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गोपाल गणेश आगरकर
गोपाल गणेश आगरकर (१४ जुलाई, १८५६ - १८९५) भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के समाज सुधारक एवं पत्रकार थे। वे मराठी के प्रसिद्ध समाचार पत्र केसरी के प्रथम सम्पादक थे। किन्तु बाल गंगाधर तिलक से वैचारिक मतभेद के कारण उन्होने केसरी का सम्पादकत्व छोड़कर सुधारक नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। आगरकर, विष्णु कृष्ण चिपलूणकर तथा तिलक "डेकन एजुकेशन सोसायटी" के संस्थापक सदस्य थे।वह फर्ग्युसन कोलेज के सह-संस्थापक थे तथा फर्ग्युसन कोलेज के प्रथम प्रधानाचार्य थे । परिचय आ गरकर जी का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिला के तम्भू गाँव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा कराड के प्राइमरी स्कूल में हुई थी। कराड के एक न्यायालय में क्लर्क का काम करने के बाद वे रत्नागिरि चले गये किन्तु वहाँ शिक्षा ग्रहण न कर पाये। उन्होने १८७८ में बीए तथा सन १८८० में एम ए किया। बाहरी कड़ियाँ 'समाज सुधार' की सही दिशा (गोपाल गणेश आगरकर का लेख) गोपाल गणेश आगरकर की जानकारी समाज सुधारक भारतीय पत्रकार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम महाराष्ट्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%81%E0%A4%A6%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0
बूँद और समुद्र
बूँद और समुद्र (1956) साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध हिन्दी उपन्यासकार अमृतलाल नागर का सर्वोत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में लखनऊ को केंद्र में रखकर अपने देश के मध्यवर्गीय नागरिक और उनके गुण-दोष भरे जीवन का कलात्मक चित्रण किया गया है। पात्रों का सजीव चरित्रांकन इस उपन्यास में विशेषतया दृष्टिगोचर होता है। परिचय 'बूँद और समुद्र' अमृतलाल नागर का आकार एवं विषय-वस्तु दोनों दृष्टियों से महान उपन्यास माना जाता है। इसका प्रथम प्रकाशन 1956 ई० में किताब महल, इलाहाबाद से हुआ था। पुनः 1998 ई० में राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से पेपरबैक्स में इसका प्रकाशन हुआ। यह नागर जी का विशुद्ध सामाजिक उपन्यास है जिसमें मुख्यतः निम्न मध्यवर्ग एवं कुछ हद तक मध्यवर्ग तथा उच्च मध्यवर्ग से निम्न की ओर झुके वर्ग का भी बारीक एवं उत्तम चित्रण विस्तार से हुआ है। विषय-वस्तु 'बूँद और समुद्र' में 'बूँद' व्यक्ति का और 'समुद्र' समाज का प्रतीक है। एक और रूप में इस नाम की प्रतीकात्मकता सार्थक सिद्ध होती है। लेखक ने इस उपन्यास में कथा क्षेत्र के लिए लखनऊ को चुना है और उसमें भी विशेष रूप से चौक के गली-कूचों को। एक मोहल्ले के चित्र में लेखक ने भारतीय समाज के बहुत से रूपों के दर्शन करा दिये हैं। इस तरह 'बूँद' के परिचय के माध्यम से 'समुद्र' के परिचय का प्रयत्न प्रतीकित होता है। इस उपन्यास में व्यक्ति और समाज के अंतर्संबंधों की खोज व्यापक फलक पर हुआ है। इस उपन्यास में वर्णित समाज देश की स्वाधीनता के तुरंत बाद का है। नागर जी ने चित्रण के लिए इसे लखनऊ के एक मोहल्ले चौक में केंद्रित किया है। इसकी कथा में मुख्य भाग निभाने वाले पात्र हैं-- सज्जन, वनकन्या, महिपाल और नगीन चंद जैन उर्फ कर्नल। सज्जन कलाकार है, चित्रकार। वनकन्या स्वच्छंद प्रवृत्ति की रूढ़ि विरोधिनी सक्रिय चेतनायुक्त नवयुवती है। महिपाल समाजवाद का दिखावा करने वाला निष्क्रिय लेखक है और नगीनचंद जैन उर्फ कर्नल व्यवसाई होते हुए भी दीन-दुखियों की सहायता में तत्पर रहने वाला सक्रिय कार्यकर्ता है। इन सबके साथ ही पुरातनता, अंधविश्वास एवं अत्यधिक तीखेपन के साथ-साथ निर्मल करुणा एवं अहैतुक रूप से औचित्य समर्थन की अद्भुत पात्रा ताई उपन्यास की धूरी रूप में है। सज्जन खानदानी रईस है- सेठ कन्नोमल का पोता। आठ सौ रुपये महीने की किराए की आमदनी उसके कलाकार रूप के लिए सुरक्षा कवच की तरह है। इसके अलावा ढेरों संपत्ति और जायदाद है, गाड़ी, बंगला और नौकरों की पूरी फौज है। फिर भी विलासिता के कुछ दबे संस्कारों के बावजूद वह विलासिता से हटकर भी काम करता है और मोहल्ले के जीवन का अध्ययन करके अपनी कला को नया आयाम देने की इच्छा से चौक में एक कमरा किराए पर लेकर रहता है। बाद में ताई के घनिष्ठ संपर्क में आने के बाद उसकी हवेली में भी जाता है। ताई सज्जन को पुत्रवत् और वनकन्या को आरंभिक विरोध के बावजूद बहू मानकर स्नेह देती है। सज्जन विरासत में मिले अपने सामंती संस्कारों के बावजूद वनकन्या के संपर्क में आकर अपना पुनर्निर्माण करता है और सामाजिक विकास एवं परिवर्तन में अपना योगदान देता है। वनकन्या के संपर्क के कारण धीरे-धीरे उसमें अनेक बदलाव आते हैं। वनकन्या से उसने अंतर्जातीय विवाह किया था और विचारों के साथ-साथ घटनाक्रमों के कारण भी वह नारी की नियति एवं मानवीय आस्था के गंभीर सवालों तक पहुँचता है। रचनात्मक गठन इस उपन्यास के गठन में लेखक ने मानो 'बूँद' में 'समुद्र' को समा देने का कठिन और दुर्लभ प्रयत्न किया है। विभिन्न स्थितियों एवं विभिन्न स्तरों के पात्रों का इस उपन्यास में जैसे समूह उपस्थित है। सज्जन और वनकन्या के बिल्कुल सभ्य प्रेम'कहानी का सहारा लेते हुए इस उपन्यास में एक तरह से चरित्रों का वन उपस्थित कर दिया गया है और उन सबको कुशलतापूर्वक काफी हद तक सँभाला भी गया है। विभिन्न मान्यताओं, स्थितियों एवं स्तरों की स्त्रियों का भी चित्रात्मक संघटन देखते ही बनता है। अल्प शिक्षित भारतीय समाज की स्थितियों का बारीक चित्रण इस उपन्यास के उद्देश्य का प्रमुख अंग है। रूढ़िग्रस्त समाज, जो बहुत कुछ से डरता है, प्रायः कायरता का परिचय देता है, वही अपनी रूढ़ियों पर खतरा देखकर किस प्रकार हिंसक हो जाता है, इसे अत्यंत विश्वसनीयता के साथ लेखक ने चित्रित किया है। नवीन विचारों को अपनाने के प्रयत्न के बावजूद किस प्रकार सामंती संस्कार व्यक्ति को सार्थक दिशा एवं सक्रिय कदम अपनाने एवं उठाने से वंचित रखता है इसका व्यावहारिक चित्रण उपन्यास की रचनात्मक कुशलता का परिचय देता है। लेखक महिपाल जैसे जीवन में असफल पात्र का चित्रण भी अत्यंत सजीव है और ताई का समग्र चरित्र-चित्रण तो इतना बहुरूपी, परिपूर्ण एवं सुसम्बद्ध है कि उसे हिन्दी कथा-साहित्य की अद्वितीय पात्र-सृष्टियों में से एक माना गया है। मोहल्ले की बहुरूपी बोली-वाणियों का संग्रह इस उपन्यास को भाषा विज्ञान के लिए एक उपादान स्रोत बना देता है। विश्व कोशीय रूप लिए उपन्यास को सहजता पूर्वक रोचक कथात्मकता में ढाल देना उपन्यास के शिल्प-कौशल की सफलता का प्रमाण स्वतः प्रकट कर देता है। समीक्षकों की दृष्टि में 'बूँद और समुद्र' की सर्वाधिक संतुलित एवं काफी हद तक परिपूर्ण समीक्षा डॉ० रामविलास शर्मा ने लिखी है। यह समीक्षा सर्वप्रथम आलोचना (पत्रिका) के अंक-20 में छपी थी। फिर इसे भीष्म साहनी, रामजी मिश्र एवं भगवती प्रसाद निदारिया संपादित 'आधुनिक हिन्दी उपन्यास' में भी संकलित किया गया और फिर यही समीक्षा विभूति नारायण राय संपादित 'वर्तमान साहित्य' के शताब्दी कथा पर केंद्रित विशेषांक (पुस्तक रूप में 'कथा साहित्य के सौ बरस') में भी संकलित की गयी। इस समीक्षा में डॉ० शर्मा ने अपने प्रिय कथाकार के इस उपन्यास की खूबियों को दिखलाते हुए भी इसकी किसी कमी को नजरअंदाज नहीं किया है। इसकी ढेर विशेषताएँ दिखलाते हुए भी उन्होंने लेखक की वैचारिक भ्रांतियों, चित्रात्मक त्रुटियों एवं वर्णनात्मक बहुलताओं -- सभी कमियों का स्पष्ट उल्लेख किया है और संतुलित रुप में विचार करते हुए उपन्यास के महत्व को रेखांकित किया है। उनका मानना है कि इन सब दोषो के होते हुए भी 'बूँद और समुद्र' एक सुन्दर उपन्यास है। भारतीय समाज के ऊपर से आत्मसंतोष का पर्दा लेखक ने खींचकर उसके भीतर की वीभत्सता सबके सामने प्रकट कर दी है। 'बूँद और समुद्र' में जितना सामाजिक अनुभव संचित है, वह उसे अपने ढंग का विश्वकोष बना देता है। उसे एक बार नहीं बार-बार पढ़ने को मन करेगा। कुछ स्थल ऐसे हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरेगा। निस्संदेह स्वाधीन भारत का यह एक उत्तम उपन्यास है। नेमिचन्द्र जैन इसकी विभिन्न खूबियों एवं खामियों पर चर्चा के बाद यह निर्णय देते हैं कि 'बूँद और समुद्र' युद्धोत्तर हिन्दी उपन्यास की एक महत्त्वपूर्ण और सशक्त कृति है जो अपनी अपूर्व उपलब्धि के कारण ही मूल्यांकन के स्तर को अधिक ऊँचा और कठोर रखने की माँग करती है। वे इसे उस दौर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने की सम्भावना से युक्त होते हुए भी वैसा न हो सकने वाला मानकर भी पिछले दस-पन्द्रह वर्षों के सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में निस्सन्देह परिगण्य मानते हैं। मधुरेश जी का मानना है कि नागर जी के पिछले दोनों उपन्यासों में उनके आगामी विकास की संभावनाओं के बहुत से संकेत उपलब्ध होने पर भी 'बूँद और समुद्र' को उनकी एक रचनात्मक छलांग भी माना जा सकता है जिसका स्थापित रिकॉर्ड आगे चलकर स्वयं उनके लिए तोड़ पाना संभव नहीं हुआ-- अपनी सुदीर्घ रचना-यात्रा के बावजूद। विशेष नागर जी को 'बूँद और समुद्र' पर नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा 'बटुक प्रसाद पुरस्कार' एवं 'सुधाकर रजत पदक' प्रदान किया गया था। इस उपन्यास का रूसी में भी अनुवाद हुआ और उसका पहला संस्करण एक वर्ष के अंदर ही बिक गया था। इन्हें भी देखें अमृतलाल नागर हिन्दी उपन्यास सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हिन्दी साहित्य हिन्दी उपन्यास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%91%E0%A4%B5%20%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%28%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%29
इंस्टिट्यूशन ऑव इंजीनियर्स (इंडिया)
इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) भारत के अभियन्ताओं का राष्ट्रीय संगठन है। इसके ९९ केन्द्रों में १५ इंजीनियरी शाखाओं के लगभग ५ लाख सदस्य हैं। यह विश्व की सबसे बड़ी बहुविषयी इंजीनियरी व्यावसायिक सोसायटी है। वर्तमान समय में इसका मुख्यालय कोलकाता में है। इतिहास भारत में इंजीनियरी विज्ञान के विकास के लिए एक संस्था की आवश्यकता समझकर 3 जनवरी 1919 को प्रस्तावित "भारतीय इंजीनियर समाज" (इंडियन सोसाइटी ऑव इंजीनियर्स) के लिए टामस हालैंड की अध्यक्षता में कलकत्ते में एक संघटन समिति बनाई गई। सन् 1913 के भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत 13 सितंबर 1920 को इस समाज का जन्म इंस्टिट्यूशन ऑव इंजीनियर्स (इंडिया) (भारतीय इंजिनियर्स संस्था) के नए नाम से मद्रास (चेन्नई) में हुआ। फिर 23 फ़रवरी 1921 को इसका उद्घाटन बड़े समारोह से कलकत्ता नगर में भारत के वाइसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड द्वारा किया गया। नवजात संस्था को सुदृढ़ बनाने का काम धीरे धीरे होता रहा। यह संस्था देश के विविध इंजीनियरी व्यवसायों में लगे इंजीनियरों को एक सामाजिक संगठन में बांधकर इंजीनियरी विज्ञान के विकास का भरसक प्रयत्न करती है। विकास तदनंतर स्थानीय संस्थाओं का जन्म होने लगा। सन् 1920 में जहाँ इस संस्था की सदस्यसंख्या केवल 138 थी वहाँ सन् 1926 में हजार पार कर गई। सन् 1921 से संस्था ने एक त्रैमासिक पत्रिका निकालना आरंभ किया और जून, 1923 से एक त्रैमासिक बुलेटिन (विवरणपत्रिका) भी उसके साथ निकलने लगा। सन् 1928 से इस संस्था ने अपनी ऐसोशिएट मेंबरशिप (सहयोगी सदस्यता) के लिए परीक्षाएँ लेनी आरंभ कीं, जिनका स्तर सरकार ने इंजीनियरी काॅलेज की बी. एस. सी. डिग्री के बराबर माना। 19 दिसम्बर 1930 को तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन ने इसके अपने निजी भवन का शिलान्यास 8, गोखले मार्ग, कलकत्ता में किया। 1 जनवरी 1932 को संस्था का कार्यालय नई इमारत में चला आया। 9 सितंबर 1935 को सम्राट् पंचम जार्ज ने इसके संबंध में एक राजकीय घोषणपत्र स्वीकार किया। घोषणापत्र के द्वितीय अनुच्छेद में इस संस्था के कर्त्तव्य संक्षेप में इस प्रकार बताए गए हैं : "जिन लक्ष्यों और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारतीय इंजीनियर संस्था की स्थापना की जा रही है, वे हैं इंजीनियरी तथा इंजीनियरी विज्ञान के सामान्य विकास को बढ़ाना, भारत में उनको कार्यान्वित करना तथा इस संस्था से संबद्ध व्यक्तियों एवं सदस्यों को इंजीनियरी संबंधी विषयों पर सूचना प्राप्त करने एवं विचारों का आदन-प्रदान करने में सुविधाएँ देना।" इस संस्था की शाखाएँ धीरे-धीरे देश भर में फैलने लगीं। समय पर मैसूर, हैदराबाद, लंदन, पंजाब और बंबई में इसके केंद्र खुले। मई, 1943 से एसोशिएट मेंबरशिप की परीक्षाएँ वर्ष में दो बार ली जाने लगीं। प्राविधिक कार्यों के लिए सन् 1944 में इसके चार बड़े विभाग स्थापित किए गए। सिविल, मिकैनिकल (यांत्रिक), इलेक्ट्रिकल (वैद्युत) और जेनरल (सामान्य) इंजीनियरी। प्रत्येक विभाग के लिए अलग अलग अध्यक्ष तीन वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित किए जाने लगे। सन् 1945 में कलकत्ते में इसकी रजत जयंती मनाई गई। सन् 1947 में बिहार, मध्यप्रांत, सिंध, बलूचिस्तान और तिरुवांकुर, इन चार स्थानों में नए केंद्र खुले। प्रशासन संस्था का प्रशासन एक परिषद् करती है, जिसका प्रधान संस्था का अध्यक्ष होता है। परिषद् की सहायता के लिए तीन मुख्य स्थायी समितियाँ हैं : (क) वित्त समिति (इसी के साथ 1952 में प्रशासन समिति सम्मिलित कर दी गई), (ख) आवेदनपत्र समिति और (ग) परीक्षा समिति। प्रधान कार्यालय का प्रशासन सचिव करता है। सचिव ही इस संस्था का वरिष्ठ अधिकारी होता है। सदस्यता सदस्य मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं : (क) कॉर्पोरेट (आंगिक) और (ख) नॉन-कॉर्पोरेट (निरांगिक)। पहले में सदस्यों एवं सहयोगी सदस्यों की गणना की जाती है। द्वितीय प्रकार के सदस्यों में आदरणीय सदस्य, बंधु (कंपैनियन), स्नातक, छात्र, संबद्ध सदस्य और सहायक (सब्स्क्राइबर) की गणना होती है। प्रथम प्रकार के सदस्य राजकीय घोषणापत्र के अनुसार "चार्टर्ड इंजीनियर" संज्ञा के अधिकारी हैं। प्रथम प्रकार की सदस्यता के लिए आवेदक की योग्यता मुख्यत: निम्नलिखित बातों पर निर्धारित की जाती है : समुचित सामान्य एवं इंजीनियरी शिक्षा का प्रमाण ; इंजीनियर रूप में समुचित व्यावहारिक प्रशिक्षण; एक ऐसे पद पर होना जिसमें इंजीनियर के रूप में उत्तरदायित्व हो और साथ ही व्यक्तिगत ईमानदारी। परीक्षाएँ इस संस्था की ओर से वर्ष में दो बार परीक्षाएँ ली जाती हैं - एक मई महीने में और दूसरी नवंबर महीने में। एक परीक्षा छात्रों के लिए होती है और दूसरी सहयोगी सदस्यता के लिए। संघ लोक सेवा आयोग (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) ने सहयोगी सदस्यता परीक्षा को अच्छी इंजीनियरी डिग्री परीक्षा के समकक्ष मान्यता दे रखी है। इतना ही नहीं, जिन विश्वविद्यालयों की उपाधियों तथा अन्यान्य डिप्लोमाओं को संस्था अपनी सहयोगी सदस्यता के लिए मान्यता प्रदान करती है उन्हीं को संघ लोक सेवा आयोग केंद्रीय सरकार की इंजीनियरी सेवाओं के लिए उपयुक्त मानता है। अधिकतर राज्य सरकारें तथा अन्य सार्वजनिक संस्थाएँ भी ऐसा ही करती हैं। नई उपाधि अथवा डिप्लोमा को मान्यता प्रदान करने के लिए संस्था ने निम्नलिखित कार्यविधि स्थिर कर रखी है। पहले विश्वविद्यालय अथवा संस्था के अधिकारी की ओर से मान्यता के लिए आवेदनपत्र आता है। तदनंतर परिषद् एक समिति नियुक्त करती है जो शिक्षास्थान पर जाकर पाठ्यक्रम का स्तर और उसकी उपयुक्तता, परीक्षाएँ, अध्यापक, साधन एवं अन्यान्य सुविधाओं की जाँच कर अपनी रिपोर्ट परिषद् को देती है। उसके बाद ही परिषद् मान्यता संबंधी अपना निर्णय देती है। प्रकाशन '"जर्नल" और "बुलेटिन" संस्था के मुख्य प्रकाशन हैं, जो मई, 1955 से मासिक हो गए हैं। जर्नल के पहले अंक में सिविल और सामान्य इंजीनियरी के लेख होते हैं और दूसरे में यांत्रिक और विद्युत इंजीनियरी के। ये लेख संबंधित विभाग के अध्यक्ष की स्वीकृति पर छापे जाते हैं और इनसे देश में इंजीनियरी की प्रत्येक शाखा की प्रगति क आभास मिलता है। सितंबर, 1949 में जर्नल में एक हिंदी विभाग भी खोला गया, जो अब सुदृढ़ हो गया है। "बुलेटिन" का प्रकाशन 1939 में बंद कर दिया गया था, किंतु 1951 से वह फिर प्रकाशित हो रहा है। इस पत्रिका में सामन्य लेख, संस्था की गतिविधियों का लेखा लोखा, संपादकीय टिप्पणियाँ आदि प्रकाशित होती हैं। इसके अलावा समय-समय पर संस्था की ओर से विभिन्न विषयों पर पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित की जाती हैं। इस प्रकार प्रकाशन का कार्य नियमित रूप से चलता रहता है। प्रतिवर्ष जर्नल में प्रकाशित उत्कृष्ट लेखों के लेखकों को पारितोषिक भी दिए जाते हैं। अन्यान्य संस्थाओं में प्रतिनिधित्व इस संस्था का एक लक्ष्य यह भी है कि यह उन विश्वविद्यालयों एवं अन्यान्य शिक्षाधिकारियों से सहयोग करे जो इंजीनियर की शिक्षा को गति प्रदान करने में संलग्न रहते हैं। विश्वविद्यालयों तथा अन्य शिक्षासंस्थाओं की प्रबंध समितियों में भी इसका प्रतिनिधित्व है। यह संस्था "कान्फ़रेंस ऑव इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूशंस ऑव द कॉमनवेल्थ" से भी संबद्ध है। वार्षिक अधिवेशन प्रत्येक स्थानीय केंद्र का वार्षिक अधिवेशन दिसंबर मास में होता है। मुख्य संस्था का वार्षिक अधिवेशन बारी-बारी से प्रत्येक केंद्र में, उसके निमंत्रण पर, जनवरी या फरवरी मास में होता है, जिसमें सारे देश के सब प्रकार के सदस्य सम्मिलित होते हैं और जर्नल में प्रकाशित महत्वपूर्ण लेखों पर बाद विवाद होता है। संस्था प्राचीन संस्कृत बांमय के वास्तुशास्त्र संबंधी मुद्रित और हस्तलिखित ग्रंथों और उससे संबंधित अर्वाचीन साहित्य का संग्रह भी नागपुर केंद्र में कर रही है। बाहरी कड़ियाँ इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) की आधिकारिक वेबसाइट इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) गूगल पेज इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) फेसबुक इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) हेल्प लाइन नंबर इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) वेबसाइट फीडबैक फॉर्म इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) वेबसाइट खोज इंजन ऐ एम आई ई विकिपीडिया का अंग्रेजी संस्करण इंजीनियरी समाज भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%90%E0%A4%AE%E0%A4%A8
उम्म ऐमन
उम्म ऐमन(अंग्रेज़ी: Umm Ayman) इस्लाम की सहाबिया थीं। मुहम्मद के माता-पिता, अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब और आमिना बिन्त वहब की एबिसिनियन गुलाम थीं। अमीना की मृत्यु के बाद, बाराका ने मुहम्मद को उनके दादा, अब्दुल-मुत्तलिब इब्न हाशिम के घर में पालने में मदद की। उन्होंने उन्हें एक मां के रूप में देखा। मुहम्मद ने बाद में उसे गुलामी से मुक्त कर दिया, लेकिन उसने मुहम्मद और उसके परिवार की सेवा करना जारी रखा। वह इस्लाम में एक शुरुआती धर्मांतरित थी, और उहुद और खैबर की महत्वपूर्ण लड़ाइयों में मौजूद थी। उसकी स्वतंत्रता के बाद मुहम्मद ने उसकी शादियाँ भी कीं, पहले बनू खजराज के उबैद इब्न ज़ैद से, जिनके साथ उसका एक बेटा था, एमन इब्न उबैद, जिसने उसे कुन्या उम्म अयमन (अयमन की माँ) दिया। बाद में उनकी शादी मुहम्मद के दत्तक पुत्र ज़ैद बिन हारिसा से हुई थी। ज़ैद के साथ उसके बेटे, उसामा बिन ज़ैद ने शुरुआती मुस्लिम सेना में एक कमांडर के रूप में सेवा की। उम्म ऐमन उहुद की लड़ाई में उपस्थित थे। उसने सैनिकों के लिए पानी लाया और घायलों के इलाज में मदद की। वह खैबर की लड़ाई में मुहम्मद के साथ भी गई थी। इन्हें भी देखें मुहम्मद सहाबा सहाबा और सहाबियात की सूची सन्दर्भ मुहम्मद सहाबिया बाहरी कड़ियाँ हयातुस्सहाबा (1-3) (हिंदी पुस्तक), लेखक:युसूफ कांधलवी
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पादप विज्ञान की शाखाएँ
आकारिकी इसमें पौधे की बाहरी रूपरेखा, बनावट इत्यादि के बारे में अध्ययन होता है। यह अंत:आकारिकी से भिन्न है जिसमें पादपों की आन्तरिक शरीररचना (Anatomy) या ऊतकी (Histology) का अध्ययन किया जाता हैं। जड़ पृथ्वी की ओर नीचे की तरफ बढ़ती है। यह मूल रूप से दो प्रकार की होती है : एक तो द्विबीजपत्री पौधों में प्राथमिक जड़ बढ़कर मूसला जड़ बनाती है तथा दूसरी प्रकार की वह होती हैं, जिसमें प्राथमिक जड़ मर जाती है। और तने के निचले भाग से जड़ें निकल आती हैं। एकबीजपत्रों में इसी प्रकार की जड़ें होती हैं। इन्हें रेशेदार जड़ कहते हैं। जड़ के नीचे की नोक एक प्रकार के ऊतक से ढकी रहती है, जिसे जड़ की टोपी कहते हैं। इसके ऊपर के भाग को बढ़नेवाला भाग कहते हैं। इस हिस्से में कोशिकाविभाजन बहुत तेजी से चलता रहता है। इसके ऊपर के भाग को जल इत्यादि ग्रहण करने का भाग कहते हैं और इसमें मूल रोम (root hair) निकले होते हैं। ये रोम असंख्य होते हैं, जो बराबर नष्ट होते और नए बनते रहते हैं। इनमें कोशिकाएँ होती है तथा यह मिट्टी के छोटे छोटे कणों के किनारे से जल और लवण अपने अंदर सोख लेती हैं। तना या स्तंभ बीज के कोलियाप्टाइल भाग से जन्म पाता है और पृथ्वी के ऊपर सीधा बढ़ता है। तनों में पर्वसंधि (node) या गाँठ तथा पोरी (internode) होते हैं। पर्वसंधि पर से नई शाखाएँ पुष्पगुच्छ या पत्तियाँ निकलती हैं। इन संधियों पर तने के ऊपरी भाग पर कलिकाएँ भी होती हैं। पौधे के स्वरूप के हिसाब से तने हरे, मुलायम या कड़े तथा मोटे होते हैं। इनके कई प्रकार के परिवर्तित रूप भी होते हैं। कुछ पृथ्वी के नीचे बढ़ते हैं, जो भोजन इकट्ठा कर रखते हैं। प्रतिकूल समय में ये प्रसुप्त (dormant) रहते हैं तथा जनन का कार्य करते हैं, जैसे कंद (आलू) में, प्रकंद (अदरक, बंडा तथा सूरन) में, शल्ककंद (प्याज और लहसुन) में इत्यादि। इनके अतिरिक्त पृथ्वी की सतह पर चलनेवाली ऊपरी भूस्तारी (runner) और अंत:भूस्तारी (sucker) होती हैं, जैसे दब, या घास और पोदीना में। कुछ भाग कभी कभी काँटा बन जाते हैं। नागफन और कोकोलोबा में स्तंभ चपटा और हरा हो जाता है, जो अपने शरीर में काफी मात्रा में जल रखता है। पत्तियाँ तने या शाखा से निकलती हैं। ये हरे रंग की तथा चपटे किस्म की, कई आकार की होती है। इनके ऊपर तथा नीचे की सतह पर हजारों छिद्र होते हैं, जिन्हें रंध्र (stomata) कहते हैं। इनसे होकर पत्ती से जल बाहर वायुमंडल में निकलता रहता है तथा बाहर से कार्बनडाइऑक्साइड अंदर घुसता है। इससे तथा जल से मिलकर पर्णहरित की उपस्थिति में प्रकाश की सहायता से पौधे का भोजननिर्माण होता है। कुछ पत्तियाँ अवृंत (sessile) होती हैं, जिनमें डंठल नहीं होता, जैसे मदार में तथा कुछ डंठल सहित सवृंत होती हैं। पत्ती के डंठल के पास कुछ पौधों में नुकीले, चौड़े या अन्य प्रकार के अंग होते हैं, जिन्हें अनुपर्ण (stipula) कहते हैं, जैसे गुड़हल, कदम, मटर इत्यादि में। अलग अलग रूपवाले अनुपर्ण को विभिन्न नाम दिए गए हैं। पत्तियों के भीतर कई प्रकार से नाड़ियाँ फैली होती हैं। इस को शिराविन्यास (venation) कहते हैं। द्विबीजपत्री में विन्यास जाल बनाता है और एकबीजी पत्री के पत्तियों में विन्यास सीधा समांतर निकलता है। पत्ती का वर्गीकरण उसके ऊपर के भाग की बनावट, या कटाव, पर भी होता है। अगर फलक (lamina) का कटाव इतना गहरा हो कि मध्य शिरा सींक की तरह हो जाय और प्रत्येक कटा भाग पत्ती की तरह स्वयं लगने लगे, तो इस छोटे भाग को पर्णक कहते हैं और पूरी पत्ती को संयुक्तपर्ण (compound leaf) कहते हैं। संयुक्तपूर्ण पिच्छाकार (pinnate), या हस्ताकार (palmate) रूप के होते हैं, जैसे क्रमश: नीम या ताड़ में। पत्तियों का रूपांतर भी बहुत से पौधों में पाया जाता है, जैसे नागफनी में काँटा जैसा, घटपर्णी (pitcher) में ढक्कनदार गिलास जैसा और ब्लैडरवर्ट में छोटे गुब्बारे जैसा। कांटे से पौधे अपनी रक्षा चरनेवाले जानवरों से करते हैं तथा घटपर्णी और ब्लैडरवर्ट के रूपांतरित भाग में कीड़े मकोड़ों को बंदकर उन्हें ये पौधे हजम कर जाते हैं। एक ही पौधे में दो या अधिक प्रकार की पत्तियाँ अगर पाई जाएँ, तो इस क्रिया को हेटेरोफिली (Heterophylly) कहते हैं। फूल पौधों में जनन के लिये होते हैं। पौधों में फूल अकेले या समूह में किसी स्थान पर जिस क्रम से निकलते हैं उसे पुष्पक्रम (inflorescence) कहते हैं। जिस मोटे, चपटे स्थान से पुष्पदल निकलते हैं, उसे पुष्पासन (thalamus) कहते हैं। बाहरी हरे रंग की पंखुड़ी के दल को ब्राह्मदलपुंज (calyx) कहते हैं। इसकी प्रत्येक पंखुड़ी को बाह्यदल (sepal) कहते हैं। इस के ऊपर रंग बिरंगी पंखुड़ियों से दलपुंज (corolla) बनता है। दलपुंज के अनेक रूप होते हैं, जैसे गुलाब, कैमोमिला, तुलसी, मटर इत्यादि में। पंखुड़ियाँ पुष्पासन पर जिस प्रकार लगी रहती हैं, उसे पुष्पदल विन्यास या एस्टिवेशन (estivation) कहते हैं। पुमंग (androecium) पुष्प का नर भाग है, जिसें पुंकेसर बनते हैं। पुंमग में तंतु होते हैं, जिनके ऊपर परागकोष होते हैं। इन कोणों में चारों कोने पर परागकण भरे रहते हैं। परागकण की रूपरेखा अनेक प्रकर की होती है। स्त्री केसर या अंडप (carpel) पुष्प के मध्यभाग में होता है। इसके तीन मुख्य भाग हैं : नीचे चौड़ा अंडाशय, उसके ऊपर पतली वर्तिका (style) और सबसे ऊपर टोपी जैसा वर्तिकाग्र (stigma)। वर्तिकाग्र पर पुंकेसर आकर चिपक जाता है, वर्तिका से नर युग्मक की परागनलिका बढ़ती हुई अंडाशय में पहुँच जाती है, जहाँ नर और स्त्री युग्मक मिल जाते हैं और धीरे धीरे भ्रूण (embryo) बनता है। अंडाशय बढ़कर फल बनाता है तथा बीजाणु बीज बनाते हैं। परागकण की परागकोष से वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं। अगर पराग उसी फूल के वर्तिकाग्र पर पड़े तो इसे स्वपरागण (Self-pollination) कहते हैं और अगर अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पड़े तो इसे परपरागण (Cross-pollination) कहेंगे। परपरागण अगर कीड़े मकोड़े, तितलियों या मधुमक्खियों द्वारा हो, तो इसे कीटपरागण (Entomophily) कहते हैं। अगर परपरागण वायु की गति के कारण से हो, तो उसे वायुपरागण (Anemophily) कहते हैं, अगर जल द्वारा हो तो इसे जलपरागण (Hydrophily) और अगर जंतु से हो, तो इसे प्राणिपरागण (Zoophily) कहते हैं। गर्भाधान या निषेचन के उपरांत फल और बीज बनते हैं, इसकी रीतियाँ एकबीजपत्री तथा द्विदलपत्री में अलग अलग होती हैं। बीज जिस स्थान पर जुड़ा होता है उसे हाइलम (Hilum) कहते हैं। बीज एक चोल से ढँका रहता है। बीज के भीतर दाल के बीच में भ्रूण रहता है जो भ्रूणपोष (Endosperm) से ढँका रहता है। फल तीन प्रकार के होते हैं : एकल (simple), पुंज (aggregate) और संग्रथित (multiple or composite)। एकल फल एक ही फूल के अंडाशय से विकसित होकर जनता है और यह कई प्रकार का होता है, जैसे (1) शिंब (legume), उदाहरण मटर, (2) फॉलिकल, जैसे चंपा, (3) सिलिकुआ, जैसे सरसों, (4) संपुटी, जैसे मदार या कपास, (5) कैरियाप्सिस, जैसे धान या गेहूँ, (6) एकीन जैसे, क्लीमेटिस, (7) डØप, जैसे आय, (8) बेरी, जैसे टमाटर इत्यादि। पुंज फल एक ही फूल से बनता है, लेकिन कई स्त्रीकेसर (pistil) से मिलकर, जैसा कि शरीफा में। संग्रथित फल कई फूलों से बनता है, जैसे सोरोसिस (कटहला) या साइकोनस (अंजीर) में। बीज तथा फल पकने पर झड़ जाते हैं और दूर दूर तक फैल जाते हैं। बहुत से फल हलके होने के कारण हवा द्वारा दूर तक उड़ जाते हैं। कुछ फलों के ऊपर नुकीले हिस्से जानवरों के बाल या चमड़े पर चिपककर इधर उधर बिखर जाते हैं। जल द्वारा भी यह कार्य बहुत से समुद्रतट के पौधों में होता है। शरीर (Anatomy) प्रत्येक जीवधारी का शरीर छोटी छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। आवृतबीजियों के शरीर में अलग अलग अंगों की आंतरिक बनावट विभिन्न होती है। कोशिकाएँ विभिन्न आकार की होती हैं। इन्हें ऊतक कहते हैं। कुछ ऊतक विभाजन करते हैं और इस प्रकार नए ऊतक उत्पन्न होते हैं जिन्हें विमज्यातिकी (meristematic) कहते हैं। यह मुख्यत: एधा (cambium), जड़ और तने के सिरों पर या, अन्य बढ़ती हुई जगहों पर, पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य ऊतक स्थायी हो जाते हैं और अपना एक निश्चित कार्य करते हैं, जैसे (1) मृदूतक (Parenchyma), जिसमें कोशिका की दीवारें पतली तथा समव्यास होती है; (2) हरित ऊतक (Chlorenchyma) भी इसी प्रकार का होता है, पर इसके अंदर पर्णहरित भी होता है; (3) कोलेनकाइमा में कोशिका के कोने का हिस्सा मोटा हो जाता है; (4) स्क्लेरेनकाइमा में दीवारें हर तरफ से मोटी होती हैं यह वह रेशे जैसे आकार धारण कर लेती हैं। इनके अतिरिक्त संवहनी ऊतक भी होते हैं, जिनका स्थान, संख्या, बनावट इत्यादि द्विदलपत्रीय और एकदलपत्रीय मूल तथा तने के अंदर काफी भिन्न होती है। संवहनी ऊतकों का कार्य यह है कि जल तथा भोजन नीचे से ऊपर की ओर ज़ाइलम द्वारा चढ़ता है और बना हुआ भोजन पत्तियों से नीचे के अंगों को फ्लोयम द्वारा आता है। इनके अतिरिक्त पौधों में कुछ विशेष ऊतक भी मिलते हैं, जैसे ग्रंथिमय ऊतक इत्यादि। पौधे का भाग चाहे जड़ हो, तना या पत्री हो, इनमें बाहर की परत बाह्यत्वचा (या जड़ में मूलीय त्वचा, epiblema) होती है। पत्ती में इस पर रंध्र का छिद्र और द्वारकोशिका (guard cell) होती है तथा इसके ऊपर उपत्वचा (cuticle) की भी परत होती है। बाह्यत्वचा के नीचे अधस्त्वचा (hypodermis) होती है, जिसकी कोशिका बहुधा मोटी होती है। इनके नीचे वल्कुल (cortex) के ऊतक होते हैं, जो अवसर पतले तथा मृदूतक से होते हैं। इनके अंदर ढोल के आकार की कोशिकावाली परिधि होती हैं, जिसे अंतस्त्वचा (Endodermis) कहते हैं। इनके भीतर संवहनी सिलिंडर होता है, जिसका कार्य जल, लवण, भोजन तथा अन्य विलयनों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के लिये रास्ता प्रदान करना है। कौशिकानुवंशिकी (Cytogenetics) कोशिका के अंदर की रचना तथा विभाजन के अध्ययन को कहते हैं। लैंगिक जनन द्वारा नर और मादा युग्मक पैदा करनेवाले पौधों के गुण नए, छोटे पौधों में उत्पन्न होने के विज्ञान को आनुवंशिकी (genetics) कहते हैं। चूँकि यह गुण कोशिकाओं में उपस्थित वर्णकोत्पादक (chromogen) पर जीन (gene) द्वारा प्रदत्त होता है, इसलिये आजकल इन दोनों विभागों को एक में मिलाकर कोशिकानुवंशिकी कहते हैं। प्रत्येक जीवधारी की रचना कोशिकाओं से होती है। प्रत्येक जीवित कोशिका के अंदर एक विलयन जैसा द्रव, जिसे जीवद्रव्य (protoplasm) कहते हैं, रहता है। जीवद्रव्य तथा सभी चीज़े, जो कोशिका के अंदर हैं, उन्हें सामूहिक रूप से जीवद्रव्यक (Protoplast) कहते हैं। कोशिका एक दीवार से घिरी होती है। कोशिका के अंदर एक अत्यंत आवश्यक भाग केंद्रक (nucleus) होता है, जिसके अंदर एक केंद्रिक (nuclelus) होता है। कोशिका के भीतर एक रिक्तिका (vacuole) होती है, जिसके चारों ओर की झिल्ली को टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) के अंदर छोटे छोटे कण, जिन्हें कोशिकांग (Organelle) कहते हैं, रहते हैं। इनके मुख्य प्रकार माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria, जिनमें बहुत से एंजाइम होते हैं), क्लोरोप्लास्ट इत्यादि हैं। केंद्रक साधारणतया गोल होता है, जो केंद्रकीय झिल्ली से घिरा होता है। इसमें धागे जैसे वर्णकोत्पादक होते हैं जिनके ऊपर बहुत ही छोटे मोती जैसे आकार होते हैं, जिन्हें जीन कहते हैं। ये रासायनिक दृष्टि से न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein) होते हैं, जो डी. एन. ए. (DNA) या डीआक्सिराइबो न्यूक्लिइक ऐसिड कहे जाते हैं। इनके अणु की बनावट दोहरी घुमावदार सीढ़ी की तरह होती हैं, जिसमें शर्करा, नाइट्रोजन, क्षारक तथा फॉस्फोरस होते हैं। आर. एन. ए. (RNA) की भी कुछ मात्रा वर्णकोत्पादक में होती है, अन्यथा यह न्यूक्लियोप्रोटीन तथा कोशिकाद्रव्य (माइटोकॉन्ड्रिया में भी) होता है। प्रत्येक कोशिका में वर्णकोत्पादक की संख्या स्थिर और निश्चित होती है। कोशिका का विभाजन दो मुख्य प्रकार का होता है : (1) सूत्री विभाजन (mitosis), जिसमें विभाजन के पश्चात् भी वर्णकोत्पादकों की संख्या वही रहती हैं और (2) अर्धसूत्री विभाजन (meiosis), जिसमें वर्णकोत्पादकों की संख्या आधी हो जाती है। किसी भी पौधे या अन्य जीवधारी का हर एक गुण जीन के कारण ही होता है। ये अपनी रूपरेखा पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए रखते हैं। हर जीन का जोड़ा भी अर्धगुणसूत्र (sister chromatid) पर होता है, जिसे एक दूसरे का एलिल कहते हैं। जीन अर्धसूत्रण के समय अलग अलग हो जाते हैं और ये स्वतंत्र रूप से होते हैं। अगर एलिल जीन दो गुण दिखाएँ, जैसे लंबे या बौने पौधे, रंगीन और सफेद फूल इत्यादि, तो जोड़े जीन में एक प्रभावी (dominant) होता है और दूसरा अप्रभावी (recessive)। दोनों के मिलने से नई पीढ़ी में प्रभावी लक्षण दिखाई पड़ता है, पर स्वयंपरागण द्वारा इनसे पैदा हुए पौधे फिर से 3 : 1 में प्रभावी लक्षण और अप्रभावी लक्षण दिखलाते हैं। उत्पत्ति या विकास (Evolution) उस विज्ञान को कहते हैं जिससे ज्ञात होता है किसी प्रकार का एक जाति बदलते बदलते एक दूसरी जाति को जन्म देती है। पुरातन काल में मनुष्य सोचता था कि ईश्वर ने सभी प्रकार के जीवों का सृजन एक साथ ही कर दिया है। ऐसे विचार धीरे धीरे बदलते गए। आजकल के वैज्ञानिकों का मत है कि प्रकृति में नाना विधियों से जीन प्रणाली एकाएक बदल सकती है। इसे उत्परिवर्तन (mutation) कहते हैं। ऐसे अनेक उत्परिवर्तन होते रहते हैं, पर जो जननक्रिया में खरे उतरें और वातावरण में जम सकें, वे रह जाते हैं। इस प्रकार नए पौधे की उत्पत्ति होती है। वर्णकोत्पादकों की संख्या दुगुनी, तिगुनी या कई गुनी हो कर नए प्रकार के गुण पैदा करती हैं। इन्हें बहुगुणित कहते हैं। बहुगुणितता (polypoidy) द्वारा भी नए जीवों की उत्पत्ति का विकास होता है। परिस्थितिकी (Ecology) जीवों या पौधों के वातावरण, एक दूसरे से संबंध या आश्रय के अध्ययन को परिस्थितिकी कहते हैं। पौधे समाज में रहते हैं। ये वातावरण को बदलते हैं और वातावरण इनके समाज की रूपरेखा को बदलता है। यह क्रम बार बार चलता रहता है। इसे अनुक्रमण (succession) कहते हैं। एक स्थिति ऐसी आती है जब वातावरण और पौधों के समाज एक प्रकार से गतिक साम्य (dynamic equilibrium) में आ जाते हैं। बदलते हुए अनुक्रमण के पादप समाज को क्रमक (sere) कहते हैं और गतिक साम्य को चरम अवस्था (climax) कहते हैं। किसी भी जलवायु में एक निश्चित प्रकार का गतिक साम्य होता है। अगर इसके अतिरिक्त कोई और प्रकार का स्थिर समाज बनता हो, तो उसे चरम अवस्था न कह उससे एक स्तर कम ही मानते हैं। ऐसी परिस्थिति को वैज्ञानिक मोनोक्लाइमेक्स (monoclimax) विचार मानते हैं और जलवायु को श्रेष्ठतम कारण मानते हैं। इसके विपरीत है पॉलीक्लाइमेक्स (polyclimax) विचारधारा, जिसमें जलवायु ही नहीं वरन् कोई भी कारक प्रधान हो सकता है। पौधों के वातावरण के विचार से तीन मुख्य चीजें जलवायु, जीवजंतु तथा मिट्टी हैं। आजकल इकोसिस्टम विचारधारा और नए नए मत अधिक मान्य हो रहे हैं। घास के मैदान, नदी, तालाब या समुद्र, जंगल इत्यादि इकोसिस्टम के कुछ उदाहरण हैं। जल के विचार से परिस्थितिकी में पौधों को (1) जलोदभिद (Hydrophyte), जो जल में उगते हैं, (2) समोद्भिद (Mesophyte), जो पृथ्वी पर हों एवं जहाँ सम मात्रा में जल मिले, तथा (3) जीरोफाइट, जो सूखे रेगिस्तान में उगते हैं, कहते हैं। इन पौधों की आकारिकी का अनुकूलन (adaptation) विशेष वातावरण में रहने के लिये होता है, जैसे जलोद्भिद पौधों में हवा रहने के ऊतक होते हैं, जिससे श्वसन भी हो सके और ये जल में तैरते रहें। जंगल के बारे में अध्ययन, या सिल्विकल्चर, भी परिस्थितिकी का ही एक भाग समझा जा सकता है। परिस्थितिकी के उस भाग को जो मनुष्य के लाभ के लिये हो, अनुप्रयुक्त परिस्थितिकी कहते हैं। जो पौधे बालू में उगते हैं, उन्हें समोद्भिद कहते हैं। इसी प्रकार पत्थर पर उगनेवाले पौधे शैलोद्भिद (Lithophyte) तथा अम्लीय मिट्टी पर उगनेवाले आग्जीलोफाइट कहलाते हैं। जो पौधे नमकवाले दलदल में उगते हैं, उन्हें लवणमृदोद्भिद (Halophyte) कहते हैं, जैसे सुंदरवन के गरान (mangrove), जो तीव्र सूर्यप्रकाश में उगते हैं उन्हें आतपोद्भिद (heliophyte) और जो छाँह में उगते हैं, उन्हें सामोफाइटा कहते हैं। शरीरक्रिया विज्ञान (Physiology) इसके अंतर्गत पौधों के शरीर में हर एक कार्य किस प्रकार होता है इसका अध्ययन किया जाता है। जीवद्रव्य कोलायडी प्रकृति का होता है और यह जल में बिखरा रहता है। भौतिक नियमों के अनुसार जल या लवण मिट्टी से जड़ के रोम के कला की कोशिकाओं की दीवारों द्वारा प्रवेश करता है और सांद्रण के बहाव की ओर से बढ़ता हुआ संवहनी नलिका में प्रवेश करता है। यहाँ से यह जल इत्यादि किस प्रकार ऊपर की ओर चढ़ेंगे इसपर वैज्ञानिकों में सहमति नहीं थी, पर अब यह माना जाता है कि ये केशिकीय रीति से केशिका नली द्वारा जड़ से ऊँचे तने के भाग में पहुँच जाते हैं। पौधों के शरीर का जल वायुमंडल के संपर्क में पत्ती के छिद्र द्वारा आता है। यहाँ भी जल के कण वायु में निकल जाते हैं, यदि वायु में जल का सांद्रण कम है। जैसे भीगे कपड़े का जल वाष्पीभूत हो वायु में निकलता है, ठीक उसी प्रकार यह भी एक भौतिक कार्य है। अब प्रश्न यह उठता है कि पौधों को हर कार्य के लिये ऊर्जा कहाँ से मिलती है तथा ऊर्जा कैसे एक प्रकार से दूसरे प्रकार में बदल जाती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पर्णहरित पर प्रकाश पड़ने से प्रकाश की ऊर्जा को पर्णहरित पकड़ कर कार्बनडाइआक्साइड और जल द्वारा ग्लूकोज़ और आक्सीजन बनाता है। ये ही ऊर्जा के स्रोत हैं (देखें प्रकाश संश्लेषण)। प्रकृति में पौधों द्वारा नाइट्रोजन का चक्र भी चलता है। पौधों की वृद्धि में प्रकाश का योग बड़े महत्व का है। प्रकाश से ही पौधों का आकार और भार बढ़ते हैं तथा नए ऊतकों और आकार या डालियों का निर्माण होता है। जिन पादपों को प्रकाश नहीं मिलता, वे पीले पड़ने लगते हैं। ऐसे पादपों को पांडुरित (etiolated) कहते हैं। प्रकाश के समय, दीप्तिकाल (photo period), पर ही पौधे की पत्ती बनना, झड़ना, तथा पुष्प बनना निर्भर करता है। इसे दीप्तिकालिता (Photoperiodism) कहते हैं। 24 घंटे के चक्र में कितना प्रकाश आवश्यक है ताकि पौधों में फूल लग सके, इसे क्रांतिक दीप्तिकाल कहते हैं। कुछ पौधे दीर्घ दीप्तिकाली होते हैं और कुछ अल्प दीप्तिकाली और कुछ उदासीन होते हैं। इस जानकारी से जिस पौधे में फूल न चाहें उसमें फूल का बनना रोक सकते हैं और जहाँ फूल चाहते हैं वहाँ फूल असमय में ही लगवा सकते हैं। वायुताप का भी पौधों पर, विशेषकर उनके फूलने और फलने पर, प्रभाव पड़ता है। इसके अध्ययन को फीनोलॉजी (Phenology) कहते हैं। यह सब हार्मोन नामक पदार्थों के बनने के कारण होता है। पौधों में हार्मोनों के अतिरिक्त विटामिन भी बनते हैं, जो जंतु और मनुष्यों के लिये समान रूप से आवश्यक और हितकारी होते हैं। पौधों में गमनशीलता भी होती है। ये प्रकाश की दिशा में गमन करते हैं। ऐसी गति को प्रकाशानुवर्ती और क्रिया को प्रकाश का अनुवर्तन (Phototropism) कहते हैं। पृथ्वी के खिंचाव के कारण भी पौधों में गति होती हैं, इसे जियोट्रॉपिज़्म (Geotropism) कहते हैं। पादपाश्म विज्ञान (Palaeobotany) इसके अंतर्गत उन पौधों का अध्ययन किया जाता है, जो करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर रहते थे, पर अब कहीं नहीं पाए जाते और अब फॉसिल बन चुके हैं। उनके अवशेष पहाड़ की चट्टानों, कोयले की खानों इत्यादि में मिलते हैं। चूँकि पौधे के सभी भाग एक से जुड़े नही मिलते, इसलिये हर अंग का अलग अलग नाम दिया जाता है। इन्हें फॉर्मजिनस कहते हैं। पुराने समय के काल को भूवैज्ञानिक समय कहते हैं। यह कैंब्रियन-पूर्व-महाकल्प से शुरु होता है, जो लगभग पाँच अरब वर्ष पूर्व था। उस महाकल्प में जीवाणु शैवाल और कवक का जन्म हुआ होगा। दूसरा पैलियोज़ोइक कहलाता है, जिसमें करीब 60 करोड़ से 23 करोड़ वर्ष पूर्व का युग सम्मिलित है। शुरू में कुछ समुद्री पौधे, फिर पर्णहरित, पर्णगौद्भिद और अंत में अनावृतबीजी पौधों का जन्म हुआ है। तदुपरांत मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic era) शुरू होता है, जो छह करोड़ वर्ष पूर्व समाप्त हुआ। इस कल्प में बड़े बड़े ऊंचे, नुकीली पत्तीवाले, अनेक अनावृतबीजी पेड़ों का साम्राज्य था। जंतुओं में भी अत्यंत भीमकाय डाइनासोर और बड़े बड़े साँप इत्यादि पैदा हुए। सीनाज़ोइक कल्प में द्विवीजी, एवं एकबीजी पौधे तथा स्तनधारियों का जन्म हुआ। आर्थिक वनस्पति विज्ञान इनके अतिरिक्त जो पादप मनुष्य के काम आते हैं, उन्हें आर्थिक वनस्पति कहते हैं। यों तो हजारों पौधे मनुष्य के नाना प्रकार के काम में आते हैं, पर कुछ प्रमुख पौधे इस प्रकार हैं : अन्न - गेहूँ, धान, चना, जौ, मटर, अरहर, मक्का, ज्वार इत्यादि। फल - आम, सेब, अमरूद, संतरा, नींबू, कटहल इत्यादि। पेय - चाय, काफी इत्यादि। साग सब्जी - आलू, परवल, पालक, गोभी, टमाटर, मूली, नेनुआ, ककड़ी, लौकी इत्यादि। रेशे बनानेवाले पादप - कपास, सेमल, सन, जूट इत्यादि। लुगदीवाले पादप - सब प्रकार के पेड़, बाँस, सवई घास, ईख इत्यादि। दवावाले पादप - एफीड्रा, एकोनाइटम, धवरबरुआ, सर्पगंधा और अनेक दूसरे पौधे। इमारती लकड़ीवाले पादप - टीक, साखू, शीशम, आबनूस, अखरोट इत्यादि। वनस्पति विज्ञान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
