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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A3
भारतीयकरण
'भारतीयकरण' का अर्थ है- जीवन के विविध क्षेत्रों में भारतीयता का पुनःप्रतिष्ठा। ‘भारतीयता’ शब्द ‘भारतीय’ विशेषण में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है जो संज्ञा (भाववाचक संज्ञा) रूप में परिणत हो जाता है। भारतीय का अर्थ है - भारत से सम्बन्धित। भारतीयता से तात्पर्य उस विचार या भाव से है जिसमें भारत से जुड़ने का बोध होता हो या भारतीय तत्वों की झलक हो या जो भारतीय संस्कृति से संबंधित हो। भारतीयता का प्रयोग राष्ट्रीयता को व्यक्त करने के लिए भी होता है। भारतीयता के अनिवार्य तत्त्व हैं - भारतीय भूमि, जन, संप्रभुता, भाषा एवं संस्कृति। इसके अतिरिक्त अंतःकरण की शुचिता (आन्तरिक व बाह्य शुचिता) तथा सतत सात्विकता पूर्ण आनन्दमयता भी भारतीयता के अनिवार्य तत्त्व हैं। भारतीय जीवन मूल्यों से निष्ठापूर्वक जीना तथा उनकी सतत रक्षा ही सच्ची भारतीयता की कसौटी है। संयम, अनाक्रमण, सहिष्णुता, त्याग, औदार्य (उदारता), रचनात्मकता, सह-अस्तित्व, बन्धुत्व आदि प्रमुख भारतीय जीवन मूल्य हैं। भारतीयकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत महान प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता की रक्षा की जाती है । भारतीयकरण एक पुनःजगरण आन्दोलन है । यह आन्दोलन आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक शिक्षा आदि क्षेत्रों में स्वदेशी पर अत्यधिक बल देता है। यह आन्दोलन भारतीय संस्कृति को पुनः जीवित करने में कार्यरत है । यह आंदोलन मानवतावाद तथा भारतीय राष्ट्रीयतावाद पर बल देता है । यह आन्दोलन हिन्दी, संस्कृत तथा अन्य भारतीय भाषाओं की रक्षा करता है । भारतीयता से संबंधित सुभाषित व सूक्तियाँ ‘‘भारत जब तक जग में होगा, भारतीयता तब तक होगी।’’ ‘‘भारतीयता आध्यात्मिकता की तरंगों से ओत प्रोत है।’’ - स्वामी विवेकानन्द ‘‘भारतीयता का प्राण धर्म है, इसकी आस्था धर्म है और इसका भाव धर्म है।’’ - महर्षि अरविंद ‘‘भारतीयता होगी जब तक, जग होगा निरोगी तब तक।’’ - बलदेव प्रसाद मिश्र ‘‘सामाजिक, नैतिक तथा कलात्मक क्षेत्रों को भारतीयता तत्त्व दर्शनपरक सत्य और मूल्य प्रदान करती है।’’ राधा कमल मुखर्जी भारतवर्ष के प्रत्येक व्यक्ति में मन में ‘भारतीय’ होने का भाव जितना अधिक होगा वे अपना भला बुरा भारत की उन्नति में देखेंगे। उनकी किसी गतिविधि से भारत का अहित होगा तो वे नहीं करेंगे। भारत की शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो कि प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति अपने आप को भारत का एक अंश, भारत माता का पुत्र माने। ऐसी स्थिति आने पर कोई भी राजनेता जाति, पंथ, भाषा, क्षेत्र आदि के नाम पर देश को नहीं बांट सकेगा। भारतीयता की प्रकृति भारतीयता की प्रकृति से तात्पर्य उन मान बिंदुओं से है जिनकी उपस्थिति में भारतीयता का आभास होता है। भारतीयता निम्नांकित बिंदुओं/अवधारणाओं से प्रकट होती है- (१) वसुधैव कटुम्बकम् की अवधारणा : संपूर्ण विश्व को परिवार मानने की विशाल भावना भारतीयता में समाविष्ट हैं। अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥ (यह मेरा है, यह पराया है, ऐसे विचार तुच्छ या निम्न कोटि के व्यक्ति करते हैं। उच्च चरित्र वाले व्यक्ति समस्त संसार को ही कुटुम्ब मानते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम का मन विश्वबंधुत्व की शिक्षा देता है।) (२) विश्व कल्याण की अवधारणा : सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाग्भवेत॥ भारतीय वाङ्मय में सदा सबके कल्याण की कामना की गई है। उसे ही सार्वभौम मानवधर्म माना गया है। मार्कण्डेय पुराण में सभी प्राणियों के कल्याण की बात की गई है। सभी प्राणी प्रसन्न रहें। किसी भी प्राणी को कोई व्याधि या मानसिक व्यथा न हो। सभी कर्मों से सिद्ध हों। सभी प्राणियों को अपना तथा अपने पुत्रों के हित के समान वर्ताव करें। (३) विश्व को श्रेष्ठ बनाने का संकल्प : ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ (सारी दुनिया को श्रेष्ठ, सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे।) यह संकल्प भारतीयता के श्रेष्ठ उद्देश्य को व्यक्त करता है। (४) त्याग की भावना : ईशावास्योपनिषद के प्रथम श्लोक में ही भारतीयता में त्याग की भावना स्पष्ट है। ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत। तेन त्यकतेन भुंजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम ॥ अखिल ब्रह्माण्ड में जो कुछ जड़ चेतन स्वरूप जगत है। यह समस्तम ईश्वर में व्याप्त है। उस ईश्वर को साथ रखते हुए त्याग पूर्वक भोगते रहो। उसमें आसक्त नहीं हों क्योंकि धन भोग्य किसका है अर्थात् किसी का भी नहीं। यह राजा से लेकर रंक तक त्यागपूर्वक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देती है। भारत में राजा जनक से राजा हर्ष तक यही प्रेरणा मिलती है। (५) वितरण के प्रति दृष्टि : शत् हस्त समाहर सहस्रहस्त संकिर। कृतस्य कार्यऽस्य चेह स्फार्ति समावह ॥ - अथर्ववेद हे मनुष्य। तू सौ हाथों से धन प्राप्त कर तथा हजार हाथों वाला बनकर उस धन को दान कर। इस उदार भावना से मनुष्य की अधिक से अधिक उन्नति हो सकती है। इस भावना से समाज में धन व संपत्ति का अधिक समान वितरण हो सकता है। (६) सहिष्णुता : सहिष्णुता से तात्पर्य सहनशक्ति व क्षमाशीलता से है। धैर्य, विनम्रता, मौन भाव, शालीनता आदि इसके अनिवार्य तत्त्व हैं। भारतीयता का यह तत्त्व भारतीय संस्कृति को अन्य संस्कृतियों से अलग करता है। यही कारण है कि भारत की कभी भी अपने राज्य विस्तार की इच्छा नहीं रही तथा सभी धर्मां को अपने यहां फलते-फूलने की जगह दी। (७) अहिंसात्मक प्रवृत्ति : अहिंसा से तात्पर्य हिंसा न करने से है। कहा गया है कि ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो। भगवान महावीर, बुद्ध तथा महात्मा गांधी ने विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महाभारत में भी कहा गया है कि मनसा, वाचा तथा कर्मणा किसी को भी कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। हमारे ऋषियों ने अहिंसा को धर्म का द्वार बताया है। जैन धर्म में अहिंसा को परम धर्म बताया गया है। (८) आध्यत्मिकता : आध्यात्मिकता भारतीयता को अन्य संस्कृतियों के गुणों से अलग करती है। ईश्वर के प्रति समर्पण भाव ही आध्यात्मिकता है। भक्ति, ज्ञान व कर्म मार्ग से आध्यात्मिकता प्राप्त की जा सकती है। यह आत्मा के संपूर्ण विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। पुरूषार्थ चतुष्टय आध्यात्म में संचालित, प्रेरित व अनुशासित होता है। आध्यात्म के क्षेत्र में भारत को गुरु मानता है। (९) एकेश्वरवाद की अवधारणा : एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति। (ईश्वर एक है। विद्वान उसे अनेकों नाम से पुकारते हैं) इस्लाम ने भी ईश्वर के एक होने की बात की है परन्तु उसी सांस में यह भी कह दिया कि उसका पैगम्बर मौहम्मद है तथा उसके ग्रंथ कुरान में भी आस्था रखने की बात कही। यही बात ईसाइयत में है। भारत में ईश्वर को किसी पैगम्बर व ग्रंथ से नहीं बांधा है। (१०) सर्वधर्म समभाव : भारत में सभी धर्म राज्य की दृष्टि में समान हैं। पूजा की सभी पद्धतियों का आदर करो तथा सभी धर्मां के प्रति सहिष्णुता बरतो। धर्म, मजहब, पंथ एक नहीं हैं। इस्लाम व ईसाइयत को पंथ/मजहब कह सकते हैं जबकि हिंदु धर्म 'जीवन पद्धति' है। कहा भी गया है कि- ‘‘धारयते इति धर्मः’’ अर्थात् जो धारण करता है, वहीं धर्म है। इसका अर्थ है पवित्र आचरण व मानव कर्तव्यों की एक आचार सहिंता। मनु ने धर्म के 10 लक्षण (तत्व) बताए हैं- १. धृति - धैर्य / संतोष २. क्षमा - क्षमा कर देना ३. दम - मानसिक अनुशासन ४. अस्तेय - चोरी नहीं करना ५. शौच - विचार व कर्म की पवित्रता ६. इंद्रिय निग्रह - इंद्रियों को वश में करना ७. धी - बुद्धि एवं विवेका का विकास ८. विद्या - ज्ञान की प्राप्ति ९. सत्य - सच्चाई १०. अक्रोध - क्रोध न करना धर्म की इस परिभाषा में कुछ भी सांप्रदायिक नहीं है। भारतीय दृष्टि से लोग अलग पंथ/मजहब/पूजा पद्धति में विश्वास करते हुए इस धर्म का अनुसरण कर सकते हैं। जीवन के प्रति संश्लिष्ट दृष्टि - चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष मानव जीवन के प्रेरक तत्व। (११) धर्म राज्य / राम राज्य की अवधारणा : राजा या शासन लोकहित को व्यक्तिगत रूचि या अरूचि के उपर समझे। महाभारत में निर्देश हैं कि जो राजा प्रजा के संरक्षण का आश्वासन देकर विफल रहता है तो उसके साथ पागल कुत्ते का सा व्यवहार करना चाहिए। (१२) अनेकता में एकता : भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यहां अनेक जातियां, खान-पान, वेश-भूषा, भाषा, प्रांत होने के बावजूद भी राष्ट्र के नाम पर एकता है। (१३) राष्ट्रीयता : भारतीयता राष्ट्रीयता की सशक्त भावना पैदा करने का ही दूसरा नाम है। राष्ट्रीयता में केवल राजनीतिक निष्ठा ही शामिल नहीं होती बल्कि देश की विरासत और उसकी संस्कृति के प्रति अनुशक्ति की भावना, आत्मगर्व की अनुभूति आदि भी शामिल है। राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय वीरों, महापुरूषों, राष्ट्रीय नैतिकता तथा मूल्यों के प्रति सम्मान की भावना भी राष्ट्रीयता का एक अंग है। इसलिए भारतीयता सभी भारतीयों में राष्ट्रीयता की सशक्त भावना पैदा करने के सिवाय कुछ भी नहीं है। शिक्षा में भारतीयता मानव जीवन की गुणवत्ता के संवर्द्धन तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति के लिए शिक्षा एक मूलभूत तत्त्व है। अधिकांश अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि पूंजीगत एवं प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में मानवीय संसाधन प्रत्येक राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक विकास के चरित्र तथा गति को अधिक प्रभावित करते हैं क्योंकि पूंजी तथा प्राकृतिक संसाधन आर्थिक विकास के निष्क्रिय तत्त्व हैं जबकि मानवीय संसाधन एक सक्रिय तत्त्व है। मानवीय संसाधन ही पूंजी का संचय करते हैं, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हैं, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक संगठनों का निर्माण करते हैं तथा राष्ट्रीय विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इस तरह से जो राष्ट्र अपने नागरिकों में निपुणताओं तथा ज्ञान की अभिवृद्धि करने तथा उपयोग करने में असमर्थ रहते हैं वे कुछ भी विकास करने में सफल नहीं हो सकते। विश्व बैंक रिपोर्ट 2007 में कहा गया है कि जो विकासशील देश अपनी युवा शक्ति (12-24 वर्ष) की अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि पर विनियोग करते हैं, वहां अच्छी विकास की दर तथा घटती निर्धनता प्राप्त की जा सकती है। शिक्षा आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है। उत्पादकता एवं औद्योगिक किस्म को बढ़ाने, सूचना तंत्र तथा जैविक तकनीक क्षेत्र को गति देने, विनिर्मित एवं सेवा निर्यात क्षेत्र के उत्तेजित विस्तार करने, स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार लाने, घरेलू स्थिरता तथा शासन की गुणवत्ता के लिए सभी स्तरों पर शिक्षा की पहुंच तथा गुणवत्त पूर्ण शिक्षा की पूर्व एवं आवश्यक शर्त है। इन्हें भी देखें वृहद भारत भारतीयत्त्व हिंदुत्व भारत
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जॉर्ज १ (ग्रेट ब्रिटेन का महाराजा)
जॉर्ज १ ग्रेट ब्रिटन और आयरलैंड का महाराजा था। उनका जन्म हनोवर में हुआ था।वह ब्रून्स्विक-लूनबर्ग के शासक का पहला पुत्र था। ५४ की उम्र में इंगलैंड पहूँचा था।राणी ऐनी की म्रत्यु के बाद उन्होने ब्रिटिश सिंहासन चढा।जार्ज ऐनी का निकटतम रिश्तेदार था। उनका राज्य काल में एकाधिपत्य बंध होने लगा। जीवन वृत्त जॉर्ज का जन्म २८ मय १६६० को हनोवर में हुआ था। उनके माता- पिता एर्णस्ट अगस्टस और सोफिया थे।१६६१ में उनका भाई फ्रडरिक अगस्टस का जन्म हुआ। दोनों भाईयों का पालन-पोषण एक साथ हुआ।उनकी माता पर्यटन(१६६४-१६६५) में थी। वापस लौटकर उन्होने ४ बेटे और एक बेटी को भी जन्म दिया।१६७५ में जार्ज का चाचा की मृत्यु हुई। उनका अन्य दो चाचाओं की शादी हो चुकी थी।जॉर्ज को विरासत मिलने की संभावना कम थी।उनके पिता उन्हें शिकार करने ले जाया करता था। १५ की आयु में एर्णस्ट अगस्टस ने अपने पुत्र को युद्ध की शिक्षा देने कि उद्देश्य से जॉर्ज को जंग में ले गये थे।लेकिन १६७९ में जॉर्ज का एक चाचा की अप्रत्याशित मृत्यु हुई। उनका कोई पुत्र नहीं था और जॉर्ज कॉलनबर्ग-गोटिंगन का शासक बना।
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संभोग पूर्व क्रीड़ा
संभोग पूर्व क्रीड़ा (फोरप्ले) एक या एक से अधिक लोगों के बीच भावनात्मक और शारीरिक रूप से अंतरंग क्रियाओं का एक सेट है जो यौन उत्तेजना और यौन गतिविधि की इच्छा पैदा करने के लिए है। हालांकि संभोग पूर्व क्रीड़ा को आमतौर पर शारीरिक यौन गतिविधि के रूप में समझा जाता है, गैर-शारीरिक गतिविधियां, जैसे कि मानसिक या मौखिक क्रियाएं, कुछ संदर्भों में पूर्व क्रीड़ा हो सकती हैं। आमतौर पर यही कारण है कि फोरप्ले एक अस्पष्ट शब्द है और इसका मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है। इसमें चुंबन, यौन स्पर्श, कपड़े उतारना, मुख मैथुन, यौन खेल और भूमिका निभाने जैसी विभिन्न यौन प्रथाएँ शामिल हो सकती हैं। भूमिका फोरप्ले के महत्वपूर्ण शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं। शारीरिक रूप से, दोनों भागीदारों के यौन अंग अधिक रक्त प्रवाह प्राप्त करते हैं और उत्तेजित हो जाते हैं। पुरुष भागीदारों के लिए यह एक निर्माण की ओर जाता है और महिला भागीदारों के लिए इसका परिणाम क्लिटोरल इरेक्शन होता है। जब पार्टनर फोरप्ले की क्रियाओं से यौन उत्तेजना का अनुभव करते हैं, तो उनके अंग जो आनंद के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, बाहरी उत्तेजनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाते हैं, साथ ही शारीरिक तरल पदार्थ जारी करते हैं जो अंगों को संभोग के लिए तैयार करने के लिए लुब्रिकेट करते हैं। महिला साथी की तुलना में पुरुष साथी द्वारा उपरोक्त इन शारीरिक घटनाओं तक अधिक आसानी से पहुँचा जा सकता है जो संभवतः गर्भावस्था और मातृत्व के संभावित परिणामों के कारण है। यही कारण है कि सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. विलियम रॉबिन्सन के अनुसार, फोरप्ले को महिला साथी के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पाया गया है। रॉबिन्सन का सुझाव है कि पुरुष साथी पूर्व क्रीड़ा की आवश्यकता के बिना संभोग करने में सक्षम हैं। जबकि महिला भागीदारों को पर्याप्त रूप से उत्तेजित और आनंदित होने के लिए फोरप्ले की लंबी क्रियाओं की आवश्यकता होती है। मनोवैज्ञानिक रूप से, पूर्व क्रीड़ा निषेधों को कम करती है और भागीदारों के बीच भावनात्मक अंतरंगता को बढ़ाती है। दोनों साथी फोरप्ले करते समय आपसी समझ और भावनाओं का अनुभव करने में सक्षम होते हैं। यह पारस्परिकता दोनों भागीदारों के लिए एक बेहतर यौन अनुभव की ओर ले जाती है। जैविक दृष्टिकोण से, पूर्व क्रीड़ा को एक ऐसे कार्य के रूप में देखा जा सकता है जो प्रजनन (नर पशु परिप्रेक्ष्य) के संबंध में महंगा है। फिर भी, फोरप्ले की लागत अपर्याप्त हो जाती है जब जैविक अनुसंधान के माध्यम से यह नोट किया गया है कि यह पशु और मानव साम्राज्य दोनों में प्रजनन दर बढ़ाने के लिए एक सार्थक रणनीति है। उर्वरता की बढ़ी हुई दर पूर्वोक्त शारीरिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों के कारण होती है जो न्यूरोहाइपोफिसियल हार्मोन के प्रभावों में भी भूमिका निभाते हैं। यह हार्मोन व्यापक फोरप्ले की क्रियाओं के दौरान पुरुष के भीतर शुक्राणुओं की संख्या के उत्पादन को बढ़ाने में सक्षम है और इसलिए महिला साथी के गर्भवती होने की संभावना अधिक होती है। इन्हें भी देखें यौन आसनों की सूची बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ काम यौनाचार
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अबोटी
आबोटी, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र की ब्राह्मणों की एक उपजाति है। ‘‘गुजरात के ब्राह्मणों का इतिहास’’ में डो। शिवप्रसाद राजगोर द्वारा प्रकाशित इस सुप्रसिध्‍ध पुस्‍तिकामें ‘‘अबोटी ब्राह्मिनो’’ की उत्‍पत्ति के बारेमें विवरण करते हुए पेज नंबर ५१२ से ५१७ पर लिखते हैं कि गुजरातमें सांप्रदायिक तौर से सूर्य उपासनाकी शुरुआत दूसरी शताब्‍दीमें हुई। ‘‘प्रभास’’ नामक स्‍थल पर सूर्यपूजा होती थी जिसका प्रमाण महाभारत के वनपर्वमें पाया जाता है। प्रभासको ‘‘भास्करक्षेत्र’’ के नामसे भी जाना जाता है। ‘‘भास्कर’’ का अर्थ होता है सूर्य और ‘‘प्रभास’’ मतलबकी अतिप्रकाशित। इस प्रकार से ये दोनों ही शब्‍द सूर्यपूजा को सूचित करते हैं। सूर्यपूजा ईरान से भारत में आई, इसबारे में भविष्‍य पुराणमें एक कहानी है। इस कहानी के अनुसार श्री कृष्ण और जाम्‍बवती के पुत्र सांखने चंद्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर सूर्यमंदिर बनवाया था। उस स्‍थल के निवासी ब्राह्मिनोने पूजा करनेसे इन्‍कार किया तब सांख द्विपसे सूर्यपूजक ‘‘मग’’ ब्राह्मिनोको निमंत्रित करने की सलाह उन्‍हे प्राप्‍त हुई। इन ‘‘मग’’ ब्राह्मिनो की उत्‍पत्ति के बारे में माना जाता है कि सूर्य को सुजीह्व मिहिर गौत्र की ब्राह्मिन कन्‍या निभुक्षा से प्‍यार था और उन्ही से एक पुत्र ‘‘जरदस्त’’ या ‘‘जरशब्द’’ हुआ। माना जाता है कि ये मग ब्राह्मिन उन्‍ही के वंशज है। सौराष्‍ट्र में सूर्यपूजा दरायस के वकत से, यानि कि वायव्‍य सरहदी विस्‍तार उनके शासनमें था तब से अर्थात् पाँचवी शताब्दी से प्रचलित थी ऐसी मान्‍यता है। बाइबलमें ‘‘मगी’’ या ‘‘मेगी’’ शब्‍द का प्रमाण पाया जाता है ओर वर्तमान अबोटी ब्राह्मिन इन्‍ही मग ब्राह्मिनो (सूर्यपूजको) के वंशज है। इस प्रकार से भारत वर्ष में मग ब्राह्मिनो को सांब लेकर आया। उपर्युकत वार्तानुसार सूर्य का प्रथम मंदिर ‘‘मूलस्थान’’ या ‘‘मूलतान’’ में चँद्रभागा के तट पर था। तत् पश्चात् पूरे उत्तर-पश्चिम भारतमें सूर्यपूजा का फैलावा हुआ। द्वारिका से पाँच मिल दूर चँद्रभागा नाम की छोटीसी झील है। जीसके तट पर सांब-लक्ष्‍मणजी के मंदिर आज भी प्रसिध्‍ध है। ध्रासणवेलका सूर्यमंदिर ‘‘मग मंदिर’’के नामसे जगमशहुर है। पींडतारक क्षेत्र के मुनियोंका अपमान करने के कारण सांब को कुष्‍ठरोग हुआ था। इस रोग के उपचार हेतु साँबने ईरान से मगब्राह्मिनोको बुलवाया था। अंत में सूर्यउपासना से सांब का कुष्‍ठरोग दूर हुआ। वर्तमान समयमेंभी अबोटी ब्राह्मिनोमें ‘‘शामजी’’ नाम अधिक प्रचलित है। जो की उन लोगों का सांब के साथ विशेष रिश्‍ता सूचित करता है। भिन्‍नमाल के जगतस्‍वामि मंदिर के स्‍तंभलेखमें ’’अंगभोग’’ में मिली राशिका बंटवारा कैसे करना? इस विषय पर विशेष विवरण पाया जाता है। इस टीप्‍पणीमें अबोटी एवं व्‍यास भट्टजी को मंदिर के खास व्‍यकित के तौर पर कुछ दान देने का प्रमाण मिलता है। इस मंदिर का निर्माण सन ६४४ में हुआ और उनका पुन:निमार्ण सन ८८९ में किया गया। मंदिरमें जो स्‍तंभालेख है वो १३वीं शताब्दीका माना जाता है। जिसके आधार से यह कहा जा सकता है कि अबोटी ब्राह्मिन मारवाडमें सूर्यनारायण के पूजारी थे। एक कथा अनूसार वज्नाभ के साथ आये मग ब्राह्मिन मथुरा गये और वहां से वे मारवाड पहुंचे। तत् पश्चात् वल्‍लभ संप्रदाय के प्रागट्य पर वे द्वारिका आये। श्री कल्‍याणराय जोषी द्वारिकाके बारेमें लीखी अपनी किताबमें लिखते हैं कि श्रीमाल में से श्रीमाली, सेवक, भोजक इत्‍यादी के साथ अबोटी ब्राह्मिनभी गुजरात में आये। कइ विद्वान ये मानते है कि अबोटी ब्राह्मिन मुलत: श्रीमाल के सेवक ज्ञाति की उपशाखा है। जब की एन्थोवन नामक संशोधक अबोटी ब्राह्मीनो को श्रीमालीका एक हिस्‍सा मानते है। ‘‘अबोटी ब्राह्मिनोत्‍पति’’ पुस्‍तिका के लेखक स्‍व। वल्‍लभराय मकनजी पुरोहीत वालखिल्‍य पूरानका प्रमाण देते हुए लिखते हैं कि शिव-पार्वती के विवाह समारोह में मा पार्वती के अदभूत रूपको देखकर ब्रह्माजी मोहित हो गये और उनका विर्य स्‍खलन हो कर के रेत में गिरा। जीससे ८८१२८ अ-योनिज ऋषियोंकी उत्‍पत्ति हुइ जो ‘‘वालखिल्य’’ नामसे प्रचलित हुए। श्री कृष्‍णवंशज वज्रनाभने द्वारिकामें श्री जगदीशमंदिर के पुन:निमार्ण के अवसर पर जम्‍बुद्विप से ब्राह्मिनो को बुलाकर के लाने के लीए गरूडजीको विनती की। गरूडजी इन ब्राह्मिनो को अपनी चोंच पर बीठाकर के लाए अत: वे ‘‘अबोटी’’नाम से प्रचलित हुए। श्री लाभशंकर पुरोहीत जो स्‍वंय अबोटी ब्राह्मीन ज्ञातिके ही है वे मानते है कि सौराष्‍ट्रमें अबोटी ब्राह्मीनो का बसेरा प्राचीन काल से है। वे मानते है कि अबोटी ब्राह्मिन यादवों के पुरोहीत थे। लेकिन द्वारिका के विनाश के बाद वे उस स्‍थल से चले गये होंगे। श्री पुरोहीत कहते हैं कि अबोटी ब्राह्मिन श्री कृष्‍णपूजा में अत्‍यधिक विश्वास रखते थे अत:वे ‘‘वैश्नव’’ हैं। अबोटी ब्राह्मिनोमें सूर्यपत्नि रन्‍नादेवी की भक्तिभी विशेष पायी जाती हैं। बोम्बे गेझीटीयर के वोल्युम ९ वें में यह विवरण लिखा गया है कि अबोटी ब्राह्मीनो के आदीपुरूष वाल्‍मिकीजी के छोटेभाइ थे। और द्वारिकानगरी में भगवान श्री कृष्‍णने जब यज्ञ करवाया तब गरूडजी अन्‍य ब्राह्मिनोके अतरिकत अबोटी ब्राह्मीनों को भी अपने साथ द्वारिका लाये। कई विद्वान ये मानते हे की ‘‘अजोटी ब्राह्मिन’’ ही अबोटी ब्राह्मिन है कि जो आध्‍यात्‍मिक अयाचक याज्ञवल्‍कय ऋषिके वंशज है। समय बितने के साथ वे ‘‘अबोटी ब्राह्मिन’’ नाम से प्रचलित हुए। ‘‘अबोटी’’ शब्‍द को समझाते हुए ये विद्वान लिखते है कि ये ब्राह्मिन स्‍नान, पूजा, वंदना एवं आध्‍यात्‍मिक क्रियायें ‘‘अबोट’’(पवित्र वस्‍त्र) पहनकर करते थे। अत: इन्हें ‘‘अबोटी ब्राह्मिन’’ नामसे प्रसिध्‍धी मिली। विद्वानो एवं संशोधकों का एक मत ऐसा भी है कि ‘‘मगब्राह्मिन’’ अपने आपको ‘‘अबोटी’’ कहलवाते थे। इस बात को समझाते हुए वे कहते हैं कि इन ब्राह्मिनोने विधर्मी लोगों के सामने न झुककर स्‍वधर्मको ही सच्‍चा मानते हुए ‘‘अ-बोट’’(पवित्र) रहेना पसंद कीया। इससे ये मग ब्राह्मिन ‘‘अबोटी मग ब्राह्मिन’’ नामसे पहेचाने जाने लगे। समय के साथ साथ इस नामसे कीसी कारण ‘‘मग’’ शब्‍द का अपभ्रंश हो कर ‘‘अबोटी मग ब्राह्मिन’’ के बदले में ‘‘अबोटी ब्राह्मिन’’ के नाम से प्रचलित हुए।‘‘ब्राह्मीनों का इतिहास’’ पुस्‍तक की प्रस्‍तावनामें डो। श्री के। का। शास्‍त्री अबोटी ब्राह्मीनों को मग ब्राह्मिन के वंशज करार देते हुए लिखते है कि यह मत कतई असंभव नहीं है। इस पुस्‍तकमें इन ब्राह्मिनो की चर्चा के साथ भारतवर्षमें सूर्यपूजा के विकास की अतिमहत्‍वपुर्ण बात भी बुन ली गइ है। इस पूजा का फैलावा करनेवाले ये मग अबोटी ब्राह्मिन ही है और वही श्री द्वारिकाधीश मंदिर के मुख्‍य पूजारी भी थे। इनके इष्‍टदेव भगवान द्वारिकाधीश है। वर्तमान समयमें भी द्वारिकानगरीमें भगवान द्वारीकाधीश के मंदिरमें ध्‍वजारोहण की पवित्रविधी अबोटी ब्राह्मीन के त्रिवेदी परिवार के लोंग निभाते चले आ रहे हैं। भारत की मानव जातियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8
जलवायुविज्ञान
जलवायु विज्ञान (climatology) भौतिक भूगोल की एक शाखा है जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण पृथ्वी अथवा किसी स्थान विशेष की जलवायु का अध्ययन किया जाता है। भौतिक पर्यावरण के विभिन्न घटकों में जलवायु महत्वपूर्ण घटक है। जलवायु को प्रादेशिक विभिनता की कुंजी कहते हैं। मानव एवं उसके भौतिक पर्यावरण के बीच होने वाली क्रिया प्रतिक्रिया के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव के क्रियाकलापों खान-पान रहन-सहन वेशभूषा बोलचाल एवं संस्कृति सभी पर जलवायु का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। मौसम एक अल्पकालिक वायुमंडलीय दशाओं का घोतक होता है जबकि जलवायु किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन वायुमण्डलीय दशाओं जैसे तापमान, दाब, पवन, आर्द्रता, वर्षा आदि का औसत होता है। हंबोलट ने पृथ्वी की अपने अक्ष पर झुकाव को क्लाइमा कहा, इसीलिए हंबोल्ट को जलवायु विज्ञान का पिता कहा जाता है। जलवायु विज्ञान भूगोल की शाखायें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%8F%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F%E0%A5%80
गुजरात राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी
गुजरात में वर्ष 1986 में पहली बार एड्स रोगी का निदान किया गया था, उसी वर्ष में जिसमें देश में एड्स के पहले मामले की सूचना मिली थी। पहले राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) के चरण के कार्यान्वयन के लिए एक राज्य एड्स सेल (एसएसी) दिसंबर 1992 में बनाया गया था। अंतर - क्षेत्रीय समन्वय के माध्यम से एड्स की रोकथाम के लिए कार्यक्रम के शीघ्र और प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करने की दृष्टि से, राज्य एड्स अधिकार कमिटी को पंजीकृत करने का फैसला किया था। भारत सरकार भी इस कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी का गठन एनएसीपी के दूसरे चरण में मंज़ूर किया जो अप्रैल 1999 से शुरू हुआ। तब से राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम गुजरात राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी (GSACS) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास संस्था के सहयोग से कार्यों को संपन्न करना राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास संस्था (NIWCD) सूरत शहर के सिविल अस्पताल की स्वेच्छित परामर्श एवं प्रशिक्षण केंद्र के कार्यों को शुरू किया। समर्थन परामर्श के रूप में एचआइवी / एड्स के क्षेत्र में गतिविधियों शुरू की गयी हैं। संस्था यौन कामगारों को पी एस एम पी एस एच परियोजना पारस के तहत गैर - सरकारी संगठनों का भी समर्थन और प्रौढ़ शिक्षा और व्यापारिक यौन कामगारों के शिल्प प्रशिक्षण में योगदान किया है और उनके बच्चों को शैक्षिक समर्थन की प्रक्रिया में मदद की है। परामर्श और एचआइवी / एड्स परामर्श की कला पर एक गुजराती पुस्तक राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास संस्था द्वारा प्रकाशित की गयी थी और समय की अवधि में उसी के तीन संस्करण प्रकाशित किए गए थे। इंस्टीटयूट दक्षिण गुजरात में गुजरात राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के कॉलेजों में और एचआइवी / एड्स जागरूकता और जीवन कौशल शिक्षा के लिए मलिन बस्तियों कर रहा है। गुजरात में बढ़े एचआईवी के मरीज राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के अनुमान में बताया गया है कि इस रोग के कम ग्रस्त होने वाले राज्यों में शामिल गुजरात में पिछले दो वर्ष के दौरान एचआईवी के नए मामले में साधारण बढ़ोतरी हुई है। नाको ने बताया है कि वर्ष 2009 में 1.2 लाख नए संक्रमण का अनुमान है। सबसे ज्यादा प्रभावित छह राज्यों में 39 फीसदी मामले दर्ज किए गए जबकि उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में 41 प्रतिशत नए मामले दर्ज किए गए हैं। इसका कारण शहरीकरण और काम के लिए दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। सन्दर्भ भारतीय सरकारी एड्स नियंत्रण संस्थाएँ ऍचआइवी-सम्बंधित जानकारी
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दिल-ए-नादाँ
दिल-ए-नादाँ या दिल-ए-नादान उर्दू-हिंदी का एक वाक्यांश है जो उत्तर भारत और पाकिस्तान की संस्कृति में बहुत सन्दर्भों में प्रयोग होता है। यह मूल रूप में फ़ारसी का वाक्यांश है और उसमें इस लिखा जाता है। इसका प्रयोग अक्सर उन स्थितियों में होता है जब कोई व्यक्ति अपनी भावनाओं की वजह से ऐसी चीज़ें करने पर मजबूर हो जाता है जो उसकी बुद्धि के निर्देशों के विपरीत हो या जिसमें अपनी किसी अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण उसके मन में उथल-पुथल होती है। ग़ालिब द्वारा प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में इस वाक्यांश की लोकप्रियता मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल से हुई, जिसमें उनके ह्रदय को ऐसी प्रेमिका के लिए उत्तेजित दर्शाया गया है जिसे उनके प्रेम की कोई क़दर नहीं है। अक्सर इस ग़ज़ल के दो ही शेर सब से अधिक कहे जाते हैं: लोक-संस्कृति में इसका प्रयोग बहुत सी आधुनिक सांस्कृतिक रचनाओं में हुआ है। सन् 1982 में "दिल-ए-नादाँ" नाम की हिंदी फिल्म बनाई गई जिसके मुख्य अभिनेता-अभिनेत्री राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, जयाप्रदा और स्मिता पाटिल थे। 1983 में बनी फिल्म "रज़िया सुल्तान" में इसी शीर्षक का गाना हेमा मालिनी पर दर्शाया गया। दिल-ए-नादान त्रिनिदाद में एक भारतीय मूल की प्रसिद्ध संगीत गुट का भी नाम है। इन्हें भी देखें मिर्ज़ा ग़ालिब बहरी कड़ियाँ हिंदी कविता कोष में ग़ालिब के "दिल-ए-नादाँ" के पूरे शब्द सन्दर्भ सूत्रवाक्य हिन्दी-उर्दू के सूत्रवाक्य हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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इस्तांबुल अतातुर्क विमानक्षेत्र
इस्तांबुल अतातुर्क विमानक्षेत्र () तुर्की की राजधानी इस्तांबुल को सेवा देने वाला प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र है। इसके बाद सबीहा गॉकेन अन्तर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र आता है। यह विमानक्षेत्र सन १९२४ में आरंभ हुआ था और येसिल्कॉय में, नगर के यूरोपीय छोर पर स्थित है। यह नगर केन्द्र से पश्चिम में स्थित है। १९८० में विमानक्षेत्र का पुनर्नामकरण कर इसे तुर्की गणराज्य के संस्थापक एवं प्रथम राष्ट्रपति मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क के सम्मान में वर्तमान नाम, अतातुर्क विमानक्षेत्र कर दिया गया था। वर्ष २०११ में कुल यात्री ट्रैफ़िक 3.73 लाख के साथ, यह विमानक्षेत्र कुल यात्री ट्रैफ़िक की मद में विश्व का ३०वाँ व्यस्ततम विमानक्षेत्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय यात्री ट्रैफ़िक की मद में विश्व का १७वाँ व्यस्ततम विमानक्षेत्र बन गया। यह रोम के फ़्यूमीशियो विमानक्षेत्र के एकदम बाद ही आता है। २०११ के आंकड़ों के अनुसार यह रोम एवं म्यूनिख के बाद यूरोप का ८वां व्यस्ततम विमानक्षेत्र रहा। अप्रैल २०११ से अप्रैल २०१२ की अवधि में इसकी IST श्रेणी कुल यात्री ट्रैफ़िक की २६वीं एवं अन्तर्राष्ट्रीय यात्री ट्रैफ़िक ई १५वीं रही। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इस्तांबुल अतातुर्क विमानक्षेत्र आधिकारिक जालस्थल इस्तांबुल अतातुर्क विमानक्षेत्र का लघु वीडियो इस्तांबुल अतातुर्क विमानक्षेत्र इस्तांबुल तुर्की के विमानक्षेत्र
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परजीविजन्य रोग
प्राणिजगत्‌ के अनेक जीवाणु मानव शरीर में प्रविष्ट हो उसमें वास करते हुए उसे हानि पहुँचाते, या रोग उत्पन्न करते हैं। व्यापक अर्थ में, विषाणु, जीवाणु, रिकेट्सिया (Rickettsia), स्पाइरोकीट (Spirochaeta), फफूँद और जन्तुपरजीवी द्वारा उत्पन्न सभी रोग परजीवीजन्य रोग माने जा सकते हैं, परन्तु प्रचलित मान्यता के अनुसार केवल जन्तुपरजीवियों द्वारा उत्पन्न विकारों को ही 'परजीवीजन्य रोग' (Parasitic Diseases) के अंतर्गत रखते हैं। परिचय प्राणिजगत्‌ में दो प्रकार के जीव, एककोशिक और बहुकोशिक, होते हें। एककोशिक जीव प्रोटोज़ोआ (Protozoa) हैं, जो एक कोशिका में ही सभी प्रकार के जीवनव्यापार संपन्न कर लेते हैं। बहुकोशिक जीव मेटाज़ोआ (Metazoa) हैं, जिनमें प्रत्येक कार्य के लिये अलग अलग कोशिकासमूह होता है। संसार में जीवजंतुओं की संख्या बहुत अधिक है, परन्तु इनमें से कुछ ही परजीवी होते हैं, जो दूसरे प्राणी की कमाई पर जीते हैं। यह आवश्यक नहीं कि सभी परजीवी रोगकारक हों। परजीवी निम्नलिखित चार प्रकार के हो सकते हैं : (१) सहोपकारिता या अन्योन्याश्रय (Mutualism) - इनमें परजीवी और परपोषी (host) एक दूसरे से लाभान्वित होते हैं, (२) सहजीवी - इनमें परजीवी और परपोषी एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते, (३) सहभोजी - यह परजीवी परपोषी को हानि पहुँचाए बिना उससे लाभ उठाता है, (४) परजीवी - यह परपोषी को खाता है और खोदता है। परपोषी वह प्राणी है जो परजीवी को आश्रय देता है। परपोषी निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं : (१) निश्चित परपोषी वह प्राणी है जिसमें परजीवी अपना वयस्क जीवन बिताता है, या लैंगिक जनन करता है, (२) मध्यस्थ परपोषी वह प्राणी है जिसमें परजीवी की इल्ली या लार्वा रहते हैं, या जीवन का अलिंगी चक्र चलता है। परजीवीजन्य विकार परजीवीजन्य विकारों के निम्नलिखित रूप हैं : (१) क्षतिज (Traumatic) - यह कोशिकाओं और ऊतकों पर सूक्ष्म या स्थूल यांत्रिक आघात हैं, जैसा कि अंकुशकृमि या फीताकृमि के लार्वा, ऊतकों के बीच से यात्रा करते हुए, पहुँचाते हैं; (२) सन्लायी - यह परजीवी द्वारा कोशिकाओं तथा ऊतकों का किण्व की सहायता से सन्लय है, जैसा एंडमीबा हिस्टोलिटिका (Endamoeba histolytica) करता है; (३) अवरोधी (Obstructive) - इसमें शरीर के अन्तः मार्गों में अवरोध होते है तथा अनेक परजीवी उत्पात होते हैं, यथा केंचुए या फीता कृमि द्वारा आँतों या पित्तनलिका का अवरोध; (४) पोषणहारी - परपोषी के आहार में हिस्सा बँटाकर परजीवी उसे पोषणहीनता से पीड़ित करते हैं, जैसा केंचुए, अंकुशकृमि, या फीताकृमि करते हैं; (५) मादक (Intoxicative) - परजीवियों के चयापचय के पदार्थ परपोषी पर विषाक्त प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं; (६) एलर्जीजन्य (Allergenic) - बाह्य प्रोटीन पदार्थ उत्पन्न होने के कारण परजीवी परपोषी में ऐलर्जी के लक्षण उत्पन्न करते हैं, यथा मलेरिया में जाड़ा देकर बुखार आना, केंचुए के कारण जुड़पित्ती निकलना; (७) प्रचुरोद्भवक (Proliferative) - कुछ परजीवी ऊतकों को उद्भव के लिये प्रेरित करते हैं, जैसे कालाजार में मैक्रोफेज (macrophage) की संख्यावृद्धि, या फाइलेरिया में ऊतकों का प्रचुरोद्भव है। रोगकारक परजीवी के शरीर में प्रविष्ट होने पर रोग उत्पन्न हो, यह अनिवार्य नहीं है, रोगकारिता और रोग का रूप तथा मात्रा परजीवी की जाति, परपोषी की जाति और व्यक्तित्व पर निर्भर है। किसी व्यक्ति में एक परजीवी कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करता, किंतु वही दूसरे व्यक्ति में एक परजीवी कोई लक्षण उत्पन्न नहीं करता, किंतु वही दूसरे व्यक्ति में तीव्र अतिसार या यकृत का फोड़ा पैदा कर सकता है। सामान्य: परजीवी मानव जाति में वर्ण या आयुभेद नहीं करते, फिर भी जिस भूभाग में कोई परजीवी विशेष रूप से पाया जाता है वहाँ के निवासी उसके अभ्यस्त हो जाते हैं, परंतु उस क्षेत्र के नवागंतुक जन परजीवी हलके से आक्रमण से भी गंभीर रूप से त्रस्त हो जाते हैं। कुछ परजीवी बच्चों को विशेष रूप से कष्ट देते हैं, जैसे सूत्रकृमि। कुछ परजीवी अपने परपोषी के रूप में केवल मानव शरीर ही पसंद करते हैं, जैसे मलेरिया के रोगाणु, अंकुशकृमि, शिस्टोसोमा हिमेटोबियम आदि। कुछ परजीवी आदमी और पालतू पशु दोनों ही में रहना पसंद करते हैं, जैसे एंडमीबा मनुष्य, बंदर, बिल्ली, चूहे और कुत्ते में, केंचुआ मनुष्य और शूकर में तथा बौना फीताकृमि मनुष्य चूहों और मूषकों में रहता है। परजीवी विज्ञान मुख्य लेख परजीवी विज्ञान परजीवीजन्य रोगों के अध्ययन में मनुष्य को पीड़ित करनेवाले सभी परजीवियों का विस्तार से अध्ययन किया गया है। फलस्वरूप परजीवीविज्ञान ने चिकित्साविज्ञान की एक उपशाखा के रूप में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। इस विज्ञान की भी दो शाखाएँ हैं : (१) प्रोटोज़ोऑलोजी (Protozoology) - इसके अंतर्गत एक कोशिकावाले परजीवियों को अध्ययन होता है, (२) कृमिविज्ञान (Helminthology) - इसके अंतर्गत मेटाज़ोआ (Metazoa) का अध्ययन होता है। प्रोटोज़ोलोजी प्रोटोज़ोआ एककोशिक प्राणी हैं, जो रचना और क्रिया की दृष्टि से अपने आपमें पूर्ण हैं। इनकी कोशिका के दो भाग होते हैं : कोशिकाद्रव्य और केंद्र। कोशिकाद्रव्य के दो भाग होते हैं : बहिर्द्रव्य और अंतर्द्रव्य। बहिर्द्रव्य रक्षा, स्पर्शज्ञान और संचलन का कार्य करता है तथा अंतर्द्रव्य पोषण एवक प्रजनन का। बहिर्द्रव्य से विभिन्न वंशों में भिन्न प्रकार के संचलन अंग बनते हैं, यथा कूटपाड, कशाभ, रोमाभ आदि। बहिर्द्रव्य से ही आकुंची धानी, पाचनसंयंत्र के आद्यरूप (यथा मुख, कंठ आदि) और सिस्ट की दीवार आदि बनती है। कुछ प्रोटोज़ोआ द्विकेंद्री होते हैं। प्रजनन अलिंगी तथा लैगिक दोनों ही प्रकार से होता है। अलिंगी तथा लैगिक दोनों ही प्रकार से होता है। अलिंगी प्रजनन द्विविभाजन द्वारा तथा लैगिक दोनों ही प्रकार से होता है। अलिंगी प्रजनन द्विविभाजन द्वारा तथा लैंगिक प्रजनन के लिये नरमादा युग्मक बनते हैं। युग्मक के संयोग से युग्मज बनता है, जो बड़ी संख्या में उसी प्रकार के जीवों को जन्म देता है जिस प्रकार के युग्मक थे। प्रोटोज़ोआ परजीवी जीवनचक्र की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं : एक वे जो केवल एक ही परपोषी में जीवनचक्र पूर्ण करते हैं, जैसे एंडमीबा, दूसरे वे हैं जो अपना जीवनचक्र दो परपोषियों में पूर्ण करते हैं, जैसे मलेरिया या कालाजार के रोगाणु आदि। प्रोटाज़ोआ के निम्नलिखित वर्ग रोगकारक हैं : राइज़ोपोडा (Rhizopoda) कूटपाद द्वारा संचरित इस वर्ग के जीव द्विविभाजन द्वारा वंशवृद्धि करते हैं। इनके जीवनचक्र में पाँच अवस्थाएँ होती हैं : (१) पोषबीजाणु - स्वच्छद अवस्था, जिसमें अमीबा खाता, पीता, बढ़ता और विभाजित होकर अनेक बनता है, (२) पूर्व सिस्ट - समस्त अपचित आहार बाहर फेंककर अमीबा का गोलमटोल हो जाना, (३) सिस्ट - प्रतिकूल वातावरण में सुदृढ़ आवरण से आच्छादित हो अमीबा का निष्क्रिय बैठना, (४) मेटासिस्ट - पुनः वातावरण अनुकूल होने पर सिस्ट का अनावरित और बहुकेंद्रयुक्त अमीबा का पुनः सक्रिय, होना तथा (५) मेटासिस्टिक पोषजीवाणु - अमीबा का आक्रामक रूप। इस वर्ग के जीव अधिकतर परपोषी की आँतों में रहते हैं, किंतु एंडमीबा जिंजिवैलिस (Entamoeba gingivalis) मसूड़ों में रहना पसंद करता है। इस वर्ग के जीवों में केवल एंडमीबा हिस्टोलिटिका की रोगकारक परजीवी है। यह अमीबिक पेचिश, यकृतशोथ और यकृत में फोड़ा आदि रोग उत्पन्न करता है। एंडमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba histolytica) - यह परजीवी संसार के सभी प्रदेशों में पाया जाता है। ऐसा अनुमान है कि संसार के दस प्रतिशत मनुष्यों में ये परजीवी निवास करते हैं, यद्यपि इन लोगों में से कुछ ही पीड़ित होते हैं। यह ऊतक परजीवी है। इसका आकार २० से ४० माइक्रॉन होता है और इसके अंतर्द्रव्य में बहुधा लोहिताणु, पूयकोशिकाएँ तथा ऊतक-मलबा दिखाई देता हैं। प्रकृति में मनुष्य और बंदर इसके परपोषी हैं। इसका प्रकार गंदे हाथों, दूषित भोजन और जल, कचरे, मक्खी तथा रागी के संपर्क से होता है। अमीबा परपोषी की बड़ी आँत में यह फ्लास्क के आकार के व्रण बनाता है, जिनका मुँह पिन की नोक सा छोटा होता है और आँत में खुलता है। अन्तःकला का संलयन करके ये परजीवी अधःश्लेष्मल परतों में और वहाँ से अरीयक्षत करते हुए पेशीय परत तक पहुँच जाते हैं। कभी कभी रक्तप्रवाह अवरुद्ध कर ये पेशीय परत को भी नष्ट कर देते हैं। फलस्वरूप पेट-झिल्ली-शोथ, आंत्रबेधन, फोड़ा आदि गंभीर उपद्रव हो सकते हैं अमीबा द्वारा रक्तकोशिकाओं के कटाव के कारण रक्तस्त्राव होता है और खूनी आँवयुक्त पेचिश की शिकायत पैदा होती है। इसके प्रथम आक्रमण अंधांत्र और मलाशयसधिस्थल पर होते हैं। आगे चलकर संपूर्ण बृहद आंत्र आक्रांत्र हो जा सकती है। कभी कभी अमीबा आँत्रयोजनी (mesentric) शिरिका (venules) में घुसकर यकृत, फुफ्फुस, मस्तिष्क आदि अंगों में जा पहुँचता है। यकृत में उपनिवेश बनाकर यह यकृतशोथ और यकृत फोड़ा सी गंभीर दशाएँ उत्पन्न करता है। इसका निदान यंत्र द्वारा मलाशय, वक्रांत्र के दर्शन और मलपरीक्षा द्वारा किया जा सकता है। इलाज के लिये अनेक प्रकार की ओषधियों का उपयोग किया जाता है, यथा एमेटीन, कुरची, ऐसिटासलि, कार्बरसन, यात्रेन, मिलिबिस, वायोफार्म, डाइडोक्विन, क्लोरोक्विन, कामाक्विन, टेरामायसिन, ईथ्राोिमायसिन आदि। मैस्टाइगोफोरा (Mastigophora) इस वर्ग के जीवों के शरीर पर डोरेनुमा लंबे एकाधिक कशाभ होते हैं, जो इन्हें सचल बनाते हैं। निवास की आदतों के आधार पर इनके दो उपवर्ग किए गए हैं : (क) आँत, मुख तथा योनिवासी (ख) रक्त तथा ऊतकवासी। आँत, मुख तथा योनिवासी इस उपवर्ग में दो गण हैं : (१) प्रोटोमोनाडिडा - इसमें (क) काइलोमैस्टिक्स मेस्निलाई (Chilomastix mesnili) अंधांत्रवासी, ट्राइकॉमोनैस हॉमिनिस (Trichomonas hominis) शिष्टांत्र में, ट्राइकॉमोनैस टेनैक्स (Trichomonas tenax) दाँत और मसूड़ों में तथा ट्राइकोमोनैस वेजाईनैलिस (Trichomonas vaginalis) योनि में रहते हैं। अंतिम परजीवी योनिशोथ तथा श्वेत प्रदर कारक है। (२) डिप्लोमोनाडिडा - इस गण में एक परजीवी वंश है, जिआर्डिया (Giardia) इंटेस्टाइनैलिस। यह ग्रहणी (duodenum) में निवास करता है। इसकी उपस्थिति आंत्रक्षोभकारी है और इसके कारण बहुधा अतिसार हो जाता है। निदान के लिये मल में इसके सिस्ट देखे जा सकते हैं। मेपाक्रिन (mepacrine) कामाक्विन, प्रभृति औषधियाँ इससे मुक्ति दिलाती हैं। रक्त तथा ऊतकवासी इसके अन्तर्गत दो वंश हैं : ट्राइपैनोसोमा (Trypanosoma) और लीश्मेनिआ (Leishmania)। इनके जीवन के दो चक्र चलते हैं, कीड़ों की आँत में और मनुष्य या पशु में। एक चक्र में ये कशाभयुक्त और दूसरे में कशाभहीन होते हैं। कशाभयुक्त ट्राइपैनोसोमा में उर्मिलकला विशेष रूप से ध्यान अकर्षित करती है। ट्राइपैनोसोमा अ्फ्रीका और दक्षिणी अमरीका में पाए जाते हैं। ट्राइपैनोसोमा शरीर में रक्तपायी कीटों के दंश से प्रविष्ट हो ये रक्तप्रवाह में बहते हैं। यहाँ से ये लसिकाग्रंथियों में प्रविष्ट होते हैं। बाद में केंद्रीय तंत्रिका संस्थान पर भी आक्रमण करते हैं। ये परजीवी कोशिकाओं में प्रवेश नहीं कर पाते और अंत: कोशिका अवकाश में ही रहते हैं। इनके शरीर से उत्सर्जित चयापचयन के पदार्थों के कारण विषमयता तथा कोशिकाशोथ होता है। ये निद्रा रोग (sleeping sickness) और चागाज़ (chagas) रोग उत्पन्न करते हैं। रक्त में परजीवी के प्रदर्शन से निदान होता है। इलाज में ट्रिपार्समाइड, मेलासेंन, मेलबी, बायर २०५, पेंटामिडीन, ऐंटिमनी मेलामिनिल आदि का उपयोग होता है। इनके उन्मूलन के लिये कीटनाशकों का उपयोग हो रहा है। मनुष्य में निम्नलिखित चार प्रकार के ट्राइपैनोसोमा पाए जाते हैं : 1. ट्रा. गैबिएंस (T. gambiense) - यह मध्य और पश्चिमी अ्फ्रीका में होनेवाले निद्रा रोग का कारण है। त्सेत्सी (tse-tse) मक्खी द्वारा इसका संवाहन होता है। 