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सैमुएल हैनीमेन
क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान (जन्‍म 1755-मृत्‍यु 1843 ईस्‍वी) छद्म-वैज्ञानिक होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता थे। आप यूरोप के देश जर्मनी के निवासी थे। आपके पिता जी एक पोर्सिलीन पेन्‍टर थे और आपने अपना बचपन अभावों और बहुत गरीबी में बिताया था। एम0डी0 डिग्री प्राप्‍त एलोपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के ज्ञाता थे। डॉ॰ हैनिमैन, एलोपैथी के चिकित्‍सक होनें के साथ साथ कई यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता थे। वे केमिस्‍ट्री और रसायन विज्ञान के निष्‍णात थे। जीवकोपार्जन के लिये चिकित्‍सा और रसायन विज्ञान का कार्य करनें के साथ साथ वे अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अनुवाद जर्मन और अन्‍य भाषाओं में करते थे। एक बार जब अंगरेज डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” मे वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे मे अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्‍यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है। कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्‍होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्‍द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्‍य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्‍सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये। कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूच्‍छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्‍कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को हैनिमेन नें तत्‍कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्‍योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्‍वरूप कहा जा सकता है। बाहरी कड़ियाँ Christian Friedrich Samuel Hahnemann A historical overview चिकित्सक होम्योपैथी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%20%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE
श्रद्धा शर्मा
श्रद्धा शर्मा, उद्यमियों के लिए एक मीडिया प्रौद्योगिकी मंच, योरस्टोरी (YourStory) की संस्थापक, सीईओ और मुख्य संपादक हैं। 2008 में योरस्टोरी शुरू करने से पहले, शर्मा ने सीएनबीसी – टीवी १८ में सहायक उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रही और टाइम्स ऑफ इंडिया में एक ब्रांड सलाहकार भी थीं। लक्ष्मी के साथ चाय पर उन्हें "... भारत के डिजिटल स्पेस का सबसे बड़ी कहानीकार" की संज्ञा दी गई। उन्हें टेकगिग की "भारत की 5 महिला भारतीय उद्यमी, जिनके बारे में आपको जानना चाहिए।" लेख में शामिल किया गया। द हिंदू ने अपने एक लेख में उनके बारे में "ग्लास सिलिंग" जैसी संज्ञा दी है। उनकी कंपनी को "स्टार्ट-अप और उद्यमियों से संबंधित कहानियों, समाचार, संसाधनों और अनुसंधान रिपोर्टों के लिए भारत का सबसे बड़ा और निश्चित मंच" बताया जाता है। योरस्टोरी 12 भाषाओं में उद्यमीशीलता की कहानी मुहैया कराती है। योरस्टोरी को रतन टाटा, वाणी कोला, कार्ति मदसामी और टी वी मोहनदास पाई से निवेश प्राप्त हुआ है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा शर्मा का जन्म बिहार के एक छोटे से शहर में हुआ था। वे पटना में पली-बढ़ी। अपने स्कूल के दिनों में, वे अपनी कक्षा में अव्वल थीं और शिक्षा और वाद-विवाद में बहुत सक्रिय थीं। शर्मा ने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास में स्नातक और मास्टर डिग्री और मैरीलैंड इंस्टीट्यूट कॉलेज ऑफ आर्ट से एमबीए हासिल की। पुरस्कार और उपलब्धियां शर्मा को समावेशी स्टार्टअप समुदाय के निर्माण में उनके प्रयासों के लिए नैस्कॉम इकोसिस्टम इवेंजलिस्ट पुरस्कार प्राप्त हुआ है, इसके अलावा उन्हें 2010 में स्टार्टअप्स के कवरेज के लिए विल्ग्रो जर्नलिस्ट ऑफ़ द इयर पुरस्कार दिया गया था। 2015 में उन्हें दुनिया भर में 500 लिंक्डइन इन्फ्लुएंसर के बीच सूचीबद्ध किया गया था, और उसी वर्ष उन्हें ऑनलाइन प्रभाव के लिए लोरियल पेरिस फेमिना पुरस्कार प्राप्त हुआ। 2016 में पैट मेमोरियल आउटस्टैंडिंग एलुमनीस पुरस्कार और 2016 में इंटरनेट श्रेणी के तहत लिंक्डइन में सबसे अधिक देखे जाने वाली सीईओ थीं सन्दर्भ जीवित लोग 1980 में जन्मे लोग भारतीय पत्रकार भारतीय महिला उद्यमी
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मालविका शर्मा
मालविका शर्मा एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं जो तेलुगु और तमिल भाषा की फिल्मों में काम करती हैं। उसके पास वकील की योग्यता है। उन्होंने रवि तेजा के साथ नेला टिकट (2018) के साथ अपनी शुरुआत की। उनकी अगली फिल्म रेड (2021) थी। निजी जीवन वह कानून में भी अपना करियर बना रही हैं। उन्होंने रिज़वी लॉ कॉलेज से अपराध विज्ञान में विशेषज्ञता के साथ बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिल्मोग्राफी फिल्में सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मालविका ऑन इंस्टाग्राम जीवित लोग मुम्बई से अभिनेत्रियाँ
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जोन बायज़
जोन चंदोस बायज़  (/बीaɪz/; का जन्म 9 जनवरी, 1941) एक अमेरिकी लोक गायक, गीतकार, संगीतकार, और कार्यकर्ता है जिसके समकालीन लोक संगीत में अक्सर विरोध या सामाजिक न्याय के गाने शामिल होते हैं।  बाएज ने 59 से अधिक वर्षों के लिए सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया, 30 से अधिक एल्बमों को जारी किया। वह स्पैनिश और अंग्रेजी में धाराप्रवाह है और उसने कम से कम छह अन्य भाषाओं में गाने दर्ज किए हैं। उन्हें लोक गायक माना जाता है, हालांकि उनके संगीत ने 1960 के दशक के प्रतिकूल दिवस के बाद से विविधता प्राप्त की है और अब लोक रॉक और पॉप से लेकर कंट्री और गास्प्ल संगीत तक सब कुछ शामिल है। यद्यपि वह खुद एक गीतकार है, वह आम तौर पर अन्य संगीतकारों के काम की व्याख्या करती हैं, जिन में ऑलमन ब्रदर्स बैंड, बीटल्स, जैक्सन ब्राउन, लियोनार्ड कोहेन, वुडी गुथरी, वायलेट पेरा, रोलिंग स्टोन्स, पीट सीगर, पॉल साइमन, स्टीव वेंडर, बॉब डिलन और कई अन्य के गीत उसने रिकार्ड किये हैं। हाल में, उन्हें आधुनिक गीतकारों जैसे रयान एडम्स, जोश रित्र, स्टीव अर्ल और नेटली मर्चेंट के गाने की व्याख्या में सफलता मिली है। उनकी रिकॉर्डिंग में कई सामयिक गीत और सामाजिक मुद्दों से संबंधित सामग्री शामिल है। 1960 में उन्होंने अपना रिकॉर्डिंग कैरियर शुरू किया और तुरंत सफलता हासिल की। उनकी पहली तीन एल्बम, जोन बायज़ , जोन बायज़, वॉल्यूम। 2 , और कॉन्सर्ट में जौन बायज़ सभी ने स्वर्ण रिकॉर्ड का दर्जा हासल किया है।  प्रशंसा पाने वाले गानों में "डायमंड्स एंड रस्ट" और फिल ओच्स के कवर  "देयर व्हाट फॉर फॉर्च्यून" और द बैंड के  "द नाइट दे ड्रोव ओवर ओल्ड डिकसी डाऊन" शामिल हैं। वह "फेयरवेल, एंजेलीना", "लव इज़ जस्ट ए फोर-लेटर वर्ड", "फॉरएवर यंग", "जो हिल", "स्वीट सर गलाहद" और "वी शैल्ल ओवरकम" के लिए भी जाना जाता है। वह 1960 के दशक के शुरुआती दिनों में बॉब डिलन के गाने रिकॉर्ड करने वाले पहले प्रमुख कलाकारों में से एक थी;बायज़ पहले से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर कलाकार थी और उस ने अपने शुरुआती गीतकार प्रयासों को लोकप्रिय बनाने के लिए बहुत कुछ किया। बायज़ ने 1969 में वुडस्टॉक महोत्सव में तीन गाने भी किए और अहिंसा, नागरिक अधिकार, मानवाधिकार और पर्यावरण के क्षेत्र में राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। बायज़ को 7 अप्रैल, 2017 में  रॉक और रोल हॉल ऑफ फेम पर शामिल किया गया था। प्रारंभिक जीवन बायज़ स्टेटन द्वीप, न्यूयॉर्क, पर 9 जनवरी 1941 को पैदा हुई थी।. जोआन के दादा, रेवरेंड अल्बर्टो बेएज़, मेथोडिस्ट मंत्री बनने के लिए कैथोलिक धर्म छोड़ गए और उसके पिता की दो साल की उम्र में अमेरिका में चले गए। उनके पिता, अल्बर्ट बायज़ (1912-2007), मेक्सिको के पुएबाला में पैदा हुए थे। और ब्रुकलीन, न्यूयॉर्क में, बड़े हुए जहां उसके पिता—एक स्पेनिश बोलने वाले मण्डली के लिए प्रचार किया और वकालत की।  अल्बर्ट सबसे पहले एक मंत्री बनने पर विचार करते थे लेकिन उनका रुख पलट गया और उन्होंने गणित और भौतिकी का अध्ययन किया और 1950 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। अल्बर्ट को बाद में एक्सरे माइक्रोस्कोप के सह-आविष्कारक के रूप में श्रेय दिया गया।. जोन का चचेरे भाई, जॉन सी बायज़, एक गणितीय भौतिक विज्ञानी है, जिसे अल्बर्ट ने एक बच्चे के रूप में भौतिकी में रुचित बना दिया था। सन्दर्भ 1941 में जन्मे लोग
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यान मार्टल
यान मार्टल (जन्म २५ जून १९६३) स्पेन में जन्मे कनैडियन लेखक हैं, जिनकी सबसे प्रसिद्ध कृति लाइफ़ ऑफ़ पाई के लिए इन्हें मैन बुकर पुरस्कार मिला है। इनका जन्म सालामांका, स्पेन में हुआ था, लेकिन कोस्टा रीका, फ्रांस, मेक्सिको और कनाडा में पले बढ़े। इन्होंने पोर्ट होप, ऑण्टारिओ के ट्रिनिटी कॉलेज स्कूल में शिक्षा पाई। इस दौरान इन्होंने लेखन का कौशल संवारा। इन्होंने ट्रेंट युनिवर्सिटी से दर्शन की पढ़ाई की और फिर सारा संसार घूमे, विशेषतया ईरान, तुर्की और भारत। इन्होंने१३ महीने भारत में गुजारे और यहाँ मन्दिर, गिरजाघर, मस्जिद और चिड़ियाघर घूमे। इसके बाद इन्होंने २ वर्ष धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और समाज से बहिष्कृत लोगों की कहानियाँ पढ़ीं। इन्हें बचपन मे ही पढ़ने का बहुत शौक था, अल्फ़ोंस दौदे की ल पति शोज़ (फ्रांसीसी: Le Petit Chose, छोटी सी चीज़) इन्हें बहुत पसंद थी। यान ने दांते की डिवाइन कॉमेडी को संसार की सबसे प्रभावशाली पुस्तक माना है। यान की पहली कृति सेवन स्टोरीज़ (अंग्रेजी: Seven Stories, सात कहानियाँ) १९९३ में प्रकाशित हुई। २००१ में इन्होंने लाइफ़ ऑफ़ पाई (पाई का जीवन) प्रकाशित की, जिसे वर्ष २००२ का मैन बुकर पुरस्कार मिला। इस पुस्तक को २००३ की कैनेडा रीड्स प्रतियोगिता में चुना गया। यान सास्कातून, सास्काचवान में सप्तम्बर २००३ से एक साल तक एक सार्वजनिक पुस्तकालय में राइटर-इन-रेज़िडेंस रहे। इन्होंने टोरंटो की रॉयल कंज़रवेटरी ऑफ़ म्यूज़िक के कम्पोज़र-इन-रेज़िडेंस ओमार डैनियल के साथ मिलकर यू आर वेयर यू आर (तुम जहाँ हो वहीं हो) नामक संगीतमय रचना रची, जिसमें आम दिनों की आम बातचीत को वाक्यों में पिरोया गया है। नवम्बर २००५ में युनिवर्सिटी ऑफ़ सास्काचवान ने इन्हें स्कालर-इन-रेज़िडेंस घोषित किया। इनका अगला उपन्यास बीट्रिस और वर्जिल होलोकास्ट पर आधारित होगा। इसके अलावा ये वाट इज़ स्टीफ़न हार्पर रीडिंग (स्टीफ़न हार्पर क्या पढ़ रहे हैं) नामक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जिसमें ये कनाडा के प्रधान मंत्री को हर दो हफ्ते में एक किताब भेजते हैं, एक छोटे व्याख्यात्मक नोट के साथ। पुरस्कार २००२ मैन बुकर पुरस्कार विजेता २००१ ह्यू मैकलैनन पुरस्कार विजेता २००१ गवर्नर जनरल पुरस्कार की अंतिम सूची में बुक्स इन कैनेडा फ़र्स्ट नावेल अवार्ड की अंतिम सूची में लघुकथा द फ़ैक्ट्स बिहाइंड द हैलसिंकी रोकामाटिओस (अंग्रेजी: "The Facts behind the Helsinki Roccamatios") के लिए १९९१ जर्नी पुरस्कार सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ द कनैडियन एन्साइक्लोपीडिया में यान मार्टल वाट इज़ स्टीफ़न हार्पर रीडिंग? उपन्यासकार बुकर पुरस्कार विजेता कनाडा के लेखक
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सुमा कनकला
सुमा कनकला ( नी पाचावितल ; जन्म 22 मार्च 1975) एक भारतीय टेलीविजन प्रस्तुतकर्ता, अभिनेत्री और टेलीविजन निर्माता हैं, जो मुख्य रूप से तेलुगु टेलीविजन में काम करती हैं। वह ईटीवी के स्टार महिला, एक तेलुगु टीवी गेम शो की मेजबानी के लिए जानी जाती हैं, जो भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाला टीवी गेम शो है। प्रारंभिक जीवन सुमा का जन्म 22 मार्च 1974 को केरल, भारत में हुआ था। उनके माता-पिता पीएन एल प्रणवी और पी विमला हैं जो बहुत लंबे समय तक भारत के सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना में) में थे। उन्होंने 1999 में अभिनेता राजीव कनकला से शादी की मलयालम में अपनी मातृभाषा के अलावा , वह तेलुगु, हिंदी, तमिल और अंग्रेजी में धाराप्रवाह है। आजीविका 21 साल की उम्र से एक प्रस्तुतकर्ता, उसने कई तेलुगु फिल्म ऑडियो लॉन्च, फिल्म पुरस्कार और समारोह की मेजबानी की है। वह केरल की मलयाली हैं, लेकिन तेलुगू धाराप्रवाह बोलती हैं। मलयालम और तेलुगु के अलावा, वह हिंदी, अंग्रेजी और तमिल में भी पारंगत हैं। उन्होंने 1991 से मलयालम और तेलुगु, तमिल भाषाओं में विभिन्न फिल्मों में अभिनय किया है और फिर उन्होंने 1995 में धारावाहिकों और टेलीफिल्मों में प्रवेश किया, लेकिन उनकी सफलता उपग्रह चैनलों में उछाल के साथ आई। स्वयंवरम, Anveshitha , गीतांजलि, और Ravoyi चंदामामा उसके प्रमुख धारावाहिकों थे। उन्हें फिल्मों में काम करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। सुमा का प्रमुख शो ईटीवी पर स्टार महिला है, जिसने कई महिला दर्शकों को आकर्षित किया। उन्होंने इस शो के द्वारा भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाले महिला गेम शो में से एक बनने का रिकॉर्ड बनाया। टीवी9 पर पंचवतारम में उनकी बहुमुखी प्रतिभा स्पष्ट है। ईटीवी पर कैश और एमएए टीवी पर भाले चांस ले उनके वर्तमान प्राइम टाइम शो हैं। सुमा ने 26 दिसंबर 2012 को के. सुमा राजीव क्रिएशंस नाम से अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू किया और लक्कू किक्कू नामक एक शो का निर्माण किया जो ज़ी तेलुगु पर प्रसारित होता है। उन्होंने Genes (गेम शो) नाम के एक तमिल शो में भी काम किया। सह-कलाकार मनो के साथ एमएए टीवी पर उनकी केवु केका और के. सुमा राजीव क्रिएशंस द्वारा निर्मित। सुमा ने 2017 की तेलुगु फिल्म विनर का "सुया सुया" गाना भी गाया। वह अपने शो के दौरान अपनी सहज और विनोदी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं। फिल्मोग्राफी अभिनेत्री के रूप में फिल्में टेलीविजन <i id="mwpg">अमरावती की कथाएं</i> (1994-1995) अन्वेशिता वेई पदगालु स्वयंवरम गीतांजलि सौंदर्य लहरी हाउस ऑफ़ हंगामा (२०२०) स्टार मा पर मेजबान के रूप में टेलीविजन विशेष 8वीं सिमा 2019 सिनेमा पुरस्कार 2013 सिनेमा पुरस्कार 2012 सिनेमा ऑडियो रिलीज फ़ंक्शन जेमिनी पुरस्कार अप्सरा पुरस्कार अन्य शो बिग बॉस तेलुगु (सीजन 1) स्टार मां पर निरीक्षण अधिकारी के रूप में ईटीवी पर जबर्दस्त अतिथि के रूप में डीई जूनियर्स २ अतिथि के रूप में ईटीवी पर जेमिनी टीवी पर मेमू सैथम अतिथि के रूप में अतिथि के रूप में स्टार माँ पर मेलो इवारु कोटेश्वरुडु अतिथि के रूप में यमुना के साथ कॉफी स्टार माँ पर बिग बॉस तेलुगु (सीजन 3) अतिथि के रूप में स्टार माँ पर बिग बॉस तेलुगु (सीजन 4) अतिथि के रूप में पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ टीवी एंकर के लिए नंदी पुरस्कार 2010 पंचवतारम। (सुमा) लिम्का फ्रेश फेस अवार्ड 2009 स्थानीय टीवी मीडिया पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ एंकर स्टार महिला 2010 सिनेगोअर अवार्ड सर्वश्रेष्ठ एंकर स्टार महिला 2010 स्टार महिला के 2000 एपिसोड को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान प्राप्त किया। अप्सरा पुरस्कार 2018: एंटरटेनर ऑफ द ईयर संदर्भ २१वीं सदी की भारतीय अभिनेत्रियाँ 1974 में जन्मे लोग भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री जीवित लोग
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भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर
भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर, एक सरकार द्वारा स्थापित प्रबंधन संस्थान इंदौर, मध्य प्रदेश में है। १९९८ में स्थापित, आईआईएम इंदौर प्रतिष्ठित आईआईएम परिवार का छठा सदस्य है। वर्तमान में संस्थान की एनआईआरएफ रैंकिंग पांचवें स्थान पर है। वर्ष 2011 में कक्षा बारहवीं के बाद युवाओं को प्रबंध की शिक्षा के लिए भारत में पहली बार इस संस्थान में पंचवर्षीय एकीकृत कार्यक्रम (आईपीएम ) प्रारंभ किया गया । इस कार्यक्रम में विश्व स्तरीय शिक्षा के साथ बी.ए.(फाउंडेशन इन मैनेजमेंट) एवं एमबीए की डिग्री दी जाती है,यह अपने आप में एक अनूठा प्रयास है। प्रबंध शिखर के नाम से जाना जाने वाला आई आई एम इंदौर का सुंदर १९३ एकड़ (७८१,००० वर्ग मीटर) परिसर इंदौर के बाहरी इलाके पर एक छोटी पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह संस्थान लगातार भारत के शीर्ष प्रबंध विद्यालयों के बीच वरीयता पाता है। आईआईएम इंदौर के लिए समग्र स्वीकृति दर लगभग ०.३ से ०.४% आवेदकों के लिए है। आईआईएम इंदौर धीरे-धीरे, प्रबंधन पाठ्यक्रम में अपने दो वर्ष पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा के लिए, वार्षिक छात्रों की प्रवेश संख्या १९९८ में लगभग ५० से बढ़ा कर २०१० में ४५० तक ले आया है। २७ नवम्बर २००८ पर प्रो एन रविचंद्रन ५ साल की अवधि के लिए संस्थान के निदेशक के रूप में शामिल हो गए थे। वर्तमान में प्रोफेसर हिमांशु राय निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। इतिहास आईआईएम इंदौर जो १९९८ में अस्तित्व में आया, आईआईएम कलकत्ता (१९६१), आईआईएम अहमदाबाद (१९६३), आईआईएम बंगलौर (1972), आईआईएम लखनऊ (1984) और आईआईएम कोझिकोड (1996) के बाद स्थापित हुआ छठा भारतीय प्रबंध संस्थान है। यह संस्थान आईआईएम के बीच सबसे नया था जब तक २००८ में आईआईएम शिलांग का गठन किया गया। इस संस्थान की कल्पना मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह ने की थी। इस संस्थान की स्थापना देश के मध्य क्षेत्र में प्रबंधन की शिक्षा को एक प्रोत्साहन देने के लिए की गयी थी और आंशिक प्रभाव यह भी था की श्री अर्जुन सिंह इस राज्य के निवासी हैं। इस संस्थान का पुराना अस्थायी परिसर राजेंद्र नगर, इंदौर में २००२ तक स्थित था, जिसके बाद  संस्थान अपने वर्तमान परिसर पीथमपुर विशेष आर्थिक जोन के करीब राऊ में राऊ-पीथमपुर मार्ग पर चला गया। बाहरी कड़ियाँ आईआईएम इंदौर आईआईएम इंदौर छात्र पोर्टल आह्वान २००९ आईआईएम इंदौर प्रबंधन कैनवास आईआईएम छात्र फोरम सन्दर्भ
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झुम्पा लाहिड़ी
झुम्पा लाहिड़ी (बंगाली: ঝুম্পা লাহিড়ী, 11 जुलाई 1967, को जन्म) एक भारतीय अमेरिकी लेखिका हैं। भारतीय अमेरिकी लेखक झुम्पा लाहिड़ी को लघु कथा में उत्कृष्टता के लिए 2017 पीएएन / मालामुद अवॉर्ड के प्राप्तकर्ता के रूप में घोषित किया गया है। लाहिड़ी के प्रथम लघु कथा संग्रह, इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ (1999) को 2000 में उपन्यास के पुलित्जर पुरस्कार सम्मानित किया गया और उनके पहले उपन्यास द नेमसेक (2003) पर आधारित उसी नाम की एक फिल्म बनाई गयी। जन्म से उनका नाम नीलांजना सुदेश्ना है और उनके अनुसार यह दोनों ही उनके "अच्छे नाम" है, लेकिन वे अपने उपनाम झुम्पा के नाम से ही जानी जाती हैं। लाहिड़ी, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा कला और मानवीयता पर राष्ट्रपति की समिति की सदस्या नियुक्त की गयी हैं। जीवनी लाहिड़ी का जन्म लंदन में हुआ था, वे एक आप्रवासी बंगाली भारतीय परिवार की बेटी हैं। जब वे तीन वर्ष की थीं तो उनका परिवार संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानांतरित हो गया; लाहिड़ी खुद को अमेरिकी मानती हैं और उनका कहना है, "मैं यहां पैदा नहीं हुई लेकिन ऐसा हो भी सकता था ." लाहिड़ी किंग्सटन, रोड आइलैंड, में बड़ी हुई, जहां उनके पिता अमर लाहिड़ी रोड आइलैंड विश्वविद्यालय में एक लाइब्रेरियन के रूप में कार्यरत है; वे इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ की अंतिम कथा "दी थर्ड एंड फाइनल कोंटीनेंट," के नायक का आधार हैं। लाहिड़ी की मां चाहती थी कि उनके बच्चे बंगाली विरासत को जानते हुए बड़े हों और उनका परिवार प्रायः अपने रिश्तेदारों से मिलने कलकत्ता (अब कोलकाता) जाता था। जब उन्होंने किंग्स्टन, रोड आइलैंड में बालवाड़ी जाना शुरू किया तब उनकी शिक्षक ने उन्हें उनके उपनाम झुम्पा से बुलाने का फैसला किया, क्योंकि उनके असली नाम के मुकाबले इसका उच्चारण करना आसान था। लाहिड़ी याद करती हैं, "मैं हमेशा अपने नाम से बहुत शर्मिंदा रहती थी।... आपको ऐसा लगता है कि आप जो हैं वह बने रहकर किसी और के लिए दर्द का कारण बन रहे हैं।" अपनी पहचान पर लाहिड़ी की द्वैधवृत्ति उनके उपन्यास दी नेमसेक के नायक गोगोल के अपने असामान्य नाम को लेकर द्वैधवृत्ति के लिए प्रेरणा है। लाहिड़ी ने साउथ किंग्सटाउन हाई स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उन्होंने 1989 में बर्नार्ड कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बी.ए. किया। इसके बाद लाहिड़ी ने बॉस्टन विश्वविद्यालय से कई डिग्रियां प्राप्त की: जिनमें शामिल है अंग्रेजी में एम.ए., रचनात्मक लेखन में एम.एफ.ए., तुलनात्मक साहित्य में और पुनर्जागरण अध्ययन में एक पीएच.डी.. उन्होंने प्रोविंसटाउन के फाइन आर्ट्स वर्क सेंटर की फैलोशिप ली, जो अगल दो वर्षों तक चली (1997-1998). लाहिड़ी ने बॉस्टन विश्वविद्यालय और रोड आइलैंड स्कूल ऑफ़ डिजाइन में रचनात्मक लेखन की शिक्षा दी. 2001 में, लाहिड़ी ने अल्बर्टो वॉरवोऊलिअस-बुश से शादी की, जो एक पत्रकार हैं और उस समय टाइम लैटिन अमेरिका के डिप्टी एडीटर थे (और अब न्यूयॉर्क की सबसे बड़ी स्पेनिश दैनिक और अमेरिका के सबसे तेज़ी से बढ़ रहे समाचार पत्र El Diario/La Prensa, के कार्यकारी संपादक हैं). लाहिड़ी, ब्रुकलीन न्यूयॉर्क में अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती है, जिनका नाम है ओक्टेवियो (ज.2002) और नूर (ज. 2005). साहित्यिक कैरियर लाहिड़ी की पूर्व लघु कथाओं को प्रकाशकों से "वर्षों तक" अस्वीकृति का सामना करना पड़ा. उनका पहला लघु कथा संग्रह, इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ अंत में 1999 में जारी हुआ। यह कहानियां भारतीय या भारतीय प्रवासियों के जीवन में संवेदनशील दुविधाओं जैसे वैवाहिक कठिनाइयों, गर्भपात और पहली और दूसरी पीढ़ी के संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रवासियों के बीच असम्पर्क जैसे विषयों को सम्बोधित करती हैं। लाहिड़ी ने बाद में लिखा, "जब मैने पहली बार लेखन शुरू किया तब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरा विषय भारतीय-अमेरिकी अनुभव था। जिस चीज़ ने मुझे इस शिल्प की ओर आकर्षित किया वह था मेरे अन्दर की दोनों दुनिया को एक ही पन्ने पर उतारने की इच्छा, जिसे वास्तविक जीवन में करने का ना तो मुझमें साहस है और ना ही परिपक्वता." यह संग्रह अमेरिकी आलोचकों द्वारा सराहा गया, लेकिन भारत में इसे मिली-जुली समीक्षाएं प्राप्त हुई, जहां वैकल्पिक रूप से समीक्षक उत्साहित भी थे और साथ ही विक्षुब्ध भी थे क्योंकि लाहिड़ी ने "भारतीयों को एक अधिक सकारात्मक भूमिका में नहीं रचा।" इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ की 600,000 प्रतियां बिकी और इसे 2000 का पुलित्जर पुरस्कार फॉर फिक्शन प्राप्त हुआ (यह केवल सातवीं बार था जब किसी कहानी संग्रह ने यह पुरस्कार जीता था।) 2003 में, लाहिड़ी ने अपना पहला उपन्यास दी नेमसेक प्रकाशित कराया. यह कहानी गांगुली परिवार के जीवन के तीस वर्षों से भी अधिक समय में बुनी गयी है। कलकत्ता में जन्मे माता-पिता, युवा वयस्कों के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका में बस जाते हैं, जहां उनके बच्चे, गोगोल और सोनिया, अपने माता-पिता के साथ निरंतर पीढ़ी और सांस्कृतिक अंतर का अनुभव करते हुए बड़े होते हैं। मार्च 2007 में, दी नेमसेक का एक फिल्म रूपांतरण जारी किया गया, जिसका निर्देशन मीरा नायर ने किया और इसमें काल पेन ने गोगोल के रूप में और बॉलीवुड सितारे तब्बू और इरफान खान ने माता पिता के रूप में मुख्य भूमिकाए निभाई हैं। लाहिड़ी की लघु कथाओं का दूसरा संग्रह, अनएकसटम्ड अर्थ 1 अप्रैल 2008 को जारी हुआ। प्रकाशित होने पर अनएकस्टम्ड अर्थ ने दी न्यूयॉर्क टाइम्स की सर्वश्रेष्ठ विक्रेता सूची पर नंबर 1 पर शुरुआत की. न्यूयॉर्क टाइम्स के पुस्तक समीक्षा संपादक, ड्वाइट गार्नर ने कहा, "यह याद करना मुश्किल है कि आखिरी बार कब कोई वास्तव में गंभीर, अच्छी तरह से लिखित कथा - विशेष रूप से कहानियों की किताब आई थी - जो सीधे नंबर 1 पर पहुंच गयी; यह लाहिड़ी के नए वाणिज्यिक प्रभाव का प्रदर्शन है।" लाहिड़ी का दी न्यू यॉर्कर पत्रिका के साथ भी विशिष्ठ सम्बंध था जिसमें उनकी कई लघु कथाएं प्रकाशित हुई, जिनमे से अधिकांश काल्पनिक और कुछ अकाल्पनिक थी जिसमें शामिल थी दी लौंग वे होम; कुकिंग लेसंस, यह कहानी लाहिड़ी और उनकी मां के बीच के सम्बंध में खाने के महत्व के विषय में थी। 2005 के बाद से, लाहिड़ी पेन (PEN) अमेरिकी केंद्र की उपाध्यक्ष बनी, यह एक ऐसा संगठन है जिसे लेखकों के बीच में दोस्ती और बौद्धिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। फरवरी 2010 में, पांच अन्य लोगो के साथ उन्हें मानवता और कला संबंधी समिति का सदस्य नियुक्त किया गया। साहित्यिक केंद्र लाहिड़ी के लेखन की विशेषता होती है उनकी "सरल" भाषा और उनके पात्र, जो अक्सर अमेरिका में रह रहे भारतीय आप्रवासी होते हैं जिन्हें अपने जन्मस्थान और अपने अपनाये गए घर के सांस्कृतिक मूल्यों के बीच तालमेल बिठाना होता है। लाहिड़ी के उपन्यास आत्मकथात्मक होते हैं और यह अक्सर उनके अपने और साथ ही साथ उनके माता पिता, मित्रों, परिचितों और बंगाली समुदाय के अन्य लोगों के तजुर्बों पर आधारित होता है जिनसे वे परिचित हैं। लाहिड़ी अपने पात्रों के संघर्ष, चिंताओं और पूर्वाग्रहों को जांचती हैं ताकि आप्रवासी मनोविज्ञान और व्यवहार की बारीकियों और विवरण का वृत्तांत तैयार कर सके. अनएकसटम्ड अर्थ तक उन्होंने अधिकतर पहली पीढ़ी के भारतीय अमेरिकी आप्रवासियों पर और अपने देश से भिन्न एक देश में अपने परिवार को पालने के लिए उनके संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी कहानियों में वे उनके बच्चों को भारतीय संस्कृति और परम्पराओं से अवगत कराने और संयुक्त परिवार की भारतीय परंपरा, जिसमें माता-पिता, उनके बच्चे और बच्चों का परिवार एक ही छत के नीचे रहता है, से उनका जुड़ाव बनाये रखने के लिए उनके बड़े होने के बाद भी उन्हें अपने पास रखने के उनके प्रयासों का वर्णन करती हैं। अनएकसटम्ड अर्थ, पूर्व की इस मूल प्रकृति से दूर है क्योंकि इसमें लाहिड़ी के पात्र विकास के नए दौर में कदम रखते हैं। ये कहानियां दूसरी और तीसरी पीढ़ियों का भाग्य तलाशती है। जैसे-जैसे बाद की पीढ़ियां अमेरिकी संस्कृति को बढ़ते पैमाने पर आत्मसात करने लगती हैं और आराम से अपने मूल देश से बाहर अपना दृष्टिकोण बनाने लगती हैं, लाहिड़ी की कहानियां उन लीगों के व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर स्थानांतरित हो जाती है। वे दिखाती हैं कि कैसे बाद की पीढ़ियां अपने आप्रवासी अभिभावकों के बन्धनों से दूर हो गईं, जो अक्सर अपने समुदाय के प्रति और अन्य आप्रवासियों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी के लिए समर्पित थे। ग्रन्थ सूची लघु कथा संग्रह इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़ (1999) अनएकसटम्ड अर्थ (2008) उपन्यास दी नेमसेक (2003) लघु कथाएं "नोबोडीज़ बिजनेस" (12 मार्च 2001, न्यू यॉर्कर) ("सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी लघु कहानियां 2002") "हेल हेवेन" (24 मई 2004, न्यू यॉर्कर) "वंस इन ए लाइफ टाइम" (1 मई 2006 न्यू यॉर्कर) "यर्स एंड" (24 दिसम्बर 2007, न्यू यॉर्कर) पुरस्कार 1993 - हेंफील्ड फाउंडेशन की ओर से ट्रान्साटलांटिक पुरस्कार 1999 - लघु कथा "इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़" के लिए ओ हेनरी पुरस्कार 1999 - पेन (PEN)/हेमिंग्वे पुरस्कार (वर्ष का सर्वश्रेष्ठ फिक्शन डेब्यू) इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़ के लिए 1999 - "इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़" सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी लघु कथाओं में से एक के रूप में चयनित 2000 - अमेरिकन अकादमी ऑफ़ आर्ट एंड लेटर्स की ओर से एडिसन मेटकाफ पुरस्कार 2000 - "दी थर्ड एंड फाइनल कॉन्टिनेंट" सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी लघु कथाओं में से एक के रूप में चयनित 2000 - न्यू यॉर्कर का बेस्ट डेब्यू ऑफ़ दी यर "इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़" के लिए 2000 - उनके प्रथम इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलाडीज़ के लिए उपन्यास के लिए पुलित्जर पुरस्कार 2000 - जेम्स बीयर्ड फाउंडेशन एम.एफ.के. फिशर फ़ूड और वाइन पत्रिका में "इंडियन टेकाउट" के लिए विशिष्ट लेखन पुरस्कार 2002 - गुगेंहेइम फेलोशिप 2002 - "नोबोडीज़ बिजनेस" सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी लघुकथाओं में से एक के रूप में चयनित 2008 - अनएकसटम्ड अर्थ के लिए फ्रैंक ओ'कोनोर अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा पुरस्कार 2009 - अनएकसटम्ड अर्थ के लिए एशियाई अमेरीकी साहित्य पुरस्कार योगदान (परिचय) बर्नार्ड मालामड द्वारा लिखी फारार, स्ट्राउस और गिरौक्स दी मैजिक बैरल: स्टोरीज़, जुलाई 2003. (परिचय) आर.के. नारायण, द्वारा लिखी मालगुडी डेज़ पेंग्विन क्लासिक्स अगस्त 2006 "रोड आइलैंड" (निबंध), State by State: A Panoramic Portrait of America 2008, मैट वेईलैंड और शॉन विलसे, द्वारा संपादित एक्को, 16 सितंबर सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट: www.झुम्पालाहिड़ी.नेट आत्मकथाएं स्टीवन बार्क्ले एजेंसी में झुम्पा लाहिड़ी SAWNET जीवनी जीवनी वोईस फ्रॉम दी गैप्स बायोग्राफी मिस्क.: सबकोंटीनेंट के संदर्भ में लाहिड़ी फ्रेश एयर पर NPR साक्षात्कार 1967 में जन्मे लोग भारतीय महिला साहित्यकार जीवित लोग 21वीं सदी के उपन्यासकार 21वीं सदी की महिला लेखिकाएं अमेरिकी हिंदू अमेरिकी उपन्यासकार अमेरिकी लघु कहानी लेखक अमेरिकी लेखिकाएं भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक बर्नार्ड कॉलेज के पूर्व छात्र बंगाली लेखक बोस्टन युनिवर्सिटी के पूर्व छात्र बोस्टन विश्वविद्यालय के संकाय संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेज़ आप्रवासी गुगेंहेइम अध्येता ब्रुकलीन के लोग दक्षिण किंग्सटाउन, रोड आइलैंड के लोग पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता रोड आइलैंड स्कूल ऑफ़ डिजाइन के संकाय न्यूयॉर्क शहर से लेखक रोड आइलैंड से लेखक भारतीय महिला लेखका लंदन के लोग
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व्यवहार प्रक्रिया
सांसारिक उद्दीपनों की टक्कर खाकर सजीव प्राणी (Organisms) अपना अस्तित्व बनाए रखने के निमित्त कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करता है। उसके व्यवहार को देखकर हम प्राय: अनुमान लगाते हैं कि वह किस उद्दीपक (स्टिमुलस) या परिस्थिति विशेष के लगाव से ऐसी प्रतिक्रिया करता है। जब एक चिड़िया पेड़ की शाखा या भूमि पर चोंच मारती है, तो हम झट समझ जाते हैं कि वह कोई अन्न या कीट आदि खा रही है। जब हम उसे चोंच में तिनका लेकर उड़ते देखते हैं, तो तुरंत अनुमान लगाते हैं कि वह नीड़ (घोंसला) बना रही है। इसी प्रकार मानवी शारीरिक व्यवहार से उसके मनोरथ तथा स्वभाव आदि का भी पता लगता है। सहज क्रियाएँ मुख की मुद्रा, देह की अंगभंग तथा कमेंद्रियों के हिलने चलने के व्यवहार से अगोचर मानसिक क्रियाएँ विचार, रागद्वेष आदि भी दूसरे लोगों पर व्यक्त होते हैं। शारीरिक व्यवहार का सरलतम रूप "सहज क्रिया" (रिफ्लेक्स ऐक्शन) में मिलता है। यदि आँख पर प्रकाशपुंज फेंकी जाए, तो पुतली तत्काल सिकुड़ने लगती है। यह एक जन्मजात, प्राकृतिक अनायास क्रिया है। इस क्रिया का न तो कोई पूर्वगामी अथवा सहचारी चेतन अनुभव होता है और न ही यह व्यक्ति की इच्छा के बस में रहती है। इसी प्रकार मिर्च के स्पर्शमात्र से आँखों में अश्रु आ जाते हैं। यह भी एक जन्मजात या सहज क्रिया है। सांस लेना, खांसना आदि कुछ जटिल सहज क्रियाएं हैं। इनको मनुष्य इच्छानुसार न्यूनाधिक प्रभावित कर सकता है। मल-मूत्र त्याग भी सहज क्रियाएँ हैं जिनपर मनुष्य विशेष नियंत्रण रखना सीख लेता है। सूई चुभते ही हम हठात् हाथ खींच लेते हैं। इन सबका मूलाधार है, ज्ञानेंद्रियों का नस द्वारा कर्मेंद्रियों (पेशी, ग्रंथि आदि) के साथ सीधा प्राकृतिक संबंध। सूई के दबाव से पीड़ास्थल से संलग्न नसें सक्रिय हो उठती हैं और नसों द्वारा तत्संबंधित पेशीसंकोच होता है। अभ्यानुकूलित प्रतिवर्त (कंडीशंड रिफ्लेक्स) अनेक बार विशेष उद्दीपक की संगति से सहज क्रिया में परिवर्तन आ जाता है। यथा मिठाई खाने से मुख में रसस्राव एक सहज क्रिया है। किंतु मिठाई के दर्शन अथवा नाम के सुनने मात्र से भी लार टपकने लगती है। इसका कारण ग्रंथिस्राव की सहज क्रिया का, अर्थात् संलग्न नसों का रूप, शब्द विशेष की ज्ञानेंद्रिय से एक नवीन अवांतरित संयोग होता है। किंतु अनेक आकृति द्वारा नस संयोग के अवांतरित होने से यह एक अभ्यानुकूलित प्रतिवर्त (कंडीशंड रिफ्लेक्स) का नवीन रूप ले लेती है। "अभ्यानुकूलित" क्रियाओं का भी कोई पूर्वगामी या सहचारी चेतना अनुभव नहीं होता और आचरण भी व्यक्ति की इच्छा के अधीन नहीं होता। इसमें चेतन इच्छा की उपेक्षा, तथा सूक्ष्म दैहिक नस संयोग की स्वतंत्रता का ही संकेत प्राप्त होता है। सामाजिक आदर्श व आचरण के सतत् प्रभाव से जहाँ एक व्यक्ति मांसाहार परोसे जाने के समाचार से खिन्न होता है, वहीं दूसरा प्रसन्न होता है। इसी प्रकार पूर्वानुभव वा अभ्यानुकूलन भेद से एक जन विदेशी वस्तु के आभास मात्र से आनंदित और अन्य क्रुद्ध होता है। स्वजातीय सांप्रदायिक व्यक्तियों के साथ सौजन्य तथा मित्रता, परंतु विजातीय वर्ग के प्रति स्वाभाविक वैरभावना की अभ्यानुकूलन का उदाहरण है। आधुनिक युग में सर्वप्रथम इसका महत्व एक रूसी वैज्ञानिक प्रो॰ आईवन पेट्रोविच पैवलॉव ने सुझाया। अमरीका के एक वैज्ञानिक डॉ॰ जॉन बी. वाटसन ने इस सिद्धांत को अत्यंत लोकप्रिय बनाया। सामाजिक आचरण की अनेक गुत्थियों को सुलझाने में इस अभ्यानुकूलन प्रक्रिया का उपयोग होता है। सहज एवं मूल प्रवृत्ति जन्म से ही पशुओं में अनेक प्रकार के जटिल कार्य करने की क्षमता होती है। ये कार्य जीवनयापन के निमित्त अत्यंत आवश्यक होते हैं; यथा शिशु का स्तनपान; संतान के हित पशु जाति का व्यवहार; चिड़िया की घोंसला बनाने की प्रवृत्ति; इत्यादि। ऐसी प्रवृत्तियाँ भी जन्मजात प्रकृति का अंग होती हैं। यदि चौपाए भागते-दौड़ते हैं, जो पक्षी उड़ते फिरते हैं। जहाँ मधुमक्खी सुगंधित पुष्पों पर मंडराती है वहाँ छिपकली कीट, फतिंगों का शिकार करती है। ऐसी प्राकृतिक जीवनोपयोगी वृत्तियों को सहज प्रवृत्ति, वृत्ति व्यवहार (इंस्टिंक्ट) अथवा जातिगत प्रकृति भी कह सकते हैं। पशुवर्ग का प्रत्येक आचरण, मूल रूप से उसकी विशेष प्रकृत प्रवृत्ति से विकसित होता है। एक बैल या उसका बछड़ा, घासफूस, पत्ते, तृण आदि से पेट भरता है। परंतु एक उच्च वर्ग का सभ्य आदमी तथा उसके बच्चे विशेष ढंग से पकवान बनवाकर और उचित क्रम से असन वा बर्तन आदि सजाकर ही भोजन करते हैं। सभ्यता के कृत्रिम आवरण में हम प्रकृत मूल प्रवृत्ति की एक धुँधली सी झलक देख सकते हैं। अत: कहते हैं कि मूल प्रवृत्ति के क्षुद्र आधार पर ही उच्चाकांक्षी बृहत् सभ्यता की झाँकी खुलकर खेलती है। एक आंग्ल वैज्ञानिक प्रा. विलियम मैक्डूगल के विचार से प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के तीन अंग होते हैं- एक विशेष उद्दीपक परिस्थिति, एक विशिष्ट रसना अथवा संवेग और एक विशिष्ट प्रतिक्रिया क्रम। इनमें से संयोगवश उद्दीपक परिस्थिति तथा अनुकूल कार्य के क्रम में अत्यधिक परिवर्तन होता है। सामान्यत: कष्टप्रद अपमानजनक व दु:साध्य परिस्थिति में मनुष्य क्रोधित होकर प्रतिकार करता है। किंतु जहाँ बच्चा खिलौने से रुष्ट होकर उसे तोड़ने का प्रयास करता है, वहाँ एक वयस्क स्वदेशाभिमान के विरुद्ध विचार सुनकर घोर प्रतिकार करता है। जहाँ बच्चे का प्रतिकार लात, धूँसा तथा दाँत आदि का व्यवहार करता है, वहाँ वयस्क का क्रोध अपवाद, सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक हानि तथा अद्भुत भौतिक रासायनिक अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करता है। किंतु क्रोध का अनुभव तो सब परिस्थितियों में एक समान रहता है। प्रा. मैक्डूगल ने पशु वर्ग के विकास, तथा संवेगों के निश्चित रूप की कसौटी से एक मूल प्रवृत्तियों की सूची भी बनाई है। संवेग अथवा भय, क्रोध आदि को ही मुख्य मानकर तदनुसार मूल प्रवृत्तियों का नाम, स्वभाव आदि का वर्णन किया है। उनकी सूची बहुत लोकप्रिय है और उसकी ख्याति प्राय: अनेक आधुनिक समाजशास्त्रों में मिलती है। परंतु वर्तमानकाल में उसका मान कुछ घट गया है। डॉ॰ वाटसन ने अस्पताल में सद्य:जात शिशुओं की परीक्षा की तो उन्हें केवल क्रोध, भय और काम वृत्तियों का ही तथ्य मिला। एक जापानी वैज्ञानिक डॉ॰ कूओं ने यह पाया है कि सभी बिल्लियाँ न तो चूहों को प्रकृत स्वभाव से मारती हैं और न ही उनकी हत्या करके खाती हैं। उचित सीख से तो बिल्लियों की मूल प्रवृत्ति में इतना अधिक विकार आ सकता है कि चूहेमार जाति की बिल्ली का बच्चा, बड़ा होकर भी चूहे से डरने लगता है। अत: अब ऐसा समझते हैं कि जो वर्णन मैक्डूगल ने किया है वह अत्यधिक सरल है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्थिति को सरलतम बनाकर समझने के निमित्त, मानसिक उद्देश्यपूर्ति की उलझन से बचकर, शरीर के सूक्ष्म क्रियाव्यवहार को ही मूल प्रकृति मानने लगे हैं। उन्हें दैहिक तंतुओं के मूल गुण प्रकृति मर्यादित तनाव (Tissue Tension) में ही मूल प्रवृत्ति का विश्वास होता है। जब उद्दीपक वा परिस्थिति विशेष के कारण देह के भिन्न तंतुओं (रेशों) में तनाव बढ़ता है, तो उस तनाव के घटाने के हिव एक मूल वृत्ति सजग हो जाती है और इसकी प्रेरणा से जीव अनेक प्रकार की क्रियाएँ आरंभ करता है। जब उचित कार्य द्वारा उस दैहिक तंतु तनाव में यथेष्ट ढिलाव हो जाता है, तब तत्संबंधित मूल वृत्ति तथा उससे उत्पन्न प्रेरणा भी शांत हो जाती है। दैहिक तंतुओं का एक गुण और है कि विशेष क्रिया करते करते थक जाने पर विश्राम की प्रवृत्ति होती है। प्रत्येक दैहिक तथा मनोदैहिक क्रिया में न्यूनाधिक थकान तथा विश्राम का धर्म देखा जाता है। अत: निद्रा को यह आहार, भय, मैथुन आदि से सूक्ष्म कूठरस्थ वृत्ति मानते हैं। अर्थात् आधुनिक मत केवल दो प्रकार की मूल प्रवृत्ति मानने का है- (1) दैहिक तंतु तनाव को घटाने की प्रवृत्ति (या अपनी मर्यादा बनाए रखने की प्रवृति); (2) दैहिक तंतुओं के थक जाने पर उचित विश्राम की प्रवृत्ति। प्रेरणा पशुवर्ग के आचरण को समझने के लिए एकमात्र उपाय, उनकी विभिन्न प्रेरणाओं का ज्ञान प्राप्त करना है। प्रेरणा और प्रवृत्ति के संबंध से कुछ विद्वान् मूल प्रवृत्ति से ही मूल प्रेरणा की उत्पत्ति मानते हैं। किंतु सभ्य जीवन में कृत्रिम वा सीखी हुई मनोवृत्तियों का भी उचित स्थान है। इस युग में धनोपार्जन का कार्य सबको ही करना पड़ता है। धन की इच्छा तो अपने इष्टसाधन का निमित्त मात्र है। वास्तविक प्रेरणा तो अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति, तथा उनके संभोग की मनोवृत्ति से होती है। अत: धनोपार्जन की प्रेरणा एक अर्जित अर्थात् आधुनिक सभ्यता में सीखी हुई प्रेरणा है। धन के अद्वितीय विनिमय गुण के कारण ही धन पाने की इच्छा उत्पन्न होती है। किंतु इस प्रेरणावश सामान्य धन कमाने में उतना ही लिपटा रहता है, जितना आहार विहार की प्रेरणाओं से। यदि किसी बच्चे में साइकिल सवारी की प्रेरणा है, तो वह कभी घुड़सवारी से शांत नहीं होती। दोनों ही कृत्रिम प्रेरणाएँ हैं, किंतु उन्हें निर्मूल कहना मिथ्या है। उक्त बच्चे के लिए साइकिल वैसा ही सबल व्यवहारप्रेरक है, जैसा स्वादिष्ठ भोजन। प्रेरणा को हम सरलता से दो वर्गों में बांट सकते हैं - आकर्षक वा सुखद प्रेरक की प्राप्ति के प्रति और अपकर्षक वा दु:खद प्रेरक से बचने के प्रति। यदि पहले वर्ग की प्रेरणा को अनुकूल वा धनात्मक (+) कहें, तो दूसरे वर्ग की प्रेरणा को प्रतिकूल वा ऋणात्मक (-) कह सकते हैं। एक में व्यक्ति प्रेरक के लोभ से अग्रसर होता है और दूसरी में व्यक्ति प्रस्तुत प्रेरक से भयभीत होकर पीछे हटता है, या विमुख होकर दूर भागता है, अथवा रक्षा का अन्य उपाय करता है। यदि पहली में प्रवृत्ति है तो दूसरी में निवृत्ति। सामान्य परिस्थिति न तो शुद्ध सुखस्वरूप और न ही पूर्णतया दु:खरूप होती है। वह प्राय: मिश्रित होती है; यदि कुछ अंशों में वह सुखद होती है तो साथ ही दूसरे अंशों में वह दु:खद भी होती है। जहाँ एक अवयव हमें खींचता है, वहाँ दूसरा अवयव हमें धक्का देता है। जब हम चाकर वृत्ति ग्रहण कर जीविका चलाते हैं, तो हम पराधीनता में भी फँस जाते हैं। अनेक परिस्थितियाँ हमारे सामने न्यूनाधिक उग्र रूप में रागद्वेष का द्वंद्व उपस्थित करती हैं। जब इष्ट की मात्रा अधिक लगती है, तब हम झट उसी ओर प्रवृत्त होते हैं। और जहाँ अनिष्ट की मात्रा अधिक जँचती है, वहाँ हम तुरंत सँभलकर हट जाते हैं। किंतु जब रागद्वेष की उभय प्रेरणाएँ समान मात्रा में दिखाई देती हैं, तब मनुष्य को चिंता होती है और संशयवश उसे विचार तथा परामर्श का आश्रय लेना पड़ता है। कभी दो मनोहर प्रेरणाएँ एक साथ उपस्थित किंतु विरोधी दिशाओं में मनुष्य को खींचती हैं। यह भी कम चिंताजनक द्वंद्व नहीं है। जब बच्चे के सामने यह समस्या आती है कि वह खिलौना ले या मिठाई तो बेचारा दुविधा में फंस कर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है। कभी-कभी हम दोनों ओर से विपत्तियों के बीच फँस जाते हैं; एक ओर कुआँ है, तो दूसरी ओर खाई। यदि सच कहते हैं तो दंड मिलेगा और यदि झूठ बोलते हैं तो आत्मग्लानि होती है। सिद्धांतरूप से प्रेरणाओं का द्वंद्व प्राय: इन तीनों प्रकार का होता है। किंतु सामान्य परिस्थिति में अनेक धनात्मक और ऋणात्मक अंश एक साथ ओतप्रोत रहते हैं। प्रेरक परिस्थिति में कभी प्रकृत अंश मुख्य और कभी गौण भी होते हैं। प्रेरक वस्तुओं और परिस्थितियों का मूल्यांकन अधिकतर सामाजिक तथा आर्थिक श्रेष्ठता की माप से होता है। यदि कोई बच्चा खिलौने की अपेक्षा पुस्तक को लेना पसंद करता है, तो उसके मूल्यांकन में सामाजिक शिक्षा तथा वैज्ञानिक अभ्यास और अनुभूति का ही विशेष प्रभाव रहता है। इसी प्रकार प्रत्येक परिस्थिति के अंग के साथ, न्यूनाधिक स्पष्ट मात्रा में निश्चित सामाजिक श्रेष्ठता के अंश का संयोग रहता है। अत: बहुमुखी परिस्थिति में प्रकृत अंश की अपेक्षा सामाजिक पसंद का ही स्फुट महत्व रहता है। नया कपड़ा न होने से हम बारात के साथ जाना अस्वीकार करते हैं। कभी समाजप्रतिष्ठा के मोह से हम उधार लेकर अधिक दहेज आदि दान करते हैं। प्रेरणाद्वंद्व से पाला पड़ने पर मनुष्य सर्वथा निष्क्रिय नहीं रह सकता और कुछ न कुछ प्रतिक्रिया करते ही एक नया नियम बन जाता है। संशयात्मक स्थिति में एक ओर पग उठाने से, शेष व्यवहार उसी निर्णय के अनुरूप होने लगता है। प्रत्येक नवयुवक और युवती के लिए गृहस्थ जीवन में प्रवेश की समस्या प्राय: संशयात्मक होती है। किंतु निर्णय होते ही, तदनुकूल क्रियाएँ धारारूप से दूरवर्ती ध्येय की ओर प्रवाहित होती हैं। इसी प्रकार प्रत्येक संशयात्मक परस्पर विरोधी इच्छाओं की समस्या में हम एक को मानकर दूसरी को छोड़ देते हैं। परंतु मान्य इष्टप्राप्ति के प्रयास में त्यक्त इच्छाएँ भी कभी अवसर पाकर सिर उठाती हैं, पश्चात्ताप बढ़ाती हैं और विशेष अवस्था में व्यक्ति की बुद्धि हरने में सफल होकर उसे न्यूनाधिक पथभ्रष्ट भी कर देती हैं। परिस्थिति के साथ समायोजन (adjustment) परिस्थिति के साथ समायोजन (adjustment) तो व्यक्ति की सहज प्रकृति है। वह कभी अनुकूल और कभी प्रतिकूल मनोवृत्ति से प्रतिक्रिया करना है। यदि किसी अभियोजन के विधान से व्यक्ति वा समाज को सुख वा प्रगति की आशा होती है, तो उसे उचित, अन्यथा अनुचित कह देते हैं। किंतु तात्कालिक और दीर्घकालीन दृष्टिकोण में अंतर भी हो सकता है। यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात को विषपान का मृत्युदंड भी एक ऐसी सामाजिक अभियोजन की घटना थी, जिसपर वर्तमान काल में उभय पक्ष से वादविवाद होता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अभियोजन का विधान, नियम अथवा क्रिया तो सरल है। परिस्थिति के मोहक तथा भयानक अंशों के अनुमान से मनुष्य अधिक सुखप्राप्ति के निमित्त कार्य करता है। किंतु परिस्थिति विशेष के प्रतिकूल अवयव के नित्य के संघर्ष से वह या तो उससे उदासीन हो जाता है, या उसके मूल्यांकन का परिवर्तन कर उसको परोक्ष रूप से न्यूनाधिक लाभप्रद मानने लगता है। जब एक ग्रामीण युवक सेना में भरती होता है, तो उसे सारा दिन चुस्त वरदी वा भारी बूट आदि पहनकर रहना प्राय: खलता है। परंतु कुछ ही दिनों में वह उस वेश भूषा को सैनिक मर्यादा का संकेत कहकर, तथा उसमें आत्मसम्मान का आभास देखकर, उससे सलंग्न दु:ख को भी सहने की आदत बना लेता है। इस अभियोजन प्रक्रिया से मनुष्य दुखांश के प्रति उदासीन होता है और समय बीतने से वह उस अनिवार्य दु:ख को भूल भी जाता है, या उसे ही सुखद समझने लगता है। यह तो दैहिक तंतुओं का भी नियम है कि वे सतत कार्य करते रहने से थक जाते हैं। ज्ञानेंद्रियाँ भी थककर संज्ञाशून्य हो जाती हैं। बहुत मिठाई खाने से मिठास का अनुभव सुखहीन वा फीका पड़ जाता है। धूप जलाने पर उसकी गंध तो कुछ समय तक हम अनुभव करते हैं किंतु थोड़ी देर में वह सुगंध प्राय: लुप्त हो जाती है। यही दशा दैनिक संघर्ष द्वारा परिस्थिति के दु:खद अंश की होती है। कह सकते हैं कि इस चेतनालोप द्वारा हम शोकमुक्त होकर समाज के साथ समायोजित होते हैं। परंतु ये लुप्त प्रेरणाएँ अज्ञात मानस अवस्था में गुप्त रूप से बनी रहती हैं और उचित अवसर पाकर छद्म रूप से ज्ञात मन द्वारा इष्टपूर्ति का प्रयास करती हैं। बाहरी कड़ियाँ मनोविज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8
हटिया रेलवे स्टेशन
हटिया रेलवे स्टेशन (स्टेशन कोड: HTE), भारतीय राज्य झारखंड की राजधानी रांची में स्थित एक रेलवे स्टेशन है। हटिया स्टेशन भारतीय रेलवे के दक्षिण पूर्वी रेलवे ज़ोन के रांची रेलवे मंडल के अंतर्गत आता है। हटिया रेलवे स्टेशन भारत के अधिकांश प्रमुख शहरों से रेलवे संजाल से जुड़ा हुआ है। यह रांची-राउरकेला रेलवे खंड पर स्थित है। रांची से दिल्ली और कोलकाता के लिए नित्य ट्रेनें चलती हैं। शहर एक प्रमुख रेलवे केंद्र है और यहां चार प्रमुख स्टेशन है: रांची जंक्शन हटिया स्टेशन, तातिशिलवाई रेलवे स्टेशन और नामकोन स्टेशन। कई महत्वपूर्ण ट्रेनें रांची जंक्शन से भी शुरू होती हैं। सुविधाएं उपलब्ध प्रमुख सुविधाओं में प्रतीक्षालय, रिटायरिंग रूम, कम्प्यूटरीकृत आरक्षण सुविधा, आरक्षण काउंटर, वाहन पार्किंग आदि शामिल हैं। वाहनों को स्टेशन परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। यहाँ शाकाहारी और मांसाहारी जलपान गृह, टी स्टाल, बुक स्टाल, पोस्ट और टेलीग्राफिक कार्यालय हैं। सुरक्षा के लिए सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के सुरक्षाकर्मी मौजूद हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाली रेलवे चिकित्सा इकाई हटिया स्टेशन के पास स्थित है। हटिया स्टेशन झारखंड के महत्वपूर्ण स्थलों के लिए परिवहन प्रदान करने वाले बस टर्मिनल और घरेलू हवाई अड्डे के करीब स्थित है। तीनों प्लेटफार्म फुट ओवर ब्रिज (एफओबी) के साथ जुड़े हुए हैं। ट्रेनें हटिया दक्षिण पूर्व रेलवे के रांची रेलवे मंडल का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन और कई ट्रेनों का टर्मिनल स्टेशन है। कई विद्युतीकृत के साथ-साथ डीजल स्थानीय, एम / ई, एसएफ, जीआर यात्री ट्रेनें भी हटिया / रांची से देश के विभिन्न गंतव्यों के लिए लगातार अंतराल पर चलती हैं। कई यात्री और एक्सप्रेस ट्रेनें हटिया स्टेशन से चलती हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हटिया स्टेशन का नक्शा रांची जिले की आधिकारिक वेबसाइट विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक ओड़िशा में रेलवे स्टेशन राँची रेलवे मंडल राँची ज़िला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A6%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE
दाद कामेरा
दाद कामेरा , पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के विहाड़ी ज़िले का एक कस्बा और यूनियन परिषद् है। यहाँ बोले जाने वाली प्रमुख भाषा पंजाबी है, जबकि उर्दू प्रायः हर जगह समझी जाती है। साथ ही अंग्रेज़ी भी कई लोगों द्वारा काफ़ी हद तक समझी जाती है। प्रभुख प्रशासनिक भाषाएँ उर्दू और अंग्रेज़ी है। सन्दर्भ इन्हें भी देखें पाकिस्तान के यूनियन काउंसिल पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन पंजाब (पाकिस्तान) विहाड़ी ज़िला बाहरी कड़ियाँ विहाड़ी जिले के यूनियन परिषदों की सूची पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ़ स्टॅटिस्टिक्स की आधिकारिक वेबसाइट-१९९८ की जनगणना(जिलानुसार आँकड़े) विहाड़ी के यूनियन परिषद् पाकिस्तानी पंजाब के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%28%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8%29
शास्त्र (भारतीय दर्शन)
किसी विशिष्ट विषय या पदार्थसमूह से सम्बन्धित वह समस्त ज्ञान जो ठीक क्रम से संग्रह करके रखा गया हो, शास्त्र कहलाता है। जैसे, भौतिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, प्राणिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विद्युत्शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र आदि। शास्त्र का अर्थ विज्ञान है 'शास्त्र' शब्द 'शासु अनुशिष्टौ' से निष्पन्न है जिसका अर्थ 'अनुशासन या उपदेश करना' है। किसी भी विषय, विद्या अथवा कला के मौलिक सिद्धान्तों से लेकर विषय-वस्तु के सभी आयामों का सुनियोजित, सूत्रबद्ध निरूपण शास्त्र है। हमारे यहाँ शास्त्र की परिभाषा इस प्रकार की गई है- शास्ति च त्रायते च। शिष्यते अनेन। अर्थात् जो शिक्षा अनुशासन प्रदान कर हमारी रक्षा करती है, मार्गदर्शन करती है, कभी-कभी हमारी उँगली पकड़कर हमें चलाती है, उसे ‘शास्त्र’ कहा गया है। इस प्रकार यदि हम शास्त्र व ग्रन्थ की तरफ देखें तो शास्त्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। शास्त्र असंख्य है विद्वान शास्त्रों की रचना करते रहते है । शास्त्र उन प्राचीन ग्रंथों को कहते हैं जिनमें लोगों के हित के लिये अनेक प्रकार के कर्तव्य बतलाए गए हैं और अनुचित कृत्यों का निषेध किया गया है। दूसरे शब्दों में शास्त्र वे ग्रंथ हैं जो लोगों के हित और अनुशासन के लिये बनाए गए हैं। साधारणतः शास्त्र में बतलाए हुए काम विधेय माने जाते है और जो बातें शास्त्रों में वर्जित हैं, वे निषिद्ध और त्याज्य समझी जाती हैं। शास्त्रों में शिक्षाशास्त्र ,नीतिशास्त्र अथवा धर्मशास्त्र ,वास्तुशास्त्र , खगोलशास्त्र , अर्थशास्त्र , आयुर्वेद , व्याकरणशास्त्र , दर्शनशास्त्र , कलाशास्त्र आदि का समावेश होता है ।
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%88%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%80%202018
ईरानी ट्रॉफी 2018
2017-18 ईरानी कप ईरानी कप के 56 वें सत्र होंगे, जो कि भारत में प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता है। यह विदर्भ (2017-18 रणजी ट्राफी के विजेता) और शेष भारतीय क्रिकेट टीम के बीच एक-एक मैच के रूप में खेला जाएगा। मैच 14 मार्च 2018 से 18 मार्च 2018 तक विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन स्टेडियम, नागपुर में खेला जाएगा। दस्तों टूर्नामेंट की शुरुआत से पहले रवींद्र जडेजा शेष भारतीय टीम से बाहर थे और रविचंद्रन अश्विन जगह दी गई थी। मैच संदर्भ ईरानी ट्रॉफी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%A5%20%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B2
कीथ मिशेल
कीथ क्लॉडियस मिशेल (जन्म 12 नवंबर 1946) ग्रेनेडियन राजनेता हैं जो 2013 के बाद ग्रेनाडा के प्रधान मंत्री रहे हैं ; पहले उन्होंने 1995 से 2008 तक प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया। वे अब तक के सबसे लंबे समय तक प्रधान मंत्री ग्रेनाडा के साथ लगभग 19 वर्षों तक कार्य करते रहे हैं। वह वर्तमान में न्यू नेशनल पार्टी (एनएनपी) के नेता हैं और 2008 से 2013 तक विपक्ष के नेता थे। संदर्भ ग्रेनेडा ग्रेनाडा के लोग 1946 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9B%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%80%20%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A5%87
लुका-छिपी अकेले
लुका-छिपी अकेले आधुनिक जापानी भूत की कहानियों में से एक है और एक शहरी किंवदंती है । इसे एकान्त टैग भी कहते हैं। अवलोकन ऐसा कहा जाता है कि यह मूल रूप से कंसई और शिकोकू क्षेत्रों में कोक्कुरी-सान के साथ एक प्रसिद्ध खेल था , लेकिन यह कहा जाता है कि एक निश्चित विश्वविद्यालय मंडल ने शहरी किंवदंतियों का अध्ययन करने के लिए जानबूझकर ऐसी कहानियों को दुनिया में प्रसारित किया प्रसार करने का एक सिद्धांत भी है । कोक्कुरी-सान की तरह, इसे एक प्रकार की आध्यात्मिकता माना जाता है, और एक सिद्धांत यह भी है कि यह स्वयं को श्राप देता है । 18 अप्रैल, 2007 को, बड़े इलेक्ट्रॉनिक बुलेटिन बोर्ड " 2चैनल " के मनोगत असाधारण घटना बोर्ड पर एक विस्तृत विधि पेश की गई थी, और इसके अलावा, इस पद्धति को अंजाम देकर विभिन्न अजीब घटनाओं का सामना करने के बारे में अनुभव लिखे गए थे। जिन पाठकों ने इसे देखा, उन्होंने कोशिश की इसे एक के बाद एक सत्यापित करें, और यह नेट पर परिणाम पेश करके आम जनता के लिए व्यापक रूप से जाना जाने लगा।
