokas
  कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः।                                   व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥,Chanakya Slokas
  कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी।                                   प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥,Chanakya Slokas
   बन्धन्य विषयासङ्गः मुक्त्यै निर्विषयं मनः।                                     मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः॥,Chanakya Slokas
   जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम्।                                     मृतो धर्मेण संयुक्तो दीर्घजीवी न संशयः॥,Chanakya Slokas
 मनः शीघ्रतरं बातात् ॥  ,sanskrit-slogan
शब्दमात्रात् न भीतव्यम् ॥   ,sanskrit-slogan
 शत्रवोऽपि हितायैव विवदन्तः परस्परम् ॥  ,sanskrit-slogan
छात्रैः परिश्रमेण पठितव्यम् ॥   ,sanskrit-slogan
प्राप्नोति वै वित्तमसद्बलेन नित्योत्त्थानात् प्रज्ञया पौरुषेण।                            न त्वेव सम्यग् लभते प्रशंसां न वृत्तमाप्नोति महाकुलानाम् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 मनसा चिन्तितं कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्।                                    मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्य चापि नियोजयेत् ॥,Chanakya Slokas
आक्रोशपरिवादाभ्यां विहिंसन्त्यबुधा बुधान्।                            वक्ता पापमुपादत्ते क्षममाणो विमुच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
गतानुगतिको लोकः न लोक़ः पारमार्थिकः ॥   ,sanskrit-slogan
  मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्।                                    आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः॥,Chanakya Slokas
  असमाहितस्य वृतिनर विद्यते ॥  ,sanskrit-slogan
नव्यसनपरस्य कार्यावाप्तिः ॥    ,sanskrit-slogan
अस्तयभाषणं पापं वर्तते ॥   ,sanskrit-slogan
 प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति मानवाः ।                                 तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥,Chanakya Slokas
 पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ॥  ,sanskrit-slogan
अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च।                            महान्  भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
अकार्यकरणाद् भीतः कार्याणान्च विवर्जनात् ।                            अकाले मन्त्रभेदाच्च येन माद्देन्न तत् पिबेत् ॥    ,Vidur Niti Slokas
 मूर्खाः यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम् ।                                   दाम्पत्योः कलहो नास्ति तत्र श्री स्वयमागता॥,Chanakya Slokas
  यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु ।                                      तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटा भसमलेपनैः॥,Chanakya Slokas
कुराजराज्येन कृतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिवृत्तिः।                                   कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कृशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः॥,Chanakya Slokas
 न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥   ,sanskrit-slogan
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥   ,sanskrit-slogan
 सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।                             सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥    ,Vidur Niti Slokas
गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः।                                  पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यगतो गुरुः॥,Chanakya Slokas
   न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी ।                                     तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः॥,Chanakya Slokas
यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्  ॥   ,sanskrit-slogan
  राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः।                                  भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्य पाप गुरुस्तथा॥,Chanakya Slokas
आत्मज्ञानं समारम्भः तितिक्षा धर्मनित्यता ।                            यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
 सर्वे चण्डस्य विभ्यति ॥   ,sanskrit-slogan
आर्यकर्मणि रज्यन्ते भूतिकर्माणि कुर्वते।                            हितं च नाभ्यसूयन्ति पण्डिता भरतर्षभ ॥                               ,Vidur Niti Slokas
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन  तप्यते।                              गाङ्गो ह्रद ईवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
बह्वाश्र्चर्या हि मेदनी ॥   ,sanskrit-slogan
  तावद् भयेषु भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।                                    आगतं तु भयं दृष्टवा प्रहर्तव्यमशङ्कया॥,Chanakya Slokas
 दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जनः।                                  सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे-पदे ॥,Chanakya Slokas
नाक्रोशी स्यात्रावमानी परस्य मित्रद्रोही नोत निचोपसेवी।                           न चाभिमानी न च हीनवृत्तों रुक्षां वाचं रुषतीं वर्जयीत॥                               ,Vidur Niti Slokas
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति।                          मिथ्या चरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥    ,Vidur Niti Slokas
रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम्।                            वाचा दुरुक्तं बीभत्सं न संरोहति वाक्क्षतम्  ॥    ,Vidur Niti Slokas
 लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः।                                   तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् ॥,Chanakya Slokas