2. ट्रा. रोडेसिएंस (T. rhodesiense) - यह पूर्वी अ्फ्रीका में होनेवाले निद्रा रोग का कारण है। त्सेत्सी मक्खी की एक अन्य जाति द्वारा इसका संवाहन होता है। 3. ट्रा. क्रूज़ाई (T. cruzi) - यह दक्षिणी अमरीका में होनेवाले चागाज़ रोग का कारण है। रिडुविड (reduviid) खटमल द्वारा इसका संवाहन होता है। 4. ट्रा. रंगेली (T. rangeli) - दक्षिणी अमरीका के मानव रक्त में रहनेवाला यह अविकारी परजीवी है। लीशमेनिआ इस वंश के अंतर्गत तीन परजीवी हैं : (१) लीशमेनिया डॉनॉवेनी (L. donovani) (२) लीशमेनिया-ट्रॉपिका (L. tropica) - यह दिल्ली का फोड़ा कहलानेवाले व्रण का कारक है। (३) लीशमेनिया ब्राजीलिऐन्सिस (L. Braziliensis) - यह इसपंडिया (espundia) नामक रोग का कारक है। कालाजार भारत, चीन, अफ्रीका और उत्तरी यूरोप में होता है। भारत में कालाजार का प्रसार बंगाल, बिहार, उड़ीसा और मद्रास तथा उत्तर प्रदेश में लखनऊ से पूरब के क्षेत्र में है। "दिल्ली का फोड़ा लखनऊ से पश्चिम में होता है। भारत के अलावा यह मध्य एशिया और अफ्रीका में भी होता है। उल्लेखनीय बात यह है कि कालाजार और दिल्ली का फोड़ा दोनों एक ही क्षेत्र में एक साथ नहीं मिलते। इसपंडिया नाक और मुँह की त्वचा और श्लेष्मिक कला का रोग है। यह मध्य तथा दक्षिणी अमरीका में होता है। कालाजार परजीवी का कशाभहीन रूप मनुष्य में और कशाभी रूप संवाहक कीट सैंडफ्लाई (sandflv) में मिलता है। मानव शरीर में ये परजीवी जातक-अंत:कला-तंत्र की कोशिकाओं में निवास करते हैं। ये द्विविभाजन द्वारा वंशवृद्धि करते हैं। संख्या अधिक होने पर कोशिका फट जाती है और परजीवी नई कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं मुक्त परजीवियों का भक्षण करने के लिये रक्त में बृहद्भक्षकों की संख्यावृद्धि होती है। परजीवी विशेष रूप से अस्थिमज्जा, यकृत और प्लीहा में पाए जाते हैं। परजीवियों से अवरुद्ध मज्जा में रक्तकोशिकाओं का निर्माण कम हो जाता है, जिससे रक्तहीनता तथा श्वेताणुह्रास होता है। कालाजार में अंड्यूलेट ज्वर (undulant fever, दो बार चढ़नेवाला बुखार), पीलिया, दुर्बलता, कृशता, अतिसार, निमोनिया, मुँह की सड़न (cancrum oris) तथा अन्य उपसर्यों के आक्रमण होते हैं। रोग की प्रगति के साथ प्लीहा बढ़ती है तथा यकृत के आकार में भी वृद्धि होती है। भारत में कालाजार की संवाहिका है फ्लिबॉटोमस अर्जेटिपीज़ (Phlebotomus argentepes) नामक सैंडफ्लाई (बालूपक्षिका)। कालाजार का निदान रक्तपरीक्षा द्वारा होता है। इसकी चिकित्सा में ऐटिमनी के यौगिकों का उपयोग होता है। इनमें से एक यूरिया स्टिवामीन का आविष्कार भारतीय वैज्ञानिक तथा चिकित्सक, डॉ॰ उपेंद्रनाथ ब्रह्मचारी, ने किया। सैंडफ्लाई के उन्मूलन से कालाजार का वितरण संभव है और एतदर्थ डी.डी.टी. गेमाक्सेन आदि कीटनाशकों का उपयोग होता है। स्पोरोज़ोआ (Sporozoa) ये संचलनांगविहीन परजीवी हैं। इनके जीवनचक्र के दो भाग होते हैं, लैगिक तथा अलिंगी। अलिंगी या खंडविभाजन चक्र मध्यस्थ परपोषी मनुष्य में तथा लैगिक या बीजाणुजनन चक्र मादा ऐनॉफ़िलीज़ (Anopheles), निश्चित परपोषी में अन्य वंश भी हैं, जो आँतों में वास करते हैं। (१) आइसोपोरा होमिनिस (Isopora hominis) दक्षिण-पश्चिम प्रशांत भूखंड में अतिसार कारक हैं, (२) आइमेरिया गुबलेराई यकृत पर आक्रमण करता है। यह अत्यंत विरल है। मलेरिया परजीवी प्लाज़मोडियम (Plasmodium) वंश के है। मनुष्य में मलेरियाकारक इसकी चार जातियाँ हैं : (१) प्ला. वाइवैक्स (P. vivax) सुदम्य तृतीयक, पारी का बुखार या अंतरिया ज्वरकारक, (२) प्ला. मलेरी (P. Malariae), चौथिया ज्वरकारक, तथा (३) प्ला. फाल्सिपैरम (P. falciparum, दुर्दम्य तृतियक) और (४) प्ला. ओवेल (P. oval) भूमध्यसगरीय मलेरिया कारक हैं। मलेरिया ज्वर का निदान रक्त में उपस्थित परजीवियों को पहचान कर किया जाता है। उपचार के लिये मलेरिया विनाशक ओषधियों की लंबी कतार उपलब्ध है। विश्वव्यापी मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के फलस्वरूप संसार के सभी भागों से मलेरिया अब लुप्तप्राय है। सिलिऐटा (Ciliata) इस वर्ग के परजीवी का शरीर रोमाभ (सिलिया) से ढँका रहता है। इन्हीं के त्वरित कंपन से ये गतिशील होते हैं। इस वर्ग में एक ही परजीवी जाति है, वैलेटिडियम कोलाई (Balantidium coli)। ऊष्ण कटिबंध के देशों में यह पेचिश और अतिसार उत्पन्न करता है। एक ही परपोषी में जीवनचक्र की दोनों अवस्थाएँ, पोषबीजाणु और सिस्ट, मिलती हैं। वै. कोलाई अंडाकार, ७० - ४० माइक्रॉन आकार का प्राणी है। कोशिका के एक सिरे पर श्राद्यरूप मुख और कीपाकार कंठ होता है और दूसरे छोर पर मलद्वार का छिद्र होता है। कोशिका में बृहत्‌ और लघु दो केंद्र होते हैं। वंशवृद्धि द्विविभाजन और संयुग्मन द्वारा होती है। वै. कोलाई सामान्य: शूकरों और बंदरों में निवस करता है। मनुष्य यदा कदा इसका परपोषी बनता है। कृमिविज्ञान बहुकोशिक, द्विपार्श्व सममित, कृमि परजीवी तीन भ्रूणीय परतों से निर्मित जीव होते हैं। कृमियों के पाँच संघ हैं : (१) पट्टकृमि (Platyhelminthes), (२) गोलकृमि (Nematoda), (३) निमैटोमॉर्फा (Nematomorpha), (४) एकैथोसेफाला (Acanthocephala) तथा (५) एनेलिडा (Annelida)। इनमें प्रथम दो विशेष महत्वपूर्ण है। आगे इनका थोड़ा विस्तार से विवरण दिया गया है। निमैटोमॉर्फ़ा के एक वर्ग गॉर्डीयासी (Gardiacea) में "केश सर्प' होते हैं, जो मूलत: टिड्डों के परजीवी है और यदा-कदा मानव वमन में देखे गए हैं। ऐकैथोसेफाला कँटीले शिरवाले कृमि होते हैं, जो मनुष्य में बिरले ही पाए जाते हैं। ऐनेलिडा संघ में एक वर्ग है, हाइरूडीनिया (Hirudinea), जिसके अंतर्गत विविध प्रकार की जोंकें (लीच) आती हैं। पट्ट य फीताकृमि ये चपटे, पत्ती या फीते से सखंड जीव है, जो अधिकतर उभयलिंगी होते हैं। इनकी आहारनाल अपूर्ण या लुप्त होती है तथा देहगुहा नहीं होती। इस संघ के परजीवियों का विवरण निम्नलिखित है : सेस्टॉइडी (Cestoidea) इस उपवर्ग के जीव फीते सदृश होते हैं, ये चंद मिलिमीटर से कई मीटर तक लंबे हाते हैं। वयस्क कृमि परपोषी में पाए जाते हैं। इनके शरीर के तीन भाग होते हैं : (१) शीर्ष (scolex), जिसपर बहुधा हुकदार चूषक होते है जिनसे ये परपोषी में अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, (२) कंठ, (३) धड़ (strobila) में अनेक देहखंड (proglottids) होते हैं। इनका जननतंत्र अत्यंत विकसित होता है और प्रत्येक खंड में एक संपूर्ण जननतंत्र होता है। परिपक्व खंडों से भारी संख्या में संसेचित अंडे निकलते हैं। इस उपवर्ग के कृमियों का जीवनचक्र जटिल होता है। कुछ मुख्य कृमियों का परिचय निम्नलिखित है : 1. डाइफिलोबॉ्थ्रायम लेटम (Diphyllobothrium latum) मत्स्यकृमि - यह भारत में नहीं होता है। इसकी लंबाई ३ से १० मीटर होती है। इसमें तीन से चार हजार, अधिक चौड़े खंड होते हैं। वयस्क कृमि मनुष्यों, कुत्तों और बिल्लियों में पोषित होते हैं। लार्वा अवस्था दो मध्यस्थ परपोषियों में, अर्थात्‌ स्वच्छ जलचर साइक्लॉप्स (Cyclops) तथा मछली में, पूर्ण होती है। मलपरीक्षा में छदिकायुक्त, विशेष रूपधारी अंडे प्राप्त होते हैं। 2. टीनिया सेजिनाटा और टीनिया सोलियम (Taenia solium) या फीताकृमि - ये विश्वव्यापी हैं। सेजिनाटा पाँच से पच्चीस मीटर लंबा, सिर हुकविहीन, २,००० तक शरीरखंडवाला, गौमांसवासी होता है। टी. सोलियम दो से तीन मीटर लंबा, सिर पर छोटे बड़े हुकों की दो कतारे, सिर छोटा पिनाकार और शूकरमांसवासी होता है। इनकी लार्वा अवस्था गौ या शूकर में होती है, जिनके मांस में उपस्थित टीनिया के सिस्टीसंकल मानव संक्रामी होते हैं। मल में टीनिया के अंडे और खंड देखकर निदान किया जाता है। 3. इकाइनोकॉकस ग्रैनुलोसस (Echinococcus granulosus), या श्वान फीता कृमि - यह अन्य कृमियों से भिन्न है, क्योंकि इसके निश्चित परपोषी कुत्ता, भेड़िया, सियार आदि होते हैं और मध्यस्थ परपोषी मनुष्य और चौपाए। यह ३ से ६ मिमी. लंबा कृमि है और इसके धड़ में केवल तीन खंड होते हैं। मनुष्य को मल में निकले अंडों से छूत लगती है। मानव शरीर में लार्वा आँत से रक्त में प्रवेश कर यकृत, फुफ्फुस और मस्तिष्क आदि अंगों में पहुँचता है। विभिन्न अंगों में लार्वा हाइडेटिड सिस्ट (hydatid cyst) बनाता है। सिस्ट की दीवार से उपसिस्ट और उनसे बड़ी संख्या में नवशीर्ष, या स्कोलिसेज़, बनते हैं। हाइडेटिड रोग से पीड़ित चौपाए का शव जब श्वन जाति के जीव खाते हैं तो चक्र पूरा हो जाता है। मनुष्य में रोग होने पर चक्र अवरुद्ध हो जाता है। सिस्ट का विकास वर्षों में होता है और स्थिति के अनुरूप लक्षण होते हैं। रोग के निदान के लिये केसीनी की प्रतिक्रिया, रक्त में इओसिनोफिल्स की संख्या, सीरोलॉजी, सिस्ट के तरल में नवशीर्ष प्रदर्शन (खतरनाक परीक्षण) करते हैं। रोग का कोई संतोषजनक उपचार ज्ञात नहीं है। 4. हाइमेनोलेपिस नाना (Hymenolepis nana) या वामन फीताकृमि - मानव परपोषी पर रहनेवाले परजीवियों में यह सबसे छोटा फीताकृमि है। इसका प्रसार सारे संसार में है। इसकी लंबाई एक से चार सेंटीमीटर तक होती है। मानव आंत्र में बहुधा ये हजारों की संख्या में वर्तमान होते हैं। इन्हें मध्यस्थ पोषक की आवश्यकता नहीं होती। यह भी इनका अनोखापन ही है, क्योंकि अन्य किसी कृमि में ऐसा नहीं होता। इसके परपोषी चूहे और मूसे भी हैं। पिस्सुओं द्वारा यह मनुष्य तक पहुँचता है। मनुष्य में यह उदरशूल और अतिसार उत्पन्न करता है। निदान के लिये मल में इसके अंडे देखे जाते हैं। ट्रीमाटोड (Trematoda) इस वर्ग के पर्णवत कृमियों को "फ्लूक' या पर्णाभ कहते हैं। इनके शरीर में खंड नहीं होते। शिस्टोसोमा (Schistosoma) के अलावा अन्य सदस्य उभयलिंगी होते है। इनमें अग्रचूषक और पश्चचूषक होते हैं। देहगुहा नहीं होती। आहारनाल अपूर्ण होती है। इनमें मलद्वार नहीं होता। ये अंडज होते हैं। इस वर्ग के कुछ प्रमुख सदस्य ये हैं : (क) शिस्टोसोमा (Schistosoma) - मनुष्य में यह बिलहार्ज़ियासिस (Bilharziasis) नामक रोग उत्पन्न करता है। शि. हिमाटोबियम (S. haematobium) अफ्रीका और मध्य एशिया में पाया जाता है (भारत में भी इक्का दुक्का केस हुए हैं)। यह मूत्र में रक्तस्त्राव करता है। शि. मैनसोनी अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका में पेचिश और शि. जापानिकम (S. Japanicum) चीन, जापान और बर्मा में पेचिश तथा यकृत सूत्रणरोग (सिरोसिस), पैदा करता है। इस वंश में नर और मादा अलग होते हैं। इनका जीवनचक्र मनुष्य और घोंघे (स्नेल) में चलता है। (ख) फैसिऑला हिपैटिका (Fasciola hipatica) या यकृत पर्णाभ - ये मूलत: चौपायों की पित्तनलिकाओं का वासी है। मनुष्य को यदा कदा तंग करता है। (ग) फेसिऑला बुस्की (Fasciola buski) - यह मानव आँत में रहता है और रक्तहीनता, अतिसार तथा दुर्बलताकारक है। यह चीन, बंगाल, असम आदि में पाया जाता है। (घ) क्लोनॉर्किस साइनेन्सिस (Clonorchis sinnensis), चीनी यकृत पर्णाभ - यह अतिसार, यकृतवृद्धि और पीलियाकारक पर्णाभ है। (च) पैरागोनिमस वेस्टरमेनाइ (Paragonimus westermani) - यह पूर्वी एशिया में पाया जाता है। वयस्क कृमि फेफडे में रहता है और खाँसी, कफ में रक्त आदि, क्षयरोग के से लक्षण उत्पन्न करता है। गोलकृमि (Nemathelminthes) यह लंबे, बेलनाकर, खंडहीन शरीरवाले प्राणी हैं, जिनमें नर और मादा अलग होते हैं, आहारनाल पूर्ण होती है और देहगुहा वर्तमान होती है। इनके अंडों को वयस्क बनने में लार्वा की चार अवस्थाएँ पार करनी पड़ती हैं। इस संघ के जीवन ५ मिमी. से १ मीटर तक लंबे होते हैं। ये अंडज, जरायुज या अंडजरायुज होते हैं। संघ के अधिकतर परजीवी मनुष्य में ही अपना जीवनचक्र पूर्ण करते हैं। फाइलेरिया और गिनीवर्म, जिन्हें मध्यस्थ परपोषी की आवश्यकता होती है, इसके अपवाद हैं। मानव शरीर में ये चार प्रकार से प्रविष्ट होते हैं : (१) खानपान से, अर्थात्‌ संसेचित अंडों से युक्त भोजन से, जैसा केंचुआ, नेमाटोडा आदि के संक्रमण में होता है, या लार्वा संवाही साइक्लोप्स (cyclops) से युक्त जल को पीने से, या ट्रिकिनेल्ला (Trichinella) के मिस्टयुक्त मांस के भक्षण से, (२) त्वचाभेदन द्वारा, जैसे अंकुश कृमि प्रविष्ट होते हैं, (३) कीटवंश से, जैसे फाइलेरिया के कृमि प्रवेश करते हैं एवं (४) श्वास द्वारा धूल के साथ उड़ते अंडों के शरीर में प्रवेश करने से, जैसा केंचुआ या सूत्रकृमि के संक्रमण में होता है। इस संघ के कुछ प्रमुख गोलकृमियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : 1. ट्रिकिनेला स्पाइरैलिस (Trichinella spiralis) - ट्रिकाइना कृमि यूरोप और अमरीका में मिलता है। आकार में यह सबसे छोटा कृमि है। नर १.५ मिमी. और मादा ३ से ४ मिमी. लंबी होती है। मादा जरायुज है। इस कृमि का जीवनचक्र एक ही परपोषी में पूर्ण होता है। इसका वासस्थान आंत्र है। लार्वा आंत्र से रक्त द्वारा पेशियों में पहुँचकर सिस्ट बनाता है। सिस्टयुक्त मांस खाने से इस कृमि का प्रसार होता है। सिस्टयुक्त मांस खाने से इस कृमि का प्रसार होता है। मनुष्य, शूकर और चूहे इसके परपोषी हैं। यह ज्वर, जुड़पित्ती, पेशीशोथ आदि लक्षण उत्पन्न करता है। 2. ट्रिक्यूरिस ट्रिकियूरा (Trichuris trichiura) या ह्विपवर्म (Whipworm) - यह संसार के सभी भागों में मिलता है। परपोषी में इसका वासस्थान बड़ी आंत्र है। वयस्क कृमि कोड़े के आकार का होता है। नर ३ से ४ सेंमी. और मादा ४ से ५ सेंमी. लंबी होती है। इसका जीवनचक्र केवल एक परपोषी में पूर्ण होता है। परपोषी के मल में इसके अंडे निकलते हैं, जो जल तथा आहार के साथ पुन: परपोषी में प्रवेश पाते हैं। कभी कभी इसके कारण अंधनाल (caccum) के शोथ सदृश अवस्था उत्पन्न होती है। 3. स्ट्रॉंजिलॉयडीज़ स्टरकीरैलिस (Strongyloides stercoralis) - समस्त संसार में पाया जानेवाला यह कृमि प्राय: छोटी आंत्र के ऊपरी भाग में रहता है और कभी कभी फेफड़े में भी। मादा दो से पाँच मिमी. तक लंबी होती है। लार्वा दो प्रकार के होते हैं। रेवडिटिफॉर्म और फाईलेरिफॉर्म लार्वा नर और मादा होते हैं और इनके संयोग से ऐसे ही और लार्वा उत्पन्न होते हैं। ये लार्वा परिपक्व होकर फाइलेरिफॉर्म लार्वा बनते हैं। इस कृमि का जीवनचक्र एक ही परपोषी में पूर्ण होता है। फाइलेरिफॉर्म लार्वा त्वचा भेदकर परपोषी में प्रवेश पाते हैं। इनके कारण त्वचा में भेदनस्थल पर शोथ, फेफड़े से रक्तस्त्राव, न्युमोनिया, अतिसार और पेचिश सी पीड़ाएँ होती हैं। मल और कफ में इस कृमि के लार्वा दिखाई पड़ते हैं। 4. ऐन्सिलॉस्टोमा ड्यूओडीनेल (Ancylostoma duodenale) - यह पुरानी दुनिया का अंकुशकृमि है। यह कृमि सर्वाधिक क्षेत्र में व्याप्त है और भयंकर परजीवी है। इसका वासस्थान छोटी आँत्र है। इसके मुख में छह दाँत और चार हुक होते हैं। इन्हीं से यह परपोषी की आँत की दीवार से चिपका रहता है। रक्त के जमाव को रोकनेवाला एक किण्व भी इसकी ग्रासनलीग्रंथि से स्त्रवित होता है। नर ८ मिमी. और मादा १२ मिमी. लंबी होती है। नर के निकले सिरे पर मैथुनी छत्र होते हैं। अंडे परपोषी के मल द्वारा बाहर निकलते हैं। मिट्टी में अंडे से लार्वा निकलता है और फाइलेरिफॉर्म लार्वा त्वचा भेदन कर परपोषी में प्रविष्ट होता है। स्थानीय त्वचाशोथ, फुफ्फुसशोथ, रक्तहीनता (प्रबल एवं प्रगतिशील लौहहीनता जन्य) और तत्कारण शरीर में सूजन, आशयों में जल, हृदय और यकृत का वसीय विघटन आदि होते हैं। निदान के लिये मल में अंडे देखे जाते हैं। निकेटर अमरीकनस (Necator Americanus) नई दुनिया (अमरीका) को अंकुश कृमि है। इसके मुख में दाँत या हुक के स्थान पर काइटिनी प्लेटें होती हैं। 5. एंटरोबियस वर्मिक्युलैरिस (Enterobius vermicularis) अर्थात्‌ थ्रोडवर्म, सूत्रकृमि, पिनवर्म, चुनचुने आदि - मानव के अंधनाल और अंधांत्र में यह आम तौर पर पाया जाता है। नर दो से चार मिमी. और मादा आठ से १२ मिमी. लंबी होती है। मादा रेंगकर परपोषी के मलद्वार से बाहर आती है और वहीं अंडे देती है। मादा कृमि के रेंगने से खुजली होती है और खुजलाते समय अंडे नाखूनों में चिपक जाते हैं और खाते समय पुन: वे पेट में चले जाते हैं। इसका जीवनचक्र एक ही परपोषी में चलता रहता है। इसके कारण बच्चों में अनिद्रा, खुजली, पामा सी दशा, बिस्तर भींगना और यदाकदा अंधनाल शोथ आदि होते हैं। उपचार के लिये अनेक कृमिनाशक ओषधियाँ उपलब्ध हैं। 6. ऐसकैरिस लंब्रिकॉयडीज़ (Ascaris lumbricoides) - केंचुआ संसार के सभी भागों में पाया जाता है। यह सबसे बड़ा परजीवी है, जो देखने में बरसाती केंचुए सा होता है। इसका वासस्थान छोटी आंत्र है। नर १५ से २५ सेंमी. और मादा २५ सेंमी. लंबी होती है। इसका जीवनचक्र केवल एक परपोषी से पूर्ण होता है। अंडे मल के साथ बाहर आते हैं। गीली मिट्टी में एक मास में लार्वा तैयार हो जाता है और दूषित खानपान से पुन: आंत्र में पहुँचता है। यहाँ से रक्त द्वारा यकृत में, यकृत से हृदय में तथा हृदय से फेफड़े में पहुँचता है। रक्तवाहिनी छेदकर यह वायुकोष्ठिका में प्रवेश करता है और यहाँ से पुन: कंठ, ग्रासनली, आमाशय को पार कर छोटी आंत्र में स्थायी रूप से बस जाता है। शरीर के अंदर लार्वा की मात्रा खाँसी, साँस, ज्वर या जुड़पित्ती पैदा करती है। रक्तरंजित कफ में लार्वा देखा जा सकता है। लार्वा भटककर कभी कभी मस्तिष्क, गुदों या हृदय में भी पहुँच जाते हैं। वयस्क केंचुआ जब परपोषी के भोजन में हिस्सा बँटाता है तो दुराहार के लक्षण प्रकट होते हैं। केंचुए की देहगुहा के तरल विषाक्त प्रभाव से जुड़पित्ती, टाइफायड या ज्वर, मुख पर सूजन, नेत्रशोथ, साँस फूलना आदि होते हैं। बहुधा इतनी बड़ी संख्या में केंचुए होते हैं कि रास्ता ही रुक जाता है। कभी कभी केचुए आँत से इधर उधर रेंगकर, यथा पित्तनली में घुसकर, उपद्रव करते हैं। आमाशय में आ जाने पर, ये मुँह और नाक के बाहर भी निकल आते हैं। 7. युकरीकिया ब्रैन्क्राफ्टि (Wuchereria bancrofti) - फाइलेरिया कृमि विश्व के उष्ण और समशीतोष्ण प्रदेशों में पाया जात है। वयस्क कृमि लसिका ग्रंथियों में रहता है और इसके लार्वा, माइक्रोफाइलेरिया (microfilaria), रक्त में। नर तीन से चार मिमी. और मादा ८ से १० मिमी. लंबी होती है। ये चार से पाँच वर्ष तक जीवित रहते हैं। मादा अंडजरायुज होती है। लार्वा २९० माइक्रॉन लंबे और ६ से ७ माइक्रॉन चौड़े होते हैं। रक्त से ये क्यूलेक्स (culex) मच्छर की मादा के शरीर में प्रवेश करते हैं। ये मच्छर मध्यस्थ परपोषी है। मच्छर से लार्वा का आगे विकास होता है और मच्छर के वंश से ये मानव शरीर, निश्चित परपोषी, में पुन: प्रवेश पाते हैं। फाइलेरियाकृमि ज्वर, श्लीपद, अन्य अंगों का प्रचुरोद्भव, मूत्र से काइल (chyle), शरीर के आशयों में लसिका संचयन और सहयोगी उपसर्गों के कारण फोड़े और रक्तपुतिता उत्पन्न करता है। इसका उन्मूलन मच्छरों का विनाश करके किया जा सकता है। 8. ऑन्कोसर्का बोलवुलेस (Onchocerca volvulus) - यह अफ्रीका और मध्य अमरीका का अंधताकारक फाइलेरिया कृमि है। इसका मध्यस्थ परपोषी सिम्यूलियम (Simulium) वंश का एक मच्छर है। 9. लोआ लोआ (Loa loa) - यह मध्य तथा पश्चिमी अ्फ्रीका के नेत्र-फाइलेरिया-कृमि हैं। वयस्क कृमि अधस्त्वक्‌ ऊतकों में निवास करता है। नेत्र श्लेष्मला (conjuctiva) इसे विशेष प्रिय हैं। इसका मध्यस्थ परपोषी क्राइसॉप्स मक्खी है। इसके कारण त्वचा पर सूजन दिखाई देती है, जिसे कालाजार सूजन, या भागती सूजन, कहते हैं। 10. ड्रैकंक्युलस मेडिनेन्सिस (Dracunculus medinensis) - इसके अंतर्गत गिनीवर्म, सपेंटवर्म, ड्रैगनवर्म, तथा मदीनावर्म, आते हैं। यह भारत, वर्मा, अरब, फारस, रूस एवं अ्फ्रीका में पाया जाता है। मादा अधस्त्वक्‌ ऊतकों में रहती है। यह ६० मिमी. से एक मीटर तक डोरे सी लंबी होती है। नर केवल १२ से ३० मिमी. लंबा होता है। इसकी जीवन अवधि लगभग एक वर्ष है। इसका मध्यस्थ परपोषी जलवासी साइक्लोप्स (cyclops) है। मादा त्वचा फोड़कर बाहर आती है और साथ निकले दूधिया तरल में अंडे होते हैं, जो जल में पहुँचने पर साइकलोप्स में पोषित होते हैं और पानी के साथ लार्वायुक्त साईक्लोप्स द्वारा मानव शरीर में पहुँचकर वयस्क जीवनचक्र आरंभ करते हैं। कृमिनाशक औषधियाँ इन सभी परजीवी कृमियों द्वारा उत्पन्न रोगों के उपचार के लिये अनेक कृमिनाशक ओषधियाँ उपलब्ध हैं। इनमें से परजीवी विशेष के लिये उचित ओषधि का चयन गुणी चिकित्सक का काम है। कुछ प्रमुख ओषधियाँ निम्नलिखित हैं : ऐंटिमनी यौगिक (एम.एस.बी., टार्टर एमेटिक, सोडियम ऐंटिमनी टार्टरेट, फोआडीन), एमेटीन, एक्रानिन, एटेब्रिन, कार्डोल (काजू के छिलके का सत), कार्बन ट्रेटाक्लोराइड, क्रिस्टॉयड्स, क्लोरोक्विन, चीनोपोडियम का तेल, जर्मानिन, जेंशियन बायलेट, टैरामायसिन, टेट्राक्लोरइथायलिन, डाईथायाज़ीन, पलाशवंडा, पिपराजीन, फेलिक्समास, बीफेनियम हाइड्रॉक्सिनैप्शेलेट, भिरासिल डी, सैटोनिन, सुरामीन, बेयर २०५, हेक्सिलरिसोर्सिनाल, डेट्राजान। सन्दर्भ इन्हें भी देखें परजीवी विज्ञान परजीवी परजीवीविज्ञान
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लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव
लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव (1931 - 9 जुलाई 2014), छोटानागपुर के अंतिम नागवंशी महाराजा थे। जीवनी लाल चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव का जन्म 1931 में नागवंशी राजवंश के एक शाही परिवार में हुआ था। उन्होंने रायपुर के राज कुमार कॉलेज में अध्ययन किया था। 1950 में, उन्होंने अपने परदादा उदय प्रताप नाथ शाहदेव के बाद छोटानागपुर रियासत के महाराज के रूप में पद सम्भाला। वे 1957 में रांची विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक थे और बिहार विधानसभा में सबसे कम उम्र के विधायक थे। बाद में, उन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधान परिषद के लिए चुना गया। संक्षिप्त बीमारी के बाद 9 जुलाई 2014 को रांची में उनका निधन हो गया। सन्दर्भ
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तारिक़
'''तारिक़ बिन ज़ियाद व्युत्पत्ति विज्ञान यह शब्द अरबी क्रिया ( अरबी : طرق , ṭaraqa ) से लिया गया है जिसका अर्थ है हड़ताल करना, और एजेंटिव रूप में ( अरबी : طارق , ṭāriq ) जिसका मतलब "हथोडा मारना" है। इसे 711 ईस्वी में इबेरिया (स्पेन और पुर्तगाल) पर विजय प्राप्त करने वाले एक सैन्य नेता तारिक इब्न-ज़ियाद के नाम के रूप में इस्तेमाल करना शुरू हो गया। मतलब शार्किक अरबी में रात के समय यात्रा करने वाले व्यक्ति के लिए में उपयोग किया जाता है- एक रात्रि आगंतुक या मनोदशा- क्योंकि बदायूं अरबों को आम तौर पर यह पाया जाता है कि लंबी दूरी से एक यात्री आमतौर पर उष्णकटिबंधीय गर्मी से बचने वाली रात में पहुंच जाएगा। यह किसी ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जो रात के मध्य में आता है और दरवाजे पर दस्तक देता है। इसके पीछे भाषाई विचार यह है: रात में आ रहा है, और ध्यान या आश्चर्य करने के लिए बुलावा। खगोलकीय में एक चमकते हुए तारे को भू "तारिक़" कहा जाता है। यह एक बार सुबह के तारे शुक्र ग्रह (वीनस) को भी संदर्भित करता है, जिसमें अब एक ग्रह के रूप में जाना जाता है। तारिक का मतलब सपने में एक आगंतुक है। साहित्य अरबी साहित्य में, शब्द का उपयोग कई स्थानों पर दिखाई देता है जिनमें सबसे विशेष रूप से कुरान शामिल है, जहां तारिक़ ने रात में शानदार सितारों को संदर्भित किया (एट-तारिक , पद 1)। सितारों को स्पष्ट रूप से तारिक के रूप में जाना जा सकता है क्योंकि वे रात में बाहर आते हैं, और यह कुरान के कारण आजकल शब्द की सामान्य समझ है। हम इसे कई कविताओं में भी ढूंढ सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध कवियों इमरू अल-क़ैस और जारिर इब्न अत्यायाह से । नाम तारिक़ अज़ीज़ तारिक़ जमील तारिक़ फ़तह तारिक अहमद लारी तारिक शब्बीर तारिक इब्न ज़ियाद तारिक़ मसूद तारिक अनवर तारिक फज़ल चौधरी सन्दर्भ अरबी शब्द
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आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार 2008
2008 के आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग डिवीजन चार दार एस सलाम, तंजानिया, जो आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग का एक हिस्सा है और 2011 क्रिकेट विश्व कप के लिए योग्यता के रूप में 4 और 11 अक्टूबर 2008 के बीच हुई में एक क्रिकेट टूर्नामेंट है। टीम्स फिजी, हांगकांग, इटली और तंजानिया की टीमों ने 2007 में डिवीजन तीन के माध्यम से योग्य है, जबकि अफगानिस्तान और जर्सी 2008 में डिवीजन पांच के माध्यम से उनकी भागीदारी हासिल किया। टूर्नामेंट में शीर्ष दो टीमों को 2009 में डिवीजन तीन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। टीमें डिवीजन तीन से चला: टीमें डिवीजन पांच के माध्यम से योग्य: खिलाड़ी ग्रुप चरण अंक तालिका फिक्स्चर और परिणाम फाइनल और प्लेऑफ़ अंतिम स्थान सांख्यिकी सन्दर्भ आईसीसी विश्व क्रिकेट लीग
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तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817–1819), ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी और मराठा साम्राज्य के बीच सम्पन्न निर्णायक अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध मे मराठा की तरफ से पेशवा बाजीरावII नेतृत्व कर रहे थे, परंतु उनकी अंग्रेजों के सामने न चल पाई और अंग्रेजों ने उन्हें 8 लाख की वार्षिक पेंशन पर कानपुर के निकट बिटटूर भेज दिया। ये मराठा के अंतिम पेशवा थे। उस समय लार्ड हेस्टिंग बंगाल के गवर्नर जनरल थे । सन्दर्भ भारत के युद्ध मराठा साम्राज्य आंग्ल-मराठा युद्ध महाराष्ट्र का इतिहास
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दोराबजी टाटा
सर दोराबजी टाटा (१८५९-१९३३ ई०) जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े पुत्र थे। परिचय सर दोराबजी जमशेदजी टाटा (१८५९ - १९३३ ई०) जमशेदजी नौसरवान जी के ज्येष्ठ पुत्र थे जो २९ अगस्त १८५९ ई. को बंबई में जन्मे। माँ का नाम हीराबाई था। १८७५ ई. में बंबई प्रिपेटरी स्कूल में पढ़ने के उपरांत इन्हें [इंग्लैंड]] भेजा गया जहाँ दो वर्ष वाद ये कैंब्रिज के गोनविल और कायस कालेज में भरती हुए। १८७९ ई. में बंबई लौटे और तीन वर्ष बाद बंबई विश्वविद्यालय से बी. ए. की उपाधि प्राप्त की। अपने योग्य और अनुभवी पिता के निर्देशन में आपने भारतीय उद्योग और व्यापार का व्यापक अनुभव प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद आप उनके अधूरे स्वप्नों को पूरा करने में जुट गए। 1904 में अपने पिता जमशेदजी टाटा की मृत्यु के बाद अपने पिता के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया। लोहे की खानों का ज्यादातर सर्वेक्षण उन्हीं के निर्देशन में पूरा हुआ। वे टाटा समूह के पहले चैयरमैन बने और 1908 से 1932 तक चैयरमैन बने रहे। साकची को एक आदर्श शहर के रूप में विकसित करने में उनकी मुख्य भूमिका रही है जो बाद में जमशेदपुर के नाम से जाना गया। 1910 में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाईटहुड से सम्मानित किया गया था। पिता की योजनाओं के अनुसार झारखण्ड में इस्पात का भारी कारखाना स्थापित किया और उसका बड़े पैमाने पर विस्तार भी किया। १९४५ ई. तक वह भारत में अपने ढंग का सबसे बड़ा इस्पात का कारखाना बन गया जिसमें १,२०,००० स्त्री और पुरुष काम करते थे और जिसकी पूँजी ५४,०००,००० पौंड थी। सर दोराब जी ने एक ओर जहाँ भारत में औद्योगिक विकास के निमित्त पिता द्वारा सोची अनेक योजनाओं को कार्यान्वित किया, वहीं दूसरी ओर समाजसेवा के भी कार्य किए। पत्नी की मृत्य के बाद 'लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट' की स्थापना की जिसका उद्देश्य रक्त संबंधी रोगों के अनुसंधान ओर अध्ययन में सहायता करना था। शिक्षा के प्रति भी इनका दृष्टिकोण बड़ा उदार था। जीवन के अंतिम वर्ष में इन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने नाम से स्थाति ट्रस्ट को सार्वजनिक कार्यों के लिये सौंप दी। यह निधि १९४५ में अनुमानत: २,०००,००० पौंड थी जिसमें से आठ लाख पौंड की धनराशि विभिन्न दान कार्यो में तथा कैंसर के इलाज के लिए स्थापित टाटा मेमोरियल हास्पिटल, टाटा इंस्टिट्यटू ऑव सोशल साइंसेज और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान के कार्यों में खर्च की जा चुकी है। अपनी सेवाओं के लिए इन्हें १९१० ई. में 'नाइट' की उपाधि भी मिली। १९१५ में ये इंडियन इंडस्ट्रियल कान्फरेंस के अध्यक्ष हुए, तथा १९१८ ई. तक इंडियन इंडस्ट्रियल कमीशन के सदस्य रहे। इनका विवाह 1897 में मेहरबाई से हुआ था जिनसे कोई संतान न हुई। उपर्युक्त ट्रस्ट की स्थापना के बाद ये अप्रैल, १९३२ में यूरोप गए। ३ जून १९३२ को किसिंग्रन में इनकी मत्यु हुई। इनका अवशेष इंगलैंड ले जाया गया जहाँ व्रकवुड के पारसी कब्रगाह में पत्नी की बगल में वह दफना दिया गया। टाटा परिवार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82%20%28%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%AA%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%29
यारियां (२०१४ फ़िल्म)
यारियां (२०१४ फ़िल्म) एक भारतीय बॉलीवुड फ़िल्म है। जिसका निर्देशन दिव्या खोसला कुमार ने किया है। इसमें हिमांश कोहली निकोल फ़ारिया और रकुल प्रीत सिंह मुख्य किरदार निभा रहे हैं। इस फ़िल्म में इन सभी कलाकारों के साथ-साथ इसके निर्देशक की भी यह पहली फ़िल्म है। इस फ़िल्म के निर्माता भूषण कुमार और कृशन कुमार हैं। यह फ़िल्म 10 जनवरी 2014 को 1200 सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। और ये भी पढ़ें:- Fukrey 3 Movie review कहानी यह कहानी 5 मित्रों की हैं, जो एक ही महाविद्यालय में पढ़ते हैं। यह कहानी तब शुरू होती है, जब वह एक प्रतियोगिता में भाग लेते है। इसमें पाँच चरण होते हैं। पहला चरण गाना गाने का होता है। लेकिन इसमें उनके बनाए गए गाने को दूसरे प्रतियोगी चुरा लेते हैं। यह जानकर उन पाँच दोस्तों को क्रोध आता है। लेकिन वह अब गाने के लिए गाना क्या गायें? यह सोचते हैं और एक गाना गा देते हैं। लेकिन वह इस चरण में विफल हो जाते हैं। दूसरे चरण में चेस प्रतियोगिता होती है। चिकित्सालय में उनके दोस्त देबू अपने चोटों से उभर नहीं पाता और उसकी मृत्यु हो जाती है। उसके जाने के कारण वह सभी दोस्त दुःखी हो जाते है और तीसरे चरण की प्रतियोगिता हार जाते है। इसके पश्चात चौथा चरण दोनों ही बराबर रहते है। इसके पश्चात उन्हे पाँचवाँ और अंतिम चरण का प्रतियोगिता होता है। इसमें वे जीत जाते हैं और कहानी समाप्त हो जाती है। कलाकार हिमांश कोहली (लक्ष्य) रकुल प्रीत सिंह (सलोनी) निकोल फ़ारिया (जिया) श्रेयस पोरुस परदीवाला (परदी) देव शर्मा (नील) जतिन सूरी (देबू) सेरह सिंह (जेनी) इवेलिन शर्मा (जन्नेत) सायली भगत (निक्की) दीप्ति नवल स्मिता जयकर (लक्ष्य की माँ) गुलशन ग्रोवर (महाविद्यालय का प्राचार्य) हेमंत पांडे (सलोनी के पिता) मनीष कुमार (जेनी का मित्र) यो यो हनी सिंह (बेटबेल्ली) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 2014 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F%2C%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%9F%20%E0%A4%A4%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B2
लुवाकोट, बाराकोट तहसील
लुवाकोट, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा लुवाकोट, बाराकोट तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के बागेश्वर जिले का एक गाँव है। इन्हें भी देखें उत्तराखण्ड के जिले उत्तराखण्ड के नगर कुमाऊँ मण्डल गढ़वाल मण्डल बाहरी कड़ियाँ उत्तराखण्ड - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर उत्तराखण्ड सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ उत्तराखण्ड (उत्तराखण्ड के बारे में विस्तृत एवं प्रामाणिक जानकारी) उत्तरा कृषि प्रभा लुवाकोट, बाराकोट तहसील लुवाकोट, बाराकोट तहसील लुवाकोट, बाराकोट तहसील
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D
उत्तराधिकार परिषद्
उत्तराधिकार परिषद् यानि ऍक्सेशन काउंसिल(), यूनाइटेड किंगडम की एक परंपरागत समारोहिक निकाय है, जो शासी राजा या रानी के निधन के पश्चात, सिंघासन पर उत्तराधिकार के बाद, सेंट जेम्स पैलेस में एककृत होती है, ताकि सिंघासन के उत्तराधिकारी के सिंघासन-विराजन और नए शासक के राज की शुरुवात की आधिकारिक घोषणा की जा सके। वर्ष १७०७ में पारित समाधान के अधिनियम के अनुसार, किसी शासक की मृत्यु होने के साथ ही, उत्तराधिकार के नियमों के अनुकूल, उनके वैधिक उत्तराधिकारी, बिना किसी समारोह या औपचारिकता के, तुरंत ही नए शासक बन जाते हैं। अतः उत्तराधिकार परिषद् हमेशा उत्तराधिकार होने के पश्चात् संगठित होती है, एक आधिकारिक घोषणापत्र जारी करने के लिए, जिसके द्वारा नए शासक की नाम और पहचान समेत पुष्टि की जाती है, और पूरे प्रजा को इस पुष्टि और उत्तराधिकार से अवगत कराया जाता है। इस परिषद् में प्रिवी पार्षदगण, राज्य महाधिकारीगण, हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्यगण, लण्डन शहर के प्रभु महापौर और एल्डरमेन, राष्ट्रमण्डल प्रजाभूमियों के उच्चायुक्तगण तथा अन्य जनसेवकगण शामिल रहते हैं। यह परिषद् उत्तराधिकार की आधिकारिक घोषणा रचित करती है, जिसे लंदन और एडिनबर्ग समेत यूनाइटेड किंगडम के तमाम बड़े-छोटे शहरों के महत्वपूर्ण चौराहों और सार्वजनिक स्थानों पर सार्वजनिक रूप से पढ़ा जाता है। अमूमन, परंपरतः इस घोषणा को सबसे पहले सेंट जेम्स पैलेस की फ्रियरी कोर्ट की बाल्कनी से पढ़ा जाता है। इस घोषणा पढ़े जाने के दिन को प्रतिवर्ष, ऍक्सेशन डे के रूप में मनाया जाता है। घोषणा इन्हें भी देखें ब्रिटिश राजसत्ता का अनुक्रम ब्रिटिश एकराट्तंत्र सेंट जेम्स पैलेस सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रिवी कौंसिल की वेबसाइट – Accession Council BBC On This Day feature, including clip of proclamation at रॉयल एक्सचेंज Accession Council's Proclamation, 20 June 1837, of Victoria as Queen "saving the rights of any issue of His late Majesty King William the Fourth which may be borne of his late Majesty's Consort": लंदन गैज़ेट issue 19509, page1581 ब्रिटिश राजतंत्र ब्रिटेन के राजकीय संसथान यूनाइटेड किंगडम का संविधान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%82%E0%A4%A8%20500
फॉर्चून 500
फॉर्चून 500 एक वार्षिक संगृहीत सूची है और फॉर्चून (Fortune) पत्रिका द्वारा प्रकाशित होता है जो सकल राजस्व से निर्धारित शीर्ष 500 अमेरिकन सार्वजनिक कंपनी (corporation) का श्रेणीकरण करती है, यद्यपि योग्य कंपनियों का राजस्व (gross revenue) सार्वजनिक उपलब्ध है (जो "सार्वजनिक कंपनी (public companies)" से बड़ी दुनिया है जिसे सामान्यतः स्टॉक एक्सचेंज (stock exchange) कहा जाता है") वाल - मार्ट चोटियों की सूची में फिर 2008, एजिंग से बाहर एक्सौन मोबिल (Exxon Mobil) जो दूसरे स्थान पर है। फॉर्चून १०० और फॉर्चून १००० (Fortune 1000) शीर्ष संस्थानों के श्रेणीकरण की सूचियों में समान स्थान रखतें हैं। यह भी देखिए ग्लोबल फॉर्च्यून 500 (Fortune Global 500) फोर्ब्स ग्लोबल 2000 (Forbes Global 2000) अमेरिका की सबसे अधिक प्रशांशित कंपनी (America's Most Admired Companies) कंपनियों द्वारा राजस्व की सूची (List of companies by revenue) एस & पी 500 (S&P 500) सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ फॉर्च्यून 500 कंपनियों की पूर्ण सूची -- 2008 फॉर्च्यून 500 कंपनियों की पूर्ण सूची -- 2007 फॉर्च्यून 500 कंपनियों की पूर्ण सूची -- 2006 फॉर्च्यून 500 कंपनियों की सूची पूर्ण -- 1955 -2005 फॉर्चून500/१००० कंपनियों की सूची का डाउन लोड करने योग्य (सी एस वि) सम्पूर्ण संस्करण - 1955-2008 Lists of companies Fortune Top lists Annual magazine issues
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5
गढ़ी का गाँव
गढ़ी का गांव करौली से 15 km की दूरी पर है। This village is known as garhi ka gaon because A historical place (garhi /fort)  situated mid of the village Many religious people live here इस गांव के युवाओं के द्वारा समाज की सेवा करने के लिए लोगों को इकट्ठा करके समाज सेवा के लिए अभियान चलाया जा रहा है जिनमें रूपसिंह मीणा Roopsingh pahruaa महेश मीणा श्री राम मीणा खुशी राम मीणा लेखराज मीणा गोविंद मीणा प्रमुख है राजस्थान के गाँव
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टेट्रिस प्रभाव
टेट्रिस प्रभाव उन लोगों को होता है, जो एक ही प्रकार के खेल को खेलने में अत्यधिक समय नष्ट कर देते हैं। इस बीमारी का नाम टेट्रोमीनो नामक एक खेल से लिया गया है। जिसे बहुत समय तक खेलने के पश्चात आँखों को बंद करने के बावजूद इसके चित्र चलते हुए दिखाई देते हैं। अन्य उदाहरण यह किसी खेल के अलावा वास्तविक दुनिया में किसी प्रकार के दिमाग को भ्रमित करने वाले छवि आदि से भी हो सकता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ स्मृति
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5
पदार्थ