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५ फ़रवरी
5 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 36वॉ दिन है। साल में अभी और 329 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 330)। प्रमुख घटनाएँ 1924- रॉयल ग्रीनबीच वेधशाला से रेडियो समय संकेतक जीएमटी का पहली बार प्रसारण शुरु हुआ। 2010- भारत के केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेन्ट ऑफ इंडिया (सिमी) पर गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम के तहत प्रतिबंध को दो वर्षो के लिए और बढ़ा दिया। भारतीय निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने नीदरलैंड इंटरनेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में 600 में से 596 अंक हासिल कर स्वर्ण पदक जीत लिया। जन्म 1990 - भुवनेश्वर कुमार, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी 1976 - अभिषेक बच्चन, भारतीय अभिनेता। (05-02 1985) - क्रिस्चियानो रोनाल्डो पुर्तगाली फुटबाल खिलाड़ी ।।।। निधन १९२७ - इनायत खान, भारतीय संत २००८ - महर्षि महेश योगी, भारतीय आत्मिक योगी 2010- सुजीत कुमार, फिल्म अभिनेता और निर्माता बाहरी कडियाँ बीबीसी पर यह दिन पंजाब केसरी पे यह दिन फरवरी
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मुत्तुस्वामी दीक्षित
मुत्तुस्वामी दीक्षितर् या मुत्तुस्वामी दीक्षित (1775-1835) दक्षिण भारत के महान् कवि व रचनाकार थे। वे कर्नाटक संगीत के तीन प्रमुख व लोकप्रिय हस्तियों में से एक हैं। उन्होने 500 से अधिक संगीत रचनाएँ की। कर्नाटक संगीत की गोष्ठियों में उनकी रचनाऐं बहुतायत में गायी व बजायी जातीं हैं। वे रामस्वामी दीक्षित के पुत्र थे। उनके दादा का नाम गोविन्द दीक्षितर् था। उनका जन्म तिरुवारूर या तिरुवरूर् या तिरुवैय्यारु (जो अब तमिलनाडु में है) में हुआ था। मुत्तुस्वामि का जन्म मन्मथ वर्ष (ये भी तमिल पंचांग अनुसार), तमिल पंचांग अनुसार पंगुनि मास (हिन्दु पंचांग अनुसार फाल्गुन मास; यद्यपि वास्तविकता तो यह है उनके जन्म का महिना अगर हिन्दु पंचांग के अनुसार देखा जाए तो भिन्न होगा, हिन्दू व दक्षिण भारतीय पंचांगों में कुछ भिन्नता अवश्य होती है), कृत्तिका नक्षत्र (तमिल पंचांग अनुसार) में हुआ था। मुत्तुस्वामी का नाम वैद्येश्वरन मन्दिर में स्थित सेल्वमुत्तु कुमारस्वामी के नाम पर रखा था। ऐसी मान्यता है कि मुत्तुस्वामी का जन्म उनके माता और पिता के भगवान् वैद्येश्वरन (या वैद्येश) की प्रार्थना करने से हुआ था। मुत्तुस्वामी के दो छोटे भाई, बालुस्वामी और चिन्नस्वामी थे, और उनकी बहन का नाम बालाम्बाल था। मुत्तुस्वामी के पिता रामस्वामी दीक्षित ने ही राग हंसध्वनि का उद्भव किया था। मुत्तुस्वामी ने बचपन से ही धर्म, साहित्य, अलंकार और मन्त्र ज्ञान की शिक्षा आरम्भ की और उन्होंने संगीत की शिक्षा अपने पिता से ली थी। मुत्तुस्वामी के किशोरावस्था में ही, उनके पिता ने उन्हें चिदंबरनथ योगी नामक एक भिक्षु के साथ तीर्थयात्रा पर संगीत और दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेज दिया था। इस तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने उत्तर भारत के कई स्थानों का दौरा किया और धर्म और संगीत पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त किया जो उनकी कई रचनाओं में परिलक्षित होती थी। काशी (वाराणसी) में अपने प्रवास के दौरान, उनके गुरु चिदंबरनाथ योगी ने मुत्तुस्वामी को एक अद्वितीय वीणा प्रदान की और उसके शीघ्र बाद ही उनका निधन हो गया। चिदंबरनाथ योगी की समाधि अब भी वाराणसी के हनुमान घाट क्षेत्र में श्रीचक्र लिंगेश्वर मंदिर में देखा जा सकता है। जन्म और शिक्षा मुत्तुस्वामी दीक्षित का जन्म तमिलनाडु के तिरूवरूर (तमिलनाडु राज्य में) में तमिल ब्राह्मण दंपति, रामस्वामी दीक्षित (रागा हम्सधवानी के शोधकर्ता) और सुब्बम्मा के यहाँ, सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ था। ब्राह्मण शिक्षा परम्परा को मन में रखकर, मुत्तु स्वामि ने संस्कृत भाषा, वेद और अन्य मुख्य धार्मिक ग्रन्थों को सीखा व उनका गहन अध्ययन किया। उनको प्रारम्भिक शिक्षा उनके पिता से मिली थी। कुछ समय बाद मुत्तुस्वामी संगीत सीखने हेतु महान् सन्त चिदम्बरनाथ योगी के साथ बनारस या वाराणसी गए और वहां 5 साल तक सीखने व अध्ययन का दौर चलता रहा। गुरु ने उन्हें मन्त्रोपदेश दिया व उनको हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी। गुरु के देहान्त के बाद मुत्तुस्वामी दक्षिण भारत को लौटे। जब तब वह चिदम्बरनाथ योगी के साथ रहे, उन्होंने उत्तर भारत में काफी भ्रमण किया व काफी कुछ सीखने को मिला। अध्ययन व पठन-पाठन के दौरान उनके गुरु ने उन्हें एक विशेष वीणा भी दी थी। संगीत पौराणिक कथा के अनुसार, मुत्तुस्वामी के गुरु उन्हें तिरुट्टनी (चेन्नई के पास एक मंदिर का शहर) की यात्रा करने के लिए कहा। वहां, जब वे ध्यान मुद्रा में बैठे थे, तभी एक बूढ़ा आदमी उनके पास आया और मुंह खोलने के लिए कहा। बूढ़े आदमी उनके मुंह में शक्कर की मिठाई रख गायब हो गया। जैसे ही उन्होंने अपना मुंह खोला, उसे मुरुगन देवता का दृष्टांत हुआ, और उसके बाद ही मुत्तुस्वामी ने अपनी पहली रचना "श्री नाथादी गुरूगुहो" को राग मेयामलवागोला में गाया। इस गीत ने भगवान (और/या गुरु) को संस्कृत में पहली विभक्ति में संबोधित किया, बाद में दीक्षित ने भगवान के सभी आठ अवतारों पर कृतियों की रचना की। ये ज्यादातर संप्रदाय/अनुग्रहवादी रूप में मुरुगन की स्तुति करने वाले उपधाराओं में थे। फिर मुत्तुस्वामी तीर्थाटन के निकल गये और कांची, तिरुवन्नमलई, चिदंबरम, तिरुपति और कालहस्ती, श्रीरंगम के मंदिरों की यात्रा और वहाँ कृतियों की रचना की और तिरुवारूर लौट आये। मुथुस्वामी दीक्षित को वीणा पर प्रवीणता प्राप्त थी, और वीणा का प्रदर्शन उनकी रचनाओं में स्पष्ट देखा जा सकता है, विशेषकर गमन में। उनकी कृति बालगोपाल में, उन्होंने खुद को वीणा गायक के रूप में परिचय दिया। उन्होंने वायलिन पर भी महारत हासिल की और उनके शिष्यों में तंजावुर चौकड़ी के वदिविल्लू और उनके भाई बलुस्वामी दीक्षित के साथ मिलकर कर्नाटक संगीत में वायलिन का इस्तेमाल करने की अग्रणी भूमिका निभाई, जो अब ज्यादातर कर्नाटक कलाकारों का एक अभिन्न अंग है। प्रसिद्ध रचनायें तिरुवरूर लौटने पर, उन्होंने तिरुवरूर मंदिर परिसर में हर देवता के ऊपर कृति की रचना की, जिसमें त्यागराज (भगवान शिव का एक अंश), पीठासीन देवता, नीलोत्लांबल, उनकी पत्नी और देवी कमलांबल (उसी मंदिर परिसर में स्थित तांत्रिक महत्व की एक स्वतंत्र देवी) आदी शामिल थे। ऐसा तब हुआ जब उन्होंने प्रसिद्ध कमलम्बा नववर्ण कृति बनायीं, जोकि श्रीचक्र देवता पर अनुकरणीय साहित्य से भरा हुआ था। ये नववर्णन संस्कृत भाषा के सभी आठ अवधारणाओं में थे और प्रत्येक वर्ष गुरुगुह जयंती पर गाया जाता है। उन्होंने नौ ग्रहों की प्रशंसा में नवग्रह कृति का निर्माण कर अपने कौशल का प्रदर्शित करना जारी रखा। साहित्य के गीत, मंत्र और ज्योतिष शास्त्रों के गहरे ज्ञान को दर्शाते है। नीलोत्लांबल कृति, उनकी रचनाओं का एक और उत्कृष्ट संग्रह है जिसने नारायणगौल, पुरवागौल और चाआगौल जैसे मरते हुए रागों को पुनर्जीवित किया। शिष्य तंजौर के चार नृतक गुरु भाइयों चिन्नया, पोन्नेय, वडिवलु और शिवानंदम ने मुथुस्वामी दीक्षित से संपर्क किया, और उनसे संगीत सीखने की इच्छा व्यक्त की और उनसे तंजौर में उनके साथ आने के लिए आग्रह किया। वहाँ, दीक्षित ने उन्हें वेंकट वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा वितरित 72 मेला परंपरा की शिक्षा प्रदान की। छात्रों ने अपने गुरु को महिमा करते हुए नवरत्न माला नामक नौ गीतों की एक संग्रह बनाकर उन्हैं समर्पित किया। इन चारों शिष्यों को तंजावुर चौकड़ी के रूप में भी जाना जाता है और उन्हैं भरतनाट्यम के लिए मुख्य संगीतकार के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके शिष्यों में, पोनन्या (जिसे पोंन्या पिल्लई भी कहा जाता है) और चिनन्या (जिसे चिन्न्याय पिल्लई भी कहा जाता है) ने तिरुवनंतपुरम (त्रिवेन्द्रम, केरल) के श्री स्वाती तिरुनाल के राज-दरबार कलाकारों के रूप में भी काम किया। युवा उम्र में, दीक्षित को फोर्ट सेंट जॉर्ज में पश्चिमी बैंड के संगीत से अवगत कराया गया था। बाद के चरण में, दीक्षित ने कुछ चालीस गीतों को कई (अधिकतर पश्चिमी लोक) धुनों में बनाया, जैसे कि संकरभाराना। यह काय अब नोत्तुस्वरा साहित्य (नोत्तुस्वारा = "नोट्स" स्वर) के रूप में जाना जाता है। इन रचनाओं में सेल्टिक और बैरोक शैलियों का प्रभाव काफी स्पष्ट है (उदाहरण के लिए, वाउलेज़-वाउ नर्तक की धुन पर शक्ति सहिंता गणपति, वरसीव बालम)। एक गलत धारणा है कि ये सीपी ब्राउन, कुड्डप्पा के कलेक्टर के आज्ञा पर लिखे गए थे। यह संभव नहीं है क्योंकि दोनों कभी नहीं मिले। मुत्तुस्वामी दीक्षित ने 1799 तक मद्रास छोड़ दिया था। ब्राउन, 1817 में मद्रास आये, 1820 में उन्होंने तेलुगु सीखी और उसी वर्ष कुड्डप्पा में चले गए। मृत्यु सन् 1835, दीपावली की अद्भुत, दिव्य व पावन वेला पर मुत्तुस्वामी ने प्रत्येक दिन की तरह पूजा-प्रार्थना किया। तत्पश्चात उन्होंने अपने विद्यार्थियों को "मीनाक्षी मे मुदम् देहि" गीत गाने के लिए कहा। यह गीत पूर्वी कल्याणी राग मे रचा गया था। वे आगे भी कई गीत गाते रहे, जैसे ही उन्होंने "मीन लोचनि पाश मोचनि" गाना शुरु किया तभी मुत्तुस्वामी ने अपने हाथों को उठाते हुए "शिवे पाहि" (इसका अर्थ हे भगवान! मुझे क्षमा करना!) कहकर दिवंगत हो गए। उनकी समाधि एट्टैय्यापुरम (यह महाकवि सुब्रह्मण्य भारती का जन्म स्थल भी है) में है। यह स्थल कोविलपट्टी और टुटीकोरिन के पास स्थित है। संगीत रचनाएं मुत्तुस्वामी ने कई तीर्थों व मन्दिरों का भ्रमण किया और देवी-देवताओं के दर्शन किए। उन्होंने भगवान मुरुगन या मुरुगा या कार्तिकेय, जो तिरुत्तणी के अराध्य देव हैं के दर्शन किये और उनकी प्रशंसा में कई गीत रच डाले। तिरुत्तणी में ही उन्होंने अपनी पहली कृति, "श्री नाथादि गुरुगुहो जयति" को रचा। यह गीत मायामालवगौलम् राग व आदि ताल में रचा गया था। उसके बाद उन्होंने कई प्रसिद्ध मन्दिरों का तीर्थाटन किया। माना जाता है कि दीक्षितर् ने लगभग 3000 से भी अधिक गीतों की रचना की, जोकि देव-प्रशंसा पर या किसी नेक भावना पर आधारित थीं। इनमें से कई रचनायें अब नष्ट हो चुकी हैं। उनके द्वारा रचित कृतियों में नवग्रह कृति, कमलाम्बा नवावरणम् कृति, अभयाम्बा नवावरणम् कृति, शिव नवावरणम् कृति, पंचलिंग स्थल कृति, मणिपर्वल कृति आदि सम्मलित हैं। मुत्तुस्वामी ने अपनी सभी रचनाओं में भाव, राग व ताल आदि का विशेष उल्लेखन किया है। मुत्तुस्वामी दीक्षितर् को उनके उपनाम "गुरुगुह" के नाम से भी जाना जाता है। उसकि सारी रचनायें चौक् काल मे रची गई है। उनकि कृति "बालगोपाल" में वे वैणिक गायक नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी लगभग 450 से 500 रचनाएं आज भी काफी लोकप्रिय है, जिनमें से अधिकांश आज के संगीतकारों द्वारा शास्त्रीय संगीत समारोह में गाया जाता है। उनकी रचनाएं अधिकांशत: संस्कृत के कृति रूप में हैं, अर्थात्, संगीतमय कविता के रूप में है। मुत्तुस्वामी ने अपने जीवन भर कई पवित्र तीर्थों की यात्रा की और उन्होंने देवताओं और मंदिरों पर कृतियाँ रची। दीक्षित को देवताओं के लिये सबसे विस्तृत श्रृंखला का रचियता माना जाता है। उनकी प्रत्येक रचना अद्वितीय और प्रतिभाशाली ढंग से प्रस्तुत की गई है। रचनाएं गहराई और माधुर्य की आत्मा के लिए जाने जाते हैं- कुछ रागों के लेकर उनकी परिकल्पना अभी भी उनकी संरचनाओं पर मान्य हैं। उनके संस्कृत के गीतों में मंदिर देवता की प्रशंसा कि गई हैं, लेकिन अद्वैत दर्शन और बहुदेववादी पूजा के बीच निहित संबंधों को दूर करते हुए, मुथुस्वामी ने अपने गीतों में अद्वैत विचारों का मूल दिया है। उनके गीतों में मंदिर के इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत जानकारी दि गई है, जिसके कारण ही आज इन पुराने तीर्थों में कई परंपराओं को बनाए रखा गया है। उनकी रचनाओं में एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषताएं, गीतों की लाइनों में कुशल छंद पाई जाती हैं। मुत्तुस्वामी ने सभी 72 मेलकर्ता रागों की रचना करने की परियोजना को अपनाया (अपनी असम्भुर्ण मेला योजना में), जिससे कई दुर्लभ और लुप्त रागों के लिए संगीत का उदाहरण मिल सका। इसके अलावा, वे समष्टि चरणम कृति (जिन गाने में मुख्य पद्य या पल्लवी के अनुगामी केवल एक पद्य होता है, जबकि पारंपरिक शैली में दो होता है) के अग्रगामी थे। दीक्षित, ताल के विशेषज्ञ थे और कर्नाटक संगीत के सभी सात बुनियादी तालों में कृति के एकमात्र निर्माणकर्ता थे। दीक्षित ने सभी आठ खंडों में रचना करके संस्कृत में अपना कौशल दिखाया है। राग भाव की समृद्धि के लिए, उनके दार्शनिक अंतर्वस्तु की महानता और साहित्य की भव्यता के लिए, दीक्षित के गीत अप्राप्य है। मुथुस्वामी दीक्षित ने कई कृतियों का निर्माण समूहों में किया है। जिनमे "वतापी गणपति" को उनकी सबसे प्रसिद्ध और सर्वोत्तम कृति माना जाता है। नेल्लैपर मंदिर की देवी कांतिमती अम्मान पर मुत्तुस्वामी दीक्षित ने एक गीत (श्री कांतिमातीम शंकर युवतीम श्री गुरुगुजाननीम वंदेहम। समष्टि चरणम ह्रिमकारा ब्रिजकारा वदनम हिरणान्यमंमया शुभ सदनम) का निर्माण किया। यह गीत दुर्लभ राग का एक दुर्लभ गीत माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने राम अष्टपति के साथ कांचीपुरम में उपनिषद ब्राह्मणमंडल का भी निर्माण किया था। दुर्भाग्य से, यह कृति अब खो चुकि है। इन्हें भी देखें तंजावुर चौकड़ी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मुथुस्वामी दीक्षितार (कल्चरल इण्डिया) मुथुस्वामी दीक्षितार मुत्तुस्वामि दीक्षितर कीर्तनसमाहार भारतीय संगीतकार कर्णाटक संगीत दक्षिण भारत के कवि आज का आलेख
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बेलाडोना
बेलाडोना अट्रोपा बेलाडोना नामक पौधे से पाया जाता है जो की गहरे अंधेरे के नाम से प्रसिद्ध है। यह पौधा हिमालय की ६ से १२ हजार फुट की ऊँचाई वाले पर्वतीय शेत्रों में पाया जाता है। इस पौधे का सम्पूर्ण भाग जहरीला होता है जो की इसमें उपस्थित एट्रोपीन नामक अल्कालॉयड के कारण होता है। इस पौधे के फूल बेंगानी रंग के होते है और थोड़े बल सुगंधित होते है। यह एक न्यूरोटोक्सिन है जो मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालता है। इस पौधे की पत्तियाँ और जड़े अत्यधिक जेहरिली होती है परन्तु अधिकांशत: प्रकरण दुर्घटनावश पत्तियों आदि खाने से पाए जाते है। इस पौधे की घातक मात्र १०० से २०० मिलीग्राम एट्रोपिन और घातक काल २४ घंटे होती है। सोलेनेसी कुल का उदाहरण है सन्दर्भ न्यायालयिक विज्ञान
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सॉफ्टवेयर रूपरेखा
सॉफ़्टवेयर रूपरेखा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में एक अमूर्तता है जिसमें सॉफ़्टवेयर, सामान्य कार्यक्षमता प्रदान करता है, अतिरिक्त उपयोगकर्ता-लिखित कोड द्वारा चुनिंदा रूप से बदला जा सकता है, इस प्रकार एप्लिकेशन-विशिष्ट सॉफ़्टवेयर प्रदान करता है। यह एप्लिकेशन बनाने और तैनात करने का एक मानक तरीका प्रदान करता है और एक सार्वभौमिक, पुन: प्रयोज्य सॉफ़्टवेयर वातावरण है जो सॉफ़्टवेयर एप्लिकेशन, उत्पादों और समाधानों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एक बड़े सॉफ़्टवेयर प्लेटफ़ॉर्म के हिस्से के रूप में विशेष कार्यक्षमता प्रदान करता है। सॉफ्टवेयर फ्रेमवर्क में सपोर्ट प्रोग्राम, कंपाइलर, कोड लाइब्रेरी, टूलसेट और एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) शामिल हो सकते हैं जो किसी प्रोजेक्ट या सिस्टम के विकास को सक्षम करने के लिए सभी विभिन्न घटकों को एक साथ लाते हैं। फ्रेमवर्क में प्रमुख विशिष्ट विशेषताएं होती हैं जो उन्हें सामान्य पुस्तकालयों से अलग करती हैं: नियंत्रण का उलटा : एक ढांचे में, पुस्तकालयों या मानक उपयोगकर्ता अनुप्रयोगों के विपरीत, समग्र कार्यक्रम का नियंत्रण प्रवाह कॉलर द्वारा नहीं, बल्कि ढांचे द्वारा निर्धारित होता है। यह आमतौर पर टेम्पलेट विधि पैटर्न के साथ हासिल किया जाता है। डिफ़ॉल्ट व्यवहार : इसे एक अमूर्त वर्ग में टेम्प्लेट विधि पैटर्न के अपरिवर्तनीय तरीकों के साथ प्रदान किया जा सकता है जो फ्रेमवर्क द्वारा प्रदान किया जाता है। एक्स्टेंसिबिलिटी : एक उपयोगकर्ता फ्रेमवर्क का विस्तार कर सकता है - आमतौर पर चयनात्मक ओवरराइडिंग द्वारा - या प्रोग्रामर विशिष्ट कार्यक्षमता प्रदान करने के लिए विशेष उपयोगकर्ता कोड जोड़ सकते हैं। यह आमतौर पर उपवर्ग में हुक विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है जो सुपरक्लास में टेम्पलेट विधि को ओवरराइड करता है। गैर-संशोधनीय फ्रेमवर्क कोड : सामान्य तौर पर, उपयोगकर्ता द्वारा कार्यान्वित एक्सटेंशन को स्वीकार करते समय फ्रेमवर्क कोड को संशोधित नहीं किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, उपयोगकर्ता फ़्रेमवर्क का विस्तार कर सकते हैं, लेकिन उसके कोड को संशोधित नहीं कर सकते। उदाहरण उपयोगकर्ता अनुप्रयोगों को बूटस्ट्रैप करने में मदद करने के लिए सॉफ्टवेयर फ्रेमवर्क में आमतौर पर काफी हाउसकीपिंग और उपयोगिता कोड होते हैं, लेकिन आम तौर पर विशिष्ट समस्या डोमेन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जैसे: कलात्मक चित्र, संगीत रचना, और यांत्रिक सीएडी वित्तीय मॉडलिंग अनुप्रयोग पृथ्वी प्रणाली मॉडलिंग अनुप्रयोग निर्णय समर्थन प्रणालियाँ मीडिया प्लेबैक और संलेखन वेब रूपरेखा मध्यस्थ कैक्टस रूपरेखा - उच्च प्रदर्शन वैज्ञानिक कंप्यूटिंग। ऐप्लिकेशन रूपरेखा - सामान्य जीयूआई अनुप्रयोग। एंटरप्राइज आर्किटेक्चर रूपरेखा ओरेकल एप्लिकेशन डेवलपमेंट रूपरेखा लारवेल (PHP रूपरेखा) मैलवेयर, उदाहरण के लिए पाइपड्रीम Php4डेल्फ़ी संरचना प्री के अनुसार, सॉफ्टवेयर फ्रेमवर्क में फ्रोज़न स्पॉट और हॉट स्पॉट शामिल होते हैं। फ्रोजन स्पॉट एक सॉफ्टवेयर सिस्टम की समग्र वास्तुकला को परिभाषित करते हैं, यानी इसके बुनियादी घटकों और उनके बीच संबंधों को परिभाषित करते हैं। ये अनुप्रयोग ढाँचे की किसी भी तात्कालिकता में अपरिवर्तित (जमे हुए; फ़ॉज़ेन) रहते हैं। हॉट स्पॉट उन हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां फ्रेमवर्क का उपयोग करने वाले प्रोग्रामर अपने स्वयं के प्रोजेक्ट के लिए विशिष्ट कार्यक्षमता जोड़ने के लिए अपना कोड जोड़ते हैं। वस्तु-उन्मुख वातावरण में, एक रूपरेखा में अमूर्त और ठोस वर्ग होते हैं। इस तरह के ढांचे के इंस्टेंटेशन में मौजूदा वर्गों की रचना और उपवर्गीकरण शामिल है। आवश्यक कार्यक्षमता को टेम्प्लेट विधि पैटर्न का उपयोग करके कार्यान्वित किया जा सकता है जिसमें जमे हुए स्थानों को अपरिवर्तनीय विधियों के रूप में जाना जाता है और हॉट स्पॉट को वेरिएंट या हुक विधियों के रूप में जाना जाता है। सुपरक्लास में अपरिवर्तनीय विधियाँ डिफ़ॉल्ट व्यवहार प्रदान करती हैं जबकि प्रत्येक उपवर्ग में हुक विधियाँ कस्टम व्यवहार प्रदान करती हैं। सॉफ़्टवेयर ढांचे के साथ एक ठोस सॉफ़्टवेयर सिस्टम विकसित करते समय, डेवलपर्स सिस्टम की विशिष्ट आवश्यकताओं और आवश्यकताओं के अनुसार हॉट स्पॉट का उपयोग करते हैं। सॉफ़्टवेयर फ़्रेमवर्क हॉलीवुड सिद्धांत पर निर्भर करते हैं: "हमें कॉल न करें, हम आपको कॉल करेंगे।" इसका मतलब यह है कि उपयोगकर्ता-परिभाषित कक्षाएं (उदाहरण के लिए, नए उपवर्ग) पूर्वनिर्धारित फ्रेमवर्क कक्षाओं से संदेश प्राप्त करते हैं। डेवलपर्स आमतौर पर सुपरक्लास अमूर्त तरीकों को लागू करके इसे संभालते हैं। संदर्भ बाहरी संबंध
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE
गणितीय सर्वसमिका
सर्वसमिका ऐसी समता को कहते हैं जो उसमें निहित (आये हुए) सभी चरों के सभी मानों के लिये सत्य हो। (जबकि, किसी समीकरण के दोनो पक्षों का मान चर राशि के केवल कुछ विशेष मानों के लिये ही समान होता है।) कुछ उदाहरण (3-2x) (3+2x) निम्नलिखित सर्वसमिका एक सुज्ञात त्रिकोणमितीय सर्वसमिका है। यह सर्वसमिका के सभी वास्तविक मानों के लिये सत्य है। जबकि के कुछ ही मानों के लिये सत्य है। यह समीकरण के लिये तो सत्य है किन्तु के लिये असत्य। अन्य उदाहरण यह एक बीजगणितीय सर्वसमिका है। यह एक त्रिकोणमितीय सर्वसमिका है। इन्हें भी देखें गणितीय सर्वसमिकाओं की सूची बाहरी कड़ियाँ A Collection of Algebraic Identities EquationSolver - इस जालपृष्ठ पर सुझाई गयी किसी सर्वसमिका की सत्यता की जाँच करके निर्णय देती है कि वह समिका सत्य है या असत्य। गणित गणितीय सर्वसमिकाएँ
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विशिष्टि
किसी उत्पाद, तन्त्र या सेवा के विभिन्न पहलुओं एवं गुणधर्मों के औपचारिक विवरण को विशिष्टि (specification) या विनिर्देश कहते हैं। उपयोग आधुनिक जीवन में किसी उत्पाद, तन्त्र या सेवा के अनेकानेक विकल्प उपलब्ध होते हैं या होसकते हैं। ऐसी दशा में उनकी विशिष्टियों के स्पष्ट ब्यौरे से ही उनके अन्तर या उनके बेहतर/खराब होने के बारे में जाना जा सकता है। प्रौद्योगिकी, निर्माण एवं व्यापार के क्षेत्र में: विशिष्टि आपूर्तिकर्ताओं, क्रेताओं एवं उपभोक्ताओंके लिये बहुत महत्वपूर्ण है ताकि वे किसी सामग्री, उत्पाद या सेवा के गुणधर्मों एवं विशेषताओं को भलीभांति जान सकें और आवश्यकताओं के बारे में सहमत हो सकें। किसी उत्पाद को खरीदते समय या कोई निविदा (कान्ट्रक्ट) करते समय क्रेता अपनी आवश्यकताओं को क्रय-दस्तावेजों में औपचारिक रूप से वर्णन करता है। विशिष्टियाँ सरकारी एजेन्सियों, मानक संस्थाओं (जैसे- BIS, ASTM, ISO, CEN,), व्यापार संघों या कम्पनियों द्वारा लिखी जा सकती हैं। किसी उत्पाद की विशिष्टि से यह अर्थ नहीं लगाना चाहिये कि उत्पाद ठीक/सही है। विशिष्टि में क्या-क्या हो सकते हैं? (content) अन्य सूचनाओं के अतिरिक्त किसी विशिष्टि में निम्नलिखित सूचनाएँ पायी जाती हैं/होनी चाहिये: सटीक शीर्षक एवं विशिष्टि का कार्य-क्षेत्र (scope) अन्तिम बार कब पुनरीक्षण (revision) हुआ था; तथा पुनरीक्षण की प्रकृति विशिष्टि का महत्व एवं इसका उपयोग कहाँ/कैसे किया जा सकता है? विशिष्टि में आये हुए तकनीकी/पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या विशिष्टि में वर्णित गुणधर्मों (charecteristics) के मापन मेंप्रयुक्त विधियाँ भौतिक, रासायनिक, यांत्रिक, वैद्युत सामग्री की विशिष्टताएँ (टॉलरेंस आदि) कार्यशीलता (परफॉर्मेंस) की जांच करने सम्बन्धी विशिष्टताएँ : लक्ष्य एवं सम्बन्धित टॉलरेंस ड्राइंग, फोटोग्राफ, तकनीकी व्याख्याएं आवश्यक प्रमाण-पत्र कारीगरी (वर्कमैनशिप) सुरक्षा संबन्धी चिन्तन एवं आवश्यकताएँ पर्यावरण सम्बन्धी विचार एवं आवश्यकताएँ गुणवत्ता (क्वालिटी) सम्बन्धी जरूरतें : नमूना (सैम्पलिंग), निरीक्षण, स्वीकार्य होने के लिये आवश्यक शर्तें विशिष्टि को लागू कराने वाला व्यक्ति, कार्यालय या एजेन्सी कार्य की समाप्ति-तिथि व आपूर्ति करने की तिथि अस्वीकार करने, पुनः निरीक्षण करने, पुन: सुनवाई करने, गलती सुधारने समबन्धी विशिष्टियाँ प्रौद्योगिकी वाणिज्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%AE%20%E0%A4%8F%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%A6%20%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%97%20%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%AE
एम एंड द बिग हूम
एम एंड द बिग हूम अंग्रेज़ी भाषा के विख्यात साहित्यकार जेरी पिन्टो द्वारा रचित एक उपन्यास है। इनके लिये उन्हें सन् २०१६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कथानक उपन्यास का कथानक मेंडेस परिवार के आसपास घूमता है जो माहिम, मुंबई में एक छोटे से १ बीएचके अपार्टमेंट फ्लैट में रहते है जिसमें मां "एम" द्विध्रुवी विकार से पीड़ित है। इस उपन्यास का वर्णन उसके बेटे द्वारा प्रथम-पुस्र्ष कथनपद्धति में किया गया है, जो उनके जीवन का वर्णन करता है और बताता है कैसे उनके पिता "बिग हूम" परिवार को एक साथ रखते है। बेटे और बेटी सुसान अपने अतीत का विचार कर रहे हैं, जबकि उनकी मां अब सर जे जे अस्पताल में भर्ती हैं, जो वहा अक्सर भर्ती होती हैं। "एम" के जीवन मे अच्छे और बुरे समय होते हैं और उसका परिवार दोनों मे उसके साथ होता है; जब वह अच्छा महसुस करती है तो परिवार मज़ेदार जीवन जीता है और जब वह उदास हो कर आत्महत्या करने का प्रयास करती है तब भी वे उसके साथ होते है। बेटे को संदेह रखता है कि क्या वह भी आनुवंशिक रूप से इस बीमारी से पीड़ित होगा और बीमारी के कारणों का पता लगाने में सक्षम न होने के कारण कई बार निराश होता है। वह "बिग हूम" के समर्पित स्वभाव की प्रशंसा करता है और कभीकभी डरता भी है कि यदि उनकी मौत हो जाए तो परिवार टूट जाएगा। कहानी तीस साल से अधिक के दंपति के विवाहित जीवन के विभिन्न घटनाओं के बारे में बताती है। विवाह के प्रारंभिक वर्षों में एक दूसरे से बहुत प्यार करते और बाद के वर्षों में एक दूसरे का प्रेमपुर्वक सम्मान करते हुए ये साधारण जोड़ा एक असाधारण जीवन जीता हैं। प्रकाशन इस उपन्यास को एम एंड द बिग हूम नाम दिया गया है, क्यूंकि कथाकार प्यार से अपनी मां को "एम" बुलाया करता है और उसके पिता अक्सर कुछ पूछे जाने पर "हूम" की आवाज के साथ जवाब देते। उपन्यास की कहानी को आगे बढ़ाने के लिए पात्रों की यादें, भेंटवार्ता, पत्र और डायरी की प्रविष्टियाँ शामिल हैं। पुस्तक के विभिन्न पात्र गोवा के कैथोलिक है जो पुर्तगाली, अंग्रेजी और कोंकणी भाषाओं में बोलते हैं। ये लेखक जेरी पिन्टो का पहला उपन्यास है। उपन्यास के "समर्पण" भाग में पिन्टो लिखते है कि ये उनकी मां के साथ के जीवन पर आधारित है और उनका नाम इमेल्डा "मिम" फिलोमेना परपेटुआ पिन्टो-टेलिस बताते है। उपन्यास एलेप बुक कंपनी द्वारा प्रकाशित किया गया है और प्रत्येक अध्याय के शुरुआत में एक चित्र है। समीक्षा द गार्डियन की समीक्षक स्कारलेट थॉमस लेखक पिन्टो के संवादों की पकड और २०वीं सदी के अंत के जटिल भारतीय जीवनी के वर्णन की सराहना करती हैं। इण्डिया टुडे के संपादक अनवर अलीखान अमेरिकी कवि और लेखीका सिल्विया प्लाथ के आत्मकथात्मक उपन्यास द बेल जार से इसकी तुलना करते है। डेली न्यूज़ एण्ड एनालिसिस की दीपंजना पाल "बिग हूम" की तुलना हिन्दु भगवान शिव और "एम" की तुलना काली से करती है जैसे शिव काली रूप को देख उनके पैरों में गिर जाते है उनसे सामना करने की कोशिश किए बिना। उपन्यास की तुलना शेक्सपियर के हैमलेट, शार्लट ब्रोंटे के जेन आयर और शार्लट पर्किंस गिलमैन के द येल्लो वालपेपर से की गई है क्योंकि इनकी कहानी एक पागल औरत के बारे में है। पुरस्कार सन् २०१२ में पिन्टो को द हिन्दू लिटरेरी प्राइज मिला। सन् २०१३ में ''बोट्स ऑन लैण्ड के लिये जेनिस पेरियाट के साथ उन्हे क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड मिला और सन् २०१६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन्दर्भ साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत अंग्रेज़ी भाषा की पुस्तकें २१वीं सदी का साहित्य
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जिहाद
जिहाद ( ; जिहाद ) एक अरबी शब्द है। जिसका अर्थ है प्रयत्न करना नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए की जाने वाली ज़द्दोज़हद या संघर्ष, किसी जायज़ माँग के लिए भरपूर कोशिश करना या आंदोलन और जिसका मतलब मेहनत और मशक़्क़त करना भी है। इस्लाम में इसकी बड़ी अहमियत है। इसके इस्लामी सन्दर्भ में अर्थ के बहुत से रंग हैं, जैसे कि किसी के बुराई झुकाव के खिलाफ संघर्ष, अविश्वासियों को बदलने का प्रयास, या समाज के नैतिक भरोसे की ओर से प्रयास, इस्लामिक विद्वानों ने आमतौर पर रक्षात्मक युद्ध के साथ सैन्य जिहाद को समानता प्रदान की है। सूफी और पान्थिक मण्डल में, आध्यात्मिक और नैतिक जिहाद को पारम्परिक रूप से अधिक जिहाद के नाम पर बल दिया गया है। इस शब्द ने आतंकवादी समूहों द्वारा अपने उपयोग के द्वारा हाल के दशकों में अतिरिक्त ध्यान आकर्षित किया है। इस्लाम में इसकी बड़ी अहमियत है। दो तरह के जेहाद बताए गए हैं। एक है जेहाद अल अकबर यानी बड़ा जेहाद और दूसरा है जेहाद अल असग़र यानी छोटा जेहाद और इनमे भी कई प्रकार है। जिहाद की परिभाषा मौलाना वहीदुद्दीन खान के अनुसार: ''जिस चीज़ को हम प्रयास या संघर्ष (Struggle) कहते हैं, उसी को अरबी भाषा में जिहाद कहा जाता। यह सामान्य तौर पर भरपूर प्रयास के लिए बोला जाने वाला शब्द है। किसी उद्देश्य को प्राप्त करने जिस प्रकार हर भाषा में शब्द हैं, उसी प्रकार 'जिहाद' का मूल अर्थ है। प्रयास के लिए अरबी भाषा में सभी एक आम शब्द है, लेकिन जिहाद के शब्द में अधिकतम या भरपूर का अंश शामिल है। यानी बहुत ज्यादा या अधिकतम प्रयास करना, जब हम कोशिश या प्रयास का शब्द बोलें तो इसमें पुण्य, इबादत या धार्मिक कार्य की भावना का अर्थ शामिल नहीं रहता, लेकिन जिहाद शब्द जब इस्लामी निर्देश बना तो इसमें यह अर्थ और उद्देश्य भी सम्मिलित हो गया कि प्रयास का अर्थ अगर केवल प्रयास है तो जिहाद का अर्थ एक ऐसा प्रयास करना है, जो इबादत हो और जिसमें लीन होने पर मनुष्य को पुण्य प्राप्त होता हो।” जैसा कि कुरआन में आया है- “और ईश्वर के रास्ते में पूरी कोशिश करो, जैसा कि कोशिश करने का हक़ है। "(कुरआन, सूरह अल-हज, 22:78) अरबी भाषा में 'जिहाद' मूल रूप से केवल प्रयास या भरपूर प्रयास के अर्थ में है। दुश्मन से लड़ाई भी चूँकि प्रयास का ही एक रूप है, इसलिए शाब्दिक अर्थ में नहीं, पर व्यावहारिक दृष्टि से दुश्मन के साथ लड़ाई को भी जिहाद कह दिया जाता है। जिहाद के विभिन्न प्रकार जिहाद-ए-नफ़्स: इन्द्रियों को मारना, अपनी इन्द्रियों पर क़ाबू पाना, आत्म-संयम जिहाद-बिल-क़लम: सत्य के समर्थन में कलम का उपयोग करना अर्थात् लेख लिखना जिहाद-बिल-लिसान: ज़बान से जिहाद करना, हक़ और सच्चाई के समर्थन में और असत्य और अन्याय के खि़लाफ़ आवाज़ उठाना दा'वत-ए-जिहाद: सत्य के समर्थन में युद्ध करने का आह्वान, सत्य की रक्षा के लिए लड़ने का आह्वान जिहाद अल अकबर जेहाद अल अकबर अहिंसात्मक संघर्ष है। सबसे अच्छा जिहाद दण्डकारी सुल्तान के सामने न्याय का शब्द है - इब्न नुहास द्वारा उद्धृत किया गया और इब्न हब्बान द्वारा सुनाई स्वयं के भीतर मौजूद सभी बुराईयों के खिलाफ लड़ने का प्रयास और समाज में प्रकट होने वाली ऐसी बुराईयों के विरुद्ध लड़ने का प्रयास। (इब्राहिम अबूराबी हार्ट फोर्ड सेमिनरी) नस्लीय भेद-भाव के विरुद्ध लड़ना और औरतों के अधिकार के लिए प्रयास करना (फरीद एसेक औबर्न सेमिनरी ) एक बेहतर छात्र बनना, एक बेहतर साथी बनना , एक बेहतर व्यावसायी सहयोगी बनना और इन सबसे ऊपर अपने क्रोध को काबू में रखना (ब्रुस लारेंस ड्यूक विश्वविद्यालय) जिहाद-अल-असग़र जिहाद अल असग़र का उद्देश्य इस्लाम के संरक्षण के लिए संघर्ष करना होता है। जब इस्लाम के अनुपालन की आज़ादी न दी जाये, उसमें रुकावट डाली जाए, या किसी मुस्लिम देश पर हमला हो, मुसलमानों का शोषण किया जाए, उनपर अत्याचार किया जाए तो उसको रोकने की कोशिश करना और उसके लिए बलिदान देना जिहाद-अल-असग़र है। वैधता जिहाद शब्द अक्सर कुरान में सैन्य अर्थों के बिना दिखाई देता है, अक्सर मुहावरेदार अभिव्यक्ति "ईश्वर के मार्ग (अल जिहाद फाई सैबिल अल्लाह) में प्रयास कर रहा है"। शास्त्रीय युग के इस्लामिक न्यायविदों और अन्य उलेमा ने मुख्य रूप से एक सैन्य अर्थ में जिहाद की दायित्व को समझ लिया था। उन्होंने जिहाद से सम्बन्धित नियमों का एक विस्तृत सेट विकसित किया, जिसमें उन लोगों को नुकसान पहुँचाने के प्रतिबन्ध शामिल हैं, जो लड़ाई में शामिल नहीं हैं। आधुनिक युग में, जिहाद की धारणा ने अपनी न्यायिक प्रासंगिकता को खो दिया है और इसके बजाय एक वैचारिक और राजनीतिक प्रवचन को जन्म दिया है। जबकि आधुनिक इस्लामिक विद्वानों ने जिहाद की रक्षात्मक और अ-सैन्य पहलुओं पर बल दिया है, जिहाद का महत्व इस्लाम के सभी विद्वान मानते हैं कि इस्लाम के धर्मग्रन्थों यानी कुरान और हदीसों में जिहाद का जितना विस्तृत वर्णन किया गया है, उतना अन्य किसी विषय का नहीं है। कुरान में ‘जिहाद की सबी लिल्लाह’ शब्द पैंतीस और ‘कत्ल’ उनहत्तर बार आया है’ (जिहाद फिक्जे़शन, पृ. ४०)। हालांकि तीन चौथाई कुरान पैगम्बर मुहम्मद पर मक्का में अवतरित हुआ था, मगर यहाँ जिहाद सम्बन्धी पाँच आयतें ही हैं, अधिकांश आयतें मदीना में अवतरित हुईं। मोरे के अनुसार मदीना में अवतरित २४ में से, १९ सूराओं (संखया २, ३, ४, ५, ८, ९, २२, २४, ३३, ४७, ४८, ४९, ५७-६१, ६३ और ६६) में जिहाद का व्यापक र्वान है (इस्लाम दी मेकर ऑफ मेन, पृत्र ३३६)। इसी प्रकार ब्रिगेडियर एस. के. मलिक ने जिहाद की दृष्टि से मदीनाई आयतों को महत्वपूर्ण मानते हुए इनमें से १७ सूराओं की लगभग २५० आयतों का ‘कुरानिक कन्सेप्ट ऑफ वार’ में प्रयोग किया है तथा गैर-मुसलमानों से जिहाद या युद्ध करने सम्बन्धी अनेक नियमों, उपायों एवं तरीकों को बड़ी प्रामाणिकता के साथ बतलाया है जो कि जिहादियों को भड़काने के लिए अक्सर प्रयोग की जाती हैं। डॉ. के. एस. लाल के अनुसार कुरान की कुल ६३२६ आयतों में से लगभग उनतालीस सौा (३९००) आयतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) में ‘ईमान’ न रखने वाले ‘काफिरों’, ‘मुश्रिकों और मुनाफ़िकों’ से सम्बन्धित हैं। इन्हें भी देखें क्रूसेड जिम्मी कुरान जिहाद अल-निकाह लव जिहाद सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ जिहाद, मुंशी प्रेमचंद की कहानी, हिन्दी समय पर। इस्लामी जिहाद की वास्तविकता, मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी जिहाद क्या है?,मौलाना वहीदुद्दीन खान इस्लाम नैतिकता युद्ध धार्मिक संघर्ष
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%A7%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A5%80
भगवतीधर वाजपेयी
श्री भगवतीधर वाजपेयी राष्ट्रीय विचारों के पत्रकार हैं। सन् २००६ में उन्हें मध्यप्रदेश शासन द्वारा माणिकचन्द्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भगवतीधर वाजपेयी ने अपने लम्बे पत्रकारिता जीवन की शुरूआत सन् 1952 में स्वदेश के संपादकीय विभाग से की। श्री वाजपेयी ने 1957 में नागपुर युगधर्म के संपादक का दायित्व स्वीकार किया और लगातार 1990 तक युगधर्म से जुड़े रहे। उनका सम्पूर्ण जीवन ही पत्रकारिता के लिए समर्पित रहा और उनके द्वारा एक तरह से हिन्दी भाषी राज्यों में विरोधी दलों की पत्रकारिता के उद्भव और विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया गया। बाहरी कड़ियाँ समाजवाद का भविष्य (भगवतीधर वाजपेयी) बाजारवाद से सावधान (भगवतीधर वाजपेयी) भारतीय पत्रकार
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प्रोजेरिया
प्रोजेरिया (Progeria) एक ऐसा रोग है जिसमें कम उम्र के बच्चों में भी बुढ़ापे के लक्षण दिखने लगते हैं। यह अत्यन्त दुर्लभ (rare) वंशानुगत रोग है। इसे 'हचिंगसन-गिल्फोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम' या हचिंगसन-गिल्फोर्ड सिंड्रोम' भी कहते हैं।यह एक अत्यंत दुर्लभ ऑटोसोमल प आनुवंशिक विकार है जिसमें तेजी से उम्र बढ़ने के लक्षण बहुत कम उम्र में प्रकट होते हैं। प्रोगेरिया कई प्रोजेरोड सिंड्रोम में से एक है। प्रोजेरिया के साथ पैदा होने वाले लोग आमतौर पर अपने किशोरावस्था में लगभग बीस वर्ष तक जीवित रहते हैं। यह एक आनुवंशिक स्थिति है जो एक नए उत्परिवर्तन के रूप में होती है, और विरासत में जेनेटिक रुप से मिलती है, क्योंकि वाहक आमतौर पर संतानोतपत्ति नहीं कर सकते हैं। प्रोजेरिया शब्द समय से पहले उम्र बढ़ने के लक्षणों की विशेषता वाली सभी बीमारियों पर सख्ती से लागू होता है,यह अक्सर हचिन्सन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम (एचजीपीएस) के संदर्भ में विशेष रूप से लागू किया जाता है। बाहरी कड़ियाँ प्रोजेरिया:बुढ़ापे की जकड़न में बचपन प्रोजेरिया: बचपन में बुढ़ापा (वेबदुनिया) "ऑरो" सा अमित तसल्ली : काशी में पा के औरो का वजूद नहीं बचपन में बुढ़ा'पा'! अब तक नहीं मिला प्रोजेरिया का तोड़ वो कहानी, ये हकीकत बिग बी से मिलना चाहते हैं बिहार के दो 'ऑरो' प्रोजेरिया यानी बचपन को घेरता बुढ़ापा (प्रभासाक्षी) Progeria Research Foundation Progeria News and Media Collection GeneReview/NIH/UW entry on Hutchinson-Gilford Progeria Syndrome Segmental progeria "A Time to Live" – Seattle Post-Intelligencer'' feature about Seth Cook, a child with progeria. रोग Reference Progeria
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रोहतास दुर्ग
रोहतासगढ़ (Rohtasgarh) या रोहतास दुर्ग (Rohtas Fort) बिहार के रोहतास ज़िले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्राचीन दुर्गों में से एक है। यह बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 और डेहरी आन सोन से 43 किलोमीटर की दूरी पर सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊँचा है। विवरण कहा जाता है कि इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा राजा हरिश्चन्द्र यदुवंशी के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। बहुत दिनों तक यह हिन्दू राजाओ के अधिकार में रहा, लेकिन 16वीं सदी में मुसलमानों के अधिकार में चला गया और अनेक वर्षों तक उनके अधीन रहा। इतिहासकारों का मत है कि किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह राजपुत ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था। रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेरा ४५ किमी तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य चार- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है। खरवार साम्राज्य रोहतासगढ़ दुर्ग या रोहतास दुर्ग, बिहार के रोहतास जिले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। यह भारत के सबसे प्राचीन दुर्गों में से एक है। यह बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 और डेहरी आन सोन से 43 किलोमीटर की दूरी पर सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊँचा है।इस प्राचिन किला का निर्माण सूर्यवंशी राजा सत्यवादी हरिशचन्द्र के पूत्र रोहिताश्य ने कराया था बहूत दिनो तक सूर्यवंशी यादव राजाओ के अधिकार मे रहा लेकिन सन् 1539 ई मे शेरशाह और हूँमायूँ मे यूध्द ठनने लगा तो शेरशाह ने रोहतास के सूर्यवंशी अहीर राजा नृपती से निवेदन किया कि मै अभी मूसीबत मे हूँ अतः मेरे जनान खाने को कूछ दिनो के लिये रोहतास किला मे रहने दिया जाये रोहतास के खरवार राजा नृपती ने पडोसी के मदत के ख्याल से शेरशाह कि प्राथना स्वीकार कर ली और केवल औरतो को भेज देने का संवाद प्रेसित किया कई सौ डोलिया रोहतास दूर्ग के लिये रवाना हूई और पिछली डोली मे स्वयम शेरशाह चला आगे कि डोलिया जब रोहतास दूर्ग पर पहूची उनकी तलासी होने लगी जीनमे कूछ बूढी औरते थी ईसी बीच अन्य डोलीयो से सस्त्र सैनिक कूदकर बाहर नीकले पहरदार का कत्ल कर के दूर्ग मे प्रवेश कर गये शेरशाह भी तूरन्त पहूचा और किले पर कब्जा कर लिया । सन्दर्भ इन्हें भी देखें रोहतास ज़िला सोन नदी बाहरी कड़ियाँ रोहतासगढ़ पर धोखे से हुआ था कब्ज़ा बिहार में पुरातत्व स्थल बिहार में दुर्ग रोहतास ज़िले में पर्यटन आकर्षण
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हेनहोआहा
हेनहोआहा (Henhoaha) भारत के अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह केन्द्रशासित प्रदेश के निकोबार ज़िले के बड़े निकोबार द्वीप पर स्थित एक गाँव है। यह भारत के दक्षिणतम बिन्दु, इंदिरा पोइंट, के समीप स्थित है। जनसंख्या २००४ हिंद महासागर में भूकंप और सुनामी के बाद यहाँ के घर ध्वस्त हो गए और तब से यहाँ कोई स्थाई आबादी नहीं है। इन्हें भी देखें इंदिरा पोइंट बड़ा निकोबार निकोबार ज़िला सन्दर्भ अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के गाँव निकोबार ज़िला निकोबार ज़िले के गाँव बड़ा निकोबार तहसील के गाँव
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मीरा शंकर
मीरा शंकर (जन्म 9 अक्टूबर 1950) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में 26 अप्रैल, 2009 से 2011 तक कार्य किया। वह संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत की दूसरी महिला राजदूत थीं जहाँ की प्रथम भारतीय महिला राजदूत विजया लक्ष्मी नेहरू पंडित थीं। इनके बाद 1 अगस्त 2011 को निरुपमा राव ने इस पद को स्वीकार किया। मीना 1973 बैच की अधिकारी थी और उन्होंने वाशिंगटन डीसी में 1991 से 1995 तक कार्य किया। उनसे पहिले वहाँ राजदूत रोनेन सेन थे। शुरुआती ज़िंदगी और पेशा मीरा शंकर ने नैनीताल में सेंट मैरी कॉन्वेंट में अध्ययन किया और 1973 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई। शंकर ने 1985 से 1991 तक प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के रूप में और 1991 से 1995 तक वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में कार्य किया। विदेश मंत्रालय में सेवा करते हुए, उन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ से जुड़े दो महत्वपूर्ण विभागों का नेतृत्व किया जिसमे (सार्क) और नेपाल और भूटान देश के साथ संबंधों की ज़िम्मेदारी थी। 2009 से पहले उन्होंने बर्लिन, जर्मनी में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया। मीरा जी शंकर बाजपेयी के बाद दो से अधिक दशकों के बाद वाशिंगटन में तैनात होने वाले पहली सेवारत राजनयिकजी थी। 2003 में उन्होंने अतिरिक्त सचिव का पद हासिल करके संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली। अन्य गतिविधियां मीरा शंकर ड्यूश बैंक के अल्फ्रेड हेरोसेन गेसलशाफ्ट के न्यासी बोर्ड में शामिल हैं। 2012 में वह भारतीय समूह आई टी सी के निदेशक मंडल में पहली महिला बनीं। व्यक्तिगत जीवन मीरा ने 1973 बैच के आईएएस अधिकारी अजय शंकर से शादी की। उनकी एक बेटी प्रिया है। विवाद मीरा दिसंबर 2010 में जैक्सन-एवर्स एयरपोर्ट पर हुई जांच के बाद चर्चा में आ गई थी और भारतीय वीआईपी की सूची में शामिल हो गई, जो अमेरिकी हवाई अड्डों पर फ्रिस्किंग या क्विज़िंग से गुजरे थे। इस घटना के कारण भारत से राजनयिक विरोध हुआ। सन्दर्भ 1950 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय राजनयिक
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असगर स्टैनिकजई
मोहम्मद असगर स्टैनिकजई ( (जन्म; २२ फरवरी १९८७) अफगान क्रिकेट खिलाड़ी और अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट टीम के मौजूदा कप्तान हैं। असगर स्टैनिकजई एक दाहिने हाथ के बल्लेबाज और एक मध्यम तेज गेंदबाज हैं जो अफगानिस्तान राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के लिए खेलते हैं। इन्हें भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाफ एकमात्र टेस्ट के लिए टीम की कप्तानी सौंपी गयी। सन्दर्भ अफगानिस्तान के एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी अफगानिस्तान के ट्वेन्टी २० क्रिकेट खिलाड़ी 1987 में जन्मे लोग जीवित लोग दाहिने हाथ के बल्लेबाज़
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संक्रमण ताप
जिस ताप पर कोई पदार्थ अपनी क्रिस्टल अवस्था बदल देता है उसे उसका संक्रमण ताप (transition temperature) कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब रोम्बिक सल्फर को 95.6 °C से ऊपर तक गरम किया जाता है तो यह मोनोक्लिनिक सल्फर में बदल जाता है। यदि इसे पुनः 95.6 °C से नीचे तक ठण्डा किया जाय तो पुनः रोम्बिक सल्फर बन जाता है। अतः इसका संक्रमण ताप 95.6 °C है और इस ताप पर इसके दोनों रूप एक साथ अस्तित्वमान होते हैं। दूसरा उदाहरण टिन का है जो 13.2 °C से नीचे घन आकार का होता है और उससे अधिक ताप पर चतुष्फलकी का रूप (tetragonal shape) धारण कर लेता है। लौहविद्युतीय (ferroelectric) या लौहचुम्बकीय क्रिस्टलों के मामले में इनका क्यूरी ताप ही संक्रमण ताप है। इन्हें भी देखें अपरूपता अतिचालकता क्यूरी ताप क्रांतिक ताप क्रिस्टलकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
राजा मान सिंह
धर्म ध्वज रक्षक राजा मिर्ज़ा राजा मान सिंहजी आमेर राज्य के सूर्यवंशी कच्छवाहा राजा थे। उन्हें 'मान सिंहजी प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है। राजा भगवन्तदास जी इनके पिता थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति थे। उन्होने राजधानी आमेर के आमेर किले के मुख्य महलों का निर्माण करवाया। कछवाहा जयपुर घराणे, मुगलो कि पिढीजात एकनिष्ट चाकरी करते आये है। कच्छवाहा घराणे ने मुगलो को बेटीया देकर अकबर के दरबार मे उच्च पद हासिल किया ऐसा अन्य इतिहासकारो का कहना है। मानसिंग कि बुवा का विवाह अकबर के साथ हुआ था, और मानसिंग कि बहन शादी गठबंधन जहांगीर सलीम के साथ इस.1584 मे हुआ था। लेकिन कई इतिहासकार इसे दोनों पक्ष का गठबंधन कहते है , अकबर की भी कई मुग़ल बेगम मान सिंह को दी गयी थी | महान इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- " राजा भगवंतदास जी के उत्तराधिकारी राजा मान सिंहजी को मुगल सम्राट अकबर के दरबार में श्रेष्ठ स्थान मिला था। मान सिंहजी ने उडीसा और आसाम को जीत कर उनको बादशाह अकबर के अधीन बना दिया। राजा मानसिंह से भयभीत हो कर काबुल को भी अकबर की अधीनता स्वीकार करनी पडी थी। अपने इन कार्यों के फलस्वरूप मानसिंह बंगाल, बिहार, दक्षिण और काबुल का शासक नियुक्त हुआ था।" राजा मान सिंह आमेर (आम्बेर) के कच्छवाहा राजा थे। उन्हें 'मान सिंह प्रथम' के नाम से भी जाना जाता है। राजा भगवन्त दास इनके पिता थे। वह अकबर की सेना के प्रधान सेनापति, थे। उन्होने आमेर के मुख्य महल के निर्माण कराया। महान इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- " भगवान दास के उत्तराधिकारी मानसिंह को अकबर के दरबार में श्रेष्ठ स्थान मिला था।..मानसिंह ने उडीसा और आसाम को जीत कर उनको बादशाह अकबर के अधीन बना दिया. राजा मानसिंह से भयभीत हो कर काबुल को भी अकबर की अधीनता स्वीकार करनी पडी थी। अपने इन कार्यों के फलस्वरूप मानसिंह बंगाल, बिहार, दक्षिण और काबुल का शासक नियुक्त हुआ था।"[1] महाराजा मानसिंह और महाराणा प्रताप संपादित करें जब अकबर के सेनापति मानसिंह शोलापुर महाराष्ट्र विजय करके लौट रहे थे, तो मानसिंह ने प्रताप से मिलने का विचार किया। प्रताप उस वक़्त कुम्भलगढ़ में थे। अपनी राज्यसीमा मेवाड़ के भीतर से गुजरने पर (किंचित अनिच्छापूर्वक) महाराणा प्रताप को उनके स्वागत का प्रबंध उदयपुर के उदयसागर की पाल पर करना पड़ा. स्वागत-सत्कार एवं परस्पर बातचीत के बाद भोजन का समय भी आया। महाराजा मानसिंह भोजन के लिए आये किन्तु महाराणा को न देख कर आश्चर्य में पड़ गये| उन्होंने महाराणा के पुत्र अमरसिंह से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि 'महाराणा साहब के सिर में दर्द है, अतः वे भोजन पर आपका साथ देने में में असमर्थ हैं।' कुछ इतिहासकारों के अनुसार यही घटना हल्दी घाटी के युद्ध का कारण भी बनी। अकबर को राणा प्रताप के इस व्यवहार के कारण मेवाड़ पर आक्रमण करने का एक और मौका मिल गया। सन 1576 ई. में 'महाराणा प्रतापसिंह को दण्ड देने' के अभियान पर नियत हुए। मुगलों की विशाल सेना टिड्डी दल की तरह मेवाड़ की ओर उमड पड़ी। उसमें मुगल, राजपूत और पठान योद्धाओं के साथ अकबर का जबरदस्त तोपखाना भी था। अकबर के प्रसिद्ध सेनापति महावत खाँ, आसफ खाँ और महाराजा मानसिंह के साथ अकबर का शाहजादा सलीम उस मुगल सेना का संचालन कर रहे थे, जिसकी संख्या इतिहासकार ८० हजार से १ लाख तक बताते हैं। मानसिंह और रक्तरंजित हल्दी घाटी संपादित करें उस विशाल मुगल सेना का कड़ा मुकाबला राणा प्रताप ने अपने मुट्ठी भर (सिर्फ बीस-बाईस हजार) सैनिकों के साथ किया। हल्दी घाटी की पीली भूमि रक्तरंजित हो उठी। सन् 1576 ई. के 21 जून को गोगून्दा के पास हल्दी घाटी में प्रताप और मुग़ल सेना के बीच एक दिन के इस भयंकर संग्राम में सत्रह हज़ार सैनिक मारे गए। यहीं राणा प्रताप और मानसिंह का आमना-सामना होने पर दोनों के बीच विकट युद्ध हुआ (जैसा इस पृष्ठ में अंकित भारतीय पुरातत्व विभाग के शिलालेख से प्रकट है)- चेतक की पीठ पर सवार प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक पर काले-नीले रंग के, अरबी नस्ल के अश्व चेतक के पाँव जमा दिए और अपने भाले से सीधा राजा मानसिंह पर एक प्रलयंकारी वार किया, पर तत्काल अपने हाथी के मज़बूत हौदे में चिपक कर नीचे बैठ जाने से इस युद्ध में उनकी जान बच गयी- हौदा प्रताप के दुर्घर्ष वार से बुरी तरह मुड़ गया। बाद में जब गंभीर घायल होने पर राणा प्रताप जब हल्दीघाटी की युद्धभूमि से दूर चले गए, तब राजा मानसिंह ने उनके महलों में पहुँच कर प्रताप के प्रसिद्ध हाथियों में से एक हाथी रामप्रसाद को दूसरी लूट के सामान के साथ आगरा-दरबार भेजा। परन्तु मानसिंह ने चित्तौडगढ के नगर को लूटने की आज्ञा नहीं दी थी, यह जान कर बादशाह अकबर इन पर काफी कुपित हुआ और कुछ वक़्त के लिए दरबार में इनके आने पर प्रतिबन्ध तक लगा दिया.[2] जेम्स टॉड के शब्दों में- "जिन दिनों में अकबर भयानक रूप से बीमार हो कर अपने मरने की आशंका कर रहा था, मानसिंह खुसरो को मुग़ल सिंहासन पर बिठाने के लिए षड्यंत्रों का जाल बिछा दिया था।..उसकी यह चेष्टा दरबार में सब को ज्ञात हो गयी और वह बंगाल का शासक बना कर भेज दिया गया। उसके चले जाने के बाद खुसरो को कैद करके कारागार में रखा गया। मानसिंह चतुर और दूरदर्शी था। वह छिपे तौर पर खुसरो का समर्थन करता रहा. मानसिंह के अधिकार में बीस हज़ार राजपूतों की सेना थी। इसलिए बादशाह प्रकट रूप में उसके साथ शत्रुता नहीं की. कुछ इतिहासकारों ने लिखा है- "अकबर ने दस करोड़ रुपये दे कर मानसिंह को अपने अनुकूल बना लिया था।"[3] काबुल का शासक नियुक्त संपादित करें अकबर शासन में जब राजा भगवंतदास पंजाब के सूबेदार नियत हुए, तब सिंध के पार सीमांत प्रान्त का शासन उनके कुँवर मानसिंह को दिया गया। जब 30वें वर्ष में अकबर के सौतेले भाई मिर्ज़ा मुहम्मद हक़ीम की (जो कि काबुल का शासनकर्ता था) मृत्यु हो गई, तब मानसिंह ने आज्ञानुसार फुर्ती से काबुल पहुँच कर वहाँ के निवासियों को शासक के निधन के बाद उत्पन्न लूटपाट से निजात दिलवाई और उसके पुत्र मिर्ज़ा अफ़रासियाब और मिर्ज़ा कँकुवाद को राज्य के अन्य सरदारों के साथ ले कर वे दरबार में आए। अकबर ने सिंध नदी पर कुछ दिन ठहर कर कुँवर मानसिंह को काबुल का शासनकर्ता नियुक्त किया। इन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ रूशानी लुटेरों को, जो विद्रोहपूर्वक खैबर के दर्रे को रोके हुए थे, का सफाया किया। जब राजा बीरबल स्वाद प्रान्त में यूसुफ़जई के युद्ध में मारे गए और जैनख़ाँ कोका और हक़ीम अबुल फ़तह दरबार में बुला लिए गए, तब यह कार्य मानसिंह को सौंपा गया। अफगानिस्तान में जाबुलिस्तान के शासन पर पहले पिता भगवंतदास नियुक्त हुए और बाद में पर उनके कुँअर मानसिंह। मानसिंह काल में आमेर की उन्नति संपादित करें राजा भगवानदास की मृत्यु हो जाने पर (उनका दत्तक पुत्र) राजा मानसिंह जयपुर के सिंहासन पर बैठा. कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- "मानसिंह के शासनकाल में आमेर राज्य ने बड़ी उन्नति की. मुग़ल दरबार में सम्मानित हो कर मानसिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया उसने अनेक राज्यों पर आक्रमण कर के जो अपरिमित संपत्ति लूटी थी, उसके द्वारा आमेर राज्य को शक्तिशाली बना दिया. धौलाराय के बाद आमेर, जो एक मामूली राज्य समझा जाता था, मानसिंह के समय वही एक शक्तिशाली और विस्तृत राज्य हो गया था। भारतवर्ष के इतिहास में कछवाहों (अथवा कुशवाहों) को शूरवीर नहीं माना गया पर राजा भगवान दास और मानसिंह के समय कछवाहा लोगों ने खुतन से समुद्र तक अपने बल, पराक्रम और वैभव की प्रतिष्ठा की थी। मानसिंह यों अकबर की अधीनता में ज़रूर था, पर उसके साथ काम करने वाली राजपूत सेना, बादशाह की सेना से कहीं अधिक शक्तिशाली समझी जाती थी"।[4] कर्नल जेम्स टॉड की इस बात से दूसरे कुछ इतिहासकार सहमत नहीं. उनका कथन है मानसिंह भगवान दास का गोद लिया पुत्र नहीं था, बल्कि वह तो भगवंत दास का लड़का था। भगवानदास और भगवंत दास दोनों भाई थे।[5] मुग़ल-इतिहास की किताबों से ज़ाहिर होता है कि अकबर के आदेश पर उसके अनुभवी अधिकारी महाराजा मानसिंह, स्थानीय सूबेदार कुतुबुद्दीन खान और आमेर के राजा भगवंत दास ने गोगून्दा और मेवाड़ के जंगलों में महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए बहुत खोजबीन की पर अंततः वे असफल रहे तो अकबर बड़ा क्रुद्ध हुआ- यहाँ तक सन १५७७ में तो उन दोनों (कुतुबुद्दीन खान और राजा भगवंत दास) की 'ड्योढी तक बंद' कर दी गयी!"[6] निधन संपादित करें "मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है हिजरी १०२४ सन १६१५ ईस्वी में मानसिंह की बंगाल में मृत्यु हुई, परन्तु दूसरे इतिहासकारों के विवरण से पता चलता है कि मानसिंह उत्तर की तरफ खिलजी बादशाह से युद्ध करने गया था जहाँ वह सन १६१७ ईस्वी में मारा गया।...मानसिंह के देहांत के बाद उसका बेटा भावसिंह गद्दी पर बैठा."[7] काबुल का शासक नियुक्त अकबर शासन में जब राजा भगवंतदास पंजाब के सूबेदार नियत हुए, तब सिंध के पार सीमांत प्रान्त का शासन उनके कुँवर मानसिंह को दिया गया। जब 30वें वर्ष में अकबर के सौतेले भाई मिर्ज़ा मुहम्मद हक़ीम की (जो कि काबुल का शासनकर्ता था) मृत्यु हो गई, तब मानसिंह ने आज्ञानुसार फुर्ती से काबुल पहुँच कर वहाँ के निवासियों को शासक के निधन के बाद उत्पन्न लूटपाट से निजात दिलवाई और उसके पुत्र मिर्ज़ा अफ़रासियाब और मिर्ज़ा कँकुवाद को राज्य के अन्य सरदारों के साथ ले कर वे दरबार में आए। अकबर ने सिंध नदी पर कुछ दिन ठहर कर कुँवर मानसिंह को काबुल का शासनकर्ता नियुक्त किया। इन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ रूशानी लुटेरों को, जो विद्रोहपूर्वक खैबर के दर्रे को रोके हुए थे, का सफाया किया। जब राजा बीरबल स्वाद प्रान्त में यूसुफ़जई के युद्ध में मारे गए और जैनख़ाँ कोका और हक़ीम अबुल फ़तह दरबार में बुला लिए गए, तब यह कार्य मानसिंह को सौंपा गया। अफगानिस्तान में जाबुलिस्तान के शासन पर पहले पिता भगवंतदास नियुक्त हुए और बाद में पर उनके कुँअर मानसिंह। मानसिंह काल में आमेर की उन्नति राजा भगवानदास की मृत्यु हो जाने पर राजा मानसिंह जयपुर के सिंहासन पर बैठे. कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है- "मानसिंह के शासनकाल में आमेर राज्य ने बड़ी उन्नति की। मुग़ल दरबार में सम्मानित हो कर मानसिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया उसने अनेक राज्यों पर आक्रमण कर के जो अपरिमित संपत्ति मिली थी, उसके द्वारा आमेर राज्य को शक्तिशाली बना दिया। धौलाराय के बाद आमेर, जो एक मामूली राज्य समझा जाता था, मानसिंह के समय वही एक शक्तिशाली और विस्तृत राज्य हो गया था।