एक: पापानि कुरुते फलं भुङ्क्ते महाजन:।                            भोक्तारो विप्रमुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते ॥    ,Vidur Niti Slokas
 देहाभिमानगलिते ज्ञानेन परमात्मनः।                                   यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः॥,Chanakya Slokas
सिंहादेकं बकादेकं शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।                                  वायसात्पञ्च शिक्षेच्च षट् शुनस्त्रीणि गर्दभात्॥,Chanakya Slokas
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥   ,sanskrit-slogan
किन्नु मे स्यादिदं कृत्वा किन्नु मे स्यादकुर्वतः ।                            इति कर्माणि सञ्चिन्त्य कुरयड् कुर्याद् वा पुरुषो न वा॥    ,Vidur Niti Slokas
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते।                            जीर्यन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 अनागतं यः कुरुते स शोभते ॥  ,sanskrit-slogan
सेवाधर्मः परमगहनो ॥     ,sanskrit-slogan
 एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ।                                 पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद् दत्त्वा चाऽनृणी भवेत् ॥,Chanakya Slokas
 किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने   विनियोजितम्  ॥    ,sanskrit-slogan
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥   ,sanskrit-slogan
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।                                   पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसे वसेत ॥,Chanakya Slokas
 स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिताः।                                    ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्यदानेन पण्डिताः॥,Chanakya Slokas
 किं कुलेन विशालेन विद्याहीने च देहिनाम्।                                    दुष्कुलं चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते॥,Chanakya Slokas
पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा।                            वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 एकोऽपि गुणवान् पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वरः।                                    एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः॥,Chanakya Slokas
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।                                   अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥,Chanakya Slokas
प्रवृत्तवाक् विचित्रकथ ऊहवान् प्रतिभानवान्।                            आशु ग्रन्थस्य वक्ता च यः स पण्डित उच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 तृणं ब्रह्मविद स्वर्गं तृणं शूरस्य जीवनम्।                                  जिमाक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत्॥,Chanakya Slokas
  अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्या अल्पं च कालो बहुविघ्नता च ।                                     आसारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥,Chanakya Slokas
दुर्बलाश्रयो दुःखमावहति ॥   ,sanskrit-slogan
न विश्चसेदविश्चस्ते विश्चस्ते नातिविश्चसेत्।                            विश्चासाद् भयमुत्पन्न मुलान्यपि निकृन्तति ॥                               ,Vidur Niti Slokas
अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामनाः।                            अर्थांश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥    ,Vidur Niti Slokas
न मातुः परदैवतम् ॥   ,sanskrit-slogan
किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्रो न गर्भिणी।                                कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न भक्तिमान्॥,Chanakya Slokas
धनात् धर्मः भवति ॥   ,sanskrit-slogan
लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ॥   ,sanskrit-slogan
अनारभ्या भवन्त्यर्थाः केचित्रित्यं तथाऽगताः ।                            कृतः पुरुषकारो हि भवेद् येषु निरर्थकः ॥  ,Vidur Niti Slokas
   बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।                                     वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः॥,Chanakya Slokas
 अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।                                    दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्॥,Chanakya Slokas
 प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।                                    सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः॥,Chanakya Slokas
न चातिगुणवत्स्वेषा नान्यन्तं निर्गुणेषु च।                             नेषा गुणान् कामयते नैर्गुण्यात्रानुरज़्यते।                              उन्मत्ता गौरिवान्धा श्री क्वचिदेवावतिष्ठते॥                               ,Vidur Niti Slokas
 कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते ॥ ,sanskrit-slogan
कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या।                                      पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥,Chanakya Slokas
वृत्ततस्त्वाहीनानि कुलान्यल्पधनान्यपि।                            कुलसंख्यां च गच्छन्ति कर्षन्ति च महद् यशः॥                               ,Vidur Niti Slokas
न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाणमिति में मतिः ।                            अन्तेष्वपि हि जातानां वृतमेव विशिष्यते ॥ ,Vidur Niti Slokas
 परिश्रमस्य फलं मधुरं भवति ॥  ,sanskrit-slogan
नोपकारात् परो धर्मो नापकारादधं परम् ॥   ,sanskrit-slogan
 परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः।                                     ते एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत्॥,Chanakya Slokas