चिरसम्मत भौतिकी और सामान्य रासायनिकी में, पदार्थ कोई भी वस्तु है जिसमें द्रव्यमान होता है और आयतन होने के कारण स्थान लेता है। दैनन्दिन जिन वस्त्वों को छुआ जा सकता है, वे अन्ततः परमाण्वों से बनी होती हैं, जो अन्तःक्रियात्मक उपपारमाण्विक कणों से बनी होती हैं, और वैज्ञानिक उपयोग में, "पदार्थ" में साधारणतः परमाणु और उनसे बनी कोई भी वस्तु, और कोई भी कण (या संयोजन) जो इस तरह कार्य करते हैं जैसे कि उनके पास द्रव्यमान और आयतन दोनों हैं। यद्यपि इसमें द्रव्यमानरहित कण जैसे फोटॉन, या अन्य ऊर्जा परिघटनाएँ या तरंगें जैसे प्रकाश या ऊष्मा शामिल नहीं हैं। पदार्थ विभिन्न अवस्थाओं में उपस्थित है। इनमें ठोस, तरल और गैस जैसे चिरसम्मत अवस्थाएँ शामिल हैं - उदाहरणार्थ जल हिम, तरल पानी और वाष्प के रूप में मौजूद है - परन्तु अन्य अवस्थाएँ सम्भव हैं, जिनमें प्लास्मा, बोस-आइंस्टाइन संघनन, फर्मीओनिक संघनन और क्वार्क-ग्लूऑन प्लास्मा शामिल हैं। परिभाषा पदार्थ की एक सामान्य या पारम्परिक परिभाषा है "कुछ भी जिसमें द्रव्यमान और आयतन होता है (स्थान घेरता है)"। विशेषताएँ तथा गुणधर्म पदार्थ के कणों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। पदार्थ कणों से मिलकर बना होता है। पदार्थ के कण अत्यधिक क्षुद्र होते हैं। पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है। पदार्थ के कण निरन्तर गतिशील होते हैं। पदार्थ के कण एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्म प्रत्येक पदार्थ के विशिष्ट या अभिलाक्षणिक गुणधर्म होते हैं। इन धर्मों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- भौतिक गुणधर्म उदाहरणार्थ रंग, गन्ध, गलनांक, क्वथनांक, घनत्व आदि और रासायनिक गुणधर्म जैसे संगठन, ज्वलनशीलता, अम्ल, क्षार इत्यादि के साथ अभिक्रियाशीलता। भौतिक गुणधर्मो को पदार्थ की पहचान या संगठन को परिवर्तित किए बिना मापा या देखा जा सकता है। रासायनिक गुणधर्मों को मापने या देखने हेतु रासायनिक परिवर्तन का होना आवश्यक होता है। भौतिक गुणों को मापने हेतु रासायनिक परिवर्तन का होना आवश्यक नहीं होता। विभिन्न पदार्थों की अभिलाक्षणिक अभिक्रियाएँ (जैसे आम्ल्य, क्षार्य, दाह्यता आदि) रासायनिक गुणधर्मों के उदाहरण हैं। रसायनज्ञ भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर पदार्थ के व्यवहार का पूर्वानुमान तथा व्याख्या करते हैं। यह सब सावधानी पूर्वक परीक्षण एवं मापन से निर्धारित होता है। पदार्थ की अवस्थाएं पदार्थ तीन अवस्थाओं- ठोस, द्रव और गैस में पाये जाते हैं। ताप और दाब की दी गई निश्चित परिस्थितियों में, कोई पदार्थ किस अवस्था में रहेगा यह पदार्थ के कणों के मध्य के दो विरोधी कारकों अंतराआण्विक बल और उष्मीय ऊर्जा के सम्मिलित प्रभाव पर निर्भर करता है। अंतराआण्विक बलों की प्रवृत्ति अणुओं (अथवा परमाणुओं अथवा आयनों) को समीप रखने की होती है, जबकि उष्मीय ऊर्जा की प्रवृत्ति उन कणों को तीव्रगामी बनाकर पृथक रखने की होती है। ठोस |पदार्थ की ठोस अवस्था]] ठोस में, कण बारीकी से भरे होते हैं। ठोस के कणों में आकर्षण बल (Force of attaraction) आधिक होने के कारण इनका निश्चित आकार और आयतन होता है। ठोस के कुछ आम उद्हरण - ex,-, ईट, बॉल, कार, बस आदि। द्रव द्रव में कणों के मध्य बन्धन ठोस की तुलना में कम होती है अतः कण गतिमान होते हैं। इसका निश्चित आकर नहीं होता मतलब इसे जिस आकार में ढाल दो उसी में ढल जाता है लेकिन इसका आयतन निश्चित होता है। गैस गैस में कणों के मध्य बन्धन ठोस और द्रव की तुलना में कम होती है अतः कण बहुत गतिमान होते हैं। इनका न तो निश्चित आकार (Shape) और न ही निश्चित आयतन (Volume) होता है। पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन पदार्थ तीन भौतिक अवस्था में रह सकते है :- ठोस अवस्था, द्रव अवस्था और गैस अवस्था। उदाहरण के तौर पर, पानी बर्फ के रूप में ठोस अवस्था में रह सकता है, पानी के रूप में द्रव अवस्था में रह सकता है और भाप के रूप में गैस अवस्था में रह सकता है। भारतीय दर्शन में पदार्थ भारत के विभिन्न दर्शनकारों ने पदार्थों की भिन्न-भिन्न संख्या मानी है। गौतम ने 16 पदार्थ माने, वेदान्तियों ने चित् और अचित् दो पदार्थ माने, रामानुज ने उनमें एक 'ईश्वर' और जोड़ दिया। सांख्यदर्शन में 25 तत्त्व हैं और मीमांसकों ने 8 तत्त्व माने हैं। वस्तुतः इन सभी दर्शनों में ‘पदार्थ’ शब्द का प्रयोग किसी एक विशिष्ट अर्थ में नहीं किया गया, प्रत्युत उन सभी विषयों का, जिनका विवेचन उन-उन दर्शनों में है, पदार्थ नाम दे दिया गया। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पदार्थ की अवस्थाएँ पदार्थ की अविनाशिता का नियम पदार्थ विज्ञान पदार्थवाद पदार्थ (भारतीय दर्शन) बाहरी कड़ियाँ वेदों में पदार्थविज्ञान भौतिकी पदार्थ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8
अवेश खान
अवेश खान (जन्म 13 दिसंबर 1996) एक भारतीय प्रथम श्रेणी के क्रिकेटर हैं। दिसंबर 2015 में उन्हें 2016 अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप के लिए भारत की टीम में शामिल किया गया था। आवेश खान ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ 20 फरवरी 2022 को ट्वेन्टी-२० अंतरराष्ट्रीय में पदार्पण किया। आवेश खान के नाम आईपीएल इतिहास के सबसे महंगे अनकैप्ड प्लेयर होने का रिकॉर्ड है . 25 साल के आवेश खान को आईपीएल 2022 में लखनऊ की टीम ने 10 करोड़ रुपए में खरीदा है. सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1996 में जन्मे लोग भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BF%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%97
ध्वनि का वेग
किसी माध्यम (जैसे हवा, जल, लोहा) में ध्वनि १ सेकेण्ड में जितनी दूरी तय करती है उसे उस माध्यम में ध्वनि का वेग कहते हैं। शुष्क वायु में 20 °C (68 °F) पर ध्वनि का वेग 344 मीटर प्रति सेकेण्ड है। वेग = अवृत्ति x तरंगदैर्घ्य ध्वनि एक यांत्रिक तरंग है। इसके संचरण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। निर्वात में ध्वनि का संचरण नहीं होता। वायु में ध्वनि का संचरण एक अनुदैर्घ्य तरंग (लांगीट्युडनल वेव) के रूप में होता है। अलग-अलग माध्यमों में ध्वनि का वेग अलग-अलग होता है। 0°c,पर ध्वनि का वेग 332m/से होता है विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग गैसों में ध्वनि का वेग गैसों में ध्वनि के वेग का सूत्र यह है- जहाँ γ समऐन्ट्रॉपिक प्रसार गुणांक (isentropic expansion factor) या रुद्धोष्म गुणांक, R सार्वत्रिक गैस नियतांक T तापमान (केल्विन में M गैस का अणुभार है। सामान्य ताप और दाब पर इनके मान निम्नलिखित हैं- γ = 1.4 (वायु के लिये) R = 8.314 J/mol·K = 8,314 kg·m2/mol·K·s2 T = 293.15 K (20 °C) M = 0.029 kg/mol (वायु के लिये) आदर्श गैस समीकरण का प्रयोग करने पर, जहाँ P गैस का दाब (पास्कल में), V गैस का आयतन ( m3 में) और m गैस का द्रव्यमान है। इससे ध्वनि के वेग का निम्नलिखित सूत्र प्राप्त होता है- जहाँ ρ माध्यम का घनत्व ( kg/m3 में) है। ठोसों में ध्वनि का वेग जहाँ E ठोस का यंग मापांक और ρ ठोस का घनत्व है। इस सूत्र से इस्पात में ध्वनि का वेग निकाला जा सकता है जो लगभग 5148 m/s है। द्रवों में ध्वनि का वेग जल में ध्वनि के वेग का महत्व इसलिये है कि समुद्र-तल की गहराई का मानचित्र बनाने के लिये इसका उपयोग होता है। नमकीन जल में ध्वनि का वेग लगभग 1500 m / s होता है जबकि शुद्ध जल में 1435 m / s होता है। पानी में ध्वनि का वेग मुख्यतः दाब, ताप और लवणता पर आदि के साथ बदलता है। द्रव में ध्वनि का वेग निम्नलिखित सूत्र से दिया जाता है- जहाँ K आयतन प्रत्यास्थता मापांक और ρ' द्रव का घनत्व है। विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग : ठोस > द्रव > गैस वायु में ध्वनि की चाल की ताप पर निर्भरता इन्हें भी देखें पराध्वनिक विमान प्रकाश का वेग सन्दर्भ ध्वनि
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%B8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80
हदीस की शब्दावली
हदीस की शब्दावली (अरबी : مصطلح الحديث - मुस्तलह अल-हदीस) इस्लाम में शब्दावली का शरीर है जो पैगंबर मुहम्मद के महत्व के प्रारंभिक इस्लामी आंकड़ों जैसे मुहम्मद के परिवार और / या जिम्मेदारियों उत्तराधिकारियों (हदीस) की स्वीकार्यता को निर्दिष्ट करता है। अलग-अलग शब्द उन हदीस के बीच अंतर करते हैं जिन्हें सही ढंग से उनके स्रोत के लिए जिम्मेदार माना जाता है या संदिग्ध उद्भव के दोषों का विवरण दिया जाता है। औपचारिक रूप से, इसे इब्न हजर अल-असकलानी द्वारा परिभाषित किया गया है: "सिद्धांतों का ज्ञान जिसके द्वारा कथाकार और कथाओं की स्थिति निर्धारित की जाती है।" इस पृष्ठ में हदीस अध्ययनों के भीतर उपयोग की जाने वाली प्राथमिक शब्दावली शामिल है। हदीस की प्रामाणिकता से संबंधित शब्दावली इब्न अल-सलाह ने कहा, "अपने विशेषज्ञों के अनुसार एक हदीस, सहीह ("प्रामाणिक"), हसन और ज़ईफ़ में बांटा गया है।" जबकि हदीस शब्दावली की व्यक्तिगत शर्तें बहुत सी हैं, इन तीन शर्तों से कहीं अधिक, अंतिम परिणाम अनिवार्य रूप से यह निर्धारित करना है कि एक विशेष हदीस सहीह है और इसलिए, क्रियाशील, या ज़ईफ़ और क्रियाशील नहीं है। यह इब्न अल-सलाह के बयान पर अल-बुल्किनी की टिप्पणी से प्रमाणित है। अल-बुलकिनी ने टिप्पणी की कि "हदीस विशेषज्ञों की शब्दावली इस से अधिक है, जबकि साथ ही, केवल सहीह और इसके विपरीत है। शायद बाद के वर्गीकरण (यानी दो श्रेणियों में) के उद्देश्य से किया गया है, मानकों से संबंधित है धार्मिक प्राधिकरण, या इसकी कमी, सामान्य रूप से, और बाद में क्या उल्लेख किया जाएगा (यानी पच्चीस श्रेणियां) उस सामान्यता का एक विनिर्देश है।" सहीह शब्द "सहीह" (صحيح) का सबसे अच्छा अनुवाद "प्रामाणिक" है। इब्न हजर एक हदीस को परिभाषित करता है जो सही लिसातीही - " सहीह " और अपने आप में "- एक भरोसेमंद वर्णन (अहद ; नीचे देखें) के रूप में एक भरोसेमंद, पूरी तरह से सक्षम व्यक्ति द्वारा व्यक्त किया जाता है, या तो याद रखने या संरक्षित करने की उसकी क्षमता में उन्होंने एक मुत्तसिल ("जुड़ा हुआ") इस्नद ("वर्णन की श्रृंखला") के साथ क्या लिखा, जिसमें न तो एक गंभीर गुप्त दोष (इल्लत) علة और न ही अनियमितता (शादध) शामिल है। उसके बाद वह एक हदीस को परिभाषित करता है जो - "सहीह बाहरी कारकों के कारण" - एक हदीस के रूप में "कुछ के साथ, जैसे वर्णन की कई श्रृंखलाएं, इसे मजबूत करना।" इब्न हजर की परिभाषाएं इंगित करती हैं कि किसी विशेष हदीस के लिए पांच शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए सहीह: वर्णन की श्रृंखला में प्रत्येक कथाकार भरोसेमंद होना चाहिए; प्रत्येक कथाकार को उस वर्णन को संरक्षित करने की अपनी क्षमता में भरोसेमंद होना चाहिए, चाहे वह उसे याद कर सके, उसे याद रखने की अपनी क्षमता में हो, या, उसने लिखा है कि उसने इसे लिखा है और उसने लिखा है अपरिवर्तित; इस्नाद को जोड़ा जाना चाहिए (मुत्तसिल) जैसा कि श्रृंखला में प्रत्येक कथाकार के लिए कम से कम संभव है, ताकि पूर्ववर्ती से हदीस प्राप्त हो सके; हदीस, जिसमें इसके इस्नाद शामिल हैं, 'हिलाह (छिपी हुई हानिकारक दोष या त्रुटियों से मुक्त है, उदाहरण के लिए दो कथाकारों की स्थापना, हालांकि समकालीन, हदीस को साझा नहीं कर सके थे, जिससे इस्नाद तोड़ दिया गया था।) हदीस अनियमितता से मुक्त है, जिसका अर्थ है कि यह पहले से स्थापित (स्वीकृत) एक और हदीस का विरोधाभास नहीं करता है। कई पुस्तकों को लिखा गया जिसमें लेखक ने अकेले हदीस हदीस को शामिल करने के लिए निर्धारित किया था। अहल अल-सुनना के मुताबिक, यह केवल निम्नलिखित सूची में पहली दो पुस्तकों द्वारा हासिल किया गया था: अही अल-बुखारी। कुरान के बाद सबसे प्रामाणिक पुस्तक माना जाता है। सहीह मुस्लिम। आइनी अल-बुखारी के बाद अगली सबसे प्रामाणिक पुस्तक माना जाता है। सहीह इब्न खुजाइमा। अल- सुयुति का मानना ​​था कि सहीह इब्न खुजयमाह अहिनी इब्न इब्बन की तुलना में प्रामाणिकता के उच्च स्तर पर था। सहीह इब्न इबिबन्न। अल-सुयुति ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि आइबी इब्न इब्बान अल-मुस्तद्रक अला अल-अहिनीन से अधिक प्रामाणिक थे। अल-मुस्तद्रक 'अला अल-अय्यय्यान, हाकिम अल-निशापुरी द्वारा। अल-अहिदीथ अल-जियाद अल-मुख्तार मिन मा लयस फी आइनीन Ḍया अल-दीन अल-मक्दीसी द्वारा , प्रामाणिकता माना जाता है। हसन हसन (حسن जिसका अर्थ है "अच्छा") हदीस का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसका प्रामाणिकता अत्याधी हदीस के रूप में अच्छी तरह से स्थापित नहीं है, लेकिन सहायक सबूत के रूप में उपयोग के लिए पर्याप्त है। इब्न हजर एक हदीस को परिभाषित करता है जो हसन लिसातीही है - उसी परिभाषा के साथ एक सहीह हदीस सिवाय इसके कि इसके उल्लेखकार में से एक की क्षमता पूर्ण से कम है; जबकि एक हदीस जो हसन लिगारिही ("बाहरी कारकों के कारण हसन") है, कथन के कई श्रृंखलाओं जैसे पुष्टि कारकों के कारण हसन होने के लिए निर्धारित किया जाता है। वह कहता है कि इसके बाद उसके धार्मिक प्राधिकरण में एक हदी हदीस की तुलना में तुलनीय है। एक आसन हदीस सहीह होने के स्तर तक बढ़ सकता है अगर यह कई इस्नाद (वर्णन की श्रृंखला) द्वारा समर्थित है; इस मामले में हदीस हसन लिसातीही ("अपने और अपने आप में") होगा, लेकिन, एक बार अन्य सहायक श्रृंखलाओं के साथ मिलकर, सहीह लिगारिही ("बाहरी कारकों के कारण सहीह) बन जाता है। एक हदीस जो हदीस के विद्वान ने अपने शेख से रिपोर्ट की थी, जिसे उन्होंने हदीस को उस उम्र के अनुकूल होने के बारे में सुना है, और इसी तरह प्रत्येक शेख ने अपने शेख से सुना है जब तक कि इस्नाद एक प्रसिद्ध साथी तक नहीं पहुंचता, और फिर मैसेंजर अल्लाह के इसका एक उदाहरण है: अबू 'अमृत' उथमान इब्न अहमद अल-समक ने हमें बगदाद में सुनाया: अल-इसान इब्न मुकरम ने हमें बताया: 'उथमान इब्न' उमर ने हमें बताया: यूनुस ने हमें अब्दुल्ला इब्न काब से अल-जुहरी से सूचित किया इब्न मलिक अपने पिता काब इब्न मलिक से जिन्होंने इब्न अबी हदराद से कर्ज की भुगतान की मांग की थी, बाद में मस्जिद में पूर्व में बकाया था। उनकी आवाज़ें इस हद तक बढ़ीं कि उन्हें अल्लाह के मैसेन्जर ने सुना था। वह केवल अपने अपार्टमेंट के पर्दे को उठाकर बाहर निकल गया और कहा, 'हे काब! उसे अपने कर्ज से छुटकारा दिलाएं, 'आधे से संकेत देने वाले तरीके से उसे इशारा करते हुए। तो उसने काब ने कहा, 'हां,' और आदमी ने उसे भुगतान किया। "इस उदाहरण को स्पष्ट करने के लिए मैंने दिया है: इब्न अल-समक से मेरी बात सुनी गई है, उन्होंने अल-इसान इब्न अल-मुकरम से सुना है, वही है हसन ने 'उथमान इब्न' उमर और 'उथमान इब्न' उमर से यूनुस इब्न याज़ीद से सुना है - यह 'उथमान' के लिए एक ऊंचा श्रृंखला है। यूनुस को अल-जुहरी के बारे में सुना गया था, जैसा कि पुत्रों से अल-जुहरी था काब इब्न मलिक, और काब इब्न मलिक के पुत्र उनके पिता और काब से मैसेन्जर से थे क्योंकि वह एक साथी होने के लिए जाने जाते थे। इस उदाहरण में मैंने हजारों हदीस पर लागू किया है, इस बात का हवाला देते हुए इस श्रेणी के सामान्यता के बारे में हदीस। [8] संबंधित शब्द मुसनद हदीस के शुरुआती विद्वान, मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला अल-हाकिम, एक मुस्लिम (مسند अर्थ "समर्थित") हदीस को परिभाषित करता है: हदीस संग्रह के मुस्नद प्रारूप एक मुस्लिम हदीस को हदीस संग्रह के प्रकार से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए, जिसे मसानाफ कहा जाता है, जिसे प्रत्येक हदीस को बताते हुए साथी के नाम के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक मुस्लिम कई हदीस सूचीबद्ध करके शुरू हो सकता है, जो अबू बकर के अपने संबंधित सनदों के साथ पूरा हो सकता है, और उसके बाद उमर से कई हदीस और फिर उथमान इब्न अफ़ान और अन्य सूचीबद्ध हो सकता है। इस प्रकार के संग्रह के व्यक्तिगत कंपाइलर्स उन सहयोगियों की व्यवस्था करने की उनकी पद्धति में भिन्न हो सकते हैं जिनके हदीस वे एकत्रित कर रहे थे। अहमद के मुस्नाद इस प्रकार की पुस्तक का एक उदाहरण है । मुत्तसिल मुत्तसिल (متصل) वर्णन की निरंतर श्रृंखला को संदर्भित करता है जिसमें प्रत्येक कथाकार ने अपने शिक्षक से वर्णन सुना है। ज़ईफ़ ज़ईफ़ (ضعيف - दईफ़) एक हदीस के वर्गीकरण को "कमजोर" के रूप में वर्गीकृत करता है। इब्न हजर ने हदीस को कमजोर के रूप में वर्गीकृत किया क्योंकि "या तो कथाकारों की श्रृंखला में असंतुलन के कारण या एक कथाकार की कुछ आलोचना के कारण"। यह असंतुलन इस्नद के भीतर विभिन्न स्थितियों में होने वाले एक कथाकार को छोड़ने के लिए संदर्भित करता है और नीचे बताए अनुसार विशिष्ट शब्दावली का उपयोग करने के लिए संदर्भित किया जाता है। विघटन की श्रेणियां मुअल्लक़ उस हदीस के कलेक्टर के अंत से, इस्नाद की शुरुआत में विघटन, जिसे मुअल्लक़ (معلق अर्थ "निलंबित") कहा जाता है। मुअल्लक़ एक या अधिक उल्लेखकार के विसर्जन को संदर्भित करता है। यह पूरे इस्नाद के विसर्जन को भी संदर्भित करता है, उदाहरण के लिए, (एक लेखक) केवल यही कहता है: "पैगंबर ने कहा ..." इसके अलावा, इसमें साथी, या साथी और उत्तराधिकारी को छोड़कर इस्नामी को छोड़ना शामिल है। मुर्सल मुर्सल (مرسل अर्थ "जल्दी"): यदि उत्तराधिकारी और मुहम्मद के बीच कथाकार किसी दिए गए इस्नाद से छोड़ा जाता है, तो हदीस मर्सल है, उदाहरण के लिए, जब एक उत्तराधिकारी कहता है, "पैगंबर ने कहा ..." चूंकि सुन्नी विश्वास करते हैं सभी सहबा की ईमानदारी में, वे इसे एक आवश्यक समस्या के रूप में नहीं देखते हैं यदि उत्तराधिकारी का उल्लेख नहीं है कि सहबा को वह हदीस प्राप्त करता है। इसका मतलब है कि यदि एक हदीस के पास उत्तराधिकारी के लिए एक स्वीकार्य श्रृंखला है, और उत्तराधिकारी इसे एक अनिर्दिष्ट साथी के रूप में विशेषता देता है, तो इस्नाद को स्वीकार्य माना जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में अलग-अलग विचार हैं: यदि उत्तराधिकारी एक युवा है और यह संभव है कि उसने एक बड़े उत्तराधिकारी को छोड़ दिया जिसने बदले में एक साथी से रिपोर्ट की। इमाम मलिक और सभी मलिकि ज्यूरिस्टों द्वारा आयोजित राय यह है कि एक भरोसेमंद व्यक्ति का मस्तिष्क एक मुस्लिम हदीस की तरह मान्य है। यह विचार इस चरम पर विकसित किया गया है कि उनमें से कुछ के लिए, मुसलमान निम्नलिखित तर्कों के आधार पर मुस्लिम से भी बेहतर है: "जो मुस्नाद हदीस की रिपोर्ट करता है वह आपको आगे की जांच के लिए पत्रकारों के नाम से छोड़ देता है और जांच, जबकि वह जो इरसाल (उत्तराधिकारी और पैगंबर के बीच के लिंक की अनुपस्थिति) के माध्यम से वर्णन करता है, एक जानकार और भरोसेमंद व्यक्ति होने के नाते, पहले से ही ऐसा कर चुका है और हदीस ध्वनि होने के लिए पाया है। असल में, वह बचाता है आप आगे के शोध से। " अन्य युवा उत्तराधिकारी के मर्सल को खारिज करते हैं। मुनक़ती एक हदीस मुंकाई के रूप में वर्णित है (منقطع अर्थ "टूटा हुआ") वह है जिसमें हदीस (इस्नद) की रिपोर्ट करने वाले लोगों की श्रृंखला किसी भी समय डिस्कनेक्ट हो जाती है। एक हदीस का इस्नाद जो मुत्तसिल प्रतीत होता है लेकिन पत्रकारों में से एक को कभी भी अपने तत्काल अधिकार से हदीस नहीं सुना है, भले ही वे एक ही समय में रहते थे, मुनक़ती है। यह तब भी लागू होता है जब कोई कहता है "एक आदमी ने मुझे बताया ..."। अन्य प्रकार की कमजोरी मुन्कर मुनकर (منكر जिसका अर्थ है "निंदा") - इब्न हजर के अनुसार, यदि एक कमजोर कथाकार द्वारा एक और प्रामाणिक हदीस के खिलाफ जाने वाली एक कथा की सूचना दी जाती है, तो इसे मुन्कर के नाम से जाना जाता है। अहमद के रूप में देर से परंपरावादियों ने मुकर के रूप में एक कमजोर संवाददाता के किसी भी हदीस को लेबल किया था। [12] मुज़तरिब मुज़तरिब (مضطرب अर्थ "बेक़रार") - इब्न कथिर के अनुसार, यदि पत्रकार एक विशेष शाख के बारे में असहमत हैं, या इस्नाद या मैट में कुछ अन्य बिंदुओं के बारे में असहमत हैं, तो इस तरह से किसी भी राय को दूसरों पर पसंद नहीं किया जा सकता है, और इस प्रकार असुरक्षित अनिश्चितता है, ऐसे हदीस को मुरारीब कहा जाता है। एक उदाहरण है हदीस अबू बकर को जिम्मेदार ठहराया गया है: "हे अल्लाह के मैसेन्जर! मैं तुम्हें बूढ़ा हो रहा हूँ?" वह (अल्लाह उसे आशीर्वाद दे सकता है और उसे शांति दे सकता है) ने उत्तर दिया, "मुझे पुराना क्या हुआ सूर्या हुद और उसकी बहन सूरह।" हदीस विद्वान अल-दाराकुत्नी ने टिप्पणी की: "यह मुरारिब हदीस का एक उदाहरण है। यह अबू इशाक के माध्यम से रिपोर्ट किया गया है, लेकिन इस इस्नाद के बारे में दस अलग-अलग राय आयोजित की जाती हैं। कुछ इसे मर्सल के रूप में रिपोर्ट करते हैं, अन्य म्यूटटाइल के रूप में; कुछ लेते हैं यह अबू बकर के वर्णन के रूप में, दूसरों को साद या 'एशाह' में से एक के रूप में। चूंकि ये सभी रिपोर्ट वजन में तुलनीय हैं, इसलिए एक दूसरे से ऊपर लेना मुश्किल है। इसलिए, हदीस को मुरारिब कहा जाता है। " मौज़ू एक हदीस जो मौज़ू (موضوع) है, उसे बनाने के लिए दृढ़ संकल्प है और इसकी उत्पत्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। अल- धाहाबी मावु को हदीस के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें पाठ के पैगंबर के कहानियों के मानदंड स्थापित किए गए हैं, या इसके संवाददाताओं में झूठा शामिल है। झूटी हदीस को पहचानना इनमें से कुछ हदीस को उनके आविष्कारकों के कबुलीजबाब से गुस्से में जाना जाता था। उदाहरण के लिए, मुहम्मद इब्न साद अल-मस्लब कहते थे, "एक ध्वनि कथन के लिए एक इस्नाद बनाना गलत नहीं है।" एक अन्य कुख्यात आविष्कारक, 'अब्द अल-करीम अबू' एल-औजा, जो मुशर इब्न सुलेमान इब्न 'अली, बसरा के गवर्नर द्वारा मारा गया था और क्रूस पर चढ़ाया गया था, ने स्वीकार किया कि उन्होंने चार हज़ार हदीस को निषिद्ध और इसके विपरीत कानून घोषित कर दिया था। मावु उल्लेख किसी विशेष घटना की तारीखों या समय में पाए गए विसंगति से संबंधित बाहरी साक्ष्य द्वारा भी मान्यता प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए, जब दूसरा खलीफा, उमर इब्न अल-खट्टाब ने यहूदियों को खयबर से निष्कासित करने का फैसला किया, तो कुछ यहूदी गणमान्य व्यक्तियों ने उमर को यह दस्तावेज लाया कि यह साबित करने का प्रयास कर रहा है कि पैगंबर का इरादा था कि वे उन्हें जिज़्या से मुक्त कर रहे हैं (कर पर मुसलमानों के शासन में गैर-मुस्लिम); दस्तावेज ने दो साथी, साद इब्न मुआदाह और मुवायाह इब्न अबी सूफान के गवाह को लिया। उमर ने दस्तावेज़ को पूरी तरह से खारिज कर दिया, यह जानकर कि यह गढ़ा गया था क्योंकि खाबर की विजय 6 एएच में हुई थी, जबकि साद इब्न मुआदाह ट्रेंच की लड़ाई के ठीक बाद 5 एएच में मृत्यु हो गई थी, और मुवायाह ने 8 में इस्लाम को गले लगा लिया मक्का की जीत के बाद। निर्माण के कारण ऐसे कई कारक हैं जो एक व्यक्ति को एक वर्णन बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं: राजनीतिक मतभेद; पंथ के मुद्दों पर आधारित गुटों; विधर्मी द्वारा निर्माण; कहानी-टेलर द्वारा कपड़े; अज्ञानी तपस्या से निर्माण; शहर, जाति या एक विशेष नेता के पक्ष में पूर्वाग्रह; व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए आविष्कार; हदीस में नीतियों को बढ़ावा देने की इच्छा। संग्रह कई हदीस विशेषज्ञों ने उन्हें अन्य हदीस से अलग करने के लिए अलग-अलग निर्मित हदीस एकत्र किए हैं। उदाहरणों में शामिल हैं: अबुल-फरज इब्न अल-जौज़ी द्वारा अल-मौदुत। अल-जौराकनी द्वारा किताब अल -अबातिल। अल-लाउली अल-मसूआआ फा 'एल-अहदीथ अल-माउडुआ अल-सुयुति द्वारा। अली अल-कारी द्वारा अल-माउडुआट। मुहम्मद राख-शवानी द्वारा अल-फवायद अल-माजुआह फा अल-आहादेथ अल -मडुदाह। इस्नद में उल्लेखकारों की संख्या से संबंधित शब्दावली वर्णन की श्रृंखला के किसी भी स्तर पर कम से कम कथाकारों को विचार दिया जाता है; इस प्रकार यदि दस कथाकार दो अन्य लोगों से हदीस व्यक्त करते हैं जिन्होंने इसे दस से व्यक्त किया देखा या सूना है, तो इसे 'अज़ीज़' माना जाता है, मशूर नहीं। मुतवातिर पहली श्रेणी मुतवातिर है (متواتر अर्थ "क्रमिक") वर्णन। एक निरंतर वर्णन वर्णनकर्ताओं द्वारा इतने सारे लोगों द्वारा व्यक्त किया गया है कि यह कल्पना की जा सकती है कि वे एक असत्य पर सहमत हुए हैं, इस प्रकार उनकी सत्यता में निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जा रहा है। उल्लेखकार की संख्या निर्दिष्ट नहीं है। एक हदीस को मुतवातिर कहा जाता है अगर यह एक महत्वपूर्ण, हालांकि अनिश्चित, वर्णन की श्रृंखला में प्रत्येक स्तर पर उल्लेखकार की संख्या की सूचना दी गई थी, इस प्रकार सफलता के कई श्रृंखलाओं के माध्यम से अपने पीढ़ी तक पहुंचने के बाद सफल पीढ़ी तक पहुंच गया। यह पुष्टि प्रदान करता है कि हदीस उचित रूप से उचित स्तर से ऊपर के स्तर पर अपने स्रोत के लिए जिम्मेदार है। यह ऐतिहासिक संभावना से परे होने के कारण है कि कथाकार वर्णन करने के लिए साजिश कर सकते थे। इसके विपरीत, एक आधा हदीस एक वर्णन है जिसकी श्रृंखला उत्परिवर्ती के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संख्या तक नहीं पहुंच पाई है। मुतवातिर के प्रकार हदीस वास्तविक पाठ और अर्थ दोनों में मुतवातिर हो सकता है : शब्द में मुतवातिर एक हदीस जिसका शब्द एक बड़ी संख्या में सुनाया जाता है जैसा कि एक उत्परिवर्ती के लिए जरूरी है, इस तरह से कि सभी कथाकार बिना किसी विसंगति के एक ही शब्द के साथ रिपोर्ट करने में सर्वसम्मति रखते हैं। उदाहरण के लिए: "[मुहम्मद ने कहा:] जो भी जानबूझकर मेरे खिलाफ झूठ बोलता है, उसे अपनी सीट आग में तैयार करनी चाहिए।" यह अपने शब्दों में एक उत्परिवर्ती हदीस है क्योंकि इसमें कम से कम सत्तर चार कथाकार हैं। दूसरे शब्दों में, मुहम्मद के सत्तर चार साथी ने इस हदीस को विभिन्न अवसरों पर रिपोर्ट किया है, सभी एक ही शब्द के साथ। सहयोगियों से इस हदीस को प्राप्त करने वालों की संख्या कई गुना अधिक है, क्योंकि सत्तर चार सहयोगियों में से प्रत्येक ने इसे अपने कई छात्रों को बताया है। इस प्रकार प्रत्येक हदीस में इस हदीस के वर्णनकर्ताओं की कुल संख्या बढ़ रही है और कभी भी चौबीस से कम नहीं रही है। ये सभी कथाकार जो अब सैकड़ों संख्या में हैं, उन्हें एक ही मामूली परिवर्तन के बिना एक ही शब्द में रिपोर्ट करें। इसलिए हदीस अपने शब्दों में मुसव्विर है, क्योंकि यह कल्पना की जा सकती है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने मुहम्मद को श्रेय देने के लिए एक शरारती वाक्य सिक्का करने के लिए मिले जुले है। अर्थ में मुतवातिर एक हदीस जिसे एक ही शब्द का उपयोग करके कई कथाकारों द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जाता है। उल्लेखकार के शब्द अलग हैं। कभी-कभी रिपोर्ट की गई घटनाएं भी समान नहीं होती हैं। लेकिन सभी कथाकार मूलभूत अवधारणा की रिपोर्ट करने में सर्वसम्मति से हैं, जो सभी रिपोर्टों में आम है। इस आम अवधारणा को एक उत्परिवर्ती अवधारणा के रूप में भी स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए: इस तरह की बड़ी संख्या में कथाकारों ने रिपोर्ट की है कि मुहम्मद ने मुसलमानों को फज्र में दो राकत करने, धुहर , असर और एशा में चार राक और मगहरिब प्रार्थना में तीन राकत करने के लिए कहा था, फिर भी की कथाएं सभी पत्रकार जिन्होंने राक की संख्या की सूचना दी, वे एक ही शब्द में नहीं हैं। उनके शब्द अलग हैं और यहां तक ​​कि उनके द्वारा रिपोर्ट की गई घटनाएं अलग-अलग हैं। लेकिन सभी रिपोर्टों की सामान्य विशेषता समान है: राकत की सही संख्या। इस प्रकार हदीस को अर्थ में मुसव्विर कहा जाता है। हाद दूसरी श्रेणी, आहाद (آحاد अर्थ "एकवचन") वर्णन, किसी भी हदीस को मुसव्विर के रूप में वर्गीकृत नहीं है। भाषाई रूप से, हदीस अहद एक हदीस को संदर्भित करता है जो केवल एक कथाकार द्वारा सुनाया जाता है। हदीस शब्दावली में, यह एक हदीस को संदर्भित करता है जो उत्परिवर्ती समझा जाने वाली सभी स्थितियों को पूरा नहीं करता है। हदीस अहमद में तीन उप-वर्गीकरण होते हैं जो श्रृंखला या कथाओं की श्रृंखलाओं में कथाओं की संख्या से संबंधित होते हैं: अज़ीज़ अज़ीज़ (عزيز) हदीस किसी भी हदीस को अपने आनाद (कथाकारों की श्रृंखला) में हर बिंदु पर दो उल्लेखकार द्वारा व्यक्त किया गया है। ग़रीब एक ग़रीब (غريب) हदीस केवल एक कथनकर्ता द्वारा व्यक्त किया जाता है। एक ग़रीब हदीस की अल- तिर्मिधि की समझ, अन्य परंपरावादियों के साथ कुछ हद तक मिलती है। उनके अनुसार एक हदीस को निम्नलिखित तीन कारणों में से एक के लिए घरिब के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है: सबसे पहले, एक हदीस को घरिब के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है क्योंकि इसे केवल एक श्रृंखला से सुनाया जाता है। अल-तिर्मिधि ने उदाहरण के तौर पर हम्बल इब्न सलामाह से अपने पिता के अधिकार पर अबू उस्राई से एक परंपरा के रूप में उल्लेख किया है, जो पैगंबर से पूछताछ की जाती है कि क्या जानवर की हत्या करना गले और गले तक ही सीमित है। पैगंबर ने जवाब दिया कि जांघ को छीनना भी पर्याप्त होगा। दूसरा, पाठ में एक अतिरिक्त होने के कारण एक परंपरा को घरिब के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, हालांकि इसे एक विश्वसनीय परंपरा माना जाएगा, अगर उस भरोसेमंद संवाददाता द्वारा यह जोड़ा गया है। अल-तिर्मिधि द्वारा उद्धृत उदाहरण इब्न उमर (73 हिजरी में मृत्यु हो गई) के अधिकार पर मफी की श्रृंखला (179 हिजरी की मृत्यु हो गई) की मृत्यु ने कहा कि पैगंबर ने घोषणा की हर मुसलमान रमजान के अंत में दान दे, नर या मादा पर अनिवार्य है, चाहे मुसलमानों से एक स्वतंत्र व्यक्ति हो या फिर दास (ग़ुलाम)। हालांकि, इस परंपरा को अयूब सख्तियानी और 'उबायद अल्लाह इब्न' उमर द्वारा भी "मुसलमानों से" के अतिरिक्त वर्णित किया गया है, इसलिए पाठ में "मुसलमानों से" के अतिरिक्त होने के कारण ऊपर उल्लिखित उदाहरण को वर्गीकृत किया गया है ग़रीब। तीसरा, एक परंपरा को घरिब घोषित किया जा सकता है क्योंकि इसे ट्रांसमीटरों की विभिन्न श्रृंखलाओं के माध्यम से सुनाया जाता है, लेकिन इसकी श्रृंखलाओं में से एक के भीतर इस्नाद में एक जोड़ा होता है। इस्लामी कानून पर प्रभाव दो प्राथमिक श्रेणियों मुसव्विर और आहाद द्वारा प्राप्त ज्ञान के स्तर के रूप में अलग विचार हैं। इब्न हजर और दूसरों द्वारा व्यक्त एक विचार यह है कि एक हदीस उत्परिवर्ती कुछ ज्ञान प्राप्त करता है, जबकि अहम हदीस, जब तक कि अन्यथा पुष्टि नहीं की जाती है, सट्टा ज्ञान उत्पन्न करता है जिस पर कार्रवाई अनिवार्य होती है। दाऊद अल-जहीर, इब्न हज़म और अन्य लोगों द्वारा आयोजित एक दूसरा विचार - और, मलिक इब्न अनास की स्थिति - यह है कि हदीस अहमद कुछ ज्ञान भी प्राप्त करता है। इब्न हज़म के मुताबिक, "[टी] उन्होंने एक एकल, सीधे कथाकार द्वारा व्यक्त किया गया वर्णन सुनाया जब तक कि पैगंबर तक पहुंचने तक ज्ञान और कार्य दोनों को जरूरी न हो।" वर्णन की उत्पत्ति से संबंधित शब्दावली एक वर्णन की उत्पत्ति के लिए अलग-अलग शब्दों का उपयोग किया जाता है। ये शब्द निर्दिष्ट करते हैं कि क्या एक वर्णन मुहम्मद, एक साथी, उत्तराधिकारी या बाद के ऐतिहासिक चित्र के लिए जिम्मेदार है। मरफूअ इब्न अल-सलाह ने कहा: "मरफूअ ( مرفوع) विशेष रूप से पैगंबर [मुहम्मद] के लिए जिम्मेदार एक वर्णन को संदर्भित करता है। यह शब्द अन्यथा निर्दिष्ट नहीं होने तक अन्यथा संदर्भित नहीं करता है। मरफूअ की श्रेणी में पैगंबर को जिम्मेदार कथाओं का समावेश शामिल है उनके उत्परिवर्ती, मुक्काती या अन्य श्रेणियों के बीच मर्सल। " दो प्राथमिक श्रेणियों में से प्रत्येक द्वारा उत्परिवर्ती और आहाद द्वारा प्राप्त ज्ञान के स्तर के रूप में अलग-अलग विचार हैं। इब्न हजर और दूसरों द्वारा व्यक्त एक विचार यह है कि एक हदीस उत्परिवर्ती कुछ ज्ञान प्राप्त करता है, जबकि अहद हदीस, जब तक कि अन्यथा पुष्टि न हो, सट्टा ज्ञान प्राप्त करता है जिस पर कार्रवाई अनिवार्य है। दाऊद अल-जहीर, इब्न हज़म और अन्यों द्वारा आयोजित एक दूसरा दृश्य - और, कथित तौर पर, मलिक इब्न अनास की स्थिति यह है कि हदीस अहमद कुछ ज्ञान भी प्राप्त करता है। इब्न हज़म के मुताबिक, "[टी] उन्होंने एक एकल, सीधे कथाकार द्वारा व्यक्त किया गया वर्णन सुनाया जब तक कि पैगंबर तक पहुंचने तक ज्ञान और कार्य दोनों को जरूरी न हो।" मौक़ूफ़ इब्न अल-सलाह के अनुसार, " मौक़ूफ़ (موقوف) एक साथी को जिम्मेदार एक वर्णन को संदर्भित करता है, चाहे उस साथी का एक बयान, कोई कार्रवाई या अन्यथा।" मक़तू इब्न अल-सलाह ने मक़तू (مقطوع) को एक ताबीई (मुहम्मद के साथी के उत्तराधिकारी) के उत्तराधिकारी के रूप में परिभाषित किया है, चाहे वह उत्तराधिकारी, एक कार्यवाही या अन्यथा का बयान है। भाषाई समानता के बावजूद, यह मुक्काती से अलग है। सुन्नी हदीस शब्दावली साहित्य जैसा कि किसी भी इस्लामी अनुशासन में है, साहित्य के समृद्ध इतिहास सिद्धांतों और हदीस अध्ययनों के अच्छे अंक का वर्णन करते हैं। इब्न हजर निम्नलिखित के साथ इस विकास का एक सारांश प्रदान करता है: – संदर्भ बाहरी कड़ियाँ An Introduction to the Science of Hadith, by Ibn al-Salah, translated by Dr. Eerik Dickinson; Studies in Hadith Methodology and Literature, by Muhammad Mustafa Al-A'zami; The Canonization of Al-Bukhari and Muslim: The Formation and Function of the Sunni Hadith Canon by Jonathan Brown, BRILL, 2007 शब्दावली अरबी शब्द हदीस
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AC%E0%A4%B2
मनोबल
मनोबल या 'हौसला' (Morale या esprit de corps) का अर्थ है - किसी समूह के सदस्यों की उस संगठन या उसके लक्ष्य के प्रति आस्था की दृढता। मनोबल सीधे कार्य–निष्पादन को प्रभावित करता है। व्यक्ति चाहे स्वतन्त्र रूप से कार्य करे या संगठन में रहकर सामूहिक प्रयास करे, मनोबल एक निर्णायक भूमिका निभानेवाला तत्व सिद्ध होता है। मनोबल व्यक्ति की आंतरिक मानसिक शक्ति तथा आत्मविश्वास का पर्याय है। मनोबल का शब्दकोषीय अर्थ है – 'किसी विशिष्ट समय में व्यक्ति या समूह द्वारा प्रदर्शित आत्मविश्वास, उत्साह तथा दृढ़ता इत्यादि की मात्रा।' परिचय एम.एस. वाइटल्स के अनुसार, मनोबल, संतुष्टि की अभिवृत्ति, निरन्तरता की इच्छा है, जो किसी विशिष्ट समूह या संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छा एवं सहमति का प्रतीक है। मोरिस विटलेस के अनुसार, मनोबल, मनुष्यों में शारीरिक एवं भावात्मक रूप से वह स्वस्थ स्थिति है, जो व्यक्ति को उसके कार्य सम्पन्न करने में ऊर्जा, उत्साह एवं आत्मानुशासन की स्थिति प्रदान करती है। कीथ डेविस के शब्दों में, व्यक्तियों एवं समूह का उनके संगठन के श्रेष्ठतम हित में क्षमतानुरूप स्वैच्छिक योगदान एवं उनके कार्य पर्यावरण के प्रति अभिवृत्तियाँ, मनोबल की प्रतीक है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मनोबल के निम्नांकित लक्षण एवं विशेषताएँ होती हैं – 1. मनोबल, व्यक्ति या उसकेसमूह में कार्यरत व्यक्तियों के आन्तरिक बल तथा आत्मविश्वास का परिचायक है। 2. मनोबल एक अदृश्य शक्ति या अभिवृत्ति से तात्पर्य किसी विशिष्ट दिशा में सोचने या विशिष्ट प्रकार का व्यवहार करने से है। 3. सामान्यत: मनोबल सामूहिक होता है अथवा सामूहिक अभिवृत्ति का परिचय देता है। 4. मनोबल उच्च या निम्न हो सकता है। जहाँ उच्च मनोबल से युक्त व्यक्ति कठिन कार्य सहजता से कर दिखाता है, वहीं निम्न मनोबल धारक व्यक्ति को छोटेकार्य भी पहाड़ जैसे दिखाई देते हैं। 5. मनोबल, मानसिक तत्वों या क्षमताओं जैसेउत्साह, अनुशासन, आशा, साहस तथा विश्वास ख्याति का प्रतीक है। 6. किसी सामूहिक (कई बार व्यक्तिगत भी) उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किसी व्यक्ति या समूह को दृढ़तापूर्वक और निरन्तर कार्य की इच्छा भी मनोबल है। 7. मनोबल में निम्नांकित आधारभूत बातें सम्मिलित होती हैं – (क) सहयोग तथा एकजुटता की भावना (ख) स्पष्ट लक्ष्य या उद्देश्य (जिसे प्राप्त करना है) (ग) लक्ष्य प्राप्ति की सफलता की अपेक्षा (घ) प्रत्येक व्यक्ति यह महसूस करे कि उद्देश्य प्राप्ति में उसका कार्य या भूमिका महत्वपूर्ण है (ङ) सहयोगी तथा प्रेरणात्मक नेतृत्व मनोबल के अंग या तत्वों को स्पष्ट करते हुए लेटन एवं सिलिण्डर ने यह व्याख्या प्रस्तुत की है – (१) मनोबल क्या है? – मनोबल मानव मस्तिष्क की एक अभिवृत्ति, कार्य की प्रवृत्ति है, अच्छाई की एक स्थिति है तथा एक भावनात्मक दबाव है। (२) मनोबल क्या करता है? – मनोबल, उत्पादन, लागत, से वा निष्पादन, सहयोग, उत्साह, अनुशासन, कार्यकुशलता तथा सफलता संबंधी तत्वों को दिशा प्रदान करता है। (३) मनोबल कहीं उपलब्ध रहता है? – यह व्यक्ति या सहयोगियों के मानसिक चिन्तन, भावनाओं तथा सामूहिक प्रतिक्रियाओं में निवास करता है। (४) मनोबल किसको प्रभावित करता है? – यह निकटतम सहयोगियों, अधिकारियों, समाज तथा सम्बद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता है। (५) मनोबल क्या प्रभावित करता है? – मनोबल कार्य के प्रति अभिरूचि, संगठन के सर्वोंत्तम हित में सहयोग तथा व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से सहयोग इत्यादि को प्रभावित करता है। लेटन तथा सिलिण्डर के शब्दों में, मनोबल, एक भावनात्मक मानसिक स्थिति है, जो कार्य करनेकी इच्छा से व्यक्तिगत एवं संगठनात्मक उद्देश्य प्रभावित होते हैं। प्रबन्धन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%AA%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8
रोटी कपड़ा और मकान
रोटी कपड़ा और मकान 1974 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका लेखन, निर्देशन और निर्माण मनोज कुमार ने किया है। इसमें वह स्वयं शशि कपूर, ज़ीनत अमान और मौसमी चटर्जी के साथ मुख्य भूमिका में हैं। अमिताभ बच्चन, प्रेमनाथ, धीरज कुमार और मदन पुरी सहायक भूमिकाओं में हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल संगीत निर्देशक थे। यह 1974 की सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी और मनोज कुमार की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर रही। संक्षेप अपने पिता के सेवानिवृत्त होने के बाद, भारत (मनोज कुमार) पर अपने दिल्ली स्थित परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी आती है। उसके दो छोटे कॉलेज जाने वाले भाई हैं, विजय (अमिताभ बच्चन) और दीपक (धीरज कुमार)। साथ ही विवाह योग्य उम्र की एक बहन, चंपा भी है। यद्यपि भारत कॉलेज से ग्रेजुएट है, लेकिन एकमात्र काम जो उसे मिलता है वह एक गायक का है। इसमें उसकी बहुत कम आमदनी है जिससे उसकी प्रेमिका शीतल (ज़ीनत अमान) हताश रहती है। इस बीच, विजय परिवार के लिए अपराध की दुनिया में चला जाता है, लेकिन भारत के साथ बहस के बाद, वह सेना में शामिल होने के लिए घर छोड़ देता है। शीतल अमीर व्यवसायी मोहन बाबू (शशि कपूर) के लिए सचिव के रूप में काम करना शुरू कर देती है। मोहन उसे पसंद करने लगता है। वह मोहन के प्रति आकर्षित हो जाती है लेकिन वह उसके धन और विलासिता में अधिक रुचि रखती है। वह भारत से प्यार करती है लेकिन गरीबी में जीवन नहीं गुजार सकती। भारत को आखिरकार एक बिल्डर के रूप में एक नौकरी मिल जाती है लेकिन उसे एहसास होने लगता है कि शीतल धीरे-धीरे उससे दूर जा रही है। जल्द ही वह अपनी नौकरी खो देता है क्योंकि सरकार इमारत की जमीन ले लेती है और उसकी वित्तीय समस्याएँ और बढ़ जाती हैं। जब मोहन शीतल से शादी की पूछता है, तो वह मान जाती है। इससे भारत का दिल टूट जाता है। अपने प्यार को खोने के बाद, भारत अपने पिता को भी खो देता है। इससे वह तबाह हो जाता है। निराश होकर, उसने अपने पिता की चिता पर अपना डिप्लोमा जला दिया। इस बीच, चंपा को एक विवाह-प्रस्तावक मिल जाता है, लेकिन भारत के पास शादी के लिए पैसे नहीं हैं और यह बात आगे नहीं बढ़ पाती। भारत अपने जीवन की स्थिति से निराश है, लेकिन जल्द ही एक गरीब लड़की, तुलसी (मौसमी चटर्जी) से मिलने के बाद शांति पाता है जो भी गरीबी में रहती है। वह सरदार हरनाम सिंह (प्रेमनाथ) के साथ दोस्ती भी करता है जो तुलसी को बदमाशों के गिरोह से बचाने के लिए उसकी मदद के लिये आता है। फिर उसे नेकीराम (मदन पुरी) नामक एक भ्रष्ट व्यवसायी से एक प्रस्ताव मिलता है जो भारत को अपनी अवैध गतिविधियों के लिए राजी करता है ताकि वह और उसका परिवार गरीबी से बाहर आ जाए और अमीर बन जाए। कथानक इस बात पर केन्द्रित है कि क्या भारत इस बात से सहमत होगा या उसका नैतिक स्वभाव उसे अपराध की ओर मुड़ने से रोकेगा। मुख्य कलाकार मनोज कुमार — भारत ज़ीनत अमान — शीतल शशि कपूर — मोहन बाबू अमिताभ बच्चन — विजय मौसमी चटर्जी — तुलसी प्रेमनाथ — हरनाम सिंह धीरज कुमार — दीपक कामिनी कौशल — भारत की माता मदन पुरी — नेकीराम अरुणा ईरानी — पूनम सुलोचना लाटकर — मोहन की माता मनमोहन — सीनियर पुलिस अधिकारी रज़ा मुराद — हामिद मियाँ राज मेहरा — तुलसी के पिता आग़ा — मुंशी असित सेन — काका संगीत नामांकन और पुरस्कार सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1974 में बनी हिन्दी फ़िल्म लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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सोनागिरि
सोनागिरि, ग्वालियर से 60 कि॰मी॰ दूर जिला दतिया मध्य प्रदेश में स्थित है। यह स्थान मुख्यतः जैन तीर्थ है। सोनागिरि में 108 मंदिर हैं , जिनमे क्रमांक 57वा मंदिर मुख्य है। इस मंदिर मे भगवन चंद्रप्रभु की 11फिट ऊँची मूर्ति स्थापित है, तथा यहाँ एक विशाल हॉल है जहाँ ध्यान किया जाता है, और पास ही एक महास्तम्भ स्थापित है, जिसकी ऊँचाई 43 फिट है। सोनागिरि मे ही आचार्य शुभचन्द्र तथा ऋषि भ्रतृरिहरी ने निर्वाण पाया एवं अनेक ग्रंथों की रचना की। जैन आगम के अनुसार यहां 8वें तीर्थंकर 1008 श्री चंद्रप्रभु भगवान जी का 17 बार समवसरण लगा था। जैन तीर्थ
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राफ्टिंग