दूधनाथ सिंह
दूधनाथ सिंह (जन्म:१७ अक्टूबर, १९३६ एवं निधन १२ जनवरी, २०१८) हिन्दी के आलोचक, सम्पादक एवं कथाकार थे। उन्होने अपनी कहानियों के माध्यम से साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं मानसिक सभी क्षेत्रों में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी। जीवन परिचय दूधनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'सोबन्था' नामक एक छोटे-से गाँव में हुआ था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम ए किया। कुछ दिनों (1960-62) तक कलकत्ता में अध्यापन किया जिसके बाद फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अपनी सेवाएँ दी। सेवानिवृति के बाद वह पूरी तरह से लेखन के लिए समर्पित हो गये। प्रकाशित कृतियाँ अपनी शताब्दी के नाम, सपाट चेहरे वाला आदमी, सुखान्त, सुरंग से लौटते हुए, निराला : आत्महन्ता आस्था, पहला क़दम, एक और भी आदमी, कहा-सुनी (साक्षात्कार और आलोचनात्मक निबन्ध), दो शरण (निराला जी की कविताओं का संकलन), धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे (कहानी संग्रह) तथा निष्कासन (उपन्यास) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। यम-गाथा दूधनाथ सिंह का चर्चित नाटक है। इसका पहला मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के भारत रंग महोत्सव- २००५ में अरविन्द गौड़ के निदेशन में,अस्मिता नाट्य संस्था द्वारा किया गया था। प्रमुख रंगमंच अभिनेता सुसान बरार (फिल्म-समर 2007) ने इसमे इन्द्र की भूमिका निभाई थी। यह नाटक मिथक पर आधारित है और इसका कथानक व्यापक सामाजिक राजनीतिक मुद्दों - सामंतवाद, सत्ता की राजनीति, हिंसा, अन्याय, सामाजिक- भेदभाव और नस्लवाद पर सवाल पर खड़े करता है। सम्मान और पुरस्कर सम्मान और पुरस्कार भारतेन्दु सम्मान शरद जोशी स्मृति सम्मान कथाक्रम सम्मान साहित्य भूषण सम्मान सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अमर- उजाला मैं दूधनाथ सिंह का निराला जी पर लेख। दूधनाथ सिंह ने नई कहानी के लेखकों की दी थी चुनौती हिन्दी कथाकार हिन्दी नाटककार बलिया के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/1963%20%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B8%20%E0%A4%A4%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%9F
1963 टोगोलेस तख्तापलट
1963 डेमोक्रेटिक तख्तापलट एक था सैन्य तख्तापलट में हुई पश्चिम अफ्रीकी के देश टोगो विशेष रूप से - जनवरी 1963 को 13 तख्तापलट नेताओं इम्मानुएल बोजोल, Étienne Eyadéma (बाद में ग्नासिंगब इयडेमा ) और क्लेबर दैदजो - सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया, गिरफ्तार कैबिनेट के अधिकांश, और लोमे में अमेरिकी दूतावास के बाहर टोगो के पहले अध्यक्ष सिल्वेनस ओलंपियोकी हत्या कर दी। तख्तापलट के नेताओं ने जल्दी से निकोलस ग्रुनित्ज़की और एंटोनी मीटची को लायादोनों जिनमें से ओलंपियो के राजनीतिक विरोधियों को निर्वासित किया गया था, एक साथ नई सरकार बनाने के लिए। जबकि घाना की सरकार और उसके अध्यक्ष क्वामे नक्रमा को ओलंपियो के तख्तापलट और हत्या में फंसाया गया था, पूरी जांच कभी पूरी नहीं हुई और अंतत: अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश की मौत हो गई। यह घटना अफ्रीका के फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशों में पहली तख्तापलट के रूप में महत्वपूर्ण थी जिसने 1950 और 1960 के दशक में स्वतंत्रता हासिल की,  और ओलंपियो को एक सैन्य तख्तापलट के दौरान हत्या करने वाले पहले राज्य प्रमुख के रूप में याद किया जाता है। अफ्रीका में। पृष्ठभूमिसंपादित करें पेल पर्पल में फ्रेंच तोगोलैंड और पेल ग्रीन में ब्रिटिश टोगोलैंड एक था  टोगो मूल रूप से जर्मन औपनिवेशिक साम्राज्य का एक रक्षक था, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश और फ्रांसीसी द्वारा लिया गया था। फ्रांसीसी और ब्रिटिश ने वर्तमान में टोगो के क्षेत्र में 1922 में फ्रांसीसी नियंत्रण के साथ प्रशासनिक रूप से क्षेत्र को विभाजित किया था। ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशों के बीच ईवे आबादी को विभाजित करते हुए पूर्वी भाग ब्रिटिश गोल्ड कोस्ट कॉलोनी में शामिल हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, फ्रांसीसी विची सरकार ने टोगो के शक्तिशाली ओलंपियो परिवार को ब्रिटिश समर्थक माना और उस परिवार के कई सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें सिल्वानस ओलंपियो भी शामिल थे, जो कि दूरदराज के शहर जोउगू में जेल में एक महत्वपूर्ण समय के लिए आयोजित किया गया था। (वर्तमान बेनिन में)।  उनका कारावास फ्रांसीसी के साथ उनके भविष्य के संबंधों और टोगो के लिए राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता के लिए एक रूपक को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गया, जिसका उपयोग वे भाषणों में बार-बार करते थे। 1950 के दशक में, ओलंपियो फ्रांसीसी शासन से टोगो के लिए स्वतंत्रता का पीछा करने में एक सक्रिय नेता बन गया। उनकी राजनीतिक पार्टी ने 1950 के दशक के दौरान उन चुनावों में फ्रांसीसी हस्तक्षेप के कारण क्षेत्रीय विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया (1956 के चुनावों में जिसने निकोलस ग्रुनित्ज़की, ओलंपियो की पत्नी, फ्रांसीसी उपनिवेश के प्रधान मंत्री के भाई) और ओलंपियो ने संयुक्त राज्य में बार-बार दलील दी स्वतंत्रता के लिए देश के दावों के समाधान में सहायता करने के लिए राष्ट्र (UN)  (1947 में UN के लिए ओलम्पिक याचिका एक विवाद के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के लिए पहली आधिकारिक याचिका थी)।  १ ९  election के चुनाव में, फ्रांसीसी हस्तक्षेप के बावजूद, ओलंपियो की पार्टी ( कॉमेट डे लुनिटे टोगोलाइज़) ग्रुनित्स्की की पार्टी (टोगोलेस प्रोग्रेस पार्टी) और ओलंपियो नाम के फ्रांसीसी को कॉलोनी के प्रधानमंत्री को हराकर चुनाव लड़े।  ओलंपियो की जीत से फ्रांसीसी औपनिवेशिक नीति का एक महत्वपूर्ण अहसास हुआ और इसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसी पश्चिम अफ्रीका में पूरे उपनिवेशों में स्वतंत्रता जनमत संग्रह हुआ।  ओलंपियो ने १ ९ ६१ में लोकप्रिय वोट से टोगो के लिए एक नए संविधान के पारित होने का अनुमान लगाया और 90% से अधिक मतों की चुनावी जीत के साथ टोगो के पहले राष्ट्रपति बने।  इस महत्वपूर्ण जीत के बाद और १ ९ ६१ में ओलंपियो के जीवन पर एक प्रयास के बाद दमन के परिणामस्वरूप, टोगो काफी हद तक स्वतंत्रता पर एक-पार्टी राज्य बन गया। अपने करियर की शुरुआत में, ओलंपियो ने अफ्रीका के उपनिवेशवाद को समाप्त करने के मुद्दे पर, घाना के पड़ोसी उपनिवेश में स्वाधीनता संग्राम के नेता और उस देश के पहले राष्ट्रपति क्वामे नक्रमा के साथ काम किया था ; हालाँकि, दोनों नेताओं ने जर्मन उपनिवेश के पूर्वी भाग का विभाजन किया, जो घाना और ईवे लोगों के विभाजन का हिस्सा बन गया था।। Ewe को एकजुट करने के लिए, Nkrumah ने खुले तौर पर प्रस्ताव दिया कि Togo घाना का हिस्सा बन जाए, जबकि ओलंपियो ने पुरानी जर्मन कॉलोनी के पूर्वी हिस्से को Togo में वापस लाने की मांग की। जब देश को आजादी मिलने के तुरंत बाद नकरमा ने टोगो का औचक दौरा किया और अफ्रीकी एकता के नाम पर दोनों देशों के एक संघ का प्रस्ताव रखा तो ओलंपियो ने जवाब दिया कि "अफ्रीकी एकता, इतना वांछित होने के लिए, एक बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।" एक विस्तारवादी नीति। "  ओलम्पियो के साथ दोनों नेताओं के बीच संबंधों में गिरावट आई, अक्सर नेकरामाह को "काले साम्राज्यवादी" के रूप में खारिज कर दिया, हालांकि, उसने शुरू में दावा किया कि वह स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए टोगो में एक सेना नहीं चाहता था, लेकिन ओलंपियो ने वित्त पोषित किया और रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर एक छोटी सी सेना बनाई Nkrumah और घाना द्वारा किसी भी संभावित अग्रिमों के खिलाफ देश। अपने प्रशासन के दौरान, ओलंपियो ने पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेशों के शुरुआती स्वतंत्र अफ्रीकी नेताओं के लिए एक अनूठा स्थान अपनाया। यद्यपि उन्होंने थोड़ी विदेशी सहायता पर भरोसा करने की कोशिश की, जब आवश्यक हो तो उन्होंने फ्रांसीसी सहायता के बजाय जर्मन सहायता पर भरोसा किया। वह सभी फ्रांसीसी गठबंधनों (विशेष रूप से अफ्रीकी और मालागासी संघ में शामिल नहीं होने ) का हिस्सा नहीं था, और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों (अर्थात् नाइजीरिया) और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण संबंध बनाए।  हालांकि, उन्होंने फ्रांसीसी के साथ एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए और राष्ट्रपति के रूप में अपने पूरे कार्यकाल में सक्रिय राजनयिक संबंधों को बनाए रखा। फ्रांसीसी ओलंपियो के प्रति अविश्वास रखते थे और उन्हें ब्रिटिश और अमेरिकी हितों के साथ बड़े पैमाने पर गठबंधन करते थे। तत्काल पूर्ववर्ती स्थितिसंपादित करें टोगो-घाना संबंधसंपादित करें घाना और टोगो के देशों के बीच (और नक्रमा और ओलंपियो के बीच) संबंध 1962 में लगातार हत्या की साजिशों के साथ बहुत तनावपूर्ण हो गए। दोनों नेताओं पर हत्या के प्रयासों को एक दूसरे पर दोषी ठहराया गया था। घाना के शरणार्थियों और राजनीतिक असंतुष्टों को टोगो में शरण मिली, जबकि टोगो के राजनीतिक असंतुष्टों को घाना में शरण मिली। टोगोलीज प्रोग्रेस पार्टी और जुवेंटो आंदोलन को १ ९ ६१ में ओलंपियो के जीवन के प्रयास में फंसा दिया गया था, निकोलस ग्रुनित्ज़की और एंटोनी मीटची सहित कई प्रमुख राजनेताओं ने देश छोड़ दिया और घाना से स्वागत और समर्थन प्राप्त किया। इसी तरह, घाना के राजनीतिक असंतुष्ट लोग नोक्रमा के जीवन पर प्रयासों के बाद टोगो में भाग गए थे। 1961 में, Nkrumah ने ओलंपियो को "खतरनाक अंतर्राष्ट्रीय परिणामों" के लिए चेतावनी दी, अगर उनके शासन में असंतुष्टों का समर्थन जो टोगो में रह रहे थे, तो वह बंद नहीं हुआ, लेकिन ओलंपियो ने बड़े पैमाने पर खतरे की अनदेखी की। ओलंपियोएडिट केलिए घरेलू समर्थन बड़ी चुनावी जीत के बावजूद, ओलंपियो की नीतियों ने उनके कई समर्थकों के लिए महत्वपूर्ण समस्याएं पैदा कीं। बजट की तपस्या पर उनका जोर संघवादियों, किसानों और शिक्षित युवाओं के लिए बढ़ गया, जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी की मांग की थी। इसके अलावा, वह देश में कैथोलिक प्राधिकरण से भिड़ गया और ईवे और अन्य जातीय समूहों के बीच तनाव को बढ़ा दिया। जैसे-जैसे राजनीतिक कठिनाइयाँ बढ़ीं, राजनीतिक कैदियों को बंद करके और विपक्षी दलों को धमकाना या बंद करना ओलिंपियो का अधिकारवादी हो गया।  फ्रेडरिक पेडलर के अनुसार "उन्हें लगता है कि यदि वे राजनेताओं से दूर हो गए तो वे साधारण ईमानदार लोगों की अच्छी समझ पर भरोसा कर सकते हैं।" Togolese सैन्य संबंधसंपादित करें टोगो के पहले राष्ट्रपति सिल्वेनस ओलंपियो की 1963 में तख्तापलट के दौरान सैन्य अधिकारियों ने हत्या कर दी थी। गनेसिंगबे आइडेमा, जो 1967 से 2005 तक टोगो के राष्ट्रपति बने, 1963 तख्तापलट के प्रमुख नेताओं में से एक थे। ओलंपियो ने देश के विकास और आधुनिकीकरण के अपने प्रयासों में सेना को अनावश्यक माना था और सैन्य बल को छोटा रखा (केवल लगभग 250 सैनिक)।  हालाँकि, परिणामस्वरूप, उन सैनिकों को जो टोगो में अपने घर लौटने के लिए फ्रांसीसी सेना छोड़ चुके थे, उन्हें सीमित तोगोली सशस्त्र बलों में भर्ती करने की अनुमति नहीं दी गई थी। टोगो सेना के नेता इमैनुएल बोडजोल और क्लेबर दादजो ने फंडिंग बढ़ाने और देश में वापसी करने वाली पूर्व-फ्रांसीसी सेना के सैनिकों को अधिक संख्या में लाने के लिए बार-बार ओलंपियो प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे।  September  २४ सितंबर १ ९ ६२ को ओलंपियो ने एटिने आइडाएमा द्वारा व्यक्तिगत याचिका को खारिज कर दिया, तोगोली सेना में शामिल होने के लिए फ्रांसीसी सेना में हवलदार।  १ January  जनवरी १ ९ ६३ को, दादेज़ो ने फिर से पूर्व-फ्रांसीसी सैनिकों को भर्ती करने के लिए एक अनुरोध प्रस्तुत किया  and  और ओलंपियो ने कथित तौर पर अनुरोध स्वीकार किया। तख्तापलटसंपादित करें इमैनुएल बोडजोल और Eytienne Eyadéma के नेतृत्व में सेना ने मुलाकात की और ओलंपियो को कार्यालय से हटाने के लिए सहमति व्यक्त की। 13 जनवरी 1963 की सुबह तड़के तख्तापलट की शुरुआत लोमे की राजधानी में शूटिंग के दौरान हुई थी, क्योंकि सेना ने ओलंपियो और उनके मंत्रिमंडल को गिरफ्तार करने का प्रयास किया था। सुबह होने से ठीक पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका के दूतावास के बाहर शॉट्स सुने गए, जो ओलंपियो के निवास के करीब था। भोर के प्रकाश के साथ, अमेरिकी राजदूत लियोन बी। पोउलदा द्वारा ओलंपियो के मृत शरीर को दूतावास के सामने गेट से तीन फीट की दूरी पर पाया गया।  यह दावा किया गया था कि जब सैनिकों ने लोमे की गलियों में उसे गिरफ्तार करने का प्रयास किया, तो उसने विरोध किया और उसे गोली मार दी गई। इडाडेमा ने बाद में दावा किया कि वह वह था जिसने ओलंपियो को मारने वाले ट्रिगर को खींचा था, लेकिन यह स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं है।  उनका पार्थिव शरीर दूतावास के अंदर ले जाया गया और बाद में उनके परिवार द्वारा उठाया गया। तख्तापलट के दौरान, उनके मंत्रिमंडल में से अधिकांश को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन आंतरिक मंत्री और सूचना मंत्री दाहोमी गणराज्य में भागने में सक्षम थे और स्वास्थ्य मंत्री, जर्सन किप्रोच्रा, जो ग्रुनिट्ज़की की पार्टी के सदस्य थे, को गिरफ्तार नहीं किया गया था। एक रेडियो प्रसारण में सैन्य नेताओं द्वारा तख्तापलट के लिए दिए गए कारण आर्थिक समस्याएं और असफल अर्थव्यवस्था थे। हालांकि, विश्लेषकों का अक्सर कहना है कि तख्तापलट की मुख्य जड़ें असंतुष्ट पूर्व फ्रांसीसी सैनिकों में थीं, जो रोजगार हासिल करने में असमर्थ थे क्योंकि ओलंपियो ने सेना को छोटा रखा था। सैन्य नेता जल्दी से निर्वासित राजनीतिक नेताओं निकोलस ग्रुनित्ज़की और एंटोनी मीटची को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के रूप में एक नई सरकार का मुखिया बनाने के लिए पहुँचे।  दोनों देश लौट आए और नेतृत्व की स्थिति लेने के लिए सहमत हुए।  नई सरकार की स्थापना के बाद ओलंपियो के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री, जिन्हें जेल ले जाया गया था, को रिहा कर दिया गया। हालांकि, यह बताया गया कि थियोफाइल मैली के नेतृत्व में इन मंत्रियों ने 10 अप्रैल 1963 को ओलंपियो की पार्टी द्वारा शासन स्थापित करने का प्रयास किया और परिणामस्वरूप उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया। मई 1963 में चुनाव आयोजित किए गए थे और एकमात्र उम्मीदवार निकोलस ग्रुनित्ज़की और एंटोनी मीटची थे जिन्हें क्रमशः देश के राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था।  अप्रैल में तख्तापलट के प्रयास में गिरफ्तार किए गए मंत्रियों को चुनाव के बाद रिहा कर दिया गया। अमेरिकी राजदूत लियोन बी। पौलडा द्वारासंपादितहत्या अमेरिकी राजदूत, लियोन बी। पौलदा, ने ओलंपियो की हत्या के निम्नलिखित विवरण प्रदान किए: दीना ओलंपियोएडिटद्वारा हत्या का हिसाब हमले के ठीक बाद दाहोमी गणराज्य में जाने के बाद, सिल्वनस ओलंपियो (जिसे वह सिल्वान कहते हैं) की विधवा दीना ओलंपियो ने उनकी हत्या का हिसाब दिया: Oftienne Eyadémaएडिटका खाता तख्तापलट करने वाले नेताओं में से एक, एटिने आइडेमा ने हत्या का अपना खाता यह दावा करते हुए प्रदान किया कि उसने स्वयं ट्रिगर खींच लिया था: इसके बादसंपादित करें अफ्रीका के नव स्वतंत्र फ्रांसीसी और ब्रिटिश देशों में पहले सैन्य तख्तापलट के रूप में, इस घटना का पूरे अफ्रीका और दुनिया भर में बड़ा प्रभाव था।  कई अफ्रीकी देशों ने हमले की निंदा की और तख्तापलट के महीनों बाद पूरे हुए अफ्रीकी एकता संगठन (OAU) के गठन में एक महत्वपूर्ण सबक बन गया। OAU के चार्टर का दावा है "राजनीतिक हत्याओं के सभी रूपों में, साथ ही पड़ोसी राज्यों या किसी अन्य राज्य की ओर से विध्वंसक गतिविधियां" अनारक्षित निंदा। टोगोएडिट सैन्य अधिकारियों द्वारा आधिकारिक पूछताछ में दावा किया गया कि ओलंपियो ने अधिकारियों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया था; हालाँकि, उसकी पत्नी ने दावा किया कि उसकी एकमात्र बंदूक घर के अंदर थी जब वह मारा गया था और उसने शांतिपूर्वक सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।  हत्या की स्वतंत्र जांच के लिए कई बार फोन किया गया, लेकिन टोगो में ग्रुनिट्स्की की सेना और सरकार द्वारा इन्हें नाकाम कर दिया गया। उनके बेटे ने हत्या के एक साल बाद संयुक्त राष्ट्र की जाँच कराने का प्रयास किया लेकिन यह प्रयास बड़े पैमाने पर कहीं नहीं हुआ। मई 1963 में पालिमे शहर में चुनावों के बाद आने वाले सबसे बड़े विरोध के साथ सेना की हिंसा और प्रतिरोध बहुत सीमित था।  quickly  मई १ ९ ६३ के चुनावों में और जनवरी १ ९ ६६ तक १२०० लोगों को मिलिट्री सहायता के साथ मिलिट्री ने अपना आकार बहुत हद तक बढ़ा दिया। जनवरी १200६६ तक  १४ अप्रैल १ ९ ६ quickly को टोगो में सैन्य शक्ति और बढ़ गई। कूप डीएट जहां Étienne Eyadéma ने निकोलस ग्रुनित्ज़की की सरकार को हटा दिया और 2005 तक देश पर शासन किया। Ewe के लोगों ने बड़े पैमाने पर Eyadéma द्वारा प्रदान की जाने वाली आधिकारिक कहानी पर संदेह किया और बड़े पैमाने पर अलग-अलग जातीय समूहों से होने के कारण ग्रुनित्स्की (जिनके पास पोलिश पिता और एक अताकपामीमां थी) और एंटोनी मीटची (जो टोगो के उत्तर में था) के साथ सत्ता के पदों से बाहर रखा गया था। ईवे लोगों ने 1967 में सरकार का बड़े पैमाने पर विरोध किया और ग्रुनित्ज़की पर आइडेमा के तख्तापलट के लिए दरवाजा खोल दिया। घाना प्रतिक्रियासंपादित करें देश के बीच खराब संबंधों के कारण, नक्रमा और घाना में तख्तापलट और हत्या में शामिल होने का संदेह था। नाइजीरियाई विदेश मंत्री जजा वाचुक ने तख्तापलट के तुरंत बाद सुझाव दिया कि यह आयोजन "इंजीनियर, संगठित और किसी के द्वारा वित्तपोषित" था।  वाचुकु ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि घान की सेना ने टोगो को संकट में डाला तो नाइजीरिया हस्तक्षेप करेगा।  अन्य सरकारों और प्रेस ने इसी तरह आश्चर्य किया कि क्या घाना ने तख्तापलट का सक्रिय समर्थन किया था। घाना ने तोगो में किसी भी संलिप्तता या एंटोनी मीटची के समर्थन में शामिल होने से इनकार करते हुए स्थिति पर प्रतिक्रिया दी। संयुक्त राज्य में घन राजदूत ने कहा: "घनान सरकार मतभेदों को सुलझाने में हत्या में विश्वास नहीं करती है। यह माना जाता है कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना विशुद्ध रूप से एक आंतरिक मामला था। घाना की सरकार संयुक्त राज्य के एक वर्ग के प्रयासों से गहरा संबंध रखती है। घाना को टोगो में हालिया दुर्भाग्यपूर्ण घटना से जोड़ने के लिए दबाएं। ” संयुक्त राज्य सरकार ने बयान दिया कि तख्तापलट के प्रयास में घानन की भागीदारी का कोई स्पष्ट सबूत नहीं था। नेकरामाह ने दाहोमी गणराज्य से एक प्रतिनिधिमंडल का वादा किया कि वह तख्तापलट के बाद के संकट में हस्तक्षेप नहीं करेगा। संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिक्रियासंपादित करें इस तथ्य के तुरंत बाद, व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया था कि "संयुक्त राज्य सरकार टोगो के राष्ट्रपति ओलंपियो की हत्या की खबर से बहुत हैरान है। राष्ट्रपति ओलंपियो अफ्रीका के सबसे प्रतिष्ठित नेताओं में से एक थे और हाल ही में यहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा। टोगो में स्थिति स्पष्ट नहीं है और हम इसे करीब से देख रहे हैं। "  एक दिन बाद, राष्ट्रपति कैनेडी के प्रेस सचिव ने व्यक्त किया कि राष्ट्रपति केनेडी ने महसूस किया कि यह "अफ्रीका में स्थिर सरकार की प्रगति के लिए एक झटका था" और न केवल अपने देश के लिए बल्कि उन सभी के लिए एक नुकसान था जो उन्हें यहां जानते थे संयुक्त राज्य।" अफ्रीका से प्रतिक्रियाएंसंपादित करें घाना और सेनेगल ने सरकार की स्थापना के तुरंत बाद ही पहचान कर ली और डाहोमी गणराज्य ने उन्हें वास्तविकसरकार के रूप में मान्यता दी। गिनी, लाइबेरिया, आइवरी कोस्ट, और तांगानिका सभी ने तख्तापलट और हत्या की निंदा की। लाइबेरिया के राष्ट्रपति विलियम टूबमैन ने अन्य अफ्रीकी नेताओं से संपर्क किया, जो तख्तापलट के बाद सेना द्वारा स्थापित किसी भी सरकार की मान्यता का सामूहिक अभाव चाहते थे।  तंजानिका की सरकार (वर्तमान तंजानिया) ने संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाही को इस कथन के साथ कहा कि "राष्ट्रपति ओलंपियो की नृशंस हत्या के बाद, एक उत्तराधिकारी सरकार की मान्यता की समस्या उत्पन्न हुई है। हम पहले से संतुष्ट नहीं होने का आग्रह करते हैं। सरकार ने ओलंपियो की हत्या में भाग नहीं लिया या दूसरा यह कि लोकप्रिय निर्वाचित सरकार है। ” नाइजीरिया ने 24–26 जनवरी 1963 को अफ्रीकी और मालागासी संघ और कुछ अन्य इच्छुक राज्यों के पंद्रह प्रमुखों की एक बैठक बुलाई। नेताओं को लेने की स्थिति में विभाजित किया गया था और इसलिए उन्होंने अंतरिम टोगो सरकार को मुकदमा चलाने के लिए बुलाया। जिम्मेदार सैन्य अधिकारियों को निष्पादित करें।  हालांकि, गिनी और अन्य लोग यह समझौता करने में सक्षम थे कि टोगो की सरकार को अदीस अबाबा सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया जाएगा, जिसने मई १ ९ ६३ में अफ्रीकी एकता संगठन कागठन किया था। नाइजिरिया के संगठन
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मिहिर दास
मिहिर कुमार दास (17 फरवरी 1959 - 11 जनवरी 2022) एक भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने ओलीवुड फिल्म उद्योग की उड़िया भाषा की फिल्मों में काम किया था। उन्हें कई पुरस्कार मिले थे जिसमें विशेष रूप से 1998 में फिल्म लक्ष्मी प्रतिमा और 2007 में ओडिशा राज्य सरकार द्वारा फिल्म मु तते लव के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का पुरस्कार शामिल है। प्रारंभिक जीवन मिहिर कुमार दास का जन्म 11 फरवरी 1959 को मयूरभंज में हुआ था। उनका विवाह गायक और फिल्म कलाकार संगीता दास से हुआ था, जिनका 2010 में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वह लोकप्रिय गायिका चित्त जेना की बेटी थीं। मिहिर दास और संगीता दास के दो बेटे हैं। उन्होंने उड़िया फिल्म उद्योग में एक कला फिल्म स्कूल मास्टर और फिर 1979 में व्यावसायिक (गैर-कला) फिल्म मथुरा बिजय से अभिनय शुरुआत की थीं। उन्होंने पुआ मोरा भोला सांकरा में अपने प्रदर्शन के लिए व्यापक प्रशंसा और मान्यता प्राप्त की। उन्हें 1998 में फिल्म लक्ष्मी प्रोतिमा और 2005 में फिल्म फेरिया मो सुना भौनी में उनके प्रदर्शन के लिए राज्य सरकार से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार और 2007 में मु तते लव करुची के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का पुरस्कार मिला। मिहिर दस का दिसंबर 2021 को कटक में गुर्दे की समस्या के लिए डायलिसिस के दौरान दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 11 जनवरी 2022 को 62 साल की उम्र में कटक के उसी अस्पताल में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ साक्षात्कार: मिहिर दास
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प्रबन्धचिन्तामणि
प्रबन्धचिन्तामणि संस्कृत में रचित प्रबन्धों (अर्ध-ऐतिहासिक जीवनी आख्यानों) का एक संग्रह ग्रन्थ है। इसे 1304 ई०वर्तमान गुजरात के वाघेला साम्राज्य के जैन विद्वान मेरुतुंग ने इसका संकलन किया था। अन्तर्वस्तु प्रबन्धचिन्तामणी को पाँच प्रकाशों (भागों) में विभाजित किया गया है: प्रथम प्रकाश विक्रमार्क शतवावाहन मुंज मूलराज द्वितीय प्रकाश भोज और भीम तृतीय प्रकाश जयसिंह सिद्धराज चतुर्थ प्रकाश कुमारपाल वीरधवल वास्तुपाल और तेजपाल पंचम प्रकाश लक्ष्मणसेन जयचन्द्र वराहमिहिर भर्तृहरि वैद्य वाग्भट्ट ऐतिहासिक विश्वसनीयता इतिहास ग्रन्थ के रूप में, प्रबंध-चिंतामणि समकालीन ऐतिहासिक साहित्य, जैसे कि मुस्लिम इतिहास, से कमतर है। मेरुतुंग का कहना है कि उन्होंने यह ग्रन्थ "अक्सर सुनी जाने वाली प्राचीन कहानियों को प्रतिस्थापित करने के लिए लिखी थी जो अब बुद्धिमानों को प्रसन्न नहीं करतीं"। उनकी किताब में बड़ी संख्या में रोचक कथाएँ सम्मिलित हैं, लेकिन इनमें से कई कथाएँ काल्पनिक हैं। मेरुतुंग ने 1304 ई. (1361 विक्रम संवत् ) मे इस ग्रन्थ को पूरा कर दिया था। ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करते समय मेरुतुंग ने अपने समसामयिक काल के 'इतिहास' को अधिक महत्व नहीं दिया है, जिसका उन्हें प्रत्यक्ष ज्ञान रहा होगा। उनके ग्रन्थ में 940 ई० से 1250 ई० तक के ऐतिहासिक आख्यान हैं, जिसके लिए उन्हें मौखिक परंपरा और पहले के ग्रंथों पर निर्भर रहना पड़ा। इस कारण उनका यह ग्रन्थ अविश्वसनीय उपाख्यानों का संग्रह बनकर रह गया है। गुजरात की कई समकालीन या लगभग-समकालीन कृतियों में ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करते समय किसी तारीख का उल्लेख नहीं किया गया है। मेरुतुंग ने शायद महसूस किया कि इतिहास लिखने में यथार्थ तिथियों (सटीक तारीखों) का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है, और उन्होंने अपने प्रबंध-चिंतामणि में कई तारीखें प्रदान की हैं। हालाँकि, इनमें से अधिकांश तारीखें कुछ महीनों या एक साल तक गलत हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले के अभिलेखों से मेरुतुंग को ऐतिहासिक घटनाओं के वर्षों का ज्ञान था, और उसने अपने ग्रन्थ को और अधिक विश्वसनीय बनाने के लिए सटीक तारीखें गढ़ीं और लिख दीं। इस ग्रन्थ में कालभ्रमवाद (एनाक्रोमिज्म) के कुछ उदाहरण भी मिलते हैं; उदाहरण के लिए, वराहमिहिर (छठी शताब्दी ई.पू.) को नंद राजा (चौथी शताब्दी ई.पू.) का समकालीन बताया गया है। चूँकि प्रबन्धचिन्तामणि की रचना गुजरात में हुआ, इसलिए यह ग्रन्थ पड़ोसी राज्य मालवा के प्रतिद्वंद्वी शासकों की तुलना में गुजरात के शासकों को अधिक सकारात्मक रूप से चित्रित करता है। महत्वपूर्ण संस्करण और अनुवाद 1888 में शास्त्री रामचन्द्र दीनानाथ ने प्रबंध-चिंतामणि का संपादन और प्रकाशन किया। 1901 में, जॉर्ज बुहलर के सुझाव पर चार्ल्स हेनरी टॉनी ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। दुर्गाशंकर शास्त्री ने दीनानाथ के संस्करण को संशोधित किया, और इसे 1932 में प्रकाशित किया। मुनि जिनविजय ने 1933 में एक और संस्करण प्रकाशित किया, और इसका हिंदी भाषा में अनुवाद भी किया। बाहरी कड़ियाँ प्रबन्धचिन्तामणि भाग-१ (मुनि जिनविजय कृत हिन्दी व्याख्या) प्रबन्धचिन्तामणि का ऐतिहासिक विवेचन (शोधगंगा) संदर्भ संस्कृत साहित्य
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जॉन प्लेयर त्रिकोणीय टूर्नामेंट 1986
1986 का जॉन प्लेयर त्रिकोणीय टूर्नामेंट एक क्रिकेट टूर्नामेंट था जो 5 से 7 अप्रैल 1986 के बीच श्रीलंका में आयोजित किया गया था। टूर्नामेंट में तीन टीमों ने हिस्सा लिया: पाकिस्तान, न्यूजीलैंड और मेजबान श्रीलंका। टूर्नामेंट 1986 के एशिया कप के साथ समवर्ती रूप से चला और एशिया कप से भारत की वापसी की भरपाई के लिए आंशिक रूप से व्यवस्थित किया गया था। जॉन प्लेयर त्रिकोणीय टूर्नामेंट एक राउंड-रॉबिन टूर्नामेंट था जहां प्रत्येक टीम ने एक बार एक दूसरे से खेला। तीनों पक्षों में से प्रत्येक ने एक-एक मैच जीता और पाकिस्तान ने रन रेट पर टूर्नामेंट जीता। मैचेस टेबल सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A4%BF%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF
केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय
केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना संसद के अधिनियम केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम 1992 (1992 का सं.40) के द्वारा हुई है। अधिनियम भारत सरकार ने कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा विभाग द्वारा आवश्यक अधिसूचना जारी करके 26 जनवरी 1993 से लागू किया गया है। विश्वविद्यालय में प्रथम कुलपति के कार्यालय ग्रहण करने के बाद 13 सितम्बर 1993 से आरंभ हो गया इस विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार छ: पूर्वोत्तर राज्यों में है अर्थात् अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम और त्रिपूरा है तथा इसका मुख्यालय मणिपुर में इम्फाल में है। मुख्य कैम्पस विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार में आनेवालें छ: राज्यों में निम्नलिखित सात प्रमुख परिसर स्थापित करने के लिए प्राधिकृत है: कृषि कालेज, इरोसेमवा, इम्फाल, मणिपुर पशु चिकित्सा विज्ञान और पशु पालन कालेज, सेलीशीह, आइज़ोल, मिजोरम मत्यिसिकी कालेज लेम्बुचरा, अगरतला, त्रिपुरा बागवानी तथा वानिकी कालेज, पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश गृह विज्ञान कालेज, तुरा, मेधालय कृषि इंजिनियरिंग तथा पश्च कराई प्रौघोगिकी कालेज, सिक्किम स्नातकोत्तर अघ्ययन कालेज, बारापानी, मेधालय अब तक 5पॉँच कालेज अर्थात् कृषि कालेज इम्फाल, मणिपुर, पशु चिकित्सा विज्ञान तथा पशु पालन कालेज, सेलिसीह, मिजोरम, मत्यिसिकी कालेज, लेम्बुचेरा, त्रिपूरा, बागवानी तथा वानिकी कालेज, पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश और गृह विज्ञान कालेज, तुरा, मेघालय ने कार्य प्रारम्भ कर दिया है। दो अतिरिक्त कालेजों अर्थात् इंजिनियरिंग तथा पोस्ट हारवेस्ट प्रौघोगिकी कालेज सिक्किम और स्नातकोत्तर, अध्ययन कालेज, मेघालय अगले दो वित्तिय वर्षों में कार्य करने लगेगें। कृषि कालेज इम्फाल, मणिपुर यह कालेज स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तरों पर क्रमश: बी एस सी (कृषि) तथा एम एस सी (कृषि) में डिग्री प्रदान करने हेतु अनुदेश देता है विश्वविद्यालय की स्थापना से अबतक में बी एस सी (कृषि) में 298 विद्यार्थियों ने, तथा एम एस सी (कृषि) में 101 विद्यार्थियों ने सफलतापूर्वक अपने डिग्री कोर्स पूरे किए। वर्ष 2004 के दौरान इस कालेज के 12 विद्यार्थियों ने अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के द्वारा संचालित अखिल भारतीय परीक्षा के माध्यम से जे आर एफ/ एम एस सी (कृषि) में प्रवेश हेतु सफलता प्राप्त की। इस समय कृषि कालेज में 28 (कृषि) विघार्थियों सहित 191 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर हैं। पशु चिकित्सा विज्ञान और पशु पालन कालेज, सेलीसीह मिजोरम यह कालेज 5 वर्षीय बी वी एस सी तथा पशु पालन डिग्री कार्यक्रम चलाता है। 2002-3 प्रथम बैच के 8 विद्यार्थियों ने यह पाठ्यक्रम पास किया। 2003-04 दूसरे बैच में शैक्षणिक सत्र में दस विद्यार्थी पास हुए। इन दस विद्यार्थियों में सें 8 (आठ) विघार्थियों ने भारतीय आधार पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित जे आर एफ/ स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा पास की। मत्यिसिकी कालेज लेम्बुचर्रा, त्रिपूरा कालेज 4 वर्षीय बी एफ एस सी डिग्री कार्यक्रम चलाता है। 2001-02 में पहले बैच में 5 विघार्थियों ने की बी एफ एस सी डिग्री सफलतापूर्वक प्राप्त की वर्ष 2002-3 में 10 विद्यार्थी सफल हुए। वर्ष 2003-4 में तीसरे बैच में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा ली गई जे आर एफ स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा पास की। बागवानी तथा वानिकी कालेज पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश इस समय कालेज 4 वर्षीय बी एस सी (बागवानी) डिग्री कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। 1 वर्ष 2003-04 शैक्षणिक सत्र के पहले बैच 16 विद्यार्थी पास हुए। इसमें से 13(तेरह) विद्यार्थियों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर ली गई जे आर एफ/ स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा पास की। गृह विज्ञान कालेज, तुरा, पश्चिम गारो हिल्ज, मेघालय कालेज 4 वर्षीय बी एस सी (गृह विज्ञान) डिग्री कार्यक्रम चलाता है, इसके शैक्षणिक सत्र 2005-06 में 10 विद्यार्थियों के नामाकंन से शुरू कर दिया। कार्य प्रणाली कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा विभाग देश में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा के समन्वय और संवर्धन का कार्य करता है। डेयर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आई सी ए आर) के लिए आवश्यक सरकारी संयोजन प्रदान करने का कार्य करता है। इस प्रमुख अनुसंधान संगठन में वैज्ञानिक क्षमता 6000 से अधिक है और इसका देशभर में 47 संस्थानों का देशव्यापी नेटवर्क है जिसमें समस्त 4 समकक्ष विश्वविद्यालय, 5 राष्ट्रीय कार्यालय, 31 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र, 12 परियोजना निदेशालय, 89 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना और 38 कृषि विश्वविद्यालय शामिल हैं। कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा विभाग भारत में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए नोडल अभिकरण है। विभाग विदेशी सरकारों, संयुक्त राष्ट्र, सी जी आई ए आर तथा अन्य बहुपक्षीय अभिकरणों से कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के लिए सम्पर्क स्थापित करता है। कृषि अनुसंधान व शिक्षा विभाग विभिन्न भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों / भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों में विदेशी विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाने के लिए समन्वय का कार्य भी करता है। प्रमुख कार्य कृषि अनुसंधान व शिक्षा विभाग के मुख्य कार्य निम्न है: कृषि अनुसंधान और शिक्षा (जिसमें बागवानी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंध, कृषि इन्जिनियरिंग, कृषि विस्तार, पशु विज्ञान, आर्थिक सांख्यिकी व विपणन तथा मात्स्यिकी शामिल है) के सभी पहलुओं को देखना जिसमें केन्द्रीय तथा राज्य अभिकरणों के बीच समन्वय करना भी शामिल है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबंधित सभी मामलों को देखना। कृषि, बागवानी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंध, कृषि इन्जिनियरिंग, कृषि विस्तार, पशु विज्ञान, आर्थिक सांख्यिकी तथा मार्केटिंग और मात्स्यिकी में नई प्रौद्योगिकी के विकास से संबंधित सभी मामलों को देखना जिसमें पादप व पशुओं के परिचय और अन्वेषण तथा मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण तथा नियोजन जैसे कार्य भी सम्मिलित हैं। कृषि अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग देना जिसमें विदेश तथा अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान व शिक्षा संस्थाओं तथा संगठनों के साथ संबंध रखना और कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों संघों और अन्य निकायों में भाग लेना और ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों आदि में लिए गए निर्णयों पर अनुवर्ती कारवाई करना शामिल है। कृषिवानिकी, पशुपालन, डेरी, मत्स्यिकी, कृषि सांख्यिकी, आर्थिक तथा विपणन सहित कृषि में ऐसे आधारभूत, व्यावहारिक और परिचालनात्मक अनुसंधान और उच्च शिक्षा जिसमें ऐसे अनुसंधान तथा उच्च शिक्षा का समन्वय करना भी शामिल है। सातवीं सूची अनुसार निम्नलिखित विषय भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-1 में शामिल हैं: कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहायता करना, जिसमे विदेशी और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा संस्थानों और संगठनों के साथ संबंध रखना और कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और अन्य निकायों में भाग लेना और ऐसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों आदि में लिए गये निर्णयो पर अनुवर्ती कार्यवाही शामिल है। कृषि वानिकी पशु पालन डेरी और मत्स्यिकी के साथ-2 कृषि सांख्यकी अर्थशास्त्र और विपणन सहित कृषि में मौलिक व्यावहारिक और परिचालानत्मक अनुसंधान और उच्चतर शिक्षा जिसमे ऐसे अनुसंधान और उच्चतर शिक्षा का समन्वय करना भी शामिल है। उच्चतर शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक के लिए तकनीकी संस्थाओं में मानक निर्धारित करना और समन्वय करना क्योंकि ये अब तक पशु पालन, डेयरी उद्योग और मत्स्यिकी सहित खाद्द व कृषि से संबंधित रहा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, साथ ही चाय, काफी तथा रबर से संबंधित अन्य जिंसो के गन्ना अनुसंधान कार्यक्रमों के लिए वित्तीय सहायता हेतु उपकर गन्ना अनुसंधान अनुसूची का भाग-2 संध शासित क्षेत्र के लिए उपर्युक्त भाग 1 में दिये गये विषय, जो इन संघ शासित क्षेत्र में आते हैं और इसके अतिरिक्त निम्नलिखित विषय भारत के संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची 2 में शामिल है। कृषि शिक्षा और अनुसंधान अनुसूची का भाग-3 सामान्य और आनुषंगिक पादप पशु और मत्स्य परिचय और अन्वेषण अनुसंधान, प्रशिक्षण, सह संबंध, वर्गीकरण मृदा मानचित्र और व्याख्या से संबंधित अखिल भारतीय मृदा और भू उपयोग सर्वेक्षण। कृषि अनुसंधान और शिक्षा योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए राज्य सरकारों और कृषि विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता। राष्ट्रीय प्रदर्शन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और उनके संघटक अनुसंधान संस्थान, राष्टीय अनुसंधान केन्द्र, परियोजना निदेशालय ब्यूरो और भारतीय समन्वित परियोजना। बाहरी सूत्र केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय का जालस्थल (अंग्रेजी में) शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण विभाग, की वेबसाइट पर केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के बारे में हिन्दी में पशु पालन कालेज, सेलिसीह, मिजोरम की आधिकारिक वेबसाइट सामुदायिक सूचना केन्द्र, मणिपुर की साइट पर विश्वविद्यालय, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय कृषि
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डीएचसीपी
डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल (डीएचसीपी) उपकरणों (डीएचसीपी क्लाइंट) द्वारा प्रयुक्त होने वाला कंप्यूटर नेटवर्किंग प्रोटोकॉल है जो गंतव्य होस्ट पर आई पी एड्रेस को डायनेमिक ढंग से वितरित करता है। अक्टूबर 1993 में RFC 1531 ने Bootstrap प्रोटोकॉल (BOOTP) के पश्चात् डीएचसीपी को एक मानक ट्रैक प्रोटोकॉल के रूप में परिभाषित किया है। 1997 में जारी किया गया अगला अपडेट RFC 2131, इंटरनेट प्रोटोकॉल संस्करण 4 (IPv4) नेटवर्क के लिए डीएचसीपी की वर्तमान परिभाषा है। डीएचसीपी के IPv6 (डीएचसीपीv6) के लिए एक्सटेंशन RFC 3315 में प्रकाशित किए गए थे। DHCP का प्रयोग Remote Server द्वारा होस्ट के Network आकर को कंट्रोल करने के लिए किया जाता है। तकनीकी अवलोकन डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल एक या एक से अधिक दोष सहिष्णु-डीएचसीपी सर्वर के नेटवर्क उपकरणों के लिए नेटवर्क-पैरामीटर को स्वचालित ढंग से निर्धारित करता है। यहां तक कि छोटे नेटवर्क में, डीएचसीपी उपयोगी है क्योंकि यह नेटवर्क में नई मशीनों को जोड़ना आसान बना सकता है। जब एक डीएचसीपी-कॉन्फ़िगर क्लाइंट (एक कंप्यूटर या कोई अन्य नेटवर्क-युक्त उपकरण) एक नेटवर्क से जुड़ता है, डीएचसीपी क्लाइंट DHCP सर्वर से आवश्यक जानकारी के लिए एक प्रसारण क्वेरी भेजता है। डीएचसीपी सर्वर IP एड्रेस और क्लाइंट कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर की जानकारियों का एक समूह एकत्रित करता है जैसे कि डिफ़ॉल्ट गेटवे, डोमेन नाम, DNS सर्वर अन्य सर्वर जैसे टाइम सर्वर, और दूसरे. एक वैध अनुरोध प्राप्त होने पर, सर्वर कंप्यूटर को एक आईपी एड्रेस, एक लीज़ (जितने समय तक आबंटन मान्य है) और अन्य आईपी कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर जैसे कि सबनेट मास्क और डिफ़ॉल्ट गेटवे निर्दिष्ट करता है। आमतौर पर बूटिंग के तुरंत बाद क्वेरी की शुरुआत हो जाती है और यह क्लाइंट द्वारा अन्य होस्ट के साथ आईपी आधारित संचार शुरू होने से पहले पूरी होनी चाहिए। कार्यान्वयन के आधार पर, डीएचसीपी सर्वर तीन तरीकों से आईपी आबंटन कर सकते हैं: डायनेमिक आबंटन: एक नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर डीएचसीपी को आईपी एड्रेस की एक श्रंखला प्रदान करता है और लैन पर प्रत्येक क्लाइंट कंप्यूटर का अपना आईपी एड्रेस होता है जो इस ढंग से कॉन्फ़िगर होता है जो नेटवर्क के शुरू होने पर डीएचसीपी सर्वर से एक आईपी एड्रेस का अनुरोध करता है। अनुरोध और अनुदान प्रक्रिया एक नियंत्रित की जा सकने वाली समय अवधि के साथ एक लीज़ की अवधारणा का प्रयोग करती है, ताकि डीएचसीपी सर्वर उन आईपी एड्रेस को पुनः प्राप्त कर सके जो नये सिरे से नहीं बने हैं (आईपी एड्रेस का डायनेमिक पुनः-प्रयोग)। स्वचालित आबंटन: डीएचसीपी सर्वर स्थायी रूप से एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा निर्धारित सीमा से अनुरोध करने वाले क्लाइंट को एक मुफ्त आईपी एड्रेस प्रदान करता है। यह डायनेमिक आवंटन की तरह है, लेकिन डीएचसीपी सर्वर आबंटित किये गये पिछले आईपी एड्रेस की एक टेबल रखता है, ताकि यह क्लाइंट को प्राथमिकता के आधार पर वही आईपी एड्रेस आबंटित कर सके जो क्लाइंट के पास पिछली बार था। स्टेटिक आबंटन: डीएचसीपी सर्वर एक मैक एड्रेस/आईपी एड्रेस पेयर से युक्त एक तालिका के आधार पर आईपी एड्रेस आबंटित करता है, जो कि मैन्युली भरे जाते हैं (शायद एक नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा)। केवल इस तालिका में सूचीबद्ध मैक एड्रेस से क्लाइंट को अनुरोध करने पर एक आईपी एड्रेस आवंटित होगा। इस सुविधा (जो सभी रूटरों द्वारा समर्थित नहीं है) को अक्सर स्टेटिक डीएचसीपी असाइनमेंट (DD-WRT द्वारा), फिक्स्ड एड्रेस (डीएचसीपीd डोक्युमेंटेशन द्वारा) DHCP आरक्षण या स्टेटिक DHCP (सिस्को/लिंकसिस द्वारा), और आईपी आरक्षण या मैक / IP बाइंडिंग (विभिन्न अन्य रूटर निर्माताओं द्वारा) कहा जाता है। तकनीकी विवरण डीएचसीपी IANA द्वारा निर्दिष्ट उन्हीं दो पोर्ट का प्रयोग BOOTP के लिए करता है : सर्वर साइड के लिए 67/udp और क्लाइंट साइड के लिए 68/udp. डीएचसीपी आपरेशन के चार बुनियादी चरण हैं : आईपी खोज, आईपी लीज़ प्रस्ताव, आईपी अनुरोध और आईपी लीज़ स्वीकृति. डीएचसीपी खोज क्लाइंट फिज़िकल सबनेट पर उपलब्ध डीएचसीपी सर्वर को खोजने के लिए संदेश प्रसारित करता है। नेटवर्क एडमिनिस्ट्रेटर एक स्थानीय रूटर को एक अलग सबनेट से डीएचसीपी के पैकेट को एक DHCP सर्वर पर आगे भेजने के लिए कॉन्फ़िगर कर सकते हैं। क्लाइंट द्वारा की गयी इस क्रिया के फलस्वरूप 255.255.255.255 या विशिष्ट सबनेट प्रसारण एड्रेस के साथ एक यूज़र डाटाग्राम प्रोटोकॉल (UDP) पैकेट बनता है। एक डीएचसीपी क्लाइंट अपने पिछले ज्ञात आईपी पते (नीचे दिए गये उदाहरण में, 192.168.1.100) के लिए भी अनुरोध कर सकता है। यदि क्लाइंट उस नेटवर्क से जुड़ा रहता है जिसके लिए यह आईपी वैध है, तो सर्वर अनुरोध स्वीकार कर सकता है। अन्यथा, यह निर्भर करता है कि सर्वर को अधिकृत रूप में सेट किया गया है या नहीं। एक आधिकारिक सर्वर अनुरोध को अस्वीकार कर देगा, जिससे क्लाइंट तुरंत एक नया आईपी एड्रेस पूछेगा. एक गैर आधिकारिक सर्वर अनुरोध को केवल अनदेखा कर देता है, जिससे क्लाइंट को एक नया अनुरोध भेजने और नया आईपी एड्रेस पूछने के लिए कार्यान्वयन पर निर्भर समय मिल जाता है। डीएचसीपी पेशकश जब एक डीएचसीपी सर्वर क्लाइंट से एक आईपी लीज़ का अनुरोध प्राप्त करता है, यह क्लाइंट के लिए एक IP एड्रेस सुरक्षित रखता है और क्लाइंट को एक डीएचसीपीOFFER संदेश भेज कर आईपी लीज़ की पेशकश करता है। इस संदेश में क्लाइंट का मैक एड्रेस, सर्वर द्वारा प्रस्तावित आईपी एड्रेस, सबनेट मास्क, लीज़ की अवधि और प्रस्ताव भेजने वाले सर्वर का आईपी एड्रेस होता है। सर्वर CHADDR (क्लाइंट हार्डवेयर एड्रेस) फील्ड में निर्दिष्ट क्लाइंट के हार्डवेयर एड्रेस के आधार पर कॉन्फ़िगरेशन निर्धारित करता है। यहाँ सर्वर 192.168.1.1, YIADDR फील्ड में में आईपी पता निर्दिष्ट (आपका आईपी एड्रेस) करता है। डीएचसीपी अनुरोध एक क्लाइंट कई सर्वरों से डीएचसीपी प्रस्ताव प्राप्त सकता है, लेकिन यह केवल एक डीएचसीपी प्रस्ताव स्वीकार करेगा और एक DHCP अनुरोध संदेश प्रसारित करेगा। अनुरोध में ट्रांज़ेक्शन आईडी फील्ड के आधार पर, सर्वरों को यह सूचित किया जाता है कि किसका प्रस्ताव क्लाइंट ने स्वीकार कर लिया है। जब अन्य डीएचसीपी सर्वर यह संदेश प्राप्त करते हैं, वे क्लाइंट को दिए गये किसी भी प्रस्ताव को वापिस ले सकते हैं और प्रस्तावित एड्रेस को उपलब्ध आईपी पूल में भेज सकते हैं। डीएचसीपी स्वीकृति जब डीएचसीपी सर्वर क्लाइंट से डीएचसीपीREQUEST संदेश प्राप्त करता है, कॉन्फ़िगरेशन प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में प्रवेश करती है। स्वीकृति चरण में क्लाइंट को एक डीएचसीपीACK पैकेट भेजा जाता है। इस पैकेट में लीज़ की अवधि और क्लाइंट द्वारा पूछी जा सकने वाली अन्य कॉन्फ़िगरेशन सम्बंधित जानकारी शामिल होती है। इस बिंदु पर, IP कॉन्फ़िगरेशन प्रक्रिया पूरी हो जाती है। प्रोटोकॉल डीएचसीपी क्लाइंट से सहमत मानकों के अनुरूप अपने नेटवर्क इंटरफेस को कॉन्फ़िगर करने की उम्मीद करता है। क्लाइंट द्वारा एक आईपी एड्रेस प्राप्त करने के बाद, डीएचसीपी सर्वरों द्वारा एड्रेस भण्डारण की ओवरलैपिंग के कारण उत्पन्न आईपी सम्बंधित भिडंत से बचने के लिए, क्लाइंट एड्रेस रेज़ोल्यूशन प्रोटोकॉल (ARP) का प्रयोग कर सकता है। डीएचसीपी जानकारी एक डीएचसीपी क्लाइंट सर्वर द्वारा दी गयी मूल डीएचसीपीOFFER जानकारी के अलावा और अधिक जानकारी के लिए अनुरोध कर सकता है। क्लाइंट किसी विशेष आवेदन के लिए डाटा पुनः भेजने का अनुरोध भी कर सकता है। उदाहरण के लिए, ब्राउज़र WPAD के द्वारा वेब प्रॉक्सी सेटिंग्स को प्राप्त करने के लिए डीएचसीपी इन्फोर्म का प्रयोग करते हैं। इस तरह के अनुरोधों से DHCP सर्वर अपने डेटाबेस में आईपी समाप्ति समय को रिफ्रेश नहीं करता है। डीएचसीपी को ज़ारी करना क्लाइंट डीएचसीपी सर्वर से DHCP सूचना जारी करने के लिए अनुरोध भेजता है और क्लाइंट अपना आईपी एड्रेस डीएक्टिवेट/निष्क्रिय कर देता है। चूंकि क्लाइंट उपकरण आम तौर पर यह नहीं जानते कि उपयोगकर्ता उन्हें नेटवर्क से कब हटा सकते हैं, प्रोटोकॉल डीएचसीपी रिलीज भेजने का समर्थन नहीं करता. क्लाइंट कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर एक डीएचसीपी सर्वर क्लाइंट के लिए वैकल्पिक कॉन्फ़िगरेशन पैरामीटर प्रदान कर सकते हैं। RFC 2132 इंटरनेट असाईन्ड नंबर ऑथोरिटी (IANA) - डीएचसीपी और BOOTP पैरामीटर द्वारा परिभाषित उपलब्ध DHCP विकल्पों का वर्णन करता है। एक डीएचसीपी क्लाइंट डीएचसीपी सर्वर के द्वारा उपलब्ध कराए गए पैरामीटरों को चुन सकता है, उनमे हेरफेर कर सकता है और उन्हें ओवरराईट कर सकता है। विकल्प वेंडर को पहचानने तथा एक डीएचसीपी क्लाइंट की कार्यक्षमता को जानने के लिए विकल्प मौजूद है। जानकारी विभिन्न लम्बाई की कैरेक्टर स्ट्रिंग या ओक्टेट्स के रूप में हो सकती है जिसका अर्थ डीएचसीपी क्लाइंट के वेंडर द्वारा निर्दिष्ट होता है। एक तरीका जिसका प्रयोग डीएचसीपी क्लाइंट, सर्वर से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए करते हैं, में एक विशेष प्रकार के हार्डवेयर या फर्मवेयर का प्रयोग अपने डीएचसीपी अनुरोध में वैल्यू सेट करने के लिए किया जाता है जिसे वेंडर क्लास आईडेन्टीफायर (VCI) (विकल्प 60) कहा जाता है। यह पद्धति डीएचसीपी सर्वर को दो प्रकार की क्लाइंट मशीनों में अंतर करने के लिए सक्षम बनाती है और उचित ढंग से दो प्रकार के मोडेम से अनुरोध को क्रियान्वित करती है। कुछ तरह के सेट-टॉप बॉक्स भी डीएचसीपी सर्वर को हार्डवेयर के प्रकार और उपकरण की कार्यक्षमता के बारे में सूचित करने के लिए VCI (विकल्प 60) को सेट करते हैं। इस विकल्प द्वारा सेट की गयी वैल्यू डीएचसीपी सर्वर को किसी भी अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता के लिए संकेत देती है जिसे क्लाइंट एक डीएचसीपी प्रतिक्रिया में चाहता है। डीएचसीपी रिले chavales de la india ayudarme ha hacer el examen unga unga सुरक्षा नेटवर्क सुरक्षा के एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनने से पहले ही बुनियादी डीएचसीपी प्रोटोकॉल एक मानक बन गया है: इसमें कोई सुरक्षा विशेषताएं शामिल नहीं हैं और इस पर दो प्रकार के संभावित हमले हो सकते हैं: अनाधिकृत डीएचसीपी सर्वर: चूंकि आप अपनी इच्छानुसार सर्वर निर्धारित नहीं कर सकते, एक अनाधिकृत सर्वर क्लाइंट अनुरोधों का जवाब दे सकता है जिससे अटैक करने वालों को क्लाइंट नेटवर्क कंफिगरेशन वैल्यू सम्बंधित जानकारियां मिल सकती हैं। उदाहरण के रूप में, एक हैकर डीएचसीपी प्रक्रिया को हाइजैक करके इस प्रकार कॉन्फ़िगर कर सकते हैं जिससे क्लाइंट एक दोषपूर्ण DNS सर्वर या रूटर का उपयोग करें। (DNS कैश पॉयज़निंग भी देखें)। अनाधिकृत डीएचसीपी क्लाइंट: एक वैध क्लाइंट का मुखौटा धारण कर के, एक अनाधिकृत क्लाइंट, नेटवर्क पर नेटवर्क कॉन्फ़िगरेशन और आईपी एड्रेस तक पहुँच बना सकता है, जिसकी उसे वास्तव में अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इसके अलावा, डीएचसीपी सर्वर पर IP एड्रेस के अनुरोधों की बाढ़ से, एक हमलावर के लिए सामान्य नेटवर्क गतिविधि में खलल डाल कर उपलब्ध आईपी एड्रेस के पूल निकास को कठिन बनाना संभव है। (ए डेनिअल ऑफ़ सर्विस अटैक). इन खतरों से निपटने के लिए RFC 3118 ("डीएचसीपी संदेशों के लिए प्रमाणीकरण") ने DHCP संदेशों में प्रमाणीकरण जानकारी शुरू की, जिसने क्लाइंट और सर्वर को अवैध स्रोतों से प्राप्त होने वाली जानकारी को अस्वीकार करने की इजाजत दी। हालांकि इस प्रोटोकॉल का समर्थन व्यापक है, क्लाइंट और सर्वरों की एक बड़ी संख्या अभी भी प्रमाणीकरण का पूरी तरह से समर्थन नहीं कर रही है, जिससे सर्वरों को उन क्लाइंटों का समर्थन करने के लिए मज़बूर होना पड़ रहा है जो इस सुविधा का समर्थन नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप, अन्य सुरक्षा उपाय (जैसे IPsec) आमतौर पर डीएचसीपी सर्वर में यह सुनिश्चित करने के लिए लागू किये जाते हैं कि केवल प्रमाणीकृत क्लाइंट और सर्वर की ही नेटवर्क तक पहुँच हो। एड्रेस DNS सर्वर से डायनेमिक रूप से जुड़े होने चाहियें, ताकि समस्या का निवारण एक संभावित अज्ञात एड्रेस के बजाय नाम द्वारा हो। प्रभावी डीएचसीपी-DNS लिंक के लिए मैक एड्रेस या स्थानीय नाम की आवश्यकता होती है जो उस DNS को भेजा जाता है जो फिजिकल होस्ट, आईपी एड्रेस और दूसरे पैरामीटर जैसे कि डिफ़ॉल्ट गेटवे, सबनेट मास्क और डीएचसीपी सर्वर से DNS सर्वर के आईपी एड्रेस की विशिष्ट पहचान करता है। डीएचसीपी सर्वर सुनिश्चित करता है कि सभी IP एड्रेस अलग हों, अर्थात् जब तक पहले क्लाइंट का असाइन्मेंट वैध है (इसकी लीज़ समाप्त नहीं हुई है) तब तक आईपी एड्रेस दूसरे क्लाइंट को नहीं सौंपा जाए. इस प्रकार आईपी एड्रेस पूल प्रबंधन एक सर्वर द्वारा किया जाता है ना कि एक एडमिनिस्ट्रेटर द्वारा. '''''' इन्हें भी देखें डीएचसीपी स्नूपिंग आईपी एड्रेस, विशेष रूप से स्टेटिक और डायनेमिक आईपी एड्रेस OMAPI - ISC Bind द्वारा प्रयुक्त API पेग डीएचसीपी RFC 2322 प्रीबूट एग्जीक्यूशन वातावरण (PXE) रिवर्स एड्रेस रिजोल्यूशन प्रोटोकॉल (RARP) रोग डीएचसीपी uडीएचसीपीc - एम्बेडेड प्रणाली के लिए हल्का संस्करण वेब प्रॉक्सी ऑटो डिस्कवरी प्रोटोकॉल (WPAD) Zeroconf, ज़ीरो कान्फिगरेशन नेटवर्किंग सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ RFC 2131 - डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल RFC 2132 - डीएचसीपी विकल्प और BOOTP वेंडर एक्सटेंशन्स डीएचसीपी RFC - डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल RFC's (IETF) डीएचसीपी सर्वर सुरक्षा - यह लेख DHCP सर्वर के द्वारा सामना की जाने वाली धमकियों के विभिन्न प्रकारों को देखता है और इन खतरों को कम करने के लिए उपाय करता है। RFC 4242 - IPv6 के लिए डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल का ताज़ा जानकारी भेजने का समय विकल्प डीएचसीपी सीक्वेंस डायाग्राम - इस सीक्वेंस डायाग्राम में DHCP आपरेशन के कई परिदृश्य शामिल हैं। RFC 3046, रिले एजेंट और ऑप्शन 82 चलाने वाले स्विचों के लिए सुझाया गया ऑपरेशन डीएचसीपी ऑप्शन 82 के कार्यों का वर्णन करता है। RFC 3942 - डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल संस्करण चार (डीएचसीपीv4) विकल्पों का पुर्नवर्गीकरण RFC 4361 - डायनेमिक होस्ट कान्फिगरेशन प्रोटोकॉल संस्करण चार (डीएचसीपीv4) के लिए नोड-विशेष क्लाइंट आईडेन्टीफायर) डीएचसीपी प्रोटोकॉल संदेश - व्यक्तिगत DHCP प्रोटोकॉल संदेशों का एक अच्छा वर्णन. डीएचसीपी ISC DHCP - इंटरनेट सेवा समूह का ओपन सोर्स डीएचसीपी कार्यान्वयन. इंटरनेट मानक एप्लीकेशन लेयर प्रोटोकॉल
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गिरफ्तार (1985 फ़िल्म)
गिरफ्तार 1985 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। मुख्य कलाकार कमल हसन - किशन कुमार खन्ना अमिताभ बच्चन - करन कुमार खन्ना रजनी कांत - हुसैनो पूनम ढिल्लों - अनुराधा सक्सेना माधवी (अभिनेत्री) - इंस्पेक्टर गीता सिन्हा रंजीत - रंजीत सक्सेना शक्ति कपूर - चुटकी राम कादर ख़ान - विधानाथ निरूपा रॉय - मि. दुर्गा खन्ना अरुणा ईरानी - गुलाबो रेनू जोशी - हुसैन की मॉ राबिया अमिन - लूसी कुलभूषण खरबंदा - ओम शिवपुरी - पुलिस कमिश्नर सिन्हा सत्येन्द्र कपूर - मि. कपिल कुमार खन्ना पिंचू कपूर - जज शरत सक्सेना - विजय सिन्हा जीवन बाहरी कड़ियाँ 1985 में बनी हिन्दी फ़िल्म
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केलनसर
केलनसर ग्राम पंचायत के अधीन केलनसर सहित 6 छः राजस्व ग्राम है । 1.केलनसर 2.ढाढरवाला 3.छीलानाडी 4.कोडियानाडा 5.जालदङा 6.सुथारानाडा केलनसर गांव (अंग़्रेजी -Kelansar) गाँव यह एक भारतीय प्रांत के राजस्थान राज्य के फलौदी जिले की पंचायत समिति तथा तहसील घंटियाली में स्थित हैं। यह लोकसभा क्षेत्र जोधपुर एवं फलौदी विधानसभा क्षेत्र भाग-122 के क्षेत्र में आता हैं। इस गाँव के ज्यादातर लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि पर निर्भर हैं, कृषि के साथ-साथ पशुपालन- गाय , भैंस, भेङ और बकरी आदि लोगों का प्रमुख आर्थिक व्यवसाय हैं। इस क्षेत्र में कई सरकारी व निजी प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र , आँगनबाङी केन्द्र भी हैं। गांव के अधिकांश लोगों की स्थिति गरीबी , निरक्षर होने के कारण अधिकांश लोग झुग्गी झोपङीयों में निवास करते हैं। स्थानीय भाषा: हिंदी और राजस्थानी इस गांव मैं एक उचित मूल्य की दुकान है जिसे सहकारी विभाग की उपशाखा पिन कोड नंबर 342311 यह गांव मुख्य रूप से एकमात्र ऐसा गांव है जहां पर भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा आरएलपी यानी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के समर्थक लोग हैं यह राजनीति का प्रमुख केंद्र माना जाता यहां पर हिंदू धर्म के लोग रहते हैं बड़े-बड़े धोरे जिन्हें टीले कहते हैं यह रेगिस्तान का भाग सिंचित कृषि एवं असिंचित कृषि की जाती है वर्षा के अनिश्चितता के कारण कभी-कभी जल संकट का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समय 07:02 अपराह्न बुधवार, 18 दिसंबर 2017 (IST) समय क्षेत्र: IST (UTC + 5) : 30) ऊंचाई / ऊँचाई: 188 मीटर। ऊपर सील स्तर टेलीफोन कोड / एसटीडी कोड ग्राम पंचायत केलनसर की जनसंख्या सन् 2011 के अनुसार जाखड़ जाट गोत्र का इतिहास आर्य सम्राट वीरभद्र के पांच पुत्रों से क्षत्रिय संघ के पांच गोत्र प्रचलित हुए । जाखड़ जाट गोत्र का संस्थापक राजा वीरभद्र का पुत्र जखभद्र था। यह चन्द्रवंशी क्षत्रिय आर्यों का संघ था। आरंभ में यह क्षत्रियों का दल शिवालिक कीपहाडिय़ों एवं हिमालय पर्वत की दक्षिणी तलहटी में रहा। इस संबंध में अलग अलग विद्वानोंं की अलग अलग राय है लेकिन जाट प्राचीन शासक इतिहास के लेखक बीएस दहिया ने लिखा है कि जाखड़ लोग कश्मीर के उत्तर में दूर मध्य एशिया बल्ख के क्षेत्र में निवास करते थे। ये अपने केसरिया रंग के लिए सदियों तक प्रसिद्ध रहे। इनका वर्णन महाभारत और मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है। जाट इतिहास लेखक ठाकुर देशराज जाखड़ गोत्र को सूर्च वंशी मानते हैं। जाखड़ जाटों के बीकानेर में भी गई छोटे-छोटे राज्य थे। जब राजस्थान में राजपूतों के राज्य स्थापित हो गए तब जाखड़ों का एक दल(हरियाणा) रोहतक क्षेत्र में आ गया। इनका नेता लाढ सिंह था। यहां जाखड़ों ने साहलावास लड़ान आदि गांव बसाए। दिल्ली के बादशाह की ओर से बहू झौलरी पर एक मुसलमान नवाब का शासन था। जिससे इनका युद्ध हुआ। युद्ध में डीघल के वीर योद्धा विन्दरा ने जाखड़ों का सहयोग दिया था। और बहु झोलरी किले को जीत लिया था। बिन्दरा तो शहीद हो गया लेकिन इसके बाद दिल्ली का बादशाह भी जाटों की शक्ति को पहचानकर कर कभी भी आक्रमण का साहस न कर पाया। आईने अकबरी में लिखा है कि जाटों के नेता वीर लाढसिंह जाखड़ ने पठानों और दिल्ली के बादशाहों से युद्ध करके अपनी वीरता का प्रमाण दिया था। जाखड़ गोत्र के लोग कश्मीर, सिन्ध व बिलोचिस्तान में भी बड़ी संख्या में हैं जो मुसलमान हैं। राजस्थान, बीकानेर, अलवर, जयपुर में जाखड़ हिन्दू जाट हैं। अलवर के चौधरी नानक सिंह जाखड़ आर्य समाज के सक्रेट्री थे। जयपुर के मारवर गांव के चौधरी लाधूराम जाखड़ शेखावाटी जाट पंचायत के प्रधान थे।   हरियाणा प्रान्त में रोहतक में जाखड़ों के १९ गांव हैं जो लाडान गांव लाढ़सिंह द्वारा बसाया गया था से निकल कर बसे हैं। जाखड़ खाप के कुल गांव ३८ हैं। जाखड़ गोत्र के समाजसेवी चौधरी बलराम जाखड़, चौधरी श्रीराम जाखड़, डॉ राजाराम , श्री भागीरथ मल जाखड़, बीरबल सिंह जाखड़, चौधरी जयमलराम जाखड़, चौधरी भीमसेन जाखड़, चौधरी कृष्ण कुमार जाखड़, सुखदेव सिंह जाखड़, धन्नराम सिंह जाखड़, चेनाराम जाखड़, दीनदयाल जाखड़, रामेश्वरलाल जाखड़, बद्रीराम जाखड़ आदि गणमान्य लोग है। नैण गोत्र का संक्षिप्त इतिहास नैण गोत्र का अत्यंत ही प्राचीन गोत्र है यह चंद्रवंशी गोत्र है , जाट जाति के इतिहास कार ठाकुर देशराज के अनुसार नेण 'शाखा' अनंगपाल तोमर (तंवर) के नाम पर चली । नैण और उनके पूर्वज क्षत्रियों के उस प्रसिद्ध राजघराने में से थे , जो तोमर या तंवर कहलाते हैं , जिनका अंतिम प्रतापी राजा अनंगपाल तोमर था । तोमर के 12 पुत्र थे, उनमें नैंणसी (1100 ई•) के वंशज कहलाये । नैंणसी के वंशज नैण आन मान मर्यादा और स्वाभिमान के धनी है ।जहां भी उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची वहां उन्होंने साका (सामूहिक आत्मोत्सर्ग) किया,तथा उस स्थान को त्याग दिया । जिसे स्थानीय भाषा में तागा यानी (त्यागना) (उस स्थान या गांव का अंन जल त्यागना) कहते हैं । भिराणी और बालासर (नोहर भादरा जिला हनुमानगढ़) में साका किया तदनंतर ढिंगसरी के सामंतवादियों से कुंठित होकर 'नाथूसर गांव ' को त्यागा । गांव नाथूसर नोखा जिला बीकानेर में पड़ता है । त्यागें हुए गांव में आज भी नैण गौत्र के विश्नोई या जाट बारहमासी (स्थायी) आवास बनाकर नहीं रहते हैं । सन् 1485 सवंत् 1542 में राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा अकाल से व्यथित होकर लोग मालवा (मध्य प्रदेश और सिंध ) प्रदेश पलायन को मजबूर हो गए थे , उसी समय समराथल धोरे (नोखा जिला बीकानेर) के पास श्री जांभोजी द्वारा 'बिश्नोई पंथ' का प्रवर्तन किया गया । अकाल की कोख में जन्मे इस 'विश्नोई संप्रदाय में दीक्षा का विशेष कार्यक्रम विक्रम संवत् 1542 की कार्तिक वदी अष्टमी से दीपावली तक चला रहा । बिश्नोई धर्म में दीक्षा का कार्यक्रम आगे भी चलता रहा इस दीक्षा कार्यक्रम 36 खङो ( गांवो) के लोगों ने विश्नोई धर्म स्वीकार किया । ये गांव ज्यादातर 'नोखा' बीकानेर के आसपास बसे हुए थे , विक्रमी संवत 1440 तक नैण भामटसर नोखा में आबाद थे । कतिपय नैण उसके बाद भी भामटसर में रहे। भामटसर में श्री खिदलजी जाट (नैण) के दो पुत्र ऊदोजी व ऊदोजी हुए । ऊमोजी जाट ही रहे ऊदोजी ने ही 'विश्नोई धर्म' स्वीकार किया । 'विश्नोई धर्म' में दीक्षित होने के बाद श्री ऊदोजी ने अलग ही अपना ढोर 'ठिकाना' बसाया । ऊदोजी नैण के पुत्र बालोजी हुए , बालोजी के पुत्र भोजराज जी हुए, भोजराजजी के पुत्र हलजीरामजी हुए, हलजीराम जी के पुत्र श्री जागणजी हुए । #केलनसर (फलोदी-बाप) जिला जोधपुर में विश्नोईयों का आगमन# जागरण जी के सुपुत्र श्री सोनग जी नैण खारा गांव (नोखा के पास) से प्रस्थान कर अपनी तीन पीढ़ियों (दादा पुत्र पोता परिवार) के साथ विक्रमी संवत 1613 को वैशाख सुदी तीज के दिन (आखातीज) केलनसर गांव के मध्य अपना आवास (घर) बसाया । घर के ठीक सामने 'खावे' की थरपना की , खावा वह स्थान विशेष (जगह) है, जहां प्रतिवर्ष होली के बाद धूलंडी के दिन गांव के सभी विश्नोईजन थापन अथवा गयणों से पाहल (मंत्रों से अभिमंत्रित आवाहित जल) बनवाते हैं । सामूहिक पाहल जिसे अमृत जल कहते हैं , सामूहिक रूप से विश्नोईजन अमृत रूपी जलपान करते हैं, यह पाहल शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए बनाया जाता है । इस दिन खावे की जगह पर चुग्गा इकट्ठा करते हैं कभी कभार तो सुकाल के समय यह चुग्गा 500 मया 600 मण के आसपास इकट्ठा हो जाता है । कुण चुग्गा इकट्ठा करवाने में श्री भेरूजी साजेङ का विशेष योगदान रहता है । भेरूजी के सुपुत्र श्री गौतमजी छाजेङ बेजुबान निरीह और मूक प्राणियों के लिए चूण चुबग्गा इकट्ठा करने -करवाने में अपनी महती भूमिका आज भी निभाते हैं , उनका यह प्रयास प्रशंसनीय है । खावे मैं सामूहिक पाहल बनाने की परम्परा सन 1990 तक अनवरत रूप से चलती रही । सन 1990 तक गांव के सभी विश्नोई जन 'खावे' का ही पाहल ग्रहण करते थे । उसके बाद पाहल कई जगह बनाए जाने लगा । जिस समय श्री सोनग जी नेण केलनसर आकर बसे थे उस समय यहां पानी की विकट समस्या थी । "घी" मिलना आसान था परंतु पानी की बहुत तंगाई थी , गांव के पास प्यास बुझाने के लिए दो सागरी कुएँ थे एक का नाम पाबू'र यानी (पाबूसर) दूसरे का नाम सामिल था । पाबू'र कुएं का पानी अत्यधिक खारा था ,सामीर कुएं का पानी कुछ पीने लायक था । यह लेख जगदीशराम जाखड़ केलनसर द्वारा संपादित एवं प्रकाशित किया गया है। सन्दर्भ जोधपुर के गाँव
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4
जैसलमेर का संगीत
लोक संगीत की दृष्टि से जैसलमेर क्षेत्र का एक विशिष्ट स्थान रहा है। यहाँ पर प्राचीन समय से मा राग गाया जाता रहा है, जो इस क्षेत्र का पर्यायवाची भी कहा जा सकता है। यहाँ के जनमानस ने इस शुष्क भू-ध्रा पर मन को बहलाने हेतु अत्यंत ही सरस व भावप्रद गीतों की रचना की। इन गीतों में लोक गाथाओं, कथाओं, पहेली, सुभाषित काव्य के साथ-साथ वर्षा, सावन तथा अन्य मौसम, पशु-पक्षी व सामाजिक संबंधों की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। लोकगीत के जानकारों व विशेषज्ञों के मतों के अनुसार जैसलमेर के लोकगीत बहुत प्राचीन, परंपरागत और विशुद्ध है, जो बंधे-बंधाये रूप में अद्यपर्यन्त गाए जाते हैं। जन्म के अवसर पर हालरिया नामक गीत श्रंखला गाई जाती है, इसमें दाई, हारलोगोरो, धतूरों, खाँवलों व खरोडली आदि प्रमुख है। विवाह के समय गणेश स्थापना से वधु के घर आने तक विभिन्न अवसरों पर विनायक, सोमरों, घोंी, कोयल, रालोटोबनङा, रेजो, कलंगी, पैरो, बालेसर आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा मेले के गीत, सावण के गीत, घूमर आदि प्रमुख हैं। यहाँ के लोक संगीत की प्रमुखता मृत्यु पर भी भावप्रद गीत गाए जाने की है, जिनमें मरने वाले के गुणों का वर्णन करते हुए मृतक के परिवारजनों के प्रति हमदर्दी व्यक्त की जाती है। यह गीत महिलाओं द्वारा ही गाए जाते हैं। इनमें पार, छजिया, ओझिन्गार राग से गाये जाने वाले गीत प्रमुख हैं। लोकगीतों के अतिरिक्त यहाँ के लोकनाटय जिसे रम्मते कहते हैं, का बबुत प्रचलन रहा है। इसमें किसी व्यक्ति की चरित्र गाथा गा कर जन-साधारण में सुनाई जाती है। इसी प्रकार यहाँ ख्याल की भी रचना की गई थी। इसमें लोक चरित्र नायक के जीवन के किसी अंश को गाकर सुनाया जाता है। रम्मत में रामभरतरी रम्मत प्रमुख है तथा ख्याल में मूमलमेंद्र से ख्याल प्रमुख है। लोकदेवी-देवताओं से संबंधित गीत भी यहाँ पर स्थानीय वाद्य यंत्र सारंगी, रावण हत्था तथा अन्य स्थानीय वाद्ययंत्र प्रमुख है, के साथ गाये जाने की परंपरा भी है। यहाँ पर झींे नामक एक विशिष्ट काव्य पद्धदि भी रही है। ढोलामारु रा दूहा इसके अंतर्गत गाया जाने वाला सबसे पुराना काव्य है। इसके आलावा रामदेव जी, गोगा जी, संबंधी झींे भी गाये जाने की प्राचीन प्रथा है। लोक संगीत एवं साहित्य गीत के लिए यह प्रदेश बङा ही समृद्ध रहा है। जैसलमेर राजस्थानी संगीत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%89%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B2%20%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
मॉन्ट्रियल किला
मॉन्ट्रियल किला; Montreal Castle: अरब क्षेत्र के पूर्वी हिस्से में एक क्रूसेडर महल है, जार्डन के आधुनिक शहर शौबाक के एक चट्टानी, शंक्वाकार पर्वत के किनारे स्थित हैं। 1984 से 1986 तक, दो शेष टावरों पर बहाली का काम किया गया था। टावरों को 1974 में प्रांतीय ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। 1982 में, टावरों को डोमिन डेस मेसिअर्स-डी-सेंट-सल्पिस ऐतिहासिक स्थल में शामिल किया गया था। इतिहास किले का निर्माण 1115 में यरूशलेम के शासक बाल्डविन प्रथम द्वारा इलाके के अभियान के दौरान बनाया गया था जो बाद में एक सैन्य केंद्र रूप में इस्तेमाल किया गया कियोकी यह स्थल एक व्यापारिक और तीर्थयात्रियों का मुख्य पड़ाव था। 1187 ईस्वी में मुस्लिम कुर्द शासक सलाहुद्दीन अय्यूबी घेराबंदी आक्रमण करके किला मुस्लिमों ने जीत लिया जिसके किला कई सदियों तक क्रूसेड युद्धो में लिप्त रहा। इन्हें भी देखें अल-कराक अजलुन किला सन्दर्भ जॉर्डन मामलुक महल
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स्पेशल ऑप्स 1.5: द हिम्मत स्टोरी
स्पेशल ऑप्स 1.5: द हिम्मत स्टोरी एक भारतीय हिन्दी-भाषा की एक्शन गुप्तचरी रोमाञ्चक स्ट्रीमिंग टेलीविज़न शृङ्खला है, जिसे नीरज पाण्डे ने डिज़्नी+हॉटस्टार के लिये बनाया और निर्देशित किया है। शृङ्खला स्पेशल ऑप्स यूनिवर्स के भीतर सेट की गयी है और के के मेनन को हिम्मत सिंह के रूप में दिखाया गया है। इसका प्रथम प्रदर्शन 12 नवम्बर 2021 को किया गया था। पात्र हिम्मत सिंह के रूप में के के मेनन विजय के रूप में आफ़ताब शिवदासानी मनिन्दर सिंह के रूप में आदिल खान सरोज के रूप में गौतमी कपूर नरेश चड्ढा के रूप में परमीत सेठी नौसेना कमांडर के रूप में विजय विक्रम सिंह अब्बास शेख के रूप में विनय पाठक करिश्मा के रूप में ऐश्वर्या सुष्मिता उत्पादन जनवरी 2021 में डिज़नी+ हॉटस्टार द्वारा शृङ्खला की औपचारिक रूप से घोषणा की गयी थी। जिसमें के के मेनन मुख्य पात्र थे। उसी महीने में आफ़ताब शिवदासानी भी कलाकारों में सूची में सम्मिलित हुए , और बाद में आदिल खान भी कलाकारों में सूची में सम्मिलित हुए। फ़िल्माङ्कन शृङ्खला का निर्माण फरवरी, 2021 में प्रारम्भ हुआ। शृङ्खला को जुलाई 2021 में यूक्रेन में फ़िल्माङ्कित किया गया था, और उसी महीने कीव में यूक्रेन हिस्से का फ़िल्माङ्कन पूरा किया गया था। रिलीज़ चार-एपिसोड की सीमित शृङ्खला का प्रथम प्रदर्शन डिज़्नी+ हॉटस्टार पर 12 नवम्बर, 2021 को डिज़्नी+ दिवस के हिस्से के रूप में निर्धारित किया गया था। इस शृङ्खला को अन्य प्रमुख भारतीय प्रमुख भाषाओं में डब किया गया है। यह बंगाली, कन्नड, तेलुगु, तमिल, तमिल, मराठी में उपलब्ध है। बाहरी कड़ियाँ भारत के लोग
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कंबोडिया का भूगोल
कंबोडिया एक देश है जो  दक्षिण पूर्व एशिया के मुख्य भूमि में स्थित है जिसकी सीमा से सटे देश थाइलैंड, लाओस, वियतनाम, ओर थाईलैंड की खाड़ी है। जिसका कुल क्षेत्रफल  है । यह देश अपनी संपूर्णता के अंदर स्थित है उष्णकटिबंधीय इन्डो मलायन ईको जोन और इंडोचीन समय क्षेत्र (आईसीटी). कंबोडिया के मुख्य भौगोलिक विशेषताएं हैं। निचलेे भूमि के केंद्रीय मेेेेदान जिसमें कि टोनले साप बेसिन, तथा मेकांग नदी के बाढ़ के मैदानों और बास्सक नदी के मैदान और उत्तर, पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण में पर्वत श्रृंखलाओं से घिरी है। केंद्रीय निचली भूमि जो की दक्षिण-पूर्व में वियतनाम तक फेली हुई है। इस देश के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम में थाईलैंड की खाड़ी है जिसकी समुद्री तट 443 कि॰मी॰ (275 मील) लंबे है। कंबोडिया जो की सदाबहार दलदल, प्रायद्वीप, रेतीले समुद्र तटों और खाड़ीयो से सजा है। कंबोडिया के जल क्षेत्र में 50 से अधिक द्वीपों है। इसकी सबसे ऊंची चोटी फेनोम ओरल है। जो 1,810 मीटर (5,938 फीट) समुद्र तल से ऊपर है।  देश के मुख्य भुमि को दो भागों में बाटने वाली नदी मेकांग नदी है, जो कंबोडिया में 486 कि॰मी॰ (302 मील) सबसे लंबी नदी है। लाओस में तेज धारा वाली नदी जब स्तोएंग ट्रेंग प्रांत में प्रवेश करती है यह एक शांत और नौगम्य नदी के रूप में पूरे वर्ष नज़र आती है जो की निचले भूमि में यह काफी चौड़ी हो जाती है। मेकांग नदी का पानी मघ्य कंबोडिया के आसपास के झीलो में जाता है जिसका मौसमी प्रभाव टोनल साप झील पर दिखता है। भौगोलिक सीमाओं टा व्यंग जिले में रतनाकिरी के निशान के उत्तरी बिंदु पर के दक्षिणी बिंदु पर स्थित है , कोह पोउलो वाई द्वीप में कहां हां डीएवी जिले में रतनाकिरी के निशान के पूरबी बिंदु पर मलाई में बनतेय मीनचय को परिभाषित करता है कंबोडिया के पश्चिमी बिंदु पर कंबोडिया के द्वीपों ४ तटीय प्रांतों के प्रशासन के तहत आते  है।    कंबोडिया के तटीय जल में 60 द्वीपों है । जिनमेँ  23  कोह काँग प्रांत में २ कम्पोत, 22 सिहनााकुविले ओर 13 केप में है । जलवायु यह भी देखें संदर्भ कम्बोडिया का भूगोल
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A5%87
केतकी दवे
केतकी दवे (पूर्व: जोशी; जन्म 13 अगस्त 1960, बोम्बे में) एक भारतीय फ़िल्म अभिनेत्री हैं। उन्होंने 75 से अधिक गुजराती फ़िल्मों में; तथा आमदनी अट्ठन्नी खर्चा रुपैया, मनी है तो हनी है, कल हो ना हो और हेल्लो! हम लल्लन बोल रहे हैं जैसी प्रसिद्ध हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय किया है। उन्होंने बहुत टीवी धारावहिकों में भी अभिनय किया है जैसे नच बलिए 2, बिग बॉस, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, और बेहेनिन। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ 1960 में जन्मे लोग जीवित लोग बिग बॉस प्रतिभागी हिन्दी अभिनेत्री भारतीय अभिनेत्री गुजराती लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%95%20%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%82%E0%A4%A1
मंसूरचक प्रखंड
मंसूरचक प्रखंड एक अठारह ब्लॉक के बेगूसराय जिला के बिहार, भारत. के रूप में प्रति सरकार रजिस्टर, के ब्लॉक की संख्या मंसूरचक है 297. ब्लॉक के 41 गांवों और एक शहर है के मुख्यालय बेगूसराय जिला है । यह का एक हिस्सा है मुंगेर प्रमंडल। भूगोल मंसूरचक ब्लॉक के एक शहर में स्थित बेगूसराय जिले के बिहार गिर जाता है जो भारत में है । भौगोलिक निर्देशांक यानी अक्षांश और देशांतर के मंसूरचक प्रखंड है 25.631262 और 85.907322 क्रमशः. IST(भारतीय मानक समय) बाद में मंसूरचक प्रखंड में स्थित है UTC समय ज़ोन 5:30. मुद्रा कोड के लिए भारतीय रुपया INR है. मुद्रा में इस्तेमाल किया मंसूरचक प्रखंड भारतीय रुपया है. परिवहन मंसूरचक प्रखंड सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है । इस शहर पर स्थित है दलसिंहसराय शून्य करने के लिए मील-मालती, जो सड़क लिंक शून्य मील के लिए शहर के दलसिंहसराय समस्तीपुर. यह भी करने के लिए जुड़ा हुआ बछवाड़ा एनएच-28। रेलवे बछवाड़ा जं रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन से मंसूरचक।।सीधी रेखा दूरी से मंसूरचक करने के लिए बछवाड़ा जं रेलवे स्टेशन के आसपास 5.3 किलोमीटर है । निकटतम रेलवे स्टेशन है और इसकी दूरी से मंसूरचक कर रहे हैं इस प्रकार है. बछवाड़ा रेलवे स्टेशन 5.3 किमी. साठ जगत रेलवे स्टेशन 5.4 किमी. दलसिंग सराय रेलवे स्टेशन 9.1 किमी. जलवायु द्वितीय भी गर्म है गर्मियों में.mansurchak ब्लॉक गर्मी के दिन के उच्चतम तापमान के बीच में है 29°C से 45°C . औसत ताप मान के जनवरी 16°C के लिए . फ़रवरी 20°C के लिए . मार्च 27°C के लिए . अप्रैल 32°C के लिए . हो सकता है 36°C के लिए . जून 39 डिग्री सेल्सियस शिक्षा डी. वी. एम. इंटर कॉलेज में स्थापित किया गया था 1981 और यह द्वारा प्रबंधित किया जाता है के शिक्षा विभाग. स्कूल में पढ़ाया जाता है और हिंदी के होते हैं ग्रेड 11 से 12. स्कूल के सह-शैक्षिक और यह नहीं है एक संलग्न पूर्व-प्राथमिक अनुभाग. [] 10+2 उच्च विद्यालय एन एन शिना 10+2 मंसूरचक 10+2 एस बी डी गर्ल्स उच्च माध्यमिक स्कूल मंसूरचक टी पी सी हाई स्कूल नयाटोल आगापुर अहियापुर हाई स्कूल सीबीएसई पैटर्न आधुनिक पब्लिक स्कूल मंसूरचक एस डी एम पब्लिक स्कूल, मंसूरचक अस्पताल मंसूरचक सदर अस्पताल मंसूरचक सदर अस्पताल । दूसरा सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल में बेगूसराय जिले में शब्दों की अधिकतम संख्या के रोगियों के लिए आता है, उपचार और वितरण । नयाटोल सरकारी अस्पताल बैंक यूको बैंक बिहार ग्रामीण बैंक एसबीआई ग्राहक सेवा राजनीति आईएनसी जेडयू लोजपा राजद भाजपा भाकपा सीपीएम प्रमुख राजनीतिक दलों में इस क्षेत्र.। मंसूरचक प्रखंड के अंतर्गत आता है बछवाड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र है । संदर्भ बिहार के प्रखण्ड विकिडेटा पर अनुपलब्ध निर्देशांक Pages with unreviewed translations
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बालशौरि रेड्डी
डॉ॰ बालशौरि रेड्डी हिन्दी और तेलुगू के यशस्वी साहित्यकार, 'चंदामामा' के पूर्व सम्पादक, प्रसिद्ध बालसाहित्य सर्जक, अनन्य हिन्दी साहित्य साधक हैं। बालशौरि रेड्डी की मातृभाषा तेलुगु है लेकिन उनका जीवन हिंदी लेखन के प्रति समर्पित रहा. बालशौरि ने 14 उपन्यास, करीब दर्जनभर नाटक, कहानी, संस्मरण, संस्कृति और साहित्य से संबंधित कई अन्य पुस्तके लिखी. जीवनी डॉ॰ बालशौरि रेड्डी का जन्म आन्ध्र प्रदेश में हुआ। मातृभाषा तेलुगू है। 1946 में हिंदी प्रचारिणी सभा की रजत जयंती के मौके पर इनकी मुलाकात गांधी जी से हुई. गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन के 14 सूत्रीय रचनात्मक कार्यक्रमों में हरिजन उद्धार, नारी शिक्षा, कुटीर उद्योग के साथ हिंदी सीखना भी शामिल था। गांधीजी के कहने पर बालशौरि ने हिंदी सीखना शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने विशारद, साहित्यरत्न और साहित्यालंकार की परीक्षाएं उत्तीर्ण की. हिंदी सीखने के लिए काशी और प्रयाग गए जहां उनका परिचय निराला, महादेवी वर्मा, बच्चन जैसे बड़े साहित्यकारों से परिचय हुआ। बाहरी कड़ियाँ बालशौरि रेड्डी और उनका साहित्य अहिंदी शब्द से मुझे घृणा है (श्री रेड्डी से साक्षात्कार; दैनिक जागरण) तेलुगु और हिंदी : मेरे लेखन के दो नयन (साक्षात्कार) चंदामामा (हिन्दी बालपत्रिका) हिन्दीसेवी
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अनुच्छेद ३७०
भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३७० एक ऐसा अनुच्छेद था जो जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करता था। संविधान के २१वें भाग में अनुच्छेद के बारे में परिचयात्मक बात कही गयी थी- अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान। जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद ३७० को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए। बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद ३७० को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया। भारत सरकार ने ५ अगस्त २०१९ को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केन्द्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया। जम्मू कश्मीर केन्द्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केन्द्र-शासित क्षेत्र होगा। विशेष अधिकार धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते। भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं। धारा ३७० के सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें १) धारा ३७० अपने भारत के संविधान का अंग है। २) यह धारा संविधान के २१वें भाग में समाविष्ट है जिसका शीर्षक है- ‘अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान’ (Temporary, Transitional and Special Provisions)। ३) धारा ३७० के शीर्षक के शब्द हैं - जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अस्थायी प्रावधान (“Temporary provisions with respect to the State of Jammu and Kashmir”)। ४) धारा ३७० के तहत जो प्रावधान है उनमें समय समय पर परिवर्तन किया गया है जिनका आरम्भ १९५४ से हुआ। १९५४ का महत्त्व इस लिये है कि १९५३ में उस समय के कश्मीर के वजीर-ए-आजम शेख़ अब्दुल्ला, जो जवाहरलाल नेहरू के अंतरंग मित्र थे, को गिरफ्तार कर बंदी बनाया था। ये सारे संशोधन जम्मू-कश्मीर के विधानसभा द्वारा पारित किये गये हैं। संशोधित किये हुए प्रावधान इस प्रकार के हैं- (अ) १९५४ में चुंगी, केंद्रीय अबकारी, नागरी उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मू-कश्मीर को लागू किये गये। (आ) १९५८ से केन्द्रीय सेवा के आई ए एस तथा आय पी एस अधिकारियों की नियुक्तियाँ इस राज्य में होने लगीं। इसी के साथ सी ए जी (CAG) के अधिकार भी इस राज्य पर लागू हुए। (इ) १९५९ में भारतीय जनगणना का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ। (र्ई) १९६० में सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया, उसे अधिकृत किया गया। (उ) १९६४ में संविधान के अनुच्छेद ३५६ तथा ३५७ इस राज्य पर लागू किये गये। इस अनुच्छेदों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार प्राप्त हुए। (ऊ) १९६५ से श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून राज्य पर लागू हुए। (ए) १९६६ में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया। (ऐ) १९६६ में ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने संविधान में आवश्यक सुधार करते हुए- ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पदनामों को स्वीकृत कर उन नामों का प्रयोग करने की स्वीकृति दी। ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी। (ओ) १९६८ में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय ने चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया। (औ) १९७१ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया। (अं) १९८६ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २४९ के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए। (अः) इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है। धारा ३७० का उप अनुच्छेद ३ बताता है कि ‘‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते हैं कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड़ दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है। इस धारा का एक परन्तुक (Proviso) भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिए। किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है। जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है? जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को २१ अगस्त १९६२ में लिखे हुए पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा ३७० समाप्त होगी। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है- ‘‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुए भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’ ०५/०८/२०१९ को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद ३७० को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव रखा | जो निम्नानुसार है:- संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए , राष्ट्रपति, जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार की सहमति से, निम्नलिखित आदेश करते हैं: - इस आदेश का नाम संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू ) आदेश, २०१९ है। यह तुरंत प्रवृत्त होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संसोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू ) आदेश, १९५४ का अधिक्रमण करेगा। समय-समय पर यथा संसोधित संविधान के सभी उपबंध जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे और जिन अपवादों और अशोधानो के अधीन ये लागू होंगे ये निम्न प्रकार होंगे:- अनुच्छेद ३६७ में निम्नलिखित खंड जोड़ा जायेगा, अर्थात् :- " (4) संविधान, जहाँ तक यह जम्मू और कश्मीर के सम्बन्ध में लागू है, के प्रयोजन के लिए  - (क) इस संविधान या इसके उपबंधों के निर्देशों को, उक्त राज्य के सम्बन्ध में यथा लागू संविधान और उसके उपबंधों का निर्देश मन जायेगा; (ख) जिस व्यक्ति को राज्य की विधान सभा की शिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा जम्मू एवं कश्मीर के सदर-ए-रियासत, जो ततस्थानिक रूप से पदासीन राज्य की मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे हैं, के रूप में ततस्थानिक रूप से  मान्यता दी गयी है, उनके लिए निर्देशों को जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के लिए निर्देश माना जायेगा । (ग ) उक्त राज्य की सरकार के निर्देशों को, उनकी मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू एवं कश्मीर की राज्यपाल के लिए निर्देशों को शामिल करता हुआ माना जायेगा; तथा (घ) इस संविधान की अन्नुछेद ३७० के परन्तुक में "खंड (२) में उल्लिखित राज्य की संविधान सभा" अभिव्यक्ति को  "राज्य की विधान सभा"  पढ़ा जायेगा। धारा ३७० का विरोध इस धारा का विरोध नेहरू के दौर में ही कांग्रेस पार्टी में होने लगा था। संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव आम्बेडकर अनुच्‍छेद 370 के धुर विरोधी थे। उन्‍होंने इसका मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने से मना कर दिया था। आंबेडकर के मना करने के बाद शेख अब्‍दुल्‍ला नेहरू के पास पहुंचे और नेहरू के निर्देश पर एन. गोपालस्‍वामी अयंगर ने मसौदा तैयार किया था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शुरू से ही अनुच्छेद 370 का विरोध किया। उन्होने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने का बीड़ा उठाया था। उन्होंने कहा था कि इससे भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट रहा है। मुखर्जी ने इस कानून के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। वो जब इसके खिलाफ आन्दोलन करने के लिए जम्मू-कश्मीर गए तो उन्हें वहां घुसने नहीं दिया गया। वह गिरफ्तार कर लिए गए थे। 23 जून 1953 को हिरासत के दौरान ही उनकी रहस्यमत ढंग से मृत्यु हो गई। प्रकाशवीर शास्त्री ने अनुच्छेद 370 को हटाने का एक प्रस्ताव 11 सितम्बर, 1964 को संसद में पेश किया था। इस विधेयक पर भारत के गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने 4 दिसम्बर, 1964 को जवाब दिया। सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान में उन्होंने एकतरफा रुख अपनाया। जब अन्य सदस्यों ने इसका विरोध किया तो नन्दा ने कहा, “यह मेरा सोचना है, अन्यों को इस पर वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।” इस तरह का एक अलोकतांत्रिक तरीका अपनाया गया। नंदा पूरी चर्चा में अनुच्छेद 370 के विषय को टालते रहे। वे बस इतना ही कह पाए कि विधेयक में कुछ क़ानूनी कमियां हैं। जबकि इसमें सरकार की कमजोरी साफ़ दिखाई देती हैं। हिन्दू महासभा, भारतीय जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना शुरू से ही इसे हटाने की मांग करते आये हैं। अन्ततः यह धारा अगस्त २०१९ में समाप्त कर दी गयी। इन्हें भी देखें भारतीय संविधान का 35अ अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम २०१९ एन. गोपालस्‍वामी अयंगर वी पी मेनोन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Get your Copy of Constitution of Jammu and Kashmir at JK Law Reporters भारतीय संविधान का भाग 21 (पृष्ठ 285 से 287 तक) - पीडीएफ (हिन्दी में भी उपलब्ध) भारतीय संविधान का भाग २१ (अंग्रेजी विकीस्रोत पर) जम्मू-कश्मीरः जानें, क्या है धारा 370 और 35A का इतिहास (प्रभात खबर) भारत का संविधान जम्मू और कश्मीर का इतिहास जम्मू और कश्मीर की राजनीति जम्मू कश्मीर विवाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80
यात्री
जब कोई व्यक्ति किसी स्थान पर जा रहा होता है, तो उसका रूप सामाजिक द्रष्टि मे बदल जाता है, वह एक यात्री के रूप मे हो जाता है, यात्रा करने के लिये पैदल, वाहन, जो भी साधन हों, के द्वारा सफ़र करना ही यात्रा कहलाता है, और जो उनके द्वारा, जा रहा होता है, यात्री कहलाता है। मानव समाज मे मानव का रूप परिवर्तन का यह सहज सत्य है। वैसे तो प्रत्येक जीव यात्रा करने के लिये ही जीवन धारण करता है, और संसार मे अपनी जीवन यात्रा को पूरा करता है, जो साथ रहकर जीवन भर या पल भर साथ चलते हैं वे ही सहयात्री कहलाते हैं। यात्री यात्रा पर्यटन
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जेम्स बाजले
जेम्स जॉर्डन बाजले (जन्म 8 अप्रैल 1995) एक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर हैं। उन्होंने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया XI के लिए 5 अक्टूबर 2015 को 2015-16 के मॅटाडोर बीबीक्यू वन-डे कप में अपनी पहली सूची बनाई। उन्होंने दिसंबर 2015 में अपने ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान वेस्टइंडीज के खिलाफ क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया XI के लिए प्रथम श्रेणी में पदार्पण किया। 2017 में होबार्ट हरिकेंस के साथ 2017/18 सीज़न की संपूर्णता के लिए दरकिनार किया गया, और 2018/19 सीज़न के विशाल बहुमत के साथ प्रशिक्षण के दौरान बेज़ले को करियर के लिए खतरा पैदा करने वाली चोट लगी। सन्दर्भ 1995 में जन्मे लोग ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी जीवित लोग
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मुजफ्फर हुसैन (पत्रकार)
मुजफ्फर हुसैन (२० मार्च १९४५ -- १३ फरवरी २०१८) भारत के राष्ट्रवादी पत्रकार व चिन्तक थे। सन २००२ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। कई भाषाओं में प्रवीणता हासिल करने वाले हुसैन विभिन्न भाषाओं में कई पत्रिकाओं के लिए और कई स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों के लिए भी लिखते थे। वे मुसलमानों के एक वर्ग में पनपनेवाली जेहादी मानसिकता के सदैव निंदक रहे। जीवन परिचय मुजफ्फर हुसैन का जन्म 1945 में राजस्थान के बिजोलिया में हुआ था। वहां उनके पिताजी राजवैद्य थे। राजशाही की समाप्ति के बाद उनका परिवार मध्य प्रदेश के नीमच आ गया। यहीं उन्होंने स्नातक की उपाधि नीमच महाविद्यालय (विक्रम विश्‍वविद्यालय) से प्राप्‍त की। इसके बाद वे एल.एल.बी. की पढ़ाई करने के लिए मुंबई चले गए। इसी दौरान उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर हुआ। हिंदी, उर्दू, मराठी और गुजराती भाषा पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। इन चारों भाषाओं के अखबारों में उनके लेख प्रकाशित होते थे। कई अखबारों में उनके नियमित स्तंभ छपते थे। यहां तक कि दक्षिण के भी अखबारों में उनके लेख प्रकाशित होते थे। बिना लाग-लपेट के वे अपनी बात कहते थे। उनका मानना था कि मुसलमानों को हिन्दुओं के साथ समरस हो जाना चाहिए। उनमें जो अलगाव की भावना है वह उनकी समस्याओं की मूल कारण है। वे कहते थे, दोनों की उपासना पद्धतियां भले ही अलग हों मगर दोनों के पूर्वज एक ही हैं। व्यवसाय के रूप में पत्रकारिता को अपनाया। हिंदी और गुजराती के विभिन्न अखबारों में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। औरंगाबाद के दैनिक ‘देवगिरी समाचार’ में सलाहकार संपादक के पद पर काम किया। मुजफ्फर हुसैन पाञ्चजन्य के उन लेखकों में से रहे जो लगातार चार दशक तक लिखते रहे। उनकी बेबाक लेखनी और सधी हुई सोच पाठकों को उनके नए लेख का इंतजार करने के लिए मजबूर करती थी। इस्लाम के इबादत के सारे तौर-तरीकों का पालन करने के बावजूद वे जिहादी सोच को अपने लेखों में बेनकाब करते थे। वे मुसलमानों के बोहरा समुदाय से जुड़े हुए थे। किन्तु वहां भी वे अपनी सुधारवादी सोच के अनुसार सुधार का आंदोलन चलाते रहे। मुजफ्फर हुसैन लेखनी के धनी होने के साथ-साथ ओजस्वी वक्ता भी थे। अक्सर विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में उन्हें भाषण के लिए आमंत्रित किया जाता था। उन्होंने मराठी, हिन्दी और गुजराती में नौ पुस्तकें लिखीं। इनमें से 'इस्लाम और शाकाहार', 'अलपसंख्यकवाद के खतरे', 'मुस्लिम मानस' आदि प्रमुख हैं। कुछ समय पहले तक वे राष्ट्रीय उर्दू काउंसिल के उपाध्यक्ष भी रहे। इस नाते उन्होंने अनेक सुधारात्मक कार्य भी किए। उन्होंने काउंसिल से नए-नए लेखकों को जोड़ा और उन्हें आगे बढ़ाया। उनकी पत्नी नफीसा हुसैन भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और बहुत अधिक सक्रिय रहती हैं। लेखन मुजफ्फर हुसैन हिंदी में लिखने वाले ऐसे मुस्लिम लेखक थे जो सदैव मुस्लिम समाज को हिंदुओं के साथ समरस होने की वकालत करते रहे। अपने इसी नजरिये के साथ देश के कई अखबारों में वह स्तंभ लिखते रहे। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं। हिंदी, मराठी, गुजराती और अंग्रेजी में अब तक कुल नौ पुस्तकें प्रकाशित। वर्तमान में देश-विदेश के ४२ दैनिकों एवं साप्‍ताहिकों में प्रति सप्‍ताह स्तंभ लेखन। वक्‍ता के रूप में प्रतिष्‍ठित संस्थाओं एवं विश्‍वविद्यालयों में नियमित आमंत्रित। इस्लाम और शाकाहार नामक उनकी पुस्तक काफी चर्चित रही है। इसमें उन्होंने कुरान के विभिन्न अध्यायों में हिंसा से दूर रहने की जो सीख दी गई है, और हदीस व कुरान में किस हद तक शाकाहार का समर्थन किया गया है, उसे बहुत कुशलता प्रस्तुत किया है। इसमें ऐसे-ऐसे रहस्य उद‍्घाटित किए गए हैं जिन्हें पढ़कर आश्‍चर्य होता है। कुरान में दिए गए तथ्य के अनुसार, जब ईश्‍वर ने शाकाहार को ही उदरपूर्ति के लिए चुना था तो यह नहीं कहा जा सकता है कि इसलाम शाकाहार का समर्थक नहीं है। वास्तविकता यह है कि इसलाम ने शाकाहारी बनने के लिए असंख्य स्थानों पर प्रेरित किया है। पुस्तक के तीसरे अध्याय का शीर्षक है—‘गाय और कुरान’, जो कृषि एवं भारतीयता के मर्म को स्पष्‍ट करता है। गाय चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था और अध्यात्म का प्राण है, इसलिए लेखक ने इस विषय पर सार्थक चर्चा की है। बकरा ईद के समय धर्म के नाम पर जिस तरह से हिंसा होती है उसकी इसलाम किस हद तक आज्ञा देता है, इसे कुरान की आयतों द्वारा समझाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया है। ‘इसलाम और जीव-दया’ तथा ‘इसलामी साहित्य में शाकाहार’ अध्यायों में की गई चर्चा रोचक व प्रशंसनीय है। ‘इक्कीसवीं शताब्दी शाकाहार की’ अध्याय में लेखक ने चौंका देनेवाले रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं। सम्मान एवं पुरस्कार अपने शानदार कॅरियर में उन्होंने साहित्य में कई राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार जीते। राष्‍ट्रीय स्तर के चौदह से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित।2002 में पद्मश्री के अलावा उन्हें 2014 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा पत्रकारिता के लिए लोकमान्य तिलक पुरस्कार तथा जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बाहरी कड़ियाँ इसलाम और शाकाहार (गूगल पुस्तक; मुजफ्फर हुसैन) मुज़फ़्फ़र हुसैन की पठनीय पुस्तक : इसलाम और शाकाहार भारतीय पत्रकर पद्मश्री प्राप्तकर्ता
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गेर्हार्ड श्र्योडर
गेर्हार्ड श्र्योडर () (जन्म ७ अप्रैल १९४४) जर्मनी के व्यवसायी और राजनीतिज्ञ है। वे भूतपूर्व जर्मनी के चांसलर भी हैं जिन्होने २७ अक्टूबर १९९८ से २२ नवम्बर २००५ तक कार्य किया। वे राजनेता बनने से पहले एक वकील थे और चांसलर बनने से पहले उन्होंने १९९० से १९९८ तक लोअर सैक्सनी के प्रधान मंत्री के रूप में सेवा की। जीवन चांसलर के रूप में, श्र्योडर यूरोपीय एकीकरण को बढ़ावा देते थे, जर्मनी की बेरोजगारी की उच्च दर को कम करने में जुटे थे और, ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के उपयोग को सीमित करना का लक्ष्य रखत थे। पूर्वी जर्मनी के आर्थिक पुनर्निर्माण को आगे बढ़ाने के भी उन्होंने प्रयास किये। उनकी सरकार ने नागरिकता के जर्मन कानूनों को उदार बनाया और विदेशी माता-पिता के बच्चों को दोहरी राष्ट्रीयता की अनुमति दे कर वयस्क होने पर अपनी पसंदीदा राष्ट्रीयता चयन करने की अनुमति दी। आर्थिक विकासहीनता और उच्च बेरोजगारी जारी रहने के बावजूद, २००२ में श्र्योडर चांसलर के रूप में दोबारा चुन लिए गये। सन् २०१७ में श्र्योडर को रुसी तेल कंपनी रोसनेफ्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया। इसके विरोध में कई प्रदर्शन हुए और उनकी आलोचना की गई। सन्दर्भ जर्मनी के चांसलर 1944 में जन्मे लोग
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सिराजुद्दीन हक्कानी
सिराजुद्दीन हक्कानी ( ; सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ) (जन्म c. 1973 से 1980 ) एक अफ़गान सैन्य नेता है। जो तालिबान के सर्वोच्च कमाण्डर, मौलवी हिबतुल्ला अखुन्दजादा के दो प्रतिनिधियों में से एक है। यह हक्कानी नेटवर्क का नेता, तालिबान संगठन के एक उप-समूह और हक्कानी कुल (Clan) के वंशज भी हैं। तालिबान के उप नेता के रूप में, इसने कथित तौर पर पाकिस्तान में उत्तरी वजीरिस्तान जनपद के भीतर एक बेस से अमेरिकी और गठबन्धन सेना के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध का निरीक्षण किया। हक्कानी वर्तमान में पूछताछ के लिए एफबीआई द्वारा वांछित है, अमेरिकी विदेश विभाग ने उसके स्थान के बारे में जानकारी देने वाले को $1 करोड़ का इनाम रखा है जिससे उसकी गिरफ्तारी हो सके। प्रारम्भिक जीवन सिराजुद्दीन हक्कानी, जलालुद्दीन हक्कानी एक पश्तून मुजाहिद और अफगानिस्तान व पाकिस्तान में तालिबान समर्थक बलों के सैन्य नेता और संयुक्त अरब अमीरात से उनकी अरब पत्नी (उनकी एक पश्तून पत्नी भी थी) का बेटा है। सिराजुद्दीन के अपने पिता की दोनों पत्नियों से भाई हैं। उन्होंने अपना बचपन मिरमशाह, उत्तरी वज़ीरिस्तान, पाकिस्तान में बिताया, और अकोरा खट्टक, खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान में दारुल उलूम हक्कानिया देवबन्दी इस्लामी मदरसा में भाग लिया। उसका छोटा भाई मोहम्मद हक्कानी, जो नेटवर्क का एक सदस्य भी था, 18 फरवरी, 2010 को उत्तरी वज़ीरिस्तान के एक गाँव दाण्डे दरपखेल में एक ड्रोन हमले में मारा गया। 1970 दशक में जन्मे लोग जीवित लोग अरबी भाषा पाठ वाले लेख
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सिल्वर सीजर्स
सिल्वर नारा लुईस सीजर्स (जन्म 14 फरवरी 2000) एक डच क्रिकेटर हैं। जुलाई 2018 में, उन्हें 2018 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए नीदरलैंड की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 8 जुलाई 2018 को विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर में बांग्लादेश के खिलाफ नीदरलैंड के लिए महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20आई) बनाई। मई 2019 में, उन्हें स्पेन में 2019 आईसीसी महिला क्वालीफायर यूरोप टूर्नामेंट के लिए नीदरलैंड की टीम में नामित किया गया था। अगस्त 2019 में, उन्हें स्कॉटलैंड में 2019 आईसीसी महिला विश्व ट्वेंटी 20 क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए डच टीम में नामित किया गया था। अक्टूबर 2021 में, उन्हें जिम्बाब्वे में 2021 महिला क्रिकेट विश्व कप क्वालीफायर टूर्नामेंट के लिए डच टीम में नामित किया गया था। एक बड़ी बहन हीथर सीजर्स पहले से ही क्रिकेट खेल रही थी, सिल्वर को अच्छा प्रदर्शन करने और अपनी बहन के साथ उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित किया गया था, ठीक उसी समय से जब वह स्कूल में थी। सन्दर्भ
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ब्रंटलैण्ड आयोग
ब्रंटलैण्ड आयोग जिसका पूरा नाम पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र विश्व आयोग (World Commission on Environment and Development) या (WCED) है, १९८३ में संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त एक २१ सदस्यीय आयोग था जिसकी अध्यक्षा नार्वे की पूर्व प्रधानमंत्री ग्रो हर्लेम ब्रंटलैण्ड थीं। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट हमारा साझा भविष्य १९८७ में जारी किया जिसे ब्रंटलैण्ड रिपोर्ट भी कहा जाता है। इसे १९९१ का The Grawemeyer award मिला। सन्दर्भ संधारणीय विकास पर्यावरण पर्यावरण भूगोल
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चूना
चूना (Lime) कैल्सियमयुक्त एक अकार्बनिक पदार्थ है जिसमें कार्बोनेट, आक्साइड, और हाइड्राक्साइड प्रमुख हैं। किन्तु सही तौर पर ( Strictly speaking) कैल्सियम आक्साइड या कैल्सियम हाइड्राक्साइड को ही चूना मानते हैं। चूना एक खनिज भी है। गृहनिर्माण में जोड़ाई के लिये प्रयुक्त होनेवली वस्तुओं में चूना, सबसे प्राचीन पदार्थ है, किंतु अब इसका स्थान पोर्टलैंड सीमेंट ने लिया है। चूने का निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है : १. साधारण चूना या केवल चूना, २. जल चूना (Hydrauliclime)। साधारण चूना इस चूने में कैलसियम की मात्रा अधिक और अम्ल में अविलेय पदार्थ छ: प्रतिशत के लगभग रहता है। कैलसियम ७१.४३ प्रतिशत ओर ऑक्सिजन २८.५७ प्रतिशत रहते हैं। चूनापत्थर, खड़िया या सीप को जलाकर यह चूना बनाया जाता है। यह पानी से जमता नहीं है। इस प्रकार प्रस्तुत चूना सफेद, अमणिभीय होता है। पानी में बुझाए जाने पर फूटता नहीं, केवल फूलता ओर चूर चूर हो जाता तथा साथ ही पर्याप्त मात्रा में उष्मा देता है। ऐसा बुझा हुआ चूना जलीयित या बुझा चूना कहलाता है। चूने को बुझाने की एक रीति यह है कि एक नाँद में एक फुट ऊँचाई तक चूना भरकर उसमें तीन फुट तक पानी भर देते हैं। २४ घंटे या अधिक समय तक अर्थात् जब तक यह पूरा बुझ न जाए, इसे ऐसे ही छोड़ देते हैं। बुझ जाने के बाद इसे प्रतिवर्ग इंच १२ छिद्रवाली चलनी से छान लेना चाहिए। शुद्ध चूने के गारे में हवा का कार्बन डाइऑक्साइड संयुक्त होकर कैलसियम कार्बोनेट बनाता है, जिससे यह जमता और कठोर हो जाता है। मोटी दीवार बनाने में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि आंतरिक भागवाले चूने को कैलसियम कार्बोनेट में परिवर्तित होने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होता। इस कारण ऐसा गारा ईटों को ठीक से जोड़ता नहीं। भीतरी दीवारों पर पतला पलस्तर करने और पतली दीवारों की जुड़ाई के लिये ही यह उपयुक्त होता है। चूने में दानेदार बालू मिला देने से इसके जोड़ने के गुण में वृद्धि हो जाती है। इससे वायु के प्रवेश के लिये पर्याप्त रिक्त स्थान प्राप्त होता है। सीमेंट और चूने का गारा भी काम में लाया जाता है। चूने से संकोचन और दरारें कम होती और चार भाग सीमेंट में एक भाग चूना मिलाने से बिना दृढ़ता कम किए व्यवहार्यता बढ़ जाती है। गारे में १ भाग सीमेंट, ३ भाग बालू के स्थान पर १ भाग सीमेंट १ भाग चूना ६ भाग बालू रहना अच्छा है। चूने में सूर्खी मिलाने और चक्की में पीसने के इसकी जलदृढ़ता (hydraulicity) बढ़ जाती है। ऐसा चूना उत्तराखण्ड के देहरादून और मध्य प्रदेश के सतना में अधिकांश पाया जाता है। जल-चूना यह चूना बड़ी मात्रा में कंकड़ या मिट्टी युक्त चूनापत्थर का जलाकर बनाया जाता है। ७ से लेकर ३० दिनों तक में पानी के अंदर जमनेवाले चूने का जल-चूना कहते हैं। पानी में जमने के समय के आधार पर इसे मंद जल, मध्यम जल और उत्तम जल चूना कहते हैं। चूने में ५ से ३० प्रतिशत मिट्टी रह सकती है और इसी की मात्रा पर जमना निर्भर करता है। चूने में मिट्टी की मात्रा की वृद्धि से बुझने की क्रिया मंद होती है और जल दृढ़ता गुण बढ़ता है। जल चूने में सिलिका, ऐल्यूमिना और लौहआक्साइड अपद्रव्य के रूप में रहते हैं जो चूने के साथ संयुक्त होकर जल के अंदर जमने और कठोर होनेवाले यौगिक बनाते हैं। जल चूने को उपयोग में लाने से ठीक पहले बुझाना चाहिए, तैयार होने के तुरंत बाद ही नहीं। पानी के अंदर तथा उन स्थानों पर जहाँ दृढ़ता आवश्यक है, ऐसे चूने का उपयोग होता है। जलाकर चूना बनाने के लिये आवश्यक कंकड़ उत्तर भारत के मैदानी भागों में सतह से कुछ फुट नीचे पाए जाते हैं। अकार्बनिक यौगिक
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कोई जाने ना
कोई जाने ना एक भारतीय थ्रिलर टेलीविजन श्रृंखला है जो 7 मार्च 2004 से 30 मई 2004 के बीच स्टार प्लस पर प्रसारित हुई श्रृंखला में 13 एपिसोड थे जो सप्ताह में एक बार प्रत्येक रविवार को रात 9 बजे प्रसारित होते थे। कथानक दिव्या एक अनाथ लड़की है जो एक अलग शहर के फार्महाउस में अकेली रहती है। कृष राजवंश मुंबई के एक अमीर संपन्न परिवार से हैं। कृष की नज़र अचानक दिव्या पर पड़ती है और उसे तुरंत उससे प्यार हो जाता है। दिव्या को उसके प्यार का बदला मिलता है और वे शादी कर लेते हैं। कृष दिव्या को अपने परिवार में लाता है, जो सभी एक भव्य राजवंश मनोर में रहते हैं। परिवार में नई दुल्हन का आगमन परिवार में कई भूत-प्रेतों के साथ मेल खाता है। जागीर की दीवारों पर खून से लिखे कई संदेश दिखाई देते हैं और दिव्या एक भूत लड़की से आतंकित है। दिव्या ने जांच की और पाया कि परिवार के दो कुलपतियों भाइयों कैलाश और रुद्र राजवंश को विरासत में जादुई शक्तियां दी गई थीं, लेकिन रुद्र ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप राजवंश परिवार की नई दुल्हन को एक श्राप मिला। कलाकार दिव्य कृष्ण राजवंश के रूप में शिल्पा कदम कृष राजवंश के रूप में संजीत बेदी शिशिर शर्मा जैसे रूद्र राजवंश कैलाश राजवंश श्रेया दास आशिता धवन सुमीत पाठक प्रभा सिन्हा अदिति शिरवाइकर विवेक मुश्रान संदर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक साइट राजश्री की आधिकारिक वेबसाइट स्टार प्लस के धारावाहिक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक
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भौतिक प्रभावों की सूची
यहाँ उन भौतिक घटनाओं (phenonema) की सूची दी गयी है जिनमें "प्रभाव" शब्द आता है। A Accelerator effect (economics) Accordion effect (physics) (waves) Acousto-optic effect (nonlinear optics) (waves) Additive genetic effects (genetics) Aharonov–Bohm effect (quantum mechanics) Alienation effect (acting techniques) (Bertolt Brecht theories and techniques) (film theory) (metafictional techniques) (theatre) Allais effect (fringe physics) Allee effect (biology) Ambiguity effect (cognitive biases) Anrep effect (cardiology) (medicine) Antenna effect (digital electronics) (electronic design automation) Anti-greenhouse effect (atmospheric dynamics) (atmospheric science) (astronomy) (planetary atmospheres) Askaryan effect (particle physics) Asymmetric blade effect Audience effect (psychology) (social psychology) Auger effect (atomic physics) (foundational quantum physics) Autler–Townes effect (atomic, molecular, and optical physics) (atomic physics) (quantum optics) Autokinetic effect (vision) Avalanche effect (cryptography) Averch–Johnson effect (economics) B Balassa–Samuelson effect (economics) Baldwin effect (evolutionary biology) (selection) Balloon-carried light effect (balloons) (culture) (entertainment) Bambi effect (hunting) (psychology stubs) Bandwagon effect (cognitive biases) (crowd psychology) (economics effects) (metaphors) (propaganda techniques) Bank effect (marine propulsion) (nautical terms) (water) Barkhausen effect (condensed matter) (magnetism) Barnett effect (condensed matter) (magnetism) Baskerville effect (cardiology) Bauschinger effect (classical mechanics) (materials science) Beaujolais effect (Ada programming language) Ben Franklin effect (emotion) (psychology) Bernoulli effect (equations) (fluid dynamics) (wind power) Beta-silicon effect (physical organic chemistry) Bezold effect (optical illusions) (psychological theories) Bezold–Brücke effect (optical illusions) Biefeld–Brown effect (physical phenomena) (propulsion) Big-fish–little-pond effect 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चू-त्सि
चू त्सि (चीनी: 楚辭, अंग्रेज़ी: Chu Ci), जिसे दक्षिण के गीत और चू के गीत भी कहा जाता है, एक चीनी भाषा का कविता-संग्रह है जिसकी रचना पारंपरिक रूप से चीनी इतिहास के झगड़ते राज्यों के काल में चू युआन (屈原, Qu Yuan) और सोंग यु (宋玉, Song Yu) द्वारा (३०० से २०० ईसापूर्व में) की गई मानी जाती है, हालाँकि इसकी कुछ कवितायेँ शायद बाद के हान राजवंश काल में लिखी जाकर इसमें सम्मिलित हो गईं। इसमें १७ मुख्य विभाग हैं। इस संग्रह में उस समय के दक्षिणी चीन के चू राज्य की भिन्न संस्कृति झलकती है, जो बाक़ी चीन से अलग थी। इन्हें भी देखें चू युआन सोंग यु चू राज्य (प्राचीन चीन) झगड़ते राज्यों के काल सन्दर्भ चीन का इतिहास चीनी भाषा की कवितायें
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राजीव गाँधी की हत्या
21 मई 1991 को सुबह 10 बजे के करीब एक महिला राजीव गांधी के पांव छूने के लिए जैसे ही झुकी उसके शरीर में लगा आरडीएक्स फट गया और गांधी की मौत हो गई। उस समय राजीव तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर में चुनाव प्रचार के लिए गए थे। यह आत्मघाती हमला लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्‍टे) ने किया था। इन्हें भी देखें हत्या की गई भारतीय राजनीतिज्ञों की सूची इंदिरा गांधी की हत्या सन्दर्भ भारत में राजनीतिक हत्याएं
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बौद्धनाथ
बौद्धनाथ काठमाण्डू के पूर्वी भाग में स्थित प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप तथा तीर्थस्थल है। एसा माना जाता है कि यह विश्व के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। 1979 से, यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। स्वयंभु के साथ, यह काठमांडू क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक है। स्तूप 36 मीटर ऊंचा है और कला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस स्तूप के बारे में माना जाता है कि जब इसका निर्माण किया जा रहा था, तब क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए पानी न मिलने के कारण ओस की बूंदों से इसका निर्माण किया गया। बुद्धनाथ पंथ के अनुयायी होने के कारण इस स्थल का नाम बौद्धनाथ रखा गया जो कि अब बौद्ध धर्म का माना जाता है। इतिहास गोपालराजवावलि का कहना है कि बौधनाथ की स्थापना नेपाली लिच्छवी राजा शिवदेव (ल. 590–604 ईस्वी) द्वारा की गई थी; हालांकि अन्य नेपाली क्रोनिकल्स ने इसे राजा मानदेव (464-505 ईस्वी) के शासनकाल के लिए निर्धारित करते है। तिब्बती सूत्रों का दावा है कि 15वीं सदी के अन्त या 16वीं सदी की शुरुआत में स्थल पर एक टीले की खुदाई की गई थी और वहां राजा अशुवर्मा (605–621) की हड्डियों की खोज की गई थी। खस्ती चैत्य के शुरुआती ऐतिहासिक सन्दर्भ नवरस के इतिहास में पाए जाते हैं। सबसे पहले, खस्ची को लिच्छवी राजा वृषदेव (400) या विक्रमजीत द्वारा प्राप्त चार स्तूपों में से एक के रूप में उल्लेख किया गया है। दूसरी बात यह है कि स्तूप की उत्पत्ति के बारे में न्यूर्स की कहानी राजा धर्मदेव के पुत्र, मानदेव को उनके लेखन के लिए प्रायश्चित के रूप में मनादेव को महान लिच्छवी राजा, सैन्य विजेता और कला के संरक्षक जिन्होंने 464-505 में शासन किया था। मानदेव को गोंद बहल के स्वयंभू चैत्य से भी जोड़ा जाता है। तीसरा, एक और महान लिच्छवी राजा शिवदेव (590-194) एक शिलालेख द्वारा बौद्ध से जुड़ा हुआ है; हो सकता है कि उसने चैत्य को पुनर्स्थापित किया हो। 2015 भूकंप अप्रैल 2015 में नेपाल में आए भूकंप ने बौधनाथ स्तूप को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया था, और उसका शिखर गंभीर रूप से टूट गया था। नतीजतन, गुंबद के ऊपर की पूरी संरचना, और इसमें मौजूद धार्मिक अवशेष को हटाना पड़ा, जो अक्टूबर 2015 के अन्त तक पूरा हो गया। पुनर्निर्माण कार्य 3 नवंबर 2015 को स्तूप के लिए गुंबद के शीर्ष पर एक नए केन्द्रीय ध्रुव या "जीवन वृक्ष" का निर्माण एक अनुष्ठान के साथ शुरू हुआ। स्तूप को 22 नवंबर 2016 को फिर से खोला गया। नवीनीकरण और पुनर्निर्माण बौधनाथ क्षेत्र विकास समिति (बीएडीसी) द्वारा कराया गया था। मरम्मत को पूरी तरह से बौद्ध समूहों और स्वयंसेवकों के निजी दान द्वारा वित्त पोषित किया गया था। बीएडीसी के अनुसार, इस कार्य में $2.1 मिलियन डॉलर और 30 किलोग्राम से अधिक स्वर्ण का उपयोग हुआ था। मरम्मत की गई इमारत का उद्घाटन आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल द्वारा किया गया था। हालाँकि, नेपाली सरकार की भूकंप से क्षतिग्रस्त धरोहरों जैसे मन्दिरों के पुनर्निर्माण में धीमी गति के लिए आलोचना की गई, इनमें से कई इमारतों को तो छुआ भी नहीं गया है। छबिदीर्घा इन्हें भी देखें स्वयंभूनाथ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ नेपाल: प्रकृति का मनमोहक उपहार हर लम्हा यादगार (जागरण) नेपाल में पर्यटन आकर्षण काठमांडू नेपाल में विश्व धरोहर स्थल
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परिवृत्त
ज्यामिति में किसी बहुभुज का परिवृत्त (circumscribed circle) ऐसा वृत्त होता है जो उस बहुभुज के हर शीर्ष से गुज़रता हो। इस वृत्त के केन्द्र को परिकेन्द्र (circumcenter) और त्रिज्या (रेडियस) को परित्रिज्या (circumradius) कहते हैं। प्रत्येक बहुभुज ऐसा नहीं होता कि उसके लिए एक परिगत वृत्त बनाया जा सके और जिसके लिए परिगत वृत्त सम्भव होता है उसे वृत्तीय बहुभुज (cyclic polygon) कहा जाता है। सारे सम-सरल बहुभुज (regular simple polygon), त्रिभुज और आयत वृत्तीय होते हैं। त्रिभुज के अंतवृत्त के लिए उसकी तीनों भुजाओं की माध्यिकाओं के कटान बिंदु से भुजा पर डाले गए लम्ब को त्रिज्या मानकर बनाते हैं। त्रिभुज का परिवृत्त किसी त्रिभुज का परिवृत्त उस त्रिभुज के तीनों शीर्षों से होकर जाता है। इस वृत्त का केन्द्र परिकेन्द्र कहलाता है। परिकेन्द्र निकालने के लिए किन्हीं दो भुजाओं का लम्बार्धक खींचते हैं, जहाँ ये दोनों लम्बार्धक मिलते हैं वही उस त्रिभुज का परिकेन्द्र होगा। परिकेन्द्र से तीनों शीर्षों की दूरी समान होगी, जिसे परित्रिज्या (R) कहते हैं। नीचे परित्रिज्या से सम्बन्धित त्रिकोणमितीय सूत्र दिए गए हैं। परिवृत्त की त्रिज्या जहाँ S त्रिभुज का क्षेत्रफल है। इन्हें भी देखें अन्तर्वृत या अन्तःवृत्त समबहुभुज बहुभुज सन्दर्भ वृत्त त्रिभुज [[श्रेणी:पटरी और परकार के ज्यामितीय निर्माण]]
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वंशीधर शुक्ल
वंशीधर शुक्ल Pt. Vanshidhar Shukla (जन्म: 1904; मृत्यु: 1980) एक हिंदी और अवधी भाषा के कवि और स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे। इनके पिता छेदीलाल शुक्ल भी एक कवि थे। वंशीधर शुक्ल जी महात्मा गाँधी के आन्दोलन से भी भाग लिए। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी विधान सभा से वें विधायक (१९५९-१९६२) भी रहे। “ कदम-कदम बढायें जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा ” जैसी कालजयी रचना का सृजन करने वाले वंशीधर शुक्ल हैं। ‘उठो सोने वालों सबेरा हुआ है’, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ इनकी अवधी में लिखी हुई पुस्तके हैं। हुजूर केरी रचनावली भी उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने लखीमपुर खीरी शहर के मध्य में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर 'गाँधी विद्यालय' की स्थापना की। वह उ.प्र. सरकार के वनमंत्री भी रहे। जीवन परिचय लोक संस्कृति, लोक विश्वास, ग्रामीण प्रकृति परिवेश व ग्राम जीवन को प्रतिबिंबित करने वाले माँ वाणी के इस कुशल आराधक का जन्म उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले के मन्यौरा गाँव में सन १९०४ में हुआ था। माँ सरस्वती के जन्म दिवस बसंत पंचमी के दिन एक कृषक परिवार में जन्म लेने वाले वंशीधर नें माता सरस्वती की साधना को ही अपना लक्ष्य बना लिया। इनके पिता पं॰ छेदीलाल शुक्ल सीधे-सादे सरल ह्रदय के किसान थे जो अच्छे अल्हैत के रूप में विख्यात थे और आसपास के क्षेत्र में उन्हें आल्हा गायन के लिए बुलाया जाता था। वे नन्हें बंशीधर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। पिता द्वारा ओजपूर्ण शैली में गाये जाने वाले आल्हा को बंशीधर मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे। सामाजिक सरोकारों से बंशीधर के लगाव के पीछे उनके बचपन के परिवेश का बहुत बड़ा हाथ था। सन १९१९ में पं॰ छेदीलाल चल बसेे। पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ अब वंशीधर के सर पर था। यह उनके लिए बड़े संघर्षों का समय थाे। इन्हीं संघर्षों से उनके व्यक्तित्व में जीवटता और अलमस्ती पैदा हुई। इसी समय की कठिनाईयों ने उनमें व्यवस्था के प्रति विद्रोही स्वर पैदा किया। सन १९२५ के करीब वे गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आयेे। विद्यार्थी जी के सानिध्य में उन पर स्वतंत्रता-आंदोलन का रंग गहराने लगा और कविता की धार भी पैनी होती चली गयी। उन्होंने मातृभूमि की सेवा करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और अनेक बार जेल की यात्रा की। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ वंशीधर शुक्ल का परिचय वंशीधर शुक्ल कविता कोश पर मंहगाई / वंशीधर शुक्ल वंशीधर शुक्ल की कविता उठो सोने वालों कवि साहित्यकार अवधी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तर प्रदेश के लोग 1904 में जन्मे लोग १९८० में निधन
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ज़ाम्बिया के राष्ट्रपति
जाम्बिया के राष्ट्रपति है राज्य के सिर और सरकार के मुखिया की जाम्बिया । 1964 में आजादी के बाद सबसे पहले कार्यालय केनेथ कौंडा द्वारा आयोजित किया गया था । 1991 के बाद से, जब कौंडा ने राष्ट्रपति पद छोड़ा, तो कार्यालय को पांच अन्य लोगों द्वारा रखा गया है: फ्रेडरिक चिलुबा , लेवी मनवासा , रूपिया बंदा , माइकल साटा और वर्तमान राष्ट्रपति एडगर लुंगु । इसके अलावा, कार्यवाहक राष्ट्रपति गाय स्कॉट ने राष्ट्रपति माइकल साटा की मृत्यु के बाद एक अंतरिम क्षमता में सेवा की। जाम्बिया स्वतंत्रता अधिनियम 1964 31 अगस्त 1991 के बाद से राष्ट्रपति सरकार के प्रमुख भी हैं, क्योंकि कौंडा के राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम महीनों में प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया था। राष्ट्रपति का चुनाव पाँच वर्षों के लिए होता है। 1991 के बाद से, ऑफिसहोल्डर को लगातार दो कार्यकालों तक सीमित रखा गया है। जाम्बिया के राष्ट्रपति (1964-वर्तमान)संपादित करें कुंजी राजनीतिक दलों  यूनाइटेड नेशनल इंडिपेंडेंस पार्टी (UNIP)  बहुदलीय लोकतंत्र के लिए आंदोलन (MMD)  देशभक्ति मोर्चा (PF) प्रतीक § निर्विरोध चुने † कार्यालय में निधन फुटनोट्ससंपादित करें नवीनतम चुनावसंपादित करें मुख्य लेख: जाम्बियन आम चुनाव, 2016 ज़ाम्बिया के राष्ट्रपति कार्यालय में समय से रैंकसंपादित करें विभिन्न देशों के राष्ट्रपति
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गुपी गाइन बाघा बाइन (1968 फ़िल्म)
गुपी गाइन बाघा बाइन 1968 में बनी बांग्ला भाषा की फिल्म है। यह सत्यजित राय की एक प्रसिद्ध बांग्ला फिल्म है। इसका हिन्दी सम्स्करण भी बना है जिसका नाम है- हिंदी में बनी सत्यजित राय की फिल्म का नाम है " गोपी गवैया बाघा बवैया "। संक्षेप गुपी और बाघा दो मित्र हैं। गुपी एक बेसुरा गायक है और बाघा एक बेसुरा वादक है। दोनों ने गाँव भर को परेशान कर रखा है। गाँववालों से विवाद के चलते दोनों परेशान होकर जंगल चले जाते हैं और वहीं पर अपना बेसुरा अभ्यास शुरु कर देते हैं। लेकिन दोनों इस बात से बेखबर हैं कि जहाँ वे अभ्यास कर रहे हैं, वहाँ पर भूतों का डेरा है। और तो और, भूतों का राजा इनका बेसुरा गायन सुनकर अति प्रसन्न होता है और इन्हें कई शक्तियाँ और वरदान देता है। इस प्रकार यह हास्य कथा आगे बढ़ती है। चरित्र गुपी – तपेन चट्टोपाध्याय बाघा – रवि घोष शुन्डी/हाल्ला का राजा – सन्तोष दत्त जादुकर बरफि – हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय हाल्ला का प्रधानमन्त्री – जहर राय हाल्ला का सेनापति – शान्ति चट्टोपाध्याय हाल्ला का गुप्तचर – चिन्मय राय आमलकी क राजा – दुर्गादास बन्द्योपाध्याय गुपी के पिता – गोविन्द चक्रवर्ती भूत का राजा – प्रसाद मुखोपाध्याय मुख्य कलाकार संतोष दत्ता दल संगीत रोचक तथ्य परिणाम बौक्स ऑफिस समीक्षाएँ पुरस्कार श्रेष्ठ परिचालना पुरस्कार, नयीदिल्ली, १९६८ राष्ट्रपति स्वर्ण और रौप्य पदक, नयी दिल्ली, १९७० सिल्वर क्रास, एडिलेड, १९६९ श्रेष्ठ परिचालक, आकलैण्ड, १९६९ मेधा पुरस्कार, टोकियो, १९७० श्रेष्ठ छबि, मेलबोर्न, १९७० बाहरी कड़ियाँ 1968 में बनी बांग्ला फ़िल्म
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बोडो संस्कृति