भारत के इतिहास में कछवाहो का महत्वपूर्ण स्थान आता है मानसिंह के समय कछवाहो ने खुतन से समुद्र तक अपने बल, पराक्रम और वैभव की प्रतिष्ठा की थी। मानसिंह यों अकबर की अधीनता में ज़रूर थे, पर उनके साथ काम करने वाली राजपूत सेना, बादशाह की सेना से कहीं अधिक शक्तिशाली समझी जाती ,हिन्दू धर्म के सच्चे संरक्षक के रूप में कछवाहों ने कार्य किया और कट्टर इस्लामीकरण से भारत और उसकी जनता को बचाए रखा ,कट्टर औरंगज़ेब के समय कछवाहो और मुगलों के सम्बन्ध खराब हो गए थे और औरगज़ेब के आखिरी समय मै कछवाहो ने मुगलों से दूरी बना ली थी कर्नल जेम्स टॉड की इस बात से दूसरे कुछ इतिहासकार सहमत नहीं. उनका कथन है मानसिंह भगवान दास का गोद लिया पुत्र नहीं था, बल्कि वह तो भगवंत दास का लड़का था। भगवानदास और भगवंत दास दोनों भाई थे।मुग़ल-इतिहास की किताबों से ज़ाहिर होता है कि अकबर के आदेश पर उसके अनुभवी अधिकारी महाराजा मानसिंह, स्थानीय सूबेदार कुतुबुद्दीन खान और आमेर के राजा भगवंत दास ने गोगून्दा और मेवाड़ के जंगलों में महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए बहुत खोजबीन की पर अंततः वे असफल रहे तो अकबर बड़ा क्रुद्ध हुआ- यहाँ तक सन १५७७ में तो उन दोनों (कुतुबुद्दीन खान और राजा भगवंत दास) की 'ड्योढी तक बंद' कर दी गयी!" हिन्दू धर्म को योगदान मानसिंह के कारण ही आज जगन्नाथ पुरी का मंदिर मस्जिद नही बना । उड़ीसा के पठान सुल्तान ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद बनाने का प्रयास किया था, जब इसकी सूचना राजा मानसिंह को मिली, तब उन्होंने अपनी सेना का एक बड़ा दल उड़ीसा भेजे, लेकिन विशाल सेना के कारण सभी वीरगति को प्राप्त हुए । उसके बाद राजा मानसिंह खुद उड़ीसा गए, ओर वहां दो पठान भाई थे और राजा मानसिंह ने दोनों का सर काट दिया ओर उनके सहयोगी हिन्दू राजाओ को कुचलकर रख दिया । जगन्नाथ मंदिर की रक्षा हिन्दू इतिहास का सबसे स्वर्णिम इतिहास है । यह हिंदुओ के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। राजा मानसिंह महान कृष्ण भक्त थे, उन्होंने वृंदावन में सात मंजिला कृष्णजी ( गोविन्ददेव जी ) का मंदिर और आमेर में जगत शिरोमणि मंदिर बनवाया । बनारस के घाट, पटना के घाट, ओर हरिद्वार के घाटों का निर्माण आमेर नरेश मानसिंह ने ही करवाया था । जितने मंदिर मध्यकाल से पूर्व धर्मान्ध मुसलमानो ने तोड़े थे, वह सारे मंदिर मानसिंहजी ने बना दिये थे, लेकिन औरंगजेब के समय मुगलो का अत्याचार बढ़ गया था और हिन्दू मंदिरों का भारी नुकसान हो गया ।मानसिंह के समय दादूदयाल ने वाणी की रचना की थी। जयपुर में जगतशिरोमणी का का निर्माण मानसिंह की रानी कंकावती ने अपने पुत्र जगतसिह की स्मृति में करवाया था। उसे दीन ए इलाही स्वीकार करने का कहा गया था लेकिन उसने यह धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया। हल्दीघाटी में हार जब अकबर के सेनापति मानसिंह शोलापुर महाराष्ट्र विजय करके लौट रहे थे, तो मानसिंह ने प्रताप से मिलने का विचार किया। प्रताप उस वक़्त कुम्भलगढ़ में थे। अपनी राज्यसीमा मेवाड़ के भीतर से गुजरने पर (किंचित अनिच्छापूर्वक) महाराणा प्रताप को उनके स्वागत का प्रबंध उदयपुर के उदयसागर की पाल पर करना पड़ा. स्वागत-सत्कार एवं परस्पर बातचीत के बाद भोजन का समय भी आया। महाराजा मानसिंह भोजन के लिए आये किन्तु महाराणा को न देख कर आश्चर्य में पड़ गये। उन्होंने महाराणा के पुत्र अमरसिंह से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि 'महाराणा साहब के सिर में दर्द है, अतः वे भोजन पर आपका साथ देने में में असमर्थ हैं।' कुछ इतिहासकारों के अनुसार यही घटना हल्दी घाटी के युद्ध का कारण भी बनी। अकबर को महाराणा प्रताप के इस व्यवहार के कारण मेवाड़ पर आक्रमण करने का एक और मौका मिल गया। सन 1576 ई. में 'राणा प्रताप को दण्ड देने' के अभियान पर नियत हुए। मुगल सेना मेवाड़ की ओर उमड पड़ी। उसमें मुगल, राजपूत और पठान योद्धाओं के साथ अकबर का जबरदस्त तोपखाना भी था हालाकि पहाड़ी इलाकों में तोप काम ना आ सकी और युद्ध में तोपो की कोई भूमिका नहीं थी। अकबर के प्रसिद्ध सेनापति महावत खान, आसफ खान और महाराजा मानसिंह के साथ अकबर का शाहजादा सलीम उस मुगल सेना का संचालन कर रहे थे, जिसकी संख्या 5,000 से 80,000 के बीच थी। चार घंटे के युद्ध के बाद मुगलो की आधी फौज मारी जा चुकी थी किन्तु महाराणा भी मैदान में घायल हो गये तब उनके सेनापति झाला मन्ना ने उन्हें युद्धभूमि से सुरक्षित बाहर भेजने में सफलता मिली पर मानसिंह प्रताप के भय से पेहले ही रणभूमी छोड गये थे, इसलिए सेनापति न होने के कारण हल्दीघाटी मे सिर्फ सैनिक ही एक दूसरे से युद्ध करते रहे । अखिर मे मुगलों को पीछे हटना पडा और प्रताप की हल्दीघाटी का युद्ध अनिर्णीत रहा। मानसिंह और रक्तरंजित हल्दी घाटी उस विशाल मुगल सेना का कड़ा मुकाबला राणा प्रताप ने अपने मुट्ठी भर सैनिको के साथ किया। हल्दी घाटी की पीली भूमि रक्तरंजित हो उठी। सन् 1576 ई. के 21 जून को गोगून्दा के पास हल्दी घाटी में प्रताप और मुग़ल सेना के बीच एक दिन के इस भयंकर संग्राम में 17 हज़ार सैनिक मारे गए। यहीं राणा प्रताप और मानसिंह का आमना-सामना होने पर दोनों के बीच विकट युद्ध हुआ (जैसा इस पृष्ठ में अंकित भारतीय पुरातत्व विभाग के शिलालेख से प्रकट है)- चेतक की पीठ पर सवार प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक पर काले-नीले रंग के, अरबी नस्ल के अश्व चेतक के पाँव जमा दिए और अपने भाले से सीधा राजा मानसिंह पर एक प्रलयंकारी वार किया, पर तत्काल अपने हाथी के मज़बूत हौदे में चिपक कर नीचे बैठ जाने से इस युद्ध में उनकी जान बच गयी- हौदा प्रताप के दुर्घर्ष वार से बुरी तरह मुड़ गया। बाद में जब गंभीर घायल होने पर राणा प्रताप जब हल्दीघाटी की युद्धभूमि से दूर चले गए, तब राजा मानसिंह ने उनके महलों में पहुँच कर प्रताप के प्रसिद्ध हाथियों में से एक हाथी रामप्रसाद को दूसरी लूट के सामान के साथ आगरा-दरबार भेजा। परन्तु मानसिंह ने चित्तौडगढ के नगर को लूटने की आज्ञा नहीं दी थी, यह जान कर बादशाह अकबर इन पर काफी कुपित हुआ और कुछ वक़्त के लिए दरबार में इनके आने पर प्रतिबन्ध तक लगा दिया.जेम्स टॉड के शब्दों में- "जिन दिनों में अकबर भयानक रूप से बीमार हो कर अपने मरने की आशंका कर रहा था, मानसिंह खुसरो को मुग़ल सिंहासन पर बिठाने के लिए षड्यंत्रों का जाल बिछा दिया था।..उसकी यह चेष्टा दरबार में सब को ज्ञात हो गयी और वह बंगाल का शासक बना कर भेज दिया गया। उसके चले जाने के बाद खुसरो को कैद करके कारागार में रखा गया। मानसिंह चतुर और दूरदर्शी था। वह छिपे तौर पर खुसरो का समर्थन करता रहा. मानसिंह के अधिकार में बीस हज़ार राजपूतों की सेना थी। इसलिए बादशाह प्रकट रूप में उसके साथ शत्रुता नहीं की. कुछ इतिहासकारों ने लिखा है- "अकबर ने दस करोड़ रुपये दे कर मानसिंह को अपने अनुकूल बना लिया था।" जापान की तरह मेहनत (क्रोो) करोआज की बात करो और निरंतर प्रयास करें आगे बढ़ाने का अपने देश को teknology का विस्तार करो कचरा प्रबंधन करो आज जो कुछ हमारे सामने है उन पर विचार करो (जय भारत जय हिन्द)हेमंत शेष ने अपनी पुस्तक 'चार शहरनामे'(शब्दार्थ प्रकाशन, जयपुर २०१९) में इनके बारे में निम्नांकित जानकारी दी है'''- किम्वदंती ही रही होगी कि राजा मानसिंह (1589-1614 ई.) दिखने में सुदर्शन न थे। उनका रंग संभवतः गहरा सांवला था। पहली बार अकबर ने उन्हें जब देखा तो शायद मज़ाक के मूड में पूछा- “जब रूप-रंग बंट रहा था तो आप थे कहाँ?’ हाजिरजवाब मानसिंह इस टिप्पणी से अविचलित, बोले- जहाँपनाह, तब ? तब मैं बुद्धिमानी और बहादुरी लेने चला गया था ! एक पंक्ति के इस सटीक जवाब ने ज़रूर अकबर जैसे को भी आमेर के इस राजपुरुष की ‘काउंटर विट’ का मुरीद बना दिया होगा। खैर... लुब्बे-लुबाब ये कि मुग़ल सेनापति के रूप में अनेक सफलताओं ने राजा मानसिंह को आजीवन प्रचुर यश और धन दिया। अगर मानसिंह प्रथम असफल रहे तो बस महज़ मेवाड़ के मोर्चे पर ही, अन्यथा इस विलक्षण योद्धा ने अकबर के साम्राज्य के विस्तार के लिए क्या नहीं जीता? अपने पितामह भारमल और पिता भगवान दास के साथ युवावस्था से अनेक युद्धों में भाग लेने का अनुभव इनके खाते में था ही। पूर्वोत्तर भारत में, जहाँ सुदूर बंगाल उड़ीसा और आसाम तक का इलाका मूलतः इसी सेनानायक के कारण, मुग़ल-सल्तनत में आ सका, वहीं पश्चिम में, पंजाब और अफगानिस्तान, उत्तर में कश्मीर, दक्षिण-पूर्व में उड़ीसा- सब जगह मानसिंह भेजे गए और मुख्य सेनापति के बतौर इन सब प्रान्तों के छोटे-बड़े विद्रोहियों को दबा कर मुग़ल परचम फहराने में सफल रहे। राजा मानसिंह के चरित्र का एक और पहलू, इनकी अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति एकनिष्ठ प्रतिबद्धता है। हिन्दू-धर्म के कुछ अप्रतिम प्रतीक-चिन्हों और विग्रहों को सुरक्षित ला कर आमेर में स्थापित करने में मानसिंह प्रथम सदा उत्सुक रहे। जयपुर वाले इस ‘झाड़साई’ लोकगीत से सुपरिचित हैं- “सांगानेर को सांगो बाबो, जैपर को हडमान, आमेर की सल्ला देबी ल्यायो राजा मान!” '' विद्याधर पर अपनी टिप्पणी में इस बात की जानकारी दे दी गयी है कि कैसे पूर्वी बंगाल के जैसोर से राजा मानसिंह कंस की शिला को आमेर लाये थे जिस से शिलादेवी (काली) का विग्रह उत्कीर्ण हुआ। आमेर के 'जगत शिरोमणि मंदिर' में स्वयं मीराँ द्वारा सेव्य कृष्ण-मूर्ति ही स्थापित है। इस राजा मानसिंह की धर्मपरायणता पर बात करते हुए याद कर लें कि तब शासक केवल अपने लिए किले और महल ही नहीं बनवाते थे, बल्कि जनसामान्य के लिए मंदिरों, तालाबों, बावड़ियों, धर्मशालाओं, पाठशालाओं आदि सार्वजनिक उपयोग की संपत्तियों के बनाने पर भी ध्यान देते थे। राजसमन्द से सांसद और भूतपूर्व जयपुर राजघराने की सदस्य दिव्या कुमारी ने कहीं लिखा है- “राजा मानसिंह का युग हिंदुत्व और सनातन धर्म के लिए एक चुनौती था। मन्दिर तोड़े जा रहे थे; भारत में धर्मांतरण हो रहा था। हिंदू राजा कमजोर होते जा रहे थे, साथ ही अपने राज्य बचाने के लालच में अपना धर्म तक बदल रहे थे। राजा मानसिंह ने न केवल हिंदुओं को मुस्लिम धर्म अपनाने से रोका, बल्कि उन्होंने मुगल दरबार में अपनी शक्ति भी बढ़ा ली । इस वजह से मुगल शासकों ने हिंदुओं के खिलाफ कोई आदेश नहीं दिया। उन्होंने वाराणसी, वृंदावन, बंगाल, बिहार, काबुल, कंधार, आमेर, जयपुर सहित पूरे भारत में मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार किया। इनमें आमेर की शिलादेवी, सांगानेर के सांगा बाबा, चांदपोल में हनुमान मंदिर, हर की पौड़ी (हरिद्वार) में मां गंगा मंदिर शामिल हैं। मां गंगा मंदिर को मान छत्री के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने वाराणसी दशाश्वमेध घाट और विश्वनाथ भगवान शिव के महान मंदिर का पुनः निर्माण कराया, जहाँ के मान मंदिर और मान घाट द्वारा दुनिया भर में जाने गए हैं । जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में भी इस मंदिर का उल्लेख इस प्रकार किया है- “मेरे पिता (अकबर) ने मंदिर निर्माण के लिए मुगल खजाने से 10 लाख रुपये खर्च किए थे और एक लाख रुपये खुद राजा मानसिंह ने दिए थे।“ जगन्नाथ पुरी को उन्होंने अफगानों से मुक्त कराया गया और उसका पुनरुद्धार किया । उन्होंने आमेर किले की तर्ज पर दक्षिण बिहार में रोहतास का किला भी बनवाया। 1590 से 1592 तक ओडिशा में संघर्ष चला। मानसिंह, ने खुर्दा के राजा रामचंद्र के आत्मसमर्पण के बाद, उन्हें जगन्नाथ मंदिर के रखरखाव और अन्य व्यवस्थाओं के लिए अधीक्षक नियुक्त किया। “Jagannaath jee ne fir vidhu vidhaan so sthaapana kina. paachho samudra mai jaay khaando paakhalyo”! जब राजा मानसिंह रघुनाथ भट्ट के संपर्क में आए, तो उनके आदेश पर वृंदावन में गोविंद देवजी का एक बड़ा मंदिर बनाया गया। मंदिर का निर्माण 1535 में शुरू हुआ और 1590 ई. में पूरा हुआ। यह 16वीं सदी का सबसे बड़ा मंदिर था। जयपुर शहर की नींव के समय, सूर्य महल में आराध्य गोविंद देवजी की स्थापना की गई । “ हिंदी-समीक्षक माधव हाड़ा ने मीराँ के जीवन और समाज पर जो जानकारीपूर्ण किताब लिखी है- “पचरंग चोला पहर सखी री” उस में भी राजा मानसिंह का उल्लेख कई जगह आया है। उनके अनुसार –“आम्बेर का जगत् शिरोमणि मंदिर मानसिंह के पुत्र जगतसिंह की स्मृति में बनवाया गया। जगतसिंह की मृत्यु अकबर के चित्तौड़-अभियान में हुई। इस अभियान में भगवानदास और मानसिंह भी शामिल थे। कहते हैं कि मानसिंह इस अभियान के दौरान ही मीराँ सेवित प्रतिमा अपने साथ ले गया और उसने अपने पुत्र की स्मृति में बनाए गए मंदिर में इसकी प्रतिष्ठा की।” यह उल्लेख ‘आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ की प्रोग्रेस-रिपोर्ट के अलावा मीराँ के कई विद्वान अध्येताओं ने किया है। 1. प्राच्यविद् हरिनाराण पुरोहित के अनुसार “सबसे बड़ी दृढ़ प्रमाणों से यह बात प्राप्त हो गई है कि मीराँबाई की एक पूज्य मूर्ति चित्तौड़गढ़ से आंबेर आई और यह प्रसिद्ध मंदिर श्रीजगतशिरोमणि में महाराजा मानसिंह द्वारा स्थापित की गई।” ‘परंपरा’ पत्रिका -63-64 ( ‘राजस्थानी शोध संस्थान’, चौपासनी, जोधपुर 1982 ), पृ.87 2, जर्मन भारतविद् हरमन गोएट्जे ने भी इसकी पुष्टि अपनी पुस्तक ‘मीराँबाई: हर लाइफ़ एंड टाइम्स’ (भारतीय विद्या भवन, मुम्बई, 1966), पृ.37 में की है। 3. मीराँ के एक ओर अध्येता डॉ. हुकमसिंह भाटी भी ‘आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया’ की ‘प्रोग्रेस रिपोर्ट’ के हवाले से इसकी पुष्टि करते हैं- अलबत्ता वे यह न जाने कैसे नहीं मानते कि मानसिंह अकबर के ‘चित्तौड़ अभियान’ में शामिल था। वे लिखते हैं कि “संभवतः चित्तौड़-विजय के बाद (भगवानदास) कोई मूर्ति आमेर लाया होगा। “(‘मीराँबाई ऐतिहासिक-सामाजिक विवेचन’(रतन प्रकाशन, जोधपुर,1986, पृ.22) मानसिंह की भेंट संत कुम्भनदास सेराजा मानसिंह के बारे में 'इम्पीरियल गज़ेटियर ऑफ इण्डिया' में लिखा गया था – “भगवान दास के दत्तक पुत्र, मानसिंह, शाही सेनापतियों में सबसे विशिष्ट थे। मानसिंह ने उड़ीसा, बंगाल और असम में युद्ध लड़े; और एक अवधि में बड़ी कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने काबुल के प्रशासक के रूप में अपना अधिकार बनाए रखा। उन्हें बंगाल, बिहार और दक्कन की सूबेदारी दे कर पुरस्कृत किया गया था। " पर एक सेनानायक की सारी सैन्यशक्ति, उसकी अब तक की उपलब्धियां, उसकी अथाह धन-दौलत और दिगदिगान्तर में फैले उसके प्रचंड राजनैतिक-वर्चस्व का प्रभामंडल एक निस्पृह, किन्तु सिद्ध-संत के बस एक ही वाक्य के सामने कितना तुच्छ, कितना महत्वहीन और कितना निस्सार पड़ गया, इस बात को साबित करने के लिए कुम्भनदास और मानसिंह की भेंट की वह प्राचीन कथा/ किम्वदंती या मिथक ही काफी है ! कहानी कहती है- संत कुम्भनदास ब्रजवास किया करते थे- संत कवि के रूप में जिनकी ख्याति सुन कर अकबर के सेनानायक भी भक्तिभाव से उनकी कुटिया में आ पहुंचे। तब स्नान कर कुम्भनदास भीतर आये ही थे और मस्तक पर तिलक लगाने के लिए आसपास कोई दर्पण खोजते थे। न मिलने पर मानसिंह ने अपने असबाब से हीरे-जवाहरात जड़ा एक अत्यधिक मूल्यवान दर्पण उन्हें भेंटस्वरूप दिया, जिसे विनम्रतापूर्वक संत ने अस्वीकार करते हुए पास पड़ी कठौती के जल में अपने चेहरे का प्रतिबिम्ब देखा और पुष्टिमार्गीय तिलक लगा लिया। बाद में संत के सुमधुर कृष्ण-पद सुन कर जब राजा ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी एक भारी थैली उनकी नज़र की तब कुम्भनदास ने वह संपदा उन्हें लौटते हुए हाथ जोड़ कर उनसे कहा- “इसकी एवज क्या मैं राजा साहब से कुछ और मांग सकता हूँ?” मानसिंह बोले- ‘आप जो कहेंगे उसकी पालना होगी- संत शिरोमणि! आप कह कर तो देखिये!” कुम्भनदास ने बदले में सिर्फ एक वाक्य कहा- “ठीक है, अगर आप मेरी बात मानें तो भविष्य में कृपया फिर यहाँ कभी भी न आयें !” पाठक को ये याद दिलाना ज़रूरी कहाँ है- अष्टछाप कवियों में अग्रगण्य ये वही कुम्भनदास हैं, जिन्होंने कहा था- “संतन कहा सीकरी सों काम...जाको मुख देखे दुःख उपजत...” आदि। अकबर द्वारा मानसिंह की पिटाई''' आपस में संबंधी होने के बाद राजा मानसिंह और बादशाह अकबर के ताल्लुकात को देश, काल और परिस्थितियों ने और पक्की और अटूट दोस्ती में कब बदल दिया दोनों में से कोई नहीं जानता था। मार्च 1503 में घटी एक विचित्र घटना का उल्लेख मानसिंह और अकबर की गहरी मैत्री को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। ‘अकबरनामा’ तीसरे खंड में पृष्ठ-31 पर अबुल फ़ज्ल ने इस वाकये का ज़िक्र सबसे पहले किया था। यदुनाथ सरकार ने भी अपने जयपुर-इतिहास में यही घटना दुहराई है। शीरीं मूंसवीं की किताब ‘अकबर के जीवन की कुछ घटनाएं’ में भी ये घटना अध्याय 19 में ‘राजपूतों के शौर्य की नक़ल’ शीर्षक से प्रकाशित है। सब जानते हैं, तब मुगलों और राजपूतों में अफीम खाने का प्रचलन था और मदिरापान भी पर्याप्त लोकप्रिय दुर्व्यसन था। लिखा गया है- “एक शाम अपने कुछ अन्तरंग मित्रों के साथ अकबर सुरापान कर रहा था। बातचीत के दौरान राजपूतों की बहादुरी के किस्से छिड़ गए। किसी ने कहा उन्हें अपनी जान की परवाह बिलकुल नहीं होती ! जैसे कि सुना है कि कुछ लोग दुधारी तलवार ले कर सामने खड़े होते हैं और उन्हीं की तरह के दो शूरवीर राजपूत दूसरी तरफ से दौड़ते हुए आते हैं और उन दुधारी तलवारों से टकराते हैं। तलवारें उन्हें चीरती हुई पीठ की ओर से बाहर निकल पड़ती हैं। ये बात सुन कर (नशे में धुत्त) अकबर ने अपनी खास तलवार की मूंठ को दीवार में खोंस दिया और कहा यदि राजपूत इसे अपने शरीर में घोंप सकते हैं तो वह भी ये शूरकर्म कर सकता है। इतना कह कर अकबर ने (तलवार छाती से पार करने की गरज से) अपनी छाती तलवार की नोंक पर टिका दी। दारू की दावत में जितने लोग थे यह दृश्य देख कर हक्के-बक्के रह गए। किसी से एक शब्द भी बोला न गया, सब की साँसें रुक गयीं। अकबर अपने मूर्खतापूर्ण बहादुरी के खौफ़नाक इरादे में सफल होता इस से पहले ही स्वामिभक्त मानसिंह ने बला की फुर्ती दिखाते अपने हाथ के ज़ोरदार वार से दीवार में खुंसी अकबर की तलवार को ज़मीन पर गिरा दिया। तलवार की धार से बादशाह के अंगूठे और तर्जनी के कट जाने से खून बहने लगा। उपस्थित लोगों ने तलवार एक तरफ कर दी, पर अकबर को इस बात पर इतना क्रोध आया कि वह मानसिंह पर टूट पड़ा। उसने उसे ज़मीन पर गिरा कर बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। तब सैय्यद मुज़फ्फर ने बिना सोचे मानसिंह को छुड़ाने के लिए अकबर की एक घायल उंगली को मरोड़ दिया और इस तरह गुस्से में आग-बबूला होते अकबर से मानसिंह को मुक्ति दिलाई। ” निधन मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है "हिजरी १०२४ सन १६१५ ईस्वी में महाराजा मानसिंह की बंगाल में मृत्यु हुई", सन्दर्भ अकबर के नवरत्न राजस्थान का इतिहास भारत का इतिहास जयपुर के लोग जयपुर के महाराजा
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आनुवंशिकी
आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत आनुवंशिकता (हेरेडिटी) तथा जीवों की विभिन्नताओं (वैरिएशन) का अध्ययन किया जाता है। आनुवंशिकता के अध्ययन में ग्रेगर जॉन मेंडेल की मूलभूत उपलब्धियों को आजकल आनुवंशिकी के अंतर्गत समाहित कर लिया गया है। प्रत्येक सजीव प्राणी का निर्माण मूल रूप से कोशिकाओं द्वारा ही हुआ होता है। इन कोशिकाओं में कुछ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पाए जाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक जाति (स्पीशीज) में निश्चित होती है। इन गुणसूत्रों के अन्दर माला की मोतियों की भाँति कुछ डी एन ए की रासायनिक इकाइयाँ पाई जाती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये जीन, गुणसूत्र के लक्षणों अथवा गुणों के प्रकट होने, कार्य करने और अर्जित करने के लिए जिम्मेवार होते हैं। इस विज्ञान का मूल उद्देश्य आनुवंशिकता के ढंगों (पैटर्न) का अध्ययन करना है अर्थात्‌ संतति अपने जनकों से किस प्रकार मिलती जुलती अथवा भिन्न होती है। समस्त जीव, चाहे वे जन्तु हों या वनस्पति, अपने पूर्वजों के यथार्थ प्रतिरूप होते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे 'समान से समान की उत्पति' (लाइक बिगेट्स लाइक) का सिद्धान्त कहते हैं। आनुवंशिकी के अन्तर्गत कतिपय कारकों का विशेष रूप से अध्ययन किया जाता हैः प्रथम कारक आनुवंशिकता है। किसी जीव की आनुवंशिकता उसके जनकों (पूर्वजों या माता पिता) की जननकोशिकाओं द्वारा प्राप्त रासायनिक सूचनाएँ होती हैं। जैसे कोई प्राणी किस प्रकार परिवर्धित होगा, इसका निर्धारण उसकी आनुवंशिकता ही करेगी। दूसरा कारक विभेद है जिसे हम किसी प्राणी तथा उसकी सन्तान में पाते या पा सकते हैं। प्रायः सभी जीव अपने माता पिता या कभी कभी बाबा, दादी या उनसे पूर्व की पीढ़ी के लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ऐसा भी सम्भव है कि उसके कुछ लक्षण सर्वथा नवीन हों। इस प्रकार के परिवर्तनों या विभेदों के अनेक कारण होते हैं। जीवों का परिवर्धन तथा उनके परिवेश (एन्वाइरनमेंट) पर भी निर्भर करता है। प्राणियों के परिवेश अत्यन्त जटिल होते हैं; इसके अंतर्गत जीव के वे समस्त पदार्थ (सब्स्टैंस), बल (फोर्स) तथा अन्य सजीव प्राणी (आर्गेनिज़्म) समाहित हैं, जो उनके जीवन को प्रभावित करते रहते हैं। वैज्ञानिक इन समस्त कारकों का सम्यक्‌ अध्ययन करता है, एक वाक्य में हम यह कह सकते हैं कि आनुवंशिकी वह विज्ञान है, जिसके अन्तर्गत आनुवंश्किता के कारण जीवों तथा उनके पूर्वजों (या संततियों) में समानता तथा विभेदों, उनकी उत्पत्ति के कारणों और विकसित होने की संभावनाओं का अध्ययन किया जाता है। जोहानसेन ने सन्‌ १९११ (1911) में जीवों के बाह्य लक्षणों (फ़ेनोटाइप) तथा पित्रागत लक्षणों (जीनोटाइप) में भेद स्थापित किया। जीवों के बाह्म लक्षण उनके परिवर्धन के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं, जैसे जीवों की भ्रूणावस्था, शैशव, यौवन तथा वृद्धावस्था में पर्याप्त शारीरिक विभेद दृष्टिगोचर होता है। इसके विपरीत उनके पित्रागत लक्षण या विशेषताएँ स्थिर तथा अपरिवर्तनशील होती हैं। किसी भी जीव के पित्रागत लक्षण और परिवेश की अंतक्रियाओं के फलस्वरूप उसकी वृद्धि और परिवर्धन होता है। अतः पित्रागत लक्षण जीवों के 'प्रतिक्रया के मानदंड' (नार्म ऑव रिऐक्शन) अर्थात्‌ परिवेश के प्रति उनकी प्रतिक्रिया (रेस्पांस) के ढंग का निधार्रण करते हैं। इस प्रकार की प्रतिक्रियाओं से जीवों के बाह्य लक्षण (फ़ेनोटाइप) का निर्माण होता है। आनुवंशिक तत्त्व का कृषि विज्ञान में फसलों के आकार, उत्पादन, रोगरोधन तथा पालतू पशुओं आदि के नस्ल सुधार आदि में उपयोग किया जाता है। आनुवंशिक तत्वों की सहायता से उद्विकास (इवाल्यूशन), भ्रौणिकी (एँब्रायोलाजी) तथा अन्य संबद्ध विज्ञानों के अध्ययन में सुविधा होती हैं। पित्रागत लक्षणों तथा रोगों संबंधी अनेक भ्रमों का इस विज्ञान ने निराकरण किया है। जुड़वाँ संतानों की उत्पत्त्िा और सुसंततिशास्त्र (यूजेनिक्स) की अनेक समस्याओं पर इस विज्ञान ने प्रकाश डाला है। इसी प्रकार जनसंख्या-आनुवंशिक-तत्व (पापुलेशन जेनेटिक्स) की अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियों से मानव समाज लाभान्वित हुआ है। टी.एच. मार्गन (1886-1945) तथा उनके सहयोगियों ने यह दर्शाया कि कतिपय जीन, जिनका वंशानुक्रम (इन्हेरिटेंस) विनिमय (क्रासिंगओवर) प्रयोगों द्वारा ज्ञात हुआ, अणुवीक्षण यंत्रों द्वारा ही दृष्ट कतिपय गुणसूत्रों (क्रोमोसोम) में उपस्थित रहते हैं। साथ ही उन्होंने यह भी बतलाया कि गुणसूत्रों के भीतर ये जीन एक निर्धारित अनुक्रम में व्यवस्थित रहते हैं जिसके कारण इनका आनुवंशिकीय चित्र (जेनेटिक मैप) बनाना संभव होता है। इन लोगों ने कदली मक्खी, ड्रोसोफिला, के जीन के अनेक चित्र बनाए। प्रोफेसर मुलर का इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रयोगों द्वारा नए नए वैज्ञानिक अनुसंधानों का मार्गदर्शन किया। कृत्रिम उत्परिवर्तनों (आर्टिफ़िशियल या इंडयूस्ड म्यूटेशन) की अनेक विधियों द्वारा पालतू पशुओं तथा कृषि की नस्लों में अद्भुत सुधार कार्य किए गए। यह सब आनुवंशिकी की ही देन है जो मानवकल्याण के लिए परम हितकारी सिद्ध हुई हैं। अनेक वैज्ञानिकों का मत है कि मनुष्य का आनुवंशिक अध्ययन सरल कार्य नहीं है। इसका कारण यह बतलाया जाता है कि मनुष्य की संतान के जन्म में लगभग १० मास लग जाते हैं और इसे पूर्ण वयस्क होने में कम से कम २० वर्ष लगते हैं। अतः एक दो पीढ़ी के ही अध्ययन के लिए २०,२२ वर्षो का समय लगने के कारण मनुष्य का आनुवंशिक अध्ययन जटिल है। इसके साथ ही मनुष्य को एक बार में साधारणतया एक ही बच्चा उत्पन्न होता है, इससे भी अध्ययन में कठिनाई होती है। इन कठिनाइयों के बावजूद मनुष्य के शरीर की बाहरी रचना, रोगों, उनके लक्षणों एवं कारणों आदि का अध्ययन सरल होता है। मनुष्यों की जीवरासायनिक आनुवंशिकी (बायोकेमिकल जेनेटिक्स) का प्रथम अध्ययन लंदन के चिकित्सक आर्चिबाल्ड गैरोड (१८५७-१९३६) ने किया था किंतु सन्‌ १९४० के पूर्व इस विषय पर विस्तृत अध्ययन नहीं हुए थे। मनुष्यों में जीन के संबंध में लगभग ६० गुणों (ट्रेट्स) का पता चला है। जीवविज्ञान में आनुवंशिकी के अध्ययन का वही महत्त्व है जो भौतिक विज्ञान में परमाणवीय सिद्धांतों का है। मनुष्य के आनुवंशिक अध्ययनों के आरंभिक रूपों में बह्वांगुलिता (अतिरिक्त अंगुलियों का होना), हीमोफ़ीलिया, तथा वर्णांधता (कलर-ब्लाइंडनेस) मुख्य विषय थे। उदाहरणार्थ सन्‌ १७५० में बर्लिन में मॉपर्टुइस ने मेंडेल के नियमों के आधार पर बह्वांगुलिता का वर्णन किया था। इसी प्रकार ओटो (१८०३), हे (१८१३) और बुएल्स (१८१५) ने न्यू इंग्लैंड के तीन विभिन्न परिवारों में लिंगसहलग्न हीमोफ़ीलिया रोग़ के आनुवंशिक कारणों पर प्रकाश डाला था। सन्‌ १८७६ में स्विट्.जरलैंड के चिकित्सक, हार्नर ने वर्णांधता का वर्णन किया। सन्‌ १९५८ में जार्ज बीडिल को 'कायकी तथा औषधि' विषयक जैवरासायानिक आनुवंशिकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन्‌ १९५९ में जिरोम लेजुईन ने मंगोलीय मूढ़ता (मंगोलायड ईडिओसी) का विद्वत्तापूर्ण वर्णन प्रस्तुत किया। सन्‌ १९५६ में जे.एच.जिओ, अल्बर्ट लीवान, चार्ल्स फोर्ड एवं जान हैमर्टन ने मुनष्य के गुणसूत्रों की संख्या ४६ बतलाई; इसके पूर्व लोगों का मत था कि यह संख्या ४८ होती है। इतिहास अपने माता-पिता से विरासत में मिली चीजों का अवलोकन करने का उपयोग प्रागैतिहासिक काल से फसल के पौधों और जानवरों को जीवित प्रजनन के माध्यम से करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया को समझने की कोशिश करने वाले आनुवांशिकी के आधुनिक विज्ञान ने 19 वीं शताब्दी के मध्य में अगस्टिनियन तले ग्रेगर मेंडल के काम के साथ शुरू किया। मेंडल से पहले, इमरे फेस्टेटिक्स, एक हंगेरियन रईस, जो मेंडेल से पहले कोसेजेग में रहता था, वह पहला व्यक्ति था जिसने "आनुवंशिकी" शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अपने काम में आनुवांशिक वंशानुक्रम के कई नियमों का वर्णन किया प्रकृति का आनुवंशिक नियम (डाई जीनिटिस गेसटेज डेर नटुर, 1819)। उसका दूसरा नियम वही है जो मेंडल ने प्रकाशित किया था। अपने तीसरे नियम में, उन्होंने उत्परिवर्तन के मूल सिद्धांतों को विकसित किया (उन्हें ह्यूगो वियर्स का अग्रदूत माना जा सकता है)। सम्मिश्रित विरासत से हर विशेषता का औसत निकलता है, जिसे इंजीनियर फ्लेमिंग जेनकिन ने इंगित किया था, चयन के विकास को असंभव बना देता है। विरासत के अन्य सिद्धांतों ने मेंडल के काम से पहले। 19 वीं शताब्दी के दौरान एक लोकप्रिय सिद्धांत, और चार्ल्स डार्विन के 1859 ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीसीज़ द्वारा निहित, विरासत में मिलावट थी: यह विचार कि व्यक्ति अपने माता-पिता से लक्षणों का एक सहज मिश्रण प्राप्त करते हैं। मेंडल के काम ने ऐसे उदाहरण प्रदान किए जहां संकरण के बाद लक्षण निश्चित रूप से मिश्रित नहीं थे, यह दर्शाता है कि लक्षण एक निरंतर मिश्रण के बजाय विभिन्न जीनों के संयोजन द्वारा निर्मित होते हैं। पूर्वजों में लक्षणों के सम्मिश्रण को अब कई जीनों की क्रिया द्वारा मात्रात्मक प्रभावों के साथ समझाया गया है। एक अन्य सिद्धांत जिसका उस समय कुछ समर्थन था, अधिग्रहित विशेषताओं का उत्तराधिकार था: यह विश्वास कि व्यक्तियों को विरासत में अपने माता-पिता द्वारा मजबूत किया गया था। यह सिद्धांत (आमतौर पर जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क के साथ जुड़ा हुआ है) को अब गलत माना जाता है - व्यक्तियों के अनुभव उनके बच्चों के पास जाने वाले जीन को प्रभावित नहीं करते हैं, हालांकि एपिगेनेटिक्स के क्षेत्र में सबूत ने लैमार्क के सिद्धांत के कुछ पहलुओं को पुनर्जीवित किया है । अन्य सिद्धांतों में चार्ल्स डार्विन (जो अधिग्रहित और विरासत में प्राप्त दोनों पहलू थे) के पैंगनेस शामिल थे और फ्रांसिस गेल्टन ने पैंग्नेस के सुधार को कण और विरासत दोनों के रूप में सुधार दिया। मेंडेलियन और शास्त्रीय आनुवंशिकी मॉर्गन ने सेक्स से जुड़े वंशानुक्रम के अवलोकन को ड्रोसोफिला में सफेद आंखों का कारण बना दिया, जिससे उन्हें यह अनुमान लगाया गया कि जीन गुणसूत्रों पर स्थित हैं। आधुनिक आनुवांशिकी मेंडेल के पौधों में विरासत की प्रकृति के अध्ययन के साथ शुरू हुई। 1865 में ब्रुनन में नेचुरोफ़ोर्सचेंडर वेरीन (सोसाइटी फ़ॉर रिसर्च इन नेचर) में प्रस्तुत अपने पेपर "वर्सुचे बर पबलानज़ेनहाइब्रेन" ("प्रयोगों पर पादप संकरण") में, मेंडल ने मटर के पौधों में कुछ लक्षणों के वंशानुक्रम पैटर्न का पता लगाया और उन्हें गणितीय रूप से वर्णित किया। हालांकि वंशानुक्रम का यह पैटर्न केवल कुछ लक्षणों के लिए देखा जा सकता है, मेंडल के काम ने सुझाव दिया कि आनुवंशिकता को कण-कण में रखा गया था, अधिग्रहित नहीं किया गया था, और यह कि कई लक्षणों के वंशानुक्रम पैटर्न को सरल नियमों और अनुपातों के माध्यम से समझाया जा सकता है। मेंडल के काम के महत्त्व को 1900 तक व्यापक समझ नहीं मिली, उनकी मृत्यु के बाद, जब ह्यूगो डी वीस और अन्य वैज्ञानिकों ने उनके शोध को फिर से खोज लिया। मेंडल के काम के प्रस्तावक विलियम बेटसन ने 1905 में आनुवांशिकी शब्द गढ़ा था, (ग्रीक शब्द जीनसिस से लिया गया विशेषण आनुवंशिक- γένεσις, "मूल", संज्ञा से पूर्ववर्ती है और पहली बार एक जैविक अर्थ में प्रयुक्त हुआ था) 1860 में )। बेटसन दोनों ने एक संरक्षक के रूप में काम किया और कैम्ब्रिज के न्यून्हम कॉलेज के अन्य वैज्ञानिकों के काम से काफी प्रभावित हुए, विशेष रूप से बेकी सॉन्डर्स, नोरा डार्विन बार्लो और मुरील व्हील्डेल ओन्सलो का काम। [१ed] बेटसन ने 1906 में लंदन में प्लांट हाइब्रिडाइजेशन पर तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में विरासत के अध्ययन का वर्णन करने के लिए आनुवंशिकी शब्द के उपयोग को लोकप्रिय बनाया। मेंडल के कार्य के पुनर्वितरण के बाद, वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित करने का प्रयास किया कि कोशिका में कौन से अणु वंशानुक्रम के लिए जिम्मेदार थे। 1911 में थॉमस हंट मॉर्गन ने तर्क दिया कि जीन गुणसूत्रों पर होते हैं, जो फल मक्खियों में एक सेक्स-लिंक्ड व्हाइट आई म्यूटेशन के अवलोकन पर आधारित होते हैं। 1913 में, उनके छात्र अल्फ्रेड स्टुरटेवेंट ने आनुवंशिक लिंकेज की घटना का उपयोग करके यह दिखाने के लिए कि गुणसूत्र पर जीन को रैखिक रूप से व्यवस्थित किया जाता है। वंशानुक्रम के लिए आणविक आधार डीएनए और गुणसूत्र मुख्य लेख: डीएनए और गुणसूत्र डीएनए की आणविक संरचना। स्ट्रैंड्स के बीच हाइड्रोजन बॉन्डिंग की व्यवस्था के माध्यम से जोड़े जाते हैं। जीन के लिए आणविक आधार डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) है। डीएनए न्यूक्लियोटाइड्स की एक शृंखला से बना है, जिनमें से चार प्रकार हैं: एडेनिन (ए), साइटोसिन (सी), गुआनिन (जी), और थाइमिन (टी)। इन न्यूक्लियोटाइड के अनुक्रम में आनुवंशिक जानकारी मौजूद है, और जीन डीएनए शृंखला के साथ अनुक्रम के फैलाव के रूप में मौजूद हैं। [४ the] वायरस इस नियम का एकमात्र अपवाद हैं - कभी-कभी वायरस डीएनए के बजाय उनके आनुवंशिक पदार्थ के समान अणु RNA का उपयोग करते हैं। [४ exception] वायरस एक मेज़बान के बिना प्रजनन नहीं कर सकते हैं और कई आनुवंशिक प्रक्रियाओं से अप्रभावित रहते हैं, इसलिए जीवित जीव नहीं माना जाता है। डीएनए सामान्य रूप से एक डबल-असहाय अणु के रूप में मौजूद होता है, एक दोहरे हेलिक्स के आकार में कुंडलित होता है। डीएनए में प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड अपने पार्टनर न्यूक्लियोटाइड के साथ विपरीत स्ट्रैंड पर अधिमानतः जोड़े: टी के साथ एक जोड़े और जी के साथ सी जोड़े। इस प्रकार, इसके दो-फंसे हुए रूप में, प्रत्येक स्ट्रैंड में प्रभावी रूप से सभी आवश्यक जानकारी होती है, अपने साथी स्ट्रैंड के साथ बेमानी। डीएनए की यह संरचना वंशानुक्रम के लिए भौतिक आधार है: डीएनए प्रतिकृति, किस्में को विभाजित करके और प्रत्येक स्ट्रैंड का उपयोग करके नए साथी स्ट्रैंड के संश्लेषण के लिए टेम्पलेट के रूप में आनुवंशिक जानकारी की नकल करता है। डीएनए बेस-जोड़ी अनुक्रमों की लंबी श्रृंखलाओं के साथ जीन को रैखिक रूप से व्यवस्थित किया जाता है। बैक्टीरिया में, प्रत्येक कोशिका में आमतौर पर एक एकल गोलाकार जीनोफोर होता है, जबकि यूकेरियोटिक जीव (जैसे पौधे और जानवर) उनके डीएनए को कई रैखिक गुणसूत्रों में व्यवस्थित करते हैं। ये डीएनए किस्में अक्सर बेहद लंबी होती हैं; उदाहरण के लिए, सबसे बड़ा मानव गुणसूत्र, लंबाई में लगभग 247 मिलियन आधार जोड़े हैं। गुणसूत्र का डीएनए संरचनात्मक प्रोटीनों से जुड़ा होता है जो क्रोमेटिन नामक सामग्री का निर्माण, डीएनए तक पहुंच, नियंत्रण और नियंत्रण करता है; यूकेरियोट्स में, क्रोमेटिन आमतौर पर न्यूक्लियोसोम से बना होता है, हिस्टोन प्रोटीन के कोर के चारों ओर डीएनए घाव के खंड। एक जीव में वंशानुगत सामग्री का पूरा सेट (आमतौर पर सभी गुणसूत्रों के संयुक्त डीएनए अनुक्रम) को जीनोम कहा जाता है। जबकि अगुणित जीवों में प्रत्येक गुणसूत्र की केवल एक प्रति होती है, अधिकांश पशु और कई पौधे द्विगुणित होते हैं, जिनमें प्रत्येक गुणसूत्र की दो और इस प्रकार प्रत्येक जीन की दो प्रतियाँ होती हैं। एक जीन के लिए दो एलील दो समरूप गुणसूत्रों के समान स्थान पर स्थित होते हैं, प्रत्येक एलील एक अलग माता-पिता से विरासत में मिला है। यूकेरियोटिक कोशिका विभाजन के वाल्टर फ्लेमिंग का 1882 आरेख। क्रोमोसोम की नकल, संघनित और व्यवस्थित होती है। फिर, जैसे ही कोशिका विभाजित होती है, गुणसूत्र प्रतियां बेटी कोशिकाओं में अलग हो जाती हैं। कई प्रजातियों में तथाकथित सेक्स क्रोमोसोम होते हैं जो प्रत्येक जीव के लिंग का निर्धारण करते हैं। मनुष्यों और कई अन्य जानवरों में, वाई गुणसूत्र में जीन होता है जो विशेष रूप से पुरुष विशेषताओं के विकास को ट्रिगर करता है। विकासवाद में, इस गुणसूत्र ने अपनी अधिकांश सामग्री को खो दिया है और इसके अधिकांश जीन को भी खो दिया है, जबकि एक्स गुणसूत्र अन्य गुणसूत्रों के समान है और इसमें कई जीन शामिल हैं। एक्स और वाई गुणसूत्र एक दृढ़ता से विषम जोड़ी बनाते हैं। प्रजनन मुख्य लेख: अलैंगिक प्रजनन और यौन प्रजनन == जब कोशिकाएं विभाजित होती हैं, तो उनका पूरा जीनोम कॉपी किया जाता है और प्रत्येक बेटी कोशिका को एक प्रति विरासत में मिलती है। माइटोसिस नामक यह प्रक्रिया, प्रजनन का सबसे सरल रूप है और अलैंगिक प्रजनन का आधार है। अलैंगिक प्रजनन बहुकोशिकीय जीवों में भी हो सकते हैं, जो एक एकल माता-पिता से उनके जीन वंशानुक्रम का उत्पादन करते हैं। वंश जो आनुवंशिक रूप से अपने माता-पिता के समान हैं, उन्हें क्लोन कहा जाता है। यूकेरियोटिक जीव अक्सर संतान उत्पन्न करने के लिए यौन प्रजनन का उपयोग करते हैं जिसमें दो अलग-अलग माता-पिता से विरासत में मिली आनुवंशिक सामग्री का मिश्रण होता है। उन रूपों के बीच वैकल्पिक रूप से यौन प्रजनन की प्रक्रिया जिसमें जीनोम (अगुणित) की एकल प्रतियां और डबल प्रतियां (द्विगुणित) शामिल हैं। हाप्लोइड कोशिकाएं युग्मित गुणसूत्रों के साथ द्विगुणित कोशिका बनाने के लिए आनुवंशिक सामग्री को फ्यूज और संयोजित करती हैं। द्विगुणित जीव अपने डीएनए की प्रतिकृति के बिना, विभाजित करके हाप्लोइड्स बनाते हैं, बेटी कोशिकाओं को बनाने के लिए जो प्रत्येक जोड़ी के गुणसूत्रों में से एक को बेतरतीब ढंग से विरासत में लेते हैं। अधिकांश जानवरों और कई पौधों को उनके जीवन काल के लिए द्विगुणित किया जाता है, अगुणित रूप से शुक्राणु या अंडे जैसे एकल कोशिका युग्मक को कम किया जाता है। हालांकि वे यौन प्रजनन के अगुणित / द्विगुणित विधि का उपयोग नहीं करते हैं, बैक्टीरिया में नई आनुवंशिक जानकारी प्राप्त करने के कई तरीके हैं। कुछ बैक्टीरिया संयुग्मन से गुजर सकते हैं, डीएनए के एक छोटे से गोल टुकड़े को दूसरे जीवाणु में स्थानांतरित कर सकते हैं। बैक्टीरिया पर्यावरण में पाए जाने वाले कच्चे डीएनए अंशों को भी ग्रहण कर सकते हैं और उन्हें अपने जीनोम में परिवर्तित कर सकते हैं, जिसे रूपांतरण के रूप में जाना जाता है। [ इन प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप क्षैतिज जीन स्थानांतरण होता है, जीवों के बीच आनुवंशिक जानकारी के टुकड़े संचारित होते हैं जो अन्यथा असंबंधित होंगे। पुनर्संयोजन और आनुवंशिक संबंध मुख्य लेख: क्रोमोसोमल क्रॉसओवर और जेनेटिक लिंकेज गुणसूत्रों की द्विगुणित प्रकृति अलग-अलग गुणसूत्रों पर जीनों को स्वतंत्र रूप से आत्मसात करने या यौन प्रजनन के दौरान उनके घरेलू जोड़े से अलग होने की अनुमति देती है जिसमें अगुणित युग्मक बनते हैं। इस तरह से संभोग जोड़ी के वंश में जीन के नए संयोजन हो सकते हैं। एक ही गुणसूत्र पर जीन सैद्धांतिक रूप से कभी दोबारा नहीं जुड़ेंगे। हालांकि, वे क्रोमोसोमल क्रॉसओवर की सेलुलर प्रक्रिया के माध्यम से करते हैं। क्रॉसओवर के दौरान, गुणसूत्र डीएनए के स्ट्रेच का आदान-प्रदान करते हैं, गुणसूत्रों के बीच जीन एलील को प्रभावी ढंग से फेरबदल करते हैं। क्रोमोसोमल क्रॉसओवर की यह प्रक्रिया आम तौर पर अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान होती है, जो कोशिका विभाजन की एक शृंखला है जो अगुणित कोशिकाएं बनाती है। क्रॉसिंग ओवर का पहला साइटोलॉजिकल प्रदर्शन 1931 में हैरिएट क्रेइटन और बारबरा मैक्लिंटॉक द्वारा किया गया था। मकई पर उनके शोध और प्रयोगों ने आनुवांशिक सिद्धांत के लिए साइटोलॉजिकल साक्ष्य प्रदान किए जो कि युग्मित गुणसूत्रों से जुड़े जीन एक होमोलॉग से दूसरे में वास्तव में विनिमय स्थानों पर करते हैं। गुणसूत्र पर दो दिए गए बिंदुओं के बीच क्रोमोसोमल क्रॉसओवर की संभावना बिंदुओं के बीच की दूरी से संबंधित है। मनमाने ढंग से लंबी दूरी के लिए, क्रॉसओवर की संभावना काफी अधिक है कि जीन की विरासत प्रभावी रूप से झगड़े वाली है। उन जीनों के लिए, जो एक साथ करीब हैं, हालांकि, क्रॉसओवर की कम संभावना का मतलब है कि जीन आनुवंशिक संबंध प्रदर्शित करते हैं; दो जीनों के लिए एलील्स एक साथ विरासत में मिलते हैं। जीन की एक शृंखला के बीच लिंकेज की मात्रा को रेखीय लिंकेज मैप बनाने के लिए जोड़ा जा सकता है जो क्रोमोसोम के साथ जीन की व्यवस्था का लगभग वर्णन करता है। आनुवंशिक परिवर्तन उत्परिवर्तन मुख्य लेख: उत्परिवर्तन जीन दोहराव अतिरेक प्रदान करके विविधीकरण की अनुमति देता है: एक जीन जीव को नुकसान पहुंचाए बिना अपने मूल कार्य को म्यूट और खो सकता है। डीएनए प्रतिकृति की प्रक्रिया के दौरान, दूसरी स्ट्रैंड के बहुलकीकरण में कभी-कभी त्रुटियां होती हैं। म्यूटेशन नामक ये त्रुटियां किसी जीव के फेनोटाइप को प्रभावित कर सकती हैं, खासकर अगर वे एक जीन के प्रोटीन कोडिंग अनुक्रम के भीतर होती हैं। डीएनए पोलीमरेज़ की "प्रूफरीडिंग" क्षमता के कारण, प्रत्येक 10–100 मिलियन बेस में त्रुटि दर आमतौर पर बहुत कम होती है। डीएनए में परिवर्तन की दर को बढ़ाने वाली प्रक्रियाओं को उत्परिवर्तजन कहा जाता है: उत्परिवर्तजन रसायन डीएनए प्रतिकृति में त्रुटियों को बढ़ावा देते हैं, अक्सर आधार-युग्मन की संरचना में हस्तक्षेप करके, जबकि यूवी विकिरण डीएनए संरचना को नुकसान पहुंचाकर उत्परिवर्तन को प्रेरित करता है। डीएनए के लिए रासायनिक क्षति स्वाभाविक रूप से होती है और कोशिकाएँ बेमेल और टूटने की मरम्मत के लिए डीएनए मरम्मत तंत्र का उपयोग करती हैं। हालांकि, मरम्मत हमेशा मूल अनुक्रम को पुनर्स्थापित नहीं करती है। डीएनए और पुनः संयोजक जीनों के आदान-प्रदान के लिए क्रोमोसोमल क्रॉसओवर का उपयोग करने वाले जीवों में, अर्धसूत्रीविभाजन के दौरान संरेखण में त्रुटियां भी उत्परिवर्तन का कारण बन सकती हैं। क्रॉसओवर में त्रुटियां विशेष रूप से होने की संभावना है जब समान अनुक्रम पार्टनर गुणसूत्रों को गलत संरेखण को अपनाने का कारण बनाते हैं; यह जीनोम में कुछ क्षेत्रों को इस तरह से उत्परिवर्तन के लिए अधिक प्रवण बनाता है। ये त्रुटियां डीएनए अनुक्रम में बड़े संरचनात्मक परिवर्तन पैदा करती हैं - दोहराव, व्युत्क्रम, संपूर्ण क्षेत्रों का विलोपन - या विभिन्न गुणसूत्रों (गुणसूत्र अनुवाद) के बीच अनुक्रमों के पूरे भागों का आकस्मिक विनिमय। प्राकृतिक चयन और विकास मुख्य लेख: विकास अधिक जानकारी: प्राकृतिक चयन उत्परिवर्तन एक जीव के जीनोटाइप को बदल देते हैं और कभी-कभी यह विभिन्न फेनोटाइप को प्रकट करने का कारण बनता है। अधिकांश उत्परिवर्तन एक जीव के फेनोटाइप, स्वास्थ्य या प्रजनन फिटनेस पर बहुत कम प्रभाव डालते हैं। ]ऐसे प्रभा मुझेव जो आमतौर पर हानिकारक होते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ लाभकारी हो सकते हैं। फ्लाई ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर के अध्ययन से पता चलता है कि अगर एक उत्परिवर्तन जीन द्वारा उत्पादित प्रोटीन को बदलता है, तो इनमें से लगभग 70 प्रतिशत उत्परिवर्तन शेष तटस्थ या कमजोर रूप से फायदेमंद होने के साथ हानिकारक होगा। यूकेरियोटिक जीवों का एक विकासवादी पेड़, जो कई ऑर्थोलॉगस जीन अनुक्रमों की तुलना द्वारा निर्मित है। जनसंख्या आनुवंशिकी आबादी के भीतर आनुवंशिक अंतर के वितरण का अध्ययन करती है और समय के साथ ये वितरण कैसे बदलते हैं। आबादी में एक एलील की आवृत्ति में परिवर्तन मुख्य रूप से प्राकृतिक चयन से प्रभावित होता है, जहां एक दिया एलील जीव को एक चयनात्मक या प्रजनन लाभ प्रदान करता है, साथ ही अन्य कारक जैसे उत्परिवर्तन, आनुवंशिक बहाव, आनुवंशिक हिचहाइकिंग, कृत्रिम चयन और प्रवास। कई पीढ़ियों से, जीवों के जीनोम में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप विकास होता है। अनुकूलन नामक प्रक्रिया में, लाभकारी उत्परिवर्तन के लिए चयन एक प्रजाति को उनके पर्यावरण में जीवित रहने के लिए बेहतर रूप में विकसित करने का कारण बन सकता है। नई प्रजातियां अटकलों की प्रक्रिया के माध्यम से बनती हैं, जो अक्सर भौगोलिक अलगाव के कारण होती हैं जो आबादी को एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान करने से रोकती हैं। विभिन्न प्रजातियों के जीनोम के बीच की होमोलॉजी की तुलना करके, उनके बीच विकासवादी दूरी की गणना करना संभव है और जब वे अलग हो सकते हैं। आनुवंशिक तुलना को आमतौर पर फेनोटाइपिक विशेषताओं की तुलना में प्रजातियों के बीच संबंधितता को चिह्नित करने का एक अधिक सटीक तरीका माना जाता है। प्रजातियों के बीच विकासवादी दूरी का उपयोग विकासवादी पेड़ बनाने के लिए किया जा सकता है; ये पेड़ समय के साथ सामान्य वंश और प्रजातियों के विचलन का प्रतिनिधित्व करते हैं, हालांकि वे असंबंधित प्रजातियों (क्षैतिज जीन स्थानांतरण और बैक्टीरिया में सबसे आम के रूप में ज्ञात) के बीच आनुवंशिक सामग्री के हस्तांतरण को नहीं दिखाते हैं। मॉडल जीव सामान्य फल मक्खी (ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर) आनुवंशिकी अनुसंधान में एक लोकप्रिय मॉडल जीव है। यद्यपि आनुवांशिकतावादियों ने मूल रूप से जीवों की एक विस्तृत शृंखला में विरासत का अध्ययन किया, शोधकर्ताओं ने जीवों के एक विशेष उप-समूह के आनुवांशिकी का अध्ययन करने में विशेषज्ञ होना शुरू कर दिया। यह तथ्य कि किसी दिए गए जीव के लिए पहले से ही महत्वपूर्ण शोध मौजूद है, नए शोधकर्ताओं को इसे आगे के अध्ययन के लिए चुनने के लिए प्रोत्साहित करेगा, और इसलिए अंततः कुछ मॉडल जीव अधिकांश आनुवांशिकी अनुसंधान के लिए आधार बन गए। मॉडल जीव आनुवांशिकी में सामान्य शोध विषयों में जीन विनियमन और विकास और कैंसर में जीन की भागीदारी का अध्ययन शामिल है। भाग में जीवों को चुना गया था, सुविधा के लिए - छोटी पीढ़ी के समय और आसान आनुवंशिक हेरफेर ने कुछ जीवों को लोकप्रिय आनुवंशिकी अनुसंधान उपकरण बनाया। व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मॉडल जीवों में आंत जीवाणु एस्चेरिचिया कोलाई, प्लांट अरेबिडोप्सिस थालियाना, बेकर का खमीर (सैच्रोमाइसेस सेरेविसिए), नेमाटोड कैनेरोब्वाइटिस एलिगेंस, आम फल मक्खी (ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर), और सामान्य घर माउस मस्क्यूलर माउस शामिल हैं। दवा जैव रसायन, आनुवांशिकी और [[आणविक जीवविज्ञान] के बीच योजनाबद्ध संबंध। चिकित्सा आनुवंशिकी यह समझना चाहती है कि मानव स्वास्थ्य और रोग से आनुवंशिक विविधता कैसे संबंधित है। जब एक अज्ञात जीन की खोज की जाती है जो किसी बीमारी में शामिल हो सकती है, तो शोधकर्ता आमतौर पर रोग से जुड़े जीनोम पर स्थान खोजने के लिए आनुवांशिक लिंकेज और आनुवंशिक वंशावली चार्ट का उपयोग करते हैं। जनसंख्या स्तर पर, शोधकर्ता जीनोम में उन स्थानों की तलाश के लिए मेंडेलियन यादृच्छिकता का लाभ उठाते हैं जो बीमारियों से जुड़े होते हैं, एक विधि जो विशेष रूप से बहु जीनिक लक्षणों के लिए उपयोगी है जो स्पष्ट रूप से एकल जीन द्वारा परिभाषित नहीं हैं। एक बार एक उम्मीदवार जीन मिल जाने के बाद, मॉडल जीवों के संबंधित (या समरूप) जीन पर अक्सर शोध किया जाता है। आनुवांशिक बीमारियों का अध्ययन करने के अलावा, जीनोटाइपिंग विधियों की बढ़ी हुई उपलब्धता ने फार्माकोजेनेटिक्स के क्षेत्र को आगे बढ़ाया है: जीनोटाइप दवा की प्रतिक्रियाओं को कैसे प्रभावित कर सकता है इसका अध्ययन। कैंसर विकसित करने की उनकी विरासत की प्रवृत्ति में व्यक्ति भिन्न होते हैं, [और कैंसर एक आनुवांशिक बीमारी है। शरीर में कैंसर के विकास की प्रक्रिया घटनाओं का एक संयोजन है। विभाजन कभी-कभी शरीर में कोशिकाओं के भीतर भी होते हैं क्योंकि वे विभाजित होते हैं। यद्यपि ये उत्परिवर्तन किसी भी संतान को विरासत में नहीं मिलेंगे, वे कोशिकाओं के व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं, कभी-कभी उन्हें बढ़ने और अधिक बार विभाजित करने के कारण। जैविक तंत्र हैं जो इस प्रक्रिया को रोकने का प्रयास करते हैं; संकेतों को अनुचित रूप से विभाजित कोशिकाओं को दिया जाता है जो कोशिका मृत्यु को ट्रिगर करना चाहिए, लेकिन कभी-कभी अतिरिक्त उत्परिवर्तन होते हैं जो इन संदेशों को अनदेखा करने के लिए कोशिकाओं का कारण बनते हैं। प्राकृतिक चयन की एक आंतरिक प्रक्रिया भीतर होती है मनुष्य पितृवंश समूह पितृवंश समूह के पितृवंश समूह आर१ए आयुर्विज्ञान जीव विज्ञान अनुवांशिकी
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करण कपूर
करण कपूर (जन्म १८ जनवरी १९६२) भारतीय मूल के एक पूर्व फ़िल्म अभिनेता और मॉडल हैं। वे बॉलीवुड अभिनेता शशि कपूर और उनकी दिवंगत पत्नी, ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर केंडल के बेटे हैं। उनके दादा पृथ्वीराज कपूर थे और उनके ताऊ हैं: राज कपूर और शम्मी कपूर। उनके बड़े भाई कुणाल कपूर और बहन संजना कपूर ने भी कुछ फिल्मों में अभिनय किया है, लेकिन वे उनके जैसे सफल नहीं हुए। उनके नाना-नानी, जेफ़री केंडल और लौरा केंडल भी अभिनेता थे, जिन्होंने अपने थिएटर समूह "शेक्सपीराना" के साथ भारत और एशिया का दौरा किया करते थे और नाटक शेक्सपियर ऍण्ड शॉ का प्रदर्शन करते। बाद में करण ने फोटोग्राफी की ओर रुख़ किया और इस ही पेशे को अपनाने का फैसला किया, हालांकि उन्होंने एक अभिनेता के रूप में भी काम किया है। एक हालिया साक्षात्कार में करण का कहना था कि अभिनय से जुड़े एक बहुत प्रसिद्ध बॉलीवुड परिवार का हिस्सा रहने के बावजूद वे बचपन से ही हमेशा फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखते हैं। व्यावसायिक जीवन उन्होंने श्याम बेनेगल की समीक्षक-प्रशंसा प्राप्त १९७८ की फिल्म, जुनून के ज़रिये अपनी फ़िल्म अभिनय की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अपने माता-पिता और दोनों भाई-बहनों के साथ काम किया। उनके पिता की प्रस्तुति, ३६ चौरंगी लेन (१९८१) में उनकी एक छोटी सी भूमिका थी। १९८४ में ब्रिटिश टेलीविज़न धारावाहिक "द ज्वेल इन द क्राउन" में भी वे दिखाई दिए। उन्होंने मुख्यधारा की बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय की शुरुआत, १९९६ की फ़िल्म सल्तनत के साथ की, जिसमें वे धर्मेन्द्र, सनी देओल और जूही चावला के साथ थे। उन्होंने बाद में लोहा (१९८७) और अफसर (१९८८) में अभिनय किया, लेकिन अभिनेता के रूप में उन्हें अनेक प्रस्ताव नहीं आए। उन्होंने बॉम्बे डाइंग सहित कई प्रमुख भारतीय ब्रांडों के लिए भी मॉडलिंग किया। वर्ष १९८४ में उन्होंने ब्रिटिश धारावाहिक द ज्वेल इन द क्राउन में अभिनय किया। १९८८ की फिल्म अफ़सर, भारत में उनकी अंतिम फ़िल्म रही। १९९० के दशक में वे भारत से ब्रिटेन चले गए। द ज्वेल इन द क्राउन के बाद, उन्होंने साउथ ऑफ़ द बॉर्डर और द टूथ ऑफ़ द लायन जैसे घरवाहिकों में भी काम किया। अभिनय करने के बाद, व अधिक सफलता नहीं प्राप्त कर पाने के बाद, उनहोंने फोटोग्राफी के तरफ़ रुख़ किया, और फोटोग्राफर बन गए। शादी के बाद ब्रिटेन में वे अपनी पत्नी लोर्ना, बेटी अलीया और बेटे ज़ैक के साथ चेल्सी, लंदन में रहने लगे। लगभग २५ वर्षों के अंतराल के बाद, करण सार्वजनिक जीवन में और भारत में वापस आए, अपनी "टाइम एंड टाइड" नमक फोटोग्राफी प्रदर्शनियों की श्रृंखला के साथ। करण का "टाइम एंड टाइड" फोटोग्राफी प्रदर्शनी नवंबर २०१६ में उनके गृहनगर मुंबई में शुरू हुई थी। बाद में इसे २०१७ में बेंगलुरु, कोलकाता, नई दिल्ली, अहमदाबाद और जयपुर जैसे अन्य शहरों में भी आयोजित किया गया। करण को भारत के आंग्ल-भारतीय समुदाय में अपने शोध के लिए जाना जाता है। १९८० के दशक में, उन्होंने इन समुदायों को मिलने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों कि यात्रा की। और उन्होंने भारत के इस छोटे से समुदाय के लोगों की जीवन शैली को दर्शाती तस्वीरें ली। नवम्बर २०१६ में उनके लेख बीबीसी, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स और अन्य समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए थे। उनके एक साक्षात्कार में करण ने कहा था कि वे भारत में अधिक फोटोग्राफी परियोजनाओं को करने के लिए उत्सुक हैं क्योंकि अब उनके बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, इसलिए वह भारत में ज्यादा समय बिता सकते हैं। पटनाट्य व अन्य काम पुरस्कार २००९ में उनके द्वारा खींची गई तस्वीर "ओल्ड कपल" को लोग/जीवन-शैली की श्रेणी में, अंतर्राष्ट्रीय फोटोग्राफी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था। उनकी तस्वीर को उस वर्ष के ५ नामांकनों में से चुना गया था। इन्हें भी देखें कपूर परिवार सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Official website Karan Kapoor https://web.archive.org/web/20150526110113/http://www.photographybangbang.com/50karankapoor/ - Karan Kapoor interview https://web.archive.org/web/20160322182724/http://mumbaimirror.com/others/sunday-read/Small-talk-He-makes-a-pretty-picture/articleshow/50515670.cms - Karan Kapoor Interview https://web.archive.org/web/20170308063755/http://bangaloremirror.indiatimes.com/columns/sunday-read/Excellent-subjects/articleshow/56542878.cms https://web.archive.org/web/20180222154137/http://www.rediff.com/movies/report/karan-kapoor-i-was-too-foreign-looking-for-bollywood/20160913.htm भारत के लोग ब्रिटेन के लोग बॉलीवुड अभिनेता अभिनेता भारतीय अभिनेता फोटोग्राफर कपूर परिवार जीवित लोग 1962 में जन्मे लोग प्रोजेक्ट टाइगर लेख प्रतियोगिता के अंतर्गत बनाए गए लेख
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B2
हज़ारद्वारी महल
हज़ारद्वारी महल, हजारद्वारी महल या सिर्फ हज़ारद्वारी (बांग्ला:হাজারদুয়ারি; हाजारदूयारी), जिसे पहले 'बड़ा कोठी' के नाम से जाना जाता था, भारत के राज्य पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के किला निज़ामात के परिसर में स्थित है। इसका निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के नवाब नाजीम हुमायूं जेह (1824-1838) के शासनकाल के दौरान, वास्तुकार डंकन मैक्लॉड द्वारा किया गया था। महल का आधारशिला 9 अगस्त 1829 को रखी गई थी, और उसी दिन निर्माण कार्य भी शुरू किया गया था। विलियम कैवेन्डिश तब तत्कालीन गवर्नर जनरल थे अब, हज़ारद्वारी महल मुर्शिदाबाद शहर में सबसे विशिष्ट इमारत है। 1985 में, बेहतर संरक्षण के लिए इस महल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सौंप दिया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8