कैंपिंग एवं ट्रेकिंग की तरह राफ्टिंग भी एक रोमांचकारी गतिविधि है। ऊँची-नीची लहरो से एक छोटी सी नाव में जूझना भी एक अलग तरह का अनुभव है। मनोरंजन के साथ-साथ यह हमें साहसी, एवं जूझारु भी बनाती है। इसके अलावा एक साथ काम करने के कारण आपस में सहयोग की भावना भी बढ़ती है। बड़ी-ड़ी लहरे जब वेग के साथ व्यक्ति की ओर आती हैं, तो कुछ क्षणों के लिए सब कुछ भूल जाता है। उसे केवल परस्पर सहयोग से इन लहरों को जीतनें की इच्छा होती है। यात्रा पूरी करने पर उस जीत की जो खुशी होती है, उसका वर्णन शब्दों में करना असम्भव ही है। राफ्टिंग और व्हाइटवाटर राफ्टिंग एक आउटडोर मनोरंजक गतिविधि हैं जिसमे एक हवा वाली बेड़े का उपयोग कर नदी या पानी के अन्य प्रकारों पर नेविगेट करते हैं। यह अक्सर किसी न किसी तरह साफ़ पानी की या फिर उथले पानी के विभिन्न डिग्री पर किया जाता है और आम तौर पर भाग लेने वालों के लिए एक नया और चुनौतीपूर्ण वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है। जोखिम से निपटने और टीम वर्क की जरूरत इस अनुभव (राफ्टिंग) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक अवकाश खेल के रूप में इस गतिविधि का विकास के १९७० के मध्य लोकप्रिय हो गया है। यह एक जोखिम भरा खेल के रूप में जाना जाता है एवं यह काफी खतरनाक भी हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय राफ्टिंग संघ, जो आईआरएफ के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है एवं जो खेल के सभी पहलुओं की देखरेख करता है। वाइट वाटर के प्रकार निमंलिखित ६ स्तर के बाधाओं का सामना वाइट वाटर राफ्टिंग में करना पड़ता है इसके अन्य नामों में इंटरनेशनल स्केल ऑफ़ रिवर दिफ्फिकल्टी भी है ये बहुत खतरनाक से मौत के मुह या फिर गंभीर चोट के बीच में आते है। क्लास १ : बहुत छोटे खुरदुरे क्षेत्र, इनमे कुशलता की जरुरत हो सकती हैं। (कौशल का स्तर: बहुत ही बुनियादी) क्लास २: थोडा उथला पानी, इनमे कुशलता की जरुरत हो सकती हैं। क्लास ३: व्हाइटवॉटर, छोटी तरंगे। क्लास ४: व्हाइटवॉटर, मध्यम तरंगे, कुछ चट्टानें, तीक्ष्ण कुशलता की जरुरत।. क्लास ५: व्हाइटवॉटर, बड़ी तरंगे, बड़ा क्षेत्र, सटीक कुशलता की जरुरत। क्लास ६: काफी खतरनाक एवं इसमें राफ्टर को पर्याप्त व्हाइटवॉटर, बड़ी तरंगे, बड़ी चट्टानों का सामना करना पड़ता है। व्हाइट वाटर राफ्टिंग डोंगियों या कायाक से काफी अलग है इसमें बहुत ही कुशलता एवं विशेषता की जरुरत होती है ताकि पानी में आनेवाली कठिनाइयों को दूर किया जा सके। इनमे कुछ विशिष्ट तकनीक इस्तेमाल किये जाते हैं, इन तकनीकों के उदाहरण में शामिल हैं। पंचिंग उच्च साइडिंग लो साइडिंग कैप्सिजिंग डंप ट्रक लेफ्ट ओवर राईट टैको एंड ओवर एंड डाउनस्ट्रीम फ्लिप बैक रोलर रि राइटिंग फ्लिप लाइन टी रेस्क्यू सुरक्षा व्हाइटवॉटर राफ्टिंग क खतरनाक खेल हो सकता है यदि इसमें मुलभुत सुरक्षा तकनीको की अनदेखी की गई हो। हालांकि पेशेवर एवं निजी राफ्टिंग में दुर्घटना काफी कम देखी गई हैं इसकी एक वजह बहुत सारी घटनाओं का रिपोर्टिंग नहीं होना है। इसलिए दुर्घटनाओं की दर काफी कम समजी जाती हैं। अत: यह जरुरी हैं कि राफ्टिंग करने के पहले आप अपने संचालक के साथ सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले ले। हालाकि इस खेल में विशेशागता बड़ी हैं एवं विशिस्ट उपकारों के प्रयोग के चलते दुर्घटना की सम्भावना घटी हैं। पर्यावरण के मुद्दे प्रत्येक बाहरी गतिविधियों की तरह राफ्टिंग को भी नदियों के साथ संतुलन बनाये रखना काफी जरुरी हैं ताकि नदिया पर्यावरण का स्रोत बनी रहे। इन्ही मुद्दों के चलते अब कुछ नदियों में राफ्टिंग के लिए अब कड़े नियम बनाये गए हैं जो इनके दैनिक एवं वार्षिक संचालन समय एवं रफ्टरों की संख्या से सम्बंधित है। यद्यपि कई देशों के अर्थव्यवस्था में राफ्टिंग काफी योगदान देता हैं फिर भी पर्यावरण के मुद्दों को अनदेखी नहीं की जा सकती. इन्हें भी देखें पैक क्राफ्ट लिलोइंग पैड्लिंग बेड़ा गाइड स्विफ्त्वाटर बचाव ट्यूबिंग व्हाइटवॉटर कैनोइंग व्हाइटवॉटर सन्दर्भ पर्यटन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%20%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य422.94 वर्गकिलोमीटर में फैला है, जो जिला मुख्यालय बांसवाड़ा से केवल ४० किलोमीटर, उदयपुर से १०० और चित्तौडगढ़ से करीब ६० किलोमीटर दूर है। यह अद्वितीय अभयारण्य प्रतापगढ़ जिले में, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में अवस्थित है, जहाँ भारत की तीन पर्वतमालाएं- अरावली, विन्ध्याचल और मालवा का पठार आपस में मिल कर ऊंचे सागवान वनों की उत्तर-पश्चिमी सीमा बनाते हैं। आकर्षक जाखम नदी, जिसका पानी गर्मियों में भी नहीं सूखता, इस वन की जीवन-रेखा है। यहां की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियों में उड़न गिलहरी और चौसिंघा (four Horned Antelope) हिरण उल्लेखनीय हैं। यहां स्तनधारी जीवों की ५०, उभयचरों की ४० और पक्षियों की ३०० से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते हैं। वृक्षों, घासों, लताओं और झाडियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की विशेषता हैं, वहीं अनेकानेक दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियाँ अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय हैं। वनों के उजड़ने से अब वन्यजीवों की संख्या में कमी आती जा रही है। प्रतापगढ़ इतिहास के आरम्भ से ही प्रकृति की नायाब संपदा से धनी क्षेत्र रहा है। इस के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में मूल्यवान सागवान के बड़े सघन जंगल थे, इसलिए अंग्रेज़ी शासन के दौर में इस वन-संपदा के व्यवस्थित देखरेख की गरज से एक अलग महकमा-जंगलात, १८२८ ईस्वी में कायम किया गया. यहीं ऐसे स्थान भी हैं जहाँ सूरज की किरण आज तक ज़मीन पर नहीं पडी! स्थानीय लोगों की मान्यता है कि त्रेता युग (रामायण काल) में, राम द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाने के बाद सीता ने यहीं अवस्थित महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में न केवल निवास किया था, बल्कि उसके दोनों पुत्रों- लव और कुश का जन्म भी यहीं वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। यहां तक कि सीता अंततः जहाँ भूगर्भ में समा गयी थी, वह स्थल भी इसी अभयारण्य में स्थित है! सेंकडों सालों से सीता से प्रतापगढ़ के रिश्तों के सम्बन्ध में इतनी प्रबल लोक-मान्यताओं के चलते यह स्वाभाविक ही था कि अभयारण्य का नामकरण सीता के नाम पर किया जाता. आज भी यह प्रतापगढ़ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है- प्रकृति-प्रेमियों के बीच वनस्पतियों और पशु-पक्षियों की विविधता के लिहाज़ से उत्तर भारत के अनोखे अभयारण्य के रूप में लोकप्रिय हो सकने की अनगिनत संभावनाओं से भरपूर, किन्तु अपेक्षित पर्यटक-सुविधाओं के सर्जन और विस्तार के लिए यह सघन वन-क्षेत्र अब भी पर्यटन और वन विभागों की पहल की बाट जोह रहा है! प्रकृति की इस नायाब निधि को क्षरण और मनुष्यों के अनावश्यक हस्तक्षेप से बचाने के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान बनवाने के लिए वर्त्तमान जिला प्रशासन और वन विभाग के संयुक्त प्रयास तेज किये जा रहे हैं। यहाँ पाई जाने वाली उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा में आशोवा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम रेड फ्लाइंग स्किवरल पेटोरिस्टा एल्बी वेंटर है। यह अभयारण्य चौसिंगा के प्रमुख राष्ट्रीय स्थलों में से एक है। यह चौसिंगा की जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। चौसिंगा एंटी लॉप प्रजाति का दुर्लभतम वन्य जीव हैं जिसे स्थानीय भाषा में भेडल भी कहा जाता है।यह जंगली मुर्गों के अलावा पेंगोलिन (आडाहुला) जैसा दुर्लभ वन्य जीव भी पाया जाता है। इस अभयारण्य में आर्किड एवं विशाल वृक्षीय मकड़ियाँ भी पायी गयी हैं। भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते है। राजस्थान के वन्य अभयारण्य राजस्थान राजस्थान में पर्यटन आकर्षण
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चीनी साम्यवादी पार्टी का महासचिव
चीनी साम्यवादी पार्टी का महासचिव (चीनी: 中国共产党中央委员会总书记, झोंग्गुओ गोंगचानदांग​ झोंगयांग​ वेइयुआनहुई झोंगशुजी; अंग्रेज़ी: General Secretary of the Communist Party of China) जनवादी गणतंत्र चीन की साम्यवादी (कोम्युनिस्ट) पार्टी का सर्वोच्च अध्यक्ष और वास्तविकता में चीन का राष्ट्रीय राजनैतिक नेता होता है। 15 नवम्बर 2012 को शी जिनपिंग को महासचिव नियुक्त किया गया। महासचिवों की सूची इन्हें भी देखें जनवादी गणतंत्र चीन साम्यवाद चीन के पीपुल्स गणराज्य के प्रमुखों की सूची सन्दर्भ चीनी साम्यवादी पार्टी चीनी जनवादी गणराज्य की राजनीति
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बिचित्र नाटक
बचित्तर नाटक या बिचित्तर नाटक (ਬਚਿੱਤਰ ਨਾਟਕ) गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ का एक भाग है। वास्तव में इसमें कोई 'नाटक' का वर्णन नहीं है बल्कि गुरुजी ने इसमें उस समय की परिस्थितियों तथा इतिहास की एक झलक दी है और दिखाया है कि उस समय हिन्दू समाज पर पर मंडरा रहे संकटों से मुक्ति पाने के लिये कितने अधिक साहस और शक्ति की जरूरत थी। गुरु गोविंद सिंह अपने पूर्वजन्म का वृत्तांत 'बचित्र नाटक' में इस प्रकार बतलाते हैं- अब मैं अपनी कथा बखानो।तप साधत जिह बिध मुह आनो॥ हेमकुंड परबत है जहां,सपतसृंग सोभित है तहां ॥ सपतसृंग तिह नाम कहावा।पांडराज जह जोग कमावा ॥ तह हम अधिक तपसया साधी।महाकाल कालका अराधी ॥ इह बिध करत तपसिआ भयो।द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥ अर्थात अब मैं अपनी कथा बताता हूँ। जहाँ हेमकुंड पर्वत (अब हेमकुंड साहिब तीर्थ) है और सात शिखर शोभित हैं, सप्तश्रृंग (जिसका) नाम है और जहां पाण्डवराज ने योग साधना की थी, वहाँ पर मैंने घोर तप किया। महाकाल और काली की आराधना की। इस विधि से तपस्या करते हुए दो (द्वैत) से एक रूप हो गया, ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ। आगे वह कहते है कि ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने (यह) जन्म लिया। अपने जीवन का उद्देश्य साधुओं का परित्राण, दुष्टों का विनाश और धर्म रक्षा बतलाते हुए वह कहते हैं- हम इह काज जगत मो आए।धरम हेतु गुरुदेव पठाए॥ जहां-जहां तुम धरम बिथारो।दुसट दोखियनि पकरि पछारो॥ याही काज धरा हम जनमं।समझ लेहु साधू सब मनमं॥ धरम चलावन संत उबारन।दुसट सभन को मूल उपारन॥ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बचित्तर नाटक (शाहमुखी और देवनागरी में ; अंग्रेजी में अर्थ सहित) सिख धर्म
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अनूप लाल यादव
अनूप लाल यादव (5 अक्टूबर 1923-9 अगस्त 2013) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। बिहार में कर्पूरी ठाकुर सरकार में वर्ष 1969 से लेकर 1977 तक वो मंत्री रहे थे, जबकि एक बार वह सहरसा संसदीय क्षेत्र से भी निर्वाचित हुए थे। बिहार विधानसभा के लिए लगातार तीन बार त्रिवेणीगंज से निर्वाचित हुए थे। प्रारंभिक जीवन उनका जन्म 5 अक्टूबर 1923 को मलहनामा गाँव, त्रिवेनीगंज, जिला सुपौल में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर प्रसाद यादव और माता का नाम राधा देवी था। इन्हें तीन बेटे और दो बेटियाँ थी। इन्होंने पटना बोर्ड, पटना से मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद ये सक्रिय राजनीति में आ गए। राजनीतिक जीवन 1967 से 1988 तक - सदस्य, बिहार विधान सभा (लगातार तीन बार) 1971 में- कैबिनेट मंत्री, आवास एवं पर्यटन, बिहार 1977 में - कैबिनेट मंत्री, लोक निर्माण विभाग, बिहार 1998 में- 12 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित 1998 से 99 तक- सदस्य, सदन समिति इसके अलावा ये कृषि संबंधी समिति के सदस्य, सदस्य, संयुक्त वेतन संबंधी समिति और संसद सदस्यों के भत्ते, सदस्य, सलाहकार समिति, मंत्रालय की ग्रामीण क्षेत्रों और रोजगार तथा सदस्य, पूर्वोत्तर रेलवे सलाहकार समिति आदि पदों को भी सुशोभित किया है। उल्लेखनीय योगदान इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया था। Inhe lalu prasad yadav ke rajnitik guru ke roop mai jana jata hai निधन यादव का 9 अगस्त 2013 को हृदय गति रुकने से निधन हो गया। सन्दर्भ 1923 में जन्मे लोग २०१३ में निधन भारतीय राजनीतिज्ञ बिहार सरकार बिहार विधानसभा सदस्य
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२ दिसम्बर
2 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 336वॉ (लीप वर्ष मे 337 वॉ) दिन है। साल में अभी और 29 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ मंगलवार २ दिसंबर असम में दीफू रेलवे स्टेशन पर खड़ी लामडिंग तिनसुकिया मेल में धमाका हुआ, जिससे २ की मृत्यु व ३० घायल हुए। 1804 – नेपोलियन बोनापार्ट की फ्रांस के सम्राट के तौर पर ताजपोशी की गई। 1848 – फ्रांस जोसेफ प्रथम ऑस्ट्रिया के सम्राट बने। 1911 – जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी भारत आने वाले ब्रिटेन के पहले राजा,रानी बनें। उनके बंबई (अब मुम्बई) आगमन की याद में ही गेटवे ऑफ इंडिया बनाया गया। 1942 – पांडिचेरी (अब पुड्डुचेरी) में श्री अरविंदो आश्रम स्कूल की स्थापना हुई जिसे बाद में श्री अरविंदो इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एजुकेशन के नाम से जाना गया। 1971 – संयुक्त अरब अमीरात ने ब्रिटेन से स्वतंत्र होने की घोषणा की। 1976 – फिदेल कास्त्रो क्यूबा के राष्ट्रपति बने। 1982 – स्पेन की प्रथम संसद में समाजवादी बहुमत एवं फ़िलिप गोंजालेज प्रधानमंत्री निर्वाचित। 1989 – विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के सातवें प्रधानमंत्री बने। 1995 – बेरिंग्स बैंक कांड के चर्चित व्यक्ति निक लीसन को सिंगापुर के न्यायालय द्वारा साढ़े छह वर्ष की क़ैद की सज़ा। 1999 – भारत में बीमा क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश को मंजूरी मिली। 2002 – प्रशान्त महासागर के बोरा-बोरा द्वीप में एक जलते यात्री जहाज़ 'विडस्टार' से 219 लोगों को सुरक्षित बचाया गया। 2003 – हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र के युद्धापराध न्यायालय ने बोस्नियाई सर्ब के पूर्व सैन्य कमांडर मोमिर निकोलिक को 1995 में हुए सर्बनिका नरसंहार में दोषी पाया गया और 27 साल कैद की सजा सुनाई। 2005 – पाकिस्तान सरकार ने मदरसों द्वारा धार्मिक नफ़रत फैलाने एवं आतंकवाद के लिए प्रेरणा देने वाले शिक्षा एवं साहित्य के प्रकाशन पर रोक के लिए क़ानून बनाया। 2006 – फिलीपींस में ज्वालामुखी का मलबा गिरने से 208 लोगों की मृत्यु तथा 261 लोग घायल। 2007 – पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने 8 जनवरी के प्रस्तावित चुनावों को देखते हुए देश में विरोध प्रदर्शनों और रैलियों पर प्रतिबन्ध लगाया। 2008 – पंजाब नेशनल बैंक ने एफसीएनआर ब्याज दरों में कटौती की। जन्म 1886 – बाबा राघवदास - उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध जनसेवक तथा संत थे। 1963 – शिवा अय्यदुरई - प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक हैं। 1901 – पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल - हिन्दी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार और विद्वान् आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सहयोगी। 1937 – मनोहर जोशी, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष 1912 – बी. नागी रेड्डी, दक्षिण भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक 1939 – अचला नागर, प्रसिद्ध फ़िल्म पटकथा लेखिका 1855 – नारायण गणेश चंदावरकर - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। निधन 1969 – क्लिमेंट वोरोशिलोव - सोवियत संघ के राष्ट्रपति थे। 1918 – गुरुदास बनर्जी - भारत के प्रमुख शिक्षाशास्त्री। 2014 – देवेन वर्मा - हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता। 2014 – ए आर अंतुले - भारतीय राजनेता एवं महाराष्ट्र के 8वें मुख्यमंत्री। 2012 – प्रीति गाँगुली - हिंदी सिनेमा की चरित्र अभिनेत्री थीं। 1996 – मर्री चेन्ना रेड्डी - प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के महामंत्री और पी.सी.सी. वर्किंग कमेटी के 30 वर्षो तक सदस्य। महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्‍मूलन दिवस राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस अंतर्राष्ट्रीय कम्प्यूटर साक्षरता दिवस बाहरी कडियाँ बीबीसी पर यह दिन दिसंबर
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अजय देवगन फिल्म्स
अजय देवगन फिल्म्स 2000 में अभिनेता अजय देवगन और उनके पिता वीरू देवगन द्वारा स्थापित एक भारतीय फिल्म निर्माण और वितरण कंपनी है। यह कम्पनी मुंबई में स्थित है और यह मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों का निर्माण और वितरण करता है। 2000 में, अजय देवगन फिल्म्स (ADFF) ने अपनी पहली फिल्म, राजू चाचा रिलीज़ की थी। इस फिल्म में अजय देवगन और काजोल ने अभिनय किया था। राजू चाचा को मिश्रित समीक्षा मिली लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कुल कमाई हुई। 2015 में, देवगन ने एक विजुअल इफेक्ट्स कंपनी, NY VFXWAALA शुरू की। इतिहास 2000 में, ADF ने अपनी पहली फिल्म, राजू चाचा रिलीज़ की। इस फिल्म में देवगन और काजोल ने मुख्य भूमिका में थे। 2008 में, अजय देवगन ने एक नाटक फिल्म यू मी और हम का सह-निर्माण किया, जहां से उनके निर्देशन की शुरुआत हुई। इस फिल्म में काजोल के साथ फिर से स्क्रीन साझा करते हुए देवगन ने मुख्य भूमिका निभाई। इस फिल्म को स्वयं अजय देवगन और तीन अन्य लेखकों ने लिखा था। 2009 में, देवगन ने अपने होम प्रोडक्शन ऑल द बेस्ट: फन बिगिन्स को रिलीज़ किया और अभिनय किया, जिसे रोहित शेट्टी ने निर्देशित किया था और इसमें संजय दत्त, फरदीन खान, बिपाशा बसु और मुग्धा गोडसे ने भी अभिनय किया था। यह फिल्म 16 अक्टूबर 2009 को रिलीज़ हुई थी।  इसे भारत में एक हिट का दर्जा दिया गया था, और यह 2009 की नौवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली बॉलीवुड फिल्म है।  2012 में, देवगन ने रोहित शेट्टी की रोमांटिक एक्शन कॉमेडी फिल्म बोल बच्चन में अभिनय किया, जो श्री अष्टविनायक सिने विजन लिमिटेड द्वारा एक संयुक्त उत्पादन था और इसमें अभिषेक बच्चन, असिन और प्राची देसाई भी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह फिल्म के बजट में बनी है, 1979 की लोकप्रिय फिल्म गोल माल का आधिकारिक रीमेक है। यह फिल्म 6 जुलाई 2012 को दुनिया भर में लगभग 2,575 स्क्रीन पर 2,700 प्रिंट के साथ रिलीज़ हुई थी। इसे समीक्षकों से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसकी शुरुआत अच्छी रही। माना जा रहा है कि इस फिल्म ने एडवांस बुकिंग का रिकॉर्ड बनाया है। बोल बच्चन भारत में अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली बॉलीवुड फिल्म बन गई है। बॉक्स ऑफिस इंडिया ने फिल्म को "हिट" घोषित किया और इसने की कमाई की। दुनिया भर में। उसी वर्ष देवगन ने अश्विनी धीर की रोमांटिक एक्शन कॉमेडी फिल्म, सन ऑफ़ सरदार में अभिनय किया, जो वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स द्वारा एक संयुक्त निर्माण था, जिसमें संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा और जूही चावला भी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह फिल्म 13 नवंबर 2012 को रिलीज़ हुई थी। यश राज फिल्म जब तक है जान के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए, सन ऑफ सरदार दुनिया भर में बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहे। बॉक्स ऑफिस इंडिया ने सन ऑफ़ सरदार को एक हिट और विदेशी बाजारों में औसत ग्रॉसर के रूप में रेट किया। यह सकल दुनिया भर में। 2014 में, ADFF ने देवगन और करीना कपूर अभिनीत सिंघम रिटर्न्स का निर्माण किया। 2016 में, देवगन ने शिवाय का निर्माण और अभिनय किया, जो उनकी प्रोडक्शन कंपनी की अब तक की सबसे महंगी फिल्म है। जून 2017 में, यह बताया गया कि ADFF बाबा रामदेव के जीवन और पतंजलि आयुर्वेद के साथ उनकी सफलता पर आधारित एक टेलीविजन धारावाहिक बनाएगा। दिसंबर 2017 के अंत में, ADFF ने देवगन, रितेश देशमुख, अरशद वारसी, जावेद जाफ़री, माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर अभिनीत टोटल धमाल का निर्माण करने के लिए फॉक्स स्टार स्टूडियोज के साथ सहयोग किया। जनवरी 2018 में, ADFF ने फिल्म हेलीकाप्टर एला की घोषणा की जिसमें उनकी पत्नी काजोल मुख्य भूमिका में हैं। दिसंबर 2021 में, ADFF ने फिल्म वेले की घोषणा की जिसमें राहुल के रूप में सनी देओल के बेटे करण देओल, रिया के रूप में अन्या सिंह, ऋषि सिंह के रूप में अभिनेता अभय देओल, रोहिणी के रूप में मौनी रॉय, आरएस (रिया के रूप में जाखिर हुसैन) के रूप में सहायक अभिनेता हैं। पिता), राजू के रूप में विशेष तिवारी और रेम्बो के रूप में सावंत सिंह प्रेमी। उत्पादन फिल्में वीएफएक्स एनवाई वीएफएक्सवाला अक्टूबर 2015 में, देवगन ने NY VFXWAALA नामक एक विजुअल इफेक्ट्स कंपनी की स्थापना की, जिसका नाम उनके बच्चों, न्यासा और युग के नाम पर रखा गया। होम प्रोडक्शंस के अलावा, उनकी वीएफएक्स टीम प्रेम रतन धन पायो, तमाशा, बाजीराव मस्तानी, मर्सल, दिलवाले, फोर्स 2 और सिम्बा जैसी कई प्रमुख फिल्मों में शामिल रही है। कंपनी ने फिल्म शिवाय (2016) के लिए 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विशेष प्रभाव का पुरस्कार जीता। संदर्भ बॉलीवुड Pages with unreviewed translations
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४ मार्च
4 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 63वॉ (लीप वर्ष में 64 वॉ) दिन है। साल में अभी और 30ग्रह2 दिन बाकी है। प्रमुख घटनाएँ 1931 - ब्रिटिश वायसराय, गवरनोर-जनरल एडवर्ड फ्रेदेरिक्क लिन्द्ले वुड और मोहनदास करमचंद गाँधी जी (महात्मा गाँधी) में भेंट | राजनैतिक कैदियों की रिहाई और नमक के सर्वजन उपयोग की छूट को लेकर मंत्रणा और इकरारनामे की घोषणा | 1837 : शिकागो शहर की स्थापना हुई। 1921 : साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म। 1922 : प्रसिद्ध गुजराती रंगमंच और फिल्म अभिनेत्री दीना पाठक का जन्म। 1939 : प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला हरदयाल का निधन। 1980 : भारतीय टेनिस खिलाड़ी रोहन बोपन्ना का जन्म। 2002 : राष्ट्रमंडल में जिम्बाब्वे के खिलाफ प्रस्ताव नामंजूर, अफगानिस्तान में भूस्खलन से 150 मरे। 2008 : तेलंगाना राज्य के गठन में हो रही देरी से नाराज तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस) के विधायकों ने आन्ध्र प्रदेश विधानमण्डल की सदस्यता से इस्तीफा दिया। 2009 : राजस्थान के पोखरन से ब्रह्मोस मिसाइल के नए संस्करण का परीक्षण किया गया। 1911 : प्रख्यात राजनेता अर्जुन सिंह का निधन। राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस : कार्यस्थलों पर सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए 4 मार्च को पूरे देश में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन से ही एक सप्ताह तक चलने वाला सुरक्षा अभियान भी शुरू होता है। 2018 - मुबंई में फिक्की फ्रेम्स 2018 का उद्घाटन किया गया । आईएसएसएफ निशानेबाजी विश्वकप में भारत की मनु भाकर ने दस मीटर महिला एयर पिस्टल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता। पाकिस्तान के सीनेट में पहली बार दलित हिन्दू महिला चुनी गई । जन्म 1922 दीना पाठक, प्रसिद्ध गुजराती रंगमंच और फिल्म अभिनेत्री (मृ. 2002) रिचर्ड ई. कुन्हा, अमेरिकी छायाकार और फिल्म निदेशक (मृ. 2005) मार्था ओ ड्रिस्कोल, अमेरिकी फिल्म अभिनेत्री (मृ. 1998) 1921 -फणीश्वर नाथ 'रेणु' - एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। निधन * 1939 में लाला हरदयाल का निधन बाहरी कडियाँ बीबीसी पे यह दिन मार्च
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अब्दुल्लाही शेख इस्माइल
अब्दुल्लाही शेख इस्माइल ( सोमाली : कैबदुल्लाही शेख इस्माईसिल , अरबी : عبد الله الشيخ مسماعيل ) एक सोमाली राजनीतिज्ञ हैं। वह पहले एक उप प्रधानमंत्री के रूप में सेवा, [1] के साथ ही एक विदेश मामलों के मंत्री में संक्रमणकालीन संघीय सरकार की सोमालिया । [२] १२ जनवरी २०१५ को, इस्माइल को प्रधान मंत्री उमर अब्दिरशीद अली शमार्के द्वारा सोमालिया की संघीय सरकार के नए परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था । [3] संदर्भ जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%AF
इराक में स्वास्थ्य
इराक में स्वास्थ्य देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और देश की आबादी के समग्र स्वास्थ्य को संदर्भित करता है। इराक डब्ल्यूएचओ स्वास्थ्य क्षेत्र पूर्वी भूमध्य सागर के अंतर्गत आता है और इसे विश्व बैंक की आय वर्गीकरण 2013 के अनुसार ऊपरी मध्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इराक में स्वास्थ्य की स्थिति अपने अशांत हाल के इतिहास के दौरान और विशेष रूप से पिछले 4 दशकों के दौरान उतार-चढ़ाव की है। देश में 1980 के दशक के दौरान और 1991 तक इस क्षेत्र में सबसे अधिक चिकित्सा मानकों में से एक था, वार्षिक स्वास्थ्य बजट लगभग 450 मिलियन डॉलर औसत था। 1991 के खाड़ी युद्ध ने इराक के बड़े बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया। इसमें स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, स्वच्छता, परिवहन, पानी और बिजली की आपूर्ति शामिल है। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंधों ने गिरावट की प्रक्रिया को बढ़ा दिया। देश के लिए वार्षिक कुल स्वास्थ्य बजट, प्रतिबंधों के एक दशक बाद 22 मिलियन डॉलर तक गिर गया था, जो 1980 के दशक में मुश्किल से 5% था। अपने पिछले दशक के दौरान, सद्दाम हुसैन के शासन ने स्वास्थ्य देखभाल में पर्याप्त गिरावट के लिए योगदान देते हुए, सार्वजनिक स्वास्थ्य निधि में 90 प्रतिशत की कटौती की। उस अवधि के दौरान, मातृ मृत्यु दर लगभग तीन गुना बढ़ गई, और चिकित्सा कर्मियों के वेतन में भारी कमी आई। चिकित्सा सुविधाएं, जो 1980 में मध्य पूर्व में सर्वश्रेष्ठ थीं, बिगड़ गईं। दक्षिण में स्थितियाँ विशेष रूप से गंभीर थीं, जहाँ 1990 के दशक में कुपोषण और जल जनित रोग आम हो गए थे। 1990 के दशक के दौरान स्वास्थ्य संकेतक खराब हो गए। 1990 के दशक के उत्तरार्ध में, इराक की शिशु मृत्यु दर दोगुनी से अधिक हो गई। क्योंकि 1990 के दशक में कैंसर और मधुमेह के उपचार और निदान में कमी आई थी, 1990 के दशक के अंत और 2000 की शुरुआत में उन बीमारियों से उत्पन्न जटिलताओं और मौतों में भारी वृद्धि हुई थी। इतिहास दो मुख्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को नष्ट कर दिया। 2003 में स्वच्छता के बुनियादी ढांचे के ढहने से हैजा, पेचिश और टाइफाइड बुखार की वृद्धि हुई। कुपोषण और बचपन की बीमारियाँ, जो 1990 के दशक के उत्तरार्ध में काफी बढ़ गई थीं, लगातार फैलती गईं। 2005 में इराक में तुलनात्मक देशों की तुलना में टाइफाइड, हैजा, मलेरिया और तपेदिक की घटनाएं अधिक थीं। 2006 में इराक में मानव इम्यूनोडिफीसिअन्सी वायरस (एचआईवी) / अधिग्रहीत प्रतिरक्षा कमी सिंड्रोम ( एड्स ) के कुछ 73 प्रतिशत मामलों की उत्पत्ति रक्त संक्रमण और 16 प्रतिशत यौन संचरण से हुई थी। बगदाद में एड्स अनुसंधान केंद्र, जहां ज्यादातर मामलों का निदान किया गया है, मुफ्त उपचार प्रदान करता है, और इराक में प्रवेश करने वाले विदेशियों के लिए परीक्षण अनिवार्य है। अक्टूबर 2005 और जनवरी 2006 के बीच, कुछ 26 नए मामलों की पहचान की गई, जो 1986 से आधिकारिक कुल 261 ला रहे हैं। 2003 के आक्रमण और इसके बाद व्यापक असुरक्षा और अस्थिरता के कारण, जो कि बुनियादी ढाँचे के साथ संयुक्त है, यह बताता है कि स्वास्थ्य संकेतक में प्रगति इतनी अच्छी नहीं थी कि उनकी तुलना क्षेत्र के कई देशों के साथ की जानी चाहिए। सन्दर्भ इराक़ एशियाई माह प्रतियोगिता में निर्मित मशीनी अनुवाद वाले लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%28%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8%29
यूनिटी (खेल इंजन)
यूनिटी एक क्रॉस-प्लेटफ़ॉर्म गेम इंजन है जिसे यूनिटी टेक्नोलॉजीज द्वारा विकसित किया गया है, जिसे पहली बार मैक ओएस एक्स- एक्सक्लूसिव गेम इंजन के रूप में Apple Inc. के वर्ल्डवाइड डेवलपर्स कॉन्फ्रेंस में पहली बार जून 2005 में घोषित किया गया था। इंजन को 25 से अधिक प्लेटफार्मों का समर्थन करने के लिए बढ़ाया गया था। इंजन का उपयोग तीन-आयामी, दो-आयामी, आभासी वास्तविकता और संवर्धित वास्तविकता के खेल, साथ ही सिमुलेशन और अन्य अनुभवों को बनाने के लिए किया जा सकता है। इंजन को फिल्म गेमिंग, ऑटोमोटिव, आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग और निर्माण जैसे वीडियो गेमिंग के बाहर के उद्योगों द्वारा अपनाया गया है। यूनिटी के कई प्रमुख संस्करण इसके लॉन्च के बाद से जारी किए गए हैं। नवीनतम स्थिर संस्करण, 2020.1.4, सितंबर 2020 में जारी किया गया था। इतिहास यूनिटी खेल इंजन 2005 में शुरू किया गया था, जो इसे और अधिक डेवलपर्स के लिए सुलभ बनाकर खेल के विकास को "लोकतांत्रिक" बनाने का लक्ष्य रखता है। अगले साल, यूनिटी को Apple Inc. के Apple Design Awards में Mac OS X Graphics श्रेणी के सर्वश्रेष्ठ उपयोग में रनर-अप नामित किया गया। यूनिटी को शुरुआत में मैक ओएस एक्स के लिए जारी किया गया था, बाद में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज और वेब ब्राउज़रों के लिए समर्थन जोड़ा गया। यूनिटी 2.0 को लगभग 50 नई विशेषताओं के साथ 2007 में लॉन्च किया गया था। रिलीज में विस्तृत 3 डी वातावरण, वास्तविक समय गतिशील छाया, दिशात्मक रोशनी और स्पॉटलाइट, वीडियो प्लेबैक और अन्य सुविधाओं के लिए एक अनुकूलित इलाके इंजन शामिल थे। रिलीज में ऐसी विशेषताएं भी शामिल हैं जिससे डेवलपर्स अधिक आसानी से सहयोग कर सकते हैं। इसमें डेवलपर्स के लिए एक नेटवर्किंग लेयर शामिल था, जो यूजर डेटाग्राम प्रोटोकॉल पर आधारित मल्टीप्लेयर गेम बनाने के लिए, नेटवर्क एड्रेस ट्रांसलेशन, और स्टेट सिंक्रोनाइजेशन और रिमोट प्रोसीजर कॉल की पेशकश करता था। जब Apple ने 2008 में अपना ऐप स्टोर लॉन्च किया, तो यूनिटी ने iPhone के लिए तुरंत समर्थन जोड़ दिया। कई सालों तक, इंजन आईफोन पर निर्विरोध था और यह आईओएस गेम डेवलपर्स के साथ प्रसिद्ध हो गया। यूनिटी 3.0 सितंबर 2010 में डेस्कटॉप कंप्यूटर और वीडियो गेम कंसोल के लिए इंजन के ग्राफिक्स सुविधाओं का विस्तार करने वाली सुविधाओं के साथ लॉन्च किया गया था। एंड्रॉइड सपोर्ट के अलावा, यूनिटी 3 में इल्यूमिनेट लैब्स के बीस्ट लाइटमैप टूल, डिफरेड रेंडर, एक बिल्ट-इन ट्री एडिटर, देशी फॉन्ट रेंडरिंग, ऑटोमैटिक यूवी मैपिंग और ऑडियो फिल्टर सहित अन्य चीजों का एकीकरण किया गया। 2012 में वेंचरबीट ने लिखा, "कुछ कंपनियों ने यूनिटी टेक्नोलॉजीज के रूप में स्वतंत्र रूप से उत्पादित खेलों के प्रवाह में जितना योगदान दिया है। [। । । ] 1.3 मिलियन से अधिक डेवलपर्स अपने टूल का उपयोग अपने iOS, Android, कंसोल, पीसी और वेब-आधारित गेम में gee-whiz ग्राफिक्स बनाने के लिए कर रहे हैं। यूनिटी मल्टी-प्लेटफॉर्म गेम्स, पीरियड के लिए इंजन बनना चाहती है। " गेम डेवलपर पत्रिका के एक मई 2012 के सर्वेक्षण ने यूनिटी को मोबाइल प्लेटफार्मों के लिए अपने शीर्ष गेम इंजन के रूप में संकेत दिया। नवंबर 2012 में, यूनिटी टेक्नोलॉजीज ने यूनिटी 4.0 वितरित किया। इस संस्करण में डायरेक्टएक्स 11 और एडोब फ्लैश सपोर्ट, नए एनीमेशन टूल जिसे मेकिनम कहा जाता है, और लिनक्स पूर्वावलोकन तक पहुंच है। फेसबुक ने 2013 में यूनिटी गेम इंजन का उपयोग करते हुए गेम्स के लिए एक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट को एकीकृत किया। इस विशेष टूल में विज्ञापन अभियानों और गहरी लिंकिंग पर नज़र रखने की अनुमति है, जहाँ उपयोगकर्ताओं को सोशल मीडिया पोस्ट से सीधे गेम के भीतर विशिष्ट भागों में जोड़ा जाता है, और इन-गेम-इमेज साझा करना आसान है। 2016 में, फेसबुक ने यूनिटी के साथ एक नया पीसी गेमिंग प्लेटफॉर्म विकसित किया। यूनिटी ने फेसबुक के गेमिंग प्लेटफार्मों के लिए समर्थन प्रदान किया, और यूनिटी डेवलपर्स फेसबुक पर गेम को अधिक तेज़ी से निर्यात और प्रकाशित कर सकते हैं। द वर्ज ने 2015 की यूनिटी 5 रिलीज़ के बारे में कहा: "यूनिटी ने खेल के विकास को सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया। [। । । ] यूनिटी 5 उस भविष्य की दिशा में एक लंबे समय से प्रतीक्षित कदम है। " यूनिटी 5 के साथ, इंजन ने अपनी प्रकाश व्यवस्था और ऑडियो में सुधार किया। WebGL के माध्यम से, यूनिटी डेवलपर्स अपने गेम को संगत वेब ब्राउज़र में जोड़ सकते हैं, जिसमें खिलाड़ियों के लिए कोई प्लग-इन आवश्यक नहीं है। यूनिटी 5.0 ने वास्तविक समय में वैश्विक रोशनी, लाइट मैपिंग पूर्वावलोकन, यूनिटी क्लाउड, एक नया ऑडियो सिस्टम और एनवीडिया फिजिक्स 3.3 भौतिकी इंजन की पेशकश की। यूनिटी इंजन की पांचवीं पीढ़ी ने भी यूनिटी के खेल को कम सामान्य दिखने में मदद करने के लिए सिनेमाई छवि प्रभाव पेश किया। यूनिटी 5.6 ने नए प्रकाश और कण प्रभाव को जोड़ा, इंजन के समग्र प्रदर्शन को अद्यतन किया, और निंटेंडो स्विच, फेसबुक गेमरूम, Google डेड्रीम और वुलकन ग्राफिक्स एपीआई के लिए मूल समर्थन जोड़ा। इसने एक 4K वीडियो प्लेयर पेश किया जो आभासी वास्तविकता के लिए 360-डिग्री वीडियो चलाने में सक्षम है। हालांकि, कुछ गेमर्स ने अनुभवहीन डेवलपर्स द्वारा स्टीम वितरण प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित जल्दी से उत्पादित गेम की उच्च मात्रा के कारण यूनिटी की पहुंच की आलोचना की। सीईओ जॉन रिकिटिल्लो ने एक साक्षात्कार में कहा कि उनका मानना है कि यह खेल के विकास को लोकतंत्र में उतारने में यूनिटी की सफलता का एक दुष्परिणाम है: "अगर मेरे पास मेरा रास्ता होता, तो मैं 50 मिलियन लोगों को यूनिटी का उपयोग करते देखना चाहता हूं - हालांकि मुझे नहीं लगता है हम जल्द ही किसी भी समय वहाँ जाने वाले हैं। मैं हाई स्कूल और कॉलेज के बच्चों को इसका उपयोग करके देखना चाहता हूं, जो कोर इंडस्ट्री से बाहर के लोग हैं। मुझे लगता है कि यह दुखद है कि ज्यादातर लोग प्रौद्योगिकी के उपभोक्ता हैं, न कि निर्माता। दुनिया एक बेहतर जगह है जब लोग जानते हैं कि कैसे निर्माण करना है, न कि केवल उपभोग करना, और यही हम बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। " दिसंबर 2016 में, यूनिटी टेक्नोलॉजीज घोषणा की कि वे बदल जाएगा वर्ज़निंग नंबर प्रणाली यूनिटी के लिए से अनुक्रम आधारित पहचानकर्ता को जारी किए जाने के साल उनके अधिक लगातार रिहाई ताल के साथ वर्ज़निंग संरेखित करने के लिए; यूनिटी 5.6 इसलिए यूनिटी 2017 के बाद था। यूनिटी 2017 उपकरण में एक वास्तविक समय ग्राफिक्स रेंडरिंग इंजन, रंग ग्रेडिंग और वर्ल्डबिल्डिंग, लाइव ऑपरेशन एनालिटिक्स और प्रदर्शन रिपोर्टिंग शामिल हैं। यूनिटी 2017.2 वीडियो गेम से परे यूनिटी टेक्नोलॉजीज की योजनाओं को रेखांकित किया। इसमें टाइमलाइन जैसे नए टूल शामिल थे, जो डेवलपर्स को गेम्स में एनिमेशन और ड्रैग-ड्रॉप ड्रॉप करने की अनुमति देते थे, और सिनेमैचिन, गेम्स के भीतर एक स्मार्ट कैमरा सिस्टम। यूनिटी 2017.2 भी एकीकृत Autodesk एक सुव्यवस्थित संपत्ति बंटवारे इन-गेम यात्रा की प्रक्रिया के लिए यूनिटी इंजन में की 3DS मैक्स और माया उपकरण। यूनिटी 2018 में उच्च अंत ग्राफिक्स बनाने के लिए डेवलपर्स के लिए स्क्रिप्ट योग्य रेंडर पाइपलाइन को चित्रित किया गया। इसमें कंसोल और पीसी अनुभवों के लिए हाई-डेफिनिशन रेंडरिंग पाइपलाइन, और मोबाइल, वर्चुअल रियलिटी, संवर्धित वास्तविकता और मिश्रित वास्तविकता के लिए लाइटवेट रेंडरिंग पाइपलाइन शामिल थे। यूनिटी 2018 में मशीन लर्निंग टूल भी शामिल थे, जैसे कि इमीटेशन लर्निंग, जिससे गेम वास्तविक खिलाड़ी की आदतों, मैजिक लीप के लिए समर्थन और नए डेवलपर्स के लिए टेम्पलेट सीखते हैं। 2019 में, वुल्फराम भाषा के लिए एक नई कड़ी जोड़ी गई, जिससे यूनिटी से वुल्फराम भाषा के उच्च स्तरीय कार्यों तक पहुंच संभव हो गई। वुल्फ्राम भाषा से यूनिटी ऑब्जेक्ट्स को कॉल करना भी यूनिटीलिंक लाइब्रेरी के माध्यम से संभव हो गया था। अवलोकन यूनिटी उन दोनों में खेल और अनुभव बनाने के लिए की क्षमता देता है 2 डी और 3 डी, और इंजन प्रदान करता है में एक प्राथमिक पटकथा एपीआई सी # प्लगइन्स के रूप में दोनों यूनिटी संपादक, और खेल के लिए खुद को, और साथ ही के लिए, खींचें और ड्रॉप कार्यक्षमता। सी # इंजन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्राथमिक प्रोग्रामिंग भाषा होने से पहले, यह पहले बू का समर्थन करती थी, जिसे यूनिटी 5, और जावास्क्रिप्ट के एक संस्करण के साथ हटा दिया गया था, जिसे यूनिटीस्क्रिप्ट कहा जाता है, जिसे अगस्त 2017 में जारी किया गया था # जारी करने के बाद यूनिटी 2017.1, C # के पक्ष में। 2 डी गेम के भीतर, यूनिटी स्प्राइट्स के आयात और एक उन्नत 2 डी वर्ल्ड रेंडरर की अनुमति देता है। 3 डी गेम के लिए, यूनिटी प्रत्येक प्लेटफॉर्म के लिए बनावट संपीड़न, mipmaps, और रिज़ॉल्यूशन सेटिंग्स के विनिर्देश की अनुमति देती है, जो गेम इंजन का समर्थन करता है, और बम्प मैपिंग, रिफ्लेक्शन मैपिंग, लंबन मैपिंग, स्क्रीन स्पेस एंबिएंस रोड़ा (SSAO), गतिशील के लिए समर्थन प्रदान करता है। छाया के नक्शे, रेंडर-टू-टेक्सचर और फुल-स्क्रीन पोस्ट-प्रोसेसिंग इफेक्ट्स का उपयोग करके छाया । 2018 तक, यूनिटी का उपयोग बाजार में लगभग आधे नए मोबाइल गेम बनाने और 60 प्रतिशत संवर्धित वास्तविकता और आभासी मोबाइल सामग्री बनाने के लिए किया गया है। समर्थित प्लैटफॉर्म यूनिटीटी एक क्रॉस-प्लेटफॉर्म इंजन है। लिनक्स प्लेटफॉर्म के लिए उपलब्ध संपादक के एक संस्करण के साथ, एक प्रायोगिक चरण में, जबकि यूनिटी संपादक विंडोज और मैकओएस पर समर्थित है, जबकि इंजन वर्तमान में मोबाइल, डेस्कटॉप सहित २५ से अधिक विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए बिल्डिंग गेम का समर्थन करता है।, शान्ति, और आभासी वास्तविकता। प्लेटफ़ॉर्म में iOS, एंड्रॉइड, टाइज़ेन, विंडोज, यूनिवर्सल विंडोज प्लेटफ़ॉर्म, मैक, लिनक्स, वेबजीएल, PlayStation 4, प्लेस्टेशन वीटा, एक्सबॉक्स वन, S ३ डीएस, ओकुलस रिफ्ट, गूगल कार्डबोर्ड, स्टीम वीआर, प्लेइंटर वीआर, गियर वीआर, विंडोज मिक्स्ड मिनेसिटी, डेड्रीम, एंड्रॉइड टीवी, Smart सैमसंग स्मार्ट टीवी, tv टीवीओएस, निनटेंडो स्विच, फायर ओएस, Facebook फेसबुक गेमरूम, एप्पल का एआरकेट, Google का ARCore, वुफोरिया, और मैजिक लीप । 2018 तक, यूनिटी का उपयोग बाजार में लगभग आधे मोबाइल गेम्स बनाने और 60 प्रतिशत संवर्धित वास्तविकता और आभासी वास्तविकता सामग्री बनाने में किया गया था, जिसमें उभरते हुए रियलिटी प्लेटफ़ॉर्म पर लगभग 90 प्रतिशत, जैसे कि Microsoft HoloLens और 90 प्रतिशत सैमसंग शामिल थे। गियर वीआर सामग्री। यूनिटी प्रौद्योगिकी अधिकांश आभासी वास्तविकता और संवर्धित वास्तविकता अनुभवों का आधार है, और फॉर्च्यून ने कहा कि यूनिटी "आभासी वास्तविकता व्यवसाय पर हावी है"। यूनिटी मशीन लर्निंग एजेंट्स ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर हैं, जिससे यूनिटी प्लेटफॉर्म Google के TensorFlow सहित मशीन लर्निंग प्रोग्राम्स से जुड़ता है। यूनिटी मशीन लर्निंग एजेंट्स में परीक्षण और त्रुटि का उपयोग करते हुए, आभासी अक्षर आजीवन आभासी परिदृश्यों में रचनात्मक रणनीति बनाने के लिए सुदृढीकरण सीखने का उपयोग करते हैं। सॉफ्टवेयर का उपयोग रोबोट और सेल्फ-ड्राइविंग कारों को विकसित करने के लिए किया जाता है। यूनिटी पूर्व में अपने स्वयं के यूनिटी वेब प्लेयर, एक वेब ब्राउज़र प्लगइन सहित अन्य प्लेटफार्मों का समर्थन करती थी। हालाँकि, इसे WebGL के पक्ष में हटा दिया गया था। संस्करण 5 के बाद से, यूनिटी 2-चरणीय भाषा अनुवादक ( C # से C ++ और अंत में जावास्क्रिप्ट ) का उपयोग करके अपने WebGL बंडल को जावास्क्रिप्ट पर संकलित करने की पेशकश कर रही है। यूनिटी निनटेंडो के Wii यू वीडियो गेम कंसोल के लिए डिफ़ॉल्ट सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट (एसडीके) का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें निनटेंडो द्वारा प्रत्येक यू वी डेवलपर लाइसेंस के साथ नि: शुल्क कॉपी शामिल थी। यूनिटी टेक्नोलॉजीज ने तृतीय-पक्ष SDK के इस बंडलिंग को "उद्योग पहले" कहा। लाइसेंसिंग मॉडल उत्पाद के रूप में अपने पहले दस वर्षों के दौरान, यूनिटीटी के भुगतान किए गए संस्करण एकमुश्त बेचे गए; 2016 में, निगम एक सदस्यता मॉडल में बदल गया। यूनिटी के पास नि: शुल्क और भुगतान लाइसेंसिंग विकल्प हैं। नि: शुल्क लाइसेंस व्यक्तिगत उपयोग या $ 100,000 से कम वार्षिक उत्पादन करने वाली छोटी कंपनियों के लिए है, और सदस्यता यूनिटी का उपयोग करके खेलों द्वारा उत्पन्न राजस्व पर आधारित हैं। यूनिटी एसेट स्टोर निर्माता यूनिटीटी एसेट स्टोर के माध्यम से अन्य गेम निर्माताओं के लिए उपयोगकर्ता-जनित संपत्ति को विकसित और बेच सकते हैं। इसमें डेवलपर्स के लिए 3 डी और 2 डी संपत्ति और वातावरण शामिल हैं, जो खरीद और बिक्री करते हैं। यूनिटी एसेट स्टोर 2010 में लॉन्च किया गया था। 2018 तक, डिजिटल स्टोर के माध्यम से लगभग 40 मिलियन डाउनलोड हुए थे। अन्य उपयोग 2010 के दशक में, यूनिटीटी टेक्नोलॉजीज ने अपने गेम इंजन का उपयोग वास्तविक समय 3 डी प्लेटफॉर्म का उपयोग करके फिल्म और ऑटोमोटिव सहित अन्य उद्योगों में संक्रमण के लिए किया। यूनिटी ने पहली बार एडम के साथ फिल्म निर्माण में प्रयोग किया, जेल से भागने वाले रोबोट के बारे में एक लघु फिल्म। बाद में, यूनिटी ने फिल्म निर्माता नील ब्लोमकैंप के साथ भागीदारी की, जिनके ओट्स स्टूडियोज ने दो कंप्यूटर जनित लघु फिल्मों, एडम: द मिरर और एडम: पैगंबर बनाने के लिए वास्तविक समय प्रतिपादन और सिनेमैचिन सहित इंजन के उपकरणों का उपयोग किया। एम्स्टर्डम में 2017 यूनाइट यूरोप सम्मेलन में यूनिटी ने यूनिटी 2017 के नए सिनेमैचिन टूल के साथ फिल्म निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। 2018 में, डिज़्नी टेलीविज़न एनिमेशन ने तीन शॉर्ट्स लॉन्च किए, जिन्हें बेमैक्स ड्रीम्स कहा जाता है, जो यूनिटी इंजन का उपयोग करके बनाए गए थे। वाहन निर्माता यूनिटी की तकनीक का उपयोग वर्चुअल रियलिटी में नए वाहनों के पूर्ण पैमाने पर मॉडल बनाने, वर्चुअल असेंबली लाइन बनाने और श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के लिए करते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रशिक्षित करने के लिए यूनिटी के इंजन का इस्तेमाल डीपमाइंड, एक अल्फाबेट इंक कंपनी करती है। यूनिटी टेक्नोलॉजीज द्वारा अपनाए जा रहे अन्य उपयोगों में आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग और निर्माण शामिल हैं। यूनिटी-चान 16 दिसंबर 2013 को, यूनिटी टेक्नोलॉजीज जापान ने एक आधिकारिक शुभंकर चरित्र का खुलासा किया, जिसका नाम , वास्तविक नाम ( Asuka Kakumotouka Kakumoto द्वारा दिया गया )। चरित्र का संबद्ध खेल डेटा 2014 की शुरुआत में जारी किया गया था। इस पात्र को यूनिटी टेक्नोलॉजीज जापान के डिज़ाइनर "एनटीएनई" ने एक ओपन-सोर्स हीरोइन के चरित्र के रूप में डिज़ाइन किया था। कंपनी कुछ लाइसेंस के तहत माध्यमिक परियोजनाओं में यूनिटी-चान और संबंधित पात्रों के उपयोग की अनुमति देती है। उदाहरण के लिए, यूनिटी-चान रनबो में एक चंचल चरित्र के रूप में दिखाई देता है। यह सभी देखें खेल इंजनों की सूची यूनिटी खेलों की सूची WebGL चौखटे की सूची संदर्भ बाहरी कड़ियाँ जापानी भाषा पाठ वाले लेख Pages with unreviewed translations