बोडो संस्कृति से आशय असम के बोडो लोगों की संस्कृति से है। दीर्घ काल से बोडो लोग किसानी करते रहे हैं। इसके साथ ये मछली पकड़ने, कुक्कुटपालन, सूकर पालन, धान एवं जूट का उत्पादन, तथा पान की खेती करने में भी सिद्धहस्त हैं। बोडो लोग अपने वस्त्र स्वयं बना लेते हैं। पिछले कुछ दशकों से बोडो ब्रह्म धर्म से बहुत प्रभावित हैं। ईसाई मिशनरियों ने भी उनमें पहुँच बनाने में सफलता प्राप्त की है। इन्हें भी देखें बोडो लोग बोडो भाषा असम की संस्कृति
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नो-बॉल
नोबॉल अथवा नो-बॉल (अंग्रेजी : No-Ball, हिन्दी अनुवाद- गेंद नहीं, अमान्य गेंद) क्रिकेट नामक खेल में क्षेत्ररक्षण कर रही टीम पर लगने वाला दण्ड है जो मुख्यतः गेंदबाज़ द्वारा नियमावली के अनुसार गेंद नहीं फेंकने पर लगता है। क्रिकेट के अधिकतर प्रारूपों में, नो-बॉल की परिभाषा एमसीसी- लॉ ऑफ़ क्रिकेट के अनुसार रखी जाती है हालांकि युवा क्रिकेट में तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बीमर पर कठिन नियम लागू होते हैं एवं बाउंसर (कंधों से ऊपर जाने वाली गेंद) पर शिथिल नियम होते हैं। किसी भी नो-बॉल पर वाइड-बॉल की तरह दिया जाता है और कुछ नियमों में यह चेतावनी भी हो सकती है - यदि कोई गेंद नियमावली के चरम पर है तो इसे निलम्बन के रूप में भी एक और गेंद फेंककर पूरा किया जाता है। इसके अलावा, रन-आउट के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह से नो-बॉल की अवस्था में बल्लेबाज को आउट नहीं किया जा सकता। ट्वेन्टी ट्वेन्टी एवं हाल ही में एक-दिवसीय खेलों में किसी भी प्रकार की नो-बॉल के बाद बल्लेबाज को एक 'फ्री-हिट' भी मिलती है। इसका अर्थ यह हुआ कि नो-बॉल के आगे वाली गेंद पर बल्लेबाज, आउट होने के भय के बिना किसी भी प्रकार गेंद को खेल सकता है। नो-बॉल असामान्य नहीं है और छोटे प्रारूप के खेलों तथा मुख्यतः तेज गेंदबाजों द्वारा लम्बे रन-अप के कारण ऐसी गेंदबाजी देखने को मिलती है। कुछ प्रकार की नो-बॉल खतरनाक तथा अनुचित मानी जाती हैं। यदि इस तरह की गेंद फैंकी जाती है तो गेंदबाज को, गेंदबाज़ी से तुरन्त निलम्बित किया जा सकता है। नो-बॉल का निर्माण नो-बॉल विभिन्न कारणों से हो सकती है। मुख्यतः यह, गेंदबाज द्वारा निम्नलिखित में से कोई एक नियम तोड़ने से होती है। (फ्रंट फुट नो-बॉल अथवा बैक फुट नो-बॉल) खतरनाक गेंदबाजी (बीमर) इसका अन्य सामान्य उदाहरण हैं। सन्दर्भ क्रिकेट शब्दावली गेंदबाज़ी
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रामगढ़ ताल
रामगढ़ ताल, गोरखपुर शहर के अन्दर स्थित एक विशाल तालाब (ताल) है। यह ७२३ हेक्टेयर (लगभग १८०० एकड़) क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका परिमाप लगभग १८ किमी है। जनश्रुतियों एवम् बौद्ध ग्रन्थों से पता चलता है कि यह प्राचीन समय छठी शताब्दी में नागवंशी कोलिय गणराज्य की राजधानी थी जिस वंश की गौतम बुद्ध की माता एवम् उनकी पत्नी थी इसलिए प्राचीन काल में गोरखपुर का प्राचीन नाम रामग्राम भी था। ऐसे अस्तित्‍व में आया गोरखपुर का रामगढ़ ताल, जानें-क्‍या है इसका इतिहास इस ताल का केवल गोरखपुर के स्तर पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक महत्व है। इतिहासकार डॉ. राजबली पांडेय के मुताबिक ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गोरखपुर का नाम रामग्राम था। यहां कोलीय गणराज्य स्थापित था। उन दिनों राप्ती नदी आज के रामगढ़ ताल से ही होकर गुजरती थी। बाद में राप्ती नदी की दिशा बदली तो उसके अवशेष से रामगढ़ ताल अस्तित्व में आ गया। रामग्राम से ही ताल को रामगढ़ नाम मिला। रामगढ़ ताल के बारे में यह भी है जनश्रुति ताल के बारे में एक और जनश्रुति है कि प्राचीन काल में ताल के स्थान पर एक विशाल नगर था, जो किसी ऋषि के श्राप में फंस गया। नगर ध्वस्त हो गया और वहां ताल बन गया। शुरुआती दौर में यह तालाब छह मील लंबा और तीन मील चौड़ा था। तब इसका दायरा 18 वर्ग किलोमीटर था। अतिक्रमण के चलते अब यह सात वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह गया है। लंबे समय तक इस ताल की उपयोगिता को शहरवासी समझ नहीं सके। ऐसे बढ़ा इसका महत्‍व 90 के दशक में जब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने रामगढ़ ताल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की, जो 1989 में उनके असामयिक निधन से अधर में लटक गई। योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश का नेतृत्व संभाला तो उन्होंने ताल की कीमत को एक फिर बार समझा और इसे लेकर नई योजनाएं बनाईं और लंबित योजनाओं को पूरा करने का संकल्प लिया। आज पूर्वांचल का मरीन ड्राइव है यह ताल कल तक उपेक्षा का शिकार रामगढ़ ताल आज पूर्वांचल का मरीन ड्राइव बन चुका है। इसकी छटा देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। शाम ढलते ही ताल के किनारे जुटने वाली भीड़ इसकी बढ़ रही लोकप्रियता की तस्दीक है। फिलहाल ताल को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार के अलावा एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) ने भी संभाल रखी है। एनजीटी की सक्रियता के चलते ही ताल के 500 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है। पर्यटन हाल ही में सरकार ने घोषणा की है कि रामगढ़ ताल में क्रूज़ चलाये जायेंगे जहाँ लोग तैरते हुए क्रूज़ में बैठकर डिनर का आनंद उठा सकेंगे। संदर्भ बाहरी कड़ियाँ रामगढ़ ताल इतिहास गोरखपुर उत्तर प्रदेश की झीलें
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A5%A8%E0%A5%A6%E0%A5%A7%E0%A5%AF%20%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A3%E0%A5%87%20%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A2%E0%A4%BC
२०१९ पूणे बाढ़
२५-२८ सितंबर 2019 के बीच पुणे=और इसके डिवीजन में भारी मात्रा में वर्षा हुई, जिससे बाढ़ हुई। इन बाढ़ों में खोए लोगों के अलावा, बारिश से जुड़ी अन्य घटनाओं जैसे कि ढह गई इमारतों ने कम से कम 21 लोगों की जान ले ली। बचाव के लिए जिले में एनडीआरएफ की तीन टीमें और विभिन्न एजेंसियों की १०५ ईकाईयां कार्यरत थीं। पृष्ठभूमि दक्षिण एशिया में मानसून का मौसम आम तौर पर प्रत्येक वर्ष जुलाई के आसपास शुरू होता है और वहां के देशों में भारी वर्षा और संभावित बाढ़ लाता है। हालांकि, २०१९ मानसून का मौसम जून में शुरू हुआ और बारिश के मामले में असामान्य रूप से भारी रहा, पूरे भारत में औसतन ६.५% ज्यादा बारिश हुई। पुणे जिले में, बाढ़ से पहले भी मानसून के मौसम के कारण वर्ष के लिए वार्षिक वर्षा की १८०% बारीश हुई थी, और इस बजह से स्थानीय खडकवासला बांध २२ वर्षों में पहली बार पूरी तरह से भर गया था। संदर्भ पुणे
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सनदी शहर
एक सनदी शहर या चार्टर शहर एक ऐसा शहर है जिसमें शासन प्रणाली सामान्य कानून के बजाय शहर के अपने सनदी या चार्टर दस्तावेज़ द्वारा परिभाषित की जाती है। जिन देशों में शहर के सनद को कानून द्वारा अनुमति प्राप्त है, उन में उपस्थित कोई शहर प्रशासन के निर्णय के द्वारा अपने सनद को अपना या संशोधित कर सकता है। इन शहरों को मुख्य रूप से स्थानीय निवासियों या तृतीय पक्ष प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है, क्योंकि एक सनद किसी शहर को अपना प्रशासनिक ढांचा चुनने का अधिकार देता है। सन्दर्भ
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स्वराज (पुस्तक)
स्वराज (पुस्तक) सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक है। इस पुस्तक में भारतीय लोकतान्त्रिक ढाँचे में बदलाव लाने एवं वास्तविक स्वराज के लाने का रास्ता दिखाया गया है। पुस्तक के बारे में इस पुस्तक का अनावरण 29 जुलाई 2012 को नई दिल्ली स्थित जंतर मंतर पर किया गया था। उस समय में अरविंद केजरीवाल ने कहा था - "ये पुस्तक वर्तमान केन्द्रीयकृत प्रशासन व्यवस्था की कमियों को उजागर करती है और बताती है कि वास्तविक जनतंत्र कैसे लाया जा सकता है।" उन्होंने यह भी कहा कि वे इस पुस्तक से कोई रॉयल्टी नहीं कमाएंगे तथआ उनकी इच्छा है कि यह पुस्तक अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे।प्रख्यात गाँधीवादी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे ने इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है। सन्दर्भ अरविंद केजरीवाल
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गूगल क्रोम
गूगल क्रोम एक वेब ब्राउज़र है जिसे गूगल द्वारा मुक्त स्रोत कोड द्वारा निर्मित किया गया है। इसका नाम ग्राफिकल यूज़र इंटरफ़ेस (GUI) के फ्रेम यानि क्रोम पर रखा गया है। इस प्रकल्प का नाम क्रोमियम है तथा इसे बीएसडी लाईसेंस के तहत जारी किया गया है। २ सितंबर, २००८ को गूगल क्रोम का ४३ भाषाओं में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज़ प्रचालन तंत्र हेतु बीटा संस्करण जारी किया गया। यह नया ब्राउज़र मुक्त स्रोत लाइनक्स कोड पर आधारित होगा, जिसमें तृतीय पार्टी विकासकर्ता को भी उसके अनुकूल अनुप्रयोग बनाने की सुविधा मिल सकेगी। विशेषताएं गूगल क्रोम को बेहतर सुरक्षा, बेहतर गति एवं स्थायित्व को ध्यान में रखकर बनाया गया था। क्रोम का सबसे प्रमुख लक्षण इसकी गति और अनुप्रयोग निष्पादन (एप्लीकेशन परफॉर्मेंस) हैं। इसके बीटा संस्करण को मार्च २००९ में लॉन्च किया गया था। इस संस्करण में जो नई सुविधाएं जोड़ी गई थीं उनमें प्रपत्र स्वतःपूर्ण (फॉर्म ऑटोफिल), संपूर्ण पृष्ठ ज़ूम (फुल पेज जूम), ऑटो स्क्रॉल और नए प्रकार का ड्रैग टैब प्रमुख है। इस ब्राउजर की वेबसाइट के अनुसार, देखने में ये (क्लासिकल गूगल होमपेज) की तरह है और तेज तथा स्पष्ट है। गूगल क्रोम का प्रयोग करने पर अन्य ब्राउज़रों की भांति सीधे खाली पृष्ठ नहीं खुलता बल्कि ब्राउजर उपयोक्ता द्वारा सबसे ज्यादा प्रयोग किए गये अंतिम कुछ वेबपृष्ठों का थम्बनेल दृश्य दिखाता है, जिसे क्लिक करने पर वांछित पृष्ठ खुल जाता है। (देखें: नीचे दिया चित्र) इस कारण से उपयोक्ता अपने मनवांछित पृष्ठों पर शीघ्र ही नेविगेट कर पाता है। इसमें उपलब्ध ओमनीबॉक्स का लाभ ये है कि बिना गूगल खोले ही, गूगल में सर्च कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एड्रेस बार में मात्र ओलंपिक डालते ही उससे संबंधित वेबसाइट के पते बता देता है, साथ ही अधूरे और गलत पतों को रिकवर करने की सुविधा भी इसमें है। इस ब्राउजर में उपस्थित टास्क मैनेजर आइकन से इस बारे में जानकारी मिल सकती है, कि किस प्रक्रिया में कितनी स्मृति (मेमोरी) का प्रयोग हो रहा है। इसके साथ ही यदि कोई वेबसाइट नहीं चल रही तो उससे दूसरी साइट पर फर्क नहीं पड़ता है। क्रेश रिकवरी के द्वारा कंप्यूटर सिस्टम के अचानक बंद हो जाने पर और फिर खोलने पर यह उपयोक्ता से पूछता भी है, कि वह उसी पृष्ठ पर पुन: आना चाहते हैं या फिर नया पृष्ठ खोलना चाहते हैं। इनकॉग्निटो के कारण उपयोक्ता आईपी एड्रेस लीक नहीं होता जिससे सुरक्षा बढ़ जाती है। कुछ साइट ऐसी हैं, जहां पहली बार किसी चीज को लोड करते हुए समय कम लगेगा, फिर जितनी बार आएंगे, समय बढ़ता जाएगा। प्रत्येक साइट को उसको सर्फ करने वाले के बारे में जानकारी उसके आईपी एड्रेस से मिलती है। लाभ और हानियां क्रोम में ओपेरा वेब ब्राउज़र की भांति ही टैब प्रणाली का उपयोग किया गया है। इस टैब प्रणाली में ज्यादा प्रयोग की गयी वेबसाइटों का यह अपने आप इतिहास बनाकर नये टैब में जोड़ता चला जाता है। जैसे ही नये टैब पर क्लिक करते हैं यह अपने आप सहेजे गये पृष्ठों को बाक्स में प्रदर्शित करता है। इससे पूर्व पसंदीदा साईटों को नये टैब में सहेजकर रखने की यह सुविधा केवल ओपेरा के ब्राउजर में मिलती थी। गूगल द्वारा अभी तक समर्थित फायरफाक्स सबसे बड़ी कमी यह थी कि डिफाल्ट सर्च इंजन गूगल ही होता था जिसमें सीधे होमपेज से जीमेल आदि की सुविधाओं की कमी रहती थी। बाद में आई.ई-७ में एकसाथ कई सारे होमपेज बनाकर रखने की सुविधा मिली थी। किन्तु इसकी कमी इसकी मंथर गति है। भारत में १२८ केपीबीएस स्पीड को ब्राडबैण्ड स्पीड कहा जाता है, जबकि पश्चिम के देशों में १ एमबीपीएस की स्पीड ब्राडबैण्ड की श्रेणी में आती है। औसत इंटरनेट उपभोक्ता इसी स्पीड पर काम करते है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में तो यह स्पीड ७६ केपीबीएस मात्र ही होती है। ऐसे में आई ई-७ अत्यधिक धीमा हो जाता है। यहां ओपेरा, सफारी और फायरफाक्स इस लिहाज से कुछ बेहतर हैं लेकिन इतनी कम स्पीड पर कोई भी ब्राउजर ठीक से काम नहीं कर सकता। इसी कारण से आई.ई-६ ही अधिक प्रयोग होता आया है। क्रोम के प्रयोग करते हुए ब्राउजर के ऊपर कोई पट्टी नहीं दिखाई देती है जिस पर फाईल, एडिट और विकल्प के बटन होते थे। इसे हटाने का सही कारण तो ज्ञात नहीं है, किंतु इससे विन्डो का आकार काफी बढ़ जाता है। १४-१५ इंच का मॉनीटर प्रयोग करते हुए भी बेहतर विजबिलटी मिलती है। हां सीधे क्लिक कर कुछ विकल्प चुने जा सकते थे, जिनके लिए इसमें कुछ शार्टकट कुंजियों का सहारा लेना पड़ता है। क्रोम में एक कमी है कि इसमें माउस के दायें क्लिक पर रिफ्रेश का विकल्प नहीं मिलता है। इस कमी के संग ही एक अच्छाई भी है, वह है गुप्त पेज। यदि बिना रिकॉर्ड की सर्फ़िंग करनी हो तो गूगल गुप्त विन्डो का प्रयोग कर सकते हैं। क्रोम ३.० गूगल ने हाल ही में क्रोम ब्राउजर के तीसरे संस्करण का बीटा वर्जन रिलीज़ किया है। इस क्रोम में एक्सटेंशन सपोर्ट पहले से ही चालू होते है। इस संस्करण में थीमिंग सुविधाएं भी सम्मिलित हैं, किंतु इनके लिए कस्टमाइज़ एण्ड कंट्रोल में ऑप्शंस में पर्सनल स्टफ़ में जाना होता है। दायें दिये चित्र में देखें जिसमें थीम्स वाले अनुभाग में गेट थीम्स नामक बटन मिलेगा जो कि गूगल की थीम गैलरी में ले जाता है। इसे क्लिक करने पर नीचे वाले चित्र जैसा पृष्ठ खुलेगा, जहां से थीम चुने जा सकते हैं। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ गूगल क्रोम का जालघर गूगल कोड पर क्रोमियम प्रकल्प पृष्ठ क्रोम का ब्लॉग गूगल क्रोम पर आधिकारिक ब्लॉग प्रविष्टि गूगल क्रोम पर कॉमिक्स सूचना प्रौद्योगिकी अंतरजाल गूगल सेवाएँ गूगल वेब ब्राउज़र हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A3
बाण
यह धनुष के साथ प्रयुक्त होने वाला एक अस्त्र है जिसका अग्र भाग नुकीला होता है। बाण का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद संहिता में मिलता है। इषुकृत् और इषुकार शब्दों का प्रयोग सिद्ध करता है कि उन दिनों बाण-निर्माण-कार्य व्यवस्थित व्यवसाय था। ऋग्वेदकालीन लोहार केवल लोहे का काम ही नहीं करता था, बाण भी तैयार करता था। बाण का अग्र भाग लोहार बनाता था और शेष बाण-निर्मातानिकाय बनाता था। ऐतरेय ब्राह्मण (ई. पू. 600 वर्ष) में देवताओं के धनुष का रोचक वर्णन मिलता है। देवताओं ने सोमयज्ञ के उपसद् में एक धनुष तैयार किया। धनुष का अग्रभाग अग्नि, आधार सोम, दंड विष्णु और पंख वरुण था। बाण का नाम शर कैसे पड़ा, इसका वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। जब वृत्रासुर पर इंद्र ने वज्र चलाया तब वज्र के चार खंड हो गए - स्फाय, यूप, रथ और अंतिम भाग शर के रूप में धरती पर गिर पड़ा। टूटने के कारण इनका नाम शर पड़ा। उसमें यह भी लिखा है कि बाण का शीर्ष वैसा ही है जैसे यज्ञ के लिए अग्नि। अग्निपुराण में बाण के निर्माण का वर्णन है। यह लोहे या बाँस से बनता है। बाँस सोने के रंग का और उत्तम कोटि के रेशोंवाला होना चाहिए। बाण के पुच्छभाग पर पंख होते हैं। उसपर तेल लगा रहना चाहिए, ताकि उपयोग में सुविधा हो। इसकी नोक पर स्वर्ण भी जड़ा होता है। हरिहरचतुरंग के अनुसार बाण तालतृण के दंत, शृंग या शारभ द्रुम (साल या वेणु) के बनते थे। विष्णुधर्मोत्तर में उनके धातु के, शृंग के तथा दारु (बाँस) के बने होने का उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि ज्यों ज्यों समय बीतता गया पुरानी चीजें छोड़ दी गई। धातु का उपयोग महत्व का है और युद्धकला का अंतिम विकास है। अग्निपुराण में उत्कृष्ट, सामान्य और निकृष्ट तीन प्रकार के बाणों की पहचान दी है। बाण को निर्मुक्त करने के लिए उसके पंखदार सिरे को अँगूठे की सहायता से पकड़ना चाहिए। उत्कृष्ट बाण के दंत की माप 12 मुष्टि (1 मुष्टि संभवत: 1 पल के बराबर थी), सामान्यकी 11 मुष्टि और निकृष्ट की 10 मुष्टि होती थी। मनु ने भी इन आयुधों का उल्लेख किया है। कालिदास ने तेज, गहरे और दृढ़ दंडों का वर्णन किया है : वेणु, शर, शलाका, दंडसार और नाराच। कुछ बाणों पर लोहे की नोक की, कुछ पर काटने के लिए अस्थि की नोक की और कुछ पर छेदने के लिए लकड़ी की नोक की व्यवस्था रहती थी। जो धनुर्धर आधे अंगुल मोटी धातु की पट्टी को अथवा चमड़े की 24 परतों को बेध देता था, वह अत्यत कुशल माना जाता था। इन्हें भी देखें धनुष शस्त्रास्त्र
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द लाउड हाउस
द लाउड हाउस एक अमेरिकी एनिमेटेड टेलीविजन श्रृंखला है, जिसे क्रिस सैविनो ने निकलोडियन के लिए बनाया है। यह श्रृंखला लिंकन लाउड नाम के एक लड़के की अराजक रोजमर्रा की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो 11 बच्चों के एक बड़े परिवार में मध्यम बच्चा और इकलौता बेटा है। यह दक्षिणपूर्वी मिशिगन के एक काल्पनिक शहर में स्थापित है, जिसे रॉयल वुड्स कहा जाता है, जो सविनो के गृहनगर रॉयल ओक पर आधारित है। श्रृंखला को 2013 में वार्षिक एनिमेटेड शॉर्ट्स कार्यक्रम में दर्ज की गई दो मिनट की लघु फिल्म के रूप में नेटवर्क पर पेश किया गया था। इसने अगले वर्ष उत्पादन में प्रवेश किया। श्रृंखला एक बड़े परिवार में बड़े होने वाले सविनो के अपने बचपन पर आधारित है, और इसकी एनीमेशन काफी हद तक अखबार कॉमिक स्ट्रिप्स से प्रभावित है। श्रृंखला का प्रीमियर 2 मई 2016 को हुआ, और छह सीज़न प्रसारित किए जा चुके हैं। बाहरी कड़ियाँ सन्दर्भ टेलिविज़न कार्टून धारावाहिक
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करणपद्धति
करणपद्धति (शाब्दिक अर्थ : 'करने का तरीका') संस्कृत में रचित एक ज्योतिष तथा गणित का ग्रन्थ है। इसकी रचनाकार केरलीय गणित सम्प्रदाय के ज्योतिषी-गणितज्ञ पुदुमन सोम्याजिन् हैं। इस ग्रन्थ की रचना का समय अभी भी अनिश्चित बना हुआ है। यह गन्थ संस्कृत श्लोकों के रूप में रचित है। इसमें दस अध्याय हैं। इस ग्रन्थ के छठे अध्याय में गणितीय नियतांक पाई (π) तथा त्रिकोणमितीय फलनों ज्या, कोज्या तथा व्युस्पर्शज्या (inverse tangent) का श्रेणी के रूप में प्रसार दिया हुआ है। अनन्त श्रेणीयाँ करणपद्धति का ६ठा अध्याय गणितीय दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस अध्याय में π के लिए अनन्त श्रेणी दी गयी है। त्रिकोणमितीय फलनों के लिए भी अनन्त श्रेणियाँ दी गयीं है। ये श्रेणियाँ तन्त्रसंग्रह में भी दी गयीं हैं और युक्तिभाषा में इनकी उपपत्ति भी दी गयी है। π के लिए श्रेणी श्रेणी-१ पहली श्रेणी निम्नलिखित श्लोक में वर्णित है- व्यासाच्चतुर्घ्नाद् बहुशः पृथक्स्थात् त्रिपञ्चसप्ताद्ययुगाह्र्̥ तानि व्यासे चतुर्घ्ने क्रमशस्त्वृणम् स्वं कुर्यात् तदा स्यात् परिधिः सुसुक्स्मः॥ इसका गणितीय रूपान्तर निम्नलिखित है- π/4 = 1 - 1/3 + 1/5 - 1/7 + ... श्रेणी-२ एक अन्य श्रेणी इस श्लोक में वर्णित है- व्यासाद् वनसम्गुणितात् पृथगाप्तं त्र्याद्ययुग्-विमुलघनैः। त्रिगुणव्यासे स्वमृणं क्रमशः कृत्वापि परिधिरानेयः॥ इसको गणित की भाषा में इस प्रकार लिख सकते हैं- π = 3 + 4 { 1 / ( 33 - 3 ) + 1 / ( 53 - 5 ) + 1 / ( 73 - 7 ) + ... } श्रेणी-३ निम्नलिखित श्लोक में π के लिए एक तीसरी श्रेणी वर्णित है- वर्गैर्युजां वा द्विगुणैर्निरेकैर्वर्गीकृतैर्-वर्जितयुग्मवर्गैः व्यासं च षड्घनं विभजेत् फलं स्वं व्यासे त्रिनीघ्ने परिधिस्तदा स्यात॥ इसका गणितीय रूप यह होगा- π = 3 + 6 { 1 / ( (2 × 22 - 1 )2 - 22 ) + 1 / ( (2 × 42 - 1 )2 - 42 ) + 1 / ( (2 × 62 - 1 )2 - 62 ) + ... } त्रिकोणमितीय फलनों के लिए अनन्त श्रेणियाँ निम्नलिखित श्लोक में ज्या (Sine) और कोज्या (cosine) फलनों का अनन्त श्रेणी प्रसार दिया गया है। चापाच्च तत्तत् फलतोऽपि तद्वत् चापाहताद्द्वयादिहतत् त्रिमौर्व्या लब्धानि युग्मानि फलान्यधोधः चापादयुग्मानि च विस्तरार्धात् विन्यस्य चोपर्युपरि त्यजेत् तत् शेषौ भूजाकोटिगुणौ भवेतां इसका गणितीय अनुवाद यह है- sin x = x - x3 / 3! + x5 / 5! - ... cos x = 1 - x2 / 2! + x4 / 4! - ... और अन्ततः, निम्नलिखित श्लोक इन्वर्स टैन्जेन्ट का अननत श्रेणी प्रसार प्रदान करता है- व्यासार्धेन हतादभिष्टगुणतः कोट्याप्तमआद्यं फलं ज्यावर्गेण विनिघ्नमादिमफलं तत्तत्फलं चाहरेत् । कृत्या कोटिगुणास्य तत्र तु फलेष्वेकत्रिपञ्चादिभिर्- '' भक्तेष्वोजयुतैस्तजेत् समजुतिं जीवाधनुशिशषते ॥ इसका गणितीय रूप से लेखन इस प्रकार कर सकते हैं- tan−1 x = x - x3 / 3 + x5 / 5 - ... बाहरी कड़ियाँ करणपद्धति Use of continued fractions in Karanapaddhati (c.1730 CE) , a Kerala astronomy text Use of trigonometric seris in Karanpaddhati भारतीय गणित ज्योतिष ग्रंथ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
फ्लेमिंग वामहस्त नियम
फ़्लेमिङ का वामहस्त नियम एक स्मृतिसहायक विधि है जो चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी धारा-वाही चालक पर लगने वाले आरोपित बल की दिशा बताने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैद्युतिक धारा की दिशा और चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को परस्पर लंबवत रखकर यह पाया जाता है कि चालक पर आरोपित बल की दिशा इन दोनों के लंबवत हैं। इन तीनों दिशाओं की व्याख्या फ़्लेमिङ के वामहस्त नियम द्वारा की जा सकती है। इस नियम के अनुसार, अपने बाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा तथा अंगुष्ठ को इस प्रकार फैलाया जाना चाहिए कि ये तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत हों। यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा और मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा की दिशा की ओर संकेत करती है तो अंगुष्ठ चालक की गति की दिश1संकेत करेगा। इन्हें भी देखें दक्षिणहस्त नियम विद्युत चुम्बकत्व
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ज़वख़ान प्रांत
ज़वख़ान (मंगोल: Завхан; अंग्रेज़ी: Zavkhan) मंगोलिया के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित उस देश का एक अइमग (यानि प्रांत) है। इसका नाम ज़वख़ान नदी पर पड़ा है जो इस प्रांत और गोवी-अल्ताई प्रांत के बीच की सीमा भी है। नाम का उच्चारण व अर्थ 'ज़वख़ान' में 'ख़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'ख' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'ख़राब' और 'ख़रीद' के 'ख़' से मिलता है। इन्हें भी देखें मंगोलिया के प्रांत अइमग सन्दर्भ ज़वख़ान प्रांत मंगोलिया के प्रांत
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE
पलेडियम
पैलेडियम प्रतीक Pd, एक रासायनिक तत्व है जिसकी परमाणु संख्या 46 है । यह 1803 में अंग्रेजी रसायनज्ञ विलियम हाइड वोलास्टन द्वारा खोजी गई एक दुर्लभ और चमकदार चांदी-सफेद धातु है। उन्होंने इसका नाम क्षुद्रग्रह पल्लस के नाम पर रखा, जिसका नाम ग्रीक देवी एथेना के नाम पर रखा गया था। पैलेडियम, प्लैटिनम, रोडियम, रूथेनियम, इरिडियम और ऑस्मियम तत्वों का एक समूह बनाते हैं जिन्हें प्लैटिनम समूह धातु (पीजीएम) कहा जाता है। उनके पास समान रासायनिक गुण हैं, लेकिन पैलेडियम में सबसे कम गलनांक होता है और उनमें से सबसे कम घना होता है। विशेषताएं पैलेडियम आवर्त सारणी में समूह 10 से संबंधित है, लेकिन सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉनों में विन्यास हंड के नियम के अनुसार है। 5s कक्षक में इलेक्ट्रॉन 4d कक्षकों को भरने के लिए पलायन करते हैं। यौगिक पैलेडियम यौगिक मुख्य रूप से 0 और +2 ऑक्सीकरण अवस्था में मौजूद होते हैं। अन्य कम सामान्य अवस्था को भी मान्यता प्राप्त है। आम तौर पर पैलेडियम के यौगिक किसी भी अन्य तत्व की तुलना में प्लैटिनम के समान अधिक होते हैं। बहरी कड़ी संक्रमण धातु रासायनिक तत्व कीमती धातुएँ
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बागली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र
बागली विधानसभा क्षेत्र मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के 230 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह खंडवा (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) का एक खंड है। यह देवास जिले के अन्तर्गत आता है। विधानसभा के सदस्य 1962: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनसंघ 1967: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनसंघ 1972: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनसंघ 1977: कैलाश चंद्र जोशी, जनता पार्टी 1980: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनता पार्टी 1985: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनता पार्टी 1990: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनता पार्टी 1993: कैलाश चंद्र जोशी, भारतीय जनता पार्टी 1998: श्याम होलानी, कांग्रेस 2003: दीपक जोशी, भारतीय जनता पार्टी 2008: चंपालाल देवड़ा, भारतीय जनता पार्टी 2013: चंपालाल देवड़ा, भारतीय जनता पार्टी 2018: पहाड़ सिंह कन्नोजे, भारतीय जनता पार्टी चुनाव परिणाम 2018 विधानसभा चुनाव इन्हें भी देखें बागली सन्दर्भ मध्य प्रदेश के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र देवास ज़िला
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मार्गरेट ट्रूडो
मार्गरेट जॉन सिनक्लेयर (जन्म सितम्बर 10, 1948) का जन्म वैंकुअर, ब्रिटिश कोलंबिया में हुआ था। अपने उपनाम ट्रुडो से ज्यादा जानी जाने वाली एक लेखिका, अदाकारा, फोटोग्राफर, पूर्व टीवी प्रस्तोता, कनाडा के पंद्रहवें प्रधानमंत्री पियर ट्रूडो की पूर्व पत्नी व वर्तमान (तेइसवें) प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की माँ हैं। सन् २०१३ में उन्हें पश्चिमी ओंटारियो के विश्वविद्यालय से मानसिक बीमारी से लड़ाई के लिये किए गए कार्यों के लिये उन्हें कानून में मानक उपाधि प्रदान दी गई। कनाडा के प्रधानमंत्री के पति-पत्नी
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अबाया
अबाया (अरबी: عباية) उत्तरी अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप में इस्लामी दुनिया के सहित भागों में कुछ महिलाओं द्वारा पहना जाता है पारंपरिक अबायाट काले होते हैं और या तो कपड़े के एक बड़े वर्ग या कंधे या सिर से लिपटी हो सकता हैएक लंबे क़फ़तान। अबाया चेहरे, पैर और हाथ को छोड़कर पूरे शरीर को शामिल किया गया। यह नकाब, एक चेहरा है, लेकिन सभी आँखों को कवर घूंघट के साथ पहना जा सकता है। कुछ महिलाओं के लंबे काले दस्ताने पहनने के लिए चुनते हैं, तो उनके हाथों के रूप में अच्छी तरह से कवर किया जाता है। इन्डोनेशियाई और मलेशियाई महिलाओं की परंपरागत पोशाक केबाया, अबाया से उसका नाम हो जाता है। औचित्य يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُل لِّأَزْوَاجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَاءِ الْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِن جَلَابِيبِهِنَّ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰ أَن يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا -قران ٣٣:١٥ अनुवाद: प्रथम पैग़म्बर अपनी पत्नियों और बेटियों और मुसलमानों की महिलाओं से कह दो कि (बाहर निकला तो) अपने (मूंहों) पर चादर लटका (कर घूंघट निकाल) लिया करें. यह बात उनके लिए सबब पहचान (वामतयाज़) होगा तो कोई उन्हें आईंज़ा न देगा. ईश्वर देने वाला मेहरबान है। अबाया बड़े सल्फ़ी मुस्लिमानों आबादी वाले देशों में सबसे आम है, पूरे शरीर के रूप में, चेहरे और हाथ सहित आवारह के तत्वों पर विचार कर रहे हैं: कि जो खून या शादी से असंबंधित पुरुषों से सार्वजनिक में छुपा किया जाना चाहिए। देशों कुछ अरब राज्यों और सऊदी अरब के बाहर, जैसे मुस्लिम बहुल आबादी के साथ देश में हिन्दुस्तान, इंडोनेशिया, ईरान और पाकिस्तान असामान्य है, लेकिन उन देशों में कई वह पहनना। मध्य पूर्व सऊदी अरब में, वे महिलाओं को सार्वजनिक रूप से कवर करने के लिए आवश्यकता होती है।. ईरान में, कवर अक्सर एक चदोर रूप में संदर्भित किया जाता है। दक्षिण एशिया में, वह एक बुर्का के रूप में जाना जाता है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ बुर्क़ा Kaur-Jones, Priya. "Reinventing the Saudi abaya." BBC. 12 मई 2011. इस्लामी वस्त्र वस्त्र
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A4%AE%20%28%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%29
आलम (कवि)
आलम रीतिकाल के एक हिन्दी कवि थे जिन्होने रीतिमुक्त काव्य रचा। आचार्य शुक्ल के अनुसार इनका कविता काल 1683 से 1703 ईस्वी तक रहा। इनका प्रारंभिक नाम लालमणि त्रिपाठी था। इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक मुस्लिम महिला शेख नामक रंगरेजिन से विवाह के लिए इन्होंने नाम आलम रखा। ये औरगजेब के दूसरे बेटे मुअज्जम के आश्रय में रहते थे। रचनाएँ प्रसिद्ध रचनाएं हैं :- माधवानल कामकंदला (प्रेमाख्यानक काव्य) श्यामसनेही (रुक्मिणी के विवाह का वर्णन, प्रबंध काव्य) सुदामाचरित (कृष्ण भक्तिपरक काव्य) आलमकेलि (लौकिक प्रेम की भावनात्मक और परम्परामुक्त अभिव्यक्ति, श्रृंगार और भक्ति इसका मूल विषय है) सन्दर्भ हिन्दी कवि इस्लाम में परिवर्तित लोगों की सूची
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AC%20%E0%A4%8F%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A7%20%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%95
पंजाब एण्ड सिंध बैंक
पंजाब एवं सिंध बैंक (Punjab & Sind Bank) उत्तर भारत का प्रमुख बैंक है। इसके लगभग ९०० शाखाओं में से ४०० पंजाब में हैं। इस बैंक का मुख्यालय नयी दिल्ली में है। वर्ष 1908 में जब भाई वीर सिंह, सर सुंदर सिंह मजीठिया तथा सरदार तिरलोचन सिंह जैसे दूरदर्शी तथा विद्वान व्यक्तियों के मन मे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर उठाने का विचार आया तब पंजाब एण्ड सिंध बैंक का जन्म जन्म हुआ। बैंक की स्थापना समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के आर्थिक उत्थान द्वारा उनके जीवन स्तर को उंचा उठाने हेतु सामाजिक वचनबद्घता के सिद्धान्तों पर की गई। बाहरी कड़ियाँ पंजाब एण्ड सिंध बैंक का जालघर भारतीय बैंक १९०८ में स्थापित बैंक भारत के सरकारी बैंक नई दिल्ली आधारित कंपनियां
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एनामुल हक (क्रिकेटर, 1986 को जन्म)
इनामुल हक़ (; जन्म 5 दिसंबर 1986) को इनामुल हक़ जूनियर के नाम से जाना जाता है, उन्हें इनामुल हक़ से अलग करने के लिए, जो बांग्लादेश के लिए भी खेले, लेकिन उनसे संबंधित नहीं थे, एक बांग्लादेशी क्रिकेटर हैं। वह वर्तमान में ढाका प्रीमियर डिवीजन में अपनी घरेलू टीम, सिलहट डिवीजन नेशनल क्रिकेट लीग और प्राइम बैंक क्रिकेट क्लब के लिए खेलते हैं। वह दाएं हाथ के बल्लेबाज हैं और धीमी गति से बाएं हाथ की गेंद फेंकते हैं। उनका टेस्ट डेब्यू 2003 में इंग्लैंड के खिलाफ ढाका में हुआ था। अप्रैल 2004 में, बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने एनामुल को अपने पहले छह महीने के धोखेबाज़ अनुबंध की अनुमति दी, जिसमें वरिष्ठ राष्ट्रीय खिलाड़ियों के नीचे भुगतान किया गया था। सन्दर्भ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%B8%E0%A5%80/%E0%A4%A1%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%80
एसी/डीसी
एसी/डीसी () एक ऑस्ट्रेलियाई रॉक बैंड है जिसे १९७३ में माल्कॉम और एन्गुस यंग भाइयों ने बनाया था और जो अंत तक मुख्य सदस्य बने रहे। मुख्यतः हार्ड रॉक श्रेणी के इस बैंड को हेवी मेटल श्रेणी का रचेता भी कहा जाता है परन्तु वे स्वयं को हमेशा केवल "रॉक एंड रोल" श्रेणी का बैंड ही कहते आए है। आज की तारीख तक यह अबतक के सर्वाधिक कमाई वाले बैंडों में से एक है। १७ फ़रवरी १९७५ में अपना पहला अल्बम हाई वोल्टेज रिलीज़ करने से पूर्व एसी/डीसी के सदस्यों में काफ़ी बदलाव किया गया। १९७७ तक सदस्यता स्थिर रही पर अंत में बास वादक मार्क इवांस को क्लिफ़ विलियम्स से बदल दिया गया और अल्बम पावरेज रिलीज़ किया गया। अल्बम हाइवे टू हेल की रिकॉर्डिंग के कुछ माह पश्च्यात ही मुख्य गायक और गीतकार बोन स्कॉट शराब के भारी नशे के चलते १९ फ़रवरी १९८० को चल बसे। समूह ने इस घटना के बाद स्वंय को बंद करने का विचार किया परन्तु स्कॉट के माता-पिता ने उन्हें नए गायक को शामिल कर आगे बढ़ने का सुझाव दिया। पूर्व जोर्डी बैंड के गायक ब्रायन जॉनसन को स्कॉट की जगह शामिल कर लिया गया। उस वर्ष बैंड ने अपना सर्वाधिक बिक्री वाला व अबतक का किसी कलाकार द्वारा तिसरा सर्वाधिक बिक्री वाला अल्बम बैक इन ब्लैक रिलीज़ किया। बैंड का अगला अल्बम फॉर दोज़ अबाउट तू रॉक वि सेलूट यु था जो उनका पहला अल्बम था जो अमेरिका में प्रथम क्रमांक पर पहुँचने में सफल रहा। डिस्कोग्राफी सन्दर्भ संगीत
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सेशेल्स
सेशेल्स (Seychelles ; आधिकारिक तौर पर सेशेल्स गणराज्य) हिंद महासागर में स्थित 115 द्वीपों वाला एक द्वीपसमूह राष्ट्र है। यह अफ्रीकी मुख्यभूमि से लगभग 1500 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा मे और मेडागास्कर के, उत्तर पूर्व मे हिंद महासागर में स्थित है। इसके पश्चिम मे ज़ांज़ीबार, दक्षिण मे मॉरीशस और रीयूनियन, दक्षिणपश्चिम मे कोमोरोस और मयॉट और उत्तर पूर्व मे मालदीव का सुवाडिवेस स्थित है। सेशेल्स मे अफ्रीकी महाद्वीप के किसी भी अन्य देश के मुकाबले सबसे कम आबादी है। सेशेल्स की राजधानी विक्टोरिया है। सेशेल्स (Seychelles):- सेशेल्स एक रोमांटिक द्वीप समूह के अलावा एक खूबसूरत देश भी है। यह द्वीप समूह दुनिया के खूबसूरत द्वीपो में गिना जाता है।। अगर आप ऐसे जगहों पर घूमना पसंद करते हैं तो आप कम खर्च में जा सकते हैं।। यहां पर आपको‌ मालदीव जैसा नजारा देखने को मिलता है। यह द्वीप समूह चारों ओर से सागरों से घिरा हुआ है। यह द्वीप बेहद ही रोमांटिक है। और अपनी इसी कारण से यह द्वीप पुरे दुनिया में प्रसिद्ध है। देश के सभी कोनों से लोग यहां घूमने आते हैं। और इस द्वीप को काफी पसंद करते हैं। सेशेल्स‌ का इतिहास:- सेशेल्स‌ देश (द्वीपसमूह) का खोज 1500 ईस्वी के बाद यूरोपीयन द्वारा किया गया था। अगले 150 साल तक कई यूरोपीयन यहां रहने लगे थे। 1756 ई० में फ्रांस ने इन द्वीपसमूहों पर कब्जा कर लिया। इन सभी द्वीपसमूहों का नाम 'सेशेल्स' दिया गया था जो एक फ्रांसीसी वित्तमंत्री के नाम पर रखा गया था। 1814 ई० में अंग्रेजों ने जब फ्रांस के सम्राट नेपोलियन को हरा दिया तब इन द्वीपसमूहों पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। 1976 ई० में इन द्वीपसमूहों को अंग्रेजों से पूरी तरह आजादी मिल गई। सेशेल्स‌ का भूगोल:- सेशेल्स‌ देश के सभी 115 द्वीपों का क्षेत्रफल लगभग 459 वर्ग किलोमीटर है। माहे (mahe) देश का सबसे बड़ा द्वीप है। जिसका क्षेत्रफल 157 वर्ग किलोमीटर है यानी सभी द्वीपसमूहों के कुल क्षेत्रफल का 34% है, और इसी द्वीप पर इस देश की राजधानी "विक्टोरिया" स्थित है। यहां कुछ ही द्वीपों पर लोग रहते हैं जिनकी कुल आबादी 77,000 है। जो देश की आबादी का 81% है। इस देश के ज्यादातर द्वीपों पर बिलकुल भी आबादी नहीं रहती है। और ये द्वीप प्राकृतिक संसाधनों से भरे पड़े हैं। सेशेल्स के राष्ट्रपति :- सेशेल्स के वर्तमान राष्ट्रपति वेवेल रामकलावन हैं। वेवेल रामकलावन के पूर्वज बिहार के गोपालगंज के बरौली प्रखंड के परसौनी गांव के नोनिया टोली के रहने वाले थे. जनवरी 2018 में बिहार आए थे रामकलावन वर्ष 2018 की जनवरी में अपने पुरखों की धरती गोपालगंज पहुंचे रामकलावन ने बिहार और अपने पुरखों की धरती को अपना बताते हुए कहा था कि आज मैं जो भी हूं, इसी उर्वरा धरती की देन है. मैं ये नहीं जानता कि मेरे पूर्वजों के परिवार के लोग कौन हैं, लेकिन इस धरती पर पहुंचते ही ऐसा आभास हो रहा है कि हर घर मेरा अपना ही है. बाहरी कड़ियां Virtual Seychelles official portal of the Republic of Seychelles The Seychelles Nation, a government-supported newspaper https://www.mycelebclub.com/2020/10/seychelles-president-wavell-ramkalavan.html The Regar Major opposition newspaper, extensive investigative journalism and exposés. Pictures of Seychelles सेशेल्स अफ़्रीका हिन्द महासागर के द्वीप हिन्द महासागर के द्वीपसमूह देश
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF
दलसिंहसराय