श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।                                  श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्॥,Chanakya Slokas
सर्वे मित्राणि समृध्दिकाले ॥   ,sanskrit-slogan
 आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसण्कटे।                                    राजद्वारे श्मशाने च यात्तिष्ठति स बान्धवः ॥,Chanakya Slokas
भावमिच्छति सर्वस्य नाभावे कुरुते मनः।                             सत्यवादी मृदृर्दान्तो यः स उत्तमपूरुषः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 सुखार्थी चेत् त्यजेद्विद्यां त्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत् त्यजेत्सुखम्।                                  सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्॥,Chanakya Slokas
 सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।                                   शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते मम बान्धवाः॥,Chanakya Slokas
 सुख-दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥  ,sanskrit-slogan
दुराचारी च दुर्दृष्टिर्दुराऽऽवासी च दुर्जनः।                                 यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्र विनश्यति ॥,Chanakya Slokas
 को लोकमाराधयितुं समर्थः ॥  ,sanskrit-slogan
 अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नगतिस्तथा।                                    द्वावातौ सुखमेवेते यद्भविष्यो विनश्यति॥,Chanakya Slokas
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः।                           ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः॥,Chanakya Slokas
 विद्या योगेन रक्ष्यते ॥  ,sanskrit-slogan
   वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।                                     मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्॥,Chanakya Slokas
 सुश्रान्तोऽपि वहेद् भारं शीतोष्णं न पश्यति।                                   सन्तुष्टश्चरतो नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात्॥,Chanakya Slokas
   अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।                                     जनो दहति संसर्गाद् वनं सगविवर्जनात॥,Chanakya Slokas
अनर्थंमर्थंतः पश्यत्रर्थं चैवाप्यनर्थतः।                            इन्द्रियैरजितैर्बालः सुदुःखं मन्यते सुखम् ॥  ,Vidur Niti Slokas
 कृतज्ञः सर्वलोकेषु पूज्यो भवति सर्वदा ॥  ,sanskrit-slogan
दीयमानं हि नापैति भूय एवाभिवर्तते ॥   ,sanskrit-slogan
द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्नस्मिंल्लोके विरोचते।                            अब्रुवं परुषं कश्चित् असतोऽनर्चयंस्तथा ॥    ,Vidur Niti Slokas
आत्मनाऽऽत्मानमन्विच्छेन्मनोबुद्धीन्द्रियैर्यतैः।                            आत्मा ह्वोवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
 वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयः पत्रफलाम्बु सेवनम्।                                   तृणेशु शय्या शतजीर्णवल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्॥,Chanakya Slokas
 दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं धीरत्वमुचितज्ञता।                                    अभ्यासेन न लभ्यन्ते चत्वारः सहजा गुणाः॥,Chanakya Slokas
दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोत्युपायज्ञः ॥   ,sanskrit-slogan
सामुद्रिकं वणिजं चोरपूर्व शलाकधूर्त्त च चिकित्सकं च।                            अरिं च मित्रं च कुशीलवं च नैतान्साक्ष्ये त्वधिकुर्वीतसप्त॥                               ,Vidur Niti Slokas
यत्नवान् सुखमेधते ॥   ,sanskrit-slogan
जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।                                 मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥,Chanakya Slokas
विद्यया लभते ज्ञानम् ॥   ,sanskrit-slogan
 अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति ।                                  प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति॥,Chanakya Slokas
न वैरमुद्दीपयति प्रशान्तं न दर्पमारोहति नास्तमेति ।                            न दुर्गतोऽस्मीति करोत्यकार्यं तमार्यशीलं परमाहुरार्याः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
धर्मार्थकाममोश्रेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते।                                जन्म जन्मानि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्॥,Chanakya Slokas
 आयुः कर्म वित्तञ्च विद्या निधनमेव च।                                     पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः॥,Chanakya Slokas
सुव्याहृतानि सुक्तानि सुकृतानि ततस्ततः।                            सञ्चिन्वन् धीर आसीत् शिलाहरी शिलं यथा ॥    ,Vidur Niti Slokas
गृहीतेवाक्यो नयविद् वदान्यः शेषात्रभोक्ता ह्यविहिंसकश्च।                            नानार्थकृत्याकुलितः कृतज्ञः सत्यो मृदुः स्वर्गमुपैति विद्वान् ॥ ,Vidur Niti Slokas
अर्चयेदेव मित्राणि सति वाऽसति  वा धने।                             नानर्थयन् प्रजानति मित्राणं सारफल्गुताम् ॥    ,Vidur Niti Slokas
यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते।                            न किञ्चिदवमन्यन्ते  नराः पण्डितबुद्धयः ॥ ,Vidur Niti Slokas
सुदुर्बलं नावजानाति कञ्चित् युक्तो रिपुं सेवते बुद्धिपूर्वम् ।                            न विग्रहं रोचयते बलस्थैः काले च यो विक्रमते स धीरः ॥ ,Vidur Niti Slokas
 वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥   ,sanskrit-slogan
 पितृदोषेण मूर्खता ॥  ,sanskrit-slogan
 विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।                                   व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥,Chanakya Slokas
 सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥   ,sanskrit-slogan
 चिरनिरूपणीयो हि व्यक्तिस्वभावः ॥  ,sanskrit-slogan
   दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।                                     शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनः पूतं समाचरेत्॥,Chanakya Slokas
येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं च गुणो न धर्मः।                                   ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरुपेण मृगाश्चरन्ति॥,Chanakya Slokas
अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषेते ।                            अविश्चस्ते  विश्चसिति  मूढचेता नराधम: ॥                               ,Vidur Niti Slokas
यः सर्वभूतप्रशमे निविष्टः सत्यो मृदुर्मानकृच्छुद्धभावः ।                           अतीव स ज्ञायते ज्ञातिमध्ये महामणिर्जात्य इव प्रसन्नः ॥                               ,Vidur Niti Slokas
अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्य प्रियवादिनी च ।                            वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या षट् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ॥ ,Vidur Niti Slokas
 पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च।                                  नैव गावं कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा॥,Chanakya Slokas
 अत्यन्तलेपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।                                    नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम्॥,Chanakya Slokas
 सर्वथा सुकरं मित्रं दुष्करं प्रतिपालनम् ॥  ,sanskrit-slogan
 गुरुणामेव सर्वेषां माता गुरुतरा स्मृता ॥  ,sanskrit-slogan
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्  ॥   ,sanskrit-slogan
यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्यस्तस्मिंस्तथा वर्तितव्यं स धर्मः।                            मायाचारो मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः॥                               ,Vidur Niti Slokas
 भाग्यवन्तमपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥   ,sanskrit-slogan
उत्साहवन्तः पुरुषाः नावसीदन्ति कर्मसु ॥   ,sanskrit-slogan
  यथा धेनु सहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।                               तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति॥,Chanakya Slokas
उपायेन जयो यदृग्रिपोस्तादृड्डं न हेतिभिः ॥   ,sanskrit-slogan
  उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्।                                      मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥,Chanakya Slokas
दारिद्रयनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम्।                                  अज्ञानतानाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी॥,Chanakya Slokas
सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता ॥   ,sanskrit-slogan
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मन: ।                            काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥                               ,Vidur Niti Slokas
  कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमोः।                                   कस्याहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः॥,Chanakya Slokas
   उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी ।                                      तादृशी यदि पूर्वा स्यात्कस्य स्यान्न महोदयः ॥,Chanakya Slokas
हिंसाबबलमसाधूनां राज्ञा दण्डविधिर्बलम्।                            शुश्रुषा तु बलं स्त्रीणां क्षमा गुणवतां बलम्॥ ,Vidur Niti Slokas
मूर्खस्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।                                 भिनत्ति वाक्यशूलेन अदृश्ययं कण्टकं यथा ॥,Chanakya Slokas
कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्षणं निषेवते।                            तदेवापहरत्येनं तस्मात् कल्याणमाचरेत् ॥  ,Vidur Niti Slokas
 संस्कृतं भाषाणां जननी अस्ति ॥  ,sanskrit-slogan
देशाचारान्   समयाञ्चातिधर्मान्  बुभूषते यः स परावरज्ञः ।                            स यत्र तत्राभिगतः सदैव महाजनस्याधिपत्यं करोति ॥ ,Vidur Niti Slokas
गृहेऽपि पज्चेन्द्रियनिग्रहः तपः ॥   ,sanskrit-slogan
अतिवादं न प्रवदेत्र वादयेद् यो नाहतः प्रतिहन्यात्र घातयेत्।                            हन्तुं च यो नेच्छति पातकं वै तस्मै देवाः स्पृहयन्त्यागताय ॥    ,Vidur Niti Slokas
 जानन्नपि नरो दैवात्प्रकरोति विगर्हितम् ॥  ,sanskrit-slogan
 शकटं पञ्चहस्तेन दशहस्तेन वाजिनम्।                                   हस्तिनं शतहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनम्॥,Chanakya Slokas
 छात्राणां धर्मः अध्ययनम्  अस्ति ॥  ,sanskrit-slogan
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।                            यमर्थान् नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥                               ,Vidur Niti Slokas
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।                           दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥,Chanakya Slokas
सुखं च दुःखं च भवाभवौ च लाभालाभौ मरणं जीवितं च।                            पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति तस्माद् धीरो न हृष्येत्र शोचेत् ॥  ,Vidur Niti Slokas
 नात्यन्तं सरलेन भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।                                 छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः॥,Chanakya Slokas
ब्राह्मणं ब्राह्मणो वेद भर्ता वेद स्त्रियं तथा।                            अमात्यं नृपतिर्वेद राजा राजानमेव च॥                               ,Vidur Niti Slokas
 जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि ।                                    प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः॥,Chanakya Slokas
शोकः शौर्यपकर्षणः ॥   ,sanskrit-slogan