फ़ूडिस्तान
फ़ूडिस्तान एक टेलीविजन खाना गेम शो है। वह एनडीटीवी गुड टाइम्स और जियो टीवी द्वारा उत्पादन किया जाता है। शो एक प्रतियोगिता में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के सबसे अच्छे शेफ़स् एक दूसरे के ख़िलाफ़ डालता है। अपनी व्यक्तिगत व्यंजनों समान हैं, लेकिन वहाँ दो व्यंजनों के बीच कुछ मतभेदों के हैं। शो ने २६ एपिसोड प्रसारित। समापन मनीष मेहरोत्रा भारत से ​​और पोस्ता आगा पाकिस्तान से के बीच में लड़ा गया था, मनीष मेहरोत्रा हिन्दुस्तान से फ़ूडिस्तान जीत गया। प्रतियोगी प्रतियोगियों दोनों हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया और कुछ प्रसिद्ध होटल समूहों से स्वागत किया। हिन्दुस्तान: मधुमिता मोहंता निमिष भाटिया महराज उल हकुए करण सूरी राजीव अरोरा सुनील चौहान मनीष मेहरोत्रा गिरीश कृष्णन पाकिस्तान: आमिर इक़बाल नूर खान पोप्प्य अघा अख्तर रहमान मुहम्मद इकराम मोहम्मद नईम महमूद अख्तर मुहम्मद साक़िब सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%A4%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE
ततैया
ततैया (wasp) एक प्रकार का कीट होता है। भारत में इसे ततैया,बरैया,गंधेली आदि नामों से भी जाना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से हायमेनोप्टेरा (Hymenoptera) गण और आपोक्रिटा (Apocrita) उपगण का हर वह कीट होता है जो चींटी या मक्खी न हो। कुछ जानी-मानी ततैया जातियाँ छत्तों में रहती हैं और जिसमें एक अण्डें देने वाली रानी होती है और अन्य सभी ततैयें कर्मी होते हैं। लेकिन अधिकतर ततैयें अकेले रहते हैं। अकेले रहने वाले बहुत से ततैयों की मादाएँ अन्य कीटों को डंक मारकर उनके जीवित लेकिन मूर्छित शरीरों में अण्डें देती हैं जिनसे शिशु निकलने पर वे उस कीट को खा जाते हैं। इस कारणवश कृषि में कई फ़सल का नाश करने वाले कीटों की रोकथाम में ततैयों का बहुत महत्व होता है। ततैया क्या होता है- ततैया एक प्रकार का कीट होता है। यह पीले रंग का होता है और मधुमक्खी की तरह ही दिखता है। ततैया ज्यादातर लोगों के घरों में मंडराते रहते है और वहीं पर दीवारों पर छत्ता बना लेते हैं। यदि किसी भी प्रकार से उन्हें छेड़ा जाए तो वे तुरंत काट लेते हैं। इनका डंक पीछे की ओर होता है ततैया के काटने पर लक्षण- ततैया के डंक में जहर होता है। जब वह काट लेती है तो उस भाग पर दर्द, जलन और सूजन होने लगती है। ततैया के काटने का घरेलू इलाज – यदि किसी को ततैया काट ले तो ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है, कुछ घरेलू चीजों का इस्तेमाल करके इसे ठीक किया जा सकता है। तो आइये जानते हैं इनके बारे में- 1-जब भी ततैया काट ले तो ज्यादातर सभी को घरों में मिट्टी का तेल उपलब्ध रहता है, बगैर देर किये जिस जगह पर ततैया ने काटा है मिट्टी के तेल को लगा लेना चाहिए। इससे जलन और सूजन दोनों में आराम मिलना स्टार्ट हो जायेगा। 2- ततैया के काटने के तुरंत बाद जिस जगह पर डंक लगा है वहां पर लोहे की पत्ती या कोई भी चीज हो उसे रगड़ दें और उसके ऊपर से गीले चूने का रस लगा देंगे तो जहर उतर जायेगा। 3-ततैया के काटने के बाद जिस जगह पर उसने काटा है वहां पर नीबू का रस लगा दें इससे दर्द और जलन में आराम मिलता है। 4-जिस जगह पर ततैया ने काटा है वहां पर आक के पत्ते का दूध मलने से आराम मिलता है। 5-ततैया के काटने के तुरंत बाद आम का अचार का गूदा करीब 3-4 मिनट तक घाव पर मलें तुरंत आराम मिलेगा। 6-ततैया के कटने वाले स्थान पर टूथपेस्ट लगाने से तुरनत लाभ मिलता है इन्हें भी देखे मधुमक्खी सन्दर्भ ततैयें नाशी कीट जीववैज्ञानिक नाशीजीव नियंत्रक ततैयें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9D%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%95
झारखंड का प्रतीक
झारखंड का प्रतीक () भारतीय राज्य झारखंड की सरकार की आधिकारिक मुहर है। डिज़ाइन प्रतीक में कई छल्ले हैं जिसमें बाहरी छल्ले में हरे रंग की पृष्ठभूमि पर ताकत, वन्य जीवन, रॉयल्टी और समृद्ध वनस्पति का प्रतिनिधित्व करते हुए राजकीय पशु हाथी हैं। मध्य छल्ले में समृद्ध वनस्पति, सौंदर्य और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हुए पलाश के फूल (राजकीय फूल) हैं जिन्हें 'जंगल की लपटें' भी कहा जाता हैं। आंतरिक छल्ले में अद्वितीय झारखंडी शैली की पेंटिंग में लोग शामिल हैं जो समृद्ध इतिहास और सामाजिक बंधन की ताकत का प्रतिनिधित्व करते हैं। ध्येयवाक्य सत्यमेव जयते के साथ अशोक का सिंहशीर्ष प्रतीक के केंद्र में है। इतिहास झारखंड का पहला प्रतीक 15 नवंबर 2000 को अपनाया गया था जब बिहार के दक्षिणी भाग से झारखंड राज्य का गठन किया गया। इस प्रतीक में एक अशोक चक्र शामिल था जैसा कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर दर्शाया गया है जो खंजर के रूप में शैलीबद्ध चार J अक्षरों से घिरा हुआ है। प्रतीक में नीचे झारखंड सरकार लिखा हुआ था। जनवरी 2020 में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा की कि निकट भविष्य में राज्य सरकार द्वारा एक नया प्रतीक अपनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि नए प्रतीक को राज्य की संस्कृति, परंपरा, इतिहास और भविष्य का प्रतिनिधित्व करना चाहिए और एक सार्वजनिक प्रतियोगिता के माध्यम से नए डिजाइन के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की गईं। 22 जुलाई को एक नए प्रतीक को आधिकारिक तौर पर 15 अगस्त 2020 से इस्तेमाल करने की मंजूरी दी गई। इन्हें भी देखें भारत का राष्ट्रीय प्रतीक भारतीय राज्यों के प्रतीक सन्दर्भ झारखण्ड सरकार
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6
अलियाबाद
अलियाबाद (, Aliabad) पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र के हुन्ज़ा-नगर ज़िले की राजधानी और प्रमुख आर्थिक केन्द्र है। यह हुन्ज़ा नदी की घाटी में उसी नदी की दो शाखाओं के बीच बसा हुआ है। मई २०१० में सरकारी अफ़सरों ने चेतावनी जारी करी की यह शहर पास की अत्ताबाद झील द्वारा डुबोए जाने के ख़तरे में है। पाकिस्तान को चीन से जोड़ने वाला काराकोरम राजमार्ग अलियाबाद से गुज़रकर निकलता है। स्थानीय लोग बुरुशस्की भाषा बोलते हैं और यहाँ उसकी एक विशेष उपभाषा प्रचलित है। इन्हें भी देखें हुन्ज़ा-नगर ज़िला सन्दर्भ हुन्ज़ा-नगर ज़िला गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर
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नुन कुन
नुन कुन (Nun Kun) भारत के लद्दाख़ केन्द्रशासित प्रदेश में खड़ा एक पर्वतीय पुंजक (मैसिफ) है। इस पुंजक के दो शिखर हैं - 7,135 मीटर (23,409 फुट) ऊँचा नुन पर्वत और उसके ठीक उत्तर में 7,077 मीटर (23,218 फुट) ऊँचा कुन पर्वत। दोनों शिखरों के बीच 4 किमी लम्बा एक हिम से ढका हुआ पठार है। यह पुंजक करगिल ज़िले की सुरु घाटी के समीप है और पास ही जम्मू और कश्मीर केन्द्रशासित प्रदेश की सीमा पड़ती है। नुन कुन श्रीनगर से 250 किमी पूर्व में है। नुन कुन पुंजक के उत्तर में सुरु घाटी और ज़ंस्कार पर्वतमाला है। पूर्व में सुरु घाटी और 4400 मीटर ऊँचा पेन्सी ला (दर्रा) है, जो इसे ज़ंस्कार घाटी से अलग करता है। दक्षिण में किश्तवार राष्ट्रीय अभ्यारण्य और क्रश नाई नदी है। दक्षिणपश्चिम और दक्षिण में हिमानियों (ग्लेशियर), पर्वतों और नदियों का जमघट्टा है जिनके पार कश्मीर घाटी, किश्तवार और डोडा स्थित हैं। नुन कुन के समीप शिखर समूह की एक तीसरी चोटी भी है, 6,930 मीटर (22,736 फुट) ऊँचा पिनेकल पर्वत। इन्हें भी देखें पिनेकल पर्वत ज़ंस्कार सन्दर्भ लद्दाख़ के पर्वत सात हज़ारी
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चरघातांकी फलन
गणित में चरघातांकी फलन एक ऐसा फलन है जिसका अवकलज उसी के बराबर होता है। अर्थात किसी बिन्दु पर इस फलन के वृद्धि की दर उस बिन्दु पर इस फलन के मान के बराबर होती है। इस फलन को से निरुपित किया जाता है जहाँ e एक अपरिमेय संख्या है जिसका मान लगभग 2.718281828 के बराबर होता है। इस फलन को प्रायः exp(x) भी लिखते हैं आधार 10 बाहरी कड़ियाँ दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि का गणित Complex Exponential Function Module by John H. Mathews Taylor Series Expansions of Exponential Functions at efunda.com Complex exponential interactive graphic सम्मिश्र विश्लेषण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A4%BE
यूटा
यूटा (अंग्रेज़ी: Utah) संयुक्त राज्य अमेरिका की मुख्यभूमि के पश्चिमी अर्ध-भाग के मध्य में स्थित एक राज्य है। 4 जनवरी 1896 को अमेरिकी संघ में सम्मिलित होने वाला यह 45वाँ राज्य था। यह अमेरिका का क्षेत्रफल के आधार पर तेरहवाँ सबसे बड़ा, जनसंख्या के आधार पर तेतीसवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या घनत्व के आधार पर दसवाँ सबसे कम सघन राज्य है। यूटा का क्षेत्रफल 2,19,887 वर्ग किमी है और कुल जनसंख्या लगभग 29 लाख है जिसमें से 80% के लगभग लोग सॉल्ट लेक सिटी केन्द्रित वॉसाच फ़्रण्ट के आसपास निवास करते हैं। इस राज्य का जनसंख्या घनत्व 13.2/किमी2 है। यूटा की सीमाएँ पूर्व में कॉलोराडो, पूर्वोत्तर में वायोमिंग, उत्तर में इडाहो, दक्षिण में एरिज़ोना, और पश्चिम में नेवादा राज्यों से मिलती हैं। दक्षिण-पश्चिम में नया मेक्सिको का एक कोना भी यूटा की सीमा से मिलता है। लगभग 62% यूटावासी मॉर्मन सम्प्रदाय (ईसाई धर्म का एक सम्प्रदाय) को मानने वाले हैं और यह सम्प्रदाय यूटा की संस्कृति और दैनिक जीवन को बहुत प्रभावित करता है। चर्च ऑफ़ जीज़स क्राइस्ट ऑफ़ लेटर डे सेण्ट्स का वैश्विक मुख्यालय इस राज्य की राजधानी सॉल्ट लेक सिटी में स्थित है। यूटा अमेरिका का धार्मिक दृष्टि से सर्वाधिक सजातीय राज्य है और मॉर्मन सम्प्रदाय की बहुलता वाला एकमात्र राज्य है और एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ की अधिकतर जनसंख्या केवल एक ही चर्च की सदस्य है। यह राज्य परिवहन, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी और शोध, सरकारी सेवाओं, और खनन का एक केन्द्र है; और बाहरी मनोरंजन के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। 2013 में संयुक्त राज्य जनगणना ब्यूरो के अनुमान अनुसार यूटा की जनसंख्या अमेरिका में दूसरी सर्वाधिक तेजी से बढ़ रही है। सेण्ट जॉर्ज 2000 से 2005 के बीच सबसे तेजी से बढ़ने वाला महानगरीय क्षेत्र था। यूटा की मध्य-मूल्य औसत आय भी अमेरिकी राज्यों में 14वें स्थान पर थी और समायोजित जीवन यापन की लागत के आधार पर दूसरे। इस राज्य की मध्य-मूल्य औसत आय 50,614 $ है। एक 2012 गैलप राष्ट्रीय सर्वेक्षण अनुसार यूटा समग्र रूप से 13 दूरन्देशी मापकों के आधार पर रहने के लिए "सबसे अच्छा राज्य" था जैसे आर्थिक, जीवन-शैली, और स्वास्थ्य सम्बन्धी अवेक्षणी मात्रिक इत्यादि। सन्दर्भ संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%20%E0%A4%9A%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE
रवि चोपड़ा
रवि चोपड़ा (जन्म: 27 सितंबर, 1946) हिंदी फिल्म जगत के एक प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक थे। कई उल्लेखनीय फिल्मों के साथ साथ दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक "महाभारत" से उन्हें विशेष ख्याति मिली। वे प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता निर्देशक बी आर चोपड़ा के सुपुत्र थे। इनका फिल्मी सफर फ़िल्म इत्तेफ़ाक से शुरू हुआ। १९६९ में आई हिन्दी फ़िल्म इत्तेफ़ाक में रवि चोपड़ा सहायक निर्देशक थे। उसके बाद डैनी, जीनत अमान और संजय ख़ान अभिनित फ़िल्म धुंध (१९७३) के रवि चोपड़ा संयुक्त निर्देशक थे। बतौर स्वतंत्र निर्देशक पहली फ़िल्म अमिताभ बच्चन और सायरा बानो अभिनीत फ़िल्म ज़मीर जो १९७५ में रिलीज़ हुई थी। १९८० में आई फ़िल्म 'द बर्निंग ट्रेन' के बाद चर्चा में आए। ये एक बहुसितारा फ़िल्म थी जिसमे उस समय के चोटी के बहुत से सितारे मौजूद थे। वर्ष 2003 में अमिताभ बच्चन और सलमान खान द्वारा अभिनीत इनकी फिल्म 'बाग़बान' भी काफी सफल रही। 68-वर्षीय रवि चोपड़ा का एक लंबी बीमारी के बाद 12 नवंबर 2014 को मुंबई में निधन हुआ। सन्दर्भ हिन्दी फ़िल्मों के निर्माता फ़िल्म निर्देशक २०१४ में निधन 1946 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B9
रेमंड समूह
रेमंड समूह एक भारतीय ब्रांडेड कपड़ा और फैशन रिटेलर है, जिसकी स्थापना 1925 में की गई थीं। यह उपयुक्त कपडे का उत्पादन करता है, जिसमें 31 करोड़ मीटर ऊन और ऊन-मिश्रित कपड़े का उत्पादन होता है। समूह के पास रेमंड, रेमंड प्रीमियम अपैरल, रेमंड मेड टू मेज़र, एथनिक्स, पार्क एवेन्यू वुमन कलरप्लस, कामसूत्र और पार्क्स जैसे परिधान ब्रांड हैं। सभी ब्रांडों की खुदरा बिक्री 'द रेमंड शॉप' के माध्यम से की जाती है, जिसके भारत और विदेशों में 200 से अधिक शहरों में 700 से अधिक खुदरा दुकानों का नेटवर्क है। यह समूह कपडे के अलावा रेडीमेड गारमेंट्स, डिज़ाइनर वियर, कॉस्मेटिक्स और टॉयलेटरीज़, इंजीनियरिंग फाइल्स और टूल्स, प्रोफिलैक्टिक्स और एयर चार्टर ऑपरेशंस के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हैं। रेमंड ने 2019 में रेमंड रियल्टी के तहत रियल एस्टेट कारोबार में अपने उद्यम की घोषणा की। नया उद्यम ठाणे के बढ़ते उपनगर में 20 एकड़ भूमि पर मध्यम आय और प्रीमियम आवास इकाइयों के विकास में ₹250 करोड़ के निवेश के साथ शुरू करने के लिए तैयार है। रेमंड समूह के पास इस क्षेत्र में 125 एकड़ से अधिक भूमि है। रेमंड के पास रणनीतिक रूप से पृष्ठभूमि तैयार हैं जो उनकी आने वाली योजनाओं के लिए मददगार हैं। इसकी परियोजनाओं की सफलता और विकास को जारी रखने के लिए यह समूह लगातार कार्य कर रहा हैं। एक व्यापार के रूप में, यह वित्तीय संस्थानों की नज़र में विश्वसनीयता प्राप्त कर रहा है। मान्यताएँ रेमंड को ब्रांड ट्रस्ट रिपोर्ट 2014 में भारत के सबसे भरोसेमंद ब्रांडों में 23 वें स्थान पर रखा गया है। यह भी देखें लोधीखेड़ा मेक इन इंडिया संदर्भ मुंबई आधारित कम्पनियाँ भारतीय कंपनी समूह
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कांची कामकोटि पीठ
कांची मठ कांचीपुरम में स्थापित एक हिन्दू मठ है। यह पांच पंचभूतस्थलों में से एक है। यहां के मठाधीश्वर को शंकराचार्य कहते हैं। आज यह दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। इन्हें भी देखें मठ बाहरी कड़ियाँ Kanchi Kamakoti Peetham - Official website Kanchi Sathya Presents several opinions on the court cases A forum for Kanchi Kamakoti Peetham Complete text of the Judgement of the Supreme Court of India पीठ, कांची कामकोटि पीठ, कांची कामकोटि पीठ, कांची कामकोटि
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स्वलीनता
स्वलीनता (ऑटिज़्म) मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला विकार है जो व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार और संपर्क को प्रभावित करता है। हिन्दी में इसे 'आत्मविमोह' और 'स्वपरायणता' भी कहते हैं। इससे प्रभावित व्यक्ति, सीमित और दोहराव युक्त व्यवहार करता है जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना। यह सब बच्चे के तीन साल होने से पहले ही शुरु हो जाता है। इन लक्षणों का समुच्चय (सेट) आत्मविमोह को हल्के (कम प्रभावी) आत्मविमोह स्पेक्ट्रम विकार (ASD) से अलग करता है, जैसे एस्पर्जर सिंड्रोम। ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है जिसके लक्षण जन्म से ही या बाल्यावस्था से नज़र आने लगतें हैं। जिन बच्चो में यह रोग होता है उनका विकास अन्य बच्चो की अपेक्षा असामान्य होता है। कारण ऑटिज़्म या स्वलीन होने के कोई एक कारण नहीं खोजा जा सका है। अनुशोधों के अनुसार ऑटिज़्म होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि: - मस्तिष्क की गतिविधियों में असामान्यता होना, मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता, जन्म से पहले बच्चे का विकास सही रूप से न हो पाना आदि। स्वलीनता का एक मजबूत आनुवंशिक आधार होता है, हालांकि स्वलीनता की आनुवंशिकी जटिल है और यह स्पष्ट नहीं है कि ASD का कारण बहुजीन संवाद (multigene interactions) है या दुर्लभ उत्परिवर्तन (म्यूटेशन)। दुर्लभ मामलों में, स्वलीनता को उन कारकों से भी जोड़ा गया है जो जन्म संबंधी दोषों के लिये उत्तरदायी है। अन्य प्रस्तावित कारणों मे, बचपन के टीके, विवादास्पद हैं और इसके कोई वैज्ञानिक सबूत भी नहीं है। हाल की एक समीक्षा के अनुमान के मुताबिक प्रति 1000 लोगों के पीछे दो मामले स्वलीनता के होते हैं, जबकि से संख्या ASD के लिये 6/1000 के करीब है। औसतन ASD का पुरुष:महिला अनुपात 4,3:1 है। 1980 से स्वलीनता के मामलों में नाटकीय ढंग से वृद्धि हुई है जिसका एक कारण चिकित्सीय निदान के क्षेत्र में हुआ विकास है लेकिन क्या असल में ये मामले बढे़ है यह एक उनुत्तरित प्रश्न है। स्वलीनता मस्तिष्क के कई भागों को प्रभावित करती है, पर इसके कारणों को ढंग से नहीं समझा जाता। आमतौर पर माता पिता अपने बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों में ही इसके लक्षणों को भाँप लेते हैं। शुरुआती संज्ञानात्मक या व्यवहारी हस्तक्षेप, बच्चों को स्वयं की देखभाल, सामाजिक और बातचीत कौशल के विकास में सहायता कर सकते हैं। इसका कोई इलाज नहीं है। बहुत कम स्वलीन बच्चे ही वयस्क होने पर आत्मनिर्भर होने में सफल हो पाते हैं। आजकल एक स्वलीनता संस्कृति विकसित हो गयी है, जिसमे कुछ लोगों को इलाज पर विश्वास है और कुछ लोगों के लिये स्वलीनता एक विकार होने के बजाय एक स्थिति है। लक्षण आत्मविमोह को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं सामाजिक संपर्क में असमर्थता, बातचीत करने में असमर्थता, सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार है। अन्य पहलुओं मे, जैसे खाने का अजीब तरीका हालाँकि आम है लेकिन निदान के लिए आवश्यक नहीं है। सामाजिक विकास आत्मविमोह के शिकार मनुष्य सामाजिक व्यवहार में असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने में भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते। सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है। आत्मविमोह से ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुकाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता पिता की मौजूदगी में सुरक्षित महसूस करते हैं) यद्यपि यह लक्षण उच्च मस्तिष्क विकास वाले या जिनका ए एस डी कम होता है वाले बच्चों में गायब हो जाता है। ASD से ग्रसित बड़े बच्चे और व्यस्क चेहरों और भावनाओं को पहचानने के परीक्षण में बहुत बुरा प्रदर्शन करते हैं। आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते। दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है। ASD से पीडित लोगों के गुस्से और हिंसा के बारे में काफी किस्से हैं लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन बहुत कम हैं। यह सीमित आँकडे बताते हैं कि आत्मविमोह के शिकार मंद बुद्धि बच्चे ही अक्सर आक्रामक या उग्र होते है। डोमिनिक एट अल, ने 67 ASD से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का साक्षात्कार लिया और निष्कर्श निकाला कि, दो तिहाई बच्चों के जीवन में ऎसे दौर आते हैं जब उनका व्यवहार बहुत बुरा (नखरे वाला) हो जाता है जबकि एक तिहाई बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, अक्सर भाषा को ठीक से न जानने वाले बच्चे नखरैल होते हैं। पहचान बाल्यावस्था में सामान्य बच्चों व ऑटिस्टिक बच्चों में कुछ प्रमुख अंतर होते हैं जिनके आधार पर इस अवस्था की पहचान की जा सकती है जैसे कि- सामान्य बच्चे माँ का चेहरा देखते हैं व उसके हाव-भाव को समझने की कोशिश करतें है परन्तु ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे किसी से नज़र मिलाने से कतराते हैं, सामान्य बच्चे आवाजें सुनने से खुश हो जाते हैं परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे आवाजों पर ध्यान नहीं देते तथा कभी-कभी बधिर प्रतीत होते हैं, सामान्य बच्चे धीरे-धीरे भाषा-ज्ञान में वृद्वि करते हैं, परन्तु ऑटिस्टिक बच्चे बोलने से कुछ समय बाद अचानक ही बोलना बंद कर देते हैं तथा अजीब आवाजें निकालते हैं, सामान्य बच्चे माँ के दूर होने पर या अनजाने लोगों से मिलने पर परेशान हो जाते हैं परन्तु औटिस्टिक बच्चे किसी के भी आने या जाने से परेशान नहीं होते, ऑटिस्टिक बच्चे तकलीफ के प्रति कोई क्रिया नहीं करते तथा उससे बचने की कोशिश नहीं करते, सामान्य बच्चे करीबी लोगों को पहचानते हैं तथा उनसे मिलने पर मुस्कुरातें है पर ऑटिस्टिक बच्चे कोशिश करने पर भी किसी से बात नहीं करते जैसे अपनी ही किसी दुनिया में खोये रहतें हैं, ऑटिस्टिक बच्चे एक ही वस्तु या कार्य में उलझे रहते हैं तथा अजीब क्रियाओ को बार-बार दोहरातें हैं जैसे ओगे-पीछे हिलना, हाँथ को हिलाते रहना, आदि, ऑटिस्टिक बच्चे अन्य बच्चो की तरह काल्पनिक खेल नहीं खेल पाते वह खेलने की बजाए खिलौनों को सूंघते या चाटतें हैं, ऑटिस्टिक बच्चे बदलाव को बर्दाशत नहीं कर पाते व अपने क्रियाकलापों को नियमानुसार ही करना चाहतें हैं ऑटिस्टिक बच्चे या तो बहुत चंचल या बहुत सुस्त रहते हैं, इन बच्चो में अधिकतर कुछ विशेष बातें होती हैं जैसे किसी एक इन्द्री (जैसे, श्रवण शक्ति) का अतितीव्र होना। संचार एक तिहाई से लेकर आधे ऑटिस्तिक व्यक्तियों में अपने दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लायक भाषा बोध तथा बोलने की क्षमता विकसित नहीं हो पाती। संचार में कमियाँ जीवन के पहले वर्ष में ही दृष्टिगोचर हो जाती हैं जिनमे शामिल है, देर से बोलना, असामान्य भाव, मंद प्रतिक्रिया और अपने पालक के साथ हुये वार्तालाप में सामंजस्य का नितांत आभाव। दूसरे और तीसरे साल में, ऑटिस्टिक बच्चे कम बोलते हैं, साथ ही उनका शब्द संचय और शब्द संयोजन भी विस्तृत नहीं होता। उनके भाव अक्सर उनके बोले शब्दों से मेल नहीं खाते। आटिस्टिक बच्चों में अनुरोध करने या अनुभवों को बाँटने की संभावना कम होती है और उनमें बस दूसरों की बातें को दोहराने की संभावना अधिक होती है (शब्दानुकरण)। कार्यात्मक संभाषण के लिए संयुक्त ध्यान आवश्यक होता है और इस संयुक्त ध्यान में कमी, ASD शिशुओं को अन्यों से अलग करता है : उदाहरण: हो सकता है बजाय उस वस्तु को जिसकी ओर वो इशारा कर रहे हैं वो उस हाथ को देखें जिससे वो इशारा कर रहे हैं और वो लगातार ऎसा करने में विफल हो रहे हों। ऑटिस्टिक बच्चों को कल्पनाशील खेलों में और भाषा सीखने में कठिनाई हो सकती है। दोहराव युक्त व्यवहार स्टीरेओटाईपी एक निरर्थक प्रतिक्रिया है, जैसे हाथ हिलाना, सिर घुमाना या शरीर को झकझोरना आदि। बाध्यकारी व्यवहार का उद्देश्य नियमों का पालन करना होता है, जैसे कि वस्तुओं को एक निश्चित तरह की व्यवस्था में रखना। समानता का अर्थ परिवर्तन का प्रतिरोध है, उदाहरण के लिए, फर्नीचर के स्थानांतरण से इंकार। अनुष्ठानिक व्यवहार के प्रदर्शन में शामिल हैं दैनिक गतिविधियों को हर बार एक ही तरह से करना, जैसे एक सा खाना, एक सी पोशाक आदि। यह समानता के साथ निकटता से जुडा है और एक स्वतंत्र सत्यापन दोनो के संयोजन की सलाह देता है। प्रतिबंधित व्यवहार ध्यान, शौक या गतिविधि को सीमित रखने से संबधित है, जैसे एक ही टीवी कार्यक्रम को बार बार देखना। आत्मघात (स्वयं को चोट पहुँचाना) से अभिप्राय है कि कोई भी ऐसी क्रिया जिससे व्यक्ति खुद को आहत कर सकता हो, जैसे खुद को काट लेना। डोमिनिक एट अल के अनुसार लगभग ASD से प्रभावित 30 % बच्चे स्वयं को चोट पहँचा सकते हैं। कोई एक खास दोहराव आत्मविमोह से संबधित नहीं है, लेकिन आत्मविमोह इन व्यवहारों के लिये उत्तरदायी है। चिकित्सा ऑटिज़्म को शीघ्र पहचानना और मनोरोग विशेषज्ञ से तुरंत परामर्श ही इसका सबसे पहला इलाज है। ऑटिज़्म के लक्ष्ण दिखने पर मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक, या प्रशिक्षित स्पेशल एजुकेटर (विशेष अध्यापक) से सम्पर्क करें। ऑटिज़्म एक आजीवन रहने वाली अवस्था है जिसके पूर्ण उपचार के लिए कोई दवा की खोज ज़ारी है, अतः इसके इलाज के लिए यहाँ-वहाँ न भटकें व बिना समय गवाएं इसके बारे में जानकारी प्राप्त करें। ऑटिज़्म एक प्रकार की विकास सम्बंघित बीमारी है जिसे पूरी तरह तो ठीक नहीं किया जा सकता, परन्तु सही प्रशिक्षण व परामर्श के द्वारा रोगी को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है, जो उसे अपने रोज के जीवन में अपनी देखरेख करने में मदद करता है। ऑटिज़्म से ग्रसित 70% वयक्तियों में मानसिक मन्दता पायी जाती है जिसके कारण वह एक सामान्य जीवन जीने में पूरी तरह से समर्थ नहीं हो पाते, परन्तु यदि मानसिक मन्दता बहुत अघिक न हो तो ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्ति बहुत कुछ सीख पाता है। कभी-कभी इन बच्चों में कुछ ऐसी काबिलियत भी देखी जाती हैं जो सामान्य वयक्तियों की समझ व पहुच से दूर होती हैं। ऑटिज़्म से ग्रसित बच्चे को निम्नलिखित तरीकों से मदद दी जा सकती है- इन्द्रियों को सम्मिलित करना शरीर पर दबाव बनाने के लिए बड़ी गेंद का इस्तेमाल करें, सुनने की अतिशक्ति को कम करने के लिए कान पर थोड़ी देर के लिए हल्की मालिश करें! बालू रेत,सूखे पत्तो,गीली मिट्टी पर चलाना ! गीली मिट्टी को पुरे शरीर पर लगाकर ! खेल व्यवहार के लिए खेल-खेल में नए शब्दों का प्रयोग करें, खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका दिखाएँ, बारी-बारी से खेलने की आदत डालें, धीरे-धीरे खेल में लोगो की संख्या को बढ़ते जायें। बोल-चाल के लिए छोटे-छोटे वाक्यों में बात करें, साधारण भाषा का प्रयोग करें, रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दो को जोड़ कर बोलना सिखांए, पहले समझना तथा फिर बोलना सिखांए, यदि बच्चा बोल पा रहा है तो उसे शाबाशी दें तथा बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें, बच्चे को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें, यदि बच्चा बिल्कुल बोल नहीं पाए तो उसे तस्वीर की तरफ़ इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलना सिखाएं। मेल-जोल के लिए बच्चे को घर के अलावा अन्य लोगों से नियमित रूप से मिलने का मौका दें, बच्चे को तनाव मुक्त स्थानों जैसे पार्क आदि में ले कर जायें, अन्य लोगों को बच्चे से बात करने के लिए प्रेरित करें, बच्चे के साथ धीरे-धीरे कम समय से बढ़ाते हुए अधिक समय के लिए नज़र मिला कर बात करने की कोशिश करे, तथा उसके किसी भी प्रयत्न को प्रोत्साहित करना न भूलें। व्यवहारिक परेशानियों के लिए यदि बच्चा कोई एक व्यवहार बार-बार करता है तो उसे रोकने के लिए उसे कुछ ऐसी गतिविधियों में लगाएं जो उसे व्यस्त रखें ताकि वे व्यवहार दोहरा न सके, गलत व्यवहार दोहराने पर बच्चे को कुछ ऐसा काम करवांए जो उसे पसंद नहीं है, यदि बच्चा कुछ देर गलत व्यवहार न करे तो उसे तुरंत प्रोत्साहित करें, प्रोत्साहन के लिए रंग-बिरंगी, चमकीली तथा ध्यान खीचनें वाली चीजों का इस्तेमाल करें! गुस्सा या अधिक चंचलता के लिए बच्चे को अपनी शक्ति को इस्तेमाल करने के लिए सही मार्ग दिखाएँ जैसे की उसे तेज व्यायाम, दौड़, तथा बाहरी खेलों में लगाएं, यदि परेशानी अधिक हो तो मनोचिकित्सक के द्वारा दी गई दवा का उपयोग भी किया जा सकता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ मानसिक रोग हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE
राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना
राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (National Apprenticeship Promotion Scheme /NAPS) भारत सरकार की एक योजना है जो भारत में प्रशिक्षुता को बढ़ावा देने के लिए उद्देश्य से लागू की गयी है। यह योजना 19 दिसंबर, 2016 को कानपुर में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आरम्भ की गयी और इसके तहत 15 प्रतिष्ठानों को प्रतिपूर्ति चेक का वितरण किया गया। यह योजना 19 अगस्त, 2016 से प्रभावी है। इस योजना ने पहले से चल रही प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना (Apprenticeship Incentive Plan-AIP) का स्थान लिया है। योजना का परिव्यय 10,000 करोड़ रुपये है। योजना का लक्ष्य वर्ष 2019-2020 तक 50 लाख प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित करना है। यह पहली योजना है जिसमें प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए नियोक्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन देने की व्यवस्था है। केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और चार या अधिक राज्यों में सक्रिय निजी प्रतिष्ठानों के लिए इस योजना योजना का क्रियान्वयन ‘क्षेत्रीय प्रशिक्षुता प्रशिक्षण निदेशालयों’ (RDATs) द्वारा किया जाएगा। जबकि राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों हेतु योजना का क्रियान्वयन राज्य प्रशिक्षुता सलाहकारों द्वारा अपने संबंधित राज्यों में किया जाएगा। भूमिका आदिकाल से ही कौशल का स्‍थानांतरण प्रशिक्षुओं (Trainee) की परम्‍परा के माध्‍यम से होता आ रहा है। एक युवा प्रशिक्षु एक मास्‍टर दस्‍तकार से कला सीखने की परम्‍परा के तहत काम करेगा, जबकि मास्‍टर दस्‍तकार को बुनियादी सुविधाओं के माध्यम से प्रशिक्षु को प्रशिक्षण देने के बदले में श्रम का एक सस्‍ता साधन प्राप्‍त होगा। कौशल विकास की इस परम्‍परा के द्वारा नौकरी हेतु प्रशिक्षण देना समय की कसौटी पर खरा उतरा है और यही दुनिया के अनेक देशों में कौशल विकास कार्यक्रमों का आधार भी बना है। उल्लेखनीय है कि विश्व के अनेक देशों में प्रशिक्षुता मॉडल को लागू किया जा रहा है। जापान में १ करोड़ से अधिक प्रशिक्षु हैं, जबकि जर्मनी में ३० लाख, अमेरिका में ५ लाख प्रशिक्षु हैं। जबकि भारत जैसे विशाल देश में केवल ३ लाख प्रशिक्षु ही मौजूद हैं। भारत की वृहद जनसंख्‍या को देखते हुए देश में १८ से ३५ वर्ष की आयु वर्ग के ३० करोड़ लोग मौजूद होने के बावजूद इतने कम प्रशिक्षु ही मौजूद हैं। देश में उपस्थित इसी क्षमता का आकलन करते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने कुशल भारत अभियान (Skill India Program) तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship) का नवंबर, 2014 में गठन किया। इस अभियान का उद्देश्‍य भारत को दुनिया के कौशल राजधानी के रूप में विकसित करना है इसके साथ-साथ देश में प्रशिक्षु के मॉडल को अपनाने की भावना को बढ़ावा देने के लिये निम्न दो प्रमुख कदम भी उठाए गए हैं –प्रशिक्षु अधिनियम (Apprentices Act 1961) में संशोधन तथा प्रशिक्षु प्रोत्‍साहन योजना (Apprenticeship Promotion Scheme) की जगह राष्‍ट्रीय प्रशिक्षु प्रोत्‍साहन योजना (National Apprenticeship Promotion Scheme) की शुरुआत करना। योजना के घटक इस योजना के निम्नलिखित दो घटक हैं- (१) योजना के तहत एक प्रशिक्षु को दिए जाने वाले कुल वजीफे (Stipend) का 25 प्रतिशत (अधिकतम 1500 रु.) प्रति माह भारत सरकार द्वारा सीधे उनके नियोक्ताओं को प्रदान किया जाएगा। (२) योजना के तहत भारत सरकार द्वारा बुनियादी प्रशिक्षण प्रदाताओं (BTP) को अप्रशिक्षित प्रशिक्षुओं के बुनियादी प्रशिक्षण लागत (अधिकतम 500 घंटे/3 माह की अवधि हेतु 7500 रु. प्रति प्रशिक्षु की सीमा तक) की प्रतिपूर्ति की जाएगी। विशेषताएं इस योजना के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रशिक्षुता अधिनियम, 1961 में संशोधन करके 5 दिसंबर, 2014 को ‘प्रशिक्षुता (संशोधन) अधिनियम, 2014’ को अधिसूचित किया गया। यह अधिनियम 22 दिसंबर, 2014 से प्रभावी हुआ। योजना के तहत वर्ष 2016-17 में 5 लाख प्रशिक्षुओं, वर्ष 2017-18 में 10 लाख प्रशिक्षुओं, वर्ष 2018-19 में 15 लाख प्रशिक्षुओं और 2019-20 में 20 लाख प्रशिक्षुओं को शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अप्रशिक्षित (Fresher) प्रशिक्षुओं की भागीदारी कुल वार्षिक लक्ष्य का 20 प्रतिशत होगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रशासित योजना के अंतर्गत आच्छादित स्नातक, तकनीशियन एवं तकनीशियन (व्यावसायिक) प्रशिक्षुओं के अतिरिक्त ‘राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना’ के तहत सभी श्रेणी के प्रशिक्षुओं को शामिल किया जाएगा। नए प्रशिक्षु के संबंध में बुनियादी प्रशिक्षण की लागत को साझा किया जाएगा (विशेषकर उनके लिये जो बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के सीधे आए थे)। नियोक्ता के लिये निर्धारित वज़ीफे के 25 प्रतिशत (अधिकतम 1500 रुपये प्रति माह प्रति प्रशिक्षु) की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित की गई है। रक्षा मंत्रालय ने भी इस योजना के लिये अपना समर्थन दिया है। रक्षा मंत्रालय ने अपने अंतर्गत आने वाली सभी पीएसयू कंपनियों को कुल कर्मचारियों में से 10 फीसदी प्रशिक्षु शामिल करने को कहा है। प्रशिक्षु अधिनियम 1961 प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 को नौकरी हेतु प्रशिक्षण देने के लिए उपलब्‍ध सुविधाओं का उपयोग करते हुए उद्योग में प्रशिक्षु के प्रशिक्षण को नियमित करने के उद्देश्‍य से विनियमित किया गया था। इस अधिनियम के तहत नियोक्ताओं के लिये एक अनिवार्य प्रावधान किया गया है जिसके अन्तर्गत नियोक्ता प्रशिक्षुओं को उद्योग में काम करने के लिये प्रशिक्षण सुनिश्चित करेंगे ताकि स्कूल छोड़ने वालों और आईटीआई से उत्तीर्ण होने वाले लोगों को बेहतर रोज़गार के अवसर प्राप्त हो सकें। गौरतलब है कि इनमें स्नातक इंजीनियर, डिप्लोमा और प्रमाणपत्र धारक व्यक्तियों का कुशल श्रम आदि का विकास किया जाएगा। ध्यातव्य है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान प्रशिक्षु प्रशिक्षण योजना (Apprenticeship Training Scheme-ATS) का प्रदर्शन भारत की अर्थव्यवस्था के अनुरूप नहीं रहा है। इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया है कि उद्योगों में उपलब्ध प्रशिक्षण सुविधाओं का सटीक एवं उचित इस्तेमाल भी नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण बेराजगार युवा एटीएस के लाभ से वंचित रह जाते हैं। एटीएस के विषय में प्राप्त शिकायतों के आधार पर प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 के प्रावधानों में वर्ष 2014 में कुछ संशोधन किये गए हैं। इन संशोधनों ने 22 दिसंबर, 2014 से प्रभावी रूप धारण कर लिया है। संशोधन के बिंदु नए संशोधनों में यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रशिक्षु अधिनियम के तहत अब कारावास का प्रावधान निहित नहीं किया जाएगा (ध्यातव्य है कि इससे पहले 6 माह के कारावास का प्रावधान था)। वर्तमान में यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम में वर्णित प्रावधानों की अवहेलना करता है तो उस पर केवल आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा। नए संशोधनों में कामगार की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है। साथ ही प्रशिक्षुओं की नियुक्ति की संख्या तय करने के तरीके में भी परिवर्तन किया गया है। इन संशोधनों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि नियोक्ता बड़ी संख्या में प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने में कोई आनाकानी न करें। इन संशोधनों में एक वेब पोर्टल बनाने का प्रावधान भी किया गया है ताकि दस्तावेज़ों, संविधाओं और कराधान आदि को इलेक्ट्रानिक रूप से सुरक्षित किया जा सके। वृहद रूप में उपरोक्त संशोधनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नियोक्ताओं द्वारा एक बड़ी संख्या में प्रशिक्षुओं की नियुक्ति की जा सके। इसके अलावा संशोधनों के तहत नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करने पर भी बल दिया जाएगा ताकि वे प्रशिक्षु संबंधी अधिनियमों का ईमानदारी से अनुपालन करें। इन्हें भी देखें शिक्षुता (या, अप्रेन्टिस) प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) बाहरी कड़ियाँ राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना जानिए क्या है राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना, युवाओं को मिलेगा रोजगार का अवसर Ministry of Skill Development And Entrepreneurship Directorate General of Training भारत में सरकारी योजनाएँ
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विंडोज १०
विंडोज 10 माइक्रोसॉफ्ट का विंडोज के नए संस्करण पर आधारित एक संचालन प्रणाली है। जिसे 30 सितंबर, 2014 को प्रदर्शित किया गया व अक्टूबर 2014 में यह बाजार में आया। इसकी झलक का संस्करण पहले ही उपलब्ध था। वह सभी इसका पूर्ण संस्करण भी डाउनलोड के द्वारा ले सकते हैं। यह इसके पहले के संचालन प्रणाली 7,8 आदि को खरीदने वाले ग्राहकों को निःशुल्क उपलब्ध करा रहा है। विंडोज 7 को बंद करने की घोषणा के बाद से विंडोज 10 ऑपरेटिंग सिस्टम की मांग बढ़ गई है. विंडोज 10  ने विंडोज 8 को रिप्लेस करना शुरु कर दिया है. माइस्क्रोसॉफ्ट अपने सभी डिवाइसेस तथा सॉफ्टवेयर्स के लिए एक Ecosystem बनाना चाहती थी. जिसके लिए उसे एक एकल, सुरक्षित और तेज प्लैटफॉर्म्स की जरूरत थी. जो की विंडोज 10 को बना कर साबित किया है इस जरूरत को उसने विंडोज 8 को विकसित करके पूरा किया है. और विंडोज़ 9 संस्करण के बजाए विंडोज 10 को लॉन्च किया. जो कम्प्युटर्स के लेकर Mobile Phone, Tablets , Gaming Device  तथा इंटरनेट  डिवाइसों के लिए एक समान कार्य करता है. आपको, प्रत्येक डिवाइस के लिए अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम की जरूरत नहीं है. एक ऑपरेटिंग सिस्टम सभी डिवाइसों पर स्मूद्ली वर्क करता है. स्क्रीन साइज, स्क्रीन प्रकार, हार्डवेयर कम्पेटीबीलिटी आदि समस्याएं विंडोज 10 संभाल लेता है. संस्करण यह विंडोज का 10वाँ संस्करण है। विशेषताएँ यह विंडोज 7 व 8 के कुछ विशेषताओं के साथ-साथ कुछ नए विशेषताओं को जोड़ कर बनाया गया है। यह अन्य संचालन प्रणाली के अपेक्षाकृत अधिक जल्दी खुलता है। इसमें कई प्रकार की सुविधा नहीं होती है। इसके लिए आपको माइक्रोसॉफ़्ट के जालस्थल से वह सामग्री को डाउनलोड करना होगा। बुराई यह लगभग सभी अनुप्रयोग से इंटरनेट का ही उपयोग करता है। इसके सारे अनुप्रयोग कुछ को छोड़ कर सभी इंटरनेट के ही द्वारा चलाये जा सकते हैं। यानि आपको इंटरनेट की सुविधा लेनी ही होगी। यदि आप इंटरनेट की सेवा लेते हैं तो यह कभी भी इंटरनेट द्वारा इसके कई नई फ़ाइल जैसे भाषा, फॉन्ट, अनुप्रयोग के नए संस्करण आदि को डाउनलोड करता रहता है। इस कारण यह डाटा बहुत ज्यादा लेता है। अनुप्रयोग की कमी इसमें विंडोज 7 के मुक़ाबले बहुत कम अनुप्रयोग हैं। जो इंटरनेट से चलते हैं उन्हें छोड़ दिया जाए तो सभी विंडोज 7 के ही अनुप्रयोग मिलेंगे। बाकी अनुप्रयोग बिना इंटरनेट कार्य ही नहीं करते हैं। इसके अलावा खेल वाले अनुप्रयोग में केवल एक ही खेल है। जबकि विंडोज 7 में कई खेल के अनुप्रयोग थे। इसमें विंडोज 7 के कुछ उपयोगी अनुप्रयोग के अलावा सभी अनुप्रयोग इंटरनेट पर आधारित है। वह भी सभी अनुप्रयोग माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा बनाए गए और उसी के खातों से संचालित होते हैं। इंटरनेट की अनिवार्यता इसके लगभग सभी नई विशेषता केवल इंटरनेट के द्वारा ही उपयोग की जा सकती है। यदि आपके पास इंटरनेट सुविधा नहीं है, तो इसके कई विशेषता का उपयोग आप नहीं कर सकते हैं। इसमें यह बेवजह भी इंटरनेट लेता रहता है। यदि आप इंटरनेट का उपयोग भी करते हैं तो यह विंडोज को नया रखने के लिए नई फ़ाइल आदि डाउनलोड करता ही रहता है। इसमें अन्दर के कई पन्नो में भी इंटरनेट से कई वस्तु आते रहते हैं। यह इंटरनेट के द्वारा कुछ अनुप्रयोग में विज्ञापन भी दिखाता है। इसके पहले से स्थापित हर अनुप्रयोग में इंटरनेट की आवश्यकता साफ झलकती है। इसे चालू करते समय जो उपयोगकर्ता की छवि भी दिखाई देती है, उसे भी इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है। जहाँ फ़ाइल को रखा जाता है, वहाँ भी इंटरनेट के लिए सुविधा दी गई है। जिससे आप माइक्रोसॉफ़्ट में अपनी फ़ाइल डाल सकते हो। इसमें यह इतने अधिक स्थान पर है कि कोई भी इसमें जा सकता है। सबसे अधिक परेशानी यह है कि कोई भी अनुप्रयोग इंटरनेट उपयोग करने के लिए आपसे सहमति नहीं मांगता है। यहाँ तक की विंडोज के कई अंदर के पन्ने जो विंडोज 7 या एक्सपी आदि में इंटरनेट नहीं लेते थे। अब वह भी इंटरनेट का उपयोग बिना कुछ बताए करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप भाषा बदलने के पन्ने पर जाएँगे तो यह अपने आप ही उस भाषा के लिए फॉन्ट, लिखने आदि के अलावा कई बार एक से अधिक बार भी खोजता है, वह भी बिना दिखाये की वह इंटरनेट का उपयोग कर रहा है। इसके अलावा कई पन्ने खोलें पर वह पन्ने से जुड़े अनुप्रयोग या सामग्री अपने आप ही इंटरनेट लेने लगती है। अर्थात यदि आपके पास इंटरनेट के लिए निःशुल्क डाटा है तो ही आप इंटरनेट का पूरा उपयोग कर सकते हो यदि डाटा नियत है तो इससे डाटा ही समाप्त हो जाता है। कूल मिलाकर आपको कोई ऐसा पन्ना या सुविधा नहीं मिलेगा जो इंटरनेट के उपयोग के लिए आपको न कहे। गोपनियता माइक्रोसॉफ़्ट ने यह साफ कहा है कि इसमें वह उपयोगकर्ता की जानकारी लेते रहता है। आप चाहें भी तो इसमें केवल जानकारी के आकार को ही बदल सकते हो। इसमें माइक्रोसॉफ़्ट आपके द्वारा खरीदे गए अनुप्रयोग से लेकर आप किस किस जगह पर जाते हैं आदि जानकारी भी लेता रहता है। यह इसका इंटरनेट लेने का मुख्य कारण है। यह जानकारी में आपके व्यक्तिगत फ़ाइल आदि को भी अपने पास भेजता है। माइक्रोसॉफ़्ट ने इसके अलावा कहा है कि यदि किसी को यह शर्त नहीं माननी है तो वह इसका उपयोग ना करे। यदि वह इसका उपयोग करता है तो उसका अर्थ होता है कि वह हमारे शर्तों को मानता है। पुराने अनुप्रयोग असमर्थ पुराने अनुप्रयोग जो विंडोज 7 या एक्सपी आदि में अच्छे से कार्य करते हैं वह इस संचालन प्रणाली में ठीक से कार्य नहीं करते हैं। इसके साथ ही कई अनुप्रयोग को स्थापित करते समय त्रुटि दिखाई देती है और वह स्थापित नहीं हो पाते हैं। कई ब्राउज़र आदि के ऊपर के हिस्से में गड़बड़ी दिखाई पड़ती है। इसके लिए नए ब्राउज़र का उपयोग ही करना पड़ता है। इसके द्वारा यह माइक्रोसॉफ़्ट के स्टोर (दुकान) को दिखाता है जहाँ से आप नए अनुप्रयोग डाउनलोड कर सकते हैं। जिसमें निःशुल्क अनुप्रयोग में माइक्रोसॉफ़्ट द्वारा विज्ञापन दिखाया जाता है और अन्य अनुप्रयोग के लिए आपको पैसे देने होंगे। सामग्री की कमी जैसे की विंडोज 7 में कई प्रकार के छवि और वीडियो आदि थे। लेकिन इसमें वह सभी नहीं है। इसके अलावा इसके अन्य स्थान पर भी चित्रों की बहुत कमी है। चूंकि इसमें विंडोज 8 के भी गुण हैं इस लिए इसके कई छवि काले और सफ़ेद रंग में ही होती है। जो विषय के अनुसार रंग बदल सकती है। भ्रामकता माइक्रोसॉफ़्ट के अन्य पिछले संस्करण में जिस तरह से किसी भी अनुप्रयोग व विकल्प आदि के लिए सरल मार्ग था। उस तरह का मार्ग विंडोज 10 में नहीं है। इसमें कई अनुप्रयोग के विकल्प विंडोज 7 के अनुप्रयोग की तरह दिखते हैं और कुछ विंडोज 10 की तरह। इसमें एक ही पन्ने पर आने के कई मार्ग हैं। वह भी अलग-अलग नामों से इस कारण यह समझ नहीं आता की आप कब किस स्थान पर आ गए हो। इसमें सभी विशेषता बदलने वाले पन्ने बहुत अलग अलग जगहों पर हैं। इस कारण सही तरीके से उपयोग करने में परेशानी आती है। इसके कई अनुप्रयोग के लगभग एक समान कार्य होने के कारण भ्रामकता अधिक बढ़ जाती है। भाषा समर्थन आप जिस भाषा में विंडोज प्राप्त करोगे उसके अलावा उसमें अन्य भाषा के लिए समर्थन नहीं है। जैसे की यदि आप अंग्रेज़ी भाषा में विंडोज 10 प्राप्त कर लिए तो उसमें आपको हिन्दी या अन्य भाषा के लिए समर्थन डाउनलोड करना पड़ेगा। इसके आपको कोई और भाषा के अक्षर भी देखने के लिए फॉन्ट को डाउनलोड करना पड़ेगा। इसमें लिखने आदि के लिए डाउनलोड की आवश्यकता होती है। लेकिन यदि आप अंग्रेज़ी के अलावा कोई और भाषा में इसे प्राप्त करते हैं तो आपको उस भाषा और अंग्रेज़ी के लिए पहले से समर्थन रहेगा। जबकि इस तरह का समर्थन पुराने संस्करण में पहले से ही मौजूद रहता है। = मील के पत्थर (उपलब्धियां)= 30 सितंबर 2014 – विंडोज 10 की आधिकारिक घोषणा की गई थी । 2015 21 जनवरी – माइक्रोसॉफ्ट ने घोषणा की कि वर्तमान में कम से कम विंडोज 7 एसपी 1 या विंडोज 8.1 अपडेट चलाने वाले अधिकांश उपकरणों को विंडोज 10 में मुफ्त अपग्रेड मिलेगा यदि यह पहले वर्ष के भीतर किया जाता है । 2 फरवरी – माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 10 के मुफ्त संस्करण की घोषणा की रास्पबेरी पाई 2 । 2 अप्रैल – नया ऑफिस 2016 टच पूर्वावलोकन के लिए विंडोज 10 के लिए लॉन्च किया गया । 18 मार्च-पहली बार पेश किए जाने के बाद से विंडोज 5 (बिल्ड 10) का 10041 वां आधिकारिक अपडेट । 30 मार्च-विंडोज 6 (बिल्ड 10) के लिए 10049 वां आधिकारिक अपडेट पेश किया गया था । 15 जुलाई – विनिर्माण के लिए जारी (निर्माण 10240) 29 जुलाई-सामान्य उपलब्धता (संस्करण 1507) 12 नवंबर-नवंबर 2015 अपडेट (थ्रेसहोल्ड 1, संस्करण 1511, बिल्ड 10586) 2016 2 अगस्त-वर्षगांठ अद्यतन (रेडस्टोन 1, संस्करण 1607, बिल्ड 14393) 2017 5 अप्रैल-क्रिएटर्स अपडेट (रेडस्टोन 2, संस्करण 1703, बिल्ड 15063) 17 अक्टूबर - फॉल क्रिएटर्स अपडेट (रेडस्टोन 3, संस्करण 1709, बिल्ड 16299) 2018 30 अप्रैल-अप्रैल 2018 अपडेट (रेडस्टोन 4, संस्करण 1803) 13 नवंबर-अक्टूबर 2018 अपडेट (रेडस्टोन 5, संस्करण 1809) 2019 21 मई-मई 2019 अपडेट (19 एच 1, संस्करण 1903) 12 नवंबर-नवंबर 2019 अपडेट (19 एच 2, संस्करण 1909) 2020 27 मई-मई 2020 अपडेट (20 एच 1, संस्करण 2004) 19 अक्टूबर-अक्टूबर 2020 अपडेट (20 एच 2, बिल्ड 19042) 2021 18 मई – मई 2021 अपडेट (21 एच 1, बिल्ड 19043) 16 नवंबर-नवंबर 2021 अपडेट (21 एच 2, बिल्ड 19044) 2022 18 अक्टूबर-अक्टूबर 2022 अपडेट (22 एच 2, बिल्ड 19045) इन्हें भी देखें माइक्रोसॉफ्ट संचालन प्रणालियों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ प्रचालन तंत्र विण्डोज़
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ऐना हमीज़ा हाशिम
ऐना हमीज़ा हाशिम (जन्म 29 जुलाई 2000) एक मलेशियाई क्रिकेटर हैं। उन्होंने 3 जून 2018 को 2018 महिला ट्वेंटी 20 एशिया कप में मलेशिया के लिए महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20आई) की शुरुआत की। अप्रैल 2021 में, वह मलेशियाई क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा अनुबंध से सम्मानित होने वाली 15 खिलाड़ियों में से एक थी, पहली बार मलेशियाई टीम के लिए महिला क्रिकेटरों को अनुबंध दिया गया था। नवंबर 2021 में, उन्हें संयुक्त अरब अमीरात में 2021 आईसीसी महिला टी20 विश्व कप एशिया क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए मलेशिया के पक्ष में नामित किया गया था। सन्दर्भ 2000 में जन्मे लोग जीवित लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0
तहसीलदार
तहसीलदार भारत और पाकिस्तान में राजस्व निरीक्षक और कर अधिकारी होता है। यह तहसील से भू-राजस्व के रूप में कर प्राप्त करने का प्रभारी होता है। एक तहसीलदार को संबंधित तहसील के कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में भी जाना जाता है। एक तहसीलदार के तत्काल अधीनस्थ को नायब तहसीलदार के रूप में जाना जाता है। यह एक अतिरिक्त उपायुक्त के समान है। शब्द-साधन यह शब्द मुगल मूल का माना जाता है और शायद यह "तहसील" और "दार" शब्दों का मेल है। "तहसील" संभवतः एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है "राजस्व संग्रह", और "दार" एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है "एक पद का धारक"। मामलातदार कुछ भारतीय राज्यों में इस्तेमाल किया जाने वाला एक समानार्थी शब्द है जो हिंदी शब्द से आता है। मामाला (मामला), जो अरबी मुआमाला (معَامَلَة‎ - "आचरण, व्यवहार, संचालन") से लिया गया है। भारत ब्रिटिश शासन ब्रिटिश शासन के दौरान, एक तहसीलदार सबसे अधिक संभावना सरकार का एक वजीफा अधिकारी था, जिसे राजस्व जुटाने के लिए नियुक्त किया गया था। गोवा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में स्थिति को मामलातदार कहा जाता था। बाद में ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी के बाद पाकिस्तान और भारत द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया। तहसीलदार को भारत के कुछ राज्यों में तालुकदार के नाम से भी जाना जाता है। असम, बंगाल और झारखंड के कुछ हिस्सों में, एक तहसीलदार को मौजादार के रूप में जाना जाता है। आजादी तहसीलदार भारत के अधिकांश राज्यों में कक्षा 1 के राजपत्रित अधिकारी हैं। उत्तर प्रदेश में तहसीलदार को सहायक कलेक्टर ग्रेड I की शक्तियाँ दी जाती हैं। उन्हें न्यायिक शक्ति भी दी जाती है। वे तालुका की विभिन्न नीतियों को लागू करते हैं और जिला कलेक्टर के अधीन हैं। तहसीलदार का पद धारण करने वाले अधिकारी भूमि, कर और राजस्व से संबंधित मामलों की अध्यक्षता करते हैं। राज्य सेवा परीक्षा (यानी उत्तर प्रदेश में यूपीपीएससी, हिमाचल प्रदेश में एचपीएएस, राजस्थान में आरएएस, मध्य प्रदेश में एमपीपीसीएस, बिहार में बीएएस, आंध्र प्रदेश में एपीपीएससी, तेलंगाना में टीएसपीएससी, या) के सफल समापन के बाद तहसीलदार को पहली बार नायब तहसीलदार के रूप में नियुक्त किया गया था। भारत के अन्य राज्यों में अन्य समकक्ष परीक्षा), या कानूनगो (राजस्व निरीक्षकों के रूप में भी जाना जाता है) जैसे अधीनस्थ पद से पदोन्नत। उत्तर प्रदेश में तहसीलदार को नायब तहसीलदार से पदोन्नत किया जाता है। बाद में, उन्हें उप-मंडल मजिस्ट्रेट के पद पर पदोन्नत किया जाता है। तहसीलदार और नायब तहसीलदार भूमि राजस्व और सरकार को देय अन्य बकाया राशि के संग्रह के लिए जिम्मेदार हैं।) गोवा में, मामलातदार तालुका राजस्व कार्यालय का प्रमुख होता है। जबकि प्रत्येक तालुका में एक मामलातदार होता है, कई संयुक्त मामलातदार भी होते हैं और उनके बीच काम वितरित किया जाता है। प्रत्येक राज्य को जिलों में विभाजित किया गया है। जिले के वरिष्ठ सिविल सेवक जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट होते हैं, जो आईएएस संवर्ग के अधिकारी होते हैं। इन जिलों को आगे राजस्व उपखंडों या प्रांतों (पश्चिम भारत) में विभाजित किया गया है। प्रत्येक उपखंड एक उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एस.डी.एम.) या डिप्टी कलेक्टर के रूप में नामित एक अधिकारी के प्रभार में होता है, जो राज्य सिविल सेवा संवर्ग का सदस्य होता है। राजस्व विभाग में, डिप्टी कलेक्टर (जिसे डिप्टी डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर भी कहा जाता है) जिला राजस्व अधिकारी (डीआरओ) को रिपोर्ट करता है, जिसे अतिरिक्त जिला कलेक्टर भी कहा जाता है और जिले के राजस्व विभाग का समग्र प्रभारी होता है। डीआरओ बदले में जिला कलेक्टर (जिला आयुक्त भी कहा जाता है) को रिपोर्ट करता है, जो सभी विभागों में जिले के समग्र प्रबंधन का प्रभारी होता है। डिप्टी कलेक्टरों को राज्य सेवा चयन आयोगों के माध्यम से काम पर रखा जाता है, जबकि डीआरओ और जिला कलेक्टर आमतौर पर राज्य कैडर में नियुक्त केंद्र सिविल सेवा कर्मचारी होते हैं। बाहरी कड़ियाँ तहसीलदार सेवा नियम सन्दर्भ प्रशासनिक अधिकारी भूराजस्व
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मकड़ा पर्वत
मकड़ा (अंग्रेज़ी: Makra Peak, उर्दु: مکڑا چوٹی, मकड़ा चोटी) पाकिस्तान के उत्तरी भाग में ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त के मानसेहरा ज़िले की काग़ान घाटी क्षेत्र में एक रमणीय पर्वत है। इसकी ढलानों की हिमानियों (ग्लेशियर) का पिघलता पानी कुनहार नदी (नैनसुख नदी) को जल प्रदान करता है। यह काग़ान वादी का सबसे ऊँचा पर्वत नहीं है क्योंकि वह ख़िताब मलिका परबत को जाता है। इन्हें भी देखें मलिका परबत सैफ़-उल-मुलूक झील काग़ान घाटी मानसेहरा ज़िला आँसू झील सन्दर्भ मानसेहरा ज़िला ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा के पर्वत
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जसपाल भट्टी
जसपाल भट्टी (3 मार्च 1955 – 25 अक्टूबर 2012) हिन्दी टेलिविज़न और सिनेमा के एक जाने-माने हास्य अभिनेता, फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक थे।उन्होंने पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज से विद्युत अभियांत्रिकी की डिग्री ली , लेकिन बाद में वे नुक्कड़ थिएटर आर्टिस्ट बन गए. व्यंग-चित्रकार (कार्टूनिस्ट) जसपाल भट्टी, 80 के दशक के अंत में दूरदर्शन की नई प्रातःकालीन प्रसारण सेवा में उल्टा-पुल्टा कार्यक्रम के माध्यम से प्रसिद्ध हुए थे।उनके इस सबसे लोकप्रिय फ़्लॉप शो को उनकी उनकी पत्नी सविता भट्टी ने प्रोड्यूस किया साथ ही उसमें अभिनय भी किया| इस शो से इससे पहले जसपाल भट्टी चण्डीगढ़ में द ट्रिब्यून नामक अख़बार में व्यंग्य चित्रकार के रूप में कार्यरत थे। एक व्यंग्य चित्रकार होने के नाते इन्हे आम आदमी से जुड़ी समस्याओं और व्यवस्था पर व्यंग्य के माध्यम से चोट करने का पहले से अनुभव था। अपनी इसी प्रतिभा के चलते उल्टा-पुल्टा को जसपाल भट्टी बहुत रोचक बना पाए थे। ९० के दशक के प्रारम्भ में जसपाल भट्टी दूरदर्शन के लिए एक और टेलीविज़न धारावाहिक, फ्लॉप शो लेकर आए जो बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके बाद जसपाल भट्टी को एक कार्टूनिस्ट की बजाय एक हास्य अभिनेता के रूप में जाना जाने लगा। २५ अक्टूबर २०१२ को सुबह ३ बजे जालंधर, पंजाब में एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। प्रमुख फिल्में नामांकन और पुरस्कार बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ बॉलीवुड भारतीय कार्टूनिस्ट हास्य अभिनेता हिन्दी अभिनेता २०१२ में निधन 1955 में जन्मे लोग पंजाबी फ़िल्म अभिनेता चंडीगढ़ के लोग टेलिविज़न अभिनेता
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मीरीखील