दलसिंहसराय , भारत के बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले में एक शहर और नगर परिषद (नगर परिषद) है। यह बिहार के अनुमंडलों और प्रखंडों में से एक है। यह बलान नदी के तट पर स्थित है। दलसिंहसराय शहर ब्रिटिश काल के दौरान एक तम्बाकू और नील उत्पादन केंद्र था। विवरण दलसिंहसराय बालन नदी के तट पर स्थित है। यह शहर अंग्रेजों के समय एक तम्बाकू और इंडिगो उत्पादन केंद्र था। शहर के बारे में एक मिथक है कि दलसिंहसराय बिहार का पहला रेलवे स्टेशन था और भारत का दूसरा। दलसिंह सराय एक 'नगर परिषद' क्षेत्र है। यह बिहार के समस्तीपुर मंडल के चार अनुमंडल में से एक अनुमंडल भी है साथ ही अंचल और ब्लॉक में से एक 'उपखंड' भी है। 2010 से पहले दलसिंहसराय विधनसभा निर्वाचन क्षेत्र था, परंतु 2010 में भारत के परिसीमन आयोग ने इसे विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से हटा दिया। अब यह "उजियारपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र " और "उजियारपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र" के अंतर्गत आता है हालांकि आंशिक रूप से इसके पूर्वी भाग "बिभूतिपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र" के अंतर्गत आता है। श्री आलोक कुमार मेहता उजियारपुर विधानसभा सीट के विधायक हैं, जो वर्तमान बिहार के गठबंधन की सरकार में "सहकारिता मंत्री" हैं और श्री नित्यानंद राय उजियारपुर लोकसभा सीट के सांसद हैं जो इस समय केंद्र में राज्य के गृह मंत्री ह जबकि बिभूतिपुर विधानसभा सीट के विधायक श्री अजय कुमार हैंैं। दलसिंहसराय में आबादी बहुत है लेकिन हिंदू बहुसंख्यक हैं जबकि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। अतीसेेहीं ं दलसिंहसराय "मिथिला राज्य" के अंतर्गत आता है इसलिए यहाँ हम मिथिला की संस्कृति को बहुत आसानी से देख सकते हैं। मैथिली जो पूरी दुनिया में सबसे मधुर भाषा है, यहाँ मुख्य रूप से बोली जाती है और साथ ही यहाँ हिंदी भी बोली जाती है। विद्यापतिधाम जिसे "बिहार का देवघर" कहा जाता यहीं पर स्व.विद्यापति ठाकुर को निर्वान की प्राप्ति हुई थी। , दलसिंहसराय उपखंड के अंतर्गत आता है। दलसिंहसराय प्रखंड में गौसपुर इनायतकवटा, , अजनौलपगड़ाराबल्लोो च,बसढिया क आदि 45 गाँव शामिल हैं। यह रेलवे या सड़क नेटवर्क के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह सजुड़ा़ा हुआ ह दलसिंहसराय रेलवे लाइन सोनपुर मंडल के अंतर्गत आता है, जबकि समस्तीपुर जं. की दूरी 23 km, हाजीपुर जं. 129 km और सोनपुर जं. 134 km, पटना जं. 137 km (भाया बरौनी मोकामा जबकि भाया समस्तीपुर, हाजीपुर, दीघा घाट , पटलीपुत्र 161 km) , दरभंगा जं. 60 km, बरौनी जं. 27 km, मुज़फरपुर जं. 75 km की दूरी पर स्थित है। ै। इतिहास इसका नाम अघोरी के 9 वें गुरु दलपत सिंह के नाम पर रखा गया है। इससे पहले इसे अघोरिया घाट कहा जाता था। यह शहर ब्रिटिश शासन के दौरान इंडिगो की खेती का केंद्र रहा है। 1902 में पूसा में इस शहर के करीब एक इंडिगो रिसर्च इंस्टीट्यूट भी खोला गया। आस-पास के क्षेत्रों में तंबाकू की अधिक मात्रा होने के कारण ब्रिटिश शासन के अधीन एक सिगरेट कारखाना भी था। सड़कें दलसिंगसराय सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -28 पर स्थित है, जो बरौनी (बिहार) को गोरखपुर होते हुए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से जोड़ता है। यह SH 88 से भी जुड़ा है जो इसे रोसरा और कई और जगहों से जोड़ता है। रेलवे दलसिंहसराय के बारे में एक मिथक है कि यह भारत का दूसरा सबसे पुराना रेलवे स्टेशन और बिहार का पहला रेलवे स्टेशन है। दलसिंहसराय एक तम्बाकू उत्पादन केंद्र था, तैयार तम्बाकू उत्पादों को रेलवे के माध्यम से शेष भारत में पहुँचाया जाता था, ब्रिटिश सरकार ने तम्बाकू उत्पादों के परिवहन के लिए दलसिंहसराय में एक रेलवे स्टेशन का निर्माण किया। यह बरौनी जंक्शन और समस्तीपुर जंक्शन के बीच कई आधुनिक सुविधाओं वाला मुख्य रेलवे स्टेशन है। पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर की कई प्रमुख ट्रेनें जैसे गरीब रथ सुपरफास्ट एक्सप्रेस, वैशाली सुपर फास्ट एक्सप्रेस, अवध आसम एक्सप्रेस आदि यहां रुकती हैं। यह रेलवे से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर के सोनीपुर डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह रेलवे नेटवर्क के साथ भारत के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। लगभग हैं। दलसिंगसराय रेलवे स्टेशन पर 42 यात्री ट्रेनें और 17 मालगाड़ियाँ रुकती हैं। दलसिंहसराय में रुकने वाली सामान्य ट्रेनें निम्नलिखित हैं: - दलसिंह सराय आगमन डिपार्टमेंट्स स्टॉप टाइम के दौरान ट्रेन का नाम (सं।) Dhn स्मि स्पेशल (03327) 04:03 04:05 2 शनिवार Mfp कोआ स्पेशल (05226) 16:07 16:09 2 मिनट शनिवार कोआ Mfp विशेष (05225) 20:50 20:52 2 मिनट रविवार अबाद असम एक्सप्रेस (15609) 14:54 14:55 1 मिनट रोज़ घी जीवछ लिन (25610) 08:17 08:18 1 मिनट रोज़ सीपीआर टाटा एक्सप्रेस (18182) 17:49 17:51 2 मिनट रोज़ Ljn Bju Express (15204) 07:30 07:32 2 मिनट रोज़ वैशाली एक्सप्रेस (12553) 10:00 10:01 1 मिनट रोज़ रविवार को छोड़कर इंटरसिटी एक्सप्रेस (13225) 15:16 15:17 1 मिनट मिथिला एक्सप्रेस (13022) 15:55 15:56 1 मिनट रोज़ गंगा सागर एक्सप्रेस (13186) 20:06 20:07 1 मिनट रोज़ रविवार को छोड़कर इंटरसिटी एक्सप्रेस (13226) 11:10 11:11 मिनट ( यह ट्रेन वर्तमान में जयनगर, समस्तीपुर, मुज़फरपुर, हाजीपुर पटलीपुत्र होते पटना जाती है, दलसिंहसराय से प्रस्थान नहीं करती है) बाग एक्सप्रेस (13019) 08:10 08:11 1 मिनट रोज़ Bju Ljn एक्सप्रेस (15203) 21:06 21:07 1 मिनट रोज़ गंगासागर एक्सप्रेस (13185) 04:30 04:31 1 मिनट रोज़ जनसेवा एक्सप्रेस (13419) 18:45 18:46 1 मिनट रोज़ जनसेवा एक्सप्रेस (13420) 00:31 00:32 1 मिनट रोज़ मौर्य एक्सप्रेस (15027) 06:10 06:11 1 मिनट रोज़ टाटा सीपीआर एक्सप्रेस (18181) 10:04 10:05 1 मिनट रोज़ मिथिलांचल एक्सप्रेस (13155) 07:26 07:27 1 मिनट गुरुवार / रविवार गरीब रथ एक्सप्रेस (12203) 17:45 17:46 1 मिनट मिथिलांचल एक्सप्रेस (13156) 16:07 16:08 1 मिनट सोमवार / शनिवार अवध असम एक्सप्रेस (15910) 08:05 08:07 2 मिनट रोज़ तिरहुत एक्सप्रेस (13157) 07:26 07:27 1 मिनट मंगलवार Ntsk Jivachh Li (25910) 08:06 08:07 1 मिनट रोज़ तिरहुत एक्सप्रेस (13158) 16:07 16:08 1 मिनट बुधवार Rxl Hwh एक्सप्रेस (13044) 02:06 02:07 1 मिनट गुरुवार / शनिवार बाग एक्सप्रेस (13020) 22:00 22:02 2 मिनट रोज़ कोया स्मि एक्सप्रेस (13165) 09:04 09:05 1 मिनट शनिवार मौर्य एक्सप्रेस (15028) 16:34 16:36 2 मिनट रोज़ Shc Garib Rath (12204) 06:45 06:47 2 मिनट बुधवार / शनिवार / रविवार होव आरएक्सएल एक्सप्रेस (13043) 09:04 09:05 1 मिनट शुक्रवार / बुधवार वैशाली एक्सप्रेस (12554) 16:20 16:22 2 मिनट रोज़ बरौनी ग्वालियर मेल (11123) 19:15 19:16 1 मिनट रोज़ ग्वालियर बरौनी मेल (11124) 12:50 12:52 2 मिनट मिथिला एक्सप्रेस (13021) 02:40 02:41 1 मिनट रोज़ धनबाद स्पेशल (03318) 12:58 13:00 2 मिनट (रविवार, मंगलवार, शुक्रवार) कोलकाता एक्सप्रेस (13166) 02:06 02:07 1 मिनट रविवार अबध असम एक्सप्रेस (15909) 14:55 14:56 1 मिनट रोज़ इन्हें भी देखें समस्तीपुर ज़िला सन्दर्भ बिहार के शहर समस्तीपुर जिला समस्तीपुर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A4%B2%E0%A4%9F%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE
पलटी कक्षा
पलटी कक्षा या फ्लिप्ड क्लासरूम अनुदेशात्मक रणनीति और ब्लेंडेड लर्निंग का एक प्रकार है| यह अनुदेशात्मक सामग्री को कक्षा के बाहर उपलब्ध करा कर परंपरागत शिक्षात्मक व्यवस्था को बदलता है। पलटी कक्षा में छात्र प्रशिक्षक के नेतृत्व में ऑनलाइन लेक्चर देखते है, ऑनलाइन चर्चा करते है और रिसर्च करते है। परंपरागत और पलटी शिक्षा में तुलना पारंपरिक शिक्षण अनुदेश में अध्यापक का ध्यान पाठ पर और सूचना देना होता है| अध्यापक विधयर्थी के सवालो का जवाब देते है| कक्षा में परंपरागत अनुदेश, पाठ डाइडक्टिक और कॉंटेंट ओरियेनटेड होता है| पारंपरिक मॉडल में छात्र सगाई छात्रों शिक्षक द्वारा आवेदन पत्र तैयार किया कार्य पर स्वतंत्र रूप से या छोटे समूहों में काम करते हैं जिसमें गतिविधियों को सीमित किया जा सकता है। कक्षा चर्चा आम तौर पर बातचीत के प्रवाह को नियंत्रित करने वाले शिक्षक , पर केंद्रित कर रहे हैं। आमतौर पर, शिक्षण की इस पद्धति भी उदाहरण के लिए , छात्रों के एक पाठ्यपुस्तक से पढ़ने या एक समस्या सेट पर काम करके एक अवधारणा का अभ्यास करने का काम देने के शामिल , स्कूल के बाहर। रूप से फ़्लिप कक्षा जानबूझकर इस तरह के ऑनलाइन वीडियो के रूप में शैक्षिक प्रौद्योगिकी कक्षा की सामग्री के बाहर वितरित करने के लिए उपयोग किया जाता है , जबकि वर्ग समय , अधिक से अधिक गहराई में विषयों की पड़ताल और सार्थक सीखने के अवसर पैदा करता है , जिसमें एक शिक्षार्थी केंद्रित मॉडल के लिए अनुदेश पाली।</ref> एक से फ़्लिप कक्षा में, सामग्री वितरण रूपों की एक किस्म ले सकता है। अक्सर, शिक्षक या तीसरे पक्ष द्वारा तैयार वीडियो सबक ऑनलाइन सहयोगात्मक चर्चा, डिजिटल अनुसंधान, और पाठ रीडिंग इस्तेमाल किया जा सकता है, हालांकि , सामग्री वितरित करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पलटी कक्षाओं भी में वर्ग गतिविधियों को फिर से परिभाषित। में वर्ग से फ़्लिप कक्षा साथ सबक सामग्री में छात्रों को शामिल करने, अन्य पद्धतियों के बीच गतिविधि सीखने या अधिक परंपरागत होमवर्क समस्याओं, शामिल हो सकते हैं। वर्ग गतिविधियों अलग अलग है लेकिन शामिल हो सकते हैं: में गहराई प्रयोगशाला प्रयोगों, मूल दस्तावेज विश्लेषण, बहस या भाषण प्रस्तुति, वर्तमान घटना चर्चा, सहकर्मी की समीक्षा करने, परियोजना आधारित अधिगम, और कौशल विकास या अवधारणा अभ्यास गणितीय प्रौद्योगिकियों गणित जोड़ तोड़ का उपयोग कर और उभरते सक्रिय सीखने के इन प्रकार के अत्यधिक विभेदित अनुदेश के लिए अनुमति देते हैं क्योंकि, और अधिक समय इस तरह की समस्या खोजने, सहयोग, डिजाइन और छात्रों के रूप में समस्या को सुलझाने के रूप में उच्च आदेश सोच कौशल पर कक्षा में खर्च किया जा सकता है, कठिन समस्याओं से निपटने समूहों, अनुसंधान के क्षेत्र में काम करते हैं, और उनके शिक्षक और साथियों की मदद से ज्ञान का निर्माण। फ़्लिप कक्षाओं स्कूलों और कॉलेजों दोनों में लागू किया गया है और कार्यान्वयन की विधि में बदलती मतभेद है पाया गया। एक से फ़्लिप कक्षा में छात्रों के साथ एक शिक्षक की बातचीत और अधिक व्यक्तिगत और कम उपदेशात्मक हो सकता है, और वे में भाग लेते हैं और उनके सीखने का मूल्यांकन के रूप में छात्रों को सक्रिय रूप से ज्ञान के अधिग्रहण और निर्माण में शामिल रहे हैं। इतिहास हार्वर्ड के प्रोफेसर एरिक मज़ुर वह साथियों के अनुदेश नामक एक शिक्षण रणनीति के विकास के माध्यम से फ़्लिप शिक्षण प्रभावित करने अवधारणाओं के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक उपयोगकर्ता के मैनुअल: मज़ुर , हकदार सहकर्मी निर्देश रणनीति की रूपरेखा १९९७ में एक पुस्तक प्रकाशित की। उन्होंने कहा कि कक्षा में कक्षा और जानकारी आत्मसात से बाहर जानकारी के हस्तांतरण के लिए ले जाया गया है, जो अपने दृष्टिकोण है, उसे उनकी बजाय व्याख्यान के सीखने में छात्रों के कोच के लिए अनुमति दी है कि पाया। १९९३ में, एलिसन राजा लेख में "की ओर गाइड करने के लिए स्टेज पर ऋषि से प्रकाशित" , राजा नहीं बल्कि सूचना प्रसारण से अर्थ के निर्माण के लिए वर्ग समय के उपयोग के महत्व पर केंद्रित है। सीधे "फ्लिप्पिंग" एक कक्षा की अवधारणा को दर्शाता हुआ नहीं है, जबकि राजा के काम अक्सर एक उलटा सक्रिय सीखने के लिए शैक्षिक अंतरिक्ष के लिए अनुमति देने के लिए के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में पेश किया जाता है। कॉलेज स्तर पर रूप से फ़्लिप कक्षाओं पर उनके अनुसंधान की चर्चा है, जो (२०००), 'एक समावेशी सीखने के माहौल बनाने के लिए एक प्रवेश द्वार कक्षा इनवरटिंग "लगे, प्लैट और ट्रेग्लीया हकदार एक पत्र प्रकाशित किया। दो कॉलेज अर्थशास्त्र पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित कर अपने अनुसंधान में लगे, प्लैट, और ट्रेग्लीया एक (जैसे कंप्यूटर या वीसीआर के रूप में मीडिया को कक्षा से बाहर व्याख्यान के माध्यम से जानकारी प्रस्तुति चलती कक्षा का उलटा से उपलब्ध हो जाता है कि कक्षा समय का लाभ उठाने कर सकते हैं कि जोर ) शैली सीखने की एक विस्तृत विविधता के साथ छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए। विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के व्याख्याता के वीडियो और समन्वित स्लाइड स्ट्रीमिंग के साथ बड़े व्याख्यान आधारित कंप्यूटर विज्ञान पाठ्यक्रम में व्याख्यान को बदलने के लिए तैनात किए गए सॉफ्टवेयर। शायद रूप से फ़्लिप कक्षा के लिए सबसे पहचानने योगदानकर्ता सलमान खान है। २००४ में, खान ने कहा कि वह दर्ज की गई सबक उसे वह महारत हासिल थी क्षेत्रों को छोड़ और उसे परेशान कर रहे थे कि कुछ हिस्सों को फिर से खेलना होता है कि चलो महसूस किया, क्योंकि वह ट्यूशन था एक छोटे भाई के अनुरोध पर वीडियो रिकॉर्डिंग शुरू किया। सलमान खान खान अकादमी की स्थापना इस मॉडल पर आधारित है। कुछ के लिए, खान अकादमी से फ़्लिप कक्षा का पर्याय बन गया है, हालांकि, इन वीडियो से फ़्लिप कक्षा की रणनीति का ही एक रूप है। बढ़ाया सीखने के लिए विस्कॉन्सिन कोलॅबोरेटरी फ़्लिप किया और मिश्रित सीखने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दो केन्द्रों का निर्माण किया है। कार्यक्रम में शामिल लोगों के लिए कक्षा संरचना घरों प्रौद्योगिकी और सहयोग के अनुकूल सीखने रिक्त स्थान, और जोर इस तरह से फ़्लिप कक्षा के रूप में गैर-पारंपरिक शिक्षण रणनीतियों के माध्यम से व्यक्तिगत सीखने पर रखा गया है। सन्दर्भ शिक्षा की पद्धतियां
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6
तर्कबुद्धिवाद
आधुनिक अर्थों में उन सभी विचारों को तर्कबुद्धिवाद (rationalism) की श्रेणी में गिना जाता है जो ज्ञान के स्रोत या न्यायसंगति के लिये तर्क (रीजन) का सहारा लेते हैं। कभी-कभी इसे बुद्धिवाद (Intellectualism) का समानार्थी समझ लिया जाता है। तर्कबुद्धिवादी मानते हैं कि ज्ञान का एकमात्र अथवा सर्वश्रेष्ठ साधन तर्कबुद्धि है और थोड़े से प्रागनुभविक या तर्कबुद्धिमूलक सिद्धान्तों या संप्रत्ययों (concepts) से निगमन द्वारा सम्पूर्ण तात्त्विक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। तर्कबुद्धिवाद, इंद्रियानुभववाद (Empiricism) का विरोधी है। इटली में, तर्कवाद और विज्ञान की कार्यप्रणाली पर अध्ययन बीसवीं शताब्दी में विशेष रूप से गुआल्टिएरो गैलमैनिनी (Gualtiero Galmanini) द्वारा विकसित किया गया था, जिन्होंने बाद में अपने समय के कई स्टार्चिटेक्ट्स को प्रभावित करके एक छाप छोड़ी। बाहरी कड़ियाँ Markie, Peter (2004), "Rationalism vs. Empiricism", Stanford Encyclopedia of Philosophy, Edward N. Zalta (ed.), John F. Hurst (1867), History of Rationalism Embracing a Survey of the Present State of Protestant Theology दर्शन दर्शन का इतिहास
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%20%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%98%E0%A4%9F%E0%A4%A8%E0%A4%BE
रासायनिक दुर्घटना
रासायनिक दुर्घटना किसी एक या अधिक संकट पैदा करने वाले पदार्थों के अवांछित रूप से निकलने को रासायनिक दुर्घटना कहते हैं। इससे मानव स्वास्थ्य को या पर्यावरण को क्षति हो सकती है। रसायनों से आग लग सकती है, विस्फोट हो सकते हैं, विषाक्त पदार्थ हवा या जल में मिश्रित हो सकते हैं, जिससे लोग बीमारी, चोट, मृत्यु आदि हो सकते हैं। रासायनिक आपात स्थितियाँ रासायनिक आपात स्थिति (इमर्जेन्सी) उस समय उपस्थित होती है, जब किसी दुर्घटना अथवा आक्रमण के दौरान, जहरीले रसायन-हवा में छोड़ दिए जांए, भोजन में मिल जाएँ अथवा पानी में छोड़ दिए जाएँ। ये रसायन-गैस, द्रव अथवा ठोस रूप में हो सकते हैं। ये रसायन लोगों तथा पर्यावरण के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। ये रसायन उस स्थिति में लोगों को नुकसाने पहुँचा सकते हैं, जब ये साँस के साथ शरीर में चले जाएँ, त्वचा के माध्यम से सोख लिए जाएँ अथवा निगल लिए जाएँ। रासायनिक आपात स्थिति की पहचान रासायनिक आपात स्थिति की निम्नलिखित लक्षणों के माध्यम से पहचान करेंः आँखों में पानी आना साँसे छोटी होना अथवा रुँघना हिलने-डुलने अथवा चलने में समस्याएँ विचारों में असमंजस फड़कन के साथ संचलन त्वचा में जलन पक्षियों, मछलियों अथवा छोटे जानवरों का अधिक बीमार होना अथवा मरना भी रासायनिक आपात स्थिति का संकेत हो सकता है। किसी रासायनिक आपात स्थिति के दौरान टेलीविजन, रेडियो अथवा इंटरनेट पर रिपोर्टें देखें/सुनें स्थानीय अथवा राज्य प्रशासन के अधिकारी आपको जानकारी देंगे कि किन लक्षणों को देखना है। अधिकारी आपको जानकारी देंगे कि घर में रहना है अथवा बाहर जाना है। यदि आपसे घर में रहने के लिए कहा जाता है तोः सभी भट्ठियॉं, एयर कंडीशनर तथा पंखे बंद कर दें। रोशनदान बंद कर दें। सभी दरवाजे एवं खिड़किया बंद करके ताले लगा दें। यदि आप बीमारी का अनुभव करते हैं, तो तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें अथवा अस्पताल जाएँ। यदि आप कोई रसायन निकलता देखते हैं, तोः तुरंत उस स्थान को छोड़ दें। किसी कपड़े से अपने नाक और मुँह को इस प्रकार ढक लें जिससे हवा छनकर आए परंतु साँस आती रहे। कोई सुरक्षित स्थान खोजें। यदि यह रसायन किसी भवन में है तो उस रसायन के बीच से गुजरें बिना भवन छोड़ दें। यदि आप वह भवन नहीं छोड़ सकते तो रसायन से जितनी दूर जाना संभव हो, उतनी दूर चले जाएँ। यदि आप बाहर हैं तो वह मार्ग खोजें, जिससे आप सर्वाधिक जल्दी उस रसायन से दूर चले जाएँ। यदि आप जान सकते हैं कि हवा किस तरफ चल रही है तो उसकी विपरीत दिशा में अथवा हवा आने की दिशा में आगे बढ़ें। यदि आप हवा आने की दिशा में नहीं रह सकते अथवा रसायन से दूर नहीं जा सकते तो भवन के भीतर जाएँ। यदि पुलिस को रासायनिक आपात स्थिति की जानकारीे नहीं है तो उससे संपर्क करें। यदि आपने कुछ रसायन ग्रहण कर लिया है अथवा आपको लगता है कि ऐसा हो गया है, तोः अपने कपड़े उतारें और उन्हें एक प्लास्टिक की थैली में डाल लें। इस थैली को मज़बूती से बंद कर दें। स्नान करें अथवा अपनी त्वचा एवं बालों को साबुन एवं पानी से भली प्रकार साफ करें। रसायन को अपनी त्वचा में मलें नहीं। यदि बाहर हैं तो किसी हौज अथवा जल स्रोत की तलाश करें। साफ कपड़े पहन लें। यदि आप पर रासायनिक आपात-स्थिति के कोई लक्षण दृष्टिगोचर हों, तो चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करें। यदि लोगों पर कुछ निश्चित रसायन लग जाते हैं, तो अधिकारी उनका ‘अविषाक्तन‘ करा सकते हैं। इसमें कपड़े उतारना तथा त्वचा से रसायन हटाने के लिए स्नान शामिल हो सकता है। ऐसा हस्तन योग्य (पोर्टेबल) स्नान इकाई में कराया जा सकता है। इन्हें भी देखें भोपाल गैस काण्ड विपदा प्रबंधन रासायनिक दुर्घटना
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कालभोज / बप्पा रावल
बप्पा रावल महेन्द्र-2 के पुत्र थे इनका जन्म 713 ई. मे ईडर(गुजरात) मे हुआ हरीत ऋषि की गाये चराते थे 734 ई. हरीत ऋषि के आशीर्वाद से चितौडगढ के शासक मान मौर्य को पराजित कर मेवाड़ के शासक बने मेवाड़ की राजधानी नागदा को बनायी एकलिंग देव का मंदिर , सास - बहु का मंदिर(नागदा) आदिवराह मंदिर , ईरान के हज्जात , अरब के जुनैद , अफगान के सलीम को पराजित किया मेवाड़ मे सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाए अजमेर मे इनके काल का 115 र्गेन का सोने का सिक्का मिला है 753 ई. मे राजकार्य से सन्यास ले लिया वर्तमान पाकिस्तान मे एक सैनिक चौकी स्थापित की जिसका नाम रावलपिंडी रखा
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B8
सुनीता विलियम्स
सुनीता विलियम्स (जन्म: १९ सितंबर, १९६५ यूक्लिड, ओहायो में) अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के माध्यम से अंतरिक्ष जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला है। यह भारत के गुजरात के अहमदाबाद से ताल्लुक रखती है। इन्होंने एक महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में 127 दिनों तक अंतरिक्ष में रहने का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके पिता दीपक पाण्डया अमेरिका में एक डॉक्टर हैं। प्रारंभिक जीवन सुनीता लिन पांड्या विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर 1965 को अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में हुआ था। मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल पास करने के बाद 1987 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स में बीएस (स्नातक उपाधि) की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात 1995 में उन्होंने फ़्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में एम.एस. की उपाधि हासिल की। उनके पिता डॉ॰ दीपक एन. पांड्या एक जाने-माने तंत्रिका विज्ञानी (एम.डी) हैं, जिनका संबंध भारत के गुजरात राज्य से हैं। उनकी माँ बॉनी जालोकर पांड्या स्लोवेनिया की हैं। उनका एक बड़ा भाई जय थॉमस पांड्या और एक बड़ी बहन डायना एन, पांड्या है। जब वे एक वर्ष से भी कम की थी तभी पिता 1958 में अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बस गए थे। हालाँकि बच्चे अपने दादा-दादी, ढेर सारे चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों को छो़ड़ कर ज्यादा खुश नहीं थे, लेकिन परिवार ने पिता दीपक को उनके चिकित्सा पेशे में प्रोत्साहित किया। करियर जून 1998 में उनका अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा में चयन हुआ और प्रशिक्षण शुरू हुआ। सुनीता भारतीय मूल की दूसरी महिला हैं जो अमरीका के अंतरिक्ष मिशन पर गईं। सुनीता विलियम्स ने सितंबर / अक्टूबर 2007 में भारत का दौरा भी किया। जून, 1998 से नासा से जुड़ी सुनीता ने अभी तक कुल 30 अलग-अलग अंतरिक्ष यानों में 2770 उड़ानें भरी हैं। साथ ही सुनीता सोसाइटी ऑफ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलेट्स, सोसाइटी ऑफ फ्लाइट टेस्ट इंजीनियर्स और अमेरिकी हैलिकॉप्टर एसोसिएशन जैसी संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। व्यक्तिगत जीवन उनका विवाह माइकल जे. विलियम्स से हुआ।वे सुनीता पंड्या के सहपाठी रह चुके है। वे नौसेना पोत चालक, हेलीकाप्टर पायलट, परीक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक, गोताखोर, तैराक, धर्मार्थ धन जुटाने वाली, पशु-प्रेमी, मैराथन धावक और अब अंतरिक्ष यात्री एवं विश्व-कीर्तिमान धारक हैं। उन्होने एक साधारण व्यक्तित्व से ऊपर उठकर अपनी असाधारण संभाव्यता को पहचाना और कड़ी मेहनत तथा आत्मविश्वास के बल पर उसका भरपूर उपयोग किया। सम्मान और पुरस्कार उन्हें सन २००८ में भारत सरकार द्वारा विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें नेवी कमेंडेशन मेडल (2), नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल, ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल जैसे कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें भी देखें स्कॉट केली कल्पना चावला एडगर मिशेल नील आर्मस्ट्रांग राकेश शर्मा सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ सुनीता विलियम्स की जीवनी, नासा फ़रवरी 2008 निराली पत्रिका: कामकाजी महिला: सुनीता विलियम्स नवंबर 2004 २००८ पद्म भूषण अंतरिक्षयात्री भारतीय अमेरिकी अमेरिका के अंतरिक्षयात्री भारत के अंतरिक्षयात्री 1965 में जन्मे लोग
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तिलका माँझी
तिलका माँझी, (संथाल:ᱵᱟᱵᱟ ᱛᱤᱞᱠᱟᱹ ᱢᱟᱡᱷᱤ) (11 फ़रवरी 1750 - 13 जनवरी 1785) तिलका मांझी उर्फ जबरा पहाड़िया जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया। इनमें सबसे लोकप्रिय तिलका मांझी हैं। परिचय जबरा पहाड़िया (तिलका मांझी) भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे। सिंगारसी पहाड़, पाकुड़ के जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म 11 फ़रवरी 1750 ई. में हुआ था। 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों-सामंतों व अंग्रेजी शासक की नींद उड़ाए रखा। पहाड़िया लड़ाकों में सरदार रमना अहाड़ी और अमड़ापाड़ा प्रखंड (पाकुड़, संताल परगना) के आमगाछी पहाड़ निवासी करिया पुजहर और सिंगारसी पहाड़ निवासी जबरा पहाड़िया भारत के आदिविद्रोही हैं। दुनिया का पहला आदिविद्रोही रोम के पुरखा आदिवासी लड़ाका स्पार्टाकस को माना जाता है। भारत के औपनिवेशिक युद्धों के इतिहास में जबकि पहला आदिविद्रोही होने का श्रेय पहाड़िया आदिम आदिवासी समुदाय के लड़ाकों को जाता हैं जिन्होंने राजमहल, झारखंड की पहाड़ियों पर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लिया। इन पहाड़िया लड़ाकों में सबसे लोकप्रिय आदिविद्रोही जबरा या जौराह पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हैं। इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में जबरा ने क्लीवलैंड को मार डाला। बाद में आयरकुट के नेतृत्व में जबरा की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ जिसमें कई लड़ाके मारे गए और जबरा को गिरफ्तार कर लिया गया। कहते हैं उन्हें चार घोड़ों में बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया। पर मीलों घसीटे जाने के बावजूद वह पहाड़िया लड़ाका जीवित था। खून में डूबी उसकी देह तब भी गुस्सैल थी और उसकी लाल-लाल आंखें ब्रितानी राज को डरा रही थी। भय से कांपते हुए अंग्रेजों ने तब भागलपुर के चौराहे पर स्थित एक विशाल वटवृक्ष पर सरेआम लटका कर उनकी जान ले ली। हजारों की भीड़ के सामने जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तारीख थी संभवतः 13 जनवरी 1785। बाद में आजादी के हजारों लड़ाकों ने जबरा पहाड़िया का अनुसरण किया और फांसी पर चढ़ते हुए जो गीत गाए - हांसी-हांसी चढ़बो फांसी ...! - वह आज भी हमें इस आदिविद्रोही की याद दिलाते हैं। पहाड़िया समुदाय का यह गुरिल्ला लड़ाका एक ऐसी किंवदंती है जिसके बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ नाम भर का उल्लेख करते हैं, पूरा विवरण नहीं देते। लेकिन पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में इसकी छापामार जीवनी और कहानियां सदियों बाद भी उसके आदिविद्रोही होने का अकाट्य दावा पेश करती हैं। तिलका माँझी उर्फ जबरा पहाड़िया विवाद तिलका मांझी संताल थे या पहाड़िया इसे लेकर विवाद है। आम तौर पर तिलका मांझी को मूर्मु टोटेम का बताते हुए अनेक लेखकों ने उन्हें संताल आदिवासी बताया है। तिलका मांझी के पिता का नाम सुंदर मुर्मू था. सुंदर मुर्मू तिलकपुर गांव के ग्राम प्रधान (आतु मांझी) थे. उनके पिता के नाम से साफ पता चलता है तिलका मांझी संथाल परिवार में जन्मे एक संथाल आदिवासी समुदाय के थे. तिलका मांझी (मुर्मू) का जन्म 11फरवरी 1750 को हुआ है. सुल्तानगंज भागलपुर क्षेत्र में पहाड़िया जनजाति लोगों का भी निवास करते थे, तिलका मांझी संथाल और पहाड़िया जनजाति के बीच में रहकर पले बढ़े हैं, लेकिन फिर भी संतालों का हक और अधिकार के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने में कभी पीछे नहीं हटे है. संताल एवं आदिवासी समुदाय में इतिहासकारों की कमी होने के कारण दूसरे जाति समुदाय के इतिहासकारों ने इस संथाल समुदाय के इतिहास को तड़ मरोड़ा जा रहा है इतिहास के साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है, इसलिए ही तिलका मांझी को पहाड़िया जनजाति के साथ कुछ इतिहासकारों द्वारा जोड़ा जा रहा है जो गलत जानकारी है. मांझी और मुर्मू सरनेम संतालों का है और तिलका और सुंदर नाम भी अभी भी संतालों के बीच मौजूद हैं. तिलका मांझी का असली नाम तिलका मुर्मू है जबरा पहाड़िया नहीं. तिलका मांझी संतालो के बीच काफी लोकप्रिय है और उनका पुजा भी किया जाता है लेकिन पहाड़िया जनजाति के लोग तिलका मांझी का पुजा पाठ या कोई अन्य उनके नाम पर समारोह आयोजित नहीं देखने को मिलता है. संथालों के अनेकों लोक गीतों में उनका नाम है। और रही बात इतिहास की तो भारत देश मे सदैव उच्च जाति और पैसे वालों के आगे झुकता रहा है । शुरू में संतालों का स्थाई निवास स्थान नहीं था, स्थाई नहीं होने का कारण संतालों को दूसरे जाति समुदाय के लोगों द्वारा भागाया जाता रहा है. झारखंड प्रदेश में सर्वप्रथम गिरिडीह जिला (शिर दिशोम शिखर) क्षेत्र में प्रवेश किया. धीरे धीरे जनसंख्या बढ़ने लगी और संतालों का क्षेत्र भी बढ़ने लगा. लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार संताल आदिवासी समुदाय के लोग 1770 के अकाल के कारण 1790 के बाद संताल परगना की तरफ आए और बसे। लेकिन संताल (आगील हापड़ाम कोवा काथा ) इतिहास के आधार पर संताल सर्वप्रथम वर्तमान झारखंड के उत्तर पूर्व क्षेत्र तथा वर्तमान बिहार राज्य के दक्षिण क्षेत्र में निवास करते थे. अंग्रेज शासन के पहले संताल अपने को होड़ कहते थे. संतालों के लिए संताल शब्द अंग्रेजों के समय आया है. संताल का मूल शब्द है सांवता. सांवता का अर्थ होता है साथ साथ रहना. कलांतर में इनका शब्द सांवता से सांवताल, सांवतार, संताल, सांतार, सांथाल, संताड़ होने लगा. The Annals of Rural Bengal, Volume 1, 1868 By Sir William Wilson Hunter (page no 219 to 227) में साफ लिखा है कि संताल लोग बीरभूम से आज के सिंहभूम की तरफ निवास करते थे। 1790 के अकाल के समय उनका माइग्रेशन आज के संताल परगना तक हुआ। हंटर ने लिखा है, ‘1792 से संतालों नया इतिहास शुरू होता है’ (पृ. 220)। 1838 तक संताल परगना में संतालों के 40 गांवों के बसने की सूचना हंटर देते हैं जिनमें उनकी कुल आबादी 3000 थी (पृ. 223)। हंटर यह भी बताता है कि 1847 तक मि. वार्ड ने 150 गांवों में करीब एक लाख संतालों को बसाया (पृ. 224)। 1910 में प्रकाशित ‘बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर: संताल परगना’, वोल्यूम 13 में एल.एस.एस. ओ मेली ने लिखा है कि जब मि. वार्ड 1827 में दामिने कोह की सीमा का निर्धारण कर रहा था तो उसे संतालों के 3 गांव पतसुंडा में और 27 गांव बरकोप में मिले थे। वार्ड के अनुसार, ‘ये लोग खुद को सांतार कहते हैं जो सिंहभूम और उधर के इलाके के रहने वाले हैं।’ (पृ. 97) दामिनेकोह में संतालों के बसने का प्रामाणिक विवरण बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर: संताल परगना के पृष्ठ 97 से 99 पर उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त आर. कार्सटेयर्स जो 1885 से 1898 तक संताल परगना का डिप्टी कमिश्नर रहा था, उसने अपने उपन्यास ‘हाड़मा का गांव’ (Harmawak Ato) की शुरुआत ही पहाड़िया लोगों के इलाके में संतालों के बसने के तथ्य से की है। संतालों का अपना इतिहासकारों की कमी के कारण इतिहास को सही सही नहीं लिखा गया है, संताल को पहले अपने आप को होड़ से संबंधित होते थे, अंग्रेजों द्वारा संतालों को जब होड़ से संताल में परिवर्तन किया गया और अपना दस्तावेजों में लिखना प्रारम्भ किया तब के बाद से संतालों का इतिहास देखने को मिलता है. साहित्य में जबरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास 'शालगिरर डाके' की रचना की है। अपने इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी को मुर्मू गोत्र का संताल आदिवासी बताया है। यह उपन्यास हिंदी में 'शालगिरह की पुकार पर' नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है। हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने जबकि अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। ‘हूल पहाड़िया’ उपन्यास 2012 में प्रकाशित हुआ है। तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय नाम से एक शिक्षा का केंद्र स्थापित किया गया है। हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास हूल पहाड़िया मैं तिलका मांझी को जाबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। इन्हें भी देखें झारखंड झारखंड आंदोलन सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ संथाल परगना में पहाड़िया राज का इतिहास नेपथ्य का नायक – तिलका मांझी, राकेश बिहारी जंगलतरी में तिलका मांझी का विद्रोह (1783-84) तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय आदिवासी भारतीय (आदिवासी) झारखंड भागलपुर
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गति (भौतिकी)
यदि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में समय के सापेक्ष में स्थान परिवर्तन करती है, तो वस्तु की इस अवस्था को गति (motion/मोशन) कहा जाता है। सामान्य शब्दों में गति का अर्थ - वस्तु की स्थिति में परिवर्तन गति कहलाती है। गति (Motion)= यदि कोई वस्तु अपनी स्थिति अपने चारों ओर कि वस्तुओं की अपेक्षा बदलती रहती है तो वस्तु की इस स्थिति को गति कहते है। जैसे- नदी में चलती हुई नाव, वायु में उडता हुआ वायुयान आदि। परिभाषाएँ दूरी (distance): किसी दिए गए समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किए गए मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है। यह सदैव धनात्मक (+ve) होती हैं। विस्थापन (displacement): एक निश्चित दिशा में दो बिन्दुओं के बीच की लंबवत दूरी को विस्थापन कहते है। यह सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शून्य कुछ भी हो सकता है। चाल (speed): किसी वस्तु के दूरी की दर को चाल कहते हैं। अथार्त चाल = दूरी / समय यह एक अदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है। वेग (velocity ): किसी वस्तु के विस्थापन की दर को या एक निश्चित दिशा में प्रति सेकंड वस्तु द्वारा तय की विस्थापन को वेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड है। संवेग(momentum): किसी वस्तु के द्रव्यमान और वेग का गुणनफल उस वस्तु का संवेग कहलाता है। संवेग = वेग × द्रव्यमान SI मात्रक- किग्रा × मी/से त्वरण (acceleration): किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। इसका S.I. मात्रक मी/से2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (retardation ) कहते हैं। गति के प्रकार (१) रैखिक गति- जब कोई वस्तु किसी सरल या वर्क रेखा पर गति करती है, तो इस प्रकार की गति को रैखिक गति कहते है! (२) वृतीय गति- जब कोई वस्तु किसी वृताकार पथ पर गतिमान हो तो, इस प्रकार की गति को वृतीय गति कहते है! (३) दोलनी गति- जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिंदु के आगे-पीछे या ऊपर-नीचे गति करती है, तो इस प्रकार की गति को दोलनी गति कहते हैं! (४) आवर्त गति- वैसी गति जिसमे कोई कण किसी निश्चित समय अंतराल के बाद दुहरावे, तो इस प्रकार की गति को आवर्त गति कहते है! (५) अनियमित गति- जब कोई वस्तु अपनी गति की दिशा अनियमत रूप से परिवर्तित करती रहती है, तो इस प्रकार की गति को अनियमित गति कहते हैं! (६) घूर्णन गति- वैसी गति जिसमे कोई कण किसी बिंदु के चारो ओर बिना स्थान परिवर्तन के घूमता हो, तो उस प्रकार की गति को घूर्णन गति कहते हैं! सन्दर्भ इन्हें भी देखें गति विज्ञान गति के समीकरण गति के नियम गतिकीय तन्त्र बाहरी कड़ियाँ गति और गति के प्रकार गतिविज्ञान भौतिकी
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संत मिकेल देल फ़ाई
संत मिकेल देल फ़ाई (Sant Miquel del Fai) एक सिनोबिटिक (Cenobitic) बेनेडिक्टाइन (Benedictine) आश्रम है। यह बीकेस, कातालोनिया, स्पेन में स्थित है। इस ग्यारहवीं शताब्दी की इमारत को 1988 में बिएन दे इंतेरेस कल्चरल के रूप घोषित किया गया था। . स्थान यह आश्रम एक पूर्णतः सुरक्षित प्राकृतिक वातावरण में स्थित है जिसे पथरीली पहाड़ी चोटियाँ जिन्हें सिंगेल्स बेरती के नाम से कातालान के तट-पूर्व पहाड़ी में कहा जाता है। वास्तुकला और बनावट यहाँ का गिरजाघर एक रोमेनेस्क शैली का द्वार रखता है जो अर्थ-गोलाईदार महराब से बनता है। यहाँ के कॉलमों के ऊपर पेड़ की आकृतियाँ बनी हैं। गिरजाघर के फ़र्श के ऊपर दो पुराने गिरजाघरों के मुख्य पत्थर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। एक तरफ़ के छोटे गिरजाघर में तो क़बरें हैं। उनमें से एक 13 वीं सदी की बताई जाती है और समझा जाता है कि गुइल्लेम, अर्ल ओसोना और रामोन बेरेंगे प्रथम (Ramon Berenguer I, Count of Barcelona) की है जिसने अपने अधिकारों का त्याग करते हुए संत मिगल ने संयास ग्रहण किया था। दूसरी क़ब्र बताई जाती है कि अन्दरू आरबिज़ू की हो सकती है, जो नवारों में संयास लिए हुए थे परन्तु आश्रम को वस्तुएँ लाकर दिया करता था। एक पुराना हवादार घर है जो 15 शताब्दी से संब्ंधित है। कई वर्षों तक उसे एक अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल किया गया था मगर यह अपनी पुरानी बनावट के अनुरूप ही है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक जालस्थल कातालोनिया के पर्यटन के मार्गदर्शन का जालस्थल एक स्पेनी भाषा में संत मिकेल देल फ़ाई की जानकारी का जालस्थल संत मिकेल देल फ़ाई पर एक यूट्यूब वीडियो संत मिकेल देल फ़ाई के चित्र वाएमियो का एक वीडियो संत मिकेल देल फ़ाई पर आधारित संत मिकेल देल फ़ाई पर बारसेलोनिया की अमरीकी सोसाइटी के पर्यटन कार्यक्रम तेईस पवित्र स्थल जो प्रकृति से जोड़ते हैँ Costa Brava and Barcelona By Michael Lockwood and Teresa Farino, pages 3, 8, 15, 16,72, 73 & 134. गूगल पुस्तक फ़्लिकर पर संत मिकेल देल फ़ाई के प्राकृतिक वातावरण के चित्र इन्हें भी देखें बिएन दे इंतेरेस कल्चरल की सूची बारसेलोना प्रान्त में
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नशीद अस-सलाम अस-सुल्तानी
नशीद अस-सलाम अस-सुल्तानी (अरबी: نشيد وطني عماني‎) ओमान का राष्ट्रगान है। इसे १९७० में अपनाया गया था और ६ नवम्बर, १९९६ को संशोधित किया गया था। राष्ट्रगान के बोल (अरबी में) يا ربنا احفظ لنا جلالة السلطان والشعب بالأوطان بالعز والإيمان وليدم مؤيدا عاهلا ممجدا بالنفوس يفتدى ياعمان نحن من عهد النبي أوفياء من كرام العرب أبشري قابوس جاء فلتباركه السماء واسعدي والتقيه بالدعاء हिन्दी अनुवाद हे ईश्वर, हमारे राजा सुल्तान की सुरक्षा करें और हमारे देश के लोगों की, सम्मान और शान्ति समेत। कामना है कि वे दीर्घ जीवन जीएं, दृढ़ और समर्थित, उनका नेतृत्व गौरान्वित हो। उनके लिए हम अपना जीवन दे देंगे। कामना है कि वे दीर्घ जीवन जीएं, दृढ़ और समर्थित, उनका नेतृत्व गौरान्वित हो। हे ओमान, पैगम्बर के समय से हम कुलीनतम अरबों में सर्वाधिक समर्पित हैं। हर्षित रहो! काबूस आया है ईश्वर के आशीर्वाद से। उल्लासित रहो और उन्हें हमारी प्राथनाओं की सुरक्षा प्रदान करो। बाहरी कड़ियाँ नशीद अस-सलाम अस-सुल्तानी का वाद्यगान एशिया के राष्ट्रगान ओमान
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सरबजीत (फ़िल्म)
सरबजीत २०१६ की एक भारतीय हिन्दी सच्ची घटना पर आधारित एक जीवनी फ़िल्म है जिसका निर्देशन ओमंग कुमार ने किया है। फ़िल्म में ऐश्वर्या राय ,रणदीप हूडा तथा ऋचा चड्ढा मुख्य किरदार है। फ़िल्म सरबजीत सिंह पर आधारित है जिसमें सरबजीत सिंह का किरदार रणदीप हूडा ने तथा सरबजीत जीत की बहिन बलबीर कौर का किरदार ऐश्वर्या राय ने निभाया है। कलाकार ऐश्वर्या राय - दलबीर कौर रणदीप हूडा - सरबजीत सिंह ऋचा चड्ढा कहानी फ़िल्म की शुरुआत सन् १९९३ में होती है जब सरबजीत सिंह (रणदीप हूडा) एक गरीब किसान है जिन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई की है। इसके बाद वो अपने परिवार का साथ देने हेतु किसान बनकर खेती का धंधा करता है। सरबजीत सिंह (रणदीप हूडा) रोजाना अपनी बहिन दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय ) को कार्यालय छोड़ने जाता है। सरबजीत की पत्नी घर का काम सम्भालती है तथा उनके पिता सुलक्षण सिंह सरबजीत की दोनों बेटियों को सम्भालता है। एक दिन सरबजीत सिंह और एक दोस्त ज्यादा शराब पी लेते है इस कारण अपना आपा खो देते है और सरबजीत नशे में ही अपने घर की तरफ निकल जाता है लेकिन वो नशे में पाकिस्तान की सीमा पार चला जाता है क्योंकि उस वक़्त बोर्डर पर बाड़ा अर्थात तारबंदी नहीं होती थी। देर रात पाकिस्तानी सैनिक इन्हें देख लेते है और उन्हें भारत का जासूस मानकर पाकिस्तान के लाहौर ले जाते है जहां उनको एक छोटी सी कोठरी में रखते है और वहां के कर्नल उनको मंजीत सिंह उगलवाना चाहता है क्योंकि मंजीत सिंह वो सख्स था जिन्होंने १९९३ में कराची तथा कई और जगह और आतंकी हमले करवाए थे। वहीं घर वाले बहिन दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय) उनके उनके पति तथा सरबजीत की पत्नी (ऋचा चड्ढा) उनके खोजते है लेकिन उनका कोई अता-पता नहीं मिलता है इस कारण गुमशुदगी की रिपोर्ट की लिखवाते है लेकिन इस और पुलिस भी ज्यादा ध्यान नहीं देती है। कुछ समय बाद एक पाकिस्तान से डाक द्वारा चिट्टी आती है जो कि सरबजीत (रणदीप हूडा) की होती है उसमें सरबजीत अपनी आप बीती लिखकर भेजते है तब जाकर घर वालों को पता चलता है कि सरबजीत भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में बन्द है। इसी प्रकार सरबजीत की ख़बरें टीवी और समाचार पत्रों में भी आने लगती है। एक बार एक उर्दू समाचार पत्र में छपा होता कि सरबजीत को सज़ा - ए - मौत। इसके बाद सरबजीत सिंह की बहिन दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय) अपने भाई को पाकिस्तान से वापस लाने की भरसक प्रयास करने लगती है इसमें वो सरकार की खूब मदद मांगती है लेकिन सरकार भी इस और ज्यादा ध्यान नहीं देती है। दलबीर सरकार तथा समाचार पत्रकारों से कहती है कि सरबजीत बेगुनाह है आप मेरी मदद करो लेकिन ज्यादा कोई इस और ध्यान नहीं देते है फिर आगे दलबीर प्रधानमंत्री से मिलना चाहती है और उन्हें मिलने में ८ महीनों लग जाते है लेकिन मिलकर भी ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। इधर लाहौर के कोट लखपत जेल में सरबजीत सिंह इंतजार करता है कि कोई तो आएगा। काफी समय गुजरने के बाद आखिर दलबीर कौर (ऐश्वर्या राय) को पाकिस्तान जाने का मौका मिल जाता है और वो सरबजीत (रणदीप हूडा) की पत्नी और उनकी बेटियों को लेकर उनसे मिलने जाती है और उन्हें छोड़ने को कहती है , लेकिन पाकिस्तान की नजरों में सरबजीत एक आतंकी होता है इस कारण छोड़ने की बात तक नहीं करता है। समय गुजरता है और अंततः सरबजीत को फांसी देने की तारीख तय हो जाती है लेकिन बहिन दलबीर हार नहीं मानती है औए एक अलग पाकिस्तान का वकील ले लेती है। पाकिस्तानी वकील सरबजीत से मिलता है और असली आतंकी मनजीत के खिलाफ सबूत इकट्ठा करता है। तभी भारत में मनजीत सिंह को गिरफ्तार कर लेती है लेकिन वो कुछ दिनों बाद छूट जाता है। बीच - बीच में दलबीर तथा साथी लोग अनशन करते है ताकि सरकार की आँखे खुले। सरबजीत को फांसी देने की तारीखें नजदीक आती है और दलबीर कौर तथा सरबजीत का पाकिस्तान वकील इन्हें बा-इज्जत वापस भारत लाने की कोशिश करते है। इसी प्रकार एक दिन यह ख़बर आती है कि आज सरबजीत (रणदीप हूडा) को बरी कर दिया जाएगा ,और फिर बड़ी संख्या में सरबजीत के परिवार सहित गाँव के लोग वाघा बॉर्डर (भारत - पाक बॉर्डर) पर स्वागत करने के लिए इकठ्ठे हो जाते है तभी वापस समाचार मिलता है सरबजीत नहीं अपितु सुरजीत सिंह को रिहा किया है। इस कारण सरबजीत के परिवार वालें निराश होकर घर चले जाते है और फिर दलबीर कौर खुद को अपने को खत्म करने का प्रयास करती है लेकिन घर वाले बचा लेते है। कुछ दिनों बाद कोट लखपद जेल में पाकिस्तानी कैदी मिलकर सरबजीत सिंह (रणदीप हूडा) पर हमला करते है और उनको वहां के अस्पताल में भर्ती करवाते है लेकिन सही तरीके से इलाज नहीं करते है साथ ही सरबजीत का परिवार भी उनसे मिलने आता है। घर वाले सरबजीत को भारत में लाने की बात करती है लेकिन तभी सरबजीत की लाश भारत आती है और पूरे भारत भर में शोक चाह जाता है। संगीत सन्दर्भ हिन्दी फ़िल्में