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बिग बैश लीग 2017-18
2017-18 बिग बैश लीग सीजन या बीबीएल|07, केएफसी बिग बैश लीग का सातवें सत्र होगा, ऑस्ट्रेलिया में पेशेवर पुरुष ट्वेंटी 20 घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता है। टूर्नामेंट 19 दिसंबर 2017 से 4 फरवरी 2018 तक चलने के लिए निर्धारित है। पर्थ स्कॉचर्स पूर्व चैंपियन हैं। टीमें स्थानों ट्राईजर पार्क, जीएमएचबी स्टेडियम और यूनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया स्टेडियम के साथ होने वाले मैचों की मेजबानी करने के लिए 12 जगहों का चयन किया गया जिसमें सभी का पहला बीबीएल मैच था। पर्थ स्क्वॉयर भी जोड़ा जा सकता है यदि पर्थ स्कॉचर्स को फाइनल होस्ट करने के लिए मिलता है। फिक्स्चर राउंड 1 मैच 1 मैच 2 मैच 3 मैच 4 राउंड 2 मैच 5 मैच 6 मैच 7 मैच 8 राउंड 3 मैच 9 मैच 10 मैच 11 मैच 12 राउंड 4 मैच 13 मैच 14 मैच 15 मैच 16 राउंड 5 मैच 17 मैच 18 मैच 19 मैच 20 राउंड 6 मैच 21 मैच 22 मैच 23 मैच 24 राउंड 7 मैच 25 मैच 26 मैच 27 मैच 28 राउंड 8 मैच 29 मैच 30 मैच 31 मैच 32 राउंड 9 मैच 33 मैच 34 मैच 35 मैच 36 राउंड 10 मैच 37 मैच 38 मैच 39 मैच 40 अंक तालिका नॉकआउट चरण सेमी फाइनल्स सेमी फाइनल 1 सेमी फाइनल 2 फाइनल सन्दर्भ बिग बैश लीग क्रिकेट प्रतियोगितायें २०१८ में क्रिकेट
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%AB%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A4%AE%20%28%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80%29
आफताब आलम (क्रिकेट खिलाड़ी)
आफताब आलम (जन्म ३० नवंबर १९९२) एक अफ़ग़ानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी हैं। उन्होंने २०१० की शुरुआत में अफ़ग़ानिस्तान की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अर्थात् वनडे क्रिकेट में पदार्पण किया था। वहीं उन्होंने २०१७-१८ में अहमद शाह अब्दाली ४ दिवसीय टूर्नामेंट में मिज़ ऐनाक क्षेत्र के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया था। जुलाई २०१८ में, वह २०१८ गाजी अमानुल्ला खान क्षेत्रीय एक दिवसीय टूर्नामेंट में स्पीन घर टाइगर्स के लिए सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे थे जिन्होंने ४ मैचों में १० विकेट लिए थे। सितंबर २०१८ में, उन्हें अफगानिस्तान प्रीमियर लीग टूर्नामेंट के पहले संस्करण में बल्ख की टीम में नामित किया गया था। जबकि अप्रैल २०१९ में, उन्हें २०१९ क्रिकेट विश्व कप के लिए अफगानिस्तान की टीम में नामित किया गया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अफगानिस्तान के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी अफगानिस्तान के ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी 1992 में जन्मे लोग जीवित लोग हरफनमौला खिलाड़ी दाहिने हाथ के गेंदबाज
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%9F%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF
प्रोटेस्टेंट संप्रदाय
प्रोटेस्टैंट ईसाई धर्म की एक शाखा है। इसका उदय सोलहवीं शताब्दी में प्रोटेस्टैंट सुधारवादी आन्दोलन के फलस्वरूप हुआ। यह धर्म रोमन कैथोलिक धर्म का घोर विरोधी है। इसकी प्रमुख मान्यता यह है कि धर्मशास्त्र (बाइबल) ही उद्घाटित सत्य का असली स्रोत है न कि परम्पराएं आदि। प्रोटेस्टैंट के विषय में यह प्राय: सुनने में आता है कि वह असंख्य संप्रदायों में विभक्त है किंतु वास्तव में समस्त प्रोटेस्टैंट के 94 प्रतिशत पाँच ही संप्रदायों में सम्मिलित हैं, अर्थात: लूथरन, कैलविनिस्ट, एंग्लिकन, बैप्टिस्ट और मेथोडिस्ट। प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय 1526 ई. में पवित्र रोमन साम्राज्य की सभा की बैठक स्पीयर में हुई, इसमें जर्मनी के शासक कैथोलिक और लूथरवादी दो दलों में विभक्त हो गये थे। 1529 ई. में स्पीयर में ही दूसरी सभा हुई। इसमें सम्राट चार्ल्स पंचम ने कैथोलिक धर्म का प्रबल समर्थन किया और नये धर्मसुधार आंदोलन के विरूद्ध कई कठोर निर्देश पारित किए। इस सभा के इस एकपक्षीय निर्णयों का सुधारवादी शासकों और समर्थकों ने विरोध किया। इस विरोध और प्रतिवाद के कारण इस धर्म सुधार आंदोलन का नाम प्रोटेस्टेंट पड़ा। 1530 ई. में प्रोटेस्टेंट धर्म के सिद्धांतों को निर्दिष्ट एकी कृत रूप दिया गया। इसमें लूथर के सिद्धांत सम्मिलित कर लिए गए। यूरोप में यह प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय था। आग्सवर्ग की संधि (1555 ई.) सम्राट चार्ल्स पंचम ने जर्मनी में आग्सवर्ग (Augsburg) में एक सभा आयोजित की और उसमें प्रोटेस्टेंटों को अपने सिद्धांतों को प्रस्तुत करने की आज्ञा दी। फलतः प्रोटेस्टेंटों ने अपने एकीकृत सिद्धांतों को एक दस्तावेज के रूप प्रस्तुत किया। इस दस्तावेज को "आम्सवर्ग की स्वीकृति" कहते हैं, परंतु चार्ल्स पंचम ने इसे अमान्य कर दिया और नवीन सुधारवादी धर्म के दमन का निश्चय किया। इसका सामना करने के लिए लूथरवादी जर्मन राजाओं से 1531 ई. में स्मालकाल्डिक लीग (Schmalkaldic League) नामक सुरक्षात्मक संघ बनाया। अब सम्राट चार्ल्स पंचम ने प्रोटेस्टंटों का सामूहिक नाश करने का निर्णय लिया। फलतः जर्मनी में गृह युद्ध प्रारंभ हो गया। इसे स्मालकाडेन का युद्ध (1546 ई.-1555 ई.) कहते हैं। पर कुछ समय बाद इस गृह युद्ध से त्रस्त होकर सम्राट चार्ल्स के उत्तराधिकारी फर्डिनेण्ड ने 1555 ई. में आग्सवर्ग की संधि (Peace of Augsburg) कर ली। इसकी धाराएँ अधोलिखित थीं - 1. जर्मनी ने प्रत्येक राजा को (प्रजा को नहीं) अपना और अपनी प्रजा का धर्म चुनने की स्वतंत्रता दी गयी। 2. 1552 ई. के पूर्व कैथोलिक चर्च की जो धन सम्पित्त प्रोटेस्टेंटों के हाथों में चली गयी, वह उनकी मान ली गयी। 3. लूथरवाद के अतिरिक्त अन्य किसी धार्मिक सम्प्रदाय को मान्यता नहीं दी गयी। 4. कैथोलिक धर्म के क्षेत्रों में रहने वाले लूथरवादियों को उनका धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश नहीं किया जायेगा। 5. “धार्मिक रक्षण“ की व्यवस्था की गयी। इसके अनुसार यदि कोई कैथोलिक पादरी प्रोटेस्टेंट हो जाए तो उसे अपने कैथोलिक पद और उससे संबंधित सभी अधिकारों को त्यागना होगा। संधि की समीक्षा 1. इस संधि से 1530 ई. में लूथरवादी संप्रदाय का जो सैद्धांतिक स्वरूप निर्दिष्ट किया गया था उसे 1555 ई. की इस संधि द्वारा सरकारी मान्यता प्राप्त हो गयी। 2. जिंवग्लीवादी ओर कैल्विनवादी जैसे अन्य प्रोटेस्टंट संप्रदायों को मान्यता नहीं मिलने से पुनः धार्मिक युद्ध (तीसवर्षीय युद्ध) प्रारंभ हो गया जो वेस्ट फेलिया की संधि से समाप्त हुआ। 3. 1552 ई. के बाद प्रोटेस्टेंटों ने धर्म परिवर्तन के साथ सम्पित्त हस्तांतरण के सिद्धांत पर बल दिया। इससे कैथालिकों और प्रोटेस्टंटों में झगड़े बढ़े। इन दोषों के बावजूद भी आग्सवर्ग की संधि ने 1619 ई. तक जर्मनी में धार्मिक व्यवस्था बनाए रखी ये धर्म सुधार आंदोलन के दूसरे तारा थे प्रोटेस्टैंट आंदोलन के अंदर विभिन्न संप्रदाय लुथरन 16वीं शताब्दी के प्रारंभ में लूथर के विद्रोह के फलस्वरूप प्रोटेस्टैंट शाखा का प्रादुर्भाव हुआ था। लूथर के अनुयायी लूथरन कहलाते हैं; प्रोटेस्टैंट धर्मावलंबियों में उनकी संख्या सर्वाधिक है। कैलविनिस्ट जॉन कैलविन (1509-1564 ई.) फ्रांस के निवासी थे। सन 1532 ई. में प्रोटेस्टैंट बनकर वह स्विट्जरलैंड में बस गए जहाँ उन्होंने लूथर के सिद्धांतों के विकास तथा प्रोटेस्टैंट धर्म के संगठन के कार्य में असाधारण प्रतिभा प्रदर्शित की। बाइबिल के पूर्वार्ध को अपेक्षाकृत अधिक महत्व देने के अतिरिक्त उनकी शिक्षा की सबसे बड़ी विशेषता है, उनका पूर्वविधान (प्रीडेस्टिनेशन) नामक सिद्धांत। इस सिद्धांत के अनुसार ईश्वर ने अनादि काल से मनुष्यों को दो वर्गों में विभक्त किया है, एक वर्ग मुक्ति पाता है और दूसरा नरक जाता है। कैलविन के अनुयायी कैलविनिस्ट कहलाते हैं, वे विशेष रूप से स्विट्जरलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, स्कॉटलैंड, फ्रांस तथा अमेरिका में पाए जाते हैं, उनकी संख्या लगभग पाँच करोड़ है। ये सब समुदाय एक वर्ल्ड प्रेसविटरीय एलाइंस (World Presbyterian Alliance) के सदस्य हैं, जिसका केंद्र जेनोवा में है। एंग्लिकन हेनरी अष्टम के राज्यकाल में इंग्लैंड का ईसाई चर्च रोम से अलग होकर चर्च ऑव इंग्लैंड और बाद में एंग्लिकन चर्च कहलाने लगा। एंग्लिकन राजधर्म के विरोध में 16वीं शताब्दी में प्यूरिटनवाद तथा कांग्रगैशनैलिज़्म का प्रादुर्भाव हुआ। सोसाइटी ऑफ़ फ्रेंड्स १७वीं शती के मध्य में जार्ज फॉक्स ने "सोसाइटी ऑव फ्रेंड्स" की स्थापना की थी, जो क्वेकर्स (Quakers) के नाम से विख्यात है। वे लोग पौरोहित्य तथा पूजा का कोई अनुष्ठान नहीं मानते और अपनी प्रार्थनासभाओं में मौन रहकर आभ्यंतर ज्योति के प्रादुर्भाव की प्रतीक्षा करते हैं। इंग्लैंड में अत्याचार सहकर वे अमरीका में बस गए। आजकल उनकी संख्या दो लाख से कुछ कम है। चर्च ऑव जीसस क्राइस्ट ऑफ़ दि लैट्टर डेस सन् 1830 ई. में यूसुफ स्मिथ ने अमरीका में "चर्च ऑव जीसस क्राइस्ट ऑव दि लैट्टर डेस" की स्थापना की। उस संप्रदाय में स्मिथ द्वारा रचित "बुक ऑव मोरमन" बाइबिल के बराबर माना जाता है, इससे इसके अनुयायी मोरमंस (Mormons) कहलाते हैं। वे मदिरा, तंबाकू, काफी तथा चाय से परहेज करते हैं। प्रारंभ में वे बहुविवाह भी मानते थे किंतु बाद में उन्होंने उस प्रथा को बंद कर दिया। यंग के नेतृत्व में उन्होंने यूटा का बसाया जिसकी राजधानी साल्ट लेक सिटी इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र है। मोरमंस की कुल संख्या लगभग अठारह लाख है। क्रिस्टियन साइंस मैरी बेकर एडी ने (सन् 1821-1911 ई.) ईसा को एक आध्यात्मिक चिकित्सक के रूप में देखा। उनका मुख्य सिद्धांत यह है कि पाप तथा बीमारी हमारी इंद्रियों की माया ही है, जिसे मानसिक चिकित्सा (Mind Cure) द्वारा दूर किया जा सकता है। उन्होंने क्रिस्टियन साइंस नामक संप्रदाय की स्थापना की जिसका अमरीका में आजकल भी काफी प्रभाव है। पेंतकोस्तल पेंतकोस्तल नामक अनेक संप्रदाय 20वीं शताब्दी में प्रारंभ हुए हैं। कुल मिलाकर उनकी सदस्यता लगभग एक करोड़ बताई जाती है। पेंतकोस्त पर्व के नाम पर उन संप्रदायों का नाम रखा गया है। भावुकता तथा पवित्र आत्मा के वरदानों का महत्व उन संप्रदायों की प्रधान विशेषता है। इन्हें भी देखें यूरोपीय धर्मसुधार मार्टिन लूथर लूथरवाद एंग्लिकन संप्रदाय कलीसिया बाहरी कड़ियाँ समर्थक "Is Sola Scriptura a Protestant Concoction?" by Greg Bahnsen "Why Protestants Still Protest" by Peter J. Leithart from First Things समालोचक Catholic websites on sola scriptura "Protestantism" from the 1917 Catholic Encyclopedia "Why Only Catholicism Can Make Protestantism Work" by Mark Brumley विविध The Future of American Protestantism from Catalyst (United Methodist perspective) Protestantism - Christianity in View प्रोटेस्टैंट धर्म ईसाई धर्म
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दौलताबाद
दौलताबाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। है। इसका प्राचीन नाम देवगिरि है॥ यह मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी है। यह शहर हमेशा शक्‍तिशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लानी पड़ी। परिचय देवगिरि दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जो आजकल दौलताबाद के नाम से पुकारा जाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में २० डिग्री उत्तर अक्षांश तथा ७५ डिग्री पूर्व देशांतर में स्थित है। भीलम नामक राजा ने इसे ११वीं सदी में बसाया था और उसी काल से दो सौ वर्षों तक हिंदू शासकों ने देवगिरि पर शासन किया। १४वीं सदी से यह नगर मुसलमानों के अधिकार में चला आया। देवगिरि के समीप औरंगजेब के मरने पर यह जिला औरंगाबाद कहा जाने लगा। मथुरा के यादव कुल से देवगिरि के हिंदू शासक संबंध जोड़ते हैं जिस कारण यहाँ का राजवंश 'यादव' कहलाया। हेमाद्री रचित 'ब्रतखंड' में तथा अभिलेखों के आधार पर दृढ़प्रहार देवगिरि के यादव वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरुष माना जाता है। भीलम शक्तिशाली नरेश था जिसने होयसल, चोल तथा चालुक्य राज्यों पर सफल आक्रमण किया था। उसके उत्तराधिकारी सिंघण ने इसे साम्राज्य का रूप दे दिया। युद्ध के फलस्वरूप देवगिरि राज्य खानदेश से अनंतपुर (मैसूर) तक तथा पश्चिमी घाट से हैदराबाद तक विस्तृत हो गया। १३वीं सदी के देवगिरि नरेश कृष्ण का नाम अनेक लेखों में मिलता है। इसने वंश की प्रतिष्ठा की अभिवृद्धि की। कृष्ण के पुत्र रामचंद्र के शासन में खिलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन ने देवगिरि पर चढ़ाई की थी। अलाउद्दीन यहाँ से असंख्य धन लूटकर ले गया और उसके सेनापति काफूर रामचंद्र को बंदी बना लिया। कुछ समय पश्चत् रामचंद्र मुक्त कर दिया गया। यही कारण था कि देवगिरि के राज ने तैलंगाना के युद्ध में काफूर को हथियारों की मदद दी थी। शकंरदेव ने सिंहासन पर बैठने (१३१२ ई.) के बाद मुसलमानों से शत्रुता बढ़ा ली जिसका फल यह हुआ कि शंकरदेव को हराकर काफूर ने देवगिरि पर अधिकार कर लिया। देवगिरि का नाम मुहम्मद तुगलक के साथ भी संबधित है। उसने राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरि (दौलताबाद) में स्थापित की और से फिर दिल्ली वापस किया था। देवगिरि का दुर्ग आज भी दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है और स्थानीय क्षत्रिय दुर्ग में स्थापित देवीप्रतिमा की पूजा पुराने ही उत्साह से करते हैं। देवगिरि दुर्ग दौलताबाद किला'-एक उपेक्षित किला! न शोधकर्ताओं की नजर पड़ती है न ही इसे संरक्षित रखने के प्रयाप्त उपाय किए जा रहे हैं। कमजोर दीवारें गिर रही हैं। एक प्राचीन धरोहर भारत खोता जा रहा है। इतिहास गवाह है-यही एक मात्र एक ऐसा किला है जिसे कभी कोई जीत नहीं सका। कई राजाओं की तरह (अकबर) ने भी इस पर चार बार चढ़ाई की थी, लेकिन सफल नहीं हुआ। इस के अविजित होने में इस की संरचना को श्रेय जाता है। यह किला महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से लगभग १३ किलोमीटर पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। निर्माण इस किले को यादव राजवंश के राजा भिल्लम ने ११ वी शताब्दी में बनवाया था| बनावट -यह भारत के सबसे मजबूत किलों में एक मजबूत किला है। यह तीन मंजिला है। -hill-top महल की बनावट में इस्तेमाल खांचे और ग्रिड प्लान का हुबहू प्रयोग शाहजहाँ के बनवाए 'दौलत खाना 'में भी मिलता है। - इस में कुछ कमरे सोने के लिए, कुछ मनोरंजन के लिए और कुछ दर्शक हॉल के रूप में इस्तेमाल होते थे। यह शाही निवास जैसा ही था। हालांकि, यहाँ मस्जिद और स्नान जैसी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई है, -यह प्राथमिक मुगल निवास नहीं था, न ही यह एक स्थायी आधार पर एक घर था बल्कि अपने दूरस्थ और दर्शनीय स्थान को सुझाता यह स्थान /किला शाही परिवार और दरबारी सदस्यों द्वारा कभी-कभी उपयोग के लिए था। दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्‍हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चांद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं। प्रवेश प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 25 रु. [?]तथा विदेशियों के लिए 300 ₹। समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।'डेक्कन ऑडिसी ट्रेन' ले सकते हैं जो प्रत्येक बुधवार 16.40 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से चलती है।[confirm it] पर्यटकों के लिए ख़ास हिदायत है की इस किले में जा रहे हैं तो पानी की बोतल जरुर साथ रखें क्योंकि वहां ऊपर कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। छायाचित्र बाहरी कड़ियाँ दौलताबाद दौलताबाद का अभेद्य दुर्ग महाराष्ट्र
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मारा नदी
मारा नदी अफ्रीका महाद्वीप की कीनिया और तंज़ानिया की एक प्रमुख नदी हैं। उदगम यह कीनिया के पठारों से निकलती है। नदी की लम्बाई (किलोमीटर मे) 395 किमी अपवाह तन्त्र इसका बेसिन क्षेत्र 13504 वर्ग किमी है। यह सेरेंजेटी मसाई मारा राष्ट्रीय पार्क से होकर बहती है। यह जगह ज़ेबरा ,वाइल्ड बीस्ट के सालाना प्रवास के लिए प्रसिद्ध है। सहायक नदियां मुहाना यह नदी विक्टोरिया झील में खुल जाती है। अफ़्रीका का भूगोल तंज़ानिया की नदियाँ कीनिया की नदियाँ अफ़्रीका की नदियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/SAT%20%28%E0%A4%B8%E0%A5%88%E0%A4%9F%29
SAT (सैट)
SAT रिजनिंग टेस्ट (सैट तर्क परीक्षा) [पूर्व में स्कॉलैस्टि एप्टीट्यूड टेस्ट (शैक्षिक योग्यता परीक्षा) और स्कॉलैस्टि एसेसमेंट टेस्ट (शैक्षिक मूल्यांकन परीक्षा)] संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉलेज में प्रवेश के लिए एक मानकीकृत परीक्षा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में SAT एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो कॉलेज बोर्ड के स्वामित्व में है और उसके द्वारा प्रकाशित और विकसित किया गया है। और, यह पहले एडुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ETS) द्वारा विकसित, प्रकाशित किया जाता था और उसीके द्वारा अंक दिए जाते थे। ETS अब परीक्षा का प्रबंध करता है। कॉलेज बोर्ड का दावा है कि परीक्षा निर्धारित कर सकती हैं कि कोई व्यक्ति कॉलेज के लिए तैयार है या नहीं है। वर्तमान SAT रिजनिंग टेस्ट में तीन घंटे पैंतालीस मिनट लगते हैं और इसमें विलंब फीस के अलावा 45 डॉलर (71 डॉलर अंतर्राष्ट्रीय) का खर्च आता है। 1901 में SAT की शुरुआत से, इसके नाम और अंक दिए जाने के तरीके कई बार बदल चुके हैं। 2005 में, 800 नंबर के तीन विभाग (गणित, विवेचनात्मक पठन और लेखन) को मिलाकर परीक्षा परिणाम में 600 से 2400 तक संभाव्य अंक प्राप्त करने के साथ दूसरे उप-विभागों में भी अलग से प्राप्त किए गए अंक मिलाकर इस परीक्षा का फिर से नामकरण "SAT रिजनिंग टेस्ट" किया गया। कार्यविधि कॉलेज बोर्ड का कहना है कि SAT साक्षरता, संख्यनन और लेखन निपुणता को मानदंड मानता है जो कॉलेज में शैक्षणिक सफलता के लिए आवश्यक हैं। उनका कहना है कि SAT इस बात का मूल्यांकन करता है कि परीक्षार्थी कितनी अच्छी तरह समस्याओं के विश्लेषण और हल करते हैं - जो निपुणता उन्होंने स्कूल में सीखा है, कॉलेज में उन्हें उसकी आवश्यकता होगी. आमतौर पर SAT की परीक्षा हाई स्कूल के जूनियरों और सीनियरों द्वारा दी जाती है। विशेष रूप से, कॉलेज बोर्ड कहता है कि कॉलेज के नए विद्यार्थियों के GPA को मापे जाने से पता चलता है कि हाई स्कूल ग्रेड प्वाइंट एवरेज (GPA) के संयोजन के साथ SAT का इस्तेमाल, अकेले हाईस्कूल ग्रेड की तुलना में, कॉलेज में सफलता का एक बेहतर सूचक प्रदान करता है। SAT के जीवनकाल में अब तक किये गए विभिन्न अध्ययनों से यह पता चलता है कि SAT जब कारक होता है, तब हाई स्कूल ग्रेड और कॉलेज के नए विद्यार्थियों के ग्रेड के सह-संबंध में सांख्यिकीय रूप से अर्थपूर्ण वृद्धि देखी गयी। अमेरिकी संघवाद, स्थानीय नियंत्रण और निजी क्षेत्र के प्रसार, दूरी और छात्रावास के छात्रों के मामलों के कारण अमेरिका के माध्यमिक स्कूलों में निधीकरण, पाठ्यक्रम, ग्रेडिंग और कठिनाई पर ठोस मतभेद हैं। SAT (और ACT) के प्राप्तांक माध्यमिक विद्यालय के रिकार्ड के पूरक है और प्रवेश अधिकारियों को स्थानीय आंकड़े - मसलन पाठ्यक्रम कार्य, ग्रेड और कक्षा श्रेणी- को एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद करता है। ऐतिहासिक तौर पर, तटीय क्षेत्रों के कॉलेजों में SAT और मध्य-पश्चिम और दक्षिण में ACT अधिक लोकप्रिय हैं। ऐसे भी कुछ कॉलेज हैं जो पाठ्‍यक्रमों के नियोजन में ACT चाहते हैं और कुछ स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने SAT को पहले बिलकुल स्वीकार ही नहीं किया। अब सभी स्कूलों ने इसे स्वीकार कर लिया हैं। कुछ हाई IQ सोसाइटीज; जैसे मेंसा(Mensa), प्रोमेथियस (Prometheus) सोसाइटी और ट्रिपल नाइन सोसाइटी, कुछ सालों के प्राप्तांकों का उपयोग अपनी प्रवेश परीक्षा में करते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रिपल नाइन सोसायटी अप्रैल 1995 से पहले ली गई परीक्षा में 1450 अंक और अप्रैल 1995 और फरवरी 2005 के बीच ली गई परीक्षाओं के लिए कम से कम 1520 प्राप्तांक को स्वीकार करती है। कभी-कभी कुछ संगठन जैसे स्टडी ऑफ मैथेमैटिकली प्रीकोसिअस यूथ 13 साल से कम उम्र के छात्रों को SAT दिलवाते है, वे असाधारण क्षमता वाले छात्रों के चयन, अध्ययन और परामर्श देने के लिये इसके नतीजों का उपयोग करते है। संरचना SAT के तीन प्रमुख खंड हैं: विवेचनात्मक पठन, गणित और लेखन. प्रत्येक खंड में 200-800 के बीच अंक होते हैं। सभी अंक 10 के गुणन में हैं। कुल प्राप्तांक तीनों खण्डों के प्राप्तांकों को जोड़कर दिया जाता है। प्रत्येक मुख्य विभाग तीन भागों में विभाजित है। 10 उप-विभाग हैं, जिसमें 25 मिनट का एक अतिरिक्त प्रायोगिक या "समीकृत" ("equating") विभाग है, जो कि तीनों मुख्य विभाग में से किसी में भी हो सकता है। SAT के भावी प्रशासन के लिये प्रश्नों का सामान्यीकरण प्रायोगिक विभाग किया करता है और अंतिम प्राप्तांक में इसकी गिनती नहीं होती है। विभागों के लिये परीक्षा में वास्तविक समय तीन घंटे और 45 मिनट का होता है, हालांकि ज्यादातर प्रशासनिक कार्यों - अभिविन्यास, सामग्री का वितरण, जीवनी संबंधी विभागों को पूरा करना और ग्यारह मिनट के ब्रेक के समय को शामिल कर लिया जाए तो इन सब में साढ़े चार घंटे का समय लग जाता है। प्रायोगिक विभागों से प्राप्त अंकों के आधार पर प्रश्नों का क्रम आसान, मध्यम और कठिन होता है। आसान प्रश्न आमतौर पर खंड की शुरुआत में ही होते हैं जबकि कठिन प्रश्न किन्हीं खंडों के आखिरी में होते हैं। ऐसा प्रत्येक विभाग के साथ नहीं होता है, लेकिन मुख्यत: गणित और वाक्य संपादन और शब्द भंडार के लिए यह आवश्यक नियम है। विवेचनात्मक पठन SAT का विवेचनात्मक पठन वाला विभाग, जो पहले मौखिक कहलाता था, में तीन प्राप्तांक विभाग हैं, दो 25 मिनट के और एक 20 मिनट के. जिनमे अलग प्रकार के प्रश्न होते हैं, जिनमें वाक्य पूरा करने सहित छोटे और लंबे अनुच्छेद पठन के प्रश्न होते हैं। विवेचनात्मक पठन विभाग आमतौर पर 5 से 8 वाक्य पूरा करने के प्रश्नों से शुरू होते है, बाकी प्रश्न अनुच्छेद पठन पर केंद्रित होते हैं। वाक्य संपादन के जरिए आमतौर पर दिए गये वाक्य के सर्वश्रेष्ट संपादन के लिये छात्र द्वारा एक या दो चुने गए शब्दों से वाक्य संरचना और गठन से छात्र की समझ और उसके शब्द भंडार को परखा जाता है। अधिकांश विवेचनात्मक पठन वाले प्रश्न छोटे उद्धरणों से तैयार किये जाते हैं, जिसमें छात्र सामाजिक विज्ञान, मानविकी, भौतिक विज्ञान, या निजी बयान के उद्धरण पढ़ते हैं और उनके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते है। कुछ विभाग के उद्धरणों में छात्र को दो सम्बंधित उद्धरण की तुलना करने को कहा जाता है, आमतौर पर अपेक्षाकृत छोटे उद्धरण पढ़ने होते हैं। हरेक उद्धरण में प्रश्नों की संख्या उद्धरण की लंबाई के अनुपात में होती है। गणित विभाग में, जहां प्रश्न कठिनाई के क्रम में चलते हैं, वहीं विवेचनात्मक पठन विभाग में उद्धरण कठिनाई के क्रम में होते हैं। कुल मिलाकर, विभाग की शुरुआत में प्रश्न का सेट आसान होता है और सेट समाप्ति की ओर बढ़ते हुए प्रश्न कठिनतर होता जाता है। गणित SAT का गणित विभाग व्यापक रूप से मात्रात्मक विभाग या गणना विभाग के रूप में जाना जाता है। गणित विभाग में तीन उपविभाग होते हैं। इसमें 25 मिनट के दो विभाग और 20 मिनट का एक विभाग होता है, जो इस प्रकार हैं: 25 मिनट के विभाग में पूरी तरह से एकाधिक विकल्पों वाले 20 प्रश्न होते हैं। दूसरे 25 मिनट वाले विभाग में एकाधिक विकल्प वाले 8 प्रश्न और 10 ग्रिड-इन प्रश्न होते हैं। 10 ग्रिड वाले प्रश्नों के गलत उत्तर दिए जाने पर नंबर नहीं काटे जाते, क्योंकि छात्र के लिए अनुमान लगाने के विकल्प सीमित हैं। 20 मिनट वाले विभाग में सभी 16 प्रश्न एकाधिक विकल्प वाले होते हैं। उल्लेखनीय है कि सैट के गणित विभाग ने मात्रात्मक तुलना वाले प्रश्न हटा दिए हैं, उनकी जगह सिर्फ प्रतीकात्मक और संख्या वाले उत्तरों के प्रश्न रखे गए हैं। चूंकि मात्रात्मक मिलान वाले प्रश्न अपने भ्रामक स्वरूप के लिए जाने जाते हैं – अक्सर ही एक अकेले अपवाद को नियम या पैर्टन समझने की ओर छात्रों के ध्यान को मोड़ दिया जाता है – इस चयन को व्यवहार-वैचित्र्य ("trickery") से हटकर एक तात्त्विक बदलाव से समीकृत किया गया है और SAT के ‘स्ट्रैट मैथ’ की ओर बढ़ने के जैसा माना गया है। इसके अलावा, कई परीक्षा विशेषज्ञों ने SAT को ACT के ही जैसा बनाने की कोशिश के तहत नव लेखन विभाग की तरह इस बदलाव का भी स्वागत किया है। नये विषयों में बीजगणित द्वितीय और स्कैटर (ग्राफ आलेखन) प्लॉट्स शामिल हैं। हाल के इन बदलावों से पिछली परीक्षा की तुलना में उच्च स्तर के गणित के पाठ्‍यक्रमों को अधिक मात्रात्मक बनाने से परीक्षा का पाठ्‍यक्रम अपेक्षाकृत छोटा हो गया। कैलकुलेटर का उपयोग हाल में हुए बदलावों में परीक्षा के गणित विभाग की सामग्री में समय की बचत और सटीक गणना के लिए परीक्षा के दौरान कैलकुलेटर प्रोग्राम के व्यवहार पर SAT जोर देता है। ये प्रोग्राम छात्रों को सामान्य रूप से हाथ से गणना करने के बजाय प्रश्नों के उत्तर तेजी से देने की अनुमति देते हैं। विशेष रूप से ज्यामिति के प्रश्नों और एकाधिक गणना से जुड़े प्रश्नों के लिए कभी-कभी ग्राफिक कैलकुलेटर के व्यवहार को तरजीह दी जाती है। कॉलेज बोर्ड द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, गणित विभाग की परीक्षा में छात्रों के निष्पादन का कैलकुलेटर के व्यवहार से काफी हद तक संबंध है, क्योंकि जिन लोगों ने इसका उपयोग कम किया उनकी तुलना में, जिन्होंने एक तिहाई से आधे प्रश्नों के उत्तर में कैलकुलेटर का उपयोग खुलकर किया, औसतन उनका प्राप्तांक कहीं अधिक रहा. गणित के पाठ्यक्रमों में ग्राफिक कैलकुलेटर का उपयोग और कक्षा के बाहर भी कैलकुलेटर के निरंतर उपयोग से पाया गया कि परीक्षा के दौरान ग्राफिक कैलकुलेटर के उपयोग से छात्रों के प्रदर्शन में एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेखन SAT का लेखन विभाग एकाधिक विकल्प वाले प्रश्नों और एक संक्षिप्त निबंध सहित पुराने SAT II के विषय की लिखित परीक्षा पर आधारित है, पर यह सीधे SAT II से तुलनीय नहीं है। निबंध लेखन के उप-प्राप्तांक लिखित परीक्षा के कुल प्राप्तांक में लगभग 30% के होते हैं, जबकि एकाधिक विकल्प वाले प्रश्नों का योगदान 70% होता है। छात्र की लेखन क्षमता में एकरूपता के अभाव के बारे में कॉलेजों की शिकायतों के बाद इस विभाग को मार्च 2005 में लागू किया गया था। एकाधिक विकल्प के प्रश्नों में अशुद्धि की पहचान, वाक्य सुधार और अनुच्छेद सुधार वाले प्रश्नों को भी शामिल किया गया। अशुद्धि पहचान और वाक्य सुधार वाले प्रश्न छात्र के व्याकरण संबंधी ज्ञान, वाक्य का गड़बड़ प्रस्तुतीकरण या व्याकरण संबंधी अशुद्धि की परख करते हैं; अशुद्धि पहचान वाले विभाग में छात्र को अशुद्धि के स्रोत-शब्द का पता करना या यह बताना जरुरी होता है कि वाक्य में कोई अशुद्धि नहीं है, जबकि वाक्य सुधार वाले विभाग में बेढंगे वाक्य के लिए दिए गए विकल्प में से किसी एक को चुनना पड़ता है। अनुच्छेद सुधार वाले प्रश्नों में विचारों के तार्किक गठन, खराब ढंग से लिखे छात्र के निबंध में सुधार और प्रश्नों की शृंखला में छात्र से ऐसा बदलाव करने को कहा जाता है ताकि उसमें सर्वोत्तम सुधार हो. निबंध खंड जो 25 मिनट का होता है, हमेशा परीक्षा का पहला खंड होता है। सभी निबंध दिए गए अनुबोधन विंदुओं के प्रतिसाद में ही होने चाहिए. अनुबोधक व्यापक और आमतौर पर तात्त्विक होते हैं और ये कुछ इस तरह से तैयार किये जाते हैं ताकि किसी भी शैक्षिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से आये छात्र के लिए वह सुगम्य हो. मानव जीवन में कार्य के महत्त्व पर अपने विचार या फिर तकनीकी बदलाव से लाभान्वित होनेवालों पर इसके नकारात्मक परिणाम की व्याख्या करने के लिए छात्रों से कहा जाता है। निबंध में किसी विशेष संरचना की जरूरत नहीं और [छात्रों के] "पठन, अध्ययन, अनुभव, या पर्यवेक्षण को कॉलेज बोर्ड स्वीकार करता है।" दो प्रशिक्षित अध्यापकों को प्रत्येक निबंध सौंप दिया जाता है, जिनमे 1 से 6 के बीच कोई अंक मिलते हैं; लेकिन जो कोरा, विषय से परे, गैर-इंग्लिश, नंबर 2 वाले पेंसिल से नहीं लिखे गए, या कई बार प्रयास के बाद भी अपठनीय होनेवाले निबंधों के लिए 0 अंक ही होता है। सारे अंकों को जोड़ कर अंतिम प्राप्तांक 2 से लेकर 12 तक (या 0) दिया जाता है। अगर दो अध्यापकों द्वारा दिए गए अंकों में एक नंबर से अधिक का फर्क होता है तब तीसरे वरिष्ठ अध्यापक पर फैसला छोड़ दिया जाता है। प्रत्येक अध्यापक/ग्रेड देनेवाले हरेक निबंध में 3 मिनट से कम समय लगाते हैं। कॉलेज बोर्ड के दावे के बावजूद कि सैट निबंध किसी पूर्वाग्रह के बगैर छात्र की लेखन क्षमता का आकलन करता है, पक्षपात के प्रतिदावे भी किए गए हैं कि घुमावदार अक्षरों में लिखनेवालों को अध्यापक कहीं अधिक नंबर देते हैं, अपने निजी अनुभव के बारे में लिखनेवालों को कम और समाज के उच्चवर्ग का पक्ष लेनेवाले विषयों में अधिक अंक दिए जाते हैं। कॉलेज बोर्ड ने SAT रिजनिंग एग्जाम (SAT Reasoning Exam) के किसी भी हिस्से में किसी भी तरह के पक्षपात किए जाने की बात से बड़ी ही सख्ती से इंकार किया है। इसके अतिरिक्त, निबंध में तथ्यात्मक गलतियों के लिए नंबर नहीं काटे जाते थे। मार्च 2004 में डॉ॰लेस पेरेलमैन ने कॉलेज बोर्ड के स्कोर राइट बुक में समाविष्ट 15 प्राप्तांक वाले नमूनों का विश्लेषण किया और पाया कि 400 से अधिक शब्दोंवाले 90% निबंधों को सर्वोच्च अंक 12 और 100 या कम शब्दोंवाले निबंधों को निम्नतम ग्रेड 1 मिला है। प्रश्नों की शैली SAT के अधिकांश प्रश्नों में, निबंध और ग्रिड-इन गणित को छोड़ कर एकाधिक विकल्प वाले प्रश्न होते हैं; सभी एकाधिक विकल्प वाले प्रश्नों में पांच उत्तरवाले विकल्प होते हैं, जिनमें से एक सही होता है। हरेक विभाग में आमतौर पर एक ही प्रकार के प्रश्न कठिनाई के क्रम में होते हैं। हालांकि, एक महत्त्वपूर्ण अपवाद भी है: ऐसे प्रश्न जो कि लंबे और छोटे पठन उद्धरण वाले होते हैं, उन्हें कठिन के बजाय कालानुक्रम में रखा जाता है। गणित के किसी एक उपविभाग में दस प्रश्नों में एकाधिक विकल्प वाले प्रश्न नहीं होते हैं। इसकी जगह परीक्षार्थियों को चार स्तंभ ग्रिडवाले सवाल के फेर में डाल दिया जाता है। प्रश्न समान अंक वाले होते हैं। हरेक सही उत्तर के लिए एक अपूर्ण प्व़ायंट दिया जाता है। हरेक गलत उत्तर के लिए एक चौथाई प्व़ायंट काट ली जाती है। गणित के ग्रिड-इन वाले सवालों के गलत जवाब के लिए कोई प्व़ायंट नहीं काटे जाते. इससे यह सुनिश्चित होता है कि अनुमान लगाने से एक छात्र की गणितीय अपेक्षित उपलब्धि शून्य होती है। अंतिम प्राप्तांक अपूर्ण अंक से ही तय होता है; यथार्थ रूपांतरण चार्ट परीक्षा प्रशासनों के बीच बदला जाता है। SAT इसीलिए केवल अध्ययनशील अनुमान लगाने की सिफारिश करता है, ताकि परीक्षार्थी कम से कम एक उत्तर को जिसे वह गलत समझता है, उसे वह निकाल सकता या सकती है। बगैर कोई जवाब काटे सही जवाब देने की संभावना 20% होती है। एक गलत जवाब निकाल देने से यह संभावना 25% बढ़ जाती है; दो से 33.3%, तीन से 50% सही जवाब चुनने की संभावना होती है और इसलिए प्रश्न में पूरे प्व़ायंट मिल जाते हैं। परीक्षा देना संयुक्त राज्य अमेरिका में SAT एक साल में सात बार अक्टूबर, नवंबर, दिसम्बर, जनवरी, मार्च (या अप्रैल, बारी-बारी से), मई और जून में दिया जा सकता है। आमतौर पर परीक्षा नवंबर, दिसम्बर, मई और जून महीने के पहले शनिवार को दी जाती है। अन्य देशों में, SAT संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह उसी तारीख को दी जाती है, केवल पहले बसंत (अर्थात मार्च या अप्रैल) की परीक्षा की तारीख को छोड़कर, जो प्रस्तावित नहीं है। वर्ष 2006 में 1,465,744 बार परीक्षा दी गयी। उम्मीदवार SAT रिजनिंग टेस्ट या तीन SAT सब्जेक्ट टेस्ट की परीक्षा किसी भी तय तारीख को दे सकता है, केवल बसंत के पहली परीक्षा की तारीख को छोड़ कर, जबकि केवल SAT रिजनिंग टेस्ट ही दिए जा सकते हैं। परीक्षा देने के इच्छुक उम्मीदवार परीक्षा की तारीख से कम से कम तीन हफ्ता पहले कॉलेज बोर्ड की वेबसाइट पर ऑनलाइन, मेल, या टेलीफोन द्वारा पंजीकरण कर सकते हैं। परीक्षा के दिन SAT सब्जेक्ट टेस्ट (SAT Subject Tests) के सभी विषय एक ही बड़ी पुस्तक में दे दिए जाते हैं। इसलिए, वास्तव में यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि एक छात्र कौन-सा टेस्ट और कितने टेस्ट देने जा रहा है; सुनने के साथ भाषा के टेस्ट के मामले में एक संभावित अपवाद को छोड़ कर, छात्र अपना मन बदल सकता है और पंजीकरण की चिंता किये बगैर कोई भी टेस्ट दे सकता है। जो छात्र पंजीकरण के बाद परीक्षा के लिए अधिक विषयों का चयन करते हैं, उन्हें अतिरिक्त परीक्षाओं के लिए कॉलेज बोर्ड बाद में बिल देता है और जब तक बिल अदा नहीं कर दिया जाता तब तक उनके प्राप्तांक रोक कर रखे जाते हैं। जो छात्र पंजीकरण से कम विषयों की परीक्षा का चयन करते है, उन्हें पैसे वापस नहीं किये जाते. SAT रिजनिंग टेस्ट के लिए 45 डॉलर (71 डॉलर अंतर्राष्ट्रीय) का खर्च आता है। विषय परीक्षाओं के लिए छात्र 20 डॉलर बतौर बेसिक रेजिस्ट्रेशन फी अदा करते हैं और हरेक परीक्षा के लिए (सुनने के साथ भाषा परीक्षा को छोड़ कर, जिसमें हरेक के लिए 20 डॉलर का खर्च आता है) 9 डॉलर अदा करते हैं। कॉलेज बोर्ड कम आय वाले छात्रों के लिए शुल्क में छूट देता है। देर से पंजीकरण के लिए आवेदन करने, आपातोपयोगी परीक्षण, पंजीकरण परिवर्तन, टेलीफोन द्वारा प्राप्तांक और अतिरिक्त प्राप्तांक रिपोर्ट (निःशुल्क चार के अलावा) के लिए अतिरिक्त शुल्क अदा करने होते हैं। जो उम्मीदवार अपनी धार्मिक आस्था के कारण शनिवार के दिन परीक्षा नहीं देना चाहते हैं, वे अगले रविवार को परीक्षा देने का अनुरोध कर सकते हैं, केवल अक्टूबर में परीक्षा के दिन को छोड़कर, जिसमें मुख्य परीक्षा के आठ दिन बाद रविवार की परीक्षा का दिन आता है। ऐसा अनुरोध पंजीकरण के दौरान करना ही होगा और इससे इंकार भी किया जा सकता है। जो किसी भी तरह से अपंग हैं, चाहे शारीरिक रूप से या फिर सीखने में विकलांगता की दृष्टि से, ऐसे छात्र रहने की सुविधा के साथ SAT की परीक्षा देने के योग्य हैं। सीखने में विकलांगता वाले छात्रों को जरूरत पड़े तो मानक समय बढ़ाकर अतिरिक्त समय + 50%; समय + 100% भी दिया जाता है। अपूर्ण प्राप्तांक, प्रवर्धित प्राप्तांक और प्रतिशतक परीक्षा दे देने के लगभग तीन सप्ताह के बाद (डाक से और कागजी प्राप्तांक पाने में छह सप्ताह), हरेक विभाग में 200-800 तक के ग्रेड और लेखन विभाग के लिए दो उप प्राप्तांकों के साथ: निबंध के अंक और एकाधिक विकल्प वाले उप प्राप्तांक छात्र ऑनलाइन से प्राप्त कर सकते हैं। अपने प्राप्तांक के अलावा छात्रों को प्रतिशतक(कम अंक पानेवाले अन्य परीक्षार्थियों के प्रतिशत) भी मिलता है। अपूर्ण प्राप्तांक, या सही जवाब के लिए मिले प्वाइंट और गलत जवाब के लिए कटे अंक (ठीक 50 से जरा नीचे से लेकर 60 से जरा ‍नीचे के क्रम में, जो कि परीक्षा पर निर्भर करता है) आदि भी शामिल हैं। छात्र अतिरिक्त फीस अदा कर प्रश्न और उत्तर सेवा भी प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें छात्र के उत्तर, हरेक प्रश्न के सही उत्तर और ऑनलाइन संसाधनों से हरेक प्रश्न की व्याख्या भी दी जाती है। हरेक प्रवर्धित प्राप्तांक का अनुरूपी प्रतिशतक एक परीक्षा से दूसरी परीक्षा में अलग-अलग होता है – उदाहरण के लिए, 2003 में SAT रिजनिंग टेस्ट के दोनों विभागों के 800 के प्रवर्धित प्राप्तांक का प्रतिशतक 99.9, जबकि सैट भौतिकी परीक्षा का अनुरूपी प्रतिशतक 94 हुआ। परीक्षा की विषयवस्तु और हरेक परीक्षा में चयन के लिए छात्रों की योग्यता के कारण प्राप्तांकों के प्रतिशतक में अंतर पाया जाता है। विषय परीक्षाओं के लिए गहन अध्ययन करना पड़ता है (अक्सर AP के रूप में, जो अपेक्षाकृत अधिक कठिन होता है) और केवल वही इन परीक्षाओं की ओर बढते हैं, जिन्हें पता है कि वे अच्छा प्रदर्शन करेंगे, इससे अंकों के वितरण में विषमता पैदा होती है। कॉलेज जानेवाले वरिष्ठ छात्रों के लिए विभिन्न SAT प्राप्तांकों के प्रतिशतक को निम्न चार्ट में दर्शाया गया है: पुराने SAT (1995 से पहले) की बहुत ऊंची सीमा थी। किसी भी वर्ष में, केवल 70 लाख परीक्षार्थियों ने 1580 से ऊपर अंक प्राप्त किये. 1580 के ऊपर अंक 99.9995 प्रतिशतक के बराबर था। SAT - ACT के प्राप्तांकों की तुलना यद्यपि SAT और उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी ACT के बीच कोई आधिकारिक रूपांतरण चार्ट नहीं है, अक्टूबर 1994 और 1996 के बीच दोनों टेस्ट देनेवाले 103,525 परीक्षार्थियों के परिणामों पर आधारित एक अनधिकृत चार्ट कॉलेज बोर्ड ने जारी की; बहरहाल, दोनों ही टेस्ट अब बदल दिए गए हैं। कई कॉलेजों ने भी अपने स्वयं के चार्ट जारी किए हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रूपांतरण चार्ट पर आधारित है निम्नलिखित. ऐतिहासिक विकास विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच परीक्षा से संबंधित पक्षपात को खत्म करने के उद्देश्य से आर्मी अल्फा और बीटा परीक्षा के लिए काम कर रहे कार्ल ब्रिगहैम (Carl Brigham) नाम के मनोवैज्ञानिक ने SAT विकसित किया जिसका उपयोग मूल रूप से उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के द्वारा किया जाता है 1901 की परीक्षा 17 जून 1901 को कॉलेज बोर्ड की शुरुआत हुई, जब 973 छात्रों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 67 और यूरोप के दो स्थानों में पहली परीक्षा दी. हालांकि परीक्षार्थी विभिन्न पृष्ठभूमि से आये थे, लगभग एक तिहाई न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, या पेनसिल्वेनिया से थे। अधिकांश परीक्षार्थी निजी स्कूलों, अकादमियों, या दातव्य स्कूलों से थे। उनमें से लगभग 60% परीक्षार्थियों ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के लिए आवेदन किया था। परीक्षा में अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, लैटिन, ग्रीक, इतिहास, गणित, रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र आदि वर्ग थे। परीक्षा में चुनने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं थे, लेकिन इसके बजाय लेखों के आधार पर परीक्षा का मूल्यांकन "उत्कृष्ट", "अच्छा", "संदिग्ध", "खराब", या "बहुत खराब" के रूप में किया गया। 