भूगोल मीरीखील भूजपुर इउनियन का एक गाँव हे. और भूजपुर चटगाँव जिला का फटिकचढ़ि थाना का एक इउनियन हे. इतिहास सीएस (CCCC-Cadestal Survey) जरीप के वक्त यहाँ मीर मुहम्मद सना नाम क एक जमीदार थे। कहा जता हे उन्हीं के नाम से इस गावों का नाम मीरीखील हुआ। इस से पहले इस गावों का नाम गाछबाढ़िया हुआ करते थे। गाछबाढ़िया प्राथमिक बिद्यालय और गाछबाढ़िया बील अभि तक उसी का याद दिलाता हे. जनसंख्या बाजार फकीर हाट गावों का सबसे बढ़ा बाजार हे . बिद्यालय और प्रतिष्ठान गाछबाढ़िया प्राथमिक बिद्यालय मीरीखील मिन्हाजुल उलूम मदरसा मीरीखील महिला मदरसा मीरीखील जामे मस्जिद क्रृति ब्याक्तित्त्व मौलाना सुल्तान अहमद बाहरी कड़ियाँ मीरीखील वेबपत्र
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महादेवशास्त्री जोशी
महादेवशास्त्री जोशी (12 जनवरी, 1906 - 12 दिसंबर, 1992) एक मराठी लेखक थे। महादेवशास्त्री जोशी का जन्म 12 जनवरी 1906 को गोवा के अंबेडे शहर में हुआ था। उन्होंने सांगली में एक संस्कृत पाठशाला (पाठशाला) में शिक्षा के बाद शास्त्री और पंडित की उपाधि प्राप्त की। अपने छात्र जीवन में, जोशी सांगली में सार्वजनिक पुस्तकालय में भी आकर पढ़ते थे। उन्होने नारायण सीताराम फड़के और विष्णु सखाराम खांडेकर जैसे अपने समय के आधुनिक मराठी लेखकों की कृतियों को अछी तरह से अध्ययन किया था। विशेष रूप से खांडेकर की लघु कथाओं और उपन्यासों ने उन्हें उन (खांडेकर) जैसा लेखक बनने के लिए बहुत प्रभावित किया। साहित्यिक कृतियाँ विश्वकोश भारतीय संस्कृतिकोश (10 खण्ड)। इन दस खंडों में भारतीय इतिहास, भूगोल, विभिन्न जातीय और भाषाई समूह, इन समूहों के त्योहारों और उनके जीवन के अन्य सांस्कृतिक पहलुओं की जानकारी है। सांस्कृतिक कृतियाँ मराठी सारस्वत (2 खंड) (अनन्त जोशी के साथ सह-लेखक) पुरुषसूक्तम् (श्री के साथ सह-लेखक। शि. धायगुडे) तीर्थस्वरूप महाराष्ट्र (2 खण्ड) महाराष्ट्रचे कंठमणि (महाराष्ट्रचे कंठमणी) (2 खण्ड) मराठी लेखक (अनन्त जोशी के साथ सह-लेखक) मूल्यवान गोष्टी (स्वास्थ्य और आहार) महाराष्ट्री धारातीर्थे संस्कृतिच्या प्रांगणात तीर्थ क्षेत्रांच्य गोष्टी ज्ञानेश्वरी प्रवेशिका श्रीनवनाथ कथासार कनासैट पिकाली मोत्ये भीमाची माधुकरी भारतीय मूर्तिकला संस्कृतीचिचि चिह्न मीनाक्षी कन्या नवनीत भारत गजती दैवते दसो दिगम्बर काला धनरी मणिमेखला उग्र पांड्य नक्षत्रलोक सत्यधर्म नीलमाधव पुष्पदांत दिंडीरवन सतधीर त्यागराज बाहुबली आत्मकथा आमचा वनप्रस्थ (1983) आत्मपुराण (1985) लघु कथाओं का संग्रह दुष्यन्त शकुन्तला खडकंटाले पाझर कल्पित आणि सत्य कथा सुगन्ध पांगला अरुण सती सुकन्या मंजु मंगल कल्पवृक्ष किर्ति अरुण बभ्रुवाहन धुंधुमार कन्यादान मोहनवेल नीलध्वज गुणकेशी घरीघी भावबल पुत्रवती प्रतिमा विरानी लगे बंधे बालवाङ्मय 100 गोष्टी आख्यायिका प्राचीन सुरस मलिक जिलाकथामाला रमानंद मोहिनी कथाकल्पकता प्र लय घंघाळ वत्सलाहरण कण्डालरण गुरुदक्षिणी चंद्रवदना यात्रा वृत्तान्त प्रिय भारत जम्मू-कश्मीर पंजाब-हरियाणा भारत दर्शन (उत्तर प्रदेश) बिहार मध्यप्रदेश राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र कर्नाटक केरल तामिळनाडू आंध्र ओडिसा बंगाल आसम मणिपुर पुणे विश्वविद्यालय ने भारतीय संस्कृति कोष (भारतीय संस्कृतिकोश) के लिए उन्हें मानद डी. लिट से सम्मानित किया। "कन्यादान", "धर्मकन्या", "वैशाख वनवा", "मानिनी" और जिव्हाला सहित तेरह मराठी फिल्में जोशी की लघु कथाओं पर आधारित थीं। सन्दर्भ "कथाकार पंडित महादेवशास्त्री जोशी" - लेखिका : शुभलक्ष्मी जोशी (जीवनी) 1906 में जन्मे लोग १९९२ में निधन मराठी लेखक गोवा के लोग
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मधुमेह
डायबिटीज मेलेटस (डीएम), जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है, चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक रक्त में शर्करा का स्तर उच्च होता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है। गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है। मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय  पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। मधुमेह के चार मुख्य प्रकार हैं: टाइप 1 डीएम पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अग्न्याशय की विफलता का परिणाम है। इस रूप को पहले "इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलाईटस" (आईडीडीएम) या "किशोर मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका कारण अज्ञात है   टाइप 2 डीएम इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है, एक हालत जिसमें कोशिका इंसुलिन को ठीक से जवाब देने में विफल होती है। जैसे-जैसे रोग की प्रगति होती है, इंसुलिन की कमी भी विकसित हो सकती है। इस फॉर्म को पहले "गैर इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलेतुस" (एनआईडीडीएम) या "वयस्क-शुरुआत मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका सबसे आम कारण अत्यधिक शरीर का  वजन होना और पर्याप्त व्यायाम न करना है। गर्भावधि मधुमेह इसका तीसरा मुख्य रूप है और तब होता है जब मधुमेह के पिछले इतिहास के बिना गर्भवती महिलाओं को उच्च रक्त शर्करा के स्तर का विकास होता है।  सेकेंडरी डायबिटीज इस प्रकार की डायबिटीज इलाज करने मात्र से ही सही हो सकती है। संकेत और लक्षण मधुमेह के लक्षण मधुमेह के सबसे आम संकेतो में शामिल है : बहुत ज्यादा और बार बार प्यास लगना बार बार पेशाब आना लगातार भूख लगना दृष्टी धुंधली होना प्यास में वृद्धि अत्यधिक भूख अनायास वजन कम होना चिड़चिड़ापन और अन्य मनोदशा कमजोरी और थकान को बदलते हैं अकारण थकावट महसूस होना अकारण वजन कम होना घाव ठीक न होना या देर से घाव ठीक होना बार बार पेशाब या रक्त में संक्रमण होना खुजली या त्वचा रोग सिरदर्द    धुंधला दिखना कृपया ध्यान दे : Type 1 Diabetes में लक्षणों का विकास काफी तेजी से (हफ्तों या महीनो) हो सकता है। मधुमेह के प्रकार प्रकार १ इस मधुमेह को नवजात मधुमेह ऐसी संज्ञा दी गई है। पहला प्रकार है टाइप 1 डायबिटीज़ जो बचपन से होती है जबकि दूसरा प्रकार है टाइप 2 डायबिटीज़ जो अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है।टाइप 1 डायबिटीज़ में इन्सुलिन शरीर में अत्यंत कम तैयार होता है या बिल्कुल भी तैयार नहीं होता है।नवजात मधुमेह उत्तर युरोप में फिनलंड, स्कॉटलंड, स्कॅन्डेनेव्हिया, मध्य पूर्व के देश और एशिया में बडे़ पैमाने पर है। इस मधुमेह को'इन्शुलिन आवश्यक मधुमेह' एेसा भी कहा जाता है कारण इन मरीजों को हररोज इन्सुलिन के इंजेक्शन लेना पडता है।पहले प्रकार के मधुमेह की और एक आवृत्ती है। इन मरीजों में शक्कर का औसत लगभग औसत के अधिक और कम होता रहता है। ऐसे मरीजों को एक या दो प्रकार के इन्सुलिन इक्कठा करके उनकी रक्तशर्करा नियंत्रित करनी पड़ती है। प्रकार २ Type 2 Diabetes में लक्षणों का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है और लक्षण काफी कम हो सकते है। सन्दर्भ जीव विज्ञान रोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B8%29
डार्विन (गैलापागोस)
गैलापागोस द्वीपसमूह के द्वीप डार्विन (कुलपैपर) द्वीप का नाम चार्ल्स डार्विन के नाम पर रखा गया है। द्वीप का क्षेत्रफल 1.1 वर्ग किलोमीटर (0.4 वर्ग मील) का अधिकतम ऊंचाई 168 मीटर (551 फुट) है। द्वीप पर कोई शुष्क स्थान मौजूद नहीं है पर समुद्री जीवों की यहाँ भरमार है। यहाँ फर सील, फ्रिगेट, समुद्री गोह, अबाबील-पुच्छ गल, जलसिंह, व्हेल, समुद्री कछुए, लाल टांगों वाले और नाज़्का बूबी पक्षी को देखा जा सकता है। इन्हें भी देखें डार्विन का मेहराब सन्दर्भ चार्ल्स डार्विन गैलापागोस द्वीप पर्यटन आकर्षण
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80
स्कर्वी
स्कर्वी विटामिन सी की कमी के कारण होने वाला एक रोग होता है। ये विटामिन मानव में कोलेजन के निर्माण के लिये आवश्यक होता है। इसमें शरीर खासकर जांघ और पैर में चकत्ते पड जाते हैं। रोग बढने पर मसूढ़े सूज जाते हैं और फ़िर दांत गिरने लगते हैं। विटामिन सी का रासायनिक नाम एस्कॉर्बिक अम्ल भी स्कर्वी के लैटिन भाषा के नाम स्कॉर्बिटस में ये रोग ना होने की स्थिति के लिये विलोम रूप में अंग्रेज़ी का अक्षर ए-उप्सर्ग लगा दिया जाता है, जिससे एस्कॉर्बिक एसिड मिलता है। मसूढ़ों में सूजन, दांत गिरना व रोगी का चेहरा पीला पड़ जाना इसके खास लक्षण हैं। सन्दर्भ कुपोषण पशु रोग पोषण की कमी दंत रोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80%20%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0
जटोली शिव मंदिर
जटोली शिव मंदिर भारत देश के हिमाचल प्रदेश राज्य के सोलन जिले में स्थित है, जिसकी स्थापना श्री श्री 1008 स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने की थी। स्वामी कृष्णानंद परमहंस 1950 में जटोली आए थे। 1974 में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया था। जटोली की हसीन वादियों में स्थित है यह भव्य शिव मंदिर। इसका निर्माण पिछले 35 वर्ष से चल रहा है। जटोली में मंदिर की स्थापना स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने 1973 की थी जो 1983 में ब्रह्मलीन हो गए। जटोली की हसीन वादियों में स्थित है यह भव्य शिव मंदिऱ। सबसे ऊंचा शिव मंदिर स्वामी कृष्णानंद के समाधि लेने के बाद मंदिर प्रबंधक कमेटी ने मंदिर का निर्माण जारी रखा। मंदिर में हाल ही में 11 फुट लंबा स्वर्ण कलश चढ़ाया गया है। इससे मंदिर की ऊंचाई करीब 122 फुट तक पहुंच गई। कमेटी का दावा है कि यह उत्तर भारत का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। जटोली स्थित शिव मंदिर में जल्द ही 17 लाख रुपए की लागत का स्फटिक शिवलिंग की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। मूर्तियां स्थापित होंगी यहां पर भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और हनुमान की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी। मंदिर की खास बात है कि इसका निर्माण भक्तों द्वारा किए गए दान से ही किया गया है। मंदिर निर्माण पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। शिव मंदिर के साथ प्राकृतिक शिव गुफा के दर्शन के लिए आज भी भक्त दर्शन के लिए आते हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ चित्र दीर्घा इन्हें भी देखें हिमाचल प्रदेश में हिन्दू मंदिर शिव मंदिर भारत के धर्मस्थल
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ऑपरेशन विजय स्टार
ऑपरेशन विजय स्टार , सशस्त्र सेना कर्मियों और नागरिकों को दिया जाने वाला एक सेवा पदक है, जिन्होंने 1999 में ऑपरेशन विजय के दौरान मुठभेड़ों में भाग लिया था। मापदंड उन पदों के सभी कर्मियों को पदक से सम्मानित किया गया है जिन्होंने ,समुद्र या हवा में, संघर्ष अथवा परिचालन के समय दुश्मन के खिलाफ 'ऑपरेशन विजय' में हिस्सा लिया, सेवा की योग्य अवधि 1 मई 1999 से 31 अक्टूबर 1999 तक की थी। इस मैदानी ऑपरेशन में नौसेना संचालन और वायुसेना संचालन सम्बन्धी सभी पदों में सम्मानित किया गया है डिजाइन पदक पर "ओ.पी. विजय स्टार" को नामित किया जाता है (बाद में इसे पदक के रूप में मान्यता मिली ) यह पदक छः-चिह्न वाले तारे के रूप में है एवं कांस्य से बनाया गया है, 40 मिमी की ओर एक बिंदु के ऊपर सबसे ऊपर है जिसमें रिबैंड के लिए एक रिंग लगी है। केंद्र में अग्रवर्ती इलाके में, राज्य के प्रतीक के साथ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अधोमुखी और एक परिपत्र बैंड (2 मिमी चौड़ाई और 20 मिमी व्यास के बाहरी किनारों पर) राज्य के प्रतीक के आस-पास और शेरों के सिर हैं। इस बैंड पर उभरते अक्षर में राज्य प्रतीक के दोनों ओर ओ.पी. विजय स्टार लिखा है। रिबैंड स्टील ग्रे के तीन बराबर भागों में विभाजित है, जिसमें 4 मिमी प्रत्येक के लाल और हल्के नीले रंग की पट्टी के साथ है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ भारतीय सेना भारतीय सैनिक सम्मान भारत के सैन्य पदक कारगिल युद्ध
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%B2%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
सराइल उपज़िला
सराइल उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह चट्टग्राम विभाग के ब्राह्मणबाड़िय़ा ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल 9 उपज़िले हैं, और मुख्यालय ब्राह्मणबाड़िय़ा सदर उपजिला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पूर्व की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। चट्टग्राम विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८६.९८% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है, तथा, चट्टग्राम विभाग के पार्वत्य इलाकों में कई बौद्ध जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिति सराइल उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भाग में, चट्टग्राम विभाग के ब्राह्मणबाड़िय़ा जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल बरिशाल विभाग उपज़िला निर्वाहि अधिकारी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:चट्टग्राम विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%89%E0%A4%B2%20%E0%A4%B9%E0%A5%85%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B2%E0%A4%95
पॉल हॅज़लक
परममान्य सर पॉल मीर्ना कॅड्वाला हॅज़लक () एक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ थे। उन्हें 30 अप्रैल 1969-11 जुलाई 1974 के बीच, महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय द्वारा, ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल यानि महाराज्यपाल के पद पर नियुक्त किया गया था। इस काल के दौरान वे, महारानी के प्रतिनिधि के रूप में, उनकी अनुपस्थिति के दौरान शासक के कर्तव्यों का निर्वाह करते थे। इसके अलावा, अपने व्यवसायिक जीवन के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की सेवा में, विश्व भर में विस्तृत विभिन्न ब्रिटिश उपनिवेशों में, अन्य अनेक महत्वपूर्ण व वर्चस्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवा दी थी। इन्हें भी देखें ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया का राजतंत्र ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल ऑस्ट्रेलिया के महाराज्यपालगण की सूचि सन्दर्भ https://web.archive.org/web/20161104012900/http://australianpolitics.com/constitution/gg/governor-generals-since-1901 -महाराज्यपालगण की सूची बाहरी कड़ियाँ https://web.archive.org/web/20161116045332/http://www.gg.gov.au/ -आधिकारिक वेबसाइट ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल ऑस्ट्रेलिया के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%20%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
अत्युक्ति अलंकार
अत्युक्ति अलंकार एक अलंकार है। काव्य में जहाँ किसी की झूठी वीरता, वियोग, उदारता, प्रेम, सुन्दरता, यश आदि का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है कि देखने में हास्यास्पद लगे तो वहां अत्युक्ति अलंकार होता है।जैसे- इत आवति चलि जेत उत चली छः सातक हाथ। चढ़ी हिंडोरे सी रहै लगी उसासन साथ॥ -- (बिहारी) अतिशयोक्ति और अत्युक्ति मिलते-जुलते अलंकार हैं। अन्तर बस इतना है कि उक्ति यदि सम्भव है तो अतिशयोक्ति अलंकार और यदि असम्भव हो तो अत्युक्ति अलंकार। हिन्दी साहित्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/2-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9F%E0%A5%89%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%87%E0%A4%A5%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B2
2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल
2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (=) है, ऐसीटिलीन में त्रिगुण बंध (º) वाले यौगिक अस्थायी हैं। ये आसानी से ऑक्सीकृत एवं हैलोजनीकृत हो सकते हैं। हाइड्रोकार्बनों के बहुत से व्युत्पन्न तैयार किए जा सकते हैं, जिनके विविध उपयोग हैं। ऐसे व्युत्पन्न क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, ऐल्कोहाल, सोडियम ऐल्कॉक्साइड, ऐमिन, मरकैप्टन, नाइट्रेट, नाइट्राइट, नाइट्राइट, हाइड्रोजन फास्फेट तथा हाइड्रोजन सल्फेट हैं। असतृप्त हाइड्रोकार्बन अधिक सक्रिय होता है और अनेक अभिकारकों से संयुक्त हा सरलता से व्युत्पन्न बनाता है। ऐसे अनेक व्युत्पंन औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्त्व के सिद्ध हुए हैं। इनसे अनेक बहुमूल्य विलायक, प्लास्टिक, कृमिनाशक ओषधियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। हाइड्रोकार्बनों के ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल ईथर, कीटोन, ऐल्डीहाइड, वसा अम्ल, एस्टर आदि प्राप्त होते हैं। ऐल्कोहॉल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक हो सकते हैं। इनके एस्टर द्रव सुगंधित होते हैं। अनेक सुगंधित द्रव्य इनसे तैयार किए जा सकते हैं। इसी प्रकार 2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल को भी विभिन्न प्रयोगों में लिया जा सकता है। कार्बनिक यौगिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A4%BF%20%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF%2C%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0
कृषि मंत्रालय, भारत सरकार
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अधीन निम्न संस्थान एवं विभाग कार्यरत हैं। यही मंत्रालय भारत की कृषि नीति तय करता है। इस मंत्रालय के विभिन्न विभाग हैं:- ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य की वर्त्तमान स्थिति आज स्वस्थ भारत का निर्माण चुनौती बन गई है। जहाँ देश में स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने के क्षेत्र में निजी अस्पतालों की भागीदारी बढ़ रही है वहीं महँगी स्वास्थ्य सेवाएँ गरीबों की पहुँच से दिनों-दिन दूर होती जा रही है। इस मामले में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की स्थिति और ज्यादा चिंताजनक बनी हुई है। इसी स्थिति का सामना करने के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की है ताकि गाँव के गरीबों विशेषकर महिलाओं को उचित स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करायी जा सके। साथ ही, नवजात शिशुओं में बढ़ती कुपोषण व अपंगता की समस्या तथा बाल व मातृत्व मृत्यु दर को नियंत्रित किया जा सके। सबसे अहम् बात यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता का भी अभाव पाया गया है। आई.एन.डी.जी अपने वेब पोर्टल एवं गेटवे पत्रिका के माध्यम से ग्रामीण समुदाय में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता लाने का ही काम कर रही है। इसके माध्यम से यह स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए स्थानीय भाषा में पोषाहार, बीमारी व उससे बचाव, परिवार नियोजन एवं सरकार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न योजना व कार्यक्रमों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने का कार्य कर रही है। इसी क्रम में हम यूनीसेफ (हैदराबाद केन्द्र) के सहयोग से मातृत्व स्वास्थ्य व शिशु समरक्षा पर एक बहुभाषीय परिचर्चात्मक सीडी भी उपलब्ध करा रहे हैं। इसके माध्यम से, आप गर्भ में पल रहे बच्चे किस प्रकार विभिन्न स्थितियों से गुज़रते हुए बड़े होते हैं और उसकी देखभाल आपको किस प्रकार करनी चाहिए, के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ कृषि एवं सहकारिता विभाग का हिंदी जालघर (DV-TTYogesh फॉण्ट में) Ministry of Agriculture Directory of Ministry of Agriculture websites Ranbir Singh Kanwar Sugarcane Research in North India भारत सरकार कृषि मंत्रालय
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%A8
उच्चाटन
उच्चाटन एक प्रकार का मंत्रप्रयोग है जो प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि के निवारण या नियंत्रण हेतु किया जाता है। आदिम विश्वास है कि प्रेत या डाकिनी के उत्पात या कुदृष्टि से रोग उत्पन्न होते हैं और ऐसा विश्वास होता है कि इनके निवारण (उच्चाटन) से रोगों का शमन और दु:ख का निवारण हो सकता है। यह विश्वास अत्यंत प्राचीन और सार्वभौम है। विज्ञान के प्रसार यह से हटता तो जाता है, परंतु कितने ही देशों में यह अब तक प्रचलित है। दूसरे के मन को अन्यत्र लगा देना, उसे अन्यमनस्क कर देना भी उच्चाटन की एक क्रिया मानी जाती है। उच्चाटन की विविध क्रियाएँ हैं। इनका प्रयोग बिना मंत्र के किया जाता है और मंत्र के साथ भी। उच्चाटन मंत्र अनेक प्रकार के हैं। विधिपूर्वक इनका प्रयोग करना अनेक लोगों का व्यवसाय है। ये लोग दावा करते हैं कि मंत्र के द्वारा भूत, प्रेत और पिशाच भगाए जा सकते हैं और डाकिनी को नियंत्रित तथा निष्क्रिय किया जा सकता है। सन्दर्भ हिन्दू धर्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE
प्राथमिक चिकित्सा
किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा जो सीमित उपचार किया जाता है उसे प्राथमिक चिकित्सा (First Aid) कहते हैं। इसका उद्देश्य कम से कम साधनों में इतनी व्यवस्था करना होता है कि चोटग्रस्त व्यक्ति को सम्यक इलाज कराने की स्थिति में लाने में लगने वाले समय में कम से कम नुकसान हो। अतः प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित व्यक्तिओं द्वारा कम से कम साधनों में किया गया सरल उपचार है। कभी-कभी यह जीवन रक्षक भी सिद्ध होता है। प्राथमिक चिकित्सा विद्या प्रयोगात्मक चिकित्सा के मूल सिद्धांतों पर निर्भर है। इसका ज्ञान शिक्षित पुरुषों को इस योग्य बनाता है कि वे आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी के अवसर पर, चिकित्सक के आने तक या रोगी को सुरक्षित स्थान पर ले जाने तक, उसके जीवन को बचाने, रोगनिवृत्ति में सहायक होने, या घाव की दशा और अधिक निकृष्ट होने से रोकने में उपयुक्त सहायता कर सकें। प्राथमिक चिकित्सा पशुओं पर भी की जा सकती है। प्राथमिक चिकित्सा की सीमा (फर्स्ट एड) प्राथमिक उपचार आकस्मिक दुर्घटना के अवसर पर उन वस्तुओं से सहायता करने तक ही सीमित है जो उस समय प्राप्त हो सकें। प्राथमिक उपचार का यह ध्येय नहीं है कि प्राथमिक उपचारक चिकित्सक का स्थान ग्रहण करे। इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि चोट पर दुबारा पट्टी बाँधना तथा उसके बाद का दूसरा इलाज प्राथमिक उपचार की सीमा के बाहर है। प्राथमिक उपचार का उत्तरदायित्व किसी डाक्टर द्वारा चिकित्सा संबंधी सहायता प्राप्त होने के साथ ही समाप्त हो जाता है, परंतु उसका कुछ देर तक वहाँ रुकना आवश्यक है, क्योंकि डाक्टर को सहायक के रूप में उसकी आवश्यकता पड़ सकती है। किन-किन स्थितियों में प्राथमिक चिकित्सा उपयोगी है ऊँचाई पर जाने से समस्या होना, हड्डी टूटना, जलना, हृदयाघात (हार्ट अटैक), श्वसन-मार्ग में किसी प्रकार का अवरोध आ जाना,पानी में डूबना,हीट स्ट्रोक, मधुमेह के रोगी का बेहोश होना, हड्डी के जोड़ों का विस्थापन, विष का प्रभाव, दाँत दर्द, घाव-चोट आदि में प्राथमिक चिकित्सा उपयोगी है। आवश्यक बातें प्राथमिक उपचार में आवश्यक बातें प्राथमिक उपचारक को आवश्यकतानुसार रोगनिदान करना चाहिए, तथा घायल को कितनी, कैसी और कहाँ तक सहायता दी जाए, इसपर विचार करना चाहिए। रोग या घाव संबंधी आवश्यक बातें रोगी की स्थिति, इसमें रोगी की दशा और स्थिति देखनी चाहिए। चिन्ह, लक्षण या वृत्तांत, अर्थात् घायल के शरीरगत चिन्ह, जैसे सूजन, कुरूपता, रक्तसंचय इतयादि प्राथमिक उपचारक को अपनी ज्ञानेंद्रियों से पहचानना तथा लक्षण, जैसे पीड़ा, जड़ता, घुमरी, प्यास इत्यादि, पर ध्यान देना चाहिए। यदि घायल व्यक्ति होश में हो तो रोग का और वृत्तांत उससे, या आसपास के लोगों से, पूछना चाहिए। रोगके वृत्तांत के साथ लक्षणों पर विचार करने पर निदान में बड़ी सहायता मिलती है। कारण : यदि कारण का बोध हो जाए तो उसके फल का बहुत कुछ बोध हो सकता है, परंतु स्मरण रहे कि एक कारण से दो स्थानों पर चोट, अर्थात् दो फल हो सकते हैं, अथवा एक कारण से या तो स्पष्ट फल हो, या कोई दूसरा फल, जिसका संबंध उस कारण से न हो, हो सकता है। कभी कभी कारण बाद तक अपना काम करता रहता है, जैसे गले में फंदा इत्यादि। घटनास्थल से संबंधित बातें - खतरे का मूल कारण, आग, बिजली का तार, विषैली गैस, केले का छिलका या बिगड़ा घोड़ा इत्यादि हो सकते हैं, जिसका ज्ञान प्राथमिक उपचारक को प्राप्त करना चाहिए। निदान में सहायक बातें, जैसे रक्त के धब्बे, टूटी सीढ़ी, बोतलें तथा ऐसी वस्तुओं को, जिनसे घायल की चोट या रोग से संबंध हो सुरक्षित रखना चाहिए। घटनास्थल पर उपलब्ध वस्तुओं का यथोचित उपयोग करना श्रेयस्कर है। दोहर, कंबल, छाते इत्यादि से बीमार की धूप या बरसात से रक्षा करनी चाहिए। बीमार को ले जाने के निमित्त प्राथमिक उपचारक को देखना चाहिए कि घटनास्थान पर क्या क्या वस्तुएँ मिल सकती हैं। छाया का स्थान कितनी दूर है, मार्ग की दशा क्या है। रोगी को ले जाने के लिए प्राप्त योग्य सहायता का श्रेष्ठ उपयोग तथा रोगी की पूरी देखभाल करनी चाहिए। प्राथमिक उपचार करनेवाले व्यक्ति के गुण (१) विवेकी (observant), जिससे वह दुर्घटना के चिन्ह पहचान सके; (२) व्यवहारकुशल (tactful), जिससे घटना संबंधी जानकारी जल्द से जल्द प्राप्त करते हुए वह रोगी का विश्वास प्राप्त करे; (३) युक्तिपूर्ण (resourceful), जिससे वह निकटतम साधनों का उपयोग कर प्रकृति का सहायक बने; (४) निपुण (dexterous), जिससे वह ऐसे उपायों को काम में लाए कि रोगी को उठाने इत्यादि में कष्ट न हो; (५) स्पष्टवक्ता (explicit), जिससे वह लोगों की सहायता में ठीक अगुवाई कर सके; (६) विवेचक (discriminator), जिससे गंभीर एवं घातक चोटों को पहचान कर उनका उपचार पहले करे; (७) अध्यवसायी (persevering), जिससे तत्काल सफलता न मिलने पर भी निराश न हो तथा (८) सहानुभूतियुक्त (sympathetic), जिससे रोगी को ढाढ़स दे सके, होना चाहिए। प्राथमिक उपचार के मूल तत्व रोगी में श्वास, नाड़ी इत्यादि जीवनचिन्ह न मिलने पर उसे तब तक मृत न समझें जब तक डाक्टर आकर न कह दे। रोगी को तत्काल चोट के कारण से दूर करना चाहिए। जिस स्थान से अत्यधिक रक्तस्त्राव होता हो उसका पहले उपचार करें। श्वासमार्ग की सभी बाधाएँ दूर करके शुद्ध वायुसंचार की व्यवस्था करें। हर घटना के बाद रोगी का स्तब्धता दूर करने के लिए उसको गर्मी पहुँचाएँ। इसके लिए कंबल, कोट, तथा गरम पानी की बोतल का प्रयोग करें। घायल को जिस स्थिति में आराम मिले उसी में रखें। यदि हड्डी टूटी हो तो उस स्थान को अधिक न हिलाएँ तथा उसी तरह उसे ठीक करने की कोशिश करें। यदि किसी ने विष खाया हो तो उसके प्रतिविष द्वारा विष का नाश करने की व्यवस्था करें। जहाँ तक हो सके, घायल के शरीर पर कसे कपड़े केवल ढीले कर दें, उतारने की कोशिश न करें। जब रोगी कुछ खाने योग्य हो तब उसे चाय, काफी, दूध इत्यादि उत्तेजक पदार्थ पिलाएँ। होश में लाने के लिए स्मेलिंग साल्ट (smelling salt) सुँघाएँ। प्राथमिक उपचारक को डाक्टर के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, बल्कि उसके सहायक के रूप में कार्य करना चाहिए। स्तब्धता (k) का प्राथमिक उपचार इसके अंतर्गत निम्नलिखित उपचार करना चाहिए : 1. यदि रक्तस्त्राव होता हो तो बंद करने का उपाय करें। 2. गर्दन, छाती और कमर के कपड़े ढीले करके खूब हवा दें। 3. रोगी को पीठ के बल लिटाकर सिर नीचा एक तरफ करें। 4. रोगी को अच्छी तरह कोट या कंबल से ढकें तथा पैर में गरम पानी की बोतल से सेंक करें। 5. सिर में चोट न हो तो स्मेलिंग साल्ट सुंघाएँ और होश आने पर गरम तेज चाय अधिक चीनी डालकर पिलाएँ। 6. जरुरी हो तो ऑक्सीजन एप्लाई करें। 7. रक्त स्राव होने पर निचली एक्सटर्मिटीज को एलिवेशन दे, परन्तु रीढ़ की चोट में ऐंसा न करे। सांप काटने पर प्राथमिक चिकित्सा सर्पदंश भी देखें। बहुत सारे सांप विषैले नहीं होते उनके काटने पर घाव को साफ करने और दवाई लगाने से ठीक हो जाता है। लेकिन विषैले सांप के काटने पर जल्द-से-जल्द प्राथमिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है। सांप के काटने से त्वचा पर दो लाल बिंदु जैसे निशान आते है। जहरीले सांप के काटने पर लक्षण सांप की प्रजाति के अनुसार होता है। नाग कोबरा या करैत प्रजाति के सांप के काटने पर न्यूरोलॉजिकल/मस्तिष्क सम्बन्धी लक्षण दीखते हैं जबकि वाईपर के काटने पर रक्त वाहिकाएं नष्ट हो जाती हैं। सांप काटने पर लक्षण सांप के काटने का निशान या सुन्न हो जाना दर्द के जगह पर लाल पड़ जाना काटे हुए स्थान पर गर्म लगना और सूजन आना सांप के काटे हुए निशान के पास के ग्रंथियों में सूजन आँखों में धुंधलापन सांस लेने और बात करने में मुश्किल होना लार बहार निकलना बेहोश होना या कोमा में चले जाना सांप के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा के चरण रोगी को आराम दें शांत और आश्वासन दें सांप के काटे हुए स्थान को साबुन लगाकर, ज्यादा पानी में अच्छे से धोयें सांप के काटे हुए स्थान को हमेशा दिल से नीचें रखें काटे हुए स्थान और उसके आस-पास बर्फ पैक लगायें ताकि इससे जहर का फैलना कम हो जाये प्रभावित व्यक्ति को सोने ना दें और हर पल नजर रखें होश न आने पर ABC रूल अपनाएं ( A=Airway, B=Breathing, and C=Circulation.) जितना जल्दी हो सके मरीज़ को अस्पताल पहुंचाएं। सांप के काटने पर इलाज के लिए सही एंटी-टोक्सिन या सांप के सीरम को चुनने के लिए सांप की पहचान करना बहुत आवश्यक है। अस्थिभंग का प्राथमिक सामान्य उपचार अस्थिभंग (fracture) वाले स्थान को पटरियों तथा अन्य उपायों से अचल बनाए बिना रोगी को स्थानांतरित न करें। चोट के स्थान से यदि रक्तस्त्राव हो रहा हो तो प्रथमतः उसका उपचार करें। बड़ी चौकसी के साथ बिना बल लगाए, अंग को यथासाध्य अपने स्वभाविक स्थान पर बैठा दें। चपतियों (splints), पट्टियों (bandages) और लटकानेवाली पट्टियों, अर्थात् झोलों, के प्रयोग से भग्न अस्थिवाले भाग को यथासंभव स्वाभाविक स्थान पर बनाए रखने की चेष्टा करें। जब संशय हो कि हड्डी टूटी है या नहीं, तब भी उपचार उसी भाँति करें जैसा हड्डी टूटने पर होना चाहिए। मोच (sprains) का प्राथमिक उपचार मोच के स्थान को यथासंभव स्थिर अवस्था में रखकर सहारा दें, जोड़ को अपनी प्राकृतिक दशा में लाकर उसपर खींचकर पट्टी बाँधें और उसे पानी से तर रखें, तथा 3. इससे भी आराम ने मिलने पर पट्टी फिर से खोलकर बाँधें। रक्तस्राव का प्राथमिक उपचार घायल को हमेशा ऐसे स्थान पर स्थिर रखें जिससे रक्तस्त्राव का वेग कम रहे; अंगों के टूटने की अवस्था को छोड़कर अन्य सभी अवस्थाओं में जिस अंग से रक्तस्त्राव हो रहा हो उसे ऊँचा रखें; कपड़े हटाकर घाव पर हवा लगने दें तथा रक्तस्त्राव के भाग को ऊँगली से दबा रखें; बाहरी वस्तु, जैसे शीशा, कपड़े के टुकड़े, बाल आदि, को घाव में से निकाल दें; घाव के आसपास के स्थान पर जीवाणुनाशक तथा बीच में रक्तस्त्रावविरोधी दवा लगाकर रुई, गाज (gauze) या लिंट (lint) रखकर बाँध देना चाहिए। अचेतनावस्था का प्राथमिक उपचार बेहोशी पैदा करनेवाले कारणों से घायल को दूर कर देना तथा अचेतनावस्था के उपचार के साधारण नियमों को यथासंभव काम में लाना चाहिए। डूबने, फाँसी, गलाघुटने तथा बिजली लगने का प्राथमिक उपचार डूबे हुए व्यक्ति को कृत्रिम रीति से सर्वप्रथम श्वास कराएँ तथा गीले कपड़े उतारकर उसका शरीर सूखे वस्त्रों में लपेटें। इसके पश्‍चात उसके पेट तथा फेफड़ों से पानी निकालने की प्रक्रिया शुरू करना चाहिए। कृत्रिम श्‍वास देने के लिए उसे पेट के बल सूखी जमीन पर लिटाकर अपने शरीर के भार उसके पीठ पर पर दबाव डालें। रोगी की पीठ पर दबाव पड़ने से उसके पेट तथा फेफड़ों में भ्‍ारा पानी बाहर निकल जाएगा। अब प्राथमिक चिकित्‍सा करने वाले को रोगी को कृत्रिम श्‍वास देने की प्रक्रिया तब तक करते रहना चाहिए जब तक कि रोगी की श्‍वास प्रक्रिया स्‍वाभाविक रूप से चालू न हो जाए। फाँसी लगाए हुए व्यक्ति के नीचे के अंगों को पकड़कर तुरंत शरीर उठा दें, ताकि उसके गले की रस्सी का कसाव कम हो जाए। रस्‍सी का कसाव कम हाने पर रस्सी काटकर गला छुड़ा दें। फिर कृत्रिम श्वास लिवाएँ। गला घुटने की अवस्था में पीठ पर स्कैपुला (scapula) के बीच में जोरों से मुक्का मारें और फिर गले में उँगली डालकर उसे वमन कराने की चेष्टा करें। इसी प्रकार विषैली गैसों से दम घुटने पर दरवाजे, खिड़कियाँ, रोशनदान आदि खोलकर कमरे का गैस बाहर निकाल दें और रोगी को अपने मुंह के श्वास द्वारा आक्सीजन देने का प्रयास करें। बिजली का शॉक मारने पर तुरंत बिजली का संबंध तोड़कर रोगी को कृत्रिम श्वास दिलाएँ तथा उत्तेजक पदार्थों का सेवन कराएँ। विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस प्रतिवर्ष ८ सितम्बर को मनाया जाता है। इन्हें भी देखें कृत्रिम श्वसन रक्तस्राव विष सर्पदंश जलना (चिकित्सा) प्राथमिक चिकित्सा किट चिकित्सा आपात (मेडिकल इमर्जेन्सी) बाहरी कड़ियाँ प्राथमिक चिकित्सा (भारत विकास मुख्यद्वार (गेटवे)) प्राथमिक चिकित्सा (बीमारी जानकारी) प्राथमिक चिकित्सा जानना जरुरी है (हलो रायपुर) प्राथमिक उपचार एवं सुरक्षा शिक्षा U.S.A. Center for Disease Control first aid European Reference Centre for First Aid Education Order of Malta Ambulance Corps The Irish Health and Safety Authority प्राथमिक चिकित्सा और आपातकालीन उपचार गाइड सन्दर्भ स्वास्थ्य आकस्मिक चिकित्सा सुरक्षा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%B8
मोनिका क्रॉसा-फ़ुख़्स
मोनिका क्रॉसा-फ़ुख़्स (जर्मन: Monika Krause-Fuchs, जन्म: 8. अप्रैल 1941 श्वान में) जर्मन लैंगिक शिक्षा विशेषज्ञ तथा समकालीन क्यूबाई राजनेत्री हैं। परिचय मोनिका क्रॉसा-फ़ुख़्स ने रॉस्टॉक विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। 1962 में क्रॉसा-फ़ुख़्स ने अपना पति से शादी की। उन्होंने 1970 में स्पेनी भाषा का डिप्लोमा को हवाना विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। कृतियाँ Die kubanische Sexualpolitik zwischen Anspruch und Wirklichkeit, Martin Franzbach (Herausgeber): Kuba heute. Politik. Wirtschaft. Kultur., Vervuert 2001, ISBN 3-89354-575-1 Machismo ist noch lange nicht tot!: Kuba: Sexualität im Umbruch, योजना-वेरलाग कॉर्नेलियस, 2008, ISBN 978-3866344693 Cuba – meine Hölle, mein Paradies. 30 Jahre Castro und ein Ende, योजना-वेरलाग कॉर्नेलियस, 2008, ISBN 978-3866346239 बाहरी कड़ियाँ मोनिका क्रॉसा-फ़ुख़्स - जालपृष्ठ 1941 में जन्मे लोग जर्मन वैज्ञानिक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%98%20%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%AE%E0%A5%80
माघ शुक्ल नवमी
माघ शुक्ल नवमी भारतीय पंचांग के अनुसार ग्यारहवें माह की नौवी तिथि है, वर्षान्त में अभी ५१ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। पर्व एवं उत्सव प्रमुख घटनाएँ जन्म निधन इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना तिथियाँ हिन्दू पंचांग विक्रम संवत बाह्य कड़ीयाँ हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) आनलाइन पंचाग विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस महायुग सन्दर्भ नवमी माघ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A5%80
किर्बी
किर्बी वीडियो गेम निनटेंडो उनकी शान्ति के लिए मासाहिरो साकुराई द्वारा बनाई द्वारा प्रकाशित श्रृंखला में एक चरित्र है। उन्होंने कहा कि एचएएल प्रयोगशाला द्वारा विकसित कई पदबंधों खेल की स्टार किया गया है। किर्बी भी हाल के वर्षों में एक लोकप्रिय एनाइम चरित्र बन गया है। [[File:Kirby cosplay.PNG]] कौशल मुद्रास्फीति की दर: किर्बी के शरीर बहुत मजबूत और लचीला किर्बी आपके शरीर बढ़ और उड़ान भर सकते हैं अनुमति देता है। किर्बी सांस सिर्फ वह सामान्य करने के लिए सांस छोड़ता है और वापस जब। खेल में, निकास हवा कमजोर प्राणियों पर हमले का एक प्रकार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता। अवशोषण: मुख्य तकनीक किर्बी एनिमी और खेल का उपयोग करता है। किर्बी फेफड़ों इस्पात के रूप में मजबूत और रबर के रूप में के रूप में लचीले होते हैं, यह एक शक्ति है कि एक बवंडर बना सकते हैं में हवा चूसना करने की क्षमता है। इस प्रकार किसी भी पदार्थ है कि निगल लिया है, किर्बी शरीर प्रतियां अणुओं और उनके डीएनए में डालता है, एक परिवर्तन की इजाजत दी। इस क्षमता, स्वैच्छिक है, यानी किर्बी केवल वह चाहता है, तो हो जाएगा। परिवर्तनशीलता: किर्बी लचीलापन यह दुश्मन खिंचाव या क्रीज जितना आहत नहीं हुआ है। बुलाने स्टार: किर्बी एक स्टार आकर्षित और एक छोटे जहाज के रूप में उपयोग करने की क्षमता है। केवल हाल के खेल में ही देखा की क्षमता (किर्बी 64: क्रिस्टल शार्ड्स और पीछे, और यह भी एनिमी में)। गुणा: केवल किर्बी और अद्भुत दर्पण और किर्बी मास हमला में दिखाया गया है की क्षमता। किर्बी डार्क नाइट मेटा द्वारा चार टुकड़ों में कटा हुआ है, और इन टुकड़ों Kirbies तीन अलग अलग रंग में आते हैं। पहले से ही बड़े पैमाने पर हमला, नैचरोड़ीउस, बुराई खोपड़ी गिरोह के नेता में (गिरोह खोपड़ी) अपनी छड़ी उनकी अच्छाई के एक अंश के साथ खुद के 10 क्लोन, प्रत्येक में किर्बी अलग हो गए, और अपने दिल (जो नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है लेने के लिए का उपयोग करता है उन्हें)। चपलता: किर्बी बहुत लचीला और हल्के होने के लिए, यह बहुत चुस्त है और, टम्बल करने की बारी है, महान और मजबूत स्ट्रोक, गति के साथ चलने देते हैं, शक्तिशाली जंगल देने के लिए और विनाशकारी हवाओं बनाने महान कलाबाज़ी दे सकते हैं। हेल्पर: कुछ खेलों में, किर्बी अपने मौजूदा शक्तियों के अनुसार एक सहायक बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि इन शक्तियों खो देता है, और सहायक सिर्फ किर्बी जो शक्ति प्राप्त करने के लिए अवशोषित की तरह है। स्रोत किर्बी 1992 में मासाहिरो साकुराई, एचएएल प्रयोगशाला में एक डेवलपर, द्वारा बनाया गया था अपने भविष्य के खेल के नायक, जो गेम ब्वॉय के लिए किर्बी ड्रीम लैंड बन जाएगा किया जाना है। अपने दूसरे खेल से, निनटेंडो मनोरंजन प्रणाली के लिए 1993 में किर्बी के साहसिक, किर्बी पहले दुश्मन की शक्तियों नकल करने की क्षमता हो जाता है। एनिमी और मैंगा किर्बी शीर्षक Hoshi no Kirby ( "सितारे के किर्बी" उसे अपने एनिमी में अभिनय किया या Right Back at Ya!)। यह वर्तमान में शीर्षक के अंतर्गत 4Kids द्वारा अमेरिका में लाइसेंस प्राप्त है करते नोर्टे Kirby: Right Back at Ya! और 4Kids TV पर प्रसारित। एनिमी निनटेंडो और HAL Laboratory द्वारा निर्मित है, और एक ही शीर्षक पर आधारित एक फिल्म है Kirby: Fright to the Finish!!!। एनिमी में Kirby: Right Back at Ya!, कहानी पॉप स्टार पर चला जाता है, और अधिक स्पष्ट, भूमि, किर्बी ड्रीम जहां जहाज गलती से दुर्घटनाओं। तब से, गुलाबी गेंद कैपी टाउन, ड्रीम लैंड के एक शहर में रहने के लिए शुरू होता है। दुर्भाग्य से, राजा Dedede किर्बी ने अपने राज्य में नहीं चाहता है, तो दुःस्वप्न उद्यम करने के लिए राक्षसों को पूछने के लिए और किर्बी और कैपी से अधिक उन्हें भेजता है। लेकिन किर्बी अपनी शक्तियों का उपयोग करता है उन्हें बचाने के लिए। किर्बी भी अपने ही मंगा श्रृंखला है कि जापान के बाहर प्रकाशित किया गया कभी नहीं में अभिनय किया। अन्य खेलों में विशेष भागीदारी किर्बी सुपर स्मैश ब्रदर्स खेल, सुपर स्मैश ब्रदर्स में प्रकट होता है हाथापाई, सुपर स्मैश ब्रदर्स विवाद और सुपर स्मैश ब्रदर्स Nintendo 3DS और इस खेल में Wii यू किर्बी के लिए चूसना और उनके विरोधियों के कौशल को अवशोषित, यह एक बहुत अच्छा प्रतिद्वंद्वी बनाने के लिए उनकी क्षमता है। दुश्मनों की क्षमताओं वह भी अपनी उपस्थिति का हिस्सा लेता है अवशोषित करने के लिए। सभी लेख जिन्हें विकिफ़ाइ करने की आवश्यकता है काल्पनिक व्यक्तित्व
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तिज़ेन
तिज़ेन अथवा तैज़ेन (Tizen; ) लिनक्स कर्नेल और लिनक्स एपीआई वाला जीएनयू सी-लाइब्रेरी कार्यान्वित प्रचालन तन्त्र हैं। यह स्मार्टफ़ोन, टैबलेट, वाहन-मनोरंजक उपकरणों, स्मार्ट टीवी, व्यक्तिगत संगणक, स्मार्ट कैमरा, पहनने योग्य कंप्यूटर, स्मार्टवॉच, डीवीडी प्लेयर, प्रिण्टर और घरेलू सामान (जैसे रेफ्रिजरेटर, प्रकाशन, कपड़े धोने की मशीन, वातानुकूलन यन्त्र, ओवन/माइक्रोवेव और रोबोटिक वैक्यूम क्लिनर आदि) सहित विभिन्न यन्त्रों में प्रयुक्त होता है। इसका उद्देश्य उपकरणों में संगत उपयोगकर्ता अनुभव देना है। तैज़ेन लिनक्स फाउंडेशन की एक परियोजना है। सन्दर्भ लिनक्स प्रचालन तंत्र प्रौद्योगिकी
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रिपब्लिक टीवी
रिपब्लिक टीवी (Republic TV) एक फ्री-टू-एयर भारतीय दक्षिणपन्थी न्यूज टीवी चैनल है जो मई २०१७-में लॉन्च किया गया था। अर्नब गोस्वामी और राजीव चंद्रशेखर द्वारा इसकी सह-स्थापना की गई थी . चंद्रशेखर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के एक स्वतंत्र विधायक थे जो बाद में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और गोस्वामी टाइम्स नाउ के पूर्व प्रधान संपादक थे। उद्यम मुख्य रूप से चंद्रशेखर द्वारा उनकी कंपनी एशियानेट न्यूज़ के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था। मई 2019 में चंद्रशेखर द्वारा अपनी हिस्सेदारी त्यागने के बाद, गोस्वामी बहुसंख्यक हिस्सेदार बन गए। इसके सम्पादक अर्णव गोस्वामी है जो इस चैनेल के बड़े अंश के स्वामी भी हैं। इस चैनेल के अल्पांश का स्वामित्व एशियानेट न्यूज के पास है। इसका आधार मुम्बई और बंगलुरु में है। चैनल का आलोचनात्मक स्वागत नकारात्मक रहा है। चैनल पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग का अभ्यास करने का आरोप लगाया गया है, और उसने भाजपा का समर्थन करने वाली फर्जी खबर प्रकाशित की है। इसे भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण और न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी के नियमों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया है। इसकी वजह से चैनल की आलोचना हुई ; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विधायक शशि थरूर ने चैनल पर एक हाई-प्रोफाइल सिविल मानहानि मामला दायर किया । मानहानि मई 2017 में, सांसद शशि थरूर ने दिल्ली हाईकोर्ट में गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के खिलाफ 8 से 13 मई तक चैनल द्वारा समाचार आइटमों के प्रसारण के संबंध में दीवानी मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसमें 2014 में उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के संबंध में उनके लिंक का दावा किया गया था। चैनल की प्रतिक्रिया की मांग करते हुए, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, "बयानबाजी को कम करें। आप अपनी कहानी बाहर रख सकते हैं, आप तथ्यों को सामने रख सकते हैं। आप उसे नाम नहीं बता सकते। " भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रतिबंध चैनल के रिपोर्टरों को उनके राजनीतिक दल की आलोचना का हवाला देते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के किसी भी संवाददाता सम्मेलन में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। आईपी अधिकारों का उल्लंघन मई 2017 में, बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (BCCL) ने गोस्वामी और प्रेमा श्रीदेवी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत रिपब्लिक टीवी के एक पत्रकार के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। दोनों ने पहले टाइम्स नाउ के साथ काम किया था, जिसके मालिक बीसीसीएल थे और संचालित करते थे, बीसीसीएल ने आरोप लगाया कि दोनों ने टाइम्स नाउ की बौद्धिक संपदा (आईपी) का इस्तेमाल कुछ ऑडियो टेपों को प्रसारित करने में करते थे जो कि पूर्व चैनल में उनके समय के दौरान थे। आईपी उल्लंघन के साथ-साथ, शिकायत में चैनल के लॉन्च के बाद कई मौकों पर दोनों पर, चोरी के अपराधों, ट्रस्ट के आपराधिक उल्लंघन और संपत्ति के दुरुपयोग के आरोप भी लगे। टीआरपी घोटाला अक्तूबर २०२० में इस चैनल पर अपने टीआरपी को कृत्रिम तरीके से प्रभावित करके, टीआरपी घोटाला करने का आरोप लगा. अक्टूबर 2020 में, मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी की दर्शकों की रेटिंग की जांच शुरू की और आरोप लगाया कि चैनल ने कम आय वाले व्यक्तियों को रिश्वत देकर अपनी रेटिंग बढ़ा दी है. चैनल द्वारा रिश्वत दिए गए दर्शकों में वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अंग्रेजी नहीं समझी थी, अपने टीवी को चालू रखने के लिए और रिपब्लिक टीवी से जुड़े थे। चैनल पर आरोप है की, इसने चुनिन्दा दर्शक (जिनके टीवी पर टी-आर-पी मीटर लगा था) उनको घूस देकर उन्हें अपना चैनल टीवी में लगाकर हमेशा टीवी चालू रखने को बोला गया. ऐसा करने से रिपब्लिक टीवी की टी-आर-पी बढ़ गयी, जिससे की चैनल को विज्ञापन का पैसा मिलने लगा. गोस्वामी ने आरोपों से इनकार किया और मुंबई पुलिस पर चैनल की हालिया आलोचना के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने का आरोप लगाया। 21 अक्टूबर को, केंद्रीय जांच ब्यूरो की भागीदारी के बाद टीआरपी के हेरफेर की जांच देशव्यापी मामला बन गया। यह मामला अब भारत के प्रत्येक समाचार चैनल को संभावित रूप से शामिल करता है। 13 दिसंबर को रिपब्लिक टीवी के सीईओ को मुंबई में गिरफ्तार किया गया था। सन्दर्भ इन्हें भी देखें अर्णब गोस्वामी रिपब्लिक भारत बाहरी कड़ियाँ Republic Impact: English News Channels go Hinglish..! हिन्दी टीवी चैनल भारत में 24 घंटे के टेलीविजन समाचार चैनल हिन्दी समाचार चैनल
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मधुबाला
मधुबाला (; जन्म: 14 फ़रवरी 1933, दिल्ली - निधन: 23 फ़रवरी 1969, मुंबई) भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री थी उनके अभिनय में एक आदर्श भारतीय नारी को देखा जा सकता है। और निर्माता को दृढ़-इच्छाशक्ति और स्वतंत्र पात्रों के चित्रण के लिए जाना जाता है, जिन्हें हिंदी सिनेमा में महिलाओं के पूर्ववर्ती चित्रणों से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान का श्रेय दिया गया है। 1950 के दर्शक के दौरान सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक भुगतान पाने वाले भारतीय मनोरंजनकर्ताओं में से एक, मधुबाला दो दशक से अधिक समय तक फिल्म में सक्रिय थीं और उन्होंने 70 से अधिक चलचित्रों में भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें महाकाव्य नाटक से लेकर सामाजिक हास्य शामिल थे। उन्होंने समकालीन अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से छापा, दक्षिण एशियाई, यूरोपीय और पूर्वी अफ्रीकी देशों के बाजारों में एक प्रमुख अनुयायी प्राप्त किया। 2008 में, एक आउटलुक पोल के परिणामों ने उन्हें बॉलीवुड के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध अभिनेत्री के रूप में सूचीबद्ध किया। दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी, मधुबाला आठ साल की उम्र में अपने परिवार के साथ मुंबई चली गईं और कुछ ही समय बाद कई फिल्मों में छोटी भूमिकाओं में दिखाई दीं।उन्होंने 1940 के दशक के अंत में प्रमुख भूमिकाओं में प्रगति की, और नाटक नील कमल (1947) और अमर (1954), हॉरर फिल्म महल (1949), और रोमांटिक फिल्मों बादल (1951) और तराना (1951) से पहचान हासिल की। एक संक्षिप्त झटके के बाद, मधुबाला को मिस्टर एंड मिसेज '55 (1955), चलती का नाम गाड़ी (1958) और हाफ टिकट (1962), क्राइम फिल्मों हावड़ा ब्रिज और काला पानी (दोनों) में लगातार आलोचनात्मक और व्यावसायिक सफलता मिली। 1958), और संगीतमय बरसात की रात (1960)। ऐतिहासिक महाकाव्य नाटक मुगल-ए-आज़म (1960) में मधुबाला के अनारकली के चित्रण ने उन्हें व्यापक प्रशंसा और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया; उसके बाद से आलोचकों द्वारा उनके प्रदर्शन को भारतीय सिनेमाई इतिहास में सर्वश्रेष्ठ में से एक के रूप में वर्णित किया गया है। मुगल-ए-आज़म उस समय भारत में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म के रूप में उभरी, जिसके बाद उन्होंने फिल्म में छिटपुट रूप से काम किया, नाटक शराबी (1964) में अपनी अंतिम उपस्थिति दर्ज की। अभिनय के अलावा, उन्होंने अपने प्रोडक्शन हाउस मधुबाला प्राइवेट लिमिटेड के तहत तीन फिल्मों का निर्माण किया, जिसे 1953 में उनके द्वारा सह-स्थापित किया गया था। मजबूत गोपनीयता बनाए रखने के बावजूद, मधुबाला ने अपने व्यापक परोपकारी कार्यों के लिए, और अभिनेता दिलीप कुमार, जिनसे उन्होंने 1951 से 1956 तक डेट किया, और अभिनेता-गायक किशोर कुमार के साथ अपने संबंधों के लिए महत्वपूर्ण मीडिया कवरेज अर्जित किया, जिनसे उन्होंने 1960 में शादी की। वैवाहिक जीवन उसके स्वास्थ्य की विफलता के साथ मेल खाता है; वह वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष के कारण सांस फूलने और हेमोप्टाइसिस के आवर्ती मुकाबलों से पीड़ित थी, अंततः 36 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। उसका निजी जीवन और अंतिम वर्ष वर्षों से व्यापक मीडिया और सार्वजनिक जांच का विषय बन गए हैं। चेहरे द्वारा`भावाभियक्ति तथा नज़ाक़त उनकी प्रमुख विशेषतायें थीं। उनके अभिनय, प्रतिभा, व्यक्तित्व और खूबसूरती को देख कर यही कहा जाता है कि वह भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे महान अभिनेत्री है। वास्तव मे हिन्दी फ़िल्मों के समीक्षक मधुबाला के अभिनय काल को स्वर्ण युग की संज्ञा से सम्मानित करते हैं।<ref>{{cite book |last1=Siṃha |first1=Alakā |title=Ādhunika bhārata kī prasiddha mahilāeṃ |date=2008 |publisher=Atmaram & Sons |isbn=9788190482882 |url=https://books.google.co.in/books?id=MDJV8q-toXAC&pg=PA159&lpg=PA159&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%AF+%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2+%E0%A4%95%E0%A5%8B+%27%27%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3+%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%97%27&source=bl&ots=7U_a2V8w6k&sig=ACfU3U1Mo8cQmNK0ZwqydCl-YWZZrDEkyQ&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwiA6cbnp7rgAhXabX0KHWvTB9cQ6AEwA3oECAcQAQ#v=onepage&q=%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A5%8B%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%20%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%97'&f=false |accessdate=14 फरवरी 2019 |language=hi}}</ref> प्रारम्भिक जीवन मधुबाला का जन्म मुमताज जहां बेगम देहलवी के रूप में दिल्ली, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत में १४ फरवरी १९३३ को उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत की पेशावर घाटी से युसुफजई जनजाति के पश्तून वंश के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। वह अताउल्लाह खान और आयशा बेगम की ग्यारह संतानों में से पाँचवीं थीं। मधुबाला के चार भाई-बहनों की मृत्यु बचपन में हो गई; उनकी बहनें जो वयस्कता तक जीवित रहीं हैं, उनमें कनीज़ फातिमा, अल्ताफ, चंचल और ज़हीदा शामिल हैं। अताउल्लाह खान, जो पेशावर घाटी के पश्तूनों की युसुफजई जनजाति से आए थे, इंपीरियल टबैको कंपनी में एक कर्मचारी थे। परिवार के सदस्यों से अज्ञात, मधुबाला वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष के साथ पैदा हुई थी, जो कि एक जन्मजात हृदय विकार है जिसका उस समय कोई इलाज नहीं था। किंवदंती के अनुसार, एक प्रतिष्ठित मुस्लिम फ़कीर ने भविष्यवाणी की थी कि मधुबाला बड़ी होकर प्रसिद्धि और भाग्य अर्जित करेंगी, लेकिन एक दुखी जीवन व्यतीत करेंगी और कम उम्र में ही मर जाएंगी। मधुबाला ने अपना अधिकांश बचपन दिल्ली में बिताया और बिना किसी स्वास्थ्य समस्या के बड़ी हुईं। मुस्लिम पिता के रूढ़िवादी विचारों के कारण, न तो मधुबाला और न ही उनकी कोई बहन को पढ़ाया गया। मधुबाला ने फिर भी अपने पिता के मार्गदर्शन में उर्दू  और हिंदी के साथ-साथ अपनी मूल भाषा पश्तो पढ़नी और लिखनी सीखीं। शुरू से ही फ़िल्में देखने की शौकीन मधुबाला अपनी माँ के सामने अपने पसंदीदा दृश्यों का प्रदर्शन करती थी और मनोरंजन करने के लिए अपना समय नृत्य और फ़िल्मी पात्रों की नकल करने में बिताती थी। रूढ़िवादी परवरिश के बावजूद उन्होंने बचपन में ही एक फिल्म अभिनेत्री बनने का लक्ष्य रखा—जिसे उनके पिता ने सख्ती से अस्वीकार कर दिया। १९४० में एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए कर्मचारी कंपनी से निकाल दिए जाने के बाद खान का निर्णय बदल गया। जल्द ही मधुबाला को ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन पर खुर्शीद अनवर की रचनाएं गाने के लिए नियुक्त किया गया। सात वर्ष की आयु में उन्होंने वहां महीनों तक काम करना जारी रखा, और बॉम्बे में स्थित स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज के महाप्रबंधक राय बहादुर चुन्नीलाल के परिचित में शामिल हो गईं। चुन्नीलाल, जो मधुबाला को पसंद करते थे, ने खान को एक बेहतर जीवन शैली के लिए बंबई जाने का सुझाव दिया। बॉलीवुड में प्रवेश १९४१ की गर्मियों में, खान, मधुबाला और परिवार के अन्य सदस्य बॉम्बे में स्थानांतरित हो गए और उत्तर-पश्चिमी बॉम्बे के मलाड पड़ोस में मौजूद एक गौशाला में बस गए। स्टूडियो के अधिकारियों की मंजूरी के बाद, चुन्नीलाल ने मधुबाला को बॉम्बे टॉकीज के प्रोडक्शन में एक किशोर भूमिका के लिए साइन किया, बसंत (1942) ), के वेतन पर। जुलाई 1942 में रिलीज़ हुई, बसंत व्यावसायिक रूप से एक बड़ी सफलता बन गई,< ref name="Dawn" /> लेकिन हालांकि मधुबाला के काम को सराहना मिली, स्टूडियो ने उनका अनुबंध छोड़ दिया क्योंकि उस समय किसी बाल कलाकार की आवश्यकता नहीं थी। दिल्ली। बाद में उन्हें शहर में कम वेतन वाली अस्थायी नौकरियां मिलीं, लेकिन आर्थिक रूप से संघर्ष करना जारी रखा। 