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8%20%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4
जगमोहन सिंह राजपूत
जगमोहन सिंह राजपूत भारत के एक प्रमुख शिक्षा शास्त्री हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निदेशक रह चुके राजपूत कई अन्य संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त वे यूनेस्को सहित कई अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से भी जुड़े रहे हैं। यूनेस्को ने उन्हें जॉन एमोस कामेनियस मैडल से सम्मानित किया। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें वर्ष 2011-12 के लिये महर्षि वेदव्यास सम्मान दिया। वर्ष 2004 में सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि अनेक देशों में व्याख्यान देने सहित विशिष्ट स्थापना कार्य किये। राजपूत की हिन्दी व अंग्रेजी में निम्न पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं: पाठ्यक्रम परिवर्तन के आयाम, शैक्षिक परिवर्तन का यथार्थ, शिक्षा एवं इतिहास, शैक्षिक परिवर्तनों की परख, क्यों तनावग्रस्त है शिक्षा व्यवस्था? मुस्कान का मदरसा इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इण्डियन एजूकेशन, सिम्फनी ऑफ ह्यूमन वेल्यूज़, टीचर प्रीपरेशन फॉर नॉलेज सोसायटी, सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ हीनभावना से छुटकारे की प्रणाली: जगमोहन सिंह राजपूत प्रकाशन तिथि: 2 अगस्त 2003 नवभारत टाइम्स प्रो॰ जगमोहन सिंह राजपूत को महर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मान अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर 2013 प्रो॰ जगमोहन सिंह राजपूत को महर्षि वेदव्यास राष्ट्रीय सम्मान - वीर अर्जुन (नई दिल्ली) प्रकाशन तिथि: 10 जून 2012 मुस्कान का मदरसा - जगमोहनसिंह राजपूत एवं सरला राजपूत शिक्षाशास्त्री लेखक
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A5%80
एनी जैदी
एनी जैदी 1978 में पैदा हुई थी वह एक अंग्रेजी भाषा लेखक वह भी भारत से। उनके निबंधों का संग्रह, ज्ञात टर्फ: बैंडिटिंग विद द बैंडिट्स एंड अदर ट्रू टेल्स, 2010 में वोडाफोन क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए लघु-सूचीबद्ध वह कविता ( क्रश, 2007), लघु कहानियां ( द गुड इंडियन गर्ल, 2011) भी लिखती हैं, नाटक करती हैं, और एक उपन्यास प्रकाशित किया है। उन्होंने 2018 में द हिंदू प्लेराइट राइट अवार्ड और 2019 में अपने काम ब्रेड, सीमेंट, कैक्टस के लिए नौ डॉट्स पुरस्कार जीता। शिक्षा जैदी ने अजमेर में सोफिया कॉलेज से बीए की डिग्री प्राप्त की।अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वह मुंबई में जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशंस में पत्रकारिता पाठ्यक्रम में शामिल हो गई। व्यक्तिगत जीवन उसका जन्म इलाहाबाद में हुआ था। उसे और उसके बड़े भाई को उनकी माँ यास्मीन जैदी, एक स्कूल शिक्षक और प्रिंसिपल द्वारा लाया गया था। उनके नाना पद्म श्री साहित्यकार उर्दू लेखक और विद्वान अली जवाद जैदी हैं । वह वर्तमान में मुंबई में रहती है। लेखक एनी जैदी के निबंधों का पहला संग्रह, ज्ञात टर्फ: बैंडिंग विद द बैंडिट्स एंड अदर ट्रू टेल्स, 2010 में वोडाफोन क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए लघु-सूचीबद्ध था। प्रख्यात पत्रकार और लेखक पी। साईनाथ ने पुस्तक के बारे में कहा: "यह कहानी कहने का गुण है जो आपको पकड़ती है। एक खूबसूरती से लिखी गई पुस्तक " लघु कथाओं का एक संग्रह, द गुड इंडियन गर्ल , स्मृति रवींद्र के साथ सह-लेखक था और 2011 में जुबान बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था। क्रश, 50 सचित्र कविताओं की एक श्रृंखला (इलस्ट्रेटर गिएनेले अल्वेस के सहयोग से) 2007 में प्रकाशित हुई थी। उनके निबंध, कविताएँ और लघु कथाएँ कई पुराणों में छपी हैं, जिनमें धारावी: द सिटी विद (हार्पर कॉलिंस इंडिया), मुंबई नॉयर (अक्षर / हार्पर कॉलिंस इंडिया), वूमेन चेंजिंग इंडिया (ज़ुबान); जर्नीज़ थ्रू राजस्थान (रूपा), फ़र्स्ट प्रूफ: 2 (पेंगुइन इंडिया), 21 अंडर 40 (ज़ुबान), इंडिया शाइनिंग, इंडिया चेंजिंग (ट्रेंक्यूबार)। उनके अधिक काम साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे द लिटिल मैगज़ीन, देसिलिट, प्रतिलिपि, द रेले रिव्यू, मिंट लाउंज, इंडियन लिटरेचर (साहित्य अकादमी) और एशियन चा में दिखाई दिए हैं । जून 2012 में, एले पत्रिका ने ज़ैदी का नाम उभरते हुए दक्षिण एशियाई लेखकों में से एक "जिसका लेखन हम मानते हैं कि दक्षिण एशियाई साहित्य को समृद्ध करेगा"। 2015 में, जैदी ने अनबाउंड: 2,000 इयर्स ऑफ इंडियन वुमेन राइटिंग नामक एक एंथोलॉजी प्रकाशित की। नाटकों और फिल्मों में एनी के नाटक "अनटाइटलड -1" ने उन्हें द हिंदू प्लेराइट राइट अवार्ड 2018 दिया। उनका नाटक जैल जनवरी 2012 में मुंबई के पृथ्वी थिएटर में राइटर्स ब्लॉक के भाग के रूप में खोला गया मुंबई में एक नाटक महोत्सव। सितंबर 2012 में पृथ्वी थिएटर में एक और नाटक, सो मच सोक्स (अंग्रेजी) खोला गया। प्रतिष्ठित मेटा पुरस्कारों के लिए इसे सर्वश्रेष्ठ स्क्रिप्ट सहित कई श्रेणियों में नामांकित किया गया था। नाटक का निर्देशन कसार पदमसी ने किया था। उनकी पहली पूर्ण लंबाई वाली स्क्रिप्ट, नाम, स्थान, पशु, बात, को द हिंदू मेट्रोप्लस नाटककार पुरस्कार, 2009 के लिए चुना गया। एक रेडियो नाटक, जैम, बीबीसी की अंतर्राष्ट्रीय नाटक लेखन प्रतियोगिता 2011 के लिए क्षेत्रीय (दक्षिण एशिया) विजेता था। जैदी ने कुछ लघु फिल्मों जैसे एक लाल रंग की प्रेम कहानी, जो एक काव्य फिल्म है, और एक सस्पेंस थ्रिलर एक बहोत छोटी सी लव स्टोरी भी निर्देशित की । 2016 में, उन्होंने शॉर्ट फिल्म डेसीबल का निर्देशन किया, जो शोर सी शोरुआत का हिस्सा थी, सात लघु फिल्मों का एक सर्वग्राही। उन्हें फिल्म बनाने के दौरान फिल्म निर्माता श्रीराम राघवन द्वारा सलाह दी गई थी। पत्रकारिता का करियर जैदी ने एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया।उनके पास मिड-डे और फ्रंटलाइन जैसे प्रमुख समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के साथ स्टेंट हैं। उन्होंने कारवां, ओपन, द हिंदू, एले, फोर्ब्स इंडिया, फेमिना, मैरी क्लेयर, तहलका और डेक्कन हेराल्ड सहित कई प्रकाशनों के लिए लिखा है। उन्होंने 2011 और 2013 के बीच डीएनए( डेली न्यूज एंड एनालिसिस ) के लिए एक साप्ताहिक कॉलम भी लिखा। संदर्भ   राजस्थान की महिला लेखिकाएँ जीवित लोग 1978 में जन्मे लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%A8%20-%20%E0%A4%8F%E0%A4%95%20%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE
नागार्जुन - एक योद्धा
नागार्जुन - एक योद्धा भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण लाइफ ओके पर 30 मई 2016 से शुरू हुआ। इस धारावाहिक के निर्माता यश पटनायक हैं। इसमें अंशुमन मल्होत्रा और पूजा बेनर्जी मुख्य किरदार में हैं। कलाकार अंशुमान मल्होत्रा - अर्जुन निकेतन धीर - अस्तिका मृणल जैन - राजबीर कीर्ति नागपुरे पूजा बनर्जी - नूरी नवाब शाह मनीष वाधवा - वासुकि चेतन हंसराज - नागराज श्रुति उल्फ़त शीला शर्मा किशोरी शहाणे रिशीना कंधारी अर्जुन सिंह अजय कुमार सिंह सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B6%20%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%82%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80
भारत में स्पैनिश फ़्लू महामारी
स्पैनिश फ़्लू सन १९१८ में पूरे विश्व में फैली एक विश्वमारी थी जिसे 1918 की फ्लू महामारी भी कहते हैं। इसे अक्सर 'मदर ऑफ़ ऑल पैंडेमिक्स' यानी सबसे बड़ी महामारी कहा जाता है। इस फ़्लू ने दुनिया की एक-तिहाई आबादी को संक्रमित कर दिया था। इसकी वजह से महज दो सालों (1918-1920) में 2 करोड़ से 5 करोड़ के बीच लोगों की मौत हो गई थी। ज़्यादातर दुनिया भारत समेत मुतास्सिर हुई। 1911 और 1921 के बीच का दशक एकमात्र जनगणना काल था जिसमें भारत की आबादी गिर गई थी, जो ज्यादातर स्पैनिश फ्लू महामारी के कारण हुई थी। भारत में ही एक अनुमान के हिसाब से 1 करोड़ 80 लाख लोग मारे गए। अपने संस्मरणों में, हिंदी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' ने लिखा, "शवों के साथ गंगा में सूजन थी।" 1918 के सैनिटरी कमिश्नर की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दाह-संस्कार के लिए जलाऊ लकड़ी की कमी के कारण भारत भर में सभी नदियों को शवों से भरा गया था। यह फ्लू बॉम्बे में एक लौटे हुए सैनिकों के जहाज से 1918 में पूरे देश में फैला था। हेल्थ इंस्पेक्टर जेएस टर्नर के मुताबिक इस फ्लू का वायरस दबे पांव किसी चोर की तरह दाखिल हुआ था और तेजी से फैल गया था। इन्हें भी देखें 2020 भारत में कोरोनावायरस महामारी पहला विश्व युद्ध ब्यूबोनिक प्लेग सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Spanish Flu: Corona Virus से भी ख़तरनाक वो बीमारी स्वास्थ्य आपदाएँ
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ऐश्वर्या राय बच्चन
ऐश्वर्या राय बच्चन (जन्म: 1 नवम्बर 1973) ऐश के नाम से भी मशहूर, भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख अभिनेत्री हैं। १९९४ में मिस इंडिया प्रतियोगिता की उपविजेता रहने के बाद उसी साल उन्होंने विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता जीती थी। ऐश्वर्या राय ने हिन्दी के अलावा तेलगू, तमिल, बंगाली और अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया है। जीवन ऐश्वर्या राय का जन्म १ नवम्बर १९७३ को मैंगलूर, कर्नाटक, भारत में हुआ था। ऐश्वर्या के पिता का नाम कृष्णराज राय जो पेशे से मरीन इंजीनियर है और माता का नाम वृंदा राय है जो एक लेखक हैं। उनका एक बडा़ भाई है जिसका नाम आदित्य राय है। ऐश्वर्या राय की मातृ-भाषा तुलु है, इसके अलावा उन्हें कन्नड़, हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी और तमिल भाषाओं का भी ज्ञान है। ऐश्वर्या राय की प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा ७ तक) हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुई। बाद में उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। मुंबई में उन्होने शांता-क्रूज स्थित आर्य विद्या मंदिर और बाद में डी जी रुपारेल कालेज, माटूंगा में पढा़ई की। पढा़ई के साथ-साथ उन्हें मॉडलिंग के भी प्रस्ताव आते रहे और उन्होने में मॉडलिंग भी की। उनको मॉडलिंग का पहला प्रस्ताव उन्हेंकैमलिन कंपनी की ओर से तब मिला जब वो नवीं कक्षा की छात्रा थीं। इसके बाद वो कोक, फूजी और पेप्सी के विज्ञापन में दिखीं। और १९९४ में मिस वर्ल्ड बनने के बाद उनकी माँग काफी बढी़ और उन्हें कई फिल्मों के प्रस्ताव मिले। करियर उनकी पहली फिल्म इरुवर तमिल में बनी जिसे मणिरत्नम ने निर्देशित किया। 2000 में राजीव मेनन द्वारा बनी एक फिल्म कंडूकोंडिन कंडूकोंडिन काफी मशहूर हुई। हिन्दी में उनकी पहली फिल्म और प्यार हो गया थी, हिन्दी फिल्मों में उनका सिक्का संजय लीला भंसाली द्वारा बनायी गयी फिल्म हम दिल दे चुके सनम से जमा और तब से उनकी फिल्में ज्यादातर हिन्दी में ही बनी। 2002 में संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई फिल्म देवदास में भी उन्होने काम किया। इसके अलवा उन्होंने कुछ बांग्ला फिल्में की हैं। सन 2004 में ही पहली बार उन्होंने गुरिंदर चड्ढा की एक अंग्रेजी फिल्म ब्राइड ऐंड प्रेज्यूडिस में काम किया। 2006 में उनकी प्रमुख फिल्मे रही मिसट्रेस ऑफ स्पाइसेस, धूम २ और उमराव जान। राय अगली बार रत्नम की तमिल अवधि की फिल्म पोन्नियिन सेलवन में अभिनय करेंगे। आज ऐश्वर्या भारतीय सिनेमा की सबसे मँहगी अभिनेत्रियों में से एक है और भारत की सबसे धनी महिलाओं में शामिल हैं। दुनिया भर में उनके चाहने वालों ने ऐश्वर्या को समर्पित लगभग 17,000 इंटरनेट साइट बना रखे हैं और उनकी गिनती दुनिया के सबसे खूबसूरत महिलाओं में की जाती है। टाईम पत्रिका ने वर्ष 2004 में उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में भी शुमार किया है निजी जीवन वर्ष 1999 में, राय ने बॉलीवुड सितारे सलमान ख़ान के साथ डेटिंग की, उनका सम्बन्ध मिडिया में भी तब तक छाया रहा जब तक 2001 में वो एक दूसरे से अलग नहीं हो गये। सम्बन्ध विच्छेद के कारण के रूप में राय ने खान के लिए "दुरुपयोग (मौखिक, शारीरिक और भावनात्मक), बेवफाई और अपमान के आरोप लगाये। वर्ष 2009 में टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के एक लेख के अनुसार खान ने कभी भी उसकी पिटाई किये जाने से मना किया।: "यह सच नहीं है कि मैंने एक औरत को मारा।" ऐश्वर्या की फिल्में नामांकन और पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार 2003 - देवदास 2000 हम दिल दे चुके सनम अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी पुरस्कार आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार 2003 - देवदास 2000 - हम दिल दे चुके सनम ज़ी सिने पुरस्कार 2000 - लक्स वर्ष का चेहरा पुरस्कार - हम दिल दे चुके सनम सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ ऐश्वर्या राय बच्चन आधिकारिक वेबसाईट 1973 में जन्मे लोग जीवित लोग हिन्दी अभिनेत्री फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार विजेता मिस वर्ल्ड
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%87%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%89%E0%A4%AF
इलिनॉय
इलिनॉय () अमरीका का एक राज्य है। इसकी राजधानी स्प्रिंगफील्ड है। इस राज्य में शिकागो सबसे बड़ा शहर है। इसे 1818 में राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ। यह 6वां सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य और भूमि क्षेत्र के मामले में 25वां सबसे बड़ा राज्य है। इलिनोइस का एक विविध आर्थिक आधार है और यह एक प्रमुख परिवहन केंद्र है। शिकागो का बंदरगाह विशाल झीलों के माध्यम से राज्य को अन्य वैश्विक बंदरगाहों से जोड़ता है। दशकों से ओ'हारे अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा को दुनिया के सबसे व्यस्ततम हवाई अड्डों में से एक के रूप में गिना जाता है। सबसे पहले 17वीं और 18वीं शताब्दी में यूरोपीय जनसंख्या राज्य के पश्चिम में मिसिसिपी नदी पर बसी, जो कि फ्रांसीसी कनाडाई उपनिवेशवादी थे। अमेरिकी क्रन्तिकारी युद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य की स्थापना हुई और अमेरिकी आबादकार 1810 के दशक में एपलाशियन पर्वतमाला को पार करके बसना शुरू हुए। शिकागो की 1830 के दशक में शिकागो नदी के तट पर स्थापना की गई जो कि दक्षिणी मिशिगन झील पर चुनिंदा प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है। जॉन डेयर के नए प्रकार के स्टील के हल के आविष्कार ने इलिनोइस के समृद्ध प्रेरी को दुनिया के सबसे अधिक उत्पादक पूर्ण और मूल्यवान खेतों में बदल दिया, जिसने जर्मनी और स्वीडन के नए आप्रवासी किसानों को आकर्षित किया। इलिनोइस में रहने के दौरान तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों का निर्वाचिन हुआ है: अब्राहम लिंकन, युलीसेस सिंपसन ग्रांट, और बराक ओबामा। इसके अतिरिक्त रोनाल्ड रीगन, जिनका राजनीतिक कैरियर कैलिफोर्निया में स्थित था, इलिनोइस में पैदा और पले-बढ़े हुए एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति है। अब इलिनोइस ने लिंकन को अपने आधिकारिक नारे, लैंड ऑफ़ लिंकन के साथ सम्मानित किया है जो कि 1954 से उसके लाइसेंस प्लेटों पर प्रदर्शित किया जा रहा है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B2%20%E0%A4%AE%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2
कुशाल मल्ल
कुशाल मल्ला (जन्म 5 मार्च 2004) एक नेपाली क्रिकेटर हैं। वह बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं, और बाएं हाथ के स्पिनर हैं। सितंबर 2019 में, उन्हें 2019–20 सिंगापुर ट्राई-नेशन सीरीज़ और 2019–20 ओमान पेंटांगुलर सीरीज़ के लिए नेपाल की टीम में नामित किया गया था। उन्होंने 27 सितंबर 2019 को सिंगापुर ट्राई-नेशन सीरीज़ में ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ नेपाल के लिए टी20ई में पदार्पण किया। जनवरी 2020 में, उन्हें 2020 नेपाल त्रिकोणीय राष्ट्र श्रृंखला के लिए नेपाल के एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय (वनडे) दस्ते में नामित किया गया था। उन्होंने 8 फरवरी 2020 को संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ, नेपाल के लिए अपना एकदिवसीय पदार्पण किया। मैच में उन्होंने 51 गेंदों पर 50 रन बनाए और 15 साल और 340 दिन की उम्र में वह अंतरराष्ट्रीय अर्धशतक बनाने वाले सबसे कम उम्र के पुरुष क्रिकेटर बन गए। सन्दर्भ जीवित लोग नेपाली क्रिकेट खिलाड़ी 2004 में जन्मे लोग
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जैन धर्म में राम
रामायण के नायक श्रीराम जैन ग्रन्थों में ६३ शलाकापुरुषों में से एक हैं। यहाँ वे विष्णु के अवतार नहीं हैं बल्कि वह वलभद्र हैं जो सिद्धक्षेत्र (माँगी तुंगि, महाराष्ट्र, भारत) से मोक्ष गये। जैन धर्म में भगवान राम को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। भगवान राम जैन रामायण के नायक हैं तथा उन्हें अहिंसा की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित किया गया है। अन्त समय में वे दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष को प्राप्त हुए। जैन मान्यतानुसार प्रत्येक मोक्ष प्राप्त आत्मसिद्ध कहलाता है। जैन रामायण में भगवान राम का आदर के साथ उल्लेख किया गया है। जैन धर्म सन्दर्भ
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कौशी संघनन परीक्षण
गणित में कौशी संघनन परीक्षण, जिसे ऑगस्टिन लुइस कौशी के नाम से नामकरण किया गया एक अनन्त श्रेणी एक लिए मानक अभिसरण परीक्षण है। धनात्मक ह्रासमान अनुक्रम f(n) के लिए अभिसारी है यदि और केवल यदि अभिसारी है। इसके अतिरिक्त, इस अवस्था में एक ज्यामितिय दृश्य यह है कि हम प्रत्येक पर समलंबाभ सहित योग को सन्निकटक करते हैं। इसको अन्य रूप में इस प्रकार लिख सकते हैं कि समाकलन और निश्चित योग के मध्य अनुक्रम के लिए, 'संघनन' के व्यंजक चरघातांकी फलन के प्रतिस्थापन के अनुरूप है। यह निम्न उदाहरण से स्पष्ट है यहाँ श्रेणी a > 1 के लिए अभिसारी है और a < 1 के लिए अपसारी। जब a = 1, संघनन रुपांतर आवश्यक रूप से निम्न श्रेणी देता है लघुगणक 'वाम विस्थापन'। अतः जब a = 1, तो हमें b > 1 के लिए अभिसरण प्राप्त होता है, b < 1 के लिए अपसरण। जब b = 1 तो c पर निर्भरता होती है। प्रमाण माना f(n) वास्तविक संख्याओं का धनात्मक, वर्धमान रहित अनुक्रम है। संकेतन की सरलता के लिए, an = f(n) लिखने पर। हम श्रेणी का अध्ययन करते हैं। संघनन परीक्षण के लिए श्रेणी के व्यंजकों को लम्बाई के समूहों में लेने पर, एकदिष्‍टता द्वारा प्रत्येक समूह से कम होगा। अतः हमने यहाँ यह माना है कि अनुक्रम an वर्धमान नहीं है, अतः प्रत्येक के लिए । अतः मूल श्रेणी का अभिसरण इस "संघनन" श्रेणी के सीधे तुलना के अनुसार चलता है। यह देखने के लिए कि मूल श्रेणी अभिसारी है जिसके परिणामस्वरूप पिछली श्रेणी भी अभिसारी है, अतः निम्न प्रकार मान रखने पर और हमें पुनः सीधे तुलना से अभिसरण प्राप्त होता है। और यह हमने सिद्ध कर दिया है। ध्यान रहे हमने निम्न प्रकार मान प्राप्त किये हैं यह प्रमाण हरात्मक श्रेणी के अपसरण के ओरेस्मे प्रमाण का व्यापकीकरण है। व्यापकीकरण यह व्यापकीकरण सकलोमिल्क के अनुसार है। माना एक अनन्त वास्तविक श्रेणी है जिसके व्यंजक धनात्मक और वर्धमान रहित हैं, तथा माना आवश्यक रूप से धनात्मक पूर्णांको का वर्धमान अनुक्रम है, इस प्रकार परिबद्ध है, जहाँ अग्र अंतर है। तब श्रेणी अभिसारी होगी यदि श्रेणी अभिसारी हो। लेने पर, प्राप्त होता है, अतः कौशी संघनन परीक्षण विशेष अवस्था के रूप में प्राप्त होता है। सन्दर्भ बोनार, खौरी (2006). वास्तविक अनन्त श्रेणी (Real Infinite Series), मैथमेटिकल एसोसिएशन ऑफ़ अमेरिका, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-88385-745-6. बाहरी कड़ियाँ कौशी संघनन परीक्षण का प्रमाण कौशी संघनन परीक्षण से जुड़ी कड़ियाँ सम्मिश्र विश्लेषण कौशी नामकरण अभिसरण परीक्षण गणितीय श्रेणी
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दी इनर्जी इरा
दी इनर्जी इरा भारत में प्रकाशित होने वाला अंग्रेजी भाषा का एक समाचार पत्र (अखबार) है। इन्हें भी देखें भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की सूची सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ NEWSPAPERS.co.in - A dedicated portal showcasing online newspapers from all over India Newspaper Index - Newspapers from India - Most important online newspapers in India ThePaperboy.com India - Comprehensive directory of more than 110 Indian online newspapers भारत में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र
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पटेला
पटेला एक कृषि औजार है जिसका उपयोग जुताई के बाद खेत की सतह को समतल करना और बड़े ढेलों को तोड़कर छोटे करना है। इसे 'हेंगा', 'सोहागा', 'सिरावन', 'पटरी', 'डन्डेला' आदि नामों से भी जाना जाता है। पटेला, तीन-चार बांस के टुकडों (लगभग २ मीटर लम्बे) से बनाया जाता है या लकड़ी के एक भारी पटरे से। इन्हें भी देखें कृषि यंत्रों की सूची बाहरी कड़ियाँ भूमि की तयारी के लिए उपयुक्त कृषि यन्त्र कृषि उपकरण
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हरिआना, पंजाब
इस से मिलते-जुलते नाम के राज्य के लिए हरियाणा देखें हरिआना (Hariana) भारत के पंजाब राज्य के होशियारपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। नामोत्पत्ति व संगीत से सम्बन्ध हरिआना का नाम तानसेन के गुरु, हरि सेन, पर पड़ा था। यहाँ कभी एक प्रसिद्ध संगीत घराना केन्द्रित था। गूजरमल वासेदेव रागी और पंडित तेलु राम यहाँ के दो विख्यात संगीतकार थे। इन्हें भी देखें होशियारपुर ज़िला सन्दर्भ पंजाब के शहर होशियारपुर ज़िला होशियारपुर ज़िले के नगर
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साइकेडेलिक थेरेपी
साइकेडेलिक थेरेपी (या साइकेडेलिक-असिस्टेड थेरेपी) मानसिक विकारों के इलाज के लिए साइकेडेलिक दवाओं, जैसे साइलोसाइबिन, एमडीएमए,[नोट 1] एलएसडी, और आयाहुस्का के प्रस्तावित उपयोग को संदर्भित करती है। 2021 तक, अधिकांश देशों में साइकेडेलिक दवाएं नियंत्रित पदार्थ हैं और साइकेडेलिक थेरेपी कुछ अपवादों के साथ नैदानिक ​​परीक्षणों के बाहर कानूनी रूप से उपलब्ध नहीं है। साइकेडेलिक चिकित्सा की प्रक्रिया पारंपरिक मनश्चिकित्सीय दवाओं का उपयोग करने वाली चिकित्सा से भिन्न होती है। जबकि पारंपरिक दवाएं आमतौर पर पर्यवेक्षण के बिना प्रतिदिन कम से कम एक बार ली जाती हैं, समकालीन साइकेडेलिक चिकित्सा में दवा को चिकित्सीय संदर्भ में एक सत्र (या कभी-कभी तीन सत्रों तक) में प्रशासित किया जाता है। चिकित्सीय टीम रोगी को पहले से अनुभव के लिए तैयार करती है और बाद में दवा के अनुभव से अंतर्दृष्टि को एकीकृत करने में उनकी मदद करती है दवा लेने के बाद, रोगी आमतौर पर आईशैड पहनता है और साइकेडेलिक अनुभव पर ध्यान केंद्रित करने के लिए संगीत सुनता है, साथ ही चिकित्सीय टीम चिंता या भटकाव जैसे प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होने पर केवल आश्वासन प्रदान करने के लिए हस्तक्षेप करती है। 2022 तक, साइकेडेलिक थेरेपी पर उच्च-गुणवत्ता वाले साक्ष्य का शरीर अपेक्षाकृत छोटा और अधिक बना हुआ है, साइकेडेलिक थेरेपी के विभिन्न रूपों और अनुप्रयोगों की प्रभावशीलता और सुरक्षा को मज़बूती से दिखाने के लिए बड़े अध्ययन की आवश्यकता है। अनुकूल प्रारंभिक परिणामों के आधार पर, चल रहे शोध प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार, चिंता और अवसाद से जुड़ी स्थितियों के लिए प्रस्तावित साइकेडेलिक उपचारों की जांच कर रहे हैं, और अभिघातज के बाद का तनाव विकार। यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने "ब्रेकथ्रू थेरेपी" का दर्जा दिया है, जो साइलोसाइबिन (उपचार-प्रतिरोधी अवसाद और प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार के लिए) का उपयोग करके साइकेडेलिक उपचारों के लिए संभावित अनुमोदन के लिए दवा उपचारों के मूल्यांकन में तेजी लाता है, [नोट 2] और एमडीएमए (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लिए)।
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मिन्हाजुद्दीन रास्ती
मखदूम सैयद मिन्हाजुद्दीन रास्ती गिलानी फिरदौसी (1250-1381) सुहरावरदिया सिलसिले के सूफी संत थे। वह सैयद शेख शर्फुद्दीन येह्या मनेरी के शिष्य और मुरीद थे। उनकी मृत्यु फुलवारी शरीफ में हुई और उन्हें बिहार के पटना के फुलवारी शरीफ में तमतम पढ़ाव में दफनाया गया। उन्हें फुलवारीशरीफ आने वाले पहले सूफी संत के रूप में जाना जाता है। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सैयद शाह मिन्हाजुद्दीन रस्ती गिलानी फिरदौसी का जन्म सैयद मिन्हाजुद्दीन रस्ती के रूप में सूफी संत सैयद शाह ताजुद्दीन रस्ती गिलानी के घर हुआ था, जो वर्ष 1250 में ईरान के गिलान में सूफी संत सैयद अब्दुर रहमान गिलानी के बेटे थे। उनकी पारिवारिक श्रृंखला सैयद अली मूसा रज़ा से लेकर सैयद इमाम तक जाती है। हुसैन. वह भारत पहुंचे और सूफी संत शरफुद्दीन याह्या मनेरी के शिष्य बन गए और सुहरावरदिया सिलसिले के तहत फिरदौसिया सिलसिले के मुरीद बन गए और शरफुद्दीन याहया मनेरी की खिलाफत प्राप्त की। संदर्भ भारत में सूफ़ीवाद
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कार्तिक शुक्ल द्वितीया
कार्तिक शुक्ल द्वितीया भारतीय पंचांग के अनुसार आठवें माह की द्वितीय तिथि है, वर्षान्त में अभी १४८ तिथियाँ अवशिष्ट हैं। भैयादूज भाई की आयु-वृद्धि तथा सर्वकामना पूर्ति बहन अपने भाई की लंबी उम्र के लिए तिलक करती हैं नारियल भेंट करती हैं प्रमुख घटनाएँ जन्म निधन इन्हें भी देखें हिन्दू काल गणना तिथियाँ हिन्दू पंचांग विक्रम संवत बाह्य कड़ीयाँ हिन्दू पंचांग १००० वर्षों के लिए (सन १५८३ से २५८२ तक) आनलाइन पंचाग विश्व के सभी नगरों के लिये मायपंचांग डोट कोम विष्णु पुराण भाग एक, अध्याय तॄतीय का काल-गणना अनुभाग सॄष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक ब्रह्माण्डीय दिवस महायुग सन्दर्भ द्वितीया कार्तिक
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उत्तर कर्नाटक
Articles with short description Short description is different from Wikidata उत्तर कर्नाटक ३०० से ७३० मीटर दक्कन पठार में एक भौगोलिक क्षेत्र है। इसकी ऊँचाई ३०० से ७३० मीटर है जो भारत में कर्नाटक राज्य के क्षेत्र का गठन करती है और इस क्षेत्र में १३ जिले शामिल हैं। यह कृष्णा नदी और उसकी सहायक नदियों भीमा, घाटप्रभा, मालाप्रभा और तुंगभद्रा द्वारा अपवाहित है। उत्तर कर्नाटक दक्कन कंटीली झाड़ियों वाले जंगलों के ईकोरियोजन के भीतर स्थित है, जो उत्तर में पूर्वी महाराष्ट्र तक फैला हुआ है। उत्तरी कर्नाटक में कुल १३ जिले हैं और इसमें (हैदराबाद-कर्नाटक) - कालाबुरागी डिवीजन और (बंबई-कर्नाटक) - बेलगावी डिवीजन के रूप में जाने जाने वाले क्षेत्र शामिल हैं। इसमें बागलकोट, बीजापुर, गडग, धारवाड़, हावेरी, बेलगावी, विजयनगर, बेल्लारी, बीदर, कालाबुरगी, कोप्पल, रायचूर यादगीर जिले शामिल हैं। परिवहन बस उत्तर पश्चिमी कर्नाटक सड़क परिवहन निगम कर्नाटक के उत्तर पश्चिमी भाग में कार्य करता है। कल्याण कर्नाटक सड़क परिवहन निगम कर्नाटक के उत्तर पूर्वी भाग में कार्य करता है वायु क्षेत्र में हवाई अड्डे हैं बेलगाम हवाई अड्डा हुबली एयरपोर्ट जिंदल विजयनगर एयरपोर्ट बीदर हवाई अड्डा गुलबर्गा एयरपोर्ट एयरलाइंस और गंतव्य बेलगाम हवाई अड्डा भारतीय राज्य कर्नाटक के एक शहर बेलगाम में एक हवाई अड्डा है। रॉयल एयर फ़ोर्स द्वारा १९४२ में निर्मित, बेलगाम हवाई अड्डा उत्तरी कर्नाटक का सबसे पुराना हवाई अड्डा है। आरएएफ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया कमांड को सहायता प्रदान करते हुए हवाई अड्डे को एक प्रशिक्षण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया। सांबरा गांव में स्थित होने के कारण, १० किलोमीटर बेलगाम के पूर्व में, हवाई अड्डे को सांबरा हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है। नए टर्मिनल भवन का उद्घाटन नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू ने १४ सितंबर २०१७ को किया था हवाई अड्डा एक भारतीय वायु सेना स्टेशन का भी घर है जहाँ सेना में नए रंगरूटों को बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त होता है। हुबली हवाई अड्डा एक घरेलू हवाई अड्डा है जो भारत के कर्नाटक राज्य में हुबली और धारवाड़ के जुड़वां शहरों की सेवा करता है। यह गोकुल रोड पर स्थित है, हुबली से ८ किलोमीटर और २० किलोमीटर धारवाड़ से। हुबली से एयरलाइन बैंगलोर, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद के साथ अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। हुबली हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में अपग्रेड किया जाएगा। लगभग ७०० एकड़ भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाधीन है और अधिग्रहण के लिए २४५ करोड़ पहले ही जारी किए जा चुके हैं। उत्तरी कर्नाटक का इतिहास प्रागैतिहासिक काल उत्तरी कर्नाटक का इतिहास और संस्कृति प्रागैतिहासिक काल की है। भारत में सबसे पहले पाषाण युग की खोज रायचूर जिले के लिंगासुगुर में एक हाथ की कुल्हाड़ी थी। बेल्लारी जिले में संगांकल हिल्स, जिसे दक्षिण भारत की सबसे पुरानी गांव बस्ती के रूप में जाना जाता है, नवपाषाण काल की है। १२०० से लोहे के हथियार धारवाड़ जिले के हालूर में पाई गई ईसापूर्व, प्रदर्शित करती है कि उत्तर भारत की तुलना में पहले उत्तरी कर्नाटक लोहे का उपयोग करता था। उत्तर कर्नाटक में प्रागैतिहासिक स्थलों में बेल्लारी, रायचूर और कोप्पल जिलों में लाल चित्रों के साथ रॉक शेल्टर शामिल हैं जिनमें जंगली जानवरों के आंकड़े शामिल हैं। चित्रकारी इस प्रकार की गई है कि गुफाओं की दीवारें उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर नहीं हैं, इसलिए उत्तर-पश्चिम मानसून उन पर प्रभाव नहीं डालता। ये शैलाश्रय बेल्लारी जिले के कुर्गोड, विजयनगर जिले के हम्पी और कोप्पल जिले में गंगावती के पास हायर बेनाकल में पाए जाते हैं। ग्रेनाइट स्लैब (डोलमेन्स के रूप में जाना जाता है) का उपयोग करने वाले दफन कक्ष भी पाए जाते हैं; हडगली तालुक में हिरे बेनाकल और कुमती के डोलमेंस सबसे अच्छे उदाहरण हैं। यादगीर जिले के शहापुर तालुक में विभूतिहल्ली, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण प्राचीन खगोल विज्ञान स्थल, मेगालिथिक पत्थरों के साथ बनाया गया था। खगोलीय महत्व के साथ एक वर्ग पैटर्न में व्यवस्थित पत्थर, १२ एकड़ के क्षेत्र को कवर करते हैं। राज्य में पाए गए अशोक के शिलालेखों से पता चलता है कि उत्तरी कर्नाटक के प्रमुख हिस्से मौर्यों के अधीन थे। कई राजवंशों ने उत्तर कर्नाटक कला के विकास पर अपनी छाप छोड़ी, उनमें चालुक्य, विजयनगर साम्राज्य और पश्चिमी चालुक्य शामिल हैं। चुटु वंश से संबंधित शिलालेख उत्तरी कर्नाटक में पाए जाने वाले सबसे पुराने दस्तावेज हैं। प्राचीन किष्किन्धा कर्नाटक साम्राज्य मौर्य शतवाहन वंश (तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व तक) बनवासी का चुटु (सातवाहन का जागीरदार) बेलगाँव के कुरु ३० ईसापूर्व-६५/७० ई. चालुक्यों कर्नाटक द्रविड़ के रूप में ज्ञात वास्तुकला के विकास में चालुक्य शासन महत्वपूर्ण है। चालुक्यों द्वारा निर्मित सैकड़ों स्मारक मालाप्रभा नदी बेसिन (मुख्य रूप से कर्नाटक में ऐहोल, बादामी, पट्टदकल और महाकूट में) में पाए जाते हैं। उन्होंने दक्षिण में कावेरी से लेकर उत्तर में नर्मदा तक फैले साम्राज्य पर शासन किया। बादामी चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने ५४३ में की थी; वातापी (बादामी) राजधानी थी। पुलकेशी द्वितीय बादामी चालुक्य वंश का एक लोकप्रिय सम्राट था। उसने नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्धन को हराया, और दक्षिण में विष्णुकुंडिनों को हराया। विक्रमादित्य प्रथम, जिसे राजामल्ल के नाम से जाना जाता है और मंदिरों के निर्माण के लिए, कैलासनाथ मंदिर में विजय स्तंभ पर एक कन्नड़ शिलालेख उत्कीर्ण किया। कीर्तिवर्मन द्वितीय अंतिम बादामी चालुक्य राजा थे, जिन्हें राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग ने ७५३ में उखाड़ फेंका था। पश्चिमी चालुक्य वंश को कभी-कभी कल्याणी चालुक्य कहा जाता है, कल्याणी (कर्नाटक में आज का बसवकल्याण) या बाद में चालुक्य में अपनी शाही राजधानी के बाद छठी शताब्दी बादामी चालुक्यों के सैद्धांतिक संबंध से। पश्चिमी चालुक्य () ने एक स्थापत्य शैली विकसित की (जिसे गदग शैली भी कहा जाता है) जिसे आज एक संक्रमणकालीन शैली के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक चालुक्य वंश और बाद के होयसला साम्राज्य के बीच एक स्थापत्य कड़ी। चालुक्यों ने भारत में कुछ शुरुआती हिंदू मंदिरों का निर्माण किया। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण कोप्पल जिले में महादेव मंदिर (इतागी) हैं; गडग जिले के लक्कुंडी में कासिविवेश्वर मंदिर और कुरुवत्ती में मल्लिकार्जुन मंदिर और बागली में कल्लेश्वर मंदिर, दोनों दावणगेरे जिले में हैं। शिल्प कौशल के लिए उल्लेखनीय स्मारक हवेरी जिले में हावेरी में सिद्धेश्वर मंदिर, धारवाड़ जिले में अन्निगेरी में अमृतेश्वर मंदिर, गदग में सरस्वती मंदिर और दंबल में डोड्डा बसप्पा मंदिर (दोनों गदग जिले में) हैं। ऐहोल वास्तुशिल्प निर्माण के लिए एक प्रायोगिक आधार था। बादामी चालुक्य और कल्याण चालुक्य को (कुंतलेश्वर) के नाम से भी जाना जाता है। कदंब कदंब () दक्षिण भारत के एक प्राचीन राजवंश थे जिन्होंने मुख्य रूप से उस क्षेत्र पर शासन किया जो वर्तमान गोवा राज्य और निकटवर्ती कोंकण क्षेत्र (आधुनिक महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य का हिस्सा) है। इस वंश के शुरुआती शासकों ने खुद को ३४५ ईस्वी में वैजयंती (या बनवासी) में स्थापित किया और दो शताब्दियों से अधिक समय तक शासन किया। ६०७ में, वातापी के चालुक्यों ने बनवासी को बर्खास्त कर दिया, और कदंब साम्राज्य को विस्तृत चालुक्य साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। आठवीं शताब्दी में, राष्ट्रकूटों द्वारा चालुक्यों को उखाड़ फेंका गया, जिन्होंने १०वीं शताब्दी तक शासन किया। ९८० में, चालुक्यों और कदंबों के वंशजों ने राष्ट्रकूटों के खिलाफ विद्रोह किया; राष्ट्रकूट साम्राज्य गिर गया, जिसके परिणामस्वरूप एक दूसरे चालुक्य वंश (पश्चिमी चालुक्यों के रूप में जाना जाता है) की स्थापना हुई। इस तख्तापलट में पश्चिमी चालुक्यों की मदद करने वाले कदंब परिवार के सदस्य चट्टा देव ने कदंब वंश की फिर से स्थापना की। वह मुख्य रूप से पश्चिमी चालुक्यों का जागीरदार था, लेकिन उसके उत्तराधिकारियों ने काफी स्वतंत्रता का आनंद लिया और १४ वीं शताब्दी तक गोवा और कोंकण में अच्छी तरह से स्थापित थे। चट्टा देव के उत्तराधिकारियों ने बनवासी और हंगल दोनों पर कब्जा कर लिया, और हंगल के कदंबों के रूप में जाने जाते हैं। बाद में, कदंबों ने दक्कन के पठार की अन्य प्रमुख शक्तियों (जैसे दोरासमुद्र के यादव और होयसला) के प्रति नाममात्र की निष्ठा का भुगतान किया और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखा। कदंबों के चार परिवारों ने दक्षिणी भारत में शासन किया: हंगल, गोवा, बेलूर और बनवासी के कदंब। राष्ट्रकूट दंतिदुर्ग के शासन के दौरान, आधुनिक कर्नाटक में गुलबर्गा क्षेत्र के आधार के रूप में एक साम्राज्य का निर्माण किया गया था। इस कबीले को मान्यखेत (कन्नड़: ರಾಷ್ಟ್ರಕೂಟ) के राष्ट्रकूट के रूप में जाना जाने लगा, जो ७५३ में सत्ता में आए। उनके शासन के दौरान, जैन गणितज्ञों और विद्वानों ने कन्नड़ और संस्कृत में महत्वपूर्ण कार्यों में योगदान दिया। अमोघवर्ष प्रथम इस राजवंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे और उन्होंने कविराजमार्ग लिखा था, जो एक ऐतिहासिक कन्नड़ कृति थी। वास्तुकला द्रविड़ शैली में एक उच्च पानी के निशान तक पहुंच गया, जिसके सबसे अच्छे उदाहरण एलोरा में कैलाश मंदिर, आधुनिक महाराष्ट्र में एलीफेंटा गुफाओं की मूर्तियां और आधुनिक उत्तर कर्नाटक में पट्टदकल में काशीविश्वनाथ और जैन नारायण मंदिरों में देखे जाते हैं। (ये सभी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं)। विद्वान इस बात से सहमत हैं कि आठवीं से दसवीं शताब्दी में शाही राजवंश के राजाओं ने कन्नड़ भाषा को संस्कृत के समान महत्वपूर्ण बना दिया था। राष्ट्रकूट शिलालेख कन्नड़ और संस्कृत दोनों में दिखाई देते हैं, और राजाओं ने दोनों भाषाओं में साहित्य को प्रोत्साहित किया। शुरुआती मौजूदा कन्नड़ साहित्यिक लेखन का श्रेय उनके दरबारी कवियों और रॉयल्टी को दिया जाता है। कैलाश मंदिर द्रविड़ कला का एक उदाहरण है। यह परियोजना राष्ट्रकूट वंश के कृष्ण प्रथम (७५७-७७३) द्वारा शुरू की गई थी, जिसने आधुनिक कर्नाटक में मान्यखेत से शासन किया था। यह ४० स्थित है कालबुर्गी जिले में कागिनी नदी के तट पर, मान्यखेत (आधुनिक मलखेड) शहर से किमी। कर्नाटक विस्तार विजयनगर साम्राज्य विजयनगर (कर्नाट साम्राज्य, या कर्नाटक साम्राज्य) को सबसे महान मध्यकालीन हिंदू साम्राज्य माना जाता है और उस समय दुनिया में सबसे महान में से एक था। इसने बौद्धिक गतिविधियों और ललित कलाओं के विकास को बढ़ावा दिया। अब्दुर रज़्ज़ाक (फ़ारसी राजदूत) ने कहा, "विद्यार्थियों की आँखों ने कभी भी ऐसा स्थान नहीं देखा है और बुद्धि के कानों को कभी भी यह सूचित नहीं किया गया है कि दुनिया में इसकी बराबरी करने के लिए कुछ भी मौजूद है"। दक्कन सल्तनत विजयनगर साम्राज्य, हम्पी में अपनी राजधानी के साथ, १५६५ में दक्कन सल्तनत की सेना से हार गया। इसके परिणामस्वरूप, बीजापुर इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण शहर बन गया। यह स्मारकों की भूमि है; शायद दिल्ली के अलावा किसी अन्य शहर में बीजापुर जैसे स्मारक नहीं हैं। मराठा साम्राज्य उत्तरी कर्नाटक का क्षेत्र, विशेष रूप से बेलगाम, धारवाड़ और बागलकोट, बीजापुर और गुलबर्गा जिलों के कुछ हिस्से शिवाजी और बाद में पेशवाओं के प्रभाव में आ गए। १६८० के दशक की शुरुआत में, मराठा और मराठी ब्राह्मण सहित कई मराठी समुदाय इस क्षेत्र में बसने लगे। इनमें से अधिकांश सैनिक और प्रशासक के रूप में नीचे आए और उन्हें भूमि के बड़े अनुदान से सम्मानित किया गया। जामखंडी और बीजापुर के पटवर्धन परिवार, नुग्गीकेरी के देसाई और धारवाड़, बेलगाम और पड़ोसी जिलों के कुंडगोल और देशपांडे परिवार कुछ प्रमुख ब्राह्मण परिवार हैं जो इन प्रवासों के लिए अपने पूर्वजों का पता लगाते हैं। जबकि इनमें से कई परिवारों ने कन्नड़ भाषा को अपनाया, अधिकांश लोग द्विभाषी रहते हैं और मराठी ब्राह्मण परिवारों में शादी करते हैं। संदूर राज्य और मुधोल राज्य में घोरपड़े राजवंश कुछ प्रमुख मराठा परिवार हैं जो समान प्रवासन के लिए अपने पूर्वजों का पता लगाते हैं। छोटे राजवंश सौंदत्ती के रट्टा (बेलगाम के) गुट्टाल के गुट्टा (धारवाड़ क्षेत्र) नागरखंडा के सेंद्रकास (बनवासी प्रांत) यालबुर्गा के सिंदास (बीजापुर - गुलबर्गा) हंगल का कदंब कनकगिरी के नायक सिल्हारा राजवंश अन्य रियासतें देवगिरी के सेउना यादव, ९वीं-१४वीं शताब्दी रट्टा वंश कल्याणी के कलचुरि, १२वीं शताब्दी काम्पिली, १३वीं सदी संगम राजवंश सलुव राजवंश शिलालेख महाकूट शिलालेख, महाकूट महाकूटेश्वर मंदिर स्तंभ शिलालेख ऐहोल शिलालेख बादामी शिलालेख कप्पे अरभट्ट शिलालेख इतागी महादेव मंदिर शिलालेख लक्कुंडी शिलालेख गडग शिलालेख हलासी शिलालेख रियासतें ब्रिटिश भारत की रियासतें निम्नलिखित हैं: मुधोल राज्य संदूर राज्य सावनूर राज्य रामदुर्ग राज्य जामखंडी राज्य कित्तूर शोरापुर गुरगुंटा गजेंद्रगढ़ शिवाजी किला कन्नड़ भाषी हैदराबाद राज्य दक्षिण कन्नड़ भाषी बंबई राज्य लड़ाई चालुक्य पल्लव युद्ध तालीकोटा का युद्ध गजेंद्रगढ़ का युद्ध रायचूर का युद्ध चोल-चालुक्य युद्ध ऐतिहासिक राजधानियाँ पालक्षिक (हलसी, बेलगाम ज़िले में) - हलसी का कदंब हनूनगाल या पनूनगल (हावेरी ज़िले के हंगल में) - हंगल का कदंब बागलकोट ज़िले में ऐहोले - बादामी चालुक्य की पहली राजधानी वटपी (बागलकोट ज़िले में बादामी) - बादामी चालुक्य बागलकोट ज़िले में पट्टदकल्लु - कुछ समय के लिए बादामी चालुक्य की तीसरी राजधानी बीदर ज़िले में मयूरखंडी - राष्ट्रकूट राजवंश की पहली राजधानी मांयखेत (गुलबर्ग ज़िले में मलखेड़) - राष्ट्रकूट राजवंश कल्याणी (बीदर ज़िले में बसवकल्याण) - प्रतीच्य चालुक्य कुंडल (सांगली ज़िले में सांगली के पास कुंडल गाँव) - प्रतीच्य चालुक्य धारवाड़ ज़िले में अण्णिगेरी - प्रतीच्य चालुक्य (चालुक्य की आखिरी राजधानी) गदग ज़िले में सूदी - सिक्के बनाने का इलाका और प्रतीच्य चालुक्य की राजधानी गदग ज़िले में लक्कुंडी - प्रतीच्य चालुक्य के सिक्के बनाने का इलाका विजयनगर (बेल्लारी ज़िले में हम्पी) - विजयनगर साम्राज्य गुलबर्ग - बहमनी सल्तनत बीदर - बहमनी सल्तनत बीजापुर - आदिल शाही राजवंश (बीजापुर सल्तनत) स्थापत्य शैली उत्तर कर्नाटक ने कदम्ब, बादामी चालुक्य, पश्चिमी चालुक्य, राष्ट्रकूट और विजयनगर साम्राज्यों के शासन के दौरान भारतीय वास्तुकला की विभिन्न शैलियों में योगदान दिया है: वेसर शैली बादामी चालुक्य वास्तुकला वास्तुकला की गदग शैली वास्तुकला की राष्ट्रकूट शैली विजयनगर वास्तुकला कदम्ब वास्तुकला बीजापुर शैली केलादि नायक शैली कन्नड़ भाषा का इतिहास कन्नड़ सबसे पुरानी द्रविड़ भाषाओं में से एक है, जिसकी आयु कम से कम २,००० वर्ष है। कहा जाता है कि बोली जाने वाली भाषा अपने प्रोटो-द्रविड़ियन स्रोत से तमिल के बाद और लगभग उसी समय तुलु के रूप में अलग हो गई थी। हालाँकि, पुरातात्विक साक्ष्य लगभग १,५००-१,६०० वर्षों की इस भाषा के लिए एक लिखित परंपरा का संकेत देते हैं। कन्नड़ का प्रारंभिक विकास अन्य द्रविड़ भाषाओं के समान है और संस्कृत से स्वतंत्र है। बाद की शताब्दियों में, कन्नड़ शब्दावली, व्याकरण और साहित्यिक शैली में संस्कृत से बहुत प्रभावित हुई है। पुराना कन्नड़ साहित्य कदम्ब लिपि, हलेगन्नदा चालुक्य साहित्य पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य में कन्नड़ साहित्य राष्ट्रकूट साहित्य, असग, अमोघवर्ष प्रथम, कविराजमार्ग विलुप्त कन्नड़ साहित्य बादामी में कप्पे अरभट्ट शिलालेख आदिकवि पम्पा, श्री पोन्ना, रन्ना मध्यकालीन कन्नड़ साहित्य विजयनगर साम्राज्य में कन्नड़ साहित्य वचन साहित्य, बसवन्ना, अक्का महादेवी कुमारव्यास, कर्नाटक भरत कथामंजरी (कन्नड़ में महाभारत) कर्नाटक का एकीकरण कर्नाटक के एकीकरण में उत्तर कर्नाटक की भूमिका कर्नाटक और विद्यावर्द्धक संघ का एकीकरण कर्नाटक का एकीकरण और अलुरु वेंकट राव १९२४ का बेलगाम सम्मेलन कल्याण कर्नाटक की मुक्ति (हैदराबाद-कर्नाटक) समारोह कन्नड़ में उत्सव का अर्थ है " त्योहार "। कर्नाटक सरकार द्वारा प्रायोजित उत्तर कर्नाटक में निम्नलिखित त्यौहार मनाए जाते हैं गडग उत्सव चालुक्य उत्सव पट्टदकल उत्सव हम्पी उत्सव लक्कुंडी उत्सव कित्तूर उत्सव बीदर उत्सव धारवाड़ उत्सव कनकगिरी उत्सव नवरसपुर उत्सव (बीजापुर) कुंडगोल में सवाई गंधर्व महोत्सव बेलगाम में आयोजित विश्व कन्नड़ सम्मेलन पर्यटन उत्तरी कर्नाटक के मंदिर उत्तरी कर्नाटक के मंदिरों को ऐतिहासिक या आधुनिक रूप में वर्गीकृत किया जाता है। विश्व धरोहर स्थल हम्पी: बेल्लारी जिले में होस्पेट के पास पट्टदकल: बागलकोट जिले में बादामी के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डोम गोलगुमत्ता विजयापुर इब्राहिम रोजा को काला ताजमहल, विजयपुर भी कहा जाता है उत्तरी कर्नाटक में राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य रानीबेन्नूर ब्लैकबक अभयारण्य दारोजी स्लोथ भालू अभयारण्य भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य बोनल पक्षी अभयारण्य घाटप्रभा पक्षी अभयारण्य अत्तिवेरी पक्षी अभयारण्य मगदी पक्षी अभयारण्य गुडवी पक्षी अभयारण्य येदाहल्ली चिंकारा वन्यजीव अभयारण्य, मुधोल-बिलागी उत्सव रॉक गार्डन राष्ट्रीय हाइवे-४ पुणे-बैंगलोर रोड, गोटागोडी गाँव, शिगगाँव तालुक, हावेरी जिला, कर्नाटक के पास स्थित एक मूर्तिकला उद्यान है। उत्सव रॉक गार्डन समकालीन कला और ग्रामीण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मूर्तिकला उद्यान है। एक विशिष्ट गाँव का निर्माण किया जाता है जहाँ पुरुष और महिलाएँ अपने दैनिक घरेलू कार्यों में शामिल होते हैं। एक अनूठा पिकनिक स्थल जो आम लोगों, शिक्षित और बुद्धिजीवियों को प्रसन्न करता है। बगीचे में विभिन्न आकारों की १००० से अधिक मूर्तियां हैं। यह एक मानव विज्ञान संग्रहालय है। यह पारंपरिक खेती, शिल्प, लोककथाओं, पशुपालन और भेड़ पालन का प्रतिनिधित्व करता है। विश्वविद्यालयों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों श्री तरलाबालु जगद्गुरु प्रौद्योगिकी संस्थान, रानीबेन्नूर कर्नाटक राज्य ग्रामीण विकास और पंचायत राज विश्वविद्यालय, गडग भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, धारवाड़ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, धारवाड़ कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ एसडीएम कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज, धारवाड़ एसडीएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, धारवाड़ कर्नाटक साइंस कॉलेज, धारवाड़ कर्नाटक राज्य विधि विश्वविद्यालय, हुबली केएलई टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हुबली कर्नाटक आयुर्विज्ञान संस्थान, हुबली विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बेलगाम जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, बेलगाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कर्नाटक, गुलबर्गा कन्नड़ विश्वविद्यालय, हम्पी गुलबर्गा विश्वविद्यालय, गुलबर्गा कर्नाटक राज्य महिला विश्वविद्यालय, बीजापुर कर्नाटक पशु चिकित्सा, पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बीदर बसवेश्वर इंजीनियरिंग कॉलेज, बागलकोट विजयनगर आयुर्विज्ञान संस्थान, बेल्लारी सैनिक स्कूल, बीजापुर एस निजलिंगप्पा मेडिकल कॉलेज, एचएसके (हनागल श्री कुमारेश्वर) अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, बागलकोट कर्नाटक लोकगीत विश्वविद्यालय, शिगगाँव कला और शिल्प   कसुती कढ़ाई: इल्कल साड़ियों जैसे परिधानों पर हाथ से टांके लगाना। बेल्लारी जिले के लंबानियों की कढ़ाई की अपनी शैली है। बिदरीवेयर : बहमनी सुल्तानों के शासन के दौरान बीदर में धातु हस्तकला की उत्पत्ति हुई किन्हाल शिल्प : कोप्पल जिले के किन्हाल (किन्नल) में उत्पन्न हुआ। शिल्प मुख्य रूप से खिलौने, लकड़ी की नक्काशी और भित्ति चित्र हैं। गोकक खिलौने: बेलगाम जिले के गोकक में उत्पन्न हुए। प्राकृतिक संसाधन धर्म हिन्दू धर्म लिंगायत धर्म बासवन्ना और पंचाचार्यों के अनुयायी जो "इस्तलिंग" के माध्यम से भगवान की पूजा करते हैं। लिंगायतवाद हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है और लिंग के रूप में शिव की पूजा करता है। ब्राह्मणों पुजारियों, शिक्षकों (आचार्यरु) और पीढ़ियों से पवित्र शिक्षा के संरक्षक के रूप में विशेषज्ञता वाले हिंदू धर्म में वर्ण (वर्ग) को ब्रह्मनारू के रूप में जाना जाता है। बुद्ध धर्म उत्तरी कर्नाटक में बौद्ध धर्म तीसरी से पहली शताब्दी ईसापूर्व सन्नती और कनगनहल्ली दो महत्वपूर्ण उत्खनन स्थल हैं, और मुंडगोड में एक तिब्बती बौद्ध उपनिवेश है। जैन धर्म बंजारा बंजारा शक्तिवाद और सेवालाल के अनुयायी हैं] यह सभी देखें उत्तरी कर्नाटक के मंदिर चालुक्य पश्चिमी चालुक्य वास्तुकला पश्चिमी चालुक्य विजयनगर वास्तुकला द्रविड़ वास्तुकला बयालुसीमाई उत्तरी कर्नाटक में परिवार के नाम शिलहारा ने कन्नड़ को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल किया दक्षिण पश्चिम रेलवे जोन बाहरी संबंध डेक्कन की खोज - बादामी, ऐहोल, पट्टदकल, बीजापुर गुलबर्गा, बीदर और हम्पी हमारी विरासत का जश्न प्रारंभिक चालुक्य - महाराष्ट्र गजेटियर कदंब कुला: प्राचीन और मध्यकालीन कर्नाटक का इतिहास भारत के प्रस्तावित राज्य व क्षेत्रीय उपविभाग भारत के क्षेत्र कर्नाटक का इतिहास कर्नाटक के क्षेत्र कर्नाटक की संस्कृति विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक Pages with unreviewed translations
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87
दिलवाले
a' दिलवाले ' से कई लेख मौजूद हैं- फ़िल्म दिलवाले (1994 फ़िल्म) - हैरी बवेजा द्वारा निर्देशित, जिसमें अजय देवगन, सुनील शेट्टी और रवीना टंडन मुख्य किरदार में हैं। दिलवाले (2015 फ़िल्म) - रोहित शेट्टी द्वारा निर्देशित, जिसमें शाहरुख ख़ान, काजोल, वरुण धवन और कृति सैनॉन मुख्य किरदार में हैं। अन्य मिलते जुलते शीर्षक दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे -1995 की फ़िल्म दिलवाले कभी ना हारे - 1992 की फ़िल्म इन्हें भी देखें दिलवाला - के मुरलीमोहन राव द्वारा निर्देशित, जिसमें असरानी और मिथुन चक्रवर्ती मुख्य किरदार में हैं। बड़े दिलवाला
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%8B%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%B9
ज़ोफ़ार मुहाफ़ज़ाह
ज़ोफ़ार मुहाफ़ज़ाह (अरबी: , अंग्रेज़ी: Dhofar) ओमान का एक मुहाफ़ज़ाह (उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग) है। नाम का उच्चारण 'ज़ोफ़ार' को अरबी लिपि में '' लिखा जाता है जिसका पहला अक्षर '' (जो 'ज़ोए' कहलाता है) भारतीय उपमहाद्वीप, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान में 'ज़' का उच्चारण रखता है, जबकि अरब देशों में इसका उच्चारण 'द' या 'ध' से मिलता-जुलता किया जाता है। इसलिए इस क्षेत्र और प्रान्त के नाम को - 'ज़ोफ़ार', 'दोफ़ार' और 'धोफ़ार' - तीनों उच्चारणों के साथ पाया जाता है। इन्हें भी देखें ओमान के मुहाफ़ज़ात‎ सन्दर्भ ज़ोफ़ार मुहाफ़ज़ाह ओमान के मुहाफ़ज़ात ओमान
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8D%E0%A4%B8%20%E0%A4%B2%E0%A5%89
मुर्फ्य्स लॉ
मुर्फ्य्स लॉ एक कहावत या चुटकुला है | इतिहास ब्रह्मांड के कथित प्रतिकूलता लंबे टिप्पणी का विषय रहा है, और अग्रग्रामीयो को मुर्फ्य्स लॉ के आधुनिक संस्करण को खोजना मुश्किल नही है | इस क्षेत्र में हाल ही में महत्वपूर्ण अनुसंधान अमेरिकी बोली सोसायटी के सदस्यों द्वारा आयोजित किया गया है। सोसायटी के सदस्य स्टीफन Goranson एक इंजीनियरिंग समाज का एक 1877 की बैठक में अल्फ्रेड होल्ट की एक रिपोर्ट में कानून का एक संस्करण है, जो अभी तक सामान्यीकृत नही हुआ था | गणितज्ञ ऑगस्टस डी मॉर्गन ने 23 जून 1866 को लिखा : "पहले प्रयोग पहले से ही सिद्धांत की एक सच्चाई को दिखाता है, अच्छी तरह से अभ्यास के द्वारा पुष्टि की है, कि कुछ भी हो सकता है अगर हम परीक्षणों के लिए पर्याप्त हैं।". अमेरिकी बोली सोसायटी सदस्य विधेयक मुलिंस ने जादू मंच के संदर्भ में एक बड़ा संस्करण खोज निकाला | ब्रिटिश मंच जादूगर नेविल मस्केल्य्न 1908 ने लिखा था:         सभी के लिए यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी भी ख़ास अवसर पर जो कुछ भी ग़लत हो सकता हैं , वह होगा | हम इस मामले की या निर्जीव चीजों की कुल भ्रष्टता के लिए द्वेष को यह विशेषता चाहिए कि क्या रोमांचक कारण जल्दी नहीं है, चिंता, या क्या नहीं, तथ्य यह है। मुर्फ्य्स लॉ के समकालीन फार्म के रूप में वापस दूर 1952 में जॉन बोरी, जो इसे एक "प्राचीन पर्वतारोहण कहावत" के रूप में वर्णित द्वारा एक पर्वतारोहण पुस्तक के लिए एक शिलालेख के रूप में चला गया |कुछ भी है कि संभवतः कर सकते हैं गलत जाना है, करता है.फ्रेड आर शापिरो, की कोटेशन के येल पुस्तक के संपादक, पता चला है कि 1952 में कहावत ऐनी रो द्वारा एक पुस्तक में "मुर्फ्य्स लॉ" कहा जाता था, एक अनाम भौतिक विज्ञानी के हवाले से: उन्होंने बताया कि " मुर्फ्य्स लॉ थेर्मोद्य्नमिक्स का चौथा लॉ है" |  मय 1951 मेंअन्ने रोए ने सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी के साथ एक इंतेर्विएव में बतय कि उन्हें एह्सास हुआ कि उनका काम, सेकोंद लॉ ऑफ़ थेर्मोद्य्नमिक्स या मुर्फ्य्स लॉ एक निष्ठुर कार्य है |वहा के अभिलेख ने उस व्यग्यनिक को पेहचाना होवर्द पर्सी "बोब" रोबेर्त्सोन (1903-1961) |रॉबर्टसन के कागजात कैलटेक अभिलेखागार में हैं; वहाँ एक पत्र में रॉबर्टसन रो एक साक्षात्कार 1949 के पहले तीन महीनों के भीतर प्रदान करता है | नाम " मुर्फ्य्स लॉ " तुरंत सुरक्षित नहीं था | फरवरी 1951 में ली कोर्रेय द्वरा एक कहानी में आश्चर्यजनक विज्ञान कथा में उसी लॉ को " रैल्ल्य्स लॉ " ऐसा बताया | परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष लुईस स्ट्रास ने चिकागो दैलि में 12 फरवरि 1955 को बताया कि " मुझे आशा है कि यह स्ट्रॉस 'लॉ के रूप में जाना जाएगा |" अर्थुर ब्लोच ने उनके "मुर्फ्य्स लॉ , एंड अदर रीज़ोंस वाय थिंग्स गो व्रोंग" के पहले किताब में ज़ोर्गे इ. निकोल्स द्वारा मिलें पत्र का उल्लेख किया है जो जेत प्रोपलशन लेबोरेतोरी के गुणवत्ता आश्वासन प्रबंधक है | वास्तविकता में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रिचर्ड Dawkins के अनुसार, मुर्फ्य्स लॉ एक बकवास है क्योंकि उन्हें निर्जीव वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उनकी खुद की इच्छाओं है, एक की अपनी इच्छाओं के अनुसार प्रतिक्रिया होती है | उन्होंने एक उधारन दिया | विमान हमेशा आकश में रहते है परन्तु उन पे तभी गौर किया जता है जब वह समस्या का कारण बन जाते है | अन्वेषक उनके पेहले से ही बने विचारो कि पुष्टि करने के लिए सबूत धूंधता है परन्तु वह एसे सबूत नही धूंधता जो उसके विचारो को विपरीत करते है |. मुर्फ्य्स लॉ के कई सन्दर्भ है जो थेर्मोद्य्नमिक्स के लॉ से समबंधित है | विशेष रूप से, मुर्फ्य्स लॉ अक्सर थेर्मोद्य्नमिक्स का दूसरा लॉ के फार्म के रूप में पेश किया जाता है, क्योंकि दोनों एक अधिक  संगठित प्रपत्र की भविष्यवाणी करते है | अतनु चटर्जी औपचारिक रूप से गणितीय संदर्भ में मुर्फ्य्स लॉ को बताते हुए इस विचार की जांच की। चटर्जी ने पाया है कि मुर्फ्य्स लॉ को कम से कम कार्रवाई के सिद्धांत से गलत साबित किया जा सकता है | एसोसिएशन के साथ मर्फी लेखक निक टी स्पार्क द्वारा लिखित पुस्तक ' अ हिस्त्री ऑफ़ मुर्फ्य्स लॉ ' के अनुसार विभिन्न प्रतिभागियों द्वारा भिन्न के अनुसार यह असंभव हुआ कि किसने सबसे पहले मुर्फ्य्स लॉ ,यह गढ़ा किया | यह मुहवरा तब गढ़ा गया था जब मुर्फ्य के मुताबिक उनके उपकरण प्रदर्शन करने में नाकाम रहे और यह वर्तमान रूप में डाली गई थी, सम्मेलन प्रेस करने से पहले जो डॉ जॉन स्ताप्प, एक अमेरिकी द्वारा दिए गए वायु सेना के कर्नल और 1950 के दशक में फ्लाइट सर्जन द्वारा हुई थी | जब तक स्पार्क ने बात कि छाबीन की यह संघर्षों कि सूचना नही थी | 1948 से 1949 तक, स्ताप्प सेना एयर फील्ड पर अनुसंधान परियोजना MX981 अध्यक्षता में (जो बाद में नाम बदलकर एडवर्ड्स एयर फोर्स बेस) तेजी से मंदी के दौरान जी-बलों के लिए मानव सहिष्णुता परीक्षण किया था | परीक्षण एक रॉकेट स्लेज अंत में हाइड्रोलिक ब्रेक की एक श्रृंखला के साथ एक रेल ट्रैक पर मुहिम का इस्तेमाल किया। प्रारंभिक परीक्षणों में एक हुमनोइद क्रैश परीक्षण का इस्तमाल हुआ, लेकिन बाद में परीक्षण उस समय एक वायु सेना के कप्तान पर, Stapp द्वारा प्रदर्शन किया गया था | परीक्षण के दौरान, उपकरनो कि सतिक्ता मापने के संधर्भ में सवाल उठाएँ गए थे जो स्ताप्प अनुभाव कर रहे थे | एडवर्ड मर्फी इलेक्ट्रॉनिक तनाव बल उसकी तेजी से मंदी के द्वारा उन पर लगाए गए मापने के लिए Stapp के दोहन के निरोधक अकड़न से जुड़ी गेज का उपयोग कर प्रस्ताव रखा। मर्फी इसी तरह के अनुसंधान का समर्थन करने के लिए उच्च गति सेंट्रीफ्यूज का उपयोग कर जी बलों को उत्पन्न करने में लगे हुए थे | मर्फी के सहायक दोहन तार, और एक परीक्षण चिम्पंज़े का उपयोग कर चला गया था | सेंसर एक शून्य पढ़ने प्रदान कर रहे थे; हालांकि, यह स्पष्ट हो गया था कि वे गलत तरीके से स्थापित किए गए थे, प्रत्येक संवेदक के साथ पीछे की ओर वायर्ड थी | यह वह समय था जब निराश मुर्फ्य ने अपनी घोषणा की | निक स्पार्क द्वारा किए गए एक साक्षात्कार में, जॉर्ज निकोल्स, एक और इंजीनियर जो मौजूद थे, ने कहा कि ने असफल परीक्षण के पीछे अपने सहायक को दोषी ठहराया और कहा," अगर उस आदमी को जलती करनी है तो वह करेगा | निकोल्स 'खाता है कि "मुर्फ्य्स लॉ" टीम के अन्य सदस्यों के बीच बातचीत के माध्यम से आया है | दूसरों को, एडवर्ड मर्फी के जीवित बेटा रॉबर्ट मर्फी सहित निकोल्स 'खाता इनकार करते हैं (जो हिल, दोनों स्पार्क द्वारा साक्षात्कार के द्वारा समर्थित है), और उन्होंने दावा किया कि वास्तव में मुर्फ्य्स लॉ एडवर्ड मर्फी के साथ आरंभ हुआ था | रॉबर्ट मर्फी के खाते के अनुसार, उनके पिता का बयान था, "अगर कोई काम एक से अधिक तरह से किया जा सकता है और अग्र वह सारे रास्ते आपदो में परिणाम होंगे , तो वह उसी तरह से काम करेंगे |" इस मुहवरे को जनता का ध्यान एक संवाददाता सम्मेलन में मिला जिसमे स्ताप्प से पुछा गय था कि कैसे कोई रॉकेट स्लेज परीक्षण के दौरान घायल नही हुआ | स्त्तप्प ने कहा कि वह हमेशा मुर्फ्य्स लॉ को लेकर विचाराधीन थे और उन्होंने कहा कि परीक्षण करने से पहले सभी संभावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए और उसके बाद कि उनपर कार्य करना चाहिए |इस प्रकार स्ताप्प के उपयोग और मर्फी की कथित उपयोग दृष्टिकोण और व्यवहार में बहुत अन्तर है | हिल और निकोल्स का मानना था कि मर्फी (ही कोई बड़े महत्व का एक ब्लिप द्वारा) डिवाइस के आरंभिक असफलता के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं थे | व्यापक अनुसंधान के बावजूद, मुर्फ्य्स लॉ के रूप में कह के प्रलेखन का कोई निशान (ऊपर देखें) 1951 से पहले पाया नही गया है।अगले प्रशंसा पत्र 1955 तक नहीं मिला रहे हैं, जब विमानन यांत्रिकी बुलेटिन के मई-जून अंक लाइन शामिल "मर्फी की विधि: "अगर एक विमान का हिस्सा गलत तरीके से स्थापित किया जा सकता है, तो कोई ना कोई उसे उस तरीके से स्थापित करेगा," और 1962 में बुध अंतरिक्ष यात्रियों ने अमेरिकी नौसेना के प्रशिक्षण फिल्मों के लिए मुर्फ्य्स लॉ को जिम्मेदार ठहराया।. अन्य रूपों पर मर्फी कानून अपनी आरंभिक सार्वजनिक घोषणा से, मुर्फ्य्स लॉ जल्दी विभिन्न तकनीकी एयरोस्पेस इंजीनियरिंग से जुड़े संस्कृतियों में फैल गया। लेखक आर्थर बलोच ने मुर्फ्य्स लॉ और उसके बदलाव से संधर्भित परिणामो से भरे अन्य किताबे संकलित किया है सन्दर्भ जोखिम
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%9E%E0%A5%8D%E0%A4%9C%20%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE
मोरेलगञ्ज उपज़िला
मोरेलगंज उपजिला, बांग्लादेश का एक उपज़िला है, जोकी बांग्लादेश में तृतीय स्तर का प्रशासनिक अंचल होता है (ज़िले की अधीन)। यह खुलना विभाग के बगेरहाट ज़िले का एक उपजिला है, जिसमें, ज़िला सदर समेत, कुल ९ उपज़िले हैं, और मुख्यालय बगेरहाट सदर उपज़िला है। यह बांग्लादेश की राजधानी ढाका से दक्षिण-पश्चिम की दिशा में अवस्थित है। यह मुख्यतः एक ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। जनसांख्यिकी यहाँ की आधिकारिक स्तर की भाषाएँ बांग्ला और अंग्रेज़ी है। तथा बांग्लादेश के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह ही, यहाँ की भी प्रमुख मौखिक भाषा और मातृभाषा बांग्ला है। बंगाली के अलावा अंग्रेज़ी भाषा भी कई लोगों द्वारा जानी और समझी जाती है, जबकि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निकटता तथा भाषाई समानता के कारण, कई लोग सीमित मात्रा में हिंदुस्तानी(हिंदी/उर्दू) भी समझने में सक्षम हैं। यहाँ का बहुसंख्यक धर्म, इस्लाम है, जबकि प्रमुख अल्पसंख्यक धर्म, हिन्दू धर्म है। खुलना विभाग में, जनसांख्यिकीक रूप से, इस्लाम के अनुयाई, आबादी के औसतन ८३.६१% है, जबकि शेष जनसंख्या प्रमुखतः हिन्दू धर्म की अनुयाई है। बांग्लादेश के सारे विभागों में, खुलना विभाग में मुसलमान आबादी की तुलना में हिन्दू आबादी की का अनुपात सबसे अधिक है। यह मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्र है, और अधिकांश आबादी ग्राम्य इलाकों में रहती है। अवस्थिति मोरेलगंज उपजिला बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी भाग में, खुलना विभाग के बगेरहाट जिले में स्थित है। इन्हें भी देखें बांग्लादेश के उपजिले बांग्लादेश का प्रशासनिक भूगोल खुलना विभाग उपज़िला निर्वाहि अधिकारी सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ उपज़िलों की सूची (पीडीएफ) (अंग्रेज़ी) जिलानुसार उपज़िलों की सूचि-लोकल गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट, बांग्लादेश http://hrcbmdfw.org/CS20/Web/files/489/download.aspx (पीडीएफ) श्रेणी:खुलना विभाग के उपजिले बांग्लादेश के उपजिले
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A5%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%9F%E0%A4%A8%2C%20%E0%A4%93%E0%A4%82%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B
थॉर्नटन, ओंटारियो
थॉर्नटन एस्सा टाउनशिप, सिमको काउंटी, ओंटारियो, कनाडा में एक अनिगमित स्थान है। 2016 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 986 थी। यह टोरंटो के उत्तर में पर स्थित है। इतिहास थॉर्नटन का शहर 1820 के दशक के दौरान विकसित हुआ, और 1833 में प्रारंभिक बसने वाले जॉन हेनरी के बाद हेनरीसविले (या हेनरी कॉर्नर) के रूप में स्थापित किया गया था, जो पहले शिक्षक और फिर स्कूल मास्टर थे, और बाद में 1854 में एक कार्यालय खुलने पर पोस्टमास्टर बन गए। हेनरीसविले नाम ने उस समय मेल सिस्टम में भ्रम पैदा हुआ था, इसलिए 1854 में हेनरी थॉर्नटन के नाम पर समुदाय थॉर्नटन बन गया, जिसके पास ग्रिस्ट मिल, सॉ मिल और प्लानिंग मिल थीं। ताज़ा इतिहास थॉर्नटन में पिछले 10 वर्षों में दो उपखंडों का निर्माण हुआ है। जनवरी 2019 तक, Hwy 27 (बैरी स्ट्रीट) के पश्चिम की ओर वर्तमान में एस्टेट घरों का एक नया आवासीय उपखंड विकसित हो रहा है। । थॉर्नटन क्रॉसिंग प्लाजा को थॉर्नटन पोस्ट ऑफिस और कुछ निजी व्यवसायों सहित विभिन्न व्यवसायों के लिए भी बनाया गया है। भूगोल थॉर्नटन आम तौर पर समतल और उपजाऊ मिट्टी पर कुकस्टाउन, ओंटारियो के उत्तर में लगभग और बैरी, ओंटारियो के दक्षिण में पर स्थित है। ट्रांस कनाडा ट्रेल थॉर्नटन के मध्य से चलती है और कंट्री रोड 21 और काउंटी रोड 27 के चौराहे थॉर्नटन के गांव का केंद्र हैं। आकर्षण थॉर्नटन में फायर स्टेशन स्वयंसेवकों द्वारा चलाया जाता है और एक नगरपालिका सेवा है जो आपातकालीन स्थितियों में सहायता प्रदान करती है, आग की रोकथाम के बारे में शिक्षा, और आग परमिट प्रदान करती है। फायर स्टेशन की इमारत को एसा पब्लिक लाइब्रेरी के साथ साझा किया गया है। एसा पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना दिसंबर 1996 में हुई थी। इसमें सामुदायिक कार्यक्रमों और गतिविधियों के लिए एक बैठक कक्ष भी है और अपने ग्राहकों को इंटरनेट की सुविधा प्रदान करता है। थॉर्नटन एरिना वह जगह है जहां थॉर्नटन टाइगर्स खेलते हैं जो कि एक छोटी हॉकी लीग टीम है। संदर्भ विकिडेटा पर उपलब्ध निर्देशांक ओंटारिओ में प्रमुख स्थान कनाडा
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अयोध्या प्रसाद खत्री
अयोध्या प्रसाद खत्री (१८५७-४ जनवरी १९०५) हिन्दे के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनका नाम हिंदी पद्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में प्रमुख है। उन्होंने उस समय हिन्दी कविता में खड़ी बोली के महत्त्व पर जोर दिया जब अधिकतर लोग ब्रजभाषा में कविता लिख रहे थे। १८७७ में उन्होंने "हिन्दी व्याकरण" नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनके अनुसार खड़ीबोली गद्य की चार शैलियाँ थीं- मौलवी शैली, मुंशी शैली, पण्डित शैली तथा मास्टर शैली। अयोध्याप्रसाद खत्री का जन्म सन १८५७ में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिकन्दरपुर में हुआ थ। बाद में वे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कलक्‍टरी के पेशकार पद पर नियुक्त हुए। १८८७-८९ में इन्होंने "खड़ीबोली का पद्य" नामक संग्रह दो भागों में प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न शैलियों की रचनाएँ संकलित की गयीं। इसके अतिरिक्त सभाओं आदि में बोलकर भी वे खड़ीबोली के पक्ष का समर्थन करते थे। सरस्वती मार्च १९०५ में प्रकाशित "अयोध्याप्रसाद खत्री" शीर्षक जीवनी के लेखक पुरुषोत्तमप्रसाद ने लिखा था कि खड़ी बोली का प्रचार करने के लिए इन्होंने इतना द्रव्य खर्च किया कि राजा-महाराजा भी कम करते हैं। १८८८ में उन्‍होंने 'खड़ी बोली का आन्दोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। भारतेंदु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन पद्य की भाषा के रूप में ब्रजभाषा का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने गद्य और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ खींचा, साथ ही इसे आंदोलन का रूप दिया। हिंदी पुनर्जागरण काल में स्रष्टा के रूप में जहाँ एक ओर भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा प्रतिभा-पुरुष खड़ा था तो दूसरी ओर द्रष्टा के रूप में अयोध्याप्रसाद खत्री जैसा अद्वितीय युगांतरकारी व्यक्तित्व था। इसी क्रम में खत्री जी ने 'खड़ी-बोली का पद्य` दो खंडों में छपवाया। इस किताब के जरिए एक साहित्यिक आंदोलन की शुरुआत हुई। हिन्दी कविता की भाषा क्या हो, ब्रजभाषा अथवा खड़ीबोली हिन्दी? जिसका ग्रियर्सन के साथ भारतेंदु मंडल के अनेक लेखकों ने प्रतिवाद किया तो फ्रेडरिक पिन्काट ने समर्थन। इस दृष्टि से यह भाषा, धर्म, जाति, राज्य आदि क्षेत्रीयताओं के सामूहिक उद्घोष का नवजागरण था। जुलाई २००७ में बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में उनकी समृति में 'अयोध्या प्रसाद खत्री जयन्ती समारोह समिति' की स्थापना की गई। इसके द्वारा प्रति वर्ष हिंदी साहित्य में विशेष योगदन करने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति को अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार में अयोध्या प्रसाद खत्री की डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा, शाल और नकद राशि प्रदान की जाती है। ५-६ जुलाई २००७ को पटना में खड़ी बोली के प्रथम आंदोलनकर्ता अयोध्या प्रसाद खत्री की १५०वीं जयंती आयोजित की गई। संस्था के अध्यक्ष श्री वीरेन नन्दा द्वारा श्री अयोध्या प्रसाद खत्री के जीवन तथा कार्यों पर केन्द्रित 'खड़ी बोली का चाणक्य' शीर्षक फिल्म का निर्माण किया गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ अयोध्या प्रसाद खत्री हिन्दी कवि हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%A8%20%28%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B0%2C%20%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%201990%29
मेहदी हसन (क्रिकेटर, जन्म 1990)
मेहदी हसन (जन्म 3 फरवरी 1990) एक भारतीय क्रिकेटर हैं जो हैदराबाद के लिए खेलते हैं। उन्होंने अपना ट्वेंटी 20 डेब्यू 10 जनवरी 2016 को सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में किया। जनवरी 2018 में, उन्हें सनराइजर्स हैदराबाद ने 2018 की आईपीएल नीलामी में 20 लाख रुपये में खरीदा था। वह 2018-19 में विजय हजारे ट्रॉफी में हैदराबाद के लिए अग्रणी विकेट लेने वाले आठ मैचों में पंद्रह रन बनाकर आउट हुए। सन्दर्भ 1990 में जन्मे लोग जीवित लोग भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
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महबूबनगर
महबूबनगर (Mahbubnagar) भारत के तेलंगाना राज्य के महबूबनगर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। इस शहर पालमूर भी कहजाता है। महबूबनगर हैदराबाद से 100 किलोमीटर दूरी पर है। तेलंगाना में सबसे बडे जिलों में महबूबनगर द्वितीय स्थान पर है। हैदराबाद के दक्षिण-पश्चिम में मध्य रेलमार्ग पर स्थित महबूबनगर सड़क मार्ग का भी केंद्र है। इस शहर में एक महाविद्यालय भी है। 18,419 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला महबूबनगर ज़िला दक्कन के पठार पर स्थित है और दक्षिण में कृष्णा नदी से घिरा है। कहा जाता है कि गोलकुंडा के प्रसिद्ध हीरे इसी ज़िले से मिले थे। उद्योग और व्यापार कपास की ओटाई, गांठ बनाने का काम, तेल और चावल मिल यहाँ के प्रमुख उद्योग है। दक्षिण-पूर्व में स्थित वनाच्छादित पर्वतों से सागौन, आबनूस और गोंद प्राप्त होता है। जबकि मुख्यत: बलुई मिट्टी में ज्वार-बाजरा, तिलहन और चावल की खेती होती है। यहाँ के औद्योगिक केंद्रों में नारायणपेट (जहाँ रेशम और साड़ी का उत्पादन होता है) देवरकोंडा और नगर कुर्नूल शामिल है। चित्रदीर्घा इन्हें भी देखें महबूबनगर ज़िला सन्दर्भ तेलंगाना के नगर महबूबनगर जिला महबूबनगर ज़िले के नगर
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%20%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A6
किश्वर नाहिद
किश्वर नाहिद (उर्दू: کشور ناہید) (जन्म 1940) पाकिस्तान से एक नारीवादी उर्दू कवि है। उसने कविता की कई किताबें लिखी हैं। उसे उर्दू साहित्य में अपने साहित्यिक योगदान के लिए सितारा-ए-इम्तियाज के सहित कई पुरस्कार मिले हैं। प्रारंभिक जीवन नाहिद का जन्म 1940 में बुलंदशहर, भारत के एक सैयद परिवार में हुआ। वह विभाजन के बाद 1949 में अपने परिवार के साथ लाहौर, पाकिस्तान माइग्रेट कर गई। उसने शिक्षा प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया और लड़ी जब महिलाओं को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी। उसने घर में अध्ययन किया और पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से एक उच्च विद्यालय डिप्लोमा प्राप्त किया। पाकिस्तान में वह पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर से अर्थशास्त्र में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। किश्वर की शादी एक कवि यूसुफ कामरान से हुई। और इस जोड़ी के दो बेटे हैं। पति की मौत के बाद, उसने अपने बच्चों और परिवार का समर्थन करने के लिए काम किया है। कैरियर पाकिस्तान के नेशनल काउंसिल ऑफ आर्ट्स के महानिदेशक के रूप में नाहिद ने विभिन्न राष्ट्रीय संस्थानों में प्रमुख पदों पर काम किया है। उसने एक साहित्यिक पत्रिका माहे नव भी काम किया और संपादित किया। उसने हव्वा संगठन (ईव) की स्थापना की। संगठन का उद्देश्य उन महिलाओं की सहायता करना है, जिनके पास स्वतंत्र आय नहीं है, कुटीर उद्योगों के माध्यम से आर्थिक रूप से अवसर प्रदान करना और हस्तशिल्प बेचना है। साहित्यिक काम किश्वर ने 1969 से 1990 के बीच छह संग्रहों की कविता लिखी है। उनकी पहली कविता संग्रह लैब-आई गोया 1 9 68 में प्रकाशित हुआ था, जो साहित्य के आदमजी पुरस्कार जीता था। वह बच्चों के लिए और दैनिक जंग के लिए भी लिखती है उनकी कई कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी और स्पेनिश में किया गया है। सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ किश्वर नाहिद की ग़ज़लें पाकिस्तानी नारीवादी 1940 में जन्मे लोग जीवित लोग नारीवादी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%89%E0%A4%B7%E0%A4%BE%20%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE
उषा खन्ना
उषा खन्ना (जन्म: 7 अक्टूबर 1941) हिन्दी सिनेमा में एक भारतीय संगीत निर्देशिका रही हैं। वह कुछ चुनिंदा महिला संगीतकारों में से एक है और पुरुष प्रधान संगीत उद्योग में सबसे अधिक व्यावसायिक रूप से सफल संगीत निर्देशकों में से एक है। उन्होंने दिल देके देखो (1959) से संगीत निर्देशक के रूप में पदार्पण किया था। एक बड़ी हिट फिल्म सौतन (1983) के गीतों की रचना के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार में नामांकन मिला था। उनकी शादी निर्देशक, निर्माता, गीतकार, सावन कुमार टाक से हुई, जिनसे वे बाद में अलग हो गई। करियर लोकप्रिय संगीत निर्देशक ओ॰ पी॰ नैय्यर ने उषा खन्ना को उस समय भारतीय फिल्म उद्योग के एक शक्तिशाली व्यक्ति शशधर मुखर्जी से मिलवाया। उन्होंने मुखर्जी के लिए एक गीत गाया, और जब उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने अपने दम पर इस गीत की रचना की है, तो उन्होंने उन्हें एक वर्ष के लिए प्रति दिन दो गीतों की रचना करने के लिए कहा। कुछ महीनों के बाद, मुखर्जी ने अपनी फिल्म दिल देके देखो (1959) के संगीतकार के रूप में उन्हें पहला काम दिया। इस फिल्म से अभिनेत्री आशा पारेख की भी शुरुआत हुई और फिल्म एक बड़ी हिट बनी। मुखर्जी ने एक और आशा पारेख अभिनीत फिल्म हम हिन्दुस्तानी (1960) के लिए फिर से उन्हें काम पर रखा। हिन्दी फिल्मों के लिए कई हिट गानों के निर्माण के बावजूद उन्होंने खुद को एक संगीत निर्देशक के रूप में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने अक्सर आशा भोसले और मोहम्मद रफ़ी के साथ गीतों का निर्माण किया। सावन कुमार अक्सर उषा खन्ना के लिए गीतकार होते थे और उन्होंने उनके संगीत के लिए अधिकांश गीत लिखें थे। उन्होंने ग्यारह फिल्मों का निर्देशन और निर्माण किया, जिसके लिए उन्होंने संगीत तैयार किया। 1979 में येसुदास को फिल्म दादा में उनके गीत "दिल के टुकडे टुकडे" के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। उन्होंने उन गायकों को मौका दिया, जो उस समय बहुत कम जाने जाते थे - अनुपमा देशपांडे, पंकज उधास, हेमलता, मोहम्मद अज़ीज़, रूप कुमार राठौड़, शब्बीर कुमार और सोनू निगम। इनमें से कई उल्लेखनीय गायक बन गए। नब्बे के दशक के मध्य तक उषा खन्ना एक संगीतकार के रूप में काफी सक्रिय रहीं। अब तक, उनके संगीत दी हुई आखिरी फिल्म 2003 में जारी हुई, दिल परदेसी हो गया (2003) थी, जिसका निर्माण और निर्देशन उनके पूर्व पति सावन कुमार ने किया था। सन्दर्भ भारतीय फिल्म संगीतकार 1941 में जन्मे लोग जीवित लोग ग्वालियर के लोग
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%89%E0%A4%B8
सॉस
सॉस (sauce) एक पकवान है जो द्रव-अवस्था में या अर्ध-द्रव अवस्था में होती है तथा दूसरे भोजन के साथ या उसे सजाने के लिये प्रयोग की जाती है। सॉस प्राय: अकेले कभी भी नहीं ग्रहण की जाती है। सॉस के प्रयोग से किसी दूसरे व्यंजन का फ्लेवर, नमी बदली जाती है या इसके प्रयोग से भोजन देखने में सुन्दर/आकर्षक दिखने लगता है। सॉस एक ऐसी घरेलू भोज्य पदार्थ है जो आमतौर पर सभी के घरों में चाय नाश्ते में इस्तेमाल किया जाता है ।यह भोजन को स्वादिष्ट बनाने के साथ यह बच्चो का अत्यधिक पसंदीदा वाला भोज्य पदार्थ है जिसमे ब्रेड,पकोड़े, मोमोज,चाउमिन,नूडल्स, रोल इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है । सॉस फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - नमक मिलाया हुआ या नमकीन। इन्हें भी देखें चटनी बाहरी कड़ियाँ चटनी हो या सॉस स्वाद लाजवाब (जागरण) चटनी
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BF%E0%A4%A3%20%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%20%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%9F%20%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%AE%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A4%A1%20%E0%A4%A6%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%202020
दक्षिण अफ्रीका महिला क्रिकेट टीम का न्यूज़ीलैंड दौरा 2020
दक्षिण अफ्रीका महिला क्रिकेट टीम ने जनवरी और फरवरी 2020 में न्यूजीलैंड महिला क्रिकेट टीम से खेली। इस दौरे में तीन महिला वनडे इंटरनेशनल (मवनडे) शामिल थीं, जिसमें 2017-20 आईसीसी महिला चैम्पियनशिप का हिस्सा था, और पांच महिला ट्वेंटी 20 अंतर्राष्ट्रीय (मटी20ई) मैच थे। दक्षिण अफ्रीका ने पहले दो वनडे मैचों की श्रृंखला में अजेय बढ़त हासिल की। दक्षिण अफ्रीका ने तीसरा और अंतिम वनडे मैच छह विकेट से जीतकर श्रृंखला को 3-0 से अपने नाम किया। यह पहली बार था जब दक्षिण अफ्रीका ने न्यूजीलैंड को वनडे श्रृंखला में व्हाइटवॉश किया था। 3-0 श्रृंखला जीत के परिणामस्वरूप, दक्षिण अफ्रीका ने 2021 महिला क्रिकेट विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया। चौथे डब्ल्यूटी20ई मैच में अपनी जीत के बाद, न्यूजीलैंड ने 3-1 की बढ़त बना ली, और श्रृंखला जीत ली। बारिश के कारण पांचवें मैच को छोड़ने के बाद न्यूजीलैंड ने डब्ल्यूटी20ई श्रृंखला 3-1 से जीती। दस्तों महिला वनडे सीरीज पहला महिला वनडे दूसरा महिला वनडे तीसरा महिला वनडे महिला टी20ई सीरीज पहला महिला टी20ई दूसरा महिला टी20ई तीसरा महिला टी20ई चौथा महिला टी20ई पांचवां महिला टी20ई नोट्स सन्दर्भ 2017-20 आईसीसी महिला चैम्पियनशिप 2019-20 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतियोगिताएं 2020 में दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट 2020 में महिला क्रिकेट 2020 में न्यूजीलैंड क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के दौरे न्यूजीलैंड की महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट दौरे
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शमशाद बेगम (सामाजिक कार्यकर्ता)
शमशाद बेगम एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है, जिसे छत्तीसगढ़ के पिछड़े वर्गों की शिक्षा के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों में शिक्षा के लिए जाना जाता है। उन्हें भारत सरकार द्वारा २०१२ में, पद्म श्री के चौथे उच्चतम भारतीय नागरिक पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया था। शमशाद बेगम का जन्म भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में बालोद जिले में हुआ था। उन्होंने भारत सरकार के दुवारा चलाए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन कार्यक्रम में हिस्सा लिया और यह बताया गया है कि १९९५ में गंदरदेही में मिशन गतिविधियों को शुरू करने के छह महीने के भीतर, बेगम और उनके सहयोगियों ने १२२६९ महिलाओं को साक्षर बनाने में सक्षम बनाया, कुल १८२६५ अशिक्षित महिलाओं में से। शमसाद बेगम जनकलेन समिति के साथ जुडी हुए हैं जो एक सामाजिक कल्याण समूह, महिलाओं और बच्चों की शिक्षा और कल्याण गतिविधियों में शामिल है। शमसाद बेगम को २०१२ में भारत सरकार ने पद्म श्री के पुरस्कार से सम्मानित किया था। सन्दर्भ सामाजिक कार्यकर्ता
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