1926 की परीक्षा सैट का पहला प्रबंधन 23 जून 1926 को बना, जब यह शैक्षिक योग्यता परीक्षा (स्कूलैस्टिक एप्टिट्यूड टेस्ट) कहलाता था। यह परीक्षा एक प्रिंसटन मनोविज्ञानी कार्ल कैंपबेल ब्रिघम (Carl Campbell Brigham) के नेतृत्व में बनी समिति द्वारा तैयार की गयी, जिसमें परिभाषा, गणित, वर्गीकरण, कृत्रिम भाषा, विलोम शब्द, संख्या श्रृंखला, उपमा, तार्किक निष्कर्ष और अनुच्छेद पठन के विभाग थे। इसने 8,000 से अधिक छात्रों के लिए 300 से ज्यादा परीक्षा केन्द्रों में परीक्षा का इंतजाम किया। परीक्षा में 60% पुरुष परीक्षार्थी थे। एक चौथाई से कुछ अधिक पुरुषों और महिलाओं ने क्रमशः येल युनिवार्सिटी और स्मिथ कॉलेज के लिए आवेदन किये. परीक्षा की गति अपेक्षाकृत जरा तेज थी, परीक्षार्थियों को 315 सवालों के लिए महज 90 मिनट से कुछ अधिक समय दिया गया था। 1928 और 1929 की परीक्षाएं सन् 1928 में मौखिक विभाग की संख्या कम करके सात कर दी गयी और समय सीमा को कुछ बढ़ाकर लगभग दो घंटे कर दी गयी। सन् 1929 में विभागों की संख्या इस बार घटाकर 6 कर दी गयी। इन बदलावों से परीक्षार्थियों के लिए समय का दबाव कम हो गया। इन परीक्षाओं से गणित को पूरी तरह हटा दिया गया, इसके बजाय मौखिक क्षमता पर ही ध्यान केंद्रित किया गया। 1930 की परीक्षा और 1936 के परिवर्तन 1930 में पहली बार SAT मौखिक और गणित दो खंडों में विभक्त हो गया और यह संरचना 2004 तक जारी रही. 1930 की परीक्षा के मौखिक विभाग की सामग्री अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक संकीर्ण फैलाववाली थी, जिसमें सिर्फ विलोम शब्द, दोहरी परिभाषाएं (कुछ-कुछ वाक्य पूर्ति करने जैसा) और परिच्छेद पाठन की परीक्षा ली जाती है। 1936 में, उपमा फिर से जोड़ी गयी। 1936 और 1946 के बीच, छात्रों को 250 मौखिक सवालों के जवाब देने के लिए (उनमे से एक तिहाई से अधिक विलोम शब्द हुआ करते थे) 80 और 115 मिनट के बीच समय मिलता था। गणित की परीक्षा 1930 में शुरू हुई, जिसमें 100 मुक्त उत्तर वाले प्रश्नों के उत्तर 80 मिनट में देने होते थे और इसमें मुख्य रूप से तेजी पर ध्यान देना पड़ता था। 1928 और 1929 परीक्षा की तरह 1936 से 1941 तक, गणित विभाग को पूरी तरह से हटा दिया गया। 1942 में जब परीक्षा में गणित विभाग को फिर से शामिल किया गया, तब इसमें एकाधिक विकल्प वाले सवाल शामिल किये गए। 1946 की परीक्षा और सम्बद्ध परिवर्तन 1946 में SAT में मौखिक भाग से अनुच्छेद पठन को समाप्त कर दिया गया था और इसकी जगह पठन अवधारणा को शामिल किया गया और "दोहरी परिभाषा" वाले प्रश्नों की जगह वाक्य संपादन शामिल किया गया। 1946 और 1957 के बीच छात्रों को 90 से 100 मिनट का समय 107 से 170 मौखिक प्रश्नों को पूरा करने के लिए दिया गया। साल 1958 के शुरू में समय सीमा अधिक स्थिर हो गयी और 17 साल के लिए, 1975 तक, छात्रों को 75 मिनट का समय 90 प्रश्नों के उत्तर देने के लिए दिया गया। 1959 में गणित विभाग में डेटा पर्याप्तता वाले प्रश्न शुरू किए गए थे और फिर 1974 में उसकी जगह मात्रात्मक तुलना की शुरुआत की गयी। 1974 में मौखिक और गणित दोनों विभागों का समय 75 मिनट से कम करके 60 मिनट कर दिया गया, परीक्षा की संरचना में परिवर्तन के साथ समय में की गयी कमी को पूरा किया गया। 1980 की परीक्षा और सम्बद्ध परिवर्तन समावेशित "संघर्षी" ("Strivers") प्राप्तांक अध्ययन लागू कर दिया गया था। यह अध्ययन शैक्षिक परीक्षण सेवा (एडुकेशन टेस्टिंग सर्विस) द्वारा शुरू किया गया, जिसका संचालन SAT करता है और इस पर शोध किया गया कि अल्पसंख्यकों और ऐसे लोगों के लिए इसे कैसे आसान बनाया जाए जिन्हें सामाजिक और आर्थिक बाधाएं सहनी पड़ती हैं। मूल "संघर्षी" योजना में, जो 1980-1994 तक शोध चरण में थी, उन परीक्षार्थियों को, जिन्होंने अपेक्षित 200 से अधिक अंक प्राप्त किये; उन्हें जाति, लिंग और आय के बजाए एक विशेष "संघर्षी" रुतबे से सम्मानित किया। सोच यह थी कि उच्चस्तरीय कॉलेज, जैसे कि आईवी लीग स्कूल, में प्रवेश के लिए अल्पसंख्यकों को बेहतर मौका मिलेगा. 1992 में, संघर्षी योजना जनता के आगे लीक (रहस्योद्घाटित) हो गयी, इसके परिणामस्वरूप संघर्षी योजना को 1993 में समाप्त कर दिया गया। ACLU, NAACP और एडुकेशन टेस्टिंग सर्विस की दलील सुनने के बाद फेडरल कोर्ट ने यह भी कहा कि "संघर्षी" अंक के लिए परीक्षार्थियों की योग्यता के निर्धारण हेतु सिर्फ उम्र, नस्ल और ज़िप कोड का ही इस्तेमाल किया जा सकेगा. ये तमाम परिवर्तन 1994 में SAT के लिए प्रभावी हुए. 1994 में हुए परिवर्तन 1994 में मौखिक विभाग में एक नाटकीय बदलाव देखने में आया। इन बदलावों में विलोम शब्द प्रश्नों को हटा दिया गया और अनुच्छेद पठन पर और भी अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया। 1994 में गणित विभाग में भी एक नाटकीय बदलाव देखा गया, इसके लिए एक हद तक नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स ऑफ मैथमैटिक्स द्वारा दिए गए दबाव का शुक्रिया. 1935 के बाद पहली बार, SAT ने छात्रों से उत्तर चाहने के बजाए कुछ गैर-एकाधिक विकल्प वाले प्रश्न पूछे. 1994 में परीक्षा के इतिहास में पहली बार गणित विभाग में कैलकुलेटर के इस्तेमाल की छूट दे दी गयी। गणित विभाग ने संभाव्यता, झुकाव, मौलिक सांख्यिकी, गिनती की समस्याएं, "मध्य मान और क्रम" की अवधारणा को शुरू किया। 1994 में SAT I के औसतन प्राप्तांक में संशोधन किया गया, जो कि आमतौर पर 1000 (मौखिक में 500 और गणित में 500) के आसपास था। संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे अधिक चुनिंदा स्कूलों (उदाहरण के लिए, आइवी लीग) में खासतौर पर पुरानी परीक्षा के SAT के औसत 1400 से अधिक थे। 2002 में हुए परिवर्तन - प्राप्तांक विकल्प अक्टूबर 2002 में, कॉलेज बोर्ड ने प्राप्तांक चयन विकल्प ख़त्म कर दिया. इस विकल्प के अंतर्गत, कॉलेजों के लिए प्राप्तांक तब तक जारी नहीं किए जाते थे, जब तक कि छात्र प्राप्तांक नहीं देख लें और उसे मंजूरी नहीं दे दें. इसके पीछे वजह यह थी कि इस विकल्प का लाभ अमीर छात्रों को मिलता था, जो कई बार परीक्षा दे सकते थे। इसीलिए कॉलेज बोर्ड ने 2009 के वसंत में प्राप्तांक विकल्प को फिर से लागू करने का फैसला किया है। इसे वैकल्पिक कहा गया है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि भेजे गए रिपोर्ट से यह संकेत मिलेगा कि इस छात्र को चुना गया है या नहीं. कार्नेल, येल और स्टैनफोर्ड सहित कई बेहद चुनिंदा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने घोषणा की है कि वे आवेदकों से सभी प्राप्तांक जमा करने को कहेंगे. दूसरों, जैसे कि MIT ने प्राप्तांक विकल्प को अपनाया है। 2005 में हुए परिवर्तन 2005 में, परीक्षा में फिर से परिवर्तन किया गया, मोटे तौर पर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी द्वारा पद्धति की आलोचना के कारण ही ऐसा किया गया। अनेकार्थी प्रश्नों से संबंधित, खासकर विलोम शब्दों, के मामले में कुछ विशेष प्रकार के प्रश्नों (गणित विभाग से मौखिक और संख्यात्मक तुलना) को समाप्त कर दिया गया। समुचित प्राप्तांकों में हो रही वृद्धि को देखते हुए परीक्षा को कुछ कठिन बना दिया गया था। पुराने SAT II विषय लेखन परीक्षा के आधार पर निबंध लेखन के साथ एक नव लेखन विभाग को जोड़ा गया, यह उच्चतम और मध्यम श्रेणी वाले प्राप्तांक के बीच अंतर को ख़त्म करने के लिए किया गया था। अन्य कारकों में प्रत्येक छात्र के लेखन की योग्यता को परखने के मकसद से निबंध लेखन को शामिल किया गया। नया SAT (जो SAT रिजनिंग टेस्ट के रूप में जाना जाता है) पहले पहल 12 मार्च 2005 में शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया था, जनवरी 2005 में "पुराने" SAT की आखिरी परीक्षा के बाद. हाई स्कूल के तीन साल के गणित को शामिल करने के लिए गणित विभाग का विस्तार किया गया था। मौखिक विभाग का नाम बदल कर विवेचनात्मक पठन विभाग कर दिया गया था। 2008 में हुए परिवर्तन 2008, या कहें 2008 के आखिरी चरण, 2009 की परीक्षा में एक नया परिवर्तन लाया गया। इससे पहले, ज्यादातर कॉलेजों में आवेदकों के लिए सभी प्राप्तांक को पेश करना जरुरी था, कुछ कॉलेजों ने छात्रों को यह विकल्प दिया कि जिनके अंक बहुत अच्छे नहीं हैं वे चाहें तो ऐसा नहीं भी कर सकते हैं। बहरहाल, इस साल कुछ कॉलेजों, जो प्राप्तांक नतीजे का लेखा-जोखा रखने की चाह रखते थे, के विरोध के साथ व्यापक रूप से प्राप्तांक चयन की शुरुआत की पहल हुई. जबकि सैद्धांतिक रूप से छात्रों के पास अब अपने सर्वश्रेष्ठ प्राप्तांक चुनकर (सिद्धांततः वे जो चाहें अपना कोई भी अंक भेज सकते हैं) अपनी पसंद के कॉलेजों को भेजने का विकल्प था, लेकिन कुछ लोकप्रिय कॉलेजों और विश्वविद्यालयों, जैसे कॉर्नेल ने छात्रों से उनके सभी प्राप्तांक मांगे. इस कारण कॉलेज बोर्ड को अपने वेब साइट पर प्रदर्शित करना पड़ा कि कौन से कॉलेज स्कोर च्वाइस से सहमत या असहमत हैं, साथ में यह दावा भी जारी रहा कि छात्रों को उनकी मर्जी के खिलाफ कभी अपने अंक जमा नहीं करने पड़ेंगे. नाम परिवर्तन और पुनर्व्यवस्थापित प्राप्तांक मूल रूप से इसका नाम "स्कॉलैस्टिक एप्टीट्यूड टेस्ट" था। लेकिन 1990 में, बौद्धिक परीक्षा के रूप में SAT के कार्य करने की योग्यता की अनिश्चयता के कारण इसका नाम बदल कर स्कूलैस्टिक एसेसमेंट टेस्ट कर दिया गया। 1993 में इसमें फर्क करने के लिहाज से इसका नाम बदल कर SAT I: रिजनिंग टेस्ट (अक्षरों का कोई मतलब न होने पर भी) कर दिया गया।SAT II: Subject Tests 2004 में दोनों ही परीक्षाओं में रोमन अंकों को समाप्त कर दिया गया और SAT I का नाम बदल कर SAT रिजनिंग टेस्ट कर दिया गया। अंकों की श्रेणियां अब निम्नलिखित हैं: विवेचनात्मक पठन (जिसकी तुलना पुराने SAT I के कुछ मौखिक हिस्से से की जा सकती है), गणित और लेखन. लेखन विभाग में अब एक निबंध, जिसका अंक लेखन विभाग में प्राप्त संपूर्ण अंक में मिला हुआ है, साथ ही साथ व्याकरण विभाग (जिसकी तुलना पुराने SAT के कुछ मौखिक भागों से की जा सकती है) को शामिल कर लिया गया है। शुरुआत में 100 के मानक विचलन के साथ प्रत्येक विभाग पर 500 को मध्यवर्ती अंक बनाकर परीक्षा प्राप्तांक को प्रवर्धित किया जाता था। जैसे-जैसे परीक्षा लोकप्रिय होती गयी और कम दमखमवाले स्कूल के अधिक छात्र भी परीक्षा देने लगे, तब औसत गिरकर मौखिक में 428 और गणित में 478 रह गया। 1995 में SAT को पुनर्व्यवस्थापित किया गया और इसका नया औसत प्राप्तांक फिर से 500 के करीब पहुंच गया। 1994 के बाद और अक्टूबर 2001 से पहले आधिकारिक तौर पर अंक पत्र में "R" (जैसे 1260R) दर्शाया गया, जो इस बदलाव का सूचक है। आधिकारिक तौर पर कॉलेज बोर्ड तालिका में मौजूदा प्राप्तांक से 1995 की तुलना करने के लिए पुराने अंकों को पुनर्व्यवस्थापित किया जा सकता है। जिसमें मध्यम क्रम में मौखिक के लिए 70 और गणित के लिए 20 या 30 पॉइंट्स जुड़ते हैं। दूसरे शब्दों में, वर्तमान छात्रों को अपने माता-पिता की तुलना में 100 पॉइंट (70 प्लस 30) का लाभ है। अक्टूबर 2005 की परीक्षा में अंकों की समस्याएं मार्च 2006 में यह घोषणा की गई कि अक्टूबर 2005 में SAT देनेवालों के एक छोटे से हिस्से के प्राप्तांक में गड़बड़ी रह गयी है, परीक्षापत्र गीले हो जाने से उनकी अच्छी तरह जांच नहीं होने के कारण ऐसा हुआ और इस कारण कुछ छात्रों को बेहद त्रुटिपूर्ण अंक मिले हैं। कॉलेज बोर्ड ने घोषणा की कि जिन छात्रों को जिन्हें कम नंबर मिले हैं उनके नंबर बदल दिए जाएंगे, लेकिन तब तक जिन छात्रों ने पहले ही कॉलेजों में आवेदन कर दिया था, उन्होंने अपने मूल प्राप्तांकों का इस्तेमाल कर लिया था। कॉलेज बोर्ड ने फैसला किया कि जिन छात्रों को ऊंचे अंक मिले हैं उनके प्राप्तांक नहीं बदले जाएंगे. लगभग 4,400 छात्रों के मामले को लेकर जिन्हें SAT में गलत और कम अंक मिले थे, 2005 में एक मुकदमा दायर किया गया। यह मामला अगस्त 2007 में तब सुलझा, जब कॉलेज बोर्ड और एक अन्य कंपनी जिसने कॉलेज की प्रवेशिका परीक्षा लेने का काम किया था, ने घोषणा की कि 4000 से अधिक छात्रों को वे 2.85 मिलियन डॉलर का भुगतान करेंगे. समझौते के तहत हरेक छात्र दो विकल्पों में एक को चुन सकते हैं कि वे या तो 275 डॉलर लें ले या अगर उन्हें लगे कि उनका नुकसान इससे बड़ा हुआ है तो वे और अधिक राशि का दावा कर सकते हैं। समालोचना सांस्कृतिक पूर्वाग्रह दशकों से कई आलोचकों ने मौखिक SAT के रूपकारों पर आरोप लगाया है कि यह गोरों और अमीरों के प्रति सांस्कृतिक पूर्वाग्रह रखता है। SAT I में नाविकों की नौका दौड़ की उपमा से संबंधित प्रश्न ऐसे पूर्वाग्रह का एक प्रसिद्ध उदाहरण है। प्रश्न का उद्देश्य ऐसे दो शब्द का पता करना था जिनका संबंध "धावक" और "मैराथन" के बीच के संबंध से काफी मिलते-जुलते हों. सही जवाब "नाविक" और "नौका दौड़" था। सही जवाब का चयन धनी छात्रों को पहले से मालूम था, क्योंकि अमीरों के बीच इस खेल की लोकप्रियता के कारण धनी छात्र इस सवाल से परिचित थे और इसकी संरचना और शब्दावली का उन्हें ज्ञान था। तिरपन प्रतिशत (53%) गोरे छात्रों ने प्रश्न का सही जवाब दिया, जबकि केवल 22% काले छात्रों का जवाब सही रहा. तभी से सादृश्य प्रश्नों की जगह छोटे पठन उद्धरण लाये गए। सैट का बहिष्कार उदारपंथी कला कॉलेजों की एक बढ़ती संख्या ने इस समालोचना का जवाब SAT वैकल्पिक आंदोलन में शामिल होकर दिया. इन कॉलेजों में प्रवेश के लिए SAT की जरूरत नहीं पड़ती. 2001 में अमेरिकी काउंसिल ऑफ़ एडुकेशन के भाषण में कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी के रिचर्ड सी एटकिंसन ने कॉलेज में दाखिले के लिए SAT रिजिनिंग टेस्ट को छोड़ देने का आग्रह किया। "जो कोई भी शिक्षा के साथ जुड़ा हुआ है उसे चिंतित होना चाहिए कि SAT पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जाना किस तरह शिक्षा की प्राथमिकता और तरीकों को विकृत कर रहा है, किस तरह परीक्षा को अनुचित समझा जा रहा है और कैसे युवा छात्रों के आत्मसम्मान और उनकी आकांक्षाओं पर यह विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है। इस पर व्यापक सहमति है कि SAT पर ज्यादा जोर अमेरिकी शिक्षा को नुकसान पहुंचाता है।" कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी की सैट छोड़ने धमकियों के कारण दाखिले की जरूरत के लिए कॉलेज प्रवेशिका परीक्षा बोर्ड ने सैट के पुनर्गठन की घोषणा की, जो मार्च 2005 में लागू भी हो गया, जैसा कि विस्तार से ऊपर दिया गया है। MIT अध्ययन 2005 में, MIT लेखन निदेशक लेस पेरेलमैन ने नए SAT से प्रकाशित निबंधों से निबंध की लंबाई बनाम निबंध अंक पर विचार किया और उनके बीच व्यापक स्तर पर सह-संबंध पाया। 50 से अधिक वर्गीकृत निबंध का अध्ययन करने के बाद उन्होंने पाया कि लंबे निबंध पर लगातार अधिक अंक मिले हैं। वास्तव में, उनका कहना है कि 90 फीसदी से ज्यादा बार निबंध को बिना पढ़े ही केवल उसकी लंबाई मापकर अंक दे दिए गए लगते हैं। उन्होंने यह भी पाया कि इन निबंधों में कई तथ्यात्मक गलतियां भरी थीं, हालांकि कॉलेज बोर्ड तथ्यात्मक शुद्धता के लिए दर्जा देने का दावा नहीं करता है। पेरेलमैन के साथ नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स ऑफ इंग्लिश ने कक्षा में छात्रों के मानक लेखन शिक्षण को नष्ट करने के लिए परीक्षा में 25 मिनट के लेखन विभाग की समालोचना की है। वे कहते हैं कि लेखन शिक्षक SAT के लिए अपने छात्रों को संशोधन, गहराई, शुद्धता पर ध्यान केंद्रित नहीं करने का प्रशिक्षण देंगे; इसके बजाय लंबे, फार्मूलाबद्ध और शब्दों की भरमार वाले निबंध लिखना सिखाएंगे. पेरेलमैन अंत में कहते हैं, "आप छात्रों को बुरा लेखक बनाने का प्रशिक्षण देने के लिए शिक्षक नियुक्त कर रहे हैं।" परीक्षा की तैयारी SAT परीक्षा की तैयारी बहुत ही फायदेमंद क्षेत्र है। किताबों, कक्षाओं, ऑनलाइन पाठ्यक्रम, ट्यूटोरियल देने और हाल ही में बोर्ड गेम के जरिए बहुत सारी कंपनियां और संगठन परीक्षा की तैयारी कराने का प्रस्ताव देते हैं। कुछ लोगों ने SAT की आलोचना इसलिए की है क्योंकि अक्सर ही इसकी तैयारी कहीं अधिक अंक दिला सकती है, लेकिन कुछ छात्र अच्छे अंक प्राप्त करने का इसे एक अच्छा मौका मानकर इसका समर्थन करते हैं। परीक्षा की तैयारी के कुछ कार्यक्रमों की मदद से छात्रों के अंक में इजाफा होने की बात साबित हो गयी है, लेकिन दूसरों पर इसका खास असर नहीं पड़ा है। इन्हें भी देखें SAT के अधीन रहते हुए टेस्ट प्रवेश परीक्षा की सूची PSAT/NMSQT ACT (परीक्षा), एक कॉलेज के प्रवेश परीक्षा, SAT के लिए प्रतिस्पर्द्धी SAT कैलकुलेटर कार्यक्रम सन्दर्भ आगे पढ़ें कोयले, टी.आर. और पिल्लो, डि. आर. (2008). SAT और ACT अधिनियम जी को हटाने के बाद कॉलेज GPA की भविष्यवाणी करते है। इन्टेलीजेन्स, 36(6):719–729. फ्रे, एम.सी. और डेटरमैन, डी.के. (2003) शैक्षिक योग्यता या जी ? शैक्षिक योग्यता परीक्षा और जनरल संज्ञानात्मक योग्यता के बीच का रिश्ता. साइकोलोजिकल साइंस, 15(6):373–378। PDF गोल्ड, स्टीफन जे. द मिसमेशर ऑफ़ मैन डब्ल्यू. डब्ल्यू. नोर्टन & कंपनी; Rev/Expd संस्करण 1996. ISBN 0-393-31425-1. हॉफमैन, बनेश. द टिरैनी ऑफ़ टेस्टिंग . Orig. pub. कोलियर, 1962. ISBN 0-486-43091-X (और अन्य). ह्युबिन, डेविड आर "शैक्षिक योग्यता टेस्ट: इसका विकास और परिचय, 1900-1948 "एक पीएच.डी. ओरेगन, 1988 के विश्वविद्यालय में अमेरिकी इतिहास में शोध प्रबंध. डाउनलोड के लिए http://www.uoregon.edu/~hubin/ उपलब्ध ह्युबिन, डेविड आर "ग्रंथ सूची" शैक्षिक योग्यता टेस्ट के लिए: अपने विकास और परिचय, 1900-1948. ग्रंथ सूची में पृष्ठ 63 में पीएच.डी. 1988 अभिलेखीय सन्दर्भ, प्राथमिक सूत्रों का कहना है, ओरल इतिहास सन्दर्भ के साथ शोध प्रबंध. https://web.archive.org/web/20090305002353/http://www.uoregon.edu/~hubin/BIBLIO.pdf ओवेन, डेविड. नन ऑफ़ द अबव: द ट्रूथ बिहाइंड द SATs. संशोधित संस्करण. रोव्मन & लिटलफिल्ड, 1999. ISBN 0-8476-9507-7. सैक्स, पीटर. स्टैनडरडाइस्ड माइंड्स: द हाई प्राइस ऑफ़ अमेरिका'स टेस्टिंग कल्चर ऐंड व्हाट वी कैन डु टू चेंज इट . पेर्सेउस, 2001. ISBN 0-7382-0433-1. ज्विक, रेबेका. फैयर गेम? द युस ऑफ़ स्टैनडरडाइस्ड ऐडमिशंस टेस्ट इन हाइयर एडुकेशन . फल्मर, 2002. 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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5
हाल प्रभाव
PUSHPENDRA PAL जब किसी चालक में किसी दिशा में धारा प्रवाहित करते हुए धारा के लम्बवत दिशा में चुम्बकीय क्षेत्र लगाते हैं एक विद्युतवाहक बल उत्पन्न होता है जो धारा एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों के लम्बवत होता है। इस प्रभाव को हाल प्रभाव (Hall effect) कहते हैं तथा उत्पन्न विभव को "हाल वोल्टेज" कहा जाता है। इस प्रभाव की खोज एड्विन हाल ने सन् 1879 में की थी। इस प्रभाव के कई उपयोग हैं जैसे- हाल सेंसर इसी प्रभाव पर आधारित है। उपयोग वायु (या निर्वात) में किसी स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र (फ्लक्स घनत्व) का मापन किसी तार में बहने वाली धारा का मान का मापन हाल संसूचक (हाल सेन्सर) बाहरी कड़ियाँ Interactive Java tutorial on the Hall Effect National High Magnetic Field Laboratory Science World (wolfram.com) article. "The Hall Effect". nist.gov. Hall, Edwin, "On a New Action of the Magnet on Electric Currents". American Journal of Mathematics vol 2 1879. Spin Hall Effect Detected at Room Temperature Hall Effect Sensing and Application. Honeywell documentation on hall effect sensing, interfacing and applications. चुम्बकत्व
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मोहम्मद युनुस (अन्ना वीरता पदकधारक)
मोहम्मद युनुस भारत के प्रसिद्ध शहर चेन्नई में एक ई-कॉमर्स कंपनी "प्रोपो" (अंग्रेजी: PROPO) के सह-संस्थापक हैं। उनकी प्रसिद्धि का कारण 2015 में आने वाले भयंकर तूफान के दौरान सैकड़ों चेन्नई के निवासियों को किसी धर्म, समुदाय या जाति के भेदभाव के बिना जान बचाने का महान कार्य किया है जिसे वह एक नागरिक होने के कारण अपना नैतिक कर्तव्य समझकर अंजाम दिया था। प्रेरित करने वाली घटनाएँ युनुस के अनुसार नवंबर 2015 के अंत और दिसंबर के प्रारंभ में हुई विनाशकारी वर्षा के कारण चेन्नई शहर के कई परिवार बेघर हो गए, मृतकों की अच्छी खासी संख्या थी और जनता अनगिनत कठिनाइयों के शिकार थे। इसी समय युनुस की नज़र एक महिला पर पड़ी जो प्रसव-वेदना से पीड़ित थी और बरसात में घिरी थी। इसके चलते उन्होंने इस महिला को बाढ़ से निकाला, निकलते ही इस महिला ने एक बच्ची को जन्म दिया, उस बच्ची के माता पिता ने मोहम्मद युनुस के इस कार्य से प्रभावित होकर उसका नाम भी युनुस रख दिया। युनुस को इस बात का भी दुःख हुआ कि शहर में उनके दो घर हैं जबकि अधिकांश लोग बेघर और असहाय हैं। इसी सोच के कारण उन्होंने अपने दोनों घरों को सार्वजनिक शरणार्थी शिविरों में बदल दिया और खुद को योजनाबद्ध तरीके से बचाव कार्य में जुट गए। राहत और सहायता की गतिविधियाँ भारी वर्षा के बीच युनुस ने अपने दोस्तों की मदद से विपरीत हालतों में बेसनत नगर (अंग्रेजी: Besant Nagar) से दक्षिण पश्चिम चेन्नई ले जाकर लगभग 450 लोगों की जान बचाई। इसी तरह के अन्य मिशनों को उन्होंने उरापक्कम, पल्लीकारानी, मुडिचूर और अन्य स्थानों पर चलाए और कई सौ लोगों की जान बचाई। राहत कार्यों का नागरिकों पर सकारात्मक प्रभाव चेन्नई के निवासी युनुस की अपार मानवता के भाव से बहुत प्रभावित हुए। एक असहाय तमिल हिन्दू गर्भवती महिला जिसकी उन्होंने स्वयं जान बचाई थी, ने एक लड़की को बाद में जन्म दिया था। इस लड़की को इस महिला और उसके पति ने "युनुस" का नाम दिया। हालांकि मोहम्मद युनुस ने अपनी गतिविधियों को धर्म समुदाय की तंग सोच से परे होकर मानवता-दोस्ती से जोड़ने का प्रयास बताया और वह इसी के पक्षधर बने रहे। उन्होंने पीड़ित परिवार को सूचित किया कि वह नवजात युनुस के शैक्षिक खर्च वहन करने तैयार हैं। वीरता पुरस्कार तमिलनाडु सरकार ने मोहम्मद युनुस को 2016 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर अन्ना वीरता पदक (Anna Medal for Gallantry award) प्रदान किया। यह सम्मान उन्हें चेन्नई के तूफान के दौरान "निस्वार्थ, साहसी और नेक कार्य" (selfless, brave and noble act) शैली में 600 लोगों की नौकाओं के माध्यम से जान बचाने के कारण दिया गया था। कुछ अनुमानों से बचाए गए लोगों की यह संख्या 2,100 बताई गई है। इस अवसर पर युनुस ने युवाओं को एक दूसरे की मदद के लिए आगे आने के लिए एक मोबाइल ऍप शुरू करने की भी घोषणा की। सन्दर्भ 1989 में जन्मे लोग चेन्नई के लोग भारतीय मुस्लिम मानवतावादी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%97
ताइचुंग
ताइचुंग, आधिकारिक तौर पर ताईचुंग शहर (; फीनयीन: ताईझोंग शि) के नाम से जाना जाता है, यह मध्य-पश्चिमी ताइवान में स्थित एक विशेष नगरपालिका है। ताइचुंग की जनसंख्या लगभग 2.78 मिलियन है और यह आधिकारिक तौर पर जुलाई 2017 से ताइवान का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाले शहर के रूप में सुचीबद्ध है। वर्तमान शहर का गठन तब हुआ जब ताईचुंग जिले को मूल प्रांतीय ताइचुंग शहर के साथ 25 दिसंबर 2010 को विलय कर विशेष नगर पालिका बनाया गया। मध्य ताइवान में ताइचुंग बेसिन में स्थित यह शहर, जापानी शासन के दौरान एक प्रमुख आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था। यह शहर प्राकृतिक विज्ञान के राष्ट्रीय संग्रहालय और ललित कला के राष्ट्रीय ताइवान संग्रहालय का घर है, साथ ही यहाँ ऐतिहासिक ताइचुंग पार्क, लिन फ्राइडेली गार्डन और कई मंदिरों सहित कई सांस्कृतिक स्थलों मौजुद है। भूगोल ताईचुंग शहर, मुख्य पश्चिमी तटीय मैदान के साथ ताइचुंग बेसिन में स्थित है। जो पश्चिमी तट पर उत्तरी ताइवान से लगभग दक्षिणी सिरे तक फैला हुआ है। शहर की सीमाएं चांग्आ जिले, नंतौ जिले, हुअलिएन जिले, यिलान जिले, सिंचू जिले और मियाओली जिले से मिलती हैं। ताइचुंग की जलवायु एक उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु और एक गर्म नम उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु के बीच की है, औसतन वार्षिक तापमान 23.3 डिग्री सेल्सियस (73.9 डिग्री फारेनहाइट) के साथ जुलाई और अगस्त में वर्ष के उच्च तापमान रहते हैं, जबकि जनवरी और फरवरी में सबसे कम तापमान होता है। औसतन वार्षिक वर्षा केवल 1,700 मिलीमीटर (67 इंच) से ऊपर है, और औसतन आर्द्रता 80% है। पूर्व में मध्य पर्वत श्रंखला और उत्तर में मिओली पर्वतमाला द्वारा प्रदत्त सुरक्षा के कारण, ताइचुंग समुद्री तुफान से कम प्रभावित है। हालांकि, दक्षिण चीन सागर से समय-समय पर उभरते समुद्री तुफान (टायफून) से शहर को खतरा बना रहता है, क्योंकि 1986 में आये एक तुफान (टायफून वेन), ताइवान के पश्चिमी तट पर ताइचुंग तक पहुच गया था। जनसांख्यिकी सन्दर्भ ताइवान के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE
गोटमार मेला
गोटमार मेले का आयोजन महाराष्ट्र की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुरना कस्बे में हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन किया जाता है। मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों की इस क्षेत्र में बहुलता है और मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है। शब्द के अनुरूप मेले के दौरान पांढुरना और सावरगांव के बीच बहने वाली नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस घटना में कई लोग घायल हो जाते हैं। इस पथराव में कुछ लोगों की मृत्यु के मामले भी हुए हैं। परंपरा इसकी शुरुआत 17वीं ई. के लगभग मानी जाती है। नगर के बीच में नदी के उस पार सावरगांव व इस पार को पांढुरना कहा जाता है। कृष्ण पक्ष के दिन यहां बैलों का त्यौहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन साबरगांव के लोग पलाश वृक्ष को काटकर जाम नदी के बीच गाड़ते है उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। दूसरे दिन सुबह होते ही लोग उस वृक्ष की एवं झंडे की पूजा करते है और फिर प्रात: 8 बजे से शुरु हो जाता है एक दूसरे को पत्थर मारने का खेल। ढोल ढमाकों के बीच भगाओ-भगाओ के नारों के साथ कभी पांढुरना के खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं तो कभी सावरगांव के खिलाड़ी। दोनों एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढ़केलने का प्रयास करते है और यह क्रम लगातार चलता रहता है। दर्शकों का मजा दोपहर बाद 3 से 4 के बीच बढ़ जाता है। खिलाड़ी चमचमाती तेज धार वाली कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए उसके पास पहुंचने की कोशिश करते हैं। ये लोग जैसे ही झडे के पास पहुंचते हैं साबरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की भारी मात्रा में वर्षा करते है और पाढुर्णा वालों को पीछे हटा देते हैं। शाम को पांढुरना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं भगाओ-भगाओ के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते है और झंडा तोड़ने वाले खिलाड़ी झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है। झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है। पत्थरबाजी की इस परंपरा के दौरान जो लोग घायल होते है, उनका शिविरों में उपचार किया जाता है और गंभीर मरीजों को नागपुर भेजा जाता है। किवदंती इस मेले के आयोजन के संबंध में कई प्रकार की किवंदतियां हैं। इन किवंदतियों में सबसे प्रचलित और आम किवंदती यह है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुरना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुरना का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुरना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांढुरना पक्ष एवं सावरगाँव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर माँ चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में माँ चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है। प्रशासनिक कार्रवाई आस्था से जुड़ा होने के कारण इसे रोक पाने में असमर्थ प्रशासन व पुलिस एक दूसरे का खून बहाते लोगों को असहाय देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते। निर्धारित समय अवधि में पत्थरबाजी समाप्त कराने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को बल प्रयोग भी करना पड़ता है। कई बार प्रशासन ने पत्थरों की जगह तीस हजार रबर की छोटे साइज की गेंद उपलब्ध कराई थी, परंतु दोनों गांवों के लोगों ने गेंद का उपयोग नहीं करते हुए पत्थरों का उपयोग ही किया था। थकहार कर प्रशासन ने दोनों गांवों के लोगों को नदी के दोनों किनारों पर पत्थर उपलब्ध कराना शुरू किया था। लेकिन वर्ष 2009 में मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के बाद छिंदवाड़ा जिला प्रशासन ने पांढुरना एवं सावरगांव के बीच होने वाले गोटमार मेले में पत्थर फेंकने पर रोक लगाते हुए मेला क्षेत्र में छह दिनों के लिए धारा 144 लागू कर दी। बुराइयां गोटमार मेले में समय के साथ कई बुराइयां भी शामिल हो गई हैं। गोटमार के दिन ग्रामीण मदिरा पान करते हैं तथा प्रतिबंधों के बावजूद गोफन के माध्यम से तीव्र गति और अधिक दूरी तक पत्थर फेंकते हैं जिससे दर्शकों के घायल होने का खतरा बढ़ जाता है। जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के उपाय किए जाते हैं। पांढुरना में इस दिन शराब विक्रय पर पाबंदी लगाई जाती है तथा गोफन से पत्थर फेंकने वालों की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है। प्रतिबंध के बावजूद भी पत्थर फेंकने वाले खिलाड़ी एवं अन्य कई लोग शराब के नशे में घूमते दिखाई पड़ते हैं। परंपरा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0
दयाकोर
दयाकोर या दयाकौर एक छोटासा सा गांव है जो भारतीय राज्य राजस्थान के जोधपुर ज़िले के अंतर्गत आता है तथा यह फलोदी तहसील में आता है। पीलवा ,जालोड़ा ,कुशलावा। इत्यादि इनके पड़ोसी गाँव हैं। यहां विभिन्न जातियां निवास करती है तथा हिंदुओं के अलावा मुस्लिम धर्म के लोग भी निवास करते है। दयाँकोर गाँव में से होकर एक राजीव गांधी लिफ्ट नहर बहती हैं , इसी के अतिरिक्त 'पीलवा, सदरी, जंभेश्वर नगर जल परियाेजना' का हेड क्वार्टर भी तेली पुलिया दयाँकोर हैं | सन्दर्भ फलोदी तहसील के गांव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BE%20%E0%A4%A1%E0%A5%80%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE
अरविंदा डी सिल्वा
अरविंदा डी सिल्वा देशबंधु पिनाडुवागे अरविंदा डी सिल्वा (; जन्म 17 अक्टूबर 1965) श्रीलंका के पूर्व क्रिकेटर और पूर्व कप्तान हैं। वह इंग्लिश काउंटी क्रिकेट में भी खेल चुके हैं। व्यापक रूप से श्रीलंका द्वारा निर्मित सबसे महान बल्लेबाजों में से एक के रूप में माना जाता है, डी सिल्वा ने श्रीलंका को 1996 का क्रिकेट विश्व कप जीतने में मदद की और श्रीलंका को आज की स्थिति से हटा दिया। उन्होंने 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद श्रीलंका क्रिकेट में विभिन्न पदों पर रहे। अरविंदा विश्व कप फाइनल में शतक बनाने और तीन या अधिक विकेट लेने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं। वह एक टेस्ट में दो नाबाद शतक बनाने वाले पहले व्यक्ति हैं, जहां उन्होंने 1997 में पाकिस्तान के खिलाफ 138 और 103 रन बनाए थे। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C
फोरेंसिक खोज
फोरेंसिक खोज कंप्यूटर फोरेंसिक का एक उभरता हुआ क्षेत्र है। फॉरेंसिक खोज किसी उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए डेटा जैसे ईमेल फाइलें, मोबाइल फोन के रिकॉर्ड, कार्यालय दस्तावेज, पीडीऍफ और अन्य फाइलों पर ध्यान केन्द्रित करता है। यह वह चीजें हैं जिसकी किसी व्यक्ति द्वारा आसानी से व्याख्या की जा सकती है। फोरेंसिक खोज क्यों जब ज्यादातर मामलों में उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गये डेटा में मिला सबूत ही सबसे उपयोगी हो। खासकर जब किसी उपयोगकर्ता के कंप्यूटर की पूरा कंप्यूटर फोरेंसिक विश्लेषण की उच्च लागत कम की जा जानी हो। योग्य कंप्यूटर फोरेंसिक विशेषज्ञों की कमी होने के कारण। पुलिस या अन्य सुरक्षा एजेंसी में अपराधिक मामलों के जमाव को कम करने के लिये। उन जगह जहां कंप्यूटर आधारित सूचना की समीक्षा की आवश्यकता होती है। फोरेंसिक खोज सॉफ्टवेयर के उच्च स्तर की कार्यशीलता फोरेंसिक खोजें सॉफ्टवेयर की विशिष्ट विशेषताएं हैं: कंप्यूटर फोरेंसिक ज्ञान की कम या बिल्कुल भी जानकारी ना रखने वाला समीक्षक भी विभिन्न प्रकार के डेटा को संसाधित करने की क्षमता रखता है सभी डेटा और संसाधित डेटा प्रकार में खोजशब्द खोजने की क्षमता रखता है डेटा में खोजना या नहीं खोजना जैसी जटिल खोजों को बनाने की क्षमता फ़ाइलों और डेटा की खोज और पहचान करने के लिए एमडी ५ और अन्य एल्गोरिदम का उपयोग मेटाडाटा द्वारा जैसे तारीखों, ईमेल पते और फ़ाइल प्रकारों के आधार पर खोज फिल्टर करने की क्षमता एक ही खोज परिणामों में टाइप किए गए विभिन्न डेटा की समीक्षा करने की क्षमता एक ही यूजर इंटरफेस में सभी परिणाम को देखने की क्षमता। सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान
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बचरा, बभनी, सोनभद्र
बचरा, बभनी (अंग्रेजी:Bachara, Babhani) सोनभद्र जिले मे एक गॉव है, जो बभनी ब्लॉक मे स्थित है। बचरा मे स्थित प्राथमिक विद्यालय सोनभद्र ज़िले के गाँव चर्चित व्यक्ति 1. राजकुमार भारती उर्फ बासदेव, ग्राम प्रधान 2. रविन्दर, ग्राम सचिव ३. सहजादे, सामाजिक कार्यकर्ता, बीजेपी नेता नदी और पोखरा 1. बचरा नदी सेमरिया बाँध से निकलने वाली नदी 2. अज़ीर नदी बचरा और चपकी गॉव के बार्डर पे बहने वाली नदी 3. रिवयी पोखरा बचरा विद्यालय प्राथमिक विद्यालय बचरा मन्दिर और धार्मिक स्थल शिव मन्दिर बचरा बाजार बचरा, बाजार, सोनभद्र संदर्भ विकि विलेज पर बचरा ^ https://web.archive.org/web/20190326070756/https://www.wikivillage.in/village/uttar-pradesh/sonbhadra/babhani/bachara
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भारतीय मनोविज्ञान
भारतीय मनोविज्ञान भारत में अति प्राचीन काल से आज तक हुए मनोवैज्ञानिक अध्ययनों और अनुसंधानों का समग्र रूप है।'भारतीय' कहने से यही तात्पर्य है कि भारतीय संस्कृति की पृष्टभूमि में जिस मनोविज्ञान का विकास हुआ वह इस क्षेत्र में भारत का विशेष योगदान माना जा सकता है। भारतीय मनोविज्ञान की विशेषताएँ दर्शन की शाखा आत्मा का विज्ञान व्यावहारिक अतिसामन्य (सुपर नॉर्मल) तत्त्वों का विवेचन मनोशारीरिक (साइको-फिजिकल) चेतना के चार स्तर : जागृत, स्वप्न, सुसुप्त और तुरीय पंचकोष : अन्नमयकोष, प्राणमयकोष, मनोमयकोष, विज्ञानमयकोष, आनन्दमयकोष अणु में विभु भौतिक शरीर के अतिरिक्त सूक्ष्मशरीर तथा कारण शरीर धार्मिक मनोविज्ञान - भारतीय मनोविज्ञान आत्मविकास और चरित्र-निर्माण में सर्वाधिक उपयोगी हो सकता है। मानव व्यक्तित्व की संरचना : मनुष्य में ५ कर्मेन्द्रियाँ और ५ ज्ञानेन्द्रियाँ है, इनके ऊपर मन और मन के परे बुद्धि है।इनके अलावा मनुष्य मूल रूप से आत्मा, पुरुष अथवा जीव है जो व्यक्तित्व की समस्त संरचना को चलाता है। उपनिषदों और गीता में दी गयी व्यक्तित्व की यह संरचना ही षड्दर्शनों एवं विचार के अन्य क्षेत्रों में भी दिखायी देती है। भारत में मनोविज्ञान का विकास भारतीय दार्शनिक परंपरा इस बात में धनी रही है कि वह मानसिक प्रक्रियाओं तथा मानव चेतना, स्व, मन-शरीर के संबंध तथा अनेक मानसिक प्रकार्य जैसे- संज्ञान, प्रत्यक्षण, भ्रम, अवधान तथा तर्कना आदि पर उनकी झलक के संबंध में केंद्रित रही है। दुर्भाग्य से भारतीय परंपरा की गहरी दार्शनिक जड़ें भारतवर्ष में आधुनिक मनोविज्ञान के विकास को नहीं प्रभावित कर सकी हैं। भारत में इसके विकास पर पाश्चात्य मनोविज्ञान का भी प्रभुत्व निरंतर बना हुआ है, यद्यपि यहाँ एवं विदेश में भी इसकी एक अलग पहचान के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं और कुछ बिंदु सुनिश्चित किए गए हैं। इन प्रयासों ने वैज्ञानिक अध्ययनों के माध्यम से भारतीय दार्शनिक परंपरा की बहुत सी मान्यताओं की सत्यता स्थापित करने का यत्न किया है। भारतीय मनोविज्ञान का आधुनिक काल कलकत्ता विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में 1915 में प्रारंभ हुआ जहाँ प्रायोगिक मनोविज्ञान का प्रथम पाठ्यक्रम आरंभ किया गया तथा प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित हुई। कलकत्ता विश्वविद्यालय ने 1916 में प्रथम मनोविज्ञान विभाग तथा 1938 में अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान का विभाग प्रारम्भ किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय में आधुनिक प्रायोगिक मनोविज्ञान का प्रारम्भ भारतीय मनोवैज्ञानिक डॉ॰ एन.एन. सेनगुप्ता, जो वुण्ट की प्रायोगिक परंपरा में अमेरिका में प्रशिक्षण प्राप्त थे, से बहुत प्रभावित था। प्रोफेसर गिरीन्द्रशेखर बोस फ्रायड के मनोविश्लेषण में प्रशिक्षण प्राप्त थे- एक ऐसा क्षेत्र जिसने भारत में मनोविज्ञान के आरंभिक विकास को प्रभावित किया। प्रोफेसर बोस ने ‘इंडियन साइकोएनेलिटिकल एसोसिएशन’ की स्थापना 1922 में की थी। मैसूर विश्वविद्यालय एवं पटना विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के अध्यापन एवं अनुसंधान के प्रारंभिक केंद्र प्रारंभ हुए। प्रारंभ से मनोविज्ञान भारत में एक सशक्त विद्याशाखा के रूप में विकसित हुआ। मनोविज्ञान अध्यापन, अनुसंधान तथा अनुप्रयोग के अनेक केंद्र हैं। मनोविज्ञान में उत्कृष्टता अथवा वैशिष्ट्य के दो केंद्र उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा सहायता प्राप्त हैं। करीब 70 विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं। दुर्गानन्द सिन्हा ने अपनी पुस्तक ‘साइकोलॉजी इन ए थर्ड वर्ल्ड कन्ट्री : दि इंडियन एक्सपीरियन्स’ (1986 में प्रकाशित) में भारत में सामाजिक विज्ञान के रूप में चार चरणों में आधुनिक मनोविज्ञान के इतिहास को खोजा है। उनके अनुसार, प्रथम चरण स्वतन्त्रता की प्राप्ति तक एक ऐसा चरण था जब प्रयोगात्मक, मनोविश्लेषणात्मक एवं मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनुसंधान पर बहुत बल था जिससे पाश्चात्य देशों का मनोविज्ञान के विकास में योगदान परिलक्षित हुआ था। द्वितीय चरण में 1960 तक भारत में मनोविज्ञान की विविध शाखाओं में विस्तार का समय था। इस चरण में भारतीय मनोविज्ञानिकों की इच्छा थी कि भारतीय पहचान के लिए पाश्चात्य मनोविज्ञान को भारतीय संदर्भों से जोड़ा जाए। उन्होंने ऐसा प्रयास पाश्चात्य विचारों द्वारा भारतीय परिस्थितियों को समझने के लिए किया। फिर भी, भारत में मनोविज्ञान 1960 के बाद भारतीय समाज के लिए समस्या-केंद्रित अनुसंधानों द्वारा सार्थक हुआ। मनोवैज्ञानिक भारतीय समाज की समस्याओं के प्रति अधिक ध्यान देने लगे। पुनश्च, अपने सामाजिक संदर्भ में पाश्चात्य मनोविज्ञान पर अतिशय निर्भरता का अनुभव किया जाने लगा। महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिकों ने उस अनुसंधान की सार्थकता पर अधिक बल दिया जो हमारी परिस्थितियों के लिए सार्थक हों। भारत में मनोविज्ञान की नयी पहचान की खोज के कारण चतुर्थ चरण के रूप में 1970 के अंतिम समय में देशज मनोविज्ञान का उदय हुआ। पाश्चात्य ढाँचे को नकारने के अतिरिक्त भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने एक ऐसी समझ विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से सार्थक ढाँचे पर आधारित हो। इस रुझान की झलक उन प्रयासों में दिखी जिनसे पारंपरिक भारतीय मनोविज्ञान पर आधारित उपागमों का विकास हुआ, जो हमने प्राचीन ग्रन्थों एवं धर्मग्रन्थों से लिए थे। इस प्रकार इस चरण की विशेषता को देशज मनोविज्ञान के विकास, जो भारतीय सांस्कृतिक संदर्भ से उत्पन्न हुआ था तथा भारतीय मनोविज्ञान एवं समाज के लिए सार्थक था और भारतीय पारंपरिक ज्ञान पर आधारित था, द्वारा जाना जाता है। अब ये विकास सतत रूप से हो रहे हैं। भारत में मनोविज्ञान विश्व में मनोविज्ञान के क्षेत्र में सार्थक योगदान कर रहा है। इसी के साथ हम देखते हैं कि नए अनुसंधान अध्ययन, जिसमें तंत्रिका-जैविक तथा स्वास्थ्य विज्ञान के अन्तरापृष्ठीय स्वरूप समाविष्ट हैं, किए जा रहे हैं। भारत में मनोविज्ञान का अनुप्रयोग अनेक व्यावसायिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। मनोवैज्ञानिक मात्र विशिष्ट समस्याओं वाले बच्चों के साथ ही कार्य नहीं कर रहे हैं, वे चिकित्सालयों में नैदानिक मनोवैज्ञानिक के रूप में नियुक्त हो रहे हैं, मानव संसाधन विकास विभाग एवं विज्ञापन विभागों जैसे कंपनी संगठनों में, खेलकूद निदेशालयों में, विकास क्षेत्रक तथा सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगों में नियुक्त हो रहे हैं। इन्हें भी देखें योग गीता बाहरी कड़ियाँ भारतीय मनोविज्ञान (गूगल पुस्तक ; लेखक - रामनाथ शर्मा तथा अर्चना शर्मा) भारतीय मनोविज्ञान संस्कारों का मनोविज्ञान (अखिल विश्व गायत्री परिवार) A SHORT HISTORY OF INDIAN PSYCHOLOGY (V. GEORGE MATHEW, Ph.D) Introducing Indian psychology: the basics (Matthijs Cornelissen, Sri Aurobindo Ashram, Pondicherry) The International Journal of Indian Psychology Pondicheny Psychology Association प्राचीन मनोविज्ञान को भूल रहे हैं भारतीय (दलाई लामा) परम पावन दलाई लामा का डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल, नई दिल्ली में चिकित्सा कर्मचारियों के लिए संबोधन भारतीय मनोविज्ञान बनाम फ्रायड(पाश्चात्य) मनोविज्ञान मनोविज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A8