1944 में, बॉम्बे टॉकीज के प्रमुख और पूर्व अभिनेत्री देविका रानी ने खान को मधुबाला को ज्वार भाटा (1944) में भूमिका के लिए बुलाया। मधुबाला को फिल्म नहीं मिली लेकिन खान ने अब फिल्मों में एक संभावना को देखते हुए स्थायी रूप से बॉम्बे में बसने का फैसला किया। परिवार फिर से मलाड में अपने अस्थायी निवास पर लौट आया और खान और मधुबाला काम की तलाश में शहर भर के फिल्म स्टूडियो में बार-बार आने लगे। मधुबाला जल्द ही चंदूलाल शाह के स्टूडियो रंजीत मूवीटोन के साथ के मासिक भुगतान पर तीन साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी आय के कारण खान ने परिवार को मलाड में एक पड़ोसी किराए के घर में स्थानांतरित कर दिया। अप्रैल 1944 में, एक गोदी विस्फोट में किराए का घर नष्ट हो गया; मधुबाला और उनका परिवार केवल इसलिए बच गया क्योंकि वे एक स्थानीय थिएटर में गए थे। अपनी सहेली के घर जाने के बाद , मधुबाला ने अपना फिल्मी करियर जारी रखा, रंजीत की पांच फिल्मों में छोटी भूमिकाएं निभा रही हैं: मुमताज़ महल (1944), धन्ना भगत (1945), राजपुतानी (1946), फूलवारी (1946) और पुजारी (1946); उन सभी में उन्हें "बेबी मुमताज" के रूप में श्रेय दिया गया था। इन वर्षों में उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा; 1945 में फूलवारी की शूटिंग के दौरान, मधुबाला ने खून की उल्टी की, जिससे उनकी बीमारी का पूर्वाभास हो गया, जो धीरे-धीरे जड़ पकड़ रही थी। अपनी गर्भवती माँ के इलाज के लिए एक फिल्म निर्माता। उद्योग में पैर जमाने के लिए उत्सुक, नवंबर 1946 में, मधुबाला ने मोहन सिन्हा के निर्देशन में बनी दो फिल्मों की शूटिंग शुरू की, चित्तौड़ विजय और मेरे भगवान, जो वयस्क भूमिकाओं में सिल्वर स्क्रीन के लिए उनका परिचय माना जाता था। link1=बाबुराव पटेल|तारीख=1 नवंबर 1946|शीर्षक=पिक्चर्स इन मेकिंग|काम=फिल्मइंडिया|प्रकाशक=न्यूयॉर्क: द म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट लाइब्रेरी| /पृष्ठ/n869/मोड/1अप|पहुंच-तिथि=5 अक्टूबर 2021}}</ref> मुख्य भूमिका में मधुबाला की पहली परियोजना सोहराब मोदी की दौलत थी, लेकिन इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया था (और अगले वर्ष तक इसे पुनर्जीवित नहीं किया जाएगा)।< रेफरी></ref> एक प्रमुख महिला के रूप में उनकी शुरुआत किदार शर्मा' से हुई। s नाटक नील कमल, जिसमें उन्होंने नवोदित कलाकार राज कपूर और बेगम पारा के साथ अभिनय किया। शर्मा की पहली पसंद अभिनेत्री कमला चटर्जी की मृत्यु के बाद उन्हें फिल्म की पेशकश की गई थी। मार्च 1947 में रिलीज हुई, नील कमल दर्शकों के बीच लोकप्रिय थी और मधुबाला के लिए व्यापक सार्वजनिक पहचान हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने कपूर के साथ चित्तौड़ विजय और दिल की रानी, दोनों में वापसी की। जिनमें से 1947 में और 'अमर प्रेम' में रिलीज़ हुई, जो अगले साल सामने आई। मेरे भगवान में उनके काम से प्रभावित होकर, निर्देशक मोहन सिन्हा ने उन्हें "मधुबाला" को अपने पेशेवर नाम के रूप में लेने का सुझाव दिया। मधुबाला को सफलता लाल दुपट्टा (1948) से मिली। ; बाबुराव पटेल ने नाटक को "स्क्रीन अभिनय में उनकी परिपक्वता का पहला मील का पत्थर" बताया। पराई आग (1948), पारस और सिंगार (दोनों 1949) में उनकी सहायक भूमिकाएँ ) भी उनकी आलोचनात्मक प्रशंसा के साथ मुलाकात की, और उन्हें संगीत में व्यावसायिक सफलता मिली। 'दुलारी (1949), जिसमें उन्होंने टाइटैनिक को चित्रित किया था अभिनेता। इसके अलावा 1949 में, मधुबाला ने कमल अमरोही के महल में एक फीमेल फेटले का किरदार निभाया था। , भारतीय सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म है। जुलाई 2021 व्यापार विश्लेषकों ने इसकी भविष्यवाणी की थी अपने अपरंपरागत विषय के कारण असफल होना। यह रिलीज होने पर गलत साबित हुआ, और विद्वान राहेल ड्वायर ने कहा कि दर्शकों के बीच मधुबाला की अज्ञानता उसके चरित्र की रहस्यमय प्रकृति में जोड़ा गया। फिल्म, जो मधुबाला की अभिनेता और बहनोई अशोक कुमार के साथ कई सहयोगों में से पहली होगी, बॉक्स ऑफिस पर तीसरी सबसे बड़ी सफलता के रूप में उभरी। वर्ष, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने उस समय के प्रमुख अभिनेताओं के साथ अभिनीत भूमिकाओं की एक श्रृंखला पर हस्ताक्षर किए।The बालीवुड में उनका प्रवेश 'बेबी मुमताज़' के नाम से हुआ। उनकी पहली फ़िल्म बसन्त (१९४२) थी। देविका रानी बसन्त में उनके अभिनय से बहुत प्रभावित हुयीं, तथा उनका नाम मुमताज़ से बदल कर ' मधुबाला' रख दिया। यह नाम उस वक्त के सुप्रसिद्ध हिंदी कवि हरिकृष्ण प्रेमी इन्होनी दिया था । उन्हे बालीवुड में अभिनय के साथ-साथ अन्य तरह के प्रशिक्षण भी दिये गये। (१२ वर्ष की आयु मे उन्हे वाहन चलाना आता था)। प्रमुखता और उतार-चढ़ाव का उदय (1950-1957) मधुबाला ने अजीत की प्रेम रुचि के. अमरनाथ का सामाजिक नाटक बेकसूर (1950)। इस फीचर को सकारात्मक समीक्षा मिली और इसे वर्ष की सबसे अधिक कमाई करने वाली बॉलीवुड प्रस्तुतियों में स्थान दिया गया। . इसके अलावा 1950 में, वह कॉमेडी-ड्रामा हंस्टे आंसू में दिखाई दीं, जो एक वयस्क प्रमाणन प्राप्त करने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी। अगले वर्ष, मधुबाला ने अमिया चक्रवर्ती-निर्देशित एक्शन फिल्म बादल में अभिनय किया। (1951), एक राजकुमारी के रूप में जिसे अनजाने में प्रेम नाथ के चरित्र से प्यार हो जाता है। उसका काम मिश्रित समीक्षाओं के लिए खुला; आलोचकों का मानना ​​था कि उन्हें अपने संवादों को अधिक धीरे और स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए था। उन्होंने एम. सादिक के रोमांस सियां में मुख्य भूमिका निभाई, जो द सिंगापुर फ्री प्रेस' के रोजर यू कमेंट किया गया था "परफेक्शन के लिए" खेला गया था। ' एक सफलता|प्रकाशक=सिंगापुर फ्री प्रेस|बादल और सैयां दोनों ही बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता साबित हुई। मधुबाला ने 1951 की कॉमेडी तराना और 1952 के नाटक [[ में लगातार दो बार अभिनेता दिलीप कुमार के साथ काम किया। संगदिल]]। इन फिल्मों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया आर्थिक रूप से, व्यापक दर्शकों के बीच ऑन और ऑफस्क्रीन जोड़ी को लोकप्रिय बनाना। तराना, फिल्मइंडिया' पर ने उनके प्रदर्शन के साथ-साथ कुमार के साथ उनकी केमिस्ट्री की तारीफ की। 1950 के दशक के मध्य की अवधि में मधुबाला की सफलता में गिरावट देखी गई, क्योंकि उनकी अधिकांश रिलीज़ व्यावसायिक रूप से विफल रही, जिसके कारण उन्हें "बॉक्स ऑफिस ज़हर" करार दिया गया। अप्रैल 1953 में, मधुबाला ने मधुबाला प्राइवेट लिमिटेड नामक एक प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की। अगले वर्ष, मद्रास में एस.एस. वासन की बहुत दिन हुवे (1954) की शूटिंग के दौरान उन्हें एक बड़ा स्वास्थ्य झटका लगा। फिर भी उसने फिल्म पूरी की और बंबई लौट आई, बाद में महबूब खान की अमर (1954) में एक प्रेम त्रिकोण में शामिल एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अभिनय किया, जिसमें उसने सेट पर एक दृश्य में सुधार किया। फिल्म का मिश्रित स्वागत हुआ, हालांकि उसकी प्रशंसा की गई; समीक्षक दिनेश रहेजा ने फिल्म को "यकीनन मधुबाला का पहला सही मायने में परिपक्व प्रदर्शन" के रूप में वर्णित किया, और फिल्मफेयर के रचित गुप्ता ने कहा कि मधुबाला ने अपने सह-कलाकारों को भारी कर दिया और "एक सूक्ष्म प्रदर्शन के साथ अपनी भूमिका को आगे बढ़ाया"। अमर बॉक्स-ऑफिस पर असफल साबित हुआ। मधुबाला की अगली रिलीज़ उनका अपना प्रोडक्शन वेंचर, नाता (1955) थी, जिसमें उन्होंने अपनी वास्तविक जीवन की बहन चंचल के साथ सह-अभिनय किया था। इस फिल्म को भी गुनगुनी प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण मधुबाला को क्षतिपूर्ति के लिए अपना बंगला बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। मिस्टर एंड मिसेज '55, भारत में 1955 की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में से एक थी, जिसमें मधुबाला को एक भोली-भाली उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया था, जिसकी चाची ने उसे गुरु दत्त के चरित्र के साथ एक दिखावटी विवाह के लिए मजबूर किया। द इंडियन एक्सप्रेस ने मधुबाला की "इम्पिश चार्म और ब्रीज़ी कॉमिक टाइमिंग" को कॉमेडी के प्रमुख सहायकों में से एक के रूप में स्वीकार किया। 1956 में नया दौर की शूटिंग को लेकर मधुबाला और निर्देशक बी.आर. चोपड़ा के बीच एक संघर्ष छिड़ गया, जिसमें उन्हें महिला नायक की भूमिका निभाने के लिए चुना गया था। अपनी असहयोगिता और अव्यवसायिकता का हवाला देते हुए, चोपड़ा ने मधुबाला की जगह वैजयंतीमाला ले ली और पूर्व में ₹30,000 (US$390) का मुकदमा कर दिया। नया दौर रिहा होने के बाद चोपड़ा ने इसे वापस लेने से पहले मुकदमा लगभग आठ महीने तक जारी रखा। मधुबाला 1956 में दो पीरियड फिल्मों में दिखाई दीं, राज हाथ और शिरीन फरहाद, दोनों महत्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलताएँ। अगले वर्ष, उन्होंने ओम प्रकाश की गेटवे ऑफ इंडिया (1957) में एक भगोड़ी उत्तराधिकारी का किरदार निभाया, जिसे समीक्षक दीपा गहलोत ने अपने करियर के बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक माना। मधुबाला ने तब नाटक एक साल (1957) में एक बीमार व्यक्ति के रूप में अभिनय किया, जो अशोक कुमार के चरित्र के लिए गिर जाता है। फिल्म दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुई, जिससे मधुबाला का स्टारडम फिर से स्थापित हो गया। पुनरुत्थान, प्रशंसा और अंतिम कार्य (1958-1964) मधुबाला ने वर्ष 1958 की शुरुआत राज खोसला की काला पानी से की थी, जिसमें उन्होंने एक निडर पत्रकार के रूप में एक 15 वर्षीय हत्या की जांच की थी। बाद में उन्होंने हावड़ा ब्रिज (1958) में एडना के रूप में अभिनय करने के लिए अपनी नियमित फीस माफ कर दी, निर्देशक शक्ति सामंत के साथ उनका पहला सहयोग, जिसमें एक एंग्लो-इंडियन कैबरे डांसर की उनकी भूमिका ने परिष्कृत पात्रों के उनके पिछले चित्रणों से एक प्रस्थान को चिह्नित किया। हावड़ा ब्रिज दोनों और काला पानी को उनके लिए सकारात्मक समीक्षाएं मिलीं और 1958 की उनकी बाद की रिलीज़ (फागुन और चलती का नाम गाड़ी) के साथ, वर्ष की शीर्ष कमाई वाली बॉलीवुड फिल्मों में स्थान दिया गया। सत्येन बोस की कॉमेडी चलती का नाम गाड़ी में - 1950 के दशक की सबसे बड़ी कमाई वाली तस्वीरों में से एक - मधुबाला ने किशोर कुमार के चरित्र के साथ प्रेम संबंध में शामिल एक अमीर शहर की महिला को चित्रित किया। Rediff.com के दिनेश रहेजा ने पाया कि मधुबाला "करिश्मा से भरपूर हैं और उनकी हंसी संक्रामक है।" स्तंभकार रिंकी भट्टाचार्य ने चलती का नाम गाड़ी में मधुबाला के चरित्र का उल्लेख "एक शीर्ष पसंदीदा" के रूप में किया, जिसमें कहा गया कि उनका प्रदर्शन एक स्वतंत्र, शहरी महिला का उदाहरण है। सामंत के साथ उनका दूसरा सहयोग, इंसान जाग उठा (1959), एक सामाजिक ड्रामा फिल्म थी जिसमें नायक अपने रहने की स्थिति में सुधार के लिए एक बांध के निर्माण पर काम करते हैं। शुरुआत में, फिल्म केवल एक मामूली सफलता थी, लेकिन इसकी समीक्षा की गई है। आधुनिक समय के आलोचकों द्वारा अनुकूल। फिल्मफेयर के रचित गुप्ता और डेक्कन हेराल्ड के रोक्तिम राजपाल ने मधुबाला के प्रदर्शन को एक गांव की लड़की गौरी के रूप में उनके बेहतरीन कामों में से एक के रूप में उद्धृत किया है। 1959 में भारत भूषण की सह-अभिनीत कल हमारा है में दो समान भाई-बहनों की दोहरी भूमिका निभाने के लिए उन्हें आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। मधुबाला: हर लाइफ, हर फिल्म्स (1997) की लेखिका खतीजा अकबर ने अपनी बारी को "एक शानदार प्रदर्शन, विशेष रूप से गुमराह 'अन्य' बहन की भूमिका में कहा।" दो उस्ताद (1959) की व्यावसायिक सफलता के बाद, जिसने उन्हें एक दशक के बाद राज कपूर के साथ फिर से देखा, मधुबाला ने एक दूसरी फिल्म, कॉमेडी महलों के ख्वाब (1960) का निर्माण किया। इसने बॉक्स ऑफिस पर खराब प्रदर्शन किया। दिनेश रहेजा ने के. आसिफ की मुगल-ए-आज़म (1960) को मधुबाला के करियर की "ताज गौरव" के रूप में वर्णित किया है। दिलीप कुमार और पृथ्वीराज कपूर के सह-कलाकार, यह फिल्म 16 वीं शताब्दी की एक दरबारी नर्तकी, अनारकली (मधुबाला) और मुगल राजकुमार सलीम (कुमार) के साथ उसके अफेयर पर घूमती है। फिल्मांकन, जो पूरे 1950 के दशक में हुआ, मधुबाला के लिए भारी साबित हुआ। वह रात के कार्यक्रम और जटिल नृत्य दृश्यों से परेशान थी, जिससे उसे चिकित्सकीय रूप से बचने के लिए कहा गया था, और कुमार के साथ उसका सात साल का रिश्ता शूटिंग के बीच समाप्त हो गया; फिल्म की शूटिंग के दौरान अभिनेताओं के बीच दुश्मनी की कई खबरें थीं। अगस्त 1960 में, मुगल-ए-आज़म की उस समय तक की किसी भी भारतीय फिल्म की सबसे व्यापक रिलीज़ थी, और यह अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बन गई, एक अंतर जो 15 वर्षों तक कायम रहा। फिल्म को सार्वभौमिक प्रशंसा मिली, जिसमें मधुबाला के प्रदर्शन ने विशेष ध्यान आकर्षित किया: फिल्मफेयर ने फिल्म को भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर और अब तक के उनके बेहतरीन काम के रूप में उद्धृत किया, [100] जबकि द इंडियन एक्सप्रेस के एक समीक्षक ने कहा, "दृश्य के बाद दृश्य इस बात की गवाही देता है। एक प्राकृतिक अभिनेत्री के रूप में मधुबाला के उत्कृष्ट उपहार।" मुग़ल-ए-आज़म ने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता, और मधुबाला के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित सात नामांकन के साथ 8वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह का नेतृत्व किया। मधुबाला ने शक्ति सामंत की जाली नोट और पी. एल. संतोषी की बरसात की रात (दोनों 1960) के साथ इस सफलता का अनुसरण किया। पूर्व नकली धन के बारे में एक क्राइम थ्रिलर थी; यह आर्थिक रूप से सफल रहा। अपने विषम विषयों के लिए आलोचकों द्वारा विख्यात मुस्लिम-सामाजिक संगीत बरसात की रात में, मधुबाला ने एक विद्रोही शबनम को चित्रित किया, जो अपने माता-पिता के रिश्ते पर आपत्ति जताने के बाद अपने प्रेमी (भारत भूषण) के साथ भाग जाती है। उनके प्रदर्शन की प्रशंसा की गई, और फिल्म एक बड़ी हिट बन गई, केवल मुगल-ए-आज़म को वार्षिक बॉक्स-ऑफिस ग्रॉस में पीछे छोड़ दिया। मुगल-ए-आज़म और बरसात की रात की बैक-टू-बैक ब्लॉकबस्टर सफलताओं ने बॉक्स ऑफिस इंडिया को मधुबाला को 1960 की सबसे सफल अग्रणी महिला के रूप में उल्लेख करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि मधुबाला की सफलता से उन्हें और भी प्रमुख भूमिकाएं मिल सकती हैं, लेकिन उन्हें सलाह दी गई कि वे अपने दिल की स्थिति के कारण अधिक काम न करें और पहले से चल रही कुछ प्रस्तुतियों से हटना पड़ा, जिसमें बॉम्बे का बाबू, नॉटी बॉय और जहान आरा शामिल हैं, जिसमें उन्हें बदल दिया गया था, और ये बस्ती ये लोग, सुहाना गीत और किशोर साहू के साथ एक अनटाइटल्ड फिल्म, जो कभी पूरी नहीं हुई। उनकी आगे की रिलीज़ बॉडी डबल्स द्वारा पूरी की गईं, मधुबाला कभी-कभी काम पर दिखाई देती थीं। 1961 में, उनकी अभिनीत तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं: झुमरू (1961), बॉय फ्रेंड (1961) और पासपोर्ट (1961); सभी को वर्ष की शीर्ष कमाई करने वाली प्रस्तुतियों में स्थान दिया गया। अगले साल, हाफ टिकट (1962) ने उन्हें पति किशोर कुमार के साथ एक हास्य किरदार निभाते हुए देखा। यह एक महत्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता भी थी, सुकन्या वर्मा ने फिल्म को अपनी अब तक की सबसे पसंदीदा कॉमेडी में से एक बताया। इसके अलावा 1962 में जारी मधुबाला प्राइवेट लिमिटेड की तीसरी और आखिरी प्रस्तुति, पठान थी। यह बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई। दो साल के विश्राम के बाद, मधुबाला ने 1964 में शरबी को पूरा किया; फिल्म उनके जीवनकाल में उनकी अंतिम रिलीज बन गई। मदर इंडिया के लिए लिखते हुए बाबूराव पटेल ने "पुराने दिल के दर्द को पुनर्जीवित करने" के लिए मधुबाला के प्रदर्शन की प्रशंसा की। 2011 में, Rediff.com ने शरबी को "एक चमकदार करियर के लिए एक उपयुक्त समापन कहा, जिसमें अभिनेत्री को उसकी सबसे खूबसूरत और उसकी सबसे प्रभावी, एक नायिका को दिखाया गया था जो हमारी किसी की नज़र में नहीं थी।" 1971 में, मधुबाला की मृत्यु के दो साल बाद , अधूरी एक्शन फिल्म ज्वाला रिलीज हुई; मुख्य भूमिका में उन्हें अभिनीत फिल्म, मुख्य रूप से बॉडी डबल्स की मदद से पूरी की गई थी। इसने उनकी अंतिम स्क्रीन उपस्थिति को चिह्नित किया। निजी जीवन एक रूढ़िवादी परिवार में जन्मी, मधुबाला बहुत धार्मिक थीं और बचपन से ही इस्लाम का पालन करती थीं। 1940 के दशक के अंत में अपने परिवार को आर्थिक रूप से सुरक्षित करने के बाद, उन्होंने बॉम्बे में पेडर रोड, बांद्रा में एक बंगला किराए पर लिया और इसका नाम "अरेबियन विला" रखा। यह मृत्यु तक उसका स्थायी निवास बन गया। तीन हिंदुस्तानी भाषाओं की मूल वक्ता मधुबाला ने 1950 में पूर्व अभिनेत्री सुशीला रानी पटेल से अंग्रेजी सीखना शुरू किया और केवल तीन महीनों में भाषा में पारंगत हो गईं। उसने 12 साल की उम्र में ड्राइविंग भी सीखी और वयस्कता तक पांच कारों की मालिक थी: एक ब्यूक, एक शेवरले, स्टेशन वैगन, हिलमैन और टाउन इन कंट्री (जिसका स्वामित्व उस समय भारत में केवल दो लोगों के पास था, के महाराजा ग्वालियर और मधुबाला)। उसने अरेबियन विला में अठारह अलसैटियन कुत्तों को पालतू जानवर के रूप में भी रखा। 1950 के मध्य में, एक मेडिकल जांच के दौरान मधुबाला के दिल में एक लाइलाज वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष का पता चला था; निदान को शुरू में सार्वजनिक नहीं किया गया था क्योंकि इससे उसका करियर खतरे में पड़ सकता था। परोपकार मधुबाला ने सक्रिय रूप से दान में प्रदर्शन किया, जिसके कारण संपादक बाबूराव पटेल ने उन्हें "दान की रानी" कहा। 1950 में, उन्होंने पोलियो मायलाइटिस से पीड़ित प्रत्येक बच्चे और जम्मू और कश्मीर राहत कोष में 5,000 (यूएस $66) और पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों के लिए 50,000 (यूएस $660) का दान दिया। मधुबाला के दान ने उनकी धार्मिक मान्यताओं के कारण एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया और उस समय मीडिया में व्यापक कवरेज प्राप्त किया। इसके बाद, उसने अपने दान के काम को सुरक्षित रखा और गुमनाम रूप से दान दिया। 1954 में, यह पता चला कि मधुबाला नियमित रूप से अपने स्टूडियो के निचले कर्मचारियों को मासिक बोनस देती रही हैं। उन्होंने 1962 में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान को एक कैमरा क्रेन भी भेंट की, जो आज तक चालू है। रिश्ते और शादी मधुबाला का पहला रिश्ता उनके बादल सह-कलाकार प्रेम नाथ के साथ 1951 की शुरुआत में था। धार्मिक मतभेदों के कारण वे छह महीने के भीतर टूट गए, लेकिन नाथ जीवन भर मधुबाला और उनके पिता अताउल्लाह खान के करीब रहे। 1951 में तराना के फिल्मांकन के दौरान मधुबाला अभिनेता दिलीप कुमार के साथ रोमांटिक रूप से जुड़ गईं। यह मामला सात साल तक जारी रहा और मीडिया और जनता से व्यापक ध्यान मिला। जैसे-जैसे उनका रिश्ता आगे बढ़ा, मधुबाला और दिलीप ने सगाई कर ली लेकिन खान की आपत्तियों के कारण उन्होंने शादी नहीं की। खान चाहते थे कि दिलीप उनके प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों में काम करें, जिसे अभिनेता ने मना कर दिया। साथ ही, दिलीप ने मधुबाला को बताया कि अगर उन्हें शादी करनी है, तो उन्हें अपने परिवार से सभी संबंध तोड़ने होंगे। 1957 में नया दौर पेशी के मामले में अदालती मुकदमे के बीच वह अंततः उनसे अलग हो गईं। 1950 के दशक के अंत के दौरान, मधुबाला को उनके तीन सह-कलाकारों: भारत भूषण, एक विधुर, और प्रदीप कुमार और किशोर कुमार द्वारा शादी के लिए प्रस्तावित किया गया था, दोनों पहले से ही शादीशुदा थे। चलती का नाम गाड़ी (1958) के सेट पर, मधुबाला ने किशोर के साथ दोस्ती को फिर से जगाया, जो उनके बचपन के साथी थे, और उनकी दोस्त रूमा गुहा ठाकुरता के पूर्व पति भी थे। दो साल की लंबी प्रेमालाप के बाद, मधुबाला ने 16 अक्टूबर 1960 को किशोर से अदालत में शादी की। संघ को उद्योग से रखा गया था और कुछ दिनों बाद नवविवाहितों के स्वागत समारोह तक इसकी घोषणा नहीं की गई थी। इस जोड़ी को उनके विपरीत व्यक्तित्व के कारण बेमेल माना जाने लगा। स्वास्थ्य बिगड़ना और अंतिम वर्ष 1960 में अपनी शादी के तुरंत बाद, मधुबाला और किशोर कुमार ने अपने डॉक्टर रुस्तम जल वकील के साथ लंदन की यात्रा की, अपने हनीमून को मधुबाला के हृदय रोग के विशेष उपचार के साथ जोड़ा, जो तेजी से बढ़ रहा था। लंदन में, डॉक्टरों ने जटिलताओं के डर से उसका ऑपरेशन करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय मधुबाला को किसी भी तरह के तनाव और चिंता से बचने की सलाह दी; उसे कोई भी बच्चा पैदा करने से मना कर दिया गया और उसे दो साल की जीवन प्रत्याशा दी गई। मधुबाला और किशोर बाद में बॉम्बे लौट आए और वह बांद्रा में किशोर के सेस्करिया कॉटेज में शिफ्ट हो गईं। उसकी स्वास्थ्य की स्थिति लगातार गिरती जा रही थी और अब वह अक्सर अपने पति से झगड़ती रहती थी। अशोक कुमार (किशोर के बड़े भाई) ने याद किया कि उनकी बीमारी ने उन्हें एक "बुरे स्वभाव वाले" व्यक्ति में बदल दिया और उन्होंने अपना अधिकांश समय अपने पिता के घर में बिताया। धार्मिक मतभेदों के कारण अपने ससुराल वालों की कड़वाहट से बचने के लिए, मधुबाला बाद में बांद्रा के क्वार्टर डेक में किशोर के नए खरीदे गए फ्लैट में चली गईं। हालांकि किशोर कुछ समय के लिए ही फ्लैट में रहा और फिर उसे एक नर्स और एक ड्राइवर के साथ अकेला छोड़ गया। हालांकि, मधुबाला के सभी चिकित्सा खर्च वहन कर रहे थे, मधुबाला ने खुद को परित्यक्त महसूस किया और अपनी शादी के दो महीने से भी कम समय में अपने घर लौट आई। अपने शेष जीवन के लिए, वह कभी-कभी उनसे मिलने जाते थे, जिसे मधुबाला की बहन मधुर भूषण (नी जाहिदा) ने सोचा था कि संभवतः "खुद को उनसे अलग कर लें ताकि अंतिम अलगाव को चोट न पहुंचे।" जून 1966 के अंत में, मधुबाला आंशिक रूप से ठीक हो गई थी और उन्होंने राज कपूर के साथ जे के नंदा की चालक के साथ फिर से फिल्म में लौटने का फैसला किया, जो उनके उद्योग छोड़ने के बाद से अधूरी थी। उनकी वापसी का मीडिया ने स्वागत किया, लेकिन शूटिंग शुरू होते ही मधुबाला तुरंत बेहोश हो गईं; इस प्रकार फिल्म कभी पूरी नहीं हुई। बाद में उसे ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह अपने पूर्व साथी दिलीप कुमार से मिली और छुट्टी मिलने के बाद घर लौट आई। अपनी अनिद्रा को दूर करने के लिए मधुबाला ने अशोक के सुझाव पर कृत्रिम निद्रावस्था का प्रयोग किया, लेकिन इससे उनकी परेशानी और बढ़ गई। मधुबाला ने अपने अंतिम वर्ष बिस्तर पर बिताए और बहुत वजन कम किया। उनका विशेष आकर्षण उर्दू शायरी था और वह नियमित रूप से अपनी फिल्में (विशेषकर मुगल-ए-आज़म) एक होम प्रोजेक्टर पर देखती थीं। वह बहुत एकांतप्रिय हो गई, उन दिनों फिल्म उद्योग से केवल गीता दत्त और वहीदा रहमान से मुलाकात की। उसे लगभग हर हफ्ते एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन से गुजरना पड़ता था। उसके शरीर ने अतिरिक्त रक्त का उत्पादन करना शुरू कर दिया जो उसकी नाक और मुंह से बाहर निकल जाएगा; इस तरह वकील को जटिलताओं से बचने के लिए खून निकालना पड़ा, और एक ऑक्सीजन सिलेंडर को उसके पास रखना पड़ा क्योंकि वह अक्सर हाइपोक्सिया से पीड़ित रहती थी। चलक की घटना के बाद, मधुबाला ने अपना ध्यान फिल्म निर्देशन की ओर लगाया और फरवरी 1969 में फर्ज़ और इश्क नामक अपने निर्देशन की शुरुआत की तैयारी शुरू कर दी। मृत्यु 1969 की शुरुआत तक, मधुबाला का स्वास्थ्य गंभीर और बड़ी गिरावट में था: उसे अभी-अभी पीलिया हुआ था और यूरिनलिसिस पर हेमट्यूरिया होने का पता चला था। 22 फरवरी की आधी रात को मधुबाला को दिल का दौरा पड़ा। अपने परिवार के सदस्यों और किशोर के बीच कुछ घंटों के संघर्ष के बाद, 36 साल की उम्र के नौ दिन बाद, 23 फरवरी की सुबह 9:30 बजे उनकी मृत्यु हो गई। मधुबाला को उनकी निजी डायरी के साथ सांताक्रूज, बॉम्बे में जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया गया था। उनका मकबरा संगमरमर से बनाया गया था और शिलालेखों में कुरान की आयतें और पद्य समर्पण शामिल हैं। लगभग एक दशक तक सामाजिक परिदृश्य से मधुबाला की अनुपस्थिति के कारण, उनकी मृत्यु को अप्रत्याशित माना गया और भारतीय प्रेस में व्यापक कवरेज मिली। इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें अपने समय की "सबसे अधिक मांग वाली हिंदी फिल्म अभिनेत्री" के रूप में याद किया, जबकि फिल्मफेयर ने उन्हें "एक सिंड्रेला के रूप में चित्रित किया, जिसकी घड़ी में बहुत जल्द बारह बज गए थे"। प्रेमनाथ (जिन्होंने उन्हें समर्पित एक कविता लिखी थी), बी के करंजिया और शक्ति सामंत सहित उनके कई सहकर्मियों ने उनकी अकाल मृत्यु पर दुख व्यक्त किया। गपशप स्तंभकार गुलशन इविंग ने "द पासिंग ऑफ अनारकली" शीर्षक से एक व्यक्तिगत विदाई में टिप्पणी करते हुए लिखा, "वह जीवन से प्यार करती थी, वह दुनिया से प्यार करती थी और वह अक्सर यह जानकर चौंक जाती थी कि दुनिया हमेशा उसकी पीठ से प्यार नहीं करती। [...] उसके लिए, सारा जीवन प्रेम था, सारा प्रेम जीवन था। वह मधुबाला थी - चमकते सितारों में सबसे प्यारी।" 2010 में, मधुबाला के मकबरे को अन्य उद्योग के दिग्गजों के साथ नई कब्रों के लिए रास्ता बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया गया था। उसके अवशेष अज्ञात स्थान पर रखे गए थे। सार्वजनिक छवि मधुबाला 1940 के दशक के अंत से 1960 के दशक की शुरुआत तक सबसे प्रसिद्ध भारतीय फिल्म सितारों में से एक थीं, और अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि और लोकप्रियता हासिल करने वाले पहले लोगों में से एक थीं। 1951 में, जेम्स बर्क ने अमेरिकी पत्रिका लाइफ में एक फीचर के लिए उनकी तस्वीर खींची, जिसने उन्हें उस समय के भारतीय फिल्म उद्योग में सबसे बड़े स्टार के रूप में वर्णित किया। निर्देशक फ्रैंक कैप्रा ने उन्हें हॉलीवुड में एक ब्रेक की पेशकश की, जिसे उनके पिता ने अस्वीकार कर दिया, और अगस्त 1952 में, थिएटर आर्ट्स मैगज़ीन के डेविड कॉर्ट ने उन्हें "दुनिया का सबसे बड़ा सितारा- और वह बेवर्ली हिल्स में नहीं है" के रूप में लिखा। लेख, जिसमें मधुबाला को "संख्या और भक्ति में सबसे बड़ी निम्नलिखित अभिनेत्री" के रूप में वर्णित किया गया था, ने उनके प्रशंसकों की संख्या लगभग 420 मिलियन होने का अनुमान लगाया, और पूर्वी अफ्रीका, म्यांमार, इंडोनेशिया और मलेशिया में भारत से परे उनकी लोकप्रियता की सूचना दी। 1950 के दशक के मध्य तक, मधुबाला ने ग्रीस में भी एक बड़ी फैन फॉलोइंग हासिल कर ली, जिसका श्रेय देश के गिरते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के दौरान उनके उद्भव को दिया गया, जब वह और उनकी फिल्में संकट का सामना करने में सक्षम थीं। टाइम पत्रिका ने दुनिया में हिंदी सिनेमा की तेजी से बढ़ती ताकत के बारे में एक लेख में जनवरी 1959 के अंक में उन्हें "कैश एंड कैरी स्टार" कहा। हालांकि उनकी शुरुआती अभिनीत फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर विफल रहीं, 1949 में महल की सफलता के साथ मधुबाला ने दर्शकों के बीच तेजी से लोकप्रियता अर्जित की। दशक समाप्त होने के साथ-साथ उनकी हस्ती तेजी से बढ़ी, जिससे उन्हें फिल्मों में प्रदर्शन के लिए उच्च शुल्क लेने में मदद मिली। 1952 तक, वह भारत में सबसे अधिक भुगतान पाने वाली स्टार थीं; मुग़ल-ए-आज़म (1960) में उनके दशक भर के काम के लिए, मधुबाला को ₹3 लाख (US$3,900) की अभूतपूर्व राशि का भुगतान किया गया था, जो उनके सह-कलाकारों की तुलना में काफी अधिक था। अपने पूरे करियर के दौरान उन्हें पुरुष सह-अभिनेताओं की तुलना में शीर्ष-बिलिंग मिली, जिसमें Rediff.com ने उन्हें "युग के नायकों से भी बड़ा" स्टार के रूप में वर्णित किया। मधुबाला ने 1949 से 1951 तक और 1958 से 1961 तक बॉक्स ऑफिस इंडिया की शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में सात बार सूचीबद्ध किया। जैसे-जैसे उनका करियर आगे बढ़ता गया, "मूर्खतापूर्ण रोमांस में एक बुद्धिमान महिला" की भूमिका निभाते हुए, उनकी तुलना हॉलीवुड अभिनेत्री मर्लिन से की जाने लगी। मुनरो। मधुबाला की सुंदरता और शारीरिक आकर्षण को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया, जिससे मीडिया ने उन्हें "भारतीय सिनेमा का शुक्र" और "द ब्यूटी विद ट्रेजेडी" के रूप में संदर्भित किया। द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया की क्लेयर मेंडोंका ने 1951 में उन्हें "भारतीय स्क्रीन की नंबर एक सुंदरता" कहा। उनके कई सहकर्मियों ने उन्हें अब तक की सबसे खूबसूरत महिला के रूप में उद्धृत किया। निरूपा रॉय ने कहा कि "उनके लुक के साथ कभी कोई नहीं था और न ही कभी होगा" जबकि निम्मी (1954 की फिल्म अमर में सह-कलाकार) ने मधुबाला के साथ अपनी पहली मुलाकात के बाद एक रात की नींद हराम करना स्वीकार किया। 2011 में, शम्मी कपूर ने रेल का डिब्बा (1953) की शूटिंग के दौरान उनके साथ प्यार में पड़ने की बात कबूल की: "आज भी ... मैं शपथ ले सकता हूं कि मैंने इससे अधिक सुंदर महिला कभी नहीं देखी। उसकी तेज बुद्धि, परिपक्वता को जोड़ें। , शिष्टता और संवेदनशीलता ... जब मैं अब भी उसके बारे में सोचता हूं, छह दशकों के बाद, मेरे दिल की धड़कन याद आती है। हे भगवान, क्या सुंदरता, क्या उपस्थिति। " उनकी कथित अपील के लिए धन्यवाद, मधुबाला लक्स और गोदरेज द्वारा सौंदर्य उत्पादों की ब्रांड एंबेसडर बन गईं, हालांकि उन्होंने कहा कि शारीरिक सुंदरता की तुलना में व्यक्तिगत खुशी उनके लिए अधिक मायने रखती है। अपने करियर की शुरुआत से, मधुबाला ने पार्टियों से बचने और साक्षात्कार से इनकार करने के लिए एक प्रतिष्ठा प्राप्त की, जिससे उन्हें वैरागी और अभिमानी करार दिया गया। 1958 में एक असामान्य उदाहरण पर, उनके पिता ने भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू को एक माफी पत्र भी लिखा, जिसमें मधुबाला को नेहरू के निजी समारोह में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई थी, जहां उन्हें आमंत्रित किया गया था। बचपन से ही फिल्म उद्योग का हिस्सा होने के कारण, मधुबाला ने सामाजिक परिदृश्य को सतही रूप में देखा और "ऐसे समारोहों में जहां केवल वर्तमान पसंदीदा को आमंत्रित किया जाता है और जहां एक या दो दशक बाद मुझे आमंत्रित नहीं किया जाएगा" के बारे में अपनी घृणा व्यक्त की। दो दशक लंबे करियर में, मधुबाला को व्यक्तिगत कारणों से केवल दो फिल्मों- बहुत दिन हुए (1954) और इंसानियत (1955) के प्रीमियर में देखा गया था। उनके नियमित फोटोग्राफर राम औरंगबदकर ने शिकायत की कि उनमें "गर्मजोशी की कमी थी" और "बहुत अलग थी"। हालांकि, मधुबाला के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक गुलशन इविंग ने मतभेद किया और कहा कि उनकी दोस्त "इनमें से कोई नहीं थी।" नादिरा ने कहा कि मधुबाला को "छोटापन नहीं था, किसी भी छोटी बात का। उस लड़की को नफरत के बारे में कुछ भी नहीं पता था," और देव आनंद ने उसे "आत्मनिर्भर [और] सुसंस्कृत [व्यक्ति] के रूप में याद किया, जो उसकी सोच में बहुत स्वतंत्र था। और विशेष रूप से उनके जीवन के तरीके और फिल्म उद्योग में उनकी स्थिति के बारे में।" मधुबाला के साक्षात्कार देने या प्रेस से बातचीत करने से इनकार करने पर इसके सदस्यों की तीखी प्रतिक्रिया हुई। 1950 की शुरुआत में, खान ने अपने फिल्म अनुबंधों में जोर देना शुरू कर दिया था कि किसी भी पत्रकार को उनकी अनुमति के बिना उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जब मधुबाला ने सेट पर आने वाले पत्रकारों के एक समूह का मनोरंजन करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने उसे और उसके परिवार को बदनाम करना शुरू कर दिया और आगे उसे सिर काटने और मारने का इनाम दिया। आत्मरक्षा के लिए, मधुबाला को राज्य सरकार द्वारा एक रिवॉल्वर ले जाने और सशस्त्र सुरक्षा के तहत घूमने की अनुमति दी गई, जब तक कि खान और अन्य पत्रकारों ने अंततः समझौता नहीं किया। फिर भी, प्रेस के साथ उसका रिश्ता कड़वा रहा, और वह नियमित रूप से अपने धार्मिक विश्वासों और कथित अहंकार के लिए उसे इंगित करता था। उनके करियर के दौरान एक और बड़ा विवाद बी.आर. चोपड़ा के खिलाफ लड़ा गया नया दौर गृहयुद्ध था, जिसका उल्लेख बनी रूबेन ने अपने संस्मरण में "भारतीय सिनेमा के इतिहास में लड़ा जाने वाला सबसे सनसनीखेज अदालती मामला" के रूप में किया है। इन सभी मतभेदों के बावजूद, मधुबाला को मीडिया में एक अनुशासित और पेशेवर कलाकार के रूप में जाना जाता था, किदार शर्मा (1947 की फिल्म नील कमल के निर्देशक) ने उद्योग में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, "उन्होंने एक मशीन की तरह काम किया, एक भोजन से चूक गई, मलाड से दादर तक की अधिक भीड़-भाड़ वाली तीसरी श्रेणी के डिब्बों में प्रतिदिन यात्रा की जाती थी और काम से कभी देर या अनुपस्थित नहीं होती थी।" आनंद ने 1958 के एक साक्षात्कार में कहा, "जब मधुबाला सेट पर होती हैं, तो अक्सर शेड्यूल में बहुत आगे निकल जाती हैं।" गेटवे ऑफ इंडिया (1957) और मुगल-ए-आजम (1960) के फिल्मांकन को छोड़कर, खान ने कभी भी मधुबाला को रात में काम करने की अनुमति नहीं दी। हालांकि, चिकित्सीय सावधानियों के बावजूद, उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों में जटिल नृत्य किए, और मुगल-ए-आज़म में अपने शरीर के वजन के दोगुने लोहे की जंजीरें पहनने के बाद त्वचा के घर्षण को सहन किया। अभिनय शैली और स्वागत मधुबाला ने लगभग हर फिल्म शैली में अभिनय किया, जिसमें रोमांटिक संगीत से लेकर स्लैपस्टिक कॉमेडी और क्राइम थ्रिलर से लेकर ऐतिहासिक ड्रामा तक शामिल हैं। सेलेब्रिटीज: ए कॉम्प्रिहेंसिव बायोग्राफिकल थिसॉरस ऑफ इम्पोर्टेन्ट मेन एंड वीमेन इन इंडिया (1952) के लेखक, जगदीश भाटिया ने कहा कि मधुबाला ने अपनी कमियों को फायदे में बदल दिया और अपनी गैर-फिल्मी पृष्ठभूमि के बावजूद "सबसे प्रतिभाशाली महिला सितारों में से एक बन गईं। उद्योग।" फिल्मइंडिया के लिए लेखन करते हुए बाबूराव पटेल ने उन्हें "आसानी से हमारी सबसे प्रतिभाशाली, सबसे बहुमुखी और बेहतरीन दिखने वाली कलाकार" कहा। शर्मा, शक्ति सामंत और राज खोसला सहित उनके निर्देशकों ने विभिन्न अवसरों पर उनकी अभिनय प्रतिभा के बारे में बहुत कुछ बताया, और सह-कलाकारों के बीच, अशोक कुमार ने उन्हें अब तक की सबसे बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में वर्णित किया, जबकि दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि वह थीं " एक जीवंत कलाकार ... अपनी प्रतिक्रियाओं में इतनी तात्कालिक कि जब उन्हें फिल्माया जा रहा था तब भी दृश्य आकर्षक हो गए ... वह एक ऐसी कलाकार थीं जो गति बनाए रख सकती थीं और स्क्रिप्ट द्वारा मांग की गई भागीदारी के स्तर को पूरा कर सकती थीं।" द न्यू यॉर्क टाइम्स के लिए पूर्वव्यापी रूप से लिखते हुए, आयशा खान ने मधुबाला की अभिनय शैली को "स्वाभाविक" और "कम करके आंका" के रूप में चित्रित किया, यह देखते हुए कि उन्होंने अक्सर "परंपराओं की सीमाओं का परीक्षण करने वाली आधुनिक युवा महिलाओं" की भूमिका निभाई। फिल्म समीक्षक सुकन्या वर्मा ने मधुबाला की उन परियोजनाओं के चयन के लिए सराहना की, जिनके लिए उन्हें "सिर्फ अच्छी दिखने और रोती हुई बाल्टी से अधिक" [करने के लिए] की आवश्यकता थी। आधुनिक समय के आलोचकों ने मधुबाला को उनकी अपरंपरागत भूमिकाओं के लिए स्वीकार किया है, हावड़ा ब्रिज (1958) में एक चुलबुली कैबरे डांसर के रूप में, चलती का नाम गाड़ी (1958) में एक विद्रोही और स्वतंत्र महिला और मुगल-ए-आज़म में एक निडर दरबारी नर्तकी के रूप में। 1960)। अमर (1954), गेटवे ऑफ इंडिया (1957) और बरसात की रात (1960) जैसी अन्य फिल्मों में उनकी भूमिकाओं को भी भारतीय सिनेमा में महिलाओं के सामान्य चित्रण से काफी अलग होने के लिए जाना जाता है। मधुबाला ने आमतौर पर एक विशिष्ट लहराती केश विन्यास को स्पोर्ट किया, जिसे "बिस्तर से बाहर का रूप" कहा जाता था और आगे चलकर एक स्वतंत्र और स्वतंत्र महिला के रूप में अपने स्क्रीन व्यक्तित्व को स्थापित किया। डेविड कॉर्ट ने उन्हें "स्वतंत्र भारतीय महिला का आदर्श या भारत की स्वतंत्र भारतीय महिला की उम्मीद के अनुसार" के रूप में संक्षेप में प्रस्तुत किया। मधुबाला का करियर उनके समकालीनों में सबसे छोटा था, लेकिन जब तक उन्होंने अभिनय छोड़ दिया, तब तक उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में सफलतापूर्वक अभिनय किया था। उनका स्क्रीन टाइम हमेशा उनके पुरुष सह-कलाकारों के बराबर था और उन्हें भारत के शुरुआती मनोरंजनकर्ताओं में से एक होने का श्रेय भी दिया जाता है, जिन्होंने जनसंचार के युग में, भारतीय सिनेमा की स्थिति को वैश्विक मानकों पर ले लिया। इसके अलावा, बहुत दिन हुए (1954) के साथ, मधुबाला दक्षिण भारतीय सिनेमा में करियर बनाने वाली पहली हिंदी अभिनेत्री बनीं। हालांकि मधुबाला अपने करियर के दौरान लगभग सभी फिल्म शैलियों में दिखाई दीं, लेकिन उनकी सबसे उल्लेखनीय फिल्मों में कॉमेडी शामिल थी। मिस्टर एंड मिसेज '55 (1955) में उनके प्रदर्शन के बाद उन्हें अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए पहचान मिली, जिसे इंडिया टुडे के इकबाल मसूद ने "सेक्सी-कॉमिक अभिनय का एक अद्भुत टुकड़ा" कहा। हालाँकि, अपनी सफलता और प्रसिद्धि के बावजूद, उन्हें न तो कोई अभिनय पुरस्कार मिला और न ही आलोचनात्मक प्रशंसा मिली। कई आलोचकों ने कहा है कि उनकी कथित सुंदरता उनके शिल्प के लिए एक बाधा थी जिसे गंभीरता से लिया जाना था। मधुबाला अधिक नाटकीय और लेखक-समर्थित भूमिकाएँ निभाना चाहती थीं, लेकिन अक्सर उन्हें हतोत्साहित किया जाता था। दिलीप कुमार के अनुसार, दर्शकों ने "उनकी कई अन्य विशेषताओं को याद किया।" जीवनी लेखक सुशीला कुमारी ने कहा कि "लोग उनकी सुंदरता से इतने मंत्रमुग्ध थे कि उन्होंने कभी अभिनेत्री की परवाह नहीं की", और शम्मी कपूर ने उन्हें "अपनी फिल्मों में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद एक बेहद कमतर अभिनेत्री" के रूप में सोचा। मधुबाला की प्रतिभा को पहली बार मुगल-ए-आज़म (1960) की रिलीज़ के बाद स्वीकार किया गया था, लेकिन यह उनकी अंतिम फ़िल्मों में से एक थी। फिल्मफेयर द्वारा बॉलीवुड के बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक अनारकली के उनके नाटकीय चित्रण ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक स्थायी व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। फिल्म के रोमांटिक दृश्यों में से एक, जिसमें दिलीप कुमार मधुबाला के चेहरे को एक पंख के साथ ब्रश करते हैं, को 2008 में आउटलुक द्वारा और 2011 में हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा बॉलीवुड के इतिहास में सबसे कामुक दृश्य घोषित किया गया था। 21 वीं सदी में उनके महत्वपूर्ण स्वागत में सुधार हुआ था। सदी, खतीजा अकबर ने नोट किया कि मधुबाला के "अभिनय के ब्रांड में एक कम और सहज गुण था। जो कोई भी भारी अभिनय और 'अभिनय' की तलाश में था, वह इस बिंदु से चूक गया"। 1999 में, द ट्रिब्यून के एम. एल. धवन ने कहा कि मधुबाला "अपनी नाजुक रूप से उभरी हुई भौहों के साथ अधिक संवाद कर सकती हैं, जितना कि अधिकांश कलाकार उठी हुई आवाज़ के साथ कर सकते हैं" और "अपने चरित्र की आंतरिक भावनाओं को व्यक्त करने की आदत को जानती थीं।" विरासत लेखक पीयूष रॉय ने मधुबाला को "एक किंवदंती जो समय के साथ बढ़ती रहती है" के रूप में संदर्भित किया है। उनकी विरासत ने वर्षों से सभी अलग-अलग उम्र के प्रशंसकों और सोशल मीडिया पर उन्हें समर्पित दर्जनों प्रशंसक साइटों को बनाए रखा है। आधुनिक पत्रिकाएं उनके व्यक्तिगत जीवन और करियर पर कहानियां प्रकाशित करना जारी रखती हैं, अक्सर बिक्री को आकर्षित करने के लिए कवर पर उनके नाम का भारी प्रचार करती हैं, और मीडिया आउटलेट उन्हें कई प्रतिष्ठित फैशन शैलियों के निर्माता के रूप में स्वीकार करते हैं, जैसे लहराती केश, महिला पतलून और स्ट्रैपलेस कपड़े, जिसे कई सेलेब्रिटीज फॉलो करते हैं। उनकी स्थायी लोकप्रियता के अनुसार, न्यूज 18 ने लिखा, "मधुबाला के पंथ से मेल खाना मुश्किल है।" आमिर खान, ऋतिक रोशन, शाहरुख खान, माधुरी दीक्षित, ऋषि कपूर और नसीरुद्दीन शाह सहित कई आधुनिक हस्तियों ने मधुबाला को भारतीय सिनेमा के अपने पसंदीदा कलाकारों में शुमार किया है। माधुरी दीक्षित और मुमताज ने भी उन्हें अपना स्क्रीन आइडल बताया है। शोध विश्लेषक रोहित शर्मा ने मधुबाला के बारे में कहानियों का अध्ययन किया है और नई पीढ़ी के बीच उनकी निरंतर प्रासंगिकता के कारण का अनुमान लगाया है: अपने 85वें जन्मदिन के अवसर पर, हिंदुस्तान टाइम्स की निवेदिता मिश्रा ने मधुबाला को "अब तक, भारत द्वारा निर्मित सबसे प्रतिष्ठित सिल्वर स्क्रीन देवी" के रूप में वर्णित किया। उनकी मृत्यु के बाद के दशकों में, वह भारतीय सिनेमाई क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्वों में से एक के रूप में उभरी हैं, और उनकी प्रतिष्ठा कायम है। 1990 में, मूवी मैगज़ीन द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया जिसमें मधुबाला को अब तक की सबसे प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री के रूप में 58 प्रतिशत मत प्राप्त हुए। उन्होंने 2008 में आउटलुक द्वारा कराए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण में फिर से जीत हासिल की। ​​Rediff.com के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2007 विशेष में, मधुबाला को "बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों" की शीर्ष दस सूची में दूसरे स्थान पर रखा गया था। 2012 में, इंडिया टुडे ने उन्हें बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में से एक का नाम दिया, और 2015 में टाइम आउट ने उन्हें दस सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड अभिनेत्रियों की सूची में पहले स्थान पर रखा। 2013 में भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाने वाले यूके के एक सर्वेक्षण में, मधुबाला सर्वकालिक महान भारतीय अभिनेत्रियों में छठे स्थान पर थीं। उसने NDTV (2012), Rediff.com (2013), CNN-IBN (2013) और Yahoo.com (2020) के चुनावों में शीर्ष दस में भी जगह बनाई है। इकोनॉमिक टाइम्स ने उन्हें 2010 में "भारत को गौरवान्वित करने वाली 33 महिलाओं" की सूची में शामिल किया। खतीजा अकबर, मोहन दीप और सुशीला कुमारी ने भी उनके बारे में किताबें लिखी हैं। मधुबाला की दो फिल्मों-मुगल-ए-आज़म (2004 में) और हाफ टिकट (2012 में) के डिजिटल रूप से रंगीन संस्करण नाटकीय रूप से जारी किए गए हैं। मार्च 2008 में, इंडियन पोस्ट ने मधुबाला की विशेषता वाला एक स्मारक डाक टिकट जारी किया, जिसे उनके जीवित परिवार के सदस्यों और सह-कलाकारों द्वारा लॉन्च किया गया था; इस तरह से सम्मानित होने वाली एकमात्र अन्य भारतीय अभिनेत्री उस समय नरगिस थीं। 2010 में, फिल्मफेयर ने मुगल-ए-आज़म में अनारकली के रूप में मधुबाला के प्रदर्शन को बॉलीवुड की "80 प्रतिष्ठित प्रदर्शनों" की सूची में शामिल किया। मुग़ल-ए-आज़म में उनके परिचय दृश्य को सुकन्या वर्मा ने Rediff.com की "20 दृश्यों कि हमारी सांसें रोक दी" की सूची में शामिल किया था। 2017 में, मैडम तुसाद दिल्ली ने मधुबाला की एक प्रतिमा का अनावरण किया, जो उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में फिल्म में उनके लुक से प्रेरित थी। 14 फरवरी 2019 को उनकी 86वीं जयंती, सर्च इंजन गूगल ने उन्हें डूडल बनाकर याद किया। मधुबाला ने क्रमशः खोया खोया चंद (2007), वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई (2010), और बाजीराव मस्तानी (2015) में अभिनेत्री सोहा अली खान, कंगना रनौत और दीपिका पादुकोण के पात्रों के पीछे प्रेरणा के रूप में काम किया है। कैटरीना कैफ अनुराग बसु की आगामी परियोजना, किशोर कुमार की बायोपिक में मधुबाला की भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। जुलाई 2018 में, मधुर भूषण ने घोषणा की कि वह अपनी बहन पर एक बायोपिक बनाने की योजना बना रही है। भूषण चाहते हैं कि करीना कपूर मधुबाला का किरदार निभाएं, लेकिन 2018 तक यह प्रोजेक्ट अपने शुरुआती चरण में है। नवंबर 2019 में, फिल्म निर्माता इम्तियाज अली मधुबाला की बायोपिक पर विचार कर रहे थे, लेकिन बाद में उनके परिवार द्वारा अनुमति से इनकार करने के बाद इस विचार को छोड़ दिया। कृति सनोन, कंगना रनौत, कियारा आडवाणी और जान्हवी कपूर सहित अभिनेत्रियों ने मधुबाला की बायोपिक में भूमिका निभाने की इच्छा व्यक्त की है। मधुबाला को उनके काम के साथ-साथ कई फिल्मों में संदर्भित किया गया है। 1950 की फिल्म मधुबाला का नाम उनके नाम पर रखा गया था। 1958 की फिल्म चलती का नाम गाड़ी में, मनमोहन (किशोर कुमार), रेणु (मधुबाला) को अपने गैरेज में देखकर कहते हैं, "हम समझ कोई भूत-वूत होगा"; यह मधुबाला के महल (1949) में एक भूतिया महिला के चित्रण का संदर्भ था। 1970 के दशक में, ग्रीक गायक स्टेलियोस काज़ांत्ज़िडिस ने मधुबाला को श्रद्धांजलि के रूप में "मंडौबाला" गीत का निर्माण किया। 1990 की फिल्म जीवन एक संघर्ष में इसके पात्र हैं (माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर द्वारा अभिनीत) मधुबाला और किशोर कुमार के नृत्य अनुक्रम की नकल करते हैं चलती का नाम गाड़ी (1958)। 1995 की फिल्म रंगीला के शुरुआती क्रेडिट में, हिंदी फिल्म उद्योग के लिए एक श्रद्धांजलि, प्रत्येक नाम के साथ मधुबाला सहित पुराने फिल्मी सितारों की तस्वीरें हैं। मधुबाला के अनारकली लुक ने लज्जा (2001) में दीक्षित और मान गए मुगल-ए-आज़म (2008) में मल्लिका शेरावत को प्रेरित किया है।[305][306] प्रियंका चोपड़ा ने 2007 में सलाम-ए-इश्क में मधुबाला की पैरोडी की, और मौनी रॉय ने 2017 के नृत्य प्रदर्शन के लिए खुद को मधुबाला की अनारकली के रूप में तैयार किया। अभिनय यात्रा उन्हें मुख्य भूमिका निभाने का पहला मौका केदार शर्मा ने अपनी फ़िल्म नील कमल (१९४७) में दिया। इस फ़िल्म मे उन्होने राज कपूर के साथ अभिनय किया। इस फ़िल्म मे उनके अभिनय के बाद उन्हे 'सिनेमा की सौन्दर्य देवी' (Venus Of The Screen) कहा जाने लगा। इसके २ साल बाद बाम्बे टॉकीज़ की फ़िल्म महल में उन्होने अभिनय किया। महल फ़िल्म का गाना 'आयेगा आनेवाला' लोगों ने बहुत पसन्द किया। इस फ़िल्म का यह गाना पार्श्व गायिका लता मंगेश्कर, इस फ़िल्म की सफलता तथा मधुबाला के कैरियर में, बहुत सहायक सिद्ध हुआ। महल की सफलता के बाद उन्होने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उस समय के स्थापित पुरूष कलाकारों के साथ उनकी एक के बाद एक फ़िल्म आती गयीं तथा सफल होती गयीं। उन्होंने अशोक कुमार, रहमान, दिलीप कुमार, देवानन्द आदि सभी के साथ काम किया। १९५० के दशक में उनकी कुछ फ़िल्मे असफल भी हुयी। जब उनकी फ़िल्मे असफल हो रही थी तो आलोचक ये कहने लगे की मधुबाला में प्रतिभा नही है तथा उनकी कुछ फ़िल्में उनकी सुन्दरता की वज़ह से हिट हुयीं, ना कि उनके अभिनय से। लेकिन ऐसा नहीं था। उनकी फ़िल्मे फ़्लाप होने का कारण था- सही फ़िल्मों का चुनाव न कर पाना। मधुबाला के पिता ही उनके मैनेजर थे और वही फ़िल्मों का चुनाव करते थे। मधुबाला परिवार की एक मात्र ऐसी सदस्या थीं जिनकी आय पर ये बड़ा परिवार टिका था। अतः इनके पिता परिवार के पालन-पोषण के लिये किसी भी तरह के फ़िल्म का चुनाव कर लेते थे। चाहे भले ही उस फ़िल्म मे मधुबाला को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले या ना मिले और यही उनकी कुछ फ़िल्मे असफल होने का कारण बना। इन सब के बावजूद वह कभी निराश नही हुयीं। १९५८ मे उन्होने अपने प्रतिभा को पुनः साबित किया। इस साल आयी उनकी चार फ़िल्मे (फ़ागुन, हावरा ब्रिज, काला पानी और चलती का नाम गाडी) सुपरहिट हुयीं। दिलीप कुमार से सम्बन्ध ज्वार भाटा (१९४४) के सेट पर वह पहली बार दिलीप कुमार से मिलीं। उनके मन मे दिलीप कुमार के प्रति आकर्षण पैदा हुआ तथा वह उनसे प्रेम करने लगीं। उस समय वह १८ साल की थीं तथा दिलीप कुमार २९ साल के थे। उन्होने १९५१ मे तराना मे पुनः साथ-साथ काम किया। उनका प्रेम मुग़ल-ए-आज़म की ९ सालों की शूटिंग शुरू होने के समय और भी गहरा हो गया था। वह दिलीप कुमार से विवाह करना चाहती थीं पर दिलीप कुमार ने इन्कार कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है की दिलीप कुमार तैयार थे लेकिन मधुबाला के लालची रिश्तेदारों ने ये शादी नही होने दी। १९५८ मे अयातुल्लाह खान ने कोर्ट मे दिलीप कुमार के खिलाफ़ एक केस दायर कर के दोनो को परस्पर प्रेम खत्म करने पर बाध्य भी किया। विवाह मधुबाला को विवाह के लिये तीन अलग - अलग लोगों से प्रस्ताव मिले। वह सुझाव के लिये अपनी मित्र नर्गिस के पास गयीं। नर्गिस ने भारत भूषण से विवाह करने का सुझाव दिया जो कि एक विधुर थे। नर्गिस के अनुसार भारत भूषण, प्रदीप कुमार एवं किशोर कुमार से बेहतर थे। लेकिन मधुबाला ने अपनी इच्छा से किशोर कुमार को चुना। किशोर कुमार एक तलाकशुदा व्यक्ति थे। मधुबाला के पिता ने किशोर कुमार से बताया कि वह शल्य चिकित्सा के लिये लंदन जा रही हैं तथा उसके लौटने पर ही वे विवाह कर सकते है। मधुबाला मृत्यु से पहले विवाह करना चाहती थीं ये बात किशोर कुमार को पता था। १९६० में उन्होने विवाह किया। परन्तु किशोर कुमार के माता-पिता ने कभी भी मधुबाला को स्वीकार नही किया। उनका विचार था कि मधुबाला ही उनके बेटे की पहली शादी टूटने की वज़ह थीं। किशोर कुमार ने माता-पिता को खुश करने के लिये हिन्दू रीति-रिवाज से पुनः शादी की, लेकिन वे उन्हे मना न सके। विशेष अभिनय मुगल-ए-आज़म में उनका अभिनय विशेष उल्लेखनीय है। इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नही बल्कि 'कला के प्रति समर्पण' भी देखने को मिलता है। इसमें 'अनारकली' की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थ्य उन्हें अभिनय करने से रोक रहा था लेकिन वो नहींं रूकीं। उन्होने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था। फ़िल्म के निर्देशक के. आशिफ़ फ़िल्म मे वास्तविकता लाना चाहते थे। वे मधुबाला की बीमारी से भी अन्जान थे। उन्होने शूटिंग के लिये असली जंज़ीरों का प्रयोग किया। मधुबाला से स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भारी जंज़ीरो के साथ अभिनय किया। इन जंज़ीरों से उनके हाथ की त्वचा छिल गयी लेकिन फ़िर भी उन्होने अभिनय जारी रखा। मधुबाला को उस समय न केवल शारीरिक अपितु मानसिक कष्ट भी थे। दिलीप कुमार से विवाह न हो पाने की वजह से वह अवसाद (Depression) से पीड़ित हो गयीं थीं। इतना कष्ट होने के बाद भी इतना समर्पण बहुत ही कम कलाकारों मे देखने को मिलता है। ५ अगस्त १९६० को जब मुगले-ए-आज़म प्रदर्शित हुई तो फ़िल्म समीक्षकों तथा दर्शकों को भी ये मेहनत और लगन साफ़-साफ़ दिखाई पड़ी। असल मे यह मधुबाला की मेहनत ही थी जिसने इस फ़िल्म को सफ़लता के चरम तक पँहुचाया। इस फ़िल्म के लिये उन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिये नामित किया गया था। हालांकि यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिल पाया। कुछ लोग सन्देह व्यक्त करते है कि मधुबाला को यह पुरस्कार इसलिये नहीं मिल पाया क्योंकि वह घूस देने के लिये तैयार नहीं थी। इस फ़िल्म की लोकप्रियता के वजह से ही इस फ़िल्म को 2004 मे पुनः रंग भर के पूरी दुनिया मे प्रदर्शित किया गया। स्वर्गवास मधुबाला, हृदय रोग से पीड़ित थीं जिसका पता १९५० मे नियमित होने वाले स्वास्थ्य परीक्षण मे चल चुका था। परन्तु यह तथ्य फ़िल्म उद्योग से छुपाया रखा गया। लेकिन जब हालात बदतर हो गये तो ये छुप ना सका। कभी - कभी फ़िल्मो के सेट पर ही उनकी तबीयत बुरी तरह खराब हो जाती थी। चिकित्सा के लिये जब वह लंदन गयी तो डाक्टरों ने उनकी सर्जरी करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हे डर था कि वो सर्जरी के दौरान ही मर जायेंगीं। जिन्दगी के अन्तिम ९ साल उन्हे बिस्तर पर ही बिताने पड़े। २३ फ़रवरी १९६९ को बीमारी की वजह से उनका स्वर्गवास हो गया। उनके मृत्यु के २ साल बाद यानि १९७१ मे उनकी एक फ़िल्म जिसका नाम ज्वाला था प्रदर्शित हो पायी थी। प्रमुख फिल्में पुरस्कार एवं नामांकन मुग़ल-ए-आज़म (१९६०) में अपने प्रदर्शन के लिए, मधुबाला को वर्ष १९६१ में फ़िल्मफे़यर द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए के लिए नामांकित किया गया था। ग्रन्थसूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ इण्टरनेट मूवी डाटा बेस मे मधुबाला मधुबाला फोटो गैलेरी मधुबाला विडियो मधुबाला इमेज़ सर्च हिन्दी अभिनेत्री भारतीय अभिनेत्री 1933 में जन्मे लोग १९६९ में निधन भारतीय मुस्लिम दिल्ली के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%20%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A2%E0%A4%BC%202020
उत्तर-पूर्वी भारत में बाढ़ 2020
उत्तर-पूर्वी भारत जुलाई माह में बाढ़ से पीड़ित हैं। अभी तक के प्राप्त समाचार के अनुसार बिहार के 14 जिलों के 114 प्रखंडों के 1098 पंचायतों की 59 लाख 70 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं और सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए हैं, वहीं असम में 2633 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। लोगों को बिना बिजली और पीने के पानी के 24 घंटे सांप और खतरनाक जानवरों के बीच रहना पड़ रहा है। उत्तर बिहार के ज़िलों में सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज एवं पूर्वी चम्पारण के कुल 30 प्रखंडों की 150 पंचायतें आंशिक रूप से प्रभावित हैं। बाढ़ से इस वक्त कई नदियों ने भयावाह रूप धारण कर लिया है, जिनमें कोसी, बागमती और गंडक आदि नदियाँ शामिल हैं। यहां की नौ नदियाँ इस वक्त खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। नेपाल के तराई में निरंतर हो रहे बारिश से स्थिति और बिगड़ती जा रही है, साथ ही नेपाल द्वारा बांध के पानी खोले जाने पर की नदियों का जलस्तर बढ़ते जा रहे हैं। बाढ़ के पानी से दरभंगा का कुशेश्वर स्थान के आस-पास जलस्तर काफ़ी ऊपर चला गया है। वहीं कमला बलान नदी भी रौद्र रूप दिखा रही है, वहीं असम में ब्रह्मपुत्र नदी का रूप भयावाह हो चला है। प्रभावित व्यक्ति व क्षेत्र बाढ़ से असम में इस वक्त 33 ज़िले प्रभावित हैं, वही 105 लोगों की मृत्यु की जानकारी की पुष्टि हुई है, वहीं भूख से मरने वालों की संख्या 26 बताई जा रही है। बाढ़ के कारण 1.14 लाख हेक्टेयर खेत पानी में डूब चुके हैं। असम में इस साल की बाढ़ में 202 तटबंध और 167 ब्रिज को नुकसान पहुंचा है। कांजीरंगा पार्क भी जल में डूब चुका है। इस कारण वहां की जानवरों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक 10 गैंडों की मौत की जानकारी प्राप्त हुई है। वहीं अभी तक कुल 108 जानवरों की मौत हो चुकी है, जबकि 136 को बचा लिये जाने की पुष्टि हुई है। बचाव अभियान आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव रामचंद्र डू ने जाहिर किया है कि बिहार की विभिन्न नदियों के बढ़े जलस्तर को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग पूरी तरह से सतर्क है। दरभंगा में इस वक्त दो और गोपालगंज में तीन राहत शिविर चलाए जा रहे हैं, जहां करीब 2,000 लोग रह रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने बताया कि असम में 70 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। उन्होंने आगे बताया कि 'असम में बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे लोगों और जानवरों को निकाला जा रहा है और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।' असम में इस वक्त 287 राहत शिविर में 47000 लोगों को सुरक्षित रखा जा रहा है। लोगों को अस्पताल और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए नाव का प्रयोग किया जा रहा है। सन्दर्भ 2020 में भारत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE
किशनपुरा
किशनपुरा राजस्थान के सीकर जिले में फतेहपुर तहसील का एक छोटा सा गाँव है जो बिरानियाँ ग्राम पंचायत में आता है। यहाँ जाट जाति के पूनिया गोत्र बहूसंख्यक लोग रहते हैं। अन्य भी कई जातियाँ हैं जैसे ढाका, ब्राह्मण, गढ़वाल, ठाकुर, नाई, सोनी, बलाई इत्यादि। यहाँ पर शेखावाटी भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती है| यहाँ एक उच्च प्राथमिक विद्यालय है और एक पशु उपस्वास्थ्य केंद्रबोल्ड टेक्स्ट है। गाँव में एक सड़क है जो एक तरफ फतेहपुर शहर को और दूसरी तरफ रतनगढ़ शहर को जोडती है। इस गाँव में 3 मोहल्ले हैं जिनके नाम निम्नवत हैं: बणी, भैरूजी का मोहल्ला, बांडिया बास आदि। गाँव में लगभग 200+ घर हैं तथा आबादी लगभग 1,078 है। गाँव के पास ही ढाणी है जिसका नाम है " पूनियों की ढाणी "। गाँव के कई युवा उच्च शिक्षा भी प्राप्त कर रहे हैं जिनमें 2 इंजिनियर (जितेन्द्र सिंह पूनिया और कुलदीप पूनिया) तथा एक डॉक्टर (अमित पूनिया) है। गाँव के अधिकतर लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं तथा सरकारी नोकारियों में भी हैं जैसे शिक्षा, सेना, पुलिस और सिविल सर्विसेस। ""Kishanpura"" is a small village in Fatehpur tehsil in Sikar district of Rajasthan, which comes in Biraniya gram panchayat. The majority of the people of Poonia gotra of the Jat caste live here. There are many other castes like Dhaka, Brahmin, Gadhwal, Thakur, Nayak, Soni, Balai etc. Shekhawati Dialect is spoken the most here. There is an upper primary school and an animal sub-health centre. The village has a road that connects Fatehpur town on one side and Ratangarh town on the other side. There are 3 mohallas in this village whose names are as follows: Bani, Bheruji ka Mohalla, Bandiya Bas etc. The village has about 200 houses and a population of about 1,078. There is a Dhani near the village whose name is "Puniyon ki Dhani". Many youths of the village are also pursuing higher education, including engineering and Medical. Most of the people of the village work in Gulf countries and are also in government jobs like education, army, police and civil services. According to Census 2011, information the location code or village code of Kishanpura village is 081270. Kishanpura village is located in Fatehpur tehsil of Sikar district in Rajasthan, India. It is situated 18km away from sub-district headquarter Fatehpur (tehsildar office) and 68km from district headqReferenceLocationuarter Sikar. As per 2009 stats, Biraniya is the gram panchayat of Kishanpura village. The total geographical area of the village is 743.39 hectares. Kishanpura has a total population of 1,078 Peoples, out of which the male population is 580 while the female population is 498. The literacy rate of Kishanpura village is 65.49% out of which 76.21% of males and 53.01% of females are literate. There are about 200 houses in Kishanpura village. The Pin code of the Kishanpura village locality is 332301. Regarding administration, Kishanpura village is administrated by a sarpanch elected representative of the Village by the local elections. As per 2019 stats, Kishanpura village comes under the Fatehpur assembly constituency & Jhunjhunu parliamentary constituency. Fatehpur is the nearest town to Kishanpura for all major economic activities, which is approximately 18km away. कृपया ध्यान दें कि Numarical डेटा डिफरेंट हो सकता है| Please note that the numerical data may differ. सन्दर्भ राजस्थान के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97
स्त्री जननांग
मानवों में प्रजनन हेतु जननांग होते हैं, जो स्त्रियों और पुरुषों में भिन्न होते हैं। स्त्री के जननांगो में सबसे पहले बाल होते है जिसे प्यूबिक बाल कहा जाता है। ये बाल स्त्री जननागं को चारों ओर से घेरे रहते है। ऊपर की तरफ एक अंग जो उल्टे वी के आकार की होती है उसे भगनासा और भगशेफ कहते है। यह भाग काफी संवेदनशील होता है। क्लाइटोरिस के नीचे एक छोटा सा छेद होता है जोकि मूत्रद्वार होता है। मूत्रद्वार के नीचे एक बड़ा छिद्र होता है जिसको जनन छिद्र कहते है। इसी के रास्ते प्रत्येक महीने महिलाओं को मासिक स्राव (माहवारी) होती है। इसी रास्ते के द्वारा ही बच्चे का जन्म भी होता है। इसकी दीवारे लचीली होती है जो बच्चे के जन्म समय फैल जाती है। इसके नीचे थोड़ी सी दूरी पर एक छिद्र होता है जिसे मलद्वार या मल निकास द्वार कहते है। गर्भाशय गर्भाशय 7.5 सेमी लम्बी, 5 सेमी चौड़ी तथा इसकी दीवार 2.5 सेमी मोटी होती है। इसका वजन लगभग 35 ग्राम तथा इसकी आकृति नाशपाती के आकार के जैसी होती है। जिसका चौड़ा भाग ऊपर फंडस तथा पतला भाग नीचे इस्थमस कहलाता है। महिलाओं में यह मूत्र की थैली और मलाशय के बीच में होती है तथा गर्भाशय का झुकाव आगे की ओर होने पर उसे एन्टीवर्टेड कहते है अथवा पीछे की तरफ होने पर रीट्रोवर्टेड कहते है। गर्भाशय के झुकाव से बच्चे के जन्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। गर्भाशय का ऊपरी चौड़ा भाग बाडी तथा निचला भाग तंग भाग गर्दन या इस्थमस कहलाता है। इस्थमस नीचे योनि में जाकर खुलता है। इस क्षेत्र को औस कहते है। यह 1.5 से 2.5 सेमी बड़ा तथा ठोस मांसपेशियों से बना होता है। गर्भावस्था के विकास गर्भाशय का आकार बढ़कर स्त्री की पसलियों तक पहुंच जाता है। साथ ही गर्भाशय की दीवारे पतली हो जाती है। गर्भाशय की मांसपेशिया महिलाओं के गर्भाशय की मांसपेशियों को प्रकृति ने एक अद्भुत क्षमता प्रदान की है। इसका वितरण दो प्रकार से है। पहले वितरन के अनुसार लम्बी मांसपेशियां और दूसरे को घुमावदार मांसपेशियां कहते है। गर्भावस्था में गर्भाशय का विस्तरण तथा बच्चे के जन्म के समय लम्बी मांसपेशियां प्रमुख रूप से कार्य करती है। घुमावदार मांसपेशियां बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय को संकुचित तथा रक्त के बहाव को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है। डिम्बग्रंथि महिलाओं में गर्भाशय के दोनों ओर डिम्बग्रंथियां होती है। यह देखने में बादाम के आकार की लगभग 3.5 सेमी लम्बी और 2 सेमी चौड़ी होती है। इसके ऊपर ही डिम्बनलिकाओं कि तंत्रिकाएं होती है जो अंडों को अपनी ओर आकर्षित करती है। डिम्बग्रंथियों का रंग गुलाबी होता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये हल्के सफेद रंग की हो जाती है। वृद्वावस्था में यह सिकुड़कर छोटी हो जाती है। इनका प्रमुख कार्य अंडे बनाना तथा उत्तेजित द्रव और हार्मोन्स बनाना होता है। डिम्बग्रंथियों के मुख्य हार्मोन्स ईस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रोन है। माहवारी (मासिक-धर्म) स्थापीत होने के पूर्व इसका कोई काम नहीं होता है। परन्तु माहवारी के बाद इसमें प्रत्येक महीने डिम्ब बनते और छोड़े जाते है, जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर गर्भधारण करते है। डिम्बवाहिनियां डिम्बवाहिनियां या गर्भनली गर्भाशय के ऊपरी भाग के दोनों ओर से निकलती है तथा दोनों तरफ कूल्हे की हडिड्यों तक जाती है। इनकी लम्बाई लगभग 10 सेमी और मोटाई लगभग आधा सेमी तक लम्बी होती है। दोनों ओर इसका आकार एक कीप की तरह का होता है। इस कीप का अंतिम छोर लम्बी-लम्बी अंगुलियों की तरफ होता है जिसको तंत्रिकाएं कहते है। इनका प्रमुख कार्य डिम्बग्रंथियों से निकले अंडे को घेरकर उसे वाहिनियों में भेजना होता है। यह नलियां मांसपेशियों से बनी, तथा इनके अंदर की दीवार एक झिल्ली की बनी होती है जिसको म्यूकस झिल्ली कहते है। डिम्बग्रंथियों से पकड़े अंडे, वाहिनियों के आगे के भाग में जाकर रूकते है। जहां ये पुरूष के शुक्राणु के साथ मिलकर एक नये जीवन का निर्माण होता है। स्त्री जनन अंग में इस संरचना को जाइगोट कहते है। जाइगोट के चारों तरफ एक खास परत उत्पन्न होती है। शुक्राणुओं की यात्रा गर्भाशय में शुक्राणुओं की यात्रा लगभग 23 सेमी लम्बी होती है। पुरूष के शुक्राणु लगभग चार सौ करोंड़ की मात्रा में स्त्री के गर्भाशय में प्रवेश करते है। पुरूषों के वीर्य में टेस्टीकुलर, प्रोस्टेटिक और सेमीनल वेसाइकिल नाम के तीन द्रव पाये जाते है। पुरूषों के वीर्य में पाया जाने वाला सेमीनल वेसाइकिल द्रव ही पुरूष के शुक्राणुओं को जीवित रहने में सहायता करता है। पुरूष का वीर्य लगभग 15 मिनट में पानी में परिवर्तन हो जाता है। योनि का वातावरण अम्ल (एसिडिक) के समान होता है। इस वातावरण में पुरूष के शुक्राणु जीवित नहीं रह पाते है और धीरे-धीरे नष्ट होने लगते है। पुरूष के कुछ शुक्राणु”सरवायकल कैनाल” में प्रवेश कर जाते है। सरवायकल कैनाल का वातावरण खारा (एल्कालिन) होता है। लगभग 8 से 10 प्रतिशत शुक्राणु इस वातावरण से होते हुए नलों को पार करके आखिरी किनारे पर आकर अंडे से मिलते है। इस प्रक्रिया में लगभग 1500 से 2000 शुक्राणु ही नलों के किनारे तक पहुंच पाते है। शुक्राणु और अण्डाणु का मिलन पुरूष के केवल एक शुक्राणु से ही जीवन की रचना हो सकती है। पुरूष को शुक्राणुओं के तीन भाग होते है। 1. सिर 2. गर्दन 3. दुम। पुरूषों के शुक्राणु दुम की सहारे सेमिनल वेसाईकल द्रव में तैरते हुए स्त्री के अंडाणु तक पहुंचते है। स्त्री के अण्डाणु से मिलने के बाद शुक्राणुओं का सिर स्त्री के अंडे की झिल्ली को फाड़कर उसमें प्रवेश कर जाता है तथा शुक्राणुओं का गर्दन और दुम बाहर रह जाता है। जब स्त्री-पुरूषों के अण्डाणु और शुक्राणु आपस में मिलते है तो जाइगोट का जन्म होता है। स्त्री और पुरूष के गुणों के कण आपस में मिलने के बाद बढ़ने लगता है। ये बढ़ते-बढ़ते 2 से 4, 8, 16, 32 कोश बनाते है। यह कोश इसी तरह 265 दिन तक बढ़ने के बाद एक बच्चे का आकार लेते है। मासिक स्राव स्त्री को जिस दिन से माहवारी आना प्रारम्भ होता है। उस दिन से वे इसकी गिनती का कार्य दूसरे लोगों पर छोड़ देते है। स्त्रियों में माहवारी पारिवारिक वातावरण, देश, मौसम आदि पर निर्भर करती है। हमारे देश के गर्म तथा तरगर्म इलाकों में लड़कियों में मासिक धर्म (माहवारी) 10 वर्ष से 12 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो जाती है। तथा ठंडे देशों, प्रदेशों में यह मासिक धर्म 14 या 15 साल की उम्र में आती है। स्त्रियों में अंडेदानी में 10-14 वर्ष की उम्र से ही उत्तेजित द्रव ‘हार्मोन्स’ निकलना प्रारम्भ हो जाते हैं। इस हार्मोन्स को इस्ट्रोजन हार्मोन्स कहते है। इस हार्मोन्स के निकलने के कारण स्त्रियों के स्तनों के आकार बढ़ने लगता है। तथा धीरे-धीरे इनका विकास होता रहता है। 18 वर्ष की आयु तक लड़कियों का शरीर पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। इसके बाद स्त्रियों के शरीर में चर्बी का जमाव, शरीर का गठीला होना, बालों का विकसित होना, गर्भाशय में बच्चेदानी का पनपना और बढ़ना, जननांगों का विकास, नलियों का बढ़ना तथा प्रत्येक महीने के बाद माहवारी का आना प्रमुख पहचान बन जाती है। स्त्रियों में प्रारम्भ में माहवारी अनियमित रहती है। माहवारी के नियमित होने में कई महीने का समय लग सकता है। परन्तु माहवारी के नियमित रूप से होने के लिए किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। धीरे-धीरे स्त्रियों में माहवारी स्वतः ही नियमित रूप से होने लगती है। हड्डियों की बनावट महिलाओं के शरीर की हडिड्यों की रचना प्रकृति ने विशेष रूप से की है जिससे महिलाएं बच्चे का आसानीपूर्वक जन्म दे सकती है। स्त्रियों के कूल्हे की हड्डी पुरूष के कूल्हे की हड्डी की तुलना में अधिक स्थान रखती है। स्त्रियों की कूल्हे की हडिड्यों का आकार सेब की तरह का तथा पुरूषों के कूल्हे हडिड्यां दिल के आकार की होती है। कूल्हे की हडिड्यां मुख्य रूप से तीन प्रकार की हडिड्यों से बना होता है। पीछे की तरफ की हड्डी को सेक्रम, दोनों तरफ की हडिड्यों को ईलियास तथा सामने की ओर हड्डी को प्युबिस कहते है। सेक्रम के नीचे पूंछ के आकार की नुकीली हड्डी होती है जिसको कोसिक्स कहते है। कूल्हे की हडिड्यों का प्रमुख कार्य कूल्हे की मांसपेशियों, अंगों तथा बच्चे को जन्म के लिए पर्याप्त जगह देना होता है। जब स्त्रियां प्रसव के समय बच्चे को जन्म देती है। उस समय अधिक स्थान देने के लिए प्रत्येक जोड़ कुछ खुलता और ढीला होता है ताकि स्त्रियों बच्चे को आसानी से जन्म दे सके। बच्चे के जन्म का रास्ता पीछे की ओर चौड़ा तथा आगे की ओर छोटा होता है। प्रसव होने के समय बच्चा कूल्हे की हडिड्यों में पहले सीधा नीचे की ओर आता है। फिर 90 अंश के कोण पर घूमने के बाद बच्चे का जन्म होता है। बच्चे के जन्म का रास्ता बच्चे के जन्म का रास्ता कूल्हे की हडिड्यों के ऊपर की सतह से नीचे की सतह तक होता है। यह मार्ग पीछे की ओर चौड़ा तथा आगे की तरफ छोटा होता है। बच्चे को पैदा होने के लिए कूल्हे की हडिड्यों में पहले सीधा नीचे की ओर उतरना पड़ता है। फिर 90 अंश के कोण पर घूमने के बाद बच्चे का जन्म होता है। महिलाओं में प्रकृति ने यह कोण प्रदान कर बच्चे के जन्म में आसानी की है नहीं तो बच्चा जन्म लेते ही सीधे नीचे की ओर गिर सकता है। बच्चे के जन्म के रास्ते की मांसपेशियां सामने की ओर अधिक मजबूत होती है। ये मांसपेशियां बच्चे के जन्म में सहायता होती है तथा पीछे और नीचे की मांसपेशियां सामने की मांसपेशियों के तुलना में कमजोर होती है। कूल्हे के नीचे का भाग कूल्हे के नीचे का हिस्सा मांसपेशियों और तंतुओं से मिलकर बना होता है। कूल्हे का निचला भाग सैक्रम हड्डी से प्यूबिक सिम्फाईसिस तक होता है। इसमें मल द्वारा, मूत्र द्वार व जनन द्वार जाकर खुलते है। यह पेट के सभी अंगों को नियंत्रण में रखता है तथा खांसी और छींक आने पर मांसपेशियां पेट के अंगों को नीचे की ओर आने से रोकती है। महिलाओं में कब्ज होने के समय मलद्वार को यहीं मांसपेशियां रोकती है। इन मांसपेशियों को लिवेटर एनाई कहते है। महिलाओं के योनि की मांसपेशियां बच्चे के समय एक विशेष प्रकार का रूप धारण कर लेती है। मांसपेशियों की तंतुएं एक-दूसरे से मिलकर एक सरल रास्ता बनाती है जिससे जन्म के समय बच्चे को अधिक स्थान सरलतापूर्वक मिल जाता है। बच्चे के जन्म के समय बच्चे के सिर की हडिड्यों की विशेष भूमिका होती है। सिर की हडिड्यां के बीच में थोड़ा सा स्थान होता है। बच्चे के जन्म के समय सिर की हडिड्यां एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती है जिससे बच्चे का जन्म सरलता और आसानी से हो जाता है। बच्चे के जन्म का रास्ता लगभग 10 सेंटीमीटर चौड़ा होता है जबकि बच्चे का सिर मात्र 9.5 सेंटीमीटर का होता है। इस कारण प्रसव आसानी से हो जाता है। यदि बच्चे के सिर और बच्चे का आकार अधिक हो या कूल्हे का आकार छोटा हो तो ऐसी अवस्था में बच्चे के जन्म के लिए आपरेशन करना पड़ सकता है। मूलाधार महिलाओं के दोनों टांगों के बीच के त्रिकोण भाग को मूलाधार या पैरानियम भी कहते है। पैरानियम बाडी मलद्वार के आगे तथा जननद्वार के पीछे होती है। इसमें कूल्हे के निचले भग की सभी मांसपेशियां आपस में मिलती है। यह प्रत्येक व्यक्तियों में अलग-अलग होती है। किसी में यह कमजोर और किसी में यह अधिक शक्तिशाली होती है। इस प्रकार से पैरानियम जननद्वार के पीछे तथा नीचे की दीवार को सहारा दिये रहती है। संभोग क्रिया के समय पैरानियम जननद्वार को पीछे की ओर से साधे रहती है। बढ़ती आयु के साथ-साथ यह कमजोर हो जाती है। कूल्हे के चरों ओर की मांसपेशियों के यहां एकत्र होने के कारण यहां का रोग या पस चारों ओर फैल सकता है। बच्चे के जन्म के पहले जननद्वार को यहीं से काटकर चौड़ा बनाया जाता है। ताकि बच्चे के जन्म के समय अधिक से अधिक स्थान प्राप्त हो सके तथा बच्चे के जन्म के लिए अधिक चीड़-फाड़ न करना पड़े। प्रसव के बाद टांके इन्हीं मांसपेशियों में लगाये जाते है जिसको ऐपिजियोटोमी कहते है। क्लाईटोरस "CLITORIS" क्लिटोरिस महिलाओं के जननांग का एक हिस्सा होता है। इसे "फ़ीमेल पेनिस" भी कहा जाता है। महिलाओं में ऑर्गेज्‍म/चरम सुख तक ले जाने में जननांग के और इस हिस्से का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसे "G-Spot" जी-स्पॉट के नाम से भी जानते है। इसे "फ़ीमेल पेनिस" इस लिए कहा जाता है क्यों की पुरुषों के पेनिस संरचना भी लगभग ऐसे ही होती है। उत्तेजना के दौरान जैसे पुरुषों के जननांग में बदलाव आते है ठीक वैसे ही क्लिटोरिस में भी बदलाव आता है। पुरुषों के पेनिस से अपेक्षाकरित काफी छोटा होने के वजह से हमारा ध्यान इस तरफ आकृष्ट नहीं होता है। इन्हें भी देखें भग योनि गर्भाशय प्रसव स्त्री शरीर प्रजनन गर्भधारण मई २०१३ के लेख जिनमें स्रोत नहीं हैं
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
अराकोसिया
अराकोसिया𐏃𐎼𐎢𐎺𐎫𐎡𐏁 (प्राचीन फ़ारसी : Harauvatiš)αχωσία (यूनानी: अराकोसिया ) हखामनी साम्राज्य के पूर्वी क्षेत्र, जिसमें अराकोसिया भी शामिल है। हखामनी सेना का अराकोसियाई सैनिक, लगभग ४७० ईसापूर्व, क्षयार्षा का मकबरा। अराकोसिया हखामनी साम्राज्य के पूर्वी भागों में स्थित एक प्राचीन सात्राप का यूनानी नाम है। यह आधुनिक समय के दक्षिणी अफगानिस्तान में अरघंदब नदी की घाटी के आसपास केंद्रित था, और आधुनिक पाकिस्तान में सिंधु नदी के रूप में पूर्व तक फैला हुआ था। इसके नाम का पुराना फ़ारसी रूप हरौवती है, जो वैदिक संस्कृत सरस्वती के व्युत्पत्ति संबंधी समकक्ष है। प्रांत का नाम इसकी मुख्य नदी, आधुनिक अरघंदब (यूनानी में अरचटोस कहा जाता है), हेलमंद नदी की एक सहायक नदी के नाम पर लिया गया है। अराकोसिया की राजधानी अराकोसिया का अलेक्जेंड्रिया था, जो एक प्राचीन यूनानी शहर था जो अब कंधार के नाम से जाना जाता है। शब्द-साधन "अराकोसिया" यूनानी का लैटिनीकृत रूप है। "वही क्षेत्र अवेस्तान विद्वदत (१.१२) में स्वदेशी बोली रूप के तहत प्रकट होता है।" पुराने फ़ारसी शिलालेखों में इस क्षेत्र को हराउवती (𐏃𐎼𐎢𐎺𐎫𐎡𐏁) कहा जाता है। यह रूप वैदिक संस्कृत का "व्युत्पत्ति संबंधी समकक्ष" है -, एक नदी का नाम जिसका शाब्दिक अर्थ है "पानी / झीलों में समृद्ध" और सरस- "झील, तालाब" से लिया गया है। ( सीएफ। अरेडवी सुरा अनाहिता )। "अराकोसिया" का नाम उस नदी के नाम पर रखा गया था जो इसके माध्यम से चलती है, जिसे प्राचीन यूनानी में अरचिटोस के रूप में जाना जाता है और आज हेलमंद नदी के बाएं किनारे की सहायक नदी अरघंदब नदी के रूप में जाना जाता है। भूगोल अराकोसिया की सीमा पश्चिम में ड्रैंगियाना पर, उत्तर में पारोपमिसादे पर, पूर्व में हिंदुश और दक्षिण में गेड्रोसिया से लगती है। इसिडोर और टॉलेमी (६.२०.४-५) प्रत्येक अराकोसिया में शहरों की एक सूची प्रदान करते हैं, उनमें से (एक और) अलेक्जेंड्रिया, जो अराचोटस नदी पर स्थित है। इस शहर को अफगानिस्तान में वर्तमान कंधार के साथ अक्सर गलत पहचाना जाता है, जिसका नाम "अलेक्जेंड्रिया" से लिया गया ("इस्कैंडरिया" के माध्यम से) माना जाता था, सिकंदर महान की शहर की यात्रा के संबंध को दर्शाता है। भारत के प्रति उनका अभियान । लेकिन हाल ही में एक मिट्टी की पटिया पर एक शिलालेख की खोज ने इस बात का प्रमाण दिया है कि 'कंधार' पहले से ही एक ऐसा शहर था जो सिकंदर के समय से बहुत पहले फारस के साथ सक्रिय रूप से व्यापार करता था। इसिडोर, स्ट्रैबो (११.८.९) और प्लिनी (६.६१) भी शहर को "अराकोसिया का महानगर" कहते हैं।  अपनी सूची में टॉलेमी ने अराखोतोस () या अराखोती (स्ट्रैबो के अनुसार) नामक एक शहर का भी उल्लेख किया है , जो भूमि की पहले की राजधानी थी। बीजान्टियम के प्लिनी द एल्डर और स्टीफन का उल्लेख है कि इसका मूल नाम कोफेन (Κωφήν) था। हुआन त्सांग ने इसे काओफू नाम से संदर्भित करता है। इस शहर की पहचान आज अरघंदब से की जाती है जो वर्तमान कंधार के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इतिहास इस क्षेत्र को सबसे पहले हखामनी -युग एलामाइट पर्सेपोलिस किलेबंदी गोलियों में संदर्भित किया गया है। यह पुराने फ़ारसी, अक्कादियन और दारा प्रथम और क्षयार्षा प्रथम के अरामी शिलालेखों में विषय लोगों और देशों की सूची में फिर से प्रकट होता है। बाद में इसे सुसा में दारा के महल में प्रयुक्त हाथीदांत के स्रोत के रूप में भी पहचाना जाता है। बेहिस्टुन शिलालेख (डीबी ३.५४-७६) में राजा ने बताया कि एक फारसी को तीन बार अराकोसिया, विवाना के हखामनी गवर्नर ने हराया था, जिसने यह सुनिश्चित किया कि प्रांत दारा के नियंत्रण में रहे। यह सुझाव दिया गया है कि यह "रणनीतिक रूप से अस्पष्ट सगाई" विद्रोही द्वारा किया गया था क्योंकि "पारसी विश्वास के विषय में फारस और अराकोसिया के बीच घनिष्ठ संबंध थे।" अराकोसिया का कालानुक्रमिक रूप से अगला संदर्भ यूनानियों और रोमनों से आता है, जो रिकॉर्ड करते हैं कि दारा तृतीय के तहत अराकोसियाई और ड्रैंगियन एक गवर्नर की कमान में थे, जिन्होंने बैक्ट्रियन गवर्नर की सेना के साथ मिलकर सिकंदर के खिलाफ अराकोसियों की एक साजिश रची थी। कर्टियस रूफस ८.१३.३)। अकेमेनिड्स पर सिकंदर की विजय के बाद, मैसेडोनियन ने अपने जनरलों को राज्यपालों के रूप में नियुक्त किया (एरियन ३.२८.१, ५.६.२; कर्टियस रूफस ७.३.५; प्लूटार्क, यूमेनस १९.३; पॉलीएनस ४.६.१५; डायोडोरस १८.३.३; ओरोसियस ३.२३.१ ३ ; जस्टिन १३.४.२२)। ३१६ ईसा पूर्व में एंटीगोनस प्रथम मोनोफथलमस ने भारत के साथ पूर्वी सीमा की रक्षा के लिए अराकोसिया में चालीस वर्षों के अनुभव के साथ एक अनुभवी मैसेडोनियन कोर के अधिकांश कुलीन अरगिरास्पाइड्स भेजे। हालाँकि, उन्हें दो या तीन के छोटे समूहों द्वारा खतरनाक मिशनों में भेजने के लिए, अराकोसिया के मैसेडोनियन क्षत्रप सिबिरटियस को आदेश के साथ भेजा गया था ताकि उनकी संख्या तेजी से घट जाए और उन्हें अपनी शक्ति के लिए एक सैन्य खतरे के रूप में हटा दें। डायडोची के युद्धों के बाद, यह क्षेत्र सेल्यूसिड साम्राज्य का हिस्सा बन गया, जिसने इसे ३०५ ईसा पूर्व में एक गठबंधन के हिस्से के रूप में मौर्य साम्राज्य में कारोबार किया। शुंग वंश ने १८५ ईसा पूर्व में मौर्यों को उखाड़ फेंका, लेकिन कुछ ही समय बाद यूनानीो-बैक्ट्रियन साम्राज्य में अराकोसिया को खो दिया। यह तब दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में अलग-अलग इंडो-यूनानी साम्राज्य का हिस्सा बन गया। १ शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य तक इंडो-सीथियन ने इंडो-यूनानियों को निष्कासित कर दिया, लेकिन इस क्षेत्र को अर्सासिड्स और इंडो-पार्थियन से खो दिया। किस समय (और किस रूप में) अराकोसिया पर पार्थियन शासन को फिर से स्थापित किया गया था, यह किसी भी प्रामाणिकता के साथ निर्धारित नहीं किया जा सकता है। इसिडोर १९ से यह निश्चित है कि इस क्षेत्र का एक हिस्सा (शायद केवल एक छोटा सा) पहली शताब्दी ईस्वी सन् में अर्सासिड शासन के अधीन था, और पार्थियनों ने इसे इंडिकी ल्यूकी, "व्हाइट इंडिया" कहा। कुषाणों ने इंडो-पार्थियनों से अराकोसिया पर कब्जा कर लिया और लगभग २३० सीई तक इस क्षेत्र पर शासन किया, जब वे दूसरे फारसी साम्राज्य, ससानिड्स द्वारा पराजित हुए, जिसके बाद कुषाणों को कुषाणों या इंडो- ससानिड्स के रूप में जाने जाने वाले ससानिद जागीरदारों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। ४२० सीई में कुषाणों को वर्तमान अफगानिस्तान से चियोनियों द्वारा खदेड़ दिया गया था, जिन्होंने किदाराइट साम्राज्य की स्थापना की थी। किदारियों को ४६० ई. में हेफ़थलाइट्स द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिन्हें ५६५ सीई में फारसी और तुर्की सेनाओं के गठबंधन द्वारा पराजित किया गया था। मुस्लिम अरबों के हमले में आने से पहले, अराकोसिया कपिसा, फिर काबुल के जीवित कुशानो-हेफ्थलाइट साम्राज्यों का हिस्सा बन गया। ये राज्य ससानिड्स के पहले जागीरदार थे। ८७० सीई के आसपास कुशानो-हेफ्थलाइट्स (उर्फ तुर्कशाही राजवंश) को ११ वीं शताब्दी सीई की शुरुआत में सैफरीड्स, फिर समानीद साम्राज्य और मुस्लिम तुर्की गजनविद द्वारा बदल दिया गया था। अरब भूगोलवेत्ताओं ने इस क्षेत्र (या इसके कुछ हिस्सों) को 'अरोखाज', 'रोखज', 'रोहकज' या बस 'रोह' के रूप में संदर्भित किया। निवासियों अराकोसिया के निवासी ईरानी लोग थे, और उन्हें अराकोसियाई या अराचोटी कहा जाता था। उनकी व्यक्तिगत जातीयता के संदर्भ में उन्हें पैक्टियन कहा जाता था, और यह नाम पश्तूनों के नाम से जाने जाने वाले आधुनिक जातीय समूह के संदर्भ में हो सकता है। चरक्ष के इसिडोर ने अपनी पहली शताब्दी सीई "पार्थियन स्टेशनों" यात्रा कार्यक्रम में "अलेक्जेंड्रोपोलिस, अराकोसिया का महानगर" का वर्णन किया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इतने देर से भी यूनानी था: ईरानी लोगों से क्रोएशियाई मूल का सिद्धांत One theory of Croatian origin traces the origin of the Croats to the area of Arachosia. This connection was at first drawn due to the similarity of Croatian (Croatia - Croatian: Hrvatska, Croats - Croatian: Hrvati / Čakavian dialect: Harvati / Kajkavian dialect: Horvati) and Arachosian name, but other researches indicate that there are also linguistic, cultural, agrobiological and genetic ties. Since Croatia became an independent state in १९९१, the Iranian theory gained more popularity, and many scientific papers and books have been published. यह सभी देखें अफगानिस्तान का इतिहास कंधार प्रांत टिप्पणियाँ संदर्भ बाहरी संबंध अराकोसिया अराकोसिया में अलेक्जेंड्रिया ARACHOSIA, प्रांत (satrapy) ऐतिहासिक भौगोलिक क्षेत्र
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गामबूर्तसेव पर्वतमाला
गामबूर्तसेव पर्वतमाला (Gamburtsev Mountain Range) पूर्वी अंटार्कटिका में स्थित एक पर्वतमाला है। अंटार्कटिका के दुर्गम स्थान के कारण इसका अस्तित्व लगभग पूर्ण मानव इतिहास में अज्ञात रहा और यह सन् १९५८ में तीसरे सोवियत अंटार्कटिक अभियान में पाई गई। इसका नाम भूभौतिकी के प्रसिद्ध सोवियत वैज्ञानिक ग्रिगोरी आलेक्सान्द्रिविच गामबूर्तसेव (Grigoriy A. Gamburtsev, Григорий Александрович Гамбурцев) पर रखा गया। यह पर्वतमाला लगभग १२०० किमी तक चलती है और इसके पर्वतों की अनुमानित ऊँचाई २,७०० मीटर (८,९०० फ़ुट) है। यह हमेशा लगभग ६०० मीटर मोटी हिमचादर से ढके होते हैं। इन्हें भी देखें पूर्वी अंटार्कटिका पार-अंटार्कटिक पर्वतमाला सन्दर्भ अंटार्कटिका की पर्वतमालाएँ पूर्वी अंटार्कटिका
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रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह
रिलायंस अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह कई कम्पनियों वाला एक औद्योगिक घराना या समूह है। अनिल अंबानी इसके मालिक हैं। मुकेश अंबानी एवं अनिल अम्बाणी के आपसी झगड़े के कारण रिलायंस इण्डस्ट्रीज के विभाजन हुआ और यह समूह अस्तित्व में आया। इसके लगभग ८० लाख शेयर धारक हैं जिससे यह विश्व का सबसे अधिक अंशधारकों वाला समूह बन गया है। इस समूह के अन्तर्गत निम्नलिखित कम्पनियाँ हैं: रिलायंस मनोरंजन एडलैब्स फिल्म्स एडलैब्स सिनेमाज़ बिग ९२.७ बिग एंटर्टेनमेंट बिग म्युजि़क ज़पाक बिगफ्लिक्स बिगाडा़ बिग मोशन पिक्चर्स बिग एनिमैशन (एनिर्स्सीट्स इंफोमीडिया) जम्प गेम्स बिग म्युजि़क & होम एंटर्टेनमेंट रिलायंस कैपिटल रिलायंस कैपिटल रिलायंस म्युचुअल फ़ड रिलायंस लाइफ़ इंश्योरेंस रिलायंस जनरल इंश्योरेंस रिलायंस मनी रिलायंस कंज्युमर फाइनैंस रिलायंस संचार रिलायंस ग्लोबलकोम बिग टीवी रिलायंस उर्जा रिलायंस शक्ति रिलायंस स्वास्थ्य DA-IICT बाहरी कड़ियाँ रिलायंस अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह का जालघर उद्योग रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह
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गुरसिमरन सिंह मंड
गुरसिमरन सिंह मंड:- एक नई पहल लुधियाना, पंजाब की राजनीति में एक ऐसी शख़्सियत जिसका समाज-सेवा के साथ ही विवादों से भी गहरा ताल्लुक रहा। एक ऐसा शख्स जो गाँव में जन्म और शुरूआती शिक्षा लेने के बाद समाज-सेवा के इरादे से शहर में आकर राजनीति में प्रवेश करता है। अपने सामाजिक कार्यों और उसूलों से समझौता ना करने की वजह से विरोधियों तथा असामाजिक तत्वों के निशाने पर रहने वाले गुरसिमरन सिंह मंड का जन्म 19 अक्टूबर 1974 को पंजाब राज्य के लुधियाना जिले के एक गाँव "भुट्टा" में  पिता सरदार मंजीत सिंह और माता सरदारनी अमरजीत कौर (अब स्वर्गीय) की पहली संतान के रूप में हुआ।  . पारिवारिक इतिहास गुरसिमरन सिंह मंड का जन्म ऐसे परिवार में हुआ जो किसानी के साथ ही राजनीति में भी सक्रिय था। दादा सरदार भगवंत सिंह 27 एकड़ के काश्तकार थे लेकिन तब भी सामाजिक तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उन्होंने "भुट्टा" गाँव के सरपंच के रूप में 1954 से लेकर 1965 तक इलाके के लोगों की सेवा एवं गाँव की समस्याएं सुलझाने का बीड़ा उठाया। सरदार भगवंत सिंह के घर 5 पुत्र मेहर सिंह, सुरजीत सिंह, रंजीत सिंह, संतोख सिंह, मंजीत सिंह(गुरसिमरन सिंह के पिता) तथा 6 पुत्रियां हरबंस कौर, निरंजन कौर, अवतार कौर, सुरिंदर कौर, हरदेव कौर और गुरमीत कौर का जन्म हुआ। दादी सरदारनी बलवंत कौर एक कुशल गृहणी थी और इसी वजह से सरदार भगवंत सिंह अपने घर की चिंता से मुक्त होकर लोगों की भलाई के लिए ज्यादा समय दे पाते थे। शिक्षा की अहमियत जानने के कारण उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई की तरफ भी ध्यान रखा। सरदार भगवंत सिंह की छवि एक लोकप्रिय सरपंच के रूप में थी परन्तु 1965 के बाद अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों को लेकर उन्होंने सरपंच का चुनाव ना लड़ने का फैसला कर लिया। 1971 में उसी गाँव की मिट्टी में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के बाद पत्नी बलवंत कौर ने उनकी ही राह पर चलते हुए 1987 से 1992 तक पंचायत मेम्बर रहते हुए गाँव की समस्याओं की तरफ ध्यान दिया। 1998 में बलवंत कौर ने भी शरीर त्याग दिया। मृत्यु के समय तक उनके पुत्र घर और खेती की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। सरदार भगवंत सिंह के पुत्र सरदार मंजीत सिंह खेती के साथ ही युवावस्था में ही "डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव यूनियन लिमिटेड" में "वाईस-प्रेसिडेंट" का पद सँभालने लगे। "वाईस प्रेसिडेंट" के पद पर रहते हुए उन्होंने 1973 से लेकर 1979 तक अपनी सेवाएं दीं। 1974 में "फर्स्ट जनरल बॉडी डेलीगेट्स, इफको" भी रहे। 1991 में "प्राइमरी डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट बैंक,लुधियाना" के चेयरमैन के पद पर किसानो के हित के लिए काम किया। 1992 से 1997 तक "पंचायत मेंबर" रहते हुए लोगों की आवाज़ बनकर समस्याओं का निस्तारण करते रहे। सरदार मंजीत सिंह और पत्नी सरदारनी अमरजीत कौर(अब स्वर्गीय) के घर दो पुत्रों का जन्म हुआ। बड़े पुत्र का नाम गुरसिमरन सिंह और छोटे का गगनदीप सिंह रखा गया। परिवार की पहले से ही पढ़ाई की तरफ रुचि होने के कारण अच्छी शिक्षा के लिए सरदार मंजीत सिंह परिवार सहित लुधियाना शहर में आ गए परन्तु अपने गाँव से भी कभी संपर्क टूटने नहीं दिया। अनेकों पद पर रहते हुए कभी अपने पद का दुरूपयोग नहीं किया। निजी फायदे या रिश्वत ना लेकर अपने पुत्रों के साथ रियल एस्टेट का व्यवसाय करते हुए उन्होंने जीवकोपार्जन किया। प्रारंभिक जीवन 1974 में जन्मे गुरसिमरन सिंह मंड की प्रारंभिक पढाई "मालवा खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल" में हुई।  80 और 90 के दशक में पंजाब का गाँव-गाँव खालिस्तान की मांग करने वालों की लगाई आग में जल रहा था। बाल्यावस्था से ही अपने क्षेत्र में इस तरह का माहौल देख कर उनके मन में देश के लिए कुछ करने की भावना घर करने लगी। खालिस्तान की मांग करने वालों द्धारा आम जनता पर होता अत्याचार देख उनका बालमन आम लोगों की मदद के लिए हिलोरे मारने लगा। किशोरावस्था से ही वह अपने पिता से पंजाब के हालातों पर चर्चा करते थे कि आखिर कौन और क्यों हमारे नौजवानों को देश के खिलाफ भड़काकर हरे-भरे पंजाब को इस नफरत की आग में जला रहा है। पंजाब के हालात और परिवार में शुरू से ही राजनैतिक और समाज सेवा का माहौल होने से बचपन में ही गुरसिमरन सिंह मंड का आखिरकार इस क्षेत्र में झुकाव होने लगा था। राजनीति में प्रवेश गुरसिमरन सिंह मंड पढ़ाई पूरी करने के बाद युवावस्था में ही अपने पिता के साथ रियल एस्टेट का काम करने के अलावा कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य की भूमिका निभाने लगे। अपने पिता और दादा के नक्शेक़दम पर चलते हुए इन्होने भी राजनीति को समाज-सेवा करने का ही साधन माना और जीवकोपार्जन के लिए राजनीति पर निर्भर नहीं रहे। शुरू में गुरसिमरन ने युवा होने के नाते अपना एकमात्र ध्येय बना लिया कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में रहते हुए वो सबसे पहले पंजाब के युवाओं को जागरूक करेंगे ताकि युवा वर्ग देश के दुश्मनों की साजिश को पहचानकर मुँहतोड़ जवाब दे सके और साथ ही अपनी युवाशक्ति को पहचान कर देश की तरक्की में योगदान दे। उनकी ऐसी निस्वार्थ सेवा भावना के काम करने के कारण जल्द ही कांग्रेस पार्टी में उनका कद बढ़ने लगा और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के साथ उनकी नजदीकी पारिवारिक स्तर तक पहुँच गई। युवाओं को मुख्यधारा में जोड़ने की उनकी कोशिशों को देखते हुए कांग्रेस ने गुरसिमरन सिंह मंड को "सचिव,लुधियाना यूथ कांग्रेस" का पदभार संभाल दिया और यहीं से उनका सक्रिय राजनीति में प्रवेश हुआ। पंजाब के राजनैतिक बदलाव 31 अगस्त 1995 के दिन खालिस्तान समर्थकों द्धारा बम विस्फोट में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या चंडीगढ़ में करने के बाद हरचरण सिंह बराड़ (31 अगस्त 1995 से 21 नवंबर 1996) और राजिंदर कौर भट्टल (21 नवंबर 1996 से 11 फरवरी 1997) ने जब बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद संभाला तो कांग्रेस और पंजाब के मुश्किल वक़्त में गुरसिमरन सिंह मंड पंजाब, कांग्रेस और मुख्यमंत्रियों खासतौर पर राजिंदर कौर भट्टल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज्य की शान्ति और विकास के लिए काम करते रहे। निस्वार्थ सेवाभाव होने के कारण 1997 के पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार के उपरान्त भी शांत ना बैठते हुए वह कांग्रेस और देश के सच्चे सिपाही की तर्ज़ पर जमीनी स्तर पर आम जनता की समस्याओं को तत्कालीन सत्ताधारी अकाली दल नेतृत्व के सामने उठाते रहे। समय-समय पर कलम को हथियार बनाकर विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के माध्यम से सत्तादल पर लोकहित में गुरसिमरन सिंह ने प्रश्नों के तीर चलाए। उन्होंने मजलूमों की आवाज़ को हमेशा बेबाक़ी से कह कर राजनेताओं को आईना दिखाना जारी रखा। ये ही वो समय था जब उनकी मुखरवादिता से कई विपक्षी नेता उनसे विद्धेष रखने लग गए। 21वीं सदी में प्रवेश 2002 के पंजाब विधानसभा चुनावों में जनता ने अकाली दल को उनकी समाज के लिए अहितकारी नीतियों के कारण सिरे से नकार कर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस को सत्ता सौंप दी। जिसके फलस्वरूप गुरसिमरन सिंह मंड के लिए जनता की दिक्कतों का निराकरण करना संभव होने लगा। वह लगातार मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलकर लोगों की परेशानियों को हल करने लगे। 2002 से लेकर 2007 तक कैप्टन के कार्यकाल में गुरसिमरन सिंह मंड कांग्रेस के अंदर भी अपनी बात बेबाकी से कहने के लिए काफ़ी मशहूर थे। उन्होंने पार्टी के अंदर भी भ्रष्ट व्यक्तियों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद रखी जिससे कुछ-एक पार्टी सदस्य भी उनसे ख़फ़ा रहने लगे परन्तु अपनी धुन और उसूलों से कभी समझौता ना करने की पारिवारिक विरासत को निभाते हुए गुरसिमरन सिंह अपने पथ पर अडिग रहे। 80, 90 के दशकों में आतंकवाद की लपटों में झुलसने के दौरान 3510 दिन (लगभग 10 वर्ष) राष्ट्रपति शासन में रहने वाला पंजाब अब धीरे-धीरे तरक्की और शान्ति की राह पर चलने लगा था। 5 वर्ष के कार्यकाल में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक तरफ पूरे प्रदेश में,तो दूसरी तरफ गुरसिमरन सिंह मंड ने अपनी जन्मस्थली तथा कर्मभूमि लुधियाना में लगातार विकास, किसान समस्याओं पर काम करना जारी रखा। ये वो दौर था जब गुरसिमरन सिंह मंड इंतज़ार नहीं करते थे कि क्षेत्रवासी खुद अपनी समस्या लेकर उनके पास आएं अपितु वे अपने क्षेत्र की दिक्कतों को स्वत: संज्ञान में लेकर उसका निवारण करने की अनवरत कोशिश करते रहे। 2007 आते-आते कांग्रेस के नेतृत्व में पंजाब की खुशहाली और शान्ति लौटने लगी परन्तु गुरसिमरन सिंह मंड सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं थे, वो जानते थे कि ये ही सही समय है कि पंजाब के युवाओं को सही रास्ते की तरफ अग्रसर करने के लिए प्रेरित किया जाये, ताकि वो दोबारा आतंकवाद के चंगुल में ना फंसे। इसी सोच को अपने साथ लेकर वो अपने क्षेत्र के युवाओं को जागरूक करने के लिए कैम्पेन चलाने लगे। वह बड़ी सभा से ज्यादा छोटी सभा या मीटिंग्स को अहमियत थे क्योंकि उनका कहना है कि जब 10-15 युवाओं के साथ हम एक छोटी फेस-टू-फेस मीटिंग करते हैं तो अपनी बात कहने के साथ ही हम उनकी भी दिक्कतों या संशय को सुन-समझकर हल कर सकते हैं, जबकि बड़ी सभा में हम सिर्फ अपने ही विचारों को ही रख पाते हैं। इसीलिए उन्होंने छोटे स्तर की मीटिंग्स में लगने वाले ज्यादा समय और परिश्रम के बावजूद इसको करना जारी रखा और इससे क्षेत्र के युवाओं में भी सन्देश गया कि कांग्रेस पार्टी गुरसिमरन सिंह मंड जैसे युवा नेताओं के माध्यम से हमारे साथ जमीनी स्तर पर जुड़ी हुई है। कांग्रेस की हार साल 2007 में पंजाब विधानसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए गुरसिमरन सिंह मंड कांग्रेस पार्टी के विचारों को जनता के समक्ष लेकर जाने लगे परन्तु विपक्षियों द्धारा मीडिया में दुष्प्रचार और सरकार के विरुद्ध एंटी-इंकम्बेंसी वोटिंग होने के कारण कांग्रेस को अपने अथक-परिश्रम के बावजूद हार का मुँह देखना पड़ा। गुरसिमरन सिंह मंड इस राजनैतिक हार से निराश नहीं हुए और पंजाब के हित के लिए दोगुने जोश से युवाओं को जागृत करने में लगे रहे। ये जोशो-खरोश देख कर कांग्रेस पार्टी ने 2008 में उनको लुधियाना में "ट्रेनिंग सेल, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी" का "चेयरमैन" नियुक्त कर दिया। जिससे उनके लिए युवा-वर्ग से सीधे जुड़कर पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाना आसान होने लगा। काम वही-तरीका नया पंजाब हमेशा से एक कृषि प्रधान राज्य रहा है। इसीलिए जब एम.एस.स्वामीनाथन के दिशा-निर्देश और तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी की अगुवाही में 1966-67 के दौरान भारत में हरित-क्रांति की शुरुआत हुई तो पंजाब का नाम इसमें सबसे अग्रणी राज्यों में था। पंजाब की अधिकतर आबादी गाँवों में बसने के कारण युवाओं का एक बड़ा वर्ग इन्ही गाँवों में रहता है। 2008-09 के समय से इन्ही युवाओं के नशे के दलदल में फसनें की ख़बरें आम होने लगीं। गुरसिमरन सिंह मंड एक तरफ तो शहर में युवाओं को जाग्रत कर रहे थे और दूसरी तरफ गाँव की जड़ों से जुड़े होने के कारण ऐसी ख़बरें उनका मन आहत कर रही थीं। आखिरकार इस पशोपेश में उनके ग्रामीण परिवेश के पारिवारिक विरासत की जीत हुई और उन्होंने फैसला कर लिया कि अगर हमारा गाँव का युवा ही नशे में गर्त हो गया तो इसका असर कई पीढ़ियों तक होगा। गुरसिमरन सिंह मंड नशे के बहुत ज्यादा खिलाफ रहे हैं और उन्होंने खुद भी सारी जिन्दगी कोई नशा तो दूर की बात मांसाहारी भोजन भी नहीं खाया। इसी बात से प्रेरित होकर गुरसिमरन सिंह मंड ने कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों के सामने इच्छा जाहिर की, कि वो ग्रामीण इलाकों में जाकर युवाओं के लिए कुछ करना चाहते हैं। इस कार्य के लिए कांग्रेस पार्टी का "राजीव गाँधी पंचायत राज संगठन" काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। युवाओं को नशे से दूर करके अपने साथ जोड़ने और ग्रामीण इलाकों में पंचायत राज संगठन को मजबूती प्रदान करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने 2009-10 में "राजीव गाँधी पंचायत राज संगठन" में पंजाब राज्य के महासचिव की जिम्मेदारी गुरसिमरन सिंह मंड के जवान कंधों को सौंप दी। References https://twitter.com/gursimranmandhttps://www.facebook.com/gursimransinghmand https://www.linkedin.com/in/gursimran-singh-mand-b1a58a137/?originalSubdomain=in
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नांदेड़ जिला
नांदेड़ ज़िला भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय नांदेड़ है। जिले का क्षेत्रफल 10502 वर्ग किमी है, जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 2876259 थी जिसमें से 23.96% जनसंख्या शहरी थी। पवित्र नदी गोदावरी जिले से होकर बहती है। नांदेड़ जिला, औरंगाबाद विभाग में आता है और मराठवाड़ा क्षेत्र के दक्षिणी भाग में स्थित है। जिला पूर्व में तेलंगाना के निज़ामाबाद, निर्मल, कामारेड्डी और आदिलाबाद जिलों से घिरा है, मराठवाड़ा के परभणी, लातूर, हिंगोली जिले इसके पश्चिम में, विदर्भ क्षेत्र का यवतमाल जिला उत्तर में और कर्नाटक का बीदर जिला इसके दक्षिण में स्थित है। नांदेड़ के लोगों के व्यवहार, भाषा और आचरण पर आंध्र, कर्नाटक और विदर्भ का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। इन्हें भी देखें नांदेड़ महाराष्ट्र महाराष्ट्र के जिले सन्दर्भ महाराष्ट्र के जिले
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बक्सर
बक्सर (Buxar) भारत के बिहार राज्य के बक्सर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। भारत के पूर्वी प्रदेश बिहार के पश्चिम भाग में गंगा नदी के तट पर स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यहाँ की अर्थ-व्यवस्था मुख्य रूप से खेतीबारी पर आधारित है। यह शहर मुख्यतः धर्मिक स्थल के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में इसका नाम 'व्याघ्रसर' था। क्योंकि उस समय यहाँ पर बाघों का निवास हुआ करता था तथा एक बहुत बड़ा सरोवर भी था जिसके परिणामस्वरुप इस जगह का नाम व्याघ्रसर पड़ा। बक्सर पटना से लगभग ७५ मील पश्चिम और मुगलसराय से ६० मील पूर्व में पूर्वी रेलवे लाइन के किनारे स्थित है। यह एक व्यापारिक नगर भी है। यहाँ बिहार का एक प्रमुख कारागृह हैं जिसमें अपराधी लोग कपड़ा आदि बुनते और अन्य उद्योगों में लगे रहते हैं। सुप्रसिद्ध बक्सर की लड़ाई शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ की तथा अंग्रेज मेजर मुनरो की सेनाओं के बीच यहाँ ही १७६४ ई॰ में लड़ी गई थी जिसमें अंग्रेजों की विजय हुई। इस युद्ध में शुजाउद्दौला और कासिम अली खाँ के लगभग २,००० सैनिक डूब गए या मारे थे। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों व्यक्ति इकट्ठे होते हैं। इतिहास इसका इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। बक्सर में गुरु विश्वामित्र का आश्रम था। यहीं पर राम और लक्ष्मण का प्रारम्भिक शिक्षण-प्रशिक्षण हुआ। प्रसिद्ध ताड़का राक्षसी का वध राम द्वारा यहीं पर किया गया था। 1764 ई॰ का 'बक्सर का युद्ध' भी इतिहास प्रसिद्ध है। इसी नाम का एक ज़िला शाहबाद (बिहार में) का अनुमंडल है। बक्सर के युद्ध (1764) के परिणामस्वरूप निचले बंगाल का अंतिम रूप से ब्रिटिश अधिग्रहण हो गया। मान्यता है कि एक महान पवित्र स्थल के रूप में पहले इसका मूल नाम 'वेदगर्भ' था। कहा जाता है कि वैदिक मंत्रों के बहुत से रचयिता इस नगर में रहते थे। इसका संबंध भगवान राम के प्रारंभिक जीवन से भी जोड़ा जाता है। उत्खनन मौर्यकाल की अनेक सुंदर लघु मूर्तियाँ बक्सर उत्खनन में प्राप्त हुई थीं जो अब पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं। जनसँख्या 2011 की जनगणना के अनुसार बक्सर ज़िले की कुल जनसंख्या लगभग 1,707,643 है। इन्हें भी देखें बक्सर की लड़ाई मीर कासिम ने अवध के नवाब से सहायता की याचना की, नवाब शुजाउदौला इस समय सबसे शक्ति शाली था। मराठे पानीपत की तीसरी लड़ाई से उबर नहीं पाए थे, मुग़ल सम्राट तक उसके यहाँ शरणार्थी था, उसे अहमद शाह अब्दाली की मित्रता प्राप्त थी जनवरी 1764 में मीर कासिम उस से मिला उसने धन तथा बिहार के प्रदेश के बदले उसकी सहायता खरीद ली। शाह आलम भी उनके साथ हो लिया। किंतु तीनो एक दूसरे पर शक करते थे। इन्हें भी देखें बक्सर का युद्ध बक्सर ज़िला सन्दर्भ बक्सर जिला बिहार के शहर बक्सर ज़िले के नगर
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एपोगोनिडाए
एपोगोनिडाए (Apogonidae), जिसे कार्डिनल मछली (Cardinalfish) भी कहा जाता है, हड्डीदार किरण-फ़िन मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है। इसमें लगभग ३७० जातियाँ सम्मिलित हैं जो हिन्द, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों में रहती हैं। यह अधिकतर समुद्री मछलियाँ हैं लेकिन इसकी कुछ जातियाँ अर्ध-खारे और कुछ मीठे पानी में भी रहती हैं। रूप व स्वभाव यह ऊष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में अक्सर अनूप झीलों में और रीफ़ों के पास मिलती हैं। आकार छोटा होता है (लगभग १० सेंटीमीटर) और यह अक्सर रंग-बिरंगी होती हैं। इनका पृष्ठीय फ़िन ऊपर के हिस्से में दो भागों में विभाजित होता है। यह अपने शांत स्वभाव के कारण जलजीवशालाओं (अक्वेरियमों) में पाली जाती हैं। सागर में इनमें निशाचरता देखी जाती है और दिन में यह रीफ़ के अंधेरे हिस्सों में छुपती हैं। इन्हें भी देखें परकोइडेई पर्सिफ़ोर्मेज़ सन्दर्भ परकोइडेई समुद्री मछली कुल
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मातृवंश समूह ऍक्स
मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍक्स या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप X एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीका में और कुछ मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में पाया जाता है। यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका की लगभग २% आबादी इस मातृवंश की वंशज है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई थी वह आज से ३०,००० साल पहले ईरान-ईराक़ के पास कहीं पश्चिमी एशिया में रहती थी। उनके लिए यह एक पहेली है के यह मातृवंश उत्तरी अमेरिका में कैसे जा पहुंचा जबकि इसकी शुरुआत दूर पश्चिमी एशिया में हुई थी। इसकी सोच अब यह है के इस मातृवंश की वंशज महिलाऐं मध्य एशिया के अल्ताई पर्वत श्रंखला के इलाक़े से होती हुई पहले साइबेरिया और फिर अलास्का के ज़रिये उत्तरी अमेरिका में दाख़िल हुईं। याद रहे के हालांकि मातृवंश बताने वाले माइटोकांड्रिया मर्दों और औरतों दोनों में होतें हैं, संतानों को यह केवल अपनी माताओं से ही मिलते हैं। अन्य भाषाओँ में अंग्रेज़ी में "वंश समूह" को "हैपलोग्रुप" (haplogroup), "पितृवंश समूह" को "वाए क्रोमोज़ोम हैपलोग्रुप" (Y-chromosome haplogroup) और "मातृवंश समूह" को "एम॰टी॰डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप" (mtDNA haplogroup) कहते हैं। इन्हें भी देखें मनुष्य मातृवंश समूह वंश समूह सन्दर्भ वंश समूह हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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लुसिअ एच्हेबरिअ
लुसिअ एच्हेबरिअ, स्पेनिश भाषा Lucía Etxebarria de Asteinza (वैलेंसिया, ७ दिसंबर १९६६) स्पेनिश लेखक. किताबें La historia de Kurt y Courtney: aguanta esto (1996). Amor, curiosidad, prozac y dudas (1997). Beatriz y los cuerpos celestes (1998). Nosotras que no somos como las demás (1999). La Eva futura. La letra futura (2000). De todo lo visible y lo invisible (2001). Estación de infierno (2001). En brazos de la mujer fetiche (2002) Una historia de amor como otra cualquiera (2003). Un milagro en equilibrio (2004). Actos de amor y placer (2004). Courtney y yo (2004). Ya no sufro por amor (2005). Cosmofobia (2007) El club de las malas madres (2009) Lo verdadero es un momento de lo falso (2010) बहारी कड़ियाँ साहित्य
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ठाकुर प्यारेलाल सिंह
ठाकुर प्यारेलाल सिंह (21 दिसम्बर 1891 - 20 अक्टूबर 1954) भारत के एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा क्रांतिकारी थे। वे छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार तथा सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे। उन्होने राजनीति में भी भाग लिया। उनका जन्म 21 दिसम्बर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ। पिता का नाम दीनदयाल सिंह तथा माता का नाम नर्मदा देवी था। आपकी शिक्षा राजनांदगांव तथा रायपुर में हुई। नागपुर तथा जबलपुर में आपने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाल्यकाल से ही आप मेधावी तथा राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत थे। 1906 में बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार आरंभ किया और विद्यार्थियों को संगठित कर जुलूस के समय वन्देमातरम् का नारा लगवाते थे। 1909 में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। 1920 में राजनांदगांव में मिल-मालिकों के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसमें मजदूरों की जीत हुई। आपने स्थानीय आंदोलनों और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जन-सामान्य को जागृत किया। 1925 से आप रायपुर में निवास करने लगे। आपने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों में पिकेटिंग, हिन्दू-मुस्लिम एकता, नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक कार्यो का संचालन किया। देश सेवा करते हुए आप अनेक बार जेल गए। मनोबल तोड़ने के लिए आपके घर छापा मारकर सारा सामान कुर्क कर दिया गया, परन्तु आप नहीं डिगे। राजनैतिक झंझावातों के बीच 1937 में रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए। 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए आपके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना हुई। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण एवं अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी आप सक्रिय रहे। वैचारिक मतभेदों के कारण सत्ता पक्ष को छोड़कर आप आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी में शामिल हुए। 1952 में रायपुर से विधानसभा के लिए चुने गए तथा विरोधी दल के नेता बने। विनोबा भावे के भूदान एवं सर्वोदय आंदोलन को आपने छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने से आपका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 'ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान' स्थापित किया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ठाकुर प्यारेलाल सिंह 1891 में जन्मे लोग भारतीय स्वतंत्रता सेनानी १९५४ में निधन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%20%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0
विशिष्ट मास्टर