श्याम कुमारी खान
20 अक्टूबर 1904 को पैदा हुई। वह श्यामलाल नेहरू और उमा नेहरू की सबसे बड़ी संतान थी। उनके पिता श्यामलाल भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई थे। उन्होंने 7 दिसंबर 1937 को विशेष विवाह अधिनियम, 1872 के तहत अब्दुल जमील खान से शादी की और बाद में उन्हें 'श्याम कुमारी खान' के नाम से जाना जाने लगा। श्यामा कुमारी नेहरू ने 30 के उत्तरार्ध में शादी की जिसके कारण उन्हें "विवाह योग्य उम्र" के पश्चात माना जाता था। जब उसने अब्दुल जमील खान से विवाह किया तो उन्हें अपने परिवार से अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। हालांकि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र थी क्योंकि वह एक अभ्यास करने वाली वकील थी और वे दबाव का विरोध करने और शादी करने में सक्षम थी। उसके बाद परिवार ने इस सम्बंध को अपना लिया। उनके दो बच्चे हुए - कबीर कुमार खान और कमला कुमारी खान। 9 जून 1980 को 75 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। 1904 में जन्मे लोग १९८० में निधन भारतीय महिला वकील
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ब्याज दर
जमा किये गये, उधार दिये गये, या उधार लिये गये किसी धन पर प्रत्येक अवधि (period) में जिस दर से ब्याज लिया/दिया जाता है उसे ब्याज दर ( interest rate, या rate of interest) कहते हैं। उदाहरण के लिये, ब्याज दर ८ प्रतिशत वार्षिक हो तो इसका अर्थ है कि प्रत्येक १०० रूपये के जमा पर एक वर्ष में ८ रूपये ब्याज दिया जायेगा। किसी जमा किये/उधार लिये धन पर कुल ब्याज इन बातों पर निर्भर करता है- मूलधन, ब्याज की दर, चक्रवर्धन आवृत्ति (कम्पाउण्डिंग पिरियड), कुल अवधि जिसके लिये धन दिया/लिया गया है। आवर्धन अवधि एक वर्ष, आधा वर्ष, चौथाई वर्ष, एक माह आदि होता है। वित्त
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BF
ग्रन्थि
ग्रंथि कोशिकाओं का एक ऐसा समूह है जो शरीर के विकास के लिये आवश्यक हार्मोनों व प्रोटीन का स्त्रांव करती है व संश्लेषण करती हैं । परिचय जीवों के शरीर में अनेक ग्रंथियाँ होती हैं। ये विशेषतया दो प्रकार की हैं- एक वे जिनमें स्राव बनकर वाहिनी द्वारा बाहर आ जाता है। ये बहिःस्रावी ग्रंथि / exocrine gland कहलाती है । दूसरी वे जिनमें बना स्राव बाहर न आकर वहीं से सीधा रक्त में चला जाता है। ये अंतःस्रावी ग्रंथियाँ (endocrine gland) कहलाती है। कुछ ग्रंथियाँ ऐसी भी हैं जिनमें दोनों प्रकार के स्राव बनते हैं। एक स्राव वाहिनी द्वारा ग्रंथि से बाहर निकलता है और दूसरा वहीं रक्त में अवशोषित हो जाता है। लसीका ग्रन्थियाँ मानव-शरीर में सबसे अधिक संख्या लसीका ग्रंथियों (Lymbh glands) की है। वे असंख्य हैं और लसीका वाहिनियों (Lymphatics) पर सर्वत्र जहाँ-तहाँ स्थित हैं। अंग के जोड़ों पर तथा उदर के भीतर आमाशय के चारों ओर और वक्ष के मध्यांतराल में भी इनकी बहुत बड़ी संख्या स्थित है। ये वाहिनियों द्वारा परस्पर जुड़ी हुई हैं। वाहिनियों और इन ग्रंथियों का सारे शरीर में रक्तवाहिकाओं के समान एक जाल फैला हुआ है। ये लसीका ग्रंथियाँ मटर या चने के समान छोटे, लंबोतरे या अंडाकार पिंड होते हैं। इनके एक और पृष्ठ पर हलका गढ़ा सा होता है, जो ग्रंथि का द्वार कहलाता है। इसमें होकर रक्तवाहिकाएँ ग्रंथि में आती हैं और बाहर निकलती भी हैं। ग्रंथि के दूसरी ओर से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका को बाहर ले जाती है और दूसरी अपवाहिनियों के साथ मिलकर जाल बनाती है। ग्रंथि को काटकर सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने से उसमें एक छोटा बाह्य प्रांत दिखाई पड़ता है, जो प्रांतस्थ (कारटेक्स, cortex) कहलाता है। ग्रंथि में आनेवाली वाहिकाएँ इसी प्रांतस्थ में खुलती हैं। ग्रंथि का बीच का भाग अंतस्थ (Medulla) कहलाता है, जो द्वार के पास ग्रंथि के पृष्ठ तक पहुँच जाता है। यहीं से अपवाहिनी निकलती है, जो लसीका और ग्रंथि में उत्पन्न हुए उन लसीका स्त्रावों को ले जाती है जो अंत में मुख्य लसीकावाहिनी द्वारा मध्यशिरा में पहुँच जाते हैं। ।।।। अतः मनुष्य की सबसे बडी ग्रन्थि यकृत होती है....arlyf अन्य ग्रन्थियाँ यकृत (लीवर) शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि कहलाती है। प्लीहा, अग्न्याशय, अंडग्रंथि, डिंबग्रंथि - इन सबकी ग्रंथियों में ही गणना की जाती है। आमाशय की भित्तियों में बहुसंख्या में स्थित पाचनग्रंथियाँ जठर रस का निर्माण करती हैं। इसी प्रकार सारे क्षुद्रांत की भित्तियों में स्थित असंख्य ग्रंथियाँ भी रसोत्पादन करती हैं, जो आंत्र के भीतर पहुँचकर पाचन में सहायक होता है। कर्णमूल, जिह्वाघर तथा अधोहनु ग्रंथियाँ लालारस बनाती हैं, जिसका मुख्य काम कार्बोहाइड्रेट को पचाकर ग्लूकोज़ या डेक्सट्रोज़ बनाना है। त्वचा भी असंख्य सूक्ष्म ग्रंथियों से परिपूर्ण है, जो स्वेद (पसीना) तथा त्वग्वसा (Sebum) बनाती हैं। मानव शरीर की विभिन्न ग्रंथियां और स्रावित हार्मोन जीव विज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%90%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F
ऐफेनाइट
अदृश्यक्रिस्टली या ऐफेनाइट (Aphanite) ऐसे आग्नेय शैल होते हैं जिनके सूक्ष्मढांचे के क्रिस्टल का आकार इतना छोटा होता है कि उन्हें देखेने के लिए सूक्ष्मदर्शी आवश्यक है। इसके विपरीत फैनेराइट शैल (दृश्यक्रिस्टली) के सूक्ष्मढांचे का आकार बड़ा होता है और उन्हें बिना सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) की सहायता के देखा जा सकता है। ऐफेनाइट शैल तब बनते हैं जब मैग्मा तीव्रता से ठण्डा होता है, जिस से क्रिस्टल आकार बड़ा होने का समय नहीं मिलता। यह अक्सर ज्वालामुखीय स्थितियों में देखा जा सकता है। अदृश्यक्रिस्टलियों की रचना ओबसिडियन जैसे ज्वालामुखीय काँच से भिन्न होती है, क्योंकि ज्वालामुखीय काँचों का ढाँचा अक्रिस्टलीय होता है और वे देखने में काँच जैसे होते हैं। इन्हें भी देखें फैनेराइट (दृश्यक्रिस्टली) ज्वालामुखीय काँच आग्नेय शैल मैग्मा सन्दर्भ शैलविज्ञान आग्नेय शैलविज्ञान ज्वालामुखीय शैल उपज्वालामुखीय शैल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%A8
क्सेनोफोन
एथेंस के ज़ेनोफ़न या क्सेनोफोन (प्राचीन यूनानी : Ξενοφῶν; 430 से संभवतः 355 या 354 ईसा पूर्व) एक यूनानी सैन्य नेता, दार्शनिक और इतिहासकार थे, जिनका जन्म एथेंस में हुआ था । 30 साल की उम्र में, ज़ेनोफ़न को एकेमेनिड साम्राज्य की सबसे बड़ी यूनानी भाड़ोत्री सेनाओं में से एक, दस हजार का सेनाध्य्यक्ष चुना गया, जिसने 401 ईसा पूर्व में कूच कर बेबीलोन पर कब्ज़ा करने के करीब आ गया। जैसा कि सैन्य इतिहासकार थियोडोर एराल्ट डॉज ने लिखा है, "सदियों से इस योद्धा की प्रतिभा को पार करने के लिए कुछ भी नहीं पाया गया है"। ज़ेनोफ़ॉन ने कई सुप्रचालनिक ऑपरेशनों के लिए मिसाल कायम की, और युद्ध में रणनीतिक पार्श्विक प्रसाधन और भुलावा युद्धाभ्यास का वर्णन करने वाले पहले लोगों में से एक था।
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हैंस श्पेमान
हैंस श्पेमान (Hans Spemann ; सन् १८६९ - १९४१), जर्मनी के भ्रूणविज्ञानी थे जिन्हें १९३५ में चिकित्साविज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होने जिस प्रभाव का अध्ययन किया था उसे आजकल 'भ्रूण प्रेरण' (embryonic induction) कहा जाता है। परिचय हैंस श्पेमान का जन्म स्टटगार्ट (Stuttgort) में हुआ था और इन्होंने हाइडेलबर्ग, म्यूनिख तथा वर्टस् बुर्ख (Würzburg) में शिक्षा पाई थी। सन् १९०८ में रॉस्टॉक में, सन् १९१४ में कैसर विल्हेल्म इंस्टिट्यूट में तथा सन् १९१९ से फ्राइबुर्ख इम ब्राइसगॉउ (Freiburg im Brisgou) में ये प्रोफेसर नियुक्त हुए। श्पेमान विलक्षण प्रयोगकर्ता थे। इन्होंने भ्रूण के ऊतकों के रोपण की एक रीति का विकास किया। उभयचरों के भ्रूणविकास निर्धारण के कालिक तथा स्थैतिक संबंधों की खोज के लिए अपने अनेक प्रयोग किए। ये भ्रूणों में संगठनकेंद्रों के आविष्कर्ता थे। इन्होंने कोरकरंध्र (blastopore) के ओष्ठ के संगठन कर्म का सप्रयोग निदर्शन किया। इस उपलब्धि ने अन्य जीवों में इसी प्रकार के संगठनकेंद्रों का पता लगाने तथा पहचानने की रीतियों से संबंधित रासायनिक अध्ययनों को जन्म दिया। सन् १९३५ में आपकी खोजों के उपलक्ष्य में आपको नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन्दर्भ नोबेल पुरस्कार विजेता प्राणिविज्ञानी
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बाबा मुहम्मद यहया ख़ान
बाबा मुहम्मद यहया खान एक सूफी हैं। वह दुनिया भर में कई लोगों के आध्यात्मिक गुरु हैं। बाबा जी स्वयं को माल्यामी आदेश की आध्यात्मिकता के दुर्वाश के रूप में पेश करते हैं। बाबा जी ने अपने जीवन में कई अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा और स्टेज शो आदि में काम किया है। उन्होंने बाबा बुल्ले शाह, मियाँ मोहम्मद बख्श और कई अन्य के रूप में विभिन्न भूमिकाएँ निभाई हैं। बाबा जी ने विभिन्न पुस्तकों जैसे पिया रँग काला, काजल कोठा आदि के माध्यम से अपने सूफी विचारों का प्रसार किया है। इन रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है। बाबा जी का जन्म 7 सितंबर 1936 को सियालकोट ब्रिटिश भारत में हुआ था। वह अल्लामा इक़बाल, अशफ़ाक़ अहमद, मुमताज़ मुफ़्ती, बानो कडसिया से निकटता से जुड़ा हुआ है। साहित्यिक कृतियाँ वह अपनी पुस्तकों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। वह कई पुस्तकों के लेखक हैं। पिया रंग काला काजल कोठा शब देदे ले बाबा अबाबील मूम की मूरत मन मंदिर मन मसजिद बाबा ब्लैक शीप (आगामी) संदर्भ सूफीवाद 1936 में जन्मे लोग पाकिस्तानी लोग
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रघबीर सिंह भोला
रघबीर सिंह भोला (21 अगस्त 1927 - 21 जनवरी 2019) एक भारतीय वायु सेना अधिकारी और अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी थे, जिन्होंने 1956 में मेलबर्न और 1960 के रोम ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और देश के लिए क्रमशः स्वर्ण और रजत पदक जीता था। खेलों से सन्यास के बाद वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ की चयन समिति के सदस्य रहे। वह अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ के अंतर्राष्ट्रीय अंपायर, भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर, टीवी कमेंटेटर और ओलंपिक खेलों में सरकारी पर्यवेक्षक भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 2000 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। 21 जनवरी 2019 को उनका 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। सन्दर्भ भारत के हॉकी खिलाड़ी हॉकी
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सामी-हामी भाषा-परिवार
सामी-हामी (अथवा अफ़्रो-एशियाई) भाषा-परिवार (अंग्रेज़ी : :en:Afro-Asiatic languages) मध्य-पूर्व (एशिया) और उत्तरी अफ़्रीका की कई सम्बन्धित भाषाओं का समूह है। इस परिवार की सामी शाखा साउदी अरब, फ़िलिस्तीन, इस्राइल, इराक़, सीरिया (शाम), मिस्र, यार्दन, इथियोपिया, तुनीसिया, अल्जीरिया, मोरोक्को, इत्यादि में और हामी शाखा लीबिया, सोमालीलैंड, मिस्र और इथियोपिया में फ़ैली हुई हैं। इसकी शामी शाखा में इब्रानी, अरबी, अरामी, प्राचीन सुमेरियाई शामिल हैं और हामी शाखा में प्राचीन मिस्री, कॉप्टिक, सोमाली, गल्ला, नामा, आदि भाषाएँ आती हैं। इस वर्ग की भाषाएँ अन्तर्मुखी श्लिष्ट-योगातमक होती हैं। उदाहरण के तौर पर अरबी में क्-त्-ल् (मारना) धातु से बीच में स्वर घुसाने पर कई नये शब्द बनते हैं, जैसे : कत्ल (हत्या), कातिल (हत्यारा), कित्ल (दुश्मन) और यक्तुल (वो मारता है)। भाषा-परिवार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%B2%20%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%20%28%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%29
मंत्रिमण्डल सचिवालय (भारत)
यह भारत की राजधानी नई दिल्ली में, रायसीना की पहाङी पर स्थित है। यहाँ भारत सरकार का केन्द्रीय सचिवालय है। इसमें दो इमारतें, बिलकुल एक जैसी, पर प्रतिबिम्ब रूप में राजपथ के उत्तर व दक्षिण में स्थित हैं। इनमें प्रमुख मन्त्रालय के कार्यालय भी स्थित हैं। प्रमुख मन्त्रालय रक्षा मन्त्रालय वित्त मन्त्रालय गह मन्त्रालय विदेश मन्त्रालय प्रधान मन्त्री का कार्यालय और उनकी कार्यप्रणाली व्यवस्था यह सचिवालय दो इमारतों में विस्तृत है: उत्तरी खण्ड या नॉर्थ ब्लॉक यहां मुख्यतः वित्त मन्त्रालय एवं गह मन्त्रालय स्थित हैं। दक्षिणी खण्ड या साउथ ब्लॉक यहाँ मुख्यतः रक्षा मन्त्रालय, विदेश मन्त्रालय एवं प्रधान मन्त्री का कार्यालय स्थित है। इन्हें भी देखें राष्ट्रपति भवन इण्डिया गेट राजपथ भारत सरकार सन्दर्भ सचिवालय, केन्द्रीय सचिवालय, केन्द्रीय
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%95%20%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE
संगणक आचरणशास्त्र की परिभाषा
व्यक्तिगत या समूह द्वारा कंप्यूटर/संगणक का उपयोग करते समय कौन-सा वर्तन स्वीकृत है इस पर शासन करनेवाले नैतिक सिध्दान्तों का समुच्चय आचरणशास्त्र या एथिक्स् है। संगणक आचरणशास्त्र नैतिक सिध्दान्तों का एक समुच्चय है जो संगणक के उपयोग पर शासन करता है। संगणक आचरणशास्त्र के साधारण मुद्दों में से एक है प्रतिलिप्यधिकार/कॉपीराइट विषयों का उल्लंघन। लेखकों के अनुमोदन के बिना उनकी प्रतिलिप्याधिकृत/कॉपीराइटेड समाविष्टियों की नकल करना, दूसरों की व्यक्तिगत जानकारी तक पहुँचना आचरणशास्त्र सिध्दान्तों के उल्लंघन में से कुछ के उदाहरण हैं। कंप्यूटर
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विलापाक्कम
विलापाक्कम (Vilapakkam) भारत के तमिल नाडु राज्य के वेल्लूर ज़िले में स्थित एक नगर है। जैन गुफा यहाँ का पहाड़ी क्षेत्र स्थानीय रूप से "पंच पाण्डव मलई" के नाम से जाना जाता है (मलई तमिल भाषा में पहाड़ के लिए शब्द है)। पूर्व-मध्य काल में विलापाक्कम जैन धर्म का केन्द्र था और यहाँ एक तक्षित-शिला मन्दिर है, जिसमें प्राकृतिक गुफाओं में महान जैन व्यक्तित्वों की प्रतिमाएँ और शिलालेख बने हुए हैं। इन्हें भी देखें वेल्लूर ज़िला तक्षित-शिला वास्तुकला सन्दर्भ तमिल नाडु के शहर वेल्लूर ज़िला वेल्लूर ज़िले के नगर तमिल नाडु में पुरातत्व स्थल जैन तक्षित-शिला वास्तुकला
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इग्लेसिया दे ला दिविना पास्तोरा
इग्लेसिया दे ला दिविना पास्तोरा एक गिरजाघर है जो सान फ़रनानदो, कादिज़, अन्दालुसिया, स्पेन में स्थित है। इसका निर्माण अठारहवीं सदी में हुआ था। बाहरी कड़ियाँ Spain By Zoran Pavlovic, Reuel R. Hanks, Charles F. Gritzner Some Account of Gothic Architecture in SpainBy George Edmund Street Romanesque Churches of Spain: A Traveller's Guide Including the Earlier Churches of AD 600-1000 Giles de la Mare, 2010 - Architecture, Romanesque - 390 pages A Hand-Book for Travellers in Spain, and Readers at Home: Describing the ...By Richard Ford The Rough Guide to Spain स्पेन के गिरजाघर स्पेन के स्मारक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%20%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%88%E0%A4%B8%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
डकवर्थ लुईस नियम
डकवर्थ लुईस नियम क्रिकेट के सीमित मैच के दौरान किसी प्रकार की प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों एवं अन्य स्थितियों में अपनाया जाने वाला नियम है, ताकि मैच अपने निर्णय तक पहुँच सके। यह नियम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। इस नियम के तहत घटाए गए ओवरों में नए लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। इस लक्ष्य निर्धारण विधि को एक ख़ास सांख्यिकीय सारणी की मदद से निकाला जाता है जिसका संशोधन समय-समय पर होता रहता है। इस नियम का विकास इंग्लैंड के दो सांख्यिकी के विद्वान फ्रैंक डकवर्थ और टौनी लुईस ने किया था। गणना आईसीसी की खेल नियमावली से सम्बंधित पुस्तक के अनुसार पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम को टीम १ और उनके पूरे रनों की संख्या को एस (S), टीम १ के पास उनकी पारी में उपलब्ध सभी स्रोतों को आर१ (R1), द्वितीय पारी में बल्लेबाजी करने वाली टीम को टीम २ और उनके पास उपलब्ध सभी संसाधनों को आर२ (R2) कहा जाता है। मानक संस्करण प्रकाशित सन्दर्भ सारणी के अनुसार शेष ओवरों में कमी से कुल उपलब्ध संसाधनों को कम करता है। अतः टीम २ का लक्ष्य निम्न प्रकार परिवर्तित होता है: यदि R2 < R1, टीम २ का लक्ष्य कुल संसाधनों में कमी के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात S × R2/R1. यदि R2 = R1, टीम २ के लक्ष्य में किसी तरह के समायोजन की आवश्यकता नहीं है।(R1=R2) यदि R2 > R1, टीम २ के लक्ष्य में रनों कि संख्या में वृद्धि, उपलब्ध अतिरिक्त संसाधनों के अनुसार बढ़ा दी जाती है। अर्थात S + G50 × (R2 – R1)/100, जहाँ G50 (जी५०) कुल ५०-ओवर का औसत है। टीम २ का लक्ष्य उपलब्ध संसाधनों के अनुक्रमानुपाती नहीं होता अर्थात यह S × R2/R1 के अनुसार नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि यदि टीम १ ने [पावरप्ले ओवरों में] उच्च रन रैट प्राप्त कर ली हो और बारिस के कारण ओवरों की संख्या में भारी कटौती की गयी हो तो टीम २ के लिए लक्ष्य अनावश्यक रूप से विशाल हो सकता है। इसके बजाय D/L मानक संस्करण टीम १ की तुलना में टीम २ के पास उपलब्ध अतिरिक्त संसाधनों से औसत प्रदर्शन की उम्मीद करता है। जी५० जी५० (G50) प्रथम पारी मे खेल रही टीम के बिना किसी बाधा के खेले जाने की स्थिति में ५० ओवर में प्राप्त औसत स्कोर का मान है। यह प्रतिस्पर्धा के स्तर और समय के अनुसार परिवर्तित होता है। आईसीसी की की वार्षिक खेल पुस्तक में डी/एल मानक संस्करण के लिए लागू किये जाने वाले मानों का प्रतिवर्ष निर्धारण करता है: डकवर्थ और लुईस ने लिखा, 'हम स्वीकार करते हैं कि जी५०, शायद, सभी देशों अथवा सभी मैदानों के लिए अलग होना चाहिए और इसका कोई कारण नहीं है कि कोई भी क्रिकेट प्राधिकरण के अनुसार किसी भी सबसे विश्वसनीय मान को नहीं चुन सकता है। वास्तव में मैच आरम्भ होने से पूर्व दोनों क्रिकेट टीमों के कप्तान सभी कारकों को ध्यान में रखते हुये जी५० के मान पर सहमत हों।' व्यावसायिक संस्करण शेष ओवर, बल्लेबाजी करने वाली टीम के उपलब्ध संसाधनों में कमी की गणना के आधार पर टीम २ का लक्ष्य निम्न प्रकार परिवर्तित किया जाता है: यदि R2 < R1, टीम २ का लक्ष्य उपलब्ध स्रोतों के अनुक्रमानुपाती रूप से कम कर दिया जाता है अर्थात S × R2/R1 हो जाता है। यदि R2 = R1, टीम २ के लक्ष्य में किसी तरह के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। यदि R2 > R1, टीम २ का लक्ष्य उपलब्ध शेष संसाधनों के अनुक्रमानुपाती रूप से बढ़ाया जाता है अर्थात टीम २ का लक्ष्य . S × R2/R1 हो जाता है। पूर्व के विवरण में दी गयी अनावश्यक उच्च स्कोर की समस्या को पैशेवर खेल में अभिभूत करने के लिए, टीम १ की शेष संसाधन सारणी अलग से तैयार की जाती है। अतः R2 > R1 की स्थिति में टीम २ का लक्ष्य साधारण रूप से उपलब्ध संसाधनों के अनुक्रमानुपाती रूप से बढ़ाया जा सके और इस अवस्था में जी५० जैसा कुछ नहीं होता। हालांकि, व्यावसायिक संस्करण के लिए काम में ली जाने वाली संसाधन प्रतिशत की सारण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। अतः इसकी गणना के लिए उचित सोफ्टवेयर के साथ कंप्यूटर काम में लिया जाना चाहिए। सन्दर्भ क्रिकेट के नियम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A5%80
गौरा देवी
गौरा देवी (अंग्रेजी : Gaura Devi) जिनका जन्म १९२५ में उत्तराखंड के लाता गाॅंव में हुआ था। इन्हें चिपको आन्दोलन की जननी माना जाता है। उस वक़्त गाॅंव में काफी बड़े-बड़े पेड़ -पौधे थे जो कि पूरे क्षेत्र को घेरे हुए थे। इनकी शादी मात्र १२ वर्ष की उम्र में मेहरबान सिंह के साथ कर दी थीं , जो कि नज़दीकी गांव रेणी के निवासी थे। मेहरबान सिंह किसान को बहुत सारे कोड़ों की मार झेलनी पड़ी शादी के १० वर्ष उपरांत मेहरबान की मृत्यु हो जाने के कारण गौरा देवी को अपने बच्चे का लालन - पालन करने में काफी दिक्कतें आई थीं। कुछ समय बाद गौरा महिला मण्डल की अध्यक्ष भी बन गई थी। अलाकांडा में चंडी प्रसाद भट्ट तथा गोविंद सिंह रावत नामक लोगों ने अभियान चलाते हुए सन् १९७४ में २५०० देवदार वृक्षों को काटने के लिए चिन्हित किया गया था लेकिन गौरा देवी ने इनका विरोध किया और पेड़ों की रक्षा करने का अभियान चलाया, इसी कारण गौरा देवी चिपको वूमन के नाम से जानी जाती है। दस साल बाद देवी ने एक साक्षात्कार में कहा था की भाइयों ये जंगल हमारा माता का घर जैसा है यहां से हमें फल ,फूल ,सब्जियां मिलती अगर यहां के पेड़ - पौधे काटोगे तो निश्चित ही बाढ़ आएगी। गौरा देवी अपने जीवन काल में कभी विद्यालय नहीं जा सकी थीं। चिपको वूमन'' के नाम से जाने वाली गौरा देवी का निधन ६६ वर्ष की उम्र में ०४ जुलाई १९९१ में हो गया था। गोरा देवी को इन्हें भी देखें चिपको आन्दोलन सन्दर्भ १९९१ में निधन 1925 में जन्मे लोग प्रकृति प्रेमी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%97
सिसोदिया रानी बाग
सिसोदिया रानी बाग एक बाग तथा महल है जो भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर से 6 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण सवाई जयसिंह ने 1728 में करवाया था। 1991 में एक भारतीय हिंदी फ़िल्म लम्हें की शूटिंग भी यहीं की गई थी। उस फ़िल्म में अनिल कपूर तथा श्री देवी ने अभिनय किया था। यह बाग बहुत सुंदर है। सवाई जयसिंह ने अपनी मेवाड़ महारानी चन्द्रकंवर के लिए इस महल का निर्माण करवाया था इस महल में सिसोदिया रानी चन्द्रकंवर ने 1728 में माधोसिंह प्रथम को जन्म दिया। सन्दर्भ राजस्थान के महल महल जयपुर के पर्यटन स्थल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%B2%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%98%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A5%80
जलयान की घंटी
जलयान की घंटी () आमतौर पर पीतल का बना होता है तथा इसपे जलयान का नाम छपा होता है। जलयान की घंटी का मुख्य रूप से प्रयोग समय को विनियमित करने में होता है। इसका प्रयोग कोहरे कि स्थिति में जलयान यात्रियों को सचेत करने में भी होता है। बाहरी कड़ियाँ Bells at Sea The Ship's Bell CPO Bell How to implement US Navy ships bells sounds on an Android phone वाद्य यंत्र घंटी नौसेना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80
खिलाड़ियों का खिलाड़ी
खिलाड़ियों का खिलाड़ी 1996 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह मार धाड़ व प्रेम पूर्ण प्रेरणा दायी फ़िल्म है। इसे उमेश मेहरा ने निर्देशित किया है और इसमें अक्षय कुमार, रेखा एवं रवीना टंडन मुख्य भूमिकाओं में हैं। संक्षेप आपराधिक डॉन, माया (रेखा), यू.एस. (न्यूयॉर्क) में अवैध कुश्ती मैचों की को कराती है और उसे स्थानीय पुलिस आयुक्त का पूरा समर्थन प्राप्त है। अजय मल्होत्रा (इन्द्र कुमार) अमेरिका जाता है और अपने कुछ दोस्तों की मदद से अपना खुद का ऑर्केस्ट्रा शुरू किया है। उसका भाई अक्षय (अक्षय कुमार), यह सुनकर उससे मिलने का फैसला करता है कि वह कनाडा में अपनी प्रेमिका से शादी करना चाहता है। हवाई जहाज में उसकी मुलाकात प्रिया (रवीना टंडन) से होती है और दोनों में प्यार हो जाता है। अमेरिका में, अक्षय को पता चलता है कि पुलिस के पास अजय की गिरफ्तारी का वारंट है और वह उससे पूछताछ करना चाहती है। अजय को ढूंढने की अक्षय की कोशिशों के दौरान उसकी मुलाकात माया से होती है, जो प्रिया की बहन होती है। माया ने अजय को पकड़ रखा है और कुछ दस्तावेज सौंपने के बाद ही उसे छोड़ेगी। अक्षय जल्द ही माया को किंग डॉन (गुलशन ग्रोवर) के हत्या के प्रयास से बचाता है। ऐसे वह उसका विश्वास जीत लेता है और माया उसे पसंद करने लगती है और उस पर भरोसा करने लगती है। फिर अक्षय उसे प्रपोज करता है, जिससे माया सहमत हो जाती है। इससे प्रिया को काफी निराशा होती है। जब माया के आदमियों को उसकी असली पहचान का पता चलता है, वह उन्हें मार देता है। वह अजय के दोस्तों के साथ एक नकली अपहरण का नाटक भी करता है। इसमें वह लोग उसका अपहरण करते हैं और मांग करते हैं कि माया अजय के साथ उनसे मिलने आए। अब तक माया को पता चल चुका होता है कि अक्षय अजय का भाई है और प्रिया वास्तव में अक्षय से प्यार करती है। माया अपहरणकर्ताओं को मिलने बुलाती है। इसकी खबर अस्पताल में भर्ती अजय तक पहुँचती है। लेकिन माया के आदमी उसे फिर से पकड़ लेते हैं। इसके बाद माया, प्रिया, अक्षय और अजय को धमकाते हुए गोलीबारी करती है। लेकिन पुलिस और किंग डॉन उसे रोक देते हैं। किंग डॉन को भी पकड़ लिया जाता है। अंत में माया आत्महत्या कर लेती है और मरने से पहले अपनी बहन प्रिया और अजय को अक्षय को सौंप देती है। मुख्य कलाकार अक्षय कुमार — अक्षय रेखा — मैडम माया रवीना टंडन — प्रिया देवेन वर्मा — अंजना मुमताज़ — अक्षय की माँ टीकू तलसानिया — प्रिया के अंकल गुलशन ग्रोवर — किंग डान इन्द्र कुमार — अजय बरखा मदन — जेन किशोर भानुशाली — देव, अक्षय का दोस्त डॉली बिन्द्रा — भगवन्ती संगीत सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1996 में बनी हिन्दी फ़िल्म अनु मलिक द्वारा संगीतबद्ध फिल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%20%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%85%E0%A4%A5%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%80%2C%20%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B0
डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी, लाहौर
डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर शहर का एक इलाक़ा और एक यूनियन परिषद् है। यह लाहौर का एक प्रमुख इलाक़ा है। शहर के अन्य इलाक़ों के सामान ही यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा समझी और शिक्षा तथा व्यवसाय के क्षेत्र में उपयोग की जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। लाहौर की वाणिज्यिक, आर्थिक महत्व के कारण यहाँ पाकिस्तान के लगभग सारे प्रांतों के लोग वास करते हैं। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन पंजाब (पाकिस्तान) लाहौर ज़िला बाहरी कड़ियाँ लाहौर के यूनियनों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-१९९८ की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) लाहौर लाहौर के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AC%E0%A5%8C%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%AE%E0%A5%80
लारूंग गार बौद्ध एकेडमी
लारूंग गार बौद्ध एकेडमी, चिनी: 喇荣五明佛学院) सन् १९८० में, तिब्बती बौद्ध विद्वान खनपो जिगमेद फुनछोगस् द्वारा स्थापित एक ञिङमा साम्प्रदायिक तिब्बती बौद्ध विद्यापीठ है। यह विद्यालय सेरता काउंटी, गरजे, सिचुआन प्रांत में स्थित है। इस शैक्षिक संस्थान उद्देश्य तिब्बती बौद्ध धर्म में एक दुनियावी प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए और, सन १९६६-७६ की चिनिया सांस्कृतिक क्रांति द्वारा किया गया विनाशकारी प्रभाव का ध्यान में लेकर तिब्बती बौद्ध छात्रवृत्ति नवीकरण के जरूरत को पूरा करने के लिए किया गया है। इसके दूरस्थ स्थान के बावजूद, यह दुनिया में तिब्बती बौद्ध अध्ययन के लिए सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली केन्द्रों में से एक है, यह की छात्रों का संख्या में १०,००० से अधिक भिक्षुओं, भिक्षुणियों है। बीजिंग. चीन के चेंगदू से करीब 600 किमी दूर यह स्कूल 1980 में एक इमारत में शुरू हुआ था। अब फैलकर कस्बे में बदल गया है। कस्बे का निर्माण सिर्फ दान से हुआ है। नाम है लारुंग गार बुद्धिस्ट एकेडमी। यह दुनिया का सबसे बड़ा रिहायशी बौद्ध विद्यालय है। यहां पर तिब्बत के पारंपरिक बौद्ध शिक्षा का अध्ययन करने के लिए कई देशों से बच्चे आते हैं। यहां सभी घरों के रंग लाल और भूरे हैं। लड़के-लड़कियों के रहने वाले इलाकों को सड़कों से बांटा गया है। बुद्धिस्ट एकेडमी के कुछ तथ्य 40,000 छात्र रहते हैं यहां पर 12,500 फीट ऊंचाई पर बसा है टीवी देखना यहां पर बैन है, लेकिन स्मार्टफोन की अनुमति है ज्यादातर बच्चों के पास सेकंड हैंड आईफोन जरूर मिल जाएगा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Larung Ngarig Buddhist Academy - About us - International Buddhist Association (with Prospective Student Registration link) बौद्ध तीर्थ स्थल बौद्ध धर्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%20%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B
बेर्नार्दो वेलास्को
बेर्नादो वेलास्को गोंसाल्विस (पुर्तगाली: Bernardo Velasco; निटेरॉय, 30 जनवरी, 1986), ब्राजील के एक अभिनेता और मॉडल है। जीवनी बेर्नादो का जन्म रियो डी जनेरियो के महानगरीय क्षेत्र के नगर निटेरॉय में 30 जनवरी 1986 को हुआ था। बेर्नार्दो ने रियो डी जनेरियो के संघीय विश्वविद्यालय से शारीरिक शिक्षा में उपाधि प्राप्त की है। सन 2008 में इन्होनें एक रियलिटी कार्यक्रम अगोरा वाइ (Agora Vai; अब होगा) में भाग लिया और यहाँ से इन्हें मॉडलिंग और अभिनय के प्रस्ताव मिले। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ब्राज़ील के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6
विनिवेश
विनिवेश (Disinvestment) से आशय किसी देश की सरकार, किसी उद्योग, या किसी कम्पनी का योजनाबद्ध रूप से आर्थिक बहिष्कार करने से है ताकि उसे अपनी नीतियों को बदलने के लिए विवश किया जा सके। किसी सरकार में विनिवेश करने का उद्देश्य उस सरकार को बदलकर नयी सरकार लाना भी हो सकता है। विनिवेश (डिस-इन्वेस्टमेन्ट) शब्द का उपयोग सबसे पहले १९८० के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में किया गया था और उसका उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका की उस समय की सरकार पर उसे अपनी रंगभेद की नीति को त्यागने के लिए दबाव बनाना था। 'विनिवेश' शब्द इसी प्रकार ईरान, सूडान, उत्तरी आयरलैण्ड, म्यांमार और इजराइल के बहिष्कार के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। भारत में, केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया को भी विनिवेश कहा जाता है। सन्दर्भ सरकार की संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति या कंपनी को बेचना इन्हें भी देखें निजीकरण अर्थशास्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE
कोरियाई मुद्रा
कोरियाई मुद्रा गोरियो राजवंश (918-1392) के समय की है जब पहले सिक्कों का खनन किया गया था। कांस्य और लोहे दोनों में ढले हुए सिक्कों को टोंगबो और जंगबो कहा जाता था। इसके अतिरिक्त,अनब्योंग नामक चांदी के फूलदानों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था और गोरियो के अभिजात वर्ग के बीच एक मुद्रा के रूप में परिचालित किया जाता था। यह जोसॉन काल की शुरुआत तक नहीं था कि तांबे के सिक्कों को मुन कहा जाता था, जो व्यापक प्रचलन के लिए ढाला गया था। जोहवा (저화/楮貨), जो जोसॉन काल की शुरुआत में मानकीकृत शहतूत -छाल कागज से बना था, पहला कानूनी कागजी पैसा बन गया और 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में गायब होने तक सिक्कों के स्थान पर विनिमय के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया गया। 17वीं सदी से 19वीं सदी के अंत तक, मुन में अंकित सिक्के सांग प्योंग टोंग बो (常平通寶) - शाब्दिक अनुवाद "हमेशा सटीक सिक्का" स्थिर मूल्य का एक संदर्भ है - सबसे व्यापक रूप से परिचालित मुद्रा थे। इतिहास कोरियाई मुद्रा का इतिहास लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जब चाकू के सिक्कों के रूप में पहले सिक्के, जिन्हें यान और गोजोसॉन राज्य से संबंधित "म्यॉगडोजुन" के रूप में भी जाना जाता है; जिसके बारे में कहा जाता है कि प्रसारित किया गया था। राज्यों के भीतर लंबे समय तक अनाज के सिक्कों का उपयोग किया जाता था। जबकि प्राचीन कोरिया में विभिन्न वस्तुओं जैसे सीपी, लोहा और कीमती धातुओं का आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में कारोबार किया जाता था, लेकिन इस युग के दौरान मुद्रा के प्राथमिक रूप वस्तु विनिमय में उपयोग किए जाने वाले अनाज और कपड़े थे। पूर्व-मौद्रिक समय के दौरान भोजन और कपड़ों से संबंधित किसी भी चीज का उपयोग विनिमय के माध्यम के साथ-साथ उत्पादों के मूल्य को मापने के लिए एक विधि के रूप में किया जाता था। वस्तु विनिमय के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले अनाज चावल, जौ, सेम और बाजरा थे। इन वस्तुओं में से बाजरा सफेद चावल नियमित चावल की तुलना में बहुत अधिक मूल्यवान था। प्राचीन कोरिया में मुद्रा के रूप में कपड़े के सबसे आम रूप थे सन, रेमी और रेशम। अन्य वस्तुओं की गणना एक निश्चित मूल्य के रूप में की गई थी जो अनाज, चावल और कपड़े जैसी मूलभूत वस्तुओं के संबंध में थी। प्राचीन वस्तु विनिमय-आधारित अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप कुछ आधुनिक बुजुर्ग दक्षिण कोरियाई अभी भी "बाजार में जाओ और कुछ चावल बेचो" वाक्यांश का उपयोग करते हैं जो अन्य उत्पादों के लिए चावल के व्यापार के विचार को उजागर करता है। यह 17वीं शताब्दी तक नहीं होगा कि सिक्के ने पूरे कोरियाई प्रायद्वीप में वस्तु विनिमय प्रणाली को पूरी तरह से बदल दिया। सन पहले कपड़ा मुद्रा का सबसे आम रूप था लेकिन बाद में सूती कपड़ा (या पोहवा) कपड़े के पैसे का प्रमुख रूप बन गया। तीन साम्राज्यों की अवधि के समय से, रेशम को विनिमय के सबसे मूल्यवान माध्यमों में से एक माना जाता था। जैसा कि आधुनिक समय में शिन राजवंश युग ह्वाचॉन (貨泉,화천 ) आधुनिक कोरिया में कब्रों में नकद का पता लगाया गया है, इस बात के मामूली सबूत हैं कि इन सिक्कों का इस्तेमाल उस समय के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए किया जा सकता था। 2018 में वू झू (五銖, 오수) नकद सिक्के, जिन्हें कोरिया में ओशुजॉन के रूप में जाना जाता है, उत्तरी ग्योंग्सांग प्रांत में चीन के साथ एक प्राचीन व्यापार संबंध की पुष्टि करते हुए खोजे गए थे।  प्राचीन कोरिया में परिचालित होने वाला पहला ज्ञात धातु का सिक्का चीनी चाकू का पैसा था, इस प्रकार का चीनी सिक्के युद्धरत राज्यों की अवधि के दौरान यान साम्राज्य में परिचालित किया गया था, और चीनी बसने वालों द्वारा कोरियाई प्रायद्वीप में लाया गया थाऔर आधुनिक समय में प्योंगन और जौल्ला प्रांतों में चाकू के पैसे के नमूनों की खुदाई की गई है। चीनी हान राजवंश के दौरान वू झू नकद सिक्के जो कोरियाई में ओशुजॉन (五銖錢, 오수전) के रूप में जाने जाते थे, 108 ईसा पूर्व में गोजोसॉन की हान विजय के बाद कोरियाई प्रायद्वीप में लाए गए थे।10वीं शताब्दी ईस्वी तक ओशुजॉन  कोरिया के तीन राज्यों की अवधि के गोगुरियो और सिला के बाद के राज्यों में प्रसारित होता रहेगा। आज ओशुजॉन आमतौर पर पूर्व लेलंग कमांडरी की कब्रों में पाए जाते हैं। गोरियो राज्य ने 1097 तक अनाज के सिक्कों का अपना संस्करण जारी किया। कोरिया में पहले लोहे और कांसे के सिक्के ढाले गए थे, जो राजा सॉनजॉग के शासनकाल के 15 वें वर्ष (996 ईस्वी) के दौरान हुए थे। राजा सुकजॉग के शासनकाल के दौरान, विभिन्न प्रकार के सिक्कों की ढलाई की एक मौद्रिक प्रणाली 1097-1107 में स्थापित की गई थी। इन सिक्कों में 東國 (डोंगगुक "पूर्वी देश"), 海東 (हैडोंग "पूर्वी सागर") और 三韓 (सम्हन "तीन राज्य") सिक्कों की श्रृंखला शामिल है। तांबे और कांसे जैसे लोहे के अलावा अन्य धातुओं से बने सिक्के 10वीं और 11वीं शताब्दी में जारी किए गए थे, लेकिन उनका प्रचलन सीमित था। अनब्योंग (銀瓶) नामक चांदी के फूलदानों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था और गोरियो के अभिजात वर्ग के बीच परिचालित किया जाता था। 1392 में, गोरियो साम्राज्य को उखाड़ फेंका गया और जोसॉन राजवंश की स्थापना हुई। राजवंश के संस्थापक, तेजॉग ने प्रचलित मौद्रिक प्रणाली में सुधार लाने के लिए कई प्रयास किए लेकिन वे शुरू में सफल नहीं हुए। प्रयासों में कोरियाई कागजी मुद्रा जारी करना और चीन से आयात करने के बजाय सिक्के जारी करना शामिल है। कोरियाई में जारी किए गए सिक्के असफल होने के कारण काले शहतूत की छाल से बने एक मानकीकृत नोट को जारी किया गया जिसे जोह्वा (저화/楮貨) कहा जाता है, जिसका इस्तेमाल सिक्कों के स्थान पर किया जाता था। राजा सेजॉग के शासनकाल के दौरान वर्ष 1423 तक कांस्य सिक्के फिर से नहीं डाले गए थे। इन सिक्कों पर शिलालेख (चोसुन टोंगबो "चोसुन मुद्रा") था। 17वीं शताब्दी में जो सिक्के ढाले गए थे, वे आखिरकार सफल हुए और परिणामस्वरूप, पूरे कोरिया में 24 टकसालों की स्थापना हुई। इस समय के बाद सिक्के विनिमय प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा बन गए। 1633 में, "मुन" को कोरिया की मुख्य मुद्रा बना दिया गया था और इस मुद्रा इकाई में तांबे और कांस्य के सिक्के जारी किए गए थे। यह 1892 तक प्रचलित रहा जब "यांग" ने मुख्य मुद्रा के रूप में पदभार संभाला। यांग पहली मुद्रा थी जो दशमलव प्रणाली का उपयोग करती थी क्योंकि इसे 100 बराबर फुन में विभाजित किया गया था, हालांकि यह लंबे समय तक नहीं चली। वॉन को 1902 में यांग की जगह 1 वॉन = 5 यांग पर आधिकारिक मुद्रा इकाई के रूप में पेश किया गया था। बैंक ऑफ कोरिया की स्थापना 1909 में हुई थी, लेकिन इसके तुरंत बाद 1910 में इंपीरियल जापान ने कोरियाई साम्राज्य को अपने कब्जे में ले लिया। औपनिवेशिक शासन के तहत, देश को कोरियाई वोन के स्थान पर मुद्रा इकाई "येन" का उपयोग करने के लिए बनाया गया था, जिसने कोरियाई वोन को बराबरी पर ले लिया था। कोरिया के विभाजन के बाद, 1948 में दक्षिण कोरिया राज्य की स्थापना और मान्यता प्राप्त हुई, और वॉन को फिर से नए राज्य की आधिकारिक मुद्रा बना दिया गया।। "जॉन" को मुद्रा का सबयूनिट बनाया गया था जिसने इसे 100 बराबर भागों में विभाजित किया था। बैंक ऑफ जोसॉन ने पहली बार स्वतंत्र दक्षिण कोरिया के लिए मुद्रा जारी की, वह भी केवल बैंक नोटों में। देश को तब "ह्वान" नाम की एक नई मुद्रा इकाई पर स्विच करना पड़ा, जिसकी जगह 1 ह्वान = 100 वॉन। दक्षिण कोरियाई वोन की तरह, यह मुद्रा इकाई भी शुरू में बैंक नोटों में जारी की गई थी, लेकिन 1959 में, ह्वान में मूल्यवर्ग के सिक्के भी जारी किए गए थे और दक्षिण कोरिया में पहला परिसंचारी सिक्के थे। ह्वान में अमेरिकी डॉलर के साथ एक खूंटी थी लेकिन समय के साथ इसका अवमूल्यन भी हुआ। 1962 में आधिकारिक मुद्रा इकाई के रूप में वोन को फिर से शुरू करने का यही कारण था। 1997 में जब तक इसे विश्व बाजार में उतारा गया था, तब तक दक्षिण कोरियाई मुद्रा अमेरिकी डॉलर के लिए आंकी गई थी। अनब्योंग (1101~1331) अनब्योंग (銀瓶, 은병), या ह्वाल्गु, चांदी के फूलदान थे जो कोरियाई प्रायद्वीप के आकार के थे और गोरियो काल के दौरान व्यापक रूप से उपयोग किए जाते थे, वे मुख्य रूप से अभिजात वर्ग के बीच परिचालित होते थे। ये अनब्योंग वर्ष 1101 से निर्मित हुए थे और इन्हें एक वैध मुद्रा के रूप में चिह्नित करने के लिए एक आधिकारिक राज्य मुहर के साथ उत्कीर्ण किया गया था जो पूरे गोरियो में मान्य था। अनब्योंग का वजन लगभग एक कुन (斤, ) था जो लगभग 600 ग्राम के बराबर है, इसने उन्हें बड़े लेनदेन के लिए भुगतान करने के लिए बहुत उपयोगी बना दिया। इतिहासकारों का सुझाव है कि अनब्योंग मुख्य रूप से कुलीन वर्गों द्वारा उपयोग किया जाता था और जो अक्सर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने में भी शामिल होते थे। वर्ष 1282 में सरकार ने एक कानून बनाया जिसमें एक अनब्योंग का मूल्य 2,700 और 3,400 लीटर चावल के बीच आंका गया। लेकिन इस तथ्य की परवाह किए बिना कि यह मुद्रा कम मूल्य की वस्तुओं के भुगतान के लिए अत्यधिक अव्यावहारिक थी, अगली दो शताब्दियों के दौरान अनब्योंग का उपयोग जारी रहेगा। गोरियो के चॅगन्योल के शासनकाल के दौरान सरकार ने चांदी के खुरदुरे या टूटे हुए टुकड़ों के संचलन की अनुमति दी थी। वर्ष 1331 तक अनब्योंग पूरी तरह से प्रचलन से गायब हो गया था। अनब्योंग का कोई भी नमूना आधुनिक युग तक जीवित रहने के बारे में ज्ञात नहीं है| तीर के सिक्के (1464) वर्ष 1464 में, किंग सेजो ने "एरो कॉइन" (箭幣; 전폐, chŏn p'ye ) के रूप में जानी जाने वाली मुद्रा का एक नया रूप पेश किया था। इस मुद्रा को एक तीर की तरह आकार दिया गया था जिसने इसे शांति के समय में विनिमय के माध्यम के रूप में और एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जब देश एक और युद्ध लड़ रहा था। "एरो कॉइन" का ब्लेड एक विलो पेड़ के पत्ते जैसा दिखता है और इसके तने को पलबांग तोंगह्वा (八方通寶; 팔방통보 पाठ के साथ अंकित किया गया था, जिसका अनुवाद "आठ दिशाओं में मुद्रा" या "आठ दिशाओं सार्वभौमिक धन" के रूप में किया जा सकता है) इस पाठ ने संकेत दिया कि "तीर सिक्का" पूरे कोरिया में कानूनी निविदा थी। एरोहेड की लंबाई 55 मिलीमीटर लंबी थी और इसका तना 52 मिलीमीटर अधिक था जो "एरो कॉइन" को 107 मिलीमीटर लंबा बनाता था। 