मास्ते स्पेशिलिजी (Mastère Spécialisé अथवा विशेष मास्टर, अथवा उन्नत मास्टर) वर्ष 1986 से आरम्भ की गयी फ्रांस की विशेष डिग्री है। यह स्नातकोत्तर स्तर की विशिष्ट डिग्री है। इसे फ्रांस के उच्च शिक्षा विभाग ने आरम्भ किया। यह पूर्णकालिक एक वर्ष का कार्यक्रम है (75 ECTS) जिसमें औपचारिक रूप से फ्रांसीसी और अंग्रेज़ी में शिक्षण कार्य, प्रशिक्षुता और व्यक्तिगत थिसीस का काम होता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सम्मेलन des Grandes Ecoles विशिष्ट मास्टर सम्बन्धित जानकारी मास्टर डिग्री
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%20%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C
साधारण ब्राह्म समाज
साधारण ब्राह्म समाज ( ) क्रमशः 1866 और 1878 में ब्रह्म समाज में विद्वानों के मतभेद के परिणामस्वरूप गठित ब्रह्मवाद का एक विभाजन है। 15 मई, 1878 को कलकत्ता के टाउन हॉल में आयोजित एक सार्वजनिक ब्राह्म बैठक (बंगाली कैलेंडर का दूसरा ज्येष्ठ 1284) में साधारण ब्राह्म समाज का गठन किया गया था। बैठक में महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर के एक पत्र ने नए समाज की सफलता के लिए आशीर्वाद दिया और प्रार्थना की। अपनी नींव के समय साधरण ब्रह्म समाज का नेतृत्व ब्राह्म समाज में सार्वभौमिक रूप से सम्मानित तीन पुरुषों ने किया था। वे थे आनंद मोहन बोस, शिवनाथ शास्त्री और उमेश चंद्र दत्ता। उन तीनों में से आनंद मोहन बोस उस समय 31 वर्ष से अधिक के सबसे कम उम्र के थे, फिर भी उन्हें मामलों के प्रमुख के पद पर रखा गया। 1898 में दक्षिण भारत के भी कई हिस्सों तक इसका प्रभाव पहुँच गया। संदर्भ साधरण ब्रह्मो समाज = एक ईश्वर के उपासकों का सामान्य समुदाय। आंदोलन को मूल रूप से ब्रह्म सभा (या ब्रह्मण की सभा) के रूप में जाना जाता था। द्वारकानाथ टैगोर द्वारा व्यवस्थित चितपोर (जोरासांको) में एक नया परिसर। महर्षि देवेंद्र द्वारा 1843 में अपील ब्राह्मो समाज (या ब्राह्मण समुदाय) की शुरुआत की गई थी। नाथ। कलकत्ता ब्रह्म समाज के लिए ठाकुर। 1866 के प्रथम ब्रह्मोवाद ने ब्रह्मवाद की 2 आधुनिक शाखाओं का प्रतिपादन किया। "आदि ब्राह्मो समाज" और "साधरण ब्रह्म समाज" (पहले भारत का तत्कालीन ब्रह्म समाज)। बाहरी कड़ियाँ साधरण ब्रह्मो समाज ब्रह्मो समाज.नेट एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में ब्रह्म समाज यह सभी देखें: RAO SAHIB DR. AYYATHAN GOPALAN AND BRAHMOSAMAJ OF KERALA ब्राह्म धर्म
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B2%E0%A5%8D%20%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
एल् हास्पिटल का नियम
कलन में लोपिताल के नियम की सहायता से अनिर्धार्य रूप वाले फलनों का सीमान्त मान ज्ञात किया जाता है। इसके अनुप्रयोग से अनिर्धार्य रूप वाले फलन किसी ऐसे व्यंजक में परिवर्तित हो जाते हैं जिसमें सीमा चर को रखकर मान प्राप्त किया जा सकता है। इस नियम का नामकरण १७वीं सदी के फ्रांसीसी गणितज्ञ गियोम द लोपिताल के सम्मान में किया गया।) उन्होंने यह नियम १६९६ में अपनी पुस्तक एनालिसिस डेस इन्फिनिमेंट पटिटस पौर एल-इंटेलिजेंस डेस लिग्नेस कुर्बेस (शाब्दिक अनुवाद: वक्रीय रेखाओं को समझने हेतु अनन्तसूक्ष्म का विशलेषण) में किया था। यह पुस्तक अवकलन पर लिखी गयी प्रथम पुस्तक थी। यद्यपि, यह माना जाता है कि इस नियम की खोज सर्वप्रथम स्विस गणितज्ञ योहान बेर्नुली ने की थी। अपने सरलतम रूप में, लोपिताल नियमानुसार, खुले अन्तराल I में बिन्दु c को छोड़कर अन्यत्र अवकलनीय फलनों f और g के लिए: यदि , और   प्राप्त होता है और जहाँ वो सभी x अन्तराल I में हैं जिनके लिए x ≠ c है तब . तब अंश और हर का अवकलन प्रायः भागफल का मान देता है अथवा एक ऐसी सीमा में परिवर्तित हो जाता है जिसका मान सीधे ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरण 😃😃😄😄☺️☺️😌😍 यहाँ लोपिताल नियम को लगातार तीन बार लागू किया गया है। इसे दूसरे तरह से भी कर सकते हैं, (x3 से ऊपर और नीचे भाग देकर): — लोपिताल नियम को बार लगाने पर; при . अन्य अनिर्धार्य रूपों के लिए तथा के अलावा अन्य अनिर्धार्य रूपों के लिये भी आवश्यक परिवर्तन करके लोपिताल नियम का उपयोग किया जा सकता है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं। प्रकार के लिये इसके लिये ये दो तरीके अपना सकते हैं                      या          यह उदाहरण देखें प्रकार के लिये सन्दर्भ कलन
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5%2C%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%28%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%97%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%29
समस्तीपुर गाँव, साहेबपुर-कमाल (बेगूसराय)
समस्तीपुर साहेबपुर-कमाल, बेगूसराय, बिहार स्थित एक गाँव है। भूगोल जनसांख्यिकी यातायात आदर्श स्थल साहेबपुरकमाल प्रखंड का समस्तीपुर गाँव गंगा नदी के तट पर स्थित रमणीक गाँव है।यह अवध तिरहुत पथ के किनारे बसा है जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने किया था।कमला स्थान इस गाँव का पौराणिक स्थल है जहां आदिकाल से यज्ञ की परंपरा रही है।यहां से तकरीबन पांच किलोमीटर दक्षिण गंगा की गोद में सीता मां चरण नामक मंदिर है जहां माँ सीता के चरण का चिन्ह अभी भी पत्थर पर अंकित है। शिक्षा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बेगूसराय जिला के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%20%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE
बानो कुदसिया
बानो कुदसिया (, 28 नवंबर 1928 – 4 फरवरी 2017), 'बानो आप्पा' नाम से विख्यात। पाकिस्तानी उर्दू उपन्यासकार और पटकथा लेखिका थी। ‘राजा गिद्ध’ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। उनकी अन्य प्रमुख रचनाओं में आतिश-ए-जोरि -पा, एक दिन, अमर बेल, चहर चमन, फुटपाथ की घास और हवा के नाम आदि शामिल हैं। उनका जन्म 28 नवंबर, 1928 को फिरोजपुर पंजाब (ब्रिटिश भारत) में हुआ था। उन्हें पाकिस्तान सरकार द्वारा वर्ष 1983 में सितारा-ए-इम्तियाज और वर्ष 2010 में हिलाल-ए-इम्तियाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 4 फरवरी, 2017 को लाहौर में उनका निधन हो गया। साहित्यिक जीवन उनका लेखन देश और विदेश में लोकप्रिय था। उन्होंने बचपन में ही लघु कहानियों का लेखन शुरू कर दिया था लेकिन उन्हें 'राजा गिद्ध' उपन्यास से प्रसिद्धि मिली। इस उपन्यास की देश और विदेश में खूब तारीफ हुई थी। उन्होंने आधी बात, आतिश-ए-जर-पा, इक दिन, अमर बेल, चाहर चमन, फुटपाथ की घास और हवा क्या नाम जैसी कई लोकप्रिय किताबें लिखी थीं। उनका नाटक 'आधी बात' एक क्लासिक रचना माना जाता है। व्यक्तिगत जीवन बानो बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बस गई थीं। उनके पति अशफाक अहमद उर्दू अदब की बड़ी हस्तियों में से एक थे। निधन उन्हें हृदय से संबंधित दिक्कतों के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई। उन्होंने 4 फरवरी 2017 की शाम अंतिम सांस ली। उनके पार्थिव शरीर को लाहौर के मॉडल टॉउन में उनके पति अशफाक अहमद की कब्र के पास ही दफनाया गया। ग्रंथ सूची नाटक छोटा शहर बड़े लोग ISBN 9-69351-998-1 फिर अचानक यूं हुआ ISBN 9-69351-823-3 लगन अपनी अपनी ISBN 9-69351-533-1 आधी बात ISBN 9-69351-139-5 फूट पाथ की घास ISBN 9-69351-086-0 उपन्यास राजा गिद्ध ISBN 9-69350-514-X एक दिन ISBN 9-69350-508-5 हासिल घाट ISBN 9-69351-496-3 शहर ए लजवाल – आवाद वीराने ISBN 9-69352-441-1 कहानी हिजरातों के दरमियान ISBN 9-69352-366-0 दस्त वास्ता ISBN 9-69351-324-X आत्म कथा राह-ए-रवां ISBN 9-69352-315-6 सम्मान/पुरस्कार उन्हें 2003 में सितारा-ए-इम्तियाज और 2010 में हिलाल-ए-इम्तियाज से नवाजा गया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बानो कुदसिया की ई-पुस्तकें 1928 में जन्मे लोग उर्दू लेखिका २०१७ में निधन
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खड़गपुर
खड्गपुर (Kharagpur) भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले में स्थित एक औद्योगिक नगर है। भारत का सर्वप्रथम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर, मई 1950 में यहाँ स्थापित हुआ था। यहाँ भारत का सबसे लम्बा (और एशिया का तीसरा सबसे लम्बा) रेलवे प्लेटफॉर्म है, जिसकी लम्बाई 1072.5 मीटर है। इतिहास खड़गपुर ने अपना नाम मल्लभूम, खरगा मल्ला के बारहवें राजा से प्राप्त किया, जब उन्होंने इसे जीत लिया। खड़गपुर हिजली साम्राज्य का हिस्सा था और हिंदू उडिया शासकों ने उड़ीसा के गजपति राजाओं के तहत एक विवाद के रूप में शासन किया था। इतिहासकारों का दावा है कि 16 वीं शताब्दी में, खड़गपुर घने जंगल से घिरा हुआ एक छोटा सा गांव था। गांव उच्च चट्टानी बंजर भूमि पर था। खड़गपुर के पास एकमात्र निवास स्थान हिजली था। हिजली बंगाल की खाड़ी के डेल्टा में रसूलपुर नदी के तट पर एक छोटा द्वीप गांव था। यह 1687 में एक बंदरगाह शहर में विकसित हुआ। हिजली भी एक प्रांत था और यह 1886 तक अस्तित्व में था। इसमें बंगाल और उड़ीसा के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया था। इसके पास तमलुक, पंसुरा और देबरा जैसे महत्वपूर्ण शहर थे, उत्तर में दक्षिण में केल्घई और हल्दी नदियों के साथ, और पूर्व में बंगाल की खाड़ी और खड़गपुर, केशरी, दंतन और जलेश्वर से घिरे पूर्वी पक्ष थे। हिजली पर ताज खान का शासन था जो गुरु पीर मैकड्रम शा चिस्ती के शिष्य थे। कुशन, गुप्ता और पाल राजवंशों और मुगलों द्वारा भी इसका शासन किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि हिजली के शासनकाल और मुगल राज के शासनकाल के दौरान हिजली के पास न्यायपालिका, जेल और प्रशासनिक कार्यालयों के साथ उत्कृष्ट व्यापार और व्यापार केंद्र थे। हिजली की राजधानी बहरी में 1628 तक थी और उसे बाद में हिजली में स्थानांतरित कर दिया गया था। 1754 में हिजली प्रांत अपने चरम पर था और इस अवधि के दौरान बेहद समृद्ध था। कप्तान निकोलसन हिजली पर आक्रमण करने और बंदरगाह पर कब्जा करने वाले पहले अंग्रेजी उपनिवेशवादी थे। 1687 में सैनिकों और युद्धपोतों के साथ जॉब चर्नॉक ने हिजली और मुगल रक्षकों को हराकर हिजली पर कब्जा कर लिया। मुगलों के साथ युद्ध के बाद, जॉब चर्नॉक और मुगल सम्राट के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए। जॉब चर्नॉक द्वारा किए गए नुकसान से उन्हें हिजली छोड़ने और उलुबेरिया की ओर बढ़ने के लिए मजबूर किया गया, जबकि मुगल सम्राट ने प्रांत पर शासन करना जारी रखा। वहां से, वे अंततः पूर्वी भारत में अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए कोलकाता में सुतनुति में बस गए। यह भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत थी। हिजली जैसा कि हम जानते हैं आज ही हिजली प्रांत का एक छोटा सा हिस्सा है, और 1 9वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा प्रशासनिक कार्यालयों की स्थापना के लिए बनाया गया था। यह उत्सुक है कि आज के पूरे खड़गपुर डिवीजन में हिजली प्रांत के समान सीमाएं हैं। 18 वीं शताब्दी में खेजुरी, एक और बंदरगाह शहर डेल्टा क्षेत्र में कौखली नदी के तट पर स्थापित किया गया था। यह मुख्य रूप से यूरोपीय देशों के साथ व्यापार करने के लिए अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था। खेजुरी भी एक द्वीप था। 1864 के विनाशकारी चक्रवात में, दोनों बंदरगाहों को नष्ट कर दिया गया था। तब से द्वीप मुख्य भूमि के साथ विलय कर चुके हैं। खड़गपुर को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के पहले परिसर के लिए चुना गया था। वर्तमान समय में यहां कई औद्योगिक ईकाईयां भी स्थापित हैं। इन्हें भी देखें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर पश्चिम मेदिनीपुर ज़िला सन्दर्भ पश्चिम मेदिनीपुर ज़िला पश्चिम बंगाल के शहर पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%20%28%E0%A4%B8%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%B0%29
संदेश (सॉफ्टवेयर)
संदेश, भारत सरकार द्वारा विकसित एक भारतीय राज्य के स्वामित्व वाला फ्रीवेयर त्वरित संदेश प्रेषण प्लेटफॉर्म है । यह एंड्रॉइड, आईओएस और वेब ब्राउज़र में चलता है । मंच को विशेष रूप से सरकारी बुनियादी ढांचे में होस्ट किया है और दोनों को भारत सरकार के नियमों और विनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। संदेश विभिन्न भारतीय सरकार डिजिटल सेवाओं के साथ त्वरित संदेश, वीओआईपी, फ़ाइल साझाकरण और एकीकरण प्रदान करता है। वर्तमान में, प्लेटफ़ॉर्म की पूर्ण सुविधाएँ केवल सत्यापित उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं। इतिहास 2019 में भारत सरकार ने अपनी मेक इन इंडिया पहल के हिस्से के रूप में सरकारी इंस्टेंट मैसेजिंग सिस्टम (GIMS) नाम से एक इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म बनाने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया। परियोजना का मुख्य लक्ष्य आंतरिक संचार के लिए सरकारी कर्मचारियों को एक सुरक्षित संदेश मंच प्रदान करना था, जो विदेश में आयोजित संचार प्लेटफार्मों या विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व वाले सुरक्षा चिंताओं से संबंधित नहीं है। प्रारंभिक सॉफ्टवेयर परीक्षण सितंबर 2019 के मध्य में शुरू हुआ और व्यापक समय तक चला। इस पायलट कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के लगभग 6,600 सरकारी अधिकारियों ने भाग लिया, जिन्होंने लगभग 20 लाख संदेशों का आदान-प्रदान करने की सूचना दी। बाद में फरवरी 2021 में क्लाइंट एप्लिकेशन को संदेश के रूप में फिर से लिखा गया और आधिकारिक वेबसाइट में प्रकाशित किया गया। इस बार कार्यक्रम को सीमित संख्या में जनता के लिए उपलब्ध कराया गया था। विशेषताएं संदेश ऐप उपयोगकर्ताओं को एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड एक-से-एक और समूह संदेश बनाने की अनुमति देता है । साथ ही उपयोगकर्ताओं को एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड वन-टू-वन आवाज और वीडियो कॉल करने की अनुमति देता है। मैसेजिंग फीचर में फॉरवर्ड, मेल फॉरवर्ड, ब्रॉडकास्ट, बैकअप, टेक्स्ट कस्टमाइजेशन और टैग शामिल हैं। यह किसी मैसेज को कॉन्फिडेंशियल के रूप में या ऑटो डिलीट के रूप में चिह्नित करने के लिए एक कार्यक्षमता है। यदि कोई संदेश स्वतः हटाएं के रूप में चिह्नित किया जाता है, तो प्राप्तकर्ता द्वारा इसे पढ़ने के बाद यह स्वचालित रूप से हटा दिया जाएगा। वर्तमान में संदेस के साथ एकीकृत है एनआईसी ईमेल, डिजिलॉकर और ई-आफि़स । इसलिए उपयोगकर्ता प्लेटफ़ॉर्म को छोड़े बिना इन सेवाओं तक पहुँच सकते हैं। सीमाओं साइन अप करने के लिए एक मान्य मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी की आवश्यकता होती है। वर्तमान में, एक आधिकारिक समूह 200 सदस्यों तक सीमित है। एक गैर-आधिकारिक समूह 50 सदस्यों तक सीमित है। प्रसारण सूची एक समय में 10 संपर्कों तक सीमित है। उपयोगकर्ताओं को केवल निम्न फ़ाइल प्रकार भेजने की अनुमति है - दस्तावेज़ (doc, docx, xls, xlsx, ppt, pptx, pdf), छवियाँ (jpeg, jpg, png), ऑडियो (mp3, m4a), वीडियो (mp4)। फ़ाइल का आकार 15mb प्रति फ़ाइल तक सीमित है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल मोबाइल_एप्प मैसेंजर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%89%E0%A4%AC%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%B8%20%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%80%202020
बॉब विलिस ट्रॉफी 2020
बॉब विलिस ट्रॉफी 2020 के अंग्रेजी क्रिकेट सीजन में आयोजित एक टूर्नामेंट था। यूनाइटेड किंगडम में कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण यह एक एकलौता, प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट था जो काउंटी चैम्पियनशिप से अलग था। अठारह काउंटी क्रिकेट टीमों को छह के तीन समूहों में विभाजित किया गया था, जिसमें दो ग्रुप विजेता सबसे अधिक अंक लेकर लॉर्ड्स में आयोजित फाइनल में पहुंचे थे। एक दिन में फेंके गए ओवरों की अधिकतम संख्या 96 से घटाकर 90 कर दी गई और टीम की पहली पारी 120 ओवरों की नहीं रह सकती है। महामारी के कारण देरी के बाद, काउंटियों ने 1 अगस्त 2020 को सीजन शुरू करने के लिए बहुमत से मतदान पारित किया, जिसके साथ 23 सितंबर 2020 को फाइनल शुरू हुआ। इस टूर्नामेंट को बॉब विलिस के सम्मान में बॉब विलिस ट्रॉफी का नाम दिया गया था, जिनकी दिसंबर 2019 में मृत्यु हो गई थी। मैचों के अंतिम दौर में, नॉर्थहेम्पटनशायर टीम के एक सदस्य ने कोविड-19 के लिए एक सकारात्मक परीक्षण प्रदान करने के बाद, ग्लूस्टरशायर और नॉर्थम्पटनशायर के बीच खेल को पहले दिन दोपहर के भोजन पर छोड़ दिया गया था। मैच को ड्रॉ के रूप में दर्ज किया गया, जिसमें नॉर्थम्पटनशायर ने दस अंक और ग्लॉस्टरशायर ने आठ अंक लिए। टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंचने के लिए दोनों में से कोई भी विवाद में नहीं था। एसेक्स टूर्नामेंट के फाइनल के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली टीम बन गई, उसके बाद उन्होंने अपने अंतिम मैच में मिडलसेक्स को नौ विकेट से हराया और डर्बीशायर लंकाशायर के खिलाफ अपने मैच में एक बल्लेबाजी अंक हासिल करने में विफल रहे। टूर्नामेंट के अपने पांचवें मैच में वेस्टरशायर को 60 रन से हराकर समरसेट फाइनल में पहुंचने वाली दूसरी टीम बन गई। मैच की पहली पारी में बढ़त हासिल करने के बाद एसेक्स टूर्नामेंट जीतने के साथ ड्रॉ के रूप में समाप्त हुआ। गेंदबाज मिशेल क्लेडन को गेंद से छेड़छाड़ के अपराध का दोषी पाए जाने के बाद अक्टूबर 2020 में ससेक्स को 24 अंक काट लिए गए। क्लेडॉन को अगस्त में मिडलसेक्स के खिलाफ एक खेल के दौरान गेंद को हैंड सैनिटाइजर लगाने का फैसला किया गया था। खिलाड़ी को नौ-गेम प्रतिबंध भी प्राप्त हुआ। सन्दर्भ कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित क्रिकेट प्रतियोगिताएँ
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दौलत सिंह कोठारी
डॉ दौलत सिंह कोठारी (1906–1993) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विज्ञान नीति में जो लोग शामिल थे उनमें डॉ॰ कोठारी, होमी भाभा, डॉ॰ मेघनाथ साहा और सी.वी. रमन थे। डॉ॰ कोठारी रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे। 1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां वे दस वर्ष तक रहे। १९६४ में उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिये उन्हें सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। १९७३ में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन परिचय दौलत सिंह कोठारी का जन्म उदयपुर (राजस्थान) में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। वे मेवाड़ के महाराणा की छात्रवृत्ति से आगे पढ़े। 1940 में 34 वर्ष की आयु में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने-माने भौतिकशास्त्री मेघनाद साहा के विद्यार्थी रहे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लार्ड रदरफोर्ड के साथ पीएच.डी. पूरी की। 1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां वे दस वर्ष तक रहे। डा. कोठारी ने यू.जी.सी. के अपने कार्यकाल में शिक्षकों की क्षमता, प्रतिष्ठा से लेकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय और उच्च कोटि के अध्ययन केन्द्रों को बनाने में विशेष भूमिका निभाई। स्कूली शिक्षा में भी उनकी लगातार रुचि रही। इसीलिए उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964-1966) का अध्यक्ष बनाया गया। आजाद भारत में शिक्षा पर संभवतः सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसकी दो बातें बेहद चर्चित रही हैं। पहली – समान विद्यालय व्यवस्था (common school system) और दूसरे देश की शिक्षा स्नातकोत्तर स्तर तक अपनी भाषाओं में दी जानी चाहिए। प्रशासन, शिक्षा, विज्ञान के इतने अनुभवी व्यक्ति को भारत सरकार ने उच्च प्रशासनिक सेवाओं के लिये आयोजित सिविल सेवा परीक्षा की रिव्यू के लिए कमेटी का 1974 में अध्यक्ष बनाया। इस कमेटी ने 1976 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसके आधार पर 1979 से भारत सरकार के उच्च पदों आई.ए.एस., आई.पी.एस. और बीस दूसरे विभागों के लिए एक सार्वजनिक (कॉमन) परीक्षा का आयोजन प्रारंभ हुआ। सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम जो इस कमेटी ने सुझाया वह था – अपनी भाषाओं में (संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भारतीय भाषाओं ) और अंग्रेजी में उत्तर देने की छूट और दूसरा उम्र सीमा के साथ-साथ देश भर में परीक्षा केन्द्र भी बढ़ाये जिससे दूर देहात-कस्बों के ज्यादा-से-ज्यादा बच्चे इन परीक्षाओं में बैठ सकें और देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं देश के प्रशासन में समान रूप से हाथ बटाएं। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, तकनीकी शब्दावली आयोग और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के 1981 से 1991 तक कुलाधिपति (चांसलर) भी रहे। गांधी, लोहिया के बाद आजाद भारत में भारतीय भाषाओं की उन्नति के लिए जितना काम डॉ॰ कोठारी ने किया उतना किसी अन्य ने नहीं। यदि सिविल सेवाओं की परीक्षा में अपनी भाषाओं में लिखने की छूट न दी जाती तो गाँव, देहात के गरीब आदिवासी, अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग उच्च सेवाओं में कभी भी नहीं आ सकते थे। अपनी भाषाओं में उत्तर लिखने की छूट से इन वंचितों में एक आत्मविश्वास तो जगा ही भारतीय भाषाओं के प्रति एक निष्ठा भी पैदा हुई। सन्दर्भ इन्हें भी देखें कोठारी आयोग बाहरी कड़ियाँ डॉ॰ कोठारी द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी प्रांसगिक और प्रेरणास्पद दौलत सिंह कोठारी को क्यों याद किया जाना चाहिए? (जानकीपुल) रक्षा विज्ञान के आलोक-स्तम्भ: डी. एस. कोठारी The Architect of Defence Science in India १९६२ पद्म भूषण भारतीय वैज्ञानिक हिन्दीसेवी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष पद्म विभूषण धारक उदयपुर के लोग 1906 में जन्मे लोग १९९३ में निधन विज्ञान और इंजीनियरिंग में पद्म विभूषण के प्राप्तकर्ता
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न्यूयॉर्क शहर की जनसांख्यिकी
Throughout its history, New York City has been a major point of entry for immigrants; the term "melting pot" was coined to describe densely populated immigrant neighborhoods on the Lower East Side. As many as 800 languages are spoken in New York, making it the most linguistically diverse city in the world. English remains the most widely spoken language, although there are areas in the outer boroughs in which up to 25% of people speak English as an alternate language, and/or have limited or no English language fluency. English is least spoken in neighborhoods such as Flushing, Sunset Park, and Corona. आबा
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वाष्पशील कार्बनिक यौगिक
वाष्पशील कार्बनिक यौगिक(Volatile organic compounds) या (VOCs) वे कार्बनिक रसायन है जिनमे कमरे के समान्य ताप पर भी उच्च वाष्प दाब होता है। इनका उच्च वाष्प दाब, उनके कम क्वथनांक की वजह से garmi अधिक अणुओं के ठोस या द्रव वाष्पीकृत या ऊर्ध्वपतित होकर यौगिक बनाने व आस पास की वायु में मिलने के कारण होता है। निम्न क्वथनांक के कारण इनमे उच्च वाष्प दाब होता है, अधिक अणुओ का जल या ठोस अवस्था से वाष्पीकरण या ऊर्ध्वपातन होता है तथा यौगिक बनकर वायुमंडल में मिश्रित हो जाता है। जैसे कि निम्न क्वथनांक के paint- 19 °C (–2 °F) से formaldehyde का वाष्पीकरण। VOCs, कई अलग अलग, और सर्वव्यापी हैं। इनमे दोनों मानव निर्मित और स्वाभाविक रूप से होने वाली रासायनिक यौगिक शामिल है। अधिकतर सुगंधिया VOCs है। VOCs पौधों के मध्य सम्प्रेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, तथा पौधों से जीवो को संदेश भेजते हैं। कुछ VOCs मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं व वातावरण को हानी पहुंचाते हैं। Anthropogenic VOCs are regulated by law, especially indoors, where concentrations are the highest. Harmful VOCs typically are not acutely toxic, but have compounding long-term health effects. Because the concentrations are usually low and the symptoms slow to develop, research into VOCs and their effects is difficult. Definitions Diverse definitions of the term VOC are in use. The definitions of VOCs used for control of precursors of photochemical smog used by the EPA, and states in the US with independent outdoor air pollution regulations include exemptions for VOCs that are determined to be non-reactive, or of low-reactivity in the smog formation process. EPA formerly defined these compounds as reactive organic gases (ROG) but changed the terminology to VOC. In the USA, different regulations vary between states - most prominent is the VOC regulation by SCAQMD and by the California Air Resources Board. However, this specific use of the term VOCs can be misleading, especially when applied to indoor air quality because many chemicals that are not regulated as outdoor air pollution can still be important for indoor air pollution. Canada Health Canada classes VOCs as organic compounds that have boiling points roughly in the range of . The emphasis is placed on commonly encountered VOCs that would have an effect on air quality. European Union A VOC is any organic compound having an initial boiling point less than or equal to measured at a standard atmospheric pressure of 101.3 kPa US VOCs (or specific subsets of the VOCs) are legally defined in the various laws and codes under which they are regulated. Other definitions may be found from government agencies investigating or advising about VOCs. The United States Environmental Protection Agency (EPA) regulates VOCs in the air, water, and land. The Safe Drinking Water Act implementation includes a list labeled "VOCs in connection with contaminants that are organic and volatile." The EPA also publishes testing methods for chemical compounds, some of which refer to VOCs. In addition to drinking water, VOCs are regulated in discharges to waters (sewage treatment and stormwater disposal), as hazardous waste, but not in non industrial indoor air. The United States Department of Labor and its Occupational Safety and Health Administration (OSHA) regulate VOC exposure in the workplace. Volatile organic compounds that are hazardous material would be regulated by the Pipeline and Hazardous Materials Safety Administration while being transported. Biologically generated VOCs Not counting methane, biological sources emit an estimated 1150 teragrams of carbon per year in the form of VOCs. The majority of VOCs are produced by plants, the main compound being isoprene. The remainder are produced by animals, microbes, and fungi, such as molds. The strong odor emitted by many plants consists of green leaf volatiles, a subset of VOCs. Emissions are affected by a variety of factors, such as temperature, which determines rates of volatilization and growth, and sunlight, which determines rates of biosynthesis. Emission occurs almost exclusively from the leaves, the stomata in particular. A major class of VOCs is terpenes, such as myrcene. Providing a sense of scale, a forest 62,000 km2 in area (the U.S. state of Pennsylvania) is estimated to emit 3,400,000 kilograms of terpenes on a typical August day during the growing season. VOCs should be a factor in choosing which trees to plant in urban areas. Induction of genes producing volatile organic compounds, and subsequent increase in volatile terpenes has been achieved in maize using (Z)-3-Hexen-1-ol and other plant hormones. Anthropogenic sources Anthropogenic sources emit about 142 teragrams of carbon per year in the form of VOCs. Specific components Paints and coatings A major source of man-made VOCs are coatings, especially paints and protective coatings. Solvents are required to spread a protective or decorative film. Approximately 12 billion litres of paints are produced annually. Typical solvents are aliphatic hydrocarbons, ethyl acetate, glycol ethers, and acetone. Motivated by cost, environmental concerns, and regulation, the paint and coating industries are increasingly shifting toward aqueous solvents. Chlorofluorocarbons and chlorocarbons Chlorofluorocarbons, which are banned or highly regulated, were widely used cleaning products and refrigerants. Tetrachloroethene is used widely in dry cleaning and by industry. Fossil fuels The use of fossil fuels produces VOCs either directly as products (e.g., gasoline) or indirectly as byproducts (e.g., automobile exhaust gas). Benzene One VOC that is a known human carcinogen is benzene, which is a chemical found in environmental tobacco smoke, stored fuels, and exhaust from cars. Benzene also has natural sources such as volcanoes and forest fires. It is frequently used to make other chemicals in the production of plastics, resins, and synthetic fibers. Benzene evaporates into the air quickly and the vapor of benzene is heavier than air allowing the compound to sink into low-lying areas. Benzene has also been known to contaminate food and water and if digested can lead to vomiting, dizziness, sleepiness, rapid heartbeat, and at high levels, even death may occur. Methylene chloride Methylene chloride is another VOC that is highly dangerous to human health. It can be found in adhesive removers and aerosol spray paints and the chemical has been proven to cause cancer in animals. In the human body, methylene chloride is converted to carbon monoxide and a person will suffer the same symptoms as exposure to carbon monoxide. If a product that contains methylene chloride needs to be used the best way to protect human health is to use the product outdoors. If it must be used indoors, proper ventilation is essential to keeping exposure levels down. Perchloroethylene Perchloroethylene is a volatile organic compound that has been linked to causing cancer in animals. It is also suspected to cause many of the breathing related symptoms of exposure to VOCs. Perchloroethylene is used mostly in dry cleaning. While dry cleaners recapture perchloroethylene in the dry cleaning process to reuse it, some environmental release is unavoidable. Studies show that people breathe in low levels of this VOC in homes where dry-cleaned clothes are stored and while wearing dry-cleaned clothing. MTBE MTBE was banned in the US around 2004 in order to limit further contamination of drinking water aquifers (groundwater) primarily from leaking underground gasoline storage tanks where MTBE was used as an octane booster and oxygenated-additive. Indoor air Since many people spend much of their time indoors, long-term exposure to VOCs in the indoor environment can contribute to sick building syndrome. In offices, VOC results from new furnishings, wall coverings, and office equipment such as photocopy machines, which can off-gas VOCs into the air. Good ventilation and air-conditioning systems are helpful at reducing VOCs in the indoor environment. Studies also show that relative leukemia and lymphoma can increase through prolonged exposure of VOCs in the indoor environment. In the United States, there are two standardized methods for measuring VOCs, one by the National Institute for Occupational Safety and Health (NIOSH) and another by Occupational Safety and Health Administration (OSHA). Each method uses a single component solvent; butanol and hexane cannot be sampled, however, on the same sample matrix using the NIOSH or OSHA method. The aromatic VOC compound benzene, emitted from exhaled cigarette smoke is labeled as carcinogenic, and is ten times higher in smokers than in nonsmokers. The United States Environmental Protection Agency (EPA) has found concentrations of VOCs in indoor air to be 2 to 5 times greater than in outdoor air and sometimes far greater. During certain activities indoor levels of VOCs may reach 1,000 times that of the outside air. Studies have shown that individual VOC emissions by themselves are not that high in an indoor environment, but the indoor total VOC (TVOC) concentrations can be up to five times higher than the VOC outdoor levels. New buildings especially, contribute to the highest level of VOC off-gassing in an indoor environment because of the abundant new materials generating VOC particles at the same time in such a short time period. In addition to new buildings, we also use many consumer products that emit VOC compounds, therefore the total concentration of VOC levels is much greater within the indoor environment. VOC concentration in an indoor environment during winter is three to four times higher than the VOC concentrations during the summer. High indoor VOC levels are attributed to the low rates of air exchange between the indoor and outdoor environment as a result of tight-shut windows and the increasing use of humidifiers. Regulation of indoor VOC emissions In most countries, a separate definition of VOCs is used with regard to indoor air quality that comprises each organic chemical compound that can be measured as follows: Adsorption from air on Tenax TA, thermal desorption, gas chromatographic separation over a 100% nonpolar column (dimethylpolysiloxane). VOC (volatile organic compounds) are all compounds that appear in the gas chromatogram between and including n-hexane and n-hexadecane. Compounds appearing earlier are called VVOC (very volatile organic compounds) compounds appearing later are called SVOC (semi-volatile organic compounds). See also these standards: ISO 16000-6, ISO 13999-2, VDI 4300-6, German AgBB evaluating scheme, German DIBt approval scheme, GEV testing method for the EMICODE. Some overviews over VOC emissions rating schemes have been collected and compared. France, Germany and Belgium have enacted regulations to limit VOC emissions from commercial products, and industry has developed numerous voluntary ecolabels and rating systems, such as EMICODE, M1, Blue Angel and Indoor Air Comfort In the United States, several standards exist; California Standard CDPH Section 01350 is the most popular one. Over the last few decades, these regulations and standards changed the marketplace, leading to an increasing number of low-emitting products: The leading voluntary labels report that licenses to several hundreds of low-emitting products have been issued (see the respective webpages such as MAS Certified Green.- Certified Products). Formaldehyde Many building materials such as paints, adhesives, wall boards, and ceiling tiles slowly emit formaldehyde, which irritates the mucous membranes and can make a person irritated and uncomfortable. Formaldehyde emissions from wood are in the range of 0.02 – 0.04 ppm. Relative humidity within an indoor environment can also affect the emissions of formaldehyde. High relative humidity and high temperatures allow more vaporization of formaldehyde from wood-materials. Health risks Respiratory, allergic, or immune effects in infants or children are associated with man-made VOCs and other indoor or outdoor air pollutants. Some VOCs, such as styrene and limonene, can react with nitrogen oxides or with ozone to produce new oxidation products and secondary aerosols, which can cause sensory irritation symptoms. Unspecified VOCs are important in the creation of smog. Health effects include eye, nose, and throat irritation; headaches, loss of coordination, nausea; damage to liver, kidney, and central nervous system. Some organics can cause cancer in animals; some are suspected or known to cause cancer in humans. Key signs or symptoms associated with exposure to VOCs include conjunctival irritation, nose and throat discomfort, headache, allergic skin reaction, dyspnea, declines in serum cholinesterase levels, nausea, vomiting, nose bleeding, fatigue, dizziness. The ability of organic chemicals to cause health effects varies greatly from those that are highly toxic, to those with no known health effects. As with other pollutants, the extent and nature of the health effect will depend on many factors including level of exposure and length of time exposed. Eye and respiratory tract irritation, headaches, dizziness, visual disorders, and memory impairment are among the immediate symptoms that some people have experienced soon after exposure to some organics. At present, not much is known about what health effects occur from the levels of organics usually found in homes. Many organic compounds are known to cause cancer in animals; some are suspected of causing, or are known to cause, cancer in humans. Reducing exposure To reduce exposure to these toxins, one should buy products that contain Low-VOCs or No VOCs. Only the quantity which will soon be needed should be purchased, eliminating stockpiling of these chemicals. Use products with VOCs in well ventilated areas. When designing homes and buildings, design teams can implement the best possible ventilation plans, call for the best mechanical systems available, and design assemblies to reduce the amount of infiltration into the building. These methods will help improve indoor air quality, but by themselves they cannot keep a building from becoming an unhealthy place to breathe. Limit values for VOC emissions Limit values for VOC emissions into indoor air are published by e.g. AgBB, AFSSET, California Department of Public Health, and others. These regulations have prompted several companies to adapt with VOC level reductions in products that have VOCs in their formula, such Benjamin Moore & Co. in the paint industry and Weld-On in the adhesive industry. Chemical fingerprinting The exhaled human breath contains a few hundred volatile organic compounds and is used in breath analysis to serve as a VOC biomarker to test for diseases such as lung cancer. One study has shown that "volatile organic compounds ... are mainly blood borne and therefore enable monitoring of different processes in the body." And it appears that VOC compounds in the body "may be either produced by metabolic processes or inhaled/absorbed from exogenous sources" such as environmental tobacco smoke. Research is still in the process to determine whether VOCs in the body are contributed by cellular processes or by the cancerous tumors in the lung or other organs. VOC sensors VOCs in the environment or certain atmospheres can be detected based on different principles and interactions between the organic compounds and the sensor components. There are electronic devices that can detect ppm concentrations despite the non-selectivity. Others can predict with reasonable accuracy the molecular structure of the volatile organic compounds in the environment or enclosed atmospheres and could be used as accurate monitors of the Chemical Fingerprint and further as health monitoring devices. Solid-phase microextraction (SPME) techniques are used to collect VOCs at low concentrations for analysis. Direct injection mass spectrometry techniques are frequently utilized for the rapid detection and accurate quantification of VOCs. PTR-MS is among the methods that have been used most extensively for the on-line analysis of biogenic and antropogenic VOCs. Recent PTR-MS instruments based on time-of-flight mass spectrometry have been reported to reach detection limits of 20 pptv after 100 ms and 750 ppqv after 1 min measurement (signal integration) time. The mass resolution of these devices is between 7000 and 10,500 m/Δm, thus it is possible to separate most common isobaric VOCs and quantify them independently. See also Aroma compound Criteria air contaminants Dutch standards Fugitive emissions Non-methane volatile organic compound (NMVOC) NoVOC (classification) NTA (company) Organic compound Ozone Photochemical smog VOC contamination of groundwater Volatile Organic Compounds Protocol Volatility (chemistry) References External links Volatile Organic Compounds (VOCs) web site of the Chemicals Control Branch of Environment Canada An Introduction to Indoor Air Quality, US EPA website VOC in paints, finishes and adhesives VOC emissions testing EPA NE: Ground-level Ozone (Smog) Information emission from crude oil tankers VOC emissions and calculations VOCs, ozone and air pollution information from the American Lung Association of New England VOC Tests Post doc in Volatile organic compound in Food VOC emissions from printing processes, European legislation and biological treatment Examples of product labels with low VOC emission criteria Information about VOCs in Drinking Water Formaldehyde and VOCs in Indoor Air Quality Determinations by GC/MS Building biology Organic compounds Pollutants Smog Flavors Perfumes
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80%20%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE
परिवर्ती तारा पदनाम
खगोल विज्ञान में, एक चर सितारा पदनाम या परिवर्ती तारा पदनाम चर सितारों को दिया गया एक विशिष्ट पहचानकर्ता है। यह बेयर पदनाम प्रारूप पर भिन्नता का उपयोग करता है, एक पहचान लेबल (जैसा कि नीचे वर्णित है) के साथ नक्षत्र के लैटिन नाम के पहले अक्षर से जिसमें तारा निहित है। नक्षत्रों की सूची और उनके नामों के जनन रूपों की सूची देखें। पहचान करने वाला लेबल एक या दो लैटिन अक्षर या एक V प्लस एक संख्या हो सकता है (जैसे वी399)। उदाहरण आर कोरोने बोरेलिस, वाईजेड सेटी, वी 603 एक्विला हैं । नामकरण वर्तमान नामकरण प्रणाली है: मौजूदा ग्रीक अक्षर बायर पदनाम वाले सितारों को नए पदनाम नहीं दिए गए हैं। अन्यथा, R अक्षर से शुरू करें और Z से गुजरें। आरआर के साथ जारी रखें। . . आरजेड, फिर एसएस का प्रयोग करें। . . एसजेड, टीटी। . . TZ और इसी तरह ZZ तक। एए का प्रयोग करें। . . एजेड, बीबी। . . बीजेड, सीसी . . CZ और इसी तरह QZ तक पहुँचने तक, J को पहले और दूसरे दोनों पदों पर छोड़ते हुए। अक्षरों के 334 संयोजनों के बाद लैटिन लिपि को छोड़ दें और V335, V336, आदि के साथ सितारों का नामकरण शुरू करें। दूसरा अक्षर पहले की तुलना में कभी भी वर्णमाला की शुरुआत के करीब नहीं है, उदाहरण के लिए, कोई भी तारा BA, CA, CB, DA आदि नहीं हो सकता है। इतिहास 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में कुछ परिवर्तनशील तारे ज्ञात थे, इसलिए लैटिन लिपि के अक्षरों का उपयोग करना उचित प्रतीत होता था। चूंकि बहुत कम नक्षत्रों में क्यू से बड़े लैटिन-अक्षर बायर पदनाम वाले सितारे शामिल थे, अक्षर R को एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में चुना गया था ताकि अक्षर वर्णक्रमीय प्रकारों या (अब शायद ही कभी उपयोग किए जाने वाले) लैटिन-अक्षर बायर पदनामों के साथ भ्रम से बचा जा सके। हालांकि लैकेल ने कुछ मामलों में अंग्रेजी के आर से जेड के बडे अक्षरों का इस्तेमाल किया था, उदाहरण के लिए एक्स पप्पिस ( एचआर 2548 ), इन पदनामों को या तो हटा दिया गया था या चर सितारा पदनामों के रूप में स्वीकार किया गया था। तारा टी पप्पिस को अर्गेलैंडर द्वारा एक चर तारे के रूप में स्वीकार किया गया था और उस पदनाम के साथ परिवर्ती तारों की सामान्य सूची में शामिल किया गया था, लेकिन अब इसे गैर-चर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह परिवर्तनशील तारा नामकरण परंपरा फ्रेडरिक डब्ल्यू. आर्गेलैंडर द्वारा विकसित की गई थी। एक व्यापक मान्यता है जिसके अनुसार अर्गेलैंडर ने जर्मन रोट या फ्रेंच रूज के लिए R अक्षर को चुना, दोनों का अर्थ "लाल" है, क्योंकि उस समय ज्ञात कई चर सितारे लाल दिखाई देते हैं। हालाँकि, अर्गेलैंडर का अपना बयान इसका खंडन करता है। 1836 तक, यहां तक कि एस अक्षर का उपयोग केवल एक नक्षत्र, सर्पेंस में किया गया था। फोटोग्राफी के आगमन के साथ चरों की संख्या तेजी से बढ़ी, और चर सितारा नामकरण प्रणाली का भी जल्द ही बेयर जैसा हाल हो गया, जहाँ अभी भी सितारों की संख्या ज्यादा थी और नाम करण के लिये अक्षर नहीं बचे थे। बाद के दो पूरक डबल-लेटरिंग सिस्टम समान सीमा तक पहुंचने के बाद, संख्याओं को अंततः पेश किया गया। खगोलीय पिंडों की सभी श्रेणियों के साथ, नाम अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) द्वारा निर्दिष्ट किए जाते हैं। IAU मास्को, रूस में स्टर्नबर्ग खगोलीय संस्थान को कार्य सौंपता है। स्टर्नबर्ग चर सितारों की सामान्य सूची (जीसीवीएस) प्रकाशित करता है, जिसे समय-समय पर (लगभग हर दो साल में एक बार) चर सितारों की एक नई "नाम-सूची" के प्रकाशन द्वारा संशोधित किया जाता है। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2011 में 80वीं नाम-सूची चर सितारों की, भाग II, जारी की गई थी, जिसमें 2,161 हाल ही में खोजे गए चर सितारों के लिए पदनाम शामिल थे; ये जीसीवीएस में कुल चर सितारों की संख्या को 45,678 तक ले आए। नई नामित वस्तुओं में V0654 ऑरिगे, V1367 सेंटॉरी और बीयू कोरोने बोरेलिस थे। यह सभी देखें स्टार कैटलॉग स्टार पदनाम संदर्भ तारकीय खगोलशास्त्र परिवर्ती तारे
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A5%81%20%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B2%20%E0%A4%8F%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%8F%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%80
तमिल नाडु फिजिकल एजुकेशन एण्ड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी
तमिल नाडु फिजिकल एजुकेशन एण्ड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी (TNPESU) अथवा तमिल नाडु शारीरिक शिक्षा एवं क्रीड़ा विश्वविद्यालय अथवा तमिल नाडु शारीरिक शिक्षा और खेल विश्वविद्यालय, चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में स्थति एक विश्वविद्यालय है। यह भारत में अपनी तरह का पहला शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय (स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी) है। यह भी देखें विश्वविद्यालयों की सूची में भारत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भारत भारत में शिक्षा दूरस्थ शिक्षा परिषद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत) बाहरी लिंक विश्वविद्यालय की वेबसाइट क्रीड़ा विश्वविद्यालय स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A4
सिन्त्रा अरुन्त ब्रॉन्त
सिन्त्रा अरुन्त ब्रॉन्त त्रिनिदाद की एक महिला मॉडल और उद्यमी है। इस महिला के प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण 1972 में जमैका पर्यटन बोर्ड के लिए एक प्रचार पोस्टर में उसके चित्र का शामिल किया जाना है। इस पोस्टर में वह एक गीली नारंगी टी शर्ट पहने हुई थी जिसमें "जमैका" शब्द गहरे अक्षरों में शरीर से चिपका हुआ था। जमैका पर्यटन बोर्ड ने पोस्टर अभियान चलाने के लिए एक अमेरिकी विज्ञापन कंपनी डॉयले डेन (Doyle Dane) को अधिकृत किया था। सिन्त्रा को अभियान के दौरान सात घंटे के लिए पेगासस होटल के आगे खड़े रहना पड़ा था। इस होटल का नाम अब मेरिडियन जमैका पेगासस के नाम से जाना जाता है। सिन्त्रा के प्रसिद्ध होने के और कारण मॉन्टेगो खाड़ी के व्यापारी जॉन मैककोनेल (John McConnell) ने एक नाव को सिन्त्रा अरुन्त ब्रॉन्त का नाम दिया था। इसी प्रकार से एक घुड़-सवारी के एक मैदान को यह नाम दिया गया था। स्विस घड़ियों की निर्माता कम्पनी राडो ने सिन्त्रा के नाम से एक घड़ी बनाई। यात्रा-सुविधा व्यवसास से सिन्त्रा का जुड़ना वर्तमान में सिन्त्रा त्रिनिदाद की ए०जे०एम (AJM) नामक एक यात्रा-सुविधा प्रबंधन कंपनी का मालिक बन चुकी है जो उसकी मातृभूमि में पर्यटन व्यवसास से जुड़ी है। सन्दर्भ त्रिनिदाद और टोबैगो के लोग मॉडल
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सन्दर्भ वस्तु एवं मापन संस्थान
सन्दर्भ वस्तु एवं मापन संस्थान या IRMM, जील, बेल्जियम में स्थित है। यह संयुक्त शोध केन्द्रों (JRC), यूरोपियन आयोग के महानिदेशालय के सात संस्थानों में से एक है। IRMM यूरोपियन संघ की नीतियों के अनुसार, सार्वजनिक और विश्वसनीय यूरोपीय मापन प्रणाली का प्रवर्तन करता है। यह संस्थान गुणवत्ता आश्वासन साधन, जैसे सन्दर्भ वस्तुएं, सन्दर्भ मापन, अन्तर्प्रयोगशाला तुलनाएं, प्रशिक्षण और प्रमाणिकता प्रणालियों, इत्यादि के उत्पादन और प्रसारण का कार्य करता है। इस संस्थान की स्थापना 1957 में रोम की संधि में हुई थी और इसने 1960 में नाभिकीय मापन हेतु केन्द्रीय ब्यूरो (CBNM) के अन्तर्गत प्रचालन भी आरम्भ कर दिया था। सन 1993 में इसका नाम इसके ध्येय को ध्यान में रखते हुए बदला गया। IRMM के छः क्षमता के क्षेत्र हैं: सन्दर्भ वस्तु खाद्य विश्लेषण जैव विश्लेषण रासायनिक सन्दर्भ मापन रेडियोन्यूक्लाइड मापन विद्या न्यूट्रॉन भौतिकी अन्य JRC स्थल :en:Institute for Transuranium Elements (ITU) :en:Institute for the Protection and the Security of the Citizen (IPSC) :en:Institute for Environment and Sustainability (IES) :en:Institute for Health and Consumer Protection (IHCP) :en:Institute for Energy (IE) :en:Institute for Prospective Technological Studies (IPTS) देखें :en:Joint Research Centre (European Commission) :en:Directorate-General for Research (European Commission) :en:European Committee for Standardization :en:European Reference Materials अन्तर्राष्ट्रीय भार एवं मापन ब्यूरो :en:Joint Committee for Traceability in Laboratory Medicine :en:National Institute of Standards and Technology (USA) :en:Good Laboratory Practice (GLP) :en:Reference values :en:European School, Mol बाहरी कड़ियाँ Institute for Reference Materials and Measurements (IRMM) Treaty establishing the European Atomic Energy Community मानक संगठन ्यूरोपियन आयोग अन्तर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%B2
वेट्टक्कल
वेट्टक्कल भारत के केरल राज्य में आलप्पुषा जिले के चेर्तला तालुक में स्थित एक तटीय गाँव है। वेट्टक्कल चेर्तला शहर से लगभग 5 किमी पश्चिम में स्थित है और पट्टणक्काट पंचायत के अंतर्गत आता है। इतिहास चेर्तला (पहले कराप्पुरम नाम में जाना जाता था) कोच्चि के राज्य का शासन में था। उस समय के दौरान, कोच्चि के राजा यहूदी जागीरदार प्रभु, (कोच्चा जाना जाता था) के लिए एक उपहार के रूप में वेट्टक्कल दे दी था। उन दिनों में इस गांव में एक बड़ा पत्थर चिराग था जो गांव के लिए अच्छा प्रकाश दिया था। इस गांव ये पत्थर दीपक के बाद नामित किया गया था। (वेट्टम = प्रकाश; कल्लू = पत्थर) सन्दर्भ केरल के गाँव
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