1 "तीर का सिक्का" जोसॉन युग के कागजी पैसे के 4 टुकड़ों के नाममात्र का था। नई मुद्रा को कोरियाई लोगों का समर्थन नहीं मिला, जिससे कोरिया में धन-आधारित अर्थव्यवस्था स्थापित करने का एक और प्रयास विफल हो गया। कोरियाई "तीर सिक्का" के कोई जीवित नमूने कभी नहीं खोजे गए हैं। मुन (1633-1892) जोसॉन राजवंश ने अपना पहला तांबे का सिक्का जारी किया। यांग (1892-1902) 1888 में, यांग की शुरुआत से कुछ समय पहले, ह्वान (圜) और मुन (文) में अंकित सिक्कों की एक छोटी संख्या का खनन किया गया था। भले ही यांग का इस्तेमाल अतीत में किया गया था, लेकिन इसे 1892 में मुख्य मुद्रा के रूप में फिर से पेश किया गया था। एक यांग (兩) को 100 फुन (分 पून, पन.) में विभाजित किया गया था, जो पहली कोरियाई दशमलव मुद्रा बना। पश्चिम के साथ संपर्क के परिणामस्वरूप पुराने कोरियाई साम्राज्य के अंतिम वर्षों के दौरान आधुनिक मुद्रा का खनन और प्रचलन शुरू हुआ। 1901 में सोने के मानक को अपनाने के परीक्षण के समय, कुछ जापानी बैंक नोटों के साथ सोने और चांदी के सिक्के प्रचलन में थे। वॉन (1902-1910) 1 वॉन = 5 यांग की दर से यांग की जगह, 1902 में वोन को पेश किया गया था। 1909 में, सियोल में एक केंद्रीय बैंक के रूप में बैंक ऑफ कोरिया की स्थापना की गई और आधुनिक प्रकार की मुद्रा जारी करना शुरू किया। वोन जापानी येन के बराबर था और 1910 में कोरियाई येन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। उसी समय, दाई इची जिन्को (प्रथम नेशनल बैंक (जापान का), 株式會社第一銀行 ) द्वारा जारी कोरियाई येन नोट भी परिचालित हुए। येन (1910-1945) येन 1910 से 1945 तक औपनिवेशिक शासन के दौरान कोरिया की मुद्रा थी, और बैंक ऑफ जोसॉन द्वारा जारी की गई थी। यह जापानी येन के बराबर थी और इसमें विशेष रूप से कोरिया के लिए जारी जापानी मुद्रा और बैंक नोट शामिल थे। इसे 1945 में सममूल्य पर दक्षिण कोरियाई वॉन द्वारा और 1947 में उत्तर कोरियाई वॉन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। उत्तर कोरियाई मुद्रा वॉन (1947-वर्तमान) कोरिया के विभाजन के बाद, उत्तर कोरिया ने 2 साल तक कोरियाई येन का उपयोग जारी रखा जब तक कि 6 दिसंबर, 1947 को डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया के सेंट्रल बैंक की स्थापना नहीं हुई और एक नई मुद्रा जारी की गई। यह उस समय सोवियत रूबल के बराबर आंकी गई थी। फरवरी 1959 में एक सौ से एक की दर से इसका पुनर्मूल्यांकन किया गया और नई वॉन जारी की गई। बाद के वर्षों में वॉन को कुछ अवमूल्यन का सामना करना पड़ा, जो सोवियत रूबल के बाद के अवमूल्यन और पुनर्मूल्यांकन के कारण हुआ। 1978 से 2001 तक, उत्तर कोरियाई सरकार ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2.16 वॉन की प्रतिष्ठित दर बनाए रखी; तब से देश में बैंक काला बाजार दर के करीब दरों पर विनिमय करते हैं। हालांकि, बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति उत्तर कोरियाई वॉन के मूल्य को इस हद तक कम कर रही है कि वर्तमान में यह दक्षिण कोरियाई वॉन (सोर्सिंग की आवश्यकता) के समान ही माना जाता है। किसी भी मामले में, अमेरिकी डॉलर और अन्य मुद्राएं अभी भी आधिकारिक रूप से काले बाजार पर उत्तर कोरियाई वॉन में अधिक मूल्य की हैं। दक्षिण कोरियाई मुद्राएं वॉन (1945-1953) कोरिया के विभाजन के अंत के बाद, कोरियाई येन को बदलने के लिए वॉन को पेश किया गया था। वॉन को 100 जॉन में उप-विभाजित किया गया था। पहले बैंकनोट बैंक ऑफ जोसॉन द्वारा 5 जॉन से लेकर 100 वॉन मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे। 1950 में मुद्रा प्रबंधन बैंक ऑफ कोरिया में चला गया और फिर नए नोट जारी किए गए, जिनमें ज्यादातर उच्च मूल्यवर्ग के थे। 1950 में बैंक ऑफ कोरिया द्वारा प्रचलन में लाया गया पहला नोट जापान में नेशनल प्रिंटिंग ब्यूरो (国立印刷局 ) द्वारा मुद्रित किया गया था। अगले वर्ष कोरिया मिंटिंग एंड सिक्योरिटी प्रिंटिंग कॉरपोरेशन बनाया गया और दक्षिण कोरियाई मुद्रा के प्रिंटर के रूप में कार्यभार संभाला। 1945 में शुरूआत के समय वॉन जापानी येन के लिए 1 वॉन = 1 येन की दर से आंका गया था। उसी वर्ष अक्टूबर में, एंकर मुद्रा को 15 वॉन = 1 डॉलर की दर से अमेरिकी डॉलर में बदल दिया गया था।। कोरियाई युद्ध के अंत में वॉन का अवमूल्यन 6,000 वॉन = 1 डॉलर था।। उसके बाद ह्वान को 1 ह्वान = 100 वॉन की दर से नई मुद्रा के रूप में पेश किया गया। ह्वान (1953-1962) वॉन के अवमूल्यन के कारण 15 फरवरी 1953 को 1 ह्वान = 100 वॉन की दर से ह्वान पेश किया गया था।। इसे 100 जॉन में विभाजित किया गया था, लेकिन उनका उपयोग कभी नहीं किया गया था। 10 और 1000 ह्वान के बीच मूल्यवर्ग में नए बैंकनोट जारी किए गए थे। 1959 से शुरू होकर, 10 और 50 ह्वान सिक्के भी कम मूल्यवर्ग के नोटों को बदलने के लिए जारी किए गए थे। वे दक्षिण कोरिया में पहले परिसंचारी सिक्के थे। मुद्रा में परिवर्तन की संक्षिप्त सूचना के कारण, नए नोटों की पहली श्रृंखला को संयुक्त राज्य सरकार के मुद्रण कार्यालय से कमीशन किया गया था। नोट पांच मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे, सभी एक समान डिजाइन के साथ। अधिक उपयुक्त कोरियाई थीम वाले कुछ प्रतिस्थापन नोट बाद में जारी किए गए, जिसकी शुरुआत केवल एक महीने बाद 100 ह्वान से हुई। ह्वान भी मुद्रास्फीति से पीड़ित था। इसकी शुरूआत में, यह संयुक्त राज्य के डॉलर में 1 डॉलर = 60 ह्वान पर आंकी गई थी, लेकिन अपने जीवन के अंत में इसका अवमूल्यन 1 डॉलर = 1250 ह्वान पर किया गया था। 1962 में, वॉन को 1 वॉन = 10 ह्वान की दर से फिर से शुरू किया गया था। 10 और 50 ह्वान के सिक्के 21 मार्च, 1975 तक प्रचलन में रहे। वॉन (1962-वर्तमान) ह्वान के अवमूल्यन के बाद, 10 जून, 1962 को वॉन को दक्षिण कोरिया की मुद्रा के रूप में फिर से पेश किया गया। उस समय दक्षिण कोरियाई मुद्रा अभी भी अमेरिकी डॉलर से आंकी गई थी। यह 24 दिसंबर, 1997 तक ऐसा ही रहा, जब यह एक अस्थायी मुद्रा बन गया, लेकिन फिर पूर्वी एशियाई वित्तीय संकट के कारण इसके मूल्य के लगभग आधे पर तुरंत अवमूल्यन कर दिया गया। संदर्भ Pages with unreviewed translations
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भमदौन रेल्वे स्टेशन
भमदौन रेलवे स्टेशन लेबनान के भमदौन में स्थित एक पूर्व यात्री रेलवे स्टेशन है। स्टेशन को तुर्क साम्राज्य के तहत खोला गया था। 1982 में देश पर इजरायल के आक्रमण तक इसे संचालित किया गया था और 1983 में यह बंद हो गया था। इतिहास स्टेशन 1898 में दमिश्क की सड़क के किनारे भमदौन गाँव के बाहर एक क्षेत्र में बनाया गया था। अंततः भमदौन निवासियों के ट्रेन स्टेशन के करीब आ जाने से यह स्टेशन गाँव से भी अधिक समृद्ध हो गया। इमारत ने रेलवे के साथ-साथ स्थानीय ट्राम के लिए एक मार्ग का काम भी किया। कुछ समय में मस्जिदों, चर्चों और एक यहूदी मंदिर के अलावा, रेलवे स्टेशन के आसपास व्यवसाय, रेस्तरां और होटल खुल गए। इलाके को अंततः "भामदौन गारे" (भमदौन स्टेशन) के रूप में जाना जाने लगा, जिसके बाद यह भामदौन गांव की नगर पालिका से अलग हो गया और अंततः दोनो स्थानों में अधिक समृद्ध बन गया। यह स्टेशन बेरूत से दमिश्क तक रेल लाइन के किनारे एक पूर्व ग्रीष्मकालीन रिसॉर्ट में स्थित था: "फूलों और देवदार के पेड़ों से भरे खुले देश से उतरने के बाद, ट्रेन भामदौन पहुंची"। रेलवे की सेवा प्राप्त एक व्यस्त छुट्टी रिसॉर्ट, जो पूरे क्षेत्र से आगंतुकों को लाता था, वह क्षेत्र 1983 में ड्रुज़ और ईसाइयों के बीच पर्वतीय युद्ध का केंद्र था। एक मनोरंजक परिसर के रूप में नगरपालिका के उपयोग के लिए भवन के पुनर्वास की योजनाओं पर लगभग साल 2000 में चर्चा की गई थी, हालांकि इन योजनाओं पर कुछ भी फैसला नहीं लिया जा सका था। 2016 तक स्टेशन की छत गिर गई थी, दरवाजे और खिड़कियां महज खाली छेद थे और दीवारें मुश्किल से ही खड़ी थीं। क्षेत्र में एक राजमार्ग का निर्माण करने वाले निर्माण कर्मचारी स्टेशन भवन का उपयोग भंडारण क्षेत्र के रूप में किया करते था। 2016 में एक लेखक ने टिप्पणी की कि इमारत में अभी भी 1980 के दशक के दौरान देश में गृह युद्ध में चली गोलियों के छेद थे। एक नया राजमार्ग पूर्व स्टेशन भवन के ठीक बगल से गुजरता है। संदर्भ   लेबनान का इतिहास लेबनान के रेल्वे स्टेशन लेबनान
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अनबार प्रान्त
अनबार प्रान्त, जिसे अरबी में मुहाफ़ज़ात​ अल-अनबार () कहते हैं इराक़ का एक प्रान्त है। सन् १९७६ से पहले इस प्रान्त का नाम 'रमादी प्रान्त' था और १९६२ से पहले 'दुलैम प्रान्त' था। नाम का अर्थ व उत्पत्ति 'अनबार' नाम फ़ारसी से आया है और इसका अर्थ '(अनाज के) गोदाम या ढेर' है। अनबार शहर बैबिलोनियाई क्षेत्र की पश्चिमी सरहद पर हुआ करता था और यहाँ से बैबिलोन पर नियंत्रण रखने वाले ईरान के सासानी साम्राज्य ने व्यापारिक और सैनिक चौकियाँ बनवाई थी जहाँ खाद्य सामग्री राखी जाती थी। ध्यान देन की यही शब्द हिन्दी में 'अंबार'/'अम्बार' के रूप में मिलता है और इसका अर्थ 'ढेर' होता है। भूगोल अनबार प्रान्त क्षेत्रफल के हिसाब से इराक़ का सबसे बड़ा प्रान्त है और भौगोलिक दृष्टि से यह अरब प्रायद्वीप में आता है। इराक़ के पश्चिमी भाग का बड़ा हिस्सा इसी प्रान्त में सम्मिलित है और इसकी सीमाएँ सीरिया, जोर्डन और साउदी अरब से लगती हैं। यहाँ की धरती शुष्क स्तेपी और रेगिस्तान का मिश्रण है। फ़ुरात नदी इस प्रान्त के उत्तर से दक्षिणपूर्व को निकलती है और प्रान्त के ७ में से ६ ज़िलों से गुज़रती है। गर्मियों में यहाँ का तापमान ४२ सेंटीग्रेड तक चढ़ जाता है और सर्दियों में ९ सेंटीग्रेड तक गिरता है। अधिकतर बारिश सर्दियों में होती है। यहाँ गेंहू, आलू, जौ, मक्का, सब्ज़ियाँ और जानवरों का चारा उगाया जाता है। इसके अलावा यहाँ खजूर के अनुमानित २५ लाख वृक्ष हैं जिनसे बहुत पैदावार होती है। लोग अनबार प्रान्त के लोग लगभग सभी सुन्नी मुस्लिम अरब हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार वे प्रांतीय आबादी के ९९% हैं। इनमें से अधिकतर दुलैम क़बीले (, Dulaim) के सदस्य हैं, जो अरबों के सबसे बड़े क़बीलों में से एक है और इराक़, सीरिया और जोर्डन में फैले हुए हैं। इराक़ के भूतपूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन भी सुन्नी थे और दुलैमी उनके सख़्त समर्थक थे। सन् १९९०-१९९१ में जब इराक़ को संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुवैत से खदेड़ दिया तो अमेरिका ने इराक़ के शियाओं और अन्य गुटों को सद्दाम के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाया था। मार्च १९९१ में इराक़ के कई इलाक़ों में विद्रोह भड़के लेकिन अनबार प्रान्त में पूरी तरह सद्दाम हुसैन का साथ दिया, जिस से सद्दाम ने इसे 'श्वेत प्रान्त' (यानि 'शुद्ध' या 'साफ़' प्रान्त) का नाम दिया था। इन्हें भी देखें इराक़ के प्रान्त सन्दर्भ अनबार प्रान्त इराक़ के प्रान्त
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हरिवंश आचार्य
हरिवंश आचार्य (वि॰सं॰ २०१५) एक अभिनेता है। वओ सबसे अधिक सफल नेपाली हास्य अभिनेता में से एक है। वओ अभिनय और गायन दोनोमे कुशल है। हरिवंश आचार्य "मह जोडी" नामके जोड़ी में से एक है। उनका जोड़ी मदन कृष्ण श्रेष्ठ रहे हैं। जीवनी विवाह उनका विवाह बिक्रम संवत २०४० में मीरा आचार्यकि साथ हुआ था। उनके परिवारमे , उनका दो बेटे त्रिलोक आचार्य और मोहित आचार्य है। हरिवंश कि पत्नी मीरा आचार्य २०११ अप्रिल २०मे ह्रृदयघातसे मृत्यु हुआ। वओ लम्बे समय से हृदय रोगसे पिडित थि। उनका सन् २०१२ में रमिला पाठकके साथ दुसरा विवाह हुआ। मह जोडीको जनम फिल्मोग्राफी छायांकन लोभि पापी फिलिम film राजामति बलिदान जे भो राम्रै भो तँ त सार्है नै बिग्रिस नि बद्री टेलिभीजन लाल पुर्जा पन्द्र गते भकुण्डे भूत हरि बहादुर र मदन बहादुरको श्रृंखला ५०/५० दशैं पुरुस्कार जगदम्बाश्री पुरस्कार सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हरिवंशका तस्वीरहरू हरिवंश आचार्य, ढाका टोपी नेपाली संगीत संग्रह हरिवंश आचार्य सानो छँदा मदन पुरस्कार गुठी हास्य अभिनेता जीवित लोग नेपाली अभिनेता नेपाल के लोग 1957 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%80
मल्लपल्ली
मल्लपल्ली (Mallapally) भारत के केरल राज्य के पतनमतिट्टा ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह मणिमला नदी के किनारे बसा हुआ है और इसी नाम की तालुका का मुख्यालय है। नामोत्पत्ति मलयालम में "मल्ल" का अर्थ संस्कृत की भांति "पहलवान" और "पल्ली" का मूल अर्थ "मंदिर" है। ग्राम के नाम का अर्थ "पहलवानों का मंदिर" है। जनसंख्या भारत की 2011 जनगणना के अनुसार मल्लपल्ली गाँव की जनसंख्या 17,693 और मल्लपल्ली तालुका के सभी गाँवों की जनसंख्या 1,34,219 थी। इन्हें भी देखें पतनमतिट्टा ज़िला सन्दर्भ केरल के गाँव पतनमतिट्टा ज़िला पतनमतिट्टा ज़िले के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8
एनिमेशन
उछलती हुई गेंद के एनिमेशन (नीचे) में 6 फ्रेम शामिल हैं। यह एनिमेशन 10 फ्रेम प्रति सेकण्ड की गति से चलता है। अनुप्राणन या एनिमेशन द्विआयामी और त्रिआयामी कलाकृतियों की छवियों का, भ्रम उत्पन्न करने के लिए तेजी से किया गया सिलसिलेवार प्रदर्शन है। यह दृष्टिभ्रम के कारण उत्पन्न गति का एक प्रकाशीय भ्रम है और इसकी रचना और प्रदर्शन कई तरह से किया जा सकता है। एनिमेशन प्रस्तुत करने का सबसे आम तरीका एक चलचित्र या वीडियो कार्यक्रम के रूप में इसे प्रस्तुत करना है, हालांकि एनिमेशन कई अन्य रूपों में भी पेश किया जा सकता है। 2D एवं 3D कलाकृति को एक साथ एक निर्धारित दिशा में प्रदर्शित करने को ऐनीमेशन कहते हैं I ऐनीमेशन एक प्रकार का दृष्टी भ्रम भी हो सकता है I क्यों की ये सामान्य मानव नेत्र की दृष्टी छमता के कारण महसूस होता है I आप ऐनीमेशन को कई प्रकार से कर एवं महसूस कर सकते हैं I सबसे साधारण तरीका ये हैं कि आप इसे चलचित्र द्वारा प्रस्तुत करे I इस के अलावा इसे करने के और भी कई तरीके है सन्दर्भ एनिमेशन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%B8
हेनरी डेविडस
हेनरी डेविडस (जन्म 19 जनवरी 1980) एक दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर हैं। दाएं हाथ के बल्लेबाज और एक उपयोगी दाएं हाथ के मध्यम तेज गेंदबाज, डेविड ने अपने करियर की शुरुआत बोलैंड क्रिकेट टीम से की और फिर नैशुआ केप कोबरा में चले गए। उन्होंने 2009 चैंपियंस लीग ट्वेंटी 20 में कोबरा के लिए अच्छा प्रदर्शन किया, प्रतियोगिता में टॉप-टेन रन-स्कोरर में 110.48 के स्ट्राइक-रेट पर 137 रन के साथ समाप्त किया। डेविड्स तब 2009 सीज़न के अंत में नैशुआ टाइटन्स में चले गए और उन्हें उचित सफलता मिली, जो अक्सर ईस्टर्न शौकिया टीम के लिए दिखाई देते थे। उन्हें 2012/13 सीज़न की शुरुआत में नैशुआ टाइटन्स का प्रथम श्रेणी कप्तान नियुक्त किया गया था। 21 दिसंबर 2012 को उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ दक्षिण अफ्रीकी टी 20 टीम के लिए पदार्पण किया। अपने दूसरे गेम में उन्होंने 38 गेंदों पर 55 रन बनाए। वह एक प्रतिभाशाली, स्थिर लेकिन आक्रामक दाहिने हाथ के बल्लेबाज हैं। उन्होंने चैंपियंस लीग टी 20 के उद्घाटन संस्करण में केप कोबरा की योग्यता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो भारत में आयोजित किया गया था और तीन शहरों (बैंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली) में कार्रवाई की थी। मई 2017 में, क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका के वार्षिक पुरस्कारों में उन्हें लिस्ट ए क्रिकेटर ऑफ़ द सीज़न घोषित किया गया। अगस्त 2017 में, उन्हें टी 20 ग्लोबल लीग के पहले सीज़न के लिए स्टेलनबोश मोनार्क्स टीम में नामित किया गया था। हालांकि, अक्टूबर 2017 में, क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका ने शुरू में टूर्नामेंट को नवंबर 2018 तक के लिए टाल दिया, इसके तुरंत बाद रद्द कर दिया गया। जून 2018 में, उन्हें टाइटन्स टीम के लिए 2018-19 सत्र के लिए टीम में नामित किया गया था। सितंबर 2018 में, उन्हें 2018 अबू धाबी टी 20 ट्रॉफी के लिए टाइटन्स टीम में नामित किया गया था। अक्टूबर 2018 में, उन्हें मंसांसी सुपर लीग टी 20 टूर्नामेंट के पहले संस्करण के लिए पारल रॉक्स के दस्ते में नामित किया गया था। सितंबर 2019 में, उन्हें 2019 माज़ांसी सुपर लीग टूर्नामेंट के लिए पारल रॉक्स टीम के लिए टीम में नामित किया गया था। सन्दर्भ
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षडयंत्र
विधि के सन्दर्भ में, षड्यन्त्र का सामान्य अर्थ साज़िश, धोखा देने की योजना, दुरभिसन्धि, गुप्तरूप से की जाने वाली कार्रवाई आदि के रूप में लिया जाता है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120-क के अनुसार आपराधिक षड्यन्त्र की परिभाषा जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी अवैध कार्य या किसी वैध कार्य को अवैध तरीके से करने या करवाने को सहमत होते हैं तो उसे आपराधिक षड्यन्त्र कहते हैं। अर्थात षडयन्त्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है, कोई अवैध कार्य करना/अकरवाना या कोई वैध कार्य अवैध साधनों द्वारा करना/करवाना आवश्यक है। अवैध कार्य – आपराधिक षड्यन्त्र के अपराध को गठित करने के लिए समझौता निश्चयतः विधि विरुद्ध अथवा विधि द्वारा निषिद्ध कोई कार्य करने के लिए होना चाहिए। अवैध साधनों द्वारा – किसी कार्य को, भले ही वह वैध हो, अवैध साधनों द्वारा करने की सहमति षड्यन्त्र मानी जाएगी। कार्य का अन्त साधनों को न्यायोचित नही ठहराता। उदाहरण के लिए प्रतिद्वन्दी व्यापारी को मात देना अवैध कार्य नही है परन्तु सस्ती वस्तुओं के विक्रेता को नष्ट करने के लिए एकीकृत होकर एक दिवालिया क्रेता को ऋण देने के लिए प्रोत्साहन देकर विक्रेता को हानि पहुचाना अवैध होगा। षड्यन्त्र का प्रमाण – आपराधिक षड्यन्त्र हेतु यह आवश्यक नही है कि किये गये अभिकथित समझौते का प्रत्यक्ष साक्ष्य द्वारा साबित किया जाए क्योंकि ऐसा साक्ष्य सामान्यतः उपलब्ध नही होता। हीरालाल हरिलाल भगवती बनाम सी.बी.आई. (2003) उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि षड्यन्त्र के अपराध को भारतीय दण्ड संहिताकी धारा 120-B के दायरे में लाने के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि पक्षकार के बीच विधिविरुद्ध कार्य करने का करार हुआ था तथापि प्रत्यक्ष साक्ष्य से षड्यन्त्र को सिद्ध करना कठिन है। सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन, हैदराबाद बनाम नारायण राव (2012) के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि किसी कार्य का करार आपराधिक षड्यन्त्र का मूल तत्व है। आपराधिक षड्यन्त्र का प्रत्यक्ष साक्ष्य मिलना यदा कदा उपलब्ध होता है यह घटना के पूर्व या बाद की परिस्थितियों के आधार पर सिद्ध किया जाता है। सिद्ध परिस्थितियों को यह स्पष्ट दर्शाना चाहिए कि वे एक करार के अग्रसरण में कारित की गयी है। आपराधिक षड्यन्त्र का आधार करार में निहित है लेकिन एक अवयस्क किसी प्रकार से षड्यन्त्र में शामिल नही हो सकता इसीलिए जब एक अवयस्क के साथ कोई व्यक्ति करार करके आपराधिक षड्यन्त्र गठित करता है तो वहा पर करार शून्य होने के कारण वह व्यक्ति आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दायी नही होगा लेकिन वह धारा 107 के अधीन एक अवयस्क के दुष्प्रेरण के अपराध के लिए दायी होगा। धारा 120-B. आपराधिक षड्यन्त्र के लिए दण्ड (१) जो कोई दो वर्ष से अधिक अवधि के कठिन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यन्त्र में शरीक होगा, यदि ऐसे षड्यन्त्र के दण्ड के लिए इस संहिता में अभिव्यक्त उपबन्ध नही है तो, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था। (२) जो कोई पूर्वोक्त रूप से दण्डनीय अपराध को करने के आपराधिक षड्यन्त्र से भिन्न किसी आपराधिक षड्यन्त्र में शरीक होगा वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि 6 माह से अधिक नही होगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। आपराधिक षड्यन्त्र और दुष्प्रेरण में अन्तर धारा 120-क आपराधिक षड्यन्त्र की एक विस्तृत परिभाषा प्रदान करती है जिसके अन्तर्गत वे कार्य सम्मिलित हैं जो धारा 107 के अन्तर्गत षड्यन्त्र के माध्यम से दुष्प्रेरण (Abatement) के समतुल्य हैं और इसी कारण जहां कोई आपराधिक षड्यन्त्र धारा 107 के अन्तर्गत दुष्प्रेरण के समतुल्य है वहा धारा 120-क या 120-ख की सहायता आवश्यक है। धारा 107 के अन्तर्गत अपराध गठित होने के लिए कोई कार्य अथवा अवैध लोप षड्यन्त्र के अनुसरण में होना चाहिए, वहीं धारा 120-क में मात्र सहमति ही पर्याप्त है यदि वह किसी अपराध के करने के सम्बन्ध में है। जहां तक षड्यन्त्र के माध्यम से दुष्प्रेरण का सम्बन्ध है दुष्प्रेरक धारा 108 से 117 तक में वर्णित विभिन्न परिस्थितियों के अन्तर्गत दण्डनीय होगा वही धारा 120-A में वर्णित आपराधिक षड्यन्त्र का अपराध धारा 120-B के अन्तर्गत दण्डनीय है। शाब्दिक अर्थ किन्तु विश्लेषणात्मक रूप से देखें तो 'षड्यन्त्र' शब्द इस प्रकार बना है :- षड्+यन्त्र = षड्यन्त्र , अर्थात् छह यन्त्र या छह विधियाँ । इसमें जिन छह विधियों के बारे में बताया जाता है, वे हैं :- जारण , मारण , उच्चाटन , मोहन , स्तम्भन , विध्वंसन । इन्ही छह यन्त्रों या छह विधियों के माध्यम से 100 (सौ) वर्गों के समावेश करके लकड़ी के पटल मे षड्ययन्त्र खेला जाता है| आज आधुनिक समय मे 64 (चौंसठ) वर्गो के पटल मे चेस (CHESS) को खेला जाता है| 1. जारण :- ‘जारण’ का अर्थ जलाना या भस्म करना है । यह संस्कृत के ‘ज्वल्’ से निकला है । 2. मारण :- ‘मारण’ यन्त्र का आशय एकदम स्पष्ट है । शत्रु का अस्तित्व समाप्त करना ‘मारण’ कहलाता है । 3. उच्चाटन :- ‘उच्चाटन’ का अर्थ है स्थायी भाव मिटाना । वर्तमान परिस्थिति को भंग कर देना । उखाड़ना, हटाना आदि । विरक्ति, उदासीनता या अनमनेपन के लिए आम तौर पर हम जिस उचाट, दिल उचटने की बात करते हैं उसके मूल में संस्कृत का ‘उच्चट’ शब्द है जो ‘उद्’ और ‘चट्’ के मेल से बना है । उद्-चट् की सन्धि उच्चट होती है । ‘उद’ यानी ऊपर ‘चट्’ यानी छिटकना, अलग होना, पृथक होना आदि । ‘उच्चाटन’ भी इसी उच्चट से बना है जिसका अर्थ हुआ उखाड़ फेंकना, जड़ से मिटाना, निर्मूल करना आदि । 4. मोहन :- जब ‘जारण’, ‘मारण’, ‘उच्चाटन’ जैसे यन्त्रों से काम नहीं बनता तो ‘मोहिनी विद्या’ काम आती है । ‘मोहन’ का अर्थ है मुग्ध होना । इसके मूल में ‘मुह्’ धातु है जिसका अर्थ है सुध बुध खोना, किसी के प्रभाव में खुद को भुला देना । अक्सर नादान लोग ऐसा करते हैं और इसीलिए ऐसे लोग ‘मूढ़’ कहलाते हैं । मूढ़ भी ‘मुह्’ से ही निकला है और ‘मूर्ख’ भी । ‘मोहन यन्त्र’ का मक़सद शत्रु पर ‘मोहिनी शक्ति’ का प्रयोग कर उसे मूर्छित करना है । श्रीकृष्ण की छवि में ‘मोहिनी’ थी इसलिए गोपिकाएँ अपनी सुध-बुध खो बैठती थीं इसलिए उन्हें ‘मोहन’ नाम मिला । 5. स्तम्भन :- पाँचवी विधि है ‘स्तम्भन’ जिसका अर्थ है जड़ या निश्चेष्ट करना । यह ‘स्तम्भ’ से बना है । जिस तरह से काठ का खम्भा कठोर, जड़ होता है उसी तरह किसी सक्रिय चीज़ को स्तम्भन के द्वारा निष्क्रिय बनाया जाता था । 6. विध्वंसन :- षड्यन्त्र की छठी और आखिरी प्रणाली है ‘विध्वंसन’ अर्थात पूरी तरह से नाश करना। शब्दार्थ
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आकाश विजयवर्गीय
आकाश विजयवर्गीय (जन्म 12 सितम्बर 1984) एक भारतीय राजनीतिज्ञ एवं मध्यप्रदेश, इंदौर से भाजपा के सदस्य हैं। 2018 में मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में आकाश ने अपना पहला चुनाव जीतने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता एवं 3 बार के विधायक अश्विन जोशी को 5700 से अधिक मतों के अंतर से हराया। आकाश देव से महादेव पुस्तक के लेखक हैं। यह पुस्तक बाबा रामदेव की उपस्थिति में प्रशंसनीय की गयी थी। यह पुस्तक युवाओं को आध्यात्मिक रूप से जीवन में सफलता पाने के लिए मार्गदर्शन करती है। आकाश बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के बेटे है।इनके विधायक बनने पर बीजेपी की ही पुर्व विधायक उषा ठाकुर ने अमित शाह को इसे वंशवाद बताया था। विवाद 26 जून 2019 को इंदौर नगर निगम का दल जेल रोड़ क्षेत्र में एक जर्जर मकान को गिराने पहुंचा, इसकी सूचना मिलते ही आकाश मौके पर पहुंचे,और बल्ला (क्रिकेट बेट) लेकर निगम अधिकारि पर हमला करने पहुच गए। उनके साथ कुछ असामाजिक तत्त्व भी थे। जहां उनकी नगर निगम के अधिकारी से बहस हो गई। तभी आकाश क्रिकेट का बल्ला लेकर नगर निगम के अधिकारियों से भिड़ गए। आकाश ने बल्ले से अफसरों पर हमला भी किया।हमले की कई वीडियो वायरल हुई। मामले में आकाश के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आकाश ने बयान में कहा की हमारा यही मोटो है - आवेदन फिर निवेदन फिर दे दनादन । इसकी काफी निंदा हुई। इस घटना के बाद उनके पिता bjp नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी मीडिया वालों को कुछ बेतुके जवाब दिए । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले की निंदा की थी और आकाश तो विधायक पद से हटाने तक कि बात करि थी। बीजेपी के बड़े नेताओं जैसे मुख्यमंत्रीशिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गज नेताओं ने भी इंटरव्यू में चुप रहना बेहतर समझा।वही खड़े शख्स ने बताया कि निगम अमला लेकर जर्जर मकान तोड़ने आया था तभी विधायक वहां पहुचे और विवाद करने लगे। बाद में कोर्ट के आदेश अनुसार रिहा कर दिया गया। सन्दर्भ भारतीय राजनीतिज्ञ
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नजफ़ प्रान्त
नजफ़ प्रान्त, जिसे अरबी में मुहाफ़ज़ात​ अन-नजफ़ () कहते हैं इराक़ का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी नजफ़ शहर है जो शिया मुस्लिमों के लिए एक बड़े धार्मिक महत्व का शहर है। इसके अलावा इस प्रान्त में कूफ़ा का शहर भी आता है और यह भी एक शिया धार्मिक महत्व का शहर है। स्थापना १९७६ से पहले यह दिवानियाह​ प्रान्त का हिस्सा हुआ करता था। उस प्रान्त को बांटकर नजफ़ प्रान्त, क़ादिसियाह​ प्रान्त और मुसन्ना प्रान्त बनाए गए। लोग नजफ़ प्रान्त में शिया समुदाय की स्पष्ट बहुसंख्या है। इन्हें भी देखें इराक़ के प्रान्त सन्दर्भ नजफ़ प्रान्त इराक़ के प्रान्त
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आंजेलो चेली
आंजेलो चेली (1857 - 1914), इटली के एक चिकित्सक तथा प्राणीविद् थे। इन्होनें मलेरिया का अध्ययन किया। सेली ने सन् 1878 में रोम के Sapienza University से स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी की तथा स्वास्थ्य विज्ञान के अध्यापक बन गये। 1880 में एत्तोरे मार्चियाफावा के साथ इन्होने, चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरन के द्वारा खोजे गये एक नये प्रोटोज़ोआ का अध्ययन किया। इस नये प्रोटोज़ोआ का नामकरण दोनो ने मिलकर प्लास्मोडियम किया। उन्होंने मलेरिया के इस परजीवी का वर्षों तक अध्ययन किया। References Conci, C. 1975 Repertorio delle biografie e bibliografie degli scrittori e cultori italiani di entomologia. Mem. Soc. Ent. Ital. 48 1969(4) 817-1069. Conci, C. & Poggi, R. 1996 Iconography of Italian Entomologists, with essential biographical data. Mem. Soc. Ent. Ital. 75 159-382. Howard, L. O. 1915 [Celli, A.] Pop. Sci. Monthly 87 72, Portrait. Howard, L. O. 1930: History of applied Entomology (Somewhat Anecdotal).Smiths. Miscell. Coll. 84 X+1-564. Roncalli, Amici R 2001 The history of Italian parasitology. Vet. Parasitol. 98(1-3):3-30. चेली, आंजेलो 1857 में जन्मे लोग १९१४ में निधन इटली के वैज्ञानिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A8
उत्तराखंड रत्न
उत्तराखंड रत्न उत्तराखंड गौरव सम्मान के साथ उत्तराखंड राज्य के दो सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है। यह मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए किसी व्यक्ति को दिया जाता है। इसका गठन वर्ष 2016 में उत्तराखंड सरकार द्वारा किया गया था। इस पुरस्कार के कुल 9 प्राप्तकर्ता हुए हैं। इतिहास उत्तराखंड रत्न पुरस्कार उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा 2016 में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की 16वीं वर्षगांठ के अवसर पर स्थापित किया गया था, जो प्रत्येक वर्ष 9 नवंबर को पड़ता है। पुरस्कार उत्तराखंड रत्न प्राप्त करने वालों में से प्रत्येक को ₹ 500,000 की राशि के साथ स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र और शॉल प्रदान किया जाता है। उत्तराखंड रत्न प्राप्तकर्ताओं की सूची यह सभी देखें भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार राज रत्न, ब्रिटिश भारत की व्यक्तिगत रियासतों द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है संदर्भ 2016 में स्थापित पुरस्कार भारत के राज्य पुरस्कार और सजावट उत्तराखण्ड सम्मान उत्तराखंड पुरस्कार
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माइक्रोएरे
माइक्रोएरे को अनुवांशिक चिप, माइक्रो चिप, DNA चिप, बायोऐरे, जीनऐरे आदि भी कहा जाता है। यह तकनीक सबसे पहले १९८३ में Tse Wen Chang ने एंटीबाडी के लिए प्रयोग में लाइ थी। इस तकनीक में हजारो अनुवांशिकाओ को एक ढोस सब्सट्रेट जो की या तो गिलास का या फिर सिलिकॉन की पतली झल्ली का बना होता है, पर जोड़ा जाता है। इस तकनीक की सहायता से अनुवांशिकाओ की प्रोफाइलिंग और उनका विश्लेषण करने में मदद करते हैं। माइक्रोएरे एक छोटी सी चिप है जिसमें २००-३०० स्पॉट बने होते है जिनका आकार २००mm होता है। यह स्पॉट अनुवांशिक सैंपल लोड करने के लिए होते हैं। माइक्रोएरे चिप में अनुवांशिक के सैंपल को रख क्र उन्हें हाइब्रिड कराया जाता है। उसके बाद उन्हें कुछ देर रखकर उनमे फ्लोरोक्रोम डाई का प्रयोग किया जाता है जो की जीन के २ विभिन्न सैंपल को अलग करने में मदद करती है। इस पुर प्रयोजन के बाद उन अनुवांशिक सैंपल का विश्लेषण किया जाता है माइक्रोएरे की मदद से। माइक्रोएरे जीन की जांच करने में सहायक है। और इसकी मदद से cDNA का संग्रह करने में भी सहायक होते है। सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान जीव विज्ञान
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बाबा शादी शहीद
बाबा शादी शहीद (अंग्रेज़ी:Baba Shadi Shaheed) महाराजा धर्मचंद चिब (पूर्व नाम महाराजा धर्मचंद और राजा शादाब खान) एक सूफी संत थे। वह पहला चिब राजपूत था जिसने बाबर के शासनकाल के दौरान एक मुगल राजकुमारी से शादी की थी। वह एक प्रसिद्ध बुद्धिमान व्यक्ति थे, जिनसे दिल्ली में बीमार सम्राट बाबर का इलाज करने का अनुरोध किया गया था। बाबर ने पुरस्कार के रूप में अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। उन्होंने हुमायूँ की भतीजी से भी शादी की, जो कंधार के पीर हैबत की बेटी है, जो अंततः अकबर के दौरान उनकी मृत्यु की ओर ले जाती है। राजा शादाब खान, सम्राट बाबर , हुमायूँ और अकबर के समकालीन और सामंत थे ; और उन्होंने जम्मू और कश्मीर की वर्तमान सीमा के भीतर भीमबेर , मीरपुर और नौशेरा जिलों पर शासन किया। कंधार में सम्राट अकबर को प्रदान की गई उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए, उन्हें शादाब खान की उपाधि से कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था। उन्होंने अकबर के शासनकाल के दौरान कंधार के गवर्नर के रूप में भी कार्य किया। उनका गोत्र, चिब कश्मीर और पंजाब के राजपूत, भीमबेर में जंडी छोंतरा में उनके मंदिर में अपने सम्मान का भुगतान करने के लिए आते हैं और अपने बच्चों के जन्म का जश्न मनाते हैं। पिछले कुछ दशकों में, गैर-जनजाति सदस्यों के बीच मंदिर की लोकप्रियता इस विश्वास के कारण बढ़ी है कि मंदिर में जाने से निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्त करने में मदद मिलेगी। सदिप चंद ने बादशाह बाबर के दरबार में इस्लाम धर्म को अपनाया , और शादाब खान का नाम लेते हुए उस सम्राट द्वारा उसकी संपत्ति की पुष्टि की गई। यह सरदार बादशाह हुमायूँ के साथ उसके कई अभियानों में गया, और अंत में एक झगड़े में मारा गया। मकबरा भिम्बेर शहर के पास है, और यह एक तीर्थ स्थान है जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों आते हैं। इन्हें भी देखें केसिया अली कमालुद्दीन अहमद नादिया पंडोर सन्दर्भ शासक इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2
माधुरी बड़थ्वाल
Articles with hCards माधुरी बड़थ्वाल उर्फ़ उनियाल भारत के उत्तराखंड की एक लोक गायिका हैं। वह ऑल इंडिया रेडियो में संगीतकार बनने वाली पहली महिला हैं। कहा जाता है कि वह संगीत शिक्षिका बनने वाली उत्तराखंड की पहली महिला संगीतकार हैं। 2019 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्हें राम नाथ कोविंद द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा 2022 में भारत के चौथे सबसे उल्लेखनीय नियमित नागरिक पुरस्कार पद्म श्री सम्मानित किया गया। ज़िंदगी बर्थवाल के पिता एक गायक और सितारवादक थे। स्नातक होने के बाद उन्होंने एक कॉलेज में संगीत शिक्षक के रूप में कई वर्ष बिताए। अपने खाली समय में वह नजीबाबाद में ऑल इंडिया रेडियो के लिए रचना करती थीं। वह उत्तराखंड के लोक संगीत की उत्साही समर्थक बन गईं और उन्होंने रेडियो कार्यक्रम "धरोहर" बनाया जो इस क्षेत्र की विरासत और यहां के लोक संगीत को समर्पित था। कहा जाता है कि वह उत्तराखंड में इस्तेमाल होने वाले हर वाद्य यंत्र की जानकार हैं। उन्होंने अन्य संगीतकारों के संगीत को रिकॉर्ड करने में मदद की है। एक शिक्षिका के रूप में उन्होंने सैकड़ों लोगों को पेशेवर संगीतकार बनने के लिए प्रेरित किया है, जिन्हें उन्होंने पढ़ाया है। उन्होंने अपने साथी गढ़वाली गायक नरेंद्र सिंह नेगी के साथ गाया है। बर्थवाल के काम को नारी शक्ति पुरस्कार से मान्यता मिली, जिसे संगीत, प्रसारण और शिक्षण के लिए समर्पित उनके साठ वर्षों की मान्यता में भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा प्रदान किया गया था। प्रशस्ति पत्र में कहा गया है कि उन्होंने संगीत के संरक्षण के लिए "अपना जीवन समर्पित" कर दिया है। पुरस्कार समारोह 2019 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया था। उस दिन लगभग चालीस महिलाओं को पुरस्कार मिला और तीन पुरस्कार समूहों को दिये गये। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी वहां मौजूद थीं और उसके बाद पुरस्कार विजेताओं ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। संदर्भ जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग) भारतीय महिला गायक भारतीय संगीतकार उत्तराखण्ड की संस्कृति जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%AA
वाइपर द्वीप
वाइपर द्वीप (Viper Island) भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह का एक द्वीप है। यह प्रशासनिक रूप से दक्षिण अण्डमान ज़िले के अंतर्गत आता है और पोर्ट ब्लेयर से 4 किमी पश्चिम में स्थित है। इतिहास ब्रिटिश काल में भारत के अन्य भागों से लाये गये 'खतरनाक' बन्दियों बंदियों को इसी द्वीप पर उतारा जाता था। अब यह द्वीप एक पिकनिक स्थल के रूप में विकसित हो चुका है। यहां के टूटे-फूटे फांसी के फंदे निर्मम अतीत के साक्षी बनकर खड़े हैं। यहां पर इस द्वीप की सबसे पहली अंग्रेजों द्वारा बनाई गई जेल थी। इसके ऊपर ही तब का बना फांसी घर भी है। यहीं पर शेर अली को भी फांसी दी गई थी, जिसने १८७२ में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड मेयो की हत्या की थी। चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें पोर्ट ब्लेयर सन्दर्भ दक्षिण अण्डमान ज़िले के द्वीप भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%85%E0%A4%B2-%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B8
जुवेरिया बिन्त अल-हरिस
जुवेरिया बिन्त अल-हारिस (608-676) (अंग्रेज़ी:Juwayriya bint al-Harith) इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद की पत्नी थीं और इसलिए उन्हें उम्मुल मोमिनीन कहा जाता है। वह बनू मुस्तलिक के प्रमुख अल-हरिस इब्न अबी दीरार की बेटी थीं। मुसलमानों और बनू मुस्तलिक के बीच संघर्ष बानू अल-मुसतालिक मुसलमाननों पर हमला कर रहे थे,मक्का से थोड़ी दूरी पर समुद्र के पास अल-मुरैसी नामक एक कुएं पर दोनों सेनाएं तैनात थीं। वे एक घंटे तक धनुष और तीर से लड़े, और फिर मुसलमान तेजी से आगे बढ़े, उन्होंने अल-मुसतालिक को घेर लिया और पूरे कबीले को उनके परिवारों, झुंडों और झुंडों के साथ बंदी बना लिया। लड़ाई मुसलमानों के लिए पूर्ण जीत में समाप्त हुई। दो सौ परिवारों को बंदी बना लिया गया, दो सौ ऊंट, पांच हजार भेड़, बकरियां, साथ ही बड़ी मात्रा में घरेलू सामान लूट के रूप में कब्जा कर लिया गया। नीलामी में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को घरेलू सामान बेचा गया। पैगंबर से शादी बनू मुस्तलिक वालों से मुस्लिम सेना विजयी रही। बंदियों में जुवैरिया भी थी, जिसके पति मुस्तफा बिन सफवान युद्ध में मारे गए थे। वह शुरू में मुहम्मद के साथी थाबित इब्न क़ैस इब्न अल-शम्मा के बीच गिर गई । इससे परेशान होकर, जुवैरिया ने मुहम्मद से छुटकारे का काम मांगा। मुहम्मद ने उससे शादी करने का प्रस्ताव रखा और परिणामस्वरूप, उसे थबित इब्न क़ैस के बंधन से मुक्त कर दिया और परिणामस्वरूप उसके कब्जे वाले कबीले की स्थिति में सुधार किया। इस घटना का और अधिक विस्तार से वर्णन किया गया था: और अपनी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उसने खुद को इस असहाय स्थिति में पाया।" स्थिति। सोने से बने एक सिंहासन से वह धूल में गिर गई थी। ......वह संभवतः एक गुलाम के रूप में जीवन कैसे जी सकती थी? उसने पैगंबर से अनुरोध किया, कि वह उस दयनीय और हताश स्थिति पर ध्यान दे, जिसमें उसने पाया खुद। पैगंबर,उसकी दुखद दलील से प्रभावित हुए और उससे पूछा कि क्या वह एक स्वतंत्र महिला के रूप में रहना पसंद करेगी और अगर उसने फिरौती का भुगतान किया तो वह उसके घर का हिस्सा बन जाएगी। उसने सपने में भी इस प्रस्ताव की कल्पना नहीं की थी। अपनी स्थिति में इस अप्रत्याशित वृद्धि से गहराई से प्रेरित होकर, उसने कहा कि उसे स्वीकार करने में बहुत खुशी होगी।" कुछ समय बाद उसके पिता और उसके कबीले के सभी पुरुष जिन्हें मुक्त कर दिया गया था, उन्होंने भी इस्लाम को अपने धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया। नतीजतन, उसकी शादी इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद से हुई थी , जब वह 58 साल के और वह 20 साल की थी, इस तरह शादी 627-628 में हुई। वह चार साल नबी के साथ थी। मृत्यु और अंत्येष्टि प्रवास के 50वें वर्ष में पैंसठ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें जन्नतुल बाकी में मुहम्मद की अन्य पत्नियों के साथ दफनाया गया। संदर्भ अरबी भाषा पाठ वाले लेख इस्लाम मुहम्मद सहाबिया इन्हें भी देखें मुहम्मद के अभियानों की सूची उम्मुल मोमिनीन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE
बिरुबाला राभा
बिरुबाला राभा एक भारतीय समाजसुधारक कार्यकर्ता हैं जो भारत में असम में जादू टोना और 'चुड़ैल' के शिकार के विरुद्ध अभियान चलाती हैं। वह 'मिशन बिरुबाला नामक एक संस्था चलाती हैं जो 'डायन' कहकर स्त्रियों को मारने-पीटने और प्रताड़ित करने के विरुद्ध जागरूकता फैलाती है। असम सरकार द्वारा चुड़ैल प्रताड़ना रोकथाम और संरक्षण अधिनियम, 2015 को पारित कराने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारत सरकार ने उन्हें सामाजिक कार्य में योगदान के लिए 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया जो भारत का चौथा सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अन्धविश्वास कुप्रथा बाहरी कड़ियाँ बीरुबाला: 'डायन का शिकार करने वाले' जिनके नाम से डरते हैं सामाजिक कार्य में पद्मश्री प्राप्तकर्ता जन्म वर्ष अज्ञात (जीवित लोग) जीवित लोग
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